रोहित: क्या सुधर पाया वह

हमेशा की तरह आज भी स्टाफरूम में चर्चा का विषय था 9वीं कक्षा का छात्र रोहित, जिस की दादागीरी से उस के सहपाठी ही नहीं बल्कि अन्य कक्षाओं के छात्रों सहित टीचर्स भी परेशान थे. प्राचार्य भी उस की शिकायत सुनसुन कर परेशान हो गए थे. न जाने कितनी बार उसे अपने औफिस में बुला कर हर तरह से समझाने की कोशिश कर चुके थे, पर नतीजा सिफर ही था.

रोहित पर किसी भी बात का कोई असर नहीं होता था. उस के गलत आचरण को निशाना बना कर उस पर कोई कड़ी कार्यवाही भी नहीं की जा सकती थी कारण कि वह फैक्टरी मजदूर यूनियन के प्रमुख का बेटा था और उन से सभी का वास्ता पड़ता रहता था. कैमिस्टरी की टीचर संगीता को देखते ही बायोलौजी टीचर मीना ने कहा, ‘‘मैडम, इस बार तो 9वीं कक्षा की क्लास टीचर आप होंगी. संभल कर रहिएगा, रोहित अपने आतंक से सभी को परेशान करता रहता है.’’

‘‘कोई बात नहीं मिस. हम उसे देख लेंगे. है तो 15 साल का किशोर ही न. उस से क्या परेशान होना. आप तो बायोलौजी से हैं. आप को पता ही होगा, इस उम्र के बच्चों के शरीर में न जाने कितने हारमोनल बदलाव होते रहते हैं. अगर सभी तरह के वातावरण अनुकूल नहीं हुए तो नकारात्मक प्रवृत्तियां घर कर लेती हैं. समय पर अगर उन्हें हर प्रकार की भावनात्मक मदद व प्रोत्साहन मिले तो वे अपनेआप ही अनुशासित हो जाते हैं.’’

‘‘ठीक है मैम. लेकिन उस पर उद्दंडता इतनी हावी है कि उस का सुधरना नामुमकिन है.’’

मैथ्स के सर भी चुप नहीं रहे, ‘‘जो भी हो मैडम, पर मैथ्स में उस का दिमाग कमाल का है. कठिन से कठिन सवाल को चुटकियों में हल कर लेता है. पता नहीं अन्य विषयों में उस के इतने कम अंक क्यों आते हैं?’’

‘‘डिबेट वगैरा में तो अच्छा बोलता है. बस, उसे टोकाटाकी अच्छी नहीं लगती. हां, यह अलग बात है कि वह बस में खिड़की के पास बैठने के लिए हमेशा मारपीट पर उतर आता है. वहां बैठे टीचर्स की भी उसे कोई परवा नहीं रहती.’’

‘‘मैं ने तो न जाने कितनी बार उसे लड़कियों की ओर कागज के गोले फेंकते पकड़ा है, जिन में अनर्गल बातें लिखी रहती हैं,’’ हिंदी वाले सर बोले. हिंदी वाले सर की बात को काटते हुए संगीता मैम ने कहा, ‘‘छोडि़ए सर, अब उस आतंकवादी को मुझे देखना है,’’ कहते हुए वे स्टाफरूम से निकल गईं. 9वीं कक्षा में क्लास टीचर के रूप में संगीता मैम का आज पहला दिन था. वे अटैंडैंस ले रही थीं कि अचानक उन्हें लगा जैसे अभीअभी कोई क्लास में आया हो.

‘‘क्लास में कौन आया है अभी?’’ संगीता मैम ने पूछा, लेकिन कोई उत्तर न पा कर दोबारा बोलीं, ‘‘जो भी अभी आया है खड़ा हो जाए.’’ प्रत्युत्तर में रोहित को खड़ा होते देख कर संगीता मैम ने कहा, ‘‘रोहित, तुम क्लास से बाहर जाओ और आने की आज्ञा ले कर क्लास में आओ.’’ रोहित ने इसे अपनी बेइज्जती समझा. उस ने क्रोध भरी नजरों से संगीता मैम को देखा और दरवाजे को जोर से बंद करते हुए बाहर चला गया. क्लास समाप्ति की घंटी बजते ही संगीता मैम बाहर आईं तो उन्होंने रोहित को बाहर खड़ा पाया. उसे कैमिस्टरी लैब में आने को कहते हुए वे आगे बढ़ गईं. उम्मीद तो नहीं थी कि रोहित उन के कहने पर वहां आएगा, लेकिन अपने आने से पहले रोहित को वहां पर देख कर वे मुसकरा उठीं.

‘‘अच्छा रोहित, मुझे यह बताओ कि तुम क्लास में फिर क्यों नहीं आए? इस से तो तुम्हारा ही नुकसान हुआ न. आज मैं ने ‘औरगैनिक कैमिस्टरी, कैमिस्टरी की कौन सी ब्रांच है, इस की क्या उपयोगिता है?’ नामक पाठ पढ़ाया है. अब तुम्हें कौन समझाएगा? अनुशासित हो कर पढ़ने के लिए बच्चे स्कूल आते हैं. सभी टीचर्स को तुम से कोई न कोई शिकायत है. तुम ऐसे क्यों हो? क्यों इतनी उद्दंडता पर उतर आते हो? घर में अपने मम्मीपापा के साथ भी ऐसे ही करते हो क्या?’’ कहते हुए संगीता मैम ने उस की पीठ क्या सहलाई रोहित रो पड़ा. संगीता मैम ने उसे पहले जीभर कर रोने दिया. फिर जब उस के मन का सारा गुबार निकल गया तो उन्होंने रोहित को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘संकोच की कोई बात नहीं है रोहित. अपने मन की बात कहो. जो भी दुख है उसे बाहर निकालो. तुम्हारी जो भी समस्या है तुम बेझिझक मुझ से कह सकते हो. यहां कोई नहीं है तुम्हें कुछ कहने वाला. तुम्हारा मजाक कम से कम मैं तो नहीं उड़ाऊंगी. इतना विश्वास तुम मुझ पर कर सकते हो.’’

आज तक किसी टीचर ने उस की दुखती रग पर हाथ नहीं रखा था. उन सभी से डांटफटकार के साथ आतंकवादी की उपाधि पा कर वह दिनोदिन उद्दंड होता ही गया. आज पहली बार किसी ने उस के असामान्य व्यवहार का कारण पूछा तो वह भी स्वयं को रोक नहीं पाया. संगीता मैम का प्यार एवं विश्वास भरा आश्वासन पाते ही वह सबकुछ उगलने लगा.

‘‘घर में हम दोनों भाइयों को देखने वाला है ही कौन मैम. जब से होश संभाला मम्मीपापा को हमेशा झगड़ते हुए ही पाया. प्यारदुलार के बदले उन दोनों का क्रोध हम दोनों भाइयों पर कहर बन कर टूटता रहा है. अकारण ही हम भी उन की गालियों का शिकार हो जाते हैं. घर का ऐसा माहौल है कि हंसना तो दूर की बात है, हम खुल कर सांस भी नहीं ले पाते. मम्मीपापा का प्यार हम दोनों ने आज तक जाना नहीं,’’ कहता हुआ रोहित सुबकने लगा. रोहित के बारे में जान कर संगीता मैम को बहुत दुख हुआ. वे उस दिन स्कूल से ही रोहित के घर गईं और अपने अनगिनत प्रश्नों के घेरे में उस के मम्मीपापा को खड़ा कर के समझाते हुए उन की भर्त्सना की. बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया, तो उन दोनों ने भी अपने सुधरने का आश्वासन दे कर संगीता मैम को निराश नहीं किया.

दूसरे दिन सर्वसम्मति से रोहित को क्लास मौनीटर बनाते हुए संगीता मैम ने उसे ढेर सारी जिम्मेदारी सौंप दी. फिर तो रोहित के अंतरमन से वर्षों का दबा हीनभावना का सारा अंधकार जाता रहा. अब आत्मविश्वास की ज्योति से जगमगाते हुए एक नए रोहित का जन्म हुआ. देखते ही देखते सब टीचर्स का मानसम्मान करता वह सब का प्रिय बन गया. संगीता मैम ने भी ऐसे चमत्कार की उम्मीद नहीं की थी. हर साल लुढ़क कर पास होने वाला रोहित अब क्लास में ही नहीं स्कूल की भी सारी गतिविधियों में प्रथम आ कर सब को आश्चर्यचकित करने लगा था. ‘यूथ पार्लियामैंट’ नामक एकांकी में प्रधानमंत्री की भूमिका निभा कर वह सारे जोन में प्रथम आया. दिल्ली के मावलंकर सभागार में उसे पुरस्कृत किया गया. सारे अखबार, टीवी चैनल्स पर वह न जाने कितने दिन तक छाया रहा.

‘‘अरे भाई, रोहित तो हमारे स्कूल का बड़ा होनहार छात्र है,’’ जो टीचर्स उस की शिकायतें करते नहीं थकते थे उन की जबान पर अब यही शब्द थे. रोहित के मम्मीपापा के पैर तो जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. वे संगीता मैम को धन्यवाद देते नहीं थक रहे थे. स्कूल को सभी तरह से गौरवान्वित करता रोहित अब सब का प्रिय छात्र बन गया था.

प्रकृति की मार झेलता उत्तराखंड का छोटा गांव सेमला

गांव की व्यवस्था तभी किसी को समझ में आती है, जो गाँव से निकले है और वहां की मिटटी और वनस्पति से आती खुश्बू को महसूस किया हो. शहरों में रहने वालों को इसकी कीमत को समझना नामुमकिन होता है, उन्हें बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स में रहने की आदत होती है, सड़के और उनपर दौड़ती हुई कारें ही उन्हें डेवेलपमेंट का आभास कराती है, लेकिन इस आधुनिकरण की होड़ में वे भूल जाते है कि ये तभी संभव होगा, जब क्लाइमेट चेंज को रोका जाय, पर्यावरण में रहने वाले जीव-जंतु, पेड़-पौधे और मानव जीवन का संतुलन सही हो, नहीं तो धरती इसे खुद ही संतुलित कर लेती है मसलन कहीं बाढ़, कही सूखा तो कही खिसकते ग्लेशियर जिसमे हर साल लाखों की संख्या में लोग इन हादसों का शिकार हो रहे है, लेकिन कैसे संभव हो सकता है? इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड के सेमला गांव में पली-बड़ी हुई निर्देशक और पटकथा लेखक सृष्टि लखेरा ने अपनी एक डोक्युमेंट्री फिल्म ‘एक था गांव’ के द्वारा समझाने की कोशिश की है, उनकी इस फिल्म ने कई अवार्ड जीते है.

क्लाइमेट चेंज को सम्हालने के लिए जमीनी स्तर पर काम जरुरी

गाँववालों की समस्या के बारें में सृष्टि कहती है किटिहरी गढ़वाल के गांव सेमला में काम करने वाली 80 साल की लीला ने अपना पूरा जीवन यहाँ बिताया है. उनके साथ रहने वालों की मृत्यु होने के बाद उन्हें अपना जीवन चलाना मुश्किल हो रहा है, फिर भी वह इस गांव को छोड़ना नहीं चाहती. इस गांव में गोलू ही ऐसी यूथ है, जो इस परित्यक्त गांव में रह गई है.अभी उनके साथ रहने वाले केवल घोस्ट ही है, क्योंकि पहले 50 परिवार के इस गांव में रहते थे, अब केवल 5 लोग इस गांव में रह गए है. इससे घाटी में जन-जीवन धीरे-धीरे ख़त्म होने लगा है. क्लाइमेट चेंज को लेकर बहुत बात होती है, लेकिन इसे रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम नहीं हो रहा है.

असंतुलित मौसम

स्टोरी की कांसेप्ट के बारें में सृष्टि बताती है कि उत्तराखंड के गाँव बहुत अधिक खाली हो रहे है, मेरे पिता भी गाँव से है, टिहरीगढ़वाल में स्थित सेमला से लोगों का पलायन हो रहा है, अभी केवल दो परिवार ही बचे है, इसे लेकर एक नोस्टाल्जिया, जो मेरे परिवार के अंदर है, उन्हें गांव खाली होने का डर सता रहा है,इसे हमेशा सुनते हुए और उनके दुखी मन को सांत्वना देने के लिए कोई शब्द नहीं थे,इसलिए इसे लेकर मैंने कुछ करने के बारें में सोचा, जिसमे खासकर पर्यावरण था. जब कोई खेत और जंगल छोड़ देता है, तो उसपर उगने वाले घासफूंस को जानवर भी नहीं चरना चाहते. अभी वहां पर चीर के पेड़ों की संख्या बहुत अधिक हो चुकी है, जिसका अधिक होना मिटटी और ग्राउंड वाटर के लिए खतरा होता है. इसका प्रभाव पर्यावरण संतुलन पर पड़ता है. ऐसे में इंसान का गाँव में रहना और खेती करना आवश्यक है, जिससे एक अच्छा जंगल पनप सकें. पानी जमीन में रहे. उपजाऊपन में कमी न हो. आज जंगल बन चुके स्थान ऐसा नहीं था. यहाँ लोग हज़ार साल से रह रहे थे उन्होंने खेती की और अपना जीवन निर्वाह किया. इस प्रकार परिवार के दुःख और पर्यावरण को देखते हुए मैंने ये फिल्म बनाई. सभी का गाँव से भागने की वजह से शहरों की भी हालत ख़राब है, वहां जनसंख्याँ का दबाव अधिक बढ़ रहा है. गांव में यूथ के लिए नौकरी नहीं है.

सामाजिक असामनता

तकनीक का प्रयोग इन गांवों में अधिक नहीं हो सकता, क्योंकि ये पहाड़ी क्षेत्र है और यहाँ सीढ़ीनुमा खेतों में फार्मिंग की जाती है. सृष्टि आगे कहती है कि पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहाँ की मिटटी पथरीली होती है. इसके अलावा शहर में रहकर भी खेती नहीं की जा सकती,लेकिन कॉपरेटिव फार्मिंग हो सकता है, जिसमें एक साथ 5 से 6 गांव साथ आकर पूरी जमीन को शेयर कर सकते है, लेकिन समाज टूटा हुआ होने की वजह से ऐसी फार्मिंग नहीं हो सकती. अधिकतर उच्च वर्ग के लोग पलायन करते है, दलित को जमीन की मालिकाना हक नहीं है, उनका उच्च वर्ग के साथ बनती नहीं है. दलितों के पास बहुत कम जमीन है. ऐसी कई समस्याएं है और इसका सीधा असर सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ रहा है. भाई-चारा होने पर ऐसी स्थिति नहीं होती. जाति की समस्या और आपसी मनमुटाव ही इसकी जड़ है. यहाँ के बचे हुए लोग मनरेगा के अंतर्गत और पंचायत की टीम में मुर्गी पालन, पशुपालन आदि काम करते है, इससे थोड़ी आमदनी हो जाती है, लेकिन वे लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है. इसके अलावा शहरों में रहने वाले पुरुषों की महिलाएं अधिकतर गाँव में रहती है, उन्हें समस्या अधिक होती है.

मिली प्रेरणा

सृष्टि इस फील्ड में पिछले 10 साल से निर्देशक के रूप में काम कर रही है, उन्होंने छोटी-छोटी प्रेरणादायक फिल्में दिल्ली में कई एनजीओ के लिए बनायीं है. इसके बाद उन्होंने अपने गांव के लिए फिल्म बनाई, क्योंकि वह इससे बहुत कनेक्ट रही. पर्यावरण के साथ समाज परिवार और जीव-जंतु सभी का एक जुड़ाव होता है. उसे उन्होंने सबके सामने रखने की कोशिश की है. इसे करने में अधिक मुश्किल उन्हें नहीं आई, क्योंकि ये उनके पिता की गांव है. 5 साल की मेहनत के बाद उन्होंने एक घंटे की फिल्म बनाई है.

 

करप्शन कम होती नहीं दिखती

सृष्टि आगे कहती है कि रिसर्च के दौरान मैंने काफी समय वहां बिताया है, लेकिन वहां किसी प्रकार की स्कीम या योजना गांववालों के लिए सरकार की तरफ से नहीं देखा. वहां रहने वालें दलित बहुत कम पढ़े-लिखे है. इससे उनको किसी बात की जानकारी नहीं होती. अपर कास्ट के लोग इनका शोषण करते है. इसे मैंने देखा और बहुत ख़राब लगा. पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए एक अच्छी कम्युनिटी का क्रिएट करना जरुरी है. वे संगठित तरीके से रह नहीं सकते,जिसमे औरतों का बहुत शोषण होता है. आपस में प्यार से न रह पाना ही पर्यवरण के लिए क्षति है और इसका असर सबको दिख रहा है. संगठित तरीके से काम अपनाने पर ही पर्यावरण का संरंक्षण हो सकता है. इसके अलावा उत्तराखंड में पहाड़ो को डायनामाईट से ब्लास्ट कर उस क्षेत्र में बिल्डिंग बनाई जा रही है, जो कानूनन मान्यता न होने पर भी हो रहा है, क्योंकि करप्शन बहुत अधिक है. यहाँ देखा गया है कि पर्यावरण से सम्बंधित कानून को लोग आसानी से तोड़ देते है, जो दुःख की बात है. उत्तराखंड में ये अधिक हो रहा है, ऐसे में पढ़े-लिखे संगठित समाज ही इन गलत चीजों के लिए अपनी आवाज उठा सकते है.

आग और धुआं: क्या दूर हो पाई प्रिया की गलतफहमी

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Winter Special: ये हैं 7 हैल्दी टिफिन डिशेज

हर मां की तरह आप की भी सब से बड़ी जिम्मेदारी होगी बच्चे के टिफिन में सेहतमंद व स्वादिष्ठ खाना देना और स्कूल से लौटने पर उस के स्कूल बैग से टिफिन निकाल कर यह देखना कि उस ने लंच खाया या नहीं और फिर टिफिन में आधाअधूरा बचा खाना, अपनी मेहनत और बच्चे की सेहत को यों बरबाद होते देख आप का खीजना लाजिम है.

आप चाहती हैं कि आप के लाडले के टिफिन में सेहत व स्वाद दोनों हों, तो आप को बच्चे के टेस्ट बड्स को तवज्जो देनी होगी. याद रखिए रोजाना एक जैसे खाने से हर कोई उकता जाता है. ऐसे में टिफिन में रोज परांठा सब्जी देख कर बच्चा खाने से जी चुराने लगता है. नतीजतन आप की टिफिन तैयार करने से ले कर पैक करने तक की मेहनत के साथसाथ बच्चे की सेहत में भी घुन लग जाएगा.

माना कि रोजरोज टिफिन में बच्चे की फरमाइशी डिशेज देना मुश्किल होता है. मगर यहां बताए गए टिफिन आइडियाज से आप की मुश्किल कुछ कम हो सकती है.

प्रोटीन चीला

बेसन का चीला बनाने की जगह आप मल्टीग्रेन यानी मिलेजुले अनाज का आटा या साबूत मूंग या मिलीजुली दालों से चीला बनाएं. प्रोटीन चीला बनाने की विधि सामान्य बेसन चीला जैसी है. बस ट्विस्ट यह लाना है कि दालों को रात भर भिगो कर दरदरा पीस लें. चीले का घोल बनाने के लिए पानी की जगह वैजिटेबल स्टौक या पानी मिला पतला दही मिलाएं. अब इस में बारीक कटी सब्जियां, नमक व मसाले मिला कर स्वादिष्ठ चीला बनाएं. प्रोटीन चीला बच्चे के मनपसंद सौस के साथ टिफिन में भेजिए.

स्वीट व्हाइट अंजीर

आप के लाडले को मीठा पसंद है, तो उसे आर्टिफिशियल स्वीटनर से बनी चीजें न खिलाएं. भले ही ये चीजें मिठास का स्वाद देंगी, पर सेहत पर बुरा प्रभाव डालेंगी. स्वीट व्हाइट अंजीर बनाने के लिए कड़ाही में अंजीर, दूध व नारियल पाउडर डाल कर दूध के सूख जाने तक पकाएं. अब अंजीर को पीस कर पेस्ट बना लें. पैन में देशी घी डाल कर इस पेस्ट को भून लें. अब इस में तिल, शहद, इलायची पाउडर व बादाम डाल कर कुछ देर और भूनें. ठंडा होने पर इस की बौल्स बनाएं. प्रत्येक बौल्स पर काजू लगाएं. है न स्वीट व्हाइट अंजीर टिफिन में स्वीट डिश देने को स्वीट व हैल्दी विकल्प.

चीजी दलिया

शायद ही किसी बच्चे को दलिया पसंद हो. लेकिन आप साधारण दलिया में पनीर डाल कर इसे बच्चे की फैवरिट डिश में शुमार कर सकती हैं. सिर्फ पनीर ही नहीं साधारण दलिया को न्यूट्रिला, ब्रोकली, अंकुरित दालें, मूंग या मसूर दाल और चावल डाल कर भी यम्मी बना सकती हैं.

कलरफुल आटा

आप रोटी व परांठे के लिए आटा सिर्फ साधारण पानी से न गूंधें. इस के लिए दाल का पानी, दूध, वैजिटेबल स्टौक, सब्जियों के जूस या सब्जियों के पेस्ट का प्रयोग करें.

पनीरी उत्तपम

उत्तपम चावल के घोल से बनाया जाता है. इसे और टेस्टी व पोषक बनाने के लिए इस को प्रोटीन युक्त बनाएं. उत्तपम का घोल बनाने के लिए सूजी में दही मिला कर घोलें. इस में बारीक कटी मनचाही सब्जियां, कद्दूकस किया पनीर और स्वादानुसार सीजनिंग डालें.

जहां तक हो सके फ्रूट साल्ट डालने की जगह खट्टी दही का प्रयोग करें. नौनस्टिक पैन में गोलाई में मिश्रण फैलाएं. उत्तपम को दोनों तरफ से शैलो फ्राई करें. तैयार उत्तपम पर पनीर कद्दूकस करें और चाट मसाला बुरकें. टिफिन में उत्तपम के साथ हरी चटनी या टमाटर की चटनी देना न भूलें.

कौर्न कबाब

भुट्टे के गुणों से आप वाकिफ हैं. आप चाहती हैं कि आप के बच्चे को भुट्टे के पोषक तत्त्व मिलें, तो आप को उसे भुट्टा अलगअलग डिशेज में खिलाना होगा. भुट्टे का कबाब इस के  लिए बेहतर विकल्प है. इस के लिए उबले आलुओं में उबले व दरदरे पिसे कौर्न के दाने, कसा पनीर, बारीक कटी सब्जियां, मनचाही सीजनिंग डाल कर मिलाएं. अब इस मिश्रण के छोटेछोटे कबाब बना कर डीप फ्राई करें. तैयार कौर्न कबाब इमली की चटनी के साथ टिफिन में डालें. बच्चे को तेल कम देना है, तो मिश्रण के छोटेछोटे चपटे बौल्स बना कर नौनस्टिक पैन में शैलो फ्राई करें.

टैंगी उपमा

बच्चों को टमाटरों का खट्टामीठा टेस्ट बहुत लुभाता है. आप टमाटरों की पौष्टिकता बच्चों के टिफिन में परोस कर भेजिए. इस के लिए साधारण सूजी उपमा में थोड़ा सा बदलाव लाना है. सूजी उपमा बनाते समय इस में पानी के स्थान पर टमाटरों का रस या दाल का पानी या वैजिटेबल स्टौक का प्रयोग करें. स्वाद बढ़ाने के लिए नमकमसालों से सीजनिंग करें. उपमा क्रंची व टेस्टी बनाने के लिए उस में नट्स डालें. टैंगी उपमा को टोमैटो कैचअप के साथ टिफिन में दें.

पाखी के ड्रामे के बीच Anupama के मेकर्स ने की बढ़ी गलती, फैंस ने उड़ाया मजाक

सीरियल अनुपमा की कहानी में इन दिनों शादी सेलिब्रेशन के बीच पाखी का नया ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसके चलते फैंस काफी खुश नजर आ रहे हैं. दरअसल, हाल ही में पाखी की बढ़ती बद्तमीजी के कारण अनुपमा का पारा बढ़ गया है और उसने अधिक और पाखी को कपाड़िया हाउस से निकालने का फैसला कर लिया है. इसी बीच लेटेस्ट एपिसोड के एक सीन के कारण मेकर्स ट्रोलिंग का शिकार हो रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

4 लाख के हेर-फेर पर फैंस हुए हैरान

हाल ही में आपने देखा कि बरखा संगीत सेरेमनी में पाखी को लाखों के गहने खरीदने का लालच देती है, जिसके चलते पाखी 64 लाख की रसीद पर साइन कर देती है. वहीं अधिक इस बात को जानने के बाद पाखी और बरखा की जमकर क्लास लगाता है और बिल को फेंक देता है. दूसरी तरफ,  अनुपमा के हाथ वह फेंका हुआ बिल लग जाता है, जिसमें 64 की बजाय 60 लाख देखने को मिलता है. मेकर्स की इस गलती को देखने के बाद अब फैंस मेकर्स की इस गलती का मजाक उड़ा रहे हैं.

फैंस ने उड़ाया जमकर मजाक

अनुपमा मेकर्स की इस बड़ी गलती को देखने के बाद फैंस सोशलमीडिया पर ट्रोल करते दिख रहे हैं. दरअसल, ट्रोलर्स कमेंट करते हुए लिख रहे हैं कि अनुपमा के राइटर को अकाउंट्स की समझ ले लेनी चाहिए. वहीं फैंस का कहना है कि अनुपमा मेकर्स को पहली गलती के बाद सीरियल की स्टोरीलाइन पर ध्यान रखना चाहिए. इससे पहले भी मेकर्स को किंजल की प्रैग्नेंसी के चलते ट्रोल होना पड़ा था. दरअसल, किंजल की प्रेग्नेंसी के बीच मेकर्स ने 7 महीने का लीप लिया था. जबकि लीप से पहले ही किंजल कुछ महीने की प्रेग्नेंट थी. लेकिन लीप के बाद भी वह प्रैग्नेंट दिखाई गई थी, जिसके चलते मेकर्स को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था.

 

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बता दें, सीरियल में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा, पाखी और अधिक को कपाड़िया हाउस से बाहर का रास्ता दिखाने वाली है. दरअसल, पाखी पैसों के लालच में 60 लाख के गहने खरीद लेगी. वहीं अपनी गलती का एहसास करने की बजाय वह अनुपमा को अमीर परिवार की बहू बनने की बात बरखा की सहेलियों संग करती दिखेगी.

बीच राह में-भाग 3 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.

‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.

‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझो सा गया. सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी.

पूरे 20 साल में इकट्ठी हुई

यादों को एक रात में जी

लेना संभव नहीं. वक्त अपनी

रफ्तार से चलता रहा और सुबह

हो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’

‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गला

रुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.

बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’

‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’

‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा. मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मु?ो बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं. मु?ो अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’

10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के

साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझो रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझो में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहने

का कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझो जरूर प्रतीत हो

रहा था.जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.

‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.

‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझो सा गया. सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी.

पूरे 20 साल में इकट्ठी हुई

यादों को एक रात में जी

लेना संभव नहीं. वक्त अपनी

रफ्तार से चलता रहा और सुबह

हो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’

‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गला

रुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.

बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’

‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’

‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा. मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मु?ो बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं. मुझे अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’

10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के

साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझो रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझो में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहने

का कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझो जरूर प्रतीत हो रहा था.

बीच राह में-भाग 1 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

सिस्टरअनिता की नजरें बारबार प्राइवेट कमरा नंबर-1 की तरफ उठ जाती थीं. उस कमरे  में इसी अस्पताल के नामी हार्ट सर्जन डाक्टर आनंद भरती थे.

‘‘अब आप इतनी चिंता क्यों कर रही हैं? डाक्टर आनंद ठीक

हो कर कल सुबह घर जा तो रहे हैं,’’ साथ बैठी सिस्टर शारदा ने अनिता की टैंशन कम करने की कोशिश की.

‘‘मैं ठीक हूं… कई दिनों से नींद पूरी न होने के कारण आंखें लाल हो रही हैं,’’ अनिता बोली.

‘‘कुछ देर रैस्टरूम में जा

कर आराम कर लो, मैं यहां सब संभाल लूंगी.’’

‘‘नहीं, मैं कुछ देर यहीं सुस्ता लेती हूं,’’ कह अनिता ने आंखें बंद कर सिर मेज पर टिका लिया.

डाक्टर आनंद से अनिता का परिचय करीब 20 साल पुराना था. इतने लंबे समय में इकट्ठी हो गई कई यादें उस के स्मृतिपटल पर आंखें बंद करते ही घूमने लगीं…

पहली बार वह डाक्टर आनंद की नजरों में औपरेशन थिएटर में आई थी. उस दिन वह सीनियर सिस्टर को असिस्ट कर रही थी. तब उस ने डाक्टर आनंद का ध्यान एक महत्त्वपूर्ण बात की तरफ दिलाया था, ‘‘सर, पेशैंट का खून नीला पड़ता जा रहा है.’’

डाक्टर आनंद ने डाक्टर

नीरज की तरफ नाराजगी भरे अंदाज में देखा.

डाक्टर नीरज की नजर औक्सीजन सिलैंडर की तरफ गई. पर उस का रैग्यूलेटर ठीक प्रैशर दिखा रहा था.

‘‘यह रैग्यूलेटर खराब है… जल्दी से सिलैंडर चेंज करो,’’ डाक्टर आनंद का यह आदेश सुन कर वहां खलबली मच गई.

जब सिलैंडर बदल दिया गया तब डाक्टर आनंद एक बार

अनिता के चेहरे की तरफ ध्यान से देखने के बाद बोले, ‘‘गुड औब्जर्वेशन, सिस्टर… थैंकयू.’’

औपरेशन समाप्त होने के कुछ समय बाद डाक्टर आनंद ने अनिता को अपने चैंबर में बुला कर प्रशंसा भरी आवाज में कहा, ‘‘आज तुम्हारी सजगता ने एक मरीज की जान बचाई है.’’

‘‘थैंकयू, सर.’’

‘‘बैठ जाओ, प्लीज… चाय पी कर जाना.’’

‘‘थैंकयू, सर,’’ अपने दिल की धड़कनों को काबू में रखने की कोशिश करते हुए अनिता सामने वाली कुरसी पर बैठ गई.

उस दिन के बाद अनिता अपने खाली समय में डाक्टर आनंद के चैंबर में ही नजर आती. वे अपने मरीजों के ठीक होने में आ रही रुकावटों की उस के साथ काफी चर्चा करते. अगर अनिता की समझो में उन की कुछ बातें नहीं भी आतीं तो भी वह अपने ध्यान को इधरउधर भटकने नहीं देती.

सब यह मानते थे कि उन से अनिता बहुत कुछ सीख रही है. उस की गिनती बेहद काबिल नर्सों में होती, पर उस की सहेलियां डाक्टर आनंद के साथ उस के अजीब से रिश्ते को ले कर उस

का मजाक भी उड़ाती थीं, ‘‘अरे, तुम दोनों केस डिस्कस करने के अलावा कुछ मौजमस्ती भी करते हो या नहीं?’’

‘‘वे कमजोर चरित्र के इंसान नहीं हैं,’’ अनिता उन की बातों का बुरा न मान हंस कर जवाब देती.

‘‘चरित्र कमजोर नहीं है तो क्या कुछ और कमजोर है?’’ वे उसे और ज्यादा छेड़तीं.

‘‘मुझो से हर वक्त ऐसी बेकार की बातें न किया करो,’’ कभीकभी अनिता खीज उठती.

‘‘सारे जूनियर डाक्टर जिस हसीना के लिए लार टपकाते हैं, वह फंसी भी तो एक सनकी और सीनियर डाक्टर से… अरी, उन के साथ बेकार समय न बरबाद कर… तेरी रैपुटेशन इतनी अच्छी है कि कोई तेरा दीवाना डाक्टर तुझ से शादी करने को भी तैयार हो जाएगा,’’ उन दिनों अनिता को ऐसी सलाहें अपनी सहेलियों व अन्य सीनियर नर्सों से आए दिन सुनने को मिलती थीं.

अनिता के मन में शादी करने का विचार उठता ही नहीं था. शादी को टालने की बात को ले कर उस के घर वाले भी उस से नाराज रहने लगे थे. उस के लिए किसी भी अच्छे रिश्ते का आना उन के साथ तकरार का कारण बन जाता.

‘‘आप मेरे लिए रिश्ता न ढूंढ़ो… नर्स के साथ हर आदमी नहीं निभा सकता है. जब कोई अच्छा, समझोदार लड़का मुझे मिल जाएगा, मैं उसे आप सब से मिलवाने ले आऊंगी,’’ अनिता की इस दलील को सुन उस का भाई व मातापिता बहुत गुस्सा होते.

‘‘अब तू 23 साल की तो हो गई है… और कितनी देर लगाएगी उस अच्छे लड़के को ढूंढ़ने में?’’ उन सब के ऐसे सवालों को टालने में वह कुशल होती चली गई थी.

अनिता को अच्छा लड़का तो तब मिलता जब वह डाक्टर आनंद के अलावा किसी और को समय देती. अगर उस की सहेलियां उस की दोस्ती किसी डाक्टर या अन्य काबिल युवक

से कराने की कोशिश करतीं तो अनिता बड़े

रूखे से अंदाज में उस युवक के साथ पेश

आती. हार कर वह युवक उस में दिलचस्पी लेना छोड़ देता.

डाक्टर आनंद ने भी एक दिन अपने

चैंबर में उस के साथ

चाय पीते हुए पूछ ही लिया, ‘‘तुम शादी कब कर रही हो?’’

‘‘मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं है, सर.’’

‘‘यह क्या कह रही हो? शादी करने का… मां बनने का तो हर लड़की का मन करता है.’’

‘‘मु?ो नहीं लगता कि मेरा मनभाता लड़का कभी मेरी जिंदगी में आएगा.’’

‘‘जरा मु?ो भी तो बताओ कि कैसा होना चाहिए तुम्हारे सपनों का राजकुमार?’’

‘‘उसे बिलकुल आप के जैसा होना चाहिए, सर,’’ अनिता ने शरारती मुसकान होंठों पर लाते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या मतलब?’’ डाक्टर आनंद चौंक कर उस के चेहरे को ध्यान से पढ़ने लगे.

‘‘मतलब यह कि उसे आप की तरह संवेदनशील, समझोदार, अपने काम के लिए पूरी तरह समर्पित होना चाहिए.’’

‘‘अरे, ज्यादा मीनमेख निकालना छोड़

कर किसी भी अच्छे लड़के से शादी कर लो.

तुम बहुत समझोदार हो… जिस से भी शादी करोगी, उस में ये सब गुण तुम्हारा साथ पा कर पैदा हो जाएंगे.’’

‘‘सौरी सर, मैं इस मामले में रिस्क नहीं ले सकती… वैसे मैं कभीकभी सोचती हूं…’’

‘‘क्या?’’ उसे अपनी बात पूरी न करते देख डाक्टर आनंद ने पूछा.

‘‘यही कि अगर आप शादीशुदा न होते तो मेरे सामने लड़का ढूंढ़ने की समस्या ही नहीं

खड़ी होती.’’

‘‘अनिता, मैं बस तुम्हें इतना याद दिलाना चाहूंगा कि मैं जब जवान हुआ था तब तुम

पैदा भी नहीं हुई थीं,’’ अपने मन की बेचैनी छिपाने को डाक्टर आनंद ने यह बात मुसकराते हुए कही.

‘‘मेरे दिमाग में ही कुछ खोट होगी सर. हमारे बीच उम्र का 20 साल का अंतर होने के बावजूद मैं आप को इस पूरे अस्पताल का सब

से स्मार्ट पुरुष पता नहीं क्यों मानती हूं?’’ अपने चेहरे पर नाटकीय गंभीरता ला कर अनिता ने

यह सवाल पूछा और फिर खिलखिला कर

हंस पड़ी.

‘‘शरारती लड़की, मु?ो ही ढूंढ़ना

पड़ेगा तुम्हारे लिए कोई

अच्छा रिश्ता.’’

‘‘सर, शीशे के सामने खड़े हो कर इस बारे में सोचविचार करोगे तो मेरी पसंद आसानी से पकड़ में आ जाएगी.’’

अछूत: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

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इन टिप्स से छुड़ाएं जिद्दी से जिद्दी दाग

एक मशहूर वाशिंग पाउडर के विज्ञापन में आप ने जरूर सुना होगा, ‘दाग अच्छे हैं.’ पर क्या वाकई में दाग अच्छे लगते हैं? दागधब्बे तभी अच्छे लगते हैं जब वे आसानी से उतर जाएं. हर गृहिणी को ऐसे दागों से निबटने के लिए जरूरत होती है, ज्ञान, अनुभव और धैर्य की. कपड़ों पर से ताजा दाग उतारना आसान होता है. पुराने दाग न केवल जिद्दी हो जाते हैं, बल्कि वे आप के वस्त्रों को नुकसान पहुंचाते हैं. द्य ऐनिमल स्टेन : इस श्रेणी के दागों में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है. गरम पानी के इस्तेमाल से प्रोटीन जम जाता है. अत: ऐसे दागों को हटाने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करना चाहिए. इस श्रेणी में दूध, अंडा, मांस, खून, जूस, आइसक्रीम आदि के दाग शामिल हैं. ऐसे दागों को छुटाने के लिए ठंडा पानी, नमक, साबुन व बोरैक्स को प्रयोग में लाया जाता है.

वैजिटेबल स्टेन : इस प्रकार के दागों में अम्ल होता है, जिस के लिए सोडा या क्षारयुक्त पदार्थ प्रयोग किए जाते हैं. इस श्रेणी में चाय, कौफी, चौकलेट, फू्रट, शराब आदि के दाग आते हैं. इन्हें उतारने के लिए गरम पानी, ग्लिसरीन, स्टार्च का प्रयोग करना चाहिए.

डाई स्टेन : डाई 2 प्रकार की होती है. अम्लयुक्त तथा क्षारयुक्त. अम्लीय डाई के दाग के लिए क्षार तथा सोडा इस्तेमाल किए जाते हैं. क्षारयुक्त डाई के दाग पर अम्लीय पदार्थ जैसे नीबू का रस, विनेगर आदि लगाने चाहिए. इन के अलावा साबुन और ब्लीचिंग पाउडर का भी प्रयोग किया जाता है.

मिनरल स्टेन : इस किस्म के दागों में धातु और डाई का समावेश होता है. धातु के लिए अम्ल और डाई के लिए क्षार का प्रयोग किया जाता है. अत: पानी, साबुन, टमाटर व नीबू का रस, खट्टे दही, बोरैक्स आदि का इस्तेमाल करना चाहिए.

ग्रीस स्टेन : इस तरह के दागों की जड़ें चिकनाई में होती हैं. अत: चिकनाई सोखने के लिए टैलकम पाउडर, फ्रैंच चाक, मुल्तानी मिट्टी, मिट्टी का तेल, तारपीन का तेल इस्तेमाल कर सकती हैं. तेल, घी, मक्खन, पैंट, वार्निश के दाग इस श्रेणी में आते हैं.

रोजमर्रा के धब्बों के लिए आप निम्नलिखित उपाय आजमा सकती हैं:

बालपैन के दाग पर डिटोल या यूडी कोलोन में भिगोए हुए रुई के फाहे को रगड़ें. दाग छूट जाएगा.

दूध, खून या अंडे के दाग पर नमक रगड़ें और फिर ठंडे पानी से धो दें.

नीली स्याही के दाग पर नमक और नीबू रगड़ कर धूप में ब्लीच होने के लिए रख दें.

च्यूइंगम का दाग जब तक च्यूइंगम निकल न जाए तब तक उस पर बर्फ रगड़ें और फिर ठंडे पानी से धो दें.

कोलतार के दाग पर मिट्टी का तेल रगड़ने के बाद गरम पानी से धो दें.

हलदी के दाग पर साबुन लगाएं. जब दाग लाल हो जाए तब धूप में रखें, फिर गरम पानी से धो लें.

फ्रूट जूस के दाग हटाने के लिए दागों वाले कपड़े को ग्लिसरीन. बोटैक्स या अमोनिया में भिगोएं.

ग्रीस के दाग पर पैट्रोल या मिट्टी का तेल रगड़ें, फिर गरम पानी से धो लें.

पान या कत्थे के दागों वाले वस्त्र खट्टे दही या दूध में भिगो कर धोएं.

चाय, कौफी या चौकलेट के दागों को ग्लिसरीन, वाशिंग सोडा या अमोनिया में वस्त्र को भिगो कर पानी से धो लें.

लोहे के जंग के दागों को विनेगर या नीबू के रस में वस्त्र को भिगोएं और उस पर उबलता हुआ पानी डालें.

नेलपौलिश के दागों को मिथाइलेटेड स्पिरिट में भिगोएं.

आप किसी भी तरह के दाग को आसानी से पहचान कर के उसे उतार सकती हैं. ऐसे में आप के कपड़ों की गुणवत्ता भी बनी रहेगी और आप के कपड़े चमचमाते भी रहेंगे. फिर अगली बार जब आप के मनपसंद कपड़े पर कोई दाग लगेगा तब आप भी कह सकेंगी, ‘‘दाग अच्छे हैं. क्योंकि उतर चुके हैं.’’

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