विटामिन-पी: संजना ने कैसे किया अस्वस्थ ससुरजी को ठीक

संजनाटेबल पर खाना लगा रही थी. आज विशेष व्यंजन बनाए गए थे, ननदरानी मिथिलेश जो आई थी.

‘‘पापा, ले आओ अपनी कटोरी, खाना लग रहा है,’’ मिथिलेश ने अरुणजी से कहा.

‘‘दीदी, पापा अब कटोरी नहीं, कटोरा खाते हैं. खाने से पहले कटोरा भर कर सलाद और खाने के बाद कटोरा भर फ्रूट्स,’’ संजना मुसकराती हुई बोली.

‘‘अरे, यह चमत्कार कैसे हुआ? पापा की उस कटोरी में खूब सारे टैबलेट्स, विटामिन, प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम होता था… कहां, कैसे, गायब हो गए?’’ मिथिलेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘बेटा यह चमत्कार संजना बिटिया का है,’’ कहते हुए वे पिछले दिनों में खो गए…

नईनवेली संजना ब्याह कर आई, ऐसे घर में जहां कोई स्त्री न थी. सासूमां का देहांत हो चुका था और ननद का ब्याह. घर में पति और ससुरजी, बस 2 ही प्राणी थे. ससुरजी वैसे ही कम बोलते थे और रिटायरमैंट के बाद तो बस अपनी किताबों में ही सिमट कर रह गए थे.

संजना देखती कि वे रोज खाना खाने से पहले दोनों समय एक कटोरी में खूब सारे टैबलेट्स निकाल लाते. पहले उन्हें खाते फिर अनमने से एकाध रोटी खा कर उठ जाते. रात को भी स्लीपिंग पिल्स खा कर सोते. एक दिन उस ने ससुरजी से पूछ ही लिया, ‘‘पापाजी, आप ये इतने सारे टेबलेट्स क्यों खाते हैं.’’

‘‘बेटा, अब तो जीवन इन पर ही निर्भर है, शरीर में शक्ति और रात की नींद इन के बिना अब संभव नहीं.’’

‘‘उफ पापाजी, आप ने खुद को इन का आदी बना लिया है. कल से आप मेरे हिसाब से चलेंगे. आप को प्रोटीन, विटामिन, आयरन, कैल्सियम सब मिलेगा और रात को नींद भी जम कर आएगी.’’

अगले दिन सुबह अरुणजी अखबार देख रहे थे तभी संजना ने आ कर कहा, ‘‘चलिए पापाजी, थोड़ी देर गार्डन में घूमते हैं, वहां से आ कर चाय पीएंगे.’’

संजना के कहने पर अरुणजी को उस के साथ जाना पड़ा. वहां संजना ने उन्हें हलकाफुलका व्यायाम भी करवाया और साथ ही लाफ थेरैपी दे कर खूब हंसाया.

‘‘यह लीजिए पापाजी, आप का कैल्सियम, चाय इस के बाद मिलेगी,’’ संजना ने दूध का गिलास उन्हें पकड़ाया.

नाश्ते में स्प्राउट्स दे कर कहा, ‘‘यह लीजिए भरपूर प्रोटींस. खाइए पापाजी.’’

लंच के समय अरुणजी दवाइयां निकालने लगे, तो संजना ने हाथ रोक लिया और कहा, ‘‘पापाजी, यह सलाद खाइए, इस में टमाटर, चुकंदर है, आप का आयरन और कैल्सियम. खाना खाने के बाद फू्रट्स खाइए.’’

अरुणजी उस की प्यार भरी मनुहार को टाल नहीं पाए. रात को भोजन भी उन्होंने संजना के हिसाब से ही किया. रात को संजना उन्हें फिर गार्डन में टहलाने ले गई.

‘‘चलिए पापा, अब सो जाइए.’’

अरुणजी की नजरें अपनी स्लीपिंग पिल्स की शीशी तलाशने लगीं.

‘‘लेटिए पापाजी, मैं आप के सिर की मालिश कर देती हूं,’’ कह कर उस ने अरुणजी को बिस्तर पर लिटा दिया और तेल लगा कर हलकेहलके हाथों सिर का मसाज करने लगी. कुछ ही देर में अरुणजी की नींद लग गई.

‘‘संजना, बेटी कल रात तो बहुत ही अच्छी नींद आई.’’

‘‘हां पापाजी, अब रोज ही आप को ऐसी नींद आएगी. अब आप कोई टैबलेट नहीं खाएंगे.’’

‘‘अब क्यों खाऊंगा. अब तो मुझे रामबाण औषधि मिल गई है,’’ अरुणजी गार्डन जाने के लिए तैयार होते हुए बोले.

‘‘थैंक्यू भाभी,’’ अचानक मिथिलेश की आवाज ने अरुणजी की तंद्रा भंग की.

‘‘हां बेटा, थैंक्स तो कहना ही चाहिए संजना बेटी को. इस ने मेरी सारी टैबलेट्स छुड़वा दीं. अब तो बस मैं एक ही टैबलेट खाता हूं,’’ अरुणजी बोले.

‘‘कौन सी?’’ संजना ने चौंक कर पूछा.

‘‘विटामिन-पी यानी भरपूर प्यार और परवाह.’’

परी हूं मैं: भाग 2- आखिर क्या किया था तरुण ने

बस, एक चिनगारी से भक् से आग भड़क गई. सोच कर ही डर लगता है. भभक उठी आग. हम दोनों एकसाथ चीखे थे. तरुण ने मेरी साड़ी खींची. मुझ पर मोटे तौलिए लपेटे हालांकि इस प्रयास में उस के भी हाथ, चेहरा और बाल जल गए थे. मुझे अस्पताल में भरती करना पड़ा और तरुण के हाथों पर भी पट्टियां बंध चुकी थीं तो रिद्धि व सिद्धि को किस के आसरे छोड़ते. अम्माजी को बुलाना ही पड़ा. आते ही अम्माजी अस्पताल पहुंचीं. ‘देख, तेरी वजह से तरुण भी जल गया. कहते हैं न, आग किसी को नहीं छोड़ती. बचाने वाला भी जलता जरूर है.’ जाने क्यों अम्मा का आना व बड़बड़ाना मुझे अच्छा नहीं लगा. आंखें मूंद ली मैं ने. अस्पताल में तरुण नर्स के बजाय खुद मेरी देखभाल करता. मैं रोती तो छाती से चिपका लेता. वह मुझे होंठों से चुप करा देता. बिलकुल ताजा एहसास.

अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई तो घर का कोनाकोना एकदम नया सा लगा. फूलपत्तियां सब निखर गईं जैसे. जख्म भी ठीक हो गए पर दाग छोड़ गए, दोनों के अंगों पर, जलने के निशान. तरुण और मैं, दोनों ही तो जले थे एक ही आग में. राजीव को भी दुर्घटना की खबर दी गई थी. उन्होंने तरुण को मेरी आग बुझाने के लिए धन्यवाद के साथ अम्मा को बुला लेने के लिए शाबाशी भी दी. तरुण को महीनों बीत चले थे भोपाल गए हुए. लेकिन वहां उस की शादी की बात पक्की की जा चुकी थी. सुनते ही मैं आंसू बहाने लगी, ‘‘मेरा क्या होगा?’’ ‘परी का जादू कभी खत्म नहीं होता.’ तरुण ने पूरी तरह मुझे अपने वश में कर लिया था, मगर पिता के फैसले का विरोध करने की न उस में हिम्मत थी न कूवत. स्कौलरशिप से क्या होना जाना था, हर माह उसे घर से पैसे मांगने ही पड़ते थे. तो इस शादी से इनकार कैसे करता? लड़की सरकारी स्कूल में टीचर है और साथ में एमफिल कर रही है तो शायद शादी भी जल्दी नहीं होगी और न ही ट्रांसफर. तरुण ने मुझे आश्वस्त कर दिया. मैं न सिर्फ आश्वस्त हो गई बल्कि तरुण के संग उस की सगाई में भी शामिल होने चली आई. सामान्य सी टीचरछाप सांवली सी लड़की, शक्ल व कदकाठी हूबहू मीनाकुमारी जैसी.

एक उम्र की बात छोड़ दी जाए तो वह मेरे सामने कहीं नहीं टिक रही थी. संभवतया इसलिए भी कि पूरे प्रोग्राम में मैं घर की बड़ी बहू की तरह हर काम दौड़दौड़ कर करती रही. बड़ों से परदा भी किया. छोटों को दुलराया भी. तरुण ने भी भाभीभाभी कर के पूरे वक्त साथ रखा लेकिन रिंग सेरेमनी के वक्त स्टेज पर लड़की के रिश्तेदारों से परिचय कराया तो भाभी के रिश्ते से नहीं बल्कि, ‘ये मेरे बौस, मेरे गाइड राजीव सर की वाइफ हैं.’ कांटे से चुभे उस के शब्द, ‘सर की वाइफ’, यानी उस की कोई नहीं, कोई रिश्ता नहीं. तरुण को वापस तो मेरे ही साथ मेरे ही घर आना था. ट्रेन छूटते ही शिकायतों की पोटली खोल ली मैं ने. मैं तैश में थी, हालांकि तरुण गाड़ी चलते ही मेरा पुराना तरुण हो गया था. मेरा मुझ पर ही जोर न चल पाया, न उस पर. मौसम बदल रहे थे. अपनी ही चाल में, शांत भाव से. मगर तीसरे वर्ष के मौसमों में कुछ ज्यादा ही सन्नाटा महसूस हो रहा था, भयावह चुप्पियां. आंखों में, दिलों में और घर में भी.

तूफान तो आएंगे ही, एक नहीं, कईकई तूफान. वक्त को पंख लग चुके थे और हमारी स्थिति पंखकटे प्राणियों की तरह होती लग रही थी. मुझे लग रहा था समय को किस विध बांध लूं? तरुण की शादी की तारीख आ गई. सुनते ही मैं तरुण को झंझोड़ने लगी, ‘‘मेरा क्या होगा?’’ ‘परी का जादू कभी खत्म नहीं होगा,’ इस बार तरुण ने मुझे भविष्य की तसल्ली दी. मैं पूरा दिन पगलाई सी घर में घूमती रही मगर अम्माजी के मुख पर राहत स्पष्ट नजर आ रही थी. बातों ही बातों में बोलीं भी, ‘अच्छा है, रमेश भाईसाहब ने सही पग उठाया. छुट्टा सांड इधरउधर मुंह मारे, फसाद ही खत्म…खूंटे से बांध दो.’ मुझे टोका भी, कि ‘कौन घर की शादी है जो तुम भी चलीं लदफंद के उस के संग. व्यवहार भेज दो, साड़ीगहना भेज दो और अपना घरद्वार देखो. बेटियों की छमाही परीक्षा है, उस पर बर्फ जमा देने वाली ठंड पड़ रही है.’ अम्माजी को कैसे समझाती कि अब तो तरुण ही मेरी दुलाईरजाई है, मेरा अलाव है. बेटियों को बहला आई, ‘चाची ले कर आऊंगी.’ बड़े भारी मन से भोपाल स्टेशन पर उतरी मैं. भोपाल के जिस तालाब को देख मैं पुलक उठती थी, आज मुंह फेर लिया, मानो मोतीताल के सारे मोती मेरी आंखों से बूंदें बन झरने लगे हों. तरुण ने बांहों में समेट मुझे पुचकारा. आटो के साइड वाले शीशे पर नजर पड़ी, ड्राइवर हमें घूर रहा था. मैं ने आंसू पोंछ बाहर देखना शुरू कर दिया. झीलों का शहर, हरियाली का शहर, टेकरीटीलों पर बने आलीशन बंगलों का शहर और मेरे तरुण का शहर.

आटो का इंतजार ही कर रहे थे सब. अभी तो शादी को हफ्ताभर है और इतने सारे मेहमान? तरुण ने बताया, मेहमान नहीं, रिश्तेदार एवं बहनें हैं. सब सपरिवार पधारे हैं, आखिर इकलौते भाई की शादी है. सुन कर मैं ने मुंह बनाया और बहनों ने मुझे देख कर मुंह बनाया. रात होते ही बिस्तरों की खींचतान. गरमी होती तो लंबीचौड़ी छत थी ही. सब अपनीअपनी जुगाड़ में थे. मुझे अपना कमरा, अपना पलंग याद आ रहा था. तरुण ने ही हल ढूंढ़ा, ‘भाभी जमीन पर नहीं सो पाएंगी. मेरे कमरे के पलंग पर भाभी की व्यवस्था कर दो, मेरा बिस्तरा दीवान पर लगा दो.’ मुझे समझते देर नहीं लगी कि तरुण की बहनों की कोई इज्जत नहीं है और मां ठहरी गऊ, तो घर की बागडोर मैं ने संभाल ली. घर के बड़ेबूढ़ों और दामादों को इतना ज्यादा मानसम्मान दिया, उन की हर जरूरतसुविधा का ऐसा ध्यान रखा कि सब मेरे गुण गाने लगे. मैं फिरकनी सी घूम रही थी. हर बात में दुलहन, बड़ी बहू या भाभीजी की राय ली जाती और वह मैं थी. सब को खाना खिलाने के बाद ही मैं खाना खाने बैठती. तरुण भी किसी न किसी बहाने से पुरुषों की पंगत से बच निकलता. स्त्रियां सभी भरपेट खा कर छत पर धूप सेंकनेलोटने पहुंच जातीं. तरुण की नानी, जो सीढि़यां नहीं चढ़ पाती थीं, भी नीम की सींक से दांत खोदते पिछवाड़े धूप में जा बैठतीं. तब मैं और तरुण चौके में अंगारभरे चूल्हे के पास अपने पाटले बिछाते और थाली परोसते. आदत जो पड़ गई है एक ही थाली में खाने की, नहीं छोड़ पाए. जितने अंगार चूल्हे में भरे पड़े थे उस से ज्यादा मेरे सीने में धधक रहे थे. आंसू से बुझें तो कैसे? तरुण मनाते हुए अपने हाथ से मुझे कौर खिला रहे थे कि उस की भांजी अचानक आ गई चौके में गुड़ लेने…लिए बगैर ही भागी ताली बजाते हुए, ‘तरुण मामा को तो देखो, बड़ी मामीजी को अपने हाथ से रोटी खिला रहे हैं. मामीजी जैसे बच्ची हों. बच्ची हैं क्या?’

असमंजस: भाग 1- क्यों अचानक आस्था ने शादी का लिया फैसला

शहनाई की सुमधुर ध्वनियां, बैंडबाजों की आवाजें, चारों तरफ खुशनुमा माहौल. आज आस्था की शादी थी. आशा और निमित की इकलौती बेटी थी वह. आईएएस बन चुकी आस्था अपने नए जीवन में कदम रखने जा रही थी. सजतेसंवरते उसे कई बातें याद आ रही थीं.

वह यादों की किताब के पन्ने पलटती जा रही थी.

उस का 21वां जन्मदिन था.

‘बस भी करो पापा…और मां, तुम भी मिल गईं पापा के साथ मजाक में. अब यदि ज्यादा मजाक किया तो मैं घर छोड़ कर चली जाऊंगी,’ आस्था नाराज हो कर बोली.

‘अरे आशु, हम तो मजाक कर रहे थे बेटा. वैसे भी अब 3-4 साल बाद तेरे हाथ पीले होते ही घर तो छोड़ना ही है तुझे.’

‘मुझे अभी आईएएस की परीक्षा देनी है. अपने पांवों पर खड़ा होना है, सपने पूरे करने हैं. और आप हैं कि जबतब मुझे याद दिला देते हैं कि मुझे शादी करनी है. इस तरह कैसे तैयारी कर पाऊंगी.’

आस्था रोंआसी हो गई और मुंह को दोनों हाथों से ढक कर सोफे पर बैठ गई. मां और पापा उसे रुलाना नहीं चाहते थे. इसलिए चुप हो गए और उस के जन्मदिन की तैयारियों में लग गए. एक बार तो माहौल एकदम खामोश हो गया कि तभी दादी पूजा की घंटी बजाते हुए आईं और आस्था से कहा, ‘आशु, जन्मदिन मुबारक हो. जाओ, मंदिर में दीया जला लो.’

‘मां, दादी को समझाओ न. मैं मूर्तिपूजा नहीं करती तो फिर क्यों हर जन्मदिन पर ये दीया जलाने की जिद करती हैं.’

‘आस्था, तू आंख की अंधी और नाम नयनसुख जैसी है, नाम आस्था और किसी भी चीज में आस्था नहीं. न ईश्वर में, न रिश्तों में, न परंपराओं…’

दादी की बात को बीच में ही काट कर उस ने अपनी चिरपरिचित बात कह दी, ‘मुझे पहले अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देने दो. मेरे लिए यही सबकुछ है. आप के रीतिरिवाज सब बेमानी हैं.’

‘लेकिन आशु, सिर्फ कैरियर तो सबकुछ नहीं होता. न जाने भगवान तेरी नास्तिकता कब खत्म होगी.’

तभी दरवाजे पर घंटी बजी. आस्था खुशी में उछलते हुए गई, ‘जरूर रंजना मैडम का खत आया होगा,’ उस ने उत्साह से दरवाजा खोला. आने वाला विवान था, ‘ओफ, तुम हो,’ हताशा के स्वर में उस ने कहा. वह यह भी नहीं देख पाई कि उस के हाथों में उस के पसंदीदा जूही के फूलों का एक बुके था.

‘आस्था, हैप्पी बर्थडे टू यू,’ विवान ने कहा.

‘ओह, थैंक्स, विवान,’ बुके लेते हुए उस ने कहा, ‘तुम्हें दुख तो होगा लेकिन मैं अपनी सब से फेवरेट टीचर के खत का इंतजार कर रही थी लेकिन तुम आ गए. खैर, थैंक्स फौर कमिंग.’

आस्था को ज्यादा दोस्त पसंद नहीं थे. एक विवान ही था जिस से बचपन से उस की दोस्ती थी. उस का कारण भी शायद विवान का सौम्य, मृदु स्वभाव था. विवान के परिजनों के भी आस्था के परिवार से मधुर संबंध थे. दोनों की दोस्ती के कारण कई बार परिवार वाले उन को रिश्ते में बांधने के बारे में सोच चुके थे किंतु आस्था शादी के नाम तक से चिढ़ती थी. उस के लिए शादी औरतों की जिंदगी की सब से बड़ी बेड़ी थी जिस में वह कभी नहीं बंधना चाहती थी.

इस सोच को उस की रंजना मैडम के विचारों ने और हवा दी थी. वे उस की हाईस्कूल की प्रधानाध्यापिका होने के अलावा नामी समाजसेविका भी थीं. जब आस्था हाईस्कूल में गई तो रंजना मैडम से पहली ही नजर में प्रभावित हो गई थी. 45 की उम्र में वे 30 की प्रतीत होती थीं. चुस्त, सचेत और बेहद सक्रिय. हर कार्य को करने की उन की शैली किसी को भी प्रभावित कर देती.

आस्था हमेशा से ऐसी ही महिला के रूप में स्वयं को देखती थी. उसे तो जैसे अपने जीवन के लिए दिशानिर्देशक मिल गया था. रंजना मैडम को भी आस्था विशेष प्रिय थी क्योंकि वह अपनी कक्षा में अव्वल तो थी ही, एक अच्छी वक्ता और चित्रकार भी थी. रंजना मैडम की भी रुचि वक्तव्य देने और चित्रकला में थी.

आस्था रंजना मैडम में अपना भविष्य तो रंजना मैडम आस्था में अपना अतीत देखती थीं. जबतब आस्था रंजना मैडम से भावी कैरियर के संबंध में राय लेती, तो उन का सदैव एक ही जवाब होता, ‘यदि कैरियर बनाना है तो शादीब्याह जैसे विचार अपने मस्तिष्क के आसपास भी न आने देना. तुम जिस समाज में हो वहां एक लड़की की जिंदगी का अंतिम सत्य विवाह और बच्चों की परवरिश को माना जाता है. इसलिए घरपरिवार, रिश्तेनातेदार, अड़ोसीपड़ोसी किसी लड़की या औरत से उस के कैरियर के बारे में कम और शादी के बारे में ज्यादा बात करते हैं. कोई नहीं पूछता कि वह खुश है या नहीं, वह अपने सपने पूरे कर रही है या नहीं, वह जी रही है या नहीं. पूछते हैं तो बस इतना कि उस ने समय पर शादी की, बच्चे पैदा किए, फिर बच्चों की शादी की, फिर उन के बच्चों को पाला वगैरहवगैरह. यदि अपना कैरियर बनाना है तो शादीब्याह के जंजाल में मत फंसना. चाहे दुनिया कुछ भी कहे, अपने अस्तित्व को, अपने व्यक्तित्व को किसी भी रिश्ते की बलि न चढ़ने देना.’

आस्था को भी लगता कि रंजना मैडम जो कहती हैं, सही कहती हैं. आखिर क्या जिंदगी है उस की अपनी मां, दादी, नानी, बूआ या मौसी की. हर कोई तो अपने पति के नाम से पहचानी जाती है. उस का यकीन रंजना मैडम की बातों में गहराता गया. उसे लगता कि शादी किसी भी औरत के आत्मिक विकास का अंतिम चरण है क्योंकि शादी के बाद विकास के सारे द्वार बंद हो जाते हैं.

रंजना मैडम ने भी शादी नहीं की थी और बेहद उम्दा तरीके से उन्होंने  अपना कैरियर संभाला था. वे शहर के सब से अच्छे स्कूल की प्राचार्या होने के साथसाथ जानीमानी समाजसेविका और चित्रकार भी थीं. उन के चित्रों की प्रदर्शनी बड़ेबड़े शहरों में होती थी.

आस्था को मैडम की सक्रिय जिंदगी सदैव प्रेरित करती थी. यही कारण था कि रंजना मैडम के दिल्ली में शिफ्ट हो जाने के बाद भी आस्था ने उन से संपर्क बनाए रखा. कालेज में दाखिला लेने के बाद भी आस्था पर रंजना का प्रभाव कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा ही.

हमेशा की तरह आज भी उन का खत आया और आस्था खुशी से झूम उठी. आस्था ने खत खोला, वही शब्द थे जो होने थे :

‘प्रिय मित्र, (रंजना मैडम ने हमेशा अपने विद्यार्थियों को अपना समवयस्क माना था. बेटा, बेटी कह कर संबोधित करना उन की आदत में नहीं था.)

‘जन्मदिन मुबारक हो.

‘आज तुम्हारा 21वां जन्मदिन है जो तुम अपने परिवार के साथ मना रही हो और 5वां ऐसा जन्मदिन जब मैं तुम्हें बधाई दे रही हूं. इस साल तुम ने अपना ग्रेजुएशन भी कर लिया है. निश्चित ही, तुम्हारे मातापिता तुम्हारी शादी के बारे में चिंतित होंगे और शायद साल, दो साल में तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ़ने की प्रक्रिया भी शुरू कर देंगे. यदि एक मूक भेड़ की भांति तुम उन के नक्शेकदम पर चलो तो.

हरेक का अपना दिल है: भाग 1- स्नेहन आत्महत्या क्यों करना चाहता था

जहां  तक मेरी आंखें देख सकती थीं, समुद्र फैला हुआ था. पानी का रंग कभी नीला कभी हरा दिख रहा था और इस अलग रंग के मिश्रण को देख कर मुझे अजीब सा लगा. शाम का समय था. सूरज ढल रहा था. उस से निकल रही लाल, पीली, नारंगी किरणें सागर की लहरों पर पड़ कर दिल को लुभा रही थी.

दूर 2 पहाडि़यां, समुद्र के बीच मूर्ति की तरह खड़ा जहाज. मैं जिस जगह पर खड़ा हूं उस का नाम गो ग्रेटन है.

बैंकौक के आसपास के कई द्वीप प्राकृतिक सुंदरता से घिरे हुए हैं जो कई विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और ‘गो ग्रेटन’ भी उन में से एक है.

बैंकौक से ‘ट्रंप’ के लिए 1 घंटे की उड़ान के बाद वहां से 1 घंटे की ड्राइव पर आप बोटयार्ड पहुंच जाएंगे. वहां से समुद्र के पार एक नाव की सवारी ‘गो ग्रेटन’ तक आप को पहुंचा जाएगी. मैं उस जगह के समुद्र के तट पर खड़ा हूं.

थाईलैंड के पूरे रास्ते में सब से खूबसूरत हरियाली देखने को मिली. यह जगह लगभग जंगल है. लेकिन, अच्छी आधुनिक सुविधाओं वाले रिजौर्ट हैं. ऐसी जगह मैं अकेला आ कर रहा हूं.

ठीक है, जगह के बारे में बहुत कुछ बता दिया. अब मेरे बारे में बताए बिना कहानी आगे कैसे बढ़ेगी.

मैं… नहीं… मेरा नाम जानना चाहते हैं? मेरा नाम स्नेहन है. मैं एक मशहूर मल्टीनैशनल कंपनी का ऐग्जीक्यूटिव हूं. मेरा काम चेन्नई, भारत में है. मैं 50 साल का हूं. मेरी जिंदगी के 2 पहलू हैं. एक है मेरी पैदाशी से 50 साल तक की मेरी जिंदगी. मैं अपने बचपन से ले कर अपनी 50वीं उम्र तक सफलता के शिखर तक बिना किसी रुकावट ही पहुंच गया. यह चमत्कार देख कर मैं भी अकसर सोचता था शायद मेरा जन्म बहुत ही उचित समय में हुआ था. अपने व्यवसाय में मेरी सफलता ने नई ऊंचाइयों को छूआ. मेरी ताबड़तोड़ सफलता को देख कर सब लोग सम   झते थे कि मेरे पास एक सुनहरा स्पर्श है. मैं सीना चौड़ा कर गर्व के साथ कह सकता था कि मैं एक सफल इंसान हूं.

आप के मन में शायद यह शक पैदा हुआ होगा कि इतना सफल आदमी इस सौंदर्य जगह पर सागर के किनारे अकेला क्यों बैठा है?

मेरे यहां अकेले आने और इस समुद्र को देखने के पीछे एक बहुत बड़ी त्रासदी छिपी हुई है.

आप अचंबित हैं कि एक इंसान जो खुद को सफल घोषित कर रहा था अब त्रासदी के बारे में बात कर रहा है. हां, यही मेरी जिंदगी का दूसरा पहलू है. मेरी जिंदगी ने पूरी की पूरी पलटी मारी और सफलता से मेरा नाता अचानक टूट गया. मेरे काम के क्षेत्र में और मेरी निजी जिंदगी दोनों में मु   झे एक के बाद एक    झटके लगने लगे.

सफलता ने मुझे कितनी खुशी दी उस से ज्यादा दुख असफलता ने मु   झे दिया. जिंदगी में सिर्फ सफलता को ही देख कर परिचित हुए मेरे मन ने इस असफलता को अपनाने से इनकार कर दिया.

मेरा बेटा जो एक निजी इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था, नशे का आदी होने की वजह से  कालेज से निकाल दिया गया था.

मेरी बेटी जो मेरे बेटे से बड़ी है वह कंप्यूटर कंपनी में काम कर रही थी और हमारी इच्छा के विरुद्ध किसी दूसरे राज्य के लड़के से शादी रचाने के लिए हमारी जानकारी के बिना चेन्नई छोड़ विदेश चली गई. मेरी पत्नी इस सदमे को सहन नहीं कर सकी और मानसिक अवसाद में डूब गई.

इतनी बुरी परिस्थिति में भी मैं ने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया, यह सोच कर कभीकभी मैं खुद हैरान हो जाता हूं. दुख कभी अकेला नहीं आता यह कहावत शायद मेरे लिए ही लिखी होगी.

अब तक हर क्षेत्र में सफलता चख कर उस का आनंद लेने के बाद मेरे पास इस लगातार असफलताओं के बो   झ को सहन करने की ताकत, मानसिक शक्ति नहीं थी.

नतीजा यह हुआ कि मैं इस सुनसान टापू की तलाश में अकेला ही आ गया. मेरे पास अब जीवन में कुछ भी नहीं है. हर तरफ अंधेरा ही दिख रहा. मुझे नहीं पता कि इस हालत को कैसे संभालूं?

मेरा मन बारबार एक ही रास्ता बता रहा था. इन लोगों और दुनिया को देखे बिना इस जगह पर खुद को मिटा देना हां आत्महत्या कर डालना…

इसे सुन कर आप और हैरान होंगे कि पागल अपने ही शहर में एक सैकंड में ऐसा करने के कई तरीके हैं, तुम्हें इतनी दूर आने की क्या जरूरत है?

मृत्यु पर विजय प्राप्त करना मनुष्य की पहुंच से परे एक हार है. मैं जानता था कि मृत्यु को गले लगाना एक प्रकार का पराजय ही है और उसे मैं जानपहचान वाले लोगों के सामने कर के खुद एक मजाक नहीं बनना चाहता था. मैं इस अनदेखी जगह में आ कर आत्महत्या करूंगा तो किसी को पता ही नहीं चलेगा.

इस दुनिया में मेरे जाने पर रोने वाला कोई नहीं. न मेरा बेटा आंसू बहाएगा न मेरी बेटी. मेरी पत्नी तो उसे सम   झने की मानसिक स्थिति में है ही नहीं. मगर खुद को खत्म कहां और कैसे करूं? मैं दुनिया की नजरों के लिए अदृश्य होना चाहता हूं.

आज की रात मेरे इरादे को पूरा करने के लिए एकदम सही रात है. मु   झे बस इतना करना है कि सीधे समुद्र में चलें.

मैं ने अपनी बगल वाले कमरे में एक विदेशी महिला को देखा. कौन इस द्वीप पर रात में घूमने जा रहा है जहां दिन के समय में भी भीड़ नहीं होती है?

छोटी सी भूल: क्या हुआ था जिज्ञासा के साथ

पीएसआई देवांश पाटिल की पुणे में नईनई नियुक्ति हुई थी. अभी पिछले महीने ही एक रेव पार्टी में उन्होंने 269 युवकयुवतियों को पकड़ा था. गणेशोत्सव पर डीजे बजाने की पाबंदी थी. कई प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों में वे मार्गदर्शन करते थे. युवा पीएसआई देवांश का वीडियो यूट्यूब पर देखते थे. उन के सैमिनार में युवाओं की भीड़ लग जाती थी. कैरियर के साथसाथ पाटिल के परिवार वाले उन की शादी की तैयारी भी कर रहे थे.

अगले हफ्ते देवांश परिवार के साथ एक जगह लड़की देखने जाने वाले थे. देवांश के हां कहते ही सगाई की रस्म पूरी हो जानी थी. पटवर्धन की बड़ी बेटी जिज्ञासा को पाटिल परिवार ने पसंद किया था. जिज्ञासा 4 साल से पुणे में होस्टल मे रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रही थी. पटवर्धन गांव के ही एक कालेज में प्राध्यापक थे. इस तरह से दोनों ही प्रतिष्ठित और संपन्न परिवारों से थे. लड़कालड़की दोनों उच्चशिक्षित होने से एकदूसरे के लिए बेहतर थे, लड़की वालों की तरफ से एक तरह से हां ही थी, सिर्फ देवांश का हामी भरना बाकी था.

देवांश के मामा ही यह रिश्ता खोज कर लाए थे.

‘‘इतनी शिक्षित लड़की किसी अन्य परिचित खानदान में नहीं मिलेगी. जैसा घरपरिवार हमें चाहिए, बिलकुल वैसे ही लोग हैं,’’ मामा ने देवांश की मां को बताया था. जिज्ञासा की भी उन्होंने काफी तारीफ की थी.

बस, तभी से देवांश जिज्ञासा को देखने के लिए बेचैन हुआ जा रहा था.

देखनेदिखाने की रस्म के लिए निर्धारित समय पर पाटिल परिवार पटवर्धन परिवार के घर पहुंच गया. बड़े उत्साह से मेहमानों का स्वागत किया गया. लड़कीदिखाई की रस्म शुरू हुई. जिज्ञासा दुपट्टा संभाले हाथों में चाय की ट्रे लिए हौल में दाखिल हुई, अपने दिल की धड़कनों को थामे देवांश की नजरें ज्यों ही जिज्ञासा पर पड़ीं उस का चेहरा उतर गया. चाय का कप थमाते हुए जिज्ञासा की नजर भी जब देवांश की नजर से टकराई, तो वह भी कांप उठी और घबराहट में अपना चेहरा छिपाने लगी.

दरअसल, पिछले दिनों पुणे की रेव पार्टी में देवांश ने जिन लोगों को पकड़ा था उन में से एक जिज्ञासा भी थी, लेकिन किसी जानेमाने व्यक्ति का फोन आने पर उसे और उस की दोस्त को छोड़ दिया गया था.

‘‘बेटा, हमारी जिज्ञासा पढ़ीलिखी, सर्वगुणसंपन्न है. आप को कुछ पूछना है तो पूछ सकते हो?’’

‘‘अरे पटवर्धन, हमारे सामने ये दोनों क्या बात करेंगे? अकेले में दोनों को बात करने दो,’’ देवांश के मामा ने कहा.

‘‘हां, हां, जरूर. जिज्ञासा, देवांश बाबू को कमरे में ले कर जाओ.’’

जिज्ञासा देवांश के सामने अपनी आंखें नहीं उठा पा रही थी. वह चुपचाप अपने कमरे की तरफ चल पड़ी. वह काफी डरी हुई थी और उसे खुद पर शर्म आ रही थी. उधर देवांश के मन में सवालों की खलबली मची हुई थी, सो वह जिज्ञासा के पीछेपीछे चल पड़ा. जैसे ही देवांश कमरे के अंदर आया, जिज्ञासा ने जल्दी से अंदर से दरवाजा बंद किया और दरवाजे के पास खड़ी हो गई.

‘‘मुझे ऐसा लगता है कि हमारे बीच बोलने के लिए कुछ खास नहीं है मिस जिज्ञासा. बिना वजह एकदूसरे का समय बरबाद कर के कोई फायदा नहीं है.’’

देवांश जिज्ञासा से क्यों पूछना तो बहुतकुछ चाहता था पर न जाने वह इतना ही बोला. देवांश सोच रहा था कि जिज्ञासा अपनी सफाई में उस से कुछ कहेगी, लेकिन जिज्ञासा सिर नीचे किए चुपचाप खड़ी रही. देवांश से ज्यादा देर तक कमरे में रुका नहीं गया और वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गया.

हौल में आते ही देवांश की हां सुनने के लिए सभी लोग आतुर बैठे थे.

‘‘आगे क्या करना है देवांश?’’ देवांश की मां ने पूछा.

‘‘मां, हम घर जा कर बात करेंगे, अभी हमें यहां से चलना चाहिए.’’

‘‘ठीक है, कोई जल्दबाजी नहीं है. शांति से सोचविचार कर निर्णय लें. हमें आप के फोन का इंतजार रहेगा,’’ पटवर्धन ने कहा.

देवांश के जवाब से सभी लोगों को निराशा हुई, उन्हें पूरी उम्मीद थी कि देवांश जिज्ञासा को देखते ही हां कर देगा.

वहां जिज्ञासा देवांश की ना के बाद, उस दिन को कोस रही थी जब उस ने उस रेव पार्टी में जाने की भूल की थी. लेकिन अब यदि देवांश के सामने सारी बात साफ नहीं करती तो जिंदगी की दूसरी भूल करेगी. आखिरकार जिज्ञासा ने स्वयं देवांश से मिलने की योजना बनाई और हिम्मत कर के एक दिन उस के औफिस पुलिस स्टेशन पहुंच गई.

पुलिस स्टेशन में उसे बहुत अटपटा लग रहा था लेकिन देवांश अपने केबिन में कुरसी पर बैठा फाइलें पलटते  नजर आ गया था. जिज्ञासा घबराते हुए उस के सामने जा कर खड़ी हो गई.

देवांश भी एक बारी उसे यों अपने सामने खड़ा देख अचकचा गया.

‘‘मुझे आप से कुछ बात करनी है,’’ जिज्ञासा ने हिम्मत बटोरते हुए कहा.

‘‘बोलो,’’ देवांश ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा.

जिज्ञासा समझ नहीं पा रही थी कि केबिन में बैठे और लोगों के सामने कैसे बात करे. 2-3 मिनट तक चुपचाप खड़ी रही. देवांश भी कुछ अटपटा सा महसूस कर रहा था.

‘‘हम बाहर बात करें क्या? प्लीज.’’

‘‘ठीक है,’’ देवांश ने भी बाहर जाना मुनासिब समझ.

दोनों बाहर लौन में आ गए.

‘‘आप न जाने मेरे बारे में क्याक्या सोच रहे होंगे, लेकिन यकीन मानिए मैं ने कोई गलत काम नहीं किया है. मैं 4 साल से पुणे में पढ़ाई कर रही हूं. मेरी रूममेट अकसर रेव पार्टी में जाती है. मैं भी जानना चाहती थी कि आखिर इन पार्टियों में होता क्या है? कैसी होती है रेव पार्टी? इसलिए उस दिन उस के साथ चली गई थी, लेकिन उस के पहले तक मैं ने कभी किसी भी तरह की ड्रिंक नहीं की. आप चाहें तो मेरा ब्लड टैस्ट करा सकते हैं.

आप तो पुलिस डिपार्टमैंट में हैं, मेरे बारे में सबकुछ जांच कर सकते हैं. मुझ से गलती हुई है, मैं मानती हूं, लेकिन मैं बुरी लड़की नहीं हूं, इतना ही मुझे कहना था. मेरे परिवार को आप ने इस बारे में कुछ नहीं बताया, इस के लिए मैं आप की बहुत आभारी हूं.’’

जिज्ञासा को उम्मीद थी की देवांश उसे रुकने के लिए कहेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जिज्ञासा भारी मन के साथ घर लौट आई. उस के परिवार वाले उस से देवांश के इनकार का कारण पूछते रहे, लेकिन वह भी अनजान बनी रही. परिवार वालों को इतना अच्छा रिश्ता खो देने का बड़ा अफसोस था.

जिज्ञासा का घर में मन नहीं लग रहा था, इसलिए वह वापस होस्टल लौट गई. एक दिन होस्टल में सारी बातें याद कर सिसकसिसक कर रो रही थी. देवांश उसे एक नजर में भा गया था. अपनी एक भूल के कारण उस ने उसे खो दिया था. उस की यह हालत देख कर उस की दूसरी रूममेट तनया से रहा नहीं गया. उस ने जिज्ञासा से कहा कि वह देवांश से मिल कर पूरी बात साफ करने की कोशिश करेगी.

अगले ही दिन तनया देवांश के औफिस पुलिस स्टेशन गई.

‘‘नमस्कार सर, मैं जिज्ञासा की फ्रैंड हूं. क्या मैं आप से दो मिनट बात कर सकती हूं.’’

‘‘हां, कहिए.’’

‘‘ सर, मैं घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगी. बस, इतना पूछना चाहती हूं  कि आप ने जिज्ञासा से शादी के लिए इनकार क्यों किया? मेरा कहना बदतमीजी हो सकता है, लेकिन यह जरूरी है, क्योंकि आप का फैसला गलत है. दोनों परिवार के बड़े लोग यह संबंध जोड़ना चाहते हैं. रही बात जिज्ञासा की रेव पार्टी में जाने की, तो वह उन लड़कियों जैसी नहीं है. हमारी एक रूममेट हर दिन किसी न किसी पार्टी में जाती है. जिज्ञासा एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की है. उस ने यों ही सोचा कि एक बार जा कर देखना चाहिए कि आखिर रेव पार्टी में होता क्या है, जिस के लिए वह आज तक पछता रही है.

‘‘हमारी गलती की वजह से आप ने उस से शादी के लिए ना कर दिया, उस से वह बहुत दुखी है. उस की आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं. वह दिल ही दिल में आप को पसंद करने लगी है. मैं विश्वास के साथ कहती हूं कि एक बहू के रूप में वह आप के परिवार को कभी निराश नहीं करेगी. एक बार फिर से आप ठंडे दिमाग से सोचविचार करें.’’

तनया ने स्पष्ट रूप से अपनी बात कही थी, जो पुलिस स्टेशन में आसपास बैठे सभी लोग सुन रहे थे. तनया के जाने के कुछ समय बाद सीनियर औफिसर देव कुमार देवांश के सामने आ कर बैठ गए. देवांश उन की बहुत इज्जत करता था.

‘‘पूरा मामला क्या है?’’ देव कुमार ने गंभीरता से देवांश से पूछा.

‘‘कुछ नहीं सर,’’ देवांश से कुछ कहते नहीं बना.

‘‘मुझे थोड़ीबहुत जानकारी है. तुम्हारे मांपिता ने मुझ से इस बारे में फोन पर बात की थी. सब से कोई न कोई गलती होती है. इस के अलावा तुम्हारे परिवार ने लड़की के बारे में हर जानकारी ली है. बेवजह तुम मामले को खींच रहे हो. ऐसा मुझे लग रहा है.’’

मेरी बात मानो तो बात की तह तक जाओ. कुछ दिनों पहले वह लड़की तुम से मिलने आई थी, तब मैं ने उसे देखा था. मेरी अनुभवी आंखें कहती हैं कि वह लड़की वाकई शरीफ है. उस से जो कुछ भी हुआ, अनजाने में हुआ.

देव कुमार की बातें सुन देवांश भी अब जिज्ञासा के बारे में एक बार फिर सोचने पर विवश हो गया.

देवांश ने एक बार फिर से जिज्ञासा के बारे में कई लोगों से पूछताछ की, तब जा कर उसे यकीन हुआ कि जिज्ञासा एक संस्कारी लड़की है.

दूसरे दिन वह जिज्ञासा के होस्टल की कैंटीन में जा कर बैठ गया. इत्तफाक की बात थी, जिज्ञासा भी वहीं टेबल पर सिर रख कर बैठी थी. सिर में दर्द होने के कारण वह क्लास अटैंड कर यहां आ गई थी. तनया उसे चाय पीने के लिए फोर्स कर रही थी.

‘‘मुझे नहीं पीनी चाय. मुझे कुछ देर अकेले बैठने दो.’’

देवांश ने देखा, तनया जिज्ञासा के पास से उठ कर किसी और लड़की से बातचीत में मशगूल थी. जिज्ञासा के आसपास कोई नहीं था.

‘‘भाई, 2 चाय देना,’’ कहते हुए देवांश जिज्ञासा की टेबल पर जा कर बैठ गया.

देवांश की आवाज सुन कर जिज्ञासा ने अपना सिर उठाया. वह हैरान रह गई, सकपका कर खड़ी हो गई.

‘‘अरेअरे, खड़ी क्यों हो गई, बैठो. तुम्हीं से बात करने आया हूं.’’

‘‘मैं…मैं…वो,’’ जिज्ञासा को समझ नहीं आया कि क्या कहे.

‘‘जिज्ञासा, मैं स्पष्ट बात करता हूं. तुम से झूठ नहीं कहूंगा, तुम्हारी भोली सूरत, गहरी आंखें मुझे पहली नजर में भा गई थीं. लेकिन क्या करता, वह रेव पार्टी…

‘‘खैर, छोड़ो अब इस बात को. अब जो मैं तुम से बात कहने जा रहा हूं उसे ध्यान से सुनो.

‘‘पहली बात कि मैं एक पुलिस अफसर हूं, इसलिए रोने वाली लड़की मेरी पत्नी नहीं हो सकती है. दूसरी बात, मुझे दोनों वक्त घर का बना खाना चाहिए. ऐसे में कभी भी टिफिन बनाना पड़ सकता है. तीसरी बात, मुझे अपनी पत्नी साड़ी में पसंद है. चौथी बात, वह मेरे मांपिता का मन कभी नहीं दुखाएगी. 5वीं बात, मेरे जीवन में देशसेवा पहले है, इस के बाद परिवार. क्या तुम्हें यह सबकुछ स्वीकार्य है?’’

खुशी के कारण जिज्ञासा को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले. वह शरमा गई और मन ही मन मुसकराने लगी. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि देवांश उस से यह सब कह रहा है.

‘‘मैं तुम्हारे घर रविवार को सगाई करने आ रहा हूं,’’ चाय पी कर मुसकराते हुए देवांश जिज्ञासा के करीब आया. उस की आंखों में झंकते हुए बोला, ‘‘तुम ने मुझे अभी तक नहीं बताया, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न.’’ जिज्ञासा देवांश की शरारती नजरों को समझ गई और शरमा कर देवांश की बांहों में उस ने अपना चेहरा छिपा लिया.

Shehnaaz Gill ने बॉलीवुड में भेदभाव को लेकर कहीं ये बात! सेट का सुनाया अनुभाव

बॉलीवुड में अपने हुनर से जगह बनाने वाली एक्ट्रेस शहनाज गिल की थैंक यू फॉर कामिंग’ मूवी जल्द ही सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है. इस फिल्म को लेकर शहनाज काफी चर्चाओं में आए है. फिल्म ‘थैंक यू फॉर कामिंग’ में वह एकता कपूर के प्रोडक्शन में काम कर रही हैं. इस फिल्म में शहनाज के साथ भूमी पेडनकर, कुशा कपिला, डॉली सिंह और शिबानी बेदी अहम भूमिकाओं मे नजर आ रही है. एक इंटरव्यू में शहनाज ने बताया कि फिल्म में काम करने का अनुभाव क्या रहा है.

शहनाज ने बताया सेट का अनुभाव

वैसे तो शहनाज गिल के दिल में जो होता वह सब कह देती है. बिग बॉस में भी बेबाकी से लोगों के दिलों अपनी जगह बनाई है. अब वह एकता कपूर के साथ सेक्स कॉमेडी ‘थैंक यू फॉर कामिंग’ में काम करने का मौका मिला है. वहीं शहनाज ने एक मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने फिल्मों में काम करने का अनुभाव शेयर किया है. उनसे पूछा गया कि क्या बराबरी से व्यवहार हुआ? इस पर शहनाज ने कहा कि, हां इस सेट में तो सीरियसली मुझे ऐसा फीलिंग आई. मुझे लगा जैसे…होगा इधर भी कि बड़े लोगों को अलग दिखाया जाता है और छोटे लोगों का साइड किया जाता है. लेकिन इधर ऐसा कुछ नहीं था.

 

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मैं क्या ही बोलूं अब

शहनाज आगे बताती है कि प्रोडक्शन का भी बहुत बड़ा रोल है. इन्होंने एक परसेंट भी फील नहीं होने दिया ये लड़की मेन लीड है, तुम कैरेक्टर्स हो साइड के. बिल्कुल ना. पूरी वैनिटी में भी अच्छा था. उसी समय बुलाते थे जब शॉट होता था, यह बहुत ही इम्पॉर्टेंट चीज है. हर चीज में बराबरी से ट्रीट किया गया है, मैं अब क्या ही बोलूं.

शहनाज ने बताया, हर सेट में ऐसा नहीं होता. मुझे ये चीज अच्छी लग रही है कि मैं एक्सपीरियेंस कर रही हूं. जरूरी नहीं है कि लोग बोलते हैं ना अच्छे लोग नहीं होते बॉलीवुड में, ऐसा नहीं है. बहुत अच्छे लोग हैं. वो डिपेंड करता है लोग कौन हैं. बता दें कि इससे पहले शहनाज गिल ने सलमान खान के साथ किसी का भाई किसी की जान में काम किया था.

बॉयफ्रेंड संग मूवी डेट पर गई Ananya Pandey! लोगों ने कहा- बेस्ट कपल

बॉलीवुड एक्ट्रेस अनन्या पांडे और एक्टर आदित्य रॉय कपूर काफी समय से दोनों एक-साथ स्पॉट होते रहते है. पिछले महीने से दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे है. कभी वह वीकेशन तो कभी लांच और डिनर डेट के लिए अक्सर साथ नजर आते है. हालांकि दोनों ने इस रिश्ते को अभी ऑफिशियल नहीं किया है. लेकिन बॉलीवुड इंडस्ट्री में इनके प्यार की काफी चर्चा है. अभी हील ही में बीते मंगलवार को दोनों ही साथ में स्पॉट हुए है.

आदित्य और अनन्या मूवी देखने पहुंचे

बॉलीवुड का नया कपल आदित्य रॉय कपूर और अनन्या पांडे मंगलवार को ‘थैंक यू फॉर कमिंग’ की स्क्रीनिंग पर पहुंचे थे. इस शानदार स्क्रीनिंग पर बॉलीवुड के तमाम सितारे नजर आए थे. जिसमें ये दोनों कपल भी साथ नजर आए थे.

 

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आदित्य रॉय कपूर-अनन्या लोगों ने बेस्ट कपल

अनन्या पांडे-आदित्य रॉय कपूर की इन तस्वीरों को देखने के बाद लोगों ने उन्हें बेस्ट कपल तक बता डाला. आपको बता दें कि अनन्या पांडे-आदित्य रॉय कपूर के अफेयर को लेकर कई दिनों से खबरें आ रही हैं.

दरअसल, साल की शुरुआत में पहली बार आदित्य रॉय कपूर और अनन्या पांडे एक फैशन वीक के रैंप वॉक पर एक साथ नजर आए थे. वहीं फरवरी में कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा के मुंबई रिसेप्शन में भी उन्हें एक साथ देखा गया था. उसके बाद आदित्य की बेव सीरिज की स्क्रीनिंग के दौरान अनन्या पांडे एक्टर की चीयर करती नजर आई थी.

पुर्तगाल में रोमांटिक अंदाज में नजर आए थे

अनन्या और आदित्य ने पुर्तगाल में एकदूसरे के साथ अच्छा समय गुजारा था. वहीं स्पेन में लाइव कॉन्सर्ट के बाद लिस्बन के एक रेस्तरां में एक-साथ देखा गया था. इससे पहले लिस्बन से कई तस्वीरें खूब वायरल हुई थी, जिसमें आदित्य अनन्या को हग करते नजर आए थे. इन्हीं तस्वीरों से दोनों ने अपने रिलेशनशिप पर मुहर लगाई थी.

अनन्या की फिल्में

अनन्या पांडे की वर्कफ्रंट की बात करें तो हाल ही में एक्ट्रेस ड्रीम गर्ल 2 में नजर आई थी. इसके बाद वह खो गए हम कहां में नजर आएंगी. वहीं विक्रमादित्य मोटावानी की अपकमिंग साइबर थ्रिलर कंट्रोल में नजर आएंगी. वहीं आदित्य मेट्रो इन दिनों में दिखाई देंगे.

हैंडलूम साङी त्योहार बनाएं यादगार

फैस्टिवल्स में साङी खरीदने का प्लान बना रही हैं, तो बाजार में साड़ियों की कई रेंज उपलब्ध हैं. मगर आजकल सब से अधिक जो साड़ी ट्रेंड में है वह है हैंडलूम साड़ी. हैंडलूम साड़ियां कारीगरों के द्वारा हाथों से बनाई जाती हैं. इन की बड़ी विशेषता यह है कि इन में प्रयोग किया जाने वाला मैटीरियल ईको फ्रैंडली और नैचुरल होता है. साथ ही ये साड़ियां कभी भी आउट औफ फैशन नहीं होतीं.

इसलिए इन पर खर्च किया गया पैसा कभी भी अखरता नहीं है. पर कई बार ऐसा होता है कि हम अच्छीखासी महंगी साड़ी खरीद लाते हैं पर घर आ कर हमें उस का कलर या डिजाइन पसंद नहीं आता.

कुछ इसी तरह की समस्याओं से बचने के लिए हम आप को कुछ टिप्स बता रहे हैं, जिन का ध्यान रख कर आप बेझिझक हैंडलूम साड़ियां खरीद सकती हैं :

क्या होता है हैंडलूम

लकड़ी का लूम जिस पर कई प्रकार और रंगों के धागों के द्वारा कारीगरों के हाथों से साड़ी की बुनाई की जाती है उसे हैंडलूम कहा जाता है. चूंकि लूम पर हाथों से बुनाई की जाती है इसलिए इसे हैंडलूम साड़ी कहा जाता है.

हाथों से बनाए जाने के कारण ही इन साङियों की डिजाइन और क्वालिटी मशीन पर बनी साड़ियों से अलग होती हैं और इसलिए इन्हें पहन कर आप भीड़ में भी अपना अलग व्यक्तित्व बना लेते हैं क्योंकि इन की कभी भी नकल नहीं हो सकती.

कलर हो सब से खास

हर रंग हर इंसान पर नहीं फबता. फेअर या पेल कौंप्लैक्शन पर ब्राइट रंग और मैरून, डार्क पिंक, ग्रीन कलर डस्की या सांवले रंग पर खूब फबते हैं. इसलिए साड़ी खरीदते समय अपनी स्किन टोन का ध्यान जरूर रखें.

बजट निर्धारित करें

हैंडलूम साड़ियां हर रेंज में बाजार में उपलब्ध हैं. खरीदने जाने से पहले आप अपना बजट तय कर लें फिर उसी के अनुसार दुकानदार से साड़ियां  दिखाने को कहें क्योंकि कई बार बजट तय न होने पर दुकानदार अधिक रेंज की साड़ियां दिखाना शुरू करता है और हम अपने बजट से अधिक की साड़ी खरीद कर ले आते हैं। फिर बहुत पछताते भी हैं इसलिए बाद में पछताने की अपेक्षा पहले से ही अपना बजट तय कर के जाएं.

बौडी टाइप का रखें ध्यान

दुबलेपतले शरीर पर हैवी बौर्डर वाली, ओवरवेट शरीर पर बिना बौर्डर या एकदम पतले बौर्डर वाली और हैवी बौडी पर प्लेन या माइल्ड प्रिंट की साड़ी फबती है.

जीआई टैग देखें

हैंडलूम की सभी साड़ियों पर हथकरघा विभाग अपना टैग देता है. इसे देख कर ही आप साड़ी खरीदें ताकि आप किसी भी प्रकार की चीटिंग से बचीं रहें. बनारसी और सिल्क की साड़ियों पर सिल्क मार्क देखना भी बेहद जरूरी होता है.

देखभाल सुनिश्चित करें

साड़ी खरीदने के साथ ही दुकानदार से साड़ी की देखभाल के बारे में जरूरी जानकारी ले लें ताकि उस के अनुसार आप अपनी साड़ी को सुरक्षित रख सकें. एक बार पहनने के बाद अच्छी तरह से पोंछ कर फिर साड़ी कवर में रखें। यदि आप ने गरमी में साड़ी पहनी है तो ड्राईक्लीन करा कर ही रखें अन्यथा पसीने का दाग साड़ी को खराब कर सकता है.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • ये साड़ियां बहुत नाजुक और महंगी होती हैं। इसलिए इन्हें अतिरिक्त देखभाल की भी आवश्यकता होती है. बारिश के मौसम में इन्हें पहनने से बचें.
  • गरमियों में पहनने के तुरंत बाद पसीना सुखाएं और फिर ड्राईक्लीन करवा कर ही रखें.
  • यदि बौर्डर और पल्लू बहुत हैवी है और बहुत सारे धागे दिख रहे हैं तो पीछे की तरफ नेट अवश्य लगवाएं ताकि पहनते समय धागे हाथों में न उलझें.
  • बाघ प्रिंट और चुनरी प्रिंट की कौटन साड़ियों को पहली बार धोते समय नमक के गरम पानी में आधा घंटा भिगो कर रखें। उस के बाद सादा पानी से धोएं अन्यथा इन का रंग निकल सकता है.
  • हैंडलूम की साड़ियों को मशीन में धोने की अपेक्षा हमेशा हाथ से ही धोएं क्योंकि मशीन में रंग निकलने या फिर श्रिंक होने की संभावना रहती है.

अंडरआर्म्स का कालापन झट से होगा दूर, लगाएं ये आसान पैक

आमतौर पर महिलाओं को हॉफ स्लीव्स कपड़े पहनना बेहद पसंद होता है. खासकर गर्मियों में हॉफ स्लीव्स कपड़े पहनना सभी को अच्छा लगता है. लेकिन हमारे त्वचा में कई प्रॉब्लम होते है जिस वजह हॉफ स्लीव्स कपड़े पहनने के लिए सोचना पड़ता है. इसी में से एक समास्या है डार्क अंडरआर्म्स की. वैक्सिंग के बावजूद और रेजर के इस्तेमाल करने से अंडरआर्म्स के हेयर्स तो क्लीन हो जाते है लेकिन बाद में स्किन डार्क हो जाती है. बार-बार अंडरआर्म्स के कालेपन से महिलाएं अपने मन मुताबिक कपड़े नहीं पहन पाती. कई बार कालेपन की वजह से शर्मिंदा महसूस होती है. अगर आप भी डार्क अंडरआर्म्स से परेशान तो अपनाएं ये होममेड टिप्स.

डार्क अंडरआर्म्स के ये आसान टिप्स

  1. नींबू

 

नींबू विटामिन सी से भरपूर होता है. आप एक नींबू लें उसको दो भाग में काट लें इसके बाद अपने अंडरआर्म्स पर हल्के हाथ से नींबू से स्क्रब करें. नींबू को 5-10 मिनट तक लगे रहने दे. साफ पानी से इसको धो लें.

2. बेकिंग सोडा

बेकिंग सोडा अंडरआर्म्स के कालेपान को दूर करने में सबसे करगार तरीका है. इसके लिए आप दो चम्मच एप्पल साइडर विनेगर में दो चम्मच बेकिंग सोडा डालकर एक पेस्ट तैयार करें. पेस्ट को घोलते वक्त इसमें बुलबुले आने लगेंगे, जब ये बुलबुले कम हो जाएं तो इसे अपने अंडरआर्म पर लगाएं और 5 से 10 मिनट तक सूखने दें. इसके बाद ठंडे पानी से धो लें.

3. हल्दी

हल्दी में एंटी बैक्टीरियल गुण मौजूद होते है इसके साथ ही हल्दी स्किन को चमक देने में मदद करती है. सबसे पहले आप एक कटोरी में हल्दी, शहद और दूध लें. इन सभी को आपस में  अच्छी तरह से मिलाएं उसके बाद अंडरआर्म पर लगाएं. 15 मिनट के बाद इसे धो लें.

4. एलोवेरा

एलोवेरा स्किन को हाइड्रेट रखता है इसमें एंटी बैक्टीरियल पाएं जाते है और यह ठंड़ा होता है. आप नेचुरल एलोवेरा की पत्ती लें उसका जेल निकाल लें. इस जेल को अंडरआर्म्स पर लगाएं. और इसे लगभग 10-15 मिनट तक लगा रहने दें. इसके बाद ठंडे पानी से धो लें.

5. आलू

आलू अंडरआर्म्स कालेपन को दूर करने के लिए सबसे आसान और किफायती तरीका है. सबसे पहले आप एक आलू लें उसे कद्दूकस करके उसका रस निकाल लें. उसके बाद इस रस को कॉटन की मदद से सीधे अंडरआर्म्स पर लगाएं. करीब 10 मिनट बाद इसे ठंडे पानी से धो लें.

व्यंग्य: मैं ऐसी क्यों हूं

जमानाकहां से कहां पहुंच गया पर मिसेज शर्मा अभी भी पुरानी सदी का अजूबा हैं. मगर सम?ाती अपनेआप को मौडर्न. यह बात और है कि नईनई चीजों से उन्हें डर लगता है, पर पंगा घर में आने वाली हर नई वस्तु से लेना होता है. फिर चाहे वह स्मार्ट फोन हो, आईपौड हो या सीडी अथवा डीवीडी प्लेयर. वैसे तो अब ये सब आउट औफ फैशन हो गए हैं.

कितना हसीन था वह दिन जब शर्मा परिवार तैयार हो कर स्मार्ट फोन लेने गया था. एक तूफान से बेखबर बच्चों ने स्मार्ट फोन पसंद कर लिया और घर पहुंचतेपहुंचते उस का असर मिसेज शर्मा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

जैसे ही फोन की घंटी बजी तो उन्होंने ऐसे चौंक कर उठाया मानो वह कोई बम हो, जो अगर जल्दी नहीं उठाया तो फट जाएगा.

बच्चे भी बातबात पर कहते, ‘‘ममा, क्या होगा आप का?’’

‘‘अब क्या होना,’’ एक लंबी सांस खींच कर वे कहतीं, ‘‘मेरा जो होना था वह हो गया है.’’

बच्चों ने सम?ाया, ‘‘ममा यह स्मार्ट फोन है.’’

‘‘लो अब बोलो. स्मार्ट तो इंसान होते हैं… कहीं फोन भी स्मार्ट होते हैं? अब इस फोन में ऐसा क्या है, जो मु?ा में नहीं?’’ मिसेज शर्मा तुनक कर बोलीं.

तब बच्चों ने सम?ाया, ‘‘इस में सोशल नैटवर्किंग होती है जैसे फेसबुक, ट्विटर, याहू कर सकते हैं.’’

‘‘लो बोलो ‘याहू’ तो मैं भी कर सकती हूं शम्मी कपूर को मैं ने एक पिक्चर में ‘याहू’ करते देखा है. फेसबुक पर क्या होता है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘उस पर हम अपने दोस्तों के साथ चैटिंग कर सकते हैं. कमैंट्स पढ़ते हैं.’’ बच्चों ने बताया.

‘‘अच्छा, हमारी किट्टी पार्टी की तरह.’’

‘‘ममा, क्या होगा आप का? कहां स्मार्ट फोन और कहां किट्टी पार्टी.’’

मिसेज शर्मा ने बच्चों को समझया, ‘‘किट्टी पार्टी में भी तो हम एक

से एक नए कपड़े पहन कर जाते हैं ताकि बाकी तारीफ करने वाली महिलाएं तारीफ करें और जलने वाली जलें… चैटिंग तो हम भी करते हैं. आप लोग जो स्टेटस डालते हो वह तो पुराना हो जाता है. हमारा तो लाइव टैलीकास्ट होता है. जलवा दिखाओ और हैंड टू हैंड कमैंट्स ले लो.’’

‘‘ममा, आप कहां की बात कहां ले जाती हैं.’’

जब बच्चे पहली बार लैप्पी यानी लैपटौप ले कर आए तो फिर उन के दिमाग ने उस के सिगनल पकड़ने शुरू कर दिए.

उन्होंने उसे बड़े प्यार से उठाया और अपनी गोद में बैठाया जैसे छोटे बच्चे को बैठाते हैं. फिर उसे गरदन गिरागिरा कर देखने लगीं. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे चलेगा? जब 15-20 मिनट की जद्दोजेहद के बाद भी नहीं चला पाईं तो बच्चों ने फिर ममा, ‘‘क्या होगा आप का?’’ डायलौग दोहराया. फिर उन के प्लीज कहते ही उन्होंने पलक झपकते उसे चला दिया. वे उन के टेक सेवी होने पर बलिहारी हो गईं. पर फिर वही मुसीबत कि अब क्या करूं? कंप्यूटर को तो माउस घुमाघुमा कर चला लेती थीं, गाने सुन लेती थीं, गेम खेल लेती थीं.

पर इस माउस ने उन्हें बहुत दौड़ाया. उन की चीखें निकाली हैं. अकसर उन का और माउस का आमनासामना रसोई में हो जाता था. फिर तो ‘आज तू नहीं या मैं नहीं’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती थी पर जीत हमेशा उस की ही होती थी. पर कंप्यूटर के माउस को उन्होंने खूब घुमाया और अपना बदला पूरा किया.

अब इस लैप्पी के ‘टचपैड’ को कैसे औपरेट करूं? गाने सुनना चाहती हूं तो वह गेम खोल देता है. सिर खुजाखुजा कर वे परेशान हो गई थीं. तभी हाथ से चाय का प्याला छलका और चाय लैपटौप पर जा गिरी. बच्चों को पता न चले इसलिए फटाफट उसे धोने चली गईं और फिर धो कर अच्छी तरह कपड़े से सुखा दिया.

पर यह क्या? लैप्पी को तो जैसे किसी की नजर लग गई? वह चल ही नहीं रहा था यानी उसे मिसेज शर्मा की हाय. ओ नहीं, चाय लग गई थी. 2 दिन लैप्पी कंप्यूटर क्लीनिक में रह कर आया, बेचारा. तभी चलने लायक हुआ.

तब बच्चों ने फरमान सुनाया, ‘‘ममा, अब आप इस से दूर ही रहना.’’

पर अब लगता है उन का सीपीयू कुछकुछ काम कर रहा है और इस का नैटवर्क अलग ही सिगनल पकड़ रहा है, उड़तीउड़ती खबर सुनी है कि घर में ‘आईपैड’ आने वाला है यानी अब उन का बेड़ा पार है और आईपैड का बंटाधार है.

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