बीच राह में-भाग 2 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

अनिता की पहल पर उन के बीच ऐसा हंसीमजाक शुरू हो गया. पर डाक्टर आनंद ने कभी उस का प्रेमी बनने की कोशिश नहीं की. डाक्टर आनंद ने जब अपनी शादी की 25वीं सालगिरह मनाई तब लगभग पूरे अस्पताल को अपनी कोठी पर दावत में बुलाया. वहां जब अनिता नहीं पहुंची, तो सब को बहुत हैरानी हुई. अनिता ने अपने न आने की बात डाक्टर आनंद को पहले ही बता दी थी. ‘‘तुम पार्टी में क्यों नहीं आओगी?’’ डाक्टर आनंद उस की बात सुन कर उलझोन का शिकार बन गए थे.

‘‘सर, मेरी और आप की दोस्ती अस्पताल के अंदर ही ठीक है. यहां आप के सब से ज्यादा नजदीक मैं ही हूं. आप के घर में बात अलग होगी. वहां आप के ऊपर मुझो से ज्यादा अधिकार रखने वाले बहुत लोग होंगे और यह बात मेरा दिल सहन नहीं कर पाएगा,’’ अनिता ने अपने मन की बात साफसाफ बता दी.

‘‘यह तो समझोदारी वाली बात नहीं हुई,’’ डाक्टर आनंद ने सिर्फ इतना ही कहा और

फिर उस पर पार्टी में शामिल होने को जोर

नहीं डाला.

‘‘मैं सिरफिरी लड़की हूं, इतना तो आप मेरे बारे में समझो ही लीजिए,’’ खुल कर मुसकरा रही अनिता की नजरों का सामना नहीं कर पाए थे उस शाम डाक्टर आनंद और सोच में डूबे से वार्ड का राउंड लेने निकल गए.

उन के एक मरीज योगेशजी ने अपने बेटे की शादी में डाक्टर आनंद और अनिता दोनों को बहुत जोर दे कर बुलाया था. वहां से लौटते हुए देर हो गई तो दोनों को अपने घर ले आए थे. उन के रुकने की व्यवस्था उन्होंने 2 गैस्टरूमों में करवा दी थी. उस रात अनिता उन के कमरे में चलीआई. बोली, ‘‘मैं आज आप से दूर नहीं सोना चाहती हूं,’’ और फिर उन की छाती से जा लगी. डाक्टर आनंद कुछ पलों तक पत्थर की मूर्ति से खड़े रहे. फिर जब अनिता ने उन की आंखों में प्यार से झोंका तो उन्होंने उसे अपनी बांहों के मजबूत बंधन में कैद कर लिया. डाक्टर आनंद उस की जिंदगी में आने वाले पहले पुरुष थे. प्यार की वह रात इस का सुबूत छोड़ गई थी.

‘‘आई एम वैरी हैप्पी सर कि आप को मैं वह दे पाई हूं जो दिल के करीबी को ही सौंपना चाहिए. मैं ने जो किया है वह अपनी खुशियों की खातिर किया है,’’ बाद में अनिता ने ऐसा कह कर उन्हें किसी तरह के अपराधबोध में नहीं उलझोने दिया था.

‘‘मुझे फिर भी बहुत अजीब सा लग

रहा है,’’ डाक्टर आनंद काफी बेचैन नजर आ

रहे थे.

‘‘आप अपने को परेशान मत कीजिए, प्लीज.’’

‘‘अनिता, तुम ने मु?ो अपना सब कुछ सौंप दिया है पर मैं बदले में तुम्हें कुछ नहीं दे सकता हूं… न शादी, न समाज में इज्जत… उलटा मैं तुम्हारी बदनामी का कारण…’’

अनिता ने उन के मुंह पर हाथ रख उन्हें आगे नहीं बोलने दिया और खुद भावुक हो कर कहा, ‘‘आप बेकार की बातें सोच कर परेशान मत होइए… जो हुआ है उसे मैं ने चाहा है और तभी वह हुआ है. मैं आप के साथ जुड़ कर बहुत सुखी और खुश हूं. रोज सुबह उठ कर आप के बारे में सोचती हूं तो मन जीने के उत्साह से भर जाता है. आई लव यू, सर.’’

‘‘पता नहीं यह रिश्ता कब तक चलेगा,

कैसे चलेगा?’’ डाक्टर आनंद ने उस का माथा चूमने के बाद अपने मन की चिंता व्यक्त की.

‘‘मेरी दिली इच्छा है कि हमारा यह रिश्ता मेरी आखिरी सांस तक चले,’’ अनिता ने उन की छाती पर सिर टिकाया और संतुष्ट अंदाज में आंखें बंद कर लीं.

‘‘तुम से पहले तो मेरी सांसें बंद होंगी,

माई स्वीटहार्ट.’’

‘‘आप 100 साल और मैं 80 साल तक जिऊंगी, जनाब और फिर हम दोनों एक ही दिन इस दुनिया से विदा लें, तो कैसा रहेगा?’’ अनिता एकाएक हंस पड़ी तो डाक्टर आनंद भी मुसकराने को मजबूर हो गए.

दोनों अब महीने में 1-2 बार योगेशजी की कोठी में ही मिलते. उन के अलावा उन

दोनों के बीच बने प्रेमसंबंध का कोई और राजदार नहींथा. डाक्टर आनंद की पत्नी सीमा भी जब

कभी उस से किसी पार्टी में मिलीं, हमेशा हंस कर मिलीं.

‘‘मेरी पत्नी कहती है कि मैं धीरेधीरे बूढ़ा होता जा रहा हूं. वह समझोती है कि जब तक अंदर ताकत है, मैं उस के साथ खूब मजे कर लूं… मैं क्या बूढ़ा हो गया हूं?’’ एक रात अनिता को जी भर के प्यार करने के बाद डाक्टर आनंद ने उस से हंसते हुए पूछा.

‘‘मु?ो किसी और के साथ सोने का तो अनुभव नहीं है पर जो कुछ सहेलियों से सुना है और इंटरनैट पर देखा है, उस के हिसाब से तो आप जवानों को मात कर देने वाली जवानी के मालिक हो,’’ अनिता ने उन की दिल से तारीफ की तो वे बहुत खुश हुए.

डाक्टर आनंद ने 3 बार नए अस्पतालों में काम करना शुरू किया और तीनों बार 2 महीनों के अंदरअंदर ही अनिता ने भी उन्हीं अस्पताल में नौकरी शुरू कर ली. दिल के औपरेशन के बाद मरीज की देखभाल करने की वह विशेषज्ञा समझो जाती थी, इसलिए अस्पताल वाले उसे खुशी से रख लेते थे.

सीनियर होने के साथ उसे रहने के

लिए फ्लैट मिलने लगा पर

डाक्टर आनंद ने एक रात भी कभी उस के फ्लैट में नहीं गुजारी.

‘‘मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे कारण कभी कोई तुम्हारा अपमान करे… अगर कभी ऐसा हुआ तो मु?ो तुम्हारे साथ सारे संबंध तोड़ने पड़ेंगे,’’ डाक्टर आनंद की इस चेतावनी को सुनने के बाद अनिता ने उन पर फिर कभी फ्लैट में आने को दबाव नहीं बनाया.

वह उन के लिए कभीकभी खाने की मनपसंद चीज बना कर ले जाती थी. उन्हें खासकर आलू के परांठे और खीर बहुत पसंद थी. जब भी कोई खास मौका होता तो डाक्टर आनंद के कक्ष में दोनों इन का लुत्फ उठाते.

जिस इंसान को केंद्र मान कर 20 साल से अनिता का सारा जीवन घूम रहा था, उसे

अचानक दिल का तेज दौरा पड़ा था. उन की कोठी से रात के 11 बजे उन्हें ऐंबुलैंस से आईसीयू में लाया गया था. अनिता को जब

यह खबर मिली तो वह फौरन अस्पताल पहुंच

गई थी.

डाक्टर आनंद उस के प्रेरणास्रोत, मागर्दशक, प्रेमी और हमसफर थे. उन्हें असहाय हालत में आईसीयू में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते देख वह रो पड़ी थी, ‘‘डाक्टर साहब तुम्हें बहुत काबिल मानते हैं, अनिता. उन्हें स्वस्थ कर के

मु?ो सौंपने की जिम्मेदारी तुम्हारी है,’’ आईसीयू के बाहर सीमा भी उस के गले लग कर बहुत

रोई थी.

सीमा की खास प्रार्थना पर उसे डाक्टर आनंद की देखभाल पर लगाया गया था.

जब तक वे खतरे में रहे, तब तक किसी ने अनिता की आंखों में आंसू की 1 बूंद नहीं देखी थी. जिस दिन केस इंचार्ज डाक्टर राजीव ने उन्हें खतरे से बाहर बताया, उस रात वह अपने फ्लैट के एकांत में फूटफूट कर रोई थी.

‘‘डाक्टर आनंद को दिल का दौरा पड़ा था. उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ेगा. वे अब 60 के तो हो चले हैं. मुझो नहीं लगता कि वे अब ड्यूटी पर कभी लौट सकेंगे,’’ डाक्टर राजीव की ये बातें हथौड़े सी उस के दिमाग में सारी रात पड़ती रही थीं.

छुटकारा – भाग 3 : नीरज को क्या पता था

‘‘अब यह टौपिक बदल भी लो, यार,’’ चिकन खा रही संगीता को खाने के आनंद में पड़ रहा खलल अच्छा नहीं लगा रहा था.‘‘मैं बहुत परेशान हूं और मु झे इतना गुस्सा आ रहा है… इतना गुस्सा आ रहा है कि…’’उसे टोकते हुए संगीता ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘तुम अनुराधा से इतने ही दुखी और परेशान हो, तो उसे तलाक क्यों नहीं दे देते हो?’’‘‘तलाक?’’

नीरज चौंक पड़ा.‘‘हां, तलाक. हम दोनों तलाकशुदा प्रेमी फिर शादी कर के साथ रहेंगे, डार्लिंग. सोचना शुरू करोगे तो मेरा सु झाव तुम्हें जरूर पसंद आएगा, स्वीटहार्ट.’’‘‘रोहित बीच में न होता, तो मैं जरूर अनुराधा को तलाक दे देता. मैं उसे तो अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं.’’‘‘अपनी इस जान की खुशियों व मन की सुखशांति की तरफ भी ध्यान दो, जानेमन. तुम्हें सम झना चाहिए कि अपनी पत्नी की बातें हर समय कर के तुम माहौल बिगाड़ डालते हो,’’

संगीता ने शिकायत करी.‘‘यार, मैं तुम से अपने दिल की बातें नहीं करूंगा, तो किस से करूंगा?’’ नीरज भी चिड़ उठा.‘‘तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार भरी बातें भी मौजूद हैं न?’’‘‘मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं, डार्लिंग.’’‘‘तब मेरे सामने उन्हीं बातों को जबान पर लाया करो, प्लीज.’’‘‘ओके… ओके,’’ अपने गुस्से को नियंत्रण में रखने की कोशिश करता हुआ

नीरज फिर चुप हो कर खाना खाने लगा. बाद में संगीता के फ्लैट में पहुंचने के बाद दोनों ने प्यार का खेल खेला जरूर, लेकिन इस बार उस में जोश व उत्साह की कमी दोनों को ही महसूस हुई. विदा लेते समय नीरज का आंतरिक तनाव बेचैनी अपनी जगह बने हुए थे, जबकि संगीता के मन में नाराजगी व असंतोष के भाव और ज्यादा गहरा गए थे.महीने के दूसरे हफ्ते में नीरज के सिर पर मंडराता आर्थिक संकट और गहरा गया.अनुराधा की ममेरी बहन की शादी का कार्ड आ गया. करीब 2 हफ्ते बाद होने वाली शादी में शामिल होने के लिए अनुराधा सप्ताह भर के लिए अपने मामा के घर जान चाहती थी. शादी की तैयारी करने के लिए उस ने 30 हजार रुपयों की मांग नीरज के सामने रख दी.

‘‘नीरज, तुम्हारा ऐसा चिड़चिड़ा रूप मैं ने पहले कभी नहीं देखा है,’’ संगीता ने चिढ़ कर शिकायत करी.‘‘मु झे भी पहले कभी एहसास नहीं हुआ था कि मेरे प्रति तुम्हारा प्यार मेरे पर्स में भरे नोटों की संख्या से जुड़ा हुआ है.’’‘‘नीरज, अपनी पत्नी की नौकरी चले जाने से तुम बौखला गए हो… पागल हो गए हो.’’‘‘उस ने नौकरी भी तुम्हारे कारण छोड़ी है.’’‘‘मेरे कारण क्यों?’’ संगीता ने चिढ़ कर पूछा.‘‘कारण साफ नहीं है क्या? मैं लाख इनकार करूं, पर वह हमारे प्रेम संबंध को पहचानती है.

यह किस स्त्री को अच्छा लगेगा कि कमा कर वह लाए और उस का पति उस की कमाई की मदद से अपनी प्रेमिका के साथ गुलछर्रे उड़ाए.’’‘‘तब बंद कर दो, मेरे साथ गुलछर्रे उड़ाना,’’ संगीता चिल्ला पड़ी.‘‘तो क्या तुम मेरे साथ संबंध तोड़ने को तैयार हो?’’ नीरज ने चौंक कर आहत भाव से पूछा.‘‘मैं नहीं, बल्कि तुम यह रिश्ता तोड़ना चाहते हो क्योंकि तुम्हें अनुराधा या मु झ से नहीं बल्कि सिर्फ रुपयों से प्यार है. तुम जैसे लालची इंसान रुपयों के कारण कोई भी रिश्ता जोड़ सकते हैं और तोड़ भी.’’‘‘शटअप,’’ संगीता की चुभती बात नीरज के दिल को जख्मी कर गई.

‘‘तुम कुछ भी कहो, वह ठीक है और जब मैं सच्ची बात मुंह से निकालूं तो ‘शटअप’ चिल्लाओ तुम. वाह.’’नीरज ने उसे कुछ पलों तक गुस्से से घूरा. पर संगीता उस के गुस्से से न डरी थी, न घबराई. उस के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि उस का मूड बगावती हो चुका है.‘‘मैं जा रहा हूं,’’ नीरज  झटके से उठ खड़ा हुआ. संगीता खामोश रही. नीरज का दिमाग बुरी तरह से भन्ना उठा. अचानक उसे यह एहसास हुआ कि आज तक संगीता उस के साथ प्यार का नाटक खेल कर उसे उल्लू बनाती रही. उस के तमतमाए चेहरे ने एक परदा साउस के दिलोदिमाग पर से उठाया और संगीता के प्रति बना उस के मन का आकर्षण व लगाव अभी से गया.‘‘मु झे 1 गिलास पानी पिला सकोगी,

’’ नीरज की नाराजगी उस की आवाज से  झलकरही थी.‘‘श्योर,’’ संगीता उठ कर रसोई की तरफ चल पड़ी.उसके कमरे से बाहर जाते ही नीरज ने उसे गिफ्ट दिए फोन का डब्बा उठा कर फुरती से खोला और फोन जेब रख लिया. फिर फोन को बंद करतेकरते वह मुख्यद्वार की तरफ बढ़ गया.नीरज ने धीमे से कुंडी खोली और बाहर निकल आया. नए फोन को जेब में रखते हुए उस ने अजीब सा संतोष महसूस किया. उसे लगा कि चालाक व लालची संगीता से गिफ्ट वापस ले कर उस ने उसे सही मजा चखा दिया.इस से पहले कि वह लालची और चालाक औरत मु झ से संबंध तोड़ती,

मैं ही उस से दूर हो गया. यह महंगा फोन अपनी अनु को दूंगा तो वह कितनी खुश हो जाएगी. नौकरी फिर से शुरूकरने के लिए उसे राजी करने में भी इस गिफ्ट को दे कर मु झे सहायता मिलेगी. एक लालची औरत के नकली प्रेम की खातिर अपने घर की खुशहाली को दांव पर लगाने की मूर्खता मैं आगे कभी नहीं करूंगा. छुट्टी ले कर अनुराधा के पास मैं कल ही पहुंचता हूं, ऐसे विचारों की उथलपुथल मन में समेटे नीरज अपने फ्लैट की तरफ बढ़ता जा रहा था.नीरज को इस बात की हैरानी भी महसूस हो रही थी कि संगीता से संबंध तोड़ लेने का फैसला उसे परेशान नहीं कर रहा, मगर उसे लग रहा कि अचानक ही उस का मन हलका और प्रसन्न हो गया है. अनुराधा व रोहित से मिलने की खुशी उस के अंदर पलपल बढ़ती जा रही थी.

पति पर दोबारा कैसे भरोसा करुं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मैं ने प्रेम विवाह किया था. मेरे 2 बच्चे हैं. विवाहपूर्व मेरे पति के एक शादीशुदा महिला से संबंध थे. कुछ महीने पहले पता चला है कि पति अब भी उस औरत से तो संबंध बनाए हुए ही है, सुना है एक दूसरी औरत से भी उन की दोस्ती है. जब से मुझे पति के व्यभिचार का पता चला है मैं तनावग्रस्त हूं. मैं ने जहर खा कर जान देने की भी कोशिश की पर बचा ली गई. पति वादा करते हैं कि आइंदा किसी से कोई संबंध नहीं रखेंगे. पर मुझे अब उन पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है. कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं. जिस व्यक्ति के लिए मैं ने अपना सबकुछ छोड़ दिया उसी ने मेरा भरोसा तोड़ा. बताएं, क्या करूं?

जवाब-

लगता है पति चुनने में आप से भूल हुई है. लेकिन अब पति जैसे भी हैं उन्हें संभालने, राह पर लाने की जिम्मेदारी आप ही की है. उन्हें समझाएं कि वे अब 2-2 बच्चों के पिता हैं, इसलिए अपना आचरण सुधारें वरना इस का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा. आप भी उन पर कड़ी नजर रखें. तनावग्रस्त रहना या फिर आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठाना सही नहीं है. पति पर घर की और बच्चों की जिम्मेदारी डालें ताकि वे उस में व्यस्त रहें और उन्हें भटकाने के लिए समय ही न मिले.

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‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’

‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को समझो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’

‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की  करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’

‘‘मैं ने कब कहा कि हमेशा अच्छी बातें करो, पर हां मन ही मन यह मनोकामना जरूर की,’’ मां ने ढेर सारा प्यार उडे़लते हुए कहा. वह अब मां को खूब भावुक करता रहा और तब तक जब तक कि मां की किटी पार्टी का समय नहीं हो गया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- मुरझाया मन: उसे प्यार में क्यों मिला धोखा

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शिशु की मालिश कैसे करें

बच्चे के शरीर की मसाज यानी मालिश उस के लिए बेहद फायदेमंद होती है. मसाज जहां एक ओर बच्चे के विकास में मदद करती है, वहीं दूसरी ओर मां और बच्चे को भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है.

अध्ययनों से पता चला है कि मसाज करने से बच्चा सहज हो जाता है, उस का रोना कम हो जाता है और वह चैन की नींद सोता है. इतना ही नहीं कब्ज और पेट दर्द की शिकायत भी मसाज से दूर हो जाती है. इस से बच्चे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी पैदा होती है.

कब शुरू करें बेबी मसाज

1 महीने की उम्र से बच्चे की मालिश शुरू की जा सकती है. इस समय तक अंबिलिकल कौर्ड गिर जाती है, नाभि सूख चुकी होती है. जन्म की तुलना में त्वचा भी कुछ संवेदनशील हो जाती है. त्वचा में कसावट आने लगती है. इस उम्र में बच्चा स्पर्श के लिए बेहतर प्रतिक्रिया देता है.

बौडी मसाज के फायदे

मसाज के कई प्राकृतिक फायदे हैं:

– बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास होता है.

– बच्चे की पेशियों को आराम मिलता है.

– बच्चा अच्छी और गहरी नींद सोता है.

– उस का नर्वस सिस्टम विकसित होता है.

– अगर बच्चा कमजोर है तो उस के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

– सर्कुलेटरी सिस्टम का बेहतर विकास होता है.

कैसे करें मसाज

मसाज करते समय ध्यान रखें कि कमरे में गरमाहट हो, बच्चा शांत हो और आप भी रिलैक्स रहें. ऐसा मसाज औयल चुनें जो खासतौर पर बच्चों की मसाज के लिए बनाया गया हो.  बिना खुशबू वाले प्राकृतिक तेल का इस्तेमाल बेहतर होगा. जब बच्चा सो कर उठे या फिर नहाने के बाद उस की मसाज की जाए तो बेहतर होगा. 10 से 30 मिनट तक उस की मसाज कर सकती हैं.

सिर्फ मसाज करना ही काफी नहीं होता, बच्चे को मसाज तभी अच्छी लगेगी, जब इस का तरीका सही हो. जानिए, मसाज के तरीके को:

पहला चरण

अनुमति लेना: अनुमति लेने का अर्थ है कि आप को बच्चे की मसाज तब नहीं करनी चाहिए जब वह न चाहे. जब उसे मसाज करवाना अच्छा लगे, तभी उस की मालिश करें. हथेली में थोड़ा तेल ले कर इसे बच्चे के पेट पर और कानों के पीछे रगड़ें. इस के बाद बच्चे का व्यवहार देखें. अगर वह रोता है या परेशान होता है, तो समझ जाएं कि यह मसाज करने का सही समय नहीं है. यदि आप महसूस कर रही हैं कि उसे मसाज अच्छी लग रही है, तो आप मसाज कर सकती ं हैं. शुरुआत में बच्चा मसाज से असहज महसूस करता है, लेकिन धीरेधीरे उसे मसाज में मजा आने लगता है.

दूसरा चरण

टांगों की मालिश करें: मसाज की शुरुआत बच्चे की टांगों से करें. हथेली पर तेल की कुछ बूंदें ले कर बच्चे के तलवों से शुरुआत करें. अपने अंगूठे की मदद से उस की एड़ी से उंगलियों की तरफ बढ़ें. धीरेधीरे अंगूठे को गोलगोल घुमाते हुए दोनों तलवों पर मसाज करें. पैरों की उंगलियों को न खींचें जैसे वयस्कों की मसाज में आमतौर पर किया जाता है. इस के बजाय हलके हाथों से मसाज करें.

अब एक टांग को उठाएं और हलके हाथ से टखने से कूल्हे की ओर मालिश करें. अगर बच्चा रिलैक्स और शांत है तो दोनों टांगों की मसाज एकसाथ करें. इस के बाद दोनों हाथों से कूल्हों को हलकेहलके दबाएं जैसे आप टौवेल निचोड़ती हैं.

तीसरा चरण

हाथों और बाजुओं की मालिश: टांगों के बाद बाजुओं की मालिश उसी तरह करनी चाहिए जैसे आप ने टांगों की मसाज की. बच्चे के हाथ पकड़ें और हथेलियों पर गोलगोल घुमाते हुए मसाज करें. उंगलियों की भी भीतर से बाहर की ओर मसाज करें. इस के बाद कलाइयों को ऐसे रगड़ें जैसे चूडि़यां पहनाई जाती हैं.

इस के बाद हलके हाथ से बाजुओं के निचले हिस्से और फिर ऊपरी हिस्से पर मालिश करें. पूरी बाजू की मसाज उसी तरह करें जैसे आप टौवेल निचोड़ती हैं.

चौथा चरण

छाती और कंधों की मसाज: बाएं और दाएं कंधे से छाती की ओर हाथ चलाते हुए मालिश करें. आप हाथों को पीछे से कंधे की ओर भी ले जा सकती हैं. इस के बाद दोनों हाथों को छाती के बीच में रखें और बाहर की तरफ मसाज करें.

अब स्टर्नम के निचले हिस्से, छाती की हड्डी से बाहर की ओर मसाज करें. इस दौरान आप के स्ट्रोक ऐसे हों जैसे आप हार्ट की शेप बना रही हैं.

5वां चरण

पेट की मालिश: छाती के बाद पेट की मालिश करनी चाहिए. ध्यान रखें कि बच्चे के शरीर का यह हिस्सा बहुत नाजुक होता है, इसलिए आप को दबाव बहुत कम रखना चाहिए. पेट के ऊपरी हिस्से से शुरुआत करें. अपनी हथेली को छाती की हड्डी के नीचे रखें और

पेट पर नाभि के चारों ओर गोलगोल घुमाते हुए मसाज करें. इस दौरान हाथों का दबाव बहुत हलका होना चाहिए.

घड़ी की सुई की दिशा में हाथों को गोलगोल घुमाएं (नाभि के चारों ओर) छोटे बच्चों की नाभि बहुत संवेदनशील होती है, क्योंकि हाल ही में उन की अंबिलिकल कौर्ड गिरी होती है, इसलिए इस हिस्से पर मालिश करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

छठा चरण

चेहरे और सिर की मालिश: छोटे बच्चों के चेहरे और सिर की मालिश करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि बच्चे बहुत ज्यादा हिलते हैं. अपनी उंगली को बच्चे के माथे के बीच में रखें और बाहर की ओर मालिश करें. इसी तरह ठुड्डी से ऊपर तथा बाहर की ओर उंगलियों को गोलगोल घुमाते हुए मालिश करें. इन स्ट्रोक्स को कई बार दोहराएं.

चेहरे के बाद सिर की मालिश ठीक उसी तरह करें जैसे शैंपू करते समय उंगलियों को घुमाती हैं. उंगलियों के छोरों से हलका दबाव डालें. बच्चे की खोपड़ी बहुत नाजुक होती है, इसलिए दबाव बहुत ज्यादा न हो.

7वां चरण

पीठ की मालिश: सब से अंत में पीठ की मालिश करें. बच्चे को पेट के बल लिटा दें. इस दौरान उस के हाथ आप की तरफ हों.

पीठ के ऊपरी हिस्से पर उंगलियां रखें और घड़ी की सुई की दिशा में हलके हाथों से घुमाते हुए नितंबों तक आएं. यह प्रक्रिया कम से कम 8 से 10 बार दोहराएं.

अपनी पहली 2 उंगलियों को रीढ़ की तरफ रख कर नितंबों तक आएं. इन स्ट्रोक्स को कई बार दोहराएं. उंगलियों को रीढ़ की हड्डी पर न रखें. इस के बजाय साइड में रख कर नीचे की तरफ मसाज करें.

कंधे की मसाज करने के लिए हाथों को कंधों पर गोलगोल घुमाएं. हलके हाथों से पीठ के निचले हिस्से और नितंबों की मालिश भी करें. इसी स्ट्रोक के साथ मसाज खत्म करें.

मसाज के बाद टिशू पेपर से बच्चे के शरीर से अतिरिक्त तेल पोंछ लें. मसाज के लिए एक समय रखें. इस से बच्चे की दिनचर्या बन जाएगी और वह मालिश के दौरान ज्यादा सहज रहेगा.

– डा. आशु साहनी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा  

हमारी सौंदर्य: क्यों माताश्री की पसंद की बहू उसे नही पसंद थी

शादी से पहले ही हमें पता था कि हमारी होने वाली पत्नी ने ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा है. फिर जब हम उन के घर उन्हें देखने गए थे तो सिर्फ हम ही नहीं बल्कि हमारा पूरा परिवार उन के सौंदर्य से प्रभावित था. हमें आज भी याद है कि वहां से लौट कर हमारी मां ने पूरे महल्ले में अपनी होने वाली बहू के सौंदर्य का जी खोल कर गुणगान किया था. उन दिनों घर आनेजाने वाले हरेक से वे अपनी होने वाली बहू की सुंदरता के विषय में बताना नहीं भूलती थीं. उन के श्रीमुख से अपनी होने वाली बहू की प्रशंसा सुन कर हमारी कई पड़ोसिनें तो उन्हें सचेत भी करती थीं कि देखिएगा बहनजी, कहीं आप के घर में बहू की सुंदरता की ऐसी आंधी न चले कि वह अपने साथसाथ सतीश को भी उड़ा कर ले जाए.

कई महिलाएं तो मां को बाकायदा सचेत भी करती थीं कि हम तो अभी से बता रहे हैं. बाद में मत कहना कि पहले नहीं चेताया था. परिचितों तथा महल्ले के कई घरों के उदाहरण दे कर वे अपने कथन को और दमदार बनाने की कोशिश करती थीं. लेकिन हमारी मां उसे महिलाओं की जलन समझ कर अपनी किस्मत पर इतराती थीं. वे उन की बातें सुनते समय अपने दोनों कानों का भरपूर उपयोग करती थीं. जहां एक कान से वे अपने उन हितैषियों की बातें सुनती थीं, वहीं दूसरे कान से अगले ही पल उन की बातें निकालने में कोई समय नहीं लगाती थीं. उन के जाने के बाद वे उन्हें जलनखोर, ईर्ष्यालु, दूसरों का अच्छा होता न देखने वाली उपाधियों से विभूषित करती थीं. हम भी मां की बातें सुन कर अपनी किस्मत पर फूले नहीं समाते थे. खैर, मां की अपनी पड़ोसिनों के साथ अपनी होने वाली बहू की प्रशंसा को ले कर खींचतान समाप्त हुई और अंत में वह दिन भी आ गया, जब मां की ब्यूटीशियन बहू का हमारी पत्नी बन कर हमारे घर में आगमन हुआ. पत्नी की सुंदरता देख कर हमें तो ऐसा लगा जैसे हमें दुनिया भर की खुशियां एकसाथ ही मिल गई हैं. पत्नी की सुंदरता से हमारी आंखें चौंधिया गई थीं.

‘‘सुनिए जी,’’ एक दिन हम दफ्तर के लिए निकल ही रहे थे कि पीछे से हमारी सौंदर्य विशेषज्ञा पत्नी की मधुर आवाज ने हमारे कानों को झंकृत किया. अपनी मोटरसाइकिल पर किक मारना छोड़ कर हम ने श्रीमतीजी की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.

‘‘कोई विशेष बात नहीं है. ठीक है, आप से शाम को आप के दफ्तर से आने के बाद कहूंगी,’’ कह कर श्रीमतीजी ने अपनी ओर से बात समाप्त कर दी.

अब श्रीमतीजी को तो लगा कि उन्होंने अपनी ओर से बात समाप्त कर दी है, लेकिन हमारे लिए तो यह जैसे उन की ओर से किसी चर्चा की शुरुआत मात्र थी. उस दिन दफ्तर के किसी भी काम में हमारा मन नहीं लगा. हमारा पूरा दिन यही सोचने में निकल गया कि न जाने क्या बात थी? श्रीमतीजी न जाने हम से क्या कहना चाहती थीं? दिन में 2-3 बार श्रीमतीजी ने हमारे मोबाइल पर हमें फोन भी किया, लेकिन हर बार बात कुछ और ही निकली. हमारे द्वारा पूछने पर भी श्रीमतीजी ने हमारे लौट कर आने पर बताने की बात कही.

शाम होने तक हमारी उत्सुकता अपनी चरम पर थी. हम जानना चाहते थे कि

आखिर वह क्या बात है जिसे हमारी नवविवाहिता सुबह से कहना चाहती थीं. हमारे कान उस बात को सुनने के लिए बेताब थे.

शाम की चाय पर भी जब श्रीमतीजी ने अपनी ओर से उस बात को बताने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, कोई पहल नहीं की, तो अंत में थकहार कर हम ने श्रीमतीजी से पूछा, ‘‘सुबह दफ्तर जाते समय कुछ कहना चाहती थीं, क्या बात थी?’’

‘‘कोई विशेष नहीं… मैं तो बस इतना सोच रही हूं कि यदि आप अपने चेहरे पर से इन मूंछों को हटा दें, तो आप कहीं अधिक स्मार्ट, कहीं अधिक युवा नजर आएंगे. मेरा अनुभव बताता है कि उस के बाद आप अपनी उम्र से 10 वर्ष कम के युवा नजर आएंगे,’’ श्रीमतीजी ने जब बड़े आराम से अपनी बात रखी, तो हमें लगा जैसे किसी ने हमें एक ऊंचे पहाड़ की चोटी से धक्का दे दिया है.

‘‘मूंछों में भी तो व्यक्ति स्मार्ट लगता है. कई चेहरे ऐसे होते हैं, जिन पर मूंछें अच्छी लगती हैं. उन का संपूर्ण व्यक्तित्व मूंछों के रहने से खिल उठता है. बिना मूंछों के उन के चेहरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती. मूंछें उन के व्यक्तित्व की शान होती हैं,’’ हम ने मूंछों और मूंछ वालों के पक्ष में अपने तर्क रखे.

‘‘हो सकता है कुछ लोगों के साथ ये बातें भी हों, लेकिन मैं ने अंदाजा लगा लिया है कि बिना मूंछों के आप का चेहरा कहीं अधिक आकर्षक, कहीं अधिक युवा नजर आएगा,’’ श्रीमतीजी ने निर्णायक स्वर में कहा.

लोग अपनी नवविवाहिता को खुश करने के लिए क्याक्या नहीं करते. फिर यहां तो श्रीमतीजी ने एक छोटी सी मांग रखी है, यह सोच कर हम ने अपनी प्यारी मूंछों को, जिन का हम से वर्षों का नाता था, एक ही झटके में स्वयं से अलग कर लिया.

लेकिन यह तो जैसे एक शुरुआत मात्र थी. एक शाम जब हम घर पहुंचे तो श्रीमतीजी को सजाधजा देख कर हमारा माथा ठनका, ‘‘क्यों कहीं चलना है क्या?’’ हम ने पूछा.

‘‘जी हां, आप के लिए कुछ शौपिंग करनी है,’’ श्रीमतीजी ने हमें सकारात्मक जवाब दिया.

कुछ ही देर में हम शहर के एक व्यस्त शौपिंग मौल में थे. वहां से श्रीमतीजी ने हमारे लिए कुछ टीशर्ट्स तथा जींस यह कहते हुए खरीदीं, ‘‘एक ही तरह के कपड़े पहनने के बदले आप को कुछ नया ट्राई करना चाहिए. इन्हें पहन कर आप अधिक चुस्तदुरुस्त, अधिक युवा नजर आएंगे.’’

फिर तो हमें समझ में ही नहीं आ रहा था कि हमारी सौंदर्य विशेषज्ञा पत्नी हम में और कितने परिवर्तन लाएंगी. कभी फेशियल तो कभी बालों को रंगना तो कभी कुछ और. हम ने तो इस स्थिति से समझौता कर स्वयं को श्रीमतीजी के हवाले कर ही दिया था. हम समझ गए थे कि अब हम चाहे जो कर लें, हमारी सौंदर्य विशेषज्ञा पत्नी हमारा कायाकल्प कर के ही मानेंगी. लेकिन बात यदि हम तक ही सीमित होती तो भी ठीक था. श्रीमतीजी ने तो जैसे ठान लिया था कि पूरे घर को बदल डालूंगी. उन्होंने घर के सभी सदस्यों के व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था.

एक दिन जब दफ्तर से हम घर लौटे तो ड्राइंगरूम में जींसटौप पहने बैठी एक

महिला, जिन्होंने चेहरे पर फेसपैक लगा रखा था तथा दोनों आंखों पर खीरे के 2 टुकड़े, हमें कुछ जानीपहचानी सी लगीं. अभी हम पहचानने की कोशिश कर ही रहे थे कि पीछे से एक आवाज आई, ‘‘क्या अपनी जन्म देने वाली मां को भी पहचान नहीं पा रहे? क्या उन्हें पहचानने के लिए भी दिमाग पर जोर डालना पड़ रहा है? देखिए मम्मीजी, मैं कहती थी न यदि आप अपने शरीर की उचित देखभाल करें, अपने सौंदर्य के प्रति सचेत रहें तथा थोड़े ढंग के फैशन के अनुसार कपड़े पहनें, तो आप के व्यक्तित्व में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ जाएगा. आप अपनी उम्र से बहुत कम की लगेंगी तथा पड़ोस की सारी आंटी आप को देख कर ईर्ष्या करेंगी, आप से जलेंगी,’’ यह हमारी श्रीमतीजी की आवाज थी.

‘‘अच्छा तो हमारे बाद अब मम्मीजी की बारी है?’’ हमारे पास इस के अलावा श्रीमतीजी से कहने के लिए और शब्द ही नहीं थे.

फिर जैसा हमें अंदेशा था वही हुआ, मम्मीजी के बाद श्रीमतीजी के अगले शिकार हमारे परमपूज्य पिताजी थे. आप सोचेंगे कि अपने पूज्य ससुरजी के साथ हमारी श्रीमतीजी भला क्या प्रयोग कर सकती हैं, वे उन में भला क्या बदलाव ला सकती हैं? लेकिन नहीं, ‘जहां चाह वहां राह’ वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए श्रीमतीजी ने यहां भी अपनी विशेषज्ञता का प्रमाण दिया. हमेशा ढीलेढाले वस्त्र पहनने वाले हमारे पिताश्री अब जींस और टीशर्ट के अलावा अन्य किसी दूसरे वस्त्र की ओर देखते तक नहीं. उन की पैरों में चप्पलों का स्थान अब स्पोर्ट्स शूज ने ले लिया है. सिर के सारे बाल एकदम काले हो गए हैं. इस के अलावा भी हमारे मातापिता सौरी मम्मीपापा में बहुत से चमत्कारिक परिवर्तन हो गए हैं. दोनों ही स्वयं के सौंदर्य प्रति बहुत सचेत बेहद सजग हो गए हैं.

श्रीमतीजी के सौंदर्य विशेषज्ञा होने की प्रसिद्धि धीरेधीरे पूरे महल्ले में फैल चुकी है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि हमारे पूरे महल्ले में सौंदर्य के प्रति सजगता अचानक बहुत तेजी से बढ़ गई है. क्या पुरुष क्या महिलाएं क्या जवान क्या बूढ़े, सभी समय के कालचक्र को रोक देना चाहते हैं. वे समय के पहिए को उलटी दिशा में घुमाना चाहते हैं तथा अपनी इस इच्छापूर्ति का उन्हें सिर्फ और सिर्फ एक ही साधन, एक ही अंतिम उपाय नजर आता है. वे हैं हमारी श्रीमतीजी.

हमारे महल्ले में प्राय: सभी का मानना है कि श्रीमीतजी के द्वारा ही उन का जीर्णोद्धार हो सकता है. उन्हें नया रूपरंग मिल सकता है. प्रकृति प्रदत्त उन के शरीर को सिर्फ हमारी श्रीमतीजी ही एक नया व आकर्षक रूप दे सकती हैं. अत: वे श्रीमतीजी के ज्ञान का लाभ लेने एवं स्वयं को आकर्षक एवं सुंदर बनाने के लिए बिना किसी ?झिाक के हमारे घर आते हैं. प्राय: उन के आते ही शुरू हो जाता है फेशियल, कटिंग, थ्रेडिंग, ब्लीचिंग, बौडी मसाज जैसे शब्दों के साथ शरीर को सुंदर बनाने का सिलसिला. अब तो शाम को दफ्तर से लौटने पर भी हमें श्रीमतीजी के कस्टमर्स से 2-4 होना पड़ता है. कोई दिन ऐसा नहीं होता जब हम दफ्तर से थकेहारे घर लौटे हों और श्रीमतीजी के 2-3 कस्टमर्स हमारे घर पर उपस्थित न हों. हमें अपने घर में ही पराएपन का एहसास होने लगा है. सिर्फ इतना ही नहीं, ‘भाभीजी भाभीजी’ करते हुए महल्ले के नवयुवक श्रीमतीजी से सुंदरता के सुझव लेने के बहाने उन्हें घेरे रहते हैं तथा श्रीमतीजी अपने चुलबुले देवरों को उपयोगी सुझव दे कर उन्हें उपकृत करती रहती हैं. हम चुपचाप एक ओर बैठे अपनी स्थिति पर ही अफसोस करते रहते हैं.

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं केसरी पनीर टिक्का

स्नैक्स में अगर आप टेस्टी और हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो केसरी पनीर टिक्का की ये रेसिपी बनाना ना भूलें.

सामग्री

500 ग्राम पनीर

2 केसर के धागे

200 ग्राम दही गाढ़ा

10 ग्राम पीलीमिर्च पाउडर

10 ग्राम हलदी पाउडर

50 एमएल ताजा क्रीम

50 ग्राम आम चटनी

30 ग्राम पुदीना चटनी

5 ग्राम जावित्री पेस्ट

10 ग्राम इलायची पेस्ट

200 ग्राम चीज

नमक स्वादानुसार

विधि

पनीर को चौकोर टुकड़ों में काटें. फिर यलो चिली और नमक मिलाएं. पनीर में आम और पुदीना चटनी डालें. अब दही, हलदी, क्रीम, जावित्री, इलायची, चीज पेस्ट और केसर डाल कर मैरीनेड करें. मैरीनेटेड पनीर को सीख में लगा कर तंदूर में पकाएं और फिर गरमगरम सर्व करें.

सच के फूल: क्या हुआ था सुधा के साथ

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Top 10 Winter Health And Beauty Tips In Hindi: सर्दियों के लिए टॉप 10 बेस्ट हेल्थ और ब्यूटी टिप्स हिंदी में

Winter Health And Beauty Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Winter Health And Beauty Tips in Hindi 2022. सर्दियों में हेल्थ और ब्यूटी से जुड़ी कई प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए डौक्टर और पार्लर के चक्कर काटने पड़ते हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं Winter Health And Beauty Tips in Hindi, जिससे आपकी हेल्थ और स्किन अच्छी बनी रहेगी. तो आइए आपको बताते हैं घर बैठे अपना प्रौफेशनल और होममेड टिप्स से हेल्थ और ब्यूटी का ख्याल कैसे करें. अगर आपको भी है Winter में अपनी हेल्थ और ब्यूटी को खूबसूरत बनाए रखना है तो पढ़ें गृहशोभा की ये Winter Beauty Tips in Hindi.

1. Winter Special: बचे ऊन से बनाएं कुछ नया

winter

आप ने स्वैटर के लिए ऊन खरीदा तो थोड़ा ज्यादा ही लिया, क्योंकि आप यह जानती हैं कि बाद में ऊन खरीदने पर अकसर रंग में फर्क आ जाता है. ऐसा कई बार होने से ऊन के बहुत सारे छोटेबड़े गोले आप के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जिन्हें संभालना एक मुसीबत है, क्योंकि गोले आपस में बुरी तरह उलझ भी जाते हैं. ऐसा न हो, इस से बचने के लिए क्यों न बचे ऊन का सुंदर प्रयोग कर इस सीजन में कुछ नया बना लिया जाए. आइए जानिए कि आप क्याक्या बना सकती हैं:

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2. Winter Special: सर्दी में पानी भी है जरूरी

winter tips in hindi

सर्दी शुरू होते ही खानपान की खपत भले ही बढ़ जाती हो पर पानी की खपत काफी कम हो जाती है. सर्दी में त्रिशला अकसर बीमार हो जाती है. उसे कब्ज, गैस व ऐसी ही अन्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. उसे ताज्जुब है कि कोई समस्या ऐसी नहीं है जो खासतौर पर सर्दी में होने वाली अथवा सर्दी में हावी हो जाने वाली हो. फिर यह सब उसे क्यों हो रहा है?

एक कौर्पोरेट कंपनी में काम करने वाले सुशील कुमार कहते हैं कि उन का खानापीना, घूमना ठंड में ज्यादा होता है. वे सर्दी को मन से पसंद करते हैं. पता नहीं क्या बात है कि सर्दी में वे बुखार, संक्रमण आदि की चपेट में ज्यादा ही आते हैं. कई बार तरहतरह की डाक्टरी जांच करवाई. तब जा कर पता चला कि पानी की कमी से वे तरहतरह के संकट से घिरते व जूझते हैं.

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3. Winter Special: सर्दी में भी रहे दिल का रखें खास ख्याल

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सर्दी के मौसम में तापमान गिरते रहने से रक्त का गाढ़ापन बढ़ने लगता है और रक्त प्रवाह कम होने लगता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी आर्टरी संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ने लगते हैं. दिल का दौरा पड़ने के कारणों की जानकारी न होना और सर्दी के मौसम में सावधानियों की अनदेखी इन बीमारियों की बड़ी वजहें हैं.

कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उन का दिल सुरक्षित रह सके.

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4. इस सर्दी रखें अपनी स्किन का खास खयाल

winter tips in hindi

सर्दियों का मौसम फिर से दस्तक दे रहा है और इस मौसम में जरूरी है हम अपनी त्वचा की देखभाल अच्छी तरह से करें. सर्दियों में त्वचा को चमकदार बनाए रखने के लिए विशेष देखभाल की जरूरत होती है. हम आप को कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जो आप की त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद हो सकते हैं:

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5. Winter Special: सर्दियों में रखें बालों का खास खयाल

winter tips in hindi

आप की त्वचा की तरह आप के बाल भी मौसम की मार झेलते हैं. चिलचिलाती गरमी बालों को बेहद रूखा बना देती है तो मौनसून की नमी उन की सतह पर फंगल इन्फैक्शन के खतरे को बढ़ा देती है. इस के बाद ठंड आने पर बाल काफी कमजोर और डल से हो जाते हैं.

ऐसे में आप अगर सर्दी के मौसम में अपने बालों की केयर के लिए निम्न खास तरीके अपनाएंगी तो आप अपने बालों को स्वस्थ और खूबसूरत रख सकती हैं.

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6. Winter Special: सर्दियां आते ही ड्राय स्किन और फटे होठ की प्रौब्लम को करें दूर

winter tips in hindi

सर्दियां आते ही ज्यादातर लोगों की त्वचा रूखी होने लग जाती है. त्वचा की नमी कहीं खो सी जाती है और त्वचा रूखी-बेजान नजर आने लगती है. त्वचा के साथ ही हमारे होंठ भी फटने शुरू हो जाते हैं. कई बार ये समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि होंठों से खून भी आना शुरू हो जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम अपनी त्वचा को लेकर फिक्रमंद रहें ताकि वो हमेशा खूबसूरत और जवां बनी रहे.

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7. Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें नवजात की देखभाल

winter tips in hindi

नवजात शिशु परिवार के सभी सदस्यों के लिए खुशियां और आशा की नई किरण ले कर आता है. परिवार के सभी सदस्य उस के पालनपोषण का दायित्व खुशीखुशी लेते हैं और डाक्टर मां को सही राय देते हैं ताकि उस का शिशु स्वस्थ रहे.

गरमियों की तपिश के बाद जब सर्दी शुरू होती है तो लोग राहत महसूस करते हैं. पर सर्दी भी अपने साथ लाती है खुश्क हवाएं, खांसी और जुकाम जैसी कुछ तकलीफें, जिन से नवजात शिशु को खासतौर से बचाना चाहिए और उस की देखभाल में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

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8. Winter Special: होंठों को दें नाजुक सी देखभाल

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चेहरे के सौंदर्य में खूबसूरत होंठों की बड़ी भूमिका होती है, मगर इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं जहां शरीर के हर अंग की त्वचा को रूखा बना देती हैं, वहीं होंठों की नमी भी छीन लेती हैं. ऐसे में होंठों की त्वचा में दरारें पड़ने लगती हैं और कभी कभी खून भी निकलने लगता है, जिस से होंठों की कोमलता मुरझाने लगती है. यदि होंठों की सही देखभाल की जाए तो सर्दियों में भी इन्हें फटने से बचाया जा सकता है.

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9. Winter Special: सर्द मौसम में ऐसे करें अपने दिल की हिफाजत

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सर्दियों का मौसम और इस मौसम की सर्द हवाएं अपने साथ साथ आलस लेकर आती हैं. आलस की वजह से लोग अपने शरीर खासतौर से अपने दिल को तंदुरुस्त रखने पर ध्यान नहीं देते. जिसकी वजह से सबसे ज्‍यादा परेशानी उन लोगों को होती है जो दिल और फेफड़ों के मरीज हैं.

डाक्टरों का कहना है कि ठंडे मौसम की वजह से दिल की धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे दिल में रक्त और आक्सीजन का संचार कम होने लगता है. इससे हाइपरटेंशन और दिल के ब्लड प्रेशर के बढ़ने सम्बन्धी समस्या सामने आती है. ठंडे मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है.

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10. Winter Special: बुनाई करते समय ध्यान रखें ये 7 टिप्स

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मौसम की फिज़ा में अब ठंडक घुलने लगी है कुछ समय पूर्व तक इस मौसम में महिलाओं के हाथ में ऊन और सलाइयां ही दिखतीं थीं. आजकल भले ही हाथ से बने स्वेटरों की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर का चलन अधिक है परन्तु स्वेटर बुनने की शौकीन महिलाओं के हाथ आज भी खुद को बुनाई करने से रोक नहीं पाते. रेडीमेड की अपेक्षा हाथ से बने स्वेटर अधिक गर्म और सुंदर होते हैं साथ ही इनमें जो अपनत्व और प्यार का भाव होता है वह रेडीमेड स्वेटर में कदापि नहीं मिलता परन्तु कई बार स्वेटर बनाने के बाद ढीला पड़ जाता है अथवा फिट नहीं हो पाता या फिर धुलने के बाद रोएं छोड़ देता है.

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भाग्यश्री: मालती देवी शादी के लिए क्यों राजी हुई

शाम का वक्त था भाग्यश्री के घर पर काफी चहलपहल थी. सभी सेवक भागभाग कर काम कर रहे थे. घर की सजावट देखने लायक थी. उसी समय वह कालेज से घर आई. यों कोलकाता का धर्मतल्ला काफी भीड़भाड़ वाला इलाका है. यही वजह थी कि उसे घर आतेआते देर हो गई थी. भाग्यश्री के पिता वहीं पर एक साधारण व्यापारी थे. वे दहेज के लिए पैसे इकट्ठा करने से ज्यादा अपनी दोनों बेटियों को शिक्षित करने पर जोर देते थे और इस में वे कामयाब भी रहे. भाग्यश्री को अपने घर में किए गए सजावट आदि के बारे में कुछ नहीं पता था.

‘‘अरे वाह, आज इतनी सजावट? कोई खास बात है क्या?’’ चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए भाग्यश्री ने पूछा.

‘‘शायद तेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने लङके वालों को बुलाया है…’’ छोटी बहन दिव्या फिल्मी अंदाज में बोलती हुई उसे छेङने लगी.

‘‘मां, इस बार कौन आ रहा है तुम्हारी इस कालीकलूटी बेटी को देखने के लिए? कितनी नुमाइश करनी है आप को… क्यों नहीं थक जातीं आप?’’ कंधे से बैग उतार कर पैर पटकते हुए भाग्यश्री ने रोष प्रकट किया.

‘‘बेटा, बड़े अच्छे लोग हैं. तुम्हारी मौसी के सुसराल वाले हैं. लङका मानव यहीं यादवपुर में अपना कारोबार करता है. बहुत पैसे वाले लोग हैं.

“अच्छी बात क्या है पता है? तुम्हारे रंग से उन्हें कोई ऐतराज नहीं है बेटा,’’ मां ने उसे समझाते हुए लङके और उस के पूरे खानदान की जानकारी दी, जिस में भाग्यश्री की कोई दिलचस्पी नहीं थी.

‘‘यह क्या बात हुई… मुझ से पूछा भी नहीं और रिश्ता तय कर दिया? अभी तो स्नातक का आखिरी साल चल रहा है और उस के बाद मुझे कानून की पढ़ाई करनी है…’’ वह बोले जा रही थी.

‘‘हां पढ़ लेना, एक बार रिश्ता हो जाए उस के बाद सबकुछ करना. किस ने रोका है तुम्हें,’’ मां ने बीच में ही टोका.

‘‘और हर बार यही अच्छे और संस्कारी लोग न तुुम्हारी बेटी को डार्क कौंप्लैक्शन का खिताब दे कर चले जाते हैं…रहम करो मां,’’ भाग्यश्री पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई.
वहां बिस्तर पर उस के लिए एक सुंदर गुलाबी साड़ी रखी हुई थी.

“अब क्या इसे भी पहनना होगा,’’ वह लगभग चिल्ला कर बोली.

उस ने अपनेआप को आईने में देखा. लंबा कद, छरहरा बदन, पतले होंठ लेकिन सब से ऊपर उस का सांवला रंग… उस ने आईने से नजरें फेर लीं.
तभी गैस्टरूम से पापा की आवाज आई, ‘‘मेहमान आ गए.’’

पापा की आवाज सुनते ही भाग्यश्री का मन स्थिर हो गया. फिर वही सब होगा. लङके वालों को सबकुछ पसंद आएगा पर सांवली रंगत के आगे सब कुछ फीका पड़ जाएगा. वह अनमने ढंग से तैयार हो गई. उस की खूबसूरती गुलाबी साड़ी में और निखर गई थी. उस के तीखे नैननक्श किसी का भी दिल चुराने लिए काफी थे.

शरबत का गिलास लिए जैसे ही वह अंदर आई, मानव की नजरें भाग्यश्री पर स्थिर हो गईं. दोनों की आंखें चार हुईं, दिल की धङकनों ने एकसाथ धङक कर एकदूसरे का अभिनंदन किया. मानव को भाग्यश्री देखते ही पसंद आ गई थी. दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ ही था कि भाग्यश्री ने अपनी बात रख दी,”मुझे आप सभी से कुछ कहना है… मैं पहले अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी और एक सफल वकील बनने के बाद ही शादी करूंगी,’’ भाग्यश्री ने तनिक ऊंची आवाज में अपनी बात रखी, जिसे सुन सभी स्तब्ध हो गए.

मानव के घर वाले जहां बड़ी मुश्किल से उस के सांवले रंग से समझौता कर लङकी के घरेलू होने की बात पर राजी हो कर रिश्ता ले कर आए थे, वहीं उस का मुखर हो कर बोलना एवं पढ़ाई और नौकरी वाली बात को सभी के समक्ष बेबाक हो कर रखना उन से बरदाश्त नहीं हुआ.

मानव की मां मालती देवी बोलीें, ‘‘लड़कियों को घर के काम ही शोभा देते हैं और हमारा मानव इतना कमा लेता है कि उस की गृहस्थी अच्छे से गुजरबसर हो जाएगी. तुम्हारी नौकरी हमें…’’ वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि भाग्यश्री उठ खड़ी हुई. मालती देवी का इशारा साफ था. न तो वह भाग्यश्री को आगे पढ़ने की अनुमति दे रही थीं और न ही एक सफल वकील बनने की इजाजत जोकि भाग्यश्री का सपना था. ऐसे घर में शादी कर अपने सपनों को कुचलना उसे कतई मंजूर नहीं था.

उस ने उन की शर्तों पर शादी करने से इनकार कर दिया और अपने कमरे में चली गई. भाग्यश्री के इस व्यवहार को मालती देवी ने अपना अपमान समझ लिया और मानव का हाथ पकड़ कर खींचती हुईं कमरे से बाहर निकल गईं.

पर मानव का दिल तो वहीं भाग्यश्री के पास छूट गया था. उस ने घर पहुंचते ही भाग्यश्री के मोबाइल पर मैसेज किया…

“प्रिए भाग्यश्री,

‘‘मुझे आप के सपनों के साथ कदम से कदम मिला कर चलना है. मां पुराने खयालात की हैं लेकिन मेरा यकीन कीजिए कि मैं उन्हें मना लूंगा. आप बस वह कीजिए जो आप का दिल चाहता है और हां, कहीं अगर मेरी जरूरत महसूस हो तो एक बार आवाज जरूर दें.

“एक बात और… मैं मां के खिलाफ जा कर आप से शादी कर तो सकता हूं पर करना नहीं चाहता. थोड़ा समय दीजिए, मैं सबकुछ ठीक कर लूंगा. यकीन मानिए, मैं बारात ले कर आप के घर ही आऊंगा. आशा है तब तक आप भी मेरा इंतजार करेंगी.’’

“आप का और सिर्फ आप का
मानव.”

‘‘सामने तो कुछ बोला न गया, पीठ पीछे हल्ला बोल… बहुत देखे ऐसे आशिक आवारा,” कहते हुए वह संदेश को मिटाने लगी पर हाथ रुक गया. पहली बार किसी से इतनी आत्मीयता मिली थी, कैसे जाने देती भला.

इस बात को बीते लगभग 7 साल हो गए थे. भाग्यश्री ने वह मुकाम हासिल कर लिया था, जिस के लिए उस ने शादी के कई रिश्ते को ठुकराया था. वैसे इन 7 सालों में मानव ने कभी उसे अकेलेपन का एहसास होने नहीं दिया था. दोनों औपचारिक रूप से मिलते व एकदूसरे का हालचाल लेते रहते थे. यह बात और थी कि मालती देवी इन बातों से बिलकुल अनजान थीं. भाग्यश्री अपने सपनों को साकार करती सिविल कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगी थी. उस की छोटी बहन का विवाह अच्छे घराने में हो गया था.

उस दिन सुबह के करीब 10 बजे थे. मालती देवी रोजमर्रा के कामों के लिए अपने नौकरों पर हुक्म चला रही थीं. तभी उन की बेटी कामिनी रोतेबिलखते मुख्य दरवाजे से अंदर आई.

‘‘मां, अब मैं कभी ससुराल वापस नहीं जाऊंगी,’’ चेहरे पर खून जमने से बने स्याह धब्बे साफ नजर आ रहे थे.

कामिनी मानव की बड़ी बहन थी. कहने को तो शादी के 8 साल हो गए थे लेकिन 1 भी साल ऐसा नहीं गुजरा था जब कामिनी को सताया न गया हो और कामिनी रोतीबिलखती घर न आई हो. हर बार उसे समझा दिया जाता, हाथ जोड़े जाते थे और समझाबुझा कर उसे ससुराल भेज दिया जाता था.

‘‘लोग क्या कहेंगे… बेटी की डोली मायके से निकलती है और अर्थी ससुराल से,’’ मालती देवी हर बार इन्हीं बातों का वास्ता दे कर कामिनी को सुसराल भेज देती थीं और यही वजह थी कि उन्होंने भाग्यश्री का रिश्ता ठुकरा दिया था क्योंकि वह समाज के नियमों के विरुद्ध जा कर पढ़ना चाहती थी, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी, वकील बनना चाहती थी. मगर आज कामिनी के इस दशा ने कोई ठोस कदम लेने पर उन्हें मजबूर कर दिया था.

‘‘राजू…राजू…’’ मालती देवी ने ड्राइवर को जोर से आवाज लगाई.

‘‘जी मैम साहब…’’ राजू दौड़ कर आया.

‘‘गाड़ी निकालो,’’ मालती देवी ने आदेश दिया.

‘‘कामिनी, गाड़ी में बैठो,’’ मालती देवी ने पर्स हाथ में लेते हुए कहा.

राजू गाड़ी निकाल कर खड़ा था. दोनों मांबेटी गाड़ी में बैठ गए. गाड़ी चलने लगी.

‘‘कहां जाना है मैम साहब?’’ ड्राइवर ने डरतेडरते पूछा.

‘‘सिविल कोर्ट,’’ मालती देवी ने आत्मविश्वास के साथ कहा.

कामिनी उन के चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी, क्योंकि उसे लग रहा था कि इस बार भी मां उसे ससुराल छोङने जा रही हैं और उस ने यह भी सोच लिया था कि इस बार अर्थी निकलने वाली बात को वह सच कर दिखाएगी.

लेकिन मां द्वारा सिविल कोर्ट का जिक्र करने से वह अपने अंदर संतोष का अनुभव करने लगी. अब तक वह दूर बैठी थी. करीब आ कर वह मां से लिपट कर रोने लगी.

सिविल कोर्ट के आगू राजू ने गाड़ी रोक दी. मालती देवी कामिनी का हाथ पकड़े लगभग दौड़ती हुई चल रही थीं. मन में केवल यही था कि इस बार बेटी को इस नकली रिश्ते से आजाद करना है, तलाक दिलवा कर ही चैन लेगी. जहां न पति का प्यार है, न सासससुर का स्नेह फिर क्यों बनी रहे वहां? उन्हें सारी बातें याद आ रही थीं कि किस तरह से कामिनी को बहू न समझ बेटी समझने का वादा किया था उस के ससुराल वालों ने लेकिन खोखले वादों के अलावा कुछ भी नहीं दिया था. मालती देवी के आंखों के आगे चलचित्र की तरह सारे दृश्य घूमने लगे थे.

कामिनी का हाथ थामे सिविल कोर्ट के बड़े से दरवाजे से अंदर चली गईं वह. सभी वकील अपनेअपने क्लाइंट के साथ व्यस्त थे. किस से अपनी बात कहे, किसी को तो नहीं जानतीं वे. तभी उन की नजर एक नेम प्लेट पर पड़ी ‘भाग्यश्री.’

नाम को दोहराया उन्होंने. यादों के मानस पटल पर धूल जम चुकी थी. उसे झाड़ा तो तसवीर साफ हो गई. वे लगभग दौड़ती हुई उस के पास पहुंचीं. भाग्यश्री के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं. उन्हें ऐसी स्थिति में देख कर भाग्यश्री हड़बड़ा कर उठ कर खड़ी हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि मालवी देवी ऐसे क्यों खड़ी हैं? कई सवाल एकसाथ सामने आजा रहे थे.

‘‘आप बैठ जाइए न मैडम,’’ भाग्यश्री ने औपचारिकता निभाई.

‘मैडम कहा उस ने. लगता है, मुझे नहीं पहचाना,’ मन ही मन सोचने लगीं मालवी देवी.

मालती देवी ने पर्स से फोन निकाला और नंबर डायल करने लगीं,”मानव, तुम जहां कहीं भी हो यहां आ जाओ? पता राजू से पूछ लेना,’’ जल्दबाजी में केवल इतना ही बोल पाईं वह.

“मां, क्या हुआ?” मानव ने कभी मां को इस तरह बात करते नहीं सुना था. वह भी घबरा गया.

आधे घंटे में मानव उन सब के सामने था. भाग्यश्री ने मालती देवी को पानी पिलाया, उन्हें शांत किया और फिर एकएक जानकारी उन से लेने लगी.
मामला दहेज उत्पीङन का था.

‘‘मैडम देखिए, हमारे पास 2 रास्ते हैं, एक तो आप जा कर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाएं और आगे कानूनी काररवाई की लंबी प्रक्रिया होगी फिर जो फैसला होगा वह हमें मानना ही होगा. दूसरा, मैं कामिनीजी के ससुराल वालों से मिल कर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के साथ समझाऊं, क्योंकि किसी का घर टूटे यह कोई नहीं चाहता, मैं तो बिलकुल भी नहीं. आगे आप जैसा कहें,’’ भाग्यश्री बोले जा रही थी, जिसे मालवी देवी सुन कर निहाल हुई जा रही थीं और उन्हें अपने किए पर ग्लानि भी हो रही थी.

‘‘बेटा, तुुम्हें जो ठीक लगे वही करो,’’ मालती देवी बोलीं.

भाग्यश्री मानव के साथ जा कर कामिनी के ससुराल वालों से मिली. काले कोर्ट वाले को देखते ही वे सिहर गए थे. रहीसही कसर उस के रौबीले अंदाज ने पूरी कर दी थी. उस ने उन्हें दहेज उत्पीङन पर लगने वाले धाराओं के बारे में बताया. न मानने की स्थिति में होने वाले दुष्परिणामों की भी जानकारी दी. ‘मरता क्या न करता…’ नतीजा यह हुआ कि कामिनी के ससुराल वाले उन की हर बात मानने के लिए तैयार हो गए.

कामिनी के लिए 6 महीने का पूरा आराम, साथ ही पति द्वारा खाना बना कर खिलाए जाने की हिदायत एवं देखभाल करने की जिम्मेदारी सासससुर के ऊपर दे कर साथ ही दहेज में दी गई पूरी रकम को कामिनी के बैंक खाते में भेजने का आदेश दे कर भाग्यश्री और मानव वापस आ गए थे.

यह सब देख मालती देवी की आंखों में भाग्यश्री के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ रहा था. जब उन्हें पश्चाताप करने का कोई और रास्ता नहीं दिखा तो एक दिन बेटे से बोलीं,‘‘मानव, मैं भाग्यश्री को बहू बनाना चाहती हूं, वह मान तो जाएगी न?”

‘‘मां, पिछले 7 सालों से वह भी हमारा ही इंतजार कर रही है.’’

‘‘सच मानव,’’ सजल नेत्रों से कहा मालती देवी ने.

उत्तर में मानव ने कुछ फोटोज दिखाए जिस में वे साथसाथ थे. भाग्यश्री के घर जा कर उस की मां से उन्होंने जो कुछ भी कहा वह काबिलेतारीफ थी,
‘‘मुझे अपने बेटे के लिए आप की होनहार और काबिल बेटी का हाथ चाहिए. आशा है, आप मुझे मना नहीं करेंगी.’’

भाग्यश्री की मां ने नम आंखों से मालती देवी को गले से लगा लिया था. मालती देवी ने भाग्यश्री के गले में सोने का हार पहनाया, ‘‘अब से मैं तुम्हारी मां हूं. मुझे मैडम मत कहना प्लीज,” मालती देवी ने याचना भरे शब्दों में कहा.

मानव वहीं सोफे पर बैठा मुसकरा रहा था. जैसे ही एकांत मिला तो बोल पङा, ‘‘कहा था न मैं ने बारात ले कर आप के घर ही आऊंगा…’’

भाग्यश्री क्या कहती भला… शरमा कर दोनों हाथों से चेहरे को ढंक लिया था उस ने.

‘‘वाह…वाह… जी, क्या जोड़ी है बनाई… भैया और भाभी को बधाई हो बधाई…” दिव्या ने फिल्मी अंदाज में गा कर दोनों को साथ खड़ा किया. फिर दोनों ने घर के सभी बड़े सदस्यों का आशीर्वाद लिया. माहौल बेहद खुशनुमा लग रहा था.

अनमोल क्षण: क्या नीरजा को मिला प्यार

शाम के 4 बजे थे, लेकिन आसमान में घिर आए गहरे काले बादलों ने कुछ अंधेरा सा कर दिया था. तेज बारिश के साथ जोरों की हवाएं और आंधी भी चल रही थी. सामने के पार्क में पेड़ घूमतेलहराते अपनी प्रसन्नता का इजहार कर रहे थे.

सुशांत का मन हुआ कि कमरे के सामने की बालकनी में कुरसी लगा कर मौसम का लुत्फ उठाया जाए, लेकिन फिर उन्हें लगा कि नीरजा का कमजोर दुर्बल शरीर तेज हवा सहन नहीं कर पाएगा.

उन्होंने नीरजा की ओर देखा. वह पलंग पर आंखें मूंद कर लेटी हुई थी.

सुशांत ने नीरजा से पूछा, ‘‘अदरक वाली चाय बनाऊं, पियोगी?’’

अदरक वाली चाय नीरजा को बहुत पसंद थी. उस ने धीरे से आंखें खोलीं और मुसकराई, ‘‘मोहन से कहिए ना वह बना देगा,’’ उखड़ती सांसों से वह इतना ही कह पाई.

‘‘अरे मोहन से क्यों कहूं, यह क्या मुझ से ज्यादा अच्छी चाय बनाएगा, तुम्हारे लिए तो चाय मैं ही बनाऊंगा,’’ कह कर सुशांत किचन में चले गए. जब वह वापिस आए तो ट्रे में 2 कप चाय के साथ कुछ बिसकुट भी रख लाए, उन्होंने सहारा दे कर नीरजा को उठाया और हाथ में चाय का कप पकड़ा कर बिसकुट आगे कर दिए.

‘‘नहीं जी… कुछ नहीं खाना,’’ कह कर नीरजा ने बिसकुट की प्लेट सरका दी.

‘‘बिसकुट चाय में डुबो कर…’’ उन की बात पूरी होने से पहल ही नीरजा ने सिर हिला कर मना कर दिया.

नीरजा की हालत देख कर सुशांत का दिल भर आया. उस का खानापीना लगभग न के बराबर हो गया था. आंखों के नीचे गहरे काले गड्ढे हो गए थे, वजन एकदम घट गया था. वह इतनी कमजोर हो गई थी कि उस की हालत देखी नहीं जाती थी. स्वयं को अत्यंत विवश महसूस कर रहे थे, अपनी किस्मत के आगे हारते चले जा रहे थे सुशांत.

कैसी विडंबना थी कि डाक्टर हो कर उन्होंने ना जाने कितने मरीजों को स्वस्थ किया था, किंतु खुद अपनी पत्नी के लिए कुछ नहींं कर पा रहे थे. बस धीरेधीरे अपने प्राणों से भी प्रिय पत्नी नीरजा को मौत की ओर जाते हुए भीगी आंखों से देख रहे थे.

सुशांत के जेहन में वह दिन उतर आया, जिस दिन वह नीरजा को ब्याह कर अपने घर ले आए थे.

अम्मां अपनी सारी जिम्मेदारियां बहू नीरजा को सौंप कर निश्चित हो गई थीं. कोमल सी दिखने वाली नीरजा ने भी खुले दिल से अपनी हर जिम्मेदारी को पूरे मन से स्वीकारा और किसी को भी शिकायत का मौका नहीं दिया.

उस के सौम्य व सरल स्वभाव ने परिवार के हर सदस्य को उस का कायल बना दिया था. सारे सदस्य नीरजा की तारीफ करते नहीं थकते थे.

सुशांत उन दिनों मैडिकल कालेज में लेक्चरार के पद पर थे, साथ ही घर के अहाते में एक छोटा सा क्लिनिक भी खोल रखा था. स्वयं को एक योग्य व नामी डाक्टर के रूप में देखने की व शोहरत पाने की उन की बड़ी दिली तमन्ना था.

घर का मोरचा अकेली नीरजा पर डाल कर वह सुबह से रात तक अपने कामों में व्यस्त रहते. नईनवेली पत्नी के साथ प्यार के मीठे पल गुजारने की फुरसत उन्हें ना थी… या फिर शायद सुशांत ने जरूरत ही नहीं समझी.

या यों कहिए कि ये अनमोल क्षण उन दोनों की ही किस्मत में नहीं थे, उन्हें लगता था कि नीरजा को तमाम सुखसुविधा व ऐशोआराम में रख कर वह पति होने का फर्ज बखूबी निभा रहे हैं, जबकि सच तो यह था कि नीरजा की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति से उन्हें कोई सरोकार नहीं था.

नीरजा का मन तो यही चाहता था कि सुशांत उस के साथ सुकून व प्यार के दो पल गुजारे. वह तो यह भी सोचती थी कि सुशांत मेरे साथ जितना भी समय बिताएंगे, उतने ही पल उस के जीवन के अनमोल पल कहलाएंगे, लेकिन अपने मन की यह बात सुशांत से कभी नहीं कह पाई, जब कहा तब सुशांत समझ नहीं पाए और जब समझे तब बहुत देर हो चुकी थी.

वक्त के साथसाथ सुशांत की महत्त्वाकांक्षा भी बढऩे लगी. अपनी पुश्तैनी जायदाद बेच कर और सारी जमापूंजी लगा कर उन्होंने एक सर्वसुविधायुक्त नर्सिंगहोम खोल लिया.

नीरजा ने तब अपने सारे गहने उन के आगे रख दिए थे. हर कदम पर वह सुशांत का मौन संबल बनी रही. उन के जीवन में एक घने वृक्ष सी शीतल छांव देती रही. सुशांत की मेहनत रंग लाई, कुछ समय बाद सफलता सुशांत के कदम चूमने लगी थी. कुछ ही समय में उन के नर्सिंगहोम का काफी नाम हो गया, वहां उन की व्यस्तता इतनी बढ़ गई कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिर्फ अपने नर्सिंगहोम पर ही ध्यान देने लगे.

इस बीच नीरजा ने भी रवि और सुनयना को जन्म दिया और वह उन की परवरिश में ही अपनी खुशी तलाशने लगी. जिंदगी एक बंधेबंधाए ढर्रे पर चल रही थी.

सुशांत के लिए उस का अपना काम था और नीरजा के लिए उस के बच्चे व सामाजिकता का निर्वाह. अम्मांबाबूजी के देहांत और ननद की शादी के बाद नीरजा और भी अकेलापन महसूस करने लगी. बच्चे भी बड़े हो कर अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए थे. सुशांत के लिए पत्नी का अस्तित्व सिर्फ इतना भर था कि सुशांत समयसमय पर उसे ज्वेलरी, कपड़े गिफ्ट कर देते थे. नीरजा का मन किस बात के लिए लालायित था, यह जानने की सुशांत ने कभी कोशिश नहीं की.
जिंदगी ने सुशांत को एक मौका दिया था, कभी कोई फरमाइश न करने वाली उन की पत्नी नीरजा ने एक बार उन्हें अपने दिल की गहराइयों से वाकिफ भी कराया था, लेकिन वे ही उस के दिल का दर्द और आंखों के सूनेपन को अनदेखा कर गए थे.

उस दिन नीरजा का जन्मदिन था. उन्होंने प्यार जताते हुए उस से पूछा था, ‘बताओ, मैं तुम्हारे लिए क्या तोहफा लाया हूं?’ तब नीरजा के चेहरे पर फीकी सी मुसकान आ गई थी. उस ने धीमी आवाज में बस इतना ही कहा, ‘‘तोहफे तो आप मुझे बहुत दे चुके हो, अब तो बस आप का सान्निध्य मिल जाए… ‘‘

सुशांत बोले, “वह भी मिल जाएगा, सिर्फ कुछ साल मेहनत कर लूं और अपनी और बच्चों की लाइफ सेटल कर लूं, फिर तो तुम्हारे साथ समय ही समय गुजारना है,’’ कहते हुए सुशांत ने नीरजा को एक कीमती साड़ी का पैकेट थमा कर काम पे चला गया.

नीरजा ने फिर भी कभी सुशांत से कुछ नहीं कहा था. रवि भी सुशांत के नक्शेकदम पर चल कर डाक्टर ही बना. उस ने अपनी कलीग गीता से विवाह की इच्छा जाहिर की, जिस की उसे सहर्ष अनुमति भी मिल गई.

अब सुशांत को बेटेबहू का सहयोग भी मिलने लगा, फिर सुनयना का विवाह भी हो गया. सुशांत व नीरजा अपनी जिम्मेदारी से निवृत्त हो गए, लेकिन परिस्थिति आज भी पहले की ही तरह थी.

नीरजा अब भी सुशांत के सान्निध्य को तरस रही थी, लेकिन सुशांत कुछ वर्ष और काम करना चाहते थे, अभी और सेटल होना चाहते थे.
शायद सबकुछ इसी तरह चलता रहता, अगर नीरजा बीमार न पड़ती.

एक दिन जब सब लोग नर्सिंगहोम में थे, तब नीरजा चक्कर खा कर गिर पड़ी. घर के नौकर मोहन ने जब फोन पर बताया, तो सब घबड़ा कर घर आए, फिर शुरू हुआ टेस्ट कराने का सिलसिला, जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि नीरजा को ओवेरियन कैंसर है.

सुशांत यह सुन कर घबरा गए, मानो उन के पैरों तले जमीन खिसकने लगी. उन्होंने अपने मित्र कैंसर स्पेशलिस्ट डा. भागवत को नीरजा की रिपोर्ट दिखाई. उन्होंने देखते ही साफ कह दिया, ‘‘सुशांत, तुम्हारी पत्नी को ओवेरियन कैंसर ही हुआ है. इस में कुछ तो बीमारी के लक्षणों का पता ही देरी से चलता है और कुछ इन्होंने अपनी तकलीफें छिपाई होंगी, अब तो इन का कैंसर चौथे स्टेज पर है, यह शरीर के दूसरे अंगों तक भी फैल चुका है, चाहो तो सर्जरी और कीमियोथेरेपी कर सकते हैं, लेकिन कुछ खास फायदा नहीं होने वाला. अब तो जो शेष समय है इन के पास, उस में ही इन को खुश रखो.’’

यह सुन कर सुशांत को लगा कि उस के हाथपैरों से दम ही निकल गया है. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि नीरजा इतनी जल्दी इस तरह उन्हें दुनिया में अकेली छोड़ कर चली जाएगी. वह तो हर वक्त एक खामोश साए की तरह उन के साथ रहती थी. सुशांत की हर छोटी जरूरतों को उन के कहने के पहले ही पूरा कर देती थी. फिर यों अचानक उस के बिना…

अब जा कर सुशांत को लगा कि उन्होंने अपनी जिंदगी में कितनी बड़ी गलती कर दी थी. नीरजा के अस्तित्व की कभी कोई कद्र नहीं की, उसे कभी महत्त्व ही नहीं दिया सुशांत ने, उन के लिए तो वह बस एक मूक सहचरी ही थी, जो उन की जरूरत के लिए हर वक्त उन की नजरों के सामने मौजूद रहती थी, इस से ज्यादा कोई अहमियत नहीं दी सुशांत ने नीरजा को.

आज प्रकृति ने न्याय किया था. सुशांत को अपनी की हुई गलतियों की कड़ी सजा मिल रही थी. जिस महत्त्वाकांक्षा के पीछे भागतेभागते उन की जिंदगी गुजरी थी, जिस का उन्हें बेहद गुमान भी था, आज उन का सारा गुमान व शान तुच्छ लग रहा था.

अब जब उन्हें पता चला कि नीरजा के जीवन का बस थोड़ा ही समय बाकी रह गया था, तब उन्हें एहसास हुआ कि वह उन के जीवन का कितना बड़ा अहम हिस्सा थीं. नीरजा के बिना जीने की कल्पनामात्र से ही वे सिहर उठे.

महत्त्वाकांक्षाओं के पीछे भागने में वे हमेशा नीरजा को उपेक्षित करते रहे, लेकिन अब अपनी सारी सफलताएं उन्हें बेमानी लगने लगी थीं.

‘‘पापा, आप चिंता मत कीजिए. मैं अब नर्सिंगहोम नहीं आऊंगी. घर पर ही रह कर मम्मी का ध्यान रखूंगी,’’ उन की बहू गीता कह रही थी.

सुशांत ने एक गहरी सांस ली और उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘नहीं बेटा नर्सिंगहोम अब तुम्हीं लोग संभालो, तुम्हारी मम्मी को इस वक्त सब से ज्यादा मेरी ही जरूरत है, उस ने मेरे लिए बहुतकुछ त्याग किया है. उस का ऋण तो मैं किसी भी हालत में नहीं चुका पाऊंगा, लेकिन कम से कम अंतिम समय में उस का साथ तो निभाऊं.’’

उस के बाद से सुशांत ने नर्सिंगहोम जाना छोड़ दिया. वे घर पर ही रह कर नीरजा की देखभाल करते, उस से दुनियाजहान की बातें करते, कभी कोई बुक पढ़ कर सुनाते, तो कभी साथ बैठ कर टीवी देखते. वे किसी भी तरह नीरजा के जाने के पहले बीते वक्त की भरपाई करना चाहते थे. मगर वक्त उन के साथ नहीं था.

धीरेधीरे नीरजा की तबीयत और भी बिगड़ने लगी थी. सुशांत उस के सामने तो संयत रहते, मगर अकेले में उन के दिल की पीड़ा आंसुओं की धारा बन कर बहती थी.

नीरजा की कमजोर काया और सूनी आंखें सुशांत के हृदय में शूल की तरह चुभती रहती. वे स्वयं को नीरजा की इस हालत का दोषी मानने लगे थे व उन के मन में नीरजा को खो देने का डर भी रहता. वे जानते थे कि दुर्भाग्य तो उन की नियति में लिखा जा चुका था, लेकिन उस मर्मांतक क्षण की कल्पना करते हुए हमेशा भयभीत रहते.

‘‘अंधेरा होगा जी,’’ नीरजा की आवाज से सुशांत की तंद्रा टूटी. उन्होंने उठ कर लाइट जला दी. देखा कि नीरजा का चाय का कप आधा भरा हुआ रखा था और वह फिर से आंखें मूंदे टेक लगा कर बैठी थी. चाय ठंडी हो चुकी थी.

सुशांत ने चुपचाप चाय का कप उठाया, किचन में जा कर सिंक में चाय फेंक दी. उन्होंने खिड़की से बाहर देखा, बाहर अभी भी तेज बारिश हो रही थी. हवा का ठंडा झोंका आ कर उन्हें छू गया, लेकिन अब उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. उन्होंने अपनी आंखों के कोरों को पोंछा और मोहन को आवाज लगा कर खिचड़ी बनाने को कहा. खिचड़ी भी मुश्किल से दो चम्मच ही खा पाई थी नीरजा ने. आखिर में सुशांत उस की प्लेट उठा कर किचन में रख आए. तब तक रवि और गीता भी नर्सिंगहोम से लौट आए थे.’’

‘‘कैसी हो मम्मा?’’ रवि प्यार से नीरजा की गोद में लेटते हुए बोला.

‘‘ठीक ही हूं मेरे बच्चे,’’ मुसकराते हुए नीरजा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए धीमी आवाज में बोली.

सुशांत ने देखा कि नीरजा के चेहरे पे असीम संतोष था. अपने पूरे परिवार के साथ होने की खुशी थी उसे. वह अपनी बीमारी से अनजान नहीं थी, परंतु फिर भी वह प्रसन्न ही रहती थी. जिस अनमोल सान्निध्य की आस ले कर वह वर्षों से जी रही थी, वह अब उसे बिना मांगे ही मिल रही थी. अब वह तृप्त थी, इसलिए आने वाली मौत के लिए कोई डर या अफसोस नीरजा के चेहरे पे दिखाई नहीं दे रहा था.

बच्चे काफी देर तक मां का हालचात पूछते रहे. उसे अपने दिनभर के काम के बारे में बताते रहे, फिर नीरजा का रुख देख कर सुशांत ने उन से कहा, ‘‘अब खाना खा कर आराम करो. दिनभर काम कर के थक गए होंगे.’’

‘‘पापा, आप भी खाना खा लीजिए,’’ गीता ने कहा.

‘‘मुझे अभी भूख नहीं है बेटा. मैं बाद में खा लूंगा.’’

बच्चों के जाने के बाद नीरजा फिर आंखें मूंद कर लेट गई. सुशांत ने धीमी आवाज में टीवी औन कर दिया, लेकिन थोड़ी देर में ही उन का मन ऊब गया. अब उन्हें थोड़ी भूख लग गई थी, लेकिन खाना खाने का मन नहीं किया. उन्होंने सोचा, नीरजा और अपने लिए दूध ही ले आएं. किचन में जा कर सुशांत ने 2 गिलास दूध गरम किया, तब तक रवि और गीता खाना खा कर अपने कमरे में जा कर सो चुके थे.

‘‘नीरजा, दूध लाया हूं,’’ कमरे में आ कर सुशांत ने धीरे से आवाज लगाई, लेकिन नीरजा ने कोई जवाब नहीं दिया. उन्हें लगा कि वह सो रही है. उन्होंने उस के गिलास को ढक कर रख दिया और खुद पलंग के दूसरी ओर बैठ कर दूध पीने लगे.

सुशांत ने नीरजा की तरफ देखा. उस के सोते हुए चेहरे पर कितनी शांति झलक रही थी. सुशांत का हाथ बरबस ही उस का माथा सहलाने के लिए आगे बढ़ा, फिर वह चौंक पड़े, दोबारा माथेगालों को स्पर्श किया, तब उन्हें एहसास हुआ कि नीरजा का शरीर ठंडा था. वह सो नहीं रही थी, बल्कि हमेशा के लिए चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी.

सुशांत को जो डर इतने महीनों से डरा रहा था, आज वे उस के वास्तविक रूप का सामना कर रहे थे. कुछ समय के लिए वे एकदम सुन्न से हो गए. उन्हें समझ ही नहीं आया कि वे क्या करें, फिर धीरेधीरे सुशांत की चेतना जागी, पहले सोचा कि जा कर बच्चों को खबर कर दें, लेकिन कुछ सोच कर रुक गए. सारी उम्र नीरजा सुशांत के सान्निध्य के लिए तड़पी थी, लेकिन आज सुशांत एकदम तनहा हो गए थे. अब वे नीरजा के सामीप्य के लिए तरस रह थे. अश्रुधारा उन की आंखों से अविरल बहे जा रही थी. वे नीरजा की मौजूदगी को अपने दिल में महसूस करना चाह रहे थे, इस एहसास को अपने अंदर समेट लेना चाहते थे, क्योंकि बाकी की तनहा जिंदगी उन्हें अपने इसी दुखभरे एहसास के साथ व पश्चाताप के दर्द के साथ ही तो गुजारनी थी. सुशांत के पास केवल एक रात ही थी. अपने और अपनी प्राणों से भी प्रिय पत्नी के सान्निध्य के इन आखिरी पलों में वे किसी और की दखलअंदाजी नहीं चाहते थे. उन्होंने लाइट बुझा दी और निर्जीव नीरजा को अपने हृदय से लगा कर फूटफूट कर रोने लगे.

बारिश अब थम चुकी थी, लेकिन सुशांत की आंखों से अश्रुधारा बहे जा रही थी…
काश, सुशांत अपने जीवन के व्यस्त क्षणों में से कुछ पल अपनी प्रेयसी नीरजा के साथ गुजार लेते तो शायद आज नीरजा सुशांत को छोड़ कर दूर बहुत दूर नील गगन के पार नहीं जाती.

सुशांत के सान्निध्य की तड़प अपने साथ ले कर नीरजा हमेशा के लिए चली गई और सुशांत को दे गई पश्चाताप का असहनीय दर्द.

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