मुझे अपने परिवार की ओरल हाइजीन के लिए क्या करना चाहिए

सवाल

मैं 38 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मैं जानना चाहती हूं कि मुझे अपने परिवार के ओरल हाइजीन को बेहतर बनाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब

ओरल हाइजीन को बेहतर बनाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना सब से जरूरी है, साल में एक बार दांतों का चैकअप कराएं, ज्यादा पुराना ब्रश मसूड़ों और दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए हर 3 महीने में ब्रश बदल लें. सुबह और रात को 2 बार ब्रश करें. इस के अलावा कुछ भी खानेपीने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें.

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मेरी उम्र 28 साल है. मैं एक इवेंट मैनेजमैंट कंपनी में काम करती हूं. मेरे दांत बहुत पीले हो रहे हैं. मैं क्लीनिंग कराना चाहती हूं. क्या यह ठीक रहेगा?

जवाब

दांतों की क्लींनिंग मुंह की दुर्गंध, दांतों की सड़न और मसूड़ों की बीमारियों से बचाती है. इस के बाद दांतों का पीलापन दूर हो जाता है और वे सफेद और चमकीले दिखाई देने लगते हैं. वैसे तो यह सुरक्षित प्रक्रिया है लेकिन इस से जुड़े कुछ खतरे भी हैं. क्लींनिंग के बाद कई साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं.

दांतों में जमे प्लाक और टार्टर को निकालने के लिए कई बार एक से अधिक सिटिंग्स की जरूरत होती है. वैसे सामान्य क्लीनिंग की तुलना में डीप क्लीनिंग में साइड इफैक्ट्स होने का खतरा अधिक होता है. जैसे मसूड़ों में दांतों की मजबूत पकड़ ढीली हो सकती हैं, मसूड़ों का संक्रमण हो सकता है, दांतों में दर्द और मसूड़ों में सूजन हो सकती है, तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, दांतों में संवेदनशीलता विकसित हो सकती है. इसलिए दांतों की क्लीनिंग किसी अच्छे डैंटिस्ट से ही कराएं.

-डा. सुमन यादव

हैड, मैक्सिलोफैशियल ऐंड डैंटल डिपार्टमैंट, नुमेड हौस्पिटल, नोएडा. द्य

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दीवाली नई सोच नया अंदाज

प्रिया कई दिनों से दीवाली की शौपिंग कर रही थी. आज वह कपड़ों की शौपिंग के लिए गई थी. जैसाकि हर साल होता था उस के पति और सास उम्मीद कर रहे थे कि वह अपने दीवाली लुक के लिए कोई खूबसूरत सी साड़ी या शरारा या फिर घेरदार सूट जैसी कोई ऐथनिक ड्रैस लाएगी. दरअसल, दीवाली में ऐथनिक लुक को ही परफैक्ट माना जाता है.

लेकिन प्रिया के मन में कुछ और ही चल रहा था. जब वह वापस आई तो उस के हाथ में एक खूबसूरत सी वैस्टर्न ड्रैस थी. यह ड्रैस मैरून कलर की स्टाइलिश मिडी थी जिस की बाजुओं पर कुछ गोल्डन स्टोंस जड़े थे. उस के ऊपर गोल्डन कलर की कोटी यानी जैकेट थी. ओवरऔल ड्रैस बहुत खूबसूरत लग रही थी मगर उसे डर था कि ड्रैस देख कर उस की सास उस से नाराज न हो जाए. इसलिए बड़े प्यार से उन के गले में बांहें डाल कर प्रिया ने पूछा, ‘‘क्या मैं दीवाली के दिन अपनी पसंद की यह ड्रैस पहन सकती हूं मां?’’

सास ने उस की तरफ आश्चर्य से देखा और बोलीं, ‘‘साड़ी/शरारा या फिर अनारकली सूट क्यों नहीं लिया? इस बार तुम यह क्या ले कर आई हो?’’

‘‘मां याद है आप को पिछले साल मैं ने साड़ी पहनी हुई थी और मेरी साड़ी के आंचल में दीए से आग लग गई थी. 1 मिनट में ही क्या से क्या हो सकता था.’’

‘‘हां वह तो याद है मुझे मगर उस में तेरी लापरवाही थी. आखिर तो दीवाली के दिन घर की बहू को इस तरह के ही कपड़े पहनने चाहिए न जो उसे शोभा दें.’’

तभी पति ने बीच में कहा, ‘‘नहीं मां ऐसा क्या है? कपड़े तो वे पहनने चाहिए न जो कंफर्टेबल हों और स्टाइलिश भी हों. लेकिन ऐसा न पहनें जो आप को बोझ लगने लगे. प्रिया को साड़ी पहननी भी नहीं आती. उसे साड़ी संभालने में दिक्कत होती है. उस के बावजूद वह हर साल साड़ी पहनती है. मगर आप ने पिछले साल देखा कि साड़ी की वजह से किस तरह बड़ी दुर्घटना हो सकती थी. अगर वह चाहती है कि कुछ और पहने और अच्छी दिखे तो क्या बुराई है?’’

मां ने एक बार फिर ऊपर से नीचे तक वह ड्रैस देखी और मुंह बना लिया. पति ने मां को फिर सम?ाया, ‘‘मां, एक बार देख तो लो कि कितनी खूबसूरत लगेगी प्रिया इसे पहन कर.’’

प्रिया ड्रैस को पहन कर आई तो वाकई सब देखते रह गए. वह जितनी स्टाइलिश लग रही थी उतनी ही खूबसूरत भी लग रही थी और साथ ही यह ड्रैस बिलकुल दीवाली के मिजाज की भी थी.

सास ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘पुरानी सोच और पुरानी परंपराओं को मानने के बावजूद मैं तेरी इस नई सोच और इस नई ड्रैस के लिए पौजिटिव हूं. यह मुझे पसंद आई है. तू वही पहन और वही कर जो तुझे अच्छा लगे, जो कर के तुझे खुशी मिले. यह त्योहार खुशियों का त्योहार है. इस में हर किसी को अपने हिसाब से अपनी खुशियां बटोरने का पूरापूरा हक है.’’

प्रिया सास के गले लग गई. पति भी हौलेहौले उन दोनों को देख कर मुसकराने लगा.

जो मन आए वह पहनें दरअसल, महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे दीवाली जैसे मौके पर ऐथनिक ड्रैस ही पहनें साड़ी/लहंगा/चोली/शरारा या फिर घेरदार सूट वगैरा. जबकि इस तरह के कपड़े अकसर जल्दी आग पकड़ते हैं और कंफर्टेबल भी नहीं होते. कभी दुपट्टा संभालो तो कभी साड़ी का पल्लू. इसलिए वह ड्रैस पहनें जो आप का दिल कर रहा है. जरूरी नहीं कि इस दिन बंधीबंधाई परंपराओं के हिसाब से आप कोई ऐथनिक ड्रैस ही पहनें. ऐसा भी नहीं कि ऐथनिक ड्रैस में ही आप खूबसूरत लगेंगी.

आप का मन है तो आप मौडर्न ड्रैस भी पहन सकती हैं. आप अपने हिसाब से कुछ अलग और क्रिएटिव सोच रखें और अलग तरह की ड्रैस ला कर देखें. बस चुनाव करते समय इतना ध्यान रखें कि वह ड्रैस आप के ऊपर फबे और आप कंफर्टेबल रहें. साथ ही वह थोड़ी ब्राइट कलर की भी ड्रैस हो. डल कलर न पहनें. थोड़ाबहुत काम भी किया हुआ हो ताकि वह दीवाली के मिजाज से मिलता हुआ हो. इस से आप दूसरों से एकदम अलग नजर आएंगी और दूसरों से ज्यादा खूबसूरत लगेंगी.

हमारे जीवन में दीवाली जैसे रंग और रोशनी के त्योहार बेहद खास होते हैं. रोजाना की बोरिंग दिनचर्या से दूर ये कुछ दिन हम सब अपने परिजनों और दोस्तों के साथ सैलिब्रेट करते हैं. हर परेशानी और मुश्किल को भूल कर कुछ समय केवल हंसतेमुसकराते और मस्ती करते हुए बिताते हैं. बाद में ये ही पल खूबसूरत यादें बन कर हमारे मन में उत्साह भरते रहते हैं.

महिलाएं दीवाली के कुछ दिन पहले से ही इस की तैयारियों में व्यस्त रहने लगती हैं. सारे घर की सफाई, सजावट, नए कपड़ों और दूसरे सामान की शौपिंग, मिठाई का इंतजाम, दीवाली की दूसरी तैयारियां वगैरह. मगर कुछ बातें ऐसी भी हैं जिन का ध्यान रख कर आप अपनी दीवाली और भी खूबसूरत और यादगार बना सकते हैं:

सप्ताहभर की मस्ती

पति के दोस्तों और अपनी सहेलियों को घर पर इन्वाइट करें और जम कर पार्टी कीजिए. दिल खोल कर एकदूसरे से मिलिए. एक दिन आप को मेजबानी करनी है और बाकी दिन आप अपने खास दोस्तों के घर मेहमान बन कर जाइए. उन के साथ कुछ खुशियों के पल गुजारिए. पुरानी यादें ताजा कीजिए. किसी दिन एक दोस्त के घर जाएं तो दूसरे दिन किसी और दोस्त के घर पार्टी करें. मतलब दीवाली पार्टी सप्ताहभर का प्रोग्राम है. नाचगानों का आनंद उठाएं. खाएं और खिलाएं. लड़ाई?ागड़े और शिकवेशिकायतें भूल कर बस प्यार और खुशियां बांटें. अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिल कर उन से अपने दिल की बातें करें.

बिंदास रहें

दीवाली का मतलब है दिल खोल कर खुशियों को अपने दिलोदिमाग में और अपने जीवन में जगह देना. इसे किसी तरह की मजबूरी या बंधन के साथ न मनाएं. आप ऐसा न सोचें कि आप परंपराओं से बंधी हुई हैं. आप बिंदास रहें. वैसे दीवाली मनाएं जैसे आप का मन कर रहा हो. खूब मिठाई खाएं. अपने ऊपर यह सोच हावी न होने दें कि मिठाई खाने से मोटी हो जाएंगी. हां, इतना जरूर कीजिए कि मिठाई अपने घर में बनाएं. 1-2 दिन जी भर कर मिठाई खा भी ली तो कोई आफत नहीं टूटेगी. अपनी जिंदगी को जीने की कोशिश कीजिए.

त्योहारों के इस मौसम में बंधी हुई सी या रुकी सी जिंदगी से दूर एक मस्त जिंदगी का आनंद लीजिए. अभी आप के पास छुट्टियां हैं. अगर आप औफिस जा भी रही हैं तो घर आ कर अपनेआप को पूरी तरह उत्सव के रंगों में डुबो लीजिए. शाम में शौपिंग कीजिए. नईनई चीजें घर लाइए जिन से दीवाली में आप के मन में भी रौनक रहे.

दीवाली के दिन कोई झगड़ा नहीं

कई बार होता यह है कि हम त्योहार के समय किसी से झगड़ पड़ते हैं और पूरे परिवार का मजा खराब कर देते हैं. प्रिया ने भी यही गलती की. दीवाली से 10 दिन पहले ही अपनी जेठानी से झगड़ पड़ी. बात बहुत छोटी सी थी मगर दोनों में बातचीत बंद हो गई. दोनों एक ही बिल्डिंग में ऊपर और नीचे के फ्लोर में रहती थीं. दरअसल, उन के बच्चों के बीच झगड़ा हुआ था और उसी झगड़े को दोनों ने आपसी झगड़े में बदल दिया.

