मेरे अंडर आर्म्स बहुत काले है, मैं क्या करूं?

सवाल

 मैं 19 वर्ष की हूं. मेरे अंडर आर्म्स बहुत काले है. जिस वजह से मैं स्लीव लेस नहीं पहन पाती. क्या यह ठीक हो सकता है. कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे यह जल्दी ठीक हो जाए?

जवाब

आज के समय में अधिकतर लड़कियां इस प्रॉबलम को फेस कर रही है. जिस वजह से कई बार वह अपनी मन-पसंद कपड़े नहीं पहन पाती. अंडर आर्म्स काले पड़ने की कई वजह है. जैसे की हेयर रिमूवल क्रीम का यूज, रेज़र का प्रयोग, डिओ का इस्तेमाल, डेड स्किन और पासीना.

अंडर आर्म्स को गोरा करने के लिए आप किसी स्किन स्पेसलिस्ट की को दिखवा कर पील करवा सकती है. पील से आपकी त्वचा की काली परत निकलने लगती है और आपकी स्किन पहले जैसी चमकदार हो जाती है. पील के वक्त कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती है इसलिए आप पील डॉक्टर के निगरानी में ही करवाएं.

अगर पील करवाना आपको महंगा पड़ रहा है तो आप इन घरेलू नुस्खों से भी अंडर आर्म्स के कालेपन को दूर कर सकती है.

  • बैकिंग सोडा- बैकिंग सोडा में पनि मिलाकर अंडर आर्म्स पर स्क्रब करें. इससे डेड स्किन सेल्स हट जाएगी और कालापन भी दूर हो जाएगा.
  • हल्दी- हल्दी आपकी त्वचा को सबसे ज्यादा निखारने का काम करती है. अंडरआर्म्स का कालापन दूर करने के लिए हल्दी को दूध के साथ मिलाए और उसका पेस्ट बनाकर उन जगहों पर लगाये. सूखने के बाद उसको हल्के हाथो से रगड़ ले, ऐसा करने से कालापन दूर हो जाएगा.
  • बादाम और शहद- बादाम को घिसकर इसमें एक चम्मच दूध पाउडर और शहद मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट से अंडरआर्म्स पर मसाज करें. ऐसा हफ्ते में 3 बार करें इससे कालापन जरूर दूर होगा.
  • फिटकरी – फिटकरी में काफी गुण पाए जाते है. फिटकरी से त्वचा का पीएच लेवल मैंटेन रहता है. इससे खुजली अधिक पसीना और त्वचा का कालापन भी दूर हो जाता है. 2 चम्मच फिटकरी पाउडर में थोड़ा सा पानी मिलाकर पेस्ट बना लें. और इसे अंडर आर्म्स पर लगा कर 15 मिनट के लिए छोड़ दें. 15 मिनट बाद इसे पानी से धो लें. आपको काफी फर्क नजर आएगा.

ये टिप्स अपनाएंगे तो, बिल पर काबू पायेंगे

हममें से अधिकांश लोग गैस और बिजली के बिल को लेकर परेशान रहते हैं. अधिक बिल जमा करने के कारण पूरा हिसाब बिगड़ जाता है. बिल अकाउंट में आने के बाद हमें होश आता है कि बिल ज्‍यादा है, जरूरी है कि बिल पर नजर रखी जाए.

बिल के बारे में जानकारी से अवगत रहे

हर बिल के ऊपर उसका रेफरेंस नंबर लिखा होता है, इससे आप बिल आने से पहले ही इसकी जानकारी ले सकते हैं. इस रेफरेंस नंबर से आपको बिल से जुड़ी विस्‍तृत जानकारी मिल सकती है, मसलन, आखिरी पेमेंट, वैट, अतिरिक्‍त चार्ज. अपने गैस अकाउंट में इस्‍तेमाल की गई गैस को देखें और अगर इसकी इस्‍तेमाल से अधिक पैसे लिए गए हैं तो पैसे वापसी के लिए तुरंत बात करें. इसका दूसरा विकल्‍प ऑनलाइन एडवाइजर से मदद लेना है. अगर आप बिल से जुड़ी इन बातों को लेकर जागरुक हैं तो आपको कम बिल देना होगा. उपकरणों की गैस की खपत कम करें.

गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में गैस की खपत 97 प्रतिशत ज्‍यादा होती है. वॉटर हीटर और गैस फर्नेंस सबसे ज्‍यादा बिजली यूज करते हैं. गैस बिल का 70 प्रतिशत हिस्‍सा फर्नेंस से आता है. वॉटर हीटर के सही इस्‍तेमाल से बिजली के बिल को कम किया जा सकता है. कम गैस की खपत वाले उपकरणों का इस्‍तेमाल करें.

अन्‍य टिप्‍स

सर्दियों के दिनों में दरवाजे और खिड़कियों से आने वाली हवा से गैस की खपत बढ़ जाती है. इससे बचने के लिए दरवाजे और खिड़कियों के पास से आने वाली हवा की जगहों को सील करें. जिस दिन सूरत निकले उस दिन घर में दरवाजे खिड़‍कियों को खोल जिससे घर में प्राकृतिक गर्माहट आए. ये बातें बहुत छोटी लग रही हैं, लेकिन इन बातों का ध्‍यान रखकर आप गैस के बिल में बचत कर सकते हैं.

जब जाना हो बच्चों के साथ रैस्टोरैंट

छोटे बच्चों के साथ बाहर खाना खाने जाने के बजाय ज्यादातर मातापिता बाहर का खाना खाने का मन होने पर खाना पैक करा कर घर लाना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि बच्चे इतना तमाशा करते हैं कि वे परेशान हो उठते हैं. मगर इस का यह मतलब भी नहीं कि छोटे बच्चों के साथ रैस्टोरैंट में खाना खाने जाएं ही नहीं. निम्न बातों पर ध्यान दे कर आराम से घर से बाहर अपनी पसंद के भोजन का लुत्फ उठाएं:

सही रैस्टोरैंट का चुनाव

रैस्टोरैंट ऐसा हो जहां अगर बच्चे शोर मचाएं, तो अजीब न लगे. कहने का मतलब यह है कि कुछ रैस्टोरैंट फैमिलीज के लिए जाने जाते हैं, जहां अन्य परिवार भी बच्चों के साथ आते हैं. यदि आप ने कोई ऐसा रैस्टोरैंट चुना जहां कपल्स आंखों में आंखें डाल कर लाइव गजलों का आनंद ले रहे हों, तो वहां आप को आप के खुराफाती बच्चों के साथ 15 मिनट के अंदर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.

पूल साइड रैस्टोरैंट्स में न जाएं, क्योंकि बच्चा खेलतेखेलते कब पूल में गिर जाए, कोई भरोसा नहीं.

पिज्जाबर्गर जौइंट्स या फास्ट फूड रैस्टोरैंट्स बच्चों के साथ जाने के लिए अच्छा विकल्प हो सकते हैं. वहां आप को खाने का अधिक समय इंतजार नहीं करना पड़ता. बच्चों के साथ इंतजार करना मुश्किल होता है.

बुफे भी एक अच्छा चुनाव हो सकता है, क्योंकि वहां लोग चलफिर रहे होते हैं. बच्चे अधिक देर एक जगह नहीं बैठ सकते. अत: वे जब इधरउधर जाएंगे, तो बुफे में अजीब नहीं लगेगा. आप का बच्चों के पीछे भागना भी अजीब नहीं लगेगा. साथ ही खाने की अधिक वैराइटी सामने होने पर बच्चे भी अपनी पसंद का खाना चुन सकते हैं.

कई रैस्टोरैंट्स हाई चेयर, झूला आदि की व्यवस्था बच्चों के लिए रखते हैं. बहुत छोटे बच्चे को झूले में लिटा कर आप कुछ समय के लिए तो बेफिक्र हो ही सकते हैं. बच्चे को नींद आ जाए, तो और बढि़या. थोडे़ बड़े बच्चे के लिए हाई चेयर वरदान है. उस से बच्चा उतर कर भाग नहीं पाएगा और उस की फूड ट्रे पर आप उस का पसंदीदा भोजन रख सकती हैं या उस के खिलौने भी. बच्चा कुछ समय के लिए ही सही पर व्यस्त हो जाएगा.

कुछ रिजौर्ट्स में बच्चे जब इधरउधर भागते हैं तो वेटर्स उन का ध्यान रखते हैं ताकि मातापिता आराम से भोजन कर सकें. अत: जिस रैस्टोरैंट में ऐसी सुविधा हो वहां बच्चों के साथ खाना खाने जाएं.

