बुढ़ापे में आपके पिता को स्वस्थ रखने में मदद करेंगे ये 5 टिप्स

इस साल 20 जून को फादर्स डे मनाया गया और हरेक बच्चा, चाहे छोटा हो या बड़ा, अपने पिता के आभार, प्रेम और सम्मान की भावना से भरा महसूस किया है. भले ही बच्चे हर दिन इसी तरह की भावना का अहसास कर सकते हैं, लेकिन फादर्स डे उन्हें अपनी उन भावनाओं को जाहिर करने का मौका देता है जो वे अपने पिता के बारे में अभिव्यक्त करना चाहते हैं और पितृत्व की भावना का जश्न मनाना चाहते हैं. पिता भी अपने बच्चों को उतना ही प्यार करते हैं जितना कि मां अपने बच्चों को पालन-पोषण में करती है और यही वजह है कि उन्हें कुछ भी मांगनने की जरूरत महसूस नहीं होती. वे मांगने से पहले ही अपने बच्चों की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं. हालांकि हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि जिस तरह से हम बढ़ रहे हैं, उसी तरह हमारे माता-पिता भी बढ़ रहे और बूढ़े हो रहे होते हैं.

सामान्य तौर पर, पिता अपनी समस्याओं को लेकर इतने ज्यादा चिंतित नहीं होते हैं, चाहे वह अपने काम से जुड़ी हो या स्वास्थ्य से. अक्सर ऐसा होता है कि वे परिवार में किसी के सामने अपनी समस्याओं को नहीं उठाते हैं और चुपचाप समस्याओं का सामना करते रहते हैं. लेकिन जैसे ही उनकी उम्र बढ़ती है, उनके स्वास्थ्य का खास खयाल रखे जाने की भी जरूरत होती है. इसलिए, यह उनके बच्चों की जिम्मेदारी है कि वे अपने डैड को स्वस्थ और खुश बनाए रखने में मदद करें.

इन पांच तरीकों से अपने पिता का अच्छा स्वास्थ्य और खुशियां सुनिश्चित करेंः ये तरीके बता रहे हैं, स्टार इमेजिंग एंड पैथ लैब्स के निदेशक समीर भाटी.

1. नियमित आधार पर उनके टेस्ट कराएं

जब हमारी उम्र बढ़ती है तो शरीर में बदलाने आने लगते हैं. शरीर कमजोर होने लगता है और उम्र के साथ कार्य करने की क्षमता घट जाती है. इस उम्र में नियमित तौर पर टेस्ट कराना बेहद जरूरी है क्योंकि बुढ़ापे में काॅलेस्टेराॅल, मधुमेह, दिल के रोग, लिवर के रोग आदि बढ़ जाते हैं. नियमित टेस्ट से आपके पिता की सेहत सुनिश्चित होगी. इसके अलावा, यदि आप शुरुआती संकेत देखते हैं तो इन टेस्ट से आपको बीमारी बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी. कई पिता स्वयं इसकी जरूरत महसूस नहीं करते. इसलिए आपको समय समय पर उनके टेस्ट कराने चाहिए.

2. उन्हें अपने साथ रोजाना व्यायाम कराएं

नियमित व्यायाम हर किसी के लिए जरूरी है, इसमें यह मायने नहीं रखता कि आप जवान हैं या बुजुर्ग. व्यायाम से न सिर्फ अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है बल्कि शरीर में कई बीमारियों को फैलने से रोकने में भी मदद मिलती है. इस पर ध्यान दें कि आपके पिता अपनी अच्छी सेहत सुनिश्चित करने के लिए आपके साथ कुछ व्यायाम अवश्य करें.

3. उनके आहार का ध्यान रखें

व्यायाम और आहार के अलावा अन्य बातों का भी ध्यान रखें. कई बार आपके पिता किराना खरीदारी के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करते हैं और वह खाते हैं जो भी घर पर उपलब्ध हो, चाहे वह उनके लिए अच्छा हो या नहीं. चूंकि संतुलित और हेल्दी आहार आपके पिता के लिए बेहद जरूरी है, इसलिए आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे वह सब खाएं जो उनके लिए हेल्दी हो.

4. उनके साथ समय बिताएं

जैसे बच्चे बढ़े होते हैं, वे अपनी जिंदगी के साथ व्यस्त होते जाते हैं जिससे वे अक्सर अपने परिवार के साथ समय बिताना भूल जाते हैं. हमारे पिता अक्सर इसके लिए नहीं कहते हैं, लेकिन वे कभी कभार अकेलापन महसूस करने लगते हैं. यह अकेलापन उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. आपको कुछ समय अपने पिता के लिए निकालना चाहिए और उन्हें यह अहसास कराना चाहिए कि आपकी जिंदगी में हर कदम पर उनकी जरूरत है. आप उनके साथ छुट्टियां बिताने और उन्हें आनंददायक अनुभव मुहैया कराने की भी योजना बना सकते हैं.

5. उनकी सराहना करें और समर्थन करें

हमेशा अपने पिता का समर्थन करें. उन्हें सम्मान दें और उनके द्वारा किए गए कार्य की सराहना करें और उनका उत्साह बढ़ाएं. उन्होंने आपकी देखभाल में अपनी पूरी जिंदगी बिता दी, इसलिए उनके निर्णयों को सम्मान दें और उनकी सलाह पर हमेशा अमल करें. आपको अपने पिता के अलावा कोई भी बेहतर सलाह नहीं दे सकता, क्योंकि वे हमेशा आपकी भलाई चाहते हैं.

रिश्तेनाते: भाग 1- दीपक का शक शेफाली के लिए बना दर्द

अमित और शेफाली रात के समय शिमला पहुंचे थे. रात को ही अमित को जुकाम ने जकड़ लिया था. सारी रात होटल के कमरे में वह छींकता रहा था.

अमित ने दवाई भी ली थी, मगर उस का तत्काल असर नजर नहीं आया.

सुबह शिमला में जैसा मौसम बन गया था, उसे देख कर तो यही लग रहा था कि किसी भी वक्त बर्फ गिरनी शुरू हो सकती थी.

उस समय बर्फबारी देखने के शौकीन लोग बड़ी संख्या में शिमला में जमा थे. होटल ठसाठस भरे हुए थे. अगर आशा के अनुसार शीघ्र बर्फबारी नहीं होती तो शिमला में जमा सैलानियों में मायूसी छा सकती थी. बर्फ की सफेद चादर ओढ़ने के बाद शिमला कितना खूबसूरत दिखता था, यह शेफाली को मालूम था.

शेफाली कई बार शिमला आ चुकी थी. शिमला से उस के अतीत की कई यादें जुड़ी थीं. इस बार शेफाली शिमला नहीं आना चाहती थी. उसे मालूम था कि शिमला में अतीत की यादें उसे ज्यादा परेशान करेंगी.

शेफाली डलहौजी, मसूरी या और किसी भी हिल स्टेशन पर जाने को तैयार थी, लेकिन अमित शिमला जाने की जिद पर अड़ गया था.

दरअसल, अमित न तो पहले कभी शिमला आया था और न ही उस ने कभी स्नोफाल देखा था. इसलिए शिमला में उस के लिए पर्याप्त आकर्षण था.

शेफाली खुल कर अमित को यह नहीं बता सकी थी कि वह शिमला क्यों नहीं जाना चाहती थी? शेफाली कहती तो शायद अमित को ज्यादा अच्छा भी नहीं लगता.

वैसे अमित और शेफाली के पहले पति दीपक के स्वभाव और आदतों में बड़ा फर्क था. कारोबारी इनसान होने के बावजूद अमित के स्वभाव में सरलता और खुलापन था. अमित की आदत न तो बातों को अधिक कुरेदने की और न ही छोटीमोटी बातों को अहमियत देने की थी.

किसी बात को चुपचाप मन में रखने के बजाय वह उसे कह देना ज्यादा पसंद करता था.

पिछले 3 वर्षों में शेफाली अमित को किसी हद तक समझ तो गई थी, मगर अपने कड़वे अनुभवों के चलते वह किसी भी मर्द पर इतनी जल्दी भरोसा करने को तैयार नहीं थी.

शायद यही वजह थी कि शेफाली ने अमित को यह बताने में संकोच से काम लिया था कि उसे शिमला जाने में इतनी दिलचस्पी क्यों नहीं थी?

मालूम नहीं अमित उस समय कैसे रिऐक्ट करता, जब शेफाली उसे यह बताती कि वह अपने पहले पति दीपक के साथ कई बार शिमला आई थी.

अमित को तो यह भी मालूम नहीं था कि वह शेफाली के साथ शिमला के जिस होटल में ठहरा था उसी होटल में कभी शेफाली अपने पहले पति दीपक के साथ हनीमून के लिए ठहरी थी.

कहने को तो शादी के बाद अमित ने शेफाली से साफ शब्दोें में कहा था कि उसे उस के अतीत से कोई भी दिलचस्पी नहीं है. शादी के बाद अमित ने शेफाली को यह भी आश्वासन दिया था कि वह उस के बीते हुए कल के बारे में उस से कभी सवाल नहीं करेगा.

किंतु शेफाली का मानना था कि सब कहने की बातें हैं. यह बात अमित का मूड खराब कर सकती थी कि जिस होटल में वे दोनों ठहरे हुए थे, उसी होटल में उस ने कभी अपने पहले पति के साथ हनीमून मनाया था.

शेफाली इतनी मूर्ख भी नहीं थी कि ऐसी बात का जिक्र अमित से करती.

ज्यादा सर्दी अकसर अमित को जुकाम में जकड़ती थी. जैसा डर था, शिमला आते ही जुकाम की पकड़ में आने से वह बच नहीं सका था.

दोनों ने सुबह का नाश्ता बिस्तर पर ही किया. खिड़की से बाहर देखने पर धुंध की वजह से माल रोड की सड़क भी ठीक से नजर नहीं आ रही थी.

अपनी तबीयत को देखते हुए अमित का

होटल से बाहर निकलने का कोई इरादा फिलहाल नहीं था. मगर अपनी वजह से वह शेफाली को कमरे में बंद नहीं रखना चाहता था. इसलिए शेफाली को देखते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा तो इस हालत में होटल से बाहर निकलना ठीक नहीं होगा. मेरी मानो तो तुम एक छोटा सा राउंड अकेले मार आओ. अगर इस जुकाम से छुटकारा मिला तो दोपहर के बाद साथसाथ निकलेंगे.’’

