26 January Special story

26 January Special story
अगलेकुछ दिनों में कुछ होने वाला था. मैं चारों पैरों पर खड़ा हो कर ताकने की कोशिश कर रहा था. घर की चौकीदारी तो मेरा ही काम है न. हर जने की आवाज पहचानता हूं. मिनी की सारी सहेलियों को जानता हूं. मालिकमालकिन का दुलारा हूं और मिनी तो कई बार कह देती है कि मैं तीसरा बेटा हूं उन का. उन की बातें चाहे समझ न आएं पर चेहरा तो पढ़ ही सकता हूं न.
‘‘मिनी, घर पर दोस्तों का जमघट न लगा लेना. अंजलि या रिया को बुलाना हो तो सोने के लिए बुला लेना और किसी को नहीं.’’
‘‘ओह मम्मी, मैं छोटी बच्ची थोड़े ही हूं. औफिस जाने लगी हूं. सचमुच इतनी हिदायतें देने की जरूरत है क्या?’’
शेखर ने फौरन मिनी को हमेशा की तरह पुचकारा, ‘‘माया, मिनी बड़ी हो गई है, यह जानती है कैसे रहना है. न्यू ईयर का समय है, बच्चे भी तो ऐंजौय करेंगे. जब हम दोनों बाहर जा रहे हैं तो यह भी घर में अकेली क्यों रहे… दोस्त आ भी जाएंगे तो बुरा क्या है?’’
‘‘मेरे सामने इस के फ्रैंड्स आते ही हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं पर मेरे पीछे से आने में मुझे चिंता रहती है, साफ बात है. राहुल भी दोस्तों के साथ गोवा चला गया वरना परेशानी की कोई बात ही न होती.’’
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मिनी ने अब लाड़ से माया के गले में हाथ डाल दिया, ‘‘ओके मम्मी. आप आराम से जाओ… जमघट नहीं लगेगा. खुश?’’
माया ने भी मिनी का गाल चूम लिया. मैं वहीं खड़ा यह रोचक दृश्य देख रहा था. शेखर ने मेरे सिर पर हाथ फेरा तो मैं भी पूंछ हिलाता हुआ उन से लिपट गया.
शेखर और माया हर साल तो न्यू ईयर पर मुंबई में घर पर ही रहते थे पर इस बार माया को न्यू ईयर पर कुछ दोस्तों के साथ गोवा जाना था.
राहुल भी औफिस से छुट्टी ले कर गोवा जा चुका है. उसे वैसे भी कोई ज्यादा रोकताटोकता नहीं है. अब यह मिनी… शैतान लड़की… हर साल न्यू ईयर पार्टी अंजलि के घर होती है. वहीं सब बच्चे इकट्ठा होते हैं. मिनी की एक बात मुझे पसंद है. उसे बाहर से अच्छा अपने घर पर दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद है. उस में भी माया मना कर रही है. गलत बात है. बस, न्यू ईयर पर मिनी अंजलि के घर न चली जाए वरना मैं अकेला रह जाऊंगा. वैसे आज तक अकेला नहीं रहा.
शेखर और माया चले गए. मिनी ने मुझे गोद में बैठा लिया. लिपट गई मुझ से. कैसे जान लेती है न मेरे मन की बात. बोली, ‘‘डौंट वरी बडी, तू अकेला नहीं रहेगा. मैं कहीं नहीं जाऊंगी. घर पर पार्टी करेंगे.’’
मैं मन ही मन हंसा. बडी नाम रखा था मिनी ने मेरा. अपना नाम पसंद है मुझे. मिनी सोफे पर पसर गई. मैं भी वहीं फर्श पर लेट गया. उस ने फोन स्पीकर पर रखा और चहकी, ‘‘अंजलि, गुड न्यूज. न्यू ईयर पार्टी इस बार मेरे घर पर.’’
‘‘अरे वाह, अंकलआंटी गए?’’
‘‘हां. बोल, किसेकिसे बुलाना है?’’
‘‘वही अपना पूरा ग्रुप.’’
‘‘ठीक है, डिनर और्डर करेंगे, मूवी देखेंगे… सब शाम को आ जाओ. तुम ही सब से बात कर लो.’’
मेरे कान खड़े हुए मूवी. ओह, यह मिनी की बच्ची फिर ‘ओम शांति ओम’ लगाएगी. इतनी बड़ी फैन जो है शाहरूख की. इस का मूड अच्छा हो तो यही मूवी देखती है. चलो ठीक है. शेखर और माया के हर साल के टीवी के न्यू ईयर के प्रोग्राम से तो अच्छा ही कटेगा मेरा समय.
उन दोनों की टीवी की पसंद के प्रोग्राम से परेशान हो चुका हूं. जब से शेखर रिटायर हुए हैं पूरा दिन दोनों ‘सावधान इंडिया’ या ‘क्राइम पैट्रोल’ देखते हैं. उस के बाद दोनों बातें भी वैसी ही करने लगे हैं. देखा था न, अभी जाते हुए मिनी को कैसे समझा रहे थे कि जमाना खराब है, कोई किसी का नहीं, दोस्त ही दुश्मन होते हैं, किसी पर भी विश्वास नहीं करना वगैरावगैरा.
वह तो अच्छा है मिनी एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल रही थी. यह क्राइम पैट्रोल का ज्ञान है, मिनी जानती है वरना तो पार्टी हो ही न पाती. इस के दोस्त तो बहुत अच्छे हैं. जब भी आते हैं कैसा यंग माहौल हो जाता है. वाह, आज की रात धमाल रहेगा… मजा आएगा. अभी सो लेना चाहिए.
जैसे ही आंख लगी, मिनी संजय के साथ मेन्यू डिस्कस करने लगी, शेखर और माया घर पर नहीं होते तो मिनी का फोन स्पीकर पर रहता है, इसलिए मैं सब आराम से सुनता हूं. राहुल भी स्पीकर पर रखता है. उस की भी सब बातें मुझे पता हैं. गोवा दोस्तों के साथ नहीं गया है गर्लफ्रैंड प्रीति के साथ गया है और यह सिर्फ मैं जानता हूं. बडी सब जानता है.
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मिनी जोरशोर से पार्टी की तैयारी में लग गई है. न… न… कामवाम में नहीं, बस सोफे पर लेट कर फोन करने में. मिनी का बस चले तो पार्टी भी सोफे पर लेट कर निबटा लें. लेट कर फोन पर वीडियो, शो देखना या कोई किताब पढ़ना उस का शौक है पर बहुत मस्ती है उस में… मूड अच्छा हो तो मुझे बैठने ही नहीं देगी… इतना खेलेगी… क्या खेलती है? बताऊं? बुद्धू बनाती है मुझे.
इसी सोफे पर लेटीलेटी बारबार बौल फेंकती रहती है और
‘बडी जाओ, बौल लाओ… शाबाश’ कहती रहती है. कभी इधर फेंकेंगी, कभी उधर… कभी डाइनिंग टेबल के नीचे तो कभी सोफे के नीचे… पागल बनाती है पर मजा भी आता है. मुंबई के इन फ्लैट्स में यही खेल सकते हैं.
मिनी खाने का और्डर दे रही है. मेरे कान खड़े हो गए. यहां घर में सब वैजिटेरियन हैं, राहुल कभीकभी मेरे लिए कुछ नौनवैज पैक करवा लाता है. किसी को पता नहीं है कि वह बाहर नौनवैज खाने लगा है. बस, मुझे पता है. मुझे स्मैल आ जाती है कि जनाब बाहर नौनवैज उड़ा कर आए हैं. हां, तो जिस दिन राहुल मेरे लिए नौनवैज पैक करवा कर लाता है, अपनी पार्टी हो जाती है. वैसे माया के हाथ की सादी दाल और रोटी में भी स्वाद है पर रोजरोज… चेंज मुझे भी चाहिए.
मिनी फाइनल कर रही है… पिज्जा, चिकन बिरयानी, वेज बिरयानी, कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम… मुझे खास इंट्रैस्ट नहीं आया. खैर, चिकन बिरयानी चलेगी. दालरोटी से तो बैटर ही रहेगी.
मिनी मेरे ऊपर गिरती हुए लिपट गई. हो गई इस की मस्ती शुरू. ‘‘बडी, पार्टी है. मजा आएगा… तेरे लिए चिकन बिरयानी, ठीक है?’’
मैं ने पूंछ हिला दी. हंसा, मिनी का हाथ चाट लिया.
‘‘चल, अब लंच करते हैं, फिर सोएंगे, शाम को फिर फ्रैश रहेंगे.’’
मिनी हम दोनों का खाना ले आई. दाल में भिगो कर रोटी के टुकड़े मेरे बरतन में मुझे दिए, खुद भी अपनी प्लेट ले कर बैठ गई. मिनी कुछ चीजों में सीधी है… जो भी माया बनाती है, चुपचाप खा लेती है. राहुल को खिला कर देखो दाल और रोटी, देखते ही कहता है कि क्या मैं बीमार हूं मां? उस समय मुझे जोर से हंसी आती है.
खाना खा कर हम दोनों सोने चले गए. बहुत सालों बाद दिन में 2 घंटे जम कर सोया, यह नींद रोज मेरे नसीब में कहां. ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पैट्रोल’ की आवाजें सुनी हैं कभी? हर कोने में छिप कर लेट कर देख लिया… सो नहीं पाता.
शाम को मिनी मुझे बाहर घुमाने ले गई. सोसायटी की आंटियां मिनी से पूछ रही हैं कि और मिनी,
न्यू ईयर पार्टी कहां है? और शैतान मिनी कितना भोला मुंह बना कर कह रही है, ‘‘पार्टी नहीं है आंटी, घर पर ही हूं.’’
ये माया की सहेलियां हैं न… ये आंटियां नहीं, रिपोर्टर होती हैं. मिनी नहाधो कर तैयार हो रही है. दोस्तों के फोन आते रहे. सब खुश हैं… पार्टी के लिए एक घर खाली मिल गया है. 8 बजे सब आ गए. संजय, अंजलि, रोमा, टोनी, मयंक, रिया, नेहा, आरती… सब अच्छे लगते हैं मुझे.
टोनी ने पहला काम जमीन पर ही बैठ कर मुझ से खेलने का किया, ‘‘हैलो बडी, मिस यू यार.’’
यही कहता है वह हमेशा. मैं ने भी कहा, ‘‘मिस यू टू, तुम सब जल्दी आया करो… पर बोल नहीं पाता तो मेरी बात तो मुंह में ही रह जाती है न. सब मुझे ‘हैलो बडी’ कह कर प्यार कर रहे थे.’’
सैल्फी की शौकीन आरती ने सब से पहले मेरे साथ कई फोटो लिए, मैं ने भी
अच्छे पोज दिए, मुझे तो आदत हो गई है. राहुल व मिनी के सारे दोस्त मेरे साथ सैल्फी लेते हैं. तब मुझे स्टार जैसा फील होता है.
9 बजे तक खाने की डिलिवरी हो गई, रोमा ने कहा, ‘‘सुनो, खाना गरम है. पहले खा लें?’’
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मिनी की चिंता सब से अलग होती है. बोली, ‘‘रातभर पार्टी करेंगे. दोबारा भूख लग आई तो?’’
संजय ने कहा, ‘‘न्यू ईयर का टाइम है, फिर मंगवा लेंगे.’’ खाने के पैकेट खुल गए. मेरे बरतन में सब से पहले मिनी ने चिकन बिरयानी परोसी. थैंक्यू मिनी, कहते हुए मैं टूट पड़ा. बहुत बढि़या सारी खत्म कर दी. सब बच्चे ड्राइंगरूम में खा रहे थे.
मयंक ने पूछा, ‘‘बडी पिज्जा चाहिए?’’
मैं वहां से हट गया. बिरयानी के बाद पिज्जा कौन खाएगा. मुंह का स्वाद अच्छा था.
मिनी सब को समझा रही थी, ‘‘सुनो, सब लोग प्लीज 1-1 चीज कूड़ेदान में डालना…’’ सब अपनेअपने बरतन धोपोंछ कर रखना. मम्मी को बताना नहीं है कि हम ने पार्टी की है. उन के सामने पार्टी हो तो उन्हें ठीक लगता है. उन के पीछे से पार्टी हो तो उन्हें चिंता हो जाती है कि पता नहीं क्याक्या होता होगा.
रिया ने कहा, ‘‘डौंट वरी, हम सब संभाल लेंगे.’’ 10 बजे तक धीरेधीरे खाते हुए सब ने मजेदार गप्पें मारीं. कितनी अलग है इन की दुनिया. हलकीफुलकी मजेदार बातें… मूवीज की, नए गानों की… अपनेअपने औफिस की मजेदार बातें. मुझे यह साफ समझ आया कि संजय रिया का बौयफ्रैंड है, टोनी आरती का. बस, बाकी सब में अच्छी मजबूत दोस्ती है. सब ने मिल कर 1-1 चीज समेट दी.
मिनी ने कहा, ‘‘सुबह 8 बजे तक सब चले जाना वरना 9 बजे लता आंटी काम के लिए आएंगी… वे मम्मी को सब बता देंगी.’’
‘‘हांहां, डौंट वरी. आज पार्टी के लिए घर मिल गया, इतना बहुत है. न्यू ईयर पर होटलों की वेटिंग बहुत लंबी रहती है. अब आराम से खाना तो खाया… अब टाइमपास करेंगे.’’
मिनी बोली, ‘‘चलो, मूवी देखें कोई.’’
मेरे कान खड़े हो गए. कोई मूवी क्या? यह पक्का ‘ओम शांति ओम’ लगाएगी, इस का अच्छा मूड हो और यह यह मूवी न देखे… डायलौग रट गए हैं मुझे. सब अपनीअपनी पसंद बताने लगे, मैं आराम से बैठ गया, जानता हूं किसी की नहीं चलेगी. मिनी शाहरूख के अलावा किसी की मूवी नहीं देखेगी. 20 मिनट बाद तय हुआ कि ‘ओम शांति ओम’ देखी जाएगी.
देखा? वही हुआ जो मुझे सुबह से पता था. शैतान मिनी. हमेशा कैसे भोली सूरत बना कर अपनी बात मनवा लेती है… प्यारी है, दोस्त
प्यार करते हैं उसे. मूवी का नाम सुनते ही मैं मालिक और मालकिन के बैड के नीचे घुस
कर यह सोच कर लेट गया. शायद वहां आवाज कम आए.
टोनी आवाज देने लगा, ‘‘बडी आओ, मूवी देखें… कहां हो यार?’’
मैं ने कहा, ‘‘रहने दो भाई, तुम ही देख लो, तुम ने शायद एक बार ही देखी होगी… मुझे बख्शो. मैं मिनी के साथ ही रहता हूं.’’
मयंक भी आवाज दे रहा है, ‘‘कम,
बडी कम.’’
‘‘ओह, जाना पड़ेगा. कोई बुलाता है तो जाना ही पड़ता है. मैं ड्राइंगरूम में बच्चों के पास जा कर खड़ा हो गया. मयंक ने मुझे अपने से लिपटा लिया, ‘‘आओ, बडी, मूवी देखेंगे.’’
मैं ने कहा, ‘‘मुझे एक भी सीन नहीं देखना इस मूवी का. मुझे पूरी मूवी रट गई है, अब तो मिनी के अच्छे मूड से डर लगने लगा है. मुझे माफ करो.’’
अजी कहां, मिनी ने मेरे पास फर्श पर ही अपना तकिया रख लिया. लेट गई. बोली, ‘‘आ जा बडी, तेरे बिना मूवी देखने में मुझे मजा नहीं आता.’’
अब तो कहीं छिप कर बैठ नहीं सकता न. मूवी शुरू हो गई. मैं आंखें बंद किए लेटा तो था पर कानों में डायलौग तो पड़ने ही थे. अगर शाहरूख खान की मूवी के डायलौग का इम्तिहान हो तो मैं ही फर्स्ट आऊंगा और मिनी को श्रेय दूंगा. 12 बजने में 2 मिनट पर टीवी बंद कर दिया गया. फिर हैप्पी न्यू ईयर के शोर से ड्राइंगरूम गूंज उठा. सब एक दूसरे के गले मिल रहे थे. मुझे भी सब ने हैप्पी न्यू ईयर कहा. बच्चों में मैनर्स हैं.
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रोमा चिल्लाते हुए बोली, ‘‘अब थोड़ा डांस हो जाए.’’
मुझे पता है रोमा को डांस का शौक है. एक दिन बता रही थी कि उस ने डांस क्लास जौइन की है. मैं तो बहुत किनारे जा कर बैठ गया. डांस तो देखना था. मुझे इन बच्चों का डांस देखने में मजा आता है. ड्राइंगरूम का फर्नीचर एक तरफ कर जगह बना ली गई. मुझे पता था मिनी कौन सा म्यूजिक लगाएगी, यही तो सुनती है आजकल. बादशाह के गाने…
वैसे उसे और कर्णप्रिय मधुर गाने भी पसंद हैं पर फिर वही बात, उस का मूड अच्छा हो तो आप शाहरूख की मूवीज और बादशाह के गानों से बच ही नहीं सकते. बच्चे बढि़या डांस कर रहे हैं. यह टोनी… थोड़ा मोटा है पर डांस अच्छा कर लेता है. सब रोमा के स्टैप कौपी कर रहे हैं. वह सीखती है न, सब को नएनए स्टैप बता रही है हमारी मिनी. उसे किसी के डांस से मतलब नहीं. उस का अपना ही डांस होता है. कोई उसे तो कौपी कर ही नहीं सकता. कुछ भी करती है, अच्छा करती है.
अब डांस शुरू हो गया तो जल्दी नहीं रुकेगा. बीचबीच में कोल्ड ड्रिंक पी जाती, फिर शुरू हो जाते. 3 बजे तक डांस किया सब ने. बहुत मजा आया. वैसे तो मिनी माया के बताए घर के 2 काम करने में थक जाती है, पर इस समय देखो, अच्छा है… बच्चे मेरे सामने हैं. अच्छी पार्टी है. नहीं तो हर बार न्यू ईयर पर टीवी के बोरिंग प्रोग्राम.
डांस के बाद जिसे जो जगह समझ आई, वहीं सो गया. मिनी के बैड पर 3
लड़कियां… बाकी नीचे चादर बिछा कर सो गईं. शेखर व माया के बैडरूम में लड़के सो गए. सब इंतजाम देख मैं भी ड्राइंगरूम में फर्श पर बिछे अपने बैड पर सो गया. टोनी सोफे पर ही लेटा था, उस के खर्राटों से मेरी नींद खुलती रही. सब को पता था टोनी खर्राटे लेता है, इसलिए उसे सोफे पर सुलाया गया था, पर मैं तो फंस गया न.
मिनी के 7 बजे के अलार्म से भगदड़ सी मची. मिनटों में पूरा घर जैसे था वैसे व्यवस्थित कर दिया गया. एक बार फिर एकदूसरे को हैप्पी न्यू ईयर कहते हुए सब अपनेअपने घर चले गए. मिनी मुझे बाहर घुमा लाई. फिर लताबाई आ गई. मिनी ने लताबाई को भी न्यू ईयर विश किया. लता बाई ने पूछा, ‘‘मिनी, घर पर ही थी? कहीं गई नहीं? फ्रैंड्स लोग आए क्या?’’
‘‘नहीं, आंटी.’’
‘‘पार्टी नहीं की?’’
‘‘नहीं आंटी,’’ मिनी ने मुझे आंख मारते हुए ताली दी तो मैं ने भी आंख मारते हुए अपना पंजा उठा दिया.
‘‘ओह बडी, आई लव यू,’’ मिनी मुझ से लिपट गई, ‘‘लव यू टू, मिनी.’’
मिनी ने मेरे कान में पूछा, ‘‘बडी, मजा आया न पार्टी में?’’
‘‘हां, बहुत,’’ मैं ने जोरजोर से अपनी पूंछ हिला दी. युवा कहकहों से गूंजते घर में, हंसतेखेलते, डांस देखते मेरे नए साल की शुरुआत काफी अच्छी थी.
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social story in hindi
लेखक- शोभा बंसल
सिमरन के पांव आज जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस के होमस्टे को 15 दिन के लिए बुक जो कर लिया गया था.
वैसे तो यह उत्साह उस में हमेशा से ही बना रहता है, क्योंकि पुडुचेरी में सिम्मी होमस्टे अपनेपन और पंजाबियत के लिए जो प्रसिद्ध है.
चंडीगढ़ से कोई डाक्टर राजीव यहां कौंफ्रेंस पर आ रहे थे और वह कुछ दिन यहां पर अपनी पत्नी के साथ रहने वाले थे, सो होमस्टे में स्पेशल तैयारियां चल रही थीं.
वैसे भी सिमरन का चंडीगढ़ से पुराना नाता रहा है, तो उस का उत्साह देखते ही बनता था. वजह, इस चंडीगढ़ से कितनी खट्टीमीठी यादें जुड़ी हैं. अतीत के पन्ने फड़फड़ा उठे.
पंजाब के नाभा की रहने वाली सिमरन कभी अपने दारजी और बेबे की आंखों का तारा थी. सिमरन, मतलब जिसे इज्जत से याद किया जाए. पर उस ने तो ऐसा कारनामा किया है कि शायद पीढ़ियों तक कोई भी उस के खानदान में सिमरन का नाम भूल कर भी नहीं लेगा. उस का तो जीतेजी उस की यादों के साथ और उस के नाम के साथ शायद पिंडदान कर दिया गया था. उस ने लंबी सांस खींचते सोचा, क्यों कट्टरपंथी होते हैं परिवार वाले?
सिमरन के स्कूल पास करने के बाद उस के मातापिता ने बड़े अरमानों और नसीहतों के साथ उसे आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ भेज दिया.
खुलेखुले माहौल ने भोलीभाली सिमरन को अलग ही दुनिया में ला पटका. यह तो पहला पड़ाव था. पता नहीं ऐसे कितने ही पड़ाव उसे अभी देखने थे.
अब कालेज उस के लिए पढ़ाई के साथ आजादी और मौजमस्ती का अड्डा भी था. तब लड़कियों का इज्जत व मान भी था. अगर रैगिंग और छेड़छाड़ होती भी थी तो हेल्दी तरीके से. आज की तरह अनहेल्दी एटमोस्फेयर न था.
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अकसर जब उस की खूबसूरती पर लड़के फब्ती कसते तो ऊपर से तो वह बेपरवाह रहती, पर अंदर ही अंदर उसे अपने रूप पर फख्र महसूस होता.
एक दिन जब वह अपने रूममेट स्नेहा के साथ लाल फुलकारी दुपट्टा पहन कालेज पहुंची, तो अचानक
‘लाल छड़ी मैदान में खड़ी…’
का कोरस बज उठा.
गुस्से में उस ने जो पलट कर देखा तो सब शरारती लड़के सीटियां मारने लगे. तभी एक सीनियर ने सब को हाथ के इशारे से रोका. उस हरी आंखों वाले नौजवान ने आगे बढ़ कर डायलौग मारा, “कुड़िए तेरी मंगनी हो गई, तो फिर चाय पार्टी दे.”
यह सुन सिमरन के गाल शर्म से लाल हो उठे और उस ने फुलकारी से अपना मुंह ढक लिया.
यह देख उस सीनियर ने बड़ी अदा से फिल्मी अंदाज में गाना शुरू कर दिया, “रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर, जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर…”
सिमरन ने गुस्से में पैर पटक कर जो जाना चाहा, तो उस ने सिमरन के पैरों में झुक कर अदा से बैठते हुए नया तराना शुरू किया, “अभी ना जाओ छोड़ कर, के दिल अभी भरा नहीं…”
और कुछ सीनियर लड़केलड़कियां स्नेहा, सिमरन और उस हरी आंखों वाले सीनियर के चारों तरफ घेरा डाल इस छेड़छाड़ का मजा लेने लगे और मिल कर गाने लगे, “कहां चल दिए इधर तो आओ हमारे दिल को यूं ना तड़पाओ.”
तभी किसी ने कहा, “पैट्रिक, भागो. प्रिंसिपल सर इधर ही आ रहे हैं.”
ऐसा सुनते ही सारे सीनियर खिसक लिए.
