Summer spceial: गर्मियों में घर पर बनाएं, ये लो कैलोरी रेसिपीज

गर्मियों में दिन लंबे और गर्म होते हैं ऐसे में शाम होते होते भूख लगने लगती है. गर्मियों में चूंकि हमारी पाचन क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है इसलिए आहार विशेषज्ञ इस मौसम में तले भुने की अपेक्षा हल्के फुल्के और पौष्टिक नाश्ते और भोजन करने की सलाह देते हैं ताकि हमारे शरीर को पर्याप्त पोषण भी मिले और स्वस्थ भी रहे. पोहा, उपमा, डोसा, इड्ली जैसे रूटीन के नाश्ते बनाकर यदि आप बोर हो गईं हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आये हैं कुछ ऐसे हैल्दी नाश्ते जिन्हें आप घर में उपलब्ध सामग्री से बहुत आसानी से बना पाएंगी तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है.

1.सोया ग्रेन्स उपमा

कितने लोगों के लिए –   4

बनने में लगने वाला समय  –  20 मिनट

मील टाइप –  वेज

सामग्री

  1. 1 कप अंकुरित मूंग                     
  2. 1 कप सोया ग्रेन्यूल्स                     
  3. 1/2 कप कॉर्न                                   
  4. 1/2 कप मटर                                   
  5. 1/2 कप मूंगफली दाना                         
  6. 100 ग्राम पनीर                                     
  7.  1 बारीक कटा प्याज                     
  8.  1 बारीक कटा टमाटर                   
  9. 4 बारीक कटी हरी मिर्च                   
  10. 1 टीस्पून बारीक कटी हरी धनिया   
  11.  1 टीस्पून  तेल       
  12. 1/4 टीस्पून जीरा                                       
  13. नमक  स्वादानुसार                                   
  14. 1/4 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर                       
  15. 1/4 टीस्पून अमचूर पाउडर                           
  16. 1/4 टीस्पून गरम मसाला पाउडर                     
  17. 1/4 टीस्पून चाट मसाला                                 

विधि

सोया ग्रेन्यूल्स को आधे घण्टे के लिए गर्म पानी में भिगोकर हथेली से दबाकर निचोड़ लें और बारीक बारीक काट लें. अंकुरित मूंग, मटर, कॉर्न, मूँगफली दाना, कटे सोया ग्रेन्यूल्स और 1/2 चम्मच नमक प्रेशर कुकर में डालें. आधा कप पानी डालकर तेज आंच पर 1 सीटी ले लें. अब एक पैन में तेल गर्म करके जीरा, प्याज और हरी मिर्च भूनकर कटे टमाटर और सभी मसाले डाल दें. पनीर को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. जब टमाटर अच्छी तरह गल जाएं तो उबले अनाज डाल दें. पनीर तथा चाट मसाला डालकर अच्छी तरह चलाएं. 2-3 मिनट पकाकर हरा धनिया डाल दें. चाय कॉफी के साथ सर्व करें.

2. स्पाइसी सूजी सर्कल्स

सामग्री

  1.  4 ब्रेड स्लाइस                             
  2. 1 कप सूजी                                     
  3. 1/2 कप दही                                         
  4. 1/4 कप पानी                                       
  5.  2 उबले मैश किये आलू                               
  6. 2 हरी मिर्च                                     
  7. 1 टीस्पून बारीक कटा हरा धनिया             
  8. 1 टीस्पून तेल                                         
  9. 1/4 टीस्पून जीरा                                       
  10. 1/4 टीस्पून अमचूर पाउडर                           
  11. 1/4 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर                       
  12. नमक  स्वादानुसार                                     
  13. 1 टीस्पून बटर                                         
  14. 1 टीस्पून हरी चटनी                       
  15. 1 टीस्पून इमली की लाल चटनी                     

विधि

सूजी को दही और पानी के साथ भिगोकर ढककर 15 मिनट के लिए रख दें ताकि सूजी फूल जाए. अब तेल में जीरा, हरी मिर्च व सभी मसाले डालकर आलू डालकर अच्छी तरह चलाएं. हरी धनिया डालकर फिलिंग तैयार कर लें. अब ब्रेड स्लाइस को गोल कटोरी से काटकर बटर लगाएं फिर हरी चटनी लगाकर आलू के मिश्रण की पतली परत फैलाएं, इसके ऊपर इमली की लाल चटनी की परत लगाएं इसी प्रकार सारे सर्कल्स तैयार कर लें. अब एक नॉनस्टिक पैन में बटर लगाकर तैयार सर्कल्स को ब्रेड की तरफ से तवे पर रखें. सूजी में थोड़ा सा नमक डालकर चलाएं और तैयार मिश्रण को ब्रेड के ऊपर लगे आलू की परत के ऊपर इस तरह से फैलाएं की पूरा सर्कल कवर हो जाएं. इसे ढककर 3-4 मिनट पकाएं. घी लगाकर पलटकर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक पकाएं. बीच से काटकर हरी चटनी या टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

5 Fitness tips: फिट रहना हर मौसम में जरुरी

फिटनेस पर ध्यान देना हमेशा जरुरी है और ये हर उम्र के व्यक्ति में होने की जरुरत है, कोविड के बाद से लोगों में फिटनेस को लेकर काफी जागरुकता बढ़ी है. फिटनेस ट्रेनर ‘महेश म्हात्रे’ कहते है कि अभी जिम में जाना लोग अधिक पसंद करते है, कोविड की लॉकडाउन वजह से पर्सनल ट्रेनर को हायर करना लोगों ने बंद कर दिया है. अब वे बड़े-बड़े जिम, लोकल जिम या फिटनेस क्लब में जाते है.

सप्लीमेंट लेना भी लोगों ने कम किया है, इसकी वजह आजकल अधिकतर लोगों में कार्डिएक अरेस्ट का खबरों में आना है. असल में लॉकडाउन से लोगों की एक्टिविटी में कमी आई है, डाइट सही नहीं है, क्योंकि घर पर रहकर लोगों ने  खाया अधिक और फिजिकल एक्टिविटीज कम किया.

इसके आगे ट्रेनर ‘महेश म्हात्रे’ कहते है कि जिम जाना अच्छी बात है, लेकिन वहां पर रखे वजन को कितना पकड़ना है, कैसे पकड़ना है, आदि की जानकारी होना जरुरत है. डम्बल को कैसे और किस एंगल में पकड़ना है, साँस कैसे लेनी या कैसे छोडनी है आदि की जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि व्यायाम से शरीर में पम्पिंग होती है, इससे मसल्स बनते है. इसके अलावा सही समय में पानी पीना, रेस्ट करना आदि सब देखना पड़ता है. कुछ लोग किसी का सुनकर जिम चले जाते है और अपनी पैक बनाने की कोशिश करते है, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण, सही डाइट और एक्सरसाइज होता है, इससे ही मसल्स बनते है.

इसके अलावा व्यक्ति की लाइफस्टाइल भी बहुत महत्वपूर्ण होती है, एक व्यक्ति एसी में बैठकर काम करता है और व्यायाम करता है. जबकि दूसरा दिनभर मेहनत से काम करने के बाद एक्सरसाइज करता है. जिम जाने के बाद वेट उठाना भी जरुरी होता है. मैंने इन सब चीजों की कोर्स और ट्रेनिंग ली है. मेरे पास कुछ क्लाइंट है, जिनका मैं पर्सनल ट्रेनर हूँ. इसमें अधिकतर महिलाएं है, इसके अलावा मैंने कई मराठी इंडस्ट्री के सेलेब्रिटी का भी फिटनेस ट्रेनर रह चुका हूँ. परुलेकर्स और बोवलेकर  दो जिम में मैं काम करता हूँ. नियमित फिटनेस के लिए जिम सही है, लेकिन बॉडी बिल्डिंग स्पोर्ट्स के लिए या मसल्स पाने के लिए लोकल जिम सबसे सही होता है. वहां पर वेट अलग होता है. नामचीन जिम में बॉडी बिल्डर तैयार नहीं हो पाता, वहां पर फिटनेस और सीधी-साधी बॉडी मिल सकती है, थोड़े हाई-फाई फील होता है, क्योंकि अधिक उपकरण , एसी और लाइट बहुत होता है.

1.हो जाती है हाथापाई

अभिनेता अक्षय कुमार जैसी फिट बॉडी जिसमे ड्रेस फिट बैठे, पेट पर थोड़ी एब्स दिखे और व्यक्ति स्मार्ट दिखे आदि के लिए एक इंस्ट्रक्टर की आवश्यकता होती है. इंस्ट्रक्टर की फीस लगभग 10 से 15 हज़ार तक होती है. सप्लीमेंट से केवल व्यक्ति को थोडा पुश मिलता है. असल में फिटनेस पूरी तरह से ‘माइंड गेम’ है. इसमें सप्लीमेंट से अधिक, साथ में डाइट होता है और  उसका रिजल्ट भी देखने को मिलता है. जो नैचुरल डाइट व्यक्ति लेता है, वही उसके फिटनेस को बनाए रखता है. कई बार सप्लीमेंट के साइड इफ़ेक्ट भी होते है मसलन सप्लीमेंट से किसी-किसी में सिरदर्द या चिडचिडापन की शिकायत हो सकती है, जिससे जिम में मारपीट तक हो जाया करती है. इसलिए जितना संभव हो नैचुरल डाइट पर ही व्यक्ति को निर्भर होना सही होता है.

2.अलग-अलग शरीर की अलग जरूरतें  

महेश कहते है कि एक साधारण व्यक्ति की कैलरी की नाप उसकी वेट और एज के हिसाब से निर्भर करता है. 30 से 40 तक के उम्र के व्यक्ति का 60 किलोग्राम से अधिक वजन होना ठीक नहीं, लेकिन इसमें उसकी हाइट भी देखना जरुरी होता है.

3.काम के हिसाब से चुने इंस्ट्रक्टर

पिछले दिनों कई सेलेब्स जिम करते वक़्त कार्डिएक अरेस्ट में मारे गए, इसकी वजह के बारें में पूछने पर महेश कहते है कि हमेशा सही बॉडी के लिए एक इंस्ट्रक्टर का होना आवशयक है, जिसे गुरु कहा जा सकता है. खासकर अगर व्यक्ति का काम काफी स्ट्रेस और मेहनत वाला है, तो इंस्ट्रक्टर उसे सही मात्रा में व्यायाम करने के तरीके बता सकता है.

4.सही डाइट सही व्यायाम

डाइट एक्सरसाइज का सबसे बड़ा पार्ट होता है. किसी भी व्यक्ति को मौसम के हिसाब से पाए जाने वाले फल और सब्जियां खाने की जरुरत होती है, अभी गर्मी में रस वाले फल जैसे संतरा, तरबूज, खरबूजा, मोसंबी, नारियल पानी, नीबू पानी आदि अपने बजट के हिसाब से ले सकते है, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. इसके अलावा सुबह में ब्रेकफास्ट अच्छा और हैवी लेना चाहिए, क्योंकि व्यक्ति पूरे दिन एक्टिव रहता है, दोपहर को थोडा कम बाजरी, नाचनी, आदि की दो रोटी, सब्जी, अंडा या केला आदि काफी होते है. 2 घंटे बाद थोड़ी ड्राईफ्रूट्स लिया जा सकता है. ड्राई फ्रूट्स दिन में 3 बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लें. सुबह 10 बजे, दोपहर 2 बजे और शाम को 6 बजे तक. 6 से 6.30 के बीच रात का भोजन ले लेना चाहिये. शाम के बाद बॉडी की एक्टिविटी कम हो जाती है. इसलिए भोजन भी उसी हिसाब से लें.

कभी भी वजन को जल्दी घटाने की कोशिश न करें, इसका प्रभाव डायरेक्टली और इनडायरेक्टली शरीर पर पड़ता है. दो से 3 किलोग्राम तक का वजन महीने में कम करना सही होता है. इसके अलावा चलना, तैरना, साइकलिंग करना आदि से भी शरीर फिट रहता है, आधे घंटे से 45 मिनट तक चलना हमेशा अच्छा होता है, सिंपल वाक सबके लिए सही होता है.

5.कुछ सावधानियां

महेश कहते है कि सही तरह से व्यायाम न करने पर शरीर में दर्द होता है, जिससे कई लोग डर कर जिम छोड़ देते है. व्यायाम से पहले स्ट्रेचिंग करना बहुत जरुरी होता है. इसके अलावा 16 साल की उम्र में वजन कभी न उठाये, पहले मसल्स को ओपन करने के बाद ही वजन, इंस्ट्रक्टर के अनुसार उठाएं. नहीं तो मसल्स में चोट लगने के अलावा हाइट में कमी आती है. वैसे तो हर मौसम में फिट रहना जरुरी है, लेकिन गर्मी का महिना अधिक गर्म होने से हर व्यक्ति को अधिक असहजता होती है, इसलिए इस मौसम में सेहत को फिट रखने के कुछ टिप्स इस प्रकार है,

  • गर्मी के मौसम में नींबू पानी, नारियल पानी, दही और छाछ का सेवन अच्छी मात्रा में करें,
  • बहुत ज्यादा ठंडे पेय पदार्थ पीने से बचें,
  • चाट-पकौड़ी या अन्य तेल व मसालेदार खाद्य पदार्थ खाने से बचें,
  • कैफीन युक्त चीजें और सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन कम-से-कम करें,
  • घर में हर समय ग्लूकोज, इलेक्ट्रॉल के अलावा पुदीना, आम पना अवश्य रखें,
  • मीठा खाने कीइच्छा हो, तो बाजार की मिठाइयों के बजाय सेब, आंवले या बेल का मुरब्बा, गुलकंद या पेठा खाएं.

दुनिया अब बूढ़ों के हाथों में

कर्नाटक की विधान सभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी  ने 33 वर्षीय तेजतर्रार हिंदुत्व का  झंडा ऊंचा करने वाले कट्टर ब्राह्मण तेजस्वी सूर्या को चुनावी सभाओं में भाषण देने की सूची में शामिल नहीं किया और चुनाव का सारा भार 80 साल के बीएस यदुरप्पा पर डाल दिया.

वैसे भी भारतीय जनता पार्टी में आजकल 2 ही नेता (बाकी अंधभक्तदरियां बिछाने वाले और फूल बरसाने वाले) बचे हैं. ये दोनों नेता मोदी 72 वर्ष के हैं व शाह 58 साल के. एक जमाने में भारतीय जनता पार्टी उन युवाओं से भरी होती थी जो हर मसजिद को तोड़ने को आमादा रहते थेहर लड़केलड़की को इकट्ठा बैठे देख कर गरियाते थेहर पढ़ेलिखे को अरबन नक्सल कहते थे और ये स्कूलों से ले कर विश्वविद्यालयों तक आरएसएस शाखाओं के कारण भरे रहते थे.

यही कुछ अमेरिका में हो रहा है. अमेरिका में इस बार 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन डैमोक्रेटिक पार्टी के कैंडीडेट होंगे और रिपब्लिकन पार्टी के शायद पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दूसरी टर्म के लिए.

2024 में जो बाइडेन 82 साल के होंगे और ट्रंप 78 साल के जिस का मतलब है कि 2028 में टर्म खत्म होने पर जो बाइडेन 86 के होंगे और ट्रंप 82 के होंगे. मोदी अगर 2024 में जीतते हैं तो 2029 में 79 वर्ष के होंगे.

यह दुनिया अब बूढ़ों के हाथों में जा रही है और एक जगह बूढ़ों की भरमार हो रही है. इंगलैंड के नए राजा चार्ल्स 73 साल की आयु में गद्दी पर बैठेरूस के पुतिन 70 साल के हैंशी जिनपिंग 70 साल के हैंसिंगापुर के ली सीन लूंग 71 साल के हैंजापान के फुमियो किशिदा 64 साल के हैं.

युवा नेता न अब संसदों में दिख रहे हैंन मंत्रिमंडलों में और न ही कंपनियों की चेयरमैनी में.

यह ठीक है कि लोग ज्यादा जी रहे हैं और बच्चे कम हो रहे हैं और इसलिए दुनियाभर की पौपुलेशन सफेद बालों वाली हो रही है और जब लोगों को रिटायर होना चाहिए तब भी काम पर चले जा रहे हैं.

फिर भी युवाओं को इस तरह कौर्नर में डाल देना गलत है. आज राजनीति में जो एक बार कुरसी पर आ जाता हैचिपक कर बैठ जाता है. कांग्रेस में सोनिया गांधी चिपकी हुई हैंसमाजवादी पार्टी में हाल ही में मुलायम सिंह की मृत्यु के बाद ही अखिलेश को मौका मिला. राष्ट्रीय जनता दल आज भी बीमार लालू यादव के हाथों में है. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में 68 साल की उम्र में 13 साल से सर्वेसर्वा बनी बैठी हैं.

अमेरिका होयूरोपएशिया या अफ्रीका सब जगह आज नया उत्पादननई टैक्नोलौजी बिलकुल जवानों के हाथों में है. कोडिंग 15-16 साल वालों के हाथों मेंडिजाइनिंग और प्रोडक्शन 20-25 साल वालों के हाथों में है पर शासन पूरी तरह सफेद बालों वालों के हाथों में है जो अपने पुराने घिसेपिटे 20वीं सदी के विचार थोप रहे हैं.

यूक्रेन में लड़ाई बूढ़ी सोच की देन है. आज का युवा इंटरनैट से हरेक से जुड़ा है. उस का किसी से बैर नहीं है. वह कम में गुजारा कर सकता है. उसे म्यूजिक पार्टी चाहिए. उसे न घर चाहिएन बीवीन बच्चे. वह अलग जीव है21वीं सदी का पर उसे जो बाइडेनडोनाल्ड ट्रंपचार्ल्सशी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी की पिछली सदी की सोच में जीना पड़ रहा है.

इंटरनैट ने दुनिया को एक कर दिया तो युवाओं के बल पर. इन बूढ़े नेताओं ने इसे फिर बांट दिया है- अमेरिकीरूसीचीनी कैंपों में.

Bloody Daddy Movie Review: शाहिद कपूर की औसत दर्जे की फिल्म

  • रेटिंगः पांच में से दो स्टार
  • निर्माताः जियो स्टूडियो,  आज फिल्मस,  आफसाइड इंटरटेनमेंट
  • लेखकः अली अब्बास जफर,  आदित्य बसु और सिद्धार्थ गरिमा
  • निर्देशकः अली अब्बास जफर
  • कलाकार: शाहिद कपूर, राजीव खंडेलवाल, रोनित रौय, संजय कपूर,  डायना पेंटी, सरताज कक्कड़,  अंकुर भाटिया, विवान बथेना, जीषान कादरी, मुकेश भट्ट, अमी ऐला, विक्रम मेहरा व अन्य.  
  • अवधिः दो घंटे एक मिनट
  • ओटीटी प्लेटफार्म: जियो सिनेमा

यूं तो ड्ग्स माफिया के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानियों पर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब इसी तरह की कहानी पर ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी कई एक्षन फिल्मों के निर्देशक अली अब्बास जफर फिल्म ‘‘ब्लडी डैडी’’ लेकर आए हैं, जो कि 2011 में प्रदर्षित फ्रेंच क्राइम फिल्म ‘‘नुइट ब्लैंच’’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म की षुरूआत में बताया गया है कि कोविड के दूसरे चरण के बाद पूरे देश में अपराध बढ़े हैं. मगर अफसोस फिल्म की कहानी से इसका कोई संबंध नही है. लेकिन फिल्म की कहानी एक अलग स्तर पर है. इस कहानी में नारकोटिक्स विभाग से जुड़े पुलिस कर्मियों के बीच आपसी रंजिश, ड्ग माफिया के नारकोेटिक्स विभाग में छिपे गुप्तचर और ड्ग माफिया है.

कहानीः

नारकोटिक्स अधिकारी सुमैर (शाहिद कपूर) एक दिन सुबह सुबह अपने सहयोगी के साथ ड्रग लेकर जा रही कार का पीछा कर उस कार से पचास करोड़ की ड्ग का बैग अपने कब्जे मे ले लेता है. पर ड्ग ले जा रहा इंसान भागने में सफल हो जाता है. परिणामतः ड्रग लॉर्ड माफिया और सेवन स्टार होटल के मालिक सिकंदर (रोनित रॉय) अपने लोगों की मदद से सुमेर के बेटे अथर्व (सरताज कक्कड़) का अपहरण करवा लेता है. अब सिकंदर चाहता है कि सुमैर ड्ग का बैग वापस कर अपने बेटे को ले जाए. सुमैर के पास ऐसा करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नही है.  क्योंकि उसकी पत्नी आएषा ( अमी ऐला ) उसे छोड़कर अन्य नारकोटिक्स अफसर आकाश के संग रह रही हैं. पर बेटा उसके साथ रह रहा है. सिकंदर (रोनित रॉय) को ड्ग का बैग हर हाल में चाहिए, क्यांेकि उसने ड्ग का सौदा काफी उंची कीमत पर एक अन्य ड्ग माफिया हमीद (संजय कपूर) के साथ किया है. कोई अन्य विकल्प नहीं बचा होने के कारण सुमैर एनसीबी मुख्यालय से बैग को पुनः प्राप्त कर अपने बेटे अथर्व को छुड़ाने के लिए सिकंदर के होटल में प्रवेश करता है.  जहां सुमैर के बौस समीर राठौड़ (राजीव खंडेलवाल) के कहने पर ज्यूनियर नारकोटिक्स अफसर अदिति (डायना पेंटी),  सुमेर के बैग को चुरा लेती है, जिसे समीर अपनी गाड़ी में डाल देता है. समीर एक तीर से दो निषाने करने जा रहा है.  हकीकत में समीर,  सिकंदर के लिए काम करता है. अब वह सुमैर को अपराधी के रूप में गिरफ्तार करना चाहता है. कहानी में कई मोड़ आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

अली अब्बास जफर की एक्षन फिल्मों पर से पकड़ खोती जा रही है. इस फिल्म की पटकथा काफी लचर है. फिल्म की षुरूआत में कुछ उम्मीदें बंधती हैं, मगर आधे घंटे के बाद फिल्म शिथिल होने लगती है. इंटरवल के बाद फिल्म पर से लेखक व निर्देशक दोनों की पकड़ कमजोर हो जाती है. पिता पुत्र के बीच के समीकरण ठीक से चित्रित ही नही किए गए. फिल्म लेखन व निर्देशन की खामियों से भरी हुई है. एक बार टेंडर अपनी पहली आकस्मिक मुलाकात में अचानक किसी व्यक्ति से उसकी शादी के बारे में कैसे पूछ सकता है? एक बार मूर्ख बन चुका इंसान पुनः उसी इंसान की मदद केसे कर सकता है? क्या वह भूल जाएगा कि इसी इंसान ने उसे पिछली बार मूर्ख बनाया था.

एक नारकोटिक्स अधिकारी नकली मौत का नाटक कर सकता है?गले में गोली लगने पर भी 5-10 मिनट के बाद होश में आ सकता है? महिला शौचालय में पुरुश बेरोकटोक आ जा सकते हैं? फिर भी सेवन स्टार होटल की गरिमा बरकरार है? मतलब कि पूरी फिल्म गलतियों और बेवजह की गालियों व खून खराबा का जखीरा मात्र है. सिकंदर और हामिद ड्ग माफिया हैं, मगर इनके बीच बहुत ही गलत अंदाज में हास्य के दृष्य पिरोए गए हैं. पूरी फिल्म देखकर यह कहना मुश्किल है कि इन्ही अली अब्बास जफर ने अतीत में ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुलतान’ जैसी फिल्में निर्देशित की हैं.

वैसे भी अली अब्बास जफर निर्देशित नौ फिल्मों में से सिर्फ यही दोे एक्षन प्रधान फिल्में लोगों को पसंद आयी थीं. मगर फिर वह एक्षन पर से भी अपनी पकड़ खो बैठे. किचन के अंदर राजीव खंडेलवाल और षाहिद कपूर के बीच के एक्षन दृष्य अच्छे बन पड़े हैं. षायद निर्माता व निर्देशक को अहसास हो गया था कि उनकी फिल्म ‘‘ब्लडी डैडी’’ सिनेमाघरों में पानी नहीं मांगने वाली है, इसीलिए इसे ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ पर मुफ्त में देखने के लिए डाल दिया.