इस बात का उन की दीवाली की रौनक पर इतना बुरा असर पड़ा कि न तो बच्चे ही खुश हो कर दीवाली मना पाए और न ही बाकी घर वाले. दोनों ने अपने बच्चों को दूसरे के बच्चों से मिलने से मना कर दिया. दीवाली के दिन भी बच्चे अपनेअपने घर में गुमसुम से रहे.

पहले हमेशा दीवाली के दिन दोनों परिवार मिल कर दीवाली मनाते थे तो रौनक लगी रहती थी. मगर इस दफा रिश्तेदार भी उन के घर आने से कतराने लगे क्योंकि इस तरह के माहौल में कोई भी आना नहीं चाहता था. इस का असर घर के माहौल पर पड़ा. पतिपत्नी के बीच भी झगड़ा हो गया और एक अच्छाखासा खुशी का त्योहार नाराजगी और रोनेधोने में बीत गया.

जाहिर है अगर आप त्योहार के दौरान किसी से विवाद करती हैं तो आप का मूड खराब हो जाता है और त्योहार का मजा किरकिरा हो जाता है. पतिपत्नी एकदूसरे को ताने कस रहे हों, शिकवेशिकायतें कर रहे हों तो उस से भी मन खट्टा हो जाता है और त्योहार का उत्साह ठंडा पड़ने लगता है. इसलिए दीवाली के दिनों में बिलकुल अपने पति या घर के दूसरे सदस्यों से ?ागड़ा या विवाद न करें. सारे मामले प्यार से और एकदूसरे को सम्मान दे कर सुल?ाएं क्योंकि जब आप के रिश्ते खूबसूरत होंगे तो त्योहारों का भी मजा आएगा.

कपल्स मिल कर करें तैयारी

कपल्स की दीवाली तब अधिक शानदार होगी जब दोनों मिल कर हर जिम्मेदारी निभाएं. शौपिंग के लिए अकेली पत्नी क्यों जाए? दोनों जाएंगे तो 2 दिमाग मिल कर ज्यादा बेहतर शौपिंग कर पाएंगे. दोनों की पसंद की चीजें घर में आएंगी और खरीदी गई चीजों पर मीनमेख निकालने के चांसेज कम हो जाएंगे. किसी एक पर बर्डन नहीं पड़ेगा तो दोनों के चेहरे खिलेखिले रहेंगे. साथ समय बिताने का मौका भी मिलेगा और लगे हाथ दोनों बाहर लंच या डिनर करने का आनंद भी उठा सकेंगे. एकदूसरे की पसंद की गिफ्ट आइटम्स भी ले सकेंगे और दोनों को पता रहेगा कि कहां कितना खर्च हो रहा है. इसलिए अब पुरानी सोच भूल जाएं कि दीवाली की तैयारी और शौपिंग करना अकेली पत्नी का ही काम है. कपल्स के लिए दीवाली रोशनी और उमंग का त्योहार ही नहीं है बल्कि एक नई खूबसूरत जिंदगी की धरोहर भी है. रूठों को मनाएं या सोचना छोड़ दें कई बार होता यह है कि हम किसी रिश्ते के कारण अकसर ही परेशान रहते हैं. हमारे कई रिश्तेदार ऐसे होते हैं जो हमें कहीं न कहीं परेशान किए रहते हैं. वे जिंदगीभर कुछ न कुछ शिकवेशिकायत कर के आप को दुखी करते रहते हैं. ऐसे में या तो उस रिश्ते को अच्छे से निभाएं और सामने वाले की सारी शिकायतें दूर करने का प्रयास करें. आप यह कोशिश सालों से कर रही हैं पर यह संभव नहीं हो पा रहा है तो मिट्टी डालें और उस रिश्ते को पूरी तरह भूल जाएं.

दीवाली या इस तरह के त्योहारों के मौके पर अपने मन को उल?ान में न डालें या दुखी और उदास न रखें बल्कि अगर कोई आप से अच्छे से बरताव नहीं कर रहा है और आप की लाख कोशिशों के बावजूद वह आप के प्रति अपना मन साफ नहीं रखता है, आप से शिकायतें करता है, ताने कसता है तो ऐसे व्यक्ति से त्योहार के मौके पर दूरी बना कर रहें. उस के बारे में न सोचें और न उसे फोन करें या बुलाएं, न ही उस के लिए कोई गिफ्ट भेजें यानी बिलकुल कट औफ कर लीजिए या रिश्ता बिलकुल खूबसूरत बना लीजिए ताकि आप का मन आनंदित रहे. आप के मन की खुशी के बीच किसी तरह का व्यवधान न आए.

नशा या जुआ जैसी चीजों से दूर रहें आप अपने पति से साफ बात करें कि इस दिन न तो वे शराब पीएंगे और न ही कोई दूसरा नशा करेंगे. अपने दोस्तों को बुला कर उन के साथ भी किसी तरह के नशे में शामिल नहीं होंगे. साथ ही जुआ खेलने की परंपरा भले ही पुरानी मानी जाए मगर यह सही नहीं है क्योंकि आप जुआ खेलेंगे तो आप के बीच झगड़ा हो सकता है और त्योहार का मजा किरकिरा हो जाता है. जितना आडंबर कम होगा, ताश या शराब से दूरी रहेगी उतना त्योहार खूबसूरत बना रहेगा.

सीख: भाग 1- क्या सुधीर को कभी अपनी गलती का एहसास हो पाया?

जया नहा धो कर तैयार हुई, माथे तक घूंघट किया, फिर धीरेधीरे सीढि़यां उतर कर नीचे आ गई. आते ही मम्मीजी के पैर छूने के लिए जैसे ही झुकी, वैसे ही मम्मीजी ने हाथ पकड़ कर ऊपर उठा लिया.

‘‘पैर छूना पुरानी बातें हैं, दिल में इज्जत होनी चाहिए, इतना ही काफी है और ये घूंघट क्यों बना लिया है?’’ और मम्मीजी ने जया के सिर से घूंघट उठा दिया.

‘‘मेज पर नाश्ता लग गया है, सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं. चलो, नाश्ता कर लो,’’  मम्मीजी ने प्यार से कहा.

जया ने अपनी भाभियों को ससुर व जेठ के साथ बराबर बैठ कर खातेपीते नहीं देखा था. पहले तो वह थोड़ी सी झिझकी फिर जा कर एक कुरसी पर बैठ गई.

पापाजी ने एक पकौड़ी का टुकड़ा मुंह में रखा और कहने लगे कि शंभू ने पकौडि़यां ठंडी कर दी हैं.

जया कुरसी से उठी और पकौडि़यों की प्लेट किचन में ले गई. कड़ाही आंच पर चढ़ा कर पकौडि़यां गरम कर लाई. पापाजी खुश हो गए.

‘‘घनश्याम घंटा भर पहले पानी फ्रिज से निकाल कर जग भर के रख देता है, जब तक खाओपियो पानी गरम होने लगता है,’’  विपिन ने कहा.

जया ने पानी का जग उठाया, उस का पानी बालटी में उड़ेल कर फ्रिज से बोतल निकाल कर जग में ठंडा पानी भर मेज पर रख दिया.

‘‘भाभी, इतने नौकर घूम रहे हैं, किसी नौकर को आवाज दे देतीं, आप खुद क्यों दौड़ रही हैं?’’ विभा ने भौंहें सिकोड़ कर कहा.

सुधीर पहले दिन से ही जया को मिडिल क्लास मेंटैलिटी का मान कर कुपित था और आज जया के बारबार खुद उठ कर नौकरानी की तरह भागने से मन ही मन क्रोधित हो रहा था. अत: विभा की बात समाप्त करते ही सुधीर फूट पड़ा, ‘‘अपने घर में  नौकरचाकर देखे हों तो नौकरों से काम लेना आए.’’

जया सहम गई, उसे याद आया मां ने चलतेचलते समझाया था, ‘‘घर में चाहे कितने भी नौकरचाकर हों, अपने परिवार वालों का अपने हाथों से परोसनेखिलाने से प्यार बढ़ता है, बड़ों का सम्मान होता है.’’

सुधीर का ताना सुन कर जया की आंखों में आंसू आ गए. उसे पता ही नहीं चला कि उस ने क्या खाया. सब लोग उठे तो वह भी धीरे से उठ कर कमरे में चली गई.

जया को ब्याह कर ससुराल आए 2 हफ्ते हो गए थे. वह अपने पति सुधीर के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही थी. एक दिन सुधीर के कुछ दोस्त आने वाले थे. जया ने किचन में जा कर मठरियां सेंक कर रख दीं. हलवा बना कर हौटकेस में रख दिया. नौकर से समोसे बाहर से लाने को कह कर जैसे ही बाहर निकली, वैसे ही एकसाथ कई आवाजें सुनाई दीं कि भाभीजी हम लोग आप से मिलने आए हैं, आप कहां छिप कर बैठ गईं?

जया धीरे से बाहर निकली और नमस्ते कर के सीटिंगरूम में एक कुरसी पर बैठ गई.

‘‘वाह भाभीजी, हम लोग यह सोच कर आए थे, कुछ अपनी कहेंगे, कुछ आप की सुनेंगे, मगर आप तो छुईमुई की तरह सिमटीसिकुड़ी चुपचाप बैठी हैं,’’ सुनील ने कहा.

‘‘छुईमुई तो हाथ लगने से सिकुड़ती है, भाभीजी तो हमारी आवाज से ही सिकुड़ गईं,’’ जतिन ने हंसते हुए जोड़ा.

‘‘भाभीजी नईनवेली दुलहन हैं, इतनी जल्दी कैसे खुल जाएंगी?’’  ललित हंस कर बोला. तभी घनश्याम ने चायनाश्ते की ट्रे ला कर मेज पर रख दी.

‘‘हलवा कितना लजीज बना है,’’  सुनील ने 1 चम्मच हलवा मुंह में रखते ही कहा, ‘‘और मठरियां कितनी खस्ता है, लगता है सारा सामान भाभीजी ने ही बनाया है,’’ ललित ने मठरी तोड़ते हुए कहा.

परंतु सुधीर ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए जया को ताना दिया, ‘‘इन्हें चौकाचूल्हे के सिवा और आता ही क्या है?’’

‘‘अच्छा भाभीजी, आप को चौकाचूल्हे के सिवा और कुछ नहीं आता?’’ कहतेकहते सब लोग ठहाका मार कर हंस पड़े. जया का मन झनझना उठा.

माहौल को सामान्य बनाने के उद्देश्य से प्रियंक बोला, ‘‘भाभीजी, सुना है आप के गांव के पास शारदा डैम बन गया है और वह बहुत रमणीय स्थल बन गया है. आप हम लोगों को बुलाइए, हम लोग पिकनिक मनाएंगे, डैम में जल विहार करेंगे, बड़ा मजा आएगा. सुधीर, चलने का प्रोग्राम बनाओ.’’

‘‘हां, इन के पिताजी के खेतखलिहान भी देख लेना,’’ सुधीर को जया पर कटाक्ष करने की आदत सी पड़ गई थी.

‘‘हांहां, आप लोग अवश्य आइए. आप लोग बड़े शहर में रहते हैं, आप ने गांव नहीं देखे होंगे. आप को वे अजीबोगरीब लगेंगे,’’ जया का स्वर हलका सा कठोर हो गया था.

‘‘क्या भाभीजी आप के गांव में बैलगाड़ी से आतेजाते हैं?’’ सुनील ने कुछ अज्ञानतावश तो कुछ व्यंग्यपूर्वक पूछा.

