करीपत्ता: भाग 3-आखिर पुष्कर ने ईशिता के साथ क्या किया

प्रेम ओ झल हो चुका है मात्र 2-3 सप्ताह में ही.जिस ओर से रस फुहार बरसती थी अब नग्न लालसाएं लपलपाती हुई चीखती हैं. ईशिता के मन की पीड़ा सुनने की उस की आग्रहपूर्ण मुद्रा, धैर्य खो गया था. ‘जैसा तुम चाहो,’ ‘एज यू विश’ कहने वाला पुष्कर अब उसे अपने हिसाब से सोचने को विवश कर रहा था. उस के संस्कारों का उपहास करता उसे सींखचों में जकड़ रहा था.

उकसा रहा था उसे बंधन तोड़ने, सीमाएं तोड़ने को, ‘‘बेकार की टैबूज हैं. तुम तो पढ़ीलिखी हो. तुम सोचती बहुत हो.’’हां, वह सोचती बहुत है. एक ओर मन की वल्गा हाथ से छूटती जा रही है, दूसरी ओर वह नैतिकअनैतिक, उत्थानपतन, पवित्रतामर्यादा के बारे में सोचती है.

मस्तिष्क किसी सजग प्रहरी सा उसे कोंचता है, गलत राह पर आगे बढ़ने से रोकता है.तनी हुई शिराएं, दूभर जीवन. सोचती, हां, सुखी जीवन की अधिकारिणी वह भी है. यह जीवन एक बार ही तो मिलता है, मन मार कर, दबा कर अंकुश लगा कर कब तक जिया जाए, पर सुख है कहां? कुल मिला कर सबकुछ एक बड़ा शून्य है. बिग जीरो है.

इधर पुष्कर को अखर रहा था, वह हाथ में आतेआते निकली जा रही थी. बोला, ‘‘तुम इतना क्यों सोचती हो?’’‘‘अच्छा, तुम्हारे घर में इतने सारे करीपत्ते के पौधे हैं तुम से कब से मांग रही हूं. लाए क्या?’’‘‘नहीं भूल गया.’’उसे याद आया, पति देव इस तरह से कुछ भूलें तो पानीपत का युद्ध छिड़ जाता है.‘‘तुम ने कहा था कि…’’‘‘अरे यार, छोड़ो करीपत्ता, कहीं भी मिल जाएगा 5 रुपये का.

चलो कहीं होटल में चलते हैं जहां बस हम और तुम हों.’’‘‘क्या बकवास कर रहे हो? अगर कोई तुम्हारी पत्नी से ऐसा कहे तो?’’‘‘मेरी पत्नी तो बहुत सीधी है. किसी परपुरुष की ओर देखती तक नहीं. मु झ से कहती है कि मेरी आंखें समंदर जैसी हैं, वह बस इन्हीं में डूबी रहती है, बेचारी. देखो तो मेरी आंखें क्या सच में इन में समंदर जैसी गहराई है?’’ईशिता ने नजर  झुका ली. वह कहता रहा, ‘‘मेरी पत्नी तो मु झे लेडी किलर कहती है.

चलो न आज कहीं बैठ कर आराम से बातें करते हैं. आज किसी होटल में… यों दूरदूर अब रहा नहीं जाता. वहीं आराम से बातें करेंगे. होटल के खर्च के पैसे भी आधेआधे शेयर कर लेंगे. अब ऐंजौय तो तुम भी करोगी न?’’ईशिता के कानों में जाने कोई एसिड डाल रहा हो. कितना नीच हो सकता है कोई. छि:, यह कहां आ गई वह. उस ने तो एक सहज मैत्री, अपनत्व भरा साथ चाहा था.

किसी से बात कर लेने की इतनी बड़ी सजा. चल निकल ले यहां से. बड़े आए लेडी किलर कहीं के. यह तो सपने दिखा कर सौदागरी करने वाले सौदागर हैं. महीन जाल फैलाने वाले जालक हैं. कैसी मधुर विद्वतापूर्ण बातें, अपनत्व. री झ गई जिन बातों पर वह रैपर थीं, आवरण था, मूल में तो वही ढाक के तीन पात. यहां ताल में जाल डाले बैठे हुए लोग हैं.

किसी का जाल दिखता है, किसी का इतना महीन और सौफिस्टिकेटेड कि वह शीघ्र दिखता नहीं. कैसा सुखद भ्रम पाल लिया. मन नहीं देखा, देखा तन. भावनाओं से खिलवाड़ कर उस तक पहुंचने का हथियार बनाया. इसे प्यार नहीं कहते.

अचानक वह चैतन्य हो जाग गई. प्लैटोनिक लव के, देहातीत संबंध के जो प्रतिमान मन में गढे़ थे वे किर्चकिर्च हो बिखर गए, मन में चुभ गए. यथार्थ यही, सच यही मात्र देह ही सच मन, हृदय सब व्यर्थ की बातें. छि:, वह भी कहां के मल कुंड में गिरने को उद्यत हो उठी.दिग्दिगंत तक उस अनंत की कृपा महसूसती ईशिता को स्वयं पर लज्जा हुई.

समझ आई सब से अहम बात वह यह है कि शक्ति और सांत्वना स्वयं में ही खोजो, बाहर इसे ढूंढ़ना व्यर्थ है-‘तू ही सागर है तू ही किनाराढूंढ़ता है तू किस का सहारा.’ईशिता अपने मूल रूप में लौट आई. कभीकभी उसे अतीव आश्चर्य होता कि वहकैसे किसी के प्रभाव में आ कर स्वयं का प्रभामंडल दूषित करने चली थी. वह पौधों की नर्सरी से करीपत्ते के कई पौधे ले आई.

एक पौध तो उस ने बोन्साई बना कर अपनी औफिस टेबल पर सजा रखा है. अब वह कहीं नहीं उल झती. किसी की प्रशंसा भरी मीठी बातें लुभाती नहीं, शिखर पुरुष भी आकर्षित करते नहीं. मन में कहीं कोई रीतापन नहीं.

अब घर चल: भाग 4- जब रिनी के सपनों पर फिरा पानी

रविवार का लगभग पूरा दिन बीत गया. न कोई फोन आया वहां से और न कोई खुद आया. कई बार जी चाहा कि बच्चियों को फोन कर ले पर बढ़े हुए हाथ जबरन रोक लिए उस ने. सोचतेसोचते 2 रातों से जागी आंखों में न जाने कब नींद चली आई और वह तो टूटी लगातार बजती फोन की घंटियों से. शेखर का स्वर सुन कर सन्न रह गई.

‘‘हैलो रिनी, क्या शुचिरुचि वहां आई हैं?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’ घबरा गई वह.

