अनुपमा को गुरुकुल की जिम्मेदारी सौंपेंगी गुरु मां, तो नकुल बनेगा दुश्मन

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ लगातर नंबर वन पर बना हुआ है. प्रतिदिन अनुपमा में दिलचस्प मोड़ देखने को मिलते है. शो के मेकर्स आए दिन नए-नए ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आते रहते है. शो में समर और डिंपल की शादी हो गई है. अब शो में शुरू होगी अनुपमा की लाइफ.

गुरु मां अनुपमा को सौंपेंगी बड़ी जिम्मेदारी

अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में दर्शकों को इस बार देखने को मिलेगा कि समर और डिंपल की शादी में गुरु मां अनुपमा को तोहफा देंगी. गुरु मां अनुपमा को अमेरिका की ब्रांच का उत्तारिधिकारी बनाएंगी. वह सबके सामने कहेंगी कि अनुपमा में हिम्मत है, मेहनती है और सबको साथ लेकर चलती है, इसलिए मैं अनुपमा को अमेरिका में मौजूद गुरुकूल की उत्तराधिकारी बनाना चाहती हूं. इस बात से सभी लोग खुश नजर आते है लेकिन नकुल चिढ़ जाता है.

 

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नाकुल बनेगा अनुपमा का दुश्मन

अनुपमा शो में हर बार कोई न कोई ट्विस्ट आता ही रहता है. इसके आगे अनुपमा मे देखने को मिलेगा कि नकुल गुरु मां के फैसले से खुश नजर नहीं आता. वह मन ही मन में कहता है कि गुरुकूल को बढ़ाने में मैंने अम्मा की मदद की. बचपन से उनकी सेवा की, लेकिन उन्होंने चार दिन पहले आई अनुपमा को अपना उत्तराधिकारी बना दिया. वह गुस्से में अपने आंसू पोछता है. अब माना जा रहा है कि शो में अनुपमा का एक और दुश्मन बन गया है.

‘अनुपमा’ शो में कुमार सानू की एंट्री

शो का एंटरटेनमेंट डोज यहीं खत्म नहीं होता. शो में अभी और तड़का लगेगा. दरअसल, ‘अनुपमा’ शो में कुमार सानू की एंट्री होगी. जी हां, सही सुना आपने शो में कुमार सानू की एंट्री होगी. शो में कुमार सानु के गाने पर अनुज और अनुपमा साथ डांस करेंगे. यह देख माया जल-भुनकर राख हो जाएगी.

मेरे बेटे को जुवेनाइल आर्थ्राइटिस की समस्या है, मुझे जानना हैं इस के उपचार के कौनकौन से विकल्प हैं?

सवाल

मेरे बेटे की उम्र 28 साल है. उसे जुवेनाइल आर्थ्राइटिस की समस्या है. अभी से उस के घुटनों में बहुत दर्द रहने लगा है. मैं जानना चाहती हूं कि इस के उपचार के कौनकौन से विकल्प हैं?

जवाब

उपचार के विकल्प बीमारी के स्तर के आधार पर चुने जाते हैं. कई प्रकार के आर्थ्राइटिस में फिजियोथेरैपी बहुत कारगर होती है. इस से अंगों की कार्यप्रणाली सुधरती है और जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां शक्तिशाली बनती हैं. अगर आर्थ्राइटिस शुरुआती चरण में है तो उसे फिजियोथेरैपी और जीवनशैली में परिवर्तन ला कर नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन जब दूसरे उपचारों से आराम नहीं मिलता और सामान्य जीवन जीना संभव नहीं होता तब नी रिप्लेसमैंट यानी घुटना बदलवाना ही अंतिम विकल्प बचता है.

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सवाल

मैं शिक्षिका हूं. पिछले कुछ समय से मेरी कमर में बहुत दर्द रहने लगा है. मेरा वजन औसत से 20 किलोग्राम अधिक है. मैं जानना चाहती हूं कि मोटापे और कमर दर्द में क्या संबंध है?

 जवाब

मोटापा के कारण शरीर के मध्य भाग में अतिरिक्त भार होना पेल्विस को आगे की ओर खींचता है और कमर के निचले हिस्से पर दबाव डालता है. इस अतिरिक्त भार को संभालने के लिए कमर आगे की ओर थक जाती है. वजन अधिक बढ़ने से रीढ़ की हड्डी के छोटेछोटे जोड़ों में टूटफूट ज्यादा होती है और डिस्क भी जल्दी खराब हो जाती है. सब से पहले आप अपना वजन कम करें. अगर फिर भी कमर दर्द से छुटकारा न मिले तो डाक्टर को दिखाएं.

 -डा. रमणीक महाजन

सीनियर डाइरैक्टर ऐंड हेडजौइंट रिकंस्ट्रक्शन यूनिट (नी ऐंड हिप)मैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटलसाकेतनई दिल्ली.

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मिंट पनीर से लेकर चुकन्दरी पनीर तक, घर पर ट्राय करें ये 4 नए तरह के पनीर.

शादी, पार्टी या अन्य किसी भी अवसर की ख़ुशी को सेलिब्रेट करना हो तो पनीर की रेसिपीज का नाम सबसे पहले आता है. जिस प्रकार आलू सभी सब्जियों में रच बस जाता है उसी प्रकार पनीर भी सब्जियां, परांठा, और मिठाइयां सभी में समाहित हो जाता है. पनीर को फारसी शब्द पेनिर से लिया गया है. पनीर बनाने के लिए दूध को फाड़कर साफ सूती कपड़े में बांधकर किसी भारी बर्तन से दबा दिया जाता है. 20 से 25 मिनट में पनीर अपनी शेप ले लेता है.

पनीर में केल्शियम, प्रोटीन, तथा अनेकों विटामिन्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसलिए अपनी रोजमर्रा की डाईट में इसे अवश्य शामिल करना चाहिए. यूं तो आज बाजार में अनेकों ब्रांड के पनीर उपलब्ध हैं परन्तु घर पर बनाया गया पनीर जहां बाजार से काफी सस्ता तो पड़ता ही है साथ ही हाईजिनिक भी रहता है. आज हम आपको घर पर ही 3 प्रकार के पनीर बनाने का बहुत आसान तरीका बता रहे हैं जिससे आप आसानी से घर पर पनीर बना सकतीं हैं तो आइये देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

1.प्लेन पनीर

कितने लोगों के लिए  –  8

बनने में लगने वाला समय –  20 मिनट

मील टाईप   –   वेज

सामग्री     

  1.  1 लीटर फुल क्रीम दूध                       
  2.  1 टेबलस्पून सफेद सिरका                       
  3. 1 टेबलस्पून पानी       

विधि

एक भगौने या चौड़े मुंह के बर्तन में 1 टीस्पून पानी डालकर दूध डाल दें. वेनेगर और पानी को एक कटोरी में मिला लें. जब दूध उबलकर भगौने की सतह पर आने लगे तो गैस बंद कर दें. अब इसमें लगातार चलाते हुए वेनेगर और पानी डालें 1-2 मिनट में ही दूध धीरे धीरे फटने लगेगा और दूध और पानी एकदम अलग दिखने लगेंगे, अब एक चलनी पर सूती कपड़ा रखें और फटे दूध को डाल दें, ऊपर से ठंडा पानी डालकर हाथ से दबाकर अतिरिक्त पानी निकाल दें. अब सूती कपड़े में गांठ लगाकर किसी भारी बर्तन या मार्वल के चकले से दबा दें. 20 से 25 मिनट बाद सूती कपड़े से निकालकर मनचाहे आकार में काटकर मनचाही डिश में प्रयोग करें.

2. मिंट पनीर

1 लीटर दूध से मिंट पनीर बनाने के लिए आप 1 टीस्पून पोदीने की पत्तियों को एकदम बारीक काट लें और सिरका डालने से पहले ही दूध में मिला दें और फिर दूध के फट जाने पर ऊपर के प्रोसेस से ही पनीर तैयार करें.

3. चुकन्दरी पनीर

चुकन्दरी पनीर बनाने के लिए चुकन्दर के एक छोटे से टुकड़े को बारीक किसनी से किस लें और दूध में उबाल आने के बाद डाल दें.  इसके बाद धीरे धीरे चलाते हुए पानी मिला सिरका डालें. फट जाने पर सूती कपड़े में बांधकर पनीर बनाएं.

4. पनीर मसाला

पनीर मसाला बनाने के लिए 1 लीटर दूध में वेनेगर डालने से पहले 1/4 चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 1/4 टीस्पून नमक और 1/2 टीस्पून बारीक कटा हरा धनिया डालकर मसाला पनीर बनाएं.

ध्यान रखने योग्य टिप्स

  • दूध को डालने से पूर्व भगौने में 1 टेबलस्पून पानी डाल दें फिर दूध डालें इससे दूध तले में चिपकेगा नहीं.
  • पनीर बनाने के लिए सदैव फुल क्रीम दूध का ही प्रयोग करें तभी दूध में से पनीर की मात्रा अधिक निकल सकेगी.
  • फटे दूध को छानने के लिए सदैव सूती कपड़े का ही प्रयोग करें क्योंकि सिंथेटिक या अन्य किसी फेब्रिक में से पानी अच्छी तरह नहीं निकल पाता.
  • दूध को फाड़ने के लिए आप सफेद सिरके के स्थान पर खट्टे दही, नीबू का रस, एपल साइडर वेनेगर का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  • फटे दूध को कपड़े में बांधकर बहुत देर तक न रखें अन्यथा पनीर का मोइश्चर निकल जाता है और पनीर सख्त हो जाता है.
  • पनीर को लम्बे समय तक चलाने के लिए पनीर को एक ढक्कनदार डिब्बे में रखकर इतना पानी डालें कि पनीर पूरा डूब जाए. अब इसे फ्रिज में रखकर सप्ताह भर तक प्रयोग किया जा सकता है.
  • पनीर को तेल में तलने से इसके पौष्टिक तत्व समाप्त हो जाते हैं इसलिए जहां तक सम्भव हो इसे बिना तले ही प्रयोग करना चाहिए.

जातिधर्म का मजाक लाए रिश्ते में खटास

अपने समय के लोकप्रिय और विवादित कहानीकार सआदत हसन मंटो की कहानी ‘दो कौमें’ में दिखाया गया है कि मुख्तार जोकि मुसलिम परिवार का लड़का है एक हिंदू लड़की शारदा के प्यार में पड़ जाता है. दोनों शादी करना चाहते हैं, लेकिन धर्म अलगअलग होने से वे कतरा रहे हैं. एक दिन मुख्तार इस प्रौब्लम को सौल्व कर लेता है और शारदा से अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहता है कि अब हमारी शादी हो सकती है. मैं ने अपने घर वालों को मना लिया है. बस तुम अपना धर्म बदल कर मुसलमान बन जाओ.

यह सुन कर शारदा हैरान हो जाती है और बदले में उसे ही अपना धर्म बदलने को कहती है. मुख्तार अपना धर्म बदलने से इनकार कर देता है. यह सुनते ही शारदा उसे वहां से चले जाने की बात कहती है. इस तरह धर्म ने 2 प्रेमियों को हमेशाहमेशा के लिए जुदा कर दिया.

