Anupama: अनुज के सामने आया काव्या का राज, बाबूजी ने लगाई बा की क्लास

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. ‘अनुपमा’ में इतना ड्रामा देखकर दर्शक के दिमाग का दही कर दिया है. सीरियल में पाखी-अधिक और डिंपल व काव्या  करेंट ट्रेक चल रहा है.

बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि बा और डिंपल का झगड़ा देखकर वनराज वहां आ जाता है. वनराज की बाते सुनकर काव्या भी वहां आ जाती है. काव्या बा को शांत कराती है. काव्या जैसे ही बा को पानी पिलाती की है, तो डिंपल उस गिलास को गिराकर वहां से निकल जाती है. उसी गिलास की वजह से काव्या जमीन पर फिसलकर गिर जाती है. काव्या को दर्द में देखकर हर कोई परेशान हो जाता है. वनराज जल्दी से उसे अस्पताल लेकर जाता है.

अनुज को पता चला काव्या का सच

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अनुपमा और अनुज घर जाते है तो अनुज, अनुपमा से पूछता है उस दिन आधी रात को वनराज इसलिए आया था. अनुपमा सॉरी बोलती है तो अनुज कहता है सॉरी मत बोलों. मैं बस अनुपमा और काव्या के बारे में सोच रहा हूं. वैसे यह बात अनुपमा किसी को पता है क्या? किसी को कोई शक? अनुपमा बोलती है वनराज ने काव्या को मना किया था. अनुज कहता है लेकिन ये छुपाना गलत है. इस पर अनुपमा कहती है बाबूजी और बा को बुरा लगेगा इसलिए ये बताना उचित नहीं है.

 

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अनुपमा की गुरु मां से होगी मुलाकात

आगे सीरियल में अनुज गाड़ी मंदिर के पास रोकता है वहां एक औरत उनकी गाड़ी से टकराती है वह औरत कोई नहीं बल्कि गुरु मां होती है. गुरु मां की यह हालत देखकर सब हैरान हो जाते है.

 

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बाबूजी ने बा को सुनाया

बा डिंपल को काफी बुरा-बुरा सुनाती है. बा कहती है कि डिंपी की वजह से काव्या की जान खतरे में आ गई. तो डिंपी कहती है कि आप की वजह से कान के पर्दे भी खतरे में आ जाते है. बा की बातें सुनकर बाबूजी गुस्से में बा की क्लास लगा देते है.

राधाकृष्ण फेम मल्लिका सिंह को बिग बॉस 17 के मेकर्स ने किया अप्रोच, जानें एक्ट्रेस का रिएक्शन

बिग बॉस 17 के लिए फैंस का काफी उत्साह बढ़ रहा है, और ऐसा लगता है कि निर्माता आगामी सीजन के लिए तैयार हो रहे हैं. बिग बॉस कंट्रोवर्शियल और कंटेस्टेंट के दिलचस्प मिक्स अप के कारण दर्शकों के बीच एक लोकप्रिय रियलिटी शो है.

हर सीजन में, यह शो अपने मनमोहक कंटेंट से ध्यान खींचने में कामयाब रहता है. सलमान खान द्वारा होस्ट किए जाने वाला रियलिटी शो के 17वें सीज़न की तैयारी शुरु हो चुकी है, ऐसी चर्चा है कि बिग बॉस 17 के लिए कुछ प्रसिद्ध हस्तियों से संपर्क किया जा रहा है.

बिग बॉस 17 के लिए मल्लिका सिंह को किया अप्रोच

टीवी सीरियल  राधाकृष्ण में राधा की भूमिका निभाने वाली मल्लिका सिंह को भी कंट्रोवर्शियल रियलिटी शो में भाग लेने की अफवाह तेजी से फैल रही है. मीडिया से बात करते हुए मल्लिका ने बिग बॉस 17 को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है.

अभिनेत्री ने खुलासा किया कि उन्हें सलमान खान के रियलिटी शो बिग बॉस 17 के लिए संपर्क किया गया था. उन्होंने आगे कहा, ”हां, मुझे शो के लिए अप्रोच किया गया है, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर रही हूं.” ऐसे में मल्लिका ने साफ कह दिया है कि वह बिग बॉस 17 का हिस्सा नहीं बनेंगी.

 

राधाकृष्ण फेम सुमेध मुदगलकर किया अप्रोच

ऐसी कई रिपोर्टें थीं जिनमें दावा किया गया था कि राधाकृष्ण फेम सुमेध मुदगलकर को भी बिग बॉस 17 के लिए अप्रोच किया गया है.हालांकि, इस बारे में कोई पुष्टि नहीं हुई है.

 

इन सेलेब्स का भी नाम आया सामने

मल्लिका सिंह के साथ, Soundous Moufakir, Alice Kaushik, कंवर ढिल्लन और पूजा भट्ट जैसे सेलेब्स को कथित तौर पर सलमान खान के रियलिटी शो बिग बॉस 17 में भाग लेने के लिए अप्रोच किया गया है.

मीडिया से बात करते हुए, बिग बॉस ओटीटी 2 फेम बेबिका धुर्वे ने बिग बॉस 17 के लिए संपर्क किए जाने की पुष्टि की, लेकिन उन्होंने साझा किया कि बिग बॉस के अगले सीजन के लिए हामी भरने से पहले उन्हें कुछ समय लगेगा.

इस दिन से शुरु हो रहा है बिग बॉस 17

बिग बॉस 17 में सिंगल बनाम कपल का एक दिलचस्प थीम होगा और इसलिए प्रतियोगियों को उस मानदंड के अनुसार चुना जा सकता है. अफवाहों के मुताबिक, बिग बॉस 17 का प्रीमियर 30 सितंबर को कलर्स टीवी पर होगा. हालांकि, इस बारे में कोई पुष्टि नहीं हुई है.

रक्षाबंधन पर आसानी से बनाइये ये टेस्टी मिठाईयां

रक्षाबंधन का त्यौहार यूं तो भाई बहन के प्यार दुलार के प्रतीक का त्यौहार है परन्तु कोई भी त्यौहार मिठाई के बिना अधूरा होता है. बाजार से लाई गई मिठाइयों में रंग, प्रिजर्वेटिव आदि को भरपूर मात्रा में मिलाया जाता है जिससे वे स्वास्थ्य के लिए सेहतमंद तो नहीं ही होतीं साथ ही बहुत महंगी भी होती हैं. वहीं घर पर बनी मिठाईयां शुद्ध और मिलावट रहित तो होती ही हैं साथ ही सस्ती भी पड़तीं है. इसी क्रम में हम आज आपको ऐसी ही मिठाई बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर के सामान से बड़ी आसानी से बना समतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

  1. लौकी कलाकंद

कितने लोगों के लिए –  6

बनने में लगने वाला समय -30 मिनट

मील टाइप – वेज

सामग्री

1. लौकी  500 ग्राम

  2. फूल क्रीम दूध 1 लीटर

  3.  नीबू का रस  1टीस्पून

   4. शकर   50 ग्राम

    5. चांदी का वर्क  6 पत्ते

    6. घी  1 टीस्पून

विधि

लौकी को छीलकर बीच का बीज वाला भाग चाकू से काटकर अलग कर दें और लौकी को किस लें. अब एक पैन में दूध डालें जब दूध में उबाल आ जाये तो किसी लौकी डाल दें. इसे तेज आंच पर चलाते हुए 5 मिनट तक पकाएं. 1/4 टीस्पून नीबू का रस डालकर चलाएं. नीबू का रस डालने के बाद दूध धीरे धीरे फटना शुरू कर देगा. 5 मिनट उबालकर फिर से 1/4 टीस्पून नीबू का रस डालकर चलाएं. जब मिश्रण गाढ़ा सा होने लगे तो  50 ग्राम शकर और 1 टीस्पून घी डालें. लगातार चलाते हुए तब तक पकाएं जब तक कि मिश्रण पैन में चिपकना न छोड़ दे. अब इसे चिकनाई लगी ट्रे में जमाकर चांदी का वर्क लगाएं. चौकोर टुकड़ों में काटकर सर्व करें.

2. पीनट रोज कतली

कितने लोगों के लिए-  8

बनने में लगने वाला समय –  30 मिनट

मील टाइप –  वेज

सामग्री

 1. मूंगफली दाना  500 ग्राम

   2. शकर 300 ग्राम

   3. रोज एसेंस 1/4 टीस्पून

   4. पिस्ता कतरन  1 टीस्पून

   5. घी  1 टेबलस्पून

   6. पानी 1/2 कप

विधि

मूंगफली दाना को गैस या माइक्रोवेब में भून लें. ठंडा होने पर इनके छिल्के निकाल दें. अब मूंगफली दाना को मिक्सी में पल्स मोड पर चलाते हुए बारीक पीस लें.  अब एक पैन में पानी और शकर डाल कर चलाएं. जब शकर पूरी तरह घुल जाए तो  पिसी मूंगफली दाना और रोज एसेंस डाल दें. जब मिश्रण थोड़ा  सा गाढ़ा होने लगे तो  घी और पिस्ता कतरन  डालकर चलाएं और मिश्रण को एक चिकनाई लगी ट्रे में निकाल लें. 1-2 मिनट तक ट्रे में ही मिश्रण को उलटें पलटें जिससे यह ठंडा हो जाये. अब एक बटर पेपर या पॉलीथिन पर रखकर इसे बेलन से पतला बेल लें. गर्म में ही चाकू से कतली काट लें. एयर टाइट डिब्बे में भरकर प्रयोग करें.

ऐडवांस लैप्रोस्कोपिक सर्जरी महिलाओं के लिए वरदान

पिछले कुछ वर्षों में स्त्रीरोग से जुड़े मामलों में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी काफी प्रभावशाली साबित हुई है. इन मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाओं में स्त्रीरोग से जुड़े मामलों में बीमारी का पता लगाने और इलाज करने के लिए छोटे कट लगाए जाते हैं और स्पैशलाइज्ड उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. लैप्रोस्कोपी सर्जरी ने गाइनोकोलौजी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है जिस से मरीज की रिकवरी कम वक्त में हो जाती है, निशान कम आते हैं और बेहतर परिणाम आते हैं.गुरुग्राम के सीके बिरला हौस्पिटल में ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनोकोलौजी विभाग की डाइरैक्टर डाक्टर अंजलि कुमार ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी.

  1. लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी

परंपरागत रूप से हिस्टरेक्टोमी (सर्जरी के जरीए यूटरस निकालना) पेट में चीरे के माध्यम से की जाती थी, जिस में मरीज की रिकवरी में लंबा समय लग जाता था. हालांकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिस के चलते मरीज की रिकवरी तुरंत होती है, औपरेशन के बाद दर्द कम होता है और निशान भी बहुत कम होते हैं.

रोबोटिक असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी जैसी ऐडवांस तकनीक से इलाज को और मजबूती मिली है.इस में जटिल शारीरिक संरचनाओं को भी डाक्टर ज्यादा आसानी से नैविगेट कर लेते हैं और औपरेशन में इस से काफी मदद मिलती है. जिन महिलाओं को यूटरिन फाइब्रौयड, ऐंडोमिट्रिओसिस या पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होती है उन के लिए यह प्रक्रिया काफी कारगर है.

2. ऐंडोमिट्रिओसिस

ऐंडोमिट्रिओसिस में यूटरस के बाहर ऐंडोमिट्रियल टिशू बढ़ जाते हैं. ये गंभीर पैल्विक पेन और बां?ापन के कारण बन सकते हैं. ऐंडोमिट्रिओसिस घावों के लिए लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया एक बहुत ही स्टैंडर्ड ट्रीटमैंट मैथड बन गया है. इस में डाक्टर ऐंडोमिट्रिओसिस इंप्लांट्स को विजुलाइज करने, उन का मैप बनाने और ठीक से हटाने के लिए लैप्रोस्कोपिक उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिस से मरीजों को लंबे समय तक राहत मिलती है.

इस मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से न केवल लक्षण कम होते हैं, बल्कि प्रजनन क्षमता भी प्रिजर्व होती है. महिलाओं को इस का काफी लाभ मिलता है.

3. ओवेरियन सिस्टेक्टोमी

ओवेरियन अल्सर, तरल पदार्थ से भरी थैली जो अंडाशय पर बनती है में दर्द, हारमोनल असंतुलन और फर्टिलिटी संबंधी परेशानियां होने का डर रहता है. लैप्रोस्कोपिक सिस्टेक्टोमी की मदद से डाक्टर अल्सर को हटाते हैं और स्वस्थ ओवेरियन टिशू को संरक्षित करते हैं. इस से ओवेरियन फंक्शन बेहतर होता है और फर्टिलिटी भी सुधरती है.इंट्राऔपरेटिव अल्ट्रासाउंड और फ्लोरेसैंस इमेजिंग जैसी ऐडवांस तकनीक से अल्सर की सटीक पहचान की जाती है और फिर उसे हटाया जाता है. इस प्रक्रिया में जोखिम कम रहता है. ओपन सर्जरी की तुलना में लैप्रोस्कोपिक सिस्टेक्टोमी के बाद दर्द कम होता है, मरीज को अस्पताल में कम वक्त रहना पड़ता है और वह रोजमर्रा के काम भी जल्दी करने लग जाता है.

4. मायोमेक्टोमी

यूटेरिन फाइब्रौयड के कारण पीरियड्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है, पेल्विक पेन होता है और प्रजनन संबंधी परेशानियां भी हो जाती हैं. मायोमेक्टोमी में गर्भाशय को संरक्षित करते हुए फाइब्रौयड को सर्जरी के जरीए हटाया जाता है. जो महिलाएं गर्भधारण करना चाहती हैं उन के लिए यह एक बेहतर उपाय है. लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी पारंपरिक ओपन सर्जरी से ज्यादा पौपुलर है क्योंकि इस में छोटे चीरे लगाए जाते हैं, ब्लड लौस कम होता है और मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है.

5. रोबोटिक

असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी से सर्जरी काफी सटीक हुई है और इस के परिणामस्वरूप बेहतर प्रजनन रिजल्ट आते हैं.

6. ट्यूबल रिवर्सल

जिन महिलाओं की ट्यूबल लिगेशन (सर्जिकल नसबंदी) होती है, उन के लिए ट्यूबल रिवर्सल सर्जरी प्रजनन क्षमता को बहाल करने का अवसर प्रदान करती है. लैप्रोस्कोपिक ट्यूबल रीनास्टोमोसिस में फैलोपियन ट्यूबों को फिर से जोड़ा जाता है, जिस से प्राकृतिक गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ती हैं.मिनिमली इनवेसिव सर्जरी से निशान कम आते हैं और औपरेशन के बाद मरीज को कम परेशानी होती है जिस से महिलाओं को अपनी रूटीन की गतिविधियों में जल्दी लौटने में मदद मिलती है. लैप्रोस्कोपिक तकनीक, माइक्रोसर्जिकल स्किल्स से साथ जुड़ी होती है जिस से ट्यूबल रिवर्सल सर्जरी की सफलता दर और परिणामों में काफी सुधार होता है.

ऐडवांस गाइनोकोलौजी लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के आने से प्रजनन आयु के दौरान स्त्रीरोग संबंधी तमाम परेशानियों को ठीक करने के मामलों में क्रांति आई है. मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाएं जैसेकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी, ऐंडोमिट्रिओसिस ऐक्साइशन, ओवेरियन सिस्टेक्टोमी, मायोमेक्टोमी और ट्यूबल रिवर्सल से मरीजों को ओपन सर्जरी की तुलना में काफी लाभ पहुंचा है.तेजी से रिकवरी, कम निशान और बेहतर प्रजनन रिजल्ट के चलते लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से स्त्रीरोगों से पीडि़त महिलाओं के लिए आशा की किरण मिली है. तकनीक भी लगातार बढ़ रही है, जिस से यह उम्मीद की जा रही है कि लैप्रोस्कोपिक तकनीक आगे और भी विकसित होगी जिस से और बेहतर रिजल्ट प्राप्त होंगेऔर महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हैल्थ में सुधार आएगा.

मेरी शादी होने वाली है घर का काम और शौपिंग मैं ही कर रहीं हूं, ऐसे में चिड़चिड़ी हो गई हूं, मैं क्या करूं?

सवाल

2 महीनों में मेरी शादी होने वाली है और घर में अभी बहुत सारी तैयारियां बाकी हैं. दरअसल, घर में लोग कम होने के कारण मुझे सभी कामों में हाथ बंटाना पड़ता है और शादी की शौपिंग भी खुद ही करनी पड़ती है. ऐसे में आराम का वक्त ही नहीं मिलता है, मैं हर वक्त तनाव महसूस करती हूं, चिड़चिड़ी भी हो गई हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

शादी पास आने तक होने वाली दुलहन अकसर तनावग्रस्त महसूस करने लगती है. इस के कारण अलगअलग होते हैं लेकिन इन्हें सम?ाना थोड़ा मुश्किल होता है. हालांकि आप को घर के कामों में हाथ बंटाना पड़ता है. इस का मतलब यह नहीं है कि बिलकुल आराम नहीं करेंगी. शादी के तनाव भरे माहौल में खुद के लिए वक्त अवश्य निकालें. काम के साथ आराम करेंगी तो चिड़चिड़ेपन से भी छुटकारा मिलेगी. लोगों के साथ मिल कर थोड़ी हंसीठिठोली करें तो मन शांत और खुश रहेगा.

रात को जल्दी सो जाएं और 7-8 घंटों की नींद लें. सोने से पहले कुनकुने पानी से नहाएं और फिर सरसों का तेल गरम कर के हाथपैरों की मालिश करें. इस के अलावा हलके हाथों से स्कैल्प की भी मसाज करें. इस से दिनभर की थकान दूर होगी और नींद भी अच्छी आएगी. अच्छा खाएं और खूब पानी पीएं.

-डाक्टर गौरव गुप्ता

साइकोलौजिस्ट, डाइरैक्टर,

तुलसी हैल्थकेयर

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आशीर्वाद- भाग 2 : क्यों टूट गए मेनका के सारे सपने

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. तुम पता नहीं क्यों बारबार मुझे अपने गुरुजी के पास ले जाना चाहते हो जबकि मैं किसी गुरुवुरु के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. अखबारों में और टैलीविजन पर आएदिन अनेक गुरुओं की करतूतों का भंडाफोड़ होता रहता?है,’’ मेनका बोली.

‘‘सभी गुरु एकजैसे नहीं होते. आज मैं ने जब गुरुजी से फोन पर कहा कि आप के दर्शन करना चाहता हूं तो उन्होंने कहा कि मेनका को भी साथ लाना. हम उसे भी आशीर्वाद देना चाहते हैं.’’

‘‘मुझे किसी आशीर्वाद की जरूरत नहीं है. तुम ही चले जाना.’’

‘‘मैं ने गुरुजी को वचन दिया है कि तुम्हें जरूर ले कर आऊंगा. तुम्हें मेरी कसम मेनका, तुम्हें मेरे साथ चलना होगा. अगर इस बार भी तुम मेरे साथ नहीं गईं तो मैं वहीं गंगा में डूब जाऊंगा,’’ अमित ने अपना फैसला सुनाया.

यह सुन कर मेनका कांप कर रह गई. वह जानती थी कि अमित गुरुजी के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुका है. उस पर गुरुजी का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. वह भावुक भी है. अगर वह साथ न गई तो हो सकता है कि गुरुजी अमित को इतना बेइज्जत कर दें कि उस के सामने डूब कर मरने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न बचे.

मेनका को मजबूरी में कहना पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो… मैं तुम्हारे साथ हरिद्वार चलूंगी.’’

अमित के चेहरे पर मुसकान फैल गई, ‘‘यह हुई न बात. मेनका, तुम्हें गुरुजी से मिल कर बहुत अच्छा लगेगा. वहां मुझे, तुम्हें और पिंकी को आशीर्वाद मिलेगा.’’

मेनका ने कोई जवाब नहीं दिया.

एक हफ्ते बाद अमित मेनका और पिंकी के साथ हरिद्वार जा पहुंचा. रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर उस ने एक आटोरिकशा किया और गुरुजी के आश्रम जा पहुंचा. शिष्यों ने उन के लिए एक कमरा खोल दिया.

सामान रख कर अमित ने मेनका से कहा, ‘‘कुछ देर आराम कर लेते हैं. शाम को गुरुजी से मिलेंगे और आरती देखेंगे. 2-3 दिन हरिद्वारऋषिकेश घूमेंगे.’’

शाम को तकरीबन 6 बजे अमित मेनका व पिंकी के साथ गुरुजी के कमरे के बाहर इंतजार में बैठ गया. कुछ देर बाद शिष्य ने उन को कमरे में भेजा.

कमरे में पहुंचते ही अमित ने हाथ जोड़ कर गुरुजी के चरणों में सिर रख दिया. मेनका ने भी चरण छू कर प्रणाम किया.

‘‘सदा सुखी रहो, सौभाग्यवती रहो,’’ गुरुजी ने आशीर्वाद दिया, ‘‘तुम्हारे घर में अपार सुख और वैभव आ रहा?है मेनका. तुम्हें जल्दी पुत्र रत्न भी प्राप्त होगा.

‘‘यह तुम्हारा पति अमित बहुत भोला और सीधासादा सच्चा इनसान है.’’

मेनका कुछ नहीं बोली.

गुरुजी ने मेनका की ओर देखते हुए कहा, ‘‘शाम की आरती में जरूर शामिल होना.’’

‘‘जी गुरुजी,’’ अमित ने तुरंत जवाब दिया.

शाम को साढ़े 7 बजे आश्रम के मंदिर में खूब जोरशोर से आरती हुई. गुरुजी और शिष्य आरती में लीन थे.

प्रसाद ले कर कमरे में लौट कर अमित ने कहा, ‘‘मुझे तो यहां आ कर बहुत अच्छा लगता है मेनका. तुम्हें कैसा लगा?’’

‘‘ठीक है.’’

कुछ देर बाद एक शिष्य ने आ कर कहा, ‘‘गुरुजी मेनका को बुला रहे हैं.’’

‘‘अभी आ रही है,’’ अमित बोला.

‘‘जाओ मेनका. लगता है, गुरुजी तुम्हें कुछ खास आशीर्वाद देना चाहते हैं.’’

‘‘मैं अकेली नहीं जाऊंगी,’’ मेनका ने कहा.

‘‘अरे मेनका, हम तो भाग्यशाली हैं. गुरुजी हमें बुला कर दर्शन और आशीर्वाद दे रहे हैं. बहुत से लोग तो इन से मिलने को तरसते रहते हैं. जाओ, देर न करो. पिंकी यहीं है मेरे पास,’’ अमित ने कहा.

मेनका को अकेले ही जाना पड़ा. वह धड़कते दिल से नमस्कार कर गुरुजी के सामने बैठ गई.

तख्त पर बैठे हुए गुरुजी ने उस की ओर देख कर कहा, ‘‘मेनका, तुम्हारा भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. जरा अपना हाथ दिखाओ. हम देखना चाहते हैं कि तुम्हारा भाग्य क्या कह रहा है?’’

मेनका ने न चाहते हुए भी गुरुजी की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया. उस की कोमल हथेली पकड़ कर गुरुजी गंभीर मुद्रा में खो गए.

मेनका के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. उसे यह सब जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था.

‘‘देखो मेनका, जब तक अमित तुम्हारे पास है तुम्हें बहुत सुख मिलेगा, पर…’’ कहतेकहते गुरुजी रुक गए.

‘‘लेकिन क्या गुरुजी…?’’ मेनका चौंकी.

‘‘अमित ज्यादा दिनों तक तुम्हारी जिंदगी में नहीं रहेगा. वह तुम्हारी जिंदगी से काफी दूर निकल जाएगा. बिना पति के पत्नी की हालत कटी पतंग की तरह होती है. यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो. मुझे अमित और तुम्हारे बीच के संबंध के बारे में पूरी जानकारी है. जो तुम चाहती हो, वह नहीं चाहता.’’

‘‘गुरुजी, इस में गलती पर कौन है?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘गलती पर कोई नहीं है. अपनेअपने सोचने का ढंग है. मैं तुम्हारे मन की हालत समझ रहा हूं. तुम एक प्यासी नदी की तरह हो मेनका. तुम सुंदर ही नहीं, बहुत सुंदर हो, पर तुम्हारे रूप का असर अमित पर जरा भी नहीं पड़ रहा है. अमित इस समय मेरे प्रभाव में है. अगर मैं चाहूं तो वह कभी भी सबकुछ छोड़ कर मेरी शरण में आ सकता है,’’ गुरुजी ने मेनका की ओर देखते हुए कहा.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘मेनका, तुम जितनी सुंदर हो, अमित उतना ही भोला है. वह तुम्हारी इच्छाओं को आज तक समझ नहीं पाया. तुम्हारा यह सुंदर रूप देख कर मेरी प्यास बढ़ गई है. मैं भी एक प्यासा सागर हूं,’’ कहते हुए गुरुजी ने मेनका की हथेली चूमनी चाही.

मेनका को लगा, जैसे उस के शरीर में कोई बिच्छू डंक मार देना चाहता है. उस ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप? यहां बुला कर आप ऐसी हरकतें करते हैं क्या?’’

‘‘मेनका, तुम्हें मेरी बात माननी होगी, नहीं तो तुम्हारा अमित तुम्हें छोड़ कर मेरी शरण में आ जाएगा. उस के बिना क्या तुम अकेली रह लोगी?’’

‘‘मैं अकेली रह लूंगी या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन मैं आप की असलियत जान चुकी हूं. इस देश में आप की तरह अनेक ढोंगी व पाखंडी गुरु हैं जिन के बारे में अखबारों में छपता रहता है.

‘‘अमित भोला है, पर मैं नहीं. मैं तो यहां आना ही नहीं चाहती थी. मुझे तो अमित की कसम के सामने मजबूर होना पड़ा. अब मैं आप के इस आश्रम में नहीं रहूंगी,’’ मेनका ने गुस्से में कहा.

यह सुनते ही गुरुजी खिलखिला कर हंस पड़े. मेनका हैरान सी गुरुजी की ओर देखती रह गई.

‘‘सचमुच तुम बहुत समझदार हो मेनका, तुम भोली नहीं हो. मैं तो तुम्हारा इम्तिहान ले रहा था. मैं यह देखना चाह रहा था कि तुम कितने पानी में हो. अब तुम जा सकती हो,’’ गुरुजी ने मेनका की ओर देखते हुए कहा.

मेनका बाहर निकली और तेजी से कमरे में लौट आई. आते ही मेनका ने कहा, ‘‘अब हम यहां नहीं रहेंगे.’’

‘‘क्यों, क्या बात हुई?’’ अमित ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘यह तुम्हारे गुरुजी भी उन ढोंगी बाबाओं की तरह हैं जो पकड़े जा रहे हैं. असलियत खुल जाने पर जिन की जगह आश्रम में नहीं, जेल में होती है. कई गुरु जेल में हैं. देखना, किसी न किसी दिन तुम्हारा यह ढोंगी गुरु भी जरूर पकड़ा जाएगा.’’

‘‘क्या हुआ? कुछ बताओ तो सही? तुम तो गुरुजी के पास आशीर्वाद लेने गई थीं, फिर क्या हो गया जो तुम गुरुजी के लिए ऐसे शब्द बोल रही हो?’’

‘‘मैं तो पहले ही यहां आने के लिए मना कर रही थी. पर तुम्हारी कसम ने मुझे मजबूर कर दिया,’’ कहते हुए मेनका ने पूरी घटना सुना दी.

अमित कुछ कहने ही वाला था, तभी एक शिष्य ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘अमितजी, आप को गुरुजी बुला रहे हैं.’’

अमित शिष्य के साथ चल दिया.

मेनका धड़कते दिल से कमरे में बैठी रही. उस की आंखों के सामने बारबार गुरुजी का चेहरा और वह सीन याद आ रहा था, जब गुरुजी ने उस का हाथ पकड़ कर चूमना चाहा था. उस के मन में गुरुजी के प्रति नफरत भर उठी.

कुछ देर बाद अमित लौटा और बोल उठा, ‘‘मेनका, यह तुम ने अच्छा नहीं किया जो गुरुजी की बेइज्जती कर दी. गुरुजी ने तो तुम्हें आशीर्वाद देने के लिए बुलाया था लेकिन तुम ने गुरुजी की शान में ऐसी बातें कह दीं, जो नहीं कहनी चाहिए थीं. अब तुम्हें मेरे साथ चल कर गुरुजी से माफी मांगनी पड़ेगी.’’

यह सुन कर मेनका समझ गई कि गुरुजी ने अमित से झूठ बोल दिया है. वह बोली, ‘‘अमित, यहां आ कर तो मैं बेइज्जत हुई हूं. गुरुजी ने जो हरकत मेरे साथ की है, उस के बाद तो मैं ऐसे गुरु की शक्ल भी देखना नहीं चाहूंगी. माफी मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता है.’’

अमित का भी पारा ऊपर चढ़ने लगा. वह मेनका को घूरता हुआ बोला, ‘‘मेनका, मुझे गुस्सा न दिलाओ. मेरे गुरुजी झूठ नहीं बोलते. मेरे साथ चल कर तुम्हें माफी मांगनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे नहीं जाना तुम्हारे ढोंगी गुरु के पास.’’

अमित अपने गुस्से पर काबू न रख सका. उस ने एक जोरदार थप्पड़ मेनका के मुंह पर दे मारा और कहा, ‘‘मैं तुम्हारी शक्ल भी देखना नहीं चाहता…’’

‘‘मैं यहां से चली जाऊंगी अपनी बेटी को ले कर. आज की रात किसी होटल में रुक जाऊंगी. कल सुबह होते ही बस या टे्रन से वापस मेरठ चली जाऊंगी. तुम चाहे जितने दिन बाद आना.

‘‘देख लेना किसी न किसी दिन इस ढोंगी गुरु की पोल भी खुलेगी और यह भी जेल में पहुंचेगा.’’

मेनका ने एक बैग में अपने व पिंकी के कपड़े भरे और पिंकी को गोद में उठा कर आश्रम से बाहर निकल गई.

मेनका एक होटल में पहुंची और एक कमरा ले कर बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पड़ी.

आश्रम के कमरे में बैठे अमित को बारबार मेनका पर गुस्सा आ रहा था. मेनका ने गुरुजी की बेइज्जती कर दी. वह माफी मांगने भी नहीं गई. वह बहुत हठी है. न जाने खुद को क्या समझती है वह. चली जाएगी जहां जाना होगा, वह तो अब उस से कभी बात नहीं करेगा. उसे ऐसी पत्नी नहीं चाहिए जो गुरुजी और उस की बात ही न सुने. इस के लिए उसे तलाक भी लेना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेगा.

एकाधिकार: क्या दूर हुआ मोहिनी की जिंदगी का खालीपन

मोहिनी को लगने लगा था, उस के घर की छत पर टंगा यह आसमान का टुकड़ा केवल उसी की धरोहर है. बचपन से ले कर आज तक वह उस के साथ अपना सुखदुख बांटती आई है. गुडि़यों से खेलना बंद कर जब वह कालेज की किताबों तक पहुंची तो यह आसमान का टुकड़ा उस के साथसाथ चलता रहा. फिर जब चाचाचाची ने उस का हाथ किसी अजनबी के हाथ में थमा कर उसे विदा कर दिया, तब भी यह आसमान का नन्हा टुकड़ा चोरीचोरी उस के साथ चला आया. तब मोहिनी को लगा कि वह ससुराल अकेली नहीं आई, कोई है उस के साथ. उस भरेपूरे परिवार में पति के प्यार की संपूर्ण अधिकारिणी होने पर भी उस के हृदय का कोई कोना इन सारे सामाजिक बंधनों से परे नितांत खाली था और उसे वह अपनी कल्पना के रंगों से इच्छानुसार सजाती रहती थी.

मोहिनी के मातापिता बचपन में ही चल बसे थे. मां की तो उसे याद भी न थी. हां, पिता की कोई धुंधली सी आकृति उस के अवचेतन मन पर कभीकभी उभरती थी. किसी जमाने के पुराने रईसों का उन का परिवार था, जिस में बड़े चाचा के बच्चों के साथ पलती, बढ़ती मोहिनी को यों तो कोई अभाव न था किंतु जब कभी कोई रिश्तेदार उसे ‘बेचारी’ कह कर प्यार करने का उपक्रम करता तो वह छिटक कर दूर जा खड़ी होती और सोचती, ‘वह ‘बेचारी’ क्यों है? बिंदु व मीनू को तो कोई बेचारी नहीं कहता.’ एक दिन उस ने बड़े चाचा के सम्मुख आखिर अपना प्रश्न रख दिया, ‘पिताजी, मैं बेचारी क्यों हूं?’ इस अचानक किए गए भोले प्रश्न पर श्यामलाल अपनी छोटी सी मासूम भतीजी का मुंह ताकते रह गए. उन्होंने उसे पास खींच कर अपने से चिपटा लिया. अपने छोटे भाई की याद में उन की आंखें भर आई थीं, जिस से वे बेहद प्यार करते थे. उस की एकमात्र बेटी को उस की अमानत मान कर भरसक लाड़प्यार से पाल रहे थे.

यों तो चाची भी स्नेहमयी महिला थीं, किंतु जब वे अपनी दोनों बेटियों को अगलबगल लिटा कर अपने साथ सुलातीं तो दूर खड़ी मोहिनी उदास आंखों से उन का मुंह देखती, उस पर आतेजाते रिश्तेदार मोहिनी के मुंह पर ही कह जाते, ‘अभी तो इस का बोझा भी उतारना होगा, बिन मांबाप की बेटी ब्याहना आसान है क्या?’ और टुकुरटुकुर ताकती वह उन रिश्तेदारों के पास भी न फटकती. अपनी किताबें समेट कर मोहिनी छत पर जा बैठती. नन्हीमुन्नी प्यारीप्यारी कविताएं लिखती, चित्र बनाती, जिन में बादलों के पीछे छिपे उस के बाबूजी और मां उसे प्यार से देख रहे होते. इस तरह अपनी कल्पनाओं के जाल में उलझी, सिमटी मोहिनी बड़ी होती रही. वह अधिक सुंदर तो न थी किंतु उस के भोलेपन का आकर्षण अनायास ही लोगों को अपनी ओर खींच लेता था. बड़ीबड़ी आंखों में मानो सागर लहराता था. फिर एक दिन श्यामलाल के पुराने मित्र लाला हरदयाल ने अपने छोटे भाई के लिए मोहिनी को मांग ही लिया. यों तो शहर में लाला हरदयाल की गिनती भी पुराने रईसों में होती थी, किंतु अब वह सब शानोशौकत समाप्त हो चुकी थी.

उन का काफी बड़ा परिवार था. 5 छोटे भाई थे, जिन में से 2 अभी पढ़ ही रहे थे. मां थीं, अपनी पत्नी और 3 बच्चे थे. पिता का निधन हुए काफी समय हो चुका था और नरेंद्र के साथ मिल कर वे इस सारे परिवार के खर्चे का इंतजाम करते थे. नरेंद्र सभी भाइयों में सब से सीधा और आज्ञाकारी था. लाला हरदयाल उस के लिए किसी ऐसी लड़की को घर में लाना चाहते थे जो उन के परिवार के इस संगठन को बिखरने न दे. हरदयाल की पत्नी और मां में बनती न थी. काफी समय से वे किसी ऐसी सुलझी हुई, पढ़ीलिखी लड़की की तलाश में थे जो उन के घर के इस दमघोंटू वातावरण को बदल सके. श्यामलाल के यहां आतेजाते वे मोहिनी को अपने छोटे भाई नरेंद्र के लिए पसंद कर बैठे. श्यामलाल ने नरेंद्र को बचपन से देखा था, बेहद सीधा लड़का था, या यों कहिए कि कुछ हद तक दब्बू भी था. किंतु उस की नौकरी अच्छी थी. मोहिनी को उस घर में कोई कष्ट न होगा, यह श्यामलाल जानते थे. सो, पत्नी से पूछ उन्होंने विवाह के लिए हां कर दी. मोहिनी से पूछने की या उसे नरेंद्र से मिलवाने की आवश्यकता नहीं समझी गई, क्योंकि उस परिवार में ऐसी परंपरा ही न थी. बिंदु और मीनू के विवाह में भी उन की सहमति नहीं ली गई थी. मोहिनी और नरेंद्र का विवाह अत्यंत सीधेसादे ढंग से संपन्न हो गया. घर के दरवाजे पर बरात पहुंचते ही शोर मच गया, ‘‘बहू आ गई…बहू आ गई.’’

‘‘मांजी कहां हैं, भाभी?’’ पहली बार मोहिनी ने नरेंद्र के मुंह से कोई बात सुनी.

‘‘वे अंदर कमरे में हैं, अभी आएंगी. तुम दोनों थोड़ा सुस्ता लो. मैं चाय भेजती हूं,’’ और जेठानी चली गईं. थोड़ी ही देर में चाय की ट्रे उठाए 3-4 लड़कियों ने अंदर आ कर मोहिनी को घेर लिया. शीघ्र ही 2-3 लड़कियां और भी आ गईं. किसी के हाथ में नमकीन की प्लेट थी तो किसी के हाथ में मिठाई की. नई बहू को सब से पहले देखने का चाव सभी को था. नरेंद्र इस शैतानमंडली को देख कर घबरा गया. वह चाय का प्याला हाथ में थामे बाहर खिसक लिया.

‘‘भाभी, हमारे भैया कैसे लगे?’’ एक लड़की ने पूछा.

‘‘भाभी, तुम्हें गाना आता है?’’ दूसरी बोली.

‘‘अरे भाभी, हम सब तो नरेंद्र भैया से छोटी हैं, हम से क्यों शरमाती हो?’’ और भी इसी तरह के न जाने कितने सवाल वे करती जा रही थीं.

मोहिनी इन सवालों की बौछार से घबरा उठी. फिर सोचने लगी, ‘नरेंद्र की मांजी कहां हैं? क्या वे उस से मिलेंगी नहीं?’

चाय का प्याला थाम कर उस ने धीरे से सिर उठा कर उन सभी लड़कियों की ओर देखा, जिन के भोले चेहरों पर अपनत्व झलक रहा था किंतु आंखें शरारत से बाज नहीं आ रही थीं. मोहिनी कुछ सहज हुई और आखिर पूछ ही बैठी, ‘‘मांजी कहां हैं?’’

‘‘कौन, चाची? अरे, वे तो अभी तुम्हारे पास नहीं आएंगी. शगुन के सारे काम तो बड़ी भाभी ही करेंगी.’’ मोहिनी कुछ ठीक से समझ न पाई, इसलिए चुप ही रही. चुपचाप चाय पीती वह सोच रही थी, क्या वह अंदर जा कर मांजी से नहीं मिल सकती.

तभी जेठानी अंदर आ गईं, ‘‘चलो मोहिनी, मांजी के पांव छू लो.’’ मोहिनी उठ खड़ी हुई. सास के पास पहुंच कर उस ने बड़ी श्रद्धा से झुक कर उन के पांव छुए और इस इंतजार में झुकी रही कि अभी वे उसे खींच कर अपने हृदय से लगा लेंगी, किंतु ऐसा कुछ भी न हुआ.

‘‘सदा सुखी रहो,’’ कहते हुए उन्होंने उस के सिर पर हाथ रख दिया और वहां से चली गईं.

ममता की प्यासी मोहिनी को ऐसा लगा जैसे उस के सामने से प्यार का ठंडा अमृत कलश ही हटा लिया गया हो.

फूलों से सजे कमरे में रात्रि के समय नरेंद्र व मोहिनी अकेले थे. यों तो नरेंद्र स्वभाव से ही शर्मीला था, किंतु उस रात वह भी सूरमा बन बैठा. हिचकिचाती, अपनेआप में सिमटी मोहिनी को उस ने जबरन अपनी बांहों में समेट लिया.

जीवनभर के विश्वासों की नींव शायद इसी परस्पर निकटता की आधारशिला पर टिकी होती है. इसीलिए सुबह होतेहोते दोनों आपस में इस तरह घुलमिल कर बातें कर रहे थे मानो वर्षों से एकदूसरे को जानते हों. मोहिनी नरेंद्र के मन को भा गई थी. दसरे दिन सुबह सभी मेहमान जाने को हो रहे थे. रसोई में नाश्ते की व्यवस्था हो रही थी. शायद उसे भी काम में हाथ बंटाना चाहिए, यही सोच कर मोहिनी भी रसोई के दरवाजे पर जा खड़ी हुई. जेठानी प्यालों में चाय छान रही थीं और मां पूरियां उतार रही थीं.

मोहिनी ने धीरे से चकला अपनी ओर खिसका कर सास के हाथ से बेलन ले लिया और ‘मैं बेलती हूं, मांजी’ कह कर पूरियां बेलने लगी. उस की बेली 4-6 पूरियां उतारने के बाद ही सास धीरे से बोल उठीं, ‘‘नरेंद्र की बहू, पूरियां मोटी हो रही हैं…रहने दो, मैं ही कर लूंगी.’’ मोहिनी सहम कर बाहर आ गई. रात को मोहिनी ने नरेंद्र के कंधे पर सिर टिका कर 2 दिन से अपने हृदय में मथ रहे प्रश्न को पूछ ही लिया, ‘‘मांजी मुझे पसंद नहीं करतीं क्या?’’

नरेंद्र इस बेतुके, किंतु बिना किसी बनावट के किए गए सीधे प्रश्न से चौंक उठा, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘मांजी मुझ से प्यार से बोलती नहीं, न ही मुझे अपने से चिपटा कर प्यार किया. भाभी ने तो प्यार किया लेकिन मांजी ने नहीं.’’

मोहिनी के दोनों हाथ थाम कर वह बोला, ‘‘मां को समझने में तुम्हें अभी कुछ समय लगेगा. वैधव्य के सूनेपन ने ही उन्हें रूखा बना दिया है, उस पर भाभी के साथ कुछ न कुछ खटपट चलती ही रहती है. इसी कारण मांजी अंतर्मुखी हो गई हैं. किसी से अधिक बोलती नहीं. कुछ दिन तुम्हारे साथ रह कर शायद वे बदल जाएं.’’

‘‘मैं पूरा यत्न करूंगी,’’ और अपनेआप में हलका महसूस करते हुए मोहिनी नरेंद्र से सट कर सो गई. दूसरे दिन सुबह नरेंद्र के बड़े भाई एवं भाभी भी बच्चों सहित लौट गए. नरेंद्र से छोटे दोनों भाई अपनीअपनी नौकरियों पर वापस चले गए थे और 2 सब से छोटे भाई, जो नरेंद्र के पास रह कर पढ़ाई करते थे, अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए.

नरेंद्र ने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली थी. मोहिनी सोच रही थी कि शायद वे दोनों कहीं बाहर जाएंगे. किंतु नरेंद्र ने उस से बिना कुछ छिपाए अपने मन की बात उस के सामने रख दी, ‘‘मांजी और छोटे भाइयों को अकेला छोड़ कर हमारा घूमने जाना उचित नहीं.’’

मोहिनी खुशीखुशी पति की बात मान गई थी. उसे तो वैसे भी अपने दोनों छोटे देवर बहुत प्यारे लगते थे. मायके में बहनें तो थीं, लेकिन छोटे भाई नहीं. हृदय के किसी कोने में छिपा यह अभाव भी मानो पूरा होने को था. किंतु वे दोनों तो उस से इस कदर शरमाते थे कि दूरदूर से केवल देखते भर रहते थे. कभी मोहिनी से आंखें मिल जातीं तो शरमा कर मुंह छिपा लेते. तब मोहिनी हंस कर रह जाती और सोचती, ‘कभी तो उस से खुलेंगे.’ एक दिन मोहिनी को अवसर मिल ही गया. दोपहर का समय था. नरेंद्र किसी काम से बाहर गए हुए थे और मां पड़ोस में किसी से मिलने गई हुई थीं. अचानक दोनों देवर रमेश और सुरेश किताबें उठाए स्कूल से वापस आ गए.

‘‘मां, जल्दी से खाना दो, स्कूल में छुट्टी हो गई है. अब हम मैच खेलने जा रहे हैं.’’ किताबें पटक कर दोनों रसोई में आ धमके, किंतु वहां मां को न पा दोनों पलटे तो दरवाजे पर भाभी खड़ी थीं, हंसती, मुसकराती.

‘‘मैं खाना दे दूं?’’ मोहिनी ने हंस कर पूछा तो दोनों सकुचा कर बोले, ‘‘नहीं, मां ही दे देंगी, वे कहां गई हैं?’’

‘‘पड़ोस में किसी से मिलने गई हैं. उन्हें तो मालूम नहीं था कि आप दोनों आने वाले हैं. चलिए, मैं गरमगरम परांठे सेंक देती हूं.’’

मोहिनी ने रसोई में रखी छोटी सी मेज पर प्लेटें लगा दीं. सुबहसुबह जल्दी से सब यहीं इसी मेज पर खापी कर भागते थे. मोहिनी ने फ्रिज से सब्जी निकाल कर गरम की. कटा हुआ प्याज, हरीमिर्च, अचार सबकुछ मेज पर रखा. फ्रिज में दही दिखाई दिया तो उस का रायता भी बना दिया. ये सारी तैयारी देख रमेश व सुरेश कूद कर मेज के पास आ धमके. जल्दीजल्दी गरम परांठे उतार कर देती भाभी से खाना खातेखाते उन की अच्छीखासी दोस्ती भी हो गई. स्कूल के दोस्तों का हाल, मैच में किस की टीम अच्छी है, कौन सा टीचर अच्छा है, कौन नहीं आदि सब खबरें मोहिनी को मिल गईं. उस ने उन्हें अपने मायके के किस्से सुनाए. बिंदु और मीनू के साथ होने वाले छोटेमोटे झगड़े और फिर छत पर बैठ कर उस का कविताएं लिखना, सबकुछ सुरेश, रमेश को पता लग गया. ‘‘अरे वाह भाभी, तुम कविता लिखती हो? तब तो तुम हमें हिंदी भी पढ़ा सकती हो?’’ सुरेश उत्साहित हो कर बोला.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. अपनी किताबें मुझे दिखाना. हिंदी तो मेरा प्रिय विषय है. कालेज में तो…’’ और मोहिनी बोलतेबोलते सहसा रुक गई क्योंकि चेहरे पर अजीब सा भाव लिए मांजी दरवाजे के पास खड़ी थीं. मोहिनी से कुछ न कह वे अपने दोनों बेटों से बोलीं, ‘‘तुम दोनों मेरे आने तक रुक नहीं सकते थे.’’

रमेश और सुरेश को तो मानो सांप ही सूंघ गया. मां के चेहरे का यह कठोर भाव उन के लिए नया था. भाभी से खाना मांग कर उन्होंने क्या गलती कर दी है, समझ न सके. हाथ का कौर हाथ में ही पकड़े खामोश रह गए. पल दो पल तो मोहिनी भी चुप ही रही, फिर हौले से बोली, ‘‘ये दोनों तो आप ही को ढूंढ़ रहे थे. आप थीं नहीं तो मैं ने सोचा, मैं ही खिला दूं.’’

‘‘क्यों? क्या घर में फल, डबलरोटी… कुछ भी नहीं था जो परांठे सेंकने पड़े?’’ मां ने तल्खी से पूछा.

‘‘ऐसा नहीं है मांजी. मैं ने सोचा बच्चे हैं, जोर की भूख लगी होगी, इसलिए बना दिए.’’

‘‘तुम्हारे बच्चे तो नहीं हैं न? मैं खुद ही निबट लेती आ कर,’’ अत्यंत निर्ममतापूर्वक कही गई सास की यह बात मोहिनी को मानो अंदर तक चीर गई, ‘क्या रमेश, सुरेश उस के कुछ नहीं लगते? नरेंद्र के छोटे भाइयों को प्यार करने का क्या उसे कोई हक नहीं? उन पर केवल मां का ही एकाधिकार है क्या? फिर कल जब ये दोनों भी बड़े हो जाएंगे तो मांजी क्या करेंगी? विवाह तो इन के भी होंगे ही, फिर…?’

रमेश व सुरेश न जाने कब के अपने कमरों में जा दुबके थे और मांजी अपनी तीखी दृष्टि के पैने चुभते बाणों से मोहिनी का हृदय छलनी कर अपने कमरे में जा बैठी थीं. एक अजीब सा तनाव पूरे घर में छा गया था. मोहिनी की आंखें छलछला आईं. उसे याद आया अपना मायका, जहां वह किसी पक्षी की भांति स्वतंत्र थी, जहां उस का अपना आसमान था, जिस के साथ अपने छोटेमोटे सुखदुख बांट कर हलकी हो जाती थी. मोहिनी को लगा, अब भी उस के साथसाथ चल कर आया आसमान का वह नन्हा टुकड़ा उस का साथी है, जो उसे हाथ हिलाहिला कर ऊपर बुला रहा है. वह नरेंद्र की अलमारी में कुछ ढूंढ़ने लगी. एक सादी कौपी और पैन उसे मिल ही गया. जल्दीजल्दी धूलभरी सीढि़यां चढ़ती हुई वह छत पर जा पहुंची. कैसी शांति थी वहां, मानो किसी घुटनभरी कैद से मुक्ति मिली हो. मन किसी पक्षी की भांति बहती हवा के साथ उड़ने लगा. धूप छत से अभीअभी गई थी. पूरा माहौल गुनगुना सा था. वहीं जीने की दीवार से पीठ टिका कर मोहिनी बैठ गई और कौपी खोल कर कोई प्यारी सी कविता लिखने की कोशिश करने लगी.

विचारों में उलझी मोहिनी के सामने सास का एक नया ही रूप उभर कर आया था. उसे लगा, व्यर्थ ही वह मांजी से अपने लिए प्यार की आशा लगाए बैठी थी. इन के प्यार का दायरा तो इतना सीमित, संकुचित है कि उस में उस के लिए जगह बन ही नहीं सकती और जैसेजैसे उन के बेटों के विवाह  होते जाएंगे, यह दायरा और भी सीमित होता जाएगा, इतना सीमित कि उस में अकेली मांजी ही बचेंगी. मोहिनी के मुंह में न जाने कैसी कड़वाहट सी घुल गई. उस का हृदय वितृष्णा से भर उठा. जीवन का एक नया ही पक्ष उस ने देखा था. शायद नरेंद्र भी 23 वर्षों में अपनी मां को इतना न जान पाए होंगे जितना इन कुछ पलों में मोहिनी जान गई. साथ ही, वह यह भी जान गई कि प्यार यदि बांटा न जाए तो कितना स्वार्थी हो सकता है. मोहिनी ने मन ही मन एक निश्चय किया कि वह प्यार को इन संकुचित सीमाओं में कैद नहीं करेगी. मांजी को बदलना ही होगा. प्यार के इस सुंदर कोमल रूप से उन्हें परिचित कराना ही होगा.

प्रायश्चित्त: क्या शिशिर को मिला सुकून

शिखा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. मन में तरहतरह की आशंकाएं घुमड़ रही थीं. उस की बेचैन निगाहें बारबार घड़ी की ओर जा टिकतीं. रात का 1 बज चुका था, कहां रह गए शिशिर?

दोपहर में इंदौर से आए फोन ने उसे लगभग चेतना शून्य ही कर दिया था. बड़ी भाभी ने रुंधे गले से बमुश्किल इतना बताया कि तुम्हारे भैया को हार्ट अटैक हुआ है… आईसीयू में भरती करा दिया है. डाक्टरों ने तुरंत बाईपास सर्जरी की आवश्यकता बताई है, जिस पर करीब 2 लाख रुपए खर्च आएगा.

भाभी इस बात को ले कर काफी व्यथित थीं कि इस समय इतने रुपए की व्यवस्था कहां से और कैसे हो सकेगी. शिखा ने भाभी को हौसला बनाए रखने की सलाह दी व शीघ्र इंदौर पहुंचने का आश्वासन दिया.

कुछ संयत हो कर शिखा ने सब से पहले शिशिर को फोन कर के घटना की जानकारी दी. शिशिर की व्यस्तता से वह भलीभांति परिचित थी इसलिए अकेले ही भैया के पास जाने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन शिशिर का अब तक घर न पहुंचना अनेक आशंकाओं को जन्म दे रहा था. एकएक मिनट घंटों के समान बीत रहा?था. इंतजार के इन पलों में उस के मानस पटल पर वह कभी न भूलने वाली घटना चलचित्र की भांति जीवंत हो उठी.

शिखा के विवाह से पहले की बात है. मां को ब्रेन हैमरेज हो गया था. काफी इलाज के बाद वह ठीक तो हुईं पर अकसर बीमार रहने लगीं. शिखा पर पढ़ाई के साथसाथ घरगृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी भी आ पड़ी. कभी पीएच.डी. को अपना ध्येय बना चुकी शिखा ने पारिवारिक कर्तव्यों की पूर्ति के लिए अपने लक्ष्य को तिलांजलि दे दी और एक स्थानीय स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली.

भैया तो नौकरी के सिलसिले में पहले ही इंदौर शिफ्ट हो चुके थे. छोटे भाईबहन और मां की देखभाल की जिम्मेदारी बखूबी निबाहते हुए वह पूरी तरह परिवार को समर्पित हो गई.

समय पंख लगाए उड़ रहा था. मां को रहरह कर उस के विवाह की चिंता सताए जाती थी. शिखा के सद्गुणों व घरेलू कार्यों में निपुणता की प्रशंसा सुन कर कई प्रस्ताव आ रहे थे किंतु शिखा इस शहर से दूर शादी करने को कतई तैयार नहीं हुई. उस का अपना वजनदार तर्क था कि दूर की ससुराल से वह जरूरत पड़ने पर मां के पास जल्दी नहीं आ सकेगी.

आखिर उस की इच्छानुसार इसी शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार में उस का विवाह हो गया. नए परिवार में नई जिम्मेदारियों ने शिखा का स्वागत किया. नौकरी व परिवार के बीच सामंजस्य बिठाती हुई शिखा की व्यस्तता दिनोंदिन बढ़ती गई.

पहले हफ्ते 10 दिन में मायके का चक्कर लग जाता था पर बिटिया के जन्म के बाद धीरेधीरे यह अवधि बढ़ने लगी. फिर?भी समय निकाल कर कभीकभी टेलीफोन पर मां का हालचाल पूछ लिया करती.

एक दिन शिखा स्कूल से घर लौटी ही थी कि छोटे भाई का फोन आ गया, ‘दीदी, मां की तबीयत बिगड़ गई है. डाक्टर ने चेकअप कर कुछ टेस्ट कराए हैं… रिपोर्ट देख कर पूरी दवा लिखेंगे.’

शिखा का मन मां से मिलने को व्याकुल हो उठा. शिशिर के आफिस में आडिट चल रहा था इसलिए वह रोज देर से घर लौट रहे थे. इधर गुडि़या को भी सुबह से बुखार था. उसे ले कर सर्दी के इस मौसम में कैसे घर से निकले, यह प्रश्न शिखा को दुविधा में डाल रहा था. रात को थकेमांदे लौटे शिशिर को उस ने मां की तबीयत खराब होने की बात बताई तो उन्होंने, ‘कल देखने चलेंगे,’ कह कर बात समाप्त कर दी.

अगला दिन भी नियमित दिनचर्या से कतई अलग नहीं था. फिर भी समय निकाल कर शिखा ने भाई से फोन पर मां के हालचाल पूछे और शाम को आने का वादा किया. शाम को शिशिर का फोन आ गया कि चीफ आडिटर आज ही काम समाप्त कर वापस जाना चाहते हैं अत: घर लौटने में देर हो जाएगी. शिखा मनमसोस कर रह गई लेकिन उसे यह जान कर तसल्ली हुई कि बड़े भैया आ गए हैं और मां को अस्पताल में भरती कराया जा रहा है.

सुबह आफिस के लिए निकलते हुए शिशिर ने कहा, ‘मैं आडिट रिपोर्ट डाक से भिजवा कर लंच तक वापस लौट आऊंगा… तुम तैयार रहना… मां को देखने अस्पताल चलेंगे.’ शिखा ने कोई जवाब नहीं दिया. पिछले 3 दिन से ये कोरे आश्वासन ही तो मिल रहे थे.

गुडि़या को सुबह की दवा दे कर शिखा उठी ही थी कि अचानक फोन की घंटी बजी. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल धड़क उठा. आशंका निर्मूल नहीं थी. ‘मां नहीं रहीं…’ ये शब्द पिघले शीशे की तरह उस के कानों में उतरते चले गए.

मातृशोक ने उस के हृदय को छलनी कर दिया. जिस मां की सेवा में कभी उस ने रातदिन एक कर दिया था, आज एक ही शहर में रहते हुए उन्हें अंतिम बार जीवित भी न देख सकी.

खबर मिलते ही शिशिर भी तुरंत घर लौट आए और दोनों अस्पताल जा पहुंचे. सभी का रोरो कर बुरा हाल था. भैया ने बताया कि आखिरी वक्त तक मां की आंखें बस, शिखा को ही तलाश रही थीं. गमगीन माहौल में शिशिर एक कोने मेें स्तब्ध से खड़े थे. उन्हें आत्मग्लानि हो रही थी कि अपनी व्यस्तता के कारण वह एक महत्त्वपूर्ण पारिवारिक दायित्व को नहीं निभा सके.

वक्त हर जख्म का मरहम है. ‘मां’ अतीत हो गईं किंतु एक टीस, शिखा और शिशिर के मन में हमेशा के लिए छोड़ गईं.

शिखा की वैचारिक तंद्रा टूटी. आज पुन: वही मंजर सामने था. उस के भैया जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे… क्या इस बार भी वही कहानी दोहराई जाएगी… नियति उस की राह में रोड़े अटका रही है या शिशिर को काम के अलावा किसी की परवा नहीं… क्या इस संकट की घड़ी में वह भैयाभाभी का संबल बन सकेगी…

तभी दरवाजे की घंटी बजी… शिखा ने बेसब्री से दरवाजा खोला. सामने शिशिर खड़े थे, चेहरे पर दिनभर की भागदौड़ के स्पष्ट निशान लिए. शिखा ने सोचा कि अभी कोई व्यस्तता का नया बहाना सुनने को मिलेगा जिस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार भी थी.

सोफे पर बैठते हुए शिशिर ने चुपचाप बैग खोला और 500 के नोटों की 4 गड्डियां उसे सौंपते हुए कहा, ‘‘सौरी शिखा… तुम्हारा फोन आने के बाद से ही आपरेशन के रुपए की व्यवस्था करने में जुट गया था. बैंक की एफडी तो दिन में तुड़वा ली थी, बाकी रुपयों की व्यवस्था दोस्तों से करने में इतनी रात हो गई… जल्दी तैयारी कर लो.. सुबह की ट्रेन से हम इंदौर जा रहे हैं.’’

शिखा हतप्रभ रह गई. उस के मन से संशय और अनिश्चय का कुहासा छंट गया. आज शिशिर ने वह कर दिखाया था जिस की उस ने उम्मीद भी नहीं की थी. वह कितना गलत समझ रही थी. उस की आंखों से अश्रुधार बहने लगी… इन आंसुओं ने वह फांस निकाल कर बाहर की, जो मां के निधन के वक्त से उस के हृदय में धंसी हुई थी.

शिशिर बेहद आत्मिक शांति का अनुभव कर रहे थे. शायद उन्होंने बरसों पहले हुई चूक का प्रायश्चित्त कर लिया था.

Anupama: बा से बदतमीजी करेगी डिंपल, वनराज देगा काव्या का साथ

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. शो के मेकर्स टीआरपी के लिए जदोजहद्द में लगे है. एक तरफ शो में रोमिल और अधिक के बीच 36 का आंकड़ा है. दूसरी ओर अधिक पाखी को अभी भी टॉर्चर कर रहा है. वहीं शाह हाउस में डिंपल का तमाश चल रहा है.

डिंपल पर भड़केगी बा

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में शाह हाउस में डिंपल अपने दोस्तों के साथ बैठी हुई होती है. तभी वह किचन में कुछ खाने का लेने जाती है, जहां पर बा उसे टोकती है. इस दौरान डिंपल भी चुप नहीं रहती और बा को खूब जवाब देती है.

दोनों के बीच बहस शुरू हो जाती है. आवाज सुनकर डिंपल की एक दोस्त किचन में आ जाती है, तो बा उस पर भड़क जाती है. बा बर्दास्त नहीं कर पाती कि डिंपल की दोस्त किचन में चप्पल पहनकर आई है.

 

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अस्पताल में भर्ती होगी काव्या

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि बा और डिंपल का झगड़ा देखकर वनराज वहां आ जाता है. वनराज की बाते सुनकर काव्या भी वहां आ जाती है. काव्या बा को शांत कराती है. काव्या जैसे ही बा को पानी पिलाती की है, तो डिंपल उस गिलास को गिराकर वहां से निकल जाती है. उसी गिलास की वजह से काव्या जमीन पर फिसलकर गिर जाती है. काव्या को दर्द में देखकर हर कोई परेशान हो जाता है. वनराज जल्दी से उसे अस्पताल लेकर जाता है। इसके बाद हर कोई डिंपल को ही कोसता है.

वनराज डॉक्टर्स पर गुस्सा करेगा

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि काव्या की बुरी हालत देख डिंपल घबरा जाती है और समर को कॉल करके अस्पताल जाने के लिए कहती है.

वहीं दूसरी ओर अनुपमा और अनुज भी अस्पताल पहुंचते है. इस बीच वनराज का गुस्सा डॉक्टर्स पर फूटता है. काव्या वनराज का ये रूप देखकर थोड़ा घबरा जाती है.  शो में आगे देखने को मिलेगा कि काव्या वनराज से पूछती है कि क्या तुम इस बच्चे को अपना रहे हो? तब वनराज उसे मना कर देता है. वह बोलता है कि वह सिर्फ उसका साथ दे रहा है. बच्चे को नहीं अपना सकता है.

ब्रेक-अप की अफवाहों के बीच फिर साथ दिखें मलायका अरोड़ा और अर्जुन कपूर

अर्जुन कपूर और मलायका अरोड़ा के ब्रेकअप की खबरें नई नहीं हैं. इस कपल की पहले भी ऐसी चीजों का सामना करना पड़ा है. दोनों एक बार फिर सुर्खियों में थे क्योंकि ऐसी अफवाहें थीं कि वे दोनों अलग हो गए हैं. ऐसी अटकलों पर विराम लगाते हुए रविवार दोपहर को मलायका और अर्जुन को लंच डेट पर देखा गया. मलायका ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक पोस्ट भी शेयर किया है जिसमें इशारा दिया गया है कि वह अर्जुन के साथ हैं.

बंद्रा में साथ नजर आए अर्जुन- मलायका

अर्जुन कपूर और मलायका अरोड़ा को मुंबई के एक रेस्तरां से एक साथ निकलते हुए देखा गया. इस आउटिंग के लिए, मलायका को वाइट आउटफिट में देखा गया, जबकि अर्जुन ने पूरी तरह से काली टी-शर्ट और जींस का कैज़ुअल लुक अपनाया. वहीं दोनो कपल ने चश्मे पहना है.

 

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मलायका अरोड़ा ने शेयर की स्टोरी

मलायका अरोड़ा ने अपने इंस्टाग्राम पर एक स्टोरी शेयर की थी. उस स्टोरी में रेस्तरां की मेज पर रखे अपने और प्रेमी अर्जुन कपूर के चश्मे की एक तस्वीर साझा की और इसे कैप्शन दिया, “सनी डेज़ फिर से यहां हैं…”

 

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कुशा कपिल का नाम सामने आया

बता दें कि ऐसी खबरें आ रही थीं कि अर्जुन और मलायका अलग हो गए हैं और अर्जुन अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और एक्टर कुशा कपिल को डेट कर रहे हैं. हालांकि, जैसा कि आज उनकी आउटिंग से साबित हुआ, अर्जुन कपूर और मलायका अरोड़ा एक साथ हैं और कुशा कपिला को उनकी कथित ब्रेकअप स्टोरी में घसीटे जाने से भी खुश नहीं थे.

क्या मलायका ने अर्जुन के करीबी को अनफॉलो किया

कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया था कि मलाइका ने अभिनेता के परिवार के सदस्यों को सोशल मीडिया पर अनफॉलो कर दिया है. बाद में मलायका ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक गुप्त नोट भी पोस्ट किया, जहां उन्होंने ‘बदलाव’ और अतीत की लालसा न होने का जिक्र किया.

 

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