बोलने की आजादी के नाम पर जहर फैला रहे है

व्हाट्सएप और ट्विटर अब के नहीं रहेंगे जो अब तक थे. लगता है उन में खुल कर हेट स्पीच और फेक न्यूज देने के दिन लदने लगे हैं. अंधभक्तों की एक बड़ी फौज ने उस बहुत ही उपयोगी मीडिया का जो गलत इस्तेमाल अपना जातिवादधर्मवाद और पुरुषबाद फैलाने के लिए किया था वह कम होने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में साफ कहा है कि हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ पुलिस को खुद एक्शन शुरू करना होगा. व्हाट्सएपट्विटरइंस्टाग्रामफेसबुकयूंट्यूव इसी हेट स्पीच ने बलबूते पर पनत रहे थे.

यह आम बात है कि जहां आपस में 4 जने झगडऩे लगें. 40 लोग तमाशा देखने के लिए खड़े हो जाते हैं. आज की औरततों का सब से बड़ा पार टाइम कोई विवादकिसी की चुगलीकिसी के घर का झगड़ा है. किट्टी पाॢटयों में किस के घर में क्या हुआ की बात होती हैक्या अच्छा करा जाए की नहीं.

व्हाट्सएपफेसबुकइंस्टाग्रामट्विटर के माध्यम से हेट स्पीच और फेक न्यूज की खट्टीमीठी गोली ऐसे ही नहीं दी जाती है. इस के पीछे बड़ा उद्देश्य है पूजापाठ करने वालों के चंदा जमा करनामंदिरों के लिए भीड़ जुटानाघरों में दान करने की लत डालनाआम जनता को तीर्थों में ले जानाआम औरत को बहकाकर पति या सास के अत्याचार से बचने के लिए व्रतपाठमन्नत का सहारा लेना जिस से धर्म की दुकान पर सोना बरसे.

यह ऐसे ही नहीं है कि देश भर में मंदिरोंभक्तोंआश्रणोंबाबाओं की खेती दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है. इस में व्हाट्सएपट्विटरइंस्टाग्राम और फेसबुक का बड़ा हाथ है जिस पर धर्म के दुकानदार बुरी तरह छाए हुए है ओर हर पोज में बड़ा चौड़ा बखान किया जाता है. फेक न्यूज और हेट स्पीच के लिए आए लोग इस प्रचार से प्रभावित होते ही हैं.

एल्ट न्यूज चलाने वाले मोहम्मद जुबेर पर पोस्को एक्ट में शिकायत करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अब शिकायतों के खिलाफ मुकदमा दायरकरने का आदेश दिया है. मोहम्मद जुबैर के खिलाफ शिकायत करने वाले ने ट्वीटर पर एक तीखे कमेंट धर्म को लेकर किए थे जिस पर जुबेर ने कहा था कि महाश्य गालियां बकने से पहले कम से कम डीपी से अपनी पोती का फोटो तो हटा दो. इस पर चाइल्ड एब्यूज का मामला बना डाला गया और पुलिस ने तुरंत जुबेर को गिरफ्तार भर कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रिहा कर दिया और अब पुलिस कहती है कि अपराध बनता ही नहीं है. यह नहीं बताती कि जब अपराध बनता ही तो गिरफ्तार क्यों किया था.

पुलिस अफसरो को तो सजा हाई कोर्ट ने नहीं दी है पर शिकायती के खिलाफ झूठी शिकायत का मुकदमा करने का आदेश दे दिया है. व्हाट्सएपइंस्टाग्रामफेसबुकट्विटर पर फेक न्यूज डालने वालों के यह चेतावनी है. मजा तब आएगा जब इन्हें फौरवर्ड करने वालों को भी बराबर का अपराधी माना जाने लगे. दानपुण्य की दुकान चलाने के लिए धाॢमक पंडों ने पूरे समाज को कितने ही टुकड़ों में बांट डाला है. औरतों को तो अलगअलग माना जाता रहा हैअब सब धर्मों ही नहीं जातियों को टुकड़ों में बांट दिया है.

इन डिजिटल प्लेटफार्मों पर दलितकुर्मीअहीरजाटराजपूरब्राह्मïवैश्व गु्रप बने हुए हैं जिन में अपनाअपना बखान किया जाता है. फेक न्यूज से हर जाति अपने को महान बता रही है. हरेक के अपने मंदिरपुजारी हैं. ये प्लेट फार्म अलगाव को बुरी तर फैला रहे हैं.

मोबाइल आज फोन नहीं मशीनगन बन गया है जो आप के दिमाग को भून सकता है और आप इस से सैंकड़ों के दिमाग भूल सकते हैं.

पुरुषों के अधिक झूठ बोलने के पीछे का राज क्या है, जानिये यहां

सुरेश ने फ़ोन पर नीलम को कहा कि उसे घर आने में देर होगी और आज रात की पार्टी में नहीं जा सकेगा. नीलम को पहले गुस्सा आया, लेकिन सुरेश के काम की व्यस्तता को समझकर चुप रह गई. वह अपनी सहेली से फ़ोन पर बात कर ही रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजा खोला, तो सामने सुरेश हँसता हुआ खड़ा था, क्योंकि उसे पता था कि नीलम गुस्सा होगी. अब नीलम ने सहेली के साथ बात करना बंद किया और सुरेश को डांटने लगी कि ये कैसा झूठ है, जो मुझे तकलीफ दें. सुरेश ने हँसते हुए जवाब दिया कि मैं तुम्हे सरप्राइज देना चाहता था, इसलिए ऐसा किया. अब नीलम मान गई और दोनों पार्टी में चले गए. ये मजेदार, छोटी सी झूठ थी और सरप्राइज होने की वजह से सब ठीक हो गया, लेकिन ऐसी कई घटनाएं देखी गई है, जहाँ झूठ  बोलने की आदत ने सारे रिश्ते ख़त्म कर दिए.

सफ़ेद झूठ…..’, ‘झूठ बोले कौवा काटे…’ आमदनी अठन्नी…..आदि कई ऐसी फिल्में है, जो झूठ बोलने को लेकर ही कॉमेडी के रूप में बनाई गई और दर्शकों ने ऐसी फिल्मों को पसंद किया, क्योंकि ये पर्दे पर थी, रियल लाइफ में नहीं, लेकिन झूठ बोलने की आदत कई बार जीवन के लिए खतरनाक भी हो जाती है और इस झूठ को सच साबित करने में सालों लग जाते है.

ये सही है कि हर धर्म में झूठी बातों का शिकार महिलाएं ही हुई है, इसे कहने वाले पुरुष ही है, क्योंकि महिलाएं संवेदनशील होती है और इन धर्मगुरुओं की बातों को सहजता से मान लेती है, मसलन बीमार होने पर भी व्रत या उपवास करना, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए नंगे पाँव मीलों चलना आदि सभी निर्देशों को महिलाएं सच्चे मन से पूरा करती है.

रिसर्च में भी ये बात सामने आई है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में झूठ कम बोल पाती है. असल में अधिकतर महिलाएं पुरुषों से अधिक सेंसेटिव और इमानदार होती है, उनपर लोग आसानी से ट्रस्ट कर सकते है. इसलिए उन्हें अधिक झूठ बोलने की जरुरत नहीं पड़ती. जेंडर को लेकर शोध करने पर यह भी पाया गया कि झूठ बोलने से अगर झूठ बोलने वाले को फायदा होता है, तो वह बार-बार झूठ बोलता है. पुरुषों के लगातार झूठ बोलने की वजह 3 है, शेम , प्रोटेक्शन एंड रेपुटेशन.

असल में अपना रियल चेहरा छुपाने के लिए लोग झूठ बोलते है, ताकि दूसरे की भावनाओं को ठेस न पहुंचे. इसके अलावा दूसरों को इम्प्रेस करने, उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ने, कुकर्मों को छिपाने के लिए, सामाजिक पहलूओं से दूर भागने, कनफ्लिक्ट को दूर करने, आदि कई कारणों से बोलते है. मनोवैज्ञानिक मानते है कि झूठ बोलना लाइफ की एक कंडीशन है.

मस्तिष्क की एक्टिविटी के बारें में बात की जाय तो पता चलता है कि झूठ बोलने से हमारे मस्तिष्क की कुछ पार्ट स्टीमुलेट भी हो जाता है. इसमें पहले फ्रंटल लोब यानि जिसकी क्षमता सच्चाई को आसानी से दबाने की होती है और ये झूठ को एक इंटेलेक्चुअल तरीके से रखने की क्षमता रखता है. दूसरा लिम्बिक सिस्टम, जो अधिकतर एंग्जायटी की वजह से होता है, इसमें झूठ बोलना एक धोखा भी माना जाता है और व्यक्ति कई बार अपराधबोध या स्ट्रेस्ड से ग्रसित होकर भी झूठ बोलता है. तीसरा टेम्पोरल लोब में व्यक्ति झूठ बोलने के बाद से एक आनंद महसूस करता है. झूठ बोलने पर हमारा ब्रेन सबसे अधिक व्यस्त रहता है.

इस बारें में काउंसलर राशिदा कपाडिया कहती है कि सर्वे में भी ये स्पष्ट है, झूठ बोलने की आदत लड़कों को बचपन से ही शुरू हो जाती है और ये झूठ वे अपनी माँ से अधिकतर बोलते है. इसकी वजह यह है कि पुरुष संबंधों में कडवाहट नहीं चाहते, क्योंकि सही बात शायद उनके पार्टनर को पसंद न हो, तर्क-वितर्क चल सकता है.

इसलिए उसे अवॉयड करने के लिए पुरुष झूठ का सहारा लेते है. इसके अलावा किसी काम को अवॉयड करना, या सोशल इवेंट में नहीं जाना, हो तो झूठ बोलते रहते है. साथ ही पुरुषों का इगो बड़ा होता है, वे अपनी कमजोरियां दिखाना नहीं चाहते, इस वजह से भी झूठ बोलते है. कई बार किसी दूसरे शौक को पूरा करने के लिए झूठ बोलने का सहारा लिया जाता है. साथ ही यह भी देखा गया है कि पुरुषों को गिल्ट फीलिंग महिलाओं की अपेक्षा कम होती है.

महिलाओं में अपराधबोध अधिक होता है, वे झूठ बोलकर अधिक समय तक नहीं रह पाती और सच बोल देती है. पुरुष इमोशनल कम होते है और प्रैक्टिकल अधिक सोचते है. झूठ बोलना उनके लिए बड़ी बात नहीं होती, क्योंकि व्यवसाय या जॉब में वे छोटी-छोटी झूठ बोलते रहते है. पुरुषों का झूठ पकड़ना आसान नहीं होता, क्योंकि वे बहुत सफाई से झूठ बोल लेते है और  महिलाएं भी उसे आसानी से विश्वास कर लेती है.

