Diwali Special: मनमुटाव भूल कर मनाएं त्योहार

आलिया जब 19 साल की थी तब ही उस के पिता मनोज यादव ने अपनी प्रौपटी के कागज तैयार करवा लिए थे, जिन में उन्होंने अपनी प्रौपटी के 2 हिस्से कराए. एक हिस्सा अपने बेटे सुमित यादव और दूसरा हिस्सा आलिया यादव के नाम किया.

अब तक सुमित इस सोच में बैठा था कि वह पूरी संपत्ति का एकलौता वारिस है, दूसरा कोई नहीं. लेकिन जब सुमित को पता चला कि आलिया भी संपत्ति में हिस्सेदार है तो उस के तोते उड़ गए. वह नहीं चाहता था कि किसी दूसरे को भी हिस्सा देना पड़े. वह भी घर की बेटी को तो बिलकुल नहीं.

मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी बेटियों को बाप की प्रोपर्टी में हिस्सा देने का फैसला दिया है. ऐसे में सुमित की जरा भी नहीं चली और आलिया को भी प्रौपर्टी में हिस्सा मिल गया. इस बात को गुजरे 9 साल हो गए हैं, लेकिन सुमित और आलिया के बीच मनमुटाव आज भी कायम है.

ऐसी ही कहानी अहमदाबाद की डिंपल और मयंक की है. डिंपल की अपनी भाभी यामिनी से बिलकुल नहीं बनती है. डिंपल और मयंक भाईबहन हैं. लेकिन जब से मयंक की शादी हुई है तब से वह हर वक्त यामिनीयामिनी करता रहता है.

डिंपल को ऐसा लगता है कि उस के और उस के भाई के बीच में जो बौंडिंग थी वह डिंपल के आने से खत्म हो गई है. इसलिए डिंपल और यामिनी के बीच में काफी मनमुटाव है. इसी वजह से डिंपल ने तीजत्योहार पर अपने मायके आना भी छोड़ दिया.

मनमुटाव होना कोई नई बात नहीं

अभिषेक और नैना की कहानी भी मनमुटावों से भरी है. वैसे भाईबहन के बीच मनमुटाव होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन यही मनमुटाव रिश्तों को खत्म करने का कारण भी बनता है. असल में अभिषेक और नैना के बीच मनमुटाव इस बात से है कि नैना की शादी में अभिषेक और नैना के देवर के बीच में बहसबाजी हो गई. यह बहसबाजी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि अभिषेक ने कहा कि मु?ो अपनी बहन की शादी आप के घर में नहीं करनी. नैना इस बात से बहुत आहत हुई क्योंकि वह यह शादी तोड़ना नहीं चाहती थी. बहुत सम?ाने के बाद आखिर नैना की शादी उस घर में हो गई.

मगर उस दिन के बाद से नैना के ससुराल वाले आए दिन उसे अभिषेक की बात के लिए ताना कसते रहते हैं. आज 3 साल हो गए, लेकिन अभिषेक और नैना के बीच का मनमुटाव खत्म नहीं हुआ.

ऐसे ही न जाने कितने ही मनमुटाव हर रिश्ते में होते हैं. फिर चाहे वह मनमुटाव ननदभाभी के बीच हो, चाहे सासबहू के बीच हो या फिर चाचाभतीजे के बीच हर रिश्ते में रहेगा ही रहेगा. लेकिन जरूरी यह है कि आप इस मनमुटाव के बीच भी अपने रिश्तों को अहमियत दें. अपने मनमुटाव को आप त्योहारों के बीच में न आने दें. इसे साइड में ही रखें. आप बस अपनों के साथ खास पलों को जीएं. यही वे पल हैं जो आप की यादों को और यादगार बनाऐंगे.

त्योहार को भरपूर जीएं

अगर आप और आप के भाई या बहन के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव है तो आप बेशक उसे दूर न करें, आप उन पर वर्क भी न करें, लेकिन अपने त्योहार पर इस मनमुटाव को भूल जाएं और बस अपने त्योहार को भरपूर जीएं क्योंकि यही भाईबहन जो आप के साथ ताउम्र रहेंगे.

दोस्त तो बस मन बहलाने, घूमनेफिरने के लिए हैं. आखिर में तो परिवार ही काम आता है. इसलिए त्योहार में अपने परिवार को शामिल करें या परिवार का हिस्सा खुद बनें ताकि आप के बीच अपनापन बना रहे. इस से आप के बच्चे भी अपने बड़ेबुजुर्गों से भी मिल लेंगे और उन्हें भी दादादादी, नानानानी, मामामामी का प्यार मिलेगा.

बच्चों को शामिल करें

अगर आप को लगता है कि त्योहार पर मिलने से भी आप और आप के भाई या बहन के बीच चल रहा मनमुटाव खत्म नहीं होगा तो आप बिलकुल सही हैं. यह मनमुटाव एक दिन में खत्म नहीं होगा. लेकिन हमारी राय यह है कि अगर आप मनमुटाव होते हुए भी त्योहारों पर अपने रिश्तेदारों से मिलते हैं तो आप अपने साथ कुछ नई यादें बनाते हैं. साथ बिताए इन पलों को आप और आप का रिश्तेदार हमेशा याद रखेगा.

त्योहारों पर मनमुटाव होते हुए भी अपने रिश्तेदारों से मिलने का एक कारण यह भी है कि अब परिवार छोटे हो गए हैं. अब परिवार में सिर्फ पतिपत्नी और बच्चे शामिल हैं. ऐसे में वे नए लोगों और अपने रिश्तेदारों से दूर ही रहते हैं. अगर त्योहारों में आप अपने बच्चों को उन के चाचाचाची, मौसामौसी से मिलाएंगे तो वे भी खुश हो जाएंगे और आप का भी उन से मेलजोल  बढ़ेगा.

ऐथनिक आउटफिट को दें वैस्टर्न टच

फैस्टिव सीजन में हर युवती और हर महिला ऐथनिक आउटफिट ही चाहती है. जो भी नया फैशन आता है उसे खरीदने के लिए मार्केट में भीड़ उमड़ पड़ती है. मगर फैस्टिव सीजन खत्म होने के बाद ये आउटफिट्स अलमारी के कोने में पड़े रहते हैं.

जहां एक ओर एक कपड़े को कई बार पहनने का मतलब गरीबी समझ लिया जाता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे खराब फैशन सैंस भी समझ लेते हैं. कई बार लोग इन्हें पहनते पहनते बोर हो जाते हैं. वे अब कुछ नया ट्राई करना चाहते हैं. जो लोग अमीर होते हैं या जिन्हें लगता है कि ये कपड़े अब उन के किसी काम के नहीं हैं. वे इन्हें गरीबों को दान कर देते हैं.

इन महंगे कपड़ों को खरीदने में जो रुपए लगे होते हैं वे भी नहीं वसूल पाते. अगर आप इन कपड़ों से अपने पैसे वसूलना चाहती हैं तो आप को इन कपड़ों को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन समस्या यह भी है कि दोबारा इस्तेमाल करने से वे आउट औफ फैशन और बोरिंग लगेंगे. इस के लिए आप को कुछ ऐसे हैक चाहिए जो आप के ऐथनिक आउटफिट को एकदम नए लुक में बदल दें.

इस के लिए सब से अच्छा तरीका है ऐथनिक आउटफिट को वैस्टर्न आउटफिट में बदलना. इस से वे अपने ऊपर लगे बोरियत के टैग को हटा सकेंगे.

आइए, अब कुछ ऐसे ही हैक जानते हैं जो ऐथनिक आउटफिट को वैस्टर्न आउटफिट में बदल देगा:

साड़ी विद जींस

साड़ी एक ऐसा ऐथनिक वियर है, जो हर महिला और लड़की के वार्डरोब में होता ही है. वैसे तो साड़ी पेटीकोट या शेपवियर के साथ पेयर की जाती है. लेकिन अगर आप साड़ी को इस तरह से पहनतेपहनते बोर हो गई हैं और अब कुछ नया ट्राई करना चाहती हैं तो साड़ी को जींस के साथ ट्राई कर सकती हैं. इस से आप को यूनीक स्टाइल मिलेगा. जहां आप जींस को लैगिंग के साथ भी चेंज कर सकती हैं वहीं ब्लाउज की जगह क्रौप टौप भी पहन सकती हैं.

ऐक्स्ट्रा लुक देने के लिए आप बैल्ट भी ट्राई कर सकती हैं. ज्वैलरी के लिए गोल्डन या औक्साइड ज्वैलरी पेयरअप कर सकती हैं. इस के साथ आप को हील ऐलिगैंट लुक देगी. अगर आप की हाइट अच्छी है तो आप फ्लैट स्लीपर और जूती पहन सकती हैं. सोनम कपूर भी एक इवेंट के दौरान इस लुक को ट्राई कर चुकी हैं.

चिकनकारी कुरते के साथ जींस

चिकनकारी कुरता तो हर लड़की के वार्डरोब में बड़ी आसानी से मिल ही जाता है. अगर आप इसे लैगिंग और प्लाजो के साथ पहन कर बोर हो गई हैं तो इसे स्किनी, रिपड और बौयफ्रैंड जींस के साथ ट्राई करें. ध्यान रहे कुरता थोड़ा लूज ही हो. ज्वैलरी के लिए आप चांद बालियां और लौंग झुमके कैरी करें. बालों को खुला छोड़ सकती हैं.

अगर आप खुला नहीं रखना चाहतीं तो लूज बन ट्राई कर सकती हैं. इस के साथ फ्लैट स्लीपर या जूती पहनें. अगर आप की हाइट कम है तो पौयटेट हील पहन सकती हैं. अगर आप कंफर्टेबल लुक चाहती हैं तो ब्लैक शूज और स्पार्ट्स शूज ट्राई कर सकती हैं. अनुष्का शर्मा की हिंदी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ का ब्रेकअप सौंग अपने इसी लुक की वजह से रातोंरात सब का फैवरिट बन गया था.

ऐथनिक जैकेट को कैसे करें कैरी

अगर आप के पास सूटसलवार का एक सैट पड़ा है जिस के साथ एक ऐथनिक जैकेट भी है और आप इसे कई बार पहन चुकी हैं और अब नहीं पहनना चाहती हैं तो इस के लिए आप अपनी इस जैकेट को वैस्टर्न टच दे कर एक नया लुक क्रिएट कर सकती हैं. इस ऐथनिक जैकेट को जींस और टौप के साथ कैरी कर सकती हैं. जींस और टौप का कलर अपनी पसंदानुसार चुनें.

आप चाहें तो ऐथनिक जैकेट को कुरते के साथ भी कैरी कर सकती हैं. इस के अलावा आप कुरते के लिए अंगरखा कुरते को भी चुन सकती हैं. इस के साथ वी नैक औकसाइट ज्वैलरी कैरी करें. साथ ही औक्साइट ब्रैसलेट भी पहनें. बालों की फ्रैंच चोटी कर के आगे की साइड से कुछ लटे निकाल लें. आप इसे हाई हील के साथ कंप्लीट करें. आप का फैस्टिव लुक एक नए अंदाज में तैयार है. फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में अनुष्का शर्मा ने इस लुक से वाहवाही लूटी थी.

जींस, ब्लाउज, दुपट्टा से पाएं वैस्टर्न लुक

अगर आप फैस्टिव सीजन में नई ड्रैस लेने की सोच रही हैं तो अपना माइंड बदल दें. आप बस ब्लाउज, दुपटटे और जींस की हैल्प से यूनीक वैस्टर्न लुक तैयार कर सकती हैं. सब से पहले ब्लाज और जींस पहन लें.

ध्यान रहे जींस स्किनी जींस ही हो. फिर दुपट्टे के साइड वाले कोने को जींस के अंदर खोस लें. इस के बाद जैसे साड़ी का पल्ला लिया जाता है वैसे ही दुप्पटे को सैट कर लें. इस के साथ लौकेट स्टाइल में औक्साइड या कुंदन की ज्वैलरी कैरी करें. हाथ में वाच पहनें. इस के साथ पौयटेंट हील पहनें. बालों को ब्लो ड्राई कर के ओपन छोड़ सकती हैं.

इस लुक को कई सैलिब्रिटीज भी ट्राई कर चुकी हैं. आजकल लड़कियों में इस लुक का बेहद क्रेज है.

लौंग ए लाइन कुरता विद जींस या शौर्ट्स

लौंग ए लाइन कुरते को लैगिंग के साथ पहनना अब आउट औफ फैशन हो गया है. इसे वैस्टर्न आउटफिट बनाने के लिए शौर्ट्स के साथ पहनें. बालों को स्ट्रैट कर के ओपन कर लें. क्यूट लुक के लिए हाफ बन भी बना सकती हैं. इस आउटफिट में मिनिमम ज्वैलरी कैरी करें. कानों में मल्टीकलर इयररिंग्स या हूप पहन सकती हैं.

हाथों को सुंदर दिखाने के लिए बड़े साइज में औक्साइड रैड या ग्रीन कलर की रिंग पहनें. अपने इस लुक को आप सैंडल या कैजुअल शूज के साथ कंप्लीट करें.

घेरेदार प्लाजो के साथ टैंग टौप घेरेदार प्लाजो पहनना अच्छा औपशन है. इसे फुल हाईनैक क्रौप टौप के साथ पहना जा सकता है. इसे आप शर्ट के साथ ऐक्सचेंज भी कर सकती हैं. ज्वैलरी के लिए मार्केट में आने वाले कुंदन पैंडैंट ट्राई कर सकती हैं.

आप औक्साइड ज्वैलरी की तरफ भी जा सकती हैं. इस के लिए लौंग लौकेट और नैकलैस टाइप की ज्वैलरी ट्राई कर सकती हैं. इस के साथ के मैचिंग इयररिंग्स पहनें. बालों को स्ट्रेट कर सकती हैं.

अगर आप ने हैवी चोकर औक्साइड ज्वैलरी पहनी है तो इयररिंग्स को अवौइट भी कर सकती हैं. इस के साथ हील पहनें. आजकल पार्टियों में इस लुक को बहुत पसंद किया जा रहा है.

लहंगा विद शर्ट

आप की ऐंग्जमैंट का लहंगा वार्डरोब में बेकार रखा है. आप सम?ा नहीं पा रही हैं कि इसे कैसे दोबारा पहना जाए तो इसे वैस्टर्न स्टाइल में कैरी कर सकती हैं. इस के लिए आप अपने लहंगे को सफेद शर्ट के साथ ट्राई कर सकती हैं, साथ में पर्ल ज्वैलरी पहनें और आपन हेयर करें. यह एकदम परफैक्ट कौंबिनेशन है.

आप चाहें तो लो पोनीटेल कर के इसे माथापट्टी के साथ स्टाइल कर सकती हैं. माथापट्टी आप को रिच लुक देगी. इस के साथ ट्राइपेरेट सैंडल या हील कुछ भी पहन सकती हैं. दोनों ही आप के लुक को पूरा करेंगे.

दुनिया अगर मिल जाए तो क्या: भाग-2

‘‘बात ही ऐसी करती हैं मैम. आ जाएंगी अपनी दलित बस्ती को बीच में ले कर. कोई खबर आई नहीं कि उन्हें दुख होना शुरू हो जाता है.’’

सहर ने कहा, ‘‘तुम अपनी जाति को ले कर नहीं आते? कभी सोचा है कि इतनी बड़ी डिग्री लेने जाने वाला इंसान हिंदू राष्ट्र की बात करते हुए कैसा लगता होगा?’’ सहर के आगे तो ओनीर वैसे ही हारने लगता था, फिर भी बोला, ‘‘काफी दिनों से सोच रहा हूं कि तुम, सहर नौटियाल. यह सरनेम कम ही सुना है. मुंबई के तो नहीं हो तुम लोग?’’

‘‘तुम सचमुच जाति से बढ़ कर नहीं सोच सकते?’’

‘‘मुझे भविष्य में एक इतिहासकार बनना है, राजनीति में जाना है.’’

‘‘उस के लिए इतना पढ़ने की क्या जरूरत है?’’ सहर के इतना कहते ही सब हंस पड़े. सब के और्डर सर्व हो चुके थे, सब खानेपीने लगे. सब जानते थे कि ओनीर को सहर पसंद है पर सहर के पेरैंट्स में से कोई तो मुसलिम है, ओनीर इसलिए कुछ आगे नहीं बढ़ता है. बस, इतना ही पता था सब को. और यही सच भी था.

सहर ने नीबूपानी का एक घूंट भरते हुए कहा, ‘‘कोई हिंदू, कोई मुसलिम, कोई ईसाई है, सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है.’’ सहर की गंभीर आवाज पर कुछ सैकंड्स के लिए सन्नाटा छा गया.

ओनीर ने जलीकटी टोन में कहा, ‘‘बस, इसी से सब चुप हो जाते हैं, तुम्हें पता है.’’

सहर ने कहा, ‘‘ओनीर, वैसे तो तुम्हारा अपना सोचने का ढंग है पर मेरे खयाल से एक दोस्त की हैसियत से यह जरूर कहना चाहूंगी कि हम आज जहां बैठे हैं, हमारे और उन नफरत फैलाने वाले लोगों में कुछ फर्क तो होना ही चाहिए न? तुम वही भाषा बोलते हो जो एक सम?ादार इंसान को नहीं बोलनी चाहिए.’’

‘‘जो दिख रहा है, वही तो बोलता हूं.’’

‘‘नहीं, जो दिख रहा है, वह ज्यादातर मनगढ़ंत है, सही नहीं है. दूसरे स्किल की तरह हमें अब फैक्ट चैकिंग की स्किल भी डैवलप करनी चाहिए. तलाशना होगा कि क्या सच है और क्या ?ाठ. मैं ने तो पढ़ा है कि फिनलैंड और कुछ देशों में तो स्कूली कोर्स में आजकल फैक्ट चीकिंग पढ़ाई जा रही है. हमारे यहां भी यह कोर्स शुरू होना चाहिए क्योंकि अब इनफौर्मेशन कई जगहों से आ रही है और उसे बीच में कोई चैक करने वाला नहीं है. पहले मीडिया हमारे लिए यह काम करता था पर अब तो बीच में मीडिया भी नहीं है.’’

‘‘यह सब तुम मुझे क्यों सुना रही हो?’’

‘‘तुम्हें ही तो इतिहासकार बनना है न,’’ सहर मुसकरा दी, आगे कहा, ‘‘इतिहास लिखोगे तो सारे तथ्य लिखना. सच सब से ज्यादा जरूरी होता है, याद रखना. इतिहासकार को सच ही लिखना चाहिए. उस से फायदा होगा या नुकसान, यह देखना इतिहासकार का काम नहीं होता है.’’

‘‘पर यह सब मुझे सुनाने से क्या होगा, क्या मैं बेवकूफ हूं?’’

सहर हंस पड़ी, बोली, ‘‘अच्छा सुनने की सलाहियत से अच्छा कहने का शऊर आता है.’’

‘‘एक तो तुम पता नहीं कैसी हिंदी बोलती हो, कभी उर्दू. मुझे तो तुम्हारी आधी बातें समझ ही नहीं आतीं. ठीक से इंग्लिश में ही बात क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘फिर कहोगे, हिंदू राष्ट्र में सब को हिंदी ही बोलनी है. अंगरेजों ने गुलाम बनाया था न, इसलिए उन की भाषा नहीं बोल रही.’’ उस की इस बात पर सब जोर से हंसे, ओनीर ?ोंप गया. सिर्फ सहर ही उसे चुप करवा सकती थी. नएनए प्रेम में पड़े इंसान के लिए सबकुछ इतना भी आसान नहीं होता और ओनीर तो सहर के प्रेम में बुरी तरह डूबा था.

‘‘बहुत दिनों से पूछना चाह रहा था, तुम लोग उत्तराखंड से हो न? नौटियाल सरनेम वहीं से है न?’’

‘‘वाह, मुझ पर भी रिसर्च हो रही है.’’

सब हंसने लगे, ओनीर चिढ़ा, ‘‘कुछ ठीक से बताओगी अपने बारे में? अब तो कालेज भी खत्म होने को आए.’’

‘‘हम नौटियाल लोग करीब 700 साल पहले टिहरी से आ कर तली चांदपुर में नौटी गांव में आ कर बस गए थे. नौटियाल चांदपुर गढ़ी के राजा कनकपाल के साथ संवत 945 में मालवा से आ कर यहां बसे, इन के बसने के स्थान का नाम गोदी था जो बाद में नौटी के नाम में बदल गया और नौटियाल जाति मशहूर हुई. यह सब मेरे

पापा ने मेरी मम्मी को बताया

था और मुझे मम्मी ने. और कुछ पूछना है?’’

सहर के बोलने के ढंग में कुछ ऐसी बात थी कि जब वह बोलती, कोई उसे बीच में न टोकता. वह चुप हुई तो ओनीर, जो उसे अपलक देख रहा था, बोला, ‘‘फिलहाल इतना ही. बस, एक बात और, बुरा मत मानना, तुम्हारे पेरैंट्स में से कौन मुसलिम है?’’

‘‘मम्मी.’’

‘‘वे कहां की हैं?’’

‘‘यहीं मुंबई की.’’

‘‘तो पापा उत्तराखंड से आए थे?’’

‘‘हां,’’ कहते हुए सहर का चेहरा कुछ उदास सा हुआ. सब ने यह नोट किया तो युवान ने बात बदली, ‘‘चलो, अब सब क्लास में.’’

सहर और ओनीर दोनों ही जानते थे कि समय के साथ उन के दिल में एकदूसरे के लिए वैसे भाव नहीं हैं जैसे साथ में रहने वाले और दोस्तों के लिए हैं. कई बार ऐसा भी तो होता है न कि प्यार करने वाले अपने मुंह से कुछ भी नहीं कह रहे हैं पर आसपास के लोग दोनों की निगाहों में बहुतकुछ पढ़ लेते हैं. आंखों का काम सिर्फ देखना थोड़े ही होता है. आंखें बहुतकुछ कहतीसुनती भी तो हैं. इस तरह आंखें कभीकभी तो जबां और कानों का भी काम कर रही होती हैं.

कुछ महीने और बीते, पीएचडी हो गई. दीक्षांत समारोह के दिन ओनीर ने सहर से पूछा, ‘‘थोड़ी देर जुहू चलोगी?’’

पूरे दिन के सैलिब्रेशन के बाद ओनीर और सहर समुद्र के किनारे टहल रहे थे. अचानक ओनीर ने कहा, ‘‘सहर, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. क्या तुम भी मेरे लिए कुछ ऐसा सोचती हो?’’

ऐसे पल जीवन में इतने आम नहीं होते जितने लगते हैं. ये पल हमेशा के लिए स्मृतियों में अपनी पैठ बना लेते हैं. सहर को दिल ही दिल में ऐसे पलों की उम्मीद थी, यह कुछ बड़ा सरप्राइज नहीं था पर फिर भी ठंडी सी एक फुहार उस के अंदर तक उतर गई. उस ने बस ‘हां’ में सिर हिला दिया, फिर कुछ रुक कर कहा, ‘‘पर तुम जिस तरह से सोचते हो, हमारा रास्ता कभी

एक हो नहीं सकता. थोड़ा प्रैक्टिकल हो कर कहूं तो तुम कास्ट को ज्यादा महत्त्व देते हो, इसलिए तुम्हारा दिमाग दिल पर हावी ही रहेगा, हम साथ चल नहीं पाएंगे.’’

प्री दीवाली नाइट्स में पहने यूनिक आउटफिट्स

आजकल प्री दीवाली फेस्टिवल में गरबा का खूब चलन है. डांडिया या गरबा नाइट्स के जरिए सेलिब्रेशन की एक्साइटमेंट बढ़ जाती है. अट्रैक्टिव दिखने के लिए आप बॉलीवुड के कई सेलिब्रिटी के फैशन को फॉलो कर सकते हैं. फेस्टीवल डांस में लोग डांडिया नाइट्स में जाने का प्लान बनाते हैं. आजकल के युवाओं में ये जोश कुछ ज्यादा ही है. अलग-अलग कपड़ों को स्टाइल करके अट्रैक्टिव दिखने की कोशिश करते हैं. गरबा सेलिब्रेशन के लिए आउटफिट कैसी होनी चाहिए इसका क्रेज ज्यादा रहता है. महिलाएं लहंगा, साड़ी या सूट के फॉर्मेट्स को पर ज्यादा फोकस करती हैं. ज्यादातर महिलाएं अलग से कपड़ा लेकर डिजाइनर लहंगे सिलवाती हैं. आउटफिट से पूरी पर्सनालिटी ही बदल जाती है. बिहार में तो गरबे के लिए बंबू स्टिक की धूम मची हुई है. गुजरात और राजस्थान में डांडिया की धूम है. गुजरात में गरबा प्रेमिओं में काफी उत्साह है. गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में गरबा की धूम देखते ही बनती है.

एक समय था जब गरबा में फाल्गुनी पाठक के गाने बजते थे. गरबा नाइट्स की शान हुआ करती थीं सिंगर फाल्गुनी पाठक. उन्हे रिप्लेस करना कोई मामूली बात नहीं थी. लेकिन समय बदलता है. देखते-देखते अब गरबा का ट्रेंड ही बदल गया. कई अलग-अलग तरह के नए गाने आ गए जिसने गरबा नाइट्स में धूम मचा दी.

हैवी आउटफिट करें इग्नोर

फेस्टीवल नाइट्स में फैशनेबल बनने के चक्कर में हैवी आउटफिट या मेकअप को कैरी करने से बचें. क्योंकि अगर अगर आप ऐसा करती हैं तो इस वजह से पूरे इवेंट में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. आप हैवी आउटफिट के साथ डांस नहीं कर सकती हैं. लाइट मेकअप और लाइट आउटफिट बेस्ट रहती है. ताकि बिना झिझक डांस भी कर पाएं और बार-बार मेकअप उतरने की टेंशन भी खत्म.