न सिर्फ धर्म बल्कि जाति भी 2 प्यार करने वालों को अलग करने का ही काम करती आई है. लेकिन गलती इस में उन लोगों की भी है जो इसे ले कर मजाक उड़ाते हैं. सोशल मीडिया पर पढ़ कर आने वाले अकसर इन छोटी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं. वे यह नहीं देखते कि 50% आरक्षण तो ऊंची जातियों के पास है ही. उन्हें पिछड़े वर्ग का 21% या अनुसूचित जातियों के 15% आरक्षण से चिढ़ इतनी होने लगती है कि वह व्यक्तिगत संबंधों में आड़े आ जाती है.

संविधान के अनुच्छेद 16(4) में पिछड़े वर्ग के नागरिकों को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. इस के तहत अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया गया है.

दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा दे कर आरक्षण इसीलिए दिया गया था क्योंकि वे हिंदू समाज में व्याप्त जाति प्रथा के चलते सदियों से भेदभाव का सामना कर रहे थे. रिजर्वेशन देने का उद्देश्य उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना था.

प्यार धर्म, जाति से परे हैं. न यह धर्म देखता है और न ही जाति. यह तो केवल आपसी जुड़ाव देखता है जो कहीं भी, कभी भी किसी से भी हो सकता है. इस पर किसी का कोई बस नहीं है. इस की कई मिसालें हमें बौलीवुड में देखने को मिलती हैं जैसे शाहरुख खान और उन की वाइफ गौरी, सैफ अली खान और करीना कपूर, रितेश देशमुख और जेनेलिया डिसूजा, अरशद वारसी और मारिया गोरेट्टी आदि.

कड़वी सचाई

मगर यह भी कड़वी सचाई है कि जब रिलेशनशिप में धर्म, जाति संबंधी कोई मजाक आ जाता है तो यह मतभेद पैदा कर देता है और कभीकभी तो यह रिश्ता भी खत्म कर देता है इसलिए इसे हमेशा रिलेशनशिप से दूर ही रखना चाहिए.

बौलीवुड फिल्म ‘आरक्षण’ हमारे देश के आरक्षण मुद्दे को उठाती है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे वंचित बच्चों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सार्वजनिक रूप से समर्थन करने के बाद एक सम्मानित कालेज प्रिंसिपल को बरखास्त कर दिया जाता है. वह एक स्थानीय गौशाला में वंचित बच्चों के छोटे समूहों को पढ़ा कर वापस लड़ता है. इस से हम सम?ा सकते हैं कि हमारे देश में किस तरह धर्म और जाति अपने पैर पसारे हुए हैं. 2014 में 70 हजार से अधिक लोगों के सर्वेक्षण में केवल 5% शहरी लोगों ने कहा कि उन के परिवार में किसी ने अपने धर्म के बाहर विवाह किया.

शाहिद शेख बताते हैं कि उन की एक हिंदू गर्लफ्रैंड अदिति (बदला हुआ नाम) थी. वे दोनों 3 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में भी रहे. वे बताते हैं कि जब कभी उन की गर्लफ्रैंड के दोस्त घर आते तो वह उन के साथ मिल कर उस के धर्म का मजाक उड़ाते हुए कहते कि ये लोग तो अपनी चचेरी बहन को भी नहीं छोड़ते. वे कहते हैं कि हां. हमारे धर्म में ऐसा होता है लेकिन बारबार ऐसे हमारे धर्म को टारगेट करना सही नहीं है.

तो प्यार हो जाएगा कम

आसिफ खान अपनी राय देते हुए कहते हैं कि धर्म और जाति काफी सैंसिटिव टौपिक है और इसे ले कर कभी कोई मस्ती, मजाक नहीं करना चाहिए और प्यार में तो बिलकुल भी नहीं. ऐसा करने से आप और आप के पार्टनर के बीच दूरियां आ सकती हैं और आप अपने प्यार को हमेशाहमेशा के लिए खो भी सकते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि आप कभी भी अपने पार्टनर से उस के धर्म, जाति से रिलेटेड कोई मजाक न करें.

किसी भी रिश्ते में सम्मान कितना जरूरी है इसे सम?ाने के लिए जूही की कहानी जाननी बहुत जरूरी है. जूही मुसलिम है और उन्होंने हिंदू राजपूत लड़के से शादी की है. वे कहती हैं कि कामयाब शादी के लिए धर्म और जाति से ज्यादा प्यार और सम्मान महत्त्वपूर्ण है. जूही कहती हैं कि उन की शादी को 9 साल बीत गए हैं. इन वर्षों में हम ने एकदूसरे को सम्मान और प्यार दिया. मैं अपने पति के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हूं और मेरे पति ईद के दिनों में रोजा रखते हैं. हम ईद और दीवाली दोनों सैलिब्रेट करते हैं.

मजाक में भी नहीं कहें

27 वर्षीय मंशा हरि जब निधि की इंगेजमैंट में ब्लू कलर का गाउन पहन कर आई तो उसे देख कर उस का बौयफ्रैंड शोभित मिश्रा बोला कि तुम दलित हो क्या जो हमेशा ब्लू कलर ही पहनोगी? तुम्हारे पास क्या कोई और कलर नहीं है? उस का ऐसा कहना मंशा को चुभ गया. मंशा के पूछने पर कि आखिर उस ने ऐसा क्यों कहा तो शोभित का कहना था कि उस ने ऐसा कुछ सोच कर नहीं कहा, बस मजाकमजाक में कह दिया.

मगर उस के मुंह से इतनी बड़ी बात निकली ही क्यों? इस का जवाब है हमारे समाज की व्यवस्था जिस ने लोगों को जातपात और धर्म में बांटा हुआ है. हमारे देश में 3 हजार जातियां और 25 हजार उपजातियां हैं. यह समाज जिस ने बताया है कि लोग हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म में बंटे हैं, इसी तरह इस ने यह भी बताया है कि छोटी जाति वालों को दलित समुदाय कहते हैं. एक ऐसा रिश्ता जो प्यारमुहब्ब्त का है जिस में धर्म, जाति माने नहीं रखते वहां इस तरह का मजाक क्यों? जो किसी के सैंटीमैंट को हर्ट करे ऐसे मजाक का रिलेशनशिप से कोई नाता नहीं है.

2011 की जनगणना के अनुसार, सिर्फ 5.8% भारतीय लोगों ने इंटर कास्ट मैरिज की थी. वहीं अगर भारत मानव विकास सर्वेक्षण की माने तो सिर्फ 5% भारतीयों ने इंटरकास्ट मैरिज की.

सम्मान क्यों है जरूरी

धीरज मोहर कहते हैं कि उन की एक गर्लफ्रैंड थी जिस की जाति ब्राह्मण थी. वे बताते हैं कि जब कभी उन के बीच झगड़ा होता था तो वह उन की जाति को नीचा दिखाने वाली बातें कहती थी. यह सब सुन कर उन्हें बहुत बुरा लगता था. 1-2 बार तो उन्होंने इसे इग्नोर किया, लेकिन जब यह ज्यादा होने लगा तो उन्होंने अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रेकअप कर लिया. वे कहते हैं कि जब आप एक कपल होते हैं तो आप को अपने पार्टनर की जाति या धर्म का सम्मान करना चाहिए न कि उस को नीचा दिखाना चाहिए.

2005-06 के नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के आंकड़े के मुताबिक भारत में होने वाली कुल शादियों में सिर्फ 10 फीसदी शादियां ही इंटरकास्ट होती हैं. वहीं अंतरजातीय विवाह में नौर्थईस्ट के राज्य ज्यादा आगे हैं. मसलन मिजोरम में सब से ज्यादा इंटरकास्ट मैरिज होती हैं. मिजोरम की 87 फीसदी आबादी क्रिश्चन है. मिजोरम के बाद अंतरजातीय विवाह करने वाले राज्यों में मेघालय और सिक्किम का नाम आता है.

हमारे देश में इंटरकास्ट मैरिज इतना बड़ा मुद्दा है कि लोग अपने घर की इज्जत के नाम पर औनर किलिंग भी करते हैं. 2014 में दिल्ली में हुआ भावना यादव मर्डर केस इस का एक उदाहरण है. भावना ने अलग जाति में शादी कर ली. इस से नाराज उस की खुद की फैमिली ने उस का मर्डर कर दिया. इतना ही नहीं बौलीवुड में कई फिल्में हैं जो ओनर किलिंग पर बनी हैं जैसे ‘सैराट’ औैर ‘एनएच10.’ एनसीआरबी के अनुसार 2016 में 77 मर्डर के मामले ओनर किलिंग के मकसद के साथ रिपोर्ट किए गए थे.

रिश्ता निभाएं दिल से

महेश यादव अपना ऐक्सपीरियंस बताते हुए कहते हैं कि जब कभी भी वे डेट पर जाते हैं तो उन की डेट पार्टनर उन की जाति को ले कर मजाक करते हुए कहती है कि तुम लोगों को तो ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती होगी. तुम लोगों की तो सीटें आरक्षित होती हैं. यह सब सुन कर उन्हें काफी बुरा लगा और वह अपनी डेट बीच में ही छोड़ कर चले गए.

जब 2 लोग एक कपल के रूप में रिलेशनशिप में आते हैं तो वे एकदूसरे के साथ अपनी हर चीज ऐंजौय करते हैं, एकदूसरे को कंपनी देते हैं, एकदूसरे की केयर करते हैं. ऐसे में उन्हें अपने पार्टनर के धर्म, जाति का पूरा सम्मान करना चाहिए. उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि कभी मजाक में भी उन के धर्म या जाति पर कोई कमैंट न किया जाए.

मेघमल्हार: भाग 2-अभय की शादीशुदा जिंदगी में किसने मचाई खलबली

हमारे संबंधों के बीच अनजाने ही अनचाही दूरियां व्याप्त होती जा रही थीं. मैं उस से विरक्त नहीं होना चाहता था, परंतु शायद इन दूरियों और न मिल पाने की मजबूरियों की वजह से मेघा मुझ से विरक्त होती जा रही थी.  अब वह मेरे फोनकौल्स अटैंड नहीं करती थी, अकसर काट देती थी. कभी अटैंड करती तो उस की आवाज में बेरुखी तो नहीं, परंतु मधुरता भी नहीं होती. पूछने पर बताती, ‘‘फाइनल ऐग्जाम्स सिर पर हैं, पढ़ाई में व्यस्त रहती हूं, टैंशन रहती है.’’

उस का यह तर्क मेरी समझ से परे था. परीक्षाएं तो पहले भी आई थीं परंतु न तो कभी वह व्यस्त रहती थी, न टैंशन में. मैं जानता था, वह झूठ बोल रही थी. इस का कारण यह था कि बहुत बार जब मैं फोन करता तो उस का फोन व्यस्त होता. स्पष्ट था कि वह पढ़ाई में नहीं किसी से बातों में व्यस्त रहती थी, परंतु किस से…? यह पता करना मेरे लिए आसान न था. वह कालेज में पढ़ती थी. किसी भी लड़के से उसे प्यार हो सकता था. यह नामुमकिन नहीं था.

