उस रात न.. न… करने पर भी अनिमेष तियाशा को उस के फ्लैट में छोड़ गए. दूसरे दिन रविवार की छुट्टी थी. सुबह के 8 भी न बजे थे कि दरवाजे पर नितिन को देख कर चौंक गई. जो बीता सो बीत गया कह कर वह चैप्टर बंद करना चाहती थी. नितिन को सामने पा कर दुविधा में पड़ गई. न चाहते हुए भी उसे बैठने को कहना पड़ा. तियाशा भी बैठ गई और सीधे पूछ लिया, ‘‘क्या जरूरत थी यहां आने की? सुना लोग बातें बना रहे हैं?’’
‘‘सुना तो सही है, मैं आता भी नहीं, लेकिन एक काम है.’’
‘‘कहो.’’
‘‘प्लीज तुम पारुल और उस की मां से कह दो कि मेरा इस में कोई हाथ नहीं, तुम ने ही खुद जोर दिया था कि मैं तुम्हारे साथ घूमूंफिरूं.’’
‘‘अरे. यह क्या? क्या साधारण सी दोस्ती को तुम भी इतना कुरूप बनाओगे और पारुल कौन है? कभी तुम ने मुझे बताया नहीं?’’
‘‘पारुल मेरी मंगेतर है. 2 महीने बाद हमारी शादी है इसलिए नहीं बताया था, सोचा था तुम बुरा मान जाओगी.’’
‘‘अरे. बुरा क्यों मानती? क्या तुम भी
वही समझते हो जो लोग बता रहे हैं और अब बता रहे हो क्योंकि पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है? तुम्हीं बताओ नितिन, क्या मैं ने तुम्हें
मेरे साथ उठनेबैठने की जबरदस्ती की है? फिर उन्हें ऐसा क्यों कहूं. मेरा तुस से अन्य कोई
संबंध भी नहीं सिवा एक सामान्य सी दोस्ती के. तुम लोगों के सामने यह तो साबित नहीं करो
कि हम दोनों के बीच कोई अनुचित संबंध है… इस में मैं ने तुम्हे विक्टिम बनाया है. नहीं, मैं ऐसा नहीं कहूंगी.’’
‘‘देखो तियाशा उम्र में तुम मुझ से बड़ी
हो. इसलिए लिहाज कर रहा हूं, तुम्हारा साथ देने की वजह से मैं फालतू बदनाम हो रहा हूं. लोगों की बातें सुनसुन कर पारुल का शक पक्का हो गया है, तुम नहीं कहोगी तो मैं सुगंधा या
मल्लिक से कहलवा लूंगा. तुम्हारे फोन पर मैं
उस का नंबर भेज रहा हूं, बात कर लेना, मेरी शादी अगर कैंसिल हुई तो यह तुम्हारे लिए बहुत बुरा होगा.’’
यद्यपि तियाशा को कुछ भी अच्छा नहीं
लग रहा था, लेकिन जिंदगी जब खुद को ही
दांव पर लगा देती है तो आप को खेलना तो
पड़ता ही है, चाहे इस खेल से निकलने के लिए ही सही.
बड़ी ऊहापोह थी और उस से भी ज्यादा थी गहरी चोट. नितिन का हंसनाबोलना
केयर करना याद आता रहा. पर अब तियाशा क्या करे? अगर नितिन की शादी टूटती है तो इस की जिम्मेदारी उस की होगी और इस के लिए उस के आसपास का समाज उस का दुश्मन बन बैठेगा, लेकिन सब से बड़ी दुश्मन तो होगी वह खुद ही खुद की. उस का धिक्कार उसे एक पल को भी चैन लेने देगा?
उस ने एक झटके में एक निर्णय लिया और अनिमेष को फोन लगाया. कुछ ही देर में औटो पकड़ कर वह रूबी मोड़ के पास अनिमेष के फ्लैट में थी. हलकीफुलकी बातचीत और अनिमेष की ओर से दोस्ती की पहल ने अब तक तियाशा को बहुत हद तक सहज कर दिया था. दोनों ने मिल कर चीज सैंडविच बनाए और रविवार की सुबह निकल पड़े बाबूघाट की ओर. गंगा नदी में बाबूघाट से हावड़ा तक ढेरों स्टीमर चलते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में फेरी कहा जाता है. इसी फेरी में दोनों आसपास बैठे थे. कुनकुनी धूप जैसे आपसी पहचान में विश्वास का तानाबना बुन रही हो. रविवार होने की वजह से फेरी में
2-4 लोग ही इधरउधर बिखरे बैठे थे.
‘‘हां तो मैडम तियाशा आप ने कहा नितिन की धमकी से आप डरी हुई हैं, सोचिए तो मेरी पत्नी जब मेरी 10 साल की बेटी को छोड़ कर एक मुसलिम कश्मीरी शादीशुदा आदमी के साथ भाग जाती है, जोकि उस के साथ ही काम करता था और इस वजह से मुझे मेरे ब्राह्मण समाज से कठोर धमकी मिलती रही, समाज से मुझे बहिष्कृत कर दिया गया, मैं ने अकेले कैसे खुद को इन चीजों से उबारा? जबकि स्थितियां मेरी नाक के नीचे कब पैदा हुईं मुझे मालूम ही नहीं चला. वह तो भागने के आखिरी दिन तक मुझ से वैसे ही प्रेम और विश्वास से मिलती रही जैसे शुरुआती दिनों में था.
‘‘मैं जहां एक तरफ पत्नी के विश्वासघात और ब्राह्मण समाज के अडि़यल रवैए के दबाव में बुरी तरह टूट चुका था, वहीं दूसरी ओर उस कश्मीरी के अपनी बीवी को छोड़ कर भागने की वजह से उस की बीवी अपने घर वालों को ले कर अकसर मेरे घर पहुंच जाती कि उस के शौहर का पता लगाने में उस की मदद करूं. मुझ पर सब का दबाव था कि मैं अपनी बीवी की तलाश करूं.
‘‘अरे यह रिश्ता अब मैं जबरदस्ती ढो ही नहीं सकता था, बल्कि अपनी बीवी
को कभी देखना भी नहीं चाहता था मैं. इसलिए नहीं कि उस ने किसी और से प्रेम किया, इसलिए कि उसे मेरा प्रेम समझ ही नहीं आया था. मुझ से छिपाया. मुझे एक बार भी मौका नहीं दिया कि मैं उसे फिर से हासिल कर लूं.
‘‘वाकई जब हिस्से में रात आती है तो सूरज न सही चांद तो मिलता ही है और जब इतनी रोशनी मिल जाती है तो जीतने की हिम्मत रखने वाले सुबह होने तक सूरज हासिल कर ही लेते हैं. तो न केवल मैं ने उसे भुलाया, समाज से लड़ी, उस कश्मीरी की बीवी को दिलाशा दिया और आगे अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उसे कुछ दिया ताकि वह अपना बुटीक खोल कर अपना खोया आत्मविश्वास लौटा सके. हालांकि उस ने
2 साल के अंदर खुद की कमाई से मेरा कर्ज लौटा दिया और मुझे बड़ा भाई सा मान दे कर मेरे प्रति कृतज्ञता जताई. मैं ने अपनी बेटी को भी पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर दिया. हां, यह बात अलग है कि बेटी अब हम से कोई रिश्ता नहीं रखती.’’
‘‘अरे, क्यों?’’
‘‘उस का मानना है कि मुझे उस के लिए ही सही उस की मां को ढूंढ़ना चाहिए था, पर तियाशा आप ही बताओ, वह भागी थी, हम तो वहीं थे, याद करती अगर बेटी को तो संपर्क कर सकती थी न. मुझ से न सही, बेटी से ही. यह थी मेरी सोच, जिसे मैं नहीं बदलूंगा. तो क्या अब इतनी कहानी सुनने के बाद आप फिर भी अपना निर्णय, अपनी जिंदगी लोगों के भरोसे छोड़ेंगी? लोग ऐसे खाली नहीं होते तियाशा जी. जब दूसरों के टांग खींचने की बारी आती है, लोग खुदवखुद फ्री हो जाते हैं.’’
‘‘पारुल को कैफियत देने नहीं जाऊंगी मैं और न ही नितिन की किसी धमकी से डरूंगी. अगर किसी को कुछ पूछना होगा तो वह खुद ही आएगा.’’
‘‘यह हुई न बात. अब एक बात और क्यों न हो जाए.’’
तियाशा अब थोड़ा खिलखिला कर हंस पड़ी.
अनिमेष ने बड़े स्नेह से उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हमारी इस दोस्ती को एक प्यारे से रिश्ते का नाम देने की मेरी बड़ी तमन्ना है. अगर मैं जल्दीबाजी कर रहा हूं तो खफा मत होना, मैं बहुत सारा समय देने को तैयार हूं.’’
‘‘कौन सा नाम?’’ समझते हुए भी तियाशा शरारत से पूछ कर मुसकराई.
अब तक स्टीमर दूसरे घाट पर आ गया था. अनिमेष ने तियाशा का हाथ पकड़ कर घाट में उतारते हुए कहा, ‘‘यही, जिसे वसंत मंजरी
कहते हैं, पपीहा की पीहू और दिल का मचलना कहते हैं.’’
‘‘पर लोग,’’ मुसकराते हुए थोड़ी सी शंका भरी नजर रख दी तियाशा ने अनिमेष की पैनी आंखों में.
उस की हथेली पर अपना दबाव बनाते हुए अनिमेष ने जवाब दिया, ‘‘कल फिर
लोगों के सामने औफिस में बात पक्की कर
देता हूं.’’
तियाशा के हुए अनिमेष. किसी का कोई सवाल?
तियाशा खिलखिला कर हंस रही थी.
यह सुरमई शाम हंस रही थी, ये गोधूलि की लाली हंस रही थी. डूबता सा सूरज भरोसे की मुसकान दे कर जा रहा था, कल से साथ चलने के लिए.