सैक्स सुखदायक है पर रखें सावधानी

सैक्सोलौजिस्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा के मुताबिक, ‘प्रेमीप्रेमिका के बीच सैक्स संबंध स्थापित करने के लिए भौतिक, रासायनिक व मनोवैज्ञानिक कारक ही जिम्मेदार होते हैं. सैक्स ही एक ऐसी सरल क्रिया है जो प्रेमीप्रेमिका को एकसाथ एक ही समय में पूर्ण तृप्ति देती है.’

सैक्स की संपूर्णता प्रेमिका के बजाय प्रेमी पर निर्भर करती है, क्योंकि प्रेमी ही इस की पहल करता है. प्रेमिका सैक्स में केवल सहयोग ही नहीं करती बल्कि पूर्ण आनंद भी चाहती है. अकसर प्रेमीप्रेमिका सैक्स को सुखदायक मानते हैं, लेकिन कई बार सहवास ऐंजौय के साथसाथ कई समस्याओं को भी सामने लाता है. अनुभव के आधार पर इन को दूर कर प्रेमीप्रेमिका सैक्स का सुख उठाते हैं.

शरारती बनें

सैक्स को मानसिक व शारीरिक रूप से ऐंजौय करने के लिए प्रेमीप्रेमिका को शरारती बनना चाहिए. उत्साह, जोश, तनावमुक्त, हंसमुख, जिंदादिल, शरारती प्रेमीप्रेमिका ही सैक्स को संपूर्ण रूप से भोगते हैं.

आत्मविश्वास की कमी न हो

कई बार आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. प्रेमी सैक्स के समय उतावलेपन के शिकार हो कर सैक्स के सुखदायक एहसास से वंचित रह जाते हैं.

सैक्स संबंध बनाते समय प्रेमीप्रेमिका के मन में यदि पौजिटिव सोच होगी, तभी दोनों पूर्ण रूप से संतुष्ट हो पाएंगे और सैक्स में कभी कमजोर नहीं पड़ेंगे.

पोर्न फिल्मों से प्रेरित न हों

प्रेमीप्रेमिका अकसर पोर्न फिल्में देख कर, किताबें पढ़ कर सैक्स में हर पल लिप्त रहने की कोशिश करते हैं. अत्यधिक मानसिक कामोत्तेजना की स्थिति में शीघ्रपतन व तनाव में कमी हो जाती है.

सैक्स में जल्दबाजी

कई बार सैक्स में प्रेमीप्रेमिका जल्दबाजी कर जाते हैं. शराब पी कर सैक्स करना चाहते हैं जोकि ठीक नहीं है. हमेशा मादक पदार्थों से दूर रहें. सैक्स के दौरान प्रेमिका ही मादकता का काम करती है.

बढ़ाएं शारीरिक आकर्षण

सहवास के लिए प्रेमी का शारीरिक आकर्षण, स्मार्टनैस, सैक्सी लुक, साफसफाई काफी महत्त्वपूर्ण है. पुरुषोचित्त गुण के साथसाथ गठीले बदन वाले चतुर सुरुचिपूर्ण वस्त्र, रसिक स्वभाव के प्रेमी ही सैक्स में सफल होते हैं.

रोमांटिक स्वभाव रखें

प्रेमिका सहवास के दौरान चाहती है कि उस का प्रेमी रोमांस व ताजगी द्वारा उसे कामोत्तेजित करे. अत: रोमांस की बातें कर सैक्स को सुखदायक बनाएं.

जब सैक्स का मौका मिले

प्रेमीप्रेमिका अकसर सैक्स के लिए मौके की तलाश में रहते हैं. जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे एकदूसरे में समाने के लिए बेताब हो जाते हैं, लेकिन इस दौरान कई बार ऐसे अचानक किसी का दरवाजा खटखटाना व फोन की घंटी बज जाती है. ऐसी बाधाओं को दूर कर सहवास को मानसिक व शारीरिक रूप से सुखदायक बनाएं.

दाखिले का चक्रव्यूह: सीमा को परिवार का प्यार मिला

रविवार को सुबह 10 बजे जब सीमा के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे लपक कर उठा लिया. स्क्रीन पर अपने बचपन की सहेली नीता का नाम पढ़ा तो वह भावुक हो गई और खुद से ही बोली कि चलो किसी को तो याद है आज का दिन.

लेकिन अपनी सहेली से बातें कर उसे निराशा ही हाथ लगी. नीता ने उसे कहीं घूमने चले का निमंत्रण भर ही दिया. उसे भी शायद आज के दिन की विशेषता याद नहीं थी.

‘‘मैं घंटे भर में तेरे पास पहुंच जाऊंगी,’’ यह कह कर सीमा ने फोन काट दिया.

‘सब अपनीअपनी जिंदगियों में मस्त हैं. अब न मेरी किसी को फिक्र है और न जरूरत. क्या आगे सारी जिंदगी मुझे इसी तरह की उपेक्षा व अपमान का सामना करना पड़ेगा?’ यह सोच उस की आंखों में आंसू भर आए.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकली और रसोई में काम कर रही अपनी मां को बताया, ‘‘मां, मैं नीता के पास जा रही हूं.’’

‘‘कब तक लौट आएगी?’’ मां ने पूछा.

‘‘जब दिल करेगा,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर उस ने अपनी नाराजगी प्रकट की.

‘‘ठीक है,’’ मां का लापरवाही भरा जवाब सुन कर उदास हो गई.

सीमा का भाई नवीन ड्राइंगरूम में अखबार पढ़ रहा था. वह उस की तरफ देख कर मुसकराया जरूर पर उस के बाहर जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं की.

नवीन से छोटा भाई नीरज बरामदे में अपने बेटे के साथ खेल रहा था.

‘‘कहां जा रही हो, दीदी?’’ उस ने अपना गाल अपने बेटे के गाल से रगड़ते हुए सवाल किया.

‘‘नीता के घर जा रही हूं,’’ सीमा ने शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं कार से छोड़ दूं उस के घर तक?’’

‘‘नहीं, मैं रिकशा से चली जाऊंगी.’’

‘‘आप को सुबहसुबह किस ने गुस्सा दिला दिया है?’’

‘‘यह मत पूछो…’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर वह गेट की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

कुछ देर बाद नीता के घर में प्रवेश करते ही सीमा गुस्से से फट पड़ी, ‘‘अपने भैयाभाभियों की मैं क्या शिकायत करूं, अब तो मां को भी मेरे सुखदुख की कोई चिंता नहीं रही.’’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बता?’’ नीता ने कहा.

‘‘मैं अब अपनी मां और भैयाभाभियों की नजरों में चुभने लगी हूं… उन्हें बोझ लगती हूं.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे घर वालों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस नहीं किया है. हां, कुछ दिनों से तू जरूर चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई है.’’

‘‘रातदिन की उपेक्षा और अपमान किसी भी इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है.’’

‘‘देख, हम बाहर घूमने जा रहे हैं, इसलिए फालतू का शोर मचा कर न अपना मूड खराब कर, न मेरा,’’ नीता ने उसे प्यार से डपट दिया.

‘‘तुझे भी सिर्फ अपनी ही चिंता सता रही है. मैं ने नोट किया है कि तुझे अब मेरी याद तभी आती है, जब तेरे मियांजी टूर पर बाहर गए हुए होते हैं. नीता, अब तू भी बदल गई है,’’ सीमा का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘अब मैं ने ऐसा क्या कह दिया है, जो तू मेरे पीछे पड़ गई है?’’ नीता नाराज होने के बजाय मुसकरा उठी.

‘‘किसी ने भी कुछ नहीं किया है… बस, मैं ही बोझ बन गई हूं सब पर,’’ सीमा रोंआसी हो उठी.

‘‘तुम्हें कोई बोझ नहीं मानता है, जानेमन. किसी ने कुछ उलटासीधा कहा है तो मुझे बता. मैं इसी वक्त उस कमअक्ल इंसान को ऐसा डांटूंगी कि वह जिंदगी भर तेरी शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं करेगा,’’ नीता ने उस का हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गई.

‘‘किसकिस को डांटेगी तू. जब मतलब निकल जाता है तो लोग आंखें फेर लेते हैं. अब मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार मेरे दोनों भाई और उन की पत्नियां कर रही हैं तो इस में हैरानी की कोई बात नहीं है. मैं बेवकूफ पता नहीं क्यों आंसू बहाने पर तुली हुई हूं,’’ सीमा की आंखों से सचमुच आंसू बहने लगे थे.

‘‘क्या नवीन से कुछ कहासुनी हो गई है?’’

‘‘उसे आजकल अपने बिजनैस के कामों से फुरसत ही कहां है. वह भूल चुका है कि कभी मैं ने अपने सहयोगियों के सामने हाथ फैला कर कर्ज मांगा था उस का बिजनैस शुरू करवाने के लिए.’’

‘‘अगर वह कुसूरवार नहीं है तब क्या नीरज ने कुछ कहा है?’’

‘‘उसे अपने बेटे के साथ खेलने और पत्नी की जीहुजूरी करने से फुरसत ही नहीं मिलती. पहले बहन की याद उसे तब आती थी, जब जेब में पैसे नहीं होते थे. अब इंजीनियर बन जाने के बाद वह खुद तो खूब कमा ही रहा है, उस के सासससुर भी उस की जेबें भरते हैं. उस के पास अब अपनी बहन से झगड़ने तक का वक्त नहीं है.’’

‘‘अगर दोनों भाइयों ने कुछ गलत नहीं कहा है तो क्या अंजु या निशा ने कोई गुस्ताखी की है?’’

‘‘मैं अब अपने ही घर में बोझ हूं, ऐसा दिखाने के लिए किसी को अपनी जबान से कड़वे या तीखे शब्द निकालने की जरूरतनहीं है. लेकिन सब के बदले व्यवहार की वजह से आजकल मैं अपने कमरे में बंद हो कर खून के आंसू बहाती हूं. जिन छोटे भाइयों को मैं ने अपने दिवंगत पिता की जगह ले कर सहारा दिया, आज उन्होंने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है. पूरे घर में किसी को भी ध्यान नहीं है कि मैं आज 32 साल की हो गई हूं…

तू भी तो मेरा जन्मदिन भूल गई… अपने दोनों भाइयों का जीवन संवारते और उन की घरगृहस्थी बसातेबसाते मैं कितनी अकेली रह गई हूं.’’

नीता ने उसे गले से लगाया और बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘इंसान से कभीकभी ऐसी भूल हो जाती है कि वह अपने किसी बहुत खास का जन्मदिन याद नहीं रख पाता. मैं तुम्हें शुभकामनाएं देती हूं.’’

उस के गले से लगेलगे सीमा सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा घर नहीं बसा, मैं इस बात की शिकायत नहीं कर रही हूं, नीता. मैं शादी कर लेती तो मेरे दोनों छोटे भाई कभी अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. शादी न होने का मुझे कोई दुख नहीं है.

‘‘अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार का हिस्सा बन कर मैं खुशीखुशी जिंदगी गुजार लूंगी, मैं तो ऐसा ही सोचती थी. लेकिन आजकल मैं खुद को बिलकुल अलगथलग व अकेला महसूस करती हूं. कैसे काटूंगी मैं इस घर में अपनी बाकी जिंदगी?’’

‘‘इतनी दुखी और मायूस मत हो, प्लीज. तू ने नवीन और नीरज के लिए जो कुरबानियां दी हैं, उन का बहुत अच्छा फल तुझे मिलेगा, तू देखना.’’

‘‘मैं इन सब के साथ घुलमिल कर जीना…’’

‘‘बस, अब अगर और ज्यादा आंसू बहाएगी तो घर से बाहर निकलने पर तेरी लाल, सूजी आंखें तुझे तमाशा बना देंगी.

तू उठ कर मुंह धो ले फिर हम घूमने चलते हैं,’’ नीता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया.

‘‘मैं घर वापस जाती हूं. कहीं घूमने जाने का अब मेरा बिलकुल मूड नहीं है.’’

‘‘बेकार की बात मत कर,’’ नीता उसे खींचते हुए गुसलखाने के अंदर धकेल आई.

जब वह 15 मिनट बाद बाहर आई, तो नीता ने उस के एक हाथ में एक नई काली साड़ी, मैचिंग ब्लाउज वगैरह पकड़ा दिया.

‘‘हैप्पी बर्थडे, ये तेरा गिफ्ट है, जो मैं कुछ दिन पहले खरीद लाई थी,’’ नीता की आंखों में शरारत भरी चमक साफ नजर आ रही थी.

‘‘अगर तुझे मेरा गिफ्ट खरीदना याद रहा, तो मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देना कैसे भूल गई?’’ सीमा की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘अरे, मैं भूली नहीं थी. बात यह है कि आज हम सब तुझे एक के बाद एक सरप्राइज देने के मूड में हैं.’’

‘‘इस हम सब में और कौनकौन शामिल है?’’

‘‘उन के नाम सीक्रेट हैं. अब तू फटाफट तैयार हो जा. ठीक 1 बजे हमें कहीं पहुंचना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘उस जगह का नाम भी सीके्रट है.’’

सीमा ने काफी जोर डाला पर नीता ने उसे इन सीक्रेट्स के बारे में और कुछ भी

नहीं बताया. सीमा को अच्छी तरह से तैयार करने में नीता ने उस की पूरी सहायता की. फिर वे दोनों नीता की कार से अप्सरा बैंक्वेट हौल पहुंचे.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘मुझ से ऐसे सवाल मत पूछ और सरप्राइज का मजा ले, यार,’’ नीता बहुत खुश और उत्तेजित सी नजर आ रही थी.

उलझन से भरी सीमा ने जब बैंक्वेट हौल में कदम रखा, तो अपने स्वागत में बजी तालियों की तेज आवाज सुन कर वह चौंक पड़ी. पूरा हौल ‘हैप्पी बर्थडे’ के शोर से गूंज उठा.

मेहमानों की भीड़ में उस के औफिस की खास सहेलियां, नजदीकी रिश्तेदार और परिचित शामिल थे. उन सब की नजरों का केंद्र बन कर वह बहुत खुश होने के साथसाथ शरमा भी उठी.

सब से आगे खड़े दोनों भाई व भाभियों को देख कर सीमा की आंखों में आंसू छलक आए. अपनी मां के गले से लग कर उस के मन ने गहरी शांति महसूस की.

‘‘ये सब क्या है? इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’ उस की डांट को सुन कर नवीन और नीरज हंस पड़े.

दोनों भाइयों ने उस का एकएक बाजू पकड़ा और मेहमानों की भीड़ में से गुजरते हुए उसे हौल के ठीक बीच में ले आए.

नवीन ने हाथ हवा में उठा कर सब से खामोश होने की अपील की. जब सब चुप हो गए तो वह ऊंची आवाज में बोला,

‘‘सीमा दीदी सुबह से बहुत खफा हैं. ये सोच रही थीं कि हम इन के जन्मदिन की तारीख भूल गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था. आज हम इन्हें बहुत सारे सरप्राइज देना चाहते हैं.’’

सरप्राइज शब्द सुन कर सीमा की नजरों ने एक तरफ खड़ी नीता को ढूंढ़ निकाला. उस को दूर से घूंसा दिखाते हुए वह हंस पड़ी.

अब ये उसे भलीभांति समझ में आ गया था कि नीता भी इस पार्टी को सरप्राइज बनाने की साजिश में उस के घर वालों के साथ मिली हुई थी.

नवीन रुका तो नीरज ने सीमा का हाथ प्यार से पकड़ कर बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हमारी दीदी ने पापा की आकस्मिक मौत के बाद उन की जगह संभाली और हम दोनों भाइयों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी खुशियां व इच्छाएं इन के एहसानों का बदला हम कभी नहीं भूल गईं.’’

‘‘लेकिन हम इन के एहसानों व कुरबानियों को भूले नहीं हैं,’’ नवीन ने फिर

से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘कभी ऐसा वक्त था जब पैसे की तंगी के चलते हमारी आदरणीय दीदी को हमारे सुखद भविष्य की खातिर अपने मन को मार कर जीना पड़ रहा था. आज दीदी के कारण हमारे पास बहुत कुछ है.

‘‘और अपनी आज की सुखसमृद्धि को अब हम अपनी दीदी के साथ बांटेंगे.

‘‘मैं ने अपना राजनगर वाला फ्लैट दीदी के नाम कर दिया है,’’ ऊंची आवाज में ये घोषणा करते हुए नवीन ने रजिस्ट्री के कागजों का लिफाफा सीमा के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘और ये दीदी की नई कार की चाबी है. दीदी को उन के जन्मदिन का ये जगमगाता हुआ उपहार निशा और मेरी तरफ से.’’

‘‘और ये 2 लाख रुपए का चैक फ्लैट की जरूरत व सुखसुविधा की चीजें खरीदने

के लिए.

‘‘और ये 2 लाख का चैक दीदी को अपनी व्यक्तिगत खरीदारी करने के लिए.’’

‘‘और ये 5 लाख का चैक हम सब की तरफ से बरात की आवभगत के लिए.

‘‘अब आप लोग ये सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि दीदी की शादी कहीं पक्की होने की कोई खबर है नहीं और यहां बरात के स्वागत की बातें हो रही हैं. तो आप सब लोग हमारी एक निवेदन ध्यान से सुन लें. अपनी दीदी का घर इसी साल बसवाने का संकल्प लिया है हम दोनों भाइयों ने. हमारे इस संकल्प को पूरा कराने में आप सब दिल से पूरा सहयोग करें, प्लीज.’’

बहुत भावुक नजर आ रहे नवीन और नीरज ने जब एकसाथ झुक कर सीमा के पैर छुए, तो पूरा हौल एक बार फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा.

सीमा की मां अपनी दोनों बहुओं व पोतों के साथ उन के पास आ गईं. अब पूरा परिवार एकदूसरे का मजबूत सहारा बन कर एकसाथ खड़ा हुआ था. सभी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे.

बहुत दिनों से चली आ रही सीमा के मन की व्याकुलता गायब हो गई. अपने दोनों छोटे भाइयों के बीच खड़ी वह इस वक्त अपने सुखद, सुरक्षित भविष्य के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रही थी.

Winter Special: ताकि सर्दियों में ना फटें आपके होंठ

सर्दियां का मौसम आते ही ज्यादातर लोगों की त्वचा रूखी होने लगती है. त्वचा की नमी कहीं खो सी जाती है और त्वचा रूखी-बेजान नजर आने लगती है. त्वचा के साथ ही हमारे होंठ भी फटने शुरू हो जाते हैं. कई बार ये समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि होंठों से खून भी आना शुरू हो जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम अपनी त्वचा को लेकर फिक्रमंद रहें ताकि वो हमेशा खूबसूरत और जवां बनी रहे.

सर्दियों के मौसम में त्वचा को ज्यादा से ज्यादा नमी की जरूरत होती है. ऐसे में आप चाहें तो ग्लिसरीन का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह एक नेचुरल लिप बाम भी है.

कैसे करें ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल

आप चाहें तो ग्ल‍िसरीन को बाम की तरह लगा सकते हैं. इसके अलावा इसे दूध, शहद या गुलाब जल के साथ मिलाकर भी लगाया जाता है.

ग्ल‍िसरीन लगाने के फायदे

सर्दियों में शुष्‍क हवाओं के कारण होठ सूख जाते हैं और फटने लग जाते हैं. होठों पर ग्ल‍िसरीन के इस्तेमाल से होंठ मुलायम बनते हैं जिससे फटने की समस्या भी नहीं होने पाती है.

अगर आपके होंठों पर दाग-धब्बे हैं और ये काले पड़ चुके हैं तो भी ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है. कई बार धूम्रपान करने के कारण लोगों के होंठ काले पड़ जाते हैं. ऐसी स्थिति में भी ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है.

सर्दियों में हवाओं के प्रभाव से होठों की ऊपरी परत सूख जाती है और पपड़ी बन जाती है. ऐसे में ग्लसिरीन का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है.

अगर आपके होंठ कहीं से कट गए हों या फिर अगर उनमें किसी तरह का घाव बन गया हो तो भी ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है.

होठों के लिए ग्ल‍िसरीन एक पोषक तत्व की तरह काम करता है, जिससे होठों को नमी मिलती है.

रोहित: क्या सुधर पाया वह

हमेशा की तरह आज भी स्टाफरूम में चर्चा का विषय था 9वीं कक्षा का छात्र रोहित, जिस की दादागीरी से उस के सहपाठी ही नहीं बल्कि अन्य कक्षाओं के छात्रों सहित टीचर्स भी परेशान थे. प्राचार्य भी उस की शिकायत सुनसुन कर परेशान हो गए थे. न जाने कितनी बार उसे अपने औफिस में बुला कर हर तरह से समझाने की कोशिश कर चुके थे, पर नतीजा सिफर ही था.

रोहित पर किसी भी बात का कोई असर नहीं होता था. उस के गलत आचरण को निशाना बना कर उस पर कोई कड़ी कार्यवाही भी नहीं की जा सकती थी कारण कि वह फैक्टरी मजदूर यूनियन के प्रमुख का बेटा था और उन से सभी का वास्ता पड़ता रहता था. कैमिस्टरी की टीचर संगीता को देखते ही बायोलौजी टीचर मीना ने कहा, ‘‘मैडम, इस बार तो 9वीं कक्षा की क्लास टीचर आप होंगी. संभल कर रहिएगा, रोहित अपने आतंक से सभी को परेशान करता रहता है.’’

‘‘कोई बात नहीं मिस. हम उसे देख लेंगे. है तो 15 साल का किशोर ही न. उस से क्या परेशान होना. आप तो बायोलौजी से हैं. आप को पता ही होगा, इस उम्र के बच्चों के शरीर में न जाने कितने हारमोनल बदलाव होते रहते हैं. अगर सभी तरह के वातावरण अनुकूल नहीं हुए तो नकारात्मक प्रवृत्तियां घर कर लेती हैं. समय पर अगर उन्हें हर प्रकार की भावनात्मक मदद व प्रोत्साहन मिले तो वे अपनेआप ही अनुशासित हो जाते हैं.’’

‘‘ठीक है मैम. लेकिन उस पर उद्दंडता इतनी हावी है कि उस का सुधरना नामुमकिन है.’’

मैथ्स के सर भी चुप नहीं रहे, ‘‘जो भी हो मैडम, पर मैथ्स में उस का दिमाग कमाल का है. कठिन से कठिन सवाल को चुटकियों में हल कर लेता है. पता नहीं अन्य विषयों में उस के इतने कम अंक क्यों आते हैं?’’

‘‘डिबेट वगैरा में तो अच्छा बोलता है. बस, उसे टोकाटाकी अच्छी नहीं लगती. हां, यह अलग बात है कि वह बस में खिड़की के पास बैठने के लिए हमेशा मारपीट पर उतर आता है. वहां बैठे टीचर्स की भी उसे कोई परवा नहीं रहती.’’

‘‘मैं ने तो न जाने कितनी बार उसे लड़कियों की ओर कागज के गोले फेंकते पकड़ा है, जिन में अनर्गल बातें लिखी रहती हैं,’’ हिंदी वाले सर बोले. हिंदी वाले सर की बात को काटते हुए संगीता मैम ने कहा, ‘‘छोडि़ए सर, अब उस आतंकवादी को मुझे देखना है,’’ कहते हुए वे स्टाफरूम से निकल गईं. 9वीं कक्षा में क्लास टीचर के रूप में संगीता मैम का आज पहला दिन था. वे अटैंडैंस ले रही थीं कि अचानक उन्हें लगा जैसे अभीअभी कोई क्लास में आया हो.

‘‘क्लास में कौन आया है अभी?’’ संगीता मैम ने पूछा, लेकिन कोई उत्तर न पा कर दोबारा बोलीं, ‘‘जो भी अभी आया है खड़ा हो जाए.’’ प्रत्युत्तर में रोहित को खड़ा होते देख कर संगीता मैम ने कहा, ‘‘रोहित, तुम क्लास से बाहर जाओ और आने की आज्ञा ले कर क्लास में आओ.’’ रोहित ने इसे अपनी बेइज्जती समझा. उस ने क्रोध भरी नजरों से संगीता मैम को देखा और दरवाजे को जोर से बंद करते हुए बाहर चला गया. क्लास समाप्ति की घंटी बजते ही संगीता मैम बाहर आईं तो उन्होंने रोहित को बाहर खड़ा पाया. उसे कैमिस्टरी लैब में आने को कहते हुए वे आगे बढ़ गईं. उम्मीद तो नहीं थी कि रोहित उन के कहने पर वहां आएगा, लेकिन अपने आने से पहले रोहित को वहां पर देख कर वे मुसकरा उठीं.

‘‘अच्छा रोहित, मुझे यह बताओ कि तुम क्लास में फिर क्यों नहीं आए? इस से तो तुम्हारा ही नुकसान हुआ न. आज मैं ने ‘औरगैनिक कैमिस्टरी, कैमिस्टरी की कौन सी ब्रांच है, इस की क्या उपयोगिता है?’ नामक पाठ पढ़ाया है. अब तुम्हें कौन समझाएगा? अनुशासित हो कर पढ़ने के लिए बच्चे स्कूल आते हैं. सभी टीचर्स को तुम से कोई न कोई शिकायत है. तुम ऐसे क्यों हो? क्यों इतनी उद्दंडता पर उतर आते हो? घर में अपने मम्मीपापा के साथ भी ऐसे ही करते हो क्या?’’ कहते हुए संगीता मैम ने उस की पीठ क्या सहलाई रोहित रो पड़ा. संगीता मैम ने उसे पहले जीभर कर रोने दिया. फिर जब उस के मन का सारा गुबार निकल गया तो उन्होंने रोहित को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘संकोच की कोई बात नहीं है रोहित. अपने मन की बात कहो. जो भी दुख है उसे बाहर निकालो. तुम्हारी जो भी समस्या है तुम बेझिझक मुझ से कह सकते हो. यहां कोई नहीं है तुम्हें कुछ कहने वाला. तुम्हारा मजाक कम से कम मैं तो नहीं उड़ाऊंगी. इतना विश्वास तुम मुझ पर कर सकते हो.’’

आज तक किसी टीचर ने उस की दुखती रग पर हाथ नहीं रखा था. उन सभी से डांटफटकार के साथ आतंकवादी की उपाधि पा कर वह दिनोदिन उद्दंड होता ही गया. आज पहली बार किसी ने उस के असामान्य व्यवहार का कारण पूछा तो वह भी स्वयं को रोक नहीं पाया. संगीता मैम का प्यार एवं विश्वास भरा आश्वासन पाते ही वह सबकुछ उगलने लगा.

‘‘घर में हम दोनों भाइयों को देखने वाला है ही कौन मैम. जब से होश संभाला मम्मीपापा को हमेशा झगड़ते हुए ही पाया. प्यारदुलार के बदले उन दोनों का क्रोध हम दोनों भाइयों पर कहर बन कर टूटता रहा है. अकारण ही हम भी उन की गालियों का शिकार हो जाते हैं. घर का ऐसा माहौल है कि हंसना तो दूर की बात है, हम खुल कर सांस भी नहीं ले पाते. मम्मीपापा का प्यार हम दोनों ने आज तक जाना नहीं,’’ कहता हुआ रोहित सुबकने लगा. रोहित के बारे में जान कर संगीता मैम को बहुत दुख हुआ. वे उस दिन स्कूल से ही रोहित के घर गईं और अपने अनगिनत प्रश्नों के घेरे में उस के मम्मीपापा को खड़ा कर के समझाते हुए उन की भर्त्सना की. बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया, तो उन दोनों ने भी अपने सुधरने का आश्वासन दे कर संगीता मैम को निराश नहीं किया.

दूसरे दिन सर्वसम्मति से रोहित को क्लास मौनीटर बनाते हुए संगीता मैम ने उसे ढेर सारी जिम्मेदारी सौंप दी. फिर तो रोहित के अंतरमन से वर्षों का दबा हीनभावना का सारा अंधकार जाता रहा. अब आत्मविश्वास की ज्योति से जगमगाते हुए एक नए रोहित का जन्म हुआ. देखते ही देखते सब टीचर्स का मानसम्मान करता वह सब का प्रिय बन गया. संगीता मैम ने भी ऐसे चमत्कार की उम्मीद नहीं की थी. हर साल लुढ़क कर पास होने वाला रोहित अब क्लास में ही नहीं स्कूल की भी सारी गतिविधियों में प्रथम आ कर सब को आश्चर्यचकित करने लगा था. ‘यूथ पार्लियामैंट’ नामक एकांकी में प्रधानमंत्री की भूमिका निभा कर वह सारे जोन में प्रथम आया. दिल्ली के मावलंकर सभागार में उसे पुरस्कृत किया गया. सारे अखबार, टीवी चैनल्स पर वह न जाने कितने दिन तक छाया रहा.

‘‘अरे भाई, रोहित तो हमारे स्कूल का बड़ा होनहार छात्र है,’’ जो टीचर्स उस की शिकायतें करते नहीं थकते थे उन की जबान पर अब यही शब्द थे. रोहित के मम्मीपापा के पैर तो जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. वे संगीता मैम को धन्यवाद देते नहीं थक रहे थे. स्कूल को सभी तरह से गौरवान्वित करता रोहित अब सब का प्रिय छात्र बन गया था.

प्रकृति की मार झेलता उत्तराखंड का छोटा गांव सेमला

गांव की व्यवस्था तभी किसी को समझ में आती है, जो गाँव से निकले है और वहां की मिटटी और वनस्पति से आती खुश्बू को महसूस किया हो. शहरों में रहने वालों को इसकी कीमत को समझना नामुमकिन होता है, उन्हें बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स में रहने की आदत होती है, सड़के और उनपर दौड़ती हुई कारें ही उन्हें डेवेलपमेंट का आभास कराती है, लेकिन इस आधुनिकरण की होड़ में वे भूल जाते है कि ये तभी संभव होगा, जब क्लाइमेट चेंज को रोका जाय, पर्यावरण में रहने वाले जीव-जंतु, पेड़-पौधे और मानव जीवन का संतुलन सही हो, नहीं तो धरती इसे खुद ही संतुलित कर लेती है मसलन कहीं बाढ़, कही सूखा तो कही खिसकते ग्लेशियर जिसमे हर साल लाखों की संख्या में लोग इन हादसों का शिकार हो रहे है, लेकिन कैसे संभव हो सकता है? इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड के सेमला गांव में पली-बड़ी हुई निर्देशक और पटकथा लेखक सृष्टि लखेरा ने अपनी एक डोक्युमेंट्री फिल्म ‘एक था गांव’ के द्वारा समझाने की कोशिश की है, उनकी इस फिल्म ने कई अवार्ड जीते है.

क्लाइमेट चेंज को सम्हालने के लिए जमीनी स्तर पर काम जरुरी

गाँववालों की समस्या के बारें में सृष्टि कहती है किटिहरी गढ़वाल के गांव सेमला में काम करने वाली 80 साल की लीला ने अपना पूरा जीवन यहाँ बिताया है. उनके साथ रहने वालों की मृत्यु होने के बाद उन्हें अपना जीवन चलाना मुश्किल हो रहा है, फिर भी वह इस गांव को छोड़ना नहीं चाहती. इस गांव में गोलू ही ऐसी यूथ है, जो इस परित्यक्त गांव में रह गई है.अभी उनके साथ रहने वाले केवल घोस्ट ही है, क्योंकि पहले 50 परिवार के इस गांव में रहते थे, अब केवल 5 लोग इस गांव में रह गए है. इससे घाटी में जन-जीवन धीरे-धीरे ख़त्म होने लगा है. क्लाइमेट चेंज को लेकर बहुत बात होती है, लेकिन इसे रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम नहीं हो रहा है.

असंतुलित मौसम

स्टोरी की कांसेप्ट के बारें में सृष्टि बताती है कि उत्तराखंड के गाँव बहुत अधिक खाली हो रहे है, मेरे पिता भी गाँव से है, टिहरीगढ़वाल में स्थित सेमला से लोगों का पलायन हो रहा है, अभी केवल दो परिवार ही बचे है, इसे लेकर एक नोस्टाल्जिया, जो मेरे परिवार के अंदर है, उन्हें गांव खाली होने का डर सता रहा है,इसे हमेशा सुनते हुए और उनके दुखी मन को सांत्वना देने के लिए कोई शब्द नहीं थे,इसलिए इसे लेकर मैंने कुछ करने के बारें में सोचा, जिसमे खासकर पर्यावरण था. जब कोई खेत और जंगल छोड़ देता है, तो उसपर उगने वाले घासफूंस को जानवर भी नहीं चरना चाहते. अभी वहां पर चीर के पेड़ों की संख्या बहुत अधिक हो चुकी है, जिसका अधिक होना मिटटी और ग्राउंड वाटर के लिए खतरा होता है. इसका प्रभाव पर्यावरण संतुलन पर पड़ता है. ऐसे में इंसान का गाँव में रहना और खेती करना आवश्यक है, जिससे एक अच्छा जंगल पनप सकें. पानी जमीन में रहे. उपजाऊपन में कमी न हो. आज जंगल बन चुके स्थान ऐसा नहीं था. यहाँ लोग हज़ार साल से रह रहे थे उन्होंने खेती की और अपना जीवन निर्वाह किया. इस प्रकार परिवार के दुःख और पर्यावरण को देखते हुए मैंने ये फिल्म बनाई. सभी का गाँव से भागने की वजह से शहरों की भी हालत ख़राब है, वहां जनसंख्याँ का दबाव अधिक बढ़ रहा है. गांव में यूथ के लिए नौकरी नहीं है.

सामाजिक असामनता

तकनीक का प्रयोग इन गांवों में अधिक नहीं हो सकता, क्योंकि ये पहाड़ी क्षेत्र है और यहाँ सीढ़ीनुमा खेतों में फार्मिंग की जाती है. सृष्टि आगे कहती है कि पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहाँ की मिटटी पथरीली होती है. इसके अलावा शहर में रहकर भी खेती नहीं की जा सकती,लेकिन कॉपरेटिव फार्मिंग हो सकता है, जिसमें एक साथ 5 से 6 गांव साथ आकर पूरी जमीन को शेयर कर सकते है, लेकिन समाज टूटा हुआ होने की वजह से ऐसी फार्मिंग नहीं हो सकती. अधिकतर उच्च वर्ग के लोग पलायन करते है, दलित को जमीन की मालिकाना हक नहीं है, उनका उच्च वर्ग के साथ बनती नहीं है. दलितों के पास बहुत कम जमीन है. ऐसी कई समस्याएं है और इसका सीधा असर सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ रहा है. भाई-चारा होने पर ऐसी स्थिति नहीं होती. जाति की समस्या और आपसी मनमुटाव ही इसकी जड़ है. यहाँ के बचे हुए लोग मनरेगा के अंतर्गत और पंचायत की टीम में मुर्गी पालन, पशुपालन आदि काम करते है, इससे थोड़ी आमदनी हो जाती है, लेकिन वे लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है. इसके अलावा शहरों में रहने वाले पुरुषों की महिलाएं अधिकतर गाँव में रहती है, उन्हें समस्या अधिक होती है.

मिली प्रेरणा

सृष्टि इस फील्ड में पिछले 10 साल से निर्देशक के रूप में काम कर रही है, उन्होंने छोटी-छोटी प्रेरणादायक फिल्में दिल्ली में कई एनजीओ के लिए बनायीं है. इसके बाद उन्होंने अपने गांव के लिए फिल्म बनाई, क्योंकि वह इससे बहुत कनेक्ट रही. पर्यावरण के साथ समाज परिवार और जीव-जंतु सभी का एक जुड़ाव होता है. उसे उन्होंने सबके सामने रखने की कोशिश की है. इसे करने में अधिक मुश्किल उन्हें नहीं आई, क्योंकि ये उनके पिता की गांव है. 5 साल की मेहनत के बाद उन्होंने एक घंटे की फिल्म बनाई है.

 

करप्शन कम होती नहीं दिखती

सृष्टि आगे कहती है कि रिसर्च के दौरान मैंने काफी समय वहां बिताया है, लेकिन वहां किसी प्रकार की स्कीम या योजना गांववालों के लिए सरकार की तरफ से नहीं देखा. वहां रहने वालें दलित बहुत कम पढ़े-लिखे है. इससे उनको किसी बात की जानकारी नहीं होती. अपर कास्ट के लोग इनका शोषण करते है. इसे मैंने देखा और बहुत ख़राब लगा. पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए एक अच्छी कम्युनिटी का क्रिएट करना जरुरी है. वे संगठित तरीके से रह नहीं सकते,जिसमे औरतों का बहुत शोषण होता है. आपस में प्यार से न रह पाना ही पर्यवरण के लिए क्षति है और इसका असर सबको दिख रहा है. संगठित तरीके से काम अपनाने पर ही पर्यावरण का संरंक्षण हो सकता है. इसके अलावा उत्तराखंड में पहाड़ो को डायनामाईट से ब्लास्ट कर उस क्षेत्र में बिल्डिंग बनाई जा रही है, जो कानूनन मान्यता न होने पर भी हो रहा है, क्योंकि करप्शन बहुत अधिक है. यहाँ देखा गया है कि पर्यावरण से सम्बंधित कानून को लोग आसानी से तोड़ देते है, जो दुःख की बात है. उत्तराखंड में ये अधिक हो रहा है, ऐसे में पढ़े-लिखे संगठित समाज ही इन गलत चीजों के लिए अपनी आवाज उठा सकते है.

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Winter Special: ये हैं 7 हैल्दी टिफिन डिशेज

हर मां की तरह आप की भी सब से बड़ी जिम्मेदारी होगी बच्चे के टिफिन में सेहतमंद व स्वादिष्ठ खाना देना और स्कूल से लौटने पर उस के स्कूल बैग से टिफिन निकाल कर यह देखना कि उस ने लंच खाया या नहीं और फिर टिफिन में आधाअधूरा बचा खाना, अपनी मेहनत और बच्चे की सेहत को यों बरबाद होते देख आप का खीजना लाजिम है.

आप चाहती हैं कि आप के लाडले के टिफिन में सेहत व स्वाद दोनों हों, तो आप को बच्चे के टेस्ट बड्स को तवज्जो देनी होगी. याद रखिए रोजाना एक जैसे खाने से हर कोई उकता जाता है. ऐसे में टिफिन में रोज परांठा सब्जी देख कर बच्चा खाने से जी चुराने लगता है. नतीजतन आप की टिफिन तैयार करने से ले कर पैक करने तक की मेहनत के साथसाथ बच्चे की सेहत में भी घुन लग जाएगा.

माना कि रोजरोज टिफिन में बच्चे की फरमाइशी डिशेज देना मुश्किल होता है. मगर यहां बताए गए टिफिन आइडियाज से आप की मुश्किल कुछ कम हो सकती है.

प्रोटीन चीला

बेसन का चीला बनाने की जगह आप मल्टीग्रेन यानी मिलेजुले अनाज का आटा या साबूत मूंग या मिलीजुली दालों से चीला बनाएं. प्रोटीन चीला बनाने की विधि सामान्य बेसन चीला जैसी है. बस ट्विस्ट यह लाना है कि दालों को रात भर भिगो कर दरदरा पीस लें. चीले का घोल बनाने के लिए पानी की जगह वैजिटेबल स्टौक या पानी मिला पतला दही मिलाएं. अब इस में बारीक कटी सब्जियां, नमक व मसाले मिला कर स्वादिष्ठ चीला बनाएं. प्रोटीन चीला बच्चे के मनपसंद सौस के साथ टिफिन में भेजिए.

स्वीट व्हाइट अंजीर

आप के लाडले को मीठा पसंद है, तो उसे आर्टिफिशियल स्वीटनर से बनी चीजें न खिलाएं. भले ही ये चीजें मिठास का स्वाद देंगी, पर सेहत पर बुरा प्रभाव डालेंगी. स्वीट व्हाइट अंजीर बनाने के लिए कड़ाही में अंजीर, दूध व नारियल पाउडर डाल कर दूध के सूख जाने तक पकाएं. अब अंजीर को पीस कर पेस्ट बना लें. पैन में देशी घी डाल कर इस पेस्ट को भून लें. अब इस में तिल, शहद, इलायची पाउडर व बादाम डाल कर कुछ देर और भूनें. ठंडा होने पर इस की बौल्स बनाएं. प्रत्येक बौल्स पर काजू लगाएं. है न स्वीट व्हाइट अंजीर टिफिन में स्वीट डिश देने को स्वीट व हैल्दी विकल्प.

चीजी दलिया

शायद ही किसी बच्चे को दलिया पसंद हो. लेकिन आप साधारण दलिया में पनीर डाल कर इसे बच्चे की फैवरिट डिश में शुमार कर सकती हैं. सिर्फ पनीर ही नहीं साधारण दलिया को न्यूट्रिला, ब्रोकली, अंकुरित दालें, मूंग या मसूर दाल और चावल डाल कर भी यम्मी बना सकती हैं.

कलरफुल आटा

आप रोटी व परांठे के लिए आटा सिर्फ साधारण पानी से न गूंधें. इस के लिए दाल का पानी, दूध, वैजिटेबल स्टौक, सब्जियों के जूस या सब्जियों के पेस्ट का प्रयोग करें.

पनीरी उत्तपम

उत्तपम चावल के घोल से बनाया जाता है. इसे और टेस्टी व पोषक बनाने के लिए इस को प्रोटीन युक्त बनाएं. उत्तपम का घोल बनाने के लिए सूजी में दही मिला कर घोलें. इस में बारीक कटी मनचाही सब्जियां, कद्दूकस किया पनीर और स्वादानुसार सीजनिंग डालें.

जहां तक हो सके फ्रूट साल्ट डालने की जगह खट्टी दही का प्रयोग करें. नौनस्टिक पैन में गोलाई में मिश्रण फैलाएं. उत्तपम को दोनों तरफ से शैलो फ्राई करें. तैयार उत्तपम पर पनीर कद्दूकस करें और चाट मसाला बुरकें. टिफिन में उत्तपम के साथ हरी चटनी या टमाटर की चटनी देना न भूलें.

कौर्न कबाब

भुट्टे के गुणों से आप वाकिफ हैं. आप चाहती हैं कि आप के बच्चे को भुट्टे के पोषक तत्त्व मिलें, तो आप को उसे भुट्टा अलगअलग डिशेज में खिलाना होगा. भुट्टे का कबाब इस के  लिए बेहतर विकल्प है. इस के लिए उबले आलुओं में उबले व दरदरे पिसे कौर्न के दाने, कसा पनीर, बारीक कटी सब्जियां, मनचाही सीजनिंग डाल कर मिलाएं. अब इस मिश्रण के छोटेछोटे कबाब बना कर डीप फ्राई करें. तैयार कौर्न कबाब इमली की चटनी के साथ टिफिन में डालें. बच्चे को तेल कम देना है, तो मिश्रण के छोटेछोटे चपटे बौल्स बना कर नौनस्टिक पैन में शैलो फ्राई करें.

टैंगी उपमा

बच्चों को टमाटरों का खट्टामीठा टेस्ट बहुत लुभाता है. आप टमाटरों की पौष्टिकता बच्चों के टिफिन में परोस कर भेजिए. इस के लिए साधारण सूजी उपमा में थोड़ा सा बदलाव लाना है. सूजी उपमा बनाते समय इस में पानी के स्थान पर टमाटरों का रस या दाल का पानी या वैजिटेबल स्टौक का प्रयोग करें. स्वाद बढ़ाने के लिए नमकमसालों से सीजनिंग करें. उपमा क्रंची व टेस्टी बनाने के लिए उस में नट्स डालें. टैंगी उपमा को टोमैटो कैचअप के साथ टिफिन में दें.

पाखी के ड्रामे के बीच Anupama के मेकर्स ने की बढ़ी गलती, फैंस ने उड़ाया मजाक

सीरियल अनुपमा की कहानी में इन दिनों शादी सेलिब्रेशन के बीच पाखी का नया ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसके चलते फैंस काफी खुश नजर आ रहे हैं. दरअसल, हाल ही में पाखी की बढ़ती बद्तमीजी के कारण अनुपमा का पारा बढ़ गया है और उसने अधिक और पाखी को कपाड़िया हाउस से निकालने का फैसला कर लिया है. इसी बीच लेटेस्ट एपिसोड के एक सीन के कारण मेकर्स ट्रोलिंग का शिकार हो रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

4 लाख के हेर-फेर पर फैंस हुए हैरान

हाल ही में आपने देखा कि बरखा संगीत सेरेमनी में पाखी को लाखों के गहने खरीदने का लालच देती है, जिसके चलते पाखी 64 लाख की रसीद पर साइन कर देती है. वहीं अधिक इस बात को जानने के बाद पाखी और बरखा की जमकर क्लास लगाता है और बिल को फेंक देता है. दूसरी तरफ,  अनुपमा के हाथ वह फेंका हुआ बिल लग जाता है, जिसमें 64 की बजाय 60 लाख देखने को मिलता है. मेकर्स की इस गलती को देखने के बाद अब फैंस मेकर्स की इस गलती का मजाक उड़ा रहे हैं.

फैंस ने उड़ाया जमकर मजाक

अनुपमा मेकर्स की इस बड़ी गलती को देखने के बाद फैंस सोशलमीडिया पर ट्रोल करते दिख रहे हैं. दरअसल, ट्रोलर्स कमेंट करते हुए लिख रहे हैं कि अनुपमा के राइटर को अकाउंट्स की समझ ले लेनी चाहिए. वहीं फैंस का कहना है कि अनुपमा मेकर्स को पहली गलती के बाद सीरियल की स्टोरीलाइन पर ध्यान रखना चाहिए. इससे पहले भी मेकर्स को किंजल की प्रैग्नेंसी के चलते ट्रोल होना पड़ा था. दरअसल, किंजल की प्रेग्नेंसी के बीच मेकर्स ने 7 महीने का लीप लिया था. जबकि लीप से पहले ही किंजल कुछ महीने की प्रेग्नेंट थी. लेकिन लीप के बाद भी वह प्रैग्नेंट दिखाई गई थी, जिसके चलते मेकर्स को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था.

 

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बता दें, सीरियल में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा, पाखी और अधिक को कपाड़िया हाउस से बाहर का रास्ता दिखाने वाली है. दरअसल, पाखी पैसों के लालच में 60 लाख के गहने खरीद लेगी. वहीं अपनी गलती का एहसास करने की बजाय वह अनुपमा को अमीर परिवार की बहू बनने की बात बरखा की सहेलियों संग करती दिखेगी.

बीच राह में-भाग 3 : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.

‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.

‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझो सा गया. सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी.

पूरे 20 साल में इकट्ठी हुई

यादों को एक रात में जी

लेना संभव नहीं. वक्त अपनी

रफ्तार से चलता रहा और सुबह

हो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’

‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गला

रुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.

बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’

‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’

‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा. मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मु?ो बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं. मु?ो अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’

10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के

साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझो रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझो में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहने

का कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझो जरूर प्रतीत हो

रहा था.जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.

‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.

‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझो सा गया. सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी.

पूरे 20 साल में इकट्ठी हुई

यादों को एक रात में जी

लेना संभव नहीं. वक्त अपनी

रफ्तार से चलता रहा और सुबह

हो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’

‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गला

रुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.

बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’

‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’

‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा. मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मु?ो बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं. मुझे अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’

10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के

साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझो रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझो में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहने

का कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझो जरूर प्रतीत हो रहा था.

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