‘‘नहीं भाई साहब, हम लोग कसबे में रहते हैं, गांव में हमारा फार्म है, पिताजी के पास जीप है, पिताजी जीप से फार्म देखने जाते हैं, अगर खुद जा कर न देखें तो नौकरचाकर भट्ठा बैठा दें,’’ जया के स्वर में दृढ़ता थी.

थोड़ी देर गपशप कर के दोस्त तो चले गए, परंतु सुधीर का असंतोष उस के चेहरे से साफ झलक रहा था.

जया अपने कमरे में चली गई, जहां से उस ने सुना, सुधीर मां के पास बैठा  बड़बड़ा रहा था, ‘‘मां, आप ने कितने दकियानूसी परिवार की लड़की मेरे गले बांध दी. आखिर मुझ में क्या कमी है? स्मार्ट हूं, ऊंची पोस्ट पर हूं, मेरे कालेज की कितनी लड़कियां मुझ से शादी करने को तैयार थीं, परंतु आप की जिद के आगे मैं झुक गया.

जया कितनी पिछड़ी है, न उठनेबैठने की तमीज है न बोलने का सलीका, चार लोग आए तो सिमटसिकुड़ कर बैठ गई. बोली तो ऐसे बोली मानो पत्थर मार रही हो.

‘‘उस दिन एक दोस्त के बेटे के बर्थडे में गया, तो सब लड़कियां तालियां बजाबजा कर हैप्पी बर्थडे गा रही थीं, यह मुंह लटकाए चुपचाप खड़ी थी. कपड़े पहनने की तमीज नहीं, सर्दी में शिफान और गरमियों में सिल्क पहन कर चल देती है. एक हाई हील के सैंडल ला कर दिए तो पहन कर चलते ही गिर पड़ी. मुझे तो बहुत शर्म आती है. मेरे दोस्त अरुण की शादी अभी हाल ही में हुई है, उस की बीवी कितनी स्मार्ट है, फर्राटे से अंगरेजी बोलती है अरुण बता रहा था, लेडीज संगीत में उस की छोटी बहन ने उसे जबरदस्ती खड़ा कर दिया तो उस ने इतना अच्छा डांस किया कि सब लोग वाहवाह कर उठे.’’

नो प्रौब्लम: क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

लंच टाइम होते ही रोहित नीरजा के कक्ष में उस से मिलने आ पहुंचा. सामने पड़ी कुरसी पर बैठते ही उस ने अपना फैसला नीरजा को सुना दिया, ‘‘शादी की बात करने मैं कल इतवार की सुबह तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोशिश मत करो मेरा मन बदलने की, नीरजा. अगर मैं तुम्हारे भरोसे रहा तो दूल्हा बनने का इंतजार करतेकरते बूढ़ा हो जाऊंगा,’’ रोहित ने उसे अपने फैसले के विरोध में कुछ कहने नहीं दिया.

‘‘रोहित, जरा शांत हो कर मेरी बात सुनो. तुम से शादी करने का फैसला अभी मैं ने ही नहीं किया है. मेरे मम्मीपापा इस मामले में जब किसी तरह की रुकावट नहीं डाल रहे हैं तो फिर तुम उन दोनों से मिल कर क्या करोगे?’’

‘‘हम सब मिल कर तुम्हें समझाएंगे कि अकेले जिंदगी काटना न तुम्हारी बेटी महक के लिए अच्छा है, न तुम्हारे लिए. देखो, तुम मुझे एक बात साफसाफ बताओ, मैं जीवनसाथी के रूप में तुम्हें पसंद हूं या नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं पर मेरे लिए दूसरी शादी करने का फैसला करना इतना आसान और सीधा मामला नहीं है.’’

‘‘तुम्हें ‘हां’ कहने में प्रौब्लम क्या है?’’

‘‘मैं कई बार तो तुम्हें समझा चुकी हूं. मेरे ऊपर एक तो अपने मम्मीपापा की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, क्योंकि मैं उन की इकलौती संतान हूं. दूसरी बात यह कि महक की खुशियों के ऊपर… उस के समुचित मानसिक व भावनात्मक विकास पर मेरी शादी से कोई विपरीत प्रभाव पड़े, यह मुझे कभी स्वीकार नहीं होगा.’’

‘‘ये दोनों बातें तो कोई प्रौब्लम हैं ही नहीं, नीरजा. देखो, मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं तो जो भी मेरे दिल के करीब है, उस को मैं कैसे कोई दुखतकलीफ उठाते देख सकता हूं. तीनों का दिल जीत लेना मेरे लिए आसान काम है, मैडम.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस,’’ रोहित ने आत्मविश्वास भरे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मेरे मन की इन 2 चिंताओं को अगर तुम दूर कर दो तो…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ी और उस का हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराई.

‘‘नो प्रौब्लम, लेकिन जब ये तीनों मुझे तुम्हारे जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने को खुशी से तैयार हो जाएंगे, तब तो ‘हां’ कह दोगी न?’’

‘‘श्योर,’’ नीरजा का जवाब सुन कर रोहित खुश हो गया.

शाम को घर लौट कर नीरजा ने अपने मम्मीपापा को अगले दिन सुबह रोहित के घर आने की खबर दी तो उन दोनों की आंखों में आशा भरी चमक उभर आई.

‘‘यह लड़का सचमुच अच्छा है, नीरजा. उस के हावभाव से साफ जाहिर होता है कि वह तुम्हें और महक को खुश और सुखी रखेगा. अब की बार ‘हां’ कह कर हमारे मन की चिंता दूर कर दे, बेटी,’’ अपनी इच्छा जाहिर करते हुए उस की मां सावित्री की आंखें भर आईं.

‘‘मां, मुझे दोबारा शादी करने से कोई ऐतराज नहीं है, पर सिर्फ शादीशुदा कहलाने भर के लिए मैं किसी के साथ सात फेरे नहीं लूंगी. मैं अपने पैरों पर अच्छी तरह से खड़ी हूं और तुम दोनों व महक की बढि़या देखभाल करने में पूरी तरह से सक्षम हूं. अगर मेरा दिल ‘हां’ बोलेगा तो ही मेरी शादी होगी. किसी तरह के दबाव में आ कर मैं दुलहन नहीं बनूंगी,’’ नीरजा का यह जवाब सुन कर सावित्री आगे कोई दलील नहीं दे पाई थीं.

‘‘बेटी, तुम्हारे दिल में महक के दिवंगत पापा की जगह कोई नहीं ले सकता है, यह मैं समझता हूं. लेकिन यह भी ठीक नहीं है कि तुम बिना जीवनसाथी के बाकी की जिंदगी काटो. विवेक जैसे सीधेसच्चे इनसान बारबार नहीं मिलते. अगर तुम रोहित की तुलना विवेक से नहीं करोगी, तो अच्छा रहेगा. बाकी तुम खुद बहुत समझदार हो,’’ नीरजा के पापा उमाकांतजी गला भर आने के कारण आगे नहीं बोल सके थे.

‘‘पापा, आप टैंशन न लो. रोहित ने अगर यह साबित कर दिया कि वह हम सब की देखभाल की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से उठा सकता है तो मैं इस शादी के लिए खुशी से ‘हां’ कह दूंगी,’’ नीरजा के इस जवाब से उस के मातापिता काफी हद तक संतुष्ट नजर आए.

अगले दिन रविवार को रोहित सुबह 10 बजे के करीब उन के यहां आ गया. सावित्री, उमाकांत और महक के ऊपर अच्छा प्रभाव जमाने के लिए वह काफी तैयारी के साथ आया था.

वह फल और मिठाई के अलावा महक के लिए उस की मनपसंद ढेर सारी चौकलेट भी ले कर आया था. नीरजा को उस ने फूलों का सुंदर गुलदस्ता भेंट किया. इस में कोई शक नहीं कि उस के आने से घर का माहौल खुशगवार हो उठा था.

‘‘इस प्यारी सी गुडि़या के लिए मैं एक प्यारी सी गुडि़या भी लाया हूं,’’ ऐसा कहते हुए रोहित ने जब महक को जापानी गुडि़या पकड़ाई तो वह खुशी के मारे उछलने लगी.

‘‘नीरजा को आप दोनों की व महक की बहुत फिक्र रहती है. इस मामले में मैं आप दोनों को विश्वास दिलाता हूं कि नीरजा की हर जिम्मेदारी को पूरा करने में मैं उस का पूरा साथ निभाऊंगा,’’ रोहित की ऐसी बातों को सुन कर सावित्री और उमाकांत के दिल खुशी व राहत से भर उठे.

महक के साथ रोहित ने काफी देर तक कैरमबोर्ड खेला. दोनों खेलते हुए बहुत शोर मचा रहे थे. रोहित ने महक के साथ अच्छी दोस्ती करने में ज्यादा वक्त बिलकुल नहीं लिया.

‘‘मेरे आज के प्रदर्शन के लिए मुझे 10 में से कितने नंबर दोगी?’’ बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे रोहित ने अकेले में नीरजा से यह सवाल पूछा था.

‘‘20 नंबर,’’ नीरजा ने हंस कर सवाल का सीधा जवाब देना टाल दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे मम्मीपापा के साथ निभाने में कभी कोई प्रौब्लम नहीं आएगी. वे दोनों बहुत सीधेसच्चे इनसान हैं, नीरजा.’’

‘‘मुझे यह बात सुन कर खुशी हुई, रोहित.’’

‘‘और मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि महक के साथ मैं अपने संबंध कुछ ही दिनों में इतने अच्छे कर लूंगा कि वह मुझे तुम से ज्यादा पसंद करने लगेगी.’’

‘‘तुम्हारे इस दावे ने मेरी खुशियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है.’’

‘‘तो फिर मुहूर्त निकलवाने के लिए पंडित से मिल लूं?’’

‘‘जल्दी का काम शैतान का,’’ नीरजा के इस जवाब पर रोहित जोर से हंसा, लेकिन उस की आंखों में उभरे हलकी मायूसी के भाव नीरजा की नजरों से छिपे नहीं रहे.

सावित्री ने खाने में कई चीजें बड़ी मेहनत से बनाई थीं. रोहित ने भरपेट खाना खाया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.

शाम को वह सब को अपनी कार में बाजार घुमाने ले गया. वहां महक की फरमाइश पूरी करते हुए उस ने सब को आइसक्रीम खिलाई. वहां एक शो केस में लगी सुंदर सी फ्राक खरीद कर वह महक को गिफ्ट करना चाहता था, पर नीरजा ने उसे ऐसा नहीं

करने दिया.

‘‘किसी दिन तुम्हारी मम्मी को छोड़ कर यहां आएंगे और खूब सारी चीजें खरीदेंगे,’’ रोहित के इस प्रस्ताव का महक ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

शाम को विदा होने के समय सावित्री और उमाकांत ने रोहित को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद दिए.

‘‘रोहित अंकल, आप बहुत अच्छे हो. मेरे साथ खेलने के लिए आप जल्दी से फिर

आना,’’ महक से ऐसा निमंत्रण पाने के बाद रोहित ने जब विजयी भाव से नीरजा

की तरफ देखा तो वह प्रसन्न अंदाज में मुसकरा उठी.

आगामी 3 रविवारों को लगातार रोहित इन सब से मिलने आया. उस ने बहुत कम समय में सभी के साथ मधुर संबंध बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त की.

‘‘महक बेटे, अगर हम सब साथ रहने लगें तो कैसा रहेगा?’’ रोहित ने खेलखेल में महक से यह सवाल सब के सामने पूछा.

