3 Tips: स्ट्रैस आप भी तो नहीं लेते

mअच्छी सेहत पाने की चाहत हर किसी की रहती है. यह चाहत कई बार इस कदर बढ़ जाती है कि लोग अपना तनाव बढ़ा लेते हैं, जिस की वजह से अच्छी सेहत पाने के लिए टैंशन होने लगती है जिस से सेहत और भी खराब हो जाती है. हर किसी का वजन, सुंदरता, बालों का रंग, बालों का होना या न होना, लंबाई सब अलगअलग हो सकता है. सब के अंदर बस एक बात कौमन होती है कि सब को सुंदर और स्मार्ट दिखना है.

मगर हरकोई एकजैसा नहीं दिख सकता क्योंकि सब की सेहत और शरीर अलगअलग होता है. जैसेजैसे उम्र गुजरती जाती है वैसेवैसे लोगों के अंदर अच्छी सेहत बनाने का रुझन भी बढ़ता जाता है. इस के लिए वे तमाम जतन करते हैं जैसे वे ऐक्सरसाइज करने लगते हैं, खानेपीने में तमाम तरह के परहेज करने लगते हैं, डाइटीशियन के अनुसार खाना लेने लगते हैं.

मनोविज्ञानी नेहा तिवारी कहती हैं, ‘‘अच्छी सेहत की सोच रखने वाले तमाम लोग ऐसे होते हैं जो अपने सामने किसी फिल्मी हीरो, हीरोइन, मौडल या खिलाड़ी को रखते हैं. विज्ञापनों में जल्दी परिणाम पाने के तमाम तरह के तरीके बताए जाते हैं. एक तय समय में अपनी सोच के अनुसार परिणाम पाते दिखाया जाता है जैसे किसी ने 30 दिन में 20 किलोग्राम वजन कम कर लिया, अपनी कमर का साइज या मोटापा कम कर लिया.

हो सकता है कि रियल लाइफ में यह परिणाम देर से मिले और उस के लिए ज्यादा समय देना पडे़. कई बार बहुत कुछ करने पर भी परफैक्ट परिणाम नहीं मिलता. ऐसे में टैंशन होने लगती है. यह टैंशन अच्छी सेहत पाने के लिए होती है पर यह सेहत को और खराब कर सकती है.’’

‘‘शरीर का वजन, मोटापा और रंगरूप प्रत्येक के शरीर के ढांचे के अनुरूप होता है. शरीर की हडिड्यां और फैट शरीर की बनावट को तय करता है. इन के अनुरूप ही बाकी शरीर की बनावट होती है. अगर चेहरा गोल और भरापूरा होता है तो कई बार डबल चिन की परेशानी दिखने लगती है. जिन का चेहरा लंबा और गाल चिपके होते हैं उन को डबल चिन नहीं होती है. ऐसे में डबल चिन वाला कितना भी प्रयास कर ले कुछ न कुछ डबल चिन दिखती ही है. अब यह डबल चिन हटाने की चाहत टैंशन बढ़ा सकती है. इसी तरह गालों में पड़ने वाले डिंपल्स को ले कर भी अलगअलग चाहत होती है.’’

अच्छी सेहत के लिए टैंशन न लें

अच्छी सेहत पाने के लिए जरूरी है कि अपने शरीर और उस की जरूरतों को सही से समझे उस के हिसाब से अपनी सेहत बनाएं. किसी दूसरे को देख कर उस के अनुसार सेहत बनाने की टैंशन न लें नहीं तो अच्छी सेहत का पता नहीं पर टैंशन जरूर ले लेंगे. फिर अगर तनाव लंबे समय तक रहेगा तो न केवल मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है. टैंशन बढ़ने से स्ट्रोक, दिल का दौरा, अवसाद जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.

तनाव के चलते भूलने की बीमारी, चिंता, चिड़चिड़ापन, कब्ज या दस्त, वजन का घटना अनिद्रा और समाज से कटेकटे रहना जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इस से अच्छी सेहत पाने की जगह उस के और भी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में जरूरी है कि अच्छी सेहत पाने के लिए किसी दूसरे को देखने की जगह पर खुद को देखें. इस में आप का डाक्टर आप की पूरी मदद कर देगा.

वह आप को यह बता देगा कि आप के शरीर के फिट और सेहतमंद होने का क्या और कितना मतलब होगा. उस के अनुसार सेहत को ठीक करें. इस में उम्र का भी असर होता है.

22 साल की उम्र में 6 फुट के लड़के का वजन और 42 साल में 6 फुट वाले व्यक्ति का वजन बराबर हो भी जाए तो भी दोनों की स्मार्टनैस अलगअलग होगी.

अच्छी सेहत के लिए जरूरी बातें

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि यथार्थवादी बनें, सही लक्ष्य निर्धारित करें और ध्यान रखें कि यदि आप हमेशा सबकुछ पाना चाहते हैं, तो आप कभी भी संतुष्ट नहीं होंगे जो आप के अंदर टैंशन को बढ़ाएगा. समाज में दूसरों से संबंध बना कर रखें. एकदूसरे की मदद लेने और करने में कोई दिक्कत नहीं होती. इस से सामाजिक जीवन का निर्वाह होता है. हमेशा लोगों को खुश रखने वाली नीति को छोडें. जो काम न होने वाला हो उस के लिए नहीं कहना भी सीखें. इस के साथ ही समय प्रबंधन सीखें, अपने जरूरी कामों को प्राथमिकता दें और जो गैरजरूरी हों उन्हें हटा दें.

परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने से संबंध मजबूत होते हैं. सुरक्षा और अपनेपन की भावना पैदा होती है. यह आप को तनावों से लड़ने में मदद कर सकता है. ऐक्सरसाइज से ऐंडोर्फिन बढ़ता है. यह मस्तिष्क में रिसैप्टर्स को बढ़ाता है, जिस से तनाव कम होता है. पर्याप्त नींद लें. नींद की मात्रा भी हर व्यक्ति में अलगअलग होती है. पर्याप्त नींद लेना हर किसी के लिए महत्त्वपूर्ण है. अच्छी और गहरी नींद आप के मस्तिष्क को केंद्रित रखने में मदद करती है.

इस के साथ ही अपने अहंकार को खत्म करें. अहंकार के जगह अपने जीवन को आरामदायक बनाएं. आप जितने कम अहंकारी होंगे उतनी ही आसानी से असफलताओं को ?ोल सकेंगे. नकारात्मक लोगों, स्थानों और चीजों से दूर रहें. सोशल मीडिया से दूर रहें. किताबें और पत्रपत्रिकाएं को पढ़ने की आदत डालें. संगीत सुनें. संगीत का मन और शरीर पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है. कुछ समय अपने लिए निकालें. दिन में कम से कम आधा घंटा अपने लिए रखें. मैडिटेशन यानी ध्यान लगाने से दिमाग शांत होता है.

अच्छी सेहत के लिए अच्छी डाइट

डाइटीशियन रानू सिंह कहती हैं, ‘‘अगर सही डाइट लें और रोज ऐक्सरसाइज करें तो अच्छी सेहत के लिए डाक्टरी मदद की जरूरत कम पड़ती है. इस के अलावा उम्र के हिसाब से बौडी चैकअप कराते रहें. इस से शरीर में होने वाले बदलाव का असर समय से पता चल जाएगा. उस हिसाब से इस का प्रबंधन हो जाएगा. बीमार रहने वाले और बीमार न रहने वाले दोनों के अर्थ में अच्छी सेहत का पैमाना बदल जाता है.

ऐसे में जरूरी है कि दोनों इस अंतर को सम?ों. इस अंतर को सम?ा लेंगे तो अच्छी सेहत को ले कर तनाव नहीं रहेगा.

‘‘अच्छे स्वास्थ्य के लिए खानपान पर ध्यान देना अति आवश्यक है. सही और संतुलित आहार स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालता है. भले ही आप कोई डाइट चार्ट फौलो कर रहे हों, लेकिन उस में इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप

जो भी खा रहे हैं वह ताजा हो. खानपान के मामले में यह जरूरी है कि शरीर में आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति हो रही हो. इस के अलावा भारी भोजन लेने के बजाय हलका और उर्जा से भरपूर भोजन लें.’’

अच्छी सेहत को ले कर टैंशन न लें. टेंशन लेने से सेहत ठीक होने की जगह और खराब हो जाएगी. अच्छी सेहत के लिए दूसरों के उदाहरण न लें. आप का डाक्टर जिस बात को बताए उस पर ध्यान दें.

जिंदगी का सफर: भाग 1- क्या शिवानी और राकेश की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटी?

जिस  सुबह गुस्से से भरी शिवानी अपनी ससुराल छोड़ कर मायके रहने चली आई, उस से पिछली रात उस का अपने पति राकेश से जबरदस्त झगड़ा हुआ था.

‘‘रात को 11 बजे तुम पार्टी में गुलछर्रे उड़ा कर घर लौटो, यह मुझे मंजूर नहीं. आगे से तुम औफिस की किसी पार्टी में शामिल नहीं होगी,’’ शिवानी के घर में कदम रखते ही राकेश गुस्से में फट पड़ा था.

‘‘मेरे नए बौस ने अपनी प्रमोशन की पार्टी दी थी. मैं उस में शामिल होने से कैसे इनकार कर सकती थी?’’ शिवानी का अच्छाखासा मूड फौरन खराब हो गया.

‘‘इस बारे में मैं कोई बहस नहीं करना चाहता हूं.’’

‘‘जो संभव नहीं, उस काम को करने की हामी मैं भी नहीं भर सकती हूं.’’

‘‘अगर ऐसी बात है, तो नौकरी छोड़ दो.’’

‘‘बेकार की बात मत करो, राकेश. 75 हजार रुपये वाली नौकरी न आसानी से मिलती है और न किसी के कहने भर से छोड़ी जाती है.’’

‘‘तुम्हारे, 75 हजार से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण मोहित की उचित परवरिश है, घर की सुखशांति है. इन की बलि चढ़ा कर तुम्हें नौकरी करने की इजाजत नहीं मिलेगी,’’ राकेश का गुस्सा पलपल बढ़ता जा रहा था.

‘‘मोहित के उज्ज्वल भविष्य व घर की सुखसुविधा की आज हर चीज मौजूद है. हमारे सुखद व सुरक्षित भविष्य के लिए समाज में मानसम्मान से जीने के लिए क्या मेरा नौकरी करते रहना जरूरी नहीं है?’’

‘‘यों डींगें मार कर तुम मुझे अपने से कम कमाने का ताना मत दो. सिर्फ अपनी कमाई के बल पर भी मैं मोहित को और तुम्हें इज्जत व सुख से भरी जिंदगी उपलब्ध करा सकता हूं,’’ शिवानी को गुस्से से घूरते हुए राकेश ने दलील दी.

‘‘कम और ज्यादा कमाने की पीड़ा तुम ही महसूस करते हो राकेश. मु?ो इस बात का ध्यान भी नहीं आता. मेरी नौकरी को ले कर गुस्सा करने के बजाय तुम अपनी मानसिकता बदलो. बेकार की हीनभावना का शिकार हो कर अपना और मेरा दिमाग खराब मत…’’

राकेश को उस के मुंह से निकली बात ऐसी चुभी कि उस का हाथ उठ गया. गाल पर लगे चांटे की पीड़ा और अपमान को सहते हुए शिवानी उसी पल से बिलकुल खामोश रह गई. अपनी नाराजगी बरकरार रखते हुए राकेश ने उसे न सम?ाया, न मनाया और न ही किसी दूसरे ढंग से अफसोस प्रकट किया.

