Bigg Boss 17: मुनव्वर ने हटाया अनुराग के सबसे बड़े राज से पर्दा

सलमान खान का सबसे कंट्रोवर्शियल टीवी रियलिटी शो बिग बॉस का आगज हो चुका है. बीते रविवार 15 अक्टूबर को बिग बॉस 17 शुरु हुआ. अभी कंटेस्टेंट्स सेटल होना शुरु हो गए. इसी के साथ में घर में लड़ाइयां देखने को मिलने लगी है. धीरे-धीरे सभी कंटेस्टेंट्स एक-दूसरे को समझना स्टार्ट कर दिया है. कोई दोस्त बनता जा रहा है तो कोई दुश्मन. बीबी हाउस में अभी फिलहाल दो कंटेस्टेंट्स के बीच लड़ाई देखने को मिली. एक तो यूके राइडर यानि अनुराग डोभाल और मुनव्वर फारूकी. दोनों ही दमदार कंटेस्टेंट्स लग रहे है. दोनों ही एक-दूसरे के खिलाफ नजर आ रहे है. दरअसल, घर की ड्यूटीज को लेकर दोनों के बीच लड़ाई होना शुरु हो गई और यह लड़ाई देखते ही देखते काफी बढ़ गई.

जिगना-अभिषेक से शुरू हुआ मामला

बिग बॉस 17 के लाइव वीड में दिखाया गया कि जिगना और अभिषेक के बीच कहा-सुनी होती है. जिगना अभिषेक को बोलती है जाकर बर्तन धो आप. अभिषेक साफ मना कर देता है फिर दोनों के बीच बहस शुरु हो जाती है. दोनों की लड़ाई जब बढ़ जाती है तो दिमाग वाले मकान से अनुराग डोभाल आते है और बिग बॉस ने उन्हें पहले ही राइट्स दे रखे है ड्यूटी बांटने को. अनुराग अभिषेक से कहते है कि तुझे काम करना ही होगा क्योंकि सब काम कर रहे है.

 

मुनव्वर और अनुराग की बहस

इसके बाद मुनव्वर अभिषेक के सपोर्ट में आते है और बोलते है जब तक आप हमे ड्यूटी दोगे नहीं तो हमें पता नहीं चलेगा हमे करना क्या है तो आप सबको पहले ड्यूटी दो. तो आप जाकर जिगना को बोल दो कि ये ड्यूटी नहीं करेगा. अब क्योंकि अनुराग को ड्यूटी बांटने की जिम्मेदारी दी गई है तो वह जाकर सबको कुछ न कुछ बोल रहे है. तभी मुनव्वर अनुराग से पूछते है कि आप सब से पूछ रहे है कि काम किया है या नही तो आप बताओं की आप ने कितना काम किया.

इस पर अनुराग कहते है कि मैं क्यों बताऊं, मैंने बहुत चाजें की है, मुझे याद नहीं है. मुनव्वर कहते है कि बेटा तू झूठ बोल रहा है, तूने रात को बोला मैंने बर्तन धोए मैं भी अब हर कंटेस्टेंट्स से पूछता हूं कि तूने बर्तन धोए या नहीं. इस पर अनुराग कहते है कि मुझे याद नहीं है मैंने ऐसे ही कह दिया. इस पर मुनव्वर कहते है कि बेटा तुम कुछ नहीं कर रहे बस यहां से वहां जा कर सबसे पूछ रहे हो कि आप ये काम करो, वो काम करो. इसके बाद अनुराग के खिलाफ कई घर वाले नजर आए.

Anupamaa: किंजल तोड़ेगीं शाह परिवार को,अनुपमा की जिंदगी में आएगी नई आफत

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों काफी इमोशनल ड्रामा चल रहा है. समर की मौत के बाद शो में मातम छाया हुआ है. इसी के साथ वनराज की मानसिक हालत धीरे-धीरे खराब हो रहे है. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर इस सीरियल के बीते एपिसोड में देखने के लिए मिला था कि अनुपमा और अनुज के बीच चीजें धीरे-धीरे ठीक हो रही हैं. वहीं दूसरी ओर डॉक्टर की तरफ से वनराज की मानसिक स्थिति के बारे में बताया जाता है. जिसकी वजह से शाह हाउस में सब परेशान हो जाते है.

शाह परिवार से अलग होगी किंजल

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर इस सीरियल में देखने को मिलेगा कि अनुपमा अपने बेटे समर की याद में नवरात्रि की तैयारियां करती हैं. वह अपने मन ही मन में कहती है तुम वापिस आ जाओ. तुम पोता-पोती बनकर जल्दी आ जाओ. वहीं दूसरी ओर देखने को मिलेगा कि किंजल शाह परिवार को छोड़ने का प्लान कर चुकी है. वह तोषू को समझाती है हम यूके शिफ्ट हो रहे है. घर का ये महौल मैं बर्दाशत नहीं कर पा रही हूं. कोर्ट केस के अलावा फैमिली भी हमसे नाराज है. घर-घर जैसा नहीं लगता. किंजल की बात सुनकर तोषू मान जाता है और दोनों फैसला करते है नवरात्रि के दौरान परिवार वालों को बता देंगे.

 

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अनुज की हालत होगी खराब

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में आगे देखने को मिलेगा कि अनुज और अनुपमा अपने रुम में पुराने दिनों को याद करने लगते हैं. तभी अनुज हॉल में सोने चला जाता है. इसी दौरान अनुज को बुरे-बुरे ख्याल आते है. उसे आवाजें आती है, जिसमें सभी लोग उसे समर की मौत के जिम्मेदार उसे बताते है. ये बाते सुनकर अनुज की हालत खराब होने लगती है. इसके बाद वहां मौजूद मालती देवी अनुज को ठीक करने का फैसला लेती है.

 

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शाह परिवार फंस जाएगा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि वनराज सुबह-सुबह घर से गायब हो जाता है. घर के सभी लोग उसे ढूंढ़ते है. वनराज सीधा उस जगह पर पहुंच जाता है, जहां समर की मौत हुई थी. वह वहां सबसे हाथापाई करता है, लेकिन अनुपमा और अनुज आकर उसे रोक लेते हैं. इसके बाद समर की मौत के कातिल का राजनेता पिता भी वहां पहुंच जाता है और वनराज को बाते सुनाता है. इस दौरान वनराज का गुस्सा उस पर फूट पड़ता है. इस पूरे सीन का वीडियो एक तरफ बन रहा होता है, जिसका नुकसान शाह परिवार और अनुपमा को होगा.

Diwali Special: त्योहार के पहले और बाद में त्वचा की देखभाल के लिए कुछ खास टिप्स

दिवाली का त्यौहार आने ही वाला है, ऐसे में खुद की देखभाल कुछ ऐसे करें, ताकि देखने वाला भी हतप्रभ हो जाय. कोविड 19 के बाद इस बार दिवाली की जश्न, मौजमस्ती हर बार से कुछ अलग और खास है, इसलिए इसे बेहतर तरीके से मनाने से आप की ख़ुशी कई गुना बढ़ सकती है. इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई अम्बानी हॉस्पिटल की कंसलटेंट, ट्राइकोलॉजिस्ट और एस्थेटिक डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ तृप्ति अग्रवाल कहती है कि सबसे अलग और सुंदर दिखने के लिए कुछ ख़ास बातों पर ध्यान दे, जिससे आपकी त्वचा नर्म और मुलायम होने के साथ आकर्षक भी लगेगी. कुछ टिप्स निम्न है,

क्लीन्ज़िंग, टोनिंग, मॉइश्चराइज़िंग और सनस्क्रीन्स

चेहरा ही आपका पहला इम्प्रेशन होता है, इसलिए स्क्रबिंग, क्लीन्ज़िंग, टोनिंग और मॉइश्चराइज़िंग (सीटीएम) रूटीन हर दिन करें. सीटीएम के बाद त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाना ज़रूरी है. आसान, तेज़ और असरदार स्किनकेयर रूटीन के लिए एसपीएफ वाले मॉइश्चराइज़र जैसे मल्टी-पर्पज़ ब्यूटी प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकती है.

भोजन और पानी

चमकदार त्वचा के लिए हर दिन कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पिए, फलों और पत्तेदार सब्ज़ियों वाला संतुलित डाइट लें और खाने में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन को शामिल करें. त्वचा जवां दिखेगी और रिंकल्स, लाइन्स भी कम होंगी.

वर्कआउट

नियमित व्यायाम से त्वचा के रोम छिद्र साफ़ होने में मदद मिलती है, इससे शरीर से सभी पोल्यूटेंट्स पसीने के साथ निकल जाते हैं. हफ्ते में कम से कम 3 से 4 बार 45 से 60 मिनटों तक वर्कआउट करें. त्वचा की समस्याओं को टालने का यही सबसे अधिक प्रभावशाली उपाय है.

बालों की देखभाल

स्वस्थ और चमकदार त्वचा के साथ नर्म, मुलायम और चमकदार केश होना आवश्यक है. इसके लिए पहले से सही देखभाल करना ज़रूरी है. एक अच्छा हेयर कट करवा लें, शैम्पू, कंडीशनिंग और ऑइलिंग करें, तेल लगाकर शैम्पू करें, बाल धोने के लिए गर्म पानी न लें, बहुत ज़्यादा हेयर प्रॉडक्ट्स और स्टाइलिंग के लिए हीट का इस्तेमाल करने से बचें.

नींद

हर रात 7 से 8 घंटे नींद लेने से आपकी त्वचा को अनवाइंड करने में मदद मिलती है, जब आप सोते हैं, तब आपकी त्वचा कोलेजेन को फिर से पैदा करती है और युवी किरणों के कारण हुए किसी भी नुकसान की मरम्मत करती है.

शीट मास्क्स

स्वस्थ त्वचा विकसित करने के लिए वक्त लगता है. संतुलित आहार, नियमित कसरत और सबसे ब्रांडेड स्किनकेयर उत्पादों का हर दिन इस्तेमाल त्वचा के अनुसार कर सकती है, लेकिन अगर किसी दिन आपकी त्वचा बहुत ही बेजान दिख रही है लेकिन आपको तुरंत उसे फिक्स करना है, तो शीट मास्क का इस्तेमाल कर सकती है, जब भी आपकी त्वचा कम स्वस्थ दिखती है, तब शीट मास्क्स बूस्टर की तरह काम करते हैं, शीट मास्क स्किन की हाइड्रेशन में सुधार ला सकते हैं, इससे जवां, चमकदार त्वचा और मुलायम त्वचा कम समय में मिल जाती है.

घरेलु नुस्खे

घरेलु नुस्खों का इस्तेमाल समय-समय पर त्वचा की हर दिन की देखभाल करते रहना ज़रूरी है. कुछ घरेलू नुस्खे निम्न है,

आपकी त्वचा जिस प्रकार की है उसके अनुसार नेचुरल फेस पैक चुनें, बेसन, रोज़ वॉटर, हल्दी, एलो वेरा जेल, हनी और दूध आदि से बना फेस पैक आपकी त्वचा को नुकसानदेह केमिकल्स से बचा सकता है. त्वचा के टिश्यूज़ के इलाज में फेस पैक मददगार साबित हो सकते हैं और आपके रूप को निखार सकते हैं.

त्यौहार के बाद त्वचा की देखभाल

  • देर रात तक जागना, तला हुआ, मीठा खाना आपकी त्वचा के लिए नुकसानदेह होता है. आपकी त्वचा रूखी और बेजान दिखने लगती है. त्वचा की अच्छी देखभाल करना और त्वचा के लिए नुकसानदेह प्रसंगों के बाद स्किनकेयर रूटीन को फिर से शुरू करना ज़रूरी है.
  • त्वचा को सबसे ज़्यादा ब्रेक की जरुरत होती है. इसके लिए आराम करें, तनाव कम करें और कॉस्मेटिक्स से बचें. त्वचा में किसी प्रकार की इरिटेशन होने पर उसका सही तरीके से एक्सपर्ट से इलाज करवाएं. इससे आपकी त्वचा को खुलकर सांस लेने का मौका मिलेगा.
  • एक्सफोलिएट से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने और डेड सेल्स को हटाने में मदद मिलती है.
  • पानी की मात्रा बढ़ाइए, त्वचा को अच्छा बनाए रखने के लिए संतुलित आहार लीजिए और पर्याप्त नींद लीजिए. अल्कोहल से बचें और अपनी त्वचा को फिर से नयी बनने का मौका दें. इससे आपके शरीर और त्वचा के डेटॉक्सिफिकेशन और टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद मिलती है.
  • विटामिन सी, ई और रिच ऑयल्स जैसे त्वचा को मॉइश्चराइज़ और हाइड्रेट करने वाले स्किनकेयर आइटम्स का इस्तेमाल करें.
  • स्टीम लेने से त्वचा के छिद्र साफ़ होने और एक्ने से बचने में मदद मिल सकती है.
  • अच्छी नींद लें और पर्याप्त आराम करें.
  • हाइड्रेटिंग शीट मास्क्स का इस्तेमाल करें.

8 फेस्टिव सीजन किचिन क्लीनिंग हैक्स

फेस्टिव सीजन प्रारम्भ हो चुका है इन दिनों एक तरफ जहां गरबे की धूम रहती है वहीँ घरों में साफ सफाई का कार्यक्रम भी जोरों पर रहता है. हर घर में किचिन का सबसे अहम स्थान रहता है यह एक ऐसा स्थान होता है जहां पर परिवार के प्रत्येक सदस्य की पसंद नापसंद का ध्यान रखा जाता है. किचिन की ऊपरी सफाई तो आमतौर पर वेक्यूम क्लीनर या फिर किसी कर्मचारी के द्वारा करवाई जा सकती है परन्तु सबसे अहम होता है किचिन के केबिनेट्स, कम प्रयोग में आने वाले कांच और विभिन्न मेटल्स के बर्तनों और केबिनेट्स की साफ़ सफाई. इन्हें हम स्वयं ही साफ़ करना पसंद करते हैं ताकि ये टूटने से बचे रहें और अच्छी तरह साफ़ भी हो सकें. आज हम आपको ऐसे ही कुछ क्लीनिंग हैक्स बता रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप अपनी सफाई को काफी आसान बना सकते हैं.

