Best Hindi Stories : स्नेह छाया – असली मां से मिलकर क्या हुआ रिंदू के साथ

Best Hindi Stories : बीए फाइनल की परीक्षा देकर दिल्ली के एक पीजी होस्टल से थकीमांदी घर झारखंड के रांची में पहुंची. सोचा था जीभर कर सोऊंगी और अपनी पसंद की हर चीज मां से बनवा कर खाऊंगी. सो खुशीखुशी बहुत सारी कल्पनाएं करती हुई घर लौटी थी.

घर पहुंचने पर दरवाजे पर बक्का मिल गए. फूलों की क्यारियों को सींचते हुए उन्होंने स्नेहभरी आंखों से मुझे देखा और ‘मुनिया’ कह कर पुकारा. बचपन रांची में गुजरा था और आज भी तब के जमाने का अच्छा सा बड़ा घर हमारा था. बक्का कब से हमारे यहां है, मैं भूल चुकी थी.

बक्का का वैसे असली नाम तो अच्छाभला रामवृक्ष था, पर इस बड़े नाम को न बोल कर मैं उन्हें बक्का कह कर ही पुकारती थी. फिर तो रामवृक्ष अच्छेखासे नाम के होते हुए भी सब के लिए बक्का बन कर रह गए. उन्होंने कभी एतराज भी नहीं किया. शायद अपनी इस मुनिया की हर बात उन्हें प्यारी थी. मां के होते हुए भी इन्हीं बक्का ने मुझे पालपोस कर बड़ा किया. ऐसा क्यों? यह बात में बताऊंगी.

‘‘बहूजी, मुनिया आ गई.’’ बक्का ने खुशीखुशी से झूमते हुए मां को आवाज दी.

मैं ने बक्का को नमस्ते की. उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘जीती रहो, बेटी, इस बार तुम कुछ दुबली हो गर्ई हो.’

मैं जब भी कुछ दिनों बाद बक्का से मिलती हूं, उन्हें पहले से दुबली और कमजोर ही दिखाई देती हूं.

‘‘हां, बक्का, तुम्हारी बनाई चाय जो मुझे नहीं मिलती. वह मिले तो अभी फिर मोटी हो जाऊं.’’  मैं ने हंस कर बक्का को छेड़ा.

‘‘धत, हम को चिढ़ाए बगैर नहीं मानेगी.’’ कहते हुए बक्का खुशी से खिल उठे और रसोईघर में जा कर उन्होंने कनहाई की नाक में दम करना शुरू कर दिया, ताकि उन की लाडली को जल्दी चाय मिल सके.

मैं दौड़ कर मां के कमरे में जा कर उन से लिपट गई. मां ने मुझे अपने पास खींच लिया और प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरती हुई बोली, ‘‘पहले यह बता ङ्क्षरदू कि तेरे एक्जाम कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, मां 90′ से तो ज्यादा आ ही जाएंगे’’ मैं ने विश्वासपूर्वक जवाब दिया.

फिर चाय आ गई, साथ ही कनहाई ने सूजी का हलवा, गरी की बरफी और गरमागरम पकौड़े भी मेरे सामने सजा दिए.

खातेखाते मैं ने पूछा, ‘‘मां, पिताजी कब तक वापस आ रहे हैं?’’

‘‘तेरे पिताजी काम के सिलसिले में अकसर बाहर जाते रहते हैं.’’ मेरी बात का जवाब देते हुए मां ने कहा, ‘‘कल ही वह वापस आ रहे है. उन के साथ सर्वजीत भी आ रहा है.’’

‘‘सर्वजीत? यह सर्वजीत कौन है और वह यहां क्यों आ रहा है?’’ मैं यह सब पूछतेपूछते रह गई, क्योंकि इसी समय मुझे अचानक याद आ गया कि पिताजी ने अपने पिछली बार फोन पर कहा था.

‘‘रिंदू, तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो जाए तब इस विषय में तुम से बात करूंगा यही सोचा था. पर सर्वजीत के घरवाले जल्दी कर रहे हैं, इसलिए तुम्हें बता रहा हूं. सर्वजीत ने तीन साल पहले एम.डी. पास की थी. अब तो उस की प्रैक्टिस भी जम गई है. उस का परिवार आज के परिवारों को देखते हुए बड़ा है. 3 बहनें और अकेला भाई सर्वजीत. बेटी, मैं लडक़े को देख कर उस के साथ तुम्हारे संबंध का विचार मन ही मन कर बैठा हूं. उस के घरवालों से सिर्फ यही कहा है कि लडक़ी एमवीए की परीक्षा दे ले, तब इस बारे में कुछ विचार करेंगे. मेरी पसंद तुम्हारी भी पसंद हो, यह जरूरी नहीं है. तुम इस बारे में सोचने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हो. पर सर्वजीत को तुम जरूर पसंद करोगी, ऐसा मेरा विश्वास है. उसे देख कर तुम चाहो तो मेरा विचार बदल भी सकती हो.’

उन की बात सुन कर मैं सोचती रही थी कि सर्वजीत में ऐसी क्या खूबी है कि मैं हां कर दूंगी, पर पिताजी मेेे साथ जोरजबरदस्ती कभी नहीं करेंगे, इस का मुझे भरोसा था.

पिताजी शाम की गाड़ी से घर आए. साथ में सर्वजीत भी था.

‘‘ङ्क्षरदू यह सर्वजीत है.’’ फिर उस की तरफ मुंह कर बोले, ‘‘यह मेरी बेटी ङ्क्षरदू है.’’

इस तरह पिताजी ने हम दोनों का परिचय कराया. मेरी ओर देख कर वह मुसकराया. मुझे उस का चेहरा खिलाखिला सा लगा.

‘‘अरे ङ्क्षरदू, सर्वजीत को चाय तो पिलाओ,’’ कहते हुए पिताजी अंदर चले गए.

सर्वजीत को देखते ही मां ने उसे पसंद कर लिया. उस के सहज आचरण, हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व ने सब का मन ही तो मोह लिया था. वह इतना भला, स्मार्ट और हंसमुख था कि मैं भी उस के आकर्षण में बंधती चली गई.

वह चारपांच दिन हमारे घर रुका? जाने वाले दिन वह मुझ से एकांत में मिला और बोला, ‘‘ङ्क्षरदू, क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?’’

मैं ने संकोचवश कोई उत्तर नहीं दिया. मुझे चुप देख उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस चुप्पी को मैं इनकार समझूं या स्वीकृति.’’

वह जवाब के लिए मेरी ओर देखने लगा. मैं फिर भी न बोली तो उस ने फिर कहा, ‘‘अच्छा रिंदू, एक कागज पर हां या ना लिख कर मुझे किसी समय दे देना.’’ बोल कर वह वापस चला गया.

मैं तो पहली दृष्टि में ही उसे स्वीकार कर चुकी थी फिर ना कैसे कहती? ‘हां’ कहना चाहती थी, पर शर्म से कुछ बोल नहीं पाई.

मुझे बक्का ने क्यों पाला, इस की एक लंबी कहानी है. जब मैं पांच महीने की थी तभी मेरी मां पिताजी को छोड़ कर अपने एक लंगोटिया दोस्त विक्रांत के साथ चली गई थी. उस ने पिताजी के प्यार के अलावा अपनी दुधमुंही बच्ची की ममता का भी गला घोंट दिया था. पिताजी ने सहमति से तलाक के कागजों पर हस्तांक्षर कर दिए थे. मेरी कस्टडी मांगी थी जिस पर मेरी असली मां ने तुरंत हां भर दी थी.

पिताजी तब निरीह और बेसहारा से हो गए. इस दुॢदन में बक्का पिताजी के साथ ही थे..उन्होंने हर तरह से हमें सहारा दिया. घर भी संभालते थे और मुझ जैसी छोटी बच्ची की पूरी देखभाल भी करते थे.

धीरेधीरे दो साल का लंबा समय बीत गया. पिताजी को अपना एकाकी जीवन खलने लगा. ऐसे में चमकदार आंखों में उल्लास और होंठों पर रहरह कर फूट पडऩे वाली मुसकान लिए उन्हें एक टूर में अंजनी मिली. पूरी बात जान कर भी वह पिताजी की तरफ ङ्क्षखचती गई और पिताजी ने उसे विवाह को कहा, वह मिलने घर आई और न जाने क्यों मैं तब उन की गोद में चड़ गई और जब तक वह गई नहीं, मैं गोद से उतरी नहीं उन्होंने मुझे बड़े प्यार से खाना अपने हाथ से खिलाया था. फिर विवाह हो गया. उसे वहां अच्छी नौकरी मिल गई और वह रांची जैसे वैंक्वड शहर से छुटकारा पाई थी. पिताजी का अकेलापन दूर हो गया. वही अंजनी अब मेरी मां हैं. जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी तब मैं ढाई साल की थी.

तब तक मां के प्यार की पूॢत बक्का कर रहे थे. अब नई मां ने आ कर पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. बक्का और पिताजी यह देखकर चकित थे कि नईनई ब्याह कर आई इस लडक़ी ने अपनी सौत की संतान को अपने प्यार व दुलार से किस तरह अपना लिया है. मुझे जन्म देने वाली मां पिताजी के मित्र विक्रांत के साथ लिवरपूल (इंगलैंड) रहने लगी थी.

हमारा जवाब जाने पर सर्वजीत के घर से भी हां हो गई थी. उस के घर के लोग भी झारखंड के ही थे. वे आकर हां कर गए थे.

इस के बाद सर्वजीत का एक छोटा सा पार्सल आया. उस में एक हीरे की अंगूठी व एक राइङ्क्षटग पैड था. अंगूठी की बात तो समझ में आई, पर यह राइङ्क्षटग पैड किस लिए? यह जिज्ञासा उस का पत्र पढ़ कर शांत हुई. उस ने लिखा था : ङ्क्षरदू, अपनी तरफ से अंगूठी भेज रहा हूं. लिखना, तुम्हें पसंद आई या नहीं. ट्रेन में तुम्हारी स्वीकृति का छोटा सा ‘कागजी लड्डू’ मिला था. राइङ्क्षटग पैड इसलिए भेज रहा हूं ताकि तुम्हें आगे से लिखने के लिए कागज की कमी महसूस न हो और अपनी बात कहने के लिए कागजी लड्डïू प्रयोग न करना पड़े. अब जी खोल कर लिखा करना.’

हुआ यह था कि जब मैं औरों के साथ सर्वजीत को पहुंचाने स्टेशन गई थी तो एक छोटे से कागज पर सिर्फ ‘हां’ लिख कर मैं साथ लेती गई थी. अनजाने में उस छोटे से कागज को रास्ते भर गोलगोल मोड़ती रही थी और जब ट्रेन चली तो मैं ने उसे सर्वजीत के हाथ में रख दिया था. मोबाइल के जमाने में पत्र से हां कहना सर्वजीप को बहुत भाया.

दोनों ओर से खूब चैङ्क्षटग हुई, सर्वजीत के घरवालों ने शादी एक महीने के अंदर करने की जिद की और मैं ब्याह कर उस के घर आ गई.

ससुराल आने पर पता चला कि सर्वजीत की 3 बहनों की शादी पहले ही हो गर्ई थी. अब उस घर की बहू बनकर मैं सर्वजीत व उस के मातापिता के परिवार में शामिल हो गई.

कुछ दिनों बाद मैं सर्वजीत के साथ अपने मातापिता से मिलने आई. सब बहुत खुश थे. अपनी मुनिया और दामाद की खातिर में लगे थे. इसी समय अचानक मुंबई से मेरी असल मां फोन आया कि वह रांची आ रही है.

पिताजी उसे पा कर परेशान हो गए. बक्का अलग परेशान थे. मुझे पता चला तो मैं भी अजीब से ऊहापोह में फंस गई.

बिना कुछ कहे ही सब के चेहरे से लग रहा था. मानो सभी कह रहे हों कि उसे यहां आने की क्या जरूरत आ पड़ी. वह हमारे लिए तो कब की मरखप गई थी.

बक्का की घबराहट तो देखते ही बनती थी. उन्हें डर था कि  सर्वजीत और उस के घर वालों को जब असली मां के लिवरपूल चले जानेकी बात का पता चलेगा तो उस की मुनिया की ङ्क्षजदगी नष्ट हो जाएगी. बक्का को मेरे अनिष्ट की बात स्वप्न में भी दुख देती थी.

माताजी, पिताजी और मुझे पास बैठा कर सर्वजीत ने बात शुरू ही की थी कि उसे बक्का का खयाल आ गया. बक्का हमारे परिवार के हर दुखसुख के भागीदार थे. एक मामूली नौकर से कब वह परिवार के सदस्य हो गए थे यह पता ही नहीं चला. हम से ज्यादा हमारी ङ्क्षचता में घुलते थे बक्का. सर्वजीत उन्हें खोज कर पकड़ लाया और पास बैठने को कहा.

हमें संकोच में देख कर उस ने कहा, ‘‘आप लोग इतने परेशान क्यों हैं? मुझे सब मालूम है कि ङ्क्षरदू को जन्म देने वाली मां आ रही है. मुझे आज से काफी साल पहले ही सारी बातों की जानकारी मिल गई थी. सच पूछिए तो स्वयं विक्रांतजी ने ही फोन कर के इस घटना की खबर मुझे दी थी और आग्रह किया था कि जब मैं अपनी बहन की सहेली की शादी में कानपुर जाऊं  तो ङ्क्षरदू को भी देख लूं. उस शादी में आप भी आएंगे, इस की जानकारी भी आप की पहली पत्नी ने ही दी थी. वह शादी आप के घनिष्ठ दोस्त के बेटे से हो रही थी. वहीं मैं गया. आप सब को देखा, पर किसी पर जाहिर नहीं होने दिया. रिदू की सुंदरता और आप लोगों को परिवार मुझे भी भा गया. आप की पहली पत्नी ने मुझे बारबार यही लिखा था कि उन की गलतियों की सजा उन की मासूम बच्ची को नहीं मिलनी चाहिए. मेरी अपनी मान्यता भी यही है कि निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए.’’

सर्वजीत इतना बोल कर चुप हो गया. यह हमें बाद में पता चला कि  पिताजी को सर्वजीत पहली बार जब कानपुर में मिला था,  तभी उन्होंने उस सब कुछ बता दिया था. उन के संकोच को ताड़ कर सर्वजीत ने उन्हें समझाया था और आश्वासन दिया था कि इस विषय में वह घरवालों को कुछ नहीं बताएगा.

मैं दुविधा में थी. एक ओर जन्म देने वाली उस मां को देखने की उत्सुकता थी जो एकदम निष्ठुर हो कर मुझे छोड़ गई थी और दूसरी ओर अपना पालनपोषण करने वाली स्नेहमयी मां का खयाल था, जो एकदम गुमसुम बैठी हुई थी.

इस के दूसरे दिन श्रीमती विक्रांत अर्थात मुझे जन्म देने वाली मां आई. एयरपोर्ट जा कर पिताजी उन्हें घर लाए. वह बहुत थकी, बीमार और उदास लग रही थीं.

सर्वजीत ने पूरे माहौल को अपनी सौम्य मुसकान और सहज आचरण से बोझिल नहीं होने दिया. इस के लिए मैं उस की तहेदिल से आभारी हूं.

मेरी जन्मदात्री मेरी वर्तमान मां से पहली बार मिलीं. दोनों के आपसी व्यवहार को देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी को किसी से कोई शिकवाशिकायत नहीं है.

दोनों की बातें रात देर तक होती रहीं. बाद में मां ने हमें बताया, ‘‘लिवरपूल से तो वह काफी पहले आ गई थीं. मुंबई के टाटा कैंसर हस्पताल में थीं. वहीं से आ रही हैं. उन्हें छाती का कैसर हो गया था. उन का एक स्तन निकाल दिया गया. कितनी ही बार कीमोथेरापी हुई. हरसेपटिन भी दी गई पर अब अंत सा आ गया है. वह अपने जीवन से हताश हो चुकी हैं. ङ्क्षजदगी को थोड़ी सी जो मुहलत मिली है, उस में वह अपने सब अपराधों और गलतियों के लिए क्षमा मांगने आई हैं.’’