‘‘बहुत मजा आएगा, अंकल,’’ महक की आंखों की खुशी देख कर कोई भी यह कह सकता था कि उसे रोहित अंकल का साथ बहुत अच्छा लगने लगा है. उस दिन जब रोहित अपने घर जाने लगा तो नीरजा ने उस की तारीफ की,

‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी अच्छी तरह से इन तीनों के साथ घुलमिल जाओगे. महक तो तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई है.’’

‘‘अब तुम्हारे मन की सारी चिंताएं खत्म हो गईं न?’’ रोहित ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर पूछा.

‘‘काफी हद तक.’’

‘‘रहीसही कसर भी मैं जल्दी पूरी कर दूंगा, माई डियर. आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारे साथ ढेर सारी बातें करने का मन कर रहा है. चलो, कहीं घूमने चलें.’’

‘‘कहां?’’

‘‘महत्त्व तुम्हारे साथ का है, जगह का नहीं. जहां तुम कहोगी, वहीं चलेंगे.’’

‘‘मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ बड़े अपनेपन से रोहित का हाथ दबाने के बाद नीरजा अपने कमरे की तरफ चली गई.

अपनी मां को बाहर जाने के लिए तैयार होते देख महक साथ चलने के लिए मचल उठी. इस मामले में उस ने न अपने नानानानी की सुनी, न अपनी मां की.

‘‘महक, चलो मैं तुम्हें पहले बाहर घुमा लाता हूं. फिर तो मम्मी को मेरे साथ जाने

दोगी न?’’ रोहित ने उसे लालच दिया पर वह नहीं मानी और साथ चलने की अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘अच्छा, चल. तेरे अंकल ने तुझे जो इतना ज्यादा सिर चढ़ाया हुआ है, तेरा यह जिद्दीपन उसी का नतीजा है,’’ साथ चलने के लिए नीरजा की इजाजत पा कर महक तो खुश हुई पर रोहित का चेहरा यह कह रहा था कि उस का मूड खराब हो गया.

‘‘आई एम सौरी, रोहित. अगली बार मैं पक्का तुम्हारे साथ अकेली घूमने चलूंगी,’’ ऐसा वादा कर नीरजा ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की.

‘‘अगली बार भी महक ऐसे ही झंझट खड़ा करेगी, नीरजा. तुम्हें आज ही उस के साथ सख्ती दिखानी थी,’’ रोहित अभी तक नाखुश नजर आ रहा था.

‘‘सख्ती तो मैं अभी भी दिखा सकती हूं, पर वह रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लेगी.’’

‘‘तो क्या हुआ? बच्चे के रोने के डर से उसे अनुशासनहीन नहीं बनने दिया जा सकता है.’’

‘‘ओ.के. मैं ऐसा ही करती हूं,’’  नीरजा का स्वर सख्त हो गया और उस ने महक को पास बुला कर घर बैठने का हुक्म सुना दिया.

नीरजा का अंदाजा ठीक ही निकला. महक ने खूब जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.

‘‘तुम मन कड़ा कर के निकल चलो. हम जल्द ही लौट आएंगे, पर एक बार बाहर जाना महक की सही टे्रनिंग के लिए जरूरी है,’’ रोहित की इस सलाह पर चलते हुए नीरजा अपनी बेटी को रोता छोड़ कर घर से बाहर निकल आई.

इस वक्त शाम के 5 बज रहे थे. रोहित ने किसी रेस्तरां में चल कर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा पर बुझीबुझी सी नजर आ रही नीरजा ने इनकार कर दिया.

‘‘अभी कुछ खानेपीने का दिल नहीं कर रहा है. चलो, किसी पार्क में कुछ देर बैठते

हैं,’’ नीरजा की इच्छा का आदर करते हुए रोहित ने कार एक सुंदर से पार्क के सामने रोक दी.

कुछ देर बाद खामोश और सुस्त नजर आ रही नीरजा ने परेशान लहजे में महक का जिक्र छेड़ा, ‘‘महक मुझ से बहुत ज्यादा अटैच है, रोहित. देखा, आज कितना ज्यादा

रोई है वह साथ आने के लिए. समझ में नहीं आता कि आने वाले समय में यह समस्या कैसे हल होगी?’’

‘‘माई डियर, हर समस्या का समाधान मौजूद है पर इस वक्त तुम महक के बारे में सोचना बंद करो और मुझ से गप्पें मारो,’’

रोहित ने मुसकरा कर अपनी इच्छा बताई तो नीरजा के होंठों पर भी छोटी सी मुसकान उभर आई.

कुछ ही देर में रोहित नीरजा का मूड ठीक करने में सफल हो गया. पार्क में कुछ देर घूमने के बाद वे बाजार आ गए. वहां रोहित ने उसे पसंदीदा सैंट का उपहार दिया. बाद में उन्होंने एक रेस्तरां में कौफी पी. फिर घूमतेटहलते वे बातें करते रहे. उस के साथ बातें करते हुए रोहित का दिल भर ही नहीं रहा था.

तब देर होने लगी तो वे वापस चल पड़े और 9 बजे के बाद घर पहुंचे.

‘‘अब देखना, महक तुम से कितना लड़ेगी,’’ घर में घुसने से पहले तनावग्रस्त नजर आ रही नीरजा ने रोहित को आगाह किया तो वह एकदम से गंभीर हो गया.

‘‘तुम ने शाम को मुझ से जो महक वाली समस्या का हल पूछा था, उस के बारे में मेरे पास एक सुझाव है,’’ रोहित ने गेट के पास नीरजा को रोक कर यह बात कही.

‘‘किस समस्या की बात कर रहे हो?’’ नीरजा ने अपना पूरा ध्यान उसी की तरफ

लगा दिया.

‘‘महक जो तुम से बहुत ज्यादा अटैच है, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूं.’’

‘‘हां, हां, प्लीज बताओ न कि यह समस्या कैसे हल हो सकती है. आज उसे बुरी तरह रोता देख मैं तो बहुत दुखी हो गई थी.’’

‘‘समस्या का हल तो सीधासादा है पर वह शायद तुम्हें पसंद नहीं आएगा,’’ रोहित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम महक को सचमुच स्वावलंबी बनाना चाहती हो तो उसे होस्टल भेज दो.’’

‘‘वह तो अभी सिर्फ 7 साल की ही है, रोहित,’’ नीरजा चौंक पड़ी.

‘‘तो क्या हुआ? उस से छोटे बच्चे भी होस्टल में जा कर रहते हैं, नीरजा. वहां उस

के व्यक्तित्व का संतुलित विकास होगा और इधर तुम और मैं भी फ्री हो कर हमारी शादी के साथ होने वाली जिंदगी की नई शुरुआत का भरपूर आनंद ले सकेंगे, आपसी संबंधों को मधुर और मजबूत बना सकेंगे,’’ रोहित ने कोमल लहजे में उसे समझाया.

काफी लंबी खामोशी के बाद नीरजा ने धीमे स्वर में उसे अपने मन की चिंता बताई, ‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है पर मेरा दिल बहुत दुखेगा उसे होस्टल भेज कर.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलाने के लिए जल्दीजल्दी ले जाया करूंगा.’’

‘‘पक्का वादा करते हो?’’

‘‘बिलकुल पक्का.’’

कुछ लमहों की खामोशी के बाद नीरजा ने कहा, ‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती, नहीं तो एक रास्ता यह भी था कि हमारी शादी होने के बाद कुछ दिनों के लिए महक को उन के पास छोड़ देते. तब उसे होस्टल भेजने की जरूरत भी नहीं रहती.’’

‘‘नहीं, ऐसा करने से यह समस्या हल नहीं होगी, नीरजा. वह आसपास होगी तो उस का रोनाचिल्लाना तुम से सहन नहीं होगा.

शादी के बाद जो एकांत हमें चाहिए, वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि तुम महक को अपने पास बुला लोगी,’’ रोहित को उस का प्रस्ताव जंचा नहीं.

‘‘मुझे लगता है कि मम्मीपापा भी महक को होस्टल भेजने को राजी नहीं होंगे, रोहित,’’ नीरजा और ज्यादा सुस्त हो गई.

‘‘तुम यह क्या कह रही हो,’’ रोहित कुछ नाराज हो उठा, ‘‘उन्हें तुम्हारी बात माननी पड़ेगी. जब मैं भी उन्हें ऐसा करने के फायदे समझाऊंगा तो वे जरूर राजी

हो जाएंगे.’’

‘‘अगर वे फिर भी नहीं माने तो?’’

‘‘बेकार की बात मत करो, नीरजा. अरे, उन्हें तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी. वे तुम्हें नाराज नहीं कर सकते, क्योंकि अपनी देखभाल के लिए वे तुम पर निर्भर करते हैं न कि तुम उन के ऊपर.’’

‘‘उन की देखभाल से याद आया कि हमारी शादी हो जाने के बाद उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्हें डाक्टर के पास दिखा लाने का काम मैं ही करती हूं. घर का सामान और दवाएं वगैरह मैं ही खरीदती हूं. इस समस्या का भी कोई हल ढूंढ़ना पड़ेगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम, माई डियर. उन दोनों की देखभाल करने वाली सिर्फ एक काबिल मेड हमें ढूंढ़नी पड़ेगी. उस मेड की पगार हम दिया करेंगे तो तुम्हारे पापा की पैंशन भी उन्हें पूरी मिलती रहेगी. कहो, कैसा लगा मेरा सुझाव?’’

‘‘हम दोनों के हिसाब से तो अच्छा है, पर…’’

‘‘परवर के चक्कर में ज्यादा मत घुसो. सिर्फ औरों की ही नहीं, तुम्हें अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए, नीरजा,’’ उसे टोकते हुए रोहित ने सलाह दी.

‘‘क्या अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थीपन नहीं कहलाएगा?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं, अरे, जब मैं खुश नहीं हूं तो किसी अपने की जिंदगी में मैं क्या खाक खुशियां भर सकूंगा?’’ रोहित ने तैश में आ कर यह सवाल पूछा.

‘‘खुशियों के मामले में क्या इतना ज्यादा कुशल हिसाबीकिताबी बनना ठीक रहता है, रोहित?’’

‘‘यार, तुम तो बेकार में बहस किए जा रही हो,’’ रोहित अचानक चिढ़ उठा.

‘‘लो, मैं चुप हो गई,’’ नीरजा ने अपने होंठों पर उंगली रखी और एकाएक ही तनावमुक्त हो कर मुसकराने लगी.

‘‘मेरी बात सुनोगी और मेरे सुझावों पर चलोगी तो हमेशा खुश ही रहोगी.’’

‘‘अब विदा लें?’’

‘‘मैं सब से मिल तो लूं.’’

‘‘आज रहने दो.’’

‘‘ओ.के. गुडनाइट, डियर.’’

‘‘गुडनाइट.’’

नीरजा से हाथ मिलाने के बाद रोहित अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

वह उसे विदा कर घर के अंदर आई तो महक उस की छाती से लिपट कर जोरजोर

से रो पड़ी. नीरजा को उसे चुप कराने में काफी देर लगी.

महक के सो जाने के बाद उस ने अपने मम्मीपापा को अपना निर्णय गंभीर स्वर में बता दिया, ‘‘मैं ने रोहित से शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘क्यों?’’ उस के मम्मी व पापा दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘क्योंकि पिछले दिनों जैसे उस ने अपने अच्छे व्यवहार से हम सब का मन जीता था, वह मुझे पाने के लिए किया गया अभिनय भर था. वह अपनी भावनाओं के स्विच को अपने फायदेनुकसान को ध्यान में रख कर खोलने व बंद करने में माहिर है.

