REVIEW: गैंगरेप जैसे जघन्य अपराध पर अति सतही फिल्म ‘सिया’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः दृश्यम फिल्मस

निर्देशकः मनीष मुंद्रा

कलाकारः विनीत कुमार सिंह, पूजा पांडे व अन्य.

अवधिः एक घंटा पचास मिनट

‘कड़वी हवा’, ‘मसान’, ‘आंखों देखी’ और ‘न्यूटन’ जैसी सफलतम फिल्मों के निर्माता मनीष मुंद्रा ने पहली बार लेखक व निर्देशक के तौर पर ‘गैंगरेप’ जैसे कुकृत्य पर फिल्म ‘‘सिया’’ लेकर आए हैं, जिसे देखकर पिछले कुछ वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश के उन्नाव व हाथरस में घटी रेप की घटनाएं याद आ जाती हैं. मगर फिल्म अपना असर डालने में  पूरी तरह से असफल है.

कहानीः

फिल्म की कहानी केंद्र में सत्रह वर्षीय सीता सिंह उर्फ सिया है. एक गरीब परिवार की बेटी सिया (पूजा पांडे) ही पूरे परिवार की जिम्मेदारियां उठाती है. उसके पिता खाट पर बैठकर दिनभर बीड़ी फूंकते रहते हैं. सिया के चाचा चाची अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं. सिया जंगल से लकड़ी काटकर लाने से लेकर छोटे भाई को पढ़ाने, कहानी सुनाने से लेकर भाई को स्कूल छोड़ने व गेहूं पिसाने सहित सारे काम करती है. सिया एक आदर्श बेटी है. वह अब नौकरी करना चाहती है. इसलिए वह अपने चाचा के दोस्त व दिल्ली में नोटरी का काम करने वाले वकालत पास तथा जाति से मल्लाह धर्मेंद्र (विनीत कुमार सिंह) से मदद मांगती है. इस बीच नौकरी दिलाने का झांसा देकर स्थानीय विधायक एक दिन गांव की ही एक बुजुर्ग महिला की मदद से रात में अपने बंगले पर बुलाकर सिया संग गलत काम करते हैं. उसके बाद गांव के विधायक के चमचे उसके पीछे पड़ जाते हैं. एक दिन जब सिया अपने घर से निकलकर चुपचाप दिल्ली की तरफ रवाना होती है, तो बस अड्डे पहुॅचने से पहले ही विधायक के पाले हुए चार लड़के उसे जबरन अगवा कर लेते हैं. यह चारों लड़के गांव के बाहरी हिस्से के खंडहरनुमा मकान में सिया को बंदी बनाकर रखते हैं और सभी चारांे लड़के हर दिन उसके साथ गैंगरेप करते हैं. उसे यातना देते हैं. सिया की तलाश में सिया के माता पिता की मदद धर्मेंद्र करता है. पुलिस एफआई आर लिखने से इंकार कर देती है. अचानक एक पत्रकार को इस कांड की भनक लग जाती है, वह धर्मेंद्र से मिलकर सारी जानकारी लेकर एक अखबार में छाप देता है. तब विधायक जी अपना खेल कर पुलिस को इशारा करते हैं कि चारों युवकों को गिरफ्तार किया जाए. लेकिन पुलिस सिया का मेडीकल दूसरे दिन नहला धुलाकर कराती है. मजिस्ट्ेट के सामने बयान के लिए सिया को ले जाने से पहले उसे समझाती है कि वह विधायक के खिलाफ कुछ नहीं कहेगी. फिर सिया के माता पिता उसे दिल्ली में उसके चाचा चाची के पास छोड़ आते हैं. इधर सभी आरोपियों को जमानत मिल जाती है. विधायक फोन करके सिया के चाचा को समझाते हंै कि अब सब मामला रफा दफा हो जाने दो. मगर धर्मेंद्र से बात करके सिया न्याय की लड़ाई जारी रखने का निर्णय लेती है. उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अब सिया को न्याय मिला या नही, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म निर्माण में पैसा लगाने वाला शख्स हमेशा यही सोचता है कि उसकी बात को ही अहमियत दी जाए. और जब वह निर्माता होने के साथ ही स्वयं लेखक व निर्देशक हो तो फिर उसके सामने किसकी चलने वाली. मूलतः व्यवसायी मनीष मंुद्रा के कई धंधे हैं. उनका व्यवसाय भारत व भारत के बाहर भी फैला हुआ है. ऐसे में उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वह संवेदनशील व नारी की अस्मिता से जुड़े मुद्दे पर गंभीरता के साथ फिल्म बनाएंगे. मगर ऐसा कुछ नही हुआ. अस्सी व नब्बे के दशक में ‘कला’ या ‘समानांतर सिनेमा’ के नाम पर जिस तरह से देश की गरीबी, गांव के हालात , गांवों की पृष्ठभूमि में पुलिस, प्रशासन व राजनीति का कलुषित चेहरा ही पेश किया जाता था, उसी तरह से मनीष मंुद्रा ने भी अपनी इस फिल्म में गांव की पृष्ठभूमि में गैंगरेप व पुलिस प्रशासन से सीबीआई तक में फैले भ्रष्टाचार व शोषण के दमनचर्क की तरफ इंगित किया है. अफसोस फिल्म देखते हुए पीड़िता के प्रति न सहानुभूति पैदा होती है और न ही अपराधियों के प्रति मन में गुस्सा आता है. निर्देशक के निर्देशन में केाई खूबी नजर नही आती. इस फिल्म में पुलिस और राजनेताओं का जिस तरह का रवैया चित्रित किया गया है, वह तो कई फिल्मों व वेब सीरीज में इससे भी बेहतर ढंग से दिखाया जा चुका है. फिल्म देखकर यही समझ में नहीं आता कि मनीष मंुद्रा जी आखिर हैं किसके साथ?

जब विधायक नौकरी दिलाने का आश्वासन देकर रात के अंधेरे में अपने बंगले के अंदर सिया की इज्जत  लूटते हैं, तब सिया को गुस्सा नही आता. नौकरी पाने के लालच में सिया,  विधायक के इस कुकृत्य अपराध  के बारे में अपने माता पिता से भी नही बताती है? जब सीबीआई के सवालों में सिया खुद फंसने लगती है, तब वह विधायक के बारे मे बयान देती है. इस तरह फिल्मकार ने ‘बलात्कार’ को बहुत ही सतही बना दिया. उन्नाव व हाथरस में हुए गंैगरेप की चर्चाएं पूरे भारत में काफी हुई. इन दो गैंगरेप कांड को जिस तरह टीवी समाचार चैनलों ने दिखाया था, लगभग वैसा ही इस फिल्म में भी है. फिल्मकार इतना डरे हुए नजर आते हैं कि उन्होने छोटी जाति की लड़की की बजाय गरीब ठाकुर लड़की का ही बलात्कार ठाकुर नेता व उनके चमचों से करवाया है. फिल्म कुछ भी नई बात नही करती और कहानी कहने का अंदाज भी बहुत पुराना है. बतौर निर्देशक मनीष मंुद्रा का काम काफी सतही है. स्पष्ट शब्दों में कहें तो फिल्मकार ने ‘गैंगरेप’ जैसे अतिसंवदेनशील मुद्दे को ठीक से रख नही पाए.

फिल्म इस बात को अवश्य रेखांकित करती है कि पुलिस और राजनेताओं का आपसी गंठजोड़ किस तरह सच्चाई को दबाने और उत्पीड़ितों पर अत्याचार करने के लिए अपनी शक्ति का दुरूपयोग करता है. सबूतों के साथ छेड़छाड़ किए जाने, गवाहों को धमकाने, पीड़िता के परिवार का उत्पीड़न करने सहित सारे हथकंडे इस फिल्म का हिस्सा हैं, जिन्हें देखकर हाथरस व उन्नावं कांड जेहन में आता ही है.

फिल्मकार ने समस्याएं जरुर बता दीं, पर हल नही बताया. इतना ही नहीं पुलिस व नेताओं का उत्पीड़न इस कदर दिखा दिया है कि लोग डर कर सच का साथ देने से दूर भागेगें, यह फिल्मकार की सबसे बड़ी विफलता है.

फिल्म का पाश्र्वसंगीत काफी लाउड है.

अभिनयः

सरल, कर्तव्यपरायण व बहादुर लड़की सिया के किरदार में पूजा पांडे का अभिनय ठीक ठाक ही कहा जाएगा. यदि कोई समर्थ निर्देशक होता, तो शायद वह पूजा पांडे से ज्यादा बेहतर अभिनय करवा लेता. विनम्र वकील व नोटरी का काम करने वाले धर्मेंद्र के किरदार में विनीत कुमार सिंह का अभिनय शानदार है. अन्य कलाकारों का अभिनय भी ठीकठाक है.

जिंदगी में आखिर क्या मिस करते है हिमेश रेशमिया, पढ़े इंटरव्यू

तेरा सुरूर….. सिंगर हिमेश रेशमिया के ये गाना हर कोई सुनना पसंद करते है, क्योंकि इस गाने में हिमेश ने प्यार की भावना को बहुत ही सुंदर तरीके से गाने की कोशिश की है. हिमेश एक इमोशनल सिंगर है, इसलिए उनके गीतों में मेलोडी अधिक होती है. हिमेश रेशमिया का जन्म 23 जुलाई 1973 को गुजरात में हुआ था. उनके पिता का नाम विपिन रेशमियां है और उनकी माँ का नाम मधु रेशमियां है. हिमेश के पिता की इच्छा थी कि उनका बड़ा बेटा संगीत की दुनिया में कुछ करें, लेकिन अचानक एक एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गयी और तब हिमेशकेवल 11 वर्ष के थे.उन्होंने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने की वजह से संगीत में अपना कैरियर बनाया.केवल 16 साल की उम्र में हिमेश ने दूरदर्शन अहमदाबाद से अपने कैरियर की शुरुआत की थी.

मिली सफलता

 

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सलमान खान की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्‍या’से उन्होंनेहिंदी फिल्मों के लिए संगीतकार का काम किया, फिल्म काफी हिट साबित हुई और इस फिल्म के बाद रेशमियां ने सलमान की कई फिल्मों में अपना संगीत दिया, जो हमेश सुपरहिट रहा. हिमेश को बतौर संगीत निर्देशक सफलता फिल्म तेरे नाम से वर्ष 2003 में मिली थी. सफल निर्देशन के बाद उन्होंने अपनी किस्मत गायकी में फिल्म ‘आशिक बनाया आपने’ से किया. इस फिल्म के गाने उस दौर में काफी हिट साबित हुए थे. साथ ही उन्हें इस फिल्म के बेहतरीन गानों के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गायक के पुरुस्कार से भी नवाजा गया था. हिमेश हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे गायक और संगीत निर्देशक हैं जिन्हें उनके पहले डेब्यू गाने के फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ नवोदित गायक के अवार्ड से नवाजा गया.

अभिनय करना पड़ा भारी

फिल्मों में कैरियर शुरू होने से पहले हिमेश संगीत के कई शो किया करते थे,जिन्हें लोग काफी पसंद करते थे. हिमेश का संगीत निर्देशन और गायकी का कैरियर हिंदी सिनेमा में सुपरहिट रहा, लेकिन उनका अभिनय कैरियर अच्छा नहीं था. उन्होंने बतौर अभिनेता कई फिल्मों में काम किया, लेकिन उनकी एक भी फिल्म सिनेमाघरों में दर्शकों का दिल नहीं जीत सकी. हिमेश की पहली शादी 21 वर्ष की उम्र में कोमल से हुई, उनसे उनका एक बेटा स्वयं रेशमिया है. कुछ सालों साथ रहने के बाद हिमेश ने कोमल को तलाक देकर दूसरी शादी सोनिया कपूर से की, जो उनकी लॉन्ग टर्म गर्लफ्रेंड रही है.

दिए अवसर

 

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हिमेश बड़े पर्दे के अलावा छोटे पर्दे पर भी कई रियलिटी शोज के जज बने और हर काबिल प्रतियोगी को गाने का अवसर भी देते रहे. इतना ही नहीं उन्होंने बंगाल की राणाघाट रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर भीख मांगती हुई रानू मंडल को भी गाने का अवसर दिया, जिसकी वजह से आज वह स्टेज शो कर अच्छा कमाती है. हिमेश इन दिनों सोनी टीवी पर रियलिटी शो इंडियन आइडल 13 में एक बार फिर जज बनें है और अपने अनुभवों को उन्होंने वर्चुअल इंटरव्यू के जरिये बयान किया कि वे अभी भी इस रियलिटी शो से बहुत कुछ सीखते आ रहे है, जो उन्हें जीवन की हकीकतों से रूबरू करवाता है.

जीता हूँ बचपन

हिमेश कहते है कि इस शो के ज़रिये मैं अपने बचपन की उन पलों को जीता हूँ, जिसे अब मैं भूल चुका हूँ, ये बहुत बड़ा भावनात्मक पल मेरे लिए होता है, लेकिन अच्छा भी लगता है. इसका प्रेशर केवल ऑडिशन, शूटिंग और जज करने तक ही होता है, जिसे इन छोटे-छोटे बच्चों को देखने पर ख़त्म हो जाता है. पहले किसी भी प्रतिभा को आगे आने का कम अवसर मिलता था, लेकिन अब इस मंच के द्वारा ये बच्चे आगे बढ़कर संगीत को एक अच्छा प्रोफेशन बना सकते है. इसबार का सीजन बहुत अच्छा, और प्रतिभायुक्त है. कोविड के बाद इस बार काफी संख्या में बच्चों ने भाग लिया है, जिसमे सही प्रतिभा को चुनना बहुत मुश्किल हुआ.

फिटनेस पर ध्यान

हिमेश हमेशा अपने लुक्स को लेकर बहुत सजग रहते है और इसकी जिम्मेदारी वे अपनी पत्नी को देते है, जो हमेशा डाइटिशियन के हिसाब से होता है, खाना वे सब खाते है, लेकिन समय से उन्हें खाना पड़ता है. वे कहते है कि समय से खाना जरुरी है, लेकिन इस तरह के डाइट में टेस्ट कही रह जाता है. ऐसा मुझे कुछ विडियो सॉंग और प्रोजेक्ट के लिए करना पड़ता है, जिसे मेरी पत्नी लगन से करती है, पर ऐसा करना कठिन होता है.

जरुरी मेहनत करने का जज्बा

हिमेश हमेशा नए टैलेंट को मौका देते है और ये वे ऑडिशन के समय ही प्रतियोगी से कह देते है, जिससे उन्हें अच्छा गाने का प्रोत्साहन मिलता है. इसकी वजह के बारें में पूछे जाने पर उनका कहना है कि अगर ये बच्चे पुराने गाने इतने सुंदर गाते है तो ये नए गानों को भी सही तरीके से गा सकते है, और उन सभी ने मेरी आने वाली फिल्मों और वेब सीरीज में अच्छा प्रदर्शन दिया है. मेहनत करने का जज्बा बच्चों में होने की जरुरत होता है, क्योंकि आज भी जब कोई गाना किसी शुक्रवार को किसी फिल्म के रिलीज के बाद आती है, तो मेरी मेहनत वैसी ही रहती है, जितना पहले हुआ करती थी.

जरुरी पर्सनल एपिअरेंस

हिमेश आगे कहते है कि मैं विश्वास करता हूँ कि हर इंसान में कुछ न कुछ प्रतिभा होती है, जिसे बाहर निकालना पड़ता है. एक जमाना था जब सिर्फ प्लेबैक हुआ करता था, वहां एक आर्टिस्ट, गायक कलाकार की आवाज कोसुनते थे, किसी प्रकार की पर्सनल कनेक्शन गायक के साथ एक्टर्स का नहीं था.आवाज से जज किया जाता था, अगर एक्टर ने उस गाने को सही से निभा दिया है तो आप उससे कनेक्ट हो पाते थे, पर आज का जमाना एपीयरेंस का है, सोशल मीडिया एक्टिव हुआ है, उसमे सभी के आँखों का रिएक्शन,गाने का ढंग, ओवर आल प्रस्तुति सब सामने आती है. आवाज के अलावा उनके आसपास के लोगों का प्रभाव पड़ता है. जो कुछ के लिए आसान और कुछ को कठिन लगता है.

करता हूँ मिस

गायक हिमेश का कहना है कि मैंने अपने पिता के साथ बहुत छोटी उम्र से संगीत सीखना शुरू कर दिया था. पहले मैंने अधिक लाइव शूट नहीं किया है. बड़े स्टूडियों में सभी का एक साथ होने वालाइंटरेक्शन बहुत अच्छा था, वह अब कम होता है, अभी ट्रैक दिया जाता है और तकनीक का प्रयोग बहुत होता है. मेरे पिता ने 100 से अधिक म्यूजिशियन के साथ बड़े स्टूडियों में गाया है. 8 घंटे की रिहर्सल के बाद एक टेक में गाने को रिकॉर्ड करवाना,अब एक एपिक बन चुका है. वह प्रोसेस अब नहीं है और दर्शक भी उसे पसंद नहीं करेंगे, लेकिन उस प्रोसेस में जो वाइब्सथी उसे मैं बहुत मिस करता हूँ. उन पुराने गानों को अभी भी सब सुनते है और उनसे प्रेरित होकर नया गाना बनाते है.

‘ब्रह्मास्त्र’ के कारण PVR और INOX निवेशकों के डूबे 800 करोड़, पढ़ें खबर

अयान मुखर्जी निर्देशित और रणबीर कपूर, आलिया भट्ट व अमिताभ बच्चन के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘बम्हास्त्रः भाग एक -शिवा’’ नौ सितंबर को प्रदर्शित हुई और फिल्म को ज्यादातर आलोचकांे की तरफ से नगेटिब प्रतिक्रियाएं मिली. तथा बाक्स आफिस पर भी अच्छे हालात नही रहे. जिसके चलते पीवीआर और  आईनॉक्स के निवेशकों को 800 करोड़ से अधिक का नुकसान हो गया. ज्ञातब्य है कि भारत में पीवीआर और आयनॉक्स मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर की सबसे बड़ी चेन है. और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस चेन को शुक्रवार, नौ जून को बाजार पूंजीकरण में कुल मिलाकर 800 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है.

अयान मुखर्जी ने भारतीय पौराणिक कथाओं में वर्णित अजेय विनाशरूपी अस्त्र के रूप में वर्णित  ब्रह्मास्त्र के नाम पर 410 करोड़ की लागत से बनी फिल्म ‘‘ब्रम्हास्त्रः भाग एक’’ का विनाश यह अस्त्र रोक न पाया. यह हालत तब हुई है, जब निर्माता और पीआर टीम दावे कर रही थी कि फिल्म को 23 करोड़ की अग्रिम बुकिंग मिल चुुकी है. सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह रही कि हर फिल्म को चार तक की रेटिंग देने वाले फिल्म समीक्षक और विश्लेषक तरण आदर्श ने भी इस फिल्म को दो स्टार की रेटिंग देते हुए इसे सर्वाधिक निराशा वाली फिल्म बता दी.

इतना ही नही दर्शकों की प्रतिक्रियाएं भी फिल्म के बाक्स आफिस को निरायाा की ही तरफ ले जाती हैं. एक दर्शक ने फिल्म देखने के बाद कहा-‘‘यह फिल्म तो अति घटिया तरीके से लिखी गयी सीरियल ‘क्राइम पेट्रोल’ के संवाद और एकता कपूर की साजिशों का मिश्रध है. ’’

‘‘ब्र्रह्मास्त्रः भाग एक शिवा’’ का बाक्स आफिस पर उस वक्त सफाया हुआ है,  जब बौलीवुड अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहा है. पिछले कुछ माह से बौलीवुड फिल्में लगातार असफल हो रही हैं और अब ‘ब्रह्मास्त्र’ सबसे बड़ी असफल फिल्म साबित होने जा रही है. अफसोस की बात यह है कि हर किसी को उम्मीद थी कि इस फिल्म से हिंदी फिल्म उद्योग का पुनरुत्थान होगा, पर इस उम्मीद पर पानी फिरता नजर आ रहा है.

410 करोड़ के बजट में बनी फिल्म ‘‘ब्रह्मास्त्र’’ के साथ रणबीर कपूर,  आलिया भट्ट,  अमिताभ बच्चन,  टॉलीवुड स्टार नागार्जुन, डिंपल कापड़िया, मौनी रौय व शाहरुख खान का नाम जुड़ा हुआ है. तो वहीं इसका निर्माण दिग्गज निर्माता करण जौहर ने किया है. हर किसी को उम्मीद थी कि यह फिल्म हिंदी फिल्म उद्योग का पुनरूत्थान करेगी, मगर यह तो विनायाक बनकर सामने आयी. जी हॉ!अयान मुखर्जी का दिग्भ्रमित करने वाली कहानी, पटकथा व निर्देशन ने फिल्म को डुबाते हुए पूरे फिल्म उद्योग को संकट के मुहाने पर पहुंचा दिया. फिल्म में कई स्तर पर काफी कमियां हैं, मगर इस फिल्म को डुबाने में पीआर टीम ने कम खेल नही खेला.

आज की तारीख में जरुरत इस बात की है कि हर फिल्मकार व कलाकार अपने अंदर स्वयं झांककर देखे कि वह कहां गलती कर रहे हैं. जिस मार्केटिंग  टीम, रचनात्मक टीम व पीआर टीम पर भरोसा कर वह निर्णय ले रहे हैं, उनकी वह टीम कितनी सक्षम व सही है. पीआरओ का काम होता है कि वह अपने ग्राहक (फिल्म व कलाकार)के पक्ष में सकारात्मक माहौल पैदा करते हुए फिल्म व कलाकार का एक ब्रांड बनाए. क्या पीआर टीम यह सब कर पा रही हैं?

वैसे ‘बौयकॉट’ मुहीम के चलते फिल्म विश्लेषकों और बाजार के विश्लेषको ने पहले ही मान लिया था कि यह फिल्म अपनी लागत वसूल नही पाएगी. एलारा कैपिटल ने दो सप्ताह पहले एक मीडिया नोट में कहा था – ‘‘फिल्म का लिए लाइफटाइम बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 130 से 200 करोड़ के बीच रहने का अनुमान है. ’’मगर किसी ने नहीं सोचा था कि फिल्म की इस कदर दुर्गति होगी.

‘‘ब्रह्मास्त्र’’ की असफलता से आम निवेशक अपने नुकसान को देखकर गुस्से में हैं. पीवीआर के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह अपने निवेशकों की नाराजगी को कैसे दूर करें.

फिल्म के विरोध के बारे में क्या कहते है निर्देशक लेखक कमल पांडे

फिल्म राइटर से निर्देशक बनेकमल पाण्डे उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के एक छोटे से गांव से है, उन्हें बचपन से ही फिल्म इंडस्ट्री में कुछ करने की इच्छा थी. उन्होंने बहुत संघर्ष कर अपनी मुकाम हासिल की है. उनके इस संघर्ष में उनकी पत्नी रिया पांडे का हमेशा साथ रहा है. उनके दो बच्चे आरव पांडे और विहान पांडे है. पत्नी एक इंटीरियर डिज़ाइनर है. निर्देशक कमल को गृहशोभा की कहानियां, ब्यूटी, फैशन और सोच से जुड़े लेख बहुत पसंद है. इस ग्रुप की मनोहर कहानियां को भी खूब पढ़ते है.

कमल पांडे ने फिल्म साहेब बीबी और गैंग्स्टर रिटर्न्स, शादी में जरुर आना और हिट टीवी शो न आना इस देश लाडो आदि कई फिल्में और सीरियल को लिखा है. करीब 20 साल से उनकी डायरेक्टर बनने की इच्छा को अंत में एक कहानी फिल्म ‘जहाँ चार यार’ को डायरेक्ट करने का मौका मिला. एक निर्देशक के रूप में कमल की ये एक डेब्यू फिल्म है, जिसे उन्होंने बहुत मेहनत से लिखा और बनाया है. 60 प्रतिशत फिल्म लखनऊ में और बाकी गोवा में शूट किया गया हैं, क्योंकि टीम के कई लोगों को कोविड पोजीटीव हो गया था, जिससे बीच में शूट को रोकना पड़ा था.

गलत नहीं होती विचारधारा

कमल की इस फिल्म को पर्दे पर आने के लिए कुछ लोगों ने विरोध किया है, क्योंकि इसमें अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने काम किया है और स्वरा हमेशा सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने की वजह से कंट्रोवर्सी की शिकार हुई है. कमल कहते है कि अभिनेत्री स्वरा से काफी कंट्रोवर्सी जुडी हुई है, लेकिन उन्हें लेकर फिल्म फिल्म बनाने में कोई मुश्किल नहीं आई और जब मैं उन्हें कास्ट कर रहा था, तो कई लोगों ने उन्हें फिल्म में लेने से मना तक किया था, पर मेरे हिसाब से हर व्यक्ति की एक विचारधारा होती है. स्वरा की एक सोच समाज और राजनीति को लेकर है और वह अच्छा अभिनय भी करती है. मैने विचारधारा को साथ में लेकर चलने वाले को गलत नहीं समझता. फिल्म की कहानी को सभी दर्शक पसंद करेंगे और स्वरा की इमेज इसमें सामने नहीं आएगी.

नहीं मिलती तवज्जों घरेलू काम को

कमल कहते है कि बचपन से ही मैने अपने घरो या कहीं जाने पर महिलाओं की ऐसी दशा देखा है, महिलाएं पूरे घर को देखती है, लेकिन उन्हें देखने वाला कोई नहीं होता. सुबह 4 बजे उठकर घर के पूरे काम काज निपटाना और देर रात तक सब खत्म कर सोने जाना, ये सब देखते हुए मुझे लगता था कि महिलाओं का काम को थैंकलेस लाइफ कहा जा सकता है. इस विषय पर फिल्में नहीं बनी है, इसलिए मैंने इस विषय पर लिखना शुरू कर दिया. इसमें मैंने उन महिलाओं पर अधिक फोकस किया, जिनके बच्चे बड़े हो चुके है, पति अपनी कमाई में व्यस्त है और महिलाये घर पर अकेली लाइफ बिता रही है. ये कहानी बहुत पहले से मेरे दिमाग में थी, पर मैंने लॉकडाउन में इसे लिखकर पूरा किया और सौन्दर्य प्रोडक्शन हाउस में ले गया. उनको कहानी सुनाने के बाद उन्हें पसंद आई और उन्होंने मुझे इस फिल्म को बनाने की स्वीकृति दी, क्योंकि मैने उनके लिए फिल्म ‘शादी में जरुर आना’ लिख चुका था, उन्हें मेरी चॉइस पता था. इसलिए उन्हें आगे आकर इस फिल्म को बनाने में किसी प्रकार की झिझक नहीं थी.

निर्देशक बनने में लगा समय

कमल हंसते हुए कहते है कि शुरू से ही मैं राइटर और डायरेक्टर बनना चाहता था. मैं चित्रकूट के गांव मौऊ शिबो में जन्मा और बड़ा हुआ. इसके बाद इलाहाबाद और दिल्ली से पढाई की और मुंबई आ गया, मैं शुरू से ही लेखक और निर्देशक बनना था. निर्देशक की जर्नी तय करने में समय लगा पर मैंने लिखना पहले से ही शुरू कर दिया था.

मिला सहयोग

निर्देशक कमल का कहना है कि मुंबई में आने की वजह निर्माता नीरजा गुलेरी थी, जिन्होंने चन्द्रकान्ता बनाया था. उनके कई शोज चल रहे थे और उनके लेखक कमलेश्वर से मेरी बातचीत होती थी और मैं कमलेश्वर की वजह से ही नीरजा गुलेरी की शो के लिए कुछ लिखने के लिए मुंबई आया. पहला शो मेरा ‘युग’ था, जो डीडीमेट्रो पर आता था और बहुत सफल शो बनी थी. वहां से मेरा काम शुरू हुआ, जिसमे पहली फिल्म ‘शक्ति’ थी. उसके बाद रण, शो ‘ना आना इस देश लाडो’ आदि कई शोज भी लिखे है.

मिली प्रेरणा

निर्देशक आगे कहते है कि क्रिएटिव फील्ड में मेरे दादा अवधि में कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद कवितायें लिखते है. वह मेरे मन में आ गयी थी और मैंने करीब 12 साल से ही कवितायें और गीत लिखना शुरू कर दिया था. मेरे कई गीत छपे है. पहले मैं सीरियस गीत लिखता था. इसके बाद कहानियां लिखना शुरू किया. गीत मैं अभी भी लिखता हूं, लेकिन पढने का काम साइड में रह गया है. साहित्य का पाठक हूं.

मिला सहयोग

परिवार की प्रतिक्रिया कैसी रही पूछने पर वे बताते हैकि मेरे पिता देवनारायण पांडे मेरी बहुत कम उम्र में गुजर चुके थे, माँ कमला पांडे और बड़े भाई ने मेरी शिक्षा पूरी करवाई है. मैं दिल्ली आईएएस बनने आया था, लेकिन उसी बीच में मैंने लिखना भी जारी रखा, क्योंकि मुझे फिल्में लिखना और बनाना है. असल में मैंने बहुत पहले एक फिल्म ‘पथेर पांचाली’ दूरदर्शन पर देखा था. उसे देखने के बाद लगा कि मैं भी ऐसी कहानियां कह सकता हूं, जीवन से जुडी कहानी. मैं इसलिए मुंबई आया. दिल्ली से जब मैंने भाई को अपनी इच्छा को बताई, तो उन्होंने मुझे सोच-समझकर फैसला करने की सलाह दिया.

काम मिलना कठिन

मैं मुंबई साल1998 में आया और अपनी पढाई पूरी करने के लिए वापस दिल्ली गया, लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया वापस आ गया. साल 2000 से मैं मुंबई में हूं. बड़ा ब्रेक मुझे ‘युग’ में मिला था. आउटसाइडर होने की वजह से बड़े प्रोडक्शन हाउस में एंट्री मिलना मुश्किल होता है, लेकिन मेरे मन में विश्वास था कि मैं अच्छा लिखता हूं और मेरी कहानी को लोग सुनना पसंद करते है. आउटसाइडर होने की वजह मुझे यहाँ तक पहुँचने में इतना समय लग गया. मैंने बिना किसी गॉडफादर, सोर्स या सपोर्ट के मैने अपनी जगह बनाई है. नए डायरेक्टर को मनपसंद कलाकारों को लेकर फिल्म बनाना बहुत कठिन होता है. मुझे शुरू में कठिनाइयाँ आई, लेकिन मेरी स्क्रिप्ट सुनने के बाद स्वरा ने तुरंत हाँ कह दी. इसके बाद सभी राजी हो गए. फिल्म ‘शादी में जरुर आना’ काफी पसंद की गयी थी, इससे कलाकार को निर्देशक पर विश्वासहो जाता है.

रिलीज का है डर

फिल्म रिलीज का डर बना हुआ है, क्योंकि कौन सी गैंग या लोग फिल्म की बहिष्कार के लिए पर्दे के पीछे से काम कर रही है, पता नहीं होता. उसी के बीच से अच्छी फिल्म अपनी जगह बनाएगी और लोगों तक पहुंचेगी. उम्मीद है फिल्म समय पर ही रिलीज होगी.

फिल्मो से गायब मनोरंजन

ओटीटी फिल्मों से मनोरंजन गायब है, हर फिल्म को रियल कहकर मारधाड़, हिंसा, सेक्स आदि जमकर डाल दिया जाता है, इस बारें में कमल कहते है कि मेरी राय में हिंदी सिनेमा बहुत अधिक हॉलीवुड से प्रेरित हो चुकी है. लोगों ने एक-एक पॉकेट्स में कहानियां बनानी शुरू कर दी है, जिसमे थ्रिलर, क्राइम थ्रिलर, साइकोलोजिकल थ्रिलर जैसी नाम दे दिया है. पहले जो हिंदी मनोरंजक फिल्मे बनती थी, उसका बीच में अभाव हो गया था. मैं मानता हूं कि रियलिटी कैसी भी हो,वह मैजिकल होनी चाहिए. जादुई यथार्थ को सिनेमा में क्रिएट करनी होगी, ताकि चीजे रियल होने के साथ-साथ ऑथेंटिक और आँखों को अच्छी भी लगे. मैं ऐसी फिल्मे बनाना चाहता हूं, जो मनोरंजन के साथ दिल को छुए भी. इसके अलावा मैं अभिनेता कार्तिक आर्यन और रणवीरसिंह के साथ काम करना चाहता हूं.

गुटबाजी का खतरा

फिल्म इंडस्ट्री में गुटबाजी का सिनेमा पर प्रभाव के बारें में पूछने पर कमल कहते है कि इसका प्रभाव फिल्म इंडस्ट्री पर बहुत पड़ा है. करन जौहर के ग्रुप में कोई घुस नहीं सकता. यशराज तक पहुंचना हर व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है. बड़े हाउसेस आउटसाइडर की पहुँच से बाहर है. प्रतिभा की वजह से अगर मौका मिला भी है, तो उन्हें बाहर किसी के साथ काम करने नहीं देते. ये बहुत ही गलत नजरिया है, जिसे इंडस्ट्री भुगत रही है.

इस वजह से नेपोटिज्म का शिकार नहीं हुईं एक्ट्रेस शिखा तलसानिया

भाई-भतीजावाद को लेकर हमेशा कुछ न कुछ चलता है, लेकिन अगर आपमें प्रतिभा एक्टिंग की है, तो अवश्य सफल होंगे, क्योंकि इससे एक मौका मिल सकता है, लेकिन प्रतिभा न होने पर आप कही भी नहीं दिखते, क्योंकि इंडस्ट्री फिल्मों के ज़रिये व्यवसाय करती है और हानि कोई व्यापारी झेलना नहीं चाहता, हंसती हुई कहती है शिखा तलसानिया, जो मशहूर कॉमेडियन टिकू तलसानिया की बेटी है और फिल्म ‘जहां चार यार’ में एक मैरिड महिला की भूमिका निभा रही है.

शिखा की मां दीप्ती तल्सानिया है, जो एक क्लासिकल डांसर और थियेटर आर्टिस्ट है. शिखा का एक भाईरोहन तल्सानिया है. शिखा ने अपनीपढ़ाई पुणे और मुंबई में  रहकर पूरी की है. शिखा ने अपने कैरियर की शुरुआत पर्दे के पीछे रहकर फ्लोर प्रोड्यूसर, लाइन प्रोड्यूसर की किया.इसके अलावा वह एक बेहतरीन थियेटर आर्टिस्ट भी है.

नेपोटिज्म से रहती हूं दूर

एक्ट्रेस शिखा तलसानिया ने भी फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म को लेकर कई बार अपनी प्रतिक्रिया दी है, एक्ट्रेस का मानना है कि फिल्म उद्योग में सभी का अलग-अलग एक्सीपीरियंस होता है. जब उन्होंने इंडस्ट्री जॉइन की थी तब उनके बारे में लोगों को ये भी नहीं पता था कि वह एक्टर टीकू तलसानिया की बेटी हैं. उनके पिता ने भी हिंदी फिल्मों में रोल पाने के लिए उनकी तरफ से कभी कोई फोन नहीं किया. वह इंडस्ट्री में अपनी जर्नी खुद करना चाहती थी, यही वजह है कि उन्होंने अपने पिता से मदद नहीं मांगने का फैसला किया. फिल्मों में रोल पाने के लिए वह आउटसाइडर्स की ही तरह ऑडिशन और स्क्रीन टेस्ट देती थी.

 

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परफॉर्म करना है पसंद

बचपन से ही अभिनय के माहौल को देखती हुई शिखा हमेशा से एक्टिंग करना पसंद करती थी. वह कहती है कि अगर मेरे पेरेंट्स एक्ट्रेस न भी होते, तब भी मैं एक्ट्रेस ही बनती,क्योंकि मुझे परफॉर्म करना बहुत पसंद है. मुझे सब डायरेक्टर के साथ काम करना पसंद है, लेकिन मेरी ड्रीम है कि मुझे एक ऐसी कहानी कहने को मिले,जिसे करने के लिए किसी प्रकार की खास रंग,रूप या शारीरिक बनावट जरुरी न हो. मैं जैसी हूं, वैसी ही कहानी में मैं सही बैठूं और मैं उसका ही इंतजार करती हूं.

 

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ठहर जाती है जिंदगी

अभिनेत्री शिखा आगे कहती है कि फिल्म ‘जहाँ चार यार’ की कहानी मुझे बहुत पसंद आई, ये लखनऊ शहर की कहानी है,जिनकी शादियाँ तो हो चुकी है, पर उनकी जिंदगी बहुत ही ठहरी हुई है, लेकिन उससे वे निकल नहीं पाती. ये कहानी सिर्फ दोस्ती के बारें में नहीं है, इसमें एक ट्विस्ट है, जो कहानी को पूरी तरह से बदल देती है, जिसमे एक औरत शादी के बाद कैसे घर से निकल कर अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीती है. ये अलग कहानी है, मैंने अर्बन लड़की की भूमिका की है. पहले ऐसी भूमिका कभी नहीं की, इसलिए बहुत उत्साहित हूं. मेरी भूमिका में मैं अपने पेरेंट्स, पति, बच्चे और सास-ससुर सबसे खुद को आइसोलेट कर रखती है. सबकुछ अपने अंदर समेटकर रखती है. दोस्ती जो चार यारो में दिखाया गया है, उससे मैं बहुत अधिक रिलेट कर सकती हूं, क्योंकि रियल में भी जब महिला खुद अपनी समस्या की वजह नहीं समझ सकती, तब एक दोस्त ही उसे उसकी गलती का एहसास करा  सकता है.

नहीं भूली सहेलियों को

शिखा का कहना है किशादी के बाद लड़कियां अधिकतर अपनी सहेलियों को भूल जाती है, इस बात से मैं सहमत रखती हूं, जबकि सबसे जरुरी दोस्त है,इस फिल्म में उन महिलाओं को एक आइना दिखने की कोशिश की गई है, जो अपने दोस्तों को भूल जाती है. फ्रेंड्स ऐसे होने चाहिए, जो आपकी नजर से समस्याओं को देख सकें, जज न करें और उसका हल बताएं. आप छोटे या बड़े किसी भी शहर में कहीं भी रहे, आपका रिश्ता सभी से जुड़ता है,मसलन आप किसी की बेटी, पत्नी, माँ, दादी या नानी होते है. महिला को सबसे एडजस्ट कर जीवन बितानी पड़ती है. उन्हें हमेशा सभी को समझ कर काम करना पड़ता है. उनके जीवन में एक सही दोस्त ही ऐसी होती है, जो उन्हें शादी से पहले और बाद में देखा हो. यही दोस्त उनकी परेशानियों का हल समझकर उन्हें प्यार की एक झप्पी दें.मेरी दो-तीन बहुत ही अच्छी सहेलियां है, जिनसे मैं अपनी उतार-चढ़ाव और उनकी अप्स एंड डाउन्स को एक दूसरे  से शेयर करती हूं. इंडस्ट्री में सोहा अली खान मेरी सबसे अच्छी दोस्त है, जिनसे मैं सबकुछ शेयर कर सकती हूं.

नहीं होता प्रेशर

शिखा तलसानिया प्रसिद्ध कामेडियन टिकू तलसानिया की बेटी होने की वजह से उन्हें किसी प्रकार का प्रेशर महसूस नहीं होता. शिखा कहती है कि मुझे प्रेशर नहीं होता,लेकिन अच्छे इंसान बनने का प्रेशर अवश्य होता है. मैं एक ऐसे माहौल में पैदा हुईहूं, जहाँ माता-पिता दोनों ही एक्टर्स है. मेरे दोस्त मुझे कहते है कि मैं अपने पिता की तरह ही दिखती हूं. ये बातें मुझे अच्छा अनुभव कराती है. लाइफ में दुःख,सुख, हंसी मजाक, सीरियस बातें आदि सब होता है. मैंने अपने पिता से मेहनत से काम करना, अच्छे वर्ताव, साहसी होना आदि को जीवन में उतारने की कोशिश की है.

संघर्ष है जीवन

शिखा कहती है कि संघर्ष हमेशा होता है, लेकिन स्टार किड्स को थोड़ा कम होता है, क्योंकि उन्हें इंडस्ट्री कैसे काम करती है,उसकी जानकारी होती है, जो आउटसाइडर को नहीं होता. इसके अलावा मौका जल्दी मिल सकता है, लेकिन प्रतिभा होने पर ही व्यक्ति सफल होता है. मेरे माता – पिता और मैंने अपना रास्ता खुद बनाया है. देखा जाय, सभी को किसी न किसी रूप में संघर्ष करता है, ये सब्जेक्टिव काम है, जिसे कोई कलाकार कभीख़राब करना नहीं चाहता.

Aashiqui 3 में TV एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट के साथ रोमांस करेंगे Kartik Aaryan!

बॉलीवुड की पौपुलर रोमांटिक फिल्म ‘आशिकी’ (Aashiqui) के बाद Aashiqui 2 ने फैंस के दिलों पर राज किया है. वहीं जल्द ही तीसरा पार्ट यानी आशिकी 3 (Aashiqui 3) भी फैंस को खुश करने आने वाली है, जिसका हाल ही में ऐलान किया गया था. वहीं इसी बीच फिल्म की स्टारकास्ट की भी चर्चा जोरों पर हैं, जिसके लिए लीड रोल के लिए एक्टर कार्तिक आर्यन (Kartik Aaryan) का चुनाव हो गया है तो वहीं एक्ट्रेस को लेकर कई खबरें सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं, जिनमें टीवी हसीनाओं के नाम भी शामिल हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

कार्तिक आर्यन ने फिल्म का किया ऐलान

 

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एक्टर कार्तिक आर्यन ने हाल ही में बताया कि वह वर्ष 1990 की फिल्म ‘आशिकी’ के तीसरे पार्ट में वह नजर आने वाले हैं, जिसका निर्देशन अनुराग बसु करेंगे. वहीं ‘आशिकी 3’ का निर्माण भूषण कुमार की टी-सीरीज और विशेष फिल्म्स के निर्माता मुकेश भट्ट कर रहे हैं. दरअसल, एक्टर ने सोशल मीडिया पर फिल्म के हिट गाने ‘अब तेरे बिन जी लेंगे हम..’ का एक वीडियो शेयर किया.

 

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इस टीवी एक्ट्रेस संग कर सकते हैं रोमांस

लीड एक्टर फाइनल होने के बाद अब एक्ट्रेस की तलाश जारी है. वहीं खबरों की मानें तो इस फिल्म के लिए टीवी एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट का नाम सामने आया है. हालांकि अभी ऑफिशियल स्टेटमेंट सामने नहीं आया है. लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक, मेकर्स ने कहा है कि, ‘आशिकी 3 में कार्तिक की एक्ट्रेसेस वाली खबरों में कोई सच्चाई नहीं है. एक्ट्रेस के लिए अभी भी खोज जारी है. अभी हम शुरुआती दौर में हैं और फिल्म के लिए कई आइडियाज आदि ढूंढ रहे हैं. दर्शकों की तरह ही हम भी फिल्म के लिए एक्ट्रेस की तलाश में हैं और ऐसा होते ही जल्द से जल्दी फैन्स संग न्यूज शेयर की जाएगी.

बता दें, जहां टीवी एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट के फिल्म में होने की खबरों से फैंस काफी खुश दिख रहे हैं तो वहीं आशिकी 2 का हिस्सा रह चुकीं बौलीवुड एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर का नाम भी इस फिल्म के लिए सामने आया है. हालांकि देखना होगा कि मेकर्स इस फिल्म के लिए किसका चुनाव करते हैं.

पूजा चोपड़ा इंटरव्यू: आसान नहीं था मिस इंडिया से बौलीवुड तक का सफर

पूजा चोपड़ा उन हजारों लड़कियों में से एक है, जिनके जन्म से पिता खुश नहीं थे, क्योंकि वे एक बेटे के इंतजार में थे. यही वजह थी कि पूजा की मां नीरा चोपड़ा अपने दोनों बेटियों के साथ पति का घर छोड़ दिया और जॉब करने लगीं. इस दौरान परिवार के किसी ने उनका साथ नहीं दिया, पर उनकी मां ने हिम्मत नहीं हारी और एक स्ट्रोंग महिला बन दोनों बेटियों की परवरिश की. आज बेटी और अभिनेत्री पूजा अपनी कामयाबी को मां के लिए समर्पित करना चाहती हैं और जीवन में उनकी तरह ही स्ट्रोंग महिला बनने की कोशिश कर रही हैं.

असल में पूजा चोपड़ा एक भारतीय मॉडल-फिल्म अभिनेत्री हैं. वह वर्ष 2009 की मिस फेमिना मिस इंडिया का ताज अपने नाम कर चुकी हैं. पूजा चोपड़ा का जन्म 3 मई वर्ष 1986 पश्चिम बंगाल के कोलकात्ता में हुआ था. पूजा चोपड़ा ने अपनी शुरुआती पढाई कोलकाता और पुणे से पूरी की है. कई ब्यूटी पेजेंट जीतने के बाद उन्होंने मॉडलिंग शुरू की और धीरे-धीरे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी साख जमाई. मृदु भाषी और हंसमुख पूजा ने अपने जीवन के संघर्ष और फिल्म ‘जहां चार यार’के बारें में गृहशोभा के साथ शेयर करते हुए कहा कि ये मैगजीन मेरे घर में आती है,पुणे में रहने वाली मेरी नानी और मां इसे पढ़ती है, मैंने भी कई बार पढ़ी है, इसके सभी लेख आज के ज़माने की होती है, जो महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है.

मानसिकता कम करना है जरुरी

अभिनेत्री पूजा आगे कहती है कि इस फिल्म की कहानी आज की है, केवल लखनऊ की नहीं, बल्कि मुंबई, पुणे, दिल्ली आदि में भी रहने वाली कुछ महिलाओं की हालत ऐसी ही होती है. आज भी पत्नी ऑफिस से आने पर घर के लोग, उसके ही हाथ से बने खाने का इंतजार करते है, ये एक मानसिकता है, जो हमारे देश में कायम है, इसे मनोरंजक तरीके से इस फिल्म में बताने की कोशिश की गई है. स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है और मैंने इसमें एक मुस्लिम लड़की की भूमिका निभाई है, जो आत्मनिर्भर होना चाहती है.देखा जाय तो रियल लाइफ में मुस्लिम लड़कियों को बहुत दबाया जाता है, ऐसे में मेरे लिए एक मुस्लिम लड़की की भूमिका निभाना बड़ी बात है, क्योंकि मैं भी स्ट्रोंग और आत्मनिर्भर हूं. इससे अगर थोड़ी सी भी मेसेज प्रताड़ित महिलाओं को जाएँ, जो खुद को बेचारी समझती है और सहती रहती है,तो मुझे ख़ुशी होगी.

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अलग चरित्र करना है जरुरी

पूजा हंसती हुई कहती है कि इससे चरित्र से मेरा कोई मेल नहीं है, ये लड़की सकीना शादी-शुदा है और अंदर से खाली है. शादी के बाद उसके मायके वालों से उसका कोई रिश्ता नहीं है. उनकी एक गूंगी सास और पति है, वह घर पर खुद को स्ट्रोंग दिखाती है, पर अंदर से कमजोर है. उस पर काफी जुल्म होता है, पर वह घर से निकल नहीं सकती. इसका सबसे अधिक और बड़ा उदहारण मेरी मां नीरा चोपड़ा है, जिसने दो बेटियों को लेकर बाहर निकल आई. एक पल के लिए उन्होंने कुछ सोचा नहीं, उन्होंने कई बड़ी-बड़ी होटलों में काम किया है. आज भी वह काम करती है. इस फिल्म में सकीना अंदर से कमजोर है, उसका कोई इस दुनिया में नहीं है, पति और सास उसपर अत्याचार के रहे है अब उसके पास 3 आप्शन है, या तो वह इसे सहती जाय, कुछ बोली तो घर से निकाल दिया जाएगा और घर से निकालने पर वह जायेगी कहा. अकेली कमजोर होते हुए खुद को मजबूत जाहिर करना बहुत चुनौतीपूर्ण था.

बदलाव को करें सेलिब्रेट

पूजा कुछ बदलाव आज देखती है और कहती है कि पारंपरिक परिवारों में आज भी महिलाओं पर अत्याचार होते रहते है, लेकिन इसके लिए किसी पर ऊँगली उठाना ठीक नहीं. दूसरों को कहने से पहले खुद को सम्हालना जरुरी है. अभी बहुत कुछ बदला है. आज महिलाओं को काफी घरों में सहयोग मिलता है. इसे सेलिब्रेट करने की जरुरत है. पूरी बदलावहोने में समय लगेगा. विश्व प्लेटफार्म पर आजकल शादी-शुदा महिला को भी ब्यूटी कांटेस्ट में भाग लेने का मौका मिलता है, ये बहुत बड़ी बदलाव है.

मिली प्रेरणा

पूजा ने कॉलेज में एक्टिंग या मॉडलिंग के बारें में दूर-दूर तक सोचा नहीं था, क्योंकि स्कूल कॉलेज में वह टॉम बॉय की तरह थी. लेकिन उसकी हाइट अधिक होने की वजह से उन्होंने कई फैशन शो और ब्यूटी कांटेस्ट में भाग लिया और जीत भी गई.पुणे में उन्होंने काफी प्रतियोगिताए जीती इससे उनके अंदर एक कॉन्फिडेंस आया. आसपास के दोस्त और रिश्तेदारों ने भीबड़ी-बड़ी होर्डिंग मर पूजा की तस्वीरें देखकर तारीफ़ करने लगे फिर उन्होंने  एक्टिंग की तरफ आने के बारे में सोचा.

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मिला सम्मान

अभिनेत्री पूजा कहती है कि मैंने मिस इंडिया के लिए काफी मेहनत की थी, क्योंकि मुझे जीतना था और मिस वर्ल्ड में देश की प्रतिनिधित्व करना था. मैं पहली भारतीय थी, जिन्होंने ब्यूटी विथ पॉर्पोज अवार्ड जीती थी. मिस इंडिया के बाद फिल्मों के ऑफर आने लगे थे और मैंने किया. मिस इंडिया जीतने से लोगों के बीच एक सम्मान और ओहदा मिला, जो एक नार्मल पूना से आई हुई लड़की को नहीं मिलता. किसी से मिलना चाहती हूं तो वो इंसान टाइम देता था. इससे जर्नी थोड़ी आसान हो गयी थी, लेकिन बाद में टैलेंट ही आपको आगे ले जाती है.

काम में पूरी शिद्दत

पूजा का कहना है कि मैं आउटसाइडर हूं, इसलिए मुझे सोच-सोचकर कदम बढ़ाना है ये मैं जानती थी. इसके अलावा मैंने अपनी मां से शिद्दत और मेहनत से काम करना सीखा है. मुझे सोशलाईज होना  पसंद नहीं, मेहनत और लगन  से ही काम करना आता है. मैं जिस किसी काम को आज तक किया, उसमे मैंने सौप्रतिशत कमिटमेंट देना सीखा है.

करती हूं सोशल वर्क

सोशल वर्क करने के बारें में अभिनेत्री पूजा बताती है कि सोशल वर्क मैं करती हूं, क्योंकि ऐसी कई लडकियां होंगी, जो मेरी तरह ऐसी माहौल से गुजरी होंगी, मेरी मां की तरह उन्होंने भी कष्ट झेले होंगे, या कही अनाथ होंगी. ऐसे में मैं उनकी कुछ मदद कर सकूँ, तो वह मेरे लिए अच्छी बात होगी. मैं अपने स्तर पर जो संभव हो करती जाती हूं.

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मिला परिवार का सहयोग

पूजा के जीवन में उसकी मां और दीदी का बहुत सपोर्ट रहा, जिसकी वजह से वह यहाँ तक पहुँच पाई है. वह कहती है कि मेरा सपना हैं कि मेरी मां का 12 घंटे काम कर थक जाना अच्छा नहीं लगता, मैं उन्हें एक ऐसी जिंदगी दे दूँ,जिसमे वह खुश होकर अपनी जिंदगी बिता सकें और कहे कि अब मैं बहुत खुश हूं,मैंने देखा है कि मेरी मां खुश होने पर ग्लो करती है. मेरी दीदी जॉब करती है. उन्होंने भी मुझे यहाँ तक आने में बहुत सहयोग दिया है, जब मैं 7 वीं कक्षा में थी तो मेरी दीदी उस समय कॉलेज जाती थी. उन्होंने सुबह 4 बजे उठकर शेयर रिक्शा में पुणे में 6 से 7 किलोमीटर कैंट एरिया में जाकर अखबार वितरित करती थी. उससे आए एक्स्ट्रा पैसे से मैंने ट्यूशन लिया, क्योंकि मैं हिंदी और मराठी में बहुत कमजोर थी. मेरी दीदी मुझसे 4 साल बढ़ी है और उन्होंने मुझे नहलाना, धुलाना, खाना खिलाना आदि करती थी, क्योंकि मां जॉब करती थी और सुबह निकलकर रात को आती थी. इस तरह से मेरी दो माएं है.

खुद के सपने को खुद करें पूरा

पूजा महिलाओं को मेसेज देना चाहती है कि खुद को पुरुषों से कभी कम न समझे, जो भी सपना उन्होंने देखा है, उसे उठकर खुद पूरा करें, खुद में आत्मविश्वास रखें. अभी महिलाएं,वार फील्ड से लेकर हर क्षेत्र में काम कर रही है. पुरुषों को चाहिए कि वे महिलाओं को आगे आने में सपोर्ट करें, लड़कियों को लड़कों से कभी कम न आंके.

क्या आमिर खान और विजय देवराकोंडा ने की निर्माता के नुकसान की भरपाई?

बौलीवुड काफी बुरे वक्त से गुजर रहा है. हिंदी फिल्में बाक्स आफिस पर लगातार असफल होती जा रही है. फिल्म के प्रदर्शन वाले दिन ही फिल्म के शो रद्द हो रहे हैं. आमिर खान व करना कपूर खान अभिनीति फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ की इतनी बुरी हालत हुई कि इस फिल्म की कमायी से तीन दिन का सिनेमाघरों का किराया तक चुकाना मुश्किल हो गया. यही हालत दक्षिण के सफल अभिनेता विजय देवराकोंडा की पैन इंडिया सिनेमा वाली फिल्म ‘‘लाइगर’’ की भी हुई.

आमिर खान और विजय देवराकोंडा के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री का एक तबका मानकर चल रहा है कि उनकी फिल्म को ‘‘बौयकाट बौलीवुड’’ की वजह से नुकसान उठाना पड़ा. जबकि यह सच नही है. इन फिल्मों को डुबाने में कहानी,  पटकथा, लेखक व निर्देशक के साथ ही  इनकी पीआर टीम व मार्केटिंग टीम का भी बहुत बड़ा हाथ रहा.  जी हॉ! यदि आमिर खान व विजय देवराकोंडा ठंडे दिमाग से अपनी फिल्म ‘लाल सिह चड्ढा’’ की प्रमोशनल गतिविधियों पर नजर दौड़ाएंगे, तो उन्हे इसका अहसास अपने आप हो जाएगा.

बहरहाल,  कुछ वर्ष पहले जब सलमान खान की फिल्में असफल हुई थीं और उन पर बहुत बड़ा दबाव बना था, तब सलमान खान ने अपने मेहनताना में से कुछ धनराशि अपनी फिल्म के निर्माताओं को वापस किया था. अब इसी ढर्रे पर चलते हुए आमिर खान व विजय देवराकोंडा ने भी उसी तरह का कदम उठाया है. मगर सलमान खान व इन कलाकारों के कदम में एक बहुत बड़ा फर्क है. सलमान खान की असफल फिल्मों के निर्माता स्वयं सलमान खान नही थे.

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हैं कि आमिर खान फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ के निर्माता के लिए फरिश्ता बनकर सामने आए हैं. सूत्रों का दावा है कि आमिर खान ने फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ की असफलता की सारी जिम्मेदारी अपने उपर लेते हुए  अपनी अभिनय की फीस को छोड़ने का फैसला किया है. पर हर कोई जानता है कि फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ का निर्माण खुद आमिर खान व किरण राव ने ‘‘वायकौम 18’’ के साथ मिलकर किया था. इस फिल्म का निर्माण ‘आमिर खान फिल्मस’’ के तहत ही हुआ था. तो आमिर खान किसे पैसा लौटा रहे हैं??

उधर फिल्म ‘‘लाइगर’’ की असफलता के लिए पूर्णरूपेण विजय देवराकोंडा ही जिम्मेदार हैं. विजय देवराकोंडा ने अपनी फिल्म की पीआर  टीम के कहने पर पूरे देश का भ्रमण करते हुए कई तरह के अजीबोगरीब बयान दिए. यहां तक कि उन्होनेे अपने बयानों से मंुबई के ‘मराठा मंदिर’ और गेटी ग्लैक्सी सहित सात मल्टी प्लैक्स के मालिक व मशहूर फिल्म वितरक मनोज देसाई को भी नाराज कर दिया. उन्होने यह सारी हरकतें तब की, जबकि उनकी फिल्म ‘‘लाइगर’’ में कोई दम नहीं था. अगर उन्होने बेवजह की बयान बाजी न की होती, तो शायद कुछ दर्शक इस फिल्म को देखने पहुंच जाते. मगर उन्होने अपने बयानों से दर्शकों को नाराज कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली. फिल्म ‘लाइगर’ के प्रदर्शन के पहले दिन बाक्स आफिस पर फिल्म की दुर्गति देखकर विजय देवराकोंडा उसी दिन शाम को मनोज देसाई से मिलकर उनसे माफी मांगते हुए कहा था कि उनके कहने का अर्थ कुछ और था. मगर इससे भी फर्क नहीं पड़ा. फिल्म की कहानी,  पटकथा व निर्देशन के साथ ही विजय देवराकोंडा के अभिनय में कोई दम नहीं था. उपर से उनके बयानो ने भी दर्शकों को इस फिल्म से दूर रखा. खैर, अब विजय देवराकोंडा को अपनी गलती का अहसास हो गया है. उन्होने भी फिल्म की असफलता का सारा दोष अपने उपर लेते हुए फिल्म के निर्माता को अपनी पारिश्रमिक राशि में से छह करोड़ रूपए वापस करने का ऐलान कर दिया है. पर यहां सवाल है कि इससे क्या होगा? क्या निर्माता केे नुकसान की भरपायी हो जाएगी? जी नही. . . यह महज शोशे बाजी है.

करण जोहर की चोरी और सीना जोरी! जानें क्या है मामला 

जब करण जोहर के ‘‘धर्मा प्रोडक्शन’’ की फिल्म ‘‘ जुग जुग जियो’’ का ट्रेलर लौंच हुआ था, तब उन पर पाकिस्तान के अबरार उल हक के गीत ‘‘नच पंजाबन’’ गिना अबरारा उल हक की जानकारी के अपनी फिल्म में उपयोग करने का आरोप लगा था. यह विवाद काफी गरमाया था,  उसके बाद ‘धर्मा प्रोडक्शन’ को मजबूरी में इस गाने की के्रडिट बरार उल हक को देना पड़ा था. यह बात सभी जानते हैं.

इस गाने के ही साथ एक दूसरा वाकिया भी जुड़ा हुआ है.  अनिल कपूर, नीतू कपूर,  वरूण धवन व कियारा अडवाणी के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘जुग जियो जियो’’ के गाने ‘‘नच पंजाबन ’’ को मशहूर पंजाबी गायक गिप्पी ग्रेवाल की आवाज में रिकार्ड करवाया गया था. पर कुछ दिन बाद उन्हे सूचित कर दिया गया कि उनकी आवाज का उपयोग नही किया जाएगा.  लेकिन जब फिल्म का ट्रेलर बाजार में आया, तो पता चला कि गाने में तो गिप्पी ग्रेवाल की ही आवाज है. उसके बाद गिप्पी ग्रेवाल ने विरोध जताया. यह विवाद काफी गरमा गया था. लेकिन उस वक्त गिप्पी ग्रेवाल तो लुधियाना में थे. इधर करण जोहर ने पूरी कोशिश करके इस खबर को रूकवा दिया था.

अब जब दो सितंबर को प्रदर्शित हो रही पंजाबी फिल्म ‘‘यार मेरा तितलियां वार्गा’’ के सिलसिले में गिप्पी ग्रेवाल से हमारी मुलाकात हुई. तो हमने उनसे सवाल किया कि 2012 में हिंदी फिल्म ‘‘कॉकटेल’’ में आपका पंजाबी गाना ‘‘अंग्रेजी बीट. . ’’ आया था. पर पिछले कुछ समय से पंजाबी के पुराने लोकप्रिय गीत किसी न किसी रूप में हिंदी फिल्मों में कुछ ज्यादा ही आ रहे हैं. क्या इसकी वजह हिंदी की बजाय पंजाबी गीतों की अत्यधिक लोकप्रियता है? तब गिप्पी ग्रेवाल ने कई माह से दबाकर रखी हुई अपनी पीड़ा को जाहिर करते हुए कहा-‘‘ऐसा हो रहा है. दुःख की बात यह है कि बौलीवुड में इमानदारी व पारदर्शिता का अभाव है. कुछ समय पहले करण जोहर ने फिल्म ‘‘जुग जुग जियो’’ में मेरा गाना ‘‘नच पंजाबन. . ’ डाला था, जो कि पाकिस्तान के अबरार उल हक का गाना था. मुझे तो पता ही नहीं था कि इन्होने अबरार उल हक से इजाजत ही नही ली है. इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ था. इतना ही नही मेरी आवाज में यह गाना रिकार्ड करवा लिया. उसके बाद मुझसे संपर्क भी नहीं किया. जब मैने फिल्म ‘जुग जुग जियो ’ का पोस्टर देखा, तो उसमें मेरा नाम ही नही था. मैने संगीतकार तनिष्क बागची को फोन किया. उन्होने मेरा फोन उठाया नही. तब मैने उन्हे संदेश भेजा कि आपने गाने में मेरी आवाज उपयोग की है,  पर नाम तो दिया नही.  तो उसका जवाब आया कि उन्होने मेरी आवाज का उपयोग नही किया है. तो मुझे लगा कि किसी अन्य गायक से डब करवाया होगा. चलो कोई बात नही. लेकिन जैसे ही बाजार में ट्रेलर आया, आस्टे्लिया से मेरे भाई का फोन आया. मेेरे भाई ने कहा कि गाना बहुत अच्छा है और इसमें मेरी आवाज भी काफी अच्छी है. मैने उससे कहा कि तूने गाना कहंा देख लिया, वह गाना तो आ ही नही रहा. तब मेरे भाई ने कहा कि उसने फिल्म ‘‘जुग जुग जियो’’ का ट्रेलर देखा है. जिसमें मेरी आवाज में गाने का हिस्सा है. मैने तुरंत फिल्म का ट्रेलर देखा, तो पाया कि फिल्म का पूरा ट्रेलर ही मेरी आवाज पर काटा हुआ था. मैं अचंभित रह गया. मेरा कहना था कि यदि आप मेरी आवाज का उपयोग कर रहे हैं, तो मुझे बता देते कि हम आवाज उपयोग कर रहे हंै, मगर क्रेडिट नही देंगे. मैने संगीतकार को संदेश दिया कि अच्छा है, मेरी आवाज का उपयोग नही हुआ है. इसलिए निर्माता निर्देशक से कह देना कि मेरी आवाज का उपयोग न करें. जबकि वह तो मेरी आवाज का उपयोग कर चुके थे. उसके बाद प्रोडक्शन हाउस से फोन आया और दुनिया भर के बहाने व गोल मोल बात करने लगे. उसने कहा कि मेरा चेक बना पड़ा है. वह तो इंतजार कर रहे थे कि मैं आकर चेक ले जाउंगा. मैने कहा कि मुझे चेक नहीं लेना है. मैने चेक लेने के लिए यह गाना नही गाया था. यदि मुझे चेक लेना होता,  तो इस बारे में मैं गाना गाने से पहले बोलता. मैने उनसे कहा था कि मुझे गाना भेज दो, यदि मुझे गाना अच्छालगेगा, तो मैं गाकर भेज दॅूंगा. उन्होने मेरे पास गाना भेजा था. मुझे गाना अच्छा लगा, तो मैने गाकर उनके पास भेज दिया था. तो पहले वह मेरी आवाज के लिए क्रेडिट नही देना चाहते थे और न ही अबरार उल हक को क्रेडिट देना चाहते थे. मुझे यह बहुत बुरा लगा. फिर उन्होने गाने में मेरा व अबरार का नाम जोड़ा और मुझे टैग किया. उससे पहले जब ट्रेलर आया था, तो मुझे टैग भी नहीं किया था. जबकि मुझे पहले संगीतकार तनिष्क बागची ने जवाब भेजा था कि ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के कहने पर मेरी आवाज का उपयोग नही किया गया. सभी जानते है कि ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के मालिक करण जोहर हैं और वही ‘जुग जुग जियो’ के निर्माता भी हैं. आखिर इस फिल्म में इतने बड़े बड़े कलाकारों को जोड़ा है. उसके बाद भी इमानदारी नही. मैं पिछले 22 वर्ष से गा रहा हूं. तो क्या यह लोग समझ रहे थे कि कोई मेरी आवाज नहीं पहचानेगा?’’

पंजाबी संगीत व फिल्म जगत के स्टार अभिनेता व गायक गिप्पी ग्रेवाल ने अपरोक्ष रूप से पूरे बौलीवुड को कटघरे में खड़ा करते हुए बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है.

https://www.youtube.com/watch?v=q2Dri__2k4U

REVIEW: जानें कैसी है Vijay Deverakonda और Ananya Pandey की फिल्म Liger

रेटिंगः एक़ स्टार

निर्माताः चार्मी कौर, पुरी जगन्नाथ, करण जेहर, अपूर्वा मेहता

निर्देशकः पुरी जगन्नाथ

कलाकारः विजय देवराकोंडा,  अनन्या पांडे, रमय्या कृष्णा,  विशु, चंकी पांडे,  अली, मकरंद देशपांडे, गीता श्रिनु, माइक टायन व अन्य

अवधिः ढाई घंटे

दक्षिण भारत की दो तीन फिल्मों के हिंदी संस्करणों ने बाक्स आफिस पर अच्छी कमायी क्या कर ली, हर किसी को ‘पैन इंडिया’ सिनेमा यानी कि तमिल, तेलगू के साथ हिंदी में भी फिल्म बनाने का चस्का लग गया. ऐसे में 2000 से तेलगू फिल्में निर्देशित करते आ रहे पुरी जगन्नाथ कैसे पीछे रह जाते. पुरी जगन्नाथ तेलगू में ‘बद्री’, ‘बाची’, ‘इडिएट’,  ‘शिवामणि’,  रोमियो’,  ‘टेम्पर’, ‘स्मार्ट शंकर’ सहित लगभग 25 फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. पहली बार उन्होने अपनी फिल्म ‘लाइगर’ को तमिल, तेलगू व हिंदी में भी बनाया है. इस फिल्म का उन्होंने चार्मी कौर व धर्मा प्रोडक्शन के साथ निर्माण भी किया है. जबकि इस फिल्म से 2011 से तेलगू फिल्मों में अभिनय करते आ रहे अभिनेता विजय देवराकोंडा ने हिंदी में कदम रखा है.  वह ‘नुव्वील्ला’, ‘येवादे सुब्रमण्यम’, ‘अर्जुन रेड्डी’ सहित कई सफल फिल्में कर चुके हैं. मगर उनके सिर पर भी ‘पैन इंडिया स्टार’ का भूत सवार हुआ और वह भी ‘लाइगर’ से हिंदी सिनेमा में कदम रख लिया. इतना ही नही खुद को ‘पैन स्टार’ सबित करने के ेलिए अपनी फिल्म की पीआर टीम के साथ पटना, जयपुर, लखनउ,  अहमदाबाद, वडोदरा,  इंदौर, पुणे सहित देश के शहरोंे का फिल्म की हीरोईन अनन्या पांडे संग चप्पल पहनकर भ्रमण करते हुए अजीबोगरीब बयानबाजी करते रहे. खुद को सताया हुआ और लोगों द्वारा उन्हे आगे बढ़ने से रोका गया, ऐसा दावा भी करते रहे. वहीं वह ‘लाइगर’ को लेकर बड़े बड़े दावे करते नजर आए. मगर उनके पास अपनी फिल्म के संदर्भ में अच्छे से बात करने के लिए समय का अभाव रहा. एक ही दिन में ग्रुप में पत्रकारों से बात कर उन्होने इतिश्री कर दी. फिल्म देखकर समझ में आया कि फिल्म ‘लाइगर’ के निर्देशक के साथ ही विजय देवराकोंडा व अनन्या पांडे पत्रकारों से ज्यादा क्यो नही मिले? क्योंकि उन्हे पता था कि उनकी फिल्म में दम नही है. और वह सिनेमा की समझ रखने वाले पत्रकारांे से बात नहीं कर पाएंगे. फिल्म ‘लाइगर’ देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ‘लाइगर’ में अभिनय करने वाले और पिछले एक माह से कई तरह की बयानबाजी करते आ रहे विजय देवराकोंडा ने ही तेलगू फिल्म ‘‘अर्जुन रेड्डी’’में अभिनय किया था. ‘लाइगर’अति बकवास फिल्म है. जिसमें न कहानी का अता पता है और न ही किसी कलाकार ने अच्छा अभिनय ही किया है.   फिल्म का नाम ‘लाइगर’ क्यांे है, यह समझना कठिन है. मगर फिल्म में लाइगर की मां बनी रमैया कृष्णा का संवाद है-‘‘शेर और बाघ दोनों से पैदा हुआ है-‘लाइगर’.

अपनी फिल्म ‘‘लाइगर’’ के हश्र से विजय देवराकोंडा व पुरी जगन्नाथ परिचित थे. इसलिए उन्होने ‘लाइगर’ के तमिल व तेलगू संस्करण  को 25 अगस्त की सुबह ही सिनेमाघरों में प्रदर्शित कर दिया था. उन्हे यकीन था कि जहां वह सुपर स्टार हैं, वहां वह अपने दर्शकों को मूर्ख बना ले जाएंगे, पर ऐसा नही हुआ. बहरहाल,  हिंदी में बनी ‘लाइगर’ 25 अगस्त की रात आठ बजे सिनेमाघरोे में पहुॅचाया गया. इस बार पत्रकारांे को ेभी 25 अगस्त की रात में ही यह फिल्म दिखायी गयी. मीडिया में दिन भर कानाफूसी होती रही कि यदि फिल्मकार अपनी फिल्म को लेकर इतना डरे हुए हैं, तो उन्हे अच्छी कहानी पर अच्छी फिल्म बनानी चाहिए अथवा फिल्म ही न बनाएं.

कहानीः

यह कहानी एक किक बाक्सर व हकलाने वाले इंसान लाइगर (विजय देवरकोंडा) की है. जो कि बनारस से चेन्नई अपनी मां बलमणि (रमैया कृष्णन)के साथ सड़क पर ठेला@ टपरी लगाकर चाय बेचता है. बलमणि (रमैया कृष्णन) खुद को बाघिन समझती हैं. वह अपने बेटे के माध्यम से मार्शल आर्ट के एमएमए फार्म में राष्ट्ीय चैंपियनशिप जीतने का सपना देख रही है, जिसे जीतने से पहले ही उनके पति बलराम  की मौत हो गयी थी. और बेटा लाइगर ने  एमएमए राष्ट्ीय चैंपियनशिप हासिल करने की कसम खायी है. उसकी मां उसे लेकर चेन्नई आयी है, जिससे वह मार्शल आर्ट की बेहतरीन शिक्षा मास्टर (रोनित रॉय)से मुफ्त में दिला सके. पहले तो मास्टर मना कर देते हैं. मगर जब लाइगर की मां उसे याद दिलाती हैं कि एक बार प्रतियोगिता में लाइगर के पिता बलराम ने उन्हे हराया था, तब वह तैयार हो जाते हैं. मगर मास्टर के यहां एमएमए का प्रशिक्षण ले रहे दूसरे लड़के लइगर के हकलाने का उपहास उड़ाते हैं.

फिर फिल्म में एक अमीर बाप की बिगड़ैल व सोशल मीडिया की सुपर स्टार बनने का सपना देख रही तान्या (अनन्या पांडे) का अवतरण होता है, जो कि एक रेस्टारेंट में पहली मुलाकात में ही लाइगर को दिल दे बैठती है और बताती है कि वह संजू (विशु) की बहन है. इससे पहले संजू और लाइगर के बीच मारामारी हो चुकी है. लाइगर की मां बालमणि उसे सलाह देती है कि ‘चुड़ैल’ लड़कियों से दूर रहे. मगर मंदिर में एम एस सुब्बुलक्ष्मी के गाने पर लिप सिंक कर वीडियो बनाते तान्या को देखकर बालमणि उसकी तरफ आकर्षित होती हैं. पर चंद क्षण में ही तान्या अपना असली रूप बालमणि को दिखा देती है. दोनों के बीच कहासुनी भी होती है. कुछ दिन बाद लाइगर व तान्या के संबंध पता चलने पर बालमणि, तान्या को अपने बेटे से दूर रहने के लिए कहती है. संजू के चलते तान्या, लाइगर से ूदूर चली जाती है. इधर लाइगर एमएमए में राष्ट्ीय चैंपियन बन जाता है. अब उसे एमएमए में अंतरराष्ट्ीय चैंपियन बनना है. पर उसके पास बीस लाख रूपए नही है. नाटकीय अंदाज में अमरीका बसे अप्रवासी भारतीय पांडे(चंकी पांडे ) सारा खर्च ही नहीं उठाते है बल्कि लाइगर, मास्टर व अन्य लड़कों को अपने प्रायवेट जेट विमान से अमरीका बुलाते हैं.

अमरीका के लास वैगास शहर में एमएमए का अंतरराट्ीय सेमी फाइनल जीतने के बाद लाइगर से पांडे बताते है कि तान्या उनकी बेटी है. तान्या ने उससे दूरी बनायी थी जिससे वह चैंपियन बन सके. संजू( विशु रेड्डी  ) भी उनका बेटा है. तभी अंडरवल्र्ड डॉन माइक टायसन(माइक टायसन ),  तान्या का अपहरण कर लेता है. क्योंकि पंाडे ने उससे कुछ उधार ले रखा है. तान्या को छुड़ाने के लिए लाइगर,  अंडरवल्र्ड डॉन के अड्डे पर जाते हैं. जहां दोनों के बीच लड़ाई होती है, जिसका लाइव प्रसारण होता है. लाइगर, माइक टायसन को अपने पिता का कातिल कहता है और अंततः जीत जाता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘लाइगर’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी कहानी व पटकथा लेखक तथा निर्देशक पुरी जगन्नाथ ही हैं. फिल्म में कहानी के नाम पर कुछ भी नही है. बेसिर पैर की बातें है. पुरी जगन्नाथ को बनारस की संस्कृति ही नही मां बेटे के रिश्ते की भी कोई समझ नही है. कम से कम वाराणसी की मां अपने बेटे को ‘साले’ कभी नही बोलती. पूरी फिल्म भावनाओं से मुक्त है. पुरी जगन्नाथ ने अपनी फिल्म के नायक को हकलाने वाला बताया है. पर उन्हे हकलाहट के मनोविज्ञान की समझ ही नही है. यदि उन्हे समझ होती तो कहानी में कुछ दूसरे तत्व वह जोड़ते.

यह फिल्म ‘‘मार्शल आर्ट’ का नाम बदनाम करती है. इतना ही नही माइक टायन जैसे इंसान को अंडारवर्ड डौन बताने के साथ ही उन्हे गालियंा खाने के अलावा एक नौ सीखिए से हारते हुए भी दिखाया है. माइक टायसन ने शायद मोटी रकम देखकर यह किरदार निभा लिया. मगर माइक टायसन जैसे लीजेंड को इस तरह से पेश करना लेखक व निर्देशक का दिमागी दिवालियापन ही कहा जाएगा. वैसे भी लाइगर और माइक टायसन के बीच घंूसे बरसाने के दृश्य महज हास्य ही पैदा करते हैं. फिल्म का क्लायमेक्स भी घटिया है. सबसे बड़ी हकीकत यह है कि अतीत में भी पुरी जगन्नाथ हिंदी में मात खा चुके हैं. उन्हेोन अपनी दूरी तेलगू फिल्म‘बद्री’ को हिंदी में ‘शर्ट ए चैंलज’ के अलावा ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’ जैसी फिल्में बना चुके हैं, जिन्हे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था.

लेखक व निर्देशक के दिमागी दिवालियापन की दूसरी मिसाल यह है कि लाइगर ने अपने पिता को ‘एमएमए’ में हारते हुए नही देखा, उसने यह नही देखा कि उसके पिता को किसने मारा, मगर अपनी मां कहती है कि वह अपने हर प्रतिस्पर्धी को अपना कातिल मानकर उसे खत्म कर दे. यह सिर्फ अजीब सा लौजिक ही नही है, बल्कि आम जनमानस को बहुत ही गलत और अमानवीय संदेश भी देता है. जब लाइगर सोचता है कि माइक टायसन उसके पिता का कातिल है, तभी वह उन्हे हरा पाता है.

फिल्म को देशभक्ति का जामा पहनाने के लिए अमरीका के लास वेगास में एक चायवाले से ‘एमएए’ में अंतरराष्ट्ीय विजेता बने लाइगर को भारतीय ध्वज लहराते,  ‘वाट लगा देंगे‘ और ‘हम भारतीय हैं,  दुनिया को आग लगा देंगे‘ के नारे से देशभक्ति की बातें भी की गयी हैं, मगर सब कुछ बहुत ही अजीब तरीके से चित्रित किया गया है. पूरी फिल्म देखकर कहीं भी देशभक्ति कर जज्बा नही उभरता. बल्कि यह फिल्म पूरी तरह से बदले की कहानी ही नजर आती है.

‘लाइगर’ एक अंडरडॉग स्ट्रीट फाइटर की कहानी बतायी गयी है, जो ‘एमएए’ फार्म के मार्शल आर्ट की प्रतियोगिता मंे अंतरराष्ट्रीय खिताब जीतने में सफल होता है. इस कहानी में नयापन क्या है?इसी तरह के कथानक पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं और उन्हे सफलता नही मिली.  कुछ समय पहले इसी तरह की कहानी वाली फरहान अख्तर की बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खाने वाल फिल्म ‘‘तूफान’’ आयी थी. तो वहीं बी सुभाष की 1984 में आयी फिल्म ‘‘कसम पैदा करने वाले की’’ में दलित युवक द्वारा अपने पिता का बदला लेने की कहानी थी, जिसे दर्शकों ने पंसद नही किया था. वैसे ‘लाइगर’ देखते समय लोगों को 1984 में ही प्रदर्शित मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म ‘बाक्सर’ की याद भी आती है.

एक औरत होते हुए भी लाइगर की मां बलमणि एक लड़की को ‘चुड़ैल’ की संज्ञा देती है और अपने बेटे से कहती है कि वह लड़कियांे से दूर रहे, क्योंकि ‘चुड़ैल’ लड़की उसे प्यार में फंसाने का प्रयास करेगी. यह सोच तो पूरी नारी जाति का अपमान है.  एक जगह हीरो कहता है कि महिलाओं को चूमना यानी कि ‘किस’ ठीक है, लेकिन उनसे लड़ना ठीक नहीं है. तो वहीं एक संवाद है-मैने तुम्हे गर्भवती किया है क्या?’’इस तरह के संवाद सेंसर बोर्ड ने पारित कैसे कर दिए? इस फिल्म से सेंसर बोर्ड पर भी सवाल उठते हैं.

फिल्म के गाने भी घटिया हैं और उनका फिल्मांकन नब्बे के दशक के अंदाज मंे किया गया है. इन गानों को बेवजह कहीं भी ठॅूंस दिया गया है. संवाद दोयम दर्जे के हैं. एडीटर ने भी अपना काम सहीं ढंग से अंजाम देने में विफल रहे हैं.

अभिनयः

लाइगर के किरदार में विजय देवराकोडा दूसरी सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं, वह हकलाने वाले के किरदार मंे है, मगर इस किरदार को निभाने से पहले अगर उन्होेने हकलाहट के मनोविज्ञान को समझने का प्रयास किया होता, तो उनके हित में होता. वह कहंी से भी महत्वाकांक्षी मां के बेटे नजर ही नही आते. लगता है कि ‘पैन इंडिया स्टार’ बनने का सपना देखते हुए विजय देवराकोंडा अभिनय भी भूल गए.   .

एक अमीर, अत्याधुनिक और सोशल मीडिया पर अपने फालोवअर्स बढ़ाने के लिए मरी जा रही तान्या के किरदार में 2019 में फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अनन्या पांडे महज संुदर व कम वस्त्रों मे ही नजर आयी हैं. उनका अभिनय से कोई लेना देना नही है. लगभग हर दृश्य में उनका चेहरा सपाट ही नजर आता है. अनन्या पांडे के परदे पर आते ही दर्शक मंुॅह बनाने लगता है. तो चंद मिनट के दृश्य में  मकरंद देशंपाडे की प्रतिभा को जाया किया गया है. क्या मकरंद देशपांडे ने यह फिल्म महज पैसों के लिए की? यह तो वही जाने? लाइगर की मां बालमणि के किरदार में रमैया लगभग हर दृश्य में औरतों का अपमान करते अथवा फिल्म ‘बाहुबली’ के अपने किरदार की तरह महज चिल्लाते हुए ही नजर आती है. शायद बामणि का किरदार निभाते हुए उन्हे याद ही नहीं रहा कि वह ‘बाहुबली’ नही कर रही है. उन्हे  उनका अभिनय अप्रभावशाली है. तान्या के पिता पांडे के किरदार में चंकी पांडे की प्रतिभा को भी जाया किया गया है. उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. संजू के किरदार में 2009 से तेलगू फिल्मों में अभिनय करते आ रहे अभिनेता विशु रेड्डी हैं. पर इस फिल्म में उन्होने क्यो सोचकर अभिनय किया, यह बात समझ से परे है.

अंत मेंः

‘‘पैन इंडिया सिनेमा’’ के नाम पर ‘‘लाइगर’’जैसी फिल्में भारतीय सिनेमा को तबाही की ओर ही ले जा रही हैं.

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