कई साल पहले विक्रांत एक कार दुर्घटना में इंग्लैंड में गुजर गए थे. तब सब कुछ बेचकर वह मुंबई आ कर अकेली रह रही थीं, तभी इस जानलेवा रोग ने उन्हें दबोच लिया.

मुझे पास बुला कर उन्होंने प्यार करना चाहा, पर मैं काठ बनी वहीं बैठी रही. उस मां के लिए मैं प्यार कहां से लाऊं जिस ने अपनी रंगीन तबीयत के लिए मुझ दुधमुुंही को बिलखता छोड़ दिया था.

अकेले में सर्वजीत ने मुझे बहुतेरा समझाया, पर मैं उन के पास जाने से कतराती रही, प्यार करना तो दूर की बात थी.

मेरी नई मां ने प्यार से समाझाया, ‘‘ङ्क्षरदू, तुम्हारी मां अब नहीं बचेगी. एक बार प्यार कर लो. उन्हें शांति मिल जाएगी, वरना मरते दम तक उन के मन में दुख रहेगा.’’

मैं चुप रही. मन बारबार यही कहता था, ‘मां, तुम ने मुझे प्यार की शीतल छाया दी है. उस के बदले में यदि कुछ चाहती हो तो कुछ और आज्ञा करो, पर उस निष्ठुर मां के लिए स्नेह नहीं मांगो.’

फिर बक्का ने दुलारते हुए समझाया, ‘‘मुनिया, अब तुम भी माफ कर दो. आखिर वह तुम्हारी मां हैं. जब बुरा वक्त आने वाला होता है तो दुर्बुद्धि आ ही जाती है. अच्छे से अच्छा आदमी भी भटक जाता है.’’

बक्का अपनी वे अनसोई रातें भूल चुके थे जो उन्होंने मुझे रातरात भर कंधे पर उठाए गुजारी थीं. वह  अपने उन कष्ट के क्षणों को भी भूल गए थे जब मैं बीमार पडऩे पर मां के लिए बिलखती रहती थी और वह रातरात भर जाग कर मुझे चुप कराते रहते थे. तब उन्हें मां पर क्रोध आता था, पर अब उस हृदयहीन मां के उन गुनाहों को भुला कर वह उस का पक्ष ले रहे थे.

पिताजी ने मुझे बुला कर अपने पास बिठा लिया, पर उन्होंने कहा कुछ भी नहीं. बस, मेरे बालों पर धीरेधीरे अपना हाथ फेरते रहे वह बिना कहे ही सब कुछ कह गए. और मेरे व्यथित व्याकुल मन ने सब समझ लिया. जब इतना सब कुछ सह कर पिताजी ने उन्हें माफ कर दिया है तो मेरी भी कटुता समाप्त होने लगी.

अंतत: मैं मां के पलंग के पास जा कर उन का हाथ थाम कर बैठ गर्ई और रोती रही. उन की आंखों से भी आंसू बह निकले. रोतेरोते वह बोलीं, ‘‘ङ्क्षरदू, मेरी बच्ची, मेरे जीवन से तुम्हें सबक लेना चाहिए. तुम ने मुझे क्षमा कर दिया. इस से मेरे मन को तो शांति मिलेगी ही, साथ ही तुम भी सुखी रहोगी. सर्वजीत के रूप में अनमोल हीरा तेरे पास है. मेरे लिए इस से बढ़ कर खुशी दूसरी नहीं है.’’

एक महीने बाद मां नहीं रही. मरने से पहले उन्होंने अपनी सारी चलअचल संपत्ति सर्वजीत के नाम कर दी.

बक्का आज भी हमारे साथ रहते हैं और अपनी मुनिया की देखभाल करते रहते हैं. पिताजी और मां सुखी हैं. घर के ड्राइंगरूम में असली मां की तसवीर लगी है. किसी के पूछने पर छोटी मां उसे अपनी बड़ी बहन की तसवीर बतला कर मौन हो जाती हैं.

Hindi Stories Online : टूटते-जुड़ते सपनों का दर्द

Hindi Stories Online :  कालेज की लंबी गोष्ठी ने पिं्रसिपल गौरा को बेहद थका डाला था. मौसम भी थोड़ा गरम हो चला था, इसलिए शाम के समय भी हवा में तरावट का अभाव था. उन्होंने जल्दीजल्दी जरूरी फाइलों पर हस्ताक्षर किए और हिंदी की प्रोफेसर के साथ बाहर आईं. अनुराधा की गाड़ी नहीं आई थी, सो उन्हें भी अपनी गाड़ी में साथ ले लिया. घर आने पर अनुराधा ने बहुत आग्रह किया कि चाय पी कर ही वे जाएं, लेकिन एक तो गोष्ठी की गंभीर चर्चाओं पर बहस की थकान, दूसरे मन की खिन्नता ने वह आमंत्रण स्वीकार नहीं किया. वे एकदम अपने कमरे में जाना चाह रही थीं.

सुबह से ही मन खिन्न हो उठा था. अगर यह अति आवश्यक गोष्ठी नहीं होती तो वे कालेज जाती भी नहीं. आज की सुबह आंखों में तैर उठी. कितनी खुश थीं सुबह उठ कर. सिरहाने की लंबी खिड़की खोलते ही सिंदूरी रंग का गोला दूर उठता हुआ रोज नजर आता. आज भी वे उस रंग के नाजुक गाढ़ेपन को देख कर मुग्ध हो उठी थीं. तभी पड़ोस में रहने वाली अनुराधा के नौकर ने बंद लिफाफा ला कर दिया, जो कल शाम की डाक से आया था और भूल से उन के यहां डाकिया दे गया था.

उसी मुदित भाव से लिफाफा खोला. छोटी बहन पूर्वा का पत्र था उस में. गोल तकिए पर सिर टेक कर आराम से पढ़ने लगीं, लेकिन पढ़तेपढ़ते उन का मन पत्ते सा कांपने लगा और चेहरे से जैसे किसी ने बूंदबूंद खुशी निचोड़ ली थी. ऐसा लगा कि वे ऊंची चट्टान से लुढ़क कर खाई में गिर कर लहूलुहान हो गई हैं. जैसे कोई दर्द का नुकीला पंजा है जो धीरेधीरे उन की ओर खौफनाक तरीके से बढ़ता आ रहा है. उन की आंखों से मन का दर्द पानी बन कर बह निकला.

दरवाजे की घंटी बजी. दुर्गा आ गई थी काम करने. गौरा ने पलकों में दर्द समेट लिया और कालेज जाने की तैयारी में लग गईं. मन उजाड़ रास्तों पर दौड़ रहा था, पागल सा. आंखें खुली थीं, पर दृष्टि के सामने काली परछाइयां झूल रही थीं. कितनी कठिनाई से पूरा दिन गुजारा था उन्होंने. हंसीं भी, बोलीं भी, कई मुखौटे उतारतीचढ़ाती भी रहीं, परंतु भीतर का कोलाहल बराबर उन्हें बेरहमी से गरम रेत पर पछाड़ता रहा. क्या पूर्वा का जीवन संवारने की चेष्टा व्यर्थ गई? क्या उन के हाथों कोई अपराध हुआ है, जिस की सजा पूरी जिंदगी पूर्वा को झेलनी होगी?

अपने कमरे में आ कर वे बिस्तर पर निढाल हो कर पड़ गईं. मैले कपड़ों की खुली बिखरी गठरी की तरह जाने कितने दृश्य आंखों में तैरने लगे. विचारों का काफिला धूल भरे रास्तों में भटकने लगा.

3 भाइयों के बाद उन का जन्म हुआ था. सभी बड़े खुश हुए थे. कस्तूरी काकी और सोना बूआ बताती रहती थीं कि 7 दिन तक गीत गाए गए थे और छोटेबड़े सभी में लड्डू बांटे गए थे. बाबा ने नाम दिया, गौरा. सोचा होगा कि बेटी के बाद और लड़के होंगे. इसी पुत्र लालसा के चक्कर में 2 बहनें और हो गईं. तब न गीत गाए गए और न लड्डू ही बांटे गए.

कहते हैं न कि जब लोग अपनी स्वार्थ लिप्सा की पूर्ति मनचाहे ढंग से प्राप्त नहीं कर पाते हैं तब घर के द्वारदेहरी भी रुष्ट हो जाते हैं. वहां यदि अपनी संतान में बेटाबेटी का भेद कर के निराशा, कुंठा, निरादर और घृणा को बो दिया जाए तो घर एक सन्नाटा भरा खंडहर मात्र रह जाता है.

उस भरेपूरे घर में धीरेधीरे कष्टों के दायरे बढ़ने प्रारंभ होने लगे. बड़े भाई छुट्टी के दिन अपने साथियों के साथ नदी स्नान के लिए गए थे. तैरने की शर्त लगी. उन्हें नदी की तेज लहरें अपने चक्रवात में घेर कर ले डूबीं. लौट कर आई थी उन की फूली हुई लाश. घर भर में कुहराम मच गया था. मां और बाबूजी पागल हो उठे. बाबा की आंखें सूखे कुएं की तरह अंधेरों से अट गईं.

धीमेधीमे शब्दों में कहा जाने लगा कि तीनों लड़कियां भाई की मौत का कारण बनी हैं. न तीनों नागिनें पैदा होतीं और न हट्टाकट्टा भाई मौत का ग्रास बनता. समय ने सभी के घावों को पूरना शुरू ही किया था कि बीच वाले भाई हीरा के मोतीझरा निकला. वह ऐसा बिगड़ा कि दवाओं और डाक्टरों की सारी मेहनत पर पानी फेरता रहा.

मौत फिर दबेपांव आई और चुपचाप अपना काम कर गई. इस बार के हाहाकार ने आकाश तक हिला दिया. पिता एकदम टूट गए. 20 वर्ष आगे का बुढ़ापा एक रात में ही उन पर छा गया था. बाबा खाट से चिपक गए थे. मां चीखचीख कर अधमरी हो उठीं और बिना किसी लाजहिचक के जोरजोर से घोषणा करने लगीं कि मेरी तो लड़कियां ही साक्षात मौत बन कर पूरा कुनबा खत्म करने आई हैं. इन का तो मुंह देखना भी पाप है.

महल्ला, पड़ोस, रिश्तेदार सभी परिवार के सदस्यों के साथ तीनों बहनों को भरपूर कोसने लगे. अपने ही घर में तीनों किसी एकांत कोने में पड़ी रहतीं, अपमानित और दुत्कारी हुईं. न कोई प्यार से बोलता, न कोई आंसू पोंछता. तीनों की इच्छाएं मर कर काठ हो गईं. लाख सोचने पर भी वे यह समझ नहीं पाईं कि भाइयों की मृत्यु से उन का क्या संबंध है, वे मनहूस क्यों हैं.

तीसरा भाई बचपन से जिद्दी व दंगली किस्म का था. अब अकेला होने पर वह और बेलगाम हो गया था. सभी उसी को दुलारते रहते. उस की हर जिद पूरी होती और सभी गलतियां माफ कर दी जातीं. नतीजा यह हुआ कि वह स्कूल में नियमित नहीं गया. उलटेसीधे दोस्त बन गए. घर से बाहर सुबह से शाम तक व्यर्थ में घूमता, भटकता रहता. ऐसे ही गलत भटकाव में वह नशे का भयंकर आदी हो गया. न ढंग से खाता, न नींद भर सो पाता था. मातापिता से खूब जेबखर्च मिलता. कोई सख्ती से रोकनेटोकने वाला नहीं था. एक दिन कमरे में जो सोया तो सुबह उठा ही नहीं. उस के चारों ओर नशीली गोलियों और नशीले पाउडरों की रंग- बिरंगी शीशियां फैली पड़ी थीं और वह मुंह से निकले नीले झाग के साथ मौत की गोद में सो रहा था.

उस की ऐसी घिनौनी मौत को देख कर तो जैसे सभी गूंगेबहरे से हो उठे थे. पूरे पड़ोस में उस घर की बरबादी पर हाहाकार मच गया था. कहां तक चीखतेरोते? आंसुओं का समंदर भीतर के पहाड़ जैसे दुख ने सोख लिया था. घर भर में फैले सन्नाटे के बीच वे तीनों बहनें अपराधियों की तरह खुद को सब की नजरों से छिपाए रहती थीं. उचित देखभाल और स्नेह के अभाव में तीनों ही हर क्षण भयभीत रहतीं. अब तो उन्हें अपनी छाया से भी भय लगने लगा था. दिन भर उन्हें गालियां दे कर कोसा जाता और बातबात पर पिटाई की जाती.

जानवर की तरह उन्हें घर के कामों में जुटा दिया गया था. वे उस घर की बेटियां नहीं, जैसे खरीदी हुई गुलाम थीं, जिन्हें आधा पेट भोजन, मोटाझोटा कपड़ा और अपशब्द इनाम में मिलते थे. पढ़ाई छूट गई थी. गौरा तो किसी तरह 10वीं पास कर चुकी थी लेकिन छोटी चित्रा और पूर्वा अधिक नहीं पढ़ पाईं. जब भी सगी मां द्वारा वे दोनों जानवरों की तरह पीटी जातीं, तब भयभीत सी कांपती हुई दोनों बड़ी बहन के गले लग कर घंटों घुटीघुटी आवाज में रोती रहती थीं.

कुछ भीतरी दुख से, कुछ रातदिन रोने से पिता की आंखें कतई बैठ गई थीं. वे पूरी तरह से अंधे हो गए थे. मां को तो पहले ही रतौंधी थी. शाम हुई नहीं कि सुबह होने तक उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था. बाबा का स्नेह उन बहनों को चोरीचोरी मिल जाया करता था लेकिन शीघ्र ही उन की भी मृत्यु हो गई थी.

पिता की नौकरी गई तो घर खर्च का प्रश्न आया. तब बड़ी होने के नाते गौरा अपना सारा भय और अपनी सारी हिचक,  लज्जा भुला कर ट्यूशन करने लगी थी. साथ ही प्राइवेट पढ़ना शुरू कर दिया. बहनों को फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया. तीनों बहनों में हिम्मत आई, आत्मसम्मान जागा.

तीनों मांबाबूजी की मन लगा कर सेवा करतीं और घरबाहर के काम के साथसाथ पढ़ाई चलती रही. वे ही मनहूस बेटियां अब मां और बाबूजी की आंखों की ज्योति बन उठी थीं, सभी की प्रशंसा की पात्र. महल्ले और रिश्तेदारी में उन के उदाहरण दिए जाने लगे. घर में हंसीखुशी की ताजगी लौट आई. इस ताजगी को पैदा करने में और बहनों को ऊंची शिक्षा दिलाने में वे कब अपने तनमन की ताजगी खो बैठीं, यह कहां जान सकी थीं? विवाह की उम्र बहुत पीछे छूट गई थी. छोटेबड़े स्कूलों का सफर करतेकरते इस कालेज की प्रिंसिपल बन गईं. घर में गौरा दीदी और कालेज में प्रिंसिपल डा. गौरा हो गई थीं. छोटी दोनों बहनों की शादियां उन्होंने बड़े मन से कीं. बेटियों की तरह विदा किया.

चित्रा के जब लगातार 5 लड़कियां हुईं, तब उस को ससुराल वालों से इतने ताने मिले, ऐसीऐसी यातनाएं मिलीं कि एक बार फिर उस का मन आहत हो उठा. बहुत समझाया उन लोगों को. दामाद, जो अच्छाखासा पढ़ालिखा, समझदार और अच्छी नौकरी वाला था, उसे भी भलेबुरे का ज्ञान कराया, परंतु सब व्यर्थ रहा.