आलिया भट्ट लुक

हाल ही में आलिया भट्ट के कई आउटफिट्स फेमस हुए हैं. जिन्हें लोग काफी पसंद कर रहे हैं इन्हें आप गरबा नाइट के लिए फॉलो कर सकती हैं. एक लुक में आलिया ने पिंक साड़ी पहनी हुई है. एक्ट्रेस का बेकलेस ब्लाउज लुक बेहद अट्रैक्टिव लग रहा है. एक्ट्रेस के गोल्ड झुमके लुक में चार चांद लगा रहे हैं. मेकअप पर पिंक लिप्सटिक भी काफी जच रही है. आलिया का गंगु बाई मूवी में भी एक लहंगा काफी फेमस हुआ था उसे भी गरबा के लिए ट्राई कर सकती हैं.

श्रद्धा कपूर का लहंगा लुक

दीवाली सेलिब्रेशन के दौरान आप श्रद्धा कपूर की तरह ऑरेंज लहंगा वियर कर सकती हैं. एक्ट्रेस का लहंगा अट्रैक्टिव होने के साथ-साथ लाइट वेट भी है. डांडिया नाइट में अलग और ब्यूटीफुल नजर आने के लिए आप एक्ट्रेस के इस लुक को कॉपी कर सकती हैं. श्रद्धा कपूर के और भी ऐसे कई आउटफिट हैं जिन्हें आप फॉलो कर सकती हैं.

कियारा आडवाणी लुक

हाल ही कियार आडवाणी की मूवी सत्य प्रेम की कथा में कियारा का गरबा लुक भी काफी फेमस हुआ है. कियारा का लहंगा लुक भी लोगों को बेहद पसंद आ रहा है. उसको कॉपी करना भी पर्सनॉलिटी को अलग लुक देगा.

अनारकली सिंपल लुक

गरबा नाइट में सिंपल और अट्रैक्टिव नजर आने के लिए अनारकली सूट को भी ट्राई किया जा सकता है. मार्केट में इसके डिजाइन्स की भरमार है. देसी लुक देने वाला अनारकली सूट आपको 500 से 1000 रुपये या ज्यादा से ज्यादा 1500 के बीच आसानी से मिल जाएगा. क्योंकि अनारकली भी एक तरह से लहंगे का पूरा पूरा लुक देता है. इसलिए गरबे में ये भी एक बेस्ट ऑप्शन हो सकता है.

लौटती बहारें: भाग 4- मीनू के मायके वालों में कैसे आया बदलाव

अचानक अम्मांजी की आवाज आई, ‘‘बहू, मेरा और नीलम का खाना मत बनाना. हमारा खाना वहीं होगा.’’ मैं आहत सी हो गई. मैं नईनवेली दुलहन पर मुझे तो कोई किसी योग्य समझता ही नहीं. मन मार कर काम में लग गई. तभी अचानक नीलम जीजी की जोरजोर से रोने की आवाजें आने लगीं. मैं डर गई कि क्या हुआ. कहीं राहुल को चोट तो नहीं लग गई. मैं आटे से सने हाथों को जल्दी से धो कर अंदर कमरे की ओर दौड़ी. अंदर जा कर देखा नीलम जीजी अपना सामान बिखराए रो रही थीं. अम्मांजी बैग खोल कर कुछ ढूंढ़ रही थीं. पूछने पर मालूम चला कि नीलम दीदी का एक बैग शायद जल्दबाजी में औटोरिकशा में ही छूट गया. उस में उन के जेवर भी थे.

यह सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा. अब तो औटोचालक की ईमानदारी पर ही उम्मीद लगाई कि शायद पुलिस स्टेशन में जमा करा दे अथवा घर आ कर लौटा जाए. नीलम को न तो औटो का नंबर याद था और न ही चालक का चेहरा. इस से परेशानी और बढ़ गई. घर में गहरा तनाव छा गया था. पापाजी ने इन्हें भी औफिस से बुलवा लिया था. दोनों पुलिस स्टेशन रपट लिखवाने गए. पर वहां जा कर भी कोई ऐसी तसल्ली नहीं मिली जिस से तनाव कम हो जाता. बेटी का मायके आ कर जेवर खो देना मायके वालों के लिए बहुत बदनामी काकारण था. शेखर और रवि दोनों मिल कर जीजी को दिलासा दे रहे थे. नीलम जीजी एक ही प्रलाप किए जा रही थीं कि ससुराल जा कर क्या मुंह दिखाऊंगी. अम्मां औटो वाले को कोस रही थीं. मैं और पापाजी दोनों बेबस से खड़े थे.

उस दिन किसी ने खाना नहीं खाया. मैं ने बड़ी कठिनाई से राहुल को दूध व बिस्कुट खिलाए. अगले दिन शाम तक न पुलिस स्टेशन से कोई खबर आई और न ही औटोचालक का ही कुछ अतापता मिला. सभी निराश हो चले थे. मुझे नीलम जीजी की दशा देख कर बहुत दुख हो रहा था. कितने उत्साह से विवाह में शामिल होने आई थीं और किस परेशानी में घिर गईं. अगर कभी मायके जा कर मेरे साथ यह घटना हो जाती तो? यह सोच मैं मन ही मन कांप गई. मेरे मन में विचारों की उधेड़बुन चल रही थी कि कैसे नीलम जीजी की परेशानी दूर करूं.

अचानक दिमाग में बिजली कौंधी. मैं दृढ़ कदमों से अपने कमरे में गई और अपनी अलमारी से सारे जेवर निकाल लाई. जेवरों का डब्बा मैं ने नीलम जीजी को देते हुए कहा, ‘‘लो जीजी, ये जेवर आज से आप के हुए. मेरे तो फिर बन जाएंगे… अभी आप का जेवरों के कारण कोई अपमान नहीं होना चाहिए.’’

सभी हैरानी से मेरा मुंह देखने लगे मानो उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद घर के सभी सदस्य गहने लेने से इनकार करने लगे तो मैं ने सधे स्वर में कहा, ‘‘मैं जेवर, नीलम जीजी को दे कर कोई एहसान नहीं कर रही हूं. आप सब मेरा परिवार हैं. आप के मानअपमान में मैं भी बराबर की हिस्सेदार हूं. आजकल आएदिन लूटपाट की खबरें आती रहती हैं. गहने तो अधिकतर लौकरों की शोभा ही बढ़ाते हैं,’’ यह कह मैं किचन की ओर चल दी.

तभी नीलम जीजी ने लपक कर मेरा हाथ पकड़ लिया और कहने लगीं, ‘‘नहींनहीं भाभी मैं अपनी लापरवाही की सजा आप को नहीं दे सकती,’’ और फिर से जेवर वापस करने लगीं. इस बार मैं ने उन्हें राहुल का वास्ता दे कर जेवर ले लेने को कहा. कोई चारा न देख कर उन्होंने जेवर ले लिए.

शेखर और रवि भैया मुझे प्रशंसाभरी नजरों से देख रहे थे. पापा ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘बहू, इस समय जो तुम ने हमारे लिए किया उसे हम जीवन भर नहीं भुला पाएंगे.’’

हर समय पराए घर की और पराया खून की रट लगाने वाली अम्मांजी लज्जित सी सिर झुकाए बैठी थीं. जेवरों का यों खो जाना कोई मामूली चोट न थी. फिर भी फिलहाल उस पर मरहम लगा दिया. सभी बेमन से थोड़ाबहुत खा कर सो गए.

नीलम जीजी जैसेतैसे सहेली की शादी निबटा कर चली गईं. ससुराल में जा कर बताया कि भाभी के जेवर नए डिजाइन के थे, इसलिए उन से बदल लिए. उन की ससुराल वाले खुले विचारों के लोग थे. अत: उन्होंने कोई पूछताछ नहीं की. इस घटना के बाद से सब का मेरे प्रति व्यवहार बदल गया. शेखर बाहर घुमाने भी ले जाने लगे. खाना बन जाने पर रवि भैया और शेखरजी डाइनिंगटेबल पर प्लेटें, डोंगे रखवाने

में मेरी मदद करते. खाने के समय सब मेरा इंतजार करते. एक दिन तो अम्मां ने यहां तक कह दिया, ‘‘बहू रोटियां बना कर कैसरोल में रख लिया करो. सब के साथ ही खाना खाया करो.’’

मैं मन ही मन इस बदलाव से खुश थी. पर मन में रेनू और राजू की चिंता, किसी फांस की तरह चुभती रहती. मैं ऊपर से सामान्य दिखने का प्रयत्न करती रहती. मुझे सहारनपुर से लौटे लगभग 2 महीने होने को आए थे.

पापा का 2-3 बार कुशलमंगल पूछने के लिए फोन आ चुका था. मम्मी से भी बात हो गई थी. रेनू और राजू से एक बार भी बात नहीं हो पाई. उन के बारे में जब भी पूछा, पापा ने घर पर नहीं हैं कह कर बहाना बना दिया. हो सकता है वे दोनों बात करना न चाहते हों. कल रात जब खाना बना रही थी तो सहारनपुर से पापा का फोन आया. घबराए हुए थे. उन्होंने कहा, ‘‘मीनू बेटी, तेरी मम्मी की तबीयत खराब है, उन्हें पीलिया हो गया है. तुम्हें बहुत याद कर रही हैं.’’

मैं समझ गई मम्मी की तबीयत ज्यादा ही खराब होगी. तभी पापा ने मुझे फोन किया वरना नहीं करते. मेरी आंखें भर आईं. मैं ने पापा को आने का आश्वासन दे कर फोन काट दिया. पीछे मुड़ी तो कमरे में अम्मां और पापाजी खड़े थे. मेरे चेहरे पर चिंता की रेखाएं देख कर पूछने लगे, ‘‘बहू, मायके में सब कुशलमंगल तो है?’’ मम्मी की तबीयत के बारे में बतातेबताते मैं रो पड़ी.

अम्मां ने मुझे सांत्वना दी. पापाजी ने कहा, ‘‘तुम सुबह ही शेखर को ले कर चली जाओ. मम्मी की देखभाल करो. शेखर के पास छुट्टियां कम हैं पर 1-2 दिन रह कर लौट आएगा. तुम जितने दिन चाहो रह लेना.’’ अगले दिन मैं और शेखर सहारनपुर जा पहुंचे. सारा घर अस्तव्यस्त हो रखा था. मैं ने मम्मी को देखा तो हैरान रह गई. वे बहुत कमजोर हो गई थीं. आंखों में बहुत पीलापन आ गया था.

इलाज तो चल ही रहा था, पर मुझे तसल्ली न हुई. मैं और शेखर मम्मी को दूसरे डाक्टर के पास ले गए. शहर में इन का अच्छे डाक्टरों में नाम आता था. मुआयना करने के बाद डाक्टर ने कहा कि मर्ज काफी बढ़ गया है, पर परहेज और आराम करने से सुधार आ सकता है. घर पहुंचने पर पाया रेनू और राजू भी आ गए थे. मुझे देख कर दोनों के चेहरे उतर गए, पर मैं भी उन से औपचारिक बातें ही करती.

चौथे दिन मम्मी के स्वास्थ्य में सुधार दिखने लगा. पापा के चेहरे पर भी रौनक लौट आई. यह देख बहुत अच्छा लगा. दोपहर को मैं मम्मी को खिचड़ी खिलाने लगी. घर में कोई नहीं था. मम्मी ने खिचड़ी खा कर प्लेट एक ओर रख कर मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर अपने पास ही बैठा लिया. उन की आंखों में आंसू थे. वे रोते हुए बोलीं, ‘‘मीनू, बेटी पिछली बार हम से तुम्हारा बड़ा अपमान हो गया था. मुझे माफ कर दे बेटी. मैं मजबूर हो गई थी,’’ और फिर मेरे सामने हाथ जोड़ने लगीं.

मुझे बहुत बुरा लगा. मैं ने उन के हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मम्मी, आप यह क्या कर रही हैं? आप न तो पिछली बातें सोचेंगी और न ही कहेंगी. बस अपनी सेहत पर ध्यान दें.’’ धीरेधीरे मां खुलती गईं. अपनी मन की पीड़ा से मुझे अवगत कराने लगीं. उन्होंने बताया कि रेनू किस तरह घर के प्रति लापरवाह हो गई है. जब से बीमार हुईं हूं सवेरे ही कुछ बना कर डाइनिंगटेबल पर रख जाती है. शाम को भी यही हाल है. जल्दबाजी में कुछ भी कच्चापक्का बना कर दे देती है. कुछ कहो या पूछो तो गुस्सा हो जाती है.

राजू भी दिन भर बाहर रहता है. खानेपीने का कोई नियम नहीं. तेरे पापा ने चाय बनानी सीख ली है. चाय तो वे ही बना लेते हैं. ये सब सुन कर मन बेहद दुखी हुआ. मैं भी रेनू और राजू के बहकते कदमों के बारे में मम्मी को सतर्क करना चाहती थी पर उन के स्वास्थ्य को देखते हुए मैं ने इस विषय पर चुप्पी ही साध ली.