ऐश्वर्या नहीं चाहिए मुझे: जब वृद्धावस्था में पिताजी को आई अक्ल

‘‘उम्र उम्र की बात होती है. जवानी में जो अच्छा लगता है बुढ़ापे में अकसर अच्छा नहीं लगता. इसी को तो कहते हैं जेनरेशन गैप यानी पीढ़ी का अंतर. जब मांबाप बच्चे थे तब वे अपने मांबाप को दकियानूसी कहते थे. अब जब खुद मांबाप बन गए हैं तो दकियानूसी नहीं हैं. अब बच्चे उद्दंड और मुंहजोर हैं. मतलब चित भी मांबाप की और पट भी उन्हीं की. किस्सा यहां समाप्त होता है कि मांबाप सदा ही ठीक थे, वे चाहे आप हों चाहे हम.’’

राघव चाचा मुसकराते हुए कह रहे थे और मम्मीपापा कभी मेरा और कभी चाचा का मुंह देख रहे थे. राघव चाचा शुरू से मस्तमलंग किस्म के इनसान रहे हैं. मैं अकसर सोचा करता था और आज भी सोचता हूं, क्या चाचा का कभी किसी से झगड़ा नहीं होता? चिरपरिचित मुसकान चेहरे पर और नजर ऐसी मानो आरपार सब पढ़ ले.

‘‘इनसान इस संसार को और अपने रिश्तों को सदा अपने ही फीते से नापता है और यहीं पर वह भूल कर जाता है कि उस का फीता जरूरत के अनुसार छोटाबड़ा होता रहता है. अपनी बच्ची का रिश्ता हो रहा हो तो दहेज संबंधी सभी कानून उसे याद होंगे और अपनी बच्ची संसार की सब से सुंदर लड़की भी होगी क्योंकि वह आप की बच्ची है न.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो, राघव,’’ पिताजी बोले, ‘‘साफसाफ बात करो न.’’

‘‘साफसाफ ही तो कर रहा हूं. सोमू के रिश्ते के लिए कुछ दिन पहले एक पतिपत्नी आप के घर आए थे…’’

पिताजी ने राघव चाचा की बात बीच में काटते हुए कहा था, ‘‘आजकल सोमू के रिश्ते को ले कर कोई न कोई घर आता ही रहता है. खासकर तब से जब से मैं ने अखबार में विज्ञापन दिया है.’’

‘‘मैं अखबार की बात नहीं कर रहा हूं,’’ राघव चाचा बोले, ‘‘अखबार के जरिए जो रिश्ते आते हैं वे हमारी जानपहचान के नहीं होते. आप ने उन से क्या कहा क्या नहीं, बात बनी, नहीं बनी, किसे पता. दूर से कोई आया, आप से मिला, आप की सुनी, उसे जंची, नहीं जंची, वह चला गया, किसे पता किसे कौन नहीं जंचा. किस ने क्या कहा, किस ने क्या सुना…’’

चाचा के शब्दों पर मैं तनिक चौंक गया. मैं पापा के साथ ही उन के कामकाज मेें हाथ बटाता हूं. आजकल बड़े जोरशोर से मेरे लिए लड़की ढूंढ़ी जा रही है. घर में भी और दफ्तर में भी. कौन किस नजर से आता है, देखतासुनता है वास्तव में मुझे भी पता नहीं होता.

‘‘याद है न जब मानसी के लिए लड़का ढूंढ़ा जा रहा था तब आप की गरदन कैसी झुकी होती थी. उस का रंग सांवला है, उसी पर आप उठतेबैठते चिंता जाहिर करते थे. मैं तब भी आप को यही समझाता था कि रंग गोराकाला होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. पूरा का पूरा अस्तित्व गरिमामय हो, उचित पहनावा हो, शालीनता हो तो कोई भी लड़की सुंदर होती है. गोरी चमड़ी का आप क्या करेंगे, जरा मुझे समझाइए. यदि लड़की में संस्कार ही न हुए तो गोरे रंग से ही क्या आप का पेट भर जाएगा? आप का सम्मान ही न करे, जो हवा में तितली की तरह उड़ती फिरे, जो जमीन से कोसों दूर हो, क्या वैसी लड़की चाहिए आप को?

‘‘अच्छा, एक बात और, आप मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं न, जहां दिन चढ़ते ही जरूरतों से भिड़ना पड़ता है. भाभी सारा दिन रसोई में खटती हैं और जिस दिन काम वाली न आए, उन्हें बरतन भी साफ करने पड़ते हैं. यह सोमू भी एक औसत दर्जे का लड़का है, जो पूरी तरह आप के हाथ के नीचे काम करता है. इस की अपनी कोई पहचान नहीं बनी है. आप हाथ खींच लें तो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से कमा सकेगा. आप का बुढ़ापा तभी सुखमय होगा जब संस्कारी बहू आ कर आप से जुड़ जाएगी. कहिए, मैं सच कह रहा हूं कि नहीं?’’

राघव चाचा ने एक बार पूछा तो मम्मीपापा आंखें फाड़फाड़ कर उन का चेहरा देख रहे थे. सच ही तो कह रहे थे चाचा. मेरी अपनी अभी कोई पहचान है कहां. वकालत पढ़ने के बाद पापा की ही तो सहायता कर रहा हूं मैं.

‘‘मेरे एक मित्र की भतीजी है जो मुझे बड़ी प्यारी लगती है. काफी समय से उन के घर मेरा आनाजाना है. वह मुझे अपनीअपनी सी लगती है. सोचा, मेरे ही घर में क्यों न आ जाए. मुझे सोमू के लिए वह लड़की उचित लगी. उस के मांबाप आप का घरद्वार देखने आए थे. मेरे साथ वे नहीं आना चाहते थे, क्योंकि अपने तरीके से वे सब कुछ देखना चाहते थे.’’

‘‘कौन थे वे और कहां से आए थे?’’

‘‘आप ने क्या कहा था उन्हें? आप को तो सुंदर लड़की चाहिए जो ‘ऐश्वर्या राय तो मैं नहीं कहता हो पर उस के आसपास तो हो,’ यही कहा था न आप ने?’’

मैं चाचा की बात सुन कर अवाक् रह गया था. क्या पापा ने उन से ऐसा कहा था? ठगे से पापा जवाब में चुप थे. इस का मतलब चाचा जो कह रहे थे सच है.

‘‘क्या आप अमिताभ बच्चन हैं और आप का बेटा अभिषेक, जिस की लंबाई 5 फुट 7 इंच’ है. आप एक आम इनसान हैं और हम और? क्या आप को ऐश्वर्या राय चाहिए? अपने घर में? क्या ऐश्वर्या राय को संभालने की हिम्मत है आप के बेटे में?… इनसान उतना ही मुंह खोले जितना पचा सके और जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारे.’’

‘‘बस करो, राघव,’’ मां तिलमिला कर बोलीं, ‘‘क्या बकबक किए जा रहे हो.’’

‘‘बुरा लग रहा है न सुन कर? मुझे भी लगा था. मुझे सुन कर शर्म आ गई जब उन्होंने मुझ से हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. भैया को शर्म नहीं आई अपनी भावी बहू के बारे में विचार व्यक्त करते हुए…भैया, आप किसी राह चलती लड़की पर फबती कसें तो मैं मान लूंगा क्योंकि मैं जानता हूं कि आप कैसे चरित्र के मालिक हैं. पराई लड़कियां आप की नजर में सदा ही पराई रही हैं, जिन पर आप कोई भी फिकरा कस लेते हैं, लेकिन अपनी बहू ढूंढ़ने वाला एक सम्मानजनक ससुर क्या इस तरह की बात करता है, जरा सोचिए. आप तब अपनी बहू के बारे में बात कर रहे थे या किसी फिल्म की हीरोइन के बारे में?’’

पापा ने तब कुछ नहीं कहा. माथे पर ढेर सारे बल समेटे कभी इधर देखते कभी उधर. गलत नहीं कह रहे हैं चाचा. मेरे पापा जब भी किसी की लड़की के बारे में बात करते हैं, तब उन का तरीका सम्मानजनक नहीं होता. इस उम्र में भी वे लड़कियों को पटाखा, फुलझड़ी और न जाने क्याक्या कहते हैं. मुझे अच्छा नहीं लगता पर क्या कर सकता हूं. मां को भी उन का ऐसा व्यवहार पसंद नहीं है.

‘‘अब आप बड़े हो गए हैं भैया. अपना चरित्र जरा सा बदलिए. छिछोरापन आप को नहीं जंचता. हमें स्वप्न सुंदरी नहीं, गृहलक्ष्मी चाहिए, जो हमारे घर में रचबस जाए और लड़की वालों को इतना सस्ता भी न आंको कि उन्हें आप कहीं भी फेंक देंगे. लड़की वाले भी देखते हैं कि कहां उन की बेटी की इज्जत हो पाएगी, कहां नहीं. जिस घर में ससुर ही ऐसी भाषा बोलेगा वहां बाकी सब कैसा बोलते होंगे यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.’’

‘‘कौन थे वे लोग? और कहां से आए थे?’’ मां ने प्रश्न किया.

‘‘वे जहां से भी आए हों पर उन्होंने साफसाफ कह दिया है कि राघवजी, आप के भाई का परिवार बेहद सुंदर है और इतने सुंदर परिवार में हमारी लड़की कहीं भी फिट नहीं बैठ पाएगी. वह एक सामान्य रंगरूप की लड़की है जो हर कार्य और गुण में दक्ष है, लेकिन ऐश्वर्या जैसी किसी भी कोण से नहीं लगती.’’

चाचा उठ खड़े हुए. उड़ती सी नजर मुझ पर डाली, मानो मुझ से कोई राय लेना चाहते हों. क्या वास्तव में मुझे भी कोई रूपसी ही चाहिए, जिस के नखरे भी मैं शायद नहीं उठा पाऊंगा. राह चलते जो रूप की चांदी यहांवहां बिखराती रहे और मैं असुरक्षा के भाव से ही घिरा रहूं. मैं ही कहां का देवपुरुष हूं, जिसे कोई अप्सरा चाहिए. चाचा सच ही कह रहे हैं कि पापा को ऐसा नहीं कहना चाहिए था. मैं ने एकाध बार पापा को समझाया भी था तो उन्होंने मुझे बुरी तरह डांट दिया था, ‘बाप को समझा रहा है. बड़ा मुंहजोर है तू.’

मुझे याद है एक बार मानसी की एक सहेली घर आई थी. पापा ने उसे देख कर मुझ से ही पूछा था :

‘‘सोमू, यह पटाखा कौन है? इस की फिगर बड़ी अच्छी है. तुम्हारी कोई सहेली है क्या?’’

तब पहली बार मुझे बुरा लगा था. वह मानसी की सहेली थी. अगर मानसी किसी के घर जाए और उस घर के लोग उस के शरीर की बनावट को तोलें तो यह जान कर मुझे कैसा लगेगा? यहां तो मेरा बाप ही ऐसी अशोभनीय हरकत कर रहा था.

मेरे मन में एक दंश सा चुभने लगा. कल को मेरे पिता मेरी पत्नी की क्या इज्जत करेंगे? ये तो शायद उस की भी फिगर ही तोलते रहेंगे. मेरी पत्नी में इन्हें ऐश्वर्या जैसा रूप क्यों चाहिए? मैं ने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं कि मेरी पत्नी कैसी होगी. मेरी बहन  का रंग सांवला है, शायद इसीलिए मुझे सांवली लड़कियां बहुत अच्छी लगती हैं.

मैंने चाचा की तरफ देखा. उन की नजरें बहुत पारखी हैं. उन्होंने जिसे मेरे लिए पसंद किया होगा वह वास्तव में अति सुंदर होगी, इतनी सुंदर कि उस से हमारा घर रोशन हो जाए. मुझे लगा कि पिता की आदत पर अब रोक नहीं लगाऊंगा तो कब लगाऊंगा. मैं ने चाचा को समझाया कि वे उन से दोबारा बात करें.

‘‘सोमू, वह अब नहीं हो पाएगा.’’

चाचा का उत्तर मुझे निरुत्तर कर गया.

‘‘अपने पिता की आदत पर अंकुश लगाओ,’’ चाचा बोले, ‘‘उम्रदराज इनसान को शालीनता से परहेज नहीं होना चाहिए. खूबसूरती की तारीफ करनी चाहिए. मगर गरिमा के साथ. एक बड़ा आदमी सुंदर लड़की को ‘प्यारी सी बच्ची’ भी तो कह सकता है न. ‘पटाखा’ या ‘फुलझड़ी’ कहना अशोभनीय लगता है.’’

चाचा तो चले गए मगर मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा. ऐसा लगने लगा कि मेरा पूरा भविष्य ही अंधकार में डूब जाएगा, अगर कहीं पापा और मेरी पत्नी का रिश्ता सुखद न हुआ तो? पापा का अपमान भी मुझ से सहा नहीं जाएगा और पत्नी की गरिमा की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही होगी. तब क्या करूंगा मैं जब पापा की जबान पर अंकुश न हुआ तो?

मां ने तो शायद यह सब सुनने की आदत बना ली है. मेरी पत्नी पापा की आदत पचा पाए, न पचा पाए कौन जाने. अभी पत्नी आई नहीं थी लेकिन उस के आने के बाद की कल्पना से ही मैं डरने लगा था.

सहसा एक दिन कुछ ऐसा हो गया जिस से हमारा सारा परिवार ही हिल गया. हमारी कालोनी से सटा एक मौल है जहां पापा एक दिन सिनेमा देखने चले गए. अकेले गए थे इसलिए हम में से किसी को भी पता नहीं था कि कहां गए हैं. शाम के 5 बजे थे. पापा खून से लथपथ घर आए. उन की सफेद कमीज खून से सनी थी. एक लड़की उन्हें संभाले उन के साथ थी. पता चला कि आदमकद शीशा उन्हें नजर ही नहीं आया था और वे उस से जा टकराए थे. नाक का मांस फट गया था जिस वजह से इतना खून बहा था. पापा को बिस्तर पर लिटा कर मां उन की देखभाल में जुट गईं और मैं उस लड़की के साथ बाहर चला आया.

‘‘ये दवाइयां इन्हें खिलाते रहें. टिटनैस का इंजेक्शन मैं ने लगवा दिया है,’’ इतना कहने के बाद उस लड़की ने अपना पर्स खोल कर दवाइयां निकालीं.

‘‘दरअसल इन का ध्यान कहीं और था. ये दूसरी ओर देख रहे थे. लगता है सुंदर चेहरे अंकल को बहुत आकर्षित करते हैं.’’

जबान जम गई थी मेरी. उस ने नजरें उठा कर मुझे देखा और बताने लगी, ‘‘माफ कीजिएगा, मैं भी उन चेहरों के साथ ही थी. जब ये टकराए तब वे चेहरे तो खिलखिला कर अंदर थिएटर में चले गए लेकिन मैं जा नहीं पाई. मेरी पिक्चर छूट गई, इस की चिंता नहीं. मेरे पिताजी की उम्र का व्यक्ति खून से सना हुआ छटपटा रहा है, यह मुझ से देखा नहीं गया.’’

दवाइयों का पुलिंदा और ढेर सारी हिदायतें मुझे दे कर वह सांवली सी लड़की चली गई. अवाक् छोड़ गई मुझे. मेरे पिता पर उस ने कितने पैसे खर्च दिए पूछने का अवसर ही नहीं दिया उस ने.

नाक की चोट थी. पूरी रात हम जागते रहे. सुबह पापा के कराहने से हमारी तंद्रा टूटी. आंखों के आसपास उभर आई सूजन की वजह से उन की आंखें खुली हैं या बंद, यह हमें पता नहीं चल रहा था.

‘‘वह बच्ची कहां गई. बेचारी कहांकहां भटकी मेरे साथ,’’ पापा का स्वर कमजोर था मगर साफ था, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची थी. वह कहां है?’’

पापा का स्वर पहले जैसा नहीं लगा मुझे. उस साधारण सी लड़की को वह बारबार ‘प्यारी बच्ची’ कह रहे थे. बदलेबदले से लगे मुझे पापा. यह चोट शायद उन्हें सच के दर्शन करा गई थी. सुंदर चेहरे उन पर हंस कर चले गए और साधारण चेहरा उन्हें संभाल कर घर छोड़ गया था. एक कमजोर सी आशा जागी मेरे मन में. हो सकता है अब पापा भी मेरी ही तरह कहने लगें, ‘साधारण सी लड़की चाहिए, ऐश्वर्या नहीं चाहिए मुझे.’

 

Father’s day Special: नवजात से ऐसे लगाव बढ़ाए पिता

नवजात के साथ मां जितना भावनात्मक लगाव बनाए रखती है, पिता भी इस के लिए उतना ही उत्सुक रहता है. दोनों के बीच एकमात्र यही अंतर रहता है कि पिता को इस तरह का लगाव रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं, जबकि मां का अपने बच्चे से यह स्वाभाविक बन जाता है.

यदि आप भी पिता बनने का सुख पाने वाले हैं, तो हम आप को कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जो इस दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे के प्रति आप के गहरे लगाव को विकसित कर सकते हैं. हमारे समाज में लिंगभेद संबंधी दकियानूसी सोच के कारण पुरुष अधिक भावनात्मक रूप से पिता का सुख पाने से कतराते हैं. मां से ही बच्चे की हर तरह की देखभाल की उम्मीद की जाती है. मां को ही बच्चे का हर काम करना पड़ता है. लेकिन अपने बच्चे के साथ आप जितना जुड़ेंगे और उस की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेंगे, बच्चे के प्रति आप का लगाव उतना ही बढ़ता जाएगा. लिहाजा, बच्चे का हर काम करने की कोशिश करें. नैपकिन धोने, डाइपर बदलने, दूध पिलाने, सुलाने से ले कर जहां तक हो सके उस के काम कर उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करें.

1. गर्भधारण काल से ही खुद को व्यस्त रखें

गर्भधारण की प्रक्रिया के साथ सक्रियता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के समग्र विकास में अहम भूमिका निभा सकता है. हर बार पत्नी के साथ डाक्टर के पास जाए. डाक्टर के निर्देशों को सुने और पत्नी को प्रतिदिन उन पर अमल करने में मदद करे. पत्नी को क्या खाना चाहिए तथा प्रतिदिन वह क्या कर रही है, उस पर नजर रखे. इस के अलावा सोनोग्राफी सैशन का नियमित रूप से पालन करे. गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास की प्रक्रिया के साथ घनिष्ठता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के जन्म के पहले से ही उस के साथ गहरा लगाव कायम कर सकता है.

2. जहां तक संभव हो बच्चे को संभालें

जब कभी अपने नवजात को अपनी बांहों में लेने का मौका मिले, उसे गंवाएं नहीं. बच्चे को सुलाना, लोरी सुनाना या बच्चे के तकलीफ में रहने के दौरान उसे सीने से लगाए रखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं होती है. ये सभी काम करने में खुद पहल करें. अपने बच्चे के साथ जल्दी लगाव विकसित करने के लिए स्पर्श एक अनिवार्य उपाय माना जाता है. अपने बच्चे को आप जितना स्पर्श करेंगे, उसे गले लगाएंगे, गोद में उठाएंगे, बच्चे से आप की और आप से बच्चे की नजदीकी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी.

3. डकार के लिए बच्चे को थामना

यह बच्चे के साथ लगाव बढ़ाने में विशेष रूप से मदद करता है और मां को भी मदद मिलती है, क्योंकि भोजन के बाद मां और शिशु दोनों थक जाते हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं. शिशु को कई बार डकार लेने में 10-15 मिनट का वक्त लग जाता है और मां को उस की डकार निकालने के लिए अपने कंधे पर रखना भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि वह खुद दुग्धपान कराने के बाद थक जाती है. ऐसे में यदि पिता यह दायित्व संभाल ले और बच्चे को इस तरह से थामे रखे कि उसे डकार आ जाए, तो मां को भी थोड़ा आराम मिल जाता है और शिशु भी अपनी मुद्रा बदल कर आराम पा सकता है.

4. बच्चे को दिन में एक बार खिलाएं

पत्नी जब बच्चे को नियमितरूप से स्तनपान करा सकती है, तो आप भी उसे बांहों में रख कर बोतल का दूध क्यों नहीं पिला सकते? किसी मां या पिता के लिए अपने बच्चे को खिलाने और यह देख कर संतुष्ट होने से बड़ा कोई एहसास नहीं हो सकता कि भूख शांत होते ही वह निश्चिंत हो गया है. इस से आप को अपने बच्चे के और करीब आने में भी मदद मिलेगी.

5. बच्चे को नहलाएं

शुरुआती दौर में बच्चे को स्नान कराना महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में बच्चा आनंद लेता है. अत: अपने बच्चे को किसी एक वक्त खुद नहलाना, उस के कपड़े धोना तय करें.

6. बच्चे से बातें करें

बच्चा जन्म लेने से पहले से ही आवाज पहचानने लगता है. बच्चे के जन्म लेने के बाद उस से बात करने का एक छोटा सा सत्र तय कर लें.

जब बच्चा अच्छे मूड में हो तो उस की आंखों में देखें और तब अपने दिल की बात उसे सुनाएं. कुछ लोगों में बच्चों से बातें करने की स्वाभाविक दक्षता होती है जबकि कुछ को इसे विकसित करने में वक्त लगता है. प्रतिदिन अपने बच्चे से बातें करें. धीरेधीरे वह आप की आवाज सुन कर प्रतिक्रिया भी देने लगेगा.

7. बच्चे के रोजमर्रा के काम निबटाएं

बच्चे के पालनपोषण की प्रक्रिया में आप खुद को जितना व्यस्त रखेंगे, आप का बच्चा और आप का एकदूसरे से लगाव उतना ही गहरा होता जाएगा. कुछ लोगों को डर लगता है कि बच्चे का कोई काम निबटाने में उन के हाथों कुछ गलत न हो जाए, लेकिन इस में घबराने की कोई बात नहीं है, क्योंकि मां भी तो धीरेधीरे ही सब कुछ सीखती है. बच्चे का डाइपर बदलना, उस की उलटी साफ करना, उस के कपड़े, बदलना आदि काम सीखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं है. बच्चे के साथ खुद को आप जितना अधिक जोड़ेंगे, उस के साथ आप का लगाव भी उतना ही गहरा होता जाएगा.

Father’s Day Special: कोरा कागज- घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

राहुल औफिस से घर आया तो पत्नी माला की कमेंट्री शुरू हो गई, ‘‘पता है, हमारे पड़ोसी शर्माजी का टिंकू घर से भाग गया.’’

‘‘भाग गया? कहां?’’ राहुल चौंक कर बोला.

‘‘पता नहीं, स्कूल की तो आजकल छुट्टी है. सुबह दोस्त के घर जाने की बात कह कर गया था. तब से घर नहीं आया.’’

‘‘अरे, कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. पुलिस में रिपोर्ट की या नहीं?’’ राहुल डर से कांप उठा.

‘‘हां, पुलिस में रिपोर्ट तो कर दी पर 13-14 साल का नादान बच्चा न जाने कहां घूम रहा होगा. कहीं गलत हाथों में न पड़ जाए. नाराज हो कर गया है. कल रात उस को बहुत डांट पड़ी थी, पढ़ाई के कारण. उस की मां तो बहुत रो रही हैं. आप चाय पी लो. मैं जाती हूं, उन के पास बैठती हूं. पड़ोस की बात है, चाय पी कर आप भी आ जाना,’’ कह कर माला चली गई.

राहुल जड़वत अपनी जगह पर बैठा का बैठा ही रह गया. उस के बचपन की एक घटना भी कुछ ऐसी ही थी, जरा आप भी पढ़ लीजिए :

वर्षों पहले उस दिन बस से उतर कर राहुल नीचे खड़ा हो गया था. ‘अब कहां जाऊं?’ वह सोचने लगा, ‘पिता की डांट से दुखी हो कर मैं ने घर तो छोड़ दिया. आगरा से दिल्ली भी पहुंच गया, लेकिन अब कहां जाऊं? घर तो किसी हालत में नहीं जाऊंगा.’ उस ने अपना इरादा पक्का किया, ‘पता नहीं क्या समझते हैं मांबाप खुद को. हर समय डांट, हर समय टोकाटाकी, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, टीवी मत देखो, दोस्तों से फोन पर बात मत करो, हर समय बस पढ़ो.’

उस की जेब में 500 रुपए थे. उन्हें ही ले कर वह घर से चल दिया था. 13 साल के राहुल के लिए 500 रुपए बहुत थे.

दुनिया घर से बाहर कितनी भयानक और जिंदगी कितनी त्रासदीपूर्ण होती है इस का उसे अंदाजा भी नहीं था. नीली जींस और गुलाबी रंग का स्वैटर पहने स्वस्थ, सुंदर बच्चा अपने पहनावे और चालढाल से ही संपन्न घर का लग रहा था.

बस अड्डे पर बहुत भीड़ थी. राहुल एक तरफ खड़ा हो गया. बसों की रेलमपेल, टिकट खिड़की की लाइन, यात्रियों का रेला, चढ़नाउतरना. टैक्सी व आटो वालों का यात्रियों के पीछे पड़ना. यह सब वह खड़ेखड़े देख रहा था.

उस के मन में तूफान सा भरा था. घर तो जाना ही नहीं है. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचेगा तब सब उसे ढूंढ़ेंगे. मां रोएंगी. पिता चिंता करेंगे. बहन उस के दोस्तों के घर फोन मिलाएगी. खूब परेशान होंगे सब. अब हों परेशान. जब पापा हर समय डांटते रहते हैं, मां हर छोटीछोटी बात पर पापा से उस की शिकायत करती रहती हैं तब वह रोता है तो किसी को नहीं दिखता है.

पापा के घर आते ही जैसे घर में कर्फ्यू लग जाता है. न कोई जोर से बोलेगा, न जोर से हंसेगा, न फोन पर बात करेगा, न टीवी देखेगा. उन्हें तो बस बच्चे पढ़ते हुए नजर आने चाहिए. हर समय पढ़ने के नाम से तो उसे नफरत सी हो गई.

छोटीछोटी बातों पर दोनों झगड़ते भी रहते हैं. छोटेमोटे झगड़े से तो इतना फर्क नहीं पड़ता पर जब पापा के दहाड़ने की और मां के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है तो वह दीदी के पहलू में छिप जाता है. बदन में कंपकंपी होने लगती है. अब कहीं उस का भी नंबर न आ जाए पिटने का, वैसे भी उस के रिपोर्ट कार्ड से पापा हमेशा ही खफा रहते हैं.

अगले कुछ दिनों तक घर का वातावरण दमघोंटू हो जाता है. मां की आंखें हर वक्त आंसुओं से भरी रहती हैं और पापा तनेतने से रहते हैं. उसे संभल कर रहना पड़ता है. दीदी बड़ी हैं, ऊपर से पढ़ने में अच्छी, इसलिए उन को डांट कम पड़ती है.

वह घर के वातावरण के ठीक होने का इंतजार करता है. घर के वातावरण का ठीक होना पापा के मूड पर निर्भर करता है. बड़ी मुश्किल से पापा का मूड ठीक होता है. जब तक सब चैन की सांस लेते हैं तब तक किसी न किसी बात पर उन का मूड फिर खराब हो जाता है. तंग आ गया है वह घर के दमघोंटू वातावरण से.

इस बार तिमाही परीक्षा के रिजल्ट पर मैडम ने पापा को बुलाया. स्कूल से आ कर पापा ने उसे खूब डांटा, मारा. उस का हृदय दुखी हो गया. पापा के शब्द अभी तक उस के कानों में गूंज रहे थे, ‘तेरे जैसी औलाद से तो बेऔलाद होना अच्छा है.’

उस का हृदय तारतार हो गया था. उसे कोई पसंद नहीं करता. उस की समस्या, उस के नजरिए से कोई देखना नहीं चाहता, समझना ही नहीं चाहता. दीदी कहती हैं कि पढ़ाई अच्छी कर ले, सब ठीक हो जाएगा लेकिन उस का मन पढ़ाई में लगता ही नहीं. पढ़ाई उसे पहाड़ जैसी लगती है. उस ने दीदी से कहा भी था कि मैथ्स, साइंस में उस का मन बिलकुल नहीं लगता, उसे समझ ही नहीं आते दोनों विषय, पर पापा कहते हैं साइंस ही पढ़ो. वैसे भी विषय तो वह 10वीं के बाद ही बदल सकता है. राहुल इसी सोच में डूबा था कि एक टैक्सी वाले ने उसे जोर से डांट दिया.

‘अबे ओ लड़के, मरना है क्या? बीचोंबीच खड़ा है, बेवकूफ की औलाद. एक तरफ हट कर खड़ा हो.’

राहुल अचकचा कर एक तरफ खड़ा हो गया. ऐसे गाली दे कर तो कभी किसी ने उस से बात नहीं की थी.

उस की आंखें अनायास ही छलछला आईं पर उस ने खुद को रोक लिया. उसे इस तरह सोचतेसोचते काफी लंबा समय बीत गया था. शाम ढलने को थी. भूख लग आई थी और ठंड भी बढ़ रही थी. उस के बदन पर सिर्फ एक स्वैटर था. उस ने गले का मफलर और कस कर लपेटा और सामने खड़े ठेलीवाले वाले की तरफ बढ़ गया. सोचा पहले कुछ खा ले फिर आगे की सोचेगा. ठेली पर जा कर उस ने कुछ खानेपीने का सामान लिया और एक तरफ बैठ कर खाने लगा.

तभी एक बदमाश किस्म का लड़का उस के चारों तरफ चक्कर काटने लगा. वह बारबार उस की बगल में आ कर खड़ा हो जाता. आखिर राहुल से न रहा गया. वह बोला, ‘क्या बात है, आप इस तरह मेरे चारों तरफ क्यों घूम रहे हैं?’

‘साला, अकड़ किसे दिखा रहा है? तेरे बाप की सड़क है क्या?’ लड़का अपने पीले दांतों को पीसते हुए बोला.

राहुल उस के बोलने के अंदाज से डर गया.

‘मैं तो सिर्फ पूछ रहा था,’ कह कर वह वहां से हट कर थोड़ा अलग जा कर खड़ा हो गया. लड़का थोड़ी देर बाद फिर उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘कहां से आया है बे? अकेला है क्या?’ वह आंखें नचाता हुआ राहुल से पूछने लगा. राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘अबे बोलता क्यों नहीं, कहां से आया है? अकेला है क्या?’

‘आगरा से,’ किसी तरह राहुल बोला.

‘अकेला है क्या?’

राहुल फिर चुप हो गया.

‘अबे लगाऊं एक, साला, बोलता क्यों नहीं?’

‘हां,’ राहुल ने धीरे से कहा.

‘अच्छा, घर से भाग कर आया है,’ उस लड़के के हौसले थोड़े और बुलंद हो गए. तभी वहां उसी की तरह के उस से कुछ बड़े 3 लड़के और आ गए.

‘राजेश, यह कौन है?’ उन लड़कों में से एक बोला.

‘घर से भाग कर आया है. अच्छे घर का लगता है. अपने मतलब का लगता है. उस्ताद खुश हो जाएगा,’ उस ने पूछने वाले के कान में फुसफुसाया.

‘क्यों भागा बे घर से, बाप की डांट खा कर?’ दूसरे लड़के ने राहुल से पूछा.

‘हां,’ राहुल उन चारों को देख कर डर के मारे कांप रहा था.

‘मांबाप साले ऐसे ही होते हैं. बिना बात डांटते रहते हैं. मैं भी घर से भाग गया था, मां के सिर पर थाली मार कर,’ वह उस के गाल सहला कर, उस को पुचकारता हुआ बोला, ‘ठीक किया तू ने, चल, हमारे साथ चल.’

‘मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊंगा,’ राहुल सहमते हुए बोला.

‘अबे चल न, यहां कहां रहेगा? थोड़ी देर में रात हो जाएगी, तब कहां जाएगा?’ वे उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाह रहे थे.

‘नहीं, मुझे अकेला छोड़ दो. मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊंगा,’ डर के मारे राहुल की आंखों से आंसू बहने लगे. वह उन से अनुनय करने लगा, ‘प्लीज, मुझे छोड़ दो.’

‘अरे, ऐसे कैसे छोड़ दें. चलता है हमारे साथ या नहीं? सीधेसीधे चल वरना जबरदस्ती ले जाएंगे.’

इस सारे नजारे को थोड़ी दूर पर बैठे एक सज्जन देख रहे थे. उन्हें लग रहा था शायद बच्चा अपनों से बिछड़ गया है.

उन लड़कों की जबरदस्ती से राहुल घबरा गया और रोने लगा. अंधेरा गहराने लगा था. डर के मारे राहुल को घर की याद भी आने लगी थी. घर वालों को मालूम भी नहीं होगा कि वह इस समय कहां है. वे तो उसे आगरा में ढूंढ़ रहे होंगे.

आखिर एक लड़के ने उस का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती अपने साथ घसीटने लगा. राहुल उस से हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रहा था. दूर बैठे उन सज्जन से अब न रहा गया. उन का नाम सोमेश्वर प्रसाद था, एकाएक वे अपनी जगह से उठ कर उन लड़कों की तरफ बढ़ गए और साधिकार राहुल का हाथ पकड़ कर बोले, ‘अरे, बंटी, तू कहां चला गया था? मैं तुझे कितनी देर से ढूंढ़ रहा हूं. ऐसे कोई जाता है क्या? चल, घर चल जल्दी. बस निकल जाएगी.’

फिर उन लड़कों की तरफ मुखातिब हो कर बोले, ‘क्या कर रहे हो तुम लोग मेरे बेटे के साथ? करूं अभी पुलिस में रिपोर्ट. अकेला बच्चा देखा नहीं कि उस के पीछे पड़ गए.’

सोमेश्वर प्रसाद को एकाएक देख कर लड़के घबरा कर भाग गए. राहुल सोमेश्वर प्रसाद को देख कर चौंक गया. लेकिन परिस्थितियां ऐसी थीं कि उस ने उन के साथ जाने में ही भलाई समझी. उम्रदराज शरीफ लग रहे सज्जन पर उसे भरोसा हो गया.

थोड़ी देर बाद राहुल सोमेश्वर प्रसाद के साथ जयपुर की बस में बैठ कर चल दिया.

सोमेश्वर प्रसाद का स्टील के बरतनों का व्यापार था और वे व्यापार के सिलसिले में ही दिल्ली आए थे. सोमेश्वर प्रसाद ने उस के बारे में जो कुछ पूछा, उस ने सभी बातों का जवाब चुप्पी से ही दिया. हार कर सोमेश्वरजी चुप हो गए और उन्होंने उसे अपने घर ले जाने का निर्णय ले लिया.

घर पहुंचे तो उन की पत्नी उन के साथ एक लड़के को देख कर चौंक गईं. उन्हें अंदर ले जा कर बोलीं, ‘कौन है यह? कहां से ले कर आए हो इसे?’

‘यह लड़का घर से भागा हुआ लगता है. कुछ बदमाश इसे अपने साथ ले जा रहे थे. अच्छे घर का बच्चा लग रहा है. इसलिए इसे अपने साथ ले आया. अभी घबराहट और डर के मारे कुछ बता नहीं रहा है. 2-4 दिन बाद जब इस की घबराहट कुछ कम होगी, तब बातोंबातों में प्यार से सबकुछ पूछ कर इस के घर खबर कर देंगे,’ सोमेश्वर प्रसाद पत्नी से बोले, ‘अभी तो इसे खानावाना खिलाओ, भूखा है और थका भी. कल बात करेंगे.’

सोमेश्वरजी के घर में सब ने उसे प्यार से लिया. धीरेधीरे उस की घबराहट दूर होने लगी. वह उन के परिवार में घुलनेमिलने लगा. रहतेरहते उसे 15 दिन हो गए. राहुल को अब घर की याद सताने लगी. वह अनमना सा रहने लगा. मम्मीपापा की, स्कूल की, संगीसाथियों की याद सताने लगी. महसूस होने लगा कि जिंदगी घर से बाहर इतनी सरल नहीं, ये लोग भी उसे कब तक रखेंगे. किस हैसियत से यहां पर रहेगा? क्या नौकर की हैसियत से? 13-14 साल का लड़का इतना छोटा भी नहीं था कि अपनी स्थिति को नहीं समझता.

और एक दिन उस ने सोमेश्वर प्रसाद को अपने बारे में सबकुछ बता दिया. उस से फोन नंबर ले कर सोमेश्वरजी ने उस के घर फोन किया, जहां बेसब्री से सब उस को ढूंढ़ रहे थे. एकाएक मिली इस खबर पर घर वालों को विश्वास ही नहीं हुआ. जब सोमेश्वरजी ने फोन पर उन की बात राहुल से कराई तो वह फूटफूट कर रो पड़ा.

‘मुझे माफ कर दो पापा, मैं आज से ऐसा कभी नहीं करूंगा, मन लगा कर पढ़ूंगा. मुझे आ कर ले जाओ,’ कहतेकहते उस की हिचकियां बंध गईं. उस की आवाज सुन कर पापा का कंठ भी अवरुद्ध हो गया.

राहुल के घर से भागने के मामले में वे कहीं न कहीं खुद को जिम्मेदार समझ रहे थे. उन की अत्यधिक सख्ती ने उन के बेटे को अपने ही घर में पराया कर दिया था. उसे अपना ही घर बेगाना लगने लगा.

हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है. राहुल की बहन उसी माहौल में रह रही थी. लेकिन वह उस घुटन भरे माहौल में नहीं रह पा रहा था. फिर यों भी लड़कों का स्वभाव अधिक आक्रामक होता है.

जब बेटे को खोने का एहसास हुआ तो अपनी गलतियां महसूस होने लगीं. सभी बच्चों का दिमागी स्तर और सोचनेसमझने का तरीका अलग होता है. अपने बच्चों के स्वभाव को समझना चाहिए. किस के लिए कैसे व्यवहार की जरूरत है, यह मातापिता से अधिक कोई नहीं समझ सकता. किशोरावस्था में बच्चे मातापिता को नहीं समझ सकते, इसलिए मातापिता को ही बच्चों को समझने की कोशिश करनी चाहिए.

खैर, उन के बेटे के साथ कोई अनहोनी होने से बच गई. अब वे बच्चों पर ध्यान देंगे. अब थोड़े समय उन के बच्चों को उन के प्यार, मार्गदर्शन व सहयोग की जरूरत है. हिटलर पिता की जगह एक दोस्त पिता कहलाने की जरूरत है, जिन से वे अपनी परेशानियां शेयर कर सकें.

मन ही मन ऐसे कई प्रण कर के राहुल के मम्मीपापा राहुल को लेने पहुंच गए. राहुल मम्मीपापा से मिल कर फूटफूट कर रोया. उसे भी महसूस हो गया कि वास्तविक जिंदगी कोई फिल्मी कहानी नहीं है. अपने मातापिता से ज्यादा अपना और बड़ा हितैषी इस संसार में कोई नहीं. उन्हें ही अपना समझना चाहिए तो सारा संसार अपना लगता है और उन्हें बेगाना समझ कर सारा संसार पराया हो जाता है.

ये 15 दिन राहुल और राहुल के मातापिता के लिए एक पाठशाला की तरह साबित हुए. दोनों ने ही जिंदगी को एक नए नजरिए से देखना सीखा.

राहुल अभी सोच में ही डूबा था कि तभी दुखी सी सूरत लिए माला बदहवास सी आई. वह अतीत से वर्तमान में लौट आया.

‘‘सुनो, जल्दी चलो जरा. बड़ी अनहोनी घट गई, टिंकू की लाश हाईवे पर सड़क किनारे झाडि़यों में पड़ी मिली है, पता नहीं क्या हुआ उस के साथ.’’

‘‘क्या?’’ सुन कर राहुल बुरी तरह से सिहर गया, ‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘बहुत बुरा हुआ. मातापिता तो बुरी तरह बिलख रहे हैं. संभाले नहीं संभल रहे. इकलौता बेटा था. कैसे संभलेंगे इतने भयंकर दुख से,’’ बोलतेबोलते माला का गला भर आया.

‘‘चलो,’’ राहुल माला के साथ तुरंत चल दिया. चलते समय राहुल सोच रहा था कि टिंकू उस के जैसा भाग्यशाली नहीं निकला. उसे कोई सोमेश्वर प्रसाद नहीं मिला. हजारों टिंकुओं में से शायद ही किसी एक को कोई सोमेश्वर प्रसाद जैसा सज्जन व्यक्ति मिलता है.

बच्चे सोचते हैं कि शायद घर से बाहर जिंदगी फिल्मी स्टाइल की होगी. घर से भाग कर वे जानेअनजाने मातापिता को दुख पहुंचाना चाहते हैं. उन पर अपना आक्रोश जाहिर करना चाहते हैं. पर मातापिता की छत्रछाया से बाहर जिंदगी 3 घंटे की फिल्म नहीं होती, बल्कि बहुत भयानक होती है. बच्चों को इस बात का अनुभव नहीं होता. उन्हें समझने और संभालने के लिए मातापिता को कुछ साल बहुत सहनशक्ति से काम लेना चाहिए. बच्चों का हृदय कोरे कागज जैसा होता है, जिस पर जिस तरह की इबारत लिख गई, जिंदगी की धारा उधर ही मुड़ गई, वही उन का जीवन व भविष्य बन जाता है.

उस दिन अगर उसे सोमेश्वर प्रसाद नहीं मिलते तो पता नहीं उस का भी क्या हश्र होता. सोचते सोचते राहुल माला के साथ तेजी से कदम बढ़ाने लगा.

माता-पिता के निधन के बाद मेरे भतीजे को एंग्जाइटी अटैक्स आने लगे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मेरी बहन और जीजाजी की कोरोना के कारण मृत्यु हो गई है. उन का 14 वर्षीय बेटा, जो उस वक्त उन के साथ ही था, उस ने 1 सप्ताह के भीतर अपने माता और पिता दोनों का अंतिम संस्कार किया. हालांकि हम उस बच्चे को अपने साथ अपने परिवार में ले आए हैं, लेकिन आज मेरा भतीजा पूरी तरह से शांत हो गया है. वह न ही किसी से बात करता है और न ही ठीक से पढ़ाई कर पाता है और खेल भी नहीं पाता. वह हाथपैर में दर्द बताता है और उस को एंग्जाइटी अटैक्स भी आते हैं. हम ने हर तरह से उस की डाक्टरी जांच करवाई है, लेकिन उस की हालत में कोई सुधार नहीं आ पा रहा है. क्या करें?

जवाब-

इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा सदमा बरदाश्त करना बेहद मुश्किल होता है. यकीनन बच्चा सीवियर डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी का मरीज है. इस स्थिति से उबरने में आप के प्यार और सहयोग की बेहद जरूरत है. उसे किसी साइकोलौजिकल काउंसलर से काउंसलिंग जरूर दिलवाएं क्योंकि जब तक वह खुद इस स्थिति को ऐक्सैप्ट कर के उस से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करेगा दवा भी ज्यादा असर नहीं कर पाएगी. काउंसलिंग के बाद जल्दी उपचार के लिए आप ट्रांस्क्रैनिअल मैग्नेटिक स्टिम्युलेशन की मदद ले सकती हैं.

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काउंसलर रवि कुमार सरदाना बताते हैं कि वर्तमान समय  में बच्चों के अंदर पनप रहे तनाव, अवसाद व डर को दूर करने के लिए अभिभावकों की जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति कई गुणा बढ़ गई है. उन्हें बच्चों को क्वालिटी टाइम देने के लिए गैजेट्स से थोड़ी दूरी बना कर चलना होगा, तभी वे बच्चों को समझ पाएंगे व उन्हें अपनी तरफ खींच पाएंगे. आप को बच्चा बन कर उन के साथ बच्चों जैसे खेल खेलने होंगे. चाइल्ड साइकोलौजी को समझना होगा. वे बड़ों के साथ न तो ज्यादा खेलना पसंद करते हैं और न ही उन से अपनी कोई बात साझा करना चाहते हैं. ऐसे में आप को उन को समझने के लिए उन जैसा बनना होगा, उन की चीजों में दिलचस्पी लेनी होगी. बच्चों को स्ट्रैस से दूर रखने के लिए उन्हें उन सब चीजों में इन्वौल्व करें, जिन में उन की रुचि हो क्योंकि मनपसंद चीज मिलने से वे खुश रहने लगेंगे, जो उन्हें तनाव से भी दूर रखेगा और साथ ही उन की कला को भी उभारने का काम करेगा.

कोरोना के टाइम में बच्चे घरों में बंद हैं. किसी से भी नहीं मिल पा रहे हैं. दोस्तों से खुले रूप में मिलनेजुलने  पर पाबंदियां जो हैं. खुद को हर समय चारदीवारी के पीछे पा कर अकेलापन महसूस कर रहे हैं. हर समय सब के घर में रहने के कारण घर का माहौल भी काफी तनावपूर्ण होता जा रहा है. घर में छोटीछोटी बातों पर नोकझोंक बच्चों के मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाल रही है. ऐसे में इस नए बदलाव से उन्हें बाहर निकालने की जिम्मेदारी पेरैंट्स की है ताकि यह अकेलापन उन के मन पर इतना हावी न हो जाए कि आप के लिए बाद में उन्हें संभालना मुश्किल हो जाए. इसलिए समय रहते संभल जाएं और अपने बच्चों को भी संभालें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

रिश्तेनाते: भाग 2- दीपक का शक शेफाली के लिए बना दर्द

शादी के बाद दीपक ने बड़ीबड़ी बातें की थीं. एकडेढ़ वर्ष तो घूमने, सैरसपाटे और विवाहित जीवन का आनंद लेने में कैसे बीता था, इस का पता भी नहीं चला था.

शादी के बाद शेफाली को कई नए रिश्ते भी मिले थे. सासससुर, देवर और ननद जैसे रिश्ते. शादी के करीब 2 वर्ष बाद शेफाली के जीवन में आसमानी परी की तरह आई थी नन्ही शिखा.

बेटी को जन्म देने के बाद शेफाली उस की जिम्मेदारियों के साथ बंध गई थी.

इस के साथ ही जीवन काफी हद तक यथार्थ के धरातल पर भी उतरने लगा था.

यथार्थ के धरातल पर उतरने के बाद बड़ीबड़ी बातें करने वाले दीपक के अंदर का असली इनसान भी सामने आने लगा. उस ने शादी के बाद जैसा दिखने की कोशिश की थी वह वैसा नहीं था. काफी वहमी और शक्की स्वभाव था उस का. छोटीछोटी बातों को ले कर शेफाली से उलझना उस की आदत थी.

दीपक के अंदर के इनसान से परिचय होने के बाद शेफाली का जीवन बदरंग होने लगा था, सपने बिखरने लगे.

दीपक के अप्रत्याशित रवैए से शेफाली के जीवन में जो रिक्तता उत्पन्न हुई, उसे उस ने दूसरे रिश्तों से भरने की कोशिश की थी.

मगर शेफाली की यह कोशिश भी वहमी और शक्की स्वभाव वाले दीपक को पसंद नहीं आई. इस से उन के दांपत्य संबंधों में तनाव बढ़ता गया था.

इस बढ़ते तनाव के बीच कुछ ऐसा भी घट गया था, जिस के बाद शेफाली को लगा था कि अब  उस का दीपक जैसे इनसान के साथ रहना मुश्किल था. उसे उस से अलग हो जाना चाहिए.

उन दोनों के अलग होने का ज्यादा शोर नहीं मचा था. किसी को उन के अलग होने की सही वजह भी मालूम नहीं हुई थी. पतिपत्नी के बीच की बातें उन के बीच में ही रह गई थीं. जाहिर होतीं तो इस से कई दूसरे रिश्ते भी प्रभावित हो सकते थे.

दीपक से अलग होते वक्त शेफाली को खामोशी में बेहतरी नजर आई थी. जबान खोलने से कई अफवाहें जन्म ले सकती थीं.

अलग होने के मात्र 8 महीने के उपरांत ही शेफाली और दीपक का एक कोर्ट में कानूनी तौर पर तलाक हो गया था.

तलाक के मामले में निर्णायक होने में शेफाली को ज्यादा वक्त नहीं लगा था. अपने तंग नजरिए और शक्की स्वभाव के चलते दीपक ने जैसे इलजाम शेफाली पर लगाए थे, उन को देखते हुए शेफाली को लगा था कि वह इस आदमी के साथ बिलकुल नहीं रह सकती.

शेफाली की 2 वर्ष की बेटी शिखा पहले पति के पास ही रह गई थी. बाकी सब चीजें तो मन में कसकती ही थीं, लेकिन अपनी नन्ही सी बेटी की याद शेफाली को कभीकभी रुलाती थी. वह अब कुछ बड़ी भी हो गई होगी. शायद देखने पर अपनी मम्मी को अब वह पहचान भी नहीं पाती.

अपने अतीत की यादों के साथ चलते हुए शेफाली उस लिफ्ट वाली जगह से भी आगे निकल आई थी, जो माल रोड को नीचे कार्ट रोड से जोड़ती थी.

मौसम के मिजाज को देखते हुए शेफाली को और आगे जाना ठीक नहीं लगा.

लिफ्ट के थोड़ा आगे जा कर शेफाली रुकी और सड़क की खाई वाली साइड पर लगे लोहे की रेलिंग को थाम नीचे देखने लगी.

नीचे खाई में भी उड़ती हुई गहरी धुंध के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. यह धुंध ही कब बर्फ का रूप धारण कर लेगी, मालूम नहीं था. इसी धुंध के बर्फ के महीन कणों के बदलने के ही इंतजार में शिमला में हजारों सैलानी जमा हुए थे.

शायद शेफाली शिमला के नीचे गहरी खाई में उड़ती धुंध का नजारा कुछ देर और देखती, अगर अचानक ही किसी बात ने उसे चौंका नहीं दिया होता.

कोई शेफाली के कदमों में झुक गया था. एक पल के लिए तो शेफाली घबरा गई. धुंध के कारण कदमों में झुकने वाले का चेहरा तुरंत नहीं पहचान सकी. जब कदमों में झुकने वाला सीधा हुआ तो शेफाली उसे पहचान गई. उस के मुख से बेसाख्ता निकला, ‘‘सन्नी, तुम?’’

‘‘शुक्र है, आप ने पहचान तो लिया.’’

‘‘मेरी नजर अभी कमजोर नहीं हुई. मगर यह सब करने की अब क्या जरूरत थी?’’ शेफाली का इशारा कदमों को छूने की तरफ था.

‘‘क्या आप के कदमों को छूने का मुझे अधिकार नहीं?’’

‘‘जो रिश्ता रहा ही नहीं, उसे सम्मान देने से अब क्या लाभ?’’ हंसने की असफल कोशिश करते हुए शेफाली ने कहा.

‘‘आप से भैया ने रिश्ता तोड़ा था, हम ने तो नहीं,’’  सन्नी ने कहा.

‘‘देख रही हूं, बड़े ही नहीं हो गए हो, बड़ीबड़ी बातें भी करने लगे हो.’’

‘‘4 वर्ष कम नहीं होते कुछ बदलने के लिए. मैं आप को अब क्या कह कर संबोधित कर सकता हूं?’’ सन्नी ने पूछा.

‘‘मेरा नाम ले सकते हो,’’ यह जानते हुए भी उस से ऐसा नहीं होगा, शेफाली ने हंस कर कहा.

‘‘आप जानती हैं, मुझ से यह नहीं होगा.’’

‘‘तो तुम को मुझे मिसेज माथुर कह कर बुलाना चाहिए. मैं ने शादी कर ली है और मेरे पति का नाम अमित माथुर है. मैं शिमला उसी के साथ आई हूं.’’

शेफाली के इन शब्दों से सन्नी को जरूर एक

धक्का लगा था. अपने अंदर के दर्द को वह अपने चेहरे से झलकने से रोक नहीं सका था.

‘‘मैं इस के लिए आप को मुबारकबाद नहीं दे सकता, सिर्फ शुभकामनाएं व्यक्त कर सकता हूं. इतना ही नहीं, मुझे आप को मिसेज माथुर कह कर बुलाना भी मेरे लिए मुमकिन नहीं होगा.’’

