family story in hindi
family story in hindi
“ऐसे कैसे अकेले ही निर्णय ले बैठा है शरत… अब वह अविवाहित नहीं, शादीशुदा है. पत्नी का भी बराबर का अधिकार है उस के जीवन में. जाना ही था तो संग ले कर जाए कामिनी को,” आशा बोल रही थी.
यों शरत और कामिनी की शादी को पूरे 3 साल हो चुके थे. उस के पति शरत ने भारत में नौकरी छोड़ दी और आस्ट्रेलिया में आगे शिक्षा प्राप्त करने हेतु अरजी दी थी जो स्वीकार हो गई थी. उसे अच्छाखासा वजीफा भी मिल रहा था. ऐसे में शरत यह मौका हाथ से जाने देने को बिलकुल तैयार न था. कामिनी यहां अकेली नहीं रहना चाहती थी, मगर खर्चों के कारण शरत के साथ जाना भी संभव नहीं था और यही कारण था दोनों में क्लेश का. कुछ दिन सोचविचार करने हेतु कामिनी मायके आ गई थी.
‘थोड़े दिन अलग रह कर, बिना भावनाओं को बीच में लाए सोचेंगे तो शायद सही निर्णय पर पहुंच पाएं,’ यह दोनों का मत था.
कामिनी नहीं चाहती थी कि मातापिता दोनों में से कोई भी उस की गृहस्थी के निर्णयों में दखल दें. वैसे भी पिता ओम चुपचाप हमेशा अपनी ही चलाते थे और हर मामले में आशा तिरस्कार सहती आ रही थी. वह इस बात को देखती और समझती रही थी और इसलिए उस ने दोनों को कुछ नहीं बताया. पिता एकदम उग्र हो उठेंगे, उसे मालूम था.
आखिर कई दिनों बाद कामिनी और शरत ने एकसाथ ओम व आशा को अपने निर्णय से अवगत कराया, ‘‘शरत 2 वर्षों की प्रबंधक शिक्षा हेतु आस्ट्रेलिया जाएंगे और इस बीच मैं यहां रह कर अपनी नौकरी करती रहूंगी. फिर इन की शिक्षा पूरी होने पर देखते हैं कि कहां अच्छी नौकरी मिलती है, उसी हिसाब से आगे की योजना बनाएंगे,” कामिनी की इस बात से जहां मां आशा सहमत न होते हुए भी ब्याहता बेटी के निर्णय का सम्मान कर रही थी, वहीं ओम के चेहरे पर कुंठा साफ झलक रही थी, ‘‘मैं तुम दोनों के इस निर्णय से असंतुष्ट हूं. विवाहोपरांत अलग रहना और वह भी इतनी समायाविधि के लिए कहां उचित है?’’ ओम के ऐसा कहते ही मानों एक गहरी खाई खुल गई और एकायक वे उस में गिरते चले गए…
करीब 24 वर्ष पूर्व, जब कामिनी मात्र 3 साल की थी, उस के पिता ओम को एक अच्छी नौकरी की तलाश विदेश ले गई. कतर में कंपनी ने ही रहने को क्वार्टर किया था. पीछे आशा और कामिनी को एक किराए के घर में छोड़ ओम अच्छा पैसा कमाने निकल पड़े थे. आखिर यह पैसा ही उन की गृहस्थी की गाड़ी को फर्राटे से चला पाएगा न.
कतर में दिनरात कड़ी मेहनतमशक्कत मेंं कब व्यतीत हो जाता, पता ही नहीं चलता. रात को शहर से दूर, औफ साइट कंपनी के अहाते में ओम अपनी पत्नी आशा की स्नेहपूर्ण यादों के सहारे समय काटते.
भारत में थे तो घर चाहे कितना छोटा था, टीन की छत वाली रसोई हो, दोपहरी में कितनी भी गरमी बरस रही हो, आशा गरमगरम खाना ही परोसती. ओम के पेट भर लेने के बाद भी एक और फुलके की जिद करती. उन को खाने के बाद कुछ मीठा खाना पसंद था तो हर रोज कुछ न कुछ, चाहे कितना भी कम बन पड़े, मीठा बनाती और बड़े प्यार से खिलाती. जब ओम शाम को थक कर घर लौटते तो गली के मोड़ से ही आशा को द्वार पर खड़ा पाते और जब तक चल कर घर में दाखिल होते, आशा हाथ में पानी का गिलास और आखों में प्रेममनुहार लिए आ पहुंचती.
दूर परदेस में ओम यही सब छोटीछोटी बातें याद करते रहते और उदास हो उठते. साल में एक बार घर आने का अवसर मिलता. वह 1 माह फिर उसी स्नेह और आदरसत्कार के बीच बीत जाता. कामिनी भी इस बार उन्हें बड़ी सी लगने लगी थी.
साल बीतने लगे. करीब 3-4 सालों के बाद आशा शिकायत करने लगी कि अब उस से अकेलापन नहीं झेला जाता. साथ के अपने जैसे लोगों के साथ कुछ समय बीत जाता पर सब इसी दुख को झेल रहे थे.
‘‘तुम यहां अपने घर में, अपनी बच्ची के साथ हो, तुम्हें काहे का अकेलापन? मेरा सोचो, वहां सुदूर परदेस मैं अकेला तो मैं हूं,’’ ओम तर्क देते.
‘‘आप समझ नहीं रहे हैं, एक बच्ची को अकेले पालना…अब मैं कैसे कहूं…’’ आशा ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई थी.
बस इस बार छुट्टियां पूरी होने पर कतर लौटने के 1 महीने बाद ही ओम को आशा की चिट्ठी मिली थी-
‘कामिनी के पापा, आप से साफ तरह से कह न सकी, इस बारबार या तो हमें अपने साथ ले चलिए या खुद लौट आइए. लगता है, आप को जैसा चल रहा है वही रास आने लगा है. लेकिन मुझ से अब यों नहीं रहा जाता. मेरी जिंदगी में कोई और आ गया है…वह मुझ से बहुत प्यार करता है, अपने साथ रखने को तैयार है. कामिनी को भी अपनाना चाहता है. आप मुझे तलाक दे दीजिए.
‘आप की आशा.’
आघात ने ओम के पांव तले जमीन हिला दी. आशा ने यह क्या सब लिख भेजा? और अंत में लिखती है ‘आप की आशा.’ कौन हो सकता है वह आदमी आशा के जीवन में? जब वे इस बार भारत गए थे, तब उन्हें कोई शक क्यों नहीं हुआ? कामिनी ने भी कभी कोई उत्तर नहीं दिया…पत्नी वियोग में पहले ही उन के लिए यहां स्वयं को स्थापित करना मुश्किल लगता था, साथ ही अकेलेपन की टीस और वीरान सी उन की जिंदगी बेचैन हुआ करती थी. आशा के इस पत्र से ओम को बहुत रोष हुआ था. उन का मन खिन्न हो उठा था. वह तन और मन से कितना भार ढो रहे हैं. इस से अनजान कैसे हो सकती थी उस की पत्नी. ओम आहत थे.
मगर उन्होंने इस रिश्ते को ऐसे ही खत्म करने का सोच लिया. आशा ऐसा चाहती है, तो ऐसा ही सही. जल्द से जल्द लौट कर उन्होंने अपने लिए एक अलग मकान का बंदोबस्त किया और अदालत के रास्ते अपना लिए.
नोटिस मिलने पर लुटीपिटी सी आशा अदालत में दुहाई देने लगी, ‘‘जज साहिबा, मैं ने झूठ लिखा था, ऐसावैसा कुछ नहीं है. वह तो मेरी एक सहेली ने मुझे यह तरकीब सुझाया कि शायद जलन और असुरक्षा की वजह से कामिनी के पापा वापस आ जाएं या फिर हमें अपने संग ले जाएं.’’
‘‘आप समझ रही हैं कि आप क्या कह रही हैं…’’ जज साहिबा ने झिडक़ी लगाई.
‘‘जज साहिबा, मुझे गलत न समझें. एक अकेली औरत के लिए समाज में जीना बहुत मुश्किल है. रास्ते से जाओ तो मनचलेमजनुओं के ताने सुनो, यहां तक कि त्योहारों पर भी लोग सुना देते हैं. ऐसे कमाने का क्या फायदा कि इंसान होलीदीवाली पर भी घर न आ पाएं. और तो और अपने खास दोस्त भी…’’ कहतेकहते आशा वियोग में बिताए पलों की खट्टी यादों में पहुंच गई…
एक बार कामिनी काफी बीमार हो गई थी. उस कष्ट की घड़ी में आशा की पड़ोस की सहेली अंबिका ने उस का बहुत साथ दिया. अंबिका के पति गगन ने उन के अपने छोटे से बेटे का ध्यान रखा और अंबिका कामिनी के माथे पर पट्टी रखती रही, जब तक आशा डाक्टर के पास जा कर दवा ले आई. उस रात आशा के घर गगन रुक गया ताकि जरूरत के समय काम आ सके. आशा, अंबिका को जातियों के भेदभाव के बावजूद अपनी बहन समान मानती थी और गगन उसे दीदी कह कर संबोधित करता था. इस वक्त उन्होंने यह रिश्ता निभा कर दिखाया था. आशा कामिनी के पास ही सो गई और गगन साथ वाले कमरे में.
अचानक रात के तीसरे पहर नींद की कच्ची आशा ने कमरे में कुछ आहट महसूस की. देखा तो गगन पास खड़ा था, ‘‘क्या हुआ गगन? कुछ चाहिए आप को?’’
‘‘नहीं आशा, मैं तो बस देखने आ गया कि तुम्हें नींद आ गई क्या?’’ गगन के मुंह से अपना नाम व ‘तुम’ सुन आशा का चौंकना स्वाभाविक था. उस के लाल डोरे और उन में एक अजीब सा नशा आशा को डरा रहा था. प्रकृति ने स्त्री को छठी इंद्री प्रदान की है जिस से वह परपुरुष की मन की इच्छा आसानी से भांप लेती है.
घर अकेला था और कामिनी बीमार अवस्था में सो रही थी. आशा ने फौरन बात टाली, ‘‘चाय लोगे गगन भाई?’’
‘‘आशा, यह समय चाय का नहीं बल्कि…’’
‘‘नहीं, मैं चाय बना ही लाती हूं. तब तक आप जरा कामिनी के पास बैठिए,’’ कह जबरदस्ती चाय बनाने लगी. उस ने 2 कप चाय बनाई, एक गगन को दी और एक खुद घूंटघूंट कर के पी. जैसेतैसे सुबह के 5 बजे. सूर्योदय से पहले की लालिमा के साथ चिडिय़ों की चहचहाहट पौ फटते ही सारे आकाश में फैल गई. आशा बोली, ‘‘गगन भाई, अब आप अपने घर जाइए, अंबिका आप का इंतजार कर रही होगी.’’
उस घटना के बाद आशा अंदर तक हिल गई. किस से कहे? अंबिका को कैसे बताए? कहीं उस ने आशा को ही गलत समझ लिया कि एक तो मेरे पति ने इतनी मदद की और ऊपर से उन पर इतना घिनौना इल्जाम. और फिर हुआ तो कुछ भी नहीं. यह तो सिर्फ उस का डर है, कोई सुबूत नहीं है उस के पास. काफी परेशान हो गई वह और उस ने ठान लिया कि अब वह अकेली नहीं रहेगी. इस संसार में उस का कोई है तो बस उस का अपना पति. वह फौरन उन्हें घर वापस बुलाना चाहती थी. बस, एक अन्य सहेली की सुझाई हुई तरकीब अपना कर आशा ने ओम को वह चिट्ठी लिख डाली.
कितनी मूर्ख थी आशा. क्या वह कभी समझ पाएगी कि उस की इस तरकीब से ओम को कितना गुस्सा होगा? उन में कितनी निराशा, कितना अंधकार घर कर चुका था. इस तरकीब के पीछे के सारे घटनाक्रम से अनभिज्ञ ओम इस फैसले पर पहुंच गए थे कि चुप्पी ही तूतूमैंमैं से बेहतर है. वे तो केवल अपनी पत्नी की ओर कमजोर आंखों से देख रहे थे. आशा ने बहुत माफी मांगी. कोर्ट ने भी उसे खरीखोटी सुनाई. मगर आशा के न मानने पर तलाक न हो पाया. उन्हें साथ ही रहना था लेकिन ओम के मन में गङी फांस ने उन्हें आशा की ओर से एक तरह अलग कर दिया. तो बस, यों ही बुझे मन से, निभाने के लिए ओम ने अपना जीवन काट दिया था.
कामिनी को इस बात की कुछ हलकीफुलकी जानकारी मौसी से मिली थी जो कभीकभार आती थीं. आज उस का पति वही करने जा रहा था जिस का परिणाम उस के पिता आज तक भुगत रहे थे तो भला कैसे मान जाते इस निर्णय को? नेपथ्य से वाकिफ कामिनी भी समझ रही थी कारण को. बेटियां मांओं की थोड़ी अधिक करीब होती हैं. यही कारण था कि बड़ी होती कामिनी ने मातापिता के बीच की दूरी भांप ली थी. पूछने पर मां ने अपनी गलती तथा अपने दिल का हाल दोनों ही उड़ेल दिए थे. संवेदनशील कामिनी सब समझ गई थी. लेकिन मर्यादा का पालन इसी में था कि वह छोटी थी और छोटों की भांति रहती सो इस विषय में उस का चुप रहना ही उचित था.
मगर आज एक झूठे सच को ले कर इतना परेशान भी तो नहीं देख पा रही थी. बहुत उधेड़बुन में उलझे थे दिल और दिमाग. आज वह स्वयं शादीशुदा है, पतिपत्नी के रिश्ते की नजाकत को पहचानती है. क्या आगे बढ़ कर एक प्रयास करना उचित न होगा?
कामिनी शरत के साथ अपने घर लौट गई. शरत जाने की तैयारी में था. कामिनी उस का पूरा साथ दे रही थी. वह चाहती थी कि शरत खुश मन से जाए, पूरी लगन से अपनी शिक्षा पूर्ण करे और फिर दोनों साथ में एक बेहतर जिंदगी जिएं.
नियत दिन शरत चला गया. आजकल के युग में जहां संपूर्ण दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन गई है. जहां स्काइप, ट्विटर, व्हाट्सऐप आदि ने सात समुंदर पार की भी दूरियों को हमारी हथेलियों पर सिमटा दिया है, वहां लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप का निभना इतना कठिन नहीं, कामिनी यह बात अच्छी तरह समझती थी.
उस का पति उस से बहुत दूर, एक दूसरे महाद्वीप में होते हुए भी उस के इतने पास था कि आज उस ने क्या खाया, कितने बजे सोया, क्या कपड़े पहने, किसकिस से मिला, क्या सीखा आदि सब से वाकिफ थी कामिनी. इसी तरह वह भी जो कुछ अपने पति से बांटना चाहती, वह हर बात वह शरत से कर सकती थी. बिस्तर जरूर अकेला था, मगर इतना साथ भी बहुत था. और फिर वह जानती थी कि ये दूरियां केवल 2 साल के लिए हैं. जब समायाविधि नियत हो तो प्रतीक्षा इतनी कठिन नहीं लगती.
कुछ समय बाद कामिनी फिर अपने मायके चली जाती. एक ही शहर में मायका और ससुराल होने का एक फायदा यह भी है कि जल्दीजल्दी मिलना हो जाता है. मातापिता ने शरत के हालचाल पूछे और कामिनी को सारी जानकारी है इस बात से उन्हें तसल्ली मिली, ‘‘चल, अच्छा है बिटिया, तेरी शरतजी से रोज बातें हो जाती हैं. हमारे जमाने में तो बस चिट्ठियों का सहारा था…’’
आशा के कहते ही ओम बिफर पड़े, ‘‘हां, बहुत सहारा था चिट्ठियों का. जो बातें मुंह पर न कह सको, वे लिख कर भेज दो. एक बार फिर उपेक्षा से आशा की आंखें छलक आईं. पल्लू के कोर से धीरे से आंखें पोंछती आशा बहाने से उठ गई पर कामिनी से यह बात न छिप सकी, ‘‘पापा, आप कब तक यों…”
फिर कुछ सोच कर उस ने अपने पिता का हाथ थाम कमरे में ले गई और चिटकनी चढ़ा दी. उन की प्रश्नवाचक दृष्टि के उत्तर में वह बोली, ‘‘मैं नहीं चाहती कि मम्मी हमारी बातें सुन लें. पापा, शायद मैं पूरी तरह न समझ पाऊं कि आप पर मम्मी की वह चिट्ठी पढ़ कर क्या गुजरी होगी क्योंकि जिस पर बीतती है, वही जानता है. लेकिन फिर यही लौजिक मम्मी की भावनाओं पर भी तो लागू होगा न. जैसे आप को अपनी ठेस, अपना आघात ज्ञात है, वैसे ही क्या आप ने कभी मम्मी से यह जानना चाहा कि क्यों उन्होंने इतना बड़ा झूठ बोला? इतना बड़ा झूठ जिस की सजा वे आज तक भुगत रही हैं…”
कामिनी ने आगे कहा,”जैसे आज मेरे पति के मुझ से दूर जाने पर आप को एक पिता के रूप में परेशानी हुई क्योंकि आप मानते हो कि मैं अकेली कैसी जिंदगी जिऊंगी. लेकिन पापा, मेरे पास आप दोनों हो और बच्चे की जिम्मेदारी भी नहीं है. मम्मी के पास मैं थी और घरपरिवार वाले सब दूर. ऐसे में उन्हें कितनी ही परेशानियां आई होंगी. एक महानगर में अकेली औरत, एक छोटे बच्चे का साथ, उस की पढ़ाईलिखाई का इंतजाम. स्कूल में दाखिला कराना, स्कूल की मीटिंग में जाना, घरगृहस्थी की सारी संभाल, राशन, कपड़ों इत्यादि की खरीदारी, ऊपर से बढ़ते बच्चे का पालनपोषण… मैं सोच भी नहीं पाती हूं कि कैसे मां ने अकेले ही सब किया होगा.
“याद है आप को जब आप छुट्टियों में आया करते थे, तब सभी रिश्तेदार दूरदूर से आप सेे मिलने बारीबारी आते रहते थे. एक तो उस 1 माह में मम्मी आप के साथ ढंग से समय नहीं बिता पाती थीं ऊपर से बढ़ा हुआ काम और घर खर्च.
“आज सोचती हूं तो समझ पाती हूं कि उन्हें कितनी कोफ्त होती होगी कि 1 माह को पति आया है, फिर 1 साल नहीं मिल पाएंगी और इस 1 माह में भी रिश्तेदारों का तांता.
‘‘एक औरत की तरह सोचती हूं तो समझ पाती हूं कि कितना अकेलापन सालता होगा उन्हें. काम बांटने की इच्छा, बातें करने की इच्छा, मानसिक संबल की आवश्यकता, हंसनेबोलने और बदन को छूनेसहलाने का मन, मन बढ़त की जरूरतें, विरह भरे दिनमहीने…
‘‘उस समय उम्र ही क्या थी उन की? किसी भी औरत के लिए कितना नीरस हो जाएगा जीवन जब उस का पति दूर परदेस में हो और उस के लौटने का कोई सूत्र भी नहीं दिखे. जरा सोचिए पापा, किस हद तक अकेली हो गई होगी उन की जिंदगी जो उन्होंने यह कदम उठा लिया. किसी परपुरुष के अपने जीवन में न होते हुए भी उन्होंने इतना बड़ा रिस्क उठाया कि अपने पति को अपनी बेवफाई का लिखित सुबूत दे डाला. यह उन की चालाकी नहीं, सीधापन था.
“जो वे वाकई बेवफा होतीं तो कुछ भी कर सकती थीं. आप तो साल में 1 बार आते थे और सभी रिश्तेनातेदार भी उसी 1 माह में आते थे. यहां क्या हो रहा है किस को खबर?’’
कामिनी ने आज वह खिडक़ी खोली थी जिसे ओम कस कर बंद चुके थे. यह बात ठीक है कि ओम अपने परिवार से दूर, कठिन परिस्थितियों में परदेस में मेहनत कर अपनी गृहस्थी के लिए कमा रहे थे मगर यह भी उतना ही सच था कि उस गृहस्थी की गाड़ी को आशा अकेली ही खींच रही थी. उस ने कई बार ओम को घर लौट आने या उसे भी साथ ले चलने की मांग की थी. ओम की अनिच्छा देख हो सकता है उसे यही एक विकल्प सूझा हो. गलती दोनों में से किसी की भी नहीं थी. गलती केवल परिस्थिति की थी. ओम की परिस्थिति उन्हें बीवीबच्चे साथ रखने की इजाजत नहीं दे रही थी और आशा की परिस्थिति उसे अकेले आगे नहीं बढ़ने दे रही थी. वह जानती थी कि कतर में नौकरी मिलने की शर्त ही यह थी कि पत्नी को साथ न लाओ. वह यह भी जानती थी कि ओम न जाते, तो वे टूटेफूटे, टीनटप्पर के मकान में रहने को मजबूर रहते.
कामिनी को भी 2 वर्ष ही अकेले विरहगीत गाने थे लेकिन आज उस ने जो किया था उस से एक ही छत के नीचे रह रहे अपने मांबाप की कभी न खत्म होने वाली विरह की दीवार को तोङ जरूर दिया था. इस बार मायके से अपने घर वापस लौटने पर कामिनी अकेले होते हुए भी मुसकरा रही थी. उस का मन हलका हो गया था.
एक बार इंस्टिट्यूट के फाउंडेशन डे पर क्लासिक सौंग्स के कंपीटिशन में जब दर्शकों की वाहवाही के बाद भी चित्रा को तीसरा स्थान मिला था तो ईशान ने कितने प्यार से कहा था, ‘‘तुम्हारी वजह से यहां के स्टूडैंट्स पुरानी फिल्मों के गीतों में रुचि दिखा रहे हैं. यही तुम्हारा इनाम है. दुनिया में तरहतरह के लोग होते हैं और उन की पसंद भी अलगअलग होती है. हमें खानेपीने के साथसाथ और बातों में भी सभी लोगों की पसंद का ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि हौस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में जाना है.’’
यहां आने के बाद चित्रा को ईशान की कुछ ज्यादा ही याद आने लगी है. शिमला के आसपास ही तो बताता था वह अपना घर. जब से यहां आई है जहां निगाह पड़ती है ईशान की दृष्टि से सब देखने लगती है. ईशान के पास प्रतिदिन उस का बैठना और ईशान से पहाड़ों के बारे में सवाल करना उस की दिनचर्या का सब से सुखद पहलू था. ईशान भी बातें करते हुए खो जाता था चित्रा में. सच तो यह है कि ईशान का मन पढ़ते हुए वह जान गई थी कि एक मुलायम सा मखमली कोना ईशान के हृदय में बन चुका है उस के लिए. अपने दिल को कभी टटोला ही नहीं था उस ने क्योंकि चंदनदास वाली घटना के बाद उसे प्रेम संबंधों के विषय में सोच कर ही डर लगता था.
आज अपने मन के अंधेरे, उजाले के बीच झलती चित्रा घाटी में उतर रहे हलके उजाले और घाटी से पहाड़ पर चढ़ रहे अंधेरे में खोई थी. थोड़ी देर बाद दृष्टि वहां से हट कर सामने कुछ दूरी पर बने मकानों पर टिकी तो एक घर में प्रवेश करती आकृति उसे ईशान जैसी लगी.
‘ईशान इतना छा गया है मुझ पर कि दिखाई भी देने लगा,’ अशांत कहीं खोईखोई सी चित्रा मोबाइल में मैसेज देख अपना ध्यान उस ओर से हटाने के प्रयास में लग गई.
चित्रा का होटल घर से बहुत दूर नहीं था. सुबह जल्दी उठकर पैदल ही निकल जाती थी वह. उस दिन भी घर से निकली, सामने की छोटी पहाड़ी पर बने मकान पर निगाहें टिक गईं. जब से ईशान के प्रवेश का भ्रम हुआ है वहां से निकलते हुए एक चोर सा मोह उस के मन को जकड़ने लगता है. ऊंचाई अधिक न होने के कारण 2 मिनट रुक कर एक भरपूर दृष्टि उस मकान पर डाल सिर झट कर चल दी.
‘‘चित्रा…’’ अपने नाम की पुकार सुन एकाएक चित्रा विश्वास न कर सकी, ‘उफ, मुझे तो ईशान की आवाज भी सुनाई देने लगी,’ चित्रा ने अपना सिर उठा कर देखा तो आंखें खुली की खुली रह गईं. ईशान बालकनी में खड़ा हाथ हिला रहा था.
‘‘मैं नीचे आ रहा हूं, रुको,’’ ईशान झटपट सामने आ खड़ा हुआ.
‘‘तुम्हें देखा तो लगा कि तुम चित्रा ही हो, सोचा कि नाम पुकारता हूं कोई और हुई तो तुम्हारे नाम से रुक थोड़े ही जाएगी,’’ हांफते हुए ईशान एक सांस में सब बोल गया.
‘‘मुझे भी एक दिन तुम जैसा कोई मतलब तुम दिखे थे वहां से,’’ चित्रा अपने घर की ओर इशारा करते हुए बोली.
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. एकदूसरे को अपने वर्तमान की झलक दे कर शाम को मिलने की बात हुई. चित्रा चली ही थी कि ईशान ने पुकार कर कहा, ‘‘पता है अपने जिस रैस्टोरैंट की बात मैंने अभी की है वह तुम्हें डैडिकेटेड है. एक दिन वहां ले जाऊंगा फिर बताना कैसे जुड़ा है वह तुम से? देखता हूं तुम्हें दोस्ती की पुरानी बातें कितनी याद हैं?’’
‘‘मिलते ही उलझन में डाल दिया ईशान,’’ चित्रा मुसकरा दी.
दोनों ने हंसते हुए विदा ली और अपनी राह चल दिए. ईशान ने कसौली में एक ढाबानुमा रैस्टोरैंट खोला था. उस का अपना घर वहां से कोई 150 किलोमीटर दूर धरौट नाम के गांव में था. चित्रा को याद है कि पढ़ते हुए भी ईशान अकसर फूड शौप खोलने के सपने देखता था. गांव में ऐसे रैस्टोरैंट्स के चलने की संभावना कम ही थी. कसौली में इस व्यवसाय को शुरू करने का मुख्य कारण पर्यटकों का कसौली के प्रति बढ़ता आकर्षण था. चित्रा के सामने वाले मकान में वह उन 2 लड़कों के साथ किराए पर रह रहा था जिन्हें अपने साथ ही काम पर रखा हुआ था.
चित्रा ने थोड़ी दूर चलने के बाद पगडंडी छोड़ सड़क का रास्ता पकड़ लिया. वह सड़क उस ओर जाती थी, जहां ईशान ने अपना रैस्टोरैंट होने की बात कही थी. वह रैस्टोरैंट उसे कैसे समर्पित है, यह देखने की चाह उसे खींच रही थी.
रास्तेभर चित्रा सोचती आ रही थी कि शाम को अपने विषय में ईशान को क्या बताए, क्या छिपाए? अभी तो ईशान को उस ने केवल यही बताया कि उस का विवाह हो चुका और यहां वह अकेली रह कर जौब कर रही है. अपनी व्यथा और पीड़ा के सिवा बताने को है ही क्या उस के पास. क्या ईशान उस की जिंदगी की अंधेरी गलियों में जाना पसंद करेगा?
चित्रा की सोच एक झटके में थम गई. सामने दिख रही फूड शौप ईशान की थी, नाम था ‘कासनी फूड हट.’ बोर्ड पर बना लोगो (प्रतीक चिह्न) भी कासनी के फूल की बनावट लिए था.
चित्रा कैसे भूल सकती है कि एक बार पढ़ाई के दौरान उन को हल्द्वानी के एक संस्थान में ले कर गए थे, जहां कासनी के फूल प्रचुर मात्रा में उगाए जाते थे. होटल मैनेजमैंट के विद्यार्थियों को वहां कासनी के पौधों की सूखी जड़ें पीस कर पाउडर बनाने के बाद कौड़ी में मिलाना सिखाया गया था. सामान्य सी दिखने वाली जड़ों से सूखने पर चौकलेट जैसी गंध आती है, स्वाद भी चौकलेट से मिलताजुलता होता है, लेकिन कैफीन नहीं होता उस में. चित्रा उस मनभावन सुगंध में खो गई थी. कासनी का फूल उसे हमेशा से बहुत प्रिय था.
ईशान ने उस दिन कहा था, ‘‘चित्रा, तुम इन कासनी के फूलों जैसी ही हो. नीले रंग के फूल प्रकृति ने बहुत कम दिए हैं, तुम सी भी कम ही होंगी दुनिया में. कासनी न सिर्फ सुंदर है इस का प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में लाभकारी भी है. तुम भी खूबसूरती के साथ अपने में अनेक गुण समेटे हो. इस की मीठी खुशबू सा व्यवहार भी है तुम्हारा. कासनी को चिकोरी भी कहते हैं इसलिए आज से मैं तुम्हें चिकोरी कह कर बुलाऊंगा.’’
यह बात ईशान और चित्रा तक ही सीमित थी. कोई चिकोरी नाम के विषय में पूछता तो ईशान कह देता कि चित्रा की तुलना में चिकोरी बोलना आसान है, इसलिए बुलाता है वह इस नाम से.
‘ईशान को मैं न सिर्फ याद हूं उस के मन में मेरी अब भी वही खास जगह है. तभी तो उस ने कासनी रखा है अपने रैस्टोरैंट का नाम. मैं ईशान से कुछ नहीं छिपाऊंगी. अपनी जिंदगी खोल कर रख दूंगी उस के सामने. ऐसे दिल से चाहने वाले दोस्त कहां मिलते हैं? मुझे अपना राजदार बनाना ही है उसे,’ सोच चित्रा की आंखें नम हो गईं.
किसी तरह पलपल गिनते हुए उस का दिन बीता. सांझ को घर लौटी. ईशान की प्रतीक्षा में आकुल मन कुछ करने ही नहीं दे रहा था.
ईशान आते ही बोला, ‘‘सुबह हिम्मत नहीं जुटा सका था, क्या मैं तुम्हें अब भी चिकोरी कह कर बुला सकता हूं.’’
चित्रा खिल उठी. लौंग, इलायची डाल कर चाय बनाई. उसे याद था कि ईशान को चाय में इलायची और लौंग डाल कर पीना बहुत पसंद है. ईशान अपने रैस्टोरैंट के बने मोमोज ले कर आया था.
‘‘चिकोरी, तुम से बहुत सी बातें करनी हैं या यों कहूं कि बहुत कुछ सुनना है. मुझे तो जो कहना था सुबह ही कह दिया था मैं ने,’’ ईशान चित्रा के विषय में जानने को उत्सुक था.
दोनों बालकनी में बैठे तो बातों का सिलसिला शुरू हो गया.
‘‘चिकोरी, तुम ने बताया कि तुम्हारी शादी हो गई, लेकिन तुम तो पहले जैसी ही दिख रही हो, बल्कि चेहरा कुछ मुरझाया सा लग रहा है. यह बात दूसरी है कि सूखे हुए कासनी के फूल की तरह सुंदरता कम नहीं हुई तुम्हारी.’’
इतने अपनेपन में भीगे शब्द चित्रा ने न जाने कितने दिनों बाद सुने थे. अत: वह आपबीती सुनाने लगी. अभिषेक से विवाह और तलाक के विषय में तो उस ने सब बता दिया, लेकिन चंदनदास वाली घटना और अभिषेक के साथ संबंध बनाते हुए सहयोग न कर पाने की बात कहते हुए उसे झिझक आ रही थी. इतना ही कह सकी, ‘‘हम मिलते रहेंगे तो जीवन की अनकही परतें खोलती रहूंगी, जाने कब से मन के अंधेरे कुएं में बंद मेरा दम घोटती रहती हैं काली यादें.’’
‘‘ओह, तुम्हारी जिंदगी इतनी दुखभरी रही और मुझे पता तक नहीं चला,’’ ईशान के शब्दों में चित्रा को सहानुभूति और आंखों में जज्बात की वह झील दिख रही थी जो इतना समय बीत जाने पर भी नहीं सूखी थी. अनायास ही उस का सिर ईशान के कंधे पर जा टिका. ईशान ने प्यार से उस के बालों में हाथ फेरा तो चित्रा की पलकें मुंद गईं. दोनों देर तक यों ही शांत बैठे रहे.
रात को ईशान घर लौटा तो आंखों में नींद की जगह बेचैनी ने ले ली थी, ‘लगता है अभी भी बहुत कुछ दबा है चिकोरी के दिल में. मैं उस के मन की थाह लूंगा, उस के दुख में भागीदार बनूंगा.’
ईशान का काम अच्छा चलने लगा था. सहयोग के लिए 2 और लड़कों को रख लिया उस ने. इस का एक अन्य कारण चित्रा को समय देना भी था.
‘‘2 दिनों के लिए चैल चलोगी? यहां से ज्यादा दूर नहीं है, बहुत सुंदर हिल स्टेशन है,’’ एक दिन चित्रा के सामने ईशान ने प्रस्ताव रखा तो उस ने पूरे मन से हां कर दी.
ईशान को पहाड़ों पर ड्राइव करने का अच्छा अनुभव था, इसलिए अपनी कार से जाने का निश्चय किया. 2 घंटे की यात्रा थी लगभग. नियत दिन वे सुबह जल्दी घर से निकल पड़े. सर्दी के दिन बीत चुके थे, फिर भी हलकी सी धुंध फैली. कुछ देर बाद हलके कुहरे को चीरती सूर्य की किरणें बिखरने लगीं. ठंडी हवा के ?ांके हृदय को आह्लादित कर रहे थे.
बलखाती सड़क के एक ओर खाई तो दूसरी ओर ऊंचे पहाड़, चित्रा मन ही मन ईशान व अभिषेक की तुलना करने लगी, ‘खाई दूर से हरीभरी लग रही है लेकिन भूले से भी कोई फिसल जाए तो गिरता ही जाए नीचे, नीचे, कहां तक पता नहीं. अभिषेक का साथ मिला तो मेरी नौकरी भी छूटी, सुकून भी गया. इस के विपरीत पहाड़ पर चढ़ना मतलब ऊंचाइयों को छू लेना. अपने मन में तरल प्रेम सा पानी छिपाए हैं जो कभीकभी झरनों के रूप में फूट पड़ता है ठीक ईशान की तरह.’
‘‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा…’’ कानों में गीत की आवाज आने से चित्रा अपने खयालों से बाहर निकल आई.
‘‘चिकोरी, कैसा है गाना? जहां तक मुझे याद है तुम्हें पुराने गाने पसंद हैं. जो कहोगी वही सौंग लगा दूंगा. बहुत बड़ा कलैक्शन है मेरे पास. रैस्टोरैंट में सारा दिन अलगअलग तरह के गाने लगाने पड़ते हैं.’’
‘‘इतना सुंदर गाना किस को पसंद नहीं आएगा,’’ चित्रा सचमुच गाने में खो गई.
‘‘गाने की दूसरी लाइन मेरे दिल सी निकली लगती है चिकोरी, न कोई है न कोई था जिंदगी में तुम्हारे सिवा…’’ ईशान ने गाने के बहाने मन की बात कह ही दी.
उन का कमरा पैलेस होटल में बुक था. कार वहां पहुंची तो होटल की भव्यता देख चित्रा ठगी सी रह गई.
‘‘जानती हो चिकोरी यह एक महल था जिसे 19वीं शताब्दी के अंत में पटियाला के महाराजा ने बनवाया था.’’
बातें करते हुए दोनों कमरे में पहुंच गए. कौफी और हलकेफुलके स्नैक्स लेने के बाद घूमने चल दिए.
बॉलीवुड समय-समय पर नई और ताज़ा जोड़ियों के साथ प्रयोग करता रहता है. 2023 में कई नई ऑन-स्क्रीन जोड़ियां आई हैं, जिन्होंने अपनी शानदार केमिस्ट्री से हमारी स्क्रीन पर धूम मचा दी है.
इन अपरंपरागत जोड़ियों ने प्रशंसकों और दर्शकों के बीच काफी चर्चा पैदा की. चाहे तू झूठी मैं मक्कार में रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर हों, जरा हटके जरा बचके में विक्की कौशल-सारा अली खान हों या हाल ही में रिलीज हुई बवाल में वरुण धवन और जान्हवी कपूर हों, सभी अपनी केमिस्ट्री और शानदार परफॉर्मेंस से दर्शकों को प्रभावित करते दिखे.
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एक दिलचस्प ऑन-स्क्रीन जोड़ी जिसका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है, और जो ड्रीम गर्ल 2 में एक साथ दिखाई देगी, वह है बॉलीवुड हार्टथ्रोब आयुष्मान खुराना और अनन्या पांडे. प्रशंसक और आलोचक समान रूप से उत्साह से भरे हुए हैं, यह देखने के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं कि यह जोड़ी क्या पेश करेगी.
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दर्शकों को कुछ नई जोड़ियां भी देखने को मिलेंगी जैसे जवान में शाहरुख खान और नयनतारा, योद्धा में सिद्धार्थ मल्होत्रा और दिशा पटानी, एनिमल में रश्मिका मंदाना के साथ रणबीर कपूर और एक फिल्म में शाहिद कपूर और कृति सेनन, जिसका अभी तक शीर्षक नहीं है.
रोमांचक रिलीज़ों से भरे साल में, ड्रीम गर्ल 2 सबसे अधिक प्रतीक्षित कॉमेडीज़ में से एक बनी हुई है, जिसमें इस नई जोड़ी ने एक साथ अभिनय किया है और प्रशंसकों के बीच प्रत्याशा बढ़ा दी है.
इम्युनाइज़ेशन या टीकाकरण आपके बच्चों की सेहत के सबसे किफायती तौर-तरीकों में से है, और सिर्फ बच्चों के मामले में ही नहीं, बल्कि कई वयस्कों, गर्भवती माताओं तथा बुजुर्गों के मामले में भी यह उपयोगी साबित होता है. टीकाकरण के दौरान, शिशु को टीका या खुराक पिलायी जाती है जो वास्तव में, निष्क्रिय वायरस या बैक्टीरिया होते हैं. इन निष्क्रिय रोगाणुओं के रोग पैदा करने की क्षमता काफी हद तक कम हो चुकी होती है. इसलिए, जब ये आपके शरीर में पहुंचते हैं तो प्रतिक्रियास्वरूप शरीर में एंटीबॉडीज़ बनती हैं जो शिशु को रोग से बचाती हैं। वैक्सीनेशन इसी तरीके से काम करता है.
जीवन के शुरुआती महीनों में नवजात कई तरह के रोगों का शिकार बन सकता है. हालांकि माताओं को जो रोग पहले हो चुके होते हैं, उनकी एंटीबॉडीज़ गर्भावस्था के दौरान शिशु के शरीर में पहले ही प्रविष्ट हो चुकी होती हैं. इसलिए शुरुआती कुछ हफ्तों तक शिशु स्वस्थ रहता है लेकिन इसके बाद, शिशु का अपना खुद का सिस्टम रोगों से लड़ने के लिए तैयार होना चाहिए. वैक्सीनेशन इस सिस्टम को मजबूती देता है और शिशु का अनेक रोगों से बचाव करता है.
कई रोगों से बचाव
शिशु को पैदा होने के समय, अस्पताल से छुट्टी देने से पहले ही बीसीजी, हेपेटाइटिस बी और पोलियो की खुराक दी जाती है. इसके बाद, 6 हफ्ते की उम्र से शिशु को डीपीटी की 3 खुराक, निमोनियो वैक्सीन, रोटोवायरस, मीज़ल्स टाइफायड जैसी वैक्सीनें दी जाती हैं. साथ ही, पहले साल के बाद इनकी बूस्टर खुराक भी दी जाती है। इनके अलावा, हेपेटाइटिस ए, चिकन पॉक्स, मेनिंगोकोकल, सर्वाइकल कैंसर आदि की अतिरिक्त वैक्सीनें भी निजी क्षेत्र में उपलब्ध करायी गई हैं.
क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट
डॉ पूनम सिदाना, डायरेक्टर – नियोनेटोलॉजी एंड पिडियाट्रिक्स, सीके बिरला हॉस्पीटल (आर), दिल्ली के मुताबिक जब हम वैक्सीनों से मिलने वाले फायदों की बात करते हैं तो हम रोगों से बचाव तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन सच तो यह है कि ये रोगा न सिर्फ आपके शिशु को रोगों से बचाते हैं बल्कि उनके बीमार पड़ने, पोषण संबंधी समस्याओं से जूझने और विकास पर असर डालने वाली स्थितियों में भी उन्हें स्वस्थ रखते हैं. कई बार बच्चे अपने स्कूलों आदि से संक्रमणों को भी घर ले आते हैं जो परिवार के किसी बुजुर्ग व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसलिए कई बार ऐसा भी होता है कि आपका बच्चा ही वैक्सीनेशन का लाभ नहीं लेता बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसका फायदा मिलता है.
युवतियों को गर्भधारण से पहले अपने टीकाकरण का मूल्यांकन करवाना चाहिए ताकि वे गर्भावस्था के दौरान, संक्रमित होने से बच सकें जो कि मां और अजन्में शिशुओं के लिए नुकसान दायक होता है.
चिकित्सक की सलाह लें
आज की दुनिया में, जबकि हम सभी आपस में इतने ज्यादा जुड़े हैं कि कोविड जैसे रोग हमारे ट्रैवल और काम करने के तौर-तरीकों की वजह से पूरी दुनिया में फैल सकते हैं. कभी-कभी किसी क्षेत्र में किसी रोग विशेष का न होना इस बात की गारंटी नहीं होता कि भविष्य में भी वह रोग नहीं होगा.
इसलिए हमेशा समय पर टीकाकरण करवाएं, अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करें और पूर्व निर्धारित तारीखों पर वैक्सीन अवश्य लें। बच्चों को वैक्सीनेशन के बाद कई बार हल्के-फुल्के असर हो सकते हैं जो पैरासिटामोल की एक खुराक से एकाध दिन में दूर भी हो जाते हैं. इसलिए, टीकाकरण के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के महत्व को समझे व, अपने डॉक्टर से वैक्सीनेशन संबंधी परामर्श लें और और एपाइंटमेंट के दिन टीके जरूर लें तथा अपने शिशु को स्वस्थ रखने के लिए हर संभव प्रयास करें.
उसे जेठानी का चेहरा अकसर याद आता रहता. सोचती, इतने थोड़े समय का साथ था पर मैं नासमझ उन से चिढ़ने में ही लगी रही. धीरेधीरे मन को शांत कर सकी थी. जब सुध आई तो सामने पहाड़ की तरह एक उत्तरदायित्व उसे परेशान करने लगा. क्या होगा अवनी का? जैसे ही उसे सीने से लगाती तो अतीत के कई स्वर उसे आंदोलित करते और वह पुन: विक्षिप्त सी हो उठती. विवाह की पहली रात ही पूरब ने कहा था, ‘‘श्रावणी, हम चाहते हैं कि तुम्हारा मीठा स्वभाव उसी तरह मां के मन पर राज करे, जैसे भाभी का करता है.’’
प्रथम मिलन के समय अपने पति से मीठी प्यारी बातों के स्थान पर ऐसी बात उसे आश्चर्यचकित कर गई. वह कह रहा था, ‘‘भैया भाभी ने इस घर के लिए बहुत से त्याग किए हैं पर कभी भी उलाहना नहीं दिया.’’
पूरब ने उसे बताया कि कैसे बाबूजी के कम वेतन में इस घर में दरिद्रता का राज था. भैया ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ कुछ ट्यूशन ले रखी थीं ताकि घर की स्थिति में भी सुधार आए और वह पढ़ाई भी पूरी कर लें. भैया की लगन और परिश्रम से उन्हें एक अच्छी नौकरी भी मिल गई. घर में सुख के छोटे छोटे पौधे लहराने लगे. जब भाभी ब्याह कर आईं तो उन्होंने भी हर प्रकार से घर के हितों का ही ध्यान रखा. उन्हीं की जिद से मैं एम.बी.ए. कर सका और आज एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा हूं.
श्रावणी को याद है कि कैसे अपनी उबासियों को रोक कर उस ने सारी बातें सुनी थीं. उस रात की मर्यादा बनाए रखने के लिए उस ने मन का उफनता हुआ लावा सदा मन में दबाए रखा. जब जेठ जेठानी चले गए तो वह लावा समय असमय अवनी पर फूटने लगा.
अवनी के विवाह के नाम पर जेठ जेठानी ने बहुत पहले ही एक पौलिसी ली थी जिसे अब निश्चित समय पर आगे बढ़ाना पूरब के जिम्मे था. जब तक अवनी 20 वर्ष की होगी, उस के विवाह के लिए अच्छी रकम जमा हो चुकी होगी. फिर भी वह समयसमय पर अवनी के विवाह की चिंता दिखाने बैठ जाती. ‘इस महंगाई में अपनी बेटी का विवाह करना ही कठिन है, ऊपर से जेठजी की बेटी का भी सब कुछ हमें ही संभालना है.’
उस की बातों से आसपड़ोस की महिलाएं बहुत प्रभावित हो जातीं लेकिन पूरब खीज उठता, जो श्रावणी को सहन नहीं होता था.
पूरब कहता, ‘‘भैया सिर्फ अवनी के लिए ही नहीं अपनी विधू के लिए भी छोड़ गए हैं. दोनों उस में ब्याह जाएंगी.’’
श्रावणी खीज कर कहती, ‘‘मेरे पास बहुत काम है, तुम्हारी भैयाभाभी स्तुति सुनने का समय नहीं है.’’
अवनी पढ़ाई में बहुत तेज थी. घर के सारे काम निबटा कर अपनी पढ़ाई पूरी करती. कभी विविधा कुछ पूछती तो उसे भी पढ़ाने में समय देती.
एक दिन श्रावणी की दूर की मौसी का फोन आया कि वे अपने पुत्र के लिए लड़की देखने आ रही हैं. उन का एक ही पुत्र था.
2 बेटियों का विवाह कर चुकी थीं, अब पुत्र का शीघ्र विवाह करना चाहती थीं ताकि कनाडा जाने से पूर्व उस के पैरों में बेडि़यां डाल दें. श्रावणी ने अवनी से कहा, ‘‘मेरी दूर की मौसी आ रही हैं, पहली बार आएंगी, खूब खातिर करना.’’
विविधा ने तुरंत टोका, ‘‘फिर दीदी कालेज कब जाएंगी?’’
‘‘हम सब कर लेंगे चाची, आप चिंता न करिए…’’
श्रावणी ने विविधा को क्रोध से देख कर कहा, ‘‘तुम्हारी तरह आलसी नहीं है अवनी. सब कुछ मैनेज करना जानती है.’’
कहने को तो वह कह गई पर तुरंत उसे अपनी गलती का एहसास हो गया. अवनी से काम करवाने के चक्कर में अपनी बेटी पर कटाक्ष कर बैठी. वह मन ही मन में अपनी नासमझी पर विकल हो उठी.
न चाहते हुए भी बहुत कुछ हो जाता है और उस सब की जिम्मेदारी उसी पर है. अपना हाथ एकसाथ दोनों पर रख कर बोली, ‘‘हमारा मतलब है कि आज तुम भी अपनी दीदी का हाथ बटाओ और सीख लो कि कैसे वह सब बनाती है,’’ अपनी गलती सुधारती श्रावणी तीव्रता से बाहर चली गई.
मौसी आईं तो उन का पुत्र अनिकेत भी साथ आया. उस ने बहुत जल्दी हर एक का मन जीत लिया. भोजन करने बैठे सब तो मौसी ने खूब प्रशंसा आरंभ कर दी.
श्रावणी बोली, ‘‘दोनों बहनों ने मिल कर बनाया है.’’
‘‘नहीं आंटी,’’ विविधा तुरंत बोली, ‘‘यह सारा खाना दीदी ने बनाया है.’’
‘‘अरे वाह, तुम तो बहुत अच्छी गृहस्थन हो बेटा,’’ मौसी ने प्यार से अवनी को देखा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘जी, अवनी.’’
‘‘पढ़ती हो?’’ मौसी ने अगला प्रश्न उछाल दिया.
‘‘बी.ए. फाइनल में,’’ अवनी ने धीरे से कहा.
‘‘काश! वह लड़की भी तुम्हारी ही तरह गुणी हो, जिसे हम लोग अनिकेत के लिए देखने जा रहे हैं.’’
मौसी और अनिकेत के जाने के बाद अवनी कालेज चली गई. उस के 2 पीरियड छूट चुके थे.
शाम को जब घर पहुंची तो घर में बहुत सन्नाटा था. मौसी और चाची धीरेधीरे कुछ बोल कर चुप्पी साध लेती थीं. अनिकेत समाचारपत्र पकड़ कर लगातार कुछ सोच रहा था.
अवनी ने पुस्तकें रखीं और चाची के पास जा कर बोली, ‘‘चाय बनाऊं?’’
मौसी ने चौंक कर उसे देखा. उन की आंखों में जाने क्या था. श्रावणी ने कहा, ‘‘हां, साथ में कुछ गरमगरम पकौड़े भी बना लो.’’
अवनी लौटी तो उस ने सुना मौसी कह रही थीं, ‘‘कितनी प्यारी और शांत स्वभाव की है तुम्हारी अवनी.’’
रात तक अवनी को उन लोगों की चुप्पी का कारण पता चल गया था. इन लोगों को तो लड़की पसंद थी पर उस लड़की ने एकांत में अनिकेत से कहा कि वह किसी से प्यार करती है, मांबाप जबरन उस की शादी करवा रहे हैं. विविधा ने ये सारी बातें करते मौसी और मां को सुना था और अवनी को बताने चली आई थी.
अवनी के काम में हाथ बटाते हुए वह निरंतर कुछ न कुछ बोलती जा रही थी. अवनी मन ही मन में सोच रही थी कि वह लड़की कितनी बहादुर है, जिस ने सच को इस तरह सामने रख दिया.
खाने की मेज पर सब बैठे तो मौसी ने कहा, ‘‘अवनी बेटा, तुम भी हमारे साथ बैठो.’’
‘‘आप खाइए, हम गरम गरम फुलके सेंक रहे हैं.’’
मौसी ने उसे बहुत हसरत से देखा और अचानक बोलीं, ‘‘श्रावी, अपनी अवनी हमें दे दो,’’ फिर उन्होंने अनिकेत से कहा, ‘‘क्यों अनि, अवनी हमें बहुत पसंद है, तुम्हारे लिए मांग लें.’’
रसोई में कदम रखतेरखते अवनी ने सुना तो हठात ठहर गई. पूरा शरीर सिहर उठा. चाची से पहले चाचा ने कहा, ‘‘आप की ही बेटी है मौसी, जब चाहें अपना बना लें.’’
‘‘लेकिन अवनी से भी तो पूछिए,’’ अचानक उसे अनिकेत का यह स्वर सुनाई दिया.
इस असंभव सी बात पर वह आश्चर्यचकित भी थी और प्रसन्न भी. मन उत्तेजना से धड़क रहा था. क्या यह कोई सपना है? मौसी ने अगली बार उस के आते ही अपनी बगल में बैठा लिया.
‘‘बैठो बेटा, रोटी श्रावी बना लेगी,’’ उन की बात पर श्रावणी घबरा कर उठ गई और अवनी को बैठना पड़ा. मौसी ने प्यार से उस की पीठ पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘बेटा,एक बात सचसच बताना, हमारा अनिकेत कैसा है?’’
अवनी ने धीरे से पलकें उठाईं. अनिकेत मुसकरा रहा था. उसे घबराहट सी होने लगी. अचानक आए ये अनोखे पल उसे अवाक कर रहे थे, पर स्थिति का सामना तो करना था. उस ने अपने चाचा की ओर देखा, फिर धीरे से बोली, ‘‘अच्छे हैं.’’
‘‘इस से शादी करोगी?’’ मौसी ने फिर पूछा. घबरा कर उस ने फिर चाचा की ओर देखा. उन्होंने ‘हां’ का संकेत दिया तो गरदन झुकाते हुए लजा कर उस ने ‘हां’ में हिला दी.
‘‘थैंक्यू अवनी,’’ अचानक अनिकेत का स्वर उस के कानों में गूंजा, ‘‘मुझे तो पहली ही नजर में आप पसंद आ गई थीं.’’
मौसी ने आश्चर्य से उसे देखा फिर बोलीं, ‘‘अरे, तो पहले ही क्यों नहीं कहा. हम वहां जाते ही नहीं.’’
अनिकेत ने संकोच से उधर देखा, ‘‘मां, मैं आप का वचन तोड़ कर कभी कुछ नहीं करना चाहता हूं. आप ने अपने वहां जाने की सूचना उन्हें दे रखी थी.’’
‘‘वाह बेटा वाह,’’ पूरब ने झट से कहा, ‘‘आजकल ऐसी अच्छी सोच कहां देखने को मिलती है.’’
श्रावणी मन ही मन में सोच रही थी कि जेठ जेठानी अकेली छोड़ गए बेटी को पर देखो तो, घर बैठे विदेश में बसा लड़का मिल गया. पता नहीं हमारी बेटी का क्या होगा.
सवाल-
मैं एक लड़के से 5 वर्षों से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. बीच में हम दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया था. अब वह कहता है कि वह मुझे नहीं किसी और को चाहता है. मैं उसे भुला नहीं सकती. दिनरात रोती हूं. कभीकभी वह कहता है कि लौट आओ. मुझे उस के व्यवहार को ले कर बहुत गुस्सा आता है, यह सोच कर कि उस ने मेरा मजाक बना रखा है. क्या मैं उस पर भरोसा करूं या नहीं?
जवाब-
एकदूसरे को समझने के लिए 5 साल का समय बहुत होता है. यदि आप का प्रेमी आप से साफसाफ कह चुका है कि वह आप को नहीं किसी और लड़की को चाहता है तो आप को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए और उस से किनारा कर लेना चाहिए. अपने पहले प्यार को भुलाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है पर नामुमकिन नहीं. समय बीतने के साथ आप के दिलोदिमाग से उस की यादें मिट जाएंगी.
मैं 2 साल से एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हमेशा मेरी इच्छाओं का सम्मान करता है. ऐसा कोई काम नहीं करता जो मुझे नागवार गुजरता हो. मगर अब कुछ दिनों से वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है पर साथ ही यह भी कहता है कि यदि तुम्हारी मरजी हो तो. मैं ने उस से कहा कि ऐसा करने से यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा? इस पर उस का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा. कृपया राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?
दोस्ती में एकदूसरे की इच्छाओं को तवज्जो देना जरूरी होता है. तभी दोस्ती कायम रहती है. इस के अलावा आप का बौयफ्रैंड अभी आप का विश्वास जीतने के लिए भी ऐसा कर रहा है. जहां तक शारीरिक संबंधों को ले कर आप की आशंका है तो वह पूरी तरह सही है. यदि आप संबंध बनाती हैं तो गर्भ ठहर सकता है, इसलिए शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से हर हाल में बचना चाहिए.
चाय पीते हुए भी वह वही सब बातें सोचने लगा. आज उस का औफिस जाने का जरा भी मन नहीं हो रहा था. पर, जाना तो पड़ेगा ही. सो, खापी कर तैयार हो कर वह औफिस के लिए निकल गया और सोचने लगा, ‘काश, रूपम एक बार फिर उसे मिल जाए, तो इस बार उसे जाने नहीं देगा.‘
3-4 दिन ऐसे ही बीत गए, पर रूपम नहीं आई. एक दिन अचानक एक अनजान नंबर से वरुण के फोन पर फोन आया, तो उस ने उठा लिया. वह अभी हैलो बोलता ही कि सामने से वही मधुर आवाज सुन कर उस का रोमरोम सिहर उठा. रूपम कहने लगी कि क्या कल वह उस से मिलने बैंक आ सकती है?
वरुण अभी बोलने ही जा रहा था कि वह तो खुद उस से मिलने को बेचैन है. लेकिन उस ने खुद को कंट्रोल कर लिया, क्योंकि इतनी जल्दी वह शिकारी को अपने जाल में नहीं फंसाना चाहता था. पहले थोड़ा दाना डालेगा, फिर वह खुदबखुद उस के जाल में फंसती चली आएगी.
“सर, आप ने बताया नहीं, क्या मैं कल आप से मिलने आ सकती हूं?” रूपम ने फिर वही बात दोहराई, तो वरुण ने बड़े ही शालीनता से हां में जबाव दे कर फोन रख दिया. लेकिन उस के दिल में जो हलचल मची थी, नहीं बता सकता था.
कई दिनों से वरुण को गुमशुम, उदास देख स्नेहा को भी अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन आज बाथरूम में उसे गुनगुनाते देख स्नेहा को जरा अचरज तो हुआ, पर खुश भी हुई कि वरुण खुश है.
औफिस पहुंच कर वरुण बेसब्री से रूपम के आने का इंतजार करने लगा. कुछ देर बाद मैसेंजर ने आ कर बताया कि एक महिला उस से मिलना चाहती है.
“भेज दो,” कह कर वरुण रूपम के सपनों में खो गया. तभी उस की खनकती आवाज से वरुण की तंद्रा टूटी और जब उस ने मुसकुराते हुए ‘गुड मार्निंग सर‘ कहा, तो वरुण को जैसे जोर का करंट लगा.
“गुड मार्निंग… प्लीज, हैव ए सीट,” वरुण ने कुरसी की तरफ इशारा किया.
‘थैंक यू सर’ बोल कर वह कुरसी पर बैठ गई और कहने लगी कि वह एकदो बैंक गई थी लोन मांगने, पर कहीं भी उस का काम नहीं बना. लेकिन अगर आप मेरी मदद कर दें तो लोन मिल सकता है.
“वह कैसे मैडम…?” वरुण ने उसे तिरछी नजरों से देखते हुए पूछा.
“सर, वह तो मुझे नहीं पता, लेकिन आप इतने बड़े बैंक में मैनेजर हैं. देखने में आप इनसान भी अच्छे लग रहे हैं, तो कुछ तो मेरी मदद कर ही सकते हैं.
‘‘सर, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है, वरना मैं यों बैंकों के चक्कर नहीं काट रही होती.
‘‘मैं जल्दी ही बैंक का लोन चुका दूंगी, विश्वास कीजिए सर मेरी बात पर.”
रूपम की बात पर वरुण को कुछकुछ विश्वास होने लगा कि यह औरत सही बोल रही है. इसी तरह वह रोज किसी न किसी बहाने वरुण से मिलने लगी. अगर वह नहीं आ पाती तो सामने से वरुण ही उसे फोन लगा देता.
रूपम को अच्छे से जान लेने के बाद कि सच में इस औरत को पैसों की जरूरत है, वरुण खुद गारंटर बन कर उसे बैंक से लोन दिलवा देता है.
इधर वरुण की मदद पा कर रूपम उस की शुक्रगुजार हो जाती है और वह उस के लिए अपने हाथों का बना पकवान ले कर आती है.
इसी तरह दोनों की दोस्ती गहरी होती जाती है और जिस का फायदा रूपम खूब अच्छे से उठाने लगती है.
अब वरुण की शाम रूपम की बांहों में बीतने लगती है. और जब स्नेहा उस से देर से आने का कारण पूछती है तो कोई न कोई बहाना बना कर उसे टाल देता है, जैसे कि आज औफिस में बहुत काम था, बौस के साथ जरूरी मीटिंग चल रही थी, क्लाइंट के साथ बिजी था, बोल कर स्नेहा को बहला देता. और उसे लगता कि वरुण सही कह रहा है.
उस रोज वरुण की शर्ट की जेब में मूवी की 2 टिकटें देख कर स्नेहा चीख पड़ी, “वरुण… वरुण, ये तुम्हारी जेब में मूवी की 2 टिकट… क्या चल रहा है?”
“मू… मूवी की टिकट. अरे, वो… वो तो मैं एक क्लाइंट के साथ ही गया था पागल. बौस ने कहा था क्लाइंट को खुश करने के लिए मूवी दिखा आ. अब बोलो बौस की बात कैसे टाल सकता था मैं. जानती तो हो अगले साल मेरा प्रमोशन ड्यू है, क्या तुम नहीं चाहती मेरी तरक्की हो? हद है भाई… बातबात पर शक करती हो मुझ पर,” वरुण ने मुंह बनाया, तो स्नेहा को भी लगा कि वह बेकार में उस के पीछे पड़ी रहती है.
वरुण को लग रहा था कि वह स्नेहा को चकमा दे रहा है. लेकिन उसे नहीं पता कि रूपम उसे चकमा दे रही थी. वह एक नंबर की फ्रौड थी. उस ने कितनों को ठगा था अब तक. और इस बार वरुण की बारी थी.
वरुण अपने प्रमोशन के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा था, लेकिन अभी भी कई लोन एमपीए जा रहा था, जिस के लिए रोज उसे अपने बौस की डांट खानी पड़ रही थी. वैसे तो रूपम को उस ने कई बार कहा लोन भरने के लिए, लेकिन हर बार वह यही कहती, गांव में उस का एक पुराना पुश्तैनी मकान है, जिसे बेच कर वह एकसाथ बैंक के सारे पैसे भर देगी.
वरुण को उस की बात सही लगती, मगर इधर कई दिनों से रूपम का कुछ अतापता नहीं था. न तो वह उस से मिलने आ रही थी और न ही उस का फोन उठा रही थी. लेकिन जब उस का फोन स्विच औफ आने लगा तो वरुण को लगा कि कहीं वह किसी मुसीबत में तो नहीं है? या कहीं उस की तबीयत तो नहीं खराब है? यह सोच कर वह उस से मिलने उस के घर चला गया. वैसे तो बैंक अधिकारी किसी के घर नहीं जाते जल्दी, लेकिन उस रोज रूपम के बहुत जिद करने पर वह उस के घर चला गया था. 2 कमरे के एक छोटे से घर में वह अकेली रहती थी. बताया था उस ने उस के मांबाप का देहांत हो चुका है. शादी हुई, पर पति से उस का तलाक हो चुका है और अब वह अपने जीवन में अकेली है. ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर रखा था, इसलिए अपना खुद का एक पार्लर खोलना चाहती थी, जिस के लिए उसे बैंक से लोन चाहिए.
खैर, जब वरुण उस के घर पहुंचा, तो दरवाजे पर बड़ा सा ताला लटका देख हैरान रह गया… हैरान इसलिए, क्योंकि अपनी हर एक छोटी से छोटी बात वह उस से बताती आई थी. तो यह बात कैसे नहीं बताई कि वह कहीं जा रही है? वह कहां गई है? कब आएगी ? कैसे पता करेगा, समझ नहीं आ रहा था उसे. तभी उसे सामने से एक अधेड़ उम्र की महिला आती दिखी.
“ए… एक मिनट मैडम, क्या आप बता सकती हैं कि इस घर में जो महिला रहती थी, रूपम व्यास… कहां गई है और कब आएगी?”
पहले तो उस महिला ने वरुण को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा, फिर यह बोल कर आगे बढ़ गई कि उसे कुछ नहीं पता.
वरुण ने फिर कई बार रूपम को फोन मिलाया, पर वही स्विच औफ.
‘कहीं उस ने मुझे धोखा तो नहीं दे दिया? अगर ऐसा हुआ तो गया काम से मैं,’ अपने मन में ही सोच वरुण ने माथा पकड़ लिया. बहुत पता लगाया, लेकिन रूपम का कहीं कोई पताठिकाना नहीं मिला उसे, लेकिन एक रोज रूपम की सचाई जान कर वरुण को जोर का करंट लगा. उस ने वरुण को जोजो बताया अपने बारे में, सब झूठ था. यहां तक कि उस का नाम भी झूठा था. वह एक फ्रौड महिला थी, जो लोगों को लूटने का काम करती थी. पहले वह लोगों को अपनी सुंदरता के जाल में फंसाती थी, फिर उस के पैसे लूट कर रफूचक्कर हो जाती थी.
कितना समझाया था स्नेहा ने, ‘सुधर जाओ, वरना… खुद तो डूबोगे ही एक दिन हमें भी ले डूबोगे,’ और ऐसा ही हुआ.
वरुण हमेशा स्नेहा की बातों को इगनोर करता आया था. लेकिन आज उसे एहसास हो रहा था कि वह कितना गलत था. लेकिन अब क्या…? पैसे तो अब उसे अपनी जेब से ही भरने पड़ेंगे न, वरना अपनी नौकरी से जाएगा.. बड़ी हिम्मत कर के जब उस ने स्नेहा को यह सारी बात बताई, तो वह सिर पकड़ कर बैठ गई. पूरी रात दोनों चिंता, अनिद्रा और तनाव के कारण करवटें बदलते रहे. अब एकदो पैसे की बात तो थी नहीं, पूरे 10 लाख रुपए…? कहां से लाएगा वो इतनी बड़ी रकम…? अब स्नेहा भी क्या कर सकती थी. लेकिन गुस्सा तो उसे अभी भी बहुत आ रहा था. रात में कितना सुनाया उस ने वरुण को कि देख लिया न अपनी करनी का फल? सुंदर औरतों के पीछे भागने का नतीजा? उस पर वरुण ने अपने दोनों कान पकड़ कर उस से माफी मांगी थी और कहा था कि अब कभी वह ऐसी गलती नहीं करेगा. अब गलतियां तो इनसान से ही होती हैं न? यह सोच कर स्नेहा ने भी उसे माफ कर दिया और अपने सारे जेवर यह बोल कर उस के हाथों में पकड़ा दिए कि वह जा कर लोन की रकम भर दे, वरना प्रमोशन मिलना भी मुश्किल हो जाएगा.
“चलो, मैं औफिस के लिए निकलता हूं,” स्नेहा को सीने से लगाते हुए वरुण बोला, तो स्नेहा ने चुटकी ली कि फिर वह कहीं किसी मेनका के फेर में न पड़ जाए.
“पागल हो क्या…?‘‘ अपनी आंखें गोलगोल घुमाते हुए वरुण बोला, “गलती बारबार थोड़ी ही दोहराई जाती है. मैं तो एक नारी ब्रह्मचारी हूं और रहूंगा…” लेकिन गाड़ी में बैठते ही वह बड़ी कुटिलता से मुसकराया और बोला, “पागल… अब घोड़ा घास से यारी नहीं करेगा तो खाएगा क्या?
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