अगले दिन मैं ने अपनी सहेली चित्रा को फोन किया. वह मुझ से मिलने घर आ गई. विवाह के बाद मैं उसे मिल न पाई थी. चित्रा मेरी बचपन की एक मात्र अंतरंग सखी थी. वह एक धनी व्यवसायी की बेटी थी, परंतु घमंड से कोसों दूर थी. बेहद स्नेहमयी थी. इसीलिए वह हमेशा मेरे दिल के करीब रही. दोनों एकदूसरे के दुखसुख में भागीदार रहती थीं. चित्रा के आने पर मेरा मन खुश हो उठा. हम दोनों पहले मम्मी के पास बैठीं.

मम्मी बोलीं, ‘‘अरे चित्रा, आज तो तू मीनू को कहीं बाहर घुमा ला. जब से आई है मेरी सेवा में लगी है. अब मैं ठीक हूं.’’ चित्रा ने चलने का अनुरोध किया तो मैं मना न कर पाई. वह अपनी कार में आई थी. दोनों एक रेस्तरां में पहुंच गईं. चित्रा ने कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. फिर दोनों बतियाने लगीं. चित्रा मुझ से मेरे विवाह और ससुराल के अनुभव सुनने के लिए बेताब थी. फिर अचानक चित्रा गंभीर हो गई. बोली, ‘‘मीनू, हम दोनों कितने समय बाद मिले हैं. मैं तेरा दिल दुखाना नहीं चाहती हूं पर इस विषय पर चुप्पी साध कर भी मैं तेरा और तेरे परिवार का नुकसान नहीं करना चाहती.’’

मैं ने उसे सब कुछ खुल कर बताने को कहा तो चित्रा ने कहा, ‘‘मीनू तू तो जानती है कि मेरा छोटा भाई रजत और राजू कालेज में एकसाथ ही हैं. रजत ने मुझे बताया कि राजू 3-4 महीनों से कालेज में बहुत कम दिखाई देता है. वह कुछ दादा टाइप लड़कों के साथ घूमता है. प्रोफैसर उसे कई बार चेतावनी दे चुके हैं. मुझे लगता है उसे अभी न रोका गया तो वह गलत रास्ते पर आगे बढ़ जाएगा, फिर वहां से लौटना कठिन हो जाएगा.’’ मैं ने चित्रा को शुक्रिया कहा और बोली, ‘‘तू ने सही समय पर मुझे सचेत कर दिया. राजू से आज ही बात करती हूं.’’

बात निकली तो मैं ने रेनू के बारे में भी चित्रा को सब बता दिया. मेरी बात सुन कर चित्रा कहने लगी, ‘‘वैसे तो इस उम्र में लड़कियों और लड़कों में आकर्षण आम बात है पर परेशानी तब होती है जब लड़के मासूम लड़कियों को बहलाफुसला कर उन से संबंध बना कर उन के आपत्तिजनक वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने लगते हैं.’’ मैं ने कहा, ‘‘बस चित्रा मुझे यही चिंता खा रही है. रेनू सुनने को तैयार ही नहीं है. क्या करूं?’’

अभी हम बातें कर ही रही थीं कि एकाएक मेरी नजर सामने की टेबल पर पड़ी. वहां एक नवयुवक और एक नवयुवती हाथों में हाथ डाले जूस पी रहे थे. वे धीरेधीरे बातें कर रहे थे. मुझे लगा कि इस लड़के को कहीं देखा है. दिमाग पर जोर डाला और ध्यान से देखा तो याद आ गया. यह वही लड़का है, जिस के साथ रेनू बाइक पर घूमती है. बस अब मेरा दिमाग तेजी से काम करने लगा. इस फ्लर्टी लड़के के चक्कर में रेनू मेरा इतना अपमान कर रही थी. मैं ने झटपट एक प्लान बनाया और चित्रा को समझाया. चित्रा वाशरूम जाने के बहाने उन दोनों के पास जा कर रुकेगी और मैं समय नष्ट न करते हुए मोबाइल से उन का फोटो ले लूंगी. अगर वह जोड़ा सचेत हो जाता है, तो मैं कैमरे का रुख चित्रा की ओर कर के उसे पोज देने को कहने लगूंगी. मगर दोनों प्रेमी अपने आसपास की चहलपहल से बेखबर एक ही गिलास में जूस पीने में मस्त थे. मैं ने जल्दी से फोटो लिए और हम दोनों रेस्तरां से बाहर आ गईं.

घर पर रेनू और राजू भी आ चुके थे. राजू तो चित्रा को घर आया देख सकपका सा गया पर चित्रा को रेनू बहुत पसंद करती थी, इसलिए वह चित्रा से बहुत प्यार से मिली. एकदूसरे का हालचाल पूछ कर रेनू सब के लिए चाय बनाने चली गई. कुछ देर रुक राजू मौका देख कर कोचिंग क्लास के बहाने बाहर जाने लगा तो चित्रा ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोली, ‘‘क्यों मैं इतने दिनों बाद आई हूं, मुझ से बातचीत नहीं करोगे? मीनू के ससुराल जाने के बाद अब मैं ही तुम्हारी दीदी हूं. मुझ से अपने मन की बात कह सकते हो,’’ यह कहतेकहते वह राजू को अलग कमरे में ले गई.

चित्रा ने राजू को समझाया, ‘‘तुम्हारी हरकतों से तुम्हारा कैरियर तो खराब होगा ही, पूरे घर के मानसम्मान पर भी धब्बा लगेगा. तुम्हारे मातापिता तुम से कितनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं.’’ राजू सब सिर झुकाए सुनता रहा.

चित्रा ने आगे कहा, ‘‘तुम कल से नियमित कालेज जाओ… उन लड़कों से मिलनाजुलना बंद करो. अगर इस में कोई भी समस्या सामने आती है, तो प्रोफैसर आदित्य के पास चले जाना. वे मेरे कजिन हैं. हर तरह से तुम्हारी मदद करेंगे. हां, अब तुम्हारी सारी गतिविधियों पर ध्यान भी रखा जाएगा. याद रहे तुम्हारी मीनू दीदी उसी कालेज में टौपर रह चुकी हैं.’’ राजू चित्रा का बहुत आदर करता था. अत: ये सब सुन कर रो पड़ा. उस ने चित्रा से वादा किया कि वह उन की बातों पर अमल करेगा. चित्रा ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई. तभी रेनू चाय बना कर कर ले आई. उधर मैं ने भी अपना काम कर लिया. मैं ने रेस्तरां में खींचे गए फोटो वहीं रख दिए जहां टेबल पर रेनू ने चाय रखी थी. मैं वहां से उठ कर मम्मी के कमरे में चली गई. रेनू चाय के लिए सब को बुलाने लगी. हम सब हंसतेखिलाते चाय पीने लगे. तभी रेनू की नजर फोटो पर पड़ गई, ‘‘किस के फोटो हैं ये?’’ कह कर उन्हें उठा लिया.

चित्रा बोली, ‘‘ये मेरे फोटो खींच रही थी. मेरे तो खींच नहीं पाई. यह जोड़ा रेस्तरां में बैठा था, उस की खिंच गई. मीनू तू तो मोबाइल से भी फोटो नहीं खींच पाती.’’ फोटो देखते ही रेनू के चेहरे का रंग बदल गया. हम चुपचाप अनजान बने चाय पीते रहे.

रेनू चुपचाप वहां से चली गई. हम थोड़ी देर बाद रेनू के कमरे में जा पहुंचे. वह बिस्तर पर पड़ी रो रही थी. चित्रा ने उस से प्यार से रोने का कारण पूछा तो उस ने पहले तो बहाना किया पर उस का बहाना मेरे और चित्रा के सामने नहीं चला. मैं ने पुचकार कर पूछा तो उस ने उस लड़के के बारे में सब बता दिया. मैं ने और चित्रा ने उसे इस उम्र में होने वाली गलतियों से आगाह किया और पढ़ाईलिखाई में ध्यान देने को कहा.

रेनू रोतेरोते मेरे गले लग गई और बोली, ‘‘दीदी, मुझे डांटो, मैं बहुत खराब हूं.’’ तब मैं ने प्यार से समझाया, ‘‘सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. अब मम्मीपापा की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी है.’’

रेनू ने हां में सिर हिला दिया. राजू भी सिर झुकाए खड़ा था. वह भी मेरे गले लग गया. चित्रा जाते समय मम्मीपापा से मिलने गई तो हंस कर बोली, ‘‘अंकल जिस काम के लिए मैं यहां आई थी उसे तो भूल कर जा रही थी. दरअसल, पापा ने मुझे आप के पास इसलिए भेजा था कि पापा को अपने व्यवसाय के लिए एक अनुभवी अकाउंटैंट चाहिए. यदि आप यह कार्य संभाल लें तो उन की चिंता कम हो जाएगी.’’

पापा की खुशी की सीमा न रही. बोले, ‘‘नेकी और पूछपूछ. चित्रा बेटी तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा.’’ यह सुन कर चित्रा प्यार भरे गुस्से से बोली, ‘‘अंकल आप ऐसा कहेंगे तो मैं आप से बहुत नाराज हो जाऊंगी.’’

पापा ने मुसकरा कर अपने कान पकड़ लिए तो सभी जोर से हंस पड़े. सारा माहौल खुशगवार हो गया. मम्मी अब ठीक थीं. रेनू ने भी घर के कामकाज में ध्यान देना शुरू कर दिया था. मैं ने भी ससुराल लौटने की इच्छा जताई. इस बार

राजू मुझे ससुराल छोड़ने जा रहा था. अगले दिन मैं जाने से पहले मम्मीपापा के कमरे के पास से गुजर रही थी तो मुझे उन की बातचीत सुनाई पड़ी. मम्मी कह रही थीं, ‘‘देखो हम बेटियों को पराया धन, पराई अमानत कह कर दुखी करते हैं परंतु बेटियां पति के घर जा कर भी पिता की चिंता नहीं छोड़तीं.’’

पापा हंस कर बोले, ‘‘तुम ने वह कहावत नहीं सुनी है कि बेटे अपने तब तक रहते हैं जब तक न हो वाइफ और बेटियां तब तक साथ रहती हैं जब तक हो लाइफ.’’ यह सुन कर मैं भी मुसकरा दी. अगले दिन मैं मायके से विदा हो कर ससुराल आ गई. सभी मुझ से और राजू से बहुत प्यार से मिले. शेखर ने राजू को पूरी दिल्ली घुमाया. कई तोहफे दिए. नीलम जीजी भी राजू से मिलने आईं. राजू बहुत ही अच्छे मूड में विदा हुआ.

अम्मां के घुटनों के दर्द के लिए मैं एक तेल लाई थी. उस से मालिश कर के अम्मां और पापाजी के कमरे से निकली तो पापा की आवाज सुनाई दी, ‘‘बहुएं तो प्यार की भूखी होती हैं. जब तक उन्हें पराए घर की, पराए खून की कहते रहेंगे वे ससुराल में अपनी जगह कैसे बनाएंगी?’’ अम्मां बोलीं, ‘‘सच कह रहे हो शेखर के पापा… वे बेचारियां अपना मायके का सब कुछ छोड़ कर हमारे आसरे आती हैं और हम उन्हें अपनाने में पीछे हटते हैं.’’

‘‘ये नादानियां तुम्हीं ने सब से ज्यादा की हैं,’’ पापा ने कहा तो अम्मां ने शर्म से सिर झुका लिया.

टैडी बियर: भाग 1- क्या था अदिति का राज

 

‘‘सुनिए,मुझे टैडीबियर चाहिए, बिलकुल ऐसा…’’ मोबाइल पर एक फोटो दिखाते हुए अदिति ने एक बार फिर उम्मीदभरी नजर दुकानदार पर गड़ाई. मगर उस ने सरसरी नजर मोबाइल पर डालते हुए इनकार में सिर हिला दिया.

मायूस चेहरा लिए अदिति सौफ्ट टाएज की दुकान से बाहर निकली तो उस की कालेज की पुरानी सहेली देवांशी खीज कर बोली, ‘‘क्या हुआ है तुझे… मुझे सुबहसुबह फोन कर के बुला लिया कि जरूरी शौपिंग करनी है… 2 घंटे से कम से कम 6 दुकानों में टैडीबियर पूछ चुकी है… हम क्या टैडीबियर खरीदने आए है यहां?’’

देवांशी के खीजने पर अदिति ने मासूमियत से मुंह बनाते हुए हां कहा. तो देवांशी उसे हैरानी से देखती हुई बोली, ‘‘अच्छा दिखा मुझे कैसा टैडीबियर चाहिए तुझे,’’ कहते हुए उस के हाथ से मोबाइल छीन लिया. फिर ध्यान से वह फोटो देखा जिस में अदिति पिंक कलर की खूबसूरत ड्रैस में धु्रव और एक टैडीबियर के साथ दिखाई दे रही थी.

