Hindi Stories Online : जिंदगी का पहिया – क्या हुआ था आशा के साथ

Hindi Stories Online :  उस का नाम कई बार बदला गया. उस ने जिंदगी के कई बडे़ उतारचढ़ाव देखे. झुग्गीझोंपड़ी की जिंदगी वही जान सकता है, जिस ने वहां जिंदगी बिताई हो. तंग गलियां, बारिश में टपकती छत. बाप मजदूरी करता, मां का साया था नहीं, मगर लगन थी पढ़ने की. सो, वह पास के ही एक स्कूल से मिडिल पास कर गई.

मिसेज क्लैरा से बातचीत कर के उस की अंगरेजी भी ठीक हो चली थी. पासपड़ोस के आवारा, निठल्ले लड़के जब फिकरे कसते, तो दिल करता कि वह यहां से निकल भागे. मगर वह जाती कहां? बाप ही तो एकमात्र सहारा था उस का. आम लड़कियों की तरह उस के भी सपने थे. अच्छा सा घर, पढ़ालिखा, अच्छे से कमाता पति. मगर सपने कब पूरे होते हैं?

उस का नाम आशा था. उस के लिए मिसेज क्लैरा ही सबकुछ थीं. वही उसे पढ़ालिखा भी रही थीं. वे कहतीं कि आगे पढ़ाई कर. नर्सिंग की ट्रेनिंग कराने का जिम्मा भी उन्हीं के सिर जाता है. उसे अच्छे से अस्पताल में नौकरी दिलाने में मिसेज क्लैरा का ही योगदान था. वह फूली नहीं समाती थी.

सफेद यूनिफौर्म में वह घर से जब निकली, तो वही आवारा लड़के आंखें फाड़ कर कहते, ‘‘मेम साहब, हम भी तो बीमार हैं. एक नजर इधर भी,’’ पर वह अनसुना कर के आगे बढ़ जाती. पड़ोस का कलुआ भी उम्मीदवारों की लिस्ट में था. अस्पताल में शकील भी था. वह वहां फार्मासिस्ट था. वह था बेहद गोराचिट्टा और उस की बातों से फूल झड़ते थे. लोगों ने महसूस किया कि फुरसत में वे दोनों गपें हांकते थे. आशा की हंसी को लोग शक की नजरों से देखने लगे थे. सोचते कि कुछ तो खिचड़ी पक रही है. इस बात से मिसेज क्लैरा दुखी थीं. वे तो अपने भाई के साथ आशा को ब्याहना चाहती थीं. इश्क और मुश्क की गंध छिपती नहीं है. आखिरकार आशा से वह आयशा शकील बन गई. उन दोनों ने शानदार पार्टी दी थी.

यह देख मिसेज क्लैरा दिमागी आघात का शिकार हो गई थीं. वे कई दिन छुट्टी पर रहीं… आशा यानी आयशा उन से नजरें मिलाने से कतरा रही थी.

मिसेज क्लैरा का गुस्सा वाजिब था. वे तो अपने निखट्टू भाई के लिए एक कमाऊ पत्नी चाहती थीं. मगर अब क्या हो सकता था, तीर कमान से निकल चुका था.

आयशा वैसे तो हंसबोल रही थी, मगर उस के दिल पर एक बोझ था.

शकील ने भांपते हुए कहा, ‘‘क्या बात है? क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, थकान है,’’ कह कर उस ने बात टाल दी.

मिसेज क्लैरा सबकुछ भुला कर अपने काम में बिजी हो गईं. आयशा ने उन की नजरों से बचने के लिए दूसरे अस्पताल में नौकरी तलाश ली थी. आयशा की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया था. उस का स्वभाव अब भी वैसा ही था. मरीजों को दवा देना, उन का हालचाल पूछना. उस का बचपन का देखा सपना पूरा हो चला था. वह कच्चे मकान और बदबूदार गलियों से निकल कर स्टाफ क्वार्टर में रहने को आ गई थी. धीरेधीरे कुशल घरेलू औरत की तरह उस ने सारे सुख के साधन जुटा लिए थे. 3 साल में वह दोनों 2 से 4 बन चुके थे. एक बेटा और एक बेटी.

कल्पनाओं की उड़ान इनसान को कहां से कहां ले जाती है. इच्छाएं दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं. बच्चों की देखभाल की चिंता किए बिना ही शकील परदेश चला गया… आयशा ने लाख मना किया, मगर वह नहीं माना. आयशा रोज परदेश में शकील से बातें करती व बच्चों का और अपने प्यार का वास्ता देती. बस, उस के सपने 4 साल ही चल सके. मिडिल ईस्ट में शायद शकील ने अलग घर बसा लिया था. आयशा के सपने बिखर गए. शुरूशुरू में तो शकील के फोन भी आ जाते थे कि अपना और बच्चों का ध्यान रखना. कभीकभार वैसे भी आते रहे. दिनों के साथ प्यार पर नफरत की छाया पड़ने लगी.

‘‘बुजदिल… बच्चों पर ऐसा ही प्यार उमड़ रहा था, तो देश छोड़ कर गया ही क्यों?’’

आयशा समझ गई थी कि शकील अब लौट कर नहीं आएगा… वह नफरत से कहती, ‘‘सभी मर्द होते ही बेवफा हैं.’’ आयशा अब पछता रही थी. उसे अपने सपने पूरे करने के बजाय मिसेज क्लैरा के सपने पूरे करने चाहिए थे. ‘पलभर की भूल, जीवन का रोग’ सच साबित हो गया. शकील भी शायद आयशा से छुटकारा पाना चाहता था और वह भी… आसानी से तलाक भी हो गया. उस दिन वह फूटफूट कर रोई थी.

बच्चों ने पूछा, ‘मम्मी, क्या पापा अब नहीं आएंगे?’

‘‘नहीं…’’ आयशा रोते हुए बोली थी.

‘क्यों नहीं?’ बच्चों ने पूछा था.

‘‘क्योंकि, तुम्हारे पापा ने नई मम्मी ढूंढ़ ली है.’’

आशा ने मिसेज क्लैरा के भाई से शादी कर ली… उन्हें शांति मिल गई थी. पर वे खुद कैंसर से पीडि़त थीं. अब वह आशा ग्रेस मैसी बन चुकी थी. मिसेज क्लैरा की जिंदगी ने आखिरी पड़ाव ले लिया था. वे भी दुनिया सिधार चुकी थीं. अब वह और ग्रेस मैस्सी… यही जीवन चक्र रह गया था. मगर उस का बेटा शारिक ग्रेस को स्वीकार न कर सका. शारिक अकसर घर से बाहर रहने लगा. वह समझदार हो चला था. वह लाख मनाती कि अब तुम्हारे पापा यही हैं.

‘‘नहीं… मेरे पापा तो विदेश में हैं. मैं अभी तुम्हारी शिकायत पापा से करूंगा. मुझे पापा का फोन नंबर दो.’’

यह सुन कर आशा हैरान रह जाती. आशा की बेटी समीरा गुमसुम सी रहने लगी थी. ग्रेस भी आशा के पैसों पर ऐश कर रहा था. आज मिसेज क्लैरा न थीं, जो हालात संभाल लेतीं. आशा आज कितनी अकेली पड़ गई थी. अस्पताल और घर के अलावा उस ने कहीं आनाजाना छोड़ दिया था. हंसी उस से कोसों दूर हो चली थी, मगर जिम्मेदारियों से वह खुद को अलग नहीं कर सकी थी.

शारिक को आशा ने अच्छी तालीम दिलाई. वह घर छोड़ कर जाना चाहता था. सो, वह भी चला गया. शराब ने ग्रेस को खोखला कर दिया था. वह दमे का मरीज बन चुका था.

शारिक 2-4 दिन को घर आता, तो नाराज हो जाता. वह कहता, ‘‘मम्मी, कहे देता हूं कि इसे घर से निकालो. यह हरदम खांसता रहता है. सारा पैसा इस की दवाओं पर खर्च हो जाता है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटा.’’

‘‘मम्मी, आप ने दूसरी शादी क्यों की?’’

और यह सुन कर आशा चुप्पी लगा जाती. वह तो खुद को ही गुनाहगार मानती थी, मगर वह जानती थी कि उस ने मिसेज क्लैरा के चलते ऐसा किया. वह उस की गौडमदर थीं न? आशा अब खुद ईसाई थी, मगर उस ने अपने बच्चों को वही धर्म दिया, जिस का अनुयायी उन का बाप था.

समीरा की शादी भी उस ने उसी धर्म में की, जिस का अनुयायी उस का बाप था. आशा का घर दीमक का शिकार हो चला था. वह फिर से झुगनी बस्ती में रहने को पहुंच गई थी. ग्रेस ने उसी झुगनी बस्ती में दम तोड़ा. बेटे शारिक को उस ने ग्रेस के मरने की सूचना दी, मगर वह नहीं आया.

आशा अब तनहा जिंदगी गुजार रही थी. उस की ढलती उम्र ने उसे भी जर्जर कर दिया था. रात में न जाने कितनी यादें, न जाने कितने आघात उसे घेर लेते. वह खुद से ही पूछती, ‘‘मां बनना क्या जुर्म है? क्या वही जिंदगी का बोझ ढोने को पैदा होती है?’’ उसे फिल्म ‘काजल’ का वह डायलौग याद आ रहा था, जिस में मां अपने बेटे का इंतजार करती है. धूपबत्ती जल रही है. गंगाजल मुंह में टपकाया जा रहा है. डूबती सांसों से कहती है, ‘स्त्री और पृथ्वी का जन्म तो बोझ उठाने के लिए ही हुआ है.’

आशा के सीने पर लगी चोट अब धीरेधीरे नासूर बन कर रिस रही थी.

बेटा शारिक आखिरी समय में आया और बेटी समीरा भी आई. मां को देख बेटा भावविभोर था, ‘‘मम्मी, आखिरी समय है आप का. अब भी लौट आओ. ‘‘अच्छा, जैसी तुम्हारी इच्छा. मरने के बाद इस शरीर को चाहे आग में जला देना, चाहे मिट्टी के हवाले करना…’’ और वह दुनिया से चली गई. किसी की आंख से एक आंसू भी नहीं टपका. अंतिम यात्रा में कुछ लोग ही शामिल थे.

‘‘क्या यह वही नर्स थी. क्या नाम था… मैसी?’’

‘‘तो क्या हुआ अंतिम समय में तो वह कलमा गो यानी मुसलिम थी. कहां ले जाएं इसे. यहीं पास में एक कब्रिस्तान है. वहीं ले चलें. और आशा मिट्टी में समा गई.’’ मैं अकसर उधर से गुजर रहा होता. आवारा लड़के क्रिकेट खेलते नजर आते. वहां कुछ ही कबे्रं रही होंगी. शायद लावारिस लोगों की होंगी. लेकिन आशा के वारिस भी थे. एक बेटा और एक बेटी. इस नाम के कब्रिस्तान में कोई दीया जलाने वाला न था. अब चारों तरफ ऊंचीऊंची इमारतें बन गई थीं. लोगों ने अपनी नालियों के पाइप इस कब्रिस्तान में डाल दिए थे. 3 महीने बाद आशा की बेटी समीरा बैंक की पासबुक लिए मेरे पास आई और बोली, ‘‘मम्मी के 50 हजार रुपए बैंक में जमा हैं. जरा चल कर आप सत्यापन कर दें. हम वारिस हैं न?’’ और मैं सोच रहा था कि आशा न जाने कितनी उम्मीदें लिए दुनिया से चली गई. वह जिस गंदी बस्ती में पलीबढ़ी, वहीं उस ने दम तोड़ा.

मेरे दिमाग में कई सवाल उभरे, ‘क्या फर्क पड़ता है, अगर आशा किसी ईसाई कब्रिस्तान में दफनाई जाती? क्या फर्क पड़ता है, अगर वह ताबूत में सोई होती? शायद, उस के नाम का एक पत्थर तो लगा होगा.’

‘‘हाय आशा…’’ मेरे मुंह से निकला और मेरी पलकें भीग गईं.

Interesting Hindi Stories : उस के साहबजी – श्रीकांत की जिंदगी में कुछ ऐसे शामिल हुई शांति

Interesting Hindi Stories : दरवाजे की कौलबैल बजी तो थके कदमों से कमरे की सीढि़यां उतर श्रीकांत ने एक भारी सांस ली और दरवाजा खोल दिया. शांति को सामने खड़ा देख उन की सांस में सांस आई.

शांति के अंदर कदम रखते ही पलभर पहले का उजाड़ मकान उन्हें घर लगने लगा. कुछ चल कर श्रीकांत वहीं दरवाजे के दूसरी तरफ रखे सोफे पर निढाल बैठ गए और चेहरे पर नकली मुसकान ओढ़ते हुए बोले, ‘‘बड़ी देर कर देती है आजकल, मेरी तो तुझे कोई चिंता ही नहीं है. चाय की तलब से मेरा मुंह सूखा जा रहा है.’’

‘‘कैसी बात करते हैं साहबजी? कल रातभर आप की चिंता लगी रही. कैसी तबीयत है अब?’’ रसोईघर में गैस पर चाय की पतीली चढ़ाते हुए शांति ने पूछा.

पिछले 2 दिनों से बुखार में पड़े हुए हैं श्रीकांत. बेटाबहू दिनभर औफिस में रहते और देर शाम घर लौट कर उन्हें इतनी फुरसत नहीं होती की बूढ़े पिता के कमरे में जा कर उन का हालचाल ही पूछ लिया जाए. हां, कहने पर बेटे ने दवाइयां ला कर जरूर दे दी थीं पर बूढ़ी, बुखार से तपी देह में कहां इतना दम था कि समयसमय पर उठ कर दवापानी ले सके. उस अकेलेपन में शांति ही श्रीकांत का एकमात्र सहारा थी.

श्रीकांत एएसआई पद से रिटायर हुए. तब सरकारी क्वार्टर छोड़ उन्हें बेटे के साथ पौश सोसाइटी में स्थित उस के आलीशान फ्लैट में शिफ्ट होना पड़ा. नया माहौल, नए लोग. पत्नी के साथ होते उन्हें कभी ये सब नहीं खला. मगर सालभर पहले पत्नी की मृत्यु के बाद बिलकुल अकेले पड़ गए श्रीकांत. सांझ तो फिर भी पार्क में टहलते हमउम्र साथियों के साथ हंसतेबतियाते निकल जाती मगर लंबे दिन और उजाड़ रातें उन्हें खाने को दौड़तीं. इस अकेलेपन के डर ने उन्हें शांति के करीब ला दिया था.

35-36 वर्षीया परित्यक्ता शांति  श्रीकांत के घर पर काम करती थी. शांति को उस के पति ने इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि वह उस के लिए बच्चे पैदा नहीं कर पाई. लंबी, छरहरी देह, सांवला रंग व उदास आंखों वाली शांति जाने कब श्रीकांत की ठहरीठहरी सी जिंदगी में अपनेपन की लहर जगा गई, पता ही नहीं चला. अकेलापन, अपनों की उपेक्षा, प्रेम, मित्रता न जाने क्या बांध गया दोनों को एक अनाम रिश्ते में, जहां इंतजार था, फिक्र थी और डर भी था एक बार फिर से अकेले पड़ जाने का.

पलभर में ही अदरक, इलायची की खुशबू कमरे में फैल गई. चाय टेबल पर रख शांति वापस जैसे ही रसोईघर की तरफ जाने को हुई तभी श्रीकांत ने रोक कर उसे पास बैठा लिया और चाय की चुस्कियां लेने लगे, ‘‘तो तूने अच्छी चाय बनाना सीख ही लिया.’’

मुसकरा दी शांति, दार्शनिक की सी मुद्रा में बोली, ‘‘मैं ने तो जीना भी सीख लिया साहबजी. मैं तो अपनेआप को एक जानवर सा भी नहीं आंकती थी. पति ने किसी लायक नहीं समझा तो बाल पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया. मांबाप ने भी साथ नहीं दिया. आप जीने की उम्मीद न जगाते तो घुटघुट कर या जहर खा कर अब तक मर चुकी होती, साहबजी.’’

‘‘पुरानी बातें क्यों याद करती है पगली. तू क्या कुछ कम एहसान कर रही है मुझ पर? घंटों बैठ कर मेरे अकेलेपन पर मरहम लगाती है, मेरे अपनों के लिए बेमतलब सी हो चुकी मेरी बातों को माने देती है और सब से बड़ी बात, बीमारी में ऐसे तीमारदारी करती है जैसे कभी मेरी मां या पत्नी करती थी.’’

भीग गईं 2 जोड़ी पलकें, देर तक दर्द धुलते रहे. आंसू पोंछती शांति रसोईघर की तरफ चली गई. उस की आंखों के आगे उस का दूषित अतीत उभर आया और उभर आए किसी अपने के रूप में उस के साहबजी. उन दिनों कितनी उदास और बुझीबुझी रहती थी शांति. श्रीकांत ने उस की कहानी सुनी तो उन्होंने एक नए जीवन से उस का परिचय कराया.

उसे याद आया कैसे उस के साहबजी ने काम के बाद उसे पढ़नालिखना सिखाया. जब वह छुटमुट हिसाबकिताब करना भी सीख गई, तब श्रीकांत ने उस के  सिलाई के हुनर को आगे बढ़ाने का सुझाव दिया. आत्मविश्वास से भर गई थी शांति. श्रीकांत के सहयोग से अपनी झोंपड़पट्टी के बाहर एक सिलाईमशीन डाल सिलाई का काम करने लगी. मगर अपने साहबजी के एहसानों को नहीं भूल पाई, समय निकाल कर उन की देखभाल करने दिन में कई बार आतीजाती रहती.

सोसाइटी से कुछ दूर ही थी उस की झोंपड़ी. सो, श्रीकांत को भी सुबह होते ही उस के आने का इंतजार रहता. मगर कुछ दिनों से श्रीकांत के पड़ोसियों की अनापशनाप फब्तियां शांति के कानों में पड़ने लगी थीं, ‘खूब फांस लिया बुड्ढे को. खुलेआम धंधा करती है और बुड्ढे की ऐयाशी तो देखो, आंख में बहूबेटे तक की शर्म नहीं.’

खुद के लिए कुछ भी सुन लेती, उसे तो आदत ही थी इन सब की. मगर दयालु साहबजी पर लांछन उसे बरदाश्त नहीं था. फिर भी साहबजी का अकेलापन और उन की फिक्र उसे श्रीकांत के घर वक्तबेवक्त ले ही आती. वह भी सोचती, ‘जब हमारे अंदर कोई गलत भावना नहीं तब जिसे जो सोचना है, सोचता रहे. जब तक खुद साहबजी आने के लिए मना नहीं करते तब तक मैं उन से मिलने आती रहूंगी.’

शाम को पार्क में टहलने नहीं जा सके श्रीकांत. बुखार तो कुछ ठीक था मगर बदन में जकड़न थी. कांपते हाथों से खुद के लिए चाय बना, बाहर सोफे पर बैठे ही थे कि बहूबेटे को सामने खड़ा पाया. दोनों की घूरती आंखें उन्हें अपराधी घोषित कर रही थीं.

श्रीकांत कुछ पूछते, उस से पहले ही बेटा उन पर बरस उठा, ‘‘पापा, आप ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा हमें. एक नौकरानी के साथ…छी…मुझे तो कहते हुए भी शर्म आती है.’’

‘‘यह क्या बोले जा रहे हो, अविनाश?’’ श्रीकांत के पैरों तले से मानो जमीन खिसक गई.

अब बहू गुर्राई, ‘‘अपनी नहीं तो कुछ हमारी ही इज्जत का खयाल कर लेते. पूरी सोसाइटी हम पर थूथू कर रही है.’’

पैर पटकते हुए दोनों रोज की तरह भीतर कमरे में ओझल हो गए. श्रीकांत वहीं बैठे रहे उछाले गए कीचड़ के साथ. वे कुछ समझ नहीं पाए कहां चूक हुई. मगर बच्चों को उन की मुट्ठीभर खुशी भी रास नहीं, यह उन्हें समझ आ गया था. ये बेनाम रिश्ते जितने खूबसूरत होते हैं उतने ही झीने भी. उछाली गई कालिख सीधे आ कर मुंह पर गिरती है.

दुनिया को क्या लेना किसी के  सुखदुख, किसी की तनहाई से.

वे अकेलेपन में घुटघुट कर मर जाएं या अपनों की बेरुखी को उन की बूढ़ी देह ताउम्र झेलती रहे या रिटायर हो चुका उन का ओहदा इच्छाओं, उम्मीदों को भी रिटायर घोषित क्यों न कर दे. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर न जाने उन की खुशियों पर ही क्यों यह समाज सेंध लगा कर बैठा है?

श्रीकांत सोचते, बूढ़ा आदमी इतना महत्त्वहीन क्यों हो जाता है कि वह मुट्ठीभर जिंदगी भी अपनी शर्तों पर नहीं जी पाता. बिलकुल टूट गए थे श्रीकांत, जाने कब तक वहीं बैठे रहे. पूरी रात आंखों में कट गई.

दूसरे दिन सुबह चढ़ी. देर तक कौलेबैल बजती रही. मगर श्रीकांत ने दरवाजा नहीं खोला. बाहर उन की खुशी का सामान बिखरा पड़ा था और भीतर उन का अकेलापन. बुढ़ापे की बेबसी ने अकेलापन चुन लिया था. फिर शाम भी ढली. बेटाबहू काम से खिलखिलाते हुए लौटे और दोनों अजनबी सी नजरें  श्रीकांत पर उड़ेल, कमरों में ओझल हो गए.

Dry Skin से हैं परेशान, तो इन तरीकों से करें हाइड्रेटेड

Dry Skin : हाईड्रेटेड त्वचा की उम्र धीरे धीरे बढ़ती है और ऐसी त्वचा पर मुंहासे आने की संभावना भी कम होती है. त्वचा को मौइस्चराइज करने से मुंहासे आने की संभावना कम हो जाती है. त्वचा के पी एच स्तर को सामान्य बनाये रखने के लिए उचित मात्रा में नमी की आवश्यकता होती है. यदि पी एच का स्तर सामान्य नहीं रहा तो मुंहासे आने की संभावना बहुत अधिक होती है.

कई बार त्वचा के बहुत अधिक तैलीय  होने पर चेहरे को मॉस्चराइज करने के लिए तेलों का ही प्रयोग किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह अतिरिक्त ऑइल पहले से ही उपस्थित ऑइल के प्रभाव को प्रभावहीन बना देता है.

1. ग्लिसरीन

ग्लिसरीन अत्यंत शुष्क त्वचा के लिए बहुत अच्छा मॉस्चराइजर है. नहाने से पहले या मुंह धोने से पहले चेहरे पर ग्लिसरीन लगायें. अधिक लाभ के लिए अपने मॉस्चराइजर में ग्लिसरीन मिलकर लगायें.

2. नारियल का तेल

जी हां, नारियल तेल का उपयोग चेहरे पर किया जा सकता है. रात में सोते समय नारियल के तेल से चेहरे की मालिश करें तथा सुबह उठकर नरम और मुलायम त्वचा पायें. स्किन को हाईड्रेटेड रखने के लिए इस उपाय को अवश्य अपनाएं.

3. एलो वेरा जैल

त्वचा को हाइड्रेटेड रखने के लिए एलो वेरा सबसे अच्छा घटक है. इसका उपयोग आप दिन में कभी भी कर सकते हैं.

4. विटामिन ई ऑइल

विटामिन सी के कैप्सूल से तेल निकालकर उसे अपने लोशन या क्रीम में मिलाकर लगायें और त्वचा को मॉस्चराइज करें. विश्वास करें, त्वचा को हाइड्रेटेड रखने के लिए इसे अपनाएं और आप बाद में अवश्य हमें शुक्रिया कहेंगे.

5. ऑलिव ऑइल (जैतून का तेल)

ऑलिव ऑइल त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि इसमें पोषक तत्व तथा विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. रात में सोने से पहले इस तेल से त्वचा की मालिश करें और सुबह आपकी त्वचा नरम और मुलायम हो जायेगी.

6. रोज वॉटर (गुलाब जल)

चेहरे को दिन भर नम बनाये रखने के लिए चेहरे पर गुलाब जल छिडकें. जब भी आपको त्वचा सूखी लगे तब आप इसका छिड़काव करें. यह हाईड्रेटेड त्वचा पाने का सबसे आसान तरीका है.

Shake Recipe : गर्मियों में ट्राई करें स्ट्रौबेरी-मैंगो चौकलेट शेक, स्वाद से है भरपूर

Shake Recipe : जैसेजैसे वक्त बीत रहा है, हर रोज गर्मी का पारा चढ़ रहा है. एक तरफ जहां सूरज हमें तपा रहा है, वहीं, प्रकृति ने हमारी सुरक्षा के लिए बहुत कुछ दिया है. इस सीजन के फेवरेट और फलों के राजा आम से बना आमरस तो गर्मी का रामबाण इलाज है ही, इससे कई दूसरी रेसिपी भी बनाई जा सकती हैं. जो इस समर आपको स्वाद और सेहत दोनों देंगी.

आम का टेस्ट और जूसी फ्लेवर इसे औल टाइम फेवरेट बनाता है. लेकिन चिलचिलाती धूप से आने के बाद इसका स्वाद और भी ज्यादा टेस्टी हो जाता है. तो इस गर्मी जरूर बनाएं स्ट्राबरी-मैंगो चौकलेट शेक.

सामग्री

फेंटी हुई मलाई- 2 कप

पिंघली हुई वाइट चौकलेट- 1 कप

आम का गूदा-1 कप

स्ट्रौबेरी पल्प- 1 कप

विधि

एक कप फेंटी हुई मलाई और आधा कप पिंघली हुई वाइट चॉकलेट में आम का गूदा मिला दें. अब बची हुई एक कप मलाई और वाइट चॉकलेट को स्ट्रॉबेरी के गूदे में मिलाएं.

एक ग्लास में इस स्ट्रॉबेरी मिक्स को भरकर 5 मिनट के लिए फ्रिज में रखें. अब इस पर ऊपर से मैंगो मिक्स डाल दें और फ्रेश स्ट्रॉबेरी से सजाकर सर्व करें.

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सवाल-

मैं 27 वर्षीय युवक हूं और एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम करता हूं. अपनी समस्या मैं खुद हूं. दरअसल, मुझे न तो किसी लड़की में दिलचस्पी रही है और न ही मैं ने अभी तक किसी युवती से सैक्स संबंध ही बनाए हैं. अलबत्ता एक लड़के से मेरी दोस्ती जरूर है और हम पिछले 3 सालों से साथ रह रहे हैं. मातापिता अब मेरी शादी करना चाहते हैं पर मैं किसी लड़की की जिंदगी तबाह नहीं करना चाहता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ऐसा लगता है कि आप होमो सैक्सुअल हैं. मनोचिकित्सकों का मानना है कि समान सैक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण का एक कारण अपनेपन का एहसास नहीं मिलना भी है.

दरअसल, घरपरिवार से दुखी रहने वाले लोग या फिर किसी अन्य वजह से परेशानी के कारण दूसरे द्वारा सहारा देना उन्हें एकदूसरे के करीब लाता है.

रिसर्च के मुताबिक समान सैक्स के प्रति झुकाव की वजह हारमोंस का असंतुलित होना भी हो सकती है. कुछ आनुवंशिक कारण से होता है तो कुछ अन्य प्रभाव की वजह से.

बेहतर होगा कि पहले आप किसी सैक्सुअल काउंसलर से मिलें और जरूरत हो तो मैडिकल चैकअप भी कराएं. स्थिति तभी पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगी.

आप को अपनी जिंदगी किस के साथ और कैसे बितानी है, यह निर्णय भी आप खुद ही लें. यों तो हमारे समाज में ऐसे रिश्तों को स्वीकार नहीं किया जाता, मगर अब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 हटा कर समलैंगिकों को उन का हक दे दिया है.

जयपुर, राजस्थान के मालवीय नगर में रहने वाली 20 साला निधि कोचिंग के लिए टोंक फाटक जाती थी और वहां से ही अपने बौयफ्रैंड के साथ नारायण सिंह सर्किल के पास बने सैंट्रल पार्क की झाडि़यों में जिस्मानी संबंध बना कर उस से बाजार में खूब खरीदारी कराती थी. यही हाल कुछ समय पहले तक उस की बड़ी बहन कीर्ति का था. उस के भी कई बौयफ्रैंड थे. एक बार जब वह एक बौयफ्रैंड के साथ एक पार्क में संबंध बना रही थी कि तभी वहां 5-6 कालेज के दादा किस्म के लड़के आ गए. उन लड़कों को देख कीर्ति का बौयफ्रैंड वहां से भाग गया, मगर उन लड़कों ने कीर्ति को दबोच लिया और 3-4 घंटे तक उस का बलात्कार किया. जब कीर्ति को होश आया, तो वह गिरतेपड़ते अपने घर पहुंची. उस के बाद उस ने अपने सभी बौयफ्रैंडों से दोस्ती खत्म कर ली और अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. वह आज एक बड़ी सरकारी अफसर है.

कई साल पहले राजस्थान के धौलपुर जिले के बसेड़ी कसबे में जाटव जाति का एक गरीब परिवार का लड़का चंद्रपाल जब पटवारी की नौकरी पर लगा था, तब उस के मांबाप ने उसे समझाया था कि वह अपनी नौकरी ईमानदारी से करे. अपने मांबाप की इन बातों को सुन कर चंद्रपाल ने अपना काम ईमानदारी से करना शुरू कर दिया था.

पटवारी की नौकरी करते हुए वह कुछ सालों बाद भूअभिलेख निरीक्षक बन गया और उस के बाद नायब तहसीलदार और अब तहसीलदार बन कर ईमानदारी से अपना काम कर रहा है.

30 साला मनोज एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है. कमाऊ महकमे में होने के चलते वह हजार दो हजार रुपए रोजाना ऊपर की कमाई कर लेता है. वह जयपुर के प्रताप नगर हाउसिंग बोर्ड में अपनी 23 साला बीवी सुप्रिया के साथ रहता है.

जब मनोज की बीवी 3 बच्चों की मां बन गई, तो उस का झुकाव अपनी 20 साला कालेज में पढ़ने वाली साली नेहा की ओर हो गया. वह उसे अपने पास ही रखने लगा. उस ने अपनी साली को पैसे और महंगेमहंगे तोहफे दे कर पटा लिया था. बीवी के सो जाने पर वह अपनी साली के कमरे में चला जाता था.

एक रात को अचानक नींद खुल जाने से जब मनोज की बीवी सुप्रिया ने उसे अपने बैड पर नहीं देखा, तो वह अपनी छोटी बहन नेहा के कमरे में चली गई. वहां पर उन दोनों को साथ देख वह गुस्से में आगबबूला हो उठी.

कुछ दिनों तक तो वे दोनों एकदूसरे से दूर रहे, मगर फिर होटल में मिलने लगे. एक दिन जब वे होटल में पुलिस द्वारा पकड़े गए, तो उन के मांबाप को बहुत दुख हुआ.

वे दोनों जीजासाली सोच रहे थे कि अगर सुप्रिया उन के बीच रोड़ा नहीं बनती, तो उन्हें होटल में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. लिहाजा, उन्होंने सुप्रिया की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या के बाद वे दोनों वहां से फरार हो गए. दूसरे दिन जब पड़ोस के लोगों को मालूम हुआ, तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.कई दिनों के बाद सुप्रिया की हत्या के जुर्म में मनोज और नेहा को गिरफ्तार कर लिया गया.

दूसरों की ऐसी भूल से सबक ले कर जो लोग इन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं करते हैं, वे सुख भरी जिंदगी बिताते हैं.

इस तरह लें Perfect Selfie और कमाएं ज्यादा लाइक

Perfect Selfie : आजकल सोशल मीडिया का जमाना है. सुबह की पहली चाय की चुस्की से लेकर रात में बिस्तर पर लेटने तक की सारी अपडेट फोटो और वीडियो के जरिए लोग अपने दोस्तों और फौलोवर्स के साथ शेयर करना पसंद करते हैं. यूजर्स के अंदर सेल्‍फी का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है. मौका मिलते ही लोग सेल्‍फी लेना नहीं भूलते. लेकिन सेल्फी लेना भी एक कला है. सेल्फी लेने के लिए सही एंगल लाइटिंग, पोज़, जैसी कई बातों का धयान रखना होता है ताकि आपकी सेल्फी अच्छी आये और ज्यादा से ज्यादा लोग उसे लाइक कर सकें. आइये जाने कैसे ले सकते हैं अच्छी सेल्फी.

बाई डिफौल्‍ट मोड

हम आपको बता दें कि फोन में सभी सेटिंग औटो पर रहना ही बाई डिफौल्ट मोड होता है. अगर आपकी सभी सेटिंग्स बाई डिफौल्ट मोड पर हो, तो इससे सेल्फी अच्छी आएगी. साथ ही आपको सेल्फी लेने में टाइम भी कम लगेगा और लाइट और इफेक्‍ट अपने आप ही सेट हो जाएगा.

पोर्ट्रेट मोड

आपके iPhone में एक पोर्ट्रेट मोड है, जिसका आप शानदार पोर्ट्रेट शौट्स लेने के लिए फायदा उठा सकते हैं. पोर्ट्रेट मोड में 6 पोर्ट्रेट लाइट औप्शन हैं – नैचुरल, स्टूडियो, कंटूर, स्टेज, स्टेज मोनो, और हाई‑की मोनो, जिनमें से सभी अलगअलग स्थितियों के हिसाब से थोड़ा अलग लाइटिंग टोन प्रदान करते हैं.

बैकग्राउंड लाइट पर भी धयान दें

सेल्फी लेने से पहले बैकग्राउंड लाइट चैक करें. ऐसा न हो कि सेल्फी ले रहे हों और पीछे से लाइट आ रही हो. लाइट के कारण चेहरा साफ नहीं आएगा. जब भी फोटो क्लिक करें तो ध्यान रखें कि उजाला सामने से आ रहा हो या फिर साइड से। इससे फोटो स्वाभाविक दिखती है.

कैमरा एंगल को चेहरे के नीचे रखने की जगह ऊपर की ओर रखें

अगर आप कैमरा एंगल को अपने चेहरे के नीचे रखने की जगह ऊपर की ओर रखेंगी तो सेल्फी ज्यादा बेहतर आएगी. नीचे की ओर कैमरा रखने से ऐसा हो सकता है कि चेहरे पर प्रौपर लाइट न पड़े और साथ ही साथ चेहरा मोटा भी लगे. अगर चेहरे को पतला दिखाना है तो इसके लिए सेल्फी को ऊपर की ओर से खींचें. आपकी आंखें ऊपर की ओर होनी चाहिए और साथ ही साथ आपकी आईब्रो भी अगर थोड़ी सी चढ़ी हुई होगी तो चेहरे के फीचर्स ज्यादा बेहतर दिखेंगे.

नेचुरल लाइट का यूज करें

अगर अच्छी फोटो लेनी है तो कमरे की खिड़कियां या दरवाजे खोल दें या फिर जिस जगह सूरज की रौशनी हो वहां लें. आप खुद देखेंगे कि नेचुरल लाइट में फोटो बहुत अच्छी आती है.

नाइट मोड

अगर आपके फोन में नाइट मोड का फीचर है तो उसका यूज़ अँधेरे में फोटो लेने के लिए कर सकते हैं. अगर ज़्यादा अंधेरा होने पर शौट लेना है तो अपनी फोटो को ब्राइट करने के लिए अपने फोन के नाइट मोड का इस्तेमाल करें.

एक्सपोज़र एडजस्ट करें (Adjust exposure)

अगर आप कम रोशनी वाली जगह पर सेल्फी लेना चाहते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. आप अपने iPhone के साथ मैन्युअल रूप से एक्सपोज़र एडजस्ट कर सकते हैं. बस अपने सबजेक्ट को फोकस रखें और स्क्रीन पर टैप करें. एक लाइट चिह्न दिखाई देगा जिसे आप लाइट की आवश्यकता के अनुसार मैन्युअल रूप से एक्सपोज़र एडजस्ट करने के लिए ऊपर और नीचे घुमा सकते हैं.

ग्रुप सेल्फी लेने से बचें

सेल्फी का मतलब ही है अपना फोटो लेना या फिर साथ में एक बन्दे को और लिया जा सकता है. लेकिन कई बार हम अपने पुरे फ्रेंड सर्कल की सेल्फी एक साथ लेने में लग जाते हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है. इससे फोटो भी अच्छा नहीं आता. दरअसल, ग्रुप सेल्फी में कई बार फोकस की समस्‍या रहती है और जरूरी चीजें आउट औफ फोकस हो जाती हैं.

3 से 5 सेकेंड का टाइमर का यूज करें

कई बार होता है न कि सेल्फी में एंगल और फोटो सब अच्छा आ रहा होता है लेकिन स्क्रीन पर दिए बटन को दबाना बहुत मुश्किल हो जाता है. सेल्फी लेते समय हाथ हिल जाता है या फिर कोई ख़ास चीज काटने लगती है.या फिर चीजें ब्‍लर हो जाती हैं. ऐसे में आप सेल्फ टाइमर का उपयोग कर सकते हैं. इससे सेल्फी अच्छी भी आएगी और मेहनत भी कम होगी.

सेल्फी के पोज़ पर भी धयान दें

सेल्फी लेने का शौक तब शॉक में बदल जाता है जब पोज़ इतना बेकार आता है कि बाद में पछतावा होता है कि काश सही पोज़ कैसे बनता है इस पर भी धयान दे दिया होता. इसलिए सेल्‍फी लेते वक्‍त आप थोड़ा साइड पोज दें यानी की फोटो दाईं या बाईं ओर से ही लें. इससे आपका फीचर शार्प और अधिक आकर्षक आता है. इसके आलावा सेल्फी के लिए हमेशा एक पोज देने से बेहतर है कि आप कुछ नया पोज ट्राई करें. इसके लिए आप चश्मा लगाएं या फिर किसी के साथ खड़े हों.

अपने फोन के पीछे के कैमरे का प्रयोग करें

कई सेलफोन्स में दो केमरे होते हैं: एक आगे और एक पीछे. सेल्फी लेने के लिए आगे के कैमरे की बजाय पीछे के कैमरे का उपयोग करें क्योंकि आगे के कैमरे की अपेक्षा पीछे का कैमरा हायर रेसोलुशन पिक्चर देता है जिससे धुंधली सेल्फी से मुक्ति मिलती है .अपना फ़ोन चारों और घुमाना होगा और फोटो लेने के लिए आपको अपना चेहरा भी नहीं दिखेगा, फिर भी पीछे के कैमरे का उपयोग करने से होने वाली परेशानी उठाकर भी आप अच्छी सेल्फी पाकर फ़ायदे में रहेंगे.

फोटो एडिटिंग करते समय धयान दें

वैसे तो फोटो में नेचुरल लुक हीअच्छा लगता है. ज्यादा एडिट करने से फोटो दिखावटी लगती है. अगर फोटो को एडिट करना है तो अलग से एप्स की जगह फोन के कैमरे में दिए एडिट फीचर्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

फ्लैश लाइट का इस्तेमाल

सेल्फी अगर दिन के समय ले रहे हैं तो फ्लैश लाइट का इस्तेमाल न करें. इससे प्राकृतिक फोटो नहीं आती है और अधिक रोशनी के कारण तस्वीर ख़राब हो सकती है या दिखावटी लग सकती है.

सेल्फी स्टिक का करें प्रयोग

अगर आप अकेले सफर पर हैं, तो सेल्फी फोटो के लिए सेल्‍फी स्टिक का इस्‍तेमाल करें. स्टिक की वजह से कैमरा आपसे थोड़ा दूर हो जाता है और आप अपनी तस्वीर दूर से लेने में सक्षम होते हैं.

फिल्टर्स का प्रयोग करें

अधिकतर लोग जो सेल्फी लेते हैं उनके फोन में एक एप्लीकेशन होता है जिसकी मदद से कलर और लाइट फिल्टर्स का प्रयोग करके मनपसंद डायमेंशन डाले जा सकते हैं. प्रत्येक फ़िल्टर हर एक सेल्फी के लिए सही नहीं होता इसलिए किसी एक को सेटल करने से पहले इस बात को समझें कि आपके लिए क्या सही है. जैसे कि सबसे सामान्य फिल्टर्स हैं “ब्लैक और व्हाइट” और “सेपिया”. अगर आपके फोन में ये एप इनस्टौल नहीं है तब भी शायद आपके पास ये फीचर्स हो सकते हैं. अन्य फिल्टर्स के द्वारा फोटो को विन्टेज़, क्रीपी या रोमांटिक लुक दिए जाते हैं. इन सभी को टेस्ट करके देखें कि इनमे से कौन सा फ़िल्टर आपके फोटो के लिए सबसे अच्छा है.

Brother Sister Relationship: जब भाईबहन के बीच पनपने लगे जलन

Brother Sister Relationship: दिल्ली के नेब सराय इलाके में एक भाई ने अपनी बहन और मांबाप को मौत के घाट उतार दिया. आरोपी के मातापिता की शादी की 27वीं सालगिरह थी. मृतकों की पहचान राजेश कुमार (51), कोमल (46) और कविता (23) के रूप में हुई थी. राजेश कुमार सेना से रिटायर थे और फिलहाल सिक्योरिटी औफिसर के रूप में काम कर रहे थे. उन की पत्नी हाउसवाइफ थी और बेटी पढ़ाई कर रही थी.

पूछताछ में पता चला कि पिता उसे पढ़ाई के लिए डांटते रहते थे. लेकिन उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने घर के बाहर कई लोगों के सामने उसे पीटा था. इतना ही नहीं, वह घर में भी अलगथलग महसूस करता था. उस ने यह भी बताया कि घर में मम्मी और बहन भी उसे सपोर्ट नहीं करती थीं. उसी दौरान उसे पता चला कि पिता पूरी प्रौपर्टी उस की बहन के नाम कर रहे हैं तो वह नाराज हो गया और उस ने उन्हें मारने का फैसला कर लिया. उस ने सब से पहले अपनी बहन की सोते समय गला काट कर हत्या कर दी. फिर वह ऊपर गया जहां उस ने अपने पिता की गरदन पर चाकू मारा. उस के बाद उस ने वाशरूम गई अपनी मां का गला काट दिया.

इसी तरह की कई घटनाएं आएदिन सुनने को मिल जाती हैं कि प्रौपर्टी के लिए बहन ने भाई को मार डाला या घर में बहन को ज्यादा इज्जत मिलने से भाई ने बहन को ठिकाने लगा दिया.

हम बचपन से सुनते और देखते आए हैं कि भाईबहन का रिश्ता दुनिया के सब से अनमोल और प्योर रिश्तों में से एक माना जाता है. यह एक ऐसा रिलेशन होता है जिस में बचपन की शरारतें, प्यार, मस्ती, एकदूसरे की चिंता और साथ ही कभीकभी नोकझोंक भी शामिल होती है. बचपन से ही भाईबहन एकसाथ बड़े होते हैं, एक ही छत के नीचे खेलते हैं, झगड़ते हैं, फिर मान जाते हैं.

इन दोनों के रिलेशन को मांबाप का प्यार और संस्कार दोनों को एकसाथ आगे बढ़ाने में मदद करता है. लेकिन कई बार सिचुएशन ऐसी हो जाती है कि इस रिश्ते में कंपीटिशन और जलन की भावना घर करने लगती है. यह भावना धीरेधीरे भाईबहन के रिश्ते को खराब करने लगती है और यदि समय रहते इसे सुलझाया न जाए तो यह ऊपर दी गई घटना का रूप भी ले सकती है.

यह जरूरी नहीं कि जलन की भावना केवल बहन को भाई से हो कि उस के मातापिता भाई को ज्यादा चाहते हैं और सभी सुखसुविधाएं भी उसी को देते हैं. हालिया दौर में यह स्थिति बदल सी गई है. घर में अगर बहन को ज्यादा तवज्जुह मिलती है तो भाई भी खुन्नस से भर जाते हैं.

दोनों में इस जलन की भावना के पीछे कई कारण हो सकते हैं. अकसर देखा जाता है कि मातापिता की अपेक्षाएं, सामाजिक तुलना, पारिवारिक माहौल आदि इस भावना को जन्म देने में आग में घी का काम करते हैं. जब मातापिता किसी एक संतान की उपलब्धियों को ज्यादा महत्त्व देते हैं और दूसरे को इग्नोर करते हैं, तो ऐसा महसूस करने वाला बच्चा धीरेधीरे अपने भाई या बहन से जलन महसूस करने लगता है. यह जलन बचपन से ही मन में घर कर जाती है और बड़े होने के साथसाथ यह भावना और गहरी होती चली जाती है.

कई बार मातापिता अनजाने में ही दोनों बच्चों की तुलना करने लगते हैं. पढ़ाई में कौन बेहतर है, खेलकूद में कौन आगे है, कौन अधिक जिम्मेदार है, किस की नौकरी अच्छी है. यहां तक कि जब बच्चों में उन की शकलसूरत और रंगभेद किया जाता है तब बच्चे के मन में हीनभावना आ जाती है. इस से वह दबा हुआ फील करने लगता है और मन ही मन घुटता जाता है.

यदि किसी एक बच्चे को ज्यादा सराहा जाता है, तो दूसरा बच्चा यह महसूस करने लगता है कि उसे पर्याप्त प्यार और पहचान नहीं मिल रही. यह भावना तब और भी गहरी हो जाती है जब समाज, रिश्तेदार या दोस्त भी इस तुलना को बढ़ावा देने लगते हैं.

कुछ मामलों में पैसा और परवरिश भी भाईबहन के बीच जलन की भावना को जन्म देती है. यदि परिवार में किसी एक भाई या बहन को अधिक सुविधाएं, बेहतर शिक्षा या दूसरे से ज्यादा संपत्ति मिलती है, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ अन्याय हुआ है. संपत्ति का बंटवारा कई बार भाईबहनों के बीच दुश्मनी का सब से बड़ा कारण बन जाता है.

इस के अलावा, जब कोई भाई या बहन किसी क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहा हो और दूसरा संघर्ष कर रहा हो, तो दूसरे के मन में हीनभावना आ सकती है. यदि मातापिता और परिवार इस अंतर को और बढ़ाने लगते हैं, तो यह भावना जलन का रूप ले सकती है.

ऐसा ही हुआ सुमित और रिया के बीच. सुमित और रिया बचपन से ही हर खुशी और हर मुश्किल में साथ रहते थे. बचपन में साथ खेलना, झगड़ना, फिर मान जाना उन की रोज की आदत थी. लेकिन जैसेजैसे वे बड़े हुए, उन के बीच एक अनकही दूरी आने लगी.

सुमित पढ़ाई में बहुत तेज था, हर परीक्षा में अव्वल आता और घर में उस की खूब तारीफ होती. रिया भी मेहनती थी, लेकिन उस के अंक हमेशा औसत ही रहते. हर बार जब सुमित की तारीफ होती, रिया के मन में यह खयाल आता कि क्या वह अपने मातापिता की पसंदीदा संतान नहीं है? धीरेधीरे यह भावना जलन में बदलने लगी.

समय बीतता गया. सुमित ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली, जबकि रिया ने एक छोटे से स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली. अब रिश्तेदार भी अकसर तुलना करने लगे “सुमित ने तो नाम कमा लिया, रिया बस एक मामूली टीचर रह गई.” ये बातें रिया को अंदर ही अंदर चुभने लगीं.

एक दिन, जब सुमित घर आया तो उस ने मांपापा के लिए एक महंगा उपहार ला कर दिया. मां की आंखों में खुशी के आंसू थे और उन्होंने सुमित को गले से लगा लिया. रिया एक कोने में खड़ी यह सब देख रही थी. उस के मन में जलन का भाव और गहरा हो गया. उसे लगा कि मातापिता को अब उस की कोई परवा नहीं है.

अगले दिन रिया ने सुमित से बिना बात के झगड़ा कर लिया. सुमित को समझ नहीं आया कि आखिर उस की बहन इतनी गुस्से में क्यों है. लेकिन फिर उस ने गौर किया कि रिया उस से पहले की तरह बात नहीं करती, हंसती नहीं और हमेशा चुपचुप सी रहती है.

एक दिन, जब रिया स्कूल से लौटी तो देखा कि सुमित ने उस के लिए एक सुंदर डायरी ला कर रखी थी, जिस पर लिखा था, “मेरी सब से प्यारी बहन के लिए, जो मेरी प्रेरणा है.” यह पढ़ कर रिया की आंखों से आंसू बह निकले. उस ने सुमित से लिपट कर रोते हुए कहा, “भैया, मुझे माफ कर दो, मैं हमेशा यह सोचती रही कि तुम मुझ से बेहतर हो, लेकिन सच तो यह है कि तुम ने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.”

सुमित ने कहा, “तू मेरी बहन है, रिया. हमारे रिश्ते में तुलना या जलन के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. हम दोनों एक ही परिवार का हिस्सा हैं और हमें हमेशा एकदूसरे की खुशियों में खुश रहना चाहिए.”

उस दिन रिया को एहसास हुआ कि जलन एक ऐसा जहर है जो प्यारभरे रिश्तों को भी धीरेधीरे खराब कर सकता है.

इस वाकेआ में तो समय रहते रिया ने अपनी खटास दूर कर ली. लेकिन कई बार ये छोटीमोटी जलन और मनमुटाव बड़े हादसों का कारण बन जाते हैं. मातापिता का अधिक लगाव भी इस समस्या को बढ़ा सकता है. यदि माता या पिता किसी एक संतान को अधिक प्यार और ध्यान देते हैं, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

हालांकि, इस समस्या को हल करने के कई तरीके हो सकते हैं. सब से पहले, मातापिता को चाहिए कि वे अपने सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार करें और उन की भावनाओं को समझने की कोशिश करें. क्योंकि अगर मातापिता ही अपने बच्चे को इज्जत नहीं देंगे तो उस के भाईबहन भी उसे कुछ नहीं समझेंगे. किसी भी बच्चे को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि वह अपने मातापिता के प्यार और ध्यान से वंचित है. तुलना करने से बचना चाहिए और हर बच्चे की व्यक्तिगत क्षमताओं को पहचान कर उसे प्रोत्साहित करना चाहिए.

भाईबहनों को भी आपस में संवाद बनाए रखना चाहिए. अगर किसी को दूसरे से कोई शिकायत हो तो उसे खुल कर व्यक्त करना चाहिए, न कि मन में जलन की भावना पालनी चाहिए. अकसर गलतफहमियां ही रिश्तों में दरार पैदा करती हैं, इसलिए कम्युनिकेशन की कमी नहीं होनी चाहिए.

निर्देशक Guddu Dhanoa ने नए कलाकारों के लिए दिया ये खास मैसेज

Guddu Dhanoa : ‘बिच्छू’ और ‘जिद्दी’ फिल्म से सफलता पाने वाले लेखक, निर्माता निर्देशक गुड्डू धनोवा का शुरुआती दौर काफी संघर्ष पूर्ण रहा, लेकिन उन्होंने मेहनत, धीरज और लगन से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई, उनकी ऐक्शन फिल्में हमेशा ही दर्शकों की पसंद रही है, जिसमें उन्होंने हमेशा नए स्टारकास्ट को प्रमुखता दी है, जिसमें शाहरुख खान को फिल्म दीवाना में लौन्च किया, जो उनकी पहली फिल्म थी. जबकि दिलजीत दोसांझ को फिल्म द  लौयन औफ पंजाब में लौन्च किया. आज भी उन्होंने अभिनेत्री पलक तिवारी को ‘रोमियो एस 3’ में परिचय करवाया है. जिसमें दर्शक उनके काम की काफी सराहना कर रहे है. वह बौलीवुड फिल्म स्टार धर्मेंद्र के चचेरे भाई हैं.

उनकी फिल्म ‘रोमियो एस 3’ रिलीज हो चुकी है, जो एक ऐक्शन ड्रामा फिल्म है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है. उन्होंने खास गृहशोभा से अपनी जर्नी और इंडस्ट्री की उतारचढ़ाव के बारें में बात की पेश है कुछ खास अंश.

ऐक्शन फिल्में बनाना पसंद

निर्देशक गुड्डू को हमेशा ऐक्शन वाले मनोरंजन से भरपूर एक्शन फिल्में बनाना पसंद करते है, इसलिए उन्होंने देर से ही सही लेकिन एक अच्छी फिल्म से दर्शकों को परिचित करवाया है. वे कहते है कि मैं कई सालों से एक अच्छी थ्रिलर ऐक्शन फिल्म बनाने के बारें में सोच रहा था, क्योंकि हर फिल्म की एक समय होती है, जब उसे बनना पड़ता है और यही इस फिल्म के साथ भी हुआ है. निर्माता जयंतीलाल गाडा का ये सपना था कि वे अभिनेता ठाकुर अनूप सिंह को हिन्दी फिल्म में लौन्च करेंगे, उन्होंने इस फिल्म की योजना बनाई, ऐसे में मेरे फ्रेंड दीपक शर्मा ने जब इसकी कहानी सुनी, तो उन्होंने मेरा नाम सुझाया और मुझे बुलाया गया. इसकी कहानी नई और अच्छी लगी, क्योंकि मैं काफी समय से ऐसी कहानी ढूंढ रह था, जिसमें एक्शन के साथसाथ मनोरंजन भी हो. इस फिल्म में रोमियो एक औपरेशन है, जिसे हीरो अंजाम तक पहुंचाता है.

नए कलाकारों के साथ काम करना है पसंद

आपने अभिनेत्री पलक तिवारी के साथ अभी काम किया है, नई जेनरेशन के साथ काम करना क्या आसान होता है या मुश्किल?

गुड्डू कहते है कि मैंने हमेशा नए कलाकार के साथ काम किया है, मेरी पहली पिक्चर जिसे मैंने प्रोड्यूस किया था, उसमें मैंने अभिनेता गोविंदा और अभिनेत्री किमी काटकर नएनए थे, इसके बाद डेविड धवन की फिल्म गोला बारूद थी, उसमें चंकी पांडे नया था, फिल्म दीवाना में अभिनेता शाहरुख खान और अभिनेत्री दिव्या भारती बिल्कुल नए थे, इसके बाद अभिनेता अक्षय कुमार के साथ फिल्म एलान किया, वे भी उस समय नए थे.

फिल्म गुंडाराज में अजय देवगन नया था. इस तरह से मेरे जिंदगी में जो बड़ा स्टार आया वे सनी देओल थे, जिनके साथ मैंने फिल्म जिद्दी बनाई. इस तरह मेरा अनुभव हमेशा नए लोगों के साथ काम करने का रहा है और नए लोगों के साथ काम करने और सिखाने में बहुत मज़ा आता है. अगर ये सीखे हुए है तो काम करना और भी अधिक आसान होता है. पलक तिवारी भी नई है, लेकिन बहुत अच्छी सीखी हुई वन टेक आर्टिस्ट है. इसके अभिनेता अनूप सिंह राठौर भी अच्छे आर्टिस्ट है.

स्टार किड्स की फ्लौप फिल्मों की वजह

अभी तक कई नए स्टार किड्स ने फिल्में की, लेकिन फिल्में फ्लौप रही, जिसके जिम्मेदार एक निर्देशक को ही माना जा रहा है. इस बारें में गुड्डू कहते हैं कि एक कलाकार की प्रतिभा को एक निर्देशक ही उसके अंदर से निकाल सकता है. अगर उनके अंदर उतनी प्रतिभा नहीं भी है, तो उन्हे सीखाना और बताना पड़ता है. अभिनेता धर्मेन्द्र ने जब सनी देओल को फिल्म जिद्दी के लिए लॉन्च किया था, तो पूरा ध्यान, टेकनीशियन, सब्जेक्ट, कंटेन्ट, अच्छा डायरेक्टर, म्यूजिक डायरेक्टर आदि पर था. उस फिल्म के गाने भी हिट रहे. हिन्दी फिल्म में अच्छे गानों का होना बहुत जरूरी होता है, जिससे कई फिल्में हिट हो चुकी है.

हौलिवुड को कौपी करना पड़ रहा भारी

ऐक्शन फिल्मों के बदलते दौर के बारें में पूछने पर निर्देशक कहते हैं कि मैंने कई एक्शन फिल्में बनाई और मेरी फिल्मों में एक्शन, कहानी के अंदर, परिवार और इमोशन के साथ जुड़ा हुआ होता था, जिसमें भाईबहन, मातापिता सबके चरित्र की अहमियत फिल्म में होती थी, जो आज की फिल्मों में नहीं है, साउथ में आज भी वैसी ही फिल्में बन रही है और फिल्में हिट भी हो रही है. जैसे यशराज ने दीवार, त्रिशूल, घायल, घातक, जिद्दी आदि बनाई थी, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. अब वैसी फिल्में बन नहीं रही, क्योंकि अब हिन्दी सिनेमा वाले हौलिवुड स्टाइल, वहां की तकनीक की कौपी कर रहे है और वे ऐसा क्यों कर रहे है, इसे मैं भी समझ नहीं पा रहा. मैँ वैसी सिनेमा को बहुत मिस करता हूं और अगर मैंने कभी फिल्म बनाई, तो वैसी ही फिल्म बनाऊंगा. ये फिल्म तो पहले से लिखी गई थी, लेकिन मैंने इस पर राइटर को बैठाकर बहुत काम किया है.

था बहुत संघर्ष

गुड्डू धनोवा के निर्देशक बनने की पीछे की कहानी भी बहुत दिलचस्प है, वे हंसते हुए कहते है कि मैं डायरेक्टर बनने नहीं आया था, ऐक्टर बनने ही आया था और अभिनेता धर्मेन्द्र मेरे कजिन है. जब मैं इस क्षेत्र में आया तो बहुत संघर्ष रहा, मैं वीरू देवगन के पास फाइटर बनने गया था, जबकि अभिनेत्री जया प्रदा के पास मैं ड्राइवर की नौकरी के लिए भी दो बार गया था. उस दौरान उनकी सेक्रेटरी ने कहा कि मैडम एक तारीख को आएंगी, मैं तब गया फिर पता चल 15 को आएंगी, फिर 15 को गया, लेकिन मैडम नहीं आई और मुझे वहां नौकरी नहीं मिली. फिर मेरी बहन ने मुझे विक्रमजीत फिल्म्स के साथ काम करने का कहा, मैंने वहां काम शुरू किया और वहां कई वर्कशौप किये और पूरी फिल्म मेकिंग सीखा. तब मैंने पहली फिल्म सितमगर बनाई, इसके बाद बेताब फिल्म को प्रोडक्शन मैनेजर के तौर पर काम किया. इसके बाद फिल्म अर्जुन, मेरा लहू को मैंने प्रोड्यूस किया. फिल्म गोलाबारूद को भी मैंने ही प्रोड्यूस किया था, जिसके निर्देशक डेविड धवन थे. इसके बाद मैंने फिल्म दीवाना प्रोड्यूस किया, इस फिल्म के बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, लेकिन यहां मुश्किल ये हुई कि फिल्म दीवाना के हिट होते ही उसके डायरेक्टर राज कंवर ने मेरी दूसरी फिल्म को उस तय पारिश्रमिक में करने से मना कर दिया, जबकि उनके साथ दो फिल्मों का कान्टैक्ट था. यहां मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने खुद पिक्चर डायरेक्ट करने की ठान ली और निर्देशक के रूप में मेरी पहली फिल्म एलान बनी.

अच्छी कंटेंट बनाना जरूरी

आज हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री पीछे जा रही है, कई सिनेमा हौल बंद हो चुके है, इसके जिम्मेदार के बारें में पूछने पर गुड्डू धनोवा कहते हैं कि आज दर्शकों के पसंद की चीजें फिल्म मेकर नहीं बना पा रहे हैं और जो भी कुछ थोड़ा दर्शकों को पसंद आ रहा है, वह इतना अधिक मात्रा में बन रहा है कि उसका चार्म अब दर्शकों के बीच में नहीं है, क्योंकि घर बैठे एक अच्छी कहानी दर्शक देख पाते है. मुझे पता है कि मेरी फिल्म भी 8 हफ्ते के बाद में ओटीटी पर आ जाएगी और उन 8 हफ्ते में मेरे पास इतना कंटेन्ट है कि घर बैठे ही मेरा पूरा समय उसी में बीत रहा है, ऐसे में कुछ अलग होने पर ही दर्शक हॉल तक आएंगे वरना नहीं. इसमें बजट भी बड़ी बात होती है. मेरी फिल्म बड़ी बजट की नहीं है, लेकिन मैंने जितना हो सकें, लार्जर देन लाइफ बनाने की कोशिश की है.

ले पूरी ट्रैनिंग

आगे गुड्डू ने ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए वेब सीरीज ‘शुभचिंतक’ बनाने की पहल की है, जिसका काम शुरू हो चुका है, ये एक ऐक्शन सहित फुल ड्रामा वाली वेब सीरीज होगी. अपकमिंग कलाकारों के लिए उनका मैसेज है कि जब भी आप इस इंडस्ट्री में आते है, पूरी ट्रैनिंग के साथ आए, दिल से काम करें और एक टाइमबाउंड के साथ आएं, जो 2 से 3 साल तक का ही हो. अगर आप फिल्म इंडस्ट्री में सफल होते है, तो ईमानदारी से काम करें और नहीं तो अपने पेरेंट्स के साथ रहकर दूसरे किसी फील्ड में काम की तलाश करें, यहां रहकर अपना लाइफ खराब न करें.

Content Creators in India: मुश्किल है सोशल मीडिया पर टिके रहना

Content Creators in India: “साड़ी वाली दीदी आई, सैलरी चुराने आई”, “सच बोलना अब जोक बन गया है, और जोक बोलना जुर्म”, “हम होंगे कंगाल”, ये गाने और लाइनें मशहूर और उस से ज्यादा विवादित स्टैंडअप कौमेडियन कुनाल कामरा की हैं, जो अकसर राजनीतिक स्टैंडअप कौमेडी करते हैं और चर्चाओं में रहते हैं. बीते दिनों उन्होंने ‘नया भारत’ नाम से 45 मिनट का एक स्टैंडअप यूट्यूब पर अपलोड किया जिस में ये लाइनें थीं जो कुछ ही मिनटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं.

36 वर्षीय स्टैंडअप कैमेडियन ने अपने आखिरी शो में शिंदे के राजनीतिक कैरियर पर कटाक्ष किया था. कामरा ने फिल्म ‘दिल तो पागल है’ के एक गाने की पैरोडी की थी, जिस में शिंदे को गद्दार कहा गया. कामरा का वीडियो सामने आने के बाद 22 मार्च की रात शिवसेना शिंदे गुट के समर्थकों ने मुंबई हैबिटेट कौमेडी क्लब में जम कर तोड़फोड़ की और उन के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई. उन पर आरोप लगाया गया कि कौमेडी को नाम पर वे सरकार की बुराई कर रहे हैं.

इस मामले को एक बड़े यूथ तबके ने फ्रीडम औफ स्पीच माना और बड़ी संख्या में उन्हें सपोर्ट किया. हुआ यह कि कुनाल कामरा के आमतौर पर जो स्टैंडअप 2-3 मिलियन की रीच पाते हैं उस में उन्हें डेढ़ करोड़ व्यूज मिल चुके हैं.

सोशल मीडिया में जहां डांस रील्स, ट्रैंडिंग औडियो, फैशन कंटैंट और ट्रैवल व्लौग्स ही दिखाई देते हैं वहां ऐसे कंटैंट भी देखने को मिलते हैं जो विवाद तो पैदा करते ही हैं, साथ में क्रिटिकल भी खूब देखे व सुने जाते हैं. परिणाम यह कि डांस रील या फैशन रील बनाने वाले इन्फ्लुएंसर्स जहां 4-6 महीने ट्रैंड में रह कर दम तोड़ जाते हैं और कहीं खो जाते हैं वहीं कुछ हट कर काम करने वाले लंबे समय तक सोशल मीडिया पर बने रहते हैं. ऐसा कंटैंट जो लोगों को सोचने पर मजबूर करे. ऐसा कंटैंट जो क्रिटिकल हो, सच्चाई के साथ हो और जनता के काम का हो.

ये चलते ही इसलिए हैं क्योंकि ये थोड़े यूनीक तरीके से अपनी बातें कह रहे हैं और जरूरी यह कि वे बातें कह रहे हैं जो सुनाई कम दे रही हैं.

ये क्रिएटर्स करते क्या हैं?

यर लोग किसी पार्टी का प्रचार नहीं करते, बल्कि जो सामने है, उसे बिना डर के दिखाते हैं. इन का कंटैंट सरकाज्म से भरा होता है यानी सटायर जिस में हास्य के जरिए गंभीर सवाल उठाए जाते हैं.

भारत की रेंटिंग गोला उर्फ शमिता यादव अपने वीडियो में नेताओं की स्पीच, सरकारी फैसलों और न्यूज चैनल्स की प्रोपगंडा रिपोर्टिंग को कटपेस्ट कर के नया, मजेदार और सोचने लायक वीडियो बना देती हैं. शमिता के इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर लाखों फौलोअर्स हैं. कुनाल कामरा केस के बाद उन्होंने और तेजी से अपने कंटैंट को पोस्ट करना शुरू कर दिया.

रैंटिंग गोला अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि उन्हें सरकार के बारे में लोगों से बात करना काफी इंट्रैस्टिंग लगता था. धीरेधीरे उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए वीडियो पोस्ट करना शुरू किया. उस के बाद राजनेताओं की मिमिक्री करना शुरू किया और लोगों को वह सब  काफी पसंद भी आने लगा. बता दें कि रैंटिंग गोला पौलिटिकल कंसल्टैंट के तौर पर काम करती थीं, अब वे फुलटाइम सोशल मीडिया कंटैंट बनाती हैं.

रैंटिंग गोला के अलावा देश में और भी कई फेमस स्टैंडअप कौमेडियन हैं. उन में वरुण ग्रोवर का नाम भी ऊपर आता है. वे अपनी कविता और स्टैंडअप के जरिए करप्शन, सैंसरशिप और लोकतंत्र की हालत पर कटाक्ष करते हैं. हाल में उन्होंने ‘कौमेडी इज डिफिकल्ट’ नाम से एक स्टैंडअप अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया, जिसे 20 लाख लोग देख चुके हैं. इस वीडियो में उन्होंने पौलिटिकल सटायर किए हैं.

बता दें, वरुण ग्रोवर के यूट्यूब पर 10 लाख सबस्क्राइबर्स हैं. वे अकसर एंटी स्टैब्लिश्मेंट कंटैंट डालते रहते हैं जिन्हें खूब पसंद किया जाता है.

हाल में ‘सुपरबौयज औफ मालेगांव’ फिल्म की स्क्रिप्ट उन्होंने लिखी. वे डाक्यूमैंट्री स्टाइल में असली मुद्दों पर रिसर्च कर के वीडियो बनाते हैं, जैसे बेरोजगारी, पेपर लीक, किसान आंदोलन, मीडिया की गिरावट आदि. उन की कविताएं जैसे ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे…’ जिस में खूब व्यंग्य था, काफी चर्चित रहा.

वरुण ग्रोवर का कहना है, “लोकतंत्र में अगर कोई सवाल नहीं पूछता, तो फिर वह लोकतंत्र नहीं रहता.”

जहां एक तरह लोग जल्दी वायरल होने के लिए कुछ भी ऊटपटांग कंटैंट बनाते हैं, कुछ अपने जिस्म की नुमाइश करते हैं वहां इतना रिस्की कंटैंट बनाना चैलेंज से कम नहीं. यही चैलेंज इन्हें औथेंटिक बनाता है, क्योंकि इस में कई रिस्क होते हैं, जैसे-

-वीडियो हटाया जा सकता है

-चैनल बंद हो सकता है

-पुलिस केस या लीगल नोटिस आ सकता है

-ट्रोल्स और आईटी सैल की औनलाइन गालियां मिल सकती हैं

फिर भी ये क्रिएटर्स बोलते हैं. इन्हें सुनने वाले टाइमपास के लिए नहीं आते बल्कि इन से कुछ काम का ले कर जाते हैं. यही कारण भी है कि भले इन के व्यूअर्स बहुत अधिक नहीं होते पर वे इन के साथ स्टिक रहते हैं और लगातार बने रहते हैं. जैसे, एक क्रिएटर ने कहा था- “लोग अब मीम से ज्यादा सच्चाई जानने में इंट्रैस्टेड हैं.”

मिलती हैं धमकियां, फिर भी बोलते हैं क्यों?

कई क्रिएटर्स को ट्रोलिंग, लीगल नोटिस और यहां तक कि गिरफ्तारी तक का सामना करना पड़ा है. लेकिन फिर भी वे पीछे नहीं हटते. और यही चीज उन के औडियंस को सब से ज्यादा इंस्पायर करती है.

कुनाल कामरा, वरुण ग्रोवर और ध्रुव राठी इन सभी का सोशल मीडिया पर अच्छाखासा फैनबेस है. लोग इन्हें सपोर्ट करते हैं. कुनाल कामरा के केस के बाद उन की वीडियोज पर भारीभरकम व्यूज आने लगे. यहां तक कि जब उन पर एफआईआर दर्ज हुई तो उन के फैंस ने कमैंट सैक्शन पर पैसे डोनेट करने शुरू कर दिए और लिखा कि आप वीडियो बनाते रहिए, आप के वकील के पैसे हम देंगे.

यानी, अब लोग सिर्फ हंसीमजाक ही नहीं, बल्कि ऐसे कंटैंट को ज्यादा पसंद करते हैं जिस में इंडिपेंडैंट वौयस हो और बिना किसी डर के सच्चाई सामने रखी गई हो.

Hindi Folk Tales : काश, तुम भाभी होती

Hindi Folk Tales :  पुनीत पटना इंजीनियरिंग कालेज में प्रीफाइनल ईयर में पढ़ रहा था. उस का भाई प्रेम इंजीनियरिंग कर 2 साल पहले अमेरिका नौकरी करने गया था. उस के पिता सरकारी नौकरी में थे. वह साइकिल से ही कालेज जाया करता था. एक दिन जाड़े के मौसम में वह कालेज जा रहा था. उस दिन उस का एग्जाम था. अचानक उस की साइकिल की चेन टूट गई. ठंड में इतनी सुबह कोई साइकिल रिपेयर की दुकान भी नहीं खुली थी और न ही कोई अन्य सवारी जल्दी मिलने की उम्मीद थी. उस के पास समय  भी बहुत कम बचा था. कालेज अभी  3 किलोमीटर दूर था. वह परेशान रोड पर खड़ा था. तभी एक लड़की स्कूटी से आई और बोली, ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

पुनीत ने अपनी परेशानी का कारण बताया. लड़की स्कूटी पर बैठ गई और पुनीत से बोली ‘‘आप साइकिल पर बैठ जाएं और मेरे कंधे को पकड़ लें. बिना पैडल किए मेरे साथ कुछ दूर चलें. मेरा कालेज आधा किलोमीटर पर है. उस के बाद मैं आप को इंजीनियरिंग कालेज तक छोड़ दूंगी.’’

थोड़ी दूर पर मगध महिला कालेज के गेट पर उस ने दरबान को साइकिल रिपेयर करवाने के लिए बोल कर पुनीत से कहा, ‘‘आप मेरी स्कूटी पर बैठ जाएं, मैं आप को ड्रौप कर देती हूं. कालेज से लौटते वक्त अपनी साइकिल दरबान से ले लेना. हां, उसे रिपेयर के पैसे देना न भूलना.’’

उस लड़की ने पुनीत को कालेज ड्रौप कर दिया. पुनीत ने कहा ‘‘थैंक्स, मिस… क्या नाम…?’’

लड़की बिना कुछ बोले चली गई. कुछ दिनों बाद पुनीत कालेज से लौटते समय सोडा फाउंटेशन रैस्टोरैंट में एक किनारे टेबल पर बैठा था. पुनीत लौन में जिस टेबल पर बैठा था उस पर सिर्फ 2 कुरसियां ही थीं. दूसरी कुरसी खाली थी. बाकी सारी टेबलें भरी थीं.

वह अपना सिर झुकाए कौफी सिप कर रहा था कि एक लड़की की आवाज उस के कानों में पहुंची, ‘‘मे आई सिट हियर?’’ उस ने सिर उठा कर लड़की को देखा तो वह स्कूटी वाली लड़की थी. उस ने कहा, ‘‘श्योर, बैठो… सौरी बैठिए. इट्स माय प्लेजर. उस दिन आप का नाम नहीं पूछ सका था.’’

वह बोली, ‘‘मैं वनिता और फाइनल ईयर एमए में हूं.’’

‘‘और मैं पुनीत, थर्ड ईयर बीटेक में हूं.’’

दोनों में कुछ फौर्मल बातें हुईं. पुनीत बोला, ‘‘मैं रीजेंट में इवनिंग शो देखने जा रहा था. अभी शो शुरू होने में थोड़ा टाइम बाकी था, तो इधर आ गया.’’

वनिता ने अपना बिल पे किया और वह बाय कह कर चली गई. पुनीत ने वनिता का बिल पे करना चाहा था पर उस ने मना कर दिया.

इधर पुनीत के भाई प्रेम की शादी उस के पिता ने एक लड़की से तय कर रखी थी. बस, प्रेम की हां की देरी थी. उन्होंने लड़की की विधवा मां को वचन भी दे रखा था. पर प्रेम अमेरिका में पटना की ही किसी पिछड़ी जाति की लड़की से प्यार कर रहा था बल्कि कुछ दिनों से साथ रह भी रहा था. उस लड़की से अपनी शादी की इच्छा जताते हुए प्रेम ने मातापिता से अनुरोध किया था.

प्रेम के मातापिता दोनों बहुत पुराने विचारों के थे और खासकर पिता बहुत जिद्दी व कड़े स्वभाव के थे. उन्होंने दोनों बेटों को साफसाफ बोल रखा था कि वे बेटों की शादी अपनी मरजी से अच्छी स्वजातीय लड़की से ही करेंगे. उन्होंने प्रेम को भी बता दिया था कि यह रिश्ता मानना ही होगा वरना मातापिता के श्राद्ध के बाद जो करना हो करे.

मातापिता के दबाव में प्रेम ने टालने की नीयत से उन से कहा कि वे पुनीत को लड़की देखने को भेज दें, उसे पसंद आए तो सोच कर बताऊंगा. इधर प्रेम ने पुनीत को सचाई बता दी थी.

पुनीत की मां ने उस से कहा, ‘‘जा बेटे, अपने भैया की दुलहनिया देख कर आओ.’’

पुनीत मातापिता के बताए पते पर होने वाली भाभी को देखने गया. पुनीत ने उसे महल्ले में पहुंचने पर घर की सही लोकेशन पूछने के लिए दिए गए नंबर पर फोन किया. फोन एक लड़की ने उठाया और निर्देश देते हुए कहा, ‘‘मैं बालकनी में खड़ी रहूंगी, आप बाईं तरफ सीधे आगे आएं.’’

वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, यह मेरी सहेली कुमुद…

पुनीत उस पते पर पहुंचा तो बालकनी में वनिता को देख कर चकित हुआ. वनिता ने उसे अंदर आने को कहा. वहां 2 प्रौढ़ महिलाओं के साथ वनिता एक और लड़की के साथ बैठी हुई थी. वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह मेरी सहेली कुमुद, यह उस की मां और उस किनारे में मेरी मां.’’ दोनों की माताएं उन लोगों को बातें करने के लिए बोल कर चली गईं.

वनिता पुनीत से बोली, ‘‘कुमुद मैट्रिक तक मेरे ही स्कूल में पढ़ी है. मुझ से एक साल सीनियर थी. हमारे पड़ोस में ही रहती थी. इस के पिता अब नहीं रहे. इस की मां कुमुद की शादी को ले कर काफी चिंतित हैं.’’

पुनीत बोला ‘‘क्यों?’’

‘‘कुमुद ही आप के भाई की गर्लफ्रैंड है. कुछ महीनों से अमेरिका में वे साथ ही रह रहे हैं. दोनों में फिजिकल रिलेशनशिप भी चल रहा है. वैसे, आप के मातापिता मुझ से रिश्ता करना चाहते हैं. पर मैं कुमुद की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करूंगी. कुमुद को मैं अपनी बहन समझती हूं. मैं प्रेम और कुमुद के बीच रोड़ा नहीं बन सकती हूं. आप अपने पेरैंट्स को समझाएं कि अपनी जिद छोड़ दें वरना प्रेम, कुमुद और मेरी तीनों की जिंदगी तबाह हो जाएगी.’’

पुनीत कुछ पल खामोश था. फिर बोला, ‘‘मैं किसी को दुखी नहीं देखना चाहता हूं. घर जा कर बात करता हूं. डोंट वरी. मुझ से जो बन पड़ेगा, अवश्य करूंगा. मैं आप को फोन करूंगा.’’

पुनीत के जाने के बाद कुमुद ने वनिता से कहा, ‘‘तुम्हें अगर प्रेम पसंद है तो तुम्हारे लिए मैं प्रेम से रिलेशन ब्रेक कर सकती हूं.’’

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. मां मेरे लिए जरूरत से ज्यादा चिंतित है. वैसे भी, प्रेम तुम्हारे अलावा किसी और के साथ रिलेशन में होता तो भी मेरे लिए उस से शादी की बात सोचना भी असंभव थी.’’

‘‘मैं एक बात कहूं?’’

‘‘हां, श्योर.’’

‘‘पुनीत बहुत अच्छा लड़का है. अगर तेरा किसी और से चक्कर नहीं चल रहा है तो तू उस से शादी कर ले.’’

‘‘क्या बात करती हो? मैं मास्टर्स कर रही हूं और वह तो अभी बीटैक थर्ड ईयर में है.’’

‘‘पगली, तुम्हें पता नहीं है कि उस का कैंपस सलैक्शन भी हो गया है. और प्रेम बोल रहा था कि पुनीत सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है. कंपीट कर गया तो समझ तेरी लौटरी लग जाएगी, नहीं तो इंजीनियर है ही.’’

‘‘फिर भी, तुम क्या समझती हो मैं जा कर उसे प्रपोज करूं?’’

‘‘नहीं, मैं अभी प्रेम की मां को फोन पर इस प्रपोजल के लिए बोल देती हूं. घर आ कर पुनीत ने मातापिता को विस्तार से समझाया. उस ने कहा, ‘‘भैया चाहते तो अमेरिका में ही कोर्ट मैरिज कर लेते, तो उस स्थिति में आप क्या कर लेते. भैया ने आप का सम्मान करते हुए आप से अनुमति मांगी है. मैं ने उस लड़की को देखा है, कुमुद नाम है उस का. काफी अच्छी लड़की है. वह भी आई हुई है. आजकल वयस्क जोड़ों को जातपांत और धर्म शादी करने से नहीं रोक सकते. आप 3 लोगों की खुशियां क्यों छीनना चाहते हैं?’’

मां ने कहा, ‘‘तुम मुझे कुमुद से मिलवाओ, फिर मैं पापा को समझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘वह तो कल सुबह मुंबई की फ्लाइट से जा रही है. वहीं से अमेरिका चली जाएगी.’’

फिर पुनीत और मां दोनों जा कर कुमुद से मिले. मांबेटे दोनों ने मिल कर पिताजी को काफी समझाया. तब उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समाज में शर्मिंदा होना पड़ेगा. वनिता की बूढ़ी विधवा मां को वचन दे चुका हूं. रिश्तेदारी में भी इस बारे में काफी लोगों को बता चुका हूं.’’

उसी समय अमेरिका से प्रेम ने मां से फोन पर कुछ बात की. मां ने कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे लिए वनिता की मां को बोल रखा था. वनिता में तुम्हें क्या खराबी नजर आती है. वैसे भी कुमुद तो पिछड़ी जाति की है. तेरे पापा को समझाना बहुत मुश्किल है.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘आप लोगों ने पहले मुझे वनिता के बारे में कभी नहीं बताया था. वनिता को मैं ने देखा जरूर है पर मेरे मन में उस से शादी की बात कभी नहीं थी. और जहां तक कुमुद की जाति का सवाल है तो आप लोग दकियानूसी विचारों को छोड़ दें. अमेरिका, यूरोप और अन्य उन्नत देशों में आदमी की पहचान उस की योग्यता से है, न कि धर्म या जाति से. यह उन की उन्नति का मुख्य कारण है. और हां, अगर मैं शादी करूंगा तो कुमुद से ही वरना शादी नहीं करूंगा,’’ इतना बोल कर प्रेम ने फोन काट दिया.

उस की मां ने पुनीत से पूछा ‘‘यह वनिता कैसी लड़की है रे?’’

‘‘मां, वह बहुत अच्छी लड़की है. पढ़नेलिखने और देखने में भी. मैं उस से  2 बार पहले भी मिल चुका हूं.’’

फिर उस के मातापिता दोनों ने आपस में कुछ देर अकेले में बात कर पुनीत से कहा, ‘‘अब इस समस्या का हल तुम्हारे हाथ में है.’’

‘‘मैं भला इस में क्या कर सकता हूं?’’

‘‘कुमुद को हम बड़ी बहू स्वीकार कर लेंगे. पर तुम्हें भी हमारी इज्जत रखनी होगी. वनिता तेरी पत्नी बनेगी.’’

‘‘अभी तो मुझे पढ़ना है. वैसे वह एमए फाइनल में है मां. हो सकता है उम्र में मुझ से बड़ी हो.’’

‘‘लव मैरिज में सीनियरजूनियर या उम्र का खयाल तुम लोग आजकल कहां करते हो. और क्या पता कुमुद प्रेम से बड़ी हो? मैं वनिता की मां को फोन करती हूं. अगर थोड़ी बड़ी भी हुई तो क्या बुराई है इस में,’’ इतना बोल कर उस ने वनिता की मां से फोन पर कुछ बात की.

पुनीत गंभीर हो कर कुछ सोचने लगा था. थोड़ी देर बाद मां ने कहा, ‘‘पुनीत, तुम वनिता से बात कर लो. मैं ने उस की मां  को कहा कि कल शाम तुम दोनों रैस्टोरैंट में मिलोगे.’’ पुनीत और वनिता दोनों अगली शाम को उसी रैस्टोरैंट में मिले. पुनीत बोला, ‘‘मां ने अजब उलझन में डाल दिया है. मैं क्या करूं? आप को ठीक लग रहा है?’’

वनिता बोली, ‘‘मुझे तो कुछ बुरा नहीं दिखता इस में? हां, ज्यादा अहमियत आप की पसंद की है. मैं आप की पसंदनापसंद के बारे में नहीं जानती हूं.’’

‘‘आप तो हर तरह से अच्छी हैं, आप को कोई नापसंद कर ही नहीं सकता. फिर भी मुझे कुछ देर सोचने दें.’’

‘‘हां, वैसे दोनों में किसी को जल्दी भी नहीं है. पर मुझे कुमुद की चिंता है. वैसे हम दोनों के परिवार और कुमुद के परिवार सभी की भलाई इसी में है, और हां, मां बोल रही थी कि मैं पढ़ाई में आप से सीनियर हूं.’’

पुनीत चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. तो वनिता बोली, ‘‘मैं अगर सीनियर लगती हूं तो इस साल एग्जाम ड्रौप कर दूंगी. मंजूर?’’

पुनीत हंसते हुए बोला, ‘‘नहीं, आप ऐसा कुछ नहीं करें. आप अपना पीजी इसी साल करें.’’

‘‘एक शर्त पर.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘अभी इसी वक्त से हम लोग आप कहना छोड़ कर एकदूसरे को तुम कहेंगे.’’

‘‘आप भी… सौरी तुम भी न…. पर मेरी भी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘शादी पढ़ाई पूरी होने के बाद ही होगी, भले सगाई अभी हो जाए.’’

‘‘मंजूर है. फोन पर रोज बात करनी होगी और वीकैंड में यहीं मिला करेंगे.’’

‘‘एग्रीड.’’

दोनों एकसाथ हंस पड़े. अगले पल वे वहां से निकल कर एकदूसरे का हाथ पकड़े सड़क पार कर सामने फैले गांधी मैदान में टहलने लगे.

पुनीत बोला, ‘‘पर मुझे एक बात का अफसोस रह गया. मैं तो घाटे में रहा.’’

‘‘कौन सी बात?’’ वनिता ने पूछा.

‘‘अगर भैया की शादी तुम से और मेरी शादी किसी और लड़की से होती तो मैं विनविन सिचुएशन में होता न.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम मेरी भाभी होतीं, तो मेरे दोनों हाथों में लड्डू होते.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पत्नी पर तो हंड्रेड परसैंट हक रहता ही और अगर तुम मेरी भाभी होतीं तो देवर के नाते भाभी से छेड़छाड़ करने और मजाक करने का हक बोनस में बनता ही था.’’

‘यू नौटी बौय,’ बोल कर वनिता उस के कान खींचने लगी.

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