‘‘नहीं, अकेले कोई मजा नहीं आएगा,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मेरे साथ इस कमरे में बंद रह कर तुम भी बेकार में बोर होगी. हम यहां तफरीह के लिए आए हैं. 1-1 पल को एंजौय करना चाहिए. यह बेवकूफी ही होगी कि मेरे साथ तुम भी इस कमरे में पड़ीपड़ी हिल स्टेशन पर आने का अपना मजा किरकिरा करो.’’

अमित के मजबूर करने पर शेफाली माल रोड पर चक्कर लगाने के लिए निकल पड़ी.

माल रोड की गहरी धुंध और कड़ाके की सर्दी में एकदूसरे से सट कर बांहों में बांहें डाल कर टहलते हुए जोड़े काफी रोमानी नजारा पेश कर रहे थे.

उड़ती धुंध के कोमल किंतु सर्द स्पर्श से शेफाली के गाल एकदम सुन्न से पड़ गए थे.

शेफाली के मन में कुछ कसकने लगा था. वक्त के साथ सब कुछ कैसे बदल गया था. पुराने रिश्तेनाते टूट गए थे और नए बने थे.

अपने पहले पति दीपक के साथ शेफाली जब हनीमून मनाने शिमला आई थी तो उस ने कभी सोचा नहीं था कि जन्मजन्मांतर के संबंधों की डोर इतनी छोटी और कच्ची हो सकती थी.

8-9 वर्ष पहले की ही बात थी. इसी माल रोड पर दीपक का हाथ थाम कर चलते हुए खुशी से शेफाली के कदम जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. दीपक जैसा जीवनसाथी पा कर खुद को दुनिया की खुशकिस्मत औरतों में शुमार करते हुए उस ने भविष्य के कई सपने देख डाले थे.

देखने में तो शेफाली को वैसा ही जीवनसाथी मिला था जैसा वह चाहती थी. पढ़ालिखा और देखने में सुंदर, उस में कोई ऐब भी नहीं था. उस पर बैंक की सरकारी नौकरी, जिस में भविष्य के बारे में आर्थिक सुरक्षा की गारंटी थी.

ब्रजभूषण शरण सिंह बनाम पहलवान: न्याय में देरी क्यों?

सैंकड़ों ऐसे मामले हैं जिन में किसी युवती या औरत की बिना सुबूत शिकायत पर बलात्कारछेड़छाड़बैड टच पर पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और वह महीनों सालों जेल में छोड़ा. आश्चर्य की बात है कि देश के लिए दुनिया भर से तरहतरह के गोल्डसिल्वरब्रौंज मेडल लाने वाली पहलवान लड़कियों के खुले आरोपों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने ब्रजभूषण शरण सिंहजो रैसलिंग फेडरेशन औफ इंडिया का प्रमुख है और  वह भाजपा नेता हैको पुलिस छू तक नहीं रही.

भारतीय जनता पार्टी काबिले तारीफ है कि वह अपने कर्मठ सपोर्टर की इस हद तक सुरक्षा करती है कि जब 2 महीने से ये रैसलर युवतियां जंतरमंतर पर बैठ कर धरना दे रही हैं तो भी नेता को बचाने की कोशिश हो रही है. जब इन रैसलर्म और उन के मर्थकों ने संसद पर 28 मई को जाने की कोशिश की तो पुलिस ने उन की जम कर ऐसी धुनाई की जो उन्होंने ओलंपिक और दूसरे खेल टूर्नामैंटों ने नहीं सही हो. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

यही नहीं उन के जेल में ले जाते समय बस में खींचे फोटो को फोटोशौप से मुरझाए चेहरों को मुस्कराते चेहरे बना दिए गए और पार्टी के विशाल डवैल सिस्टम में डाल कर साबित करने की कोशिश थी कि ये लड़कियां बस में पुलिस के पहरे में पिकनिक पर जा रही हैं.

असल में देश में कुश्ती को कोई खास इज्जत आज भी नहीं दी जाती क्योंकि इस में आने वाली लड़कियां समाज के पिछड़े वर्गों से आती हैं. जो बात आमिर खां ने अपनी फिल्म दंगल’ में दिखाई थी वही असल में हो रहा है कि ये पिछड़ी लड़कियां हावी न हो सकें. मामला चाहे बलात्कार का हो या न हो.

अगर सरकाररैसलिंग फेडरेशन और बाकी खेल फेडरेशन इस मामले में चुप हैं तो इसलिए कि सब बंटे हुए हैं और किसी को भी लड़कियों की छेडख़ानी पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

पहलवानों की कुश्तियां हमेशा इस देश में गरीबों का खेल समझ गया है. यह तो सिर्फ क्रिकेट है जो अंग्रेजी नबाबों का खेल था जिस में अच्छे घरों के लोग गए थेहांकीफुटबालहमारे अमीरों के खेल नहीं है. महिला क्रिकेट को भी वह भाव नहीं मिलता जो पुरुष क्रिकेट को मिलता है क्योंकि उस में पिछड़ी जातियों की लड़कियां हैं.

एक तो कुश्ती जैसा खेल की खिलाड़ी और ऊपर से लड़कियांउन्हें भला भाव कैसे दिया जा सकता है. यहां तो ऊंची जातियों की औरतों को भी पैर की जूती समझा जाता है और उन्हें सेवा करने की ट्रेङ्क्षनग जन्म होते ही दी जाती है. अच्छी औरत वही है जो पितापतिसांसससुरघर में मंदिरपंडोंपुजारियों और बच्चों की सेवा करे. वह आवाज उठाए तो चाहे चाहे जितनी जोर की होदबानी ही होगी. जंतरमंतर पर बैठी रैसलर्स अपना धर्म भूल गई हैं कि वे टुकड़ों के बदले सेवा के लिए हैबराबरी की इज्जत पाने का हक नहीं मांग सकती है.

बेजान बालों को इन तरीकों से बनाए खूबसूरत, इस्तेमाल करें ये चीजें

सभी महिलाओं की चाहत होती है सिल्की और शाइनी बाल. महिलाएं सिल्की बालों के लिए तरह-तरह के केमिकल युक्त प्रोडक्ट इस्तेमाल करते है. ऐसे में बालों की देखभाल करना बेहद कठिन होता है. अक्सर वर्किंग महिलाओं अपने बालों की केयर करने का समय नहीं मिलता है. इसीलिए आज हम आपको बताएंगे सिल्की बालों के लिए अचूक उपाय.

आज हम बताएंगे घर पर आसान तरीके से सिल्की नेचुराल बाल कैसे बनाए?

अक्सर महिलाएं अपने बालों को सिल्की बनाने के लिए कई तरह की चीजें इस्तेमाल करती है. हमारे आस-पास कई चीजें हैं जिनकी मदद से हम नेचुराल सिल्की बाल बनाया जा सकता है.

  1. बालों को सिल्की बनाने में अंडा आपके बेहद काम आ सकता है. ऐसे में आप हफ्ते में दो बार इसका इस्तेमाल अपने बालों पर कर सकते हैं. ऐसा करने से बालों की चमक लौट आ सकती है.

2. दही के इस्तोमाल से भी अपने बालों को शायनी और चमकदार बना सकते हैं. ऐसे में आप एक कटोरी में दही और शहद को मिलाएं और बने मिश्रण को अपने बालों पर लगाएं. उसके बाद अपने बालों को साधारण पानी से धो लें. ऐसा करने से बालों को सिल्की बनाया जा सकता है.

3. सोने से पहले आप अपने बालों में नारियल तेल और एलोवेरा जेल को मिलाकर लगाएं और अगले दिन उठकर अपने बालों को साधारण पानी से धो लें. ऐसा करने से बालों को सिल्की बनाया जा सकता है.

4. मेथी के इस्तेमाल से भी बालों को शाइनी बनाया जा सकता है. ऐसे में आप मेथी को पानी में भिगोएं और बने मिश्रण को पीस लें. अब अपने बालों पर लगाएं. ऐसा करने से बालों को शाइनी बनाया जा सकता है.

5. बालों को शाइनी बनाने के लिए आप अपने बालों में जैतून का तेल और नारियल का तेल भी बना सकते हैं. ऐसा करने से भी बालों को शाइनी बनाया जा सकता है.

Father’s day Special: जिंदगी के सफर में मां जितने ही महत्वपूर्ण है पापा

आमतौर पर समाज में, साहित्य में या विभिन्न किस्म की संवेदनाओं के बीच यही मान्यता है कि संतान के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ‘मां’ की है. इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया में ‘मां’ की जगह कोई नहीं ले सकता. लेकिन इतना ही बड़ा सच यह भी है कि दुनिया में ‘पिता’ की भी कोई जगह नहीं ले सकता. भले मुहावरों में, कविताओं में पिता की भूमिका ने वह जगह न पायी हो, जो जगह मां की भूमिका को हासिल है लेकिन सच्चाई यही है कि जीवन में जितनी जरूरी मां की सीखें हैं, उतनी ही जरूरी पिता की मौन देखरेख है. भले पिता मां की तरह अपने बच्चों को दूध न पिलाए, उन्हें दुलराए न, उनके साथ बहुत देर तक मान मनौव्वल का खेल न खेले, लेकिन वह भी अपनी संतान से उतना ही प्यार करता है और जीवन में उसकी उतनी ही महत्ता भी है.

जिन बच्चों के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ जाता है, उन बच्चों में 90 फीसदी से ज्यादा बच्चे अंतर्मुखी हो जाते हैं. ऐसे बच्चे अकसर बहुत आत्मविश्वास के साथ समाज का और अपनी कठिन परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते. दरअसल पिता उनमें दुनिया से टकराने का आत्मविश्वास देता है. मां अगर संयम सिखाती है तो पिता की मौजूदगी बच्चों में प्रतिरोध का जज्बा भरती है. अगर मां नहीं होती तो बच्चे जीवन जीने के तौर तरीके कायदे से नहीं सीख पाते. अगर पिता नहीं होते तो बच्चे जीवन का सामना ही बमुश्किल कर पाते हैं. मां की देखरेख में पले बच्चों में आत्मविश्वास की कमी तो होती ही है, वे तमाम बार अपनी बात को सार्वजनिक तौरपर व्यवस्थित ढंग से रख तक नहीं पाते.