शादी से पहले खिंचाई इस तसवीर में टैडी को अदिति ने एक खास अंदाज में

पकड़ा था और अदिति को उसी पोज में धु्रव ने. यह फोटो सोशल साइट पर खूब वायरल हुआ था.

देवांशी जानती थी कि यह टैडीबियर अदिति का धु्रव को दिया पहला उपहार था और वह पिंक ड्रैस धु्रव का अदिति को दिया पहला उपहार. इस फोटो के साथ ही अदिति ने अपने सिंगल स्टेटस को इंगेज्ड में बदल दिया था. फोटो में दिखाई देने वाले टैडी जैसा एक और टैडीबियर खरीदने आई अदिति उस की समझ से परे थी.

देवांशी के चेहरे पर सवाल देख कर अदिति बोली, ‘‘उफ, बड़ी गलती हो गई… मुझे धु्रव से यह टैडी मांगना ही नहीं चाहिए था.’’

‘‘मांग लिया मतलब? तूने अपना दिया गिफ्ट वापस मांग लिया? क्या कह कर गिफ्ट वापस मांगा और क्यों?’’ देवांशी ने हैरानी से पूछा.

अदिति बोली, ‘‘यार मजबूरी में मांगना पड़ा. लंबी कहानी है तू नहीं समझेगी. सारा पेंच इसी में तो है. मैं तो शादी के बाद इस टैडी को भूल भी गई थी पर धु्रव नहीं भूला. अगले हफ्ते हमारी शादी की सालगिरह है. मेरा भाई अर्णव आ रहा है. बेवकूफ अर्णव ने धु्रव से पूछ लिया कि जीजू आप को दिल्ली से कुछ मंगवाना तो नहीं है. यह सुन कर धु्रव ने कह दिया कि वह टैडीबियर लेता आए जिसे मैं मायके में छोड़ आई हूं. अब अर्णव परेशान है कि जो टैडी अब घर में है ही नहीं, उसे कहां से लाए… मैं ने सोचा उस जैसा दूसरा ढूंढ़ कर उस की परेशानी हल कर दूं.’’

‘‘उस जैसा दूसरा… मतलब कि यह फोटोवाला टैडी तुम्हारे मायके से गुम हो गया है?’’ देवांशी ने अपनी समझ से अंदाजा लगाया.

तब अदिति ने खुलासा किया, ‘‘अरे यार हुआ यों कि धु्रव को दिया यह टैडीबियर अर्णव का ही था. अर्णव का भी नहीं था, बल्कि अर्णव को वह अपनी गर्लफ्रैंड से मिला था.  बाद में दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया. उन दिनों मेरे और धु्रव के बीच में चक्कर चल रहा था सो उस खूबसूरत टैडी को मैं ने अर्णव से मिन्नतें कर के मांग लिया. और धु्रव को दे दिया.

‘‘एक दिन अर्णव का मूड खराब था. उस का मेरा झगड़ा हो गया… अब क्या जानती थी कि बेवकूफ अर्णव से मेरा झगड़ा इतना महंगा पड़ेगा कि वह गुस्से में भर कर अपना टैडीबियर मुझ से वापस मांग लेगा… तू तो मुझे जानती है कि मैं किसी की धौंस सहन नहीं करती हूं… मैं ने भी प्रैस्टिज इशू बना कर किसी तरह जोड़तोड़ कर के उस का टैडी धु्रव से वापस मांग कर उस के मुंह पर मार दिया…’’

‘‘हांहां, पर धु्रव से क्या कह कर वापस मांगा… मतलब टैडी मांगने के लिए क्या

जोड़तोड़ की?’’

देवांशी ने उत्सुकता से पूछा तो अदिति सीने पर हाथ रख कर स्वांग भरती कहने लगी, ‘‘अरे, उस समय तो धु्रव को यह कह कर बहला लिया कि इस टैडी में मुझे तुम दिखते हो. तुम तो हमेशा मेरे पास रहते नहीं हो, इसलिए इस टैडी को मैं सदा अपने पास रखना चाहती हूं ताकि तुम्हें मिस न करूं… धु्रव भावुक हो गया. ये सब सुन कर उस ने टैडी मुझे सौंप दिया और मैं ने उस ईडियट अर्णव को… और अर्णव ने अपनी बेवकूफ ऐक्स गर्लफ्रैंड को वापस कर दिया.’’

‘‘कैसा भाई है तेरा… और तू भी न… धु्रव को पहला गिफ्ट दिया वह भी भाई की गर्लफ्रैंड का जो उस ने तेरे भाई को दिया था.’’

‘‘अरे मैं ने सोचा फालतू पड़ा है… मतलब टैडी बड़ा क्यूट था… उन का तो ब्रेकअप हो ही चुका था. क्या करता अर्णव उस का सो दे दिया.’’

‘‘दे दिया नहीं ठिकाने लगा दिया.’’

देवांशी के यह कहने पर अदिति धीमे से बोली, ‘‘हां यार, यही गलती हो गई… पर अर्णव, जैसा भी है, है तो आखिर मेरा भाई… हालांकि उस ने झगड़े के बाद परेशान बहुत किया. जानती है, मैं तो तब डर ही गई थी, जब वह चिढ़ कर कहने लगा था कि मैं धु्रव को बता दूंगा कि जो टैडी तुम्हें अदिति ने दिया है दरअसल वह मेरी गर्लफ्रैंड ने मुझे दिया था. अब सोच, वह मुझे शर्मिंदा करे उस से पहले ही मैं ने तिकड़म कर मामला सुलटा लिया वरना पता नहीं क्या होता… अब क्या जानती थी कि धु्रव को अपनी पहली शादी की सालगिरह आतेआते पहली डेट की वह निशानी याद आ जाएगी…’’

अदिति की बात सुन कर देवांशी ने सिर पकड़ लिया. कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली, ‘‘तू ऐसा कर, ऐसा टैडी औनलाइन सर्च कर…’’

‘‘वह भी कर लिया नहीं मिला,’’

अदिति बोली.

देवांशी कुछ देर मौन रहने के बाद बोली, ‘‘अब एक ही रास्ता है… जैसे तुम ने मुझे सारी बात बताई वैसे ही उस की ब्रेकअप वाली फ्रैंड को बता दे. शायद वह तुम्हारी बेवकूफी को समझे और तरस खा कर वह टैडी वापस कर दे.’’

‘‘अर्णव ने यह भी सोचा था, पर पता चला अब वह इंडिया में नहीं है. उस से कोई कौंटैक्ट ही नहीं हो पा रहा है…’’

‘‘बेचारे अर्णव ने मेरी शादी से पहले अपनी इस हरकत के लिए मुझ से माफी मांग ली थी. मैं भी उस की इस बेवकूफी को भाईबहन की बेवकूफियां समझ कर भुला चुकी थी पर अब बता क्या करूं?’’

‘‘तू पागल है अदिति, बिलकुल पागल… शादी के पहले हम बहुत सी बेवकूफियां करते हैं, पर वे बेवकूफियां शादी के बाद भी जारी रहें यह सही नहीं है. सुन, मैं धु्रव को सब बता देती हूं,’’ देवांशी ने मोबाइल उठा लिया.

अदिति ने उस के हाथ से मोबाइल छीनते हुए कहा, ‘‘क्या कर रही है तू… किस मुंह से कहूंगी कि जानूं, मैं ने तुम्हें बेवकूफ बनाया… तुम्हें दिया हुआ पहला गिफ्ट मांगा हुआ था. और तो और, मैं ने तुम्हें बेवकूफ बना कर उसे तुम से वापस हासिल कर के अपने भाई को दे दिया और भाई ने अपनी ब्रेकअप वाली गर्लफ्रैंड को… देख देवांशी, मैं धु्रव को बहुत प्यार करती हूं और ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती हूं, जिस से उसे मेरा वह प्यार, वे सारी फीलिंग्स छलावा लगें… वह मुझे तो क्या मेरी पूरी फैमिली को चालू समझेगा.’’

दुनिया अगर मिल जाए तो क्या: भाग-1

क्लासरूम में जैसे ही चैताली आई, ओनीर ने मुंह बना कर अपने साथी धवन को इशारा किया, आ गई. चैताली रोज से अलग कुछ अच्छे मूड में थी. बाकी स्टूडैंट्स ने चैताली को विश किया. ये सब मुंबई के इस कालेज में इतिहास में पीएचडी कर रहे स्टूडैंट्स थे. ओनीर ने यों ही एक नजर सहर पर भी डाली, मन में सोचा, हद है यह लड़की. इतना सुंदर कौन होता है, काश.

चैताली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जानती हूं, अब आप को बेसब्री से इंतजार होगा कि कब आप के नाम के आगे डाक्टर लगे. है न?’’ सब स्टूडैंट्स ने हंसते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

चैताली की आदत थी, वह एकदम से किसी मशीनी तरीके से लैक्चर की शुरुआत नहीं करती थी, पहले कुछ सामयिक मुद्दों पर थोड़ी बात करती थी, फिर काम की बातों पर आती थी. आज भी उस ने पूछ लिया, ‘‘पेपर पढ़ा आप लोगों ने या वह वीडियो देखा जिस में दलित मांबेटी को जिंदा जला दिया गया? पता नहीं, देश में यह हो क्या रहा है.

युवान सोशल मीडिया की सारी खबरों पर बात कर सकता था. उस के पास अथाह नौलेज थी. वैसे तो ये सारे स्टूडैंट्स इस समय शिक्षा के क्षेत्र में सब से ऊंची डिग्री लेने जा रहे थे. सभी खूब ज्ञानी थे. इतिहास यों भी पिछली घटनाओं, उन के परिणामों और आधुनिक समाज पर प्रभाव का अध्ययन है. युवान ने कहा, ‘‘मैम, हां, देखा, दुख होता है.’’

‘‘आप लोगों को भी लगता है कि पिछले कुछ समय में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं?’’

ओनीर के संस्कार और परवरिश ने उसे हिंदू राष्ट्र का अंधसमर्थक बना दिया था. वह खड़ा हो गया. उसे जब भी गुस्सा आता, बैठ कर आराम से बात करना उस के हाथ में न रहता, यह अब तक सब जान गए थे. चैताली भी अनुभवी थी, समझ गई कि बात अब कहां जाएगी. ओनीर ने कहा, ‘‘क्यों मैम, इस से पहले देश में कभी किसी के साथ अन्याय हुआ ही नहीं था?’’

‘‘मैं वर्तमान की बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं नहीं मानता.’’

‘‘तुम्हारे मानने, न मानने से कुछ बदलने वाला नहीं है. इतिहास के स्टूडैंट हो, तर्क और तथ्य के साथ बात किया करो. कल किसी कालेज में प्रोफैसर बनोगे, स्टूडैंट्स को सही पाठ पढ़ाना तुम्हारा फर्ज होगा, व्हाट्सऐप वाला ज्ञान उन के दिमाग से निकालना होगा.’’

ओनीर हमेशा उन की व्हाट्सऐप वाली बात पर बहुत चिढ़ता था, अब भी चिढ़ गया.

‘‘मैं प्रोफैसर नहीं बनना चाहता. मैं इतिहासकार या जर्नलिस्ट बनूंगा. इतिहास के वो पन्ने ढूंढ़ढूंढ़ कर सब के सामने रखूंगा कि लोग जानें कि मुगलों ने हिंदुओं पर कितने अन्याय किए हैं, एक राजनीतिक पार्टी जौइन करूंगा जो हिंदू राष्ट्र की समर्थक है. लोगों को दलितों पर हुए अन्याय दिखते हैं, जो इतिहास में हमारे साथ हुआ, उस की बात कोई नहीं करता. दलित लोग अपना तमाशा खुद ही ज्यादा बनाते रहते हैं. उन के दिलदिमाग में ही हीनभावना भरी रहती है.’’

‘‘तुम्हारे जैसे स्टूडैंट्स मेरी क्लास में हैं, दुख होता है. इतना पढ़लिख कर भी…

‘‘तो आप भी तो इतना पढ़लिख कर सिर्फ आज की न्यूज में किसी दलित की ही न्यूज लाईं, मैम. आप को भी तो अपनी जाति से सहानुभूति रहती है, मैं क्यों नहीं अपनी जाति पर गर्व कर सकता?’’

ओनीर चैताली के साथ अशिष्टता कर रहा था, सब को दिख रहा था. पर कोई कुछ बोला नहीं क्योंकि ओनीर सब पर एक अकड़ के साथ हावी रहता था पर जब सहर उठ कर खड़ी हुई, ओनीर के लिए फिर बस वहां हर तरफ सहर ही थी. वह सबकुछ भूल गया, अपलक सहर को देखने लगा. सहर उदार विचारों की लड़की थी, सब उसे पसंद करते. उस ने आहिस्ता से ओनीर को जैसे सोते से जगाया, ‘‘ओनीर, मैम से इस तरह आप का बात करना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है. वे हमारी प्रोफैसर हैं, उन की रिस्पैक्ट करना हमारा फर्ज है.’’