‘‘मुझ से शादी हो जाने के बाद वह निश्चित रूप से बदल जाता. तब उसे महक

व आप दोनों बोझ लगने लगते. मैं ने परख लिया है कि हर समस्या को ‘नो प्रौब्लम’

बनाने की कुशलता रोहित के दिमाग को हासिल है. जिस इनसान का दिल उस के दिमाग का पूरी तरह गुलाम हो, मुझे वैसा जीवनसाथी कभी नहीं चाहिए. अब आप दोनों भी उस के साथ मेरी शादी होने के सपने देखना बंद कर देना, प्लीज,’’ अपना यह फैसला सुनाते हुए नीरजा पूरी तरह से तनावमुक्त और शांत नजर आई.

उस ने अपने मम्मीपापा के गले से लग कर प्यार किया. फिर सोफे पर सो रही महक  का माथा कई बार प्यार से चूमने के बाद उस ने उसे गोद में उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी.

Diwali Special: आपकी आंखों की सुंदरता बढ़ाएंगे ये मेकअप टिप्स

किसी भी प्रकार के मेकअप में आई मेकअप का खासा मह्त्व होता है. आंखो पर किया गया मेकअप आपके चेहरे की खूबसूरती को और निखार देता है. आमतौर पर आंखें काजल,मस्कारा व लाइनर के बाद और भी खूबसूरत दिखने लगती है. इसके जरिए आपको किसी भी पार्टी के लिए बेहद खूबसूरत व परफेक्ट लूक मिलता है.

आंखों के ऊपर होने वाले ट्रेंडी मेकअप, किसी भी मौके पर गजब ढाते हैं. चेहरे के विभिन्न प्रकार के मेकअप की तरह ही आंखो पर अवसर के हिसाब से मेकअप किया जाना चाहिए. दिन की पार्टी के लिए अलग, शाम की पार्टी के लिए अलग और रोजाना आफिस या कालेज जाने के लिए अलग तरह से आंखो का मेकअप किया जाना चाहिए. तो चलिए जानते हैं अलग अलग आई मेकअप के बारे में और कब कहां किस करह का आई मेकअप करना चाहिए.

आर्टिस्टिक आईलाइनर

इन दिनों काजल से ज्यादा ट्रैंडी आईलाइनर हो रहा है. आफिस जाने वाली महिलाओं को एक सिंपल, क्लासिक आईलाइनर तो वहीं पार्टी ऐंजौय करने जा रही महिला को वाइल्ड आईलाइनर पसंद आता है. इस के अलावा किसी ग्लैमरस मौके का हिस्सा बनने जा रही स्त्री को भाता है स्मोकी, प्रिंटेड या डिजाइनदार आईलाइनर.

डे पार्टी आई मेकअप

दिन की पार्टियों में थिरकती नजर आने वाली चार्मिग गर्ल्स और लेडीज की पहली पसंद होता है गोथिक आई मेकअप. आंखों के इस प्रकार के मेकअप से आपका रूप कुछ अलग सा निखर कर आता है. शिमरिंग परपल, डार्क ब्लू, ग्रीन, व्हाइट, डार्क ग्रे, ब्राउन आईशैडो के साथ ब्लैक, ब्राउन या कोई भी डार्क रंग का लिक्विड आईलाइनर डे पार्टी पार्टी के लिए अच्छा होता है.

ईवनिंग पार्टी आई मेकअप

ईवनिंग पार्टी ज्यादा महिलाएं अपनी आंखो को स्मोकी दिखाना पसंद करती हैं. आजकल आम मौके से खास दिखने की चाहत में लड़कियों या महिलाओं को शाम की पार्टी में ड्रामैटिक आई मेकअप के पूरे गेटअप में देखा जा रहा है. दोस्तों के साथ शाम की आउटिंग या डांसिंग क्लब के लिए यह परफैक्ट स्टाइल है. डार्क और डीप आईलाइनर के साथ गहरे रंग की आई पेंसिल और परपल, ब्लू या काले रंग का मसकारा आंखों में उभार लाता है. इसके साथ कोई भी लाइट या डार्क रंग का आईशैडो और काले रंग का लिक्विड आईलाइनर स्मोकी लुक को पूरे अंदाज में पेश करता है.

हालांकि यह लुक शादियों और दिन की पार्टी में नहीं जंचता पर शहर में शाम की की पार्टी में ये आपकी खूबसूरत आंखो को और निखारने का काम करता है.

न्यूट्रल शैडो आई मेकअप

रोजाना से अलग दिखने की चाहत में लड़कियों के बीच न्यूट्रल शैडो आई मेकअप छा रहा है. ब्राउन, रिच कापर, ब्रिक रंग के आईलाइनर की मोटी लकीर आंखों के ऊपर आई लिड पर लगा कर आप खुद को स्टनिंग लुक दे सकती हैं.

क्लियोपेट्रा आई मेकअप

आंखों को बोल्ड, मोहक और सैक्सी लुक देने के लिए आप अपनी आंखों पर क्लियोपैट्रा मेकअप ट्राई कर सकती हैं. क्लियोपैट्रा मेकअप के लिए आइलिड से आंखों के कोरों के दोनों तरफ ऊपर और नीचे 40 डिग्री उठी हुई मोटी, डार्क, शिमर लाइनर की पट्टी और साथ में गहरे काले या नेवी ब्लू रंग का आईशैडो लगाया जाता है.

ईमी आई मेकअप

रोजाना ड्रेस के साथ मैच करते आईशैडो के साथ कालेजगोइंग गर्ल्स या पायजामा पार्टी के लिए रेग्युलर तौर पर किया जाने वाला आंखों का मेकअप आपको हौट बनाता है. यह लड़कियों में काफी लोकप्रिय है. ईमो आईमेक अप में आंखों का घेर बनाते हुए गोलाकार ब्लैक शाइनी आईलाइनर के साथ पूरी आंखों पर भरा हुआ गुलाबी या नीले जैसे हल्के रंगों का आईशैडो खूब जमता है.

मोहपाश: भाग 2- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

 

छवि ने जब तक बच्चा नहीं देखा, वह बेचैन रही. देखने के बाद वह आराम से सो गई. छवि ने बच्चे का नाम प्रियम रखा.

देखतेदेखते छवि की आंखों का तारा प्रियम 3 साल का हो गया. उस की मीठी बोली छवि को अतीत की कड़वाहट भूलने में मदद कर रही थी. सुखदा भी सेवानिवृत्त हो कर कलकत्ता हमेशा के लिए आ गई. सुखदा को अब, बस, छवि के विवाह की चिंता थी. पर दिल से चोट खाई छवि विवाह के लिए राजी नहीं हो रही थी. सुखदा हर सभंव प्रयास कर रही थी कि किसी तरह छवि का घर बस जाए. पर छवि के हठ के आगे वह विवश हो जाती थी. छवि, बस, काम की तलाश में रहती थी.

एक दिन देविका ने छवि को बताया, ‘कलकत्ता के एक बहुत बडे बिजनैसमैन हैं अजीत माहेश्वरी. वे करीब 40 साल के हैं. उन की पत्नी की 2 महीना पहले कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. उन की 7 साल की बेटी है. जब से मां की मौत हुई है, बच्ची बहुत जिद्दी हो गई है. वह बच्ची किसी की बात नहीं मानती. किसी एक बात की जिद करती है, तो उसी को रटती रहती है. उसे कुछ समस्या है. अभी तक जितनी गवर्नैंस रखी गईं, ठीक से देख नहीं पाई हैं. अभी उस के पास कोई नहीं है. उसी को देखने के लिए उन्हें एक अच्छी गवर्नैंस की जरूरत है. खानापीना, रहना सब फ्री. गवर्नैंस को वहीं रहना होगा, तुम यह काम करोगी?’

‘छवि कैसे कर पाएगी, दोदो बच्चों की देखभाल?’ सुखदा ने चिंता ब्यक्त की.

‘दीदी, छवि को एक कोशिश करनी चाहिए. इंटररव्यू दे कर बच्ची से मिल ले, पता चल जाएगा,’ देविका ने सुखदा को समझाया.

‘ठीक है मासी. मां, तुम चिंता मत करो, मैं कर लूंगी,’ छवि ने कहा.

देविका जब माहेश्वरी मैंशन पहुंची तब वहां एक कमरे में बिठा कर उस से कहा गया, ‘बैठिए, सर अभी आ रहे हैं.’

देविका पहली बार इंटरव्यू दे रही थी, मन में खासी घबराहट थी. तभी अजीत माहेश्वरी आ गए. गठा हुआ शरीर, सुंदर नाकनक्श, लंबा कद, घने बाल, गोरा रंग, नीले रंग का सूट, आंखों पर पतले फ्रेम का चश्मा और चेहरे पर तेज, जो उस के ब्यक्तित्व को आकर्षक बना रहे थे. छवि उन से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उन्हें देख दो पल देखती रही, फिर उस ने अपनी नजरें नीची कर लीं.

‘आप तो बहुत कम उम्र की हैं?’ माहेश्वरी ने कहा.

इस बात का छवि क्या उत्तर दे, वह चुप रही.

‘आप की प्रोफाइल में लिखा है आप का एक बेटा है, वह कितने साल का है?’

‘4 साल का होने जा रहा है.’

‘आप को मेरी बेटी के बारे में पता है न, इतने छोटे बच्चे को ले कर आप मेरी बेटी प्रृशा को कैसे हैंडल कर पाएंगी?’

‘जैसे एक मां अपने 2 बच्चों की देखभाल करती है.’

न जाने कैसे छवि यह कह गई. उसे अपने ही इस कहे पर आश्चर्य भी हुआ.

माहेश्वरी इस उत्तर से खुश हो गया, बोला, ‘गुड़, आई एम इम्प्रैस्ड. ठीक है, आप कल से आ सकती हैं. चलिए, मैं आप को बेबी से मिला दूं.’

‘जी नहीं, मैं आज बेबी से नहीं मिलूंगी, कल जब आऊंगी, तभी मिलूंगी.’

छवि माहेश्वरी मैंशन पहुंच जाती है. उस का कमरा प्रृशा के कमरे की बगल में है. कमरे में सुविधा के सारे सामान हैं. एक औरत जो अपना नाम सुतपा बताती है, कहती है, साहब ने मुझे आप के बेटे के साथ रहने के लिए कहा है. बगल के कमरे से लगातार एक बच्ची के चिल्लाने की आवाज आ रही है.

‘नहीं, नहीं खाना है मुझे, मैं कुछ भी नहीं खाऊंगी.’

छवि उस से कहती है, फिलहाल वह उस के साथ वहां चले जहां से लगातार बच्ची के चिल्लाने की आवाज आ रही थी. छवि प्रियम को खिलौने दे कर खेलने को कहती है, ‘यहीं रहना, यहां से कहीं जाना नहीं.’

वह सुतपा के साथ प्रृशा के कमरे में आती है. कमरे में उस के पापा माहेश्वरी भी बारबार प्रृशा को ब्रेकफास्ट खिलाने की कोशिश कर रहे थे. छवि ने उन का अभिवादन किया. उन्होंने छवि की ओर देख कर इशारे से प्रृशा को देखने को कहा. उस दृष्टि में आग्रह के अंदर करुण याचना थी. छवि ध्यान से बच्ची को देखने लगी, 7 साल की दुबली, गोरी सी, छोटे बालों वाली प्यारी सी लड़की, ब्रेकफास्ट न करने को कह रही थी. लगभग आधा दर्जन नौकरानियां बारबार आ कर उस से खाने को कह रही थीं. जितनी बार उस से खाने को कहा जाता, उतनी बार वह न कर देती.

