बिग बॉस ओटीटी विजेता एल्विश पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार

रेव पार्टी मामले में’बिग बॉस’ ओटीटी विनर एल्विश यादव और फेमस यूट्यूबर एल्विश यादव फंसते ही जा रहे. नोएडा पुलिस रेव, जहां सांप का जहर और विभिन्न दवाएं जब्त की गई थीं.

पुलिस ने कहा कि नोएडा में रेव पार्टियों में सांप और उनके जहर की आपूर्ति करने के आरोप में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जो कथित तौर पर सोशल मीडिया सनसनी एल्विश यादव द्वारा आयोजित की गई थी.

पांचों लोगों ने पुलिस को बताया है कि ये पार्टियां दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में विभिन्न फार्महाउसों में आयोजित की गई थीं और एल्विश यादव ने यूट्यूब और इंस्टाग्राम के लिए वीडियो शूट करने के लिए सांपों का इस्तेमाल किया था.

ऐसा आरोप है कि रेव पार्टियों में शामिल होने वाले लोगों ने सांप के जहर का सेवन किया था, जिसमें विदेशी नागरिकों की भी मेजबानी की गई थी.

अधिकारियों ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट या एफआईआर में एल्विश यादव सहित छह लोगों के नाम हैं। उन्होंने कहा, “छह आरोपियों में से पांच को हिरासत में ले लिया गया है, हालांकि एल्विश यादव को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.”

पुलिस अधिकारियों ने बताया

अधिकारियों ने कहा कि आरोपियों के पास से पांच कोबरा सहित नौ सांप और सांप का जहर बरामद किया गया, उन्होंने कहा कि सांपों को वन विभाग को सौंप दिया गया है. वे क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से सांपों को पकड़ते थे और उनका जहर निकालते थे, जिसे वे कथित तौर पर ऊंची कीमत पर बेचते थे. पुलिस ने कहा, “वे पार्टियों में जहर की आपूर्ति करने के लिए मोटी रकम इकट्ठा करते थे.”

पुलिस ने दवा के रूप में सांप के जहर का उपयोग बेहद खतरनाक और संभावित रूप से जीवन के लिए खतरा माना जाता है.

 

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मेनका गांधी के NGO की टिप पर एजेंसियों ने मारी थी रेड

भाजपा नेता मेनका गांधी द्वारा संचालित एक पशु कल्याण एनजीओ, पीएफए ​​की शिकायत के बाद कल देर शाम नोएडा के सेक्टर 51 में एक रेव पार्टी पर छापा मारने के बाद नोएडा पुलिस ने गिरफ्तारियां कीं. मेनका गांधी  ने एल्विश यादव की तत्काल गिरफ्तारी का आह्वान किया है.

उन्होंने कहा, “एलविश यादव को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए. यह ग्रेड-1 अपराध है – यानी सात साल की जेल। पीएफए ​​ने जाल बिछाया और इन लोगों को पकड़ लिया। वह अपने वीडियो में सांपों की लुप्तप्राय प्रजातियों का इस्तेमाल करता है.”

आरोपों से इनकार करते हुए एल्विश यादव ने दावा किया कि सभी आरोप फर्जी हैं और वह इस जांच में पुलिस का सहयोग करने को तैयार हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर वीडियो में कहा, “जब मैं सुबह उठा तो मैंने खबरें देखीं कि मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है और मुझे नशीले पदार्थों के साथ पकड़ा गया है। ये सभी खबरें और मेरे खिलाफ आरोप फर्जी हैं.”

एल्विश यादव इस साल की शुरुआत में ‘बिग बॉस ओटीटी’ सीजन-2 जीतने के बाद प्रसिद्धि में आए. यूट्यूब पर उनके 7.51 मिलियन सब्सक्राइबर्स और इंस्टाग्राम पर 15.6 मिलियन फॉलोअर्स हैं.

प्ले बैक सिंगर अन्वेषा इस बार दिवाली कैसे मनाने वाली है, पढ़ें इंटरव्यू

कला के माहौल में पैदा हुई अन्वेषा को बचपन से ही संगीत के क्षेत्र में जाने की इच्छा थी, उन्होंने हिन्दुस्तानी क्लासिकल संगीत की शिक्षा 4 साल की उम्र में गुरु पंडित जयंत सरकार, जो पटियाला घराने के गुरु और पंडित अजय चक्रवर्ती के शिष्य रहे, उनसे लिया है. टीवी पर अन्वेषा की पहली प्रस्तुति साल 2007 में ‘वौइस् ऑफ़ इंडिया छोटे उस्ताद से किया, जब वह केवल 13 साल की थी. इसके बाद उन्होंने म्यूजिक का महा मुकाबला में भाग लिया है. बॉलीवुड संगीत के क्षेत्र में उनका पहला ब्रेक 14 साल की उम्र में गोलमाल रिटर्न्स के गीत ‘था कर के……’ से मिला, जिसके संगीतकार प्रीतम थे. गाना सुपरहिट रही, इसके बाद अन्वेषा को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा और उन्होंने डेंजरस इश्क, राँझना, लव यू इश्क, प्रेम रतन धन पायों आदि कई फिल्मों में सुरीले संगीत से सबको सरोबार किया है. उन्होंने इंडस्ट्री के सभी बड़े संगीतकारों जैसे ए आर रहमान, अजय अतुल, इस्माइल दरबार, शंकर इशान लोय, जॉय सरकार आदि के गाने गाये है. हिंदी के अलावा उन्होंने बांग्ला, तमिल, तेलगू मलयालम, गुजराती, राजस्थानी, भोजपुरी और मराठी में भी गाने गाएं है.

म्यूजिक में आने की प्रेरणा

अन्वेषा कहती है कि मैं सेकंड जेनेरेशन की संगीतज्ञ हूँ, मेरे परिवार में कई लोग संगीत, कला और साहित्य से जुड़े है. इससे घर में संगीत पर चर्चा होती रहती है, मैं सुर के साथ ही पैदा हुई और इसे निखारने के लिए मैंने शिक्षा ली है. मेरी माँ गाती थी, उनका नाम मीता दत्ता गुप्ता है. प्रोफेशनली वह गा चुकी है. उन्होंने संगीत की शिक्षा भी ली है, इसलिए बचपन में उनको संगीत की रियाज़ करते देखती थी, ऐसे में बहुत छोटी उम्र से मैं उन्हें फोलो करती रहती थी, उनके जैसे आवाज निकालती थी. थोड़ी बड़ी होने पर उन्होंने मुझे गुरु के पास ले गए, ताकि सुर की पकड़, संगीत की बारीकियों को मैं सीख सकूँ. मैंने 4 साल की उम्र से गुरु से संगीत की तालीम लेनी शुरू की. क्लासिकल संगीत गाते हुए मुझे फ़िल्मी और हर तरह के पॉप संगीत की तरफ रुझान बढ़ने लगा. उस समय पॉप के क्षेत्र में यहाँ कुछ नहीं था, अब कई सारी संस्थाएं पॉप के क्षेत्र में भी आ चुकी है.

संगीत बना मेरा पैशन

वह आगे कहती है कि इससे मुझे प्ले बैक सिंगिंग में बड़े सिंगर्स के गाने के तरीके को सुनना और सीखना अच्छा लगने लगा था. मेरे अंदर लाइट म्यूजिक के प्रति प्यार बढ़ता गया और मेरा झुकाव इंडी पॉप की तरफ हो गया. इसके बाद रियलिटी शो में जाने की कोशिश करने लगी. ऑडिशन दिया, बच्चों की रियलिटी शो ‘वौइस् ऑफ़ इंडिया, छोटे उस्ताद में आने के बाद मैं सबकी नजर में आ गई, क्योंकि वहां लोगों ने मुझे चुना और मैं वर्ल्डवाइड जानी गई. शो के ख़त्म होने के 25 दिनों के बाद मुझे पहला प्ले बैक मिल गया था, जो संगीतकार जतिन ललित के साथ था. इसके बाद से मेरा किसी प्रोजेक्ट में आना आसान हुआ. केवल हिंदी फिल्मों में ही नहीं, रीजनल फिल्मों में भी गाने का अच्छा अवसर मिल रहा है.

था स्टेज फियर

अन्वेषा हंसती हुई कहती है कि पहली परफॉरमेंस मैंने 4 साल की उम्र में दिया था और पूरी गाने के दौरान मैं माथा नीची कर गाई थी, बचपन में स्टेज का डर बहुत था, इसे दूर करने में काफी साल लगे है, लेकिन रियलिटी शो से मेरे अंदर कॉन्फिडेंस आया और मैं वहां सामने देखकर गाना गा सकी.

तकनीक के खिलाफ नहीं

तकनीक की मदद से आज हर कोई अच्छा गा सकता है, ऐसे में प्ले बैक सिंगर की भूमिका को लेकर अन्वेषा चिंतित है. वह कहती है कि मैं तकनीक के खिलाफ नहीं हूँ, समय के साथ चलना जरुरी है. मैं अगर नए ज़माने के तकनीक का सहारा लेकर गाने वाले के बारें में सोचूं, तो मेरा ग्रोथ रुक जायेगा. ये सही है कि सालों की संगीत साधना के बाद मैं यहाँ तक पहुंची हूँ और अपना एक मुकाम पाई है, मुझे अपनी मेहनत और लगन पर भरोसा है. अगर आप की नीव मजबूत है, तो कोई आपको हिला नहीं सकता. पहले जब तकनीक नहीं थी, तब भी गायकों में राजनीति होती थी, लेकिन तब अलग हुआ करती थी. आज की तारीख में दुनिया में घटने वाले सभी चीजें सोशल मिडिया पर आसानी से मिल जाती है, लोग ओवर लोड हो चुके है और सभी एक दूसरे की नक़ल करने में लगे है. हर किसी को स्टार बनना  है और ये समाज के लिए अनहेल्दी परिस्थिति है, जिसका असर समाज पर पड़ रहा है. इनफार्मेशन की ओवर लोड से व्यक्ति जितना खुद को बचा सकता है, उतना ही उसके लिए अच्छा होता है. बहुत लोगों को लगता है कि तकनीक का प्रयोग कर वे आसानी से गा सकते है, लेकिन मेरे हिसाब से तकनीक का प्रयोग कर किसी की टैलेंट को अपमानित करना ठीक नहीं. तकनीक का गलत प्रयोग करना भी ठीक नहीं, टैलेंट की कद्र जितनी पहले होती थी, उतनी ही आज भी होनी चाहिए. मेहनत की वैल्यू केवल गायिकी में ही नहीं, हर क्षेत्र में है, लेकिन गलत प्रयोग करने वालों का इलाज कुछ नहीं है. इसके साथ ही सबको आगे बढ़ना है.

मनी मेकिंग डिवाइस

रियलिटी शोज अच्छा मंच देती है, लेकिन कुछ लोग रियलिटी शोज करने के बाद गायब हो जाते है या शोज करते रहते है, आप की राय इस बारें में क्या है? अन्वेषा कहती है कि मंच मिलना एक बड़ी बात होती है, आज कई लोग काफी टेलेंटेड भी है, लेकिन शोज की संख्या इतनी अधिक है कि टैलेंट को याद रखना मुश्किल हो रहा है. इतने सारे डांस रियलिटी शोज, सिंगिंग शोज है कि एक सीजन के बाद तुरंत दूसरी शोज शुरू हो जाती है, ऐसे में आज ये एक व्यवसाय हो चुका है, पहले जो प्रतिभा की खोज का एक इमानदार एप्रोच था, आज वह नहीं है. आज के रियलिटी शोज मनी मेकिंग डिवाइस हो चुके है. टैलेंट को खोजने के लिए अगर सही प्रयास है, तो उसमे समय लगता है. हर थोड़े दिन में टैलेंट तैयार नहीं होते, क्योंकि इसके लिए बहुत मेहनत, समय और लगन की जरुरत होती है. अगर इतने सारे टैलेंट है, तो वे बाद में किसी को दिखते क्यों नहीं है, म्यूजिक कंपोजर क्या उन्हें बुलाकर नए गाने देते है? ये मेरा भी प्रश्न है, जिसका उत्तर मिलना आसान नहीं.

किये काफी संघर्ष

अन्वेषा अपनी संघर्ष के बारें में कहती है कि जब मैं संगीत के क्षेत्र में मेहनत कर रही थी, तो एक गाने की ऑफर के लिए बहुत इंतज़ार करना पड़ता था. इन्टरनेट तब इतना स्ट्रोंग नहीं था. इसलिए किसी संगीतकार तक पहुंचना आसान नहीं था. आज के गायक कलाकारों के पास हर तरह की सुविधा उपलब्ध है, वे सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर अपनी आवाज रिकॉर्ड कर डाल सकते है. वे एक इंडिपेंडेंट सिंगर या चैनेल भी बना सकते है, जिसे संगीतकार नोटिस करते है और उन्हें काम मिलता है. सोशल मीडिया से कई बच्चे आज संगीत के क्षेत्र में आ रहे है, इन्टरनेट उनके लिए वरदान है, कई सरे कंपोजर ऐसे है जो संगीत के लिए फिल्म इंडस्ट्री पर डिपेंडेंट नहीं है, जो एक अच्छी बात है. मैंने तो अभी मेरा इंडिपेंडेंट म्यूजिक जोन शुरू किया है, जिसमे सोंग बालकनी को लोगों ने काफी पसंद किया.

बढाएं संगीत का ज्ञान

किसी गायक कलाकार को शस्त्रीय संगीत के सीखने को लेकर अन्वेषा कहती है कि कैरियर के पहले पडाव में मैंने देखा है कि शास्त्रीय संगीत की तालीम के साथ आने वाले कलाकार को एक सम्मानित दृष्टी से देखा जाता था, लेकिन समय के साथ – साथ संगीत में काफी बदलाव आया है. आज थोड़े पॉप संगीत को अधिक महत्व दिया जा रहा है और इसमें शास्त्रीय संगीत सीखना जरुरी नहीं होता, लेकिन हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत अपने आप में काफी रिच है, इसकी क़द्र भी है. इसलिए संगीत के ज्ञान को बढाने के लिए क्लासिकल संगीत को सीखना जरुरी होता है, जिसमे संगीत की सभी बारीकियों को आसानी से समझा जा सकता है.

खुद को रखे शेप में

इतने सारे टैलेंट के बीच में खुद को प्रूव कर टिके रहना कितना मुश्किल होता है? अन्वेषा कहती है कि मैं खुद को खुशनसीब समझती हूँ, क्योंकि मुझे अच्छा काम मिल रह है. उस दिशा में अभी अधिक एफर्ट नहीं लगाना नहीं पड़ता. मैं खुद को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से हेल्दी रखना चाहती हूँ. इससे किसी भी उतार – चढ़ाव को आसानी से झेला जा सकता है, नहीं तो बहुत अधिक तनाव में जीना पड़ता है. क्रिएटिव लोग अधिक सेंसेटिव होते है और बहुत जल्दी तनावग्रस्त हो जाते है. खुद को प्रेजेंटेबल रखने के लिए मैं योगा, वर्कआउट और डांस करती हूँ.

हूँ फॅमिली पर्सन

अन्वेषा का कहना है कि समय मिलने पर मैं कुछ समय तक चुप रहना पसंद करती हूँ, कुछ नहीं करती. क्योकि साइलेंस रहने से मैं खुद को आगे के लिए तरोताजा करती हूँ. उसे मैं एन्जॉय भी करती हूँ. लॉकडाउन के समय मैंने काफी पुरानी घूल जमी किताबों को निकाल कर पढ़ी थी, जो बचपन की आदत थी. मैं काम से वापस आने के बाद परिवार के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्में देखना पसंद करती हूँ और पूरे दिन में एक भोजन उनके साथ करती हूँ.

सेलिब्रेट करना जरुरी

अन्वेषा त्योहारों में सेलिब्रेशन को अधिक पसंद करती है, क्योंकि इसमें सभी साथ मिलकर इसे मनाते है, जिससे व्यक्ति फिर से तरोताजा महसूस करते है. अधिकतर त्योहारों में बाहर शोज होते है, लेकिन इस बार दिवाली को परिवार के साथ मनाना पसंद है. उन्हें दिवाली पर स्वादिष्ट पकवान के साथ रंगोली बनाना बहुत पसंद है, जिसे वे खुद बनाने का प्रयास करती है.

Urfi Javed हुई गिरफ्तार! वीडियो हुआ वायरल

एक्ट्रेस और मॉडल उर्फी जावेद अपने फैशन को लेकर सुर्खियों में रहती है. उर्फी जावेद अपनी बॉल्ड डैस को लेकर हमेशा से लाइमलाइट में बनी रहती है. उनका बॉल्ड अंदाज चर्चा का विषय बन चुका है. एक्ट्रेस अपने अतरंगी फैशन के लिए जानी जाती है. उर्फी जावेद को लेकर बड़ी खबर आई है सामने. दरअसल, मुबंई पुलिस ने उर्फी जावेद को कथित तौर पर हिरासत में ले लिया है. यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. इस वीडियो को सेलिब्रिटी फोटोग्राफर विरल भयानी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है. वीडियो पर काफी कमेंट आ रहे है.

उर्फी जावेद का वीडियो हुआ वायरल

अपने अजब-गजब कपड़ों के लिए मशहूर उर्फी जावेद इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी छाई हुई है. वहीं उर्फी पर दुखों का पहाड़ टूट चुका है. वह एक नई मुसीबत में फंस गई है. अब उर्फी का एक वीडियो आया सामने जिसमे उन्हें मुबई पुलिस की महिला पुलिस उन्हें अपने साथ ले जा रही है. वीडियो में आप देख सकते है उर्फी ने डेनिम पैंट के साथ बैकलेस टॉप पहने हुए नजर आती हैं. इस दौरान महिला पुलिस आती है उर्फी जावेद को पुलिस स्टेशन चलने को कहती हैं तो वह कारण पूछती हैं. इस पर महिला पुलिस कहती हैं, ‘इतने छोटे-छोटे कपड़े पहन कौन सुबह-सुबह कौन घूमता है?’ उर्फी जावेद कहती हैं कि ये किसका ऑर्डर है. महिला पुलिस कहती हैं जो भी कहना है पुलिस स्टेशन चलकर कहना और उनका हाथ पकड़कर पुलिस की गाड़ी में बैठाती हैं और लेकर जाती हैं. हालांकि, उर्फी जावेद के वीडियो को ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है. उर्फी जावेद के वीडियो वायरल होने के बाद लोग इस पर कमेंट कर रहे है.

 

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वीडियो पर लोगों की प्रतिक्रिया

उर्फी जावेद के वीडियो पर लोग कमेंट कर रहे है. एक यूजर ने लिखा है, यह एक प्रैंक जैसा लग रहा है. एक अन्य यूजर ने लिखा है, भाई हमें तो ये प्रैंक लग रहा है. एक यूजर ने लिखा है, पुलिस वाले नकली लग रहे है. वहीं अन्य यूजर ने लिखा है, अब पुलिस वाले भी रील बनाने लगे हैं. इस तरह कई लोगों को मानना है कि ये उर्फी जावेद का ये कोई प्रैंक है. बरहाल, उर्फी जावेद अपने बॉल्ड डैस को लेकर अक्सर लोगों के निशाने पर आती रहती है. मीडिया जानकारी के मुताबिक सितंबर के महीने में उर्फी के फैशन सेंस को लेकर उनके खिलाफ बांद्रा पुलिस स्टेशन में शिकायात दर्ज हुई थी. जिसके बाद उर्फी को बांद्रा पुलिस स्टेशन के बाहर स्पॉट किया गया था.

यह कैसा प्रेम- भाग 2 : आलिया से क्यों प्यार करता था वह

मैं एक विराम लेने के लिए उठी. कमर को सीधा किया और कागजों पर कलम को रख दिया. वाशरुम से वापस लौटी तो देखा टेबल खाली थी. भाव, व्यथाओं को संभालने में निपुण कलम नीचे जमीन पर बेसुध पड़ा था और सारे कागज नदारद थे. मेरा दिल धड़क उठा. अपने कमरे की बालकनी से नीचे झांका. दूरदूर तक सन्नाटा पसरा था. कहां गए मेरे सब कागज, अभी तो छोड़ा था सही सलामत, फिर? दरवाजे की चटखनी को जांचा, वह बंद था. कोई आया, न गया और इस वक्त… टेबल के नीचे फिर से झांका, बालकनी में भी देखा, पर एक भी कागज़ का नामोनिशान न था. क्या करूं? कहां ढूंढूं? उस एक पल में मैं ने एक सदी के दुख झेल लिए. यह दुख झेलने के बाद जैसे टूटता है व्यक्ति, ठीक  वैसे ही टूटने लगी. मैं ठगी गई थी मगर ठग का न पता न ठिकाना. मैं थोड़ी सी देर में थक चुकी थी. अकसर ऐसे मौकों पर सहने की क्षमता कम हो जाती है. फिर गलती तो मेरी ही थी, कौन भला यों कागजों में लिखा करता है? क्यों नहीं किसी फाइल में कायदे से रखा गया?

अब आंखों में पानी भी आ गया था एकदम गरम, जिस ने गालों से ले कर गरदन तक का हिस्सा जला दिया. निढाल सी बिस्तर पर बैठ गई. बिखर जाती इस से पहले ही मेरे कमरे के दरवाजे को किसी ने खटकाया. गले में पड़े स्टौल से आंसुओं को पोंछ कर दरवाजा खोला, यों जैसे कोई मेरे ही कागजों को ले कर आ गया होगा और कहेगा- ‘ये लीजिए हवा से उड़ कर मेरे पास आ गए थे, संभालिए अपनी अमानत.’

तेजी से दरवाजा खोला गया. सामने एक लड़की खड़ी थी. मैं ने जैसा सोचा था वही हुआ था. उस के हाथ में मेरे सभी कागज थे. मैं तो खुशी और आश्चर्य से हतप्रभ थी. संयम टूट गया. औपचारिक अभिवादन के बगैर ही उस के हाथ से लपक कर  सारे कागज़ लगभग छीन लिए और आश्वस्त हो जाने पर कि मेरे ही हैं, अपनी पीठ से सटा कर छिपा लिए. जैसे, वे मुझ से दोबारा छिन जाएंगे. वह मुझे लगातार देख रही थी. उस ने मुझे अधीर या पागल ही समझा जैसा मेरा अनुमान भी था और बिलकुल वही किया था मैं ने.

वह बगैर कुछ बोले, सुने वापस लौट गई. उस के जाने के बाद मेरा जमीर जागा. तब तक तो आभार का सेतु स्वार्थ के आवेगयुक्त बांध में बह चुका था. न तो वह लड़की थी और न ही शुक्रिया कहने के लिए वहां कोई.  मुझे शर्मिंदगी का एहसास हुआ और अपनी बेसब्र बेअदबी का भी. न जाने क्या समझा होगा उस ने मुझे? एक स्वार्थी और निष्ठुर ही न? पर वह थी कौन? इस पहाड़ी क्षेत्र की तो नहीं लगती. शायद, मेरी तरह ही कोई आगंतुक होगी और इसी होटल में ठहरी होगी? उस वक्त मनगढ़ंत कयास समय की मांग थे.

अब जो भी हो, खुद को ढांढस बंधाया और निश्चित किया, सुबह उस की खोजबीन की जाएगी, अभी तो सोया जाए. चरते हुए पशु की पीठ पर कौवे की भांति बैठ कर  मैं ने अपने कागजों को एक बार चूम कर टेबल पर रखने के बजाय तकिए के नीचे दबा लिया. बालकनी का स्लाइडिंग डोर बंद किया और नाइट बल्ब जला दिया, उस का अभिप्राय मेरा डर था जो मैं ने अभीअभी झेला था. बालकनी से हवा का झोंका पेपरवेट से भरोसा उठा सकता था. उस रात फिर मैं ने नहीं लिखा और जल्दी सो गई.

सुबह आदतन मैं देर से उठी. सूरज की लालिमा सुनहरी हो चुकी थी. आज मौसम साफ था. मन ही मन रात वाली घटना पर विचार करने लगी. वही प्रश्न एक बार फिर हलचल मचाने लगे-‘इतनी बारिश में कौन किस की मदद करता है? या यों कहें कि कौन बारिश में ठिठुरते हुए आएगा वह भी सिर्फ आप के चंद कागजों के लिए? होंगे आप के लिए कीमती, मगर सामने वाले के लिए तो रद्दी से बढ़ कर और क्या हो सकते हैं? जो भी हो, इस गुत्थी को आज सुलझाना ही है. यह सोच कर मैं झट से उठ खड़ी हुई.

वाशरूम से आने के बाद मैं ने इंटरकौम पर एक कौफी और्डर की और साथ में कुछ स्नैक्स भी. हैवी ब्रेकफास्ट लेने की आदत नहीं, उस के बाद सीधे लंच. मगर लंच से पहले रात वाली उस लड़की को खोजना बेहद जरूरी था.

कौफी आ गई थी और साथ में नानफायर सैंडविच भी जिसे मैं ने बालकनी में बैठ कर खाना पसंद किया. चूंकि बालकनी ही वह जगह थी जहां से पहाड़ों को, दूर तक फैली हरितमा को और नैसर्गिक सौंदर्य को आसानी से देखा जा सकता था.

दूर तक फैले देवदार, चनार और बांस के पेड़ों का घना जंगल जिन के पत्तों पर बारिश की मोती सी बूंदें और भीग कर गहरे काले से दिखने वाले तने, जिन पर बुलबुल, तोते, गौरैया और बहुत सारे पहाड़ी पंक्षियों का कोलाहल मन को इस दुनिया से खींच कर अनोखा सुख देने के लिए काफी था.

10 से 15 मिनट लगे थे मुझे काफी को खत्म करने में. इस के बाद मैं ने शावर लिया. लाइट ब्लू कलर का टौप और ब्लैक जींस को मैं ने चुना और पहन कर तैयार हो गई. मेकअप का कोई खास शौक नहीं था. होंठों पर एवरग्रीन पिंक लिपस्टिक और मैचिंग का नेलपेंट, इस के अलावा और कुछ ऐसा नहीं था जो मैं ने कभी किया हो, बस खास मौको को छोड़ कर.

झटपट तैयार हुई और सीधे रिसैप्शन पर पहुंच गई. अपने कमरे की चाबी काउंटर पर रखी ही थी कि अपने ठीक सामने उसे देख कर मैं ठिठक गई. वही रात वाली लड़की जिसे मैं ढूँढने के लिए निकली थी, सामने खड़ी थी. वह जैसी कल रात लग रही थी उस से बिलकुल अलग थी. इस वक्त वह हलके मेकअप में थी. उस ने फौरमल कपड़े पहने थे. फोम कलर का ट्राऊजर और ब्लैक टौप, मोटे सोल के स्पोर्टस शूज, शायद पहाड़ी क्षेत्रों के घुमावदार ऊबड़खाबड़ रास्तों के सहयोगी. कंधे पर बड़ा सा काले रंग का बैग था. ऐसा लग रहा था जैसे वह औफिस के लिए तैयार हुई हो. मैं ने मन ही मन अंदाजा लगाया ‘जरूर यह किसी जौब में है और तबादला हो कर यहां आई है. जब तक रहने की कोई उचित व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक होटल में ठहरी होगी.’ मन है कि सवालों के सिरे थामता है और जवाबों के सिरे छोड़ता जाता है.

बेशक उस ने मुझे देख लिया था. शायद रात वाली घटना से बात करने में सकुचा रही थी. इसलिए बोलने की पहल मुझे ही करनी थी. मैं ने उस के करीब जा कर मुसकरा कर उस का अभिवादन किया. उस ने जवाबी मुसकान बिखेर दी. भले ही वह बहुत खूबसूरत नहीं थी मगर उस का सांवला रूप उस के आत्मविश्वास का प्रेरक था, जिस ने उसे बेहद आकर्षक बना दिया था. वैसे भी व्यक्ति का चुनाव करते वक्त उस का रंग मेरे लिए कभी माने नहीं रखता था. उस की मुसकान का रस मेरे भीतर तक घुल गया था. मेरे पूछने से पहले ही उस ने कहा, ‘माईसैल्फ आलिया फ्रौम लखनऊ.’

‘मैं आराधना जबलपुर से.’

‘नाइस मीट.’

‘कौन सी, रात वाली?’ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा. पहले वह हंसी, फिर हम दोनों ही इस बात पर ठहाका लगा कर हंस दिए. सहजता दोनों तरफ से बराबर थी. इस बार फिर मैं ने कहा- ‘रात आप का शुक्रिया अदा करना भूल ही गई. दरअसल…’

‘जाने दीजिए.’

‘जाने दिया,’ मैं ने अपनी पूरी मुसकान बिखेर दी.

‘कहीं बाहर जा रही हैं शायद?’

‘पहाड़ से कूदने के लिए चोटी तलाश रही हूं,’ मैं उपहास कर खुद ही हंस दी.

‘बहुत खूब.’

‘मरने की प्लानिंग खूबसूरत लगी आप को?’

‘मरने वाले कह कर मरा करते तो आज तक एक भी खुदकुशी न हुई होती.’

‘वाह, आप तो फिलौसफ़र निकलीं.’

हम दोनों की हंसी छूट पड़ी. हमारी बातों और ठहाकों से रिसैप्शन हाल गूंज उठा.

वह हैंडसम युवक, जो काउंटर पर जबरदस्ती की फाइलों में उलझा था, मुसकरा रहा था. शामिल होने के साहस की कोई वजह न थी. उस बात से इतर फिर उस लड़की आलिया ने थोड़ा ठहर कर कहा, ‘अगर आप फ्री हैं, तो चलिए कहीं बाहर चलते हैं. आराम से बैठ कर बात करेंगे.’ निसंकोच, मिश्री की ठली सा यों एकाएक आग्रह, मैं दंग थी. जवाब में मैं ने सवालिया प्रश्नचिन्ह लगाया, ‘आप शायद औफिस जा रही थीं?’

‘नहीं, मैं यहां  रिसर्च करने के लिए आई हूं. वुमैन साइकोलौजी में पीएचडी कर रही हूं. पहाड़ी महिलाओं का जीवनचक्र बड़ा ही कठिन होता है. वही जानने की जिज्ञासा यहां खींच लाई.’

‘वाह, बहुत सुंदर,’ मेरे शब्द औपचारिक थे. जबकि, मैं जानती थी कि सरलता यहां के रोमरोम में बसी है.

‘आप से ज्यादा नहीं.’ वह मुझे देख कर हंस दी और मैं उस की बात का आशय समझ कर झेंप सी गई.

‘आप मुझे जानती ही कितना हो क्या चेहरे की खूबसूरती को सुंदरता कह रही हो?’ मैं ने तह में जा कर सवाल दागा था.

‘हां, अभी तो चेहरे की ही तारीफ की है. वह भी सुंदर है.’

‘भी से मतलब?’

‘रात आप की इजाजत के बगैर आप के लिखे पन्नों को बखूबी पढ़ लिया था और इतना तो जान ही लिया कि शब्दों की खूबसूरती में आप का जवाब नहीं. कितनी मार्मिकता उड़ेली है आप ने उस स्त्री की कामयाबी के संघर्ष में. अपना स्वतंत्र जीवन जीना कितना चुनौतीपूर्ण होता है तब जब समाज का प्रधान वर्ग आप को मर्यादित गठरी में बांधने के लिए पूरा जोर लगा देता है और फिर आगे… बस, इतना ही पढ़ा था उन पन्नों के जरिए. आगे भी पढ़ना चाहूंगी. मेरे मन में जिज्ञासा की कोंपलें फूट पड़ी हैं. मैं आप को और पढ़ना चाहूंगी. आप लिखती हैं और बहुत अच्छा लिखती हैं, यह बात मैं कल रात ही जान गई थी, दीदी.’

‘दीदी…???’  मैं ने एक अपरिचित के मुंह से यह संबोधन सुना तो ह्रदय के तार झनझना उठे.

‘जी, दीदी, आप को रात पढ़ा था आप के लेखन के जरिए, आप के भीतर प्रवेश कर लिया और आज देख भी लिया, न जाने क्यों यह आवाज दिल से निकली है.’

मैं अपने पति के साथसाथ प्रेमी को नहीं खोना चाहती हूं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. मुझे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक सीमित रहें. फिर सचाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. विवाहेतर संबंध आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को झुलस सकता है.ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्मकर लें. अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

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मैं 26 साल की हूं. विवाह को डेढ़ साल हुए हैं. परिवार संयुक्त और बड़ा है. यों तो सभी एकदूसरे का खयाल रखते हैं पर बड़ी समस्या वैवाहिक जीवन जीने को ले कर है. सासससुर पुराने खयालात वाले हैं, जिस वजह से घर में इतना परदा है कि 9-10 दिन में पति से सिर्फ हांहूं में भी बात हो जाए तो काफी है. रात को भी हम खुल कर सैक्स का आनंद नहीं उठा पाते. कभीकभी मन बहुत बेचैन हो जाता है. दूसरी जगह घर भी नहीं ले सकते. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

सैक्स संबंध हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है. स्वस्थ व जोशीली सैक्स लाइफ हमारे संबंधों को मजबूत बनाती है एवं जीवन को खुशियों से भरती है. संयुक्त परिवारों में जानबूझ कर औरतों को दबाने के लिए उन्हें पति से दूर रखा जाता है और वे पति के साथ खुल कर सैक्स ऐंजौय नहीं कर पातीं. इस के लिए आप को पति से खुल कर बात करनी होगी. सिर्फ आप ही नहीं आप के पति भी आप की चाह रखते होंगे.बेहतर होगा कि इस के लिए कभी किसी रिश्तेदार के या कभी मायके जाने के बहाने पति के साथ बाहर घूमने जाएं. इस तरह के संबंधों को तो झेलना ही होता है. कोई उपाय नहीं मिलता.

मैं 34 साल की हूं. सैक्स के दौरान चरम पर नहीं पहुंच पाती. इस से मन बेचैन रहने लगा है. बताएं मैं क्या करूं?

यह महिलाओं में एक आम समस्या है, जिसे दवा से ज्यादा आप खुद ही दूर कर सकती हैं.इस बारे में आप पति से बात करें. सोने से 2-3 घंटे पहले खाना खाएं और हलका भोजन करें. सैक्स के दौरान जल्दबाजी दिखाने से भी यह समस्या होती है. इसलिए बेहतर होगा कि सैक्स से पहले फोरप्ले की प्रक्रिया अपनाएं, जो लंबी हो. इस मामले में गलती पुरुषों की भी होती है. सैक्स को निबटाने की सोच रखने वाले ऐसे पुरुषों की संख्या ज्यादा है, जो खुद की संतुष्टि को ही ज्यादा तवज्जो देते हैं और सैक्स के तुरंत बाद करवट बदल कर सो जाते हैं.बेहतर होगा कि सैक्स से पहले ऐसा माहौल बनाएं जो सैक्स प्रक्रिया को उबाऊ न बना कर प्यारभरा व रोमांचक बनाए.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

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बड़े काम के हैं ये फर्टिलिटी एप्स

इस डिजिटलाइजेशन के दौर ने हमारी जिन्दगी को बहुत ही आसान बना दिया है . आज हर इंसान रफ्तार को पसंद करता है और यही कारण है कि वो हर बात का जवाब जल्द से जल्द चाहता है . यही कारण है कि आज विभिन्न ऐप्स बहुत ही तेज़ी से लोकप्रिय हो  चाहे वो ट्रेवलिंग हो , कौलिंग या फिर चैटिंग  हर चीज के लिए आज बहुत सारे ऐप्स आ गए है जो आज – कल बहुत ज़्यादा पौपुलर हो गए हैं . लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसे भी कई एप्स हैं जो आपको कंसीविंग के लिए सही टाइमिंग के अलावा अन्य भी बहुत सी उपयोगी जानकारियां भी देते हैं. इस बारे में इस बारे में फर्टिलिटी एंड आईवीएफ एक्सपर्ट डौ. प्रीती गुप्ता (फर्स्ट स्टेप आईवीएफ क्लिनिक ) बता रही हैं विस्तार से .

1. फर्टिलिटी फ्रेंड

यह सटीक रूप से आपके अंडाणु की तारीख और फर्टाइल दिनों का अनुमान लगा लेता है . इतना ही नहीं यह ऐप आपके शरीर के तापमान, ग्रीवा द्रव इत्यादि जैसे प्रजनन के लक्षणों की व्याख्या भी करता है.

इसके अलावा इसमें आप एक अलार्म का उपयोग कर सकते हैं जो आपको दैनिक प्रविष्टि में फ़ीड करने की याद दिलाता है. आप वीडियो, क्विज़, ईपुस्तक, ट्यूटोरियल आदि जैसे शैक्षणिक संसाधनों द्वारा उसी विषय पर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं.

2. ग्लो ओव्यूलेशन और फर्टिलिटी ट्रैकर

यह  एप आपको गर्भावस्था की योजना बनाते समय आपकी प्रजनन क्षमता पर एक टैब रखता है. मासिक धर्म, मूड स्विंग आदि से से सम्बंधित जानकारियां देता है . यह बहुत लाभकारी है तथा अगर आप यदि आईवीएफ उपचार से गुजर रहे हैं

तो यह आपके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होता हैं , क्योंकि यह अंडाशय के डेटा का सटीक  विश्लेषण करने में सक्षम है . महिलाओं के अलावा पुरुष भी इस ऐप का इस्तेमाल अपने स्वास्थ्य को रिकॉर्ड कर सकते हैं और अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

3. किंडरा

इसका प्रयोग दुनिया भर में 1.2 मिलियन से ज्यादा महिलाएं प्रयुक्त करती हैं . एन्कोडिंग के लिए विशेष रूप से एक विशेष फीचर वंक है तथा  एक वायरलेस बीबीटी थर्मामीटर जो सेंसर के माध्यम से तापमान पर नज़र रखता है. इसके साथ ही यह महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा के तरल पदार्थ पर नज़र रखता है व  गर्भधारण करने के लिए सबसे अच्छा समय दर्शाता है. यह ऐप एंड्रॉइड और आईओएस पर आसानी से उपलब्ध है.

4. क्लू

इस ऐप के माध्यम से, आप आसानी से अपने मासिक धर्म चक्र, सेक्स, दर्द, मूड स्विंग आदि को ट्रैक कर सकते हैं. चक्र एप में एक अनूठी विशेषता है जो प्रजनन चक्र का एक पूर्वावलोकन देता है.

5. ओविया फर्टिलिटी

यह मुख्य रूप से आईफोन में ही चलता है . इस ऐप से आप एक विस्तृत विश्लेषण के माध्यम से पूर्ण स्वास्थ्य की निगरानी कर सकते हैं .  इस ऐप में कई संकेतक होते हैं जो प्रजनन क्षमता का अनुमान लगाते हैं.

डौ. प्रीती गुप्ता फर्टिलिटी एंड आईवीएफ एक्सपर्ट (फर्स्ट स्टेप आईवीएफ क्लिनिक ) से बातचीत पर आधारित.

कर ले तू भी मुहब्बत- भाग 3

लेखिका- मेहा गुप्ता

उस दिन अवि और मुसकान दोनों बहुत ही खुश थे. अब उन दोनों के बीच चैटिंग भी बढ़ने लगी थी. पहले मिनटों… फिर घंटों… जिन बातों का कोई मतलब नहीं होता है, उन्हें करने में भी अजीब सुकून मिलता. एक अजीब सा इंतजार रहता दिनभर और नजरें फोन के नोटिफिकेशंस पर टिकी रहतीं. इस तरह से हर संडे मिलते हुए भी कई महीने हो गए थे.

अब कुछ महीनों से मुसकान के साथ कुछ अलग होने लगा था… एक मदहोशी सी उस पर छाई रहती, क्योंकि प्यार फिजाओं में घुल गया था. ऐसा इस से पहले उस ने कभी महसूस नहीं किया था. वह काफी बदलने लगी थी. पढ़ाई से पहले अवि से चैटिंग उस की प्राथमिकता बन गया था. वह रूम में भी हमेशा वेलड्रेस्ड रहती, क्या पता, कब अवि उसे वीडियो काल कर दे.

“तुम ने टीशर्ट बहुत अच्छी पहन रखी है,” एक दिन कैफे में मुसकान ने कहा.

“हां, मम्मा की पसंद है. वो हैं ही इतनी सुपर्ब… वे अच्छे से जानती हैं कि मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा. मेरी सारी शौपिंग वे ही करती हैं.”

इस के पहले भी मुसकान ने महसूस किया था कि उस की मम्मी की बात आने पर वह कुछ ज्यादा ही उत्साही हो जाता था और मम्मी की तारीफों के पुल बांधने लगता. और उस की कोई भी चैट मम्मी के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती थी.

इस तरह एहसासों में डूबतेउतरते मुसकान फोर्थ ईयर में आ गई. समय ने, साथ ने और किस्मत ने उन दोनों के बीच प्रेम अंकुरित कर दिया था, जिस से मुसकान की आंखों में भविष्य के सपने उग आए थे.

“मम्मीपापा मेरा ग्रेजुएशन पूरा होते ही शादी कर देना चाहते हैं. और अब तो मेरी जौब भी लग गई है. वो मुझे एग्जाम के तुरंत बाद अपने पास बुला लेंगे,” उस ने लगभग रोआंसी आवाज में कहा था.

“तुम अपनी मम्मी से हमारे बारे में कब बात करने वाले हो?” रोजाना की पहली चैट में मुसकान का यह पहला सवाल होता था.

“हां, जल्द ही…” अवि का भी रोज यही जवाब होता. फिर एक दिन अवि के मुंह से मुसकान को वो शब्द सुनने को मिले, जिन्हें सुनने के लिए मुसकान के कान तरस गए थे.

“मम्मा को तुम बहुत पसंद आई हो और उन्होंने हमारे रिश्ते को हरी झंडी दे दी है,” सुनते ही मुसकान इतनी खुश हो गई कि उस ने फोन पर ही उसे एक बड़ी सी स्मूच दे डाली. यह उन के बीच की पहली स्मूच थी. उन दोनों के बीच का रिश्ता अगले मुकाम यानी शादी की ओर बढ़ रहा था, जिस की डोर अब पूरी तरह से मुसकान ने अपने हाथ में ले ली थी.

“हे शोना… तुम्हारे लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है… तुम एक मिलियेनर की बीवी बनने जा रही हो. मुझे एक बहुत ही अच्छी जौब करने का मौका मिला है.”

एक दिन फोन कर के अवि ने मुसकान से कहा था. वैसे तो अवि बहुत उत्साही था… जिंदगी से भरपूर… पर, उस दिन उस की आवाज में गजब का आत्मविश्वास था.

“वाओ कोन्ग्रेट्स… कौन सी जौब है? कौन से शहर में है?” मुसकान ने भी उस की धुन पर थिरकते हुए एक ही सांस में कई सवाल दाग दिए.

“मेरे होमटाउन में… मुंबई में,” सुन कर मुसकान कुछ अनमनी सी हो गई.

“तुम्हें पता है ना… मेरा प्लेसमेंट दिल्ली में हुआ है. यह जौब लाखों दिलों का सपना होता है और मुझे कितनी आसानी से मिल गई है.”

“तुम तो इतने ब्राइट हो, तुम्हें दिल्ली में भी आसानी से कोई जौब मिल जाएगी, पर मेरे लिए नई जौब ढूंढ़ना बहुत मुश्किल होगा.”

“तुम्हारी हर डिमांड ऐक्सेप्टेबल है जान… सिवा इस के… इतनी बड़ी कुर्बानी मत मांगो मुझ से. मैं अपनी मां को अकेले छोड़, इतनी दूर दिल्ली नहीं रह सकता. मैं दुनिया की सारी खुशियां तुम्हारे कदमों में बिछा दूंगा. इतनी मेहनत करूंगा कि तुम्हें नौकरी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. फिर भी तुम अपनी संतुष्टि के लिए करना चाहो तो छोटीमोटी कोई भी जौब तो तुम्हें कहीं भी मिल जाएगी.”

“मेरे एम्बिशंस का… मेरे सपनों का कोई मोल नहीं…? जिस की खातिर मैं ने इतनी मेहनत की है.

“और तुम्हारी मम्मा अकेली कहां हैं…? तुम्हारे पापा हैं ना उन के साथ. और जब तुम चाहोगे, हम उन से मिलने मुंबई चले जाएंगे… फ्लाइट से सिर्फ एक घंटे की तो दूरी है. और फिर मैं भी तो अपनी मम्मा को छोड़ कर तुम्हारे साथ दिल्ली में रहूंगी, जबकि तुम जानते हो, मैं भी सिंगल चाइल्ड हूं और मैं भी हमेशा उन के साथ रहना चाहती हूं,” कहते हुए मुसकान की आवाज भर्रा गई थी.

“कैसी बच्चों जैसी बातें कर रही हो तुम? तुम दुनिया में ऐसी पहली लड़की थोड़ी हो, जो ऐसा करने जा रही है.”

मुसकान ने सिर्फ बाय कहा और फोन दिया. फिर उन दोनों के फोन की स्क्रीन्स पर एक सन्नाटा सा छा गया था. फिजाओं में जहां अभी तक एक नशा सा घुला हुआ था, खुश्की सी आ गई थी.

मुसकान ना तो अवि का काल ऐक्सेप्ट कर रही थी और ना ही उस के मैसेज का जवाब दे रही थी. उसे बहुत बुरा लग रहा था. उसे लगा, अचानक उस के ख्वाबों के दरख्त पर किसी ने पत्थर मार कर उस में लगे सब से ताजा और सुर्ख फूल को तोड़ उस की पंखुड़ियों को बिखेर दिया हो.

“हर चीज की हद होती है, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है. ये सारा दिन मम्मीमम्मी करता रहता है. कोई चैट ऐसी नहीं गई होगी, जब उस की मम्मी का जिक्र ना आया हो… मम्मी के पहलू में ही बंधे रहना था, तो मेरी जिंदगी में आया ही क्यों?” खुद से बड़बड़ाती हुई वह रोने लगी थी.

मुसकान ने खुद को पढ़ाई में व्यस्त कर लिया था, जिस से अवि की यादों से उस का सामना ना हो जाए. पर अवि के प्यार के पौधे की जड़ें मुसकान के दिल में इतने गहरे तक पैठ गई थीं कि उस की प्रेम के पौधे पर जबतब उस की याद के फूल खिल आते थे.

एक दिन उस के जेहन में एक मासूम सा खयाल आया. अगर वह अपनी मां से इतना प्यार करता है, तो यह तो मेरे लिए खुशी की वजह होनी चाहिए कि उसे रिश्तों की इतनी कद्र है या वह परिवार के प्रति अपनी जिम्मदारियों को समझता है. वह परिवार से बढ़ कर अपने कैरियर को अहमियत देता, तो उस के जैसे जीनियस को देश या विदेश में कहीं भी इस से बेहतर नौकरी के अवसर मिल सकते थे. जब वह अपनी मां से इतना प्यार करता है, तो उस से कितना प्यार करेगा. और वह खुद भी तो अपनी मम्मी से कितना प्यार करती है और दिन में कितनी ही बार उन से फोन पर बात कर हर छोटी सी बातों में उन की राय लेती है. जब वो खुद मम्माज गर्ल है, तो उसे अवि के मम्माज बौय होने पर इतना एतराज क्यों है. हर इनसान की कोई ना कोई कमजोरी होती है और उस में खुद में भी तो कितनी कमियां हैं… वह चाह कर भी कभी अवि जितनी स्मार्ट नहीं बन सकती और अवि महानगरीय वातावरण में पलाबढ़ा है… बावजूद इस के अवि उसे दिलोजान से चाहता है.

उस ने बिना एक भी पल गवाए अवि को मैसेज कर दिया, “विल यू मैरी मी…?”

उस का फोन “मैसेज सेंट” दिखा रहा था, पर आधा घंटा बीत जाने पर भी अवि की तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर उस के मन में उदासी सी छा गई, पर उसे अपने प्यार पर पूरा भरोसा था.

“कहीं ऐसा तो नहीं… अवि ने मैसेज ही ना पढ़ा हो…” पर वह इस सचाई को भी नहीं झुठला सकती थी कि जिस वक्त उस ने मैसेज किया था, उस वक्त अवि औनलाइन था. इतनी देर से उस की आंखों की कोरों पर टिके आंसू ढुलकने को बेताब होने लगे थे. उन दोनों के होस्टल्स की दूरी एक घंटे की थी. ठीक अगले एक घंटे में मुसकान के फोन पर अवि का वीडियो काल था. मुसकान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह लाल गुलाबों का बुके लिए उस की होस्टल की सामने वाली सड़क पर खड़ा था.

अवि ने उस का विश्वास नहीं तोड़ा था, शायद उस का मैसेज पढ़ते ही वो उस से मिलने के लिए निकल गया था. वह दौड़ कर अवि के पास गई और उस के गले से लग गई… कभी ना बिछुड़ने के लिए, मुसकान खुश थी. देर से ही सही, पर उसे अपने सपनों का राजकुमार मिल ही गया. उस ने महसूस किया कि फिजाओं में फिर से मदहोशी सी छाने लगी थी और उस के ख्वाबों के उस दरख्त पर फिर से ढेरों फूल उग आए थे… पहले से ज्यादा ताजा और सुर्ख.

अंदाज: रूढ़िवादी ससुराल को क्या बदल पाई रंजना?

‘‘जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया…’’

अपने सहयोगियों के दबाव में आ कर रंजना ने अपने पति मोहित को फोन किया, ‘‘ये सब लोग कल पार्टी देने की मांग कर रहे हैं. मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’’

‘‘मम्मीपापा की इजाजत के बगैर किसी को घर बुलाना ठीक नहीं रहेगा,’’ मोहित की आवाज में परेशानी के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘फिर इन की पार्टी कब होगी?’’

‘‘इस बारे में रात को बैठ कर फैसला करते हैं.’’

‘‘ओ.के.’’

रंजना ने फोन काट कर मोहित का फैसला बताया तो सब उस के पीछे पड़ गए, ‘‘अरे, हम मुफ्त में पार्टी नहीं खाएंगे. बाकायदा गिफ्ट ले कर आएंगे, यार.’’

‘‘अपनी सास से इतना डर कर तू कभी खुश नहीं रह पाएगी,’’ उन लोगों ने जब इस तरह का मजाक करते हुए रंजना की खिंचाई शुरू की तो उसे अजीब सा जोश आ गया. बोली, ‘‘मेरा सिर खाना बंद करो. मेरी बात ध्यान से सुनो. कल रविवार रात 8 बजे सागर रत्ना में तुम सब डिनर के लिए आमंत्रित हो. कोई भी गिफ्ट घर भूल कर न आए.’’

रंजना की इस घोषणा का सब ने तालियां बजा कर स्वागत किया था. कुछ देर बाद अकेले में संगीता मैडम ने उस से पूछा, ‘‘दावत देने का वादा कर के तुम ने अपनेआप को मुसीबत में तो नहीं फंसा लिया है?’’

‘‘अब जो होगा देखा जाएगा, दीदी,’’ रंजना ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अगर घर में टैंशन ज्यादा बढ़ती लगे तो मुझे फोन कर देना. मैं सब को पार्टी कैंसल हो जाने की खबर दे दूंगी. कल के दिन बस तुम रोनाधोना बिलकुल मत करना, प्लीज.’’

‘‘जितने आंसू बहाने थे, मैं ने पिछले साल पहली वर्षगांठ पर बहा लिए थे दीदी. आप को तो सब मालूम ही है.’’

‘‘उसी दिन की यादें तो मुझे परेशान कर रही हैं, माई डियर.’’

‘‘आप मेरी चिंता न करें, क्योंकि मैं साल भर में बहुत बदल गई हूं.’’

‘‘सचमुच तुम बहुत बदल गई हो, रंजना? सास की नाराजगी, ससुर की डांट या ननद की दिल को छलनी करने वाली बातों की कल्पना कर के तुम आज कतई परेशान नजर नहीं आ रही हो.’’

‘‘टैंशन, चिंता और डर जैसे रोग अब मैं नहीं पालती हूं, दीदी. कल रात दावत जरूर होगी. आप जीजाजी और बच्चों के साथ वक्त से पहुंच जाना,’’ कह रंजना उन का कंधा प्यार से दबा कर अपनी सीट पर चली गई.

रंजना ने बिना इजाजत अपने सहयोगियों को पार्टी देने का फैसला किया है, इस खबर को सुन कर उस की सास गुस्से से फट पड़ीं, ‘‘हम से पूछे बिना ऐसा फैसला करने का तुम्हें कोई हक नहीं है, बहू. अगर यहां के कायदेकानून से नहीं चलना है, तो अपना अलग रहने का बंदोबस्त कर लो.’’

‘‘मम्मी, वे सब बुरी तरह पीछे पड़े थे. आप को बहुत बुरा लग रहा है, तो मैं फोन कर के सब को पार्टी कैंसल करने की खबर कर दूंगी,’’ शांत भाव से जवाब दे कर रंजना उन के सामने से हट कर रसोई में काम करने चली गई.

उस की सास ने उसे भलाबुरा कहना जारी रखा तो उन की बेटी महक ने उन्हें डांट दिया, ‘‘मम्मी, जब भाभी अपनी मनमरजी करने पर तुली हुई हैं, तो तुम बेकार में शोर मचा कर अपना और हम सब का दिमाग क्यों खराब कर रही हो? तुम यहां उन्हें डांट रही हो और उधर वे रसोई में गाना गुनगुना रही हैं. अपनी बेइज्जती कराने में तुम्हें क्या मजा आ रहा है?’’

अपनी बेटी की ऐसी गुस्सा बढ़ाने वाली बात सुन कर रंजना की सास का पारा और ज्यादा चढ़ गया और वे देर तक उस के खिलाफ बड़बड़ाती रहीं.

रंजना ने एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाला. अपना काम समाप्त कर उस ने खाना मेज पर लगा दिया.

‘‘खाना तैयार है,’’ उस की ऊंची आवाज सुन कर सब डाइनिंगटेबल पर आ तो गए, पर उन के चेहरों पर नाराजगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

रंजना ने उस दिन एक फुलका ज्यादा खाया. उस के ससुरजी ने टैंशन खत्म करने के इरादे से हलकाफुलका वार्त्तालाप शुरू करने की कोशिश की तो उन की पत्नी ने उन्हें घूर कर चुप करा दिया.

रंजना की खामोशी ने झगड़े को बढ़ने नहीं दिया. उस की सास को अगर जरा सा मौका मिल जाता तो वे यकीनन भारी क्लेश जरूर करतीं.

महक की कड़वी बातों का जवाब उस ने हर बार मुसकराते हुए मीठी आवाज में दिया. शयनकक्ष में मोहित ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की, ‘‘किसी और की न सही पर तुम्हें कोई भी फैसला करने से पहले मेरी इजाजत तो लेनी ही चाहिए थी. मैं कल तुम्हारे साथ पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा.’’

‘‘तुम्हारी जैसी मरजी,’’ रंजना ने शरारती मुसकान होंठों पर सजा कर जवाब दिया और फिर एक चुंबन उस के गाल पर अंकित कर बाथरूम में घुस गई.

रात ठीक 12 बजे रंजना के मोबाइल के अलार्म से दोनों की नींद टूट गई.

‘‘यह अलार्म क्यों बज रहा है?’’ मोहित ने नाराजगी भरे स्वर में पूछा.

‘‘हैपी मैरिज ऐनिवर्सरी, स्वीट हार्ट,’’ उस के कान के पर होंठों ले जा कर रंजना ने रोमांटिक स्वर में अपने जीवनसाथी को शुभकामनाएं दीं.

रंजना के बदन से उठ रही सुगंध और महकती सांसों की गरमाहट ने चंद मिनटों में जादू सा असर किया और फिर अपनी नाराजगी भुला कर मोहित ने उसे अपनी बांहों के मजबूत बंधन में कैद कर लिया.

रंजना ने उसे ऐसे मस्त अंदाज में जी भर कर प्यार किया कि पूरी तरह से तृप्त नजर आ रहे मोहित को कहना ही पड़ा, ‘‘आज के लिए एक बेहतरीन तोहफा देने के लिए शुक्रिया, जानेमन.’’

‘‘आज चलोगे न मेरे साथ?’’ रंजना ने प्यार भरे स्वर में पूछा.

‘‘पार्टी में? मोहित ने सारा लाड़प्यार भुला कर माथे में बल डाल लिए.’’

‘‘मैं पार्क में जाने की बात कर रही हूं, जी.’’

‘‘वहां तो मैं जरूर चलूंगा.’’

‘‘आप कितने अच्छे हो,’’ रंजना ने उस से चिपक कर बड़े संतोष भरे अंदाज में आंखें मूंद लीं. रंजना सुबह 6 बजे उठ कर बड़े मन से तैयार हुई. आंखें खुलते ही मोहित ने उसे सजधज कर तैयार देखा तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल,’’ अपने जीवनसाथी के मुंह से ऐसी तारीफ सुन कर रंजना का मन खुशी से नाच उठा.

खुद को मस्ती के मूड में आ रहे मोहित की पकड़ से बचाते हुए रंजना हंसती हुई कमरे से बाहर निकल गई.

उस ने पहले किचन में जा कर सब के लिए चाय बनाई, फिर अपने सासससुर के कमरे में गई और दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.

चाय का कप हाथ में पकड़ते हुए उस की सास ने चिढ़े से लहजे में पूछा, ‘‘क्या सुबहसुबह मायके जा रही हो, बहू?’’

‘‘हम तो पार्क जा रहे हैं मम्मी,’’ रंजना ने बड़ी मीठी आवाज में जवाब दिया.

सास के बोलने से पहले ही उस के ससुरजी बोल पड़े, ‘‘बिलकुल जाओ, बहू. सुबहसुबह घूमना अच्छा रहता है.’’

‘‘हम जाएं, मम्मी?’’

‘‘किसी काम को करने से पहले तुम ने मेरी इजाजत कब से लेनी शुरू कर दी, बहू?’’ सास नाराजगी जाहिर करने का यह मौका भी नहीं चूकीं.

‘‘आप नाराज न हुआ करो मुझ से, मम्मी. हम जल्दी लौट आएंगे,’’ किसी किशोरी की तरह रंजना अपनी सास के गले लगी और फिर प्रसन्न अंदाज में मुसकराती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई.

वह मोहित के साथ पार्क गई जहां दोनों के बहुत से साथी सुबह का मजा ले रहे थे. फिर उस की फरमाइश पर मोहित ने उसे गोकुल हलवाई के यहां आलूकचौड़ी का नाश्ता कराया. दोनों की वापसी करीब 2 घंटे बाद हुई. सब के लिए वे आलूकचौड़ी का नाश्ता पैक करा लाए थे. लेकिन यह बात उस की सास और ननद की नाराजगी खत्म कराने में असफल रही थी. दोनों रंजना से सीधे मुंह बात नहीं कर रही थीं. ससुरजी की आंखों में भी कोई चिंता के भाव साफ पढ़ सकता था. उन्हें अपनी पत्नी और बेटी का व्यवहार जरा भी पसंद नहीं आ रहा था, पर चुप रहना उन की मजबूरी थी. वे अगर रंजना के पक्ष में 1 शब्द भी बोलते, तो मांबेटी दोनों हाथ धो कर उन के पीछे पड़ जातीं.

सजीधजी रंजना अपनी मस्ती में दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए रसोई में चली आई. महक ने उसे कपड़े बदल आने की सलाह दी तो उस ने इतराते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, आज तुम्हारे भैया ने मेरी सुंदरता की इतनी ज्यादा तारीफ की है कि अब तो मैं ये कपड़े रात को ही बदलूंगी.’’

‘‘कीमती साड़ी पर दागधब्बे लग जाने की चिंता नहीं है क्या तुम्हें?’’

‘‘ऐसी छोटीमोटी बातों की फिक्र करना अब छोड़ दिया है मैं ने, दीदी.’’

‘‘मेरी समझ से कोई बुद्धिहीन इनसान ही अपना नुकसान होने की चिंता नहीं करता है,’’ महक ने चिढ़ कर व्यंग्य किया.

‘‘मैं बुद्धिहीन तो नहीं पर तुम्हारे भैया के प्रेम में पागल जरूर हूं,’’ हंसती हुई रंजना ने अचानक महक को गले से लगा लिया तो वह भी मुसकराने को मजबूर हो गई.

रंजना ने कड़ाही पनीर की सब्जी बाजार से मंगवाई और बाकी सारा खाना घर पर तैयार किया.

‘‘आजकल की लड़कियों को फुजूलखर्ची की बहुत आदत होती है. जो लोग खराब वक्त के लिए पैसा जोड़ कर नहीं रखते हैं, उन्हें एक दिन पछताना पड़ता है, बहू,’’ अपनी सास की ऐसी सलाहों का जवाब रंजना मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला कर देती रही.

उस दिन उपहार में रंजना को साड़ी और मोहित को कमीज मिली. बदले में उन्होंने महक को उस का मनपसंद सैंट, सास को साड़ी और ससुरजी को स्वैटर भेंट किया. उपहारों की अदलाबदली से घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया था. यह सब को पता था कि सागर रत्ना में औफिस वालों की पार्टी का समय रात 8 बजे का है. जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया.

‘‘तुम्हें पार्टी में जाना है तो हमारी इजाजत के बगैर जाओ,’’ उस की मां ने उस पर नजर पड़ते ही कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘आज के दिन क्या हम सब का इकट्ठे घूमने जाना अच्छा नहीं रहता, भैया?’’ महक ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘रंजना ने पार्टी में जाने से इनकार कर दिया है,’’ मोहित के इस जवाब को सुन वे तीनों ही चौंक पड़े.

‘‘क्यों नहीं जाना चाहती है बहू पार्टी में?’’ उस के पिता ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘उस की जिद है कि अगर आप तीनों साथ नहीं चलोगे तो वह भी नहीं जाएगी.’’

‘‘आजकल ड्रामा करना बड़ी अच्छी तरह से आ गया है उसे,’’ मम्मी ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की.

मोहित आंखें मूंद कर चुप बैठ गया. वे तीनों बहस में उलझ गए.

‘‘हमें बहू की बेइज्जती कराने का कोई अधिकार नहीं है. तुम दोनों साथ चलने के लिए फटाफट तैयार हो जाओ वरना मैं इस घर में खाना खाना छोड़ दूंगा,’’ ससुरजी की इस धमकी के बाद ही मांबेटी तैयार होने के लिए उठीं.

सभी लोग सही वक्त पर सागर रत्ना पहुंच गए. रंजना के सहयोगियों का स्वागत सभी ने मिलजुल कर किया. पूरे परिवार को यों साथसाथ हंसतेमुसकराते देख कर मेहमान मन ही मन हैरान हो उठे थे.

‘‘कैसे राजी कर लिया तुम ने इन सभी को पार्टी में शामिल होने के लिए?’’ संगीता मैडम ने एकांत में रंजना से अपनी उत्सुकता शांत करने को आखिर पूछ ही लिया. रंजना की आंखों में शरारती मुसकान की चमक उभरी और फिर उस ने धीमे स्वर में जवाब दिया, ‘‘दीदी, मैं आज आप को पिछले 1 साल में अपने अंदर आए बदलाव के बारे में बताती हूं. शादी की पहली सालगिरह के दिन मैं अपनी ससुराल वालों के रूखे व कठोर व्यवहार के कारण बहुत रोई थी, यह बात तो आप भी अच्छी तरह जानती हैं.’’

‘‘उस रात को पलंग पर लेटने के बाद एक बड़ी खास बात मेरी पकड़ में आई थी. मुझे आंसू बहाते देख कर उस दिन कोई मुसकरा तो नहीं रहा था, पर मुझे दुखी और परेशान देख कर मेरी सास और ननद की आंखों में अजीब सी संतुष्टि के भाव कोई भी पढ़ सकता था.

‘‘तब मेरी समझ में यह बात पहली बार आई कि किसी को रुला कर व घर में खास खुशी के मौकों पर क्लेश कर के भी कुछ लोग मन ही मन अच्छा महसूस करते हैं. इस समझ ने मुझे जबरदस्त झटका लगाया और मैं ने उसी रात फैसला कर लिया कि मैं ऐसे लोगों के हाथ की कठपुतली बन अपनी खुशियों व मन की शांति को भविष्य में कभी नष्ट नहीं होने दूंगी.

‘‘खुद से जुड़े लोगों को अब मैं ने 2 श्रेणियों में बांट रखा है. कुछ मुझे प्रसन्न और सुखी देख कर खुश होते हैं, तो कुछ नहीं. दूसरी श्रेणी के लोग मेरा कितना भी अहित करने की कोशिश करें, मैं अब उन से बिलकुल नहीं उलझती हूं.

‘‘औफिस में रितु मुझे जलाने की कितनी भी कोशिश करे, मैं बुरा नहीं मानती. ऐसे ही सुरेंद्र सर की डांट खत्म होते ही मुसकराने लगती हूं.’’

‘‘घर में मेरी सास और ननद अब मुझे गुस्सा दिलाने या रुलाने में सफल नहीं हो पातीं. मोहित से रूठ कर कईकई दिनों तक न बोलना अब अतीत की बात हो गई है.

‘‘जहां मैं पहले आंसू बहाती थी, वहीं अब मुसकराते रहने की कला में पारंगत हो गई हूं. अपनी खुशियों और मन की सुखशांति को अब मैं ने किसी के हाथों गिरवी नहीं रखा हुआ है.

‘‘जो मेरा अहित चाहते हैं, वे मुझे देख कर किलसते हैं और मेरे कुछ किए बिना ही हिसाब बराबर हो जाता है. जो मेरे शुभचिंतक हैं, मेरी खुशी उन की खुशियां बढ़ाने में सहायक होती हैं और यह सब के लिए अच्छा ही है.

‘‘अपने दोनों हाथों में लड्डू लिए मैं खुशी और मस्ती के साथ जी रही हूं, दीदी. मैं ने एक बात और भी नोट की है. मैं खुश रहती हूं तो मुझे नापसंद करने वालों के खुश होने की संभावना भी ज्यादा हो जाती है. मेरी सास और ननद की यहां उपस्थिति इसी कारण है और उन दोनों की मौजूदगी मेरी खुशी को निश्चित रूप से बढ़ा रही है.’’ संगीता मैडम ने प्यार से उस का माथा चूमा और फिर भावुक स्वर में बोलीं, ‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो गई हो, रंजना. मेरी तो यही कामना है कि तुम जैसी बहू मुझे भी मिले.’’

‘‘आज के दिन इस से बढिया कौंप्लीमैंट मुझे शायद ही मिले, दीदी. थैंक्यू वैरी मच,’’ भावविभोर हो रंजना उन के गले लग गई. उस की आंखों से छलकने वाले आंसू खुशी के थे.

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अंधेरे उजाले: कैसा था बोल्ड तनवी का फैसला

सुदेश अपनी पत्नी तनवी के साथ एक होटल में ठहरा था. होटल के अपने कमरे में टीवी पर समाचार देख वह एकदम परेशान हो उठा. राजस्थान अचानक गुर्जरों की आरक्षण की मांग को ले कर दहक उठा था. वहां की आग गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, दनकौर, दादरी, मथुरा, आगरा आदि में फैल गई थी.

वे दोनों बच्चों को घर पर नौकरानी के भरोसे छोड़ कर आए थे. तनवी दिल्ली अपने अर्थशास्त्र के शोध से संबंधित कुछ जरूरी किताबें लेने आई थी. सुदेश उस की मदद को संग आया था. 1-2 दिन में किताबें खरीद कर वे लोग घर वापस लौटने वाले थे लेकिन तभी गुर्जरों का यह आंदोलन छिड़ गया.

अपनी कार से उन्हें वापस लौटना था. रास्ते में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद का हाईवे पड़ेगा. वाहनों में आगजनी, बसों की तोड़फोड़, रेल की पटरियां उखाड़ना, हिंसा, मारपीट, गोलीबारी, लंबेलंबे जाम…क्या मुसीबत है. बच्चों की चिंता ने दोनों को परेशान कर दिया. उन के लिए अब जल्दी से जल्दी घर पहुंचना जरूरी है.

‘‘क्या होता जा रहा है इस देश को? अपनी मांग मनवाने का यह कौन सा तरीका निकाल लिया लोगों ने?’’ तनवी के स्वर में घबराहट थी.

वोटों की राजनीति, जातिवाद, लोकतंत्र के नाम पर चल रहा ढोंगतंत्र, आरक्षण, गरीबी, बेरोजगारी, बढ़ती आबादी आदि ऐसे मुद्दे थे जिन पर चाहता तो सुदेश घंटों भाषण दे सकता था पर इस वक्त वह अवसर नहीं था. इस वक्त तो उन की पहली जरूरत किसी तरह होटल से सामान समेट कर कार में ठूंस, घर पहुंचना था. उन्हें अपने बच्चों की चिंता लगातार सताए जा रही थी.

फोन पर दोनों बच्चों, वैभव और शुभा से तनवी और सुदेश ने बात कर के हालचाल पूछ लिए थे. नौकरानी से भी बात हो गई थी पर नौकरानी ने यह भी कह दिया था कि साहब, दिल्ली का झगड़ा इधर शहर में भी फैल सकता है… हालांकि अपनी सड़क पर पुलिस वाले गश्त लगा रहे हैं…पर लोगों का क्या भरोसा साहब…

आदमी का आदमी पर से विश्वास ही उठ गया. कैसा विचित्र समय आ गया है. हम सब अपनी विश्वसनीयता खो बैठे हैं. किसी को किसी पर भरोसा नहीं रह गया. कब कौन आदमी हमारे साथ गड़बड़ कर दे, हमें हमेशा यह भय लगा रहता है.

सामान पैक कर गाड़ी में रखा और वे दोनों दिल्ली से एक तरह से भाग लिए ताकि किसी तरह जल्दी से जल्दी घर पहुंचें.

बच्चों की चिंता के कारण सुदेश गाड़ी को तेज रफ्तार से चला रहा था. तनवी खिड़की से बाहर के दृश्य देख रही थी और वह तनवी को देख कर अपने अतीत के बारे में सोचने लगा.

शहर में हो रही एक गोष्ठी में सुदेश मुख्य वक्ता था. गोष्ठी के बाद जलपान के वक्त अनूप उसे पकड़ कर एक युवती के निकट ले गया और बोला, ‘सुदेश, इन से मिलो…मिस तनवी…यहां के प्रसिद्ध महिला महाविद्यालय में अर्थशास्त्र की जानीमानी प्रवक्ता हैं.’

‘मिस’ शब्द से चौंका था सुदेश, एक पढ़ीलिखी, प्रतिष्ठित पद वाली ठीकठाक रंगरूप की युवती का इस उम्र तक ‘मिस’ रहना, इस समाज में मिसफिट होने जैसा लगता है. अब तक मिस ही क्यों? मिसेज क्यों नहीं? यह सवाल सुदेश के दिमाग में कौंध गया था.

‘और मिस तनवी, ये हैं मिस्टर सुदेश कुमार…यहां के महाविद्यालय में समाज- शास्त्र के जानेमाने प्राध्यापक, जातिवाद के घनघोर आलोचक….अखबारों में दलितों, पिछड़ों और गरीबों के जबरदस्त पक्षधर… इस कारण जाति से ब्राह्मण होने के बावजूद लोग इन की पैदाइश को ले कर संदेह जाहिर करते हैं और कहते हैं, जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है वरना इन्हें किसी हरिजन परिवार में ही पैदा होना चाहिए था.’

अनूप की बातों पर सुदेश का ध्यान नहीं था पर ‘कुमार’ शब्द उस ने जिस तरह तनवी के सामने खास जोर दे कर उच्चारित किया था उस से वह सोच में पड़ गया था.

अनूप ने कहा, ‘है तो यह अशिष्टता पर मिस तनवी की उम्र 28-29 साल, मिजाज तेजतर्रार, स्वभाव खरा, नकचढ़ा…टूटना मंजूर, झुकना असंभव. इन की विवाह की शर्तें हैं…कास्ट एंड रिलीजन नो बार. पति की हाइट एंड वेट नो च्वाइस. कांप्लेक्शन मस्ट बी फेयर, हायली क्वालीफाइड…सेलरी 5 अंकों में. नेचर एडजस्टेबल. स्मार्ट बट नाट फ्लर्ट. नजरिया आधुनिक, तर्कसंगत, बीवी को जो पांव की जूती न समझे, बराबर की हैसियत और हक दे. दकियानूस और अंधविश्वासी न हो.

अनूप लगातार जिस लहजे में बोले जा रहा था उस से सुदेश को एकदम हंसी आ गई थी और तनवी सहम सी गई थी, ‘अनूपजी, आप पत्रकार लोगों से मैं झगड़ तो सकती नहीं क्योंकि आज झगडं़ूगी, कल आप अखबार में खिंचाई कर के मेरे नाम में पलीता लगा देंगे, तिल होगा तो ताड़ बता कर शहर भर में बदनाम कर देंगे…पर जिस सुदेशजी से मैं पहली बार मिल रही हूं, उन के सामने मेरी इस तरह बखिया उधेड़ना कहां की भलमनसाहत है?’

‘यह मेरी भलमनसाहत नहीं मैडम, आप से रिश्तेदारी निभाना है…असल में आप दोनों का मामला मैं फिट करवाना चाहता हूं…वह नल और दमयंती का किस्सा तो आप ने सुना ही होगा…बेचारे हंस को दोनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ी थी…आजकल हंस तो कहीं रह नहीं गए कि नल और दमयंती की जोड़ी बनवा दें. अब तो हम कौए ही रह गए हैं जो यह भूमिका निभा रहे हैं.

‘आप जानती हैं, मेरी शादी हो चुकी है, वरना मैं ही आप से शादी कर लेता…कम से कम एक बंधी हुई रकम कमाने वाली बीवी तो मुझे मिलती. अपने नसीब में तो घरेलू औरत लिखी थी…और अपन ठहरे पत्रकार…कलम घसीट कर जिंदगी घसीटने वाले…हर वक्त हलचल और थ्रिल की दुनिया में रहने वाले पर अपनी निजी जिंदगी एकदम रुटीन, बासी…न कोई रोमांस न रोमांच, न थ्रिल न व्रिल. सिर्फ ड्रिल…लेफ्टराइट, लेफ्ट- राइट करते रहो, कभी यहां कभी वहां, कभी इस की खबर कभी उस की खबर…दूसरों की खबरें छापने वाले हम लोग अपनी खबर से बेखबर रहते हैं.’

बाद में अनूप ने तनवी के बारे में बहुत कुछ टुकड़ोंटुकड़ों में सुदेश को बताया था और उस से ही वह प्रभावित हुआ था. तनवी उसे काफी दबंग, समझदार, बोल्ड युवती लगी थी, एक ऐसी युवती जो एक बार फैसला सोचसमझ कर ले तो फिर उस से वापस न लौटे. सुदेश को ढुलमुल, कमजोर दिमाग की, पढ़ीलिखी होने के बावजूद बेकार के रीतिरिवाजों में फंसी रहने वाली अंधविश्वासी लड़कियां एकदम गंवार और जाहिल लगती थीं, जिन के साथ जिंदगी को सहजता से जीना उसे बहुत कठिन लगता था, इसी कारण उस ने तमाम रिश्ते ठुकराए भी थे. तनवी उसे कई मानों में अपने मन के अनुकूल लगी थी, हालांकि उस के मन में एक दुविधा हमेशा रही थी कि ऐसी दबंग युवती पतिपत्नी के रिश्ते को अहमियत देगी या नहीं? उसे निभाने की सही कोशिश करेगी या नहीं? विवाह एक समझौता होता है, उस में अनेक उतारचढ़ाव आते हैं, जिन्हें बुद्धिमानी से सहन करते हुए बाधाओं को पार करना पड़ता है.

कसबे में तनवी का वह निर्णय खलबली मचा देने वाला साबित हुआ था. देखा जाए तो बात मामूली थी, ऐसी घटनाएं अकसर शादीब्याह में घट जाया करती हैं पर मानमनौवल और समझौतों के बाद बीच का रास्ता निकाल लिया जाता है. तनवी ने बीच के सारे रास्ते अपने फैसले से बंद कर दिए थे.

तनवी की शादी जिस लड़के से तय हुई थी वह भौतिक विज्ञान के एक आणविक संस्थान में काम करने वाला युवक था. बरात दरवाजे पर पहुंची. औपचारिकताओं के लिए दूल्हे को घोड़ी से उतार कर चौकी पर बैठाया गया. लकड़ी की उस चौकी के अचानक एक तरफ के दोनों पाए टूट गए और दूल्हे राजा एक तरफ लुढ़क गए. द्वारचार के उस मौके पर मौजूद बुजुर्गों ने कहा कि यह अपशकुन है. विवाह सफल नहीं होगा. दूल्हे राजा उठे और लकड़ी की उस चौकी में ठोकर मारी, एकदम बौखला कर बोले, ‘ऐसी मनहूस लड़की से मैं हरगिज शादी नहीं करूंगा. इस महत्त्वपूर्ण रस्म में बाधा पड़ी है. अपशकुन हुआ है.’

क्रोध में बड़बड़ाते दूल्हे राजा दरवाजे से लौट गए. ‘मुझे नहीं करनी शादी इस लड़की से,’ उन का ऐलान था. पिता भी बेटे की तरफ. सारे बुजुर्ग भी उस की तरफ. रंग में भंग पड़ गया.

बाद में पता चला कि चौकी बनाने वाले बढ़ई से गलती हो गई थी. जल्दबाजी में एक तरफ के पायों में कीलें ठुकने से रह गई थीं और इस मामूली बात का बतंगड़ बन गया था.

तनवी ने यह सब सुना तो फिर उस ने भी यह कहते हुए शादी से इनकार कर दिया, ‘ऐसे तुनकमिजाज, अंधविश्वासी और गुस्सैल युवक से मैं हरगिज शादी नहीं करूंगी.’

तनवी के इस फैसले ने एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया. लड़के वालों को उम्मीद थी कि लड़की वाले दबाव में आएंगे. अपनी इज्जत का वास्ता देंगे, मिन्नतें करेंगे, लड़की की जिंदगी का सवाल ले कर गिड़गिड़ाएंगे.

तनवी के पिता और मामा लड़के के और उन के परिवार वालों के हाथपांव जोड़ने पहुंचे भी, किसी तरह मामला सुलटने वाला भी था पर तनवी के इनकार ने नई मुसीबत खड़ी कर दी. पिता और मामा ने तनवी को बहुत समझाया पर वह किसी प्रकार उस विवाह के लिए राजी नहीं हुई. उस ने कह दिया, ‘जीवन भर कुंआरी रह लूंगी पर इस लड़के से शादी किसी भी कीमत पर नहीं करूंगी. नौकरी कर रही हूं. कमाखा लूंगी, भूखी नहीं मर जाऊंगी, न किसी पर बोझ बनूंगी. उस का निर्णय अटल है, बदल नहीं सकता.’

कसबे में तमाम चर्चाएं चलने लगीं…लड़की का पहले से किसी लड़के से संबंध है. कसबे के किन्हीं परमानंद बाबू ने इस अफवाह को और हवा दे दी. बताया कि जिस कालिज में तनवी नौकरी करती है, उस के प्रबंधक के लड़के के साथ वह दिल्ली, कोलकाता घूमतीफिरती है. होटलों में अकेली उस के साथ एक ही कमरे में रुकती है. चालचलन कैसा होगा, लोग स्वयं सोच लें. कसबे के भी 2-3 युवकों से उस के संबंध होने की बातें कही जाने लगीं. दूसरे के फटे में अपनी टांग फंसाना कसबाई लोगों को खूब आता है.

पत्रकार अनूप तनवी का रिश्ते में कुछ लगता था. उस विवाह समारोह में वह भी शामिल हुआ था इसलिए उसे सारी घटनाओं और स्थितियों की जानकारी थी.

‘बदनाम हो जाओगी. पूरी जाति- बिरादरी में अफवाह फैल जाएगी. फिर तुम से कौन शादी करेगा?’ मामा ने समझाना चाहा था.

सुदेश ने अनूप से शंका प्रकट की, ‘ऐसी जिद्दी लड़की से शादी कैसे निभेगी, यार?’

‘सुदेशजी, इस बीच गुजरे वक्त ने तनवी को बहुत कुछ समझा दिया होगा. 28-29 साल कुंआरी रह ली. बदनामी झेल ली. नातेरिश्तेदारों से कट कर रह ली. इन सब बातों ने उसे भी समझा दिया होगा कि बेकार की जिद में पड़ कर सहज जीवन नहीं जिया जा सकता. सहज जीवन जीने के लिए हमें अपना स्वभाव नरम रखना पड़ता है. कहीं खुद झुकना पड़ता है, कहीं दूसरे को झुकाने का प्रयत्न करना पड़ता है. इस सिलसिले में तनवी से बहुत बातें हुई हैं मेरी. उसे भी जिंदगी की ऊंचनीच अब समझ में आने लगी है.’

अनूप के इतना कहने पर भी सुदेश के भीतर संदेह का कीड़ा हमेशा रेंगता रहा. एक तरफ तनवी का दृढ़निश्चयी होना सुदेश को प्रभावित करता था. दूसरी तरफ उस का अडि़यल रवैया उसे शंकालु भी बनाता था.

अपनी सारी शंकाओं को उस दिन रिश्ता पक्का करने से पहले सुदेश ने अनूप के सामने तनवी पर जाहिर भी कर दिया था. तनवी सचमुच गंभीर थी, ‘मैं जैसी हूं, आप जान चुके हैं. विवाह का मतलब मैं अच्छी तरह जानती हूं. बिना समझौते व सामंजस्य के जीवन को नहीं जिया जा सकता, यह भी समझ गई हूं. मेरी ओर से आप को कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.’

‘विवाहित जिंदगी में छोटीमोटी नोकझोंक, झगड़े, विवाद होने स्वाभाविक हैं. मैं कोशिश करूंगा, तुम्हारी कसबाई घटनाओं को कभी बीच में न दोहराऊं…उन बातों को तूल न दूं जो बीत चुकी हैं.’

‘मैं भी कोशिश करूंगी, जिंदगी पूरी तरह नए सिरे से, नई उमंग और नए उत्साह के साथ शुरू करूं…इतिहास दोहराने के लिए नहीं होता, दफन करने के लिए होता है.’

मुसकरा दिया था सुदेश और अनूप भी खुश हो गया था.

अचानक तनवी ने कुछ पूछा तो अतीत की यादों में खोया सुदेश उसे देख कर हंस दिया.

उन की शादी को पूरे 8 साल गुजर गए थे. 2 बच्चे थे. शुभा 7 साल की, वैभव 5 साल का. ऐसा नहीं है कि इन 8 सालों में उन के बीच झगड़े नहीं हुए, विवाद नहीं हुए. पर पुराने गड़े मुर्दे जान- बूझ कर न सुदेश ने उखाड़े न तनवी ने उन्हें उखड़ने दिया. जीवन के अंधेरे- उजाले संगसंग गुजारे.

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