ओनीर फिर चिढ़ा, ‘‘मैं गलत बात को गलत कह रहा हूं. मैम से मेरी कोई पर्सनल प्रौब्लम थोड़े ही है.’’

‘‘आप को पता है कि आप मैम से गलत तरह से बात कर रहे थे, इस तरह की जातिगत बहस हमारी क्लासरूम तक न ही पहुंचे तो अच्छा रहेगा. मैम, अब आप बताएं कि अगले प्रोजैक्ट के लिए क्या करना है, काफी टाइम वेस्ट हो गया है.’’

ओनीर ने सहर को देखा, वाइट कुरते, जीन्स में पतली, लंबी सी सुंदर सहर, हमेशा की तरह उस के दिल में उतर गई, फिर सोचा, काश…

सहर को बहुत सारे शेर, गजलें, गीत, याद रहते थे. वह बहुत अच्छा गाती भी थी. जब भी कोई शेर कहती, उस की जादुई आवाज में सामने वाले जैसे खुद को भूल जाते. वह अपनी इस शायरी के लिए पूरे कालेज में मशहूर थी. कोई भी फंक्शन होता, कुछ न कुछ जरूर गाती. इस समय भी उस ने चैताली को देख कर कहा, ‘‘मैम, यह आप के लिए, ‘‘जहर मीठा हो तो पीने में मजा आता है, बात सच कहिए मगर यूं कि हकीकत न लगे.’’

सब हंस पड़े. पढ़ाई शुरू हुई. उस के बाद सहर के चेहरे से ओनीर नजरें हटा न पाया.

चैताली ने आज क्लास को फिर गंभीर मुद्रा में ही नोट्स दिए. थोड़ी देर बाद सब अपनेअपने दोस्तों के साथ कौफी हाउस की तरफ चल दिए. वहां का स्टाफ सब को पहचानता ही था, सहर अपनी फ्रैंड्स नितारा और मिराया के साथ नीबू पानी का और्डर दे कर बैठ गई. बराबर में ही लड़के अपना और्डर दे कर बैठ गए. नितारा ने ओनीर को छेड़ दिया, ‘‘तुम आज कुछ कोल्डड्रिंक ले लो, दिमाग बहुत गरम है तुम्हारा.’’

रसोई: सुधीर ने विभा के सामने कौन-सी शर्त रख दी

‘‘विभा  चाय ले आओ बढि़या सी,’’ घर के अंदर घुसते ही सुधीर ने पत्नी को आवाज लगातार कहा और खुद पिता के निकट बैठ गया.

‘‘पापा, देखो 4 कमरे निकल आए हैं

और अलग स्पेस भी,’’ सुधीर ने उत्सुकता से पिता के सामने नक्शा बिछा कर कहा.

‘‘बढि़या, अच्छा यह बता कि ड्रांइगरूम का साइज क्या है? छोटा नहीं होना चाहिए. दिनभर वहीं बैठना होता है मुझे,’’ पिता ने नक्शे को देखते हुए कहा.

‘‘अरे पापा, यह देखो पूरे 15 बाई 15 का निकल रहा है. ध्यान से देखो न. 2 बैडरूम

14 बाई 12 के और एक 12 बाई 12 का,’’

सुधीर की आवाज में अलग खनक थी.

‘‘बस सब बढि़या हो गया. बस अब काम शुरू करवा दे प्लाट पर. इस दड़बे से निकलें बाहर,’’ पिता ने कहा.

‘‘रसोई का क्या साइज है?’’ विभा ने पूछा.

‘‘अरे यार तुम चाय रखो पहले. बहुत थक गया हूं,’’ सुधीर ने कहा.

सुधीर और ससुर को चाय पकड़ा विभा फिर नक्शे को देखने लगी.

‘‘8 बाई 8 की रसोई तो बहुत छोटी बनेगी,’’ विभा बोली.

‘‘आठ बाई 8 की रसोई छोटी नहीं होती और वैसे भी तुम्हें कौन सा रसोई में खाट बिछानी है, खाना ही तो बनाना है,’’ चाय का घूंट भरते हुए सुधीर बोला.

‘‘मेरा तो पूरा दिन वहीं बीतता है बस खाट ही नहीं बिछाती.

गरमी में कितनी घुटन हो जाती है तुम क्या जानो,’’ विभा के स्वर में उदासी थी.

‘‘अरे यार, मम्मी ने पूरी जिंदगी इस 6 बाई 6 की रसोई में बीता दी. उन्होंने तो कभी शिकायत नहीं की छोटी रसोई की,’’ सुधीर चिढ़ते हुए बोला.

‘‘कभी खड़े हो कर देखना जून की गरमी में. खुद पता चल जाएगा मैं शिकायत कर रही हूं या परेशानी बता रही हूं,’’ विभा बोली.

‘‘यार नौटंकी न करो. काम में विघ्न मत डालो. अब नक्शा बन गया है,’’ सुधीर झल्लाते हुए बोला.

‘‘तो ठीक करवा ले नक्शा. शिकायत नहीं की तो क्या मुझे दिक्कत नहीं थी? खूब परेशानी होती थी इस पिंजरे सी रसोई में खाना बनाने में.

पूरी जिंदगी सोचती रही कि अगर नया घर बना तो रसोई खूब खुली बनाऊंगी,’’ अब तक चुप बैठी सुधीर की मां बोल पड़ी.

‘‘सच में मां, मैं अपने बैडरूम से ज्यादा रसोई को खुला चाहती हूं ताकि 4 मेहमानों के आने पर खाना बनाने में दिक्कत न हो,’’ सास की बात से बल ले विभा बोली.

‘‘बिलकुल सही है. औरत की पूरी जिंदगी रसोई के धुंए में स्वाहा हो जाती है लेकिन किसी को इस का एहसास नहीं होता. सुधीर तू रसोई का साइज 2 फुट बढ़ा और देख रसोई में हवा और रोशनी बराबर हो,’’ मां ने आदेश दिया.

‘‘फिर तो ड्राइंगरूम छोटा करना होगा. पापा से पूछ लो पहले मां,’’ सुधीर ने पिता की ओर देख कर कहा.

‘‘तेरे पापा को बनाना पड़ता है क्या खाना?’’ मां ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘बेटा सुधीर, रोटियां चाहिए तो जो ये सासबहू कहें मान ले भई,’’ पिता ने पत्नी की ओर देख बेचारा बन कर कहा.

‘‘नहीं पापा, रहने दीजिए. यदि आप दोनों की सहमति नहीं है तो मैं कुछ नहीं कहूंगी,’’ विभा ने कहा.

‘‘अरे बेटा, मेरी सहमति तो सब की खुशी में है और सब की खुशी तो घर की लक्ष्मी से जुड़ी है. वह दुखी तो कैसी सहमति और फिर हम दोनों को यह बात समझनी चाहिए थी कि कैसे गरमी में एक औरत घर का पेट भरने के लिए गरमी में बिना शिकायत जलती रहती है.’’

ससुरजी की बात सुन विभा का चेहरा खिल उठा. उस ने सुधीर की ओर देखा.

‘‘ठीक है भई. बहुमत की जयजयकार है. कल ही रसोई के साइज और वैंटिलेशन को ले कर बात करता हूं. लेकिन एक शर्त पर,’’ सुधीर ने कहा.

‘‘कौन सी शर्त?’’ मां ने पूछा.

‘‘मुझे समोसे खाने हैं वह भी मां के हाथों के,’’ सुधीर चहकते हुए बोला.

‘‘तू नहीं सुधरेगा. अब भी मां को गरमी में मारेगा. बीवी को बोल अपनी,’’ मां ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘नहीं मां, आप की बहू को कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि जान गया हूं कि बहुमत उसी के पास है,’’ सुधीर ने विभा की ओर दोनों हाथ जोड़ कर कहा.

सुधीर की इस हरकत पर तीनों के चेहरे पर हंसी खिल गई जैसे वसंत की धूप आंगन में पसर गई.

मुलाकात: क्या आरती को मिला मदन का प्यार

आरती ने जब कार से उतरने के लिए पैर बाहर निकाला तो अचानक पूरे बदन में सिहरन सी हुई. उसे लगा कि वापस चली जाए और दावत को टाल दे, मगर फिर उस ने दोबारा कुछ सोचा और कार लौक कर के  फटाफट आयोजनस्थल की तरफ चल दी.

आरती को उस की एक परिचिता ने इस आयोजन का कार्ड दिया था. मगर अभीअभी उस की परिचिता ने फोन कर उसे बताया कि उसे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ रहा है. मगर आरती तब तक तैयार हो कर घर से निकल चुकी थी. आयोजनस्थल में काफी रौनक थी. गेट पर

2 युवतियों ने स्वागत किया और आरती को गुलाब का एक ताजा फूल दिया. गेट से समारोहस्थल के हौल में भीतर आते ही 2 सेवक कुरसी ले कर उस के समीप आ गए. एक सेवक ट्रे में शीतल पेय ले आया और दूसरा सनैक्स.

आरती को यह आवभगत बेहद अचछी लगी. अब उस ने चारों तरफ नजर घुमा कर गौर से छानबीन की. कोई भी जानपहचान वाला नहीं दिखा यानी आरती को पूरा समय यहां बिलकुल अकेले ही बैठना था.

यह दावत किसी रियल स्टेट वालों ने अपनी फर्म की प्रमोशन के लिए रखी थी. बड़ीबड़ी स्क्रीन्स पर उन का प्रचार स्वत: हो रहा था. अब 2 गायक मंच पर आए और गीतसंगीत आरंभ हो गया. इसी गहमागहमी और मधुर संगीत के आनंद में सिर हिला कर सहज ?ामती हुई आरती की नजर अचानक किसी से टकराई. पहले कभी इस नैनमटक्का की आदत नहीं थी  सो आरती एकदम सकपका सी गई. वह घबरा कर अपनी जगह से उठी और फट से  बाहर आ गई. उस ने कार स्टार्ट की और घर चल दी. वैसे भी उसे वहां 1 घंटा हो ही गया था.

इतना काफी था मगर वह अजनबी चेहरा और उस की नशीली आंखें… 1-2 दिन तक तो आरती उस अजनबी को भुला न सकी. हमेशा सोचती रहती कि एक अनजान सी जगह थी. सारे अजनबी थे. किसी से जानपहचान नहीं. मगर वह एक अपरिचित उसे एक नजर मिलते ही अपना सा लगा और वह तो भाग कर ही चली आई. उफ… पानी पीते यही सब सोचती आरती के गले में पानी की कुछ बूंदें अटक गईं. वह एक बार फिर घबरा गई.

3-4 दिन बाद आरती सुपरबाजार से राशन लेने गई थी तो किसी जानेपहचाने चेहरे को देख कर एकदम ठिठक गई, ‘उफ, यह तो वही है जो उस आयोजन में दिखाई दिया था,’ आरती मन ही मन में सोचने लगी.

सब्जी और राशन ले कर वह अपनी कार की तरफ जा ही रही थी कि किसी ने पीछे से टोका, ‘‘अजी सुनिए तो.’’

‘‘उफ, यह तो सिरफिरा है. औरतों का

पीछा करने वाला सनकी है,’’ आरती को मन ही मन झंझलाहट सी होने लगी. न जाने कैसेकैसे लोग हैं.

वह जवाब दिए बगैर चलती रही कि दोबारा आवाज आई, ‘‘अजी बगैर चाबी के कार

कैसे चलेगी… यह लीजिए.’’

‘‘आरती यह सुन कर सकपका गई. चाबी सचमुच उस के पास नहीं थी. अब उसे सहीसही याद आया कि वह सब्जी लेते समय कार की चाबी भूल आई थी.

‘‘ये लीजिए,’’ अब वे महाशय सामने आ गए थे.

‘‘शुक्रिया,’’ आरती ने लजा कर कहा.

‘‘मेरा नाम मदन है. और आप उस दिन भी मिली थीं, उस आयोजन में है न?’’

‘‘जीजी हां मैं वहां आई थी,’’ अब आरती ने सहज हो कर आराम से बिना घबराए और दोस्ताना अंदाज में जवाब दिया तो मदन की भी हिम्मत बढ़ी. बोला, ‘‘अगर ऐतराज न हो तो क्या हम कौफी पी सकते हैं.’’

‘‘अच्छा, ठीक है. मैं आती हूं,’’ कह कर आरती ने अपने हाथों में लटक रहे सब्जी के बैग व अन्य सामान को कार में रखा. फिर बोली, ‘‘चलें?’’

‘‘जी चलिए.’’

इस पर आरती हौले से हंस दी.

‘‘तो आप जमीन आदि खरीदने में रुचि रखती हैं,’’ मदन ने कौफी का सिप लेते हुए कहा.

‘‘जी नहीं बिलकुल नहीं. बस ऐसे ही.’’

‘‘ऐसे ही का मतलब?’’

‘‘मतलब मेरी एक परिचिता ने मुझे मनुहार कर के उस आयोजन में आने को कहा था.’’

‘‘ओह, क्या बात है. आप मनुहार तो मान ही लेती हैं.’’