‘‘तो इस उलझन का अंत कर देते हैं. अब भी तुम मुझे भाभी कह कर बुलाओ मैं बुरा नहीं मानूंगी,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘कभी सोचा नहीं था, जिंदगी और हालात ऐसे बदल जाएंगे.’’

‘‘छोड़ो पुरानी बातों को, यहां शिमला में अकेले आए हो?’’

‘‘नहीं, कुछ दोस्त साथ में हैं.’’

‘‘क्या कर रहे हो आजकल?’’

‘‘अभी कुछ नहीं.’’

‘‘घर में सब कैसे हैं? मांजी, दीप्ति…शिखा?’’

‘‘आप के जाने के बाद घर में सब कुछ

बिखर सा गया था. मां अब ठीक नहीं रहतीं. दीप्ति इसी साल अपनी गैजुएशन कर लेगी और शिखा को आने वाले सैशन में डलहौजी के एक बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन मिल जाएगा’’, सन्नी ने कहा.

‘‘बोर्डिंग स्कूल क्यों? क्या घर में रह कर शिखा की पढ़ाई नहीं हो सकती थी?’’

‘‘मां के बीमार रहने के कारण ऐसा फैसला लेना पड़ा.’’

‘‘मांजी की बीमारी का बहाना क्यों? तुम को सीधे कहना चाहिए कि तुम्हारी नई भाभी ने दूसरी औरत के बच्चे को नहीं अपनाया,’’ शेफाली का लहजा तल्ख हो गया.

‘‘आप जैसा सोच रही हैं, वैसा नहीं. भैया ने शादी नहीं की,’’ सन्नी ने कहा.

सन्नी के ऐसा कहने से शेफाली को आगे कुछ कहने को नहीं सूझा.

शेफाली को चुप देख सन्नी ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है, आज बर्फ गिर कर रहेगी.’’

‘‘हां, ऐसा ही लगता है. यहां कब तक खड़े रहेंगे. सर्दी बहुत है. अब तो गरमगरम कौफी की तलब हो रही है. आओ, होटल चलते हैं. वहीं आराम से बैठ कर कौफी पिएंगे. इसी बहाने मिस्टर माथुर से भी मिल लोगे तुम.’’

शेफाली की बात से सन्नी असमंजस की स्थिति में नजर आया.

सन्नी को उस के असमंजस से उबारने की कोशिश करते हुए शेफाली ने कहा, ‘‘तुम से मिल कर अमित को खुशी होगी, आई एम श्योर अबाउट इट.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोई लेकिन नहीं, चुपचाप मेरे साथ चलो. अगर कुछ देर और यहां खड़ी रही तो कुल्फी की तरह जम जाऊंगी,’’ हुक्म देने वाले अंदाज में शेफाली ने कहा.

‘‘मैं आज भी आप की किसी बात को टाल नहीं सकता.’’

‘‘गुड बौय,’’  हाथ से सन्नी के गाल को थपथपाते हुए शेफाली ने कहा.

उस के साथ चल रहे लड़के को हकीकत

मालूम नहीं थी. वह उस कुरूप और कड़वी सचाई से अनजान था, जो उस के लिए रिश्तों के माने ही बदल सकती थी.

सन्नी ने भी दूसरों की तरह उस के और

दीपक के रिश्ते को टूटते हुए ही देखा था. इस रिश्ते के टूटने की गंदी हकीकत उसे मालूम नहीं थी. उसे मालूम नहीं था कि रिश्ते के टूटने में उस की भूमिका कैसे जुड़ गई थी. दूसरे शब्दों में जबरदस्ती उस की भूमिका जोड़ दी गई थी.

अच्छा था, सब कुछ शेफाली और दीपक में ही निबट गया था, वरना न तो सन्नी उस से ऐसे बात करता और न ही उस के साथ होटल चलता.

खुशियों का आगमन: भाग 1 -कैरियर या प्यार में क्या चुनेंगी रेखा?

‘‘मिस रेखा साने, आप का इस महीने भी टारगेट पूरा नहीं हुआ. सिर्फ 10,000 रुपए की सेल हुई है. आप को और 1 महीने का वक्त दिया जाता है, लेकिन खयाल रहे, यह आप का आखिरी मौका होगा, इस के बाद कंपनी आप के बारे में गंभीरता से सोचेगी.’’

गरदन झुका कर रेखा अपने बौस की फटकार सुनती रही. सभी की निगाहें उस पर टिकी थीं. गरदन नीची होने के बावजूद उसे सभी की नजरों में छिपा उपहास और सहानुभूति के भाव दिखाई दे रहे थे. किसी की नजरों में ईर्ष्या थी, तो किसी की नजरों में इस बात की खुशी थी कि चलो, इसे अच्छा सबक मिल गया.

मीटिंग खत्म हुई और वह धम्म से अपनी सीट पर आ बैठी. उस की उठने की इच्छा नहीं हो रही थी. अगले महीने 50,000 रुपए की बिक्री करने की चिंता उसे खाए जा रही थी. 50,000 की सेल? नामुमकिन है यानी वेतनवृद्धि नहीं या फिर नागपुर, चंद्रपुर जैसे इलाके में बदली. इस से अब छुटकारा नहीं है. अगर हमेशा ऐसी ही परफारमेंस रही तो शायद नौकरी से भी हाथ धोना पड़ सकता है. कंपनी को भला उस की समस्याओं से क्या मतलब है? उन्हें तो सिर्फ अपनी सेल बढ़ाने की और रुपए कमाने की चिंता लगी रहती है. लाखों बेरोजगार इस नौकरी के चक्कर में होंगे, मेरे जाने पर कोई दूसरा आ जाएगा. वैसे भी जोन के अफसर नाडकर्णी अपनी साली को यह नौकरी दिलाने के चक्कर में हैं. यानी अब उसे अपना बोरियाबिस्तर बांध कर रखना होगा.

यह नौकरी रेखा को आसानी से नहीं मिली थी. सैकड़ों चक्कर लगाए, इंटरव्यू दिए, रिटन टेस्ट दिए, साथ ही घर वालों की नाराजगी भी मोल ली. एक लड़की का मैडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी करना कोई आसान बात नहीं थी. मेहनत, परेशानी, धूप में दिन भर घूमना, तरहतरह के लोगों से मिलना आदि सभी मुश्किलों का उसे सामना करना था. भाई ने उसे समझाने की काफी कोशिश की, उसे आने वाली मुसीबतों से आगाह किया, पिताजी ने भी अपनी ओर से उसे समझाने की कोशिश की, मगर उन के हर सवाल का उस के पास जवाब था. और क्यों न हो, आखिर रेखा एक आकर्षक व्यक्तित्व की, बुद्धिमान और मेहनती युवती

थी. इसलिए इतनी अच्छी नौकरी गंवाना उसे मंजूर नहीं था. मगर आज वह सभी की हंसी का पात्र बन गई थी और इस के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी, क्योंकि आसान लगने वाली यह नौकरी धीरेधीरे उस के लिए सिरदर्द बनती जा रही थी.

दरअसल, उस के जोन में ज्यादातर ऐसे गांव

थे, जहां दिन भर में सिर्फ एक ही बस जाती थी. खुद की गाड़ी ले कर जाने में ऊबड़खाबड़ रास्तों की दिक्कत थी. उन रास्तों से गुजरना यानी अपनी हड्डियों का भुरता बनाने जैसा था. रेखा की तकलीफ को देख

उस के कुछ सहकर्मी उस से सहानुभूति व्यक्त करते तथा लड़की होने के नाते उसे शहरी जोन देने की सिफारिश करते, कुछ मदद करने हेतु

उस के जोन में तबादला कराने के लिए भी तैयार होते, मगर उसे ये प्रस्ताव मंजूर नहीं थे, क्योंकि चुनौतियों को स्वीकार करना उसे

अच्छा लगता था.

अकसर उस का सामना  अजीबोगरीब लोगों से होता था. कोई डाक्टर उस की कंपनी की ओर से अच्छीखासी, तगड़ी पार्टी हथियाने के बाद किसी अन्य कंपनी की दवाओं को प्रिस्क्राइब करता, कोई पेशेंट ज्यादा होने का बहाना कर के उसे घंटों बैठाता और घंटे भर के बाद बिना बात किए हुए बाहर निकल जाता. जो कोई उस की बातों को सुनता, उस के पास दवाएं खरीदने के लिए मरीज ही नहीं होते. कुछ केमिस्ट ऐसे भी होते, जो दवाओं का आर्डर देने के बाद कोई कारण बता कर माल वापस कर देते.

रेखा अपनी ओर से सेल बढ़ाने की काफी कोशिश करती, फिर भी कुछ न कुछ कमी रह जाती. मगर वह हार मानने के लिए तैयार नहीं थी. कंपनी को बिक्री की कोई प्रौब्लम नहीं थी, सब कुछ ठीक से चल रहा था, मगर कंपनी मार्केट में एक नया प्रोडक्ट लाने की तैयारी कर रही थी. ऐंटीबायोटिक-ऐंटीस्पाज्योडिक का कोई कांबिनेशन था, जिस की जोरदार पब्लिसिटी की जा रही थी. इसलिए सभी मैडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स पर सेल बढ़ाने के लिए दबाव डाला जा रहा था.

‘‘रेखा, मीटिंग भी खत्म हो गई और कौफी भी, चलो, घर चलें,’’ राजेश की आवाज से उस की विचारशृंखला टूटी. कुछ न कहते हुए वह राजेश के साथ चल पड़ी.

‘‘डरो मत, मैं तुम्हारी मदद करूंगा,’’ राजेश ने उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा.

‘‘तुम कैसे मदद करोगे, तुम्हारे पास खुद इतना काम है?’’

‘‘तुम सिर्फ देखती जाओ,’’ राजेश ने

कहा.

और सचमुच रेखा देखती रह गई.

राजेश ने अपना काम संभालते हुए उस की

हर तरह से सहायता की. काम में मशगूल वे दोनों अपनी भूख, प्यास, नींद सब कुछ भूल गए. आखिर उन की मेहनत रंग लाई. रेखा

के अफसर ने खुश हो कर उस की पीठ थपथपाई. वह काफी खुश हुई. अब वह अपने दिल की बात राजेश से कहने के लिए उत्सुक थी. राजेश और रेखा एकदूसरे को काफी दिनों से जानते थे, पसंद करते थे. मगर अब तक दोनों ने अपने दिल की बात एकदूसरे को नहीं बताई थी.

काम खत्म कर के लौटते हुए रेखा अपने

काम को ले कर राजेश से बातें कर रही थी. उस की समस्याओं को हल कर के राजेश ने उस की टेंशन दूर कर दी थी. आगे भी कभी कोई मुसीबत आने पर वह सहायता के लिए तैयार था. मगर रेखा अब उस का साथ जिंदगी भर चाहती थी, इसलिए बस में उस ने पहल करते हुए बात छेड़ी, ‘‘राजेश, आज शाम तुम मेरे घर आ रहे हो?’’

‘‘किस ने कहा तुम से?’’

‘‘मेरे दिल ने.’’

‘‘अच्छा, अब दिल से पूछ कर यह भी बता दो कि मैं किस खुशी में तुम्हारे घर आ

रहा हूं.’’

‘‘जाहिर है, मेरे पिताजी से मिलने, अब कारण मत पूछना.’’

‘‘मगर आने का कारण तो पता चले.’’

‘‘उन के सामने खड़े हो कर कहना कि आप का होने वाला जमाई आप के सामने

खड़ा है.’’

‘‘क्या? मिस रेखा, ख्वाबों की दुनिया से निकल कर जमीन पर आ जाइए.’’

‘‘मैं जमीन पर ही हूं और वह भी मजबूती के साथ, पैर जमा कर. पर मुझे लगता है कि तुम आसमान में उड़ रहे हो. इसीलिए तुम्हें मेरे प्यार की कोई कद्र नहीं है.’’

‘‘प्यार और तुम से? तुम यह क्या कह रही हो? रेखा, सच है कि हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं, साथ ही एकदूसरे के अच्छे दोस्त भी हैं. यहां तक मामला ठीक है, इस के आगे हम न ही बढ़ें तो अच्छा है.’’

‘‘लेकिन राजेश…’’

‘‘देखो रेखा, दोस्ती हुई फिर प्यार हुआ पर इस का मतलब यह नहीं अब मैं तुम से शादी भी कर लूं.’’

‘‘तुम बड़े दुष्ट हो, राजेश.’’

‘‘मैं तुम्हें हकीकत बता रहा हूं.’’

‘‘मेरी भावनाओं के साथ खेलने का तुम्हें कोई हक नहीं है.’’

‘‘मेरी बात को समझो. रेखा, तुम जिस सुखी, सुरक्षित माहौल में पलीबढ़ी हो, वह माहौल, वह सुरक्षा क्या मैं तुम्हें दे पाऊंगा?’’

‘‘यकीनन. इसीलिए तो मैं ने तुम्हें चुना है. एक शांत, सुखी, सुरक्षित परिवार की कल्पना को साकार रूप तुम ही दे सकते हो.’’

‘‘मैं तुम्हारा सपना साकार नहीं कर पाऊंगा, बाद में तुम्हें पछताना पड़ेगा.’’

‘‘सीधे कह दो न कि मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं.’’

उसे कुछ समझाने से पहले ही वह आने वाले बस स्टाप पर उतर गई.

दूसरे दिन उस की आंखों की सूजन राजेश से

काफी कुछ कह गई.

‘‘फौर माई स्वीटहार्ट,’’ राजेश ने गुलाब का फूल रेखा के सामने रखते हुए कहा.

‘‘अब क्यों मस्का लगा रहे हो?’’

‘‘अपनी एक प्यारी दोस्त को खुश करने

की कोशिश कर रहा हूं.’’

उस की बातें सुन कर रेखा सचमुच खुश हो गई.

‘‘इस गुलाब के बदले मैं तुम से कुछ मांगूं तो क्या दोगी?’’

‘‘मैं तो अपना तनमन सभी तुम्हें अर्पण करना चाहती हूं, पर तुम्हीं पीछे हट रहे हो.’’

‘‘फिर वही बात, प्लीज रेखा, प्यार, शादी ये सब बातें तुम मुझ से न ही करो तो बेहतर होगा.’’

‘‘थोड़ा मुश्किल है, फिर भी तुम्हारे लिए मैं कोशिश करने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘यह हुई न बात, हम पहले की तरह अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे.’’

‘‘यानी अब दोस्त नहीं हैं,’’ रेखा ने कहा. उस की बातों पर राजेश हंसने लगा.

रेखा ने राजेश से प्यार की बातें न

करने की हामी तो भर दी, मगर उस पर

अमल करना उस के लिए बहुत कठिन हो

रहा था. रोज के मानसिक तनाव से अच्छा है कि उसे टाल दिया जाए. न वह सामने

आएगा और न ही प्यार, शादी के विचार मन

में आएंगे.

अगला महीना काम की व्यस्तता में बीत गया.

रिपोर्टिंग, मीटिंग्स, रिफ्रेशर कोर्स के

लेक्चर्स आदि में राजेश को भूल गई थी. मगर काम खत्म होते ही फिर उसे राजेश की याद सताने लगी. उस के मन में रहरह कर यही खयाल आए कि उसे कोई दूसरी लड़की पसंद होगी, तभी तो मेरे जैसी खूबसूरत, होशियार लड़की को वह नकार रहा है. उसे किस बात का इतना गरूर है? छोड़ो, वह मेरे प्यार के काबिल ही नहीं है, अच्छा है, उस से दूरी बनाए रखूं.

Video: सिगरेट का पैकेट छिपाते दिखे कपिल शर्मा, लोगों ने ऐसे किया रिएक्ट

कॉमेडी किंग कपिल शर्मा किसी न किसी वजह से लाइमलाइट का हिस्सा बने ही रहते हैं. कपिल ने अपनी मेहनत और टैलेंट के बदौलत लाखों लोगों के दिल में अपने लिए एक खास जगह बनाई है. वह अपने कॉमेडी के जरिए लोगों के चेहरे पर मुस्कान लेकर आते हैं. अब कपिल शर्मा एक बार फिर सुर्खियों में है. कॉमेडी किंग ने कुछ ऐसा किया है, जिसकी वजह से लोग उनकी जमकर तारीफें करते नजर आ रहे हैं.

दरअसल, सोशल मीडिया पर कपिल शर्मा की एक वीडियो जमकर वायरल हो रही हैं. इस वीडियो में वह सिगरेट का डिब्बा छिपाते हुए दिख रहे हैं. वायरल हो रहे वीडियो में देखा जा सकता है कि कपिल अपने दोस्तों के साथ किसी रेस्टोरेंट में दिखाई दे रहे हैं. वो इस दौरान काफी मस्ती के मूड में नजर आ रहे हैं. यहां वेटर उनका खाना लेकर आता है तो इस दौरान कपिल को सिगरेट के पैकेट को छिपाते हुए वीडियो में देखा जा रहा है. कपिल ये सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि सिगरेट का पैकेट वीडियो में दिखाई न दें.

Did you Guys see the way Kapil Sharma hid the packet of Cigarettes !
by u/The_Cruxz in BollyBlindsNGossip

कपिल का ये वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोग उनकी काफी तारीफें करते नजर आ रहे हैं. लोग कहते नजर आ रहे हैं कि क्योंकि कपिल एक पब्लिक फिगर हैं और उनको बड़ी संख्या में युवा फॉलो करते हैं और उनके कार्यों की युवाओं द्वारा नकल की जा सकती है, इसलिए वो सिगरेट के पैकेट्स को छिपा रहे हैं. तो वहीं कुछ लोग कपिल की तुलना उन बॉलीवुड सेलिब्रिटिज से भी करते नजर आ रहे हैं, जो कुछ पैसों के लिए ध्रूमपान के विज्ञापन करते हैं और ऐसी चीजों को बढ़ावा देते हैं.

जैसा कि आप जानते हैं कि कपिल शर्मा खुद शराब की लत और डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं, जिसके बाद उन्हें इससे छुटकारा पाने के लिए जंग लड़ने पड़ी थी. कपिल अक्सर ही अपने उस दौर के बारे में खुलकर बात करते नजर आ जाते हैं. कपिल जानते हैं कि किसी भी प्रकार का ध्रूमपान सेहत के लिए हानिकारक होता है, इसलिए वो ये सुनिश्चित करना चाहते है कि कोई और उनकी नकल न करें, इसलिए वो सिगरेट के पैकेट को छिपा रहे हैं. उनके इस कार्य की ही लोग सोशल मीडिया पर काफी तारीफें करते नजर आ रहे हैं.

अनुपमा के मन में अनुज के खिलाफ जहर घोलेंगी गुरु मां

टीवी धारावाहिक अनुपमा हमेशा सुर्खियों में रहता है. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ लगातर नंबर वन पर बना हुआ है. दर्शकों को इस शो का बेसब्री से इंतजार रहता है. शो मेकर्स आए दिन शो मे ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आते है. बीते एपिसोड में ‘अनुपमा’ फेमस सिंगर कुमार सानू आए थे.

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में दर्शकों को देखने को मिलेगा कि गुरु मां अनुपमा को अनुज के खिलाफ भड़काएंगी और कहेंगी कि वह तुम्हारी उड़ान में बाधा बन सकता है.

गुरु मां अनुपमा को अनुज के खिलाफ भड़काएंगी

‘अनुपमा’ सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि गुरु मां अनुपमा को अनुज के खिलाफ भड़काएंगी. वह उससे कहेंगी कि कहीं ये अनुज तुम्हारी उड़ान में बाधा न बन जाए. हालांकि अनुपमा गुरु मां को बताएगी कि कैसे अनुज ने हर बार अनुपमा की मदद की है. वहीं गुरु मां अनुपमा को चेतावनी देंगी कि अमेरिका के इवेंट के लिए काफी पैसा खर्च हो चुका है, ऐसे में वह उसे कैंसल करने के बारे में जरा भी न सोचे. दूसर ओर अनुज भी अनुपमा से कहेगा कि इस बार वह उसके लिए तो क्या किसी के लिए न रुके.

गुरु मां अनुज का मुंह बंद करेंगी

अनुपमा में आगे देखने को मिलेगा कि समर और डिंपल की शादी के बाद विदाई के समय डिंपल अनुज के गले लगकर रोएगी. अनुज अनुपमा से कहेगा कि वह ससुराल में डिंपल का ख्याल रखे. इसपर गुरु मां उसका मुंह बंद कराएंगी और कहेंगी कि आपको शायद याद नहीं है कि अनुपमा अमेरिका जा रही है. अभी आप डिंपल को विदा कर रहे हैं और बाद में अनुपमा को करेंगे.

‘अनुपमा’ में मनोरंजन का तड़का यहीं खत्म नहीं होता है. शो में देखने को मिलेगा कि गृह प्रवेश के दौरान डिंपल अपशगुन कर देती है, जिससे बा और अनुपमा हैरान रह जाते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि ससुराल पहुंचकर डिंपल वहां पर आतंक मचाएगी और सबका जीना मुश्किल करेगी.

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