मेरे पति का लिवर फेल हो चुका है, क्या लिवर ट्रांसप्लांट कराना सही है?

सवाल

मेरे पति का लिवर फेल हो चुका है. डाक्टर ने लिवर ट्रांसप्लांट कराने के लिए कहा हैलेकिन मैंने सुना है लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर बहुत कम है?

जवाब

हमारे देश में लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर अत्यधिक विकसित देशों के समान ही है. लिवर ट्रांसप्लांट के 90-95% मामलों में मरीज ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ्य और सामान्य जीवन जी सकते हैं और कुल लिवर ट्रांसप्लांट के मामलों में से 70-80% में लोग 5 साल या उससे अधिक जीते हैं.

लिवर ट्रांसप्लांट के बाद हम देखते हैं कि लिवर फेल्योर से मृत्यु के मामले लगभग न के बराबर होते हैं. मृत्यु का कारण बुढ़ापाहृदय रोग या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं.

 

-डा. संजय गोजा

प्रोग्राम डायरेक्टर ऐंड क्लीनिकल लीड – लिवर ट्रांसप्लांटएचपीबी सर्जरी ऐंड रोबोटिक लिवर सर्जरीनारायणा हौस्पिटलगुरुग्राम. 

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नींद: मनोज का रति से क्या था रिश्ता- भाग 1

उस ने दो, तीन बार पुकारा रमा… रमा, पर कोई जवाब नहीं.

‘‘हुंह… अब यह भी कोई समय है सोने का,‘‘ वह मन ही मन बड़बड़ाया और किचन की तरफ चल दिया. वहां देखा कि रमा ने गरमागरम नाश्ता तैयार कर रखा था. सांभर और इडली बन कर तैयार थीं.

‘‘कमाल है, कब बनाया नाश्ता?‘‘ वह सोचने लगा. तभी उसे याद आया कि रति का फोन आया था और वह बात करताकरता छत पर चला गया था. उस ने फोन उठा कर काल टाइम चैक किया. एक घंटा दस मिनट. उस ने हंस कर गरदन हिलाई और मुसकराते हुए अपना नाश्ता ले कर टेबल पर आ गया.

रमा ने लस्सी बना कर रखी थी. उस ने बस एक घूंट पिया ही था कि भीतर से रमा की आवाज आई, ‘‘मनोज, मेरे फिर से तीखा पीठदर्द शुरू हो गया है. मैं दवा ले कर सो रही हूं. फ्रिज से नीबू की चटनी जरूर ले लो.‘‘

‘‘हां… हां, बिलकुल खा रहा हूं,‘‘ कह कर मनोज ने उस को आश्वस्त किया और चटखारे लेले कर इडलीसांभर खाता रहा. वह मन ही मन बुदबुदाया, ‘‘चलो कोई बात नहीं. अगर सो भी रही है तो क्या हुआ, कम से कम सुबहरात थाली तो लगी मिल ही रही है. बाकी अपनी असली जिंदगी में रति जिंदाबाद.‘‘ अपनेआप से यह कह कर मनोज नीबू की चटनी का मजा लेने लगा.

समय देखा, दोपहर के पौने 12 बज रहे थे. अब उसे तुरंत फैक्टरी के लिए निकलना था. उस ने जैसे ही कार की चाबी उठाई, उस आवाज से चौकन्नी हो कर रमा ने कहा, ‘‘बाय मनोज हैव ए गुड डे.‘‘

‘‘बाय रमा, टेक केयर,‘‘ चलताचलता वह बोलता गया और सोचता भी रहा कि कमाल की नींद है इस की. मनोज कभी अपनी आंखें फैला कर तो कभी होंठ सिकोड़ कर सोचता रहा. पर, इस समय न वह भीतर जाना चाहता था और न ही उस की कमर में हाथ फिरा कर कोई दर्द निवारक मलहम लगाना चाहता था. उस ने खुद को निरपराध साबित करने के लिए अपने सिर को झटका दिया और सोचा कि अब यह सब ठेका उस ने ही तो नहीं ले रखा है, बाहर के काम भी करो, रोजीरोटी के लिए बदन तोड़ो और घर आ कर रमा के दुखते बदन में मलहम भी लगाओ. यह सब एक अकेला कब तक करे.

मनोज खुद अपना वकील और जज भी दोनों ही बन रहा था, पर सच बात तो यह थी कि वह यह सब नहीं करना चाहता था और जल्दी से जल्दी रति का चेहरा देखना चाहता था.

गाड़ी निकाल कर मनोज फैक्टरी के रास्ते पर था. मोबाइल पर नजर डाली तो उस में रति का संदेश आ रहा था.

वह हंसने लगा. कम से कम यह रति तो है उस की जिंदगी में. चलो रमा अब 50 की उम्र में बीमार है. अवसाद में है. जैसी भी है, पर निभ ही जाती है. जीवन चल ही रहा है.

यों भी पूरे दिन में मनोज का रमा से पाला ही कितना पड़ता है. पूरे दिन तो रति साथ रहती है. जब वह नहीं रहती, तब उस के लगातार आने वाले संदेश रहते हैं. रति है तो ऐसा लगता है जीवन में आज भी ताजगी ही ताजगी है, बहार ही बहार है. एक लौटरी जैसी रति उस को कितनी अजीज थी. पिछले 3 महीने से रति उस के साथ थी.

रति अचानक ही उस के सामने आ गई थी. वह अपनी फैक्टरी के अहाते में पौधे लगवा रहा था, तभी वह गेट खोल कर आ गई. वह रति को देख कर ठिठक गया था. ऐसे तीखे नैननक्श, इतनी चुस्त पोशाक और हंसतामुसकराता चेहरा. वह आई और आते ही पौधारोपण की फोटो खींचने लगी, तो मनोज को लगा कि शायद प्रैस से आई है. और यों भी पूरी दोपहर उस की खिलौना फैक्टरी में लोगों का तांता लगा रहता था, कभी शिशु विकास संस्थान, तो कभी बाल कल्याण विभाग. कभी ये गैरसरकारी संगठन, तो कभी वो समूह, यह सब लगा रहता था.

मनोज ने रति को भी सहज ही लिया. पौधारोपण पूरा होतेहोते शहर के लगभग 10 अखबारों से रिपोर्टिंग करने वाले प्रतिनिधि आ गए थे. मनोज ने देखा कि रति कोई सवाल नहीं पूछ रही थी. वह बस यहांवहां इधरउधर घूम रही थी, बल्कि रति ने चाय, कौफी, नाश्ता कुछ भी नहीं लिया था.

Wedding Special: वेडिंग सीजन में परफेक्ट हैं ये पौपुलर सिल्क साडियां

महिलाएं चाहे कितनी ही आधुनिक हो जाए, फिर भी कुछ ऐसे मौके होते हैं जब सिर्फ और सिर्फ साड़ी भी अच्छी लगती है . यही कारण है कि हर त्योहार और समारोह में लड़कियां साड़ी को ही प्राथमिकता देती हैं. आइए जानते हैं भारत के प्रमुख शहरों के बारे में जहां की सिल्क की साड़ियां पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.

1. कांजीवरम

दक्षिण भारत का नाम आए और कोई कांजीवरम साड़ी की बात ना करें ऐसा कैसे हो सकता है दक्षिण भारत की कांजीवरम की खूबसूरत तथा भारी-भरकम साड़ियां महिलाओं की खास पसंद है. शायद इतना पढ़कर आपको बौलीवुड ऐक्ट्रेस रेखा, जयप्रदा, वैजयंती माला की याद आ जाए.

ट्रेडिशनल रिच कलर्स और इंडिया की सबसे ज्यादा मशहूर और महंगी साड़ियों में से हैं. कांजीवरम सिल्क ,तमिलनाडु के एक गांव के नाम पर है . जहां इस सिल्क को बनाया जाता है. बाकी सिल्क साड़ियों के मुकाबले ये साड़ियां काफी भारी होती हैं, क्योंकि इनमें इस्तेमाल होने वाले सिल्वर धागे गोल्ड में डिप होते हैं, वहीं मोटिफ्स मोर और तोते से इंसपायर्ड होते हैं. इस साड़ी का सबसे बेस्ट पार्ट होता है इसका पल्लू, जो अलग से बनाकर बाद में साड़ी से जोड़ा जाता है.

2. बनारसी साड़ी

बनारसी साड़ियों का नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. रेशम की साड़ियों पर बनारस में बुनाई के संग जरी के डिज़ाइन मिलाकर बुनने से तैयार होने वाली सुंदर रेशमी साड़ी को बनारसी साड़ी कहते हैं.  इसे सुहाग की निशानी भी माना जाता है. मल्टी बनारसी साड़ी, पौड़ी, पौड़ी नक्काशी, कतान अम्बोज, टिपिकल बनारसी जंगला, एंटिक बूटा, जामेवार, कतान प्लेन,कतान फैंसी, तनछुई बनारसी आदि कई वरायटीज़ में ये साड़ियां उपलब्ध हैं.

3. महाराष्ट्रियन साड़ी

महाराष्ट्र की पैठणी  एक खास तरह की साड़ी है . जो नौ गज लंबी होती है . यह पैठण शहर में बनती है. इस साड़ी को बनाने की प्रेरणा अजन्ता की गुफा में की गई चित्रकारी से मिली थी. इसे पहनने का अपना पारंपरिक स्टाइल है, जो महाराष्ट्र की औरतों को ही अच्छी तरह से आता है.

4. रौ सिल्क

रौ सिल्क साड़ियां गोंद से बनती है. इससे सिल्क निकालने के लिए लम्बी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है.

5. कोरा सिल्क

भारत के अधिकतर शहरों में कोटा सिल्क की साड़ियां आसानी से उपलब्ध होती है. ये साड़ी काफी हल्की होती है.  जिसे कई कलर्स और डिज़ाइन्स की कोरा सिल्क फैब्रिक से बुना जाता है. कोरा सिल्क का अपना अलग ही चार्म है.

6. महेश्वरी साड़ी

यह साड़ी खासकर मध्य प्रदेश में पहनी जाती है. यह रेशम से  बनाई जाती है. इसका इतिहास काफी पुराना है. होल्कर वंश की महान शासक देवी अहिल्याबाई ने 250 साल पहले गुजरात से लाकर महेश्वर में कुछ बुनकरों को बसाया था और उन्हें घर, व्यापार और अन्य सुविधाएं दी थीं. यही बुनकर महेश्वरी साड़ी तैयार करते थे.

7. चंदेरी साड़ी

विश्व प्रसिद्ध चंदेरी की साड़ियां आज भी हथकरघे पर ही बुनी जाती हैं . इन साड़ियों का अपना समृद्धशाली इतिहास  है. पहले ये साड़ियां केवल राजघराने में ही पहनी जाती थीं, लेकिन अब यह आम लोगों तक भी पहुंच चुकी हैं. एक चंदेरी साड़ी बनाने में एक बुनकर को साल भर का वक्त लगता है, इसीलिए चंदेरी साड़ियों को बनाते वक्त कारीगर इसे बाहरी नजरों से बचाने के लिए हर मीटर पर काजल का टीका लगाते हैं.

8. मैसूर सिल्क

सिल्क की साड़ियों की बात हो और मैसूर सिल्क का नाम नहीं आए यह कैसे हो सकता है? अगर आपको साड़ियों में  रिचनेस और ट्रेडिशनल टच चाहिए तो बस एक ही नाम है मैसूर सिल्क. ये साउथ इंडिया की कई मशहूर साड़ियों में गिनी जाती है. ये सिल्क मलबेरी सिल्क से बनता है, जो कर्नाटक में आराम से मिल जाता है.

9. नारायणपेट सिल्क

यह सिल्क साड़ी अपने अलग तरह के पैटर्न के लिए प्रसिद्ध है. साड़ी में एम्ब्रॉयडरी के साथ चेक्ड सरफेस पैटर्न होते हैं . जो मिलकर बॉर्डर या पल्लू पर बहुत ही खास डिज़ाइन का लुक बनाते हैं.  जैसे किसी मंदिर की आउटलाइन. इन साड़ियों की शुरुआत तेलंगाना के नारायणपेट डिस्ट्रिक से 1630 ईसा पूर्व में हुई थी. साड़ी के बॉर्डर पर छोटे ज़री डिज़ाइन्स से कंट्रास्ट लुक मिलता है . यह ब्राइड्स के लिए स्पेशल साड़ी है.

वुडन फ्लोरिंग : हर कदम का हमकदम

फ्लोरिंग आप के घर को ओवरआल लुक देती है. इन दिनों वुडन फ्लोरिंग ज्यादा चलन में है. यह डिफरैंट पैटर्न में मार्केट में उपलब्ध है. यदि आप अपने घर को अलग लुक देना चाहती हैं, तो वुडन फ्लोरिंग करवाएं.

कर्वड डिजाइन

इस पैटर्न में लकड़ी पर डिजाइनर नक्काशी होती है, जो बेहद खूबसूरत कला है. यह फ्लोरिंग लंबे समय तक आप के घर की शोभा बढ़ाएगी. इस लकड़ी का रंग सूरज की रोशनी में और भी रोशन हो जाता है.

परक्युट पैटर्न

फ्लोरिंग का यह पैटर्न आप के रूम को एक नया और वार्म लुक देगा. बौक्स डिजाइंड यह पैटर्न चैस बोर्ड की तरह लाइट और ब्राइट कलर कौंबिनेशन में होता है.

हीरिंगबोन पैटर्न

यह पैटर्न जिगजैग डिजाइन में मिलेगा. यह घर को एक रैंडम लुक देता है. लकड़ी का क्रीमिश कलर दीवारों के कलर पर भी खूब फबता है.

पेरिमीटर बौर्डर पैटर्न

यह पैटर्न आप के फ्लोर के बौर्डर को आउटलाइन करता है. इस से कमरे को फौर्मल लुक मिलता है. अगर बिना डिजाइन की फ्लोरिंग चाहती हैं, तो इस वुडन पैटर्न का इस्तेमाल कर सकती हैं.

लगाने में आसान

आजकल वुडन फ्लोरिंग ट्रैंड में है. ज्यादातर लोग इसे पसंद कर रहे हैं. अहम बात यह है कि वुडन फ्लोरिंग अपनी इंसुलेटिंग क्षमता के कारण लंबे समय तक खराब नहीं होती. इस की सब से खास बात यह है कि इसे मात्र 3-4 घंटों में ही लगाया जा सकता है, क्योंकि तख्तों को एकदूसरे के साथ एक विशेष बौंडिंग के साथ जोड़ते हुए इंटरलौक किया जाता है. इसे लगाना आसान है. इसे लगाने या लौक करने के लिए ‘टंग ऐंड गू्रव’ तकनीक या किसी चिपकाने वाले पदार्थ अथवा कीलों का प्रयोग करते हैं.

जब बजट हो कम

अगर आप को लगता है कि रियल वुडन फ्लोरिंग आप के बजट में फिट नहीं बैठती, तो इस बात को ले कर अफसोस करने की जरूरत नहीं है कि आप अपने घर को खूबसूरत लुक नहीं दे पाएंगी. आधुनिक तकनीक की वजह से आज बाजार में ऐसी फ्लोरिंग उपलब्ध हैं, जो वुडन न होने के बावजूद उस जैसी लगती हैं. इसे लगा कर आप कम खर्च में हार्डवुड जैसा ऐलिगैंट लुक डैकोर में ला पाएंगी.

बेहतर विकल्प

विनायल प्लैंक फ्लोरिंग, पौली विनायल क्लोराइड (पीवीसी) से बनी होती है, जो बहुत उच्च क्वालिटी का प्लास्टिक होता है, जिस के पीछे चिपकाने वाला पदार्थ लगा कर फ्लोर पर चिपका दिया जाता है. देखने में बिलकुल हार्डवुड जैसी लगने के साथसाथ यह वाटरपू्रफ भी होती है और इस पर दीमक भी नहीं लगती. जो लोग केवल लिविंग या बैडरूम में ही नहीं, बल्कि अपने बाथरूम को भी वुडन टच देना चाहते हैं, उन के लिए यह बेहतर विकल्प है.

देखभाल

फर्श पर जमी धूलमिट्टी को साफ और सूखे कपड़े से ही पोंछें. हर 5-6 साल के अंतराल पर फर्श को पौलिश कराएं. अगर कमरे के फर्श पर धूप आती है, तो वहां परदे का इस्तेमाल करें, क्योंकि धूप से लकड़ी का रंग फीका पड़ सकता है. फर्श पर पानी इकट्ठा न रहने दें, क्योंकि इस से लकड़ी खराब हो सकती है.

क्या करें

– सभी फर्नीचर जो उस कमरे में हों उन के नुकीले सिरों के नीचे कौटनबौल या फर्नीचर पैड लगा दें.

– दरवाजे पर डोरमेट का उपयोग करें व इन की नियमित सफाई जरूरी है.

– वैक्यूम क्लीनर का उपयोग सौफ्ट ब्रश के साथ करें.

– अगर घर पर पेट्स हों, तो यह ध्यान रखें कि वे नाखूनों से फ्लोरिंग को न खुरचें.

– सही गुणवत्ता वाले फ्लोरिंग क्लीनर का उपयोग करें.

– फ्लोर की सफाई के लिए हमेशा अच्छे पैड का उपयोग करें.

क्या न करें

– भारी व ऊंची हील की सैंडिल, जूतों का उपयोग कम से कम करें.

– अमोनिया या अन्य किसी ऐसिड के प्रयोग से बचें.

– पानी का उपयोग फ्लोरिंग को धोने में न करें.

– भारी फर्नीचर को फ्लोरिंग पर घसीटें नहीं.

Winter Special: 15 टिप्स जो बचा खाना बनाएं लजीज

बचा खाना हम अकसर खराब समझ कर फेंक दिया करते हैं जबकि बचे खाने से भी स्वादिष्ठ रैसिपी तैयार की जा सकती है. अचानक घर में मेहमान आ जाएं और आप को झटपट कुछ बना कर देना हो तो घबराएं नहीं, बल्कि इन टिप्स पर गौर फरमाएं:

1. घर में पनीर बनाया है तो उस के पानी में पकौड़े के लिए बेसन घोलें. पकौड़े स्वादिष्ठ बनेंगे.

2. पनीर के पानी से आटा गूंधें अथवा सूप में भी इस का इस्तेमाल कर सकती हैं.

3. अचार का मसाला बच गया हो तो उस में लहसुन छील कर अथवा प्याज काट कर डाल दें. स्वादिष्ठ अचार तैयार हो जाएगा.

4. आम के अचार के बचे तेल व मसालों को बैगन, टिंडा, भिंडी या करेले में भर कर सब्जी बनाएं.

5. अधिक पका केला फेंकने के बजाय पुडिंग या कस्टर्ड में डालें अथवा स्मूदी या शेक में प्रयोग करें.

6. चावल के निकले मांड़ में हींग, जीरा, अदरक, नीबू का रस और हरीमिर्च का तड़का लगा दें. बढि़या स्वादिष्ठ सूप तैयार हो जाएगा.

7. चावल का बचा पानी दाल में डाल दें, तो दाल गाढ़ी हो जाएगी और मात्रा भी बढ़ जाएगी.

8. अगर चोकर को सूजी में डाल कर हलवा बनाएं तो वह और स्वादिष्ठ व पौष्टिक बनेगा.

9. पका पपीता फीका निकला हो तो दूध व थोड़ी चीनी डाल कर थिक शेक बना लें.

10. फीके पपीते को पके कद्दू की तरह छौंक कर सब्जी बनाएं. सब्जी स्वादिष्ठ होने के साथसाथ पौष्टिक भी होगी.

11. छोटी इलायची के छिलकों को फेंकें नहीं. इन्हें पीस कर चीनी में मिला दें. जब भी चाय के पानी में चीनी डालेंगी इलायची की महक आएगी.

12. जिन सब्जियों को कद्दूकस कर रही हैं उन से निकले पानी को फेंकें नहीं, बल्कि उस से आटा गूंध लें. अधिक विटामिन इसी रस में होता है.

13. सब्जियों के डंठलों को फेंकें नहीं. उन्हें अच्छी तरह धो कर कोई सब्जी मिला कर उबाल लें. फिर छान कर कालीमिर्च, नमक और नीबू का रस डालें. बढि़या सूप तैयार हो जाएगा. चाहे तो वैजिटेबल स्टौक की तरह प्रयोग में लाएं.

14. अनार के छिलकों को फेंकें नहीं, बल्कि उन्हें अच्छी तरह धो कर सुखा लें. मिक्सी में पीस कर पाउडर बनाएं. जब भी पेट में दर्द हो कुनकुने दूध के साथ 1 चम्मच फांक लें.

15. सूखी नारंगी के छिलकों को सुखा कर चूर्ण बनाएं. बेक करने वाली चीज पुडिंग में डाल कर उसे सुगंधित बनाएं.

जब बच्चा हो तो रसोई में रखे यें चीजे

18 साल के राजीव का वजन जब 85 किलोग्राम हुआ, तो उस के मातापिता घबरा गए. बचपन से ही राजीव ओवरवेट था, लेकिन मातापिता को लगा था कि उम्र बढ़ने पर वह पतला हो जाएगा. पर ऐसा नहीं हुआ. होस्टल में रह कर भी उस का वजन बढ़ रहा था. वह बहुत आलसी हो गया था. उसे नींद भी बहुत आती थी. उस के मातापिता उसे कई डाक्टर्स के पास ले गए. कुछ ने सर्जरी करवाने की सलाह दी, लेकिन वे सर्जरी के लिए तैयार नहीं थे.अंत में वे उसे डाइटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट डा. नेहा चांदना रंगलानी के पास ले गए. उन के द्वारा जांच के बाद पता चला कि उस की जीवनशैली ठीक नहीं थी. उसे बचपन से जंक फूड खाने की आदत थी. उसे जब भी भूख लगती थी वह कुछ भी खा  लेता था. ऐसा करतेकरते उसे मोटापे ने घेर लिया. जबकि उस के परिवार में कोई भी ओवरवेट नहीं था. राजीव ने उन के द्वारा दी गई डाइट चार्ट को 4 महीने तक फौलो कर अपना 25 किलोग्राम वजन कम किया. वह अब पहले से काफी अच्छा लगने लगा है.

ऐसे बढ़ती है खाने में रुचि

डा. नेहा बताती हैं कि खाने की आदत लर्निंग बिहेवियर से आती है, अंतर्ज्ञान से नहीं. इसलिए बचपन से ही बच्चे में यह आदत डालने की आवश्यकता होती है कि उसे कब और क्या खाना चाहिए. आजकल लोग खाना बनाने में रुचि कम रखते हैं. ऐसे में बाजार से ला कर खाने की प्रथा चल पड़ी है. बाजार की खाने की चीजें अधिकतर स्वाद के आधार पर बनाई जाती हैं. उन की पौष्टिकता पर कम ध्यान दिया जाता है. ऐसे में बच्चा जब खुद कुछ उठा कर खाना सीखता है, तो किचन में चीजें रखते वक्त निम्न बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है:

कभी भी क्रीम बिस्कुट, चिप्स और चीज के पैकेट रसोई में न रखें.

हैल्दी स्नैक्स के बारे में सोचें और मुरमुरा, पीनट्स व ऐसे बिस्कुट रखें जिन में ओट्स हो. सैंडविच भी रख सकती हैं.

कोल्ड ड्रिंक्स, कैन पैक्ड ड्रिंक्स फ्रिज में रखने के बजाय ताजा नीबूपानी, जलजीरा व फ्रैश फलों के जूस आदि रखें, जिन में विटामिन और मिनरल अधिक मात्रा में होते हैं. वे बच्चे के विकास में काफी सहायक होते हैं.

मूंग की दाल व भुने हुए चने वगैरह आजकल बाजार में मिलते हैं, जो स्वाद के अलावा फायदेमंद भी होते हैं उन्हें रखें लेकिन हमेशा वैरायटी को बनाए रखें, क्योंकि एक जैसे फूड से बच्चा ऊब जाता है और बाहर का खाना खाने की सोचता है.

फलों को काट कर उन्हें कटोरी, प्लेट या ट्रे में सजा कर इस तरह फ्रिज या अलमारी में रखें ताकि बच्चा सहज ही उन की ओर आकर्षित हो.

जो भी उत्पाद रसोई में रखें, उसे खरीदते वक्त उस में वसा की मात्रा और पोषक तत्त्वों की जांच करें.

खाने की आदत को अच्छा बनाने के लिए उस का तरहतरह के व्यंजनों से परिचय कराएं.

बच्चे जब टीनएज में आते हैं तो वे अकसर स्कूल से आते ही किचन की ओर जाते हैं. अगर घर में मां हो तो वह उन्हें खाने के लिए कुछ निकाल कर दे सकती है. लेकिन आजकल अधिकांश मांएं कामकाजी हैं, इसलिए बच्चों को खुद ही कुछ निकाल कर खाना पड़ता है.

नेहा कहती हैं कि इस उम्र में बच्चे कुछ बना कर भी खा सकते हैं, इसलिए उस तरह की चीजें भी रसोई में रखें जिन से बच्चे कुछ बना कर खा सकें. जैसे दही, हरी चटनी, सलाद आदि. इन्हें फ्रिज में रखें ताकि बच्चा इन से खुद सैंडविच बना कर खा ले. इस के अलावा टीनएज बच्चों के लिए निम्न चीजें रसोई में होनी चाहिए:

मल्टीग्रेन व ब्राउन ब्रैड, इडली आदि.

मुरमुरा, कटे हुए प्याज, टमाटर व हरी धनियापत्ती. इन्हें अलगअलग कटोरी में रखें, बच्चा सभी को मिला कर खा सकता है.

इन के अलावा खाखरा, चकली, भुने हुए चने, दाल आदि जिन्हें वे तुरंत निकाल कर खा सकें.

इस उम्र में बच्चों की ग्रोथ जल्दी होती है, इसलिए उन्हें बारबार भूख लगती है. अगर बच्चा नौनवेज खाता है, तो अंडे उबाल कर रख सकती हैं.

आजकल बच्चे बाहर जा कर अधिक नहीं खेलते. उन का अधिकतर समय कंप्यूटर, लैपटौप या मोबाइल के साथ बीतता है. इसलिए उन्हें ब्रैड पर मक्खन की कम मात्रा लगाने की सलाह दें. साथ ही यह भी समझा दें कि जब भी वे पैक्ड फूड खरीदें उस में फैट और शुगर की मात्रा कम हो.

खानपान का व्यवहार पर प्रभाव

दरअसल, सही खानपान न होने से बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. उस का मन किसी काम में नहीं लगता और वह उदास रहता है. लड़कियों के लिए तो संतुलित आहार बहुत जरूरी है. संतुलित आहार के बिना उन का हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है और उन के मासिकधर्म पर इस का प्रभाव पड़ता है. बच्चों में शुगर लेवल बढ़ जाने पर वे कई बार जिद्दी हो जाते हैं और तोड़फोड़ तक कर सकते हैं. नूडल्स या जंकफूड सप्ताह में एक बार खिलाना काफी होता है, इसलिए किचन में सामान हमेशा वैसा रखें जो बच्चों के लिए आकर्षक, स्वादिष्ठ और हैल्दी हो, जिस से उन की खाने में रुचि बढ़े और उन का ग्रोथ अच्छा हो.

टीवी एक्ट्रेस सोनारिका भदौरिया का हुआ रोका-देखें फोटो

देवों के देव महादेव’ फेम सोनारिका भदौरिया ने अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड विकास परासर के साथ रोका किया है. सोनारिका भदोरिया ने अपने सोशल मीडिया पर फोटो शेयर कर रोका के बारे में बताया है. समुद्र किनारे कपल ने रोका सेरेमनी की है. बता दें, कि सोनारिका भदोरिया और विकास एक दूसरे को 7 साल से डेट कर रहे थे और अब जाकर दोनो का रोका हुआ है.

आपको बता दें, कि एक्ट्रेस सोनारिका भदौरिया की रोका सेरेमनी बिल्कुल ड्रीमी अंदाज में हुई है. अदाकारा की ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर आते ही मीडिया की लाइमलाइट में छा गई है.

 

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सोनारिका ने कैरी किया गाउन

सोनारिका लाल सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहने बेहद खूबसूरत लग रही हैं. एक्ट्रेस ने गाउन के साथ हैवी ज्वेलरी और बड़ा मंगलसूत्र पहना हुआ है. वहीं विकास ने लाइट कलर का थ्री पीस सूट पहना हुआ है. विकास इस आउटफिट में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहे हैं.

 

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इंस्टा पर शेयर की फोटो

सोनारिका भदोरिया और विकास के रोके सेरेमनी में करीबी रिश्तेदार और दोस्त शामिल रहे. सोनारिका ने इंस्टाग्राम पर विकास के संग कई रोमांटिक फोटो शेयर की हैं. सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों को काफी पसंद किया जा रहा है.

 

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सिद्धार्थ शुक्ला के जन्मदिन पर शहनाज गिल का इमोशनल पोस्ट, लिखी ये बात

टीवी के फेमस एक्टर, मॉडल और बिग बॉस 13 के विजेता रहे सिद्धार्थ शुक्ला का आज 42वां जयंती है. उनकी जयंती पर फैंस से लेकर सितारे उन्हे खूब याद कर रहे है. जी हां, बेशक सिद्धार्थ शुक्ला हमारे बीच नहीं रहे है लेकिन, उनके फैंस उन्हे खूब याद करते है. ऐसे मौके पर उन्हे याद करते हुए एक पोस्ट भी शेयर किया गया है जो की शहनाज गिल ने अपने इंस्टा अकाउंट पर साझा किया है.

आपको बता दें,कि आज 12 दिसंबर क सिद्धार्थ शुक्ला का जन्मदिन है ऐसे मौके पर शहनाज गिल ने उनसे जुडी एक तस्वीर शेयर की है और लिखा है कि मैं आपको दोबारा देखूंगी. सिद्धार्थ शुक्ला से जुड़ी शहनाज गिल की यह पोस्ट न केवल सुर्खियों में आ गई है, बल्कि कश्मीरा शाह, स्मृति खन्ना और पुल्कित सम्राट जैसे कई सितारे इसपर जमकर कमेंट भी कर रहे हैं.

 

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पोस्ट पर कई यूजर्स ने भी कमेंट किया है एक यूजर ने शहनाज गिल की पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा, कि “शहनाज ने सिद्धार्थ की पुण्यतिथी नहीं मनाई, लेकिन वह उनका जन्मदिन मना रही हैं क्योंकि वह उनके अंदर जिंदा हैं.” वहीं दूसरे यूजर ने भावुक होकर लिखा, “अभी भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही हूं कि आप हमारे साथ नहीं हो.” वही, कई यूजर्स ने ‘हैप्पी बर्थडे सिद्धार्थ’ लिखकर भी सिद्धार्थ की जयंती मनाई है.

 

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गौरतलब है कि शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला पहली बार टीवी शो ‘बिग बॉस 13’ में मिले थे जहां दोनों की केमिस्ट्री को जनता का खूब प्यार मिला था.गिल का चुलबुला अंदाज और सिद्धार्थ का उन्हें परेशान करना फैंस को काफी पसंद आता था. यही कारण है कि शो खत्म होने के बाद भी दोनों की जोड़ी सुर्खियों में रहती है. बाद में दोनों ने ‘शोना शोना’ जैसे गानों में भी साथ काम किया था.

खुशियों के फूल: किस बात से डर गई अम्बा

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देवदासी: एक प्रथा जिसने छीन लिया सिंदूर

मेरा नाम कुरंगी है और मेरी मां ही नहीं, मेरी दादी -परदादी भी देवदासी थीं. शायद लकड़दादी भी. खैर, मां ने वैसे विधिवत ब्याह कर लिया था. लेकिन जब उन के पहली संतान हुई तो उसे तीव्र ज्वर हुआ और उस ज्वर में उस बच्चे की आंखें जाती रहीं. उस के बाद एक और संतान हुई. उसे भी तीव्र ज्वर हुआ और उस तीव्र ज्वर में उस की टांगें बेकार हो गईं और वह अपाहिज हो गया.

बस, फिर क्या था. लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि यह देवताओं का प्रकोप है. अगर हम देवदासियों ने देवता की चरणवंदना छोड़ दी तो हमारा अमंगल होगा. इसलिए जब मैं होने वाली थी तब मां ने मन्नत मानी थी कि अगर मुझे कुछ नहीं हुआ तो वह फिर से देवदासी बन जाएंगी.

पैदा होने के बाद मुझे दोनों भाइयों की तरह तीव्र ज्वर नहीं हुआ. मां इसे दैव अनुकंपा समझ कर महाकाल के मंदिर में फिर से देवदासी बन गईं. मां बताती हैं, पिताजी ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन उन्होंने एक न सुनी और मुझे ले कर महाकाल के मंदिर में आ गईं.

मंदिर के विशाल क्षेत्र में हमें एक छोटा सा मकान मिल गया. हमारे मकान के सामने कच्चे आंगन में जूही का एक मंडप था और तुलसी का चौरा भी. रोज शाम को मां तुलसी के चौरे पर अगरबत्ती, धूप, दीप जला कर आरती करती थीं और मुंदे नयनों से ‘शुभं करोति कल्याणं’ का सस्वर पाठ करती थीं. झिलमिल जलते दीप के मंदमंद प्रकाश में मां का चेहरा देदीप्यमान हो उठता था और मुझे बड़ा भला लगता था.

जब मैं छोटी थी तब मैं मां के साथ मंदिर में जाती थी. जब मां नृत्य करने के लिए नृत्य मुद्रा में खड़ी होतीं तो मैं गर्भगृह में लटकते दीवटों को एकटक निहारती रहती थी और सोचती रहती थी कि गर्भगृह में सदा इतना अंधेरा क्यों रहता है. कहीं यह ईश्वर रूपी महती शक्ति को अंधेरे में रख कर लोगों को किन्हीं दूसरे माध्यमों से भरमाने का पाखंड मात्र तो नहीं?

ऐसा लगता जैसे देवदासियों का यह नृत्य ईश्वर की आराधना के नाम पर अपनी दमित वासनाओं को तृप्त करने का आयोजन हो. वरना देवालय जैसे पवित्र स्थान पर ऐसे नृत्यों का क्या प्रयोजन है, जिन में कामुकतापूर्ण हावभाव ही प्रदर्शित किए जाते हों.

देवस्थान के अहाते में बैठे दर्शनार्थियों की आंखें सिर्फ देवदासियों के हर अंगसंचालन और भावभंगिमाओं पर मंडराती रहतीं. पहले तो मुझे ऐसा लगता था जैसे ईश्वर आराधना के बहाने वहां आने वाले युवकों द्वारा मां का बड़ा मानसम्मान हो रहा है. हर कोई उस के नृत्य की सराहना कर रहा है.

लेकिन यह भ्रम बड़ा होने पर टूट गया और यह पता लगते देर नहीं लगी कि नृत्य  की सराहना एक बहाना मात्र है. वे तो रूप के सौदागर हैं और नृत्य की प्रशंसा के बहाने वे लोग इन नर्तकियों से शारीरिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं. तब मुझे लगा कि इन देवदासियों के जीविकोपार्जन का अन्य कोई साधन भी तो नहीं.

मुझे लगा, कहीं मुझे भी इस वासनापूर्ण जीवन से समझौता न करना पड़े. फिर लगा, स्वयं को दूसरों को समर्पित किए बगैर उस मंदिर में रहना असंभव है. मेरी सहेलियां भी धन के लोभ में खुल्लमखुल्ला यही अनैतिक जीवन तो बिता रही हैं और मुझ पर भी ऐसा करने के लिए दबाव डाल रही हैं.

वैसे मैं बचपन से ही मंदिर में झाड़नेबुहारने, गोबर से लीपापोती करने, दीयाबाती जलाने, कालीन बिछाने, पालकी के पीछेपीछे चलने, त्योहारों, मेलों में वंदनवार सजाने और प्रसाद बनाने का काम करती थी.

दूरदूर से जो साधुसंत या दर्शनार्थी आते हैं, उन  के बरतन मांजने, कपड़े धोने, उन को मंदिर में घुमा लाने, उन के लिए बाजार से सौदा लाने का काम भी मैं ही किया करती थी. कभीकभी किसी का कामुकतापूर्ण दृष्टि से ताकना या कुछ लेनदेन के बहाने मुझे छू लेना बेहद अखरने लगता था. कभीकभी वे छोटे से काम के लिए देर तक उलझाए रखते.

मुझे अपना भविष्य अंधकारमय लगता. कोई राह सुझाई न देती. मां की राह पर चलना बड़ा ही घृणास्पद लगता था और न भी चलूं तो इस बात की आशंका घेरे रहती थी कि कहीं मुझे भी देवताओं का कोपभाजन न बनना पड़े.

दिन तो जैसेतैसे बीत जाता था पर सांझ होते ही जी घबराने लगता था और मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगती थीं. मां तो मंदिर में नृत्य करने चली जाती थीं या अपने किसी कृपापात्र को प्रसन्न करने और मैं अकेली जूही के गजरे बनाया करती थी.

उस दिन भी मैं गजरा बना रही थी. मैं अपने काम में इतनी मग्न थी कि मुझे इस बात का पता ही नहीं चला कि कोई मेरे सामने आ कर मेरी इस कला को एकटक निहार रहा है.

चौड़े पुष्ट कंधों वाला, काफी लंबा, गौरवर्ण, बड़ीबड़ी आंखें, काली घनी मूंछें, गुलाबी मोटे होंठ, ठुड्डी में गड्ढे, घने काले बाल. ऐसा बांका सजीला युवक मैं ने पहली बार देखा था. मेरी तो आंखें ही चौंधिया गईं, जी चाहा बस, देखती ही रहूं उस की मनमोहक सूरत.

‘‘आप गजरा अच्छा बना लेती हैं.’’

मैं उस की ओजस्वी आवाज पर मुग्ध हो उठी. हवा को चीरती सी ऐसी मरदानी आवाज मैं ने पहले कभी नहीं सुनी थी.

‘‘आप लगाते हैं?’’

‘‘मैं,’’ वह खिलखिला कर हंस पड़ा. उस की उज्ज्वल दंतपंक्ति चमक उठी. फिर एक क्षण रुक कर वह बोला, ‘‘गजरा तो स्त्रियां लगाती हैं.’’

तभी एक युवक अपने दाएं हाथ में गजरा लपेटे घूमता हुआ आता दिखाई दिया. मैं ने कहा, ‘‘देखिए, पुरुष भी लगाते हैं.’’

‘‘लगाते होंगे लेकिन मुझे तो स्त्रियों को लगाना अच्छा लगता है.’’

‘‘आप लगाएंगे?’’ इतना कहते हुए मुझे लज्जा आ गई और मैं अपने मकान की तरफ भागने लगी.

‘‘अरे, आप गजरा नहीं लगवाएंगी?’’ वह युवक पूछता रह गया और मैं भाग आई.

मेरा हृदय तीव्र गति से धड़कने लगा. यह क्या कर दिया मैं ने? कहीं मैं अपनी औकात तो नहीं भूल गई?

अगले दिन और उस के अगले दिन भी मैं उस युवक से बचती रही. वह मुचुकुंद की छाया में खड़ा रहा. फिर अपने घोड़े पर सवार हो कर चला गया. तीसरे दिन वह नहीं आया और मैं ड्योढ़ी में खड़ी उस की प्रतीक्षा करती रही. चौथे दिन भी वह नहीं आया और मैं उदास हो उठी.

सोचने लगी, क्या मैं उस के मोहजाल में फंसी जा रही हूं? मैं क्यों उस युवक की प्रतीक्षा कर रही हूं? वह मेरा कौन लगता है? लगा, हवा के विरज झोंकों से जिस तरह वृक्ष झूमने लगते हैं और आकाश में चंद्रमा को देख कर कुमुदिनी खिलने लगती है, उसी तरह उस के मुखचंद्र को देख कर मैं प्रफुल्ल हो उठी थी और उस की निकटता पा कर झूमने लगी थी.

एक दिन मैं उसी के विचारों में खोई हुई थी कि उस ने पीछे से आ कर मेरे सिर के बालों में गजरा लगा दिया. इस विचार मात्र से कि उस युवक ने मेरे बालों में गजरा लगाया है मेरे मन में कलोल सी फूटने लगी. फिर न जाने क्यों आशंकित हो उठी. गजरा लगाने का अर्थ है विवाह. क्या मैं उस से विवाह कर सकूंगी? फिर देवताओं का कोप?

‘‘नहीं…नहीं, मैं तुम्हारी नहीं हो सकती,’’ और मैं पीपल के पत्ते की तरह कांपने लगी.

उस युवक ने मुझे झिंझोड़ कर पूछा, ‘‘क्यों? आखिर क्यों?’’

‘‘मैं देवदासी की कन्या हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं.’’

‘‘मैं भी देवदासी ही बनूंगी.’’

‘‘सो भला क्यों?’’

‘‘यही परंपरा है.’’

‘‘मैं इन सड़ीगली परंपराओं को नहीं मानता.’’

‘‘न…न, ऐसा मत कहिए. मां ने भी ऐसा ही दुस्साहस किया था,’’ और मैं ने उसे मां और अपने अपाहिज भाइयों के बारे में सबकुछ बता दिया.

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है. ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं तुम से विवाह करूंगा.’’

‘‘मां नहीं मानेंगी.’’

‘‘अपनी मां के पास ले चलो मुझे.’’

‘‘मैं आप का नाम भी नहीं जानती.’’

‘‘मेरा नाम इंद्राग्निमित्र है. मैं महासेनानी पुष्यमित्र का अमात्य हूं.’’

‘‘आप तो उच्च कुलोत्पन्न ब्राह्मण हैं और मैं एक क्षुद्र दासी. नहीं…नहीं, आप ब्राह्मण तो देवता के समान हैं और मैं तो देवदासी हूं. देवताओं की दासी बन कर ही रहना है मुझे.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है अगर तुम उस प्रस्तर प्रतिमा की दासी न बन कर मेरी ही दासी बन जाओ.’’

उस का अकाट्य तर्क सुन कर मैं चुप हो गई. लेकिन मेरी मां कैसे चुप्पी साध लेतीं?

जब इंद्राग्निमित्र ने मां के सामने मेरे साथ विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह बोलीं, ‘‘न…न, गाज गिरेगी हम पर अगर हम यह अधर्म करेंगे. पहले ही हम ने कम कष्ट नहीं झेले हैं. 2-2 बच्चों को अपनी आंखों के सामने अपाहिज होते देखा है मैं ने.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. लीक पीटना मनुष्य का नहीं पशुओं का काम है, क्योंकि उन में तार्किक बुद्धि नहीं होती,’’ इंद्राग्निमित्र ने कहा.

बहुत कहने पर भी मां न…न करती रहीं. आखिर इंद्राग्निमित्र चला गया और मैं ठगी सी खड़ी देखती रही.

अगले 2 दिनों तक इंद्राग्निमित्र का कोई संदेश नहीं आया.

तीसरे दिन एक अश्वारोही महासेनानी पुष्यमित्र का आदेश ले आया. मां को मेरे साथ महासेनानी पुष्यमित्र के सामने उपस्थित होने को कहा गया था.

इतना सुनते ही मां के हाथपांव कांपने लगे. इंद्राग्निमित्र की अवज्ञा करने पर महासेनानी उसे दंड तो नहीं देंगे? वह शुंग राज्य का अमात्य है. चाहता तो जबरन उठा ले जा सकता था. लेकिन नहीं, उस ने मां से सामाजिक प्रथा के अनुसार मेरा हाथ मांगा था और मां ने इनकार कर दिया था.

महासेनानी पुष्यमित्र का तेजस्वी चेहरा देख कर और ओजस्वी वाणी सुन कर मां गद्गद हो उठीं.

कुशलक्षेम के बाद महासेनानी ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘जानती हो, मेरी बहू इरावती और अग्निमित्र की पहली पत्नी देवदासी थी?’’

तर्क अकाट्य था और मां मान गईं. इंद्राग्निमित्र के साथ मेरा विवाह हो गया. मां भी मेरे साथ मेरे महल में आ कर रहने लगीं…जब मुझे 2 माह चढ़ गए तो मां की आशंकाएं बढ़ने लगीं और वह इस विचारमात्र से कांपने लगीं कि कहीं मेरी संतान भी दैव प्रकोप से अपाहिज न हो जाए.

लेकिन मां की शंका निर्मूल सिद्ध हुई. मेरे एक स्वस्थ कन्या पैदा हुई.

हमारे प्रासाद में जाने कितने नौकरचाकर थे. उन सब के नाम मां को याद नहीं रहते थे और मां एक के बदले दूसरे को पुकार बैठती थीं. फिर कहतीं, ‘‘जब मेरी ही यह हालत है तो उस ईश्वर की क्या हालत होगी? अरबोंखरबों जीवों का वह कैसे हिसाबकिताब रखता होगा?’’

कहीं यह कोरी गप तो नहीं कि परंपरा से हट कर चलने से वह श्राप दे देता है? आखिर ये परंपराएं किस ने चलाई हैं? हम लोगों ने ही तो. ये मंदिर हम ने बनवाए. यह देवदासी प्रथा भी हम ने ही प्रचलित की.

इन्हीं दिनों बौद्ध भिक्षु आचार्य सोणगुप्त बोधगया से पधारे. इंद्राग्निमित्र उन्हें अपना अतिथि बना कर अपने प्रासाद में ले आए.

मैं अचंभे में पड़ गई. बाद में पता चला कि सोणगुप्त इंद्राग्निमित्र के सहपाठी ही नहीं अंतरंग मित्र भी रहे हैं. लेकिन इंद्राग्निमित्र को राजनीति में दिलचस्पी थी और सोणगुप्त को बौद्ध धर्म में. इसलिए इंद्राग्निमित्र अमात्य बन गए और सोणगुप्त बौद्ध भिक्षु.

वर्षों बाद मिले मित्र पहले तो अपने विगत जीवन की बातें करते रहे, फिर धर्म और राजनीति पर चर्चा

करने लगे.

इंद्राग्निमित्र बोले, ‘‘राज्य व्यवस्था धर्म के बल पर नहीं चलनी चाहिए. राजनीति सार्वजनिक है और धर्म वैयक्तिक. एक भावना से संबंध रखता है तो दूसरा कार्यकारण से. इसलिए मैं राज्य व्यवस्था में धर्म का हस्तक्षेप गलत मानता हूं.’’

‘‘तो फिर राज्य व्यवस्था को भी धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.’’

‘‘नहीं, देवदासी प्रथा हिंदू धर्म पर कोढ़ है और मैं समझता हूं राज्य की तरफ से इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए.’’

‘‘हिंदू धर्म के लिए तुम जो करना चाहते हो सो तो करोगे ही. अब लगेहाथ बौद्ध धर्म के लिए भी कुछ कर दो.’’

‘‘आज्ञा करो, मित्र.’’

‘‘मित्र, बोधगया में हम एक और विहार की जरूरत महसूस कर रहे हैं. प्रस्तुत विहार में इतने बौद्ध भिक्षु- भिक्षुणियां एकत्र हैं कि चौंतरे और वृक्ष तले सुलाना पड़ रहा है. अभी तो खैर वे खुले में सो लेंगे लेकिन वर्षा ऋतु में क्या होगा, इसी बात की चिंता सता रही है. अगर तुम एक और विहार बनवा दो तो बहुत सारे बौद्ध भिक्षुभिक्षुणियों के आवास की समस्या हल हो जाएगी.’’

‘‘बस, इतना ही? तुम निश्चिंत रहो. मैं थोड़े दिनों के बाद बोधगया आ कर इस का समुचित प्रबंध कर दूंगा.’’

सोणगुप्त आश्वस्त हो कर लौट गए.

इंद्राग्निमित्र देवदासी प्रथा को समाप्त करने के लिए व्यग्र हो उठे. इस प्रथा का अंत कैसे हो? क्यों न इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया जाए और राज्य भर में घोषणा कर दी जाए. यह निश्चय कर के वह महासेनानी पुष्यमित्र के पास गए.

‘‘महासेनानी, देवदासियों की वजह से मंदिर व्यभिचार और अनाचार के गढ़ बन गए हैं. और मैं चाहता हूं कि इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया जाए.’’

‘‘विचार तो बुरा नहीं, लेकिन इस पर प्रतिबंध लगाने पर काफी विरोध होने की आशंका है. अगर तुम डट कर इस विरोध का प्रतिरोध कर सको तो मुझे कोई आपत्ति नहीं.’’

इंद्राग्निमित्र ने राज्य की तरफ से देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया. प्रतिबंध लगते ही इंद्राग्निमित्र की आलोचना होने लगी.

‘‘थू,’’ मंदिर की एक देवदासी ने पान की पीक इंद्राग्निमित्र के मुंह पर थूक दी.

इंद्राग्निमित्र अपमान की ग्लानि से भर उठे. फिर भी वह अपने विचार पर अडिग रहे. अगले दिन रथयात्रा थी और रथ के आगेआगे देवदासियां नृत्य करती हुई चलने वाली थीं. इंद्राग्निमित्र अपने दलबल के साथ वहां पहुंच गए.

लोग तरहतरह की बातें करने लगे. ‘‘बड़ा आया समाज सुधार करने वाला. देवदासी का उन्मूलन करने वाला…अरे, एक देवदासी को घर बसा लिया तो क्या हुआ? किसकिस का घर बसाएगा? धार्मिक मामलों में दखल देने वाला यह कौन होता है?’’

रथ को तरहतरह के फूलों से सजा कर सब दीयों को जला दिया गया. रथ के आगे ढोल बजाने वाले आ कर खड़े हो गए. उन्हें घेरे असंख्य नरनारी आबालवृद्ध एकत्र हो गए. पालकी के पास चोबदार खड़े थे और कौशेय में लिपटे पुजारी. पालकी के दोनों ओर सोलह शृंगार किए देवदासियां नृत्य मुद्रा में खड़ी हो गईं.

इस से पहले कि वे नृत्य आरंभ करतीं अपने घोड़े पर सवार इंद्राग्निमित्र वहां आ गए और बोले, ‘‘रोको. ये नृत्य नहीं कर सकतीं. देवदासियों पर प्रतिबंध लग चुका है.’’

हिंदू धर्म में प्रगाढ़ आस्था रखने वाले उबल पड़े. कुछेक प्रगतिशील विचारों वाले युवकों ने उन का विरोध किया. दर्शनार्थी 2 दलों में बंट गए और दोनों में मुठभेड़ हो गई. पहले तो मुंह से एकदूसरे पर वार करते रहे. जिस के हाथ में जो आया उठा कर फेंकने लगा, पत्थर, ईंट, गोबर.

जुलूस में भगदड़ मच गई. इंद्राग्निमित्र  भ्रमित. यह क्या हो गया. वह दोनों गुटों को समझाने लगे लेकिन कोई नहीं माना. तभी उन्होंने अपने वीरों को छड़ी का उपयोग कर के भीड़ को नियंत्रित करने का आदेश दिया. क्रोधोन्मत्त भीड़ भागने लगी. तभी किसी ने इंद्राग्निमित्र की तरफ भाले का वार किया और वह अपनी छाती थाम कर कराहते हुए वहीं ढेर हो गए.

मेरी मांग सूनी हो गई और मैं विधवा हो गई. अब मेरे आगे एक लंबा जीवन था और था एकाकीपन. महल के जिस कोने में जाती इंद्राग्निमित्र से जुड़ी यादें सताने लगतीं. जीवन अर्थहीन सा लगता.

संवेदना प्रकट करने वालों का तांता लगा रहता. इसी बीच सोणगुप्त आया और संवेदना प्रकट करने लगा. तभी याद आया इंद्राग्निमित्र ने सोणगुप्त से विहार बनवाने की प्रतिज्ञा की थी. मैं उस के साथ बोधगया चली गई.

देवदासी प्रथा का क्या हुआ, यह तो मैं नहीं जानती लेकिन इतना जानती हूं कि प्रथाओं और परंपराओं का इतनी जल्दी अंत नहीं होगा. मैं तो इस बात को ले कर आश्वस्त हूं कि मैं ने और मेरे पति ने अपनी तरफ से इसे मिटाने का भरसक प्रयत्न किया.

मगर हर कोई अपनीअपनी तरफ से प्रयत्न करे तो ये गलत प्रथाएं और परंपराएं अवश्य ही किसी दिन मिट कर रहेंगी.

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