‘‘अ,.. जी… जी,’’ आरती संकोच से बोली.

मदन ने मजाक किया, ‘‘बिलकुल मैं ने अनुरोध किया तो कौफी पीने भी आ गईं. है न.’’

‘‘अरे, मदनजी,’’ कह कर आरती इस बात पर फिर हंस दी. दोनों बातबात पर हंसते रहे.

उस दिन की यह मुलाकात बस इतनी सी

ही रही थी. मगर अब मदन और आरती 1-2 बार आगे भी  इसी तरह अनायास मिल गए. मगर दोनों ही बडी हैरत में थे कि न तो एकदूजे से

फोन नंबर लिया और न कोई पता मांगा. लेकिन यह मुलाकात है कि बारबार खुदबखुद हो ही

जाती है.

एक दिन ऐसी ही एक मुलाकात में मदन ने प्यार से कहा, ‘‘आरती, एक बात कहूं?’’

‘‘हां, कहो,’’ आरती ने उसे हौसला दिया, ‘‘बिलकुल कहो मदन,’’ आरती अब उस से जरा सी भी औपचारिक नहीं रही थी.

‘‘आरती बात यह है कि तुम भी अभी अविवाहित हो न?’’

‘‘हां तो?’’

‘‘आरती, मैं भी एक साथी ही खोज रहा हूं. तुम से साफसाफ पूछना चाहता हूं.’’

‘‘अरे, मदन इतनी जल्दी. अभी तो तुम मेरे विषय में कुछ भी नहीं जानते. तुम इतनी जल्दी यह फैसला कैसे ले रहे हो?’’ आरती को यह प्रस्ताव अच्छा भी लगा और अजीब भी.

‘‘बात यह है आरती कि मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं्. तुम्हारे अतीत को नहीं मैं तुम से बहुत प्रभावित हूं आरती,’’ मदन ने रोमांटिक हो कर कहा तो आरती का दिल भी धड़कने लगा. वह बोली,’’ मगर मदन मेरा यह जीवन तो कांटों की सेज है.’’

‘‘ओह चलो, तो बताओ अपने बारे में.’’

मदन ने सुनने की ख्वाहिश की तो आरती ने बताया, ‘‘मदन मेरे माता पिता अब 62 साल के हैं,’’ और मेरा एक भाई है वह भारतीय प्रशासनिक सेवा में अफसर है.’’

‘‘ओह, ग्रेट,’’ मदन ने बात काटी.

आरती बोली, ‘‘मदन पूरी बात तो सुनो. वे अफसर थे पर अब वे जेल में हैं.’’

‘‘अरे, जेल में? पर कैसे?’’

‘‘यह लंबी कहानी है मदन. मेरे भाई के

पास मानव संसाधन मंत्रालय का बेहद गोपनीय विभाग था. 2 साल पहले जब पिता एक निजी कंपनी से रिटायर हुए तो उन के पास रोजगार

नहीं रहा. तब मैं खुद बीएड कर रही थी तो वे भाई से बोले कि कुछ मदद चाहिए बेटा इलाज कराना है. मगर भाई ने साफ मना कर दिया. उस के बाद मैं ने भी 2-3 बार फोन किया तो भाई मु?ा से बहस करने लगे कि मैं ने तो घर में छोटी होने का बस लाभ ही लाभ लिया है. मैं तो बैठ कर ऐश कर रही हूं. फिर मैं ने समझाया कि भैया अब घर में कोई आमदनी नहीं है. पापा को कोई पैंशन नही मिलेगी तो वे चीखने लगे कि पिता को अगर पैंशन नहीं मिलती तो पहले की बचत तो होगी? वे तो बस तेरे लिए ही रखी है आदिआदि.

‘‘बस इन ओछी बातों से आहत होने के बाद मैं ने भाई से संबंध काट लिए और इस घटना के कुछ हफ्ते बाद अखबार में पढ़ा कि एक सेवा संबंधी जरूरी भरती में बड़ा घोटाला हुआ है. उस में भाई के खिलाफ काफी सुबूत मिले और भाई जेल में डाल दिए गए हैं. भाभी ने भी कुछ दिन पहले ही उन से तलाक ले लिया. अब 32 साल के भाई अकेले हो गए हैं,’’ कह कर आरती खामोश हो गई.

‘‘ओह, यह तो दुख की बात है,’’ मदन ने गंभीर हो कर कहा.

आरती बोली, ‘‘भाई मुझ से 7 साल बडे़ हैं. पापा ने उन की पढ़ाई के लिए

मकान तक बेचा. हम लोग किराए के मकान में आ गए. मैं हमेशा सोफे पर ही सोती ताकि भैया जो अपने कमरे में सामान फैला कर पढ़ते थे परेशान न हों. मगर भैया ने सफलता मिलते ही अपनी बचपन की साथी से विवाह कर लिया और इस की सूचना हमें फोन पर दी. इस घटना से पापा पर क्या बीती थी. यह तो वही जानते हैं. मगर भाभी ने तो असुरक्षा में गलत कदम उठाया.’’

‘‘आरती यह क्या कह रही हो? गलत

कदम कैसे?’’

‘‘मदन मेरे भाभी और भैया बचपन के साथी रहे… भाभी के घर मे भी बहुत गरीबी थी. वे अपने छोटे भाईबहन आदि को विवाह के बाद भैया के बंगले में ले आई और हम लोगों को भैया से एकदम अलग कर दिया. मगर था तो भाई ही न, इसलिए एक बार तो मैं उन के विवाह के एक साल बाद राखी पर हिम्मत कर के भैया से मिलने गई भी पर मत पूछो कि क्या हुआ.’’

‘‘बताओ न आरती,’’ मदन जानना चाहता था.

‘‘मदन, मैं तो अपनी अच्छी भावना से ही गई थी. हम तो अपना गुजारा जैसेतैसे कर ही रहे थे और मातापिता को इसी बात की खुशी थी कि बेटा इतने बडे़ पद में आ गया. बाद में उन की यह नाराजगी भी खत्म हो गई कि भैया ने गुपचुप विवाह किया. मदन फिर यह हाल हो गया था कि समय का खेल मान कर हम तीनों लोग अपने हाल में जी रहे थे.’’

‘‘फिर क्या हुआ आरती?’’ मदन उत्सुक था.

‘‘मदन, जब मैं राखी ले कर गई उसी समय भाभी तथा उन के पीहर वाले सब के सब सजधज कर एक बहुत महंगी गाड़ी में कहीं जा रहे थे. बताया भी नहीं कि कहां जा रहे है. बस, मु?ो वहीं बैठा कर सब तुरंत चले गए. भैया तो शहर से बाहर थे…

‘‘भाभी ने तो मुझे अंधेरे में रखा, मैं बाहर बैठी 2 घंटे इतजार करतीकरती

लौट गई तो शायद उसी समय मेरे पीछे भैया भी आए होंगे और भाभी ने भाई को उलटा मेरे ही लिए न जाने कैसी गलत बातें कह दी और अगले दिन भाई ने मुझे फोन पर ही खूब लताड़ा. खैर, मैं तो उस पल ही वह रहासहा रिश्ता भी खत्म

कर के भाई को भूल कर बस अपने पढ़नेलिखने में रम गई.’’

‘‘अच्छा,’’ मदन ने एक बार फिर गहरी सांस ली, ‘‘आरती, तो अब तुम नौकरी कर रही हो न?’’ उस ने पूछा.

आरती बोली, ‘‘मदन अभी तो एक निजी स्कूल में हूं. आगे जो भी हो पर मातापिता को अकेले इस तरह छोड़ कर तो कदापि नहीं जा सकती.’’

‘‘आरती एक बात मेरी भी सुनो. मेरी कहानी भी ऐसी ही है.’’

‘‘अच्छा मदन बताओ न,’’ आरती उस का चेहरा ताकने लगी.

‘‘तो सुनो आरती, जब मैं ने होश संभाला तो रोज सुबहशाम बस यही पाया कि मेरी माताजी मेरे युवा चाचा की गोद में जबतब बैठी रहती. दोनों खिलखिलाते रहते और रहे मेरे पिता तो वे एक नंबर के जुआरी और शराबी थे. वे काम पर जाते थे पर सारा पैसा ऐसे ही उड़ा दिया करते थे. बड़ा होने लगा तो मैं अपनी माता और चाचा के इस अवैध प्रेम से परेशान नहीं था.

‘‘आरती मैं यह सच हौलेहौले सम?ा रहा था कि माता को असली प्यार चाचा ने दिया और रहे चाचा तो वे विवाह तक नहीं कर रहे थे यानी वे भी मेरी माता को बेहद चाहते थे. आरती अपने मातापिता की मैं अकेली संतान हूं. जब मैं 10वीं कक्षा में पढ़ता था तो मेरे पिता ने बीमार हो कर इस संसार से विदा ले ली और मेरी माताजी

1 महीने बाद ही मेरे चाचा के साथ भाग गई.’’

ओह, आरती का चेहरा सफेद पड़ गया.

‘‘दरअसल, आरती घर किराए का था. आसपास के

लोग उन पर आए दिन उंगली उठाने लगे थे. मुझे भी ले जा रहे थे. मैं भाग आया वापस.

मैं उन के साथ जानबूझ कर

नहीं गया.’’

‘‘फिर तुम कैसे रहे मदन?’’ आरती ने भरे गले से पूछा.

‘‘मेरा तो कोई रहा ही नहीं था आरती. मैं ने यही पर निर्धन छात्रावास में रह कर आगे की पढ़ाई की. फिर कालेज के दिनों में मोमबत्तियां बना कर बेचीं. आगे फिर बैंक से कर्ज लिया. मैं दिनरात काम करता रहा और आज हाल यह है कि मेरा मोमबत्तियां बनाने का कारखाना है. आरती मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं.’’

आज यह कहानी सुन कर मैं तुम्हें पहले से भी अधिक चाहने लगी हूं,’’ आरती ने उस का हाथ पकड़ कर कहा.

मदन बोला, ‘‘आरती, मैं हमेशा तुम्हारा इंतजार करूंगा. तुम्हें पहली नजर में देख कर ही मेरा दिल धड़क उठा था. आरती मैं सचमुच तुम से दिल लगा बैठा हूं.’’

यह सुन कर आरती की आंखों से आंसू

बहने लगे. बोली, ‘‘चलो मदन, आज ही और अभी मैं तुम्हें मातापिता से मिलवाने ले चलती हूं.’’

आरती के मातापिता को मालूम था कि आरती की पसंद खराब हो ही नहीं सकती है. मदन उन्हें बेहद अच्छा लगा.

‘‘मैं आप का कोई खोया हुआ बेटा हूं यह मान लीजिए,’’ मदन ने कहा तो वे दोनों फफकफफक कर रोने लगे.

मदन ने उन के आंसू पोंछे और कहने लगा, ‘‘मेरा भी अपना कोई नहीं है और आप ने मु?ो अपना लिया. समय का यही न्याय है. हम 4 लोग एकसाथ रहेंगे. यह किराए का मकान खाली करवा कर मैं आप को कल ही लेने आ रहा हूं,’’ मदन ने उत्साह से कहा.

यह सुन कर आरती खुशी के मारे 7वें आसमान में थी. वह सोच रही थी कि अगर उस दिन कार में बैठ कर वापस लौट जाती तो उसे मदन जैसा जीवनसाथी नहीं मिलता.

Diwali Special: बौलीवुड के सितारे कैसे मनांएगे दीवाली

भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार का अपना महत्व है.हर त्यौहार एक जश्न होता है.इस जश्न को मनाने के लोगो के अपने अपने अंदाज है.बौलीवुड में तो यह पैसे के दिखावे का त्यौहार/उत्सव रहा है.बौलीवुड में दीवाली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करने से अधिक जष्न मनाने व एक दूसरे को उपहार देने का उत्सव ज्यादा है, जिसमें हर धर्म के कलाकार शिरकत करते हैं.अमिताभ बच्चन,अनिल कपूर,शाहरुख खान, आमीर खान,एकता कपूर,भूषण कुमार सहित कई फिल्मी हस्तियां ‘दीवाली पार्टी का आयोजन कर दीवाली का जश्न मनाते हैं.जी हाॅ! कई बॉलीवुड सितारे दिवाली पार्टी के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं. इन सितारों को दिवाली जश्न काफी शानदार और देखने लायक होता है.इनकी पार्टी में बौलीवुड के तमाम सितारे भी शामिल होते हैं.