माहेश्वरी ने दोबारा जैसे फिर कहना चाहा, छवि ने इशारे से मना कर दिया. छवि ने आया से कहा, ‘जब वह कह रही है मैं नहीं खाऊंगी, तब तुम लोग क्यों जिद कर रहे हो. जब उस की इच्छा होगी, वह खुद खा लेगी.’

प्रृशा छवि की आवाज़ सुन छवि की ओर देखने लगी. तब छवि ने कहा, ‘बेबी, आप का मन ब्रेकफास्ट करने का नहीं है न?’

‘नहीं,’ उस ने तेज स्वर में कहा.

‘ठीक है, अब आप को कोई तंग नहीं करेगा. जब आप का मन होगा, तब आप कर लेना,’ छवि ने प्यार से कहा.

‘आप कौन हैं?’

‘डौल, ये तुम्हारी…’

‘मैं आप के साथ बात करने और खेलने के लिए आई हूं,’ छवि ने माहेश्वरी की बात काटते हुए कहा. माहेश्वरी का मोबाइल बजा, वह बाहर चला गया. तब तक प्रियम अपने कमरे से निकल कर छवि के पास आ कर खड़ा हो गया था.

‘ये कौन है?’

‘ये मेरे साथ है, मैं इसे आप के साथ खेलने के लिए लाई हूं.’

छवि ने प्रृशा से बात करना शुरू किया. वह लगातार बोलती जा रही थी. छवि उस की हर ऊटपटांग बात का भी जवाब देती जा रही थी. मां के बाद इतने धीरज से किसी ने उस की बातों को नहीं सुना था, इसलिए वह खुश हो गई. उस के मूड को देख कर छवि ने पूछा, ‘अच्छा, अब बताओ, क्या खाओगी.’

पृशा ने खुशी से अपनी इच्छा बताई.

छवि की समझ में आ गया कि वह बिन मां की बच्ची की है. उस बच्ची के दिल की बात समझने वाला कोई नहीं है. घर का हर एक ब्यक्ति उस के साथ, बस, अपना कर्तव्य निभाता है. पिता की समझ में भी ज्यादा कुछ नहीं आता है या हो सकता है उन की पत्नी ने उन्हें कभी इन सभी चीजों में ज्यादा न घसीटा हो. बेबी अगर एक बार मना करती है, फिर घर के दर्जनों नौकर उसे उसी काम की जिद करने लगते हैं, इस से वह चिढ़ जाती है. उसे प्यार और ममता की जरूरत है और बिना जरूरत का प्यार और ममता सिर्फ एक मां दे सकती थी.

कैसी हो वर्किंग प्रैगनैंट वूमन की डाइट

मां बनना हर महिला के लिए सब से सुखद एहसास होता है. गर्भ में पलने वाला बच्चा महिला को कई चीजें सिखाता है. संवेदनशील बनाता है, प्यार करना सिखाता है. यही वजह है कि कोई भी महिला गर्भवती होने पर अपना खास खयाल रखती है, क्योंकि इस समय मां बनने वाली महिला सिर्फ अपना ही खाना नहीं खाती वरन बच्चे का भी खाती है.

मां बनने वाली वर्किंग लेडी अकसर खुद को थकाथका सा महसूस करती है. 8-9 घंटे औफिस में रहने के कारण वह ज्यादा थक जाती है. उस के बाद वर्किंग महिला को घर का कामकाज भी करना पड़ता है. इसलिए पूरा दिन उस के लिए मुश्किल भरा होता है. आइए, जानें कि वर्किंग लेडी जो मां बनने वाली हो उस के लिए पूरे दिन का डाइट प्लान कैसा हो:

ऐसा हो नाश्ता

अगर आप सुबह उठते ही खाना बनाना या फिर घर का अन्य काम शुरू कर देती हैं तो यह गलत है. सुबह उठते ही सब से पहले आप ग्रीन टी पीएं. अगर आप की सुबह की शुरुआत ग्रीन टी से होगी तो आप दिन भर ऐनर्जी से भरपूर रहेंगी. उस के बाद आप सब से पहले फ्रैश हो नहा लें. यदि लंच खुद ही तैयार करती हैं तो रात को ही इस की तैयारी कर लें. अगर आप को सुबह सब कुछ तैयार मिलेगा तो खाना बनाना सिरदर्द नहीं बनेगा. खाना बनाने के बाद सब से पहले नाश्ता कर लें. नाश्ते में उबले अंडे, रोटी और सब्जी खाएं, इस के बाद अपना टिफिन तैयार करें. टिफिन में आप फ्रूट्स, नट्स और लंच रखें. दही या छाछ रखना तो बिलकुल न भूलें.

औफिस पहुंचने पर

औफिस पहुंचने पर सब से पहले पानी पीएं. पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. उस के बाद थोड़ी देर आराम करें. काम शुरू करने से पहले सेब या अनार खा लें. यह आप की सेहत के साथसाथ बच्चे के लिए भी अच्छा है. केला रखा हो तो उसे भी खा लें. इस के बाद अपना काम शुरू करें.

लंच में खाएं बढि़या खाना

लंच में दालरोटी, सब्जी, दही या छाछ जो कुछ भी आप लाई हों उसे अच्छी तरह से चबाचबा कर खाएं. खाने में जल्दबाजी न करें. खाने के साथसाथ खीरा भी खाएं. इस वक्त आप के लिए और बच्चे के लिए सलाद बहुत जरूरी है.

ईवनिंग स्नैक्स

अकसर देखा जाता है कि ईवनिंग स्नैक्स के रूप में प्रैगनैंट महिला समोसा, जलेबी जैसी चीजें खा लेती हैं. ये चीजें स्वादिष्ठ तो होती हैं, लेकिन हैल्दी बिलकुल भी नहीं. अत: आप घर से नट्स ले कर आएं और फिर उन्हें ही खाएं. अगर आप का चाय या कौफी पीने का मन है तो पी लें. दोनों के लिए फायदेमंद रहेंगे. ईवनिंग स्नैक्स के नाम पर पूरा पेट न भरें, क्योंकि रात को डिनर भी करना है.

घर पहुंचने के लिए जल्दबाजी न करें. अगर  औफिस की कैब है, तो अच्छी बात है वरना शाम के समय सड़कों पर भीड़ होती है. अत: आराम से निकलें. थोड़ी देर होगी, लेकिन आराम से घर पहुंचें, सुरक्षित पहुंचें. घर पहुंचने पर थोड़ा आराम करें. पानी पीएं. उस के बाद घर के काम करें.

डिनर में सेहतमंद खाना

डिनर में सेहतमंद खाना बनाएं. एक टाइम दाल जरूर खाएं, साथ में रोटी, सलाद, सब्जी के रूप में बेबीकौर्न, ब्रोकली, पनीर आदि खा सकती हैं.

रात का खाना खाते ही सोएं नहीं. थोड़ा टहलें. 1 गिलास दूध दिन भर में जरूर पीएं. प्रैगनैंसी के दौरान दूध आप के लिए बेहद जरूरी भी है. साथ ही डाक्टर ने आप को जो दवाएं दी हैं उन्हें याद से खा लें.

अगर आप औफिस के साथसाथ घर का काम मैनेज नहीं कर पा रही हैं तो घर में मदद के लिए मेड रख लें. सारा काम अपनेआप पर न लें. इस से आप को आराम मिलेगा.

वन मिनट प्लीज: क्या रोहन और रूपा का मिलन दोबारा हो पाया- भाग 2

रोहन परेशान था. वह नौकरी की खोज में दिनरात लैपटौप पर आंखें गड़ाए रहता. यहांवहां दौड़भाग कर इंटरव्यू भी दे रहा था, लेकिन बात नहीं बन पा रही थी. थोड़ी दिनों बाद बमुश्किल एक कालसैंटर मैं नौकरी मिल गई थी. रूपा रोहन की बांहों मे बांहें डाल कर घूमने जाना चाहती थी, परंतु उस का उतरा हुआ चेहरा देख उस का उत्साह ठंडा हो जाता. वह चिड़चिड़ाने लगी थी, क्योंकि उस के सपने टूटने लगे थे.
‘रोहन, तुम्हें सैलरी मिली होगी. चलो हम लोग आज पार्टी करेंगे,’ एक दिन वह बोली थी.

धीमी आवाज में वह बोला था, ‘चलो कहीं डोसा खा लेंगे.’

‘तुम खर्च की चिंता न करो, मेरे अकाउंट में पैसे हैं?’

‘देखो रूपा, तुम अपने पैसे बचा कर रखो. जाने क्या जरूरत पड़ जाए.’

‘तुम बिलकुल चिंता न करो, पापा से मैं कहूंगी तो वे मना नहीं करेंगे.’

वह बोला था, ‘यह मु  झे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा.’

वह चिल्ला पड़ी थी, ‘तुम्हारी सैलरी जितनी है, इतना तो मैं एक दिन की शौपिंग में खर्च कर डालती थी.’
‘यह तो तुम्हें शादी करने के पहले सोचना चाहिए था.’

वह नाराज हो गई थी और उसे मायके का ऐशोआराम याद आने लगा. इस से बाद तो उस का पैसे को ले कर रोहन से अकसर   झगड़ा होने लगा था.

यदि अम्मां बीचबचाव करतीं तो वह अम्मां पर जोर से चिल्ला पड़ती थी. रोहन भला अपनी छोटी सी तनख्वाह में उस की बड़ीबड़ी फरमाइशें कैसे पूरी करता? वह उसे तंग कर मन ही मन खुश होती थी. दरअसल वह चाहती थी कि रोहन परेशान हो कर उस के साथ उस के घर चला चले, जिस से वह फिर से पहले की तरह ऐशोआराम से रह सके.

एक दिन अम्मां उस से बोलीं थीं, ‘क्यों रूपा, तुम्हारा पेट देख कर तो मालूम नहीं पड़ रहा है कि तुम्हारे 3-4 महीने पूरे हो चुके हैं.’ वह बेशर्मी से बोली थी, ‘अम्मां वह तो मैं ने   झूठमूठ यों ही कह दिया था, नहीं तो आप शादी के लिए कभी हां न कहतीं. मैं तो रोहन को पाना चाहती थी.’

उस की बात सुन कर अम्मां सन्न रह गईं थीं. वे विश्वास ही नहीं कर पा रही थीं कि कोई लड़की अपनी इज्जत लुटने की बात को बेमतलब इस तरह डंका बजा कर कह सकती है.

एक दिन वे उस से बोली थीं, ‘रूपा तुम नौकरी कर लो, तुम्हें हाथ खर्च के लिए कुछ रुपए मिल जाया करेंगे.’ घर के पास ही प्लेस्कूल था. अम्मां के कहने पर 10-12 दिन वह वहां गई थी, लेकिन 5,000 रुपए के लिए छोटेछोटे बच्चों से मगजमारी करने में उस का मन ही नहीं लग रहा था. इस में उसे अपनी हेठी भी लग रही थी.

एक दिन अम्मां को बुखार आ गया था तो वे उस से बोली थीं, ‘रूपा, रोहन आने वाला है. उस के लिए कुछ खाना बना लो.’ वह उन पर चिल्ला पड़ी थी, ‘आप की वजह से ही रोहन का इतना दिमाग खराब है. आज हम लोग बाहर जा कर खाना खाएंगे.’

अम्मां चुप हो गई थीं. वे बुखार में बेसुध सी हो रही थीं. रोहन ने औफिस से आते ही कपड़े भी नहीं बदले, पहले अम्मां को चाय बना कर पिलाई और दवा खिलाई. फिर उस के कहने पर वह उसे बाहर खाना खिलाने के लिए ले गया, लेकिन उस ने कुछ भी नहीं खाया.

वह ताव में बोली थी, ‘क्यों मुंह फुला रखा है? मैं ने थोड़े ही तुम्हारी अम्मां को बीमार किया है. तुम ने कुछ खाया क्यों नहीं?’ ‘चुपचाप खाना खाओ, आज मेरा मूड ठीक नहीं है.’ ‘तुम्हारा मूड अच्छा कब रहता है? हमेशा तुम्हारे चेहरे पर मनहूसियत छाई रहती है.’

रोहन भी नाराज हो कर बोला था, ‘रूपा बेकार की बहस मत करो. अम्मां की तबीयत खराब थी, तुम ने उन्हें एक कप चाय भी बना कर नहीं दी.’ वह जोर से चिल्ला कर बोली थी, ‘मैं क्यों बनाऊं? क्या मैं तुम लोगों की नौकरानी हूं, अपनी अम्मां से बहुत लाड़ है तो एक नौकरानी रख लो,’ यह सुन कर रोहन का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था. वह बोला था, ‘तुम्हारी बदतमीजी बढ़ती ही जा रही है. मेरे सामने से हट जाओ. मु  झे बहुत जोर का गुस्सा आ रहा है.’ गुस्से में उस का हाथ भी उठ गया था.

‘तुम्हें गुस्सा आ रहा है तो मु  झे तुम से ज्यादा गुस्सा आ रहा है. तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम ने मु  झ पर हाथ उठाया. दहेज ऐक्ट में तुम्हारी शिकायत कर दूंगी तो मांबेटे दोनों जेल चले जाओगे.’ रोहन का चेहरा काला पड़ गया था. शायद वह डर गया था. रोहन को चुप देख कर वह और जोर से चीखने लगी थी, ‘शादी किए 8 महीने पूरे हो गए हैं. दिनरात वही हायहाय. न कहीं घूमना न फिरना. बस सूखी रोटी चबा लो और घर के अंदर बंद रहो. जाने कौन सी मनहूस घड़ी थी, जब मैं ने तुम से शादी की. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो गई.’

जोरजोर से चीखती और रोती हुई वह अपने कमरे की ओर जा रही थी तभी रोहन की आवाज उस के कानों में पड़ी थी,  ‘मैं ने तो तुम्हें शादी के लिए बहुत मना किया था.’ रोहन की बात ने आग में घी का काम
किया था. वह थोड़ी देर बाद कमरे में आया तो उसे देख घबरा उठा था. उस के मुंह से झाग निकल रहा था और उस की सांसें धीमी पड़ रही थीं.

वह भाग कर पड़ोस के डाक्टर को बुला कर लाया था और उस से गिड़गिड़ा कर बोला
था, ‘डाक्टर, मेरी रूपा को बचा लीजिए.’ उस से रोहन ने उस का हाथ पकड़ कर वादा किया था कि जो वह कहेगी वह वही करेगा. वह तो मौके की तलाश में थी ही. उस ने यह शर्त रखी थी कि वे ठीक होते ही पापा के घर चल कर रहेंगे. और यह भी कहा था कि रोहन तुम्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ेगी और पापा का औफिस जौइन करना होगा.

उस दिन उस ने सिर   झुका कर उस की बस बातें मान ली थीं, तो यह सोच कर कि वह फिर से ऐशो आराम से रहेगी उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. रोहन अपनी अम्मां को रोता हुआ बमुश्किल छोड़ कर आया था. उस का चेहरा उदास और उतरा हुआ था. उस के घर पहुंचते ही उस का सामना पापा से हुआ था. वे उसे देखते ही चिल्ला पड़े थे, ‘यहां आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम्हारे लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.’

वह फफक पड़ी थी. मम्मी से लिपट कर बोली थी, ‘मम्मी, प्लीज, पापा को मना लो. मैं अब और कहां जाऊं? अपनी ससुराल में मैं अब नहीं रह सकती. मैं अपनी जान दे दूंगी. अगर आप मेरा जीवन चाहती हैं तो मु  झे अपने घर में रहने दीजिए.’उस के आंसू देख मम्मी पिघल उठी थीं. उस का हाथ पकड़ कर बोली थीं, ‘देखें तुम्हें कौन बाहर निकाल सकता है.’ फिर पापा की ओर देख कर बोली थीं,  ‘गुस्सा शांत कीजिए. बच्चों से तो गलती हो ही जाती है. बड़ों को तो सम  झदारी से काम लेना चाहिए.’

फिर व्यंग्य और उपहास भरी निगाहों से रोहन की तरफ देख कर पापा बोले थे, ‘ये बरखुरदार कहां रहेंगे, क्या करेंगे?’ वह तुरंत बोली थी, ‘ये कोई पूछने की बात है? इन्हें अपनी कंपनी में रख लीजिए. जो दूसरों को देते हैं, वही इन्हें दे दीजिएगा.’ पापा तीखे स्वर में बोले थे,  ‘क्यों? काल सैंटर में कितना मिलता था, 5,000 या 6,000?’ रोहन उन की नजरों के ताप को नहीं सह सका था. वह उस के पीछे मुंह   झुका कर खड़ा हो गया था. उस की कातर निगाहों को देख कर उसे अच्छा नहीं लगा था.

अगले दिन ही रोहन ने पापा का औफिस जौइन कर लिया था. 2-3 दिन बाद उस ने शिकायती लहजे में बताया था कि सब उसे मैनेजर साहब पुकारते जरूर हैं लेकिन काम उसे चपरासियों वाला करना पड़ता है.
वह गुमसुम और च़ुप रहने लगा था. एक दिन रात को जब सब खाना खा रहे थे तब राघव भैया रोहन की ओर देखते हुए बोले, ‘रूपा, तू ने कैसे आदमी से शादी कर ली है. इस से तो अच्छा अपना अनपढ़ गोपाल है, जो कम से कम सही फाइल तो ला कर देता है.’

उस दिन पहली बार रोहन नाराजगी दिखाते हुए डाइनिंग टेबिल से उठ कर बिना खाना खाए चला गया था. मम्मी उस से बोली थीं,  ‘जा बुला ला, शायद उसे बुरा लग गया है.’ लेकिन वह अकड़ दिखाते हुए वहीं बैठी रह गई थी.

फिर शाम और रात हुई, लेकिन वह नहीं लौटा. दरअसल, वह घर छोड़ कर चला गया था और उस के नाम एक पत्र छोड़ कर गया था जिस में लिखा था, ‘रूपा, मैं ने तुम्हें खुश करने के लिए अपने वजूद, स्वाभिमान एवं स्वत्व का सौदा कर लिया, परंतु मु  झे अपमान के अलावा और मिला क्या? मेरे जाने के बाद तुम खुश रह सकोगी इस उम्मीद के साथ अलविदा… रोहन’.

रोहन के जाने के बाद रिश्तेदारों और परिचितों में जो भी यह खबर सुनता वही सहानुभूति दिखाने के लिए आ जाता और रोहन के लिए कोईकोई उलटासीधा बोलता जिसे सुन कर उसे अच्छा नहीं लगता था. घर से बाहर निकलती तो सब अजीब निगाहों से उसे घूरते दिखते.

एक दिन वह अपनी सहेली ईशा के घर पहुंची. उस की सास और ननद उस को देखते ही फुसफुसाने लगीं कि आदमी छोड़ गया तो भी कैसे बनसंवर कर घूम रही है, कोई लाजशरम तो जैसे छू भी नहीं गई है. उस की सास ने आखिर में उसे जोर से सुना भी दिया था, ‘बहू, मु  झे तुम्हारी इस तरह की सहेलियां जरा भी पसंद नहीं हैं, जो अपना घर तोड़ कर दूसरे का घर तोड़ने चली हों. सम  झदार के लिए इशारा ही काफी था. वह उलटे पैर घर लौट आई थी.

दोनों भाभियों को अपने बच्चों, किटी पार्टी और शौपिंग से फुरसत नहीं रहती थी. उन्हें तो रूपा बिन बुलाए मेहमान की तरह लगती थी. धीरेधीरे उस की हैसियत घर में नौकरानी जैसी हो गई थी. एक दिन उस ने अपने कानों से सुन लिया था. दोनों भाभी आपस में बात कर रही थीं कि बैठीबैठी महारानीजी करेंगी क्या? कम से कम नाश्ता और खाना तो बना ही सकती हैं. उसे गुस्सा तो बहुत जोर का आया था, लेकिन उसे लगा था कि सिर्फ इन की नहीं मम्मीपापा, भाई सब की निगाहें बदल गई हैं.

अब वह यहां आ कर रहने के अपने फैसले पर वह बहुत पछता रही थी. उसे हर पल रोहन को याद आती रहती थी. रोहन को गए हुए 1 साल बीत चुका था. वह अपने जीवन से निराश हो गई थी. उस के मन में आत्महत्या करने का विचार प्रबल होता जा रहा था. वह सोचने लगी थी कि जीवन का अंत ही उस की समस्याओं से उसे नजात दिलवा सकता था. एक दिन निराशा और हताशा के पलों में कब उस को   झपकी लग गई थी उसे पता ही नहीं लगा था. अचानक उस ने सपने में रोहन को पुकारते हुए सुना. वह चौंक कर उठ बैठी थी. उस का प्यार रोहन पर उमड़ पड़ा था. वह तड़प उठी थी कि अपने रोहन के पास कैसे उड़ कर पहुंच जाए. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होगी. कुछ बन कर दिखाएगी. और रोहन मिला तो वह उस से अपनी गलतियों के लिए माफी मांगेगी.

पहचान: पति की मृत्यु के बाद वेदिका कहां चली गई- भाग 3

‘‘मम्मीपापा, आप यहां कैसे? कैसे हैं आप?’’ वेदिका मम्मी से लिपट गई. सालों के जमा गिलेशिकवे पानी बन कर बह गए.

एक पत्रिका में वेदिका का इंटरव्यू छपा था, जिसे पढ़ कर उन्हें वेदिका का पता चला और वे तुरंत उस से मिलने चले आए. कली को सीने से लगाते हुए दोनों को अपने किए पर पछतावा था.

पापा ने कहा, ‘‘बेटा, उस कठिन समय में हमें तुम्हारा साथ देना चाहिए था.’’

वेदिका तो उन का साथ पा कर सारे दुख भूल चुकी थी. कली के साथ वे भी इतने रम गए कि पुरानी बातें याद करने का उन्हें भी कहां होश था? देर रात तक वे उस के साथ खेलते रहे.

रात में मम्मी ने बताया…

वेदिका के जाने के बाद विदित के मातापिता उसे ढूंढ़ते हुए उन के घर पहुचे थे. कई दिनों तक उन के घर के आसपास लोग टोह लेते रहे. कई बार फोन पर उन्हें धमकियां भी मिलीं. पुलिस भी चक्कर लगाती रही. विदित के भाई ने तो यहां तक कहा कि वेदिका के साथ उन के घर का होने वाला वारिस भी गायब है… वे उन्हें छोड़ेंगे नहीं. हमें तो लगा कि उन लोगों ने तुम्हें कुछ कर दिया है… तुम्हारा कोई सुराग ही नहीं लगा… तुम्हें ढूंढ़ते भी तो कैसे?

2-3 दिन वहां रुक कर मम्मीपापा वापस जाने लगे. वेदिका की तरक्की से वे संतुष्ट थे. कली के प्यार से सराबोर. उन्होंने वेदिका से जल्दी आने का वादा लिया. विदित के मम्मीपापा को कहीं वेदिका के बारे में न पता चले, इस आशंका से वे भयभीत थे.