कुछ रैस्टोरैंट्स में चिल्ड्रन मेन्यू अलग से होता है, जिस में बच्चों की पसंद का खास ध्यान रखते हुए खाने की चीजें होती हैं. ये मिर्च रहित और बच्चों को आकर्षित करने वाली चीजें होती हैं. बच्चों के साथ रैस्टोरैंट का चुनाव करने में यह एक मेजर प्लस पौइंट होता है.

बैग में जरूर हों ये सामान

बच्चों के साथ रैस्टोरैंट जाना हो, तो अपने बैग में ये सामान जरूर रखें:

बच्चे की पसंदीदा किताबें, गेम्स या पजल्स और खिलौने. ये चीजें यदि ऐसी हों जो उस ने पिछले 2-3 महीनों से नहीं खेली हों, तो और बढि़या. बच्चे 15-20 मिनट तो इन में जरूर व्यस्त रहेंगे. तब तक आप अपना भोजन आराम से कर सकते हैं.

बच्चे की बिब, भोजन गिरने पर साफ करने के लिए नैपकिन और कपड़े खराब होने पर बदलने के लिए 1 जोड़ी ऐक्स्ट्रा कपड़े.

कुछ नए छोटेछोटे खिलौने भी आप रख सकती हैं. मगर ध्यान रहे शोर करने वाले खिलौने न हों वरना रैस्टोरैंट में आसपास के लोगों की शांति में खलल पड़ेगा. नए खिलौने में बच्चेका ध्यान अधिक समय तक बंटा रहेगा. हैलिकौप्टर, कार आदि खिलौने बच्चा हाई चेयर की ट्रे पर भी चला सकता है.

बच्चे की खाने संबंधी पसंदनापसंद आप को अच्छी तरह पता होती है. यदि बच्चे को रैस्टोरैंट में मिलने वाला खाना पसंद नहीं है, तो

आप उस के लिए कुछ स्नैक्स व किशमिश वगैरह ले जा सकती हैं. वे बच्चे को अधिक समय तक व्यस्त रखने में उपयोगी होते हैं और बच्चे का पेट भी खराब नहीं करते.

इन बातों का भी रहे ध्यान

आप का अटैंशन और बातचीत: चाहे बच्चों को सौ तरीकों से व्यस्त रखने की कोशिश करें, किंतु उन के लिए आप का अटैंशन भी जरूरी है. यदि आप के बच्चे को लगा कि आप कहीं और मशगूल हैं, तो वह रो कर ध्यान आकर्षित करेगा. इस से यह है कि अच्छा आप बीचबीच में उस से बात करें. जैसेकि अरे वाह, आप ने सारी किशमिश फिनिश कर दी. आप के ऐरोप्लेन में पायलट कहां बैठता है? या वेटर अंकल आए हैं, क्या आप के खाने के लिए कुछ मंगा दूं? आदि.

बच्चे की पसंद का खाना और्डर करें: नन्ही प्रियांशी को टोमैटो और चिकन दोनों ही सूप बहुत पसंद हैं. इसलिए प्रीति और प्रीतेश जब भी रैस्टोरैंट जाते हैं, तो सब से पहले सूप और्डर करते हैं. फ्रैंच फ्राइस, चिकन नगेट्स आदि भी बच्चों को बहुत पसंद होते हैं.

कुछ डैजर्ट भी आप सिर्फ अपने रैस्टोरैंट विजिट के लिए रिजर्व कर सकती हैं. अंशिका को पता है कि जब वह मम्मीपापा के साथ रैस्टोरैंट जाएगी, तो उसे पुडिंग मिलेगा उसी चक्कर में वह रैस्टोरैंट में अच्छी बच्ची बन कर रहती है. पीक आवर्स से पहले पहुंचें: लंच और डिनर के कुछ पीक आवर्स होते हैं, जिन में रैस्टोरैंट्स में बहुत भीड़ होती है. अत: कोशिश करें कि आप उस से पहले पहुंचें ताकि आप को सर्विस के लिए इंतजार न करना पड़े.

कुछ अनुशासन के नियम घर में भी जरूरी: खाने और मुंह से पानी को फेंकने न देना और जोर से चिल्लाने के लिए मना करना, ऐसे कुछ नियम घर पर भी बच्चों को अनुशासित करने के लिए अपनाएं ताकि घर और बाहर दोनों ही जगह वे सलीकेदार रहें.

बाहर जाने से पहले समझाएं: ज्यादातर मातापिता को यही लगता है कि बच्चों को समझाने का कोई फायदा नहीं होता, पर हकीकत में ऐसा नहीं होता है. बच्चे बहुत समझदार होते हैं. यदि उन्हें प्यार से समझाया जाए, तो वे बाहर भी गुड मैनर्स जरूर अपनाएंगे.

चांद के पार – भाग 3 : जया के जीवन में अकेलापन ही क्योंं बना रहा

वही जया आज शिव की प्रिया बनने को आतुर थी. उम्र के इस पड़ाव पर शिव के प्रति इतनी आसक्ति समय और समाज के आईने में निंदा का ही विषय होगा, इस सचाई से जया अनजान न थी. वह किसे बताए कि अब तक के जीवन में प्यार उस के लिए मृगतृष्णा ही बना रहा.

चाह की धुरी पर प्यार को तलाशती, रचती, खोती वह धरती बनी घूमती ही रही. सपनों से भरे दिन और चाहत से भरी रातों की बात उस की जबान पर आना भी कितनी लज्जाजनक बात होगी. पटना में शिव से इसी तरह क्या वह मिल सकेगी, पता नहीं किनकिन रुसवाइयों का सामना करना पड़ेगा, यह सोच कर जया विह्वल हो उठी.

उधर शिव की बेटी पिया भी अपने पापा में आए बदलाव को महसूस कर रही थी.

मम्मी की यादों में खो कर रह जाने वाले पापा को कौन सी जादुई छड़ी मिल गई है जिस के स्पर्श से वे इतने तरोताजा हो गए हैं कि अपनी उम्र को पीछे ही दहलीजों पर भगाए जा रहे हैं. कहीं यह जया आंटी की संगति का असर तो नहीं है. सुंदरता और सौम्यता के साथ कितनी प्रतिभाशाली है वह. किसी भी टौपिक पर ऐसे व्याख्यान देगी कि मन बंध कर रह जाता है.

पापा के साथ हम सभी को देख कर कमल की तरह ही वह खिल जाती है. यश के यहां जाने पर डिनर कर के ही आने देती है. हालांकि, उन की ममता में मम्मी का दुलार उभर आता है. पापा तो उन्हें देखते ही खुशी के मारे चहकने लगते हैं. अब तो वे आंटी के साथ जा कर ग्रौसरी वगैरह ही नहीं बल्कि फारमर्स मार्केट से सब्जीफल भी खरीद लाते हैं. लाइब्रेरी जा कर अपनी पसंद की किताबें ले आते हैं. जया आंटी को मां बना लेने की बात मजाक में ही उस के पति समीर का कहना उसे सुख की अनुभूतियों से भर गया था. काश, ऐसा हो सकता. पर यश क्यों मानने लगा. जाति से कहां वे ब्राह्मण और कहां वे बनिया, सोच कर पिया का मन छोटा हो गया. फिर भी वह यश से बात करेगी, देखें वह कहता क्या है.

युवावस्था में शिव की प्रतिभा और स्वभाव पर न जाने कितनी लड़कियां आकर्षित थीं लेकिन उन्होंने कभी नजर उठा कर भी किसी को नहीं देखा था. अपनी पत्नी पद्मा को ही चाहते रहे. लेकिन इस उम्र में जया के प्रति अपने मन के सम्मोहन पर आश्चर्यचकित थे. उन का वश चलता तो वे जया को अपने हृदयस्थल में छिपा लेते. जितने बेबाकी से वे यहां पर जया से मिलते हैं, क्या पटना में वे मिल सकेंगे? वहां का समाज इसे सहन कर सकेगा? उन पर तो हंसेगा ही, और जया को कुलटा कहने से पीछे नहीं हटेगा.

उन की जया को कोई चरित्रहीन कहे, उन की आत्मा सहन कर पाएगी? कदापि नहीं. जया भी तो उस पर अनुरक्त है. एकदूसरे की हथेलियों को थाम जब वे मौल, रैस्तरां, स्टोर्स में या सड़कों पर चहलकदमी करते हैं तो सभी उन्हें परफैक्ट कपल ही सोचते हैं. उस ने बांहें फैलाईं नहीं कि जया किसी ब्याहता की तरह उस में सिमट आती है.

आजकल जब भी वह उन की बांहों में सिमटती है, उस के तन की छुअन किसी कस्तूरी की मृग की तरह उन्हें तड़पा देती है और वे विवश हो उस की हथेलियों को मसलते रह जाते हैं. कौन देखता है इस देश में अगर उन दोनों के बीच की दूरियां मिट भी जाती हैं तो. पर वे मर्यादा से बंध कर ऐसा करने से मन मसोस कर रह जाते हैं. उन की गरम सांसें ही उस का अभिनंदन कर के रह जाती थीं. शिव तो ग्रीनकार्ड होल्डर थे. अगर जया की रजामंदी हो तो उसे ब्याह कर वे इसी देश में बस जाएं.

इसी बीच, जया और शिव का परिवार घूमने के लिए 2 घंटे की दूरी पर जरमनी के बवेरिया शहर के आधार पर बने लीवेनवर्थ गए. फूलों और और्कैस्ट्रा की इस खूबसूरत नगरी में जया और शिव को पीछे छोड़ कर वे सभी आगे बढ़ गए. जब वे लौटे तो अचानक उन की नजर हाथों में हाथ दिए म्यूजियम की सीढ़ी पर बैठे शिव और जया पर पड़ी जो एकदूसरे को बड़े प्रेम से आइसक्रीम खिला रहे थे. अचानक ही पिया और यश को अपने पापा और मम्मी की खुशियों के राज का पता चल गया. उसी क्षण उन दोनों ने उन्हें एक कर के उन की खुशियों को बनाए रखने का निर्णय ले लिया.

घर के सभी सदस्यों की खुशियां और उत्साह का कारण चाह कर भी जया नहीं जान पाई. बड़े प्रेम और आग्रह से अणिमा ने अपनी सुंदर सी साड़ी जया को पहनाई. चांदी के चंद तारों को लिए लंबे बालों को जूड़ा बना कर जया के माथे पर छोटी लाल बिंदिया क्या लगाई कि उस की रूपराशि पर मोहित हो कर वह स्वयं ही लिपट गई. मां के नए रूप को यश भी देखता ही रह गया. कुछ दिनों के लिए बाहर जाने की बात कह कर अणिमा ने जया का सामान भी पैक कर दिया था. हमेशा की तरह यश और पिया का परिवार अपनी गाडि़यों से निकल पड़े.

आज उन की गाडि़यां सिटी हौल के सामने रुकीं जहां आने की अनुमति उन्होंने ले रखी थी. पिया और यश ने जया और शिव को ले जा कर जज के सामने खड़ा कर दिया. जज ने पेपर पर उन दोनों के हस्ताक्षर के साथ गवाह बने पिया और यश के भी हस्ताक्षर लिए. जज के बधाई देने के बाद जया अवाक हो गई. उस के मन की बात यश ने कैसे जानी.

इतनी सहजता से इतना बड़ा निर्णय कैसे ले लिया. इसी सोच में जया डूबी हुई थी कि सामने से पिया और यश मम्मीपापा कहते हुए उन दोनों से लिपट गए. नव परिणीता जया के चेहरे पर से शिव की नजरें हट नहीं रही थीं. शिव के साथ मिल कर पिया महीनेभर से तैयारियां कर रही थी. लज्जा से कहीं जया शादी के लिए मना न कर दे, इसलिए यश और अणिमा ने उस की शादी की बात उस से छिपा रखी थी.

मां के छलकते रूप और खुशी पर यश बलिहार था तो उधर पिया भी अपने पापा की खुशियों को समेट नहीं पा रही थी. यश की जबान शिव को पापा कहते थक नहीं रही थी तो पिया किसी बच्ची की तरह जया के तन से लिपटी जा रही थी. जया और शिव के पोतेपोती भी ग्रैंडमौम और गैं्रडपा को देख कर किलक रहे थे. एयरोड्राम पहुंच कर यश और पिया ने शिव और जया का सामान ट्रौली पर रखते हुए स्विट्जरलैंड की टिकटें पकड़ाईं तो दोनों लज्जा से आरक्त हो उठे पर चल पड़े चांद के पार जहां एक नई सुबह अरमानों की नई कोपलों के साथ उन का इंतजार कर रही थी.

चांद के पार – भाग 2 : जया के जीवन में अकेलापन ही क्योंं बना रहा

अब जब भी शिव शाम को सैर के लिए निकलते, जया को साथ लेना न भूलते. जया भी तैयार हो कर उन की बाट जोहती. बोलतेबतियाते, एकदूजे के सुखदुख बांटते वे बहुत दूर निकल जाते. रास्तेभर शिव जया का खयाल रखते और जया भी उन के अपनेपन की ठंडी फुहार में भीगती रहती. कभी गगनचुंबी पेड़ों के नीचे बैठ कर वे अपनी थकान मिटाते तो कभी  झील के किनारे बैठ पानी में तैरने वाले पक्षियों से बच्चों की तरह खेलते.

न जाने कितनी बार शिव ने जया के दिवंगत को जानने के लिए उसे कुरेदा होगा पर उस की पलकों पर उतर आए खामोशियों के साथ को ही समेट कर इतना ही जान सके कि 30 साल पहले उस के पति की मृत्यु कार दुर्घटना में हुई थी. अपने बेटे यश को उन्होंने अपने बलबूते पर इतना काबिल बनाया है. जहां पर शिव अपनी पत्नी पद्मा को याद कर विह्वल हो जाते थे वहीं पर जया

अपने पति की स्मृति से उदासीन थी. उस की असहजता को देखते हुए उन्होंने उस के अतीत की चर्चा फिर कभी नहीं की. कुछ ही दिनों में जया और शिव के बीच की औपचारिकताएं न के बराबर रह गईं. घर के सदस्यों को अपने गंतव्य की ओर जाते ही या तो शिव जया के पास आ जाते या जया उन के घर चली जाती. दिनभर का लंबा साथ उन दोनों को ताजगी से भर देता. फिर देश भी ऐसा कि जहां किसी को किसी और को देखने की फुरसत नहीं होती है. बहुत हुआ, तो हायहैलो कहकह कर आगे बढ़ गए.

ऊंचेनीचे कटे चट्टानों पर उगे जंगलों के बीच बने आलीशान महलों को निहारते समय शिव हमेशा जया की कलाई को थामे रहते. जया को थोड़ा सा भी लड़खड़ाना शिव को बेचैन कर देता. जिस तत्परता से शिव उसे अपनी बांहों में समेटते, उतनी सहजता से जया उन की बांहों में सिमट आती, फिर सकपका कर अलग हो जाती. वहां पर किसी को किसी से मतलब ही कहां कि ऐसी छोटीछोटी बातों को तूल दे. ऐसे ही मधुयामिनी बने उन दोनों के दिन गुजरते रहे.

बारिश और धूप की आंखमिचौली शिव और जया के बीच की दूरियां समाप्त करती रही. एकदूसरे में वे ऐसे खोए कि विगत की सारी खट्टीमीठी यादें विस्मृत हो गई थीं. जया के सघन घने बाल शिव के कंधे पर कब लहराने लगे, कब शिव जया को अपनी भुजाओं में समेटने लगे, यह सोचने के लिए उन दोनों को होश ही कहां था.

एकदूसरे में समाहित होने की व्यग्रता को उन का मर्यादित विकल मन अथक प्रयास को  झेलता रहा. स्वयं के परिवर्तित रूप पर दोनों आश्चर्यचकित थे. 5 दिनों के साथ के बाद सप्ताहांत के अंतिम 5 दिनों में जब दोनों के परिवार घर में रहते थे, तो इस उम्र में भी वे एकदूजे के सान्निध्य को तड़प उठते थे.

हमेशा अकेलेपन का रोना रोने वाली उदासी की प्रतिमूर्त बनी जया के चेहरे पर छाई खुशियों की लालिमा उन के बेटे यश और बहू अणिमा से छूटी नहीं रही. जया को खुश देख कर यश की प्रसन्नता का कोई ओरछोर नहीं था. यश ने जब से होश संभाला, उस ने जया को हमेशा ही उदास और सहमा हुआ पाया. अपने पापा की गरजती आवाज से डर कर हमेशा वह जया की गोद में छिप जाया करता था. दूसरों के समक्ष अकारण ही मम्मी को तिरस्कृत करना, उन के कामों में नुक्स निकालना, उन के मायके वालों को अनुचित बातें कहना, सभी अपनों के साथ अप्रिय आचरण करना आदि पापा की बेशुमार असहनीय आदतें थीं.

औफिस हो या घर, शायद ही कोई उन्हें पसंद करता था. उसे याद नहीं कि उन्होंने अपने इकलौते बेटे को गोद में उठा कर कभी प्यार किया हो. बाद में उस ने जाना कि मम्मी का अपार सौंदर्य की स्वामिनी के साथ अति प्रतिभाशालिनी होना अतिसाधारण रंगरूप और अतिसाधारण शैक्षणिक योग्यता रखने वाले पापा को कभी न सुहाया. उन में  झूठी गलतियां निकाल, उन्हें अकारण तिरस्कृत कर के जब तक जीवित रहे अपने अहं को संतुष्ट करते रहे. आएदिन शराब के नशे में मम्मी को शारीरिक रूप से प्रताडि़त कर के अपनी खी झ उतारते रहे.

समझ आने पर जब भी उस ने मम्मी को बचाने की कोशिश की, पापा ने उसे रुई की तरह धुन कर रख दिया. पापा की इन्हीं गतिविधियों के कारण उन से प्यार करना तो दूर, वह कभी उन का यशोचित सम्मान भी न कर सका. उस के लिए सारे रिश्तों की पर्याय उस की मां ही बनी रही. कार दुर्घटना में हुई पापा की मृत्यु ने दुख के बदले आए दिनों की जिल्लतों से उन्हें मुक्ति ही मिली थी. मैथ्स विजार्ड कही जाने वाली उस की मम्मी ने कोचिंग सैंटर क्या जौइन किया कि घर में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कतार लग कर उन की सारी आर्थिक समस्याओं का समाधान कर गया. आज वह जो कुछ भी है, अपनी मम्मी की अटूट साधनाओं व तपस्याओं के कारण ही.

जीवन में हर स्त्री को सुयोग्य जीवनसाथी की कल्पना होती है. मम्मी को वह कभी नहीं मिला. पूरा जीवन अपनी आशाओं, आकांक्षाओं और कामनाओं के दहकते रेगिस्तान में नंगेपैरों वह दौड़ती रही. उस के राह की सारी बाधाओं को अपने पलकों से चुनती रही. क्या पता शिव अंकल के साथ ने इस उम्र में वर्षों की उन की मुराद पूरी कर दी हो. जयाजी के उच्चारण से शिव अंकल की जबान भी तो नहीं थकती. कितने खिल उठते हैं वे मम्मी को देख कर ही. उसे, अणिमा और अंश पर भी बड़े अधिकार से स्नेह बरसाते रहते हैं.

अपनी मां के जीवन में खुशियां लाने के लिए निम्न जाति से आने वाले शिव अंकल की याचना भी करनी पड़ी तो उसे रंचमात्र भी मलाल न होगा. उसे पूरा विश्वास है कि वे मम्मी को बहुत पसंद करते हैं. पिया भी उस की मम्मी को मानसम्मान देने के साथ उन्हें कितना चाहती है. उस की मम्मी है ही ऐसी कि उन के मोहपाश में सभी बंध जाएं. वह पिया से बात करेगा, ऐसा सोच कर यश खुशियों से भर उठा.

शिव के साथ जया के घिसटने वाले दिन पंख लगा कर उड़ते रहे. 5 महीने पहले उस रोज वक्त की शाख से जिंदगी के कुछ बरस उस ने तोड़े तो याद आया कि न जाने कितने बरस हुए उसे जिए हुए. अब तक के सफर में दौड़तेभागते जाने कितने बरस फिसलते रहे. लेकिन उसे इतना भी वक्त न मिला कि अपनी खुशियों के बारे में वह कभी सोच सके.

काले सघन बरसते बादलों के बीच मचलती हुई दामिनी के साथ शिव ने उस की कलाई को क्या थामा कि उस के भीतर मानो सालों सूखे पर सावन की कुछ बूंदें बरस उठीं. उस के मन की दुनिया का खाली और उदास कोना अचानक जैसे भर गया हो. शिव के अपनेपन से उस की आंखें ऐसे छलकीं कि कठिनाइयों और दुखों से भरे उस के अतीत के सारे बरस बह गए. माना कि प्यार के फूल उम्र की शाखाओं पर नहीं खिलते पर ऐसा भी तो होता है कि दुनिया की हर रीत, हर रस्म से बहुत दूर खिलता है प्यार का कोईर् फूल और महक उठती है पूरी धरती.

दुनिया के किसी भी कोने में, उम्र के किसी भी मोड़ पर प्यार आ कर थाम लेता है कलाई और टूट जाती है सारी रवायतें. शिव के बिना जया जीने की कल्पना से कांप उठी. अपार सौंदर्य और प्रतिभाशालिनी जया को यश के साथ ही अपनाने के लिए कितनों ने हाथ बढ़ाया था, कितनों ने प्रणय याचना की थी, पर पाषाण बनी जया सारे प्रस्तावों को बड़ी निर्ममता से ठुकराती रही.

GHKKPM: पत्रलेखा को हराएंगे विराट, सौतन की खातिर जान कुरबान करेगी सई

नील भट्ट और आयशा सिंह  स्टारर शो “गुम है किसी के प्यार में” मीडिया की सुर्खियों  बना हुआ है. शो में आए नए मोड़ शो को दिन पर दिन एंटरटेनिंग बना रहे है.

इन दिनों शो में पत्रलेखा और विराट के बीच खूब प्यार के फूल खिल रहे हैं, तो वहीं सई की जिंदगी में परेशानियां बढ़ती जा रही हैं. बीते दिन भी ‘गुम है किसी के प्यार में’ में दिखाया गया था कि सई अपनी शादी के दिन को विराट के सामने मनहूस बताती है. वहीं पत्रलेखा सई के सामने एक आदर्श बहू साबित होती है.लेकिन, आयशा सिंह के ‘गुम है किसी के प्यार में’ में आने वाले मोड़ यहीं खत्म नहीं होते हैं.

 

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आपको बता दें कि शो में आगे दिखाया जाएगा कि एक गेम में जहां पत्रलेखा अपने पति विराट की सारी पसंद बता देती है लेकिन जब विराट की बारी आती है तो वह फेल हो जाते है. वह  दो सवालों के सही जवाब दे पाता है, जिससे बाकी बच्चों के पैरेंट्स उसका मजाक बनाना शुरू कर देते हैं. इस बात से पत्रलेखा काफी नाराज हो जाती है.

फूट-फूट कर रोई पत्रलेखा

बता दें, ये गेम पिकनिक के दौरान खेला जाता है.प्रिंसिपल मैम के हाथ में सवि के मां-पापा की चिट आती है, जिससे पत्रलेखा घबरा जाती है. दूसरी तरफ सई भी गेम में जाने से मना कर देती है और तो और सवि को भी डांट देती है.लेकिन अपनी बेटी की खुशी की खातिर विराट खेलने के लिए तैयार हो जाते है.गेम में सई गलत जवाब देने की कोशिश करती है, लेकिन इसके बाद भी उसके सारे जवाब सही हो जाते हैं.दूसरी तरफ ये सब देखकर पत्रलेखा फूट-फूट कर रोती है.

 

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अपनी जान कुरबान करेंगी सई

शो यही खत्म नहीं होता है शो में आगे दिखाया जाता है कि हादसे में सई, विराट और पाखी की खातिर अपनी जान कुरबान कर देगी. दरअसल, बस में जहां एक तरफ पाखी लटकी होगी तो वहीं दूसरी तरफ सई लटकी होगी, जिससे विराट असमंजस में पड़ जाएगा कि वह पहले किसे बचाए. ऐसे में सई हैंडल का ग्रिप छोड़ देगी, जिससे विराट पाखी को बचा सकेंगे.

Bigg Boss 16: निमृत और साजिद की दोस्ती में आई दरार, टास्क में की यें हरकत

कलर्स टीवी का रियलिटी शो बिग बॉस16 ने सभी शो को पछाड़ दिया है टीआरपी की रेस में बग बॉस16 टॉप पर चल रहा है. घर के सदस्यों के बीच नई दोस्ती और खटास लोगों को काफी एंटरटेन कर रही है. जी हां, ऐसे में दो दोस्त बिछड़ते नजर आए है.

आपको बता दे, कि घर में किसी न किसी बात पर कंटेस्टेंट्स लड़ते रहते हैं. शो में साजिद खान और निमृत कौर के बीच काफी अच्छा बॉन्ड देखने को मिला है. लेकिन, अब दोनों के बीच भी खटास आती दिख रही है. बीते एपिसोड में कुछ ऐसा देखने को मिला, जिससे साफ हो गया कि साजिद खान, निमृत कौर से थोड़ा नाराज हुए हैं और उन्होंने निमृत के खेल पर भी सवाल उठाए हैं.

 

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बीते एपिसोड में दिखाया गया कि कैप्टेंसी टास्क हुआ और ये पूरा टास्क साजिद खान और उनके करीबियों के हाथ में रहा. कैप्टेंसी की रेस में प्रियंका चहर चौधरी, शालीन भनोट, सुंबुल तौकीर खान, टीना दत्ता और सौंदर्य शर्मा शामिल थीं. वहीं, बाकी कंटेस्टेंट्स को बताना था कि वह किन तीन को कैप्टन बनाना चाहते हैं. इस प्रक्रिया में साजिद खान आखिर में जाना जाते थे लेकिन निमृत लास्ट में जाने पर अड़ गई थीं. वहीं, अंकित गुप्ता भी लास्ट में जाना जाते थे क्योंकि जो भी लास्ट में जाएगा.  उसी के हाथ में पूरी गेम होगी. इस टास्क में एक लंबी बहस के बाद निमृत ही लास्ट में सौंदर्या, सुंबुल और टीना का नाम लेते हुए उन्हें कैप्टन बनाती हैं.

डबल ढोलकी है निमृत कौर

इस पूरे टास्क के बाद साजिद खान अपने दोस्त शिव ठाकरे से कुछ बात करते हुए नजर आए थे, जिसमें उन्होंने निमृत को डबल ढोलकी कहा. साथ ही उन्होंने यह भी माना कि निमृत गेम को हमेशा आगे रखेंगी. साजिद खान शिव ठाकरे से यह कहते हुए नजर आए कि वह टास्क में लास्ट में जाना नहीं चाहते थे. लेकिन उस समय वह सिर्फ निमृत का टेस्ट ले रहे थे. आज उन्हें समझ आ गया कि निमृत हमेशा ही खेल को आगे रखेंगी. वह हम लोगों के साथ हैं लेकिन गेम में वह हमारी नहीं हैं.साजिद की इस बात से साफ है कि अब उन दोनों के बीच भी तकरार आना शुरू हो गया है.

 

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मुखौटा: कमला देवी से मिलना जरूरी क्यों था

सुबह के सारे काम प्रियदर्शिनी बड़ी फुरती से निबटाती जा रही थी. उस दिन उसे नगर की प्रतिष्ठित महिला एवं बहुचर्चित समाजसेविका कमला देवी से मिलने के लिए समय दिया गया था. काम के दौरान वह बराबर समय का हिसाब लगा रही थी. मन ही मन कमला देवी से होने वाली संभावित चर्चा की रूपरेखा तैयार कर रही थी.

आज तक उस का समाज के ऐसे उच्चवर्ग के लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था लेकिन काम ही ऐसा था कि कमला देवी से मिलना जरूरी हो गया था. वह समाज कल्याण समिति की सदस्य थीं और एक प्रसिद्ध उद्योग समूह की मालकिन. उन के पास, अपार वैभव था.

कितनी ही संस्थाओं के लिए वह काम करती थीं. किसी संस्था की अध्यक्ष थीं तो किसी की सचिव. समाजसेवी संस्थाओं के आयोजनों में उन की तसवीरें अकसर अखबारों में छपा करती थीं. उन की भारी- भरकम आवाज के बिना महिला संस्थाओं की बैठकें सूनीसूनी सी लगती थीं.

ये सारी सुनीसुनाई बातें प्रियदर्शिनी को याद आ रही थीं. लगभग 3 साल पहले उस ने अपने घर पर ही बच्चों के लिए एक स्कूल और झूलाघर की शुरुआत की थी. उस का घर शहर के एक छोर पर था और आगे झोंपड़पट्टी.

उस बस्ती के अधिकांश स्त्रीपुरुष सुबह होते ही कामधंधे के सिलसिले में बाहर निकल जाते थे. हर झोंपड़ी में 4-5 बच्चे होते ही थे. घर का जिम्मा सब से बडे़ बच्चे पर सौंप कर मांबाप निकल जाते थे. 8-9 बरस का बच्चा सीधे होटल में कपप्लेट धोने या गन्ने की चरखी में गिलास भरने के काम में लग जाता था.

जीवन चक्र की इस रफ्तार में शिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं था, न समय ही था. दो जून की रोटी का जुगाड़ जहां दिन भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद कई बार संभव नहीं हो पाता था वहां इस तरह के अनुत्पादक श्रम के लिए सोचा भी नहीं जा सकता था. 10 साल पढ़ाई के लिए बरबाद करने के बाद शायद कोई नौकरी मिल भी जाए लेकिन जब कल की चिंता सिर पर हो तो 10 साल बाद की कौन सोचे?

फिर भी प्रियदर्शिनी की यह निश्चित धारणा थी कि ये बच्चे बुद्धिमान हैं, उन में काम करने की शक्ति है, कुछ नया सीखने की उमंग भी है. इन्हें अगर अच्छा वातावरण और सुविधाएं मिल जाएं तो उन के जीवन का ढर्रा बदल सकता है. अभाव और उपेक्षा के वातावरण में पलतेबढ़ते ये बच्चे गुनहगार बन जाते हैं. चोरी करने, जेब कतरने जैसी बातें सीख जाते हैं. मेहनतमजदूरी करतेकरते गलत सोहबत में पड़ कर उन्हें जुआ, शराब आदि की लत पड़ जाती है और अगर बच्चे बहुत छोटे हों तो कुपोषण का शिकार हो कर उन की अकाल मृत्यु हो जाती है.

उस का खयाल था कि थोड़ी देखभाल करने से उन में काफी परिवर्तन आ सकता है. इसी उद्देश्य से उस ने अपनी एक सहेली के सहयोग से छोटे बच्चों के खेलने के लिए झूलाघर और कुछ बडे़ बच्चों के लिए दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई के लिए बालबाड़ी की स्थापना की थी.

रात के समय वह झोंपडि़यों में जा कर उन में रहने वाली महिलाओं को परिवार नियोजन और परिवार कल्याण की बातें समझाती, घरेलू दवाइयों की जानकारी देती, साफसुथरा रहने की सीख देती.

पूरी बस्ती उस का सम्मान करती थी. अधिकाधिक संख्या में बच्चे झूलाघर और बालबाड़ी में आने लगे थे. इसी सिलसिले में वह कमला देवी से मिलना चाहती थी. अपना काम सौ फीसदी हो जाएगा ऐसा उसे विश्वास था.

किसी राजप्रासाद की याद दिलाने वाले उस विशाल बंगले के फाटक में प्रवेश करते ही दरबान सामने आया और बोला, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘बाई साहब हैं? उन्होंने मुझे 11 बजे का समय दिया था.’’

‘‘अंदर बैठिए.’’

हाल में एक विशाल अल्सेशियन कुत्ता बैठा था. दरबान उसे बाहर ले गया. इतने में सफेद ऊन के गोले जैसा झबरीला छोटा सा पिल्ला हाथों में लिए कमला देवी हाल में प्रविष्ट हुईं.

भारीभरकम काया, प्रयत्नपूर्वक प्रसाधन कर के अपने को कम उम्र दिखाने की ललक, कीमती साड़ी, चमचमाते स्वर्ण आभूषण, रंगी हुई बालों की कटी कृत्रिम लटें, नाक की लौंग में कौंधता हीरा, चेहरे पर किसी हद तक लापरवाही और गर्व का मिलाजुला मिश्रण.

पल भर के निरीक्षण में ही प्रियदर्शिनी को लगा कि इस रंगेसजे चेहरे पर अहंकार के साथसाथ मूर्खता का भाव भी है जो किसी भी जानेमाने व्यक्ति के चेहरे पर आमतौर पर पाया जाता है.

उठ कर नमस्ते करते हुए उस ने सहजता से मुसकराते हुए अपना परिचय  दिया, ‘‘मेरा नाम प्रियदर्शिनी है. आप ने आज मुझे मिलने का समय दिया था.’’

‘‘अच्छा अच्छा…तो आप हैं प्रियदर्शिनी. वाह भई, जैसा नाम वैसा ही रंगरूप पाया है आप ने.’’

अपनी प्रशंसा से प्रियदर्शिनी सकुचा गई. उस ने कुछ संकोच से पूछा, ‘‘मेरे आने से आप के काम में कोई हर्ज तो नहीं हुआ?’’

‘‘अजी, छोडि़ए, कामकाज का क्या? घर के और बाहर के भी सारे काम अपने को ही करने होते हैं. और बाहर का काम? मेरा मतलब है समाजसेवा करने का मतलब घर की जिम्मेदारियों से मुकरना तो नहीं होता? गरीबों की सेवा को मैं सर्वप्रथम मानती हूं, प्रियदर्शिनीजी.’’

कमला देवी की इस सादगी और सेवाभावना से प्रियदर्शिनी अभिभूत हो उठी.

‘‘प्रियदर्शिनी, आप बालबाड़ी चलाती हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘कितने बच्चे हैं बालबाड़ी में?’’

‘‘जी, 25.’’

‘‘और झूलाघर में?’’

‘‘झूलाघर में 10 बच्चे हैं.’’

‘‘फीस कितनी लेती हैं?’’

‘‘जी, फीस तो नाममात्र की लेती हूं.’’

‘‘फीस तो लेनी ही चाहिए. मांबाप जितनी फीस दे सकें उतनी तो लेनी ही चाहिए. इतनी मेहनत करते हैं हम फिर पैसा तो हमें मिलना ही चाहिए.’’

‘‘जी, पैसे की बात सोच कर मैं ने यह काम शुरू नहीं किया.’’

‘‘तो फिर क्या समय नहीं कटता था, इसलिए?’’

‘‘जी, नहीं. यह कारण भी नहीं है.’’

कंधे उचका कर आंखों को मटका कर हंस दी कमला देवी, ‘‘तो फिर लगता है आप को बच्चों से बड़ा लगाव है.’’

‘‘जी, वह तो है ही लेकिन सच बात तो यह है कि उस इलाके में ऐसे काम की बहुत जरूरत है.’’

‘‘कहां रहती हैं आप?’’

‘‘सिंधी बस्ती से अगली बस्ती में.’’

‘‘वहां तो आगे सारी झोंपड़पट्टी ही है न?’’

‘‘जी. होता यह है कि झोंपड़पट्टी वाले सुबह से ही काम पर निकल जाते हैं. घर संभालने का सारा जिम्मा स्वभावत: बड़े बच्चे पर आ जाता है. मांबाप की अज्ञानता और मजबूरी का असर इन बच्चों के भविष्य पर पड़ता है. इसी विचार से मैं बच्चों की प्रारंभिक पढ़ाई के लिए बालबाड़ी और छोटे बच्चों की देखभाल के लिए झूलाघर चला रही हूं.’’

‘‘तो इन छोटे बच्चों की सफाई, उन के कपडे़ बदलने और उन्हें दूध, पानी आदि देने के लिए आया भी रखी होगी?’’

‘‘जी नहीं. ये सब काम मैं स्वयं ही करती हूं.’’

‘‘आप,’’ कमला देवी के मुख से एकाएक आश्चर्यमिश्रित चीख निकल गई.

‘‘जी, हां.’’

‘‘सच कहती हैं आप? घिन नहीं आती आप को?’’

‘‘जी, बिलकुल नहीं. क्या अपने बच्चों की टट्टीपेशाब साफ नहीं करते हम?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. लेकिन अपने बच्चे तो अपने ही होते हैं और दूसरों के दूसरे ही.’’

‘‘मेरे विचार में तो आज के बच्चे कल हमारे देश के नागरिक बनेंगे. अगर हम उन्हें जिम्मेदार नागरिक के रूप में देखना चाहें, उन से कुछ अपेक्षाएं रखें तो आज उन की जिम्मेदारी किसी को तो उठानी ही पड़ेगी न?’’

शांत और संयत स्वर में बोलतेबोलते प्रियदर्शिनी रुक गई. उस ने महसूस किया, कमला देवी का चेहरा कुछ स्याह पड़ गया है. उन्होंने पूछा, ‘‘लेकिन इन सब झंझटों से आप को लाभ क्या मिलता है?’’

‘‘लाभ?’’ प्रियदर्शिनी की उज्ज्वल हंसी से कमला देवी और भी बुझ सी गईं, ‘‘मेरा लाभ क्या होगा, कितना होगा, होगा भी या हानि ही होगी, आज मैं इस विषय में कुछ नहीं कह सकती लेकिन एक बात निश्चित है. मेरे इन प्रयत्नों से समाज के ये उपेक्षित बच्चे जरूर लाभान्वित होंगे. मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है.’’

‘‘अद्भुत, बहुत बढि़या. आप के विचार बहुत ऊंचे हैं. आप का आचरण भी वैसा ही है. बड़ी खुशी की बात है. वाह भई वाह, अच्छा तो प्रियदर्शिनीजी, अब आप यह बताइए, आप मुझ से क्या चाहती हैं?’’

‘‘जी, बच्चों के बैठने के लिए दरियां स्लेटें, पुस्तकें और खिलौने. मदद के लिए मैं एक और महिला रखना चाहती हूं. उसे पगार देनी पड़ेगी. वर्षा और धूप से बचाव के लिए शेड बनवाना होगा. इस के साथ ही डाक्टरी सहायता और बच्चों के लिए नाश्ता.’’

‘‘तो आप अपनी बालबाड़ी को आधुनिक किंडर गार्टन स्कूल में बदल देना चाहती हैं?’’

‘‘बिलकुल आधुनिक नहीं बल्कि जरूरतों एवं सुविधाओं से परिपूर्ण स्कूल में.’’

‘‘तो साल भर के लिए आप को 10 हजार रुपए दिलवा दें?’’

‘‘जी.’’

‘‘मेरे ताऊजी मंत्रालय में हैं. आप 8 दिन के बाद आइए. तब तक आप का काम करवा दूंगी.’’

‘‘सच,’’ खुशी से खिल उठी प्रियदर्शिनी, ‘‘आप का किन शब्दों में धन्यवाद दूं? आप सचमुच महान हैं.’’

कमला देवी केवल मुसकरा भर दीं.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं. आप की बहुत आभारी हूं.’’

‘‘चाय, शरबत कुछ तो पीती जाइए.’’

‘‘जी नहीं, इन औपचारिकताओं की कतई जरूरत नहीं है. आप के आश्वासन ने मुझे इतनी तसल्ली दी है…’’

‘‘अच्छा, प्रियदर्शिनीजी, आप का घर और हमारा समाज कल्याण कार्यालय शहर की एकदम विपरीत दिशाओं में है. आप ऐसा कीजिए, अपनी गाड़ी से यहां आ जाइए.’’

‘‘जी, मेरे पास गाड़ी नहीं है.’’

‘‘तो क्या हुआ, स्कूटर तो होगा?’’

‘‘जी नहीं, स्कूटर भी नहीं है.’’

‘‘मेरे पास फोन भी नहीं है.’’

‘‘प्रियदर्शिनीजी, आप के पास गाड़ी नहीं, फोन नहीं, फिर आप समाजसेवा कैसे करेंगी?’’

उपहासमिश्रित उस हंसी से प्रियदर्शिनी कुछ  हद तक परेशान सी हो उठी. फिर भी वह अपने सहज भाव से बोली, ‘‘मेरा मन पक्का है. हर कठिनाई को सहने के लिए तत्पर हूं. तन और मन के संयुक्त प्रयास के बाद कुछ भी असंभव नहीं होता.’’

अब तो खुलेआम छद्मभाव छलक आया कमला देवी के मेकअप से सजेसंवरे चेहरे पर.

‘‘मैं तो आप को समझदार मान रही थी, प्रियदर्शिनीजी. मैं ने आप से कहीं अधिक दुनिया देखी है. आप मेरी बात मानिए, अपनी इस प्रियदर्शिनी छवि को दुनिया की रेलमपेल में मत सुलझाइए. खैर, आप का काम 8 दिन में हो जाएगा. अच्छा.’’ दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते कहते हुए प्रियदर्शिनी ने विदा ली.

‘‘दीदी, हमारे लिए नाश्ता आएगा?’’

‘‘दीदी, स्कूल के सब बच्चों के लिए एक से कपडे़ आएंगे?’’

‘‘दीदी, सफेद कमीज और लाल रंग की निकर ही चाहिए.’’

‘‘नए बस्ते भी मिलेंगे?’’

‘‘और नई स्लेट भी?’’

‘‘मैं तो नाचने वाला बंदर ले कर खेलूंगा.’’

‘‘दीदी, नाश्ते में केला और दूध भी मिलेगा?’’

‘‘अरे हट. दीदी, नाश्ते में मीठीमीठी जलेबियां आएंगी न?’’

बच्चों की जिज्ञासा और खुशी ने उसे और भी उत्साहित कर दिया.

8वें दिन कमला देवी की कार उसे लेने आई तो उस के मन में उन के लिए कृतज्ञता के भाव उमड़ आए. जो हो, जैसी भी हो, उन्होंने आखिर प्रियदर्शिनी का काम तो करवा दिया न.

उस की साड़ी देख कर कमला देवी ने मुंह बिचकाया और जोरजोर से हंस कर बोलीं, ‘‘अरे, प्रियदर्शिनीजी, कम से कम आज तो आप कोई सुंदर सी साड़ी पहन कर आतीं. फोटो में अच्छी लगनी चाहिए न. फोटोग्राफर का इंतजाम मैं ने करवा दिया है. कल के अखबारों में समाचार समेत फोटो आ जाएगी. अच्छा, चलिए, फोटो में आप थोड़ा मेरे पीछे हो जाइए तो फिर साड़ी की कोई समस्या नहीं रहेगी.’’

कार अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी तो धीमी आवाज में कमला देवी ने कहा, ‘‘देखिए, प्रियदर्शिनीजी, आप के नाम पर 5 हजार का चेक मिलेगा. वह आप मुझे दे देना. मैं आप को ढाई हजार रुपए उसी समय दे दूंगी.’’

प्रियदर्शिनी ने कुछ असमंजस में पड़ कर पूछा, ‘‘तो बाकी ढाई हजार आप कब तक देंगी?’’

‘‘कब का क्या मतलब? प्रिय- दर्शिनीजी, हमें समाजसेवा के लिए कितना कुछ खर्च करना पड़ता है. ऊपर से ले कर नीचे तक कितनों की इच्छाएं पूरी करनी पड़ती हैं और फिर हमें अपने शौक और जेबखर्च के लिए भी तो पैसा चाहिए.’’

प्रियदर्शिनी को लगा उस की संवेदनाएं पथरा रही हैं.

कमला देवी अभी तक बोले जा रही थीं, ‘‘प्रियदर्शिनीजी, आप बुरा मत मानिए. लेकिन यह ढाई हजार रुपए क्या आप पूरा का पूरा स्कूल के लिए खर्च करेंगी? भई, एकआध हजार तो अपने लिए भी रखेंगी या नहीं, खुद के लिए?’’

समाज कल्याण कार्यालय के दरवाजे तक पहुंच चुकी थीं दोनों. तेजी के साथ प्रियदर्शिनी पलट गई. तेज चाल से चल कर वह सड़क पर आ गई. सामने खडे़ रिकशे वाले को घर का पता बता कर वह निढाल हो कर उस में बैठ गई. उस की आंखों के सामने बारबार कमला देवी का मेकअप उतर जाने के बाद दिखने वाला विद्रूप चेहरा उभर कर आने लगा. उन की छद्म हंसी सिर में हथौड़े मारती रही. उन का प्रश्न रहरह कर कानों में गूंजने लगा, ‘फिर आप समाजसेवा कैसे करेंगी?’

जाहिर था प्रियदर्शिनी के पास तथाकथित समाजसेवियों वाला कोई मुखौटा तो था ही नहीं.

मिनी का वैक्सीनेशन : जब घर से बाहर निकली मिनी तो क्या हुआ?

बड़ी मुश्किल से मुंबई से दूर एक अस्पताल में मिनी ने कोरोना के वैक्सीन का रजिस्ट्रैशन क्या कराया, सालभर बाद ऐसे लगा जैसे घर में कोई उत्सव का माहौल हो. महीनों बाद मिनी घर में गाना गाते हुए झूम रही थी.

लौकडाउन के दौरान अपने घर में बंद, औफिस के औनलाइन काम की वजह से अकसर तनाव में रहने वाली मिनी के लिए यह कोई आम खुशी भी नहीं थी. यह बहुत दिनों बाद घर से निकलने की खुशी थी, भले ही मकसद अस्पताल जाना ही क्यों न हो. एक युवा लड़की ठाणे से 1 घंटे की दूरी पर अस्पताल के लिए निकलने पर इतना खुश है, तो एक मां को तो आश्चर्य होगा ही. उस पर यह कि दोस्तों के साथ जाने का प्रोग्राम अचानक बन भी गया.

मिनी ने फरमाया, ”मां, वापस आते हुए मुझे थोड़ी वीकनैस या घबराहट हो सकती है न, तो रोहित को बोल दिया है कि वह मेरे साथ चलेगा. कार वही चला लेगा.”

मेरे कान खड़े हो गए. मां हूं उस की, समझ गई कि आउटिंग का प्रोग्राम बन रहा है दोस्तों के साथ.

मैं ने कहा, ”पर अभी किसी से मिलना ठीक है क्या?”

”मां, वह भी कोरोना को ले कर उतनी ही सावधानियां बरत रहा है जितनी हम. और उसे तो पहला डोज लग भी चुका है. वह सब के लिए फेसशील्ड ले कर आएगा और हम चारों कार में भी डबल मास्क लगा कर रखेंगे.‘’

देखा, मैं सही थी. मिनी यों ही गाना और डांस नहीं कर रही थी.

मैं ने उसे अपनी स्पैशल मांबेटी की अच्छी बौंडिंग वाली स्माइल देते हुए कहा, ”बदल दिया न अपने वैक्सीनेशन को एक पिकनिक में… सब जाओगे न? इतने लोगों को देख कर पुलिस वाले रोकेंगे तो?”

”अरे मां… बहुत बढ़िया प्रोग्राम बन गया है. कोई भी नहीं निकला न इतने दिनों घर से. रोहित मेरी कार चलाएगा, कोई रोकेगा तो हम कहेंगे कि वैक्सीन लगवाने जा रहे हैं. पूजा को भी जा कर पता करना है वैक्सीन का. जय को तो 2 महीने पहले कोरोना हो चुका है, बोल देंगे, फौलोअप के लिए जा रहा है.

“मां, सब इतने ऐक्साइटैड हैं न… हमलोग लगभग 4 महीने बाद मिलने वाले हैं. ओह, मां, वी आर सो ऐक्ससाइटैड…’’और फिर मिनी जोर से हंस पड़ी, ”मां, पता है, रोहित और पूजा ने तो अभी से सोचना शुरू कर दिया है कि वे क्या पहनेंगे.

“मैं तो अपनी स्लीवलैस ड्रैस पहन जाउंगी, एक बार भी नहीं पहनी थी कि लौकडाउन लग गया. चलो, जल्दी से अपना कल का काम निबटा लेती हूं, नहीं तो मेरा बौस कल मुझे ऐंजौय नहीं करने देगा. और मैं ने रिमी को भी कहा है साथ चलने के लिए…’’

”अरे, रिमी…उस के पेरैंट्स को तो कोरोना हुआ है न? वे तो अस्पताल  में भरती हैं ?”

मिनी थोड़ी उदास हुई,”हां, मां, वह आजकल अपने मामामामी के साथ रह रही है. अब जब बाहर जा ही रहे हैं तो उसे भी ले जाती हूं.‘’

अभी तक वहीं चुपचाप बैठे सारी बात सुन रहे अनिल ने मिनी के जाने के बाद कहा, ”यार, रश्मि, क्या बच्चे हैं आजकल के… ऐसा लग रहा है कि वैक्सीन के लिए नहीं, बल्कि पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बन रहा है.”

”हां, यार… बच्चे कैसे तरस रहे हैं एकदूसरे से मिलने के लिए. यह छोटी सी खुशी आज इन के लिए कितनी बड़ी बात हो गई है. बेचारी रातदिन लैपटौप पर बैठी काम ही कर रही है. आज कितने दिनों बाद खुश दिख रही है.

“ओह, कोरोना ने तो इन बच्चों को बांध कर रख दिया, बेचारे सच में कब से नहीं निकले हैं.”

गजब की तैयारियां हो रही थीं. सुबहसुबह ही हेयर मास्क लगाया गया, स्किन केयर हुई, शैंपू से बाल धोए गए, ड्रैस के साथ स्टाइलिश शूज निकाले गए, जो सालभर से डब्बे में ही बंद थे. तय हुआ कि मिनी ही सब को ले कर निकलेगी फिर ठाणे से बाहर जा कर रोहित कार चलाएगा.

यहां पर बाकी मम्मियों के उत्साह की भी दाद देनी पड़ेगी. मिनी ने बताया, ”एक बात बहुत अच्छी हो गई मां, सब आंटी ने कह दिया है कि बहुत दिनों बाद निकल रहे हो, तो अच्छी तरह घूमफिर कर आना, जब निकल ही रहे हो तो और ऐंजौय कर लेना.”

लगे हाथ मैं ने भी मिनी को छेड़ा, ”क्या पता, बाकी मांओं को भी एक ब्रेक इस बहाने आज अपने बच्चों से मिल ही जाए.‘’

जैसी उम्मीद थी, ठीक वैसे ही घूरा मिनी ने मुझे इस बात पर. बोली, ”हम  1 बजे निकलेंगे, 3 से 5 का टाइम है, मेरा डिनर मत बनाना, कुछ खुला होगा तो मैं अपनी पसंद का कुछ पैक करवा कर लाऊंगी,’’ फिर उस ने अभी किए गए मेरे मजाक का बदला भी हाथ के हाथ उतार दिया, ”एक ब्रेक चाहिए मुझे भी घर के खाने से, हद हो गई है रातदिन घर का खाना खाते हुए.”

मुझे हंसी आ गई. मिनी चली गई, वहां जा कर फोन किया, ‘’1,100 लोगों का अपौइटमैंट था, लंबी लाइन है. धूप भी बहुत तेज है, रोहित को कार काफी दूर पार्क करनी पड़ी है और यहां मैं अब अकेली ही लाइन में हूं, पर अच्छा लग रहा है.”

हर समय एसी के लिए शोर मचाने वाली मिनी दोपहर के 3 बजे लाइन में खड़ी है और उसे अच्छा लग रहा है, आवाज में कोई झुंझलाहट नहीं, खिलखिलाती सी आवाज. दरअसल, यह दोस्तों के साथ का असर है जो लगातार चैट कर रहे होंगे अब. जानती हूं मैं इन बच्चों को, डायरी ऐंट्री की तरह चारों हर समय एकदूसरे को अपनी बातें बताते रहते हैं.

वैक्सीन मिनी को लग गई. फोन आ गया, ”सब हो गया मम्मी, अब थोड़ा खानेपीने की अपनी पसंद की जगहें देख लें. काश, कुछ तो खुला हो.”

हालांकि मैं ने उसे बिस्कुट और पानी दिया था, कहा था,”कुछ खा लेना.‘’

”अरे, मम्मी, यह पूजा की मम्मी ने तो उसे छोटेछोटे जूस के पैकेट्स, स्नैक्स दिए हैं, उन्हें भी यही लग रहा था कि हम आज पिकनिक पर जा रहे हैं और रोहित और जय की मम्मी ने भी ऐसे ही कुछकुछ बैग में रख दिया था. हम तो बारबार कुछ न कुछ खाते ही रहे, मां, बहुत मजा आ रहा है…चलो, अब आ कर बात करते हैं.‘’

मेरी मिनी एक अरसे बाद आज खुश थी, चहक रही थी. मेरे लिए इतना बहुत था. दिल भर सा आया. कैसा टाइम आ गया है कि दोस्तों से मिलने के लिए तरस गए सब. कहां हर तरफ, हर जगह युवा मस्ती करते दिखते थे, जहां नजर जाती थी एक मस्ती सी दिखती थी, अब कहां बंद हो गए बेचारे.

इन की क्या बात करूं, मैं ही मिनी के दोस्तों का घर आना कितना मिस करती हूं. कैसे हंसीमजाक का दौर हुआ करता था, कैसी रौनक रहा करती थी, लेकिन अब? अब कैसा अकेलापन सब के मन पर छाया रहता है, कितना डिप्रैसिंग माहौल है.

शाम को घर की घंटी बजी. मिनी आई थी. आते ही आजकल सब सामान सैनिटाइज कर के सीधे वाशरूम ही जाना होता है.

”नहा कर आती हूं मां, ”कह कर मिनी वाशरूम की तरफ चली गई. मैं ने महसूस कर लिया कि वह फिर उदास और चुप है. नहा कर निकली तो बोली,”कुछ दुकानें खुली थीं, कुछ पैक करवा कर लाई हूं, चलो, आप लोग खा लो.‘’

”तुम? भूख लगी होगी?”

फिर वही बुझी सी आवाज,” मैं ने दोस्तों के साथ खा लिया था, अब भूख नहीं है.‘’

मैं ने उसे अपने साथ लिपटा लिया, ”अरे, मिनी, फिर उदास हो गईं?अच्छा, यह बताओ, रिमी कैसी है? उस के पेरैंट्स कैसे हैं?”

मिनी इस बात पर सुबक उठी, ”वह तो डरी हुई है. बता रही थी कि हर पल उसे यही डर लगा रहता है कि उस के मम्मीपापा को कुछ हो न जाए. फोन की हर घंटी पर डरती है. उस का मन तरस रहा है कि कब उस के मम्मीपापा ठीक हो कर घर आएं तो वह उन के साथ अपने घर जाए.

“बता रही थी कि न उसे नींद आती है, न भूख लगती है, उस का वेट भी कम है गया है. हमारी जिद पर चली तो गई हमारे साथ पर पूरा दिन एक बार भी उस का चेहरा खिला नहीं. इतनी उदास, परेशान और डरी हुई है कि क्या बताऊं…

“हम ने सोचा था कि हमारे साथ थोड़ा उस का मन बहलेगा, फोन पर भी रोती ही रहती है, पर कोई बात उसे तसल्ली नहीं दे पा रही. एक डर में जी रही है वह. और मम्मी, मुझे भी आज एक लेसन मिला.‘’

“क्या?”

”यही कि मैं तो अपने औफिस के एक छोटे से स्ट्रैस पर सारा दिन परेशान होती हूं, सारा दिन चिढ़चिढ़ करती हूं, जबकि आज के टाइम में तो परेशानियां इतनी बड़ीबड़ी हैं. लोग क्याक्या झेल रहे हैं, न जाने कितने दुख देख रहे हैं और मैं घर में आराम से बैठी अपने काम को रातदिन कोस रही हूं. मुझे काम ही तो ज्यादा है मगर कोई दुख तो नहीं न…फिर भी मैं सारा दिन ऐसे उदास होती हूं कि जैसे पता नहीं क्या हो गया है.

“हमारी रिमी कितने बड़े दुख से सामना कर रही है, उसे तो पता भी नहीं कि उस के मम्मीपापा अस्पताल  से ठीक हो कर आ भी पाएंगे भी या नहीं… बेचारी कितने डर में जी रही है रात दिन और मैं कितनी छोटी बात पर दुखी रहती हूं.’’

”हां, बेटा, सही कह रही हो. यह तो सचमुच समझने वाली बात है.’’

‘’मैं आज समझ गई कि अपनी छोटीछोटी परेशानियों को नजरअंदाज करूंगी, इतनी शिकायतें ठीक नहीं,’’ उस की आंखें सचमुच भर गईं, ”कितना अच्छा लगा आज सब को देख कर, अब पता नहीं कब मिलेंगे, इतनी बातें करते रहते हैं फोन पर, मगर मिल कर तो मन ही नहीं भर रहा था.”

मैं ने उसे पुचकारा,”अरे, पूजा का वैक्सीनेशन बाकी है न? और जय का भी तो? 2 पिकनिक तो तय हैं. फिर जाना सब एकसाथ.”

मैं ने इस तरह कहा कि उसे हंसी आ गई. बोल पड़ी, ”अच्छा, चलो, फिर खाते हैं, देखो, क्याक्या ले कर आई हूं. अब तो इंतजार ही कर सकते हैं कि अगला वैक्सीनेशन किस का होगा.‘’

हम मुसकरा दिए थे और मैं लगातार सोच रही थी कि यह सचमुच कोई आम दिन नहीं था. मिनी को एक सबक मिला था जो उस की लाइफ में उस के बहुत काम आएगा.

शायद बर्फ पिघल जाए

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