अपरिचित -भाग-3: जब छोटी सी गलतफहमी ने तबाह किया अर्चना का जीवन

नीले मोती से अक्षरों में लिखा था, ‘अर्चना, मैं आप को पंसद करता हूं, बहुत… बहुत… बहुत… इतना जितना कभी किसी ने किसी को नहीं किया होगा. आप के साथ जिंदगी बिताना चाहता हूं मैं, इसलिए सिर्फ प्रेमनिवेदन नहीं कर रहा हूं, ब्याह का प्रस्ताव भी रख रहा हूं. न जाने फिर कब मिलना हो, इसलिए जवाब अभी ही दे दें प्लीज. ‘हां’ या ‘ना’ जो भी होगा मैं कबूल कर लूंगा.

‘…अखिल आनंद.’

खत पढ़ कर कंपकंपी छूट गई अर्चना की… जैसे जाड़ा लग कर ताप चढ़ रहा हो और न जाने किस भावना के अधीन हो कर उस ने खत के पीछे ही 2 पंक्तियां लिख डाली थीं, कांपते हाथों से… ‘हमारे घरों में ब्याहशादी के फैसले मातापिता करते हैं. पिता मेरे हैं नहीं, इसलिए जो बात करनी हो मेरी मां से करें.

‘…अर्चना.’

अर्चना ने नजरें झुका कर उसे पत्र लौटाया था, जिसे पढ़ कर भावावेश में अखिल ने उस का हाथ थाम लिया था, ‘आप की तो ‘हां’ होगी न?’

और लज्जाते हुए अर्चना ने ‘हां’ में गरदन हिला दी थी और उसी पल उस के दिल में बस गया था वह.

परीक्षा की तैयारी करतेकरते किताबकापियों में भी जैसे अखिल का चेहरा नजर आने लगा था अर्चना को. उस का वह स्पर्श याद आते ही तनमन सिहर उठता था उस का. पढ़ने में दिल नहीं लग रहा था, जबकि परीक्षा में कुछ ही दिन बाकी थे. पढ़ना जरूरी है, यह भी जानती थी वह, पर क्या करती मन के हाथों मजबूर हो चुकी थी. दिल हसरतों के मोती चुनने लगा था और आंखें सौसौ ख्वाब बुनने लगी थीं, लेकिन तब कहां जानती थी अर्चना कि उस की जिंदगी में प्यार की यह चांदनी सिर्फ चार दिन के लिए ही छाई थी… हां, सिर्फ चार दिन के लिए ही.

5वें दिन मां ताऊजी के घर गई हुई थीं और अर्चना अपने कमरे में बैठी अर्थशास्त्र के एक चैप्टर से सिर खपा रही थी कि मां आ गई धड़धड़ाती हुईं. उन्होंने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया और धीमे मगर चुभते स्वर में बोलीं, ‘ये अखिल आनंद के साथ क्या चक्कर है तेरा?’

‘कौन अखिल आनंद? कैसा चक्कर?’ उस ने नाटक किया.

‘बन मत और साफसाफ बता. क्या बात है? पता है कल शाम उस का बाप तेरे ताऊजी की दुकान पर आया था और कह रहा था कि ‘आप की भतीजी मेरे बेटे को फांस रही है. संभाल लें उसे.’ मैं तो जैसे शर्म से मर गई. बड़ा नाज था मुझे तुझ पर,’ मां रोने लगीं तो उस के भी आंसू निकल पड़े कि यह कैसा मजाक किया उस के साथ अखिल ने. रोतेरोते उस ने पूरा किस्सा मां के सामने बयां कर दिया तो मां ने उसे बांहों में भर लिया.

‘देख बच्चे, वे पैसे वाले लोग हैं. उन का हमारा कोई जोड़ नहीं, बस तू इतना समझ ले. तू मेरी बड़ी सयानी बच्ची है. तुझे ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं. तू पढ़ाई में दिल लगा बस.’ कैसे लगता दिल पढ़ाई में? दिल टूटा था… चोट लगी थी… दर्द भी होता था और टीसें भी उठती थीं कि अभीअभी तो जन्म लिया था उस के प्यार ने और अभी ही उस की मौत भी हो गई.

परीक्षाओं के दौरान ही जैसे आसमान से उतर कर उस के लिए एक रिश्ता आया, परीक्षाएं खत्म होने के फौरन बाद सगाई हो गई और एक महीने बाद ब्याह भी. मां ने उसे सख्त हिदायत दी थी, ‘बेटा, भूल कर भी रजत को कुछ न बताना. बात तो है भी नहीं कुछ, पर मर्द का क्या भरोसा, किस बात को किस तरह से ले ले.’

उस ने मां की हिदायत को हमेशा याद रखा था. रजत एक अच्छा पति साबित हुआ. उस ने उसे प्यार भी दिया और सुखसुविधाएं भी, फिर राहुलरिया की मां बन कर तो वह निहाल हो उठी थी. आहिस्ताआहिस्ता वह प्रेमप्रसंग गुजरे जमाने की असफल और कमजोर लघुकथा बन गया. उस की यादों के अक्स भी दिल के दर्पण से धुंधलाने लगे और अब वह इतने बरसों बाद फिर अचानक सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘अर्चना,’’ अखिल खड़ा था सामने कोक के 2 टिन और ढेरों पैकेट्स हाथों में थामे.

‘‘अखिल,’’ उस के हाथ से कोक का टिन लेते हुए अर्चना ने वह सवाल पूछा जो अब भी उस के मन में गीली लकड़ी सा सुलग रहा था, ‘‘आप ने इतना बड़ा मजाक क्यों किया था मेरे साथ?’’

‘‘कैसा मजाक अर्चना?’’

‘‘बनिए मत, पहले तो मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा, फिर अपने पापा को भेज दिया मेरे ताऊजी के पास कहने को कि आप की बेटी मेरे बेटे को फांस रही है, क्यों?’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं अर्चना? मेरे पापा ने ऐसा कुछ नहीं कहा था. मैं उन के साथ ही तो था. पापा ने तो हाथ जोड़ कर आप का रिश्ता मांगा था. आप के ताऊजी ने कहा था, ‘‘अर्चना को टीबी है, पता नहीं ठीक भी होगी या नहीं.’’

अर्चना के हाथ से ‘कोक’ का टिन छूट गया. जल बिन मछली सी तड़प उठी वह, ‘‘ऐसा कहा था ताऊजी ने? मेरे अपने ताऊजी ने, जिन्हें मैं पापा की तरह मानती थी.’’

‘‘आगे तो सुनिए. वह 2 दिन बाद हमारे घर आए, अपनी बेटी का रिश्ता ले कर, पर पापा ने इनकार कर दिया.’’

‘‘ये थे मेरे अपने? हाय, मैं 12 साल तक धोखे में रही, पर आप ने कैसे यकीन कर लिया उन की बातों पर? यही थी आप की चाहत? अच्छा, एक बात बताइए अखिल, टीबी तो दूर की बात है,  आप ने किसी भी बीमारी की छाया तक देखी थी मेरे चेहरे पर? आप मुझ से मिलते. खुल कर बात करते, लेकिन नहीं… आप ने तो मुझ से मिलने की कोशिश तक नहीं की अखिल. सब ने छल किया मेरे साथ,’’ बोलतेबोलते हांफने लगी थी अर्चना.

‘‘की थी कोशिश… बहुत कोशिश की थी मैं ने आप से मिलने की, पर आप की मां ने कभी आप से मिलने ही नहीं दिया, फिर सोचा वक्त सब ठीक कर देगा, पर फिर सुना कि परीक्षाओं के बाद ही आप का ब्याह हो गया. मैं तब भी आप के ताऊजी के पास गया था, ‘आप तो कह रहे थे, अर्चना को टीबी है, बचेगी नहीं,’ तो उन्होंने रूखे स्वर में कहा था, ‘वह ठीक हो गई. आप पूछ कर देखिएगा उन से.’

‘‘किस से पूछूं? न अब मां हैं और न ही ताऊजी,’’ वह कैसे और क्यों बताती अखिल को कि जो बीमारी उन्होंने उस पर आरोपित की थी, उसी से मिलतीजुलती बीमारी से 2 साल एडि़यां रगड़रगड़ कर मरे वह, और अपनी जिस बेटी के लिए उन्होंने अर्चना का पत्ता काटा था, उस की कैसी दुर्गति हुई ससुराल में.

सच है, यह धरती कर्मों की खेती है. ‘न जाने उस साजिश में कौनकौन शामिल था,’ एक उसांस ले कर सोचा अर्चना ने.

कुछ देर वहां खामोशी पसरी रही, फिर एकाएक अखिल ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और उस के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘आप लौटते हुए चंडीगढ़ आइएगा, रजत और बच्चों के साथ हमारे घर. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

अर्चना ने देखा कि उस की आंखों में वही सितारे झिलमिला रहे थे जो बरसों पहले ‘प्रणय निवेदन’ करते वक्त झिलमिलाए थे. एक हूक सी उठी अर्चना के कलेजे में.

वह कुछ देर तक मुग्ध निगाहों से निहारता रहा अर्चना को, फिर अचानक उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘मैं चलता हूं अर्चना, मुझे आज ही वापस जाना है. आज की इस मुलाकात को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा… कभी नहीं,’’ भीगे स्वर में कह कर वह चल दिया, फिर चार कदम चल कर उस ने मुड़ कर देखा. न जाने क्या कहा उस की खामोश निगाहों ने कि अर्चना की आंखें छलक आईं. उन आंसुओं को बहने दिया उस ने, फिर आहिस्ता से नरमी से उस विजिटिंग कार्ड को सहलाया और पर्स में रख लिया सहेज कर एक मधुर एहसास की तरह. वह देखती रही… देखती रही, जुदा हो कर जाते अपने उस परिचित से अपरिचित को तब तक जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया.

आखिरी बिछोह: अनुज और नित्या के बीच क्या था रिश्ता?

Aazam flim review: प्यादे के शहंशाह बनने की रोमांचक कहानी

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः टी बी पटेल, बीएमएक्स मोषन पिक्चर्स

लेखक व निर्देषकः श्रवण तिवारी

कलाकारः जिम्मी शेरगिल, अभिमन्यू सिंह,इंद्रनील सेन गुप्ता, रजा मुराद,गोविंद नाम देव, सयाजीष्दे, मुष्ताक खान, संजीव त्यागी,अली खान,अभिजीत सिन्हा,विवेक घमंडे, आलोक पांडे व अन्य.

अवधिः दो घंटे आठ मिनट

अंडरवर्ल्ड और अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कहानियां हमेशा से बॉलीवुड के फिल्मकारों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही हैं.अब अंडरवर्ल्ड में प्यादे के शहंशाह बनने की रोमांचक कहानी ‘आजम’ लेकर फिल्मकार श्रवण तिवारी आए हैं,जो कि 26 मई से सिनेमाघरों में दिखायी जा रही है..फिल्मकार ने अपनी इस फिल्म के माध्यम से इस बात को रेखांकित किया है कि अंडरवर्ल्ड डॉन तब तक रहता है,जब तक उस पर सरकार और पुलिस विभाग का वरदहस्त रहता है.

कहानीः

फिल्म ‘‘आजम’’ कीक हानी के केंद्र में अंडरवर्ल्ड डॉन की कुर्सी

हथियाने की मंशा रखने वाले जावेद (जिम्मी शेरगिल) के इदगिर्द घूमती है.वह अपने दोस्त कादर (अभिमन्यु सिंह) और मुंबई के माफिया डॉन नवाब (रजा मुराद) के लिए काम करता है.नबाब मरणासन्न है और नबाब अपने बेटे कादर को अपनी गद्दी सौंपना चाहते हैं.जबकि जावेद खुद उस गद्दी पर बैठना चाहता है. हालांकि वह अकेला नहीं है जो -रु39याहर का सबसे बड़ा डॉन बनने की को-िरु39या-रु39या कर रहा है.इसलिए साइबर क्राइम  माहिर विशाल ( आलोक पांडे ) की मदद से जावेद हर किसी को अपने रास्ते से हटाने का निर्णय लेता है.एक ही रात में लगातार हत्याओं का दौर चलता है.पुलिस अपने स्तर पर काम कर रही है.तो वहीं गृहमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अपने आदमी को नबाब की कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं.कादर,जावेद की मंषा व योजनाओं को समझे बगैर जावेद की बनायी गयी रणनीति के अनुसार प्रताप शेट्टी (गोविंद नामदेव) के बेटे अन्या ( विवेक घमंडे ) की हत्या कर देता है.उसके बाद एक के बाद एक हत्याओें का दौर चलता है.जावेद खुद प्रताप के सामने ही कादर को गाली मार देता है.प्रताप को नबाब मरवा देता है.अंततः नबाब की कुर्सी पर बैठने का सपना देख रहे सारे गैंगस्टर मारे जाते हैं.तब मुख्यमंत्री देषमुख, जावेद को नबाब की कुर्सी का हकदार स्वीकार कर लेते हैं. अंडरवर्ल्ड डॉन की कुर्सी पर बैठने से पहले खुद जावेद,नबाब को गोली मार देता है.

लेखन व निर्देशनः

कुछ समाचार पत्रों में मार्केटिंग हेड के रूप में काम करते हुए फिल्मकार बन जाने वाले श्रवण तिवारी ने सबसे पहले गुजराती भाुनवजयाा में ‘‘द एडवोकेट’’ बनायी थी. उसके बाद उन्होने ‘706’ और ‘कमाठीपुरा’ जैसी फिल्में बनायीं. अब ‘‘आजम’’ लेकर आए हैं. कहानी के स्तर पर वह एक बेहतरीन कहानी लेकर आए हैं. मगर कथा कथन की उनकी शैली के चलते फिल्म में बार बार अवरोध आते हैं.बार-बार जावेद यानी कि जिम्मी शेरगिल के अतीत की कहानियों के चलते कहानी ठहर सी जाती है.फिल्म के षुरू होने के 20 मिनट के अंदर ही जिम्मी षेरगिल की मंशा साफ हो जाने से रहस्य व रोमांच में कमी आ जाती है.एक तरह से फिल्म पर से उनकी पकड़ -सजयीली हो जाती है.नबाब के बेटे कादर को जिस तरह से मूर्ख दिखाया गया है,वह गले नहीं उतरता.इसी तरह लगभग हर किरदार को मारने को लेकर एक कहानी है.इतने सारे किरदार हैं कि दर्षक भ्रमित हो जाता है.मगर पटकथा जबरदस्त है.फिल्म का क्लायमेक्स भी प्रभावित करता है.अंडरवर्ल्ड,सियासत और पुलिस के संबंधो को वह ठीक से परदे पर उकेरने में असफल रहे हैं.फिल्म का पार्ष्व संगीत कानफोडू है.एडीटिंग भी गड़बड़ है.फिल्म की गति भी काफी धीमी है.

अभिनयः

जिम्मी शेरगिल एक बेहतरीन अभिनेता हैं,इस बात को वह कई बार साबित कर चुके हैं.पिछले कुछ समय से वह पुलिस अफसर के किरदार में ज्यादा नजर आ रहे थे,पर लंबे समय बाद वह एकदम अलग तरह के गेंगस्टर के किरदार में नजर आए है और अपनी अभिनय प्रतिभा से वह लोगों दिलों मे पहुॅच जाते हैं.उनका अंदाज धारदार है. वह कम बोलते हैं,मगर उनकी आंखें और चुप्पी बहुत कुछ कह जाती है.कादर के किरदार मे अभिमन्यू सिंह निराष करते हैं.रजा मुराद अपनी छाप छोड़ जाते हैं. डीसीपी जोशी के किरदार में इंद्रनील सेनगुप्ता का अभिनय भी अच्छा है. सयाजीशेंद ठीक ठाक हैं.प्रताप शेट्टी के किरदार में गोविंद नामदेव का अभिनय लाजवाब है.मगर अनंग देसाई व मुष्ताक खान सहित कई प्रतिभाषाली कलाकारों की प्रतिभा को जाया किया गया है.

हैप्पी फैमिली: भाग 2- श्वेता अपनी मां की दूसरी शादी के लिए क्यों तैयार नहीं थी?

अमृता को अजीब लगा मगर स्वामीजी ने तुरंत कुमार की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘कैसे हो भक्त कुमार?’’

‘‘स्वामीजी मैं अच्छा हूं. बस आप से अपनी पत्नी अमृता को मिलाने लाया था.’’

‘‘आओ देवी अमृता मेरे करीब आ कर बैठो.’’

अमृता स्वामीजी के करीब चली गई. स्वामी ने उस का हाथ देखने के लिए कलाई पकड़ी और अपनी तरफ खींच लिया. अमृता को यह अच्छा नहीं लगा.

स्वामी ने जिस तरह उस का हाथ पकड़ रखा था और जिन आंखों से अमृता

को देख रहा था वह उस के लिए सहज नहीं था.

‘‘अद्भुत भक्त कुमार, आप की बीवी जितनी दिखने में खूबसूरत हैं उतनी ही खूबसूरत इन की किस्मत भी है. इन की वजह से आप जिंदगी में बहुत तरक्की करेंगे… कुछ लोगों के चेहरे पर ही लिखा होता है कि बस ये जिन के साथ होंगे उन की जिंदगी में सबकुछ वारेन्यारे ही होगा.’’

जिस अंदाज में और जिस तरह से स्वामी अमृता की तरफ देखते हुए ये सब बातें कह रहा था वे सब बातें अमृता को अच्छी नहीं लग रही थीं. उसे स्वामी के अंदर एक घिनौना जानवर दिख रहा था. जल्दी से हाथ छुड़ा कर वह खड़ी हो गई.

कुमार ने उसे घूर कर देखा और फिर से बैठने को कहा. इस बार स्वामी ने उसे चेहरे को ऊपर की तरफ करने को कहा. फिर खुद उस के गले में पीछे की तरफ हाथ रखा. अमृता को अजीब लिजलिजा सा एहसास हुआ.

स्वामी ने उस की गरदन की निचली हड्डी पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘उम्र के 6ठे दशक में देवी अमृता के जीवन में राजयोग है. भक्त कुमार आप की बीवी आप को हर सुख देगी… धन्य है यह देवी, ‘‘कह कर स्वामी ने हाथ हटाया और आंखें बंद कर कोई मंत्र पढ़ने का दिखावा करने लगा.

कुमार इसी तरह जिद कर के अमृता को

3-4 बार स्वामी के पास ले गया. हर बार स्वामी की नजरें और बातें अमृता को आमंत्रण देती प्रतीत होतीं. एक बार तो सिद्धि के नाम पर अमृता को कमरे में बुला कर स्वामी ने उस के साथ छेड़छाड़ भी की. अमृता के लिए अब यह सब सहना कठिन होता जा रहा था और वह स्वामी से नफरत करने लगी थी.

मगर कुमार पर उस स्वामी का ज्यादा ही रंग चढ़ने लगा था. वह स्वामी का पक्का शिष्य बन गया था. हर महीने हजारों रुपए उसे भेंट चढ़ा कर आता, हर काम से पहले उस की आज्ञा लेता और अमृता से भी यही अपेक्षा रखता. अमृता और कुमार के बीच स्वामी को ले कर अकसर  झगड़ा होने लगा. फिर एक दिन जब अमृता के सब्र का बांध टूट गया तो वह सबकुछ छोड़ कर अपनी बेटी को ले कर मायके आ गई. जल्द ही आपसी सहमति से उन के बीच तलाक भी हो गया.

इस बात को 4 साल से ज्यादा हो गए थे. वह इतने समय से तनहा जीवन जी रही थी.

बेटी की खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढ़ती बेटी की जिम्मेदारियों को दिल से निभाती मगर पहली बार प्रवीण से मिल कर उस ने अपने बारे में सोचना चाहा था. प्रवीण के साथ खुद को संपूर्ण महसूस किया था. उस ने भी जीवन में कुछ नए सपने देखने शुरू किए थे, मगर बेटी ने एक पल में उस के सपनों के पंख काट डाले.

बेटी के व्यवहार से अमृता आहत जरूर थी पर उसे तकलीफ दे कर अपनी खुशियां हासिल नहीं करना चाहती थी. बेटी के माथे को सहलाते हुए उस ने मन में सोचा, ‘‘ठीक है मेरी बच्ची तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं. तु झे प्रवीण पापा की तरह पसंद नहीं तो न सही. हम दोनों ही अपनी जिंदगी में खुश रहेंगे.’’

इधर प्रज्ञा का पिता प्रवीण भी अपनी बेटी के रिएक्शन से बहुत दुखी था. प्रवीण का भी अपनी पत्नी सपना से तलाक हो गया था. प्रवीण और सपना की अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शादी की शुरुआत में तो सब ठीक था पर फिर धीरेधीरे दोनों के बीच अनबन बढ़ती गई. सपना कभी प्रवीण को दिल से स्वीकार नहीं कर सकी थी. इसी बीच अपने औफिस के सीनियर श्रीकांत से उस का रिश्ता जुड़ गया और उस ने तलाक ले कर श्रीकांत से शादी कर ली.

प्रवीण ने अपनी बेटी प्रज्ञा के साथ जिंदगी को नए ढंग से जीना शुरू किया. वह प्रज्ञा को ही अपनी जिंदगी की सब से बड़ी पूंजी मानता था. मगर आज जिस तरह प्रज्ञा ने अमृता के बारे में जान कर रूखा रिएक्शन दिया वह प्रवीण को बहुत बुरा लगा. वह इस बारे में किसी से बात भी नहीं कर सकता था. प्रज्ञा अपनी मां सपना के बहुत क्लोज थी. भले ही वह रहती पिता के साथ थी पर हर बात मां से फोन या व्हाट्सऐप के जरीए शेयर जरूर करती थी. आज भी घर आते ही उस ने मां को व्हाट्सऐप कौल लगाई. उस के चेहरे पर गुस्सा और आंखों में आंसू साफ दिख रहे थे.

सपना ने तुरंत पूछा, ‘‘क्या बात है पीहू नाराज दिख रही हो?’’

‘‘आप को सचाई पता चलेगी तो आप को भी पापा पर गुस्सा आएगा.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया बेटे?’’

‘‘पापा दूसरी शादी कर रहे हैं. वे मेरे लिए नई मम्मी ले कर आएंगे. अब आप ही बताओ मां क्या यह गुस्से की बात नहीं? उन्हें मेरी जरा भी चिंता नहीं. सब जानते हैं नई मांएं कैसी होती हैं और फिर जरूरत ही क्या है दूसरी शादी करने की? मैं तो हूं ही न उन के साथ?’’

‘‘नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते. जरूरी नहीं कि हर नई मां बुरी ही हो. मैं तो तेरी अपनी मां थी फिर भी तेरे साथ नहीं रह पाई. हो सकता है नई मां तु झे मेरे से भी ज्यादा प्यार दे. वैसे भी मेरी बच्ची सम झदार हो चुकी है. कोई भी समस्या आए तो मु झे बता सकती है पर देख पहले से यह सोच कर मत बैठ कि वह बुरी ही होगी.’’

‘‘पर मम्मा आप ऐसा कह रही हो? मु झे लगता था आप मु झे प्यार करती हो पर नहीं न आप न पापा कोई मु झे प्यार नहीं करता, आप भी प्यार करते तो मुझ से दूर थोड़े ही जाते.’’

प्रज्ञा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बेटा ऐसी बातें सोचना भी मत. मैं तु झे बहुत प्यार करती

हूं और तेरे बेहतर भविष्य के लिए ही मैं तु झे वहां छोड़ कर आई थी. तेरे पापा तु झे मुझ से भी ज्यादा प्यार करते हैं. बेटा आज मैं बताती हूं कि मु झे तेरे पापा को तलाक क्यों देना पड़ा था, मैं तुझ से दूर क्यों आई थी?’’

‘‘मम्मा मैं जानना चाहती हूं मैं ने पहले जब भी पूछा आप टाल जाते थे. मैं जानना चाहती हूं कि आप अलग क्यों हुए. आप हमें छोड़ कर क्यों चले गए. जरूर पापा ने आप को परेशान किया होगा न.’’

‘‘बेटा ऐसा बिलकुल नहीं है. तेरे पापा की कोई गलती नहीं, फिर भी मु झे यह फैसला लेना पड़ा. दरअसल, मैं श्रीकांत नाम के एक लड़के

से प्यार करती थी और यह प्यार कालेज के

समय से शुरू हुआ था. उस वक्त परिस्थितियां ऐसी बनीं कि हम अलग हो गए और मेरी शादी तेरे पापा से हुई. बेटा तेरे पापा ने मु झे कभी तकलीफ नहीं दी. उन्होंने मु झे बहुत प्यार दिया पर अनजाने में मैं ने ही उन्हें तकलीफ दी. मैं उन्हें कभी दिल से अपना नहीं सकी क्योंकि मेरे दिल में हमेशा से श्रीकांत थे. तेरे पापा के साथ हो कर भी मैं उन के साथ नहीं थी. मैं इस तरह उन्हें अधूरा जीते हुए नहीं देखना चाहती थी पर अपने दिल के आगे विवश थी.

फिट रहने के लिए क्या मंत्र है एक्ट्रेस सुस्मिता मुखर्जी का, जानिए यहां

छोटे-बड़े पर्दे पर पिछले 40 सालों से अभिनय करने वाली अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी से कोई अपरिचित नहीं. सुष्मिता ना सिर्फ एक अभिनेत्री है, बल्कि डायरेक्टर और लेखक भी हैं.उन्होंने हर तरह की भूमिका की है, फिर चाहे वह निगेटिव हो या पोजिटिव, हर भूमिका को जीवंत किया है. उनको छोटे परदे पर प्रसिद्धि क्राइम शो करमचंद से मिली, जिसमे उन्होंने किट्टी की भूमिका निभाई थी. काम के दौरान उन्होंने पहले निर्देशक सुधीर मिश्रासे शादी की, लेकिन वह टिक नहीं पाई, डिवोर्स लेने के बाद उन्होंने एक्टर, प्रोडूसर, एक्टिविस्ट राजा बुंदेला से शादी की और दो बेटों की माँ बनी.

भाषा को लेकर लिए संघर्ष

कैरियर के दौरानसुस्मिता नेबहुत संघर्ष किये है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि उनके शुरुआत दिन काफी संघर्षपूर्ण थे, क्योंकि जब वह नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से आई थी,तब उन्हें हिंदी नहीं आती थी.रत्ना पाठक शाह, दीपा शाही आदि ने उनकी खराब हिंदी का बहुत मजाक उड़ाया था, उसके बाद उन्होंने एक मास्टर से अच्छी हिंदी और उर्दू सीखी. दरअसल उन्हें हिंदी इसलिए भी नहीं आती थी, क्योंकि उनके घर पर  बंगला बोली जाती थी और बाहर वह अंग्रेजी बोलती थी.तब उन्हें हिंदी समझ में ही नहीं आती थी, लेकिन एनएसडी में आ कर हिंदी सीखी और अब वह बहुत ही अच्छे से हिंदी बोल लेती है.

सुस्मिता मुखर्जी ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से अभिनय की शिक्षा ली है. स्टार भारत पर उनकी शो ‘मेरी सास भूत है’ में उन्होंने एक अलग और मजेदार भूमिका निभाई है, जिसे सभी पसंद कर रहे है. उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बात कीऔर गृहशोभा मैगज़ीन को डिजिटल वर्ल्ड में भी अपनी छवि बनाये रखने के लिए पूरी टीम को बधाई दी. आइये जानें उनकी कहानी उनकी जुबानी.

किये सास की भूमिका

शो के बारे में बात करते हुऐ सुष्मिता कहती हैं कि मैंने हर तरह के सास की भूमिका निभाई है, ये उन सबसे अलग है. ये एक मजेदार शो है. इस शो का बेस अपर्णा सेन की मशहूर बांग्ला फिल्म ‘गोयनार बाक्शो’ से प्रेरित है. फिल्म गोयनार बक्शो में मौसमी चटर्जी का जो किरदार है उसी का बेस बना कर मैंने इस शो में भूमिका की है. शो बड़ा इंटरेस्टिंग है, क्योंकि इसमें सास भूत बन जाती है, तो उसके जो रिश्ते होते हैं,जो उनके जिन्दा रहते ठीक नहीं थे, अब उनको ठीक करती है और परिवार में वर्चस्व की लड़ाई को दिखाया गया है. ये ड्रामा और कॉमेडी वाली शो है, जिसे दर्शक काफी पसंद कर रहे है.

कितने तरीके की सास की भूमिका आप कर चुकी है? पूछने पर वह कहती है कि मैंने 40 साल इंडस्ट्री में काम किया है, इसमें देश, समाज, जिंदगी बदली है और सास भी बदल चुकी है. सास की भूमिका कोई भी हो ये एक परफोर्मेंस है, जिसमे स्क्रिप्ट और संवाद लिखे जाते है, फिर जाकर अभिनय किया जाता है. बहुत मुश्किल नहीं होता है. इस शो में कहानी बनारस की है, जबकि मैं बंगाल की अंग्रेजी माध्यम में पढ़ी-लिखी महिला हूँ, इसलिए बातचीत के टच को थोडा बदला गया है. इसमें सास की सास ने उनके साथ बदसलूकी की है, इसलिए वह भी अपनी बहू के साथ ऐसा करती है, पर धीरे-धीरे वह बदल कर अच्छी सास भी बन जाती है.

बदले खुद को

इसके आगे सुस्मिता कहती है कि असल जिंदगी में बड़े शहरों मेंसास की भूमिका पहले से बहुत बदल चुकी है. लोग आज सास और बहूँ में अंतर नहीं कर पाते, क्योंकि आज की सास बहु को अपना बेटी मानती है, लेकिन कुछ छोटे शहरों के पारंपरिक परिवारों में अभी भी बाउंड्री है, सबके सामने बहु को घूँघट डालना या साड़ी पहनना पड़ता है. ये सब कुछ खास परिवारों में अभी भी है. वे पुराने ट्रेडिशन को जबरदस्ती पकडे रहते है. धीरे-धीरे इसमें बदलाव आ रहा है. आज मेरी मेड की लड़की ब्यूटिशियन है, उसके पहनावे और मेकअप को देखकर कोई ये कह नहीं सकता कि उसकी माँ मेड है. आज ऑनलाइन सब सामान सस्ते मिलते है, कोई भी खरीद सकता है, हर कोई आगे बढ़ना चाहता है, ऐसे में समाज और परिवार में बदलाव अवश्य होगा.

ख़ुशी से निभाएं रिश्ते

आज की अधिकतर लड़कियां शादी नहीं करना चाहती और करती भी है तो ससुराल पक्ष के साथ रहना नहीं चाहती, इस बारें में सुस्मिता की सोच है कि आज संयुक्त परिवार प्रथा ख़त्म हो चुकी है, सभी एकाकी परिवार में रहते है, ऐसे में बेटे की माँ की भूमिका बड़ी होती है, क्योंकि उन्हें बेटे को समझाना पड़ेगा कि उन्हें अपना काम खुद करना है, इसके लिए वह माँ, बहन की राह नहीं देखेगा. केवल बहन आपको चाय न पिलाएं, बल्कि भाई भी उसे चाय बनाकर पिलाएं. जेंडर के आधार पर बेटे की परवरिश माँ कभी न करें. इसकी सीख माँ को देनी है, क्योंकि सास-बहु के बीच में मनमुटाव हमेशा दिखाया जाता है, लेकिन मानसिक रूप से मजबूत, दयालू, और इंटेलिजेंट बेटा ही इसे आसानी से दूर कर सकता है. उसे अपनी पत्नी और माँ दोनों को सम्मान और प्यार के साथ व्यवहार करना है और माँ को भी अपने व्यवहार में बहू आने पर सुधार करने की आवशयकता है. इसकी नींव माँ को शुरू से रखनी है. मेरे दोनों बेटे 27 और 29 साल के है. प्रायोरिटी पेरेंट्स है, लेकिन उन्हें मैं जीवन को सवारने और अपनी गृहस्थी बसाने की सलाह देती हूँ. मुझे अभी बैक सीट पर बैठना पसंद है. आज जमाना बदला है. दुनिया डिजिटल हो चुकी है, ऐसे में किसी को रोकना या टोकना उचित नहीं. मेरा बड़ा बेटा रुद्रांश बुंदेला 29 वर्ष का राइटर, डायरेक्टर और एक्टर है,उसने छोटी-छोटी फिल्में बनाई है. छोटा बेटा न्यूजीलैंड में साइंटिस्ट है, उसका मेरे फील्ड से कोई लेना-देना नहीं है. मैंने काम के साथ-साथ बहुत मेहनत से बच्चों की परवरिश की है.

कोई काम छोटा नहीं

इंडस्ट्री में टिकने के लिए सुस्मिता के संघर्ष के बारें में पूछने पर वह कहती है कि मैं कभी हिरोइन बनने आई ही नहीं थी. मैं थिएटर करती थी और फिर मुंबई आ गई, क्योंकि काम चाहिए था. मेरा कभी कोई ऐसा संघर्ष नहीं रहा क्योंकि मैंने कभी अपनी जिंदगी और चीजों से समझौता नहीं किया. मैं एक बहुत ही आम परिवार से थी और कला दिल के करीब थी. मुझे मेरा घर चलाना होता था और घर चलाने के लिए जैसे काम मिलते थे, कर लिए, क्योंकि हमारे पास ऑप्शन नहीं था. कई बार ऐसा हुआ कि पैसों के लिए छोटे-छोटे अभिनय किए, लेकिन कभी समझौता नहीं किया. इंडस्ट्री में टिके रहने की वजह भी यही रही, क्योंकि मुझे अभिनय के अलावा कुछ भी करना नहीं था.

आज के बच्चे है होनहार

नए लोगों के साथ काम करने के अपने अनुभव पर सुष्मिता कहती हैं कि लोगों का ये कहना गलत है कि आज कल के बच्चे सिर्फ मोबाइल में रहते हैं.मेरे हिसाब से आज कल के बच्चे एकदम अपने काम पर फोकस्ड हैं और अपनी लाइन अच्छे से याद करके आते हैं, किरदार में रहते हैं, समय से आते हैं, कोई नखरे नहीं है ना ही कोई घमंड है. एक कलाकार को कला के लिए प्रेम होना चाहिए और आजकल के बच्चों में वो प्रेम नजर आता है. मैं हर दिन उनसे काफी कुछ सीखती हूँ.

सुस्मिता को हर भूमिका से लगाव और प्रेम है, वे किसी एक किरदार को सबसे अधिक अच्छा नहीं बता सकती. उनका कहना है कि हर भूमिका में रस होता है, हर भूमिका अलग होती है और हर किरदार को मैं शिद्दत से करती हूँ. अपने काम से अगर प्यार करते हैं, तो जिस दिन आप काम नहीं करते हैं, उस दिन खुद को बहुत कमजोर महसूस करते हैं. अमिताभ बच्चन ने 80 साल की उम्र में भी पूरी मेहनत से काम करते हैं, मैं तो उनसे काफी छोटी हूँ.

खुश रहना है मंत्र

वह आगे कहती है कि मेरी फिटनेस का राज है बाहर की परिस्थितियों से अधिक प्रभावित न होना, मसलन मैं ओल्ड हो चुकी हूँ, या अच्छी नहीं दिखती आदि के बारें में नहीं सोचती. अंदर से हमेशा खुश रहती हूँ.इसका मोटिवेशन करोड़ों की संख्या में हमें देखने वाले दर्शक ही होते है, जो हर दिन हमारे शो को प्यार से देखते है और उसकी आलोचना या प्रसंशा करते है.इसके अलावा कही भी जाने पर वे हमें आसानी से पहचान लेते है. इससे ख़ुशी मिलती है.

एक्टिंग, डायरेक्शन, और प्रोडक्शन में सबसे ज्यादा मेहनत सुस्मिता को प्रोड्यूसर बनने पर करनी पर पड़ती है, क्योंकि वह उनके खून में नहीं है. उनके हिसाब से कलाकार केवल काम देखते हैं, पैसा अधिक नहीं देखते, जबकि प्रोड्यूसर सबसे पहले पैसा देखता है. मैं एक प्रोड्यूसर के तौर पर फ्लॉप हो गई, क्योंकि मैं प्रोडक्शन कर नहीं पाई और बाद में बहुत सारा काम करके लोगों के पैसे लौटाने पड़े.वह कहती है कि उस जमाने में हमारी कंपनी का 1 करोड़ का नुकसान हुआ था, क्योंकि मुझे प्रोडक्शन की सही जानकारी नहीं थी. अब मैंने उस काम को छोड़ दिया है.

योजनायें आगे की

सुस्मिता कहती है कि अभी मैं 5 वीं किताब निकालने वाली हूँ. उसपर काम चल रहा है. इसके अलावा मैंने एक सोलो कहानी ‘नारी बाई’ लिखी है, उसकी परफोर्मेंस करती हूँ. तीन फिल्में आने वाली है, इसके अलावा मैं मध्यप्रदेश के ओरछा में एक एनजीओ चलाती हूँ. उस क्षेत्र की उन्नति के लिए मैं और मेरे पति काम करते है. मेरे पति ने हमेशा मुझे हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है. रात में कभी-कभी साथ में मिलकर खा लिया करते है. मेरे लाइफ में मैंने जितना माँगा सब मिला. मानसिक और शारीरिक सुख मेरे लिए बहुत जरुरी है.

महिलाओं के लिए सुस्मिता का मेसेज है कि वे खुद को किसी से कम न समझे और अपनी इच्छाओं को खुद पूरा करें, किसी को इसका जिम्मेदार न समझे.

Anupama: शाह हाउस में माया मचाएगी बवाल,अनुपमा-अनुज में बढ़ी नजदिकियां

टीवी सीरियल अनुपमा दर्शको के बीच काफी फेमस है. आए दिन शो में नए-नए ट्विस्ट होते रहते है. अनुपमा में बीते शनिवार के एपिसोड में दिखाया कि अनुज अपनी अनु से गुरूकुल में मिलता है वहां वह माया का सारा सच बता देता है. लेकिन अब अनुपमा के नए एपिसोड में अनुपमा-अनुज में बढ़ी नजदिकियां.

अनुपमा संग दोस्ती करेंगे अनुज

टीवी सीरियल अनुपमा में देखने को मिलेगा कि अनुपमा अकेले जाने लगती है, लेकिन अनुज उसके पीछे कार लेकर आ जाता है. वह उसे साथ में चलने के लिए कहता है, लेकिन अनुपमा मना कर देती है. इस पर अनुज उससे कहता है कि हमारे बीच रिश्ता न सही, प्यार तो है। हम पहले भी दोस्त थे, आज भी दोस्त बन सकते हैं. इसपर अनुपमा कहती है कि लोग प्यार में आगे बढ़ते हैं, लेकिन हमारा तो डिमोशन हो गया.

शाह हाउस में माया मचाएगी बवाल

अनुपमा में आगे देखने को मिलेगा कि अनुज के घर आने पर माया पहले कपाड़िया हाउस में ड्रामा करती है. इसके बाद वह शाह हाउस में चिल्लाती है तथा माया बा और वनराज से अनुज और अनुपमा के बारे में पूछती है. इस पर बा कहती है वे दोनों यहां पर नहीं है. इसके बाद भी माया रूकती नहीं है. वह चिल्ला-चिल्लाकर कहती है अनुपमा मेरे अनुज के पीछे पड़ी है. अनुपमा मेरे अनुज के आगे-पीछे घूमती है. वह मेरे अनुज को हासिल करना चाहती है.

आगे ‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कि माया की बातें सुनकर वनराज माया पर भड़क जाता है. वह कहता है कि अनुपमा को तुम्हारे अनुज की जरा भी जरूरत नहीं है. तुम्हारा अनुज ही है जो उसके आगे-पीछे घूमता रहता है. अनुपमा अब अमेरिका जाने वाली है और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता किसी से. तो तुम अपना मुंह बंद करो और यहां से चलती बनो.

बदरंग इश्क: भाग 3- क्यों वंशिका को धोखा दे रहा था सुजीत?

सुजीत घर में कम औफिस में ज्यादा रहने लगा था. महीने में 1-2 बार शहर से बाहर भी जाता रहता और फिर एक दिन उस ने ऐलान कर दिया, ‘‘वंशिका, मैं और स्वीटी लिव इन में रहना चाहते हैं. तुम इस घर में आराम से रहो. मैं स्वीटी के साथ जा कर रह लूंगा. उसे तलाक के एवज में उस के पति का एक फ्लैट मिल गया है.’’ मां तो सुन कर जैसे जड़ हो गई.

अपने रिश्तेदार से मो ने गुहार लगाई अपना घर बचाने की लेकिन हुआ कुछ नहीं. पापा भी गहरे सदमे में थे. खुद को गुनहगार मान रहे थे कि बेटी से पूछे बिना उस की शादी का फैसला लिया था. ‘‘सुजीत, मैं घर छोड़ कर जा रही हूं. अभि मेरे पास ही रहेगा,’’ वंशिका ने अपना फैसला सुना दिया. सुजीत ने फिर से दांव खेला, ‘‘अभि और घर दोनों में से किसी एक को चुन लो.

दोनों चाहिए तो अपना फैसला बदल लो. घर में ही रहो. मैं तुम्हें छोड़ नहीं रहा हूं बस स्वीटी के साथ रहने की अनुमति मांग रहा हूं.’’ वंशिका भीतर तक तिलमिला उठी थी लेकिन बोलने का कोई फायदा नहीं था.

अपना सामान पैक कर, अभि की उंगली पकड़े स्टेशन पर आ गई. जिंदगी का पहला फैसला उस ने खुद लिया था. यह पहला सफर था जिस पर अकेली निकली थी. अभि के सिवा अपना कोई नहीं था. उस के सिवा जीवन का कोई मकसद भी नहीं था. दरवाजे की घंटी बजी.

मम्मीपापा शादी से वापस लौट आए थे. पापा शादी में खाना खा कर नहीं आते थे इसलिए उन्हें खाना देने रसोई में चली गई. खाने का उन का मन नहीं था बस एक कप चाय की फरमाइश की उन्होंने. वंशिका भी थकान सी महसूस कर रही थी इसलिए 3 कप चाय बना कर ले आई. मां तो चाय के लिए कभी मना ही नहीं करती थी.

‘‘वंशु, हम ने सोचा है इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर एक बड़ा सा फंक्शन करते हैं. क्या कहती हो?’’ पापा ने चाय पीते पीते पूछा. ‘‘पर क्यों पापा? आप का रिटायरमैंट भी है इसी महीने. तो उस दिन करेंगे बड़ा सा फंक्शन,’’ वंशिका ने तुरंत जवाब दिया. ‘‘2 दिन ही हैं बीच में. जन्मदिन और रिटायरमैंट दोनों की पार्टी एकसाथ कर लेंगे,’’ मां कपड़े बदल कर आ गई थी.

चाय का कप उठा कर बोली. ‘‘सुजीत और उस की मां को भी बुलाते हैं इस बार,’’ पापा की इस बात पर वंशिका और मां दोनों चौंक गए. ‘‘उन का क्या मतलब है हमारी पार्टी से? कुछ भी कहते हैं आप भी,’’ मां ने चाय का कप नीचे रख दिया. ‘‘गलत क्या है इस में? सब को बुलाएंगे तो अभि के पापा और उस की दादी को कैसे छोड़ सकते हैं?’’ पापा ने अपनी बात दोहराई.

‘‘अभि का उन से कोई रिश्ता नहीं है, पापा. एक मकान के बराबर कीमत लगाई थी उन्होंने अभि की और रिश्ते शब्द से उन का कोई सरोकार नहीं है. जो औरत मकान के लालच में अपने ही बेटे का घर तुड़वा सकती है वह अभि की कोई नहीं लगती है… वह इंसान जो न मां का हुआ, न प्रेमिका का, न अपने परिवार का. उस से कैसा रिश्ता हो सकता है अभि का?’’

मां और पापा दोनों ने वंशिका को रोका नहीं. सब कहने दिया. उस के बहते आंसुओं को  भी नहीं पोंछा. बस इतना ही कहा, ‘‘यही तो उन लोगों को बताना है, बेटा. तुम्हें भी, मु झे भी और तुम्हारी मां को भी… लगातार संपर्क कर रहे हैं वे दोनों. पुरानी रिश्तेदारी का हवाला दे रहे हैं.

उन्हे आईना दिखाना है. सब के सामने यह ऐलान करना है कि उन का तुम से या अभि से कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता है. हर रिश्ता लिव इन नहीं होता है कि जब चाहा निभाया जब चाहा तोड़ दिया.’’ पापा चाय के कप रख कर रसोई से बाहर आए तो वंशिका ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यस पापा, आप सही कह रहे हैं.’’ तभी वंशिका का फोन बजा. रितु का फोन था. वंशिका सम झ गई कि यह सब उसी का कियाधरा है.

बदरंग इश्क: भाग 2- क्यों वंशिका को धोखा दे रहा था सुजीत?

मां की बात सुन कर वंशिका का शक सच में बदल गया. अगले हफ्ते अंगूठी की रस्म और उस के अगले हफ्ते शादी. लड़के वाले देर करना ही नहीं चाहते थे. वंशिका भी लड़के के व्यक्तित्व के प्रभाव में आ ही गई. ससुराल में बस लड़का और उस की मां ही थे. लड़का ऐडवोकेट था और मां एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका. एक बड़ा सा घर था उन का. मांग बस इतनी सी कि लड़की घरेलू हो और घर को रहने लायक बना पाए. सब एक सपने के जैसा था.

अभि के होने तक रानियों की तरह रह रही थी ससुराल में सिवा इस के कि वंशिका जान गई थी कि मांबेटे की आपस में ज्यादा नहीं बनती है. दबी जबान से कुछ पहचान वालों ने यह भी कानों में डाल दिया था कि उस के पति सुजीत का किसी विजातीय लड़की से लंबा संबंध रहा है.

मां की असहमति के कारण वह रिश्ता नहीं हो पाया और आननफानन में वंशिका से शादी कर दी.  उस लड़की की भी शादी हो गई थी अपनी ही जाति के एक लड़के के साथ. समय एक  जैसा नहीं रहता. समय बदला या फिर बदलाव वंशिका ने 2 साल बाद महसूस किया. पुरानी गर्लफ्रैंड स्वीटी उस के पति सुजीत की जिंदगी में फिर लौट आई अपने पति को तलाक दे कर.

इस बार पूरी तैयारी के साथ उस ने वंशिका की गृहस्थी पर हमला बोला. सुजीत की मां के दिमाग में यह बात डाल कर कि सुजीत की डोर वंशिका के नियंत्रण में है और ज्यादा समय नहीं लगेगा जब वह उस की संपत्ति पर कब्जा जमा लेगी. अपने बेटे अभि को हथियार बना कर. सुजीत की मां को बेटे का वंशिका पर प्यार लुटाना ज्यादा पसंद नहीं था. अपने बेटे अभि को भी वह हाथों पर रखता था. मकान के आधे हिस्से को उस ने अपने नाम कर लिया था.

इसी कुंठा को स्वीटी ने अपना रास्ता साफ करने में इस्तेमाल किया. ‘‘मौम कब तक सोते रहोगे. देखो कितने खिलौने दिलाए हैं नानू ने. मेरी सारी विश नानू ने पूरी कर दी हैं,’’ और वंशिका को हाथ पकड़ कर अपने खिलौने दिखाने ले गया. सिर को एक  झटका दिया. मन ही मन अभि को शुक्रिया कहा उस तड़प से बाहर निकालने के लिए जो पुरानी यादों के दिमाग में आ जाने से होती है.

नौकरी में शुरूशुरू में तो बहुत असुविधा होती लेकिन जब पापा ने नौकरी का मतलब सम झाया तो नजरिया बदल गया. समस्या ही खत्म हो गई, ‘‘बेटा, जब खुद को नौकर बोल ही दिया तो आदेशों के पालन में दुविधा कैसी?’’  सही कहा था पापा ने. रितु ने भी सुना तो खुद को हंसने से रोक नहीं पाई. जिंदगी  अब गतिमान हो गई थी. रोज ही सुजीत का कोई न कोई मैसेज आ जाता. वंशिका देख लेती लेकिन जवाब नहीं देती. अजनबी नंबर से कौल अटैंड करना भी बंद.

पूरा फोकस अभि और नौकरी पर. ‘‘काफी दिनों से रितु से नहीं मिली थी इसलिए एक कैफे में मिलने को बुला लिया. घर पर बात तो हो जाती लेकिन मां हर बात जानने की कोशिश करती और फिर पापा को भी बताती. उन के मन में डर सा बैठ गया था वंशिका को ले कर,’’ सब सही चल रहा है, वंशिका. सुजीत का फिर से कौल तो नहीं आई?’’ रितु ने बैठते ही पूछा.  ‘‘नहीं कौल तो नहीं बस मैसेज आते रहते हैं,’’ वंशिका ने तुरंत जवाब दिया. ‘‘मैसेज में क्या लिखता है?’’ रितु ने उत्सुकता से पूछा. ‘‘वही कि तुम दोनों वापस आ जाओ. अपना परिवार वापस चाहता हूं.

दूसरे के बच्चे को पिता का प्यार देने से अच्छा है खुद के बेटे को दूं. बस यही.’’ ‘‘जब तलाक लिया था तब उस की अक्ल घास चरने गई थी क्या? एक नंबर का फरेबी इंसान है. ढाई साल के बच्चे पर भी उसे प्यार नहीं आया था. एक  झटके में अपनी खूबसूरत और वफादार पत्नी से अलग हो गया,’’ रितु गुस्से में बोल रही थी. वंशिका ने उसे चुप किया. याद दिलाया, ‘‘कैफे में बैठे हैं. तू बता शादी कब कर रही है? अब तो तु झे सही गिफ्ट दूंगी. नौकरी कर रही हूं. खाली नहीं हूं.’’ वंशिका ने ऐसे बोला कि रितु को हंसी आ गई, ‘‘मम्मीपापा लगे हैं अपने काम पर. मैं तो बस फाइनल करूंगी.

जो फाइनल होगा बात भी उसी से करूंगी.फालतू में इन सिरफिरों को मुंह लगाना मु झे नहीं पसंद,’’ रितु ने सड़ा सा मुंह बना कर कहा. ‘‘हमारे पापा तो ऐसे नहीं हैं न. मेरे साथ जो हुआ उस में मेरी भी नासम झी थी. न शादी को मना कर पाई. शादी की पहली जरूरत विश्वास है.’’ वंशिका की बात पर रितु चौंक कर बोली, ‘‘तू महान है. इतने बड़े धोखे के बाद भी विश्वास की बात करती है. मैं तेरी तरह नहीं हूं. जो विश्वास के लायक हो उसी पर किया जाता है विश्वास. सब पर नहीं.’’ वंशिका बात को खत्म करने के इरादे से बोली, ‘‘रितु, आज की यह छोटी सी ट्रीट मेरी तरफ से है.

जो भी मंगाना हो और्डर कर दे.’’ ‘‘आज जो खिलाएगी खा लूंगी,’’ रितु थोड़ी सामान्य हुई. दोनों अपनीअपनी नौकरी के बारे में बातें करती रहीं. कपड़ों की, जूतेचप्पलों की, पर्स और ज्वैलरी की भी बातें हुईं. कैफे से बाहर आईं तो दोनों का मन हलका हो चुका था. अभि को सुला कर वंशिका भी बिस्तर पर लेट गई. मम्मीपापा किसी शादी में गए हुए थे. कल छुट्टी थी तो सोने की जल्दी नहीं थी. दिमाग भी शरीर को आराम मिलने तक शांत रहता है. आराम मिलते ही सक्रिय हो जाता है.

3 साल पुरानी घटनाएं फिर से यादों में ताजा हो गईं… ‘‘सुजीत, मैं ने सुना है, स्वीटी तलाक ले कर अपने घर वापस आ गई है?’’ वंशिका के सवाल पर सुजीत घबराया नहीं, सहजता से जवाब दिया, ‘‘अपने घर नहीं, अकेली रह रही है किराए के घर में.’’  वंशिका का शक सही था, ‘‘आप मिले उस से,’’ इस प्रश्न पर सुजीत को  गुस्सा आ गया. दोस्त तो अब भी है मेरी. मिलने में क्या समस्या है? तलाक का केस चल रहा है उस का. मैं वकील हूं, उसे सलाह की जरूरत पड़ती है तो बात हो जाती है.

कभीकभी परेशान होती है तो मिलने आ जाती है.’’ पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई वंशिका के. उसे सास का ताना याद आ गया कि कभी तेरा नहीं होगा. पुरानी गर्लफ्रैंड का तलाक करवा रहा है. अपना ठिकाना ढूंढ़ लेना. मेरे घर के 2 हिस्से करवाए थे तूने. अब तेरी गृहस्थी के 2 हिस्से हो जाएंगे.  अभि के पहले जन्मदिन पर घर का आधा हिस्सा सुजीत ने वंशिका के नाम किया  था अपनी मां को बिना बताए. इसी वजह से सास उस की दुश्मन बन गई थी.

जानें लिवर फेलियर क्या है और इसके उपचार?

सवाल

मेरे पति की उम्र 56 साल है. उन का लिवर फेलियर हो चुका है. मैं जानता चाहता हूं कि लिवर फेलियर क्या है और इस के लिए कौनकौन से उपचार उपलब्ध हैं?

जवाब

लिवर फेलियर तब होता है जब लिवर का एक बड़ा भाग क्षतिग्रस्त हो जाता है और उसे किसी उपचार से ठीक नहीं किया जा सकता है. लिवर फेल्योर जीवन के लिए एक घातक स्थिति है जिस के लिए तुरंत उपचार की जरूरत होती है. लिवर फेल्योर लिवर की कई बीमारियों की आखिरी स्टेज है. शुरुआती चरण में लिवर फेल्योर का उपचार दवा से किया जाता है. इस के उपचार का प्रारंभिक उद्देश्य यह होता है कि लिवर के उस हिस्से को बचा लिया जाए जो अभी भी कार्य कर रहा है. अगर यह संभव नहीं है तब लिवर प्रत्यारोपण जरूरी हो जाता है. इस में या तो पूरा लिवर बदल जाता है या फिर लिवर का कुछ भाग. अत्याधुनिक तकनीकों ने लिवर प्रत्यारोपण को काफी आसान और सफल बना दिया है.

सवाल

मैं 57 वर्षीय महिला पेशे से वकील हूं. डायग्नोसिस में मेरे लिवर में 2 मिलीमीटर का ट्यूमर होने का पता चला है. क्या इस का सर्जरी से पूरी तरह उपचार संभव है?

बहुत कम मामलों में ही लिवर  कैंसर का शुरुआती चरण में पता चल पाता है और इस स्तर पर सर्जरी  के द्वारा इस का लगभग सफल उपचार संभव है. सर्जरी के द्वारा ट्यूमर के कुछ स्वस्थ ऊतकों को निकाल दिया जाता है जो ट्यूमर के आसपास होते हैं. मिनिमली इनवेसिव लैप्रोस्कोपिक या रोबोटिक सर्जरी ने सर्जरी को काफी आसान बना दिया है. यह एक अत्याधुनिक विकसित तकनीक है जिस में सर्जरी करने में कंप्यूटर और रोबोट की मदद ली जाती है. कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित इस सर्जरी में सर्जन रोबोट को नियंत्रित करने के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं, जिस से जटिलताएं कम होती हैं और मरीज को ठीक होने में कम समय लगता है तथा अस्पताल में ज्यादा रुकने की जरूरत भी नहीं पड़ती है.

-डा. संजय गोजा

प्रोग्राम डाइरैक्टर ऐंड क्लीनिकल लीड-लिवर ट्रांसप्लांटएचपीबी सर्जरी ऐंड रोबोटिक लिवर सर्जरीनारायणा हौस्पिटलगुरुग्राम.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8रानी झांसी मार्गनई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

दोष कहीं और है

अब बच्चों को पालने में पहले से कई गुना मेहनत ही नहीं, पैसा भी लगने लगा है. पहले बच्चे कई होते थे और साधन कम तो बच्चों को अपनेआप पलने दिया जाता था. उन के खाने और सुरक्षा का इंतजाम तो होता था पर बाकी वे अपनी जिंदगी में क्या करेंगे यह उन पर छोड़ दिया जाता था. अब बच्चे चाहत का नतीजा हैं, किसी बायोलौजिकल सैक्स ऐक्शन का औटोमैटिक रिजल्ट नहीं हैं. बच्चे प्लान कर के किए जाते हैं और कानून के बावजूद कोशिश की जाती है कि मनचाहे सैक्स का बच्चा पैदा हो.

मगर इस पूरी 15-20 साल की ऐक्सरसाइज का आफ्टर इफैक्ट दिखने लगा है. बच्चों का जन्म ही प्लान नहीं किया जाता, वे क्या करेंगे, कैसे करेंगे यह भी प्लान किया जाने लगा है और उन से ढेरों उम्मीदें लगा कर उन पर खूब इनवैस्ट किया जाने लगा है. नतीजा है कि बच्चों के मांबाप तो टैंशन में रहते ही हैं, बच्चे भी मांबाप की टैंशन को अपने सिर पर ले लेते हैं.

गत 29 मार्च को मोहनलालगंज, लखनऊ, के डी फार्मा के फर्स्ट ईयर के आशुतोष श्रीवास्तव ने अपने कमरे में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. उस ने जो नोट छोड़ा उस में लिखा था, ‘‘मुझे लगता है कि मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा, मम्मीपापा के सपनों को साकार नहीं कर पाऊंगा. मुझे माफ करना…’’

22 साल का युवा जो अब तक कमाऊ हो जाता था न केवल घर पर बोझ बना हुआ था, लगता है पढ़ाई में पीछे रह गया था.

आजकल मांबाप से बहुत कहा जा रहा है कि वे अपने बच्चों पर दबाव न बनाएं, उन्हें अपनी मरजी के काम करने दें. काफी चली फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ का मेन थीम भी यही था कि एमबीए की पढ़ाई में फर्स्ट आना और मोटा वेतन पाना जीवन का लक्ष्य हो जरूरी नहीं, जीवन में और भी बहुत कुछ है करने को. मांबाप बच्चों पर अब बहुत प्यार उडे़लते हैं, उन्हें नामी व महंगे स्कूलों में दाखिल कराने के लिए उन पर बहुत पैसा खर्चते हैं, बहुत पैसा कोचिंग क्लासों पर खर्च करते हैं तो बहुत सी उम्मीदें पाल लेते हैं. ये उम्मीदें युवाओं के सिर पर तलवार की तरह लटकती हैं. डिलिवर और पैरिश- सपने पूरे करो या नष्ट हो जाओ.

यह उम्मीद करना गलत नहीं है क्योंकि तीनचौथाई सफल लोग इसी दबाव में रह कर पले होते हैं. जब तक दबाव न हो कोई नया काम नहीं होता. पिरामिड तब के पुरोहितों के झठे दबावों में आ कर फैरों ने इजिप्ट में बनवाए जिन्हें देख कर आज भी अच्छे से अच्छे सिविल इंजीनियर भी कहते हैं कि यह कैसे किया गया.

दबाव में आ कर मानव अफ्रीका के जंगलों से हो कर पहाड़ों, नदियों, समुद्रों को पार कर दुनियाभर में फैला. उस समय का मानव सैर करने या ऐडवैंचर करने के लिए अपने जन्मस्थल से 100-200 किलोमीटर 8-10 दिनों में यों ही नहीं चला होगा.

मांबापों पर दोष दे कर उन्हें जो गिल्ट फील कराई जा रही है वह गलत है. इस के पीछे भ्रांति यह है कि हरेक का कल तो पहले से भाग्य में लिखा है और किसी के करने से कुछ नहीं होता. आज तो हम तकनीक देख रहे हैं, उस का सुख भोग रहे हैं, यह भाग्य की देन नहीं है, मेहनत और लक्ष्य पूरा करने की तमन्ना का परिणाम है.

कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में हजारों वैज्ञानिकों ने रातदिन एक किए. दुनियाभर में कैंसर से निबटने का प्रयास चल रहा है. सोलर पावर का इस्तेमाल हर रोज बढ़ाया जा रहा है ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम किए जा सकें.

मांबापों को इस गिल्ट से मुक्त हो जाना चाहिए कि वे बच्चों पर अनावश्यक दबाव के दोषी हैं. दोष कहीं और है. यह धर्म का हो सकता है जो पूजापाठ की लत बच्चों में डाल देता है. यह मोबाइलों का हो सकता है जो गलत या ध्यान भटकाने वाली चीजें सुलभ करा कर बच्चों को बहका देते हैं. दोष स्कूलों के प्रबंधकों का हो सकता है जो कोचिंग व्यवसाय को बढ़ाने के लिए पढ़ाई के घंटों को बरबाद करते हैं. दोष कोचिंग दुकानदारों का हो सकता है जो विज्ञापनबाजी कर के ग्राहक तो पटा लेते हैं पर एक बार पैसा ले कर उन्हें मंझदार में छोड़ देते हैं और नई मछली को दाना डालने में लग जाते हैं.

22 साल के आशुतोष श्रीवास्तव को खुद सोचना चाहिए था कि जिन सपनों को पूरा न कर पाने के कारण आत्महत्या कर रहा है, आत्महत्या के बाद वे पूरे नहीं हो जाएंगे. मांबाप उस अवसाद में से गुजरेंगे जो वह जिंदा रहता तो नहीं गुजरते. गलती मांबाप की नहीं कि वे सपने देख रहे हैं. उन्हें संतोष करना चाहिए कि जो उन के बस का था, उन्होंने किया.

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