कहने का मतलब यह है कि जिंदगी में मां और बाप दोनो की ही बराबर की जरूरत होती है. पर अगर गहराई से देखें तो पिता की जरूरत थोड़ी ज्यादा होती हैय क्योंकि पिता की बदौलत ही बच्चे दुनिया से दो चार होने, उससे मुकाबला करने की हिम्मत और हिकमत पाते हैं. अगर बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ जाता है, तो बच्चों का बचपन खो जाता है. खेलन, कूदने की उम्र में बड़े बूढ़ों की तरह चिंताएं करनी पड़ती हैं, कई बार उन्हीं की तरह घर चलाने के लिए मां का हाथ बंटाना पड़ता है यानी खेलने, कूदने की उम्र में ही नौकरी या चाकरी करनी पड़ती है. ज्यादातर बार पिता के न रहने पर बच्चों की पढ़ाई या तो आधी अधूरी रह जाती है या जैसे सोचा होता है, वैसी नहीं हो पाती. हां, कई मांएं अपवाद भी होती हैं जो बच्चों को पिता की गैर मौजूदगी का एहसास नहीं होने देतीं.

पिता की मौजूदगी में बच्चों में एक अतिरिक्त किस्म का आत्मविश्वास रहता है. किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि पिता भोजन में नमक की तरह होते हैं, खाने में अगर नमक न हो तो खाना कितना ही बढ़िया, कितना ही कीमती क्यों न हो, बेस्वाद लगता है? लेकिन जब खाने में नमक की उपयुक्त मात्रा होती है तो कई बार हमें इसका एहसास तक नहीं होता. कई बार हम यह याद ही नहीं कर पाते कि हम जो कुछ खा रहे हैं उसमें नमक का भी कुछ महत्व है. पिता की मौजूदगी भी जीवन ऐसी ही होती है. जब होते हैं तो कभी यह ख्याल ही नहीं होता कि पिता के महत्व को समझें. मगर जब नहीं होते तो हर पल, हर कदम उनके न होने का दुख उठाना पड़ता है, परेशानी भोगनी पड़ती है. हर संतान को एक न एक दिन अपनी जिंदगी की जिम्मेदारी या अपने जीवन का भार खुद ही उठाना पड़ता है. मगर जब तक पिता होते हैं, वह भले कुछ न करते हों, संतानें तमाम तरह के दायित्व बोझों से मुक्त रहती हैं. उनमें एक बेफिक्री रहती है. पिता मनोवैज्ञानिक रूप से संतानों की जिम्मेदारी उठाते हैं.

अकसर माना जाता है और किसी हद तक यह सही भी होता है जिन बच्चों की सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ जाता है, उनमें एक खास किस्म की आवरगी, एक खास किस्म का बेफिक्रापन और एक खास किस्म की आपराधिक प्रवृत्ति पैदा हो जाती है. दरअसल ऐसे बच्चों की समाज के लोग ज्यादा परवाह नहीं करते, उन्हें बहुत प्यार और इज्जत नहीं देते, जिस कारण ऐसे बच्चे भी समाज की परवाह नहीं करते, उसकी ज्यादा इज्जत नहीं करते और धीरे धीरे उनके माथे पर किसी न किसी असामाजिक श्रेणी का ठप्पा लग जाता है. समृद्धि का एक आयाम मनोविज्ञान भी होता है, जब पिता होते हैं तो बच्चे खासकर लड़के मनोवैज्ञानिक रूप से खुद को जिंदगी के बोझ से लदा-फंदा नहीं पाते. उन्हें लगता है उनकी जिम्मेदारी उठाने के लिए पिता तो अभी मौजूद ही हैं. फिर चाहे भले पिता कुछ भी कर सकने की स्थिति में न हों लेकिन उनका होना ही बेटों के लिए एक बड़ा संबल होता है.

शास्त्रों में कहा गया है कि माता और पिता दोनो ही संतान के पहले गुरु होते हैं, यह सच भी है. लेकिन माता और पिता अपनी संतान को एक ही पाठ नहीं पढ़ाते, वे दोनो उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए एक ही समय में अलग अलग और महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं. मां जहां बच्चों को पारिवारिक मूल्यों, मान मर्यादा, उठने बैठने, बोलने के तौर तरीके सिखाती है, वहीं पिता बच्चों को घर से बाहर जिंदगी से कैसे जूझें, कैसे टकराएं, कैसे उससे गले मिलें इस सबका पाठ पढ़ाते हैं. इसलिए माता पिता दोनो ही बच्चे के सबसे पहले गुरु होते हैं और दोनो ही उन्हें जिंदगी के दो अलग अलग और महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं.

Father’s day Special: चेहरे की चमक- माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

मेरे लिए गुंजन का रिश्ता मेरी सब से समझदार बूआ ने बताया था. बूआ गुंजन की मामी की सहेली हैं. आज शाम को वे लोग हमारे घर आ रहे हैं.

पापा टैंशन में आ कर खूब शोर मचा रहे थे, ‘‘अब तक बाजार से मिठाई भी नहीं लाई गई…मेरी समझ में नहीं आता कि कई घंटे लगाने के बाद भी तुम लोग वक्त से तैयार क्यों नहीं हो पाते हो…अब बाजार भी मुझ को ही जाना पड़ेगा… ड्राइंगरूम में जो भी फालतू चीजें बिखरी पड़ी हैं, इन्हें कहीं और उठा कर रख देना…पता नहीं तुम लोग वक्त से सारे काम करना कब सीखोगे?’’

पापा के इस तरह के लैक्चर आज दोपहर से राजीव भैया, नीता भाभी और मेरे लिए चल रहे थे. उन के बाजार चले जाने के बाद सचमुच घर में शांति महसूस होने लगी.

राजीव भैया की शादी के कुछ महीने बाद मां की मृत्यु हो गई थी. उन के अभाव ने पापा को बहुत चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना दिया था. उन की कड़वी, तीखी बातें सुन कर नीता भाभी का मुंह आएदिन सूजा रहता था. अब तो वे पापा को जवाब भी दे देती थीं और भैया भी उन का पक्ष लेने लगे थे.

घर में बढ़ते झगड़ों को देख मैं पापा को शांत रहने के लिए बहुत समझाता, पर वे अपने अंदर सुधार लाने को तैयार नहीं थे.

‘घर में गलत काम होते मैं नहीं देख सकता. बदलना तुम लोगों को है, मुझे नहीं,’ पापा उलटा मुझे डांट कर चुप करा देते.

पापा के बाजार से लौटने तक मेहमान आ चुके थे. गुंजन की मम्मी के साथ उन के भैयाभाभी और बड़ी बेटी व दामाद आए थे.

पापा सब का अभिवादन स्वीकार करने के बाद सामान रखने घर के भीतर जाने लगे तो गुंजन की मम्मी ने हैरानी भरी आवाज में उन से पूछा, ‘‘आप राजेंद्र हो न? एसडी कालेज में पढ़े हैं न आप?’’

‘‘जी, लेकिन मैं ने…’’

‘‘तुम मुझे कैसे पहचान पाओगे? मैं अब मोटी हो गई हूं, बाल सफेद हो चले हैं और आंखों पर चश्मा जो लग गया है. अरे, मैं सीमा हूं…तब सीमा कौशिक होती थी. तुम मेरे नोट्स पढ़ कर ही पास होते थे. अब तो पहचान लो, भई,’’ सीमाजी ने हंसते हुए पापा की यादों को कुरेदा.

दिमाग पर कुछ जोर दे कर पापा ने कहा, ‘‘हां, अब याद आ गया,’’ और अपने हाथ में पकड़ा सामान मुझे देने के बाद वे गुंजन की मम्मी के सामने आ बैठे, ‘‘तुम इतनी ज्यादा भी नहीं बदली हो. तुम्हारी आवाज तो बिलकुल वही है. मुझे पहली नजर में ही पहचान लेना चाहिए था.’’

‘‘जैसे मैं ने पहचाना.’’

‘‘पता नहीं तुम ने कैसे पहचान लिया? मेरी शक्ल तो बिलकुल बदल गई है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे बेटे रवि में तुम्हारी उन दिनों की शक्लसूरत की झलक साफ नजर आती है. शायद इसी समानता ने तुम्हें पहचानने में मेरी मदद की. देखो, क्या गजब का संयोग है. मैं अपनी बेटी का रिश्ता तुम्हारे बेटे के लिए ले कर आई हूं.’’

‘‘मेरी समझ से यह अच्छा ही है क्योंकि कालेज में जैसा आकर्षक व्यक्तित्व तुम्हारा होता था, अगर तुम्हारी बेटी वैसी ही है तो मेरे बेटे रवि की तो समझो लाटरी ही निकल आई,’’ पापा के इस मजाक पर हम सब खूब जोर से हंसे तो सीमा आंटी एकदम शरमा गईं.

अब तक सब के मन की हिचक समाप्त हो गई थी. पापा सीमा आंटी के साथ कालेज के समय की यादों को ताजा करने लगे. उन के भैयाभाभी व बेटीदामाद ने मुझ से मेरे बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. नीता भाभी नाश्ते की तैयारी करने अंदर रसोई में चली गईं. राजीव भैया खामोश रह कर हम सब की बातें सुन रहे थे.

उन लोगों के साथ 2 घंटे का समय कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. पापा तो ऐसे खुश नजर आ रहे थे मानो यह रिश्ता पक्का ही हो गया हो.