वेदिका ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करो. अब मेरी अपनी पहचान है, इसलिए मु?ो नुकसान पहुंचाना आसान नहीं होगा उन के लिए… मैं जल्दी ही वहां जाऊंगी.’’

दरवाजे की घंटी बजी तो नौकर ने दरवाजा खोला. सामने वेदिका को देख कर हतप्रभ रह गया. विदित के मम्मीपापा, भैयाभाभी भी चौंक उठे. मम्मीपापा के चेहरे पर उम्र लकीरों के रूप में कुछ ज्यादा ही फैल गई थी. उन्हीं लकीरों में पश्चात्ताप की एक लकीर उन की आंखों में भी ?िलमिला रही थी, जिसे देखने के लिए ही शायद वेदिका यहां आई थी. वेदिका का आंचल थामे खड़ी कली को सीने से लगा कर वे भावविभोर हो गए. विदित से नाराजगी के चलते उस के प्यार और उस की जिस निशानी को वे नजरअंदाज करते रहे थे, उन के जाने के बाद उन्होंने उस की कमी को महसूस किया था. कली पर उमड़े प्यार ने उस पीड़ा और पश्चात्ताप को उजागर कर दिया था. वेदिका खामोशी से उन के अनकहे शब्दों के भावों को सम?ाती और महसूस करती रही.

भैयाभाभी बहुत आत्मीय तो नहीं रहे, पर उन का आंखें चुराना बहुत कुछ कह गया. वेदिका की नई पहचान के आगे अपने ओछे विचारों के साथ वे खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे. एक दिन वे उस के वजूद तक को नकार चुके थे. आज वही वजूद अपनी प्रभावशाली पहचान के साथ खड़ा है, जो उन की दी किसी पहचान का मुहताज नहीं था.

ममता: आकाश की मां को उसकी इतनी चिंता क्यों थी

पता नहीं कहां गया है यह लड़का. सुबह से शाम होने को आई, लेकिन नवाबजादे का कुछ पता नहीं कि कहां है. पता नहीं, सारा दिन कहांकहां घूमताफिरता है. न खाने का होश है न ही पीने का. यदि घर में रहे तो सारा दिन मोबाइल, इंटरनैट या फिर टैलीविजन से चिपका रहता है. बहुत लापरवाह हो गया है.

अगर कुछ कहो तो सुनने को मिलता है, ‘‘सारा दिन पढ़ता ही तो हूं. अगर कुछ देर इंटरनैट पर चैटिंग कर ली तो क्या हो गया?’’

फिर लंबी बहस शुरू हो जाती है हम दोनों में, जो फिर उस के पापा के आने के बाद ही खत्म होती है.

वैसे इतना बुरा भी नहीं है आकाश. बस, थोड़ा लापरवाह है. दोस्तों के मामले में उस का खुद पर नियंत्रण नहीं रहता है. जब दोस्त उसे बुलाते हैं, तो वह अपना सारा कामकाज छोड़ कर उन की मदद करने चल देता है. फिर तो उसे अपनी पढ़ाई की भी फिक्र नहीं होती है. अगर मैं कुछ कहूं तो मेरे कहे हुए शब्द ही दोहरा देगा, ‘‘आप ही तो कहती हैं ममा कि दूसरों की मदद करो, दूसरों को विद्या दान करो.’’

तब मुझे गुस्सा आ जाता, ‘‘लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि अपना घर फूंक कर तमाशा देखो. अरे, अपना काम कर के चाहे जिस की मदद करो, मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर अपना काम तो पूरा करो.’’

जब वह देखता कि मां को सचमुच गुस्सा आ गया है, तो गले में बांहें डाल देता और मनाने की कोशिश करता, ‘‘अच्छा ममा, आगे से ऐसा नहीं करूंगा.’’

उस का प्यार देख कर मैं फिर हंस पड़ती और उसे मनचाहा करने की छूट मिल जाती.

मेघना की शादी वाले दिन आकाश का एक अलग ही रूप नजर आया. एक जिम्मेदार भाई का. उस दिन तो ऐसा लग रहा था जैसे वह मुझ से भी बड़ा हो गया है. उस ने इतनी जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभाया था कि वहां मौजूद हर व्यक्ति के मुंह से उस की तारीफ निकल रही थी. मैं और आकाश के पापा भी हैरान थे कि यह इतना जिम्मेदार कैसे हो गया. मेघना भी उस की कर्तव्यनिष्ठता देख कर बेहद खुश थी.

शादी के दूसरे दिन जब मेघना पग फेरे के लिए घर आई तो जनाब घर 2 घंटे लेट आए. पूछने पर पता चला कि किसी दोस्त के घर चले गए थे. मेघना 1 दिन पहले की उस की कर्तव्यनिष्ठता भूल गई और उसे जम कर लताड़ा.

मुझे भी बहुत गुस्सा आया था कि बहन घर पर आई हुई है और जनाब को घर आने का होश ही नहीं है. पर मेरे साथ तो उस ने पूरी बहस करनी थी. अत: कहने लगा, ‘‘क्या ममा, आ तो गया हूं, चाहे थोड़ी देर से ही आया हूं. कौन सा दीदी अभी जा रही हैं… सारा दिन रहेंगी न?’’

गनीमत थी कि बहन के सामने कुछ नहीं बोला और सारा गुस्सा मुझ पर निकाला.

पर आकाश अभी तक आया क्यों नहीं?

मैं ने दीवार पर टंगी घड़ी देखी, 7 बज चुके थे. मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आने लगा कि आज आने दो बच्चू को… आज मुझ से नहीं बच पाएगा… आज तो उस की टांगें तोड़ कर ही रहूंगी.

उस से सुबह ही कहा था कि आज घर जल्दी आना तो आज और भी देर कर दी. उस दिन भी उस से कहा था घर जल्दी आने के लिए और उस दिन तो वह ठीक समय पर घर आ गया था. पता था कि मां की तबीयत ठीक नहीं है.

मैं उठने लगी तो कहने लगा, ‘‘आप लेटी रहो ममा, आज मैं खाना बनाऊंगा.’’

‘‘नहींनहीं, मैं बनाती हूं,’’ मैं ने उठने की कोशिश की पर उस ने मुझे उठने नहीं दिया और बहुत ही स्वादिष्ठ सैंडविच बना कर खिलाए.

लेकिन आज जब सुबह मैं ने कहा था कि आकाश छत से जरा कपड़े उतार लाना तो अनसुना कर के चला गया. अजीब लड़का है… पल में तोला तो पल में माशा. कुछ भी कभी भी कर देता है. उस दिन कामवाली बाई की बेटी की पढ़ाई के लिए किताबें खरीद लाया. लेकिन जब मैं ने कहा कि जरा बाजार से सब्जी ले आ तो साफ मना कर दिया, ‘‘नहीं ममा, मुझ से नहीं होता यह काम.’’

मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर चुप रही. बहुत देर हो गई है… सुबह का निकला हुआ है… अभी तक घर नहीं आया. अच्छा फोन कर के पूछती हूं कि कहां है. मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो आवाज आई कि जिस नंबर पर आप डायल कर रहे हैं वह अभी उपलब्ध नहीं है. थोड़ी देर बाद कोशिश करें. मुझे फिर से गुस्सा आने लगा कि पता नहीं फोन कहां रखा है. कभी भी समय पर नहीं लगता है.

मैं ने फिर फोन किया, लेकिन फिर वही जवाब आया. अब तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था कि अजीब लड़का है… फोन क्यों नहीं उठा रहा है?

मैं ने कई बार फोन किया, मगर हर बार एक ही जवाब आया. अब मेरा गुस्सा चिंता में बदल गया कि पता नहीं कहां है… सुबह का घर से निकला है. कह कर गया था कि ‘प्रोजैक्ट’ का काम है. उसे पूरा करना है. मोटरसाइकिल भी इतनी तेज चलाता है कि पूछो मत. कई बार समझा चुकी हूं कि धीरे चलाया कर, पर मानता ही नहीं.

कुछ दिन पहले ही पड़ोस के राहुल का?मोटरसाइकिल से ऐक्सिडैंट हो गया था. शुक्र है जान बच गई और चोट भी ज्यादा नहीं आई पर उस के मातापिता क्व50 हजार के नीचे आ गए. मैं और आकाश राहुल से मिलने अस्पताल गए थे. राहुल के पैरों में पट्टियां बंधी थीं, लेकिन चेहरे पर मुसकान थी.

वह आकाश से बोला, ‘‘आकाश तू भी मोटरसाइकिल बहुत तेज चलाता है… धीरे चलाया कर नहीं तो मेरे जैसा हाल होगा.’’

मेरे कुछ कहने से पहले ही राहुल की मां सुजाता बोल पड़ीं, ‘‘बेटा, ऐसा नहीं कहते.’’

‘‘नहीं सुजाताजी राहुल ठीक कह रहा है… यह लड़का भी मोटरसाइकिल बहुत तेज चलाता है. मैं इस से कई बार कह चुकी हूं पर यह मेरी सुनता ही नहीं. लेकिन राहुल, तुम तो बहुत आराम से चलाते हो, फिर यह ऐक्सिडैंट कैसे हो गया?’’

‘‘आंटी, अचानक आगे से एक गाड़ी आ गई और मेरी मोटरसाइकिल उस से टकरा गई. फिर जब होश आया तो मैं अस्पताल में था.’’

‘आकाश तो राहुल से कई गुना तेज चलाता है… उफ, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं,’ सोच कर मैं ने फिर से फोन लगाया. मगर फिर से वही आवाज आई. अब तो मेरे पसीने छूटने लगे. चिंता के मारे मेरा बुरा हाल हो गया. पता नहीं किसकिस को फोन लगाया, पर आकाश का कुछ भी पता नहीं चला. समय बीतता जा रहा था और मेरी घबराहट भी बढ़ती जा रही थी.

‘आकाश के पापा भी आने वाले हैं,’ यह सोच कर मेरी हालत और खराब हो रही थी.

तभी फोन की घंटी बजी. मैं ने लपक कर फोन उठाया. उधर से आकाश बोल रहा था, ‘‘ममा, मैं घर थोड़ी देर में आऊंगा.’’

‘‘कहां है तू? कहां रखा था फोन? पता है मैं कब से फोन लगा रही हूं… पता है मेरी चिंता के कारण क्या हालत हो गई है?’’ मैं ने एक ही सांस में सब कुछ कह डाला.

‘‘घर आ कर बताऊंगा… अभी मैं फोन काट रहा हूं.’’

मैं हैलोहैलो करती रह गई. फोन बंद हो चुका था. अब मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया कि आज तो इस लड़के ने हद कर दी है, आने दो घर बताती हूं. यहां मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है और जनाब को अपनी मां से बात करने तक की फुरसत नहीं है.

थोड़ी ही देर बाद डोर बैल बजी. मैं ने दरवाजा खोला. आकाश था. परेशान हालत में था. आते ही बोला, ‘‘ममा, जल्दी से खाना दे दो… आज सुबह से कुछ नहीं खाया है… प्रोजैक्ट के काम में लगा था… सारा दिन उसी में लगा रहा. अभी भी काम पूरा नहीं हुआ है… मुझे फिर से करण के घर जाना है कल ‘प्रैजेंटेशन’ है… वर्क पूरा करना है.’’

मेरा सारा गुस्सा, सारी चिंता जाती रही. मुझ पर ममता हावी हो गई. बोली, ‘‘जल्दी से हाथमुंह धो ले, मैं खाना लगा रही हूं.’’

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