‘Gadar 2’ हिट होते ही Sunny Deol ने बढ़ाई फीस, ‘Border 2’ के लिए वसूलेंगे इतने रकम

बॉलीवुड के दमदार एक्टर सनी देओल अपनी धांसू आवाज और एक्टिंग के लिए जाने जाते है. एक्टर की ‘Gadar 2’ ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया था. सनी की ‘गदर 2’ के सामने अक्षय कुमार की ‘OMG 2’  कुछ खास प्रर्दशन नहीं कर पाई. वहीं सनी देओल की ‘गदर 2’ ने बॉक्स ऑफिस पर 500 करोड़ से ज्यादा की कमाई की. गदर 2 के बाद से सनी देओल का नाम ‘बॉडर 2’ से जुड रहा है. इसी को लेकर बड़ी खबर सामने आई है कि सनी देओल ‘बॉडर 2’ के लिए कितनी फीस ले रहे है इसका खुलासा हो चुका है. सनी देओल की फीस जानकर आप भी हैरान  हो जाएंगे.

 

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सनी ने ‘बॉडर 2’ के लिए वसूली मोटी रकम

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सनी देओल की जबसे ‘गदर 2’ हिट हुई है तभी से वह लगातर सुर्खियों में है. ‘गदर 2’ बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाने के बाद सनी ने अपनी फीस बढ़ा दी है. अभी हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि सनी देओल अपनी अपकमिंग फिल्म के लिए मोटी रकम ले रहें है. एक्टर ‘बॉडर 2’ के लिए 50 करोड़ से ज्यादा रुपये की मांग कर रहे है. बता दें कि आधिकारिक तौर पर अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक के सनी देओल ने गदर 2 के बाद से अपनी फीस बढ़ा दी है. इसके साथ ही सनी ने गदर 2 के 20 करोड़ रुपये फीस लिए थे.

 

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कब शुरु होगी ‘बॉडर 2’ की शूटिंग

‘बॉडर 2’ सनी की साल 1975 में आई सुपरहिट फिल्म का दूसरा पार्ट है. इस फिल्म में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग दिखाई गई थी. अब फैंस को ‘बॉडर 2’ का काफी इंतजार है लेकिन अभी तक इस फिल्म की रिलीज डेट का खुलासा नहीं हुआ.

Anupamaa: कपाड़िया हाउस को हड़पेगी गुरु मां,वनराज का बिगेड़ा मानसिक संतुलन

टीवी सीरियल अनुपमा में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. शो के मेकर्स आए दिन नया ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आ जाते है. अनुपमा सीरियल सबसे हिट शो में से एक है. काफी समय से ये टीआरपी दौड़ में काफी आगे बना हुआ है. वहीं इस शो में समर की मौत के बाद से अनुपमा पर दुखों का पहाड़ टूट चुका है. तोषू-पाखी ने समर की मौत का इंसाफ दिलाने से साफ मना कर दिया है. अब अकेले ही अनुपमा और वनराज समर की मौत के बाद कानूनी लड़ाई लड़ रहे है. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में आने वाला है ये ट्विस्ट.

कपाड़िया हाउस को अपने हाथ में लेगी गुरु मां

टीवी सीरियल अनुपमा  के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि मालती देवी कपाड़िया हाउस में धीरे धीरे खुद को सेट करने की कोशिश करेंगी. वह छोटी अनु से दोस्ती कर लेती है और उसे अपना पूरा समय देने लगती है. दूसरी तरफ शाह हाउस में वनराज की हालत ठीक नहीं है. वह बेहोश हो जाता है काफी समय बाद उसे होश आता है. इसी बीच अनुज बापू जी से घर जाने की बात करता है, तब अनुपमा उसे इशारे से रोककर कहती है कि वह भी उसके साथ चल रही है. ये देखकर अनुज काफी खुश हो जाता है.

 

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अनुपमा से सावल करेगा अनुज

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में आगे देखने को मिलेगा कि अनुपमा और अनुज एक साथ घर आ रहे होते है. तभी अनुपमा अनुज से कहती है कि आपने गुरू मां को घर में रहने की इजाजत दी है, जो बहुत अच्छी बात है. एक मां का अपने बेटे से दूर रहने का दर्द मैं महसूस कर सकती है. आपको और उन्हें एक दूसरे का पूरा साथ मिलेगा.’ अनुपमा की इस बात पर अनुज बोलता है, मुझे अनुपमा का पूरा साथ कब मिलेगा. ये बात सुनकर अनुपमा शात हो जाती है. इसके बाद अनुपमा उस बच्चे से मिलती है जिसे समर के अंग दान किए गए थे. इसके बाद वह अनुज के साथ घर पहुंच जाती है.

 

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फेस्टिवल पर बनाएं बूंदी फ़ज और बूंदी पैना कोटा

फेस्टिवल्स का सीजन प्रारम्भ हो चुका है और हमारे यहां त्योहारों का मतलब ही मीठा होता है. त्योहारों पर घर में यूं ही बहुत सारा काम रहता है इसलिए इन दिनों इस तरह की मिठाइयां बनानी चाहिए जिन्हें बनाने में अधिक परिश्रम भी न लगे और मिठाई बनकर तैयार भी हो जाये. घर पर बनी मिठाइयों का सबसे बड़ा लाभ ये होता है कि उनमें मिलावट नहीं होती साथ ही घर पर बनाई जाने से ये काफी सस्ती भी पड़तीं हैं. आज हम आपको बूंदी से ऐसी ही दो रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप झटपट बड़ी आसानी से घर पर बना सकतीं हैं हमने यहां पर बाजार से लायी रेडीमेड बूंदी का प्रयोग किया है आप चाहें तो घर पर भी बूंदी बना सकतीं हैं तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं.

  1. बूंदी पेना कोटा

कितने लोगों के लिए   4

बनने में लगने वाला समय  30 मिनट

मील टाइप  वेज

सामग्री

  1. रेडीमेड बूंदी  1 कप

  2. ओवरनाईट भीगे पिस्ता  1 कप

   3. अमूल क्रीम  1 टेबलस्पून

   4. दूध  2 टेबलस्पून

    5. ओलिव आयल  1/2 टीस्पून

    6. पिसी शकर   1/4 टीस्पून

     7. कॉर्नफ्लोर  1/8 टीस्पून

     8. इलायची पाउडर  1/4 टीस्पून

      9. बारीक कटा पिस्ता 1 टीस्पून

     10. हरा रंग  1 बूँद

      11. गुलाब की सूखी पत्तियां    4

विधि-

बनाने से 12 घंटे पहले पिस्ता को भिगो दें सुबह इनके छिल्के निकालकर पिस्ता को तेल के साथ मिक्सी में बारीक पीस लें. अब इसमें दूध और क्रीम डालकर फिर से 2-3 बार ब्लेंड कर लें. पिसे मिश्रण को एक पैन में डालकर शकर, इलायची पाउडर,  हरा रंग, कॉर्नफ्लोर मिलाकर गैस पर लगातार चलाते हुए 10 मिनट तक पकाएं. जब मिश्रण थोडा सा गाढ़ा हो जाये तो गैस बंद कर दें. जब ठंडा हो जाये तो आइसक्रीम बाउल या लम्बे ग्लास में पहले 1 टीस्पून बूंदी फिर पिस्ता का गाढ़ा दूध डालकर ऊपर से फिर बूंदी डालें. कटे पिस्ता और गुलाब की पंखुड़ियों से सजाकर सर्व करें.

 2. बूंदी फ़ज

कितने लोगों के लिए   8

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप  वेज

सामग्री                           

  1. रेडीमेड बूंदी   250 ग्राम
  2. मिल्क पाउडर    1 कप
  3. फुल क्रीम दूध  1 कप
  4. किसी गाजर   500 ग्राम
  5. शकर    2 टेबलस्पून
  6. घी   1/4 टीस्पून
  7. इलायची पाउडर   1/8 टीस्पून
  8. बारीक कटे मेवा  1 टेबलस्पून

विधि

दूध, घी, 1 चम्मच शकर, इलायची पाउडर और मिल्क पाउडर को एक साथ अच्छी तरह मिलाकर गैस पर तब तक पकाएं जब तक कि मिश्रण मावा जैसा गाढ़ा न होने लगे. अब इस तैयार मिश्रण को चिकनाई लगी एक ट्रे में फैला दें. इस मावे के ऊपर बूंदी को इस तरह फैलाएं कि मावा पूरी तरह कवर हो जाए. एक दूसरे पैन में 1/4 टीस्पून घी डालकर किसी गाजर डाल दें.

जब गाजर गल जाये तो बची एक टीस्पून शकर डालकर पकाएं. जब गाजर का पानी पूरी तरह सूख जाये तो गाजर के इस मिश्रण को बूंदी के ऊपर अच्छी तरह फैला दें. ऊपर से कटे मेवा डालकर फ्रिज में 2 घंटे के लिए सेट होने के लिए रख दें. 2 घंटे बाद चौकोर पीसेज में काटकर मेहमानों को सर्व करें.

40 के बाद भी रहें खिलीं खिलीं

महिलाएं अक्सर खुद को सुंदर देखना चाहती है लेकिन कुछ महिलाओं को लगता है कि उम्र बढ़ने के साथ उनका चेहरा खूबसूरत नहीं दिखेगा. अगर आपको भी ऐसा ही लगता है तो परेशान होने की बात नहीं क्योंकि आप अपनी उम्र के हिसाब से मेकअप कर खुद को जवां दिखा सकती हैं. उम्र बढ़ने के साथ आपकी स्किन में कुछ बदलाव आ सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप खूबसूरत नहीं दिखेंगी. आप अपनी स्किन की देखभाल के लिए स्वस्थ आहार और व्यायाम करें. इसके साथ आप मेकअप से भी अपनी खूबसूरती को बढ़ा सकती हैं इसीलिए यहां हम आपके लिए ऐसे ही कुछ मेकअप प्रोडक्ट्स की जानकारी को साझा करेंगे, जो आपको जवानों जैसी खुबसूरती देने में मदद कर सकते हैं. आइए जानते हैं-

  1. प्राइमर

प्राइमर आपकी स्किन को सॉफ्ट और फ्लैट करता है जिससे आप इसके ऊपर प्रोडक्ट लगाएं तो वह अपनी जगह पर टिके रहे और बेहतर दिखे. यह छिद्रों की उपस्थिति को कम और आपकी स्किन की रंगत को एक समान करता है. आपको ऐसा प्राइमर चुनना चाहिए जो आपकी स्किन के लिए हेल्दी हो जिसमें ग्लिसरीन, एलोवेरा जैसे पौष्टिक और हाइड्रेटिंग गुणों वाले तत्व शामिल हो.

2. फाउंडेशन

फाउंडेशन आपके चेहरे के दाग, धब्बों झुर्रियों को छुपाने के लिए काफी जरूरी होता है इसलिए फाउंडेशन के साथ कोई समझौता न करें. ऐसे फाउंडेशन को चुने जो आपकी स्किन टोन को इवन और सॉफ्ट बनाता है.

3. कंसीलर

कंसीलर आपकी आंखों के नीचे काले घेरे, दाग, धब्बे को छुपाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इससे आपके चेहरे की थकान को भी कम किया जा सकता है. कंसीलर का चुनाव करते समय यह ध्यान रखें की यह आपकी स्किन को हाइड्रेटेड और बैलेंस रखें. कंसीलर का लॉन्ग लास्टिंग होना आपका मेकअप के लिए बेहद जरूरी है.

4. ब्लश

ब्लश का इस्तेमाल करना आपकी डेली लाइफ के लिए बेहद आवश्यक है. यह आपकी स्किन को शाइनी बनाता है. गुलाबी रंग सभी स्किन टोन के लिए अच्छा रहता है इसीलिए ज्यादातर महिलाएं गुलाबी रंग के ब्लश का ही इस्तेमाल करती हैं. अगर आप मेकअप कम इस्तेमाल करती हैं तो भी ब्लश लगाना ना भूले.

5. आईलाइनर, मस्कारा और आईशैडो

अगर आप हमेशा थके हुए दिखते हैं तो आपको आंखों के मेकअप पर ध्यान देना चाहिए जिसके लिए आईलाइनर, मस्कारा,आईशैडो का उपयोग करें. आईशैडो का चुनाव करते समय अपनी स्किन टोन का ध्यान रखें. मस्कारा लगाते वक्त अपनी आंखों की पलकों को कर्ल करें.

6. लिपस्टिक

लिपस्टिक आपके लुक को निखारने का सबसे अच्छा तरीका होती है. लिपस्टिक से आपके चेहरे पर अलग ही चमक होती है इसलिए लिपस्टिक का कलर ऐसा चुने जो आपकी स्किन टोन के लिए परफेक्ट हो. लिपस्टिक को लगाने से पहले अपने होठों पर लिप बाम जरूर लगाए. हाइड्रेटेड और लॉन्ग लास्टिंग लिपस्टिक आपके अट्रैक्टिव लुक को पूरा दिन बनाए रखती है.

Festival Special: दिवाली पर इन तरीकों से सजाएं अपना घर

दिवाली आते ही सबसे पहले शुरु होती है घर की साफ-सफाई और सफाई के बाद नंबर आता है घर की सजावट का. अगर आप अपने घर के वही पुराने ओल्ड लुक से बोर हो चुकी हैं तो इस दिवाली अपने घर को दीजिए एक ट्रडिशनल न्यू लुक.

फूलों से सजावट

घर को ज्यादा फूलों से सजाने की बजाएं आप एक या दो लड़ियों को घर के दरवाजे पर लगा दें. इससे आपके घर को सिंपल के साथ-साथ फेस्टिवल डेकोरेशन भी मिल जाएगी.

रंगोली

घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाने से घर तो सुंदर लगता ही है, आने वाले मेहमान भी इसे देखकर बेहद खुश हो जाएंगे. वैसे तो आप पारंपरिक रंगों और फूलों का इस्तेमाल कर अपने हाथों से रंगोली बना सकती हैं. लेकिन अगर आप ये नहीं कर सकतीं तो बाजार में एक से बढ़कर एक रेडीमेड रंगोली भी मौजूद है जिनका आप इस्तेमाल कर सकती हैं. एंट्रेंस के साथ ही लिविंग रूम के सेंटर में भी रंगोली बनाकर घर की शोभा बढ़ायी जा सकती है.

कार्नर को दीए से सजाएं

ये तो आप भी मानेंगी कि सिर्फ घर की लाइटें बदल देने से ही घर का पूरा लुक चेंज हो जाता है. और इसमें दीए अहम रोल अदा करते हैं. ऐसे में इस दिवाली पर घर को सजाने के लिए आर्टिफिशियल लाइट्स की जगह दीयों का इस्तेमाल करें. और घर के हर एक कार्नर को दीए से सजाएं.

तोरण और कंदील

घर के मुख्य द्वार के साथ ही हर कमरे के दरवाजे पर तोरण लगाएं. इसके लिए आप पारंपरिक पत्तों और फूल के तोरण का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. या फिर बाजार में मिलने वाले डिजाइनर तोरण का भी. इसके साथ ही घर के मेन हौल को सजाने के लिए कंदील का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

कैंडल डेकोरेशन

आजकल तो बजार में कई तरह की कैंडल मिल जाती है. आप उससे घर को डिफरेंट और सिंपल लुक दे सकती हैं. इन कैंडल को आप खिड़की और छतों पर सजा सकती हैं.

टी लाइट्स का करें इस्तेमाल

रंगीन कांच के कंटेनर में टी लाइट्स रखकर उसे ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम की सीलिंग से लटका दें. इससे किसी के इनसे टकराने का खतरा भी नहीं रहेगा और ये घर को बेहद सुंदर लुक भी देंगे.

इन महिलाओं को होती है डाइबिटीज की परेशानी

पुरुष हो या महिलाएं सबके लिए डाइबिटीज किसी चुनौती से कम नहीं है. इस परेशानी से बचने के लिए जरूरी है कि आप शांत रहें, कूल रहें किसी भी तरह की परेशानी में अपना पौजिटिव अप्रोच रखें. आपके स्वभाव में कई तरह की गंभीर बीमारियों का राज झुपा है.

हाल ही में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि जो महिलाएं पौजिटिव अप्रोच के साथ अपना जीवन गुजारती हैं, उनमें टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा बहुत कम होता है. यह दावा मेनोपौज के बाद महिलाओं पर की गई स्टडी में किया गया है.

इस स्टडी में वूमेन हेल्थ इनिशिएटिव के आंकड़ो का इस्तेमाल भी किया गया है. इस शोध में करीब एक लाख तीस हजार महिलाओं को शामिल किया गया था. इन महिलाओं को शुरू में डाइबिटीज की परेशानी नहीं थी. लेकिन बाद में इनमें से कइयों को डाइबिटीज की परेशानी हुई.

स्टडी में सकारात्मक और नकारात्मक स्वभाव की महिलाओं की तुलना की गई. शोध में शामिल एक एक्सपर्ट की माने तो किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व जीवनभर एक समान ही रहता है. यही कारण है कि नेगेटिव स्वभाव वाली महिलाओं को पॉजिटिव स्वभाओं वाली माहिलाओं के मुकाबले डायबिटीज का खतरा अधिक होता है.

उन्होंने आगे बताया कि महिलाओं के व्यक्तित्व से हमें ये जानने में मदद मिलेगी कि उन्होंने डायबिटीज होने की कितनी संभावना है. स्टडी के नतीजों में यह भी सामने आया कि मेनोपौज के बाद नेगेटिव स्वाभाव और डायबिटीज होने का गहरा संबंध है.