‘‘पता नहीं कहां चली गईं? सुबह स्कूल छोड़ कर आया था उन्हें. अब लेने पहुंचा तो

मिली ही नहीं. स्कूल भी खाली पड़ा है. मैं ने सोचा…’’

तभी बाहर गेट खुलने की आवाज सुन कर वह  चौंकी, ‘‘रुकिए शेखर, मैं बाहर देखती हूं,’’ और फिर अगले ही पल लौट आई. बोली, ‘‘हां शेखर, यहीं आई हैं वे अभीअभी… आप चिंता न करें… शाम तक यही रह लेंगी… शाम को पापा छोड़ आएंगे. मैं भी जा रही हूं कल, फिर न जाने ये कभी मिलेंगी भी या नहीं,’’ कह कर शेखर का जवाब सुने बिना रिनी ने लाइन काट दी.

शुचिरुचि उस से लिपटी जा रही थीं, ‘‘मम्मा, आप हमें अकेले छोड़ कर क्यों आ गईं नानी के घर? पता है हम कितना रोए?’’

उन्हें दुलार कर, खाना खिला कर होमवर्क भी करवा दिया रिनी ने और रोज की तरह सुला भी दिया.

शाम को उन्हें जगा कर दूध पिला कर पापा के साथ रवाना करने ही वाली थी कि शेखर आ गए. बच्चियां रोज की तरह दौड़ कर उन से नहीं लिपटीं. रिनी को कस कर थामे रहीं.

‘‘पापा, हम नहीं जाएंगे आप के साथ… फिलहाल हम यहीं रहेंगे मम्मा के पास… फिर उन के साथ, ही जाएंगे,’’ शुचि ने कहा.

‘‘कहां?’’‘‘मम्मा की नानी के घर,’’ रुचि ने कहा.

‘‘मम्मा कैसे जा सकती हैं बेटा नानी के घर? वहां उन की देखभाल कौन करेगा? हम तीनों को मिल कर मम्मा का खयाल रखना है… पता है हमारे घर एक नया बेबी आने वाला है?’’

‘‘सच्ची पापा?’’ दोनों एकसाथ चहकीं.

‘‘और क्या? पापा, मम्मा के कमरे में प्यारे से बेबी की तसवीर लगा कर आए हैं. उसे रोज देखेंगी मम्मा तभी तो तुम दोनों जैसा स्वीट बेबी आएगा. रिनी, जो कुछ हुआ उस के लिए सौरी. चलो, अब अपने घर,’’ कम शब्दों में सब कुछ कह डाला शेखर ने.

अम्मू व पापा की आंखें भर आई थीं. पर रिनी बुत बनी खड़ी थी जैसे ख्वाब देख रही हो.

शेखर ने फिर से हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘रिनी, तुम्हारे बिना गुजारे ये 2 दिन, 2 रातें मु झे एहसास करा गईं कि तुम्हारी मेरी जिंदगी में क्या जगह है… न ये शैतान लड़कियां तुम्हारे बिना रह सकती हैं और न इन का यह बाप. अब चलो घर प्लीज… हमारा बच्चा हमारे घर में ही जन्म लेगा.’’

रिनी टस से मस न हुई. दोनों बच्चियों के हाथ थामे यों खड़ी थी जैसे वहीं ‘फ्रीज’ हो गई हो.

‘‘जा बेटी… मैं कह रहा हूं… तुम्हारा पापा. अंत भला तो सब भला,’’ पापा ने कहा.

‘‘जा बेटी, बड़ी मुश्किल से खुशियां तु झे ढूंढ़ कर अपने घर ले जाने आई हैं. अब मुंह न मोड़ इन से… जो हुआ उसे बुरा सपना सम झ कर भूल जा,’’ अम्मू ने आंसू पोंछते हुए कहा पर वह इंच भर भी अपनी जगह से न हिली, क्योंकि वह नहीं जाना चाहती थी. बारबार तमाशा बन कर हार गई थी वह.

तभी सहसा शुचि ने उस से अपना हाथ छुड़ाया और अपना बस्ता खोल कर एक नोटबुक निकाल लाई और पैंसिल थाम कर बोली, ‘‘मम्मा, आप ने यूकेजी में सिखाया था न?’’ और फिर वह बोलबोल कर लिखने लगी, ‘‘अ…ब अब, घ…र. घर, च…ल चल. अब घर चल.’’

जैसे कोई चमत्कार हुआ. उस ने शुचि को गोद में उठा कर ताबड़तोड़ चूमना शूरू कर दिया और फिर भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘हां मेरी बच्ची हां, ठीक कहती है तू… अब घर चल.’’

विमोहिता: भाग 1- कैसे बदल गई अनिता की जिंदगी

अभी भी हम बिस्तर पर ही थे और यही कोई 6 बजे का समय होगा जब फोन की घंटी बज उठी. फोन रमा ने उठाया और मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘निर्मला, अस्पताल से नर्स बोल रही है. कह रही है कोई जरूरी मैसेज तुम्हें देना है.’’

निर्मला का नाम सुनते ही नींद गायब हो गई और मन अनिता के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. नर्स ने वही कुछ कहा जो मैं सोच रहा था. वह रात को कोमा में चली गई थी.

मुझे चिंतित देख रमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है? सब ठीक तो है न?’’

‘‘नहीं, सब ठीक नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘कल रात से वह कोमा में चली गई है. नर्स कह रही थी अब वह कुछ ही घंटों की मेहमान है.’’

वह मौन हो गई. उसे मौन देख कर मैं ने कहा, ‘‘क्या सोचने लगीं?’’

‘‘क्या यहां उस का कोई अपना नहीं है? लोग कह रहे थे कि उस की बड़ी बहन और जीजाजी यहां रहते हैं.’’

‘‘हां,’’ मैं ने कहा, ‘‘हम जब पहली बार मिले थे उस समय वह अपने जीजाजी और बड़ी बहन के साथ ही रह रही थी. पर इधर कुछ दिन हुए, उन लोगों के बारे में जब मैं ने जिक्र किया तो कह रही थी कि उस की बड़ी बहन नम्रता अब इस दुनिया में नहीं रही और उस के जीजाजी दूसरी शादी कर मौरिशस चले गए हैं. नम्रता को कोई बच्चा वगैरह नहीं था, इसलिए उस का अपने जीजाजी से अब कोई संबंध नहीं रहा है.’’

‘‘क्या सोचते हो?’’

‘‘सोचना क्या है? यहां उस का और कोई रिश्तेदार या जानने वाला है नहीं, इसलिए उस का अंतिम संस्कार हम लोगों को ही करना पड़ेगा, ऐसा लगता है,’’ कह कर मैं उस की ओर देखने लगा.

उस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

कई वर्षों के बाद अनिता 6 महीने पहले गोरेगांव के ओबेराय मौल में मिली थी. लेकिन वह पहले वाली अनिता नहीं थी. पहले से बिलकुल अलग. उलझे सफेद बाल, सूखा चेहरा और धंसी हुई आंखें. मैं तो पहचान ही नहीं सका था उसे पर वह हैलो कह कर मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई थी.

‘कैसी हो?’ मैं ने पूछा.

‘ठीक हूं, तुम कैसे हो?’

‘कुछ विशेष नहीं, कह सकती हो सब ठीक है,’ मैं ने कहा.

‘और बच्चे?’

‘एक 4 साल का लड़का है. अमित नाम है उस का. बहुत सुंदर है. बिलकुल अपनी मां पर गया है.’

सुन कर वह कुछ असहज हो गई. उसे असहज होते देख मैं दूसरी बातें करने लगा. थोड़ी देर बाद कौफी के लिए उस के ‘हां’ कहने पर उसे ले कर कैफेटेरिया में आ गया.

मैं ने पूछा, ‘साथ में कुछ लोगी?’

‘नहीं, और कुछ नहीं. सिर्फ कौफी.’

‘अभी भी चाय नहीं पीती हो?’

उस ने इस पर कुछ नहीं कहा. बस हलकी सी मुसकराहट उस के चेहरे पर आई.

वहां बैठते हुए मैं ने पूछा, ‘तुम तो आजकल दिल्ली में हो. यहां किसी काम से आई हो या किसी से मिलने?’

‘दिल्ली में थी, अब नहीं हूं. यही कोई 6 महीने पहले मुंबई लौट आई हूं,’ उस ने कहा.

‘वहां दिल नहीं लगा?’

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं थी. तुम तो जानते हो पिलानी से जब मुंबई आई तो जीजाजी और दीदी के आग्रह को ठुकरा नहीं सकी और उन के साथ ही रहने लगी. तुम से पहली बार मैं दीदी के घर ही तो मिली थी,’ कह कर उस ने मेरी ओर देखा.

‘हां, तुम्हारी दीदी इंटर में मेरे साथ थी, इसलिए कभीकभार उस के पास चला जाया करता था. लेकिन घर आने के लिए उस ने कभी आग्रह नहीं किया, क्योंकि शायद तुम्हारे जीजाजी वैसा नहीं चाहते थे. पर बाद के दिनों में तुम से मिलने की इच्छा से आने लगा था,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

उस ने एक पल के लिए मेरी ओर देखा फिर अपनी पलकें नीची कर कौफी के

कप की ओर देखने लगी. फिर बोली, ‘दीदी पढ़ीलिखी, सुंदर और अच्छे नाकनक्श की थीं. उन का रंग भी गोरा था. पर जीजाजी शायद दीदी के थुलथुले बदन से ऊब चुके थे और उन्होंने जब मुझे इतना करीब पाया तो मुझे आंखों में पालने लगे. कुछ दिन मैं देखती रही उन्हें और जब मेरे लिए उन्हें मैनेज करना मुश्किल हो गया तो अपना ट्रांसफर करा कर दिल्ली चली गई.

‘दिल्ली में अंजलि के कहने पर मैं उस के साथ रहने लगी. पिलानी के दिनों में वह मेरे साथ थी और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे. दिल्ली में वह किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी.

‘अंजलि खुले स्वभाव की और स्वतंत्र विचारों वाली थी और अपने मित्रों से, जिन में पुरुष अधिक थे वह सदा घिरी रहती थी. रात में वह बाहर ही रहती अथवा देर से आती. उस के जाने के बाद शुरू के दिनों में मैं अपने कमरे में बंद हो जाती.

‘वैसे उस ने कभी अपने साथ चलने के लिए मुझ से नहीं कहा पर मैं ही एक दिन अपने अकेलेपन से ऊब गई तो उस के साथ जाने लगी.

‘वहां की दुनिया बड़ी ही रंगीन थी. कुछ दिनों में ही मैं उस रंग में रंग गई. अच्छा खाना, बढि़या ड्रिंक और रोज एक नया चेहरा. फिर मेरे कब पंख निकल आए पता ही न चला. मैं खुले आसमान में उड़ने लगी. लेकिन शरीर पर जब कुछ चरबी चढ़ी तो कल तक मेरी मुसकराहट पर बिछने वाले मुझ से कतराने लगे. उस में कुछ अस्वाभाविक नहीं था. नए चेहरों की वहां कमी नहीं थी और हमारे संबंध कोई भावनात्मक तो थे नहीं, जो कोई किसी के बारे में सोचता या उस के लिए दुखी होती.

‘ये सब तब मेरी जरूरत बन चुकी थी. ऐसे में क्या करती? खरीदफरोख्त पर उतर आई. बाद में वह भी मुश्किल हो गया. शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. प्रौलैप्स की सर्जरी में सब पहले ही रिमूव करवा चुकी थी.

‘और कोई तो वहां था नहीं. अंजलि अपने बौयफ्रैंड के साथ आस्ट्रेलिया सैटल कर गई थी और जो वहां थे वे मुझे अच्छी नजरों से नहीं देखते थे. क्या करती और किसी जगह को जानती नहीं थी, इसलिए मुंबई लौट कर आ गई…’

Anupama: शाह हाउस में होगा बवाल, काव्या छोड़ेगी घर

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. शो के मेकर्स नए-नए ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आ रहे है. अनुपमा मे इतने ट्विस्ट देखकर दर्शकों का सिर चकरा गया है. बीते एपिसोड में देखने को मिला कि काव्या को बहुत पछतावा है कि वो अनिरुद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है.

काव्या ने किया खुलासा 

अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि काव्या पछतावे में आकर अपनी सच्चाई शाह परिवार को बता देंगी और बा के सामने सब बक देगी कि ये बच्चा बनराज का नहीं बल्कि अनिरुद्ध का है. यह सब सुनकर शाह हाउस में खलबली मच जाती है. काव्या का ये सच बा बर्दाश्त नहीं कर पाएगी और गुस्से से भड़क जाएगी. इस बात पर वो काव्य और वनराज को खूब सुनाएंगी और ये सब नाटक के बाद वो काव्य को घर से बाहर निकालने का फैसला कर लेंगी.

 

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अनुपमा करेगी काव्या को सपोर्ट

अनुपमा काव्या का साथ देगी और बा से कहेगी अगर आपको कुछ कहना है तो काव्या से कहिए, बा इस बच्चे का क्या दोष. आप ही तो कहती हो बच्चे बाल गोपल का रूप होते है तो आप इस बच्चं से नफरात मत कीजिए, बच्चों को मत कोशो, बच्चे को बद-दुआ मत दो बा. अपना न सही तो किसी और का ही सही, बच्चा तो बच्चा है. आगे अनुपमा कहती है गलती बड़े करते है सजा बच्चों को मिलता है.

काव्या बा को सफाई देगी

अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि काव्या बा से कहेगी मुझसे जो गलती हुई है वह कमजोर पल था मैं वीक पड़ गई थी. मैं मानती हूं मैं बहुत गलत थी. उसके बाद तोषू काव्या को खारी खोटी सुनाता है.

 

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Hrithik Roshan और सबा आजाद की रोमांटिक डेट, बेटे रेहान-ऋदान भी दिखे साथ

पिछले साल करण जौहर की 50वीं बर्थडे पार्टी में शामिल होने के बाद से रितिक रोशन और सबा आजाद बॉलीवुड के जाने-माने कपल बन गए हैं और उन्होंने अपने रिश्ते को सार्वजनिक कर दिया है. उन्हें कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में एक साथ देखा गया है, और सबा ने कई मौकों पर ऋतिक के बच्चों, रेहान और हृदय रोशन के साथ भी दोस्ती की है. हाल ही में इस जोड़े को ऋतिक के बेटों के साथ मुंबई में डिनर आउटिंग पर देखा गया था.

रितिक रोशन-सबा आजाद को उनके बेटों के साथ डिनर डेट पर स्पॉट हुए

ऋतिक रोशन अपनी गर्लफ्रेंड सबा आजाद और अपने बेटों रिहान और ऋदान के साथ शुक्रवार, 1 सितंबर को मुंबई के एक आलीशान रेस्तरां के बाहर फोटो खिंचवाते दिखे. उन्हें अपनी कार से बाहर निकलते और डिनर के लिए अंदर जाते देखा गया. रितिक सफेद टी-शर्ट, बेज पैंट और सफेद स्नीकर्स में स्टाइलिश दिखे, जबकि सबा सफेद जूते के साथ एक्वा रंग की पोशाक में प्यारी लग रही थीं. उन्होंने अपने बाल खुले रखे थे और सफेद हैंडबैग कैरी किया हुआ था. रितिक के बेटे कैजुअल ड्रेस में रिलैक्स नजर आए.

 

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ऋतिक के दो बेटे उनकी पूर्व पत्नी सुजैन खान के 

आपको बता दें, रेहान और ऋदान ऋतिक की सुजैन खान से पिछली शादी से उनके बेटे हैं, और वे अपने पिता के साथ एक मजबूत बंधन शेयर करते हैं. शादी के 14 साल बाद 2014 में तलाक के बावजूद, ऋतिक और सुज़ैन ने अच्छा संबंध बनाए रखा है और लगातार एक-दूसरे के लिए अपना सपोर्ट व्यक्त करते रहते है. इसके अलावा, सुजैन ने सोशल मीडिया पर कई मौकों पर खुलेआम सबा के लिए अपनी सराहना जाहिर की है और उनके रिश्ते को प्रोत्साहित किया है.

 

सबा आज़ाद और रितिक रोशन की रोमांटिक अर्जेंटीना छुट्टी

कुछ हफ्ते पहले, रितिक और सबा ने ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में छुट्टी का आनंद लिया. अपनी रोमांटिक छुट्टी के दौरान, सबा ने कुछ मनमोहक तस्वीरें साझा कीं, जो उनके मजबूत रिश्ते की झलक

करीपत्ता: भाग 2-आखिर पुष्कर ने ईशिता के साथ क्या किया

उस दिन ईशिता के मन में फूल ही फूल खिल आए. बरतन धोती, खाना बनाती ईशिता को कुछ व्याप नहीं रहा था. फटकारें, उलाहने भी उसे कष्ट नहीं पहुंचा रहे थे. वह तो जैसे किसी और ग्रह पर पहुंच गई थी जहां सुंदर फूल थे, कलकल करते  झरने थे, मधुर कलरव करते पक्षी थे.

वह खुश थी. ढेरों काम कर के भी तरोताजा थी. उस के अंगअंग से उल्लास झलक रहा था.पुष्कर उस से जब तब परामर्श लेते, महत्त्व देते तो उस का खोया गौरव बोध लौटने लगा. वह गोल्ड मैडलिस्ट थी इस की प्रशंसा करते हुए उस के तौरतरीकों और पुरातनपंथी सोच पर चोट करना न भूलते.

जिस अपनेपन की, 2 मीठे बोलों की भूखी थी वह मिले. धीरेधीरे प्रशंसाभरी नजर और मीठे बोल उसे रोमांच से भरने लगे. पूरा दिन एक मीठी सिहरन रहती. लगता जैसे वह भी कुछ है, कोई उसे भी सराह सकता है, उस की भी चाहनाकामना कर सकता है.

अब उसे सब अच्छा लगता, अपनेआप मुग्ध करता, खुशी के अंगराग से वह दमकती रहती. ईशिता का मन करता कहीं घने वृक्षों के मध्य छोटी संकरी पगडंडी पर वह पुष्कर के साथ चले, कहीं  झील के किनारे बैठ कर बातें करे. खूब सारी बातें.

मन की बातें. बस बातें करते जाएं ढेर सारी बातें… बातें ही बातें.ईशिता के इस रूपांतरण पर पति सजग हुए. उन का ध्यान उस की ओर बढ़ा. पर अब वह अपने में खुश रहती.अपेक्षाओं से मुक्त और प्रतिपल की कचकच से उदासीन हो मन में छिपे आनंद को महसूसती उमंगों से भरी खुश रहती.

उमंगें जाग रही थीं. पति सतर्क हो रहे थे. संस्कारों में बंधी, मूल्यों में जकड़ी ईशिता के मन में पति के लिए अगाध प्यार था. हां, आहत अवश्य थी वह उन की उपेक्षा से, उन की अवहेलना से, पर वह न उन्हें धोखा देना चाहती थी, न उन का सिर  झुकाना चाहती थी पर कितना अंतर था पुष्कर में और उस के पति में. वह कहता, ‘‘जैसा तुम चाहो, एज यू विश’’ और पति उस के हर इशू को स्वयं ही निर्णीत करना चाहते.

उसे तिनके के समान सम झते.मगर इतने प्रगतिशील, सुसंस्कृत, सम झदार और धैर्यवान दिखते पुष्कर क्या सचमुच ऐसे ही थे या वास्तविकता कुछ और थी? फिलहाल ईशिता धीरेधीरे एक शिकंजे में कसती जा रही थी.

दोनों परिवारों को इस घनिष्ठता की आहट मिल गई थी- इस बात ने उन्हें और बेपरवाह कर दिया. पति यह सोच कर चुप रहते कि कोई दकियानूस न कह दे. पुष्कर की पत्नी मौन साध जाती कि पुरुष हो कर वह अपनी पत्नी को नहीं कह रहा तो मैं क्या बोलूं.

मगर मन ही मन सुलग रहे थे सब. इस की आंच उन दोनो तक पहुंचती, पर वह ताप न दे कर शीतल चांदनी सी होती. उस दिन एकांत की तलाश में वे शहर के एक प्रसिद्ध पार्क में आए. स्कूली छात्रछात्राओं की भरमार थी वहां.

वे दोनों भी घने वृक्ष की ओट में एकदूसरे का हाथ थामे, एकदूसरे के होने के मीठे घनीभूत एहसास में डूबे बैठे थे.पुष्कर ने कहा, ‘‘मु झे आजन्म इस बात का दुख रहेगा कि ऐसा संवेदनशील साथ मैं न पा सका.’’‘‘अच्छा, यदि हम साथ होते, तो क्या होता?’’‘‘तो हमारा एक सुंदर सा घर होता, जहां लौन में नारियल के वृक्ष होते जो हमारे बैडरूम की बड़ी सी खिड़की के कांच से दिखते.

बैडरूम की खिड़की में श्वेत रंग के रेशमी जाली के लेसदार परदे होते, अखरोट की लकड़ी का डबलबैड होता, साइड में लैंप. कितना सुंदर जीवन होता. अब तक तो हम ने लग्जरी कार भी ले ली होती. उसी से साथ आतेजाते.’’वह बातों के समंदर में डूबती जा रही थी, उगे नारियल के पेड़ बड़े हो गए थे, उन के मध्य से पूर्णिमा का चंद्रमा  झांक रहा था.

वह खो गई थी उन स्वप्नों में. याद आया पति तो उसे पसंद की कोई वस्तु नहीं खरीदने देते, यहां तक कि नई चादर भी बिछाने नहीं देते. उन्हें तो गाढ़े चटकीले रंग पसंद हैं. पेड़पौधों का तो चाव ही नहीं. वे तो इस तरह से कभी सोचते ही नहीं.

तभी भूरी आंखों और लंबे बालों वाली एक गोरी लड़की वहां से निकली, तो पुष्कर टकटकी लगाए उसे देखते ही रह गए.उस ने टोक दिया, ‘‘क्या देख रहे हो पुष्कर?’’‘‘तुम भी, कितना छोटा सोचती हो. अरे सुंदरता तो देखने की वस्तु है भई.

मेरी पत्नी तो नहीं चिढ़ती मैं चाहे किसी ओर भी देखूं.’’ रास्ते भर पुष्कर बारबार ऐसी बेसिरपैर की बातें करता रहा. इस से पहले किसी का साहस न हुआ उस से ऐसी बातें करने का. वह अपदस्थ हो उठी. अकेली, नितांत अकेली यादों के प्रेतों से घिरी बैठी सोच रही है पुष्कर के बदले रंगों को देख कर. उस के विचित्र व्यवहार को सम झना चाह रही है.

वह क्या से क्या हो गया. कैसे किसी को उस से इतनी ऊटपटांग बातें करने का दुस्साहस हो गया? निश्चय ही उसी ने ही दिया होगा यह दुस्साहस. अब अपने पर दया करे या रोष?मन में प्रश्नों की बारात है. उत्तर एक काभी नहीं उस के पास.

किसी से बोलनेबतियानेका मन नहीं करता. कभी लगता एक मधुर भावसंबंध का देहातीत प्रेम का स्वाद चख रही है तो कभी नितांत अर्थहीन और विनाशकारी लगता उस ओर पग बढ़ाना और आज जो रूप देखा पुष्कर का तो जैसे आकाश में उड़ती ईशिता धरती पर धड़ाम से आ गिरी.

निदा फाजली की पंक्तियां याद आईं-हर आदमी में होते हैं 10-20 आदमी,जिस को भी देखना हो कई बार देखना.ईशिता अत्यंत दुखी है मानो कोई बुरा सपना देख लिया हो. उस का मनमस्तिष्क सुन्न हो उठा है. कितना नीच हो सकता है कोई. हृदय में सर्वत्र हाहाकार मचा है. दुखताप की भीषण ज्वाला में जलती परिपक्व हो रही हैवह. जग के आवांमें तप रही है.

7 इंडोर प्लांट्स घर रखें पौल्यूशन फ्री

तनावमुक्त व स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी है शुद्ध और साफ हवा का घर में आना. लेकिन बढ़ते  प्रदूषण से आज हरकोई किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है. प्रदूषण घर के बाहर ही नहीं बल्कि घर के अंदर भी होता है क्योंकि घर के ही भीतर कुछ ऐसी विषैली गैसें होती हैं जो प्रदूषण फैलाती हैं. जिन का नतीजा अच्छी नींद का न आना, भूख न लगना, हमेशा थकान महसूस होना वगैरह है.

डब्ल्यूएचओ के अनुसार 42 लाख लोगों की मौत खुले स्थानों पर वायु प्रदूषण की चपेट में आने से होती है. इस के अतिरिक्त 38 लाख लोगों की मौत घरों से निकलने वाले धुएं के कारण होती है. प्रीमैच्योर बर्थ, हृदयरोग, क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और फेफड़ों का  कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बढ़ता प्रदूषण भी है.

प्रदूषण से बचने के लिए हम मास्क व एअर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन हमारे शरीर को अधिक जरूरत होती है प्रकृतिक वातावरण की, जिसे आप कुछ पौधों को अपने घर में लगा कर पा सकते हैं. ये पौधे बाथरूम से निकलने वाली अमोनिया गैस, कूड़ेकरकट से फौर्मेल्डिहाइड गैस, डिटर्जैंट से बैंजीन, फर्नीचर से ट्राईक्लोरोइथीलीन, गैसस्टोव से कार्बन मोनोऔक्साइड के प्रभाव को कम करते हैं.

नवंबर माह में पराली जलाए जाने से प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ जाता है कि खुली हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. समय रहते इन पौधों को अपने घर में लगाएं और बढ़ते प्रदूषण से खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित बनाएं :

1.इंग्लिश आइवी 

यह पौधा  94% तक हवा को शुद्ध कर सकता है. यह बैंजीन, टोल्यूनि, औक्टेन और ट्राइक्लोरोइथिलीन जैसे वीओसी के प्रभाव को कम करता है. जब रात में सारे पौधे कार्बन डाइऔक्साइड गैस छोड़ते हैं तब यह हमें औक्सीजन देता है. बेहतर नींद के लिए आप इसे अपने बैडरूम में भी लगा सकते हैं. अस्थमा के मरीजों के लिए यह काफी अच्छा साबित हो सकता है.

2. स्पाइडर प्लांट 

इस पौधे को पानी की जरूरत कम होती है. यह पौधा बैंजीन, फौर्मेल्डिहाइड, कार्बन मोनोऔक्साइड और जाइलिन, चमड़े, रबड़ और मुद्रण उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले नुकसानदेह गैसों से हमें सुरक्षित रखता है.

3. पीस लिली

यदि आप अपने घर को महकाना चाहते हैं तो इस पौधे को घर के भीतर लगा सकते हैं. हफ्ते में एक बार पानी व कम रौशनी ही इसे पसंद होते हैं. यह पौधा वायु प्रदूषण को रोकने की अद्भुत क्षमता रखता है. यह आप के घर के भीतर साबुन, डिटर्जैंट से निकलने वाली बैंजीन गंध, कूड़े की गंध को सोखने की क्षमता रखता है.

4. ऐरेका पाम 

यह पौधा लगभग 3-5 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है. इसे हलकी रौशनी व कम पानी की ही जरूरत होती है. किसी मरीज या गर्भवती महिलाओं के कमरे में इसे लगाने से उन की सेहत पर अच्छा असर पड़ता है. यह हवा से जाइलिन, कार्बन मोनोऔक्साइड, फौर्मेल्डिहाइड, टोल्यूनि, नाइट्रोजन डाइऔक्साइड और ओजोन के प्रभाव को कम करता है.

5. स्नैक प्लांट (सैंसेवीरिया ट्रीफैसिया) 

यह पौधा फौर्मैल्डिहाइड और बैंजीन जैसे विषैले पर्दार्थों को हटा कर आप के घर को अंदर से साफ रखता है. यह पौधा नाइट्रोजन औक्साइड और प्रदूषित हवा को अपने अंदर खींच लेता है। यह दिनरात औक्सीजन देने वाला पौधा है.

6. ऐलोवेरा (घृतकुमारी) 

यह घर के अंदर व बाहर हलके सूरज की रोशनी और थोड़ी नम मिट्टी में लगाया जा सकता है. यह हवा से फौर्मेल्डिहाइड और बैंजीन को साफ करने में मदद करता है. यह रात को औक्सिजन छोड़ता है जिस का सकारात्मक असर सेहत पर पङता है। यह औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है.

7. वीपिंग फिग

यह पत्तेदार पौधा लंबे समय तक जीवित रहता है. इस की पूर्ण लंबाई 10 फीट तक होती है. इसे बढ़ने में समय लगता है, लेकिन इस की अच्छी देखभाल हो तो यह हमें परदे, कालीन और फर्नीचर से निकलने वाली धूल तक से बचाता है. इसे उज्ज्वल, अप्रत्यक्ष रोशनी में रखें जिस से इस की पत्तियों को नुकसान न हो.

अब घर चल: भाग 3-जब रिनी के सपनों पर फिरा पानी

रिनी से खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. वहां से सीधा मां के घर पहुंची और अम्मू से लिपट कर रो पड़ी, ‘‘अम्मू, मैं मां बनने वाली हूं, बहुत बड़ा लांछन मिटा है मेरे माथे से.’’

‘‘देखा बेटा, मैं ने कहा था न सुख तेरी राहों में जरूर बिछेंगे,’’ अम्मू ने भावविभोर हो कर कहा.

‘‘तभी रिनी को शेखर की दूसरी शर्त याद आ गई और उस की खुशियों पर ढेरों पानी पड़ गया. फिर जब उस ने वह बात अम्मू को बताई तो वह हंसने लगीं, ‘‘अरे बावली, अपनी औलाद किसे बुरी लगती है? देखना शेखर भी उतना ही खुश होगा जितना तू हो रही है.’’

‘‘नहीं अम्मू, आप नहीं जानतीं शेखर को,

मैं जानती हूं. वे इस बच्चे को नहीं आने देंगे,’’ रिनी ने उदासी भरे स्वर में कहा और फिर तुरंत फैसला किया कि वह अभी शेखर को कुछ नहीं बताएगी. अपनी इस अनमोल खुशी के रंग में जहर नहीं घोलना चाहती थी वह. हां, उस ने  झट से शीतल चाची को फोन कर यह खबर दी तो वे खुशी से बोलीं, ‘‘तू इस समय पास होती तो मैं तेरा माथा चूमती… मेरा मन कर रहा है कि महल्ले भर में लड्डू बांटूं… और हां एक खबर मेरे पास भी है रिनी.’’

‘‘क्या चाची?’’

‘‘रंजन की वह नई दुलहन उसे छोड़ गई.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं चाची?’’

‘‘शादी के 2 महीने बाद से ही पूरे घर में बच्चे की रट लगाने लगी तो वह अड़ गई कि मेरा और रंजन दोनों का चैकअप कराओ. हार कर उन्हें चैकअप कराना पड़ा. फिर जब रिपोर्ट आई तो पता चला पत्नी में तो मां बनने के सारे गुण हैं पर पति ही नपुंसक है. फिर क्या था. पत्नी रंजन को छोड़ गई.’’

‘‘पर चाची मैं क्या करूं?’’ रिनी ने पूछा.

‘‘देख रिनी, यह तो तय है कि मां तो तु झे बनना ही है. शेखर माने तो ठीक, न माने तो भी ठीक.’’

बस राह मिल गई रिनी को. अगले शनिवार की रात थी. शेखर और बच्चों के साथ बाहर से खाना खा कर लौटी तो बहुत अच्छे मूड में थे शेखर. अत: सही मौका जान कर हौले से मुसकरा कर यह खबर सुनाई तो वे  झटके से उठ खड़े हुए, ‘‘यह नहीं हो सकता… कभी नहीं हो सकता… कल छुट्टी है, कल ही नर्सिंगहोम चलो और अबौर्शन करवा लो. तुम्हें शर्त नहीं याद मेरी?’’

‘‘मुझे सिवा इस के कुछ नहीं याद कि मेरी कोख में पहला फूल खिला है,’’ रिनी ने आराम से कहा.

‘‘हमारे बीच, पहली रात ही यह तय हुआ था कि कभी कोई और बच्चा नहीं आएगा इस घर में… फिर यह सब क्या है?’’

‘‘कुछ तय नहीं हुआ था हमारे बीच शेखर. आप बोले रहे थे और मैं सुन रही थी, बस. सहमति का एक शब्द भी नहीं कहा था मैं ने क्योंकि मेरे मन में गहराई तक यह बात बैठ चुकी थी कि मैं कभी मां नहीं बन सकती. मु झे तो तसल्ली हुई थी आप का फैसला सुन कर… आप ने कभी सुनना नहीं चाहा कि मेरी पिछली जिंदगी में क्या हुआ था. बां झ कह कर निकाला गया था मु झे उस घर से, जबकि अब साबित हो चुका है कि कमी मु झ में नहीं उस में थी. इस बां झ शब्द की फांस मेरे कलेजे में बहुत गहरे तक धंसी है, जो अब तक टीस पहुंचा रही है. शेखर मु झे इस टीस से मां बन कर मुक्त होने दो.’’

‘‘मैं अपनी बेटियों के बीच किसी और बच्चे को हरगिज नहीं आने दूंगा. बस, कह दिया तो कह दिया.’’

‘‘वे मेरी भी तो बेटियां हैं शेखर… शायद तुम से ज्यादा मेरे करीब हैं वे और मैं उन्हें तब से प्यार करती हूं, जब मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं इन की मां बनूंगी… फिर क्यों नहीं आने देना चाहते आप इस बच्चे को? यह आप ही का तो अंश है.’’

‘‘मु झे कुछ नहीं सुननाकहना. हम एक राह पर तभी चल सकते हैं, जब तुम इस…’’

‘‘बस शेखर, आगे एक लफ्ज भी न कहना… कब छोड़ना होगा मु झे आप का घर, अभी या…’’

‘‘अभी तो बहुत रात हो चुकी है… कहां जाओगी?’’

‘‘रात मेरा क्या बिगाड़ेगी शेखर? बच्चियों को सम झा देना और संभाल लेना,’’ भीगे स्वर में कह कर सिर्फ पर्स उठा कर बाहर निकल गई. उसे पूरी उम्मीद थी कि शेखर उसे रोक लेंगे पर ऐसा नहीं हुआ.

अम्मू उसे देख कर चौंक गईं. फिर पूछा, ‘‘इतनी रात अकेली आई? सब ठीक

है न?’’

‘‘खुद नहीं आई हूं, घर से निकाल दी गई हूं अम्मू. गुनाह जो करने जा रही हूं, अपने ही पति के जायज बच्चे की मां बनने का,’’ बर्फ से भी ज्यादा ठंडा स्वर था रिनी का.

‘‘लेकिन बेटा…’’

‘‘कोई लेकिनवेकिन नहीं. रिनी ने हमेशा वही किया जो हम ने कहाचाहा. लेकिन अब वही होगा, जो यह चाहेगी,’’ पापा ने जैसे आदेश दिया.

रात गहरा चली. तो अम्मू दूध का प्याला थामे उस के पास आई, ‘‘चुपचाप यह दूध पी लो रिनी. अपना नहीं तो अपने नन्हे का खयाल करो.’’

दूध का प्याला थामते हुए रिनी ने आहिस्ता से पूछा, ‘‘मैं ने कुछ गलत तो नहीं किया न अम्मू?’’

‘‘बिलकुल ठीक किया तू ने बेटा. अब आराम से सो जा,’’ उस का माथा चूमते हुए

अम्मू ने कहा.

पर कहां सो पाई वह आराम से. अपनी पूरी जिंदगी दोहरा ली उस ने, फिर भी काफी रात बची रही. बहुत से फैसले किए उस ने उस रात और सुबह उठ कर अम्मू को सुना दिए, ‘‘अम्मू, मैं अब उस स्कूल में नौकरी नहीं करूंगी. शुचिरुचि को देख कर खुद पर काबू नहीं रहेगा मेरा… उन्हें क्या जवाब दूंगी और लोगों के सवालों के भी क्या जवाब दूंगी? अम्मू, डिलिवरी तक मैं यहां भी नहीं रहना चाहती. मैं चैन से जीना चाहती हूं. अपनी कोख के बच्चे को शिद्दत से महसूस करना चाहती हूं. मैं नानी के घर चली जाऊं अम्मू?’’

‘‘पर बेटा, वह कसबा है… वहां यहां जैसी सुखसुविधाएं कहां?’’

‘‘मु झे सुविधाएं नहीं शांति चाहिए अम्मू… मैं वहीं जाऊंगी और लौट कर नौकरी करूंगी. उस के लिए… अम्मू उस के बड़े होने तक आप उसे संभाल लेंगी न?’’

‘‘मैं संभालूंगा बेटा. मु झे तो बुढ़ापे में एक खिलौना मिल जाएगा, तू फिक्र मत कर,’’ अम्मू की जगह पापा ने जवाब दिया.

Cook Book special: मजेदार मालवानी स्वाद

घर पर बनाएं बेहद आसानी से मजेदार मालवानी स्वाद की डिश. आज ही बनाएं कुर्ल्याणचे सुक्के और कटाची आमटी.

कुर्ल्याणचे सुक्के

सामग्री

1.  4 बड़े क्रेब्स (केकड़े) जिन में हरेक का वजन 500 ग्राम के लगभग हो

  2. 2 बड़े चम्मच बटर

  3. 2 बड़े चम्मच इमली का पल्प 

  4. 1 छोटा चम्मच लहसुन का पेस्ट 

  5. एकचौथाई छोटा चम्मच हलदी पाउडर 

  6. 2 बड़े चम्मच टोमैटो प्यूरी 

  7. नमक स्वादानुसार.

सामग्री स्पाइस मिक्स की 

1.  2-3 बड़ी सूखी लालमिर्च 

  2. 2 बड़े चम्मच साबूत धनिया 

  3. 2 बड़े चम्मच कालीमिर्च 

  4. 11/2 बड़े चम्मच जीरा 

  5. थोड़े से फ्रैश करीपत्ते 

  6. गार्निश करने के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती.

विधि

सब से पहले क्रेब्स को धो कर साफ कर लें. उन के ऊपर की शैल को निकाल कर फेंक दें. पंजे और भीतरी खोल को तोड़ कर सारा पानी निकाल लें. अब क्रेब्स शैल्स और पंजों को सौस पैन में ठंडे पानी में डाल कर एक उबाल आने दें. अब इसे 3-4 मिनट तक उबलने दें और फिर पानी निकाल कर शैल्स से मीट को अलग कर दें. अब स्पाइस मिक्स की सारी सामग्री को फ्राइंग पैन में डाल कर मीडियम आंच पर तब तक ड्राई रोस्ट करें, जब तक कि इन मसालों से खुशबू न आने लगे. अब इन मसालों को मूसलदानी में डाल कर इन का दरदरा पाउडर तैयार करें. अब एक बड़े फ्राइंग पैन को मीडियम आंच पर गरम कर के उस में बटर डालें. फिर इस में इमली का पल्प, लहसुन का पेस्ट, हलदी और टोमैटो प्यूरी डाल कर कुछ मिनट तक चलाएं. अब इस में तैयार स्पाइस पेस्ट डाल कर चलाते हुए इसे तब तक पकाएं जब तक मिक्स्चर गाढ़ा न हो जाए. अब इस में क्रैब मीट, पंजे और नमक डाल कर अच्छे से मिक्स करें और इसे जब तक पकाएं जब तक यह मिक्स्चर क्रेब्स पर अच्छे से कोट न हो जाए. अब इसे आंच से उतार कर धनियापत्ती से गार्निश कर के रोटी या परांठों के साथ सर्व करें.

  2. कटाची आमटी

सामग्री मीठी और मसालेदार दाल की

1. 1/2 कप चने की दाल 1 घंटा भीगी हुई

2. चुटकीभर हींग

3.  1 छोटा चम्मच हलदी

4. 1/2 छोटा चम्मच जीरा

5.  एकचौथाई कप कद्दूकस किया सूखा नारियल

6.  2 बड़े चम्मच इमली का पल्प

7.  4 बड़े चम्मच कद्दूकस किया गुड़

8. 2 ड्रमस्टिक्स 3 इंच लंबे आकार में कटी

9.   1 छोटा चम्मच रैड चिली फ्लैक्स

10.  1 छोटा चम्मच महाराष्ट्रियन गोदा मसाला (अगर यह मसाला उपलब्ध न हो तो इस की जगह 1 छोटा चम्मच जीरा

 11.  2 छोटे चम्मच साबूत धनियाद्य  2-3 लौंग 

12.  1 छोटा चम्मच सफेद तिल के बीज 

16.  1 इंच दालचीनी का टुकड़ा 

 17.  5-6 कालीमिर्च के दानों को पैन में डाल कर धीमी आंच पर तब तक ड्राई रोस्ट करें जब तक कि मसालों से खुशबू न आने लगे

18.   नमक स्वादानुसार.

