‘गड़करी’ और ‘टू जीरो वन फोर’ तो अब फिल्मों के माध्यम से राजनीतिक वार होंगें…?

राजनीति और सिनेमा अलग अलग ध्रुव हो ही नही सकते. क्योंकि दोनों का संबंध आम जनता से है.आम लोग ही जेब से पैसे खर्च कर फिल्म देखकर फिल्म को सफल बनाते हैं,एक कलाकार को स्टार बनाते हैं,तो दूसरी तरह आम लोग ही अपना कीमती वोट देकर किसी को भी नेता चुनकर उसे मंत्री या प्रधानमंत्री तक बनाते हैं.2014 से पहले तक समाज का दर्पण होते हुए भी सिनेमा मनेारंजन का साधन ही ज्यादा रहा है.राजनीति से जुड़े लोग ‘शह’ और ‘मात’ की लड़ाई में सिनेमा को हथियार के तौर पर उपयोग नही करते थे.मगर 2014 के बाद हालात इस कदर बदले कि अब कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार अपनी केंद्रीय एजंसियो के साथ ही कुछ दिग्गज नेता अपने प्रतिद्वंदी को मात देने के लिए ‘सिनेमा’ का उपयोग कर सकते हैं.इस धारणा को उस वक्त बल मिला,जब केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी की बायोपिक फिल्म ‘‘गड़करी’’ का ट्रलेर गड़करी के ही गृहनगर नागपुर,जहां आर एस एस का मुख्यालय है,उसी शहर में सार्वजनिक किए जाने के साथ फिल्म केे प्रदर्शन की तारीख तक घोषित की गयी.

जी हाॅ! केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की मराठी भाषा में बनी बायोपिक फिल्म ‘गडकरी‘ का अचानक नागपुर में ट्रेलर रिलीज के साथ ही फिल्म के 27 अक्टूबर को पूरे देश में प्रदर्शित होने के ऐलान से राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी शुरू हो चुकी है. फिल्म के ट्रेलर लॉन्च ईवेंट में स्वयं नितिन गड़करी मोजूद नही थे,मगर इस ईवेंट में नागपुर के विदर्भ के सभी शीर्ष भाजपा नेताओं के साथ महाराष्ट् राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस भी मौजूद रहे. इन नेताओं ने दावा कि उनका एकमात्र इरादा युवा फिल्म निर्माताओं को प्रोत्साहित करना है.मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘गड़करी’ मराठी भाषा में है,मगर ट्रेलर से अहसास होता है कि इसमें ज्यादातर संवाद हिंदी में हैं.

यह पहला मौका है,जब प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में किसी बीजेपी नेता और वह भी उनकी ही कैबिनेट के किसी मंत्री की बायोपिक बन गई और रिलीज भी होने वाली है.ऐसे में सवाल यह भी है कि गडकरी पर बायोपिक के मायने क्या हैं? क्या राजनीति में उनका कद बड़ा करने की तैयारी है या फिर कुछ फिल्मकारों की एक फिल्म बनाने की दिलचस्पी भर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की शुरूआत

यूं तो किसी जीवित राजनेता पर फिल्म बनना कोई नई बात नही है.पर इस परंपरा की नींव तो 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही डाली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 24 मई 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक फिल्म ‘‘पी एम नरेंद्र मोदी’ प्रदर्शित हुई थी, जिसे मैरी काॅम पर बनी बायोपिक फिल्म निर्देशत करने वाले उमंग कुमार ने निर्देशित किया था और नरेंद्र मोदी का किरदार अभिनेता विवेक ओबेराय ने निभाया था. इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा था.पर अब इसे एमएक्स प्लेअर पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

जबकि दो भागों में उन पर वेब सीरीज ‘‘मोदीः जर्नी आफ ए काॅमन मैन’ भी 2019 में ही आयी थी. उमेश शुक्ला निर्देशित इस वेब सीरीज के पहले हिस्से में नरेंद्र मोदी का किरदार अभिनेता अशीश शर्मा ने निभायी थी,जो कि इससे पहले सीरियल ‘सिया के राम’’ में राम का किरदार निभा चुके हैं. यह सीरीज दो भागों में बनी थी. इसे दर्शक नही मिले.कुछ दिन पहले हमसे बात करते हुए अशीश शर्मा ने कहा था कि उन्हे इसमें अभिनय करने के एवज में पूरे पैसे अब तक नहीं मिले.दूसरे सीजन में प्रधानमंत्री मोदी का किरदार महेश ठाकुर ने निभाया.अब इस सीरीज के दोनों भाग ‘टाइम्स नाउ’ के यूट्यूब चैनल पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

कहने का अर्थ यह कि अब तक माना जा रहा था कि जिंदा रहते हुए सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मांदी पर ही फिल्म बन सकती हैं.हम याद दिला दें कि नरेंद्र मोदी पर दो अन्य फिल्में बनी हुई हैं.इनमें से एक फिल्म श्रवण तिवारी निर्देशित ‘‘टू जीरो वन फोर’’ और दूसरी पवन नागपाल निर्देशित फिल्म ‘ बाल नरेन’ है.ज्ञातब्य है कि अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनी जो फिल्में सामने आयी हैं,उन सभी के निर्माता या निर्देशक का संबंध गुजरात राज्य से ही है.

फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ क्या है?

इस फिल्म की कहानी गुजरात से दिल्ली तक के सियासी सफर की तरफ इषारा करती है.जनवरी 2014 से शुरू होती है.जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत नरेंद्र मोदी अपने भाजपा दल पर खुद को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के रूप में लड़ाने का दबाव बना रहे थे.भाजपा के लाल कृष्ण अडवाणी सहित कई वरिष्ठ नेता मोदी जी के खिलाफ थे.उसी पृष्ठभूमि में श्रवण तिवारी ने फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ का लेखन,निर्माण व निर्देशन किया है. फिल्म ‘टू जीरो वन फोर’ में सवाल उठाया गया है कि क्या 2014 में देश के प्रधानमंत्री बढ़ने की तरफ अग्रसर राजनीतिक शख्सियत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय साजिश रची गई थी? क्या इस शख्सियत को एक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर ही समेट देने की कोई योजना बनी थी?

जी हाॅ! श्रवण तिवारी द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म की कहानी का प्लॉट बहुत ही दिलचस्प हैं.फिल्म की कहानी शुरू होती हैं 2014 में, जब देश के एक राज्य के मुख्यमंत्री को देश के आगामी प्रधानमंत्री में रूप में देखा जा रहा है. फिल्म के मुताबिक, देश के दुश्मन साजिश करके उन्हें रोकना चाहते हैं.और, विदेशी एजेंसियों की इन साजिशों को रोकने का बीड़ा उठाता है एक रिटायर्ड कैप्टन खन्ना (जैकी श्राफ ). जानकारी के मुताबिक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी कैप्टन खन्ना की इस कहानी का मुख्य आधार वह खबरें हैं, जो 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले खूब चर्चा में रहीं. कैप्टन के जीवन में तब बदलाव आता है,जब उसे एक प्रमुख पाकिस्तानी आतंकवादी फिरोज मसानी से पूछताछ का काम सौंपा जाता है. यह पूछताछ भारतीय और विदेशी गुप्त एजेंटों से जुड़ी एक बड़ी साजिश को उजागर करता है.जैसे ही खन्ना साजिश के इस जाल को उजागर करता है,वह खुद एक नई मुसीबत में फंस जाता है.

फिल्म ‘‘बाल नरेन’ क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’’ पर आधारित इस फिल्म का निर्माण दीपक मुकुट ओर निर्देशन पवन नागपाल ने किया है.इसमें बाल कलाकार यज्ञ भसीन के अलावा बिदिता बाग,रजनीश दुग्गल,गोविंद नामदेव,विंदू दारा सिंह,लोकेश मित्तल ने अभिनय किया है.

क्या है फिल्म ‘गड़करी

नितिन गड़करी की बायोपिक फिल्म ‘‘गड़करी’’ के लेखक, निर्माता व निर्देशक अनुराग राजन भुसारी हैं.राहुल चोपड़ा ने  गडकरी और ऐश्वर्या डोर्ले ने गड़करी की पत्नी कंचन गडकरी का किरदार निभाया है.फिल्म की कहानी नागपुर में नितिन गड़करी के बचपन से शुरू होती है.फिर आएसएस से,जुड़ना,पार्टी कार्यकर्ता के रूप मंे काम करना,आपातकाल में जेल जाना, चुनाव जीतना,मंत्री बनने से लेकर एक्सप्रेस वे बनवाने से लेकर अब तक के उनके जीवन व कृतित्व की पूरी कहानी है.

शह और मात का खेलः

सूत्रों पर यकीन करने के साथ ही पिछले दिनों राजनीतिक गलियारों में जो कुछ हुआ,उसके अनुसार 2024 के लोकसभा चुनाव और पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव से ठीक पहले तीन नवंबर को श्रवण तिवारी निर्देशित फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ के प्रदर्शन का ऐलान कर दिया.सूत्रों पर यकीन किया जाए तो ऐसे में नितिन गड़करी ने भी अपनी बायोपिक फिल्म ‘गड़करी’ का ट्रलेर रिलीज करवाने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी पर बनी फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’’ से एक सप्ताह पहले 27 अक्टूबर को ही निर्माताओं से अपनी फिल्म ‘गड़करी’ को प्रदर्शित करने का ऐलान करवा दिया. (गडकरी के एक सहयोगी का दावा है कि पहले नितिन गडकरी इस तरह की फिल्म के पक्ष में नही थे. पर कुछ लोगों की सलाह पर वह तैयार हुए.) इससे राजनीतिक गलियारों में गजब का माहौल पैदा हो गया है. पर अब फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ को मार्च 2024 में रिलीज किया जाएगा.खुद इस फिल्म के निर्देशक श्रवण तिवारी कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म ‘टू जीरो वन फोर’ की कहानी जासूसी थ्रिलर है,जो जासूसी की रिस्क वाली दुनिया की एक झलक भी पेश करती है.यह साहस, साजिश और न्याय की कभी भी खत्म  नहीं होने वाली कहानी है, एक दिलचस्प रहस्य, जासूसी और अंतरराष्ट्रीय साजिश पर आधारित हमारी यह फिल्म मार्च 2024 में रिलीज होने वाली है.हम इसे तीन नवंबर 2023 को कभी भी रिलीज नहीं करने वाले थे.’’

उधर भाजपा से जुड़े कुछ लोग दावा कर रहे है कि इस फिल्म की परिकल्पना और निर्माण 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले ही कर लिया गया था.इसे अस्पष्ट कारणों से रोक दिया गया था.कुछ भाजपा नेताओं का मानना है कि गडकरी की फिल्म को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.जबकि कुछ नेताओ की राय में यह फिल्म एक ऐसे समूह का ईमानदार काम है,जो गडकरी के जीवन की बारीकियों को पकड़ना चाहता था.‘‘

क्या आरएसएस ने मोदी से दूरी बना गड़करी पर दांव खेलने का लिया है फैसला

बहरहाल,केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के गृह नगर नागपुर में फिल्म ‘गड़करी’ के ट्रेलर की रिलीज ने कई सवालों के जवाब दे दिए. महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के नेतृत्व में और स्थानीय पार्टी विधायकों सहित नागपुर से भाजपा की स्टार ब्रिगेड बड़ी संख्या में मौजूद थी.सर्वविदित है कि देवेंद्र फड़नवीस भी अंदर ही अंदर अमित शाह से नाराज चल रहे हैं.क्योकि वह बार बार कहते रहे हैं कि वह उपमुख्यमंत्री नही बनेंगे,पर सूत्रो के अनुसार उन्हे अमित शाह के आदेश पर उप मुख्यमंत्री की शपथ लेनी पड़ी.तो दूसरी तरफ वह भी विदर्भ से ही आते हैं.लेकिन न तो गडकरी, न ही कोई अन्य नागपुर यानी कि विदर्भ से बाहर का भाजपा नेता मौजूद नही हुआ.लोगों की राय में मोदी-अमित शाह जगत में गडकरी की हैसियत को देखते हुए, कई लोगों के लिए सभी संकेत, कहानी में एक मोड़ की ओर इशारा करते हैं.

वैसे खुद पर बनी फिल्म ‘‘गडकरी’ के ट्रलेर लांच से कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने पार्टी नेतृत्व से अपनी दूरी का एक संकेत देते हुए सामान्य गुप्त शैली में टिप्पणी कहा था-‘‘इस लोकसभा चुनाव के लिए,मैंने फैसला किया है कि कोई बैनर या पोस्टर नहीं होंगे.लोगों को चाय नहीं दी जाएगी. मुझे दृढ़ता से लगता है कि जो लोग वोट देना चाहते हैं वह वोट देंगे, जो नहीं करना चाहते वह नहीं करेंगे.” उसी दिन से महाराष्ट् के राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दूरी बनाते हुए नितिन गड़करी पर हाथ रख दिया है.

देवेंद्र फड़नवीस ने राज कपूर से की नितिन गड़करी की तुलना

नागपुर में फिल्म ‘गड़करी’ के ट्रेलर लॉन्च पर बोलते हुए नितिन गड़कर की तुलना राज कपूर से करते हुए देवेंद्र फड़नवीस ने कहा-“गडकरी राज कपूर की तरह हैं.वह बड़े सपने देखते हैं, और वह अपने सपनों को उनके तार्किक अंत तक पूरा भी करते हैं… उनका नवोन्वेषी और दूरदर्शी नेतृत्व हमारे लिए प्रेरणा है.‘‘

फड़नवीस ने लोगो को याद दिलाया कि गडकरी ने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे के लिए रिलायंस के 3,600 करोड़ रुपये के टेंडर को खारिज कर इस परियोजना को 1,600 करोड़ रुपये में पूरा किया था.

देवेन्द्र फड़णवीस ने आगे कहा -‘‘केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की बायोपिक में दिखाया गया है कि एक नेता कैसे बनता है और एक ‘कार्यकर्ता‘ (पार्टी कार्यकर्ता) कैसे काम करता है और नई पीढ़ी को ‘दूरदर्शी और अभिनव‘ भारतीय जनता पार्टी नेता, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के बारे में अधिक जानने के लिए प्रेरित करेगा.जीवन में किसी भी संघर्ष की बात आने पर गडकरी का कभी न हार मानने वाला रवैया है, जो हम जैसे कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा है. वह एक दूरदर्शी नेता हैं और सिर्फ एक मंत्री नहीं बल्कि एक प्रवर्तक हैं.‘‘

यूं भी नितिन गडकरी पिछले कुछ महीनों में खरी-खरी बातें कहने के लिए सुर्खियों में रहे हैं.करीब एक पखवाड़े पहले ही लोकसभा चुनाव को लेकर उनके दिये गए बयान ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं.

गत वर्ष गड़करी ने एक कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जमकर तारीफ करते हुए कहा था-‘‘उदार अर्थव्यवस्था के कारण देश को नई दिशा मिली, उसके लिए देश मनमोहन सिंह का ऋणी है.मनमोहन सिंह के द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की वजह से ही मैं महाराष्ट्र में मंत्री रहते हुए सड़कों के निर्माण के लिए धन जुटा सका था.’’नितिन गड़करी का यह बयान  भाजपा में किसी को भी पसंद नहीं आया.

लोग तो अब यह भी कह रहे हैं कि इस बार लोकसभा चुनाव से पहले कई फिल्में आने वाली हैं.तो क्या अब फिल्मों के माध्यम से राजनीतिक दल और राज नेता अपने प्रतिद्वंदियों का मात देने का प्रयास करेंगें ? क्या अब सिनेमा का यही उपयोग होना बाकी रह गया है?..खैर,हमें जिस तरह की सूचना मिल रही है,उसके अनुसार कई राजनीतिक फिल्में बन रही हैं और हो सकता है कि फिल्म ‘गड़करी’ के प्रदर्शन के बाद कई दूसरे नेता भी अपने जीवन व कृतित्व पर फिल्में बनवा सकते हैं.वैसे भी कहा जाता है कि अपने उपर लगे सभी कीचड़ों को आपन अपने जीवन पर फिल्म बनवा कर धेा सकते हैं… कम से कम कई क्रिकेटर अब तक ऐसा कर चुके हैं,यह अलग बात है कि अब तक गलत मकसद से बनी एक  भी क्रिकेट आधारित फिल्म को दर्शक सिरे से खारिज करते आए हैं.

जब अमिताभ बच्चन ने फिल्म एक रिश्ता से जुड़ने के लिए निर्देशक सुनील दर्शन को किया था फोन

कोई भी इंसान यूं ही बड़ा नही बन जाता. बड़ा व सफल इंसान बनने के लिए इंसान के अंदर विनम्रता होनी चाहिए. दूसरो का सम्मान करना आना चाहिए.इसी के साथ अपने आत्म सम्मान को बरकरार रखते हुए अपने लिए उपयुक्त काम की तलाश और उसे पाने का प्रयास भी करना चाहिए.यदि आप किसी से काम मांगते हैं,तो उसमें कोई बुराई नही है.बशर्ते ऐसा करते समय आपके आत्मसम्मान को ठेस न पहुॅच रही हो.

आज 81 वर्ष की उम्र में भी अमिताभ बच्चन लगातार अभिनय कर रहे हैं.उन्हे सुपर स्टार से लेकर सदी का महानायक तक कई उपाधियों से नवाजा जा चुका है.वह पद्मश्री, पद्मभूषण,पद्मविभूषण,दादा साहेब फालके अर्वाड सहित कई पुरस्कार अपनी झोली में डाल चुके हैं.मगर यह सब उन्हे सहजता या आराम से नही मिला.यह सब पाने के पीछे उनकी अपनी मेहनत, इमानदारी,किसी भी फिल्म निर्देशक से काम मांगने में शर्म का ना होना,समय के अनुसार अपने आपको ढाल लेना भी रहा है. अमिताभ बच्चन ने 1969 में बौलीवुड में कदम रखा था.उनके 55 वर्ष के अभिनय कैरियर में कई पड़ाव आए. जब उनका अभिनय कैरियर उंचाईयों पर था,तब भी अमिताभ बच्चन अच्छे किरदार व अच्छी कहानी की तलाश में लगे रहते थे.और जब उन्हे पता चलता था कि कोई फिल्मकार किसी अच्छी कहानी पर काम कर रहा है,तो वह उसे फोन कर फिल्म से जुड़ने की इच्छा व्यक्त करने से पीछे नहीं रहते थे.

सन 2000 की बात है.उस वक्त तक मशहूर व सफलतम फिल्म निर्माता व निर्देशक सुनील दर्शन ‘इंतकाम’, ‘लुटेरे’, ‘अजय’ व ‘जानवर’ जैसी सफलतम फिल्में दे चुके थे. और अपनी नई फिल्म ‘‘एक रिश्ताः द बौंड आफ लव’’ पर काम कर रहे थे.पिता पुत्र के रिश्तों पर आधारित इस फिल्म में बेटे अजय कपूर के किरदार के लिए अक्षय कुमार को अनुबंधित कर चुके थे.पर व्यवसायी पिता विजय कपूर के किरदार के लिए वह कलाकार की तलाश में थे और किसी निर्णय पर नहीं पहुॅच पा रहे थे.

अचानक एक दिन जब सुनील दर्शन खुद कार चलाते हुए अपने घर से अपने आफिस की तरफ जा रहे थे,तभी उनके पास अमिताभ बच्चन का फोन आया और अमिताभ बच्चन ने उनके साथ काम करने की इच्छा जाहिर की.अब अपनी फिल्म के साथ महान कलाकार जुड़ने के लिए तैयार हो,तो सुनील दर्शन को और क्या चाहिए था.बात बन गयी.इस तरह अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार ने एक साथ पहली बार फिल्म ‘‘एक रिश्ता’’ में अभिनय किया था.

यह फिल्म 18 मई 2001 को प्रदर्शित हुई थी और इसने सफलता के नए मापदंड बनाए थे.फिल्म ‘एक रिश्ता’ एक ऐसी प्रेरक व विचारोत्तेजक कहानी थी कि इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद लोग सुनील दर्शन के पैर छूकर इस तरह की फिल्म बनाने के लिए उनका धन्यवाद अदा करते नजर आए थे.लंदन सहित कई पश्चिमी देशों के कई शहरों,जहां लोग अत्याधुनिक जीवन जीने में यकीन करते हैं,वहां भी इस फिल्म को देखने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा था.

अमिताभ बच्चन के फोन करने का वाकिया खुद निर्देशक सुनील दर्शन ने हमें बताया.सुनील दर्शन ने बताया-‘‘फिल्म ‘जानवर’ की सफलता के बाद मेरा आत्म विश्वास काफी बढ़ चुका था. मेरे पास अपनी लिखी हुई कुछ कहानियां थीं,मगर मैने सोचा नहीं था कि अब किस कहानी पर काम किया जाए.जबकि अक्षय कुमार को जल्दी थी. वह चाहता था कि मैं उसके साथ नई फिल्म जल्द शुरू करुं. एक दिन उसने मुझे अपने घर खाने पर बुलाया और पूछा कि अब मैं नया करने वाला हॅूं.हम दोनों एक दूसरे के आमन सामने बैठे हुए थे.मैने यूं ही उसे ‘एक रिश्ता’ की कहानी सुनानी शुरू कर दी.वह कहानी सुनते सुनते धीरे धीरे सोफे से खिसकते हुए नीचे जमीन पर आ गया और उसकी निगाहें मुझ पर टिकी हुई थीं.

मैने कहानी खत्म की और अक्षय ने कहा कि फिल्म कब शुरू होगी? मैने कहा कि यह तो कहानी का पहला ड्राफ्ट है. इस पर काम करना बाकी है.उसने कहा कि वह बेटे अजय का किरदार करना चाहेगा.फिर उसने पूछा कि पिता का किरदार कौन कर रहा है? मैने कहा कि अभी तक मैंने इस बारे में कुछ सोचा ही नही है. उसके बाद मैने कुछ लोगों से इस बारे में जिक्र किया कि वह मुझे पिता के किरदार के लिए कलाकार के नाम सुझाए.एक सप्ताह बाद एक दिन सुबह मैं अपने घर से आफिस की तरफ आ रहा था.मेरा फोन बजा तो मैने फोन उठा लिया. फोन पर अमिताभ बच्चन जी की आवाज थी.मैं उनकी आवाज तीस साल से सुनता आ रहा था,वही आवाज जब मेरे कान मंे गॅूंजी,तो मुझे कैसा लगा होगा,इसका अदाजा लगा सकते हैं.अचानक मेरा एक्साइटमेंट बढ़ गया.मैने अपनी कार सड़क के किनारे खड़ी की और उनसे बात की.अमिताभ बच्चन जी ने कहा कि, ‘क्या आपकी फिल्म में मेरे योग्य कोई किरदार होगा?’ मैने उनसे कहा कि सर,मैं आकर आपसे मिलता हॅूं.तब उन्होने मुझसे पूछ दिया कि मैं अभी कहां हूं? मैने बताया कि मैं घर से आफिस जा रहा हूॅं.तब उन्होने कहा कि रास्ते में ही उनका घर पड़ेगा.मैं उनसे मिलते हुए अपने आफिस जा सकता हूं.मैं अमिताभ बच्चन जी से मिला,उन्हे कहानी सुनायी.उन्होने उसी वक्त इस फिल्म में काम करने के लिए हामी भर दी.इस तरह मेरी फिल्म ‘एक रिश्ता’ का जन्म हुआ था.’’

फिल्म ‘‘एक रिश्ता’’ में अमिताभ बच्चन की बेटी और अक्षय कुमार की बड़ी बहन प्रीति का अति महत्वपूर्ण किरदार था,जिसके लिए सुनील दर्शन ने जुही चावला को साइन किया था.फिल्म की शूटिंग शुरू होने से एक दिन पहले पता चला कि जुही चावला गर्भवती हो गयी है.इस फिल्म को आठ माह के अंदर कई शिड्यूल में फिल्माया जाना था.इसलिए अब सुनील दर्शन को जल्द से जल्द जुही चावला के सारे दृश्य फिल्माने थे.मगर अमिताभ बच्चन ने अपनी सारी तारीखें करण जौहर को फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ के लिए दे रखी थीं.

इस समस्या का निदान खोजने के लिए सुनील दर्शन, अमिताभ बच्चन के पास पहुॅचे.सारी बात सुनने के बाद अमिताभ बच्चन ने कहा-‘‘मैं करण जोहर के साथ सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक रहूंगा.आप शाम सात बजे से रात दो बजे तक मेरे साथ शूटिंग कर सकते हो.’’अमिताभ बच्चन की बातें सुनकर सुनील दर्शन आश्चर्य में पड़ गए थे कि कोई कलाकार अच्छा काम करने के लिए इस कदर मेहनत कर सकता है.खैर,सुनील दर्शन ने फिल्म की शूटिंग शुरू की और चार माह के अंदर फिल्म पूरी कर ली. फिल्म जब प्रदर्शित हुई तो इसे आपेक्षा से अधिक सफलता मिली. लोग एअरपोर्ट या किसी पार्टी में मिलते,तो वह सुनील दर्शन के पैर छूकर धन्यवाद अदा करते हुए कहते कि उसने ‘एक रिश्ता’ को देखने के बाद अपने पिता या बेटे के साथ अपने रिष्ते सुधार लिए.

मां- भाग 2 : क्या बच्चों के लिए ममता का सुख जान पाई गुड्डी

‘‘ऐसा कर, बच्चों के साथ तू भी यहां रह ले. तुझे भी काम मिल जाएगा और बच्चे भी पल जाएंगे,’’ सुमनलता ने कहा.

‘‘मैं कहां आप लोगों पर बोझ बन कर रहूं, मम्मीजी. काम भी जानती नहीं और मुझ अकेली का क्या, कहीं भी दो रोटी का जुगाड़ हो जाएगा. अब आप तो इन बच्चों का भविष्य बना दो.’’

‘‘अच्छा, तो तू उस ट्रक ड्राइवर से शादी करने के लिए अपने बच्चों से पीछा छुड़ाना चाह रही है,’’ सुमनलता की आवाज तेज हो गई, ‘‘देख, या तो तू इन बच्चोें के साथ यहां पर रह, तुझे मैं नौकरी दे दूंगी या बच्चों को छोड़ जा पर शर्त यह है कि तू फिर कभी इन बच्चों से मिलने नहीं आएगी.’’

सुमनलता ने सोचा कि यह शर्त एक मां कभी नहीं मानेगी पर आशा के विपरीत गुड्डी बोली, ‘‘ठीक है, मम्मीजी, आप की शरण में हैं तो मुझे क्या फिक्र, आप ने तो मुझ पर एहसान कर दिया…’’

आंसू पोंछती हुई वह जमुना को दोनों बच्चे थमा कर तेजी से अंधेरे में विलीन हो गई थी.

‘‘अब मैं कैसे संभालूं इतने छोटे बच्चों को,’’ हैरान जमुना बोली.

गोदी का बच्चा तो अब जोरजोर से रोने लगा था और बच्ची कोने में सहमी खड़ी थी.

कुछ देर सोच में पड़ी रहीं सुमनलता फिर बोलीं, ‘‘देखो, ऐसा है, अंदर थोड़ा दूध होगा. छोटे बच्चे को दूध पिला कर पालने में सुला देना. बच्ची को भी कुछ खिलापिला देना. बाकी सुबह आ कर देखूंगी.’’

‘‘ठीक है, मम्मीजी,’’ कह कर जमुना बच्चों को ले कर अंदर चली गई. सुमनलता बाहर खड़ी गाड़ी में बैठ गईं. उन के मन में एक अजीब अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया कि क्या ऐसी भी मां होती है जो जानबूझ कर दूध पीते बच्चों को छोड़ गई.

‘‘अरे, इतनी देर कैसे लग गई, पता है तुम्हारा इंतजार करतेकरते पिंकू सो भी गया,’’ कहते हुए पति सुबोध ने दरवाजा खोला था.

‘‘हां, पता है पर क्या करूं, कभीकभी काम ही ऐसा आ जाता है कि मजबूर हो जाती हूं.’’

तब तक बहू दीप्ति भी अंदर से उठ कर आ गई.

‘‘मां, खाना लगा दूं.’’

‘‘नहीं, तुम भी आराम करो, मैं कुछ थोड़ाबहुत खुद ही निकाल कर खा लूंगी.’’

ड्राइंगरूम में गुब्बारे, खिलौने सब बिखरे पडे़ थे. उन्हें देख कर सुमनलता का मन भर आया कि पोते ने उन का कितना इंतजार किया होगा.

सुमनलता ने थोड़ाबहुत खाया पर मन का अंतर्द्वंद्व अभी भी खत्म नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें देर रात तक नींद नहीं आई थी.

सुमनलता बारबार गुड्डी के ही व्यवहार के बारे में सोच रही थीं जिस ने मन को झकझोर दिया था.

मां की ममता…मां का त्याग आदि कितने ही नाम से जानी जाती है मां…पर क्या यह सब झूठ है? क्या एक स्वार्थ की खातिर मां कहलाना भी छोड़ देती है मां…शायद….

सुबोध को तो सुबह ही कहीं जाना था सो उठते ही जाने की तैयारी में लग गए.

पिंकू अभी भी अपनी दादी से नाराज था. सुमनलता ने अपने हाथ से उसे मिठाई खिला कर प्रसन्न किया, फिर मनपसंद खिलौना दिलाने का वादा भी किया. पिंकू अपने जन्मदिन की पार्टी की बातें करता रहा था.

दोपहर 12 बजे वह आश्रम गईं, तो आते ही सारे कमरों का मुआयना शुरू कर दिया.

शिशु गृह में छोटे बच्चे थे, उन के लिए 2 आया नियुक्त थीं. एक दिन में रहती थी तो दूसरी रात में. पर कल रात तो जमुना भी रुकी थी. उस ने दोनों बच्चों को नहलाधुला कर साफ कपडे़ पहना दिए थे. छोटा पालने में सो रहा था और जमुना बच्ची के बालों में कंघी कर रही थी.

‘‘मम्मीजी, मैं ने इन दोनों बच्चों के नाम भी रख दिए हैं. इस छोटे बच्चे का नाम रघु और बच्ची का नाम राधा…हैं न दोनों प्यारे नाम,’’ जमुना ने अब तक अपना अपनत्व भी उन बच्चों पर उडे़ल दिया था.

सुमनलता ने अब बच्चों को ध्यान से देखा. सचमुच दोनों बच्चे गोरे और सुंदर थे. बच्ची की आंखें नीली और बाल भूरे थे.

अब तक दूसरे छोटे बच्चे भी मम्मीजीमम्मीजी कहते हुए सुमनलता के इर्दगिर्द जमा हो गए थे.

सब बच्चों के लिए आज वह पिंकू के जन्मदिन की टाफियां लाई थीं, वही थमा दीं. फिर आगे जहां कुछ बडे़ बच्चे थे उन के कमरे में जा कर उन की पढ़ाईलिखाई व पुस्तकों की बाबत बात की.

इस तरह आश्रम में आते ही बस, कामों का अंबार लगना शुरू हो जाता था. कार्यों के प्रति सुमनलता के उत्साह और लगन के कारण ही आश्रम के काम सुचारु रूप से चल रहे थे.

3 माह बाद एक दिन चौकीदार ने आ कर खबर दी, ‘‘मम्मीजी, वह औरत जो उस रात बच्चों को छोड़ गई थी, आई है और आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘कौन, वह गुड्डी? अब क्या करने आई है? ठीक है, भेज दो.’’

मेज की फाइलें एक ओर सरका कर सुमनलता ने अखबार उठाया.

‘‘मम्मीजी…’’ आवाज की तरफ नजर उठी तो दरवाजे पर खड़ी गुड्डी को देखते ही वह चौंक गईं. आज तो जैसे वह पहचान में ही नहीं आ रही है. 3 महीने में ही शरीर भर गया था, रंगरूप और निखर गया था. कानोें में लंबेलंबे चांदी के झुमके, शरीर पर काला चमकीला सूट, गले में बड़ी सी मोतियों की माला…होंठों पर गहरी लिपस्टिक लगाई थी. और किसी सस्ते परफ्यूम की महक भी वातावरण में फैल रही थी.

‘‘मम्मीजी, बच्चों को देखने आई हूं.’’

‘‘बच्चों को…’’ यह कहते हुए सुमनलता की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘मैं ने तुम से कहा तो था कि तुम अब बच्चों से कभी नहीं मिलोगी और तुम ने मान भी लिया था.’’

‘‘अरे, वाह…एक मां से आप यह कैसे कह सकती हैं कि वह बच्चों से नहीं मिले. मेरा हक है यह तो, बुलवाइए बच्चों को,’’ गुड्डी अकड़ कर बोली.

‘‘ठीक है, अधिकार है तो ले जाओ अपने बच्चों को. उन्हें यहां क्यों छोड़ गई थीं तुम,’’ सुमनलता को भी अब गुस्सा आ गया था.

Diwali Special: मेहमानों को परोसें कश्मीरी पनीर टिक्का

फैस्टिव सीजन के मौके पर अगर आप मेहमानों और अपनी फैमिली के लिए स्टार्टर में पनीर की डिश परोसना चाहते हैं तो कश्मीरी पनीर टिक्का की आसाना रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

800 ग्राम पनीर

10 हरीमिर्चें

1/2 छोटा चम्मच कालानमक

1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

100 ग्राम प्रौसैस्ड चीज

1 कप क्रीम

100 ग्राम काजू

2 छोटे चम्मच केसर का पानी

1 बड़ा चम्मच तेल

कालीमिर्च स्वादानुसार

नमक स्वादानुसार.

विधि

पनीर को 2 इंच के क्यूब्स में काट लें और अदरकलहसुन के पेस्ट, कालीमिर्च और नमक के मिश्रण से मैरिनेट करें. फिर चीज, काजू, क्रीम को ग्राइंड कर मिश्रण तैयार कर लें. इस मिश्रण में स्वादानुसार कालीमिर्च और नमक भी डालें. फिर इस मिश्रण में पनीर के टुकड़ों को मैरिनेट करें और ऊपर से केसर का पानी भी डालें. इस के बाद पनीर के टुकड़ों को स्कीवर्स में लगा कर तंदूर में रोस्ट कर सर्व करें.

मां- भाग 1 : क्या बच्चों के लिए ममता का सुख जान पाई गुड्डी

‘‘मम्मीजी, पिंकू केक काटने के लिए कब से आप का इंतजार कर रहा है.’’

बहू दीप्ति का फोन था.

‘‘दीप्ति, ऐसा करो…तुम पिंकू से मेरी बात करा दो.’’

‘‘जी अच्छा,’’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘हैलो,’’ स्वर को थोड़ा धीमा रखते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘पिंकू बेटे, मैं अभी यहां व्यस्त हूं. तुम्हारे सारे दोस्त तो आ गए होंगे. तुम केक काट लो. कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम है…अच्छे बच्चे जिद नहीं करते. अच्छा, हैप्पी बर्थ डे, खूब खुश रहो,’’ अपने पोते को बहलाते हुए सुमनलता ने फोन रख दिया.

दोनों पत्रकार ध्यान से उन की बातें सुन रहे थे.

‘‘बड़ा कठिन दायित्व है आप का. यहां ‘मानसायन’ की सारी जिम्मेदारी संभालें तो घर छूटता है…’’

‘‘और घर संभालें तो आफिस,’’ अखिलेश की बात दूसरे पत्रकार रमेश ने पूरी की.

‘‘हां, पर आप लोग कहां मेरी परेशानियां समझ पा रहे हैं. चलिए, पहले चाय पीजिए…’’ सुमनलता ने हंस कर कहा था.

नौकरानी जमुना तब तक चाय की ट्रे रख गई थी.

‘‘अब तो आप लोग समझ गए होंगे कि कल रात को उन दोनों बुजुर्गों को क्यों मैं ने यहां वृद्धाश्रम में रहने से मना किया था. मैं ने उन से सिर्फ यही कहा था कि बाबा, यहां हौल में बीड़ी पीने की मनाही है, क्योंकि दूसरे कई वृद्ध अस्थमा के रोगी हैं, उन्हें परेशानी होती है. अगर आप को  इतनी ही तलब है तो बाहर जा कर पिएं. बस, इसी बात पर वे दोनों यहां से चल दिए और आप लोगों से पता नहीं क्या कहा कि आप के अखबार ने छाप दिया कि आधी रात को कड़कती सर्दी में 2 वृद्धों को ‘मानसायन’ से बाहर निकाल दिया गया.’’

‘‘नहीं, नहीं…अब हम आप की परेशानी समझ गए हैं,’’ अखिलेशजी यह कहते हुए उठ खडे़ हुए.

‘‘मैडम, अब आप भी घर जाइए, घर पर आप का इंतजार हो रहा है,’’ राकेश ने कहा.

सुमनलता उठ खड़ी हुईं और जमुना से बोलीं, ‘‘ये फाइलें अब मैं कल देखूंगी, इन्हें अलमारी में रखवा देना और हां, ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहना…’’

तभी चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया था.

‘‘मम्मीजी, बाहर गेट पर कोई औरत आप से मिलने को खड़ी है…’’

‘‘जमुना, देख तो कौन है,’’ यह कहते हुए सुमनलता बाहर जाने को निकलीं.

गेट पर कोई 24-25 साल की युवती खड़ी थी. मलिन कपडे़ और बिखरे बालों से उस की गरीबी झांक रही थी. उस के साथ एक ढाई साल की बच्ची थी, जिस का हाथ उस ने थाम रखा था और दूसरा छोटा बच्चा गोदी में था.

सुमनलता को देखते ही वह औरत रोती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी, मैं गुड्डी हूं, गरीब और बेसहारा, मेरी खुद की रोटी का जुगाड़ नहीं तो बच्चों को क्या खिलाऊं. दया कर के आप इन दोनों बच्चों को अपने आश्रम में रख लो मम्मीजी, इतना रहम कर दो मुझ पर.’’

बच्चों को थामे ही गुड्डी, सुमनलता के पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ी थी तो यह कहते हुए सुमनलता ने उसे रोका, ‘‘अरे, क्या कर रही है, बच्चों को संभाल, गिर जाएंगे…’’

‘‘मम्मीजी, इन बच्चों का बाप तो चोरी के आरोप में जेल में है, घर में अब दानापानी का जुगाड़ नहीं, मैं अबला औरत…’’

उस की बात बीच में काटते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘कोई अबला नहीं हो तुम, काम कर सकती हो, मेहनत करो, बच्चोें को पालो…समझीं…’’ और सुमनलता बाहर जाने के लिए आगे बढ़ी थीं.

‘‘नहीं…नहीं, मम्मीजी, आप रहम कर देंगी तो कई जिंदगियां संवर जाएंगी, आप इन बच्चों को रख लो, एक ट्रक ड्राइवर मुझ से शादी करने को तैयार है, पर बच्चों को नहीं रखना चाहता.’’

‘‘कैसी मां है तू…अपने सुख की खातिर बच्चों को छोड़ रही है,’’ सुमनलता हैरान हो कर बोलीं.

‘‘नहीं, मम्मीजी, अपने सुख की खातिर नहीं, इन बच्चों के भविष्य की खातिर मैं इन्हें यहां छोड़ रही हूं. आप के पास पढ़लिख जाएंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह चोरीचकारी करेंगे. मुझ अबला की अगर उस ड्राइवर से शादी हो गई तो मैं इज्जत के साथ किसी के घर में महफूज रहूंगी…मम्मीजी, आप तो खुद औरत हैं, औरत का दर्द जानती हैं…’’ इतना कह गुड्डी जोरजोर से रोने लगी थी.

‘‘क्यों नाटक किए जा रही है, जाने दे मम्मीजी को, देर हो रही है…’’ जमुना ने आगे बढ़ कर उसे फटकार लगाई.

नशा: भाग 2- क्या रेखा अपना जीवन संवार पाई

क्लब का अंदर का दृश्य देख कर वह दंग रह गई थी. रंगीन जोड़े फर्श पर थिरक रहे थे. लोग जाम पर जाम लगा रहे थे यानी शराब पी रहे थे. सब नशे में चूर थे. ऐसा तो उस ने फिल्मों में ही देखा था. वह एकटक सब देख रही थी. दीपा के कहने पर उस ने शराब पी थी और वह भी पहली दफा. फिर तो हर दिन उस का औफिस में बीतता, तो शाम क्लब में बीतती.

दीपा शुरू में तो उस को अपने पैसे से पिलाती थी, बाद में उसी के पैसे से पीती थी. शनिवार और इतवार को वे दोनों रेखा के घर में ही पीतीं. रेखा जानती है कि वह गलत कर रही है, वहीं वह यह भी जानती है कि उस को अपने को रोक पाना अब उस के वश में नहीं है. शाम होते ही हलक सूखने लगता है उस का.

कई बार फूफी कह चुकी है- ‘इस दीपा का अपना घरबार नहीं है, यह दूसरों का घर बरबाद कर के ही दम लेगी. अरे, रेखा बीबी, इस औरत का साथ छोड़ो. बड़ी बुरी लत है शराब की. मेरा पति तो शराब पीपी के दूसरी दुनिया में चला गया. तभी तो मुझ फूफी ने इस घर में उम्र गुजार दी. बड़ी बुरी चीज है शराब और शराबी से दोस्ती.’

फूफी के ताने रेखा को न भाते. जी करता धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दे. लेकिन नहीं कर सकती ऐसा. यह चली गई तो घर कौन संभालेगा.

आज उसे घबराहट हो रही है, जब से अम्माजी ने सब बताया कि वे रिटायर होने वाली हैं. व्याकुल मन के साथ बड़ी देर तक बिस्तर पर करवटें बदलती रही. न जाने कब सोई, पता ही नहीं लगा. उधर, देवेश को जब से रेखा के बारे में पता लगा है, उस की व्याकुलता का अंत नहीं है. वहां जरमनी में स्त्रीपुरुष सब शराब पीते हैं, ठंडा मुल्क है. पर हिंदुस्तान में लोग इसे शौकिया पीते हैं. स्त्रियों का यों क्लबरैस्त्रां में पीना दुश्चरित्र माना जाता है.

देवेश को अम्मा ने जब से रेखा के बारे में बताया है, जरमनी में हर स्त्री उसे रेखा सी दिखती है. वह रैस्त्रां के आगे से गुजरता है तो लगता है, रेखा इस रैस्त्रां में शराब पी रही होगी. दूसरे ही क्षण सोचता- यहां रेखा कैसे आ सकती है?

औफिस में भी देवेश बेचैन रहता है. दिनरात सोतेजागते ‘रेखा शराबी’ का खयाल उस से जुड़ा रहता है. देवेश का जी करता है, अभी इंडिया के लिए फ्लाइट पकड़े और पत्नी के पास पहुंच जाए, बांहों में भर कर पूछे, ‘रेखा, तुम्हें जीवन में कौन सा दुख है जो शराब का सहारा ले लिया.’ देवेश कितनी खुशियां ले कर आया था जरमनी में. इंडिया में घर खरीदेंगे, मियांबीवी ठाट से रहेंगे. फिर बच्चे के बारे में सोचेंगे. मां भी साथ रहेंगी. किंतु क्यों? ये सब क्या हुआ, कैसे हुआ? किस से पूछे वह? जरमनी में तो उस का अपना कोई सगा नहीं है जिस से मन की बात कह भी सके.

वह इतना मजबूर है कि न तो रेखा से कुछ पूछ सकता है और न ही अम्मा से. बस, मन की घायल दशा से फड़फड़ा कर रह जाता है. उसे लग रहा है कि वह डिप्रैशन में जा रहा है. दोस्तों ने उस की शारीरिक अस्वस्थता देख उसे अस्पताल में भरती करा दिया था.

कुछ स्वस्थ हुआ तो हर समय उसे पत्नी का लड़खड़ाता अक्स ही दिखाई देता. घबरा कर आंखें बंद कर लेता. और, अम्माजी, उस दिन बेटे से बात करने के बाद ऊपर से तो सामान्य सी दिख रही थीं किंतु अंदर से उन को पता था वे कितनी दुखी हैं. पूरी रात सो न सकी थीं. बेचारी क्या करतीं. आज सुबह वे हमेशा की तरह जल्दी न उठीं.

रेखा जब औफिस चली गई तो बेमन से उठीं और स्टोर में घुस गईं. स्टोर कबाड़ से अटा पड़ा था. किताबें, कौपियां, न्यूजपेपर्स और न जाने क्याक्या पुराना सामान था. कबाड़ी को बुला कर सारा सामान बेच दिया सिर्फ एक बंडल को छोड़ कर. इसे फुरसत में देखूंगी क्या है.

सब काम खत्म कर के बंडल को झाड़झूड़ कर खोला. उन्हें लगता था किसी ने हाथ से कविताएं लिखी हैं. शायद यह रेखा की राइटिंग है. कविताएं ही थीं. देखा एक नहीं, 30-35 कविताएं थीं. उन्हें पढ़ कर वे स्तब्ध थीं.

सुंदर शब्दों के साथ ज्वलंत विषयों पर लिखी कविताएं अद्वितीय थीं. यानी, बहू कविताएं भी लिखती है. इस बंडल मे 2-3 पुस्तकें भी थीं. सभी रेखा की कृतियों का संग्रह थीं. अम्माजी कभी कविता संग्रह पढ़तीं, तो कभी हस्तलिखित रचनाओं को. इतनी गुणी है उन की बहू और वे इस से अब तक अनजान रहीं.

झाड़पोंछ कर उन्हें कोने में टेबल पर रख दिया. सोचा, शाम को बात करूंगी. क्यों बहू ने इस गुण की बात हम से छिपाई? कभीकभी हम अपने टेलैंट को छोड़ कर इधरउधर भटकते हैं. दुर्गुणों में फंस कर जीवन को दुश्वार बना लेते हैं.

रेखा के घर आने से पहले उन्होंने कई जगह फोन किए. दोपहर को बेटे देवेश का फोन आ गया, ‘‘कैसी हो अम्मा?’’

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘और रेखा?’’

‘‘वह अभी औफिस से लौटने वाली है. आएगी तो बता दूंगी. तू परेशान है उस को ले कर, यह मैं जानती हूं.’’

‘‘नहीं अम्मा, मैं ठीक हूं. बस, आने के दिन गिन रहा हूं.’’

‘‘नहीं, मैं जानती हूं, तू झूठ बोल रहा है. पर वादा करती हूं तेरे आने तक घर को संभालने की पूरी कोशिश करूंगी.’’ अम्मा की आंखों में आंसू आ गए थे.

‘‘अम्मा, ऐसा तो मैं ने कभी नहीं सोचा था कि धन कमाने की होड़ में परिवार को ही खो बैठूंगा.’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसा मत सोचो, सब ठीक हो जाएगा, धीरज रखो.’’ इस से आगे बात करना संभव न था. अम्माजी का गला आवेग से भर्रा गया था.

काम से रेखा लौट आई थी. चेहरे पर चिंता व परेशानी झलक रही थी. अम्माजी को रेखा की चिंता का विषयकारण पता था. अम्माजी ने बड़ी हिम्मत कर के कहा, ‘‘आज बहुत थक गई हो, काम ज्यादा था क्या?’’

‘‘नहीं अम्माजी, बस, वैसे ही थोड़ा सिरदर्द था. आराम करूंगी, ठीक हो जाएगा.’’

ऐसे में वे भला कैसे कहतीं कि आज इरा खन्ना से उन्होंने समय लिया है. वे हमारी राह देख रही होंगी.

‘‘अम्माजी, आप कहीं जाने के लिए तैयार हो रही हैं?’’

‘‘रेखा, आज मैं एक सहेली के पास जा रही थी, चाहती थी कि तुम भी साथ चलो.’’

‘‘नहीं, फिर कभी.’’

‘‘ठीक है जब तुम्हारा मन करे. पर वे तुम से ही मिलना चाहती थीं.’’

‘‘अच्छा? आप ने बताया होगा मेरे बारे में, तभी?’’

‘‘हां, मैं ने यही कहा था कि मेरी बहू लाखों में एक है. नेक, समझदार व दूसरों को सम्मान देने वाली स्त्री है. मेरी बहू से मिलोगी तो सब भूल जाओगी. है न बहू?’’ वह सास की बात पर मुसकरा रही थी, मन ही मन कहने लगी, यानी, अम्माजी को पता नहीं कि मैं दुश्चरित्रा हूं, मैं शराब पीती हूं, बुरी स्त्री हूं. यदि वे जान गईं तो घर से निकाल सकती हैं.

वैसे जो बात अभी अम्माजी ने अपनी सहेली से की थी, सुन कर उसे बहुत अच्छा लगा. मैं जरूर उन से मिलूंगी. पता नहीं, कब वह सो गई और अम्माजी, सोफे पर उसे सोया देख सोच रही थीं कि ये उठे तो मैं इस को साथ ले चलूं. फिर वे भी अंदर जा कर लेट गईं.

‘‘एक कप चाय बना दो, फूफी. सिरदर्द से फटा जा रहा है,’’ रेखा सोफे पर बैठी सोच रह थी कि उस की नजर कोने की मेज पर रखे एक बंडल पर पड़ी. बिजली सी चमक की तरह वह उछली, ‘‘फूफी, यह बंडल यहां क्यों रखा है? इसे मैं ने स्टोर में डाला था, क्यों निकाला?’’ वह लगभग चीख पड़ी.

‘‘क्या हुआ, बेटा? यह बंडल स्टोर में था. मैं ने आज स्टोर की सफाई की तो निकाल कर देखा, इस में कविताएं व कुछ और भी था…सारा झाड़कबाड़ बेच दिया, इस को फेंकने का मन न किया. सोचा, तुम आओगी तो तुम से पूछ कर ही कुछ सोचूंगी.’’

‘‘पूछना क्या है, इसे भी कबाड़ में फेंक देतीं. क्या करूंगी इन सब का? अब सब खत्म हो गया.’’

उस के स्वर में वितृष्ण से अम्माजी को समझते देर न लगी कि इस बंडल से जुड़ा कोई हादसा अवश्य है जिसे मैं नहीं जानती, पर जानना जरूरी है.

‘‘बेटा, बोलो, क्या बात है जो इतनी सुंदर रचनाओं को तुम ने रद्दी में फेंक दिया?’’ अम्मा ने फिर पुलिंदा मेज पर ला रखा.

‘‘छोड़ो अम्माजी, इस पुलिंदे को ले कर आप क्यों परेशान हैं? छोड़ो ये सब रचनावचना,’’ कहतेकहते उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘बेटा, मैं तेरी सासूमां हूं. क्या बात है जो तू इतनी दुखी है और मुझे कुछ भी नहीं पता? क्या सबकुछ खुल कर नहीं बताओगी?’’

‘‘क्या कहूं अम्माजी. आप को यह तो पता ही है कि मेरे पापा बहुत बड़े साहित्यकार थे. परिवार में साहित्यिक माहौल था. मुझे पढ़ने व लिखने का जनून था. कितने ही साहित्यकारों से मेरे पिता व रचनाओं के जरिए परिचय था. मेरी शादी से पहले मेरे 3 कविता संग्रह व एक कहानी संग्रह छप चुके थे. मेरे काम को काफी सराहा गया था. एक पुस्तक पर मुझे अकादमी पुरस्कार भी मिला था. बहुत खुश थी मैं.’’

नशा: भाग 3- क्या रेखा अपना जीवन संवार पाई

रेखा ने बात जारी रखी, ‘‘सोचती थी देवेश को दिखाऊंगी तो गर्व करेंगे पत्नी पर. शादी के बाद जब मैं ने अपनी रचनाओं तथा पुस्तकों का उन से जिक्र किया तो वे बोले, ‘छोड़ो ये सब, मुझे तो तुम में रुचि है. ये आंखें, ये गुलाबी कपोल, खूबसूरत देह मेरे लिए यही कुदरत की रचना है.’

‘‘‘छोड़ो सब बेकार के काम, तुम्हारे लिए एक अच्छी सी नौकरी ढूंढ़ता हूं. समय भी कट जाएगा और बैंक बैलेंस भी बढ़ेगा.’

‘‘मैं समझ गई कि देवेश की सोच का दायरा बहुत सीमित है. उस वक्त मैं चुप रह गई. हालांकि उन की बात मेरे लिए बहुत बड़ा आघात थी. लेकिन अपने को रोक पाना मेरे लिए मुश्किल था. मेरा अंदर का लेखक तड़पता था.

‘‘छिपछिप कर कुछ रचनाएं लिखीं, भेजीं और छपी भी थीं. छपी हुई रचनाएं जब देवेश को दिखाईं तो वे मुझी पर बरस पड़े, ‘यह क्या पूरी लाइब्रेरी बनाई हुई है. लो, अब पढ़ोलिखो…’ इन्होंने मेरी किताबों को आग के हवाले कर दिया.

‘‘मेरी आंखों में खून उतर आया लेकिन चुप रही. आप बताइए जो व्यक्ति जनून की हद तक किसी टेलैंट को प्यार करता हो, उस का जीवनसाथी ऐसा व्यवहार करे तो परिणाम क्या होगा?

‘‘सपना था मेरा प्रथम श्रेणी की लेखिका बनने का, पर वह बिखर गया. हताश हो मैं ने इस बंडल को इस स्टोर में डाल फेंका.

‘‘पति के जरमनी जाने के बाद कई बार सोचा कि फिर से शुरू करूं, अकेलापन दूर करने का यही एक साधन था मेरे पास. लेकिन इसी बीच दीपा से मेरा संपर्क हुआ. और मैं नशे में डूबती चली गई. अब तो पढ़नेलिखने का जी ही नहीं करता. अम्माजी, यह है इस बंडल की कहानी.’’ रेखा की आंखें डबडबा गई थीं.

अम्माजी को लगा कि आज पहली बार उस ने नशे की बात को स्वीकारा है. निश्चय ही जो यह कह रही है, वह सच है. जरा भी मिलावट नहीं है. और बेटे देवेश के लिए जो इस ने कहा, वह भी सच ही होगा. सुन कर उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि शुरू से देवेश को सिर्फ पैसे से प्यार है. पैसे के अभाव में उस ने मुश्किल के दिन देखे हैं, सो, उस के जीवन का मकसद सिर्फ पैसा कमाना है.

इस के अलावा यह हो सकता है कि आघात पाने के बाद, रेखा ने सोचा हो, शराब में अपने को डुबो कर वह पति से बदला लेगी. या शायद अकेलेपन से घबरा कर उस ने यह रास्ता अपनाया हो.

यह तो अम्माजी को पता था कि एक बार बच्चे को ले कर दोनों में काफी खींचातानी हुई थी. देवेश बच्चा नहीं चाहता था, ‘जब तक घर अपना नहीं होगा मैं बच्चा नहीं चाहता.’ जबकि रेखा का कहना था, ‘बच्चा घर में होगा तो मैं व्यस्त रहूंगी, खालीपन मुझे काटने को दौड़ता है.’ जो भी हो, इस वक्त तो कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा कि जिस से रेखा के पीने की आदत पर रोक लग सके.

यहां मैं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि पति की उस के टेलैंट के प्रति उपेक्षा सब से बड़ा कारण है. उत्साह व बढ़ावा देने की जगह देवेश ने उस की मानसिक जरूरत पर ध्यान नहीं दिया है, बस उसी का परिणाम ‘पीना’ लगता है. यह सोचतेसोचते अम्माजी ने एक बार फिर बड़े प्यार से उस से कहा, ‘‘बेटा, तुम मेरे साथ इरा के घर चलोगी? बड़ी समझदार महिला हैं, साथ ही मेरी बचपन की सहेली भी. वे तुम से मिलने को उत्सुक हैं.’’

‘‘ठीक है, चलती हूं.’’

कुछ देर बाद दोनों इरा के सामने थीं. वह इरा को देख कर अवाक थी. ये तो इतनी जबरदस्त लेखिका हैं, इन से तो लोग मिलने के लिए लाइन लगा कर खड़े होते हैं. ये मुझ से मिलना चाहती थीं. लोग अपनी पुस्तक के लिए इन से दो लाइनें लिखाने को घंटों इंतजार करते हैं. अम्माजी ने रेखा का परिचय कराया तो रेखा कहे बिना न रह सकी, ‘‘इराजी को कौन नहीं जानता, सारे साहित्य जगत में इन के लेखन की धूम है.’’ तभी अम्माजी ने वह बंडल इरा की मेज पर रखा, ‘‘इरा, मैं ने तुझे बताया था कि मेरी बहू भी लिखती है.’’

‘‘हां, बताया था.’’

‘‘ये हैं इस की कुछ रचनाएं और कुछ पुस्तकें.’’

रेखा लगातार इरा को देख रही थी. इरा रेखा की रचनाओं को पढ़ रही थीं. पढ़ने के बाद मुसकरा कर बोलीं, ‘‘अद्भुत. मैं हैरान हूं इतनी सी उम्र में, इतना सुंदर शब्द चयन, विषय चयन, और प्रस्तुति. मैं ने तो कितनी ही किताबें छपवाई हैं पर ऐसी रचनाएं… वाह.

‘‘बेटा, इस को आप मेरे पास छोड़ जाओ. कल तुम्हें फोन पर डिटेल बताऊंगी. फिर भी अल्पना, मैं यह भविष्यवाणी करती हूं कि ऐसे ही ये लिखती रही तो एक दिन ये उभरती हुई रचनाकारों की श्रेणी में उच्चतम स्तर पर होगी.’’

इरा से मुलाकात के बाद सासूमां के साथ रेखा लौट आई. रेखा को रास्ते भर यही लगा कि इराजी अभी भी वही वाक्य दोहरा रही हैं, ‘ऐसे ही ये लिखती रही…’

घर पहुंच कर वह अपने मन को टटोलती रही थी. यह कैसी भविष्यवाणी थी जिस ने उस के मन में खुशियां और उत्साह के फूल बरसाए थे. इतनी बड़ी लेखिका के मुंह से ऐसी तारीफ. सपने में भी वह आज की मुलाकात के मीठे सपने देखती रही थी.

सुबहसवेरे, आज उस ने अटैची में रखी कुछ और रचनाओं को निकाला था. उन्हें भी ठीकठाक कर के मेज पर छोड़ा था. तभी फोन की घंटी बज उठी-

‘‘मैं इरा बोल रही हूं. कल आप जिन रचनाओं को छोड़ गई थीं उन्हें मैं ने एक पुस्तक के रूप में सुनियोजित करने को दे दी हैं. पुस्तक का नाम मैं अपने अनुसार रखूं तो आप को आपत्ति तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं मैम, नहीं, कभी नहीं.’’

‘‘हां, एक बात और, साहित्यकार मीनल राज और प्रिया से इन कविताओं के लिए दो शब्द लिखवाने का निश्चय हम ने किया है. बाकी मिलोगी, तो बताऊंगी.’’

उसे लगा वह सपना देख रही है- मीनल राज और प्रिया, इतने दिग्गज लेखक हैं दोनों. खुशी उस के अंगअंग से फूट रही थी. वह बैठेबैठे मुसकरा रही थी.

‘‘अरे, क्या हुआ? किस का फोन था?’’ अम्माजी ने पूछ ही लिया, ‘‘इतनी क्यों खुश है?’’

‘‘वो, इरा मैम का फोन था. वे कह रही थीं…’’ उस ने सारी बात सासूमां को बताई.

उस के चेहरे पर थिरकती प्रसन्नता इस बात का सुबूत थी कि वह इसी की तलाश में थी. और उस ने रास्ता पा लिया है अपने खोए जनून और टेलैंट के लिए.

इस के बाद वह कई बार इरा मैम के पास गई. कभीकभी सारा दिन उन की लाइब्रेरी में पढ़ती रहती. पुस्तकों व रचनाओं को ले कर इरा मैम से विचारविमर्श करती.

इस बीच, दीपा कई बार उस के घर आई पर रेखा की सासू मां ने कहा, ‘‘बेटा, वह अब तुम्हारे चंगुल में कभी नहीं फंसेगी, जाओ…’’

2 महीने बाद, रेखा को एक लिफाफा मिला. उस में 20 हजार रुपए का एक ड्राफ्ट था और एक पत्र भी. पत्र में लिखा था-

‘‘प्रिय रेखा,

‘‘तुम्हारी 2 पुस्तकों के प्रकाशन कौपीराइट की कीमत है, स्वीकार लो. अगले महीने हम और तुम जयपुर पुस्तक मेले में जा रहे हैं.

‘‘एक और खुशखबरी है, समीक्षा हेतु तुम्हारी दोनों

पुस्तकों को कुछ पत्रपत्रिकाओं में भेजी है. ये पत्रिकाएं भी तुम्हारे पास जल्द ही पहुंचेंगी.

‘‘शुभकामनाओं सहित

इरा.’’

ड्राफ्ट देख उस की बाछें खिल गईं. ‘अम्माजी के हाथ में दूंगी, यह उन की मेहनत का फल है.’ यह सोच कर रेखा पीछे मुड़ी तो पाया, उस के हाथ में ड्राफ्ट देख अम्माजी मुसकरा रही थीं, ‘‘मिल गया ड्राफ्ट?’’

‘‘आप को कैसे पता?’’

‘‘कल शाम को इरा का फोन आया था. उस ने मुझे इस ड्राफ्ट के बारे में बताया था.’’

वे अभी भी मुसकरा रही थीं, शायद अपनी जीत पर.

‘‘लेट्स सैलीब्रेट, अम्माजी,’’ रेखा की खुशी देखते ही बनती थी.

‘‘अरे, आज तो खुल जाए बोतल,’’ अम्माजी ने चुटकी ली.

‘‘छोड़ो अम्माजी, जितना नशा मुझे आज चढ़ा है इस ड्राफ्ट से, उतना बोतल में कहां? आज हम दोनों डिनर बाहर करेंगे, आप की प्रिय मक्की की रोटी और सरसों का साग. साथ में…’’ वह अम्माजी की ओर देख रही थी. ‘‘मक्खन मार के लस्सी…’’ अम्माजी ने उस की बात पूरी की और खुशी से बहू को सीने से लगा लिया.

औकात से ज्यादा: सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे का सच जान पाई निशा

family story in hindi

आसान नहीं शादी की राह

आजकल शादी करते हुए युवाओं को कुछ ज्यादा समझदारी और होशियारी से काम लेना होगा. अक्तूबर के पहले सप्ताह में एक पति ने आगरा के पुलिस थाने में गुहार लगाई कि उस की नईनवेली पत्नी पैसे और जेवर ले कर भाग गई और अब मायके वालों की सहमति से अपने किसी प्रेमी के साथ रह रही है.

पति ने बताया कि उसे शादी से पहले बता दिया गया था कि लड़की के पीछे कोई मजनूं पड़ा है पर युवक की हिम्मत नहीं हुई कि वह संबंध को तोड़े. फिर ऐसे मामलों में सैक्स आकर्षण ऐसा होता है कि अधिकांश युवक होने वाली पत्नी की हर सच्ची झूठी बात को मान लेते हैं.

बाद में पति को छोड़ कर गई लड़की की उस प्रेमी से भी नहीं बनी. अब दोनों पतिपत्नी अधर में लटके हैं और पुलिस थानों के चक्कर काट रहे हैं. कब पुलिस किसे गिरफ्तार कर ले, यह भी नहीं कहा जा सकता.

इसी तरह बिहार के वैशाली जिले में एक विवाहित साली और जीजा ने मिल कर साली के पति को गोली से मरवा दिया ताकि जीजासाली का संबंध बना रहे. साली को यह चिंता नहीं कि उस की बहन का क्या होगा. उसे तो आदमी को पाना था जिस की शादी कुछ महीने पहले हुई थी.

शादी से पहले के संबंध किस के किस के साथ थे और कैसे थे, यह जानना जरूरी है पर आज जब लड़कों को लड़कियां नहीं मिल रहीं और लड़कियों को लड़के तो यह सोचने की फुरसत किसी को नहीं होती कि खुद साथी ढूंढ़ें या मांबाप के ढूंढ़े साथी की बैक चैक करें.

भारत में आजकल 1,500 मैट्रिमोनियल साइट्स हैं और बहुतों ने एक से ज्यादा साइट्स पर अपने अकाउंट खोले हुए हैं. करोड़ों युवा अपना जीवनसाथी ढूंढ़ रहे हैं. उस के लिए वे अपना पैसा रजिस्ट्रेशन में खर्च करते हैं और फिर खुद की अपग्रेड कराने में ताकि बेहतर नाम मिल सके. मैट्रिमोनियल साइट्स 20 अरब रुपए का धंधा कर रही हैं जो इस लड़कालड़की ढूंढ़ने की समस्या का एक पहलू बताता है.

विवाह पर पहले छानबीन न करो तो ऊपर के 2 मामलों की तरह जीवन के कई कीमती साल अदालतों, जेलों, वकीलों के साथ गुजर सकते हैं. मैट्रिमोनियल साइट्स या परिचित पंडित भी अब जम कर धोखा देते हैं क्योंकि वे भी कमीशन बेसिस पर काम करते हैं और उन्होंने बड़ी मार्केटिंग टीम रखी है.

जब युवकयुवतियों की इस तरह की कमी हो तो कल जिस ने हां की उस की जांचपड़ताल का जोखिम कौन कैसे ले सकता है? जो थोड़ीबहुत डिटैक्टिव ऐजेंसियां हैं वे भी फ्रौड करती हैं और नकली रिपोर्ट बना कर उस से पैसे ले लेती हैं. पतिपत्नी के होने वाले संबंध में जांचपड़ताल पहले ही खटास पैदा कर देती है.

वैवाहिक अपराधों के लिए इंडियन पीनल कोड की धाराएं 415, 416, 417 व 419 हैं पर कानून की किताब में कुछ लिखे होने का मतलब यह नहीं होता कि सबकुछ ठीक हो जाएगा या अदालत ठीक करा देगी. अदालती दखल आमतौर पर दोनों पक्षों को और रिजिड बना देता है और संबंध बनाए रखने के बजाय ईगो आगे आ जाता है.

विवाह को चाहे जितना ईश्वर की देन समझ जाए और चाहे जितनी उस पर धार्मिक लागलपेट की जाए पौराणिक युग से ले कर आज तक विवाह का संबंध पहले दिन से ही प्रगाढ़ और विश्वसनीय बन जाए जरूरी नहीं है. हर विवाह में बहुत से तथ्यों को देखना होता है जो न घर वाले देखते हैं, न बिचौलिए पंडित, न मैट्रिमोनियल साइट्स बैक चैक करने में विश्वास रखती हैं.

आज के युवाओं के लिए यह एक बड़ी समस्या बनती जा रही है कि कब किस से शादी करें. हर मामले में कोई पेंच नजर आता है. हमारे यहां तो जाति, उपजाति, गोत्र, भाषा, धर्म का मामला भी है. 140 करोड़ के देश में एक युवक या युवती को मनचाहा साथी मिल जाए यह बड़ी बात है. फिर भी विवाह हो रहे हैं. अरबों उन पर खर्च किए जा रहे हैं, यही खुशी की बात है.

Diwali Special: फैस्टिव सीजन में बनाएं रसमलाई

फेस्टिव सीजन में अगर आप दुकानों वाली रसमलाई का स्वाद चखना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके काम की है, जिसे आप आसानी से परोस सकते हैं.

सामग्री

8 छेने के रसगुल्ले

1/2 लिटर दूध

20 ग्राम चीनी

1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

2-3 बूंदें केवड़ा वाटर

गार्निशिंग के लिए जरूरतानुसार बादाम व पिस्ते के टुकड़े

विधि

रसगुल्लों को हलके हाथों से प्रैस कर के उन का रस निकाल कर अलग कर लें. दूध को कुछ देर उबालने के बाद चीनी व इलायची पाउडर मिला दें.

फिर इस में रसगुल्ले डाल कर कुछ देर और उबालें. अब केवड़ा वाटर मिला कर आंच से उतार लें. पिस्ता व बादाम से सजा कर परोसें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें