लौटती बहारें: भाग 3- मीनू के मायके वालों में कैसे आया बदलाव

मैं अचानक अपने कमरे में जा कर अपने सामान की दोनों गठरियां उठा लाई. कपड़े तो मैं ने घर में काम करने वाली को देने के लिए आंगन में ही रख दिए पर पुस्तकों को जा कर मां के बड़े संदूक में रख आई. मैं ने बड़े चाव से पापा व मम्मी की पसंद का खाना बनाया. मैं किचन से निकल ही रही थी कि मम्मी मुझे आवाज दे कर बुलाने लगीं. वहां जा कर देखा कि मम्मी पापा के रिटायरमैंट में मिले उपहारों का अंबार लगाए बैठी थीं. देखते

ही बोलीं, ‘‘मीनू इधर आ कर देख. तुझे क्याक्या ले जाना है… तेरे जाने की तैयारी कर रही थी. मैं सोच रही थी तुझ से पूछ कर ही तेरा सामान पैक करूं?’’

मैं हैरान रह गई कि मुझ से पूछे बिना ही मेरी जाने की तैयारी शुरू हो गई. मैं मन ही मन टूट सी गई, क्योंकि मैं तो 8 दिन रहने का सपना संजो कर आई थी. यहां तो चौथे दिन ही विदा करने का मन बना लिया. अनुभवी मां ने शायद हम तीनों भाईबहनों के ऊपर गहराते तनाव के बादल और गहरे होते देख लिए थे. मैं ने समझदारी से काम लेते हुए चेहरे पर निराशा का भाव न लाते हुए बड़ी सहजता से कहा, ‘‘अरे नहीं मम्मी, अभी 2 महीने पहले ही तो सब कुछ ले कर विदा हुई हूं. आप फिर शुरू हो गईं?’’

मम्मी ने चुपचाप पापा को मिले उपहारों में से कुछ उपहार छांट कर एक ओर रख दिए और बोलीं, ‘‘तूने तो कह दिया कुछ नहीं चाहिए, पर हमें तो अपने मानसम्मान का ध्यान रखना है… तेरी ससुराल वाले कहेंगे बेटी को खाली हाथ भेज दिया.’’

मैं ने चुप रहने में ही भलाई समझी. चुपचाप सामान देखने लगी. कुछ सामान घरगृहस्थी के उपयोग का था. कुछ कपड़े थे. मैं ने सारा सामान समेटा और अपने सूटकेस में रखने जाने लगी. आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. शुक्र है कमरे में कोई नहीं था. अटैची खोली तो बड़े चाव से साथ लाए कपड़े मुंह चिढ़ाने लगे मानो पूछ रहे हों कितने अवसर मिले हमें पहनने के? मन की वेदना कम करने के लिए अपनी सब से प्रिय सखी चित्रा को फोन किया पर वह भी शहर से बाहर गई हुई थी. समय काटे नहीं कट रहा था. जिस मायके आने के लिए इतनी ज्यादा उतावली हो रही थी वहां अब 1-1 पल गुजारना कठिन हो रहा था. समय जैसे रुक गया था.

कुछ देर पापा के पास बैठ कर उन से उन के आगे के प्लान पूछने लगी. वे भी निराश से ही थे. इतनी महंगाई में केवल पैंशन से गुजारा होना कठिन था. पापा भी हमेशा से स्वाभिमानी, गंभीर और मितभाषी रहे हैं. चाहते तो किसी अकाउंट विभाग में नौकरी कर सकते हैं, पर बेचारे कहने लगे, ‘‘मीनू मैं जानता हूं कि पैंशन के पैसे रोजमर्रा के खर्चों के लिए कम पड़ेंगे पर क्या करूं? सिफारिश का जमाना है. इस उम्र में नौकरी के लिए किस के आगे हाथ जोड़ूं?’’ यह सुन मन बहुत दुखी हो गया. मैं रोष से बोली, ‘‘आप लोगों ने मेरी शादी की बहुत जल्दी मचाई वरना उस समय मुझे अपने ही कालेज में लैक्चररशिप मिल रही थी. मैं ने आप लोगों से शादी न करने की कितनी जिद की थी पर आप दोनों माने ही नहीं.’’

पापा बोले, ‘‘मीनू बेटा कब तक तेरी शादी न करता बता? एक दिन तो तुझे जाना ही था. पराया धन कोई कब तक अपने घर में रख सकता है.’’

पापा की बात सुन कर मन फिर से खिन्न हो गया. यहां पर भी पराई और ससुराल में भी पराई… मन हाहाकार कर उठा. तो फिर मेरा कौन सा घर है? मैं हूं किस की? आंखें फिर बरसने लगी थीं. बड़ी कठिनाई से स्वयं को संभाल कर मम्मी के साथ किचन में हाथ बंटाने लगी. मम्मी कहने लगीं, ‘‘आराम से बैठ. मैं सब कर लूंगी. अब तो अकेले ही सब करने की आदत पड़ गई है. रेनू तो किचन में झांकती भी नहीं. बस कालेज, पढ़ाई और कुछ नहीं.’’

मन तो हुआ कि रेनू की बात बता कर मम्मी को सजग कर दूं पर घर का माहौल और खराब न हो जाए, यह सोच कर चुप रही. अगले दिन सवेरे जल्दी उठ कर नहाधो कर तैयार हो गई. मन उचाट सा हो गया था. दिल कर रहा था जल्दी से निकल जाऊं. कम से कम घर का माहौल तो सामान्य हो जाए. जल्दीजल्दी नाश्ता किया. राजू ही छोड़ने जा रहा था. नीचे औटो आ गया तो मैं सब से मिलने लगी. मैं ने बड़े प्यार से आगे बढ़ कर रेनू को गले लगाया. वह अनमनी सी मेरे जाने के इंतजार में खड़ी थी. उस ने जल्द ही मुझे अपने से अलग कर लिया और सिर झुका कर खड़ी हो गई.

एक बार फिर मैं मम्मीपापा के गले लग कर रो पड़ी. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेर कर चुप कराया. मैं भावों का और अधिक प्रदर्शन न करते हुए सीढि़यां उतर गई. राजू ने औटो में सामान रख दिया. पापा तो नीचे ही आ गए थे, परंतु मम्मी और रेनू ऊपर बालकनी में ही खड़ी थीं. मैं ने औटों में बैठ कर हाथ हिलाया. ऊपर से भी हाथ हिलते नजर आए. देखतेदेखते सब आंखों से ओझल हो गए. इस प्रकार मायके से मेरी दूसरी बार विदाई हुई. बसस्टैंड पर बस खड़ी थी. राजू ने मुझे बस में बैठाया फिर बोला, ‘‘दीदी कालेज को देर हो रही है,’’ और फिर नीचे उतर गया.

उतर कर राजू ने एक बार बस की खिड़की की ओर पलट कर देखा. मैं उसी की ओर देख रही थी. ‘‘बाय,’’ कह वह तेजी से चलता हुआ भीड़ में गुम हो गया.

राजू के जाते ही मन में एक गहरी टीस उठी. मैं बस में बैठी सोचने लगी कि समय कैसे बदलता है. मैं रेनू और राजू दोनों की चहेती दीदी थी. हर काम में मुझ से सलाह मांगते थे. मुझ से पूछे बिना एक कदम भी नहीं उठाते थे. आज दोनों कैसे पराए से हो गए थे. मेरे मन में दोनों के गुमराह होने की शंका किसी नाग की तरह फन फैला रही थी. ससुराल की दहलीज पर कदम रखते ही याद आया कि मायके से 8-10 दिन रहने की अनुमति ले कर गई थी पर 4 दिनों में ही लौट आई. कोई बहाना ही बनाना होगा. मेरे दिमाग ने काम किया. रवि भैया ने जैसे ही दरवाजा खोला मैं ने नकली मुसकान का मुखौटा ओढ़ लिया.

रवि हैरानी से बोला, ‘‘भाभी इतनी जल्दी कैसे? फोन कर देतीं. मैं लेने आ जाता.’’ हमारी आवाज सुन कर पापाजी आ गए.

मैं ने पापाजी के पैर छुए, फिर यभासंभव आवाज थोड़ी तेज कर के कहा, ‘‘वहां पापामम्मी का परिवार सहित भारतभ्रमण का कार्यक्रम पहले से ही तय था. वे सब मुझ से भी साथ चलने का अनुरोध कर रहे थे, पर मैं ने तो इनकार कर दिया. इसलिए जल्दी आना पड़ा.’’ मैं चाह रही थी कि अंदर कमरे में बैठी अम्मांजी भी सुन लें ताकि मुझे बारबार झूठ न बोलना पड़े. वैसे मेरा मन मुझे यह झूठ बोलने के लिए धिक्कार रहा था. अंदर अम्मां से जा कर भी मिली. उन्होंने बताया कि नीलम यहीं थी. कल ही गई है. दरअसल, कुछ दिन बाद उस की बचपन की सहेली दिव्या की शादी है. वह पड़ोस में ही रहती है, इसलिए वह शादी में शामिल होने के लिए 2-3 दिनों के लिए फिर आएगी.

मैं थोड़ी देर पापाजी और अम्मां के पास बैठी रही. वे रिटायरमैंट के कार्यक्रम के विषय में पूछते रहे. किसी ने भी चाय तो क्या पानी को भी नहीं पूछा. मेरा सिर थकावट व तनाव से फटा जा रहा था. फिर किचन में जा कर सब के लिए चाय बना कर लाई. चाय पी कर थोड़ा तरोताजा हो रात के खाने की तैयारी में जुट गई. 2 दिन बाद ये भी मुंबई से लौट आए. इन का काम भी वहां जल्दी खत्म हो गया था. शेखर भी मुझे जल्दी आया देख कर चौंक गए. मैं ने मन में उठती टीस को दबाते हुए जबरन मुसकराते हुए कहा, ‘‘मुझे वहां आप के आने की महक आने लगी थी, इसलिए भागीभागी चली आई.’’

ये भी मूड में आ गए. मुझे पकड़ने दौड़े तो मैं हंसते हुए किचन में घुस गई. जिंदगी फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगी. मैं बारबार ससुराल में अपनेपन का सुबूत पेश करने की कोशिश में लगी रहती और ससुराल वाले उन सुबूतों को झूठा साबित करने के प्रयास में रहते. यही करतेकरते थोड़ा समय और बीत गया.

2 दिन बाद नीलम जीजी आने वाली थीं. उन के पति व्यस्त थे. उन्हें शादी में बरात के समय ही शामिल होना था. परंतु नीलम जीजी सभी कार्यक्रमों में शामिल होना चाहती थीं, इसलिए 2 दिन पहले ही आ रही थीं. नीलम जीजी के आने की खबर से घर में उत्साह की लहर फैली थी. उन की सहेली के परिवार वाले निमंत्रणपत्र देने आए तो बारबार सभी से विवाह में शामिल होने की मनुहार कर रहे थे. ससुराल शहर में ही थी, इसलिए नीलम जीजी शाम को ही औटो से आईं. राहुल भी साथ था और बहुत सा सामान भी. घर में मैं और अम्मां ही थे. मैं किचन में लगी थी. वे सारा सामान अकेले ही ले कर अंदर आ गईं. सहेली के विवाह में शामिल होने आई थीं, इसलिए बहुत अच्छे मूड में थीं. मैं ने आगे बढ़ कर उन्हें गले लगाया. उन्होंने फिर पहले की तरह मुसकान दी और

स्वयं को मुझ से अलग करते हुए अम्मां के पास चली गईं. अगले दिन दोपहर से संगीत का कार्यक्रम था. मुझे लगा कि मुझे भी नीलम साथ ले कर जाएंगी, इसलिए मैं जल्दीजल्दी काम निबटाने लगी.

यह कैसा प्रेम- भाग 5 : आलिया से क्यों प्यार करता था वह

धीरेधीरे हर शामसुबह हम एकदूसरे से बात करने लगे थे.  या तो वह मुझे फोन कर लेती या मैं. शायद, हम एकदूसरे के आदी होने लगे थे. मुरझाई हुई बेल बारिश के आने पर जैसे हरे रंग से लिपट कर इठलाने लगती है वैसे ही आलिया भी लगने लगी थी. सूरज की पहली किरण से ले कर चंद्रमा की चांदनी तक का पूरा ब्योरा वह मेरे सामने जब तक न रख लेती उसे चैन ही न आता. आज मेरा बहुत मन किया कि संदेश से बात करूं और उसे आलिया के बारे में सब बताऊं, मगर मेरी यह चाहत गुनाह का रूप ले सकती थी. सो, खुद को समझा लिया. हां, आलिया से मैं ने एक बार संदेश का जिक्र जरूर किया था. तब वह अल्हड़ लड़की उतावली हो कर नाराजगी जताने लगी थी- ‘क्या जरूरत थी आप को दी इतना महान बनने की? आप ने अपने प्यार का गला अपने ही हाथों क्यों घोट दिया? क्या मिला आप को बदले में?’

‘संदेश आज भी मुझ से प्यार करता है. वह मुझे कभी नहीं भूल सकता. आलिया, बस, यही मेरे लिए काफी है.’

‘जाने दो, दी. मैं आप से कभी जीतना नहीं चाहूंगी, क्योंकि आप तो सुनोगी नहीं. आप तो त्याग की देवी हो,’ आलिया ने नाराजगी में शब्दों को थोड़ा सा गरम किया था.

माहौल को हलका करने के लिए हम दोनों ही फूहड़ता से ठहाका लगा दिए थे. हंसने के लिए मैं ने ही उसे बाध्य किया था, वरना वह तो जाने कब तक मुंह फुलाए रहती.

सूरत बगैर देखे ही भाव पढ़े जाते रहे थे. वह तो जादूगरनी थी यह तक बता देती कि मैं क्या सोच रही हूं. इस कदर परवा करती कि मुझे उस से डरना पड़ता था. विचारों को कैद करने वाला जादूगर कोई ऐसावैसा नहीं होता, कौन जाने रूठ कर मैं उलाहना देने लगूं और वह पढ़ ले. रोज वही गाना जब तक न सुना लेती, फोन कट न करती- ‘दिल आने की बात है जब कोई लग जाए प्यारा, दिल पर किस का जोर है यारो, दिल के आगे हर कोई हारा, हाय रे मेरे यारा…’

उस रोज उस ने बताया, ‘मैं आप से मिलने जबलपुर आ रही हूं. कल सुबह की ट्रेन से निकलूंगी, दी. मेरे लिए कुछ अच्छा सा पका कर रखना.’  मैं ने भी मजाक में कह दिया था, ‘न आलिया, मैं तो न बनाऊंगी कुछ भी, बस बैठ कर खाऊंगी तेरे हाथ का.’ वह भी पगली ठहरी, जिद पर अड़ गई कि- ‘न रे, भूखी ही मर जाऊंगी पर खाऊंगी तो आप से ही बनवा कर.’

हम दोनों सांझ ढले तक ठिठोली करते रहे. न वह हारी न मैं. वह मुझ पर अपना अधिकार जताती रही और मैं झूठमूठ का मुकरती रही. वह आज बेतहाशा हंस रही थी. बहुत ही खुश थी. उस ने अपने जीवन का हर पन्ना मेरे सामने खोल दिया था और कुछ हद तक मैं ने भी. इस के बाद मेरा मन उस से मिलने के लिए हवाओं सा उड़ने लगा.

बेसब्री में एक बार फिर वही गलती दोहरा दी. लिखे हुए कागजों को बगैर दबाए उठ बैठी. पंखा की हवा तो जैसे इसी ताक में थी. पूरे कमरे में कागज बिखर गए. समेटते हुए आलिया का चेहरा सामने आ गया. कैसे वह बारिश में संभाल कर लाई थी? अब इन्हें कौन संभालेगा? फिर मन फुसफुसाया- ‘पड़ा रहने दे इन्हें यों ही, शाम तक तो आई रही है न तेरी चहेती, वही सहेजेगी उस बारिश वाली रात की तरह. यह सोच कर मैं ढपली बजाती हुई डौल की तरह मुसकरा उठी, जो सामने ही टेबल पर खड़ीखड़ी हंस रही थी.

आने दो इस बार आलिया को, उस के दिल का एकएक कोना तलाशना है मुझे. दबाए हुए जख्मों को सुखा कर जीवंत अंकुरों का नवसंचार करना है ताकि वह जीवन से साकार रूप को ही यथार्थ मान कर सुख में डूबी जिंदगी को जिए. वह धारदार बंधनों के धागे सकारात्मक सोच से तोड़ सके. नवीन से जुड़े कसैले अनुभव वह उखाड़ फेंक दे और एक पाठ की तरह उसे याद रखे, बस. मुझ में उस की आसक्ति, दरअसल, विपरीतलिंगी कड़वाहट का परिणाम थी जो वह झेल चुकी थी. इसीलिए, उस ने मुझ में अपना प्रेम ढूंढ़ा और विश्वास की आंच में पकने दिया.

सुबह से शाम होने को आई. आलिया का फोन नहीं उठ रहा था. फिर याद आया, घर में तो कोई होगा ही नहीं, फिर भला फोन कौन उठाएगा. खुद पर झुंझला कर गुस्से से बड़बड़ाने लगी थी- इस लड़की को जरा भी परवा नहीं. अब तो ट्रेन का टाइम निकल चुका है. ट्रेन लेट हो सकती है या फिर स्टेशन से घर तक आने में ट्रैफिक मिला होगा? बस, आती ही होगी. यों अधीरता अच्छी नही. अरे, क्यों न होऊं मैं अधीर, उस की और मेरी दोस्ती कोई आम दोस्ती नहीं है. पाताल तक पहुंची होंगी हमारे रिश्ते की जड़ें. दुनिया का बिलकुल अनूठा रिश्ता था यह, जिस को कलेजा सहेजे हुए था, मैं नहीं. दिल तो उलाहना दे रहा था और दिमाग था कि चिंता में घुला जा रहा था.

पूरी रात भी बीत गई, मगर आलिया नहीं आई. सारी रात फोन की टेबल पर बैठे कटी थी और आंखें मेनगेट पर लगी पथराई हुई थीं. मैं ने स्टेशन पर फोन किया. काफी समय बाद फोन उठा, तो पता लगा कि ट्रेन तो कब की आ चुकी है. दिल धक्क से उछल पड़ा- ‘तो आलिया कहां गई?’ उस का लैंडलाइन भी ट्राई करकर थक गई थी मैं. अब मेरे पास रोने के अलावा चारा नहीं था. स्टेशन जा कर वेटिंगरूम चैक किया.  हर बैंच पर ढूंढ़ा. मगर वह कहीं नहीं थी. न जाने कितनी बार जान निकलने को हुई, मगर फिर भी एक उम्मीद थी जिस ने मुझे बचा लिया कि वह आएगी जरूर.

आज पूरे 5 बरस होने को आए, मगर आलिया नहीं आई. और न ही उस का फोन आया. मुझे उस का कुछ पता नहीं कि वह कहां है? किस हाल में है. है भी या नहीं? वह धोखेबाज निकली या कुदरत ने कोई नई चाल चली थी हमारे साथ, मुझे नहीं पता. इंतजार करतेकरते जिंदगी ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है. उम्मीद भी लगभग टूट चुकी है. मगर फिर भी वह मुझे हर जगह नजर आती है, किताबों में, उस के लौटाए कागजों में, बारिश की दलदली मिटटी में, हवाओं में, लकड़ी की छेद वाली टेबल में, काले वाले लैंडलाइन फोन में, दिल की हूक में, हाथ की मुट्ठी में, नीचे गिरे कलम में, उस के हाथ से लिखे खतों में और उस गीत में जिसे मैं भजन की तरह रोज सुबहशाम सुनती हूं- दिल आने की बात है जब कोई लग जाए प्यारा, दिल पर किस का जोर है यारो, दिल के आगे हर कोई हारा, हाय रे मेरे यारा…

लौटती बहारें: भाग 2- मीनू के मायके वालों में कैसे आया बदलाव

इतना घटिया सामान खरीदा. फिर रवि को कुछ खिलानापिलाना तो दूर उलटे औटो तक के पैसे ले लिए. मैं शर्म से गड़ी जा रही थी. कैसे बताती अपनी पसंद के बारे में. कभीकभी इंसान हालात के हाथों मजबूर सा हो जाता है.

अगले दिन रवि भैया ने मुझे सहारनपुर जाने वाली बस में बैठा दिया. अम्मां ने एक मिठाई का डब्बा दे कर अपना कर्त्तव्य निभा दिया.

शादी के बाद पहली बार अकेली मायके जा रही थी. दिल खुशी से धड़क रहा था.

पिछली बार तो पगफेरे के समय वे साथ थे. मम्मीपापा, भाईबहन से ज्यादा बातें करने का अवसर ही नहीं मिला, क्योंकि शेखर हर समय साथ रहते थे. अगले दिन वापस भी आ गए थे.

मन रोमांचित हो रहा था कि इस बार अपनी प्यारी सहेली चित्रा से भी मिलूंगी. रेनू और राजू मेरे बाद कितने अकेले हो गए होंगे. उन दोनों की चाहे पढ़ाई से संबंधित समस्या हो या कोई और, हल अपनी मीनू दीदी से ही पूछते थे. मम्मी का भी दाहिना हाथ मैं ही थी. पापा मुझे देख गर्व से फूले न समाते. यही सोचतेसोचते समय कब बीत गया पता ही नहीं चला.

झटके से बस रूकी. मैं ने देखा सहारनपुर आ गया था. मैं पुलकित हो उठी. बस की खिड़की से झांका तो राजू तेज कदमों से बस की ओर आता दिखा. बस से उतरते ही राजू ने मेरा सूटकेस थाम लिया. उसे देख खुशी से मेरी आंखें भर आईं. 2 ही महीनों में राजू बहुत स्मार्ट हो गया था. नए स्टाइल में संवरे बाल, आंखों पर काला चश्मा लगा था.

घर पहुंचते ही ऐसे लगा मानो कोई खोई

हुई चीज अचानक मिल गई हो. मैं सब से टूट कर मिली. मम्मीपापा ने पीठ पर हाथ फेर कर दुलारा. मुझे लगा कि मैं इस प्यार के लिए कितना तरस गई थी. मेरा और ससुराल का हालचाल

पूछ मम्मी किचन में चली गईं. मैं पापा की सेहत और रेनू व राजू की पढ़ाई के बारे में पूछताछ करने लगी.