सामग्री टैंपरिंग की

 1.  1 बड़ा चम्मच वैजिटेबल औयल

 2.  2-3 लौंग 

 3.  1 बड़ा तेजपत्ता 

 4.  1 इंच दालचीनी का टुकड़ा 

 5.  1 छोटा चम्मच सरसों 

 6.  थोड़े से फ्रैश करीपत्ते 

 7. 2-3 नारियल बड़े कद्दूकस किए 

 8.   गार्निश करने के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती.

विधि

सौस पैन में दाल में 6 कप पानी के साथ हींग, हलदी डाल कर एक उबाल आने के बाद उसे तब तक पकाएं, जब तक वह पक व मैश फौर्म में न आ जाए. फिर इसे आंच से उतार लें. अब एक छोटे पैन में जीरा व ड्राई कोकोनट को मीडियम आंच पर तब तक ड्राई रोस्ट करें, जब तक इस में से खुशबू न आने लगे. फिर इस का ग्राइंडर में दरदरा पेस्ट बना लें. अब दाल का पानी अलग कर दाल को ग्राइंडर में 11/2 कप इस दाल के पानी के साथ इस की स्मूद प्यूरी बना लें. अब इस प्यूरी को सौस पैन में डालें, फिर इस में बचा दाल का पानी डाल कर इस में बाकी बची सामग्री, साथ ही जीरा व कोकोनट पेस्ट भी डाल कर एक उबाल आने दें. फिर इसे तब तक मीडियम आंच पर पकाएं, जब तक ड्रमस्टिक्स नर्म न पड़ जाएं. अब टैंपरिंग के लिए एक छोटे पैन में औयल कोमीडियम आंच पर गरम कर के इस में नारियल और धनिया को छोड़ कर टैंपरिंग की सारी सामग्री डाल कर मसालों को चटकाएं. अब इस टैंपरिंग को तैयार सूप पर डाल कर ऊपर से धनियापत्ती और फ्रैश कोकोनट से गार्निश कर के गरमगरम सर्व करें.

3. बाजरे की रोटी सामग्री

 1.   2 कप बाजरे का आटा

 2..   1 बड़ा चम्मच कसूरी मेथी 

 3. 1 कप गरम पानी 

 4. 2 बड़े चम्मच औलिव औयल

 5. नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला कर 10 मिनट तक आटे को गूंदें. अब इसे 8 छोटेहिस्सों में बांटें. फिर इसे गोल कर इस को रोटी के आकार का बेलें. अब तवे को गरम कर ब्रैड को दोनों तरफ से उलटतेपलटते हुए सुनहरा होने तक सेंकें. फिर इसे कुछ सैकंड तक सीधी आंच पर चिमटे की मदद से सेंकें. अब रोटी को आंच से उतार कर उस पर घी लगा कर गरमगरम सर्व करें.

मेरे औफिस का सहकर्मी मुझे परेशान करता है?

सवाल

मैं 27 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हूं. औफिस का माहौल ठीक है पर अपने एक सहकर्मी से परेशान रहती हूं. दरअसल, वह मुझे व्हाट्सऐप पर दिनरात मैसेज भेजता रहता है. वह रिप्लाई भी करने को कहता है पर मुझे झुंझलाहट होती है. एक तो समय का अभाव दूसरा काम का बोझ. हालांकि उस के मैसेज मर्यादा से बाहर नहीं होते पर बारबार मैसेज आने से मैं परेशान हो जाती हूं. मेरा ध्यान भी काम से बंट जाता है. मैं नहीं चाहती कि उस सहकर्मी से मेरे औफिशियल व्यवहार पर ग्रहण लगे, पर साथ ही यह भी चाहती हूं कि वह मुझे इस तरह परेशान न करे. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

अगर आप को उस सहकर्मी का व्हाट्सऐप करना पसंद नहीं है, तो आप उसे सीधे तौर पर मना कर दें. आप कह सकती हैं कि संदेश काम से संबंधित हों तो ठीक है अन्यथा उलजलूल व्हाट्सऐप न करें. आप उसे यह भी कह सकती हैं कि औफिस के टाइम में व्हाट्सऐप पर टाइमपास करने से उस की छवि गलत बनेगी और बौस तक बात पहुंचने पर तरक्की पर ग्रहण लग जाएगा. वैसे लगातार उस के भेजे गए व्हाट्सऐप मैसेज को इग्नौर करेंगी और कोई जवाब नहीं देंगी तो कुछ दिनों बाद वह खुद ही व्हाट्सऐप करना बंद कर देगा. इस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी न टूटेगी.

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औफिस में कई बार कठिन परिस्थितियां आती हैं क्योंकि यहां आप को कैरियर के साथसाथ कलीग्स और बौस का भी खयाल रखना पड़ता है. इन मुश्किलों से निबटने के लिए काफी सावधानी और संयम बरतने की जरूरत पड़ती है. जानिए ऐसी ही कुछ मुश्किल सिचुएशंस और उन के समाधान के बारे में.

1. आप का पूर्व बौस आप का जूनियर बन जाए

आप जिस कंपनी में काम करते थे, वहां के बौस का आप बड़ा सम्मान करते थे. अचानक एक दिन आप को पता लगता है कि वही बौस आप की मौजूदा कंपनी में काम करने लगा है और अब वह आप को रिपोर्ट करेगा यानी अब वह आप का जूनियर है. ऐसी स्थिति में आप को सिचुएशन को बहुत ही आराम से हैंडिल करना होगा. इस बात का खयाल रखें कि पूर्व बौस को इंडस्ट्री में आप से ज्यादा अनुभव है और मौजूदा स्थिति में उसे कंफर्टेबल होना चाहिए. आप को उस से सलाह लेनी चाहिए. अगर आप अपने पूर्व बौस के साथ काम करने में सहज नहीं हैं तो आप प्रबंधन की मंजूरी से एक अलग टीम के साथ काम कर सकते हैं. अगर आप को मौजूदा स्थिति में ही काम करना है तो पूर्व बौस से काम की चुनौतियों को ले कर चर्चा करें. आप अब भी अपने पर्सनल स्पेस में पूर्व बौस का सम्मान करते रहें. अपने नियोक्ता को इस बारे में बता दें कि वह शख्स आप का बौस रह चुका है. अगर आप खुद ऐसे व्यक्ति को रिपोर्ट कर रहे हैं, जो पहले आप के जूनियर के तौर पर काम कर चुका है तो प्रोफैशनल की तरह व्यवहार करें.

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