Shanaya Kapoor: शनाया कपूर की फेल्ड लौंचिंग

Shanaya Kapoor: बौलीवुड की युवा ब्रिगेड में अगर किसी गर्ल गैंग की दोस्ती सब से ज्यादा चर्चा में रहती है तो वो शनाया कपूर, सुहाना खान, नव्या नवेली नंदा और अनन्या पांडे की है. इन्हें अपकमिंग स्टार्स बताया जा रहा है. इन की दोस्ती से जुड़ी फोटोज आएदिन इंस्टाग्राम पर छाई रहती हैं. इन की फ्रैंडशिप कमाल की है. ये अकसर पार्टी, घूमनाफिरना, मौजमस्ती साथ में करती हैं. ये चारों फिल्मी घरानों से आती हैं. इन्हें अच्छाख़ासा प्रिविलेज है कि ये जब चाहें फिल्मों में कदम रख सकती हैं.

इन में से अगर अमिताभ बच्चन की नवासी नव्या नवेली नंदा को छोड़ दिया जाए तो बाक़ी तीनों ने बौलीवुड में अलगअलग समय पर अपना डैब्यू कर लिया है. हां, भले उन के काम को अभी सराहा न गया हो, काम पर खूब किरकिरी हुई हो पर मौकों की कमियां उन के पास अभी भी नहीं हैं.

इन तीनों में से शनाया कपूर ने हाल ही में आई फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ से डैब्यू किया है, जिस में उन के को-ऐक्टर विक्रांत मैसी रहे. शनाया एक समय अचानक मशहूर हुए ऐक्टर और अनिल कपूर के भाई संजय कपूर की बेटी है. भले संजय की झोली में ‘शक्ति’ और ‘दिलबर’ जैसी कुछेक अच्छी फिल्में आईं मगर वे फ्लौप ऐक्टर में ही गिने गए.

अब उन की बेटी शनाया फिल्मों में आई है. मगर उस के लिए पहली फिल्म का एक्सपीरियंस वैसा नहीं रहा जैसा नईनवेली जोड़ी अहान पांडे और अनीत पड्डा के लिए रहा. दोनों ने एक तरह से अपनी डैब्यू फिल्म ‘सैयारा’ में सिनेमा हौल पर हंगामा बरपा दिया. और करोड़ों रुपए डैब्यू फिल्म में ही कमा डाले. यही नहीं, खुद के नाम के आगे तमाम पीआर करवा कर इन्होंने जेनजी स्टार का टैग भी ले लिया.

हालांकि ऐसा करने वाले ये पहले डैब्यू सितारे नहीं रहे. इस से पहले कुमार गौरव, शाहनी आहूजा या इमरान खान जैसे ऐक्टर आए, हंगामा बरपाया मगर फिर फिल्म इंडस्ट्री से ही गायब हो गए.

जाहिर है, जिस तरह की शुरुआत अनीत पड्डा ने की, उसी तरह की शुरुआत हर नई ऐक्ट्रैस करना चाहती है, खासकर ऐसी ऐक्ट्रैस जिस पर नैपोकिड होने का ठप्पा लगा हो. उस के लिए दर्शकों के बीच अपनी इंडिपेंडैंट इमेज बनाना सब से ज्यादा जरूरी होता है. इस मामले में शनाया असफल साबित हुई. उस की पहली फिल्म न सिर्फ फ्लौप हुई बल्कि उस के हिस्से राशा थडानी जैसा ‘उई अम्मा…’ सरीखा आइटम सौंग भी नहीं आ पाया जिस से वह चर्चा में आ पाती.

शनाया की शुरुआत

वैसे तो अपनी फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ से बौलीवुड में डैब्यू करने से पहले शनाया कपूर ने ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ में बतौर असिस्टेंट डायरैक्टर काम किया था. मगर बतौर ऐक्ट्रैस, वह ‘आंखों की गुस्ताखियां’ में नजर आई.

शनाया की मां महीप कपूर ज्वेलरी डिजाइनर है. उस का एक छोटा भाई भी है जिस का नाम जहान कपूर है. 3 नवंबर साल 1999 में जन्मी शनाया ने अपनी स्कूली पढ़ाई मुंबई से की. उस ने इकोले मोंडिएल वर्ल्ड स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की है. इस स्कूल की केजी 1 की सालाना फीस 7 लाख रुपए बताई जाती है. यहां से एक और फिल्मी अभिनेत्री जाह्नवी कपूर ने भी अपनी पढ़ाई की है.

शनाया ने ग्रेजुएशन स्कूल औफ मैनेजमैंट स्टडीज औफ लंदन से किया है. रिपोर्ट्स की मानें तो उस ने ऐक्टिंग के साथ डांसिंग की ट्रेनिंग ली और बौलीवुड में बतौर असिस्टेंट डायरैक्टर काम करना शुरू कर दिया. इस के अलावा शनाया का रुमर्ड बौयफ्रैंड करण कोठारी को बताया जाता है जो मुंबई का बिसनैसमैन है.

अगर शनाया के नैटवर्थ की बात करें तो वह 8 करोड़ रुपए की संपत्ति की मालकिन है. इस में हैरानी नहीं कि यह उस की कमाईधमाई वाली संपत्ति नहीं बल्कि प्रिविलेज का हिस्सा है. इस प्रिविलेज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिना खुद को साबित किए उस के हिस्से पहली फ्लौप के बाद अपकमिंग प्रोजैक्ट्स में तेलुगू–मलयालयम फिल्म ‘वृषभ’ है जिस के 16 अक्टूबर को थिएटर्स में आने की चर्चा है. इस के अलावा ‘तू या मैं’ है, जो अगले साल रिलीज़ होगी. बताया जा रहा है कि कारन जौहर की फिल्म ‘बेधड़क’ में भी वह नजर आ सकती है.

दिखने में सुंदर मगर ऐक्टिंग में कच्ची

इस में कोई शक नहीं कि शनाया बेहद खूबसूरत ऐक्ट्रैस है और दोराय भी नहीं कि उसे यह खूबसूरती अपनी मां महीप कपूर से मिली है जो मात्र 42 साल की हैं. महीप कपूर आज भी शानदार दिखती हैं जिन्होंने 1994 में ‘निगोरी कैसी जवानी है’ में डैब्यू किया था और पहली फिल्म में बुरी तरह फ्लौप हो कर आगे फिल्मों का मोह छोड़ दिया था. जाहिर है, अपनी बेटी में अपना पुराना सपना जरूर देखा होगा.

शनाया कपूर की भी पहली फिल्म फ्लौप हुई. उस के को-एक्टर विक्रांत मैसी थे जो हाल में अपनी फिल्म ’12वीं फेल’ से काफी चर्चित हुए. मगर विक्रांत मैसी के अपोजिट फिल्म में होना यह भी दर्शाता है कि वह अपनी पहली फिल्म अपने अभिनय कौशल को दिखाने की जगह नैपोकिड के उस ठप्पे को मिटाने के लिए कर रही थी जो मीडिया या आम चलन में चर्चित हो गया है.

दरअसल, यह चलन देखा जा रहा है कि किसी स्टारकिड को लौंच करते हुए ध्यान रखा जाता है कि उस का को-एक्टर या ऐक्ट्रैस इंडस्ट्री से बाहर का हो, ताकि प्रिविलेज का तमगा हटाया जा सके या उस से बचा जा सके और लैवल ग्राउंड का नैरेटिव गढ़ा जा सके. यह सोचीसमझी मार्केटिंग स्ट्रेटजी का हिस्सा होता है क्योंकि यह तरीका भी होता है बौयकाट ट्रैंड को टैकल करने का.

बावजूद इस के, अपनी डैब्यू फिल्म में शनाया की ऐक्टिंग को ले कर कोई रिस्पौंस नहीं आया. अच्छी बात यह है कि ऐक्टिंग ख़राब हो, ऐसा नहीं दिखा मगर अच्छी हो, यह भी कहा नहीं जा सकता. हालांकि यह शनाया की पहली फिल्म है तो थोड़ा बेनिफेट औफ न्यू कमर के तौर पर मिलना चाहिए, मगर जिस तरह से बाकी स्टारकिड्स की तरह उस की लग्जरी लाइफ रही है तो वह बिना पीआर और मार्केटिंग के सफल हो, कहा नहीं जा सकता.

Shanaya Kapoor

Ambivalent Relationship में कहीं आप का रिश्ता भी तो नहीं बदल गया

Ambivalent Relationship: जिंदगी की भागदौड़ में कब हमारे रिश्तों में दरार आने लगती है हमें पता ही नहीं चलता. छोटीछोटी बातें राई का पहाड़ बनने लगती हैं. कभी पार्टनर एकदूसरे पर प्रेम और लगाव न्योछावर करते हैं तो कभी पलभर में ही अपने पार्टनर की शक्ल तक देखना नापसंद कर देते हैं.

ऐसे में रिश्ता खुशियों भरा कम व तनावपूर्ण ज्यादा होता जाता है, जोकि न सिर्फ शारारिक, बल्कि मानसिक रूप से भी पीड़ादायक सिद्ध होता है.

इस परिस्थिति का एक कारण रिश्ते में विश्वास की कमी होना भी है. ऐसा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही नहीं, बल्कि किसी के साथ भी हो सकता है फिर चाहे भाईबहन, मातापिता, दोस्त कोई भी हो.

बात यदि लाइफ पार्टनर की करें तो यह जीवनभर के लिए कड़वा अनुभव होता है क्योंकि यह एक दीर्घकालिक संबंध है. इस रिश्ते में 2 लोग एकदूसरे से गहराई से जुड़े होते हैं, जिन के बीच न सिर्फ प्रेम बल्कि टकराव, संघर्ष जैसी भावनाएं भी मौजूद होती हैं. लेकिन जब प्रेम कम और टकराव रिश्ते में घर करने लगें तो समझ लें कि रिश्ता ऐंबिवेलेंट रिलेशनशिप की तरफ जा रहा है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो रिश्ता टूटने व टौक्सिक होने से बचाया जा सकता है.

ऐंबिवेलेंट रिलेशनशिप

यह एक ऐसा रिश्ता है जिस में व्यक्ति के मन में एक ही व्यक्ति के प्रति मिश्रित भावनाएं होती हैं. जैसे कि पलभर में ही प्रेम और घृणा का एकसाथ होना या कभी पार्टनर की और आकर्षित होना तो दूसरे ही पल उसे अस्वीकृत करना. ऐसी दोहरी भावनाएं व्यक्ति के मन में उलझन और तनाव पैदा करती हैं.

कारण को समझें

  • पार्टनर के बीच में संवाद की कमी का होना जिस कारण एकदूसरे की बातों को सही से समझ नहीं पाते.
  • दोनों की सोच और प्राथमिकताएं एकदूसरे से अलग होना.
  • पार्टनर से अत्यधिक अपेक्षा रखना.
  • बचपन की परवरिश में अस्थिर स्नेह या असुरक्षित परवरिश का प्रभाव का होना.

प्रभाव

  • अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रैशन जैसी स्थिति की संभावना बढ़ जाती हैं.
  • रिश्ते में विश्वास व भावनात्मक रूप से जुड़ाव कम होना.
  • रिश्ते से बाहर निकलने के बारे में सोचना लेकिन पार्टनर को खोने का डर भी साथ में बने रहना.

समाधान

  • गुस्सा शांत होने पर एकदूसरे से खुल कर बात करें.
  • अत्यधिक अपेक्षाओं को हावी न होने दें. रिश्ते में सामंजस्य लाने का प्रयास करें.
  • ममता और वातसल्य निरंतरता में बनाए रखें.
  • एकदूसरे की खामियों को नजरअंदाज करने की आदत डालें.
  • काउंसलिंग या थेरैपी की सहायता लें.
  • आत्मविश्वास में कमी न आने दें.
  • एकदूसरे के साथ क्‍वालिटी टाइम बिताएं.
  • एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखें.

Ambivalent Relationship

Credit Card EMI: क्रैडिट कार्ड की ईएमआई मायाजाल में न फंसे

Credit Card EMI: फैस्टिव सीजन आ चुका है और हर शौपिंग प्लेटफौर्म पर ईएमआई पर सामान लेने के औफरों की लाइन लग गई है. लेकिन जरा संभल कर कहीं ये औफर आप की पौकेट पर रितेश की तरह भारी न पड़ जाएं. रितेश 28 साल का एक आईटी प्रोफैशनल था. नई जौब लगी थी, सैलरी भी अच्छी थी और सपनों की लिस्ट भी लंबी. कुछ ही महीनों में उस ने एक ब्रैंडेड लैपटौप, आईफोन और स्मार्ट टीवी खरीद लिया. हर बार खरीदारी के बाद उस के मोबाइल पर मैसेज आता, कन्वर्ट दिस इन टू ईएमआई (Convert this into EMI) रितेश को लगता कि वाह, कितना आसान है…महंगे प्रोडक्ट्स भी बस ₹2-3 हजार महीना दे कर मिल जाते हैं.

धीरेधीरे उस के क्रेडिट कार्ड पर 5-6 ईएमआई चलने लगीं. महीने की सैलरी आते ही आधी रकम ईएमआई और क्रेडिट कार्ड बिल चुकाने में चली जाती. एक दिन अचानक कार खरीदने का मन हुआ, लेकिन बैंक ने लोन रिजैक्ट कर दिया क्योंकि उस का क्रेडिट यूटिलाइजेशन बहुत हाई था.

रितेश सोच में पड़ गया कि आखिर मैं ने ऐसी कौन सी गलती कर दी? मैं तो ईएमआई की सुविधा ले रहा था, फिर भी मेरी फाइनैंशियल स्थिति इतनी खराब क्यों हो गई?

यही सवाल असल में हम सब को सोचना चाहिए. आखिर क्रेडिट कार्ड कंपनियां बारबार ईएमआई का मैसेज क्यों भेजती हैं? क्यों ईएमआई को इतना सुविधाजनक बना कर दिखाया जाता है?

आज की लाइफस्टाइल में क्रेडिट कार्ड सिर्फ पेमैंट का साधन नहीं, बल्कि एक ऐसा टूल बन गया है जिस से बैंक और फाइनैंशियल कंपनियां सब से ज्यादा मुनाफा कमाती हैं. आप ने भी नोटिस किया होगा कि जैसे ही आप बड़ी खरीदारी करते हैं, तुरंत आप के फोन पर मैसेज आता है, ‘कन्वर्ट इन टू ईएमआई.’

नैट बैंकिंग में पौपअप खुलता है या कौल सैंटर से फोन आ जाता है. अब सवाल यह है कि कंपनियां बारबार ईएमआई पर इतना जोर क्यों देती हैं? असल वजह सिर्फ ग्राहक की सुविधा नहीं, बल्कि इस के पीछे छिपा है कंपनियों का बड़ा बिजनैस मौडल.

आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं :

ईएमआई कंपनियों का सब से बड़ा बिजनैस मौडल ईएमआई यानि सीधी भाषा में कहें तो बड़ी रकम को छोटेछोटे मासिक हिस्सों में चुकाने की सुविधा.

कंपनियां इसे एक सुविधा की तरह बेचती हैं, लेकिन असल में यह उन के लिए रैगुलर इनकम का जरीया है, जिस के साथ ब्याज और प्रोसेसिंग फीस जुड़ी होती है, जिस से कंपनियां मोटा मुनाफा कमाती हैं.

ग्राहक को ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित करना

  • मान लीजिए कि किसी के पास तुरंत ₹40,000 नहीं है, तो वह लैपटौप नहीं खरीदेगा. लेकिन अगर वही ईएमआई पर ₹3,500 महीने में मिल रहा है तो ग्राहक आसानी से खरीद लेगा.
  • मतलब ईएमआई ग्राहक को अपनी भविष्य की कमाई आज खर्च करने पर मजबूर करती है.
  • इस से ग्राहकों की खरीदारी बढ़ती है और कंपनी की ट्रांजैक्शन वैल्यू भी.

ब्याज और चार्जेस है असली कमाई

  • नो कौस्ट ईएमआई (No Cost EMI) सुन कर लगता है कि सब मुफ्त है. लेकिन असलियत यह है कि ब्याज को प्रोडक्ट की कीमत में ही जोड़ दिया जाता है.
  • साधारण ईएमआई पर 12% से 18% सालाना तक ब्याज लगता है. ऊपर से प्रोसेसिंग फीस, जीएसटी और लेट पेमैंट चार्ज अलग.
  • अगर कोई ग्राहक पेमैंट मिस करे तो पैनाल्टी से कंपनियों की कमाई और दोगुनी हो जाती है.

ग्राहक लंबे समय तक जुड़ा रहता है

  • ईएमआई के बाद ग्राहक 6, 9 या 12 महीनों तक कंपनी से बंधा रहता है.
  • जब तक किस्तें पूरी नहीं होतीं, ग्राहक कार्ड बंद नहीं कर सकता.
  • इस दौरान ग्राहक कार्ड का इस्तेमाल करता रहता है और कंपनी को लगातार फायदा मिलता है.

ईएमआई सस्ता दिखाने का मनोवैज्ञानिक खेल

  • मार्केटिंग में एक बड़ा ट्रिक है, बड़ी रकम को छोटे हिस्सों में तोड़ दो.
  • ₹50,000 देख कर ग्राहक घबरा जाता है, लेकिन ₹4,500/माह देख कर उसे आसान लगता है.
  • इसी सोच के कारण लोग ईएमआई चुनते हैं और धीरेधीरे कर्ज का बोझ बढ़ जाता है.

मर्चेंट और कंपनी की पार्टनरशिप

  • अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफौर्म ईएमआई औफर क्यों देते हैं? क्योंकि इस में मर्चेंट और कंपनी दोनों का फायदा होता है.
  • मर्चेंट को बिक्री मिलती है, कंपनी को ब्याज और फीस.
  • यह एक विनविन (win-win) मौडल है, जिस में ग्राहक ही ज्यादा बोझ उठाता है.

रिवौल्विंग क्रेडिट (Revolving Credit) की आदत डालना

  • क्रेडिट कार्ड ईएमआई का सब से खतरनाक पहलू यही है कि यह ग्राहकों को रिवौल्विंग क्रेडिट की आदत डाल देता है.
  • ग्राहक पूरा बकाया नहीं चुकाता, बस मिनिमम अकाउंट भरता है.
  • बाकी रकम कैरी फौरवर्ड (carry forward) हो जाती है और उस पर भारी ब्याज जुड़ता है.
  • ईएमआई इस हैबिट को और पक्का कर देती है.

कंपनियों का रिस्क कम करना

  • बड़ी रकम को किस्तों में बांटने से डिफौल्ट का रिस्क घट जाता है.
  • अगर ग्राहक बीच में चूक भी जाए तो लेट फीस, ब्याज और पैनाल्टी से कंपनियों की कमाई चलती रहती है.
  • यानि रिस्क भी कम, फायदा भी पक्का.

डेटा कलैक्शन और मार्केटिंग

  • जब आप ईएमआई लेते हैं, तो आप के खर्च का पूरा डेटा कंपनी के पास जाता है.
  • आप ने क्या खरीदा, कितने में खरीदा, समय पर पेमैंट किया या नहीं, सब रिकौर्ड होता है.
  • इसी डेटा से आप को नए औफर, लोन और प्रोडक्ट्स टारगेट किए जाते हैं.

लग्जरी लाइफस्टाइल की तरफ धकेलना

  • कंपनियां चाहती हैं कि ग्राहक अपनी आय से ज्यादा खर्च करे.
  • ईएमआई देख कर लोग लग्जरी प्रोडक्ट्स तुरंत खरीद लेते हैं.
  • पहले जो चीजें सालों की बचत से मिलती थीं, आज ईएमआई देख कर तुरंत ले ली जाती हैं.
  • यह मौडल लोगों को धीरेधीरे कर्ज की आदत डाल देता है.

ईएमआई क्यों जरूरी है, संक्षेप में जानिए

  • ब्याज और फीस से भारी मुनाफा.
  • ग्राहक की खर्च क्षमता बढ़ाना.
  • ग्राहक को लंबे समय तक जोड़े रखना.
  • मर्चेंट और कंपनी दोनों का फायदा.
  • रिवौल्विंग क्रेडिट की आदत.
  • डेटा और नई सेवाओं की बिक्री.

ग्राहक के लिए सीख

 

  • ईएमआई कई बार नुकसानदेह नहीं होती. अगर इमरजैंसी है या बहुत जरूरी खर्च है, तब ईएमआई काम आ सकती है. लेकिन इसे सोचसमझ कर इस्तेमाल करना चाहिए.

 

  • नो कौस्ट ईएमआई में भी छिपे चार्ज हो सकते हैं.

 

  • कई ईएमआई साथ चलने लगें तो पूरा बजट बिगड़ जाता है.

 

  • याद रखें, ईएमआई का मतलब है भविष्य की कमाई आज खर्च करना.

 

  • क्रेडिट कार्ड कंपनियां ईएमआई जोर देती हैं क्योंकि यह उन के लिए सब से बड़ा कमाई का जरीया है.

 

  • ईएमआई आप को आसान लगती है लेकिन असल में यह कंपनियों की ऐसी रणनीति है जिस में ब्याज, चार्जेस और लौयल्टी आदि सब कुछ एकसाथ हासिल होता है.

 

तो अगली बार जब आप के कार्ड पर ईएमआई का मैसेज आए, तो जरूर सोचिए कि यह सचमुच आप की सुविधा है या मुनाफे का खेल.

Credit Card EMI

Breakup At Night: ब्रेकअप रात को ही क्यों हैवी फील होता है?

Breakup At Night: आप ने कभी नोटिस किया है कि जब भी ब्रेकअप होता है, दिन में हम थोड़ाबहुत संभाल लेते हैं, लेकिन जैसे ही रात आती है, सब कुछ भारी क्यों लगने लगता है? ऐसा क्यों होता है? दिल यों बैठने क्यों लगता है और क्यों हम बारबार पुराने चैट्स खोलते हैं, पुराने पलों को याद करते हैं या फिर उस इंसान की प्रोफाइल तक जा पहुंचते हैं जिसे छोड़ने का या खोने का दर्द अभी तक गया नहीं? ऐसा होने के कई कारण हैं.

रात की शांति में मन की आवाज ज्यादा तेज सुनाई देती है

दिन में हमारे पास बहुतकुछ करने को होता है. कालेज जाना, औफिस का काम, दोस्तों से मिलना, बाहर जाना, ट्रैफिक, शोरशराबा. लेकिन जैसे ही रात होती है, सब शांत हो जाता है. और जब बाहर की आवाजें कम हो जाती हैं तब हमारे अंदर की आवाजें तेज हो जाती हैं.

यादें, बातें, लड़ाइयां सबकुछ फिर से जेहन में ताजा हो जाता है

अनुष्का का ब्रेकअप हुआ था 2 महीने पहले. दिन में वह अपने औफिस और जिम में बिजी रहती थी, लेकिन रात को जब वह अकेले अपने कमरे में होती तो रोके न रुकती. वह कहती है, दिन में सब ठीक लगता है, पर रात में ऐसा लगता है जैसे सबकुछ टूट गया हो.

थकावट से हैवी होते इमोशन

जब हम थके होते हैं तो हमारी मानसिक ताकत कम हो जाती है. हम उतने मजबूत नहीं रह पाते जितने दिन में रहते हैं. और अगर ब्रेकअप के बाद हमारी नींद भी डिस्टर्ब हो रही है तो दिमाग थक चुका होता है. ऐसे में इमोशन्स का बहाव और भी ज्यादा होता है.

नींद हमारे दिमाग को रीसैट करने का काम करती है. लेकिन जब हम रातरातभर जाग कर आंसू बहाते हैं, तो वह रीसैट नहीं हो पाता. उलटा, दिमाग और भी डिस्टर्ब हो जाता है.

रात का समय वह होता है जब हम उसे मैसेज करते थे, कौल करते थे, गुडनाइट कहते थे, प्यारी और रोमांटिक इमोजी भेजते थे. वह जो हमारा सब से पर्सनल टाइम था वही अब सबसे ज्यादा खाली लगने लगता है.

अंकुर और नताशा का ब्रेकअप 3 साल की रिलेशनशिप के बाद हुआ. अंकुर कहता है, “हम रोज रात 11 बजे कौल पर होते थे. अब वो टाइम आते ही मोबाइल देखता हूं, फिर रख देता हूं. नींद ही नहीं आती.”

दरअसल, सभी दिनभर काम में बिजी होते हैं तो ढंग से उन में बात नहीं हो पाती लेकिन रात में कोई जरूरी काम नहीं होते इसलिए उस वक्त दोनों ही फ्री हो कर एकदूसरे से बात करते हैं. ऐसे में ब्रेकअप के बाद यही समय सब से ज्यादा हर्ट होता है.

सोशल मीडिया पर सबकुछ दिखता है लेकिन कुछ भी मिलता नहीं

रात को जब हम खाली होते हैं तो हम सब से ज्यादा स्क्रौल करते हैं. और वहीं से फिर शुरू होती है एकदूसरे से कंपेयर करने की धुन. कोई कपल रील बना रहा है, कोई पहाड़ों में घूम रहा है, कोई पार्टनर की बात कर रहा है. ऐसे में अपना दर्द और ज्यादा गहरा लगने लगता है. ये सोचने लगते हैं कि हम ही क्यों अकेले रह गए.

सोशल मीडिया रात को इमोशनल ट्रैप बन जाता है- बाहर से ग्लैमरस, अंदर से दर्द बढ़ाने वाला.

दिल और दिमाग के बीच लड़ाई

दिन में हमारा दिमाग थोड़ा लौजिकल तरीके से सोचता है- ‘उस ने सही नहीं किया’, ‘यह रिश्ता अब सही नहीं था’ वगैरह. लेकिन रात को दिल हैवी हो जाता है — ‘वो कैसा होगा?’, ‘क्या मुझे मिस करता होगा?’, ‘क्या दोबारा बात करनी चाहिए?’ मुश्किल तब और ज्यादा बढ़ जाती है जब फिजिकल रिलेशन बन जाते हैं तो रात में वो पल ज्यादा याद आते हैं.

यह वही टाइम होता है जब हम पुरानी चैट्स पढ़ते हैं, पुराने फोटोज देखते हैं,  या फिर उस की प्रोफाइल स्टौक करते हैं.

रात अकेलेपन को ज्यादा बड़ा दिखाती है

जब दिनभर लोग हमारे आसपास होते हैं तो अकेलापन कम महसूस होता है. लेकिन जैसे ही अंधेरा होता है और कमरे में अकेले होते हैं, तो वह अकेलापन दसगुना बढ़ जाता है. और ब्रेकअप के बाद तो यह और भी बुरा फील होता है.

यादों का फ्लैशबैक ज्यादातर रात में चलता है

रात को अकसर हमारी आंखों के सामने वो सारी चीजें चलती हैं, जैसे पहली मुलाकात, पहली डेट, लड़ाइयां, आखिरी कौल, आखिरी मैसेज आदि. दिमाग जैसे औटो प्लेमोड में चला जाता है और हम उस दर्द में वापस चले जाते हैं जिस से बाहर आने की कोशिश कर रहे थे.

ब्रेकअप के बाद सिर्फ इंसान नहीं जाता, साथ में उस की मौजूदगी से जुड़ी आदतें भी चली जाती हैं. जैसे, रात को उस की आवाज सुन कर सोना, उस का गुडनाइट मैसेज या फोन पर चैट करते हुए सो जाना ये सब जब अचानक बंद हो जाता है तब वह खालीपन और भी ज्यादा चुभता है.

हम सब से ज्यादा खुद से बातें रात को करते हैं

रात को हम खुद से सवाल करते हैं, ‘क्या मेरी गलती थी?’, ‘क्या मैं ने सबकुछ किया?’, ‘क्या वह लौटेगा?’ और इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता. जवाब न मिलने की ही बेचैनी हमारे दुख को और गहरा कर देती है.

क्या किया जाए?

अब सवाल यह उठता है क्या हम रातों को यों ही भारी महसूस करते रहें या कुछ कर सकते हैं?

* रूटीन सैट करें : रात को सोने का एक फिक्स टाइम बनाएं. मोबाइल ले कर बेड पर न जाएं.

* मैसेज व प्रोफाइल चैक करना बंद करें : जितना ज्यादा आप उसे देखते रहेंगे, उतना ही भूल नहीं पाएंगे.

* कुछ पौजिटिव पढ़ें या सुनें : पौडकास्ट, बुक्स या रिलैक्सिंग म्यूजिक से रात को शांत बनाया जा सकता है.

* एक्सप्रैस करें : कुछ भी मन में आए तो लिखिए डायरी में या नोट्स ऐप में या किसी जिगरी दोस्त से शेयर करें.

रातों का भारीपन कोई नई बात नहीं है, यह बहुत नैचुरल है. जब प्यार छूटता है, तो दिल को वक्त लगता है संभलने में. और रात वो वक्त होता है जब हम अपने खुद के सब से करीब होते हैं, इसलिए ब्रेकअप की चुभन सब से ज्यादा तब ही महसूस होती है.

Breakup At Night

Genz New Trend: नौकरी के लिए लिंक्डइन नहीं, डेटिंग ऐप्स बना नया रास्ता

Genz New Trend: नौकरी की तलाश की बात करते हैं, तो दिमाग में सब से पहले आता है रिज्यूमे बनाना, एचआर को मेल भेजना या लिंक्डइन, इंडीड जैसी ऐप्स में जा कर प्रोफाइल अपडेट करना. लेकिन आजकल एक नया ट्रैंड सामने आ रहा है, जिसे जान कर कोई भी चौंक सकता है. नौकरी के लिए युवा अब लिंक्डइन छोड़ कर डेटिंग ऐप्स का सहारा ले रहे हैं.

जी हां, अब बंबल, टिंडर और हिंज जैसी ऐप्स सिर्फ डेटिंग तक सीमित नहीं रहीं. युवा प्रोफैशनल्स इन्हें नैटवर्किंग और कैरियर कनैक्शन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. यह बदलाव सोशल मीडिया के बदलते यूज पैटर्न, जेनरेशन जेड की सोच के नए तरीकों को साफ दिखाता है.

नैना, जो कि एक ग्राफिक डिजाइनर है, ने लौकडाउन के दौरान बंबल पर एक लड़के से बात शुरू की. बात करतेकरते उसे पता चला कि वह लड़का एक क्रिएटिव एजेंसी में काम करता है और उस की कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर की जरूरत है. नैना ने अपने काम के कुछ सैंपल भेजे और कुछ हफ्तों में उसे जौब मिल गया.

नैना कहती है, “बंबल पर मैं डेटिंग के लिए नहीं, लोगों से बात करने और टाइम पास करने के लिए थी. पर सोचा नहीं था कि वहां से नौकरी भी मिल सकती है.”

यह एक तरह से जानपहचान बनाने का जरिया है, जिस का फायदा कैरियर में भी हो रहा है. जैसे, पहले के समय में होता था जब लोग जानपहचान का सहारा ले कर कहीं काम पर लग जाया करते थे या अप्रोच करते थे.

 डेटिंग ऐप्स: अब सिर्फ डेटके लिए नहीं

अब डेटिंग ऐप्स सिर्फ रोमांटिक पार्टनर ढूंढ़ने की जगह नहीं रह गई हैं. यहां लोग दोस्त बना रहे हैं, प्रोफैशनल कनैक्शन खोज रहे हैं, उसी हिसाब से अपने मैच की प्रिफरैंस देखते हैं जो उन के कैरियर में मददगार हो सकता है और कई बार वहां लोग बिजनैस आइडियाज तक डिस्कस कर रहे होते हैं.

इस की खास वजहें हैं

कम फौर्मेलिटी : लिंक्डइन पर बात शुरू करना कई बार किसी इंटरव्यू जैसा लगता है. फौर्मल भाषा पर प्रोफैशनल टोन. कई बार डेटिंग ऐप्स पर लोग अधिक खुल कर बात करते हैं. आमतौर पर दोस्ती हो ही जाती है. खासकर, यंग लड़कियां इन ऐप्स को अपने फायदे के लिए भुना सकती हैं. ये ऐप्स न सिर्फ कौन्फिडैंस देती हैं बल्कि अपनी पहचान छिपा कर लड़कों के साथ घुलनेमिलने का मौका भी देती है.

बायो में बदलती सोच : अब लोग टिंडर या बंबल की बायो में ‘लुकिंग फौर क्रिएटिव कोलैब’ जैसे प्रोफैशनल हिंट डालने लगे हैं. ऐसा ही इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफौर्म पर होता है. यूथ अपनी प्रोफैशनल आइडैंटिटी को भी डालते हैं. इस से वे बताते हैं कि कैरियर पौइंट औफ व्यू से वे किस दिशा में बढ़ रहे हैं.

कम कंपीटिशन वाला माहौल : लिंक्डइन पर एक जौब पोस्ट पर सैकड़ों एप्लिकेशन होती हैं. डेटिंग ऐप्स पर कोई जब कहता है, ‘हे, आई एम रनअप अ स्टार्टअप’ तो उस से सीधे बातचीत का मौका बनता है, बिना किसी भीड़ के.

फटाफट कनैक्शन : डेटिंग ऐप्स का इंटरफेस सुपरफास्ट है. दो मिनट में स्वाइप कर के किसी से कनैक्ट हो जाओ. लिंक्डइन पर तो जौब ढूंढने में घंटों लग जाते हैं, वह भी तब जब कोई रिस्पौंस दे. हां, लिंक्डइन प्रोफैशनल है और जौब्स की अधिकतर पोस्ट वहीँ होती हैं. कंपनी के एचआर डायरैक्ट वहां से एप्लिकैंट को शौर्टलिस्ट करते हैं. मगर लिंक्डइन में अप्रोच नहीं चलता. लेकिन डेटिंग ऐप्स में ऐसी कंपनियों में काम करने वाले कईयों होते हैं. उन से जानपहचान बन जाती है.

आदित्य एक सौफ्टवेयर डैवलपर है, जो अपने स्टार्टअप आइडिया के लिए कोफाउंडर ढूंढ़ रहा था. उस ने हिंज पर अपनी प्रोफाइल में लिखा- “Coder by profession, looking to build something exciting. DM if you’re into tech & startups.”

हफ्तेभर में ही उसे एक लड़की का मैसेज आया जो प्रोडक्ट डिजाइनर थी और उसी तरह का आइडिया सोच रही थी. अब दोनों ने मिल कर एक ऐप लौंच कर दी है.

आदित्य हंसते हुए कहता है, “प्यार तो नहीं मिला, लेकिन पार्टनर जरूर मिल गया वह भी प्रोफैशनल वाला.”

 क्या यह ट्रैंड आगे बढ़ेगा

जेनजी और मिलेनियल्स उन प्लेटफौर्म्स पर जाना पसंद करते हैं जहां वे खुद को एक्सप्रैस कर सकें, बायो मजेदार रख सकें और बातचीत में कोई दबाव न हो. आज का यूथ प्रोफैशनली नहीं लिख सकता. अब ऐसा भी नहीं रहा कि उन के स्कूलों में प्रोफैशनल लैटर लिखना सिखाया जा रहा हो. वह अपने स्लैंग में लिखता है. प्रोफैशनल चीजों के लिए यूथ एआई भरोसे है. वह एआई को कमांड देता है और झटपट लैटर, मेल या ड्राफ्ट लिखवा लेता है.

डेटिंग ऐप्स धीरेधीरे इस ट्रैंड को समझ रही हैं. बंबल ने ‘बंबल बिज’ और ‘बंबल बीएफएफ’ जैसे सैक्शन लौंच किए हैं, जो खासतौर पर नैटवर्किंग और फ्रैंडशिप के लिए हैं.

 कुछ बातें जो ध्यान रखने वाली हैं

* आप डेटिंग ऐप पर सिर्फ प्रोफैशनल नैटवर्किंग चाहते हैं, तो अपने बायो में यह साफसाफ लिखें.

* सीमा बना कर रखें. ये प्लेटफौर्म डेटिंग के लिए बनाए गए हैं, इसलिए बातचीत में प्रोफैशनल और पर्सनल का फर्क समझना जरूरी है.

आज की जेनरेशन प्रोफैशनल कनैक्शन के लिए अलग रास्ते खोज रही है. वह सिर्फ ‘डिग्री और सीवी’ पर भरोसा नहीं करती, बल्कि ‘इंप्रैशन और बातचीत’ को भी उतना ही महत्त्व देती है.

जब वे लिंक्डइन पर भीड़ देख कर निराश होते हैं, तो ऐसे प्लेटफौर्म्स की ओर मुड़ जाते हैं जहां उन्हें इंसान के तौर पर जाना जाए, न कि सिर्फ एक प्रोफाइल या स्किल के रूप में.

और शायद यही वजह है कि डेटिंग ऐप्स, जो कभी सिर्फ ‘डेट खोजने’ के लिए बनाए गए थे, अब कैरियर बिल्डिंग का एक अनोखा रास्ता बनते जा रहे हैं खासकर उन के लिए जो क्रिएटिव फील्ड में कुछ करना चाहते हैं.

नौकरी पाने या नैटवर्किंग करने के लिए रास्ते अब सिर्फ औफिस या कौर्पोरेट मीटिंग तक सीमित नहीं हैं. जहां कभी प्यार के लिए राइट स्वाइप किया जाता था, आज वहां कैरियर के नए दरवाजे भी खुल रहे हैं.

इस बदलते ट्रैंड को देख कर कह सकते हैं– “Swipe right for opportunity”.

Genz New Trend

Maternity Wear खरीदते समय रखें इन बातों का ध्यान

Maternity Wear: प्रैगनैंसी एक ऐसा दौर होता है जिस से अधिकांश महिलाएं कभी न कभी गुजरती ही हैं. पहले महीने से ले कर 9वें महीने तक महिलाओं के शरीर में अनेक बदलाव होते हैं जिस से उन के सभी आउटफिट्स धीरेधीरे छोटे और तंग होने लगते हैं.

यों तो आजकल बाजार में भांतिभांति के मैटरनिटी वियर उपलब्ध हैं पर इन्हें खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है ताकि पूरे 9 महीने तक आप आराम से इन का उपयोग कर सकें.

आइए, जानते हैं कुछ टिप्स जो मैटरनिटी वियर खरीदते समय आप के लिए काफी मददगार साबित होंगे :

कंफर्ट और सपोर्ट है सब से जरूरी

चूंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर में अनेक बदलाव होते हैं, जिस के कारण शरीर का आकार भी थोड़ा बढ़ जाता है. मैटरनिटी वियर चूंकि एक पर्टिकुलर कैटेगरी को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं, इसलिए इन की कीमत काफी अधिक होती है. इसलिए इन्हें खरीदते समय किसी भी प्रकार का समझौता न करें.

ढीलेढाले कपड़े खरीदें ताकि एक तो पूरे 9 महीने आप इन्हें उपयोग कर सकें और जिन्हें पहन कर आप को कंफर्ट फील हो. इस अवस्था में बहुत मूड स्विंग्स होते हैं इसलिए प्योर कौटन के ऐसे कपड़े खरीदें जिन में आप को कंफर्ट फील हो.

मौसम के अनुकूल हो फैब्रिक

गरमियों में प्योर कौटन और लिनेन, सर्दियों में मुलायम ब्लैंडेड फैब्रिक से बने कपड़ों का चयन करें ताकि आप इन में खुद को कंफर्टेबल फील कर सकें. इस दौरान आप के ब्रैस्ट, कमर और पेट का आकार समय के साथसाथ बढ़ता है इसलिए स्ट्रेचेबल फैब्रिक से बने कपड़ों का चयन करें ताकि शरीर के हिसाब से वे स्ट्रेच हो सकें. सिंगल जर्सी, लायक्रा और स्पेंडैक्स फैब्रिक से बने कपड़े चुनें. ये काफी स्ट्रेचेबल होते हैं.

डिजाइन पर भी दें ध्यान

इस दौरान बहुत अधिक टाइट फिटिंग वाले कपड़े पहनने से बचें क्योंकि इन में बढ़े हुए पेट का उभार अलग से दिखने लगता है जो दिखने में बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता. दूसरे, अधिक कसे कपड़ों में आप को घबराहट भी हो सकती है. खुली बाजुओं वाली ए लाइन और अंपायर कट ड्रैसेज, ढीलेढाले टौप्स और फुललैंथ अनारकली ड्रैसेज आप पर खूब फबेंगी.

लेयरिंग से दिखें स्टाइलिश

इस दौरान आप लेयरिंग से खुद को स्टाइलिश दिखाएं. मसलन वन पीस ड्रैस के साथ एक लंबा श्रग, सूट के साथ जैकेट और किसी भी टौप के साथ फ्लाई सा श्रग आप की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देगा.

सपोर्टिव हों इनरवियर

आजकल बाजार में भांतिभांति के प्रैगनैंसी इनरवियर उपलब्ध हैं. आप अपनी पसंद और साइज के अनुसार इन का चयन कर सकती हैं. ये सामान्य इनरवियर की अपेक्षा काफी चौड़े, स्ट्रेचेबल तो होते ही हैं साथ ही ऐक्स्ट्रा सपोर्ट के लिए इन के स्ट्रेप भी काफी चौड़े होते हैं. इस से स्किन पर स्ट्रेप के निशान नहीं पड़ते, शरीर को सपोर्ट मिलता है और कमर आदि में दर्द नहीं होता.

ट्राई करें ये ड्रैसेज

सलवार कमीज और साड़ी की अपेक्षा ढीली फिटिंग वाले लोअर टीशर्ट या फुललैंथ गाउन पहनें. इस से शरीर को काफी आराम मिलेगा. यदि सलवार कमीज ही पहनना चाहती हैं तो रैडीमेड की अपेक्षा बाजार से फैब्रिक खरीद कर ढीलेढाले कुरते और इलास्टिक वाली सलवार बनवाएं ताकि आप की कमर और पेट को पर्याप्त आराम मिल सकें.

ब्रैस्ट फीडिंग का रखें ध्यान

डिलिवरी हो जाने के बाद आप को बच्चे को फीड कराना होता है, इसलिए आउटफिट खरीदते समय इस बात का भी ध्यान रखें. आप फ्रंट ओपन या कमर तक के ओपन आउटफिट चुन सकती हैं.

रखें इन बातों का ध्यान

  • मैटरनिटी वियर किसी अच्छी ब्रैंड के ही खरीदें ताकि इन की क्वालिटी अच्छी रहे और धुलने के बाद श्रिंक न हों और रंग भी न छोड़ें.
  • चूंकि इस दौरान शरीर का आकार धीरेधीरे बढ़ता है, इसलिए भले ही आप प्रैगनैंसी के शुरू में ही अपने लिए आउटफिट खरीदें पर साइज बड़ा ही खरीदें ताकि पूरी प्रैगनैंसी में आप इन का प्रयोग कर सकें.
  • एकदम बारीक और प्लेन फैब्रिक की अपेक्षा प्रिंटेड और होजरी जैसे मोटे फैब्रिक को चुनें क्योंकि पतले फैब्रिक की अपेक्षा मोटे फैब्रिक पेट के उभार को अच्छे से कवर कर लेते हैं.
  • फ्रंट पैनल वाले डिजाइन और स्ट्रेचेबल फैब्रिक के आउटफिट इस समय के लिए एकदम परफैक्ट रहते हैं क्योंकि ये पेट के उभार को कवर कर लेते हैं.
  • ये आउटफिट्स काफी महंगे होते हैं, इसलिए इन्हें हमेशा अपने बजट को ध्यान में रख कर ही खरीदें. साथ ही शौप पर ही ट्राई भी करें ताकि बाद में रिटर्न या ऐक्सचैंज का चक्कर न रहे.

Hindi Social Story: सहारा- कौन बना अर्चना के बुढ़ापे का सहारा

Hindi Social Story: ‘‘अर्चना,’’ उस ने पीछे से पुकारा.

‘‘अरे, रजनीश…तुम?’’ उस ने मुड़ कर देखा और मुसकरा कर बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं, कैसा अजब इत्तिफाक है कि तुम दिल्ली की और मैं मुंबई का रहने वाला और हम मिल रहे हैं बंगलौर की सड़क पर. वैसे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं आजकल यहीं रहती हूं. यहां घडि़यों की एक फैक्टरी में जनसंपर्क अधिकारी हूं. और तुम?’’

‘‘मैं यहां अपने व्यापार के सिलसिले में आया हुआ हूं. मेरी पत्नी भी साथ है. हम पास ही एक होटल में ठहरे हैं.’’

2-4 बातें कर के अर्चना बोली, ‘‘अच्छा…मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे रुको,’’ वह हड़बड़ाया, ‘‘इतने  सालों बाद हम मिले हैं, मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं. क्या हम दोबारा नहीं मिल सकते?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ कहते हुए अर्चना ने विजिटिंग कार्ड पर्स में से निकाला और उसे देती हुई बोली, ‘‘यह रहा मेरा पता व फोन नंबर. हो सके तो कल शाम की चाय मेरे साथ पीना और अपनी पत्नी को भी लाना.’’

अर्चना एक आटो-रिकशा में बैठ कर चली गई. रजनीश एक दुकान में घुसा जहां उस की पत्नी मोहिनी शापिंग कर तैयार बैठी थी.

‘‘मेरीखरीदारी हो गई. जरा देखो तो ये साडि़यां ज्यादा चटकीली तो नहीं हैं. पता नहीं ये रंग

मुझ पर खिलेंगे

या नहीं,’’ मोहिनी बोली.

रजनीश ने एक उचटती नजर मोहिनी पर डाली. उस का मन हुआ कि कह दे, अब उस के थुलथुल शरीर पर कोई कपड़ा फबने वाला नहीं है, पर वह चुप रह गया.

मोहिनी की जान गहने व कपड़ों में बसती है. वह सैकड़ों रुपए सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्चती है. घंटों बनती-संवरती है. केश काले करती है, मसाज कराती है. नाना तरह के उपायों व साधनों से समय को बांधे रखना चाहती है. इस के विपरीत रजनीश आगे बढ़ कर बुढ़ापे को गले लगाना चाहता है. बाल खिचड़ी, तोंद बढ़ी हुई, एक बेहद नीरस, उबाऊ जिंदगी जी रहा है वह. मन में कोई उत्साह नहीं. किसी चीज की चाह नहीं. बस, अनवरत पैसा कमाने में लगा रहता है.

कभीकभी वह सोचता है कि वह क्यों इतनी जीतोड़ मेहनत करता है. उस के बाद उस के ऐश्वर्य को भोगने वाला कौन है. न कोई आसऔलाद न कोई नामलेवा… और तो और इसी गम में घुलघुल कर उस की मां चल बसीं.

