इन टिप्स से छुड़ाएं जिद्दी से जिद्दी दाग

एक मशहूर वाशिंग पाउडर के विज्ञापन में आप ने जरूर सुना होगा, ‘दाग अच्छे हैं.’ पर क्या वाकई में दाग अच्छे लगते हैं? दागधब्बे तभी अच्छे लगते हैं जब वे आसानी से उतर जाएं. हर गृहिणी को ऐसे दागों से निबटने के लिए जरूरत होती है, ज्ञान, अनुभव और धैर्य की. कपड़ों पर से ताजा दाग उतारना आसान होता है. पुराने दाग न केवल जिद्दी हो जाते हैं, बल्कि वे आप के वस्त्रों को नुकसान पहुंचाते हैं. द्य ऐनिमल स्टेन : इस श्रेणी के दागों में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है. गरम पानी के इस्तेमाल से प्रोटीन जम जाता है. अत: ऐसे दागों को हटाने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करना चाहिए. इस श्रेणी में दूध, अंडा, मांस, खून, जूस, आइसक्रीम आदि के दाग शामिल हैं. ऐसे दागों को छुटाने के लिए ठंडा पानी, नमक, साबुन व बोरैक्स को प्रयोग में लाया जाता है.

वैजिटेबल स्टेन : इस प्रकार के दागों में अम्ल होता है, जिस के लिए सोडा या क्षारयुक्त पदार्थ प्रयोग किए जाते हैं. इस श्रेणी में चाय, कौफी, चौकलेट, फू्रट, शराब आदि के दाग आते हैं. इन्हें उतारने के लिए गरम पानी, ग्लिसरीन, स्टार्च का प्रयोग करना चाहिए.

डाई स्टेन : डाई 2 प्रकार की होती है. अम्लयुक्त तथा क्षारयुक्त. अम्लीय डाई के दाग के लिए क्षार तथा सोडा इस्तेमाल किए जाते हैं. क्षारयुक्त डाई के दाग पर अम्लीय पदार्थ जैसे नीबू का रस, विनेगर आदि लगाने चाहिए. इन के अलावा साबुन और ब्लीचिंग पाउडर का भी प्रयोग किया जाता है.

मिनरल स्टेन : इस किस्म के दागों में धातु और डाई का समावेश होता है. धातु के लिए अम्ल और डाई के लिए क्षार का प्रयोग किया जाता है. अत: पानी, साबुन, टमाटर व नीबू का रस, खट्टे दही, बोरैक्स आदि का इस्तेमाल करना चाहिए.

ग्रीस स्टेन : इस तरह के दागों की जड़ें चिकनाई में होती हैं. अत: चिकनाई सोखने के लिए टैलकम पाउडर, फ्रैंच चाक, मुल्तानी मिट्टी, मिट्टी का तेल, तारपीन का तेल इस्तेमाल कर सकती हैं. तेल, घी, मक्खन, पैंट, वार्निश के दाग इस श्रेणी में आते हैं.

रोजमर्रा के धब्बों के लिए आप निम्नलिखित उपाय आजमा सकती हैं:

बालपैन के दाग पर डिटोल या यूडी कोलोन में भिगोए हुए रुई के फाहे को रगड़ें. दाग छूट जाएगा.

दूध, खून या अंडे के दाग पर नमक रगड़ें और फिर ठंडे पानी से धो दें.

नीली स्याही के दाग पर नमक और नीबू रगड़ कर धूप में ब्लीच होने के लिए रख दें.

च्यूइंगम का दाग जब तक च्यूइंगम निकल न जाए तब तक उस पर बर्फ रगड़ें और फिर ठंडे पानी से धो दें.

कोलतार के दाग पर मिट्टी का तेल रगड़ने के बाद गरम पानी से धो दें.

हलदी के दाग पर साबुन लगाएं. जब दाग लाल हो जाए तब धूप में रखें, फिर गरम पानी से धो लें.

फ्रूट जूस के दाग हटाने के लिए दागों वाले कपड़े को ग्लिसरीन. बोटैक्स या अमोनिया में भिगोएं.

ग्रीस के दाग पर पैट्रोल या मिट्टी का तेल रगड़ें, फिर गरम पानी से धो लें.

पान या कत्थे के दागों वाले वस्त्र खट्टे दही या दूध में भिगो कर धोएं.

चाय, कौफी या चौकलेट के दागों को ग्लिसरीन, वाशिंग सोडा या अमोनिया में वस्त्र को भिगो कर पानी से धो लें.

लोहे के जंग के दागों को विनेगर या नीबू के रस में वस्त्र को भिगोएं और उस पर उबलता हुआ पानी डालें.

नेलपौलिश के दागों को मिथाइलेटेड स्पिरिट में भिगोएं.

आप किसी भी तरह के दाग को आसानी से पहचान कर के उसे उतार सकती हैं. ऐसे में आप के कपड़ों की गुणवत्ता भी बनी रहेगी और आप के कपड़े चमचमाते भी रहेंगे. फिर अगली बार जब आप के मनपसंद कपड़े पर कोई दाग लगेगा तब आप भी कह सकेंगी, ‘‘दाग अच्छे हैं. क्योंकि उतर चुके हैं.’’

Winter Special: क्या आपके जोड़ो में भी है दर्द!

ये बात तो आप जानते ही हैं कि शरीर के वे हिस्से जहां हड्डियां आपस में मिलती हैं, उन्हें ही जोड़ कहते हैं. जैसे घुटने, कंधे, कोहनी आदि-आदि. अगर शरीर के इन जोड़ों में कठोरता या सूजन जैसी किसी भी तरह की तकलीफ हो जाती है तो इससे आपको दर्द शुरू हो जाता है और इसे ही जोड़ों में दर्द होने की शिकायत कहा गया है. आजकल देखा गया है कि शरीर में जोड़ों के दर्द की समस्या एक आम सी समस्या बनती जा रही है और इस कारण से लगातार अस्पताल जाते रहने और दवा खाना की मजबूरी हो ही जाती है.

एक बात जो आपके जाननी चाहिए कि ‘अर्थराइटिस’ की शिकायत, जोड़ों में दर्द होने का सबसे आम कारण है. पर इसके अलावा जोड़ों में दर्द होने की कई और भी अन्य वजहे होती हैं, जैसे कि लिगामेंट, कार्टिलेज या छोटी हड्डियों में से किसी की भी रचना में चोट लग जाने के कारण भी आपके जोड़ों में दर्द हो सकता है. ये शरीर का बहुत अहम हिस्सा होते हैं. इनके कारण ही आप उठना, बैठना, चलना, शरीर को मोड़ना आदि कर पाते हैं और ऐसा सब करना संभव हो पाता है. इसीलिए जोड़ों में दर्द होने पर पूरे आपके शरीर का संपूर्ण स्वास्थ्य प्रभावित हो जाता है.

आज हम आपको जोड़ों में दर्द से जुडी कई महत्वपूर्ण बातें बताएंगे. इनके कारण जानने के बाद आप इनसे परहेज कर सकेंगे. यहां हम आपको जोड़ों के दर्द से निजात पाने के लिए कुछ उपचार भी बता रहे हैं. इन्हें अपनाकर आप इस दर्द से जल्दी छुटकारा पा सकते हैं.

कारण :

1. कई बार उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में दर्द की शिकायत हो जाती है.

2. आपकी हड्डियों में जब रक्त की पूर्ति होने में रूकावट आती है तब भी जोड़ों में दर्द से तकलीफ होने लगती है.

3. ये बात आप नहीं जैनते होंगे कि रक्त का कैंसर, जोड़ों में दर्द के लिए जिम्मेदार होता है.

4. हड्डियों में मिनरल्स यानि की शरीर में खनिज पदार्थों की कमी हो जाने पर भी जोड़ों में दर्द की शिकायत हो जाती है.

5. कभी-कभी, जल्दी-जल्दी चलने या भागने पर जोड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ जाता है और जोड़ों में दर्द शुरू हो तातो है.

6. आपके जोड़ों में इंफेक्शन होना भी जोड़ों में दर्द का कारण है.

7. कई बार तो मोच आ जाने और चोट लगने से भी एसी शिकायत हो जाती है.

8. शरीर में कई बार हड्डियों के टूटने से जोड़ों में दर्द होता है.

9. अगर आपको हड्डियों में ट्यूमर आदि किसी भी प्रकार की शिकायत है तो जोड़ों में दर्द होने की संभावना होती है.

10. इनके अलावा अर्थराइटिस, बर्साइटिस, ऑस्टियोकोंड्राइटिस, कार्टिलेज का फटना, कार्टिलेज का घिस जाना आदि जोड़ों में दर्द की समस्या के प्रमुख कारण हैं.

निवारण :

1. जोड़ों को चोट से बचाना चाहिए

अगर जोड़ों पर चोट लगती है तो वो हड्डी को तोड़ भी सकती है,  इसलिए कोशिश करें कि जोड़ों को चोट से बचाकर रख सकें. जब भी कोई ऐसा खेल खेलें जिसमें जोड़ों पर चोट लगने का डर रहता हो तब शरीर पर ज्वाइंट सेफ्टी पेड्स पहनकर रखें.

2. गतिशील रहना चाहिए

जोड़ों के दर्द से राहत के लिए सदैव गतिशील रहें. अगर जोड़ों की मूवमेंट होती रही तो आपको लंबे समय किसी भी प्रकार का कोई दर्द नहीं सताएगा. बहुत देर तक एक ही स्थिति में बैठे रहने से भी जोड़ों में कठोरता महसूस होती है.

3. वजन को नियंत्रित रखना चाहिए

यदि आपका वजन नियंत्रण में रहेगा तो आपका शरीर और शरीर के सारे जोड़ भी स्वास्थ्य रहेंगे. शरीर का ज्यादा वजन घुटनों और कमर पर अधिक दबाव डालता है और इससे आपके शरीर के कार्टिलेज के टूटने का डर बना रहता है. अब ऐसे में आपको अपने वजन को नियंत्रण में रखना बेहद जरूरी है.

4. ज्यादा स्ट्रेच नहीं करना चाहिए

अगर आप नियमित व्यायाम करते हैं तो, व्यायाम के साथ आपको स्ट्रेचिंग करने की भी सलाह दी जाती है, तब ये बात हमेशा ध्यान में रखें कि व्यायाम करते समय स्ट्रेचिंग हफ्ते में केवल तीन बार करें. स्ट्रेचिंग को एकदम शुरू नहीं करना चाहिए. ऐसा करने की जगह पहले थोड़ा वार्म अप भी करें.

5. दूध पीएं

दूध में कैल्श्यिम और विटामिन डी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो जोड़ों को मजबूत रखने के बेहद जरुरी होता है. इसीलिए हर रोज दूध जरूर पीना चाहिए. जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं. अगर आपको दूध पसंद नहीं है तो दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जैसे पनीर, दही आदि.

6. सही आसन बनाकर रखें

जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए सही पोश्चर या आसन में उठना, बैठना और चलना बेहद आवश्यक है. आपका सही पोश्चर ही गर्दन से लेकर घुटनों तक शरीर के सभी जोड़ों की रक्षा करता है.

7. व्यायाम करें

जोड़ों के दर्द से निजात के लिए और अपने स्वास्थ्य की सही देखभाल के लिए आपको, व्यायाम को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बना लेना चाहिए. तैराकी करना जोड़ों के दर्द के लिए सबसे फायदेमंद व्यायाम होता है.

किटी पार्टी: राधिका ने क्या जवाब दिया

पौश कालोनी का एक इलाका. उस में मिसेज खुशबू की एक दोमंजिला आलीशान कोठी. उस में नीचे वह स्वयं रहती हैं और ऊपर के पोर्शन को अपनी सामाजिक गतिविधियों और मेहमानों के लिए खाली रखती हैं. उन की एक ‘महिला सत्संग’ नाम की संस्था है. उसी के तहत वह महिलाओं की किटी पार्टी करती हैं. अगर यह कहा जाए कि ‘महिला सत्संग’ का मतलब किटी पार्टी ही है, तो गलत न होगा.

किटी पार्टी में शामिल होने वाली महिलाएं हालांकि आती तो संभ्रांत परिवारों से हैं, पर असल में वे बैठीठाली महिलाएं हैं, जिन के पति या तो हैं नहीं या फिर वे बाहर रहते हैं और अकसर वे महिलाएं अकेली रहती हैं.

मिसेज खुशबू भी अकेली रहती हैं. लेकिन उन के बारे में चर्चा यह है कि उन के पति का देहांत हो चुका है, और वह इस शहर में एक प्रतिष्ठित मिशन स्कूल में टीचर रह चुकी हैं. नौकरी से मुक्त होने के बाद वह अपने मूल शहर वापस नहीं गईं, और इसी शहर में अपनी कोठी बना कर बस गईं.

शाम के 6 बजे थे. मिसेज खुशबू ने चाय के लिए अपनी मेड को आवाज दी. उसी समय दरवाजे की बेल बजी. मिसेज खुशबू ने बाहर का गेट खोला, देखा, एक खूबसूरत स्त्री हाथ में बेग लिए खड़ी है. उन्होंने नीचे से ऊपर तक इस स्त्री पर नजर डाली, टौप और नीली जींस में, आंखों पर काला चश्मा लगाए एक गौर वर्ण की खूबसूरत युवती खड़ी है. मिसेज खुशबू ने मुसकरा कर हेलो किया, फिर पूछा, ‘जी, बताइए?’

‘मैं राधिका हूं. क्या मैं आप से मिल सकती हूं?’

‘ओ… यस, कम… कम,’ और मिसेज खुशबू राधिका को अंदर ड्राइंगरूम में ले गईं.

मेड को आवाज दे कर पानी लाने और एक कप चाय और बना कर लाने के लिए कहा.

चाय पर बातचीत शुरू हुई. मिसेज खुशबू ने पूछा, ‘हां तो बताइए, आप क्या बात करना चाहती थीं?’

‘दरअसल मैम, मैं आप के क्लब की मेंबर बनना चाहती हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘ओह, नाइस. क्या करती हैं आप?’

‘जी मेम, मैं भी टीचर हूं.’

‘मैं भी का क्या मतलब…? कोई और भी है?’

‘जी, आप भी टीचर थीं ना?’

‘ओह,’ मिसेज खुशबू मुसकराईं.

‘कहां पढ़ाती हैं आप?’

‘जी, गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज में.’

‘क्यों मेंबर बनना चाहती हैं?’

राधिका ने विनम्रता से कहा, ‘क्या है कि मैम, कुछ मेलजोल बढ़ेगा, विचारों के आदानप्रदान से लाभ होगा, और समय भी कटेगा.’

मिसेज खुशबू ने कागजी कार्यवाही पूरी कर के राधिका को ‘महिला सत्संग’ का सदस्य बना लिया. फिर कहा, ‘वैसे तो हर महीने के दूसरे और आखिरी वीकेंड पर हमारी सभा होती है. लेकिन कभीकभी खास सभाएं होती हैं, तो फोन से सब को सूचित कर दिया जाता है.’

कोई एक हफ्ते बाद राधिका के फोन पर मिसेज खुशबू का मैसेज आया, ‘इसी संडे को कुछ नए सदस्यों का परिचय कराने के लिए पार्टी रखी गई है. आप शाम 6 बजे आइएगा.’

राधिका ने मैसेज पढ़ा और ओके लिख कर रिप्लाई सेंड कर दिया.

उस दिन राधिका ने सारे जरूरी काम शाम 5 बजे से पहले ही निबटा लिए. वह ठीक शाम के 6 बजे मिसेज खुशबू की कोठी पर पहुंच गई.

पार्टी ऊपर के कमरे में थी. राधिका ने प्रवेश किया तो देखा कि कई महिलाएं सोफे पर विराजमान थीं. वह उन में से किसी को नहीं जानती थी. उस ने सभी उपस्थित महिलाओं को सिर झुका कर हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा और एक खाली सोफे पर बैठ गई. कुछ देर में संस्था की बाकी सदस्य भी आ गईं. सब से अंत में आईं, मिसेज खुशबू. उन्होंने पार्टी की कुछ औपचारिक कार्यवाही के बाद नए सदस्यों का परिचय कराना शुरू किया, ‘ये मिस कल्पना हैं. आकाशवाणी में ये अनाउंसर थीं. अब सोशल वर्कर हैं. ये मिसेज नीलम सिंह हैं, फ्रीलांसर हैं. ये मिसेज मधु हैं, इन का खुद का गारमेंट बिजनेस है और सिलाईकढ़ाई का केंद्र भी चलाती हैं. ये हैं हमारी संस्था की सब से महत्वपूर्ण मेंबर सविता भटनागर, स्त्री मामलों की विशेषज्ञ और मशहूर वकील. फिर वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोलीं, ‘और ये हैं ब्यूटीफुल लेडी राधिका, जो गवर्नमेंट कालेज में अंगरेजी पढ़ाती हैं और खुले विचारों की हैं.’

‘खुले विचारों से मतलब…?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

राधिका ही बोल पड़ी, ‘प्रगतिशील और वैज्ञानिक भी.’

‘तो क्या हम प्रगतिशील नहीं हैं?’ स्वाति मिश्रा ने सवाल किया.

‘जरूर हो सकती हो. क्यों नहीं हो सकती?’ राधिका ने जवाब दिया.

इस के बाद मनीषा त्रिपाठी ने सभी सदस्यों को रामनवमी की अग्रिम बधाई दी. राधिका ने पूछा, ‘अगर कोई रामनवमी न मनाता हो तो…?’

‘क्या आप रामनवमी नहीं मनाती हैं?’ स्वाति ने पूछा.

‘नहीं, मैं क्यों रामनवमी मनाऊं?’ राधिका ने जवाब दिया.

‘क्या आप हिंदू नहीं हैं?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

‘जरूर हिंदू हूं, पर मैं अंधविश्वासी नहीं हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘इस में अंधविश्वास कहां से आ गया? राम कल के दिन पैदा हुए थे,’ मनीषा ने बताया.

राधिका ने शांत हो कर कहा, ‘देखिए, बुरा न मानिए. पहले तो राम ऐतिहासिक नहीं हैं, जैसे बुद्ध हैं, महावीर हैं. दूसरी बात यह कि जो जन्म लेता है, वह भगवान कैसे हुआ? वह तो मनुष्य ही हुआ.’

‘हां, वह मनुष्य रूप में अवतार थे विष्णु के,’ मनीषा ने बताया.

‘उन्हें मनुष्य रूप में अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ी?’

‘रावण और राक्षसों का वध करने के लिए उन्हें अवतार लेना पड़ा था.’

‘रावण और राक्षस लोग विष्णु का क्या नुकसान कर रहे थे, जो उन को मारने के लिए उन्हें धरती पर आना पड़ा?’

‘आप को इतना भी नहीं पता,’ स्वाति ने कहा, ‘रावण और राक्षस लोग ब्राह्मणों के शत्रु थे, उन्हें सताते थे और मार कर खा जाते थे.’

‘ओह, तो इस का मतलब यह हुआ कि राम का अवतार ब्राह्मणों की रक्षा के लिए हुआ था, मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए नहीं. जैसे बुद्ध ने संपूर्ण मानवता को करुणा, मैत्री और अहिंसा का संदेश दिया था.’

फिर राधिका ने आगे कहा, ‘ये राम ब्राह्मणों के भगवान थे, फिर तो आप ने ठीक ही उन की पूजा की.’

मिसेज खुशबू ने देखा, मनीषा और स्वाति के चेहरों पर विषाद की रेखाएं उभर आई थीं. वातावरण में तनाव पैदा हो गया था. उन्होंने तनाव को हलका करने के लिए मधु को गजल सुनाने को कहा, पर तनाव के बीच ही मनीषा और स्वाति पार्टी से उठ कर चली गईं.

‘वादविवाद तो किटी पार्टी का हिस्सा है. इस से गुस्सा हो कर जाना तो ठीक नहीं,’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘किटी पार्टी का मतलब सिर्फ पीनाखाना ही नहीं है, वरन इस का उद्देश्य हर तरह के विषयों पर तार्किक बहस चलाना भी है. यहां आज तक ऐसे विषयों पर कभी बहस ही नहीं हुई. सिर्फ खानापीना और घरगृहस्थी की निजी बातें ही ज्यादा हुई हैं.

‘आज पहली बार राधिका के आने से किटी पार्टी में विमर्श की शुरुआत हुई है. और पहली बार मुझे पता चला कि यह कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया.’

‘लेकिन मैम, मैं ने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जिस से वे नाराज हो कर चली गईं?’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘इट्स ओके.’

इस के बाद पार्टी समाप्त हो गई.

दूसरे दिन मिसेज खुशबू के घर की घंटी फिर बजी. मिसेज खुशबू ने दरवाजा खोला, तो सामने स्वाति मिश्रा को देख कर चौंकी.

‘ओह स्वाति आप? कैसे आना हुआ?’ मिसेज खुशबू ने पूछा.

‘मेम, मुझे कुछ बात करनी है आप से,’ स्वाति ने कहा.

‘ओह, कम… कम,’ मिसेज खुशबू उन्हें घर में ले गईं. ड्राइंगरूम में बैठा कर पूछा, ‘हां बताओ, क्या बात करनी है?’

‘मेम, आप जानती हैं, ये राधिका कौन है?’ स्वाति ने पूछा.

‘ओह, राधिका. वह हमारे ‘महिला सत्संग’ की नई सदस्य बनी हैं. लेकिन तुम इतना परेशान क्यों लग रही हो?’

‘मेम, वह कोटे वाली है,’ स्वाति ने कहा.

‘वाट…? कोठेवाली…? क्या कह रही हो? तुम होश में तो हो? वह टीचर है गवर्नमेंट स्कूल में. कोठेवाली कैसे हो सकती है?’ मिसेज खुशबू ने आश्चर्य के साथ पूछा.

‘सौरी मेम, कोठेवाली नहीं, कोटे वाली.’

‘मतलब…?’

‘मतलब, वह दलित जाति से है. डा. अंबेडकर को मानने वाली है. इसीलिए तो वह राम को नहीं मानती.’

‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था यह सब नहीं मानती. हम न तो किसी की जाति पूछते हैं और न ही लिखवाते हैं. आप ने हमारी संस्था के फार्म में जाति का कालम देखा है क्या?’ मिसेज खुशबू ने कठोरता से कहा.

स्वाति ने परेशान हो कर कहा, ‘लेकिन मेम, हम उस के साथ सहज नहीं रह पाएंगे.’

‘क्यों…?’

‘इसलिए कि हम ब्राह्मण हैं… और वह अछूत.’

‘यह क्या ब्राह्मणअछूत लगा रखी है? कौन सी दुनिया में जी रही हो तुम स्वाति ?’ मिसेज खुशबू ने थोड़ा कठोर हो कर कहा.

‘लेकिन, तुम कैसे कह सकती हो, तुम ब्राह्मण हो?’ खुशबू ने पूछा.

स्वाति एकदम चौंक गई. फिर बोली, ‘आप ऐसा कैसे कह रही हैं?’

‘क्यों नहीं कहूं? आप एक सुंदर और सुशिक्षित महिला को अपनी नफरत के काबिल समझती हैं कि वह दलित है? और आप अपने को सम्मान के काबिल समझती हैं कि आप ब्राह्मण हैं? किधर से आप ब्राह्मण हैं और किधर से राधिका दलित है?’ खुशबू ने थोड़ा नाराज हो कर कहा.

स्वाति को इस तरह के सवाल की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. वह यही समझती थी कि समाज में ब्राह्मण ही सब से ऊंचा वर्ग है और दलित सब से नीचा. उसे अपने घरपरिवार में इसी तरह के भेदभाव वाले संस्कार मिले थे. एक नीच स्त्री की इतनी हैसियत नहीं कि वह किटी पार्टी में धर्म पर बहस करे और मिसेज खुशबू हैं कि ब्राह्मण और दलित में कोई भेद ही नहीं कर रही हैं. कहीं मिसेज खुशबू भी तो दलित नहीं हैं? उस के मन में संदेह पैदा हुआ. उस ने सोचा कि क्यों न संदेह मिटा लिया जाए. अत: स्वाति ने पूछा, ‘मैम, आप किस जाति की हैं?’

मिसेज खुशबू जरा भी विचलित नहीं हुईं. शुरू में वह ऐसे सवालों से जरूर परेशान होती थीं, लेकिन अब नहीं होतीं. उन्हें समझ में आ गया था कि अगर समाज को बदलना है, तो जाति के बंधन से मुक्त होना जरूरी है. इसलिए उन्होंने स्वाति से ही पूछ लिया, ‘आप ही बताओ, मेरी जाति क्या हो सकती है? मैं पेड़ हूं? पक्षी हूं? पशु हूं या मनुष्य हूं?’

‘औफ कोर्स मैम, आप मनुष्य हैं,’ स्वाति ने जवाब दिया.

‘फिर आप जाति क्यों पूछ रही हैं? जातियां तो पशुपक्षियों में होती हैं.’

‘मैम, जातियां मनुष्यों में भी होती हैं.’

खुशबू ने कहा, ‘मुझे तो मनुष्यों में जातियां नहीं दिखाई देतीं. अगर आप को लगता है कि जातियां होती हैं, तो अलगअलग जातियों की कुछ फिजिकली पहचान भी जरूर होनी चाहिए. यह क्या पहचान है, जरा हमें भी बताइए कि किस चीज से कोई ब्राह्मण होता है, और कोई दलित?’

स्वाति इस सवाल से परेशान सी हो गई थी, पर उस ने अपनी परेशानी को छिपाते हुए पूछा, ‘क्या पहचान…? मैं समझी नहीं.’

खुशबू ने दोहराया, ‘मेरे कहने का मतलब यह है कि आप के पास ब्राह्मण होने की क्या पहचान है, जो राधिका के पास नहीं है. और राधिका के पास दलित होने की क्या पहचान है, जो आप के पास नहीं है?’

स्वाति मौन हो गई. खुशबू ने समझाने के लहजे में फिर कहा, ‘क्या स्वाति, आप का और राधिका का रंग अलगअलग है?’

स्वाति ने कहा, ‘नहीं.’

खुशबू ने फिर कहा, ‘तब क्या शरीर की बनावट अलगअलग है? आप की नाक कहीं और जगह लगी है, और राधिका की कहीं और जगह?’

स्वाति ने जवाब दिया, ‘नहीं.’

खुशबू पूछने लगी, ‘तब क्या आप के और राधिका के हाथपैरों की बनावट में कोई अंतर है यानी आप के हाथपैर बड़े हों और राधिका के छोटे?’

स्वाति सहमते हुए बोली, ‘नहीं मैम, ऐसा कुछ नहीं है. सब बराबर हैं.’

खुशबू ने अपनी बात फिर दोहराई, ‘फिर क्या पहचान है…? आप अपने ब्राह्मण होने की कुछ तो पहचान बताइए.’

स्वाति मौन.

खुशबू ने कहा, ‘अच्छा अपनी पहचान नहीं बताना चाहती, तो मत बताओ. पर, कम से कम आप राधिका के ही दलित होने की पहचान बता दीजिए कि आप ने कैसे पहचाना कि वह दलित है?’

स्वाति के पास कोई जवाब नहीं था, पर वह मिसेज खुशबू की कोई भी दलील मानने को तैयार नहीं थी. अगर मानती तो उसे अपनी उच्चता की भावना छोड़नी पड़ती, जिस का मिथ्या दंभ उस की नसनस में भरा हुआ था. उसे वह छोड़ना नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने मिसेज खुशबू से कहा, ‘मैम, मैं अब आप के महिला मंडल में नहीं रहना चाहूंगी. मुझे इजाजत दीजिए, मैं चलती हूं, अपना इस्तीफा भिजवा दूंगी.’

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘आप ने सही फैसला किया है. आप जैसी जातिवादी और मनुष्य विरोधी अशिक्षित महिला की मेरे ‘महिला सत्संग’ में जरूरत भी नहीं है. और केवल मेरे ‘महिला सत्संग’ को ही नहीं, आप किसी भी संस्था, समाज के लिए अवांछित तत्व हैं.’

4 Tips: ताकि सगाई न टूटे

सुनीता बी.ए. फाइनल कर रही थी कि उस के मातापिता ने एक इंजीनियर ‘वर’ देख कर उस की सगाई कर दी. सुनीता की ससुराल वालों ने 3 महीने बाद विवाह का दिन निश्चित किया. लेकिन सुनीता के इंजीनियर मंगेतर के लिए उस से 3 महीने अलग रहना संभव नहीं था. अत: मंगेतर ने जबतब सुनीता के कालेज के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. सुनीता ने मंगेतर के साथ घूमने जाने से मना किया तो उस ने कहा, ‘‘अब तो सगाई हो चुकी है. अब इनकार किसलिए?’’

‘कहीं मंगेतर नाराज न हो जाए’ सोच सुनीता उस के साथ घूमनेफिरने जाने लगी. होटल, रेस्तरां जाने के साथसाथ दोनों ने खूब फिल्में भी देखीं और फिर 3 महीने पूरे होतेहोते दोनों की सगाई टूट गई. सुनीता की तरह अनेक लड़कियों का सगाई के बाद रिश्ता टूट जाता है. सगाई और शादी के बीच अंतराल होने पर लड़केलड़की के साथसाथ घूमनेफिरने से रिश्ता टूटने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. सगाई के बाद रिश्ता टूटने से लड़की को ही अधिक हानि होती है. आसपास वाले तरहतरह की बातें करने लगते हैं. सब लोग लड़की को ही दोष देते हैं, जबकि इस संबंधविच्छेद के लिए लड़का व उस के परिवार वाले अधिक जिम्मेदार होते हैं.

1. शारीरिक आकर्षण न पालें

सगाई के बाद लड़का और लड़की को एकदूसरे से मिलने की प्रबल उत्सुकता होती है. शारीरिक आकर्षण के कारण वे एकदूसरे से मिलना चाहते हैं, इसलिए चोरीचोरी एकदूसरे को फोन करते हैं. यदि लड़की कहीं सर्विस करती है, तो लड़का वहां पहुंच कर लड़की से मिलने की कोशिश करता है. लड़की किसी बहाने से उस से मिलने से बचती है, लेकिन उस के मस्तिष्क में लड़के से मिल कर उस के स्वभाव व दूसरी बातों को जान लेने की इच्छा होती है. 1-2 बार चोरीछिपे मिलना उन की उत्सुकता बढ़ा देता है. लड़का बारबार लड़की से मिलना चाहता है. लड़की मना करती है, तो लड़का एक ही बात कहता है, ‘‘अब तो सगाई हो चुकी है. कुछ महीनों में विवाह हो जाएगा.’’ लेकिन उन दोनों के बारबार मिलने और घूमनेफिरने में ऐसी बात हो जाती है कि लड़का विवाह से इनकार कर देता है.

अधिकांश लड़के लड़की के साथ घूमफिर कर उस के इतने समीप पहुंच जाते हैं कि उन के बीच कोई दूरी नहीं रहती. लड़का अवसर पा कर लड़की को जबतब स्पर्श करता है. लड़की उस का विरोध नहीं कर पाती. उस के मस्तिष्क में यह भय रहता है कि कहीं मंगेतर नाराज न हो जाए. लड़के का स्पर्श इतना गहरा हो जाता है कि स्वयं लड़की इतनी कामोत्तेजित हो जाती है कि मंगेतर के आलिंगन को नहीं रोक पाती और फिर आलिंगन, चुंबन से गुजरते हुए लड़के को शारीरिक संबंध बनाते देर नहीं लगती.

2. चरित्र पर शंका

एक बार शारीरिक संबंध बनने पर लड़का बारबार शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास करता है. ऐसे में किसी भूल से लड़की गर्भधारण कर लेती है तो लड़का विवाह से इनकार कर देता है. उस के मस्तिष्क में लड़की के बारे में गलत विचार उभरते हैं. वह उस के चरित्र पर संदेह करने लगता है. ऐसी भी बहुत सी घटनाएं घटती हैं, जब कोई लड़का बड़ी बहन से सगाई कर के छोटी बहन के साथ घूमफिर कर बड़ी बहन से विवाह करने से इनकार देता है. शिल्पा की सगाई सौरभ के साथ बहुत धूमधाम से हुई थी. शिल्पा की छोटी बहन स्मिता टीवी चैनल में ‘एंकर’ का काम करती थी. शिल्पा से सगाई के बाद सौरभ स्मिता की ओर आकर्षित हुआ. किसी बहाने से 2-3 बार उस के साथ घूमने भी गया. बस, फिर क्या था स्मिता के आकर्षण में खो कर उस ने शिल्पा से विवाह करने से इनकार कर दिया.सगाई के बाद लड़कियां यही सोच कर अपने मंगेतर से मिलती हैं कि उस से मिल कर उस के स्वभाव के बारे में कुछ जान सकें. लेकिन लड़के उन्हें अपने प्यार के चक्कर में फंसा कर उन के साथ मौजमस्ती कर के बड़ी सरलता से विवाह से इनकार कर देते हैं.

3. एकदूसरे का मेलजोल

नलिनी एक आफिस में कंप्यूटर आपरेटर थी. उस की सगाई कुछ दिनों पहले सुरेश से हुई थी. सगाई और विवाह में बस 2 महीने का अंतराल था. इस बीच चक्कर चला कर सुरेश ने नलिनी के साथ घूमनेफिरने के खूब अवसर ढूंढ़ लिए. घूमनेफिरने के दौरान दोनों एकदूसरे के इतने समीप आ गए कि उन के बीच कोई सीमा नहीं रही. दोनों एकदूसरे से निर्भय हो कर मिलते रहे. 2 महीने पूरे होतेहोते सुरेश ने नलिनी से विवाह करने से इनकार कर दिया. विवाह से इनकार करने का यही बहाना था कि जो लड़की मेरे साथ इतना घूमफिर सकती है वह दूसरे लड़कों के साथ भी घूमफिर सकती है. शारीरिक संबंध बना सकती है.

4. बदनामी का डर

किसी लड़के के लिए सगाई के बाद संबंध तोड़ देना साधारण बात हो सकती है, लेकिन लड़की व उस के परिवार वालों के लिए विषम परिस्थिति बन जाती है. संबंध टूट जाने पर सब लड़की को ही दोषी बताते हैं. लड़के के परिवार वाले भी अधिक दहेज की मांग करकर के रिश्ता तोड़ने की धमकी देते हैं. लड़की वाले सोचते हैं कि रिश्ता टूटने से बहुत बदनामी होगी. दूसरी जगह रिश्ता करने में बहुत कठिनाई होगी और फिर उन की यही सोच उन्हें अधिक दहेज देने को मजबूर कर देती है. सगाई और विवाह के बीच का अंतराल किसी भी लड़की के लिए विषमता से भरा रहता है. उस समय लड़की ऐसे दोराहे पर खड़ी रहती है कि मंगेतर के साथ घूमनेफिरने से इनकार नहीं कर सकती और साथ घूमनेफिरने से विषम परिस्थितियों में फंस जाती है. सगाई के बाद विवाह होने तक किसी भी लड़की के लिए बहुत सावधान रहने की आवश्यकता होती है. इस अंतराल में लड़की के मातापिता को भी बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए. लड़के वाले परिवार द्वारा जेवर, साडि़यां आदि पसंद करने के लिए बुलाने के समय भी लड़की को अपने परिवार के किसी सदस्य के साथ ही भेजना चाहिए.

नगर में ढिंढोरा: डंपी को किस बात का डर था

रंजीत ने एक फाइल खोली और पत्रों पर सरसरी नजर डाली तो उसे हर पत्र की लिखावट में अपने 9 वर्षीय बेटे डंपी की भोली सूरत नजर आ रही थी. आंसुओं को रोकने का प्रयत्न करते हुए वह कुरसी से उठ खड़ा हुआ और सोचने लगा कि जब तक डंपी मिल नहीं जाता वह दफ्तर का कोई काम ठीक से नहीं कर सकेगा.

पिछले 7 दिनों से उस के घर में चूल्हा नहीं जला. अड़ोसपड़ोस के लोग और सगेसंबंधी जो भी खाने का सामान लाते उसे ही थोड़ाबहुत खिलापिला जाते थे.

रंजीत घर जाने की छुट्टी लेने के लिए अपने अफसर के कमरे में अभी पहुंचा ही था कि फोन की घंटी बज उठी थी.

‘‘रंजीत, तुम्हारा फोन है,’’ बौस ने उस से कहा था.

रंजीत ने लपक कर फोन उठाया तो दूसरी तरफ  पुलिस अधीक्षक सुमंत राय बोल रहे थे.

‘‘रंजीत, कहां हो तुम? डंपी मिल गया है. तुरंत पुलिस स्टेशन चले आओ.’’

थाने पहुंचते ही रंजीत बेटे को देख कर बोला, ‘‘डंपी, मेरे बच्चे, कहां चले गए थे तुम? सुमंत, किस ने अगवा किया था मेरे बच्चे को?’’

रंजीत डंपी को गले लगाने के लिए आगे बढ़ा तो वह छिटक कर दूर जा खड़ा हुआ.

‘‘मैं कहीं नहीं गया था, पापा. मैं तो शुभम के घर में छिपा हुआ था. मुझे किसी ने अगवा नहीं किया था.’’

‘‘पर तुम पड़ोस के घर में क्यों छिपे थे?’’ रंजीत का स्वर आश्चर्य में डूबा था.

‘‘इसलिए कि मैं जीना चाहता हूं. आप और मम्मी तो उस रात ही मुझे चाकू से मार डालना चाहते थे. वह तो मैं ने अपने स्थान पर तकिया लगा कर अपनी जान बचाई थी.’’

डंपी रोते हुए बोला तो रंजीत ने एक पल को पत्नी की तरफ देखा फिर अपना सिर पकड़ कर बैठ गया.

‘‘ऐसा नहीं कहते, बेटा, भला कोई मम्मीपापा अपने बच्चे को मार सकते हैं?’’ शैलजा डंपी को अपनी बांहों में लेने के लिए आगे बढ़ी.

‘‘पता नहीं मम्मी, पर उस दिन तो आप दोनों ने चाकू से मुझे मारने की योजना बनाई थी,’’ डंपी अब सिसक कर रोने लगा.

‘‘बहुत हो गया यह तमाशा. अब एक शब्द भी आगे बोला तो इतनी पिटाई करूंगा कि बोलती बंद हो जाएगी,’’ रंजीत बच्चे द्वारा किए गए अपमान को सह नहीं पा रहा था.

‘‘मुझे पता है, इसीलिए तो मैं आप के साथ रहना नहीं चाहता हूं,’’ डंपी सिसक रहा था.

‘‘आखिर, उस दिन ऐसा क्या हुआ था कि बच्चा इतना डरा हुआ है?’’ दादी मां के इस सवाल पर रंजीत, शैलजा और डंपी के सामने उस रात की तमाम घटनाएं सजीव हो उठीं.

अचानक जोर की चीख सुन कर नन्हा डंपी जाग गया था. जब अंधेरे की वजह से उस की कुछ समझ में नहीं आया तो वह घबरा कर उठ बैठा था. धीरेधीरे अंधेरे में जब उस की आंखें देखने की अभ्यस्त हुईं तो देखा कि पलंग के एक कोने पर बैठी मम्मी सिसक रही थीं.

‘मैं तो इस दिनरात की किचकिच से इतना दुखी हो गया हूं कि मन होता है आत्महत्या कर लूं,’ रंजीत ने तौलिए से हाथमुंह पोंछते हुए कहा था.

‘चलो अच्छा है, कम से कम एक विषय में तो हम दोनों के विचार मिलते हैं. मैं भी दिन में 10 बार यही सोचती हूं. मैं ने तो बहुत पहले ही आत्महत्या कर ली होती. बस, डंपी का मुंह देख कर चुप रह जाती हूं कि मेरे बाद उस का क्या होगा,’ शैलजा भरे गले से बोली थी.

‘यह कौन सी बड़ी समस्या है. पहले डंपी का काम तमाम कर देते हैं फिर दोनों मिल कर आत्महत्या करेंगे. कम से कम इस नरक से तो छुटकारा मिलेगा,’ रंजीत तीखे स्वर में बोला था.

‘ठीक है. अच्छे काम में देर कैसी? मैं अभी चाकू लाती हूं,’ और क्रोध से कांपती शैलजा रसोईघर की ओर लपकी थी. रंजीत उस के पीछेपीछे चला गया था.

इधर दिसंबर की ठंड में भी डंपी पसीने से नहा गया था. कुछ ही दिन पहले टेलीविजन पर देखा भयंकर दृश्य उस की आंखों में एकाएक तैर गया जिस में एक दंपती ने अपने 3 बच्चों की हत्या करने के बाद आत्महत्या का प्रयास किया था.

डंपी को लगा कि उस ने यदि शीघ्र ही कुछ नहीं किया तो कल तक वह भी टेलीविजन के परदे पर दिखाया जाने वाला एक समाचार बन कर रह जाएगा. उधर रसोईघर से शैलजा और रंजीत के झगड़े के स्वर तीखे होते जा रहे थे.

डंपी फौरन उठा और अपने स्थान पर तकिया लगा कर उसे रजाई उढ़ा दी. सामने पड़ा एक पुराना कंबल ले कर वह पलंग के नीचे लेट गया. भय और ठंड के मिलेजुले प्रभाव से डंपी अपने घुटनों को ठोड़ी से सटाए वहीं पड़ा रहा.

आधी रात तक लड़नेझगड़ने के बाद रंजीत और शैलजा थकहार कर सो गए थे पर डंपी की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. ये तो बड़े खतरनाक लोग हैं. मातापिता हैं तो क्या हुआ, उसे तो मार ही डालेंगे. इन लोगों के साथ रहना खतरे से खाली नहीं है.

कुछ ही देर में कमरे में खर्राटों के स्वर गूंजने लगे थे. डंपी को अपने ही माता- पिता से वितृष्णा होने लगी. वैसे तो बड़ा प्यार जताते हैं पर अब दोनों में से किसी को भी होश नहीं है कि मैं कहां पड़ा हूं.

सुबह उठ कर रंजीत जब ड्राइंगरूम में आया तो डंपी को तैयार बैठा देख कर चौंक गया, ‘बड़ी जल्दी तैयार हो गए तुम?’

‘जल्दी कहां, पापा, 7 बजे हैं.’

‘रोज तो कितना भी जगाओ, उठने का नाम नहीं लेते और आज अभी से सजधज कर तैयार हो गए,’ रंजीत अखबार पर नजर गड़ाए हुए बोला था.

‘शायद आप को याद नहीं है, पापा, मेरी परीक्षा चल रही है,’ डंपी ने याद दिलाया था.

‘ठीक है, जाओ पर खाने का क्या  इंतजाम करोगे? तुम्हारी मम्मी को तो सोने से ही फुरसत नहीं मिलती.’

‘कोई बात नहीं, पापा मैं ने नाश्ता कर लिया है. मैं चलता हूं नहीं तो बस छूट जाएगी,’ कहते हुए डंपी घर से बाहर निकल गया था.

‘डंपी…ओ डंपी?’ लगभग 2 घंटे बाद शैलजा की नींद खुली तो उस ने बदहवासी से बेटे को पुकारा था.

‘डंपी बाबा तो मेरे आने से पहले ही स्कूल चले गए,’ काम वाली ने शैलजा को बताया.

‘और साहब?’

‘वह भी अपने दफ्तर चले गए. मैं ने नाश्ते के लिए पूछा तो कहने लगे कि रहने दो. कैंटीन से मंगा कर खा लूंगा.’

‘उन्हें घर का खाना कब भाता है’ वह तो कैंटीन में खा लेंगे पर डंपी, वह बेचारा तो पूरे दिन भूखा ही रह जाएगा. कम्मो, तू जल्दी से कुछ बना कर टिफिन में रख दे. तब तक मैं तैयार हो लेती हूं.’

शैलजा टिफिन ले कर स्कूल पहुंची तो आया ने गेट पर ही रोक कर टिफिन ले लिया था.

‘मैं एक बार अपने बेटे डंपी से मिलना चाहती हूं,’ शैलजा ने अनुरोध भरे स्वर में कहा था.

‘उस के लिए तो आप को दोपहर की छुट्टी तक इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि पढ़ाई के समय में अभिभावकों को अंदर जाने की इजाजत नहीं है,’ आया ने बताया था.

शैलजा आया को टिफिन पकड़ा कर लौट आई थी.

घर पहुंचते ही कम्मो ने बताया था कि डंपी बाबा के स्कूल से फोन आया था.

‘अभी वहीं से तो मैं आ रही हूं. घर पहुंचने से पहले ही फोन आ गया. ऐसा क्या काम आ पड़ा?’

उसी समय फोन की घंटी बज उठी. शैलजा ने लपक कर फोन उठाया तो उधर से आवाज आई थी, ‘आप डंपी की मम्मी बोल रही हैं न?’

‘जी हां, आप कौन?’

‘मैं स्कूल की प्रधानाचार्या बोल रही हूं. आप ही कुछ देर पहले डंपी के लिए टिफिन दे गई थीं. लेकिन आप का बेटा डंपी आज स्कूल आया ही नहीं है.’

‘क्या कह रही हैं आप? डंपी तो आज सुबह 7 बजे ही घर से स्कूल के लिए चला गया था. वहां न पहुंचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.’

‘देखिए, मेरा काम था आप को सूचित करना, सो कर दिया. आगे जैसा आप ठीक समझें,’ और फोन रख दिया गया था.

शैलजा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. डंपी गया तो कहां गया.

वह दोनों हाथों में सिर थामे जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई. उसे लगा कि टांगों में जान नहीं रही है, उस का गला भी सूख रहा था और आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था.

शैलजा की यह दशा देख कर कम्मो दौड़ी आई और उसे सहारा दे कर सोफे पर बैठाया. एक गिलास पानी देने के बाद कम्मो ने शैलजा के सामने फोन रख दिया.

रात के झगड़े के बाद शैलजा की रंजीत से बोलचाल बंद थी पर उस की चिंता न करते हुए उस ने सिसकियों के बीच सबकुछ रंजीत को बता दिया था.

‘सुबह तो डंपी मेरे सामने ही बस्ता ले कर गया था. तो स्कूल की जगह वह और कहां जा सकता है. मैं स्कूल जा कर देखता हूं. वहीं कहीं बच्चों के साथ होगा,’ कहने को तो रंजीत कह गया था पर घबराहट के मारे उस का भी बुरा हाल था.

चौथी कक्षा में पढ़ने वाले 9 वर्षीय डंपी के गायब होने का समाचार जंगल में लगी आग की तरह फैल गया था. जितने मुंह उतनी बातें.

हर स्थान पर खोजखबर लेने के बाद रंजीत और शैलजा ने पुलिस में बेटे के गायब होने की रिपोर्ट लिखा दी थी. शुभम के मातापिता छुट्टियां मनाने दूसरे शहर गए हुए थे अत: घर वापस लौटते ही वे लपक कर डंपी के घर पहुंचे थे.

‘मुझे तो लगता है मैं ने डंपी को अपने घर के सामने खड़े देखा था,’ शुभम की मम्मी रीमा बोली थीं.

‘भ्रम हुआ होगा तुम्हें. इतने दिनों से ये लोग ढूंढ़ रहे हैं उसे. हमारे घर के सामने कहां से आ गया वह?’ शुभम के पापा रीतेश बोले थे.

रीमा को कुछ दिनों से शुभम की गतिविधियां विचित्र लगने लगी थीं. फ्रिज में रखे खाने के सामान तेजी से खत्म होने लगे. सदा चहकता रहने वाला शुभम खुद में ही डूबा रहने लगा था.

एक दिन रीमा ने शुभम को तब रंगे हाथ पकड़ लिया जब वह डंपी को खाने का सामान दे रहा था. शुभम के घर के पिछवाड़े कुछ खाली ड्रम रखे हुए थे, डंपी वहीं छिपा हुआ था.

पूरी जानकारी कर लेने के बाद पुलिस अधीक्षक सुमंत राय डंपी के मातापिता को सवालिया नजरों से देखने लगे.

काफी देर हिचकियां ले कर रोने  के बाद डंपी अपनी दादी की गोद में सो गया.

‘‘बहनजी, बच्चे के मन में डर बैठ गया है,’’ डंपी की नानी बोली थीं, ‘‘अब तो मुझे भी डर लग रहा है कि ये लोग क्रोध में बच्चे को चाकू घोंप कर मार डालते तो कोई क्या कर लेता?’’

‘‘ठीक कह रही हैं आप,’’ पुलिस अधीक्षक सुमंत राय बोले थे, ‘‘इस तरह की घटनाएं खुद पर नियंत्रण खो बैठने से ही होती हैं. इस बार तो मैं डंपी को रंजीत और शैलजा को सौंपे दे रहा हूं पर इन्हें लिखित भरोसा देना होगा कि बच्चे को ऐसी यंत्रणा से दोबारा न गुजरना पड़े.’’

‘‘भविष्य में ऐसा नहीं होगा. हम आप को वचन देते हैं,’’ रंजीत और शैलजा किसी से नजरें नहीं मिला पा रहे थे.

‘‘फिर भी मैं बच्चे की दादीदादा और नानीनाना से कहूंगा कि वे बारीबारी से यहां आ कर रहें जिस से कि बच्चे का मातापिता से खोया विश्वास लौट सके.’’

सुमंत राय बोले तो सब ने सहमति में सिर हिलाया. उधर गहरी नींद में करवट बदलते हुए डंपी फिर सिसकने लगा था.

मैंने ज़रा देर में जाना – भाग 3

“मेरे वहां जाने से कुछ दिनों पहले ही अपने बेटे कार्तिक की फ़ीस और बुक्स खरीदने के बहाने पैसे मांगे थे मुझ से उन लोगों ने. वहां जा कर देखा तो कार्तिक के लिए एक नामी ब्रैंड का महंगा मोबाइल फ़ोन खरीदा हुआ था. मैं ने एतराज़ जताया तो प्रियंका दीदी बोलीं कि यह तो इसे गाने की एक प्रतियोगिता जीतने पर मिला है. मुकेश जीजाजी ने कार भी तभी खरीदी थी. क्या ज़रूरत थी कार लेने की जब फ़ीस तक देने को पैसे नहीं थे उन के पास. मन ही मन मुझे बहुत गुस्सा आया था. मैं समझ गया था कि इन्हें अपने सुखद जीवन के लिए जो पैसा चाहिए उसे ये दोनों इमोशनल ब्लैकमेल कर हासिल कर रहे हैं. उसी दिन मैं ने फ़ैसला कर लिया था कि रिश्तों को केवल सम्मान दूंगा भविष्य में.” आप ने यह मुझे पहले क्यों नहीं बताया?”

“मैं सही समय की प्रतीक्षा में था.”

“मतलब?”

“देखो एकता, मैं कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम सत्संग में जाती हो. मैं जानता हूं कि वहां धर्म, कर्म के नाम से डराया जाता है. समयसमय पर दान का महत्त्व बता रुपएपैसे ऐंठने का चक्रव्यूह रचा जाता है. खूनपसीने की कमाई क्या निठल्ले लोगों पर उड़ानी चाहिए, फिर वह चाहे मेरी बहन हो या कोई साधु बाबा?”

प्रतीक की बात सुन एकता किसी अपराधी की तरह स्पष्टीकरण देते हुए बोली, “मैं तो इसलिए दान देने की बात कहा करती थी कि सुना था इस से भला होता है.”

“कैसा भला? क्या उसी डर से दूर कर देना भला कहा जाएगा जो डर ज़बरदस्ती पहले मन में बैठाया जाताहै?”

एकता ध्यान से सब सुन रही थी.

“सोनेचांदी की वस्तुओं के दान से पाप धुल जाते हैं, रुपएपैसे व अन्य सामान का समयसमय पर दान किया जाए तो स्वर्ग मिलता है, ग्रहण लगे तो दान करो ताकि उस के बुरे प्रभावों से बचा जा सके. परिवार में जन्म हो तो भविष्य में सुख के लिए और मृत्यु हो तो अगले जन्म में शांति व समृद्धि के लिए दान पर खर्च करो. सत्संग में ऐसा ही कुछ बताया जाता होगा न?” प्रतीक ने पूछा तो एकता ने हां में सिर हिला दिया.

“तो बताओ किस ने देखा है स्वर्ग? क्या ऐसा नहीं लगता कि स्वर्गनरक की अवधारणा ही व्यक्ति को डराए रखने के लिए की गई है? अगले जन्म की कल्पना कर के सुख पाने की इच्छा से इस जन्म की गाढ़ी कमाई लुटा देना कहां की समझदारी है? ग्रह, नक्षत्रों, सूर्य और चंद्रग्रहण का बुरा प्रभाव कैसे होगा जबकि ये केवल खगोलीय घटनाएं है? ये बेमतलब के डर मन में बैठाए गए हैं कि नहीं? तुम से एक और सवाल करता हूं कि यदि दान देने से पाप दूर हो जाते हैं तो इस का मतलब यह हुआ कि जितना जी चाहे बुरे कर्म करते रहो और पाप से बचने के लिए दान देते रहो. यह क्या सही तरीका है जीने का?”

 

“नहीं, यह रास्ता तो अनाचार को बढ़ा कर व्यक्ति को ग़लत दिशा में ले जा सकता है.” एकता के सामने सच की परतें खुल रही थीं.

 

“मैं देखता हूं कि लोग पटरी पर धूप और ठंड में सामान बेचने वालों से पैसेपैसे का मोलभाव करते हैं, नौकरों को मेहनत के बदले तनख्वाह देने से पहले सौ बार सोचते हैं कि कहीं ज़्यादा तो नहीं दे रहे? पसीने से लथपथ रिकशेवाले से छोटी सी रकम का सौदा करते हैं और वही लोग दानपुण्य संबंधी लच्छेदार बातों में फंस कर बेवजह धन लुटा देते हैं.”

 

शंभूनाथ का होटल में बदला हुआ रूप देख कर एकता का मन पहले ही खिन्न था. इन सब बातों को समझते हुए बोल उठी, “विलासिता का जीवन जीने की चाह में दूसरों को बेवकूफ़ बनाते हैं कुछ लोग. दान देना तो सचमुच निठल्लेपन को बढ़ाना ही है. किसी हृष्टपुष्ट को बिना मेहनत के क्यों दिया जाए? इस से हमारा तो नहीं, बल्कि उस का जीवन सुखद हो जाएगा. देना ही है तो किसी शरीर से लाचार को, अनाथाश्रम या गरीब के बच्चे पढ़ाई के लिए देना चाहिए और मैं ऐसा ही करूंगी अब.”

 

प्रतीक मुसकरा उठा, “वाह, तुम कितनी जल्दी समझती हो कि मैं कहना क्या चाह रहा हूं, इसलिए ही तो इतना प्यार करता हूं तुम्हें. जो अभी तुम ने कहा वही तो दीदी, जीजाजी को अब पैसे न भेजने का कारण है. जब वे लोग मुश्किल में थे, मैं ने हर तरह से सहायता की. अब उन को गुज़ारे के लिए नहीं, अपनी ज़िंदगी मज़े से बिताने के लिए पैसे चाहिए. जहां धर्म में डर का जाल बिछा कर पैसे निकलवाए जाते हैं, वहां दीदी, जीजाजी अपनी बेचारगी का बहाना बना मुझे बेवकूफ़ बना रहे हैं. मैं दान या मदद के नाम पर निकम्मेपन को बढ़ावा नहीं दूंगा, कभी नहीं.”

“सोच रही हूं व्हाट्सऐप के सत्संग ग्रुप में जो फ्रैंड्स हैं, आज उन सब से बात करूं ताकि वे भी उस सचाई को जान सकें जिसे मैं ने ज़रा देर में जाना है.” प्रतीक की ओर मुसकरा कर देखने के बाद एकता अपना मोबाइल ले कर सखियों को कौल करने चल दी.

सिल्क की शुद्धता का परीक्षण

सिल्क हमारे देश में शादियों, उत्सवों और समारोहों जैसे हर शुभ अवसर का एक अनिवार्य हिस्सा है. इसलिए सिल्क की मांग भी अधिक है. यह गौरतलब है की भारत सिल्क का सबसे बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है.

सिल्क की इस ज्यादा मांग ने उसकी मूल्य श्रृंखला में विकृतियों और मिलावट की घटनाओं को भी जन्म दिया है. नायलॉन, रेयान, पॉलिएस्टर आदि एक से दिखने वाले रेशों की मिलावट से बना कपड़ा शुद्ध सिल्क का बताकर बेचा जाता है जिसकी कीमत शुद्ध सिल्क की कीमत का सिर्फ 10% ही होता है. वहीं उपभोक्ताओं के लिए इन मिलावटी और शुद्ध सिल्क में फर्क पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह बिलकुल शुद्ध सिल्क जैसा ही दिखता है.

इसीलिए हम सभी के लिए यह जानना जरुरी है कि सिल्क की शुद्धता का परीक्षण कैसे किया जाता है. सिल्क शुद्धता परीक्षणों में से सबसे आसान लौ परीक्षण यानी Flame Test है.  इससे फाइबर शुद्ध सिल्क है या नहीं इसका पता बहुत जल्द और आसानी से लग जाता है.

इस परिक्षण में सिल्क के कपड़े के किनारे से कुछ धागे निकाल लें और उन्हें सिरों से जला दें. अलग- अलग फाइबर के धागे अलग तरह से जलते हैं. सिल्क धीरे-धीरे जलता है और एक काला अवशेष छोड़ता है, जो कि उंगलियों से आसानी से टूट जाता है और जले हुए बालों जैसी गंध देता है. जबकि कॉटन या रेयान, कागज के जलने जैसी गंध के साथ लगातार जलता रहता है और सफेद राख छोड़ता है. वहीं नायलॉन या पॉलिएस्टर की बात करें तो यह तेजी से जलता है और प्लास्टिक की तरह पिघलता है, जिससे कठोर न टूटनेवाले मोती बन जाते हैं.

सिल्क की शुद्धता का पता लगाने का एक और आसान तरीका है. जब भी आप सिल्क खरीदें, सुनिश्चित करें कि हमेशा सिल्क मार्क लेबल हो  – सिल्क मार्क लेबल शुद्ध सिल्क का आपका एकमात्र आश्वासन है.

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सिल्क के कपड़ों का ऐसे करें देखभाल  

सिल्क अमूल्य है और बहुत लोगों के लिए तो सिल्क की साड़ियां या अन्य कपड़े भावनात्मक मूल्य भी रखते हैं. उससे कोई न कोई याद जुड़ी हुई रहती है. इसलिए, यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि सिल्क की साड़ियों या अन्य कपड़ों की देखभाल कैसे की जाए.

  • सिल्क को हमेशा ड्राई क्लीन करने की सलाह दी जाती है क्योंकि इनमें इस्तेमाल किए गए रंगों के बारे में कोई निश्चित्तता नहीं होती है
  • अगर कभी सिल्क को पानी में धोया जाता है तो जरुरी है कि इसके लिए केवल एक अच्छे न्यूट्रल साबुन का इस्तेमाल किया जाए और गुनगुने पानी में धोया जाए
  • धोने के बाद पानी निकालने के लिए हल्के हाथ से कपड़े को निचोड़ें
  • सिल्क को हमेशा छाँव में लटकाने की बजाय समतल सतह पर रखकर ही सुखाएं
  • प्रेस करते समय कम से मध्यम आंच का इस्तेमाल करें
  • सिल्क को हमेशा उल्टा रखकर प्रेस करें
  • प्रेस करने से पहले सिल्क को गीला करने के लिए कभी भी पानी का छिड़काव न करें क्योंकि इससे कपड़े पर पानी के धब्बे पड़ सकते हैं
  • दागों व धब्बों को कभी भी पानी से न धोएं, बल्कि इसे ड्राई क्लीनिंग के लिए दें
  • सिल्क के कपड़ों को स्टोर करने के लिए प्लास्टिक कवर के बदले सिर्फ सूती बैग का उपयोग करें और स्वच्छ और शुष्क वातावरण में रखें
  • सिल्क को स्टोर करते समए कभी भी लकड़ी के सीधे संपर्क से बचें
  • सिल्क को कीड़ों, धूल, अत्यधिक नमी और धूप से बचाएं रखें
  • समय-समय पर (हर 3 से 6 महीने में) सिल्क को ताजी हवा में रखें और सिलवटों को उलटकर स्टोर करें
  • सिल्क में जरी को काला होने से बचाने के लिए सिल्क की साड़ियों को सूती कपड़े या भूरे कागज़ में लपेटें
  • स्टोर करने के लिए सिलिका जेल पाउच सिल्क कपड़ों के साथ रखें.

‘कंडोम’ जैसे टैबू पर बनीं है फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’, अविका गौर आईं नजर

हम सभी अत्याधुनिक जीवनशैली के आदी होते जा रहे हैं. मगर आज भी हमारे देश में ‘कंडोम’ टैबू बना हुआ है. आज भी लोग दुकानदार से ‘कंडोम’ मांगने में  झि  झकते हैं. जबकि ‘कंडोम’ कोई बुराई नहीं बल्कि जरूरत है. लोगों के बीच जागरूकता लाने व ‘कंडोम’ को टैबू न मानने की बात करने वाली फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ हाल ही में प्रदर्शित होने जा रही है.

इस फिल्म की खासीयत यह है कि इस के लेखन व निर्देशन की जिम्मेदारी किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि एक महिला ने संभाली, जिन का नाम है- सारिका संजोत. इन की बतौर लेखक व निर्देशक यह पहली फिल्म है. पहली बार ही ‘कंडोम’ जैसे टैबू माने जाने वाले विषय पर फिल्म बना कर सारिका संजोत ने एक साहसिक कदम उठाया है.

फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ में ‘ससुराल सिमर’ फेम अभिनेता मनीष रायसिंघन व ‘बालिका वधू’ फेम अविका गौर के साथ ही ‘स्कैम 92’ फेम प्रतीक गांधी सहित कई अन्य कलाकारों ने अभिनय किया है.

पेश हैं, सारिका संजोत से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के मुख्य अंश:

अब तक की आप की यात्रा कैसी रही है और फिल्मों की तरफ मुड़ने की कोई खास वजह रही?

मैं गैरफिल्मी बैकग्राउंड से हूं. बचपन से फिल्में देखने का शौक रहा है. हर परिवार में मांबाप अपने बच्चों को डाक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते हैं, वहीं मेरे पिता मु  झे फिल्म निर्देशक बनाना चाहते थे, जबकि उन का खुद का इस क्षेत्र से कोई जुड़ाव नहीं था. वे मु  झे हर तरह की फिल्में दिखाते थे. मैं ने मूक फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र से ले कर अब तक की लगभग हर भारतीय व कई विदेशी फिल्में देखी हैं, इसलिए दिनप्रतिदिन मेरे अंदर फिल्मों को ले कर उत्साह बढ़ता गया.

धीरेधीरे मैं ने फिल्म तकनीक को ले कर पढ़ना भी शुरू कर दिया और मेरे दिमाग में यह बात आ गई थी कि मु  झे फिल्म निर्देशन करना है. फिर मैं ने फिल्म के लिए कहानी लिखनी शुरू की. पटकथा लिखी. उस के बाद अब बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ ले कर आई हूं. यह फिल्म बहुत ही अलग तरह के विषय पर है. मेरा मकसद लोगों का मनोरंजन करने के साथसाथ उन्हें संदेश भी देना है.

फिल्म ‘कहानी रबर बैंड’ की कहानी का विषय कहां से मिला?

देखिए, फिल्म देखतेदेखते मेरे अंदर समाज में घट रही घटनाओं में से कहानी तलाशने की स्वत: स्फूर्ति एक आदत सी बन गई थी. मैं ने कई घटनाक्रमों पर कई छोटीछोटी कहानियां लिख रखी हैं, जिन्हें फिल्म के अनुरूप विकसित करने की प्रक्रिया कुछ वर्ष पहले शुरू की थी. मैं ने कई कौंसैप्ट पर काम किया है. मेरी अगली फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ से एकदम अलग है. मेरा मानना है कि हमारे आसपास ही कहानियों का अंबार है.

मेरी एक सहेली ने उस के साथ ‘कंडोम’ को ले कर घटी एक घटना का जिक्र किया था, उसी से प्रेरित हो कर मैं ने ‘कहानी रबर बैंड की’ की कहानी को लिखा. मैं ने अपने अनुभवों से सीखा कि आम कहानियों को किस तरह से खास बनाया जाए. हमारी फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ एक हास्य फिल्म है, मगर हम ने इस में एक गंभीर व संजीदा मुद्दे पर बात की है.

आप ने फिल्म का नाम ‘कहानी रबर बैंड की’ क्यों रखा?

हमारी फिल्म का विषय समाज में टैबू समझे जाने वाले ‘कंडोम’ पर है. लोग ‘कंडोम’ खरीदने वाले को अजीब सी नजरों से देखते हैं, जबकि ‘कंडोम’ हर मर्द और औरत की जरुरत है. सिर्फ परिवार नियोजन के ही दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी ‘कंडोम’ अति आवश्यक है. मगर लोगों को दुकान पर जा कर ‘कंडोम’ मांगने में शर्म आती है तो हम ने सोचा कि क्यों न इसे एक ऐसा नाम दिया जाए, जिसे लोग सहजता से ले सकें. तब हम ने इसे ‘रबर बैंड’ नाम दिया. ‘रबर बैंड’ बोलने में किसी को भी न संकोच होगा और न ही शर्म आएगी.

फिल्म ‘कहानी रबरबैंड की’ की कहानी को ले कर क्या कहना चाहेंगी?

देखिए, चूक तो हर इंसान से होती है. हमारी फिल्म के नायक से भी चूक होती है. वह जब दुकानदार से इशारे में ‘कंडोम’ खरीदा और दुकानदार ने भी उसे कागज में लपेट कर पकड़ा दिया, वह चुपचाप घर आ गया. उस ने उस की ऐक्सपायरी की तारीख या कीमत कुछ भी चैक नहीं किया, पर इसी चूक की वजह से उस की पत्नी की जिंदगी में किस तरह की समस्याएं आती हैं, उसी का इस में चित्रण है.

चोरी करने वाले को सजा मिलती है पर यहां चोर कौन हैं? गलती किस की है और जिस की गलती है, उसे साबित कैसे किया जाए? फिल्म में हमारा नायक जिस ‘कंडोम’ को खरीद कर लाता है, वह फट जाता है, जिस से समस्याएं पैदा होती हैं. स्वाभाविक तौर पर दुकानदार ने सस्ता या ऐक्सपायरी वाला ‘कंडोम’ दिया था. पर सवाल है कि इस बात को अदालत में कैसे साबित किया जाए?

लेकिन ‘कंडोम’ पर ही कुछ समय पहले फिल्म ‘जनहित में जारी’ आई थी, जिसे दर्शकों ने पसंद नहीं किया था?

हर फिल्मकार चाहता है कि उस की फिल्म को ज्यादा से ज्यादा दर्शक देखें. मगर ‘जनहित में जारी’ के फिल्मकार का संदेश अलग था और मेरी अपनी फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ का संदेश अलग है. हम किसी एक जैंडर को सहज नहीं करना चाहते. हम हर इंसान को ‘कंडोम’ के संदर्भ में सहज करना चाहते हैं. हम किसी लड़की से कहेंगे कि वह ‘कंडोम’ बेच कर आए, तो इस से बदलाव आएगा? जी नहीं.

इस से टैबू खत्म होगा? जी नहीं. हमें बैठ कर बड़ी सरलता से हर बच्चे को ‘कंडोम’ को दवा के रूप में बताना होगा. जब तक हम अपने बच्चों से कहेंगे कि बेटा, उधर से मुंह मोड़ ले’ या उधर मत देख, तब तक ‘कंडोम’ टैबू बना रहेगा. हम जब अपने बच्चों से कहते हैं कि उधर मत देखो, तभी हम अपने बच्चों के मन में गलत बात डाल देते हैं.

मैं यह भी नहीं कहती कि आप उपयोग किया हुआ या बिना उपयोग किया हुआ ‘कंडोम’ खुले में सड़क पर फेंक दो, पर यदि ‘कंडोम’ कहीं रखा है, तो उसे बच्चे न देखें, यह सोच गलत है. हम यह बता कर कि यह बड़ों की दवा है, सबकुछ सहज कर सकते हैं. हम अपनी फिल्म के माध्यम से टैबू को खत्म करने की बात कर रहे हैं.

हमारी फिल्म की कहानी ‘कंडोम’ को ‘टैबू’ मानने की वजह से होने वाली समस्याओं पर बात करती है. हमारी फिल्म किसी लड़की से कंडोम बेच कर पैसा कमाने की बात नहीं कर रही. हमारी फिल्म में यह कहीं नहीं है कि किसी के पास थोक में ‘कंडोम’ आ गए हैं, तो अब वह सोच में है कि इन्हें कैसे बेचा जाए? तो ‘जनहित में जारी’ के फिल्मकार का कहानी व समस्या को देखने का नजरिया अलग था. मेरा अपना अलग नजरिया है. यदि कोई भी लड़का या लड़की 14 वर्ष का होगा, तो उसे मेरी फिल्म की बात समझ में जरूर आएगी.

दूसरी बात मेरा मानना है कि ‘कंडोम’ खरीदने की जो  झि  झक है, वह एक दिन में नहीं जाने वाली है. हमें बच्चों के साथ बैठ कर मीठीमीठी बातें करते हुए उन्हें यह समझ कर कि यह बड़ों की दवा है, उन के मन से  झि  झक को दूर करना होगा.

फिल्म के प्रदर्शन के बाद किस तरह के बदलाव की उम्मीद करती हैं?

मु  झे उम्मीद है कि ‘कंडोम’ टैबू नहीं रह जाएगा. इसे ले कर समाज में जो हालात हैं वे बदलेंगे. लोगों की  झि  झक दूर होगी. वे इस पर खुल कर बात करेंगे और अपने बच्चों को भी ‘कंडोम’ को बड़ों की दवा के रूप में बताना शुरू करेंगे.

Anupama को धोखा देकर लाखों के गहने खरीदेगी पाखी, बरखा देगी साथ

सीरियल अनुपमा (Anupama) में अमीर खानदान की बहू बनने के बाद से पाखी के तेवर बदल गए हैं, जिसके चलते वह अब अपनी मां के मायके की बेइज्जती करती हुई भी नजर आ रही है. वहीं बरखा, पाखी के इस बिहेवियर को और बढ़ावा देती हुई दिख रही है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में पाखी इससे भी बड़ा धोखा अपनी मां अनुपमा (Anupama Update In Hindi) को देने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

पाखी की बद्तमीजी से बढ़ा अनुपमा का पारा

अब तक आपने देखा कि पाखी अपनी नानी और मामा के कारण शर्मिंदा महसूस करती है और उनकी बेइज्जती करती है, जिस पर अनुपमा उसे खरीखोटी सुनाती है. हालांकि अपनी बेटी के संगीत को खराब ना करने के लिए वह चुप हो जाती है. दूसरी तरफ, बा और अपनी नानी के स्टेज पर बात करने पर पाखी दोबारा शर्मिंदगी महसूस करती है. हालांकि अनुपमा और परिवार के कारण चुप होती हुई नजर आती है.

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पाखी खरीदेगी 60 लाख की ज्वैलरी

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी के लालच को बढ़ावा देने के लिए बरखा गहने खरीदती दिखेगी और पाखी से गहनों के बिल पर साइन करवाएगी. हालांकि अधिक दोनों का पीछा करेगा और पाखी के महंगे गहनों की शॉपिंग की बात जान जाएगा और बरखा और पाखी पर गुस्सा करता दिखेगा. दूसरी तरफ अनुपमा को भी 60 लाख की ज्वैलरी खरीदने की बात पता लग जाएगी.

कपाड़िया हाउस से बाहर होगी पाखी

इसके अलावा आप देखेंगे कि 60 लाख की ज्वैलरी खरीदने की बात जानने के बाद भी अनुपमा चुप रहेगी. लेकिन पाखी के बिहेवियर को देखकर अनुपमा के सब्र का बांध टूट जाएगा. वहीं संगीत सेरेमनी के दौरान वह पाखी को गुस्से में थप्पड़ मार देगी. साथ ही कपाड़िया हाउस से पाखी और अधिक को निकाल देगी. हालांकि देखना होगा कि कपाड़िया हाउस से निकलने के बाद क्या अधिक के साथ पाखी का प्यार कायम रह पाएगा.

पारिवारिक सुगंध – भाग 3 : परिवार का महत्व

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.

उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’

उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.

‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.

‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’

उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.

सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.

‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.

‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.

नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.

चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.

शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.

वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.

हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.

बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.

हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.

सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’

मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’

चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’

चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.

विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.

ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.

‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.

मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

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