दिवाली से एक सप्ताह पहले या दिवाली के दिन जिस कलाकार की फिल्म प्रदर्शित हो और  वह सफल हो जाए, उसके यहां दीवाली का जश्न देखते ही बनता है.मगर अफसोस की बात यह है कि इस बार दीवाली से पहले जितनी फिल्में प्रदर्शित हुई हैं,वह सभी फिल्में बुरी तरह से असफल हो चुकी है.जिसके चलते बौलीवुड में उदासी का माहौल है. मगर शाहरुख खान अति उत्साहित हैं. इस वर्ष उनकी दो फिल्में ‘पठान’ व ‘जवान’ बाक्स आफिस पर धमाल  मचा चुकी हैं.और उन्हे पूरा यकीन है कि 22 दिसंबर को प्रदर्शित होने वाली उनकी फिल्म ‘डंकी’ सफलता के नए रिकार्ड बनाएगी.फिल्म ‘डंकी’ का निर्माण शाहरुख खान ने खुद राज कुमार हिरानी व जियो स्टूडियो के साथ मिलकर किया है.तो वहीं दीवाली के दिन यानी कि रविवार,12 नवंबर को सलमान खान की फिल्म ‘‘टाइगर 3’’ प्रदर्शित होगी. इस फिल्म को लेकर कोई उत्साह नजर नही आ रहा है.इससे पहले सलमान खान की बतौर अभिनेता और बतौर अभिनेता सात आठ फिल्में बुरी तरह से बाक्स आफिस पर दम तोड़ चुकी हैं.इससे भी सलमान खान उत्साहित नही है.वैसे ‘टाइगर 3’ का निर्माण ‘यशराज स्टूडियो’ ने किया है और इसके निर्देशक मनीष शर्मा हैं.यह पहला मौका है,जब ‘यशराज फिल्मस’ दीवाली का बहाना कर अपनी फिल्म ‘टाइगर 3’ का ‘प्रेस शो’ भी नहीं करेगा. इसलिए सलमान खान कैंप में दीवाली के जष्न को लेकर फिलहाल खामोशी है. माना कि बौलीवुड में बाक्स आफिस पर फिल्मों की लगातार असफलता के चलते उदासी है,फिर भी बौलीवुड के कलाकारों ने दीवाली उत्सव मनाने की तैयारियां कर ली हैं.

आइए,जानते है कि इस बार दीवाली पर बौलीवुड के सितारे क्या करने वाले हैं

 ‘‘दीवाली पर हमारे मन्नत में ‘अतिरिक्त चमक-दमक‘ होगी.’’ शाहरुख खान

‘‘हमारे लिए तो दीवाली का त्यौहार खुशियो का त्याहार है.हम खुशियां बांटने में यकीन करते हैं.हम त्योहारों का आनंद लेते है क्योंकि त्योहार हमें अपने प्रियजनों के साथ समय बिताने का मौका देते हैं.इस अवसर पर हमारे मन्नत में ‘अतिरिक्त चमक-दमक‘ होगी.मुझे लगता है,त्योहारों में,आप सिर्फ परिवार के एक साथ रहने और कुछ जश्न मनाने और कुछ का इंतजार करने की उम्मीद करते हैं.अगर और कुछ नहीं, तो बस घर में ढेर सारी मिठाइयाँ रखना, कुछ वजन बढ़ाना और ताश खेलना.साथ रहने का मजा ही कुछ और है परिवार और घर को सजाना, इसलिए मैं इसके लिए उत्सुक हूं.दीवाली का त्योहार उपहार देने व लेने का दिन है.वैसे भी हम तो हर त्यौहार मनाते हैं.दिवाली के दिन हम अपने परिचितों को ‘दिवाली उपहार’ भेजते हैं.हम चाहते हैं कि सभी इस त्योहार में खुश होकर जश्न मनाए.हम अपनी कंपनी ‘रेड चिल्ली’ के दफ्तर जाकर सभी कर्मचारियों के संग भी दिवाली मनाते हैं.इस बार भी हम यह सब करने वाले हैं.’’

‘‘पति बेटी के साथ दीवाली का जश्न मनाउंगी,दिए जलाउंगी..’’ आलिया भट्ट

आलिया भट्ट कहती हैं-‘‘बचपन से अब तक मैने दीवाली का जश्न अलग अलग शहरों में मनाती आयी हूं.मेरे पापा हमेशा दीवाली के दिन जश्न मानते आए हैं.मैं जब से समझदार हुई हूं या यूं कहें कि पिछले कुछ वर्षों से दीवाली का त्योहार अपने दोस्तों व सहेलियों के साथ मनाते आए हैं.दीवाली के दिन हम सभी मिलते हैं और एक साथ मिलकर दिए जलाते हैं.अच्छा, मीठा व स्वादिष्ट भोजन करते हैं.कई तरह के गेम खेलते हैं.मौज मस्ती करते हैं.हाॅ! इस दिन हम सभी परंपरा गत भारतीय पोशाक ही पहनते हैं.मैं तो हर दीवाली के दिन अति खूबसूरत लाल रंग या पीले रंग की साड़ी पहनकर ही दिए जलाती हूं.

लेकिन इस बार की दीवाली मेरे लिए कुछ खास मायने रखती है.यह दीवाली मेरी शादी के बाद की दूसरी दीवाली होगी,जब मैं अपने पति रणबीर कपूर व ससुराल के सदस्यों के साथ मनाउंगी,वहीं मेरी सबसे बड़ी खुशी यह दीवाली मेरी बेटी की पहली दीवाली होगी,जो छह नवंबर को एक वर्ष की हुई है.तो इस बार हम दीवाली सही मायनों में खुशी के लिए मनाएंगे.हम कलाकार वैसे भी पटाखा चलाने से दूर रहते हैं.इस बार तो हम अपनी बेटी की वजह से भी ऐसा नही करेंगे.तीसरी बात हम तो हर मुंबई वासी से आग्रह करना चाहते हैं कि वह पटाखे कम जलाकर प्रदूषण पर रोक लगाए.क्योकि इन दिनों मुंबई में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा हुआ है.

हमारे लिए यह पांच दिन का महोत्सव है..’’ अनन्या पांडे

अनन्या पांडे कहती हैं-‘‘हमारे लिए दीवाली का त्यौहार पाॅच दिन का होता है.हम धनतेरस से भईयादूज तक दिवाली का पांच दिवसीय महोत्सव मनाते हैं.धनतेरस से पहले ही हम घर को खूबसूरती से सजाते हैं.इस बार के लिए मेरे मन में घर को सजाने की कई तरकीबें मेरे दिमाग में हैं.मिठाइयां भी बांटूॅंगी.घर के अंदर ही दीवाली के दिन अपने दोस्तों व परिवार के लोगों के लिए एक छोटी सी पार्टी रखने वाली हूं,पर यह पार्टी परंपरागत भारतीय षैली मंे ही होगी.मेरे मन मे इस बार की दीवाली बहुत खास बनाने की कई योजनाएं हैं,अभी से उनकी चर्चा नहीं करना चाहती.

‘‘ मैं तो दिवाली के त्यौहार को काफी इंज्वाॅय करती हूं.’’जया ओझा

मुंबई की दीवाली की बात ही कुछ और होती है.जब कोई त्यौहार आता है तो लगता है कि जैसे स्वर्ग उतर आया हो.पर इस बार अभी तक तो दीवाली पर महंगाई का असर नजर आ रहा है.लोग इस बार टैंशन फ्री होकर मस्ती के साथ दिवाली नही मना पाएंगे,पर मैं तो दिवाली के त्यौहार को काफी इंज्वाॅय करती हूं.इस बार भी पारंपरिक शैली में लक्ष्मी पूजन,दिए जलाने व पटाके फोड़कर दिवाली मनाउंगी.’’

‘‘रंगोली बनाने का शौक..’’ अनुस्मृति सरकार

‘‘मुझे रंगोली बनाने का बड़ा शौक हैं.मैं हर दिवाली तरह तरह की रंगोली बनाती हूं.दिवाली की अलग अलग तरह की प्रतिमाएं बनाती हूं दिवाली मैं हमेशा अपने रिश्तेदारों के साथ उनके यहां जाकर हर एक पल को इंज्वाॅय करती हूं.पर उनका आशिर्वाद लेती हूं.मैं अपने प्रशंसकों वाॅर्म और हैप्पी दिवाली कहना चाहूंगी.सभी का जीवन खुशियों,तरक्की और मस्ती से परिपूर्ण रहें.’’

‘‘दिवाली परिवार के साथ..’’ एकता जैन

अभिनेत्री एकता जैन कहती हैं- ‘‘दिवाली का मजा नही आता, अगर हम उसे अपने परिवार के साथ नहीं मनाते हैं.दिवाली के मौके पर धनतेरस से लेकर दिवाली की पूजा तक मेरा पूरा परिवार एक साथ रहता हैं.दिवाली के दिन हम पूजा करने के बाद एक साथ बैठकर भोजन करते हैं.उसके बाद पटाकें फोड़ते हैं.खुले आकाष के नीचे मिठाइयां खाते हैं.दिवाली के समय मैं अपने हाथों में फुलझड़ी जलाना पसंद करती हूं.मैं तो दिवाली के त्यौहार को काफी इंज्वाॅय करती हूं .इस बार भी पारंपरिक शैैली में लक्ष्मी पूजन,दिए जलाने व पटाके फोड़कर दिवाली मनाउंगी. हर वर्ष की तरह इस बार भी हम दिन में अनाथाश्रम जाकर अनाथ बच्चों के साथ इस जश्न को मनाने वाली हॅूं.इस बार हम अपने पारिवारिक ‘एनजीओ’ की तरफ से दूसरो की जिंदगी में दीवाली के अवसर पर उजाला भरने वाले हैं,पर उसको लेकर अभी हम बात नही करना चाहते. ’’

‘‘ सभी की दिवाली बहुत ही खुशनुमा तरक्की से भरपूर हो.’’ पंकज झा

अपने घर में अभी से ढेर सारे दिए लाकर रख दिए है,जिनसे दिवाली के दिन मैं अपने पूरे घर को रोशन करुॅंगा.मुझे तो रंगोली बनाना और आकाश कैंडिल बनाना भी आता है.मैं दिवाली के दिन पैसों की देवी लक्ष्मी को अपने घर लाने का पूरा प्रयास करुॅंगा.इसलिए इस दिवाली मैं अपने घर पर ही रहकर उनका स्वागत करना चाहूंगा. दिवाली ढेर सारे नए कपड़ों,पटाकों और मिठाइयों को दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ मिलकर मनाने का त्यौहार है.वह बहुत ही स्पेशल समय होता है,जब सभी दोस्त व रिष्तेदार मजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं.सभी की दिवाली बहुत ही खुशनुमा व तरक्की से भरपूर हो.’’

‘‘हम सपरिवार लक्ष्मी पूजन करेंगे..’’ सुरेंद्र पाल

दिवाली का त्यौहार तो पूरे पारिवारिक सुख का अहसास करने का त्यौहार है.मैं हर साल दिवाली का त्यौहार अपने ही घर पर रहकर अपने तीनों बच्चों के साथ मनाता हॅंू.इस बार भी हम सपरिवार लक्ष्मी पूजन करेंगे.दिये जलाएंगे,पटका फोड़ेंगे..हम मां लक्ष्मी की आराधना करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे.’’

 ‘‘यह दीवाली मेरे लिए दोहरी खुशी लेकर आयी है..’’ सिमरत कौर

‘गदर 2’फेम अदाकारा सिमरत कौर कहती हैं-‘‘मेेरे लिए दीवाली का त्यौहार का मतलब सदैव लक्ष्मी पूजा का त्यौहार, रोषनी, मिट्टी के दिये और बहुत सारी मिठाइयां ही रहा है.मेरे पास बहुत सारी अच्छी बचपन की यादें हैं कि कैसे हम इस त्यौहार को सेलीबे्रट करते थे.लक्ष्मी गणेश पूजा के बाद हमारा पहला काम मिट्टी के दियों को जलाना और पटाका फोड़ना होता था.हमारे घर में दिवाली के दौरान पान रखने की परंपरा हैं.यह दीवाली मेरे लिए दोहरी खुषियां लेकर आयी है.मेरी फिल्म ‘गदर 2’ ने जबरदस्त सफलता हासिल की है.इसके अलावा मुझे नाना पाटेकर के साथ एक नई फिल्म ‘जर्नी’ भी मिल गयी है। इस वजह से इस बार दीवाली मेरे लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आयी है.’’

‘‘लोग दीवाली मिल जुलकर प्यार मोहब्बत के साथ मनाएं’’ दिव्या दत्ता

हम चाहते हैं कि इस बार दीवाली लोग मिल जुलकर प्यार मोहब्बत के साथ बिना पटाखे फोडे़ मनाएं.मिल जुल कर,एक साथ बैठकर भोजन करें,मिठाई का सेवन करे और लोगों के बीच मिठाई बांटें.अच्छी अच्छी बातें करे,अच्छा उपहार दें.दीवाली का त्योहार दो दिए जलाकर, एक अनार फोड़कर,एक फुलझड़ी जलाकर भी मनाया जा सकता है.कम से कम मैं तो इसी तरह से दीवाली मनाउंगी.जो लोग दिखावे के लिए बोरी भरकर पटाखे लेकर आते हैं और अपने घर के सामने फोड़ते हंै,वह सबसे पहले अपने घर के अंदर प्रदूषण को निमंत्रण देते हैं,फिर मोहल्ले और पूरे शहर में कम से कम इससे बचने का प्रयास तो किया ही जाना चाहिए. ’’

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