Family Story in Hindi: ‘‘मम्मा पापा को कह दीजिए कि मेरे स्कूल न आया करें.’’ ‘‘मगर क्यों बेटी?’’ ‘‘कह दिया न न आया करें बस.’’ ‘‘अरे, तो कोई कारण तो होगा?’’ ‘‘मुझे पसंद नहीं उन का स्कूल आना. क्या यह कारण काफी नहीं?’’ ‘‘लेकिन रूसा तुम ही तो चाहती थीं कि पापा ही तुम्हारी पेरैंट्स मीटिंग में आएं. तुम्हारी खातिर वे हर बार दफ्तर से छुट्टी लेते थे.’’ ‘‘वह तब की बात थी,’’ रूसा उखड़े स्वर में बोली. ‘‘रूसा, मैं आजकल देख रही हूं तुम्हारा व्यवहार अपने पापा के प्रति बहुत रूढ़ होता जा रहा हो. यह ठीक बात नहीं बेटी.’’
लेकिन रूसा बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चली गई. मैं हैरान रह गई यह क्या हो गया है इस लड़की को… धीरज तो जान थे उस की, रातदिन, पापा… पापा… कहते हुए उन से ही लिपटी रहती थी. जब कभी दफ्तर से आने में देरी हो जाती तो रोने लगती, बारबार फोन करती, पापा कितनी देर हो गई आइए न.
खाने पर उन का इंतजार करती, बिना धीरज के कभी खाना नहीं खाती. पहला निवाला पापा खिलाएंगे तभी खाएगी. मेरा तो कोई वजूद ही नहीं धीरज के सामने. कहीं जाना है तो पापा चाहिए, स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग हो तो पापा चाहिए. धीरज भी तो दिल से चाहते हैं, कितनी परवाह करते हैं उस की लेकिन पिछले कई दिनों से मैं महसूस कर रही हूं कि रूसा बातबात पर धीरज को झिड़क देती है. पहले दोनों घंटों किसी बात को ले कर स्वस्थ चर्चा करते थे.
आजकल रूसा उन से चर्चा कम करती है, अपमानित अधिक करती है. एक धीरज ही हैं जो मुसकरा कर रह जाते हैं. मैं ने कई बार रूसा को उसके इस व्यवहार पर डांटा, ‘‘कैसे बात कर रही हो अपने पापा से… क्या यही सीखती हो स्कूल में अपने पापा से ऐसे बात की जाती है? तब धीरज ने ही हर बार मुझे रोक दिया, ‘‘जाने दो निकिता बच्ची है अभी वह.’’ ‘‘कैसे जाने दूं. अरे, संस्कार नाम की कोई चीज होती है,’’ मैं कहती. मुझे रूसा का यह व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. पिछले हफ्ते ही धीरज ने कहा, ‘‘रूसा ‘ऐनिमल’ लगी है मौल में.
इरादा हो तो औफिस से आते हुए टिकट ले आऊं?’’ पहले तो पिक्चर जाने की बात सुन खुशी से उछल पड़ती थी, लेकिन उस रोज उसने धीरज को टका सा जवाब दे दिया, ‘‘आप और मम्मा हो आइए, मैं अपने दोस्तों के साथ यह फिल्म देखना चाहती हूं.’’ महसूस तो धीरज भी कर रहे होंगे इस बदलाव को मगर जैसाकि उन का नाम है धीरज… बहुत धैर्य है उन में, शिकायत जैसी कोई चीज तो मानो उन की डिक्शनरी में ही नहीं है.
लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि वह कुछ भी कहे, हमेशा पापा के साथ जाने को ललकती रहती और अब कभी उसे अकेले जाते देख धीरज कहते चलो मैं साथ चलता हूं तो झट कह देती कि क्यों… क्या मैं अकेले नहीं जा सकती? मैं रातदिन इसी ऊहापोह में रहती कि क्या हो गया है इसे… कैसे इस समस्या से निबटारा पाऊं? कैसे उसे समझऊं? धीरज से कहती हूं तो हमेशा की तरह कह देते हैं, ‘‘निकिता, तुम बेकार में टैंशन ले रही हो… अकसर इस उम्र में बच्चों में यह बदलाव होता है, यह टीनऐज की प्रौब्लम है, समय के साथ ठीक हो जाएगी.’’
मगर यह सब धीरज के साथ ही क्यों? सरासर अन्याय है, ऐसा भी क्या बदलाव कि परिवार के सदस्यों को ही पराया कर दिया जाए. कोई समाधान नजर नहीं आ रहा था. रूसा घर पर नहीं थी. आजकल वह मुझे बता कर नहीं जाती… पूछो तो कह देगी, ‘‘जाते वक्त टोकना जरूरी है… चुप नहीं रह सकतीं.’’ तभी उस की फास्ट फ्रैंड नूरा घर आई. बोली, ‘‘आंटी, रूसा है?’’ ‘‘नहीं बेटी.’’ ‘‘कहां गई है आंटी और कितनी देर में आएगी?’’ ‘‘पता नहीं बच्चे कुछ कह कर नहीं गई,’’ फिर कुछ सोच कर मैं ने नूरा से कहा, ‘‘नूरा, बेटी मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’ ‘‘जी कहिए आंटी.’’ ‘‘आओ अंदर बैठते हैं,’’ कहते हुए मैं नूरा को अपने कमरे में ले आई. बहुत प्यार और निवेदनभरे शब्दों में मैं ने उस से पूछा, ‘‘बेटी, क्या तुम इन दिनों रूसा के व्यवहार में कोई अंतर देख रही हो?’’ कुछ देर नूरा खामोश रही, मुझे उस की खामोशी खल रही थी. मैं ने फिर कहा, ‘‘देखो बच्चे, तुम उस की खास दोस्त हो इसलिए मैं तुम से पूछ रही हूं.
समझ हैल्प मांग रही हूं तुम से. प्लीज… मेरे सवाल का जवाब दो यों खामोश न रहो नूरा,’’ मैं उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई. तब उस ने झट खड़े हो मेरे हाथ पकड़ लिए. बोली, ‘‘प्लीज आंटी, ऐसा मत करिए, देखिए मैं बहुत ज्यादा तो नहीं जानती, मगर हां कुछ दिनों से रूसा कुछ परेशान है.’’ ‘‘क्या उस ने तुम्हें अपनी परेशानी बताई?’’ नूरा फिर चुप हो गई.
न जाने क्यों उस के चेहरे से मुझे लग रहा था कि वह कुछ जानती है मगर कह नहीं पा रही. ‘‘तुम जानती हो नूरा… मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हें पता है. जो पता है बता दो मुझे बच्चे, इस से शायद हम मिल कर रूसा की कोई हैल्प कर पाएं… उस की परेशानी को समझ पाएं और कोई हल खोज पाएं.’’ ‘‘आंटी, कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा मगर आप इतना पूछ रही हैं तो बताती हूं कि रूसा आजकल अंकल को ले कर बहुत परेशान हैं.’’ ‘‘अंकल को ले कर? लेकिन धीरज से उसे क्या परेशानी हो सकती है? वह तो बहुत चाहती है अपने पापा को, मुझ से भी ज्यादा… क्या कुछ कह दिया धीरज ने उसे? कोई बात हुई उस की धीरज से?’’ ‘‘नहीं आंटी, मगर पता नहीं क्यों वह कहती है कि अंकल उस के पापा नहीं हैं, आप लोगों ने जबरदस्ती उसे उस के बायोलौजिकल फादर से दूर किया है और इन दिनों वह अपने बायोलौजिकल फादर को ले कर बहुत कांशियस है.’’ ‘‘क्या?’’ मैं सन्न रह गई, मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. ‘‘और क्या कहा रूसा ने?’’ दम तोड़ती आवाज से मैं ने कहा.
‘‘आंटी, मैं बस इतना ही जानती हूं कि अब उस के मन में अंकल के प्रति केवल नफरत है. क्यों? कैसे? यह मुझे नहीं पता.’’ ‘‘ठीक है बेटी, शुक्रिया तुम ने मुझे सहयोग किया. अगर मेरी एक बात और मानो तो रूसा को मत बताना कि हमारे बीच कोई बात हुई है.’’ ‘‘श्योर, बिलकुल नहीं बताऊंगी आंटी.’’ नूरा चली गई मगर छोड़ गई मुझे सवालों के भंवर में.
आखिर कौन हो सकता है जिस ने मेरे इस छोटे से सुखी संसार में आग लगा दी. 1-1 कर सारे परिजन के चेहरे मेरी आंखों के सामने क्रम से आते चले गए लेकिन मन उन सभी चेहरों पर रैड क्रास लगाता जा रहा था. मेरे तो सभी से अच्छे रिश्ते हैं. सभी मेरी हकीकत से परिचित हैं, फिर कौन हैं वह ? मैं अपने ही अतीत के गलियारों में अकेली भटक रही थी.
अतीत की वह घटना एक भंवर की तरह मेरे चारों ओर तेज गति से घूम रही थी और मैं उस में बिना अपनी मरजी के गोते लगा रही थी. क्या दोष है मेरा? फिर क्यों कुदरत मेरी इतनी परीक्षा ले रही है? बड़ी मुश्किल से खुशी मेरे हिस्से आई है, धीरज जैसा पति किसीकिसी को ही मिलता है. सच यह उन के प्यार का ही परिणाम है कि मैं अपने अतीत के दुष्चक्त्र से उभर पाई. मैं आत्मालाप ही कर रही थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी, देखा मेरी कजिन रितु थी.
‘‘हां रितु, बोल कैसे याद किया? आ रही है क्या घर?’’ ‘‘नहीं निक्कू घर तो नहीं आ रही हूं अभी, मगर तू बता तू कैसी है?’’ ‘‘ठीक हूं, मगर यह सवाल?’’ उस ने बिना मेरी बात का उत्तर दिए अगला सवाल कर दिया, ‘‘तू कहां है अभी?’’ ‘‘घर पर और कहां रहूंगी?’’ ‘‘और जीजू?’’ ‘‘जीजू औफिस में.’’ ‘‘रूसा?’’ ‘‘वह कहीं गई है लेकिन तू इतना क्यों पूछ रही है? कोई खास बात?’’ इस बार मैं ने उस के सवाल का उत्तर दिए बगैर सवाल किया. ‘‘निक्कू, दरअसल बात यह है कि आज मुझे मार्केट में चंदन मिला था.’’
चंदन नाम सुनते ही एक पल को लगा दिल की धड़कन ही थम गई… पूरी देह में किसी ने गरम लावा उड़ेल दिया हो. ‘‘निक्कू… निक्कू… तू ठीक तो है न?’’ मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया न पा कर रितु घबराते हुए बोली. ‘‘अ… हां… हां… रितु सुन रही हूं, क्या कह रहा था वह?’’ ‘‘कहेगा क्या वह, मांबाप ने नाम भले ही चंदन रखा है उस का मगर विष की चलतीफिरती दुकान है वह.
जरा भी नहीं बदला वह निक्कू, जाने क्यों मुझे उस के इरादे ठीक नहीं लग रहे.’’ बात कुछकुछ समझ आ रही थी मुझे, फिर भी मैं ने रितु से पूछा, ‘‘क्या कह रहा था रितु वह? मुझे पूरी बात बता.’’ ‘‘वह इसी शहर में तबादला करा कर आ गया है. उस ने शादी तो तभी कर ली थी मगर उसे अब तक कोई बच्चा नहीं हुआ और लगता है कोई उम्मीद भी नहीं. इसीलिए उस की नीयत अपनी रूसा पर है.
वह अपनी बेटी को वापस लेना चाहता है, शायद तबादला भी इसीलिए कराया है. तू रूसा का ध्यान रखना निक्कू. तू जानती है वह शातिर दिमाग है कुछ भी कर सकता है. बाकी मैं 1-2 दिन में आकर तुझे मिलती हूं.’’ कहते हुए रितु ने मोबाइल औफ कर दिया. मैं जड़ सी काफी देर सोफे पर बैठी रही. मन किया जोरजोर से चीख पड़ूं क्यों… मेरे साथ ये सब? आखिर क्या बिगाड़ा है मैं ने कुदरत का? मेरी परीक्षा लेने पर क्यों तुला हुआ है? कितनी मुश्किल से संभली है मेरी गृहस्थी.
एक बार उजाड़ कर मन नहीं भरा… फिर मुझे मानसिक संताप दे कर बीमारी के कठघरे में डालना चाहता है. मैं क्या करूं… किस से कहूं? धीरज से… नहीं… नहीं उन से कुछ नहीं कहूंगी, किस से मदद मांगू… कौन करेगा मदद? भारी संकट नजर आ रहा था मुझे. मैं काफी देर यों ही आंखें बंद किए बैठी रही. मुझे याद आया मेरे उन डिप्रैशन के दिनों में मेरी मैडिटेशन गुरु ने कहा था जब भी ऐसी स्थिति आए जिस में तुम्हें कोई हल नजर न आए तब कुछ देर आंखें बंद कर बैठे रहो. जिंदगी की किताब कोई अजूबी नहीं, इस के हर प्रश्न का उत्तर इसी किताब के किसी पन्न पर दर्ज होता है.
बस पूरी शक्ति केंद्रित कर उसे खोजना होता है. थोड़ी देर बाद मन से आवाज आई, मुझे एक बार सारी बातें रूसा को बता देनी चाहिए. अगर तब भी वह चंदन के साथ जाना चाहे तो वह उसे रोकेगी नहीं बल्कि भुला देगी उसे और अपने धीरज के साथ कहीं और जा कर बस जाएगी. थोड़ी देर बाद जब रूसा लौटी तो मैं ने घड़ी देखी, अभी धीरज को दफ्तर से आने में काफी वक्त है.
अत: आज ही इस बात का फैसला कर लूंगी. ‘‘आ गई बेटी… कहां गई थी? बता कर जाती तो अच्छा होता, मुझे फिक्र हो रही थी.’’ ‘‘अपने पर्सनल काम से गई थी,’’ उस ने छोटा सा उत्तर दिया. मन आहत हो गया जिस बच्ची का हम से अधिक कोई पर्सनल न था, आज उस के लिए हम पराए हो गए हैं. मैं समझ गई चंदन ने मेरी बच्ची की जिंदगी में जहर घोल दिया है. ‘‘यहां आओ रूसा, मुझे तुम से कुछ बात करनी है,’’ मैं ने दरवाजा लगाते हुए कहा. ‘‘क्या बात करनी है जल्दी से कीजिए, मुझे बहुत काम है.’’ मन रो उठा उस के इस कठोर व्यवहार से.
धीरज पिछले कई दिनों से इस व्यवहार को हंस कर कैसे झेल रहे हैं? न जाने कहां से लाते हैं इतनी हिम्मत? मुझे भी हिम्मत से काम लेना होगा. ‘‘बैठो यहां.’’ रूसा बेमन से सोफे पर धंस गई. मैं ने बिना उस की परवाह किए अपनी बात कहनी शुरू की, ‘‘मैं जो कुछ कह रही हूं उसे बहुत ध्यान से सुनना रूसा, फिर तुम्हें एक दिन का समय देती हूं उस पर अच्छे से विचार करना. उस के बाद तुम्हारा जो भी निर्णय होगा हमें वह मंजूर होगा.’’ मेरा इतना कहते ही वह मेरी ओर गौर से देखने लगी. ‘‘बात आज से 17 साल पुरानी है, मैं बीए फाइनल में थी, मेरे पापा को उन के किसी रिश्तेदार ने मेरे लिए एक रिश्ता बताया. लड़का पढ़ालिखा और सरकारी नौकरी में था, परिवार का इकलौता बेटा था और कोई औलाद नहीं थी.
मेरे पापा को लगा सरकारी नौकरी है इसलिए बेटी को आर्थिक रूप से कोई परेशानी नहीं होगी, ऊपर से एकलौता है इस से उन की बेटी को परिवार का भरपूर प्यार भी मिलेगा. फिर विश्वस्त रिश्तेदार ने यह रिश्ता सुझया है, इसलिए अधिक क्या सोचना. उस समय परिवार में बेटियों से रजामंदी लेने की कोई प्रथा नहीं थी. केवल उन्हें बताया जाता था कि तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया गया है.
इस तरह मैं चंदन के परिवार में बहू बन कर आ गई. शादी में जम कर दहेज की मांग रखी चंदन और उस की मां ने,…पापा ने मेरे भविष्य को देख वह भी स्वीकार कर ली. ‘‘कुछ दिन ठीक से गुजरे थे कि उस की मां ने बच्चे के लिए मुझ पर दबाव बनाना शुरू कर दिया, जबकि बच्चे को जन्म केवल स्त्री नहीं देती, तुम विज्ञान की छात्रा हो समझ सकती हो. खैर, समय रहते मुझे गर्भ ठहरा तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि उन्हें तो बेटा ही चाहिए, बेटी हुई तो गला दबा दूंगी उस का.
मैं उनकी बातों से एक पल को सहम गई …क्या वाकई अगर बेटी हो गई तो… तो फिर खुद को ही समझती, नहीं… नहीं उन्होंने गुस्से में कह दिया होगा, अपने बच्चे के साथ कोई ऐसा करता है… एक पत्नी की ताकत उस का पति होता है, जिस के सहारे वह जमाने से लड़ सकती है. मैं ने जब चंदन के सामने यह बात रखी तो उस ने दो टूक शब्दों में कहा, ‘‘क्या कहा…?’’ ‘‘यही कि मां सही कह रही है, अगर बेटी हुई तो समझ लेना जिंदा नहीं रहेगी.’’ ‘‘हैरान थी मैं कैसा व्यक्ति है? क्या पढ़ाई की है? नहीं जानता बेटा या बेटी पैदा करने में अकेले स्त्री के हाथ नहीं होता. सरकारी अस्पताल में साधारण प्रसव से बेटी हुई.
अस्पताल में मेरी बेटी बिलकुल स्वस्थ थी. 2 घंटे बाद ही चंदन की मां मुझे घर ले आईं. घर आने के घंटे बाद मैं नहा कर बिस्तर पर लेटी गई. उस बच्ची को चंदन की मां नहलाने ले गईं और थोड़ी देर बाद कपड़े पहना कर और एक कपड़े में लपेट कर मेरे पास सुला गई. बहुत देर तक वह रोई नहीं… मैं ने सोचा सो रही है. मेरी छाती में दूध भर आया तो मैं ने उसे दूध पीने के लिए उठाया. देखा तो वह अपनी सांसें खो चुकी थी. ठंडी और नीली पड़ चुकी थी मेरी बच्ची. नहलाने के बहाने चंदन की मां ने सच में उस का गला घोट दिया था.
सब को यही पता रहा कि बच्ची अचानक मर गई… लेकिन हकीकत मैं जानती थी मगर मुझे इतना आतंकित कर दिया गया था कि किसी को कह नहीं पा रही थी…यहां तक कि मांपिताजी को भी नहीं. ‘‘इस घटना के बाद भी मैं उस घर में रह रही थी, किंतु जैसे पिंजरे में मैना रहती है. अपनी सांसें समेटे… न मालूम किस पल मेरी गरदन भी दबा दी जाए.
अफसोस तो यह कि चंदन पर इस का कोई असर नहीं, समझ नहीं पा रही थी कि कैसा आदमी है. ‘‘इस घटना के बाद मैं हर पल डरीसहमी रहती. 4 महीने गुजरे कि फिर से वही चक्र चला. मुझ पर फिर से गर्भवती होने का दबाव बनाया गया. 6 माह बाद मैं फिर गर्भवती हुई. दूसरी बार भी वही बातें …मुझे धमकाया गया कि याद रखना बेटी हुई तो वही हश्र होगा. लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि इस बार यदि बेटी हुई तो मैं उसे खो दूं, इसलिए जैसेजैसे समय करीब आ रहा था मेरा भय बढ़ रहा था. मुझे अपने परिवार से भी ज्यादा मिलने नहीं दिया जाता. वे लोग घर आते तो बस 5-10 मिनट. जब मेरे प्रसव का समय करीब आया मैं ने एक कागज पर पिछली बार के हादसे का जिक्र करते हुए लोकल में रह रही अपनी चचेरी बहन रितु को बुला कर धीरे से वह कागज उसके हाथ में थमा दिया, साथ ही अनुरोध किया कि इस बार भी यदि बेटी हुई तो प्लीज रितु मेरी बच्ची को बचा लेना. ‘‘रितु ने मेरा साथ दिया.
उस ने एक एनजीओ की मदद ली और वही हुआ जिस का डर था, दूसरी बार तुम पैदा हुई एनजीओ की मदद से तुम सही समय पर उस अस्पताल से सकुशल निकाल कर अपनी नानी के घर पहुंचा दी गईं. लेकिन मैं अभी अस्पताल में ही थी, तुम्हारे इस तरह चले जाने से नाराज चंदन और उस की मां मुझे अस्पताल में यह कह कर छोड़ गए कि तुम्हारे लिए अब उस घर में कोई जगह नहीं है… मैं क्या करती एक स्त्री के लिए 2 ही घर होते हैं या तो मायका या ससुराल.’’ ‘‘लेकिन जब उन्होंने मुझे तुम से मांगा तो तुम ने मुझे उन्हें दिया क्यों नहीं? वे कर लेते मेरी परवरिश.’’ ‘‘हा… ऐसा तुम्हें लगता है या तुम्हारी आंखों पर झठ का चश्मा चढ़ा दिया गया है इसलिए तुम ऐसा कह रही हो.
वे तुम्हें मांगेंगे जिन के हाथ तुम्हारा गला घोटने के लिए बेताब थे. जानती हो जिन्होंने रिश्ता कराया था उन्हें भी बहुत अफसोस हुआ तो उन्होंने चंदन की मां को कहा कि बहू को नहीं रखना है न रखो मगर अपनी बच्ची को संभालो या उस का खाना खर्चा दो. सुनना चाहोगी क्या कहा तुम्हारे बायोलौजिकल फादर और उस की मां ने?’’ ‘‘क्या कहा?’’ ‘‘यह कि तुम उन का खून नहीं हो, हमें नहीं पता हमारी बहू का किसकिस से संबंध है. वे करते तुम्हारी परवरिश. मेरा स्वर में नफरत और क्रोध से कांप रहा था. ‘‘फिर क्या हुआ?’’ इस बार रूसा के स्वर में नर्मी थी. ‘‘जो आघात मुझे लगा उस से मैं अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी. मुझे ठीक होने में पूरे 2 साल लगे. यह बहाना मिला चंदन को मुझ से तलाक लेने का कि मैं शुरू से पागल थी.
जब संभली तब तक जिंदगी बहुत आगे निकल चुकी थी और मैं वहीं खड़ी रह गई. पता चला था चंदन ने मुझ से तलाक ले कर दूसरी शादी कर ली और अपना तबादला कहीं ओर करा लिया. कोई पत्नी का हक नहीं दिया मुझे. मेरे परिवार ने भी अपनी बेटी को पा कर उसे भुला दिया. साथ ही तुम्हारी नानी ने तुम्हें बहुत चाव से पाला,’’ बोलतेबोलते मेरा गला सूख गया तो रूसा उठ कर मेरे लिए पानी ले आई. लेकिन मैं बिना पानी पीए ही अपनी बात कह देना चाहती थी. ‘‘फिर…’’ ‘‘फिर आए धीरज हमारी जिंदगी में.
वे तुम्हारे मौसाजी के दोस्त थे. सबकुछ जान कर उन्होंने न केवल मुझे अपनाया बल्कि तुम्हें भी एक पिता का प्यार दिया. तुम्हारी नानी ने तो कहा भी था कि बच्ची को हम संभाल लेंगे लेकिन धीरज ने स्पष्ट कह दिया कि नहीं मैं मांबेटी को अलग नहीं देख सकता. एक चंदन था तुम्हारा बायोलौजिकल फादर जिस ने तुम्हें अपना लहू भी न माना, सीधेसीधे कहूं तो हराम की औलाद कह कर ठुकरा दिया.
दूसरी ओर धीरज जिन्होंने तुम्हें वही प्यार दिया जो एक सगा बाप अपनी संतान को देता है. बेचारे धीरज तो खुद पिता भी न बन पाए. न जाने कहां कमी रह गई. मगर उन्होंने कभी तुम्हें खुद से अलग नहीं माना, हमेशा यही कहते रहे कि क्या हुआ जो रूसा मेरा खून नहीं है, रिश्ते क्या केवल खून के होते हैं, रिश्ते तो प्यार से पनपते हैं. मैं अपनी बेटी को इतना प्यार दूंगा कि कोई नहीं कह पाएगा कि मैं उस का पापा नहीं हूं और उन्होंने वह कर दिखाया.
जहां हमें ऋणी होना चाहिए था उन का, पिछले कई दिनों से वे तुम्हारी नफरत और उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. मैं यह सब सह नहीं पाऊंगी. बता दे रही हूं. जब भी मैं तुम दोनों के बीच वह प्यार देखती थी तो लगता था सच खून से बढ़ कर होता है प्यार का रिश्ता. मगर नहीं मैं और धीरज गलत साबित हुए. तुम ने साबित कर दिया, आखिर लहू ही बोलता है. हम परवरिश से किसी के संस्कार नहीं बदल सकते. मैं आवेश में कहती जा रही थी. ‘‘खुद को अपराधी महसूस कर रही हूं किस बात की सजा मिल रही है धीरज को? उन की अच्छाई की? उन्होंने हमारे बारे में सोचा दूसरी ओर वह चंदन, शायद मेरी उस बच्ची जिसे मेरे आंचल का रसपान करने का एक मौका भी नहीं दिया उन दुष्टों ने उस का श्राप ही लगा कि उस का वंश नहीं चला. वह निर्वंशी रह गया.
अब अपना नाम चलाने की मजबूरी है तो तुम्हें हासिल करना चाहता है. उसे प्रेम नहीं है तुम से रूसा, तुम उस के पौरुष का प्रमाण हो केवल. इसलिए वह तुम्हें हम से छीन लेना चाहता है. वह आया ही शहर में तुम्हें हासिल करने के लिए. अब फैसला तुम पर छोड़ती हूं. एक दिन का समय देती हूं. तुम्हारा जो भी फैसला होगा हमें मंजूर होगा ही, साथ ही अपने उस फैसले के लिए भविष्य में तुम खुद जिम्मेदार रहोगी.
इस बात का ध्यान रखना कि फिर हम कभी कहीं नहीं होंगे तुम्हारे जीवन में. अब तुम जा सकती हो. बहुत काम है न तुम्हें? मैं ने उसी तैश में अपनी बात समाप्त की.’’ रूसा बुझे कदमों से उठी और अपने कमरे में चली गई. मैं उस के उसे फैसले के लिए खुद को तैयार कर रही थी, मन ही मन खुद को धीरज की गुनहगार महसूस कर रही थी.
सोच लिया था आज धीरज को आने पर सबकुछ बता कर माफी मांग लूंगी. आज की शाम अन्य दिनों से कुछ अधिक गहरी और लंबी लग रही थी. परिणाम पता नहीं क्या होगा. आशंका के कई काले बादल उमड़ रहे थे. कान डोरबैल की ओर ही लगे थे, 7 बज रहे थे. जैसे ही डोरबैल बजी दिल की धड़कन तेज हो गई, सहमते कदमों से दरवाजा खोलने बाहर आई तो देखा रूसा पहले ही दरवाजे पर पहुंच चुकी है, ‘‘वैलकम पापा.’’ ‘‘अरे वाह आज तो मेरा बच्चा बड़े अच्छे मूड में दिख रहा है.
कोई फरमाइश है क्या?’’ धीरज की सहजता देख मेरी आंखें छलक आईं कि किस मिट्टी के बने हो तुम धीरज. ‘‘हुं… पापा,’’ अचानक रूसा गंभीर हो गई और कान पकड़ते हुए बोली, ‘‘आई एम सौरी पापा,’’ और फिर धीरज के गले लग गई. ‘‘अरे किस बात की सौरी बच्चे…’’ ‘‘पापा, पिछले दिनों में थोड़ा भटक गई थी… मेरे कारण मेरे अच्छे पापा का बहुत दिल दुखा, मुझे माफ कर दीजिए पापा, माफ करेंगे न?’’ ‘‘मेरा अच्छा बच्चा,’’ कह कर धीरज ने रूसा को गले लगा लिया. मैं ने कुदरत का धन्यवाद अदा किया. लगा वह तूफानी भंवर अब मेरी गृहस्थी को कोई चोट नहीं पहुंचा पाएगा.
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