संतान की बेहद इच्छा ने उसे अर्चना को तलाक दे कर मोहिनी से ब्याह करने को प्रेरित किया था. पर उस की इच्छा कहां पूरी हो पाई थी.

होटल पहुंच कर रजनीश बालकनी में जा बैठा. सामने मेज पर डिं्रक का सामान सजा हुआ था. रजनीश ने एक पैग बनाया और घूंटघूंट कर के पीने लगा.

उस का मन बरबस अतीत में जा पहुंचा.

कालिज की पढ़ाई, मस्तमौला जीवन. अर्चना से एक दिन भेंट हुई. पहले हलकी नोकझोंक से शुरुआत हुई, फिर छेड़छाड़, दोस्ती और धीरेधीरे वे प्रेम की डोर में बंध गए थे.

एक रोज अर्चना उस के पास घबराई हुई आई और बोली, ‘रजनीश, ऐसे कब तक चलेगा?’

‘क्या मतलब?’

‘हम यों चोरी- छिपे कब तक मिलते रहेंगे?’

‘क्यों भई, इस में क्या अड़चन है? तुम लड़कियों के होस्टल में रहती हो, मैं अपने परिवार के साथ. हमें कोई बंदिश नहीं है.’

‘ओहो…तुम समझते नहीं, हम शादी कब कर रहे हैं?’

‘अभी से शादी की क्या जल्दी पड़ी है, पहले हमारी पढ़ाई तो पूरी हो जाए…उस के बाद मैं अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाऊंगा फिर जा कर शादी…’

‘इस में तो सालों लग जाएंगे,’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘तो लगने दो न…हम कौन से बूढ़े हुए जा रहे हैं.’

‘हमारे प्यार को शादी की मुहर लगनी जरूरी है.’

‘बोर मत करो यार,’ रजनीश ने उसे बांहों में समेटते हुए कहा, ‘तनमनधन से तो तुम्हारा हो ही चुका हूं, अब अग्नि के सामने सिर्फ चंद फेरे लेने में ही क्या रखा है.’

‘रजनीश,’ अर्चना उस की गिरफ्त से छूट कर घुटे हुए स्वर में बोली, ‘मैं…मैं प्रेग्नैंट हूं.’

‘क्या…’ रजनीश चौंका, ‘मगर हम ने तो पूरी सावधानी बरती थी…खैर, कोई बात नहीं. इस का इलाज है मेरे पास, अबार्शन.’

‘अबार्शन…’ अर्चना चौंक कर बोली, ‘नहीं, रजनीश, मुझे अबार्शन से बहुत डर लगता है.’

‘पागल न बनो. इस में डरने की क्या बात है? मेरा एक दोस्त मेडिकल कालिज में पढ़ता है. वह आएदिन ऐसे केस करता रहता है. कल उस के पास चले चलेंगे, शाम तक मामला निबट जाएगा. किसी को कानोंकान खबर भी न होगी.’

‘लेकिन जब हमें शादी करनी ही है तो यह सब करने की जरूरत?’

‘शादी करनी है सो तो ठीक है, लेकिन अभी से शादी के बंधन में बंधना सरासर बेवकूफी होगी. और जरा सोचो, अभी तक मेरे मांबाप को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं मालूम. अचानक उन के सामने फूला पेट ले कर जाओगी तो उन्हें बुरी तरह सदमा पहुंचेगा.

‘नहीं, अर्चना, मुझे उन्हें धीरेधीरे पटाना होगा. उन्हें राजी करना होगा. आखिर मैं उन की इकलौती संतान हूं. मैं उन की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता.’

‘प्यार का खेल खेलने से पहले ही यह सब सोचना था न?’ अर्चना कुढ़ कर बोली.

‘डार्ल्ंिग, नाराज न हो, मैं वादा करता हूं कि पढ़़ाई पूरी होते ही मैं धूमधड़ाके से तुम्हारे द्वार पर बरात ले कर आऊंगा और फिर अपने यहां बच्चों की लाइन लगा दूंगा…’

लेकिन शादी के 10-12 साल बाद भी बच्चे न हुए तो रजनीश व अर्चना ने डाक्टरों का दरवाजा खटखटाया था और हरेक डाक्टर का एक ही निदान था कि अर्चना के अबार्शन के समय नौसिखिए डाक्टर की असावधानी से उस के गर्भ में ऐसी खराबी हो गई है जिस से वह भविष्य में गर्भ धारण करने में असमर्थ है.

यह सुन कर अर्चना बहुत दुखी हुई थी. कई दिन रोतेकलपते बीते. जब जरा सामान्य हुई तो उस ने रजनीश को एक बच्चा गोद लेने को मना लिया.

अनाथाश्रम में नन्हे दीपू को देखते ही वह मुग्ध हो गई थी, ‘देखो तो रजनीश, कितना प्यारा बच्चा है. कैसा टुकुरटुकुर हमें ताक रहा है. मुझे लगता है यह हमारे लिए ही जन्मा है. बस, मैं ने तो तय कर लिया, मुझे यही बच्चा चाहिए.’

‘जरा धीरज धरो, अर्चना. इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. एक बार अम्मां व पिताजी से भी पूछ लेना ठीक रहेगा.’

‘क्योें? उन से क्यों पूछें? यह हमारा व्यक्तिगत मामला है, इस बच्चे को हम ही तो पालेंगेपोसेंगे.’

‘फिर भी, यह बच्चा उन के ही परिवार का अंग होगा न, उन्हीं का वंशज कहलाएगा न?’

यह सुन कर अर्चना बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘वह सब मैं नहीं जानती. तुम्हारे मातापिता से तुम्हीं निबटो. यह अच्छी रही, हर बात में अपने मांबाप की आड़ लेते हो. क्या तुम अपनी मरजी से एक भी कदम उठा नहीं सकते?’

रजनीश के मांबाप ने अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने के प्रस्ताव का जम कर विरोध किया इधर अर्चना भी अड़

गई कि वह दीपू को गोद ले कर ही रहेगी.

‘‘रजनीश…’’ मोहिनी ने आवाज दी, ‘‘खाना खाने नीचे, डाइनिंग रूम में चलोगे या यहीं पर कुछ मंगवा लें?’’

यह सुन कर रजनीश की तंद्रा टूटी. एक ही झटके में वह वर्तमान में लौट आया. बोला, ‘‘यहीं पर मंगवा लो.’’

खाना खाते वक्त रजनीश ने पूछा, ‘‘कल शाम को तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘सोच रही थी यहां की जौहरी की दुकानें देखूं. मेरी एक सहेली मुझे ले जाने वाली है.’’

‘‘ठीक है, मैं भी शायद व्यस्त रहूंगा.’’

रजनीश ने अर्चना को फोन किया, ‘‘अर्चना, हमारा कल का प्रोग्राम तय है न?’’

‘‘हां, अवश्य.’’

फोन का चोंगा रख कर अर्चना उत्तेजित सी टहलने लगी कि रजनीश अब क्यों उस से मिलने आ रहा है. उसे अब मुझ से क्या लेनादेना है?

तलाकनामे पर हुए हस्ताक्षर ने उन के बीच कड़ी को तोड़ दिया था. अब वे एकदूसरे के लिए अजनबी थे.

‘अर्चना, तू किसे छल रही है?’ उस के मन ने सवाल किया.

रजनीश से तलाक ले कर वह एक पल भी चैन से न रह पाई. पुरानी यादें मन को झकझोर देतीं. भूलेबिसरे दृश्य मन को टीस पहुंचाते. बहुत ही कठिनाई से उस ने अपनी बिखरी जिंदगी को समेटा था, अपने मन की किरिचों को सहेजा था.

उस का मन अनायास ही अतीत की गलियों में विचरने लगा.

उसे वह दिन याद आया जब नन्हे दीपू को ले कर घर में घमासान शुरू हो गया था.

उस ने रजनीश से कहा था कि वह दफ्तर से जरा जल्दी आ जाए ताकि वे दोनों अनाथाश्रम जा कर बच्चों में मिठाई बांट सकें. आश्रम वालों ने बताया है कि आज दीपू का जन्मदिन है.

यह सुन कर रजनीश के माथे पर बल पड़ गए थे. वह बोला, ‘यह सब न ही करो तो अच्छा है. पराए बालक से हमें क्या लेना.’

‘अरे वाह…पराया क्यों? हम जल्दी ही दीपू को गोद लेने वाले जो हैं न?’

‘इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं.’

‘तुम जल्दीबाजी की कहते हो, मेरा वश चले तो उसे आज ही घर ले आऊं. पता नहीं इस बच्चे से मुझे इतना मोह क्यों हो गया है. जरूर हमारा पिछले जन्म का रिश्ता रहा होगा,’ कहती हुई अर्चना की आंखें भर आई थीं.

यह देख कर रजनीश द्रवित हो कर बोला था, ‘ठीक है, मैं शाम को जरा जल्दी लौटूंगा. फिर चले चलेंगे.’

रजनीश को दरवाजे तक विदा कर के अर्चना अंदर आई तो सास ने पूछा, ‘कहां जाने की बात हो रही थी, बहू?’

‘अनाथाश्रम.’

यह सुन कर तो सास की भृकुटियां तन गईं. वह बोली, ‘तुम्हें भी बैठेबैठे पता नहीं क्या खुराफात सूझती रहती है. कितनी बार समझाया कि पराई ज्योति से घर में उजाला नहीं होता, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. अरे, गोद लिए बच्चे भी कभी अपने हुए हैं, खून के रिश्ते की बात ही और होती है,’ फिर वह भुनभुनाती हुई पति के पास जा कर बोली, ‘अजी सुनते हो?’

‘क्या है?’

‘आज बहूबेटा अनाथाश्रम जा रहे हैं.’

‘सो क्यों?’

‘अरे, उसी मुए बच्चे को गोद लेने की जुगत कर रहे हैं और क्या. मियांबीवी की मिलीभगत है. वैद्य, डाक्टरों को पैसा फूंक चुके, पीरफकीरों को माथा टेक चुके, जगहजगह मन्नत मान चुके, अब चले हैं अनाथाश्रम की खाक छानने.

‘न जाने किस की नाजायज संतान, जिस के कुलगोत्र का ठिकाना नहीं, जातिपांति का पता नहीं, ला कर हमारे सिर मढ़ने वाले हैं. मैं कहती हूं, यदि गोद लेना ही पड़ रहा है तो हमारे परिवार में बच्चों की कमी है क्या? हम से तो भई जानबूझ कर मक्खी निगली नहीं जाती. तुम जरा रजनीश से बात क्यों नहीं करते.’

‘ठीक है, मैं रजनीश से बात करूंगा.’

‘पता नहीं कब बात करोगे, जब पानी सिर से ऊपर हो जाएगा तब? जाने यह निगोड़ी बहू हम से किस जन्म का बदला ले रही है. पहले मेरे भोलेभाले बेटे पर डोरे डाले, अब बच्चा गोद लेने का तिकड़म कर रही है.’

रजनीश अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर निढाल पड़ गया. अर्चना उस के पास खिसक आई और उस के बालों में उंगलियां चलाती हुई बोली, ‘क्या बात है, बहुत थकेथके लग रहे हो.’

‘आज अम्मां व पिताजी के साथ जम कर बहस हुई. वे दीपू को गोद लेने के कतई पक्ष में नहीं हैं.’

‘तो फिर?’

‘तुम्हीं बताओ.’

‘मैं क्या बताऊं, एक जरा सी बात को इतना तूल दिया जा रहा है. क्या और निसंतान दंपती बच्चा गोद नहीं लेते? हम कौन सी अनहोनी बात करने जा रहे हैं.’

‘मैं उन से कह कर हार गया. वे टस से मस नहीं हुए. मैं तो चक्की के दो पाटों के बीच पिस रहा हूं. इधर तुम्हारी जिद उधर उन की…’

‘तो अब?’

‘उन्होंने एक और प्रस्ताव रखा है…’

‘वह क्या?’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘वे कहते हैं कि चूंकि तुम मां नहीं बन सकती हो. मैं तुम्हें तलाक दे कर दूसरी शादी कर लूं.’

‘क्या…’ अर्चना बुरी तरह चौंकी, ‘तुम मेरा त्याग करोगे?’

‘ओहो, पूरी बात तो सुन लो. दूसरी शादी महज एक बच्चे की खातिर की जाएगी. जैसे ही बच्चा हुआ, उसे तलाक दे कर मैं दोबारा तुम से ब्याह कर लूंगा.’

‘वाह…वाह,’ अर्चना ने तल्खी से कहा, ‘क्या कहने हैं तुम लोगों की सूझबूझ के. मेरे साथ तो नाइंसाफी कर ही रहे हो, उस दूसरी, निरपराध स्त्री को भी छलोगे. बिना प्यार के उस से शारीरिक संबंध स्थापित करोगे और अपना मतलब साध कर उसे चलता करोगे?’

‘और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘है क्यों नहीं. कह दो अपने मातापिता से कि यह सब संभव नहीं. तुम पुरुष हम स्त्रियों को अपने हाथ की कठपुतली नहीं बना सकते. क्या तुम से यह कहते नहीं बना कि मैं ने शादी से पहले गर्भ धारण किया था? यदि तुम ने अबार्शन न करा दिया होता तो…’ कहतेकहते अर्चना का गला भर आया था.

‘अर्चना डियर, तुम बेकार में भावुक हो रही हो. बीती बातों पर खाक डालो. मुझे तुम्हारी पीड़ा का एहसास है. दूसरी तरफ मेरे बूढ़े मांबाप के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है. वे मुझ से एक ही चीज मांग रहे थे, इस घर को एक वारिस, इस वंश को एक कुलदीपक.’

‘तो कर लो दूसरी शादी, ले आओ दूसरी पत्नी, पर इतना बताए देती हूं कि मैं इस घर में एक भी पल नहीं रुकूंगी,’ अर्चना भभक कर बोली.

‘अर्चना…’

‘मैं इतनी महान नहीं हूं कि तुम्हारी बांहों में दूसरी स्त्री को देख कर चुप रह जाऊं. मैं सौतिया डाह से जल मरूंगी. नहीं रजनीश, मैं तुम्हें किसी के साथ बांटने के लिए हरगिज तैयार नहीं.’

‘अर्चना, इतना तैश में न आओ. जरा ठंडे दिमाग से सोचो. यह दूसरा ब्याह महज एक समझौता होगा. यह सब बिना विवाह किए भी हो सकता है पर…’

‘नहीं, मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी. हर बात में तुम्हारी नहीं चलेगी. आज तक मैं तुम्हारे इशारों पर नाचती रही. तुम ने अबार्शन को कहा, सो मैं ने करा दिया. तुम ने यह बात अपने मातापिता से गुप्त रखी, मैं राजी हुई. तुम क्या जानो कि तुम्हारी वजह से मुझे कितने ताने सहने पड़ रहे हैं. बांझ…आदि विशेषणों से मुझे नवाजा जाता है. तुम्हारी मां ने तो एक दिन यह भी कह दिया कि सवेरेसवेरे बांझ का मुंह देखो तो पूरा दिन बुरा गुजरता है. नहीं रजनीश, मैं ने बहुत सहा, अब नहीं सहूंगी.’

‘अर्चना, मुझे समझने की कोशिश करो.’

‘समझ लिया, जितना समझना था. तुम लोगों की कूटनीति में मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जैसे गायगोरू के सूखने पर उस की उपयोगिता नहीं रहती उसी तरह मुझे बांझ करार दे कर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका जा रहा है. लेकिन मुझे भी तुम से एक सवाल करना है…’

‘क्या?’ रजनीश बीच में ही बोल पड़ा.

‘समझ लो तुम मेें कोई कमी होती और मैं भी यही कदम उठाती तो?’

‘अर्चना, यह कैसा बेहूदा सवाल है?’

‘देखा…कैसे तिलमिला गए. मेरी बात कैसी कड़वी लगी.’

रजनीश मुंह फेर कर सोने का उपक्रम करने लगा. उस रात दोनों के दिल में जो दरार पड़ी वह दिनोंदिन चौड़ी होती गई.

रजनीश ने दरवाजे की घंटी बजाई तो एक सजीले युवक ने द्वार खोला.

‘‘अर्चनाजी हैं?’’ रजनीश ने पूछा.

‘‘जी हां, हैं, आप…आइए, बैठिए, मैं उन्हें बुलाता हूं.’’

अर्चना ने कमरे में प्रवेश किया. उस के हाथ में ट्रे थी.

‘‘आओ रजनीश. मैं तुम्हारे लिए काफी बना रही थी. तुम्हें काफी बहुत प्रिय है न,’’ कह कर वह उसे प्याला थमा कर बोली, ‘‘और सुनाओ, क्या हाल हैं तुम्हारे? अम्मां व पिताजी कैसे हैं?’’

‘‘उन्हें गुजरे तो एक अरसा हो गया.’’

‘‘अरे,’’ अर्चना ने खेदपूर्वक कहा, ‘‘मुझे पता ही न चला.’’

‘‘हां, तलाक के बाद तुम ने बिलकुल नाता तोड़ लिया. खैर, तुम तो जानती ही हो कि मैं ने मोहिनी से शादी कर ली. और यह नियति की विडंबना देखो, हम आज भी निसंतान हैं.’’

‘‘ओह,’’ अर्चना के मुंह से निकला.

‘‘हां, अम्मां को तो इस बात से इतना सदमा पहुंचा कि उन्होंने खाट पकड़ ली. उन के निधन के बाद पिताजी भी चल बसे. लगता है हमें तुम्हारी हाय लग गई.’’

‘‘छि:, ऐसा न कहो रजनीश, जो होना होता है वह हो कर ही रहता है. और शादी आजकल जन्म भर का बंधन कहां होती है? जब तक निभती है निभाते हैं, बाद में अलग हो जाते हैं.’’

‘‘लेकिन हम दोनों एकदूसरे के कितने करीब थे. एक मन दो प्राण थे. कितना साहचर्य, सामंजस्य था हम में. कभी सपने में भी न सोचा था कि हम एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे. और आज मैं मोहिनी से बंध कर एक नीरस, बेमानी ज्ंिदगी बिता रहा हूं. हम दोनों में कोई तालमेल नहीं. अगर जीवनसाथी मनमुताबिक न हो तो जिंदगी जहर हो जाती है.

‘‘खैर छोड़ो, मैं भी कहां का रोना ले बैठा. तुम अपनी सुनाओ. यह बताओ, वह युवक कौन था जिस ने दरवाजा खोला?’’

यह सुन कर अर्चना मुसकरा कर बोली, ‘‘वह मेरा बेटा है.’’

‘‘ओह, तो तुम ने भी दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, मैं ने तो केवल उसे गोद लिया है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, रजनीश, यह वही बच्चा दीपू है, अनाथाश्रम वाला. तुम से तलाक ले कर मैं दिल्ली गई जहां मेरा परिवार रहता था. एक नौकरी कर ली ताकि उन पर बोझ न बनूं, पर तुम तो जानते हो कि एक अकेली औरत को यह समाज किस निगाह से देखता है.

‘‘पुरुषों की भूखी नजरें मुझ पर गड़ी रहतीं. स्त्रियों की शंकित नजरें मेरा पीछा करतीं. कई मर्दों ने करीब आने की कोशिश की. कई ने मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, पर मैं उन सब से बचती रही. 1-2 ने विवाह का प्रलोभन भी दिया, पर जहां मन न मिले वहां केवल सहारे की खातिर पुरुष की अंकशायिनी बनना मुझे मंजूर न था.

‘‘इस शहर में आ कर अपना अकेलापन मुझे सालने लगा. नियति की बात देखो, अनाथाश्रम में दीपू मानो मेरी ही प्रतीक्षा कर रहा था. इस ने मेरे हृदय के रिक्त स्थान को भर दिया. इस के लालनपालन में लग कर जीवन को एक गति मिली, एक ध्येय मिला. 15 साल हम ने एकदूसरे के सहारे काट दिए. इस आशा में हूं कि यह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यदि नहीं भी बना तो कोई गम नहीं, कोई गिला नहीं,’’ कहती हुई अर्चना हलके से मुसकरा दी.

लेखक- रमणी मोटाना

Hindi Social Story

Hindi Fictional Story: टेढ़ी दुम

Hindi Fictional Story: कालेज के दिनों में मैं ज्यादातर 2 सहेलियों के बीच बैठा मिलता था. रूपसी रिया मेरे एक तरफ और सिंपल संगीता दूसरी तरफ होती. संगीता मुझे प्यार भरी नजरों से देखती रहती और मैं रिया को. रही रूपसी रिया की बात तो वह हर वक्त यह नोट करती रहती कि कालेज का कौन सा लड़का उसे आंखें फाड़ कर ललचाई नजरों से देख रहा है. कालेज की सब से सुंदर लड़की को पटाना आसान काम नहीं था, पर उस से भी ज्यादा मुश्किल था उसे अपने प्रेमजाल में फंसाए रखना. बिलकुल तेज रफ्तार से कार चलाने जैसा मामला था. सावधानी हटी दुर्घटना घटी. मतलब यह कि आप ने जरा सी लापरवाही बरती नहीं कि कोई दूसरा आप की रूपसी को ले उड़ेगा.

मैं ने रिया के प्रेमी का दर्जा पाने के लिए बहुत पापड़ बेले थे. उसे खिलानेपिलाने, घुमाने और मौकेबेमौके उपहार देने का खर्चा उतना ही हो जाता था जितना एक आम आदमी महीनेभर में अपने परिवार पर खर्च करता होगा. ‘‘रिया, देखो न सामने शोकेस में कितना सुंदर टौप लगा है. तुम पर यह बहुत फबेगा,’’ रिया को ललचाने के लिए मैं ऐसी आ बैल मुझे मार टाइप बातें करता तो मेरी पौकेट मनी का पहले हफ्ते में ही सफाया हो जाता.

मगर यह अपना स्पैशल स्टाइल था रिया को इंप्रैस करने का. यह बात जुदा है कि बाद में पापा से सचझूठ बोल कर रुपए निकलवाने पड़ते. मां की चमचागिरी करनी पड़ती. दोस्तों से उधार लेना आम बात होती. अगर संगीता ने मेरे पीछे पड़पड़ कर मुझे पढ़ने को मजबूर न किया होता तो मैं हर साल फेल होता. मैं पढ़ने में आनाकानी करता तो वह झगड़ा करने पर उतर आती. मेरे पापा से मेरी शिकायत करने से भी नहीं चूकती थी.

‘‘तू अपने काम से काम क्यों नहीं रखती है?’’ मैं जब कभी नाराज हो उस पर चिल्ला उठता तो वह हंसने लगती थी. ‘‘अमित, तुम्हें फेल होने से

बचा कर मैं अपना ही फायदा कर रही हूं,’’ उस की आंखों में शरारत नाच उठती थी. ‘‘वह कैसे?’’

‘‘अरे, कौन लड़की चाहेगी कि उस का पति ग्रैजुएट भी न हो,’’ हम दोनों के आसपास कोई न होता तो वह ऐसा ही ऊलजलूल जवाब देती. ‘‘मुझे पाने के सपने मत देखा

कर,’’ मैं उसे डपट देता तो भी वह मुसकराने लगती. ‘‘मेरा यह सपना सच हो कर रहेगा,’’ अपने मन की इच्छा व्यक्त करते हुए उस की आंखों में मेरे लिए जो प्यार के भाव नजर आते, उन्हें देख कर मैं गुस्सा करना भूल जाता और उस के सामने से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझता.

कालेज की पढ़ाई पूरी हुई तो मैं ने रिया से शादी करने की इच्छा जाहिर कर दी.

उस ने मेरी हमसफर बनने के लिए तब अपनी शर्त मुझे बता दी, ‘‘अमित, मैं एक बिजनैसमैन की पत्नी बन कर खुश नहीं रह सकूंगी और तुम अब अपने पापा का बिजनैस में हाथ बंटाने जा रहे हो. मेरा हाथ चाहिए तो आईएएस या पुलिस औफिसर बनो. एमबीए कर के अच्छी जौब पा लोगे तो भी चलेगा.’’ उस की इन बातों को सुन कर मेरा मन एक बार को बैठ ही गया था.

मगर प्यार में इंसान को बदलने की ताकत होती है. मैं ने आईएएस की परीक्षा देने का हौसला अपने अंदर पैदा किया. कई सारी किताबें खरीद लाया. अच्छी कोचिंग कहां से मिलेगी, इस बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी. संगीता को जब यह जानकारी मिली तो हंसतेहंसते उस के पेट में बल पड़ गए. बोली, ‘‘अमित, क्यों बेकार के झंझट में पड़ रहा है… देख, जो इंसान जिंदगी भर दिल्ली में रहा हो,

क्या उसे ऐवरैस्ट की चोटी पर चढ़ने के सपने देखने चाहिए?’’ उस की ऐसी बातें सुन कर मैं उसे भलाबुरा कहने लगता तो वह खूब जोरजोर से हंसती.

वैसे संगीता ने मेरी काबिलीयत को सही पहचाना था. सिर्फ 2 हफ्ते किताबों में सिर खपाने के बाद जब मुझे चक्कर से आने लगे तो आईएएस बनने का भूत मेरे सिर से उतर गया. ‘‘ज्यादा पढ़नालिखना मेरे बस का नहीं है, रिया. बस, मेरी इस कमजोरी को नजरअंदाज कर के मेरी हो जाओ न,’’ रिया से ऐसी प्रार्थना करने से पहले मैं ने उसे महंगे गौगल्स गिफ्ट किए थे.

‘‘ठीक है, यू आर वैरी स्वीट, अमित,’’ नया चश्मा लगा कर उस ने इतराते हुए मेरी बनने का वादा मुझ से कर लिया. इस वादे के प्रति अपनी ईमानदारी उस ने महीने भर बाद अमेरिका में खूब डौलर कमा रहे एक सौफ्टवेयर इंजीरियर से चट मंगनी और पट शादी कर के दिखाई.

उस ने मेरा दिल बुरी तरह तोड़ा था. मैं ने दिल टूटे आशिक की छवि को ध्यान में रख फौरन दाढ़ी बढ़ा ली और लक्ष्यहीन सा इधरउधर घूम कर समय बरबाद करने लगा.

संगीता ने जब मुझे एक दिन यों हालबेहाल देखा तो वह जम कर हंसी और फिर मेरा एक नया कुरता फाड़ कर

मेरे हाथ में पकड़ा दिया और फिर बोली, ‘‘इसे पहन कर घूमोगे तो दूर से भी कोई पहचान लेगा कि यह कोई ऐसा सच्चा आशिक जा रहा है जिस का दिल किसी बेवफा ने तोड़ा है. तुम्हारे जैसे और 2 मजनू तुम्हें सड़कों पर घूमते नजर आएंगे. उन को भी रिया ने प्यार में धोखा दिया है. एक क्लब बना कर तुम तीनों सड़कों की धूल फांकते इकट्ठे घूमना शुरू क्यों नहीं कर देते हो?’’ संगीता के इस व्यंग्य पर मैं अंदर तक तिलमिला उठा. वह उस दिन सचमुच ही रिया के 2 अन्य आशिकों से मुझ को मिलवाने भी ले गई. उन में से एक रिया का पड़ोसी था और दूसरा उस के मौसेरे भाई का दोस्त. उस रूपसी ने जम कर हम तीनों को उल्लू बनाया, इस बात को समझते ही मैं ने दिल टूटने का मातम मनाना फौरन बंद किया और नया शिकार फांसने की तैयारी करने लगा.

अगले दिन बनसंवर कर जब मैं घर से बाहर निकलने वाला था तभी संगीता मुझ से मिलने मेरे घर आ पहुंची. बोली, ‘‘मुझ से अच्छी लड़की तुम्हें कभी नहीं और कहीं नहीं मिलेगी, हीरो. वैसे अभी तक सुंदर लड़कियों के हाथों बेवकूफ बनने से दिल न भरा हो तो फिर किसी लड़की पर लाइन मारना शुरू कर दो. मेरी तरफ से तुम्हें ऐसी मूर्खता करने की इजाजत है और सदा रहेगी,’’ संगीता ने कोई सवाल पूछे बिना मेरी नीयत को फौरन पढ़ लिया तो यह बात मुझे सचमुच हैरान कर गई. ‘‘मैं कल ही तेरे मम्मीपापा को समझाता हूं कि वे कोई सीधा और अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर दें,’’ और फिर उस से किसी तरह की बहस में उलझे बिना मैं बाहर घूमने निकल गया.

संगीता के मातापिता ने उस के लिए अच्छा लड़का फौरन ढूंढ़ लिया. उस लड़के को मेरे मम्मीपापा ने भी पास कर दिया तो महीने भर बाद ही मेरी उस के साथ सगाई हो गई और उस के अगले हफ्ते वह दुलहन बन कर हमारे घर

आ गई. मेरे दोस्तों ने मुझे इस रिश्ते के लिए मना करने को बहुत उकसाया था, पर मैं चाहते हुए भी इनकार नहीं कर सका.

‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ ही होगी,’’ संगीता प्यार भरे अपनेपन व आत्मविश्वास के साथ यह बात कहती थी और अंत में उस का कहा ही सच भी हुआ. इस में कोई शक नहीं कि वह मुझे बहुत प्यार करती है और मेरी सच्ची शुभचिंतक है. बहुत ध्यान रखती है वह मेरा. वह ज्यादा सुंदर तो नहीं है पर उस के पास सोने का दिल है. उस का सब से बड़ा गुण है मेरी किसी भी गलती पर नाराज होने के बजाय सदा हंसतेमुसकराते रहना. उस की हंसी में कुछ ऐसा है, जो मुझे उसी पल तनावमुक्त कर शांत और प्रसन्न कर जाता है. वह मुझे दिल से अपना पसंदीदा हीरो मानती है.

मगर मेरी दुम शादी के बाद भी टेढ़ी की टेढ़ी ही रही है. सुंदर लड़कियों पर लाइन मारने का कोई मौका मैं अब भी नहीं चूकता हूं पर संगीता की नजरों से अपनी इन हरकतों को बचा पाना मेरे लिए संभव नहीं. ‘‘फलांफलां युवती के साथ चक्कर चलाने की कोशिश कर रहे हो न?’’ वह मेरी हरकतों को पढ़ लेने के बाद जब भी मुसकराते हुए यह सवाल सीधासीधा मुझ से पूछती है तो मैं झूठ नहीं बोल पाता हूं.

‘‘ऐसे ही जरा हंसबोल कर टाइम पास कर रहा था,’’ चूंकि वह मेरी फ्लर्ट करने की आदत के कारण मुझ से कभी लड़तीझगड़ती नहीं है, इसलिए मैं उसे सच बात बता देता हूं. ‘‘अपनी हौबी को टाइम पास करना मत कहोजी. अब लगे हाथ यह भी बता दो कि किस चीज को गिफ्ट करने का लालच दे कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे थे, रोमियो के नए अवतारजी?’’

वह मेरी लड़की पटाने की तरकीबों को शुरू से ही पहचानती है. ‘‘उस का मनपसंद सैंट,’’ मैं झेंपी सी हंसी हंसते हुए सचाई बता देता.

‘‘उस पर क्यों रुपए बरबाद करते हो, स्वीटहार्ट. मैं मौजूद हूं न लड़कियों को गिफ्ट करने की तुम्हारे अंदर उठने वाली खुजली को मिटाने के लिए. कल चलते हैं मेरा मनपसंद

सैंट खरीदने.’’ ‘‘तुम्हारे पास पहले से ही सैंट की दर्जनों बोतलें हैं,’’ मैं हलका सा विरोध करता तो वह खिलखिला कर हंस पड़ती.

‘‘सैंट ही क्यों, तुम्हारी लड़कियों को दाना डालने की आदत के चलते मेरे पास कई सुंदर ड्रैसेज भी हैं, ज्वैलरी भी, 3 रिस्ट वाच, 2 जोड़े गौगल्स और न जाने कितनी महंगी चीजें इकट्ठी हो गई हैं, मेरे धन्ना सेठ. मैं तो अकसर कामना करती हूं कि लड़कियों से फ्लर्ट करने के मामले में वह तुम्हारी टेढ़ी दुम कभी सीधी

न हो.’’ ‘‘यार, अजीब औरत हो तुम जो अपने पति को दूसरी औरतों के साथ फ्लर्ट करता देख कर खुश होती है,’’ मैं चिढ़ उठता तो उस का ठहाका आसपास की दीवारों को हिला जाता.

शादी के बाद कभीकभी मैं संगीता से मन ही मन बहुत नाराज हो उठता था. मुझे लगता था कि स्वतंत्रता से जीने की राह में वह मेरे लिए बहुत बड़ी रुकावट बनी हुई है. फिर एक पार्टी में कुछ ऐसा घटा जिस ने मेरा यह नजरिया ही बदल दिया.

उस रात मैं पहले बैंक्वेट हौल में प्रवेश कर गया, क्योंकि संगीता अपनी किसी सहेली से बात करने को दरवाजे के पास रुक गई थी.

जब संगीता ने अंदर कदम रखा तब मेरे कानों में उस की प्रशंसा करता पुरुष स्वर पहुंचा, ‘‘क्या स्मार्ट लेडी है, यारो… यह कोई टीवी कलाकार या मौडल है क्या?’’

इन जनाब ने ये बातें अपने दोस्तों से कही थीं. उस रात मैं ने भी संगीता को जब ध्यान से देखा तो मुझे सचमुच उस का व्यक्तित्व बहुत स्मार्ट और प्रभावशाली लगा. उस के नैननक्श तो ज्यादा सुंदर कभी नहीं रहे थे, पर अपने लंबे कद, आकर्षक फिगर और अपने ऊपर खूब फबने वाली साड़ी पहनने के कारण वह बहुत जंच

रही थी. मैं ने आगे बढ़ कर बड़े गर्व के साथ संगीता का हाथ पकड़ा तो उन पुरुषों की आंखों में मैं ने ईर्ष्या के भाव पैदा होते साफ देखे.

‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो,’’ मैं ने दिल से संगीता की ऐसी तारीफ शायद पहली बार

करी थी. ‘‘ये सब तुम से मिले गिफ्ट्स का कमाल है. वैसे आज अपनी बीवी पर कैसे लाइन मार रहे हो, अमित?’’ उस का चेहरा फूल सा खिल

उठा था. ‘‘दुनिया तुम पर लाइन मारने को तैयार है, तो मैं ने सोचा कि मैं ही क्यों पीछे रहूं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो,’’ उस का एकदम से शरमाना मेरे मन को बहुत भाया. उस रात मुझे अपनी पत्नी के साथ फ्लर्ट करने का नया और अनोखा अनुभव मिला. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि किसी अन्य युवती से फ्लर्ट करने के मुकाबले यह ज्यादा सुखद और आनंददायक अनुभव रहा.

आजकल मेरी जिंदगी बहुत बढि़या कट रही है. पत्नी को प्रेमिका बना लेने से मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं. भरपूर मौजमस्ती के साथसाथ मन की शांति भी मिल रही है. मेरे साथ झगड़ने से परहेज कर के और मुझे प्यार की नाजुक डोर से बांध कर संगीता ने मेरी टेढ़ी दुम को सीधा करने में आखिर कामयाबी पा ही ली है.

Hindi Fictional Story

Pyaar Ki Kahani: दूरी हमें दूर न कर दे

Pyaar Ki Kahani: मोबाइल की घंटी बजी तो प्रकाश ने मोबाइल की ओर देखा. स्क्रीन पर ‘रेखा कालिंग’ फ्लैश हो रहा था. ‘‘हैलो रेखा,’’ प्रकाश ने काल रिसीव कर के कहा. ‘‘मेरी प्रमोशन हो गई है. मुझे नए औफिस दुबई में जौइन करना है,’’ रेखा ने चहकते हुए कहा. उस की आवाज से उस की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता था. ‘‘अरे वाह, आखिर तुम गर्लफ्रैड किस की हो? तुम्हारी प्रमोशन कोई कैसे रोक सकता था?’’ प्रकाश ने खुश हो कर कहा. ‘‘अच्छा शाम को मिलो, अभी कई लोगों की काल्स आ रही हैं. बधाइयों का तांता लग रहा है,’’ रेखा ने कहा और फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

प्रकाश को एकदम से ध्यान आया कि रेखा को दुबई जाना होगा प्रमोशन के बाद. रेखा ने पहले ही बताया था इस के बारे में. यह सोच कर वह थोड़ा उदास सा हो गया. वह पिछले डेढ़ वर्षों से रेखा के साथ था. दोनों एकदूसरे से बेहद प्यार करते थे. रेखा प्रकाश को बहुत ही बेहतर तरीके से समझती थी. प्रकाश आज तक ऐसी किसी लड़की के संपर्क में नहीं आया था जो उसे इतने बेहतर तरीके से समझ सके.

रेखा को प्रमोशन मिली थी और निश्चित रूप से यह खुशी की बात थी. उस ने बताया था कि प्रमोशन होने पर उस का पैकेज काफी बढ़ जाएगा और दुबई में सैलरी उसे दिरहम में मिलेगी. एक दिरहम का मूल्य 25 रुपए के बराबर होता है पर साथ ही यह भी बताया था कि कम से कम 2 वर्षों तक उसे दुबई में ही रहना होगा. दुविधा में पड़ गया प्रकाश.

\इतना अच्छा अवसर मिला है तो रेखा को तो उसे छोड़ने के लिए कैसे कह सकता है वह? पर वह इतनी दूर रहेगी तो क्या उन की रिलेशनशिप पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? क्या इतने लंबे समय तक दूर रहना उचित होगा? क्या इस दौरान उन के बीच वह रिलेशन रह पाएगा जो अभी है? शाम को मिलने के लिए कहा था रेखा ने. कहां मिलना है यह स्पष्ट था. जब भी रेखा खुश होती थी उसे अपने फ्लैट पर बुलाती थी. फिर वहां से दोनों पिंड बलूची जाते थे डिनर पर. रेखा का यह पसंदीदा रैस्टोरैंट था और उस के फ्लैट से मुश्किल से 2 सौ मीटर की दूरी पर था.

औफिस से फ्री हो कर प्रकाश रेखा के फ्लैट पर पहुंच गया. रेखा ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया. एकदम से गले लग गई उस के. ‘‘एक बार फिर से बधाई,’’ प्रकाश ने उसे अपनी बांहों में कसते हुए कहा. ‘‘थैंक्यू सो मच,’’ रेखा खुश हो कर इठलाती हुई बोली. ‘‘आज तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की मैंगो फ्लेवर आइसक्रीम लाई हूं,’’ कह रेखा ने फ्रिज से 2 आइसक्रीम ला कर एक प्रकाश को दी और एक खुद खोल कर खाने लगी. ‘‘अब आगे?’’ प्रकाश अपनी आइसक्रीम को अनपैक करते हुए बोला. ‘‘चलेंगे पिंड बलूची और करेंगे डिनर और क्या?’’ रेखा ने आइसक्रीम खाते हुए लापरवाही से कहा. ‘‘मैं इस की बात नहीं कर रहा,’’ प्रकाश ने आइसक्रीम की एक बाइट लेते हुए कहा. ‘‘तो फिर किस की बात कर रहे हो?’’ रेखा ने पूछा ‘‘भई दुबई वाली मैडम इस इंडियन को पूछेगी भला अब?’’ प्रकाश बोला.

रेखा ने उसे मुंह बनाते हुए देखा मानो वह कितनी वाहियात बात कर रहा हो. फिर बोली, ‘‘प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है. तुम्हें तो पता है ही. सीधी रेखा जहां भी रहेगी प्रकाश उसी ओर चलेगा,’’ रेखा ने उंगली से अपनी ओर इशारा करते हुए चुटकी ली. ‘‘दुबई यहां से 2 हजार किलोमीटर दूर है. प्रकाश वहां तक पहुंचतेपहुंचते क्षीण हो जाएगा,’’ प्रकाश ने कहा. ‘‘2 हजार किलोमीटर यानी ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे. आ जाना मिलने बीचबीच में और दुबई घूमना. कभीकभी मैं भी आ जाया करूंगी.

2 वर्ष कैसे बीत जाएंगे पता भी नहीं चलेगा,’’ रेखा ने कहा. ‘‘मजाक बहुत हो गया. अब थोड़ा गंभीर हो जाएं हम दोनों. क्या यह दूरी हमें एकदूसरे से दूर नहीं कर देगी?’’ प्रकाश गंभीर हो कर बोला. ‘‘दूरी हमें एकदूसरे से दूर नहीं कर देगी… क्या फिलौस्फिकल बात कही है तुम ने,’’ रेखा ने पहले तो उस की बातों का मजाक उड़ाया.

फिर बोली, ‘‘लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि कुछ ज्यादा ही फालतू बातें कर रहे हो?’’ रेखा ने परेशान हो कर कहा. ‘‘प्रैक्टिकल बात कर रहा हूं,’’ प्रकाश ने गंभीर होकर कहा. ‘‘एक ही घर में एक ही छत के नीचे रहने वालों के बीच अनबन होते हुए देखी है तुम ने?’’ रेखा बोली. ‘‘हां, देखी तो है,’’ प्रकाश ने कहा. ‘‘उन के बीच दूरी नहीं होती. फिर क्यों अनबन होती है?’’ रेखा ने सवाल किया? ‘‘विचार नहीं मिलने के कारण और क्या?’’ प्रकाश ने जवाब दिया. ‘‘यानी दूरी न भी हो पर विचार न मिलें तो प्रेम वैसा नहीं रहता. राइट?’’ रेखा ने फिर सवाल किया. ‘‘हां,’’ प्रकाश ने जवाब दिया. ‘‘इस का विलोम भी सत्य होना चाहिए यानी दूरी हो पर विचार मिलें तो संबंध बना रहता है,’’ रेखा ने तर्क दिया.

‘‘बात तुम्हारी सही है पर मुझे लगता है इतनी दूर रहने से हमारे बीच दूरी न बढ़ जाए,’’ प्रकाश ने फिर शंका व्यक्त की. ‘‘फिर मैं प्रमोशन छोड़ देती हूं,’’ रेखा ने कहा. ‘‘यह उचित नहीं होगा. तुम्हारी मेहनत और प्रतिभा के कारण तुम्हें प्रमोशन मिली है. बारबार यह मौका मिलने से रहा,’’ प्रकाश ने कहा. ‘‘फिर क्या किया जाए? तुम ही बताओ,’’ रेखा ने पूछा. प्रकाश को कोई जवाब नहीं सूझ. ‘‘पहले डिनर का जो प्रोग्राम बन गया है उसे निबटाते हैं, फिर आराम से बातें करेंगे.’’ रेखा ने कहा.

प्रकाश ने सिर हिला कर अपनी सहमति दी. उस के चेहरे पर अभी भी अनिश्चितता का भाव था. थोड़ी देर बाद दोनों डिनर के लिए गए पर एक अजीब सा खालीपन लग रहा था वातावरण में. थोड़ी देर पहले दोनों जितने खुश थे अब उतने खुश नहीं दिख रहे थे. डिनर से वापस आने के बाद रेखा बोली, ‘‘तुम मेरे दूर जाने से दुखी हो फिर भी मुझे रोक नहीं रहे हो क्योंकि यह मेरे कैरियर का मामला है. यही तो साबित करता है कि तुम मेरा कितना खयाल रखते हो. मैं तुम्हारे कहने पर प्रमोशन छोड़ने के लिए तैयार हूं.

यह साबित करता है कि मुझे कितना खयाल है तुम्हारा यानी हम दोनों एकदूसरे की खुशी चाहते हैं. 2 वर्ष कोई बहुत बड़ा समय नहीं है. इस के बाद मैं वापस आ जाऊंगी. यदि तुम्हें किसी बेहतर कंपनी में दुबई शिफ्ट होने का मौका मिले तो तुम भी वहां आ सकते हो. दूरी ऐसी समस्या भी नहीं है जितना तुम सोच रहे हो.’’ ‘‘तुम ठीक कह रही हो,’’ जब हम दोनों एकदूसरे का खयाल रखेंगे तो फिर दूरी का कोई मतलब नहीं रहेगा,’’ प्रकाश ने कहा. पर उस की आवाज में उदासी झलक ही रही थी.

कुछ महीनों के बाद रेखा दुबई चली गई. स्वाभाविक था कि शुरुआती कुछ महीनों में वहां के वातावरण में ढलने में समय लगा रेखा को. साथ ही वहां का समय भी डेढ़ घंटे पीछे था. कई बार ऐसा होता था कि प्रकाश रात में फोन करता तो रेखा रिसीव नहीं कर पाती थी. इस से प्रकाश को बहुत दुख होता था. पर जैसे ही रेखा को मौका मिलता था वह काल बैक जरूर करती थी. बाद में रेखा जब नए माहौल के अनुसार ढाल गई तो फिर दोनों के बीच हमेशा संपर्क बना रहा.

औफिस की ओर से मिलने वाले एलटीसी की सुविधा में प्रकाश दुबई और आसपास के इलाके घूम आया और रेखा का साथ मिला उसे. रेखा भी डेढ़ साल के बाद छुट्टी ले कर भारत आई तो प्रकाश के साथ उस ने खूब आनंद लिया. इस प्रकार डेढ़ वर्ष कब बीत गए पता ही नहीं चला. जब रेखा को वापस दुबई जाने के लिए एअरपोर्ट पर विदा करने प्रकाश पहुंचा तो उस ने कहा, ‘‘रेखा तुम ठीक कहती हो.’’ रेखा ने प्रकाश को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा मानो पूछ रही हो कहना क्या चाहते हो? प्रकाश बोला, ‘‘तुम ने कहा था न कि दूरी हो पर विचार मिलें तो संबंध बना रहता है.’’ रेखा ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘शुरू में मैं आशंकित था पर तुम्हारी बात सच निकली. कुछ महीनों के बाद तुम वापस आ जाओगी फिर हम दांपत्यजीवन में प्रवेश करेंगे.’’ जवाब में रेखा ने प्रकाश के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया और हाथ हिलाते हुए ट्रौली के साथ एअरपोर्ट के अंदर चली गई.

Pyaar Ki Kahani

Long Story in Hindi: संधि क्षण

Long Story in Hindi: गोल्डन कलर की झनी सी स्लीवलैस वन पीस में मालविका का मखमली गोरा लचीला बदन सुदेश की आंखों को फिसलने के लिए खुला आमंत्रण दे रहा था. सुदेश इस की उपेक्षा क्यों ही करता, वह काम के बीच मालविका का थाह भी लेता चल रहा था. मालविका उस की फिल्म की नई हीरोइन थी और वह इस फिल्म का डाइरैक्टर प्रौड्यूसर अपना हक मानता था. ‘‘सर शौट रैडी है,’’ शूटिंग स्टूडियो में सभी कर्मचारियों, अभिनेता और चरित्र भूमिका निभाने वालों की आपाधापी के बीच असिस्टैंट परवेज ने सुदेश के पास आकर कहा.

सुदेश ने मालविका को ताड़ते हुए परवेज से पूछा, ‘‘इस नई लड़की की उम्र कितनी है?’’ ‘‘शायद 25 की होगी सर.’’ ‘‘अब तक कहां थी? मतलब क्या करती थी?’’ ‘‘सर बाहर लखनऊ से है, ग्रैजुएट होने के बाद मुंबई आ गई थी, 3 साल से सीरियल और एड फिल्में कर रही थी.

‘‘इस के मातापिता?’’ ‘‘सर, लखनऊ में इस के पिता का टैक्स्टाइल का कारोबार है, भाई वही देखता है.’’ ‘‘ठीक है आज शाम मेरे होटल ले आना.’’ मुंबई के अंधेरी में मालविका एक कमरे का फ्लैट किराए पर ले कर रहती थी. 22 हजार किराया देती है, ग्लैमर की दुनिया में खुद को मैंटेन रखने के जो खर्चे हैं, मालविका उन्हीं में पस्त है, नई कार और अपना घर कैसे ले, जबकि खुद को विलासिता के शिखर पर ले जाने को मालविका प्रतिबद्ध है और यहां थोड़ेबहुत समझते के बूते अगर वह किसी पारस मणि को हाथ कर सके, जिस से वह जो छुए सोना हो जाय तो उस की तो दिन ही बदल जाएं. बस वह पारस मणि तो मिले. यहां तो सब बहती गंगा में हाथ धोकर चल देते हैं.

परवेज ने फोन कर के मालविका को रैडी रहने को कहा. यहां अलिखित भी बहुत कुछ होता है. यह जानी हुई बात है कि कोई अगर किसी की फिल्म में नईनई हीरोइन बनी हो और आगे उसे और भी काम पाना है तो जाहिर है उस की हर बात वह मानेगा. कार में सुदेश के बारे में मालविका को कई बातें पता चली. सुदेश के कई बिजनैस और बंगले हैं. कई होटल भी हैं, लेकिन अभी जहां मालविका जा रही है वह सुदेश का खास ठिकाना है. इस कई मंजिला होटल के ऊपरी हिस्से को सुदेश ने अपने लिए डिजाइन कराया है और जब भी किसी से खास तरीके से मिलना होता है वह यहीं बुलाता है.

‘‘सुदेशजी की वाइफ को पता होता है कि वे इस तरह यहां…’’ मालविका के इशारे को समझते हुए परवेज ने कहा, ‘‘मालविकाजी मैं बस काम से काम रखता हूं. इतना तो नहीं पता मुझे, लेकिन हां 25 साल सुदेशजी की शादी के हो गए, उन की पत्नी खुद बुटीक चलाती हैं, 2 बड़े बेटे विदेश में हैं तो पति को नहीं जानती होंगी, ऐसी बात होगी क्या? बाकी इतना बता दूं सुदेशजी को खुश रखने के लिए उन की किसी बात को काटिएगा नहीं और पूछपरख ज्यादा मत करिएगा. बाकी वे खुश हो गए तो आप के दिन फिर जाएंगे,’’ और फिर परवेज सुदेश की सूट के बाहर मालविका को छोड़ चला गया. सकुचाई सी मालविका ने सुदेश पर एक नजर डाली. उस के बारे में सुनसुन कर उसे जितना डर लगा था, अब उसे देखने के बाद वह डर तो खत्म हो ही गया, बल्कि वो मालविका को थोड़ा अच्छा भी लगा.

शूटिंग के दौरान उस ने ध्यान नहीं दिया था, पर अब दे रही थी. दरअसल, यह भी एक स्त्री मनोविज्ञान है कि जब पुरुष देखने में ठीक, कपड़ों में अच्छा, शारीरिक रूप से गठीला और स्टाइलिश लगे तो अपरिचित होने के बावजूद उस के पास स्त्रियां खुद को सहज महसूस करती हैं और उन के साथ बातचीत आगे बढ़ाने में उन्हें सुविधा होती है. इस पर उस के अंदरूनी स्वभाव को परखने की जहमत उठाने से पहले ही अगर वह पुरुष खुद को व्यवहार में और भी मजेदार और कोमल साबित कर दे तो कहना ही क्या.

सामान्य स्त्रियां अकसर पुरुषों पर भरोसा कर के सुरक्षित और खुशी महसूस करती हैं. मालविका ने देखा 5 फुट 10 इंच हाइट में सुदेश ऊपर कहे मुताबिक अच्छा ही दिख रहा था. जब इतनी अकूत संपति का मालिक और उम्र के 54 वर्ष में भी स्टाइल और जलवे थे तो और क्या चाहिए. मालविका अपने लैवेंडर कलर की शिफौन गाउन में जादू की परी दिख रही थी और सुदेश पर वह छा गई थी. सुदेश के अहम से तने चेहरे की मांसपेशियां धीरेधीरे मुसकान और नशे में बदल गईं.

बातचीत का दौर चलता रहा, पेय और खानेपीने की चीजें आईं, लेकिन मालविका को एक ही चिंता लगी थी कि यह तो शरीर के धरातल पर आएगा ही, लेकिन कब रात के 12 बज चुके थे और मालविका थक चुकी थी. यद्यपि निमंत्रण पा कर वह पूरी तैयारी के साथ ही आई थी ताकि एक गलती की वजह से उस के कैरियर और शरीर पर कोई आंच न आए. मगर कहां? सुदेश ने तो अब तक मालविका के हाथ पकड़ने और गालों को छूने के सिवा कुछ भी नहीं कहा. क्या यह पूरी रात रोकना चाहता है.

मालविका के दिल की बातें अब चेहरे पर शिकन बन झलकने लगी थीं. सुदेश मन पढ़ने में उस्ताद था. पूछा, ‘‘घर जाओगी मालविका? चलो छोड़ दूं तुम्हें.’’ मालविका को लगा कहीं सुदेश रोष में न आ गया हो, फिर तो फिल्म की हीरोइन का रोल उस के हाथ से गया. ‘‘नहींनहीं, आप जब तक चाहें मैं रुकूंगी,’’ मालविका ने परेशान होते हुए कहा. सुदेश ने उस के होंठों को अपने होंठों से जकड़ लिया और मालविका कुछ देर शांत बैठी रही. सुदेश ने उसे हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘चलो आज रात हो रही है, तुम्हें घर पहुंचा दूं, कल मिल रही हो न?’’ ‘‘जी.’’ ‘‘अरे, जी क्या लगा रखी है. हां सुदेश, कहो. एक दिन का रिश्ता थोड़े ही है जान. तुम मेरे दिल की मलिका बन गई हो. हम अब से साथ रहें तो तुम्हें कोई दिक्कत?’’ ‘‘नहीं,’’ मालविका को शायद पारस मणि मिल चुका था.

वह सुदेश के सीने से जा लगी. मालविका का पहला प्रोजैक्ट सुदेश के साथ पूरा हो चुका था और यह फिल्म इतनी हिट रही कि सुदेश ने मालविका को 2 कमरे वाला एक फ्लैट गिफ्ट कर दिया. इस फ्लैट के साथ ही मालविका की सुदेश के साथ लिव इन जर्नी भी शुरू हो गई. मालविका के घर वाले अपने जीवन और कैरियर में व्यस्त थे, मां को कभीकभार वीडियोकौल में अपना चेहरा दिखा देती मालविका तो सब शांत रहते. 2 साल से ऊपर गुजर गए थे, मालविका का सुदेश के साथ और सुदेश के अनुसार रहते हुए. लेकिन सुदेश अपनी तरह से अपनी जिंदगी जी रहा था और मालविका के साथ रहते हुए भी उस के जीने के अंदाज में खास फर्क नहीं था.

इधर मालविका में अब छटपटाहट भर रही थी. सुदेश उसे जिस तरह अपने कंट्रोल में रखता उस से उस की रचनात्मकता और प्रोफैशन दोनों बंद पड़ गए थे. वह हिम्मत करके सुदेश की गैरमौजूदगी में दूसरे लोगों के साथ अलग प्रोजैक्ट पर काम करने के लिए जाने लगी. उस दिन सुदेश रात बहुत देर से आया. मालविका को सुबह शूटिंग के लिए निकलना था. इधर सुदेश बिस्तर पर मालविका से लिपटा पड़ा था, उधर मालविका का बारबार फोन बज रहा था.

मालविका ने खुद को छुड़ाकर फोन रिसीव किया. सुदेश थोड़ा अलसाए से स्वर में पूछा, ‘‘कौन है?’’ ‘‘सुदेश मुझे निकलना पड़ेगा एक शूटिंग के लिए.’’ ‘‘मतलब? हफ्तेभर बाद मैं भागा हुआ आया और तुम इस तरह.. नहीं मालू. तुम नहीं जा रही हो कहीं. तुम्हें तो बता दिया है न कि मेरे सिवा और कहीं काम करना नहीं है तुम्हें?’’ ‘‘मुझे जाना है सुदेश. तुम्हारा जब प्रोजैक्ट शुरू होगा मैं तब तुम्हारे साथ ही करूंगी. अभी खाली हूं, उन के साथ डील हो चुकी है.’’ ‘‘किस के साथ काम कर रही हो?’’ सुदेश ने थोड़ा चिढ़ कर पूछा. ‘‘आलेखजी डाइरैक्टर, नवलकिशोर का प्रोडक्शन. बुरा मत मानो सुदेश. मैं जल्दी वापस…’’ ‘‘मना कर रहा हूं तो मत जाओ,’’ कह करवट ले कर सुदेश सो गया और मालविका निकल कर दौड़ीभागी शूटिंग स्पौट पहुंची. शूटिंग में सभी व्यस्त दिखे. तभी असिस्टैंट ने आ कर कहा, ‘‘मैडम, आप का शूट अभी नहीं है. डाइरैक्टर सर ने कहा है जब आप का रहेगा आप को बता देंगे. आज जा सकती हैं.’’ ‘‘मतलब. इतनी बार फोन कर के बुलाया गया और अभी कहते हैं शूटिंग नहीं है? आलेखजी से मिलवा दीजिए.’’ ‘‘मैडम वे आप से नहीं मिल पाएंगे. आप को आज लौट जाना चाहिए,’’ असिस्टेंट इतना बोल कर चला गया.

मालविका वापस लौटते हुए बहुत कुछ समझ चुकी थी. बेशक यह सुदेश का ही काम होगा, उस ने मालविका से नाम पूछ ही लिया था. जब वापस आई तो सुदेश जाने के लिए तैयार हो रहा था. मालविका खुद को रोक नहीं पाई और पूछा, ‘‘तुम ने उन्हें फोन कर के मुझे काम से निकालने को कहा?’’ ‘‘जब मैं ने तुम्हें कहा है कि मेरी अगले फिल्म में तुम ही हीरोइन हो, तो तुम्हे हर दरवाजे पर मुंह मारने की क्या जरूरत है?’’ ‘‘कब दोगे काम? 3 महीने से ऊपर खाली बैठी हूं. मैं एक प्रोफैशनल हूं. अकेले आप का ही काम क्यों करूं? कितनी बार आप से कहा शादी कर के घर बसा लो, फिर सिर्फ आप के ही प्रोडक्शन में करती. मगर आप को तो 10 के बिस्तर पर जाने से ही फुरसत नहीं. फिल्म कब बनाएंगे और शादी…’’

अभी मालविका अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुदेश ने कस कर उस के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया और उस के बाल पकड़ कर दीवार में धक्का दे दिया. मालविका चोट खा कर जमीन पर गिर पड़ी. ‘‘एक मौका और देता हूं या तो शांति से घर पर रहो या सड़क पर फेंके जाने के लिए तैयार रहो,’’ कड़कती आवाज में सुदेश कह कर दनदनाता निकल गया. मालविका धीरेधीरे उठ खड़ी हुई, लेकिन उस के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. उस ने उस असिस्टैंट को फोन लगाया. कहा, ‘‘क्या आप लोगों को सुदेश ने मना किया है मुझे काम देने से?’’ ‘‘मैडम, आप फोन मत करिए, हम आप से काम नहीं कराएंगे, हां कुछ ऐसा ही समझ लें, हमें झंझट नहीं चाहिए. नमस्ते.’’

मालविका के लिए अभिनय एक जनून था, अपना कैरियर खुद अपने दम पर बनाने के लिए उस ने कितना संघर्ष किया था और आज सुदेश की रखैल बन कर खुद को तमाम कर दे, यह नहीं हो सकता. शुक्र मनाया उस ने कि रात सुदेश वापस नहीं आया, शायद सुदेश को भरोसा था कि अकेला छोड़ देने पर मालविका घबरा कर और कहीं कोई आसरा न पा कर सुदेश के पास आत्मसमर्पण कर देगी. देर रात तक मालविका ने अपने सारे कौंटैक्ट्स खंगाल डाले. अचानक उसे राघवजी का नंबर मिला, जो उस ने किसी पार्टी में लिया था. सुबह 5 बजे वह तैयार हुई.

एक सी ग्रीन स्लीवलैस ब्लाउज और सफेद जौर्जेट की नैट वाली साड़ी, हलका सा टच अप फेस पर, कानों में डायमंड के 2 छोटे नग, स्टैप में गहरे लट वाले बाल खुले हुए. जब वह कैब से राघवजी के घर के सामने पहुंची, तब सुबह के 6 बज रहे थे और राघवजी मौर्निंग वाक से लौट कर दौड़तेहांफते अपने घर में घुस रहे थे. मालविका उन के सामने जा कर खड़ी हो गई. राघवजी की उम्र कोई 40 के आसपास थी. हाइट सामान्य, रंग गहरा, आंखों में चश्मा, क्लीन शेव और आत्मविश्वास से भरपूर चेहरा. मालविका को देख उन की आंखों में एक चमक भर गई परिचय और कारण जानने के बाद वे उसे अपने साथ घर के अंदर ले गए.

राघव काफी खुश थे. कहा, ‘‘देखो मालविका. मैं प्रोडक्शन और कैमरे का काम ज्यादा देखता हूं. मेरी हिंदी ज्यादा अच्छी नहीं. मेरा सब काम मेरा आदमी लोग देखता. तुम्हारे जैसा एक नया हीरोइन मांगता था मैं. तुम पक्का है. सुदेश का डर नहीं करने का. उस को मैं संभाल लेगा. तुम अपना इधर ही रहने का. शादी नई बनाया मै. इधर ही आराम से रहने का, ऊपर मंजिल में तुम्हारा कमरा तुम अभी देख लो और अपना सामान पैक कर के अभी आ जाओ.

शाम को शूटिंग के लिए मेरे साथ चलने का.’’ अभी मालविका को जो चाहिए था उस से अधिक ही मिल गया. सुदेश वापस आ गया था और कमरे में सो रहा था, लेकिन उस के कान दरवाजे पर लगे थे. मालविका के पास भी चाबी रहती थी, दूसरे कमरे से जब खटपट की आवाजें आईं, तो सुदेश सतर्क हो कर उठ बैठा. उस ने भांप लिया कि मालविका आई है.

अब मालविका अपने कमरे में आ कर कुछ सामान निकालने लगी और सूटकेस तैयार करने लगी तो सुदेश उस पर कंट्रोल जमाने के लिए उसे पीछे से आ कर जकड़ लिया, ‘‘अरे गुस्सा थूको जानेमन. नई फिल्म की कहानी सुनाने आज ही आ रहा है एक राइटर. तुम चली कहां फिल्म छोड़ कर?’’ मालविका सुदेश के पुरानी टैक्टिस जानती थी. सबकुछ झठ था उस का.

उस ने खुद को छुड़ा कर अपने दोनों सूटकेसों को पकड़ा और जातेजाते कहा, ‘‘बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं रही. रास्ते मैं ने अलग कर लिए हैं. तुम्हारी गुलाम अब नहीं रही.’’ दरवाजे से निकलते हुए उस के शब्द मालविका के कानों में पड़े, ‘‘देखता हूं.’’ राघव अपने काम से काम रखता और अपनी यूनिट के लोगों के साथ उस का व्यवहार दोस्ताना और प्रोफैशनल दोनों था. इस की फिल्मों में मालविका ने लगातार काम किया. फिल्में हिट हुईं, नाम, पैसा खूब कमाया. जिस मुकाम तक उसे पहुंचना था, लगातार पहुंचती रही, अपना बंगला और कार तक ले ली. राघव के आगे अब तक भले ही सुदेश की न चली लेकिन वह हार मानने वाला बंदा नहीं था.

एक बार एक पार्टी में एक हुस्न परी 19 साल की सुंबूल नाम की लड़की से राघव की मुलाकात हुई और उसे देखते ही राघव बुरी तरह उस का कायल हो गया. उस की एक बहुत पुरानी कहानी रखी थी, जिस की नायिका हुबहू इस सुंबूल की तरह थी. राघव ने तुरंत पता किया और उस लड़की के पिता से बात की. बेटी के पिता राघव की फिल्म में बेटी के काम करने को ले कर राजी हो गए. इस के बाद से राघव मालविका को भूलते चले गए. मालविका को पता चला नई हीरोइन और नई फिल्म के बारे में.

मालविका के लिए सुदेश के कारण दूसरे बैनर में काम पाना कठिन था और राघव भी कोई संपर्क न रखें, काम न पूछें तो स्वाभाविक ही था मालविका खबर लेती. मालविका अंदर की बात पता चली जो राघव को भी मालूम नहीं थी. दरअसल, सुदेश ने ही मालविका को हटाने के लिए इस नई लड़की सुंबूल को आगे कराया था. मालविका भले ही अभी 30 की हो रही थी लेकिन इतने में ही अगर वह घर बैठ जाए तो अपनी हाई प्रोफाइल लाइफ कैसे मैंटेन करेगी? उस ने अपनी फोन बुक पलटनी शुरू किया, कौंटैक्ट्स काम के मिले अगर तो काम बने.

एक वास्तुशास्त्र के ज्योतिष जो फिल्मी दुनिया में अपनी खूब पैठ रखते थे, उन का नंबर मिला. डूबते को तिनका ही काफी. सो घुमा दिया फोन. बी.एस. साहब का बहुत बड़ा रत्नों का भी व्यापार था और वास्तु ज्योतिष का भी व्यवसाय. पिछली किसी पार्टी में उन से मुलाकात के बाद मालविका ने उन का नंबर जुटा रखा था. बी.एस. साहब ने भी मालविका का नंबर सेव रखा था.

बातचीत से शुरू होते हुए मुलाकातों का सिलसिला फिर उन से होते हुए एक प्रतिष्ठित नामी धर्माचार्य से मालविका की जानपहचान गहरी होती गई. मालविका अब डरडर कर जीने से आजिज आ चुकी थी. संपर्क इन से बढ़े तो उस ने भी खुद को अब एक खेमे में शामिल पाया और इस से उस का अकेलापन दूर होने लगा. काफी मेलजोल के बाद इन लोगों ने मालविका को अपने दल का हिस्सा बना लिया. ये लोग छोटेबड़े शहरों में जा कर प्रवचन देते, वास्तु और ज्योतिष के नाम पर आम जनता का विशाल मजमा लगता, करोड़ों की कमाई का जरीया खुलता, रत्न और वास्तु का व्यापार भी जोरों पर चलता.

अब जब मालविका को फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया तो इन लोगों ने मालविका के साथ मिल कर एक प्लान बनाया. बनारस के एक विशाल हौल में ठसाठस भीड़ जुटी कुरसियां थी. सामने दरी पर महिलाओं की अत्यधिक भीड़. कुरसियां भर जाने के बाद लोग कतारों में खड़े. एक अति सुंदर स्त्री गेरुआ साड़ी और फुल स्लीव के गेरुआ ब्लाउज में ध्यानमग्न भीड़ के सामने सुसज्जित मंच पर अपने सिंहासन पर बैठी थी. उस स्त्री के सिर के बाल माथे के ऊपर रुद्राक्ष माला के साथ जूड़े में बंधे थे.

पास ही एक टेबल पर कमंडल में जल रखा था. एक मध्यम आकार के ताम्र पात्र में लाल धागों की भरमार थी और हरेक लाल धागे में एक ताबीज बंधा था. इस के अलावा कागज की चिट भी एक गेरुआ झले में रखी थीं. 2 चौबीसपच्चीस साल के लड़के उस स्त्री की दोनों ओर खड़े थे. वे एकएक कर नाम पुकार रहे थे और एक परिवार के लोग एक बार में मंच पर आ रहे थे. वह स्त्री मिलने वाले को लाल धागे वाला ताबीज देती, जल छिड़कती, जिस के लिए ऐंट्री के वक्त ही एक अच्छी रकम वसूली जा चुकी थी.

इस के अलावा अगर कोई ज्यादा रोना रोता तो उसे वह कागज की चिट थमा देती, जिस में वास्तु और ज्योतिष के फोन नंबर थे, साथ में हिदायत दे देती कि इन्हें फोन करते ही उन लोगों की बाकी समस्या तुरंत दूर हो जाएगी. यह सब पीछे खड़ा एक 30 साल का लड़का देख रहा था. अचानक वह भीड़ से उठ कर मंच के सामने आ कर खड़ा हो गया और जोर से पुकार कर कहा ‘‘मालविका मैं तनय. तुम से मिलना है. मालविका.’’ नाम सुनते ही उस स्त्री ने अचंभित हो अपनी आंखें खोल दीं.

अब तक 2 उन के ही लोग तनय को हाथ पकड़ कर खींचने लगे. मंच पर विराज स्त्री ने अपने पास खड़े एक युवक को पास बुला कर उस के कान में कुछ कहा. लड़का जल्दी तनय के पास आ कर उसे हाथ पकड़ कर किनारे से चलते हुए एक दरवाजे से बाहर ले गया और पास की एक दूसरी बिल्डिंग में ले जा कर एक अति आधुनिक सुसज्जित कमरे के सोफे पर बैठा कर कहा कि जब तक मां माहेश्वरी आएं वह यहीं इंतजार करे. लगभग 2 घंटे इंतजार के बाद वह स्त्री आई. उस ने एक बार तनय की ओर दृष्टि डाली और एक दरवाजे से अंदर चली गईं.

आधे घंटे बाद जब बाहर आई तो तनय उस के रूप यौवन और वेशभूषा देख अवाक रह गया. कौन कह सकता है कि यह मौडर्न स्टाइलिश स्त्री कुछ देर पहले तक एक संयासिनी के वेश में थी. पीले रंग की स्लीवलैस ढीली सी कुरती और ढीले से प्लाजो में हलके मेकअप के साथ वह गजब ढा रही थी. खुले लंबे बालों की कुछ घुंघराली लटें उस की मादकता और बढ़ा रही थीं. ‘‘कैसे इधर तनय? अचानक मैं कैसे याद आई?’’ स्त्री ने अनायास कहा. मालविका, तुम मां माहेश्वरी कब बन गईं. क्यों बनीं तुम तो फिल्मी दुनिया की नामचीन हीरोइन हो. ‘‘थी, थी तनय. अब मैं मां माहेश्वरी हूं.

कहानी लंबी है, तुम कहां रहते हो, यहां कैसे आए?’’ ‘‘मालविका मेरी एक अर्जी है, अगर रख लोगी तो मेरा आना सार्थक हो जाएगा. यहां से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक गांव है जहां से मैं मिलने आया हूं तुम से, तुम मेरे गांव चलो, बस एक बार चल कर देखो, फिर तुम से और कुछ नहीं मागूंगा.’’ ‘‘ठीक है तनय, जाना तो चाहती हूं मैं, लेकिन कुछ लोग हैं, जो मुझे छोड़ेंगे नहीं.’’ ‘‘क्यों तुम क्या उन की कैदी हो? उन के कब्जे में हो?’’ ‘‘पहले तो सोचा ऐसा नहीं था, लेकिन मैं उन से कहे बिना कुछ भी नहीं कर सकती.’’ ‘‘फिर तो तुम उन की गुलाम हो मालविका.

आओ चलो यहां से इन के चंगुल से मैं तुम्हे मुक्ति का स्वाद दूंगा.’’ मालविका तनय की ओर गहरी दृष्टि से देख रही थी. अचानक उस के चेहरे पर कुछ अलगअलग किस्म के भाव आए. बोली, ‘‘तनय, तुम हिम्मत कर पाओगे? अगर मैं तुम्हें उन के सामने ले जा कर कहूं कि तुम मेरे प्रेमी हो, मुझे यहां आया देख तुम बहुत उम्मीद ले कर आए हो और मुझे अपने साथ ले जाना चाहते हो, हम वयस्क हैं, अगर शादी करने का कहें तो वे मना नहीं कर पाएंगे, तुम आखिर तक उन के सामने खड़े रह पाओगे?’’ ‘‘रह पाऊंगा, मालविका. तुम अभी जो कर रही हो यह एक तरह से आम जनता के प्रति धोखा है.

मैं सच में नहीं चाहता तुम यह सब करो. चलो कहां चलना है. जिन से मिलना है उन से मिलने की सूरत निकालो.’’ उन की इतनी बड़ी कमाई की लुटिया डुबो कर मालविका चली जाए, वे स्वीकार तो नहीं पाते, लेकिन तनय ने अपने एक वकील दोस्त को भी साथ बात करने को बुला लिया था. मालविका थी तो जिद्दी, जो अड़ गई तो अड़ गई. आखिर वे दोनों तनय के गांव की ओर चल पड़े.

एक कैब में पीछे की सीट पर मालविका और तनय बैठे थे. मालविका ने तनय की ओर देखा. तनय दूर कहीं खोया सा ताक रहा था. ‘‘तनय? क्या से क्या हो गया. मैं माफी चाहती हूं तुम से, सुना था, तुम्हारी तो शादी हो गई थी 4 साल पहले? तुम बुरा मत मानना तनय. मैं ने बस वहां से निकलने के लिए यह बहाना बनाया, तुम्हारी बीवी को ये सब मत कहना, मैं उस की नजर में गिरना नहीं चाहती, उस से दोस्ती चाहती हूं बस.’’ ‘‘हूं,’’ तनय के इस संक्षिप्त उत्तर पर मालविका ने उस की ओर देखा.

वह अब भी कहीं खोया था. तनय गांव का ही हो कर रह गया था. इकौनोमिक्स और ऐग्रीकल्चर की पढ़ाई के बाद गांव में ही फार्म हाउस कैटल रियरिंग और खेतीबाड़ी. पूरी तरह रमा था वह, अपना खेत भी दिखाता चल रहा था, लहलहाती फसल, गांव के सुकून भरे तालाब, विचरते हंस और खिले जलपद्म. शाम होने को आ रही थी, सूरज आकाश से धीरेधीरे नीचे खिसक रहा था.

मालविका कुछ उदास सी लग रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि तनय की बीवी से कैसे क्या कहेगी. घर आ गया था, पुरातन घर को अब विशाल बंगले का रूप दिया गया था, सामने बहुत बड़ा बगीचा और खिले हुए फूलों के बीच बड़ा सा झला. घर में घुसते ही एक 3 साल की मासूम प्यारी बच्ची दौड़ती हुई आई और तनय से लिपट गई. तनय ने उसे गोद में उठा लिया और पूछा, ‘‘दादी कहां हैं?’’ मालविका गौर कर रही थी सबकुछ. तनय मालविका को अंदर एक हौल से होते हुए कमरे में ले गया.

वहां एक सुंदर स्त्री का फोटो टंगा था जिस में माला डाली गई थी. ‘‘तनय, कौन है?’’ मालविका मन ही मन सहम रही थी. तनय ने कहा, ‘‘सही सोच रही हो मालविका यह मेरी जीवनसंगिनी, मेरी इशू की मां. वह नहीं रही. मेरी मां यानी इशू की दादी ही इशू को संभालती हैं.’’ ‘‘तनय, मै शब्दों से यह अफसोस व्यक्त नहीं कर सकती,’’ कह मालविका ने इशू की ओर हाथ बढ़ाया, बच्चे मन की परख रखते हैं, वह तुरंत मालविका के गोद में चली गई. शाम की चाय बाहर बरामदे में रखी गई. इशू की दादी लगभग 60 की होंगी, लेकिन बातव्यवहार, कामकाज में उन की स्फूर्ति मालविका को अच्छी लगी.

उन्होंने मालविका को चाय बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मुझे उम्मीद है तुम मेरी बातों का बुरा नहीं मानोगी.’’ ‘‘नहीं. कहिए.’’ तनय और मालविका दोनों ही मन ही मन थोड़ा डरे, लेकिन जाहिर नहीं होने दिया. ‘‘बेटा देखो, वह जाता हुआ सूरज साक्षी है, यह पल एक संधि क्षण है जब पुराने के बाद नए के उदय का इंगित देता हुआ सूरज चला जा रहा है. एक बीता, दूसरा आने वाला है, इस संधि क्षण में तनय और तुम्हारे बीते कल के बाद एक नया कल आ सकता है, अगर तुम दोनों मुझे यह खुशी देना चाहो तो.

शाम का यह समय दिन के बाद रात और फिर नई सुबह का इशारा देता है. यह एक संधि क्षण है, एक योग क्षण, जो बहुत कुछ जोड़ सकता है. ‘‘अब दोनों एकसाथ हो जाओ बच्चो. क्या ऐसा मुमकिन है? मेरी इशू की सुरक्षा और उन्नति के लिए?’’ तनय ने मां को देखा और कहा, ‘‘मां, तुम यह क्यों बोल रही हो? मालविका मेरी अच्छी दोस्त है, एक दिन के लिए घूमने आई है.’’ मालविका ने तनय की ओर बिना देखे तनय की मां से कहा, ‘‘मां, मैं तनय को चाहती थी, लेकिन तनय ने कभी मेरी ओर ध्यान नहीं दिया और मैं उसे भुला कर अपने कैरियर के लिए मुंबई चली गई.

मेरी जिंदगी में बहुत तूफान आए, अगर तनय सुनना चाहे तो मैं बता दूंगी, लेकिन तनय को अपनी जिंदगी में पा कर मैं शायद अपने सारे दुख भुला दूं. साथ बोनस में आप और इशू मिलो तो मैं परिपूर्ण हो जाऊंगी. लेकिन तनय का मैं नहीं जानती मां.’’ तनय ने मालविका की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे सारे तूफान अपने सिर ले लूंगा, लेकिन साझ करने के लिए, कैफियत नहीं चाहिए मालविका.’’ इशू की दादी दौड़ कर अंदर से मिठाई ले आईं. कहा, ‘‘आज इतने दिनों बाद मेरे घर उत्सव है, जाऊं खाने की तैयारी करूं. कल से कितने काम हैं.’’

एक इस संधि क्षण में अब तनय और मालविका बगीचे के झले में साथ बैठे थे, इशू मालविका के गोद में थी. मालविका ने कहा, ‘‘इशू, मुझे मां कहना.’’ इशू ने कहा, ‘‘मां.’’ तनय ने मालविका के हाथ को कस कर अपनी हथेली में बंद कर लिया.

Long Story in Hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें