परख : भाग 3- कैसे बदली एक परिवार की कहानी

‘‘मां, मैं आप के चेहरे से आप की पीड़ा सम झ सकती हूं. आप पापा के पास क्यों नहीं लौट जातीं,’’ एक दिन गौरिका ने मां श्यामला से साफ कह दिया. ‘‘कहना क्या चाहती हो तुम?’’ श्यामला ने प्रश्न किया. ‘‘यही कि इस आयु में मु झ से अधिक पापा को आप की आवश्यकता है.’’

‘‘उस की चिंता तुम न ही करो तो अच्छा है. तुम्हारे पापा ने ही मु झे यहां भेजा है पर यहां आ कर मु झे भी उन की बात सम झ में आने लगी है. तुम्हारे लक्षण ठीक नहीं नजर आ रहे हैं.’’

‘‘ऐसा क्या देख लिया आप ने जो मेरे लक्षण बिगड़ते दिखने लगे? अपने बेटे गुंजन के लक्षणों की कभी चिंता नहीं की आप ने?’’ गौरिका बेहद कटु स्वर में बोली.

‘‘अपने भाई पर इस तरह आरोप लगाते तुम्हें शर्म नहीं आती? मैं जब भी उस से मिलने जाती हूं आसपास के लोग उस की प्रशंसा करते नहीं थकते. जबकि यहां तुम श्याम भैया और नीता भाभी से लड़ झगड़ कर अकेले रहने चली आईं. तुम ही बताओ कि क्लब से नशे में धुत्त लौट कर तुम किस का सम्मान बढ़ा रही हो?’’

‘‘मामाजी और मामीजी से तो आप भी लड़ झगड़ आई हैं. मेरे ऊपर उंगली उठाने से पहले यह तो सोच लिया होता.’’

‘इसी मूर्खता पर तो मैं स्वयं को कोस रही हूं. वे तो तुम्हारे बारे में और कुछ भी बताना चाहते थे पर मैं ही अपनी मूर्खता से उन की बोलती बंद कर आई.’’

‘‘उस के लिए दुखी होने की आवश्यकता नहीं है. मेरे संबंध में कोई बात आप को किसी और से पता चले, उस से अच्छा तो यही होगा कि मैं स्वयं बता दूं. मैं और मेरा सहकर्मी अर्णव साथ रहते हैं. आप आ रही थीं इसलिए वह कुछ दिनों के लिए घर छोड़ कर चला गया है,’’ गौरिका बिना किसी लागलपेट के बोली.

‘‘उफ, यह मैं क्या सुन रही हूं? संस्कारी परिवार है हमारा. ऐसी बातें बिरादरी में फैल गईं तो तुम से कौन विवाह करेगा?’’ श्यामला बदहवास हो उठीं.

‘‘आप उस की चिंता न करो. मैं बिरादरी में विवाह नहीं करने वाली.’’

‘‘ठीक है, साथ ही रहना है तो विवाह क्यों नहीं कर लेते तुम दोनों?’’

‘‘अभी हम एकदूसरे को परख रहे हैं. कुछ समय साथ रहने के बाद यदि हमें लगा कि हम एकदूसरे के लिए बने हैं, तो विवाह की सोचेंगे. वैसे भी विवाह नाम की संस्था में मेरा या अर्णव का कोई विश्वास नहीं है. इस के बिना भी समाज का काम चल सकता है,’’ गौरिका अपनी ही रौ में बहे जा रही थी.

‘‘सम झ में नहीं आ रहा कि मैं रोऊं या हंसूं. तुम्हारे पापा को पता चला तो पता नहीं वे इस सदमे को सह पाएंगे या नहीं,’’ श्यामला रो पड़ीं.

‘‘मम्मी, यह रोनापीटना रहने दो. आप कहो तो अर्णव को यहीं बुला लूं. आप भी उसे जांचपरख लेंगी,’’ गौरिका ने प्रस्ताव रखा.

‘‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ मेरे सामने ऐसा बेहूदा प्रस्ताव रखने का?’’ श्यामला की आंखों से चिनगारियां निकलने लगीं.

‘‘ठीक है, आप नाराज मत होइए. भविष्य में कभी ऐसी बात नहीं कहूंगी,’’ श्यामला का क्रोध देख कर गौरिका ने तुरंत पैतरा बदला.

पर श्यामला को चैन कहां था. वे रात भर करवटें बदलती रहीं. कभी बेचैनी से टहलने लगतीं तो कभी प्रलाप करने लगतीं. वे नभेश से बात करने का साहस भी नहीं जुटा पा रही थीं.

रात भर सोचविचार कर वे इस निर्णय पर पहुंचीं कि गौरिका की बात मान लेने में कोई बुराई नहीं है. अर्णव साथ आ कर रहेगा तो वे उस पर दबाव डाल कर उसे विवाह के लिए राजी कर लेंगी. अंतत: उन्होंने अर्णव को साथ रहने की अनुमति दे दी. वह दूसरे ही दिन साथ रहने के लिए आ धमका.

श्यामला को जब भी अवसर मिलता वे दोनों को विवाहबंधन के लाभ गिनातीं पर गौरिका और अर्णव अपने तर्कों द्वारा उन के हर तर्क को काट देते. इतनी मानसिक यातना उन्होंने कभी नहीं झेली थी.

वे मन ही मन इतनी डरी हुई थीं कि सारे प्रकरण की जानकारी नभेश को देने में मन कांप उठता था.

इसी ऊहापोह में कब 3 माह बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. अपने सभी प्रयत्नों को असफल होते देख कर उन्होंने सारी जानकारी अपने पति को देने का निर्णय लिया. फिर उन्होंने फोन उठाया ही था कि गौरिका का फोन आ गया, ‘‘मम्मी, हम 8-10 सहेलियों ने रात्रि उत्सव का आयोजन किया है. मैं आज रात घर नहीं आऊंगी. कल सुबह मिलेंगे. शुभरात्रि,’’ कह गौरिका ने उन्हें सूचित किया और फोन काट दिया. उन की प्रतिक्रिया जानने का प्रयत्न भी नहीं किया.

‘‘कौन हैं ये सहेलियां जिन के साथ इस पार्टी का आयोजन किया जा रहा है?’’ उन्होंने अर्णव के आते ही प्रश्न किया.

‘‘फेसबुक पर गौरिका की सैकड़ों सहेलियां हैं. मैं कैसे जान सकता हूं कि वह किन के साथ पार्टी कर रही है? सच पूछिए तो हम एकदूसरे के व्यक्तिगत मामलों में दखल नहीं देते,’’ अर्णव ने हाथ खड़े कर दिए तो श्यामला विस्फारित नेत्रों से उसे ताकती रह गईं फिर उन्होंने तुरंत ही फोन पर पूरी जानकारी नभेश को दे दी.

सारी बात सुन कर वे देर तक उन्हें बुराभला कहते रहे. फिर वे काफी देर तक आंसू बहाती रहीं. पर उस दिन उन्हें बहुत दिनों बाद चैन की नींद आई. उन्हें लगा कि शीघ्र ही नभेश आ कर उन्हें इस यंत्रणा से मुक्ति दिला देंगे. वे बहुत गहरी नींद में थीं जब फोन की घंटी बजी, ‘‘हैलो, कौन?’’ उन्होंने उनींदे स्वर में पूछा. ‘‘जी मैं सुषमा, गौरिका की सहेली. हम लोग खापी कर मस्ती करने सड़क पर निकले थे.

गौरिका कार पर नियंत्रण नहीं रख सकी. उस की कार कुछ राह चलते लोगों पर चढ़ गई. हम मानसी पुलिस स्टेशन में हैं. आप अर्णव के साथ तुरंत वहां पहुंचिए.’’ बदहवास श्यामला ने अर्णव के कमरे का दरवाजा पीट डाला. अर्णव के दरवाजा खोलते ही उन्होंने पूरी बात बता दी. ‘‘ठीक है, मैं तैयार हो कर आता हूं,’’ और फिर दरवाजा बंद कर लिया. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अर्णव अपने दोनों हाथों में सूटकेस थामे खड़ा था. ‘‘अरे बेटा, इस सब की क्या जरूरत है?’’ श्यामला ने प्रश्न किया.

‘‘आंटी, क्षमा कीजए. मैं आप के साथ नहीं जा रहा. मेरा एक सम्मानित परिवार है. मैं पुलिस, कचहरी के चक्कर में पड़ कर उन्हें ठेस नहीं पहुंचा सकता. मैं यह घर छोड़ कर जा रहा हूं. आप जानें और आप की सिरफिरी बेटी,’’ क्रोधित स्वर में बोल अर्णव बाहर निकल गया. जब तक श्यामला कुछ बोल पातीं वह कार स्टार्ट कर जा चुका था. उस अंधकार में उन्हें श्याम की ही याद आई. फोन पर ही उन्होंने क्षमायाचना की और सहायता करने का आग्रह किया. श्याम ने उन्हें धीरज बंधाया. आश्वासन दिया कि वे तुरंत पहुंच रहे हैं. रिसीवर रख श्यामला वहीं बैठ गईं. उन के आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. द्य

असमंजस: भाग 2- क्यों अचानक आस्था ने शादी का लिया फैसला

‘यदि मेरी बात एक हितैषी मित्र के रूप में मानती हो तो अपनी राह स्वयं तैयार करो. हिमालय की भांति ऊंचा लक्ष्य रखो. समंदर की तरह गहरे आदर्श. आशा करती हूं कि तुम अपनी जिंदगी के लिए वह राह चुनोगी जो तुम्हारे जैसी अन्य कई लड़कियों की जिंदगी में बदलाव ला सके. उन्हें यह एहसास करा सके कि एक औरत की जिंदगी में शादी ही सबकुछ नहीं है. सच तो यह है कि शादी के मोहपाश से बच कर ही एक औरत सफल, संतुष्ट जिंदगी जी सकती है.

‘एक बार फिर जन्मदिन मुबारक हो.

‘तुम्हारी शुभाकांक्षी,

रंजना.’

रंजना मैडम का हर खत आस्था के इस निश्चय को और भी दृढ़ कर देता कि उसे विवाह नहीं करना है. विवान और आस्था दोनों इसी उद्देश्य को ले कर बड़े हुए थे कि दोनों को अपनेअपने पिता की तरह सिविल सेवक बनना है. लेकिन विवान जहां परिवार और उस की अहमियत का पूरा सम्मान करता था वहीं आस्था की परिवार नाम की संस्था में कोई आस्था बाकी नहीं थी. उसे घर के मंदिर में पूजा करती दादी या रसोई में काम करती मां सब औरत जाति पर सदियों से हो रहे अत्याचार का प्रतीक दिखाई देतीं.

अपने पहले ही प्रयास में दोनों ने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. आस्था का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हुआ था तो विवान का भारतीय राजस्व सेवा में. बस, अब क्या था, दोनों के परिवार वाले उन की शादी के सपने संजोने लगे. विवान के परिजनों के पूछने पर उस ने शादी के लिए हां कह दी किंतु वह आस्था की राय जानना चाहता था. विवान ने जब आस्था के सामने शादी की बात रखी तो एकबारगी आस्था के दिमाग में रंजना मैडम की दी हुई सीख जैसे गायब ही हो गई. बचपन के दोस्त विवान को वह बहुत अच्छे तरीके से जानती थी. उस से ज्यादा नेक, सज्जन, सौम्य स्वभाव वाले किसी पुरुष को वह नहीं जानती थी. और फिर उस की एक आजाद, आत्मनिर्भर जीवन जीने की चाहत से भी वह अवगत थी. लेकिन इस से पहले कि वह हां कहती, उस ने विवान से सोचने के लिए कुछ समय देने को कहा जिस के लिए उस ने खुशीखुशी हां कह दी.

वह विवान के बारे में सोच ही रही थी कि रंजना मैडम का एक खत उस के नाम आया. अपने सिलैक्शन के बाद वह उन के खत की आस भी लगाए थी. मैडम जाने क्यों मोबाइल और इंटरनैट के जमाने में भी खत लिखने को प्राथमिकता देती थीं, शायद इसलिए कि कलम और कागज के मेल से जो विचार व्यक्त होते हैं वे तकनीकी जंजाल में उलझ कर खो जाते हैं. उन्होंने लिखा था :

‘प्रिय मित्र,

‘तुम्हारी आईएएस में चयन की खबर पढ़ी. बहुत खुशी हुई. आखिर तुम उस मुकाम पर पहुंच ही गईं जिस की तुम ने चाहत की थी लेकिन मंजिल पर पहुंचना ही काफी नहीं है. इस कामयाबी को संभालना और इसे बहुत सारी लड़कियों और औरतों की कामयाबी में बदलना तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए. और फिर मंजिल एक ही नहीं होती. हर मंजिल हमारी सफलता के सफर में एक पड़ाव बन जाती है एक नई मंजिल तक पहुंचने का. कामयाबी का कोई अंतिम चरण नहीं होता, इस का सफर अनंत है और उस पर चलते रहने की चाह ही तुम्हें औरों से अलग एक पहचान दिला पाएगी.

‘निसंदेह अब तुम्हारे विवाह की चर्चाएं चरम पर होंगी. तुम भी असमंजस में होगी कि किसे चुनूं, किस के साथ जीवन की नैया खेऊं, वगैरहवगैरह. तुम्हें भी शायद लगता होगा कि अब तो मंजिल मिल गई है, वैवाहिक जीवन का आनंद लेने में संशय कैसा? किंतु आस्था, मैं एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहती हूं कि जो तुम ने पाया है वह मंजिल नहीं है बल्कि किसी और मंजिल का पड़ाव मात्र है. इस पड़ाव पर तुम ने शादी जैसे मार्ग को चुन लिया तो आगे की सारी मंजिलें तुम से रूठ जाएंगी क्योंकि पति और बच्चों की झिकझिक में सारी उम्र निकल जाएगी.

‘यह मैं इसलिए कहती हूं कि मैं ने इसे अपनी जिंदगी में अनुभव किया है. तुम्हें यह जान कर हर्ष होगा कि मुझे राष्ट्रपति द्वारा प्रतिवर्ष शिक्षकदिवस पर दिए जाने वाले शिक्षक सम्मान के लिए चुना गया है. क्या तुम्हें लगता है कि घरगृहस्थी के पचड़ों में फंसी तुम्हारी अन्य कोई भी शिक्षिका यह मुकाम हासिल कर सकती थी?

‘शेष तुम्हें तय करना है.

‘हमेशा तुम्हारी शुभाकांक्षी,

रंजना.’

इस खत को पढ़ने के बाद आस्था के दिमाग से विवान से शादी की बात को ले कर जो भी असमंजस था, काफूर हो गया. उस ने सभी को कभी भी शादी न करने का अपना निर्णय सुना दिया. मांपापा और दादी पर तो जैसे पहाड़ टूट गया. उस के जन्म से ले कर उस की शादी के सपने संजोए थे मां ने. होलीदीवाली थोड़ेबहुत गहने बनवा लेती थीं ताकि शादी तक अपनी बेटी के लिए काफी गहने जुटा सकें लेकिन आज आस्था ने उन से बेटी के ब्याह की सब से बड़ी ख्वाहिश छीन ली थी. उन्हें अफसोस होने लगा कि आखिर क्यों उन्होंने एक निम्नमध्य परिवार के होने के बावजूद अपनी बेटी को आसमान के सपने देखने दिए. आज जब वह अर्श पर पहुंच गई है तो मांबाप की मुरादें, इच्छाओं की उसे परवा तक नहीं.

विवान ने भी कुछ वर्षों तक आस्था का इंतजार किया लेकिन हर इंतजार की हद होती है. उस ने शादी कर ली और अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गया. दूसरी ओर आस्था अपनी स्वतंत्र, स्वैच्छिक जिंदगी का आनंद ले रही थी. सुबहशाम उठतेबैठते सिर्फ काम में व्यस्त रहती थी. दादी तो कुछ ही सालों में गुजर गईं और मांपापा से वह इसलिए बात कम करने लगी क्योंकि वे जब भी बात करते तो उस से शादी की बात छेड़ देते. साल दर साल उस का मांपापा से संबंध भी कमजोर होता गया.

वह घरेलू स्त्रियों की जिंदगी के बारे में सोच कर प्रफुल्लित हो जाती कि उस ने अपनी जिंदगी के लिए सही निर्णय लिया है. वह कितनी स्वतंत्र, आत्मनिर्भर है. उस का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहचान है. बतौर आईएएस, उस के काम की सारे देश में चर्चा हो रही है. उस के द्वारा शुरू किए गए प्रोजैक्ट हमेशा सफल हुए हैं. हों भी क्यों न, वह अपने काम में जीजान से जो जुटी हुई थी.

हरेक का अपना दिल है: भाग 2- स्नेहन आत्महत्या क्यों करना चाहता था

मैं अपने कमरे में पहुंचा और अपना सामान चैक किया. चंद महंगे कपड़े… पैसे… बस इतना ही… शाम ढलते ही अंधेरा घिरने लगा. मुझे नहीं पता कि मैं कितनी देर तक समुद्र में बैठा रहा और लहरों को लगातार तट से टकराते देखता रहा. आधी रात होनी चाहिए. मैं उस समय का इंतजार कर के बैठा रहा.

बहुत हो गया… यह जीवन… मैं ने अपनेआप से कहा और कुदरत से क्षमायाचना करते हुए चलने लगा.

समुद्र की गहराई उन जगहों पर ज्यादा नहीं होती जहां पैर सामने रखे जाते थे. मैं सागर की ओर चलने लगा. लहरें दौड़ती हुई मेरे पास आ कर मु   झे छूने लगीं और मु   झे ऐसा लगा जैसे मु   झे भीतर आने का निमंत्रण दे रही हों.

पैरों में सीप और पत्थर चुभ गए. छोटीछोटी मछलियों को मैं महसूस कर सकता था. आगेआगे मैं चहलकदमी करने लगी और गरदन तक पानी आ गया.

कुछ पुरानी यादें मु   झे उस वक्त घेरने लगीं और मेरे मन में अजीबोगरीब खयाल आने लगे. मगर मैं नहीं रुका, मैं चलता रहा.

खारा पानी मुंह में घुस गया, आंखों में पानी आने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मु   झे किसी अवर्णनीय गहराई तक खींच रहा हो.

लहरों की गति अधिक है, एक खींच, एक टक्कर, एक लात, लहरें पानी में मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने लगीं जैसे फुटबौल खिलाड़ी गेंद को लात मार रहे हों.

मेरी स्मृति धूमिल हो रही थी. छाती, नाक, आंखें, कानों, मुंह में खारा पानी भर कर मु   झे नीचे और नीचे धकेल रहा था.

अचानक मु   झे ऐसा लगा कि कोई मजबूत हाथ मु   झे गहराई से ऊपर खींच रहा हो. मेरी याददाश्त रुक गई.

जब मैं उठा तो काले रंग के स्विमसूट में एक बूढ़ी विदेशी महिला मेरी बगल में बैठी थी. उस की बगल में 3 युवा थाई लड़के खड़े थे.

क्या मैं मरा नहीं हूं? मुझे तट पर कौन लाया?

उस ने अपनी आंखें खोलीं. मैं ने विदेशी महिला को अपनी धाराप्रवाह अमेरिकी अंगरेजी में कहते सुना. तब तक, जिस रिजोर्ट में मैं ठहरा था, उस का मालिक और दूसरा आदमी दोनों हमारी ओर दौड़ते हुए आए.

‘‘क्या हुआ? वे होश में आ गए?’’ थाइलैंड आदमियों ने टूटीफूटी अंगरेजी में पूछा तो अमेरिकी महिला ने कहा, ‘‘हां इन्हें होश आ गया.’’

मैं सुन सकता था. उन में से एक डाक्टर जैसा दिख रहा था. उस ने मेरी नब्ज पकड़ी और कहा,‘‘सब ठीक है.’’

बाद में उन्होंने अमेरिकी महिला से कहा, ‘‘तुम ने इस की जान बचा कर एक अच्छा काम किया है.’’

हालांकि मैं बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था. मैं चलने लायक नहीं था. उन सभी लोगों ने मिल कर मु   झे वहां से उठा कर जिस कमरे में मैं ठहरा हुआ था उस में बिस्तर पर लिटा दिया.

उस महिला ने मुझ से केवल इतना कहा, ‘‘शुभ रात्रि… ठीक से सो जाओ… सुबह मिलेंगे…’’ और दरवाजा बंद कर चली गई.

तो मैं ने जो प्रयास किया वह भी असफल रहा? अपने जीवन में पहली बार मैं आह… जोर से चिल्लाया जैसे मानो मेरे सीने तक दबा हुआ दुख खुल कर बाहर आ गया हो. मु   झे नहीं पता कि मैं कब सो गया.

जब मैं उठा तो धूप अच्छी थी. मेरे कमरे के परदों से भोर का उजास आ रहा था. जैसे ही मैं चौंक कर उठा और गीले कपड़ों में बाहर निकला, मैं ने कल जिस थाई युवक को देखा था उस ने कहा, ‘‘सुप्रभात… ठीक हैं?’’ उस ने मुसकराते हुए पूछा.

मैं बरामदे में कुरसी पर बैठ गया और फिर से समुद्र को देखने लगा.

‘‘गुड मौर्निंग…’’ उधर से आवाज आई.

मैं ने पलट कर देखा. कल समुद्र से मु   झे बचाने वाली अमेरिकी महिला वहीं खड़ी थी. लगभग एक आदमी जितना कद, सुनहरे बाल, गोरा रंग…

मेरी सामने वाली कुरसी पर उस ने बैठ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए,

हम ने एकदूसरे का परिचय तक नहीं किया है. मैं जेनिफर हूं. न्यू औरलियंस, यूएसए से हूं और मैं एक लेखिका हूं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

मैं कुछ सैकंड्स के लिए नहीं बोल सका. महिला अपने 40वें वर्ष में होनी चाहिए. लंबीचौड़ी दिखने में बड़ी थी.

‘‘मैं स्नेहन हूं… बिजनैसमैन…’’ मैं ने कहा.

