Side Dishes: चटपटा खाने का है मन तो इन रैसिपीज से बेहतर भला और क्या!

Side Dishes: चटपटी पावभाजी

सामग्री

– 250 ग्राम लौकी छिली व कटी

– 2 गाजरें

– 150 ग्राम फूलगोभी

– 6 फ्रैंचबींस

– 1/4 कप मटर के हरे दाने

– 250 ग्राम टमाटर कद्दूकस किया

– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 1/2 कप प्याज बारीक कटा

– 2 बड़े चम्मच पावभाजी मसाला

– 2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप

– लालमिर्च स्वादानुसार

– 2 छोटे चम्मच औलिव औयल

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए

– थोड़ा सा पनीर कटा सजावट के लिए

– 6 पाव

– 1 छोटा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

गाजरों को छील कर मोटे टुकड़ों में व फूलगोभी को भी मोटे टुकड़ों में काट लें. फ्रैंचबींस को भी 1/2 इंच टुकड़ों में काट लें. अब सभी सब्जियों को 1/2 कप पानी और 1/2 चम्मच नमक के साथ प्रैशरकुकर में पकाएं. 1 सीटी आने के बाद लगभग 7 मिनट धीमी आंच पर और पकाएं. एक नौनस्टिक कड़ाही में औलिव औयल गरम कर प्याज सौते करें. फिर अदरकलहसुन पेस्ट डालें.

2 मिनट बाद टमाटर और पावभाजी मसाला डाल कर भूनें. जब मसाला भुन जाए तब इस में उबली सब्जियां डालें व मैशर से मैश करें. अच्छी तरह पकाएं. इस में टोमैटो कैचअप भी मिला दें. भाजी तैयार हो जाए तो सर्विंग बाउल में निकालें. पनीर के टुकड़ों और धनियापत्ती से सजाएं. एक नौनस्टिक तवे को मक्खन से चिकना कर उस पर पावभाजी मसाला बुरक तुरंत पाव को बीच से काट कर तवे पर डालें. अच्छी तरह सेंक लें. भाजी के साथ सर्व करें.

‘स्वीट कौर्न को कोन में इस तरह सर्व करें और गेस्ट की तारीफ पाएं.’

कौर्न कोन

सामग्री कोन की

– 1/2 कप मैदा – 1 छोटा चम्मच घी – 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन – कोन तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल – कोन बनाने का सांचा – नमक स्वादानुसार.

सामग्री कौर्न की

– 1/2 कप मक्की के दाने उबले

– 2 बड़े चम्मच हरे मटर उबले

– 1 बड़ा चम्मच टमाटर बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच मक्खन पिघला

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़े से सलादपत्ते

– चाटमसाला, लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदे में घी, अजवाइन और नमक डाल कर पानी से पूरी लायक आटा गूंध लें. 15 मिनट ढक कर रखें फिर मोटीमोटी 2 लोइयां बनाएं और खूब बड़ी बेल लें. कांटे से गोद दें व 4 टुकड़े कर लें. प्रत्येक टुकड़े को कोन पर लपेटें और किनारों को पानी की सहायता से सील कर दें. धीमी आंच पर सारे कोन तल लें. मक्की के दानों में सारी सामग्री मिला लें. सलादपत्तों के छोटे टुकड़े कर लें. प्रत्येक कोन में थोड़ा सा सलादपत्ता लगाएं. फिर मक्की के दाने वाला मिश्रण भरें. स्पाइसी कौर्न इन कोन तैयार है. तुरंत सर्व करें.

‘लौकी के ये कटलेट बच्चों को भी पसंद आएंगे.’

 लौकी के कटलेट

सामग्री

– 1 कप लौकी कद्दूकस की

– 1/2 कप भुने चने का पाउडर

– 1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

– 2 बड़े चम्मच चावल का आटा

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– मिर्च, चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

– 100 ग्राम पनीर कद्दूकस किया

– 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

– 8 किशमिश छोटे टुकड़ों में कटी

– 2 छोटे चम्मच पुदीनापत्ती कटी

– शैलो फ्राई करने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

कद्दूकस की लौकी को दोनों हाथों से कस कर निचोड़ें ताकि सारा पानी निकल जाए. फिर इस में सारी सामग्री मिला लें. इसी तरह पनीर में भी सारी सामग्री मिला लें. लौकी वाले मिश्रण से बड़े नीबू के बराबर मिश्रण ले कर बीच में पनीर वाला मिश्रण भर कर बंद करें. इच्छानुसार आकार दें और नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा तेल डाल कर कटलेट को सुनहरा होने तक तल लें. सौस या चटनी के साथ सर्व करें.

Side Dishes

Suspense Story: गुड़िया- सुंबुल ने कौन सा राज छुपा रखा था?

Suspense Story: ‘‘सरबिरयानी तो बहुत जबरदस्त है. भाभीजी के हाथों में तो जादू है. इतनी लजीज बिरयानी मैं ने आज तक नहीं खाई,’’ बिलाल ने बिरयानी खाते हुए फरहान से कहा.

‘‘यह तो सच है तुम्हारी भाभी के हाथों में जादू है, लेकिन आज यह जादू भाभी का नहीं तुम्हारे भाई के हाथों का है,’’ फरहान ने हंसते हुए कहा.

‘‘मैं कुछ सम?ा नहीं? क्या यह बिरयानी भाभीजी ने नहीं बनाई?’’ बिलाल ने हैरत से पूछा.

‘‘नहीं मैं ने बनाई है. क्या है कि कल तुम्हारी भाभी के औफिस में एक जरूरी मीटिंग थी और वे आतेआते लेट हो गई थीं तो मैं ने सोचा चलो आज मैं भी अपना जादू दिखाऊं,’’ फरहान ने खाना खत्म करते हुए कहा.

‘‘अरे वाह सर आप भी इतना अच्छा खाना बनाते हैं. वैसे भाभी जौब करती हैं तो घर के काम कौन करता है? आप लोगों को तो बड़ी दिक्कत होती होगी? यहां दुबई में कोई मेड मिलना भी तो आसान नहीं है,’’ बिलाल ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां मेड मिलना तो बहुत मुश्किल है, लेकिन हम दोनों मिल कर मैनेज कर ही लेते हैं. थोड़ेबहुत काम मैं भी कर लेता हूं,’’ फरहान ने मुसकराते हुए कहा.

‘इतने बड़े मैनेजर हो कर घर के काम खुद करते हैं और बीवी औफिस जाती है,’ बिलाल मन ही मन हंसा, पर कुछ कह नहीं पाया, आखिर फरहान उस का सीनियर जो था.

8 महीने पहले ही बिलाल लखनऊ से दुबई आया था. एक बड़े बैंक में उसे अच्छी जौब मिल गई थी. उस का सीनियर फरहान दिल्ली से था और बहुत ही हंसमुख व मिलनसार. दोनों में खासी दोस्ती हो गई थी. अकसर लंच दोनों साथ करते थे. फरहान के लंच में हमेशा ही लजीज खाने होते थे तो बिलाल ने सोचा शायद उस की बीवी घर पर ही रहती होगी. उसे यह जान कर बड़ी हैरानी हुई कि वे भी कहीं जौब करती हैं. वैसे बिलाल की खुद की बीवी उज्मा भी खाना अच्छा ही बना लेती थी, लेकिन इतना अच्छा नहीं जितना फरहान के घर से आता था.

 

कुछ दिनों बाद बातों ही बातों में फरहान ने बताया कि उस की बीवी सुंबुल कुछ

दिनों के लिए भारत गई हुई हैं. ऐसे में बिलाल ने एक दिन फरहान को अपने घर खाने की दावत दे डाली.  फरहान ने उज्मा के बनाए खाने की बहुत तारीफ की और सुंबुल के वापस आने पर दोनों को अपने घर बुलाने की दावत भी दे डाली.

कुछ दिनों बाद सुंबुल भारत से वापस आ गई तो एक दिन फरहान ने बिलाल को घर पर दावत दे दी. छुट्टी के दिन बिलाल और उज्मा फरहान के घर पहुंच गए.

‘‘आइएआइए भाभीजी,’’ फरहान ने दोनों का स्वागत करते हुए कहा.

‘‘सुनिए मेहमान लोग आ गए हैं,’’ फरहान ने दोनों को ड्राइंगरूम में बैठाया और किचन में काम कर रही अपनी बीवी को आवाज दी.

ड्राइंगरूम काफी करीने से सजा था.  बिलाल और उज्मा दोनों ही प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.

जैसे ही सुंबुल किचन से बाहर आई, बिलाल को एक जोर का ?ाटका लगा. उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उस के सामने सुंबुल खड़ी है, उस की पुरानी मंगेतर. बिलाल को देख कर सुंबुल भी एक पल के लिए ठिठक गई, लेकिन फिर जल्दी ही सामान्य हो गई.

सुंबुल और उज्मा जल्द ही घुलमिल गईं और उज्मा भी सुंबुल की मदद करने के लिए किचन में चली गई. टीवी पर आईपीएल का मैच चल रहा था और फरहान विराट कोहली की बैटिंग की तारीफ कर रहा था, लेकिन बिलाल का दिमाग तो जैसे एकदम ही शून्य हो गया था. उसे उम्मीद नहीं थी कि एक दिन सुंबुल इस तरह उस के सामने आ जाएगी.

खाने की टेबल पर उज्मा सुंबुल के बनाये खाने की खूब तारीफें कर रही थी.

‘‘अरे बिलाल तुम्हें पता है हमारी ससुराल भी तुम्हारे पड़ोस में ही है. तुम लखनऊ से हो और सुंबुल कानपुर से,’’ बातों ही बातों में लखनऊ का जिक्र आया तो फरहान ने बिलाल से कहा.

‘‘अच्छा. अगली बार कानपुर आएंगे तो लखनऊ भी तशरीफ लाइएगा,’’ बिलाल बस इतना ही कह पाया. सुंबुल के सामने ज्यादा बोलने में वह बहुत ?ि?ाक रहा था.

घर वापस पहुंच कर उज्मा तो जल्दी सो गई, लेकिन बिलाल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. गुजरा हुआ कल एक फिल्म की तरह उस के जेहन में चलने लगा…

बिलाल के पिताजी और सुंबुल के पिताजी की आपस में जानपहचान थी. 1-2 बार बिलाल के पिताजी जब कानपुर गए तो उन्होंने वहां सुंबुल को देखा और उस को बिलाल के लिए पसंद कर लिया. लड़का पढ़ालिखा और अच्छा था और फिर घरबार भी देखाभाला हुआ तो सुंबुल के पिताजी को भी इस रिश्ते में कोई हरज नहीं दिखाई दिया. फिर कुछ दिनों बाद दोनों की मंगनी हो गई और शादी लगभग 1 साल बाद होनी तय की गई. फिर अकसर दोनों एकदूसरे से बातें करने लगे.

मगर शादी से कुछ ही दिन पहले एक दिन अचानक बिलाल के पिताजी ने सुंबुल के पिताजी को फोन कर के शादी के लिए मना कर दिया.  वजह पूछने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि उन्हें लगता है कि सुंबुल उन के घर में एडजस्ट नहीं हो पाएगी.

थोड़ी देर बाद ही सुंबुल ने बिलाल से मैसेज कर के इस फैसले की वजह जाननी चाही.

‘‘आई एम सौरी सुंबुल, लेकिन मु?ो और घर वालों को लगता है कि तुम हमारे घर के माहौल में एडजस्ट नहीं हो पाओगी. बाद में मुश्किलें हों इस से अच्छा है कि हम अभी अपने रास्ते अलग कर लें,’’ बिलाल ने जवाब दिया. वैसे दिल ही दिल में उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था.  इतने दिनों तक मंगनी होने और सुंबुल से बातें करने के बाद वह भी मन ही मन उसे चाहने लगा था.

‘‘मगर अचानक ऐसा क्या हो गया जिस से आप को लगा मैं वहां एडजस्ट नहीं हो पाऊंगी?’’ सुंबुल ने फिर सवाल किया. उस की सम?ा नहीं आ रहा था कि आखिर उस ने ऐसा क्या कर दिया जिस से बिलाल और उस के घर वाले उस से रिश्ता खत्म करने पर आमादा हो गए. अभी 2 दिन पहले ही तो बिलाल के पिताजी किसी काम से कानपुर आए थे और उन के घर भी आए. उसे याद नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया जिस से बात यहां तक पहुंची.