मैंस्वयं तनावग्रस्त हो गया. मेरी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ गया. औफिस के काम में मन न लगता. पत्नी द्वारा बताए गए कार्य भूल जाता.  ऐसी तनावग्रस्त जिंदगी जीने का कोई मकसद नहीं था. मुझे कोई न कोई फैसला लेना ही था. बहुत दिनों से मेघा से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी. हम आपस में तय कर के ही मिला करते थे, परंतु इस बार मैं ने अचानक उस के घर जाने का निर्णय लिया.

एक शाम औफिस से मैं सीधा मेघा के कमरे में पहुंचा, 2 मंजिल का साधारण मकान था. उसी की ऊपरी मंजिल के एक कोने में वह रहती थी. जब मैं उस के मकान में पहुंचा तो वह कमरे में नहीं थी.

मैं उस के कमरे के दरवाजे पर पड़े ताले को कुछ देर तक घूर कर देखता रहा, जैसे वह मेरे और मेघा के बीच में दीवार बन कर खड़ा हो. दीवार ही तो हमारे बीच खिंच गई थी. वह दीवार इतनी ऊंची और मजबूत थी कि हम न तो उसे पार कर के एकदूसरे की तरफ जा सकते थे, न तोड़ कर.  बुझे मन से मैं सीढि़यां उतर कर गेट की तरफ बढ़ रहा था कि मकानमालिक मनदीप सिंह अचानक अपने ड्राइंगरूम से बाहर निकले और तपाक से बोले, ‘‘अभयजी, आइए, कहां लौटे जा रहे हैं? बड़े दिन बाद आए? सब ठीक तो है?’’

जबरदस्ती की मुसकान अपने चेहरे पर ला कर मैं ने कहा, ‘‘हां मनदीपजी, सब ठीक है. आप कैसे हैं?’’

‘‘मैं तो चंगा हूं जी, आप अपनी सुनाइए. मेघा से मिलने आए थे?’’ उन्होंने उत्साह से कहा, परंतु मेरे मन में खुशियों के दीप नहीं खिल सके.

‘‘हां,’’ मैं ने भारी आवाज में कहा, ‘‘कमरे में है नहीं,’’ मैं ने इस तरह कहा, जैसे मैं जानना चाहता था कि वह कहां गई है.

‘‘आइए, अंदर बैठते हैं,’’ वे मेरा हाथ पकड़ कर अंदर ले गए. मुझे सोफे पर बिठा कर खुद दीवान पर बैठ गए और जोर से आवाज दे कर बोले, ‘‘सुनती हो जी, जरा कुछ ठंडागरम लाओ. अपने अभयजी आए हुए हैं.’’

‘‘लाती हूं,’’ अंदर से उन की पत्नी की आवाज आई. मैं चुप बैठा रहा. मनदीप ने ही बात शुरू की, ‘‘मैं तो आप को फोन करने ही वाला था,’’ वे जैसे कोई रहस्य की बात बताने जा रहे थे, ‘‘अच्छा हुआ आप खुद ही आ गए. आप बुरा मत मानना. आप मेघा के लोकल गार्जियन हैं. जरा उस पर नजर रखिए. उस के लक्षण अच्छे नहीं दिख रहे.’’

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’ मेरे मुख से अचानक निकल गया.

‘‘वही बताने जा रहा हूं. आजकल उस का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा. शायद प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई है.’’

‘‘क्या?’’ मुझे विश्वास नहीं हुआ. मेघा का मेरे प्रति जिस प्रकार का समर्पण था, उस से नहीं लगता था कि वह देहसुख की इतनी भूखी थी कि मुझे छोड़ कर किसी और से नाता जोड़ ले, परंतु लड़कियों के स्वभाव का कोई ठिकाना नहीं होता. क्या पता कब उन्हें कौन अच्छा लगने लगे?

‘‘हां जी,’’ मनदीप ने आगे बताया, ‘‘एक लड़का रोज आता है. उसी के साथ जाती है और देर रात को उसी के साथ वापस आती है. छुट्टी वाले दिन तो लड़का उस के कमरे में ही सारा दिन पड़ा रहता है. मैं ने 1-2 बार टोका, तो कहने लगी, उस का क्लासमेट है और पढ़ाई में उस की मदद करने के लिए आता है, परंतु भाईसाहब मैं ने दुनिया देखी है. उड़ती चिडि़या देख कर बता सकता हूं कि कब अंडा देगी. अकेले कमरे में घंटों बैठ कर एक जवान लड़का और लड़की केवल पढ़ाई नहीं कर सकते.’’

मेरे दिमाग में एक धमाका हुआ. लगा कि दिमाग की छत उड़ गई है. कई पल तक सांसें असंयमित रहीं और मैं गहरीगहरी सांसें लेता रहा.

तो यह कारण था मेघा का मुझ से विमुख होने का. अगर उस की जिंदगी में कोई अन्य पुरुष या युवक आ गया था तो यह कोई अनहोनी नहीं थी. वह जवान और सुंदर थी, चंचल और हंसमुख थी. उसे प्यार करने वाले तो हजारों मिल जाते, परंतु मुझे उस की तरह प्यार देने वाली दूसरी मेघा तो नहीं मिल सकती थी. काश, मेघों की तरह वह मेरे जीवन में न आती, मल्हार बन कर आती तो मैं उस की मधुर धुन को अपने हृदय में समा लेता. फिर मुझे उस से बिछड़ जाने का गम न होता.

मनदीप के घर पर मैं काफी देर तक बैठा रहा. ठंडा पीने के बाद इसी मुद्दे पर काफी देर तक बातें होती रहीं. उन की पत्नी बोली, ‘‘भाईसाहब, आप मेघा को समझाइए. वह मांबाप से दूर रह कर पढ़ाई कर रही है. प्यारमुहब्बत के चक्कर में उस का जीवन बरबाद हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन भाभीजी, यह उस का कुसूर नहीं है. जमाना ही कुछ ऐसा आ गया है कि हर दूसरा लड़कालड़की किसी न किसी के साथ प्यार किए बैठे हैं. यह आधुनिक युग का चलन है. किसी पर अंकुश लगाना संभव नहीं है.’’

‘‘आप बात तो ठीक कहते हैं परंतु उसे समझाने में क्या हर्ज है? एक बार पढ़ाई पूरी कर ले, फिर जो चाहे करे. मांबाप की उम्मीदें, उन का भरोसा, उन का दिल तो न तोड़े.’’

‘‘मैं उसे समझाने का प्रयास करूंगा,’’ मैं ने उन से कह तो दिया, परंतु मैं अच्छी तरह जानता था कि मेघा से अब मेरी कभी मुलाकात नहीं होगी. मेरे मन के आसमान में अब किसी मेघ के लिए जगह नहीं थी.

Father’s Day 2023: अंतराल

25 साल बाद जरमनी से भेजा सोफिया का पत्र मिला तो पंकज आश्चर्य से भर गए. पत्र उन के गांव के डाकखाने से रीडाइरेक्ट हो कर आया था. जरमन भाषा में लिखे पत्र को उन्होंने कई बार पढ़ा. लिखा था, ‘भारतीय इतिहास पर मेरे शोध पत्रों को पढ़ कर, मेरी बेटी जूली इतना प्रभावित हुई है कि भारत आ कर वह उन सब स्थानों को देखना चाहती है जिन का शोध पत्रों में वर्णन आया है, और चाहती है कि मैं भी उस के साथ भारत चलूं.’

‘तुम कहां हो? कैसे हो? यह वर्षों बीत जाने के बाद कुछ पता नहीं. भारत से लौट कर आई तो फिर कभी हम दोनों के बीच पत्र व्यवहार भी नहीं हुआ, इसलिए तुम्हारे गांव के पते पर यह सोच कर पत्र लिख रही हूं कि शायद तुम्हारे पास तक पहुंच जाए. पत्र मिल जाए तो सूचित करना, जिस से भारत भ्रमण का ऐसा कार्यक्रम बनाया जा सके जिस में तुम्हारा परिवार भी साथ हो. अपने मम्मीपापा, पत्नी और बच्चों के बारे में, जो अब मेरी बेटी जूली जैसे ही बडे़ हो गए होंगे, लिखना और हो सके तो सब का फोटो भी भेजना ताकि हम जब वहां पहुंचें तो दूर से ही उन्हें पहचान सकें.’

पत्नी और बेटा अभिषेक दोनों ही उस समय कालिज गए हुए थे. पत्नी हिंदी की प्रोफेसर है और बेटा एम.बी.ए. फाइनल का स्टूडेंट है. शनिवार होने के कारण पंकज आज बैंक से जल्दी घर आ गए थे. इसलिए मन में आया कि क्यों न सोफिया को आज ही पत्र लिख दिया जाए.

पंकज ने सोफिया को जब पत्र लिखना शुरू किया तो उस के साथ की पुरानी यादें किसी चलचित्र की तरह उन के मस्तिष्क में उभरने लगीं.

तब वह मुंबई के एक बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. अभी उन की शादी नहीं हुई थी इसलिए वह एक होस्टल में रह रहे थे.

सोफिया से उन की मुलाकात एलीफेंटा जाते हुए जहाज पर हुई थी. वह भारत में पुरातत्त्व महत्त्व के स्थानों पर भ्रमण के लिए आई थी और उन के होस्टल के पास ही होटल गेलार्ड में ठहरी थी. सोफिया को हिंदी का ज्ञान बिलकुल नहीं था और अंगरेजी भी टूटीफूटी ही आती थी. उन के साथ रहने से उस दिन उस की भाषा की समस्या हल हो गई तो वह जब भी ऐतिहासिक स्थानों को घूमने के लिए जाती, उन से भी चलने का आग्रह करती.

सोफिया को भारत के ऐतिहासिक स्थानों के बारे में अच्छी जानकारी थी. उन से संबंधित काफी साहित्य भी वह अपने साथ लिए रहती थी, इसलिए उस के साथ रहने पर चर्चाओं में उन को आनंद तो आता ही था साथ ही जरमन भाषा सीखने में भी उन्हें उस से काफी मदद मिलती.

साथसाथ रहने से उन दोनों के बीच मित्रता कुछ ज्यादा बढ़ने लगी. एक दिन सोफिया ने अचानक उन के सामने विवाह का प्रस्ताव रख उन्हें चौंका दिया, और जब वह कुछ उत्तर नहीं दे पाए तो मुसकराते हुए कहने लगी, ‘जल्दी नहीं है, सोच कर बतलाना, अभी तो मुझे मुंबई में कई दिनों तक रहना है.’

यह सच है कि सोफिया के साथ रहते हुए वह उस के सौंदर्य और प्रतिभा के प्रति अपने मन में तीव्र आकर्षण का अनुभव करते थे पर विवाह की बात उन के दिमाग में कहीं दूर तक भी नहीं थी, ऐसा शायद इसलिए भी कि सोफिया और अपने परिवार के स्तर के अंतर को वह अच्छी तरह समझते थे. कहां सोफिया एक अमीर मांबाप की बेटी, जो भारत घूमने पर ही लाखों रुपए खर्च कर रही थी और कहां सामान्य परिवार के वह जो एक बैंक में अदने से अधिकारी थे. प्रेम के मामले में सदैव दिल की ही जीत होती है, इसलिए सबकुछ जानते और समझते हुए भी वह अपने को सोफिया से प्यार का इजहार करने से नहीं रोक पाए थे.

उन दिनों मां ने अपने एक पत्र में लिखा था कि आजकल तुम्हारे विवाह के लिए बहुत से लड़की वालों के पत्र आ रहे हैं, यदि छुट्टी ले कर तुम 2-4 दिन के लिए घर आ जाओ तो फैसला करने में आसानी रहेगी. तब उन्होंने सोचा था कि जब घर पहुंच कर मां को बतलाएंगे कि मुंबई में ही उन्होंने एक लड़की सोफिया को पसंद कर लिया है तो मां पर जो गुजरेगी और घर में जो भूचाल उठेगा, क्या वह उसे शांत कर पाएंगे पर कुछ न बतलाने पर समस्या क्या और भी जटिल नहीं हो जाएगी…

तब छोटी बहन चारू ने फोन किया था, ‘भैया, सच कह रही हूं, कुछ लड़कियों की फोटो तो बहुत सुंदर हैं. मां तो उन्हें देख कर फूली नहीं समातीं. मां ने कुछ से तो यह भी कह दिया कि मुझे दानदहेज की दरकार नहीं है, बस, घरपरिवार अच्छा हो और लड़की उन के बेटे को पसंद आ जाए…’

बहन की इन चुहल भरी बातों को सुन कर जब उन्होंने कहा कि चल, अब रहने दे, फोन के बिल की भी तो कुछ चिंता कर, तो चहकते हुए कहने लगी थी, ‘उस के लिए तो मम्मीपापा और आप हैं न.’

मां को अपने आने की सूचना दी तो कहने लगीं, ‘जिन लोगों के प्रस्ताव यहां सब को अच्छे लग रहे हैं उन्हें तुम्हारे सामने ही बुला लेंगे, जिस से वे लोग भी तुम से मिल कर अपना मन बना लें और फिर हमें आगे बढ़ने में सुविधा रहे.’

‘नहीं मां, अभी किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है. अब घर तो आ ही रहा हूं इसलिए जो भी करना होगा वहीं आ कर निश्चित करेंगे…’

‘जैसी तेरी मरजी, पर आ रहा है तो कुछ निर्णय कर के ही जाना. लड़की वालों का स्वागत करतेकरते मैं परेशान हो गई हूं.’

घर पहुंचा तो चारू चहकती हुई लिफाफों का पुलिंदा उठा लाई थी, ‘देखो भैया, ये इतने प्रपोजल तो मैं ने ही रिजेक्ट कर दिए हैं…शेष को देख कर निर्णय कर लो…किनकिन से आगे बात करनी है.’

उन्होंने उन में कोई रुचि नहीं दिखाई, तो रूठने के अंदाज में चारू बोली, ‘क्या भैया, आप मेरा जरा भी ध्यान नहीं रखते. मैं ने कितनी मेहनत से इन्हें छांट कर अलग किया है, और आप हैं कि इस ओर देख ही नहीं रहे. ज्यादा भाव खाने की कोशिश न करो, जल्दी देखो, मुझे और भी काम करने हैं.’

जब वह उन के पीछे ही पड़ गई तो वह यह कहते उठ गए थे कि चलो, पहले स्नान कर भोजन कर लें…मां भी फ्री हो जाएंगी…फिर सब आराम से बैठ कर देखेंगे. मां ने भी उन का समर्थन करते हुए चारू को डपट दिया, ‘भाई ठीक ही तो कह रहा है, छोड़ो अभी इन सब को, आया नहीं कि चिट्ठियों को ले कर बैठ गई.’

दोपहर में चारू तो अपनी सहेली के साथ बाजार चली गई, मां को फुरसत में देख, वह उन के पास जा कर बैठ गए और बोले, ‘मां, आप से कुछ बात करनी है.’

‘ऐसी कौन सी बात है जिसे मां से कहने में तू इतना परेशान दिख रहा है?’

‘मां…दरअसल, बात यह है कि मुझे मुंबई में एक लड़की पसंद आ गई है.’

मां कुछ चौंकीं तो पर खुश होते हुए बोलीं, ‘अरे, तो अब तक क्यों नहीं बताया? कैसी लगती है वह? बहुत सुंदर होगी. फोटो लाया है? क्या नाम है? उस के मांबाप भी क्या मुंबई में ही रहते हैं? क्या करते हैं वे?’

मां की उत्सुकता और उन के सवालों को सुन कर वह तब मौन हो गए थे. उन्हें इस तरह खामोश देख कर मां बोली थीं, ‘अरे, चुप क्यों हो गया? बतला तो, कौन है, कैसी है?’

‘मां, वह एक जरमन लड़की है, जो रिसर्च के सिलसिले में मुंबई आई हुई है और मेरे होस्टल के पास ही होटल में रहती है. हमारी मुलाकात अचानक ही एक यात्रा के दौरान हो गई थी. मां, कहने को तो सोफिया जरमन है पर देखने में उस का नाकनक्श सब भारतीयों जैसा ही है.’

अपने बेटे की बात सुन कर मां एकदम सकते में आ गई थीं. कहने लगीं, ‘बेटा, तुम्हारी यह पसंद मेरी समझ में नहीं आई. तुम्हें अपने परिवार में सब संस्कार भारतीय ही मिले पर यह कैसी बात कि शादी एक विदेशी लड़की से करना चाहते हो? क्या मुंबई जा कर लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति को भूल कर महानगर के मायाजाल में इतनी जल्दी खो जाते हैं कि जिस लड़की से शादी करनी है उस के घरपरिवार के बारे में जानने की जरूरत भी महसूस नहीं करते? क्या अपने देश में सुंदर लड़कियों की कोई कमी है, जो एक विदेशी लड़की को हमारे घर की बहू बनाना चाहते हो?’

फिर यह कहते हुए मां उठ कर वहां से चली गईं कि एक विदेशी बहू को वह स्वीकार नहीं कर पाएंगी.

शाम को चाय पर फिर एकसाथ बैठे तो मां ने समझाते हुए बात शुरू की, ‘देखो बेटा, शादीविवाह के फैसले भावावेश में लेना ठीक नहीं होता. तुम जरा ठंडे दिमाग से सोचो कि जिस परिवेश में तुम पढ़लिख कर बड़े हुए और तुम्हारे जो आचारविचार हैं, क्या कोई यूरोपीय संस्कृति में पलीबढ़ी लड़की उन के साथ सामंजस्य बिठा पाएगी? माना कि तुम्हें मुंबई में रहना है और वहां यह सब चलता है पर हमें तो यहां समाज के बीच ही रहना है. जब हमारे बारे में लोग तरहतरह की बातें करेंगे तब हमारा तो लोगों के बीच उठनाबैठना ही मुश्किल हो जाएगा. फिर चारू की शादी भी परेशानी का सबब बन जाएगी.’

‘मां, आप चारू की शादी की चिंता न करें,’ वह बोले थे, ‘वह मेरी जिम्मेदारी है और मैं ही उसे पूरी करूंगा. लोगों का क्या? वे तो सभी के बारे में कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं. रही बात सोफिया के विदेशी होने की तो वह एक समझदार और सुलझेविचारों वाली लड़की है. वह जल्दी ही अपने को हमारे परिवार के अनुरूप ढाल लेगी. मां, आप एक बार उसे देख तो लें, वह आप को भी अच्छी लगेगी.’

बेटे की बातों से मां भड़कते हुए बोलीं, ‘तेरे ऊपर तो उस विदेशी लड़की का ऐसा रंग चढ़ा हुआ है कि तुझ से कुछ और कहना ही अब बेकार है. तुझे जो अच्छा लगे सो कर, मैं बीच में नहीं बोलूंगी.’

पापा के आफिस से लौटने पर जब उन के कानों तक सब बातें पहुंचीं, तो पहले वह भी विचलित हुए थे फिर कुछ सोच कर बोले, ‘बेटे, मुझे तुम्हारी समझदारी पर पूरा विश्वास है कि तुम अपना तथा परिवार का सब तरह से भला सोच कर ही कोई निर्णय करोगे. यदि तुम्हें लगता है कि सोफिया के साथ विवाह कर के ही तुम सुखी रह सकते हो, तो हम आपत्ति नहीं करेंगे. हां, इतना जरूर है कि विवाह से पहले एक बार हम सोफिया और उस के मातापिता से मिलना अवश्य चाहेंगे.’

पापा की बातों से उन के मन को तब बहुत राहत मिली थी पर वह यह समझ नहीं पाए थे कि उन की बातों से आहत हुई मां को वह कैसे समझाएं?

उन के मुंबई लौटने पर जब सोफिया ने उन से घर वालों की राय के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कहा था, ‘मैं ने तुम्हारे बारे में मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने यही कहा यदि तुम खुश हो तो उन की भी सहमति है और तुम्हारे मम्मीपापा के भारत आने पर उन से मिलने वे मुंबई आएंगे.’

सोफिया से यह सब कहते हुए उन्हें अचानक ऐसा लगा था कि सोफिया के साथ विवाह का निर्णय कर कहीं उन्होंने कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया? लेकिन सोफिया के सौंदर्य और प्यार से अभिभूत हो जल्दी ही उन्होंने अपने इस विचार को झटक दिया था.

उन के मुंबई लौटने के बाद घर में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी. मां और चारू दोनों ही अब घर से बाहर कम ही निकलतीं. उन्हें लगता कि यदि किसी ने बेटे की शादी का जिक्र छेड़ दिया तो वे उसे  क्या उत्तर देंगी?

पापा यह कह कर मां को समझाते, ‘मैं तुम्हारी मनोस्थिति को समझ रहा हूं, पर जरा सोचो कि मेरे अधिक जोर देने पर यदि वह सोफिया की जगह किसी और लड़की से विवाह के लिए सहमत हो भी जाता है और बाद में अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट रहता है तो न वह ही सुखी रह पाएगा और न हम सभी. इसलिए विवाह का फैसला उस के स्वयं के विवेक पर ही छोड़ देना हम सब के हित में है.’

कुछ दिन बाद उन के फोन करने पर पापा, मां और चारू को ले कर मुंबई आ गए थे क्योंकि सोफिया के मम्मीपापा भी भारत आ गए थे.

मुंबई पहुंचने पर निश्चित हुआ कि अगले दिन लंच सब लोग एक ही होटल में करेंगे और दोनों परिवार वहीं एकदूसरे से मिल कर विवाह की संक्षिप्त रूपरेखा तय कर लेंगे. दोनों परिवार जब मिले तो सामान्य शिष्टाचार के बाद पापा ने ही बात शुरू की थी, ‘आप को मालूम ही है कि आप की बेटी और मेरा बेटा एकदूसरे को पसंद करते हैं. हम लोगों ने उन की पसंद को अपनी सहमति दे दी है. इसलिए आप अपनी सुविधा से कोई तारीख निश्चित कर लें जिस से दोनों विवाह सूत्र में बंध सकें.

पापा के इस सुझाव के उत्तर में सोफिया के पापा ने कहा था, ‘पर इस के लिए मेरी एक शर्त है कि शादी के बाद आप के बेटे को हमारे साथ जरमनी में ही रहना होगा और इन की जो संतान होगी वह भी जरमन नागरिक ही कहलाएगी. आप अपने बेटे से पूछ लें, उसे मेरी शर्त स्वीकार होने पर ही इस शादी के लिए मेरी अनुमति हो सकेगी.’

उन की शर्त सुन कर सभी चौंक गए थे. सोफिया को भी अपने पापा की यह शर्त अच्छी नहीं लगी थी. उधर वह सोच रहे थे कि नहीं, इस शर्त के लिए वह हरगिज सहमत नहीं हो सकते. वह क्या इतने खुदगर्ज हैं जो अपनी खुशी के लिए अपने मांबाप और बहन को छोड़ कर विदेश में रहने चले जाएं? पढ़ते समय वह सोचा करते थे कि जिस तरह मम्मीपापा ने उन के जीवन को संवारने में कभी अपनी सुखसुविधा की ओर ध्यान नहीं दिया, उसी तरह वह भी उन के जीवन के सांध्यकाल को सुखमय बनाने में कभी अपने सुखों को बीच में नहीं आने देंगे.

उन्होंने दूर खड़ी उदास सोफिया से कहा, ‘तुम्हारे पापा की शर्त के अनुसार मुझे अपने परिवार और देश को छोड़ कर जाना कतई स्वीकार नहीं है, इसलिए अब आज से हमारे रास्ते अलग हो रहे हैं, पर मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं.’

दरवाजे की घंटी बजी तो अपने अतीत में खोए पंकज अचानक वर्तमान में लौट आए. देखा, पोस्टमैन था. पत्नी की कुछ पुस्तकें डाक से आई थीं. पुस्तकें प्राप्त कर, अधूरे पत्र को जल्द पूरा किया और पोस्ट करने चल दिए.

कुछ दिनों बाद, देर रात्रि में टेलीफोन की घंटी बजी. उठाया तो दूसरी ओर से सोफिया की आवाज थी. कह रही थी कि पत्र मिलने पर बहुत खुशी हुई. अगले मंडे को बेटी के साथ वह मुंबई पहुंच रही है. उसी पुराने होटल में कमरा बुक करा लिया है, पर व्यस्तता के कारण केवल एक सप्ताह का समय ही निकाल पाई है. उम्मीद है आप का परिवार भी घूमने में हमारे साथ रहेगा.

टेलीफोन पर हुई पूरी बात, सुबह पत्नी और बेटे को बतलाई. वे दोनों भी घूमने के लिए सहमत हो गए. सोफिया के साथ घूमते हुए पत्नी को भी अच्छा लगा. अभिषेक और जूली ने भी बहुत मौजमस्ती की. अंतिम दिन मुंबई घूमने का प्रोग्राम था. पर सब लोगों ने जब कोई रुचि नहीं दिखाई तो अभिषेक व जूली ने मिल कर ही प्रोग्राम बना लिया.

रात्रि में दोनों देर से लौटे. सोते समय सोफिया ने अपनी बेटी से पूछा, ‘‘आज अभिषेक के साथ तुम दिन भर, अकेले ही घूमती रहीं. तुम्हारे बीच बहुत सी बातें हुई होंगी? क्या सोचती हो तुम उस के बारे में? कैसा लड़का है वह?’’

‘‘मम्मी, अभि सचमुच बहुत अच्छा और होशियार है. एम.बी.ए. के पिछले सत्र में उस ने टाप किया है. आगे बढ़ने की उस में बहुत लगन है.’’

‘‘इतनी प्रशंसा? कहीं तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया?’’

‘‘हां, मम्मी, आप का अनुमान सही है.’’

‘‘और वह?’’

‘‘वह भी.’’

‘‘तो क्या अभि के पापा से तुम दोनों के विवाह के बारे में बात करूं?’’

‘‘हां, मम्मी, अभि भी ऐसा ही करने को कह रहा था.’’

‘‘पर जूली, तुम्हारे पापा को तो ऐसा लड़का पसंद है, जो उन के साथ रह कर बिजनेस में उन की मदद कर सके. क्या अभि इस के लिए तैयार होगा.’’

‘‘क्यों नहीं, यह तो आगे बढ़ने की उस की इच्छा के अनुकूल ही है. फिर वह क्यों मना करने लगा?’’

‘‘भारत छोड़ देने पर, क्या उस के मम्मीपापा अकेले नहीं रह जाएंगे?’’

‘‘तो क्या हुआ? भारत में इतने वृद्धाश्रम किस लिए हैं?’’

‘‘क्या इस बारे में तुम ने अभि के विचारों को जानने का भी प्रयत्न किया?’’

‘‘हां, वह इस के लिए खुशी से तैयार है. कह भी रहा था कि यहां भारत में रह कर तो उस की तमन्ना कभी पूरी नहीं हो सकती. लेकिन मम्मी, अभि की इस बात पर आप इतना संदेह क्यों कर रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं, यों ही.’’

‘‘नहीं मम्मी, इतना सब पूछने का कुछ तो कारण होगा? बतलाइए.’’

‘‘इसलिए कि बिलकुल ठीक ऐसी ही परिस्थितियों में अभि के पापा ने भारत छोड़ने से मना कर दिया था.’’

‘‘पर तब आप ने उन्हें समझाया नहीं?’’

‘‘नहीं, शायद इसलिए कि मुझे भी उन का मना करना गलत नहीं लगा था.’’

‘‘ओह मम्मी, आप और अभि के पापा दोनों की बातें और सोच, मेरी समझ के तो बाहर की हैं. मैं तो सो रही हूं. सुबह जल्दी उठना है. अभि कह रहा था, वह सुबह मिलने आएगा. उसे आप से भी कुछ बातें करनी हैं.’’

बेटी की सोच और उस की बातों के अंदाज को देख, सोफिया को लग रहा था कि पीढ़ी के ‘अंतराल’ ने तो हवा का रुख ही बदल दिया है.

Father’s day 2023: पिता और पुत्र के रिश्तों में पनपती दोस्ती

‘‘हाय डैड, क्या हो रहा है? यू आर एंजौइंग लाइफ, गुड. एनीवे डैड, आज मैं फ्रैंड्स के साथ पार्टी कर रहा हूं. रात को देर हो जाएगी. आई होप आप मौम को कन्विंस कर लेंगे,’’ हाथ हिलाता सन्नी घर से निकल गया.

‘‘डौंट वरी सन, आई विल मैनेज ऐवरीथिंग, यू हैव फन,’’ पीछे से डैड ने बेटे से कहा. आज पितापुत्र के रिश्ते के बीच कुछ ऐसा ही खुलापन आ गया है. किसी जमाने में उन के बीच डर की जो अभेद दीवार होती थी वह समय के साथ गिर गई है और उस की जगह ले ली है एक सहजता ने, दोस्ताना व्यवहार ने. पहले मां अकसर पितापुत्र के बीच की कड़ी होती थीं और उन की बातें एकदूसरे तक पहुंचाती थीं, पर अब उन दोनों के बीच संवाद बहुत स्वाभाविक हो गया है. देखा जाए तो वे दोनों अब एक फ्रैंडली रिलेशनशिप मैंटेन करने लगे हैं. 3-4 दशकों पहले नजर डालें तो पता चलता है कि पिता की भूमिका किसी तानाशाह से कम नहीं होती थी. पीढि़यों से ऐसा ही होता चला आ रहा था. तब पिता का हर शब्द सर्वोपरि होता था और उस की बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी. वह अपने पुत्र की इच्छाअनिच्छा से बेखबर अपनी उम्मीदें और सपने उस को धरोहर की तरह सौंपता था. पिता का सामंतवादी एटीट्यूड कभी बेटे को उस के नजदीक आने ही नहीं देता था. एक डरासहमा सा बचपन जीने के बाद जब बेटा बड़ा होता था तो विद्रोही तेवर अपना लेता था और उस की बगावत मुखर हो जाती थी.

असल में पिता सदा एक हौवा बन बेटे के अधिकारों को छीनता रहा. प्रतिक्रिया करने का उफान मन में उबलने के बावजूद पुत्र अंदर ही अंदर घुटता रहा. जब समय ने करवट बदली और उस की प्रतिक्रिया विरोध के रूप में सामने आई तो पिता सजग हुआ कि कहीं बागडोर और सत्ता बनाए रखने का लालच उन के रिश्ते के बीच ऐसी खाई न बना दे जिसे पाटना ही मुश्किल हो जाए. लेकिन बदलते समय के साथ नींव पड़ी एक ऐसे नए रिश्ते की जिस में भय नहीं था, थी तो केवल स्वीकृति. इस तरह पितापुत्र के बीच दूरियों की दीवारें ढह गईं और अब आपसी संबंधों से एक सोंधी सी महक उठने लगी है, जिस ने उन के रिश्ते को दोस्ती में बदल दिया है.

पितापुत्र संबंधों में एक व्यापक परिवर्तन आया है और यह उचित व स्वस्थ है. पिता के व्यक्तित्व से सामंतवाद थोड़ा कम हुआ है. थोड़ा इसलिए क्योंकि अगर हम गांवों और कसबों में देखें तो वहां आज भी स्थितियों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. बस, दमन उतना नहीं रहा है जितना पहले था. आज पिता की हिस्सेदारी है और दोतरफा बातचीत भी होती है जो उपयोगी है. मीडिया ने रिश्तों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है. टैलीविजन पर प्रदर्शित विज्ञापनों ने पितापुत्री और पितापुत्र दोनों के बीच निकटता का इजाफा किया है. समाजशास्त्री श्यामा सिंह का कहना है कि आज अगर पितापुत्र में विचारों में भेद हैं तो वे सांस्कृतिक भेद हैं. अब मतभेद बहुत तीव्र गति से होते हैं. पहले पीढि़यों का परिवर्तन 20 साल का होता था पर अब वह परिवर्तन 5 साल में हो जाता है. आज के बच्चे समय से पहले मैच्योर हो जाते हैं और अपने निर्णय लेने लगते हैं. जहां पिता इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं वहां दिक्कतें आ रही हैं. पितापुत्र के रिश्ते में जो पारदर्शिता होनी चाहिए वह अब दिखने लगी है. नतीजतन बेटा अपने पिता के साथ अपनी बातें शेयर करने लगा है.

खत्म हो गई संवादहीनता

आज पितापुत्र संबंधों में जो खुलापन आया है उस से यह रिश्ता मजबूत हुआ है. मनोवैज्ञानिक समीर मल्होत्रा के अनुसार, अगर पिता अपने पुत्र के साथ एक निश्चित दूरी बना कर चलता है तो संवादहीनता उन के बीच सब से पहले कायम होती है. पहले जौइंट फैमिली होती थी और शर्म पिता से पुत्र को दूर रखती थी. बच्चे को जो भी कहना होता था, वह मां के माध्यम से पिता तक पहुंचाता था. लेकिन आज बातचीत का जो पुल उन के बीच बन गया है, उस ने इतना खुलापन भर दिया है कि पितापुत्र साथ बैठ कर डिं्रक्स भी लेने लगे हैं. आज बेटा अपनी गर्लफ्रैंड के बारे में बात करते हुए सकुचाता नहीं है.

करने लगा सपने साकार

महान रूसी उपन्यासकार तुरगेनेव की बैस्ट सेलर किताब ‘फादर ऐंड सन’ पीढि़यों के संघर्ष की महागाथा है. वे लिखते हैं कि पिता हमेशा चाहता है कि पुत्र उस की परछाईं हो, उस के सपनों को पूरा करे. जाहिर है, इस उम्मीद की पूर्ति होने की चाह कभी पुत्र को आजादी नहीं देगी. पिता चाहता है कि उस के आदेशों का पालन हो और उस का पुत्र उस की छाया हो. टकराहट तभी होती है जब पिता अपने सपनों को पुत्र पर लादने की कोशिश करता है. पर आज पिता, पुत्र के सपनों को साकार करने में जुट गया है. प्रख्यात कुच्चिपुड़ी नर्तक जयराम राव कहते हैं कि जमाना बहुत बदल गया है. बच्चों की खुशी किस में है और वे क्या चाहते हैं, इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. यही वजह है कि मैं अपने बेटे की हर बात मानता हूं. मैं अपने पिता से बहुत डरता था, पर आज समय बदल गया है. कोई बात पसंद न आने पर मेरे पिता मुझे मारते थे पर मैं अपने बेटे को मारने की बात सोच भी नहीं सकता. आज वह अपनी दिशा चुनने के लिए स्वतंत्र है. मैं उस के सपने साकार करने में उस का पूरा साथ दूंगा. बहरहाल, अब पितापुत्र के सपने, संघर्ष और सोच अलग नहीं रही है. यह मात्र भ्रम है कि आजादी पुत्र को बिगाड़ देती है. सच तो ?यह है कि यह आजादी उसे संबंधों से और मजबूती से जुड़ने और मजबूती से पिता के विश्वास को थामे रहने के काबिल बनाती है.

Father’s day 2023: जिंदगी फिर मुस्कुराएगी- पिता ने बेटे को कैसे रखा जिंदा

रात के 3 बजे थे. इमरजैंसी में एक नया केस आया था. इमरजैंसी में तैनात डाक्टरों और नर्सों ने मुस्तैदी से बच्चे की जांच की. बिना देरी किए उसे पीडियाट्रिक आई.सी.यू. में ऐडमिट कराने के लिए स्ट्रेचर पर लिटा कर नर्स व वार्ड- बौय तेजी से चल पड़े. पीछेपीछे बच्चे के मातापिता बदहवास से चल रहे थे.

पीडियाट्रिक आई.सी.यू. में भी अफरातफरी मच गई. बच्चे को बैड पर लिटा कर 4-5 डाक्टरों की टीम उस की चिकित्सा में लग गई.

‘‘टैल मी द हिस्ट्री,’’ डा. सिद्धार्थ ने कहा.

‘‘बच्चा 3 साल का है. यूरिनरी इन्फैक्शन हुआ था. डायग्नोसिस में बहुत देर हो गई. बच्चे को बहुत तेज बुखार की शिकायत है. इन्फैक्शन पूरे शरीर में फैल गया है पर इस से महत्त्वपूर्ण यह है कि 8 दिन पहले गिरने के कारण बच्चे को सिर में गहरी चोट लगी थी. ब्लड सर्कुलेशन के साथ इन्फैक्शन दिमाग में चला गया है. कल सुबह इन्फैक्शन के कारण ब्रेन हैमरेज भी हो गया,’’ पीडियाट्रिक्स इमरजैंसी के डा. शांतनु ने संक्षेप में बताया.

‘‘माई गुडनैस,’’ डा. सिद्धार्थ ने कहा, ‘‘मुझे सीटी स्कैन दिखाओ.’’

एक नर्स बच्चे के मातापिता के पास सीटी स्कैन लेने दौड़ी. बच्चे के पिता ने तुरंत सीटी स्कैन और रिपोर्ट नर्स को दे दी और पूछा, ‘‘बच्चा कैसा है सिस्टर. क्या कर रहे हैं अंदर. हम उसे देख सकते हैं क्या?’’

‘‘डाक्टर जांच कर रहे हैं. इलाज चल रहा है. एक बार बच्चे की हालत स्थिर हो जाए फिर आप को बुला लेंगे,’’ कह कर नर्स अंदर चली गई.

बच्चे के मातापिता बेबस से बाहर खड़े रह गए. बच्चे की मां मीनल के तो आंसू नहीं थम रहे थे. बच्चे की चोट वाली जगह से खून की एक लकीर पीछे तक गई थी.

‘‘सर, बच्चे के हाथ में लगा कैनूला ब्लौक हो गया है,’’ नर्स बोली, ‘‘चेंज करना पड़ेगा.’’

‘‘चेंज करो और फौरन आई.वी. ऐंटीबायोटिक और सलाइन शुरू करो. बच्चे का टैंपरेचर अभी कितना है?’’ डा. सिद्धार्थ ने पूछा.

नर्स ने तुरंत थर्मामीटर लगा कर बच्चे का बुखार देखा और कांपते स्वर में बोली, ‘‘सर, 106 से ऊपर है.’’

‘‘दिमाग के इन्फैक्शन में तो यह होना ही था. बच्चे को तुरंत कोल्ड वाटर स्पंज दो. हथेलियों, बगल में, पैर के तलवों और घुटनों के नीचे कोल्ड गौज या कौटन रखो और लगातार उन्हें बदलती रहना. ए.सी. के अलावा एक और पंखा ला कर बच्चे की ओर लगाओ ताकि बुखार आगे न जाने पाए,’’ डा. सिद्धार्थ ने हिदायत दी.

डेढ़ घंटे की जद्दोजहद के बाद कहीं बच्चे का बुखार 103 डिगरी तक आया, तब डा. सिद्धार्थ ने चैन की सांस ली. 2 नर्सों को बच्चों के पास छोड़ कर और इलाज के बारे में समझा कर डा. सिद्धार्थ ने बच्चे के मातापिता को बुला लाने को कहा. पीडियाट्रिक आई.सी.यू. के डाक्टर और नर्सें वापस अपनीअपनी ड्यूटी पर चले गए.

प्रशांत और मीनल दौड़ेदौड़े अंदर आए तो डा. सिद्धार्थ ने कहा, ‘‘हम ने बच्चे का इलाज शुरू कर दिया है. बुखार भी अब कम हो गया है. लेकिन बच्चे के दिमाग में जो इन्फैक्शन हो गया है उस के लिए न्यूरोलौजिस्ट को बुला कर चैकअप करवाना पड़ेगा.’’

‘‘हमारा बच्चा ठीक तो हो जाएगा न?’’ मीनल ने कांपते स्वर में पूछा.

‘‘हम अपनी ओर से पूरी कोशिश करेंगे. कल सुबह डा. बनर्जी दिमाग का उपचार शुरू कर देंगे तो उम्मीद है बुखार कंट्रोल में आ जाएगा. और हां, आप दोनों में से कोई एक ही आई.सी.यू. में बच्चे के पास बैठ सकता है.’’

मीनल ने बच्चे की ओर देख कर उसे पुकारा. थोड़ी देर बाद सोनू ने कमजोर स्वर में ‘हूं’ कहा. बुखार से सोनू बेदम हो रहा था. बीचबीच में अचानक कांप उठता और अजीब से स्वर में कराहने लगता. मीनल बच्चे की यह दशा देख कर रोने लगी.

प्रशांत ने पत्नी के कंधे पर हाथ रख कर उसे तसल्ली दी और अपने आंसू पोंछ कर बोला, ‘‘अपनेआप को संभालो मीनल. हमें उस का पूरा ध्यान रखना है. उसे ठीक करना है. अगर तुम ही टूट जाओगी तो सोनू की देखभाल कौन करेगा?’’

मीनल ने हामी भरते हुए अपने आंसू पोंछे और सोनू का हाथ थाम लिया. सोनू की कमजोर उंगलियों ने मीनल की उंगलियां थाम लीं तो मीनल का दिल भर आया. मस्तिष्क में संक्रमण से सोनू खुल कर रो नहीं पा रहा था और बोल भी नहीं पा रहा था. बस, रहरह कर उस का शरीर कांपता और वह घुटेघुटे स्वर में कराहने लगता.

सोनू का हाथ सहलाते हुए मीनल के सामने बेटे के जन्म से ले कर अब तक की घटनाएं चलचित्र की भांति घूमने लगीं. कितनी खुश थी वह मां बन कर. सोनू के जन्म के बाद उस के पालनपोषण में कब दिन गुजर जाता पता ही नहीं चलता. प्रकृति ने सारे जहां की खुशियां मीनल की झोली में डाल दी थीं. जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं. सोनू था भी बहुत प्यारा बच्चा. सारा दिन ‘मांमां’ कहता मीनल का आंचल थामे उस के आगेपीछे घूमता रहता. पर अचानक उन के सुखी संसार में न जाने कहां से दुख के बादल घिर आए.

6 महीने पहले सोनू को बुखार आना शुरू हुआ. प्रशांत उसे डाक्टर के पास ले गया. दवाइयों से 5 दिनों में सोनू ठीक हो गया. मीनल और प्रशांत निश्चिंत हो गए. पर 15 दिन बाद ही सोनू को फिर बुखार आया तो उन्हें चिंता हुई और डाक्टर ने दवा दे कर कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है, सभी बच्चों को बदलते मौसम से यह परेशानी हो रही है.

इसी तरह 5 महीने गुजर गए. सोनू को महीने भर तक जब लगातार बुखार के साथ पेट में दर्द, पेशाब में जलन की शिकायत होने लगी तब कसबे के डाक्टर ने उसे बड़े शहर में जा कर चाइल्ड स्पैशलिस्ट को दिखाने को कहा.

मीनल और प्रशांत तुरंत सोनू को शहर ले आए. वहां चाइल्ड स्पैशलिस्ट ने सोनू की खून और यूरिन की सभी जरूरी जांच करवाईं और कल्चर करवाया. कल्चर ड्रग सैंसेटिविटी जांच से पता चला कि अब तक जो ऐंटीबायोटिक सोनू को दी जा रही थीं उन दवाइयों ने सोनू पर कुछ असर ही नहीं किया था और संक्रमण बढ़तेबढ़ते गुर्दों तक फैल गया.

डाक्टर ने उसे तुरंत ऐडमिट कर लिया. 7 दिन तक उसे आई.वी. ऐंटीबायोटिक का कोर्स देने के बाद जब उस का बुखार सामान्य तक आ गया तो उसे जरूरी निर्देश दे कर डिस्चार्ज दे दिया.

मीनल और प्रशांत सोनू को ले कर घर आ गए. 2-3 दिन ठीक रहने के बाद सोनू को फिर से हलकाहलका बुखार रहने लगा. एक दिन घर के सामने पड़ोस के बच्चे खेल रहे थे. सोनू की जिद पर मीनल ने उसे खेलने भेज दिया.

मीनल आंगन में खड़ी हो कर बेटे को देख रही थी कि अचानक एक बच्चे को पकड़ने के लिए दौड़ने की कोशिश करता सोनू लड़खड़ा कर गिर गया. उस का सिर तेजी से एक नुकीले पत्थर से टकराया. खून की धार फूट पड़ी. मीनल घबरा कर जल्दी से उसे डाक्टर के यहां ले कर दौड़ी. डाक्टर ने दवा लगा कर पट्टी बांध दी.

घटना के 5वें दिन अचानक सोनू बेचैन हो कर हाथपैर पटकने लगा, अजीब तरह से कराहने लगा. मीनल ने उस का बदन छुआ तो उसे तेज बुखार था. मीनल ने तुरंत प्रशांत को फोन लगाया. प्रशांत औफिस से उसी समय घर आया और वे सोनू को शहर के चाइल्ड स्पैशलिस्ट के पास ले गए. उन्होंने तुरंत उसे ऐडमिट करवाया. उस का सीटी स्कैन करवाया तो पता चला कि चोट से शरीर में मौजूद संक्रमण मस्तिष्क तक चला गया है और तेज बुखार व संक्रमण के चलते सोनू को ब्रेन हैमरेज हो गया है.

मीनल तो यह सुन कर होश ही खो बैठी. कुछ दिनों तक वे लोग अपने शहर में इलाज कराते रहे लेकिन सोनू की स्थिति में सुधार न होता देख डाक्टर ने प्रशांत से सोनू को दिल्ली ले जाने के लिए कहा. मीनल और प्रशांत तुरंत सोनू को दिल्ली ले आए.

सोनू का हाथ थामे मीनल ने गहरी सांस ली. सोनू अब भी बेचैनी और दर्द से हाथपैर पटक रहा था और एक मां बेबस सी बैठी थी. सच, कुदरत के आगे इंसान कितना लाचार है.

सुबह 8 बजे डा. बनर्जी अपनी टीम सहित सोनू का निरीक्षण करने आ पहुंचे. उन्होंने सोनू को देखा और उस की रिपोर्ट की जांच की. डाक्टर व नर्सों को कुछ नई दवाइयों के बारे में बताया और फिर प्रशांत को बुलवाया.

‘‘देखिए, हम ने मस्तिष्क के संक्रमण के लिए एक नई दवा स्टार्ट कर दी है. जरूरत पड़ी तो एकदो दिन में एक सीटी स्कैन करवा लेंगे,’’ डा. बनर्जी ने प्रशांत और मीनल से कहा.

‘‘सोनू कब तक ठीक हो जाएगा डाक्टर साहब?’’ प्रशांत ने पूछा.

‘‘हम ने मस्तिष्क के संक्रमण के लिए जो नई ऐंटीबायोटिक शुरू की है, 2-3 दिन इस को देखते हैं, क्या असर होता है फिर आगे के इलाज की योजना बनाएंगे,’’ कह कर डा. बनर्जी वहां से दूसरे मरीज के पास चले गए.

अगले 2 दिनों तक सोनू की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा तो डा. बनर्जी ने फिर से सोनू का सीटी स्कैन करवाया. संक्रमण फैलने की वजह से अब की बार उस के मस्तिष्क के पिछले हिस्से भी क्षतिग्रस्त नजर आए.

दूसरे दिन मीनल और प्रशांत हताश से बैठे थे कि रात में 8 बजे अचानक सोनू तेज आवाज में खींचखींच कर सांस लेने लगा. मीनल उस के सीने पर हाथ फेरने लगी. सिस्टर जल्दी से डाक्टर को बुला लाई. डाक्टर ने सोनू की स्थिति को देखते ही सिस्टर से कहा, ‘‘पेशेंट को तुरंत वैंटीलेटर पर शिफ्ट करना पड़ेगा. सिस्टर, डा. यतिन को फौरन बुलाओ और जब तक यतिन आते हैं तब तक बाकी सब तैयारी हो जानी चाहिए.’’

डा. यतिन ने पहुंचते ही मीनल से कहा, ‘‘आप प्लीज बाहर वेट करिए. हमें सोनू को वैंटीलेटर पर शिफ्ट करना पड़ेगा. बाद में हम आप को बुलवा लेंगे.’’

मीनल चुपचाप बाहर आ गई. उस ने प्रशांत को सबकुछ बताया. दोनों धीरज रख कर बाहर बैठे रहे.

करीब 2 घंटे बाद डा. यतिन ने प्रशांत और मीनल को बुलवाया और बताया, ‘‘सोनू खींचखींच कर सांस ले रहा था. इस का अर्थ है कि उस के दिमाग में ब्रीदिंग कंट्रोल करने वाला भाग डैमेज हो गया है. मस्तिष्क के किसी भी भाग की क्षति स्थायी होती है. आई एम सौरी. देखते हैं,’’ डा. यतिन ने प्रशांत का कंधा थपथपाया और चले गए.

अगले 2 दिनों में डा. बनर्जी ने फिर से सोनू का सीटी स्कैन करवाया और रिपोर्ट देख कर प्रशांत से बोले, ‘‘कल रात में इस का एक और बार ब्रेन हैमरेज हो चुका है. संक्रमण की वजह से मस्तिष्क के ज्यादातर हिस्से क्षतिग्रस्त हो कर काम करना बंद कर चुके हैं. हमें अफसोस है, हम सोनू के लिए कुछ नहीं कर पाए.’’

स्तब्ध सी मीनल धड़ाम से कुरसी पर गिर पड़ी. प्रशांत ने उस के कंधे पर अपना कांपता हुआ हाथ रख दिया. उन के घर का चिराग बस बुझने को ही है और वे नियति के हाथों कितने मजबूर हैं, लाचार हैं.

तीसरे दिन सुबह डा. लतिका ने प्रशांत और मीनल को अपने कैबिन में बुलवाया. डा. लतिका भी डा. यतिन की तरह ही पीडियाट्रिक्स की सीनियर डाक्टर थीं. उन्होंने पहले तो मीनल और प्रशांत को पानी पिलाया और फिर कहना प्रारंभ किया :

‘‘देखिए, आप सोनू की हालत तो जानते ही हैं. संक्रमण की वजह से उस के ब्रेन के ज्यादातर हिस्सों ने काम करना बंद कर दिया था. आज सुबह न्यूरोलौजिस्ट ने उस की जांच की तो पता चला कि उस के पूरे मस्तिष्क की क्रियाशीलता खत्म हो चुकी है. डाक्टरी भाषा में कहें तो सोनू की ब्रेन डैथ हो चुकी है.’’

‘‘नहीं…’’ मीनल चीत्कार कर उठी. प्रशांत भी सुबक उठा. करीब 15 मिनट बाद मीनल और प्रशांत के दुख का ज्वार कुछ कम हुआ तो प्रशांत ने पूछा, ‘‘सोनू की सांस और धड़कन तो चल रही है, डाक्टर.’’

‘‘जी, वह बस वैंटीलेटर (सिस्टोलिक ब्लडप्रैशर) के कारण चल रही है. अगर हम अभी वैंटीलेटर हटा लेते हैं तो उस की सांस और धड़कन बंद हो जाएगी. ब्रेन डैथ के मामले में हम 12 घंटे बाद दोबारा सारी जांच कर के यह तय करते हैं कि कहीं जीवन का लक्षण बाकी है या नहीं. तभी हम वैंटीलेटर हटाते हैं,’’ डा. लतिका ने समझाया, ‘‘लेकिन अगर आप चाहें तो सोनू का दिल हमेशा धड़कता रह सकता है.’’

‘‘जी? वह कैसे?’’ मीनल और प्रशांत ने एकसाथ अचरज से पूछा.

‘‘बात यह है कि हमारे अस्पताल में एकदो मरीज हैं जिन्हें तुरंत हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है. यदि आप सोनू का हार्ट डोनेट कर सकें तो उन में से जिस के साथ भी क्रास मैचिंग हो जाए उस में सोनू का हार्ट ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. इस तरह से आप के बच्चे के जाने के बाद भी उस का दिल इस दुनिया में धड़कता रहेगा,’’ डा. लतिका ने कहा.

‘‘नहींनहीं. आप यह कैसी बातें कर रही हैं,’’ मीनल तड़प कर बोली, ‘‘आप मेरे सोनू के शरीर से…आप को एक मां के दर्द का जरा सा भी एहसास नहीं है.’’

डा. लतिका ने मीनल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं भी एक मां हूं, मुझे तुम्हारे दर्द का पूरा एहसास है, मीनल.

‘‘तुम्हारे सोनू की जगह उस दिन मेरा ही बेटा था. हां, मीनल यह घटना 6 साल पहले की है. मेरे 18 बरस के बेटे का जन्मदिवस था. वह अपने दोस्तों के साथ एक रैस्टोरैंट में गया था. लौटते समय उस की बाइक का ऐक्सीडैंट हो गया. सिर में लगी गंभीर चोट की वजह से उस की ब्रेन डैथ हो चुकी थी. मैं उस के दिल की धड़कन को हमेशा के लिए बरकरार रखना चाहती थी पर देश में उस समय हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए मरीज उपलब्ध नहीं था.’’

डा. लतिका ने अपने आंसू पोंछ कर फिर कहना शुरू किया, ‘‘मेरे बेटे की धड़कन तो मैं नहीं बचा पाई लेकिन हम ने उस की दोनों किडनी और आंखें डोनेट कर दीं. आज कहीं न कहीं उस की आंखें यह दुनिया देख रही हैं. उस के गुर्दों ने तब मौत के मुंह में जाते 2 लोगों को बचा लिया था.’’

कुछ देर के मौन के बाद प्रशांत ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘आप हार्ट किस को डोनेट करेंगे?’’

‘‘क्षमा कीजिएगा, कुछ नियमों के कारण हम आप को यह जानकारी तो नहीं दे सकते. यह बात दोनों ही परिवारों से गुप्त रखी जाती है. मुझे भी अपने बेटे के समय ट्रांसप्लांट सर्जन ने यह जानकारी नहीं दी थी. लेकिन ट्रांसप्लांट सफल हुआ है या नहीं, वह सूचना हम आप को अवश्य देंगे,’’ डा. लतिका ने स्पष्ट किया.

प्रशांत और मीनल डा. लतिका से विदा ले कर आई.सी.यू. में आ कर सोनू के पास बैठ गए. वैंटीलेटर के मौनिटर पर सोनू की धड़कनों का रिकौर्ड आ रहा था. उसे देखते ही प्रशांत बिलख कर बोले, ‘‘हां कह दो मीनल. अपने सोनू की धड़कनों के सिलसिले को रुकने मत दो. डाक्टर की बात मान लो.’’

मीनल हैरानी से पति को देख कर बोली, ‘‘तुम भी यही कह रहे हो, प्रशांत? बताओ, मैं कैसे अपने मासूम बच्चे की चीराफाड़ी…’’ आगे के शब्द मीनल के आंसुओं से बह गए.

‘‘जरा सोचो मीनल, कुछ घंटे बाद ब्रेन डैथ कन्फर्म होने के बाद यों भी ये लोग वैंटीलेटर हटा देंगे. तब तो सोनू की सांस और धड़कन सबकुछ खत्म हो जाएगा. हम भी उसे श्मशान ले जा कर जला देंगे. सबकुछ राख हो जाएगा. आज डाक्टर ने हमें कितना बड़ा मौका दिया है कि हम उस की धड़कन को, उस की आंखों की रोशनी को हमेशा के लिए बरकरार रख सकते हैं. हमारा सोनू किसी न किसी रूप में आगे भी जीवित रहेगा.’’

प्रशांत की नजरें अभी भी सोनू की धड़कनों पर थीं.

‘‘मुझे क्या करना है दुनिया से,’’ मीनल बोली, ‘‘मैं अपने मासूम बच्चे के साथ ऐसा नहीं कर सकती.’’

‘‘ऐसा न कहो मीनल,’’ प्रशांत ने उस के कंधे पर हाथ रख कर समझाया, ‘‘डा. लतिका ने कहा न सोनू जल्द ही तुम्हारे पास आ जाएगा. सोनू को बचाने में हम ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. परंतु सोनू के जाने के बाद भी उस की धड़कन और आंखों की रोशनी को बरकरार रख कर हमें मानवता की इतनी बड़ी सेवा करने का मौका मिला है.’’

मीनल चुपचाप सुबकती रही. प्रशांत फिर बोले, ‘‘देश और देशवासियों की रक्षा के लिए मांएं अपने जवान बेटों को सीमा पर हंसतेहंसते कुरबान कर देती हैं. क्या उन्हें अपने बेटों को खोने का गम नहीं होता होगा? पर देश, समाज और इंसानियत की रक्षा के लिए वे हंस कर यह दर्द, यह तकलीफ सह लेती हैं. उन का ध्यान करो. अपने बच्चों को खोते समय वे भी तो नहीं जानतीं कि किन लोगों के लिए उन्हें कुरबान कर रही हैं. जिन की रक्षा में उन के बच्चे अपने प्राण गंवाते हैं उन को सैनिकों की मांएं कहां पहचानती हैं.

‘‘तुम भी यह मत सोचो कि सोनू का दिल या आंखें किस में ट्रांसप्लांट होंगी. बस, मानवता के प्रति अपना कर्तव्य समझ कर हां कर दो,’’ प्रशांत ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाने की आखिरी कोशिश की.

मीनल ने अपना हाथ सोनू के सीने पर रखा. उस का दिल अपनी लय में धड़क रहा था. उस की धड़कन महसूस करते ही मीनल फफक पड़ी और रोते हुए बोली, ‘‘आप ठीक कहते हैं. मैं मां हूं. अपने बच्चे की धड़कन को भला कैसे रुकने दे सकती हूं. नहींनहीं, आप डा. लतिका से कह दीजिए कि मेरे सोनू के दिल की धड़कन हमेशा चलती रहेगी. उस की आंखें भी यह दुनिया देखती रहेंगी.’’

मीनल को गले लगाते हुए प्रशांत खुद फफक कर रो दिया.

प्रशांत के फैसले पर उस का हाथ पकड़ कर डा. लतिका ने आंखों में आंसू भर कर रुंधे गले से कहा, ‘‘तुम ने अपने बच्चे को अंधेरे में खो जाने से बचा लिया. तुम नहीं जानती हो कि तुम ने कितना बड़ा काम किया है. मानवता की कितनी बड़ी सेवा की है. कितने घरों के चिराग रोशन कर दिए. मैं तुम्हें दिल से दुआ देती हूं, तुम्हारा सोनू जल्द ही तुम्हारे पास वापस आएगा,’’ डा. लतिका ने मीनल को गले लगा लिया.

अगले दिन प्रशांत और मीनल अपने घर में रिश्तेदारों से घिरे बैठे थे. तभी प्रशांत को डा. लतिका का फोन आया. सोनू का हार्ट उपलब्ध मरीजों में से एक के साथ मैच कर गया तथा उस बच्चे में प्रत्यारोपित कर दिया गया. प्रत्यारोपण सफल रहा है.

इस के एक माह बाद डा. लतिका का फिर से फोन आया. सोनू का हार्ट जिस बच्चे में प्रत्यारोपित किया गया था उस के शरीर ने सोनू के दिल को स्वीकार कर लिया है. बच्चा अब पूरी तरह से स्वस्थ हो कर अपने घर जा रहा है. आप के सोनू का दिल सफलतापूर्वक धड़क रहा है और आगे भी धड़कता रहेगा. सोनू की आंखें भी 2 लोगों को लगाई जा चुकी हैं.

प्रशांत और मीनल ने एकदूसरे की ओर देखा. दोनों के मन ने एक अजीब सा संतोष महसूस किया. उन का सोनू आज भी जीवित है, उन्होंने सोनू को राख बन कर बिखर जाने से बचा लिया. उन का सोनू अमर हो गया.

इतने दिनों की भागादौड़ी और दुख में मीनल ने अपनी ओर ध्यान ही नहीं दिया था. उस का सोनू तो कभी कहीं गया ही नहीं था. वह तो रूप बदल कर पहले से चुपचाप मीनल की कोख में छिप कर बैठा था. डा. लतिका की दुआ सच हुई. जिंदगी फिर मुसकरा रही थी.

यह तो होना ही था: भाग 3- वासना का खेल मोहिनी पर पड़ गया भारी

इसी बीच अनिल औफिस की किसी मीटिंग से फ्री हुआ तो लंचटाइम में मिलने के लिए उस ने कई बार मोहिनी को फोन मिलाया. मोहिनी ने आज अपना फोन पहली बार बंद कर रखा था. अनिल ने सोचा क्या हो गया, आज फोन क्यों बंद है, जा कर देखता हूं.

कालेज में कोमल की तबीयत कुछ ढीली थी. उस ने सोचा मां के पास जा कर आराम करती हूं. वह भी मोहिनी को फोन मिला रही थी. फोन बंद होने पर कोमल को मां की चिंता होने लगी. वह फौरन छुट्टी ले कर मां से मिलने चल दी.

अनिल मोहिनी के घर पहुंचा तो देखा ताला लगा हुआ है. इस समय कहां चली गई, उस ने इधरउधर देखा, कुछ बच्चे खेल रहे थे. उन में से एक बच्चे ने इशारा किया कि आंटी उस घर की तरफ गई हैं, अनिल के मन में पता नहीं क्या आया, वह सुधीर के घर की तरफ चल दिया. कोमल भी पड़ोस में रहने वाली कुसुम आंटी के यह बताने पर कि उन्होंने मोहिनी को सामने वाले सुधीर के घर जाते देखा है. अत: वह भी सुधीर के घर चल दी.

अनिल ने सुधीर की डोरबैल बजाई, अंदर सुधीर और मोहिनी बैड पर एकदूसरे में खोए निर्वस्त्र लेटे थे. डोरबैल बजने पर कोई कूरियर होगा यह सोच कर बस टौवेल लपेट कर गेट खोल दिया. सामने अनिल खड़ा था. सुधीर की अस्तव्यस्त हालत देख अनिल को एक पल में सब सम झ आ गया.

अब तक कोमल भी चुपचाप पीछे आ कर खड़ी हो चुकी थी. सुधीर सकपका गया. वह अनिल से तो कभी नहीं मिला था, लेकिन कोमल से 1-2 बार मिल चुका था. अनिल ने सुधीर को एक तरफ धक्का दे कर अंदर जाते हुए पूछा, ‘‘कहां है मोहिनी?’’

कोमल को धक्का लगा कि अनिल कैसे उस की मां का नाम ले रहा है… क्या हो रहा है यह सब.

इतने में सुधीर चिल्लाया, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो… जाओ यहां से.’’

‘‘मैं मोहिनी से मिल कर जाऊंगा,’’ कहते हुए अनिल बैडरूम की तरफ बढ़ गया. सुधीर ने पहले जल्दी से अंदर जा कर अपनी पेंट उठाई फिर बाथरूम में पहन कर निकला. तब तक अनिल मोहिनी के सामने पहुंच चुका था.

बैडरूम का दृश्य देख कर कोमल जैसे पत्थर की हो गई. निर्वस्त्र, अपने को चादर से ढकने की कोशिश करते हुए अब मोहिनी को लग रहा था कि काश, धरती फट जाए और वह उस में समा जाए.

कोमल को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उस की मां इस हालत में और अनिल.

उस ने सुधीर का कौलर पकड़ लिया. दोनों में हाथापाई शुरू हो गई. उमाशंकर और उन का परिवार, कुसुम, बाकी पड़ोसी भी शोर सुन कर वहां पहुंच गए.

किसी को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था और रहीसही कसर अनिल ने गुस्से में चीखते हुए पूरी कर ली. वह कह रहा था, ‘‘कोई सोच भी नहीं सकता कि क्याक्या

खेल खेले हैं तूने, बेशर्म, लालची औरत, अपनी बेटी को भी धोखा दिया है तू ने, अपने दामाद

को भी नहीं छोड़ा तू ने, इतने दिनों से मु झे फंसा रखा था.’’

कोमल को लग रहा था उस के कान के परदे फट जाएंगे. अनिल और सुधीर की आपस की लड़ाई और मोहिनी के बारे में कहे जा रहे सस्ते शब्दों को सुन कर सारी बात उस के सामने साफ हो गई, मारपिटाई बढ़ती देख इतने में किसी पड़ोसी ने पुलिस को खबर कर दी. पुलिस ने आ कर अनिल, सुधीर को जीप में बैठने के लिए कहा. सुधीर ने बड़ी मुश्किल से कपड़े पहनने

की इजाजत मांगी, पुलिस के सिपाही ने अनिल को कौलर पकड़ कर बाहर की तरफ चलने का इशारा किया.

अनिल जातेजाते मोहिनी को गालियां देता रहा. सुधीर भी जाते हुए चिल्ला

रहा था, ‘‘तू वेश्या से भी बदतर है, थू है तु झ पर, गिरी हुई औरत है तू.’’

पड़ोसी भी 1-1 कर कोमल के कंधे पर सांत्वना का हाथ रख कर चले गए, खड़ी रह गई कोमल ने जलती हुई, नफरत भरी आंखों से मोहिनी को देखा और फुफकार उठी, ‘‘आज आप ने मेरा हर रिश्ते से विश्वास उठा दिया. आज से आप का और मेरा कोई रिश्ता नहीं, कभी मेरे सामने मत आना,’’ कह कर कोमल चली गई.

अब मोहिनी शर्मिंदगी और पछतावे में डूब कर घुटनों पर सिर रख कर फूटफूट कर रो रही थी, अपने रूप और यौवन का सहारा ले कर, वासना और लालच का खेलखेल कर

2 पुरुषों से अनैतिक संबंध रख कर उन से फायदा उठाने चली थी… अब बेटी और समाज की नजरों में हमेशा के लिए गिर गई थी… यह तो होना ही था.

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