“क्यों?”“पंडितजी ने कहा था कि दान देने से न सिर्फ़ इस जीवन में बल्कि अगले जन्म में भी कष्ट पास नहीं फटकते.”देखो एकता, तुम अपने पर कितना भी खर्च करो, मुझे एतराज नहीं. एतराज़ तो छोड़ो बल्कि मैं तो चाहता हूं कि तुम मौजमस्ती करो और खूब खुश रहो. लेकिन तुम्हारा यों पंडितजी की बातों में आ कर व्यर्थ ही पैसलुटा देना सही नहीं लग रहा मुझे तो.”“ग्रुप में फ्रैंड्स को क्या जवाब दूंगी?” मुंह बनाते हुए एकता ने पूछा. “मेरे विचार से तुम्हें उन लोगों को भी सही दिशा दिखानी चाहिए.” प्रतीक की इस बात को सुन एकता निरुत्तर हो गई.
ग्रुप की महिलाएं रुपएपैसे के अतिरिक्त फल, अनाज व मिठाइयां भी पंडितजी को दिया करती थीं लेकिन एकता मन मसोस कर रह जाती. एकता के बारबार कहने पर भी प्रतीक का दान देने की बात पर नानुकुर करना उसे रास नहीं आ रहा था. आर्थिक स्तर पर अपने से निम्न संबंधियों से प्रतीक का मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना, मेड को पुराने कपड़े, खाना व कम्बल आदि देने को कहना तथा ड्राइवर के बेटे की पुस्तकें खरीदना एकता को असमंजस में डाल रहा था. दूसरों की मदद को सदैव तत्पर प्रतीक दानपुण्य के नाम से क्यों बिफर उठता है, इस प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल पा रहा था.
शंभूनाथजी ने व्हाट्सऐप ग्रुप बना लिया था. उस पर वे विभिन्न अवसरों, तीजत्योहारों आदि पर दान देने के मैसेज डालने लगे थे. प्रत्येक मैसेज के साथ दान की महत्ता बताई जाती. सुख, शांति व पापों से मुक्ति इन सभी के लिए दानदक्षिणा को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना बताया जाता. ग्रुप की सभी महिलाओं के बीच होड़ सी लग जाती कि कौन शंभूनाथजी को अधिक से अधिक दान दे कर न केवल स्वयं को, बल्कि परिवार को भी पापों से मुक्ति दिलवाने का महान प्रयास कर रहा है. एकता भी इस से अछूती न रही. प्रतीक से किसी न किसी बहाने पैसे मांग कर वह पंडितजी को दे देती थी. मन ही मन इस के लिए वह अपने को दोषी भी नहीं मानती थी, क्योंकि उस का विचार था कि इस से प्रतीक पर भी कष्ट नहीं आएंगे. सत्संग में विभिन्न कथाएं सुन कर वह भयभीत हो जाती कि विपरीत भाग्य होने पर किसी व्यक्ति को कैसेकैसे कष्ट झेलने पड़ते हैं. मन ही मन वह उन सखियों का धन्यवाद करती जिन के कारण वह पंडितजी के संपर्क में आई थी, वरना नरक में जाने से कौन रोकता उसे.
उस दिन प्रतीक औफ़िस से लौटा तो चेहरे की आभा देखते ही एकता समझ गई कि कोई प्रसन्नता का समाचार सुनने को मिलेगा. यह सच भी था. प्रतीक को कंपनी की ओर से प्रमोशन मिला था. शाम की चाय पी कर प्रतीक एकता को घर से दूर कुछ दिनों पहले बने एक फ़ाइवस्टार होटल में ले गया. कैंडल लाइट डिनर में एकदूसरे की उपस्थिति को आत्मसात करते हुए दोनों भविष्य के नए सपने बुन रहे थे. प्रतीक ने बताया कि अब वह एक आलीशान फ़्लैट खरीदने का मन बना चुका है. ख़ुशी से एकता का अंगअंग मुसकराने लगा. खाने के बाद प्रतीक डिज़र्ट मंगवाने के लिए मैन्यू देखने लगा तो एकता ने मोबाइल पर मैसेजेस पढ़ने शुरू कर दिए. सत्संग ग्रुप में आज शंभूनाथजी ने जिस विषय पर पोस्ट डाली थी वह था कि किस प्रकार खुशियों को कभीकभी बुरी नज़र लग जाती है और काम बनतेबनते बिगड़ने लगते हैं. ऐसे में कुछ रुपए या सामान द्वारा नज़र उतार कर दान कर देना चाहिए. इस से नज़र का बुरा असर उस वस्तु के साथ दानपात्र के पास चला जाता है. ग्रुप में कई महिलाओं ने अपने अनुभव बांटे थे कि कैसे जीवन में कुछ अच्छा होते ही अचानक उन के साथ अप्रिय घटना घट गई थी.
“ओहो, कब से आ रहा है बुखार? टैस्ट की रिपोर्ट्स कब तक मिलेंगी?” प्रतीक की आवाज़ कानों में पड़ी तो एकता ने अपना मोबाइल पर्स में रख दिया. प्रतीक के मोबाइल पर बड़ी बहन प्रियंका ने कौल किया था, उससे ही बात हो रही थी प्रतीक की. प्रियंका आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं थी, लेकिन वह या उस का पति मुकेश अपनी स्थिति सुधारने के लिए कोई प्रयास भी करते तो वह केवल परिचितों से पैसे मांगने तक ही सीमित था. पेशे से इलैक्ट्रिक इंजीनियर मुकेश की कुछ वर्षों पहले नौकरी चली गई थी. मुकेश उस समय बिजली का सामान बेचने का व्यवसाय शुरू करना चाहता था, जिस में प्रतीक ने आर्थिक रूप से मदद कर व्यवसाय शुरू करवा दिया था. कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन मुकेश बाद में कहने लगा कि इस बिज़नैस में ख़ास कमाई नहीं हो रही और अब एक अंतराल के बाद नौकरी लगना भी मुश्किल है. ऐसे में प्रियंका बारबार अपने को दयनीय स्थिति में बता कर पैसों की मांग करने लगती थी. प्रतीक के बड़े भाई की आमदनी अधिक नहीं थी और छोटे की तुलना में भी प्रतीक की सैलरी ही अधिक थी तो सारी आशाएं प्रतीक पर आ कर टिक जाती थीं. प्रतीक यथासंभव मदद भी करता रहता था. आज प्रियंका का फ़ोन आया तो एकता की सांस ठहर गई. वह समझ गई थी कि कोई नई मांग की होगी प्रियंका दीदी ने. उसे पंडितजी का मैसेज याद आ रहा था कि खुशियों को कभीकभी बुरी नज़र लग जाती है. कुछ देर पहले वह फ़्लैट लेने की योजना बनाते हुए कितनी खुश थी. अब प्रियंका की आर्थिक मदद करनी पड़ेगी तो पता नहीं प्रतीक फ़्लैट लेने की बात कब तक के लिए टाल देगा. उस ने घर पहुंच कर नज़र उतार कुछ रुपए शंभूनाथजी को देने का मन बना लिया क्योंकि भोगविलास से दूर भक्ति में लीन साधारण जीवन जीने वाला उन जैसा व्यक्ति ही ऐसे दान का पात्र हो सकता है. शंभूनाथजी दान का पैसा कल्याण में ही लगा रहे होंगे, इस बात पर पूरा भरोसा था उसे.
प्रतीक को प्रियंका से बात करते देख एकता ने प्रतीक की पसंदीदा पानफ्लेवर की आइसक्रीम मंगवा ली.
“दीदी ने किया था कौल?” आइसक्रीम की स्पून मुंह में रखते हुए एकता ने पूछा.
“हां, घर चल कर बात करेंगे.” प्रतीक जैसे किसी निर्णय पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था.
आइसक्रीम के स्वाद और विचारों में डूबे हुए अचानक एकता का ध्यान सामने वाली टेबल पर चला गया. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वहां शंभूनाथजी विभिन्न व्यंजनों का आनंद ले रहे थे. सत्संग के दौरान दिखने वाले रूप से विपरीत वे धोतीकुरते के स्थान पर जींस और टीशर्ट पहने थे, चेहरे पर प्रवचन देते समय खिली हुई मंदमंद मुसकान ज़ोरदार ठहाकों में बदली हुई थी. अपने को संन्यासी संत बताने वाले शंभूनाथजी के पास वाली कुरसी पर एक महिला उन से सट कर बैठी थी. तभी वेटर ने महिला के सामने प्लेट में सजा केक रख दिया. शंभूनाथजी ने महिला का हाथ पकड़ कर केक कटवाया और हौले से ‘हैप्पी बर्थडे’ जैसा कुछ कहा. जब अपने हाथ से केक का टुकड़ा उठा कर शंभूनाथजी ने महिला के मुंह में डाला तो एकता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उत्साह और अनुराग शंभूनाथ व महिला पर तारी था. ‘तो यह है कल्याणकारी काम जिस पर शंभूनाथजी दान का रुपयापैसा खर्च करते हैं,’ यह सोच कर एकता सकते में आ गई.
घर लौटने पर प्रतीक ने फ़ोन के बारे में बताया. एकता का संदेह सच निकला. प्रियंका ने इस बार बताया था कि मुकेश की अस्वस्थता के कारण वे मकान का किराया नहीं दे सके. मकान मालिक परेशान कर रहा है, माह का सारा वेतन दवाइयों में खर्च हो गया.
“तो कितने पैसे भेजने पड़ेंगे उन लोगों को?” एकता रोंआसी थी.
“बहुत हुआ, बस. अब नहीं,” प्रतीक छूटते ही बोला.
“मतलब, इस बार आप कुछ पैसे नहीं…”
“हां, बहुत मदद की है मैं ने दीदी, जीजाजी की. ये लोग स्वयं पर बेचारे का ठप्पा लगवा कर उस का फ़ायदा उठा रहे हैं.” एकता की बात पूरी होने से पहले ही प्रतीक बोल उठा था, “बुरे वक़्त में किसी से मदद मांगना अलग बात है लेकिन दूसरों की कमाई पर नज़र रख अपने को असहाय दिखाते हुए दूसरों से पैसे ऐंठना और बात. पता है तुम्हें, पिछले साल जब मैं औफ़िशियल टूर पर अहमदाबाद गया तो था प्रियंका के घर रुका था एक दिन के लिए.”
“हां, याद है,” छोटा सा उत्तर दे कर एकता आगे की बात जानने के लिए टकटकी लगाए प्रतीक को देख रही थी.