‘‘अभी 2 दिन पहले अब्बू आप के घर गए थे. उन्होंने आ कर बताया कि जब तक वे आप के घर में रहे आप ने किसी काम को हाथ नहीं लगाया. खाना बनाना या घर के बाकी काम सिर्फ आप की अम्मी ही करती रहीं और आप बस अपने लैपटौप पर बैठी रहीं या नेलपौलिश लगाती रहीं. अब्बू का मानना है कि हमें अपने घर के लिए एक सजावटी गुडि़या नहीं चाहिए बल्कि ऐसी लड़की चाहिए जो घर संभाल सके और जो तेरी अम्मी को आराम दे सके,’’ बिलाल ने एक लंबाचौड़ा मैसेज भेजा.

‘‘आप को एक बार मुझ से बात तो कर लेनी चाहिए थी.  बिना पूरी बात जाने आप लोग इतना बड़ा फैसला कैसे कर सकते हैं?’’ काफी देर बाद सुंबुल ने जवाब दिया.

‘‘बात करने लायक कुछ है ही नहीं.  वैसे भी अब हमें एहसास हो गया है कि जौब करने वाली लड़की घर नहीं चला सकती. अगर आप नौकरी छोड़ कर घर की सारी जिम्मेदारियां संभालने के लिए तैयार हैं तो मैं अब्बू से एक बार बात कर सकता हूं.  वैसे जहां तक मु?ो लगता है आप अपनी जौब छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं होंगी, इसलिए बेहतर यही रहेगा कि हम अपनी राहें अलग कर लें,’’ बिलाल ने बात खत्म करने की नीयत से लिखा.

और फिर सुंबुल का कोई जवाब नहीं आया. जल्द ही उस की शादी उज्मा से हो गई.  कुछ दिनों बाद ही उज्मा पर घर की सारी

जिम्मेदारियां आ गईं. शुरूशुरू में तो सब ठीक रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद ही घर में कलह होने लगी. बिलाल के 3 और छोटे भाईबहन थे और सब के लिए खाना बनाना और दूसरे काम करना उज्मा को पसंद नहीं था. बिलाल की अम्मी भी बहू के आने के बाद घर के कामों से बिलकुल बेफिक्र हो गई थीं और घर के सारे काम उज्मा को अकेले ही करने पड़ते थे.

फिर तो रोजरोज घर में कलह होने लगी.  बिलाल औफिस से आता तो अम्मी उस के सामने उज्मा की शिकायतें ले कर बैठ जातीं. उज्मा के पास जाता तो वह सब की शिकायतें ले कर बैठ जाती.  तंग आ कर बिलाल ने दुबई के एक बैंक में नौकरी के लिए अर्जी दे दी और दुबई आ गया.  रोजरोज की चिकचिक से तो उस को आजादी मिल गई लेकिन दुबई आ कर भी उज्मा खुश नहीं थी. उसे लगता था कि बिलाल घर के कामों में उस की जरा भी मदद नहीं करता. वहीं बिलाल घर के काम करने को अपनी शान के खिलाफ सम?ाता था. बचपन से ले कर आज तक उस ने घर के किसी काम को हाथ तक नहीं लगाया था. उस का मानना था कि घर के काम सिर्फ औरतों को ही करने चाहिए और मर्दों को सिर्फ कमाने के लिए काम करना चाहिए.

सुंबुल और उज्मा अकसर मिलने लगीं.  दोनों परिवार छुट्टी के दिन एकदूसरे के घर चले जाते या दुबई के खूबसूरत समुद्र तट पर साथसाथ घूमते. हालांकि बिलाल हमेशा सुंबुल के सामने असहज सा रहता था.

उस दिन उज्मा कुछ उदास सी थी तो सुंबुल ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी.

‘‘मेरी बहन की मंगनी टूट गई. लड़का किसी और से शादी करना चाहता है, जबकि घर वाले जबरदस्ती उस की शादी मेरी बहन से कर रहे थे.  कल उन दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली,’’ उज्मा ने बड़ी उदासी के साथ कहा.

फरहान और सुंबुल को सुन कर बड़ा दुख हुआ.

‘‘जल्द ही शादी होने वाली थी. अब कितनी दिक्कत आएगी मेरी बहन की शादी में, कितनी बदनामी होगी उस की,’’ उज्मा ने ठंडी सांस लेते हुए कहा.

‘‘इस में उस का क्या कुसूर है, रिश्ता तो लड़के ने खत्म किया है, तो बदनामी आप की बहन की क्यों होगी?’’ फरहान ने उज्मा को दिलासा देते हुए कहा.

‘‘भाई साहब, लड़के का कुसूर कौन मानता है. सभी लड़की पर ही उंगली उठाते हैं,’’ उज्मा की आंखें नम हो उठी थीं.

‘‘जमाना बदल गया है. आप की बहन की कोई गलती नहीं है इसलिए आप फिक्र मत कीजिए. हो सकता है उस के लिए इस से कुछ अच्छा ही लिखा हो,’’ फरहान ने कहा.

‘‘वैसे आप को पता है, सुंबुल की भी मंगनी एक बार टूट चुकी थी. फिर देखिए न कितनी अच्छी लड़की मु?ो मिल गई,’’ कह कुछ देर की खामोशी के बाद फरहान ने प्यार भरी नजरों से सुंबुल को देखा.

‘‘भला इस जैसी इतनी प्यारी लड़की से कौन शादी नहीं करना चाहेगा,’’ उज्मा ने सुंबुल की तरफ देख कर कहा.

सुंबुल थोड़ी असहज हो गई थी खासतौर पर जब तब बिलाल भी वहां मौजूद था. उधर बिलाल भी एकदम चुप बैठा था.

‘‘क्या वह लड़का भी किसी और को चाहता था?’’ उज्मा सुंबुल की कहानी जानने के लिए उतावली हो उठी.

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी. असल में उन के घर वालों को लगा कि मैं जौब करती हूं तो घर के काम नहीं करूंगी. उन को अपने घर के लिए कोई सजावटी गुडि़या नहीं चाहिए थी,’’ थोड़ी देर चुप रहने के बाद सुंबुल ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘अरे आप तो जौब के साथसाथ अपने घर का भी कितना खयाल रखती हैं. इतना अच्छा खाना भी बनाती हैं, घर भी इतना अच्छा रखती हैं, क्या उन लोगों ने कभी आप का घर नहीं देखा था?’’ उज्मा को यकीन नहीं हो रहा था कि सुंबुल जैसी खूबसूरत और इतने सलीके वाली लड़की को कोई कैसे छोड़ सकता है.

‘‘असल में एक बार उन के अब्बू हमारे घर आए थे. उस दिन संडे था. आमतौर पर अपने घर पर सारा काम मैं और अम्मी मिल कर ही करते थे. शादी में कुछ ही दिन रह गए थे तो अम्मी ने मु?ो जबरदस्ती घर के काम करने से मना कर रखा था. फिर मैं भी जौब छोड़ने वाली थी तो अपना काम हैंडओवर कर रही थी और इसलिए लैपटौप पर काम कर रही थी. लेकिन उन के अब्बू को लगा कि शायद मैं कभी घर के काम नहीं करती और इसलिए उन लोगों ने यह रिश्ता तोड़ दिया,’’ सुंबुल ने पूरी बात बताई.

‘‘और उस लड़के ने भी कुछ नहीं कहा?’’ उज्मा ने हैरत से पूछा.

‘‘नहीं, उस ने भी बिना मेरी बात सुने अपने घर वालों की बात मान ली. मु?ो अपनी सफाई देने का मौका ही नहीं मिल,’’ सुंबुल ने एक उदास मुसकान के साथ कहा और फिर उस ने एक उचटती हुई नजर बिलाल पर डाली तो वह शर्म से पानीपानी हो गया.

‘‘वैसे देखा जाए तो अच्छा ही हुआ. ये सब नहीं होता तो मु?ो इतने अच्छे पति कहां मिलते,’’ सुंबुल ने मुहब्बत भरी नजरों से फरहान की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘यह तो कुदरत का कमाल है,’’ फरहान ने अदब से सिर ?ाकाते हुए कहा तो सुंबुल और उज्मा दोनों ही हंस पड़ीं.

‘‘वैसे भी अब जमाना बदल गया है. आज लड़कियां जौब के साथसाथ घर भी अच्छी तरह संभाल रही हैं और अगर ऐसे में हम हस्बैंड लोग घर के कामों में थोड़ी मदद कर दें तो इस में बुराई ही क्या है? आखिर घर भी तो दोनों का ही होता है,’’ फरहान ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा.

‘‘भाभी आप बेफिक्र रहें. आप की बहन के लिए अच्छा लड़का हम भी ढूंढे़ंगे,’’ फरहान ने उज्मा को दिलासा दिया.

थोड़ी देर बाद फरहान सब के लिए आइसक्रीम लेने चला गया और उज्मा वाशरूम चली गई.

‘‘आई एम सौरी सुंबुलजी… आज मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं. मैं ने बिना सच जाने आप को इतनी तकलीफ पहुंचाई. मु?ो माफ कर दीजिएगा,’’ सुंबुल को अकेला देख कर बिलाल उस के पास आया सिर ?ाका सुंबुल से माफी मांगने लगा.

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मु?ो आप से कोई शिकायत नहीं है. शायद हमारे हिस्से में यही लिखा था,’’ सुंबुल को उस के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे. उस के दिल में बिलाल के लिए कोई मलाल नहीं था.

‘‘आप का बहुत बहुत शुक्रिया,’’ बिलाल के मन से बड़ा बो?ा उतर गया था.

शाम को बिलाल और उज्मा जब घर लौटे तो उज्मा के सिर में दर्द हो रहा था. वह आंखें बंद कर थोड़ी देर के लिए लेट गई.

‘‘तुम बहुत थक गई होंगी. तुम आराम करो आज कौफी मैं बनाता हूं,’’ घर पहुंच कर बिलाल ने उज्मा से कहा तो उज्मा की हैरत की इंतहा न रही, ‘‘अरे आज आप को यह क्या हो गया. आप तो घर के काम करने को बिलकुल अच्छा नहीं मानते,’’ उज्मा को बिलाल का यह रूप देख कर हैरानी भी हो रही थी और खुशी भी.

‘‘फरहान भाई सही कहते हैं.  घर तो शौहर और बीवी दोनों का ही होता है तो क्यों न घर के काम भी दोनों मिलजुल कर करें?’’ बिलाल ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे यह कैसी कौफी बनी है,’’ बिलाल ने कौफी का पहला घूंट लेते ही बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘हां चीनी थोड़ी ज्यादा है, दूध थोड़ा कम है और कौफी भी थोड़ी ज्यादा है, लेकिन यह दुनिया की सब से अच्छी कौफी है,’’ उज्मा ने बिलाल की तरफ प्यारभरी नजरों से देखते हुए कहा तो बिलाल को भी चारों तरफ रंगबिरंगे फूल दिखाई देने लगे. दोनों के रिश्ते का एक नया अध्याय शुरू हो चुका था.

Suspense Story

Hindi Social Story: सजा

Hindi Social Story: वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’

‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’

‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’

उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’

‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’

अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’

‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’

‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई. आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’

‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’

‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’

‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’

‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’

‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती

करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर  मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’

अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’

अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’

‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’

‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमा होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’

‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’

‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’

‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’

उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया.

‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’

‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’

उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से.

‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए?

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’

अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी.

आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां पहुंचा था.

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’

उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’

‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’

‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं.

‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई.

Hindi Social Story

Family Kahani: खट्टामीठा- काश वह स्वरूप की इच्छा पूरी कर पाती

Family Kahani: साढ़े 4 बजने में अभी पूरा आधा घंटा बाकी था पर रश्मि के लिए दफ्तर में बैठना दूभर हो रहा था. छटपटाता मन बारबार बेटे को याद कर रहा था. जाने क्या कर रहा होगा? स्कूल से आ कर दूध पिया या नहीं? खाना ठीक से खाया या नहीं? सास को ठीक से दिखाई नहीं देता. मोतियाबिंद के कारण कहीं बेटे स्वरूप की रोटियां जला न डाली हों? सवेरे रश्मि स्वयं बना कर आए तो रोटियां ठंडी हो जाती हैं. आखिर रहा नहीं गया तो रश्मि बैग कंधे पर डाल कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. आज का काम रश्मि खत्म कर चुकी है, जो बाकी है वह अभी शुरू करने पर भी पूरा न होगा. इस समय एक बस आती है, भीड़ भी नहीं होती.