  1. मेयोनीज और गर्म पानी 

शहद, कॉफ़ी, वेनेगर, सॉसेज जैसे अन्य अनेकों खाद्य पदार्थों के अनेकों जार्स और बोतलें हमारी किचिन में एकत्र हो जाते हैं इनका लेबल हटाने के लिए एक लीटर गर्म पानी में इन्हें 3-4 घंटे के लिए डाल दें और फिर इन्हें स्क्रब से रगड़ दें लेबल पूरी तरह निकल जायेगा. आप इनके लेबल पर मेयोनीज रगडकर भी लेबल को आसानी से निकाल सकते हैं. अब इन खाली जार्स में आप ग्रोसरी भर सकते हैं या फिर इनका उपयोग फ्लोवर पॉट की तरह भी किया जा सकता है.

2. सिल्वर फॉयल और बेकिंग सोडा

आजकल सिल्वर फॉयल आमतौर पर हर किचिन में होता है. स्टील, लोहा, तांबा जैसे सभी धातुओं के पुराने बर्तन चमकाने के लिए आप 1 चम्मच बेकिंग सोडा को 1 चम्मच पानी में घोल लें. इसे बर्तन पर लगाकर 5 मिनट के लिए रख दें और फिर सिल्वर फॉयल से रगड़ दें. अंत में साफ़ पानी से धोएं बरतन एकदम नए जैसे चमक उठेंगें.

3. कार वैक्स और न्यूज पेपर

त्यौहार पर हमारे घरों में बहुत ज्यादा कुकिंग होती है जिससे गैस चूल्हा सबसे ज्यादा गंदा होता है. यदि आपका गैस चूल्हा कांच का है तो इस पर कार वेक्स की एक परत चढ़ा दें हल्के गीले कपड़े से साफ कर दें चूल्हा एकदम नया सा चमक जायेगा. यदि आपका चूल्हा स्टील का है तो बेकिंग सोडा और नीबू से रगड़ कर न्यूज पेपर से अच्छी तरह पोंछ दें. चूल्हा चमक जायेगा.

4. वेनेगर और बेकिंग सोडा

दूध, सब्जी या चावल से जले बर्तनों को साफ़ करने के या बर्तनों के पुराने दाग धब्बों को हटाने के लिए पानी में वेनेगर डालकर उबालें जब पानी ठंडा हो जाये तो स बेकिंग सोडा मिलाकर स्क्रब कर दें. आप एपल साइडर, व्हाइट, गन्ने या जामुन में से कोई भी वेनेगर का प्रयोग कर सकतीं हैं.

5. व्हाइट वेनेगर

कांच के बर्तनों को चमकाने के लिए आप 1 लीटर पानी में 1 टीस्पून वेनेगर मिलाकर सॉफ्ट स्पंज से बर्तनों को हल्के हाथ से रगड़ें फिर साफ पानी से धोकर सॉफ्ट सूती से कपड़े से पोंछ दें. कम प्रयोग में आने वाले बर्तनों को न्यूज पेपर में लपेटकर रखें.

6. नीबू का रस

माइक्रोवेब को साफ करने के लिए 1 लीटर पानी को माइक्रोवेब सेफ बाउल में डालें, इसमें 2 नीबू का रस निचोड़ कर नीबू के छिल्कों को भी इसमें डाल दें. अब इसमें पानी में माइक्रोवेब मोड पर 10 मिनट पर सेट कर दें. 10 मिनट बाद बाउल को निकाल दें और माइक्रोवेब को सूती कपड़े से अच्छी तरह पोंछ दें. बचे नीबू के पानी से टर्न टेबल को रगड़ कर साफ़ करें और पोंछकर माइक्रोवेब में रख दें.

7. सैंड पेपर और मशीन का तेल

किचिन  केबिनेट्स में सीलन और नमी के कारण जंग लग जाती है जिससे वे ठीक से काम नहीं करतीं और प्रयोग के समय बार अटकती हैं. सफाई के दौरान एक सैंड पेपर से केबिनेट्स के दोनों साइड्स पर लगे रनर्स को अच्छी तरह रगड़ें ताकि इनकी पूरी जंग निकल जाये अब इन पर हल्का सा मशीन आयल लगाकर 2-3 बार अंदर बहर करें ताकि आयल पूरे रनर पर अच्छी तरह लग जाये. इसके बाद आपकी केबिनेट बहुत स्मूथली रन करने लगेगी.

8. घी और तेल

कुछ घरों में भोजन पकाने के लिए मिटटी और लोहे के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है. इनमें पकाया गया खाना स्वास्थवर्धक तो होता है पर इन्हें साफ करना काफी चुनौती भरा काम होता है. लोहे के तवा, कढ़ाई आदि को नीबू का रस, इमली, दही या फिर वेनेगर से रगडकर साफ़ करें. इसे धोने के तुरंत बाद सूती कपड़े से इस तरह पोछें कि इसमें जरा भी नमी न रहे अंत में 1 बूँद तेल बर्तन पर अच्छी तरह चुपड़ दें इससे लम्बे समय तक बर्तन में जंग नहीं लगेगी. मिटटी के बर्तनों को सर्फ के घोल से बहुत हल्के हाथ से धोएं, साफ़ पानी से धोकर पोंछें और थोडा सा घी चुपड़ दें. मिटटी के बर्तन लम्बे समय तक साफ और सुगन्धित रहेगा.

Diwali Special: दीवाली पर चाकलेट पुडिंग से करें मुंह मीठा

आप हर दीवाली मेहमानों, रिश्तेदारों, बच्चों के लिए कुछ ना कुछ मीठा जरूर बनाती होंगी. लेकिन हर दीवाली आप एक ही तरह की मिठाई बनाकर और खिला कर थक चुकी है. अगर इस दीवाली औरों से कुछ अलग बनाना चाहती हैं तो चाकलेट पुडिंग जरूर ट्राई करें. इसे खाकर बच्चों के साथ साथ मेहमान भी खुश हो जाएंगे. तो आइए जानते हैं चाकलेट पुडिंग बनाने की रेसिपी.

सामग्री

दूध – 2 कप

बिना मिठास वाला कोको पाउडर – 4 चम्मच

कार्न स्टार्च – 3 चम्मच

चीनी – 1 1/2 कप

बिना नमक वाला बटर – 2 चम्मच

वैनीला एक्सट्रैक्ट – 1 चम्मच

नमक – 1 चुटकी

ड्राई फ्रूट्स

चाकलेट चिप्स

विधि

एक गहरा पैन लें और उसमें दूध गरम करें. दूध को हल्की आंच पर उबालें. उसी समय उसमें कोको पाउडर, कार्न स्टार्च, चीनी और नमक मिलाएं.

अब इसे लगातार चलाती रहें जिससे इसमें गांठे ना बने और घोल गाढा भी हो जाए. इसे कम आंच पर पकने दें. इसे पकने में करीब 5-7 मिनट का समय लगेगा. अब पैन को आंच से हटा दें और फिर उसमें बटर तथा वैनीला एक्स्ट्रैक्ट मिलाएं.

बटर डालने के बाद इसको दुबारा चलाएं. आपका पुडिंग बनकर बिल्कुल तैयार है.

इसे बाउल में डाल कर रूम टम्परेचर पर ठंडा होने दें और फिर 2 घंटे के लिये फ्रिज में रख दें. अब ड्राई फ्रूट्स और चाकलेट चिप्स से गार्निश कर इसे सर्व करें.

पिछले 2-3 सालों से मेरे चेहरे पर मुंहासे हो जाते हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 19 साल की युवती हूं. पिछले 2-3 सालों से मेरे चेहरे पर कभी कभी मुंहासे हो जाते हैं. नानी कहती हैं कि मुंहासे खून की अशुद्धि से होते हैं. क्या यह बात सच है? वे मुझे खानेपीने को ले कर भी टोकती रहती हैं. क्या आप यह स्पष्ट कर सकते हैं कि किन चीजों को खाने से मुंहासे होने का डर रहता है? वे मुझे चेहरे पर कौस्मैटिक्स लगाने से भी मना करती हैं. क्या सौंदर्य प्रसाधन सचमुच मुंहासों को बढ़ावा देते हैं?

जवाब-

कील मुंहासे खून की अशुद्धि से नहीं, बल्कि त्वचा के भीतर छिपी सिबेशियस ग्रंथियों के फूलने से होते हैं. किशोर उम्र में जब शरीर में सैक्स हारमोन बनने शुरू होते हैं तो हारमोन की प्रेरणा से ही सिबेशियस ग्रंथियां बड़ी मात्रा में सीबम बनाने लगती हैं. उस समय अगर सिबेशियस ग्रंथि से सीबम की ठीक से निकासी नहीं होती है, तो यह ग्रंथि फूल जाती है और छोटी छोटी फुंसियों में बदल जाती है.

खानेपीने की बहुत सी चीजें मुंहासों को बिगाड़ने का अवगुण रखने के लिए बदनाम हैं. इन में तली हुई चीजें, चाटपकौड़ी और चौकलेट को सब से बुरा माना जाता है. पर इस सोच के पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है. हां, किसी एक चीज के साथ अगर मुंहासे बारबार बढ़ते नजर आएं, तो उस चीज से परहेज करें.

जहां तक मुंहासों और सौंदर्यप्रसाधनों के बीच संबंध होने की बात है, तो यह किसी सीमा तक सच है. त्वचा पर तैलीय सौंदर्य प्रसाधन, फाउंडेशन क्रीम, मौइश्चराइजिंग क्रीम, लोशन और तेल लगाने से रोमछिद्र बंद होने और मुंहासों के बढ़ने का पूरा रिस्क रहता है. अत: इन से परहेज बरतने में ही भलाई है. पर अगर आप कैलेमिन लोशन, पाउडर, ब्लशर, आईशैडो, आईलाइनर, मसकारा और लिपस्टिक लगाना चाहें, तो इन में कोई नुकसान नहीं.

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यहां हम मुंहासों को रातों रात दूर करने के उपाय बता रहे हैं. ये सभी उपाय सुरक्षित और कारगर हैं.

मुंहासों को हाथ न लगायें और फोड़े नहीं. ऐसा करने से समस्या बढ़ जाती है तथा इससे मुंहासों के दाग पड़ जाते हैं. इसके अलावा मुंहासों को फोड़ने से जलन होती है और खून भी निकलता है. क्या आप ऐसा चाहते हैं? नहीं न? तो इन्हें हाथ न लगाएं.

इनमें से अधिकांश उपाय मुंहासे को सुखा देते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि अधिक सूखने से यह भाग लाल और पपडीदार हो जाता है. अत: सीमित मात्रा में इन उपायों को अपनाएं. आइए जानें इन उपायों के बारे में.

1. टी ट्री ऑइल

यह निश्चित रूप से मुंहासों और फुंसियों को दूर करने का उत्तम तरीका है. जब आप इसका उपयोग करेंगे तो थोड़ी जलन महसूस होगी हालांकि इसका अर्थ यह है कि यह अपना काम कर रहा है.

2. टूथपेस्ट

यह एक अन्य आश्चर्यजनक उपचार है. टूथपेस्ट में हाइड्रोजन पेरोक्साइड होता है जो मुंहासे को सुखाने में सहायक होता है.

3.कैलामाइन लोशन

कैलामाइन एक प्रकार की मिट्टी होती है जो इसे सुखाती है तथा जलन और खुजली को कम करती है. रातों रात मुंहासों को दूर करने का यह एक प्रभावी तरीका है.

4. मुल्तानी मिट्टी

मुल्तानी मिट्टी चेहरे से अतिरिक्त तेल को सोख लेती है तथा रातों रात मुंहासे को सुखा देती है. मुंहासों को दूर करने के लिए आप इस घरेलू उपाय को अपना सकते हैं.

5. नारियल का तेल

जी हां, तेल से भी रातों रात मुंहासों को ठीक किया जा सकता है. मुंहासे पर थोडा सा नारियल का तेल लगायें, इसे रात भर लगा रहने दें और आप देखेंगे कि दूसरे दिन यह गायब हो गया है.

6. एलो वेरा जेल

एलो वेरा जेल मुंहासों से आराम दिलाता है तथा सूजन को काफी हद तक कम करता है. अत: मुंहासों पर एलो वेरा जेल लगाकर रात भर छोड़ दें और आप देखेंगे कि सुबह यह गायब हो गया है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अनाम रिश्ता: नेहा और अनिरुद्ध के रिश्ते का कैसा था हाल

आज मेरे लिए बहुत ही खुशी का दिन है क्योंकि विश्वविद्यालय ने 15 वर्षों तक निस्वार्थ और लगनपूर्वक की गई मेरी सेवा के परिणामस्वरूप मुझे कालेज का प्रिंसिपल बनाने का निर्णय लिया था. आज शाम को ही पदग्रहण समारोह होने वाला है. परंतु न जाने क्यों रहरह कर मेरा मन बहुत ही उद्विग्न हो रहा है.

‘अभी तो सिर्फ 9 बजे हैं और ड्राइवर 2 बजे तक आएगा. तब तक मैं क्या करूं…’ मैं मन ही मन बुदबुदाई और रसोई की ओर चल दी. सोचा कौफी पी लूं, क्या पता तब मन को कुछ राहत मिले.

कौफी का मग हाथ में ले कर जैसे ही मैं सोफे पर बैठी, हमेशा की तरह मुझे कुछ पढ़ने की तलब हुई. मेज पर कई पत्रिकाएं रखी हुई थीं. लेकिन मेरा मन तो आज कुछ और ही पढ़ना चाह रहा था. मैं ने यंत्रवत उठ कर अपनी किताबों की अलमारी खोली और वह किताब निकाली जिसे मैं अनगिनत बार पढ़ चुकी हूं. जब भी मैं इस किताब को हाथ में लेती हूं, एक अलग ही एहसास होता है मुझे, मन को अपार सुख व शांति मिलती है.

‘आप मेरी जिंदगी में गुजरे हुए वक्त की तरह हैं सर, जो कभी लौट कर नहीं आ सकता. लेकिन मेरी हर सांस के साथ आप का एहसास डूबताउतरता रहता है,’ अनायास ही मेरे मुंह से अल्फाज निकल पड़े और मैं डूबने लगी 30 वर्ष पीछे अतीत की गहराइयों में जब मैं परिस्थितियों की मारी एक मजबूर लड़की थी, जो अपने साए तक से डरती थी कि कहीं मेरा यह साया किसी को बरबाद न कर दे.

जन्म लेते ही मां को खा जाने वाला इलजाम मेरे माथे पर लेबल की तरह चिपका दिया गया था. पिताजी ने भी कभी मुझे अपनी बेटी नहीं माना. उन्होंने तो कभी मुझ से परायों जैसा भी बरताव नहीं किया. मुझे इंसान नहीं, एक बोझ समझा. मैं अपने पिताजी के साथ अकेली ही इस घर में रहती थी, क्योंकि मुझे पालने वाले चाचाचाची इस दुनिया से चले गए थे. और मैं तो अभी 8वीं में पढ़ने वाली 13 साल की बच्ची थी. फिर भला मैं कहां जाती.

मैं घर में पिताजी के साथ एक अनचाहे मेहमान की तरह रहती थी, लेकिन घर के नौकरचाकर मुझ से बहुत प्यार करते थे. जन्म से ले कर आज तक कभी भी मैं ने मां और पापा शब्द नहीं पुकारा है. मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि इन रिश्तों को नाम ले कर बुलाने से कैसा महसूस होता है. पिताजी की सख्त हिदायत थी कि जब तक वे घर में रहें, तब तक मैं उन के सामने न जाऊं. इसलिए जितनी देर पिताजी घर में रहते, मैं पीछे बालकनी में जा कर नौकरों से बातें करती थी.

बालकनी से ही मैं ने उन्हें पहली बार देखा था. सामने वाले मकान में किराएदार के रूप में आए थे वे. पहले मैं नहीं जानती थी कि वे कौन हैं, क्या करते हैं? लेकिन जब भी मैं बालकनी में खड़ी होती तो उन की दैनिक गतिविधियों को निहारने में मुझे अद्भुत आनंद आता था. उम्र में तो वे मेरे पिताजी के ही बराबर थे लेकिन उन का आकर्षक व्यक्तित्व किसी को भी आकर्षित कर सकता था.

मैं अकसर उन्हें पढ़ते हुए देखती थी. कभीकभार खाना बनाते या कपड़े धोते हुए देखा करती थी. कई बार उन की नजर भी मुझ पर पड़ जाती थी. मैं अकसर उन के बारे में सोचती थी, परंतु पास जा कर कुछ पूछने की हिम्मत नहीं होती थी.

एक दिन जब मैं स्कूल से लौटी तो उन्हें बैठक में पिताजी के साथ चाय पीते देख कर चकित रह गई. मैं कुछ देर वहां खड़ी रहना चाहती थी, लेकिन पिताजी का इशारा समझ कर तुरंत अंदर चली गई और छिप कर बातें सुनने लगी. उस दिन पहली बार मुझे पता चला कि उन का नाम अनिरुद्ध है. नहीं…नहीं, अनिरुद्ध सर क्योंकि वे वहां के महिला महाविद्यालय में हिंदी के लैक्चरर थे.

कालेज के ट्रस्टी होने के नाते पिताजी और अनिरुद्ध सर की दोस्ती बढ़ती गई. और साथ ही मैं भी उन के करीब होती गई. स्कूल से आते वक्त कभीकभी मैं उन के घर भी चली जाया करती थी. वे बेहद हंसमुख स्वभाव के थे. जब भी मैं उन से मिलती, उन के चेहरे पर खुशी और ताजगी दिखती थी.

वे मुझ से केवल मेरे स्कूल और मेरी सहेलियों के बारे में ही पूछा करते थे. मेरी पढ़ाई का उन्हें विशेष खयाल रहता था, जबकि उतनी फिक्र तो शायद मुझे भी नहीं थी. मैं तो केवल पढ़ाई नाम की घंटी गले में बांधे घूम रही थी.

मैं ने तो सर से मिलने के बाद ही जाना कि ये किताबें किस हद तक मंजिल तक पहुंचने में मददगार सिद्ध होती हैं. सर कहा करते थे कि ये किताबें इंसान की सच्ची दोस्त होती हैं जो कभी विश्वासघात नहीं करतीं और न ही कभी गलत दिशा दिखलाती हैं. ये हमेशा खुशियां बांटती हैं और दुखों में हौसलाअफजाई का काम करती हैं.

उसी दौरान मुझे यह भी पता चला कि वे एक अच्छे लेखक भी हैं. इन दिनों वे एक नई किताब लिख रहे थे जिस का शीर्षक था ‘निहारिका.’ जब मैं ने 9वीं कक्षा पास कर ली तब उन्होंने एक दिन मुझ से कहा कि उन की ‘निहारिका’ आज पूरी हो गई है, और वे चाहते हैं कि मैं उसे पढूं.

तब मैं साहित्य शब्द का अर्थ भी नहीं जानती थी. कोर्स की किताबों के अलावा अन्य किताबों से मेरा न तो कोई परिचय था और न ही रुचि. लेकिन ‘निहारिका’ को मैं पढ़ना चाहती थी क्योंकि उसे सर ने लिखा था और उन की इच्छा थी कि मैं उसे पढ़ूं. और सर की खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकती थी.

जब मैं ने ‘निहारिका’ पढ़नी शुरू की तो उस के शब्दों में मैं डूबती चली गई. उस के हर पन्ने पर मुझे अपना चेहरा झांकता नजर आ रहा था. ऐसा लगता था जैसे सर ने मुझे ही लक्ष्य कर, यह कहानी मेरे लिए लिखी है, क्योंकि अंत में सर के हाथों मेरे नाम से लिखी वह चिट इस बात की प्रमाण थी.

‘प्रिय नेहा,

‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे अंदर किसी भी कार्य को करगुजरने की अनोखी क्षमता है, लेकिन जरूरत है उसे तलाश कर उस का सही इस्तेमाल करने की. मेरी कहानी की नायिका निहारिका ने भी यही किया है. तमाम कष्टों को झेलते हुए भी उस ने अपने डरावने अतीत को पीछे छोड़ कर उज्ज्वल भविष्य को अपनाया है, तभी वह अपनी मंजिल पाने में कामयाब हो सकी है. मैं चाहता हूं कि तुम भी निहारिका की तरह बनो ताकि इस किताब को पढ़ने वालों को यह विश्वास हो जाए कि ऐसा असल जिंदगी में भी हो सकता है.

‘तुम्हारा, अनिरुद्ध सर.’

इस चिट को पढ़ने के साथ ही इस के हरेक शब्द को मैं ने जेहन में उतार लिया और फिर शुरू हो गया नेहा से निहारिका बनने तक का कभी न रुकने वाला सफर. जिस में सर ने एक सच्चे गुरु की तरह कदमकदम पर मेरा मार्गदर्शन किया. 10वीं का पंजीकरण कराते समय ही मैं ने अपना नाम बदल कर नेहा भाटिया की जगह नेहा निहारिका कर लिया. स्कूल तथा कालेज की पढ़ाई समाप्त करने के बाद मैं ने पीएचडी भी कर ली. मेरी 10 वर्षों की मेहनत रंग लाई और मुझे अपने ही शहर के राजकीय उच्च विद्यालय में शिक्षिका के रूप में नियुक्ति मिल गई.

उस दिन जब मैं अपना नियुक्तिपत्र ले कर सर के पास गई तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. तब उन्होंने कहा था, ‘नेहा, अपनी इस सफलता को तुम मंजिल मत समझना, क्योंकि यह तो मंजिल तक पहुंचने की तुम्हारी पहली सीढ़ी है. मंजिल तो बहुत दूर है जो अथक परिश्रम से ही प्राप्त होगी.’

उधर, पिताजी को मेरा नौकरी करना बिलकुल रास नहीं आ रहा था. परंतु न जाने क्यों वे खुले शब्दों में मेरा विरोध नहीं कर रहे थे. इसलिए उन्होंने मेरी शादी करने का फैसला किया ताकि वे नेहा नाम की इस मुसीबत से छुटकारा पा सकें. बचपन से ही आदत थी पिताजी के फैसले पर सिर झुका कर हामी भरने की, सो, मैं ने शादी के लिए हां कर दी.

अगले ही दिन पिताजी के मित्र के सुपुत्र निमेष मुझे देखने आए. साथ में उन के मातापिता और 2 छोटी बहनें भी थीं. जैसे ही मैं बैठक में पहुंची, पिताजी ने मेरी बेटी नेहा कह कर मेरा परिचय दिया. पहली बार पिताजी के मुंह से अपने लिए बेटी शब्द सुना और तब मुझे शादी करने के अपने फैसले पर खुशी महसूस हुई. मगर यह खुशी ज्यादा देर तक न रह सकी. निमेष और उन के परिवार वालों ने मुझे पसंद तो कर लिया, लेकिन कुछ ऐसी शर्तें भी रख दीं जिन्हें मानना मेरे लिए मुमकिन नहीं था.

निमेष की मां ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि मुझे शादी के बाद नौकरी छोड़नी होगी और उन के परिवार के सदस्यों की तरह शाकाहारी बनना होगा.

एक पारंपरिक गृहिणी के नाम पर शोपीस बन कर रहना मुझे गवारा नहीं था. मैं तो अपने सर के बताए रास्ते पर चलना चाहती थी और उन के सपनों को पूरा करना चाहती थी, जो अब मेरे भी सपने बन चुके थे.

सब के सामने तो मैं चुप रही परंतु शाम को हिम्मत कर के पिताजी से अपने मन की बात कह दी. यह सुन कर पिताजी आगबबूला हो गए. उस दिन मैं ने पहली बार बहुत कड़े शब्दों में उन का विरोध किया, जिस के एवज में उन्होंने मुझे सैकड़ों गालियां दीं व कई थप्पड़ मारे.

फिर तो मैं लोकलाज की परवा किए बिना ही सर के पास चली गई. सर ने जैसे ही दरवाजा खोला, मैं उन से लिपट कर फफक पड़ी. इतनी रात को मेरी ऐसी हालत देख कर सर भी परेशान हो गए थे, लेकिन उन्होंने पूछा कुछ नहीं. फिर मैं ने उन के पूछने से पहले ही अपनी सारी रामकहानी उन्हें सुना डाली. इतना कुछ होने के बाद भी सर ने मुझे पिताजी के पास ही जाने को कहा, लेकिन मैं टस से मस नहीं हुई. तब सर ने समझाना शुरू किया.

वे समझाते रहे और मैं सिर झुकाए रोती रही. उन की दुनिया व समाज को दुहाई देने वाली बातें मेरी समझ के परे थीं. फिर भी, अंत में मैं ने कहा कि यदि पिताजी मुझे लेने आएंगे तो मैं जरूर चली जाऊंगी, लेकिन वे नहीं आए. दूसरे दिन उन का फोन आया था. मुझे ले जाने के लिए नहीं, बल्कि सर के लिए धमकीभरा फोन…यदि सर ने कल तक मुझे पिताजी के घर पर नहीं छोड़ा तो वे पुलिस थाने में रिपोर्ट कर देंगे कि अनिरुद्ध सर ने मेरा अपहरण कर लिया है. इतना सबकुछ जानने के बाद मैं सर की और अधिक परेशानी का कारण नहीं बनना चाहती थी, इसलिए सर के ही कहने पर मैं अपनी सहेली निशा के घर चली गई.

पिताजी को पता चल चुका था कि मैं निशा के घर पर हूं. फिर भी वे मुझे लेने नहीं आए. लेकिन मुझे कोई चिंता नहीं थी. मैं तो बस इसलिए परेशान थी कि इतने सालों बाद मैं पहली बार सर से इतने दिनों के  लिए दूर हुई थी. इसलिए मुझे घबराहट होने लगी थी, जिस के निवारण के लिए मैं सर के कालेज चली गई. वहां मैं ने जो कुछ भी सुना वह मेरे लिए अकल्पनीय व असहनीय था. सर ने अपना स्थानांतरण दूसरे शहर में करवा लिया था और दूसरे दिन जा रहे थे.

फिर तो मैं शिष्या होने की हर सीमा को लांघ गई और सर को वह सबकुछ कह दिया जिसे मैं ने आज तक केवल महसूस किया था. अपने प्रति सर के लगाव को प्यार का नाम दे दिया मैं ने. और सर…एक निष्ठुर की भांति मेरी हर बात को चुपचाप सुनते रहे. अंत में बस इतना कहा, ‘नेहा, आज तक तुम ने मुझे गलत समझा है. मेरे गुरुत्व का, मेरी शिक्षा का अपमान किया है तुम ने.’

‘नहीं सर, मैं ने आप का अपमान नहीं किया है. मैं ने तो केवल वही कहा है जो अब तक महसूस किया है. मैं ने सिर्फ प्यार ही नहीं, बल्कि हर रिश्ते का अर्थ आप से ही सीखा है. आप ने एक पिता की तरह मेरे सिर पर हाथ रख कर मुझे स्नेहसिक्त कर दिया, एक प्रेमी की तरह सदैव मुझे खुश रखा, एक भाई की तरह मेरी रक्षा की, एक दोस्त और शिक्षक की तरह मेरा मार्गदर्शन किया. यहां तक कि आप ने एक पति की तरह मेरे आत्मसम्मान की रक्षा भी की है. सच तो यह है सर, मन से तो मैं हर रिश्ता आप के साथ जोड़ चुकी हूं. इस के लिए तो मुझे किसी से भी पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है.’

‘नेहा, मेरा अपना एक अलग परिवार है और मैं अपने परिवार के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता. साथ ही, गुरु और शिष्य के इस पवित्र रिश्ते को भी कलंकित नहीं कर सकता.’ सर की आंखों में समाज का डर सहज ही झलक रहा था.

‘मैं जानती हूं सर, और मैं कभी ऐसा चाह भी नहीं सकती. मैं ने आप से प्यार किया है. आप के अस्तित्व को चाहा है, सर. इसलिए मैं आप को अपनी नजरों में कभी गिरने नहीं दूंगी. मैं ने तो बस अपनी भावनाएं आप के साथ बांटी हैं. आप जहां चाहे जाइए, मुझे आप से कोई शिकायत नहीं. बस, कामना कीजिए कि मैं आप की दी हुई शिक्षा का अनुसरण कर सकूं.’

‘मेरी शुभकामनाएं तो हमेशा तुम्हारे साथ हैं नेहा, पर क्या जातेजाते मेरी गुरुदक्षिणा नहीं दोगी?’ सर ने रहस्यात्मक लहजे में कहा तो मैं दुविधा में पड़ गई.

मुझे असमंजस में पड़ा देख कर सर  बोले, ‘मैं तो, बस इतना चाहता हूं  नेहा कि मेरे जाने के बाद तुम न तो मुझे ढूंढ़ने की कोशिश करना और न ही मुझ से संपर्क स्थापित करने का कोई प्रयास करना. हो सके तो मुझे भूल जाना. यही तुम्हारे भविष्य के लिए उचित रहेगा.’ इतना कह कर उन्होंने अपनी पीठ मेरी तरफ कर ली.

कुछ पलों के लिए मैं सन्न रह गई. समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी कीमती चीज मैं उन को कैसे दे दूं? फिर भी मैं ने साहस किया और बस इतना ही कह पाई, ‘सर, क्या आप अपनी ‘निहारिका’ को भूल पाएंगे? यदि आप ने इस का जवाब पा लिया तो आप को अपनी गुरुदक्षिणा अपनेआप ही मिल जाएगी.’

उस दिन मैं ने आखिरी बार अनिरुद्ध सर को आह भर के देखा. उन की शुभकामना ली तो? सर के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘हमेशा खुश रहो.’ शायद इसीलिए मैं किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं हो पाती हूं. जिंदगी के हर सुखदुख को हंसते हुए झेलना मेरी आदत बन गई है. मैं ने सर की आधी बात तो मान ली और उन से कभी भी संपर्क करने की कोशिश नहीं की मगर उन्हें भूल जाने वाली बात मैं नहीं मान सकी, क्योंकि मैं गुरुऋ ण से उऋ ण नहीं होना चाहती थी.

सर के चले जाने के बाद मैं ने आजीवन अविवाहित रह कर शिक्षा के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित करने का फैसला कर लिया. न चाहते हुए भी पिताजी को मेरी जिद के आगे कना पड़ा.

इसी बीच, लगातार बजते मोबाइल की रिंगटोन को सुन कर मेरी तंद्रा भंग हुई, और मैं अतीत से वर्तमान के धरातल पर आ गई. पिताजी का फोन था, ‘‘आखिर तुम ने अपनी जिद पूरी कर ही ली. खैर, बधाई स्वीकार करो. मुझे अफसोस है कि मैं शहर से बाहर हूं और समारोह में नहीं आ सकता. आगे यही कामना है कि तुम और तरक्की करो.’’

पिताजी ने ये सबकुछ बहुत ही रूखी जबान से कहा था. फिर भी, मुझे अच्छा लगा कि पिताजी ने मुझे फोन किया. काश, एक बार सर का भी फोन आ जाता…

लौट जाओ सुमित्रा: उसे मुक्ति की चाह थी पर मुक्ति मिलती कहां है

धुआं-धुआं सा: भाग 2- क्या था विशाखा का फैसला

अगले दिन मैं ने औफिस से छुट्टी ले ली. बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद मैं ने एक बार फिर विशाखा से बात करने की सोची, “क्या तुम्हें पहले से शक था, पर कैसे?”

“हर औरत के मन में यह डर होता है कि कहीं उस का पति भटक न जाए. कहीं उस का कोई अफेयर न हो जाए. लेकिन मैं इस बात से सदा आश्वस्त रही क्योंकि मैं ने तुम्हारी दृष्टि को कभी किसी औरत का पीछा करते नहीं पकड़ा. तुम ने कभी किसी स्त्री के लिए कोई भद्दा मज़ाक, स्त्रीअंगों को ले कर कोई अश्लील टिप्पणी या फिर दूसरों की पत्नियों की प्रशंसा नहीं की. कई वर्ष मैं इस बात से खुश रही. शुरू में मुझे अक्ल भी कहां थी. लेकिन फिर समय बदला. समाज में एलजीबीटी जैसे पारिभाषिक शब्द सुनाई देने लगे. इन के बारे में पढ़ने पर मुझे ज्ञात हुआ कि कितनी तरह की सैक्सुएलिटी होती हैं. फिर कुछ जाननेसमझने के साथ ही मुझे तुम्हारे कृत्यों पर संदेह होने लगा. नहीं जानती कैसे… शायद मैं ने तुम्हारी दृष्टि को अकसर दूसरी महिलाओं तो नहीं, पर दूसरे पुरुषों को अजीब-सी निगाहों से ताकते हुए पाया. हम जिस पार्टी में जाते, मैं तुम्हें वहां उपस्थित आदमियों की ओर एक अलग ढंग से देखते हुए देखती. तब मुझे अपने मन में उठते प्रश्नों के उत्तर न मिलते. लेकिन कल रात से सबकुछ समझ आने लगा है,” कह विशाखा हलके से हंसी, “जानते हो, कल रात मैं काफी देर तक चुपचाप आंसू बहाती रही. इतनी खामोशी से कि कहीं तुम सुन न लो. पर अब हंसी आ रही है. सबकुछ साफ नज़र आ रहा है.

“वो एक खिलौना होता है न, जैक इन द बौक्स, जिस में एक कठपुतले को डब्बे से बाहर आने से रोकने के लिए हर बार डब्बे का ढक्कन ज़ोर से बंद करना पड़ता है. हम दोनों अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में अब तक वही करते आ रहे थे,” विशाखा के यह कहते ही मेरी आंखों से कुछ बूंदें छलक गईं. जिस सचाई को मैं सारी ज़िंदगी नकारता आया, जिस को मैं ने कभी नहीं स्वीकारा, उस सच को विशाखा ने कितनी सहजता से अपना लिया. यह उस का मेरे प्रति प्रेम नहीं तो क्या है.

“तुम रोते क्यों हो?” विशाखा ने फौरन मेरे आंसू पोंछे, “मुझे तो तुम्हारे लिए कष्ट हो रहा है. ज़िंदगी का कितना लंबा अरसा तुम ने एक झूठ का आवरण ओढ़ कर गुज़ार दिया. और मैं खुश हूं कि जब तुम ने इस सचाई को स्वीकारा, तो सब से पहले यह बात मुझे बताई,” विशाखा अब भी हौले से मुसकरा रही थी, फिर आगे बोली, “शादी के बाद जब मैं पहली बार 2 हफ्तों के लिए मायके गई थी और लौटने पर मैं ने तुम से पूछा था कि क्या तुम ने मुझे मिस किया, तब तुम ने बेहद ईमानदारी से कहा था कि नहीं. तब मेरे अंदर कुछ चटक गया था. मुझे लगने लगा था कि तुम्हारी ज़िंदगी में शायद मेरी वह जगह नहीं जो मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी है.”

विशाखा उस दिन को याद कर काफी कुछ कहती रही और मैं पुराने ख़यालों में खो गया. वही दिन था जब मुझे भी इस बात से हैरत हुई थी कि मैं ने विशाखा को याद नहीं किया. न जवानी का उफान, न कोई शारीरिक ज़रूरत – पत्नी को वापस अपने पास पा कर भी मेरे भीतर कोई व्याकुलता नहीं हुई थी. उस दिन मेरे अंदर एक आवाज़ ने कहा था कि यह झूठी ज़िंदगी कब तक जीता रहेगा… विशाखा की गैरमौजूदगी ने मेरे अंदर ज़रा भी तृष्णा पैदा नहीं की थी और न ही उस की समीपता ने मेरे मन में कोई हलचल मचाई थी. लेकिन मैं उस से प्यार करता हूं.

मैं अपनी शादी, अपनी गृहस्थी नहीं तोड़ना चाहता. आज विशाखा ने जिस प्रकार मेरे सच को स्वीकार लिया, उस से मुझे अपने भीतर एक तड़कन अनुभव होने लगी है. मानो, मेरे पेट में एक गहरी खाई खुल गई है और मेरे स्कंधों पर एक वज़नी पत्थर रख दिया गया है. एक खालीपन और एक बोझ, गिर जाने का डर और संभाल न सकने की विवशता. मेरा दिल कह रहा था कि मैं अपनी सचाई को सिरे से काट कर कहीं दूर फेंक आऊं. मैं वैसा क्यों नहीं हूं जैसा सब मुझे समझते आए हैं. संभवतया मेरे जैसा हर व्यक्ति इस कटीली डगर से गुज़र चुका होगा.

“आगे क्या करना चाहती हो?” मेरे प्रश्न पर विशाखा बोली, “जैसा चल रहा है, चलने देते हैं. हम ने शादी की है. हमारे बच्चे हैं जिन की अभी यह सब समझने की न तो स्थिति है और न ही उम्र. तुम से शादी कर के वैसे भी मुझे शारीरिक सुख बहुत कम मिला. मैं ने इसे ही अपनी नियति मान लिया. मैं इस बात से ही खुश रही कि तुम मुझ से प्यार करते हो, मेरा ध्यान रखते हो, मेरी भावनाएं समझते हो और उन की कद्र करते हो. बच्चों के पालनपोषण में तुम ने हमेशा मेरा साथ निभाया. घर के कामकाज में भी तुम ने हमेशा मेरा हाथ बंटाया. एक पत्नी को और क्या चाहिए होता है? हमारे देश में ये सब बातें शारीरिक सुख की कमी भरने के लिए पर्याप्त होती हैं. वैसे भी हमारे समाज में कहां ऐसी इच्छाओं की बात करने की स्वतंत्रता है. जो कुछ है उसे घर की चारदीवारी के अंदर ही रहने देते हैं.”

विशाखा की बात मुझे जंच गई. मैं ने अपनी असलियत बयान कर दी. मगर किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. मेरे व्यक्तित्व पर जो मुखौटा लगा हुआ है, वह भी बरकरार रहेगा. जब विशाखा को कोई आपत्ति नहीं तो मेरे लिए भी सबकुछ वैसा ही चलता रहेगा. समाज में जो मेरी एक छवि है- सफल व्यक्ति, सुंदर पत्नी, प्यारे बच्चे- वह भी बनी रहेगी और गृहस्थी यथावत चलती रहेगी.

मैं यही सोच कर आगे बढ़ा कि मेरे जीवन में कुछ नहीं बदलेगा. परंतु मेरी सचाई को अपनाने के बाद मेरे अंतर्मन में खुद ही परिवर्तन आने आरंभ हो गए. आज तक के वैवाहिक जीवन में जो फर्ज़ मैं विशाखा के प्रति निभाता आया था, अब उसे निभाने के लिए मुझे मानसिक दबाव लगना बंद हो गया. अब मैं किसी मजबूरी के अंतर्गत विशाखा के नज़दीक न जाता. उसे मेरी असलियत ज्ञात है, सोच कर मैं ने बड़े ही सुविधाजनक रूप से उस से दैहिक दूरी बना ली.

इधर औफिस में राघव की ओर अब मेरा दिल और तीव्रता से धावने लगा. दिल अब स्वच्छंद पंछी सा उड़ता. लगता जैसे उस के पंख पूरी उड़ान भरने को मचल रहे हैं. मस्तिष्क भी क्या चीज़ है, कब क्या खेल खेलने लगे, हमें खुद भी पता नहीं चलता. अब मेरे लिए मेरी शादी केवल एक आवरण बन कर रह गई थी. एक ऐसा खोल जिस में सब का नफा निश्चित था – मेरा, विशाखा का और मेरे बच्चों का. सब को उन की सुविधानुसार वह मिल रहा था जो उन्हें चाहिए था. मुझे सामाजिक स्टेटस, विशाखा को बिना कमाने की चिंता किए एक आरामदेह ज़िंदगी और बच्चों को मातापिता का प्यार व संरक्षण. जब सबकुछ ठीक तरह से चल रहा है तो मैं अपने मन को मसोस कर क्यों रखूं? क्यों न मैं वह सब पा लूं जिस की कल्पनामात्र कर के मैं ने आज तक का जीवन बिताया. मैं ने राघव के नेत्रों में भी वही कशिश अनुभव की थी, इसलिए अब की बार उस के सामने आने पर नज़रें चुरा कर भागने की जगह मैं ने दिल खोल कर सामना करने की ठानी.

राघव मुझ से उम्र में काफी छोटा है. यही कोई 10-12 वर्ष. उस की बात ही कुछ और है. उस का जोश, उस की उमंग, उस का जनून – पता नहीं उसे मुझ में क्या दिखाई दिया जो वह मेरी तरफ आकर्षित हुआ. पूछता हूं तो बस मुझे बांहों में कस कर भर लेता है. उस की यही बात तो मेरे दिल को छू जाती है. जब उस के साथ होता हूं तो उस का प्यार देख कर अकसर मेरे नेत्र सजल हो उठते हैं. खुद पर इतराने लगता हूं मैं.

राघव इस शहर में अकेला रहता है. उस का परिवार झांसी में रहता है. एक दिन मैं ने उस से पूछा कि क्या उस के घरवालों को पता है कि वह गे है. उस के हामी भरने पर मुझे हैरानी हुई. लेकिन उस ने जो कुछ आगे कहा उसे सुन कर मेरे होश उड़ गए.

“वहां मुझे कोई नहीं समझ सकता. मैं ने एक बार अपने भाई के मुंह से अपनी सचाई अपने घरवालों को बताने का विफल प्रयास किया था. डैडी तो आक्रामक हो गए थे और ममा न जाने किन स्वामीबाबाओं से मेरा भूत उतरवाने की बात करने लगी थीं. अगले कुछ दिनों में उन्होंने अपनी पूजामंडली की सहायता से एक बाबा को फाइनल कर डाला था और मुझे एक आश्रम में ले गई थीं. वह बाबा मुझे हिजड़ा कह कर एक मोरपंख की मोटी झाड़ू मेरे ऊपर मारने लगा. चोट के कारण मैं रोने लगा. मैं काफी डर गया था.

“उस समय मेरी उम्र केवल 17 वर्ष थी. यह सब होता रहा और मेरी ममा हाथ जोड़ कर सामने बैठी देखती रहीं. मैं किसी तरह भाग कर वहां से घर आ गया था. फिर मेरे डैडी की बारी आई. वे मुझे एक डाक्टर के पास ‘कंवर्जन थेरैपी’ के लिए ले गए. डाक्टर के पूछने पर जब मैं ने बताया कि मुझे मेन परफ्यूम अधिक पसंद हैं तो उस ने मुझे ऐसे स्टोर में अकसर जाने की सलाह दी जहां विमेन परफ्यूम हों. कितना बचकाना था यह सब! मुझे शाकाहारी भोजन खाने की सलाह दी गई. एक कौपी में राम-राम लिखते रहने को कहा गया. कुछ ने तो मुझे सन्यास तक लेने का मशवरा दे डाला,” कह राघव हंसने लगा, फिर बोला, “इसीलिए अपने पैरों पर खड़ा होते ही मैं यहां चला आया, उन सब से दूर. मुझे क्या पता था कि यहां आने से मेरा एक और फायदा हो जाएगा- आप से मुलाक़ात.”

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