एकदूसरे के प्रति शिकायतों व नाराजगी से भरे दोनों ही रातभर ठीक से सो नहीं पाए. उन्होंने 6 साल पहले प्रेम विवाह किया था. शायद इस कारण दोनों दिलों में मायूसी, निराशा व टीस का एहसास ज्यादा गहरा था.

‘राकेश शादी होने से पहले ही मेरे व्यक्तित्व को अच्छी तरह से जानतापहचानता था. मैं बेहद महत्त्वाकांक्षी और मेहनती लड़की हूं. हर तरह से अव्वल रहना मेरा स्वभाव है. प्रेमी के रूप में उस ने हर कदम पर मेरा साथ दे कर मेरे सपनों को पूरा करने का वादा किया था. अब वह तरक्की की दौड़ में मुझ से पिछड़ गया है, तो मैं क्या करूं? जोरजबरदस्ती कर के वह मेरी जिंदगी को नर्क नहीं बना सकता. मैं अपनी जिंदगी अपने ढंग से अपने सपनों को पूरा करने को जीऊंगी… वह साथ नहीं देगा, तो अकेले ही,’ ऐसी सोचों के चलते शिवानी ने रातभर आंसू भी बहाए और गुस्से की आग में भी जलती रही.

राकेश के मन में भी अपनी प्रेमिका बनी पत्नी के प्रति नाराजगी व शिकायतों से भरे विचार रात भर चले…

‘मुझ से ज्यादा कमाने का मतलब यह नहीं कि वह घर के कायदेकानूनों का उल्लंघन करे, सारी मर्यादाओं को तोड़ती जाए. बहुत अमीर बनने के ख्वाब ने उसे अंधा और पागल कर दिया है. मैं ने कभी सोचा भी न था कि यह इतनी स्वार्थी और घमंडी हो जाएगी. अब न तो यह मेरी भावनाओं को समझती है और न ही मोहित पर ध्यान देती है. मुझे  झुका और दबा कर हमेशा अपनी मनमानी कर सकती है, उस की ये गलतफहमी इस बार में तोड़ ही दूंगा,’ इस तरह के विचारों ने राकेश के गुस्से की आग को भड़काए रखा.

अगले दिन रविवार की सुबह शिवानी डरेसहमे 4 वर्षीय मोहित को ले कर अपनी सहेली के साथ रहने उस के घर चली गई. सहेली एक बड़े मकान में अकेले रहती थी. उस ने शादी नहीं की थी. जब तक कोई और इंतजाम न हो जाए, उसे उस के घर जाना ही ठीक लगा. वह अपनी मेड को भी ले गई. राकेश या उस के सासससुर ने उस से एक शब्द नहीं बोला. शिवानी ने विदा होने के समय खुद को बेहद अपमानित और अकेला महसूस किया.

शिवानी के अलग रहने की जानकारी सास ने उस की मां को खबर कर दी कि वह नाराज हो कर और बिना बड़ों की इजाजत लिए घर से गई.

शिवानी इसलिए मां के पास नहीं गई कि वहां तो उस के मातापिता और भैयाभाभी उसे समझने के लिए पहले से भरे बैठे होंगे. शिवानी जानती थी कि कोई भी उस के पक्ष को गंभीरता से सुनने में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा.

उन सभी के एकसाथ लैक्चर उन के फोन आने पर शिवानी पहले भी सुन चुकी है जब उस ने प्रेम विवाह का फैसला किया था.

चिढ़ कर शिवानी को गुस्सा आ गया और फिर कहा, ‘‘मेरी नौकरी को ले कर

राकेश रातदिन क्लेश करता था, पर मैं सब सब्र से सहती रही. कल रात उस ने मुझ पर हाथ उठा कर भारी भूल करी है. वह जब तक माफी नहीं मांगेगा मैं नहीं लौटूंगी. अपना फैसला बदलने के लिए अगर आप सब ने मुझ पर दबाव डाला, तो मैं किसी दूसरे शहर रहने चली जाऊंगी.’’

जिद्दी शिवानी की धमकी सुन कर वे चुप तो जरूर रहने लगे पर उन के हावभाव साफ कहते हैं कि यों उस का अलग रहना उन्हें जरा भी प्रसंद नहीं.

अपने मातापिता व सासससुर को बता शिवानी बिलकुल अलगथलग सी पड़ गई. किसी ने उस के मन की पीड़ा को समझने की कोशिश नहीं करी, इस बात का वह बहुत दुख मान रही थी.

उस के पिता ने भी फोन पर कहा था, ‘‘ज्यादा पैसे कमाने का घमंड मत कर. जिद करेगी, तो तेरा घर उजड़ जाएगा.’’

‘‘हमें लोगों की नजरों में शर्मिंदा मत कर और लौट जा. कहीं बात ज्यादा बिगड़ गई, तो बहुत पछताएगी,’’ उस की मां वक्तबेवक्त आंसू बहाते हुए उसे समझाती.

शिवानी के बड़े भाई संजय ने उसे फोन करना बंद कर दिया. अपनी भाभी कविता के व्यवहार में भी शिवानी रूखापन साफ महसूस करती.

2-4 बार जब वह सब से मिलने गई तो सब के मुंह फूले हुए थे.

मोहित अपने दादादादी व पिता से रोज फोन पर बातें हो जातीं. इन तीनों ने शिवानी से बात करने की एक बार भी इच्छा जाहिर नहीं करी, तो उस ने भी चिढ़ कर इन से संपर्क बनाने की कोई कोशिश नहीं करी.

अपरिचित- भाग-2: जब छोटी सी गलतफहमी ने तबाह किया अर्चना का जीवन

नालडेहरा में किसी हिंदी फिल्म की शूटिंग चल रही थी. रजत और बच्चे उस ओर चले गए और वह घूमघूम कर कुदरती नजारों के चित्र लेने लगी. अर्चना एक पहाड़ी बच्ची की तसवीर उतारने लगी तो सहसा फे्रम में ‘वह’ आ गया. अर्चना ने कैमरा हटा कर देखा तो जैसे वह हिल कर रह गई. एक पेड़ से टिक कर खड़ा था ‘वह’ और नीली जींस और क्रीम कलर की जैकेट में कल से भी ज्यादा डेशिंग लग रहा था.

‘क्या चाहते हैं आप?’ यह पूछने के लिए जैसे ही अर्चना आगे बढ़ी, वह पलक झपकते ही न जाने कहां गायब हो गया.

घूमघाम कर शाम को लौट आए थे वे लोग. बच्चे अंत्याक्षरी खेल रहे थे और अर्चना उन से बेखबर ‘उस की’ ही सोच में डूबी थी कि रजत ने टोका, ‘‘भई अर्ची, आज तुम्हारा चैटर बौक्स क्यों बंद है? कुछ बकबक करो बेगम, चुप्पी तुम्हें शोभा नहीं देती.’’

‘‘थोड़ा सिरदर्द है. थकान भी हो रही है,’’ कह कर टाल दिया उस ने.

रात फिर नींद गायब थी अर्चना की. उसे ‘उसी’ की सोच ने जकड़ा हुआ था. एक बार तो जी में आया कि रजत को सब बता दे पर यह सोच कर रुक गई कि रजत न जाने इस बात को किस रूप में लें? वह उस का मजाक भी उड़ा सकते हैं, उस पर शक भी कर सकते हैं या हो सकता है कि ‘वह’ फिर मिले तो उस से झगड़ने ही बैठ जाएं और एक बात तो पक्की है कि उसे फिर कहीं अकेले नहीं जाने देंगे. इस से तो बेहतर है कि वह चुप ही रहे. जो होगा देखा जाएगा.

अगले दिन ‘रिवोली’ पर सुबह का शो देख कर रजत और बच्चे जाखू चले गए. उन के लाख कहने पर भी अर्चना नहीं गई और सड़क के किनारे बनी दुकानों से छोटीछोटी कलात्मक वस्तुएं खरीदती हुई वह माल रोड पर घूमती रही.

आखिर थक कर वह अनमनी सी चर्च के सामने बिछी एक बैंच पर बैठ गई.

सहसा मन में चाह उठी कि ‘वह’ दिख जाए तो चैन आए. अपनेआप पर हैरानी भी हो रही थी अर्चना को कि जिस की उपस्थिति की कल्पना भी उसे 2 दिन से भयभीत कर रही थी और जिस के आसपास मौजूद होने के एहसास मात्र से वह असहज होती रही, आज उसी को देखने की ललक क्यों जाग रही है मन में? कहीं चला तो नहीं गया ‘वह’? फिर  झरने से बहते एक खनकते हंसी के स्वर ने उस के भटकते मन को जैसे रोक दिया.

अर्चना ने देखा सामने वाली बैंच पर बैठा एक नवविवाहिता जोड़ा दीनदुनिया से बेखबर आपस में हंसीठिठोली कर रहा था. नई नर्म कोंपल सी कोमल वह लड़की चूड़ा खनकाते हुए कभी हंस रही थी, कभी इतरा रही थी तो कभी इठला रही थी और छैलछबीला सा उस का पति खिदमती अंदाज में उस के नाजनखरे उठा रहा था. कभी भाग कर कुल्फी लाता, कभी पौपकौर्न तो कभी चाट के पत्ते. ‘कितने खुशनुमा होते हैं जिंदगी के ये कुछ दिन… फिर तो वही घरगृहस्थी के झगड़ेपचड़े,’ एक ठंडी सांस ले कर सोचा अर्चना ने.

‘‘एक्सक्यूज मी.’’ मुड़ कर देखा अर्चना ने, तो सिर से पांव तक कांप गई. सामने ‘वही’ खड़ा था.

‘‘आप?’’ कह कर वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई.

‘‘जी, आप अर्चना हैं न? अर्चना सचदेव, अमृतसर से?’’

‘‘जी हां, मगर आप?’’

‘‘मुझे पहचाना नहीं आप ने?’’ उस के स्वर में न पहचाने जाने का दर्द था.

अर्चना ने पहली बार उसे सिर से पांव तक देखा. काले ट्राउजर और बंद गले के काले स्वैटर में वह पिछले दिनों से ज्यादा आकर्षक लग रहा था. कश्मीरी सेबों सी लालिमा लिए गोरा रंग और घनेघुंघराले बाल, किसी हिट फिल्म का नायक लग रहा था वह. अर्चना ने अपने दिमाग पर पूरा जोर डाला, स्मृतियों की सारी डायरियां टटोल डालीं, लेकिन उस की पहचान नहीं मिली तो हार कर अर्चना ने इनकार में गरदन हिलाते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं नहीं पहचान पाई आप को.’’

‘‘मैं अखिल हूं… अखिल आनंद… वह खालसा कालेज…’’

‘‘ओ, माय गौड, वहां तक तो मैं पहुंची ही नहीं. कितना बदल गए हैं आप? कैसे पहचानती मैं आप को?’’

‘‘लेकिन आप बिलकुल नहीं बदलीं. बिलकुल वैसी ही हैं आप, तभी तो मैं आप को देखते ही पहचान गया, जब आप गाड़ी से सामान निकाल रही थीं, इत्तेफाक से मैं भी ‘हिमलैंड’ में ही ठहरा हूं.’’

‘‘तभी क्यों नहीं बात कर ली आप ने? इस तरह मेरे पीछेपीछे क्यों घूमते रहे?’’