धुआं-धुआं सा: भाग 1- क्या था विशाखा का फैसला

सोचा था जब मैं परिपक्व हो जाऊंगा, तब अपने अंदर चले आ रहे इस द्वंद्व का समाधान भी खोज लूंगा. मुझे हमेशा से एक धुंध, एक धुएं में जीने की आदत सी पड़ गई है. कुछ भी साफ नहीं, न अंदर न बाहर. अकसर सोचता रह जाता हूं कि जो कुछ मैं महसूस करता हूं, वह क्यों. दूसरों की भांति क्यों नहीं मैं. सब अपनी दुनिया में खोए… मग्न… और शायद खुश भी. लेकिन एक मैं हूं जो बाहर से भले ही मुसकराता रहूं पर अंदर से पता नहीं क्यों एक उदासी घेरे रहती है. अब जबकि मेरी उम्र 35 वर्ष के पार हो चली है, तो मुझे अपनी पसंद, नापसंद, प्रेरणाएं, मायूसियों का ज्ञान हो गया है. लेकिन क्या खुद को समझ पाया हूं मैं!

आज औफिस की इस पार्टी में आ कर थोड़ा हलका महसूस कर रहा हूं. अपने आसपास मस्ती में नाचते लोग, खातेगपियाते, कि तभी मेरी नज़र उस पर पड़ी. औफिस में नया आया है. दूसरे डिपार्टमैंट में है. राघव नाम है. राघव को देखते ही भीतर कुछ हुआ. जैसे कुछ सरक गया हो. कहना गलत न होगा कि उस की दृष्टि ने मेरी नज़रों का पीछा किया. कभी जैंट्स टौयलेट में तो कभी बोर्डरूम में, कभी कैफ़ेटेरिया में तो कभी लिफ्ट में – मैं ने हर जगह उस की दृष्टि को अपने इर्दगिर्द अनुभव किया. यह सिलसिला पिछले कुछ दिनों से यों ही चला आ रहा था.

वैसे मुझे यह शक होता भी क्योंकि मैं औरतों में रुचि नहीं रखता जबकि 12वीं में ही मैं ने गर्लफ्रैंड बना ली थी. कालेज में भी एकदो अफेयर हुए. पर मेरा दिल अकसर लड़कों की ओर देख धड़कता रहता. होस्टल में मेरा एक बौयफ्रैंड भी था, सब से छिप कर. तब मुझे लगता था कि मैं इस से प्यार तो करता हूं पर यह बात मैं किसी से कह नहीं सकता. उस जमाने में यह जग उपहास का कारण तो था ही, गैरकानूनी भी था. और फिर हमारा धर्म, और उस के स्वघोषित रक्षक जो इस समाज की मर्यादा बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, यहां तक कि हिंसा पर भी उतर सकते हैं, उन से अपनी रक्षा कर पाना मेरे लिए संभव न था. चुप रहने में ही भलाई थी. फिर मेरा दिमाग कहता कि यह मेरे दिल की भटकन है. मैं केवल नए पार्टनर टटोल रहा हूं. कभी लड़की की तरफ आकर्षित होता हूं तो कभी किसी लड़के की तरफ आसक्ति हो जाती.

अब तक मुझे लगता था कि मैं बाइसैक्सुअल हूं – मतलब, औरतें भी पसंद हैं और मर्द भी. तभी तो मैं ने शादी की. बाहर से देखने पर मेरी ज़िंदगी हसीन थी – एक खूबसूरत साथ देने वाली बीवी, 2 नन्हेंप्यारे बच्चे. गृहस्थी में वह सब था जिस की कोई कल्पना करता है. मुझे याद है कि जब मातापिता शादी के लिए ज़ोर दे रहे थे, रिश्तों की कतार लगा करती थी, तब मुझे अपने अंदर छाई यह बदली अकसर कंफ्यूज कर दिया करती. मैं किसी लड़की को पसंद नहीं कर पाता. और समय मांगता. लेकिन जब विशाखा से मिला तो लगा जैसे इस से अच्छी दोस्त मुझे ज़िंदगी में नहीं मिल सकती. और मेरा यह निर्णय गलत नहीं रहा. विशाखा मुझे अच्छी तरह समझती है. मेरे मन की तहों में घुस कर वह मेरी हर परेशानी हर लेती है. मेरे लिए उस से अच्छी दोस्त इस संसार में नहीं है. हमारे बच्चों और हमारी गृहस्थी को उस ने बखूबी संभाल रखा है.

मगर जैसे मेरा दिल राघव को देख कर उछलने लगता है, वैसे कभी विशाखा को देख कर नहीं उछला. हां, हम पतिपत्नी हैं. हमारे बीच हर वह संबंध है जो पतिपत्नी के रिश्ते में होता है, परंतु वह जज़्बा नहीं, जो होना चाहिए. हमारे रिश्ते में पैशन नहीं, जनून नहीं, फुतूर नहीं. कभी रहा ही नहीं. एक ड्यूटी की तरह मैं अपने फर्ज़ निभाता रहा हूं. पर विशाखा ने कभी शिकायत नहीं की. शायद हिंदुस्तानी औरतों को यही घुट्टी बचपन से पिलाई जाती है कि पति को खुश रखना उन की ज़िम्मेदारी है, उन्हें खुश करना पति की नहीं. पति की हां में हां मिलाना, पति के हिसाब से जीना, उसे हर सुख देना, उस की परेशानियों को दूर करना – ये सब पत्नी के खाते में आता है.

लोकलाज और मातापिता के अरमानों का खयाल करते हुए मेरी शादी हो गई. तब उम्र कुछ अधिक नहीं थी हम दोनों की. समाज में मुझे वह सब मिला जो कोई चाहता है. स्थिर, आबाद, स्थायी जीवन को जीते हुए धीरेधीरे मैं मरने सा लगा. कहने को मैं हमेशा वफादार रहा, परंतु मेरी नज़रें दूसरे दिलकश मर्दों को चोरी से देखते रहना नहीं छोड़ सकीं. समय बीतने के साथ मुझे अपनी सैक्सुएलिटी पर शक बढ़ता गया. सब के सामने मैं खुश था, एक अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा था, मगर मेरा एक हिस्सा सांस नहीं ले रहा था. लगता जैसे मेरे हाथों से सबकुछ छूट रहा है.

लेकिन आज की पार्टी ने जैसे मेरे मन पर जमीं सारी काई धो डाली. पिछले कुछ महीनों से, जब से राघव कंपनी में आया, तब से मेरा दिल इस काई पर अकसर फिसलता रहा था. जब भी राघव मेरे सामने आता, मेरा दिल उस की ओर भागने लगता. और मुझे विश्वास था कि उस के दिल का भी यही हाल है. कई महीनों की लुकाछिपी के बाद, आज राघव ने मुझे अकेले में घेर लिया. उस के हाथ मेरे बदन पर रेंगने लगे. मुझे कुछ होने लगा. ऐसा जैसा आज तक नहीं हुआ. नहीं, नहीं, हुआ है – कालेज में. आज राघव के स्पर्श से एक लंबे अरसे की मेरी तड़प को सुकून मिला. मैं तो इस भावना को भूल ही गया था. विशाखा के साथ जो कुछ होता, उसे केवल कर्तव्यपरायणता का नाम दिया जा सकता है. प्यार का एहसास, इश्क की लालसा और सारे बंधन तोड़ देने की धुन मुझे राघव के साथ अनुभव होने लगी. राघव अविवाहित था. उस के लिए किसी का साथ अपने जीवनसाथी से धोखा न था. मेरे लिए था. मुझे आगे बढ़ने से पहले विशाखा का चेहरा नज़र आने लगा. मुझे कुछ समय रुकना पड़ेगा. लेकिन अब विशाखा को मेरी सचाई से अवगत कराने का वक्त आ गया है. मेरा दिल बारबार मुझे विशाखा को अपनी भावनाएं बताने की ज़िद करने लगा. मैं यह भी समझता हूं कि हो सकता है कि इस सचाई की मुझे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़े. इसी डर की वजह से मैं आज तक एक खोल के अंदर दुबका रहा. चुप रहा कि कोई मेरी असलियत जान न पाए, स्वयं मैं भी नहीं. परंतु अब मुझ से रुकना मुश्किल होने लगा.

मैं विशाखा को तकलीफ नहीं पहुंचाना चाहता था. मगर मुझे भी एक ही जीवन मिला है जो तेज़ी से निकलता जा रहा है. यू लिव ओनली वंस – मैं अपने मन में दोहराता जा रहा था. तभी विशाखा कमरे में दाखिल हुई. हर रात काम खत्म कर के हाथों पर लोशन लगाना उसे अच्छा लगता है. ड्रैसर के सामने बैठी वह अब अपने बाल काढ़ कर चोटी बनाने लगी.

“तुम से कुछ बात करनी है,” मैं ने कहा.

“हम्म?” वह बस इतना ही बोली.

अपनी पूरी हिम्मत जुटा कर मैं ने विशाखा के सामने अपनी सैक्सुएलिटी का सच परोस दिया, “मैं स्ट्रेट नहीं हूं, विशाखा…” उस ने कुछ नहीं कहा. ऐसा लगा जैसे उसे इस बात को सुनने की उम्मीद थी, न जाने कब से. शायद वह जानती थी मेरे सच को. बस, मेरे कहने का इंतज़ार कर रही थी. विशाखा ने बिस्तर पर अपनी साइड बैठते हुए मेरी ओर देखा. आंखों में एक सूनापन, एक खामोशी… उस की भावनाहीन शून्य दृष्टि देख कर मुझे अंदर तक कुछ काट गया.

“कुछ कहोगी नहीं?” मैं ने पूछा.

“क्या कहूं, क्या सुनना चाहते हो?”

“विशाखा,” उस का हाथ अपने हाथों में लेते हुए मैं ने कहा, “तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो, तुम से अधिक मुझे कोई नहीं समझता. यह सचाई मैं ने केवल तुम्हें बताई है. इस पूरी दुनिया में तुम्हारे सिवा कोई मेरा इतना अपना नहीं.”

“मैं समझती हूं, इसीलिए चुप हूं.”

जाने क्यों लोग- भाग 3: क्या हुआ था अनिमेष और तियाशा के साथ

उस रात न.. न… करने पर भी अनिमेष तियाशा को उस के फ्लैट में छोड़ गए. दूसरे दिन रविवार की छुट्टी थी. सुबह के 8 भी न बजे थे कि दरवाजे पर नितिन को देख कर चौंक गई. जो बीता सो बीत गया कह कर वह चैप्टर बंद करना चाहती थी. नितिन को सामने पा कर दुविधा में पड़ गई. न चाहते हुए भी उसे बैठने को कहना पड़ा. तियाशा भी बैठ गई और सीधे पूछ लिया, ‘‘क्या जरूरत थी यहां आने की? सुना लोग बातें बना रहे हैं?’’

‘‘सुना तो सही है, मैं आता भी नहीं, लेकिन एक काम है.’’

‘‘कहो.’’

‘‘प्लीज तुम पारुल और उस की मां से कह दो कि मेरा इस में कोई हाथ नहीं, तुम ने ही खुद जोर दिया था कि मैं तुम्हारे साथ घूमूंफिरूं.’’

‘‘अरे. यह क्या? क्या साधारण सी दोस्ती को तुम भी इतना कुरूप बनाओगे और पारुल कौन है? कभी तुम ने मुझे बताया नहीं?’’

‘‘पारुल मेरी मंगेतर है. 2 महीने बाद हमारी शादी है इसलिए नहीं बताया था, सोचा था तुम बुरा मान जाओगी.’’

‘‘अरे. बुरा क्यों मानती? क्या तुम भी

वही समझते हो जो लोग बता रहे हैं और अब बता रहे हो क्योंकि पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है? तुम्हीं बताओ नितिन, क्या मैं ने तुम्हें

मेरे साथ उठनेबैठने की जबरदस्ती की है? फिर उन्हें ऐसा क्यों कहूं. मेरा तुस से अन्य कोई

संबंध भी नहीं सिवा एक सामान्य सी दोस्ती के. तुम लोगों के सामने यह तो साबित नहीं करो

कि हम दोनों के बीच कोई अनुचित संबंध है… इस में मैं ने तुम्हे विक्टिम बनाया है. नहीं, मैं ऐसा नहीं कहूंगी.’’

‘‘देखो तियाशा उम्र में तुम मुझ से बड़ी

हो. इसलिए लिहाज कर रहा हूं, तुम्हारा साथ देने की वजह से मैं फालतू बदनाम हो रहा हूं. लोगों की बातें सुनसुन कर पारुल का शक पक्का हो गया है, तुम नहीं कहोगी तो मैं सुगंधा या

मल्लिक से कहलवा लूंगा. तुम्हारे फोन पर मैं

उस का नंबर भेज रहा हूं, बात कर लेना, मेरी शादी अगर कैंसिल हुई तो यह तुम्हारे लिए बहुत बुरा होगा.’’

यद्यपि तियाशा को कुछ भी अच्छा नहीं

लग रहा था, लेकिन जिंदगी जब खुद को ही

दांव पर लगा देती है तो आप को खेलना तो

पड़ता ही है, चाहे इस खेल से निकलने के लिए ही सही.

बड़ी ऊहापोह थी और उस से भी ज्यादा थी गहरी चोट. नितिन का हंसनाबोलना

केयर करना याद आता रहा. पर अब तियाशा क्या करे? अगर नितिन की शादी टूटती है तो इस की जिम्मेदारी उस की होगी और इस के लिए उस के आसपास का समाज उस का दुश्मन बन बैठेगा, लेकिन सब से बड़ी दुश्मन तो होगी वह खुद ही खुद की. उस का धिक्कार उसे एक पल को भी चैन लेने देगा?

उस ने एक झटके में एक निर्णय लिया और अनिमेष को फोन लगाया. कुछ ही देर में औटो पकड़ कर वह रूबी मोड़ के पास अनिमेष के फ्लैट में थी. हलकीफुलकी बातचीत और अनिमेष की ओर से दोस्ती की पहल ने अब तक तियाशा को बहुत हद तक सहज कर दिया था. दोनों ने मिल कर चीज सैंडविच बनाए और रविवार की सुबह निकल पड़े बाबूघाट की ओर. गंगा नदी में बाबूघाट से हावड़ा तक ढेरों स्टीमर चलते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में फेरी कहा जाता है. इसी फेरी में दोनों आसपास बैठे थे. कुनकुनी धूप जैसे आपसी पहचान में विश्वास का तानाबना बुन रही हो. रविवार होने की वजह से फेरी में

2-4 लोग ही इधरउधर बिखरे बैठे थे.

‘‘हां तो मैडम तियाशा आप ने कहा नितिन की धमकी से आप डरी हुई हैं, सोचिए तो मेरी पत्नी जब मेरी 10 साल की बेटी को छोड़ कर एक मुसलिम कश्मीरी शादीशुदा आदमी के साथ भाग जाती है, जोकि उस के साथ ही काम करता था और इस वजह से मुझे मेरे ब्राह्मण समाज से कठोर धमकी मिलती रही, समाज से मुझे बहिष्कृत कर दिया गया, मैं ने अकेले कैसे खुद को इन चीजों से उबारा? जबकि स्थितियां मेरी नाक के नीचे कब पैदा हुईं मुझे मालूम ही नहीं चला. वह तो भागने के आखिरी दिन तक मुझ से वैसे ही प्रेम और विश्वास से मिलती रही जैसे शुरुआती दिनों में था.

‘‘मैं जहां एक तरफ पत्नी के विश्वासघात और ब्राह्मण समाज के अडि़यल रवैए के दबाव में बुरी तरह टूट चुका था, वहीं दूसरी ओर उस कश्मीरी के अपनी बीवी को छोड़ कर भागने की वजह से उस की बीवी अपने घर वालों को ले कर अकसर मेरे घर पहुंच जाती कि उस के शौहर का पता लगाने में उस की मदद करूं. मुझ पर सब का दबाव था कि मैं अपनी बीवी की तलाश करूं.

‘‘अरे यह रिश्ता अब मैं जबरदस्ती ढो ही नहीं सकता था, बल्कि अपनी बीवी

को कभी देखना भी नहीं चाहता था मैं. इसलिए नहीं कि उस ने किसी और से प्रेम किया, इसलिए कि उसे मेरा प्रेम समझ ही नहीं आया था. मुझ से छिपाया. मुझे एक बार भी मौका नहीं दिया कि मैं उसे फिर से हासिल कर लूं.

‘‘वाकई जब हिस्से में रात आती है तो सूरज न सही चांद तो मिलता ही है और जब इतनी रोशनी मिल जाती है तो जीतने की हिम्मत रखने वाले सुबह होने तक सूरज हासिल कर ही लेते हैं. तो न केवल मैं ने उसे भुलाया, समाज से लड़ी, उस कश्मीरी की बीवी को दिलाशा दिया और आगे अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उसे कुछ दिया ताकि वह अपना बुटीक खोल कर अपना खोया आत्मविश्वास लौटा सके. हालांकि उस ने

2 साल के अंदर खुद की कमाई से मेरा कर्ज लौटा दिया और मुझे बड़ा भाई सा मान दे कर मेरे प्रति कृतज्ञता जताई. मैं ने अपनी बेटी को भी पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर दिया. हां, यह बात अलग है कि बेटी अब हम से कोई रिश्ता नहीं रखती.’’

‘‘अरे, क्यों?’’

‘‘उस का मानना है कि मुझे उस के लिए ही सही उस की मां को ढूंढ़ना चाहिए था, पर तियाशा आप ही बताओ, वह भागी थी, हम तो वहीं थे, याद करती अगर बेटी को तो संपर्क कर सकती थी न. मुझ से न सही, बेटी से ही. यह थी मेरी सोच, जिसे मैं नहीं बदलूंगा. तो क्या अब इतनी कहानी सुनने के बाद आप फिर भी अपना निर्णय, अपनी जिंदगी लोगों के भरोसे छोड़ेंगी? लोग ऐसे खाली नहीं होते तियाशा जी. जब दूसरों के टांग खींचने की बारी आती है, लोग खुदवखुद फ्री हो जाते हैं.’’

‘‘पारुल को कैफियत देने नहीं जाऊंगी मैं और न ही नितिन की किसी धमकी से डरूंगी. अगर किसी को कुछ पूछना होगा तो वह खुद ही आएगा.’’

‘‘यह हुई न बात. अब एक बात और क्यों न हो जाए.’’

तियाशा अब थोड़ा खिलखिला कर हंस पड़ी.

अनिमेष ने बड़े स्नेह से उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हमारी इस दोस्ती को एक प्यारे से रिश्ते का नाम देने की मेरी बड़ी तमन्ना है. अगर मैं जल्दीबाजी कर रहा हूं तो खफा मत होना, मैं बहुत सारा समय देने को तैयार हूं.’’

‘‘कौन सा नाम?’’ समझते हुए भी तियाशा शरारत से पूछ कर मुसकराई.

अब तक स्टीमर दूसरे घाट पर आ गया था. अनिमेष ने तियाशा का हाथ पकड़ कर घाट में उतारते हुए कहा, ‘‘यही, जिसे वसंत मंजरी

कहते हैं, पपीहा की पीहू और दिल का मचलना कहते हैं.’’

‘‘पर लोग,’’ मुसकराते हुए थोड़ी सी शंका भरी नजर रख दी तियाशा ने अनिमेष की पैनी आंखों में.

उस की हथेली पर अपना दबाव बनाते हुए अनिमेष ने जवाब दिया, ‘‘कल फिर

लोगों के सामने औफिस में बात पक्की कर

देता हूं.’’

तियाशा के हुए अनिमेष. किसी का कोई सवाल?

तियाशा खिलखिला कर हंस रही थी.

यह सुरमई शाम हंस रही थी, ये गोधूलि की लाली हंस रही थी. डूबता सा सूरज भरोसे की मुसकान दे कर जा रहा था, कल से साथ चलने के लिए.

जाने क्यों लोग- भाग 2: क्या हुआ था अनिमेष और तियाशा के साथ

औफिस आई तो उस के बौस को बुलावा था. तियाशा कैबिन में गई.  बौस अनिमेष, उम्र 45 के आसपास, चेहरे पर घनी काली दाढ़ी, बड़ीबड़ी आंखें, रंग गोरा, हाइट ऊंची… तियाशा ने उन्हें इतने ध्यान से देखा नहीं था कभी.

बौस ने अपने जन्मदिन पर उसे घर बुलाया था, छोटी सी पार्टी थी. औफिस से निकल कर उस ने एक बुके खरीदा और घर आ गई.

किंशुक के जाने के बाद अब तक जैसेतैसे जिंदगी काट रही थी वह. ऐसे भी समाज में कहीं किसी शुभ कार्य में सालभर जाना नहीं होता है. कहते हैं मृत्यु जैसे शाश्वत सत्य के कारण लोगों के मंगल कार्य में बांधा पड़ती है. और बाद के दिनों में? विधवा है. अश्पृश्य वैधव्य की शिकार. अमंगल की छाया है उस के माथे पर. पारंपरिक भारतीय समाज डरता है ऐसी स्त्री से कि क्या पता संगति से उन के घर भी अनहोनी हो जाए. उस पर दुखड़ा रो कर भीड़ जुटाने वाली स्त्री न हो और लोगों को सलाह देने, दया दिखाने का मौका न मिले तो वह तो और भी बहिष्कृत हो जाती है. पड़ोस में कई शुभ समारोह तो हुए, लेकिन तियाशा बुलाई न गई. अकेलापन उस का न चाहते हुए भी साथी हो गया है.

शादी से पहले तियाशा स्वाबलंबी थी. एक प्राइवेट कालेज में लैक्चरर थी. तब की बात कुछ अलग थी, मगर शादी के इन 7 सालों में जैसे वह किंशुक नाम के खूंटे से टंग कर रह गई थी. बाहर जाने के नाम पर किंशुक ने ही तो तनाव भरा था उस में. हमेशा कहता कि अब तुम कहां जाओगी, मैं ही जाता हूं. आखिरी दिनों के दर्दभरे एहसासों के बीच भी कहता कि दवा खत्म हो गई है, थोड़ी देर में मैं ही जाता हूं. काश, किंशुक समझ पाता कि इस तरह उसे आगे अकेले कितनी परेशानी होगी. दुविधा, भय और लोगों से मेलजोल में अपराध भावना हावी हो जाएगी उस की चेतना पर. अब देखो कितनी दूभर हो गई है रोजमर्रा की जिंदगी उस की. न तो खुल कर किसी से दिल का हाल कह पाती है और न ही अनापशनाप सवालों के तीखे जवाब दे पाती है.

नीली जौर्जट साड़ी और पर्ल के हलके सैट के साथ जब वह निकलने को तैयार हुई तो आइने के सामने एक पल को ठहर गई वह.

‘‘बहुत सुंदर तिया. जैसे रूमानी रात ने सितारों के कसीदे से सजा आसमान ओढ़ रखा हो,’’ उसे नीली साड़ी पहना देख किंशुक ने कहा था कभी. खुद के सौंदर्य पर खुश होने के बदले ?िझक सी गई वह.

अनिमेष के घर के, दफ्तर के लगभग सारा स्टाफ  ही जुटा था, जिस में नितिन भी था. बधाई दे कर वह एक किनारे बैठ गई. उम्मीद थी नितिन उसे अकेला देख कर उस के पास जरूर आएगा. लेकिन 30 साल का नौजवान नितिन उसे देख कर अनायास ही अनदेखा करता रहा.

तभी हायहैलो करते सुगंधा उस के पास आ बैठी. 34 के आसपास की सुगंधा अपने चौंधियाते शृंगार से सभी का ध्यान आकर्षित कर रही थी. आते ही सवाल दागे, ‘‘तियाशा नितिन आज कहां रह गया? दिखा नहीं आसपास?’’

पूछ रही थी या तंस कस रही थी? बड़ी कोफ्त हुई तियाशा को, लेकिन वह सहज रहने का अभिनय करती सी बोली, ‘‘हमेशा मेरे ही पास क्यों रहे?’’

कह तो दिया उस ने लेकिन क्या पता क्यों नितिन का व्यवहार उसे खटक गया था. आखिर उसे अनदेखा करने या तिरछी नजर देख कर मुंह फेर लेने जैसी क्या बात हुई होगी.

सुगंधा का अगला सवाल खुद उत्तर बन कर आ गया था, ‘‘और कौन घास डालता है उसे? वैसे अच्छा ही है, औफिस में तुम्हें साथ देने को कोई तो मिल जाता है.’’

इसे आखिर मुझ से चिढ़ किस बात की है. तियाशा मन ही मन दुखी होती हुई भी सहज रही.

तभी अंजलि दौड़ती हुई आ गई, ‘‘कहां छिप कर बैठी हो सुगंधा. कब से ढूंढ़ रही हूं तुम्हें,’’ अंजलि जोश में थी.

‘‘क्यों?’’

‘‘देखो मेरे इस हार को, हीरे का है, किस ने दिया पूछो?’’

‘‘और किस ने? तुम्हारे पतिदेव ने. कल हम लोग भी गए थे खरीदारी करने. उन्होंने बहुत कहा, पर मैं ने लिया नहीं, 2 तो पड़े हैं ऐसे ही. क्यों तियाशा तुम्हारा यह हार रियल पर्ल का है? वैसे पर्ल ही सही है आजकल. चोरउच्चक्कों का जमाना है, तुम बेचारी अकेली हो, क्यों भला गहने जमाओ.’’

‘‘अरे इसे क्यों पूछ रही हो, इस बेचारी को हीरे का हार ले कर देगा कौन?’’

‘‘अपने नितिन को कहना पड़ेगा, फ्री में बहुत घूम चुका,’’ सुगंधा ने रसभरी चुटकी ली.

सुगंधा और अंजलि हंसते हुए उठ कर चली गईं, लेकिन पीछे बैठी तियाशा की रगरग में दमघोंटू धुआं भर गईं.

अकेली चुप बैठी भी वह लोगों की नजर में

ज्यादा आ रही थी. औफिस के स्टाफ में से अधिकांश उस से ज्यादा घुलेमिले नहीं थे. अनिमेष गैस्ट संभालते हुए भी तियाशा को बीचबीच में देख लेते. वह कभी किसी को देख कर झेंप से भरी हुई मुसकराती, तो कभी अपने फोन पर जबरदस्ती व्यस्त होने का दिखावा करती. सब को खाने के बुफे की ओर भेज कर अनिमेष तियाशा के पास आ गए. दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरू की जाए. हौल अब लगभग खाली हो गया था. ज्यादातर लोग खापी कर घर निकल गए थे, कुछेक बचे लोग खाने की जगह इकट्ठा थे.

अनिमेष ने कहा, ‘‘चलिए आप भी, खाना खा ले.’’

वैसे अनिमेष ने कहा तो सही, लेकिन उन की इच्छा थी कि वे कुछ देर तियाशा के साथ अकेले बैठें, उस से बातें करें, उस के बारे में जानें.

उधर तियाशा को अनिमेष का साथ बुरा तो नहीं लग रहा था? लेकिन वह नितिन को ले कर परेशान सी थी. आखिर हंसताबोलता इंसान अचानक मुंह फेर कर बैठ जाए यह तो बेचैन करने वाली बात है न.

‘‘क्या हुआ, लगता है आप को मेरी पार्टी में आनंद नहीं आया? क्या मैं आप को परेशान कर रहा हूं?’’

यह अब दूसरी परेशानी. बौस है, कहीं खफा हो गया तो मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी. अत: अपनी उदासीनता छिपाते हुए उस ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है सर… वह आज तबीयत कुछ

ठीक नहीं.’’

‘‘तबीयत ठीक नहीं या नितिन को ले कर आप के बारे में लोग पीठ पीछे बातें बना रहे हैं इसलिए?’’

अब यह तो वाकई नई बात थी. तियाशा को तो मालूम नहीं था कि उस के पीछे नितिन के साथ उस का नाम जोड़ा जा रहा है.

तियाशा को अपना अकेलापन खलता था. कोई ऐसा नहीं था जो उस से खुले दिल से बात करे. इस समय नितिन से बातें करना, कभी उसे अपने घर बुलाकर साथ चाय पीना या कभी साथ कहीं शौपिंग पर चले जाना उसे मानसिक रूप से अच्छा महसूस कराता, मगर कभी यह बात दिल में नहीं आ पाई कि इस नितिन के साथ उस का नाम जोड़ कर पीठ पीछे बुराई की जाएगी. बेचारे मृत किंशुक को लोग किस नजर से देखेंगे… सभी तो यही सोच रहे होंगे कि किंशुक के मरते ही साल भर के अंदर कम उम्र के लड़के के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है.

उस के चेहरे के उतरते रंग को अनिमेष कुछ देर देखते रहे, फिर कहा, ‘‘चलिए खाने पर चलते हैं… लोगों से डरना बंद करिए, आप अगर मेरी जिंदगी जानेंगी तो आप को अपनेआप ही रश्क हो आएगा. आइए…’’

सच, तियाशा को रहरह कर यह खयाल आ रहा था कि अनिमेष सर इस घर में अकेले क्यों दिखाईर् दे रहे हैं, इन की बीवी या बच्चे कहां हैं? पर संकोची स्वभाव की होने के कारण किसी से पूछ नहीं पाई.’’

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