बड़े अच्छे माहौल में खाना खत्म हुआ. राजू और रेनू मेरी अटैची के आसपास घूमने लगे. बोले, ‘‘बताओ दीदी, दिल्ली से हमारे लिए क्या लाई हो?’’

मैं शर्म से गड़ी जा रही थी कि किस मुंह से उपहार दिखाऊं. मैं अनिच्छा से ही उठी और उन दोनों के पैकेट निकाल कर दे दिए. पैकेट खोलते ही रेनू और राजू के मुंह उतर गए. दोनों मेरी ओर देखने लगे.

रेनू बोली, ‘‘आप कमाल करती हैं दीदी… पूरी दिल्ली में यही घटिया चीजें आप को हमारे लिए मिलीं.’’

राजू भी बोल उठा, ‘‘दीदी, ऐसे चीप

कपड़े तो हमारी कामवाली बाई के बच्चे भी नहीं पहनते हैं.’’

शर्म और अपमान से मैं क्षुब्ध हो उठी. यह सही था. कपड़े उन के स्तर के नहीं थे, परंतु ऐसा व्यवहार तो मैं ने उन का पहली बार देखा था. दोनों पैकेटों को पलंग पर रख कमरे से बाहर निकल गए. मैं हैरानपरेशान उन्हें देखती रह गई.

जो भाईबहन मुझे इतना आदर और मान देते थे वही सस्ते से उपहारों के लिए इतना सुना गए. मन खिन्न हो उठा. बहुत थकी थी. वहीं पलंग पर लेट गई. न जाने कब आंख लग गई.

शाम को आंख खुली तो कानों में रेनू की आवाज सुनाई दी.

मैं ने बालकनी से नीचे देखा तो रेनू एक लड़के से बातें करती दिखाई दी. लड़का बाइक पर बैठा था. हावभाव और बातचीत से किसी निम्नवर्गीय परिवार का लग रहा था. अचानक उस ने बाइक स्टार्ट की और रेनू को फ्लाइंग किस देता हुआ तेज गति से चला गया.

यह सब देख मैं हैरान रह गई. अभी तो कालेज में रेनू का पहला वर्ष ही है. उस ने अपनी आयु के 18 वर्ष भी पूरे नहीं किए. अपरिपक्व है. अभी से यह किस रास्ते चल पड़ी? फिर मैं ने सोचा कि मौका देख कर बात करूंगी.

मम्मी कमरे में चाय ले कर आ गईं. मैं ने मम्मी का हाथ पकड़ कर, ‘‘मम्मी, आप यहीं बैठो,’’ कह कर मैं ने उन के लिए लाई साड़ी और पापा की शौल का पैकेट उन्हें पकड़ा दिया. मेरी आंखें शर्म से झुकी जा रही थीं.

उन्होंने साड़ी और शौल को उलटपुलट कर देखा, फिर बोलीं, ‘‘इस की क्या जरूरत थी. अभी तेरे पापा ने रिटायरमैंट के अवसर पर महंगी साडि़यां दिलवाई हैं,’’ और फिर पैकेट वहीं छोड़ किचन में चली गईं.

मैं शर्मिंदगी से उबर नहीं पा रही थी. मैं ने सारे तोहफे समेटे और अलमारी के कोने में

रख दिए.

बड़ा नौर्मल सा दिखने का अभिनय करते हुए मैं मम्मी के पास किचन में चली गई.

मुझे देखते ही मम्मी बोली, ‘‘अरे, तू कमरे में ही आराम कर यहां कहां चली आई. अब तो तू हमारी मेहमान है.’’

यह सुन कर मेरी आंखें भर आईं. मैं मुंह फेर कर बरतनों को उलटपलट कर रखने लगी. मुझे वे दिन याद आने लगे, जब मेरे किचन में जाने पर मम्मी आश्वस्त हो बाहर निकल जाती थीं. दो घड़ी आराम कर लेती थीं. कल तो मौसियां, चाची, बूआ सब मेहमान आ जाएंगे. फिर तो मम्मी को जरा सी भी फुरसत नहीं मिलेगी. बड़ा मन कर रहा था कि मां की गोद में सिर रख कर खूब रो लूं, मन हलका कर लूं पर मां तो लगातार काम करती जा रही थीं. बीचबीच में ससुराल के मेरे अनुभव भी पूछती जा रही थीं. मुझे जो भी सूझता जवाब देती जा रही थी.

मम्मी ने रसोई में पड़ा स्टूल मेरी तरफ खिसका दिया और बोलीं, ‘‘थक जाएगी, बैठ जा.’’

उन का यह मेहमानों वाला व्यवहार मेरे सीने में किसी कांटे की तरह चुभ रहा था.

अगले दिन बहुत चहलपहल रही. घर में खूब रौनक हो गई थी. सब की केंद्र बिंदु मैं थी. सभी ससुराल के अनुभव, पति, घर वालों के स्वभाव के बारे में पूछ रहे थे. मैं दिल में टीस छिपाए रटेरटाए उत्तर देती जा रही थी. कैसे बताती कि मैं पेड़ से टूटी शाखा और शाखा से

टूटे पत्ते जैसी जिंदगी गुजार रही हूं. अपनापन पाने की कई परीक्षाएं दे चुकी पर हर बार असफल होती रही.

पापा का सेवानिवृत्ति का आयोजन बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गया. सभी लोगों

ने उन की ईमानदारी की खूब प्रशंसा की. मैं ने देखा पापा ने चेहरे पर कृतिम खुशी का जो मुखौटा लगा रखा था वह कई बार खिसक जाता तो चेहरे पर चिंता की रेखाएं दिखने लगतीं. मैं जानती थी कि ये चिंताएं रेनू और राजू को ले कर हैं, जो अभी कहीं सैटल नहीं हैं. उन की शिक्षा, विवाह, नौकरी सभी कुछ बाकी है. यह तो पापा की दूरदर्शिता थी कि समय पर यह मकान बनवा लिया था, जिस की छत्रछाया में उन का परिवार सुरक्षित था. अब तो फंड और पैंशन से गुजारा चलाना था.

अगले दिन पापा कैटरिंग वालों का हिसाब कर रहे थे. उधर मेहमानों की विदाई भी हो रही थी.

मेहमानों के जाते ही घर में सन्नाटा सा छा गया. सब थके हुए थे. दोपहर को थकान उतारने के लिए आराम करने लगे.

मैं ने इस आयोजन के दौरान एक बात और नोट की कि पूरे आयोजन में रेनू और राजू का सहयोग नगण्य था. रेनू काफी समय तो पार्लर में लगा आई बाकी समय मौसी, चाची और बूआ से गपशप करती रही. राजू भी मेहमानों के साथ मेहमान बना घूम रहा था. 1-2 बार तो मैं ने उसे बिलकुल पड़ोस वाली टीना, जो उस की ही हमउम्र थी, से इशारेबाजी करते भी देखा. देखने में ये बातें इस उम्र में नौर्मल होती है, परंतु इन्हें अपनी पढ़ाईलिखाई और जिम्मेदारी का पूरा ध्यान रखना चाहिए. उपहारों को ले कर किए इन दोनों के कटाक्ष एक बार फिर मेरी वेदना को बढ़ा गए. मन उचाट हो गया. मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई.

रेनू और राजू घर पर नहीं थे. मम्मीपापा सोए हुए थे. मैं ने देखा पूरे कमरे की काया पलट हो चुकी थी. दीवारों पर आलिया भट्ट, वरुण धवन के पोस्टर लगे हुए थे.

फिर मैं ने अपनी अलमारी खोली. इस में मेरी बहुत सी यादें जुड़ी थी. अलमारी में रेनू के कपड़े और सामान रखा था. इधरउधर देखा, रेनू की अलमारी पर ताला लगा था. अचानक अलमारी के ऊपर रखी 2 गठरियां दिखाई दीं. उतार कर देखीं तो एक में मेरे कपड़े थे और एक में किताबें बंधी थीं. मैं उन्हें कहां रखूं, यह सोच ही रही थी कि रेनू के बाय कहने की आवाज आई.

बालकनी में जा कर देखा, रेनू उसी लड़के की बाइक से उतर कर

ऊपर आ रही थी. मुझे सामने पा कर चौंक गई. फिर नजरें बचा कर अंदर जाने लगी.

उसी समय राजू भी किसी से मोबाइल पर बातें करता ऊपर आ गया. मुझे देख मोबाइल छिपाते हुए अपने कमरे की ओर जाने लगा. मैं ने उसे आवाज दी तो वह अनसुना कर गया.

अब मेरा धैर्य भी जवाब देने लगा था.

फिर भी मैं ने यथासंभव खुद को सामान्य करते हुए बड़े प्यार से दोनों को पुकारा. रेनू तो अभी वहीं खड़ी थी. राजू मुंह फुलाए आकर खड़ा हो गया.

मैं ने बड़े प्यार से दोनों की पढ़ाईलिखाई के बारे में पूछा तो दोनों ने संक्षिप्त उत्तर दिए और जाने लगे.

मैं ने राजू से पूछा, ‘‘यह मोबाइल तुम ने नया खरीदा क्या?’’

‘‘पापा ने ले कर दिया?’’

राजू मुंह बना कर बोला ‘‘पापा क्या ले

कर देंगे, यह मुंबई वाली मौसी का बेटा रजत अपना पुराना मोबाइल दे गया. मैं ने अपनी सिम डलवा ली.’’

मैं ने कहा, ‘‘ऐसे एकदम किसी से कोई चीज नहीं लेते. कम से कम मुझ से ही एक बार पूछ लेते. पापा को तो तुम ने कहा ही नहीं होगा. वरना क्या वे मना कर देते.’’

यह सुन कर राजू ने बहुत अवज्ञा से मुंह बनाया. यह देख मुझे गुस्सा आया. मैं ने कहा, ‘‘देख रही हूं तुम दोनों 2 महीनों में ही बहुत बदल चुके हो,’’ कह मैं ने रेनू की ओर मुखातिब हो कर पूछा, ‘‘रेनू यह लड़का कौन है जिस की बाइक पर तुम आई थीं?’’

यह सुन कर रेनू गुस्से से फट पड़ी, ‘‘क्या हो गया दीदी… वह रोमी है. कालेज में मेरे साथ पढ़ता है… क्या हो गया अगर मुझे छोड़ने घर तक आ गया?’’

मैं ने उसे शांत करते हुए कहा, ‘‘रेनू, इन बातों के लिए तुम अभी बहुत छोटी हो, भोली हो, अभी तुम दोनों को अपनी पढ़ाईलिखाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए… राजू, रात मैं पानी पीने उठी तो तुम्हारे कमरे की लाइट जल रही थी. मैं ने सोचा तुम अभी तक पढ़ रहे होगे. लेकिन खिड़की से देखा तो पाया कि तुम रात को 1 बजे तक टीवी देख रहे थे. तुम दोनों जानते हो कि पापा को तुम दोनों से बहुत उम्मीदे हैं. उन्हें यह सब जान कर बुरा लगेगा. अभी पढ़ाई पर पूरा ध्यान लगाओ.’’

यह सुन कर राजू बोला, ‘‘दीदी, हम लोगों ने ऐसा क्या दुनिया से अलग कर दिया है जो तुम हमें ताने मार रही हो?’’