‘‘डर गया था कि आप न जाने कैसा बरताव करें.’’

‘‘तो अब क्यों सामने चले आए?’’

‘‘डर गया था कि कहीं आप चली न जाएं और मैं आप से दो बातें भी न कर पाऊं.

‘‘अकेले आए हैं आप घूमने?’’

‘‘मैं घूमने नहीं, काम से आया हूं यहां. शिमला में हमारे सेब के बाग हैं, इसी सिलसिले में आनाजाना लगा रहता है.’’

‘‘और बाकी सब… पत्नी वगैरा, वहीं हैं अमृतसर में?’’

‘‘नहीं, अमृतसर तो कब का छूट गया, अब चंडीगढ़ में हैं हम. एक बेटी भी है मेरी, बिलकुल आप की तरह खूबसूरत. सच कहूं अर्चना मैं आप को अभी भी भूल नहीं पाया,’’ बड़े हसरत भरे स्वर में कहा अखिल ने.

‘‘अब इन बातों का क्या फायदा?’’ एक निश्वास के साथ कहा अर्चना ने.

‘‘आप कहां हैं आजकल?’’ अखिल ने बात बदली.

‘‘दिल्ली में.’’

‘‘अर्चना, आप यहीं रुकिए, प्लीज. कहीं जाइएगा नहीं. मैं अभी आया, 5 मिनट में,’’ कह कर वह चला गया और अर्चना का दिलोदिमाग 12 बरसों को चीर कर अमृतसर के खालसा कालेज में जा पहुंचा.

बीकाम अंतिम वर्ष में थी वह. 4 सहेलियों की चौकड़ी थी उन की. मस्त, खिलंदड़ और शरारती. उन के अंतिम 3 पीरियड्स खाली रहते थे, इसलिए वे कालेज बस के बजाय पैदल ही घर चल देती थीं. हंसतीबतियाती आधी सड़क घेर कर चलती थीं वे चारों. उन दिनों एक हैंडसम लड़का एक निश्चित दूरी बना कर उन के पीछे आया करता था बाइक पर. वे उसे कभी मजनू कहतीं तो कभी रोमियो. वे तो यह भी नहीं जानती थीं कि वह दीवाना किस का है.

पहेली तो तब सुलझी, जब परीक्षाएं शुरू होने से पहले लाइबे्ररी की किताबें लौटाने वह अकेली कालेज गई. लाइब्रेरी से निकल कर कोरीडोर तक ही पहुंची थी कि अचानक ‘वह’ सामने आ गया और एक खुलापत्र उस के हाथ में थमा कर न जाने कहां गायब हो गया और अर्चना ने कांपते मन और लरजते हाथों से उस अमराई में जा कर वह खत पढ़ा जहां अपनी हमजोलियों के साथ बैठ कर उस ने हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ पढ़ी थी, ‘नीरज’ के गीत गाए थे और भविष्य के आकाश को चांदसितारों से सजाने की योजनाएं बनाई थीं.

कहीं मेला कहीं अकेला- संयुक्त परिवार में शादी से क्यों डरती थी तनु?

‘‘यह रिश्ता मुझे हर तरह से ठीक लग रहा है. बस अब तनु आ जाए तो इसे ही फाइनल करेंगे,’’ गिरीश ने अपनी पत्नी सुधा से कहा.

‘‘पहले तनु हां तो करे, परेशान कर रखा है उस ने, अच्छेभले रिश्ते में कमी निकाल देती है…संयुक्त परिवार सुन कर ही भड़क जाती है. अब की बार मैं उस की बिलकुल नहीं सुनूंगी और फिर यह रिश्ता उस की शर्तों पर खरा ही तो उतर रहा है. पता नहीं अचानक क्या जिद चढ़ी है कि बड़े परिवार में विवाह नहीं करेगी, क्या हो गया है इन लड़कियों को,’’ सुधा ने कहा.

‘‘तुम्हें तो पता ही है न, यह सब उस की बैस्ट फ्रैंड रिया का कियाधरा है… ऐसी कहां थी हमारी बेटी पर आजकल के बच्चों पर तो दोस्तों का प्रभाव इतना ज्यादा रहता है कि पूछो मत,’’ गिरीशजी बोले.

दोनों पतिपत्नी चिंतित और गंभीर मुद्रा में बातें कर ही रहे थे कि तनु औफिस से

आ गई. मातापिता का गंभीर चेहरा देख चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘फिर कोई रिश्ता आ गया क्या?’’

उस के कहने के ढंग पर दोनों को हंसी आ गई. पल भर में माहौल हलकाफुलका हो गया. तीनों ने साथ बैठ कर चाय पी. फिर गिरीश का इशारा पा कर सुधा ने कहा, ‘‘इस रिश्ते में कोई कमी नहीं लग रही है, यहीं लखनऊ में ही लड़के के मातापिता अपने बड़े बेटेबहू के साथ रहते हैं. छोटा बेटा मुंबई में ही कार्यरत है, वह दवा की कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है.’’

तनु पल भर सोच कर मुसकराती हुई बोली, ‘‘अच्छा, वहां अकेला रहता है?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर यह तो ठीक है. बस, उस के मातापिता बारबार मुंबई न पहुंच जाएं.’’

‘‘क्या बकवास करती हो तनु,’’ सुधा को गुस्सा आ गया, ‘‘उन का बेटा है, क्या वे वहां नहीं जा सकते? कैसी हो गई हो तुम? ये सब क्या सीख लिया है? हम आज भी तरसते हैं कोई बड़ा हमारे सिर पर होता तो कितना अच्छा होता पर सब का साथ सालों पहले छूट गया और एक तुम हो… क्या ससुराल में बस पति से मतलब होता है? बाकी रिश्ते भी होते हैं, उन की भी एक मिठास होती है.’’

‘‘नहीं मां, मुझे घबराहट होती है, रिया बता रही थी…’’

सुधा गुस्से में  खड़ी हो गईं, ‘‘मुझे उस लड़की की कोई बात नहीं सुननी… उस लड़की ने हमारी अच्छीभली बेटी का दिमाग खराब कर दिया है…हमारे परिवार में हम 3 ही हैं. थोड़े दिन पहले तुम जौइंट फैमिली में हर रिश्ते का आनंद उठाना चाहती थी पर इस रिया ने अपनी नैगेटिव बातों से तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है.’’

तनु को भी गुस्सा आ गया. वह भी पैर पटकती हुई अपने रूम में चली गई.

गिरीश और सुधा सिर पकड़े बैठे रह गए.

तनु की बैस्ट फ्रैंड रिया का विवाह 6 महीने पहले ही दिल्ली में हुआ था. उस की ससुराल में सासससुर और पति अनुज थे, समृद्ध परिवार था. रिया भी अच्छी जौब में थी. तनु से ही रिया के हालचाल मिलते रहते थे. दिन भर दोनों व्हाट्सऐप पर चैट करती थीं. अकसर छुट्टी वाले दिन दोनों की बातें सुधा के कानों में पड़ती थीं तो वे मन ही मन बेचैन हो उठती थीं. उन्होंने अंदाजा लगा लिया था कि रिया सासससुर की, यहां तक कि अनुज की भी कमियां निकाल कर तनु को किस्से सुनाती रहती है. वह तनु की बैस्ट फ्रैंड थी,  जिस के खिलाफ एक शब्द भी सुनना तनु को मंजूर नहीं था. तनु को हर बात सुधा से भी शेयर करने की आदत थी इसलिए वह कई बातें उन्हें खुद ही बताती रहती थी.

कभी तनु कहती, ‘‘आज रिया का मूड खराब है मम्मी, उसे अनुज ने मौर्निंग वाक के लिए उठा दिया, उसे सोना था, बेचारी अपनी मरजी से सो भी नहीं सकती.’’

एक दिन तनु ने बताया, ‘‘रिया की सास हैल्थ पर बहुत ध्यान देती हैं… उसे वही बोरिंग टिफिन खाना पड़ता है.’’

सुधा ने पूछा, ‘‘उस की सास ही टिफिन बनाती हैं?’’

‘‘हां, रिया औफिस जाती है तो वे ही घर का सारा काम देखती हैं. उन के यहां कुक है पर उस की सास अपनी निगरानी में ही सब खाना तैयार करवाती हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. रिया को खुश होना चाहिए, इस में शिकायत की क्या बात है?’’

क्या खुश होगी बेचारी, उसे वह टिफिन अच्छा नहीं लगता. वह किसी और को खिला देती है. अपने लिए कुछ मनचाहा और्डर करती है बेचारी.

‘‘इस में बेचारी की क्या बात है? उस की सास हैल्दी खाना बनवा कर क्या गलत कर रही है?’’

तनु को गुस्सा आ गया, ‘‘आप उस की परेशानी क्यों नहीं समझतीं?’’

‘‘यह कोई परेशानी नहीं है. बेकार के किस्से सुना कर तुम्हारा टाइम और दिमाग दोनों खराब करती है वह लड़की.’’

2 दिन तो तनु चुप रही, फिर आदतन तीसरे दिन ही शुरू हो गई, ‘‘रिया के सारे रिश्तेदार दिल्ली में ही रहते हैं. कभी किसी के यहां कोई फंक्शन होता है, तो कभी किसी के यहां. पता नहीं  कितने तो रिश्ते के देवर, ननदें हैं, जो छुट्टी वाले दिन टाइमपास के प्रोग्राम बनाते रहते हैं. रिया थक जाती है बेचारी.’’

सुधा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. रिया की बातें सुनसुन कर थक गई थीं. तनु की सोच बिलकुल बदल गई थी. अच्छीखासी स्नेहमयी मानसिकता की जगह नकारात्मकता ने ले ली थी.

कुछ दिन बाद तनु के उसी रिश्ते की बात को आगे बढ़ाया गया. तनु और रजत मिले. दोनों ने एकदूसरे को पसंद किया. सब कुछ सहर्ष तय कर दिया गया. रजत मुंबई में अकेला रह रहा था, इसलिए उस के मातापिता गौतम और राधा को उस के विवाह की जल्दी थी. विवाह अच्छी तरह से संपन्न हो गया था.

रिया भी अनुज के साथ आई थी. वह तनु से कह रही थी, ‘‘तुम्हारी तो मौज हो गई तनु. सब से दूर अकेले पति के साथ रहोगी. काश, मुझे भी यही लाइफ मिलती पर वहां तो मेला ही लगा रहता है.’’

इस बात को सुन कर सुधा को गुस्सा आया था. सब रस्में संपन्न होने के बाद 1 हफ्ते बाद तनु और रजत मुंबई जाने की तैयारी कर रहे थे. तनु के औफिस की ब्रांच मुंबई में भी थी. उस की योग्यता को देखते हुए उस का ट्रांसफर मुंबई ब्रांच में कर दिया गया. रजत के भाई विजय, भाभी रेखा और 3 साल का भतीजा यश और स्नेह लुटाते सासससुर सब के साथ तनु का समय बहुत अच्छा बीता था.

बीचबीच में  रिया भी निर्देश देती रहती थी, ‘‘मुंबई आने के लिए कहने की फौर्मैलिटी में मत पड़ना, नहीं तो वहां सब डट जाएंगे आ कर.’’ भरपूर स्नेह और आशीर्वाद के साथ दोनों परिवार उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़ने आए.

तनु ने मुंबई पहुंच कर रजत के साथ नया जीवन शुरू किया. रजत के साथ ने उस का जीवन खुशियों से भर दिया. दोनों सुबह निकलते रात को आते. वीकैंड में ही दोनों को थोड़ी राहत रहती. सुबह लताबाई आ कर घर का सारा काम कर जाती. तनु फटाफट किचन का काम देखते हुए तैयार होती. 2 जनों का काम ज्यादा नहीं था पर रात को लौट कर किचन में घुसना अखर जाता.

रजत ने कई बार कहा भी था, ‘‘डिनर के लिए भी किसी बाई को रख लेते हैं.’’

‘‘पर हमारा कोई आने का टाइम तय नहीं है न और फिर घर की चाबी देना भी सेफ नहीं रहेगा.’’

‘‘चलो, ठीक है, मिल कर कुछ कर लिया करेंगे.’’ तनु की रिया से अब भी लगातार चैट चलती रहती थी. रिया उस के आजाद जीवन पर आंहें भरती थी. 5 महीने बीत रहे थे. रजत को 1 हफ्ते की ट्रैनिंग के लिए सिंगापुर भेजा जा रहा था. उस ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? लखनऊ से मातापिताजी को बुला लेते हैं…वैसे भी अभी तक घर से कोई नहीं आया.’’

‘‘नहीं, अकेली कहां, रिया का बहुत मन कर रहा है आने का, वह आ जाएगी… मातापिताजी को तुम्हारे लौटने के बाद बुला लेंगे,’’ तनु ने अपनी तरफ से बात टालने की कोशिश की तो रजत मान गया.

तनु ने मौका मिलते ही रिया को फोन किया, ‘‘अपना प्रोग्राम पक्का रखना, कोई बहाना नहीं.’’

‘‘अरे, पक्का है. मैं पहुंच जाऊंगी. मुझे भी इस भीड़ से छुट्टी मिलेगी. तेरे पास शांति से रहूंगी 1 हफ्ता.’’

जिस दिन रजत गया, उसी दिन शाम तक रिया भी मुंबई पहुंच गई. दोनों सहेलियां गले मिलते हुए चहक उठी थीं. बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. देर रात तक रिया के किस्से चलते रहे. सासससुर की बातें, देवरननदों में हंसीमजाक के किस्से, रिश्तेदारों के फंक्शनों के किस्से.

अगले दिन तनु ने छुट्टी ले ली थी. दोनों खूब घूमीं, मूवी देखी, शौपिंग की, रात को ही घर वापस आईं.

रिया ने कहा, ‘‘हाय, ऐसा लग रहा है दूसरी दुनिया में आ गई हूं. तेरे घर में कितनी शांति है तनु, दिल खुश हो गया यहां आ कर.’’

तनु मुसकरा दी, ‘‘अब थक गई हैं, सोती हैं. कल औफिस जाऊंगी, शाम को जल्दी आ जाऊंगी. सुबह मेड आ कर सब काम कर देगी, अपने टिफिन के साथ तेरा खाना भी बना कर रख दूंगी, आराम से उठना कल.’’

अगले दिन सब काम कर के तनु औफिस चली गई. बारह बजे रिया का फोन आया, ‘‘तनु, क्या बताऊं, मजा आ गया अभी सो कर उठी हूं, कितनी शांति है तेरे घर में, कोई आवाज नहीं, कोई शोर नहीं.’’

थोड़ी देर बातें कर रिया ने फोन काट दिया. तनु सुधा को भी रिया के आने का प्रोगाम बता चुकी थी. सुधा ने कहा था, ‘‘कितने अच्छे लोग हैं, बहू को आराम से 1 हफ्ते के लिए फ्रैंड से मिलने भेज रखा है, फिर भी रिया कद्र नहीं करती उन का.’’

रिया ने आराम से फ्रैश हो कर खाना खाया, टीवी देखा, फिर सो गई. शाम को तनु आई तो दोनों ने चाय पीते हुए ढेरों बातें कीं. रिया की बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं.

अचानक रिया ने कहा, ‘‘तू भी तो बता कुछ…कुछ किस्से सुना.’’

‘‘बस, किस की बात बताऊं, हम दोनों ही तो हैं यहां, सुबह जा कर रात को आते हैं, पूरा हफ्ता ऐसे ही भागतेदौड़ते बीत जाता है, वीकैंड पर ही आराम मिलता है. घर में तो कोई बात करने के लिए भी नहीं होता.’’

‘‘हां कितनी शांति है यहां. वहां तो घर में घुसते ही सासूमां चाय, नाश्ता, खाने की पूछताछ करने लगी हैं. मैं तो थक गई हूं वहां. आए दिन कुछ न कुछ चलता रहता है.’’

तनु आज अपने ही मनोभावों पर चौंकी. उस ने दिल में एक उदासी सी महसूस की. उस ने रिया की बातें सुनते हुए डिनर तैयार किया, बीचबीच में रिया के पति और उस के सासससुर फोन पर बातें करते रहे थे.

दोनों जब सोने लेटीं तो दोनों के मन में अलगअलग तरह के भाव उत्पन्न हो रहे थे. रिया सोच रही थी वाह, क्या बढि़या लाइफ जी रही है तनु. घर में कितनी शांति है, न कोई शोरआवाज, न किसी की दखलंदाजी कि क्या खाना है, कहां जाना है, अपनी मरजी से कुछ भी करो. वाह, क्या लाइफ है. उधर तनु सोच रही थी रिया इतने दिनों से ससुराल का रोना रो रही है कि काश, वह अकेली रह पाती पर मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि अकेले रहने में क्या सुख है? यहां तो हम दोनों के अलावा सुबह बस बाई दिखती है जो मशीन की तरह काम कर के चली जाती है. हमारी चिंता करने वाला तो कोई भी नहीं यहां. मायके में भी हम 3 ही थे, कितना शौक था मुझे संयुक्त परिवार की बहू बन कर हर रिश्ते का आनंद उठाने का. यहां हर वीकैंड में किसी मौल में या कोई मूवी देख कर छुट्टी बिता लेते हैं. घर आते हैं तो थके हुए. कोई भी अपना नहीं दिखता. इस अकेले संसार में ऐसा क्या सुख है, जिस के लिए रिया तरसती रहती है. ऐसे अकेलेपन का क्या फायदा जहां न देवर की हंसीठिठोली हो न ननद की छेड़खानी और न सासससुर की डांट और उन का स्नेह भरा संरक्षण.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के जीवन के बारे में सोच रही थीं. पर तनु मन ही मन फैसला कर चुकी थी कि वह कल सुबह ही लखनऊ फोन कर ससुराल से किसी न किसी को आने के लिए जरूर कहेगी. उसे भी जीवन में हर रिश्ते की मिठास को महसूस करना है. अचानक उस की नजर रिया की नजरों से मिली तो दोनों हंस दीं.

रिया ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही थी?’’

‘‘तुम्हारे बारे में और तुम?’’

‘‘तुम्हारे बारे में,’’ और फिर दोनों हंस पड़ीं, पर तनु की हंसी में जो रहस्यभरी खनक थी वह रिया की समझ से परे थी.

हैप्पी फैमिली: भाग 1- श्वेता अपनी मां की दूसरी शादी के लिए क्यों तैयार नहीं थी?

‘‘नहीं पापा, आप ऐसा नहीं कर सकते. आप ने मु झ से वादा किया था कि आप मेघा के पापा की तरह मु झे हर्ट करने के लिए नई मम्मी ले कर नहीं आओगे,’’ प्रज्ञा ने नाराज स्वर में कहा.

‘‘बेटा मैं मानता हूं मेघा की नई मम्मी अच्छी नहीं थी पर तेरी नई मम्मी बहुत अच्छी हैं. तु झे इतना प्यार करेंगी जितना तेरी अपनी मां भी नहीं करती होंगी,’’ प्रवीण ने बेटी को सम झाने की कोशिश की.

‘‘मैं यह बात कैसे मान लूं डैड? सारी सौतेली मांएं एक सी होती हैं.’’

‘‘चुप कर प्रज्ञा ऐसे नहीं कहते पता नहीं किस ने तेरे दिमाग में ऐसी बातें भर दी हैं,’’ प्रवीण ने  झल्लाए स्वर में कहा.

‘‘दूसरी बातें छोड़ो पापा, जरा अपनी उम्र तो देखो मेरी सहेलियां क्या कहेंगी जब उन्हें पता चलेगा कि मेरे पापा दूल्हा बन रहे हैं. कितना मजाक उड़ाएंगी वे. मेरा.’’

प्रवीण अभी अपनी बिटिया प्रज्ञा को सम झाने की कोशिश कर ही रहा था कि तब तक श्वेता भी अपनी मां पर बिफर पड़ी, ‘‘मम्मी, आप ने पापा से तलाक लिया, मु झे उन से दूर कर दिया पर मैं ने कुछ भी नहीं कहा क्योंकि मैं आप को दुखी नहीं देख सकती थी. पर आज आप ने मेरे आगे किसी अजनबी को ला कर खड़ा कर दिया और कह रही हो कि ये तुम्हारे पापा हैं. मम्मी आप की यह बात मैं नहीं मान सकती. बोल दीजिए इन से मैं इन्हें कभी भी पापा का दर्जा नहीं दे सकती,’’ कहतेकहते श्वेता रोने लगी तो अमृता ने उसे बांहों में समेट लिया.

श्वेता के आंसू पोंछते हुए अमृता ने कहा, ‘‘नहीं बेटा ऐसे नहीं रोते. ठीक है तू जैसा कहेगी मैं वैसा ही करूंगी.’’

काफी देर तक इस तरह के इमोशनल सीन चलते रहे. प्रवीण और अमृता

इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं थे. दोनों ने एकदूसरे को उदास नजरों से देखा और अपनीअपनी बेटी को संभालने लगे. दोनों लड़कियां इस बात पर भड़की हुई थीं कि उन के पेरैंट्स दूसरी शादी करना चाहते हैं.

38 साल की अमृता और 42 साल के प्रवीण को उन के एक कौमन फ्रैंड ने मिलवाया था. दोनों ही तलाकशुदा थे और दोनों के पास 13-14 साल की

1-1 बेटी थीं. प्रवीण की बेटी प्रज्ञा 8वीं कक्षा में पढ़ती थी जबकि अमृता की बेटी श्वेता 9वीं क्लास में पढ़ रही थी. अमृता और प्रवीण को आपस में मिले करीब 6 महीने हो गए थे. दोनों ने एकदूसरे का साथ ऐंजौय किया था. दोनों को महसूस हुआ था जैसे उन के जीवन में जो कमी है वह पूरी हो गई है. जब अपने रिश्ते को ले कर वे सीरियस हो गए तो उन्होंने तय किया कि वे एकदूसरे को अपनीअपनी बेटी से मिलवाएंगे पर उन्हें कहां पता था कि दोनों बच्चियों का रिएक्शन ऐसा होगा.

किसी तरह खाना खत्म कर दोनों अपनीअपनी बेटी को ले कर घर लौट आए. दोनों के ही चेहरे पर शिकन के भाव थे. अपने रिश्ते को ले कर उन के मन में संशय उभरने लगा था क्योंकि बेटियों की रजामंदी के बगैर उन का यह रिश्ता अधूरा ही रहने वाला था.

रात के 11 बज रहे थे. श्वेता सो चुकी थी, मगर अमृता करवटें बदल रही थी. आज उस की आंखों से नींद रूठ गई थी. उसे अपनी पिछली जिंदगी याद आ रही थी. कितनी तड़प थी उस के मन में. कितनी मजबूरी में उस ने अपने पति को छोड़ा था. यह बात बेटी को कैसे सम झाए. बेटी तो अभी भी पापा के बहुत क्लोज थी.

कुमार के साथ अमृता ने लव कम अरेंज्ड मैरिज की थी. शादी से पहले दोनों ने काफी समय तक डेटिंग करने के बाद शादी का फैसला लिया था. उसे कुमार काफी मैच्योर और सम झदार लगता था. शादी के बाद उस की जिंदगी खुशियों से भर गई थी. कुमार उसे बहुत प्यार करता था. जल्द ही अमृता की गोद में श्वेता आ गई. सब बढि़या चल रहा था. इस बीच कुमार को बिजनैस में बड़ा घाटा हुआ. उस ने स्थिति सुधारने का काफी प्रयास किया मगर सबकुछ बिगड़ता जा रहा था. कुमार काफी परेशान रहने लगा था.

एक दिन कुमार घर आया तो बहुत खुश था. अमृता को बांहों में भर कर बोला, ‘‘यार अमृता अब सबकुछ ठीक हो जाएगा… हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं.’’

श्वेता ने कहा, ‘‘ऐसा क्या हो गया? तुम्हें ऐसी कौन सी नागमणि मिल गई?’’

‘‘नागमणि ही सम झो. मु झे मेरे दोस्त ने एक बाबा से मिलवाया है. बहुत पहुंचे हुए स्वामी हैं. बस जरा सी भस्म दे कर सारे कष्ट दूर डालते हैं. मु झे भी भस्म मिल गई है. यह देखो, इसे अपने औफिस के गमले की मिट्टी में डालना है. फिर सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘इतने पढ़ेलिखे हो कर तुम ऐसी बातों में विश्वास करते हो? भला भभूत गमले की मिट्टी में डालने से तुम्हारा बिजनैस कैसे सुधर जाएगा?’’ अमृता ने आश्चर्य से कहा.

‘‘देखो अमृता स्वामीजी की शक्ति पर शक करने की भूल न करना… मु झे उन से मेरे दोस्त ने मिलवाया है. बहुत सिद्ध पुरुष हैं. पता है तुम्हें मेरे दोस्त की बीवी कंसीव नहीं कर पा रही थी. बाबाजी के आशीर्वाद से उस के गर्भ में जुड़वां बच्चे आ गए. सोचो कितनी शक्ति है उन के आशीर्वाद में.’’

‘‘प्लीज कुमार ऐसी अंधविश्वास भरी बातें मेरे आगे मत करो.’’

‘‘बस एक बार तुम उन से मिल तो लो फिर देखना कैसे तुम भी उन की शिष्या बन जाओगी,’’ कुमार ने अमृता को सम झाते हुए कहा.

कुमार के बहुत कहने पर आखिर अमृता को स्वामी के पास जाना पड़ा. शहर से करीब

12 किलोमीटर दूर बहुत बड़े क्षेत्र में स्वामीजी का आश्रम था. आश्रम क्या था एक तरह से बंगला ही था. एक बड़े हौल में एक कोने में नंगे बदन केवल धोती पहने स्वामीजी बैठे थे. सामने सैकड़ों अधीर भक्तों की भीड़ एकटक उन्हें निहार रही थी. स्वामीजी के बारे में यह बात प्रसिद्ध थी कि आंखें बंद कर वे किसी का भी अतीत, वर्तमान और भविष्य बता देते हैं.

कई जानेमाने रईस भक्तों की कृपा से उन की कुटिया बंगले में तबदील हो चुकी थी. स्वामी जी का बड़ा सा कमरा कहिए या शयनकक्ष, एक से बढ़ कर एक लग्जरी आइटम्स से सुसज्जित था. स्वामीजी रात 9 बजे से सुबह 9 बजे तक का समय वहीं बिताते थे. उन की सेवा के लिए कम उम्र की कई शिष्याएं नियुक्त थीं.

अमृता और कुमार जा कर आगे वाली लाइन में बैठ गए. कुमार ने आगे बैठने के लिए बाकायदा ऊंची फीस अदा की थी. 10-15 मिनट बाद ही स्वामीजी ने आंखें खोलीं. उन की नजरें पहले कुमार पर और फिर बगल में बैठी अमृता पर पड़ीं और फिर कुछ देर तक उस के चेहरे पर ही टिकी रह गईं. अमृता को देख कर उन की आंखों में चमक आ गई.

धन्यवाद भाग-3: जब प्यार के लिए वंदना ने तोड़ी मर्यादा

मैं ने वंदना को बड़ी मुश्किल से पहचाना. उस का चेहरा और बदन सूजा सा नजर आ रहा था. उस की सांसें तेज चल रही थीं और उसे तकलीफ पहुंचा रही थीं.

‘‘शालू, तू ने बड़ा अच्छा किया जो मुझ

से मिलने आ गई. बड़ी याद आती थी तू कभीकभी. तुझ से बिना मिले मर जाती, तो मेरा मन बहुत तड़पता,’’ मेरा स्वागत यों तो उस ने मुसकरा कर किया, पर उस की आंखों से आंसू भी बहने लगे थे.

मैं उस के पलंग पर ही बैठ गई. बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर मुंह से एक शब्द भी

नहीं निकला, तो उस की छाती पर सिर रख कर एकाएक बिलखने लगी.

‘‘इतनी दूर से यहां क्या सिर्फ रोने आई है, पगली. अरे, कुछ अपनी सुना, कुछ मेरी सुन. ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास गपशप करने का,’’ मुझे शांत करने का यों प्रयास करतेकरते वह खुद भी आंसू बहाए जा रही थी.

‘‘तू कभी मिलने क्यों नहीं आई? अपना ठिकाना क्यों छिपा कर रखा? मैं तेरा दिल्ली

में इलाज कराती, तो तू बड़ी जल्दी ठीक हो जाती, वंदना,’’ मैं ने रोतेरोते उसे अपनी शिकायतें सुना डालीं.

‘‘यह अस्थमा की बीमारी कभी जड़ नहीं छोड़ती है, शालू. तू मेरी छोड़ और अपनी सुना. मैं ने सुना है कि अब तू शांत किस्म की टीचर हो गई है. बच्चों की पिटाई और उन्हें जोर से डाटना बंद कर दिया है तूने,’’ उस ने वार्त्तालाप का विषय बदलने का प्रयास किया.

‘‘किस से सुना है ये सब तुम ने वंदना?’’ मैं ने अपने आंसू पोंछे और उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से सहलाने लगी.

‘‘जीजाजी तुम्हारी और सोनूमोनू की ढेर सारी बातें मुझे हमेशा सुनाते रहते हैं,’’ जवाब देते हुए उस की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव बढ़ते हुए साफसाफ देखे.

‘‘वे यहां कई बार आ चुके हैं?’’

‘‘हां, कई बार. मेरा सारा इलाज वे ही…’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि उन्होंने मु?ो अपने यहां आने की, तुम्हारी बीमारी और इलाज कराने की बातें कभी नहीं बताई हैं?’’

‘‘हां, मुझे पता है.’’

‘‘क्यों किया उन्होंने ऐसा? मैं क्या तुम्हारा इलाज कराने से उन्हें रोक देती? मुझे अंधेरे में क्यों रखा उन्होंने?’’ ये सवाल पूछते हुए मैं बड़ी पीड़ा महसूस कर रही थी.

‘‘तुम्हें कुछ न बताने का फैसला जीजाजी ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर लिया था, शालू.’’

‘‘पर क्यों किया उन्होंने ऐसा फैसला?’’

‘‘उन का मत था कि तुम शायद उन के ऐक्शन को समझ नहीं पाओगी.’’

‘‘उन का विचार था कि तुम्हारे इलाज कराने के उन के कदम को क्या मैं नहीं समझ पाऊंगी?’’

‘‘हां, और मुझ से बारबार मिलने आने की बात को भी,’’ वंदना का स्वर बेहद धीमा और थका सा हो गया.

कुछ पलों तक सोचविचार करने के बाद मैं ने झटके से पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम जीजासाली कब से एकदूसरे से मिल रहे हो?’’

एक गहरी सांस छोड़ कर वंदना ने बताया, ‘‘करीब सालभर पहले वे टूर पर बनारस आए हुए थे. वहां से वे अपने एक सहयोगी के बेटे की शादी में बरात के साथ यहां कानपुर आए थे. यहीं अचानक इसी नर्सिंगहोम के बाहर हमारी मुलाकात हुई थी. वे अपने पुराने दोस्त डाक्टर सुभाष से मिलने आए थे.’’

‘‘और तब से लगातार यहां तुम से मिलने आते रहे हैं?’’

‘‘हां, वे सालभर में 8-10 चक्कर यहां

के लगा ही चुके होंगे. उन का भेजा कोई न

कोई आदमी तो मुझ से मिलने हर महीने जरूर आता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यहां का बिल चुकाने, मुझे जरूरत के रुपए देने. मैं कोई जौब करने में असमर्थ हूं न. मुझ बीमार का बोझ जीजाजी ही उठा रहे हैं शालू.’’

अचानक मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही  झटके में सारा माजरा मुझे समझ

आ गया.

‘‘तुम्हारा और तुम्हारे जीजाजी का अफेयर चल रहा है न… मुझ से छिपा कर तुम से मिलने का. तुम्हारी बड़ी आर्थिक सहायता करने का और कोई कारण हो ही नहीं सकता है, वंदना,’’ मारे उत्तेजना के मेरा दिल जोर से धड़कने लगा.

उस ने कोई जवाब नहीं दिया और आंसूभरी आंखों से बस मेरा चेहरा निहारती रही.

‘‘मेरा अंदाजा ठीक है न?’’ मेरी शिकायत से भरी आवाज ऊंची हो उठी. पलभर में मेरी आंखों पर वर्षों से पड़ा परदा उठ गया है. मेरी सब से अच्छी सहेली का मेरे पति के साथ अफेयर तो तब से ही शुरू हो गया होगा जब मैं बीएड करने में व्यस्त थी और तुम मेरे हक पर चुपचाप डाका डाल रही थी. तुम ने शादी क्यों तोड़ी, अब तो यह भी मैं आसानी से समझ सकती हूं. तब कितनी आसानी से तुम दोनों ने मेरी आंखों में धूल झोंकी.’’

‘‘न रो और न गुस्सा कर शालू. तेरे अंदाज ठीक है, पर तेरे हक पर मैं ने कभी डाका नहीं डाला. कभी वैसी भयंकर भूल मैं न कर बैठूं, इसीलिए मैं ने दिल्ली छोड़ दी थी. हमेशा के लिए तुम दोनों की जिंदगियों में से निकलने का फैसला कर लिया था. मुझे गलत मत समझ, प्लीज.

‘‘जीजाजी बड़े अच्छे इंसान हैं. हमारे बीच जीजासाली का हंसीमजाक से भरा रिश्ता पहले अच्छी दोस्ती में बदला और फिर प्रेम में.

‘‘हम दोनों के बीच दुनिया के हर विषय पर खूब बातें होतीं. हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी बन गए थे. हमारे आपसी संबंधों की मिठास और गहराई ऐसी ही थी जैसी जीवनसाथियों के बीच होनी चाहिए.

‘‘फिर मेरा रिश्ता तय हुआ पर मैं ने अपने होने वाले पति की जीजाजी से तुलना करने की भूल कर दी. जीजाजी की तुलना में उस के व्यक्तित्व का आकर्षण कुछ भी न था.

‘‘मैं जीजाजी को दिल में बसा कर कैसे उस की जीवनसंगिनी बनने का ढोंग करती. अत: मैं ने शादी तोड़ना ही बेहतर समझ और तोड़ भी दी.

‘‘जीजाजी मुझे मिल नहीं सकते थे क्योंकि वे तो मेरी बड़ी

बहन के जीवनसाथी थे. तब मैं ने भावुक हो कर उन से खूबसूरत यादों के सहारे अकेले और तुम दोनों से दूर जीने का फैसला किया और दिल्ली छोड़ दी.’’

‘‘मैं तो कभी तुम दोनों से न मिलती पर कुदरत ने सालभर पहले मुझे जीजाजी से अचानक मिला दिया. तब तक अस्थमा ने मेरे स्वास्थ्य का नाश कर दिया था. मां के गुजर जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली ही आर्थिक तंगी और जानलेवा बीमारी का सामना कर रही थी.

‘‘जीजाजी के साथ मैं ने उन के प्रेम में

पड़ कर वर्षों पहले अपनी जिंदगी के सब से सुंदर 2 साल गुजारे थे. उन्हें भी वह खूबसूरत समय याद था. मु?ो धन्यवाद देने के लिए उन्होंने सालभर से मेरी सारी जिम्मेदारी उठाने का बोझ अपने ऊपर ले रखा है. मैं बदले में उन्हें हंसीखुशी के बजाय सिर्फ चिंता और परेशानियां ही दे सकती हूं.

‘‘यह सच है कि 15 साल पहले तेरे हिस्से से चुराए समय को जीजाजी के साथ बिता कर मैं ने सारी दुनिया की खुशियां और सुख पाए थे. अब भी तेरे हिस्से का समय ही तो वे मुझे दे कर मेरी देखभाल कर रहे हैं. तेरे इस एहसान को मैं इस जिंदगी में तो कभी नहीं चुका पाऊंगी, शालू. अगर मेरे प्रति तेरे मन में गुस्सा या नफरत हो, तो मुझे माफ कर दे. तुझे पीड़ा दे कर मैं मरना नहीं चाहती हूं,’’ देर तक बोलने के साथसाथ रो भी पड़ने के कारण उस की सांसें बुरी तरह से उखड़ गई थीं.

मैं ने उसे छाती से लगाया और रो पड़ी. मेरे इन आंसुओं के साथ ही मेरे मन में राजेश और उसे ले कर पैदा हुए शिकायत, नाराजगी और गुस्से के भाव जड़ें जमाने से पहले ही बह गए.

बदरंग इश्क: भाग 1- क्यों वंशिका को धोखा दे रहा था सुजीत?

‘‘आज फिर उस का फोन आया था. कह रहा था फिर से शादी कर लेते हैं. मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकता हूं. तुम भी इतनी कोशिशों के बाद कोई अच्छी नौकरी नहीं ढूंढ़ पाई हो. इस बार पक्का वादा करता हूं, आखिरी सांस तक निभाऊंगा,’’ वंशिका एक सांस में सबकुछ बोल गई. रितु उस के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी. खूबसूरत चेहरे पर लालिमा आ गई थी.

थोड़ा सा गर्व भी मस्तिष्क पर  झलक रहा था जैसे कहना चाह रहा हो. आखिर मैं ने उसे उस की गलती का एहसास करवा ही दिया है. बेटे के प्रति उस के दिल में भावना जगा ही दी है. हार कर ही सही मैं जीत गई हूं. वंशिका के चेहरे की गरिमा देख कर रितु खुश थी लेकिन दुखी थी उस के साफ दिल से. वंशिका का दिल इतना साफ, इतना कोमल था कि उस की जिंदगी को 25 साल की उम्र में ही अवसाद से भर देने वाले इंसान से भी उसे नफरत नहीं थी.

‘‘किस मिट्टी की बनी हो, वंशिका. उस इंसान ने बिना किसी अपराध के तुम्हारी जिंदगी को कैद बना दिया है. फिर भी उस की बातों पर गौर कर रही हो.’’ वंशिका रितु की बात से सहमत थी, लेकिन सुजीत की बातों पर रितु की तरह शक नहीं कर पा रही थी. ‘‘उस ने खुद ही मु झ से संपर्क किया है. मैं ने तो कब से उस का नंबर ब्लौक कर दिया था, लेकिन उस ने दूसरे नंबर से कौल कर लिया.

फिर अभि के बारे में पता करने से मैं उसे नहीं रोक सकती हूं. कोर्ट का भी यही फैसला था.’’ वंशिका की बात सुन कर रितु सम झ गई कि अभी उस की प्यारी सहेली को फरेब और जिम्मेदारी का फर्क सम झ में नहीं आएगा इसलिए उस ने चले जाना ही बेहतर समझा.

रितु के जाने के बाद वंशिका घर वापस आ गई. अभि सोया हुआ था इसलिए चुपचाप  उस के पास जा कर लेट गई. लेटते ही नींद आ गई. वंशिका की मम्मी ने फोन पर रितु से कब बात कर के उस के जीवन में चल रही मानसिक उठापटक की पूरी जानकारी ले ली उसे पता ही नहीं चला.

अभि स्कूल जाने के लिए मना कर रहा था. अकसर ऐसा ही होता कि जब वंशिका घर में होती तो वह स्कूल जाना ही नहीं चाहता. पूरा दिन मां के साथ ही रहता. उस दिन नानानानी के पास भी नहीं जाता. वंशिका उस की मनोदशा सम झती थी इसलिए कभी उस पर स्कूल जाने का दबाव नहीं डालती थी.

जब कोख में था तब से वंशिका पढ़ाई कर रही थी. इसी साल उस ने पोस्ट ग्रैजुएशन पूरा किया था. नौकरी के लिए तलाश जारी थी. जीवन की कड़वाहट भुलाने का एक यही उपाय था इस समय. शादी के बाद भी लड़की को घर में क्यों बैठा रखा है. पसंद का लड़का मिला था फिर भी क्यों उस के साथ निभा नहीं पाई लाडली. बेटी तो बेटी नाती को भी पास में ही रखा हुआ है.

दबी जबान में यही चर्चा करते थे लोग. वंशिका और उस का परिवार सब सुन कर भी अनसुना करता आ रहा था. अभी तक तो किसी को यह भी नहीं पता था कि वंशिका का तलाक हो चुका है और वह कभी ससुराल नहीं जाएगी. अभि को उसे अकेले ही बड़ा करना है. उस के बेवफा बाप से बहुत बेहतर इंसान बनाना है. अभि और वंशिका आज दोनों घर पर ही रहे.

वंशिका ने भी नौकरी ढूंढ़ने की अपनी मुहिम को अगले हफ्ते पर टाल दिया. बस दिनभर गेम खेलती रही उस के साथ. अगले दिन अभि को खुद ही स्कूल छोड़ कर आई. उस के आने से पहले गरमगरम खाना तैयार कर के रखा. पूरा 1 सप्ताह उस की मरजी से ही बिताया. वंशिका अभि के चेहरे पर इतनी खुशी पहली बार देख रही थी. वंशिका ने अभि की पसंद की मिठाई खरीदी और चहकती हुई घर में दाखिल हुई. ‘‘ऐसे क्या देख रही हो मां.

नौकरी मिल गई है मु झे. ज्यादा बड़ी नहीं पर मिल गई है. खुश होना तो बनता है न? इसलिए मिठाई ले आई. आप और पापा तो मीठा खाते नहीं हो तो अभि के लिए ले आई हूं.’’ ‘‘अभि स्कूल से नहीं आया है अब तक. लाओ मैं रख देती हूं,’’ मां खुश थी. ‘‘बड़े दिनों बाद तुम्हारे चेहरे पर हंसी देख कर मन को शांति मिली. कुदरत तुम्हारी मेहनत सफल करे,’’ मां ने वंशिका के सिर पर हाथ फेर कर उसे गले से लगा लिया. उन की आंखों से टपटप आंसू गिर रहे थे. ‘‘नहीं मां, अब रोने का नहीं हंसने का समय आ चुका है. जो हुआ वह मेरे हिस्से में लिखा था.

अपने पापा और अभि के साथ से मैं उस गलतफहमी से बाहर आ गई हूं अब. मेरे लिए हंस दो मां,’’ वंशिका ने मां के आंसू पोंछते हुए कहा. ‘‘मु झे अपने ऊपर गुस्सा आता है बेटा. तु झे मैं ने ही उस रिश्ते के लिए तैयार किया था. जानती नहीं थी कि जिस पढ़ाई को छुड़वा रही हूं, उसी को फिर से करवाना पड़ेगा और नौकरी के लिए तु झे इतना संघर्ष करना पड़ेगा,’’ मां की आंखें अब भी नम थीं. ‘‘आप ने तो सब अच्छा ही देखा था न. सगी मां हो मेरी, सौतेली नहीं हो.

धोखा तो उन रिश्तेदारों ने दिया जिन्होंने सचाई छिपाई. तुम्हारी गलती नहीं थी मां. फिर कभी अपने मुंह से ऐसी बात मत कहना.’’ वंशिका ने मां की साड़ी के पल्लू से एक बार फिर से मां की आंखों से आंसू पोंछ दिए. पापा का फोन आया कि अभि को स्कूल से ले कर पहले बाजार जाएंगे फिर घर आएंगे. उसे नई साइकिल जो दिलानी थी. मां घर के काम में व्यस्त हो गई और वंशिका अपने कमरे में आ कर लेट गई. फोन देखने का आज मन ही नहीं था.

एक संतुष्टि थी कि व्यस्त रहने का एक बहाना तो मिल ही गया है. फिर भी आंखों में आंसू आ गए. दोनों हाथ मुंह पर रख लिए. जीवन में पिछले कुछ सालों में हुई उठापटक घटनाओं के रूप में पलकों में सिमट गई और फिल्म की तरह दृश्य बदलने लगे… बीए की परीक्षा जैसे ही खत्म हुई मां ने बताया कि उन के एक दूर के रिश्तेदार घर आ रहे हैं. वंशिका ने घर को ठीक किया और ड्राइंगरूम को अच्छे से व्यवस्थित कर दिया. उसे पता ही नहीं था कि उस का उत्साह और रचनात्मकता आधार बन जाएगी उस के जीवन में आने वाली मुसीबतों की.

मेहमान आ कर चले गए. जाने के बाद उन का फोन आया तो मां खुशी से उछल पड़ी और वंशिका को पास में बुला कर दुपट्टे से उस का घूंघट निकाल दिया. वंशिका कुछकुछ सम झी लेकिन दूसरे ही पल घबरा कर दुपट्टा उतर कर फेंक दिया. बोली, ‘‘क्या मां. डरा ही दिया आप ने. बिलकुल मत कहना कि तुम्हारे रिश्तेदारों ने मु झे पसंद कर लिया है.’’ मां के चेहरे पर भेदभरी मुसकान थी. ‘‘मेरी लाड़ो को कोई नापसंद कर सकता है क्या? मेरी परी सभी को पसंद है. ग्रैजुएशन करते ही एक स्थापित परिवार ने हाथ मांग लिया है.’’

सोने के वरक के पीछे छिपा भेड़िया (भाग-3)

‘‘दीदी, क्या हुआ आप को? डाक्टर कह रहे थे कोई गहरा सदमा पहुंचा है आप को?’’ निहारिका परेशानी से पूछ रही थी.

सारिका ने प्यार से उस का हाथ थाम लिया. उस की आंखों से फिर आंसू बहने लगे थे. उस के कारण ही उस की प्यारी छोटी बहन घर के भेडि़ए का निशाना बनी थी. सारिका को रोता देख निहारिका भी उस के कंधे से लग कर रोने लगी. तभी मोहित अंदर आ गए और निहारिका को कंधे से पकड़ कर उठाते हुए पूछने लगे, ‘‘क्या हुआ बच्चे?’’

तभी सारिका ने नफरत के साथ मोहित के हाथ झटक दिए और जलती आंखों से मोहित को देखा. वह उसे उस हिंसक जानवर की तरह लग रहा था, जो अपने शिकार की तरफ घात लगाए बैठा रहता है और अवसर मिलते ही वार कर के अपनी भूख मिटा लेता है. सारिका के इस व्यवहार से मोहित सिर झुकाए बाहर निकल गए और निहारिका हैरानी से सारिका से पूछने लगी, ‘‘दीदी, क्या हो गया? आप ने ऐसा क्यों किया?’’

सारिका शून्य में देख कर बोली, ‘‘शुक्र करो अभी कुछ नहीं हुआ. बस अपना सामान समेट लो, तुम्हें वापस घर जाना है.’’

‘‘पर दीदी, अभी तो आप की तबीयत भी ठीक नहीं है. क्या मुझ से कोई गलती हो गई है?’’ निहारिका ने इतने भोलेपन से पूछा कि सारिका मन ही मन रो उठी. ‘गलती तुम से नहीं मुझ से हुई है, जो एक शैतान को इंसान समझ बैठी.’ पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘अब मुझे तुम्हारी नहीं किसी बड़े की जरूरत है. अगर कल फिर मेरी तबीयत खराब हो गई तो तुम कैसे संभालोगी?’’ एक बेजान सी मुसकराहट लिए सारिका ने बहन को समझाना चाहा.

‘‘दीदी, आज तो जीजू मुझे घुमाने ले जाएंगे और आइसक्रीम भी खिलाने का प्रोग्राम है,’’ निहारिका बच्चों की तरह ठुनक रही थी.

‘‘नहीं, आज ही चलना है,’’ सारिका सख्ती से बोली और सामान समेटने लगी. फिर पहली बार वह मोहित को बिना बताए मायके आ गई.

उस के आने से सब खुश थे पर अकेले आने के कारण कुछ चिंतित भी. फिर भी सारिका की चुप्पी को बीमारी का कारण जान कर कोई कुछ नहीं बोला.

रात में, अपने कमरे में पहुंचते ही उस के सब्र का बांध फिर से टूट गया. मोहित की बातें उस के मनमस्तिष्क में तूफान उठा रही थीं. यह ऐसा दुख था जिसे वह आसानी से किसी से कह भी नहीं सकती थी. खुद से ही लड़तेलड़ते न जाने कब उस की आंख लग गई पता ही नहीं चला. सुबह उठी तो उस का चेहरा उतरा हुआ था और आंखें सूजी हुई थीं.

मां की अनुभवी आंखें बहुत कुछ समझ रही थीं. उन्होंने सारिका से जानने की कोशिश भी की पर उस ने तबीयत का बहाना बना कर बात टाल दी, तो मां ने फिर कहा, ‘‘बेटा, मोहित आए हैं. बहुत परेशान हैं. तुम उन से कह कर भी नहीं आईं.’’

सारिका का पूरा अस्तित्व जैसे नफरत से भर गया, ‘‘क्या जरूरी है हर सांस उन की मरजी से ली जाए?’’

मां ने गौर से सारिका के चेहरे को देखा, ‘‘मुझे लग रहा है बेटा जैसे कुछ ठीक नहीं है. तुम कुछ अपसैट सी हो. क्या बात है मुझे बताओ?’’

सारिका सिर झुकाए बैठी रही. मां का अपनापन उस की चुप्पी तोड़ने को तैयार था.

‘‘बेटा, अगर मोहित से कुछ नाराजगी है, तो मिलबैठ कर गिलेशिकवे दूर कर लो. मियांबीवी में खटपट तो हो ही जाती है. ऐसे में मायके आ बैठना ठीक नहीं है.’’

‘‘तो क्या मैं कुछ दिन भी मायके में नहीं रह सकती?’’ सारिका की आवाज में तीखापन आ गया था.

‘‘क्यों नहीं रह सकतीं. यह भी तुम्हारा घर है. चाहे जब आओ, पर ऐसे झगड़ा कर के रूठ कर नहीं, राजीखुशी से,’’ मां प्यार से समझा रही थीं.

उन के ममता भरे स्पर्श से सारिका रोने को हो आई, ‘‘नहीं मां, बस मन एकदम से उचट गया. अकेले दिल घबराता है. मोहित बाहर रहते हैं और मेरा अकसर ब्लडप्रैशर लो हो जाता है, जैसे अभी हो गया था. अगर फिर से ऐसा ही हो गया तो मुझे कौन संभालेगा? बस इसीलिए ही. आप पूछ लो मोहित से, हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ?’’ सारिका मां के सीने से लग कर रो दी थी. अब हलकापन महसूस कर रही थी.

‘‘ओहो, इतनी सी बात है. कोई बात नहीं, पहली बार है न इसलिए ऐसा कभीकभी हो जाता है. तुम चिंता न करो, मैं मोहित से बात कर लूंगी. चलो, अब फ्रैश हो कर बाहर आ जाओ.’’

मोहित अकसर उस से मिलने आते थे. लेकिन सारिका दिल की नफरत और चेहरे की उदासीनता को कम नहीं कर पाती थी.

‘‘ओह दीदी, कितनी प्यारी गुडि़या है,’’ प्रसव के बाद जब निहारिका की चहकती आवाज उस के कानों में पड़ी तो उस के अंदर संतोष सा उतर आया. थोड़ी देर बाद वह मासूम आंखें बंद किए उस की बांहों में थी. तभी मोहित ने भी अंदर आ कर मम्मीपापा के पैर छुए तो सारिका ने आंखें बंद कर लीं.

‘‘लीजिए अपनी प्यारी गुडि़या को,’’ निहारिका ने गुडि़या को मोहित की ओर बढ़ाया तो उन्होंने झिझक कर मम्मीपापा को देखा. वे मुसकरा कर बाहर चले गए.

‘‘अब आप हमें नया सूट दिलवाएंगे और आइसक्रीम भी खिलाएंगे,’’ निहारिका मोहित के बहुत करीब खड़ी फरमाइश कर रही थी.

यह देख सारिका के तनबदन में आग लग गई. वह जोर से बोल पड़ी, ‘‘निहारिका, इतनी बड़ी हो गई है तू, अक्ल नाम की चीज नहीं है. दूर हट कर तमीज से बात कर.’’

‘‘तुम्हें क्या हो गया है?’’ मोहित ने धीमे से पूछा.

‘‘जाओ बस, मुझे आराम करना है,’’ रूखाई से कह कर सारिका ने आंखें बंद कर लीं, तो मोहित कुछ पल उसे देखते रहे फिर होंठ भींच कर बाहर निकल आए.

अस्पताल से सारिका मां के घर आ गई थी. 1 महीने बाद जब वह अपने घर वापस गई, तो उस के बदन में खून की जगह नफरत का जहर भर चुका था. अब वह अपने जहर भरे शब्दों का प्रयोग बिना हिचक करती थी. मोहित उस की हालत से दुखी थे. उस को बहुत प्यार करते थे, हर जरूरत का खयाल रखते थे पर सारिका उस दिल का क्या करती जिस में मोहित के लिए कोई नर्म कोना नहीं बचा था. वह उस इंसान को, जो उस का पति था सिर्फ अपनी बेटी की खातिर बरदाश्त कर रही थी

अब मोहित किसी से बात करते तो वह मोहित को कुछ नहीं कहती थी, लेकिन उस औरत को जरूर तीखी बातें सुना देती थी. लड़कियां मोहित की लच्छेदार बातों से प्रभावित हो कर चहकतीं, तो सारिका की तीखी नजरें उन्हें ऐसा एहसास दिलातीं कि वे उस से दोबारा बात करने की हिम्मत न करतीं.

मोहित को वह अपनी चुप्पी से मारती थी. मोहित धीरेधीरे गुमसुम हो रहे थे और वह लड़ाका के रूप में मशहूर हो रही थी. इसी कारण मोहित ने लड़कियों, महिलाओं से घुलनामिलना बंद कर दिया था. पर सारिका जानती थी कि बीमार मस्तिष्क वाला इंसान इतनी आसानी से नहीं सुधर सकता. उसे समय चाहिए.

आज इन लड़कियों की बातें सुन कर उस के जख्म फिर से हरे हो गए थे. पर कोई नहीं जानता था कि शोख हंसतीखिलखिलाती सारिका में यह बदलाव क्यों आया था.

सारिका ने बच्ची का नाम किरण रखा था. उसे यकीन था कि उस की बेटी उस की अंधेरी जिंदगी में उजाले की किरण बन कर आएगी, जो मोहित की काली सोच के अंधेरे को भी मिटाएगी.  मोहित को एहसास दिलाएगी कि लड़कियां सिर्फ मन बहलाने का सामान नहीं होतीं. उन्हें एहसास होगा कि वे भी एक बेटी के पिता हैं, जिसे पुरुष खिलौना समझते हैं. जिन लड़कियों की नादानी और मासूमियत का मोहित ने फायदा उठाया वे भी किसी की बेटियां हैं. फिर शायद वे रिश्तों की, स्त्रीजाति की इज्जत करना सीख जाएंगे.

बेटी का अस्तित्व उन्हें उजली राह दिखाएगा, जिस से सारिका के मन की कड़वाहट भी घुल जाएगी. सारिका को पूरी उम्मीद थी कि एक दिन ऐसा अवश्य होगा.

दूरी: भाग 3- जब बेटी ने किया पिता को अस्वीकार

अकेले नन्ही बच्ची की जिम्मेदारी बिना किसी अच्छी नौकरी के कैसे उठाती? अधूरी सी जिंदगी कैसे जी पाती वह? पर पलक का कहना भी पूरी तरह गलत नहीं. क्या सचमुच वह स्वार्थी नहीं हो गई थी? अपना अधूरापन दूर करने और पुरुष के संबल की चाह में ही तो उस ने प्रकाश का साथ स्वीकारा और इस कोशिश में बच्चे की खुशियों की अनदेखी कर दी. यदि वह मजबूत होती तो प्रकाश की तरफ झुकाव नहीं होता. वह देर तक इसी उधेड़बुन में रही. और आज प्रकाश ने पहली दफा पलक पर हाथ उठाया था. क्या पता अब पलक की प्रतिक्रिया कैसी होगी? कहीं वह सचमुच घर छोड़ कर चली गई तो? जवान लड़की है, कुछ भी हो सकता है उस के साथ. नहींनहीं… उसे पलक को समझना पड़ेगा. पर कैसे? वह समझती कहां है? हालात और बिगड़ते जा रहे थे. क्या करे वह? क्या है समाधान? पूरा दिन उस ने बेचैनी में गुजारा. पलक को फोन किया तो मोबाइल औफ मिला चिंता से उस का सिर दुखने लगा.

शाम को प्रकाश आया तो उदास सा था. मेघा ने

उसे बताया कि पलक अब तक नहीं लौटी है. कहीं कुछ कर न बैठे… कहतेकहते उस की आंखों में आंसू आ गए.

प्रकाश बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया. मेघा बेटी को फोन करकर परेशान थी. रात 9 बजे पलक लौटी तो मेघा ने दौड़ कर उसे सीने से लगा लिया. पर पलक मेघा को खुद से अलग कर अपने कमरे में बंद हो गई. मेघा का मन कर रहा था चीखचीख कर रोए. इस घुटन भरी जिंदगी से वह आजिज आ गई थी.

सुबह जब प्रकाश औफिस के लिए निकला तो उस के हाथ में सूटकेस था. उस ने मेघा को बताया कि वह औफिशियल टूर पर देहरादून जा रहा है. घर और पलक का खयाल रखना. कह कर मेघा को सीने से लगा लिया. ठीक वैसे ही जैसे मिहिर टूर पर जाते वक्त लगा था. मेघा दूर तक उसे जाते

देखती रही.

तभी पलक भी बिना कुछ कहे कालेज के लिए निकलने

लगी. दादीमां ने उसे प्यार से पकड़ते हुए कहा, ‘‘बेटा, प्लीज शाम को जल्दी घर आ जाना वरना मैं मर जाऊंगी.’’

पलक ने शिकायती लहजे में मां के बेबस चेहरे की तरफ देखा और चुपचाप निकल गई.

दुखी मन से मेघा अपने कमरे में आ गई. अपने बैड पर पत्र रखा देख कर वह चौंकी. पत्र प्रकाश का था. लिखा था,

‘‘डियर मेघा, हमारा रिश्ता बहुत पाकसाफ और खूबसूरत है जिसे कोई और नहीं सम?ा सकता. बेटी भी नहीं. इस बात का दर्द तो हमेशा रहेगा पर बच्चे के भविष्य के लिए हमें इस से भी बड़े दर्द भरे दौर से गुजरना पड़ेगा. दरअसल,

मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से पलक तुम से दूर हो. तुम पहले

एक मां का दायित्व अच्छी तरह निभाओ. पलक की शादी कर लो. फिर हम मिलेंगे. तब तक के लिए मैं तुम से दूर जा रहा हूं क्योंकि

यह दूरी हमारी बच्ची के लिए जरूरी है.’’

मेघा ने कई बार उस खत को पढ़ा. फिर निढाल सी सोफे पर बैठ गई. उसे लगा जैसे वह आज फिर से अधूरी हो गई है. प्रकाश के बगैर वह जीने की कल्पना भी कैसे

कर पाएगी?

प्रकाश ने भी तो कितनी मुश्किल से यह फैसला लिया

होगा. पर उस ने सही ही किया है. हमारे बीच यह दूरी जरूरी है. मेघा खत बंद कर देर तक खामोश बैठी रही. खुद को अधूरा महसूस करने के बावजूद वह दुखी नहीं थी, क्योंकि यह अधूरापन फिलहाल जरूरी था, दायित्वों को पूरा करने के लिए.

अपरिचित-भाग 1: जब छोटी सी गलतफहमी ने तबाह किया अर्चना का जीवन

वादियों की मीठी ठंडक बटोरते बटोरते, धूप और धुंध की आंखमिचौली देखतेदेखते, चीड़ और देवदार के पत्तों के बीच से छन कर आती विशुद्ध हवा को सांसों में भरते हुए कब शिमला पहुंच गए और कब गाड़ी ‘हिमलैंड’ की पार्किंग में जा लगी, अर्चना को पता ही नहीं चला.

रजत महाशय ने तो होटल की सीढि़यां चढ़ते ही घोषणा कर दी, ‘‘गाड़ी चलातेचलाते अपना तो बैंड बज गया भई, अपुन को अब कल सुबह से पहले कोई कहीं चलने के लिए न कहे. आज पूरा रैस्ट.’’

बच्चे राहुल और रिया तो कमरे में पहुंचते ही जूते उतार कर कंबल में दुबक गए और अर्चना बाथरूम में घुस गई.

बढि़या कुनकुने पानी से नहा कर लौटी तो राहुल और रिया गरमागरम कौफी पीते हुए टीवी देख रहे थे और रजत अर्चना और खुद के लिए कौफी तैयार कर रहे थे. अर्चना  को सुनहरे सितारों वाले सुर्ख सलवारसूट में सजे देख कर उन्होंने चुटकी ली, ‘‘ये बिजली कहीं गिरने जा रही है क्या?’’

‘‘हां, जरा, माल रोड का एक चक्कर लगा कर आती हूं.’’

‘‘तुम थकती नहीं यार?’’

‘‘लो, थकना कैसा? बैंड तो आप का बजा. मैं तो आराम फरमाती आई हूं. यों भी रजत, साल भर पत्थरों के पिंजरे में कैद रहने के बाद ये 6-7 दिन मिले हैं मुझे आजादी के, इन में से आधा दिन भी होटल के बंद कमरे में बैठ कर गुजारना मंजूर नहीं मुझे,’’ माथे पर बिंदिया का रतनारी सितारा टांकते हुए अर्चना ने कहा.

‘‘ठीक है, जाओ बेगम, लेकिन अंधेरा होने से पहले लौट आना,’’ रजत ने हिदायत दी और अर्चना खिल उठी. कभीकभी अकेले बिंदास घूमने का भी अपना एक अलग ही मजा होता है.

‘हिमलैंड’ परिसर से निकल कर संकरी घुमावदार सड़क से गुजरते हुए जब अर्चना ने मुख्य सड़क पर कदम रखे तो उसे एक अनोखा एहसास हुआ कि जैसे यह जानीपहचानी पथरीली सड़क उसी के दरसपरस को तरस रही थी. शिमला की मदमस्त फिजाएं और दिलकश मंजर उसे बरस दो बरस से जैसे बरबस यहां खींच कर ले ही आता है.

माल रोड रंगारंग देशीविदेशी पर्यटकों की खुशरंगियों से गुलजार हो रही थी. उन्हीं का एक हिस्सा थी छोटेछोटे कदम रखती हुई अर्चना, जो लिफ्ट की ओर बढ़ी जा रही थी कि अचानक ‘ये शाम मस्तानी, मदहोश किए जाए…’ की नशीलीसुरीली धुन हवाओं में खुशबू की तरह बिखर गई. उस ने मुड़ कर देखा तो लाल पुलोवर और काली जींस में रजत की उम्र का एक ‘डेशिंग मैन’ माउथ औरगेन बजाता हुआ चला आ रहा था. वह जादू जगाने वाली मीठी धुन लिफ्ट तक उस के साथसाथ चलती रही.

अपर माल रोड की ओर जाते हुए एक मोड़ पर अर्चना दो पल सुस्ताने के लिए बैठी तो उस ने देखा कि वह व्यक्ति भी इसी ओर चला आ रहा है. उस के सामने से गुजरते हुए पल भर को ठिठक कर उस ने एक गहरी नजर अर्चना पर डाली. न जाने क्या था उस नजर में कि अर्चना सिहर उठी.

एक भरपूर जवां और रंगीनहसीन शाम माल रोड पर उतरी हुई थी. नएनवेले जोड़े बांहों में बांहें डाले हंसी के मोती बिखेरते घूम रहे थे तो चाबी से चलने वाले खिलौनों से नन्हेमुन्ने बच्चे खरगोश की तरह फुदक रहे थे, जैसे वहां जिंदगी मुसकरा रही थी.

पहाड़ों की खासियत है कि यहां शाम जल्दी उतर आती है और बनी भी देर तक रहती है, इसीलिए शाम की इस गुलाबी उजास में नहाती अर्चना बेफिक्र हो कर चहलकदमी कर रही थी कि अचानक बादल गरजने लगे और शाम की सुनहरी संतरी रंगत में श्याम रंग घुल गया और देखते ही देखते बूंदाबांदी शुरू हो गई.

पहाड़ी मौसम के मिजाज को खूब पहचानती थी अर्चना, इसलिए इस से पहले कि ये बूंदाबांदी हलकी या तेज बारिश में बदले, वह ‘हिमलैंड’ पहुंच जाना चाहती थी, अत: उस ने अविलंब वापसी की राह पकड़ ली. ‘लिफ्ट पर भीड़ होगी,’ यह सोच कर वह शौर्टकट वाले ढलवां रास्ते पर उतर आई.

वह तेजतेज कदम बढ़ाते हुए चली जा रही थी कि उस भीगे मौसम में एक दर्द में डूबी धुन तैर गई, ‘दिल ने फिर याद किया, बर्क सी लहराई है…’ अर्चना का जी धक् से रह गया कि वह माउथ औरगेन वाला भी यहींकहीं मौजूद है. कौन है यह और चाहता क्या है? अर्चना को यह सोच परेशान भी कर रही थी और डरा भी रही थी. सहसा बूंदाबांदी ने हलकी बारिश का रूप धारण कर लिया और अर्चना सबकुछ भूल कर उस ऊबड़खाबड़ सड़क पर सधे हुए कदम रखरख कर आगे बढ़ने लगी.

रिसेप्शन पर चाय का और्डर दे कर अर्चना अपने कमरे में पहुंची. राहुल और रिया सो चुके थे, रजत बाहर के मौसम से बेखबर अपना लैपटौप ले कर बैठे थे. लैपटौप से नजरें उठाए बिना उन्होंने पूछा, ‘‘इतनी जल्दी कैसे आ गईं बेगम?’’ पर अर्चना ठंड से कांप रही थी, इसलिए बिना जवाब दिए कपड़े बदलने बाथरूम में घुस गई.

रात भर अर्चना ठीक से सो नहीं पाई. आंखें बंद करते ही जैसे वह व्यक्ति सामने आ कर खड़ा हो जाता और कानों में ‘शाम मस्तानी…’ और ‘दिल ने फिर याद किया…’ की धुनें गूंजने लगतीं. वह क्यों पीछा कर रहा है उस का? या हो सकता है कि उसे ही कोई गलतफहमी हुई हो… ‘हां, यही होगा,’ सोच कर उसे तनिक सा चैन आया और वह सोने की कोशिश करने लगी.

अगले दिन सुबहसवेरे ही वे लोग नालडेहरा की ओर निकल पड़े. सुबह के दुधिया उजास में ताजेताजे नहाएधोए से खड़े पहाड़ों के दरस ने और प्राणदायिनी ठंडी सुहानी हवाओं के स्पर्श ने अर्चना के चित को हराभरा कर दिया था और कल की शाम उस के जेहन से उतर चुकी थी. वह फिर सोनचिरैया सी चहक रही थी.

हरीभरी घाटियों को झुकझुक कर चूमते हुए धुएं की तरह बादलों और किसी कुशल चित्रकार द्वारा उकेरे गए खूबसूरत चित्रों से अजबगजब नजारों को कैमरे में कैद करने की मंशा से रजत ने एक हेयरपिन मोड़ पर गाड़ी रोक ली. रजत तसवीरें ले रहे थे और अर्चना  राहुलरिया के लिए भुट्टे भुनवा रही थी कि पास से एक सफेद मारुति गुजरी, जिसे ‘वह’ चला रहा था और अकेला था. अर्चना का अच्छाखासा मूड खराब हो गया और उसे पक्का यकीन हो गया कि ‘वह’ उस का पीछा कर रहा है, लेकिन रजत साथ हैं तो डर काहे का, सोच कर उस ने राहत भरी सांस ली.

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