अभिनयः

सुमैर के किरदार में जिस तरह के अभिनय की षाहिद कपूर से आपेक्षा थी, उसमंे वह खरे नहीं उरते.  निजी जीवन में भी वह पिता बन चुके हैं, इसके बावजूद पिता पुत्र के बीच जिस तरह के इमोषंस होने वाहिए, उन्हें वह परदे पर लाने में विफल रहे हैं. कुछ दृश्यों में वह ओवरएक्टिंग करते हुए नजर आते हैं.  डायना पेंटी से ज्यादा उम्मीद नही थी. वह अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह दोश पूर्ण संवाद अदायगी करते हुए नजर आती हैं. सिकंदर के किरदार में रोनित रौय अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं. उन्होने ड्ग माफिया,  गैंगस्टर होने के साथ ही सेवन स्टार होटल के मालिक सिकंदर के किरदार में काफी सधा हुआ अभिनय किया है. बेवजह चिल्लाते नही है, मगर अपने अभिनय से वह खौफ जरुर पैदा करते हैं. ड्ग माफिया हामिद के छोटे किरदार में संजय कपूर का अभिनय ठीक ठाक है.  समीर के ेकिरदार में राजीव खंडेलवाल सबसे अधिक कमजोर नजर आते हैं.

मेरी डिलिवरी सिजेरियन से हुई,अब मेरे जोड़ों में दर्द रहता है. मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 29 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मेरी दोनों डिलिवरी सिजेरियन हुई है. प्रसव के बाद मेरे जोड़ों में काफी दर्द रहने लगा है. मैं क्या करूं?

जवाब

कई महिलाएं गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान अपने खानपान का ध्यान नहीं रखतीं, जबकि इस दौरान उन के शरीर को पोषक तत्त्वों की काफी अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है. इन की कमी से हड्डियों की कमजोरी का कारण बन जाती है. गर्भावस्था और प्रसव के दौरान शरीर में कई रासायनिक और हारमोनल परिवर्तन होते हैं जिन का प्रभाव जोड़ों पर भी पड़ता है. गर्भावस्था में वजन बढ़ने से भी कमर, कूल्हों और घुटनों के जोड़ों पर दबाव पड़ता है और उन में टूटफूट की प्रक्रिया तेज हो जाती है. अत: अपने खानपान का ध्यान रखें, बढ़े हुए वजन को कम करें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें.

ये भी पढ़े…

मेरी मां की उम्र 56 साल है. डायग्नोसिस कराने पर पता चला कि उन्हें औस्टियोआर्थ्राइटिस है. इस का क्या उपचार है?

सवाल

औस्टियोआर्थ्राइटिस में जोड़ों के कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. जब ऐसा होता है तो हड्डियों के बीच कुशन न रहने से वे आपस में टकराती हैं, जिस से जोड़ों में दर्द होना, सूजन आ जाना, कड़ापन और मूवमैंट प्रभावित होने जैसी समस्याएं हो जाती हैं. औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण घुटनों के जोड़ों के खराब होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. कई उपाय हैं जिन के द्वारा आप औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण होने वाली जटिलताओं को कम कर सकते हैं. कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर भोजन का सेवन करें, अपना वजन न बढ़ने दें, शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, रोज कम से कम 1 मील पैदल चलें. ऐसा करने से बोन मास बढ़ता है.

डा. रमणीक महाजन

सीनियर डाइरैक्टर ऐंड हेडजौइंट रिकंस्ट्रक्शन यूनिट (नी ऐंड हिप)मैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल,

साकेतनई दिल्ली.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8, रानी झांसी मार्गनई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

मेघमल्हार: भाग 3- अभय की शादीशुदा जिंदगी में किसने मचाई खलबली

उस दिन मन बड़ा उदास रहा. बीवी ने पूछा तो काम का बहाना बना दिया. रात लगभग 11 बजे मेघा का फोन आया. मैं ने नहीं उठाया, पता नहीं मैं गुस्से में था या उस से नफरत करने लगा था. उस ने अचानक फोन क्यों किया था, यह मैं अच्छी तरह समझ रहा था. मनदीप ने उसे मेरे उस के यहां आने की बात बताई होगी. उसे भय होगा कि मैं उस के बारे में सबकुछ जान गया हूं. परंतु उसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं थी. आज के बाद मुझे उस के किसी भी काम से कुछ लेनादेना नहीं था. मैं उस के जीवन में दखल देने वाला नहीं था.

मैं ने मोबाइल साइलैंट मोड पर रख दिया, ताकि घंटी की आवाज से मुझे परेशानी न हो और पत्नी के अनावश्यक सवालों से भी मैं बचा रहूं.

रात में नींद ठीक से तो नहीं आई परंतु इस बात का सुकून अवश्य था कि एक बोझ मेरे मन से उतर गया था.

सुबह देखा तो मेघा की 19 मिस्डकाल थीं. शायद बहुत बेचैन थी मुझ से बात करने के लिए. मेरे मन में जैसे खुशी का एक दरिया उमड़ आया हो. जो हमें दुख देता है, उसे दुखी देख कर हम सुख की अनुभूति करते हैं. यह स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है.

मेघा ने एक मैसेज भी किया था, ‘मैं आप से मिलना चाहती हूं.’ मैं ने इस का कोई जवाब नहीं दिया. मैं उसे उपेक्षित करना चाहता था. प्यार के मामलों में ऐसा ही होता है. एक बार मन उचट जाए तो मुश्किल से ही लगता है.

मैं ने मेघा की उपेक्षा की और उस का फोन अटैंड नहीं किया, न उसे कोई मैसेज भेजा, तो उस ने मेरी पत्नी अनीता को फोन किया. उन दोनों के बीच क्या बातें हुईं, इस का तो पता नहीं, परंतु अनीता ने मुझ से पूछा, ‘‘मेघा से आप की कोई बात हुई है क्या?’’

‘‘क्या?’’ मैं उस का आशय नहीं समझा.

‘‘बोल रही थी कि आप उस से नाराज हैं.’’

‘‘अच्छा, मैं उस से क्यों नाराज होने लगा. उसे खुद ही वक्त नहीं मिलता मुझ से बात करने का. वह मेरा फोन भी अटैंड नहीं करती. उस के पंख निकल आए हैं,’’ मैं ने तैश में आ कर कहा. अनीता हैरानी से मेरा मुख निहारने लगी. मेरा चेहरा तमतमा रहा था और उस में कटुता के भाव आ गए थे.

‘‘ऐसा क्या हो गया है? इतनी प्यारी लड़की…’’ अनीता पता नहीं क्या कहने जा रही थी, परंतु मैं ने उस की बात बीच में ही काट दी, ‘‘हां, बहुत प्यारी है. उस के लक्षण तुम नहीं जानतीं. पता नहीं किसकिस के साथ गुलछर्रे उड़ाती फिर रही है.’’

‘‘अच्छा,’’ अनीता के चेहरे पर व्यंग्य भरी मुसकराहट बिखर गई, ‘‘आप को उस से इस बात की शिकायत है कि वह दूसरों के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आप के साथ उड़ाती तो ठीक था, तब आप गुस्सा नहीं करते.’’

क्या अनीता को मेरे और मेघा के संबंधों के बारे में पता चल गया है? मैं ने गौर से उस का चेहरा देखा. ऐसा तो नहीं लग रहा था. अनीता सामान्य थी और उस के चेहरे पर भोली मुसकान के सिवा कुछ न था. अगर उसे पता होता तो वह इतने सामान्य ढंग से मेरे साथ पेश नहीं आती. मेरे दिल को राहत मिली.

‘‘छोड़ो उस की बातें, वह अच्छी लड़की नहीं है बस,’’ मैं ने बात को टालने के इरादे से कहा.

‘‘अरे वाह, जब तक हमारे घर में थी, हम सब से हंसतीबोलती थी, तब तक वह एक अच्छी लड़की थी. जब वह दूर चली गई और आप से उस का मिलनाजुलना कम हो गया, तो वह खराब लड़की हो गई,’’ अनीता के शब्दों में कटाक्ष का हलका प्रहार था.

मुझे फिर शक हुआ. शायद अनीता को सबकुछ पता है या यह केवल मेरा शक है. अगर पता है तो मेघा ने ही आजकल में पिछली सारी बातें अनीता को बताई होंगी. मेरे दिल में खलबली मची हुई थी, परंतु मैं अनीता से कुछ पूछने का साहस नहीं कर सकता था. अभी तक हमारे दांपत्य जीवन में कोई कटुता नहीं आई थी और मैं नहीं चाहता था कि जिस संबंध को मैं खत्म करना चाहता था, उस की वजह से मेरे सुखी घरपरिवार में आग लग जाए.

‘‘मैं उस के बारे में बात नहीं करना चाहता,’’ कह कर मैं उठ कर दूसरे कमरे में चला आया. अनीता मेरे पीछेपीछे आ गई और चिढ़ाने के भाव से बोली, ‘‘भागे कहां जा रहे हैं? सचाई से कहां तक मुंह मोड़ेंगे? आप मर्दों को घर भी चाहिए और बाहर की रंगीनियां भी. यह तो हम औरतें हैं, जो घर की सुखशांति के लिए अपना स्वाभिमान और व्यक्तिगत सुख भूल जाती हैं.’’

मैं पलटा, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘मतलब बहुत साफ है. मेघा ने बहुत पहले ही मुझ से आप के साथ अपने संबंधों का खुलासा कर दिया था. वह जवानी के आंगन में खड़ी एक भावुक किस्म की लड़की है. दुनिया के चक्करदार रास्तों में वह भटक रही थी कि आप उसे मिल गए. हर लड़की एक पुरुष में पिता और प्रेमी दोनों की छवि देखना चाहती है. आप में उस ने एक संरक्षक की छवि देखी और इसी नाते प्यार कर बैठी. बाद में उसे पछतावा हुआ तो घर छोड़ कर चली गई. आप से दूर होने के लिए आवश्यक था कि वह किसी लड़के से दोस्ती कर ले ताकि वह पिछली बातें भूल सके. बस, इतनी सी बात है,’’ अनीता ने कहा.

मैं अवाक् रह गया. अनीता को सब पता था और उस ने आज तक इस बारे में बात करनी तो दूर, मुझ पर जाहिर तक नहीं किया और मैं काठ के उल्लू की तरह 2 औरतों के बीच बेवकूफ बना फिरता रहा.  मेरी नजर में अनीता की छवि एक आदर्श पत्नी की थी, तो मेघा की छवि उस बादल की तरह जो वर्षा कर के दूसरों की प्यास तो बुझाते हैं परंतु खुद प्यासे रह जाते हैं. अनीता के सामने मैं नतमस्तक हो गया.

किसी एक जगह नहीं ठहरते. ये निरंतर चलते रहते हैं और बरस कर तपती हुई धरा को तृप्त करते हैं, मानव जीवन को सुखमय बनाते हैं. उसी प्रकार मेघा भी चंचल और चलायमान थी. वह बहुत अस्थिर थी और ढेर सारा प्यार न केवल बांटना चाहती थी, बल्कि सब से पाना भी चाहती थी.

वह मेरे जीवन में आई और अपने प्यार की वर्षा से मुझे तृप्त कर गई. उतना ही प्यार मेरे जीवन में लिखा था. अब वह किसी और को अपना प्यार बांट रही थी. आप बताइए, क्या उस ने मेरे साथ विश्वासघात किया था?

काश, वह मेघमल्हार होती और मैं उसे आजीवन सुना करता.

Father’s day 2023: पिताजी- जब नीला को ‘प्यारे’ पिताजी के दर्शन हो गए

‘‘जब देखो सब ‘सोते’ रहते हैं, यहां किसी को आदत ही नहीं है सुबह उठने की. मैं घूमफिर कर आ गया. नहाधो कर तैयार भी हो गया, पर इन का सोना नहीं छूटता. पता नहीं कब सुधरेंगे ये लोग. उठते क्यों नहीं हो?’’ कहते हुए पिताजी ने छोटे भाई पंकज की चादर खींची. पर उस ने पलट कर चादर ओढ़ ली. हम तीनों बहनें तो पिताजी के चिल्लाने की पहली आवाज से ही हड़बड़ा कर उठ बैठी थीं.

सुबह के साढ़े 6 बजे का समय था. रोज की तरह पिताजी के चीखनेचिल्लाने की आवाज ने ही हमारी नींद खोली थी. हालांकि पिताजी के जोरजोर से पूजा करने की आवाज से हम जाग जाते थे, पर साढ़े 5 बजे कौन जागे, यही सोच कर हम सोए रहते.

पिताजी की तो आदत थी साढ़े 4 बजे जागने की. हम अगर 11 बजे तक जागे रहते तो डांट पड़ती थी कि सोते क्यों नहीं हो, तभी तो सुबह उठते नहीं हो. बंद करो टीवी नहीं तो तोड़ दूंगा. पर आज तो मम्मी भी सो रही थीं. हम भी हैरानगी से मम्मी का पलंग देख रहे थे. मम्मी थोड़ा हिलीं तो जरूर थीं, पर उठी नहीं.

पिताजी दूर से ही चिल्लाए, ‘‘तू भी क्या बच्चों के साथ देर रात तक टीवी देखती रही थी? उठती क्यों नहीं है, मुझे नाश्ता दे,’’ कहते हुए पिताजी हमेशा की तरह रसोई के सामने वाले बरामदे में चटाई बिछा कर बैठ गए. सामने भले ही डायनिंग टेबल रखी हुई थी पर पिताजी ने उसे कभी पसंद नहीं किया. वे ऐसे ही आराम से जमीन पर बैठ कर खाना खाना पसंद करते थे. मम्मी भले ही 55 की हो गई थीं पर पिताजी के लिए नाश्ता मम्मी ही बनाती थीं.

बड़ी भाभी अपने पति के लिए काम कर लें, यही गनीमत थी. वैसे भी उन की रसोई अलग ही थी. पिताजी उन से किसी काम की नहीं कहते थे. पिताजी के 2 बार बोलने पर भी जब मम्मी नहीं उठीं तो मैं तेजी से मम्मी के पास गई, मम्मी को हिलाया, ‘‘मम्मीजी, पिताजी नाश्ता मांग…अरे, मम्मी को तो बहुत तेज बुखार है,’’ मेरी बात सुनते ही विनीता दीदी फौरन रसोई में पिताजी का नाश्ता तैयार करने चली गईं. हम सब को पता है कि पिताजी के खाने, उठनेबैठने, घूमने जाने का समय तय है. अगर नाश्ते का वक्त निकल गया तो लाख मनाते रहेंगे पर वे नाश्ता नहीं करेंगे. उस के बाद दोपहर के खाने के समय ही खाएंगे, भले ही वे बीमार हो जाएं.

विनीता दीदी ने फटाफट परांठे बना कर दूध गरम कर पिताजी को परोस दिया. पिताजी ने नाश्ता करते समय कनखियों से मम्मी को देखा तो, पर बिना कुछ बोले ही नाश्ता कर के उठ गए और अपने कमरे में जा कर एक किताब उठा कर पढ़ने लगे. मम्मी की एक शिकायत भरी नजर उन की तरफ उठी पर वे कुछ बोली नहीं. न ही पिताजी ने कुछ कहा.

मम्मी को बहुत तेज बुखार था. मैं पिताजी को फिर मम्मी का हाल बताने उन के कमरे में गई तो वे बोले, ‘‘नीला, अपनी मां को अंगरेजी गोलियां मत खिलाना, तुलसी का काढ़ा बना कर दे दो, अभी बुखार उतर जाएगा,’’ पर वे उठ कर मम्मी का हाल पूछने नहीं आए.

मुझे पिताजी की यही आदत बुरी लगती है. क्यों वे मम्मी की कद्र नहीं करते? मम्मी सारा दिन घर के कामों में उलझी रहती हैं. पिताजी का हर काम वे खुद करती हैं. अगर पिताजी बीमार पड़ जाएं या उन्हें जरा सा भी सिरदर्द हो तो मम्मी हर 10 मिनट में पिताजी को देखने उन के कमरे मेें जाती हैं. मैं ने अपनी जिंदगी में हमेशा मम्मी को उन की सेवा करते और डांट खाते ही देखा है. मम्मी कभी पलट कर जवाब नहीं देतीं. अपने बारे में कभी शिकायत भी नहीं करतीं. एक बार मुझे गुस्सा भी आया कि मम्मी, आप पिताजी को पलट कर जवाब क्यों नहीं दे देतीं, तो वे मेरा चेहरा देखने लगी थीं.

‘ऐसे पलट कर पति को जवाब नहीं देना चाहिए. तेरी नानी ने भी कभी नहीं दिया. तेरी ताई और चाची जवाब देती थीं इसलिए कोई भी रिश्तेदार उन्हें पसंद नहीं करता. कोई उन के घर नहीं जाना चाहता.’

मुझे गुस्सा आया, ‘इस से हमें क्या फायदा है? जिस का दिल करता है वही मुंह उठाए यहां चला आता है. जैसे हमारे घर खजाने भरे हों.’

मम्मी हंस पड़ीं, ‘तो हमारे पास कौन से खजाने भरे हैं लुटाने के लिए. कभी देखा है कि मैं ने किसी पर खजाने लुटाए हों. जो है बस, यही सबकुछ है.’

‘पर पिताजी तो किसी के भी सामने आप को डांट देते हैं. मुझे अच्छा नहीं लगता. कितनी बेइज्जती कर देते हैं वे आप की.’

मम्मी ने प्यार से मुझे देखा, ‘तुम लोग करते हो न मुझ से प्यार, क्या यह कम है?’

उस समय मेरा मन किया कि फिल्मी हीरोइनों की तरह फौरन मम्मी के गले लग जाऊं, पर ऐसा कर नहीं सकी. शायद कहीं पिताजी का स्वभाव जो कहीं न कहीं मेरे भीतर भी था, वही मेरे आड़े आ गया.

मैं पिताजी के कमरे से फौरन मम्मी के पास आ गई. क्या एक बार पिताजी चल कर मम्मी का हाल पूछने नहीं जा सकते थे? फिर सोचा अच्छा है, न ही जाएं. जा कर भी क्या करेंगे? बोलेंगे, तू भी वीना लेटने के बहाने ढूंढ़ती है. जरा सा सिरदर्द है, अभी ठीक हो जाएगा. और फिर मस्त हो कर किताबें पढ़ने लगेंगे जबकि वे भी जानते हैं कि मम्मी को नखरे दिखाने की जरा भी आदत नहीं है. जब तक शरीर जवाब न दे जाए वे बिस्तर पर नहीं लेटतीं. कभी मैं सोचती, काश, मेरी मम्मी पिताजी की इस किताब की जगह होतीं. मैं विनीता दीदी को पिताजी की बात बताने जा रही थी, तभी देखा कि वे काढ़ा छान रही हैं. विनीता दीदी ने शायद पहले ही पिताजी की बात सुन ली थी. वे तुलसी का काढ़ा ले कर मम्मी को देने चली गईं.

दोपहर हो गई, फिर शाम और फिर रात, पर मम्मी का बुखार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. रात को डाक्टर बुलाना पड़ा. उस ने बुखार उतारने का इंजेक्शन लगा दिया और अस्पताल ले जाने के लिए कह कर चला गया.

अस्पताल का नाम सुनते ही मेरे तो हाथपांव ही फूल गए. मैं ने लोगों के घरों में तो देखासुना था कि फलां आदमी बीमार हो गया कि उसे अस्पताल ले जाना पड़ा. पूरा घर उथलपुथल हो गया. मुझे  समझ में नहीं आता था कि एक आदमी के अस्पताल जाने से घर उथलपुथल कैसे हो जाता है?

सुबहसुबह ही पंकज और मोहन भैया मम्मी को अस्पताल ले गए. मैं अनजाने डर से अधमरी ही हो गई. विनीता दीदी मुझे ढाढ़स बंधाती रहीं कि कुछ नहीं होगा, तू घबरा मत. मम्मी जल्दी ही चैकअप करवा कर लौट आएंगी. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. चैकअप तो हुआ पर मम्मी को डाक्टर ने अस्पताल में ही दाखिल कर लिया. घर आ कर दोनों भाइयों ने पिताजी को बताया तो भी पिताजी को न तो कोई खास हैरानगी हुई और न ही उन के चेहरे पर कोई परेशानी उभरी. मैं पिताजी के पत्थर दिल को देखती रह गई. मुझ से न तो खाना खाया जा रहा था न ही किसी काम में मन लग रहा था.

विनीता दीदी ने डाक्टर के कहे अनुसार मम्मी के लिए पतली सी खिचड़ी बनाई, चाय बनाई, भैया के लिए खाना बनाया और पैक कर के मोहन भैया को वापस अस्पताल भेज दिया. पिताजी घर पर ही बैठे रहे. विनीता दीदी ने पूरे घर के लिए खाना बनाया और खिलाया. मैं घर के काम में उन का हाथ बंटाती रही.

कालेज जाने का मन नहीं किया. एक बार पिताजी से डर भी लगा कि जरूर डांटेंगे कि कालेज क्यों नहीं गई. छोटी बहन पूर्वी तो स्कूल चली गई थी. पिताजी की नजर मुझ पर पड़ी, उन के बिना बोले ही मैं ने दीदी को कहा, ‘‘आज मेरा मन कालेज जाने का नहीं है. आप मुझे कुछ मत कहना,’’ कहते ही मैं दूसरे कमरे में चली गई. दीदी ने मुझे हैरानगी से देखा पर पिताजी की तरफ नजर पड़ते ही वे समझ गईं कि मैं क्यों ऐसा बोल रही हूं. पिताजी भी कुछ नहीं बोले.

स्कूल से लौट कर पूर्वी को मम्मी के अस्पताल दाखिल होने का पता चला तो वह रोने लगी. मेरा भी मन कर रहा था कि उस के साथ रोने लगूं, पर यह सोच कर आंसू पी गई कि पिताजी डांटेंगे कि क्या तुम सब पागल हो गए हो जो रो रहे हो. बीमार ही तो हुई है, एकदो दिन में ठीक हो जाएगी.

मम्मी कभी इतनी बीमार तो पड़ी ही नहीं थीं कि उन्हें अस्पताल जाना पड़ता. पिताजी अपने कमरे में किताब पढ़तेपढ़ते दोपहर को सो गए, फिर शाम को पार्क में सैर करने निकल गए. पंकज भैया की प्राइवेट नौकरी थी इसलिए आफिस में खबर करनी थी. मोहन भैया की सरकारी नौकरी थी. सो उन्होंने फोन कर के आफिस में बता दिया था.

विनीता दीदी भी आफिस नहीं गईं. उन्होंने भी फोन कर दिया था. पिताजी ने तो भैया के कहने से कब से काम करना छोड़ दिया था. विनीता दीदी मुझे रात की रसोई का काम समझा कर मम्मी के पास अस्पताल चली गईं.

अब घर पर मैं, पिताजी और पूर्वी थे. पंकज भैया भी आफिस से सीधे अस्पताल चले गए. बड़े भैया जगदीश और भाभी तो अलग ही थे. वे हम लोगों से कम ही वास्ता रखते थे, ऐसे में उन्हें कोई काम कहा ही नहीं जा सकता था. पापा बोलते थे कि जगदीश जोरू का गुलाम हो गया है, वह किसी काम का नहीं अब.

दीदी कभीकभी पिताजी को सुना दिया करती थीं कि अगर पति अपनी पत्नी का हर कहना मानता है तो इस में हर्ज ही क्या है? इस पर पिताजी कहते, ‘ऐसा आदमी कमजोर होता है. मैं उसे मर्द नहीं मानता.’ वैसे भी बड़े भैया के बदले हुए स्वार्थभाव को देख कर उन का होना न होना एक बराबर ही था.

मैं ने खाना बनाया, पूर्वी मेरी सहायता करती रही. पिताजी पार्क से आ कर चुपचाप कमरे में बैठे किताब पढ़ते रहे. कुछ नहीं बोले. शाम की चाय के साथ क्या खाएंगे, इस के जवाब में उन्होंने कोई मांग नहीं की.

भैया के आते ही पिताजी बिना कुछ बोले भैया के सामने बैठ गए. भैया ने बताया कि डाक्टर ने चैकअप किया है उस की परसों रिपोर्ट आएगी, तभी पता चल पाएगा कि असल बीमारी क्या है. यानी कि कम से कम 2 दिन तो और मम्मी को अस्पताल में रहना ही होगा. मेरी हवाइयां उड़ने लगीं. पंकज मेरी सूरत भांप गया, बोला, ‘‘तू क्यों घबरा रही है. वहां मम्मी को अच्छी तरह रखा हुआ है. डाक्टर जानपहचान की मिल गई थीं. उन्होंने एक नर्स को खासतौर पर मम्मी की तबीयत देखने के लिए हिदायत दे दी है. अलग से कमरा भी दिलवा दिया है.’’

मैं ने पिताजी के चेहरे पर आश्वासन की लकीरें देखीं पर फिर तुरंत गायब होते भी देखीं. एक?दो दिन बीते. पता चला मम्मी को ‘यूरिन इन्फेक्शन’ हो गया है. डाक्टर ने कहा कि पूरा उपचार करना होगा, एक सप्ताह तो लगेगा ही. पूरे घर का रुटीन ही गड़बड़ा गया. कौन अस्पताल भाग रहा है, कौन मम्मी के पास बैठ रहा है, कौन रात को मम्मी के पास रहेगा, कौन घर संभालेगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. जिस को जो काम दिख जाता वह कर लेता था.

जो मोहन भैया कभी एक गिलास पानी उठा कर नहीं पीते थे वे सुबहसुबह मम्मी के लिए चाय बना कर थर्मस में डाल कर भागते दिखते. पूर्वी को किचन की एबीसीडी नहीं पता थी मगर वह बैठ कर सब्जी काट रही होती, कभी दाल चढ़ा रही होती, कभी दूध गरम कर रही होती.

पिताजी का तो सारा रुटीन ही बदल गया था. वे सुबह उठते, सैर कर के आते तो सब के लिए चाय बना देते. फिर बिना चिल्लाए सब को उठाते और बिना नाश्ते की मांग किए ही अस्पताल चले जाते. एक बार तो अच्छा लगा कि पिताजी मम्मी के पास जा रहे हैं पर फिर यह सोच कर डर लगा कि कहीं अस्पताल में जा कर भी तो मम्मी को डांटते नहीं हैं कि तू दवा क्यों नहीं पी रही, तू उठ कर बैठने की कोशिश क्यों नहीं करती. तू अपने आप हिला कर ताकि जल्दी ठीक हो. सौ सवाल थे जेहन में पर जवाब एक का भी नहीं मिल पाता था. मुझे कभीकभी यह भी समझ में नहीं आता था कि मैं मम्मी को ले कर इतनी परेशान क्यों होती हूं? क्यों लगता है कि पिताजी उन्हें डांटें नहीं, उन्हें परेशान न करें. मैं मन ही मन पिताजी से नाराज हूं या आतंकित हूं, यह भी समझ में नहीं आता था.

मैं तो पूरी तरह घरेलू महिला ही बन गई थी. पूरे घर की सफाई, कपड़े और रसोई का काम. रात अस्पताल में रह कर दीदी सुबह लौटतीं तो उन के आने से पहले अधिकतर काम मैं निबटा चुकी होती थी. वे भी मुझे देख कर हैरान होतीं. दीदी रात की जगी होतीं तो नाश्ता करते ही बिस्तर पर सो जातीं. थोड़ा काम करवा पातीं कि फिर से उन के अस्पताल जाने का वक्त हो जाता.

दोनों भाई बारीबारी से छुट्टी ले रहे थे. एकदो बार तो यों भी हुआ कि पिताजी रात को करवटें बदलते रहे और उन की नींद सुबह खुली ही नहीं. वे भी 6 बजे हमारे साथ जागे. मुझे यही लगा कि पिताजी को आदत है हर समय मम्मी को डांटते रहने की. अब मम्मी सामने नहीं हैं तो परेशान हो रहे हैं कि किसे डांटूं. हमें डांटतेडांटते भी चुप हो जाते.

उस दिन शाम को पिताजी घर लौटे तो बोले, ‘‘नीला, कितने दिन हो गए तेरी मां को अस्पताल गए हुए?’’ मैं ने बिना उन्हें देखे चाय देते हुए जवाब दिया, ‘‘10 दिन तो हो ही गए हैं.’’

पिताजी बोले, ‘‘तेरा मन नहीं किया अपनी मां से मिलने को?’’

मैं इतने दिनों से मम्मी की कमी महसूस कर रही थी पर बोल नहीं पा रही थी. पिताजी की इस बात से मेरे मन के भीतर कुछ उबाल सा उठने लगा. इस से पहले कि मैं कोई जवाब देती, पिताजी सपाट शब्दों में फिर बोले, ‘‘तेरी मां तुझे याद कर रही थी.’’ मैं भीतर के उबाल को रोक नहीं पाई, तेजी से रसोई में जा कर काम करतेकरते रोने लगी.

‘आप को क्या पता कि मैं कितनी परेशान हूं, हर पल मम्मी के घर आने की खबर का इंतजार कर रही हूं. वहां जाऊंगी और देखूंगी कि आप फिर मम्मी को ही हर बात के लिए दोष दे रहे हो, उन्हें डांट रहे हो तो और भी दुख होगा. वैसे भी आप को क्या फर्क पड़ता है कि मम्मी घर पर रहें या अस्पताल में.

‘अस्पताल में जा कर भी क्या करते होंगे, मुझे पता है? आप से दो शब्द तो प्रेम के बोले नहीं जाते, मम्मी को टेंशन ही देते होंगे, तभी मम्मी 10 दिन अस्पताल में रहने के बावजूद अभी तक ठीक नहीं हो पाई हैं. हम बच्चों से पूछिए जिन्हें हर पल मां चाहिए. भले ही वे हमारे लिए कोई काम करें या न करें. मम्मी भी मुझे याद कर रही हैं. सभी तो मम्मी से मिलने अस्पताल चले गए, एक मैं ही नहीं गई.’ मैं रोतेरोते मन ही मन हर पल पिताजी को कोसती रही.

सोचतेसोचते मेरे हाथ से दूध भरा पतीला फिसल कर जमीन पर गिर गया. पूरी रसोई दूध से नहा गई और मैं यह सोच कर घबरा गई कि पिताजी अभी जोर से डांटेंगे और चिल्लाएंगे. सोचा ही था कि पिताजी हाथ में चाय का कप लिए सामने आ गए. पूर्वी और मोहन भैया भी आ गए.

पिताजी चुपचाप खड़े रहे. मोहन भैया घबरा कर बोले, ‘‘तेरे ऊपर तो गरम दूध नहीं गिरा?’’ मैं कसमसाई, ‘‘नहीं, पर सारा दूध गिर गया.’’ पूर्वी पोछा लेने दौड़ी. पिताजी ने बहुत ही शांत स्वर में कहा, ‘‘मोहन, बाजार से और दूध ले आओ,’’ और वापस अपने कमरे में चले गए. मैं पिताजी की पीठ ही देखती रह गई. मोहन भैया भी शांति से बोले, ‘‘तू अपना ध्यान रखना, कहीं जला न बैठना, मैं और दूध ले आता हूं.’’ पता नहीं क्यों फिर मम्मी की याद आ गई और मैं रोने लगी.

अगले दिन विनीता दीदी ने भी कहा कि आज रात तू मम्मी के पास रहना, मम्मी याद कर रही थीं. वैसे भी मेरी रात की नींद पूरी नहीं हो पा रही, कहीं मैं भी बीमार न हो जाऊं. मेरा मन भी मम्मी से मिलने का हो रहा था. मैं जानबूझ कर ज्यादा देर से जाना चाहती थी ताकि पिताजी अपने समय से निकल कर घर आ जाएं और मैं मम्मी के गले लग कर खूब रो सकूं. सब दिनों की कसर पूरी हो जाए.

मैं अस्पताल के आंगन में बिना वजह आधा घंटा बरबाद कर के मम्मी के स्पेशल वार्ड में पहुंची कि अब तो पिताजी निकल ही गए होंगे, पर जैसे ही अंदर जाने लगी पिताजी की आवाज सुनाई दी तो मेरे कदम वहीं रुक गए.

‘‘वीना, तू कह तो रही है मुझे जाने के लिए, लेकिन मेरा मन नहीं मानता कि तुझे अकेला छोड़ कर जाऊं. तेरे बिना मुझे घर काटने को दौड़ता है. मुझे तेरे बिना जीने की आदत नहीं है,’’ पिताजी का स्वर रोंआसा था.

‘‘आप तो इतने मजबूत दिल के हो, फिर क्यों रो रहे हो?’’

‘‘हां, हूं मजबूत दिल का, दुनिया के सामने अपनी कमजोरी दिखा नहीं सकता, मर्द हूं न, लेकिन मेरा दिल जानता है कि पत्थर बनना कितना मुश्किल होता है. तू जल्दी से ठीक हो जा, अब बरदाश्त नहीं हो रहा मुझे से,’’ पिताजी बच्चों की तरह फफक रहे थे.

‘‘आप ऐसे रोएंगे तो बच्चों को कौन संभालेगा. जाइए न. बच्चे भी तो घर पर अकेले होंगे,’’ मम्मी का स्वर भी रोंआसा था.

‘‘तू हाथ मत छुड़ा. अगर अस्पताल वाले मुझे इजाजत देते रात भर यहां रहने की तो दिनरात तेरी सेवा कर के तुझे साथ ले कर ही घर जाता. बच्चे भी तुझ पर गए हैं. मुझ से बोलते नहीं, पर सब तेरे घर आने का ही इंतजार कर रहे हैं. कोई अब शोर नहीं मचाता, न ही कोई टीवी देखता है,’’ पिताजी के शब्द आंसुओं में फिसलने लगे थे. मम्मी भी उसी में पिघल रही थीं.

आंसुओं से मेरी भी आंखें धुंधला गई थीं. मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. पिताजी के पत्थर दिल के पीछे प्रेम की अमृतधारा का इतना बड़ा झरना बह रहा है, यह तो मैं कभी देख ही नहीं पाई. मैं ने तो अपनी मम्मीपापा को एकसाथ बिस्तर पर हाथ में हाथ डाले बैठे नहीं देखा था लेकिन आज जो मेरे कानों ने मुझे नजारा दिखाया वह मेरी आंखें भी देखना चाह रही थीं. प्यार से लबालब भरे पिताजी की इस सूरत को देखने के लिए मैं तेजी से वार्ड में प्रवेश कर गई.

मेरे सामने आते ही पिताजी ने मम्मी के हाथ से अपना हाथ तेजी से हटा लिया. मैं एकदम मम्मी के गले लग कर जोर से रो पड़ी. मम्मी भी रो पड़ी थीं, ‘‘पागल है, रो क्यों रही है? मैं तो एकदो दिन में आ रही हूं.’’

वे नहीं जानती थीं कि मेरे इन आंसुओं में पिताजी की ओर से मेरा हर रोष धुल गया था. मैं ने पिताजी को कनखियों से देखा. पिताजी का चेहरा आंसुओं से खाली था पर अब मुझे वहां पत्थर दिल नहीं ‘प्यारे’ पिताजी दिख रहे थे, जो हमसब को खासतौर पर मम्मी को, बहुतबहुत प्यार करते थे.

Father’s day 2023: निदान- कौनसे दर्द का इलाज ढूंढ रहे थे वो

आने वाला कल हमें हजार बार रुला सकता है, सैकड़ों बार शरम से झुका सकता है और न जाने कितनी बार यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि कल हम ने जो फैसला लिया था वह वह नहीं होना चाहिए था जो हुआ था.

‘‘आप क्या सोचने लगे, डाक्टर सुधाकर. भीतर चलिए न, चाय का समय समाप्त हो गया.’’

मैं सेमिनार में भाग लेने मुंबई आया हूं. आया तो था अपना कल, अपना आज संवारने, अपने पेशे में सुधार करने, कुछ समझने, कुछ जानने लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि जिसे पहले नहीं जानता था और शायद भविष्य में भी न जान पाऊं… उस में जाननेसमझने के लिए बहुत कुछ है.

अपने ही समाज में जड़ पकड़े कुछ विकृतियां क्यों पनप कर विशालकाय समस्या बन गईं और क्यों हम उन्हें काट कर फेंक नहीं पाते? क्यों हम में इतनी सी हिम्मत नहीं है कि सही कदम उठा सकें? कुछ अनुचित जो हमारी जीवन गति में रुकावट डालता है. उसे हम क्यों अपने जीवन से निकाल नहीं पाते? मेरा आज क्या हो सकता था उस का अंदाजा आज हो रहा है मुझे. मैं ने क्या खो दिया उस का पता आज चला मुझे जब उसे देखा.

‘‘आप की आंखें बहुत सुंदर हैं और बहुत साफ भी.’’

‘‘मैं चश्मा लगाती हूं पर आज लैंस लगाए हैं,’’ एक पल को चौंका था मैं.

‘‘आप के पापा से मेरे पापा ने बात की थी कि मैं चश्मा लगाती हूं, आप को पता है न.’’

‘‘हां, पापा ने बताया था.’’

याद आया था मुझे. मुसकरा दी थी वह. मानो चैन की सांस आई हो उसे. अच्छी लगी थी वह मुझे. महीने भर हमारी सगाई की बात चली थी. तसवीरों का आदानप्रदान हो चुका था जिस कारण वह अपनीअपनी सी भी लगने लगी थी.

‘‘डाक्टरी के पेशे में एक चीज बहुत जरूरी है और वह है हमारी अपनी अंतरात्मा के प्रति जवाबदेही…’’

ऐसी ही तो मानसिकता पसंद थी मुझे. सोच रहा था कि जीवनसाथी के रूप में मेरे ही पेशे की कोई मेधावी डाक्टर साथ हो तो मैं जीवन में तरक्की कर सकता हूं.

एक दिन मेरे पिताजी ने अखबार में शादी का विज्ञापन देखा तो झट से फोन कर दिया था. दूरी बहुत थी हमारे और उस के शहर में. हम कानपुर के थे और वह जम्मू की.

पिताजी ने फोन करने के बाद मुझे बताया था कि उन्होंने अपना फोन नंबर दे दिया है. शाम को लड़की के पापा आएंगे तो अपना पता देंगे ऐसा उत्तर उस की मां ने दिया था.

बात चल पड़ी थी. बस, आड़े थी तो जाति की सभ्यता और दहेज को ले कर हमारी खुल्लमखुल्ला बातें. महीने भर में हमारे बीच कई बार विचारों का आदानप्रदान हुआ था.

मेरे पिता ने पूरा आश्वासन दिया था कि दहेज की बात न होगी और उस के बाद ही वे हमारे शहर आने को मान गए थे. बहुत अच्छा लगा था हमें उस का परिवार. उन को देखते ही लगा था मुझे कि बस, ऐसा ही परिवार चाहिए था.

बड़े ही सौम्य सभ्य इनसान. हम से कहीं ज्यादा अच्छा जीवनस्तर होगा उन का, यह उन्हें देखते ही हम समझ गए थे आज 7 साल बाद वही सेमिनार में वही लड़की भाषण दे रही थी :

‘‘एक अच्छा होम्योपैथ सब से पहले एक अच्छा इनसान हो यह उस की सफलता के लिए बहुत जरूरी है. जो इनसान अपने पेशे के प्रति ईमानदार नहीं है वह अपने पेशे की उस ऊंचाई को कभी नहीं छू सकता जिस ऊंचाई को डाक्टर क्रिश्चियन फिड्रिक सैम्युल हैनेमन ने छुआ था. एक सफल डाक्टर को उस के बैंक बैलेंस से कभी नहीं नापा जाना चाहिए क्योंकि डाक्टरी का पेशा किसी बनिए का पेशा कभी नहीं हो सकता.’’

ऐसा लगा, उस ने मुझे ही लक्ष्य किया हो. आज सुबह से परेशान हूं मैं. तब से जब से उसे देखा है.

नजर उठा कर मैं सामने नहीं देख पा रहा हूं क्योंकि बारबार ऐसा लग रहा है कि उस की नजर मुझ पर ही टिकी है.

मैं अपने पेशे के प्रति ईमानदार नहीं रह पाया और न ही अपनी अंतरात्मा के प्रति. मैं एक अच्छा इनसान नहीं बन पाया. क्या सोचा था क्या बन गया हूं. 7-8 साल पहले मन में कैसी लगन थी. सोचा था एक सफल होम्योपैथ बन पाऊंगा.

उस के शब्द बारबार कानों में बज रहे हैं. क्या करूं मैं? इनसान को जीवन में बारबार ऐसा मौका नहीं मिलता कि वह अपनी भूल का सुधार कर पाए.

मेरी जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा. मैं बाहर चला आया. मेरी पत्नी का फोन है. पूछ रही है जो सामान उस ने मंगाया था मैं ने उसे खरीद लिया कि नहीं. एक ऐसी औरत मेरे गले में बंध चुकी है जिसे मैं ने कभी पसंद नहीं किया और जिसे मेरा पेशा कभी समझ में नहीं आया. वास्तव में आज मैं केवल बनिया हूं, एक डाक्टर नहीं.

‘कैसे डाक्टर हो तुम? डाक्टरों की बीवियां तो सोनेचांदी के गहनों से लदी रहती हैं. मेरे पिता ने 10 लाख इसलिए नहीं खर्च किए थे कि जराजरा सी चीज के लिए भी तरसती रहूं.’ कभीकभार वह प्यार भरी झिड़की दे कर कहती.

सच है यह, उस के पिता ने 10 लाख रुपए मेरे पिता की हथेली पर रख कर एक तरह से मुझे खरीद लिया था. यह भी सच है कि मैं ने भी नानुकुर नहीं की थी, क्योंकि हमारी बिरादरी का यह चलन ही है जिसे पढ़ालिखा या अनपढ़ हर युवक जानेअनजाने कब स्वीकार कर लेता है पता नहीं चलता.

हमारे घरों की लड़कियां बचपन से लेनदेन की यह भाषा सुनती, बोलती  जवान होती हैं जिस वजह से उन के संस्कार वैसे ही ढल जाते हैं. हमारी बिरादरी में भावनाएं और दिल नहीं मिलाए जाते, जेब और औकात मिलाई जाती है.

जेब और औकात मिलातेमिलाते कब हम अपनी राह से हट कर किसी की भावनाओं को कुचल गए थे हमें पता ही नहीं चला था.

मुझे याद है, जब उस के मातापिता 7 साल पहले उसे साथ ले कर आए थे.

मेरे पिता ने पूछा था, ‘आप शादी में कितना खर्च करना चाहते हैं. यह हमारा आखिरी सवाल है, आप बताइए ताकि हम आप को बताएं कि 5 लाख रुपए कहांकहां और कैसेकैसे खर्च करने हैं.’

सबकुछ तय हो गया था पर पिताजी द्वारा पूछे गए इस अंतिम प्रश्न ने उस रिश्ते को ही अंतिम रूप दे दिया जो अभी नयानया अंकुरित हो रहा था.

‘आप ने अपनी बेटी को क्याक्या देने के बारे में सोच रखा है?’

मेरी मौसी ने भी हाथ नचा कर पूछा था. भौचक रह गए थे उस के मातापिता. एक कड़वी सी हंसी चली आई थी उन के होंठों पर. कुछ देर हमारे चेहरों को देखते रहे थे वे दोनों. हैरान थे शायद कि मेरे पिता अपने कहे शब्दों पर टिके नहीं रह पाए थे. सब्र का बांध मेरे पिता टूट जाने से रोक नहीं पाए थे’, ‘आखिर बेटी पैदा होती है तो मांबाप सोचना शुरू करते हैं. आप ने क्या सोचा है?’ पुन: पूछा था मेरी मौसी ने.

‘हम अपने लड़कों का सौदा नहीं करते और न यह बता सकते हैं कि बेटी को क्याक्या देंगे. यह तो हमारा प्यार है जिसे हम सारी उम्र बेटी पर लुटाएंगे. अपने प्यार का खुलासा हम आप के सामने कैसे करें?’

‘बहुएं भी तब आप के घरों में ही जला कर मारी जाती हैं. न आप लोग खुल कर मांगते हैं न ही आप के मन की मंशा सामने आती है. हमारी बिरादरी में तो सब बातें पहले ही खोल ली जाती हैं. बेटी के बाप की हिम्मत होगी तो माथा जोड़े नहीं तो रास्ता नापे.’ मौसी ने फिर अपना अक्खड़पन दर्शाया था.

अवाक् रह गए थे उस के मातापिता. मेरे पिता कोशिश कर रहे थे सब संभालने की. किसी तरह खिसिया कर बोले थे, ‘बहनजी ने फोन पर बताया था न… 5 लाख तक आप खर्च…’

‘अपनी इच्छा से हम 50 लाख भी खर्च कर सकते हैं. माफ कीजिएगा, आप की मांग पर एक पैसा भी नहीं.’

शीशे सा टूट गया था वह रिश्ता जिस के पूरा होने पर मैं क्याक्या करूंगा, सब सोच रखा था. मेरे क्लीनिक में उस की कुरसी कहां होगी और मेरी कहां. कुछ नहीं कर पाया था मैं. पिता के आगे जबान खोल ही न पाया था.

शायद यह हमारी कल्पना से भी परे था कि वह लोग इतनी लंबीचौड़ी प्रक्रिया के बाद इनकार भी कर सकते हैं. हमारा व्यवहार इतना अशोभनीय था कि कम से कम उस का क्षोभ मुझे सदा रहा. अपनी मुंहफट मौसी का व्यवहार भी सालता रहता है मुझे. क्या जरूरत थी उन्हें ऐसा बोलने की.

उस के पिता कुछ देर चुप रहे. फिर बोले थे, ‘आप का एक ही बेटा है. अच्छा होगा आप अपनी बिरादरी में ही कहीं कोई योग्य रिश्ता देखें. मुझे नहीं लगता हमारी बच्ची आप के साथ निभा पाएगी. देखिए साहब, हम तो शुरू से ही आप से कह रहे थे कि आप के और हमारे रिवाजों में जमीनआसमान का अंतर है तब आप ने कहा था, आप को डाक्टर बहू चाहिए. और अब हम देख रहे हैं कि आप की नजर हमारी बेटी पर कम हमारी जेब पर ज्यादा है.

‘हमारी बिरादरी में लड़के वाला मुंह फाड़ कर मांगता नहीं है, लड़की वाला अपनी यथाशक्ति सदा ज्यादा ही करने का प्रयास करता है क्योंकि अपनी बच्ची के लिए कोई  कमी नहीं करता. शरम का एक परदा हमेशा लड़के वाले और लड़की वालों में रहता है. यह भी सच है, बहुएं जल कर मर जाती हैं. उन में भी दहेज के मसले इतने ज्यादा नहीं होते जितने दिखाने का आजकल फैशन हो गया है.’

मुझे आज भी अपनी मां का चेहरा याद है जो इस तरह मना करने पर उतर गया था. हालात इतनी सीधीसादी चाल चल रहे थे कि अचानक पलट जाने की किसी को आशंका न थी.

‘मुझे कोई मजबूरी तो है नहीं जो अपनी बच्ची इतनी दूर ब्याह कर सदा के लिए सूली पर चढ़ जाऊं. अच्छे लोगों की तलाश में हम इतनी दूर आए थे, वह भी बारबार आप लोगों के बुलाने पर वरना ऐसा भी नहीं है कि हमारी अपनी बिरादरी में लड़के नहीं हैं. क्षमा कीजिएगा हमें.’

लाख हाथपैर जोड़े थे तब मेरे पिता ने. कितना आश्वासन दिया था कि हम कभी दहेज के बारे में बात नहीं करेंगे लेकिन बात निकल गई थी हाथ से.

आज मैं जब सेमिनार में चला आया हूं तो कुछ सीखा कब? पूरा समय अपना ही कल और आज बांचता रहा हूं. 3 दिन में न जाने कितनी बार मेरा उस से आमनासामना हुआ लेकिन मेरी हिम्मत ही नहीं हुई उस से बात करने की.

तीसरा दिन आखिरी दिन था. उस ने मुझे फोन किया. कहा, समय हो तो साथ बैठ कर एक प्याला चाय पी लें.

उस के सामने बैठा तो ऐसा लगा  जैसे 7-8 साल पीछे लौट गया हूं जब पहली बार मिलने पर अपने पेशे के बारे में क्याक्या बातें की थीं हम ने.

‘‘कैसे हैं आप, डाक्टर सुधाकर?’’

आत्मविश्वास उस का आज भी वैसा ही है जिस से मैं प्रभावित हुए बिना रह न पाया था.

‘‘आप मुझ से बात करना चाहते हैं न?’’

उस के इस प्रश्न पर मैं अवाक् रह गया. मुझे तो याद नहीं मैं ने कोई एक भी प्रयास ऐसा किया था. कर ही नहीं पाया था न.

‘‘एक अच्छा डाक्टर वह होता है जो सामने वाले के हावभाव देख कर ही उस की दवा क्या होगी, उस का पता लगा ले. नजर भी तेज होनी चाहिए.’’

चुप रहा मैं. क्या पूछता.

‘‘आप बिना वजह अपनेआप को कुसूरवार क्यों मान रहे हैं, डाक्टर सुधाकर?’’ उस ने कहा, ‘‘नियम यह है कि बिना जरूरत इनसान को दवा न दी जाए. एक स्वस्थ प्राणी अगर दवा खा लेगा तो उसी दवा का मरीज हो जाएगा.’’

मैं ने गौर से उस का चेहरा देखा. चश्मे से पार उस की आंखों में आज भी वही पारदर्शिता है.

‘‘पुरानी बातें भूल जाइए, हम अच्छे दोस्त बन कर बात कर सकते हैं. मैं जानती हूं कि आप एक बेहद अच्छे इनसान हैं. क्या सोच रहे हैं आप? प्रैक्टिस कैसी है आप की? आप की पत्नी भी…’’

‘‘कुछ भी…कुछ भी अच्छा नहीं है मेरा,’’ बड़ी हिम्मत की मैं ने इतनी सी बात स्वीकार करने में. इस के बाद जो झिझक खुली तो शुरू से अंत तक सब कह सुनाया उसे.

‘‘मैं हर पल घुटता रहता हूं. ऐसा लगता है चारों तरफ बस, अंधेरा ही है.’’

‘‘आप की प्रकृति ही ऐसी है. आप जिस इनसान की ओर से सब से ज्यादा लापरवाह हैं वह आप खुद हैं. आप अपने परिवार को दुखी नहीं कर सकते, सब को सम्मान देना चाहते हैं लेकिन अपने आप को सम्मान नहीं देते.

‘‘8 साल पहले भी आप के जूते जगहजगह से उधड़े थे और आज भी. अपने कपड़ों का खयाल आप को तब भी नहीं था और आज भी नहीं है. क्या आप केवल पैसे कमाने की मशीन भर हैं? पहले मांबाप के लिए एक हुंडी और अब परिवार के लिए? क्या आप के लिए कोई नहीं सोचता, अपनी इच्छा का सम्मान कीजिए, डाक्टर सुधाकर. दबी इच्छाएं ही आप का दम हर पल घुटाती रहती हैं.

‘‘इतने साल पहले आप पिता या मौसी के सामने सही निर्णय न कर पाए, उस का भी यही अर्थ निकलता है कि आप के जीवन में आप से ज्यादा दखल आप के रिश्तेदारों का है. आप अपने लिए जी नहीं पाते इसीलिए घुटते हैं. अपने घर वालों को अपने मूल्य का एहसास कराएं. यह एक शाश्वत सत्य है कि बिना रोए मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती.’’

मुझ में काटो तो खून नहीं. क्या सचमुच मेरे जूते फटे हैं? क्या 8 साल पहले जब हम मिले थे तब भी मेरा व्यक्तित्व साफसुथरा नहीं था?

‘‘आप के अंदर एक अच्छा इनसान तब भी था और आज भी है. जो नहीं हो पाया उसे ले कर आप दुखी मत रहिए. भविष्य में क्या सुधार हो सकता है इस पर विचार कीजिए. पत्नी ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है तो अब आप क्या कर सकते हैं. उसी में सुख खोजने का प्रयास कीजिए. दोनों बेटों को अच्छा इनसान बनाइए.’’

‘‘उन में भी मां के ही संस्कार हैं.’’

‘‘कोशिश तो कीजिए, आप एक अच्छे डाक्टर हैं, मर्ज का इलाज तो अंतिम सांस तक करना चाहिए न.’’

‘‘मर्ज वहां नहीं, मर्ज कहीं और है. मर्ज हमारे रिवाजों में है, बिरादरी में है.’’

‘‘मैं ने कहा न कि जो नहीं हो पाया उस का अफसोस मत कीजिए. वह सब दोबारा न हो इस के लिए अपने बच्चों से शुरुआत कीजिए जिस की कोशिश आप के पिता चाह कर भी न कर पाए थे.’’

‘‘आप को मेरे पिता भी याद हैं?’’ हैरान रह गया मैं. मुझे याद है मेरे पिता ने तो इन से बात भी कोई ज्यादा नहीं की थी.

‘‘हां, मेरी याददाश्त काफी अच्छी है. वह बेचारे भी अंत तक डाक्टर बहू की चाह और बिरादरी को जवाबदेही कैसे देंगे, इन्हीं दो पाटों में पिसते नजर आ रहे थे. ऐसा नहीं होता तो वह मेरे पापा से क्षमा नहीं मांगते. वह भी बिरादरी की जंजीरों को तोड़ नहीं पाए थे.’’

‘‘आप सब समझ गई थीं तो अपने पिता को मनाया क्यों नहीं था.’’

हंस पड़ी थी वह. उस के सफेद मोतियों से दांत चमक उठे थे.

‘‘जो इनसान अपने अधिकार की रक्षा आज तक नहीं कर पाया वह मेरे मानसम्मान का क्या मान रख पाता? शक हो गया था मुझे. आप मेरे लिए योग्य वर नहीं थे.

‘‘रुपयापैसा आज भी मेरे लिए इतना महत्त्व नहीं रखता. मैं भी आप के योग्य नहीं थी. अलगअलग शैलियों के लोग एकसाथ खुश नहीं न रह सकते थे. भावनाओं को महत्त्व देने वालों का बैंक बैलेंस इतना नहीं होता जितना शायद आप को अच्छा लगता. बेमेल नाता निभ न पाता. बस, इसीलिए…’’

8 साल पहले का वह सारा प्रकरण किसी कथा की तरह मेरे सामने था.

‘‘संजोग में शायद ऐसा ही था. मैं ने कहा न, आप दोषी तब भी नहीं थे और आज भी नहीं हैं. बस, जरा सा अपना खयाल रखिए, अपने मन की कीजिए. सब अच्छा हो जाएगा.’’

डा. विजयकर के सेमिनार में मैं कितने प्रश्न ले कर आया था, कितने ही मरीजों के बारे में पूछना चाहता था लेकिन क्या पता था कि सब से बड़ा बीमार तो मैं खुद हूं जो कभी अपने अधिकार, अपनी इच्छा का सम्मान नहीं कर पाया…तभी मौसी की आवाज काट देता, पिता की इच्छा को नकार देता तो बनती बात कभी बिगड़ती नहीं. आज अनपढ़ अक्खड़ पत्नी के साथ निभानी न पड़ती.

पता नहीं कब वह उठ कर चली गई. सहसा होश आया कि मैं ने उस के बारे में कुछ पूछा ही नहीं. कैसा परिवार है उस का? उस के पति कैसे हैं? पर गले का मंगलसूत्र, कीमती घड़ी और कानों में दमकते हीरे उसे मुझ से इक्कीस ही दर्शाते हैं. आत्मविश्वास और दमकती सूरत बताती है कि वह बहुत सुखी है, बहुत खुश है. एक अच्छे इनसान की खोज में वह अपने मातापिता के साथ इतनी दूर आई थी न, मैं ही पत्थर निकला तो वह भी क्या करती.

कितना सब हाथ से निकल गया न. उठ पड़ा मैं. मन भारी भी था और हलका भी. भारी यह सोच कर कि मैं ने क्या खो दिया और हलका यह सोच कर कि अभी भी पूरा जीवन सामने पड़ा है. अपने बेटों का जीवन संवार कर शायद अपनी पीड़ा का निदान कर पाऊं.

Father’s day 2023: क्या आप पिता बनने वाले हैं

दृश्य1: दिल्ली मैट्रो रेल का एक कोच

यात्रियों से खचाखच भरे दिल्ली मैट्रो के एक कोच में एक आदमी चढ़ता है. उस के एक कंधे पर लंच बैग तो दूसरे कंधे पर लैपटौप बैग टंगा है. उस के हाथ में एक मोटी किताब भी है जिस पर लिखा है, ‘गर्भावस्था में पत्नी का कैसे रखें खयाल.’ उसे किताब पढ़ता देख कर बगल में खड़ा दूसरा आदमी पूछ ही लेता है, ‘‘कृपया बुरा न मानें मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या आप पिता बनने वाले हैं?’’ इस पर किताब वाले आदमी का जवाब होता है, ‘‘हां.’’

दृश्य2: फरीदाबाद स्थित एक अस्पताल

फरीदाबाद स्थित एक अस्पताल में जहां शिशु की देखभाल संबंधी ट्रेनिंग चल रही है, वहां कुछ पुरुष छोटे बच्चों के खिलौने थामे खड़े हैं, तो कोई बच्चे को सुलाने की प्रैक्टिस कर रहा है. कोईर् डाइपर बदलने की तैयारी में है, तो कुछ बच्चे को नहलाना तो कुछ उसे तौलिए में लपेटना सीख रहे हैं. कुछ डाक्टर पुरुषों को बच्चे के जन्म के बाद उस की देखरेख करने के टिप्स बता रहे हैं.

ये कुछ ऐसे दृश्य हैं जिन को देख कर महिलाएं भले ही आश्चर्यचकित हों पर आज पुरुषों द्वारा बच्चे को संभालने की ट्रेनिंग लेना और गर्र्भावस्था पर आधारित किताबें पढ़ना बदलती सोच को उजागर करता है. दरअसल, भारतीय समाज की कईर् कुरीतियों में से एक कुरीति यह भी है कि बच्चे को पैदा करने के बाद उस की देखरेख की और अन्य सारी जिम्मेदारियां महिलाओं के सिर पर ही मढ़ दी जाती हैं. पुरुषों का काम सिर्फ बच्चे की परवरिश के लिए आर्थिक सहयोग देने तक ही सिमट कर रह जाता है.

पति की जिम्मेदारी

एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस के गाइनेकोलौजिस्ट विभाग की एचओडी डा. अनीता कांत, जो ऐेसे दंपतियों की काउंसलिंग भी करती हैं और उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं, का कहना है, ‘‘देखिए, यह एक परंपरा बन चुकी है. और इसे बनाने वाले घर के बड़ेबुजुर्ग ही होते हैं. दरअसल, लड़कों को शुरू से ही इतना पैंपर किया जाता है कि उन्हें घरेलू कार्यों में कतई दिलचस्पी नहीं रहती. पिता बनने के बाद भी उन में उतनी परिपक्वता नहीं आ पाती जितनी कि महिलाओं में आती है. वे जीवन में होने वाले इस बदलाव को उतनी जिम्मेदारी के साथ महसूस नहीं कर पाते जितना एक महिला कर पाती है. पत्नी और बच्चे की देखभाल की बात आती है तो वे अपने कदम पीछे कर लेते हैं. इस में भी बड़ेबुजुर्गों खासतौर पर लड़के की मां का तर्क होता है कि वह खुद अपनी देखभाल नहीं कर सकता तो पत्नी या बच्चे की कैसे करेगा? जबकि यह सरासर गलत है. बच्चे को जन्म देना पति और पत्नी दोनों का आपसी निर्णय होता है. ऐसे में गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद पति की जिम्मेदारी बनती है कि वह हर कदम पर पत्नी को सहयोग दे. यह सहयोग केवल आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी हो, तो ज्यादा बेहतर है.

‘‘इतना ही नहीं घर के कामकाज में भी पति को पत्नी का हाथ बंटाना चाहिए. यह कह कर पीछे नहीं हटना चाहिए कि ये तो औरतों के काम हैं. अगर महिला कामकाजी है तो खासतौर पर पति को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि पत्नी को इस अवस्था में घर पर ज्यादा से ज्यादा आराम मिले.

‘‘गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई शारीरिक बदलाव आते हैं. इन बदलावों के कारण उन्हें कोई न कोई तकलीफ जरूर होती है. ऐसे में जब पत्नी यह कहे कि उस का फलां काम करने का मन नहीं है, तो उसे बहाना न समझें, क्योंकि गर्भावस्था में महिलाएं बहुत थकावट महसूस करने लगती हैं.

पतियों का रवैया

कुछ पुरुषों को बंधन में बंधना बिलकुल रास नहीं आता. शादी के बाद भी वे बैचलरहुड का ही मजा लेना चाहते हैं और कई पुरुष ऐसा करने में सफल भी रहते हैं. लेकिन पत्नी के गर्भधारण करने और बच्चे के जन्म के बाद वे खुद बंधन में बंधा महसूस करने लगते हैं. डाक्टर के पास पत्नी को नियमित चैकअप के लिए ले जाना या गर्भधारण से जुड़ी पत्नी की समस्या को सुनना उन्हें बोरिंग लगने लगता है. यही नहीं, कुछ पति गर्भावस्था के दौरान पत्नी के बढ़े वजन और बेडौल होते शरीर की वजह से भी पत्नी को नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं.

पत्नी को अपने साथ कहीं बाहर ले जाने में भी उन्हें शर्म आती है. पति के इस व्यवहार से पत्नी खुद को उपेक्षित महसूस करने लगती है. कई बार महिलाएं अपने शरीर और बढ़ते वजन को देख अवसाद में आ जाती हैं. जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए अवसाद की स्थिति में आना बहुत नुकसानदायक है.

भावनात्मक सपोर्ट जरूरी

बालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट की सीनियर कंसल्टैंट और गाइनेकोलौजिस्ट डा. साधना सिंघल कहती हैं, ‘‘प्रसव के बाद महिलाओं के वजन और शरीर दोनों को ठीक करने के उपाय हैं. बस, पतियों को यह समझने की जरूरत है कि उन की पत्नी उन्हें संतान देने के लिए गर्भवती हुई है. इस दौरान पत्नी के शरीर के आकारप्रकार पर ध्यान देने की जगह पति को उस की सेहत और उसे खुश रखने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यदि पत्नी किसी भी वजह से अवसाद में आती है तो इस का सीधा असर उस पर और होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है. इस के अलावा कई बार पति काम का बहाना बना कर चैकअप के लिए पत्नी के साथ नहीं जाते. ऐसा नहीं होना चाहिए. पति इस बात को समझे कि बच्चा सिर्फ पत्नी का ही नहीं है. जब पत्नी गर्भावस्था के दौरान होने वाली सारी पीड़ा सहती है, तो पति का भी फर्ज है कि वह अपनी पत्नी के लिए समय निकाले और उस की हर परेशानी से उबरने में मदद करे. चैकअप के लिए खासतौर पर डाक्टर के पास पत्नी के साथ जाए, क्योंकि डाक्टर मां और पिता दोनों की काउंसलिंग करती हैं. चैकअप के दौरान सिर्फ पत्नी को मैडिकल ट्रीटमैंट नहीं दिया जाता, बल्कि पति को भी मानसिक रूप से पिता बनने के लिए तैयार किया जाता है.

गर्भावस्था के दौरान एक पत्नी को पति का भावनात्मक सपोर्ट बेहद जरूरी होता है. विशेषज्ञ मानते हैं पति का यह सपोर्ट पत्नी को शारीरिक व मानसिक मजबूती देता है, जिस का अच्छा असर आने वाले शिशु पर भी पड़ता है.

पति भी सीखे सभी काम

इन सब के अलावा प्रसव को आसान बनाने के लिए गर्भवती को डाक्टर की सलाह से जो व्यायाम वगैरह करने होते हैं, उन में पति को पत्नी का पूरा सहयोग करना चाहिए.

बच्चे की देखभाल के लिए मैडिकल संस्थाओं द्वारा आयोजित विभिन्न ट्रेनिंग कार्यक्रमों में भी पत्नी के साथ हिस्सा लेना चाहिए. इन ट्रेनिंग कार्यक्रमों में कई जानकारियां ऐसी होती हैं, जो खासतौर पर पिता के लिए ही होती हैं. जैसे पिता को बच्चे को गोद में लेना, मां की अनुपस्थिति में बच्चे को फीड कराना, वैक्सिनेशन के लिए बच्चे को हौस्पिटल ले जाना आदि.

इन ट्रेनिंग कार्यक्रमों में सिर्फ इमोशनल थेरैपी ही नहीं, टच थेरैपी के फायदे भी बताए जाते हैं. दरअसल, गर्भावस्था में गर्भवती महिला को न सिर्फ उचित खानपान की जरूरत पड़ती है, उसे समयसमय पर हलकी मालिश की भी जरूरत पड़ती है. इन ट्रेनिंग कैंपों में पतियों को यह बताया जाता है कि वे कैसे अपनी गर्भवती पत्नी की हलकी मालिश कर यानी टच थेरैपी से राहत पहुंचा सकते हैं.

डा. साधना कहती हैं, ‘‘बच्चे के  सभी काम मां ही करे, यह किसी किताब में नहीं लिखा है. बच्चे से मां की जितनी बौंडिंग होनी चाहिए उतनी ही पिता की भी. इसलिए पिता को बच्चे की देखभाल के वे सारे काम आने चाहिए, जो मां को आते हैं. जिस तरह पिता की गैरमौजूदगी में मां बच्चे को संभाल लेती है, उसी तरह पिता को भी मां की गैरमौजूदगी में बच्चे को संभालना आना चाहिए. खासतौर पर वर्किंग महिलाओं को बच्चों की परवरिश में यदि पति का सहयोग मिल जाए तो वे दफ्तर और घर दोनों के कार्यों को आसानी से संभाल सकती हैं.’’

कामकाजी पतिपत्नी के लिए गर्भावस्था का समय जहां आनंद और कुतूहल का समय होता है, वहीं चुनौतियां भी कम नहीं होतीं. ऐसे समय में पति को पत्नी के घर व औफिस के कामकाज पर भी ध्यान रखना चाहिए. एक समय के बाद डाक्टर सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट से न जानेआने, ज्यादा न चलनेफिरने, भारी सामान न उठाने, ज्यादा काम का बोझ न उठाने की सलाह देते हैं. ऐसे समय में यदि पति पत्नी को औफिस ले जाए और ले आए, घर में केयर करे तो यह जच्चाबच्चा दोनों के स्वास्थ्य के लिए सही होता है.

पिता बनना है तो बदलें लाइफस्टाइल

बच्चा पैदा करने का प्लान करने से पहले पतियों को यह तय कर लेना चाहिए कि उन्हें सब से पहले अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव लाना होगा. इस बदलाव की शुरुआत होगी किसी भी तरह के नशे से खुद को दूर रखने से. दरअसल, गर्भवती महिला पर शराब, सिगरेट, पानमसाला आदि चीजों का खराब प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए यदि इन में से कोई भी लत पति में है तो उसे त्यागना होगा. साथ ही देर से घर आने और ज्यादा वक्त दोस्तों के साथ बिताने की आदत को भी सुधारना होगा, क्योंकि इस वक्त पत्नी को आप की सब से ज्यादा जरूरत है.

डा. साधना कहती हैं, ‘‘गर्भवती महिला को अकेलेपन से घबराहट होती है. इस अवस्था में उसे हमेशा किसी का साथ चाहिए, जिसे वह अपनी भावनाएं और तकलीफें बता सके. ऐसे में पति से बेहतर उस के लिए और कोई नहीं हो सकता.’’

समझें क्या चाहती है पत्नी

बच्चे के वजन और शरीर में आने वाले परिवर्तन के कारण इस दौरान पत्नी चिड़चिड़ी हो जाती है. ऐसी स्थिति में पति प्रसव से पहले पत्नी को हर तरह से सपोर्ट करे ताकि उसे गुस्सा या झल्लाहट न आए. पति के स्नेह और प्यार से वह बच्चे को आसानी से जन्म दे पाएगी.

डा. अनीता बताती हैं, ‘‘गर्भावस्था के दौरान हारमोन में परिवर्तन होते हैं और मानसिक अवस्था में भी बदलाव आता है. ऐसे में पति की थोड़ी सी भी मदद पत्नी के लिए बड़ा सहारा बन सकती है. पति का प्यार, पत्नी औैर इस दुनिया में आने वाले बच्चे के लिए दवा का काम करेगा.’’

गर्भावस्था के दौरान पत्नी का पलपल मूड बदलता रहता है. ऐसे में पति कतई गुस्सा न करे वरन पत्नी की दिक्कतों को समझने की कोशिश करे. उस का बढ़ा पेट कई कार्यों को करने में दिक्कत पैदा करता है. कुल मिला कर बैस्ट हसबैंड और बैस्ट फादर बनना है तो पत्नी की गर्भावस्था के दौरान वह धैर्य रखे और हर स्थिति में पत्नी का साथ निभाए.

Skincare Tips: फेशियल लेने के बाद, कभी न करें ये 4 चीजें

फेशियल एक ऐसा स्कीन केयर ट्रीटमेंट है जिसकी मदद से त्वाचा चमकदार और मुहांसो का उपचार किया जा सकता है. फेशियल में स्टीम, एक्सफोलिएशन, एक्सट्रेक्शन, क्रीम, लॉशन, फेशियल मस्क और मसाज के स्टेप्स होते है. फेशियल की मदद से त्वाचा की सफाई, एक्सफोलिएशन और त्वाचा को पोषण प्राप्त होने के साथ-साथ मुहांसो और आँखो के नीचे काले-घेरों को दूर करता है.

फेशियल लेने के बाद कई सारी सावधानियां बरतने पड़ती है.

स्कीन एक्सपर्ट अक्सर सलाह देते है फेशियल कराने के बाद, धूप में नहीं जाना चाहिए. आइए आपको बताते है फेशियल लेने के बाद, कभी न करें ये 4 चीजें.

1.चेहरे को बिल्कुल न छुए

फेशियल लेने के बाद अपने फेस को छुए नहीं, ऐसा करने से त्वाचा में बैक्टेरिया उत्पन्न हो जाते है. जिसकी वजह से मुहांसे निकालने लगेंग. फेशियल कराने के बाद फेस को छुने से कई सारे पींपल, पोर्स, ब्रकेआउट और ऐलर्जी उत्पन्न हो जाती है.

2.मेकअप नजरअंदाज करें

फेशियल लेने के बाद त्वाचा बहुत ही सेंसिटिव हो जाती है. मेकअप करने से ब्रकेआउट, रेडनेस और पींपल्स होने लगते है. मेकअप प्रोडक्टस में केमिकल होते है जिसके कारण कई सारी स्कीन प्रॉबल होने लगते है.

3.धूप में न निकले

फेशियल के बाद, त्वचा संवेदनशील और नाजुक हो जाती है। जिसकी वजह से हानिकारक यूवी किरणें त्वचा में गहराई तक प्रवेश कर सकती हैं,जिससे चेहरे की लालिमा और एलर्जी हो सकती है।  सुई का उपयोग फेशियल कराने से पहले सुई का इस्तेमाल करना बाद में करने से बेहतर है। जब आप फेशियल करवाती हैं, तो त्वचा कुछ दिनों के लिए संवेदनशील और नाजुक हो जाती है। संवेदनशील त्वचा पर केमिकल और सुइयों का उपयोग करने से त्वचा को नुकसान हो सकता है.

4. सुई का उपयोग

फेशियल कराने से पहले सुई का इस्तेमाल करना बाद में करने से बेहतर है। जब आप फेशियल करवाती हैं, तो त्वचा कुछ दिनों के लिए संवेदनशील और नाजुक हो जाती है। संवेदनशील त्वचा पर केमिकल और सुइयों का उपयोग करने से त्वचा को नुकसान हो सकता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें