कितनी कैलोरी है जरूरी

आप एक दिन में जितनी कैलोरी का सेवन करते हैं उस का असर आप के वजन पर पड़ता है. स्वस्थ रहने एवं वजन नियंत्रण के लिए आप को ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता नहीं होती है. इस के लिए अपनी डाइट में कम कैलोरीयुक्त खानपान की चीजें शामिल करना आवश्यक है, साथ ही वेट लौस ऐक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना आवश्यक है.

यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो आप सीआईसीओ यानी ‘कैलोरी इन कैलोरी आउट’ डाइट को अपना सकते हैं.

वजन नियंत्रित करने के लिए कितनी कैलोरी आवश्यक है? इस के लिए सब से पहले अपने बेसल मेटाबौलिक रेट (बीएमआर) की गणना करें, जो आप के शरीर की क्रियाओं जैसे सांस लेने, दिल की धड़कन, पाचन और मांसपेशियों आदि के लिए चाहिए.

अगर आप अपना वजन घटाना चाहते हैं तो अपनी डाइट में कम कैलोरी और वजन बढ़ाने के लिए अधिक कैलोरी को शामिल करें.

सीआईसीओ डाइट क्या है

  •  यह आप के प्रतिदिन कैलोरी इंटेक से जुड़ी डाइट है.
  •  यह वजन घटाने और वजन बढ़ाने दोनों के लिए ही उपयुक्त है क्योंकि यह आप की कैलोरी की खपत को पूरी तरह से नियंत्रित रख सकती है.
  •  जब आप का कैलोरी इन्टेक कम होता है और खपत ज्यादा होती है तो कैलोरी डैफिसिट माना जाता है जिस की वजह से आप का वजन तेजी से कम होता है.
  •  इस डाइट को करने के लिए आप को आप का बीएमआर कैलकुलेट करना पड़ता है. इस के बाद कैलोरी को डैफिसिट करते हैं ताकि आप का वजन कम हो सके. जैसे आप का कैलोरी  इन्टेक 2,000 प्रतिदिन कैलोरी है और आप ने दिनभर में बर्न की 2,500 कैलोरी तो यहां 500 कैलोरी का डैफिसिट है. इस का अर्थ हुआ कि अब आवश्यक 500 कैलोरी आप के शरीर में स्टोर्ड फैट और मसल्स से बर्न होगी और आप का वजन तेजी से कम होने लगेगा.

सीआईसीओ के फायदे

  •  कैलोरी की खपत को नियंत्रित करती है.
  •  इस डाइट को फौलो करने से आप वजन बढ़ाने से बच सकते हैं.
  •  यह डाइट हृदय रोग, अवसाद, कैंसर और सांस की समस्याओं तक कई बीमारियों से सुरक्षित रखने में मदद कर सकती है.
  •  शरीर की अतिरिक्त चरबी को प्राकृतिक रूप से कम करने के लिए भी इस डाइट को फौलो किया जा सकता है.
  • इस के अलावा आप औक्सीडेटिव तनाव कम करने और हारमोनल संतुलन बनाए रखने के लिए भी इस डाइट को अपना सकते हैं.

सीआईसीओ के नुकसान

  •  कैलोरी पर बहुत अधिक ध्यान देने से शरीर में महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की कमी होने का खतरा बढ़ जाता है.
  •  इस डाइट से बालों का ?ाड़ना, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, सूजन और कमजोर रोगप्रतिरोधक क्षमता जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
  •  इस के अतिरिक्त कैलोरी की कमी से ऐक्सरसाइज करने में कठिनाई भी हो सकती है.

वजन कम करने के लिए आवश्यक नहीं कि आप अपनी कैलोरी को काउंट करें. आप इस के लिए एक बेहतर डाइट प्लान बना सकते हैं ताकि शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी न हो और कमजोरी महसूस न हो और आप का शरीर स्वस्थ बना रहे.

अपनाएं ये टिप्स

अपने आहार में चुनें ऐसी चीजें जिन की कैलोरी कम हो. चयन करें पोषक तत्त्वों से भरपूर खाना न कि कैलोरी के हिसाब से जैसे लो कैलोरी वाली चीजें चावल, केक, एग व्हाइट आदि की जगह न्यूट्रिशएस फूड को अपने आहार में शामिल करें जैसे फल, सब्जियां, फिश, एग्स, बींस और नट्स.

रहें ऐक्टिव

अपनी कैलोरी को बर्न करने के लिए अपनी हौबी के अनुसार ऐक्टिविटी का चुनाव करें ताकि कैलोरी का डैफिसिट हो सके. अपनी नींद और स्ट्रैस को मैनेज करें. अच्छी नींद और कम तनाव दोनों वजन कम करने में सहायक होते हैं. अत: 7-8 घंटे की साउंड नींद लें और तनाव से दूर रहें.

ढोल पीटने की जरूरत नहीं थी

किसी भी उत्सव पर घरों, दुकानों, दफ्तरों को सजाना आम बात है. दीवाली, ओणम, ईद में तो ऐसा करते ही हैं पर शादी के समय जो कुछ किया जाता है उस से जगह एकदम चमचमा उठती है और मेहमान खुश हो कर आते हैं और वाहवाह कर के जाते हैं. अमीर तो बहुत कुछ करते हैं पर अब गरीब भी देखादेखी ऐसा कुछ करने लगे हैं. आज एक गरीब किसान मजदूर भी शादी पर क्व3-4 लाख खर्च कर डालता है, चाहे पैसा कहीं से भी आए.

भारत सरकार ने नरेंद्र मोदी को उभारने के लिए जी-20 सम्मेलन के लिए ऐसा ही कुछ किया. पूरी दिल्ली को लड़की वालों के घर की तरह सजाया गया और अपनी गरीबी, फटेहाली, बदबू, टूटे मकानों को छिपाने की पूरी कोशिश की गई. नरेंद्र मोदी यह कहते अघाते नहीं कि भारत विश्व की चौथीपांचवीं अर्थव्यवस्था है और इसीलिए बड़ेबड़े नेता आ रहे हैं. खर्च हो रहा है तो वाजिब है मगर यह न समझें कि आने वाले बरातियों को भारत की असलियत नहीं मालूम है.

140 करोड़ लोगों का देश होने की वजह से भारत चौथेपांचवें नंबर पर चाहे हो और उस की अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन डौलर से ज्यादा हो पर यह न भूलें कि जी-20 की चमकदमक यह नहीं छिपा सकती कि आम भारतीय की आय

2,030 डौलर प्रतिवर्ष है जबकि नंबर 1 देश अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 70 हजार डौलर है, हमारे औसत आदमी से 35 गुना ज्यादा. चीन में भी प्रति व्यक्ति आय 13 हजार डौलर है.

इसीलिए जी-20 पर किया खर्च सिर्फ अपनों को झूठी तसल्ली दिलाने की कोशिश है. गरीब के घर में छक कर खाते बाराती जानते हैं कि चमचम आशियाने के पीछे कैसा जर्जर मकान है और यह शानोशौकत न जाने कितने दिन पेट काट कर सोने की वजह से है.

जी-20 का सरगना होना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के इस क्लब में एकएक कर के हर देश मेजबान बनता है. पिछले साल इंडोनेशिया था, अगले साल ब्राजील होगा. दोनों की कुल संपदा कम है पर दोनों के ही नागरिक भारत के नागरिकों से ज्यादा अमीर हैं.

जी-20 ने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया है जिस से भारत को कोई फायदा हुआ है. जो बाइडन, ऋषि सुनक आदि से मेलमुलाकातों का मतलब यह नहीं कि वे अब भारत का लोहा मानने लगेंगे. 2003 में भी भारत ने मेजबानी की थी पर तब ऐसा हल्ला नहीं मचाया गया था क्योंकि इस में सभी देशों के राष्ट्रप्रमुख नहीं थे और केवल मं   झले स्तर पर मीटिंगें दिल्ली में हुई थीं.

2007 के बाद राष्ट्रप्रमुख आएंगे यह फैसला किया गया. भारत को जी-20 की चेयरमैन पिछले साल इंडोनेशिया से मिली थी और यह ऐसा नहीं कि हमारे यहां कोई बरात आ रही हो. यह केवल राष्ट्रप्रमुखों की किट्टी पार्टी है जिस में 2-3 के अलावा सब आए और मेजबान के रूप में हम ने सिर्फ ठहरने व खानेपीने की व्यवस्था की.

जो फैसले हुए वे पहले से तय ऐजैंडे पर थे और भारत का कोई दखल नहीं था. रूस के पुतिन नहीं आए और चीन के जिनपिंग भी नहीं आए.

इस मौके पर ढोल पीटने की जरूरत नहीं थी. हां, शहर को सजाना ठीक था पर उस तरह से नहीं जिस तरह किया गया. दिल्ली अब फालतू में कुछ दिन दूसरे शहरों से बहुत चमचमाती नजर आएगी जिस में श्रेय सिर्फ मोटे खर्च का है. गरीब भारतीय ने सूट पहन कर मेजबानी की है.

मेरे होंठ बहुत छोटे हैं और मुझे पाउटेड लिप्स पसंद हैं. मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे होंठ बहुत छोटे हैं और मुझे पाउटेड लिप्स पसंद हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप 1 चम्मच ऐलोवेरा जैल में 1/2 चम्मच कोकोनट औयल डालें. अब 1/2 चम्मच चीनी भी मिक्स कर लें. बहुत ही सौफ्ट ब्रश से अपने होंठों के ऊपर मसाज करें. कुछ ही मिनटों में आप के होंठ पाउटेड नजर आने लग जाएंगे. छोटे लिप्स को जनरली बड़ा करने के लिए आप परमानैंट लिपस्टिक लगवा सकती हैं. इस से आप के होंठ हमेशा बड़े और खूबसूरत नजर आएंगे और साथ में गुलाबी रंग के भी दिखेंगे.

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मेरे चेहरे पर छोटेछोटे ओपन पोर्स हैं जिस से मेकअप करना बहुत खराब लगता है. मेकअप उन के अंदर चला जाता है जो बहुत खराब दिखाई देता है. कोई उपाय बताएं?

ओपन पोर्स को कम करने के लिए हफ्ते में 1 बार इस पैक को लगाएं जिस से आप को फायदा होगा. आप 2 बड़े चम्मच हलका गरम पानी लें. उस में एक डिस्प्रिन की गोली डाल दें और 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिला लें. इस पैक को फेस पर लगा कर

1/2 घंटा रखें और फिर धो लें. ऐसा हफ्ते में 2 बार करने से 2-3 महीने में आप को रिजल्ट नजर आने लग जाएगा. हर रात को विटामिन ई का कैप्सूल फोड़ कर उस से हलकी मसाज करें. इस से भी फायदा होगा. अगर इस से फायदा न हो तो किसी अच्छे क्लीनिक में जा कर लेजर×यंग स्किन मास्क की फिटिंग लें. इलास्टिन मास्क भी पोर्स को कम करने में फायदा देता है. उसे अप्लाई कर सकती हैं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी    झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

 

इस फेस्टिवल घर पर बनाएं कोकोनट सूप और राजगिरा हलवा

फेस्टिवल बेहद ही नजदीक आ गया है ऐसे में घर पर क्या बनाएं. चिंता छोड़िए बस झट से घर पर बनाएं कोकोनट सूप और राजगिरा हलवा. आइए इसकी रेसिपी आपको बताते है.

  1. कोकोनट सूप

सामग्री

1. 2 बड़े चम्मच औलिव औयल 

  2. थोड़ा सा प्याज बारीक कटा

  3. थोड़ा सा लहसुन का पेस्ट 

   4. 1 कप मशरूम कटी

   5.  1 कप गाजर लंबे टुकड़ों में कटी 

   6. 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट

   7.  1 छोटा चम्मच चीनी

   8. 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

  9.  सोया सौस

  10.  थोड़ा सा लैमन जेस्ट

   11. 3 कप वैजिटेबल स्टौक 

   12. 2 केन कोकोनट मिल्क

   13.  थोड़ी सी धनियापत्ती

  14.  नीबू के टुकड़े सजाने के लिए

   15. स्वादानुसार नमक.

विधि

एक बड़े बरतन में औलिव औयल ले कर उसे गरम करें. गरम होने पर उस में प्याज, लहसुन का पेस्ट व मशरूम डाल कर 5 मिनट तक चलाएं. फिर इस में बाकी बची सामग्री को अच्छे से मिक्स कर 15-20 मिनट तक पकने के लिए छोड़ दें. बीच में चलाना न छोड़ें. जब अच्छे से पक जाए तो नीबू के टुकड़ों से सजा कर सर्व करें.

2. राजगिरा हलवा

सामग्री

1. 1 कप राजगिरा आटा

 2.  21/2 कप दूध

 3.  8 बड़े चम्मच घी

 4.  1/2 कप चीनी

 5.  थोड़ा सा इलायची पाउडर

 6.  थोड़े से काजू व बादाम कटे हुए.

विधि

एक पैन में धीमी आंच पर दूध पकाएं. पकने पर उस में चीनी डाल कर अच्छी तरह चलाएं. अब एक अन्य पैन में घी गरम कर उस में राजगिरा आटा डाल कर तब तक चलाएं जब तक कि वह सुनहरा न हो जाए. फिर इस में धीरेधीरे दूध डालते हुए धीमी आंच पर थोड़ी देर चलाएं. जब दूध सूख जाए और शीरा घी छोड़ने लगे तब आंच बंद कर इस में इलायची व ड्राईफूट्स डाल कर गरमगरम सर्व करें.

3. गुलाब जामुन

 सामग्री चाशनी बनाने की

1.  1 कप चीनी 

  2. 1 कप पानी

  3.  थोड़ा सा इलायची पाउडर

  4.  1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

 5.  2 बड़े चम्मच गुलाब जल.

 सामग्री गुलाबजामुन बनाने की

1. 1 कप मिल्क पाउडर

  2. 4 बड़े चम्मच मैदा

  3.  1 बड़ा चम्मच सूजी

  4.  चुटकीभर बेकिंग सोडा

 5. 1 बड़ा चम्मच घी

6. 1 बड़ा चम्मच दही

7. 4-5 बड़े चम्मच दूध.

अन्य सामग्री

तलने के लिए घी या तेल

 गार्निशिंग के लिए ड्राईफूट्स.

विधि

एक पैन में चीनी व पानी मिला कर धीमी आंच पर तब तक चलाती रहें जब तक वह स्टिकी न हो जाए. फिर इलायची पाउडर डालें. अब क्रिस्टल बनने से रोकने के लिए नीबू का रस डाल ढक कर एक तरफ रख दें. फिर गुलाबजामुन बनाने के लिए एक मिक्सिंग बाउल में मैदा, मिल्क पाउडर, सूजी और बेकिंग सोडा डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. फिर इस में घी व दही मिला कर अच्छी तरह चलाते हुए इस में दूध मिला कर सौफ्ट डो तैयार करें. इस डो की छोटीछोटी बौल्स बना कर उन्हें सुनहरा होने तक तल कर उन्हें गरम चाशनी में डाल कर 40 मिनट के लिए ढक कर रख दें. फिर ड्राईफूट्स से सजा कर सर्व करें.

परख : भाग 3- कैसे बदली एक परिवार की कहानी

‘‘मां, मैं आप के चेहरे से आप की पीड़ा सम झ सकती हूं. आप पापा के पास क्यों नहीं लौट जातीं,’’ एक दिन गौरिका ने मां श्यामला से साफ कह दिया. ‘‘कहना क्या चाहती हो तुम?’’ श्यामला ने प्रश्न किया. ‘‘यही कि इस आयु में मु झ से अधिक पापा को आप की आवश्यकता है.’’

‘‘उस की चिंता तुम न ही करो तो अच्छा है. तुम्हारे पापा ने ही मु झे यहां भेजा है पर यहां आ कर मु झे भी उन की बात सम झ में आने लगी है. तुम्हारे लक्षण ठीक नहीं नजर आ रहे हैं.’’

‘‘ऐसा क्या देख लिया आप ने जो मेरे लक्षण बिगड़ते दिखने लगे? अपने बेटे गुंजन के लक्षणों की कभी चिंता नहीं की आप ने?’’ गौरिका बेहद कटु स्वर में बोली.

‘‘अपने भाई पर इस तरह आरोप लगाते तुम्हें शर्म नहीं आती? मैं जब भी उस से मिलने जाती हूं आसपास के लोग उस की प्रशंसा करते नहीं थकते. जबकि यहां तुम श्याम भैया और नीता भाभी से लड़ झगड़ कर अकेले रहने चली आईं. तुम ही बताओ कि क्लब से नशे में धुत्त लौट कर तुम किस का सम्मान बढ़ा रही हो?’’

‘‘मामाजी और मामीजी से तो आप भी लड़ झगड़ आई हैं. मेरे ऊपर उंगली उठाने से पहले यह तो सोच लिया होता.’’

‘इसी मूर्खता पर तो मैं स्वयं को कोस रही हूं. वे तो तुम्हारे बारे में और कुछ भी बताना चाहते थे पर मैं ही अपनी मूर्खता से उन की बोलती बंद कर आई.’’

‘‘उस के लिए दुखी होने की आवश्यकता नहीं है. मेरे संबंध में कोई बात आप को किसी और से पता चले, उस से अच्छा तो यही होगा कि मैं स्वयं बता दूं. मैं और मेरा सहकर्मी अर्णव साथ रहते हैं. आप आ रही थीं इसलिए वह कुछ दिनों के लिए घर छोड़ कर चला गया है,’’ गौरिका बिना किसी लागलपेट के बोली.

‘‘उफ, यह मैं क्या सुन रही हूं? संस्कारी परिवार है हमारा. ऐसी बातें बिरादरी में फैल गईं तो तुम से कौन विवाह करेगा?’’ श्यामला बदहवास हो उठीं.

‘‘आप उस की चिंता न करो. मैं बिरादरी में विवाह नहीं करने वाली.’’

‘‘ठीक है, साथ ही रहना है तो विवाह क्यों नहीं कर लेते तुम दोनों?’’

‘‘अभी हम एकदूसरे को परख रहे हैं. कुछ समय साथ रहने के बाद यदि हमें लगा कि हम एकदूसरे के लिए बने हैं, तो विवाह की सोचेंगे. वैसे भी विवाह नाम की संस्था में मेरा या अर्णव का कोई विश्वास नहीं है. इस के बिना भी समाज का काम चल सकता है,’’ गौरिका अपनी ही रौ में बहे जा रही थी.

‘‘सम झ में नहीं आ रहा कि मैं रोऊं या हंसूं. तुम्हारे पापा को पता चला तो पता नहीं वे इस सदमे को सह पाएंगे या नहीं,’’ श्यामला रो पड़ीं.

‘‘मम्मी, यह रोनापीटना रहने दो. आप कहो तो अर्णव को यहीं बुला लूं. आप भी उसे जांचपरख लेंगी,’’ गौरिका ने प्रस्ताव रखा.

‘‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ मेरे सामने ऐसा बेहूदा प्रस्ताव रखने का?’’ श्यामला की आंखों से चिनगारियां निकलने लगीं.

‘‘ठीक है, आप नाराज मत होइए. भविष्य में कभी ऐसी बात नहीं कहूंगी,’’ श्यामला का क्रोध देख कर गौरिका ने तुरंत पैतरा बदला.

पर श्यामला को चैन कहां था. वे रात भर करवटें बदलती रहीं. कभी बेचैनी से टहलने लगतीं तो कभी प्रलाप करने लगतीं. वे नभेश से बात करने का साहस भी नहीं जुटा पा रही थीं.

रात भर सोचविचार कर वे इस निर्णय पर पहुंचीं कि गौरिका की बात मान लेने में कोई बुराई नहीं है. अर्णव साथ आ कर रहेगा तो वे उस पर दबाव डाल कर उसे विवाह के लिए राजी कर लेंगी. अंतत: उन्होंने अर्णव को साथ रहने की अनुमति दे दी. वह दूसरे ही दिन साथ रहने के लिए आ धमका.

श्यामला को जब भी अवसर मिलता वे दोनों को विवाहबंधन के लाभ गिनातीं पर गौरिका और अर्णव अपने तर्कों द्वारा उन के हर तर्क को काट देते. इतनी मानसिक यातना उन्होंने कभी नहीं झेली थी.

वे मन ही मन इतनी डरी हुई थीं कि सारे प्रकरण की जानकारी नभेश को देने में मन कांप उठता था.

इसी ऊहापोह में कब 3 माह बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. अपने सभी प्रयत्नों को असफल होते देख कर उन्होंने सारी जानकारी अपने पति को देने का निर्णय लिया. फिर उन्होंने फोन उठाया ही था कि गौरिका का फोन आ गया, ‘‘मम्मी, हम 8-10 सहेलियों ने रात्रि उत्सव का आयोजन किया है. मैं आज रात घर नहीं आऊंगी. कल सुबह मिलेंगे. शुभरात्रि,’’ कह गौरिका ने उन्हें सूचित किया और फोन काट दिया. उन की प्रतिक्रिया जानने का प्रयत्न भी नहीं किया.

‘‘कौन हैं ये सहेलियां जिन के साथ इस पार्टी का आयोजन किया जा रहा है?’’ उन्होंने अर्णव के आते ही प्रश्न किया.

‘‘फेसबुक पर गौरिका की सैकड़ों सहेलियां हैं. मैं कैसे जान सकता हूं कि वह किन के साथ पार्टी कर रही है? सच पूछिए तो हम एकदूसरे के व्यक्तिगत मामलों में दखल नहीं देते,’’ अर्णव ने हाथ खड़े कर दिए तो श्यामला विस्फारित नेत्रों से उसे ताकती रह गईं फिर उन्होंने तुरंत ही फोन पर पूरी जानकारी नभेश को दे दी.

सारी बात सुन कर वे देर तक उन्हें बुराभला कहते रहे. फिर वे काफी देर तक आंसू बहाती रहीं. पर उस दिन उन्हें बहुत दिनों बाद चैन की नींद आई. उन्हें लगा कि शीघ्र ही नभेश आ कर उन्हें इस यंत्रणा से मुक्ति दिला देंगे. वे बहुत गहरी नींद में थीं जब फोन की घंटी बजी, ‘‘हैलो, कौन?’’ उन्होंने उनींदे स्वर में पूछा. ‘‘जी मैं सुषमा, गौरिका की सहेली. हम लोग खापी कर मस्ती करने सड़क पर निकले थे.

गौरिका कार पर नियंत्रण नहीं रख सकी. उस की कार कुछ राह चलते लोगों पर चढ़ गई. हम मानसी पुलिस स्टेशन में हैं. आप अर्णव के साथ तुरंत वहां पहुंचिए.’’ बदहवास श्यामला ने अर्णव के कमरे का दरवाजा पीट डाला. अर्णव के दरवाजा खोलते ही उन्होंने पूरी बात बता दी. ‘‘ठीक है, मैं तैयार हो कर आता हूं,’’ और फिर दरवाजा बंद कर लिया. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अर्णव अपने दोनों हाथों में सूटकेस थामे खड़ा था. ‘‘अरे बेटा, इस सब की क्या जरूरत है?’’ श्यामला ने प्रश्न किया.

‘‘आंटी, क्षमा कीजए. मैं आप के साथ नहीं जा रहा. मेरा एक सम्मानित परिवार है. मैं पुलिस, कचहरी के चक्कर में पड़ कर उन्हें ठेस नहीं पहुंचा सकता. मैं यह घर छोड़ कर जा रहा हूं. आप जानें और आप की सिरफिरी बेटी,’’ क्रोधित स्वर में बोल अर्णव बाहर निकल गया. जब तक श्यामला कुछ बोल पातीं वह कार स्टार्ट कर जा चुका था. उस अंधकार में उन्हें श्याम की ही याद आई. फोन पर ही उन्होंने क्षमायाचना की और सहायता करने का आग्रह किया. श्याम ने उन्हें धीरज बंधाया. आश्वासन दिया कि वे तुरंत पहुंच रहे हैं. रिसीवर रख श्यामला वहीं बैठ गईं. उन के आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. द्य

असमंजस: भाग 2- क्यों अचानक आस्था ने शादी का लिया फैसला

‘यदि मेरी बात एक हितैषी मित्र के रूप में मानती हो तो अपनी राह स्वयं तैयार करो. हिमालय की भांति ऊंचा लक्ष्य रखो. समंदर की तरह गहरे आदर्श. आशा करती हूं कि तुम अपनी जिंदगी के लिए वह राह चुनोगी जो तुम्हारे जैसी अन्य कई लड़कियों की जिंदगी में बदलाव ला सके. उन्हें यह एहसास करा सके कि एक औरत की जिंदगी में शादी ही सबकुछ नहीं है. सच तो यह है कि शादी के मोहपाश से बच कर ही एक औरत सफल, संतुष्ट जिंदगी जी सकती है.

‘एक बार फिर जन्मदिन मुबारक हो.

‘तुम्हारी शुभाकांक्षी,

रंजना.’

रंजना मैडम का हर खत आस्था के इस निश्चय को और भी दृढ़ कर देता कि उसे विवाह नहीं करना है. विवान और आस्था दोनों इसी उद्देश्य को ले कर बड़े हुए थे कि दोनों को अपनेअपने पिता की तरह सिविल सेवक बनना है. लेकिन विवान जहां परिवार और उस की अहमियत का पूरा सम्मान करता था वहीं आस्था की परिवार नाम की संस्था में कोई आस्था बाकी नहीं थी. उसे घर के मंदिर में पूजा करती दादी या रसोई में काम करती मां सब औरत जाति पर सदियों से हो रहे अत्याचार का प्रतीक दिखाई देतीं.

अपने पहले ही प्रयास में दोनों ने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. आस्था का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हुआ था तो विवान का भारतीय राजस्व सेवा में. बस, अब क्या था, दोनों के परिवार वाले उन की शादी के सपने संजोने लगे. विवान के परिजनों के पूछने पर उस ने शादी के लिए हां कह दी किंतु वह आस्था की राय जानना चाहता था. विवान ने जब आस्था के सामने शादी की बात रखी तो एकबारगी आस्था के दिमाग में रंजना मैडम की दी हुई सीख जैसे गायब ही हो गई. बचपन के दोस्त विवान को वह बहुत अच्छे तरीके से जानती थी. उस से ज्यादा नेक, सज्जन, सौम्य स्वभाव वाले किसी पुरुष को वह नहीं जानती थी. और फिर उस की एक आजाद, आत्मनिर्भर जीवन जीने की चाहत से भी वह अवगत थी. लेकिन इस से पहले कि वह हां कहती, उस ने विवान से सोचने के लिए कुछ समय देने को कहा जिस के लिए उस ने खुशीखुशी हां कह दी.

वह विवान के बारे में सोच ही रही थी कि रंजना मैडम का एक खत उस के नाम आया. अपने सिलैक्शन के बाद वह उन के खत की आस भी लगाए थी. मैडम जाने क्यों मोबाइल और इंटरनैट के जमाने में भी खत लिखने को प्राथमिकता देती थीं, शायद इसलिए कि कलम और कागज के मेल से जो विचार व्यक्त होते हैं वे तकनीकी जंजाल में उलझ कर खो जाते हैं. उन्होंने लिखा था :

‘प्रिय मित्र,

‘तुम्हारी आईएएस में चयन की खबर पढ़ी. बहुत खुशी हुई. आखिर तुम उस मुकाम पर पहुंच ही गईं जिस की तुम ने चाहत की थी लेकिन मंजिल पर पहुंचना ही काफी नहीं है. इस कामयाबी को संभालना और इसे बहुत सारी लड़कियों और औरतों की कामयाबी में बदलना तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए. और फिर मंजिल एक ही नहीं होती. हर मंजिल हमारी सफलता के सफर में एक पड़ाव बन जाती है एक नई मंजिल तक पहुंचने का. कामयाबी का कोई अंतिम चरण नहीं होता, इस का सफर अनंत है और उस पर चलते रहने की चाह ही तुम्हें औरों से अलग एक पहचान दिला पाएगी.

‘निसंदेह अब तुम्हारे विवाह की चर्चाएं चरम पर होंगी. तुम भी असमंजस में होगी कि किसे चुनूं, किस के साथ जीवन की नैया खेऊं, वगैरहवगैरह. तुम्हें भी शायद लगता होगा कि अब तो मंजिल मिल गई है, वैवाहिक जीवन का आनंद लेने में संशय कैसा? किंतु आस्था, मैं एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहती हूं कि जो तुम ने पाया है वह मंजिल नहीं है बल्कि किसी और मंजिल का पड़ाव मात्र है. इस पड़ाव पर तुम ने शादी जैसे मार्ग को चुन लिया तो आगे की सारी मंजिलें तुम से रूठ जाएंगी क्योंकि पति और बच्चों की झिकझिक में सारी उम्र निकल जाएगी.

‘यह मैं इसलिए कहती हूं कि मैं ने इसे अपनी जिंदगी में अनुभव किया है. तुम्हें यह जान कर हर्ष होगा कि मुझे राष्ट्रपति द्वारा प्रतिवर्ष शिक्षकदिवस पर दिए जाने वाले शिक्षक सम्मान के लिए चुना गया है. क्या तुम्हें लगता है कि घरगृहस्थी के पचड़ों में फंसी तुम्हारी अन्य कोई भी शिक्षिका यह मुकाम हासिल कर सकती थी?

‘शेष तुम्हें तय करना है.

‘हमेशा तुम्हारी शुभाकांक्षी,

रंजना.’

इस खत को पढ़ने के बाद आस्था के दिमाग से विवान से शादी की बात को ले कर जो भी असमंजस था, काफूर हो गया. उस ने सभी को कभी भी शादी न करने का अपना निर्णय सुना दिया. मांपापा और दादी पर तो जैसे पहाड़ टूट गया. उस के जन्म से ले कर उस की शादी के सपने संजोए थे मां ने. होलीदीवाली थोड़ेबहुत गहने बनवा लेती थीं ताकि शादी तक अपनी बेटी के लिए काफी गहने जुटा सकें लेकिन आज आस्था ने उन से बेटी के ब्याह की सब से बड़ी ख्वाहिश छीन ली थी. उन्हें अफसोस होने लगा कि आखिर क्यों उन्होंने एक निम्नमध्य परिवार के होने के बावजूद अपनी बेटी को आसमान के सपने देखने दिए. आज जब वह अर्श पर पहुंच गई है तो मांबाप की मुरादें, इच्छाओं की उसे परवा तक नहीं.

विवान ने भी कुछ वर्षों तक आस्था का इंतजार किया लेकिन हर इंतजार की हद होती है. उस ने शादी कर ली और अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गया. दूसरी ओर आस्था अपनी स्वतंत्र, स्वैच्छिक जिंदगी का आनंद ले रही थी. सुबहशाम उठतेबैठते सिर्फ काम में व्यस्त रहती थी. दादी तो कुछ ही सालों में गुजर गईं और मांपापा से वह इसलिए बात कम करने लगी क्योंकि वे जब भी बात करते तो उस से शादी की बात छेड़ देते. साल दर साल उस का मांपापा से संबंध भी कमजोर होता गया.

वह घरेलू स्त्रियों की जिंदगी के बारे में सोच कर प्रफुल्लित हो जाती कि उस ने अपनी जिंदगी के लिए सही निर्णय लिया है. वह कितनी स्वतंत्र, आत्मनिर्भर है. उस का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहचान है. बतौर आईएएस, उस के काम की सारे देश में चर्चा हो रही है. उस के द्वारा शुरू किए गए प्रोजैक्ट हमेशा सफल हुए हैं. हों भी क्यों न, वह अपने काम में जीजान से जो जुटी हुई थी.

हरेक का अपना दिल है: भाग 2- स्नेहन आत्महत्या क्यों करना चाहता था

मैं अपने कमरे में पहुंचा और अपना सामान चैक किया. चंद महंगे कपड़े… पैसे… बस इतना ही… शाम ढलते ही अंधेरा घिरने लगा. मुझे नहीं पता कि मैं कितनी देर तक समुद्र में बैठा रहा और लहरों को लगातार तट से टकराते देखता रहा. आधी रात होनी चाहिए. मैं उस समय का इंतजार कर के बैठा रहा.

बहुत हो गया… यह जीवन… मैं ने अपनेआप से कहा और कुदरत से क्षमायाचना करते हुए चलने लगा.

समुद्र की गहराई उन जगहों पर ज्यादा नहीं होती जहां पैर सामने रखे जाते थे. मैं सागर की ओर चलने लगा. लहरें दौड़ती हुई मेरे पास आ कर मु   झे छूने लगीं और मु   झे ऐसा लगा जैसे मु   झे भीतर आने का निमंत्रण दे रही हों.

पैरों में सीप और पत्थर चुभ गए. छोटीछोटी मछलियों को मैं महसूस कर सकता था. आगेआगे मैं चहलकदमी करने लगी और गरदन तक पानी आ गया.

कुछ पुरानी यादें मु   झे उस वक्त घेरने लगीं और मेरे मन में अजीबोगरीब खयाल आने लगे. मगर मैं नहीं रुका, मैं चलता रहा.

खारा पानी मुंह में घुस गया, आंखों में पानी आने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मु   झे किसी अवर्णनीय गहराई तक खींच रहा हो.

लहरों की गति अधिक है, एक खींच, एक टक्कर, एक लात, लहरें पानी में मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने लगीं जैसे फुटबौल खिलाड़ी गेंद को लात मार रहे हों.

मेरी स्मृति धूमिल हो रही थी. छाती, नाक, आंखें, कानों, मुंह में खारा पानी भर कर मु   झे नीचे और नीचे धकेल रहा था.

अचानक मु   झे ऐसा लगा कि कोई मजबूत हाथ मु   झे गहराई से ऊपर खींच रहा हो. मेरी याददाश्त रुक गई.

जब मैं उठा तो काले रंग के स्विमसूट में एक बूढ़ी विदेशी महिला मेरी बगल में बैठी थी. उस की बगल में 3 युवा थाई लड़के खड़े थे.

क्या मैं मरा नहीं हूं? मुझे तट पर कौन लाया?

उस ने अपनी आंखें खोलीं. मैं ने विदेशी महिला को अपनी धाराप्रवाह अमेरिकी अंगरेजी में कहते सुना. तब तक, जिस रिजोर्ट में मैं ठहरा था, उस का मालिक और दूसरा आदमी दोनों हमारी ओर दौड़ते हुए आए.

‘‘क्या हुआ? वे होश में आ गए?’’ थाइलैंड आदमियों ने टूटीफूटी अंगरेजी में पूछा तो अमेरिकी महिला ने कहा, ‘‘हां इन्हें होश आ गया.’’

मैं सुन सकता था. उन में से एक डाक्टर जैसा दिख रहा था. उस ने मेरी नब्ज पकड़ी और कहा,‘‘सब ठीक है.’’

बाद में उन्होंने अमेरिकी महिला से कहा, ‘‘तुम ने इस की जान बचा कर एक अच्छा काम किया है.’’

हालांकि मैं बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था. मैं चलने लायक नहीं था. उन सभी लोगों ने मिल कर मु   झे वहां से उठा कर जिस कमरे में मैं ठहरा हुआ था उस में बिस्तर पर लिटा दिया.

उस महिला ने मुझ से केवल इतना कहा, ‘‘शुभ रात्रि… ठीक से सो जाओ… सुबह मिलेंगे…’’ और दरवाजा बंद कर चली गई.

तो मैं ने जो प्रयास किया वह भी असफल रहा? अपने जीवन में पहली बार मैं आह… जोर से चिल्लाया जैसे मानो मेरे सीने तक दबा हुआ दुख खुल कर बाहर आ गया हो. मु   झे नहीं पता कि मैं कब सो गया.

जब मैं उठा तो धूप अच्छी थी. मेरे कमरे के परदों से भोर का उजास आ रहा था. जैसे ही मैं चौंक कर उठा और गीले कपड़ों में बाहर निकला, मैं ने कल जिस थाई युवक को देखा था उस ने कहा, ‘‘सुप्रभात… ठीक हैं?’’ उस ने मुसकराते हुए पूछा.

मैं बरामदे में कुरसी पर बैठ गया और फिर से समुद्र को देखने लगा.

‘‘गुड मौर्निंग…’’ उधर से आवाज आई.

मैं ने पलट कर देखा. कल समुद्र से मु   झे बचाने वाली अमेरिकी महिला वहीं खड़ी थी. लगभग एक आदमी जितना कद, सुनहरे बाल, गोरा रंग…

मेरी सामने वाली कुरसी पर उस ने बैठ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए,

हम ने एकदूसरे का परिचय तक नहीं किया है. मैं जेनिफर हूं. न्यू औरलियंस, यूएसए से हूं और मैं एक लेखिका हूं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

मैं कुछ सैकंड्स के लिए नहीं बोल सका. महिला अपने 40वें वर्ष में होनी चाहिए. लंबीचौड़ी दिखने में बड़ी थी.

‘‘मैं स्नेहन हूं… बिजनैसमैन…’’ मैं ने कहा.

‘‘पहले तो मु   झे लगा कि आप समुद्र में तैरने जा रहे हैं. लेकिन मैं ने आप पर ध्यान दिया क्योंकि आप की पोशाक और शैली तैरने लायक नहीं लग रही थी. जैसेजैसे लहरें आप को अंदर खींचने लगीं, मैं सम   झ गई कि आप डगमगा रहे हैं. मैं थोड़ी दूर तैर रही थी और तुरंत आप के पास आई और आप को खींच कर ले आई…’’

मुझे बहुत गुस्सा आया. एक विदेशी महिला ने मेरी कायरतापूर्ण जान बचाई है. कितनी शर्मनाक बात है.

कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया. उस ने खुद इस सन्नाटे को भंग किया, ‘‘क्या आप खुदकुशी करने के लिए गए थे? मु   झे क्षमा कीजिए… यह एक असभ्य प्रश्न है. हालांकि पूछना है. आप की समस्या क्या है?’’

उस के साथ अपनी समस्याओं और असफलताओं पर चर्चा करने से मु   झे क्या लाभ होगा?

‘‘मैं आप को मजबूर नहीं करना चाहती… प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार है. लेकिन आत्महत्या मेरे खयाल से एक बहुत ही कायरतापूर्ण, घृणित निर्णय है…’’ उस ने खुद कहा.

अचानक मेरे अंदर एक गुस्सा पैदा हो गया, ‘‘तुम से किस ने कहा मु   झे बचाने के लिए?’’

जेनिफर ने मेरी आंखों में देखा और कहा, ‘‘अपनी आंखों के सामने किसी को मरते हुए देखना इंसानियत नहीं है… इसलिए मैं ने बचाया… आप एक भारतीय की तरह दिखते हैं? भारतीय ही हैं न?’’ उस ने पूछा.

मैं ने हां में बस सिर हिलाया.

‘‘अपना देश, अपनी संस्कृति और तत्त्वज्ञान के लिए पूरे विश्व में जाना जाता और मर्यादा से माना भी जाता है. मैं ने जीवन के अर्थ और अर्थहीन दोनों पर आप के देश के तत्त्वज्ञानियों की किताब से ही जाना है.’’

मैं ने आश्चर्य से उस की ओर देखा, ‘‘आप ने अध्ययन किया है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कुछ हद तक.’’

‘‘आप ने खुद को एक लेखिका कहा?’’

वह हंसी, ‘‘जो लिखते हैं वे ही पढ़ते हैं, जो पढ़ेंगे वे लिखेंगे जरूर.’’

‘‘मैं जीवन की उस मोड़ पर खड़ा हूं जहां से मैं वापस जिंदगी में जा ही नहीं सकता. मेरी मृत्यु ही मेरी सारी समस्याओं का इकलौता समाधान है.’’

‘‘अगर समस्याओं का समाधान मौत ही है तो दुनिया में जीने लायक कोई नहीं होगा,’’ जेनिफर ने कहा.

मैं ने जवाब नहीं दिया.

जेनिफर फिर बोलीं, ‘‘अपने दिल की बात कीजिए. हम दोनों का आपस में कोई पुराना परिचय या जानपहचान नहीं है. इसलिए हम एकदूसरे के बारे में जो भी सोचेंगे उस से हम में किसी को लाभ या नुकसान नहीं होगा. कभीकभी अपनी समस्याओं को दूसरों के साथ सा   झा करना मददगार होता है…’’

मैं बैठा समुद्र को निहार रहा था. फिर मैं ने खुद अपनी सफलता की कहानी और कई असफलताओं का वर्णन किया, जिन का मैं आज सामना कर रहा था.

थैंक्यू दादी: निवी का बचपन कैसा था

कोचिंग से आ कर नवेली बिस्तर पर गुमसुम निढाल सी पड़ गई थी. ‘‘क्या हुआ निवी, मेरी बच्ची, थक गई? तेरा मनपसंद बादाम वाला दूध तैयार है, बस, गरमगरम पी कर सो जा एक घंटे,’’ 65 वर्षीय दादी तिलोतमा ने पोती नवेली को प्यार से उठाया तो गरमगरम आंसू उस के गालों पर ढुलकने लगे.

‘‘कुछ नहीं दादी, मुझे अब पढ़ना नहीं है. मुझ से इतनी पढ़ाई नहीं होगी, मैं पापामम्मी की आशाओं को पूरा नहीं कर सकती दादी. मैं राजीव अंकल की बेटी अंजलि की तरह वह परसैंटेज नहीं ला सकती चाहे लाख कोशिश करूं.’’

‘‘अरे, तो किसी के जैसा लाने की क्या जरूरत है? अपने से ही बेहतर लाने की कोशिश करना, बस.’’

‘‘पर पापामम्मी को कौन समझाए दादी, वे हर वक्त मुझे उस अंजलि का उदाहरण देते रहते हैं. घर आते ही शुरू हो जाती हैं उन की नसीहतें, ‘कोचिंग कैसी रही, सैल्फ स्टडी कितने घंटे की, कोर्स कितना कवर किया, कहां तक तैयारी हुई. आधे घंटे का ब्रेक ले लिया बस, अब पढ़ने बैठ जा. एग्जाम के बाद बड़ा सा ब्रेक ले लेना. देखो, अंजलि कैसे पढ़ती रहती है, मछली की आंख पर ही अभ्यास करती रहती है हर समय.’ वही घिसेपिटे गिनेचुने शब्द बस, इस के अलावा कोई बात नहीं करते,’’ वह दादी की गोद में सिर रख कर रो पड़ी.

तिलोतमा सब जानती थीं. कई बार उन्होंने पहले भी बेटाबहू से इस के लिए कहा था. आज फिर टोक दिया…

‘‘अरे, निवी से तुम सब खाली यही बातें करोगे? एक तो वह पहले ही कोचिंग से थकी हुई आती है, घर में भी बस पढ़ाईपढ़ाई, कुछ और बातें भी तो किया करो ताकि दिमाग फ्रैश हो उस का.’’

‘‘मम्मा, मैं कोचिंग नहीं जाऊंगी अब से,’’ नवेली रोतेरोते बोली.

‘‘ठीक है तेरे लिए घर पर ही ट्यूटर का बंदोबस्त कर देते हैं.

‘‘वैसे भी आनेजाने में तेरा टाइम वेस्ट होता है, ग्रुप में पढ़ाई भी क्या होती होगी. मैं कपूर कोचिंग से बात कर लेता हूं, उन की अच्छी रिपोर्ट है. साइंसमैथ्स के ट्यूटर घर आ जाएंगे.’’

‘‘नहीं पापा, मुझे अपना गिटार का कोर्स कंप्लीट करना है.’’

‘‘कुछ नहीं, एक बार कैरियर सैट हो जाने दो, फिर जो चाहे सीखते रहना. गिटारविटार से कैरियर नहीं बना करते.’’

तिलोतमा की पारखी नजरें अच्छी तरह पहचान गई थीं कि पोती नवेली का उस मैथ्स पढ़ाने वाले युवा ट्यूटर अंश डिसिल्वा से संबंध गुरुशिष्य से बढ़ कर दोस्ती के रूप में पनपने लगा है. इस का कारण भी वे अच्छी तरह जानती थीं, बेटे राघव और बहू शीला की अत्यधिक व्यस्तता जो इकलौती संतान नवेली को अकेलेपन की ओर ढकेल रही थी. दोनों को अपने काम से ही फुरसत नहीं होती. शाम को जब दोनों अपनेअपने औफिसों से थक कर आते, थोड़ा फ्रैश हो कर चायकौफी पीते, मां, बच्चे और आपस में कुछ पूछताछ, कुछ हालचाल लिया, फिर वही हिदायतें.

फिर टीवी चैनल बदलबदल कर न्यूज का जायजा लेते. थोड़ा घरबाहर का काम निबटा कर कुछ कल की तैयारी करते और फिर डिनर कर मां और नवेली को गुडनाइट कर के फिर दोनों अपने रूम में चले जाते. उन के लिए तो यह सब ठीक था, लेकिन बच्चे के पास शेयर करने के लिए कितनी ही नई बातें होती हैं, जो सब दादी से नहीं की जा सकतीं. 10 मिनट भी बाहर नहीं जाने देते. न जाने पढ़ाई में कितना हर्ज हो जाएगा बल्कि दोस्त मिलेंगे तो उन से कुछ जानकारी ही मिलेगी. फिर बच्चे को खुद क्याकोई सम?ा नहीं है?  तिलोतमा को यह सब देख कर हैरानी होती.

‘‘क्या करना है बाहर जा कर, सबकुछ तो घर में है, कंप्यूटर है, इंटरनैट है. आखिर 12वीं कक्षा के बोर्ड एग्जाम हैं, पढ़ो, खाओपीओ और सो जाओ, रिलैक्स करना है तो थोड़ी देर टीवी देख लो, म्यूजिक सुन लो. बस, और क्या चाहिए.

‘‘बाहर दोस्त क्या करेंगे, उलटा माइंड डायवर्ट करेंगे, ऐसे कैरियर बनता है क्या?

‘‘सैटरडे या संडे हम आप को बाहर ले ही जाते हैं.

‘‘एक बार कैरियर बन जाए, फिर जितनी चाहे मस्ती करना.’’

‘‘पहले कोचिंग के लिए बाहर ही तो जाती थी, पर उस में तो मुंह लाल कर के थक के आती थी. फिर सैल्फ स्टडी नहीं हो पाती थी, कभी दर्द, कभी बुखार का बहाना कि मु?ो कोचिंग नहीं जाना, आखिर और बच्चे रातदिन पढ़ते नहीं क्या, टौप यों ही करते हैं?

‘‘खैर, हम ने वह भी मान लिया, सब से अच्छे ट्यूशन सैंटर से घर पर ही टौप ट्यूटर का बंदोबस्त कर दिया. अब क्या?

‘‘अभी दोस्त, मोबाइल, गिटार पार्टी सब बंद, लक्ष्य सिर्फ कैरियर…’’

फिर ऐसे में गुमसुम सा पड़ा बच्चा बेचारा अकेलेपन से घबरा कर कोई साथी न ढूंढ़ ले, डिप्रैशन में कुछ उलटापुलटा न करे तो आश्चर्य कैसा. कई बार तिलोतमा ने बहूबेटे का ध्यान इस ओर दिलाने का प्रयास किया था. मगर उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ.

नवेली का गुमसुम सा रहना दादी की तरह अंश को भी खटकता. वह उसे बेहद सीरियस देख कर कोई मजेदार चुटकुला सुना देता. वह हंसती, कुछ देर को खुश हो जाती.

‘‘अधिक स्ट्रैस नहीं लेना, 89 परसैंट मार्क्स थे तुम्हारे. अब इतना भी सीरियस रहने की जरूरत नहीं,’’ वह भी कहता. धीरेधीरे नवेली उस से खुलने लगी थी. वह उस से दिल की बातें भी शेयर करती.

‘‘सर, आप ने वह नैशनल ज्योग्राफिक चैनल पर स्टुपिड साइंस देखा है? बड़ा कमाल का लगता है.’’

‘‘हां, वे हंसीहंसी में विज्ञान का ज्ञान… सही है, पूरे समय कोर्स की बातें नहीं थोड़ा इधरउधर भी दिमाग दौड़ाना चाहिए, इस से वह ऐक्टिव ज्यादा रहता है.’’

‘सही तो कह रहा है अंश,’ तिलोतमा सोच रही थीं.

‘‘सर, डेढ़ घंटा हो गया, बड़ी गरमी है, बाहर आइसक्रीम वाला है, खाएंगे? पर बाहर जाना मना है मु?ो.’’

‘‘कोई नहीं, मैं देख रही हूं न, जा थोड़ी खुली हवा भी जरूरी है,’’ तिलोतमा मुसकराते हुए बोली और दराज से 100 रुपए निकाल कर उसे थमा दिए.

‘‘थैंक्यू दादी,’’ नवेली ने दादी को प्यारी झप्पी दी.

अंश नवेली के साथ सड़क पर निकल आया था. नवेली ने ताजी हवा में हाथ फैला लिए टायटैनिक के अंदाज में.

‘‘वाह सर, कितना अच्छा लगता है बाहर, लोगों की चहलपहल के बीच आना कभीकभी कितनी एनर्जी देता है,’’ आइसक्रीम ले कर वे वहीं खड़े हो गए.

‘‘पता है सर, मुझे म्यूजिकल और डांसिंग शोज बेहद पसंद हैं. काश, मैं भी उन में भाग ले पाती. गिटार भी एक महीने सीखा, कोर्स कंपलीट करना चाहती हूं, पर मम्मीपापा को यह सब बिलकुल भी पसंद नहीं. हमारी जिस में रुचि हो उस में बेहतर काम कर सकते हैं, अधिक खुश रह सकते हैं, है कि नहीं सर?’’

‘‘ये तो है, आज तो हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की संभावना है. जरूरी नहीं कि इंजीनियर, डाक्टर, आईएएस ही बनें. मुझे तो साइंसमैथ्स शुरू से ही पसंद थे.’’

‘‘पता नहीं सर, क्यों पापामम्मी ने रट लगा रखी है. 98 परसैंट मार्क्स लाने के लिए कहते हैं. इस के बिना आजकल कुछ नहीं होता, अगर मेरे अंजलि से कम मार्क्स आए तो उन की नाक कट जाएगी. अंजलि जैसा मेरा दिमाग है ही नहीं, तो मैं क्या करूं. पिछली बार पूरी कोशिश की थी पर…’’ वह रोने को हुई.

दोनों घर के अंदर आ गए. वह बाथरूम में घुस कर खूब रोई. तिलोतमा समझ रही थी कि दोस्त के रूप में अंश को पा कर नवेली के दिल में छिपा दर्द आज फिर बह निकला, जिसे वह दिखाना नहीं चाहती थी. अच्छा है जी हलका हो जाएगा’ यही सोच कर उन्होंने दरवाजा थोड़ी देर को थपथपाना छोड़ दिया.

‘‘नवेली, बाहर आ, सर वेट कर रहे हैं तेरा. 10 मिनट हो गए, आ जल्दी,’’ तिलोतमा दरवाजा पीट रही थीं. वे घबराने लगी थीं, ‘आजकल बच्चे डिप्रैशन में आ कर न जाने क्याक्या कर डालते हैं.’

‘‘जी, पढ़ाई के लिए इतना प्रैशर डालना ठीक नहीं. उस का मन कुछ और करने का है. वह उस में भी तो कैरियर बना सकती है,’’ अंश दादी से बोला.

‘‘मुझे नहीं पढ़ना दादी, मुझ से इतना नहीं पढ़ा जाएगा,’’ वह रोती हुई लाल आंखों से बाहर आ गई.

‘‘अच्छा, चलो, 10 मिनट का और ब्रेक ले लो, मैं तब तक मेल चैक कर लेता हूं,’’ सर ने कहा.

‘‘चल ठीक है, थोड़ी देर और कुछ कर ले, फिर पढ़ लेना. आज का कोर्स पूरा तो करना ही है, सर को भी तो जाना होगा,’’ दादी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह फिर रोने लगी थी.

‘‘मुझे कुछ नहीं करना दादी.’’

‘‘गिटार बजाएगी?’’ तिलोतमा ने उस के कानों में धीरे से कहा.

‘‘क्या… पर…’’ नवेली के आंसू एकाएक थम गए थे.

‘‘उस कमरे की चाबी मेरे पास है, चल आ, एक धुन बजा कर रख देना और फिर पढ़ाई करना, ठीक है?’’ नवेली ने हां में सिर हिलाया और बच्चे की तरह मुसकरा उठी. ‘‘

अंश बेटा, देख नवेली कितना सुंदर गिटार बजाती है.’’

‘‘जी,’’ वह मोबाइल पर मेल चैक करते हुए बोला.

नवेली ने गिटार हाथों में ले कर चूमा था, कितनी रिक्वैस्ट की थी पापामम्मी से कि गिटार का कोर्स कंपलीट करने दें, पर उन्होंने तो छीन कर इसे एक किनारे कमरे में बंद कर ताला लगा दिया. रोज थोड़ी देर बजा लेती तो क्या जाता. मैं रिलैक्स हो जाती. उस ने कवर हटा कर बड़े प्यार से उसे पोंछा और बाहर आ गई.

गिटार के तारों पर उस की उंगलियां फिसलने लगीं. एक मनमोहक धुन वातावरण में फैलने लगी. वह ऊर्जा से भर उठी. फिर अपने वादे के अनुसार पढ़ने आ बैठी. अंश चला गया, तो दादी ने उसे फिंगर चिप्स के साथ बादाम वाला दूध थमा दिया. नवेली दादी से लिपट गई.

‘‘आप कितनी अच्छी हैं दादी. मेरा मूड कैसे फ्रैश होगा, आप सब जानती हैं. पर मम्मीपापा नहीं जानते. रोज थोड़ी देर ही बजा लेने देते तो मैं फ्रैश हो जाती पढ़ाई के हैंगओवर से…आप मुझे रोज कुछ देर गिटार बजाने देंगी दादी? थोड़ी देर बजा लूं? अभी सर गए हैं.’’

‘‘चल ठीक है, मुझे पहले सुना वो 1950 के गाने की कोई धुन.’’ वह दीवान पर मसनद लगा एक ओर बैठ गई थी. तिलोतमा आंखें मूंद कर मगन हो सुनने लगीं. नवेली की सधी हुई उगलियां तारों पर फिसलने लगीं.

‘‘मना किया था न कि एग्जाम तक गिटार पर हाथ नहीं लगाओगी तुम,’’ शीला के साथ कमरे में आया राघवेंद्र का पारा सातवें आसमान पर था. उस ने नवेली से झटके से गिटार खींचा और जमीन पर मारने ही जा रहा था कि तिलोतमा ने उसे कस कर पकड़ लिया. नवेली अपनी जान से प्यारे गिटार के टूट जाने के डर से जोरों से चीख उठी, ‘‘नहीं…पापा.’’

‘‘क्या कर रहा है, पागल हो गया क्या. अभी तो पढ़ कर उठी थी बेचारी, क्या सारा वक्त यह पढ़ती ही रहेगी?’’ तिलोतमा ने डर से पास आई नवेली को अपनी छाती से चिपका लिया था.

‘‘इसे चाबी कैसे मिल गई?’’

‘‘मैं ने कमरा खोल कर दिया है इसे,’’ नवेली कांप रही थी, चेतनाशून्य हो कर सहसा वह नीचे गिर पड़ी.

‘‘क्या हुआ मेरी बच्ची, उठ…उठ,’’ सभी भाग कर नवेली के पास पहुंच गए थे.

‘‘क्या हुआ नवेली, उठो ड्रामे नहीं…बस.’’

‘‘वह ड्रामा नहीं कर रही राघव, कैसा बाप है तू?’’ तिलोतमा को बेटे पर बेहद गुस्सा आ रहा था, ‘‘बस, अब एक शब्द भी नहीं बोलना, जल्दी पानी…’’ वे घबरा कर कभी नवेली के हाथपैर तो कभी गाल व माथा मले जा रही थीं.

नवेली को बिस्तर पर लिटा दिया गया, उसे होश आ गया था. डाक्टर ने भी कहा, ‘‘सदमा या डर से ऐसा हुआ है, कल तक बिलकुल ठीक हो जाएगी. घबराने की कोई बात नहीं, कोशिश करें ऐसी कोई बात न हो.’’ डाक्टर इंजैक्शन दे कर चला गया लेकिन वह खुली आंखों में निश्चेष्ट मौन पड़ी थी. तिलोतमा का एक हाथ नवेली की हथेली तो दूसरा सिर सहला रहा था. हैरानपरेशान शीलाराघव उस से कुछ बुलवाने की चेष्टा में थे.

‘‘इतनी जोरजबरदस्ती और पढ़ाई का इतना प्रैशर डाल कर तुम लोग कहीं बच्ची को ही न खो दो. मु?ो तो डर है. तुम ने क्या हाल कर डाला निवी का सिर्फ इसलिए की सोसाइटी में तुम्हारी इज्जत बढ़ जाए, कोई रेस हो रही है जैसे, उस में जीत जाओ, भले बच्चे की जान निकल जाए. डिप्रैशन में बच्ची आत्महत्या जैसा कोई गलत कदम उठा ले या फिर भाग ही जाए. उस से दोस्त, मोबाइल, गिटार, उस की इच्छा, समय सबकुछ छीन लिया है, तुम लोग मांबाप हो या दुश्मन.’’ तिलोतमा ने गुस्से में कहा, ‘‘इतनी बड़ी बच्ची है, उसे भी मालूम है कि क्या सही है, क्या गलत, थोड़ी छूट दे कर तो देखो. आज बच्चे खुद भी अपने कैरियर को ले कर सतर्क हैं. उन की भी तो सुनो, जितनी उन्हें नौलेज है हर फील्ड्स की उतनी शायद तुम्हें भी न हो.’’

‘‘मगर…’’

‘‘मगरवगर कुछ नहीं. उसे भाईबहन तो तुम ने दिए नहीं. तुम्हारे पास तो समय ही नहीं है. मुझ बूढ़ी से वह क्याक्या बातें शेयर करेगी भला? बेटी को बेटा मानना तो ठीक है, पर जबरदस्ती ठीक नहीं. उस का लिया सबकुछ उसे लौटा दो. मछली की आंख उसे भी मालूम है, वह कोशिश तो कर ही रही है. इतने पीछे पड़ते हैं क्या. बच्चा ही खुश नहीं तो मैडल ले कर क्या करोगे.

तुम ने भी तो परीक्षाएं पास की हैं. तुम्हारे पापा और मैं तो कभी इतने पीछे नहीं पड़े थे. फिर भी तुम ने परीक्षाएं पास की हैं न? आज कुछ बन गए हो. अपने बच्चे पर विश्वास करना सीखो,’’ तिलोतमा ने देखा नवेली के चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे. आंखें बंद कर वह सो गई थी. कितनी मासूम लग रही थी वह. तिलोतमा ने प्यार से उस के माथे को चूमा और चुपचाप बाहर चलने का इशारा किया.

सुबह नवेली की आंखें खुलीं तो वह खुश हो गई, उस का प्यारा गिटार पहले जैसे उस के कमरे में अपनी जगह पर रखा था. उस ने छू कर देखा, बिलकुल सही था, टूटा नहीं था. वह खुशी से उछल पड़ी और उसे बैड पर ले आई, तभी टेबल पर पड़े डब्बे पर उस की निगाह पड़ी, खोल कर देखा, ‘‘ओ, इतना सुंदर नया मोबाइल मेरे लिए.’’

‘‘दादी…मम्मी.. पापा…थैंक्यू लव यू औल…’’ वह खुशी से उछलकूद करती हुई बाहर आई और सामने से उस के लिए दूध का गिलास ले कर आ रहीं तिलोतमा के गले में बाहें डाल कर प्यारी सी पप्पी ली थी ‘‘थैंक्यू दादी.’’

ब्रश कर के नवेली ने दूध पिया और दोगुने उत्साह से पढ़ने बैठ गई.

बागबान में ‘नालायक बेटे’ का किरदार निभाने वाले एक्टर्स ने कहा- ‘हमें पिछले 20 सालों से कोसा जा रहा है’

अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की फिल्म बागबान को इस सप्ताह 20 साल हो गए है. रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित यह फिल्म 3 अक्टूबर 2003 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. एक पारिवारिक ड्रामा, जो मेलोड्रामा के साथ बूढ़े माता-पिता की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित करती है,

इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया था और यह आज भी लोकप्रिय बनी हुई है. जहां हेमा और अमिताभ के बीच की केमिस्ट्री को सराहना मिली और सलमान खान ने अपने कैमियो से दर्शकों का दिल जीत लिया, वहीं इस फिल्म में चार युवा एक्टर्स – अमन वर्मा, समीर सोनी, साहिल चड्ढा और नासिर खान को “नालायक बेटे” बना दिया.

बागबान को हुए 20 साल

जैसा कि इस फिल्म के निर्देशक बागबान के 20 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं वहीं अमन, समीर, साहिल और नासिर ने खुलकर बताया कि अक्टूबर 2003 में फिल्म रिलीज होने के बाद उनका जीवन कैसे बदल गया और कैसे बुजुर्ग लोग अभी भी उन्हें अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करने और उन्हें पालने तक अलग करने के लिए डांटते हैं. इस फिल्म में सलमान द्वारा निभाया गया किरदार बेटा अमन उनके बचाव में आया था.

अमन वर्मा ने अजय नाम के बेटे का किरदार निभाया

अमन वर्मा को यकीन नहीं हो रहा कि बागबान को रिलीज हुए 20 साल हो गए हैं. वह कहते हैं, ”मैं 1996 में मुंबई आया और 4-5 साल में बागबान मूवी की. फिल्म से पहले मैंने ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ और ‘खुल जा सिम सिम’ जैसे तमाम टीवी सीरियल में काम किया था. जब तक मुझे बागबान नहीं मिला था, मैं कुछ हद तक संघर्ष कर रहा था. इस फिल्म ने सभी के करियर पर गहरा प्रभाव डाला. “मेरी मखना” और “होली खेले” गाने अभी भी शादियों और त्योहारों पर बजाए जाते हैं जब मैं आसपास होता हूं.

अमन ने आगे बताया कि उनसे अब भी पूछा जाता है कि वह फिल्म में इतने “नालायक औलाद” क्यों थे. वह कहते हैं, ”यह अवास्तविक लगता है कि फिल्म के बारे में अभी भी बात हो रही है. आज भी मीम्स बनते हैं और लोग आज भी इसके बारे में बात करते हैं. हर कोई मुझसे पूछता रहता है ‘अमन जी, आप इतने नालायक औलाद कैसे हो सकते हैं?”

