विरासत: नाजायज संबंध के चलते जब कठघरे में खड़ा हुआ शादीशुदा विनय

कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था.

पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में

पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा

क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी.

उपाय: आखिर क्या थी नीला के बदले व्यवहार की वजह?

‘‘सुनिए, इस बार दशहरे की छुट्टियां 4-5 दिन की हो रही हैं,’’ नीला ने चाय का कप पकड़ाते हुए बड़ी शोखी से कहा.

‘‘तो क्या?’’ रणवीर तल्खी से बोला.

‘‘दशहरा में मुझे झांसी जाना है,’’ नीला बोली.

‘‘फिर तो मम्मी से पूछ लो न,’’ रणवीर लापरवाही से बोला.

‘‘पूछना है तो तुम्हीं पूछो, मुझे उलटेसीधे बहाने नहीं सुनने हैं,’’ झुंझलाते हुए नीला बोली.

रणवीर जानता है कि सासबहू की पटती नहीं है. दोनों को एकदूसरे के विचार पसंद नहीं हैं. नीला बहुत तेज स्वभाव वाली है. उसे अपने कामों में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं है. यदि किसी ने जरा सा भी किसी बात के लिए टोका तो वह बड़ाछोटा नहीं देखती और ऐसीऐसी बातें सुनाती है कि फिर बोलने वाला आगे बोलने की हिम्मत न करे. उस के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठी है कि ससुराल में सब को दबा कर रखो. सासससुर का वह बिलकुल लिहाज नहीं करती. मामूली सी बात पर भी खूब खरीखोटी सुना देती है. इसीलिए सब उस से थोड़ा अलग रहते हैं और इसी वजह से घर का वातावरण बड़ा बोझिल हो चला है, क्योंकि यहां न अनुशासन है और न बड़ों का आदरसम्मान.

‘‘ठीक है, मैं ही पूछ लेता हूं,’’ रणवीर ने रुख बदल कर कहा. फिर बोला, ‘‘चलो, अब की बार मैं भी वहीं अपनी छुट्टियां बिताऊंगा.’’

नीला कुछ चकित सी हुई, ‘‘क्यों, अब की बार क्या बात है? हर बार तो मुझे पहुंचा कर चले आते थे.’’

‘‘बस मन हो गया. फोन कर दो कि दामादजी भी इस बार वहीं दशहरा मनाने की सोच रहे हैं.’’

‘‘नहीं नहीं, तुम मुझे पहुंचा कर चले आना. नहीं तो तुम्हारी मां मुझे ताना देंगी.’’

‘‘अब छोड़ो भी, मैं भी चल रहा हूं, बस,’’ गंभीर स्वर में रणवीर बोला.

रणवीर के वहीं छुट्टी बिताने की बात सुन जैसे कि आशा थी, मां खुश नहीं हुईं. उन्हें बिना मतलब ससुराल में रहना पसंद नहीं था. उन्होंने समझाने की कोशिश की पर रणवीर अड़ा रहा, बोला, ‘‘मां, तुम चिंता न करो, सब ठीक रहेगा.’’

नीला जब भी मायके से लौट कर आती थी, तकरार के नएनए नुसखे सीख कर आती थी. यह बात रणवीर भी जानता था और मां भी. इसीलिए नीला के मायके जाने को ले कर मां हमेशा अप्रसन्नता जताती थीं.

रणवीर के आने की खबर मिलते ही ससुराल में सभी स्वागतसत्कार के लिए तत्पर हो उठे. टैक्सी दरवाजे पर रुकी तो छोटा साला अरविंद, जो बाहर क्रिकेट खेलने जाने के लिए किसी साथी का इंतजार कर रहा था, लपक कर आया और सभी को नमस्ते कर सामान उठा कर अंदर ले गया. सास रसोईघर में कुछ बनाने में व्यस्त थीं और ससुरजी कुरसी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे.

ससुरजी को नमस्ते कर उन का आशीर्वाद ले कर रणवीर रसोईघर में चला गया और अपनी सासूमां को नमस्कार कर बोला, ‘‘अरे, क्या बना रही हैं, मांजी, बड़ी अच्छी सुगंध आ रही है. आप के बनाए नाश्ते का मजा ही कुछ और है.’’

सासूमां अपनी प्रशंसा सुन कर मुसकरा दीं. बोलीं, ‘‘बैठो बेटा, मैं अभी नाश्ता ले कर आती हूं.’’

रणवीर ससुरजी के पास बैठ गया. थोड़ी देर में नाश्ता आ गया. चाय पीते हुए वह सब का हालचाल पूछता रहा. फिर वह अपना बैग उठा लाया और उस में से कुरतापाजामा का एक सैट जोकि चिकन का था, निकाल कर ससुरजी को दिखाया और बोला, ‘‘बताइए पापा, यह सैट कैसा है?’’

ससुरजी ने हाथ में ले कर कहा, ‘‘बढि़या है. इस की कढ़ाई, डिजाइन सोबर और महीन है.’’

‘‘यह आप के लिए है,’’ रणवीर ने हंस कर कहा, ‘‘इस बार लखनऊ गया था, तो 2 सैट लाया था, एक आप के लिए और एक पिताजी के लिए.’’

‘‘अरे भाई, मेरे लिए तुम्हें लाने की क्या जरूरत थी,’’ और पत्नी शारदा की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘देखो, रणवीर मेरे लिए क्या लाए हैं.’’

सासूमां चहक कर बोलीं, ‘‘इस का रंग और डिजाइन तो बहुत अच्छा है. क्या दाम है?’’

‘‘अब आप दाम वाम की बात मत करिए. मुझे अच्छा लगा तो मैं ने ले लिया, बस.’’

फिर रणवीर ने बैग से चिकन की एक साड़ी निकालते हुए कहा, ‘‘यह आप के लिए.’’

सासूमां पुलकित हो उठीं, ‘‘अरे बेटा, इतना खर्च करने की क्यों तकलीफ की.’’

‘‘मम्मीजी, फिर वही बात. मैं भी तो आप का बेटा ही हूं.’’

‘‘अरे बेटा, यह बात नहीं. तुम्हारे व्यवहार और विचार से हम वैसे ही प्रसन्न हैं.’’

रणवीर ने सालेसालियों को भी कुछ न कुछ दिया.

नीला यह सब चकित सी देख रही थी. उस से रहा न गया. जैसे ही एकांत मिला, उस ने रूठे अंदाज में रणवीर से कहा, ‘‘तुम ने यह सब कब खरीदा? मुझे बताया नहीं.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं कि सब कुछ तुम्हें बताया ही जाए.’’

नीला मुंह बना कर चुप हो गई.

रणवीर ने खाना खाते समय खाने की खूब तारीफ की. बीचबीच में हंसी की फुलझडि़यां भी छोड़ रहा था वह. सभी लोग बड़े खुश लग रहे थे.

खाना खाने के बाद रणवीर साले व सालियों के साथ गपशप करने लगा और नीला मां के पास बैठ गई.

रणवीर ने अरविंद को पास बुला कर बैठा लिया और उस की पढ़ाई आदि के बारे में काफी दिलचस्पी दिखाई.

‘‘बातें तो बहुत हो गईं

अब ये बताओ तुम लोग कभी पिकनिक के लिए जाते हो?’’ रणवीर ने अरविंद से मुसकरा कर पूछा.

‘‘हम 1-2 बार कालेज से ही गए हैं, पर वैसा मजा नहीं आया, जो अपने परिवार के साथ आता है,’’ अरविंद और रिंकी मुंह बनाते हुए बोले.

‘‘ठीक है, कल पिकनिक का प्रोग्राम रहेगा,’’ रणवीर बड़े दोस्ताने ढंग से बोला.

अरविंद व रिंकी को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. उन्होंने सारी प्लानिंग झटपट कर डाली. दामाद के इस मिलनसार व्यवहार से पूरा घर बहुत खुश था.

दूसरे दिन किराए की टैक्सी कर ली गई. सभी लोग बैठ कर चल दिए. शहर से बाहर एक झील थी और पास में ही अमराई थी. नीला ने मां के साथ मिल कर पूरियां आदि बना ली थीं. रणवीर पास की दुकान से कुछ मीठा ले आया.

पिकनिक में बड़ा आनंद आया. बच्चों ने खूब खेलकूद किया. खानेपीने के बाद सब ने खूब चुटकुले सुनाए. सभी हंसहंस कर लोटपोट हो रहे थे.

ऐसे ही मौजमस्ती करते छुट्टी के 4-5 दिन कैसे बीत गए, कुछ पता ही नहीं चला. रणवीर घर लौटने का मन बना रहा था. उस दिन शाम को सभी चाय पी रहे थे, तभी रणवीर ने टेप रिकौर्डर निकाला और सब से बोला, ‘‘आप लो यह आवाज पहचानिए तो जरा किस की है?’’

टेप चालू हो गया, सभी लोग ध्यान से सुनने लगे.

अचानक अरविंद चिल्लाया, ‘‘अरे यह तो नीला दीदी की आवाज है. दीदी, तुम किस से डांटडांट कर बोल रही हो? अरे हां, दूसरी आवाज तो तुम्हारी सासूमां की लग रही है. वे धीरेधीरे कुछ कह रही हैं.’’

रिंकी बोली, ‘‘क्यों दीदी, ससुराल में तुम ऐसे ही बोलती हो? यहां हम लोगों से तो तुम कुछ और ही बताया करती हो.’’

नीला के मम्मीपापा हतप्रभ हो नीला का मुंह ताकने लगे. रणवीर मंदमंद मुसकरा रहा था.

रणवीर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी छोटीछोटी बातों को सुन कर चिल्लाना शुरू कर देती है और सब पर दोष लगाया करती है. ऐसी बात नहीं कि मैं कुछ कहता या समझाता नहीं पर यह माने तब न. इस के दिमाग में यह है कि ससुराल में सब को दबा कर रखना चाहिए.

‘‘मैं तो आए दिन की चिकचिक से परेशान हो गया. फिर मैं ने सोचा आप लोग ऐसे तो समझेंगे नहीं, इसलिए मैं ने यह उपाय अपनाया. अब आप लोग जो समझें…’’

तभी ससुर बोले, ‘‘बेटा, हम इतना नहीं जानते थे. यह तेज तो है, लेकिन यह तो हद हो गई. छोटेबड़े का लिहाज करना ही छोड़ दिया. बेटा, हम बड़े शर्मिंदा हैं.’’

सासूमां ने नीला को डांटा और समझाया. नीला को रणवीर पर रहरह कर क्रोध आ रहा था. मायके आ कर नीला सासससुर की खूब बुराई करती थी. सासूमां ऐसे चिल्लाती हैं, ऐसे बोलती हैं, वगैरहवगैरह. आज पोल खुल गई. वह कुछ शर्मिंदा व क्रोधित भी थी. सासूमां ने रणवीर से माफी मांगी. अकेले में नीला को बड़ी हिदायतें दीं और समझाया. नीला बस रोती रही.

रास्ते भर नीला रणवीर से बोली नहीं. जब वे घर पहुंचे तो मां का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा सा था. वे कुछ कहने वाली ही थीं कि नीला ने झुक कर पैर छुए और हालचाल पूछा. सास का मुंह खुला का खुला रह गया. तभी उन्हें ध्यान आया, तो उन्होंने आशीर्वाद दिया. नीला ने ससुर के भी पैर छुए उन्होंने भी आशीर्वाद दिया. जब सास किचन में जाने लगीं तो नीला ने रोक कर कहा, ‘‘आप बैठिए चाय मैं बनाती हूं.’’

स्वर में मिठास व अपनापन था. सास ने अविश्वास से बहू को देखा फिर रणवीर की ओर देखा. वह मंदमंद मुसकरा रहा था. नीला अभी भी मुंह फुलाए थी. बात नहीं कर रही थी, बस अपना काम यंत्रवत करती जा रही थी.

रणवीर बैडरूम में जा कर कपड़े बदल रहा था, तभी नीला ने चाय का प्याला मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘यह चाय रखी है.’’

वह जाने के लिए मुड़ी ही थी कि रणवीर ने हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘तुम भी बैठो, अपनी चाय यहीं ले आओ.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं बैठना है,’’ नीला गुस्से में बोली.

परंतु रणवीर ने जाने नहीं दिया. उसे पास में बैठा लिया. फिर बोला, ‘‘तुम्हारी नाराजगी उचित नहीं. मैं तुम्हें समझाता था मगर तुम मानती नहीं थीं. ऐसे में घर की सुखशांति के लिए कोई उपाय तो करना ही था. मेरे मां पिता ने बहुत संघर्ष किया है. आज जब मैं हर तरह से समर्थ हूं, मेरा फर्ज है सब तरह से उन्हें सुखी रखना. उन को दुखी व अपमानित होते देखना मुझे सहन नहीं होता. जरा सा मीठा बोलो, अच्छा व्यवहार करो तो मां कितनी गद्गद हो जाती हैं. यदि वे अपनी तरह से कुछ चाहती हैं तो कर देने में कौन सी मेहनत करनी पड़ती है,’’ रणवीर ने नीला को समझाते हुए कहा.

नीला कुछ सोचती रही, फिर धीरेधीरे सकुचाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो रणवीर. आज के बाद मैं कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘वैरी गुड,’’ रणवीर ने शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब अपनी चाय ले कर यहीं आओ, हम साथ में चाय पिएंगे.’’

‘‘नहीं, हम चाय सब के साथ पिएंगे, चाय ले कर तुम बाहर आओ,’’ नीला ने भी उसी शरारती अंदाज में नकल उतारते हुए मुसकरा कर कहा और पलट कर बाहर चली गई. रणवीर मन ही मन मुसकराया, उपाय काम कर गया.

शादी का बंधन प्यार का बंधन

जो लोग वैलेंटाइन डे को केवल प्यार के इजहार से जोड़ कर देखते हैं, वे इस का सही अर्थ नहीं समझते. वैलेंटाइन डे प्यार के साथसाथ शादी से भी जुड़ा है. रोम में तीसरी शताब्दी के सम्राट क्लाडियस का अपने शासनकाल में यह मानना था कि शादी करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है. इसलिए उस ने अपने सैनिकों और अफसरों के लिए शादी न करने का फरमान जारी कर दिया. संत वैलेंटाइन ने इस बात का विरोध किया और सैनिकों और अफसरों को शादी करने का आदेश दिया. इस से नाराज हो कर क्लाडियस ने 14 फरवरी, 269 को उसे मौत की सजा दे दी. उसी की याद में लोगों ने वैलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत की.

वैलेंटाइन डे और शादी के बीच रिश्ते को समझ कर अब भारत में भी युवाओं ने वैलेंटाइन डे को मैरिज डे के रूप में मनाने की शुरुआत कर दी है. इस से कट्टरवादी सोच को करारा जवाब मिला है.

कट्टरवादी लोग वैलेंटाइन डे की कितनी ही आलोचना कर लें, पर प्यार करने वालों के लिए इस दिन का महत्त्व कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. 2015 में होने वाली शादियों की तारीखों को देखा जाए तो सब से अधिक शादियां वैलेंटाइन डे के ही दिन हो रही हैं. होटलों, मैरिज हौलों, ब्यूटीपार्लरों और मैरिज गार्डनों की बुकिंग में सब से ज्यादा मारामारी इसी दिन की है. इस की वजह यह है कि हम सामान्य व्यवहार में उदार होने लगे हैं. हम हर उस त्योहार को मनाने लगे हैं जिसे बहुत सारे लोग मनाते हैं. इस से साफ पता चलता है कि त्योहार अब किसी खास धर्म की बपौती नहीं रह गए हैं. वैलेंटाइन डे, चीनी नया साल, क्रिसमस, ईद, दीवाली आदि सभी लोग मिल कर मनाने लगे हैं. इसी वजह से सामान्य रीतिरिवाज वाले दिनों को पीछे छोड़ कर लोगों ने वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने की शुरुआत कर दी है.

स्पैशल दिन बनाने की चाहत

रीतिका कहती हैं, ‘‘मैं अपनी शादी के दिन को स्पैशल दिन बनाना चाहती थी. मुझे लगा कि अगर हम शादी के दिन को पूरी जिंदगी स्पैशल फील करना चाहते हैं, तो क्यों न वैलेंटाइन डे के दिन ही शादी करें. इस से हमें हर साल एक अलग तरह का एहसास अनुभव होता रहेगा. शादी की सफलता में प्यार और रोमांस का सब से अहम रोल होता है. वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने से यह हमेशा अनुभव होता रहेगा. हम जब भी अपनी शादी की सालगिरह मनाएंगे एक स्पैशल फीलिंग आती रहेगी.’’

खुशियों का बाजार

हाल के कुछ सालों से वैलेंटाइन डे के दिन प्यार का इजहार करने के लिए बाजार में तरहतरह के ऐसे उत्पाद आने लगे हैं, जो रिश्तों को रोमानी बनाने का पूरा काम करते हैं. होटलों में रुकने, घूमने या खाने जाएं तो वहां की सजावट अलग किस्म की होती है. इस से रोमांस की फीलिंग आती है. पत्रिकाएं, अखबार और टीवी से ले कर दूसरी तमाम जगहों पर केवल और केवल प्यार और रोमांस का माहौल रहता है. सब से खास बात यह कि ज्वैलरी से ले कर कपड़े तक कुछ भी खरीदने के लिए जाएं तो वैलेंटाइन डे औफर की भरमार रहती है. कुल मिला कर इस दिन खुशियों से बाजार भरा रहता है.

मैरिज डे बन गया वैलेंटाइन डे

वैलेंटाइन डे के दिन अपनी शादी की छठी सालगिरह मना रहे अर्पित और पारुल श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘वैलेंटाइन डे के दिन शादी कर के हम ने प्यार के बंधन को शादी के बंधन में बांधने का काम किया है. हमें इस दिन शादी की सालगिरह मना कर बहुत अच्छा अनुभव होता है. प्यार को शादी के बंधन में बांधने का इस से अच्छा दूसरा दिन नहीं हो सकता है. इस दिन हमारे साथ पूरी दुनिया प्यार के इस प्रतीक को मनाती है.’’  लैक्मे ब्यूटी सैलून की संचालक रिचा शर्मा कहती हैं, ‘‘शादी के लिए दुलहन को तैयार करने की सब से अधिक बुकिंग हमारे पास वैलेंटाइन डे के दिन की ही आ रही है. हाल के कुछ सालों से यह चलन धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा है. शादीशुदा कपल्स भी वैलेंटाइन डे के दिन थीम पार्टियों का आयोजन करने लगे हैं, जिस से इस दिन मेकअप कराने वालों की तादाद बढ़ जाती है,’’

समाज में अब रूढियां टूट रही हैं. लोग अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जीना चाहते हैं. वे अपनी जिंदगी में किसी भी तरह के धर्म या आडंबर को जगह नहीं देना चाहते हैं.

टूटते आडंबर

वैलेंटाइन डे को पश्चिमी सभ्यता का दिन मान कर जिस तरह से इस का विरोध किया गया था वह गलत था. वैलेंटाइन डे को अपनी शादी का दिन बना कर लोगों ने इस बात को साबित कर दिया है. इन लोगों ने कट्टरवादी लोगों और उन की सोच को करारा जवाब भी दिया है. समय के साथ चलना आज की जरूरत है. ऐसे में जिस दिन पूरी दुनिया खुशी मनाती हो हमें भी उस में शामिल हो जाना चाहिए. हमें धर्म के आडंबरों को इस से दूर रखना चाहिए ताकि हर तरह के लोग एकसाथ मिल कर खुशियां मना सकें.

कुछ साल पहले तक इस दिन सड़कों, पार्कों, सिनेमाहौलों और दूसरी जगहों पर लड़कालड़की का साथ खड़े होना मुश्किल होता था. कुछ कट्टरवादी लोग इस दिन ग्रीटिंग कार्ड तक बिकने नहीं देते थे. शहर और समाज को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस और प्रशासन को अलग से सुरक्षा इंतजाम करने पड़ते थे. मगर अब समाज ने कट्टरवादी विचारधारा को दरकिनार कर वैलेंटाइन डे को शादी का दिन बना कर सामाजिक स्वीकृति दे दी है. इस बारे में लखनऊ की अनिता मिश्रा कहती हैं, ‘‘कई देशों में हमारी सोच को दकियानूसी माना जाता है. वैलेंटाइन डे को जिस तरह से हमारे देश ने अपनाया है, उसे एक नई सोच दी है. इस से साफ पता चलता है कि हमारा देश और हमारी सोच दकियानूसी नहीं है. वैलेंटाइन डे को हमारे समाज ने प्यार के दायरे से बाहर निकाल कर परिवार और प्यार दिवस के रूप में मनाने का बड़ा काम किया है. यह बताता है कि हम रूढिवादी ताकतों और सोच को पछाड़ कर आगे बढ़ रहे हैं.’’

परिवार दिवस के रूप में नई पहचान

समाजशास्त्री डाक्टर दीपमाला सचान कहती हैं, ‘‘शादी और प्यार का रिश्ता एकदूसरे का पूरक होता है. ऐसे में प्यार को परिभाषित करने वाले दिन को शादी का दिन बना कर युवाओं ने जो शुरुआत की है वह बहुत सार्थक है. समाज भी इसे स्वीकार रहा है. आने वाले दिनों में यह और प्रचलित होगा. इस से कट्टरता के नाम पर वैलेंटाइन डे का विरोध करने वालों को करारा जवाब मिल रहा है. लोगों ने बता दिया है कि समाज में कट्टरता फैलाने वालों के लिए कोई जगह नहीं रह गई है.’’

वैलेंटाइन डे को जिस तरह से प्यार के साथ जोड़ कर पहले प्रचारप्रसार किया गया था, उस से एक अलग तरह का संदेश युवाओं में गया. इसे उन्होंने लड़कियों को प्रभावित करने का जरीया समझ लिया था. अब इसे परिवार दिवस के रूप में जगह मिल गई है. वैलेंटाइन डे के दिन शादी कर के युवाओं ने इस दिन को परिवार दिवस के रूप में मान्यता देने का काम किया है. इस से समाज में वैलेंटाइन डे की नई पहचान बनी है. इस का विरोध करने वालों को भी अब यह समझ में आने लगा है. यही वजह है कि साल दर साल वैलेंटाइन डे के विरोध की घटनाएं कम होने लगी हैं. वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले केवल प्रतीकात्मक विरोध करने के लिए विरोध प्रदर्शन करने भर तक सीमित रहने लगे हैं.

अंशिका: क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

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KBC 15 को मिला अपना पहला ₹1 करोड़पति विजेता! क्या टूटेगा 9 साल पुराना रिकॉर्ड

अमिताभ बच्चन का लोकप्रिय गेम ‘कौन बंगेगा करोड़पति’ इन दिनों काफी सुर्खियों में है. कौन बनेगा करोड़पति 15 एक मील का पत्थर पार कर चुका है. अमिताभ बच्चन के शो को अपना पहला करोड़पति मिल गया है. पंजाब के जसकरण ₹1 करोड़ जीतने वाले और अंतिम ₹7 करोड़ का प्रश्न हल करने वाले पहले प्रतियोगी बन गए हैं.

केबीसी 15 का प्रोमो आया सामने

सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल ने गुरुवार को अपना नया प्रोमो पोस्ट किया और इसे कैप्शन दिया, “पार कर हर मुश्किल पंजाब के छोटे से गांव खालरा से आए जसकरन पहुंच चुके हैं इस खेल के सबसे बड़े ₹7 करोड़ के सवाल पर! देखिए #कौन बनेगा करोड़पति, 4 और 5 सितंबर, सोमवार-मंगलवार रात 9 बजे, सिर्फ #SonyEntertainmentTelevision पर.”

 

प्रोमो की शुरुआत में होस्ट अमिताभ बच्चन द्वारा यह घोषणा करते हुए है कि प्रतियोगी ने ₹1 करोड़ जीता है. फिर हम फ्लैशबैक में जाते हैं कि प्रतियोगी कौन है और वह कहां से है. प्रतियोगी, जसकरण, पंजाब के एक छोटे से गांव से है. उन्होंने बताया कि वह इस क्षेत्र के कुछ स्नातकों में से एक हैं. उनका यह भी कहना है कि वह यूपीएससी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और अगले साल अपना पहला प्रयास देंगे. प्रोमो तब समाप्त होता है जब अमिताभ जसकरण से अंतिम ₹7 करोड़ का प्रश्न पूछते हैं.

 

कब टेलीकस्ट होगा ये एपिसोड

कौन बनेगा करोड़पति 15 के पहले करोड़पति बनें जसकरण. ₹1 करोड़ का प्रश्न जीतने के बाद जसकरण नें खेला ₹7 करोड़ का सवाल. यह  एपिसोड 4 और 5 सितंबर को रात 9 बजे सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित होंगे.

Bigg Boss 17 में मेंटर बनकर आएगी Hina Khan,लगाएंगी कंटेस्टेंट की क्लास

बिग बॉस टेलीविजन पर सबसे पसंदीदा और सफल रियलिटी शो में से एक है और इसके 16 ब्लॉकबस्टर सीजन कमाल के रहे हैं. वहीं बिग बॉस 17 की तैयारी शुरु हो चुकी है. अभी हाल ही में बिग बॉस ओटीटी 2 का फिनाले हुआ था.

दो महीने के अंदर मेकर्स नया सीजन लेकर वापस आ रहे हैं. तैयारी चल रही है और वे शो के लिए कई सेलिब्रिटीज को अप्रोच भी कर चुके हैं.

बिग बॉस 17 में मेंटर बनेंगी हिना खान

बिग बॉस 17 में हिना खान को शो के मेंटरों में से एक बनने के लिए संपर्क किया गया है, हालांकि इस पर अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है. बिग बॉस 14 में, वह एक सीनियर के रूप में आई थीं और उन्होंने कंटेस्टेंट को गेम खेलने के तरीके का मार्गदर्शन किया था. अब रिपोर्ट्स की मानें तो वह बिग बॉस सीजन 17 में नजर आ सकती हैं.

 

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इस दिन से शुरु होगा बिग बॉस 17

यह शो 20 अक्टूबर 2023 से शुरू होने वाला है और शो का नया कॉन्सेप्ट कपल बनाम सिंगल्स होने वाला है.

बिग बॉस 17 की कंटेस्टेंट्स की लिस्ट

बिग बॉस 17 में ऐश्वर्या शर्मा और नील भट्ट एंट्री करने के लिए तैयार हैं. इन दिनों दोनों किसी भी प्रोजेक्ट का शूट नहीं कर रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक अब ऐश्वर्या और नील सीधा बिग बॉस के घर में दिखाई देंगे.

हर्ष बेनीवल

फेमस यूट्यूबर हर्ष बेनीवल बिग बॉस 17 में एंट्री ले सकते हैं. उन्होंने अपने इंस्टा की स्टोरी पर बिग बॉस की आंख लगाकर ये बात खुद ही कंफर्म कर दी. हर्ष के फैंस उन्हें बिग बॉस में देखने के लिए काफी उत्सुक है. इसके आलवा टीवी सीरियल उडारिया’ फेम ईशा मालवीय, सुमेध मुदगलकर टीवी के पॉपुलर एक्टर हैं, जो अपने कृष्णा अवतार के लिए जाने जाते हैं बिग बॉस 17 में नजर आने वाले है. कंवर ढिल्लों-एलिस कौशिक, सौरव जोशी, ट्विंकल अरोड़ा और करण कुंद्रा- तेजस्वी प्रकाश नजर आने वाले है.

करीपत्ता: भाग 1-आखिर पुष्कर ने ईशिता के साथ क्या किया

अब तो ईशिता को लगता है कि जीवन में कुछ भी अपने वश में नहीं है. ये बड़ीबड़ी बातें करते, अपनी करनी बखानते और डींगें हांकते लोग शायद नहीं जानते कि पलभर में विधिना किसी को भी कहां से कहां ला कर पटक देती है.ईशिता तो जीवनभर अपनेआप पर मान करती आई.

संसार के पंक कीचड़ से बचती आई. संयम, नियम से जीना, कामनाओं को मुट्ठी में बंद रखना ही सीखा था उस ने. उस ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वह अपनी भावनाओं के बहाव में यों बह जाएगी कि संयम की बागडोर उस की मुट्ठी से खिसकती चली जाएगी.कहते हैं कि स्त्री के एक ही जन्म में कई जन्म होते हैं. ईशिता के भी हुए.

जो ईशिता अपने पितृगृह में तितली के पंखों सी सुकुमार सम झी गई, प्यारमनुहार जतन से पलकों की छांव में पालीपोसी गई वही ससुराल की देहरी पर पदार्पण करते ही दायित्वों के पहाड़ के नीचे दबा दी गई. उपालंभ, भर्त्सना और उपेक्षा भरे निर्मम व्यवहार के मध्य उस के कान प्यार भरे दो मीठे बोल सुनने को तरस जाते.

पति भोलेभाले थे. पत्नी के अधिक पढे़लिखे और नौकरी करने से भयत्रस्त थे. उस पर से उन की कंडीशनिंग भी ऐसी की गई थी कि प्रशंसा करना तो दूर वे चाह कर भी उस का पक्ष नहीं ले पाते कि कहीं वह सिर ही पर न चढ़ जाए या कोई उन्हें पत्नी का दास न कह दे.

ईशिता नौकरी करती थी. गृहकार्य पूर्ण होते तो औफिस जाने का समय हो आता. औफिस में कार्य कर वहां से थकहार कर घर लौटती तो ससुर कुल के लोग त्योरियां चढ़ाए दिनभर के कार्यों का अंबार पटकते हुए ऐसा दर्शाते मानो वह कहीं से घूमघाम कर, पिकनिक मना कर लौटी हो.

क्लांत ईशिता एक प्याली गरम चाय और विश्रांत के 2 पलों के लिए तरस जाती पर उसे कहीं चैन नहीं दो घड़ी का भी. रोनेबिसूरने का भी नहीं. स्कूलकालेज की परीक्षाओं में प्रथम आने वाली, अपने में व्यस्त रहने वाली ईशिता को सब की प्रशंसा पाने का ही अभ्यास था.

ससुर कुल के समवेत व्यवहार ने जैसे उस का विवेक ही छीन लिया. उसे लगने लगा कि उस में अपार कमियां हैं. ऐसी आत्महीनता में जीए जा रही थी ईशिता कि तभी एक दिन समय ने करवट ली.‘‘आप के हाथ बड़े सुंदर हैं, कलात्मक हाथ हैं आप के.’’ईशिता चौंक उठी.

संकोच से हाथ फाइल से हटा कर अपने आंचल में छिपा लिए. लगा जैसे कोई उपहास कर रहा हो. नित्य की भांति वह आज भी इन हाथों से जूठे बरतनों का ढेर साफ कर,  झाड़ूपोंछा कर के आई है. आज से पहले तो किसी ने उस के हाथों की प्रशंसा नहीं की.

नजर उठा कर सामने देखा, पुष्कर मुसकरा रहे थे. उन की आंखों में प्रशंसा लहलहा रही थी. वह पलभर के लिए उन आंखों में डूब गई.सचमुच मनुष्य सब से अधिक प्यार अपनेआप को करता है, तभी तो वह आकृष्ट हुई उन आंखों के प्रति जिन में उस के प्रति प्रशंसा छलक रही थी.मैं ने कहा, ‘‘आप की उंगलियां कलाकारों जैसी हैं, तराशी लंबी उंगलियां.

इतने सुंदर हाथ मैं ने सचमुच नहीं देखे.’’ वह इस बार हड़बड़ाई. क्या कहे, सम झ नहीं आया. सकुचाते हुए टेबल से फाइल ली और वापस अपनी सीट पर चली आई. गोद में रखे हाथों का छिप कर निरीक्षण किया. वाशरूम जा कर देखा. क्या सचमुच उस के हाथ सुन्दर हैं.

पर किसी ने कभी कहा क्यों नहीं. उस की हथेलियां पसीने से भीग गईं. दिल नगाड़े बजने जैसा इतना तेज धड़कने लगा कि उसे डर हुआ कि उस की धड़कन कोई बाहर से न सुन ले. घर में कोई सीधे मुंह बात तक नहीं करता उस से.

वह एक ऐसा जंतु है जिस से सारे कार्य कराए जाते हैं और कैसा भी व्यवहार.दूसरे दिन पुष्कर ने बुलाया. चर्चा के दौरान चाहकर भी आंखें नहीं उठतीं. लग रहा है जैसे वह सैकड़ों आंखों उसे ही देखती जा रही हैं. वह हीनभावना से सकुचाई जा रही है. एकाएक उन की आंखों में कौंधा भाव पढ़ कर वह ठगी सी रह गई. ढेरों प्रशंसा भरे नयन.

वह सिहर उठी. कोई उस की भी प्रशंसा कर सकता है, विश्वास न हुआ क्योंकि ससुराल में उसे अब तक जो भी मिला वह उस की कमी ही गिनता दिखा. बाहर औफिस में अब तक उस ने सब से दूरी ही बरती.

पुष्कर मन ही मन मुसकराए. अपनी पीठ ठोंकी उन्होंने. जिस ईशिता को सब लोग अलग प्रकृति का और आकाश के सितारे सा अलभ्य सम झते आए, वही कैसे उन की  झोली में गिरी पड़ रही है. ठिगने कद के, अति सामान्य रंगरूप के पुष्कर का मन खुशी से अट्टहास करने का होने लगा.

21 मार्च को जन्मदिन था ईशिता का. ससुराल में किसी को याद नहीं (या जानबू झ कर भूलने का ढोंग). जिस घर में कुत्तेबिल्ली का जन्मदिन भी धूमधाम से मनता हो, वहां उस के जन्मदिन पर एक नन्हा सा फूल भी नहीं, प्यार शुभकामना आशीष भरे बोल तक नहीं.

वचनों में भी दरिद्रता. पति तो और भी रूखेपन से बोले उस दिन. अंदर कुछ छनाक से टूट कर किर्चों में बिखर गया.‘क्यों जन्मी मैं. न जन्मती तो कितना अच्छा होता,’ ऐसे उदास विचारों में घिरी ईशिता जब औफिस पहुंची तो अपनी टेबल पर एक सुंदर कार्ड और फूलों का गुलदस्ता देख कर अभिभूत रह गई पुष्कर ने भेजा यह जान कर कसक हुई कि क्या पति  झूठमूठ भी उसे विश नहीं कर सकते थे.

यदि यही उपहार उन्होंने दिया होता तो कितना अच्छा होता. कार्ड में हाथ से लिखी कुछ पंक्तियां भी थीं-चांदनी रातों मेंसितारों की बरसातों मेंलगता है जैसे तुम साथ होसूने हृदय की देहरी परदीप जलातीमंदमंद मुसकराती तुममेरे जीवन कीअनमोल निधि हो.

डाक्टर के पास जाते समय रखें इन बातों का ध्यान

गाहेबगाहे हम सभी को कभी न कभी डाक्टर के पास जाना ही पड़ता है. कुछ दिनों पूर्व मेरा भी एक डेंटिस्ट के यहां जाना हुआ. मेरे बगल वाली पेशेंट की सीट पर लेटी 30-35 वर्षीया युवा महिला इतने डीप गले का कुरता पहने थी कि कुरते के अंदर से उस का पूरा का पूरा उभार ही झांक रहा था, जिस के कारण डाक्टर ही बारबार स्वयं को असहज महसूस कर रहा था.

यह देख कर मैं सोचने लगी कि अमुक महिला बीमारी का इलाज करवाने आई है या किसी विज्ञापन की मौडलिंग करने.

इसी प्रकार कुछ महिलाएं अस्पताल में भी बेहिसाब मेकअप और परफ्यूम स्प्रे कर के जाती हैं. जिन्हें देख कर ऐसा लगता है मानो वे किसी अस्पताल में नहीं, बल्कि फैशन परेड में जा रही हों. कई बार लोग अपने जरूरी कागजात ही डाक्टर के पास ले जाना भूल जाते हैं और फिर ऐसे में पर्याप्त जानकारी के अभाव में डाक्टर को इलाज शुरू करने में बहुत परेशानी होती है.

आप किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज करवाने जाएं, परंतु डाक्टर के पास जाते समय इन कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें-

  • सब से पहले अपनी मैडिकल फाइल के समस्त कागजों को अपडेट करें और इसे अपने साथ अवश्य ले जाएं, क्योंकि इस के माध्यम से ही डाक्टर आप की केस हिस्ट्री जान कर इलाज शुरू कर सकेगा.
  •  डेंटिस्ट के पास जाते समय ऐसे कपड़े पहनें जिस का गला डीप न हो, क्योंकि डाक्टर आप के दांतों का इलाज करते समय आप की चेयर को काफी नीचे कर देता है और उसे आप के सिरहाने बैठना होता है. ऐसे में गहरे गले के बीच से झांकता आप का वक्षस्थल शोभा नहीं देता. इस के  अतिरिक्त डेंटिस्ट के पास हमेशा मुंह साफ कर के जाएं. चूंकि दांतों के इलाज के दौरान आप को बारबार पानी से कुल्ला करना पड़ता है, इसलिए अपने साथ एक रूमाल अवश्य ले जाएं.
  • फिजियोथेरैपिस्ट के पास जाते समय सदैव ढीलेढाले कपड़े पहनें. साथ ही, बंद या हाईनेक गले का कुरता या ब्लाउज पहन कर न जाएं, क्योंकि ऐसे में आप के कंधे व पीठ पर मशीन लगाने में डाक्टर को परेशानी होती है. यहां पर साड़ी पहन कर जाने से भी बचें, क्योंकि कुछ ऐक्सरसाइज ऐसी होती हैं, जिन में आप को पैर ऊपर करने होते हैं. ऐसे में आप की साड़ी ऊपर हो जाएगी और आप ठीक से ऐक्सरसाइज नहीं कर पाएंगी. इसलिए यदि आप सूट नहीं पहनती हैं तो साड़ी के अंदर लैगिग्स या पेंट पहन कर जाएं, ताकि आप पैर और कमर को सहजता से ऊपर उठा सकें.
  • गायनकोलौजिस्ट के पास अपने अंतरंग हिस्सों को साफ क रके और सदैव साड़ी पहन कर ही जाएं. इस से डाक्टर को तो चेकअप करने में सुगमता रहती ही है, साथ ही आप भी स्वयं को असहज महसूस नहीं करतीं.
  •  पैथोलौजिकल टैस्ट के लिए जाएं तो भी ढीलेढाले कपड़े पहन कर ही जाएं, ताकि बांह से सुगमता से खून लिया जा सके. साथ ही, यदि आप को खाली पेट आने को कहा गया है तो टैस्ट करवाने से पहले कुछ न खाएं.
  • डाक्टर के पास कभी भी हैवी ज्वैलरी पहन कर और मेकअप कर के न जाएं.
  •  एक्सरे और एमआरआई करवाते समय ध्यान रखें कि आप के शरीर पर किसी भी प्रकार का गहना, सेफ्टी पिन, हेयर पिन और रबर बैंड आदि न हो.
  • डाक्टर के पास जाने से पहले घर पर शांति से बैठ कर अपनी समस्या के बारे में अच्छी तरह मनन करें, ताकि आप डाक्टर को विस्तार से समस्या बता सकें और उस के आधार पर डाक्टर आप का इलाज शुरू कर सके.

अपनी एड़ियों का रखें ख्याल इन कैलस रिमूवर के साथ

जिस तरह हमारा चमकता चेहरा हमारी पहचान बन जाता है उसी तरह हमारी दमकती एड़िया  भी हमारी पर्सनालिटी को चार चाँद लगाती  हैं. कई बार आपने देखा होगा की कई लोग अपने पैरों को  दूसरों से छिपाते है या अपनी फ़टी एडियों को बंद जूतियों  में छिपाने की कोशिश करते हैं. कई महिलाएं घरेलों नुस्खे अपनाते हुए थक भी जाती हैं लेकिन अपने पैरों को सॉफ्ट और स्मूथ कर पाने की इच्छा पूरी नहीं कर पाती. ऐसे में जरूरी है कि आप ऐसे उपकारणों का प्रयोग करें जिनके इस्तेमाल के बाद आपको अपनी एड़िया छुपाने की जरूरत ही ना पड़े और आप कम टाइम में मुलायम पैर पा  सकें. तो चलिए आज हम आपको ऐसे कुछ कैलस रिमूवर के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके इस्तेमाल से आप के पैर  चमक उठेंगे.

 कैलस रिमूवर हैं क्या

यह एक छोटा सा रिचार्जेबल, कॉम्पैक्ट और पोर्टेबल उपकरण है जिसे आप आसानी से कहीं भी कैरी कर सकती हैं इसके  इस्तेमाल से आप अपने पैरों की  डेड स्किन, थिक स्किन और रफनेस  प्रॉब्लम से छुटकारा पा  सकती हैं . जिन महिलाओं को पार्लर में जाकर पेडीक्योर करना मुसीबत लगता है उनके लिए यह एक बेस्ट आइटम है इसके साथ कुछ रोलर भी आते है जिन्हे अपनी जरूरत के अनुसार आप इस्तेमाल कर सकती हैं. तो चलिए बताते हैं कुछ बेस्ट कैलस रिमूवर के बारे में जिन्हे आप ऑनलाइन व मार्किट से खरीद सकते हैं.

  1. Lifelong LLPCW04

इसकी खासियत है कि यह रिमूवर महज सिर्फ 30 मिनट चार्ज  करने पर ही आप इसे 2 घंटे के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं यह पूरी तरह वाटरप्रूफ है इसमें तीन अटैचमेंट दिये हैं जिससे कम, मीडियम या बहुत ज्यादा डेड स्किन को निकाल सकते हैं.इसकी कीमत 1300 ₹ तक है.

2. AGARO CR3001

यह 45 मिनट में चार्ज होकर 2 घंटे तक इस्तेमाल किया जा सकता है  यह ​रिचार्जेबल डिवाइस है जिसमें 2 अटैचमेंट हैं  इसे आप शावर या ड्राई दोनों तरह से यूज कर सकते हैं. इसकी कीमत 1100₹ तक है.

3. iGRiD  

यह एक कम वजन वाला एलईडी लाइट के साथ रिमूवर है  इसके साथ 3 रोलर मिलते हैं जिन्हे आप उपयोग के बाद आसानी से साफ कर के दोबारा इस्तेमाल कर सकती हैं। इसकी कीमत तकरीबन 900₹ -1100₹ तक है.

4. Vandelay (UK) CQR-FC800

इस रिमूवर में 12000mAh की बैटरी लाइफ मौजूद है यह पॉकेट साइज में आता है. इससे फाइन ग्राइंडिंग, मीडियम ग्राइंडिंग और रफ ग्राइंडिंग कर सकते हैं यह 2 स्पीड वेरिएशन के साथ आता है. इसमें डिजिटल डिस्प्लै भी मौजूद है.यह 1200₹ तक कि कीमत में आसानी से मिल जाता है.

5. Amope Pedi Perfect इलेक्ट्रॉनिक  पेडीक्योर  फुट फाइलर

यह एक इलेक्ट्रिक फुट फाइलर है जिसे बैटरी से ऑपरेट कर सकते है. यह 400 ₹ तक कि कीमत  में आसानी से मिल जाता है.यदि आप कम खर्चे में अपने पैरों से डेड स्किन हटाना चाहती हैं तो यह एक बढ़िया ऑप्शन है.

नोट : अच्छे रिजल्ट के लिए आप कैलस रिमूवर को इस्तेमाल करने के बाद अपने पैरों पर अच्छा मॉइस्चरज़र लगाना ना भूले. साथ ही अपने पैरों कि सफाई सोने से पहले अवश्य करें जिससे ये रात भर में हील  हो सकें. और अपने रिमूवर रोलर्स को भी साफ कर के रखें.

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