Emotional Story: उपहार- डिंपल ने पुष्पाजी को क्या दिया?

Emotional Story: कैलेंडर देख कर विशाल चौंक उठा. बोला, ‘‘अरे, मुझे तो याद ही नहीं था कि कल 20 फरवरी है. कल मां का जन्मदिन है. कल हम लोग अपनी मां का बर्थडे मनाएंगे,’’ पल भर में ही उस ने शोर मचा दिया.

पुष्पाजी झेंप गईं कि क्या वे बच्ची हैं, जो उन का जन्मदिन मनाया जाए. फिर इस से पहले कभी जन्मदिन मनाया भी तो नहीं था, जो वे खुश होतीं.

अगली सुबह भी और दिनों की तरह ही थी. कुमार साहब सुबह की सैर के लिए निकल गए. पुष्पाजी आंगन में आ कर महरी और दूध वाले के इंतजार में टहलने लगीं. तभी विशाल की पत्नी डिंपल ने पुकारा, ‘‘मां, चाय.’’

आज के भौतिकवादी युग में सुबहसवेरे कमरे में बहू चाय दे जाए, इस से बड़ा सुख और कौन सा होगा? पुष्पाजी, बहू का मुसकराता चेहरा निहारती रह गईं. सुबह इतमीनान से आंगन में बैठ कर चाय पीना उन का एकमात्र शौक था. पहले स्वयं बनानी पड़ती थी, लेकिन जब से डिंपल आई है, बनीबनाई चाय मिल जाती है. अपने पति विशाल के माध्यम से उस ने पुष्पाजी की पसंदनापसंद की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी.

बड़ी बहू अंजू सौफ्टवेयर इंजीनियर है. सुबह कपिल और अंजू दोनों एकसाथ दफ्तर के लिए निकलते हैं, इसलिए दोनों के लिए सुविधाएं जुटाना पुष्पाजी अपना कर्तव्य समझती थीं.

छोटे बेटे विशाल ने एम.बी.ए. कर लिया तो पुष्पाजी को पूरी उम्मीद थी कि उस ने भी कपिल की तरह अपने साथ पढ़ने वाली कोई लड़की पसंद कर ली होगी. इस जमाने का यही तो प्रचलन है. एकसाथ पढ़ने या काम करने वाले युवकयुवतियां प्रेमविवाह कर के अपने मातापिता को ‘मैच’ ढूंढ़ने की जिम्मेदारी से खुद ही मुक्त कर देते हैं.

लेकिन जब विशाल ने उन्हें वधू ढूंढ़ लाने के लिए कहा तो वे दंग रह गई थीं. कैसे कर पाएंगी यह सब? एक जमाना था जब मित्रगण या सगेसंबंधी मध्यस्थ की भूमिका निभा कर रिश्ता तय करवा देते थे. योग्य लड़का और प्रतिष्ठित घराना देख कर रिश्तों की लाइन लग जाती थी. अब तो कोई बीच में पड़ना ही नहीं चाहता. समाचारपत्र या इंटरनैट पर फोटो के साथ बायोडाटा डाल दिया जाता है. आजकल के बच्चों की विचारधारा भी तो पुरानी पीढ़ी की सोच से सर्वथा भिन्न है. कपिल, अंजू को देख कर पुष्पाजी मन ही मन खुश रहतीं कि दोनों की सोच तो आपस में मिलती ही है, उन्हें भी पूरापूरा मानसम्मान मिलता है.

अखबार में विज्ञापन के साथसाथ इंटरनैट पर भी विशाल का बायोडाटा डाल दिया था. कई प्रस्ताव आए. पुष्पाजी की नजर एक बायोडाटा को पढ़ते हुए उस पर ठहर गई. लड़की का जन्मस्थान उन्हें जानापहचाना सा लगा. शैक्षणिक योग्यता बी.ए. थी. कालेज का नाम बालिका विद्यालय, बिलासपुर देख कर वे चौंक उठी थीं. कई यादें जुड़ी हुई थीं उन की इस कालेज से. वे स्वयं भी तो इसी कालेज की छात्रा रह चुकी थीं.

उसी कालेज में जब वे सितारवादन का पुरस्कार पा रही थीं तब समारोह के बाद कुमारजी ने उन का हाथ मांगा, तो उन के मातापिता ने तुरंत हामी भर दी थी. स्वयं पुष्पाजी भी बेहद खुश थीं. ऐसे संगीतप्रेमी और कला पारखी कुमार साहब के साथ उन की संगीत कला परवान चढ़ेगी, इसी विश्वास के साथ उन्होंने अपनी ससुराल की चौखट पर कदम रखा था.

हर क्षेत्र में अव्वल रहने वाली पुष्पाजी के लिए घरगृहस्थी की बागडोर संभालना सहज नहीं था. जब शादी के 4-5 माह बाद उन्होंने अपना सितार और तबला घर से मंगवाया था तो कुमारजी के पापा देखते ही फट पड़े थे, ‘‘यह तुम्हारे नाचनेगाने की उम्र है क्या?’’

उन की निगाहें चुभ सी रही थीं. भय से पुष्पाजी का शरीर कांपने लगा था. लेकिन मामला ऐसा था कि वे अपनी बात रखने से खुद को रोक न सकी थीं, ‘‘पापा, आप की बातें सही हैं, लेकिन यह भी सच है कि संगीत मेरी पहली और आखिरी ख्वाहिश है.’’

‘‘देखो बहू, इस खानदान की परंपरा और प्रतिष्ठा के समक्ष व्यक्तिगत रुचियों और इच्छाओं का कोई महत्त्व नहीं है. तुम्हें स्वयं को बदलना ही होगा,’’ कह कर पापा चले गए थे.

पुष्पाजी घंटों बैठी रही थीं. सूझ नहीं रहा था कि क्या करें, क्या नहीं. शायद कुमारजी कुछ मदद करें, मन में जब यह खयाल आया तो कुछ तसल्ली हुई थी. उस दिन वे काफी देर से घर लौटे थे.

तनिक रूठी हुई भावमुद्रा में पुष्पाजी ने कहा, ‘‘जानते हैं, आज क्या हुआ?’’

‘‘हूं, पापा बता रहे थे.’’

‘‘तो उन्हें समझाइए न.’’

‘‘पुष्पा, यहां कहां सितार बजाओगी. बाबूजी न जाने क्या कहेंगे. जब कभी मेरा तबादला इस शहर से होगा, तब मैं तुम्हें सितार खरीद दूंगा. तब खूब बजाना,’’ कह कुमारजी तेजी से कमरे से बाहर निकल गए.

आखिर उन का तबादला भोपाल हो ही गया. कुमारजी को मनचाहा कार्य मिल गया. जब घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया और एक पटरी पर चलने लगा तो एक दिन पुष्पाजी ने दबी आवाज में सितार की बात छेड़ी.

कुमारजी हंस दिए, ‘‘अब तो तुम्हारे घर दूसरा ही सितार आने वाला है. पहले उसेपालोपोसो. उस का संगीत सुनो.’’

कपिल गोद में आया तो पुष्पाजी उस के संगीत में लीन हो गईं. जब वह स्कूल जाने लगा तब फिर सितार की याद आई उन्हें. पति से कहने की सोच ही रही थीं कि फिर उलटियां होने लगीं. विशाल के गोद में आ जाने के बाद तो वे और व्यस्त हो गईं. 2-2 बच्चों का काम. अवकाश के क्षण तो कभी मिलते ही नहीं थे. विशाल भी जब स्कूल जाने लगा, तो थोड़ी राहत मिली.

एक दिन रेडियो पर सितारवादन चल रहा था. पुष्पाजी तन्मय हो कर सुन रही थीं. पति चाय पी रहे थे. बोले, ‘‘अच्छा लगता है न सितारवादन?’’

‘‘हां.’’

‘‘ऐसा बजा सकती हो?’’

‘‘ऐसा कैसे बजा सकूंगी? अभ्यास ही नहीं है. अब तो थोड़ी फुरसत मिलने लगी है. सितार ला दोगे तो अभ्यास शुरू कर दूंगी. पिछला सीखा हुआ फिर से याद आ जाएगा.’’

‘‘अभी फालतू पैसे बरबाद नहीं करेंगे. मकान बनवाना है न.’’

मकान बनवाने में वर्षों लग गए. तब तक बच्चे भी सयाने हो गए. उन्हें पढ़ानेलिखाने में अच्छा समय बीत जाता था.

डिंपल का बायोडाटा और फोटो सामने आ गया तो उस ने फिर से उन्हें अपने अतीत की याद दिला दी थी.

लड़की की मां का नाम मीरा जानापहचाना सा था. डिंपल से मिलते ही उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी थी. सभी आश्चर्य में पड़ गए. विशाल जैसे होनहार एम.बी.ए. के लिए डिंपल जैसी मात्र बी.ए. पास लड़की?

पुष्पाजी ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. डिंपल अच्छी बहू सिद्ध हुई. घर का कामकाज निबटा कर वह उन के साथ बैठ कर कविता पाठ करती, साहित्य और संगीत से जुड़ी बारीकियों पर विचारविमर्श करती तो पुष्पाजी को अपने कालेज के दिन याद आ जाते.

आज भी पुष्पाजी रोज की तरह अपने काम में लग गईं. सभी तैयार हो कर अपनेअपने काम पर चले गए. किसी ने भी उन के जन्मदिन के विषय में कोई प्रसंग नहीं छेड़ा. पुष्पाजी के मन में आशंका जागी कि कहीं ये लोग उन का जन्मदिन मनाने की बात भूल तो नहीं गए? हो सकता है, सब ने यह बात हंसीमजाक में की हो और अब भूल गए हों. तभी तो किसी ने चर्चा तक नहीं की.

शाम ढलने को थी. डिंपल पास ही खड़ी थी, हाथ बंटाने के लिए. दहीबड़े, मटरपनीर, गाजर का हलवा और पूरीकचौड़ी बनाए गए. दाल छौंकने भर का काम उस ने पुष्पाजी पर छोड़ दिया था. पूरी तैयारी हो गई. हाथ धो कर थोड़ा निश्चिंत हुईं कि तभी कपिल और अंजू कमरे में मुसकराते हुए दाखिल हुए. पुष्पाजी ने अपने हाथ से पकाए स्वादिष्ठ व्यंजन डोंगे में पलटे, तो डिंपल ने मेज पोंछ दी. तभी शोर मचाता हुआ विशाल कमरे में घुसा. हाथ में बड़ा सा केक का डब्बा था. आते ही उस ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया और मां के गले में बांहें डाल कर बोला, ‘‘मां, जन्मदिन मुबारक.’’

पुष्पाजी का मन हर्ष से भर उठा कि इस का मतलब विशाल को याद था.

मेज पर केक सजा था. साथ में मोमबत्तियां भी जल रही थीं, कपिल और अंजू के हाथों में खूबसूरत गिफ्ट पैक थे. यही नहीं, एक फूलों का बुके भी था. पुष्पाजी अनमनी सी आ कर सब के बीच बैठ गईं. उन की पोती कृति ने कूदतेफांदते सारे पैकेट खोल डाले थे.

‘‘यह देखिए मां, मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं. यह नौनस्टिक कुकवेयर सैट है. इस में कम घीतेल में कुछ भी पका सकती हैं आप.’’

अंजू ने दूसरा पैकेट खोला, फिर बेहद विनम्र स्वर में बोली, ‘‘और यह है जूसर अटैचमैंट. मिक्सी तो हमारे पास है ही. इस अटैचमैंट से आप को बेहद सुविधा हो जाएगी.’’

कुमारजी बोले, ‘‘क्या बात है पुष्पा, बेटेबहू ने इतने महंगे उपहार दिए, तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’’

पति की बात सुन कर पुष्पाजी की आंखें नम हो गईं. ये उपहार एक गृहिणी के लिए हो सकते हैं, मां के लिए हो सकते हैं, पर पुष्पाजी के लिए नहीं हो सकते. आंसुओं को मुश्किल से रोक कर वे वहीं बैठी रहीं. मन की गहराइयों में स्तब्धता छाती जा रही थी. सामने रखे उपहार उन्हें अपने नहीं लग रहे थे. मन में आया कि चीख कर कहें कि अपने उपहार वापस ले जाओ. नहीं चाहिए मुझे ये सब.

रात होतेहोते पुष्पाजी को अपना सिर भारी लगने लगा. हलकाहलका सिरदर्द भी महसूस होने लगा था. कुमारजी रात का खाना खाने के बाद बाहर टहलने चले गए. बच्चे अपनेअपने कमरे में टीवी देख रहे थे. आसमान में धुंधला सा चांद निकल आया था. उस की रोशनी पुष्पाजी को हौले से स्पर्श कर गई. वे उठ कर अपने कमरे में आ कर आरामकुरसी पर बैठ गईं. आंखें बंद कर के अपनेआप को एकाग्र करने का प्रयत्न कर रही थीं, तभी किसी ने माथे पर हलके से स्पर्श किया और मीठे स्वर में पुकारा, ‘‘मां.’’

चौंक कर पुष्पाजी ने आंखें खोलीं तो सामने डिंपल को खड़ा पाया.

‘‘यहां अकेली क्यों बैठी हैं?’’

‘‘बस यों ही,’’ धीमे से पुष्पाजी ने उत्तर दिया.

डिंपल थोड़ा संकोच से बोली, ‘‘मैं आप के लिए कुछ लाई हूं मां. सभी ने आप को इतने सुंदरसुंदर उपहार दिए. आप मां हैं सब की, परंतु यह उपहार मैं मां के लिए नहीं, पुष्पाजी के लिए लाई हूं, जो कभी प्रसिद्ध सितारवादक रह चुकी हैं.’’

वे कुछ बोलीं नहीं. हैरान सी डिंपल का चेहरा निहारती रह गईं.

डिंपल ने साहस बटोर कर पूछा, ‘‘मां, पसंद आया मेरा यह छोटा सा उपहार?’’

चिहुंक उठी थीं पुष्पाजी. उन के इस धीरगंभीर, अंतर्मुखी रूप को देख कर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि कभी वे सितार भी बजाया करती थीं, सुंदर कविताएं और कहानियां लिखा करती थीं. उन की योग्यता का मानदंड तो रसोई में खाना पकाने, घरगृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने तक ही सीमित रह गया था. फिर डिंपल को इस विषय की जानकारी कहां से मिली? इस ने उन के मन में क्या उमड़घुमड़ रहा है, कैसे जान लिया?

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आप एक अच्छी सितारवादक हैं. लिखना, चित्रकारी करना आप का शौक है.’’

पुष्पाजी सोच में पड़ गई थीं कि जिस पुष्पाजी की बात डिंपल कर रही है, उस पुष्पा को तो वे खुद भी भूल चुकी हैं. अब तो खाना पकाना, घर को सुव्यवस्थित रखना, बच्चों के टिफिन तैयार करना, बस यही काम उन की दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए हैं. डिग्री धूल चाटने लगी है. फिर बोलीं, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम ये सब?’’

‘‘मालूम कैसे नहीं होगा, बचपन से ही तो सुनती आई हूं. मेरी मां, जो आप के साथ पढ़ती थीं कभी, बहुत प्रशंसा करती थीं आप की.’’

‘‘कौन मीरा?’’ पुष्पाजी ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया. यही नाम तो लिखा था बायोडाटा में. बचपन में दोनों एकसाथ पढ़ीं. एकसाथ ही ग्रेजुएशन भी किया. पुष्पाजी की शादी पहले हो गई थी, इसलिए मीरा के विवाह में नहीं जा पाई थीं. फिर घरगृहस्थी के दायित्वों के निर्वहन में ऐसी उलझीं कि उलझती ही चली गईं. धीरेधीरे बचपन की यादें धूमिल पड़ती चली गईं. डिंपल के बायोडाटा पर मीरा का नाम देख कर उन्होंने तो यही सोचा था कि होगी कोई दूसरी मीरा. कहां जानती थी कि डिंपल उन की घनिष्ठ मित्र मीरा की बेटी है. बरात में भी गई नहीं थीं. जातीं तो थोड़ीबहुत जानकारी जरूर मिल जाती उन्हें. बस, इतना जान पाई थीं कि पिछले माह, कैंसर रोग से मीरा की मृत्यु हो गई थी.

डिंपल अब भी कह रही थी, ‘‘ठीक ही तो कहती थीं मां कि हमारे साथ पुष्पा नाम की एक लड़की पढ़ती थी. वह जितनी सुंदर उतनी ही होनहार और प्रतिभाशाली भी थी. मैं चाहती हूं, तुम भी बिलकुल वैसी ही बनो. मेरी सहेली पुष्पा जैसी.’’

पुष्पाजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ऐसा लग रहा था, उन की नहीं, किसी दूसरी ही पुष्पा की प्रशंसा की जा रही है, लेकिन सच को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता. कानों में डिंपल के शब्द अब भी गूंज रहे थे. तो वह पुष्पा, अभी भी खोई नहीं है. कहीं न कहीं उस का वजूद अब भी है.

पुष्पाजी का मन भर आया. शायद उन का अचेतन मन यही उपहार चाहता था. फिर भी तसल्ली के लिए पूछ लिया था उन्होंने, ‘‘और क्या कहती थीं तुम्हारी मां?’’

‘‘यही कि तुझे गर्व होना चाहिए जो तुझे पुष्पा जैसी सास मिली. तुझे बहुत अच्छी ससुराल मिली है. तू बहुत खुश रहेगी. मां, सच कहूं तो मुझे विशाल से पहले आप से मिलने की उत्सुकता थी.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ डिंपल की आंखों में झांक कर पुष्पाजी ने हंस कर पूछा.

‘‘कैसे बताती? मैं तो आप के इस धीरगंभीर रूप में उस चंचल, हंसमुख पुष्पा को ही ढूंढ़ती रही इतने दिन.’’

‘‘वह पुष्पा कहां रही अब डिंपल. कब की पीछे छूट गई. सारा जीवन यों ही बीत गया, निरर्थक. न कोई चित्र बनाया, न ही कोई धुन बजाई. धुन बजाना तो दूर, सितार के तारों को छेड़ा तक नहीं मैं ने.’’

‘‘कौन कहता है आप का जीवन यों ही बीत गया मां?’’ डिंपल ने प्यार से पुष्पाजी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आप का यह सजीव घरसंसार, किसी भी धुन से ज्यादा सुंदर है, मुखर है, जीवंत है.’’

‘‘घरर तो सभी का होता है,’’ पुष्पाजी धीरे से बोलीं, ‘‘इस में मेरा क्या योगदान है?’’

‘‘आप का ही तो योगदान है, मां. इस परिवार की बुलंद इमारत आप ही के त्याग और बलिदान की नींव पर टिकी है.’’

अभिभूत हो गईं पुष्पाजी. मंत्रमुग्ध हो गईं कि कौन कहता है भावुकता में निर्णय नहीं लेना चाहिए? उन्हें तो उन की भावुकता ने ही

डिंपल जैसा दुर्लभ रत्न थमा दिया. यदि डिंपल न होती, तो क्या बरसों पहले छूट गई

पुष्पा को फिर से पा सकती थीं? उस के दिए सितार को उन्होंने ममता से सहलाया जैसे बचपन के किसी संगीसाथी को सहला रही हों. उन्हें लगा कि आज सही अर्थों में उन का जन्मदिन है. बड़े प्रेम से उन्होंने दोनों हाथों में सितार उठाया और सितार के तार एक बार

फिर बरसों बाद झंकार से भर उठे. लग रहा था जैसे पुष्पाजी की उंगलियां तो कभी सितार को भूली ही नहीं थीं.

Emotional Story

Thriller Story in Hindi: नई कालोनी- जब महरी को दिखा तेंदुआ

Thriller Story in Hindi: आधुनिक स्कूलों की जाती एसी बसों में भारी बस्ते लिए बच्चे चढ़ रहे थे. उन की मौडर्न मांएं कैपरीटीशर्ट के ऊपर लिए दुपट्टे को संभालती हुई बायबाय कर रही थीं. कारें दफ्तरों, कारोबारों की तरफ रवाना हो रही थीं. पिछली सीट पर अपने सैलफोन में व्यस्त साहब लोग गार्ड्स के सलाम ठोकने को आंख उठा कर नहीं देखते. 11, 13 और 15 बरस की महरियां काम पर आ रही थीं और कालोनी के सुरक्षा गार्ड्स उन्हें छेड़ रहे थे.

पौश कालोनी के सामने हाईवे सड़क की झडि़यों पर फूल सी कोमल धूप खिल ही रही थी. उस में आज फिर धूल के तेज गुबार आआ कर मिल उठ गए थे. उस पार कलोनाइजर की मशीनी फौज उधर के बचे जंगल को मैदान में बदल रही थी. हाईवे सड़क के आरपार 2 ऊंचे बोर्ड थे. निर्माणाधीन नील जंगल सिटी, नवनिर्मित नील झरना सिटी.

कालोनी द्वार के सजीले पाम वृक्षों की चिडि़यां न जाने क्यों अचानक चुप लगा गई थीं. बाकी सब ठीक चल रहा था. दूसरी कतार के तीसरे बंगले में रहने वाली गृहिणी अपने दोनों बच्चों को स्कूल बस में और पति को कार में विदा कर ऊपरी बैडरूम में कांच के सजीले जग में पानी रख चुकी थी. अब दोनों जरमन शेफर्ड कुत्तों को खाने में उबला मीट दे रही थी. वह चुप और उदास दिख रही थी. हिंदुस्तानियों को ऐसी स्त्रियां हमेशा ही बहुत पसंद रही हैं जो अलसुबह उठ कर सब के जाने की तैयारी, जाने के बाद उन के जूठे बरतन और बिस्तर पर छूटे गीले तौलिए, कपड़े समेटना, आने पर सब का सत्कार और गैरमौजूदगी में घर की सुव्यवस्था आदि करती हैं. परिचित पड़ोसी, नातेरिश्तेदार कौन नहीं जो इस गृहिणी की मिसाल अपनी स्त्रियों को न देता हो.

कवर्ड कैंपस कालोनी के बीचोंबीच के गार्डन पार्क, स्याह रेशम सड़कों के किनारों के फूलों वाले बौने पेड़ों और कुल जमा प्राकृतिक माहौल ने न जाने क्यों एकाएक दम साध लिया. बाकी सब अच्छा चल रहा है. पहली कतार के पहले ही बंगले में रहने वाले अतिवृद्ध दंपती अपनी बालकली में बैठे थे. वे नए प्राप्त स्मार्टफोन पर, इतनी ऊंची आवाज में, अपने बेटों से बतिया रहे थे जैसे बिना फोन के भी वे उन की बात सुन लेंगे आस्टे्रलिया या नौर्वे या फिर लंदन में.

तभी अचानक पर्षियन बिल्ली पता नहीं क्यों रो उठी है जबकि उस की बूढ़ी,

एकाकी, रिटायर्ड मालकिन उस के पास ही पार्क में फ्लाश के 2 पेड़ों तले जौगिंग कर रही थी, ये पेड़ अपने टेढ़मेढे़पन की कलात्मकता के कारण कभी बख्श दिए गए थे.

पूरा जीवन अपनी पसंद की सर्वोच्चता के साथ बिताने के बाद अब सफल स्त्री के पास बात करने को सिर्फ यह पर्षियन बिल्ली ही बची थी. अपने शरीर की अतिस्थूलता से थकती व्यायाम करने बैठी थी और सोच रही थी कि बिल्ली को आज डाक्टर के पास ले जाएगी.

एक डुपलैक्स के बाहर से हवा की तरह गुजर गए किसी को, किसी ने नहीं देखा. इस घर में बड़ी व्यस्तता है. परसों ब्याही गई दुलहन बेटी पगफेरे के लिए मायके लौटेगी आज. बेटी से ज्यादा दामाद के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. पिता अलसुबह ही निकल गए थे फूल लाने के लिए. मां कितने ही पकवान बनाते नहीं थक रही थीं और छोटा भाई पटाखों की पेटी लिए आ रहा था. उस ने दीदी से कभी नहीं कहा कि वह उन से मम्मी जितना ही प्यार करता है.

दूसरी कतार के दूसरे बंगले वाली कामकाजी युवा मां आज फिर लेट हो गई थी औफिस जाने को. आया को आने में देर हो गई आज भी. टिफिन, लैपटौप, फाइलें साधतीसमेटती वह दौड़ कर कार तक आई. अपनी अतिव्यस्तता में आज भी वह पलट कर बाय करना भूल गई आया की गोद में से उसे देख रही 10 माह की बेटी से. लिव इन रिश्ते से पैदा इस संतान की बेहतर परवरिश के लिए ही युवा मां ने कभी शादी न करने का निर्णय लिया था और उसे अपनेआप में लगता था कि यों इस संतान की अकेले परवरिश एक महान पथ है जिस पर वह चल पड़ी है.

जैसे कोई है, कोई जो इंसानी ताकतों से बेखौफ रहता है, कुछ घटित होने वाला है, ईको चुप हो कर चीख रहा है जैसे और तो सब, हर दिन की तरह बढि़या चल रहा है कालोनी में. अड़ोसीपड़ोसी दोनों लड़के वार्षिकोत्सव के बहाने स्कूली छुट्टी होने से, सेलफोन में डूब कर औनलाइन गेम खेल रहे हैं, नाश्ता ले कर, मां को भी उन्होंने कमरे के दरवाजे से ही लौटा दिया है… निजता का आग्रह इतना प्रबल है कि मातापिता भी मौका देख कर ही सलाह देते हैं.

यहां का जीवन अपनी तात्कालिकताओं में इतना खपा हुआ कि छठी इंद्री की प्राकृतिक शक्ति सुन्न हो चुकी थी. कुछ भांपा नहीं जा सका था. सुरक्षा के भ्रम में बेपरवाह लोग दैनिक कामों की बावत आवाजाही कर रहे थे. कालोनी के मुख्यद्वार पर एक जानेपहचाने से आगंतुक की लंबी कार की ओर सलाम करते गार्ड्स आज भी बंद होंठों में मुसकरा रहे हैं. हर दिन की तरह पौश कालोनी अपने ऐश्वर्य में व्यस्त दिखाई दे रही थी.

अब एक डुपलैक्स के सजीले ड्राइंगरूम में 11 साल की महरी वैक्यूमक्लीनर चला रही थी. सोफे के कोने में भूसा भरी हिरन देह सजी थी. ऐन उस के पीछे बैठे तेंदुए पर उस की नजर पड़ी. चलता वैक्यूमक्लीनर उस की ओर बढ़ाने से पहले एक पल को उस का मन उस से खेलने को हुआ मालिक दंपती के बेटों ने अब की जो सजावटी सामान डिलिवर करवाया था, नन्ही महरी का मन उस से खेलने को हुआ या पर मां ने सम?ाया कि किसी तरह के लालच में न आना काम वाले घर में.

‘‘अरे. यह तो एकदम सचमुच का लग रहा है,’’ वेक्यूमक्लीनर लिए वह उस की तरफ अभी बढ़ी ही थी कि उसे तेंदुआ और ज्यादा सचमुच का लगने लगा और देखते ही देखते उस खिलौने ने आक्रमण की मुद्रा बना ली. तब जा कर बच्ची महरी को पता लगा कि यह तो सचमुच का तेंदुआ है. फिर जान बचा कर बाहर को भागी.

‘‘तेंदुआतेंदुआ… कोई बचाओ. घर में तेंदुआ घुस आया है,’’ मां ने सिखाया था कि किसी मुसीबत में फंस जाओ तो भागने की कोशिश करना, चीखने की कोशिश करना.

बच्ची महरी की चीखों से एलीटमौन वाली कालोनी गूंज गई.

‘‘तेंदुआ है, अंदर तेंदुआ है, तेंदुआ है.’’

सुस्ताते लोग हड़बड़ा कर इधरउधर भागने लगे. हर हाथ में फोन था, पर सू?ा किसी को नहीं कि उस का इस्तेमाल करना है. वे सब उसी ओर भागे जिधर तेंदुए की खबर थी.

बच्ची महरी भाग खड़ी हुई. भीड़ डुपलैक्स के बाहर इकट्ठी हो रही थी और अति

वृद्ध दंपती ऊपरी मंजिल पर ही रह गए थे. निचली मंजिल में तेंदुआ होगा. दूर खड़े लोग मदद पर विचारविमर्श कर रहे थे.

‘‘कोई सौ नंबर डायल करो.’’

‘‘नहीं पुलिस नहीं, वन विभाग को फोन करो.’’

‘‘कोई इन के बच्चों को फोन करो.’’

‘‘लंदन?’’

‘‘नहीं, नौर्वे.’’

वृद्ध दंपती कांपते हाथों से नया फोन एकदूसरे को बारबार लेदे रहे हैं. उन्हें सम?ा नहीं आ रहा था कि अपने किस बेटे को फोन करें इस घड़ी में. 3 बहुत सफल पुत्रों के मातापिता से इसी घबराहट में फोन छूटा और बालकनी से नीचे गिर कर टूट गया.

ऊपरी बालकनी में अति वृद्ध दंपती और निचली मंजिल में मौजूद तेंदुआ ही इस समय का सच था.

8-10 मिनट हो चुके लोगों को आए पर तेंदुए को किसी ने देखा नहीं था. सो अब तक

वह सब के लिए कम यकीन की चीज होता जा रहा था. कोई तो बच्ची महरी के लिए यह भी कह रहा था कि ये गरीब लोग अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी की हत्या भी कर सकते हैं.

बहरहाल, गार्ड्स को आगे किया गया. तीनों ने हौसला कर दरवाजे से झंका. तेंदुआ कहीं दिखाई नहीं दिया.

‘‘हम अंदर नहीं जाएंगे.’’

‘‘तब तुम लोग हो किसलिए?’’

‘‘सलाम ठोकने, भिखारी रोकनेटोकने को बोला था बिल्डर साहब ने. तेंदुआ पकड़ने की नौकरी थोड़े है,’’ कह कर पिछले ही महीने शहर आया अप्रशिक्षित तरुण गार्ड पीछे हट गया.

‘‘तुम लोगों के नाम पर हम कितनी ज्यादा सोसायटी मैंटेनैंस देते हैं.’’

‘‘साहब, हमारी बंदूकें असली नहीं

एअरगनें हैं.’’

‘‘क्या?’’

लोग चौंके कि इन अप्रशिक्षित, चिडि़यामार बंदूकचियों के हाथों उन के जानमाल की हिफाजत रही है अब तक.

दुलहन के छोटे भाई ने पटाखों की एक सुलगती लड़ी उस ड्राइंगरूम में उछाल दी थी.

जब तेंदुआ भीतर से निकला लोगों में हड़कंप मच गया.

असल तेंदुए को अपने बीच पा कर लोगों के होश उड़ गए. वह भीतर से दौड़ कर भीड़ की तरफ उछला. चीखते खौफजदा लोग हड़बड़ाते हुए एकदूसरे पर गिरने लगे. एक आदमी के सिर पर पंजा रख तेंदुआ

निकला तो गंजे सिर पर पंजे से गहरी खरोचें बन गईं. तेंदुआ दूसरी तरफ दौड़ा तो उस से आगे दौड़ते अति स्थूलधारी को अस्थमा का दौरा पड़ गया.

कोई हड़बड़ाहट में भागती हुई तेंदुए से ही टकरा गई. इस से तेंदुआ और भी बदहवास हो उठा. किसी ने उठा कर एक गमला मारा तब तेंदुए के मुंह से उस की गरदन छूटी.

सब कामों के लिए बहुत व्यवस्थित लोगों ने मौत से साक्षात्कार के बारे में कभी सोचा ही नहीं था. बदहवास एकाकी मालकिन अपनी पर्शियन बिल्ली को खोज रही थी. बिल्ली दिखाई नहीं दे रही थी.

तेंदुआ बदहवास सा कभी इधर तो भी उधर दौड़ रहा था. फिर वह एक खुले डुपलैक्स में जा घुसा.

‘‘ बेबी अंदर है… बेबी अंदर है,’’ आया चीख रही थी. बाहर शोर सुन कर वह बिना दरवाजा बंद किए चली आई थी. 10 माह की बच्ची भीतर पालने में सो रही थी.

बेहद घबराई आया बारबार फोन लगा रही थी. सिंगलपेरैंट युवा मां अपनी कंपनी के बहुराष्ट्रीय क्लाइंट्स के सामने खड़ी प्रस्तुतीकरण दे रही थी, अपनी पूरी प्रतिभा और योग्यता ?ांक कर. पानी पीने के बहाने आधे पल को उसने फोन में देखा. घर के सीसीटीवी कैमरों में बेटी सुकून से सोई दिखाई दी. आया की कौल उस ने फिर से काट दी.

13 साल का लड़का दोस्त को अपना स्मार्टफोन दे कर, दौड़ता हुआ डुपलैक्स में घुस गया. सोशल मीडिया पर लाइव बहादुरी दिखा कर हीरो बन जाने का इस से अच्छा अवसर भला क्या होगा. 3 मिनट बाद बच्ची को गोद में उठाए वह बाहर आ गया. लोग तालियां बजाने लगे.

अब दोस्त उस से पूछ रहा था, ‘‘क्या वहां तुम्हारा सामना उस तेंदुए से हुआ?’’

‘‘क्या अंदर तेंदुआ था? मुझे तो लगा बच्ची आग में फंसी होगी,’’ और दोस्त ने लाइव वीडियो बंद कर दिया.

सब तेंदुए से इधर फूलों के छोटे गमलों के पीछे एकाकी मालकिन को अपनी पर्शियन बिल्ली मिल गई. मालकिन उसे सीने से चिपटाए वहीं बैठ गई.

किसी ने दौड़ कर डुपलैक्स का दरवाजा बंद कर दिया. कुछ देर बाद तेंदुआ ऊपरी बालकनी से पास की दूसरी बालकनी में कूद गया.

तेंदुआ एकदम फ्लैट में बैठे जोड़े के सामने जा पड़ा. एक पल को तो जोड़े की दशा ऐसी हो गई जैसे गृहिणी का पति सामने आ खड़ा हुआ हो. तेंदुए से ज्यादा फिक्र नीचे से आती सामूहिक आवाजों की थी, लोग शायद इधर ही को इकट्ठा हो चले थे.

कुछ समय पहले तक प्रेमिका जिस की बांहों में खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी, अब उस की उपस्थिति ही तेंदुए से अधिक असुरक्षित कर रही थी. अब न तो भागा जा सकता था और न ही कपड़े पहन पाने का समय था. इस से पहले कि तेंदुआ कुछ कर पाता गृहिणी ने इधरउधर देखा और फिर पानी से भरा कांच का जग उठा कर दे मारा.

तेंदुआ हड़बड़ा कर बालकनी से नीचे गिर गया बाउंड्री में खुले 2 जरमन शेफर्ड के बीच. तगड़े भेडि़ए सरीखे कुत्ते अब तक के अपने जीवन में किसी से न डरे थे. वे खतरनाक प्रशिक्षण पाए और केवल गोश्त पर पले हैं और सामने जंगल का तेंदुआ था.

दोनों शिकारी कुत्तों ने एकसाथ हमला बोला, जंगल के उस शानदार शिकारी पर जो इस समय अपने दुरुस्त हाल में नहीं था. एक ओर सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित जोड़ी है तो दूसरी तरफ जंगल में पली प्रतिभा. वह प्रतिभा जोकि मां द्वारा छोड़ दिए गए अबोधों में जंगल तराशती है किसी क्रूरतम पिता की तरह.

उन तीनों में खूनी संघर्ष शुरू हो चुका था. दूर खड़ी भीड़ में बहुतेरे ऐसे हैं जिन्होंने डब्ल्यूडब्ल्यूई और ऐनीमल चैनल्स से बाहर सच्ची हिंसा आज पहली बार देखी है. कुछेक अपनी चरम उत्तेजना में, फायर ब्रिगेड, पुलिस, वन विभाग, टीवी चैनल जिसे जो नंबर याद आ रहा था, कौल लगा रहे थे. लोग मदद को पुकार रहे थे. बच्चे जो चले आए थे उन्हें खींच कर वापस ले जाने को उन की मांएं दौड़ी चली आ रही थीं.

5वें डुपलैक्स वाली को आता देख बहुतों का ध्यान तेंदुए से हट गया. वह जो सब से ग्लैमरस चेहरा है इस कालोनी का और सब से फैशनेबल भी ओह, बिना साजशृंगार, घरेलू कपड़ों में वह कितनी साधारण दिख रही थी और कुछ उम्रदराज भी.

कुछ देर के भीषण संघर्ष के बाद खून से लथपथ तेंदुआ खड़ा हुआ किसी विश्व विजेता रैस्लर की तरह. दोनों शिकारी कुत्तों को मरणासन्न छोड़ कर कूदा और कवर्ड कैंपस के बीचोंबीच बौने फूलों के बीच से गुजरता गार्डन की अेमरिकन दूब पर जा बैठा.

लोग तेंदुआ पकड़ने के लिए आ रही रैस्क्यू टीम को फोन लगालगा कर हलकान हुए जा रहे थे.

यों हाईवे सड़क के धूलगुबारों से गुजर कर पाम वृक्षों की चिडि़यों को भयभीत करता, पर्षियन बिल्ली को अपनी मौजूदगी से आक्रांत करता, कुल प्राकृतिक माहौल को सजग करता, हवा की तरह दौड़ता और ईको में अपनी उपस्थिति महसूस करवाता वह जो यहां तक चला आया, वह तेंदुआ अब शांत बैठा था. उस की देह की खरोचों से रिस्ते खून को दूब तले की जमीन सोख रही थी.

यही जमीन जिस पर कभी एक तन्वी नदी ‘नील ?ारना’ बहती थी. उस वक्त की निशानी अब बस पलाश के ये 2 पेड़ बचे हैं और तेंदुए को लौटने की एकदम सही राह याद आ गई नदी में पानी पी कर इन पेड़ों तले से, जंगल लौट जाने की राह.

तेंदुआ कूदताफांदता, कालोनी, भव्यद्वार, हाईवे सड़क पार करता, नील जंगल के पेड़ों को मार डालती मशीनी फौज के बीच से गुजरता बचेखुचे जंगल में जा कर ओझल हो गया.

इधर कालोनी में एक कोलाहल उठ कर शांत हो गया और उधर जंगल में क्या हुआ किसे पता.

Thriller Story in Hindi

Hindi Fictional Story: नन्हा मेहमान- क्या मिल पाया वह डौगी

Hindi Fictional Story: ‘‘मम्मी… मम्मी,’’ चिल्लाता 10 वर्षीय ऋषभ तेजी से मकान की दूसरी मंजिल में पहुंच गया. उस के पीछेपीछे 8 वर्षीय छोटी बहन मान्या भी खुशीखुशी अपनी स्कर्ट को संभालती चली आ रही थी.

अल्मोड़ा शहर की ऊंचीनीची, घुमावदार सड़कों से बच्चे रोज ही लगभग 2 किलोमीटर पैदल चल कर अपने मित्रों के संग कौंवैंट

स्कूल आतेजाते हैं. सभी बच्चे हंसतेबोलते कब स्कूल से घर और घर से स्कूल पहुंच जाते, उन्हें इस का एहसास ही नहीं होता, जबकि पीठ में बस्ते का भार भी रहता. रितिका भी दोपहर तक बच्चों के घर पहुंचने के दौरान अपने सारे काम निबटा लेती. बच्चों को खिलापिला कर होमवर्क करने को बैठा देती. तभी दो घड़ी अपनी आंख   झपका पाती.

आज ऋ षभ की आवाज सुन कर कमरे से निकल बरामदे में आ गईं. मन में अनेक आशंकाओं ने इतनी देर में जन्म भी ले लिया. सड़क दुर्घटना, हादसा और भी तमाम खयालात दिमाग में दौड़ गए.

‘‘यह देखो मैं क्या लाया?’’ शरारती ऋ षभ ने अपने हाथों में थामे हुए लगभग 2 महीने के पिल्ले को   झुलाते हुए कहा.

मान्या अपनी मम्मी के मनोभावों को पढ़ने में लगी हुई थी. उसे मम्मी खुश दिखती तो वह अपना योगदान भी जाहिर करती, नहीं तो सारा ठीकरा ऋ षभ के सिर फोड़ देती.

‘‘सड़क से पिल्ला क्यों उठा कर लाए? अभी इस की मां आती होगी, जब तुम्हें काटेगी तभी तुम सुधरोगे,’’ रितिका गुस्से से बोली.

‘‘सड़क का नहीं है मम्मी, हमारे स्कूल में जो आया हैं, उन्होंने दिया है. ये स्कूल में पैदा हुए हैं. आयाजी ने कहा है जिन्हें पालने हैं वे ले जाएं. स्कूल में तो पहले ही 4 भोटिया डौग हैं,’’ ऋ षभ ने सफाई देते हुए उसे फर्श पर रख दिया. पिल्ला सहम कर कोने में बैठ गया और अपने भविष्य के फैसले का इंतजार करने लगा.

‘‘चलो हाथमुंह धोलो, खाना खाओ. इसे कल स्कूल वापस ले जाना. हम नहीं रखेंगे. तुम्हारे पापा को कुत्तेबिल्ले बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘पर पापा के घर में गाय तो है न, दादी गाय पालती हैं,’’ मान्या बीच में बोली.

‘‘गाय दूध देती है,’’ रितिका ने तर्क दिया.

‘‘कुत्ता भौंक कर चौकीदारी करता है,’’ मान्या का तर्क सुन कर ऋ षभ की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मु  झे इस पिल्ले पर कोई एतराज नहीं है, मगर तुम्हारे पापा डांटेंगे तो मेरे पास मत आना.’’

मम्मी की बात सुन कर दोनों के मुंह उतर गए.

रितिका पुराने प्लास्टिक के कटोरे में दूध में ब्रैड के टुकड़े डाल कर ले आई, जिसे देख कर पिल्ला लपक कर कटोरी के बगल में खड़ा हो गया. ऋ षभ और मान्या की तरफ ऐसे देखने लगा मानो उन से इजाजत ले रहा हो और अगले ही पल कटोरे पर टूट पड़ा. कटोरे को पूरा चाट कर खुशी से अपनी दुम हिलाने लगा.

‘‘आंटी, आंटी…’ की तेज आवाज नीचे आंगन से आ रही थी. रितिका ने ऊपर बरामदे से नीचे   झांका. नीचे आगन से ऋ षभ की उम्र की

2 लड़कियां स्कूल ड्रैस पहने खड़ी थी.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ रितिका ने उन दोनों को पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘आंटी ऋ षभ हमारा पिल्ला ले कर भाग आया,’’ उन दोनों में से एक ने कहा.

‘‘  झूठ… इसे आयाजी ने मु  झे दिया था,’’ ऋषभ ने सफाई दी.

‘‘मम्मी यह पिल्ला स्कूल से ही लाया गया है. रास्ते में हम चारों ने इसे बारीबारी गोद में पकड़ा था. जब घर पास आने लगा तो तृप्ति इसे अपने घर ले जाने लगी तो भैया इसे अपनी गोद में ले कर भागता हुआ घर आ गया,’’ मान्या ने स्पष्टीकरण दिया.

‘‘आंटी ऋ षभ ने पहले कहा था कि तुम चाहो तो अपने घर ले जा सकती हो, लेकिन वह बाद में भाग गया,’’ वह फिर बोली.

रितिका को कुछ सम  झ ही नहीं आया कि वह किसे क्या सम  झाए.

‘‘मैं तो अब इसे किसी को भी नहीं दूंगा. मैं ने इस पर बहुत खर्चा कर दिया है,’’ ऋ षभ ने फैसला सुनाया.

‘‘क्या खर्चा किया?’’ उस ने नीचे से पूछा.

‘‘एक कटोरा दूध और ब्रैड मैं इसे खिला चुका हूं. अब यह मेरा है,’’ ऋषभ ने जिद पकड़ ली.

‘‘सुनो बेटा, आज तुम इसे यही रहने दो. घर जा कर अपनी मम्मी से पूछ लेना कि वे पिल्ले को घर में रख लेंगी. वे अगर सहमत होंगी तो मैं यह पिल्ला तुम्हें दे दूंगी. यहां तो ऋषभ के पापा इसे नहीं रखने देंगे. कल तुम्हें लेना होगा तो बता देना वरना वापस स्कूल चला जाएगा,’’ रितिका ने सम  झाया तो दोनों लड़कियों ने सहमति में सिर हिला दिया और वापस चली गईं.

‘‘खबरदार यह पिल्ला घर के अंदर नहीं आना चाहिए. इसे यही बरामदे में गद्दी डाल कर रख दो. तुम दोनों अंदर आ जाओ.’’

रितिका की बात सुन कर ऋषभ ने उसे पतली डोरी से दरवाजे से बांध दिया. उस के पास गद्दी बिछा कर कटोरे में पानी भर दिया. भोजन के बाद दोनों अपना होमवर्क करने लगे. बाहर पिल्ला लगातार कूंकूं करने लगा. दोनों बच्चे अपनी मम्मी का मुंह ताकते कि शायद वे रहम खा कर उसे अंदर आने दें, मगर रितिका ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा. कुछ देर बाद पिल्ले ने कूंकूं करना बंद कर दिया.

होमवर्क खत्म होते ही दोनों लपक कर बरामदे में आ गए, ‘मम्मीमम्मी’ इस बार मान्या और ऋ षभ दोनों एकसाथ पुकार रहे थे.

रितिका को   झपकी सी आ गई थी. शोर सुन कर वह तुरंत बाहर को लपकी.

‘‘मम्मी हमारा पिल्ला खो गया,’’ दोनों रोआंसे स्वर में एकसाथ बोले. पिल्ले के गले से बंधी डोरी की गांठ खुली पड़ी थी. डोरी की गांठ ढीली थी, जो पिल्ले की जोरआजमाइश करने के कारण खुल गई थी.

‘‘यहीं कहीं होगा, मेजकुरसी के नीचे देखो.’’

‘‘सीढि़यों से नीचे तो नहीं गया?’’ ऋ षभ ने शंका जताई.

रितिका ने सीढि़यों की तरफ देखा. सीढि़यां नीचे सड़क को जाती हैं.

‘‘मम्मी कहीं वह किसी गाड़ी के नीचे न आ जाए,’’ मान्या को चिंता हुई.

‘‘मु  झे नहीं लगता कि वह सीढि़यां उतर पायेगा, लेकिन अगर बरामदे में नहीं है तो नीचे आंगन में देखो.

वह अखरोट और नारंगी के पौधे के नीचे जो   झाडि़यां हैं हो सकता है उन में छिपा हो.’’

रितिका के ऐसा कहते ही वे दोनों सीढि़यों से नीचे को दौड़ पड़े. उन के पीछे रितिका भी उतर कर आ गई.

उसे भी मन ही मन अफसोस हो रहा था कि काश वह उसे कमरे के अंदर अपनी आंखों के सामने ही रखती.

नीचे की मंजिल में रहने वाले किराएदार के बच्चे भी पिल्ला खोजो अभियान में  शामिल हो गए 2 घंटे बीत गए. सूर्य के ढलने के साथ ही अंधेरा छाने लगा तो रितिका बच्चों को ऊपर ले आई. बच्चों के चेहरे पर छाई उदासी से उस का मन दुखी हो गया. बच्चों को बहलाते हुए बोली, ‘‘अब तुम्हारे पापा के घर लौटने का समय हो गया है. पिल्ले की बात मत करना. अच्छा हुआ वह खुद चला गया.’’

दोनों बच्चे टीवी के आगे बैठ कर कार्टून देखने लगे. मन ही मन वे बेहद दुखी हो रहे थे.

पापा ने घर आने के कुछ देर बाद उन से पूछा, ‘‘होमवर्क कंप्लीट कर लिया?’’

‘‘हां पापा,’’ मान्या ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘आज क्या मिला होमवर्क में?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘पापा आज केवल मैथ्स और इंग्लिश में रिटेन होमवर्क मिला था. ओरल भी सब याद कर लिया है,’’ मान्या अपनी कौपी निकाल कर पापा को दिखाने लगी.

‘‘पापा इंग्लिश में ऐस्से लिखना था- माई पैट एनिमल’’ मान्या रोआंसी हो कर बोली.

‘‘तो क्या नहीं लिखा अभी तक?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘लिख लिया माई पैट डौग,’’ मान्या का गला रुंध गया. उसे पिल्ला याद आ गया.

‘‘पापा मेरा भी होमवक चैक कर लीजिए,’’ ऋ षभ भी अपनी कौपी उठा लाया. उस ने मान्या को वहां से चले जाने का इशारा किया. मान्या अपनी कौपी उठा कर रसोई में अपनी मम्मी के पास आ गई.

मम्मी रात के भोजन की तैयारी में व्यस्त थी. मान्या को देख कर बोली, ‘‘भूख लगी है मान्या? बस 5 मिनट रुको.’’

‘‘नहीं मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं है. वह पिल्ला अंधेरे में कितना डर रहा होगा न. मम्मी आज आप ने डौग के ऊपर निबंध लिखवाया. मु  झे पूरा याद भी हो गया पिल्ले की वजह से. उस की लैग्स, उस की टेल, उस की आईज.’’

रितिका ने पलट कर मान्या के बालों को प्यार से सहला दिया. रात को  सोते समय दोनों बच्चे रितिका के पास आ गए.

‘‘जाओ तुम दोनों अपनेअपने कमरे में,’’ रितिका ने कहा.

आज दोनों बच्चों को नींद नहीं आ रही थी. उन को उदास देख कर रितिका ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें एक सच्ची कहानी सुनाती हूं.’’

‘‘किस की कहानी है?’’ ऋ षभ ने पूछा.

‘‘कुत्ते और बिल्ली की,’’ रितिका ने कहा.

‘‘हां मैं सम  झ गया आप अपनी बिल्ली और मामाजी के कुत्ते की कहानी सुनाएंगी. मैं ने उन दोनों के साथ में बैठे हुए फोटो देखा है,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘हां मैं ने भी देखा है. दोनों एक ही पोज में कालीन पर बैठे हुए हैं,’’ मान्या बोली.

‘‘सुनो कुत्ते और बिल्ली के हमारे घर में आने की कहानी,’’ रितिका हंस कर बोली.

जुलाई का महीना था. बाहर बारिश हो रही थी. सड़कों के गड्ढे भी पानी से भर गए थे. तभी म्याऊंम्याऊं करती आवाज ने सब का ध्यान आकर्षित कर लिया. नन्हे से भीगे हुए बिल्ली के बच्चे को देख कर मैं अपने को रोक न सकी. उसे कपड़े से पकड़ कर अंदर ले आई. सब ने सोचा बारिश बंद हो जाएगी तो चला जाएगा. मगर वह नहीं गया. हमारे ही घर में रहने लगा. हां कभीकभी घर से घंटों गायब भी रहता, मगर शाम तक लौट आता.’’

‘‘मम्मी मामाजी के डौग शेरू से उस की लड़ाई नहीं हुई?’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं जब मेरी पूसी 1 साल की हो गई उन्हीं दिनों हम शेरू को रोड से उठा कर घर लाए थे. वह तो पूसी से डरता था. पूसी अपना अधिकार सम  झती थी. उस के ऊपर खूब गुर्राती. बाद में उस के साथ खेलने लगी. दोनों में दोस्ती हो गई. जब शेरू का आकार पूसी से बड़ा भी हो गया वह तब भी पूसी से डरता था. अब उस बेचारे को क्या मालूम कि वह कुत्ता है और बिल्ली को उस से डरना चाहिए. वह अपनी पूरी जिंदगी बिल्ली से डरता रहा,’’ रितिका बोली.

यह सुन कर दोनों बच्चे हंसने लगे.

‘‘चलो बच्चों देर हो गई जा कर सो जाओ,’’ पापा अपना लैपटौप बंद

कर बोले. बच्चे तुरंत उठ कर चले गए.

आधी रात को खटरपटर सुन कर प्रकाश की नींद खुल गई. उस ने कमरे की बत्ती जलाई और इधरउधर देखने लगा.

रितिका ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘मु  झे बहुत देर से कुछ आवाजें सुनाई दे रही हैं.’’

‘‘कैसी आवाजें? वह चोर के छिपे होने की आशंका से घबराई और उठ कर बैठ गई.’’

तभी बैड के नीचे से पिल्ला निकल कर  कूंकूं करने लगा. उसे देख कर प्रकाश को   झटका लगा.

‘‘यह पिल्ला कहां से अंदर आ गया?’’ वह आश्चर्य से चीख पड़ा.

बच्चे पापा की आवाज सुन कर भागते हुए आ गए. पिल्ले ने उन्हें देख कर दुम हिलानी शुरू कर दी.

‘‘पापा इसे हम स्कूल से ले कर आए थे. मगर यह हमें शाम को नहीं मिला. हम ने सोचा यह खो गया है,’’ ऋ षभ ने बताया.

‘‘पापा लगता है यह शैतान तो चुपके से अंदर आ गया और आप के बैड के नीचे सो गया मान्या ने कहा,’’ मान्या ने कहा.

‘‘हां बेचारा चिल्लाचिल्ला के थक गया होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘कल बच्चे इसे स्कूल छोड़ आएंगे,’’ रितिका ने सफाई दी.

‘‘पापा क्या हम इसे पाल नहीं सकते?’’ मान्या ने पूछा.

प्रकाश ने एक पल अपने बच्चों के आशंकित चेहरों को देखा फिर हामी भर दी.

‘‘थैंक्स पापा. मैं इस का नाम ब्रूनो रखूंगी,’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं इस का नाम शेरू होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

जो पिल्ले को घुमाने ले जाएगा, उस की पौटी साफ करेगा उसी को नाम रखने का अधिकार होगा,’

’ रितिका की बात सुन कर ऋषभ और मान्या एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

Hindi Fictional Story

Brave Indian Daughters: ब्रेव ऐंड डेयरिंग डौटर्स, हर बौर्डर तोड़ें

Brave Indian Daughters: 22 अप्रैल को जम्मूकश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस हमले में कई पर्यटक मारे गए. हमले के 15 दिन बाद भारत ने इस का करारा जवाब 7 मई की आधी रात को दिया. एक ऐसा जवाब जिस ने न सिर्फ आतंकियों के मंसूबे तोड़े बल्कि पाकिस्तान को भी सख्त संदेश दिया कि यह नया भारत है जो चुप नहीं बैठता.

भारत प्रशासित कश्मीर के संदर्भ में कहा जाए तो सदियों पुरानी फारसी पंक्ति का अनुवाद सटीक बैठता है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है. इस हकीकत को कोई झुठला नहीं सकता. ऊंचे हिमालय पर्वतों के बीच बसा यह छोटा सा शहर जिस के बीच से कलकल करती नदी बहती है. तभी तो इस को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है. यहां की घाटियां और घास के मैदान लंबे समय से बौलीवुड रोमांटिक सीन्स के लिए परफैक्ट प्लेस रहे हैं और भारत के दूसरे राज्यों की गरमी से बचने के लिए हजारों पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं. लेकिन 22 अप्रैल को यह शांत घाटी दुनियाभर के मीडिया की सुर्खियों में तब आ गई जब यहां का विशाल घास का मैदान कत्लेआम के मैदान में बदल गया.

शहर से लगभग 7 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत जगह बैसरन में उग्रवादियों ने 25 हिंदू पुरुष पर्यटकों को चुनचुन कर उन के परिवारों के सामने नृशंस हत्या कर दी. आतंकवादियों ने सभी लोगों को यानी मुसलिम को अलग और हिंदू को अलग होने का आदेश दिया और फिर सभी हिंदू पुरुषों को गोली मार दी. आतंकवादियों ने पुरुषों से 3 बार ‘कलमा’ पढ़ने को भी कहा. जो लोग इसे नहीं पढ़ पाए उन का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया.

पर्यटकों की मदद करने की कोशिश कर रहे एक स्थानीय मुसलिम टट्टू संचालक की भी गोली मार कर हत्या कर दी गई. इस घाटी में उस दिन कई नए जोड़े भी घूमने के लिए आए थे जिन की नईनई शादी हुई थी. एक महिला की तो कुछ दिनों पहले ही शादी हुई थी. इस महिला को अपने पति के शव के साथ बैठे रोते देख लोगों की आंखों में आंसू आ गए थे.

निंदनीय घटना

इस नरसंहार ने परमाणु सशस्त्र भारत और पाकिस्तान को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया. भारत ने इन हत्याओं के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया तो इस्लामाबाद ने इस आरोप का खंडन किया. दोनों देशों ने मई के महीने में 4 दिनों तक एकदूसरे पर मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया जिस के बाद एक नाजुक युद्ध विराम पर सहमति बनी.

यहां जो हुआ वह निंदनीय है. निर्दोष लोग मारे गए. उन के साथ कू्ररता की गई. नतीजा क्या हुआ? हमले के तुरंत बाद पर्यटक शहर छोड़ कर भाग गए तथा जो लोग आने की योजना बना रहे थे उन्होंने भी आना रद्द कर दिया. एक खूबसूरत शहर से कितने ही लोग जिंदगी का सब से बुरा अनुभव ले कर लौटे. भारतपाकिस्तान के बीच कड़वाहट और बढ़ गई.

आतंकियों ने भारतीय महिलाओं के सामने उन के पतियों के सिर में और सीने में गोलियां मारी थीं. ये बहुत गहरे जख्म थे जिन्हें वे महिलाएं कभी नहीं भुला पाएंगी जिन्होंने अपना जीवनसाथी इस हमले में खो दिया. बैसरन घाटी में आतंकी जब पुरुषों को गोली मार रहे थे तो उन के परिवार वालों से कह रहे थे कि जाओ अपनी सरकार को बता देना.

औपरेशन सिंदूर

ऐसे में जब भारत ने इन आतंकियों को जवाब दिया तो औपरेशन का नाम ‘औपरेशन सिंदूर’ रखा. ‘औपरेशन सिंदूर’ से बेहतर नाम शायद इस हमले के लिए हो ही नहीं सकता था. यह औपरेशन उस सिंदूर का बदला था जो बैसरन घाटी में सुहागिनों के माथे से पोंछ दिया गया और उन की मांग सूनी कर दी गई थी. भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से ले कर उस के दिल पंजाब के बहावलपुर तक 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया. भारतीय सेना ने पाकिस्तान पीओके में घुस कर आतंकियों के इन ठिकानों को बरबाद किया. भारत की एयर स्ट्राइक में 70 से ज्यादा लश्कर आतंकी मारे गए.

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में बैठे क्रूर आतंकवादियों को सजा देने के लिए भारत ने जब औपरेशन सिंदूर लौंच किया और उन्हें सबक सिखाया तो देश को इस के बारे में जानकारी देने के लिए भारतीय सेना ने 2 महिला चेहरों को आगे किया. इन में से एक इंडियन एअरफोर्स की विंग कमांडर व्योमिका सिंह और दूसरी कर्नल सोफिया कुरैशी थीं. ये दोनों महिलाएं ‘औपरेशन सिंदूर’ के लिए पब्लिक फेस बनीं. औरतों के सुहाग पर की गई कू्ररता का अंजाम दुश्मनों को किस तरह भुगतना पड़ा इसे हम भारतीयों को बताने का दायित्व 2 महिलाओं को सौंपा गया. उन से लोग कनैक्ट हुए. लोगों के दिलों को तसल्ली मिली. कलेजे में ठंडक पड़ी.

‘औपरेशन सिंदूर’ के बारे में आधिकारिक तौर पर दुनिया को जानकारी देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के बारे में आज हरकोई जानना चाहता है. कर्नल व्योमिका सिंह और सोफिया कुरैशी भारत की 2 बहादुर बेटियां हैं जो भारतीय सशस्त्र बलों में अपनेअपने पद पर देश की सेवा कर रही हैं. व्योमिका सिंह भारतीय वायु सेना में विंग कमांडर हैं और एक अनुभवी हैलिकौप्टर पायलट हैं. सोफिया कुरैशी भारतीय सेना में कर्नल के पद पर हैं और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में एक अखिल भारतीय पुरुष दल का नेतृत्व किया था.

इन दोनों महिला अफसरों ने न सिर्फ प्रैस ब्रीफिंग में जानकारी दी बल्कि अपने आत्मविश्वास से लबरेज अंदाज से सभी का ध्यान भी खींचा. सेना में महिलाओं की भागीदारी को ले कर जो लोग सवाल उठाते थे उन्हें भी इन दोनों बहादुर बेटियों ने करारा जवाब दिया.

कर्नल सोफिया कुरैशी

कर्नल सोफिया कुरैशी 1999 में भारतीय सेना में शामिल हुई थीं. अपनी सेवा के 26वें वर्ष यानी मई, 2025 में ‘औपरेशन सिंदूर’ के लिए राष्ट्रीय मीडिया ब्रीफिंग के दौरान भारतीय वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह और भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ उपस्थित रहीं. वर्तमान में वे सिग्नल कोर की एक विशिष्ट इकाई की कमान संभाल रही हैं. अपने लंबे और शानदार कैरियर में कर्नल कुरैशी ने जम्मू और कश्मीर, पूर्वोत्तर, नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) पर ऊंचाई वाले क्षेत्रों से ले कर रेगिस्तानी इलाकों तक आतंकवादरोधी और उग्रवादरोधी अभियानों में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाई हैं.

कर्नल कुरैशी दुनिया की सब से बड़ी फील्ड ट्रेनिंग ऐक्सरसाइज में भारतीय सेना की टुकड़ी की कमान संभालने वाली उन गिनीचुनी महिला अधिकारियों में से एक हैं जिन में अमेरिका, रूस और चीन सहित 22 देशों की सेनाओं ने भाग लिया था.

कर्नल कुरैशी बहुभाषी और कवयित्री भी हैं. वे अपना खाली समय अपने परिवार के साथ बिताना पसंद करती हैं. वे हौकी और बास्केटबौल खेलती हैं और वर्तमान में गोल्फ खेलना सीख रही हैं. वे एडब्ल्यूडब्ल्यूए (आर्मी महिला कल्याण संघ) से भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं.

सोफिया कुरैशी गुजरात के वड़ोदरा की रहने वाली हैं. उन्होंने 1999 में शौर्ट सर्विस कमीशन के जरीए सेना में कदम रखा था. उस समय देश कारगिल युद्ध के दौर से गुजर रहा था. बहुत कम उम्र में सेना में शामिल हो कर उन्होंने एक ऐसा सफर शुरू किया जो आज युवाओं के लिए मिसाल है. सोफिया सेना की सिगनल कोर में अधिकारी हैं. इस कोर का काम है सेना के बीच संचार बनाए रखना. 2016 में उन्होंने एक अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास में भारतीय सेना का नेतृत्व भी किया.

सोफिया सैन्य परिवेश में पलीबढ़ी हैं. कर्नल सोफिया कुरैशी की ननिहाल उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित घाटमपुर के लहुरीमऊ गांव में है. कर्नल सोफिया का बचपन घाटमपुर और मुरादाबाद में बीता. उन की मां हलीमा की शादी मध्य प्रदेश में स्थित छतरपुर जिले के नौगवां में हुई थी. उन के पिता का नाम ताज मोहम्मद है. वे भी सेना में थे. हलीमा की 2 बेटियां कर्नल सोफिया और सायना जुड़वा हैं. घर का माहौल शुरू से ही ऐसा था कि कर्नल सोफिया भी राष्ट्र सेवा की बातें करती रहती थीं. दूसरे बच्चे जिस समय खेलखिलौनों की बात करते थे सोफिया सीमा पर जा कर देश सेवा की बातें करती थीं.

अपने पिता और परदादाओं की निष्ठा और अटूट समर्पण को बचपन से देखा है. लोरियों की जगह वीर रस और साहस की कविताएं और गीत सुने है. बचपन से ही सेना की वरदी उन्हें आकर्षित करती रही है. उन का दिल जानता था कि उन्हें भारतीय सेना में शामिल होना है लेकिन उस समय महिलाओं के लिए प्रवेश वर्जित था. इसलिए उन्होंने डीआरडीवो (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) में एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल होने का फैसला किया. हालात बदले और उन्हें सेना में आवेदन करने का अवसर मिला.

1992 में भारतीय सेना ने गैरचिकित्सा बैचों में 25 महिला कैडेटों को शामिल किया. जब सोफिया 1999 में भारतीय सेना में शामिल हुईं तो सिग्नल कोर में शामिल होने वाले शुरुआती बैचों में से एक थी. 2004 में भारतीय महिलाओं ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में न केवल पर्यवेक्षकों के रूप में बल्कि कांगो, लेबनान और दक्षिण सूडान सहित दुनिया के कई क्षेत्रों में रसद अधिकारियों, स्टाफ अधिकारियों और सैन्य पर्यवेक्षकों के रूप में भी सेवा देनी शुरू की.

‘औपरेशन सिंदूर’ के दौरान राष्ट्रीय ब्रीफिंग में महिला अधिकारियों की उपस्थिति ने बहुत कुछ कहा और यह संदेश दिया कि उत्कृष्टता का कोई लिंग नहीं होता. सोफिया युवाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि भारत की युवा आबादी 37 करोड़ से ज्यादा है. यह हमारे भविष्य को आकार देने वाली है. खुद पर विश्वास रखें. आत्मविश्वास आत्मविश्वास बढ़ाता है. साहसी, मेहनती और गतिशील बनें. सपने देखने का साहस करें. अपनी मानसिकता पर नियंत्रण रखें. टाइम मैनेजमैंट करें. 8+8+8 के नियम का पालन करें यानी 8 घंटे अपना काम पूरी लगन से करें, अपने शौक को पूरा करने के लिए 8 घंटे का समय निकालें और बाकी 8 घंटे सोएं. एक उत्साही पाठक बनें, अच्छी आदतें विकसित करें.

व्योमिका सिंह

व्योमिका सिंह ने दिल्ली के सेंट एंथनी सीनियर सैकंडरी स्कूल से पढ़ाई की है. उन्होंने सेंट एंथनी कालेज से ग्रैजुएशन की और बाद में ‘दिल्ली कालेज औफ इंजीनियरिंग’ से एन्वायरन्मैंटल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. अपने स्कूल के आखिरी दिन व्योमिका सिंह स्कूल के स्टाफरूम के बाहर खड़ी थीं. उन के हाथ में एक औटोग्राफ बुक थी. औटोग्राफ बुक में टीचर्स की ओर से स्टूडैंट्स के लिए संदेश लिखे जाते हैं. व्योमिका सिंह के बारे में उन की हिंदी की टीचर नीलम वासन ने लिखा था, ‘‘व्योमिका यानी जो व्योम को छूने के लिए बनी हो यानी तुम आसमान छूने के लिए पैदा हुई हो.’’ इस संदेश को पढ़ कर और साथ ही अपने नाम के अर्थ को समझते हुए व्योमिका के दिल में वास्तव में आसमान छूने की अभिलाषा जगी. उन्होंने तय किया कि वे अपना नाम सार्थक करेंगी.

1991-92 में स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने ऐंप्लौयमैंट न्यूज देखी जहां एक विज्ञापन में लिखा था कि केवल अविवाहित पुरुष उम्मीदवार ही पायलट बन सकते हैं. लेकिन फिर इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के दौरान उन्हें पता चला कि महिलाएं पीएससी के माध्यम से शौर्ट सर्विस कमीशन के लिए एक प्रतियोगी परीक्षा दे कर वे पायलट बन सकती हैं. उन्होंने अकादमी में पायलट कोर्स पास किया और उन्हें विंग्स से सम्मानित किया गया. इस तरह वे एक हैलिकौप्टर पायलट बन गईं. उस के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. यह एक उतारचढ़ाव भरा अनुभव था खासकर एक हैलिकौप्टर पायलट होने के नाते वे कई तरह की भूमिकाएं निभाती थीं. उन्होंने समुद्र तल से ले कर 18 हजार फुट की ऊंचाई तक उड़ान भरी है.

विंग कमांडर व्योमिका सिंह का मायका लखनऊ में है. उन के पिता का नाम आरएस निम और मां का नाम करुणा सिंह है. एअरफोर्स की कुशल हैलिकौप्टर पायलट विंग कमांडर व्योमिका सिंह का विवाह हरियाणा के भिवानी में स्थित बापोड़ा गांव में हुआ है. उन के पति विंग कमांडर दिनेश सिंह सभ्रवाल हैं. उन के 2 भाईबहन हैं- भूमिका सिंह और निर्मलिका सिंह. उन की बड़ी बहन भूमिका सिंह ब्रिटेन में वैज्ञानिक हैं. उन के मातापिता सेवानिवृत्त शिक्षक हैं. व्योमिका कभी भी सामान्य बच्चों की तरह खेलखिलौनों में नहीं उलझती थीं. खेलकूद, वादविवाद से ले कर पढ़ाईलिखाई में अव्वल रहती थीं. जब व्योमिका ने सभी परीक्षाएं पास कर लीं और एअरफोर्स में चुन ली गईं तो यह खुशखबरी सब से पहले मां के साथ ही साझा की थी. तब मां को अचानक विश्वास नहीं हुआ था.

व्योमिका सिंह एक जानीमानी हैलिकौप्टर पायलट हैं. वे 18 दिसंबर, 2004 को भारतीय वायुसेना में शामिल हुईं और 2017 में विंग कमांडर बनीं. उन के पास चीता और चेतक जैसे लड़ाकू हैलिकौप्टर उड़ाने का शानदार अनुभव है. वे 21 वर्षों से वायुसेना में सेवा दे रही हैं और उन के पास 2500+ घंटों की फ्लाइंग का अनुभव है. उन का नाम ही उन की पहचान बन गया है.  उन्होंने जिस आत्मविश्वास से प्रैस कौन्फ्रैंस में बात की वह उन के अनुभव और जिम्मेदारी को दिखाता है.

व्योमिका सिंह ने जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और अरुणाचल प्रदेश जैसे कठिन और दुर्गम इलाकों में चेतक और चीता हैलिकौप्टर्स को सफलतापूर्वक उड़ाया है. नवंबर, 2020 में उन्होंने अरुणाचल में एक महत्त्वपूर्ण बचाव मिशन का नेतृत्व किया था. यह मिशन पहाड़ी और दुर्गम इलाकों के बीच रात में उड़ान भरते हुए सफलतापूर्वक संपन्न किया गया था. वे 2021 में 21,650 फुट की ऊंचाई पर माउंट मणिरंग पर आयोजित एक त्रिसेना महिला पर्वतारोहण अभियान का भी हिस्सा रही हैं.

‘औपरेशन सिंदूर’ भारतीय सैन्य इतिहास में वह नाम बन गया है जिस ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बना कर भारत की सैन्य ताकत का परिचय दुनिया को दिया. इस औपरेशन में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने न केवल हैलिकौप्टर स्क्वाड्रन को कमांड किया बल्कि जटिल परिस्थितियों में निर्णय ले कर मिशन को सफल भी बनाया. उन की तेज निर्णयक्षमता और नेतृत्व कौशल की पूरे देश में सराहना हो रही है. महिला अधिकारियों की सैन्य क्षमताओं को ले कर जो पूर्वाग्रह होते हैं व्योमिका ने उन्हें अपनी कर्तव्यपरायणता से तोड़ा है.

विंग कमांडर व्योमिका सिंह नई दिल्ली में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए एक उच्च प्रोफाइल ब्रीफिंग में आत्मविश्वास से खड़ी थीं. उन्होंने ‘औपरेशन सिंदूर’ के बारे में विस्तार से जानकारी दी जो भारत द्वारा पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई हवाई काररवाई थी. इस ब्रीफिंग में उन के साथ थे विदेश सचिव विक्रम मिस्री और कर्नल सोफिया कुरैशी.

कर्नल सोफिया और विंग कमांडर व्योमिका उन लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो आज किसी मंजिल को पाने का सपना देख रही हैं. इन्होंने यह साबित किया है कि अगर इरादा पक्का हो तो कोई भी मुकाम दूर नहीं.

‘‘औपरेशन सिंदूर के दौरान राष्ट्रीय ब्रीफिंग में महिला अधिकारियों की उपस्थिति ने बहुत कुछ कहा और यह संदेश दिया कि उत्कृष्टता का कोई लिंग नहीं होता. सोफिया युवाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि भारत की युवा आबादी 37 करोड़ से ज्यादा है. यह हमारे भविष्य को आकार देने वाली है. खुद पर विश्वास रखें. आत्मविश्वास आत्मविश्वास बढ़ाता है…’’

‘‘पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में बैठे क्रूर आतंकवादियों को सजा देने के लिए भारत ने जब औपरेशन सिंदूर लौंच किया और उन्हें सबक सिखाया तो देश को इस के बारे में जानकारी देने के लिए भारतीय सेना ने 2 महिला चेहरों को आगे किया. इन में से एक इंडियन एअरफोर्स की विंग कमांडर व्योमिका सिंह और दूसरी कर्नल सोफिया कुरैशी थीं…’’

Brave Indian Daughters

Women Warriors: टैक्नोलौजी वार में भी आगे

Women Warriors: बेबाक, निडर, बहादुर लड़ाका. भारतीय बेटियों के शौर्य की गाथा हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं. चाहे वह कहानी कित्तूर की रानी चेनम्मा की हो या झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की, हमारा इतिहास वीरांगनाओं के साहस और बलिदान से गौरवान्वित रहा है.

हम ने इन की शूरवीरता तो बहुत सुनी लेकिन देखी नहीं. मगर आज उसी वीरता का लोहा दिखाते हमारे देश की बेटियां डिफैंस में झंडे गाड़ रही हैं. आर्मी हो या एअर फोर्स या नेवी हर सैन्य बल में महिलाएं अपना बल दिखा और जमा रही हैं. पहले जहां हमारी महिलाओं को गौ कहा जाता था आज उन्हीं महिलाओं को शेर कहा जाता है.

हमारी वूमन फोर्स निर्भय, निडर और सक्षम है. जहां हमारी वीरांगनाओं ने घोड़े पर सवार हाथ में तलवार थामे दुश्मनों को चने चबवा दिए थे, वहीं आज हमारी काबिल औफिसर्स जेट में बैठ दुश्मनों को खदेड़ रही हैं.

एक समय वह भी था जब महिलाओं का आर्म्ड फोर्सेज में जाना सिर्फ कल्पना मात्र था. परिवार, समाज और स्वयं महिलाएं आर्म्ड फोर्सेज में जाना अच्छा और सुरक्षित नहीं मानती थीं. फोर्सेज तो सदैव से बल का प्रतीक माना गया है और बल हमेशा पुरुष का. पहले अगर कोई महिला फोर्सेज जौइन करने की बात भी करती तो समाज और परिवार उस का पुरजोर विरोध करता था. इस विरोध के पीछे कई कारण थे एक यह कि सेनाबल पुरुषों के लिए है औरतों के लिए नहीं, दूसरा औरतों में उतनी क्षमता व साहस नहीं जो पुरुषों में होता है, तीसरा यदि कोई औरत एक सैनिक बन गई तो वह दकियानूसी समाज के लिए एक खतरा बन जाएगी, चौथा अगर कोई महिला सैनिक दुश्मनों के हाथ लग गई तो उस के साथ दुष्कर्म होगा.

‘‘आधुनिक युद्ध अब सरहदों पर कब्जे का नहीं बल्कि बिना सरहदों को छूए एक देश को हराने का है. अब कन्वैंशनल वार होने की ज्यादा संभावना नहीं दिखती. अब वार होगी साइबर स्पेस और इंटैलिजैंस की, जिस में एक देश का दूसरे देश की हर हरकत, हर खुफिया जानकारी, रणनीति और कमजोरियों को एकत्र करना और फिर उन पर रिसर्च कर अपनी रणनीति तैयार कर हमला करना ही एक आक्रामक पहल होगी…’’

परिवार का गौरव

जो डर पहले था वह आज भी मौजूद है लेकिन हमारी बेटियों ने अपने कौशल, साहस और विवेक से इन परिस्थितियों पर विजय पा अपने लिए सैन्यशक्ति में जगह बना, उस की ताकत और बढ़ाई है. आज जब घर की बेटियां सेना में शामिल होती हैं तो उन्हें परिवार का गौरव कहा जाता है.

जो लोग यह कहते थे कि ये लड़कियों के बस की बात नहीं. आज वही लोग उन्हें सिर झुका सलामी देते हैं. पहले अकसर कहा जाता था कि टैक्नोलौजी की बात औरतों से न करो. यह उन के सिर के ऊपर से चला जाएगा. आज उन्हीं लोगों के सिर के ऊपर से नई टैक्नोलौजी के विमान औरतें ही उड़ा ले जा रही हैं, जिस का बहुत बड़ा उदाहरण फ्लाइट लैफ्टिनैंट शिवांगी सिंह है.

लैफ्टिनैंट शिवांगी सिंह भारतीय वायुसेना के राफेल विमान को उड़ाने वाली पहली महिला फाइटर पायलट के साथ ही गोल्डन एरो स्क्वाड्रन का हिस्सा भी हैं.

तनुष्का सिंह नाम को आज सब जानते हैं. मात्र 24 साल की उम्र में उन्हें भारतीय वायुसेना के जगुआर फाइटर जेट स्क्वाड्रन का स्थाई पायलट घोषित किया गया है. यह पहली महिला हैं जिन्हें यह औदा मिला है.

सब लेफ्टिनेंट आस्था पूनिया भारतीय नौसेना की पहली महिला फाइटर पायलट बन गई हैं.

तो जो लोग यह कह हंसते नजर आते थे कि तकनीक और हथियार औरतों के बस की बात नहीं आज उन्हीं लोगों की रक्षा औरतें तकनीकी हथियारों से कर रही हैं. उन लेटैस्ट टैक्नोलौजिकल वैपंस को अपने बाएं और दाएं दोनों हाथों में थामे देश की रक्षा के लिए तैनात हैं.

पिछले दशकों में भारतीय सैन्य बल की तीनों शाखाओं भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में महिला अधिकारियों की संख्या करीब 3 हजार थी. मगर आज यह आंकड़ा 11 हजार को पार कर चुका है.

ये आंकड़े केवल यह नहीं दिखाते कि महिलाओं की भरती में इजाफा हुआ है बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि महिलाओं की भूमिका भारतीय सेना में किस तरह बढ़ी है. आज भारतीय सेना में 507 महिला अधिकारी स्थाई कमीशन की अधिकारी बनी हैं.

जांबाज महिलाएं

जहां पहले महिला की भरती व पोस्टिंग मैडिकल बेस, नर्सिंग, ट्रेनिंग कैंप सपोर्ट पर सेवाएं देने तक सीमित रखी गई थी आज वहीं भारतीय सेना की जांबाज महिलाएं लड़ाकू विमानों में सवार दुश्मनों के ठिकाने उड़ा रही हैं, गोलियों से उन का सीना दाग रही हैं.

मगर अभी भी यही कहासुना जाता है कि महिलाएं युद्ध की मार और तनाव को नहीं ?ोल सकतीं. कमजोर हो पीछे हट जाएंगी या हार मान लेंगी. इस संकुचित सोच को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए कप्तान याशिका हैं.

भारतीय महिला सोल्जर कप्तान याशिका त्यागी एक अद्भुत मिसाल और आदर्श हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई. कप्तान याशिका जो उस वक्त गर्भवती थीं, लेह लदाख जोकि हाई लैटिट्यूड क्षेत्र है, जहां जमा कर मारने वाली ठंड हमेशा मौजूद रहती है, जहां औक्सीजन की मात्रा भी इतनी कम होती है कि लोगों के फेफड़े सूख जाते हैं, वे मर जाते हैं, ऐसे में एक गर्भवती महिला का वहां होना भी एक भयावह स्थिति है.

ऐसा कठोर वातावरण शिशु के लिए जानलेवा होता है. उस विषम परिस्थिति में भी कप्तान याशिका ने अपनी पोस्ट, अपने दल, अपनी ड्यूटी संभाले रखी और लौजिस्टिक्स ऐंड सपोर्ट का सारा कार्यभार बखूबी निभाया ताकि सीमा में लड़ रहे हमारे सैनिकों को सारी मदद समय पर मिलती रहे.

मिलिटरी में महिलाओं का होना न केवल महिलावर्ग की प्रगति, उन्नति और शौर्य का प्रतीक है बल्कि देश की उन्नति का भी है. महिलाओं का मिलिटरी में होना यह दर्शाता है कि उस देश में महिलाओं को पुरषों की तरह अधिकार व मौके दिए जा रहे हैं, साथ ही यह लैंगिक समानता को भी दिखाता है कि इसी भी देश में लैंगिक समानता और समान अवसर उस देश की सोच, उस की शक्ति, उस की नीति को दुनिया के सामने रखता है.

‘‘मिलिटरी में महिलाओं का होना न केवल महिलावर्ग की प्रगति, उन्नति और शौर्य का प्रतीक है बल्कि देश की उन्नति का भी है. महिलाओं का मिलिटरी में होना यह दर्शाता है कि उस देश में महिलाओं को पुरषों की तरह अधिकार व मौके दिए जा रहे हैं, साथ ही यह लैंगिक समानता को भी दिखाता है कि इसी भी देश में लैंगिक समानता और समान अवसर उस देश की सोच, उस की शक्ति, उस की नीति को दुनिया के सामने रखता है…’’

देश की सुरक्षा का दायित्व

जहां पहले महिलाओं को रसोई तक सीमित किया गया था, फिर जब मौका दिया भी तो केवल आम नौकरी का, आज उसी सीमा को असीमित कर वे आसमान छू रही हैं, समुंद्र लांघ रही हैं और देश की रक्षा करते हुए दुश्मनों से दोदो हाथ कर रही हैं. जो महिलाएं घर में चिमटा और पूजा की थाल लिए होती थीं आज वही महिलाएं बौर्डर पर हाथ में राइफल और मिसाइल के बटन थामे हैं.

मिलिटरी ट्रेनिंग की जिन कठिनाइयों को सुनासुना कर महिलाओं को डराया जाता था आज उन्हीं मुश्किलों को पार कर वे कप्तान और कमांडर की पोस्ट पर हक जमा रही हैं.

भारतीय सेना में महिलाओं की भरती के लिए कई प्रवेश विकल्प रखे गए हैं जो विशिष्ट योजना के अंतर्गत महिलाओं को सेना में शामिल होने के अवसर प्रदान करते हैं.

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए): यह एक प्रतिष्ठित संस्थान है, जहां 3 वर्ष की ट्रेनिंग के बाद विशेष ट्रेनिंग के लिए निर्धारित अकादमी में भेजा जाता है.

संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस): सीडीएस की परीक्षा सेना में अधिकारी का औदा दिलाने में मदद करती है. इस परीक्षा में सफल कैंडिडेट को अधिकारी प्रशिक्षण के लिए अदाकमी (ओटीए) में ट्रेनिंग मिलती है.

अग्निपथ योजना- इस योजना में महिला और पुरुष दोनों को 4 साल की अवधि के लिए अग्निवीर बन सेना में शामिल होने की अनुमति है.

और भी बहुत से विकल्प हैं जिन से आप आर्मी का हिस्सा बन सकते हैं जैसे एनसीसी, एसएससी, एमएनएस, आर्मी कैडेट कालेज.

महिलाओं ने खुद को शारीरिक, मानसिक और बौधिक रूप से इतना मजबूत बना लिया है कि वे मिलिटरी ट्रेनिंग की मार को सह कर दुश्मनों को मार सके.

भारतीय सशस्त्र बल में महिलाओं का योगदान दिनबदिन बढ़ रहा है. अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ता से महिलाएं न केवल अपना परचम लहरा रही हैं बल्कि और महिलाओं के लिए एक मिसाल भी बन रही हैं. उन्हें भी सेना में शामिल होने को बढ़ावा दे रही हैं. शिवांगी, तनुष्का, आस्था जैसी बहादुर लड़कों को देख उन के भीतर का डर भी कम होता है. वे भी सेना में भरती होने के सपने को हकीकत का रूप देने से पीछे नहीं हटतीं, साथ ही महिलाओं का मिलिटरी में होना समाज को जकड़ी रूढि़वादि सोच और जंजीर को तोड़ने के लिए बहुत बड़ा औजार है.

जहां एक ओर महिलाओं का योगदान, उन की भूमिका आर्म्ड फोर्सेज में बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना की आर्टिलरी, फाइटिंग सिस्टम और वैपंस भी एडवांस्ड और स्ट्रौंग होते जा रहे हैं.

भारतीय सेनाबल अब सिर्फ गोलाबारूद तक सीमित नहीं है. वह अपना बल हर रूप से बढ़ा रही है. आज सेना एआई संचालित हथियार, लेजर बेस्ड सिआईडब्लूएस, हाइपरसोनिक मिसाइल्स से सशक्त हैं.

कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण हथियार जैसे-

रोबोटिक म्यूल- भारतीय सेना में आज लेटैस्ट वैपंस की कमी नहीं. हाल ही में एआई टैक्नोलौजी का नया हथियार रोबो सोल्जर रोबोटिक म्यूल सैनिय शक्ति का हिस्सा बन चुका है. यह रोबो सैन्य एक जानवर की तरह

4 पैर लिए एक ऐसा रोबोटिक हथियार है, जिसे 10 किलोमीटर दूर से रिमोट द्वारा औपरेट किया जा सकता है. इस में एके 47, एलएमजी, स्नाइपर, टेवौर जैसे खतरनाक हथियारों को लेस किया जा सकता है.

इस की एक और बहुत बड़ी खासीयत है टैंपरेचर टौलरैंस, जिस से यह माइनस 40 से प्लस 55 डिग्री सैल्सियस के तापमान में भी काम कर सकता है. इस की यह खूबी हमारी थल सेना के लिए बहुत मददगार है. जो कड़कड़ाती ठंड, बफीले पर्वतों, तपते रेगिस्तानों के जानलेवा वातावरण में हमारी सरहदों की रक्षा के लिए 24 घंटों तैनात हैं. अब इन रोबोटिक सैनिकों को सरहदों की निगरानी के लिए सेना इस्तेमाल कर सकती है और दुश्मनों की हरकत दूर से भांप उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकती है.

स्वार्म ड्रोन्स: आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस (एआई) का एक और नायाब उदाहरण है स्वार्म ड्रोन्स. इस के जरीए ड्रोन्स एकदूसरे के साथ नियंत्रण केंद्र के भी संपर्क में रहते हैं. इस में एआई निर्धारित करता है कि कौन सा ड्रोन दुश्मन के कौन से हिस्से व भाग या हरकत को निशाना बनाएगा.

ड्रोन्स से हमले और बचाव का एक बहुत बड़ा नमूना हम ने औपरेशन सिंदूर में देखा है.

ब्रह्मोस मिसाइल: जो एक सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल है. यह अपनी गति और लक्ष्य को भेदने की शक्ति के लिए जानी जाती है.

नागस्त्र 1: यह बारूद का गोला ‘कामिकेड ड्रोन’ के नाम से भी जाना जाता है.

रफाले मरीन- वायु सेना के बाद अब नौ सेना की शक्ति ब़ताई जाएगी. भारतीय सेना फ्रांस के साथ किए एक गठबंधन के तेहत भारतीय नेवी के लिए भी 26 रफाले मरीन फाइटर जेट ला रही है. इस से भारतीय नेवी का ही दबदबा तो बढ़ेगा ही, साथ ही भारत के पास 2030 तक कुल 62 सर्विस में होंगे.

किसी देश की आर्मी के पास लेटैस्ट वैपंस का होना, सेना की प्रगति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है. जहां एक ओर हर देश अपनी इन्फ्रास्ट्रक्चर, मैडिकल और आर्थिक संरचना को मजबूत कर रहा है वहीं टैक्नोलौजिकल वार के लिए भी तैयार हो रहा है. जी हां टैक्नोलौजिकल वार या युद्ध.

मौडर्न वार सैन्य बल की नहीं इंटैलिजैंस की है. आधुनिक युद्ध अब सरहदों पर कब्जे का नहीं बल्कि बिना सरहदों को छूए एक देश को हराने का है. अब कन्वैंशनल वार होने की ज्यादा संभावना नहीं दिखती. अब वार होगी साइबर स्पेस और इंटैलिजैंस की, जिस में एक देश का दूसरे देश की हर हरकत, हर खुफिया जानकारी, रणनीति और कमजोरियों को एकत्र करना और फिर उन पर रिसर्च कर अपनी रणनीति तैयार कर हमला करना ही एक आक्रामक पहल होगी.

यह एक तरह की डिजिटल लड़ाई भी है. एक सीक्रेट वार, जहां कुछ विशेष मशीनें आप का सारा सीक्रेट डाटा चुरा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती है. एआई इस काम को बहुत बखूबी से कर भी रही है. जिस का एक उदाहरण युक्रेनरूस युद्ध है. जहां एआई ड्रोन द्वारा खुफिया जानकारी इकट्ठा कर हमले किए गए हैं.

किसी भी देश की खुफिया जानकारी सिर्फ हमले करने में मददगार नहीं है बल्कि उस देश की पूरी अर्थव्यवस्था, उस देश की गतिविधि, उस की प्रगति, उस की नींव हिलाने के लिए एक बहुत बड़ा हथियार है.

सोचिए अगर कोई देश दूसरे देश के हर राज, नीति और प्रणाली की जानकारी इकट्ठा कर ले तो क्या? उसे युद्ध करने की जरूरत पड़ेगी. नहीं, सामने वाला देश अपनेआप ही समर्पण कर देगा क्योंकि अपना बचाव करने के लिए उस देश के पास जो भी नीति या तैयारी होगी उस की जानकारी तो पहले से दुश्मन के पास मौजूद होगी. तो वह व्यर्थ का जोखिम क्यों लेगा. सामने वाला देश उस जानकारी मात्र से ही इतनी शक्ति रखता होगा कि अपने दुश्मन को आसानी से मात दे सके या अपने आगे झुका सके.

साइबर स्पेस और एआई गतिविधियों ने जितनी मदद की है उतना ही खतरा बढ़ा दिया है. जहां एक ओर यही टैक्नोलौजी दूर से दुश्मन को निशाना बना ढेर कर दे रही है, वहीं दूसरी ओर एक देश के सिक्यूरिटी सिस्टम को हैक कर उसे मजबूर और कमजोर. आधुनिक काल में किसी युद्ध का निर्णायक उस की सेना नहीं बल्कि उस की टैक्नोलौजी, साइबर इनफौर्मेशन और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस होगी.

Women Warriors

Revlon Lipstick: रेवलॉन की नई कलरस्टे स्वेड इंक

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इस का नो ट्रांसफर और वाटरपू्रफ फौर्मूला आप को सार्वजनिक स्थानों पर भी खानेपीने की आजादी देता है क्योंकि यह न तो फैलता है, न ही धब्बा पड़ता है और न ही ट्रांसफर होता है. यह अपनी जगह पर पूरी तरह से टिका रहता है.

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Hindware Appliances: आधुनिक रसोई के लिए स्मार्ट ऐप्लायंसिस

Hindware Appliances: जैसेजैसे भारतीय परिवार अधिक सुविधाजनक और आधुनिक जीवनशैली अपनाते जा रहे हैं वैसेवैसे किचन भी आराम और सुविधा का केंद्र बन रही है. लेटैस्ट टैक्नोलौजी से युक्त और रोजमर्रा के कामों को आसान बनाने वाले विभिन्न प्रकार के किचन ऐप्लायंसिस के जरीए हिंदवेयर इस बदलाव में बड़ी भूमिका निभा रहा है. ऐप, जेस्चर और वौइस कमांड से संचालित चिमनी से ले कर सब से सुरक्षित, सुविधाजनक और आकर्षक हौप्स व ओवन जैसे ये उपकरण खाना पकाने का अनुभव देते हैं. इन मौडर्न ऐप्लायंसिस का सीधा अनुभव कंज्यूमर देशभर में स्थित हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस के स्टोर्स पर पा सकते हैं.

चिमनियां: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस किचन की वैंटिलेशन व्यवस्था को अपनी अत्याधुनिक चिमनियों के माध्यम से नए सिरे से परिभाषित कर रहा है. इन के प्रमुख मौडलों में optimus iPro BLDC शामिल हैं, जो 1900 m3/hr की शक्तिशाली सक्शन क्षमता और ऐप से कनैक्टिविटी के साथ धुएं, गंध और तेल के कणों को तेजी और कुशलता से हटाता है. इस का  Imelda BLDC मौडल ऊर्जा दक्षता को स्टाइलिश डिजाइन और मोशन सैंसिंग तकनीक के साथ जोड़ता है, जिस से किचन का अनुभव और भी आरामदायक हो जाता है.

डिजाइन और सौंदर्य की दृष्टि से ब्रैंड विभिन्न स्टाइल में आइलैंड, वौल माउंटेड, इनक्लाइंड, स्ट्रेट लाइन और क्लासिक टी शेप जैसी चिमनियां पेश करता है जो हर तरह की रसोई में फिट बैठती हैं.

मजबूत डिजाइन फाउंडेशन पर तैयार यह चिमनी रेंज अत्याधुनिक तकनीक से रोजमर्रा की रसोई को और भी सुविधाजनक बनाती है. MaxX साइलैंस टैक्नोलौजी और उच्च दक्षता वाली BLDC मोटर्स जैसी सुविधाओं से लैस ये चिमनियां 1200 m3/hr से 2000m3/hr तक की शक्तिशाली सक्शन क्षमता प्रदान करती हैं, वह भी पारंपरिक मौडलों की तुलना में लगभग 32त्न कम शोर के. साथ ही जेस्चर और मोशन कंट्रोल से संचालन भी संभव है. इस के अलावा, IoT इंटीग्रेशन के साथ इन चिमनियों को मोबाइल ऐप या वौयस कमांड के माध्यम से भी नियंत्रित किया जा सकता है.

बिल्ट इन हौब्स: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस परफौरमैंस, सेफ्टी और मौडर्न डिजाइन के मेल पर आधारित कई तरह के बिल्ट इन हौब्स प्रस्तुत करता है. ये हौब्स 3 से 5 बर्नर विकल्पों में और 60 सैंटीमीटर से ले कर 100 सैंटीमीटर तक के आकार में उपलब्ध हैं. इन का टफेंड ग्लास टौप, ग्लौसी और मैट दोनों फिनिश में आता है जो रसोई के सौंदर्य को और निखारता है. MaxX Safe Technology और इन बिल्ट फ्लेम फेल्योर डिवाइस जैसी उन्नत सुविधाओं से सुसज्जित ये हौब्स, बर्नर पर तरलपदार्थ गिरने की स्थिति में औटोमैटिक तरीके से गैस सप्लाई को बंद कर देते हैं, जिस से किचन में सेफ्टी बनी रहती है.

Ivana Pro सोने की झलक वाली नोब्स और एज बीडिंग से रसोई को लग्जरी टच देते हैं जबकि Graphite Hob अपने ग्रे रंग के मैट ग्लास टौप और पूर्ण पीतल बर्नर्स से मजबूती और स्टाइल का बेहतरीन मेल प्रस्तुत करता है.

कुकटौप्स: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस ले कर आया है एक ऐसी रेंज जो मजबूती, आधुनिक डिजाइन और रोजमर्रा की उपयोगिता को बेहतर करती है. ये कुकटौप्स 3 और 4 बर्नर विकल्पों में उपलब्ध हैं और टफेंड ग्लास टौप व स्टेनलैस स्टील बौडी में आते हैं. इन कुकटौप्स में उच्च दक्षता वाले फोर्ज्ड ब्रास बर्नर, 8 मिमी टफेंड ग्लास सतहें, स्पिल पू्रफ ट्रे, एर्गोनौमिक नोब्स और मजबूत पैन सपोर्ट जैसे फीचर्स शामिल हैं.

प्रमुख मौडलों में, Rosia Plus सीरीज अपनी स्टाइलिश डिजाइन, स्पिल पू्रफ छिपे हुए बर्नर और औटो इग्निशन सुविधा के साथ मौजूद है. Coral Black Cooktop में फ्लेम गार्ड पैन सपोर्ट, आकर्षक मेटैलिक नोब्स और प्रीमियम ब्लैक फिनिश के साथ स्टेनलैस स्टील ड्रिप ट्रे दी गई है.

बिल्ट इन ओवन और माइक्रोवेव: बिल्ट इन ओवन और माइक्रोवेव ऐसे बहुआयामी उपकरणों में विकसित हो गए हैं जो केवल भोजन गरम करने से कहीं अधिक काम करते हैं. Ottavio 80L बिल्ट इन ओवन में उन्नत एअर फ्राइंग और स्टीम असिस्ट तकनीक शामिल है, जो कम तेल में अधिक कुरकुरे और हैल्दी व्यंजन बनाने में मदद करती है. इस में ग्रिल, रोटिसरी और पिज्जा जैसे 14 अलगअलग कुकिंग फंक्शन उपलब्ध हैं.

आकर्षक और उपयोगी डिजाइन वाला Savio मिरर माइक्रोवेव ओवन 27 लिटर की क्षमता के साथ आता है और माइक्रोवेव, ग्रिल, कंवैक्शन और कौंबिनेशन जैसे कई कुकिंग मोड प्रदान करता है. इस में 6 औटो कुक मेन्यू और आसान टच कंट्रोल्स हैं जो काम को और भी सुविधाजनक बनाते हैं.

सिंक: हिंदवेयर की सिंक रेंज हाइजीन, फंक्शन और टिकाऊपन का शानदार मेल, आधुनिक और स्टाइलिश डिजाइन के साथ पेश करती है. प्रीमियम स्टेनलैस स्टील से बनी ये सिंक खरोंच, दागधब्बों और बैक्टीरिया के विकास को रोकती हैं. इन का गहरा बाउल डिजाइन बड़े बरतन और कुकवेयर को आसानी से एडजस्ट करती है जबकि ऐंटीकंडेंसैशन कोटिंग और साउंड डैंपनिंग पैड्स रसोई में शांति और आराम सुनिश्चित करते हैं.

Platina Plus और Aurora सीरीज के सिंक पौप अप ड्रेन सिस्टम से लैस हैं और मोशन सैंसर फौसेट्स के साथ संगत हैं, जिस से पूरी तरह से टच फ्री वाशिंग का अनुभव मिलता है.

स्मार्ट किचन का प्रत्यक्ष अनुभव लें: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस द्वारा स्वयं-साफ होने वाली चिमनियों से ले कर रिमोट से फ्लेम मौनिटर करने की सुविधा वाले हौब्स और वौइस कमांड पर काम करने वाले माइक्रोवेव तक हर प्रोडक्ट आज की जीवनशैली को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है. चाहे आप अपनी रसोई को रैनोवेट कर रहे हों या नए घर को सजा रहे हों, निकटतम हिंदवेयर ऐक्सक्लूसिव ब्रैंड स्टोर पर या Flipkart और Amazon जैसे ई कौमर्स प्लेटफौर्म पर पूरी रेंज डिस्कवर करें.

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Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi: 25 साल बाद फिर वापस आ गई तुलसी

Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi: याद कीजिए 25 साल पहले स्टार प्लस के एक धारावाहिक ने किस कदर घरघर में अपनी पैठ बनाई थी. उस सीरियल को देखे बिना लगता था जैसे दिन अधूरा रह गया हो.

जी हां, हम बात कर रहे हैं आइकोनिक सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की. अब इस शो का रिबूट आ गया है और इस के साथ ही तुलसी के किरदार में स्मृति ईरानी ने आप के घरों में फिर से दस्तक दी है.

2000 में वह भी जुलाई का ही महीना था जब स्मृति ईरानी ने हिंदी टीवी दर्शकों को पहली बार अपने अलग अंदाज में ‘क्योंकि’ के वीरानी परिवार से मिलाया था. यह भारतीय टीवी पर पहला शो था जिस ने 1000 ऐपिसोड्स का लैंडमार्क पार किया था. बड़े बजट में बने ग्रैंड सैट्स, एक ही हवेलीनुमा घर में घटती कहानी, अचानक मरते और मर कर जिंदा हो जाते किरदारों के ट्विस्ट और पारिवारिक मूल्यों के साथ अपने आत्मसम्मान को बैलेंस करती फीमेल लीड यह टैंपलेट भारतीय टीवी को ‘क्योंकि’ ने ही दिया था. स्मृति ईरानी के अभिनय और इस शो की कहानी ने इसे भारतीय टैलीविजन के स्वर्ण युग का प्रतीक बना दिया. 2008 में जब यह शो खत्म हुआ तो टीवी दर्शकों के दिलों में एक खालीपन सा घर कर गया.

अब अपने डेब्यू के 25 साल बाद ‘क्योंकि’ टीवी पर दूसरी पारी शुरू कर चुका है. स्मृति ईरानी फिर से तुलसी वीरानी बन कर स्क्रीन पर आ गई हैं.

इस शो के किरदार खासकर स्मृति ईरानी के लीडिंग किरदार, तुलसी वीरानी की पौपुलैरिटी इतनी जबरदस्त थी कि वे एक समय किसी भी फिल्म स्टार की पौपुलैरिटी को टक्कर देती थीं. अब जब ‘क्योंकि’ फिर से लौट चुका है तो बहुत से लोगों के लिए यह उस बीते दौर को एक बार फिर से जीने का मौका ले कर आया है. तुलसी वीरानी के किरदार ने स्मृति ईरानी को घरघर में वह पहचान दिलाई थी जो उन के राजनीतिक कैरियर में भी काम आई. अब स्मृति 15 साल बाद टीवी पर वापस लौटी हैं.

टीवी के फैमिली ड्रामा शोज को पसंद करते हैं औडियंस

BARC india  की 2018 की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि 98त्न भारतीय घरों में एक ही टीवी है यानी अधिकतर घरों में टीवी साथ बैठ कर देखा जाता है और इसे कोव्यूइंग कहा जाता है. इसी रिपोर्ट में एक डाटा यह भी था कि कोव्यूइंग में 52त्न हिस्सा जनरल ऐंटरटेनमैंट चैनलों का था. पिछले कुछ सालों में टीवी पर ऐसे फैमिली शोज की कमी हुई है जो पूरे परिवार को एकसाथ बैठा सकें. ऐसे में ‘क्योंकि’ की वापसी इस कमी को दूर करेगी.

क्योंकि सास भी कभी बहू थी- रिबूट

सीरियल ‘क्योंकि’ ने अपने दूसरे दौर के साथ वापसी की है. 29 जुलाई से शुरू हुआ नए सीजन में स्मृति ईरानी और अमर उपाध्याय तुलसी और मिहिर विरानी के रूप में अपनी प्रतिष्ठित भूमिकाओं को फिर से निभाते नजर आएंगे.

इस सीरियल का निर्माण एकता कपूर ने बालाजी टैलीफिल्म्स के तहत किया था. यह 3 जुलाई, 2000 से 6 नवंबर, 2008 तक प्रसारित हुआ था, जिस के 1,800 से ज्यादा एपिसोड आए थे.

भारतीय टैलीविजन के इतिहास में ‘क्योंकि’ एक ऐसा धारावाहिक है जिस ने न केवल दर्शकों के दिलों पर राज किया बल्कि भारतीय टैलीविजन को एक नई पहचान भी दी. यह सीरियल पारंपरिक भारतीय परिवारों में भावनाओं और रिश्तों की अहमियत को दर्शाता था.

इस सीरियल का सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

‘क्योंकि’ एक गेम चेंजर सीरियल था जिस ने इंडियन टैलीविजन को नई परिभाषा दी और पारिवारिक नाटक शैली की नींव रखी. इस सीरियल ने बताया कि हमारे परिवारों की बुनियाद आज भी परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत पर टिकी हुई है और कैसे टीवी अपने सीरियलों के जरीए इस बुनियाद को मजबूत कर सकता है. इस सीरियल में इमोशन भी था, रोजमर्रा की जिंदगी की परेशानियां भी थीं और उन से निबटते किरदार भी थे.

इस शो में मैरिटल राइट्स, लिटरेसी और वूमन ऐंपावरमैंट से जुड़ी बातें थीं तो वहीं समाज, संस्कार और परिवार की महत्ता भी दिखाई गई. तभी तो लोग रोज रात खाने के समय पूरे परिवार के साथ इस सीरियल को देखा करते थे. इस शो के कुछ सीन और उस से जुड़ा परिचय गीत आज भी लोगों के मन में इमोशंस को जगाता है. यह दर्शाता है कि इस शो का एक पूरी पीढ़ी पर कितना प्रभाव पड़ा है.

महिलाओं का प्रतिनिधित्व और महिला सशक्तीकरण

तुलसी एक किरदार से कहीं ज्यादा शक्ति, त्याग और यूनिटी का सिंबल बनी. इस में तुलसी के अलावा बा और सविता के किरदारों में भी महिलाओं की स्ट्रैंथ दिखी थी. यह पहला ऐसा लार्ज स्केल इंडियन टीवी शो था जिसे वूमन प्रोड्यूसर द्वारा बनाया गया और जिस की मुख्य किरदार भी महिला ही थी.

नई कहानी

तुलसी एक आधुनिक समय की लीडिंग लेडी के रूप में लौटती है जो परंपराओं को मानती है लेकिन आज की जटिल दुनिया में आगे बढ़ना और सबकुछ हैंडल करना बखूबी जानती है. यह नया सीजन 2025 के परिवार के मूल्यों और पहचान के अर्थ की पड़ताल करता है. यह शो पीढि़यों के बीच की खाई को पाटने का लक्ष्य रखता है जो जैनरेशन ऐक्स, मिलेनियल्स और पुराने दर्शकों के साथ समान रूप से जुड़ता है. यह परिवारों को फिर से एकसाथ लाने की आकांक्षा रखता है ठीक वैसे ही जैसे पहले हुआ करता था. नया शो सीमित ऐपिसोड वाला है जो एक प्रभावशाली कहानी पर केंद्रित है ताकि मनोरंजन के साथ प्रेरणा भी दे.

वापसी और आज इस की प्रासंगिकता

स्मृति ईरानी और अमर उपाध्याय की वापसी एक ऐतिहासिक टीवी क्षण है जिस ने विभिन्न पीढि़यों के बीच उत्साह जगाया है. यह शो 29 जुलाई, 2025 से हर रात 10:30 बजे स्टार प्लस और साथ ही जियो हौटस्टार पर स्ट्रीम हो रहा है.

Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi

Jakarta Trip: जीवन से गुलजार जकार्ता

Jakarta Trip: दुनिया के सब से व्यस्त शहरों में जकार्ता संस्कृतियों का एक मिश्रण और विरोधाभासों का शहर है. अपनी जीवंत नाइट लाइफ, विशाल शौपिंग मौल और ऐतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाने वाला जकार्ता आधुनिकता और परंपरा का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है.

कब जाएं?

यदि आप द्वीपों, मंदिरों, भव्य मौल्स और ज्वालामुखी देखने के शौकीन है तो किसी भी मौसम में जकार्ता जा सकते हैं. फिर भी जून से अगस्त का मौसम जकार्ता घूमने का सर्वोत्तम सीजन होता है. हालांकि इन दिनों आवास दरें काफी अधिक होती हैं लेकिन मौसम अपेक्षाकृत शुष्क होता है और तापमान भी 24 से 31 डिग्री सैल्सियस के बीच रहता है.

सितंबर और अक्तूबर मध्यम सीजन है. फिर भी अपनी थकाऊ दिनचर्या से राहत पाने के लिए आप जकार्ता भ्रमण कर सकते हैं. इस समय आवास दरें थोड़ी कम होती हैं.

नवंबर से मार्च काफी बारिश होती है और तापमान भी 24 से 30 डिग्री सैल्सियस होता है. आवास दरें बहुत कम होती हैं.

परिवहन: घूमने के लिए आप विस्तृत जकार्ता परिवहन गाइड ले सकते हैं. यहां से आप को सार्वजनिक भुगतान विधि से ले कर बस और टैक्सी के बारे में जरूरी जानकारी मिल जाएगी.

आप की जानकारी के लिए शहर में कई बस टर्मिनल हैं जहां से बसें, शहर की सीमा के भीतर और पड़ोस को जोड़ने के साथ ही जकार्ता के अन्य क्षेत्रों और जावा के द्वीप के कई शहरों तक जाती हैं.

लंबी दूरी के लिए रेलवे और स्थानीय ट्राम और हाई स्पीड रेल सेवाएं भी उपलब्ध हैं. यहां सब से सम्मानित और विश्वसनीय टैक्सी सर्विस ब्लू बर्ड ग्रुप द्वारा प्रदान की जाती है. इन के पास एक सिल्वरबर्ड टैक्सी भी है जो आमतौर पर एक काले रंग की लग्ज़री गाड़ी है.

जकार्ता के लिए उड़ान बुक करने से पहले

फ्लाइट की कीमतों की तुलना करें: ऐसे प्रमोशन और सौदे देखें जो आप को जकार्ता के लिए बेहतर डील की ओर ले जा सकते हैं.

बैगेज अलाउंस पर विचार करें: इस से आप अप्रत्याशित शुल्क देने से बच जाएंगे.

पहले से ही आवास बुक करें: एक बार जब आप की उड़ान बुक हो जाए तो जकार्ता में अपने आवास को पहले से ही बुक करवा लें. यहां सस्ते/महंगे सभी प्रकार के (बजट अनुसार) होटल उपलब्ध हैं.

स्वास्थ्य और सुरक्षा: जकार्ता के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा सलाह पर अपडेट रहें, जिस में यात्रियों के लिए टीकाकरण या स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां भी शामिल हैं. बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा किट हमेशा साथ रखें.

भाषा: यहां आमतौर पर अंगरेजी भाषा नहीं बोली जाती. अधिकांश होटल और एअरलाइंस कर्मचारी, बुनियादीतौर पर मध्यम स्तर पर अंगरेजी में संवाद कर लेते हैं.

वायु प्रदूषण: जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में वायु प्रदूषण में वृद्धि जकार्ता में जीवन की एक नियमित विशेषता है.

कहां घूमें: जकार्ता में आप इतिहास, संस्कृति और मजेदार गतिविधियों का बेहतरीन अनुभव ले सकते हैं.

समुद्र तट: अगर आप के पास ज्यादा समय है और आप सोच रहे हैं कि 4 दिनों के लिए जकार्ता में क्या करें तो आप पुलाऊ सेरिबू नामक हजारों द्वीपों की एक दिन की यात्रा कर सकते हैं जहां आप को देखने के लिए अंतहीन समुद्र तट, इनलेट और कोव मिलेंगे.

नाइट लाइफ: जकार्ता की नाइट लाइफ में करने के लिए बहुत सी चीजें हैं क्योंकि यहां हर दिन कई नाइट क्लब और कार्यक्रम होते हैं. रात में स्काई लाइन को बहुत सी लाइटों से जगमगाया जाता है. युवा पर्यटक निश्चित रूप से सुबह के शुरुआती घंटों में संगीत और नृत्य का आनंद ले सकते हैं. लोकप्रिय नाइट क्लब ड्रैगन फ्लाई, कोलेसियम, जेंजा और फेबल हैं.

मर्डेका स्क्वायर: 132 मीटर ऊंचा, मर्डेका स्क्वायर सुंदर बगीचों से घिरा. इंडोनेशिया की स्वतंत्रता का प्रतीक यह स्मारक ‘मोनास’ के नाम से जाना जाता है. इस राजसी टावर से आप शहर की विशालता और शहरी परिदृश्य का अवलोकन कर सकते हैं.

अवलोकन डैस्क: मंगलवार से रविवार तक 8 से 15:00 से 22:00 तक खुला रहता है.

पुराना शहर (कोटा दुआ): इस ओल्ड टाउन में पंच कर आप डच औपनिवेशिक वास्तुकला, चहलपहल वाली स्ट्रीट मार्केट का भ्रमण करते हुए फतहिल्ला संग्रहालय पहुंच जाएंगे. यहां आप पुराने नक्शों और तसवीरों के माध्यम से जकार्ता के इतिहास का एक व्यापक अवलोकन कर सकते हैं.

इस्तिकलाल मसजिद: वास्तुकला और उत्कृष्ट क्रति की दृष्टि से यह दुनिया की सब से बड़ी मसजिदों में से एक है. मसजिद की डिजाइन में आधुनिक और पारंपरिक तत्त्वों का मिश्रण है. इस मसजिद में एक ऊंचा गुंबद और ऊंची मीनारें हैं जो क्षितिज पर छाई हुई हैं. शाम के समय इस्तिकमाल मसजिद में जाने से आप रोशनी की कोमल चमक के नीचे इस की भव्यता की सराहना कर सकते हैं.

तमन मिनी इंडोनेशिया इंदाह: यदि आप इंडोनेशियाई संस्कृति का एक शानदार टुकड़ा अपने घर ले जाना चाहते हैं या इंडोनेशिया की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का एक ही स्थान पर स्वाद लेना चाहते हैं तो प्रांतों की विविधता को प्रदर्शित करने वाले तमन मिनी इंडोनेशिया इंडाह की सैर जरूर करें. यहां आप स्मृतिचिह्न, वस्त्र, आभूषण और अन्य हस्तनिर्मित वस्तुएं खरीद सकते हैं.

हजार द्वीप (केपुलाउन सेरीबू): शहर की चहलपहल से दूर आप रंगीन समुद्री जीवन से भरे पानी के नीचे गोते लगाने के शौकीन हैं, या रेतीले तटों पर आराम करने के शौकीन हैं जावा सागर में स्थित आप थाउजैंडआइस लैंड्स की नाव से यात्रा कर  सकते हैं. यह द्वीप समूह प्राचीन समुद्र तट, क्रिस्टल साफ पानी और कई तरह की जलक्रीड़ा प्रदान करता है.

रागुनान चिडि़या घर: दुर्लभ इंडोनेशियाई प्रजातियों सहित जानवरों की 3,600 से अधिक प्रजातियों के साथ यह चिडि़याघर वन्यजीवों से व्यक्तिगत रूप से करीब से मिलने का अवसर प्रदान करता है. पूरे चिडि़याघर में आप को जानवरों, उन के आवासों और उन के संरक्षण की स्थिति के बारे में जानकारीपूर्ण प्रदर्शनियां देखने को मिलेंगी.

इंडोनेशिया की राष्ट्रीय गैलरी: राष्ट्रीय गैलरी भवन का अग्रभाग अपनेआप में वास्तुकला की एक उत्कृति है. अंदर से यह प्रभावशाली गैलरी पारंपरिक और समकालीन इंडोनेशियाई कला का एक विशाल संग्रह प्रदर्शित कर के देश की कलात्मक विरासत के बारे में जानकारी प्रदान करती है.

एंकोल ड्रीमलैंड: इस मनोरंजन परिसर में मनोरंजन पार्क, रोमांचकारी सवारी, एक वाटर पार्क और एक समुद्री दुनिया है जो इसे सभी उम्र के लोगों के लिए एक आदर्श गंतव्य बनाती है.

शौपिंग कहां करें: जकार्ता में अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंडों की श्रृंखला के बीच एक शानदार शौपिंग का अनुभव चाहते हों या स्थानीय खजानों के लिए शहर की छिपी हुई गलियों में उतरना चाहते हों तो जकार्ता में हर किसी के लिए कुछ न कुछ उपलब्ध है.

प्रस्तुत है शौपिंग के विषय में कुछ जानकारी जो आपको शुरुआत करने में काफी मदद करेगी:

ए. जालन सुरबाया पिस्सू मार्केट (फ्ली मार्केट)

अपनी प्राचीन वस्तुओं और आभूषणों के लिए यहां की 184 दुकानें इंडोनेशिया के समृद्ध इतिहास के हर दौर से (डच सिक्के, चांदी के बरतन, झूमर और चीनीमिट्टी के बरतन, बाटिक के अतिरिक्त समुद्र से बरामद की गई कई वस्तुएं बेचती हैं.

बी. पासर बारू

जकार्ता में खरीदारी के लिए सब से पुराने बाजारों में ‘लिटल इंडिया’ के रूप में भी जाना जाने वाला पासर बारू कपड़ों, जूतों, सौंदर्य उत्पादों और निश्चित रूप से भारतीय स्नैक्स और मसालों के लिए वन स्टौप शौपिंग केंद्र है.

तनाह अभंग मार्केट: लकड़ी की इस खूबसूरत फर्नीचर मार्केट में आप नए, उत्कृष्ट डिजाइनों में महोगनी वुड का फर्नीचर खरीद सकते हैं.

इस के अतिरिक्त आप सिकनी गोल्ड सैंटर, सरीनाह, अंकोल आर्ट मार्केट में भी अपनी पसंद के मुताबिक शौपिंग कर सकते हैं.

मौल: ग्रैंड इंडोनेशियन मौल, प्लाजा इंडोनेशिया, सैंट्रल पार्क मौल, थामरिन ट्रेड मौल, सैन्यन मौल जकार्ता के मुख्य शौपिंग मौल हैं.

Jakarta Trip

Beauty Tips: लिपस्टिक लगाना पसंद है, पर होंठ काले पड़ने लगे तो क्या करें?

Beauty Tips: मैं 22 साल की युवती हूं. मुझे लिपस्टिक लगाना बहुत पसंद है. लेकिन मेरे होंठ अब काले होने लगे हैं. क्या यह लिपस्टिक की वजह से है?

लिपस्टिक लगाने से होंठ काले जरूर होते हैं, लेकिन यह तब होता है जब आप की लिपस्टिक में कोई कमी हो. इस के लिए बेहतर यही होगा कि आप अच्छी गुणवत्ता यानी अच्छी क्वालिटी की लिपस्टिक का इस्तेमाल करें. यदि आप चाहती हैं कि होंठ काले न हों तो रोज रात को सोने से पहले होंठों से लिपस्टिक साफ कर लें और बादाम या नारियल का तेल होंठों पर लगा कर सोएं. होंठों का कालापन दूर करने के लिए आप एलोवेरा जैल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

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मेरी बेटी 17 वर्ष की है. क्या मैं उस की त्वचा पर ब्लीच का इस्तेमाल कर सकती हूं?

बिगड़ती रंगत को सुधारने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल सब से बेहतर विकल्प है. लेकिन ब्लीच में कैमिकल्स होते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आप की बेटी की त्वचा कोमल और सैंसिटिव होगी. अगर आप ब्लीच का इस्तेमाल करेंगी तो उस की त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है.

मैं 20 वर्ष की हूं. मेरी गरदन मेरी त्वचा से ज्यादा काली है. क्या यह ठीक हो सकती है?

ऐसी समस्या ज्यादातर लोगों में देखने को मिलती है. इस के लिए आप कुछ घरेलू नुसखे अपना सकती हैं. नीबू और शहद को मिला कर आप इस पेस्ट को अपनी गरदन पर लगा लें. इस पेस्ट को 20 से 25 मिनट के लिए अपनी गरदन पर लगा रहने दें. ऐसा करने से गरदन के कालेपन से छुटकारा पा सकती हैं. 1 चम्मच दही में बेकिंग सोडा मिला कर पेस्ट तैयार कर लें. इस पेस्ट को अपनी गरदन के प्रभावित हिस्से पर लगा कर उस की मसाज करें. इस से आप की गरदन कुछ ही दिनों में साफ हो जाएगी. आप चाहें तो इस पेस्ट में थोड़ा सा नीबू का रस भी मिला सकती हैं. गरदन को साफ करने के लिए आप चारकोल या ब्लीच का भी उपयोग कर सकती हैं.

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