सीमा आंटी ने चलने से पहले पापा के सामने हाथ जोड़ दिए और भावुक लहजे में बोलीं, ‘‘राजेंद्र, मेरे पास दहेज में देने को ज्यादा कुछ नहीं है. गुंजन के पापा के बीमे व फंड के पैसों से मैं ने बड़ी बेटी की शादी की है और अब छोटी की करूंगी. तुम्हारी कोई खास मांग हो तो अभी…’’

‘‘मुझे जलील करने वाली बात मत करो, सीमा,’’ पापा ने बीच में टोक कर उन्हें चुप करा दिया, ‘‘रवि को गुंजन पसंद आ जाए…और मुझे विश्वास है कि तुम्हारी बेटी इसे जरूर अच्छी लगेगी, तो यह रिश्ता मेरी तरफ से पक्का हुआ. दहेज में मुझे एक पैसा नहीं चाहिए. तुम दहेज की टैंशन मन से बिलकुल निकाल दो.’’

सीमा आंटी बोलीं, ‘‘राजेंद्र, किन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं? अब आप सब लोग हमारे घर कब आओगे?’’

‘‘अगले संडे की शाम को आते हैं,’’ पापा ने उतावली दिखाते हुए कहा.

‘‘ठीक है. अब हम चलेंगे. तुम से मिल कर मन बहुत खुश है और बड़ी राहत भी महसूस कर रहा है. तुम्हारा बेटा रवि हमें तो बहुत भाया है. मेरी दिली इच्छा है कि इस घर से हमारा रिश्ता जरूर जुड़ जाए.’’

पापा के चेहरे के भाव साफ बता रहे थे कि उन की वही इच्छा है जो सीमा आंटी की है.

उन सब के जाने के बाद राजीव भैया पापा से उलझ गए, ‘‘आप को यह कहने की क्या जरूरत थी कि हमें दहेज में एक पैसा भी नहीं चाहिए? उन्हें इंजीनियर लड़का चाहिए तो शादी अच्छी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘अपनी बेटी की अच्छी शादी तो हर मांबाप करते ही हैं. सीमा से जानपहचान ही ऐसी निकल आई कि अपने मुंह से कुछ मांग बताने पर मैं अपनी ही नजरों में गिर जाता,’’ पापा ने शांत स्वर में भैया को समझाया.

‘‘कालेज के दिनों में आप का उन के साथ कोई प्यार का चक्कर तो नहीं चला था न?’’ राजीव भैया ने उन्हें छेड़ा.

‘‘अरे, नहीं,’’ पापा एकदम से शरमाए तो हम तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े थे.

‘‘आगे से बिलकुल दहेज न लेने की बात मत करना, पापा,’’ ऐसी सलाह दे कर राजीव भैया अपने कमरे में चले गए थे.

पापा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए मुझ से कहा, ‘‘तेरा बड़ा भाई उन लोगों में से है जिन का पेट कभी नहीं भरता. लेकिन तू चिंता न कर बच्चे, अगर सीमा की बेटी सूरत, सीरत से अच्छी हुई तो मैं तेरे भाई की एक न सुनते हुए रिश्ता पक्का कर दूंगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हैं आप, पापा. सीमा आंटी के नोट्स पढ़ कर आप ने जो गे्रजुएशन किया है, अब उस एहसान का बदला चुकाने का वक्त आ गया है. आप गुंजन को देखे बिना भी अगर इस रिश्ते को ‘हां’ करना चाहें तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा.’’

मेरी इस बात को सुन पापा बहुत खुश हुए और दिल खोल कर खूब हंसे भी.

रविवार को हम लोग शाम के 5 बजे के करीब सीमा आंटी के घर पहुंच गए. उन के भैयाभाभी और बेटीदामाद ने हमारा स्वागत किया. कुछ देर बाद गुंजन भी हम सब के बीच आ बैठी थी.

पहली नजर में उस ने मुझे बहुत प्रभावित किया. वह मुझे सुंदर ही नहीं बल्कि स्मार्ट भी लगी. हम सब के साथ खुल कर बातें करने में वह जरा भी नहीं हिचक रही थी.

मेरे बारे में कुछ जानने से ज्यादा उसे पापा से अपनी मम्मी के कालेज के दिनों की बातें सुनने में ज्यादा दिलचस्पी थी. पापा एक बार उन दिनों के बारे में बोलना शुरू हुए तो उन्हें रोकना मुश्किल हो गया. उन के पास सुनाने को बहुत कुछ ऐसा था जिस से हम दोनों भाई भी परिचित नहीं थे. पापा को खूब बोलते देख राजीव भैया मन ही मन कुढ़ रहे थे, यह उन के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था. मुझे तो पापा के चेहरे पर नजर आ रही चमक बड़ी अच्छी लग रही थी. उन के कालेज के दिनों की बातें सुनने में मुझे सचमुच बहुत मजा आ रहा था.

‘‘उन दिनों साथ पढ़ने वाली लड़कियों के साथ लड़कों का बाहर घूमने या फिल्म देखने का सवाल ही नहीं पैदा होता था. लड़कियां कभी कालेज की कैंटीन में चाय पीने को तैयार हो जाती थीं तो लड़के फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘तब अधिकतर एकतरफा प्यार हुआ करता था. कोई हिम्मती लड़का ही गर्लफ्रैंड बना पाता था, नहीं तो अधिकतर अपने दिल की रानी के सपने देखते हुए ही कालेज की पढ़ाई पूरी कर जाते थे,’’ पापा ने बड़े प्रसन्न व उत्साहित लहजे में हम सब को अपने समय की झलक दिखाई थी.

‘‘तब लड़कों के मुंह से प्यार का इजहार करने की हिम्मत तो यकीनन कम होती थी पर वे प्रेमपत्र खूब लिखा करते थे. गुमनाम प्रेमपत्र लिखने की कला में तो राजेंद्र, तुम भी माहिर थे,’’ सीमा आंटी ने अचानक यह भेद खोला तो पापा एकदम से घबरा उठे थे.

‘‘मैं ने किसे गुमनाम प्रेमपत्र लिखा था?’’ पापा ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अनिता तुम्हारे सारे प्रेमपत्र हम सहेलियों को पढ़ाया करती थी.’’

‘‘जब मैं ने किसी पत्र पर अपना नाम लिखा ही नहीं था तो तुम कैसे कह सकती हो कि वे…अरे, यह तो आज मैं ने अपनी पोल खुद ही खोल दी.’’

पापा हम से आंखें मिलाने में शरमा रहे थे. हमारी हंसी बंद होने में नहीं आ रही थी. मुझे शरमातेमुसकराते पापा उस वक्त बहुत ही प्यारे लग रहे थे.

चायनाश्ते के बाद गुंजन और मुझे आपस में खुल कर बातें करने के लिए पास के पार्क में भेज दिया गया. पार्क में पहुंचते ही गुंजन ने साफ शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मेरी बात का बुरा न मानना, मैं तुम से अभी शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘अभी से तुम्हारा क्या मतलब है?’’ मैं ने कुछ चिढ़ कर पूछा.

‘‘मुझे पहले एमबीए करना है और बहुत अच्छे कालेज से करना है. उतनी तैयारी शादी के बाद नहीं हो सकती है.’’

‘‘यह बात तुम ने पहले सब को क्यों नहीं बताई?’’

‘‘मम्मी शादी करने के लिए मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. उन से जान छुड़ाने के लिए मैं 2-3 महीनों में एक लड़के से मिलने का नाटक कर लेती हूं.’’

‘‘और तुम्हें उसे रिजैक्ट करना होता है…जैसे अब मुझे करोगी. वाह, तुम ने अपने मनोरंजन के लिए बढि़या खेल ढूंढ़ा हुआ है.’’

‘‘अगर तुम्हें पूरी तरह से रिजैक्ट करूंगी भी तो आज नहीं, कुछ दिनों के बाद करूंगी.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने चौंक कर उलझन भरे स्वर में पूछा.

‘‘मैं तसल्ली से तुम्हें सब समझाती हूं,’’ उस ने उत्साहित अंदाज में मेरा हाथ पकड़ा और पास में पड़ी बैंच की तरफ बढ़ चली.

उस बैंच पर घंटे भर बैठने के बाद हम दोनों घर लौट आए थे. जब हम ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तब सब की नजरें हम पर टिकी यह सवाल पूछ रही थीं, ‘क्या तुम दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया है?’

गुंजन का इशारा पाने के बाद मैं ने सब को सूचित किया, ‘‘अभी हम दोनों किसी फैसले पर नहीं पहुंच पाए हैं. एकदूसरे को समझने के लिए हमें कुछ और वक्त चाहिए.’’

‘‘रवि वैसे दिल का बहुत अच्छा है पर थोड़ा पुराने खयालों का है. मेरे लिए अपना कैरियर…’’

‘‘जरूरत से कुछ ज्यादा ही अहमियत रखता है,’’ रवि ने मुसकराते हुए गुंजन को टोका, ‘‘इस मसले पर हमारे बीच काफी बहस हुई है, लेकिन वह बहस एकदूसरे को नापसंद करने का कारण नहीं बनी है. अगली कुछ मुलाकातों में अगर हम ने अपने मतभेद सुलझा लिए तो दोनों परिवारों के बीच में रिश्ता जरूर बन जाएगा.’’

‘‘आजकल के बच्चों की बस पूछो मत,’’ पापा ने माथे पर बल डाल कर सीमा आंटी से कहा, ‘‘मेरी समझ से गुंजन बहुत अच्छी लड़की है. मैं घर जा कर रवि से बात करता हूं. इसे मेरी खुशी की चिंता होगी तो जल्दी ही तुम तक खुशखबरी पहुंच जाएगी.’’

पापा के यों हौसला बढ़ाने पर सीमा आंटी मुसकराईं तो पापा का चेहरा भी खिल उठा था.

घर लौटने के बाद से पापा ने सवाल पूछपूछ कर मेरा दिमाग खराब कर दिया. ‘‘क्या कमी नजर आई तुझे गुंजन में? वह सुंदर है, स्मार्ट है, शिक्षित है और अच्छा कमा रही है. और क्या चाहिए तुझे?’’

‘‘वक्त, पापा, वक्त. हम एकदूसरे को और ज्यादा अच्छी तरह से समझना चाहते हैं.’’

‘‘मन में बेकार की उलझन पैदा करने का क्या फायदा है? वह अच्छी लगी है न तुझे?’’

‘‘दिल की तो वह बहुत अच्छी है पर…’’

‘‘बस, शादी के लिए हां करने को यही बात काफी है. बाद में किसी भी शादी को सफल बनाने के लिए पतिपत्नी दोनों को समझौते तो करने ही पड़ते हैं.’’

‘‘आप गुंजन को समझाने के लिए भी कुछ बातें बचा लो, पापा,’’ मैं उन के पास से जान बचा कर भाग खड़ा हुआ था.

गुंजन और मेरी अगली मुलाकात उस के घर में सीमा आंटी के जन्मदिन पर अगले शनिवार को हुई. हमें किसी ने बुलाया नहीं था. मैं ने पापा को जिद कर के तैयार किया और सुंदर सा फूलों का गुलदस्ता ले कर हम उन के घर पहुंच गए. अपने आने की सूचना सिर्फ आधे घंटे पहले मैं ने फोन पर गुंजन को दी थी.

उन लोगों के यहां हमारी खातिर करने की कोई तैयारी नहीं थी. गुंजन की दीदी और जीजाजी देर से डिनर पर आने वाले थे. तब मैं ने बाजार से खानेपीने का सामान लाने की जिम्मेदारी ले ली. गुंजन भी मेरे साथ बाजार चली आई थी. वे लोग नहीं चाहते थे कि खानेपीने की चीजों पर मैं खर्च करूं. हम लोग लौट कर घर आ गए. घर में पार्टी की गहमागहमी थी.

पापा की आवाज अच्छी है. उन्होंने हमारी फरमाइश पर 4 पुराने फिल्मी गाने सुनाए तो पार्टी में समा बंध गया. सीमा आंटी के बनाए सूजी के हलवे की जितनी तारीफ की जाए कम होगी.

वे सचमुच बहुत स्वादिष्ठ खाना बनाती हैं, इस का एहसास हमें डिनर करने के समय हो गया था. हम तो डिनर के लिए रुकना ही नहीं चाहते थे पर गुंजन ने जबरदस्ती रोक लिया था. उस की दीदी व जीजाजी के साथ भी उस रात हमारे संबंध और ज्यादा मधुर हो गए.

 

डिनर के बाद गुंजन और मैं घर के बाहर की सड़क पर घूमने निकल आए. मैं उस की मम्मी की और गुंजन मेरे पापा के व्यक्तित्व व व्यवहार की खूब तारीफ कर रहे थे. अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ा और बगीचे में खुलने वाली खिड़की की तरफ चल पड़ी.

‘‘मैं कुछ देखना और तुम्हें दिखाना चाहती हूं,’’ मैं कुछ पूछूं, उस से पहले ही उस ने मुझे अपने मन की बात बता दी थी.

बैठक में रोशनी होने के कारण हम तो अंदर का दृश्य साफ देख सकते थे पर अंदर बैठे लोगों के लिए हमें देखना संभव नहीं था.

बैठक में गुंजन के जीजाजी किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे. उस की बहन टीवी देख रही थी. सीमा आंटी और पापा आपस में बातें करने में पूरी तरह से मशगूल थे.

अचानक पापा की किसी बात पर सीमा आंटी खिलखिला कर हंस पड़ीं. पापा ने अपनी मजाकिया बात को कहना जारी रखा तो सीमा आंटी के ऊपर हंसी का दौरा सा ही पड़ गया था.

वे बारबार इशारे कर पापा से चुप होने का अनुरोध कर रही थीं पर वे रुकरुक कर कुछ बोलते और सीमा आंटी फिर जोर से हंसने लगतीं.

‘‘मैं ने अपनी मम्मी को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा,’’ गुंजन भावुक हो उठी.

‘‘इस वक्त दोनों के चेहरों पर कितनी चमक है,’’ मैं ने प्रसन्न स्वर में कहा, ‘‘लगता है कि हम ने इन दोनों के बारे में जो सपना देखा है, वह बिलकुल ठीक है.’’

‘‘इस उम्र में ही तो इंसान को एक हमसफर की सब से ज्यादा जरूरत होती है.’’

‘‘मुझे तो लगता है कि ये दोनों एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर ही लेंगे.’’

‘‘जब तक ये ऐसा फैसला नहीं करते, हम अपनी शादी के मामले को लटकाए रख कर इन्हें मिलनेजुलने के मौके देते रहेंगे.’’

‘‘तुम्हारी जैसी समझदार दोस्त को पा कर मुझे बहुत खुशी होगी. इन दोनों की शादी कराने का तुम्हारा आइडिया लाजवाब है, गुंजन.’’

‘‘तुम्हारे भैयाभाभी इस शादी का ज्यादा विरोध तो नहीं करेंगे?’’ गुंजन की आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘भैया को इस बात की चिंता तो जरूर सताएगी कि सीमा आंटी हमारी नई मां बन कर पापा की जायदाद में हिस्सेदार बन जाएंगी.’’

‘‘फिर बात कैसे बनेगी?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब सीमा आंटी और पापा के चेहरे की चमक दे रही है. उन की खुशी और हित को ध्यान में रख मैं अपना हिस्सा भैया के नाम कर दूंगा,’’ इस निर्णय को लेने में मेरे दिल ने रत्ती भर हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी.

‘‘तुसी तो गे्रट हो, दोस्त.’’

‘‘थैंक यू,’’ पापा के सुखद भविष्य की कल्पना कर मैं ने जब अचानक गुंजन को गले से लगाया तब हम दोनों की पलकें नम हो रही थीं.

कर्तव्य: जब छूटा आदिल के पिता का साथ

आदिल के अब्बू की तबीयत आज कुछ ज्यादा ही खराब लग रही थी, इसलिए उस ने आज खबरों के लिए फील्ड पर न जा कर सरकारी अस्पताल के डाक्टर वर्माजी से मिलने अपने अब्बू को ले कर अस्पताल पहुंच गया था.

आदिल के अब्बू को दमे की दिक्कत थी, जिस की वजह से वे बहुत ही परेशान रहते थे. डाक्टर वर्मा की दवा से उन को फायदा था, इसलिए वह अब्बू का इलाज उन से ही करा रहा था.

जब आदिल अस्पताल पहुंचा, तो डाक्टर साहब अभी अपने कमरे में नहीं बैठे थे. पड़ोस में अधीक्षक साहब के औफिस से हंसीमजाक की आवाजें आ रही थीं. उस ने अंदाजा लगा लिया कि डाक्टर साहब अधीक्षक साहब के साथ बैठे होंगे.

आदिल अब्बू को एक बैंच पर लिटा कर खुद भी वहीं एक बैंच पर बैठ गया. तभी उस की नजर एक औरत पर पड़ी, जो अपने बीमार बच्चे को गोद में ले कर इधरउधर भटक रही थी, लेकिन काफी वक्त बीत जाने के बाद भी उस के बच्चे को अभी तक किसी डाक्टर ने नहीं  देखा था.

वह औरत अस्पताल में मौजूद स्टाफ से अपने बच्चे के इलाज के लिए गुहार लगा रही थी कि डाक्टर साहब को बुला दो, लेकिन कोई उस की बात सुनने को तैयार नहीं था. शायद उस का बच्चा काफी बीमार था, लेकिन कोई भी उस की मदद के लिए सामने नहीं आया था.

आदिल उस औरत को देख कर इतना तो समझ गया था कि वह काफी गरीब है, वरना वह इस कदर परेशान नहीं हो रही होती. अगर वह पैसे वाली होती, तो अभी तक बाहर के किसी प्राइवेट अस्पताल में जा कर अपने बच्चे को दिखा देती.

जानते हैं, सरकारी अस्पतालों की हालत. सरकार सरकारी अस्पताल इसीलिए खुलवा रही है कि गरीबों और बेबसों का मुफ्त इलाज हो सके, लेकिन इन भ्रष्ट डाक्टरों के चलते सरकारी अस्पताल इन की कमाई का अड्डा बन गए हैं, क्योंकि इन की इनसानियत मर चुकी है और वे गरीबों का खून चूसने से भी बाज नहीं आते.

आदिल ने एक नजर सामने लगी दीवार घड़ी पर डाली, जो सुबह के  11 बजने का संकेत दे रही थी. अस्पताल में मरीजों की भीड़ भी बढ़ती जा रही थी, लेकिन अभी तक किसी कमरे में कोई डाक्टर नहीं बैठा था, जिस से उस औरत के साथसाथ बाकी मरीज भी परेशान हो रहे थे.

आदिल को आज तक सरकारी महकमे का काम करने का तरीका समझ नहीं आया कि जनता के रुपयों से वे लोग तनख्वाह पाते हैं, लेकिन इस के बावजूद कभी कोई जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते.

आदिल एक टैलीविजन चैनल का पत्रकार होने के चलते कई बार सरकारी अस्पतालों की इस तरह की खबरें चला चुका है, लेकिन फिर भी हाल नहीं बदले, क्योंकि कमीशनबाजी के चलते ऊपर से नीचे तक सभी भ्रष्ट बैठे थे, जिन का हिस्सा पहले ही पहुंच जाता था.

लेकिन बारबार खबरें चलाने के चलते उन लोगों ने आदिल के लिए जरूर परेशानी खड़ी कर दी थी. एक बार उस ने इसी अस्पताल की एक खबर डाक्टरों के द्वारा कमीशनबाजी के चलते बाहर के मेडिकल दुकानों की लिखी जाने वाली दवाओं पर चला दी थी, उसी दौरान उस को कुछ दवाओं की जरूरत पड़ गई थी, जो साधारण सी दवाएं थीं, लेकिन फिर भी उस की खबर चैनल पर चलने से नाराज किसी मैडिकल वाले ने उसे वे दवाएं नहीं दी थीं. इस के बाद उस ने किसी दूसरे पत्रकार साथी को भेज कर वे दवाएं मंगवाई थीं.

उस वक्त उसी पत्रकार ने आदिल को समझाया था कि ज्यादा बड़े पत्रकार मत बनो, पूरा सिस्टम भ्रष्ट है. तुम इन को नहीं सुधार सकते, लेकिन तुम जरूर किसी दिन इन के चक्कर में आ कर बहुतकुछ गंवा दोगे.

उस हादसे के बाद अब आदिल अस्पताल की कोई भी नैगेटिव खबर जल्दी नहीं चलाता था कि दोबारा वह इस तरह की मुसीबत में पड़े.

‘‘बाबूजी, हमारे बच्चे को बचा लो. इसे बहुत तेज बुखार हो गया है. इस के सिवा हमारा कोई भी नहीं है.’’

तभी किसी की आवाज सुन कर आदिल की तंद्रा टूटी. उस ने देखा कि वही औरत अपने बच्चे को ले कर उस के पास आ गई थी और रोरो कर वह उस से मदद की गुहार लगा रही थी.

उस औरत को अपने पास देख आदिल जरूर समझ गया था कि अस्पताल में मौजूद किसी शख्स ने उसे बता दिया था कि वह एक पत्रकार है.

उस औरत के आंसू और बच्चे के लिए तड़प उस से अब देखी नहीं जा रही थी. उस का चेहरा गुस्से से लाल होता जा रहा था, लेकिन वह यह भी अच्छी तरह जानता था कि अगर उस ने किसी तरह का कोई कदम उठाया, तो उस के लिए बहुत ही घातक साबित होगा, क्योंकि वह जानता था कि ये डाक्टर रूपी गिरगिट हैं, जो रंग बदलते देर नहीं करेंगे, जिस का नतीजा भी उस को भुगतना पड़ सकता है.

आदिल ने एक नजर बैंच पर लेटे अपने अब्बू पर डाली, जो उस की ओर ही देख रहे थे. उस की मनोदशा को वे अच्छी तरह से समझ रहे थे.

‘‘जो होगा देखा जाएगा,’’ आदिल ने मन ही मन तय किया. वह बैंच से उठा और मोबाइल का कैमरा चालू कर उस बेबस मां और उस के बीमार बच्चे के साथसाथ अस्पताल में मौजूद मरीजों की लगी भीड़ की एक वीडियो क्लिप बना ली. यही नहीं, उस ने एक बयान भी उस औरत का कैमरे में ले लिया कि वह कब से अपने बीमार बच्चे को ले कर भटक रही है वगैरह. फिर आदिल ने अधीक्षक के औफिस के पास पहुंच कर एक वीडियो अधीक्षक और डाक्टरों की पार्टी करते बना ली और चैनल पर खबर भेज कर खबर ब्रेक करा कर ट्वीट भी करा दी.

खबर चैनल पर चलने के बाद  5 मिनट भी नहीं गुजरे कि अस्पताल में हड़कंप मच गया.

औफिस के अंदर बैठे अधीक्षक व डाक्टर हड़बड़ाते हुए बाहर निकले और उस औरत के बच्चे को दाखिल कर उस के इलाज में जुट गए. यह देख कर आदिल को सुकून मिला कि अब वह बच्चा बच जाएगा.

‘‘बाबूजी, मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी,’’ कह कर वह औरत आदिल के पैर छूने लगी.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रही हैं? उठिए, मैं ने कोई आप पर एहसान नहीं किया है. मैं ने केवल अपने कर्तव्य का पालन किया है,’’ आदिल ने उस औरत को उठाते हुए कहा.

तभी आदिल के अब्बू को दमे का अटैक पड़ गया और वे तड़पने लगे. यह देख कर उस ने तुरंत अब्बू का इन्हेलर निकाल कर उस में कैप्सूल लगा कर अब्बू के मुंह पर लगा दिया. अब्बू ने जोर से सांस खींचनी चाही, पर वे ऐसा नहीं कर सके.

यह देख कर आदिल तुरंत डाक्टर वर्मा को बुलाने पहुंच गया, जो किसी मरीज को देख रहे थे. उस ने अब्बू का हाल बता कर चलने के लिए कहा. लेकिन उन्होंने थोड़ा वक्त लगने की बात कह कर बाद में आने के लिए बोल दिया.

आदिल वापस अब्बू के पास आ गया, जो सांस न ले पाने के चलते काफी परेशान हो गए थे. वह थोड़ी देर तक बैठा उन के सीने को सहलाता रहा. उस के बाद फिर वह डाक्टर वर्मा को बुलाने पहुंच गया.

‘‘अरे, सौरी आदिल भाई, मैं तो भूल ही गया था. चलो, चलता हूं. कहां हैं तुम्हारे बाबूजी?’’ उसे देख कर डाक्टर वर्मा ने कहा और उस के साथ चल दिए.

‘‘आप के बाबूजी की तबीयत तो काफी ज्यादा खराब है. आप को इन  को जिला अस्पताल ले कर जाना पड़ेगा,’’ आदिल के अब्बू की हालत  देख कर डाक्टर वर्मा ने मानो ताना मार कर कहा.

डाक्टर की बात सुन कर आदिल समझ गया कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं. वह जानता था कि खबर चलने के बाद वे उस को परेशान जरूर करेंगे, क्योंकि अब्बू का यह अटैक तो कुछ भी नहीं था. इस से पहले जो अब्बू को  अटैक आए थे, वे भी ज्यादा तेज थे, तब तो उन्होंने महज एक इंजैक्शन लगा कर ही कंट्रोल कर लिया था, लेकिन अब वे उस से चिढ़ कर ही ऐसा कर  रहे हैं.

आदिल को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्योंकि अब्बू की हालत वहां ले जाने वाली नहीं थी, अगर वह उन्हें यहां से ले जाता है तो भी वहां तक पहुंचतेपहुंचते काफी देर हो जाएगी.

‘‘बाबूजी, हमारी वजह से ही आप को परेशानी हो रही है. अगर आप हमारी मदद न करते तो ये डाक्टर साहब अब्बू को जरूर ठीक कर देते,’’ उसे परेशान देख कर उस औरत ने हाथ जोड़ते हुए उस से कहा.

तभी एक बार फिर आदिल के बाबूजी तड़पने लगे, लेकिन सामने खड़ा कोई भी डाक्टर या फिर कोई स्टाफ उन को देखने तक नहीं आया. तभी उस के अब्बू को जोर से खांसी आने लगी  और फिर वे शांत हो गए. उस के अब्बू हमेशा के लिए उसे छोड़ कर जा चुके थे, बहुत दूर.

आत्मग्लानि: क्या था पिता-पुत्री के रिश्ते का दूसरा पहलू?

‘‘ऋचा…’’ लगभग चीखते हुए मैं कमरे से निकली, ‘‘अब बस भी करो… कितनी बार समझाया है कि लड़कियों को ऐसे चिल्लाचिल्ला कर बात नहीं करनी चाहिए पर तुम्हारी खोपड़ी में तो मेरी कोई बात घुसती ही नहीं. कालेज नहीं जाना है क्या? और उत्तम, आप भी, बस हद करते हैं…जवान बेटी के साथ क्या कोई इस तरह…’’ मैं चाह कर भी अपनेआप को काबू में नहीं रख पाई और भर्राई आवाज में आधीअधूरी ही सही, मन की भड़ास निकाल ही दी.

शांत प्रकृति की होने के कारण क्रोधित होते ही मुझे घबराहट सी होने लगती है, इसलिए पलभर में ही लगने लगा कि अंदर कुछ टूटनेफूटने लगा है, ऐसा महसूस हो रहा था, मानो मैं अचानक ही असहाय सी हो गई हूं. ऋचा और उत्तम की धमाचौकड़ी और घर के कोने में दुबक कर एकदूसरे के कानों में गुपचुप बतियाने की प्रक्रिया ने मुझे निढाल करना शुरू कर दिया था. अपनी संवेदनशीलता से मैं स्वयं धराशायी हो गई. मेरी आंखें अनायास छलक उठीं.

‘‘मृदुला, क्या हो गया है तुम्हें?’’ उत्तम ने मेरे दोनों कंधों को थामते हुए पूछा, ‘‘मैं और ऋचा तो हमेशा से ऐसे ही थे. ऋचा कितनी भी बड़ी हो जाए पर मेरे लिए वह हमेशा वही रहेगी, नन्हीमुन्नी गुडि़या.’’

‘‘हां, यह तो ठीक है, पर…’’ मेरे होंठों पर अचानक जैसे किसी ने ताला लगा दिया. अंदर की बात अंदर ही अटकी रह गई. मैं सचाई नहीं बोल पाई. जिस सच के कड़वेपन को महसूस कर मैं अंदर ही अंदर तड़प रही थी उस बात को उजागर करने के खयाल मात्र से भी दिल सहम सा जाता था.

‘‘तुम बहुत चिड़चिड़ी होती जा रही हो. क्या बात है? लगता है, अंदर ही अंदर कोई सोच खाए जा रही है,’’ मेरे हाथों को अपने हाथ में लेते हुए उत्तम ने मुझे अपने साथ सोफे पर बिठा लिया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के सहभागी हैं. मुझे बताओ, आखिर बात क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ एक झटके में उत्तम के हाथों को मुक्त करते हुए मैं उठ खड़ी हुई. उत्तम की ऐसी चिकनीचुपड़ी बातों से अब मुझे नफरत सी होने लगी थी. सोचने लगी, ‘कितना झूठ बोलता है उत्तम. क्या जरूरत है उसे यह कहने की कि मैं उस के सुखदुख की साथी हूं. यदि ऐसा होता तो वह मेरे साथ बिताए जाने वाले लमहों को ऋचा के साथ न बांटता.’ मैं विकल हो उठी तो प्रयास किया कि सोफे पर पड़े बैग को कंधे पर लटकाते हुए तत्काल घर से बाहर निकल जाऊं पर ऋचा दरवाजे पर दोनों हाथ फैलाए खड़ी हो गई, ‘‘मां, पहले नाश्ता…’’

‘‘नहीं, मुझे भूख नहीं है.’’

‘‘ऐसे कैसे भूख नहीं है,’’ ऋचा ने मुझे धकेलते हुए खाने की मेज पर बिठा दिया, ‘‘मां, मुझे तो लगता है, आप रातदिन मेरी शादी को ले कर परेशान रहती हैं. पर अभी मेरी उम्र ही क्या है और फिर मैं कोई कालीकलूटी तो हूं नहीं जो लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा. क्यों पिताजी?’’ ठुनकती हुई ऋचा ने मुझे खुश करने का प्रयास करते हुए उत्तम से पूछा.

‘‘बिलकुल सही,’’ पलभर पहले मेरे चिंताग्रस्त चेहरे को ले कर बेहद गंभीर हो उठे उत्तम, ऋचा की बात सुन कर फिर से चुलबुले बन बैठे, ‘‘पर ऋचा, तुम्हारा शरीर जिस तरह से मोटा होता जा रहा है, उस से तो लगता है कि तुम्हें कोई अच्छा लड़का मिलने से रहा.’’

‘‘मां, देखो न. पिताजी हमेशा मुझे मोटी कह कर चिढ़ाते रहते हैं,’’ मेरी प्लेट में गाजर का हलवा परोसती हुई ऋचा बोली, ‘‘जानती हो मां, पिताजी ने मुझे एक भी चम्मच गाजर का हलवा खाने को नहीं दिया. इसीलिए तो मैं इन से लड़ रही थी. अब तुम्हीं बताओ, क्या मैं सचमुच इतनी मोटी हूं?’’ मैं ऋचा के सवाल का कोई जवाब न दे पाई. बस, आंखें तरेर कर उस की ओर देखते हुए जतला दिया कि मुझे उस का बातचीत करने का यह ढंग बिलकुल पसंद नहीं आया. नाश्ता गले के नीचे नहीं उतर रहा था. मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘यह क्या मां, पूरा तो खा लो.’’

‘‘नहीं, बस…’’

‘‘रहने दे ऋचा, लगता है, तेरी मां डाइटिंग कर रही हैं. इन्हें शायद इस बात का डर है कि कहीं तुम खूबसूरती में इन से बाजी न मार लो,’’ और दोनों की खनकती हंसी अंगारों की तरह मेरे कानों से टकराई. मैं रोंआसी हो उठी. सोचा, दौड़ कर दमघोंटू माहौल से बाहर निकल जाऊं, पर अचानक बढ़ते कदम रुक गए, ‘‘ऋचा, तुम भी चलो न, तुम्हारे कालेज का तो समय हो गया है.’’

‘‘ऋचा को मैं छोड़ दूंगा, तुम जाओ,’’ ऋचा को अपने अंक में समेटते हुए उत्तम ने कहा तो उस का साहस और ऋचा की उन्मुक्तता ने मेरे तनबदन में आग लगा दी. लाचार सी अपनी ही पीड़ा से झुलसती मैं तेजी से घर से बाहर निकल गई. उस रोज दफ्तर में किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ाबहुत काम जैसेतैसे निबटा कर मैं निढाल सी कुरसी पर बैठी रही. चिंता में डूबे मेरे दिल और दिमाग में बारबार वही दृश्य आताजाता रहा, जब उत्तम ने ऋचा को अपने पास खींच लिया था. मन में कुलबुलाहट होने लगी कि पितापुत्री में ऐसे प्रेम प्रदर्शन का बुरा लगना अस्वाभाविक है. पर उत्तम तो ऋचा के सौतेले पिता हैं, यानी मेरे दूसरे पति. इस बात को मैं कभी भूल ही नहीं पाती थी. सालों पहले का दृश्य आंखों के आगे साकार हो उठा, जब उत्तम सागर की मौत की सूचना देने मेरे घर आया था. विधवा होने की सूचना मिलते ही मैं ने दीवारों से बांहें टकराते हुए चूडि़यां तोड़ डाली थीं. मुझे लगा था, मेरे साथ मेरी तरह चीत्कार कर रोने वाला उत्तम मेरी पीड़ा का सच्चा सहभागी है.

वह बोला, ‘भाभी, अब हम कैसे जीएंगे, सागर के बगैर तो मैं दो कदम भी नहीं चल सकता.’ उत्तम के असहनीय वार्त्तालाप ने मुझे मजबूर कर दिया था कि मैं तत्काल आंसू पोंछ डालूं और उस को संभालने का प्रयास करूं. बिना कुछ सोचेसमझे मेरे सीने से लग कर उस रोज वह इतना मासूम लगा था कि मैं देर तक उसे अपनी बांहों में समेटे रही. उस के आंसुओं ने मेरे आंचल से चुपके से दोस्ती कर ली थी.

उस के बाद उत्तम जब भी आता, कभी मेरे सिर पर हाथ फेर कर संरक्षक बन जाता तो कभी मेरे आगोश में छिप कर एक नन्हा बालक. तब ऋचा 2 साल की थी. ऋचा के पिता, यानी सागर ने मुझे कभी अकेले चलना नहीं सिखाया था. हर वक्त मेरे हाथों को अपने हाथों में लिए चलता था. मैं कभी अगलबगल देख कर यह जानने का प्रयास न करती कि जिस राह पर वह मुझे लिए जा रहा है, वह कहां जा कर खत्म होती है. मेरी आंखें तो सागर के तेजस्वी चेहरे पर टिकी रहती थीं. पर वह अचानक मुझे नन्ही ऋचा के सहारे ऐसी जगह छोड़ कर चला गया, जहां से न तो मुझे आगे का मार्ग पता था, न पीछे का. अचकचाई सी जब भी मैं इस अनजान शहर में इधरउधर नजर दौड़ाती तो सिवा उत्तम के कोई और मुझे नजर न आता जिसे मेरी आंखें पहचानती हों. मैं उत्तम के सहारे की मुहताज थी और वह मेरे सामीप्य का. इसीलिए तो एक दिन उस ने ‘भाभी’ और ‘आप’ की सारी सीमाओं को लांघ कर मेरे हाथों को थाम लिया और पूछा, ‘मुझ से शादी करोगी?’

मैं अचंभित, अवाक् सी उसे ताकती रह गई. मासूमियत से मेरे सीने से लग जाने वाला उत्तम कभी मेरे सामने यह प्रस्ताव रखेगा, इस की तो मैं ने कल्पना ही नहीं की थी. यदि कभी ऐसी कल्पना की होती तो उस के द्वारा पूछे जाने वाले इस संभावित प्रश्न का एक उचित उत्तर भी तैयार रखती. पर मैं ने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दूं. मेरे जीवन से सागर की कमी की परिपूर्ति करने की इच्छा रखने वाला उत्तम उस समय मेरे लिए पूजनीय था या एक ओछी प्रवृत्ति वाला स्वार्थी इंसान, मैं समझ नहीं पा रही थी. मुझे सशंकित देख कर उस ने कहा था, ‘मृदुला, तुम्हारे साथ मेरा नाम जुड़ गया है. लोग तरहतरह की बातें बनाने लगे हैं. मेरी मां ने मेरा रिश्ता कहीं और करना चाहा था पर मैं उस के लिए तैयार नहीं था. तुम कभी यह न समझना कि मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो स्नेह है उस में वासना छिपी है. पर किसी और से शादी कर के मैं तुम्हारी और ऋचा की देखभाल में असमर्थ हो जाऊंगा. मैं तुम दोनों को असहाय नहीं छोड़ सकता, इसीलिए यह प्रस्ताव रख रहा हूं.’’

मैं विस्मित सी उसे देखती रह गई. कितना अनोखा और निराला सा था, उस का प्रस्ताव. मेरी भावनाओं में, मेरे हृदय में और मेरी आंखों की गहराइयों में उस ने कब और कैसे कब्जा कर लिया, मैं जान ही न पाई. जब उस ने मेरे रोमरोम को जीत लिया था तो इनकार भला मैं किस मुंह से करती. उत्तम के सामने मेरा झुका हुआ सिर मेरी मौन स्वीकृति का सूचक बन गया था और समाज के रीतिरिवाजों और दकियानूसी परंपराओं से लड़ते हुए उत्तम ने मेरी मांग में तारे सजा दिए. उत्तम ने मेरी और ऋचा की जिंदगी में बहार ला दी थी. ऋचा के साथ कभी अनजाने कोई अन्याय न हो जाए, इस विश्वास को अंजाम देने के लिए उस ने कभी एक और बच्चे की इच्छा नहीं की. लेकिन मेरी खुशियों को रोशन रखने के लिए अपनी आकांक्षाओं से दीप जलाने वाला उत्तम अचानक बदलने लगा था. उस के जीवन से मेरा अस्तित्व धीरेधीरे खत्म होता जा रहा था. अब ऋचा ही उस की सबकुछ थी. यौवन की दहलीज पर खड़ी ऋचा को अच्छेबुरे की शिक्षा देतेदेते मैं हार गई थी. पर वह पिता के साथ करने वाली अपनी शरारतों में जरा सी भी कमी नहीं करती थी.

एक पुरुष और एक स्त्री के रिश्ते में थोड़ी सी दूरी कितनी जरूरी है, इस बात को ऋचा और उत्तम ने नजरअंदाज कर दिया था. उन दोनों के बीच का यह गहन रिश्ता मेरी नजरों में तब संदेहास्पद हो उठा था जब उत्तम ने पुरानी फैक्टरी का काम छोड़ कर एक नई फैक्टरी में नौकरी कर ली. इस नई फैक्टरी में हमेशा उस की शिफ्ट ड्यूटी रहती थी और जब रात की ड्यूटी रहती, तब ऋचा और उत्तम दोपहर को घर पर अकेले ही रहते थे क्योंकि ऋचा के कालेज का समय दोपहर के 1 बजे तक का ही था. इस एकांत ने उन के स्नेह में जरा सा परिवर्तन कर दिया था. अब वे एकदूसरे के परममित्र बन बैठे थे. सुबहशाम उत्तम ऋचा के आगेपीछे लगा रहता था. कभी उस के गोरे गालों पर चिकोटी काट लेता तो कभी उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने अंक में भर लेता. जब भी उत्तम ऐसा करता, मेरे दिल पर जोर की चोट लगती. पहली बार मेरा माथा तब ठनका जब एक दोपहर सिरदर्द के कारण मैं जल्दी घर लौट आई थी और ऋचा को उस रोज अपने शयनकक्ष में सोया पाया. उस के बाद मेरे सिर में दर्द हुआ या नहीं, मुझे याद ही नहीं, क्योंकि जब कहीं गहरी चोट लगती है तब पहले वाली चोट की पीड़ा अपेक्षाकृत कम हो जाती है और यही मेरे साथ भी हुआ.

तब से मन में यही संशय भरा हुआ था कि कहीं सौतेले पिता और पुत्री के बीच कुछ अनैतिक तो नहीं? तब से मैं ने उन दोनों के व्यवहार पर अपनी तेजतर्रार नजरों से जासूसी शुरू कर दी और यही पाया कि वे एकांतप्रिय हो चले हैं. कुल 3 सदस्यों वाले छोटे से परिवार में भी उन्हें दखलंदाजी की बू आती थी. इसीलिए वे कभी छत पर तो कभी बगीचे के किसी कोने में दुबक जाते थे. कभी उन के बीच एक रहस्यमयी खामोशी तो कभी लोकलाज के सारे बंधनों को भूल कर वे एकदूसरे से आलिंगनबद्ध हो प्रेमालाप करते. उन के बीच मैं उपेक्षित थी, यह विचार मेरी आंखों को गीला किए जा रहा था. जी तो यही चाह रहा था कि खूब रोऊं, पर कार्यालय में मेरा रोना अशोभनीय कहलाता, इसीलिए अपनी भावनाओं को संयत करने का प्रयास किया. जब से मेरे मन में उत्तम और ऋचा को ले कर संशय जागा तब से मैं लगातार यह प्रयास कर रही थी कि ऋचा के लिए जल्दी ही योग्य लड़का तलाश लूं. सभी दोस्तों और रिश्तेदारों से मैं ने इस संबंध में बात की थी और सभी से यह आग्रह भी किया था कि ऋचा के लिए लड़का तलाशने में वे मेरी सहायता करें.

घड़ी पर ध्यान गया तो शाम के 5 बज गए थे. घर जाने का समय हो गया था. पर ‘घर’ शब्द से मुझे चिढ़ सी होने लगी थी. घर तो वह जगह होती है जहां हर कोने में स्नेह, विश्वास और त्याग की भावना भरी हुई हो. वह घर, जहां पलपल एक गोपनीयता का एहसास भरा हो, वहां जाने की इच्छा भला किसे होगी? पर जाना तो होगा ही, सोचते हुए मैं उठ खड़ी हुई. घर पहुंचने से पहले मैं ने निर्णय लिया कि ऋचा को अब घर पर नहीं रहने दूंगी और जब तक उस के लिए योग्य लड़का नहीं मिल जाता तब तक के लिए उस का दाखिला किसी लड़कियों के छात्रावास में करा दूंगी. इस के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था. लेकिन मैं इस बात को ले कर भी चिंतित थी कि उत्तम को वजह क्या बताऊंगी. ऋचा को घर से दूर करने की बात पर वह जरूर नाराज हो जाएगा. हो सकता है, मुझ से लड़ भी पड़े.

घर पहुंची तो बरामदे में ही कुरतापाजामा पहने और शाल लपेटे बड़ी बेसब्री से चहलकदमी करता उत्तम नजर आया. उस को देखते ही मन में कड़वाहट सी भर गई. किस का इंतजार कर रहा है? यह जानने की उत्सुकता थोड़ीबहुत तो थी, पर पूछने की इच्छा ही नहीं हुई. मैं तेजी से शयनकक्ष में पहुंच कर निढाल सी बिस्तर पर गिर पड़ी और पता ही नहीं चला, कब आंख लग गई.

‘‘मृदुला, उठो न, सो क्यों रही हो?’’ मुझे झकझोरते हुए उत्तम ने उठा दिया.

‘‘थोड़ी देर सोना चाहती हूं, बड़ी थकान हो रही है,’’ मैं ने बेरुखी से अपनी बात कह दी और यह जतला दिया कि उस की बात मैं मानना नहीं चाहती.

‘‘मृदुला,’’ इस बार जरा सख्ती से उस ने मुझे खींच कर उठा दिया.

मैं अचकचाई सी उठ बैठी और उत्तम के इस अजीबोगरीब व्यवहार के कारण विस्मित सी उसे ताकती रह गई.

‘‘अभी तुम सो नहीं सकतीं. जल्दी से मुंहहाथ धो कर तैयार हो जाओ. नीचे मेहमान तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘कौन मेहमान?’’

‘‘हमारी ऋचा का भावी पति अपने मातापिता के साथ आया हुआ है.’’

‘‘क्या?’’ मैं आंखें फाड़े उत्तम को देखती रह गई, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं तुम्हारा ही तो इंतजार कर रहा था. मैं और ऋचा मिल कर तुम्हें सरप्राइज देना चाहते थे, इसलिए तुम्हें पहले से नहीं बताया. इस लड़के को ऋचा ने स्वयं पसंद किया है. पिछले महीने जब उस ने मुझे यह बात बताई तब मैं ने निर्णय लिया कि अकेले ही पहले उस लड़के को परखूंगा और यदि वह हमारी बेटी के योग्य सिद्ध हुआ तो फिर तुम्हें बताऊंगा. ‘‘मैं पिछले 15 दिनों से इसी काम में लगा हुआ था. लड़का डाक्टर है. कई लोगों से मिल कर मैं ने पता लगाया और जब आश्वस्त हो गया तो आज उसे घर पर बुला लिया ताकि तुम उस से मिल कर बाकी की कार्यवाही करो.’’ मैं हैरानगी से उत्तम को देखती रह गई.

‘‘आज हम दोनों का इरादा तुम को सरप्राइज देने का था पर तुम इतनी थकीथकी सी लगीं कि पलभर के लिए तो हम भी परेशान हो गए. लड़के वाले शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं. एक बार बेटी का बोझ सिर से उतर जाए, फिर मेरी जिंदगी में सिर्फ तुम ही तो रह जाओगी. ‘‘अभी शायद मेरा प्यार बंट गया है, इसलिए तुम्हारी तकलीफ को देख कर भी कुछ कर नहीं पा रहा था. पर कुछ दिनों बाद मेरी जिंदगी में तुम अकेली रह जाओगी, तब मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं होने दूंगा. अच्छा, अब जल्दी से तैयार हो कर आ जाओ,’’ मेरे गालों को थपथपाता हुआ उत्तम बोला और बाहर निकल गया. ऋचा के प्रति उत्तम के निश्छल स्नेह को देख कर मेरा सिर शर्म से झुक गया. मैं सोचने लगी कि कितने गंदे हो गए थे मेरे विचार कि मुझे ‘सरप्राइज’ देने की उन की गुपचुप तैयारी में मुझे उन का आपत्तिजनक प्रेमालाप नजर आया. बहुत प्रयास किया कि अपनेआप को संभाल लूं पर रो ही पड़ी. जल्दी ही आंसुओं ने मन का सारा मैल धो डाला था.

अनुज और अपने परिवार से हमेशा के लिए दूर हो जाएगी अनुपमा! क्या रंग लाएगी मालती देवी की साजिश?

स्टार प्लस का सबसे पॉपुलर शो अनुपमा’ (Anupamaa) की टीआरपी लगातार बढ़ती जा रही है. लोगों के लिए ये शो टीवी का सबसे चहेता शो बना हुआ है.शो में आए दिन नए नए ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिलते रहते है. शो में अब की बात करें तो, इस समय दिखाया जा रहा है कि अनुज (गौरव खन्ना) को मालती देवी (अपरा मेहता) पर शक होता है जब वह उसे ‘यू आर दैट अनुज’ कहती है. हालांकि अनुपमा (रूपाली गांगुली) उसे बताती है कि हो सकता है कि उसने उसके बारे में पढ़ा हो.

इसके बाद दिखाया जाता है कि अनुज अनुपमा से कहता है कि वह उसे मिस करेगा. खैर, इस समय भीअनुज मालती देवी के बारे में सोचता रहता है, जबकि दूसरी तरफ वनराज काव्या की देखभाल करता दिखाई देता हैं, क्योंकि वह काव्या की गर्भावस्था की खबर सुनकर बहुत खुश है.

आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि काव्या की प्रेग्नेंसी की खबर सुनकर लीला यानी बा खुश होंगी या नहीं?हालांकिइस बीच, नकुल अनुपमा से बदला लेने का फैसला करता है.

 

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आगे के ट्रैक में दिखाया जाता है कि मालती देवी (अपरा मेहता) अनुपमा को चेतावनी देती है कि उनका कॉन्टैक्ट खत्म कर दिया जाएगाऔर वह उसे बताती है कि कहीं भविष्य मेंअनुज उसकी कमजोरी न बन जाएं. आगे हम देख सकते हैं कि मालती अनुपमा को अपने परिवार से सारे संबंध तोड़ने के लिए उकसाती हैं. हो सकता है कि मालती ने अतीत में अपने सारे रिश्ते तोड़ दिए हों, इसलिए अब वह चाहती है कि अनुपमा भी ऐसा ही करे, लेकिन अनुपमा मालती जैसी नहीं है.वह हमेशा अपने रिश्तों, अपने करियर और अपने परिवार में संतुलन बनाए रखती है.

इसके बाद देखने को मिलता है कि मालती अनुपमा के लिए एक मायाजाल लाती हैं क्योंकि वह नहीं चाहतीं कि अनुज और अनुपमा फिर से मिलें. जैसा कि हम मालती की आँखों में देखते हैं, उनका अनुज के साथ कुछ संबंध हैलेकिन हो सकता है कि अपने करियर की वजह सेमालती अनुज को एक अनाथ आश्रम में छोड़दें. इसके अलावा वह ये भी चाहती हैं कि अनुपमा सब कुछ छोड़कर अमेरिका में बस जाएं और वहां जाकर अपनी एकेडमी संभालें. खैर, आने वाले ट्विस्ट को देखने के लिए हमें इंतजार करना होगा. अनुपमा अमेरिका जाएंगी या नहीं?

 

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अनुपमा के भविष्य ट्रैक मेंहमें देखने को मिलेगा कि अमेरिका जाने से पहले उसेयह पता चलेगा कि मालती अनुज की जैविक माँ है. इसके अलावा आगामी एपिसोड में वनराज का चरित्र सकारात्मक रूप से बदलवा देखने को मिलेगा. हो सकता है कि माया भी मान के प्यार को समझ ले और उससे पीछे हट जाए. खैर आने वाले ट्विस्ट और टर्न देखने के लिए इंतजार करते हैं. आगामी ट्रैक में हमे पता चलेगा कि क्या सच में बदल जाएगी माया? क्या अनुज अनुपमा को मालती देवी के जाल से बाहर निकाल पाएगा?

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