Holi 2023: सदमा- आखिर कैसा रिश्ता था नेहा और शलभ का? भाग 3

तीसरे दिन जब पीयूष का बुखार उतर गया तो वह औफिस पहुंची. आधा दिन

बीत गया, मगर शलभ ने कोई खोजखबर नहीं ली. पैंडिंग काम ज्यादा होने की वजह से लंच तक वह भी अपनी सीट से उठ नहीं पाई. लंच में जब वह शलभ के कमरे में पहुंची तो वह गायब था. उस के स्टाफ ने बताया कि वह किसी गैस्ट के साथ बाहर गया है. नेहा उदास सी वापस अपनी सीट पर लौट आई. शाम को उस ने शलभ को फोन किया तो उस ने बताया कि वह अभी भी बाहर है सो बात नहीं कर सकता. इसी तरह

2-3 दिन तक वह नेहा को इग्नोर करता रहा. अंत में एक दिन नेहा सुबहसुबह उस के कैबिन में पहुंच कर उस का वेट करने लगी.

शलभ उसे देख कर हौले से मुसकराते हुए हालचाल पूछने लगा. तभी चपरासी 2 कप चाय रख गया.

चाय पीते हुए नेहा ने सवाल किया, ‘‘शलभ याद है उस दिन तुम मु?ो अपने पेरैंट्स से मिलवाने की बात कर रहे थे. आज मेरे पास समय है. शाम वाली मीटिंग कैंसिल हो गई. तुम्हारा भी आज कोई इंगेजमैंट नहीं. कहीं बाहर चलते हैं. मु?ो तुम्हें अपने बारे में कुछ बताना भी था. फिर तुम्हारे पेरैंट्स से भी मिल लूंगी.’’

‘‘सौरी यार पर अब मु?ो तुम्हें अपने पेरैंट्स से मिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं.’’

‘‘मगर क्यों?’’ चौंकते हुए नेहा ने पूछा.

‘‘मैं जिस मकसद से मिलवाना चाहता था वह मकसद ही खत्म हो चुका है,’’ शलभ ने सपाट सा जवाब दिया.

‘‘क्या मैं जान सकती हूं शलभ, तुम मु?ो इस तरह ट्रीट क्यों कर रहे हो? कई दिन से नोटिस कर रही हूं, तुम मु?ो इग्नोर कर रहे हो.’’

‘‘तुम ने मु?ो चीट किया है. मेरे जज्बातों से खेला है. जो बात तुम्हें मु?ो बहुत पहले बता देनी चाहिए थी वह बात मु?ो तुम्हारी सहेली से पता चली…’’ शलभ ने गुस्से में कहा.

‘‘लगता है तुम्हें मेरे बच्चे की बात पता चली है. मगर वह मैं तुम्हें आज खुद बताने वाली थी. जब मैं ने देखा कि तुम मु?ो ले कर सीरियस हो तो मैं खुद…’’

‘‘नहीं नेहा तुम खुद मु?ो कभी नहीं बताती. वैसे भी एक शादीशुदा और बच्चे वाली औरत के साथ मु?ो इस तरह का कोई संबंध नहीं रखना.’’

‘‘शलभ मैं तलाक ले चुकी हूं. मेरी वह शादी बहुत कम उम्र में हुई थी. शादी करने की मेरी उम्र अब है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘आप बताएंगी आप के पति ने तलाक क्यों लिया?’’ शलभ का सवाल था.

‘‘क्योंकि मेरा बेटा एक स्पैशल चाइल्ड है और वह उस की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था,’’ नेहा ने सचाई बताई.

‘‘तो क्या तुम्हें यह लगता है कि मैं इतना मूर्ख हूं कि जिस बच्चे को उस के अपने बाप ने ठुकरा दिया, उस बीमार बच्चे की जिम्मेदारी का बो?ा मैं ढोऊंगा?’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. शलभ मेरा पति कायर था इसलिए अपने ही बच्चे को अपना नहीं सका. रही बात तुम्हारी तो तुम मूर्ख तो हो ही नहीं सकते. जो इंसान इतना गुणाभाग कर किसी रिश्ते को देखता है वह मूर्ख कैसे हो सकता है. मूर्ख तो मैं हूं. मैं ही जज्बातों में बह गई. सच्चे प्यार की उम्मीद करने लगी…’’  कहतेकहते नेहा की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘ये आंसुओं का खेल मु?ा से मत खेलो नेहा. मैं एक प्रैक्टिकल इंसान हूं. किसी और का बो?ा उठाना मेरी फितरत नहीं. अपने पेरैंट्स को मैं किसी दूसरे शख्स का बीमार बच्चा नहीं सौंप सकता. याद रखना आज के बाद हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं. हम दोनों केवल कुलीग हैं और कुछ नहीं,’’ शलभ ने स्पष्ट किया.

‘‘हमारे बीच और कुछ हो भी नहीं सकता. इतना स्वार्थी आदमी मेरे प्यार का हकदार हो ही नहीं सकता…’’ आंखों के आंसू छिपाती नेहा अपने कैबिन में लौट आई.

आज शलभ ने उस का दिल ही नहीं तोड़ा था बल्कि प्यार पर से उस का

विश्वास भी तोड़ दिया था. जिस तरह अचानक शलभ ने उस से हर रिश्ता खत्म कर लिया वह उस के लिए बहुत शौकिंग था. उस से फिर औफिस में बैठा नहीं गया.

नेहा घर आ कर अपना कमरा बंद कर बैठ गई. पीयूष उसे आवाज देता रहा, सूजी उस के लिए चाय बना कर दरवाजा नौक करती रही, फोन बजता रहा, मगर उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. उस के दिमाग में सिर्फ शलभ की कही बातें गूंज रही थीं. उसे सारी दुनिया उन कुछ पलों में सिमटी नजर आ रही थी. वह एक गहरे सदमे में थी.

Valentine’s Special: नहले पे दहला

पूर्णिमा तुझे मनु याद है?’’ मां ने खुशी से पूछा.

‘‘हां,’’ और फिर मन ही मन बोली कि अपने बचपन के उस इकलौते मित्र को कैसे भूल सकती हूं मां, जिस के जाने के बाद किसी और से दोस्ती करने को मन ही नहीं किया.

‘मनु वापस आ रहा है… किसी बड़ी कंपनी का मैनेजर बन कर…’’

‘‘मनु ही नहीं राघव और जया भाभी भी आ रहे हैं,’’ पापा ने उत्साह से मां की बात काटी.

‘‘मैं ने तो राघव से फोन पर कह दिया है कि जब तक आप का अपना घर पूरी तरह सुव्यवस्थित नहीं हो जाता तब तक रहना और खाना हमारे साथ ही होगा.’’

‘‘तो उन्होंने क्या कहा?’’

‘‘कहा कि इस में कहने की क्या जरूरत है? वह तो होगा ही. बिलकुल नहीं बदले दोनों मियांबीवी. और मनु भी पीछे से कह रहा था कि पूर्णिमा से पूछो कुछ लाना तो नहीं है. तब भाभी ने उसे डांट दिया कि पूछ कर कभी कुछ ले कर जाते हैं क्या? बिलकुल उसी तरह जैसे बचपन में डांटा करती थीं.’’

‘‘और मनु ने सुन लिया?’’ पूर्णिमा ने खिलखिला कर पूछा.

‘‘सुना ही होगा, तभी तो डांट रही थीं और इन सब संस्कारों की वजह से उस ने यहां की पोस्टिंग ली है वरना अमेरिका जा कर कौन वापस आता है,’’ पापा ने सराहना के स्वर में कहा. यह सुन कर पूर्णिमा खुशी से झूम उठी. बराबर के घर में रहने वाले परिवार से पूर्णिमा के परिवार का रातदिन का उठनाबैठना था. वह और मनु तो सिर्फ सोने के समय ही अलग होते थे वरना स्कूल जाने से ले कर खेलना, होमवर्क करना या घूमने जाना इकट्ठे ही होता था. आसपास और बच्चे भी थे, लेकिन ये दोनों उन के साथ नहीं खेलते थे. फिर अचानक राघव को अमेरिका जाने का मौका मिल गया. जाते हुए दुखी तो सभी थे, मगर कह रहे थे कि जल्दी लौट आएंगे पी.एचडी. पूरी होते ही. मौका लगा तो बीच में भी एक चक्कर लगा लेंगे.

लेकिन 20 बरसों में आज पहली बार लौटने की बात की थी. उस समय संपर्क साधन आज की तरह विकसित और सुलभ नहीं थे. शुरूशुरू में राघव फोन किया करते थे. नई जगह की मुश्किलें बताते थे यह भी बताते रहते कि जया और मनु लता भाभी और पूर्णिमा को बहुत याद करते हैं. लेकिन नए परिवेश को अपनाने के चक्कर में धीरेधीरे पुराने संबंध कमजोर हो गए. 10 बरस पहले का दुबलापतला मनु अब सजीलारोबीला जवान बन गया था. वह पूर्णिमा को एकटक देख रहा था.

‘‘ऐसे क्या देख रहा है? पूर्णिमा ही है यह,’’ लता बोलीं.

‘‘यही तो यकीन नहीं हो रहा आंटी. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मुटल्ली पूर्णिमा इतनी पतली कैसे हो गई?’’

‘‘वह ऐसे कि तेरे साथ मैं हरदम खाती रहती थी. तेरे जाने के बाद उस गंदी आदत के छूटते ही मैं पतली हो गई,’’ पूर्णिमा चिढ़ कर बोली.

‘‘यानी मेरे जाने से तुझे फायदा हुआ.’’

‘‘सच कहूं मनु तो पूर्णिमा को वाकई फायदा हुआ,’’ महेश ने कहा, ‘‘तेरे जाने के बाद यह किसी और से दोस्ती नहीं कर सकी. किताबी कीड़ा बन गई, इसीलिए प्रथम प्रयास में आईआईएम अहमदाबाद में चुन ली गई और आज इन्फोटैक की सब से कम उम्र की वाइस प्रैजीडैंट है.’’

‘‘अरे वाह, शाबाश बेटा. वैसे महेश, फायदा मनु को भी हुआ. यह भी किसी से दोस्ती नहीं कर रहा था. भला हो सैंडी का… उस ने कभी इस की अवहेलना का बुरा नहीं माना और दोस्ती का हाथ बढ़ाए रखा. फिर उस के साथ यह भी सौफ्टवेयर इंजीनियर बन गया,’’ राघव बोले.

‘‘वरना इसे तो राघव अंकल की तरह काले कोट वाला वकील बनना था और मुझे भी वही बनाना था,’’ पूर्णिमा बोली. ‘‘अच्छा हुआ अंकल आप अमेरिका चले गए.’’सब हंस पड़े. फिर लता बोलीं, ‘‘क्या अच्छा हुआ, यहां रहते तो तू आज तक कुंआरी नहीं होती.’’

‘‘वह तो है लता,’’ जया ने कहा, ‘‘खैर अब आ गए हैं तो हमारा पहला काम इसे दुलहन बनाने का होगा. क्यों मनु?’’

‘‘बिलकुल मम्मी, नेक काम में देर क्यों? चट मंगनी पट शादी रचवाओ ताकि भारतीय शादी देखने के लालच में सैंडी भी जल्दी आ जाए.’’

‘‘यही ठीक रहेगा. इसी बहाने सभी पुराने परिजनों से एकसाथ मिलना भी हो जाएगा,’’ राघव ने स्नेह से पूर्णिमा के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘चल तैयार हो जा बिटिया, सूली पर झूलने को.’’पूर्णिमा ने कहना तो चाहा कि सूली नहीं अंकल, मनु की बलिष्ठ बांहें कहिए. फिर धीरे से बोली, ‘‘अभी तो हम सब को इतने सालों की जमा पड़ी बातें करनी हैं अंकल… आप को यहां सुव्यवस्थित होना है, उस के बाद और कुछ करने की सोचेंगे.’’

‘‘यह बात भी ठीक है, लेकिन बहू के आने से पहले उस की सुविधा और आराम की सही व्यवस्था भी तो होनी चाहिए यानी बहू के गृहप्रवेश से पहले घर भी तो ठीक हो. और भी बहुत काम हैं. तू नौकरी पर जाने से पहले मेरे कुछ काम करवा दे मनु,’’ जया ने कहा.

‘‘मुझे तो कल से ही नौकरी पर जाना है मम्मी पूर्णिमा से करवाओ जो करवाना है.’’

‘‘हां, पूर्णिमा तो बेकार बैठी है न. नौकरी पर तो बस मनु को ही जाना है,’’ पूर्णिमा ने मुंह बनाया, ‘‘मगर आप फिक्र मत करिए आंटी, आप को मैं कोई परेशानी नहीं होने दूंगी.’’

‘‘उस का तो सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि सब से बड़ी परेशानी तो पूर्णिमा आप स्वयं ही हैं,’’ मनु ने चिढ़ाया, ‘‘आप काम में लग जाइए, सारी परेशानी दूर हो जाएगी.’’

‘‘लो, हो गया शुरू मनु महाराज का अपने अधकचरे ज्ञान का बखान,’’ पूर्णिमा ने कृत्रिम हताशा से माथे पर हाथ मारा.

यह देख सभी हंस पड़े.

‘‘इतने बरस एकदूसरे से लड़े बगैर दोनों ने खाना कैसे पचाया होगा? ’’ लता बोलीं.

‘‘सोचने की बात है, झगड़ता तो खैर सैंडी से भी हूं, लेकिन अंगरेजी में झगड़ कर वह मजा नहीं आता, जो अपनी भाषा में झगड़ कर आता है,’’ मनु कुछ सोचते हुए बोला.

पूर्णिमा को यह सुनना अच्छा लगा. मनु का लौटना ऐसा था जैसे पतझड़ और जाडे़ के बाद एकदम बहार का आ जाना और वह भी इतने बरसों के बाद. होस्टल में अपनी रूममैट को कई बार पढ़ते हुए भी गुनगुनाते सुन कर वह पूछा करती थी कि पढ़ाई के समय यह गानाबजाना कैसे सूझता है, सेजल? तो वह कहती थी कि जब तुम्हें किसी से प्यार हो जाएगा न तब तुम इस तरह गुनगुनाने लगोगी. सेजल का कहना ठीक था, आज पूर्णिमा का मन गुनगुनाने को ही नहीं झूमझूम कर नाचने को भी कर रहा था. उस के बाद प्रत्यक्ष में तो किसी ने पूर्णिमा की शादी की बात नहीं की थी, लेकिन जबतब लता और महेश लौकर में रखे गहनों और एफडी वगैरह का लेखाजोखा करने लगे थे. राघव ने भी आर्किटैक्ट बुलाया था, छत की बरसाती तुड़वा कर बहूबेटे के लिए नए कमरे बनवाने को. मनु को नए परिवेश में काम संभालने में जो परेशानियां आ रही थीं, उन्हें मैनेजमैंट ऐक्सपर्ट पूर्णिमा बड़ी सहजता से हल कर देती थी. अब मनु हर छोटीबड़ी बात उस से पूछने लगा था. वह अपने काम के साथ ही मनु के काम की बातें भी इंटरनैट पर ढूंढ़ती रहती थी. एक शाम उस ने मनु को फोन किया कि उसे जो जानकारी चाहिए थी वह मिल गई है. अत: उस का विवरण सुन ले.

‘‘मैं औफिस से निकल चुका हूं पूर्णिमा, तुम भी आने वाली होंगी. अत: घर पर ही बात कर लेंगे,’’ मनु ने कहा.

‘‘मैं तो घंटे भर बाद निकलूंगी.’’

‘‘ठीक है, फिर मिलते हैं.’’

लेकिन जब वह 2 घंटे के बाद घर पहुंची तो मम्मीपापा और अंकलआंटी बातों में व्यस्त थे. मनु की गाड़ी कहीं नजर नहीं आ रही थी.

‘‘मनु कहां है?’’ पूर्णिमा ने पूछा.

‘‘अभी औफिस से नहीं आया,’’ सुनते ही पूर्णिमा चौंक पड़ी कि इतनी देर रास्ते में तो नहीं लग सकती, कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. मगर तभी मनु आ गया.

‘‘बड़ी देर कर दी आज आने में?’’ जया ने पूछा.

‘‘वह ऊपर के कमरों के ब्लू प्रिंट्स सैंडी को भेजे थे न… उस की टिप्पणी के साथ आर्किटैक्ट के पास गया था. वहीं देर लग गई. अब कल से काम शुरू हो जाएगा.’’

पूर्णिमा यह सुन कर हैरान हो गई कि जिसे उन कमरों में रहना है उसे तो ब्लू प्रिंट्स दिखाए नहीं और सैंडी को भेज दिए. फिर पूछा, ‘‘सैंडी आर्किटैक्ट है?’’

‘‘नहीं, मेरी ही तरह सौफ्टवेयर इंजीनियर है.’’

‘‘तो फिर उसे ब्लू प्रिंट्स क्यों भेजे?’’

‘‘क्योंकि उसे ही तो रहना है उन कमरों में.’’

‘‘उसे क्यों रहना है?’’ पूर्णिमा ने तुनक कर पूछा.

‘‘क्योंकि वही तो इस घर की बहू यानी मेरी बीवी है भई.’’

‘‘बीवी है तो साथ क्यों नहीं आई?’’ पूर्णिमा अभी भी इसे मनु का मजाक समझ रही थी.

‘‘क्योंकि वह जिस प्रोजैक्ट पर काम कर रही है उसे बीच में नही छोड़ सकती. काम पूरा होते ही आ जाएगी. तब तक ऊपर के कमरे भी बन जाएंगे और नए कमरों में बहू का गृहप्रवेश धूमधाम से करवाने की मम्मी की ख्वाहिश भी पूरी हो जाएगी.’’

पूर्णिमा को मनु के शब्द गरम सीसे की तरह जला गए. उस ने अपने मातापिता की तरफ देखा. वे भी हैरान थे.

‘‘कमाल है भाभी, सास बन गईं और हमें भनक भी नहीं लगी,’’ महेश ने उलहाने के स्वर में कहा.

‘‘यह कैसे हो सकता है महेश भैया…’’

‘‘हम अभी तक वर्षों पुरानी बातें करते रहे हैं,’’ राघव ने जया की बात काटी, ‘‘इस बीच खासकर अमेरिका में क्या हुआ, उस के बारे में हम ने बात ही नहीं की.’’

‘‘मगर मैं ने तो पहले दिन ही कहा था कि मुझे बहू के गृहप्रवेश से पहले घर ठीकठाक चाहिए.’’

‘‘हम ने समझा आप हमारी बेटी के लिए कह रही हैं,’’ लता ने मन ही मन बिसूरते हुए कहा.

‘‘विस्तार से इसलिए नहीं बताया कि बापबेटे ने मना किया था कि अमेरिका में क्या करते थे या क्या किया बता कर शान मत बघारना…’’

‘‘सफाईवफाई क्या देनी मम्मी, सब को अपनी शादी का वीडियो दिखा देता हूं लेकिन डिनर के बाद,’’ मनु ने बात काटी, ‘‘तू भी जल्दी से फ्रैश हो जा पूर्णिमा.’’

‘‘मुझे तो खाने के बाद कुछ जरूरी काम करना है. मम्मीपापा को दिखा दे. मुझे सीडी दे देना. फुरसत में देख लूंगी.’’

‘‘मेरी शादी की सीडी है पूर्णिमा तुम्हारे औफिस की फाइल नहीं, जिसे फुरसत में देख लोगी,’’ मनु ने चिढ़ कर कहा, ‘‘जब फुरसत हो आ जाना, दिखा दूंगा. चलो, मम्मी खाना लगाओ, भूख लग रही है.’’ पूर्णिमा के परिवार की तो भूख मर चुकी थी, लेकिन नौकर के कई बार कहने पर कि खाना तैयार है, सब जा कर डाइनिंग टेबल के पास बैठ गए.

तभी मनु आ गया, ‘‘ओह, आप खाना खा रहे हैं, मैं फिर आता हूं.’’

‘‘अब आया है तो बैठ जा, खाना हो चुका है,’’ पूर्णिमा बोली.

‘‘अभी किसी ने खाना शुरू नहीं किया और तू कह रही है कि हो चुका. खैर, खातेखाते जो सुनाना है सुना दे,’’ मनु पूर्णिमा की बगल की चेयर पर बैठ गया.

लता और महेश ने चौंक कर एकदूसरे की ओर देखा.

‘‘क्या सुनना चाहते हो?’’ लता स्वयं नहीं समझ सकीं कि उन के स्वर में व्यंग्य था या टीस.

‘‘वही जो सुनाने को पूर्णिमा ने मुझे फोन किया था.’’

‘‘ओह, राजसंस का फीडबैक? काफी दिलचस्प है और वह इसलिए कि उन्होंने अभी तक किसी राजनेता का संरक्षण लिए बगैर अपने दम पर इतनी तरक्की की है.’’

‘‘यानी उन के साथ काम किया जा सकता है?’’

‘‘उस के लिए उन लोगों के विवरण देखने होंगे जो उन के साथ काम कर रहे हैं. चल तुझे पूरी फाइल दिखा देती हूं,’’ पूर्णिमा ने प्लेट सरकाते हुए कहा.

‘‘पहले तू आराम से खाना खा. बगैर खाना खाए टेबल से नहीं उठते. वह फाइल मुझे मेल कर देना. अभी चलता हूं,’’ मनु ने उठते हुए कहा.

‘‘क्यों सैंडी को फोन करने की जल्दी है?’’ लता ने पूछा.

‘‘नहीं आंटी, सैंडी तो अभी औफिस में होगी. वह आजकल ज्यादातर समय औफिस में ही रहती है ताकि काम पूरा कर के जल्दी यहां आ सके. हमें भी ऊपर के कमरे बनवाने में जल्दी करनी चाहिए. पापा को अभी यही समझाने जा रहा हूं,’’ फिर सभी को गुडनाइट कह कर मनु चला गया.

‘‘यह तो ऐसे व्यवहार कर रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है,’’ लता ने मुंह बना कर कहा.

‘‘सच पूछो तो मनु या उस के परिवार के लिए तो कुछ भी नहीं हुआ है और हमारे साथ भी जो हुआ है वह हमारी अपनी सोच, खुशफहमी या गलतफहमी के कारण हुआ है,’’ महेश ने कहा, ‘‘राघव या जया भाभी ने तो प्रत्यक्ष में ऐसा कुछ नहीं कहा. मनु ने तुझ से अकेले में कभी ऐसा कुछ कहा पूर्णिमा?’’

पूर्णिमा ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, गलतफहमी तो हमें ही हुई है. सैंडी को भी तो हम सब लड़का समझते रहे,’’ लता बुझे स्वर में बोलीं, ‘‘लेकिन अब क्या करें?’’

‘‘राघव के परिवार के साथ सामान्य व्यवहार और पूर्णिमा के लिए रिश्ते की बात,’’ महेश का स्वर नर्म होते हुए भी आदेशात्मक था.

पूर्णिमा सिहर उठी, ‘‘नहीं पापा…मेरा मतलब है बातवात मत करिए. मैं शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘साफ कह मनु के अलावा किसी और से नहीं और उस का अब सवाल ही नहीं उठता. मुझे तो लगता है कि न तो राघव और जया भाभी ने तुझे कभी अपनी बहू के रूप में देखा और न ही मनु ने भी तुझे एक हमजोली से ज्यादा कुछ समझा. क्यों लता गलत कह रहा हूं?’’

‘‘अब तो यही लगता है. मनु की असलियत तो पूर्णिमा को ही पता होगी,’’ लता बोलीं.

पूर्णिमा चिढ़ गई, ‘‘या तो हंसीमजाक करता है या फिर अपने काम से जुड़ी बातें. इस के अलावा और कोई बात नहीं करता है.’’

‘‘कभी यह नहीं बताया कि वहां जा कर उस ने तुझे कितना याद किया?’’

‘‘कभी नहीं, अगर ऐसा लगाव होता तो संपर्क ही क्यों टूटता? मनु वहां जा कर जरूर सब से अलगथलग रहा होगा, क्योंकि जितनी अंगरेजी उसे आती थी उस से न उसे किसी की बात समझ आती होगी न किसी को उस की. सैंडी को भी अमेरिकन चालू लड़कों से यह बेहतर लगा होगा, इसलिए दोस्ती कर ली,’’ पूर्णिमा कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘यह तो तूने बड़ी समझदारी की बात कही पूर्णिमा,’’ महेश ने कहा, ‘‘अब थोड़ी समझदारी और दिखा. डा. शशिकांत की तुझ में दिलचस्पी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन तू उन्हें घास नहीं डालती. हालात को देखते हुए मनु नाम की मृगमरीचिका के पीछे भागना छोड़ कर डा. शशिकांत से मेलजोल बढ़ा ताकि हम भी राघव और जया भाभी को यह कह कर सरप्राइज दे सकें कि हम ने तो पूर्णिमा के लिए बहुत पहले से लड़का देख रखा है, बस किसी को बताया नहीं है. अब आप की बहू आ जाए तो रिश्ता पक्का होने की रस्म पूरी कर दें.’’

‘‘हां, यह होगा नहले पे दहला पापा,’’ पूर्णिमा के मुंह से निकला.

Valentine’s Special: कोई अपना- शालिनी के जीवन में भी कोई बहार आने को थी

मोहब्बत से नफरत

धर्म के नाम पर प्रेम का गला किस तरह घोंटा जा रहा है, उस का एक एक्जांपल दिल्ली के पास नोएड़ा में मिला. एक युवती की दोस्ती जिम मालिक से हुई और दोनों में प्रेम पनपने लगा. लडक़ी की शिकायत है कि उस ने अपना नाम ऐसा बताया जिस से धर्म का पता नहीं चलता था पर वह सच बोल रही है, यह मुश्किल है. जिस से प्रेम होता है उस की बहुत सी बातें पता चल जाती हैं खासतौर पर जब उस के घर तक जाना हो जाए.

अगर युवतियां इतनी अंधी हों कि जिस के फ्लैट में अकेले जा रही हैं, उस का आगापीछा उन्हें नहीं मालूम, तो उस से कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में युवती ने बाद में जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश और शादी का झांसा दे कर रेप करने का चार्ज लगा कर लडक़े को गिरफ्तार करा दिया. पूरा मामला संदेह के घेरे में लगता है. यह तो हो ही सकता है कि जब लडक़ी के घरवालों को पता चले कि लडक़ा पैसे वाला जिम मालिक है पर मुसलमान है तो उन्हें विरादरी से आपत्तियां मिलने लगें. जिस तरह का हिंदूमुसलिम माहौल आज बना दिया गया है, उस से लडक़ेलड़कियों को चाहे फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन दोनों के रिश्तेदारों को अवश्य पड़ता है.

आजकल कानून भी ऐसे बना दिए गए हैं कि हिंदूमुसलिम की शादी, जो सिर्फ स्पैशल मैरिज एक्ट में हो सकती है, में मजिस्ट्रेट ही हजार औब्जैक्शन लगा देता है. लडक़ेलडक़ी को कई अवसरों में नो औब्जैक्शन सर्टिफिकेट लाने पड़ेंगे जो बिना परिवार की सहायता से मिलने असंभव हैं. उत्तर प्रदेश तो हिंदूमुसलिम विवाह पर बहुत ही नाकभौं चढ़ाता है. मुसलिम मौलवी भी इस तरह की शादी नहीं चाहते क्योंकि वे भी चाहते हैं कि शादी में उन का कमीशन बना रहे. नए युवा समाज, परिवार व कानून के दबाव को नहीं झेल पाते. दोनों के रिश्तेदारों को धमकियां दी जाने लगती हैं. पुलिस दोनों तरफ के रिश्तेदारों को गिरफ्तार करने की बात करने लगती है. बुलडोजर तो है ही जो शादी के सपनों को कैसे ही एक झपट्टे में तोड़ सकता है.
प्रेम हिंदूमुसलिम दोनों के धर्मों के ठेकेदारों को नहीं भाता. वे चाहते हैं कि शादियां तो धर्म के बिचौलियों से ही तय हों ताकि जिंदगीभर उन्हें घर से कुछ न कुछ मिलता रहे. स्पैशल मैरिज एक्ट में हुई शादी के बच्चों का कोई धर्म नहीं रह जाता है और यह धर्म को कैसे मंजूर होगा. इसलिए वे प्रेम ही नहीं चाहते और शादी पर धर्मांतरण का शिगूफा छेड़ देते हैं.

Mirzapur के एक्टर शाहनवाज का हार्ट अटैक से निधन, शो में बने थे ‘गुड्डू भैया’ के ससुर

बॉलीवुड फिल्मों और टीवी सीरियल्स में काम कर चुके एक्टर शाहनवाज प्रधान अब इस दुनिया में नहीं रहे. महज 56 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनकी जान चली गई. उन्होंने ‘मिर्जापुर’ वेब सीरीज में ‘गुड्डू भैया’ (अली फजल) के ससुर का दमदार किरदार निभाया था. बताया जा रहा है कि वो किसी फंक्शन में थे और वहीं पर उनके सीने में तेज दर्द उठा और वो बेहोश होकर गिर पड़े. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल लाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

 

शाहनवाज को स्ट्रेचर पर हॉस्पिटल लाया गया था

जिस समय Shahnawaz Pradhan को स्ट्रेचर पर हॉस्पिटल लेकर जाया गया, उसी समय वहां पर टीवी एक्ट्रेस सुरभि तिवारी भी मौजूद थीं. वो अपने भाई के इलाज के लिए वहां पर थीं. उन्होंने नवभारत टाइम्स से बताया, ‘मेरा भाई कल शिवरात्रि के लिए कुछ सामान खरीदने गया था. उसका फोन आया कि उसका एक्सीडेंट हो गया है, इसलिए जल्दी आओ. मैं और मम्मी तुरंत हॉस्पिटल (कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी) पहुंचे. वहां पर मेरे भाई के शोल्डर का एक्सरे होना था. उसमें टाइम लग रहा था। इतने में मैंने देखा कि स्ट्रेचर पर शाहनवाज प्रधान जी को लाया गया. उसमें से मेरे एक या दो ही जानकार लोग थे. उन्हें तुरंत अंदर लेकर गए. मेरे भाई और शाहनवाज जी का बेड एकदम अपोजिट था. बीच में थोड़ा-सा ही पार्टिशन था, इसलिए मैं सारी बात सुन पा रही थी.’

 

कुछ महीने पहले ही हुई थी बाई पास सर्जरी

सुरभि तिवारी ने आगे कहा, ‘डॉक्टर बोल रहे थे कि उनका (शाहनवाज प्रधान) पल्स नहीं मिल रहा है. उनका हार्ट बिल्कुल काम नहीं कर रहा है. फिर उनको अंदर लेकर गए बोला कि हम उनको रिवाइव करने की कोशिश कर रहे हैं. हम देखते हैं कि क्या कर सकते हैं. डॉक्टर ने पूछा कि आप लोग कहां थे? किसी ने बताया कि वो किसी फंक्शन में थे, जहां पर उनको कोलैप्स हुआ. बाद में मैंने पूछा कि कैसे हो गया ये? तो बताया कि उनको हार्ट अटैक आया था. थोड़े महीने पहले उनका बाई पास सर्जरी हुआ था.’ बता दें कि सुरभि तिवारी ने शाहनवाज प्रधान के साथ 2-3 टीवी शोज में साथ काम किया था. उन्होंने बताया कि वो बहुत अच्छे इंसान थे. वो मैसेज करते रहते थे. बताया जा रहा है कि उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार आज (18 फरवरी) होगा.

 

सेलेब्स ने कहा- भाई आखिरी सलाम

शाहनवाज के निधन की खबर सुनकर फिल्म जगत में शोक की लहर है. फेमस एक्टर राजेश तैलंग, जोकि खुद ‘मिर्जापुर’ में अहम किरदार निभा चुके हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर दुख जताते हुए लिखा, ‘शाहनवाज भाई आखिरी सलाम!!! क्या गजब के जहीन इंसान और कितने बेहतर अदाकार थे आप. मिर्जापुर के दौरान कितना सुंदर वक्त गुजरा आपके साथ, यकीन नहीं हो रहा.’

तारक मेहता में हुई नये टप्पू की एंट्री,भड़के दर्शक बोलें- ‘बंद करो इसे’

टीवी सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा लगातार किसी न किसी वजह से चर्चा में बना हुआ है. इस सीरियल को टेलीकास्ट होते हुए 14 साल हो गए हैं और इतने समय में इस सीरियल को कई कलाकारों ने अलविदा कह दिया है. एक्टर राज अनादकट (Raj Anadkat) सीरियल में टप्पू का किरदार निभा रहे थे, जो शो को छोड़कर जा चुके हैं और अब तारक मेहता का उल्टा चश्मा में नए टप्पू के रूप में एक्टर नीतीश भलूनी (Nitish Bhaluni) की एंट्री हुई है. कुछ समय पहले ही शो के मेकर्स ने नीतीश की ऑफिशियल एंट्री का ऐलान किया, जिसके बाद से ही सोशल मीडिया पर इस सीरियल के मेकर्स ट्रोल हो रहे हैं.

 

 

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ट्रोल हुए मेकर्स

दरअसल, तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Tarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) को साल 2017 में दिशा वकानी ने अलविदा कहा था, जिसके बाद इस सीरियल को कई पॉपुलर चेहरों ने टाटा बाय बाय कह दिया है. एक समय पर फैंस तक कलाकारों के जाने पर सवाल उठाने लगे थे और इन सब चीजों के बीच राज अनादकट ने भी शो को छोड़ने का फैसला लिया, जिस वजह से दर्शकों का कहना है कि अब तारक मेहता का उल्टा चश्मा को बंद कर देना चाहिए. सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा, ‘कैरेक्टर इतने बदल रहे हैं. शो ही बदल दो यार.’ दूसरे ने लिखा, ‘अरे बंद कर बंद कर शो.’ इसी तरह एक और यूजर ने लिखा, ‘अब कुछ नहीं बचा शो में. बस जेठालाल की वजह से ही टिका हुआ है.’ वहीं, कुछ यूजर्स का यह भी कहना है कि सीरियल कचरा कर दिया.

 

कौन हैं नीतीश भलूनी?

बता दें कि 25 साल के नीतीश भलूनी ने कुछ समय पहले ही एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा है. वह मेरी डोली मेरे अंगना में नजर आए थे. इसके अलावा, उन्होंने पंकज त्रिपाठी की वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस में भी काम किया है. वह सीरीज के कुछ एपिसोड में थे.

शो में जल्द लौटेगी दयाबेन

इसके आगे असित मोदी ने कहा कि अब उनका एक पारिवारिक जीवन है और वो अपने पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता दे रही हैं. इसी वजह से उनका आना मुश्किल लग रहा है। लेकिन अब टप्पू आ गया है. तो अब नई दया भाभी भी जल्दी आएगी. दया भाभी का वही गरबा, डांडिया, सब गोकुलधाम सोसाइटी में शुरू होगा. थोड़ा समय इंतजार कीजिए. दया भाभी के किरदार के लिए कलाकार को ढूंढना भी एक मुश्किल काम है और हमें रोज एपिसोड भी बनाना होता है. इसी वजह से इस पर काम इतना धीरे चल रहा है. लेकिन मैं दर्शकों की मांग को समझता हूं कि दया भाभी को मिस कर रहा हैं. मैं और मेरा परिवार भी मिस करता है. अभी ज्यादा देर नहीं हुई है. अब दया भाभी जल्दी दिखेंगी। बता दें कि दिशा वकानी ने साल 2017 में इस सीरियल को अलविदा कहा था, जिसके बाद से ही वह अपनी निजी जिदंगी में बिजी हैं. एक्ट्रेस दो बच्चों की मां बन गई हैं.

सर्दी में रूखी फेस स्किन की देखभाल

दे खते ही देखते मौसम करवट बदलने लगा है. कड़ाके की ठंड पड़ रही है. बदलाव का यह मौसम हमें सुकून तो देता है पर साथ ही यह चेतावनी भी देता है कि सर्दी में अपनी फेस स्किन की देखभाल करते रहना जरूरी है सर्दी में भी आप का चेहरा रूखेपन का एहसास करा देगा.

घबराने की कोई बात नहीं है. अब बाजार में कई तरह की प्रसाधन सामग्रियां आसानी से मिल जाती हैं जो आप की फेस स्किन के रूखेपन को दूर कर देंगी पर अगर कोरोना के चलते आप बाजार की खाक नहीं छानना चाहती हैं तो घर पर भी कुछ चीजों के इस्तेमाल से अपने फेस की बिगड़ती स्किन को बेहतर बना सकती हैं.

इस बारे में डाइटीशियन और मेकअप आर्टिस्ट नेहा सागर ने बताया, ‘‘हर तरह की फेस स्किन के लिए महिलाएं घर में ही काम आने वाली कई चीजों से फेसमास्क बना सकती हैं.

‘‘अगर आप की औयली स्किन है तो बेसन, हलदी, दही, मुलतानी मिट्टी, टमाटर, खीरा, गुलाबजल और नीबू जैसी चीजों को फेसपैक बनाने के लिए यूज कर सकती हैं.

‘‘मुलतानी मिट्टी या बेसन (1 टेबल स्पून) में कुछ भी सामग्री मिला कर हफ्ते में 2-3 बार लगा सकती हैं. हफ्ते में 2-3 बार एक टमाटर की स्लाइस को फेस पर रब कर के और सूखने पर उसे नौर्मल पानी से धो लें.

‘‘अगर आप की नौर्मल और कौम्बिनेशन स्किन है तो चंदन पाउडर, कच्चा दूध, चावल का आटा, बेसन, गुलाबजल, खीरे के रस या नीबू और दही का इस्तेमाल किया जा सकता है.

‘‘चावल के आटे में बेसन के साथ दूध, दही या गुलाबजल मिला कर हफ्ते में 3-4 बार इस्तेमाल कर सकती हैं.’’

सर्दी आतेआते फेस स्किन सूखी होने लगती है और जिन की स्किन हमेशा सूखी रहती है उन्हें और भी ज्यादा दिक्कत होती है.

ड्राई स्किन के बारे में नेहा सागर ने बताया, ‘‘सूखी फेस स्किन के लिए सब से अच्छा औप्शन शहद होता है. 1-2 टेबल स्पून गुलाबजल, एक टेबल स्पून शहद और 2-3 बूंदें नीबू के रस की (अगर चाहें तो) मिला कर रोजाना 15 मिनट के लिए लगाएं. इस से चेहरे पर चमक आती है और शहद सूखी त्वचा को न्यूट्रिशन देता है.

‘‘इस के अलावा दही में एक चुटकी हलदी मिला कर रोजाना चेहरे पर लगा सकती हैं और बाद में चेहरे को साफ करने के लिए फेसवाश या क्लींजर इस्तेमाल करें या नौर्मल दूध भी यूज कर सकती हैं. इस के अलावा बादाम को दरदरा पीस कर घर में ही स्क्रब बना सकती हैं.

‘‘जिन महिलाओं की सैंसिटिव स्किन होती है उन्हें अपना खास खयाल रखना चाहिए, क्योंकि उन पर बहुत कम चीजें सूट करती हैं. उन्हें भीगे हुए चावल के पानी को टोनर की तरह इस्तेमाल करना चाहिए या चावल के पानी में मुलतानी मिट्टी और चंदन पाउडर मिला कर हफ्ते में 2 बार लगाया जा सकता है.

फैमिली के लिए बनाएं साबूदाना टिक्की

अगर आप भी फलाहार में बनाइए कुछ टेस्टी और हेल्दी बनाना चाहते हैं तो साबूदाना टिक्की आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. आज हम आपको साबूदाना टिक्की की खास रेसिपी बताएंगे, जिसे आप गरबे के दौरान बनाकर अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को सर्व कर सकती हैं.

हमें चाहिए

साबूदाना – आधा कप (6 घंटे भीगा हुआ),

आलू – 02 कप (उबले हुए),

दही– 01 कप फेटा हुआ

कुटु का आटा– 2 बड़े चम्मच,

मूंगफली के दाने– 02 बड़े चम्मच,

हरी मिर्च– 02 बारीक़ कटी हुई

गरम मसाला– 01 छोटा चम्मच,

मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

हरी चटनी– आवश्‍यकतानुसार,

मीठी चटनी– आवश्‍यकतानुसार,

सेंधा नमक– स्वादानुसार,

रिफाइंड तेल– तलने के लिए

बनाने का तरीका

सबसे पहले उबले हुए आलुओं को छील कर मैश कर लें. मूंगफली के दानों को दरदरा पीस लें और दही को अच्‍छी तरह से फेंट लें.

अब एक बड़े बर्तन में मैश किये हुए आलू, भीगा हुआ साबूदाना, पिसे हुए मूंगफली के दाने, कुटु का आटा और सभी मसाले डाल कर अच्‍छे से मिक्स कर लें.

इसके बाद हाथों को पानी में गीला करके एक बड़े नींबू के आकार का मिश्रण लें और उसे गोल बनाकर हथेली के बीच में दबाएं और चपटा कर लें. ऐसे ही सारे मिश्रण की टिक्‍की बना लें.

अब एक कड़ाई में रिफइंड डाल कर गर्म करें. तेल गर्म होने पर आंच धीमी कर दें. तेल में जितनी टिक्‍की आएं, उतनी डालें और उलट-पुलट कर गोल्‍डेन फ्राई कर लें. ऐसे ही सारी टिक्‍की तल लें और गरमागरम चटनी के साथ सर्व करें.

Valentine’s Special: मन का बोझ- क्या हुआ आखिर अवनि और अंबर के बीच

अंबर से उस के विवाह को हुए एक माह होने को आया था. इस दौरान कितनी नाटकीय घटना या कितने सपने सच हुए थे. इस घटनाक्रम को अवनि ने बहुत नजदीक से जाना था. अगर ऐसा न होता तो निखिला से विवाह होतेहोते अंबर उस का कैसे हो जाता? हां, सच ही तो था यह. विवाह से एक दिन पहले तक किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि निखिला की जगह अवनि दुलहन बन कर विवाहमंडप में बैठेगी. विवाह की तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी थीं. सारे मेहमान आ चुके थे. अचानक ही इस समाचार ने सब को बुरी तरह चौंका दिया था कि भावी वधू यानी निखिला ने अपने सहकर्मी विधु से कचहरी में विवाह कर लिया है. सब हतप्रभ रह गए थे. खुशी के मौके पर यह कैसी अनहोनी हो गई थी.

अंबर तो बुरी तरह हैरान, परेशान हो गया था. अमेरिका से उस की बहन शालिनी आई हुई थी और विवाह के ठीक 2 दिन बाद उस की वापसी का टिकट आरक्षित था. मांजी की आंखों में पढ़ी- लिखी, सुंदर बहू के आने का जो सपना तैर रहा था वह क्षण भर में बिखर गया था. वैसे ही अकसर बीमार रहती थीं. अब सब यही सोच रहे थे कि कहीं से जल्दी से जल्दी दूसरी लड़की को अंबर के लिए ढूंढ़ा जाए, लेकिन मांजी नहीं चाहती थीं कि जल्दबाजी में उन के सुयोग्य बेटे के गले कोई ऐसीवैसी लड़की बांध दी जाए.

अंबर के ही मकान में किराएदार की हैसियत से रहने वाली साधारण सी लड़की अवनि तो अपने को अंबर के योग्य कभी भी नहीं समझती थी. वैसे अंबर को उस ने चाहा था, पर उसे सदैव के लिए पाने की इच्छा वह जुटा ही नहीं पाती थी. वह सोचती थी, ‘कहां अंबर और कहां वह. कितना सुदर्शन और शिक्षित है अंबर. इतना बड़ा इंजीनियर हो कर भी पद का घमंड उसे कतई नहीं है. सुंदर से सुंदर लड़की उसे पा कर गर्व कर सकती है और वह तो रूप और शिक्षा दोनों में ही साधारण है.’

अवनि तो एकाएक चौंक ही गई थी मां से सुन कर, ‘‘सुना तुम ने अवनि, अंबर की मां ने अंबर के लिए तुझे मांगा है. चल जल्दी से दुलहन बनने की तैयारी कर और हां…सरला बहन 5 मिनट के लिए तुम से मिलना चाहती हैं.’’ अवनि तो जैसे जड़ हो गई थी. उस का सपना इस प्रकार साकार हो जाएगा, ऐसा तो उस ने सोचा भी न था. अचानक उस की आंखों से आंसू बहने लगे तो उस की मां घबरा गईं, ‘‘क्या बात है, अवनि, क्या तुझे अंबर पसंद नहीं? सच बता बेटी, तू क्यों रो रही है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, बस ऐसे ही दिल घबरा सा गया था.’’ तभी मांजी कमरे में आ गईं, ‘‘अवनि, बता तुझे यह विवाह मंजूर है न? देखो, कोई जबरदस्ती नहीं है. अंबर से भी मैं ने पूछ लिया है. इतने सारे चिरपरिचित चेहरों में मुझे तुम ही अपनी बहू बनाने योग्य लगी हो. इनकार मत करना बेटी.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं, मांजी,’’ इस से आगे अवनि एक शब्द भी न कह सकी और आगे बढ़ कर उस ने मांजी के चरण छू लिए. अगले दिन विवाह भी हो गया. कैसे सब एकदम से घटित हो गया, आज भी अवनि समझ नहीं पाती. वह दिन भी उसे अच्छी तरह याद है जब अंबर की बहन नेहा और अंबर लड़की देखने गए थे. आते ही नेहा ने उसे नीचे से आवाज लगाई थी, ‘‘अवनि दीदी, नीचे आओ.’’

‘‘क्या है, नेहा?’’ नीचे आ कर उस ने पूछा, ‘‘बड़ी खुश नजर आ रही हो.’’ ‘‘खुश तो होना ही है दीदी, अपने लिए भाभी जो पसंद कर के आ रही हूं.’’

‘‘सच, क्या नाम है उन का?’’ ‘‘निखिला, बड़ी सुंदर है मेरी भाभी.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है. बधाई हो नेहा…और आप को भी,’’ पास बैठे मंदमंद मुसकरा रहे अंबर की ओर मुखातिब हो कर अवनि ने कहा था. ‘‘धन्यवाद अवनि,’’ कह कर अंबर दूसरे कमरे में चला गया था.

अंबर की खुशी से अवनि भी खुश थी. कैसा विचित्र प्यार था उस का, जिसे चाहती थी उसे पाने की कामना नहीं करती थी, पर अपने मन की थाह तक वह खुद ही नहीं पहुंच सकी थी. बस एक ही तो चाह थी कि अंबर हमेशा खुश रहे. एक ही घर में रहने के कारण अवनि का रोज ही तो अंबर से मिलना होता था. अंबर के परिवार में थे नेहा, मांजी, अंबर, छोटा भाई सृजन तथा शालिनी दीदी, जो विवाह होने के बाद अमेरिका में रह रही थीं. सृजन बाहर छात्रावास में रह कर पढ़ाई कर रहा था. अंबर तो अकसर दौरों पर रहता था.

पर अंबर को देखते ही अवनि उन के घर से खिसक आती थी. शांत, सौम्य सा व्यक्तित्व था उस का, परंतु उस की उपस्थिति में अवनि की मुखरता, जड़ता का रूप ले लेती थी. वैसे जब कभी भी अनजाने में अंबर की आंखें अवनि को अपने पर टिकी सी लगतीं, वह सिहर जाती थी. जाने कब उसे अंबर बहुत अच्छा लगने लगा था. अंबर के मन तक उस की पहुंच नहीं थी. कभीकभी उसे लगता भी था कि अंबर के मन में भी एक कोमल कोना उस के लिए है. फिर वह सोचने लगती, ‘नहीं, भला अंबर व अवनि (धरती) का भी कभी मिलन हुआ है.’ जब कभी दौरे से लौटने में अंबर को देर हो जाती तो मांजी और नेहा के साथसाथ अवनि भी चिंतित हो जाती थी. कभीकभी उसे खुद ही आश्चर्य होता था कि आखिर वह अंबर की इतनी चिंता क्यों करती है, भला उस का क्या रिश्ता है उस से? कहीं उस की आंखों में किसी ने प्रेम की भाषा पढ़ ली तो? फिर वह स्वयं ही अपने मन को समझाती, ‘जो राह मंजिल तक न पहुंचा सके, उस पर चलना ही नहीं चाहिए.’

अवनि भी तो खुशीखुशी अंबर के विवाह की तैयारियां नेहा के साथ मिल कर कर रही थी. विवाह का अधिकांश सामान नेहा और उस ने मिल कर ही खरीदा था. निखिला की हर साड़ी पर उस की स्वीकृति की मुहर लगी थी. अवनि का दिल चुपके से चटका था, पर उस की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी. आंसू आंखों में ही छिप कर ठहर गए थे. बाबूजी उस के लिए भी लड़का ढूंढ़ रहे थे. पर संयोगिक घटनाओं की विचित्रता को भला कौन समझ सकता है. नेहा और मांजी ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया था. मांजी का तो बहूबहू कहते मुंह न थकता था.

एक अंबर ही ऐसा था जिसे पा कर भी अवनि उस के मन तक नहीं पहुंची थी. शादी के बाद वह कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिखाई दे रहा था. कितना चाहा था अवनि ने कि अंबर से दो घड़ी मन की बातें कर ले. उस के मन पर एक बोझ था कि कहीं अंबर उसे पा कर नाखुश तो नहीं था. वैसे भी परिस्थितियों से समझौता कर के किसी को स्वीकार करना, स्वीकार करना तो नहीं कहा जा सकता. हो सकता है मांजी और शालिनी दीदी ने उस पर दबाव डाला हो या अपनी मां के स्वास्थ्य का खयाल कर के उस ने शादी कर ली हो.

अवनि के परिवार ने विवाह के दूसरे दिन ही अपने लिए दूसरा मकान किराए पर ले लिया था. शालिनी दीदी को भी दूसरे दिन दिल्ली जाना था. अंबर उन्हें छोड़ने चला गया था. मेहमान भी लगभग जा चुके थे.

अवनि मांजी के पास रहते हुए भी मानो कहीं दूर थी. काश, वह किसी भी तरह अंबर के मन तक पहुंच पाती. दिल्ली से लौट कर अंबर अपने दफ्तर के कामों में व्यस्त हो गया था. स्वयं तो अवनि अंबर से कुछ पूछने का साहस ही नहीं जुटा पा रही थी. प्रारंभ में अंबर की व्यस्ततावश और फिर संकोचवश चाह कर भी वह कुछ न पूछ सकी थी. अंबर भी अपने मन की बातें उस से कम ही करता था. इस से भी अवनि का मन और अधिक शंकित हो जाता था कि पता नहीं अंबर उसे पसंद करता है या नहीं.

अंबर शायद मन से अवनि को स्वीकार नहीं कर पाया था. वैसे वह उस के सामने सामान्य ही बने रहने का प्रयास करता था. कभी भी उस ने अपने मन के अनमनेपन को अवनि को महसूस नहीं होने दिया था. ऊपरी तौर से उसे अवनि में कोई कमी दिखती भी नहीं थी, पर जबजब वह उस की तुलना निखिला से करता तो कुछ परेशान हो जाता. निखिला की सुंदरता, योग्यता आदि सभी कुछ तो उस के मन के अनुकूल था. अवनि को अंबर प्रारंभ से ही एक अच्छी लड़की के रूप में पसंद करता था, पर जीवनसाथी बनाने की कल्पना तो उस ने कभी नहीं की थी. सबकुछ कितने अप्रत्याशित ढंग से घटित हो गया था.

दिन बीत रहे थे. धीरेधीरे अवनि का सुंदर, सरल रूप अंबर के समक्ष उद्घाटित होता जा रहा था. घरभर को अवनि ने अपने मधुर व्यवहार से मोह लिया था. मांजी और नेहा उस की प्रशंसा करते न थकती थीं. उस के समस्त गुण अब साथ रहने से अंबर के सामने आ रहे थे, जिन्हें वह पहले एक ही घर में रहने पर भी नहीं देख पाया था. उन दिनों नेहा की परीक्षाएं चल रही थीं और मां भी अस्वस्थ थीं. अवनि के पिताजी एकाएक उसे लेने आ गए थे, क्योंकि उन्होंने नया घर बनवाया था. पीहर जाने की लालसा किस लड़की में नहीं होती, पर अवनि ने जाने से इनकार कर दिया था. मांजी ने कहा था, ‘‘चली जाओ, दोचार दिन की ही तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’

पर अवनि ही तैयार नहीं हुई थी. वह नहीं चाहती थी कि नेहा की पढ़ाई में व्यवधान पड़े. अंबर सोचने लगा, जिस तरह अवनि ने उस के घरपरिवार के साथ सामंजस्य बैठा लिया था, क्या निखिला भी वैसा कर पाती? मांबाप की इकलौती बेटी, धनऐश्वर्य, लाड़प्यार में पली, उच्च शिक्षित, रूपगर्विता निखिला क्या इतना कुछ कर सकती थी? शायद कभी नहीं. वह व्यर्थ ही भटक रहा था. जो कुछ भी हुआ, ठीक ही हुआ. अंबर अब महसूस करने लगा था कि मां ने सोचसमझ कर ही अवनि का हाथ उस के हाथ में दिया था.

फिर एक दिन स्वयं ही अंबर कह उठा था, ‘‘सच अवनि, मैं बहुत खुश हूं कि मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. वैसे तुम से मेरा विवाह होना आज भी स्वप्न जैसा ही लगता है.’’ ‘‘क्या आप को निखिला से विवाह टूटने का दुख नहीं हुआ. कहां निखिला और कहां मैं.’’

‘‘नहीं अवनि, ऐसा नहीं है,’’ अंबर ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘निखिला से जब मेरा रिश्ता तय हुआ तो उस से लगाव भी स्वाभाविक रूप से हो गया था. फिर शादी से एक दिन पूर्व ही रिश्ता टूटने से ठेस भी बहुत लगी थी. वैसे भी निखिला से मैं काफी प्रभावित था. ‘‘सच कहूं, प्रारंभ में मैं एकाएक तुम से विवाह हो जाने पर बहुत प्रसन्न हुआ हूं, ऐसा नहीं था क्योंकि एक ही घर में रहते हुए तुम्हें जानता तो था, पर उतना नहीं, जितना तुम्हें अपनी सहचरी बना कर जाना. तुम्हारे वास्तविक गुण भी तभी मेरे सामने आए. तुम्हें एक अच्छी लड़की के रूप में मैं सदा ही पसंद करता रहा था. तुम्हारी सौम्यता मेरे आकर्षण का केंद्र भी रही थी, पर विवाह करने का मेरा मापदंड दूसरा ही था. इसीलिए मैं शायद तुम्हारे गुणों व नैसर्गिक सौंदर्य को अनदेखा करता रहा था, पर अब मुझे एहसास हो रहा है कि शायद मैं ही गलत था.

‘‘वैसे भी अवनि और अंबर को तो एक दिन क्षितिज पर मिलना ही था,’’ अंबर ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘सच,’’ अंबर की स्पष्ट रूप से कही गई बातों से अवनि के मन का बोझ भी उतर गया था.

Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 4

विनय सर की बात सुन कर सासससुर को तो जैसे सांप सूंघ गया. उन्होंने ऐसी चुप्पी लगाई कि आधे घंटे तक इंतजार के बाद भी विनय सर कोई उत्तर न पा सके और चुपचाप उठ कर चले गए. उस के बाद घर का माहौल अजीब सा हो गया. सासससुर ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी. एक दिन जब ग्रीष्मा स्कूल से लौटी तो सासससुर का आपसी वार्त्तालाप उस के कानों में पड़ा. ‘‘देखो तो हम ने हमेशा इसे अपनी बेटी समझा और आज इस ने हमें ही बेसहारा करने की ठान ली. बेटे के जाते ही इस ने रंगरलियां मनानी शुरू कर दीं और ऊपर से लड़का भी छोटी जाति का. हम ब्राह्मण. क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी? कैसे सब को मुंह दिखाएंगे? इस ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा..सही ही कहा जाता है कि बहू कभी अपनी नहीं हो सकती,’’ कहते हुए सास ससुर के सामने रो रही थीं.

सासससुर की यह मनोदशा देख ग्रीष्मा का मन जारजार रोने को हो चला. वह सोचने लगी कि यह क्या तूफान ला दिया सर ने उस की जिंदगी में. सासससुर शायद अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठे थे. सच भी है वृद्धावस्था में असुरक्षा की भावना के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र से अधिक का दिखने लगता है. वहीं बेटेबहू और नातीपोतों के भरेपूरे परिवार में रहने वाला इंसान अपनी उम्र से कम का ही लगता है.

किसी तरह रात काट कर वह स्कूल पहुंची. बिना कुछ सोचे सीधी सर के कैबिन में पहुंची और बोली, ‘‘कभीकभी इंसान अच्छा करने चलता है और कर उस का बुरा देता है. वही आप ने मेरे साथ किया है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ सर ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘सब गड़गड़ हो गया है. शाम को आप कौफी हाउस में मिलिए. वहां बताती हूं.’’

स्कूल की छुट्टी के बाद कौफी हाउस में उस ने सारी बात सर को बता दी. सर कुछ देर गंभीरतापूर्वक सोचते रहे फिर बोले, ‘‘मैं शाम को घर आता हूं.’’

‘‘आप आएंगे तो वे और अधिक क्रोधित हो जाएंगे…उन्हें आप की जाति से भी तो समस्या है…’’ ‘‘अरे कुछ नहीं होगा, मुझ पर भरोसा रखो, अभी तुम जाओ.’’

लगभग 7 बजे विनय सर घर आए तो हमेशा हंस कर उन का स्वागतसत्कार करने वाले सासससुर आज उन के साथ अजनबियों सा व्यवहार कर रहे थे जैसे वे कोई बहुत बड़े अपराधी हों. पर विनय सर ने सदा की भांति उन के पांव छुए और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद बाबूजी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बाबूजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं बन सकता? यदि आप अपनी बहू को बेटी बना कर इतना प्यार दे सकते हो कि वह अपने से पहले आप के बारे में सोचे, तो क्या मैं जिंदगी भर के लिए आप की बेटी का सहयोगी नहीं बन सकता? मैं मानता हूं कि मेरी जाति आप की जाति से भिन्न है, परंतु क्या जाति ही सब कुछ है बाबूजी? मैं और आप की बहू मिल कर इस घर की सारी जिम्मेदारियां उठाएंगे.’’ ‘‘वह अपनी मरजी की मालिक है. हम ने उसे कब रोका है? उस की जिंदगी उसे कैसे बितानी है, इस का निर्णय लेने के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है,’’ ससुर ने अपनी बात रखते हुए कठोर स्वर में कहा और कमरे में चल गए.

‘‘बहू और कुणाल के जाने से हम तो बिलकुल अकेले हो जाएंगे. इस बुढ़ापे में हमारा क्या होगा? बेटा तो पहले ही साथ छोड़ गया और अब बहू भी…’’ कह कर सासूमां तो सर के सामने ही फूटफूट कर रोने लगीं. विनय सर मां के पास जा कर बोले, ‘‘मां आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आप की बहू और पोते को ले कर अलग रहूंगा. मैं तो यहीं आप सब के साथ इसी घर में रहूंगा. आप की बहू ने तो सर्वप्रथम यही शर्त रखी थी कि मांबाबूजी उस की जिम्मेदारी हैं और वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं तो आप सब के जीवन का हिस्सा भर बनना चाहता हूं.

‘‘मैं सिर्फ आप की बेटी की जिम्मेदारियों में उस का हाथ बंटाना चाहता हूं. मुझ पर भरोसा रखिए. आजीवन आप को निराश नहीं करूंगा. यदि आप मुझे अपनाते हैं तो मुझे एकसाथ कई रिश्ते जीने को मिलेंगे. मेरा भी एक भरापूरा पूरिवार होगा. मेरा इस संसार में कोई नहीं है. कभीकभी अकेलापन काटने को दौड़ता है. मैं तो आप का बेटा बन कर रहना चाहता हूं. आप के जीवन की समस्त परेशानियों को अपने ऊपर ले कर आप का जीवन खुशियों से भर देना चाहता हूं. परंतु यह सब होगा तभी जब आप और बाबूजी की अनुमति होगी,’’ कह कर विनय सर बाहर चले गए. कुछ विचार करते हुए ससुर विश्वनाथ अपनी पत्नी से बोले, ‘‘मुझे लगता है हमें इन दोनों की शादी करा देनी चाहिए.’’

‘‘कैसी बातें करते हो? हम ब्राह्मण और वह नीची जाति का… नहीं, मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा,’’ सास कुछ उत्तेजित स्वर में बोलीं.

‘‘जाति को खुद से चिपका कर क्या मिलेगा हमें? ऊंचीनीची जाति से क्या फर्क पड़ता है हमें? हमारा तो बुढ़ापा अच्छा कटना चाहिए. बेचारी बहू कब तक दे पाएगी हमारा साथ. दोनों कमाएंगे और मिल कर जिम्मेदारियां उठाएंगे तभी तो हम चैन से रह पाएंगे.’’

‘‘यह बात तो आप की सही है… हमें जाति से क्या करना. इंसान तो विनय अच्छा ही है. हमें मातापिता सा मान भी देता है,’’ सास ने भी अपने पति के सुर में सुर मिलाते हुए कहा. अगले दिन रविवार था, सुबहसुबह ही विश्वनाथ ने विनय को फोन कर के बुला लिया. जैसे ही विनय आए औपचारिक वार्त्तालाप के बाद वे बोले, ‘‘बेटा, हम ने तुम्हें गलत समझा. शायद हम स्वार्थी हो गए थे. क्या करें बेटा बुढ़ापा ऐसी चीज है जो आदमी को स्वार्थी बना देती है.

‘‘वृद्ध सब से पहले अपनी सुरक्षा और हितों के बारे में सोचने लगते हैं. हम ने भी अपनी बेटे जैसी बहू के भविष्य के बारे में न सोच कर सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचा, जबकि उस ने सदा पहले हमारे बारे में सोचा. कौन कहता है कि बहू कभी बेटी नहीं हो सकती? मेरी बहू तो मिसाल है उन लोगों के लिए जो बहू और बेटी में फर्क करते हैं. ‘‘इस घर की बहू होने के बाद भी उस ने सदा बेटे की ही भांति सारे फर्ज निभाए हैं.

आज तक उस ने बस दुख ही दुख देखा है और आज जब तुम उस की झोली में खुशियां डालना चाहते हो, उस की जिम्मेदारियां बांटना चाहते हो, तो हम उस के मातापिता ही उस के बैरी हो गए. बस मेरी बेटी को सदा खुश रखना,’’ कह कर विश्वनाथ जी ने विनय सर के आगे हाथ जोड़ दिए.

परदे की ओट में खड़ी ग्रीष्मा सासससुर का यह बदला रूप देख कर हैरान थी. पर अंत भला तो सब भला सोच दौड़ कर अपने सासससुर के गले लग गई. ‘‘हम आप को कभी निराश नहीं करेंगे,’’ कह कर विनय सर और ग्रीष्मा ने झुक कर दोनों के जब पैर छुए तो विश्वनाथ और उन की पत्नी ने खुश हो कर अपने आशीष भरे हाथ उन की पीठ पर रख दिए.

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