‘‘पहले तो मु   झे लगा कि आप समुद्र में तैरने जा रहे हैं. लेकिन मैं ने आप पर ध्यान दिया क्योंकि आप की पोशाक और शैली तैरने लायक नहीं लग रही थी. जैसेजैसे लहरें आप को अंदर खींचने लगीं, मैं सम   झ गई कि आप डगमगा रहे हैं. मैं थोड़ी दूर तैर रही थी और तुरंत आप के पास आई और आप को खींच कर ले आई…’’

मुझे बहुत गुस्सा आया. एक विदेशी महिला ने मेरी कायरतापूर्ण जान बचाई है. कितनी शर्मनाक बात है.

कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया. उस ने खुद इस सन्नाटे को भंग किया, ‘‘क्या आप खुदकुशी करने के लिए गए थे? मु   झे क्षमा कीजिए… यह एक असभ्य प्रश्न है. हालांकि पूछना है. आप की समस्या क्या है?’’

उस के साथ अपनी समस्याओं और असफलताओं पर चर्चा करने से मु   झे क्या लाभ होगा?

‘‘मैं आप को मजबूर नहीं करना चाहती… प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार है. लेकिन आत्महत्या मेरे खयाल से एक बहुत ही कायरतापूर्ण, घृणित निर्णय है…’’ उस ने खुद कहा.

अचानक मेरे अंदर एक गुस्सा पैदा हो गया, ‘‘तुम से किस ने कहा मु   झे बचाने के लिए?’’

जेनिफर ने मेरी आंखों में देखा और कहा, ‘‘अपनी आंखों के सामने किसी को मरते हुए देखना इंसानियत नहीं है… इसलिए मैं ने बचाया… आप एक भारतीय की तरह दिखते हैं? भारतीय ही हैं न?’’ उस ने पूछा.

मैं ने हां में बस सिर हिलाया.

‘‘अपना देश, अपनी संस्कृति और तत्त्वज्ञान के लिए पूरे विश्व में जाना जाता और मर्यादा से माना भी जाता है. मैं ने जीवन के अर्थ और अर्थहीन दोनों पर आप के देश के तत्त्वज्ञानियों की किताब से ही जाना है.’’

मैं ने आश्चर्य से उस की ओर देखा, ‘‘आप ने अध्ययन किया है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कुछ हद तक.’’

‘‘आप ने खुद को एक लेखिका कहा?’’

वह हंसी, ‘‘जो लिखते हैं वे ही पढ़ते हैं, जो पढ़ेंगे वे लिखेंगे जरूर.’’

‘‘मैं जीवन की उस मोड़ पर खड़ा हूं जहां से मैं वापस जिंदगी में जा ही नहीं सकता. मेरी मृत्यु ही मेरी सारी समस्याओं का इकलौता समाधान है.’’

‘‘अगर समस्याओं का समाधान मौत ही है तो दुनिया में जीने लायक कोई नहीं होगा,’’ जेनिफर ने कहा.

मैं ने जवाब नहीं दिया.

जेनिफर फिर बोलीं, ‘‘अपने दिल की बात कीजिए. हम दोनों का आपस में कोई पुराना परिचय या जानपहचान नहीं है. इसलिए हम एकदूसरे के बारे में जो भी सोचेंगे उस से हम में किसी को लाभ या नुकसान नहीं होगा. कभीकभी अपनी समस्याओं को दूसरों के साथ सा   झा करना मददगार होता है…’’

मैं बैठा समुद्र को निहार रहा था. फिर मैं ने खुद अपनी सफलता की कहानी और कई असफलताओं का वर्णन किया, जिन का मैं आज सामना कर रहा था.

थैंक्यू दादी: निवी का बचपन कैसा था

कोचिंग से आ कर नवेली बिस्तर पर गुमसुम निढाल सी पड़ गई थी. ‘‘क्या हुआ निवी, मेरी बच्ची, थक गई? तेरा मनपसंद बादाम वाला दूध तैयार है, बस, गरमगरम पी कर सो जा एक घंटे,’’ 65 वर्षीय दादी तिलोतमा ने पोती नवेली को प्यार से उठाया तो गरमगरम आंसू उस के गालों पर ढुलकने लगे.

‘‘कुछ नहीं दादी, मुझे अब पढ़ना नहीं है. मुझ से इतनी पढ़ाई नहीं होगी, मैं पापामम्मी की आशाओं को पूरा नहीं कर सकती दादी. मैं राजीव अंकल की बेटी अंजलि की तरह वह परसैंटेज नहीं ला सकती चाहे लाख कोशिश करूं.’’

‘‘अरे, तो किसी के जैसा लाने की क्या जरूरत है? अपने से ही बेहतर लाने की कोशिश करना, बस.’’

‘‘पर पापामम्मी को कौन समझाए दादी, वे हर वक्त मुझे उस अंजलि का उदाहरण देते रहते हैं. घर आते ही शुरू हो जाती हैं उन की नसीहतें, ‘कोचिंग कैसी रही, सैल्फ स्टडी कितने घंटे की, कोर्स कितना कवर किया, कहां तक तैयारी हुई. आधे घंटे का ब्रेक ले लिया बस, अब पढ़ने बैठ जा. एग्जाम के बाद बड़ा सा ब्रेक ले लेना. देखो, अंजलि कैसे पढ़ती रहती है, मछली की आंख पर ही अभ्यास करती रहती है हर समय.’ वही घिसेपिटे गिनेचुने शब्द बस, इस के अलावा कोई बात नहीं करते,’’ वह दादी की गोद में सिर रख कर रो पड़ी.

तिलोतमा सब जानती थीं. कई बार उन्होंने पहले भी बेटाबहू से इस के लिए कहा था. आज फिर टोक दिया…

‘‘अरे, निवी से तुम सब खाली यही बातें करोगे? एक तो वह पहले ही कोचिंग से थकी हुई आती है, घर में भी बस पढ़ाईपढ़ाई, कुछ और बातें भी तो किया करो ताकि दिमाग फ्रैश हो उस का.’’

‘‘मम्मा, मैं कोचिंग नहीं जाऊंगी अब से,’’ नवेली रोतेरोते बोली.

‘‘ठीक है तेरे लिए घर पर ही ट्यूटर का बंदोबस्त कर देते हैं.

‘‘वैसे भी आनेजाने में तेरा टाइम वेस्ट होता है, ग्रुप में पढ़ाई भी क्या होती होगी. मैं कपूर कोचिंग से बात कर लेता हूं, उन की अच्छी रिपोर्ट है. साइंसमैथ्स के ट्यूटर घर आ जाएंगे.’’

‘‘नहीं पापा, मुझे अपना गिटार का कोर्स कंप्लीट करना है.’’

‘‘कुछ नहीं, एक बार कैरियर सैट हो जाने दो, फिर जो चाहे सीखते रहना. गिटारविटार से कैरियर नहीं बना करते.’’

तिलोतमा की पारखी नजरें अच्छी तरह पहचान गई थीं कि पोती नवेली का उस मैथ्स पढ़ाने वाले युवा ट्यूटर अंश डिसिल्वा से संबंध गुरुशिष्य से बढ़ कर दोस्ती के रूप में पनपने लगा है. इस का कारण भी वे अच्छी तरह जानती थीं, बेटे राघव और बहू शीला की अत्यधिक व्यस्तता जो इकलौती संतान नवेली को अकेलेपन की ओर ढकेल रही थी. दोनों को अपने काम से ही फुरसत नहीं होती. शाम को जब दोनों अपनेअपने औफिसों से थक कर आते, थोड़ा फ्रैश हो कर चायकौफी पीते, मां, बच्चे और आपस में कुछ पूछताछ, कुछ हालचाल लिया, फिर वही हिदायतें.

फिर टीवी चैनल बदलबदल कर न्यूज का जायजा लेते. थोड़ा घरबाहर का काम निबटा कर कुछ कल की तैयारी करते और फिर डिनर कर मां और नवेली को गुडनाइट कर के फिर दोनों अपने रूम में चले जाते. उन के लिए तो यह सब ठीक था, लेकिन बच्चे के पास शेयर करने के लिए कितनी ही नई बातें होती हैं, जो सब दादी से नहीं की जा सकतीं. 10 मिनट भी बाहर नहीं जाने देते. न जाने पढ़ाई में कितना हर्ज हो जाएगा बल्कि दोस्त मिलेंगे तो उन से कुछ जानकारी ही मिलेगी. फिर बच्चे को खुद क्याकोई सम?ा नहीं है?  तिलोतमा को यह सब देख कर हैरानी होती.

‘‘क्या करना है बाहर जा कर, सबकुछ तो घर में है, कंप्यूटर है, इंटरनैट है. आखिर 12वीं कक्षा के बोर्ड एग्जाम हैं, पढ़ो, खाओपीओ और सो जाओ, रिलैक्स करना है तो थोड़ी देर टीवी देख लो, म्यूजिक सुन लो. बस, और क्या चाहिए.

‘‘बाहर दोस्त क्या करेंगे, उलटा माइंड डायवर्ट करेंगे, ऐसे कैरियर बनता है क्या?

‘‘सैटरडे या संडे हम आप को बाहर ले ही जाते हैं.

‘‘एक बार कैरियर बन जाए, फिर जितनी चाहे मस्ती करना.’’

‘‘पहले कोचिंग के लिए बाहर ही तो जाती थी, पर उस में तो मुंह लाल कर के थक के आती थी. फिर सैल्फ स्टडी नहीं हो पाती थी, कभी दर्द, कभी बुखार का बहाना कि मु?ो कोचिंग नहीं जाना, आखिर और बच्चे रातदिन पढ़ते नहीं क्या, टौप यों ही करते हैं?

‘‘खैर, हम ने वह भी मान लिया, सब से अच्छे ट्यूशन सैंटर से घर पर ही टौप ट्यूटर का बंदोबस्त कर दिया. अब क्या?

‘‘अभी दोस्त, मोबाइल, गिटार पार्टी सब बंद, लक्ष्य सिर्फ कैरियर…’’

फिर ऐसे में गुमसुम सा पड़ा बच्चा बेचारा अकेलेपन से घबरा कर कोई साथी न ढूंढ़ ले, डिप्रैशन में कुछ उलटापुलटा न करे तो आश्चर्य कैसा. कई बार तिलोतमा ने बहूबेटे का ध्यान इस ओर दिलाने का प्रयास किया था. मगर उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ.

नवेली का गुमसुम सा रहना दादी की तरह अंश को भी खटकता. वह उसे बेहद सीरियस देख कर कोई मजेदार चुटकुला सुना देता. वह हंसती, कुछ देर को खुश हो जाती.

‘‘अधिक स्ट्रैस नहीं लेना, 89 परसैंट मार्क्स थे तुम्हारे. अब इतना भी सीरियस रहने की जरूरत नहीं,’’ वह भी कहता. धीरेधीरे नवेली उस से खुलने लगी थी. वह उस से दिल की बातें भी शेयर करती.

‘‘सर, आप ने वह नैशनल ज्योग्राफिक चैनल पर स्टुपिड साइंस देखा है? बड़ा कमाल का लगता है.’’

‘‘हां, वे हंसीहंसी में विज्ञान का ज्ञान… सही है, पूरे समय कोर्स की बातें नहीं थोड़ा इधरउधर भी दिमाग दौड़ाना चाहिए, इस से वह ऐक्टिव ज्यादा रहता है.’’

‘सही तो कह रहा है अंश,’ तिलोतमा सोच रही थीं.

‘‘सर, डेढ़ घंटा हो गया, बड़ी गरमी है, बाहर आइसक्रीम वाला है, खाएंगे? पर बाहर जाना मना है मु?ो.’’

‘‘कोई नहीं, मैं देख रही हूं न, जा थोड़ी खुली हवा भी जरूरी है,’’ तिलोतमा मुसकराते हुए बोली और दराज से 100 रुपए निकाल कर उसे थमा दिए.

‘‘थैंक्यू दादी,’’ नवेली ने दादी को प्यारी झप्पी दी.

अंश नवेली के साथ सड़क पर निकल आया था. नवेली ने ताजी हवा में हाथ फैला लिए टायटैनिक के अंदाज में.

‘‘वाह सर, कितना अच्छा लगता है बाहर, लोगों की चहलपहल के बीच आना कभीकभी कितनी एनर्जी देता है,’’ आइसक्रीम ले कर वे वहीं खड़े हो गए.

‘‘पता है सर, मुझे म्यूजिकल और डांसिंग शोज बेहद पसंद हैं. काश, मैं भी उन में भाग ले पाती. गिटार भी एक महीने सीखा, कोर्स कंपलीट करना चाहती हूं, पर मम्मीपापा को यह सब बिलकुल भी पसंद नहीं. हमारी जिस में रुचि हो उस में बेहतर काम कर सकते हैं, अधिक खुश रह सकते हैं, है कि नहीं सर?’’

‘‘ये तो है, आज तो हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की संभावना है. जरूरी नहीं कि इंजीनियर, डाक्टर, आईएएस ही बनें. मुझे तो साइंसमैथ्स शुरू से ही पसंद थे.’’

‘‘पता नहीं सर, क्यों पापामम्मी ने रट लगा रखी है. 98 परसैंट मार्क्स लाने के लिए कहते हैं. इस के बिना आजकल कुछ नहीं होता, अगर मेरे अंजलि से कम मार्क्स आए तो उन की नाक कट जाएगी. अंजलि जैसा मेरा दिमाग है ही नहीं, तो मैं क्या करूं. पिछली बार पूरी कोशिश की थी पर…’’ वह रोने को हुई.

दोनों घर के अंदर आ गए. वह बाथरूम में घुस कर खूब रोई. तिलोतमा समझ रही थी कि दोस्त के रूप में अंश को पा कर नवेली के दिल में छिपा दर्द आज फिर बह निकला, जिसे वह दिखाना नहीं चाहती थी. अच्छा है जी हलका हो जाएगा’ यही सोच कर उन्होंने दरवाजा थोड़ी देर को थपथपाना छोड़ दिया.

‘‘नवेली, बाहर आ, सर वेट कर रहे हैं तेरा. 10 मिनट हो गए, आ जल्दी,’’ तिलोतमा दरवाजा पीट रही थीं. वे घबराने लगी थीं, ‘आजकल बच्चे डिप्रैशन में आ कर न जाने क्याक्या कर डालते हैं.’

‘‘जी, पढ़ाई के लिए इतना प्रैशर डालना ठीक नहीं. उस का मन कुछ और करने का है. वह उस में भी तो कैरियर बना सकती है,’’ अंश दादी से बोला.

‘‘मुझे नहीं पढ़ना दादी, मुझ से इतना नहीं पढ़ा जाएगा,’’ वह रोती हुई लाल आंखों से बाहर आ गई.

‘‘अच्छा, चलो, 10 मिनट का और ब्रेक ले लो, मैं तब तक मेल चैक कर लेता हूं,’’ सर ने कहा.

‘‘चल ठीक है, थोड़ी देर और कुछ कर ले, फिर पढ़ लेना. आज का कोर्स पूरा तो करना ही है, सर को भी तो जाना होगा,’’ दादी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह फिर रोने लगी थी.

‘‘मुझे कुछ नहीं करना दादी.’’

‘‘गिटार बजाएगी?’’ तिलोतमा ने उस के कानों में धीरे से कहा.

‘‘क्या… पर…’’ नवेली के आंसू एकाएक थम गए थे.

‘‘उस कमरे की चाबी मेरे पास है, चल आ, एक धुन बजा कर रख देना और फिर पढ़ाई करना, ठीक है?’’ नवेली ने हां में सिर हिलाया और बच्चे की तरह मुसकरा उठी. ‘‘

अंश बेटा, देख नवेली कितना सुंदर गिटार बजाती है.’’

‘‘जी,’’ वह मोबाइल पर मेल चैक करते हुए बोला.

नवेली ने गिटार हाथों में ले कर चूमा था, कितनी रिक्वैस्ट की थी पापामम्मी से कि गिटार का कोर्स कंपलीट करने दें, पर उन्होंने तो छीन कर इसे एक किनारे कमरे में बंद कर ताला लगा दिया. रोज थोड़ी देर बजा लेती तो क्या जाता. मैं रिलैक्स हो जाती. उस ने कवर हटा कर बड़े प्यार से उसे पोंछा और बाहर आ गई.

गिटार के तारों पर उस की उंगलियां फिसलने लगीं. एक मनमोहक धुन वातावरण में फैलने लगी. वह ऊर्जा से भर उठी. फिर अपने वादे के अनुसार पढ़ने आ बैठी. अंश चला गया, तो दादी ने उसे फिंगर चिप्स के साथ बादाम वाला दूध थमा दिया. नवेली दादी से लिपट गई.

‘‘आप कितनी अच्छी हैं दादी. मेरा मूड कैसे फ्रैश होगा, आप सब जानती हैं. पर मम्मीपापा नहीं जानते. रोज थोड़ी देर ही बजा लेने देते तो मैं फ्रैश हो जाती पढ़ाई के हैंगओवर से…आप मुझे रोज कुछ देर गिटार बजाने देंगी दादी? थोड़ी देर बजा लूं? अभी सर गए हैं.’’

‘‘चल ठीक है, मुझे पहले सुना वो 1950 के गाने की कोई धुन.’’ वह दीवान पर मसनद लगा एक ओर बैठ गई थी. तिलोतमा आंखें मूंद कर मगन हो सुनने लगीं. नवेली की सधी हुई उगलियां तारों पर फिसलने लगीं.

‘‘मना किया था न कि एग्जाम तक गिटार पर हाथ नहीं लगाओगी तुम,’’ शीला के साथ कमरे में आया राघवेंद्र का पारा सातवें आसमान पर था. उस ने नवेली से झटके से गिटार खींचा और जमीन पर मारने ही जा रहा था कि तिलोतमा ने उसे कस कर पकड़ लिया. नवेली अपनी जान से प्यारे गिटार के टूट जाने के डर से जोरों से चीख उठी, ‘‘नहीं…पापा.’’

‘‘क्या कर रहा है, पागल हो गया क्या. अभी तो पढ़ कर उठी थी बेचारी, क्या सारा वक्त यह पढ़ती ही रहेगी?’’ तिलोतमा ने डर से पास आई नवेली को अपनी छाती से चिपका लिया था.

‘‘इसे चाबी कैसे मिल गई?’’

‘‘मैं ने कमरा खोल कर दिया है इसे,’’ नवेली कांप रही थी, चेतनाशून्य हो कर सहसा वह नीचे गिर पड़ी.

‘‘क्या हुआ मेरी बच्ची, उठ…उठ,’’ सभी भाग कर नवेली के पास पहुंच गए थे.

‘‘क्या हुआ नवेली, उठो ड्रामे नहीं…बस.’’

‘‘वह ड्रामा नहीं कर रही राघव, कैसा बाप है तू?’’ तिलोतमा को बेटे पर बेहद गुस्सा आ रहा था, ‘‘बस, अब एक शब्द भी नहीं बोलना, जल्दी पानी…’’ वे घबरा कर कभी नवेली के हाथपैर तो कभी गाल व माथा मले जा रही थीं.

नवेली को बिस्तर पर लिटा दिया गया, उसे होश आ गया था. डाक्टर ने भी कहा, ‘‘सदमा या डर से ऐसा हुआ है, कल तक बिलकुल ठीक हो जाएगी. घबराने की कोई बात नहीं, कोशिश करें ऐसी कोई बात न हो.’’ डाक्टर इंजैक्शन दे कर चला गया लेकिन वह खुली आंखों में निश्चेष्ट मौन पड़ी थी. तिलोतमा का एक हाथ नवेली की हथेली तो दूसरा सिर सहला रहा था. हैरानपरेशान शीलाराघव उस से कुछ बुलवाने की चेष्टा में थे.

‘‘इतनी जोरजबरदस्ती और पढ़ाई का इतना प्रैशर डाल कर तुम लोग कहीं बच्ची को ही न खो दो. मु?ो तो डर है. तुम ने क्या हाल कर डाला निवी का सिर्फ इसलिए की सोसाइटी में तुम्हारी इज्जत बढ़ जाए, कोई रेस हो रही है जैसे, उस में जीत जाओ, भले बच्चे की जान निकल जाए. डिप्रैशन में बच्ची आत्महत्या जैसा कोई गलत कदम उठा ले या फिर भाग ही जाए. उस से दोस्त, मोबाइल, गिटार, उस की इच्छा, समय सबकुछ छीन लिया है, तुम लोग मांबाप हो या दुश्मन.’’ तिलोतमा ने गुस्से में कहा, ‘‘इतनी बड़ी बच्ची है, उसे भी मालूम है कि क्या सही है, क्या गलत, थोड़ी छूट दे कर तो देखो. आज बच्चे खुद भी अपने कैरियर को ले कर सतर्क हैं. उन की भी तो सुनो, जितनी उन्हें नौलेज है हर फील्ड्स की उतनी शायद तुम्हें भी न हो.’’

‘‘मगर…’’

‘‘मगरवगर कुछ नहीं. उसे भाईबहन तो तुम ने दिए नहीं. तुम्हारे पास तो समय ही नहीं है. मुझ बूढ़ी से वह क्याक्या बातें शेयर करेगी भला? बेटी को बेटा मानना तो ठीक है, पर जबरदस्ती ठीक नहीं. उस का लिया सबकुछ उसे लौटा दो. मछली की आंख उसे भी मालूम है, वह कोशिश तो कर ही रही है. इतने पीछे पड़ते हैं क्या. बच्चा ही खुश नहीं तो मैडल ले कर क्या करोगे.

तुम ने भी तो परीक्षाएं पास की हैं. तुम्हारे पापा और मैं तो कभी इतने पीछे नहीं पड़े थे. फिर भी तुम ने परीक्षाएं पास की हैं न? आज कुछ बन गए हो. अपने बच्चे पर विश्वास करना सीखो,’’ तिलोतमा ने देखा नवेली के चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे. आंखें बंद कर वह सो गई थी. कितनी मासूम लग रही थी वह. तिलोतमा ने प्यार से उस के माथे को चूमा और चुपचाप बाहर चलने का इशारा किया.

सुबह नवेली की आंखें खुलीं तो वह खुश हो गई, उस का प्यारा गिटार पहले जैसे उस के कमरे में अपनी जगह पर रखा था. उस ने छू कर देखा, बिलकुल सही था, टूटा नहीं था. वह खुशी से उछल पड़ी और उसे बैड पर ले आई, तभी टेबल पर पड़े डब्बे पर उस की निगाह पड़ी, खोल कर देखा, ‘‘ओ, इतना सुंदर नया मोबाइल मेरे लिए.’’

‘‘दादी…मम्मी.. पापा…थैंक्यू लव यू औल…’’ वह खुशी से उछलकूद करती हुई बाहर आई और सामने से उस के लिए दूध का गिलास ले कर आ रहीं तिलोतमा के गले में बाहें डाल कर प्यारी सी पप्पी ली थी ‘‘थैंक्यू दादी.’’

ब्रश कर के नवेली ने दूध पिया और दोगुने उत्साह से पढ़ने बैठ गई.

बागबान में ‘नालायक बेटे’ का किरदार निभाने वाले एक्टर्स ने कहा- ‘हमें पिछले 20 सालों से कोसा जा रहा है’

अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की फिल्म बागबान को इस सप्ताह 20 साल हो गए है. रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित यह फिल्म 3 अक्टूबर 2003 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. एक पारिवारिक ड्रामा, जो मेलोड्रामा के साथ बूढ़े माता-पिता की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित करती है,

इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया था और यह आज भी लोकप्रिय बनी हुई है. जहां हेमा और अमिताभ के बीच की केमिस्ट्री को सराहना मिली और सलमान खान ने अपने कैमियो से दर्शकों का दिल जीत लिया, वहीं इस फिल्म में चार युवा एक्टर्स – अमन वर्मा, समीर सोनी, साहिल चड्ढा और नासिर खान को “नालायक बेटे” बना दिया.

बागबान को हुए 20 साल

जैसा कि इस फिल्म के निर्देशक बागबान के 20 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं वहीं अमन, समीर, साहिल और नासिर ने खुलकर बताया कि अक्टूबर 2003 में फिल्म रिलीज होने के बाद उनका जीवन कैसे बदल गया और कैसे बुजुर्ग लोग अभी भी उन्हें अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करने और उन्हें पालने तक अलग करने के लिए डांटते हैं. इस फिल्म में सलमान द्वारा निभाया गया किरदार बेटा अमन उनके बचाव में आया था.

अमन वर्मा ने अजय नाम के बेटे का किरदार निभाया

अमन वर्मा को यकीन नहीं हो रहा कि बागबान को रिलीज हुए 20 साल हो गए हैं. वह कहते हैं, ”मैं 1996 में मुंबई आया और 4-5 साल में बागबान मूवी की. फिल्म से पहले मैंने ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ और ‘खुल जा सिम सिम’ जैसे तमाम टीवी सीरियल में काम किया था. जब तक मुझे बागबान नहीं मिला था, मैं कुछ हद तक संघर्ष कर रहा था. इस फिल्म ने सभी के करियर पर गहरा प्रभाव डाला. “मेरी मखना” और “होली खेले” गाने अभी भी शादियों और त्योहारों पर बजाए जाते हैं जब मैं आसपास होता हूं.

अमन ने आगे बताया कि उनसे अब भी पूछा जाता है कि वह फिल्म में इतने “नालायक औलाद” क्यों थे. वह कहते हैं, ”यह अवास्तविक लगता है कि फिल्म के बारे में अभी भी बात हो रही है. आज भी मीम्स बनते हैं और लोग आज भी इसके बारे में बात करते हैं. हर कोई मुझसे पूछता रहता है ‘अमन जी, आप इतने नालायक औलाद कैसे हो सकते हैं?”

समीर सोनी ने सुनाया किस्सा

समीर ने बताया कि फिल्म रिलीज़ होने के बाद, लोग अमिताभ के साथ दुर्व्यवहार के लिए उन्हें डांटने के लिए उनके पास आ रहे थे.

उन्होंने साझा किया, “जब फिल्म रिलीज हुई, तो मैं बहुत खुश था लेकिन हमें जो प्रतिक्रिया मिली वह अविश्वसनीय थी. मुझे याद है कि एक बार एक बूढ़ी औरत एक मॉल में मेरे पास आई थी, और मैंने सोचा था कि उसने फिल्म के बाद मुझे पहचान लिया है और कुछ अच्छा कहेगी, लेकिन उसने आकर मुझे डांटा कि ‘बहुत बुरा बेटा, तुमने बहुत बुरा व्यवहार किया है!’ हम अमित जी और हेमा जी से इतने जुड़े हुए थे कि हम रातों-रात बुरे आदमी बन गए, लेकिन यह फिल्म की सफलता को दर्शाता है, जिसका इतना बड़ा प्रभाव है.

 

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साहिल ने भी बागबान के बाद जो हुआ उसको लेकर बताया

साहिल भी बागबान में अपनी परफॉर्मेंस के बाद कहते हैं, ”आज भी गाली पड़ती है”. वह कहते हैं, ”मैं बहुत सारे कार्यक्रम करता हूं और कुछ मौकों पर मुझे अमिताभ बच्चन के ‘नालायक बेटा’ के रूप में पेश किया गया है, लेकिन मैं इसे एक तारीफ के रूप में लेता हूं. मुझे याद है कि जब फिल्म रिलीज हुई थी तो मेरी मां मेरी बहन के साथ कनाडा में थीं और जब लोग बेटों को कोसते थे तो उन्हें बहुत बुरा लगता था. उसने एक बार किसी को यह कहते हुए सुना था, ‘हाय है कितने बुरे बच्चे हैं!’ और वह उनसे कहती थी, ‘मेरा बेटा ऐसा नहीं है’. मेरी मां अचानक से मुझको लेकर बहुत ही प्रोटेक्टिव हो गई थी.”

अमिताभ बच्चन के 81वें जन्मदिन के पहले होगी उनके यादगार वस्तुओं की नीलामी!

भारतीय सिनेमा के “शहंशाह” अमिताभ बच्चन ने अपनी अद्वितीय प्रतिभा, करिश्मा और समर्पण से फिल्म उद्योग पर एक अद्भुत छाप छोड़ी है.  पांच दशक से अधिक लंबे करियर के साथ, बच्चन को न केवल एक अभिनेता के रूप में बल्कि सिनेमाई उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है.

11 अक्टूबर 2023 को महान सुपरस्टार अमिताभ बच्चन 81 साल के हो जाएंगे और इसी मौके के पहले एक अनूठे ढंग से उनकी यादगार वस्तुओं की नीलामी के जरिये इस जश्न को मना रहा है, भारत का सबसे युवा और सबसे तेजी से बढ़ता हुआ नाम, डेरिवाज़ एंड इवेस जिसके द्वारा एक अनूठी सार्वजनिक नीलामी को कार्यरत किया जाएगा जहाँ ‘बच्चनलिया’ शीर्षक से 5 और 7 अक्टूबर 2023 के बीच निर्धारित यह कार्यक्रम उनके शानदार करियर को सलामी देगा और संग्रहकर्ताओं और प्रशंसकों को उनकी अभूतपूर्व सिनेमाई यात्रा के एक ऐतिहासिक हिस्से को जीने का और उसे पाने का मौका देगा.

नीलामी में शामिल की जाने वाली वस्तुओं में प्रतिष्ठित फिल्म पोस्टर, तस्वीरें, लॉबी कार्ड, शोकार्ड तस्वीरें, फिल्म पुस्तिकाएं और मूल कलाकृतियां शामिल हैं।

नीलामी की मुख्य बातें इस प्रकार हैं: 

ज़ंजीर शोकार्ड

पहली रिलीज़ ज़ंजीर (1973) शोकार्ड का एक  सेट – सिल्वर जिलेटिन फोटोग्राफिक प्रिंट, पोस्टर पेंट और सावधानीपूर्वक हाथ और स्क्रीन-प्रिंटेड लेटरिंग से तैयार किया गया एक मूल, हाथ से बना कोलाज.  ये अनूठे टुकड़े अतीत की कलात्मक शिल्प कौशल का एक प्रमाण हैं, जो उस जटिल प्रक्रिया की झलक पेश करते हैं जिसने एक बार सिनेमा के जादू को जीवंत कर दिया था.

दीवार शोकार्ड

दीवार (1975) की पहली रिलीज शोकार्ड के साथ सिनेमाई इतिहास की एक अद्भुत भेंटअपने पास रखें, जिसे 1970 और 80 के दशक की कई प्रतिष्ठित अमिताभ बच्चन प्रचार कलाकृतियों के डिजाइनर दिवाकर करकरे द्वारा शानदार ढंग से डिजाइन किया गया है.

फ़रार शोकार्ड सेट

दिवाकर करकरे द्वारा डिज़ाइन किया गया शंकर मुखर्जी की फ़रार (1975) के छह असाधारण रूप से डिज़ाइन किए गए पहले रिलीज़ शोकार्ड का एक सेट भी ऑफर में है. गुलज़ार द्वारा लिखित यह थ्रिलर, किशोर-लता की मधुर जोड़ी “मैं प्यासा तुम सावन” के लिए प्रसिद्ध है.

शोले के फोटोग्राफिक चित्र लॉबी कार्डों पर लगे हुए हैं

1975 के क्लासिक के दिल को छू लेने वाले उत्साह को प्रतिबिंबित करते हुए, बोली लगाने वालों को शोले (1975) की पौराणिक दुनिया में प्रवेश करने का मौका मिलेगा.  रमेश सिप्पी क्लासिक के कुछ सबसे यादगार दृश्यों को प्रदर्शित करने वाले लॉबी कार्ड पर लगाए गए 15 री-रिलीज़ फ़ोटोग्राफ़िक स्टिल का उल्लेखनीय सेट.

एक अन्य लॉट में शोले की रिलीज के बाद आयोजित रमेश सिप्पी की विशेष पार्टी की चार निजी तस्वीरों का एक आकर्षक सेट पेश किया गया है, जो इस अविस्मरणीय फिल्म के पर्दे के पीछे के जादू की एक विशेष झलक प्रदान करता है.

प्रतिष्ठित पोस्टर

नीलामी में बच्चन की सबसे प्रसिद्ध फिल्मों जैसे मजबूर (1974), मिस्टर नटवरलाल (1979), द ग्रेट गैम्बलर (1979), सिलसिला (1981) कालिया (1981), नसीब (1986) के कुछ शानदार और अप्रतिम पोस्टर पेश किए गए हैं.

मशहूर ग्लैमर फोटोग्राफर गौतम राजाध्यक्ष द्वारा शूट किया गया अमिताभ बच्चन का एक स्टूडियो चित्र.  मूवी मैगज़ीन की प्रसिद्ध कवर स्टोरी के लिए किए गए एक विशेष फोटो-शूट से दो सुपरस्टार – राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन – को दिखाया गया है.

डेरिव्ज़ एंड इव्स भी बच्चन को कुछ समकालीन कलात्मक श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.  सफदर शमी, शैलेश आचरेकर, मिठू बिस्वास और अनिल सोनी जैसे युवा कलाकारों की आंखों और सौंदर्यशास्त्र के माध्यम से देखी गई अमिताभ बच्चन की अलग-अलग प्रस्तुतियां और व्याख्याएं भी शामिल हैं.

नीलामी के बारे में बात करते हुए, डेरिवाज़ एंड इवेस के प्रवक्ता ने कहा, “हम डेरिवाज़ एंड इवेस में इस साल वैश्विक स्तर पर अपने फिल्म मेमोरैबिलिया विभाग का विकास कर रहे हैं, जिसमें 2023 में भारत और बरसात, सत्यजीत रे, अमिताभ बच्चन, राज कपूर, फेमिनिन आइकॉन की प्रतिष्ठित बिक्री होगी.  और हॉलीवुड की नीलामी 2024 से शुरू हो रही है.

सुपरस्टार और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व अमिताभ बच्चन पर यह फोकस पांच दशकों की विभिन्न भूमिकाओं में उनके अविश्वसनीय प्रदर्शन पर सावधानीपूर्वक तैयार की गई बिक्री है, जिसने उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय आइकन बना दिया है. हमें उम्मीद है कि यह प्रयास उनके प्रशंसकों को प्रसन्न करेगा. दुनिया भर में उनके प्रशंसक इसके नीलामी के जरिये, भारत को उसकी कागज-आधारित सिनेमाई विरासत को और अधिक गहराई से संरक्षित करने में मदद मिलेगी.”

 निम्नलिखित लिंक पर बोली लगाने के लिए बड़ी संख्या में संग्राहक आए:

 

 

नौकरी के साथ ऐसे करें घर की सुरक्षा

मुंबई के पौश एरिया में रहने वाली 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला की अचानक बाथरूम में मृत्यु से पूरा परिवार सदमे में आ गया. उस का ग्रैंड सन पास के औफिस में जौब पर गया था, जब वह घर आया तो दरवाजा न खुलने पर उस ने चाबी से दरवाजा खोला, लेकिन अपनी दादी को बाथरूम में अचेतन अवस्था में देख कर घबराया और पास के अस्पताल में ले गया, लेकिन डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और कहा कि उन की दादी की मौत 5 घंटे पहले हुई है.

पोते के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, लेकिन जब पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि किसी ने उन का गला दबा कर पहले हत्या की और बाद में शव को बाथरूम में ऐसे लिटा दिया कि लगे गिरने से नैचुरल डैथ हुई है. पुलिस की छानबीन और सोसाइटी के सीसी टीवी से पता चला कि उन के घर में सालों से काम करने वाली नौकरानी और उस के अपंग बेटे ने मिल कर उन की जान ली क्योंकि घर से कुछ कीमती सामान, पैसे और मोबाइल गायब था.

वह बुजुर्ग महिला पति की मृत्यु के बाद अकेले अपनी पुरानी नौकरानी के साथ रहती थी. महिला का एक बेटा और बेटी विदेश में रहते हैं, जबकि पोता इंडिया पढ़ने आया और यहीं उसे नौकरी मिल जाने से वह अपनी दादी के साथ रहने लगा.

किस पर करें भरोसा

यह सही है कि मुंबई जैसे बड़े शहरों में जौब पर जाने से पहले खासकर महिलाओं को परिवार और घर की सुरक्षा को ले कर काफी मशक्कत करनी पड़ती है क्योंकि घर से निकल कर कहीं जाने के लिए यहां घंटों समय लगता है.

ऐसे में किसी अनहोनी में वे तुरंत घर नहीं पहुंच पाते. परिवार में रहने वाले बुजुर्ग और बच्चों की जिंदगी मेड सर्वेंट के हाथ में ही रहती है, जो एक चिंता का विषय होता है और यह आजकल कुछ अधिक देखा जा रहा है कि विश्वास के साथ घर की देखभाल के लिए रखी जाने वाली मेड सर्वैंट सुरक्षित नहीं होतीं.

इस बारे में मुंबई की दिंडोशी पुलिस स्टेशन की असिस्टैंट पुलिस इंस्पैक्टर सुविधा पुलेल्लू कहती है कि घर पर किसी भी प्रकार की हैल्पर चाहे वह घर काम करने वाली महिला हो या पुरुष या किसी व्यस्क या बच्चे की देखभाल करने वाली हो पुलिस वैरिफिकेशन करवा लेने से वे कुछ गलत करने से पहले डरते हैं. अगर करें भी तो पकड़ना आसान होता है. इसलिए इसे करवाना जरूरी होता है, लेकिन कुछ लोग इसे झंझट समझ नहीं करवाते और बाद में अपराध हो जाता है.

क्यों जरूरी है पुलिस वैरिफिकेशन

पुलिस वैरिफिकेशन का काम कठिन नहीं होता, इसे 2 तरीके से किया जा सकता है, पहला तो औनलाइन जो आप किसी के द्वारा फिर खुद से कर सकते हैं और दूसरा औफलाइन होता है, जिसे पुलिस स्टेशन में कर एक फार्म भर कर इस प्रकिया को पूरा किया जा सकता है. इस से पता चलता है कि व्यक्ति किसी भी गलत काम में संलग्न तो नहीं है. हैल्पर के रहते हुए घर में चोरी, कोई घटना आदि के होने की सिचुएशन में यह हैल्पफुल होता है.

अगर किसी वजह से वैरिफिकेशन नहीं कराया है, तो तब तक के लिए उस का फोटो खींच कर और आधार कार्ड की एक कौपी अपने पास जरूर रखें. किसी भी व्यक्ति को हैल्पर या मेड सर्वैंट रखने से पहले निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

  •  किसी भी वैबसाइट से नौकर हायर करने से पहले वैबसाइट के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें, किसी भी अनरजिस्टर्ड संस्था या कंपनी से हैल्पर या हाउस मेड हायर न करें.
  •  नौकर या नौकरानी को घर में ऐंट्री देने से पहले ही उस का व उस के द्वारा जमा करवाए दस्तावेजों की पुलिस वैरिफिकेशन करवा लें.
  •  मेड, घर के नौकर या अपरिचितों के सामने कभी अपनी अलमारियां न खोलें. चाहे वह कितने ही वर्षों से आप के यहां काम कर रहा हो, अपनी ज्वैलरी, पैसे या अन्य कीमती वस्तुएं उन के सामने न निकालें और उस के सामने पैसों के लेनदेन के बारे में भी बात न करें.
  •  अगर मेड किसी को अपने साथ ले कर आए या अपना रिश्तेदार बता कर आप से मिलवाए तो उसे अंदर आने की इजाजत न दें. हो सकता है इस बहाने वह आप का घर और सामान उसे दिखा रही हो.द्य अगर आप शहर से बाहर जा रहे हैं तो मेड को यह न बताएं कि आप कितने दिनों में आएंगे.

अंकुरित मूंग से बनाएं टेस्टी नाश्ता

हम सभी जानते हैं कि सुबह का नाश्ता बहुत हैल्दी होना चाहिए क्योंकि रात्रि के भोजन के बाद सुबह तक के कई घण्टों तक हम कोई भी आहार ग्रहण नहीं करते जिससे सुबह शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है परन्तु रोज रोज क्या नाश्ता बनाया जाए जो हैल्दी भी हो और टेस्टी भी जिसे सभी स्वाद से खाएं भी.

मूंग को जब अंकुरित कर लिया जाता है तो उसकी पौष्टिकता कई गुना बढ़ जाती है. अंकुरित मूंग में फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम, आयरन, विटामिन्स और पोटैशियम जैसे अनेकों पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो कब्ज को दूर करने, वजन को घटाने और ब्लड प्रेशर को संतुलित करने का कार्य करते हैं. इसलिए अंकुरित मूंग को किसी न किसी रूप में अपनी डाइट में अवश्य शामिल करना चाहिए. अंकुरित करने के लिए मूंग सदैव उत्तम क्वालिटी का ही लेना चाहिए अन्यथा यह ठीक से अंकुरित नहीं होगा और दुर्गंध भी देने लगेगा. आज हम आपको अंकुरित मूंग से ही बनने वाले दो ऐसे नाश्ते बता रहे हैं जो अत्यंत पौष्टिक और स्वादिष्ट हैं. तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

-अंकुरित मूंग ढोकला

कितने लोंगों के लिए        4

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

अंकुरित मूंग                 2 कप

खट्टा दही                      1/2 कप

अदरक, लहसुन,

हरी मिर्च पेस्ट                1/2 टीस्पून

नमक                            स्वादानुसार

ईनो फ्रूट साल्ट              1 टीस्पून

सामग्री (तड़के के लिए)

राई                          1/4 टीस्पून

तिल                        1/2 टीस्पून

हरी मिर्च                   2

नीबू का रस               1/2 टीस्पून

शकर                        1 टीस्पून

करी पत्ता                   6

तेल                            1 टीस्पून

विधि

मूंग को दही के साथ मिक्सी में पीस लें. अब इसमें नमक, अदरक, लहसुन, हरी मिर्च का पेस्ट और ईनो फ्रूट साल्ट को अच्छी तरह मिलाएं. कुकर या अन्य किसी चौड़े मुंह के बर्तन में पानी गर्म होने रखकर स्टैंड या फैली प्लेट रख दें. जिस डिश में आपको ढोकला बनाना है उसमें चिकनाई लगाकर तैयार मिश्रण डाल दें. इस बर्तन को स्टैंड के ऊपर रख कर ढक दें. प्रेशर कुकर में पका रहीं हैं तो सीटी नहीं लगाएं. मद्धिम आंच पर लगभग 15 मिनट तक पकाकर टूथ पिक या चाकू डालकर देखें यदि मिश्रण न चिपके तो समझें तैयार है.

तड़का बनाने के लिए गर्म पैन में तेल डालकर राई और बघार की समस्त सामग्री डाल दें. एक उबाल आने पर गैस बंद कर दें. बघार को तैयार ढोकले पर डालकर 20 मिनट के लिए रख दें ताकि बघार ढोकले में भली भांति समाहित हो जाये. चौकोर टुकड़ों में काटकर हरी और लाल चटनी के साथ सर्व करें.

-स्प्राउट वेज तवा टिक्की

कितने लोंगों के लिए        6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

अंकुरित मूंग                     2 कप

कटी  शिमला मिर्च             1

किसी गाजर                      1

कटा पत्तागोभी               1/2 कप

कटा प्याज                    1

कटी हरी मिर्च                4

अदरक                        1 इंच

कटा हरा धनिया             1 टीस्पून

नमक                            स्वादानुसार

जीरा पाउडर                 1/4 टीस्पून

गरम मसाला                 1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर           1/4 टीस्पून

अमचूर पाउडर               1/4 टीस्पून

तेल                               2 टेबलस्पून

विधि

मूंग को 1/2 कप पानी के साथ पीस लें. अब एक पैन में पिसी मूंग, कटी सब्जियां और मसाले डालकर अच्छी तरह चलाएं. गैस पर इसे गाढ़ा होने तक पकाएं. इस मिश्रण को चिकनाई लगी एक प्लेट में फैलाकर एकसार करें. ठंडा होने पर मनचाहे आकार में काट लें. अब इन टुकड़ों को तवे पर रखें. तवे पर तेल डालकर इन्हें दोनों तरफ से सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर  पर निकालें. टोमेटो सॉस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

निकिता की नाराजगी: कौनसी भूल से अनजान था रंजन

निकिता अकसर किसी बात को ले कर झल्ला उठती थी. वह चिङचिङी स्वभाव की क्यों हो गई थी, उसे खुद भी पता नहीं था. पति रंजन ने कितनी ही बार पूछा लेकिन हर बार पूछने के साथ ही वह कुछ और अधिक चिड़चिड़ा जाती.

“जब देखो तब महारानी कोपभवन में ही रहती हैं. क्या पता कौन से वचन पूरे न होने का मौन उलाहना दिया जा रहा है. मैं कोई अंतरयामी तो हूं नहीं जो बिना बताए मन के भाव जान लूं. अरे भई, शिकायत है तो मुंह खोला न, लेकिन नहीं. मुंह को तो चुइंगम से चिपका लिया. अब परेशानी बूझो भी और उसे सुलझाओ भी. न भई न. इतना समय नहीं है मेरे पास,” रंजन उसे सुनाता हुआ बड़बड़ाता.

निकिता भी हैरान थी कि वह आखिर झल्लाई सी क्यों रहती है? क्या कमी है उस के पास? कुछ भी तो नहीं… कमाने वाला पति. बिना कहे अपनेआप पढ़ने वाले बच्चे. कपड़े, गहने, कार, घर और अकेले घूमनेफिरने की आजादी भी. फिर वह क्या है जो उसे खुश नहीं होने दे रहा? क्यों सब सुखसुविधाओं के बावजूद भी जिंदगी में मजा नहीं आ रहा.

कमोबेश यही परेशानी रंजन की भी है. उस ने भी लाख सिर पटक लिया लेकिन पत्नी के मन की थाह नहीं पा सका. वह कोई एक कारण नहीं खोज सका जो निकिता की नाखुशी बना हुआ है.

‘न कभी पैसे का कोई हिसाब पूछा न कभी खर्चे का. न पहननेओढ़ने पर पाबंदी न किसी शौक पर कोई बंदिश. फिर भी पता नहीं क्यों हर समय कटखनी बिल्ली सी बनी रहती है…’ रंजन दिन में कम से कम 4-5 बार ऐसा अवश्य ही सोच लेता.

ऐसा नहीं है कि निकिता अपनी जिम्मेदारियों को ठीक तरह से नहीं निभा रही या फिर अपनी किसी जिम्मेदारी में कोताही बरत रही है. वह सबकुछ उसी तरह कर रही है जैसे शादी के शुरुआती दिनों में किया करती थी. वैसे ही स्वादिष्ठ खाना बनाती है. वैसे ही घर को चकाचक रखती है. बाहर से आने वालों के स्वागतसत्कार में भी वही गरमजोशी दिखाती है. लेकिन सबकुछ होते हुए भी उस के क्रियाकलापों में वह रस नहीं है. मानों फीकी सी मिठाई या फिर बिना बर्फ वाला कोल्डड्रिंक… उन दिनों कैसे उमगीउमगी सी उड़ा करती थी. अब मानों पंख थकान से बोझिल हो गए हैं.

रंजन ने कई दोस्तों से अपनी परेशानी साझा की. अपनीअपनी समझ के अनुसार सब ने सलाह भी दी. किसी ने कहा कि महिलाओं को सरप्राइज गिफ्ट पसंद होते हैं तो रंजन उस के लिए कभी साड़ी, कभी सूट तो कभी कोई गहना ले कर आया लेकिन निकिता की फीकी हंसी में प्राण नहीं फूंक सका. किसी ने कहा कि बाहर डिनर या लंच पर ले कर जाओ. वह भी किया लेकिन सब व्यर्थ. किसी ने कहा पत्नी को किसी पर्यटन स्थल पर ले जाओ लेकिन ले किसे जाए? कोई जाने को तैयार हो तब न? कभी बेटे की कोचिंग तो कभी बेटी की स्कूल… कोई न कोई बाधा…

रंजन को लगता है कि निकिता बढ़ते बच्चों के भविष्य को ले कर तनाव में है. कभी उसे लगता कि वह अवश्य ही किसी रिश्तेदार को ले कर हीनभावना की शिकार हो रही है. कभीकभी उसे यह भी वहम हो जाता कि कहीं खुद उसे ही ले कर तो किसी असुरक्षा की शिकार तो नहीं है? लेकिन उस की हर धारणा बेकार साबित हो रही थी.

ऐसा भी नहीं है कि निकिता उस से लड़तीझगड़ती या फिर घर में क्लेश करती, बस अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करती. न ही कोई जिद या आग्रह. जो ले आओ वह बना देती है, जो पड़ा है वह पहन लेती. अपनी तरफ से तो बात की शुरुआत भी नहीं करती. जितना पूछो उतना ही जवाब देती. अपनी तरफ से केवल इतना ही पूछती कि खाने में क्या बनाऊं? या फिर चाय बना दूं? शेष काम यंत्रवत ही होते हैं.

कई बार रंजन को लगता है जैसे निकिता किसी गहरे अवसाद से गुजर रही है लेकिन अगले ही पल उसे फोन पर बात करते हुए मुसकराता देखता तो उसे अपना वहम बेकार लगता.
निकिता एक उलझी हुई पहेली बन चुकी थी जिसे सुलझाना रंजन के बूते से बाहर की बात हो गई. थकहार कर उस ने निकिता की तरफ से अपनेआप को बेपरवाह करना शुरू कर दिया. जैसे जी चाहे वैसे जिए.
न जाने प्रकृति ने मानव मन को इतना पेचीदा क्यों बनाया है, इस की कोई एक तयशुदा परिभाषा होती ही नहीं.

मानव मन भी एक म्यूटैड वायरस की तरह है. हरएक में इस की सरंचना दूसरे से भिन्न होती है. बावजूद इस के कुछ सामान्य समानताएं भी होती हैं. जैसे हरेक मन को व्यस्त रहने के लिए कोई न कोई प्रलोभन चाहिए ही चाहिए. यह कोई लत, कोई व्यसन, या फिर कोई शौक भी हो सकता है. या इश्क भी…

बहुत से पुरुषों की तरह रंजन का मन भी एक तरफ से हटा तो दूसरी तरफ झुकने लगा. यों भी घर का खाना जब बेस्वाद लगने लगे तो बाहर की चाटपकौड़ी ललचाने लगती हैं.

पिछले कुछ दिनों से अपने औफिस वाली सुनंदा रंजन को खूबसूरत लगने लगी थी. अब रातोरात तो उस की शक्लसूरत में कोई बदलाव आया नहीं होगा. शायद रंजन का नजरिया ही बदल गया था. शायद नहीं, पक्का ऐसा ही हुआ है. यह मन भी बड़ा बेकार होता है. जब किसी पर आना होता है तो अपने पक्ष में माहौल बना ही लेता है.

“आज जम रही हो सुनंदा,” रंजन ने कल उस की टेबल पर ठिठकते हुए कहा तो सुनंदा मुसकरा दी.

“क्या बात है? आजकल मैडम घास नहीं डाल रहीं क्या?” सुनंदा ने होंठ तिरछे करते हुए कहा तो रंजन खिसिया गया.

‘ऐसा नहीं है कि निकिता उस के आमंत्रण को ठुकरा देती है. बस, बेमन से खुद को सौंप देती है,’ याद कर रंजन का मन खट्टा हो गया.

“लो, अब सुंदरता की तारीफ करना भी गुनाह हो गया. अरे भई, खूबसूरती होती ही तारीफ करने के लिए है. अब बताओ जरा, लोग ताजमहल देखने क्यों जाते हैं? खूबसूरत है इसलिए न?” रंजन ने बात संभालते हुए कहा तो सुनंदा ने गरदन झुका कर दाहिने हाथ को सलाम करने की मुद्रा में माथे से लगाया. बदले में रंजन ने भी वही किया और एक मिलीजुली हंसी आसपास बिखर गई.

रंजन निकिता से जितना दूर हो रहा था उतना ही सुनंदा के करीब आ रहा था. स्त्रीपुरुष भी तो विपरीत ध्रुव ही होते हैं. सहज आकर्षण से इनकार नहीं किया जा सकता. यदि उपलब्धता सहज बनी रहे तो बात आकर्षण से आगे भी बढ़ सकती है. सुनंदा के साथ कभी कौफी तो कभी औफिस के बाद बेवजह तफरीह… कभी साथ लंच तो कभी यों ही गपशप… आहिस्ताआहिस्ता रिश्ते की रफ्तार बढ़ रही थी.

सुनंदा अकेली महिला थी और अपने खुद के फ्लैट में रहती थी. जाने पति से तलाक लिया था या फिर स्वेच्छा से अलग रह रही थी, लेकिन जीवन की गाड़ी में बगल वाली सीट हालफिलहाल खाली ही थी जिस पर धीरेधीरे रंजन बैठने लगा था.

रंजन हालांकि अपनी उम्र के चौथे दशक के करीब था लेकिन इन दिनों उस के चेहरे पर पच्चीसी वाली लाली देखी जा सकती थी. प्रेम किसी भी उम्र में हो, हमेशा गुलाबी ही होता है.
सुनंदा के लिए कभी चौकलेट तो कभी किसी पसंदीदा लेखक की किताब रंजन अकसर ले ही आता था.

वहीं सुनंदा भी कभी दुपट्टा तो कभी चप्पलें… यहां तक कि कई बार तो अपने लिए लिपस्टिक, काजल या फिर बालों के लिए क्लिप खरीदने के लिए भी रंजन को साथ चलने के लिए कहती. सुन कर रंजन झुंझला जाता. सुनंदा उस की खीज पर रीझ जाती.

“ऐसा नहीं है कि मैं यह सब अकेली खरीद नहीं सकती बल्कि हमेशा खरीदती ही रही हूं लेकिन तुम्हारे साथ खरीदने की खुशी कुछ अलग ही होती है. चाहे पेमेंट भी मैं ही करूं, तुम्हारा केवल पास खड़े रहना… कितना रोमांटिक होता है, तुम नहीं समझोगे,” सुनंदा कहती तो रंजन सुखद आश्चर्य से भर जाता.

मन की यह कौन सी परत होती है जहां इस तरह की इंद्रधनुषी अभिलाषाएं पलती हैं. इश्क की रंगत गुलाबी से लाल होने लगी. रंजन पर सुनंदा का अधिकार बढ़ने लगा. अब तो सुनंदा अंडरगारमैंट्स भी रंजन के साथ जा कर ही खरीदती थी. सुनंदा के मोबाइल का रिचार्ज करवाना तो कभी का रंजन की ड्यूटी हो चुकी थी. मिलनामिलाना भी बाहर से भीतर तक पहुंच गया था. यह अलग बात है कि रंजन अभी तक सोफे से बिस्तर तक का सफर तय नहीं कर पाया था.

आज सुबहसुबह सुनंदा का व्हाट्सऐप मैसेज देख कर रंजन पुलक उठा. लिखा था,”मिलो, दोपहर में.”

ऐसा पहली बार हुआ है जब सुनंदा ने उसे छुट्टी वाले दिन घर बुलाया है.
दोस्त से मिलने का कह कर रंजन घर से निकला. निकिता ने न कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही कुछ पूछा. कुछ ही देर में रंजन सुनंदा के घर के बाहर खड़ा था. डोरबेल पर उंगली रखने के साथ ही दरवाजा खुल गया.

“दरवाजे पर ही खड़ी थीं क्या?” रंजन उसे देख कर प्यार से मुसकराया.

सुनंदा अपनी जल्दबाजी पर शरमा गई. रंजन हमेशा की तरह सोफे पर बैठ गया. सुनंदा ने अपनी कुरसी उस के पास खिसका ली.

“आज कैसे याद किया?” रंजन ने पूछा. सुनंदा ने कुछ नहीं कहा बस मुसकरा दी.

चेहरे की रंगत बहुतकुछ कह रही थी. सुनंदा उठ कर रंजन के पास सोफे पर बैठ गई और उस के कंधे पर सिर टिका दिया. रंजन के हाथ सुनंदा की कमर के इर्दगिर्द लिपट गए और चेहरा चेहरे पर झुक गया. थोड़ी ही देर में रंजन के होंठ सुनंदा के गालों पर थे. वे आहिस्ताआहिस्ता गालों से होते हुए होंठों की यात्रा कर अब गरदन पर कानों के जरा नीचे ठहर कर सुस्ताने लगे थे. सुनंदा ने रंजन का हाथ पकड़ा और भीतर बैडरूम की तरफ चल दी. यह पहला अवसर था जब रंजन ने ड्राइंगरूम की दहलीज लांघी थी.

साफसुथरा बैड और पासपास रखे जुड़वां तकिए… कमरे के भीतर एक खुमारी सी तारी थी. तापमान एसी के कारण सुकूनभरा था. खिड़कियों पर पड़े मोटे परदे माहौल की रुमानियत में इजाफा कर रहे थे. अब ऐसे में दिल का क्या कुसूर? बहकना ही था.

सुनंदा और रंजन देह के प्रवाह में बहने लगे. दोनों साथसाथ गंतव्य की तरफ बढ़ रहे थे कि अचानक रंजन को अपनी मंजिल नजदीक आती महसूस हुई. उस ने अपनी रफ्तार धीमी कर दी और अंततः खुद को निढाल छोड़ कर तकिए के सहारे अपनी सांसों को सामान्य करने लगा. तृप्ति की संतुष्टि उस के चेहरे पर स्पष्ट देखी जा सकती थी. सुनंदा की मंजिल अभी दूर थी. बीच राह अकेला छुट जाने की छटपटाहट से वह झुंझला गई मानों मगन हो कर खेल रहे बच्चे के हाथ से जबरन उस का खिलौना छीन लिया गया हो.

नाखुशी जाहिर करते हुए उस ने रंजन की तरफ पीठ कर के करवट ले ली. रंजन अभी भी आंखें मूंदे पड़ा था. जरा सामान्य होने पर रंजन ने सुनंदा की कमर पर हाथ रखा. सुनंदा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हाथ को धीरे से परे खिसका दिया. वह कपड़े संभालते हुए उठ बैठी.

“चाय पीओगे?” सुनंदा ने पूछा. रंजन ने खुमारी के आगोश में मुंदी अपनी आंखें जबरन खोलीं.

“आज तो बंदा कुछ भी पीने को तैयार है,” रंजन ने कहा.

उस की देह का जायका अभी भी बना हुआ था. सुनंदा के चेहरे पर कुछ देर पहले वाला उत्साह अब नहीं था. उस की चाल में गहरी हताशा झलक रही थी. रंजन की उपस्थिति अब उसे बहुत बोझिल लग रही थी.

“थैंक्स फौर सच ए रोमांटिक सिटिंग,” कहता हुआ चाय पीने के बाद रंजन उस के गाल पर चुंबन अंकित कर चला गया. सुनंदा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

कुछ दिनों से रंजन को सुनंदा के व्यवहार का ठंडापन बहुत खल रहा है. 1-2 बार दोनों अकेले में भी मिले लेकिन वही पहले वाली कहानी ही दोहराई गई. हर बार समागम के बाद रंजन का चेहरा तो खिल जाता लेकिन सुनंदा के चेहरे पर असंतुष्टि की परछाई और भी अधिक गहरी हो जाती. धीरेधीरे सुनंदा रंजन से खिंचीखिंची सी रहने लगी. अब तो उस के घर आने के प्रस्ताव को भी टालने लगी.

रंजन समझ नहीं पा रहा था कि उसे अचानक क्या हो गया? वह कभी उस के लिए सरप्राइज गिफ्ट ले कर आता, कभी उस के सामने फिल्म देखने चलने या यों ही तफरीह करने का औफर रखता लेकिन वह किसी भी तरह से अब सुनंदा की नजदीकियां पाने में सफल नहीं हो पा रहा था.

‘सारी औरतें एकजैसी ही होती हैं. जरा भाव दो तो सिर पर बैठ जाती हैं…’ निकिता के बाद सुनंदा को भी मुंह फुलाए देख कर रंजन अकसर सोचता. सुनंदा का इनकार वह बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

“आज छुट्टी है, निकिता को उस के घर जा कर सरप्राइज देता हूं. ओहो, कितनी ठंड है आज,” निकिता के साथ रजाई में घुस कर गरमगरम कौफी पीने की कल्पना से ही उस का मन बहकने लगा.

निकिता के घर पहुंचा तो उस ने बहुत ही ठंडेपन से दरवाजा खोला. बैठी भी उस से परे दूसरे सोफे पर. बैडरूम में जाने का भी कोई संकेत रंजन को नहीं मिला. थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद सुनंदा खड़ी हो गई.

“रंजन, मुझे जरा बाहर जाना है. हम कल औफिस में मिलते हैं,” सुनंदा ने कहा. रंजन अपमान से तिलमिला गया.

“क्या तुम मुझे साफसाफ बताओगी कि आखिर हुआ क्या है? क्यों तुम मुझ से कन्नी काट रही हो?” रंजन पूछ बैठा.

“आई वांट ब्रैकअप,” सुनंदा ने कहा.

“व्हाट? बट व्हाई?” रंजन ने बौखला कर पूछा.

“सुनो रंजन, हमारे रिश्ते में मैं ने बहुतकुछ दांव पर लगाया है. यहां तक कि अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा भी. मैं तुम से कोई अपेक्षा नहीं रखती सिवाय संतुष्टि के. यदि वह भी तुम मुझे नहीं दे सकते तो फिर मुझे इस रिश्ते से क्या मिला? सिर्फ बदनामी? अपने पैसे, समय और प्रतिष्ठा की कीमत पर मैं बदनामी क्यों चुनूं?” सुनंदा ने आखिर वह सब कह ही दिया जिसे वह अब तक अपने भीतर ही मथ रही थी. उस के आरोप सुन कर रंजन अवाक था.

“लेकिन हमारा मिलन तो कितना सफल होता था,” रंजन ने उसे याद दिलाने की कोशिश की.

“नहीं, उस समागम में केवल तुम ही संतुष्ट होते थे. मैं तो प्यासी ही रह जाती थी. तुम ने कभी मेरी संतुष्टि के बारे में सोचा ही नहीं. ठीक वैसे ही जैसे अपना पेट भरने के बाद दूसरे की भूख का एहसास न होना,” सुनंदा बोलती जा रही थी और रंजन के कानों में खौलते हुए तेल सरीखा कुछ रिसता जा रहा था.

सुनंदा के आक्रोश में उसे निकिता का गुस्सा नजर आ रहा था. निकिता में सुनंदा… सुनंदा में निकिता… आज रंजन को निकिता की नाराजगी समझ में आ रही थी.

थके कदमों से रंजन घर की तरफ लौट गया. मन ही मन यह ठानते हुए कि यदि यही निकिता की नाराजगी की वजह है तो वह अवश्य ही उसे दूर करने की कोशिश करेगा. अपने मरते रिश्ते को संजीवनी देगा.

कहना न होगा कि इन दिनों निकिता हर समय खिलखिलाती रहती है. एक लज्जायुक्त मुसकान हर समय होंठों पर खिली रहती है.

रंजन मन ही मन सुनंदा का एहसानमंद है, इस अनसुलझी पहेली को सुलझाने का रास्ता दिखाने के लिए.

मैं अपने नाती के गुस्से और जिद से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरा नाती 11 साल का है. उस का दिमाग बहुत तेज है और वह अपनी क्लास में अव्वल आता है. लेकिन हम उस के गुस्से से बहुत परेशान हैं. अगर उसे कोई जरा सा भी टोक दे तो वह घंटों चिड़चिड़ाता रहता है. वह बहुत जिद्दी भी हो गया है. सिर्फ अपने पिता से डरता है. उस के खानेपीने की आदतें भी अजीबोगरीब हैं. कभी खूब खाता है और कभी लाख कहने पर भी खाना नहीं छूता. उचित सलाह दें?

जवाब-

कोई भी बच्चा जन्म से न तो जिद्दी होता है और न चिड़चिड़ा. उस का व्यक्तित्व किस रंग में रंगता है, यह उस की परवरिश और घर की स्थितियों पर निर्भर करता है. आजकल जब सभी परिवार छोटे हो गए हैं, घर में 1 या 2 बच्चे होते हैं. वे मातापिता, दादादादी, चाचाचाची, बूआमौसी, नानानानी के जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार से जिद्दी और उद्दंड बन जाते हैं. उन की जिद अगर पूरी नहीं होती तो उन का अंतर्मन इस छोटी सी बात से ही आहत हो जाता है और उन के अंदर की परेशानी गुस्से का गुबार बन ज्वालामुखी सी फट उठती है. घर के सभी बड़ेबूढ़ों के लिए जरूरी है कि वे बच्चे के साथ सुलझा हुआ संतुलित व्यवहार करें. उस की कोई बात ठीक न लगे या उसे किसी चीज के लिए मना करना हो तो उसे प्यार से समझाएं कि क्यों उसे मना किया जा रहा है. वह तब भी न समझे तो उसे यह बात बारबार समझाएं, मगर अपने फैसले पर अडिग रहें. लाड़प्यार में उसूलों से समझौता न करें. इस से बच्चे का अपरिपक्व मन अच्छेबुरे और स्थितियों की सचाई को ठीकठीक समझ सकेगा. उसे यह बात भी साफ हो जाएगी कि जिद या गुस्से से कोई लाभ नहीं मिलने वाला.

जहां तक उस के कभी खूब खाने, कभी न खानेपीने की बात है, तो सच यह है कि हमारे मूड का हमारी भूखप्यास से बहुत गहरा नाता है. मन उदास हो तो भूखप्यास पर ताला लग जाना स्वाभाविक है. बच्चे का मूड उस के एपेटाइट पर सीधा असर डालता है. इस पर अधिक ध्यान न दें. बच्चा भूखा होगा तो वह अपने से भोजन कर लेगा. उस का भूखा रहना सिर्फ अटैंशन सीकिंग बिहेवियर का हिस्सा है, इस बात को जब तक आप तूल देते रहेंगे तब तक वह यह मैकेनिज्म अपनाता रहेगा.

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