उस हरी आंखों वाले पैट्रिक की शरारत अकसर सिमरन के जेहन में आ कर उसे गुदगुदा जाती.
फिर एक दिन वह रिकशे में बैठ कर सैक्टर 17 जा रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल उस की बगल से गुजरी और हेलमेट पहने किसी नौजवान ने फब्ती कसी, “अगर चुन्नी लेने का इतना ही शौक है तो ढंग से लिया करो. नहीं तो किसी दिन गले में फांसी का फंदा बन जाएगी…”
जब तक वह कुछ रिएक्ट करती और अपनी चुन्नी संभालती, तब तक उस के गले से चुन्नी फिसल कर रिकशे के पहिए में फंस गई.
यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ कि उस की चीख निकल गई. लोग जब तक इकट्ठे होते, तब तक पैट्रिक ने अपना हेलमेट उतार उस की चुन्नी को पहिए से अलग किया और रिकशे वाले को पैसे दे रफादफा होने को कहा. फिर आंखें तरेर कर सिमरन को अपने साथ मोटरसाइकिल पर बैठा होस्टल वापस ले आया.
सिमरन को याद हो आया,
“बेबे सही कहती थी, चुन्नी जमीन को छूनी नहीं चाहिए. चुड़ैल चिमट जाती हैं.”
शायद उस की चुन्नी के सहारे इश्क चुड़ैल उस से चिपट चुकी थी.
वह तो बस पैट्रिक की हरी आंखों में डूबने को उतावली थी. जितना वह पैट्रिक को पाने की, छूने की कोशिश करती, उतना ही वह पता नहीं क्यों परेशान हो जाता और शादी से पहले ऐसे संबंधों को गलत बताता. वह उस के इस व्यवहार पर वारीवारी हो जाती.
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आज वह महसूस कर रही है कि सच में कुछ इनसान अंदर और बाहर से कितने अलग होते हैं. पता नहीं, कब गिरगिट की तरह रंग बदल ले. वक्त भी तो गिरगिट की तरह रंग बदलता है.
उन दिनों धीरेधीरे उन दोनों के बीच दोस्ती परवान चढ़ने लगी. अब पढ़ाई के साथ सिमरन और पैट्रिक कल्चर क्लब के एक्टिव मेंबर बन चुके थे.
उस की रूममेट स्नेहा ने उसे कई बार पैट्रिक के साथ ज्यादा नजदीकियां न बढ़ाने का इशारा भी किया. पर उसे उस की ईर्ष्या समझ सिमरन ने अनसुना कर दिया, क्योंकि सिमरन पर तो जैसे पैट्रिक की हरी आंखों का सम्मोहन छाया था. उस में आए बदलाव को उस की बेबे ने भी महसूस किया और उस की शादी के लिए दारजी पर दबाव डालना शुरू कर दिया.
इधर समय ने करवट ली. उन के कालेज के इंटर कालेज फेस्टिवल में उन दोनों का ‘हीररांझा’ नाटक देख एक प्रोड्यूसर ने उन्हें अपनी अगली पिक्चर में नायकनायिका बनाने का औफर दिया और अपना विजिटिंग कार्ड थमा दिया.
अब वे दोनों इस विजिटिंग कार्ड के पंखों पर सवार हो यथार्थ की दुनिया से सपनों की दुनिया में विचरने लगे.
इधर दोनों के फाइनल्स हुए, उधर सिमरन की शादी कपूरथला की जानीमानी अमीर पार्टी से पक्की हो गई.
पैट्रिक को भी केरल वापस आ कर चाय बागान संभालने का हुक्ममनामा मिला. दोनों के ही नायकनायिका बन दुनिया के दिलों पर राज करने के सपने चकनाचूर हो गए.
न तो सिमरन पक्की गृहस्थन बनना चाहती थी और न ही पैट्रिक चाय बागान का मालिक – एक ठेठ व्यापारी.
तभी जैसे उस की तंद्रा को तोड़ते नीचे रिसेप्शन से मैसेज मिला कि मिस्टर और मिसेज राजीव पहुंच गए हैं. अपने को एक बार शीशे में निहार सिमरन नीचे भागी.
होमस्टे का स्टाफ अतिथियों के लिए फ्रेश ड्रिंक्स और आरती का थाल ले कर स्वागत की पूरी तैयारी के साथ खड़ा था. पहला इंप्रेशन अगर अच्छा रहा तो खुदबखुद उस के होमस्टे की पब्लिसिटी हो जाएगी.
यह सोच कर सिमरन के होठों पर स्मित मुसकान आ गई. पर, जैसे ही उस ने राजीव दंपती को देखा तो लगा मानो पैरों तले जमीन निकल गई हो और उस के होठों पर आई मुसकान मानो वहीं जम गई. उस के सामने तो उस की कालेज के जमाने की रूममेट स्नेहा अपने पति डाक्टर राजीव के साथ खड़ी थी.
इधर स्नेहा भी सिमरन को यों यहां पुडुचेरी में होमस्टे की मालकिन देख ठगी सी रह गई. यह तो पैट्रिक के साथ मुंबई भाग गई थी. फिर यहां कैसे…?
इधर सिमरन ने भी वक्त की नब्ज देख गर्मजोशी से स्नेहा का हाथ पकड़ा और उस के गले लग गई.
डाक्टर राजीव ने स्नेहा की तरफ सवालिया निगाहों से देखा, तो उस ने इशारे से सब बाद में बताने को कहा. शायद वो यह नहीं देख पाए कि उस का इशारा करना सिमरन की निगाह से नहीं छुप पाया था.
एकबारगी तो सिमरन के चेहरे का रंग उड़ गया. कहीं उस का अतीत उस के सुखद और शांत वर्तमान और भविष्य पर हावी हो कर उथलपुथल न कर दे. फिर जब डाक्टर राजीव रिसेप्शन पर पेपर वर्क पूरा कर रहे थे, तो सिमरन ने स्नेहा का हाथ दबाते हुए उस के कान में कहा, “डा. राजीव को मेरे बारे में कुछ भी बताने से पहले मेरे से मिल लेना, प्लीज.”
उस दिन डा. राजीव की पुडुचेरी के एक आश्रम में कौंफ्रेंस थी, तो स्नेहा पुरानी सखी सिमरन से मिलबैठ बातें करने का बहाना बना वहीं होमस्टे में रुक गई. क्योंकि सिमरन का अतीत जानने की उस को भी उत्सुकता थी.
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उधर पुडुचेरी के सूर्यास्त की लालिमा सदैव ही सिमरन को उदास और एकाकी करती आई है. आज वह अपने कमरे में बैठ चाह कर भी अपनी इस अवसाद भरी सोच से बाहर नहीं निकल पा रही थी.
स्नेहा ने उसे अतीत के गहरे अंधेरे कुएं में जो धकेल दिया था. तभी स्नेहा ने हौले से दरवाजा थपथाया. अपने व्यथित मन को सहेज सिमरन ने प्रोफेशनल होस्ट और दोस्त की इमेज पहन ली.
स्नेहा ने कमरे में इधरउधर झांकते हुए पूछा, “पैट्रिक कहां है?”
सिमरन ने फीकी मुसकान के साथ कहा कि वह यहां अपनी बेटी के साथ अकेली ही रहती है और यह होमस्टे उस का ही है.
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आंखें फाड़फाड़ कर मैं उस का चेहरा देखती रह गई. शोभा के मुंह से ऐसी बातें कितनी विचित्र और बेतुकी सी लग रही हैं, मैं सोचने लगी. जिस औरत ने पूरी उम्र दिखावा किया, अभिनय किया, किसी भी भाव में गहराई नहीं दर्शा पाई उसी को आज गहराई दरकार क्यों कर हुई? यह वही शोभा है जो बिना किसी स्वार्थ के किसी को नमस्कार तक नहीं करती थी.
‘‘देखो न, अभी उस दिन सोमेश मेरे लिए शाल लाए तो वह इतनी तारीफ करने लगी कि क्या बताऊं…पापा इतनी सुंदर शाल लाए, पापा की पसंद कितनी कमाल की है. पापा यह…पापा वह,’’ शोभा अपनी बहू चारू के बारे में कह रही थी, ‘‘सोमेश खुश हुए और कहने लगे कि शोभा, तुम यह शाल चारू को ही दे दो. मैं ने कहा कि इस में देनेलेने वाली भी क्या बात है. मिलबांट कर पहन लेगी. लेकिन सोमेश माने ही नहीं कहने लगे, दे दो.
‘‘मेरा मन देने को नहीं था. लेकिन सोमेश के बारबार कहने पर मैं उसे देने गई तो चारू कहने लगी, ‘मम्मी, मुझे नहीं चाहिए, यह शेड मुझ पर थोड़े न जंचेगा, आप पर ज्यादा जंचेगा.’
‘‘मैं उस की बातें सुन कर हैरान रह गई. सोमेश को खुश करने के लिए इतनी तारीफ कर दी कि वह भी इतराते फिरे.’’
भला तारीफ करने का अर्थ यह तो नहीं होता कि आप को वह चीज चाहिए ही. मुझे याद है, शोभा स्वयं जो चीज हासिल करना चाहती थी उस की दिल खोल कर तारीफ किया करती थी और फिर आशा किया करती थी कि हम अपनेआप ही वह चीज उसे दे दें.
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हम 3 भाई बहन हैं. सब से छोटा भाई, शोभा सब से बड़ी और बीच में मैं. मुझे सदा प्रिय वस्तु का त्याग करना पड़ता था. मैं छोटी बहन बन कर अपनी इच्छा मारती रही पर शोभा ने कभी बड़ी बहन बन कर त्याग करने का पाठ न पढ़ा.
अनजाने जराजरा मन मारती मैं इतनी परिपक्व होती गई कि मुझे उसी में सुख मिलने लगा. कुछ नया आता घर में तो मैं पुलकित न होती, पता होता था अगर अच्छी चीज हुई तो किसी भी दशा में नहीं मिलेगी.
‘‘एक ही बहू है मेरी,’’ शोभा कहती, ‘‘क्याक्या सोचती थी मैं. मगर इस के तो रंग ही न्यारे हैं. कोई भी चीज दो, इसे पसंद ही नहीं आती. एक तरफ सरका देगी और कहेगी नहीं चाहिए.’’
शोभा मेरी बड़ी बहन है. रक्त का रिश्ता है हम दोनों में मगर सत्य यह है कि जितना स्वार्थ और दोगलापन शोभा में है उस के रहते वह अपनी बहू से कितना अपनापन सहेज पाई होगी मैं सहज ही अंदाजा लगा सकती हूं.
चारू कैसी है और उसे कैसी चीजें पसंद आती हैं यह भी मैं जानती हूं. मैं जब पहली बार चारू से मिली थी तभी बड़ा सुखद सा लगा था उस का व्यवहार. बड़े अपनेपन से वह मुझ से बतियाती रही थी.
‘‘चारू, शादी में पहना हुआ तुम्हारा वह हार और बुंदे बहुत सुंदर थे. कौन से सुनार से लिए थे?’’
‘‘अरे नहीं, मौसीजी, वे तो नकली थे. चांदी पर सोने का पानी चढ़े. मेरे पापा बहुत डरते हैं न, कहते थे कि शादी में भीड़भाड़ में गहने खो जाने का डर होता है. आप को पसंद आया तो मैं ला दूंगी.’’
कहतीकहती सहसा चारू चुप हो गई थी. मेरे साथ बैठी शोभा की आंखों को पढ़तीपढ़ती सकपका सी गई थी चारू. बेचारी कुशल अभिनेत्री तो थी नहीं जो झट से चेहरे पर आए भाव बदल लेती. झुंझलाहट के भाव तैर आए थे चेहरे पर, उस से कहां भूल हुई है जो सास घूर रही है. मौसी अपनी ही तो हैं. उन से खुल कर बात करने में भला कैसा संकोच.
‘‘जाओ चारू, उधर तुम्हारे पापा बुला रहे हैं. जरा पूछना, उन्हें क्या चाहिए?’’ यह कहते हुए शोभा ने चारू को मेरे पास से उठा दिया था. बुरा लगा था चारू को.
चारू के उठ कर जाने के बाद शोभा बोली, ‘‘मेरी दी हुई सारी साडि़यां और सारे गहने चारू मेरे कमरे में रख गई है. कहती है कि बहुत महंगी हैं और इतनी महंगी साडि़यां वह नहीं पहनेगी. अपनी मां की ही सस्ती साडि़यां उसे पसंद हैं. सारे गहने उतार दिए हैं. कहती है, उसे गहनों से ही एलर्जी है.’’
शोभा सुनाती रही. मैं क्या कहती. एक पढ़ीलिखी और समझदार बहू को उस ने फूहड़ और नासमझ प्रमाणित कर दिया था. नाश्ता बनाने का प्रयास करती तो शोभा सब के सामने बड़े व्यंग्य से कहती, ‘‘नहीं, नहीं बेटा, तुम्हें हमारे ढंग का खाना बनाना नहीं आएगा.’’
‘‘हर घर का अपनाअपना ढंग होता है, मम्मी. आप अपना ढंग बताइए, मैं उसी ढंग से बनाती हूं,’’ चारू शालीनता से उत्तर देती.
‘‘नहीं बेटा, समझा करो. तुम्हारे पापा और अनुराग मेरे ही हाथ का खाना पसंद करते हैं.’’
अपने चारों तरफ शोभा ने जाने कैसी दीवार खड़ी कर रखी थी जिसे चारू ने पहले तो भेदने का प्रयास किया और जब नहीं भेद पाई तो पूरी तरह उसे सिरे से ही नकार दिया.
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‘‘कोई भी काम नहीं करती. न खाना बनाती है न नाश्ता. यहां तक कि सजतीसंवरती भी नहीं है. अनुराग शाम को थकाहारा आता है, सुबह जैसी छोड़ कर जाता है वैसी ही शाम को पाता है. मेरे हिस्से में ऐसी ही बहू मिलने को थी,’’ शोभा कहती.
‘‘कल चारू को मेरे पास भेजना. मैं बात करूंगी.’’
‘‘तुम क्या बात करोगी, रहने दो.’’
‘‘किसी भी समस्या का हल बात किए बिना तो नहीं निकलेगा न.’’
शोभा ने साफ शब्दों में मना कर दिया. वह यह भी तो नहीं चाहती थी कि उस की बहू किसी से बात करे. मैं जानती हूं, चारू शोभा के व्यवहार की वजह से ही ऐसी हो गई है.
‘‘बस भी कीजिए, मम्मी. मुझे भी पता है कहां कैसी बात करनी चाहिए. आप के साथ दम घुटता है मेरा. क्या एक कप चाय बनाना भी मुझे आप से सीखना पड़ेगा. हद होती है हर चीज की.’’
चारू एक बार हमसब के सामने ही बौखला कर शोभा पर चीख उठी थी. उस के बाद घर में अच्छाखासा तांडव हुआ था. जीजाजी और शोभा ने जो रोनाधोना शुरू किया कि उसी रात चारू अवसाद में चली गई थी.
अनुराग भी हतप्रभ रह गया था कि उस की मां चारू को कितना प्यार करती हैं. यहां तक कि चाय भी उसे नहीं बनाने देतीं. नाश्ता तक मां ही बनाती हैं. बचपन से मां के रंग में रचाबसा अनुराग पत्नी की बात समझता भी तो कैसे.
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‘‘देखो, शालिनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि यदि साल में एक बार तुम से पैसे मांगूं तो तुम मुझ से लड़ाई मत किया करो.’’ ‘‘साल में एक बार? तुम तो एक बार में ही इतना ज्यादा हार जाते हो कि मैं सालभर तक चुकाती रहती हूं.’’
शालिनी की व्यंग्यभरी बात सुन कर राजीव थोड़ा झेंपते हुए बोला, ‘‘अब छोड़ो भी. तुम्हें तो पता है कि मेरी बस यही एक कमजोरी है और तुम्हारी यह कमजोरी है कि इतने सालों में भी मेरी इस कमजोरी को तुम दूर नहीं कर सकीं.’’ राजीव के तर्क को सुन कर शालिनी भौचक्की रह गई. राजीव जब चला गया तो शालिनी सोचने लगी कि उस के जीवन की शुरुआत ही कमजोरी से हुई थी. एमए का पहला साल भी वह पूरा नहीं कर पाई थी कि उस के पिता ने राजीव के साथ उस की शादी की बात तय कर दी. राजीव पढ़ालिखा था और देखने में स्मार्ट भी था.
सब से बड़ी बात यही थी कि उस की 40 हजार रुपए महीने की आमदनी थी. शालिनी ने तब सोचा था कि वह अपने मातापिता से कहे कि वे उसे एमए पूरा कर लेने दें, पर राजीव को देखने के बाद उसे स्वयं ऐसा लगा था कि बाद में शायद ऐसा वर न मिले. बस, वहीं से शायद राजीव के प्रति उस की कमजोरी ने जन्म लिया था. उसे आज लगा कि विवाह के बाद भी वह राजीव की मीठीमीठी बातों व मुसकानों से क्यों हारती रही.
शादी के बाद शालिनी की वह पहली दीवाली थी. सुबहसुबह ही जब राजीव ने उस से कहा कि 10 हजार रुपए निकाल कर लाना तो शालिनी चकित रह गई थी कि कभी भी 1-2 हजार रुपए से ज्यादा की मांग न करने वाले राजीव ने आज इतने रुपए क्यों मांगे. शालिनी ने पूछा, ‘‘क्यों?’’
‘‘लाओ यार,’’ राजीव हंस कर बोला था, ‘‘जरूरी काम है. शाम को काम भी बता दूंगा.’’ राजीव की रहस्यपूर्ण मुसकराहट देख कर शालिनी ने समझा था कि वह शायद उस के लिए नई साड़ी लाएगा. शालिनी दिनभर सुंदर कल्पनाएं करती रही. पर जब शाम के 7-8 बजने पर भी राजीव घर नहीं लौटा तो दुश्चिंताओं ने उसे आ घेरा. तरहतरह के बुरे विचार उस के मन में आने लगे, ‘कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. किसी ने राजीव की बाइक के आगे पटाखे छोड़ कर उसे घायल तो नहीं कर दिया.’
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8 बजने के बाद इस विचार से कि घर की दहलीज सूनी न रहे, उस ने 4 दीए जला दिए. पर उस का मन भयानक कल्पनाओं में ही लगा रहा. पूरी रात आंखों में कट गई पर राजीव नहीं आया. हड़बड़ा कर जब वह सुबह उठी थी तो अच्छी धूप निकल आई थी और उस ने देखा कि दूसरे पलंग पर राजीव सोया पड़ा है. उस के पास पहुंची, पर तुरंत ही पीछे भी हट गई. राजीव की सांसों से शराब की बू आ रही थी. तभी शालिनी को रुपयों का खयाल आया. उस ने राजीव की सभी जेबें टटोल कर देखीं पर सभी खाली थीं.
‘तो क्या किसी ने राजीव को शराब पिला कर उस के रुपए छीन लिए?’ उस ने सोचा. पर न जाने कितनी देर फिर वह वहीं खड़ीखड़ी शंकाओं के समाधान को ढूंढ़ती रही थी और आखिर में यह सोच कर कि उठेंगे तब पूछ लूंगी, वह काम में लग गई थी. दोपहर बाद जब राजीव जागा तो चाय देते समय शालिनी ने पूछा, ‘‘कहां थे रातभर? डर के मारे मेरे प्राण ही सूख गए थे. तुम हो कि कुछ बताते भी नहीं. क्या तुम ने शराब पीनी भी शुरू कर दी? वे रुपए कहां गए जो तुम किसी खास काम के लिए ले गए थे?’’
शालिनी ने सोचा था कि राजीव झेंपेगा, शरमाएगा, पर उसे धोखा ही हुआ. शालिनी की बात सुन कर राजीव मुसकराते हुए बोला, ‘‘धीरेधीरे, एकएक सवाल पूछो, भई. मैं कोई साड़ी खरीदने थोड़े ही गया था.’’ ‘‘क्या?’’ शालिनी चौंक कर बोली थी.
‘‘चौंक क्यों रही हो? हर साल हम एक दीवाली के दिन ही तो बिगड़ते हैं.’’ ‘‘तो तुम जुआ खेल कर आ रहे हो? 10 हजार रुपए तुम जुए में हार गए?’’ वह दुखी होते हुए बोली थी.
तब राजीव ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘अरे यार, सालभर में एक ही बार तो रुपया खर्च करता हूं. तुम तो साल में 5-6 हजार रुपयों की 4-5 साड़ीयां खरीद लेती हो.’’ शालिनी ने सोचा कि थोड़ी ढील दे कर भी वह राजीव को ठीक कर लेगी, पर यही उस की दूसरी कमजोरी साबित हुई.
पहले 10 हजार रुपए पर ही खत्म हो जाने वाली बात 20 हजार रुपए तक पहुंच गई, जिसे चुकाने के लिए अगली दीवाली आ गई थी. पिछली बार तो उस ने छिपा कर बच्चों के लिए 10 हजार रुपए रखे थे, पर राजीव उन्हीं को ले कर चल दिया. जब राजीव रुपए ले कर जाने लगा तो शालिनी ने उसे टोकते हुए कहा था, ‘कम से कम बच्चों के लिए ही इन रुपयों को छोड़ दो,’ पर राजीव ने उस की एक न मानी.
उसी दिन शालिनी ने सोच लिया था कि अगली दीवाली पर इस मामले को वह निबटा कर ही रहेगी.
शाम को 5 बजे राजीव लौटा. बच्चों ने उसे खाली हाथ देखा तो निराश हो गए, पर बोले कुछ नहीं. शालिनी ने उन्हें बता दिया था कि पटाखे उन्हें किसी भी हालत में दीए जलने से पहले मिल जाएंगे. राजीव ने पहले कुछ देर तक इधरउधर की बातें कीं, फिर शालिनी से पूछा, ‘‘क्यों, हमारी मां के घर से आए हुए पटाखे यों ही पड़े हैं न?’’
शालिनी ने कहा, ‘‘पड़े थे, हैं नहीं.’’ ‘‘क्या मतलब?’’
‘‘मैं ने कामवाली के बच्चों को दे दिए.’’ ‘‘पर क्यों?’’
‘‘उस के आदमी ने उस से रुपए छीन लिए थे.’’ राजीव ने कुछ सोचा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो यह बात है. घुमाफिरा कर मेरी बात पर उंगली रखी जा रही है.’’
‘‘देखो, राजीव, मैं ने आज तक कभी ऊंची आवाज में तुम्हारा विरोध नहीं किया. तुम्हें खुद ही मालूम है कि तुम्हारी आदतें क्याक्या गजब ढा सकती हैं.’’ शालिनी की बात सुन कर राजीव झुंझला कर बोला, ‘‘ठीक है, ठीक है. मुझे सब पता है. अभी तुम्हारा बिगड़ा ही क्या है? तुम्हें किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ा है न?’’
शालिनी ने कहा, ‘‘यही तो डर है. कल कहीं मुझे कामवाली की तरह किसी और के सामने हाथ न फैलाना पड़े.’’ ऐसा कह कर शालिनी ने शायद राजीव की कमजोर रग पर हाथ रख दिया था. वह बोला, ‘‘बकवास बंद करो. पता भी है क्या बोल रही हो? जरा से रुपयों के लिए इतनी कड़वी बातें कह रही हो.’’ ‘‘जरा से रुपए? तुम्हें पता है कि साल में एक बार शराब पी कर बेहोशी में तुम हजारों खो कर आते हो. तुम्हें तो बच्चों की खुशियां छीन कर दांव पर लगाने में जरा भी हिचक नहीं होती. हमेशा कहते हो कि साल में एक बार ही तुम्हारे लिए दीवाली आती है. कभी सोचा है कि मेरे और बच्चों के लिए भी दीवाली एक बार ही आती है? कभी मनाई है कोई दीवाली तुम ने हमारे साथ?’’ शालिनी के मुंह से कभी ऐसी बातें न सुनने वाला राजीव पहले तो हक्काबक्का खड़ा रहा. फिर बिगड़ कर बोला, ‘‘अगर तुम मुझे रुपए न देने के इरादे पर पक्की हो तो मैं भी अपने मन की करने जा रहा हूं.’’ और जब तक शालिनी राजीव से कुछ कहती, वह पहले ही मोटरसाइकिल निकालने चला गया.
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शालिनी सोचने लगी कि इन 11 सालों में भी वह नहीं समझ पाई कि हमेशा मीठे स्वरों में बोलने वाला राजीव इस तरह एक दिन में बदल सकता है. ‘कहीं राजीव दीवाली के दिन दोस्तों के सामने बेइज्जती हो जाने के डर से तो नहीं खेलता. लगता है अब कोई दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा,’ शालिनी ने तय किया.
उधर मोटरसाइकिल निकालने जाता हुआ राजीव सोच रहा था, ‘वह क्या करे? पटाखे ला कर देगा तो उस की नाक कट जाएगी. शालिनी रुपए भी नहीं देगी, उसे इस का पता था. अचानक उसे अपने मित्र अक्षय की याद आई. क्यों न उस से रुपए लिए जाएं.’ वह मोटरसाइकिल बाहर निकाल लाया. तभी ‘‘कहीं जा रहे हैं क्या?’’ की आवाज सुन कर राजीव चौंका. उस ने देखा, सामने से अक्षय की पत्नी रमा और उस के दोनों बच्चे आ रहे हैं.
‘‘भाभी, तुम? आज के दिन कैसे बाहर निकल आईं?’’ उस ने मन ही मन खीझते हुए कहा. ‘‘पहले अंदर तो बुलाओ, सब बताती हूं,’’ अक्षय की पत्नी ने कहा.
‘‘हां, हां, अंदर आओ न. अरे इंदु, प्रमोद, देखो तो कौन आया है,’’ मोटरसाइकिल खड़ी करते हुए राजीव बोला. इंदु, प्रमोद भागेभागे बाहर आए. शालिनी भी आवाज सुन कर बाहर आ गई, ‘‘रमा भाभी, तुम, भैया कहां हैं?’’
‘‘बताती हूं. पहले यह बताओ कि क्या तुम लोग एक दिन के लिए मेरे बच्चों को अपने घर में रख सकते हो?’’ शालिनी ने तुरंत कहा, ‘‘क्यों नहीं. पर बात क्या है?’’
रमा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बात यह है शालिनी कि तुम्हारे भैया अस्पताल में हैं. परसों उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. दोनों टांगों में इतनी चोटें आई हैं कि 2 महीने तक उठ कर खड़े नहीं हो सकेंगे. और सोचो, आज दीवाली है.’’
राजीव ने घबरा कर कहा, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और आप ने हमें बताया तक नहीं?’’ रमा ने कहा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मेरे जेठजेठानी यहां आए हुए हैं. अब ये अस्पताल में पड़ेपड़े कह रहे हैं कि पहले ही मालूम होता तो उन्हें बुलाता ही नहीं. कहते हैं तुम लोग जा कर घर में रोशनी करो. मेरा तो क्या, किसी का भी मन इस बात को नहीं मान रहा.’’
राजीव और शालिनी दोनों ही जब चुपचाप खड़े रहे तो रमा ही फिर बोली, ‘‘अब मैं ने और उन के भैया ने कहा कि हमारा मन नहीं है तो वे कहने लगे, ‘‘मैं क्या मर गया हूं जो घर में रोशनी नहीं करोगी? आखिर थोड़ी सी चोटें ही तो हैं. बच्चों के लिए तो तुम्हें करना ही पड़ेगा.’’
‘‘मैं सोचती रही कि क्या करूं. तुम लोगों का खयाल आया तो बच्चों को यहां ले आई. तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’ इंदु, जो रमा की बातें ध्यान से सुन रही थी, राजीव से बोली, ‘‘पापा, आप राकेश, पिंकी के लिए भी पटाखे लाएंगे न?’’
राजीव चौंक कर बोला, ‘‘हां, हां. जरूर लाऊंगा.’’ राजीव ने कह तो दिया था, पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. वह इसी उधेड़बुन में था कि शालिनी अंदर से रुपए ला कर उस के हाथों में रखती हुए बोली, ‘‘जल्दी लौटिएगा.’’ तभी इंदु बोली, ‘‘पापा, आप को अपने दोस्त के घर जाना है न.’’
‘दोस्त के घर,’ राजीव ने चौंक कर इंदु की ओर देखा, ‘‘हां पापा, मां कह रही थीं कि आप के एक दोस्त के हाथ और पैर टूट गए हैं, वहीं आप उन के लिए दीवाली मनाने जाते हैं.’’ राजीव को समझ में नहीं आया कि क्या कहे. उस ने शालिनी को देखा तो वह मुसकरा रही है.
मोटरसाइकिल चलाते हुए राजीव का मन यही कह रहा था कि वह चुपचाप अपनी मित्रमंडली में चला जाए, पर तभी उसे अक्षय की बातें याद आ जातीं. राजीव सोचने लगा कि एक अक्षय है जो अस्पताल में रह कर भी बच्चों की दीवाली की खुशियों को ले कर चिंतित है और एक मैं हूं जो बच्चों को दीवाली मनाने से रोक रहा हूं. शालिनी भी जाने क्या सोचती होगी मेरे बारे में? उस ने बच्चों से उन के पिता की गलती छिपाने के लिए कितनी अच्छी कहानी गढ़ कर सुना रखी है. मोटरसाइकिल का हौर्न सुन कर सब बच्चे भाग कर बाहर आए तो देखा आतिशबाजियां और मिठाई लिए राजीव खड़ा है.
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प्रमोद कहने लगा, ‘‘इंदु, इतनी सारी आतिशबाजियां छोड़ेगा कौन?’’ ‘‘ये हम और तुम्हारी मां छोड़ेंगे,’’ राजीव ने कहा और दरवाजे पर आ खड़ी हुई शालिनी को देखा जो जवाब में मुसकरा रही थी.
शालिनी ने शरारत से पूछा, ‘‘रुपए दूं, अभी तो रात बाकी है?’’ राजीव ने जब कहा, ‘‘सचमुच दोगी?’’ तो शालिनी डर गई. तभी राजीव शालिनी को अपने निकट खींचते हुए बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि रुपए दोगी तो बढि़या सा एक खाता तुम्हारे नाम से किसी बैंक में खुलवा दूंगा.’’
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‘‘अरवाह, हो गई तुम्हें जौब औफर. प्राउड औफ यू बेटा. यहां दिल्ली में ही यह कंपनी या कहीं और जाना पड़ेगा?’’
‘‘मम्मा, बस निकल ही रहा हूं कालेज से. घर आ कर बताता हूं सब.’’
बेटे विहान से फोन पर बात होते ही कावेरी पति सुनील से उत्साह में भर कर बोली, ‘‘सुनो, विहान को एक मल्टीनैशनल कंपनी ने नौकरी दी है. मैं अभी जूही के घर जा कर यह खुशखबरी दे दे आती हूं.’’
‘‘वाह, अब कमाऊ हो जायेगा अपना बेटा. मैं भी चलता हूं तुम्हारे साथ. पड़ोसियों को दे ही देते हैं यह गुड न्यूज.’’
‘‘पड़ोसी नहीं, समधी कहो. अब जल्द ही कर देंगे जूही और विहान का रिश्ता पक्का.’’
दोनों खिलखिलाते हुए घर से निकल पड़े.
बीटैक फाइनल ईयर में पढ़ रहे विहान के कालेज में कुछ कंपनियां आज कैंपस प्लेसमैंट के लिए आई थीं. तीक्ष्ण बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व के विहान को 5 मिनट का साक्षात्कार ले कर ही चुन लिया गया. वह जानता था कि मातापिता को यह बात सुन कर जितनी प्रसन्नता होगी, उतनी ही निराशा यह सुन कर होगी कि उसे समैस्टर पूरा होते ही जौइनिंग के लिए बैंगलुरु जाना होगा.
पड़ोस में रहने वाली जूही विहान की बचपन की मित्र थी. गोरा रंग, औसत कद, भूरी आंखें और मुसकराते भोलेभाले चेहरे वाली जूही विहान से 1 साल छोटी थी. दोनों एक ही स्कूल में पढ़े थे. 12वीं के बाद विहान ने एक इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन ले लिया. कंप्यूटर साइंस से बीटैक कर रहे विहान के कालेज से सटा भवन जूही का इंस्टिट्यूट था, जहां वह ग्राफिक डिजाइन में बैचलर्स कर रही थी. प्रतिदिन दोनों साथसाथ कालेज आतेजाते थे. आज प्लेसमैंट के लिए इंटरव्यू चल रहे थे, इसलिए विहान देर तक कालेज में रुका हुआ था.
विहान के घर पहुंचते ही पहला प्रश्न नौकरी के स्थान को ले कर हुआ.
‘‘जौब मिली भी तो कहां? मु झे तो लगा था कि आसपास ही नोएडा या गुरुग्राम में होगी कंपनी, लेकिन इतनी दूर,’’ कावेरी के मुख पर प्रसन्नता व निराशा के भाव आ जा रहे थे.
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‘‘अरे, कब तक बेटे को अपने पास बैठा कर रखोगी? उड़ने दो पंख फैला कर,’’ सुनील प्रयास कर रहा था कि कावेरी मन से डर को निकाल दे.
‘‘मम्मा, परेशान क्यों होती हो? मैं अकेला थोड़े ही जा रहा हूं. कुछ और फ्रैंड्स का सिलैक्शन भी तो हुआ है न, वे भी तो जाएंगे मेरे साथ,’’ विहान कावेरी के कंधे पर हाथ रखते हुए सांत्वना दे रहा था.
‘‘मैं सोच रही हूं कि क्यों न जाने से पहले तुम्हारी और जूही की सगाई करवा दी जाए? फिर अगले साल उस की डिगरी हो जाएगी तब शादी करवा देंगे. कोई देखने वाला होगा तुम्हें तो हमें चिंता नहीं होगी. पता नहीं कब तक रहना पड़ेगा वहां,’’ कावेरी ने कहा तो सुनील ने सहमति में सिर हिला दिया.
‘‘क्या जूही और मेरी इंगेजमैंट? मम्मा, यह क्या कह रही हो?’’ विहान का मुंह खुला का खुला रह गया.
‘‘गलत तो कुछ कहा नहीं कावेरी ने शायद. क्या तुम दोनों…’’
सुनील की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विहान ने प्रश्नसूचक दृष्टि से देखते हुए पूछा, ‘‘हम दोनों क्या पापा?’’
‘‘अरे, दोनों एकदूसरे को कितना चाहते हो. आज जूही के घर पर भी यही बात कर रहे थे हम सब,’’ कावेरी आश्चर्यचकित थी.
‘‘मैं ने तो कभी जूही को अपनी गर्लफ्रैंड सम झा ही नहीं. ये सब क्या है? अभी उसे कौल करता हूं,’’ विहान जूही का नंबर मिला कर अपने रूम की ओर चल दिया.
‘‘हैलो जूही.’’
‘‘बधाई… आ गए कालेज से? मैं तुम्हें कौल करने ही वाली थी.’’
‘‘थैंक्स जूही… एक बात पूछनी है तुम से.’’
‘‘पूछो.’’
‘‘क्या हम दोनों एकदूसरे से लव करते हैं?’’
‘‘मतलब इश्क वाला लव? यानी जो प्रेमीप्रेमिका के बीच होता है?’’
‘‘हां बाबा हां, वही.’’
‘‘यह हो क्या रहा है? मैं खुद तुम से पूछने वाली थी. आज मेरी मौम भी तुम्हारा नाम ले कर मु झ से अजीब सा मजाक कर रही थीं.’’
‘‘क्या यार, मेरे मम्मीपापा ने तो हमारी मैरिज का प्लान भी बना लिया. बचपन से हम दोनों फ्रैंड्स हैं, एकदूसरे की कंपनी में खुश रहते हैं, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि हमें प्यार है.’’
‘‘वही तो… एकदूसरे की केयर प्यार थोड़े ही है. देखा नहीं मूवीज में कि प्यार होते ही कैसे सब हवा में उड़ने लगते हैं. यहां तो ऐसा नहीं है.’’ जूही ने बात समाप्त की तो दोनों खिलखिला कर हंस दिए.
समैस्टर समाप्त हुआ और विहान बैंगलुरु चला गया. मित्रों ने मिल कर एक फ्लैट ले लिया. काम करने के लिए मेड और कुक का प्रबंध भी हो गया.
अपनी नई जिंदगी से संतुष्ट विहान अपनी औफिस टीम में लोकप्रिय होने लगा. उसी टीम में सुगंधा भी कार्य कर रही थी. अपनी स्मार्टनैस के लिए मशहूर सुगंधा किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी. काम में व्यस्त विहान चोर नजरों से उसे देखा करता था. कभी स्कर्ट, कभी जंपसूट तो कभी जींस पहने सुगंधा की ड्रैस सैंस से विहान पहले दिन ही प्रभावित हो गया था. पिंक, पीच या किसी अन्य हलके रंग की लिपस्टिक में लिपटे उस के होंठ और आई मेकअप से सजी बड़ीबड़ी आंखें विहान को बेहद आकर्षक लगती थीं.
उस दिन मुसकराते हुए सुगंधा ने विहान को ‘हाय हैंडसम’ कहा तो विहान की धड़कनें बढ़ गईं. अदा से चलती हुई विहान की सीट तक आ कर वह पास रखी चेयर पर बैठ गई. बात शुरू हुई तो सुगंधा विहान के कपड़ों, जूतों और रिस्ट वौच की प्रशंसा करते हुए उस की पसंद की दाद देने लगी. विहान के मन में लड्डू फूट रहे थे.
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कुछ देर बात करने के बाद जब सुगंधा उठी तो प्लाजो सूट पर लिया उस का दुपट्टा लहराता हुआ विहान के चेहरे से टकरा गया. नाक से होते हुए परफ्यूम की खुशबू विहान के मन में उतर गई.
घर पहुंच कर वह सुगंधा के बारे में सोचता रहा. अगले दिन अच्छी तरह दाढ़ी शेव कर नहाने के बाद अपने ऊपर खूब डियो छिड़क लिया. अपनी पसंदीदा काली टीशर्ट पहन बारबार अपने को दर्पण में देखने के बाद समय से आधा घंटा पहले ही औफिस पहुंच गया. कमरे में सुगंधा को आया देख यह सोचते हुए कि दोनों तरफ आग बराबर लगी है, वह प्रसन्न हो उठा.
सुगंधा के पास जा विहान ने उल्लासित हो बातचीत करना शुरू कर दिया, लेकिन सुगंधा में पहले दिन सा जोश नहीं था. कल जिन नैनों में विहान को प्यार का सागर छलकता दिख रहा था, आज अजनबी रंग लिए वही निगाहें दरवाजे पर लगी थीं. कुछ देर बाद मैनेजर ने प्रवेश किया तो सुगंधा की आंखें चमक उठीं.
बातचीत अधूरी छोड़ वह मुसकरा कर ‘गुड मौर्निंग’ कह इठलाती हुई मैनेजर के पीछेपीछे चल दी. उस के साथ बातें करते हुए एक बार भी उसे विहान का ध्यान नहीं आया. बातचीत के बीच जिस तरह ठहाके लग रहे थे, उस से विहान ने अनुमान लगा लिया कि वहां औफिस के काम की बातें तो बिलकुल नहीं हो रहीं. मैनेजर ने कुछ देर बाद कौफी मंगवा ली. कमरे में उन दोनों के अलावा विहान ही था, लेकिन उस से किसी ने पूछना भी जरूरी नहीं सम झा.
जब अन्य लोग भी आने लगे तो मैनेजर वहां से चलता बना. सुगंधा अपने गु्रप के मित्रों को चटखारे ले कर बताने लगी कि किस प्रकार उस ने बौस के कपड़ों की प्रशंसा कर आज उसे उल्लू बना दिया. ये सब उस ने आने वाले सप्ताह में छुट्टियां लेने के लिए किया था.
‘‘मार डालती हो यार तुम तो अपने गोरे रंग से सभी को, फिर यह मैनेजर का बच्चा क्या चीज है?’’ मनीष के कहते ही सब का मिलाजुला जोरदार ठहाका कमरे में गूंज उठा.
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