समीर सोनी ने सुनाया किस्सा

समीर ने बताया कि फिल्म रिलीज़ होने के बाद, लोग अमिताभ के साथ दुर्व्यवहार के लिए उन्हें डांटने के लिए उनके पास आ रहे थे.

उन्होंने साझा किया, “जब फिल्म रिलीज हुई, तो मैं बहुत खुश था लेकिन हमें जो प्रतिक्रिया मिली वह अविश्वसनीय थी. मुझे याद है कि एक बार एक बूढ़ी औरत एक मॉल में मेरे पास आई थी, और मैंने सोचा था कि उसने फिल्म के बाद मुझे पहचान लिया है और कुछ अच्छा कहेगी, लेकिन उसने आकर मुझे डांटा कि ‘बहुत बुरा बेटा, तुमने बहुत बुरा व्यवहार किया है!’ हम अमित जी और हेमा जी से इतने जुड़े हुए थे कि हम रातों-रात बुरे आदमी बन गए, लेकिन यह फिल्म की सफलता को दर्शाता है, जिसका इतना बड़ा प्रभाव है.

 

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साहिल ने भी बागबान के बाद जो हुआ उसको लेकर बताया

साहिल भी बागबान में अपनी परफॉर्मेंस के बाद कहते हैं, ”आज भी गाली पड़ती है”. वह कहते हैं, ”मैं बहुत सारे कार्यक्रम करता हूं और कुछ मौकों पर मुझे अमिताभ बच्चन के ‘नालायक बेटा’ के रूप में पेश किया गया है, लेकिन मैं इसे एक तारीफ के रूप में लेता हूं. मुझे याद है कि जब फिल्म रिलीज हुई थी तो मेरी मां मेरी बहन के साथ कनाडा में थीं और जब लोग बेटों को कोसते थे तो उन्हें बहुत बुरा लगता था. उसने एक बार किसी को यह कहते हुए सुना था, ‘हाय है कितने बुरे बच्चे हैं!’ और वह उनसे कहती थी, ‘मेरा बेटा ऐसा नहीं है’. मेरी मां अचानक से मुझको लेकर बहुत ही प्रोटेक्टिव हो गई थी.”

अमिताभ बच्चन के 81वें जन्मदिन के पहले होगी उनके यादगार वस्तुओं की नीलामी!

भारतीय सिनेमा के “शहंशाह” अमिताभ बच्चन ने अपनी अद्वितीय प्रतिभा, करिश्मा और समर्पण से फिल्म उद्योग पर एक अद्भुत छाप छोड़ी है.  पांच दशक से अधिक लंबे करियर के साथ, बच्चन को न केवल एक अभिनेता के रूप में बल्कि सिनेमाई उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है.

11 अक्टूबर 2023 को महान सुपरस्टार अमिताभ बच्चन 81 साल के हो जाएंगे और इसी मौके के पहले एक अनूठे ढंग से उनकी यादगार वस्तुओं की नीलामी के जरिये इस जश्न को मना रहा है, भारत का सबसे युवा और सबसे तेजी से बढ़ता हुआ नाम, डेरिवाज़ एंड इवेस जिसके द्वारा एक अनूठी सार्वजनिक नीलामी को कार्यरत किया जाएगा जहाँ ‘बच्चनलिया’ शीर्षक से 5 और 7 अक्टूबर 2023 के बीच निर्धारित यह कार्यक्रम उनके शानदार करियर को सलामी देगा और संग्रहकर्ताओं और प्रशंसकों को उनकी अभूतपूर्व सिनेमाई यात्रा के एक ऐतिहासिक हिस्से को जीने का और उसे पाने का मौका देगा.

नीलामी में शामिल की जाने वाली वस्तुओं में प्रतिष्ठित फिल्म पोस्टर, तस्वीरें, लॉबी कार्ड, शोकार्ड तस्वीरें, फिल्म पुस्तिकाएं और मूल कलाकृतियां शामिल हैं।

नीलामी की मुख्य बातें इस प्रकार हैं: 

ज़ंजीर शोकार्ड

पहली रिलीज़ ज़ंजीर (1973) शोकार्ड का एक  सेट – सिल्वर जिलेटिन फोटोग्राफिक प्रिंट, पोस्टर पेंट और सावधानीपूर्वक हाथ और स्क्रीन-प्रिंटेड लेटरिंग से तैयार किया गया एक मूल, हाथ से बना कोलाज.  ये अनूठे टुकड़े अतीत की कलात्मक शिल्प कौशल का एक प्रमाण हैं, जो उस जटिल प्रक्रिया की झलक पेश करते हैं जिसने एक बार सिनेमा के जादू को जीवंत कर दिया था.

दीवार शोकार्ड

दीवार (1975) की पहली रिलीज शोकार्ड के साथ सिनेमाई इतिहास की एक अद्भुत भेंटअपने पास रखें, जिसे 1970 और 80 के दशक की कई प्रतिष्ठित अमिताभ बच्चन प्रचार कलाकृतियों के डिजाइनर दिवाकर करकरे द्वारा शानदार ढंग से डिजाइन किया गया है.

फ़रार शोकार्ड सेट

दिवाकर करकरे द्वारा डिज़ाइन किया गया शंकर मुखर्जी की फ़रार (1975) के छह असाधारण रूप से डिज़ाइन किए गए पहले रिलीज़ शोकार्ड का एक सेट भी ऑफर में है. गुलज़ार द्वारा लिखित यह थ्रिलर, किशोर-लता की मधुर जोड़ी “मैं प्यासा तुम सावन” के लिए प्रसिद्ध है.

शोले के फोटोग्राफिक चित्र लॉबी कार्डों पर लगे हुए हैं

1975 के क्लासिक के दिल को छू लेने वाले उत्साह को प्रतिबिंबित करते हुए, बोली लगाने वालों को शोले (1975) की पौराणिक दुनिया में प्रवेश करने का मौका मिलेगा.  रमेश सिप्पी क्लासिक के कुछ सबसे यादगार दृश्यों को प्रदर्शित करने वाले लॉबी कार्ड पर लगाए गए 15 री-रिलीज़ फ़ोटोग्राफ़िक स्टिल का उल्लेखनीय सेट.

एक अन्य लॉट में शोले की रिलीज के बाद आयोजित रमेश सिप्पी की विशेष पार्टी की चार निजी तस्वीरों का एक आकर्षक सेट पेश किया गया है, जो इस अविस्मरणीय फिल्म के पर्दे के पीछे के जादू की एक विशेष झलक प्रदान करता है.

प्रतिष्ठित पोस्टर

नीलामी में बच्चन की सबसे प्रसिद्ध फिल्मों जैसे मजबूर (1974), मिस्टर नटवरलाल (1979), द ग्रेट गैम्बलर (1979), सिलसिला (1981) कालिया (1981), नसीब (1986) के कुछ शानदार और अप्रतिम पोस्टर पेश किए गए हैं.

मशहूर ग्लैमर फोटोग्राफर गौतम राजाध्यक्ष द्वारा शूट किया गया अमिताभ बच्चन का एक स्टूडियो चित्र.  मूवी मैगज़ीन की प्रसिद्ध कवर स्टोरी के लिए किए गए एक विशेष फोटो-शूट से दो सुपरस्टार – राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन – को दिखाया गया है.

डेरिव्ज़ एंड इव्स भी बच्चन को कुछ समकालीन कलात्मक श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.  सफदर शमी, शैलेश आचरेकर, मिठू बिस्वास और अनिल सोनी जैसे युवा कलाकारों की आंखों और सौंदर्यशास्त्र के माध्यम से देखी गई अमिताभ बच्चन की अलग-अलग प्रस्तुतियां और व्याख्याएं भी शामिल हैं.

नीलामी के बारे में बात करते हुए, डेरिवाज़ एंड इवेस के प्रवक्ता ने कहा, “हम डेरिवाज़ एंड इवेस में इस साल वैश्विक स्तर पर अपने फिल्म मेमोरैबिलिया विभाग का विकास कर रहे हैं, जिसमें 2023 में भारत और बरसात, सत्यजीत रे, अमिताभ बच्चन, राज कपूर, फेमिनिन आइकॉन की प्रतिष्ठित बिक्री होगी.  और हॉलीवुड की नीलामी 2024 से शुरू हो रही है.

सुपरस्टार और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व अमिताभ बच्चन पर यह फोकस पांच दशकों की विभिन्न भूमिकाओं में उनके अविश्वसनीय प्रदर्शन पर सावधानीपूर्वक तैयार की गई बिक्री है, जिसने उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय आइकन बना दिया है. हमें उम्मीद है कि यह प्रयास उनके प्रशंसकों को प्रसन्न करेगा. दुनिया भर में उनके प्रशंसक इसके नीलामी के जरिये, भारत को उसकी कागज-आधारित सिनेमाई विरासत को और अधिक गहराई से संरक्षित करने में मदद मिलेगी.”

 निम्नलिखित लिंक पर बोली लगाने के लिए बड़ी संख्या में संग्राहक आए:

 

 

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