वसीयत: भाग 3- भाई से वसीयत में अपना हक मांगने पर क्या हुआ वृंदा के साथ?

‘‘चल उठ… बहुत सोचने लगी है… ऐसे ही सोचती रही तो प्रियांश की परवरिश कैसे करेगी? यह देख (दीदी ने बेल को फिर से कपड़े सुखाने वाले तार पर लपेटते हुए कहा). ले मिल गया सहारा. अब फिर से हरी हो जाएगी यह बेल.’’

‘‘दीदी, काश जिंदगी भी इतनी ही आसान हो सकती…’’

‘‘यदि कोशिश की जाए तो कुछ मुश्किलें तो अब भी कम हो सकती हैं वृंदा…’’ दीदी की आवाज अचानक गंभीर हो गई.

‘‘मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी दीदी?’’

‘‘वृंदा, अमृत भैया की बेरुखी किसी से छिपी नहीं… आज संकट की इस घड़ी में उन्हें जहां सब से आगे होना चाहिए था, वहीं वे मुंह चुराते घूम रहे हैं. हैरत की बात तो यह है कि

मां भी खामोश हैं… क्या मजबूरी है उन की, मैं नहीं जानती?’’

‘‘दीदी, एक तो बुढ़ापा ऊपर से बिना पति के भला इस से बढ़ कर मजबूरी और क्या हो सकती है. आखिर उन का बुढ़ापा तो भैया की पनाह में ही कटना है न?’’

‘‘इस का मतलब बेटी के एहसासों की कोई कीमत नहीं… आखिर उस के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी बनती है उन की. घर उन का है…

पापा की पैंशन है… कौन सा वे भैया के सहारे जी रही हैं?’’

‘‘दीदी, मां समाज को तो नहीं बदल सकतीं न… जहां आज भी बेटियों की अपेक्षा बेटों के साथ रहने में ही मातापिता का सम्मान कायम माना जाता है.’’

‘‘मेरी छोटी बहन कितनी समझदार हो गई है. चल छोड़ ये सब वृंदा… मैं ने, मृदुला ने और तुम्हारे दोनों जीजाजी ने यह तय किया है कि वे भैया से बात करेंगे. आज समय बदल चुका है. कानून ने भी बेटियों को पिता की पूंजी में बराबर का हक देने की बात को स्वीकार किया है.’’

‘‘पगली, ये रिश्तेनाते, सगेसंबंध होते किसलिए हैं? वक्तबेवक्त सहारे के लिए ही न? जो बुरे वक्त में काम न आए वह भला कैसे अपना वृंदा?’’

आखिर सब ने मिल कर भैया को समझाने का प्रयास किया कि संपत्ति में से वृंदा को कुछ हिस्सा दे दिया जाए, कृष्णा और मृदुला दीदी ने यहां तक कह दिया कि वे अपने लिए कुछ नहीं मांग रहीं, कहे तो लिख कर दे दें. मगर आज वृंदा पर जो विपदा आई है, उस में तुम्हें खुद आगे हो कर यह कदम उठाना था.

मगर भैया नहीं चाहते थे कि पिताजी की जायदाद में से मेरा भी हिस्सा कर दिया जाए. तभी किसी ने उन्हें अकेले में ले जा कर सलाह दी, ‘‘खैर मनाओ, बाकी दोनों बहनें कुछ नहीं मांग रहीं. मान जा वरना कोर्ट की बारी आई तो हो सकता है 4 हिस्से बराबर के करने पड़ें.’’ तब बुझे मन से भैया को यह निर्णय स्वीकार करना पड़ा. भाभी पर तो मानो वज्रपात हो गया.

खैर, पिताजी के मकान का एक हिस्सा मेरे नाम करा दिया गया. मैं विवश न चाहते हुए भी इस बेरुखी भरे माहौल में अपने स्वाभिमान को गिरवी रख मायके आ गई, इस उम्मीद के साथ कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा.

आखिर खून का रिश्ता है… पानी में लकड़ी पड़ भी गई तो पानी भला कहां दूर होने वाला, कुछ नहीं तो अपनों के करीब रहूंगी. मगर यह मेरी भूल थी. यहां तो रिश्तों की परिभाषा ही बदल चुकी थी. कोई अपना न रहा था.

दौलत के हिस्से ने घर के बंटवारे के साथ ही दिल के बीच भी दीवार खींच दी थी. मेरे स्वाभिमान को यह जरा भी गंवारा न था. मगर लाचार थी. कोई और चारा भी तो न था, वहीं बच्चों को ट्यूशन पढ़ानी शुरू कर दी. पासपड़ोस के लोगों ने इस में मेरी मदद की. बेगानों की मदद से जिंदगी को पटरी पर लाने का प्रयास कर रही थी.

भाभी खुद कभी न बोलतीं. जितना मैं बोलती उस का भी बड़ी बेरुखी से जवाब देतीं. भैया तो मानो आज भी नाराज हैं. मां जो अकसर शाम को लौन में कुरसी डाल कर बैठती थीं, मेरे जाने के बाद कम ही बैठतीं.

शायद बहूबेटी के झंझटों से मुक्त रहना चाहती थीं. मुझे दुख नहीं, बल्कि तरस आता मां पर, लगता मेरे कारण बंट कर रह गई हैं वे

2 आवाजों के बीच. भैया के बच्चे मोंटी और पारुल बड़े थे. अपने और पराए के भेद को जानने लगे थे. अत: कभी मेरी तरफ खेलने न आते. किंतु इन सब चालों से अनजान प्रियांश जब भी उन्हें खेलते देखता उन के साथ हो लेता.

एक दिन जाने कैसे प्रियांश बच्चों के कमरे से खेलतेखेलते एक खिलौना उठा लाया. आखिर बच्चा ही तो था. मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही थी कि भाभी के प्रेम वचन सुनाई दिए, ‘‘घर पर तो हमारे अधिकार जमा ही लिया अब क्या धीरेधीरे घर का सारा सामान भी हड़पने का इरादा है?’’

मैं ने स्थिति को समझते हुए बीच में बोलना उचित नहीं समझा. आखिर बच्चा ही सही गलती प्रियांश की ही थी. फिर आए दिन इस तरह की कोई घटना होने लगी. समय के साथ यह एहसास भी हुआ कि यह सब अनायास नहीं, बल्कि सोचीसमझी साजिश है.

एक दिन शाम के समय भाभी लगभग चीखते हुए आ पहुंचीं, ‘‘तुम यहां कमाई में लगी रहो और तुम्हारा कुलदीपक हमारे यहां बैठा नुकसान करता रहे… ये सब नहीं चलेगा… देखो कितना सुंदर फ्लौवरपौट था. तोड़ दिया न इस उज्जड ने… कितना महंगा था, अब मैं और बरदाश्त नहीं कर सकती.’’

मैं कुछ कहती उस से पहले ही मोंटी बोल पड़ा, ‘‘मगर मम्मी यह तो कल पारूल से टूटा था.’’

‘‘चुप रह शैतान… तुझे पता भी है कुछ?’’

अपना दांव बिखरते देख भाभी बड़बड़ाती हुई अंदर चली गईं. आखिर मोंटी बच्चा ही तो था. अत: बोल गया बच्चे की बोली. चाहती तो बहुत कुछ कह सकती थी, मगर वक्त ने मेरे मुंह पर मजबूरी और एहसानों का ताला जो जड़ दिया था.

खैर, मुझे भाभी के इरादे अच्छी तरह समझ आ गए. रहना तो मैं खुद भी नहीं चाहती थी ऐसे किसी का कृपापात्र बन कर, मगर जीजीजीजाजी ने जो मेरे खातिर इन लोगों से बुराई मोल ली थी उस का मान तो रखना ही था.

अब मैं संभल गई. बच्चों को पढ़ाते वक्त प्रियांश को भी अपने साथ ले कर बैठती. किसी न किसी तरह उसे उलझाए रखती ताकि फिर न झंझट को न्योता दे आए.

 

मगर बच्चे की चपलता को भला कौन बांध सका है. इधर भाभी जोकि फिराक में ही बैठी थीं. पिछले 2 दिनों से मांजी की तबीयत खराब थी. इतना तेज बुखार कि मुझे ट्यूशन की भी छुट्टी करनी पड़ी. मैं उन्हीं की देखभाल में लगी थी कि जाने कब प्रियांश मेरी कैद से निकल भाभी के घर पहुंच गया.

उस का ध्यान तब आया जब उस के जोरजोर से रोने की आवाजें आने लगीं. किसी अनिष्ट की आशंका से मैं जल्द ही उस ओर भागी. मेरा बच्चा पीठ और पैरों को हाथ लगालगा रो रहा था. भाभी ने न जाने किस अपराध के लिए उसे स्केल से इस कदर पीटा कि निशान उभर आए थे पीठ और पैरों पर. कभी पीठ को हाथ लगा कर तड़पता तो कभी पैरों को पकड़ कर.

‘‘क्या कोई इतना भी निष्ठुर हो सकता है?’’ गोदी में लिटा कर उसे हलकेहलके थपकियां देने के अलावा मैं कर भी क्या सकती थी. वह सो गया. उस का मासूम पीड़ा से भरा चेहरा मेरे सामने था.

मस्तिष्क में अनंत सवालों के बादल घुमड़ रहे थे कि कानून की मोटीमोटी किताबों में जाने कितनी धाराएं बनेंगी और बदलेंगी. बेटी को बाप की वसीयत में बराबर की हिस्सेदारी मिली यह खबर अखबारों की सुर्खियों में ही भली लगती हैं. वास्तविकता तो यही है जो उस के साथ घट रही है.

क्या वास्तव में बाप की वसीयत से बेटी का हिस्सा निकालना इतना तकलीफदेह है? इस हकीकत को नकारा नहीं जा सकता कि अगर वह हिस्सा लेती है तो उसे प्यारमुहब्बत की दौलत को खोना होगा, क्योंकि आज बाबुल के मन का आंगन इतना संकुचित हो चुका है कि वहां प्यार या पूंजी में से कोई एक ही समा सकता है. चाहे वह एक बेटी के द्वारा अपनी परेशानियों में उठाया गया कदम ही क्यों न हो?

आज समाज और कानून के भय से उस ने यह हिस्सा भी पा लिया तो क्या? उस के लिए उसे अपनों के अपनत्व की आहुति देनी पड़ेगी, यह उस ने कभी सोचा न था. ऐसा क्यों है कि जिस बेटी को बचपन में बड़े नाजों से पाला जाता है उसी बेटी के ब्याह होते ही उस के प्रति न केवल लोगों का बल्कि उस के जन्मदाताओं के नजरिए में भी परिवर्तन आ जाता है. जब बेटियां अपने मायके की खुशहाली की खातिर अपना तनमनधन सब समर्पित कर सकती हैं तो अपनी मुसीबतों के पलों में उन की ओर उम्मीद भरी आंखों से निहारने पर यह तिरस्कार क्यों?

जाने क्यों लोग- भाग 1: क्या हुआ था अनिमेष और तियाशा के साथ

लंबी,छरहरी, गोरी व मृदुभाषिणी 48 साल की तियाशा इस फ्लैट में अब अकेली रहती है, मतलब रह गई है.

आई तो थी सपनों के गुलदान में प्यारभरी गृहस्थी का भविष्य सजा कर, लेकिन एक रात गुलदान टूट गया, सो फूल तूफानी झेंकों में उड़ गए.

तियाशा के पिता ने 2 शादियां की थीं.

बड़ी मां के गुजरने के बाद उस की मां से ब्याह रचाया था उस के पिता ने. उस की मां ने उस के सौतेले बड़े भैया को भी उसी प्यार से पाला था जैसे उसे. लेकिन मातापिता की मृत्यु के बाद भाभी की तो जैसे कुदृष्टि ही पड़ गई थी उस पर. अच्छीभली प्राइवेट कालेज में वह लैक्चरर थी. मगर उस की 32 की उम्र का रोना रोरो कर उसे चुनाव का मौका दिए बगैर उस की शादी जैसेतैसे कर दी गई.

शादी के समय किंशुक उस से 8 साल बड़ा था, एक बीमार विधवा मां थी उस की, जिन की तीमारदारी के चलते इकलौते बेटे ने अब तक शादी नहीं की थी. मगर जाने क्या हुआ, सास के गुजरने के 2 साल के अंदर ही किंशुक को हार्ट की बीमारी का पता चला. फिर तो जैसे शादी के 5 साल यों पलक झपकते गुजर गए कि कभी किंशुक का होना सपना सा हो गया.

7 बजने को थे. औफिस जाने की तैयारी में लग गई. आसमानी चिकनकारी कुरती और नीली स्ट्रैचेबल डैनिम जींस में कहना न होगा बहुत स्मार्ट लग रही थी. किंशुक उस का स्मार्ट फैशनेबल लुक हमेशा पसंद करता था.

औफिस पहुंच कर थोड़ी देर पंखे के नीचे सुस्ता कर वह अपने काम पर ध्यान देने की कोशिश करती. कोशिश ही कर सकती है क्योंकि घोषाल बाबू, मल्लिक यहां तक कि अंजलि और सुगंधा भी उसे काम में मन लगाने का मौका दें तब तो.

यह राज्य सरकार का डिस्ट्रिक्ट ऐजुकेशन औफिस है. यहां किंशुक ने लगभग 19 साल नौकरी की. तियाशा को 10 महीने होने को

आए इस औफिस में किंशुक की जगह नौकरी करते हुए.

आज भी जैसे ही वह अपनी कुरसी पर आ कर बैठी मल्लिक और घोषाल बाबू ने एकदूसरे को देखा. मल्लिक की उम्र 45 और घोषाल की 48 के आसपास होगी. इन तीनों के अलावा इस औफिस में स्टाफ की संख्या 22 के आसपास होगी. मल्लिक ने तियाशा की ओर देखते हुए घोषाल से चुटकी ली कि कोलकाता के लोगों को बातबात पर बड़ी गरमी लगती है. भई, क्या जरूरत है बस में धक्के खाने की. हम और हमारी बाइक काम न आ सके तो लानत है.

पास से गुजरती अंजलि और सुगंधा मल्लिक आंख मारती हंसती निकल गईं.

तियाशा की रगरग में जहरीली जुगुप्सा सिहरती रही. वह अपने कंप्यूटर की स्क्रीन में धंसने की कोशिश करती रही, असहज महसूस करती रही.

ललिता ने तियासा को बताया था कि वह वहां वहीखाता, फाइल आदि टेबल तक पहुंचाने का काम करती थी. अन्य के मुकाबले किंशुक ललिता को उस की उम्र का लिहाज कर अतिरिक्त सम्मान देता था. आज किंशुक की विधवा के प्रति वह स्नेह सा महसूस करती. अकसर कहती, ‘‘बेटी यहां सारे लोग सामान्य शिक्षित, बड़े ही पारंपरिक पृष्ठभूमि के हैं, अगर तुम केश बांध कर, फीके रंग की साड़ी में आती, रोनी सी सूरत बनाए रखती, किसी से बिना हंसेमुसकराए सिर झका कर काम कर के निकल जाती तो शायद तुम्हें ऐसी बातें सुनने को नहीं मिलतीं. सब के साथ सामान्य औपचारिकता निभाती हो, मौडर्न तरीके की ड्रैसें पहनती हो… लोगों को खटकता है.’’

लब्बोलुआब यह कि पति की मृत्यु के बाद भारतीय समाज में स्त्री को अब भले ही जिंदा न जलना पड़े, पर जिंदा लाश बन कर रहना ही चाहिए. उस का सिर उठा कर जीना, दूसरे के सामने अपना दर्द छिपा कर मुसकराना, स्वयं के हाथों अपनी जिंदगी की बागडोर रखना लोगों को गवारा नहीं. वह हमेशा सफेद कफन ओढ़े रहे, निराश्रितपराश्रित जैसे व्यवहार अपनाए, तभी वह प्रमाणित कर पाएगी कि उस का चरित्र सच्चा है और वह पति के सिवा किसी अन्य को नहीं चाहती. और तो और गलत भी क्या है अगर पति के जाने के बाद कोई स्त्री अपने लिए खुशी ढूंढ़ती है. क्यों जरूरी है कि वह ताउम्र किसी का गम मनाती रहे?

तियाशा का मन विद्रोह कर उठता है. पत्नी की मृत्यु पर तो सारा समाज एक पुरुष को सहानुभूति के नाम पर खुली छूट दे देता है. तब वह बेचारा, सहारे का हकदार, मनोरंजन के लिए किसी भी स्त्री में दिलचस्पी लेने की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार पाने वाला होता है. लेकिन एक स्त्री अपने जीवने को सामान्य ढर्रे पर भी चलाने की कोशिश करने की हकदार नहीं. उसे एक कदम पीछे चलना होगा. उसे हमेशा प्रमाणित करना होगा कि पति के बिना उस का अपना कोई वजूद नहीं है.

इन दिनों जाने क्यों उसे ज्यादा गुस्सा आने लगा है. इस वजह कुछ जिद भी. नितिन की यहां नई जौइनिंग से उन के मन ही मन अपना मन बहलाना शुरू किया है. अच्छा लड़का है, सुंदर है, स्मार्ट है… क्या हुआ यदि उस से 7-8 साल छोटा है. इन लोगों की तरह पूर्वाग्रह से ग्रस्त तो बिलकुल भी नहीं.

काफी है एक दोस्त की हैसियत से उस से थोड़ी बातचीत कर लेना. फिर और लोग भी क्या बात करेंगे उस से? न तो उस के पास पति या ससुराल वालों की निंदा के विषय हैं और न ही मायके वालों की धौंस और रुतबे का बखान. बच्चे के कैरियर को ले कर दिखावे की भी होड़ नहीं. फिर लोग उसे ही तो अपना विषय बनाए फिरते हैं. कौन है जिस से वह अपना दुखसुख बांटे?

दोपहर के ब्रेक में आजकल वह नितिन से कैंटीन जाने के लिए पूछती तो वह

भी यहां नया और अकेला होने के कारण सहर्ष राजी हो जाता. कुछ हैवी स्नैक्स के साथ 2 कप कौफी उन दोनों के बीच औपचारिकता की दीवार ढहा कर थोड़ाथोड़ा रोमांच और ठीठोली भर रही थी. एक इंसान होने के नाते तियाशा को अच्छा लगने का इतना तो अधिकार था, फिर भी वह खुद को हर वक्त सांत्वना देती रहती जैसेकि वह किंशुक को धोखा दे देने के बोझ से खुद को उबारना चाहती हो.

कुछ पल जो जिंदगी में नितिन के साथ के थे, क्योंकि इस साथ में आपसी दुराग्रह नहीं था, सामाजिक परंपरागत कुंठा नहीं थी, यद्यपि इस दोस्ती को ले कर भी चुटीली बातों का बाजार गरम ही रहता.

आज नितिन औफिस नहीं आया था, फिर भी रहरह तियाशा की नजर दरवाजे की तरफ घूम जातीं. दोपहर तक उस के दिल ने राह देखना जब बंद नहीं किया तो वह झल्ला पड़ी और ब्रेक होते ही कैंटीन की तरफ खुद ही चल दी. उम्मीद थी वह खुद को एक बेहतर ट्रीट दे कर साबित कर देगी कि वह नितिन के लिए उतावली नहीं है. दिल उदास था, जाने क्यों अकेलापन छाया रहा. मन मार कर सकुचाते हुए उस ने नितिन को कौल किया. कौल उस ने पहली बार किया था, लेकिन नितिन ने कौल नहीं उठाया. यह भले ही सामान्य सी बात रही हो, लेकिन तियाशा को खलता रहा. हो सकता है इस चिंता के पीछे लोगों का उस पर अतिरिक्त ध्यान देना रहा हो.

मॉडल और अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका, त्यौहार को कैसे मनाती है, पढ़ें इंटरव्यू

मॉडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली विनम्र, सांवली रंगत, छरहरी काया की धनी अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका कानपुर की है. उन्हें बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, जिसमे उनके माता – पिता ने साथ दिया. विज्ञापनों में काम करते हुए उन्हें कई भूमिकाएं मिली, जिसमें फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है, ‘पद्मावत’ और ‘वार’ में उसकी भूमिका को दर्शकों ने सराहा. अनुप्रिया को इंडस्ट्री में जो भी काम मिलता है, उसे अच्छी तरह करना पसंद करती है. फिल्मों के अलावा उन्होंने कई वेब सीरीज में भी काम किया है. डिजनी प्लस हॉटस्टार पर उनकी वेब सीरीज ‘सुल्तान ऑफ़ दिल्ली’ रिलीज पर है, जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित है. उन्होंने ज़ूम पर अपनी जर्नी और सपने को साकार करने की संघर्ष को लेकर बात की आइये जानते है, उनकी कहानी उनकी जुबानी.

अभिनय को दी है प्राथमिकता

काफी सालों तक इंडस्ट्री में रहने के बावजूद उन्हें उस हिसाब से फिल्मों में कामयाबी न मिलने की वजह के बारें में पूछने पर अनुप्रिया कहती है कि मैं हमेशा से थोड़ी क्वालिटी वर्क करने के पक्ष में हूँ. भूमिका छोटी हो या बड़ी,  उस विषय पर मैंने कभी अधिक जोर नहीं दिया. मेरे लिए चरित्र और जिनके साथ काम कर रही हूँ वह अच्छा होना बहुत जरुरी है. जहाँ मुझे लगता है कि मैं कुछ उनसे सीखूंगी, नया चरित्र है, या काम करने में मज़ा आएगा, वहां मैं काम करना पसंद करती हूं. मैं रोमांटिक, ग्रामीण और कॉमेडी फिल्म करना चाहती हूँ. इसके अलावा मुझे पीरियड फिल्म बहुत पसंद है. अलग और क्वालिटी वर्क, जो अलग हो, उसे करना पसंद करती हूँ. मेरे पास जो स्क्रिप्ट आती है, उसमें से मैं अच्छी भूमिका को खोजकर काम करती हूँ.

मेहनत जरुरी

किसी भी नई भूमिका के लिए अनुप्रिया बेहद मेहनत करती है, वह कहती है कि हर फिल्म की एक ख़ास जरुरत होती है जैसे फिल्म ‘वॉर’ के लिए शारीरिक रूप से फिट महिला चाहिए था, उसके लिए मैंने काफी वर्क आउट किया, क्लासेज लिए. एक्शन फिल्म के लिए फिटनेस जरुरी होता है. पद्मावत फिल्म में मैंने रानी नागमती की भूमिका के लिए बहुत रिसर्च किया. मैं खुद भी राजस्थान से हूँ, इसलिए वहाँ की रीतिरिवाज से परिचित थी. फिर भी मैंने संवाद बोलने के तरीके को अच्छी तरह से सीखा. इस तरह से मैंने हर किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय देने की कोशिश किया है और उसके लिए जो भी जरुरी हो उसे अवश्य करती हूँ, ताकि भूमिका सजीव लगे.

 

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सपना एक महिला की  

वेब सीरीज सुल्तान ऑफ़ दिल्ली में अनुप्रिया शंकरी की भूमिका निभा रही है, जो  60 की दशक में क्राइम से सम्बंधित है. इस कहानी में स्वाधीनता के बाद लोगों ने किस प्रकार अपनी उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में लगे है, जिसमे एक नारी, पुरुषों की दुनिया में अपने अस्तित्व को बनाये रखने की कोशिश करती है. इसमें सबसे बड़ी उसकी हथियार उसकी सेक्सुअलिटी और सेंसुअलिटी है. दिमाग से तीखी भी है. वह ऐसी औरत है, जो अपनी मोरालिटी की वजह से पीछे नहीं हटती, जिसने सारी दुनिया देखीं है, उसे काफी चीजों का सामना करना पड़ा है. उससे निकलकर कैसे वह अपनी वजूद को साबित करना चाहती है और कई बार वह सिद्ध भी कर देती है कि वह पुरुषों से पीछे नहीं, बराबर है. उसकी कोशिश है कि वह सुल्तान भले ही न बने , लेकिन सुल्तान की साथी बनकर सभी पर राज्य करें.

 

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चुनौतीपूर्ण भूमिका

अनुप्रिया आगे कहती है कि इसमें चुनौती इंटिमेट सीन्स का था, जिसे कठिन परिस्थिति में शूट किया गया.  इसे करीब 45 डिग्री की तापमान के साथ – साथ उसमे तकनिकी चीजो का अधिक प्रयोग हुआ है. राजकोट में 5 घंटे की इस शूटिंग को गर्मी में करना मुश्किल था. इमोशनली भी कठिन था, क्योंकि इसके तुरंत बाद मुझे शादी के गेटअप में आना था. ये मेरे लिए यादगार दृश्य है और जब तक कुछ नया अभिनय न कर लूँ, ये दृश्य मेरे जीवन का सबसे अधिक कठिन और यादगार सीन ही रहेगा.

सपने देखना आवश्यक

सपने हर कोई देखता है, क्या आप अपने सपने तक पहुंच पाई? अनुप्रिया कहती है कि सपने तो मैंने देखे है और इसमें अगर जद्दोजहत न हो, तो जिंदगी का मजा कम रह जाता है. सब सही होने पर सिंपल लाइफ शुरू होता है. मेरे हिसाब से एक सपना पूरा होने पर दूसरा सामने आ जाता है. मैंने जो सोचा था उससे कही अधिक मुझे मिला है, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक जानी – मानी एक्ट्रेस बनूँगी, मेरे कई लाख फैन फोलोवर्स होंगे. दर्शक मेरे काम की तारीफ करेंगे. ये मेरी एक जर्नी है, जिसमें मैंने धीरे – धीरे कामयाबी पाई है. मैंने अच्छे फिल्म मेकर्स और को स्टार के साथ काम किया है. मैंने जो सोचा उसी चरित्र को मैंने किया. इसके अलावा मेरे 4 से 5 मेरे लक्ष्य है, जिसे मैं पाना चाहती हूँ. जिसमे स्मिता पाटिल की ‘ मिर्च मसाला, रेखा की उमराव जान जैसे उन फिल्मों की इंतजार में हूँ और वैसी फिल्मों में काम करने की इच्छा रखती हूँ.

किये संघर्ष

अनुप्रिया कहती है कि मुझे यहाँ इंडस्ट्री में कोई जानने वाला नहीं है, ऐसे में मेरे लिए कोई कहानी लिखी नहीं जायेगी. मुझे काम ढूढना पड़ा और सब कुछ सीखना पड़ा. टाइगर जिन्दा है और पद्मावत फिल्म के बाद ऑडिशन देने की संख्या कम हो गयी है. ये मेरे लिए सबसे अधिक राहत है. इसके अलावा अभी भी आगे काम के लिए निर्देशकों से मिलना पड़ता है, पर मैं फिल्मों के अलावा विज्ञापनों में भी काम करती हूँ. आउटसाइडर के कलाकार का लर्निंग पीरियड हमेशा चलता ही रहता है.

इंटिमेट सीन्स समस्या नहीं

अन्तरंग दृश्यों को लेकर सहजता के बारें में पूछने पर अनुप्रिया कहती है कि मैं बहुत सहज हूँ, लेकिन सीन्स उस कहानी के साथ जाने की जरुरत होनी चाहिए. महिलाओं की कामुकता को उसकी गहराई को दिखाए बिना, मार्केटिंग के उद्देश्य से इंटिमेट सीन्स को दिखाने में मैं सहज नहीं और करना भी नहीं चाहूंगी. ऐसे दृश्य को बहुत ही मर्यादित तरीके से दिखाए जाने की जरुरत होती है, क्योंकि एक औरत में बहुत सारी चीजे होती है और उसे सम्हालना फिल्म मेकर का काम होता है.

 

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समय मिलने पर

अभी अनुप्रिया ह्यूमन ट्राफिकिंग पर कुछ काम करना चाहती है, जो देश में बहुत जरूरी है. इसके अलावा अनुप्रिया डांसिंग, सिंगिंग, पेंटिंग और गाने सुनती है.

महिलाओं के लिए अनुप्रिया का मेसेज है कि महिलाओं को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने की जरुरत है. जिससे उनकी सोच और विचार को रखने के साथ -साथ कुछ कहने की आज़ादी मिलती है. तभी वे एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है.

त्यौहार, परिवार के साथ

त्यौहार को अनुप्रिया मनाना बहुत पसंद करती है, वह कहती है कि त्यौहार में शुरू से मैं अपने परिवार के साथ रहना पसंद किया है. उस दिन साथ मिलकर खाना खाते है. त्यौहार की सबसे अधिक खास बात उस दिन को परिवार के साथ सेलिब्रेट करना होता है. इसके अलावा इसमें घर की साफ – सफाई और नए कपडे पहनना आदि भी उत्साहवर्धक होते है, लेकिन इसका स्वरुप अब बदल चुका है. मोबाइल फ़ोन के ज़रिये ही त्यौहार मनाया जाता है, जो मुझे पसंद नहीं. थोड़े समय साथ मिलकर खुशियों को मनाना ही इसमें प्रमुख होना चाहिए, जिसे दूर – दूर रहकर अनुभव नहीं किया जा सकता. किसी भी रिश्ते की मजबूती साथ रहने से होती है.

अंडरआर्म्स के कालेपन को कैसे करें कम

आपके शरीर के अन्य हिस्सों की तरह अंडरआर्म्स की स्किन काली पड़ सकती है जो आपको स्लीवलेस कपड़े पहनने से रोक सकती है. यह अक्सर स्किन डियोड्रेंट, शेविंग या अन्य जलन पैदा करने वाले प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने से हो सकता है इसीलिए महिलाएं तरह-तरह के केमिकल वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने लग जाती हैं. जिससे कई बार आपकी त्वचा को नुकसान हो सकता है इसीलिए यहां हम आपको ऐसे कुछ घरेलू उपाय बताएंगे जिनका उपयोग कर आप अंडरआर्म्स के कालेपन को दूर कर सकती हैं. तो देर किस बात की है आइए जानते है इसके बारे में-

  1. आलू

आलू को इवन स्किन टोन करने के लिए बेहतरीन उपाय माना जाता है. एक आलू को कद्दूकस कर लें और इसका रस निचोड़ लें और इस रस को अंडरआर्म्स पर लगाएं. 10 से 15 मिनट के बाद अंडरआर्म्स को ठंडे पानी से धो लें.

2. दूध के साथ गुलाब जल और संतरे का छिलका

संतरे के छिलके के पाउडर में एक चम्मच दूध और एक चम्मच गुलाब जल मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. अब इस पेस्ट से अपने अंडरआर्म्स को धीरे-धीरे मालिश करें और 15 मिनट के बाद ठंडे पानी से धो लें.

3. नींबू

नींबू स्किन की गंदगी और कालेपन को दूर करने के लिए एक कारगर उपाय माना जाता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए नींबू को काटकर अपने अंडरआर्म्स पर रगड़ें. अब 10 मिनट के बाद अपने अंडरआर्म्स को ठंडे पानी से धो लें. इसके बाद मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करें.

4. हल्दी और नींबू

एक बाउल में हल्दी के दो चम्मच को नींबू के रस में मिला लें. अब इस पेस्ट को अंडरआर्म्स पर लगा लें. 30 मिनट के बाद अंडरआर्म्स को ठंडे पानी से धो लें.

5. अंडे की जर्दी का तेल

जब आप सोने जाती हैं तो उससे पहले अंडरआर्म्स पर अंडे की जर्दी के तेल की मालिश करें और अगली सुबह अपने अंडरआर्म्स को पीएच बैलेंस वाले बॉडी वॉश से धो लें.

6. टी ट्री ऑयल

अंडरआर्म्स के कालेपन को दूर करने के लिए आप एक छोटी स्प्रे बोतल में टी ट्री ऑयल की 5 बंदे और 8 औंस पानी के साथ मिलाएं. नहाने के बाद डियोड्रेंट के स्थान पर इस स्प्रे का इस्तेमाल करें.

इन बातों का भी रखें ध्यान-

  • आप अपने डियोड्रेंट को चेंज कर प्राकृतिक विकल्प चुन सकती हैं.
  • शेविंग की जगह वैक्सिंग या लेजर हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट करा सकती हैं.

कहीं पेनकिलर मेरी हेल्थ पर भारी तो नही पड़ेगी?

सवाल- 

मैं 25 साल का हूं. मैं एक फोटोग्राफर हूं, इसलिए मुझे पूरापूरा दिन खड़े हो कर फोटोशूट करना पड़ता है. कई बार बाहर भी जाना पड़ता है, जहां आराम के लिए वक्त ही नहीं मिल पाता है. ऐसे में मेरा शरीर दर्द से टूटने लगता है और सिरदर्द भी होता है, जिस के कारण मुझे पेनकिलर लेनी पड़ती है. मुझे डर है कि कहीं पेनकिलर मेरे स्वास्थ्य पर भारी न पड़ जाए. कृपया मुझे समस्या से छुटकारा पाने का समाधान बताएं?

जवाब- 

इस प्रकार की व्यस्त जीवनशैली के कारण युवा अकसर ऐसी समस्याओं की चपेट में आ जाते हैं. पूरा दिन एक ही मुद्रा में खड़े या बैठे रहने के कारण नसों पर दबाव पड़ता है, जिस से दर्द की शिकायत होती है. थकावट, भूखा रहने, कम पानी पीने और आराम न मिलने के कारण सिरदर्द की समस्या होती है. इस के जिम्मेदार हम खुद होते हैं. कामकाज को महत्त्व देने के चक्कर में खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. समस्या से छुटकारा पाना है तो सब से पहले शरीर को आराम देना सीखें. काम के बीच में कुछ वक्त निकाल कर शरीर को स्ट्रैच करें, समय पर खाना खाएं, पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं और बीचबीच में बैठ कर शरीर को आराम दें. इस के अलावा रूटीन में ऐक्सरसाइज, पौष्टिक आहार आदि शामिल करें. समस्या ज्यादा होती है तो डाक्टर से परामर्श लें. इसे हलके में लेना भारी पड़ सकता है. किसी भी समस्या के लिए खुद से दवा कभी न लें. डाक्टर के परामर्श पर ही दवा का सेवन करें.

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आम तौर पर लोग सिर दर्द हो या पीठ में दर्द पेनकिलर बिना सोचे समझे ले लेते हैं. ये आदत आपके लिए कितना खतरनाक हो सकता है इसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा! हाल के एक रिसर्च से ये ज्ञात हुआ है कि पेनकिलर लेने से पुराने दर्द की समस्या जटिल रूप धारण कर सकती है. बार-बार दर्द निवारक दवायें पुराने यानि क्रॉनिक पेन का प्रॉबल्म बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Festival Special: कब्ज सताए तो हैं न उपाय

आज के वैज्ञानिक युग में जहां साधन बढ़े हैं, जिंदगी सुखसुविधाओं से लैस हो गई है, वहीं कुछ लाइफस्टाइल सिंड्रोम भी जन्मे हैं. किसी को कामकाज की व्यस्तता के कारण स्लीप सिंड्रोम यानी नींद न आने की समस्या है, तो किसी को खानपान की वजह से बावैल सिंड्रोम यानी कब्ज की.

एक दिन मैं ने देखा कि मेरे साथ रोज सुबह सैर करने वाली मिसेज वडैच ने सैर के बाद घर लौटते ही 3-4 गिलास कुनकुना पानी पिया और 1 गिलास मुझे भी दिया. फिर मेरे साथ बिना दूध की ग्रीन पत्ती वाली चाय ली. मैं उठने लगी तो वे बोलीं कि नहींनहीं नाश्ता कर के जाना. मैं ने मना किया लेकिन उन के साथ बैठ गई. उन्होंने रात की चोकर वाली बासी रोटी मंगवाई, उस पर घर का बना सफेद मक्खन लगाया, कालीमिर्च, कालानमक और भुना हुआ जीरा डाला और चबाचबा कर खाने लगीं.

मेरे मन में सवाल उठा कि ये इतनी अमीर औरत, बहुत बड़ी जमीन की मालकिन, गेहूं के खेत हैं इन के और नाश्ते में रात की बासी रोटी खा रही हैं? चेहरा दमक रहा है, शरीर गठा हुआ है. 60 से ऊपर हैं पर उम्र का असर कहीं दिखता ही नहीं.

वे मेरी ओर देखते हुए कहने लगीं कि खाओ न. देखो, पानी जीरो कैलोरी ड्रिंक है, इसलिए मेरा शरीर कहीं से फूला नहीं है. हमारे गुरदे पानी को फ्लश इन/फ्लश आउट का काम नियमित रूप से करते रहते हैं. इस से टौक्सिंस निकल जाते हैं, जिस से कब्ज नहीं रहता. पेट साफ हो जाता है. यह व्हीट ब्रान की बासी रोटी जिसे तुम घूर रही थीं, इसे न्यूट्रिशनल पावर हाउस यानी पौष्टिकता का पावर हाउस कहते हैं. आजकल जहां देखो व्हीट ब्रान का चलन है. ऐसा इस में होने वाले स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन, खनिज, फौलिक ऐसिड और फाइबर की गुणवत्ता के कारण हुआ है. चोकर की ब्रैड, चोकर के बिस्कुट और न जाने क्याक्या बाजार में पेट साफ रखने के लिए मिलते हैं.

वडैच कहने लगीं कि जानती हो, ये जो आजकल लाइफस्टाइल डिजीज, बावैल सिंड्रोम पैदा हो गई है, उस का निदान इस व्हीट ब्रान की रोटी यानी चोकर वाली रोटी के पास है. दरअसल, यह ब्रान/चोकर की रोटी पेट की अंतडि़यों में ल्यूब्रीकैंट का कार्य करते हुए कब्ज को दूर करती है. यह फाइबरयुक्त है इसलिए पेट साफ रहता है.

आज के दौर में व्हीट ब्रान का प्रयोग बहुत जरूरी है, क्योंकि दादीनानी के नुसखे तो यह कहते ही हैं. आज की आधुनिक चिकित्सा पद्धति के डाक्टरों का भी यही मानना है कि कब्ज आधी बीमारियों की जनक है. इस में मौजूद ग्लूटेन पेट में अफारा, गैस व अपच जैसे रोगों को भी बायबाय कहता है.

चोकरयुक्त आटे के फायदे

चंडीगढ़ की डायबिटिक डाइटीशियन ऐंड न्यूट्रिशियनिस्ट डा. हरलीन बख्शी कहती हैं कि यदि 3 मुट्ठी आटे में एक मुट्ठी चोकर डाल कर गूंधा जाए तो इस आटे से बनी चपाती अधिक संतुष्टि देती है. चोकरयुक्त आटे का इस्तेमाल किया जाए, तो यकीनन रोटियां पौष्टिकता देने के साथसाथ वजन भी कम करेंगी और पेट भी साफ रहेगा.

डा. बख्शी आगे कहती हैं कि आजकल बाजार में विज्ञापनों ने भ्रांतियां फैला रखी हैं. यह कोलैस्ट्रौलफ्री फूड है, यह शुगरफ्री चावल है, जैसी बातों से प्रभावित हो कर हम ऐसे फूड को कोलैस्ट्रौलफ्री फूड समझ कर शान से खाते और खिलाते हैं. पर क्या आप ने कभी सोचा है कि हो सकता है कि अमुक फूड कोलैस्ट्रौलफ्री फूड हो, परंतु उस में अन्य सैचुरेटेड फैट हों, जो ब्लड कोलैस्ट्रौल को बढ़ाते हैं. कई बार सैचुरेटेड फैट नहीं होता, परंतु उस में अनसैचुरेटेड औयल्स, फैट्स और शुगर होने के कारण वजन भी बढ़ने लगता है, साथ ही पेट साफ न रहने के लक्षण भी?

जरूरत है तो यह जानने कि कब खाएं, कितना खाएं? यदि डाइबिटिक पेशैंट हैं तो थोड़ेथोड़े अंतराल पर जरूर कुछ खाएं. ऐसा कर के बिना किसी डाइटीशियन की सलाह के भी खुद को फिट रखा जा सकता है. किसी भी चीज की अति हो जाने पर शरीर को नुकसान पहुंचता है. शुरुआत पेट से होती है.

ओट्स से लाभ

डाइटीशियन डा. नीती मुंजाल कहती हैं कि केवल डाइटीशियन ही खानपान की आदतों में सुधार व नियंत्रित जीवनशैली के लिए सलाह नहीं देते आए हैं, कई फूड कंपनियां भी इसी बात को अपने तरीके से कहती आ रही हैं. नतीजा, कई बार तो ग्राहकों के मन में खाद्यपदार्थों के बारे में मिथक पैदा हो जाते हैं. ऐसा ही कुछ ओट्स के बारे में है.

ओट्स गेहूं की ही एक किस्म है, वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं. ओट्स के सेवन से एलडीएल (खराब) कोलैस्ट्रौल को कम करने में मदद मिलती है, जिस से हृदयरोग की आशंका कम हो जाती है परंतु यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम ओट्स किस रूप में खाते हैं. ओट्स में मौजूद घुलनशील डाइटरी फाइबर पाचनक्रिया को सुचारु रखता है, जिस से भोजन आसानी से पच जाता है. इस से कब्ज की शिकायत नहीं रहती. लेकिन कई लोग केवल यह सोच कर ही ओट्स खाते हैं कि यह संपूर्ण आहार है, जबकि ऐसा नहीं है.

ओट्स में अन्य कोई भी पौष्टिक तत्त्व और खनिजलवण नहीं होता, जो इसे संपूर्ण आहार बना सके. इसलिए यदि नाश्ते में सुबह केवल ओट्स लेती हैं, तो साथ में सूखे फल और ताजा मौसमी फल जैसे, सेब, नाशपाती, आम, स्ट्राबैरी, केला, ब्ल्यूबैरी

इत्यादि अवश्य लें. ऐसा करना पौष्टिकता देने के साथ पेट भी साफ रखेगा.

बावैल मूवमैंट हर व्यक्ति में अलग रहता है. किसी के दिन में 1 बार तो किसी के 2 बार टौयलेट जाने से पेट साफ रहता है. कई बार अधिक तनाव, अनिद्रा, कसरत न करने, दवाओं के सेवन, आर्टिफिशल स्वीटनर के सेवन और फाइबरयुक्त भोजन न खाने से मधुमेह या फिर बढ़ती उम्र के कारण बावैल सिंड्रोम हो सकता है.

अन्य उपाय

किसी भी दवा का सेवन शुरू करने से पहले यदि आप चाहें तो प्रतिदिन सुबह 1 गिलास गरम पानी सेंधा नमक या साधारण नमक डाल कर पिएं. पेट साफ होगा. ऐसा करने से हो सकता है कि कब्ज तो दूर होगी ही, कुछ हैल्पफुल बैक्टीरिया भी बाहर निकल जाएं. इस की पूर्ति के लिए थोड़ी देर बाद 1 कटोरी सादा दही का सेवन अवश्य कर लें.

पानी की कमी के कारण भी कई बार ऐसा होता है. इसलिए यदि अच्छा गरम वैज सूप पिया जाए तो बावैल सिंड्रोम में काफी राहत मिलती है. किसी ऐक्युपै्रशर स्पैशलिस्ट से भी संपर्क किया जा सकता है, जो सही प्रैशर पौइंट्स पर आप को प्रैशर डालने की तकनीक सिखा सकता है.

‘‘यदि आप के पास समय हो तो सुबह उठते ही सीधी लेट जाएं. फिर एक तौलिया ठंडे पानी में भिगो कर पेट पर रखें. उस के ऊपर गरम शौल लपेट लें. 10 मिनट के बाद ठंडा तौलिया हटा कर उस के स्थान पर गरम पानी में भीगा निचोड़ा तौलिया पेट पर रख कर उस के ऊपर शौल लपेट कर 10-15 मिनट लेटें. यह प्रक्रिया हो सके तो 2-3 बार शुरूशुरू में करें. आप देखेंगे बहुत जल्द ही आप के बावैल सिंड्रोम व बावैल मूवमैंट में फर्क पड़ेगा,’’ कहती हैं डा. आशा महेश्वरी. उन के अनुसार सर्दगरम पेट की पट्टी, हलकीफुलकी कसरत और धनियापुदीना चटनी के सेवन से भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.

डा. आशा महेश्वरी कहती हैं कि सुनीसुनाई बातों पर न जा कर तथ्यों को जानें. सब से अहम बात है अपनेआप को, अपनी शारीरिक जरूरतों को पहचानें. आप को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जिस प्राकृतिक रूप से तैयार अनाज व सब्जी को आप अपने भोजन में शामिल करने वाली हैं क्या उस में जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, थियामाइन, राइबोफ्लेविन फोलेट, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर मौजूद है? आप स्वस्थ व प्रसन्न रह सकें, इस के लिए यह जानना बेहद जरूरी है.

Festive Special: डिनर में बनाएं पालक पनीर पुलाव

आहार विशेषज्ञों के अनुसार ब्रेकफास्ट और लंच की अपेक्षा रात का भोजन बहुत हल्का होना चाहिए. महिलाओं के लिए किसी भी समय का भोजन बहुत बड़ी समस्या होता है क्योंकि अक्सर घर के प्रत्येक सदस्य की पसन्द अलग अलग होती है, और ऐसा भोजन बनाना बहुत बड़ी चुनौती होती है जो परिवार के सभी सदस्यों को पसन्द आ जाये.

आज हम आपको पालक और पनीर से बनने वाली एक ऐसी एक रेसिपी बनाना बता रहे हैं जो पौष्टिकता से भरपूर तो है ही साथ घर के प्रत्येक सदस्य को भी अवश्य पसन्द आएगा. पालक पनीर पुलाव में प्रोटीन, आयरन, केल्शियम तो होता ही है साथ ही यह अपने आप में सम्पूर्ण भोजन भी है क्योंकि इसे बनाने के बाद आपको कुछ और बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.

कितने लोंगों के लिए           6

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

पालक                            500 ग्राम

पनीर                              250 ग्राम

बासमती चावल               125 ग्राम

बारीक कटा प्याज             1

लहसुन                             4 कली

कटी हरी मिर्च                    4

साबुत लाल मिर्च                2

कटे टमाटर                       2

जीरा                               1/4 टीस्पून

कटा अदरक                     1 छोटी गांठ

नमक                               स्वादानुसार

घी                                   1 टेबलस्पून

तेल                                  पर्याप्त मात्रा में

काजू                                10

नीबू का रस                       1 टीस्पून

चाट मसाला                       1/2 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया     2 बड़ी लच्छी

विधि

चावल को बनाने से 20 मिनट पूर्व साफ पानी से धोकर दोगुने पानी में भिगो दें. 20 मिनट बाद तीन गुने पानी में 90 प्रतिशत तक उबालकर चलनी से पानी निकालकर ठंडा होने रख दें.

पालक को उबलते पानी में 3-4 मिनट के लिए डालकर तुरन्त बर्फ के ठंडे पानी में डालकर ब्लांच कर लें ताकि पालक का हरा रंग बरकरार रहे. चलनी से पानी अलग करके मिक्सी में पेस्ट के रूप में पीस लें.

पनीर को आधे इंच के चौकोर टुकड़ों में काट कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तल लें. इसी कढ़ाई में काजू भी तलकर निकाल लें. अब एक पैन में 2 टेबलस्पून घी डालकर  जीरा तड़काकर लहसुन, अदरक और प्याज को भून लें. जब प्याज सुनहरा सा होने लगे तो पालक प्यूरी डालकर चलाएं. उबले चावल और 1/2 टीस्पून नमक डालकर भली भांति चलाकर गैस बंद कर दें.

अब एक दूसरे पैन में 1 टीस्पून घी और एक टीस्पून तेल डालें. कटी हरी मिर्च, साबुत लाल मिर्च और कटे टमाटर डालकर 1/4 टीस्पून नमक डालकर टमाटर के गलने तक पकाएं. जब टमाटर अच्छी तरह गल जाएं तो पनीर के तले टुकड़े डालकर चलाएं. अब  पनीर को पालक के चावलों में मिलाएं. चाट मसाला और नीबू का रस डालकर बूंदी या पुदीने के रायते के साथ सर्व करें .

कर्णफूल: क्यों अपनी ही बहन पर शक करने लगी अलीना

जब मैं अपने कमरे के बाहर निकली तो अन्नामां अम्मी के पास बैठी उन्हें नाश्ता करा रही थीं. वह कहने लगीं, ‘‘मलीहा बेटी, बीबी की तबीयत ठीक नहीं हैं. इन्होंने नाश्ता नहीं किया, बस चाय पी है.’’

मैं जल्दी से अम्मी के कमरे में गई. वह कल से कमजोर लग रही थीं. पेट में दर्द भी बता रही थीं. मैं ने अन्नामां से कहा, ‘‘अम्मी के बाल बना कर उन्हें जल्द से तैयार कर दो, मैं गाड़ी गेट पर लगाती हूं.’’

अम्मी को ले कर हम दोनों अस्पताल पहुंचे. जांच में पता चला कि हार्टअटैक का झटका था. उन का इलाज शुरू हो गया. इस खबर ने जैसे मेरी जान ही निकाल दी थी. लेकिन यदि मैं ही हिम्मत हार जाती तो ये काम कौन संभालता? मैं ने अपने दर्द को छिपा कर खुद को कंट्रोल किया. उस वक्त पापा बहुत याद आए.

वह बहुत मोहब्बत करने वाले, परिवार के प्रति जिम्मेदार व्यक्ति थे. एक एक्सीडेंट में उन का इंतकाल हो गया था. घर में मुझ से बड़़ी बहन अलीना थीं, जिन की शादी हैदराबाद में हुई थी. उन का 3 साल का एक बेटा था. मैं ने उन्हें फोन कर के खबर दे देना जरूरी समझा, ताकि बाद में शिकायत न करें.

मैं आईसीयू में गई, डाक्टरों ने मुझे काफी तसल्ली दी, ‘‘इंजेक्शन दे दिए गए हैं, इलाज चल रहा है, खतरे की कोई बात नहीं है. अभी दवाओं का असर है, सो गई हैं. इन के लिए आराम जरूरी है. इन्हें डिस्टर्ब न करें.’’

मैं ने बाहर आ कर अन्नामां को घर भेज दिया और खुद वेटिंगरूम में जा कर एक कोने में बैठ गई. वेटिंगरूम काफी खाली था. सोफे पर आराम से बैठ कर मैं ने अलीना बाजी को फोन मिलाया. मेरी आवाज सुन कर उन्होंने रूखे अंदाज में सलाम का जवाब दिया.मैं ने अपने गम समेटते हुए आंसू पी कर अम्मी के बारे में बताया तो सुन कर वह परेशान हो गईं. फिर कहा, ‘‘मैं जल्द पहुंचने की कोशिश करती हूं.’’

मुझे तसल्ली का एक शब्द कहे बिना उन्होंने फोन कट कर दिया. मेरे दिल को झटका सा लगा. अलीना मेरी वही बहन थीं, जो मुझे बेइंतहा प्यार करती थीं. मेरी जरा सी उदासी पर दुनिया के जतन कर डालती थीं. इतनी चाहत, इतनी मोहब्बत के बाद इतनी बेरुखी… मेरी आंखें आंसुओं से भर आईं.

पापा की मौत के थोड़े दिनों बाद ही मुझ पर कयामत सी टूट पड़ी थी. पापा ने बहुत देखभाल कर मेरी शादी एक अच्छे खानदान में करवाई थी. शादी हुई भी खूब शानदार थी. बड़े अरमानों से ससुराल गई. मैं ने एमबीए किया था और एक अच्छी कंपनी में जौब कर रही थी. जौब के बारे में शादी के पहले ही बात हो गई थी.

उन्हें मेरे जौब पर कोई ऐतराज नहीं था. ससुराल वाले मिडिल क्लास के थे, उन की 2 बेटियां थीं, जिन की शादी होनी थी. इसलिए नौकरी वाली बहू का अच्छा स्वागत हुआ. मेरी सास अच्छे मिजाज की थीं और मुझ से काफी अच्छा व्यवहार करती थीं.

कभीकभी नादिर की बातों में कौंप्लेक्स झलकता था. आखिर 2-3 महीने के बाद उन का असली रंग खुल कर सामने आ गया. उन के दिल में नएनए शक पनपने लगे. नादिर को लगता कि मैं उस से बेवफाई कर रही हूं. जराजरा सी बात पर नाराज हो जाता, झगड़ना शुरू कर देता.

इसे मैं उस का कौंप्लेक्स समझ कर टालती रहती, निबाहती रही. लेकिन एक दिन तो हद ही हो गई. उस ने मुझे मेरे बौस के साथ एक मीटिंग में जाते देख लिया. शाम को घर लौटी तो हंगामा खड़ा कर दिया. मुझ पर बेवफाई व बदकिरदारी का इलजाम लगा कर गंदेगंदे ताने मारे.

कई लोगों के साथ मेरे ताल्लुक जोड़ दिए. ऐसे वाहियात इलजाम सुन कर मैं गुस्से से पागल हो गई. आखिर मैं ने एक फैसला कर लिया कि यहां की इस बेइज्जती से जुदाई बेहतर है.

मैं ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘नादिर, अगर आप का रवैया इतना तौहीन वाला रहा तो फिर मेरा आप के साथ रहना मुश्किल है. आप को अपने लगाए बेहूदा इलजामों की सच्चाई साबित करनी पड़ेगी. एक पाक दामन औरत पर आप ऐसे इलजाम नहीं लगा सकते.’’

मम्मीपापा ने भी समझाने की कोशिश की, लेकिन वह गुस्से से उफनते हुए बोला, ‘‘मुझे कुछ साबित करने की जरूरत नहीं है, सब जानता हूं मैं. तुम जैसी आवारा औरतों को घर में नहीं रखा जा सकता. मुझे बदचलन औरतों से नफरत है. मैं खुद ऐसी औरत के साथ नहीं रह सकता. मैं तुझे तलाक देता हूं, तलाक…तलाक…तलाक.’’

और कुछ पलों में ही सब कुछ खत्म हो गया. मैं अम्मी के पास आ गई. सुन कर उन पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. मेरे चरित्र पर चोट पड़ी थी. मुझ पर लांछन लगाए गए थे. मैं ने धीरेधीरे खुद को संभाल लिया. क्योंकि मैं कुसूरवार नहीं थी. यह मेरी इज्जत और अस्मिता की लड़ाई थी.

20-25 दिन की छुट्टी करने के बाद मैं ने जौब पर जाना शुरू कर दिया. मैं संभल तो गई, पर खामोशी व उदासी मेरे साथी बन गए. अम्मी मेरा बेहद खयाल रखती थीं. अलीना आपी भी आ गईं. हर तरह से मुझे ढांढस बंधातीं. वह काफी दिन रुकीं. जिंदगी अपने रूटीन से गुजरने लगी.

अलीना आपी ने इस विपत्ति से निकलने में बड़ी मदद की. मैं काफी हद तक सामान्य हो गई थी. उस दिन छुट्टी थी, अम्मी ने दो पुराने गावतकिए निकाले और कहा, ‘‘ये तकिए काफी सख्त हो गए हैं. इन में नई रुई भर देते हैं.’’

मैं ने पुरानी रुई निकाल कर नीचे डाल दी. फिर मैं ने और अलीना आपी ने रुई तख्त पर रखी. हम दोनों रुई साफ कर रहे थे और तोड़ते भी जा रहे थे. अम्मी उसी वक्त कमरे से आ कर हमारे पास बैठ गईं. उन के हाथ में एक प्यारी सी चांदी की डिबिया थी. अम्मी ने खोल कर दिखाई, उस में बेपनाह खूबसूरत एक जोड़ी जड़ाऊ कर्णफूल थे. उन पर बड़ी खूबसूरती से पन्ना और रूबी जड़े हुए थे. इतनी चमक और महीन कारीगरी थी कि हम देखते रह गए.

आलीना आपी की आंखें कर्णफूलों की तरह जगमगाने लगीं. उन्होंने बेचैनी से पूछा, ‘‘अम्मी ये किसके हैं?’’

अम्मी बताने लगीं, ‘‘बेटा, ये तुम्हारी दादी के हैं, उन्होंने मुझ से खुश हो कर मुझे ये कर्णफूल और माथे का जड़ाऊ झूमर दिया था. माथे का झूमर तो मैं ने अलीना की शादी पर उसे दे दिया था. अब ये कर्णफूल हैं, इन्हें मैं मलीहा को देना चाहती हूं. दादी की यादगार निशानियां तुम दोनों बहनों के पास रहेंगी, ठीक है न.’’

अलीना आपी के चेहरे का रंग एकदम फीका पड़ गया. उन्हें जेवरों का शौक जुनून की हद तक था, खास कर के एंटीक ज्वैलरी की तो जैसे वह दीवानी थीं. वह थोड़े गुस्से से कहने लगीं, ‘‘अम्मी, आप ने ज्यादती की, खूबसूरत और बेमिसाल चीज आपने मलीहा के लिए रख दी. मैं बड़ी हूं, आप को कर्णफूल मुझे देने चाहिए थे. ये आप ने मेरे साथ ज्यादती की है.’’

अम्मी ने समझाया, ‘‘बेटी, तुम बड़ी हो, इसलिए तुम्हें कुंदन का सेट अलग से दिया था, साथ में दादी का झूमर और सोने का एक सेट भी दिया था. जबकि मलीहा को मैं ने सोने का एक ही सेट दिया था. इस के अलावा एक हैदराबादी मोती का सेट था. उसे मैं ने कर्णफूल भी उस वक्त नहीं दिए थे, अब दे रही हूं. तुम खुद सोच कर बताओ कि क्या गलत किया मैं ने?’’

अलीना आपी अपनी ही बात कहती रहीं. अम्मी के बहुत समझाने पर कहने लगीं,  ‘‘अच्छा, मैं दादी वाला झूमर मलीहा को दे दूंगी, तब आप ये कर्णफूल मुझे दे दीजिएगा. मैं अगली बार आऊंगी तो झूमर ले कर आऊंगी और कर्णफूल ले जाऊंगी.’’

अम्मी ने बेबसी से मेरी तरफ देखा. मेरे सामने अजीब दोराहा था, बहन की मोहब्बत या कर्णफूल. मैं ने दिल की बात मान कर कहा, ‘‘ठीक है आपी, अगली बार झूमर मुझे दे देना और आप ये कर्णफूल ले जाना.’’

अम्मी को यह बात पसंद नहीं आई, पर क्या करतीं, चुप रहीं. अभी ये बातें चल ही रहीं थीं कि घंटी बजी. अम्मी ने जल्दी से कर्णफूल और डिबिया तकिए के नीचे रख दी.

पड़ोस की आंटी कश्मीरी सूट वाले को ले कर आई थीं. सब सूट व शाल वगैरह देखने लगे. हम ने 2-3 सूट लिए. उन के जाने के बाद अम्मी ने कर्णफूल वाली चांदी की डिबिया निकाल कर देते हुए कहा, ‘‘जाओ मलीहा, इसे संभाल कर अलमारी में रख दो.’’

मैं डिबिया रख कर आई. उस के बाद हम ने जल्दीजल्दी तकिए के गिलाफ में रुई भर दी. फिर उन्हें सिल कर तैयार किया और कवर चढ़ा दिए. 3-4 दिनों बाद अलीना आपी चली गईं. जातेजाते वह मुझे याद करा गईं, ‘‘मलीहा, अगली बार मैं कर्णफूल ले कर जाऊंगी, भूलना मत.’’

दिन अपने अंदाज में गुजर रहे थे. चाचाचाची और उन के बच्चे एक शादी में शामिल होने आए. वे लोग 5-6 दिन रहे, घर में खूब रौनक रही. खूब घूमेंफिरे. मेरी चाची अम्मी को कम ही पसंद करती थीं, क्योंकि मेरी अम्मी दादी की चहेली बहू थीं. अपनी खास चीजें भी उन्होंने अम्मी को ही दी थीं. चाची की दोनों बेटियों से मेरी खूब बनती थी, हम ने खूब एंजौय किया.

नादिर की मम्मी 2-3 बार आईं. बहुत माफी मांगी, बहुत कोशिश की कि किसी तरह इस मसले का कोई हल निकल जाए. पर जब आत्मा और चरित्र पर चोट पड़ती है तो औरत बरदाश्त नहीं कर पाती. मैं ने किसी भी तरह के समझौते से साफ इनकार कर दिया.

अलीना बाजी के बेटे की सालगिरह फरवरी में थी. उन्होंने फोन कर के कहा कि वह अपने बेटे अशर की सालगिरह नानी के घर मनाएंगी. मैं और अम्मी बहुत खुश हुए. बडे़ उत्साह से पूरे घर को ब्राइट कलर से पेंट करवाया. कुछ नया फर्नीचर भी लिया. एक हफ्ते बाद अलीना आपी अपने शौहर समर के साथ आ गईं. घर के डेकोरेशन को देख कर वह बहुत खुश हुईं.

सालगिरह के दिन सुबह से ही सब काम शुरू हो गए. दोस्तोंरिश्तेदारों सब को बुलाया. मैं और अम्मी नाश्ते के बाद इंतजाम के बारे में बातें करने लगे. खाना और केक बाहर से आर्डर पर बनवाया था. उसी वक्त अलीना आपी आईं और अम्मी से कहने लगीं, ‘‘अम्मी, ये लीजिए झूमर संभाल कर रख लीजिए और मुझे वे कर्णफूल दे दीजिए. आज मैं अशर की सालगिरह में पहनूंगी.’’

अम्मी ने मुझ से कहा, ‘‘जाओ मलीहा, वह डिबिया निकाल कर ले आओ.’’ मैं ने डिबिया ला कर अम्मी के हाथ पर रख दी. आपी ने बड़ी बेसब्री से डिबिया उठा कर खोली. लेकिन डिबिया खुलते ही वह चीख पड़ीं, ‘‘अम्मी कर्णफूल तो इस में नहीं है.’’

अम्मी ने झपट कर डिबिया उन के हाथ से ले ली. वाकई डिबिया खाली थी. अम्मी एकदम हैरान सी रह गईं. मेरे तो जैसे हाथोंपैरों की जान ही निकल गई. अलीना आपी की आंखों में आंसू आ गए थे. उन्होंने मुझे शक भरी नजरों से देखा तो मुझे लगा कि काश धरती फट जाए और मैं उस में समा जाऊं.

अलीना आपी गुस्से में जा कर अपने कमरे में लेट गईं. मैं ने और अम्मी ने अलमारी का कोनाकोना छान मारा, पर कहीं भी कर्णफूल नहीं मिले. अजब पहेली थी. मैं ने अपने हाथ से डिबिया अलमारी में रखी थी. उस के बाद कभी निकाली भी नहीं थी. फिर कर्णफूल कहां गए?

एक बार ख्याल आया कि कुछ दिनों पहले चाचाचाची आए थे और चाची दादी के जेवरों की वजह से अम्मी से बहुत जलती थीं. क्योंकि सब कीमती चीजें उन्होंने अम्मी को दी थीं. कहीं उन्होंने ही तो मौका देख कर नहीं निकाल लिए कर्णफूल. मैं ने अम्मी से कहा तो वह कहने लगीं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि वह ऐसा कर सकती हैं.’’

फिर मेरा ध्यान घर पेंट करने वालों की तरफ गया. उन लोगों ने 3-4 दिन काम किया था. संभव है, भूल से कभी अलमारी खुली रह गई हो और उन्हें हाथ साफ करने का मौका मिल गया हो. अम्मी कहने लगीं, ‘‘नहीं बेटा, बिना देखे बिना सुबूत किसी पर इलजाम लगाना गलत है. जो चीज जानी थी, चली गई. बेवजह किसी पर इलजाम लगा कर गुनहगार क्यों बनें.’’

सालगिरह का दिन बेरंग हो गया. किसी का दिल दिमाग ठिकाने पर नहीं था. अलीना आपी के पति समर भाई ने सिचुएशन संभाली, प्रोग्राम ठीकठाक हो गया. दूसरे दिन अलीना ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. अम्मी ने हर तरह से समझाया, कई तरह की दलीलें दीं, समर भाई ने भी समझाया, पर वह रुकने के लिए तैयार नहीं हुईं. मैं ने उन्हें कसम खा कर यकीन दिलाना चाहा, ‘‘मैं बेकुसूर हूं, कर्णफूल गायब होने के पीछे मेरा कोई हाथ नहीं है.’’

लेकिन उन्हें किसी बात पर यकीन नहीं आया. उन के चेहरे पर छले जाने के भाव साफ देखे जा सकते थे. शाम को वह चली गईं तो पूरे घर में एक बेमन सी उदासी पसर गईं. मेरे दिल पर अजब सा बोझ था. मैं अलीना आपी से शर्मिंदा भी थी कि अपना वादा निभा न सकी.

पिछले 2 सालों में अलीना आपी सिर्फ 2 बार अम्मी से मिलने आईं, वह भी 2-3 दिनों के लिए. आती तो मुझ से तो बात ही नहीं करती थीं. मैं ने बहन के साथ एक अच्छी दोस्त भी खो दी थी. बारबार सफाई देना फिजूल था. खामोशी ही शायद मेरी बेगुनाही की जुबां बन जाए. यह सोच कर मैं ने चुप्पी साध ली. वक्त बड़े से बड़ा जख्म भर देता है. शायद ये गम भी हलका पड़ जाए.

मामूली सी आहट पर मैं ने सिर उठा कर देखा, नर्स खड़ी थी. वह कहने लगी, ‘‘पेशेंट आप से मिलना चाहती हैं.’’

मैं अतीत की दुनिया से बाहर आ गई. मुंह धो कर मैं अम्मी के पास आईसीयू में पहुंच गई. अम्मी काफी बेहतर थीं. मुझे देख कर उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट आ गईं. वह मुझे समझाने लगीं, ‘‘बेटी, परेशान न हो, इस तरह के उतारचढ़ाव तो जिंदगी में आते ही रहते हैं. उन का हिम्मत से मुकाबला कर के ही हराया जा सकता है.’’

मैं ने उन्हें हल्का सा नाश्ता कराया. डाक्टरों ने कहा, ‘‘इन की हालत काफी ठीक है. आज रूम में शिफ्ट कर देंगे. 2-4 दिन में छुट्टी दे दी जाएगी. हां, दवाई और परहेज का बहुत खयाल रखना पड़ेगा. ऐसी कोई बात न हो, जिस से इन्हें स्ट्रेस पहुंचे.’’

शाम तक अलीना आपी भी आ गईं. मुझ से बस सलामदुआ हुई. वह अम्मी के पास रुकीं. मैं घर आ गई. 3 दिनों बाद अम्मी भी घर आ गई. अब उन की तबीयत अच्छी थी. हम उन्हें खुश रखने की भरसक कोशिश करते रहे. एक हफ्ता तो अम्मी को देखने आने वालों में गुजर गया.

मैं ने औफिस जौइन कर लिया. अम्मी के बहुत इसरार पर आपी कुछ दिन रुकने को राजी हो गईं. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. अब अम्मी हलकेफुलके काम कर लेती थीं. अलीना आपी और उन के बेटे की वजह से घर में अच्छी रौनक थी.उस दिन छुट्टी थी, मैं घर की सफाई में जुट गई. अम्मी कहने लगीं, ‘‘बेटा, गाव तकिए फिर बहुत सख्त हो गए हैं. एक बार खोल कर रुई तोड़ कर भर दो.’’

अन्नामां तकिए उठा लाईं और उन्हें खोलने लगीं. फिर मैं और अन्नामां रुई, तोड़ने लगीं. कुछ सख्त सी चीज हाथ को लगीं तो मैं ने झुक कर नीचे देखा. मेरी सांस जैसे थम गईं. दोनों कर्णफूल रुई के ढेर में पड़े थे. होश जरा ठिकाने आए तो मैं ने कहा, ‘‘देखिए अम्मी ये रहे कर्णफूल.’’

आपी ने कर्णफूल उठा लिए और अम्मी के हाथ पर रख दिए. अम्मी का चेहरा खुशी से चमक उठा. जब दिल को यकीन आ गया कि कर्णफूल मिल गए और खुशी थोड़ी कंट्रोल में आई तो आपी बोलीं, ‘‘ये कर्णफूल यहां कैसे?’’

अम्मी सोच में पड़ गईं. फिर रुक कर कहने लगीं, ‘‘मुझे याद आया अलीना, उस दिन भी तुम लोग तकिए की रुई तोड़ रहीं थीं. तभी मैं कर्णफूल निकाल कर लाई थी. हम उन्हें देख ही रहे थे, तभी घंटी बजी थी. मैं जल्दी से कर्णफूल डिबिया में रखने गई, पर हड़बड़ी में घबरा कर डिबिया के बजाय रुई में रख दिए और डिबिया तकिए के पीछे रख दी थी.

‘‘कर्णफूल रुई में दब कर छिप गए. कश्मीरी शाल वाले के जाने के बाद डिबिया तो मैं ने अलमारी में रखवा दी, लेकिन कर्णफूल रुई  में दब कर रुई के साथ तकिए में भर गए. मलीहा ने तकिए सिले और कवर चढ़ा कर रख दिए. हम समझते रहे कि कर्णफूल डिबिया में अलमारी में रखे हैं. जब अशर की सालगिरह के दिन अलीना ने तुम से कर्णफूल मांगे तो पता चला कि उस में कर्णफूल है ही नहीं. अलीना तुम ने सारा इलजाम मलीहा पर लगा दिया.’’

अम्मी ने अपनी बात खत्म कर के एक गहरी सांस छोड़ी. अलीना के चेहरे पर फछतावा था. दुख और शर्मिंदगी से उन की आंखें भर आईं. वह दोनों हाथ जोड़ कर मेरे सामने खडी हो गईं. रुंधे गले से कहने लगीं, ‘‘मेरी बहन मुझे माफ कर दो. बिना सोचेसमझे तुम पर दोष लगा दिया. पूरे 2 साल तुम से नाराजगी में बिता दिए. मेरी गुडि़या, मेरी गलती माफ कर दो.’’

मैं तो वैसे भी प्यारमोहब्बत को तरसी हुई थी. जिंदगी के रेगिस्तान में खड़ी हुई थी. मेरे लिए चाहत की एक बूंद अमृत के समान थी. मैं आपी से लिपट कर रो पड़ी. आंसुओं से दिल में फैली नफरत व जलन की गर्द धुल गई. अम्मी कहने लगीं, ‘‘अलीना, मैं ने तुम्हें पहले भी समझाया था कि मलीहा पर शक न करो. वह कभी भी तुम से छीन कर कर्णफूल नहीं लेगी. उस का दिल तुम्हारी चाहत से भरा है. वह कभी तुम से छल नहीं करेगी.’’

आपी बोलीं, ‘‘अम्मी, आप की बात सही है, पर एक मिनट मेरी जगह खुद को रख कर सोचिए, मुझे एंटिक ज्वैलरी का दीवानगी की हद तक शौक है. ये कर्णफूल बेशकीमती एंटिक पीस हैं, मुझे मिलने चाहिए. पर आप ने मलीहा को दे दिए. मुझे लगा कि मेरी इल्तजा सुन कर वह मान गई, फिर उस की नीयत बदल गई. उस की चीज थी, उस ने गायब कर दी, ऐसा सोचना मेरी खुदगर्जी थी, गलती थी. इस की सजा के तौर पर मैं इन कर्णफूल का मोह छोड़ती हूं. इन पर मलीहा का ही हक है.’’

मैं जल्दी से आपी से लिपट कर बोली, ‘‘ये कर्णफूल आप के पहनने से मुझे जो खुशी होगी, वह खुद के पहनने से नहीं होगी. ये आप के हैं, आप ही लेंगी.’’

अम्मी ने भी समझाया, ‘‘बेटा जब मलीहा इतनी मिन्नत कर रही है तो मान जाओ, मोहब्बत के रिश्तों के बीच दीवार नहीं आनी चाहिए. रिश्ते फूलों की तरह नाजुक होते हैं, नफरत व शक की धूप उन्हें झुलसा देती है, फिर खुद टूट कर बिखर जाते हैं.’’

मैं ने खुलूसे दिल से आपी के कानों में कर्णफूल पहना दिए. सारा माहौल मोहब्बत की खुशबू से महक उठा.???

सीख: क्या मजबूरी थी संदीप के सामने

डोरवैल की आवाज सुनते ही मुझे झंझलाहट हुई. लो फिर आ गया कोई. लेकिन इस समय कौन हो सकता है? शायद प्रैस वाला या फिर दूध वाला होगा.

5-10 मिनट फिर जाएंगे. आज सुबह से ही काम में अनेक व्यवधान पड़ रहे हैं. संदीप को औफिस जाना है. 9 बज कर 5 मिनट हो गए हैं. 25 मिनट में आलू के परांठे, टमाटर की खट्टी चटनी तथा अंकुरित मूंग का सलाद बनाना ज्यादा काम तो नहीं है, लेकिन अगर इसी तरह डोरबैल बजती रही तो मैं शायद ही बना पाऊं. मेरे हाथ आटे में सने थे, इसलिए दरवाजा खोलने में देरी हो गई. डोरबैल एक बार फिर बज उठी. मैं हाथ धो कर दरवाजे के पास पहुंची और दरवाजा खोल कर देखा तो सामने काम वाली बाई खड़ी थी. मिसेज शर्मा से मैं ने चर्चा की थी. उन्होंने ही उसे भेजा था. मैं उसे थोड़ी देर बैठने को बोल कर अपने काम में लग गई. जल्दीजल्दी संदीप को नाश्ता दिया, संदीप औफिस गए, फिर मैं उस काम वाली बाई की तरफ मुखातिब हुई.

गहरा काला रंग, सामान्य कदकाठी, आंखें काली लेकिन छोटी, मुंह में सुपारीतंबाकू का बीड़ा, माथे पर गहरे लाल रंग का बड़ा सा टीका, कपड़े साधारण लेकिन सलीके से पहने हुए. कुल मिला कर सफाई पसंद लग रही थी. मैं मन ही मन खुश थी कि अगर काम में लग जाएगी तो अपने काम के अलावा सब्जी वगैरह काट दिया करेगी या फिर कभी जरूरत पड़ने पर किचन में भी मदद ले सकूंगी. फूहड़ तरीके से रहने वाली बाइयों से तो किचन का काम कराने का मन ही नहीं करता. फिर मैं किचन का काम निबटाती रही और वह हौल में ही एक कोने में बैठी रही. उस ने शायद मेरे पूरे हौल का निरीक्षण कर डाला था. तभी तो जब मैं किचन से हौल में आई तो वह बोली, ‘‘मैडम, घर तो आप ने बहुत अच्छे से सजाया है.’’

मैं हलके से मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा तो अब यह बोलो बाई कि मेरे घर का काम करोगी?’’

‘‘क्यों नहीं मैडम, अपुन का तो काम ही यही है. उसी के वास्ते तो आई हूं मैं. बस तुम काम बता दो.’’

‘‘बरतन, झड़ूपोंछा और कपड़ा.’’

‘‘करूंगी मैडम.’’

‘‘क्या लोगी और किस ‘टाइम’ आओगी यह सब पहले तय हो जाना चाहिए.’’

‘‘लेने का क्या मैडम, जो रेट चल रहा है वह तुम भी दे देना और रही बात टाइम की तो अगर तुम्हें बहुत जल्दी होगी तो सवेरे सब से पहले तुम्हारे घर आ जाऊंगी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा होगा. मुझे सुबह जल्दी ही काम चाहिए. 7 बजे आ सकोगी क्या?’’ मैं ने खुश होते हुए पूछा.

‘‘आ जाऊंगी मैडम, बस 1 कप चाय तुम को पिलानी पड़ेगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, चाय का क्या है मैं 2 कप पिला दूंगी. लेकिन काम अच्छा करना पड़ेगा. अगर तुम्हारा काम साफ और सलीके का रहा तो कुछ देने में मैं भी पीछे नहीं रहूंगी.’’

‘‘तुम फिकर मत करो मैडम, मेरे काम में कोई कमी नहीं रहेगी. मैं अगर पैसा लेऊंगी तो काम में क्यों पीछे होऊंगी? पूरी कालोनी में पूछ के देखो मैडम, एक भी शिकायत नहीं मिलेगी. अरे, बंगले वाले तो इंतजार करते हैं कि कब सक्कू बाई मेरे घर लग जाए पर अपुन को जास्ती काम पसंद नहीं. अपुन को तो बस प्रेम की भूख है. तुम्हारा दिल हमारे लिए तो हमारी जान तुम्हारे लिए.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है बाई.’’

अब तक मैं उस के बातूनी स्वभाव को समझ चुकी थी. कोई और समय होता तो मैं

इतनी बड़बड़ करने की वजह से ही उसे लौटा देती, लेकिन पिछले 15 दिनों से घर में कोई काम वाली बाई नहीं थी, इसलिए मैं चुप रही.

उस के जाने के बाद मैं ने एक नजर पूरे घर पर डाली. सोफे के कुशन नीचे गिरे थे, पेपर दीवान पर बिखरा पड़ा था, सैंट्रल टेबल पर चाय के 2 कप अभी तक रखे थे. कोकिला और संदीप के स्लीपर हौल में इधरउधर उलटीसीधी अवस्था में पड़े थे. मुझे हंसी आई कि इतने बिखरे कमरे को देख कर सक्कू बाई बोल रही थी कि घर तो बड़े अच्छे से सजाया है. एक बार लगा कि शायद सक्कू बाई मेरी हंसी उड़ा रही थी कि मैडम तुम कितनी लापरवाह हो. वैसे बिखरे सामान, मुड़ीतुड़ी चादर, गिरे हुए कुशन मुझे पसंद नहीं है, लेकिन आज सुबह से कोई न कोई ऐसा काम आता गया कि मैं घर को व्यवस्थित करने का समय ही न निकाल पाई. जल्दीजल्दी हौल को ठीक कर मैं अंदर के कमरों में आई. वहां भी फैलाव का वैसा ही आलम. कोकिला की किताबें इधरउधर फैली हुईं, गीला तौलिया बिस्तर पर पड़ा हुआ. कितना समझती हूं कि कम से कम गीला तौलिया तो बाहर डाल दिया करो और अगर बाहर न डाल सको तो दरवाजे पर ही लटका दो, लेकिन बापबेटी दोनों में से किसी को इस की फिक्र नहीं रहती. मैं तो हूं ही बाद में सब समेटने के लिए.

तौलिया बाहर अलगनी पर डाल ड्रैसिंग टेबल की तरफ देखा तो वहां भी क्रीम, पाउडर, कंघी, सब कुछ फैला हुआ. पूरा घर समेटने के बाद अचानक मेरी नजर घड़ी पर गई. बाप रे, 11 बज गए. 1 बजे तक लंच भी तैयार कर लेना है. कोकिला डेढ़ बजे तक स्कूल से आ जाती है. संदीप भी उसी के आसपास दोपहर का भोजन करने घर आ जाते हैं. मैं फुरती से बाकी के काम निबटा लंच की तैयारी में जुट गई.

दूसरे दिन सुबह 7 बजे सक्कू बाई अपने को समय की सख्त पाबंद तथा दी गई जबान को पूरी तत्परता से निभाने वाली एक कर्मठ काम वाली साबित करते हुए आ पहुंची. मुझे आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई. खुशी इस बात की कि चलो आज से बरतन, कपड़े का काम कम हुआ. आश्चर्य इस बात का कि आज तक मुझे कोई ऐसी काम वाली नहीं मिली थी जो वादे के अनुरूप समय पर आती.

दिन बीतते गए. सक्कू बाई नियमित समय पर आती रही. मुझे बड़ा सुकून मिला. कोकिला तो उस से बहुत हिलमिल गई. सवेरे कोकिला से उस की मुलाकात नहीं होती थी, लेकिन दोपहर को वह कोकिला को कहानी सुनाती, कभीकभी उस के बाल ठीक कर देती. जब मैं कोकिला को पढ़ने के लिए डांटती तो वह ढाल बन कर सामने आ जाती, ‘‘क्या मैडम क्यों इत्ता डांटती हो तुम? अभी उम्र ही क्या है बेबी की. तुम देखना कोकिला बेबी खूब पढ़ेगी, बहुत बड़ी अफसर बनेगी. अभी तो उस को खेलने दो. तुम चौथी कक्षा की बेबी को हर समय पढ़ने को कहती हो.’’

एक दिन मैं ने कहा, ‘‘सक्कू बाई तुम नहीं समझती हो. अभी से पढ़ने की आदत नहीं पड़ेगी तो बाद में कुछ नहीं होगा. इतना कंपीटिशन है कि अगर कुछ करना है तो समय के साथ चलना पड़ेगा, नहीं तो बहुत पिछड़ जाएगी.’’

‘‘मेरे को सब समझ में आता है मैडम. तुम अपनी जगह ठीक हो पर मेरे को ये बताओ कि तुम अपने बचपन में खुद कितना पढ़ती थीं? क्या कमी है तुम को, सब सुख तो भोग रही हो न? ऐसे ही कोकिला बेबी भी बहुत सुखी होगी. और मैडम, आगे कितना सुख है कितना दुख है ये नहीं पता. कम से कम उस के बचपन का सुख तो उस से मत छीनो.’’

सक्कू बाई की यह बात मेरे दिल को छू गई. सच तो है. आगे का क्या पता.

अभी तो हंसखेल ले. वैसे भी सक्कू बाई की बातों के आगे चुप ही रह जाना पड़ता था. उसे सम?ाना कठिन था क्योंकि उस की सोच में उस से अधिक सम?ादार कोई क्या होगा. मेरे यह कहते ही कि सक्कू बाई तुम नहीं समझ रही हो. वह तपाक से जवाब देती कि मेरे को सब समझ में आता है मैडम. मैं कोई अनपढ़ नहीं. मेरी समझ पढ़ेलिखे लोगों से आगे है. मैं हार कर चुप हो जाती.

धीरेधीरे सक्कू बाई मेरे परिवार का हिस्सा बनती गई. पहले दिन से ले कर आज तक काम में कोई लापरवाही नहीं, बेवजह कोई छुट्टी नहीं. दूसरे के यहां भले ही न जाए, पर मेरा काम करने जरूर आती. न जाने कैसा लगाव हो गया था उस को मुझ से. जरूरत पड़ने पर मैं भी उस की पूरी मदद करती. धीरेधीरे सक्कू बाई काम वाली की निश्चित सीमा को तोड़ कर मेरे साथ समभाव से बात करने लगी. वह मुझे मेरे सादे ढंग से रहने की वजह से अकसर टोकती, ‘‘क्या मैडम, थोड़ा सा सजसंवर कर रहना चाहिए. मैं तुम्हारे वास्ते रोज गजरा लाती हूं, तुम उसे कोकिला बेबी को लगा देती हो.’’

मैं हंस कर पूछती, ‘‘क्या मैं ऐसे अच्छी नहीं लगती हूं?’’

‘‘वह बात नहीं मैडम, अच्छी तो लगती हो, पर थोड़ा सा मेकअप करने से ज्यादा अच्छी लगोगी. अब तुम्हीं देखो न, मेहरा मेम साब कितना सजती हैं. एकदम हीरोइन के माफिक लगती हैं.’’

‘‘उन के पास समय है सक्कू बाई, वे कर लेती हैं, मुझ से नहीं होता.’’

‘‘समय की बात छोड़ो, वे तो टीवी देखतेदेखते नेलपौलिश लगा लेती हैं बाल बना लेती हैं हाथपैर साफ कर लेती हैं. तुम तो टीवी देखती नहीं. पता नहीं क्या पढ़पढ़ कर समय बरबाद करती हो. टीवी से बहुत मनोरंजन होता है मैडम और फायदा यह कि देखतेदेखते दूसरा काम हो सकता है. किताबों में या फिर तुम्हारे अखबार में क्या है? रोज वही समाचार… उस नेता का उस नेता से मनमुटाव, महंगाई और बढ़ी, पैट्रोल और किरोसिन महंगा. फलां की बीवी फलां के साथ भाग गई. जमीन के लिए भाई ने भाई की हत्या की. रोज वही काहे को पढ़ना? अरे, थोड़ा समय अपने लिए भी निकालना चाहिए.’’

सक्कू बाई रोज मुझे कोई न कोई सीख दे जाती. अब मैं उसे कैसे समझती कि पढ़ने से मुझे सुकून मिलता है, इसलिए पढ़ती हूं.

एक दिन सक्कू बाई काम पर आई तो उस ने अपनी थैली में से मोगरे के 2 गजरे निकाले और बोली, ‘‘लो मैडम, आज मैं तुम्हारे लिए अलग और कोकिला बेबी के लिए अलग गजरा लाई हूं. आज तुम को भी लगाना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है सक्कू बाई, मैं जरूर लगाऊंगी.’’

‘‘मैडम, अगर तुम बुरा न मानो तो आज मैं तुम को अपने हाथों से तैयार कर देती हूं.’’ कुछ संकोच और लज्जा से बोली वह.

‘‘अरे नहीं, इस में बुरा मानने जैसी क्या बात है. पर क्या करोगी मेरे लिए?’’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘‘बस मैडम, तुम देखती रहो,’’ कह कर वह जुट गई. मैं ने भी आज उस का मन रखने का निश्चय कर लिया.

सब से पहले उस ने मेरे हाथ देखे और अपनी बहुमुखी प्रतिभा व्यक्त करते हुए नेलपौलिश लगाना शुरू कर दिया. नेलपौलिश लगाने के बाद खुद ही मुग्ध हो कर मेरे हाथों को देखने लगी ओर बोली, ‘‘देखा मैडम, हाथ कित्ता अच्छा लग रहा है. आज साहबजी आप का हाथ देखते रह जाएंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘सक्कू बाई, साहब का ध्यान माथे की बिंदिया पर तो जाता नहीं, भला वे नाखून क्या देखेंगे? तुम्हारे साहब बहुत सादगी पसंद हैं.’’

मेरे इतना कहने पर वह बोली, ‘‘मैं ऐसा नहीं कहती मैडम कि साहबजी का ध्यान मेकअप पर ही रहता है. अरे, अपने साहबजी तो पूरे देवता हैं. इतने सालों से मैं काम में लगी पर साहबजी जैसा भला मानुस मैं कहीं नहीं देखी. मेरा कहना तो बस इतना था कि सजनासंवरना आदमी को बहुत भाता है. वह दिन भर थक कर घर आए और घर वाली मुचड़ी हुई साड़ी और बिखरे हुए बालों से उस का स्वागत करे तो उस की थकान और बढ़ जाती है. लेकिन यदि घर वाली तैयार हो कर उस के सामने आए तो दिन भर की सारी थकान दूर हो जाती है.’’

मैं अधिक बहस न करते हुए चुप हो कर उस का व्याख्यान सुन रही थी, क्योंकि मुझे मालूम था कि मेरे कुछ कहने पर वह तुरंत बोल देगी कि मैं कोई अनपढ़ नहीं मैडम…

इस बीच उस ने मेरी चूडि़यां बदलीं, कंघी की, गजरा लगाया, अच्छी सी बिंदी लगाई. जब वह पूरी तरह संतुष्ट हो गई तब उस ने मुझे छोड़ा. फिर अपना काम निबटा कर वह घर चली गई. मैं भी अपने कामों में लग गई और यह भूल गई कि आज मैं गजरा वगैरह लगा कर कुछ स्पैशल तैयार हुई हूं.

दरवाजे की घंटी बजी. संदीप आ गए थे. मैं उन से चाय के लिए पूछने गई तो वे बड़े गौर से मु?ो देखने लगे. मैं ने उन से पूछा कि चाय बना कर लाऊं क्या? तो वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘थोड़ी देर यहीं बैठो. आज तो तुम्हारे चेहरे पर इतनी ताजगी झलक रही है कि थकान दूर करने के लिए यही काफी है. इस के सामने चाय की क्या जरूरत?’’ मैं अवाक हो उन्हें देखती रह गई. मुझे लगा कि सक्कू बाई चिढ़ाचिढ़ा कर कह रही है, ‘‘देखा मैडम, मैं कहती थी न कि मैं कोई अनपढ़ नहीं.’’

Top 10 Majedar Kahaniya: मजेदार कहानियां हिंदी में

Top 10 Majedar Kahaniya: गृहशोभा डिजिटल पर आपको मिलेगी मनोरंजन से भरपूर फैमिली स्टोरी, सोशल स्टोरी, रोमांटिक स्टोरी और क्राइम स्टोरी. आज हम आपके के लिए लेकर आए बेहतरीन मजेदार कहानियाँ. गृहशोभा की ये खास मजेदार कहानियां पढ़कर आपको भरपूर ज्ञान मिलेगा. इन कहानियों को पढ़कर आपको जीवन को समझने की राह मिलेंगी. गृहशोभा मैगजीन पर पढ़े बेहतरीन अनसुनी हिंदी कहानियाँ . जो अवश्य ही आपके जीवन में सफलता लाएंगी और नए व सकारात्मक आयाम.

Best funny stories: इन कहानियों को पढ़कर आपको नैतिक शिक्षा का ज्ञान प्राप्त होगा

  1. तबादला: उसे कौनसा दंश सहना पड़ा

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‘‘इन से मिलिए, यह मेरे विभाग के वरिष्ठ अफसर राजकुमारजी हैं. जब से यह आए हैं स्वास्थ्य विभाग का कामकाज बहुत तेजी से हो रहा है. किसी भी फाइल को 24 घंटे के अंदर निबटा देते हैं,’’ स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल ने राजकुमार का परिचय अपनी पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रामचंद्रजी से कराया. रामचंद्र ने एक उड़ती नजर राजकुमार पर डाली और बोले, ‘‘आप के विभाग में मेरे इलाके के कई डाक्टर हैं जिन के बारे में मुझे आप से बात करनी है. मैं अपने सचिव को बता दूंगा. वह आप से मिल लेगा. आप जरा उन पर ध्यान दीजिएगा.’’

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2. फेसबुक फ्रैंडशिप: वर्चुअल दुनिया में सचाई कहां है

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शुरुआत तो बस यहीं से हुई कि पहले उस ने फेस देखा और फिदा हो कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. रिक्वैस्ट 2-3 दिनों में ऐक्सैप्ट हो गई. 2-3 दिन भी इसलिए लगे होंगे कि उस सुंदर फेस वाली लड़की ने पहले पूरी डिटेल पढ़ी होगी.

लड़के के फोटो के साथ उस का विवरण देख कर उसे लगा होगा कि ठीकठाक बंदा है या हो सकता है कि तुरंत स्वीकृति में लड़के को ऐसा लग सकता है कि लड़की उस से या तो प्रभावित है या बिलकुल खाली बैठी है जो तुरंत स्वीकृति दे कर उस ने मित्रता स्वीकार कर ली.

यह तो बाद में पता चलता है कि यह भी एक आभासी दुनिया है. यहां भी बहुत झूठफरेब फैला है. कुछ भी वास्तविक नहीं. ऐसा भी नहीं कि सभी गलत हो. ऐसा भी हो सकता है कि जो प्यार या गुस्सा आप सब के सामने नहीं दिखा सकते, वह अपनी पोस्ट, कमैंट्स, शेयर से जाहिर करते हो.

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3. मैं चुप रहूंगी: विजय की असलियत जब उसकी पत्नी की सहेली को पता चली

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पिछले दिनों मैं दीदी के बेटे नीरज के मुंडन पर मुंबई गई थी. एक दोपहर दीदी मुझे बाजार ले गईं. वे मेरे लिए मेरी पसंद का तोहफा खरीदना चाहती थीं. कपड़ों के एक बड़े शोरूम से जैसे ही हम दोनों बाहर निकलीं, एक गाड़ी हमारे सामने आ कर रुकी. उस से उतरने वाला युवक कोई और नहीं, विजय ही था. मैं उसे देख कर पल भर को ठिठक गई. वह भी मुझे देख कर एकाएक चौंक गया. इस से पहले कि मैं उस के पास जाती या कुछ पूछती वह तुरंत गाड़ी में बैठा और मेरी आंखों से ओझल हो गया. वह पक्का विजय ही था, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से तो वह इन दिनों अमेरिका में है. मुंबई आने से 2 दिन पहले ही तो मैं मीनाक्षी से मिली थी.

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4. सपना: कैसा था नेहा का सफर
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सरपट दौड़ती बस अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी. बस में सवार नेहा का सिर अनायास ही खिड़की से सट गया. उस का अंतर्मन सोचविचार में डूबा था. खूबसूरत शाम धीरेधीरे अंधेरी रात में तबदील होती जा रही थी. विचारमंथन में डूबी नेहा सोच रही थी कि जिंदगी भी कितनी अजीब पहेली है. यह कितने रंग दिखाती है? कुछ समझ आते हैं तो कुछ को समझ ही नहीं पाते? वक्त के हाथों से एक लमहा भी छिटके तो कहानी बन जाती है. बस, कुछ ऐसी ही कहानी थी उस की भी… नेहा ने एक नजर सहयात्रियों पर डाली. सब अपनी दुनिया में खोए थे. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें अपने साथ के लोगों से कोई लेनादेना ही नहीं था. सच ही तो है, आजकल जिंदगी की कहानी में मतलब के सिवा और बचा ही क्या है.

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5. भरोसेमंद- शर्माजी का कड़वा बोलना लोगों को क्यों पसंद नही आता था?

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‘‘बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर. अच्छी बात है वरना अकसर लोग मुझे पसंद

नहीं करते.’’

‘‘अरे, ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?’’

‘‘मैं नहीं कह रहा, सिर्फ बता रहा हूं आप को वह सच जो मैं महसूस करता हूं. अकसर लोग मुझे पसंद नहीं करते. आप भी जल्द ही उन की भाषा बोलने लगेंगे. आइए, हमारे औफिस में आप का स्वागत है.’’

शर्माजी ने मेरा स्वागत करते हुए अपने बारे में भी शायद वह सब बता दिया जिसे वे महसूस करते होंगे या जैसा उन्हें महसूस कराया जाता होगा. मुझे तो पहली ही नजर में बहुत अच्छे लगे थे शर्माजी. उन के हावभाव, उन का मुसकराना, उन का अपनी ही दुनिया में मस्त रहना, किसी के मामले में ज्यादा दखल न देना और हर किसी को पूरापूरा स्पेस भी देना.

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6. वजूद से परिचय: भैरवी के बदले रूप से क्यों हैरान था ऋषभ?

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‘‘मम्मी… मम्मी, भूमि ने मेरी गुडि़या तोड़ दी,’’ मुझे नींद आ गई थी. भैरवी की आवाज से मेरी नींद टूटी तो मैं दौड़ती हुई बच्चों के कमरे में पहुंची. भैरवी जोरजोर से रो रही थी. टूटी हुई गुडि़या एक तरफ पड़ी थी.
 
मैं भैरवी को गोद में उठा कर चुप कराने लगी तो मुझे देखते ही भूमि चीखने लगी, ‘‘हां, यह बहुत अच्छी है, खूब प्यार कीजिए इस से. मैं ही खराब हूं… मैं ही लड़ाई करती हूं… मैं अब इस के सारे खिलौने तोड़ दूंगी.’’
 
भूमि और भैरवी मेरी जुड़वां बेटियां हैं. यह इन की रोज की कहानी है. वैसे दोनों में प्यार भी बहुत है. दोनों एकदूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकतीं.
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7. आदमी का स्वार्थ: पेड़ के पास क्यों आता था बच्चा

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उस बालक को मानो सेब के उस पेड़ से स्नेह हो गया था और वह पेड़ भी बालक के साथ खेलना पसंद करता था. समय बीता और समय के साथसाथ नन्हा सा बालक कुछ बड़ा हो गया. अब वह रोजाना पेड़ के साथ खेलना छोड़ चुका था. काफी दिनों बाद वह लड़का पेड़ के पास आया तो बेहद दुखी था.

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8. हिमशिला : माँ चुपचाप उसकी और क्यों देख रही थी

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उस ने टैक्सी में बैठते हुए मेरे हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच भींचते हुए कहा, ‘‘अच्छा, जल्दी ही फिर मिलेंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘जरूर मिलेंगे,’’ और दूर जाती टैक्सी को देखती रही. उस की हथेलियों की गरमाहट देर तक मेरे हाथों को सहलाती रही. अचानक वातावरण में गहरे काले बादल छा गए. ये न जाने कब बरस पड़ें? बादलों के बरसने और मन के फटने में क्या देर लगती है? न जाने कब की जमी बर्फ पिघलने लगी और मैं, हिमशिला से साधारण मानवी बन गई, मुझे पता ही नहीं चला. मेरे मन में कब का विलुप्त हो गया प्रेम का उष्ण सोता उमड़ पड़ा, उफन पड़ा.

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9.भाभी हमारे यहां ऐसे ही होता है

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निधिकी शादी को 5 वर्ष हो चुके थे. सासससुर और पति नितिन के साथ उस ने बेहतर सामंजस्य बैठा लिया था, लेकिन उस की नकचढ़ी ननद निकिता अब भी मानती नहीं थी कि निधि उन के घर की परंपरा को निभा पा रही है.

अकसर निकिता किसी न किसी बात पर मुंह बना कर बोल ही देती, ‘‘भाभी, हमारे यहां ऐसा ही होता है.’’

उस की यही बात निधि को चुभती थी. शुरूशुरू में अपने कमरे में जा कर रोती भी थी. पति नितिन को भी बताया तो उन्होंने भी यह कह कर टाल दिया, ‘‘उस की बात को दिल से मत लगाओ, घर में सब से छोटी है, सब की प्यारी होने से थोड़ी मुंहफट हो गई है. अनसुना कर

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10. बेकरी की यादें: नया काम शुरु करने पर क्या हुआ दीप्ति के साथ

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मिहिरऔर दीप्ति की शादी को 2 साल हो गए थे, दोनों बेहद खुश थे. अभी वे नई शादी की खुमारी से उभर ही रहे थे कि मिहिर को कैलिफोर्निया की एक कंपनी में 5 सालों के लिए नियुक्ति मिल गई. दोनों ने खुशीखुशी इस बदलाव को स्वीकार कर लिया और फिर कैलिफोर्निया पहुंच गए.

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