रेनू बोली, ‘‘हमें यह बेकार की रोकटोक पसंद नहीं… आप अपना बहनजीपन हम पर मत थोपो… अपनी ससुराल में जा कर यह रोब दिखाना.’’

मैं यह सब सुन कर सन्न रह गई कि क्या ये वही रेनू और राजू हैं, जो हर काम मेरे से पूछ कर करते थे? दोनों मैथ और अंगरेजी में कमजोर थे. मैं अपनी पढ़ाई खत्म कर दोनों को रात 1-2 बजे तक पढ़ाती थी. तब जा कर पास होने योग्य नंबर जुटा पाते थे. मैं इन का आदर्श थी.

हम सब की तेज अवाजें सुन मम्मी भागती हुई चली आईं. हम सब को आपस में उलझते देख हैरान रह गईं. मुझ से पूछने लगीं, ‘‘क्या बात हो गई?’’

मैं कुछ कहती, उस से पहले ही रेनू चिल्लाने लगी, ‘‘होना क्या है मम्मी… मीनू दीदी जब से आईं हैं हमारी जासूसी में लगी हैं कि कहां जाते हैं क्या पहनते हैं, हमारे कौनकौन दोस्त हैं… हमारी छोटीछोटी खुशियां इन से बरदाश्त नहीं हो रही है.’’

राजू बोला, ‘‘मम्मी, जमाना बदल रहा है. हम भी बदल रहे हैं. इन्हें हम से क्या परेशानी है, समझ नहीं आता.’’

मेरा इतना अपमान होते देख मम्मी बौखला गईं. मेरा हाथ खींचते हुए बोलीं, ‘‘तू चल यहां से… काहे को चौधराइन बन रही है… अब तू इन की चिंता छोड़ अपनी ससुराल देख.’’

मुझे किसी ने कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया. मैं अपमानित सी खड़ी थी. शोर सुन कर पापा भी आ गए. बिना कुछ पूछे धीरगंभीर पापा मेरा हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गए. अपमान ने मेरे मुंह पर चुप्पी का ताला लगा दिया. पापा ने भी मुझे इस घटना से उबरने का मौका दिया. वे चुप रहे.

थोड़ी देर बाद मैं उठ कर लिविंग रूम के सोफे पर जा लेटी. कब आंख लग गई, पता ही न चला. रात को डिनर के लिए मम्मी और पापा बारीबारी से मुझे बुलाने आए पर मैं ने भूख नहीं है कह कर मना कर दिया. रेनू और राजू के अलावा किसी ने भी खाना नहीं खाया. मुझे रात भर नींद नहीं आई. यही सोचती रही कि यह मैं ने क्या किया? आई थी इन सब की खुशियों में शामिल होने पर सारे माहौल को तनावयुक्त कर दिया.

अगले दिन मैं जल्दी उठ कर नहा कर तैयार हो गई. मैं ने सब के लिए चाय बनाई. रेनू और राजू को आवाज दे कर उन के कमरे में चाय दे कर आई. मम्मी और पापा की चाय उन के कमरे में ले गई. होंठों पर नकली मुसकान लिए मैं ने बिलकुल नौर्मल दिखने का अभिनय किया. अपनी चाय पीतेपीते मैं अपनी ससुराल के बारे में बिना उन के पूछे बातें शेयर करने लगी. अपने देवर की शैतानियों के बारे में हंसहंस कर झूठी कहानियां सुनाने लगी.

मम्मीपापा भी मेरे द्वारा बनाए माहौल को बनाए रखने में मेरा साथ देने लगे. यह देख मैं सोचने लगी कि हम हिंदुस्तानी औरतों को घरगृहस्थी की गाड़ी सुचारु रूप से चलाने के लिए अभिनय घुट्टी में पिलाया जाता है. कभी मायके की इज्जत रखने को तो कभी ससुराल का मानसम्मान बनाए रखने के लिए अच्छा अभिनय कर जाती हैं?

तभी रेनू कालेज के लिए तैयार हो कर आ गई. उसे देख कर मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘अरे रेनू, आज इतनी जल्दी कालेज जा रही है… 5 मिनट रुक मैं मेरे लिए नाश्ता बना रही हूं… तुझे गोभी के परांठे पसंद हैं. वही बना देती हूं.’’ मगर रेनू मेरी बात अनसुनी कर मम्मी की ओर देखते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आज कालेज में देर हो जाएगी,’’ और फिर सीढि़यां उतर गई.

मम्मी और मैं देखते रह गए. मैं ने बिना समय नष्ट किए जा कर किचन संभाली. सोचा रेनू तो बिना कुछ खाए निकल गई कहीं राजू भी भूखे पेट न निकल जाए. जल्दी सभी की पसंद ध्यान में रखते हुए नाश्ता बनाया और डाइनिंगटेबल पर लगा दिया.

नाश्ता तैयार है की आवाज लगा कर माहौल को तनावमुक्त करने की कोशिश की. मम्मीपापा तो तुरंत आ गए पर राजू अनमना सा थोड़ी देर बाद आया. उस ने किसी से बात नहीं की. जल्दीजल्दी खा कर खड़ा हो गया. बोला, ‘‘मम्मी, कालेज जा रहा हूं… आज दीदी को बस में बैठाने तो नहीं जाना?’’ और फिर जवाब का इंतजार किए बिना चला गया.

मैं रेनू और राजू के व्यवहार से मन ही मन क्षुब्ध हो रही थी. मैं दकियानूसी स्वभाव की बहन नहीं थी, परंतु इस कच्ची उम्र में हुई कुछ गलतियां सारी जिंदगी के लिए घातक हो जाती हैं. अपरिपक्व दिमाग, भोलेपन या नासमझी के चलते कुछ लोग गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं. फिर वहां से लौटना कठिन हो जाता है. बस इसी उलझन में पड़ गई थी. मेरे दिल में भाईबहन के लिए प्यार, ममता, सहानुभूति की भावनाएं प्रबलता से हिलोरें ले रही थीं, परंतु स्वाभिमान और फैला तनाव मुझे चुप रहने का संकेत दे रहा था.

मेड इन हैवन: गरिमा के साथ कौन-सी घटना घटी

फाइनली गरिमा और हेमंत की शादी हो ही गई. दोनों हनीमून ट्रिप पर स्विट्जरलैंड में ऐश कर रहे हैं. उन के घर वालों का तो पता नहीं परंतु मैं बहुत ख़ुश हूं क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही गरिमा ने 2 मिनट के लिए स्विट्जरलैंड से बात की, ‘‘थैंक्स आंटी इतना अच्छा लाइफपार्टनर मिलवाने के लिए.’’

पीछे से हेमंत का भी स्वर उभरा, ‘‘डार्लिंग, मेरी तरफ से भी आंटी को थैंक्स बोल देना,’’ फिर दोनों की सम्मिलित हंसी का स्वर उभरा और फोन काट दिया गया.

गरिमा और हेमंत दोनों बहुत खुश लग रहे थे. मैं ने राहत की सांस ली क्योंकि दोनों को मिलवाने में मैं ने ही बीच की कड़ी का काम किया था. संयोगिक घटनाओं की विचित्रता को भला कौन सम?ा सकता है. मेरे मन में यादों की फाइल के पन्ने फड़फड़ाने लगे…

3 साल पहले गरिमा को मैं ने अपनी फ्रैंड विनीता के घर हुई किट्टी पार्टी में देखा था. लंबी, छरहरी गरिमा रूपलावण्य की धनी तो थी ही, नाम के अनुरूप व्यक्तित्व में संस्कारी छाप भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. उसे देखते ही लगा काश मेरा कोई बेटा होता तो मैं गरिमा का हाथ उस की मां से मांग लेती.

मु?ो गरिमा की तरफ ताकते देख विनीता ने मु?ा से उस का परिचय करवाया, ‘‘बेटे, ये कृष्णा आंटी हैं. हमारी किट्टी मैंबर.’’

गरिमा कुछ देर मेरे पास बैठी तो मैं ने उस की जौब के बारे में बातचीत की, फिर किट्टी के अन्य सदस्यों के आने पर वह उठ कर अपने कमरे में चली गई.

मेरी फ्रैंड सुमन ने भी जब गरिमा को देखा तो उस की नजरों से लग रहा था कि गरिमा के व्यक्तित्व ने सुमन को भी प्रभावित किया है. धीरेधीरे किट्टी के अन्य सदस्यों के आ जाने पर बातचीत का रुख बदल गया. कोई 2 हजार के नए नोट को अच्छा बता रही थी तो कोई इस से उपजी परेशानियां गिना रही थी.

किट्टी पार्टी पूरे शबाब पर थी. सब गपशप करने लगी थीं, साथ ही कनखियों से एकदूसरे की साड़ी और ज्वैलरी को निहारने का सिलसिला भी चल रहा था कि इस की साड़ी मेरी साड़ी से अच्छी क्यों है, किस का हार असली है और किस का नकली.

विनीता के घर से निकलने पर सुमन ने बातचीत शुरू की, ‘‘सच इस की बिटिया बहुत प्यारी है. तू कोई चक्कर चला न. मैं भी आजकल हेमंत की शादी को ले कर काफी चिंतित हूं. धीरेधीरे उम्र बढ़ती जा रही है मेरी भी और हेमंत की भी. कोई अच्छी लड़की मिल जाए तो इस का रिश्ता पक्का कर के मैं निश्चिंत हो जाऊं.’’

‘‘देख कृष्ण, जब तुम विनीता से बात करोगी, तो हेमंत के बारे में कुछ संक्षिप्त परिचय दे देना, हेमंत ने एमबीए किया है और आजकल एक एमएनसी में डाइरैक्टर के पद पर है. उस की लंबाई 6 फुट 3 इंच  है, तो वह चाहता है कि लड़की भी लंबी हो तो सोने में सुहागा. रही उम्र की बात तो 34 पूरे करने जा रहा है 2 महीने में. मेरे खयाल से गरिमा भी 30 से ऊपर की ही होगी. मु?ो तो सब से ज्यादा उस की लंबाई भा गई है. सुमन अपनी ही रौ में बोलती जा रही थी.

मैं ने उसे टोका, ‘‘देख, मैं विनीता से बात कर के देखती हूं, फिर जोडि़यां तो ऊपर वाले के यहां से ही बन कर आती हैं.’’

कुछ दिनों बाद जब मैं विनीता से मिलने उस के घर गई तो देखा वह किसी की जन्मकुंडली ले कर बैठी थी. लैपटौप सामने खुला पड़ा था. मुझे देख कर लैपटौप बंद करते हुए बोली, ‘‘आ बैठ. अभी चाय बना कर लाती हूं. फिर ठाट से गप्पें मारेंगे. जब विनीता चाय ले कर आई तो मैं ने पूछा, ‘‘आज किस का भाग्य संवारने में लगी है.’’

दरअसल, कुछ साल पहले विनीता ने ज्योतिषाचार्य का डिप्लोमा किया था. आजकल ऐसा डिप्लोमा देने वालों की बाढ़ आई हुई है क्योंकि धर्म प्रचार के साथ धर्म का व्यापार भी फलफूल रहा है. तभी से वह जन्मकुंडली देखने और मिलाने लगी थी. किट्टी पार्टी की 2-4 सखियों के बच्चों की कुंडलियां मिलाईं और उन के बच्चों की शादीशुदा लाइफ स्वाभाविक तौर पर खुशहाल गुजर रही थी. तभी से विनीता का कुंडली मिलाने में विश्वास कुछ अधिक गहरा हो चला था. गरिमा के रिश्ते की बात जहां भी चलती सब से पहले बिनीता कुंडली मिलाने बैठ जाती, बिना लड़के को मिले, देखे अब तक सैकड़ों लड़कों को रिजैक्ट कर चुकी थी और गरिमा की उम्र 32 पार करने को थी. उस कोर्स ने उस के तार्किक दिमाग को बंद कर दिया था. वह सब के लिए ग्रहों, नक्षत्रों में भरोसा करने लगी थी.

उम्र बढ़ने पर गरिमा के चेहरे की मुसकराहट धीरेधीरे गायब हो रही थी. स्वयं विनीता भी आजकल तनाव व चिड़चिड़ाहट के घेरे में आती जा रही थी.

गरिमा ने तो अपने मन की भड़ास निकालते हुए यहां तक कह दिया था कि यदि कुंडली मिलाने से सभी की शादी सफल होती तो आज तलाकों की संख्या लाखों तक नहीं पहुंचती. शादी में कुंडली नहीं स्वभाव, रुचियों व आदतों की साझेदारी बहुत माने रखती है. अब मैं अपने हिसाब से अपने लिए जीवनसाथी ढूंढ़ती हूं.

‘‘बेटा, भावावेश में आ कर कहीं कोई गलती न कर बैठना. आखिर मैं तुम्हारे सुखद भविष्य के लिए ही तो ये सब कर रही हूं.

‘‘उस सुखद भविष्य के इंतजार में चाहे मेरी उम्र ही क्यों न बढ़ती जाए और रही गलती की बात सो गलती से कुछ नहीं होता सबकुछ हमारे व्यवहार पर निर्भर है. किसी पर कमी को फुर्सत नहीं कि हर पेड़पौधों, जानवर, आदमीऔरत की कुंडली कम से बने,’’ गरिमा के शब्द सुन कर विनीता हक्कीबक्की रह गई.

अगले महीने की किट्टी पार्टी सुमन के घर थी. विनीता यह कह कर जल्दी घर लौट गई कि आज गरिमा का बर्थडे है सो घर सी गैटटुगैदर रखी है.

किट्टी की 1-2 मैंबर जो कुछ मुंहफट टाइप थीं ने तो यहां तक कह दिया कि कब तक गरिमा का बर्थडे अपने घर पर ही मनाती रहोगी. किसी दूसरे को भी तो मौका दो उस का बर्थडे मनाने का.

विनीता खिसियानी हंसी हस कर रह गई और फिर वहां से तुरंत निकल ली.

पिछले हफ्ते मार्केट में अचानक गरिमा मिल गई. मैं ने उसे हैप्पी बर्थडे विश किया तो उस ने थैंक्यू बोला.

‘‘गरिमा क्या चल रहा है लाइफ में.’’

‘‘कुछ खास नहीं आंटी. लाइफ कोर्ट से घर और घर से कोर्ट तक सिमट कर रह गई है. ऐक्चुअली आई नीड सम ग्रेट चेंज.’’

इस से उस का सीधा सा मतलब था कि अब वह शादी कर के घर बसाने को आतुर है.

‘‘कोर्ट में दूसरों के केस लड़तेलड़ते थक चुकी हूं. अब मैं अपना ख़ुद का केस सुलझना चाहती हूं,’’ गरिमा फीकी सी मुसकराहट बिखेरते हुए बोली.

एक दिन जब मैं विनीता से मिलने उस के घर गई और बातचीत के दौरान मैं ने गरिमा के रिश्ते के लिए हेमंत का नाम सुझाया तो विनीता चौंकती हुई मेरी तरफ देखने लगी. मेरी पूरी बात सुने बिना ही उस ने यह रिश्ता खोटे सिक्के सा ठुकरा दिया. उस का मानना था कि रिश्ता तो बराबर के लोगों के साथ ही जोड़ा जाता है. किट्टी मैंबर है तो इस का मतलब यह तो नहीं कि उस से रिश्ता जोड़ लूं. कहां उस का परिवार और कहां हम लोग.

दूसरे दिन सुबहसुबह सुमन ने फोन खटका दिया. स्वर में कुछ परेशानी सी झलक रही थी, ‘‘सुन तू मेरे घर थोड़ी देर को आ सकती है कुछ जरूरी सलाह लेनी है तुम से.’’

दरअसल, सुमन अकेली रहती है. बेटियां घर बसा कर अपनी ससुराल जा चुकी हैं और बेटा हेमंत आजकल बैंगलुरु में किसी बड़ी कंपनी में मार्केटिंग डाइरैक्टर के पद पर कार्यरत है. कुछ ही महीनों में विदेश की पोस्टिंग पर जाने की तैयारी चल रही है. इसी कारण सुमन चाहती है विदेश जाने से पहले अपना घर बसा ले तो अच्छा है. शायद इसी बाबत कुछ सलाह करने के लिए बुलाया होगा, मैं ने मन ही मन सोचा.

सुमन के घर पहुंचने पर उस से बातचीत करने पर पता चला कि उस के बेटे हेमंत के ऊपर किसी ने फ्रौड केस बना दिया है. जैसेजैसे उस के विदेश जाने की तारीख नजदीक आती जा रही है, उस की घबराहट बढ़ती जा रही है. जाने से पहले वह इस केस हर हाल में निबटाना चाहता है. सो यदि किसी अच्छे वकील को जानती है तो प्लीज मदद कर दो.

‘‘अरे, इस में इतना सोचने वाली क्या बात है? अपनी विनीता की बेटी गरिमा टौप क्लास की वकील है. वह किस दिन काम आएगी. उस का रिकौर्ड है कि आज तक जो भी केस हाथ में लिया जीत ही हासिल की है. तुम कहो तो मैं हेमंत को गरिमा का नंबर बता देती हूं. दोनों आपस में केस से संबंधित बातचीत ख़ुद ही कर लेंगे.’’

हेमंत ने फोन पर गरिमा को अपना संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने केस की सारी डिटेल बता दी. सारी डिटेल सुनने के बाद गरिमा हेमंत का केस लेने को तैयार हो गई. इतना ही नहीं गरिमा ने हेमंत को आश्वासन भी दिया, ‘‘डौंटवरी, केस हम ही जीतेंगे.’’

‘‘मुझे भी आप की काबिलीयत पर पूरा भरोसा है. कल कोर्ट में मिलते हैं,’’ हेमंत ने कहा.

कोर्ट शुरू होने से एक घंटा पहले ही दोनों कोर्ट परिसर में पहुंच चुके थे. कुछ औपचारिक  बातचीत के बाद दोनों ने केस शुरू होने से पहले 1-1 कप चाय पीने की एकसाथ इच्छा जाहिर की. कैंटीन में चाय पीतेपीते जब भी गरिमा ने हेमंत की तरफ देखा उसे कनखियों से अपनी तरफ देखते ही पाया और उस के कपोल लज्जा से लाल हो गए. आखिर दोनों हमउम्र ही तो थे.

कोर्ट शुरू होने का टाइम हो गया था सो दोनों कोर्ट रूम में पहुंचे. केस शुरू होने पर गरिमा ने अपनी धुआंधार दलीलों से प्रतिद्वंद्वी पक्ष के वकील को निरुत्तर कर दिया. फिर भी जज साहब ने कोई फैसला सुनाने से पहले अगली हियरिंग अगले हफ्ते होने की घोषणा की.

इस 1 हफ्ते के दौरान गरिमा व हेमंत केस की बाबत बातचीत करने के बहाने किसी न किसी रैस्टोरैंट में शाम इकट्ठा गुजारने लगे.

1 हफ्ते की मुलाकात में दोनों की साझेदारी कुछ इस तरह बढ़ी कि केस से हट कर वे दोनों एकदूसरे की रुचियों, स्वभाव व आदतों के बारे में भी बातचीत करने लगे. दोनों की एकदूसरे में दिलचस्पी बढ़ रही थी.

अगले हियरिंग में केस पूरी तरह सुलझ गया और फैसला हेमंत के पक्ष में आया. फैसला सुन कर गरिमा व हेमंत दोनों ही बहुत खुश थे.

‘‘इतनी बड़ी जीत पर अच्छी सी ट्रीट तो बनती ही है. क्या खयाल है तुम्हारा गरिमा?’’ हेमंत ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए पूछा.

गरिमा को हेमंत का आप से तुम कहना अच्छा लगा, लेकिन खुश तो वह भी थी सो बोली, ‘‘हां, क्यों नहीं. कोर्ट से थोड़ी ही दूर एक रैस्टोरैंट है. वहां चल कर चाय और स्नैकस का आनंद लेते हैं और फिर जब तक स्नैक्स आते दोनों बातचीत में मशगूल हो गए.

‘‘तुम बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’ हेमंत ने कहा.

‘‘हां पूछो.’’

‘‘तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘बस, अभी तक कोई मन भाता टकराया ही नहीं,’’ गरिमा ने हेमंत की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

गरिमा को इस तरह अपनी ओर देखते हेमंत कुछ ?ोंप सा गया. चाय की चुसकियों के साथ दोनों ने एकदूसरे से ढेर सारी व्यक्तिगत बातें कीं क्योंकि अब तक इन दोनों की दोस्ती गहरी हो चुकी थी और इन्हें साथ समय गुजारना रास आने लगा था.

चाय पीतेपीते मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. ऐसे में घर के लिए निकलना नामुमकिन था सो बारिश के साथसाथ बातचीत का रेला भी बहने लगा. दोनों ही

हमउम्र थे. अत: बिना लागलपेट के हेमंत ने पूछा, ‘‘आखिर तुम्हें कैसा लाइफ़ पार्टनर चाहिए? शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं.’’

‘‘बिलकुल तुम्हारे जैसा,’’ गरिमा ने हेमंत की आंखों में आंखें डालते हुए शरारती मुसकान भर कर कहा.

हेमंत भी खुशी से उछल पड़ा.

‘‘रुको इतना खुश होने की जरूरत नहीं है. मैं पहले तुम्हें अपने मांबाप से मिलवाऊंगी. तभी बात आगे बढ़ेगी. आखिर जिंदगीभर का सवाल है. जिंदगी के अहम केस की 2-3 हियरिंग तो होनी ही चाहिए.’’

इस बीच बारिश बंद हो चुकी थी. जल्द ही दोबारा मिलने का वादा ले कर दोनों अपनेअपने घर चले गए.

रात को डिनर के लिए गरिमा अपने घर वालों के साथ बैठी तो उस ने चहकते हुए कहा,

‘‘पापा, आज मैं ने 2 केस एकसाथ जीते हैं. एक तो जो मैं ने आप को बताया था न हेमंत का और दूसरा मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है,’’ उस ने निर्णयात्मक स्वर में अपना फैसला सुनाते हुए कहा.

पापा ने उत्साह भरे स्वर में आश्चर्य से पूछा, ‘‘अच्छा, कौन है? कब मिलवा रही हो?’’

इतनी देर से बापबेटी की चुपचाप बातचीत सुन रही विनिता बोली, ‘‘ऐसे कैसे तुम अपना जीवनसाथी चुन सकती हो? आखिर जिंदगीभर का सवाल है… बिना जन्मकुंडली मिलाए शादी कैसे हो सकती है?’’

‘‘पापा हेमंत जिसे मैं ने अपना जीवनसाथी चुना है वह मम्मी की किट्टी पार्टी की सहेली सुमन आंटी का बेटा है. मम्मी उन के परिवार से अच्छी तरह परिचित है.’’

सुमन का नाम सुन कर मम्मी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

मम्मी को नजरअंदाज करते हुए उस के पापा ने कहा, ‘‘तुम्हारी पसंद पर पूरा भरोसा है… हम सब को उस से मिलवाओ और फिर शादी की तारीख पक्की करते हैं.’’

गरिमा के पापा ने उस की पसंद पर अपनी मुहर लगाते हुए कहा, ‘‘आखिर हमारी बेटी इतने बड़ेबड़े केस हैंडल करती है तो यह तो उस की अपनी जिंदगी का मुकदमा है. इसे जरूर जीत हासिल होगी. तुम तो बस अपनी कुंडली मिलान का चक्कर छोड़ इस की शादी की तैयारी करो और अपनी शुभकामनाएं और आशीर्वाद देने को तैयार रहो.’’

विनिता सोच रही थी कि वह अपनी ज्योतिष की किताबों को रद्दी में डाल दे क्या? फिर उस ने सोचा लोगों को बेवकूफ बनाने का यह अच्छा अवसर तो दे रही है. बस उसे इस ज्योतिष को घर पर लागू नहीं करना. यह विधा दूसरों को बेवकूफ बनाने में बहुत कामयाब है और सदियों से समाज पर थोपी जा चुकी है. इस सोच उगलने वाले स्टंट को क्यों छोड़ा जाए. उस ने किताबें और सजा कर रख दीं.

हिमायती: अपने रास्ते के कांटे को सीमा ने कैसे हटाया

समीर तो औफिस की बातें घर में करते नहीं हैं, इसलिए उन के औफिस में यदाकदा होने वाली पार्टियों का मेरे लिए बहुत महत्त्व है. औफिस की चटपटी बातों की जानकारी मुझे वहीं मिलती है.

कोई भी पति अपनी कमजोर बात तो पत्नी को कभी नहीं बताता, लेकिन अपने सहयोगियों की बातें जरूर बता देता है. फिर वही रसीली बातें जब पत्नी पार्टी वगैरह में बाकी औरतों से शेयर करती है, तो बताने वाली की आंखों की चमक और सुनने वालियों की दिलचस्पी देखते ही बनती है.

पिछले हफ्ते जो पार्टी हुई उस में अपने पतिदेव के कारण महिलाओं के आकर्षण का केंद्र मैं रही.

‘‘तेरे समीर का अकाउंट सैक्शन वाली चुलबुली रितु से चक्कर चल रहा है. जरा होशियार हो जा,’’ सब के बीच अपमानित करने वाली यह खबर सब से पहले मुझे नीलम ने चटखारे ले कर सुनाई.

इस खबर की पुष्टि जब इंदु, कविता और शिखा ने भी कर दी, तो शक की कोई गुंजाइश बाकी नहीं बची. यह सच है कि इस खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था पर मैं ऊपर से मुसकराती रही.

उन सब की सलाह और सहानुभूति से बचने और एकांत में सोचविचार करने की खातिर मैं प्रसाधन कक्ष में चली आई.

एक बात तो मेरी समझ में यह आई कि समीर से झगड़ा करने का कोई फायदा नहीं होगा. मैं ने कई मामलों में देखा था कि लड़ाईझगड़ा कर के कई नासमझ पत्नियों ने अपने पतियों को दूसरी औरत की तरफ धकेल दिया था.

ऐसा मामला समझाने और गिड़गिड़ाने से भी हल नहीं होता है, इस के भी मैं कई उदाहरण देख चुकी थी. वैसे भी मैं आंसू बहाने वाली औरतों में नहीं हूं.

उन दोनों के बीच चल रहे चक्कर की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी हो गई हैं, इस का अंदाजा खुद लगाने के इरादे से मैं जल्दी ही बाथरूम से बाहर आ गई.

बाहर आते ही मेरी नजर में वे दोनों आ गए. हौल के एक कोने में खड़े दोनों हंसहंस कर बतिया रहे थे. अपने होंठों पर बनावटी मुसकान सजाए और लापरवाह सी चाल चलती मैं उन दोनों की तरफ बढ़ गई.

मुझे अचानक बगल में खड़ा देख वे दोनों सकपका गए. मेरी समझ से इस बात ने ही दोनों के मन में चोर होने की पुष्टि कर दी थी.

‘‘बहुत सुंदर लग रही हो, रितु. तुम्हारे सूट का रंग बहुत प्यारा है,’’ मैं ने यों ही प्रशंसा कर उसे मुसकराने को मजबूर कर दिया.

फिर मैं मुसकराते हुए उस से इधरउधर की बातें करने लगी. ये मेरे ही प्रयास का नतीजा था कि वह जल्दी ही सहज हो कर मुझ से खुल कर हंसनेबोलने लगी.

समीर को मेरे व्यवहार में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई तो वे हमें अकेला छोड़ कर अपने दूसरे दोस्तों के पास चले गए.

अपने मन की चिढ़ और किलस को नियंत्रण में रख मैं काफी देर तक रितु के साथ हंसतीबोलती रही. समीर को उस के साथ अकेले में बातें करने का मौका मैं ने उस रात उपलब्ध नहीं होने दिया.

विदा लेने से पहले मैं ने रितु को अपने घर आने का न्योता कई बार दिया. उस ने चलने से पहले बस एक बार मुझे अपने घर आने की दावत दी तो मैं खुशी से झूम उठी.

आने वाले दिनों में मेरा मन उदास सा रहा पर मैं ने रितु की कोई चर्चा समीर से नहीं छेड़ी. हफ्ते भर बाद मेरा जन्मदिन आया. घर के सारे लोग पार्टी में शामिल हुए पर मैं सब के साथ हंसनेबोलने का नाटक ही कर पाई.

मुझे यों उदास देख कर मेरी सास ने 2 दिनों तक मेरे पास रुकने का फैसला कर लिया. वे जबान की तेज पर बहुत समझदार महिला हैं.

हम दोनों ने 2 दिनों में ढेर सारी बातें कीं. जब वे लौटीं तब तक मेरे अंदर जीने का नया उत्साह भर चुका था.

आगामी शनिवार को समीर 3 दिनों के टूर पर शहर के बाहर चले गए और मैं रविवार की सुबह 10 बजे के करीब रितु के घर अकेली पहुंच गई. अपने 5 वर्षीय बेटे को मैं ने अपनी सास के पास छोड़ दिया.

रितु ने मेरा स्वागत मुसकरा कर किया पर मैं ने उस की आंखों में चिंता और उलझन के भावों को पैदा होते साफसाफ देखा.

‘‘तुम्हें तो पता है कि समीर टूर पर गए हुए हैं, मैं ने सोचा आज कुछ समय तुम्हारे साथ बिताया जाए,’’ मैं उस से किसी अच्छी सहेली की तरह बड़े अपनेपन से मिली.

‘‘आप का स्वागत है, सीमा दीदी. राहुल को साथ क्यों नहीं लाईं?’’ हाथ पकड़ कर ड्राइंग रूम की तरफ ले जाते हुए उस ने मेरे बेटे के बारे में पूछा.

‘‘मेरी ननद मायके आई हुई हैं. राहुल उन के दोनों बेटों के साथ खेलने गया है.’’

‘‘आप क्या लेंगी? चाय या कौफी?’’

‘‘चाय चलेगी. मैं जरा लेट लूं. लगता है, सीढि़यां चढ़ते हुए कमर झटका खा गई है.’’

वह फौरन मेरे लिए तकिया ले आई. मैं पलंग पर आराम से लेटी और वह चाय बनाने रसोई में चली गई.

हम दोनों ने साथसाथ चायनाश्ता लिया. हमारे बीच जल्दी ही खुल कर बातें होने लगीं. यों ही गपशप करते 1 घंटा बीतने का हमें पता ही नहीं चला. फिर जब मैं ने अचानक उस की शादी के बारे में सवाल पूछने शुरू किए तो वह घबरा सी उठी.

‘‘लव मैरिज करोगी या मम्मी ढूंढ़ेंगी तुम्हारा रिश्ता?’’

मेरे इस सवाल को सुन कर वह सकपका सी गई.

‘‘देखो क्या होता है,’’ उस की आवाज में हकलाहट पैदा हो गई.

‘‘तुम जैसी सुंदर, स्मार्ट और कमाऊ लड़की के आशिकों की क्या कमी होगी. किसी के साथ तुम्हारा चक्कर जरूर चल रहा होगा. बताओ न उस का नाम,’’ मैं उस के पीछे ही पड़ गई.

वह बेचारी कैसे बताती कि उस का चक्कर मेरे पति के साथ चल रहा था. मैं ने इसी विषय पर कुछ देर बातें कर के उस की बेचैनी और परेशानी का मन ही मन खूब आनंद लिया.

उस की खिंचाई का अंत तब हुआ, जब मेरे मोबाइल पर 2 फोन आए. पहला मेरी सास का था और दूसरा मेरी किट्टी फ्रैंड अनिता का. दोनों ही मेरा हालचाल पूछ रही थीं. अपनी कमर में आई मोच को ले कर मैं ने दोनों के साथ काफी देर तक बातें की.

अभी 1 घंटा भी नहीं बीता होगा कि मेरी सास, ननद नेहा और तीनों बच्चे रितु के घर आ धमके. बच्चे तो फौरन ही कार्टून चैनल देखने के लिए टीवी के सामने जम गए. मेरी सास और नेहा सोफे पर बैठ कर मेरी कमर दर्द के बारे में पूछने लगीं.

‘‘आप मेरी जरूरत से ज्यादा फिक्र करती हो मम्मी,’’ मेरा स्वर भावुक हो उठा था.

‘‘लेकिन तू तो एक नंबर की लापरवाह है. हजार बार तो तुझे समझाया ही होगा मैं ने कि वजन कम कर के अपने इस कमरे को कमर बना ले, पर तेरे कानों पर जूं तक नहीं रेंगती,’’ मेरी सास एकदम से भड़क उठीं तो मैं झेंपी सी रितु की तरफ देखने लगी.

रितु का मेरी सास से पहली बार आमनासामना हुआ था. उन की कड़क आवाज सुन कर उस की आंखों से डर झांक उठा था.

‘‘समीर भैया जब किसी सुंदर तितली के चक्कर में पड़ जाएंगे, तब ही भाभी की आंखें खुलेंगी,’’ नेहा दीदी की इस टिप्पणी को सुन कर मेरी सास और भड़क उठीं.

‘‘तेरे भैया की टांगें तोड़ने और उस तितली के पर काटने में मैं 1 मिनट भी नहीं लगाऊंगी.’’

‘‘मेरे छोटे से मजाक पर इतना गुस्सा होने की क्या जरूरत है?’’

‘‘ऐसी वाहियात बात तुम मुंह से निकाल ही क्यों रही हो?’’

नेहा दीदी बुरा सा मुंह बना कर चुप हो गईं. रितु फर्श की तरफ देखते हुए अपनी उंगलियां तोड़मरोड़ रही थी. मेरी सास से आंखें मिलाने की शायद उस की हिम्मत नहीं हो रही थी.

मेरी सास ने हम सब को लैक्चर देना शुरू कर दिया, ‘‘आजकल की लड़कियों में न समझ है और न सब्र है. अपनी गृहस्थी बसाने में उन की दिलचस्पी होती ही नहीं है. बस उलटेसीधे इश्क के चक्करों में उलझ कर बेकार की परेशानियों में फंस जाती हैं. जो रास्ता कहीं न पहुंचता हो, उस पर चलने का कोई फायदा होता है क्या, रितु बेटी?’’

‘‘जी नहीं,’’ रितु ने मरे से स्वर में जवाब दिया तो मेरे लिए अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो गया.

‘‘तुम कब शादी कर रही हो?’’

‘‘जल्दी ही.’’

‘‘गुड. तुम्हारे मम्मीपापा कहां हैं?’’

‘‘पापा अब नहीं हैं और मम्मी मौसी के घर गई हैं.’’

‘‘कब तक लौटेंगी?’’

‘‘शाम तक.’’

‘‘मैं जरूर आऊंगी उन से मिलने. बहू, अब कमर दर्द कैसा है? क्या सारा दिन यही लेटे रहने का इरादा है?’’

‘‘दर्द तो बढ़ता जा रहा है, मम्मी,’’ मैं ने कराहते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या डाक्टर को बुलाएं?’’

‘‘नहीं मम्मी. तुम्हारे पास आयोडैक्स

है, रितु?’’

‘‘मैं अभी लाई,’’ जान बचाने वाले अंदाज में उठ कर रितु अंदर वाले कमरे में चली गई.

रितु को ही मेरी कमर में आयोडैक्स लगानी पड़ी.

रितु को मेरी सास जिंदगी की ऊंचनीच समझाए जा रही थीं. नेहा दीदी उन से हर बात पर उलझने को तैयार थीं. मांबेटी के बीच चल रही जोरदार बहस को देख कर ऐसा लगता था कि इन के बीच कभी भी झगड़ा हो जाएगा. इन दोनों की तेजतर्रारी देख कर रितु की टैंशन बढ़ती जा रही थी.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई. नेहा दीदी दरवाजा खोलने गईं. वे लौटीं तो मेरी किट्टी पार्टी की सहेलियां अनिता, शालू और मेघा उन के साथ थीं.

ये तीनों बहुत ही बातूनी हैं. इन के आने से मांबेटी की बहस तो बंद हो गई पर कमरे के अंदर शोर बहुत बढ़ गया.

‘‘अपनी नई सहेली से बड़ी सेवा करा रही हो, सीमा,’’ मेघा ने आंख मटकाते हुए मजाक किया और फिर तीनों जोर से हंस पड़ीं.

‘‘सीमा का दिल जीत कर हमारा पत्ता साफ न कर देना, रितु. तुम हमारी भी अच्छी दोस्त बनो, प्लीज,’’ अनिता ने दोस्ताना अंदाज में रितु का कंधा दबाया और फिर मेरा हाथ पकड़ कर मेरे पास बैठ गई.

‘‘नई दोस्ती की नींव मजबूत करने के लिए हम गरमगरम समोसे और जलेबियां भी लाए हैं,’’ शालू ने अपनी बात ऐसे नाटकीय अंदाज में कही कि रितु हंसने को मजबूर हो गई.

अपनाअपना परिचय देने के बाद वे तीनों बेधड़क रसोई में चली गईं. जब तक रितु आयोडैक्स के हाथ धो कर वहां पहुंचती, तब तक उन्होंने चाय भी तैयार कर ली थी.

बच्चों के लिए नेहा दीदी ने फ्रिज में से जूस का डब्बा निकाल लिया. कुछ देर बाद हम सभी जलेबियों और समोसों का लुत्फ उठा रहे थे. इतना ज्यादा शोर रितु के फ्लैट में शायद ही कभी मचा होगा.

मेरी सहेलियां रितु का दिल जीतने में सफल रही थीं. वह उन के साथ खूब हंसबोल रही थी. ऐसा लग रहा था मानो हम सब उसे लंबे समय से जानते हों.

‘‘सीमा, रितु से दोस्ती कर के एक फायदा तो तुझे जरूर होगा,’’ मेघा की आंखों में शरारती चमक उभरी.

‘‘कैसा फायदा?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘अब अगर तेरे समीर की औफिस की किसी लड़की में दिलचस्पी पैदा हुई, तो रितु तुझे फौरन खबर कर देगी.’’

‘‘बात तो तेरी ठीक है, मेघा. अपने औफिस में क्या तुम मेरी आंखें बनोगी, रितु?’’ रितु की तरफ देख कर मैं बड़े अपनेपन से मुसकराई.

रितु के गाल एकदम गुलाबी हो उठे थे. वह जवाब नहीं दे पाई. उस ने सिर्फ गरदन ऊपरनीचे हिलाई और फिर मेज पर रखी कपप्लेटें उठाने के काम में लग गई.

मेज की सफाई पूरी हुई ही थी कि मेरे ससुरजी मेरा हाल पूछने वहां आ गए. उन के आते ही सारा माहौल बिलकुल बदल गया.

वे बड़े रोबीले इंसान हैं. मेरी सब सहेलियों ने उन के पैर छुए. वे सब यों चुप हो गईं मानो मुंह में जबान ही न हो.

‘‘बहू, तुम घर चलने की हालत में हो या नहीं?’’ उन्होंने गंभीर लहजे में मुझ से पूछा.

‘‘चल लूंगी, जी,’’ मैं ने धीमे स्वर में जवाब दिया.

‘‘इंसान को संभल कर चलना चाहिए न?’’

‘‘जी.’’

‘‘डाक्टर खन्ना को मैं ने फोन कर दिया है. उन से दवा लिखवाते हुए घर जाएंगे.’’

‘‘जी.’’

‘‘यहां किसी खास काम से आई थीं?’’

‘‘रितु से मिलने आई थी, जी.’’

‘‘इस से नई जानपहचान हुई है?’’

‘‘जी हां, ये उन के औफिस में काम करती है.’’

‘‘रितु बेटी, क्या तुम यहां अकेली

रहती हो?’’

‘‘नहीं अंकल, मम्मी साथ रहती हैं. पापा को गुजरे 5 साल हो गए हैं,’’ उन की नजरों का केंद्र बनते ही रितु घबरा गई थी.

‘‘पापा नहीं रहे तो कोई बात नहीं. कभी कोई जरूरत पड़े तो हमें बताना. अब हम चलते हैं.’’

पापा खड़े हुए तो हम सब भी चलने की तैयारी करने लगे. पापा कमरे के बाहर चले गए तो मेरी सास ने चलते हुए रितु को सलाह दी, ‘‘बेटी, जल्दी से शादी कर लो. उम्र बढ़ जाने के बाद लड़कियों को अच्छे लड़के नहीं मिलते.’’

‘‘तुम्हें हम अपनी किट्टी पार्टी का मैंबर जरूर बनाएंगे. फोन करती हूं मैं तुम्हें बाद में,’’ अनिता के इस प्रस्ताव का हम सभी सहेलियों ने स्वागत किया.

तीनों बच्चे रितु आंटी को थैंक यू कह कर बाहर चले गए. सब से आखिर में मैं रितु का सहारा ले कर बाहर की तरफ चल पड़ी.

‘‘रितु, इन सब का बहुत ज्यादा खुल जाना तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’’ मैं ने मुसकराते हुए उस से सवाल किया.

‘‘नहीं सीमा दीदी, ये सब तो बहुत अच्छे लेग हैं.’’

ऐसा जवाब देते हुए वह सहज हो कर मुसकरा नहीं पाई थी.

‘‘ये अच्छे लोग इस दुनिया में मेरे लिए बड़े हिमायती हैं, रितु. मुझे अपने इन हिमायतियों का बड़ा सहारा है. इन के कारण ही मैं खुद को सदा सुरक्षित महसूस करती हूं. कोई मेरी गृहस्थी की खुशियों को अगर नष्ट करने की कोशिश करे, तो मेरे ये हिमायती मेरी ढाल बन जाएंगे. इन से पंगा लेना किसी को भी बड़ा महंगा पड़ेगा. मेरी राह का कांटा बनने वाला इंसान समाज में अपनी इज्जत को दांव पर लगाएगा. मैं ने तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. तुम मेरी विश्वसनीय सहेली बनो तो मेरे ये हिमायती तुम्हारी भी ताकत बन जाएंगे,’’ ढकेछिपे अंदाज में उसे चेतावनी देते हुए मैं ने अपना दायां हाथ उस की तरफ बढ़ा दिया.

वह पहले झिझकी पर फिर उस ने समझदारी दिखाते हुए मुझ से हाथ मिला

लिया. तब मैं ने खुश हो कर उसे प्यार से गले लगा लिया.

मेरे सारे हिमायती बाहर मेरा इंतजार कर रहे थे. रितु का सहारा छोड़ मैं आराम से चल कर उन के पास पहुंची. मेरी कमर को तो झटका लगा ही नहीं था. आज सब कुछ हमारी पहले से बनाई योजना के अनुरूप ही घटा था.

मैं ने दायां हाथ उठा कर 2 उंगलियों से विजयचिह्न बनाया तो मेरे सारे हिमायतियों के चेहरे खुशी से खिल उठे.

Housefull 5 में नजर आएगी Nora Fatehi, अक्षय के साथ मिलकर खूब हसाएंगी एक्ट्रेस

अक्षय कुमार बॉलीवुड की कई सफल फिल्म फ्रेंचाइजी का हिस्सा हैं. उनमें से एक कॉमेडी फ्रेंचाइजी हाउसफुल है जिसके अब तक चार सीक्वल बन चुके हैं. यह दावा किया जा रहा है कि नोरा फतेही इस बहुप्रतीक्षित स्टार-स्टडेड कॉमेडी फिल्म का हिस्सा हो सकती हैं जिसमें रितेश देशमुख भी हैं. आइए आपको बताते है पूरी जानकारी.

नोरा फतेही करेंगी हाउसफुल 5?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक है कि डांसर और अभिनेत्री नोरा फतेही अक्षय कुमार-रितेश देशमुख स्टारर कॉमेडी फिल्म हाउसफुल 5 का हिस्सा बनने जा रही हैं. प्रोजेक्ट से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ”नोरा फतेही के एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की चर्चा है.” अक्षय कुमार के नेतृत्व में लेटेस्ट हाउसफुल फ्रेंचाइजी में, जो अगले साल किसी समय रिलीज़ होगी. नोरा की कॉमिक टाइमिंग निश्चित रूप से उनके फैंस को उत्साहित करेगी जो उन्हें एक अलग अवतार में देखने को मिलेगा.

हालांकि निर्माताओं की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह खबर सोशल मीडिया पर छाई हुई है.   हाउसफुल 5 का निर्देशन तरुण मनसुखानी ने किया है और निर्माता साजिद नाडियाडवाला हैं.

 

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फिल्म में अक्षय कुमार और रितेश देशमुख प्रमुख भूमिकाओं में होंगे और यह 2024 में दिवाली के दौरान नाटकीय रूप से रिलीज होने की उम्मीद है. सोशल मीडिया पर अक्षय कुमार ने जून में इस खबर की घोषणा की थीं. उन्होंने कैप्शन में लिखा: “पांच गुना पागलपन के लिए तैयार हो जाइए! आप सभी के लिए ला रहा हूं #साजिदनाडियाडवाला की #हाउसफुल5, जिसका निर्देशन @तरुणमनसुखानी ने किया है. दिवाली 2024 पर सिनेमाघरों में मिलते हैं! @Riteishd @NGEMovies @WardaNadiadwalla।”

पहली हाउसफुल 2010 में रिलीज़ हुई थी और इसमें अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण, रितेश देशमुख, अर्जुन रामपाल और लारा दत्ता जैसे अन्य कलाकार थे. इसके बाद हाउसफुल 2, हाउसफुल 3 और हाउसफुल 4 आईं, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं थीं.

नोरा फतेही का वर्क फ्रंट

नोरा फतेही वरुण तेज की पीरियड फिल्म मटका के साथ तेलुगु इंडस्ट्री में अपने डेब्यू की तैयारी कर रही हैं. वह कुणाल खेमू के निर्देशन में बनी फिल्म मडगांव एक्सप्रेस के साथ-साथ विद्युत जामवाल के साथ क्रैक में भी नजर आएंगी. इनके अलावा, वह रेमो डिसूजा की बी हैप्पी भी कर रही हैं, जिसमें अभिषेक बच्चन भी हैं. उन्हें आखिरी बार आयुष्मान खुराना की फिल्म एन एक्शन हीरो के गाने जेहदा नशा में देखा गया था. अपने अभिनय के अलावा, वह टेलीविजन डांस रियलिटी शो में जज के रूप में भी काम करती हैं.

अनुपमा तिपेश को देगी बड़ी जिम्मेदारी, देखती रह जाएगी डिंपी

टीवी सीरियल अनुपमा में इन दिनों टीआरपी लगातार गिर रही है इसी वजह से शो के मेकर्स एक नया ट्विस्ट लेकर आ गए. वहीं इस शो में एक नया किरदार की एंट्री हो चुकी है. सीरियल में अनुपमा और अनुज की जिंदगी में तिपेश की एंट्री हुई है. जो डिंपी की लाइफ एकदम बदलकर रख देगा. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में हाल ही में देखने के लिए मिला था कि डिंपी को तिपेश बिल्कुल पसंद नहीं आता और वह उसे खरी खोटी सुना देती है. अपकमिंग एपिसोड में तिपेश डिंपी को जवाब देने के लिए शाह हाउस तक पहुंच जाएगा. यहां पर उसका मुकाबला अनुपमा से होगा.

अनुपमा को किस करेगा अनुज

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अनुज अनुपमा को चैलेंज करता है, तो वह सबके सामने उसके साथ रोमांस करेगा. इसके बाद दोनों ही परिवार वालों के बीच डांस करते हैं. तभी अनुज अनुपमा को रोमांस याद दिला देता है. तभी घर की सारी लाइट्स बंद हो जाती हैं. इस मौके पर अनुज अनुपमा को किस करता है और फिर लाइट्स भी जल जाती हैं. डांस परफॉर्मेंस से बाद अनुपमा किचन में चली जाती है. तभी यहां पर खिड़की के सहारे तिपेश घर में घूसने की कोशिश करता है और दोनों ही एक दूसरे को देखकर हैरान रह जाते हैं.

अनुपमा तिपेश को डांस अकेडमी ज्वाइन करने के लिए कहेगी

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में आगे देखने को मिलेगा कि अनुपमा और तिपेश किचन एरिया में बात करते है. अनुपमा को तिपेश की आदतें समर की याद दिला देती हैं. तभी तिपेश अनुपमा को बताता है कि वह डिंपी से मिलने आया था. इसके बाद अनुपमा के कहने पर तिपेश शाह हाउस का फंक्शन ज्वाइन करता है. यहां तिपेश को देखकर पाखी उझल पड़ती है और डिंपी गुस्सा हो जाती है. तभी तिपेश अनुपमा से डांस करने के लिए कहता है. दोनों शानदार डांस करते हैं. आखिर में अनुपमा तिपेश को डांस अकेडमी ज्वाइन करने का ऑफर देती है. ये बात सुन डिंपी की आंखें फटी रह जाती हैं, लेकिन तिपेश इस ऑफर पर हां बोल देता है.

दीवाली से पहले चैक लिस्ट बनाने के 7 टिप्स

दीवाली साल का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. दीवाली पर जहां हम अपने घर को बड़े ही विविधता पूर्ण ढंग से सजाते हैं वहीं घर के लिए कुछ नए कपड़े, लाइट्स, चादरें और बर्तन आदि भी खरीदते हैं परन्तु अक्सर खरीददारी करते समय हम कुछ भी ले आते हैं और फिर घर आकर लगता है कि क्यों खरीद लाये इससे पैसे की बर्बादी तो होती ही है साथ ही घर भी अनावश्यक सामान से भर जाता है. आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप दीवाली पर अनावश्यक खर्च से काफी हद तक बच जाएंगे.

1-लाइट्स

दीवाली पर सजावट के लिए प्रयोग की गईं लाइट्स को अक्सर हम पैक करके अगली दीवाली के लिए रख देते हैं. आप इस समय सारी लाइट्स को चैक करें और जो बेकार या फ्यूज हो गईं हैं उन्हें फेक दें और एक लिस्ट नई लाने वाली लाइट्स की बनाएं और समय रहते उन्हें खरीद भी लाएं ताकि दीवाली की अनावश्यक भीड़ भाड़ से आप बच जाए.

2-आउटफिट

दीवाली पर आप और आपके परिवार के सदस्य क्या पहनने वाले हैं यह भी अभी से चैक कर लें. यदि किसी सदस्य का नया आउटफिट लाना है तो ले आएं और यदि घर में रखें आउटफिट को पहनना है तो उसकी सिलाइयाँ और हुक बटन को चेक करने के साथ साथ पहनकर भी देखें ताकि उसे आप अपने अनुसार फिट करवा सकें यदि आप नया आउटफिट नहीं खरीदना चाहतीं हैं तो मिक्स एंड मैच करके नया आउटफिट तैयार कर लें.

3-सजावट का सामान

दीवाली पर हम घर को विभिन्न फूलमालाओं, बंदनवार, झूमर और रंगोली आदि से सजाते हैं. आपने पिछले साल का जो भी सामान पैक करके रखा है उसे चैक कर लें और यदि नया लेना है तो उसे ऑनलाइन या ऑफलाइन मंगवा लें ताकि समय रहते उसे बदला जा सके.

4-उपहार

दीवाली उपहारों और मिठाइयों  के लेनदेन का अभी सही समय है कि आप अपने कामगारों और परिवार के सदस्यों या परिचितों को क्या देंगी यह सोचकर एक लिस्ट तैयार कर लें. अक्सर हमें कुछ ऐसे उपहार मिलते हैं जो हमारे पास डबल हो जाते हैं या फिर हम प्रयोग नहीं करते ऐसे सामान को एक बार चैक जरूर कर लें ताकि दीवाली पर उपयोग किया जा सके.

5-किचिन

किचिन घर का एक ऐसा स्थान होता है जहां पर हमारा अधिकांश समय व्यतीत होता है. किचिन में कुछ बर्तन और कंटेनर ऐसे होते हैं जो बेकार हो चुके हैं या जिनकी कोटिंग निकल गयी है इन्हें चिन्हित कर लीजिए. हो सके तो इन्हें रिप्लेस कर दें अन्यथा इन्हें ही पेंट आदि करके नया रूप देकर प्रयोग करने का प्रयास करें इसके साथ ही यदि आप अपनी किचिन के लिए कोई नया उपकरण लेने का प्लान बना रहीं हैं तो अभी से ही सर्चिंग प्रारम्भ कर दें ताकि अंतिम समय की भागदौड़ से आप बची रहें.

6-घर है सबसे जरूरी

पूरे घर पर नजर दौड़ाएं क्योकि बारिश के बाद के इन दिनों में घर में सीलन, जाले आदि जगह जगह पर लग जातें हैं. इन्हें हटाने के साथ साथ यदि आपको घर के किसी भी कोने में रिपेयरिंग या लाइट्स को दुरुस्त करवाने की जरूरत है तो अभी ही करवा लें क्योंकि अंतिम समय पर एक तो मजदूर नहीं मिलते और यदि मिलते भी हैं तो काम अच्छा नहीं करते.

7-पर्दे और कुशन्स

घर के लिए यदि आप नए पर्दे बनवाना चाहतीं हैं तो यही उपयुक्त समय है. आजकल रेडीमेड पर्दे उपलब्ध हैं इन्हें ऑनलाइन या ऑफलाइन बड़े आराम से खरीदा जा सकता है. यदि नए नहीं खरीदना चाहतीं तो उन्हें पुराने पर्दे के साथ मिक्स और मैच करके नया लुक दें.

मुझे आईलाइनर लगाना पसंद है, मुझे किस रंग का आईलाइनर सूट करेगा बताएं

सवाल

मेरी उम्र 25 साल है. मुझे आईलाइनर लगाने का बहुत शौक है. मुझे किस रंग का आईलाइनरसूट करेगा?

जवाब

आप की उम्र में काला ही नहीं हर रंग का आईलाइनर लगाया जा सकता है. एक लाइन काले रंग से और उस के साथ एक लाइन किसी कलरफुल रंग की लगाई जा सकती है. यह बहुत ही सुंदर लगती है. आजकल अनेक रंग के आईलाइनर पैंसिल उपलब्ध हैं जिन्हें इस्तेमाल कर के आप आसानी से आईलाइनर लगा सकती हैं. ये स्मजपू्रफ और वाटरपू्रफ होते हैं. अगर आप का हाथ सधा हुआ है तो आप लिक्विड लाइनर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं वरना आजकल कलरफुल आईलाइनर पैन भी अवेलेबल हैं जिन का इस्तेमाल करना बहुत ही आसान होता है. रात की पार्टी में आप की उम्र में ग्लिटरिंग आईलाइनर भी लगाया जा सकता है.

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कुछ साल पहले मुझे सिगरेट  पीने की गंदी लत लग गई थी. सुना है सिगरेट छोड़ने से मोटापा बढ़ जाता है. क्या यह सच है?

जवाब

सिगरेट छोड़ने सौंदर्य और सेहत दोनों के लिए अच्छा है. शुरू में थोड़ा वजन बढ़ सकता है क्योंकि सिगरेट छोड़ने के बाद मानसिक रूप से कुछ न कुछ खाते रहने की इच्छा बढ़ जाती है. ऐसे में ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ सकता है. मगर चबाने की इच्छा हो तो मुंह में इलायची रख लें. भूख लगने पर पौपकौर्न खा सकती हैं. दिन में 1 या 2 बार चूईंगम भी चबा सकती हैं. ग्रीन सलाद व फलों का सेवन बहुत फायदा पहुंचाएगा. भूख लगने पर तलाभुना न खा कर सलाद खाएंगी तो वजन नहीं बढ़ेगा. सुंदरता व सेहत के लिए सिगरेट छोड़ना बहुत जरूरी है.

समस्याओं के समाधानऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर,

डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

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