चित्रा की ससुराल के पड़ोस में ही सुखराम पटवारी की लड़की सत्या की शादी हुई थी. उस ने आ कर बताया था, ‘बेकार इन पत्थरों के ढोकों से सिर फोड़ती हो, दीदी. उन पर क्या असर होने वाला है? हां, जब भी तुम्हारे खत जाते हैं या उन्हें समाज, संसार की बातें समझाती हो, तब और भी जलीकटी सुनाती हैं चित्रा की सास और जेठानी. जिस दामाद को भोलाभाला समझती हो, वह पढ़ालिखा पशु है. मारपीट करता है. हर समय विधवा ननद तानों से चित्रा को छलनी करती रहती है. चित्रा तो सूख कर हड्डियों का ढांचा भर रह गई है. बुखार, खांसी हमेशा बनी रहती है. ऊपर से धोबिया लदान, छकड़ा भर काम.’’

वे कांप उठी थीं सत्या से सारी बातें सुन कर. उस के लिए उन का मन भीगभीग उठा था. बचपन में मां से दुत्कारी जाने पर वे उसे गोदी में छिपा लेती थीं. उन की विवशता भीतर ही भीतर हाहाकार मचाए रहती थी.

एक दिन बुरी खबर आ ही गई कि क्षयरोग के कारण चित्रा चल बसी है. शुरू से ही अपमान से धुनी देह को क्षय के कीटाणु चाट गए अथवा ससुराल के लोग उस की असामयिक मौत के जिम्मेदार रहे? प्रश्नों से घिर उठीं वे हमेशा की तरह.

और इधर आज महीनों बाद मिला यह पूर्वा का पत्र. क्या बदल पाईं वे बहनों का जीवन? सोचा था कि जो कुछ उन्हें नहीं मिला वह सबकुछ बहनों के आंचल में बांध कर उन के सुखीसंपन्न जीवन को देखेगी. कितनी प्रसन्न होगी जीवन की इस उतरती धूप की गहरी छांव में. अपनी सारी महत्त्वाकांक्षाएं और मेहनत से कमाई पाईपाई उन पर न्योछावर कर दी थी. हृदय की ममता से उन्हें सराबोर कर के अपने कर्तव्यों का एकएक चरण पूरा किया परंतु…

पंखे की हवा से जैसे पूर्वा के पत्र का एकएक अक्षर उन के सामने गरम रेत के बगलों की तरह उड़ रहा था या कि जैसे पूर्वा ही सामने बैठ कर हमेशा की तरह आंसुओं में डूबी भाषा बोल रही थी. किसे सुनाएं वे मन की व्यथा? पत्र का एक- एक शब्द जैसे लावा बन कर भीतर तक झुलसाए जा रहा था :

‘दीदी, मैं रह गई थी बंजर धरती सी सूनीसपाट. कितने वर्ष काटे मैं ने ‘बंजर’ शब्द का अपमान सहते हुए और आप भी क्या कम चिंतित और बेचैन रही थीं मेरी मानसिकता देखसुन कर? फिर भी मैं अपनेआप को तब सराहने लगी थी जब आप के बारबार समझाने पर मेरे पति और ससुराल के सदस्य किसी बच्चे को गोद लेने के लिए इस शर्त पर तैयार हो गए थे कि एकदम खोजबीन कर के तुरंत जन्मा बच्चा ही लिया जाएगा और आप ने वह दुरूह कार्य भी संपन्न कराया था.

‘‘फूल सा कोमल सुंदर बच्चा पा कर सभी निहाल हो उठे थे. सास ने नाम दिया, नवजीत. ससुर प्यार से उसे पुकारते, निर्मल. बच्चे की कच्ची दूधिया निश्छल हंसी में हम सभी निहाल हो उठे. आप भी कितनी निश्ंिचत और संतुष्ट हो उठीं, लेकिन दीदी, पूत के पांव पालने में दिखने शुरू हो गए थे. मैं ने आप को कभी कुछ नहीं बताया था. सदैव उस की प्रशंसा ही लिखतीसुनाती रही. आज स्वयं को रोक नहीं पा रही हूं, सुनिए, यह शुरू से ही बेहद हठी और जिद्दी रहा. कहना न मानना, झूठ बोलना और बड़ों के साथ अशिष्ट व्यवहार करना आदि. स्कूल में मंदबुद्धि बालक माना गया.

‘क्या आप समझती हैं कि हमसब चुप रहे? नहीं दीदी, लाड़प्यार से, डराधमका कर, अच्छीअच्छी कहानियां सुना कर और पूरी जिम्मेदारी से उस पर नजर रख कर भी उस के स्वभाव को रत्ती भर नहीं बदल सके. आगे चल कर तो कपटछल से बातें करना, झूठ बोलना, धोखा देना और चोरी करना उस की पहचान हो गई. पेशेवर चोरों की तरह वह शातिर हो गया. स्कूल से भागना, सड़क पर कंचे खेलना, उधार ले कर चीजें खाना, मारनापीटना, अभद्र भाषा बोलना आदि उस की आदत हो गई. सभी परेशान हो गए. शक्लसूरत से कैसा मनोहारी, लेकिन व्यवहार में एकदम राक्षसी प्रवृत्ति वाला.

‘उम्र बढ़ने के साथसाथ उस की आवारागर्दी और उच्छृंखलता भी बढ़ने लगी. दीदी, अब वह घर से जेवर, रुपया और अपने पिता की सोने की चेन वाली घड़ी ले कर भाग गया है. 2 दिन हो चुके हैं. गलत दोस्तों के बीच क्या नहीं सीखा उस ने? जुए से ले कर नशापानी तक. सब बहुत दुखी हैं. कैसे करते पुलिस में खबर? अपनी ही बदनामी है. स्कूल से भी उस का नाम काट दिया गया था. हम क्या रपट लिखाएंगे, किसी स्कूटर की चोरी में उस की पहले से ही तलाश हो रही है.

‘दीदी, यह कैसा पुत्र लिया हम ने? इस से अच्छा तो बांझपन का दुख ही था. यों सांससांस में शर्मनाक टीसें तो नहीं उठतीं. संतानहीन रह कर इस दोहरेतिहरे बोझ तले तो न पिसती हम लोगों की जिंदगी. पढ़ेलिखे, सुरुचिपूर्ण, सुसंस्कृत परिवार के वातावरण में उस बालक के भीतर बहता लहू क्यों स्वच्छ, सुसंस्कृत नहीं हुआ, दीदी? हमारी महकती बगिया में कहां से यह धतूरे का पौधा पनप उठा? लज्जा और अपमान से सभी का सुखचैन समाप्त हो गया है. गौरा दीदी, आप के द्वारा रोपा गया सुनहरा स्वप्न इतना विषकंटक कैसे हो उठा कि जीवन पूर्णरूप से अपाहिज हो उठा है. परंतु इस में आप का भी क्या दोष?’

पत्र का अक्षरअक्षर हथौड़ा बन कर सुबह से उन पर चोट कर रहा था. टूटबिखर तो जाने कब की वे चुकी थीं, परंतु पूर्वा के खत ने तो जैसे उन के समूचे अस्तित्व को क्षतविक्षत कर डाला था. वे सोचने लगीं कि कहां कसर रह गई भला? इन बहनों को सुख देने की चाह में उन्होंने खुद को झोंक दिया. अपने लिए कभी क्षण भर को भी नहीं सोचा.

क्या लिख दें पूर्वा को कि सभी की झोली में खुशियों के फूल नहीं झरा करते पगली. ठीक है कि इस बालक को तुम्हारी सूनी, बंजर कोख की खुशी मान कर लिया था, एक तरह से उधार लिया सुख. एक बार जी तो धड़का था कि न जाने यह कैसी धरती का अंकुर होगा? जाने क्या इतिहास होगा इस का? लेकिन तसल्ली भरे विश्वास ने इन शंकालु प्रश्नों को एकदम हवा दे दी थी कि तुम्हारे यहां का सुरुचिपूर्ण, सौंदर्यबोध और सभ्यशिष्ट वातावरण इस के भीतर नए संस्कार भरने में सहायक होगा. पर हुआ क्या?

लेकिन पूर्वा, इस तरह हताश होने से काम नहीं चलेगा. इस तरह से तो वह और भी बागी, अपराधी बनेगा. अभी तो कच्ची कलम है. धीरज से खाद, पानी दे कर और बारबार कटनीछंटनी कर के क्या माली उसी कमजोर पौधे को जमीन बदलबदल कर अपने परीक्षण में सफल नहीं हो जाता? रख कर तो देखो धैर्य. बुराई काट कर ही उस में नया आदमी पैदा करना है तुम्हें. टूटे को जोड़ना ही पड़ता है. यह सोचते ही उन में एक नई शक्ति सी आ गई और वे पूर्वा को पत्र लिखने बैठ गईं.

Latest Hindi Stories : जीवनधारा – कौनसा हादसा हुआ था संगीता के साथ

Latest Hindi Stories :  हादसे जिंदगी के ढांचे को बदलने की कितनी ताकत रखते हैं, इस का सही अंदाजा उन की खबर पढ़नेसुनने वालों को कभी नहीं हो सकता.

एक सुबह पापा अच्छेखासे आफिस गए और फिर उन का मृत शरीर ही वापस लौटा. सिर्फ 47 साल की उम्र में दिल के दौरे से हुई उन की असामयिक मौत ने हम सब को बुरी तरह से हिला दिया.

‘‘मेरी घरगृहस्थी की नाव अब कैसे पार लगेगी?’’ इस सवाल से उपजी चिंता और डर के प्रभाव में मां दिनरात आंसू बहातीं.

‘‘मैं हूं ना, मां,’’ उन के आंसू पोंछ कर मैं बारबार उन का हौसला बढ़ाती, ‘‘पापा की सारी जिम्मेदारी मैं संभालूंगी. देखना, सब ठीक हो जाएगा.’’

मुकेश मामाजी ने हमें आश्वासन दिया, ‘‘मेरे होते हुए तुम लोगों को भविष्य की ज्यादा चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. संगीता ने बी.काम. कर लिया है. उस की नौकरी लगवाने की जिम्मेदारी मेरी है.’’

मुझ से 2 साल छोटे मेरे भाई राजीव ने मेरा हाथ पकड़ कर वादा किया, ‘‘दीदी, आप खुद को कभी अकेली मत समझना. अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करते ही मैं आप का सब से मजबूत सहारा बन जाऊंगा.’’

राजीव से 3 साल छोटी शिखा के आंखों से आंसू तो ज्यादा नहीं बहे पर वह सब से ज्यादा उदास, भयभीत और असुरक्षित नजर आ रही थी.

मोहित मेरा सहपाठी था. उस के साथ सारी जिंदगी गुजारने के सपने मैं पिछले 3 सालों से देख रही थी. इस कठिन समय में उस ने मेरा बहुत साथ दिया.

‘‘संगीता, तुम सब को ‘बेटा’ बन कर दिखा दो. हम दोनों मिल कर तुम्हारी जिम्मेदारियों का बोझ उठाएंगे. हमारा प्रेम तुम्हारी शक्ति बनेगा,’’ मोहित के ऐसे शब्दों ने इस कठिन समय का सामना करने की ताकत मेरे अंगअंग में भर दी थी.

परिवर्तन जिंदगी का नियम है और समय किसी के लिए नहीं रुकता. जिंदगी की चुनौतियों ने पापा की असामयिक मौत के सदमे से उबरने के लिए हम सभी को मजबूर कर दिया.

मामाजी ने भागदौड़ कर के मेरी नौकरी लगवा दी. मैं ने काम पर जाना शुरू कर दिया तो सब रिश्तेदारों व परिचितों ने बड़ी राहत की सांस ली. क्योंकि हमारी बिगड़ी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने वाला यह सब से महत्त्वपूर्ण कदम था.

‘‘मेरी गुडि़या का एम.बी.ए. करने का सपना अधूरा रह गया. तेरे पापा तुझे कितनी ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे और आज इतनी छोटी सी नौकरी करने जा रही है मेरी बेटी,’’ पहले दिन मुझे घर से विदा करते हुए मां अचानक फूटफूट कर रो पड़ी थीं.

‘‘मां, एम.बी.ए. मैं बाद में भी कर सकती हूं. अभी मुझे राजीव और शिखा के भविष्य को संभालना है. तुम यों रोरो कर मेरा मनोबल कम न करो, प्लीज,’’ उन का माथा चूम कर मैं घर से बाहर आ गई, नहीं तो वह मेरे आंसुओं को देख कर और ज्यादा परेशान होतीं.

मोहित और मैं ने साथसाथ ग्रेजुएशन किया था. उस ने एम.बी.ए. में प्रवेश लिया तो मैं बहुत खुश हुई. अपने प्रेमी की सफलता में मैं अपनी सफलता देख रही थी. मन के किसी कोने में उठी टीस को मैं ने उदास सी मुसकान होंठों पर ला कर बहुत गहरा दफन कर दिया था.

पापा के समय 20 हजार रुपए हर महीने घर में आते थे. मेरी कमाई के 8 हजार में घर खर्च पूरा पड़ ही नहीं सकता था. फ्लैट की किस्त, राजीव व शिखा की फीस, मां की हमेशा बनी रहने वाली खांसी के इलाज का खर्च आर्थिक तंगी को और ज्यादा बढ़ाता.

‘‘अगर बैंक से यों ही हर महीने पैसे निकलते रहे तो कैसे कर पाऊंगी मैं दोनों बेटियों की इज्जत से शादियां? हमें अपने खर्चों में कटौती करनी ही पडे़गी,’’ मां का रातदिन का ऐसा रोना अच्छा तो नहीं लगता पर उन की बात ठीक ही थी.

फल, दूध, कपडे़, सब से पहले खरीदने कम किए गए. मौजमस्ती के नाम पर कोई खर्चा नहीं होता. मां ने काम वाली को हटा दिया. होस्टल में रह रहे राजीव का जेबखर्च कम हो गया.

इन कटौतियों का एक असर यह हुआ कि घर का हर सदस्य अजीब से तनाव का शिकार बना रहने लगा. आपस में कड़वा, तीखा बोलने की घटनाएं बढ़ गईं. कोई बदली परिस्थितियों के खिलाफ शिकायत करता, तो मां घंटों रोतीं. मेरा मन कभीकभी बेहद उदास हो कर निराशा का शिकार बन जाता.

‘‘हिम्मत मत छोड़ो, संगीता. वक्त जरूर बदलेगा और मैं तुम्हारे पास न भी रहूं, पर साथ तो हूं ना. तुम बेकार की टेंशन लेना छोड़ दो,’’ मोहित का यों समझाना कम से कम अस्थायी तौर पर तो मेरे अंदर जीने का नया जोश जरूर भर जाता.

अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में मैं जीजान से जुटी रही और परिवर्तन का नियम एकएक कर मेरी आशाओं को चकनाचूर करता चला गया.

बी.टेक. की डिगरी पाने के बाद राजीव को स्कालरशिप मिली और वह एम.टेक. करने के लिए विदेश चला गया.

‘‘संगीता दीदी, थोड़ा सा इंतजार और कर लो, बस. फिर धनदौलत की कमी नहीं रहेगी और मैं आप की सब जिम्मेदारियां, अपने कंधों पर ले लूंगा. अपना कैरियर बेहतर बनाने का यह मौका मैं चूकना नहीं चाहता हूं.’’

राजीव की खुशी में खुश होते हुए मैं ने उसे अमेरिका जाने की इजाजत दे दी थी.

राजीव के इस फैसले से मां की आंखों में चिंता के भाव और ज्यादा गहरे हो उठे. वह मेरी शादी फौरन करने की इच्छुक थीं. उम्र के 25 साल पूरे कर चुकी बेटी को वह ससुराल भेजना चाहती थीं.

मोहित ने राजीव को पीठपीछे काफी भलाबुरा कहा था, ‘‘उसे यहां अच्छी नौकरी मिल रही थी. वह लगन और मेहनत से काम करता, तो आजकल अच्छी कंपनी ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करती हैं. मुझे उस का स्वार्थीपन फूटी आंख नहीं भाया है.’’

मोहित के तेज गुस्से को शांत करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी थी.

मां कभीकभी कहतीं कि मैं शादी कर लूं, पर यह मुझे स्वीकार नहीं था.

‘‘मां, तुम बीमार रहती हो. शिखा की कालिज की पढ़ाई अभी अधूरी है. यह सबकुछ भाग्य के भरोसे छोड़ कर मैं कैसे शादी कर सकती हूं?’’

मेरी इस दलील ने मां के मुंह पर तो ताला लगाया, पर उन की आंखों से बहने वाले आंसुओं को नहीं रोक पाई.

एम.बी.ए. करने के बाद मोहित को जल्दी ही नौकरी मिल गई थी. उस ने पहली नौकरी से 2 साल का अनुभव प्राप्त किया और इस अनुभव के बल पर उसे दूसरी नौकरी मुंबई में मिली.

अपने मातापिता का वह इकलौता बेटा था. उन्हें मैं पसंद थी, पर वह उस की शादी अब फौरन करने के इच्छुक थे.

‘‘मैं कैसे अभी शादी कर सकती हूं? अभी मेरी जिम्मेदारियां पूरी नहीं हुई हैं, मोहित. मेरे ससुराल जाने पर अकेली मां घर को संभाल नहीं पाएंगी,’’ बडे़  दुखी मन से मैं ने शादी करने से इनकार कर दिया था.

‘‘संगीता, कब होंगी तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी? कब कहोगी तुम शादी के लिए ‘हां’?’’ मेरा फैसला सुन कर मोहित नाराज हो उठा था.

‘‘राजीव के वापस लौटने के बाद हम….’’

‘‘वह वापस नहीं लौटेगा…कोई भी इंजीनियर नहीं लौटता,’’ मोहित ने मेरी बात को काट दिया, ‘‘तुम्हारी मां विदेश में जा कर बसने को तैयार होंगी नहीं. देखो, हम शादी कर लेते हैं. राजीव पर निर्भर रह कर तुम समझदारी नहीं दिखा रही हो. हम मिल कर तुम्हारी मां व छोटी बहन की जिम्मेदारी उठा लेंगे.’’

‘‘शादी के बाद मुझे मां और छोटी बहन को छोड़ कर तुम्हारे साथ मुंबई जाना पड़ेगा और यह कदम मैं फिलहाल नहीं उठा सकती हूं. मेरा भाई मुझे धोखा नहीं देगा. मोहित, तुम थोड़ा सा इंतजार और कर लो, प्लीज.’’

मोहित ने मुझे बहुत समझाया पर मैं ने अपना फैसला नहीं बदला. मां भी उस की तरफ से बोलीं, पर मैं शादी करने को तैयार नहीं हुई.

मोहित अकेला मुंबई गया. मुझे उस वक्त एहसास नहीं हुआ पर इस कदम के साथ ही हमारे प्रेम संबंध के टूटने का बीज पड़ गया था.

वक्त ने यह भी साबित कर दिया कि राजीव के बारे में मोहित की राय सही थी.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने वहीं नौकरी कर ली. वह हम से मिलने भी आया, एक बड़ी रकम भी मां को दे कर गया, पर मेरी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर लेने को वह तैयार नहीं हुआ.

परिस्थितियों ने मुझे कठोर बना दिया था. मेरे आंसू न मोहित ने देखे न राजीव ने. इन का सहारा छिन जाने से मैं खुद को कितनी अकेली और टूटा हुआ महसूस कर रही थी, इस का एहसास मैं ने इन दोनों को जरा भी नहीं होने दिया था.

मां रातदिन शादी के लिए शोर मचातीं, पर मेरे अंदर शादी करने का सारा उत्साह मर गया था. कभी कोई रिश्ता मेरे लिए आ जाता तो मां का शोर मचाना मेरे लिए सिरदर्द बन जाता. फिर रिश्ते आने बंद हो गए और हम मांबेटी एकदूसरे से खिंचीखिंची सी खामोश रह साथसाथ समय गुजारतीं.

मैं 30 साल की हुई तब शिखा ने कंप्यूटर कोर्स कर के अच्छी नौकरी पा ली. शादी की सही उम्र तो उसी की थी. उस के लिए एक अच्छा रिश्ता आया तो मैं ने फौरन ‘हां’ कर दी.

राजीव ने उस की शादी का सारा खर्च उठाया. वह खुद भी शामिल हुआ. मां ने शिखा को विदा कर के बड़ी राहत महसूस की.

राजीव ने जाने से पहले मुझे बता दिया कि वह अपनी एक सहयोगी लड़की से विवाह करना चाहता है. शादी की तारीख 2 महीने बाद की थी.

उस ने हम दोनों की टिकटें बुक करवा दीं. पर मैं उस की शादी में शामिल होने अमेरिका नहीं गई.

मां अकेली अमेरिका गईं और कुछ सप्ताह बिता कर वापस लौटीं. वह ज्यादा खुश नहीं थीं क्योंकि बहू का व्यवहार उन के प्रति अच्छा नहीं रहा था.

‘‘मां, तुम और मैं एकदूसरे का ध्यान रख कर मजे से जिंदगी गुजारेंगे. तुम बेटे की खुदगर्जी की रातदिन चर्चा कर के अपना और मेरा दिमाग खराब करना बंद कर दो अब,’’  मेरे समझाने पर एक रात मां  मुझ से लिपट कर खूब रोईं पर कमाल की बात यह है कि मेरी आंखों से एक बूंद आंसू नहीं टपका.

अब रुपएपैसे की मेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रही थी. मैं ने मां व अपनी सुविधा के लिए किस्तों पर कार भी  ले ली. हम दोनों अच्छा खातेपहनते. मेरी शादी न होने के कारण मां अपना दुखदर्द लोगों को यदाकदा अब भी सुना देतीं. मैं सब  को हंसतीमुसकराती नजर आती, पर सिर्फ मैं ही जानती थी कि मेरी जिंदगी कितनी नीरस और उबाऊ हो कर मशीनी अंदाज में आगे खिसक रही थी.

‘संगीता, तू किसी विधुर से…किसी तलाकशुदा आदमी से ही शादी कर ले न. मैं नहीं रहूंगी, तब तेरी जिंदगी अकेले कैसे कटेगी?’ मां ने एक रात आंखों में आंसू भर कर मुझ से पुराना सवाल फिर पूछा था.

‘जिंदगी हर हाल में कट ही जाती है, मां. मैं जब खुश और संतुष्ट हूं तो तुम क्यों मेरी चिंता कर के दुखी होती हो? अब स्वीकार कर लो कि तुम्हारी बड़ी बेटी कुंआरी ही मरेगी,’ मैं ने मुसकराते हुए उन का दुखदर्द हलका करना चाहा था.

‘तेरे पिता की असामयिक मौत ने मुझे विधवा बनाया और तुझे उन की जिम्मेदारी निभाने की यह सजा मिली कि तू बिना शादी किए ही विधवा सी जिंदगी जीने को मजबूर है,’ मां फिर खूब रोईं और मेरी आंखें उस रात भी सूनी रही थीं.

अपने भाई, छोटी बहन व पुराने प्रेमी की जिंदगियों में क्या घट रहा है, यह सब जानने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी. अतीत की बहुत कुछ गलीसड़ी यादें मेरे अंदर दबी जरूर पड़ी थीं, पर उन के कारण मैं कभी दुखी नहीं होती थी.

मेरी समस्या यह थी कि अपना वर्तमान नीरस व अर्थहीन लगता और भविष्य को ले कर मेरे मन में किसी तरह की आशा या उत्साह कतई नहीं बचा था. मैं सचमुच एक मशीन बन कर रह गई थी.

जिंदगी में समय के साथ बदलाव आना तो अनिवार्य ही है. मेरी जिंदगी की गुणवत्ता भी कपूर साहब के कारण बदली.

कपूर साहब आफिस में मेरे सीनियर थे. अपने काम में वह बेहद कुशल व स्वभाव के अच्छे थे. एक शाम बरसात के कारण मुझ से अपनी चार्टर्ड बस छूट गई तो उन्होंने अपनी कार से मुझे घर तक की ‘लिफ्ट’ दी थी.  वह चाय पीने के लिए मेरे आग्रह पर घर के अंदर भी आए. मां से उन्होंने ढेर सारी बातें कीं. हम मांबेटी दोनों के दिलों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने के बाद ही उन्होंने उस शाम विदा ली थी.

अगले सप्ताह ऐसा इत्तफाक हुआ कि हम दोनों साथसाथ आफिस की इमारत से बाहर आए. जरा सी नानुकुर के बाद मैं उन के साथ कार में घर लौटने को राजी हो गई.

‘‘कौफी पी कर घर चलेंगे,’’ मुझ से पूछे बिना उन्होंने एक लोकप्रिय रेस्तरां के सामने कार रोक दी थी.

हम ने कौफी के साथसाथ खूब खायापिया भी. एक लंबे समय के बाद मैं खूब खुल कर हंसीबोली भी.

उस रात मैं इस एहसास के साथ सोई कि आज का दिन बहुत अच्छा बीता. मन बहुत खुश था और यह चाह बलवती  थी कि ऐसे अच्छे दिन मेरी जिंदगी में आते रहने चाहिए.

मेरी यह इच्छा पूरी भी हुई. कपूर साहब और मेरी उम्र में काफी अंतर था. इस के बावजूद मेरे लिए वह अच्छे साबित हो रहे थे. सप्ताह में 1-2 बार हम जरूर छोटीमोटी खरीदारी के लिए या खानेपीने को घूमने जाते. वह मेरे घर पर भी आ जाते. मां की उन से अच्छी पटती थी. मैं खुद को उन की कंपनी में काफी सुरक्षित व प्रसन्न पाती. मेरे भीतर जीने का उत्साह फिर पैदा करने में वह पूरी तरह से सफल रहे थे.

फिर एक शाम सबकुछ गड़बड़ हो गया. वह पहली बार मुझे अपने फ्लैट में उस शाम ले कर गए जब उन की पत्नी दोनों बच्चों समेत मायके गई हुई थीं.

उन्हें ताला खोलते देख मैं हैरान तो हुई थी, पर खतरे वाली कोई बात नहीं हुई. उन की नीयत खराब है, इस का एहसास मुझे कभी नहीं हुआ था.

फ्लैट के अंदर उन्होंने मेरे साथ अचानक जोरजबरदस्ती करनी शुरू की, तो मुझे जोर का सदमा लगा.

मैं ने शोर मचाने की धमकी दी, तो वह गुस्से से बिफर कर गुर्राए, ‘‘इतने दिनोें से मेरे पैसों पर ऐश कर रही हो, तो अब सतीसावित्री बनने का नाटक क्यों करती हो? कोई मैं पागल बेवकूफ हूं जो तुम पर यों ही खर्चा कर रहा था.’’

उन से निबटना मेरे लिए कठिन नहीं था, पर अकेली घर पहुंचने तक मैं आटोरिकशा में लगातार आंसू बहाती रही.

घर पहुंच कर भी मेरा आंसू बहाना जारी रहा. मां ने बारबार मुझ से रोने का कारण पूछा, पर मैं उन्हें क्या बताती.

रात को मुझे नींद नहीं आई. रहरह कर कपूर साहब का डायलाग कानों में गूंजता, ‘…अब सतीसावित्री बनने का नाटक क्यों करती हो? कोई मैं पागल, बेवकूफ हूं जो तुम पर यों ही खर्चा कर रहा था.’

यह सच है कि उन के साथ मेरा वक्त बड़ा अच्छा गुजरा था. अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं बहुत खुश थी, पर अब अजीब सी शर्मिंदगी व अपमान के भाव ने मन में पैदा हो कर सारा स्वाद किरकिरा कर दिया था.

रात भर मैं तकिया अपने आंसुओं से भिगोती रही. अगले दिन रविवार होने के कारण मैं देर तक सोई.

जब आंखें खुलीं तो उम्मीद के खिलाफ मैं ने खुद को सहज व हलका पाया. मन ने इस स्थिति का विश्लेषण किया तो जल्दी ही कारण भी समझ में आ गया.

नींद आने से पहले मेरे मन ने निर्णय लिया था, ‘मैं अब खुश रह कर जीना चाहती हूं और जिऊंगी भी. यह नेक काम मैं अब अपने बलबूते पर करूंगी. किसी कपूर साहब, राजीव या मोहित पर निर्भर नहीं रहना है मुझे.’

‘परिस्थितियों के आगे घुटने टेक कर…अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर मेरी जीवनधारा अवरुद्ध हो गई थी, पर अब ऐसी स्थिति फिर नहीं बनेगी.’

‘मेरी जिंदगी मुझे जीने के लिए मिली है. दूसरों की जिंदगी सजानेसंवारने के चक्कर में अपनी जिंदगी को जीना भूल  जाना मेरी भूल थी. कपूर साहब मेरी जिस नासमझी के कारण गलतफहमी का शिकार हुए हैं, उसे मैं कभी नहीं दोहराऊंगी. जिंदगी का गहराई से आनंद लेने से मुझे अब न अतीत की यादें रोक पाएंगी, न भविष्य की चिंताएं.’

अपने अंतर्मन में इन्हीं विचारों को गहराई से प्रवेश दिला कर मैं नींद के आगोश में पहुंची थी.

अपनी भावदशा में आए सुखद बदलाव का कारण मैं इन्हीं सकारात्मक विचारों को मान रही थी.

कुछ दिन बाद मेरे एक दूसरे सहयोगी नीरज ने मुझ से किसी बात पर शर्त लगाने की कोशिश की. मैं जानबूझ कर वह शर्त हारी और उसे बढि़या होटल में डिनर करवाया.

इस के 2 दिन बाद मैं चोपड़ा और उस की पत्नी के साथ फिल्म देखने गई. अपने इन दोनों सहयोगियों के टिकट मैं ने ही खरीदे थे.

पड़ोस में रहने वाले माथुर साहब मुझे मार्किट में अचानक मिले, तो उन्हें साथसाथ कुल्फी खाने की दावत मैं ने ही दी और जिद कर के पैसे भी मैं ने ही दिए.

मैं ने अपनी रुकी हुई जीवनधारा को फिर से गतिमान करने के लिए जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए थे.

कपूर साहब की तरह मैं किसी दूसरे पुरुष को गलतफहमी का शिकार नहीं बनने देना चाहती थी.

इस में कोई शक नहीं कि मेरी जिंदगी में हंसीखुशी की बहार लौट आई थी. अपनों से मिले जख्मों को मैं ने भुला दिया था. उदासी और निराशा का कवच टूट चुका था.

हंसतेमुसकराते और यात्रा का आनंद लेते हुए मैं जिंदगी की राह पर आगे बढ़ चली थी. मेरा जिंदगी भर साथ निभाने को कभी कोई हमराही मिल गया, तो ठीक, नहीं तो उस के इंतजार में रुक कर अपने अंदर शिकायत या कड़वाहट पैदा करने की फुर्सत मुझे बिलकुल नहीं थी.

Pregnancy में कैसी हो डाइट, जानें जरूर

Pregnancy : गर्भ धारण करना किसी भी महिला के जीवन की सब से बड़ी खुशी होती है. मगर इस दौरान उसे कई सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं. आज नारी पर घरबाहर दोनों जिम्मेदारियां हैं. वह घर, बच्चों, औफिस सभी को हैंडल करती है.

आधुनिक युग की नारी होने के नाते कुछ महिलाएं धूम्रपान और शराब आदि का भी सेवन करने लगी हैं. यही वजह है कि गर्भावस्था में उन्हें अपनी खास देखभाल की जरूरत होती है. थोड़ी सी सावधानी बरतने पर मां और शिशु दोनों स्वस्थ और सुरक्षित रह सकते हैं.

पौष्टिक आहार लेना जरूरी

आप मां बनने वाली हैं, तो यह जरूरी है कि आप पौष्टिक आहार लें. इस से आप को अपने और अपने गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल जाएंगे. इन दिनों आप को अधिक विटामिन और खनिज, विशेषरूप से फौलिक ऐसिड और आयरन की जरूरत होती है.

गर्भावस्था के दौरान कैलोरी की भी कुछ अधिक जरूरत होती है. सही आहार का मतलब है कि आप क्या खा रही हैं, न कि यह कि कितना खा रही हैं. जंक फूड का सेवन सीमित मात्रा में करें, क्योंकि इस में केवल कैलोरी ज्यादा होती है बाकी पोषक तत्त्व कम या कह लें न के बराबर होते हैं.

मलाई रहित दूध, दही, छाछ, पनीर आदि का शामिल होना बहुत जरूरी है, क्योंकि इन खाद्यपदार्थों में कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिन बी-12 की ज्यादा मात्रा होती है. अगर आप को लैक्टोज पसंद नहीं है या फिर दूध और दूध से बने उत्पाद नहीं पचते, तो अपने खाने के बारे में डाक्टर से बात करें.

पेयपदार्थ

पानी और ताजे फलों के रस का खूब सेवन करें. उबला या फिल्टर किया पानी ही पीएं. घर से बाहर जाते समय पानी साथ ले जाएं या फिर अच्छे ब्रैंड का बोतलबंद पानी ही पीएं. ज्यादातर रोग जलजनित विषाणुओं की वजह से ही होते हैं. डब्बाबंद जूस का सेवन कम करें, क्योंकि इन में बहुत अधिक चीनी होती है.

वसा और तेल

घी, मक्खन, नारियल के दूध और तेल में संतृप्त वसा की ज्यादा मात्रा होती है, जो ज्यादा गुणकारी नहीं होती. वनस्पति घी में वसा अधिक होती है. अत: वह भी संतृप्त वसा की तरह शरीर के लिए अच्छी नहीं है. वनस्पति तेल वसा का बेहतर स्रोत है, क्योंकि इस में असंतृप्त वसा अधिक होती है.

समुद्री नमक या आयोडीन युक्त नमक के साथसाथ डेयरी उत्पाद आयोडीन के अच्छे स्रोत हैं. अपने गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन शामिल करें.

गर्भावस्था से पहले आप का वजन कितना था और अब आप के गर्भ में कितने शिशु पल रहे हैं, उस हिसाब से अब आप को कितनी कैलोरी की जरूरत है, यह डाक्टर बता सकती हैं.

गर्भावस्था में क्या न खाएं

गर्भावस्था के दौरान कुछ खाद्यपदार्थों का सेवन न करें. ये शिशु के लिए असुरक्षित साबित हो सकते हैं. जैसे अपाश्चयुरिकृत दूध (भैंस या गाय का) और उस से बने डेयरी उत्पादों का सेवन गर्भावस्था में सुरक्षित नहीं है. इन में ऐसे विषाणुओं के होने की संभावना रहती है, जिन से पेट के संक्रमण का खतरा रहता है. कहीं बाहर खाना खाते समय भी पनीर से बने व्यंजनों से बचें.

सभी किस्म के मांस को तब तक पकाएं जब तक कि उस से सभी गुलाबी निशान न हट जाएं. अंडे को भी अच्छी तरह पकाएं. विटामिन और खनिज की अधिक खुराक लेना भी शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है. कोई भी

दवा बिना डाक्टर की सलाह के न लें.

आज बहुत सी महिलाएं कामकाजी हैं, जो प्रैगनैंसी के दौरान भी औफिस जाती हैं और उन की डिलिवरी भी सामान्य होती है. लेकिन आप की प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशंस हैं, तो सफर में अपना खास खयाल रखें. सफर पर जाने से पहले डाक्टर से जरूर मिल लें.

अधिकतर मामलों में प्रैगनैंसी के दौरान ट्रैवलिंग सेफ होती है, फिर भले ही आप ट्रैवलिंग कार से कर रही हो, बस से या फिर ट्रेन से. लेकिन कुछ प्रिकौशंस को ध्यान में रखें तो आप और आप के बच्चे को किसी भी अचानक होने वाली घटना से बचाया जा सकता है.

प्रैगनैंसी में शुरू के 3 महीने और आखिर के 3 महीने सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान सफर करने से बचें. अगर किसी महिला को डाक्टर ने प्रैगनैंसी के हाई रिस्क पर होने की वजह से पूरी तरह बैड रैस्ट की सलाह दी है तो ऐसी महिलाओं के लिए यात्रा करना हानिकारक हो सकता है.

इन बातों को रखें याद

सब से पहले तो किसी भी हालात में शरीर में पानी की कमी न होने दें. अगर आप विमान से सफर कर रही हैं तो नमी का स्तर कम होने के कारण डीहाईडे्रशन की संभावना रहती है. पैर फैलाने के लिए पर्याप्त जगह वाली सीट लें. रैस्टरूम सीट के करीब हो.

अगर आप कार द्वारा लंबी दूरी का सफर तय कर रही हैं, तो सीट बैल्ट पेट के नीचे बांधें. कार की अगली सीट पर बैठें और स्वच्छ हवा के लिए खिड़की खुली रखें. ब्लडप्रैशर सामान्य रखने, ऐंठन और सूजन से बचने के लिए पैरों को फैलाती और मूवमैंट में रखें.

गर्भावस्था के दूसरे फेज यानी 3 से 6 महीने के बीच का समय सुरक्षित होता है. इन महीनों के दौरान मौर्निंग सिकनैस, अधिक थकान, सुस्ती जैसी शिकायतें कम ही होती हैं.

ऐसी जगह जाने से बचें जहां किसी संक्रमित बीमारी का प्रकोप फैला हो.

गर्भावस्था के 14 से 28 सप्ताहों के बीच ही यात्रा करें.

सफर के दौरान डाक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए दवा साथ रखें. डाक्टर के पेपर्स और उन का फोन नंबर हमेशा साथ रखें ताकि आपातकाल में उस का उपयोग कर पाएं.

सफर में ज्यादा भागदौड़ न करें, क्योंकि आप जितनी अशांत रहेंगी, आप के बीमार होने की आशंका उतनी ही अधिक होगी.

नशीले पदार्थों से दूर रहें

गर्भावस्था में महिलाएं नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहें. साथ ही उन दवाओं से भी परहेज करें, जिन में ड्रग्स की मात्रा अधिक हो. यदि इस अवस्था में महिला शराब, सिगरेट, तंबाकू, पान, बीड़ी या गुटका का सेवन करती है तो इस का गर्भ में पल रहे शिशु पर प्रतिकूल असर पड़ता है. उस में शारीरिक दोष, सीखने की अक्षमता और भावनात्मक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

गर्भावस्था के शुरू के 10 हफ्तों के बाद शिशु के शरीर का विकास तेजी से होने लगता है और इस में नशीले पदार्थों के सेवन का असर इतना खतरनाक पड़ता है कि उस के नर्वस सिस्टम के साथ आंखें भी खराब हो सकती हैं. इस के अलावा बच्चा ऐब्नौर्मल पैदा हो सकता है, समयपूर्व प्रसव भी हो सकता है, जिस से शिशु पर जान का जोखिम बना रहता है.

कैफीन की मात्रा भी कम करें. प्रतिदिन 200 मिलीग्राम से अधिक कैफीन लेने से गर्भपात और कम वजन वाले शिशु के जन्म का जोखिम बढ़ जाता है. इसलिए प्रतिदिन 2 कप इंस्टैंट कौफी या 2 कप चाय से अधिक का सेवन न करें.

अगर आप मांस नहीं खाती हैं, तो अनाज, साबूत व पूर्ण अनाज, दालें और ड्राईफ्रूट्स आप के लिए प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. शाकाहारियों को प्रोटीन के लिए प्रतिदिन 45 ग्राम ड्राईफू्रट्स और 2/3 कप फलियों की आवश्यकता होती है. 1 अंडा, 14 ग्राम ड्राईफ्रूट्स या 2 कप फलियां लगभग 28 ग्राम मांस के बराबर मानी जाती हैं. अगर मांसाहारी हैं तो मछली, चिकन आदि प्रोटीन के बेहतर स्रोत हैं.

Smoothies Recipe : गर्मियों में ठंडक देंगी ये 4 स्मूदी, जानें आसान रेसिपी

Smoothies Recipe :  गर्मियों में केवल ठंडी चीजें ही पसन्द आतीं हैं. इसीलिए इन दिनों कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, शेक और ज्युसेज की मांग बहुत बढ़ जाती है. कोल्ड ड्रिंक और बाजार में उपलब्ध अन्य ड्रिंक को सुरक्षित रखने के लिए प्रिजर्वेटिव का प्रयोग तो किया ही जाता है साथ ही इनमें शक्कर की बहुत अधिक मात्रा होती है जो सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक होती है. इसलिए जहां तक सम्भव हो हमें घर पर तैयार किये गए ड्रिंक्स का ही प्रयोग करना चाहिए.

आज हम आपको फलों से बनने वाली कुछ स्मूदी बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप आसानी से घर पर झटपट बना सकते हैं. शेक और जूस जहां तरल फौर्म में होते हैं वहीं स्मूदी गाढ़ी होती है, इसके सेवन से पेट भर जाता है इसलिए यह वजन को नियंत्रित करने में भी कारगर है.  तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

1. स्ट्राबेरी स्मूदी

कितने लोगों के लिए         2

बनने में लगने वाला समय    15 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

फ्रोजन स्ट्राबेरी                 1 कप

पका केला                        1

लो फैट दही                       1/2 कप

बादाम पाउडर                    1 टीस्पून

चिया सीड्स                     1/2 टीस्पून

काला नमक                     1/4 टीस्पून

बारीक कटे बादाम             4

विधि

स्ट्राबेरी और केला को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. अब समस्त सामग्री को एक साथ मिक्सी में डालकर अच्छी तरह ब्लेंड कर लें. अब इसे एक सर्विंग ग्लास में डालकर ऊपर से बारीक कटे बादाम से सजाकर सर्व करें.

2. चोको बनाना स्मूदी

कितने लोगों के लिए             2

बनने में लगने वाला समय      20 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री

पके केले                              2

ताजा दही                             1कटोरी

कोको पाउडर                       1 टीस्पून

शकर                                   1 टेबलस्पून

कुटी बर्फ                              1 कप

चॉकलेटी वर्मीसेली                 1 टीस्पून

विधि

केलों को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. अब कोको पाउडर, कुटी बर्फ, और शकर को एक साथ मिक्सी में पीस लें. सर्विंग ग्लास में डालकर चॉकलेट वर्मीसेली से सजाकर सर्व करें.

3. ओट्स एपल स्मूदी

कितने लोगों के लिए           2

बनने में लगने वाला समय     15 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

ताजा सेब                           1

प्लेन ओट्स                        1 टेबलस्पून

लो फैट ठंडा दूध                   1 कप

कुटी बर्फ                             1/2 कप

शहद                                 1 टीस्पून

काली मिर्च पाउडर               1 चुटकी

भीगे बादाम                         6

बारीक कटे पिस्ता                4

विधि

बादाम का छिल्का उतार दें. सेब को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. अब पिस्ता को छोड़कर समस्त सामग्री को मिक्सी में डालकर अच्छी तरह ब्लेंड कर लें. एक लंबे ग्लास में तैयार स्मूदी को डालें और कटे पिस्ता से सजाकर सर्व करें.

4. अंगूर स्मूदी

कितने लोगों के लिए        2

बनने में लगने वाला समय    10 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

ताजे ठंडे अंगूर                250 ग्राम

ताजा दही                       1 कप

कुटी बर्फ                        1 कप

नीबू का रस                    1/4 टीस्पून

पोदीना के पत्ते                10-12

बारीक कटे अंगूर           4

चाट मसाला                   1/4 टीस्पून

विधि

पोदीना के पत्तों को बारीक काटकर थोड़े से पत्तों को गार्निशिंग के लिए अलग कर दें. अब कटे अंगूर को छोड़कर सभी सामग्री को एक साथ मिक्सी के जार में डालें और अच्छी तरह पीस लें. ग्लास में डालकर ऊपर से कटे अंगूर और पुदीने के पत्तों से गार्निश करके सर्व करें.

Pratibha Agnihotri

Makeup Guide : जानें कब बदलें मेकअप प्रोडक्ट्स

Makeup Guide :  चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने वाले मेकअप प्रोडक्ट्स खूबसूरती को बिगाड़ भी सकते हैं, अगर आप ने वक्त रहते उन्हें बदला नहीं, क्योंकि जैसे अन्य चीजों की ऐक्सपाइरी डेट होती है ठीक उसी तरह कौस्मैटिक प्रौडक्ट्स की भी समय सीमा तय होती है. उस के बाद ब्यूटी कौस्मैटिक्स त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं. नतीजतन स्किन डैमेज होने के साथसाथ ऐलर्जी आदि होने का भी डर रहता है.

किस ब्यूटी प्रोडक्ट की कितनी आयु होती है, यह जानने के लिए हम ने बात की त्वचा विशेषज्ञा गीतांजलि शेट्टी (एमडी, एफसीपीएस, डीडीवी) से:

मसकारा: आई मेकअप को कंप्लीट करने वाला मसकारा 3 महीने से ज्यादा नहीं चलता, इसलिए भलाई इसीमें है कि 3 महीने के बाद इस का इस्तेमाल न करें वरना आंखों में जलन, खुजली, आई इन्फैक्शन आदि हो सकता है.

फाउंडेशन: परफैक्ट बेस मेकअप के लिए अपनी स्किन टोन से मैच करता फाउंडेशन खरीदने से काम नहीं चलेगा. आप को इस की ऐक्सपाइरी डेट भी देखनी होगी. अगर आप कभीकभार फाउंडेशन लगाती हैं, तो जिस माह आप फाउंडेशन खरीद रही हैं, वह उसी माह में बना हो या उस से 1 माह पहले, क्योंकि फाउंडेशन की उम्र साल भर होती है.

आईलाइनर: लिक्विड और जैल आईलाइनर की आयु 6 महीने होती है, जबकि पैंसिल आईलाइनर 8 महीने चलता है. 6 महीने से पहले अगर लिक्विड आईलाइनर सूखने लगे, तो उसे बदल लें. कौस्मैटिक में सूखापन इस बात का सुबूत है कि मेकअप प्रोडक्ट खराब हो चुका है.

कंसीलर: कंसीलर का इस्तेमाल न सिर्फ बहुत कम महिलाएं करती हैं, बल्कि इस का इस्तेमाल भी कभीकभार ही किया जाता है. इसलिए इसे खरीदते समय इस की ऐक्सपाइरी डेट अच्छी तरह जांच लें ताकि आप आने वाले डेढ़ साल तक इस का इस्तेमाल कर सकें.

ब्लशर: कहीं ब्लशर की डेट ऐक्सपायर न हो जाए, यह सोच कर अगर आप भी रोजाना ब्लशर इस्तेमाल करती हैं, तो अब निश्चिंत हो जाएं, क्योंकि आप का ब्लशर 1 साल नहीं, बल्कि पूरे 2 साल चल सकता है.

लिपस्टिक: लिपस्टिक की आयु सिर्फ साल भर होती है. फिर भले वह आप को आप के किसी खास ने गिफ्ट की हो या आप की अपनी पसंद की हो. 1 साल के बाद लिपस्टिक का इस्तेमाल करने से होंठ फटने लगते हैं.

आईशैडो: अगर आप क्रीम बेस्ड आईशैडो इस्तेमाल करती हैं, तो इसे आप साल भर लगा सकती हैं और अगर पाउडर आईशैडो लगाती हैं, तो इसे पूरे 2 साल इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि आप एक बार में 1 से अधिक आईशैडो लगाती हैं, तो दूसरे के लिए नया ब्रश इस्तेमाल करें ताकि आप बैक्टीरियल इन्फैक्शन से बच सकें.

हेयर प्रोडक्ट्स: शैंपू, कंडीशनर और अन्य हेयर स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स को अगर ढक्कन लगा कर सही तरीके से रखा जाए तो ये साल भर आराम से चलते हैं.

लिप ग्लौस: लिप मेकअप को फाइनल टच देने वाले लिप ग्लौस को आप 6 महीने तक इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन तब जब यह बोतल में हो. अगर आप चाहती हैं कि आप का लिप ग्लौस साल भर चले, तो ट्यूब वाला लिप ग्लौस खरीदें.

नेलपौलिश: कोई भी नेलपौलिश हालांकि साल भर चलती है, लेकिन कई बार ज्यादा हवा के संपर्क में आने से वह जल्दी सूख जाती है. ऐसे में नेलपौलिश लगाते वक्त उस की बोतल को ढक लें.

मेकअप प्रोडक्ट्स के सेफ्टी रूल्स

– अगर आप मेकअप प्रोडक्ट्स की उम्र बढ़ाना चाहती हैं, तो उन्हें हमेशा सूखी और ठंडी जगह रखें.

– किसी भी मेकअप प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो कर पोंछ लें.

– मेकअप प्रोडक्ट अप्लाई करने के लिए कौटन बौल, स्पोंज और ब्रश का इस्तेमाल करें. भूल से भी उंगली का इस्तेमाल न करें.

– ब्यूटी कौस्मैटिक को धूप, हवा, पानी और एसी के सीधे संपर्क में न आने दें.

– दूसरों के मेकअप प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने से बचें और न ही अपने किसी के साथ शेयर करें.

– किसी भी मेकअप प्रोडक्ट के ब्रश को 2 बार से अधिक बार बोतल में न डुबोएं.

– मेकअप प्रोडक्ट खरीदने से पहले उसे सूंघ जरूर लें. अगर खुशबू आ रही हो, तभी खरीदें.

– मेकअप प्रोडक्ट के बौक्स, पैकेट आदि को इस्तेमाल से कुछ मिनट पहले खोलें, खरीदने के तुरंत बाद खोलने की गलती न करें.

एनिमल स्टार Tripti Dimri की बढ़ी 25 गुना फीस, फिल्म स्पिरिट के लिए ले रही है 10 करोड़…

Tripti Dimri : तृप्ति डिमरी ने 2017 में श्रीदेवी अभिनीत की फिल्म मौम में छोटा सा रोल किया था. इसके बाद तृप्ति डिमरी का अभिनय सफर शुरू हुआ जो काफी दिलचस्प रहा है. तृप्ति उन एक्ट्रेस में से है जिनके लिए फिल्मों में अभिनय करना महत्वपूर्ण है फिर चाहे वह रोल छोटा या बड़ा रोल हो, प्रसिद्ध मेकर की फिल्म हो या नए मेकर की, तृप्ति डिमरी ने अपने अभिनय करियर में हर तरह का रोल किया, फिल्मों में एक्सपोज और इंटिमेट सीन करने को लेकर भी तृप्ति हमेशा ट्रोल हुई . लेकिन उन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि न सिर्फ उनको अच्छी और बड़ी फिल्में औफर हुई, बल्कि फिल्मों में मिलने वाली फीस में भी लगातार बढ़ोतरी हुई.

तृप्ति इम्तियाज अली की फिल्म लैला मजनू से लाइमलाइट में आई लेकिन यह फिल्म फ्लौप रही. इसके बाद तृप्ति की फिल्म बुलबुल आई जिसमें लोगों ने तृप्ति का काम बहुत पसंद किया. लेकिन रणबीर कपूर अभिनीत एनिमल से तृप्ति रातोरात स्टार बन गई . इस फिल्म के लिए उनको 30 मिनट के रोल के लिए 40 लाख रुपए की फीस दी गई. लेकिन एनिमल से लेकर अब तक तृप्ति की फिल्म की फीस 10 गुना ज्यादा बढ़ गई है.

फिल्म बैड न्यूज के लिए तृप्ति को 80 लाख की फीस मिली, इसके बाद विक्की विद्या का वह वाला वीडियो में सूत्रों के अनुसार तृप्ति को 6 करोड़ की फीस मिली. लेकिन अब तृप्ति के सामने एक बड़ा औफर आ गया है जिसके बाद न सिर्फ उनकी फीस डबल हो गई है बल्कि इस फिल्म से उनको एनिमल जितनी प्रसिद्धी मिलने का भी चांस है .

खबरों के अनुसार संदीप रेड्डी वांगा के डायरेक्शन में प्रभास अभिनित फिल्म स्पिरिट में दीपिका पादुकोण काम करने वाली थी . लेकिन किन्हीं कारणों से दीपिका पादुकोण यह फिल्म छोड़ दी है. जिसके बाद इस फिल्म स्पिरिट के लिए दीपिका की जगह तृप्ति को ले लिया गया है और खबरों के अनुसार उनको इस फिल्म के लिए 10 करोड़ फीस के साथ साइन किया गया है. अर्थात तृप्ति डिमरी ने फिल्मों को लेकर न सिर्फ तरक्की की है. बल्कि उनके काम को देखते हुए पारिश्रमिक के मामले में भी तृप्ति लगातार तरक्की कर रही है.

Instagram Models: ये हैं इंस्टाग्राम के नए फैशन आइकन

Instagram Models: इंस्टाग्राम आज सिर्फ एक सोशल मीडिया ऐप नहीं, बल्कि एक पूरा करियर प्लेटफार्म बन चुका है. यहां लाखों लोग अपनी फोटोज, स्टाइल, और पर्सनैलिटी के जरिए फौलोअर्स का दिल जीत रहे हैं. इन में से कई मौडल्स ऐसे हैं जो सिर्फ इंस्टाग्राम के जरिए फेमस हुए और अब फैशन इंडस्ट्री में भी अपनी पहचान बना चुके हैं.

मन्नत संधू

मन्नत संधू एक इंस्टाग्राम मौडल और फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. वह अपने फौलोअर्स के साथ फैशन टिप्स शेयर करती रहती है. इंस्टाग्राम पर इस के 2 लाख से ज्यादा फौलोअर्स हैं.

जूही गोडाम्बे

जूही गोडाम्बे एक फैशनिस्टा होने के साथसाथ अरबेला ब्रैंड की फाउंडर भी है. यह एक हाई स्ट्रीट वुमन ब्रैंड है. जूही ने कौस्मोपौलिटन लाइफस्टाइल इन्फ्लुएंसर औफ द ईयर और टैसल फैशन इन्फ्लुएंसर औफ द ईयर जैसे कई अवार्ड जीते हैं. सोशल मीडिया पर इस के 5.4 लाख फौलोअर्स हैं.

नितिभा कौल

गूगल इंडिया की एक्स एम्पलौई नितिभा रिऐलिटी शो बिग बौस सीजन 10 में भी नजर आ चुकी है. बिग बौस के बाद से उसे किसी टीवी शो में नहीं देखा गया है. पर सवाल यह कि इंस्टा मौडल बन क्या नितिभा वो ग्लैमर अचीव कर पाई है जिस के लिए उस ने गूगल की हाई प्रोफाइल जौब छोड़ी थी.

नगमा मिराजकर

नगमा मिराजकर एक मौडल, फैशन ब्लौगर और यूट्यूबर स्टार है. वह कोरोनाकाल में टिकटौक वीडियो बना कर फेमस हुई थी और आज एक धुंधला चेहरा बन कर रह गई है.

शिल्पा चौधरी

शिल्पा चौधरी इंडियन मौडल है. वह अभी इस फील्ड में नई है लेकिन जिस रूढ़िवादी बैकग्राउंड से वह आती है उसे देखते हुए वह अच्छी तरक्की कर रही है. अब तक वह कई ब्रैंड्स के लिए मौडलिंग कर चुकी है.

Relationship : शादी से पहले की मेरी गर्लफ्रेंड अब मुझे परेशान कर रही है, मैं क्या करूं ?

Relationship :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं एक विवाहित पुरुष हूं. विवाह को 3 वर्ष हो गए हैं और मैं अपने वैवाहिक जीवन से पूरी तरह से संतुष्ट हूं लेकिन एक समस्या है जिस का समाधान मैं आप से चाहता हूं. दरअसल, विवाह से पूर्व मैं एक लड़की से प्यार करता था और अब वह मुझे परेशान कर रही है.  मैं ने उस को समझाया कि अब मैं विवाहित हूं और अपनी जिंदगी में बहुत खुश हूं लेकिन फिर भी वह बारबार मुझ से संपर्क करती रहती है. मुझे डर है कि उस की वजह से मेरे वैवाहिक जीवन में कोई तूफान न आ जाए. मुझे सलाह दें, मैं क्या करूं?

जवाब

आप उस से साफ साफ बात करें और पूछें कि वह आप से संबंध क्यों रखना चाहती है. उसे समझाएं कि आप से संबंध रख कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा. उस के पास आप को ब्लैकमेल करने का कोई जरिया तो नहीं जिस की वजह से वह आप को परेशान कर रही हो.

इस के अलावा आप एक काम और कर सकते हैं, अगर आप पतिपत्नी के बीच पूर्ण विश्वास है तो आप अपनी पत्नी को विश्वास में ले कर उन से अपनी परेशानी शेयर कर सकते हैं क्योंकि विवाह पूर्व प्रेम प्रसंग होना आज की तारीख में आम बात है. ऐसा करने के बाद आप को अपनी पूर्व प्रेमिका से डरने की कोई जरूरत नहीं होगी और आप की प्रेमिका आप को ब्लैकमेल नहीं कर पाएगी. लेकिन ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह सोच लें क्योंकि अगर आप की पत्नी को आप की बात पर विश्वास नहीं हुआ तो आप की बसीबसाई जिंदगी में तूफान आ सकता है.

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आखिरी मुलाकात

समीर ने अपनी घड़ी की तरफ देखा और उठ गया. आज रविवार था तो समय की कोई पाबंदी नहीं थी. आज न तो कोई मीटिंग थी, न ही औफिस जाने की जल्दी, न ही आज उस को सुबहसुबह अपने पूरे दिन का टाइमटेबल देखना था.

समीर की नौकरानी की आज छुट्टी थी या फिर यह कहा जा सकता है कि समीर नहीं चाहता था कि आज कोई भी उस को डिस्टर्ब करे. समीर ने खुद अपने लिए कौफी बनाई और बालकनी में आ कर बैठ गया. कौफी पीतेपीते वह अपने बीते दिनों की याद में डूबता गया.

अपना शहर और घर छोड़े उसे 2 साल हो चुके थे. यह नौकरी काफी अच्छी थी, इसलिए उस ने घर छोड़ कर दिल्ली आ कर रहना ही बेहतर समझा था, वैसे यह एक बहाना था. सचाई तो यह थी कि वह अपनी पुरानी यादों को छोड़ कर दिल्ली आ गया था.

उस की पहली नौकरी अपने ही शहर लुधियाना में थी. वहां औफिस में पहली बार वह सुमेधा से मिला था. औफिस में वह उस का पहला दिन था. वहां लंच से पहले का समय सब लोगों के साथ परिचय में ही बीता था. सब एकएक कर के अपना नाम और पद बता रहे थे…

एक बहुत प्यारी सी आवाज मेरे कानों में पड़ी. एक लड़की ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘हैलो, आई एम सुमेधा.’

सीधीसादी सी दिखने वाली सुमेधा में कोई खास बात तो थी जिस की वजह से मैं पहली ही मुलाकात में उस की तरफ आकर्षित होता चला गया था और मैं ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘हैलो, आई एम समीर.’

हमारी बात इस से आगे बढ़ी नहीं थी. दूसरे दिन औफिस के कैफेटेरिया में मैं अपने औफिस में बने नए दोस्त नीलेश के साथ गया तो सुमेधा से मेरी दूसरी मुलाकात हुई. सुमेधा वहां खड़ी थी. नीलेश ने उस की तरफ देखते हुए कहा, ‘सुमेधा, तुम भी हमारे साथ बैठ कर लंच कर लो.’

सुमेधा हम लोगों के साथ बैठ गई. मैं चोरीचोरी सुमेधा को देख रहा था. मैं ने पहले कभी किसी लड़की को इस तरह देखने की कोशिश नहीं की थी.

मेरे और सुमेधा के घर का रास्ता एक ही था. हम दोनों एकसाथ ही औफिस से घर के लिए निकलते थे. उस समय मेरे पास अपनी बाइक तक नहीं थी, तो बस में सुमेधा के साथ सफर करने का मौका मिल जाता था. रास्ते में हम बहुत सारी बातें करते हुए

जाते थे, जिस से हमें एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जानने को मिला. वह अपने जीवन में कुछ करना चाहती थी, सफलता पाना चाहती थी. उस के सपने काफी बड़े थे. मुझे अच्छा लगता था उस की बातों को सुनना.

धीरेधीरे मैं और सुमेधा एकदूसरे के साथ ज्यादा वक्त बिताने लगे. शायद सुमेधा भी मुझे पसंद करने लगी थी, ऐसा मुझे लगता था.

‘कल रविवार को तुम लोगों का क्या प्लान है?’ एक दिन मैं और नीलेश जब औफिस की कैंटीन में बैठे थे, तो सुमेधा ने बड़ी बेबाकी से आ कर पूछा.

‘कुछ खास नहीं,’ नीलेश ने जवाब दिया.

‘और तुम्हारा कोई प्लान हो तो बता दो समीर,’ सुमेधा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘नहीं…कुछ खास नहीं. तुम बताओ?’ मैं ने कहा.

‘कल मूवी देखने चलें?’ सुमेधा ने कहा.

‘आइडिया अच्छा है,’ नीलेश एकदम से बोला.

‘तो ठीक है तय हुआ. कल हम तीनों मूवी देखने चलेंगे,’ कह कर सुमेधा चली गई.

‘देखो समीर, कल तुम अपने दिल की बात साफसाफ सुमेधा से बोल देना. मुझे लगता है कि सुमेधा भी तुम्हें पसंद करती है,’ नीलेश ने एक सांस में यह बात बोल दी.

मैं उस का चेहरा देखे जा रहा था. वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया था. शायद अब वह मेरे दिल की बात भी पढ़ने लगा था.

‘देखो, मैं ने जानबूझ कर हां बोला है और मैं कोई बहाना बना कर कल नहीं आऊंगा. तुम दोनों मूवी देखने अकेले जाना. इस से तुम्हें एकसाथ वक्त बिताने का मौका मिलेगा और अपने दिल की बात कहने का भी.’

‘लेकिन…’

‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, तुम्हें अपने दिल की बात कल उस से कहनी ही होगी. वह आ कर तो यह बात बोलेगी नहीं.’

मैं ने नीलेश को गले लगा लिया,

‘धन्यवाद नीलेश…’

‘ओह रहने दे, तेरी शादी में भांगड़ा करना है बस इसलिए ऐसा कर रहा हूं,’ यह कह कर नीलेश हंसने लगा.

आज रविवार था और नीलेश का प्लान कामयाब हो चुका था. उस ने सुमेधा को फोन कर के कह दिया था कि उस की मौसी बिना बताए उस को सरप्राइज देने के लिए पूना से यहां उस से मिलने आई हैं. इसलिए वह मूवी देखने नहीं आ सकता. लेकिन हम उस की वजह से अपना प्लान और मूड खराब न करें. इस से उस को अच्छा नहीं लगेगा.

सुमेधा मान गई और न मानने का तो कोई सवाल ही नहीं था. मैं मन ही मन नीलेश के दिमाग की दाद दे रहा था.

मौल के बाहर मैं सुमेधा का इंतजार कर रहा था. सुमेधा जैसे ही औटो से उतरी मैं ने उस को देख लिया था. सफेद सूट में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. मैं उस को बस देखे जा रहा था. उस ने मेरी तरफ आ कर मुझ से हाथ मिलाया और कहा, ‘ज्यादा इंतजार तो नहीं करना पड़ा?

‘नहीं, मैं बस 20 मिनट पहले आया था,’

मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा.

‘ओह, आई एम सौरी. ट्रैफिक बहुत है आज, रविवार है न इसलिए,’ उस ने हंसते हुए कहा.

हम दोनों ने मूवी साथ देखी. लेकिन मूवी बस वह देख रही थी. मेरा ध्यान मूवी पर कम और उस पर ज्यादा था.

मूवी के बाद हम दोनों वहीं मौल के एक रेस्तरां में बैठ गए. सुमेधा मूवी के बारे में ही बात कर रही थी.

‘मुझे तुम से कुछ कहना है सुमेधा,’ मैं ने सुमेधा की बात बीच में ही काटते हुए कहा.

‘हां, बोलो समीर…,’ सुमेधा ने कहा.

‘देखो, मैं ने सुना है कि लड़कियों का सिक्स सैंस लड़कों से कुछ ज्यादा होता है, लेकिन फिर भी मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर तुम को मेरी बात पसंद न आए तो तुम मुझ से साफसाफ बोल देना. और हां, इस से हमारी दोस्ती में कोई फर्क नहीं आना चाहिए.’

‘लेकिन बात क्या है, बोलो तो पहले,’ सुमेधा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘मुझे डर था कि कहीं अपने दिल की बात बोल कर मैं अपने प्यार और दोस्ती दोनों को ही न खो दूं. फिर नीलेश की बात याद आई कि कम से कम एक बार बोलना जरूरी है, जिस से सचाई का पता चल सके. मैं ने सुमेधा की तरफ देखते हुए अपनी पूरी हिम्मत जुटाते हुए कहा, ‘आई…आई लव यू सुमेधा. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’

मेरी बात सुन कर सुमेधा एकदम अवाक रह गई. उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए.

‘सुमेधा, कुछ तो बोलो… देखो, अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहूंगा. जो मेरे मन में था और जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूं वह मैं ने तुम से कह दिया और यकीन मानो आज तक यह बात न तो मैं ने कभी किसी से कही है और न ही कहने का दिल किया कभी.’

सुमेधा मुझे देखे जा रही थी और मेरी घबराहट उस की नजरों को देख कर बढ़ती जा रही थी. वह धीमी आवाज में बोली, ‘मैं तुम से नाराज हूं…’

मैं उस की तरफ एकटक देखे जा रहा था.

‘मैं तुम से नाराज हूं इसलिए क्योंकि तुम ने यह बात कहने में इतना समय लगा दिया और मुझे लगता था कि मुझे ही प्रपोज करना पड़ेगा.’

उस की बात को सुन कर मुझे लगा कि कहीं मेरे कानों ने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया था. कहीं यह सपना तो नहीं? लेकिन वह कोई सपना नहीं हकीकत थी.

मैं ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘तुम ने मुझे डरा दिया था सुमेधा. मुझे लगा कहीं प्यार की बात बोल कर मैं अपनी दोस्ती न खो दूं.’

‘अच्छा… और अगर न बताते तो शायद अपने प्यार को खो देते,’ सुमेधा ने कहा.

उस दिन से ज्यादा खुश शायद मैं पहले कभी नहीं हुआ था. जब एम.ए. में फर्स्ट क्लास आया था तब भी और जब नौकरी मिली थी तब भी. एक अजीब सी खुशी थी उस दिन.

सुमेधा और मैं घंटों मोबाइल पर बात किया करते थे और मौका मिलते ही एकदूसरे के साथ वक्त बिताते थे.

उस दिन के बाद एक दिन सुमेधा ने मुझे बहुत खूबसूरत सा हार दिखाते हुए बाजार में कहा, ‘देखो समीर, कितना प्यारा लग रहा है.’

मैं ने कहा, ‘तुम से ज्यादा नहीं.’

वह बोली, ‘जनाब, यह मेरी खूबसूरती को और बढ़ा सकता है.’

उस वक्त मन तो था कि मैं उस को वह हार दिलवा कर उस की खूबसूरती में चार चांद लगा दूं, लेकिन मेरी सैलरी इतनी नहीं थी कि उस को वह हार दिलवा सकता.

सुमेधा समझ गई थी. उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, ‘इतना भी खूबसूरत नहीं है कि इस हार की इतनी कीमत दी जाए. लगता है अपने शोरूम के पैसे भी जोड़ दिए हैं. चलो समीर चाय पीते हैं.’

मुझे सुमेधा की वह बात अच्छी लगी. वह खूबसूरत तो थी ही, समझदार भी थी.

वक्त बीतता गया. सुमेधा चाहती थी कि मैं शादी से पहले अपने पैरों पर अच्छे से खड़ा हो जाऊं ताकि शादी के बाद बढ़ती हुई जिम्मेदारियों से कोई परेशानी न आए. बात भी सही थी. अभी मेरी सैलरी इतनी नहीं थी कि मैं शादी जैसी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभा सकूं.

हमारे प्यार को 1 साल से ज्यादा हो गया था. वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला.

आज सुमेधा औफिस नहीं आई थी. मैं ने सुमेधा को फोन किया, लेकिन पूरी रिंग जाने के बाद भी उस ने मोबाइल नहीं उठाया.

हो सकता है वह व्यस्त हो किसी काम में. क्या हुआ होगा, जो सुमेधा ने मुझे नहीं बताया कि आज वह छुट्टी पर है. पूरा दिन बीत गया लेकिन सुमेधा का कोई फोन नहीं आया. मुझे बहुत अजीब लग रहा था. क्या आज वह इतनी व्यस्त है कि एक बार भी फोन या मैसेज करना जरूरी नहीं समझा?

अगले दिन भी वही सब. न मेरा फोन उठाया और न खुद फोन या मैसेज किया. बस अपने सर को उस ने अपनी छुट्टी के लिए एक मेल भेजा था, जिस में बस यह लिखा था कि कोई जरूरी काम है.

क्या जरूरी काम हो सकता है? मैं सोच नहीं पा रहा था.

नीलेश ने कहा, ‘तुम उस के घर के फोन पर बात करने की कोशिश क्यों नहीं करते?’

‘अगर किसी और ने फोन उठाया तो?’ मैं ने उस के सवाल पर अपना सवाल किया.

‘तो तुम बोल देना कि तुम उस के औफिस से बोल रहे हो और यह जानना चाहते हो कि कब तक छुट्टी पर है वह.’

हिम्मत कर के मैं ने उस के घर के फोन पर काल किया. पहली बार किसी ने फोन नहीं उठाया. नीलेश के कहने पर मैं ने दोबारा कोशिश की. इस बार फोन पर आवाज आई जो मैं सुनना चाहता था.

‘हैलो सुमेधा, मैं समीर बोल रहा हूं. कहां हो, कैसी हो? और तुम औफिस क्यों नहीं आ रही हो? मैं ने तुम्हारा मोबाइल नंबर कितनी बार मिलाया, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. सब ठीक तो है?’

सुमेधा चुपचाप मेरी बातों को बस सुने जा रही थी.

‘सुमेधा कुछ तो बोलो.’

‘अब मुझे कभी फोन मत करना समीर…’ सुमेधा ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या, पर हुआ क्या यह तो बताओ?’ मैं ने बेचैन हो कर पूछा.

‘पापा को माइनर हार्ट अटैक आया था. अब उन की हालत ठीक है. मेरे लिए एक रिश्ता आया था पापा ने वह रिश्ता तय कर दिया है और उन की हालत को ध्यान में रखते हुए मैं न नहीं कर पाई.’

‘तुम्हें उन्हें मेरे बारे में तो बताना चाहिए था,’ मैं ने कहा.

‘समीर वह लड़का बिजनैसमैन है,’ सुमेधा ने एकदम से कहा.

‘ओह, तो शायद इसीलिए तुम्हारी उस से शादी हो रही है,’ मैं ने कहा.

‘तुम जो भी समझो मैं मना नहीं करूंगी. अगले महीने मेरी शादी है. मैं ने आज ही अपना रिजाइनिंग लैटर अपने सर को मेल कर दिया है. बाय समीर.’

मैं बस फोन को देखे जा रहा था और नीलेश मुझे देखे जा रहा था. उस का मेरे प्यार को स्वीकार करना जितना खूबसूरत सपने की तरह था, उतना ही आज उस का यह बोलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मैं चाहता था कि दोनों बातों में से सिर्फ एक ख्वाब बन जाए, लेकिन दोनों ही हकीकत थीं.

आज इस बात को पूरे 3 साल हो गए. उस दिन के बाद मैं ने कभी सुमेधा को न तो फोन किया और न ही उस ने मेरा हाल जानने की कोशिश की. जिस दिन उस की शादी थी उसी दिन मुझे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी से इस नौकरी का औफर आया था. यहां की सैलरी से दोगुनी सैलरी और एक फ्लैट. सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि एकदम परफैक्ट. आज जो मेरे पास है अगर वह मेरे पास 3 साल पहले होता तो शायद आज सुमेधा मिसेज समीर होती.

वक्त बदल गया और वक्त के साथ लोग भी. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंच गया हूं शायद उस समय इन सब चीजों की कल्पना उस ने कभी की ही नहीं होगी. उस वक्त मैं सिर्फ समीर था लेकिन आज एक मल्टीनैशनल कंपनी का जनरल मैनेजर. आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी सफलता को बांटने के लिए वह नहीं है जिस के लिए शायद मैं यह सब करना चाहता था.

अचानक मेरे मोबाइल की बजी. घंटी ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकाला.

नीलेश का फोन था. सब कुछ बदल जाने के बाद भी मेरी और नीलेश की दोस्ती नहीं बदली थी. शायद कुछ रिश्ते सच में सच्चे और अच्छे होते हैं.

‘‘कब तक पहुंचेगा?’’ नीलेश ने पूछा.

‘‘निकलने वाला हूं बस,’’ मैं ने नीलेश से कहा.

‘‘जल्दी निकल यार,’’ कह कर नीलेश ने फोन रख दिया.

नीलेश की शादी है आज. शादी दिल्ली में ही हो रही थी. मुझे सीधे शादी में ही शरीक होना था. अपने सब से अच्छे दोस्त की शादी में न जाने का कोई बहाना होता भी तो भी मैं उस को बना नहीं सकता था.

मैं फटाफट तैयार हुआ. अपनी कार निकाली और चल दिया. वहां पहुंचा तो चारों तरफ फूलों की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. नीलेश बहुत स्मार्ट लग रहा था. मैं ने उस की तरफ फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है और मेरी दिल से शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.’’

नीलेश मेरे गले लग गया. और लोगों को भी उसे बधाइयां देनी थीं, इसलिए मैं स्टेज से नीचे उतर गया. उतर कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि लाल साड़ी में एक महिला मेरे पीछे खड़ी थी. उस के साथ उस का पति और बेटा भी था.

वह कोई और नहीं सुमेधा थी, जो मेरी ही तरह अपने दोस्त की शादी में शामिल होने आई थी. मुझे देख कर वह चौंक गई. वह मुझ से कुछ कहती, इस से पहले ही मेरी पुरानी कंपनी के सर ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वैल डन समीर. मुझे तुम पर बहुत गर्व है. थोड़े से ही समय में तुम ने बहुत सफलता हासिल कर ली है. मैं सच में बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए.’’

मैं बस हां में सिर हिला रहा था और जरूरत पड़ने पर ही जवाब दे रहा था. मेरा दिमाग इस वक्त कहीं और था.

सुमेधा अपने पति के साथ खड़ी थी. उस का पति एक बिजनैसमैन था, लेकिन उस की कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी. आज मेरा स्टेटस उस से ज्यादा था.

यह मैं क्या सोच रहा हूं? मेरी सोच इतनी गलत कब से हो गई? मुझे किसी की व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिंदगी से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मेरा दम घुट सा रहा था. अब इस से ज्यादा मैं वहां नहीं रुक सकता था. मैं जैसे ही बाहर जाने लगा सुमेधा ने पीछे से मुझे आवाज लगाई.

‘‘समीर…’’

उस के मुंह से अपना नाम सुनते ही मन में आया कि उस से सारे सवालों के जवाब मांगूं. पूछूं उस से कि जब प्यार किया था तो विश्वास क्यों नहीं किया? सब कुछ एकएक कर के उस की आवाज से मेरी आंखों के सामने आ गया.

लेकिन अब वह पहले वाली सुमेधा नहीं थी. अब वह मिसेज सुमेधा थी. मुझे उस का सरनेम तो क्या उस के पति का नाम भी मालूम नहीं था और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ये सब जानने की. न मैं उस का हाल जानना चाहता था और न ही अपना बताना.

मैं ने पलट कर उस की आंखों में आखें डाल कर कहा, ‘‘क्या मैं आप को जानता हूं?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखती रही. अगर मैं पहले वाला समीर नहीं था तो वह भी पहले वाली सुमेधा नहीं रही थी.

शायद मेरा यही सवाल हमारी आखिरी मुलाकात का जवाब था. उस की चुप्पी से मुझे मेरा जवाब मिल गया और मैं वहां से चल दिया.

Hindi Love Stories : क्या यही प्यार है

Hindi Love Stories : ‘‘इस धुंध में बाहर निकलना भी मुसीबत है. कपड़े, बाल सब सीलन से भर कर चिपकने से लगते हैं.’’

‘‘और बलराम मियां, कहीं वह भी तो…’’ मैं ने चुटकी ली.

सुधा ने मुझे मुक्का दिखा दिया.

‘‘मैं ने ऐसा क्या कहा? अपने स्वीट हार्ट के साथ खुद ही घूमफिर आई, हम से मिलवाया भी नहीं…’’ मैं ने रूठने का अभिनय करते हुए मुंह फुला लिया.

‘‘अच्छा बाबा, नाराज क्यों होती है? कल तुम सब की पार्टी पक्की रही.’’

सुधा मेरे कमरे में मेरे साथ ही रहती थी. यों वह मुझ से 7-8 साल बड़ी थी. वह बड़ी कक्षा की अध्यापिका थी. फिर भी हम दोनों में गहरी छनती थी. हम रात के 11-12 बजे तक बतियाते रहते.

गरीब घर की लड़की, छात्रवृत्ति के बल पर ही पढ़ती रही थी. घर में एक छोटा भाई और मां थी. हर महीने मां व भाई के लिए खर्चा भेजती थी. भाई इसी साल इंजीनियंिंरग कालिज में दाखिल हुआ था.

और भी एक व्यक्ति था सुधा के जीवन में, फ्लाइट लेफ्टिनेंट बलराज, जो कभीकभी हवाई जहाज ले कर स्कूल के ऊपर भी आता था. चर्च की मीनारों के ऐन ऊपर आ कर वह हवाई जहाज को नीचे ले आता तो सुधा का चेहरा जर्द पड़ जाता था. पर कुशल उड़ाक शोर मचाता, घाटी को गुंजाता हुआ पल भर में नीलेकाले पहाड़ों की सीमा लांघ जाता. वह कभीकभार सुधा से मिलने भी आता. लंबा, बांका, आंखें हरदम जीने की उमंग से चमकतीं मचलतीं.

सुधा और वह बचपन से ही एकसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे. एकसाथ गरीबी के अंधड़ों से गुजरे थे. फिर बलराज अनाथ हो गया. एक सांप्रदायिक दंगे में उस के मांबाप मारे गए. तभी करीब की हवेली के सेठजी ने उस की पढ़ाईलिखाई का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था. पढ़ाई समाप्त कर बलराज वायुसेना में चला गया था.

जीवन के दुखभरे रास्तों को दोनों ने एकदूसरे की आंखों के प्रेमभरे आश्वासनों को भांपते हुए पार किया था. अब मंजिल करीब थी. सुधा के भाई के इंजीनियर बनते ही दोनों की शादी की बात पक्की थी.

इस बीच मेरी सगाई भी हो गई. नवंबर में स्कूल बंद हुए तो सुधा से मैं ने शादी में आने का वादा ले लिया. उस ने भी अपनी बात रखी. शादी से एक सप्ताह पहले ही वह आ पहुंची. फिर नैनीताल से दिल्ली की दूरी ही कितनी थी? मां सुधा के सिर पर शापिंग, कपड़े, गोटे तिल्ले का भार डाल कर निश्चिंत हो गईं. रिश्तेदार औरतों को इस काम में लगातीं तो सौ मीनमेख निकलते और पचास सलाह देने वाले जुट जाते.

डोली चलते समय मुझे लगा जैसे सगी बहन का साथ छूट रहा हो. पर फिर भी मालूम था कि स्नेह का बंधन अटूट है.

शादी के बाद भी सुधा के पत्र आते रहे. एकडेढ़ साल बीत चला था, पर उस की शादी का कार्ड नहीं आया, जिस की मुझे प्रतीक्षा थी.

इधर मेरे अपने घर में अनेक झमेले थे. संयुक्त परिवार, देवर, ननदों का भार सिर पर. मैं 3 भाइयों की लाड़ली बहन, गुस्सा नाक पर बैठा रहता. मुझ में कहां ताब कि एक तो दैनिक दिनचर्या के एकरस काम निबटाऊं, साथ ही सब की धौंस सहूं और फिर अपने पति की झल्लाहट भी झेलूं. अब अगर दफ्तर जाते समय कमीज का बटन टूटा है तो साहबजादे मुझ पर चिल्लाने की बजाय स्वयं भी तो लगा सकते हैं. पर नहीं, मैं रसोई में भी जूझूं, यह सब नखरे भी सहूं. अब सास तो सिर पर है नहीं कि घर की देखभाल करें.

छोटीछोटी बातों पर झगड़ा होता और बात का बतंगड़ बन जाता. मैं रूठ कर मायके आ जाती. उस भरेपूरे परिवार में मानमनोअल का अवसर भी कहां मिलता? एक बार इसी तरह रूठ कर गरमियों में मैं दिल्ली आई हुई थी. मन में क्या आया कि गरमियां बिताने भैया और माया भाभी के साथ नैनीताल आ गई. मन में सुधा से मिलने की दबी इच्छा भी थी और विवेक को थोड़ी और उपेक्षा दिखा कर तड़पाने की आकांक्षा भी. पता नहीं सुधा वहां है या नहीं. वैसे शादी तो अब तक हुई नहीं होगी वरना मुझे कार्ड तो अवश्य आता.

सुधा वहीं थी, उसी होस्टल में हम दोनों टूट कर गले मिलीं. पिछली स्मृतियों के पिटारे खुल गए. मैं ने तो साफ पूछ लिया, ‘‘बलराज की क्या खबर है? अभी तक हवा में ही कुलांचें भर रहे हैं क्या?’’

‘‘बस, इस साल के अंत तक ही…’’ सुधा का सिंदूरी रंग लज्जा से लाल पड़ गया. वह मेरे हालचाल पूछने लगी.

विवेक का नाम आते ही मेरा मुख कसैला सा हो आया, ‘‘मैं वह चिकचिक भरा जहन्नुम छोड़ आई हूं, अब वापस जाने वाली नहीं.’’

‘‘क्या पागलों जैसी बातें कर रही है,’’ सुधा ने मुझे लगभग झिंझोड़ सा दिया.

मेरे असंतुष्ट मन ने भरभरा कर अपना गुबार निकाला और वह बड़ीबूढ़ी की तरह मुझे नसीहतें देती रही, ‘‘तुम स्वयं को उन के घर की बांदी का दरजा दे रही हो, पर वह बेचारा भी तो तुम्हारे प्यार का गुलाम है. गृहस्थी की गाड़ी इसी आधार पर तो चलती है.’’

सुधा ने मुझे समझाना चाहा, पर मैं इस विषय में कोई बात नहीं करना चाहती थी.

2 महीने बीत चले थे. मेरा मन धीरेधीरे उदास हो उठा. भैया की नईनई शादी हुई थी. वह और भाभी बाहर घूमने जाते तो कोई न कोई बहाना बना कर मैं पीछे रह जाती. वे भी मुझ से साथ चलने का आग्रह न करते थे. आखिर मैं कब से मायके में आई हुई थी. अब मेहमान तो थी नहीं.

कई बार मन में आया कि स्कूल जा कर पिं्रसिपल से नौकरी के लिए कहूं पर अभी तो स्टाफ पूरा था. इसी संस्था में गृहविज्ञान की कक्षा में हमें आदर्श, निपुण गृहिणी बनने की शिक्षा दी गई थी. वही ब्रिटिश नन, अब नीली आंखों की तीखी दृष्टि से ताक कर घरबार छोड़ नौकरी ढूंढ़ने पर मुझ से जवाब तलब करेगी, व्यावहारिक जीवन की पहली ही परीक्षा में फेल हो जाने की सचाई स्वीकार कर सकूं, इतना साहस मुझ में नहीं था.

नैनीताल के एक सिनेमाघर में ‘गौन विद दी विंड’ फिल्म लगी हुई थी. थी तो वर्षों पुरानी पर सदाबहार. मैं पुलक उठी, कालिज के दिनों में एक बार देखी थी, फिर देखने का मन हो आया. पर दोपहर को भैया आए तो 2 ही टिकट ले कर.

‘‘तुम ने देख रखी है न यह फिल्म, मैं ने सोचा माया को दिखा दूं.’’

और वे दोनों चले गए. मैं काटेज में अकेली रह गई, अपनी उदासी से घिरी.

रसोइया पूछ रहा था, ‘‘बीबीजी, रात के खाने में क्या बनेगा?’’

‘‘मेरा सिर,’’ मैं झल्ला उठी.

सर्दी के बावजूद, बाहर लोहे की ठंडी रेलिंग से टिकी जाने कब तक खड़ी रही.

दिन भर का जलता सूरज क्षितिज पर बचीखुची आग बिखरा कर अंधेरे की चादर ओढ़ पहाडि़यों की ओट में उतर गया था. तभी काले भालू सा दिखता, गंदे बोरों व रस्सियों में लिपटा, गंधाता पहाड़ी कुली परिचित सा नीला सूटकेस उठाए आता दिखाई दिया. मैं सोचने लगी, यह कौन पगडंडी के पेड़ों के पीछे छिपता- दिखता ढलान उतर रहा है? शायद भैया का कोई दोस्त एकाध सप्ताह काटने आया हो. आगंतुक के अंतिम मोड़ पार कर पलटते ही मैं सुखद आश्चर्य से भर उठी. यह तो विवेक था. न कोई चिट्ठी, न तार. अचानक कैसे? पल भर को मैं अपना सारा गुस्सा भूल कर हुलस उठी.

अगले ही पल उस की बांहों में लिपटी मैं पूछ रही थी, ‘‘अब याद आई हमारी?’’

फिर हमें कुली का ध्यान आया.  अवसर भांप उस ने भी तगड़ी मजदूरी मांगी और चलता बना. विवेक जम्हाई लेता हुआ बोला, ‘‘चलो, कुछ चायवाय पिलवाओ, डीलक्स बस में भी चूलें हिल गईं हड्डियों की.’’

मैं हैरान भी थी और खुश भी. कुछ अभिमान भी हो आया. मैं ने तो एक चिट्ठी भी नहीं लिखी. आए न दौडे़ स्वयं मनाने. भला मेरे बगैर रह सकते हैं कभी?

विवेक कह रहा था, ‘‘सच मानो, तुम्हारे बिना बहुत उदास रहा. घर में सब तुम्हें याद करते हैं.’’

‘‘छोड़ो, तुम्हें कहां परवा मेरी, अब बडे़ देवदास बन कर दिखा रहे हो,’’ मैं तिनकी.

‘‘तुम भी तो पारो सी, उदासी की प्रतिमूर्ति बनी हुई थीं.’’

‘‘पर तुम्हें मेरा ध्यान आया कैसे, अभिमानी वीर पुरुष?’’ मैं ने छेड़ा.

‘‘वह जो तुम्हारी पुरानी सहेली है न सुधा, जिस ने शादी में कलीचढ़ी के लिए मेरी फजीहत की थी, उसी ने चिट्ठी लिख कर मुझे यहां आने की कसम दी थी. और मैं भी तो आने का बहाना ढूंढ़ रहा था,’’ विवेक ने स्वीकार किया.

मुझे सुधा के इस कार्य से प्रसन्नता ही हुई. शायद वह समझ गई थी कि अपनेअपने आत्मसम्मान व अहं की रक्षा करते हुए हम अपनी कच्ची गृहस्थी ही छितरा रहे थे. पर हमारे मानअभिमान के बीच रेशम की डोर का फासला था. एक के जरा आगे बढ़ते ही दूसरा स्वयं दौड़ आया था.

अगले सप्ताह विवेक के साथ मैं वापस आ गई. सुधा ने जिन नसीहतों का पाठ पढ़ा कर मुझे भेजा था, उन्हीं के बल पर मैं अपने घोंसले के तिनके संभाले रही.

2 साल बीतने को आए पर सुधा की शादी के विषय में कुछ निर्णय न हो पाया था. इस बार सर्दियों में मैं ने उसे जिद कर के अपने पास बुला लिया. उस में न पहले सी रंगत रही थी, न कुंआरे सपनों की महक. मैं ने बलराज के विषय में पूछा तो वह दुख के गहरे भंवर में डूब सी गई. हिचकियों के बीच उस ने जो कहानी सुनाई, उस से यही निष्कर्ष निकला कि जिन सेठजी ने बलराज को पाला था, उन की अचानक मृत्यु हो गई थी. अपनी इकलौती कुरूप बेटी के गम में सेठजी के प्राण गले में आ अटके. कातर हो कर उन्होंने बलराज से ही भिक्षा मांगी कि वह उन के बाद उन की बेटी और फैक्टरी को संभाले.

मौत के मुंह में जाते व्यक्ति का आग्रह ठुकरा सके, इतना पत्थर दिल बलराज नहीं था.

‘‘वह साहब तो शहीद हो कर फैक्टरी के मालिक बन बैठे. घरघर में उन की नजफगढ़ रोड वाली फैक्टरी की बनी ट्यूबें व बल्ब जलते हैं पर तुझे क्या मिला? वर्षों का प्यार क्या एक हलके झोंके से ही उड़ गया? अच्छा तगड़ा दहेज दे कर क्या बलराज सेठजी की बेटी की शादी नहीं करवा सकता था कहीं?’’ मैं गुस्से से उफन पड़ी.

‘‘वह मेरे पास आया था, इस विषय में बात करने, कर्तव्य व प्रेम के दो पाटों में पिसता वह चूरचूर हो रहा था. मैं ने ही उसे मुक्त कर दिया. आखिर अपने उपकारक मरणासन्न व्यक्ति को दिए वचन का भी तो कुछ मूल्य होता है,’’ सुधा ने बलराज का ही पक्ष लिया.

‘‘हां…हां, एक वही तो रह गए थे सूली पर चढ़ने को,’’ मैं ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘जब मैं कुछ नहीं बोल रही तो तू क्यों इतना उबल रही है?’’ सुधा मुझ पर ही झल्ला पड़ी.

‘‘तो फिर आंखों में नमी क्यों भर आ रही है बारबार?’’

मैं ने उस की आंखें पोंछ दीं. सुधा के जीवन में अब बलराज वाला अध्याय समाप्त हो चुका था.

मैं ने और विवेक ने कितनी कोशिश की उस की शादी के लिए, पर उस ने  तो शादी न करने की कसम खा ली थी. जिस प्रेम की जड़ें बचपन तक फैली हुई थीं उसे उखाड़ फेंकना शायद उस के वश का न था. फिर उस की मां की मृत्यु हो गई. इंजीनियर भाई को घरजामाता बना कर धनी ससुर अमेरिका ले गया.

वह नितांत अकेली रह गई. बालों में सफेदी झांकने लगी थी. पर हम ने अब भी कोशिश नहीं छोड़ी. हमारे सिवा उस का था ही कौन? अब उस की सर्दियों की 3 महीने की छुट्टियां मेरे बच्चों के साथ खेलते बीततीं या वह लड़कियों का दल ले कर उन्हें कहीं घुमाने ले जाती. एक बार तो वह सिंगापुर तक हो आई थी और अपनी एक महीने की तनख्वाह हमारे लिए महंगे उपहार खरीदने में फूंक आई थी.

इस वर्ष दिलीप बदली हो कर विवेक के दफ्तर में आया. मुझे लगा शायद उसे सुधा के लिए ही भेजा गया है. साधारण घर का, अच्छी नौकरी पर लगा बेटा. सारी जवानी छोटे भाईबहनों को पढ़ाते- लिखाते, ठिकाने लगाते बीत गई. अब अपने लिए अधिक आयु की, सुलझे विचारों वाली पत्नी चाहता था.

मैं ने उसे सुधा की फोटो दिखाई नापसंद करने का सवाल ही कहां था. हम चाहते थे कि दोनों एकदूसरे को मिल कर देखपरख लें. इसीलिए मैं ने सुधा को चिट्ठी लिख दी और विवेक को छुट्टी मिलते ही हम लोग कार ले कर नैनीताल के लिए निकल पड़े, यह निश्चय कर के कि इस बार जैसे भी हो, सुधा को मनाना ही है.

पर उस के होस्टल के काटेज में एक और आश्चर्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा था. लान में सुधा एक 15-16 साल के लड़के के साथ बैठी थी. बिना परिचय कराए ही मैं समझ गई कि वह बलराज का बेटा है, एकदम कार्बन कापी.

ऐसे में उस से दिलीप का परिचय कराना व्यर्थ था. दूसरे दिन मैं ने उसे पकड़ा, ‘‘यह क्या तमाशा लगा रखा है? पंछी भी शाम ढले घरों को लौटते हैं. तुम क्या जीवन भर इस होस्टल में काट दोगी?’’ मैं उस पर बरस ही तो पड़ी.

‘‘अब मैं अकेली कहां हूं? रवि जो है मेरे पास,’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘पागल हुई हो? पराए बेटे को अपना कह रही हो?’’

‘‘अब वह मेरा ही बेटा है,’’ सुधा गंभीर हो उठी. उस ने मुझे बताया कि बलराज से फैक्टरी तो चली नहीं, घाटे में चलातेचलाते कर्ज चुकाने में बिक गई. शराब पी कर पतिपत्नी में झगड़ा होता. पत्नी सुधा का नाम ले कर बलराज को कोसती. इसी चिल्लपों में रवि सुधा के विषय में जान गया. एक रेल दुर्घटना में बलराज की मृत्यु हो गई. पत्नी पागलखाने में भरती कर दी गई, क्योंकि उसे दौरे पड़ने लगे थे. अनाथ बच्चे की जिम्मेदारी कौन ले? रिश्तेदार भी पल्ला झाड़ गए. अब रवि अंतिम सहारा समझ उसी के पास आया था.

मैं अवाक् बैठी थी. सुधा गर्व से बता रही थी, ‘‘सीनियर सेकंडरी की परीक्षा दी है रवि ने. मेडिकल में जाने का विचार है.’’

‘‘और उस की पढ़ाई का खर्चा तुम दोगी?’’ मैं ने चिढ़ कर पूछा.

‘‘अब कौन बैठा है उस का सरपरस्त?’’ सुधा बोली.

‘‘ओफ्फोह, तुम कभी समझोगी भी? तुम ने भाई को पढ़ायालिखाया, लेकिन कभी उस ने इस ओर झांका भी कि तुम जिंदा हो या मर गईं?’’ मैं बड़बड़ाती हुई उसे कोसती रही.

‘‘दिलीप बाबू से मेरी ओर से माफी मांग लेना. मैं मजबूर हूं,’’ वह इतना ही बोली. मैं पैर पटकती वापस आ गई. वापसी पर भी मेरा मूड उखड़ा रहा. विवेक कार चला रहा था, सो तीखी ढलान के मोड़ों पर दृष्टि गड़ाए बैठा था. मैं भुनभुनाती दिलीप को सुना रही थी, ‘‘कुछ कमबख्त होते ही हैं अपना शोषण करवाने को. चाहे सारी दुनिया उन्हें रौंद कर आगे बढ़ जाए, उन के कानों पर जूं नहीं रेंगेगी.’’

दिलीप ने मेरे गुस्से पर पानी डाला, ‘‘छोडि़ए, भाभीजी, हम आप जैसे दुनिया के पचड़ों में फंसे सांसारिक जीव इसे नहीं समझ पाएंगे. पर शायद यही प्यार है.’’

‘‘जो अच्छेभले को अंधा कर दे, उस प्यार का क्या लाभ?’’ मैं बड़बड़ाई.

‘‘देखूं, शायद इसे कभी जीत पाऊं,’’ गहरी सांस ले कर दिलीप ने कहा और मैं अपना गुस्सा भूल आश्चर्य से उसे देखने लगी.

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