‘‘प्रभा, साहब पूछें तो बोलना कि…’’

‘‘कि आप विधि या व्यवसाय विभाग में हैं, बस,’’ प्रभा ने रश्मि का वाक्य पूरा कर दिया, ‘‘पर देखो, रोजरोज इस तरह जल्दी भागना ठीक नहीं.’’

रश्मि संकुचित हो उठी, पर उस के पास समय नहीं था. अत: जवाब दिए बिना आगे बढ़ी. जाने कैसा पत्थर दिल है प्रभा का. उस के भी 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. सास के ही पास छोड़ कर आती है, पर उसे घर जाने की जल्दी कभी नहीं होती. सुबह भी रोज समय से पहले आती है. छुट्टियां भी नहीं लेती. मोटीताजी है, बच्चों की कोई फिक्र नहीं करती. उस के हावभाव से लगता है घर से अधिक उसे दफ्तर ही पसंद है. बस, यहीं पर वह रश्मि से बाजी मार ले जाती है वरना रश्मि कामकाज में उस से बीस ही है. अपना काम कभी अधूरा नहीं रखती. छुट्टियां अधिक लेती है तो क्या, आवश्यकता होने पर दोपहर की छुट्टी में भी काम करती है. प्रभा जब स्वयं दफ्तर के समय में लंबे समय तक खरीदारी करती है तब कुछ नहीं होता. रश्मि के ऊपर कटाक्ष करती रहती है. मन तो करता है दोचार खरीखरी सुनाने को, पर वक्त बे वक्त इसी का एहसान लेना पड़ता है.

रश्मि मायूस हो उठी, पर बेटे का चेहरा उसे दौड़ाए लिए जा रहा था. साहब के कमरे के सामने से निकलते समय रश्मि का दिल जोर से धड़कने लगा. कहीं देख लिया तो क्या सोचेंगे, रोज ही जल्दी चली जाती है. 5-7 लोगों से घिरे हुए साहब कागजपत्र मेज पर फैलाए किसी जरूरी विचारविमर्श में डूबे थे. रश्मि की जान में जान आई. 1 घंटे से पहले यह विचार- विमर्श समाप्त नहीं होगा.

वह तेज कदमों से सीढि़यां उतरने लगी. बसस्टैंड भी तो पास नहीं, पूरे 15 मिनट चलना पड़ता है. प्रभा तो बीमारी में भी बच्चों को छोड़ कर दफ्तर चली आती है. कहती है, ‘बच्चों के लिए अधिक दिमागखपाई नहीं करनी चाहिए. बड़े हो कर कौन सी हमारी देखभाल करेंगे.’

बड़ा हो कर स्वरूप क्या करेगा यह तो तब पता चलेगा. फिलहाल वह अपना कर्तव्य अवश्य निभाएगी. कहीं वह अपने इकलौते पुत्र के लिए आवश्यकता से अधिक तो नहीं कर रही. यदि उस के भी 2 बच्चे होते तो क्या वह भी प्रभा के ढंग से सोचती? तभी तेज हार्न की आवाज सुन कर रश्मि ने चौंक कर उस ओर देखा, ‘अरे, यह तो विभाग की गाड़ी है,’ रश्मि गाड़ी की ओर लपकी.

‘‘विनोद, किस तरफ जा रहे हो?’’ उस ने ड्राइवर को पुकारा.

‘‘लाजपत नगर,’’ विनोद ने गरदन घुमा कर जवाब दिया.

‘‘ठहर, मैं भी आती हूं,’’ रश्मि लगभग छलांग लगा कर पिछला दरवाजा खोल कर गाड़ी में जा बैठी. अब तो पलक झपकते ही घर पहुंच जाएगी. तनाव भूल कर रश्मि प्रसन्न हो उठी.

‘‘और क्या हालचाल है, रश्मिजी?’’ होंठों के कोने पर बीड़ी दबा कर एक आंख कुछ छोटी कर पान से सने दांत निपोर कर विनोद ने रश्मि की ओर देखा.

वितृष्णा से रश्मि का मन भर गया पर इसी विनोद के सहारे जल्दी घर पहुंचना है. अत: मन मार कर हलकी हंसी लिए चुप बैठी रही.

घर में घुसने से पहले ही रश्मि को बेटे का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दादाजी, टीवी बंद करो. मुझ से गृहकार्य नहीं हो रहा है.’’

‘‘अरे, तू न देख,’’ रश्मि के ससुर लापरवाही से बोले.

‘‘न देखूं तो क्या कान में आवाज नहीं पड़ती?’’

रश्मि ने संतुष्टि अनुभव की. सब कहते हैं उस का अत्यधिक लाड़प्यार स्वरूप को बिगाड़ देगा. पर रश्मि ने ध्यान से परखा है, स्वरूप अभी से अपनी जिम्मेदारी समझता है. अपनी बात अगर सही है तो उस पर अड़ जाता है, साथ ही दूसरों के एहसासों की कद्र भी करता है. संभवत: रश्मि के आधे दिन की अनुपस्थिति के कारण ही आत्मनिर्भर होता जा रहा है.

‘‘मां, यह सवाल नहीं हो रहा है,’’ रश्मि को देखते ही स्वरूप कापी उठा कर दौड़ आया.

बेटे को सवाल समझा व चाय- पानी पी कर रश्मि इतमीनान से रसोईघर में घुसी. दफ्तर से जल्दी लौटी है, थकावट भी कम है. आज वह कढ़ीचावल और बैगन का भरता बनाएगी. स्वरूप को बहुत पसंद है.

खाना बनाने के बाद कपड़े बदल कर तैयार हो रश्मि बेटे को ले कर सैर करने निकली. फागुन की हवा ठंडी होते हुए भी आरामदेह लग रही थी. बच्चे चहलपहल करते हुए मैदान में खेल रहे थे. मां की उंगली पकड़े चलते हुए स्वरूप दुनिया भर की बकबक किए जा रहा था. रश्मि सोच रही थी जीवन सदा ही इतना मधुर क्यों नहीं लगता.

‘‘मां, क्या मुझे एक छोटी सी बहन नहीं मिल सकती. मैं उस के संग खेलूंगा. उसे गोद में ले कर घूमूंगा, उसे पढ़ाऊंगा. उस को…’’

रश्मि के मन का उल्लास एकाएक विषाद में बदल गया. स्वरूप के जीवन के इस पहलू की ओर रश्मि का ध्यान ही नहीं गया था. सरकार जो चाहे कहे. आधुनिकता, महंगाई और बढ़ते हुए दुनियादारी के तनावों का तकाजा कुछ भी हो, रश्मि मन से 2 बच्चे चाहती थी, मगर मनुष्य की कई चाहतें पूरी नहीं होतीं.

स्वरूप के बाद रश्मि 2 बार गर्भवती हुई थी पर दोनों ही बार गर्भपात हो गया. अब तो उस के लिए गर्भधारण करना भी खतरनाक है.

रश्मि ने समझौता कर लिया था. आखिर वह उन लोगों से तो बेहतर है जिन के संतान होती ही नहीं. यह सही है कपड़ेलत्ते, खिलौने, पुस्तकें, टौफी, चाकलेट स्वरूप की हर छोटीबड़ी मांग रश्मि जहां तक संभव होता है, पूरी करती है. पर जो वस्तु नहीं होती उस की कमी तो रहती ही है.

‘‘देख बेटा,’’ 7 वर्षीय पुत्र को रश्मि ने समझाना आरंभ कर दिया, ‘‘अगर छोटी बहन होगी तो तेरे साथ लड़ेगी. टौफी, चाकलेट, खिलौनों में हिस्सा मांगेगी और…’’

‘‘तो क्या मां,’’ स्वरूप ने मां की बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘मैं तो बड़ा हूं, छोटी बहन से थोड़े ही लड़ूंगा. टौफी, चाकलेट, खिलौने सब उस को दूंगा. मेरे पास तो बहुत हैं.’’

रश्मि की बोलती बंद हो गई. समय से पहले क्यों इतना समझदार हो गया स्वरूप? रात का भोजन देख कर नन्हे स्वरूप के मस्तिष्क से छोटी बहन वाला विषय निकल गया. पर रश्मि जानती है यह भूलना और याद आना चलता ही रहेगा. हो सकता है बड़ा होने पर रश्मि स्वरूप को बहन न होने का सही कारण बता भी दे लेकिन जब तक वह इसी तरह जीने का आदी नहीं हो जाता, रश्मि को इस प्रसंग का सामना करना ही होगा.

मनपसंद व्यंजन पा कर स्वरूप चटखारे लेले कर खा रहा था, ‘‘कितना अच्छा खाना है. सलाद भी बहुत अच्छा है. मां, आप रोज जल्दी घर आ जाया करो.’’

रश्मि का मन कमजोर पड़ने लगा. मन हुआ कल ही त्यागपत्र भेज दे, नहीं चाहिए यह दो कौड़ी की नौकरी, जिस के कारण उस के लाड़ले को मनपसंद खाना भी नसीब नहीं होता.

‘‘चलो मां, लूडो खेलते हैं,’’ स्वरूप हाथमुंह धो आया था.

‘‘थोड़ी देर तक पिता के संग खेलो, मैं चौका संभाल कर आती हूं,’’ रश्मि ने बरतन समेटते हुए कहा.

ऐसा नहीं कि केवल सतीश की तनख्वाह से गृहस्थी नहीं चलेगी लेकिन घर में स्वयं उस की तनख्वाह का महत्त्व भी कम नहीं. रोज तरहतरह का खाना, स्वरूप के लिए विभिन्न शौकिया खर्चे, उस के कानवैंट स्कूल का खर्चा आदि मिला कर कोई कम रुपयों की जरूरत नहीं पड़ती. अभी तो अपना मकान भी नहीं. फिर वास्तविकता यह है कि प्रतिदिन हर समय मां घर में दिखेगी तो मां के प्रति उस का आकर्षण कम हो जाएगा. इसी तरह रोज ही अच्छा भोजन मिलेगा तो उस भोजन का महत्त्व भी उस के लिए कम हो जाएगा. जैसेजैसे स्वरूप बड़ा होगा उस की अपनी दुनिया विकसित होती जाएगी. मां के आंचल से निकल कर पढ़ाई- लिखाई, खेलकूद और दोस्तों में व्यस्त हो जाएगा. उस समय रश्मि अकेली पड़ जाएगी. इस से यही बेहतर है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ेगा.

सब काम निबटा कर रश्मि की आंखें थकावट से बोझिल होने लगीं. निद्रित पुत्र के ऊपर चादर डाल कर वह सतीश की ओर मुड़ी.

‘‘कभी मेरा भी ध्यान कर लिया करो. हमेशा बेटे में ही रमी रहती हो,’’ सतीश ने रश्मि का हाथ थामा.

‘‘जरा याद करो तुम्हारी मां ने भी कभी तुम्हारा इतना ही ध्यान रखा था,’’ रश्मि ने शरारत से कहा.

‘‘वह उम्र तो गई, अब तो हमें तुम्हारा ध्यान चाहिए.’’

‘‘अच्छा, यह लो ध्यान,’’ रश्मि पति से लिपट गई.

सुबह उठ कर, सब को चाय दे कर रश्मि ने स्वरूप के स्कूल का टिफिन तैयार किया. फिर दूध गरम कर के उसे उठाने चली.

‘‘ऊं, ऊं, अभी नहीं,’’ स्वरूप ने चादर तान ली.

‘‘नहीं बेटा, और नहीं सोते. देखो, सुबह हो गई है.’’

‘‘नहीं, बस मुझे सोना है,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

आखिर 15 मिनट तक समझाने- बुझाने के बाद उस ने बेमन से बिस्तर छोड़ा. पर ब्रश करने, कपड़े पहनने व दूध पीने के बीच वह बारबार जा कर फिर से चादर ओढ़ कर लेट जाता और मनाने के बाद ही उठता. अंत में बैग कंधे पर डाले सतीश का हाथ पकड़े वह बस स्टाप की ओर रवाना हुआ तो रश्मि ने चैन की सांस ली. बिस्तर संवारना है, खाना बनाना, नाश्ता बनाना, नहाना फिर तैयार हो कर दफ्तर जाना है. रश्मि झटपट हाथ चलाने लगी. कपड़ों का ढेर बड़ा होता जा रहा है. 2 दिन से समय ही नहीं मिल रहा. आज शाम को आ कर अवश्य धोएगी.

‘‘कभी तो आंगन में झाड़ू लगा दिया कर रश्मि,’’ सब्जी छौंकते हुए रश्मि के कान में सास की आवाज पड़ी. कमरों के सामने अहाते के भीतर लंबाचौड़ा आंगन है, पक्के फर्श वाला. झाड़ू लगाने में 15-20 मिनट लग जाना मामूली बात है.

‘‘आप ही बताओ अम्मां, किस समय लगाऊं?’’

‘‘अब यह भी कोई समस्या है? जो दफ्तर जाती हैं क्या वे झाड़ू नहीं लगातीं?’’

रश्मि चुप हो गई. बहस में कुछ नहीं रखा. सब्जी में पानी डाल कर वह कपड़े निकालने लगी.

मांजी अब भी बोले जा रही थीं, ‘‘करने वाले बहुत कुछ करते हैं. स्वेटर बनाते हैं, पापड़बड़ी अचार, डालते हैं, कशीदाकारी करते हैं…’’

बदन पर पानी डालते हुए रश्मि सोच रही थी, ‘आज जा कर सब से पहले मार्च के महीने का ड्यूटी चार्ट नाना है.’

‘‘अम्मां, जमादार आए तो उसे 2 रुपए दे कर आंगन में झाड़ू लगवा लेना,’’ रश्मि ने सास को आवाज दी.

‘‘सुन, मेरे लिए एक जोड़ी चप्पल ले आना.’’

‘‘ठीक है, अम्मां,’’ कंघी कर के रश्मि ने लिपस्टिक लगाई.

‘‘वह सामने अंगूठे और पीछे पट्टी वाली चप्पल.’’

रश्मि ने भौंहें सिकोड़ीं, सास किसी खास डिजाइन के बारे में कह रही थीं.

‘‘अरे, वैसी ही जैसी स्वीटी की नानी ने पहनी थी, हलके पीले से रंग की.’’

‘‘अम्मां, मैं शाम को समझ लूंगी और कल चप्पल ला दूंगी.’’

रश्मि टिफिन पैक करने लगी. परांठा भी पैक कर लिया. नाश्ता करने का समय नहीं था.

‘‘मेरे ब्लाउज के जो बटन टूटे थे, लगा दिए हैं?’’

‘‘ओह,’’ रश्मि को याद आया, ‘‘शाम को लगा दूंगी.’’

अम्मां का चेहरा असंतुष्ट हो उठा. रश्मि किसी तरह पैरों में चप्पल डाल कर दफ्तर के लिए रवाना हुई. तेज चले तो 9 बजे वाली बस अब भी मिल सकती है.

आज शाम रश्मि जल्दी नहीं निकल सकी. 4 बजे साहब ने बुला कर जो टारक योजना समझानी शुरू की तो 5 बजने पर भी नहीं रुके.

‘‘मेरी बस निकल जाएगी, साहब,’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया,’’ बौस ने चौंक कर घड़ी देखी.

‘‘जी, कोई बात नहीं,’’ रश्मि ने मुसकराने का प्रयास किया.

दफ्तर से निकलते ही टारक योजना दिमाग से निकल गई और रात को क्या भोजन बनाए इस की चिंता ने आ घेरा. जाते हुए सब्जी भी खरीदनी है. बस आने पर धक्कामुक्की कर के चढ़ी पर वह बीच रास्ते में खराब हो गई. रश्मि मन ही मन गालियां देने लगी. दूसरी बस ले कर घर पहुंचतेपहुंचते 7 बज गए. दूर से ही छत के ऊपर छज्जे पर खड़ा स्वरूप दिख गया. छुपनछुपाई खेल रहा था बच्चों के संग. बहुत ही खतरनाक स्थिति में खड़ा था. गलती से भी थोड़ा और खिसक आया तो सीधे नीचे आ गिरेगा. रश्मि का तो कलेजा मुंह को आ गया.

‘‘स्वरूप,’’ उस ने कठोर स्वर में आवाज दी, ‘‘जल्दी नीचे उतर आओ.’’

‘‘अभी आया, मां,’’ कह कर स्वरूप दीवार फांद कर छत के दूसरी ओर गायब हो गया. अभी तक स्कूल के कपड़े भी नहीं बदले थे. सफेद कमीज व निकर पर दिनभर की गर्द जमा हो गई थी. बाल अस्तव्यस्त और हाथपांव धूल में सने थे. रश्मि का खून खौलने लगा. अम्मां दिन भर क्या करती रहती हैं. लगता है सारा दिन धूप में खेलता रहा है. हजार बार कहा है उसे छत के ऊपर न जाने दिया करें.

‘‘अम्मां,’’ अभी रश्मि ने आवाज ही दी थी कि सास फूट पड़ीं, ‘‘तेरा बेटा मुझ से नहीं संभलता. कल ही किसी क्रेच में इस का बंदोबस्त कर दे. सारा दिन इस के पीछे दौड़दौड़ कर मेरे पैरों में दर्द हो गया. कोई कहना नहीं मानता. स्कूल से लौट कर न नहाया, न कपड़े बदले, न ही ठीक से खाना खाया. ऊधम मचाने में लगा है. तू अपनी आंखों से देख क्या हाल बनाया है. मैं ने छत पर जाने से रोका तो मुझे धक्का मार कर निकल गया.’’

‘‘है कहां वह? अभी तक आया नहीं नीचे,’’ क्रोध से आगबबूला होती रश्मि स्वयं ही छत पर चली.

‘‘क्या बात है? नीचे क्यों नहीं आए?’’ ऊपर पहुंच कर उस ने स्वरूप को झिंझोड़ा.

‘‘बस, अपनी पारी दे कर आ रहा था मां.’’

मां के क्रोध से बेखबर स्वरूप की मासूमियत रश्मि के क्रोध को पिघलाने लगी, ‘‘चलो नीचे. दादी का कहा क्यों नहीं माना?’’

‘‘मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ स्वरूप ने मुंह फुलाया, ‘‘इधर मत कूदो, कागज मत फैलाओ. कमरे में बौल से मत खेलो, गंदे पांव ले कर सोफे पर मत चढ़ो.’’

रश्मि की समझ में न आया किस पर क्रोध करे. बच्चे को बचपना करने से कैसे रोका जा सकता है? सास की भी उम्र बढ़ रही है, ऐसे में सहनशीलता कम होना स्वाभाविक है.

‘‘दादी तुम से बड़ी हैं स्वरूप. तुम्हें बहुत प्यार करती हैं. उन का कहना मानना चाहिए.’’

‘‘फिर मुझे आइसक्रीम क्यों नहीं खाने देतीं?’’

रश्मि थकावट महसूस करने लगी. कब तक नासमझ रहेगा स्वरूप.

‘‘आ गए लाट साहब,’’ पोते को देखते ही दादी का गुस्सा भड़क उठा, ‘‘तुम ने अभी तक इसे कुछ भी नहीं कहा? अरे, मैं कहती हूं इतना सिर न चढ़ाओ,’’ अपने प्रति दोषारोपण होते देख रश्मि का शांत होता क्रोध फिर उबल पड़ा.

‘‘चलो, कपड़े बदल कर हाथमुंह धोओ.’’

‘‘मैं नहीं धोऊंगा,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

‘‘क्या?’’ रश्मि जोर से चिल्लाई.

‘‘बस, मैं न कहती थी तुम्हारा लाड़प्यार इसे जरूर बिगाड़ेगा. लो, अब भुगतो,’’ सास ने निसंदेह उसे उकसाने के लिए नहीं कहा था पर रश्मि ने तड़ाक से एक चांटा बेटे के कोमल गाल पर जड़ दिया.

स्वरूप जोर से रो पड़ा, ‘‘नहीं बदलूंगा कपड़े. जाओ, कभी नहीं बदलूंगा,’’ कह कर दूर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘हांहां, कपड़े क्यों बदलोगे, सारा दिन आवारा बच्चों के साथ मटरगश्ती के सिवा क्या करोगे? देख रश्मि, असली बात तो मैं भूल गई, जा कर देख बौल मार कर ड्रेसिंग टेबल का शीशा तोड़ डाला है.’’

रश्मि को अब अचानक सास के ऊपर क्रोध आने लगा. थकीमांदी लौटी हूं और घर में घुसते ही राग अलापना शुरू कर दिया. गुस्से में उस ने स्वरूप के गाल पर 2 चांटे और जड़ दिए.

रश्मि क्रोध से और भड़की. पुत्र को खींच कर खड़ा किया और तड़ातड़ पीटना शुरू कर दिया.

‘‘सारी उम्र मुझे तंग करने के लिए ही पैदा हुआ था? बाकी 2 तो मर गए, तू भी मर क्यों न गया?’’

‘‘क्या पागल हो गई है रश्मि. बच्चे ने शरारत की, 2 थप्पड़ लगा दिए बस. अब गाली क्यों दे रही है? क्या पीटपीट कर इसे मार डालेगी?’’

क्रोध, ग्लानि और अवसाद ने रश्मि को तोड़ कर रख दिया था. कमरे में आ कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. यह क्या किया उस ने. जान से भी प्रिय एकमात्र पुत्र के लिए ऐसी अशुभ बातें उस के मुंह से कैसे निकलीं?

‘‘जोश को समय पर लगाम दिया कर. जो मुंह में आता है वही बकने लगती है,’’ इकलौता पोता रश्मि की सास को भी कम प्रिय न था, ‘‘अरे, मैं सारा दिन सहती हूं इस की शरारतें और तू ने सुन कर ही पीटना शुरू कर दिया,’’ रश्मि की सास देर तक उसे कोसती रही. रश्मि के आंसू थम ही नहीं रहे थे. रहरह कर किसी अज्ञात आशंका से हृदय डूबता जा रहा था.

तभी एक कोमल स्पर्श पा कर रश्मि ने आंखें खोलीं. जाने स्वरूप कब आंगन से उठ आया था और यत्न से उस के आंसू पोंछ रहा था, ‘‘मत रोओ, मां. कोई मां की बद्दुआ लगती थोड़ी है.’’

रश्मि ने खींच कर पुत्र को हृदय से लगा लिया. कौन सिखाता है इसे इस तरह बोलना. समय से पहले ही संवेदनशील हो गया. फिर अभीअभी जो नासमझी कर रहा था वह क्या था?

जो हो, नासमझ, समझदार या परिपक्व, रश्मि के हृदय का टुकड़ा हर स्थिति में अतुलनीय है. पुत्र को बांहों में भींच कर रश्मि सुख का अनुभव कर रही थी.

Family Kahani

Drama Story: सिरफिरी

Drama Story: निहारिका मानसिक द्वंद्व से जूझती हुई अपने कमरे में निश्चेत सी पड़ी थी. अपना मोबाइल भी औफ कर रखा था. वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में डाक्टर विवेक का सामना नहीं करना चाहती थी. हालांकि वह यह भी बहुत अच्छी तरह जानती थी कि एक ही यूनिट में रहते हुए यह मुमकिन नहीं है, मगर वह ऐसी किसी भी स्थिति से बचना चाह रही थी, जिस में डाक्टर विवेक से उस का एकांत में सामना हो, क्योेंकि उस के किसी भी सवाल का जवाब उस के पास नहीं था.

तभी होस्टल के चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया, ‘‘मैडम, डाक्टर विवेक विजिटर रूम में आप का वेट कर रहे हैं.’’

‘‘उन से कहिए कि मैं रूम में नहीं हूं,’’ निहारिका ने आमनासामना होने की सिचुएशन को टालने की कोशिश की.

‘‘जी, मैडम,’’ कह कर चौकीदार चला गया.

निहारिका का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए, चीखेचिल्लाए, सब कुछ तोड़ दे… किस चक्रव्यूह में फंस गई वह जिस से निकलते ही नहीं बन रहा. एक वह अभिमन्यु था जो अपनों से घिरा था… वह भी तो घिरी है अपनेआप से… शायद उस की नियति भी अभिमन्यु जैसी ही होने वाली है… निहारिका कटे वृक्ष सी बिस्तर पर गिर गई.

2 साल पहले कितनी सुखी जिंदगी थी उस की. प्यार करने वाला पति देव, लाड़ करने वाली सासूमां और अपनी भोली मुसकान से दिन भर की थकान उतार देने वाली 4 साल की बिटिया पलक…

देव जोधपुर के आईआईटी इंस्टिट्यूट में प्रोफैसर था और वह खुद भी वहीं एक हौस्पिटल में डाक्टर थी. निहारिका अपने पेशे में और अधिक महारथ हासिल करने के लिए ऐनेस्थीसिया में पीजी करना चाहती थी. 2 साल के अथक प्रयासों के बाद आखिर उस का पोस्ट ग्रैजुएशन करने के लिए सलैक्शन हो ही गया. उसे बीकानेर के सरदार पटेल मैडिकल कालेज में सीट आवंटित हुई.

परिवार खासतौर पर पलक से दूर होने की कल्पना रहरह कर निहारिका की पलकों के कोर नम कर रही थी. मगर सासूमां पर उसे पूरा भरोसा था कि वे पलक की देखभाल उस से भी बेहतर करेंगी. फिर देव ने भी उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसे आश्वस्त किया था. मगर वही उन के भरोसे पर खरी नहीं उतर पाई… वही न जाने किस फिसलन भरी ढलान पर उतर गई थी. एक बार फिसली तो फिर फिसलती चली गई.

हालांकि मैडिकल की पढ़ाई के दौरान भी वह होस्टल में ही रही थी और उस पीरियड को खूब ऐंजौय भी किया था उस ने, मगर इस बार बात कुछ और थी. अकसर शाम को पलक और देव को याद कर के उदास हो जाती थी.

उसे मैडिकल कालेज से संबद्ध पीबीएम हौस्पिटल में रैजिडैंट डाक्टर की हैसियत से अपनी सेवाएं देनी पड़ती थीं. जब उस की ड्यूटी दिन या फिर शाम की होती थी तब तो इतने मरीज आते कि उसे सिर उठाने की भी फुरसत नहीं मिलती थी. मगर रात की ड्यूटी में जब सारे मरीज और उन के रिश्तेदार गहरी नींद में होते तब उस की आंखों से नींद कोसों दूर होती. वह देर तक देव से बात करती, मगर फिर भी उस का अकेलापन दूर नहीं होता था. उसे यों रात भर जागते देख साथी डाक्टर उसे उल्लू कह कर चिढ़ाया करते थे. वे उसे वार्ड की जिम्मेदारी सौंप रैस्ट भी कर लिया करते थे.

बीचबीच में निहारिका जोधपुर का चक्कर भी लगा लेती थी. 1-2 बार देव भी आया था पलक को ले कर बीकानेर. मगर दूरियां तो आखिर दूरियां ही होती हैं… इन्हें मोबाइल और चैटिंग से नहीं पाटा जा सकता.

इसी तरह देखते ही देखते 1 साल गुजर गया. हौस्पिटल में नए पीजी डाक्टर्स आ गए. उन्हीं में से एक था विवेक, जो उसी की फैकल्टी में पीजी करने एक छोटे कसबे से आया था. दिखने में बहुत ही सीधेसादे और मितभाषी विवेक का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था. चूंकि निहारिका उस की सीनियर थी, इस नाते वह उस की बहुत इज्जत करता था. उस की मासूमियत निहारिका के दिल में उतरने लगी. शुरुआती दिनों में विवेक बहुत शरमीला था. मगर धीरेधीरे निहारिका से खुलने लगा. घरपरिवार और कालेज के पुराने किस्से सुना कर उसे खूब हंसाता, उस का मन बहलाने की कोशिश करता. जब भी दोनों नाइट ड्यूटी में साथ होते, वह उस के लिए कौफी बना कर लाता. विवेक निहारिका से उम्र में छोटा था, मगर उस के साथ होते ही निहारिका खुद एक नटखट बच्ची बन जाती थी.

विवेक की आंखें उस के व्यक्तित्व का सबसे प्रभावशाली हिस्सा थीं. न जाने क्या था उन गहराइयों में कि निहारिका उन में डूबती चली गई. एक चुंबक था जैसे उन के भीतर… निहारिका जितना अवौइड करने की कोशिश करती उतनी ही खिंचती चली जाती उस की तरफ… जैसे धरती चाहे या न चाहे उसे सूर्य की परिक्रमा करनी पड़ती है. कुछ ऐसे ही गुरुत्त्वाकर्षण से बंधती जा रही थी निहारिका भी. विवेक उस के भीतर पसरे खालीपन को भरने लगा था. जब वह उस के साथ होती तो देव को फोन करना भी भूल जाती थी.

एक दिन नाइट ड्यूटी के बाद जब निहारिका होस्टल लौट रही थी, तो विवेक पीछे से अपनी बाइक ले कर आया. निहारिका को लिफ्ट देने की पेशकश की तो वह सम्मोहित सी पीछे बैठ गई. विवेक उसे चाय पिलाने अपने कमरे पर ले गया.

वह रसोई में जाने लगा तो निहारिका ने कहा, ‘‘तुम बैठो, मैं चाय बनाती हूं.’’

विवेक भी उस की मदद करने के लिए पीछेपीछे आ गया. छोटी सी किचन में विवेक का इतना पास होना निहारिका के शरीर में कंपन पैदा कर रहा था.

हौस्पिटल में तो कितने ही ऐसे मौके आते हैं जब हम बहुत पास होते हैं. यहां तक कि एकदूसरे को छू भी जाते हैं, मगर तब ऐसी फीलिंग क्यों नहीं आती, निहारिका सोच रही थी.

चाय के लिए कप लेने को मुड़ी निहारिका विवेक से टकरा गई. विवेक ने बांहों में थाम लिया तो निहारिका से कुछ भी कहते नहीं बना. बस सौरी कह कर रह गई.

अब अकसर ही जब दोनों नाइट ड्यूटी कर के जाते तो विवेक उसे कमरे पर ले जाता. दुनियाजहान से बेखबर दोनों देर तक साथ रहते, खूब मस्ती करते. निहारिका उस की बचकानी हरकतों पर पेट पकड़पकड़ कर हंसती. उस की मासूम अदाओं पर रीझ कर निहारिका ने उसे नाम दिया सिरफिरा. अब वह उसे इसी नाम से बुलाती थी. उस का दिल कहता था जैसे उसे बरसों से ऐसे ही साथी की तलाश थी. हालांकि देव भी उसे कम प्यार नहीं करता था. मगर न जाने क्यों विवेक को जी भर कर

प्यार करने की ललक उस के भीतर सिर उठाने लगी थी.

2 दिन बाद विवेक का जन्मदिन आने वाला था. निहारिका ने मन ही मन प्लान तैयार कर लिया. संयोग से विवेक के जन्मदिन वाले दिन दोनों ड्यूटी के बाद विवेक के कमरे पर चले गए. निहारिका ने अपना स्टेथ टेबल पर रखा और ऐप्रन कुरसी के पीछे टांग कर आराम से बैठ गई. विवेक किचन में चाय बनाने चला गया.

विवेक ने चाय के कप टेबल पर रख दिए.

निहारिका बोली, ‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है न?’’

‘‘हां. तो?’’

‘‘तो क्या गिफ्ट नहीं मांगोगे?’’

‘‘जब बिना मांगे ही इतना कुछ मिल गया है, तो और क्या मांगूं?’’

‘‘मगर हम तो फिर भी देंगे,’’ निहारिका ने इतराते हुए कहा.

‘‘तो लाइए.’’

‘‘ऐसे नहीं… आंखें बंद करो.’’

विवेक ने अपनी आंखें बंद कर लीं. निहारिका धीरे से उस के पास आई और उस के होंठों पर अपने होंठ रख कर एक गहरा चुंबन जड़ दिया.

विवेक ने तो इस सरप्राइज की कल्पना भी नहीं की थी. यंत्रचालित सी उस की बांहों ने निहारिका को घेर लिया. वह भी सब कुछ भूल कर उस में खोती चली गई. जब होश आया तो चाय ठंडी हो चुकी थी.

निहारिका ने अपने कपड़े ठीक करते हुए कहा, ‘‘तुम बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

मगर विवेक नहीं माना और किचन में चला गया.

निहारिका ने मजाक में कहा, ‘‘तुम चाय बहुत अच्छी बनाते हो… एक काम करो डाक्टरी छोड़ कर चाय की दुकान खोल लो. मैं तो तुम्हारी परमानैंट ग्राहक बन जाऊंगी.’’

‘‘मंजूर है, मगर वादा करो कि तुम रोज चाय पीने आओगी.’’

‘‘वादा,’’ निहारिका ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘जोधपुर तो नहीं चली जाओगी?’’ विवेक ने उस की आंखों में ?ांकते हुए पूछा.

निहारिका सकपका गई. कुछ जवाब देते नहीं बना तो चुपचाप चाय का कप ले कर कुरसी पर बैठ गई.

निहारिका तो शादीशुदा थी. उस के लिए अंतरंग संबंध नई बात नहीं थी. मगर अविवाहित विवेक ने जब से यह वर्जित फल चखा था, उस की हालत दीवानों सी हो गई. वह हर वक्त निहारिका के आगेपीछे घूमने लगा. क्लास हो, वार्ड हो या फिर औपरेशन थिएटर, हर जगह वह उसे छूने के अवसर तलाशता रहता. कभी ऐनेस्थीसिया देते वक्त हाथ पकड़ लेता तो कभी मरीज देखते समय टेबल के नीचे पांव पर पांव रख कर सहलाने लगता. रोज अकेले में मिलने की जिद करता. उस का दीवानापन निहारिका के लिए परेशानी का कारण बनने लगा.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते… होस्टल, मैडिकल कालेज,

हौस्पिटल हर जगह दोनों के अफेयर की चर्चा होने लगी. लोग दबी जबान निहारिका को ही दोषी ठहराते. पिछली बार जब देव आया था तो विवेक को उस का आना फूटी आंख नहीं सुहाया था. उस के जाने के बाद भी निहारिका से 2 दिन रूठारूठा रहा था.

‘‘देव मेरी सचाई है विवेक इस बात को तुम जितनी जल्दी सम?ा लो उतना ही हम दोनों के लिए बेहतर है,’’ निहारिका ने उसे सम?ाते हुए कहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ किसी और की कल्पना भी नहीं कर सकता अब… वे 2 रातें जो तुम ने उस के साथ बिताई हैं, मु?ा पर कैसी गुजरी हैं तुम क्या जानो,’’ विवेक ने जैसे न सम?ाने का प्रण कर रखा था.

‘‘तुम देव से तलाक ले लो,’’ विवेक ने निहारिका को कस कर बांहों में जकड़ते हुए कहा.

‘‘यह संभव नहीं है.’’

‘‘मेरे साथ इस रास्ते पर चलने से पहले क्यों नहीं सोचा कि इस की मंजिल क्या होगी?’’ विवेक आज आर या पार की बहस के मूड में था.

‘‘मु?ा से गलती हो गई. शायद देव से दूरियों ने मेरे मन को डिगा दिया… मु?ो माफ कर दो… मैं तुम्हारी गुनहगार हूं, तुम जो चाहे सजा दो. अब इस नाजायज रिश्ते की आंच मेरे घर को जलाने लगी है… मैं इस रास्ते पर आगे नहीं जा सकती,’’ कह निहारिका ने अपनी बात खत्म कर दी. मगर वह जानती थी कि दिलों के संबंध इतनी आसानी से नहीं टूटते.

निहारिका ने अपने एचओडी से रिक्वैस्ट कर के अपनी यूनिट चेंज करवा ली. अब उस की ड्यूटी विवेक के साथ नहीं लगेगी. विवेक ने शायद वह ड्यूटी चार्ट देख लिया है. इसीलिए वह उस से मिलने की जिद कर रहा है.

ड्यूटी पर तो जाना ही पड़ेगा, सोचते हुए निहारिका ने उठ कर मुंह धोया. अपनेआप को संयत करते हुए होस्टल से बाहर निकली. सामने पेड़ के नीचे खड़ा विवेक उसी की राह देख रहा था. निहारिका को उस पर दया उमड़ आई. वह अपनेआप को कोसने लगी कि क्यों उस ने

विवेक की शांत जिंदगी में प्यार फेंक कर हलचल मचा दी. वह अनजान बनने का नाटक करती हुई आगे बढ़ी तो विवेक ने सामने आ कर रास्ता रोक लिया.

‘‘?ाठ क्यों कहा कि तुम रूम में नहीं हो?’’ विवेक ने पूछा.

‘‘मैं ने किस से कहा?’’ निहारिका ने भी प्रतिप्रश्न किया.

‘‘वाचमैन ने तो कुछ देर पहले यही कहा था.’’

‘‘शायद मैं उस वक्त बाथरूम में थी,’’ निहारिका ने टालने की गरज से कहा.

‘‘क्या मु?ा से इतनी नफरत हो गई कि मेरे साथ ड्यूटी भी नहीं कर सकतीं?’’ विवेक ने शिकायत की.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. यह तो मैनेजमैंट का डिसीजन है.’’

‘‘मैं इतना नादान भी नहीं हूं, सब सम?ाता हूं.’’

‘‘तुम सम?ा ही तो नहीं रहे हो विवेक… यह हम दोनों के लिए बहुत जरूरी है. हमें इस मोड़ से लौटना ही होगा.’’

‘‘तुम बेशक लौट जाओ, मगर मैं यहीं इसी मोड़ पर खड़ा तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ विवेक ने आंखें नम करते हुए कहा.

विवेक के लिए तो वह पहला प्यार ही थी और पहले प्यार को खोना सब कुछ लुट जाने जैसा ही होता है.

मगर निहारिका ने अपने मन को कड़ा किया और विवेक से दूरियां बना लीं. वह उन सभी हालात से बचने की कोशिश करती जहां विवेक से सामना होने का अंदेशा होता.

निहारिका के कोर्स का अंतिम वर्ष था. वह सब कुछ भूल कर अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गई. उस ने अपनी स्टडी टेबल पर अपनी फैमिली की तसवीर रख ली ताकि अगर उस का मन बगावत पर उतर आए तो वह कंट्रोल कर सके. रोज रात को पलक के सोने से पहले उस से 10-15 मिनट बात जरूर करती और अपने परिवार के लगाव को भीतर तक महसूस करती. देव से भी पहले की तरह ही नियमित बात करती. कुछ दिन तो उसे ये सब करना अपनेआप को छलने जैसा ही लगा, मगर धीरेधीरे लगने लगा कि स्नेह की जो डोर कमजोर पड़ रही थी वह फिर से मजबूत हो रही है. उसे अब पहले की तरह ही घर की याद सताने लगी थी.

आज आखिरी परीक्षा थी. उसे रात की ट्रेन से जोधपुर जाना था. उस ने अपना जरूरी सामान पैक किया और विवेक के कमरे की तरफ चल दी.

निहारिका को यों अचानक आया देख विवेक आश्चर्य से भर गया.

निहारिका ने कहा, ‘‘मैं वापस जा रही हूं… मैं ने जो कुछ भी किया वह माफी के लायक तो नहीं है, मगर फिर भी मेरे लिए अपने मन में मैल मत रखना. प्यार सच्चा या ?ाठा नहीं होता, वह बस प्यार होता है. तुम्हारा प्यार भी मेरे दिल के एक कोने में सदा सुरक्षित रहेगा.’’

‘‘तुम ने मु?ो प्यार के एहसास से परिचित करवाया, उस के लिए शुक्रिया. अच्छे दोस्तों की तरह संपर्क बनाए रखना,’’ विवेक अब तक काफी सामान्य हो चुका था.

निहारिका ने जाने से पहले विवेक को प्यार से गले लगाया और फिर उस रास्ते की तरफ बढ़ गई जहां उस का परिवार उस के इंतजार में आंखें बिछाए खड़ा था.

Drama Story

Hindi Love Story: औरों से जुदा

Hindi Love Story: अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था.

Hindi Love Story

Relationship Advice: लाइफ पार्टनर को बनाएं बैस्ट फ्रैंड

Relationship Advice: आज के समय में शादी सिर्फ एक पतिपत्नी का रिश्ता नहीं है बल्कि शादी एक उम्रभर का साथ है जिसे 2 इंसान मिल कर निभाते हैं. जहां एक तरफ पहले के लोगों में पतिपत्नी का रिश्ता काफी फौर्मल रहता था और काफी कुछ ऐसा था जिस के बारे में पतिपत्नी भी आपस में बात करने में शरमाते थे वहीं आज के समय में पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त बन कर रहते हैं. कहा जाता है कि सब से मजबूत अगर कोई रिश्ता होता है तो वह रिश्ता होता है दोस्ती का.

आज भी कई ऐसे लोग हैं जो अपने पार्टनर से खुल कर बात नहीं करते और एकदूसरे के साथ रहते हुए उन्हें यह तक नहीं पता होता कि उन के पार्टनर को क्या पसंद है और क्या नहीं. ऐसे में यह रिश्ता सिर्फ एक ऐसा रिश्ता बन कर रह जाता है जिस में धीरेधीरे प्यार खत्म होने लगता है और सिर्फ जिम्मेदारी रह जाती है.

आज हम आप को बताएंगे कुछ ऐसे टिप्स जिन्हें फौलो कर आप अपने पार्टनर के साथ दोस्ती का रिश्ता कायम कर सकते हैं और अपने आने वाले फ्यूचर को और भी सुनहरा बना सकते हैं.

जानें एकदूसरे की पसंदनापसंद

सब से पहले तो पार्टनर्स को एकदूसरे की पसंदनापसंद के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए और हो सके तो ऐसा कुछ बिलकुल न करें जो आप के पार्टनर को नापसंद हो. ऐसा करने से आप का पार्टनर आप से और भी ज्यादा प्यार करने लगेगा.

खुल कर करें सारी बात      

हमें अपने पार्टनर से कभी कुछ नहीं छिपाना चाहिए. दोस्ती का तो पहला रूल ही यह होता है कि दोस्तों के बीच कुछ नहीं छिपता. ठीक इसी तरह हमें अपने पार्टनर से सारी बातें खुल कर करनी चाहिए चाहे वह किसी भी तरह की बात हो. आप को अपने पार्टनर की बात भी सुननी चाहिए बिना उसे जज करे जिस से कि आपस में अपनापन बना रहे.

क्वालिटी टाइम बिताना है जरूरी

अपने पार्टनर के साथ जितना हो सके उतना समय बिताएं. बीचबीच में जब मौका मिले अपने पार्टनर के साथ डेट पर जाएं या किसी ट्रिप पर जाएं जिस से कि दोनों एकदूसरे के करीब आ सकें और रिश्ते में हमेशा ताजगी बनी रहे.

रोमांस को करें इग्नोर

कई बार ऐसा देखा गया है कि बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ हम अपने पार्टनर के साथ रोमांस करना बिलकुल इग्नोर करने लगते हैं पर ऐसा नहीं होना चाहिए. पार्टनर्स को एकदूसरे में हमेशा इंटरैस्ट लेना चाहिए और रोमांस को कभी इग्नोर नहीं करना चाहिए. रोमांस करने से आप अपने पार्टनर के करीब आते हैं.

छेड़छाड़ और हंसीमजाक है जरूरी

पतिपत्नी के रिश्ते में जितना हंसीमजाक होगा उतना घर का माहौल खुशनुमा रहेगा. पार्टनर्स को एकदूसरे के साथ हंसीमजाक करते रहना चाहिए और बीचबीच में एकदूसरे को छेड़ते भी रहना चाहिए ताकि रिश्ते में रोमांच बना रहे.

Relationship Advice

Gender Discrimination: जैंडर के नाम पर भेदभाव

Gender Discrimination: हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में कोर्ट परिसर में एक महिला अधिवक्ता पर तेजाब फेंकने का मामला सामने आया. इस घटना में महिला बुरी तरह घायल हो गई. घायल महिला अधिवक्ता शशिबाला को तुरंत शहर के सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया. घटना उस वक्त हुई जब शशिबाला रोजाना की तरह कोर्ट जा रही थी. तभी अचानक पीछे से 2 युवक अपने कुछ साथियों के साथ आए और शशिबाला पर तेजाब फेंक दिया. तेजाब फेंकने के बाद सभी आरोपी मौके से फरार हो गए. महिला वकील पर यह हमला इसलिए किया गया क्योंकि वह पहले से ही आरोपियों के खिलाफ 2 मुकदमे लड़ रही थी जिन में दहेज उत्पीड़न और छेड़छाड़ का मामला शामिल है.

‘नेशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो’ के अनुसार, 2021 में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 450 से अधिक मामले दर्ज किए गए. कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल का नितांत अभाव है. महिलाओं को अकसर औफिस या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न या हरासमैंट का सामना करना पड़ता है. अवांछित स्पर्श, अश्लील टिप्पणियां, सैक्सुअल एडवांटेज, अश्लील चुटकुले सुनाना, शारीरिक उत्पीड़न जैसेकि धक्का देना, थप्पड़ मारना या तेजाब फेंकना जैसी कितनी ही स्थितियों का सामना करना पड़ता है. वे कुछ कहें तो बात आगे बढ़ जाती है. चुप रहें तो काम करना कठिन हो जाता है.

जरा सोचिए

महिलाओं के साथ इस तरह की घटनाएं क्यों होती हैं? लड़कियों या महिलाओं के साथ इस तरह की वारदात को अंजाम देने वाले लोग कौन होते हैं? क्या ये क्रिमिनल हैं जिन्हें शुरू से क्राइम करने की आदत है? क्या ये सब कर के इन्हें कोई सैक्स सुख मिलता है? क्या ये लंबी प्लानिंग के बाद ऐसा करते हैं? नहीं ये ऐसा करने के लिए कोई प्लानिंग नहीं करते. किसी स्त्री को देख कर वासनावश या किसी स्त्री के किसी काम से उत्पन्न गुस्सा या स्त्री को उस की औकात दिखाने की तमन्ना या फिर अपनी मर्दानगी को दिखाने का बहाना, इन घटनाओं के पीछे बस ये ही कुछ कारण होते हैं.

ऐसा करने वाले लोग लोग क्रिमिनल नहीं होते. पढ़ेलिखे नौर्मल घरों से आते हैं. धर्म और पूजापाठ में गहरा विश्वास भी करते हैं. इस काम में उन्हें कोई सैक्स सुख भी नहीं मिलता. ऐसे काम अचानक में हड़बड़ी में और छिप कर किए जाते हैं. कई लोग भीड़ में भी करते हैं ताकि सब को दिखा सकें कि स्त्री उन की मरजी के विरुद्ध कुछ करे या आगे बढ़े तो उस का अंजाम क्या हो सकता है. वस्तुत: वे स्त्री को उस की औकात दिखाते हैं.

मगर यह प्रवृत्ति आती क्यों है? क्या यह नैचुरल है? दरअसल यह पावर गेम है. यह सिखाया गया है. परिवार, धर्म, शिक्षा व्यवस्था, प्रशासन और समाज बचपन से जैंडर के प्रति एक खास तरह का नजरिया देते हैं. एक नेरेटिव बनाई जाती है. लड़के और लड़कियों के वजूद का अंतर स्थापित किया जाता है.

डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के बच्चों के दिमाग में 10 साल से भी कम उम्र में जैंडर स्टीरियोटाइप्स भर दिए जाते हैं. मतलब नन्ही सी उम्र में ही हम लड़कों को लड़का होना और लड़कियों को लड़कियां होना सिखा देते हैं. इस स्टडी का नाम ग्लोबल अर्ली एडोलिसेंट स्टडी था और उस में कहा गया कि हम अरबों रुपए टीनऐजर्स को लड़कालड़की की बराबरी का पाठ पढ़ाने में खर्च कर देते हैं जबकि यह भेद तो बच्चे 10 साल की उम्र से पहले से करना शुरू कर देते हैं.

भेदभाव की शुरुआत

इन की शुरुआत कौन करता है? बेशक खुद हमारा परिवार और हमारे पेरैंट्स. जब छोटे लड़के नेलपौलिश और बिंदी लगाते हैं तो परिवार के सदस्य उन का मजाक उड़ाते हैं और डांटतेडपटते हैं. लड़कियां बंदूक या कार चलाती हैं तो पेरैंट्स खुद उन के लिए गुडि़यां ले आते हैं. लड़कियों के पिंक कपड़े चुनते हैं, लड़कों के लिए नहीं. उन्हें ‘मैस्कुलिन’ रंग दिए जाते हैं. पिंक रंग लड़कियों से जोड़ते हैं तभी यौन आजादी और नो मतलब नो- यह सिखाने वाली फिल्म का नाम भी पिंक ही रख देते हैं. यह स्टीरियोटाइप हमारे खुद के बनाए हुए हैं.

जब किसी लड़के का बर्थडे हो तो परिवार के लोग कहेंगे कि लड़का है तो कार, रेसिंग कार, रोबोट, गन, वीडियो गेम गिफ्ट करेंगे. लड़की को बर्थडे गिफ्ट देना हो तो किचन सैट, गुडि़या, फ्रौक आदि दी जाती है. मौल में डौल्स पिंक कलर एरिया में मिलती हैं जबकि कार, बैट ब्लू एरिया में. लैंगिक भेदभाव हमारे जेहन में घुलामिला हुआ है. अब तो लड़कियों के टूथब्रश भी अलग दिखते हैं. टूथब्रश पर क्विन का हैड होगा या फिर पिंक कलर का होगा. दरअसल, बच्चे इस तरह के भेदभाव की सोच के साथ पैदा नहीं होते हैं. हम उन्हें जैंडर का भेदभाव बताते हैं.

आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि नन्ही लड़कियों के औनलाइन गेम्स के टिपिकल विजुअल्स और बैंकग्राउंड्स पिंक रंग से भरे पड़े हैं. लड़कियों के गेम्स भी ज्यादातर मेकअप, ड्रैसिंग और कुकिंग से जुड़े होते हैं. अगर आप 5 टौप औनलाइन गेम्स की साइट्स देखेंगे तो पाएंगे कि सभी के विषय औरतों की सदियों से चली आ रही भूमिकाओं पर ही आधारित हैं.

यही बात हमारी टैक्स्ट बुक्स भी सिखाती हैं. ऐक्शन एड की एक फैं्रच इंटर्न ने एनसीईआरटी की किताबों पर एक अध्ययन किया तो पाया कि हम कक्षा 2 से ही बच्चों को लड़केलड़की के कथित खांचों में बंद करने लगते हैं. अध्ययन में कक्षा 2 की ही किताबों में अधिकतर पुरुष हैड औफद फैमिली थे जबकि औरतें घरेलू काम करने वाली, बच्चों की देखभाल करने वाली. जौब करने वाली औरतों को भी नर्स, डाक्टर या टीचर के ही रोल में दिखाया गया है.

हम अगर अपने घरपरिवारों में गौर करें तो यही दिखेगा कि हमारे यहां बेटे को रोटी बनाने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया जाता क्योंकि परिवार में रोटी बनाने, कपड़े धोने, साफसफाई करने का काम मम्मी यानी स्त्री करती है, पापा नहीं. पापा यानी पुरुष तो घर में मिक्सी और टीवी ठीक करते हैं. अपनी कार, मोटरसाइकिल धोते हैं. टैक्स रिटर्न जमा करते हैं. इनवैस्टमैंट प्लान करते हैं.

व्यवस्था है विचारधारा नहीं

कई ऐसी महिलाएं हैं जो नौकरीपेशा हैं लेकिन जब पैसों के लेनदेन, बैंक या शेयर बाजार में निवेश की बात आती है तो महिला नहीं उस का पति यह काम करता है. कई नौकरीपेशा महिलाएं यह भी नहीं जानतीं कि उन्हें पैसे किस तरह विड्रौल करने हैं. इस का कारण यह नहीं है कि महिलाएं कर नहीं सकतीं बल्कि इसलिए क्योंकि उन का ब्रेनवाश किया गया है. उन के दिमाग में ठूंस दिया गया है कि वे डौक्यूमैंट्स समझने, कैलकुलेशन करने और मैथ्स में कमजोर हैं. बैंक की बातें उन्हें समझ में नहीं आएंगी. उन्हें कहा जाता है कि तुम रहने दो. बड़ी होती लड़कियों से यह नहीं कहा जाता है कि खुद से अपना बैंक खाता खोलो, डौक्यूमैंट्स देखो, निवेश के बारे में जानो.

हमारा समाज पितृसत्तात्मक है. पितृसत्ता एक व्यवस्था है एक विचारधारा नहीं. इसे तोड़ने के बारे में हम खुद नहीं सोचते. इसे समाज, विज्ञान, इतिहास, साहित्य, संस्कृति और सब से खास विज्ञान के जरीए पुष्ट किया गया है. लड़कियों और लड़कों के दिमाग में ऐसा कोई बायोलौजिकल फर्क नहीं होता जो समाज में उन की भूमिकाओं को तय करता है. दिमाग से लड़की भी नैचुरल हंटर हो सकती है और लड़का नैचुरल होममेकर.

लड़कों और लड़कियों में जैंडर स्टीरियोटाइप भर कर हम उन का नुकसान करते हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार इस से हम लड़कियों को कमजोर बनाते हैं. हम उन्हें सिखाते हैं कि शरीर तुम्हारा मुख्य एसेट है. उसे बचाना जरूरी है. इस तरह लड़कियां पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर होती हैं. उन के शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार होने की स्थितियां बनती हैं. उन के बाल विवाह, जल्दी मां बनने, एचआईवी और दूसरे यौन संक्रमणों का शिकार होने की आशंका होती है. हम लड़कों को भावुक नहीं बनाते. लड़कियों की इज्जत करना नहीं सिखाते. इस वजह से वे अकसर हिंसक बनते हैं और नशे का शिकार होते हैं.

झूठी मर्दानगी का मुखौटा पहनने के बावजूद कभीकभी उन का दिल इस कदर टूट कर बिखरता है या फिर निराशा हाथ लगती है कि वे भावनाओं को संभाल नहीं पाते. लड़कियों की तरह उन्हें रोना नहीं सिखाया जाता सो यह बेचारगी उन के अंदर घुटन भरती है और कई बार वे आत्महत्या करने को विवश होते हैं. कुल मिला कर समाज भी लड़कियों और लड़कों के बीच बचपन से भेदभाव कर के उन का ही नुकसान करता है.

पाबंदियों के बीच कुम्हलाता जीवन

लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि स्कूल से सीधे घर आना है. कभीकभार देर हो जाए तो बातें सुनाई जाती हैं, ताने दिए जाते हैं और कुछ लड़कियों की पिटाई भी होती थी. लेट होने पर पचासों सवाल पूछे जाते हैं कि कहां थी? किस के साथ थी? क्यों आने में देर हो गई? उम्र के साथसाथ जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो इस तरह के सवालों के साथसाथ इन परंपराओं की बेडि़यों का दायरा भी बड़ा होता जाता है.

जैसे अगर लड़कियां बाजार जाएंगी तो भाई या पिता को ले कर ही जाएंगी वरना नहीं जाएंगी. अगर कभी अकेले या अपने दोस्तों के साथ गई भी हों तो शाम होने से पहले घर में उन की उपस्थिति दर्ज हो जानी चाहिए नहीं तो घर वाले कुछ बोलें या न बोलें पड़ोस वाले बेशर्म, बदचलन जैसे अनगिनत टैग से नवाज देंगे. लड़कियों पर लगी समय की पाबंदी के पीछे सोच थी कि कहीं लड़की भाग गई या उस के साथ ऊंचनीच हो गई तो परिवार की क्या इज्जत बचेगी? पर सवाल उठता है कि आखिर इन परंपराओं और सवालों का बो?ा सिर्फ लड़कियों पर क्यों डाला गया?

आज लड़कियां खेलकूद में भाग तो ले रही हैं लेकिन लड़कों की तुलना में उन की भागीदारी आउटडोर गेम्स में कम ही दिखती है. वे पढ़ाई तो करती हैं मगर नौकरी से ज्यादा इस सोच के साथ कि पढ़ने से अच्छे घर में शादी होगी. अगर हम इस के पीछे की मानसिकता को सम?ाने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि घरेलू दबाव, समाज द्वारा थोपी गई परंपरा, सुंदर दिखने की होड़, पितृसत्तात्मक सोच आदि ही इस के लिए जिम्मेदार हैं. यह सोच धीरेधीरे लड़कियों के दिमाग में घर कर जाती है जिस के परिणामस्वरूप वे इसी तरह जीने की आदी हो जाती हैं.

स्कूलकालेज की पाबंदियां

लड़कियों के होस्टल में 10 बजे के बाद ऐंट्री पर बैन लगा दिया जाता है. सुरक्षा के नाम पर रात 10 बजे के बाद लड़कियों को होस्टल में कैद कर के उन की सुरक्षा का ड्रामा क्यों किया जाता है? क्या कालेज, यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर जैंडर के आधार पर समय की पाबंदी लड़कियों को सशक्त कर पाएगी? देखा जाए तो लड़कियों के साथ हिंसा या किसी तरह की घटना इसलिए नहीं होती कि वे देर रात तक बाहर होती हैं बल्कि इस हिंसा के पीछे पितृसत्तात्मक सोच है. लड़कियों को ही कैद करना किस प्रकार का सामाजिक न्याय है? यह नियम लड़कों पर लागू नहीं होता.

नौकरी और शादी के बाद लागू होती पाबंदियां

शहरों में लड़कियों की उम्र 20-25 होते ही समय पर शादी कर लेने की नसीहत दी जाती है. कुछ लड़कियां शादी की नसीहत को मान लेती हैं, कुछ के साथ जोरजबरदस्ती की जाती है और कुछ इस नसीहत का विरोध कर के अपने पैरों पर खड़ा होने की जिद पकड़ लेती हैं. इस जिद को पूरा करने के लिए एक नए मुकाम की तलाश में महानगरों की ओर जाती हैं. इन महानगरों में भी उन की मुसीबतें कम नहीं होती हैं. एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. फिर वे नौकरी कर के पैसा कमाना शुरू करती हैं लेकिन नौकरी करते हुए आजादी के ये चंद दिन ही होते हैं. 30-32 की उम्र के होते ही इन नौकरीपेशा लड़कियों पर शादी का दबाव आ जाता है.

जौब करने वाली लड़की की जब शादी हो जाती है तो उस की जिम्मेदारियां दोगुनी रफ्तार से बढ़ने लगती हैं. औफिस से छूटते ही घर पर जल्द से जल्द पहुंचने की बेचैनी रहती है क्योंकि देरी होने पर ससुराल वालों को जवाब देना पड़ता है. इस तरह पाबंदियों के साथ महिलाएं किसी तरह अपना जीवन ढोती हैं. बच्चों की परवरिश अच्छे से करने के लिए कई दफा अच्छी खासी नौकरी भी छोड़नी पड़ती है.

सोशल मीडिया पर मौजूद पितृसत्ता

आज के डिजिटल दौर में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मजाक में महिलाओं को कमजोर दिखाया जाना और होमोफोबिक बातों का खूब चलन है. कुछ समय पहले तक यह टैलीविजन और सिनेमा तक ही सीमित था. अब ऐसे संगीत, वीडियोज, रील्स और स्टैंड अप कौमेडी आदि के जरीए इंटरनैट पर परोसे जा रहे हैं. इन से आज की युवा महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा, रेप जोक्स और धमकियों को आम बात समझने लगे हैं. पुरुषों को सशक्त और आत्मनिर्भर दिखाया जाता है और महिलाओं को कमजोर, नाजुक और कामुक बताया गया. पुरुष वर्ग ने उस के शरीर को उपभोग की वस्तु की तरह सीमित कर दिया.

धर्म की देन

धर्म ने हमेशा स्त्री को दोयम दर्जा दिया है. स्त्री को पुरुष के पीछे चलने वाली अनुगामिनी का नाम दिया गया. ऐसे रीतिरिवाज बनाए गए जिन में पुरुषों की पूजा की जाए और स्त्रियां उन की दासी बन कर रहें. किसी भी धर्म की किसी भी कहानी में स्त्री को समान दर्जा नहीं दिया गया. धर्म ने हमेशा स्त्रियों के हाथ बांधे हैं और उन्हें कमतर दिखाया है. यही वजह है कि अधिक धार्मिक इंसान स्त्री के प्रति अधिक कठोर होता है. वह उसे अपने पांव की जूती सम?ाता है.

कैसे रोका जाए जैंडर के नाम पर भेदभाव

फ्रैंच लेखक सिमोन डि बिभोर अपनी पुस्तक ‘द सैकंड सैक्स’ में बताती हैं कि कोई भी औरत पैदाइशी औरत नहीं होती, वह बनाई जाती है. औरत होना क्या है यह बचपन से ही सिखाया जाता है. इसी तरह मर्द भी पैदाइशी मर्द नहीं होते उन्हें भी बनाया जाता है.

जैंडर सोशल कंस्ट्रक्ट है नैचुरल नहीं है. हम जिस समाज में रहते हैं वह सदियों से पितृसत्ता की मजबूत दीवारों पर खड़ा रहा है. ऐसी दीवारें जो पुरुषों को विशेषाधिकार देती हैं और महिलाओं को सीमाओं में बांध देती हैं. लैंगिक भेदभाव कोई एक दिन की समस्या नहीं बल्कि हमारी रोजमर्रा की सोच, व्यवहार और परवरिश में गहराई से बसी हुई एक परंपरागत सचाई है. अकसर इसे सिर्फ महिलाओं की समस्या सम?ा जाता है लेकिन असल में यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है.

इसे रोकने के लिए जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को बदला जाए. इस के लिए इतिहास से ले कर गणित, साहित्य से ले कर विज्ञान, सभी को बदलना होगा. बच्चों को शुरुआत से ही बताना होगा कि औरतों को किस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. उन के योगदान को लगातार नकारा जाता है. लड़कियों का सशक्तीकरण ऐसे करना होगा कि कुछ बड़ा करती हुई लड़कियां हमें चुभे नहीं.

बेटों को संवेदनशील बनाने की जरूरत

घरपरिवार में बड़ेबुजुर्ग ही बोलते हैं कि तुम्हें बड़ा बनना है, ज्यादा से ज्यादा कमाना है, तुम पर परिवार की जिम्मेदारी है. तुम्हीं से हमारा खानदान आगे बढ़ेगा. वही लड़का जब अच्छे नंबर नहीं ला पाता या बेरोजगार होता है या उसे संतान नहीं होती या वह रिलेशनशिप निभाने में फेल हो जाता है तो उसे लगता है कि चह अच्छा पुरुष साबित नहीं हो पाया. यह बात वह सह नहीं पाता और कई दफा खुद को खत्म कर लेता है. उसे यह नहीं बताया जाता कि अगर कुछ हासिल नहीं हो पाया तो क्या करना चाहिए. दरअसल, पुरुषों को संवेदनशील बनाना होगा. उन्हें भी खुल कर अपनी ऐंग्जाइटी, घबराहट, खामियां या कमजोरियां बताने की आदत डलवानी होगी. उन्हें भी अपनी गलतियां स्वीकार करने की हिम्मत देनी होगी. यहां पुरुषत्व आड़े नहीं आना चाहिए. उन्हें सम?ाना होगा कि यदि वे गलत रास्ते पर हैं तो कोई लड़की या महिला भी उन्हें गाइड कर सकती है, उन्हें गलत कह सकती है या फटकार लगा सकती है.

बेटों को सिखाना होगा कि सहमति क्या है

कंसैंट यानी सहमति का पाठ बेटे को बचपन से ही पढ़ाया जाना चाहिए. ‘न’ नाम की चीज उन के कानों में घोलनी होगी. जब वे न सुनने लगेंगे तो उन्हें सम?ा में आएगा कि केवल इच्छा कर लेने से दुनिया में हर चीज नहीं मिलती. कई घरों में इकलौते लड़के की हर बात मानी जाती है. जब पेरैंट्स न कहेंगे तो उस का नजरिया बदलेगा. उसे महसूस होगा कि मेरी ही तरह दूसरों की भी भावनाएं हैं. वह औरतों के प्रति सम्मान दिखाना शुरू कर देगा. सम्मान करने की बात सिखाई जाती है, सम?ाई जाती है यह अपनेआप नहीं होता.

बेटा घर में बरतन साफ कर दे तो मां ही मना कर देती है. यह हर घर की बात है. जब कभी लड़का बरतन मांजता है तो मां ही मना कर देती है कि लड़के भला बरतन मांजते हैं? यानी कदमकदम पर मां और परिवार के लोग ही बेटे को बताते हैं कि फलां काम पुरुष और फलां काम महिला करती है. ट्रेनिंग घर से ही शुरू होनी चाहिए. ऐसा करने से ही काफी हद तक असमानता कम हो जाएगी. इस से उन में सैक्सुअल फ्रीडम भी आएगी.

लड़की क्यों नहीं बन सकती रोल मौडल

क्या हम बेटे से कभी कहते हैं कि सानिया मिर्जा की लगन और समर्पण देखो. क्या हम कभी कहते हैं कि बेटा तुम्हारी रोल मौडल यह लेडी स्पोर्ट्स पर्सन है या पौलिटिक्स, बिजनैस, मीडिया की यह महिला हस्ती है? लड़कों को स्ट्रौंग फीमेल रोल मौडल की जरूरत है. उन से न सिर्फ लड़कों को सीखने को मिलेगा बल्कि महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान भी पैदा होगा. पेरैंट्स अपने बेटे को वैसी महिलाओं के बारे में बताएं जिन्होंने जीवन में उपलब्धि हासिल की है.

समय आ गया है कि हम अपने दिलोदिमाग से, अपने परिवार और समाज से इस भेदभाव की जड़ों को साफ कर दें और स्त्रीपुरुष के लिए एकसमान माहौल देने की व्यवस्था करें. तभी लड़कियों के साथसाथ लड़के भी एक बेहतर जिंदगी जी पाएंगे.

 ऊंचे ओहदों पर औरतों की कमी

यूएन वूमन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में 113 देशों में कभी भी कोई महिला राज्य या सरकार के प्रमुख के रूप में काम नहीं कर पाई है और आज भी केवल 26 देशों का नेतृत्व कोई महिला कर रही है. 1 जनवरी, 2024 तक केवल 23त्न मंत्री पद महिलाओं के पास थे और 141 देशों में महिलाएं कैबिनेट मंत्रियों के एकतिहाई से भी कम हैं. 7 देशों में तो कैबिनेट में कोई भी महिला प्रतिनिधित्व नहीं करती है. ऐसे में महिलाओं को हर नेतृत्व पदों और सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ये अधिकार देने जरूरी हैं.

जब महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तो उन का सशक्तीकरण होगा और धीरेधीरे समाज में भेदभाव भी कम होगा. इस से एक ऐसा समाज बनने की उम्मीद है जहां हर व्यक्ति को बराबरी और सम्मान के साथ जीने का अवसर मिलेगा.

भारत में लैंगिक असमानता दुनिया के कई देशों की तुलना में ज्यादा है. विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भारत 146 देशों की संख्या में 127 वें स्थान पर है. भारत के कामकाजी क्षेत्रों और नेतृत्व पदों पर लैंगिक असमानता का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि संसद में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 14.72 फीसद है.

हालांकि स्थानीय जगहों में यह भागीदारी 44.4 फीसद है. आर्थिक असमानता का सब से अधिक सामना महिलाएं कर रही हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन वाले रोजगार मिलते हैं. देश के अरबपतियों की सूची में मात्र 9 महिलाएं शामिल हैं. अगर विकास कार्यक्रमों से जुड़े कामों की बात करें तो इस में महिलाओं की भागीदारी 72 फीसद है. समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी है कि हम महिलाओं और सभी जैंडर के लोगों की समस्याओं और चुनौतियों को जानें और समझेंगे.

Gender Discrimination

Siblings Bond: सिबलिंग- टूटे रिश्तों को ऐसे सुधारें

Siblings Bond: यह एक बहुत कड़वा सच है कि पैसा, प्रौपर्टी, द्वेष और जलन के चलते खून के रिश्ते में बंधे भाईबहन भी कई बार एकदूसरे के लिए मेहमान और अनजान हो जाते हैं.

एकदूसरे का हाथ थामे बड़े होने पर भाईबहन शादी होने के बाद अपने खुद के परिवार के चलते कब एकदूसरे के लिए मेहमान हो जाते हैं पता ही नहीं चलता, बचपन में पूरे हक से अपने प्यारे भाई से रक्षाबंधन पर गिफ्ट लेने के लिए बहन जहां अपने भाई पर हक जताते हुए बिना किसी संकोच के राखी का नेग ले लेती है, वहीं बड़े होने के बाद अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त वही भाईबहन एकदूसरे के लिए इतने अजनबी हो जाते हैं कि आपस में 10 बार सोच कर बात करते हैं कि कहीं मुंह से कोई गलत बात न निकल जाए और रिश्ते में दरार न पड़ जाए.

बचपन के साथी भाईबहन जो एकदूसरे का हर राज सीक्रेट रखते थे और अपनी हर बात एकदूसरे से शेयर करते थे, बड़ा होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि वही भाईबहन एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाते हैं, पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर रक्षाबंधन को ध्यान में रख कर.

दिल से जुडे़ रिश्ते

भाईबहनों के रिश्ते में कड़वाहट तभी कदम रखती है जब उन के बीच प्यार के बजाय स्वार्थ, द्वेष, अमीरी और गरीबी का भेदभाव, बहन या भाई का महंगा शो औफ वाला लाइफस्टाइल सच्चे दिल से जुड़े रिश्तों के आड़े आ जाता है. ऐसे में बहुत ही कम भाईबहन होते हैं जो इन सब नकली बातों को साइड में रख कर भाईबहन का रिश्ता प्यार से निभाते हैं. ऐसे प्यार करने वाले भाई या बहन के लिए, जिन्हें पक्का यकीन होता है कि यह बंधन प्यार का बंधन है और कभी नहीं टूटेगा, वे किसी भी हाल में अपना रिश्ता निभाते हैं. लेकिन जो भाई या बहन स्वार्थ के चलते सिर्फ मतलब से रिश्ते निभाते हैं, उन का रिश्ता भी कुछ समय के बाद खत्म जैसा ही हो जाता है.

कई बार इस में गलती भाई या बहन की ही नहीं होती बल्कि मांबाप की भी होती है या भाई और बहन से जुड़े अन्य रिश्ते जैसे भाई की पत्नी और बहन के पति की दखलंदाजी भी भाईबहन के रिश्ते को खराब करने में अहम भूमिका निभाती है.

भाईबहन के रिश्ते में दरार डालने वाले रिश्तेदार

भाईबहन का साधारण सा रिश्ता जिस में ?ागड़े होते हैं लेकिन निबट जाते हैं, गुस्सा होते हैं लेकिन मना लिए जाते हैं, उस वक्त कौंप्लिकेटेड हो जाता है जब किसी तीसरे की ऐंट्री होती है जैसे शादी के बाद बहन उतनी पराई नहीं होती जितना कि भाई पराया हो जाता है. जो भाई शादी से पहले बहन को हर बात पर टोकने वाला, रोकटोक करने वाला दूसरे शब्दों में कहें तो प्रोटैक्ट करने वाला, घर में सब से ज्यादा बहन से प्यार करने वाला होता है, अचानक वह उस वक्त पराया हो जाता है, जब उस की जिंदगी में उस की पत्नी की ऐंट्री हो जाती है.

ऐसे में अगर उस भाई की पत्नी अर्थात भाभी ननद की इज्जत करती है, आवभगत करती है तो भाई भी बहन के साथ अच्छे से पेश आता है, लेकिन अगर कहीं भाभी और ननद में नहीं बनती, भाभी को ननद फूटी आंख नहीं भाती तो भाई भी बहन से कन्नी काटने लगता है. वहीं दूसरी तरफ अगर

जीजा और साले में नहीं जमती तो इस का भी बुरा असर भाईबहन के रिश्ते पर पड़ता है क्योंकि इस के बाद बहन को ससुराल से मायके आने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

कई बार इस रिश्ते में कड़वाहट की वजह खुद उन के मांबाप भी बन जाते हैं जो कई बार अनजाने में भाईबहन में भेदभाव करते हैं, भाई को ज्यादा प्यार और सम्मान, प्रौपर्टी में पूरा हक दे कर और बहन को गरीबी में ही मरने के लिए छोड़ देने के चलते बहन को भाई से प्रौब्लम शुरू हो जाती है और यह रिश्ता ज्यादा खराब हो जाता है.

जरूरी है समझदारी

इन्हीं वजहों से भाईबहन के पवित्र रिश्ते में कड़वाहट और दूरी आने लगती है. बाहरी रिश्ते खून के रिश्ते को कमजोर कर देते हैं. समझदारी के बजाय घमंड और स्वार्थ के चलते भाईबहन का रिश्ता इतना कमजोर हो जाता है कि रक्षाबंधन पर भी राखी के लिए ये भाईबहन मिलने नहीं आते.

ऐसे में बहुत जरूरी है कि समझदारी दिखाते हुए कड़वाहट को भूल कर अपने इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से बिना किसी लालच के निभाएं और रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहार को हंसीखुशी मिल कर पूरे दिल से सैलिब्रेट करें क्योंकि पैसा, पावर आनीजानी चीज है, लेकिन अच्छा रिश्ता हर समय आप की ताकत बन कर सामने आ जाता है, इसलिए भाई और बहन एकदूसरे को अकेला न छोड़ें बल्कि इस रिश्ते में मजबूती लाएं जो किसी के कहने से टूटे नहीं.

Siblings Bond

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें