Diwali Special: फैमिली के लिए बनाएं कस्टर्ड कसाटा

इस दीवाली आप कस्टर्ड कसाटा जरूर ट्राई करें. यह स्वादिष्ट होने के साथ साथ खाने में भी लाजवाब है.

सामग्री

1/3 कप कस्टर्ड पाउडर

1/3 कप चीनी

1/3 कप पानी

3 सफेद ब्रैड किनारे कटी हुई

3 कप दूध

2 बड़े चम्मच काजू

पिस्ता व बादाम कटे हुए

2 बड़े चम्मच टूटीफ्रूटी

विधि

दूध में ब्रैड भिगो अच्छी तरह मैश कर लें. कस्टर्ड पाउडर, चीनी और पानी मिला कर घोल तैयार करें. एक नौनस्टिक पैन में आंच पर अच्छी तरह घोटें. गाढ़ा बन जाए. तब इसे निकाल लें.

अब दूधब्रैड वाला मिश्रण आंच पर घोटें. थोड़ा सा गाढ़ा हो जाए तो उसे भी निकाल लें. कस्टर्ड पाउडर वाले मिश्रण को ब्रैड वाले मिश्रण में मिला कर चर्न करें ताकि एकसार हो जाए.

ठंडा करें फिर एक ऐल्यूमिनियम के बरतन जिस में आइसक्रीम जमाते हैं उस में ड्राईफू्रट और टूटीफ्रूटी डाल कर फ्रीजर में रख दें. 6-7 घंटों में कस्टर्ड कसाटा तैयार हो जाएगा.

तोहफा: भाग 3- रजत ने सुनयना के साथ कौन-सा खेल खेला

वहां पहुंच कर रजत एक सोफे में धंस गया उस ने सुनयना को अपनी गोद में ले कर उसे अपनी बांहों में भींच लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा. फिर बोला, ‘‘अगर तुम राजी हो जाओ तो यह घर हमारा ‘लव नैस्ट’ बन सकता है. हम दोनों यहां एक कबूतरकबूतरी की तरह गुटरगूं करेंगे.’’

सुनयना ने रजत की गिरफ्त से अपनेआप को छुड़ाने की कोशिश की तो रजत ने उसे और कस लिया, ‘‘क्यों न तुम मेरे साथ रशिया चली चलो. वहीं हनीमून मनाएंगे,’’

‘‘बगैर शादी के हनीमून?’’

‘‘फिर वही शादी की रट. तुम पर तो शादी का भूत सवार है. मैं तो सुनसुन कर बोर हो गया.’’

‘‘रजत तुम इस विषय में मेरे विचार भलीभांति जानते हो. मैं मध्यवर्गीय लड़की हूं. मेरी कुछ मान्यताएं हैं. मैं लीक से हट कर कुछ करना नहीं चाहती. मेरे मातापिता के दिए कुछ संस्कार हैं जिन्हें मैं नकार नहीं सकती. हम जिस समाज में रहते हैं उन के नियमों को मैं नजरअंदाज नहीं कर सकती. मु?ो लोकलाज का भय है, लोगों के कहने की चिंता है.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम्हें मुझ से ज्यादा औरों की परवाह है.’’

‘‘तुम मेरी बातों का गलत मतलब क्यों लगाते हो? तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां, चाहो तो आजमा कर देखो.’’

‘‘तुम सचमुच मुझ से बेइंतहा प्यार करती हो?’’

‘‘कहा तो. अब तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं. कहो तो अपना कलेजा चीर कर दिखा दूं, चाहो तो इस 8वीं मंजिल से कूद जाऊं.’’

‘‘ओ नो. तुम अपनी जान दे दोगी तो मेरा क्या होगा? तुम्हारा यह सुंदर शरीर बेजान हो जाएगा तो मैं कैसे जियूंगा?’’

‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो न? ठीक है, आज मैं अपनेआप को तुम्हें सौंपती हूं.’’

‘‘अरे…’’

‘‘हां रजत यह एक नारी की सब से बड़ी कुरबानी है. उस की अस्मत उस की सब से बड़ी पूंजी है. शादी के बाद वह अपना तनमन अपने पति को अर्पण करती है. उस की हो कर रहती है. मैं आज अपने उसूलों को ताक पर रख कर, आदर्शों को भुला कर, बिना फेरों के, बिना किसी शर्त अपनेआप को तुम्हारे हवाले करती हूं.’’

‘‘अरे सुनयना यह तुम्हें आज क्या हो गया है?’’

‘‘बस मैं ने तय कर लिया है. चलो उठो, तुम्हारा बैडरूम कहां है, वहां चलते हैं,’’ कह कर वह उठ खड़ी हुई और रजत का हाथ पकड़ कर खींचने लगी.

‘‘सुनयना तनिक रुको. मेरी बात सुनो. मैं सैक्स का भूखा नहीं हूं. मुझे लड़कियों की कमी नहीं है. मेरे पैसों की खनक से लड़कियां मेरी ओर खुदबखुद खिंची चली आती हैं और मेरे एक इशारे पर मेरे सामने बिछने को तैयार हो जाती हैं. अगर तुम सचमुच मुझ से प्यार करती हो तो तुम्हें कुछ और करना होगा.’’

‘‘बोलो मुझे क्या करना होगा?’’ सुनयना ने अधीर हो कर कहा.

‘‘जो कहूंगा वह करोगी?’’

‘‘कह तो दिया.’’

‘‘हूं जरा सोचने दो…हां सोच लिया. तुम मेरे दोस्त की हमबिस्तर बनोगी?’’

सुनयना स्तंभित हुई. वह अवाक रजत की ओर ताकने लगी.

‘‘रजत यह कैसा मजाक है?’’ उस ने कुढ़ कर कहा.

‘‘मजाक नहीं मैं बिलकुल सीरियस हूं.’’

‘‘लेकिन यह कैसी अजीब मांग है तुम्हारी. मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं, तुम मुझे अपने दोस्त को सौंप रहे हो. मुझे अपने दोस्त की बांहों में देख कर तुम्हें बुरा नहीं लगेगा, जलन नहीं होगी?’’

‘‘नहीं, क्योंकि तुम मेरी रजामंदी से ही यह कदम उठाओगी.’’

‘‘और उस के बाद क्या तुम तुझे स्वीकार कर लोगे?’’

‘‘अवश्य.’’

‘‘क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगेगा कि मैं अब पाकसाफ, अनछुई नहीं हूं, मेरा कौमार्य भंग हो चुका है?’’

रजत हंसने लगा, ‘‘डार्लिंग, तुम किस जमाने की बात कर रही हो पाकसाफ , अनछुई, दूध की धुली. आज के जमाने में इन घिसेपिटे शब्दों का कोई अर्थ नहीं. हमें जमाने के साथ चलना चाहिए.’’

‘‘तो तुम्हारे कहने के अनुसार आधुनिक होने का मतलब है बेशर्मी से इस के और उस के साथ जिस्मानी सबंध बनाना. फिर इंसान में और पशुओं में फर्क ही क्या रहा?’’

‘‘अब तुम से कौन माथापच्ची करे,’’ रजत ने झुंझला कर कहा, ‘‘तुम तो बाल की खाल निकालती हो.’’

‘‘ठीक है, उस दोस्त का नाम तो बताओ,सुनयना ने थोड़ी देर बाद कहा.

‘‘हां अब आईं तुम लाइन पर,’’ रजत कुटिलता से मुसकराया, ‘‘मेरे दोस्त का नाम है मोहित. तुम जानती हो उसे. हमारे कालेज में ही पढ़ता था और मेरा जिगरी दोस्त है वह. मरीन ड्राइव पर रहता है और आयकर विभाग में काम करता है. अगले हफ्ते उस का जन्मदिन है और मैं चाहता हूं कि तुम मेरी ओर से उस का तोहफा बन कर जाओ.’’

‘‘तोहफा?’’ उस की आंखें बरसने लगीं, ‘‘रजत, क्या तुम्हें मुझ में और एक बेजान वस्तु में कोई फर्क नहीं लगता? मैं एक हाड़मांस से बना जीव हूं. तुम मेरे सामने इतना घिनौना प्रस्ताव रख मेरे अहं को चोट पहुंचा रहे हो. मुझ पर तरस खाओ प्लीज, मेरा इतना कड़ा इम्तिहान न लो,’’ कह कर वह गिड़गिड़ाई लेकिन रजत ने उस की बातें अनसुनी कर दीं.

घर पहुंच कर वह उधेड़बुन में पड़ गई. रजन ने अपने प्रस्ताव से एक अजीब समस्या खड़ी कर दी थी. अब वह क्या करे? क्या रजत का कहना मान ले? वह रजत को समझ नहीं पा रही थी. शादी का मतलब होता है एकदूसरे के प्रति वफादार हो कर रहना. यहां रजत उसे अपने दोस्त की बांहों में ठेल रहा था. शादी के बाद यदि वह उस से कहेगा कि डार्लिंग आज मेरे दोस्तों का मनोरंजन कर दो, तो वह क्या करेगी?

अंतिम पड़ाव का सुख- भाग 1: क्या गलत थी रेखा की सोच

सुधीर का पत्र न जाने मैं ने कितनी बार पढ़ा होगा. हर बार एक सुखद सुकून का एहसास हो रहा था. फिर अपने वतन से आए पत्र की महक कुछ अलग ही होती है.

भारत से दूर अमेरिका में बसे मुझे करीब 3 साल हो गए. पत्र पढ़ने के बाद मुझे एक साल पहले की घटना याद आ गई जब मैं विवाह के बाद पहली बार भारत अपने पीहर गई थी. सप्ताहभर तो लोगों से मिलनाजुलना ही चलता रहा. रिश्तेदार मुझ से मिलने आते, पर मुझे सादे लिबास में देख कर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते, ‘अरे, तुम तो पहले जैसी ही हो.’

तमाम रिश्तेदारों को आश्चर्य होता कि विदेश जाने के बाद भी मुझ में फर्क क्यों नहीं आया. मैं उन की बातों पर हंस पड़ती, क्या विदेश जाने से अपनी सभ्यता को कोई भूल जाता है. जहां जन्म हुआ हो, वहां के संस्कार तो कभी मिट ही नहीं सकते. अपनी मिट्टी

की महक मेरे मन में इतनी अधिक समाई हुई थी कि अमेरिका में रहते

हुए भी कभी भारत को पलभर भी न भुला पाई.

जब मेलमुलाकातों का सिलसिला कुछ कम हुआ तो एक शाम मैं छत पर टहलने चली गई. हर घर को मैं बड़े गौर से देख रही थी, कहीं कुछ बदलाव नहीं हुआ था. तभी मैं सामने के घर से एक अपरिचित महिला को कपड़े उतारते हुए देखने लगी. इतने में मां भी छत पर आ गईं. मैं उस महिला को देखती हुई उन से पूछ बैठी, ‘सुरेशजी के घर में मेहमान आए हैं क्या?’

‘अब तुम तो 2 साल बाद लौटी हो. तुम्हें इधर की क्या खबर?’ मां कपड़े उतारती हुई बोलीं, ‘सुरेशजी तो सालभर पहले ही यह मकान खाली कर चुके हैं. नए लोग आ बसे हैं. इन की लड़की सुमन हर रोज शीबा के पास आती है. शीबा की अच्छी दोस्ती है. रोज शाम को दोनों मिलती हैं. कभी वह आ जाती है तो कभी शीबा उस के घर चली जाती है,’ फिर वे मेरी ओर देख कर बोलीं, ‘अब नीचे चलो, मैं चाय बना देती हूं.’

‘थोड़ी देर में आती हूं,’ कहते हुए मैं छत पर टहलने लगी.

शीबा मेरी छोटी बहन का नाम है, उसी ने मेरा सुमन से परिचय कराया था. मेरी दृष्टि उस औरत पर ही टिकी रही. उस की उम्र 37-38 वर्ष के करीब होगी, पर सुंदरता अभी भी लाजवाब थी. देखने में अपनी उम्र से वह काफी छोटी लग रही थी. मैं तो उस की लड़की को नजर में रख कर अनुमान लगा रही थी कि जब उस की बेटी बीए में पढ़ रही है तो उस की उम्र यही होनी चाहिए. शायद यह औरत विधवा थी, तभी तो न माथे पर बिंदिया थी, न मांग में सिंदूर और न ही गले में मंगलसूत्र.

तभी पक्षियों का एक झुंड मेरे ऊपर से गुजरा. सुबह के थकेहारे पक्षी अपनेअपने घोंसलों की ओर जा रहे थे. आसमान साफ नजर आ रहा था. तभी मैं ने देखा, एक विमान धुएं की लकीर छोड़ता उड़ा जा रहा है. बच्चे अपनीअपनी पतंगों को वापस खींच रहे थे. सूर्य भी धीरेधीरे डूबता जा रहा था.

मां की आवाज सुन कर मैं सीढि़यां उतरने लगी. नीचे हाल में शीबा और सुमन टीवी देखते हुए पकौड़े खा रही थीं. मैं सुमन की ओर देखते हुए बोली, ‘तुम्हारी मां बहुत खूबसूरत हैं.’

‘हां, हैं, तो,’ सुमन ने बोझिल स्वर में कहा.

थोड़ी देर सुमन बैठी रही. शीबा की बातों का भी वह अनमने ढंग से उत्तर देती रही. कुछ क्षणों के बाद वह शीबा से बोली, ‘मैं घर जा रही हूं.’

शीबा ने उसे रोकने की कोशिश न की. उस के जाने के बाद मैं शीबा से पूछ बैठी, ‘क्या बात है, सुमन बुझीबुझी सी क्यों हो गई?’

‘तुम ने उस का मूड जो खराब कर दिया,’ शीबा ने उत्तर दिया.

‘मैं ने क्या कहा? मैं ने तो उस की मां की तारीफ ही की थी.’

‘तभी तो…’

‘क्या मतलब? अपनी मां की तारीफ से भी कोईर् नाराज होता है क्या?’

‘तुम अगर मां को कुछ नहीं बताओ तो मैं उस की मां के बारे में कुछ बताऊं,’ शीबा मेरे पास आ कर फुसफुसाते हुए बोली.

‘हांहां, बोलो,’ मैं अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पा रही थी.

‘दरअसल, उस की मां का किसी से चक्कर है,’ शीबा हौले से बोली, ‘तुम मां को मत बताना, वरना वे मुझे सुमन से मिलने नहीं देंगी.’

‘मैं कुछ नहीं बताऊंगी. बेफिक्र रहो. पर यह बेसिरपैर की बातें मेरे सामने मत किया करो,’ मैं नाराज होते हुए बोली.

‘मैं सच कह रही हूं. सुमन ने खुद मुझे बताया था.’

‘अच्छा, क्या बताया था?’

‘यही कि उस की मां जब मंदिर जाती हैं तो 2 घंटे तक वापस नहीं आतीं और एक अधेड़ व्यक्ति से बातें करती रहती हैं.’

‘तुम ने कभी देखा है?’

‘मैं ने तो नहीं देखा, पर वही बता रही थी.’

‘और कौनकौन हैं उस के घर में?’

‘एक भाई है, जिस की शादी हो चुकी है. सब इसी घर में साथ रहते हैं.’

फिर मैं ने और अधिक बात बढ़ाना उचित न समझा. सोचा, हर घर में कुछ न कुछ घटित होता ही रहता है.

समय यों ही गुजरता गया. सुमन रोज आती थी. वह घर के सदस्य जैसी थी. मैं ने फिर कभी उस की मां का जिक्र उस के सामने नहीं छेड़ा. थोड़े ही दिनों में वह मुझ से भी काफी घुलमिल गई. मेरे वापस जाने में एक सप्ताह बाकी था. एक दिन मैं ने सोचा कि कुछ खरीदारी कर लूं. मैं शीबा से बोली, ‘चलो, आज बाजार चलते हैं. मुझे कुछ सामान खरीदना है.’

शीबा टैलीविजन देखने में मग्न थी. वह बोली, ‘दीदी, अभी बहुत बढि़या आर्ट फिल्म आ रही है. तुम सुमन को साथ ले जाओ.’

‘जब तुम ही चलने को तैयार नहीं हो तो सुमन कैसे जाएगी. वह भी तो फिल्म देखेगी,’ मैं नाराज होते हुए बोली.

‘नहीं दीदी, मैं चलती हूं,’ सुमन बोली, ‘मुझे आर्ट फिल्में पसंद नहीं. इन में सिर्फ समस्याएं दिखाई जाती हैं, जिन्हें सभी जानते हैं. कोई समाधान बताए तो बात बने.’

शीबा उस की पीठ पर एक मुक्का जमाते हुए बोली, ‘तुझे अच्छी नहीं लगतीं तो ज्यादा बुराई मत कर.’

हम दोनों 4 बजे तक खरीदारी करती रहीं. जब हम लौट रही थीं तो सुमन बोली, ‘दीदी, मेरे घर चलो न.’

‘अभी?’ मैं घड़ी देखते हुए बोली, ‘कल चलूंगी.’

‘नहीं, अभी चलिए न,’ वह जिद सी करती हुई बोली.

‘अच्छा, चलो,’ मैं उस के साथ चल पड़ी.

BB17: अंकिता लोखंडे-विकी जैन के रिश्ते में आई दरार, फूट-फूटकर रोईं एक्ट्रेस

सलमान खान का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो बिग बॉस 17 का आगज हो चुका है. प्रीमियर नाइट से ही शो में कंटेस्टेंट्स के बीच में काफी बवाल देखने को मिल रहा है. वहीं शो में 17 कंटेस्टेंट्स ने भाग लिया है. बिग बॉस 17 में एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे अपने पति विकी जैन के साथ आई है. ये दोनों ही टीवी स्टार है वैसे माना जा रहा था कि अंकिता शो में गर्दा उड़ा देंगी लेकिन वह इस शो में कहीं नजर नहीं आ रही है. एक्ट्रेस कुछ खास करती नजर नहीं आ रही. विकी जैन बिग बॉस 17 में काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे है लेकिन अंकिता शो में कहीं खो गई है. वहीं अब इस शो में विकी और अंकिता के बीच गलतफहमियां भी शुरु हो गई है, जिसे वजह से एक्ट्रेस रोती नजर आई.

फूट-फूटकर रोईं अंकिता लोखंडे

बता दें कि, बिग बॉस का नया प्रोमो आ चुका है जिसमें अंकिता लोखंडे रोती नजर आ रही है. इस प्रोमो में देखा जा सकता है कि अंकिता अपने पति विकी से काफी नाराज है. विकी शो में हर एक कंटेस्टेंट्स के पास उठ-बैठ रहे है और इसी वजह से वह अंकिता को पहले जितना टाइम नहीं दे पा रहे. ऐसे में अंकिता बिग बॉस 17 के हाउस में अकेली फील कर रहीं है. प्रोमो में अंकिता बोलती नजर आ रही हैं, ‘मुझे दुख कोई दूसरा नहीं दे सकता. मुझे हर्ट अपने ही कर सकते हैं. तुम्हारे पास मेरे लिए टाइम ही नहीं है. तुम इस खेल के लिए परफेक्ट हो. मुझे घर जाना है.’ अंकिता की ये बात सुनकर विक्की जैन भी थोड़ा मायूस नजर हो जाते हैं और अपनी लविंग वाइफ को मनाने में लग जाते हैं.

 

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बिग बॉस ने अंकिता को दिखाया रास्ता

बिग बॉस 17 के बीते एपिसोड में देखने को मिला कि बिग बॉस थेरेपी के लिए अंकिता लोखंडे को बुलाते है, उनको खेल का रास्ता दिखाते है. थेरेपी रुम में बुलाकर बिग बॉस ने अंकिता से कहा, अंकिता शो में भीड़ का हिस्सा बनती हुई नजर आ रही हैं, इसके बाद बिग बॉस ने उन्हें एक ऑडियो सुनाया जिसमें उनकी ही आवाज सुनाई जा रही थी. अंकिता थेरेपी रुम में अपनी आवाज सुनकर एकदम शांत और इमोशनल हो जाती है. इस तरह से बिग बॉस उन्हें खेल में आगे आकर खेलने की सलाह देते है.

YRKKH: इस दिन आखिरी शूट करेंगी प्रणाली राठौड़, अक्षु की बेटी बनेंगी ये हसीना

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ आज भी दर्शकों के बीच छाया हुआ है. इसकी खासी पॉपुलैरिटी की वजह से कई सालों से ये टीवी सीरियल टीआरपी में आगे बना हुआ है. हर्षद चौपड़ा और प्रणाली राठौड़ स्टारर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों काफी हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है, शो में जल्द ही लीप आने वाला है. हालांकि इससे पहले मेकर्स कई सारे नए ट्विस्ट लेकर आने वाले है. इस सीरियल में हर्षद चौपड़ा और प्रणाली राठौड़ लीड रोल निभा रहे है. प्रणाली अक्षरा के किरदार में टेलीविजन पर छाई हुई हैं. इसी के साथ हर्षद चौपड़ा ने भी दर्शकों का दिल जीता है. सीरियल में जल्द ही लीप आने के बाद ये दोनो कलाकर शो को अलविदा कह देंगे.

प्रणाली राठौड़ का आखिरी शूट

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से जुडी तमाम खबरे सामने आ चुकी है. हर्षद चोपड़ा 30 अक्टूबर को अपना आखिरी एपिसोड शूट करेंगे. इसके साथ ही अभिमन्यु का चैप्टर इस शो से खत्म हो जाएगा और हर्षद चोपड़ा सीरियल से दूरी बना लेंगे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस सीरियल में प्रणाली राठौड़ की भी मौत होगी. दावा है कि प्रणाली राठौड़ 14 नवंबर के आसपास अपना आखिरी एपिसोड शूट करेंगी. इसके बाद वह भी सीरियल को अलविदा कह देंगी. प्रणलाी राठौड़ के बाद सीरियल प्रणाली की बेटी नायरा पर चलेगा. बता दें कि, इस किरदार के लिए मेकर्स ने कई एक्ट्रेसेस को अप्रोच किया है. हालांकि खबरों के मुताबिक हैली शाह का नाम सामने आ रहा है, लेकिन एक्ट्रेस ने अभी तक इस पर चुप्पी तोड़ी नहीं है.

 

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इन एक्टर्स को भी किया गया है अप्रोच

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि शो के मेकर्स रणदीप राय के नाम पर विचार कर रहे हैं, इसी के साथ फहमान खान, हैली शाह, निहारिका चौकसे समेत कई एक्टर्स को अप्रोच किया है. दावा ये भी किया गया कि मेकर्स ने महिमा मकवाना को भी अप्रोच किया है लेकिन इस पर एक्ट्रेस ने चुप्पी तोड़ी और कहा ये सब झूठ है. वह इस सीरियल को ज्वाइन नहीं कर रही.

Festival Special: लेजी गर्ल वर्कआउट टिप्स

एक अनुशासन जीवन किसी भी मनुष्य के  लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है, और एक जब स्वस्थ जीवन जीने की बात आती है, तो अनुशासन ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. आपके खाने की आदतों से लेकर आपके पूरा दिन चर्य में आप क्या करते है, हर विशेषता के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है. और इन सभी के बीच,मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन  है आलस्य. यह न केवल हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक है बल्कि यह हमारे कई कामों में भी  बाधाा बनकर हमारे सामने आ जाता है. यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं जो अक्सर आलस्य का शिकार रहते हैं तो आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स और अभ्यास बतायंगे जो आपकी जीवन शैली को पूरी तरह से बदलने में आपकी मदद जरूर करेगा.

जब भी कसरत करने की बात आती है तो हम सभी कसरत करने से बचते रहते है, तरह तरह के बहाने बनाते है. आसल बात तो यह है की हमे कसरत करने से कभी भी नहीं भागना चाहिए. कसरत से हम एक्टिव और लाइट फील करते है, रोज़ाना कसरत करने से हमारे शरीर के सभी रोग  भी दूर हो जाते है.

जब व्यायाम करने की बात आती है, तो आलस्य को हरा देने का सबसे अच्छा तरीका है की हम कुछ फ्रेश और एनर्जेटिक सॉन्ग सुने जिससे हमारे शरीर में एनर्जी आ जाएं. गाने/ सौन्ग  हमारे लिए हमेशा ही एक थेरेपी के रूप में काम करते  है जो की एक सकारात्मक उत्तेजना के रूप में काम करता है, मन को शुद्ध करता है और रक्त परिसंचरण में सुधार भी करता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च स्तर की ऊर्जा हमारे अंदर आ जाती है.

हमें अपने दिमाग से सबसे पहले यह निकाल देने की जरूरत है की एक्सरसाइज का मतलब केवल यह नहीं होता है की हमें घंटो जिम में पसीने बहाने की ज रूरत है , बोरिंग खाना-खाना शुरू कर देने की ज़रूरत है. अक्सर लोग जिम में जाकर कसरत करने से कन्फ्यूज हो जाते हैं. यहां, व्यायाम का अर्थ है  की अपने  शरीर को शारीरिक तौर पर एक्टिव बनाए रखना है , जिससे हमारा रक्त परिसंचरण  संतुलन में रहे और आपको अंदर और बाहर बेहतर महसूस करने में मदद करते हैं.  फिटनेस विशेषज्ञों और हेड कोच औफ अर्बन अखाड़ा विकास डबास का मानना है की, व्यायाम का दिमाग के कामकाज से सीधा संबंध है.

15 मिनट या उससे कम में करने के लिए 4 आसान व्यायाम

  1. आर्म सर्कल्स

फर्श पर अपनी हथेलियों के साथ अपनी बाहों को ’T’ तक फैलाएँ. 30 सेकंड के लिए अपनी भुजाओं को गोलाकार गति में घुमाएं.

  1. नी पुश-अप

इस तरह के एक्सरसाइज में आपको अपने दोनों नीज़ को ज़मीन रखना है, पुश अप्स करने के लिए सबसे पहले अपने हाथों को फर्श पर रखें. ध्यान रहे कि आपके दोनों हाथ कंधों के नीचे होने चाहिए. अब अपनी कुहनियों को मोड़ें और सीने को फर्श के नजदीक लाएं. फिर वापस उसी स्थिति में लौट आएं. 60 सेकंड के लिए शुरू और दोहराएं.

  1. रस्सी कूदना

अपनी फिटनेस को बनाये रखने के लिए रस्सी कूदना सबसे आसान एक्टिविटी में से एक है. रस्सी कूदने से कुछ ही मिनटों में आपके पुरे शरीर की अच्छी कसरत हो जाती  है.

  1. सीढ़ी चढ़े और उतरे

अगर आप घर से निकलना पसंद नहीं करती है तो आप घर में ही अपनी एक्स्ट्रा कैलोरीज बर्न कर सकती है. बस अपना मनपसंदीदा ट्रैक लगाए और अपनी घर की सीढ़ियों पर लगातार 60 सेकंड के लिए बिना रुके ऊपर-निचे दौड़े. अपने आलसपन को दूर हटाने के लिए औफिस में लंच के बाद तुरंत न बैठे करीब 10 से 12 मिनट तक थोड़ा चल कर काम करे और रोजाना लगभग 20 मिनट तक पैदल चले. अगर आप फोन पर बातें ज्यादा करते है तो कोशिश करें की घर की छत या गार्डन में चलते चलते बात करें केवल ही जगह बैठ कर बात न करें.

Diwali Special: झटपट बनाएं आटे की Rasmalai

छेने की रसमलाई तो आपने खुब खाया होगा और बनाया भी. लेकिन क्या आपने कभी आटे की रसमलाई बनाई है. नहीं ना. तो यूं बनाए आटे की रसमलाई

सामग्री

कवर के लिए आटा 250 ग्राम

घी 1 बड़ा चम्मच

पिसी शक्कर 50 ग्राम

इलायची पावडर 1 छोटा चम्मच

भरावन के लिए

बारीक कटी मेवा 1 छोटी कटोरी

रबड़ी के लिए

फूल क्रीम दूध 2 लीटर

शक्कर 2 टेबल स्पून

केसर के धागे 3

सजाने के लिए पिस्ता कतरन 1 चम्मच

बादाम 8-10

विधि

आटे को घी में गुलाबी भूनकर शक्कर और 1 गिलास पानी डालकर गाढ़ा हलवा तैयार करें.

दूध को शक्कर और केसर के धागे डालकर आधा रहने तक उबालें. इसे ठंडा होने दें.

एक बड़ा चम्मच हलवा लेकर हथेली पर फैलाएं और इसके अंदर एक चम्मच मेवा रखकर चारों ओर से बंद करके हाथ से हल्का-सा चपटा करें.

गरम तवे पर एक चम्मच घी लगाकर दोनों ओर सुनहरा होने तक सेकें. इन्हें गरम-गरम ही तैयार रबड़ी में डालें. ऊपर से पिस्ता कतरन और बादाम से सजाकर सर्व करें.

सीरियल औन अनाज गौन: महंगाई की मार झेलती जनता

‘‘यहक्या, खाने में बैगन बनाए हैं… तुम्हें पता है न कि मुझे बैगन बिलकुल पसंद नहीं हैं. फिर क्यों बनाए? तुम चुनचुन कर वही चीजें क्यों बनाती हो, जो मुझे पसंद नहीं?’’ इन्होंने मुंह बना कर थाली परे सरकाते हुए कहा.

मैं भी थोड़ी रुखाई से बोली, ‘‘तो रोजरोज क्या बनाऊं? वही आलूमटर, गोभी…? सब्जियों के भाव पता हैं? आसमान छू रहे हैं. इस महंगाई में यह बन रहा है न तो इसे भी गनीमत समझो… जो बना है उसे चुपचाप खा लो.’’

ये चिढ़ते स्वर में बोले, ‘‘मुझे क्या अपने मायके वालों जैसा समझ रखा है कि जो बनाओगी चुपचाप खा लूंगा, जानवरों की तरह?’’

उफ, एक तो मेरे मायके वालों को बीच में लाना उस पर भी उन की तुलना जानवरों से करना. मैं ऐसे उफनी जैसे जापान के समुंदर में लहरें उफनती हैं, ‘‘मेरे मायके वाले आप की तरह नहीं हैं, वे चादर देख कर पैर फैलाते हैं. हुंह, घर में नहीं दाने और अम्मां चली भुनाने. पल्ले है कुछ नहीं पर शौक रईसों जैसे… इस महंगाई के जमाने में आप जो मुझे ला कर देते हैं न उस में तो बैगन की सब्जी भी नसीब नहीं हो सकती है… आए बड़े मेरे मायके वालों को लपेटने… पहले खुद की औकात देखो, फिर मेरे मायके की बात करो.’’

ये भी भड़क गए, ‘‘जितना देता हूं न वह कम नहीं है. बस, घर चलाने की अक्ल होनी चाहिए… मैं तुम्हारी जगह होता तो इस से भी कम में घर चलाता और ऊपर से बचत कर के भी दिखाता.’’

मेरी कार्यकुशलता पर आक्षेप? दक्षता से घर चलाने के बाद भी कटाक्ष? मैं भला कैसे चुप रह सकती थी… बोलना जरूरी था, इसलिए बोली, ‘‘बोलना बहुत आसान होता है… खाली जबान हिलाने से कुछ नहीं होता… 2 दिन घर संभालना पड़े तो नानीदादी सब याद आ जाएंगे. यह तो मैं ही हूं, जो आप की इस टुच्ची तनख्वाह में निर्वाह कर रही हूं… दूसरी कोई होती तो कब की छोड़ कर चली गई होती.’’

‘‘मैं ने तुम्हें रोका नहीं है. मेरी कमाई से पूरा नहीं पड़ रहा न, तो ढूंढ़ लो कोई ऐसा जिस की कमाई पूरी पड़ती हो… अच्छा है मुझे भी शांति मिलेगी,’’ कह इन्होंने जोर से हाथ जोड़ दिए.

अब तो मेरे सब्र का बांध टूट गया. जारजार आंसू बहने लगे. रोतेरोते ही बोली, ‘‘आ गई न दिल की बात जबान पर… आप चाहते ही हो कि मैं घर छोड़ कर चली जाऊं ताकि आप को छूट मिल जाए, मुझे नीचा दिखाने का बहाना मिल जाए. ठीक है, मैं चली जाऊंगी. देखती हूं कैसे रहोगे मेरे बिना… एक दिन बैगन की सब्जी क्या बना दी. इतना बखेड़ा कर दिया. अब चली जाऊंगी तो बनाते रहना, जो मन में आए और खाते रहना.’’और फिर मैं डाइनिंग टेबल से उठ कर अपने कमरे में आ गई और धड़ाम से दरवाजा बंद कर लिया.

दूसरे दिन बालकनी में कपड़े सुखा रही थी. कल का झगड़ा चेहरे पर पसरा हुआ था. उदासी आंखों के गलियारे में चक्कर लगा रही थी. बोझिल मन कपड़ों के साथ झटका जा रहा था. मैं अपने काम में व्यस्त थी और मेरी पड़ोसिन अपने काम में. पर वह पड़ोसिन ही क्या जो अपनी पड़ोसिन में बीमारी के लक्षण न देख ले और बीमारी की जड़ को न पकड़ ले. अत: उस ने पूछा, ‘‘लगता है भाई साहब से झगड़ा हुआ है?’’

खुद को रोकतेरोकते भी मेरे मुंह से निकल ही गया, ‘‘हां, इन्हें और काम ही क्या है सिवा मुझ से झगड़ने के.’’

पड़ोसिन हंस दी, ‘‘वजह से या बेवजह?’’

‘‘झगड़ा ही करना है तो फिर कोई भी वजह ढूंढ़ लो और झगड़ा कर लो. मैं तो कहती हूं ये आदमी शादी ही इसलिए करते हैं कि घर में ले आओ एक प्राणी, एक गुलाम, एक सेविका, एक दासी जो इन के लिए खाना पकाए, घर संवारे, इन के कपड़े धोए और बदले में या तो आलोचना सहे या फिर झगड़ा झेले. हुंह…’’ कह मैं ने कपड़े जोर से झटके.

मेरी पड़ोसिन खिलखिला कर हंस दी, ‘‘अरे, पर झगड़ा हुआ क्यों?’’

मैं ने बताया, ‘‘इन्हें बैगन पसंद नहीं और कल मैं ने बैगन की सब्जी बना दी. बस फिर क्या था सब्जी देखते ही भड़क उठे.’’

पड़ोसिन की हंसी नहीं रुक रही थी. बड़ी मुश्किल से हंसीं रोक कर बोली, ‘‘अच्छा, यह बता कि तुम लोग खाना खाते समय टीवी बंद रखते हो?’’

मैं ने हैरानी से कहा, ‘‘हां, मगर टीवी का और खाने का क्या संबंध?’’

उस ने कहा, ‘‘है टीवी और खाने का बहुत गहरा संबंध है. मेरे यहां तो सभी टीवी देखतेदेखते खाना खाते हैं. सब का ध्यान टीवी में रहता है तो किसी का इस तरफ ध्यान ही नहीं जाता कि खाने में क्या बना है और कैसा बना है? है न बढि़या बात? वे भी खुश और मैं भी टैंशन फ्री वरना तो रोज की टैंशन कि क्या बनाया जाए… अब तू ही बता रोजरोज बनाएं भी क्या?’’

मैं ने कहा, ‘‘वही तो… रोज सुबह उठो तो सब से पहले यही प्रश्न क्या बनाऊं? सच कहूं आधा समय तो इस क्या बनाऊं, क्या बनाऊं में ही निकल जाता है. ऊपर से फिर यह भी पता नहीं कि इन्हें पसंद आएगा या नहीं, खाएंगे या नहीं और फिर वही झगड़ा.’’

पड़ोसिन ने सुझाव दिया, ‘‘हां तो तू वही किया कर जैसे ही ये खाना खाने बैठें टीवी चला दिया. उन का ध्यान टीवी पर रहेगा तो खाने पर ध्यान नहीं जाएगा और फिर झगड़ा नहीं होगा.’’

मैं उस की सलाह सुन भीतर आ गई. फिर मन ही मन तय कर लिया आज से ही मिशन डिनर विद टीवी शुरू…

शाम को मैं ने टीवी देखना शुरू किया. स्टार प्लस, सब, जी, सोनी देखतेदेखते ही खाना बनाया. टीवी देखतेदेखते ही खाना लगाया और टीवी दिखातेदिखाते ही खिलाया. आश्चर्य, ये भी सीरियल देखतेदेखते आराम से खाना खा गए. हालांकि सब्जी इन की मनपसंद थी फिर भी कुछ बोले नहीं. न आह न वाह. फिर तो रोज का काम हो गया. मैं खाना बनाती, ये टीवी देखतेदेखते खा लेते. सब कुछ शांति से चलने लगा. पर अब दूसरी मुसीबत शुरू हो गई. इन का पूरा ध्यान टीवी में रहने लगा. मुझे गुस्सा आने लगा. जब देखो आंखें फाड़फाड़ कर सीरियल की हीरोइनों को देखते रहते. मेरा खून खौलता रहता. हद तो यह भी थी कि टीवी देखतेदेखते बस खाते रहते, खाते रहते गोया गब्बर की तरह यह डायलौग रट लिया हो कि जब तक यह टीवी चलेगा हमारा खाना चलेगा. अब मेरा किचन का बजट गड़बड़ाने लगा. एक दिन ये टीवी देखतेदेखते खाना खा रहे थे. जैसे ही इन्होंने एक और रोटी की डिमांड की मैं भड़क गई, ‘‘मैं ने यहां ढाबा नहीं खोल रखा है, जो रोटी पर रोटी बनाती रहूं और खिलाती रहूं… तोंद देखी है अपनी, कैसी निकल रही है.’’

इन्होंने टीवी में नजरें गड़ाए हुए ही जवाब दिया, ‘‘अब तुम खाना ही इतना अच्छा बनाती हो तो मैं क्या करूं? मन करता है खाते रहो खाते रहो… लाओ अब जल्दी से 1 चपाती और लाओ.’’

उफ यह… कुछ दिनों पहले तक तो खाने पर झगड़ा करते थे और अब खाना खाने बैठते हैं तो उठने का नाम ही नहीं लेते. अत: गुस्से से इन की थाली में चपाती रखते हुए मैं ने कहा, ‘‘बंद करो अब खाना खाना भी और टीवी देखना भी, कहीं ऐसा न हो चंद्रमुखी की आंखों में डूब ही जाओ…’’

इन्होंने कौर मुंह में दबाते हुए कहा, ‘‘तो प्रिया कपूर की जुल्फें है न, उन्हें पकड़ कर बाहर निकल आएंगे.’’

मैं गुस्से से तिलमिला गई, ‘‘और मैं जो हड्डियां तोड़ूंगी तब क्या करोेगे?’’

ये हंसने लगे, ‘‘तो डाक्टर निधि है न, इलाज के लिए.’’

मेरा मन किया कि टेबल पर पड़े सारे बरतन उठा कर पटक दूं… एक परेशानी से निकलना चाह रही थी दूसरी में उलझ गई.

अब मैं खाने में कुछ भी बनाऊं ये कुछ नहीं कहते. दाल पतली और बेस्वाद हो ‘लापतागंज’ की इंदुमति के चटपटेपन के साथ खा लेंगे. आलूमटर की सब्जी में मटर न मिलें तो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ के गोलू राम को गटक लेंगे. प्लेट से सलाद गायब हो तो ‘तारक मेहता’ के सेहत भरे संवाद हैं न? मीठानमकीन नहीं है पर ‘चौटाला’ की मीठीनमकीन बातें तो हैं न? आज पनीर नहीं बना कोई बात नहीं टोस्टी की टेबल पर से कुछ उठा लेंगे.

मतलब यह कि इधर सीरियल चलने लगे. उधर मेरा सीरियल (अनाज) उड़ने लगा. अब तो जो भी बनाऊं अच्छा लगे न लगे सीरियल के साथ चटखारे ले ले कर खाने लगे. मैं अब फिर परेशान हूं कि क्या करूं क्या न करूं. कुछ समझ में नहीं आ रहा.

महंगाई से निबटने और झगड़े से बचने के लिए सीरियल दिखातेदिखाते खाना खिलने की सलाह पर अमल किया था. पर मेरे साथ तो उलटा हो गया. अब सब कुछ मुझे डबल बनाना पड़ता है वरना भूखा रह गया का आलाप सुनना पड़ता है.

धुआं-धुआं सा: भाग 3- क्या था विशाखा का फैसला

यह कह कर वह मेरी अचरजभरी आंखों में झांकने लगा. उस की शरारती नज़रों को अपनी ओर ऐसे ताकते देख मेरी दृष्टि झुक गई. मुझे लगा जैसे मेरे कपोल कुछ गुलाबी हो गए.

राघव की खुद को पहचान कर अपनाने की हिम्मत मुझे अकसर हैरान कर देती. मुझे लगता कि मैं ने अपनी आधी ज़िंदगी के बाद खुद को पहचाना. इस से बेहतर रहता कि किशोरावस्था में ही अपनी असलियत का आभास मुझे भी हो जाता. परंतु जब मैं जवानी की दहलीज़ चढ़ रहा था तब इतनी जागरूकता, इतना खुलापन और इतना एक्स्पोज़र कहां था. आजकल की पीढ़ी कितनी स्मार्ट है. राघव के ऊपर मुझे गर्व होने लगता.

सबकुछ कितना सुखद चल रहा था. मेरे पास मेरा प्यार था और मेरा परिवार भी. परंतु समय की मंशा कुछ और थी. विशाखा को राघव के बारे में मैं ने ही बताया. अब वह केवल मेरी पत्नी नहीं, बल्कि मेरी सब से अच्छी दोस्त भी थी. मुझे लगा था कि मेरी खुशी में ही उस की खुशी है. मुझे प्रसन्न देख कर वह भी झूम उठेगी. लेकिन हुआ इस का उलटा.

“तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? मेरे साथ बेवफाई करते तुम्हें शर्म नहीं आई?” मेरी बात सुनते ही विशाखा बिफर पड़ी.

“पर मैं तुम्हें अपनी सचाई बता चुका हूं. मैं ने तो सोचा था कि तुम… खैर छोड़ो. अब तुम चाहती क्या हो?” उस की प्रतिक्रिया पर मेरा हैरान होना लाजिमी था. अब तक मेरे पूरे जीवन में मेरे हृदय की दीवारें सीलन से भरभराती रहीं. अब जब वहां ज़रा सी किरणें जगमगाने लगीं तो विशाखा का यह रुख मेरी कोमल संवेदनाओं के रेशमी तारों को निर्दयता से झकझोरने लगा. “तुम ही कहो कब तक मैं आदर्शवादिता का नकाब पहने रहूं? अब मेरे अंदर पसरा सूनापन मुझे डसता है,” मेरे इस कथन से शायद हम दोनों के रिश्ते के बीच फैला धुआं थोड़ा और गहरा गया.

विशाखा मंथर गति से अपना सिर हिलाती रही. उस की निगाहें नीचे फर्श पर टिकी थीं. “तुम मेरी मनोस्थिति नहीं समझ पा रहे हो. या शायद तुम्हें अपना सुख अधिक प्रिय हो गया है. कभीकभी लगता है कि काश, तुम ने अपनी सचाई मुझे कभी बताई ही न होती,” विशाखा ने एक ठंडी आह भरी, “आसमान के काले बादलों के साथ तो मैं जी रही थी पर अब लगता है जैसे उन के बीच से चमकती तेज़ बिजली निकल कर हमारे रिश्ते पर गिर गई है.”

सच, पिछले कुछ समय से हमारा रिश्ता हिमशिला जैसा हो चला था, ठंडा, बेजान, रंगहीन. मैं वाकई अपने नए सुख में खो गया था. घर की ज़िम्मेदारी निभाता तो सही, लेकिन बेमन से, जल्दीजल्दी. बच्चों की ज़िम्मेदारी, उन की शिक्षा का भार, उन का स्वास्थ्य – शारीरिक और भावनात्मक, पूरी तरह से विशाखा के जिम्मे आन पड़ा. मेरी पूर्ति केवल आर्थिक सहायता दे कर हो जाने लगी. इसीलिए संभवतया आजकल विशाखा का स्वभाव क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा, तुष्टा रुष्टा क्षणे क्षणे हो चला था. अब हमारे बीच वार्त्तालाप भी कम ही होता.

जब मैं ये बातें राघव से साझा करता तो वह विशाखा के प्रति नारीसुलभ ईर्ष्या से भर उठता. “सच परेशान हो सकता है, पराजित नहीं,” वह निर्भीकता से कहता ताकि मेरी हिम्मत ढीली न पड़ जाए.

खैर, मेरा जीवन अच्छा ही चल रहा था. मुझे अपना प्यार मिल गया था. अब तक जो कमी थी जीवन में, वह पूरी हो रही थी. लेकिन विशाखा की इस में क्या गलती थी? उस के साथ जो हुआ, जो हो रहा था, उसे मैं भी गलत कहूंगा. मैं समझ रहा था कि वह खुद को छला हुआ अनुभव कर रही थी. अब वह अकसर मेरे साथ झगड़ने लगी थी. बातबेबात बहस करती, बच्चों के सामने भी लिहाज न करती. मैं चाहे जितना भी परिस्थिति को टालने का प्रयास करूं, विशाखा का पूरा प्रयत्न यही होता कि झगड़ा हो जाए. मुझे लगने लगा कि इन झगड़ों के बहाने वह अपने अंदर की भड़ास निकालती है.

जो भी हो, बच्चों पर इस का कुप्रभाव दिखाई देने लगा. दोनों बच्चे चिढ़चिढ़े होने लगे. अकसर अपने दोस्तों से लड़ कर घर आते. पढ़ाई में भी उन का ध्यान कम लगने लगा और नंबर गिरने लगे. जब भी बात करते, चिल्ला कर करते. किसी बात का सीधा उत्तर न देते. मुझे स्पष्ट हो गया कि हमारे बिगड़ते रिश्ते का धुआं अब हमारे बच्चों की मानसिकता को भी धूमिल करने लगा है. मैं ने इस बाबत विशाखा से साफ बात करने का निश्चय किया.

“तुम ने ध्यान दिया होगा कि हमारे बदलते रिश्ते का कितना खराब असर हमारे बच्चों पर पड़ रहा है,” मैं ने दोटूक शब्दों में कह डाला. ज़्यादा कुछ कहने को था नहीं मेरे पास. आखिर मैं अपनी दुनिया में मगन हो चुका था और विशाखा अकेले हम दोनों की गृहस्थी का बोझ ढोने को विवश थी.

“मुझे खुशी हुई कि तुम ने भी ध्यान दिया हमारे बच्चों पर,” उस ने ‘हमारे’ शब्द पर खास ज़ोर देते हुए कहा.

“देखो विशाखा, मैं समझता हूं कि तुम्हारे साथ भी उतना ही गलत हुआ है जितना मेरे साथ. मेरा अनुमान था कि मेरी इस नई ज़िंदगी के उजागर होने पर पहला वर्ष कठिन रहेगा. हम दोनों इस नए सत्य को अपनाने का प्रयास करेंगे. हमारी उलझी हुई भावनाओं से हमारा सरोकार होगा. हमारी शादी पर इस का प्रभाव पड़ेगा. पता नहीं तुम इस के लिए मुझे कितना जिम्मेदार मानोगी… ज़िंदगी के इस मोड़ पर तुम्हारी ज़िंदगी को यों बदल देने के लिए मुझे माफ कर पाओगी या नहीं,” मैं अपनी रौ में बेसाख्ता कहता जा रहा था. मेरे लिए कहना आसान था क्योंकि मैं अपने नए जीवन की नई खुशियां बिना किसी चिंता के बटोर रहा था. जब राघव से मिलने जाता, बच्चों से कह देता एक अंकल के घर जा रह हूं, फ्रैंड हैं. बाकी विशाखा संभाल लेती. वह असलियत जानती है, स्वीकार चुकी है, इस बात की एक बड़ी निश्चिंतता थी मेरे मन में.

“मैं ने इस विषय पर काफी मनन किया है. रोज़ करती हूं, हर पल,” विशाखा ने उदासीन मुद्रा में कहा, “मेरा मानना था कि सचाई जो कुछ भी हो, हम दोनों की शादी पर इस की आंच नहीं पड़ेगी. क्या होगा, ज़्यादा से ज़्यादा हमारी सैक्सलाइफ खराब रहेगी. पर वह तो वैसी ही रही, हमेशा से. मगर बच्चों के सिर पर पिता का साया बना रहेगा. तो चलने देती हूं जैसा चल रहा है. लेकिन जब तुम ने राघव के बारे में बताया… राघव के बारे में जान कर मुझे अच्छा नहीं लगा. मुझे जलन होने लगी तुम से. आखिर इस अधूरी शादी में 2 बच्चों की ज़िम्मेदारी के साथ मैं तो कैद हो गई न! और तुम्हें दोनों जहानों की खुशी मिल रही है – समाज में एक भरेपूरे परिवार की इज्ज़त और अकेले में अपना हमदम. तुम्हारे पास सबकुछ है – एक बीवी, 2 बच्चे और अपना प्यार. लेकिन मेरे पास क्या है? मुझे क्या मिला?” विशाखा चुप हो कर मुझे देखने लगी.

मेरी नज़र झुक गई. उस ने आगे कहना जारी रखा, “मेरे दिल और दिमाग की इस जंग में जीत मेरे दिमाग की हुई. तुम मूव औन कर चुके हो. मुझे भी करना चाहिए. करना ही होगा. एक साथ रह कर दुखी रहा जाए, इस से बेहतर है कि अलग रह कर सुखी जीवन जिएं.”

हम दोनों अगले कुछ पलों के लिए एकदूसरे का हाथ थामे खामोश बैठे रहे. हम दोनों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि इस स्थिति से निकलने हेतु तलाक ले कर अलग रहने में ही भलाई है. लेकिन एक रिश्ता खत्म होने जा रहा था. पूरी रात हम दोनों अपनेअपने बिस्तरों के किनारे करवटें बदलते रहे.

सुबह तक काफी कुछ स्थिर हो चुका था. मेरे मन में कुछ बातें बैठ गईं थीं- मैं आर्थिक सहायता करता रहूंगा, मेरे सामने होते हुए भी साथ न होने पर जो तकलीफ विशाखा को होती है, वह अब नहीं होगी, बच्चों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव का अंत हो सकेगा. विशाखा भी आज कुछ हलकी सी प्रतीत हो रही थी, मानो उस के अंदर छाया धुआं भी मन की तलहटी में बैठ चुका हो.

बच्चों को समझाने का निश्चय भी हम ने एकसाथ किया. बच्चे अभी छोटे ही थे- तीसरी, चौथी में पढ़ने वाले.

“उन्हें कैसे समझाएंगे यह बात?” मेरे प्रश्न पर विशाखा हौले से मुसकराई, बोली, “उन्हें कारण से अधिक इस निर्णय का उन के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताना आवश्यक है. बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं, बहुतकुछ समझ जाते हैं. मैं बात करती हूं.” यह कह कर उस ने बच्चों को हमारे कमरे में पुकारा. उन की मां ने उन से साफसरल शब्दों में कहा कि साथ रह कर मम्मीपापा झगड़ते हैं और यह जैसे बच्चों को अच्छा नहीं लगता वैसे ही मम्मी और पापा को भी नहीं लगता. इस का एक उपाय सोचा है और वह है कि अब हम लोग अलग घरों में रहें. क्योंकि कई बार दूर रहने से एक अच्छा-सुखी जीवन मिल सकता है. “इसलिए अब से बच्चा पार्टी रहेगी इस घर में मम्मी के साथ. पापा हर वीकैंड आया करेंगे, बाकी के दिन रहेंगे औफिस के पास. तो अब से बच्चों के दो मम्मीपापा और दो घर, हुर्रे,” कह कर अपनी बात रखने से बच्चों ने विशाखा की बात को सकारात्मक ढंग से लिया.

क्या वाकई यह इतना आसान था, जिस चिंता में मेरा अंतर्मन घुला जा रहा था, क्या उस का समाधान केवल एक बातचीत थी, कह नहीं सकता. संभवतया भविष्य में बच्चों के तीखे प्रश्न हमें घेरें. हो सकता है वह भविष्य अधिक दूर न हो या फिर उस की दस्तक सुनाई देने में कुछ वर्ष लग जाएं… लेकिन अभी से उस समय की कल्पना करना बेमानी लग रहा है. आज को आज में ही रहने देते हैं, वह आज, जिसे विशाखा और मैं ने मिल कर बनाया है.

सोचता हूं न मेरी गलती, न विशाखा की. फिर भी हम दोनों ने दोषारोपण किया. दोनों दुखी, दोनों आहत. फिर भी दोनों ने एक सख्त मुखौटा चढ़ाए रखा. लेकिन कहते हैं न, देर आए दुरुस्त आए. कोई इंसान अपनी सैक्सुएलिटी को चुनता नहीं है, वह तो प्रकृतिप्रदत्त है. हर इंसान अलग है, लेकिन कोई किसी से कमतर नहीं. शुक्र है, हम दोनों ने अपनी ज़िंदगियों को वापस पटरी पर खींच लिया क्योंकि हमारी ज़िंदगियों से केवल हम ही नहीं जुड़े, और भी कुछ लोग हैं जो हमारे साथ रोतेमुसकराते हैं.

वसीयत: भाई से वसीयत में अपना हक मांगने पर क्या हुआ वृंदा के साथ?

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