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GHKKPM: बेटी को वापस पाने के लिए सई के पास भागेगा विराट, टूट जाएगी पाखी!

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में जल्द ही विराट के सामने अपनी बेटी सवि की सच्चाई आने वाली है, जिसके चलते सीरियल में कई नए ट्विस्ट आएंगे. वहीं फैंस को सई और विराट की कैमेस्ट्री एक बार फिर देखने को मिलने वाली है. हालांकि पाखी का क्या होगा ये देखना काफी दिलचस्प होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आगे…

सई को विनायक के लिए बुलाएगी पाखी

 

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अब तक आपने देखा कि सई का साथ होने के कारण विनायक रेस की प्रैक्टिस में सफल होता है, जिसके चलते चौह्वाण परिवार रेस वाले दिन विनायक को चियर करने पहुंचता है. वहीं पाखी, सई और सवि को भी इनवाइट करती दिखती हैं. हालांकि ट्रैफिक जाम के कारण सई और सवि नही पहुंच पाते, जिसके कारण विनायक का हौसला टूट जाता है.

 

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हादसे का शिकार होगी सई

खबरों की मानें तो विनायक की रेस में पहुंचने के लिए सई और सवि सड़क पर दौड़ते दिखेंगे. वहीं बाइक से धक्का लगने के कारण वह हादसे का शिकार हो जाएगी. लेकिन विनायक के लिए वह जल्दी पहुंचने की कोशिश करती दिखेगी. इसी कारण वह रेस में पहुंचकर विनायक का हौसला बढाएगी.

 

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पाखी और सई में किसे चुनेगा विराट

 

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हाल ही में सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ का नया प्रोमो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें विराट के साथ लड़ाई में जगताप सवि के पिता होने की सच्चाई बताता दिख रहा है. वहीं पिता होने का सच जानने के बाद विराट, सई को शहर छोड़ने की कोशिश करता नजर आ रहा है. इसके अलावा खबरों की मानें तो शुरुआत में सई के सच छिपाने के लिए विराट नाराज होगा. लेकिन वह बेटी सवि के लिए उसे चौह्वाण हाउस लाने का फैसला करेगा. हालांकि देखना होगा कि सौतन के घर पर आने के बाद पाखी का व्यवहार कैसा होने वाला है.

Bigg Boss 16 Promo: अंकित-प्रियंका की बढी लड़ाई, एक दूसरे को कहा ‘घटिया’!

कलर्स के रिएलिटी शो ‘बिग बॉस 16’ (Bigg Boss 16) में काफी बवाल देखने को मिल रहा है. दरअसल, शो में शालीन भनोट और प्रियंका चहर चौधरी के बीच हुई लड़ाई का असर अपकमिंग एपिसोड में अंकित और प्रियंका यानी #Priyankit के रिश्ते पर पड़ता हुआ दिखने वाला है, जिसका प्रोमो हाल ही में रिलीज किया गया है. आइए आपको दिखाते हैं शो के नए प्रोमो की झलक (Bigg Boss 16 Promo)….

शालीन और टीना का बढा प्यार

 

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हाल ही में शो के अपकमिंग एपिसोड का प्रोमो रिलीज किया गया है. प्रोमो में जहां शालीन भानोट और टीना दत्ता का प्यार परवान चढ़ता दिख रहा है. तो वहीं शालीन भानोट की लड़ाई के कारण अंकित गुप्ता और प्रियंका चाहर चौधरी के बीच दूरियां आती दिख रही हैं. दरअसल, प्रोमो में शालीन और टीना एक-दूसरे की बांहों में बाहें डालकर डांस करते दिखाई दे रहे हैं. इसी बीच टीना, शालीन को Kiss भी करती दिख रही हैं.

 

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एक-दूसरे से खफा हुए अंकित-प्रियंका

बिग बॉस 16 के घर में प्यार के इस मौसम के बीच दूसरे प्रोमो में शालीन से हुई लड़ाई के कारण प्रियंका चाहर चौधरी (Priyanka Chaudhary) , अंकित गुप्ता (Ankit Gupta) से नाराज दिख रही हैं. वहीं दोनों की लड़ाई इतनी बढ़ गई कि अंकित गुप्ता कहते हुए दिख रहे हैं कि ‘मैं कैमरे के सामने करूं पुरानी बातें…!’ . इस बात को सुनकर प्रियंका गुस्से में अंकित को घटिया कहती दिख रही हैं तो वहीं अंकित भी उन्हें घटिया का टैग देते हुए नजर आ रहे हैं.

 

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ये सदस्य हुए नॉमिनेट

 

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बीते एपिसोड में हुए नॉमिनेशन टास्क की बात करें तो घरवाले एक-दूसरे को आमने सामने नॉमिनेट करते हुए नजर आए. वहीं अंत में सौंदर्या शर्मा, अर्चना गौतम और सुम्बुल तौकीर खान नॉमिनेट हुए हैं. हालांकि इन सब में प्रियंका-अर्चना और शिव ठाकरे और एमसी स्टैन के रिश्ते में दूरी देखने को मिल रही है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में देखना होगा कि अंकित गुप्ता और प्रियंका चौधरी का मजबूत रिश्ता टिका रहता है या टूट जाता है.

बस अब और नहीं- भाग 1: अनिरुद्ध के व्यवहार में बदलाव की क्या थी वजह

उस दिन जब अविनाश अपने दफ्तर से लौटा तो बहुत खुश दिख रहा था. उसे इतना खुश देख कर अनिता को कुछ आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह दफ्तर से लौटे अविनाश को थकाहारा, परेशान और दुखी देखने की आदी हो चुकी थी. अविनाश का इस कदर परेशान होना बिना वजह भी नहीं था. सब से बड़ी वजह तो यही थी कि पिछले 10 सालों से वह इस कंपनी में काम कर रहा था, पर उसे आज तक एक भी प्रमोशन न मिला था. वह कंपनी के मैनेजर को अपने काम से खुश करने की पूरी कोशिश करता, पर उसे आज तक असफलता ही मिली थी.

प्रमोशन न होने के कारण उसे वेतन इतना कम मिलता था कि मुश्किल से घर का खर्च चल पाता था. उस की कंपनी बहुत मशहूर थी और वह अपना काम अच्छी तरह से समझ गया था, इसलिए वह कंपनी छोड़ना भी नहीं चाहता था.

अनिता अविनाश के दुखी और परेशान रहने की वजह जानती थी, पर वह कर ही क्या सकती थी.

उस दिन अविनाश को खुश देख कर उस से रहा नहीं गया. वह चाय का कप अविनाश को पकड़ा कर अपना कप ले कर बगल में बैठ गई और उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, आज बहुत खुश लग रहे हो ’’

‘‘बात ही खुश होने की है. तुम सुनोगी तो तुम भी खुश होगी.’’

‘‘अरे, ऐसी क्या बात हो गई है  जल्दी बताओ.’’

‘‘कंपनी का मैनेजर बदल गया. आज नए मैनेजर ने कंपनी का काम संभाल लिया. बड़ा भला आदमी है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. मेरी ही उम्र का है. पर इतनी छोटी उम्र में मैनेजर बन जाने के बाद भी घमंड उसे छू तक नहीं गया है. आज उस ने सभी कर्मचारियों की एक मीटिंग ली. उस में सभी विभागों के हैड भी थे. उस ने कहा कि यह कंपनी हम सभी लोगों की है. इसे आगे बढ़ाने में हम सभी का योगदान है. हम सब एक परिवार के सदस्यों की तरह हैं. हमें एकदूसरे की मदद करनी चाहिए. कंपनी के किसी भी सदस्य को कोई परेशानी हो तो वह मेरे पास आए. मैं वादा करता हूं सभी की बातें सुनी जाएंगी और जो सही होगा वह किया जाएगा.

‘‘आखिर में उस ने कहा कि इस इतवार को मेरे घर पर कंपनी के सभी कर्मचारियों की पार्टी है. आप सभी अपनी पत्नियों के साथ आएं ताकि हम सब लोग एकदूसरे को अच्छी तरह से जान और समझ सकें. लगता है अब मेरे दिन भी बदलेंगे. तुम चलोगी न ’’

‘‘तुम ले चलोगे तो क्यों नहीं चलूंगी ’’ कह कर मुसकराते हुए अनिता वापस रसोई में चली गई.

कंपनी के कर्मचारियों की संख्या 100 से अधिक थी, जिन के रात के खाने का प्रबंध था. मैनेजर ने अपने घर के सामने एक बड़ा सा शामियाना लगवाया था. मैनेजर अपनी पत्नी के साथ शामियाने के दरवाजे पर ही उपस्थित था और आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहा था. मेहमान एकएक कर के आ रहे थे और मैनेजर से अपना परिचय नाम और काम के जिक्र के साथ दे रहे थे.

अविनाश ने भी मैनेजर से हाथ मिलाया और अनिता ने उन की पत्नी को नमस्कार किया. अचानक मैनेजर की निगाह अनिता पर पड़ी तो उस के मुंह से निकला, ‘‘अरे, अनिता तुम  तुम यहां कैसे ’’

अनिता भी चौंक उठी. उस के मुंह से बोल तक न फूटे.

‘‘पहचाना नहीं  मैं अनिरुद्ध…’’

‘‘पहचान गई, तुम काफी बदल गए हो.’’

‘‘हर आदमी बदल जाता है, पर तुम नहीं बदलीं. आज भी वैसी ही दिख रही हो,’’ कहते हुए अनिरुद्ध ने अपनी पत्नी की तरफ संकेत किया, ‘‘अनिता, यह है अंजलि मेरी पत्नी और तुम्हारे पति कहां हैं ’’

अनिता ने अविनाश को आगे कर के इशारा किया और अंजलि को अभिवादन कर उस से बातें करने लगी.

अब तक सिमटा हुआ अविनाश सामने आ कर बोला, ‘‘सर, मैं हूं अविनाश. आप की कंपनी के ऐड विभाग में सहायक.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है,’’ कहते हुए अनिरुद्ध ने अंजलि से कहा, ‘‘अंजलि, यह है अनिता. बचपन में हम दोनों एक ही सरकारी कालोनी में रहते थे और एक ही स्कूल में एक ही क्लास में पढ़ते थे. इन के पिताजी पापा के बौस थे.’’

‘‘पर आज उलटा है. आप अविनाश के बौस के भी बौस हैं,’’ कह कर अनिता हंस पड़ी.

‘‘नहीं, हम लोग आज से बौस और मातहत के बजाय एक दोस्त के रूप में काम करेंगे. क्यों अविनाश, ठीक है न  खैर, और बातें किसी और दिन करेंगे, आज तो बड़ी भीड़भाड़ है,’’ कहते हुए अनिरुद्ध अन्य मेहमानों की तरफ मुखातिब हुआ, क्योंकि अब तक कई मेहमान आ कर खड़े हो चुके थे.

पार्टी समाप्त होने पर अन्य लोगों की तरह अविनाश और अनिता भी वापस अपने घर लौट आए. अविनाश बहुत खुश था. उस से अपनी खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. सोते समय अविनाश ने अनिता से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि मैनेजर साहब तुम्हारी कालोनी में रहते थे और तुम्हारी क्लास में पढ़ते थे ’’

‘‘इस में झूठ की क्या बात है  जब पिताजी की नियुक्ति जौनपुर में थी तो हमारी कोठी की बगल में ही अनिरुद्ध का क्वार्टर था और अनिरुद्ध मेरी ही क्लास में पढ़ता था. अनिरुद्ध पढ़ने में तेज था, इसलिए वह आज तुम्हारी कंपनी में मैनेजर बन गया और मैं पढ़ने में कमजोर थी, इसलिए तुम्हारी बीवी बन कर रह गई,’’ कह कर अनिता मुसकरा तो पड़ी पर यह मुसकराहट जीवन की दौड़ में पिछड़ जाने की कसक को भुलाने के लिए थी.

अविनाश तो किसी और दुनिया में मशगूल था. उसे इस बात की बड़ी खुशी थी कि मैनेजर साहब उस की पत्नी के पुराने परिचितों में से हैं.

‘‘मैनेजर साहब इतना तो सोचेंगे ही कि मेरा प्रमोशन हो जाए.’’

‘‘पता नहीं, लोग बड़े आदमी बन कर अपना अतीत भूल जाते हैं.’’

‘‘नहीं अनिता, मैनेजर साहब ऐसे आदमी नहीं लगते. देखा नहीं, कितनी आत्मीयता से हम लोगों से वे मिले और यह बताने में भी नहीं चूके कि तुम्हारे पिता उन के पिता के बौस थे.’’

‘‘मुझे नींद आ रही है. वैसे भी कल सुबह उठ कर प्रमोद को तैयार कर के स्कूल भेजना है,’’ कह कर अनिता ने नींद का बहाना बना कर करवट बदल ली. थोड़ी ही देर में अविनाश भी खर्राटे भरने लगा.

नींद अनिता की आंखों से कोसों दूर थी. उस ने कुशल स्त्री की भांति अविनाश को सिर्फ इतना ही बताया था कि वह अनिरुद्ध से परिचित है. वह बड़ी कुशलता से यह छिपा गई कि दोनों एकसाथ पढ़तेपढ़ते एकदूसरे को चाहने लगे थे. 12वीं कक्षा में तो दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया था. पर दोनों जानते थे कि उन दोनों की आर्थिक स्थिति में बहुत अंतर है और दोनों की जाति भी अलग है, इसलिए घर वाले दोनों को विवाह करने की अनुमति कभी नहीं देंगे. दोनों ने यह तय किया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दोनों नौकरी तलाशेंगे और उस के बाद अपनी मरजी से विवाह कर लेंगे.

बस अब और नहीं- भाग 2: अनिरुद्ध के व्यवहार में बदलाव की क्या थी वजह

पर आदमी का सोचा हुआ सब कुछ होता कहां है. 12वीं कक्षा का परीक्षाफल भी नहीं निकला था कि अनिता के पिता का स्थानांतरण वाराणसी हो गया और अनिता और अनिरुद्ध द्वारा बनाया गया सपनों का महल ढह कर चूर हो गया. तब न तो टैलीफोन की इतनी सुविधा थी और न ही आनेजाने के इतने साधन. इसलिए समय बीतने के साथसाथ दोनों को एकदूसरे को भुला भी देना पड़ा.

कहते हैं कि स्त्री अपने पहले प्यार को कभी भुला नहीं पाती. आज इतने दिन बाद अनिरुद्ध को अपने सामने पा कर अनिता के प्यार की आग फिर से भड़क गई. अविनाश जितनी बार अनिरुद्ध को सर कहता अनिता शर्म से मानो गड़ जाती. आज वह अनिरुद्ध के सामने खुद को छोटा महसूस कर रही थी. उस के मन के किसी कोने में यह भी खयाल आया कि अगर उस का पहला प्यार सफल हो गया होता, तो आज वही कंपनी के मैनेजर की पत्नी होती. सभी उस का सम्मान करते और उसे छोटीछोटी चीजों के लिए तरसना न पड़ता. यही सब सोचतेसोचते अनिता की आंख लग गई.

अविनाश का सारा काम विज्ञापन विभाग तक ही सीमित था. विज्ञापन विभाग का प्रमुख उस के सारे काम देखता था. अविनाश को यह उम्मीद थी कि अनिरुद्ध अगले ही दिन उसे बुलाएगा और मौका देख कर वह उस के प्रमोशन की बात कहेगा. अनिता से अपने पुराने परिचय का इतना खयाल तो वह करेगा ही. पर धीरेधीरे 1 सप्ताह बीत गया और अनिरुद्ध का बुलावा नहीं आया तो अविनाश निराश हो गया.

लेकिन एक दिन जब अविनाश को अनिरुद्ध का बुलावा मिला तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. वह तत्काल इजाजत ले कर अनिरुद्ध के कमरे में पहुंच गया. अनिरुद्ध ने उसे बैठने के लिए इशारा किया और बोला, ‘‘उस दिन काफी भीड़ थी, इसलिए कायदे से बात न हो पाई. ऐसा करो, कल छुट्टी है अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आओ, आराम से बातें करेंगे. एक बात और दफ्तर में किसी को भी पता न चले कि हम लोग परिचित हैं. यह जान कर लोग तुम से अपने कामों की सिफारिश के लिए कहेंगे और मुझे दफ्तर चलाने में दिक्कत आएगी. समझ रहे हो न ’’

‘‘जी सर,’’ अविनाश अभी इतना ही कह पाया था कि चपरासी कुछ फाइलें ले कर अनिरुद्ध के कमरे में आ गया. अविनाश वापस अपनी सीट पर लौट आया पर आज वह बहुत खुश था.

घर लौट कर अविनाश अनिता से बोला, ‘‘आज मैनेजर साहब ने मुझे अपने कमरे में बुलाया था. कह रहे थे कि भीड़ के कारण कायदे से बातें नहीं हो पाईं, कल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आओ, इतमीनान से बातें करेंगे.’’

अनिरुद्ध से मुलाकात होने के बारे में सोच अनिता खुश तो बहुत हुई पर अपनी खुशी छिपा कर उस ने पूछा, ‘‘अरे, अपनी प्रमोशन की बात की कि नहीं ’’

‘‘कहां की. एक तो फुरसत नहीं मिली फिर कोई आ गया. खुद की प्रमोशन की बात मैं कैसे कह दूं, यह मेरी समझ में नहीं आता. ऐसा है, कल चलेंगे न तो मौका देख कर तुम्हीं कहना. तुम्हारी बात शायद मना न कर पाएं. मैं मौका देख कर थोड़ी देर के लिए कहीं इधरउधर चला जाऊंगा.’’

‘‘मुझ से नहीं हो पाएगा,’’ अनिता ने बहाना बनाया.

‘‘अरे, तुम मेरी पत्नी हो. मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकतीं. सोचो, प्रमोशन मिलते ही वेतन बढ़ जाएगा और अन्य सुविधाएं भी मिलेंगी. हमारी जिंदगी आरामदेह हो जाएगी. अभी तुम जिन छोटीछोटी चीजों के लिए तरस जाती हो, वे सब एक झटके में आ जाएंगी. मौके का फायदा उठाना चाहिए. ऐसे मौके बारबार नहीं आते. तुम एक बार कह कर तो देखो, मेरी खातिर.’’

‘‘ठीक है, मौका देख कर जरूर कहूंगी,’’ अनिता समझ गई कि अविनाश प्रमोशन के लिए कुछ भी कर सकता है. यह कायदे से मुझ से बात नहीं करता, लेकिन प्रमोशन के लिए मुझ से इतनी गुजारिश कर रहा है.

 

अगले दिन अविनाश, अनिता अपने 16 वर्षीय बेटे प्रमोद के साथ अनिरुद्ध के घर पहुंचे. अनिरुद्ध का कोठीनुमा घर देख कर अनिता की आंखें चुंधिया गईं. हर कमरे की साजसज्जा देख कर वह आह भर कर रह जाती कि काश मेरा घर भी ऐसा होता… अंजलि ने घर पर सहेलियों की किट्टी पार्टी आयोजित कर रखी थी, इसलिए अनिरुद्ध अपने कमरे में अलगथलग बैठा हुआ था. अंजलि ने अविनाश और अनिता का स्वागत तो किया पर यह कह कर किट्टी पार्टी चल रही है, उन्हें अनिरुद्ध के कमरे में ले जा कर बैठा दिया. हां, जातेजाते उस ने यह जरूर कहा कि जाइएगा नहीं, पार्टी खत्म होते ही मैं आऊंगी.

अविनाश के साथ ही प्रमोद ने भी अनिरुद्ध को नमस्कार किया और अविनाश ने बताया कि यह मेरा बेटा प्रमोद है. बस, यही एक लड़का है.

अनिरुद्ध ने वहीं बैठेबैठे आवाज लगाई, ‘‘पिंकी… पिंकी.’’

थोड़ी ही देर में प्रमोद की समवयस्क एक किशोरी प्रकट हुई और अनिरुद्ध ने उस का परिचय कराते हुए बताया कि यह उन की बेटी है.

फिर कहा, ‘‘पिंकी बेटे, प्रमोद को ले जा कर अपना कमरा दिखाओ, खेलो और कुछ खिलाओपिलाओ,’’ अनिरुद्ध का इतना कहना था कि पिंकी प्रमोद का हाथ पकड़ उसे अपने साथ ले गई. उस का कमरा सब से पीछे था एकदम अलगथलग.

इधर अनिरुद्ध के कमरे में थोड़ी ही देर में नौकर चायनाश्ता ले आया. इधरउधर की औपचारिक बातों के बीच चायनाश्ता शुरू हुआ. अनिता अधिकतर चुप ही रही. वह अविनाश को यह भनक नहीं लगने देना चाहती थी कि उस की कभी अनिरुद्ध के साथ घनिष्ठता थी. वह चुपचाप अनिरुद्ध को देख रही थी कि कितना बदल गया है वह.

इसी बीच अविनाश के मोबाइल की घंटी बजी. वह तो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में था. उस ने अनिरुद्ध से कहा, ‘‘सर, बुरा मत मानिएगा. मैं अभी थोड़ी देर में आ रहा हूं, एक जरूरी काम है.’’

अनिरुद्ध के ‘ठीक है’ कहते ही अविनाश तेजी से बाहर निकल गया. एक पल के लिए अनिता का मन यह सोच कर कसैला हो गया कि आदमी अपने स्वार्थ के आगे इतना अंधा हो जाता है कि अपनी बीवी को दूसरे के पास अकेले में छोड़ जाता है. पर अगले ही पल वह अपने पुराने प्यार में खो गई.

अब कमरे में केवल अनिरुद्ध और अनिता रह गए. थोड़ी देर के लिए तो वहां एकदम शांति व्याप्त हो गई. दोनों में से किसी को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या कहे. वक्त जैसे थम गया था.

बात अनिरुद्ध ने ही शुरू की, ‘‘मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि हम फिर मिलेंगे.’’

‘‘मैं ने भी.’’

अनिरुद्ध खड़ा हो गया था, ‘‘तुम नहीं जानतीं कि मैं ने तुम्हारी याद में कितनी रातें रोरो कर बिताईं. पर क्या करता मजबूर था. पढ़ाई पूरी करने और नौकरी करने के बाद मैं तुम्हारी खोज में एक बार वाराणसी भी गया था. वहां पता लगा तुम्हारी शादी हो गई है. इस के बाद ही मैं ने अपनी शादी के लिए हां की,’’ अनिरुद्ध भावुक हो गया था.

अनिता की आंखों से आंसू झरने लगे थे. उस ने बिना एक शब्द कहे अपने आंसुओं के सहारे कह दिया था कि वह भी उस के लिए कम नहीं रोई है.

अनिरुद्ध ने देखा कि अनिता रो रही है, तो उस ने अपने हाथों से उस के आंसू पोंछ कर उसे सांत्वना दी, ‘‘जो कुछ हुआ उस में तुम्हारा क्या कुसूर है  मैं जानता हूं कि तुम मुझे आज भी इस दुनिया में सब से ज्यादा प्यार करती हो,’’ कहते हुए अनिरुद्ध ने अनिता को गले लगा कर उस के अधरों का एक चुंबन ले लिया.

बस अब और नहीं- भाग 3: अनिरुद्ध के व्यवहार में बदलाव की क्या थी वजह

अनिता चुंबन से रोमांचित हो गई. उस ने प्रतिरोध करने के बजाय बस इतना ही कहा, ‘‘कोई आ गया तो…’’

अनिरुद्ध समझ गया कि अनिता को भी पुराने प्रेम प्रसंग को चलाए रखने में कोई आपत्ति नहीं है. बस, सब कुछ छिपा कर सावधानीपूर्वक करना पड़ेगा.

‘‘सौरी यार, इतने दिनों बाद तुम्हें अकेले पा कर मैं अपनेआप को रोक नहीं पा रहा हूं.’’

‘‘धीरज रखो, सब हो जाएगा,’’ कह कर अनिता ने अपनी मादक मुसकान बिखेरते हुए हामी भर दी. बदले में अनिरुद्ध भी मुसकरा पड़ा.

अनिता को लग रहा था कि आज उस का पुराना प्रेम उसे वापस मिल गया. पर इस प्रेम प्रसंग को चलाए रखने के लिए यह जरूरी था कि अविनाश की प्रमोशन हो जाए. इसी प्रमोशन के लिए तो अविनाश उसे आज अनिरुद्ध के यहां लाया और उन्हें एकांत में छोड़ कर चला गया. अनिता ने बिना किसी भूमिका के अनिरुद्ध को सब कुछ बता दिया.

‘‘यह प्रमोशन क्या चीज है, तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं,’’ कहते हुए अनिरुद्ध ने एक बार फिर से अनिता का दीर्घ चुंबन ले डाला.

अनिता ने कोई प्रतिरोध नहीं किया और बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली, ‘‘मैं ने कहा न सब कुछ हो जाएगा. मैं तो शुरू से ही तुम्हारी हूं, थोड़ा धीरज रखो,’’ और अपने पर्स से रूमाल निकाल कर अनिरुद्ध के मुंह पर लगी लिपस्टिक पोंछने लगी. फिर यह कहते हुए अंजलि के कमरे की तरफ मुड़ गई, ‘‘यहां बैठना ठीक नहीं. पता नहीं तुम क्या कर बैठो.’’

अविनाश काफी देर बाद लौटा. आते ही वह फिर आने का वादा कर के अनिता और बेटे के साथ वहां से चल पड़ा. उस से रहा नहीं जा रहा था. वह रास्ते में ही अनिता से पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ, प्रमोशन के लिए कहा कि नहीं ’’

‘‘कहा तो है. कह रहा था कि देखूंगा,’’ अनिता ने पर्याप्त सतर्कता बरतते हुए बताया.

‘‘प्रमोशन हो जाए तो मजा आ जाए,’’ अविनाश अपने सपने में खोया हुआ बोला.

2-3 दिन बाद ही अविनाश को प्रमोशन का और्डर मिल गया, उस की खुशी की कोई सीमा न रही. दफ्तर से लौटते ही उस ने मारे खुशी के अनिता को गोद में उठा लिया और लगा चूमने.

‘‘अरे, क्या हो गया  आज तो बहुत खुश लग रहे हो ’’

‘‘खुशी की बात ही है. जानती हो, आज मेरी प्रमोशन हो गई. पिछले कई सालों से इंतजार कर रहा था मैं. सचमुच, नए मैनेजर साहब बड़े अच्छे आदमी हैं. तुम सोच रही थीं कि पता नहीं सुनेंगे भी कि नहीं, लेकिन उन्होंने मेरी प्रमोशन कर दी. सुनो, छुट्टी के दिन उन के घर चलेंगे, उन्हें धन्यवाद देने,’’ अविनाश खुशी में कहे जा रहा था.

अविनाश को खुश देख कर अनिता की आंखों में भी आंसू छलक आए.

छुट्टी के दिन वे अनिरुद्ध के यहां गए. इस के बाद तो आनेजाने का सिलसिला चल निकला. अनिरुद्ध अविनाश को आर्थिक फायदा दिलाने की गरज से कंपनी के काम से बाहर भी भेजने लगा. अब तो अविनाश हर शाम दफ्तर से आते वक्त अनिरुद्ध के घर हो कर ही आता था. अंजलि को भी मानो मुफ्त का एक नौकर मिल गया था. वह कभी अविनाश को सब्जी लेने भेज देती तो कभी दूध लेने. अविनाश बिजली, पानी, मोबाइल के बिल, पिंकी की फीस आदि भरने का काम भी खुशी से करता.

अनिरुद्ध अगर कंपनी के काम से कहीं बाहर जाता तो वह अविनाश को कह जाता कि मेरे घर का कोई काम हो तो देख लेना. प्रमोद भी पिंकी से घुलमिल गया था, इसलिए वह भी अकसर पिंकी के घर चला जाता और दोनों पिंकी के कमरे में घंटों बातें करते, खेलते.

उधर अनिरुद्ध और अनिता के दिल में प्रेम की पुरानी आग भड़क गई थी. वे अपनी सारी हसरतें पूरी कर लेना चाहते थे, इसलिए वे दोनों अपने में मगन थे. जब भी मौका मिलता अनिता अनिरुद्ध को फोन कर के घर आने के लिए कह देती और दोनों एकदूसरे में खो जाते. कहीं कुछ और भी हो रहा है, यह जानने और समझने की उन्हें मानो फुरसत ही न थी.

उस दिन अनिरुद्ध काम से थक कर रात में लगभग 8 बजे अपने कमरे से बाहर थोड़ी देर के लिए निकला, तो उस ने देखा कि पिंकी के कमरे की लाइट जल रही थी. पिछले कई दिनों की व्यस्तता की वजह से वह अपनी बेटी पिंकी से कायदे से बात तक नहीं कर पाया था. उस के दिल में आया कि पिंकी के कमरे में ही चल कर बातें करते हैं. अभी पिंकी के कमरे से वह कुछ दूरी पर ही था कि उसे कुछ आवाजें सुनाई पड़ीं. उस ने सोचा कि शायद पिंकी की कोई सहेली आई है और वह उस से बातें कर रही है. यों जाना ठीक नहीं , खिड़की से झांक लेता हूं कि कौन है.

उस ने खिड़की से झांक कर देखा तो मानो उसे चक्कर सा आ गया. उस ने देखा कि पिंकी और प्रमोद अर्धनग्न अवस्था में एकदूसरे से लिपटे हुए हैं. प्रमोद पिंकी से कह रहा था, ‘‘तुम्हारे पापा मेरी मम्मी से रोमांस करते हैं. एक दिन मैं ने देखा कि दोनों बैडरूम में एकदूसरे से लिपटे पड़े हैं.’’

‘‘तेरे पापा का भी मेरी मम्मी से ऐसा ही रिश्ता है. एक दिन मैं ने भी उन्हें सामने वाले कमरे में एकदूसरे से लिपटे देखा,’’ पिंकी बोली.

‘‘क्या मजेदार बात है. तेरे पापा मेरी मम्मी से और मेरी मम्मी तेरे पापा से रोमांस कर रही हैं और हम दोनों एकदूसरे से,’’ कह कर प्रमोद हंस पड़ा.

‘‘लेकिन यार, वे लोग तो शादीशुदा हैं. कुछ गड़बड़ हो गई तो भी किसी को पता नहीं चलेगा. पर हम लोगों के बीच कुछ हो गया तो मैं मुसीबत में पड़ जाऊंगी.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं कंडोम लाया हूं न.’’

‘‘तुम हो बड़े समझदार,’’ कह पिंकी ने खिलखिलाते हुए प्रमोद को भींच लिया.

आगे कुछ सुन पाना अनिरुद्ध के बस में न था. वह किसी तरह हिम्मत बटोर कर अपने कमरे तक आया और बिस्तर पर निढाल पड़ गया. आज वह खुद की निगाहों में ही गिर गया था. वह किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकता था. बेटी तक से नहीं. अगर कुछ कहा और पिंकी ने भी पलट कर जवाब दे दिया तो  वह खुद को ही दोषी मान रहा था कि अपने क्षणिक सुख के लिए उस ने जो कुछ किया, अब उसी राह पर बच्चे भी चल पड़े हैं. उस की हरकतों के कारण बच्चों का भविष्य दांव पर लग गया. कितना अंधा हो गया था वह. अंजलि को भी क्या कहे वह. इस सब के लिए वह खुद जिम्मेदार है. शुरुआत तो उस ने ही की.

रात को अनिरुद्ध ने खाना भी नहीं खाया. रात भर वह दुख और पश्चात्ताप की आग में जलता रहा और रो कर खुद को हलका करता रहा. सुबह होने से पहले ही उस ने सोचा कि जो हो गया, रोने से कोई फायदा नहीं. फिर अब क्या किया जाए, इस पर वह सोचताविचारता रहा.

थोड़ी देर में ही वह निर्णय पर पहुंच गया और सुबह होते ही उस ने कंपनी के जीएम से फोन पर अपना स्थानांतरण करने का निवेदन किया. जीएम उस के काम से सदैव खुश रहते थे, इसलिए उन्होंने उस के निवेदन को स्वीकार करने में तनिक भी देर न लगाई. उस का स्थानांतरण उसी पल कोलकाता कर दिया.

4 दिन बाद अनिरुद्ध परिवार सहित कोलकाता की ट्रेन पर सवार हो गया. किसी को भी न पता चला कि क्या हुआ. अनिरुद्ध ने सारा राज अपने सीने में दफन कर लिया.

बिदाई- भाग 2: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘बेटा, इन अखबारों में तेरे और उस ऐक्टर के बारे में न जाने क्याक्या ऊटपटांग छपता रहता है,’’ इस बार मां ने बात छेड़ी थी, ‘‘अभी तेरी उम्र ही क्या है… और इन बदतमीजों को देखो कुछ भी छापते रहते हैं.’’

रूहानी चुप रही थी. भले ही उस की उम्र अभी केवल 19 वर्ष थी, किंतु सफलता और शोहरत का फल वह चखने लगी थी. फिर ऐसे में परिपक्वता जल्दी आ जाना क्या बड़ी बात है? सहकलाकार विनोद उसे बहुत पसंद था. हो सकता है उस की आंखों के भाव किसी पत्रकार ने पकड़ लिए हों. उड़ती चिडि़या के पंख गिनना कला जो होती है इन की. इन्हीं रिपोर्टों के चलते विनोद को रूहानी के मन की बात ज्ञात हो गई थी.

एक दिन मौका देख उस ने रूहानी को कौफी डेट पर बुलाया. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आया. फिर तो अकसर वे शूटिंग के बाद मिलने लगे. कभी कौफी तो कभी डिनर, कभी पब तो कभी डिस्को. 35 की उम्र पार कर चुके विनोद के साथ एक कमसिन सुंदरी लग गई थी.

एक रात पांचसितारा होटल के डिस्को की भीड़ में नाचतेनाचते विनोद ने अचानक रूहानी के अधरों पर अपने होंठ अंकित कर दिए. इस अप्रत्याशित घटना से रूहानी कुछ कांप उठी. लेकिन विनोद ने उस की कमर पर अपनी बांहों के घेरे को और कस दिया. फिर लगातार एक…दो…तीन… चुंबनों के बाद रूहानी भी उसी लौ में बह गई. उसी होटल में पहले से बुक कमरे में विनोद ने रूहानी को अपना बना लिया.

फिर रूहानी को विनोद का भरी भीड़ में हाथ पकड़ने या हंस कर उस के कंधे पर झूल जाने में कोई आपत्ति न रहने लगी. धीरेधीरे मीडिया में इन दोनों के प्रसंग इन की तसवीरों के साथ उछलने लगे. एजेंट के ऐतराज करने पर भी रूहानी ने एक न सुनी. लेकिन मीडिया के पूछने पर दोनों यही कहते कि वे सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. दोनों की नजदीकियों के किस्से लोग मजे लेले कर पढ़़तेसुनते. यूनिट के अन्य कलाकार भी उन की वैनिटी वैन के अंदर खिल रही उन की दास्तां ए मुहब्बत की कहानियां सुनाते.

इस विषय में मां का फोन आने पर रूहानी उन्हें भी झिड़क देती, ‘‘क्या मां, तुम भी इन प्रैस वालों की बातों में आ जाती हो. अच्छा अब रखती हूं… मेरी शूटिंग चल रही है.’’

‘‘सोनी चैनल पर चल रहे ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक की लीड अभिनेत्री मां बनने वाली है. अब ज्यादा दिन तक यह रोल नहीं निभा पाएगी. तुम कहो तो उस के डाइरैक्टर से इस विषय में तुम्हारी बात चलाऊं?’’ रूहानी के एजेंट ने उसे अंदर की खबर दी, तो रूहानी ने हामी भर दी. अपने कैरियर में आगे बढ़ने से वह खुश थी.

‘‘आज का अखबार पढ़ा तुम ने, रूहानी?’’ अचानक अपनी सहअभिनेत्री मिथिला का फोन आने पर रूहानी को आश्चर्य हुआ. आखिर मिथिला की उस से सिर्फ नाम की बनती थी, मीडिया के सामने या पार्टियों में एकदूसरे के गाल पर चुंबन अंकित करने के सिवा शायद ही इन में कोई बातचीत होती हो.

‘‘अभी नहीं, टाइम नहीं मिला. वह दरअसल मुझे सोनी चैनल पर चल रहे ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक की लीड अभिनेत्री का रोल औफर हुआ है न. उसी की तैयारी में व्यस्त थी. क्यों ऐसा क्या आया है अखबार में?’’

‘‘वह रोल तुम्हें औफर हुआ है?’’ मिथिला की हंसी की आवाज से रूहानी और भी हैरान हुई. यहां इस इंडस्ट्री में तो रोल छीनने की होड़ लगी रहती है. इस खबर से मिथिला को रोना चाहिए था, लेकिन मुझे लीड ऐक्ट्रैस का रोल मिलने पर वह हंस रही है…

‘‘शायद ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक में ‘तुम्हारे’ का किरदार विनोद की प्रेमिका के नाम ही आना लिखा है. वह दरअसल इस धारावाहिक की असली अभिनेत्री विनोद के बच्चे की मां बनने वाली है और दोनों शादी कर रहे हैं. मैं ने सोचा विनोद तुम्हारा इतना अच्छा दोस्त है, तो तुम्हें तो यह खुशखबरी पता ही होगी,’’ मिथिला ने आग में घी डाला.

रूहानी का मन धुड़क उठा कि उस के साथ इतना बड़ा धोखा, विश्वासघात. उस ने तेजी से फोन जमीन पर पटक मारा. उस का मन शोक, घृणा, संताप से भर उठा. वह वहीं जमीन पर पसर गई. न जाने कितने घंटे वहीं पड़ी रही.

देर शाम उस का एजेंट उस के घर के अंदर प्रविष्ट होते हुए बड़बड़ाया, ‘‘कहां हो यार रूहानी, कब से तुम्हारा फोन ट्राई कर रहा हूं,’’ फिर उस की दशा देख वह समझ गया कि खबर रूहानी तक पहुंच चुकी है. उसी ने रूहानी को वहां से उठाया, पानी पिलाया और फिर बिस्तर पर लिटाया.

अगली सुबह भी एजेंट वहीं था. गुड मौर्निंग कहते हुए उस ने रूहानी को चाय का कप थमाया, ‘‘क्या हुआ डार्लिंग… ऐसा तो होता रहता है. यू डोंट नीड टु गैट सो अप्सैट.’’

‘‘रियली? तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे अप्सैट नहीं होना चाहिए? उस कुत्ते ने मेरे साथ…’’ रूहानी फुंफकार रही थी.

‘‘देखो रूहानी, बीत गई सो बात गई. यहां काम करना है, तो चमड़ी मोटी करनी पड़ेगी. टीवी की दुनिया लाजवाब है. रातोंरात प्रसिद्धि, रातोंरात कामयाबी… कल तक तुम एक छोटे शहर की अनजान जिंदगी जीने वाली लड़की थीं, लेकिन आज तुम घरघर में जानीमानी हस्ती बन चुकी हो. तुम्हारे पास पैसा है, शोहरत है, लोग तुम्हारे आगेपीछे दौड़ते हैं… उस पर तुम्हारी उम्र ही क्या है? अभी तुम्हें सालोंसाल काम करना है. इसलिए तुम्हें अपनेआप को बहुत ज्यादा तवज्जो देनी होगी. जितना तुम आगे बढ़ती जाओगी, उतना ही लोग तुम्हें कम समझ पाएंगे और यही तुम्हारे लिए अच्छा है. तुम्हारे निर्णय केवल तुम्हारे अपने हित में होने चाहिए… न कोई पारिवारिक निर्णय और न कोई भावनात्मक फैसला. पूरी दुनिया की नजर है तुम पर. ऐसे में कमजोर नहीं पड़ सकतीं तुम. इस का समय नहीं, तुम्हारे पास,’’ एजेंट ने रूहानी को खूब समझाया.

लेकिन हर इनसान अलग मिट्टी का बना है. सब का व्यक्तित्व अलग होता है. रूहानी को ऐसे फरेब की कतई उम्मीद नहीं थी. जनवरी की सर्द हवाओं के साथ बाहर फैला घना कुहरा उस के अंदर भी जमने लगा था. बाहर का उदास, रंगहीन मौसम उस के अंदर भी पसरने लगा था. रूहानी न ढंग से खाती, न किसी बातचीत में उस का मन लगता, न मुसकराती… कई दिन लग गए उसे सामान्य होने में. किंतु समय अपना चक्र घुमाते हुए सब को अपनी धुरी पर ले ही आता है.

लेकिन इस बीच उस के हाथ से वह लीड ऐक्ट्रैस का रोल जाता रहा. अब उस के पास कोई काम नहीं था. फिर भी वह थी तो एक टीवी अभिनेत्री ही. अपना रहनसहन उसे उसी हिसाब से बरकरार रखना था. पैसे भी खत्म होते जा रहे थे. इसी बीच उस ने जो हाथ आया, वही काम करने का निश्चय किया. एजेंट की मदद से उस ने एक रिऐलिटी शो में भाग लिया. शो देश के बाहर था. रूहानी प्रसन्न थी कि इस बहाने वह विदेश घूम आएगी और कुछ पैसे भी कमा लेगी.

शो में उस की मुलाकात रंजन से हुई जो उस का टीममेट था. रंजन भी एक छोटे शहर का लड़का था, जो इस रंगीली दुनिया में अपने को आजमाने आया था. अभी तक उसे सिर्फ धक्के ही मिले थे. यह उस का पहला शो था. रूहानी और रंजन की अच्छी पटने लगी. टूटे दिल को एक आसरा मिलने लगा था. रंजन और रूहानी का अच्छा तालमेल उन्हें जीत की ओर अग्रसर करता गया. आखिर उन दोनों की टीम जीत गई. अच्छाखासा पैसा मिला.

अपने देश लौटते समय हवाईजहाज में रंजन ने रूहानी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘अपनी टीम जारी रखोगी? क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगी, रूहानी?’’ रंजन ने रूहानी को प्रपोज कर दिया.

रूहानी बेहद खुश थी. एक तो जीत, उस पर पैसा और अब प्यार भी… और क्या चाहिए किसी 21 वर्षीया को.

रंजन अब तक पीजी में रहता था और रूहानी किराए के घर में रहती थी. दोनों मिलते, संगसाथ समय व्यतीत करते, फिर अपनेअपने घर लौट जाते.

‘‘रूहानी, ऐसे तो जो पैसा हम दोनों ने जीता है, वह खत्म होता चला जाएगा. इस से अच्छा है हम उसे अपने भविष्य के लिए कहीं निवेश कर दें.’’

रंजन की बात में तर्क था. अत: दोनों ने आपसी सहमति से एक घर बुक करा लिया.

‘‘तुम लोन की चिंता मत करना, तुम्हें इस झंझट में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. कुछ राशि हमारे पास है ही और कुछ मैं पर्सनल लोन ले लूंगा. ईएमआई मैं भरता रहूंगा. बस, कागजी काररवाई करवा लेते हैं.’’

लोन लेने की आवश्यकता के कारण घर रंजन के नाम बुक हुआ.

टेलीफोन- भाग 1: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

ये उन दिनों की बात है जब मोबाइल फोन नहीं आया था और लोग लैंडलाइन से ही काम चलाते थे. 21वीं सदी की बस शुरुआत ही हुई थी. कृष्णा और कावेरी दोनों एक ही औफिस में काम करती थीं और दोनों में दांत काटी रोटी वाली दोस्ती थी. दोनों साथ लंच लेतीं, अपना खाली समय साथ बितातीं और अपने जीवन की हर छोटीबड़ी घटना एकदूसरे से शेयर करतीं. औफिस में दोनों की दोस्ती की चर्चा थी और दोनों ट्वीन फ्रैंड्स के नाम से जानी जाती थीं. दोनों अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती थीं, दोनों के पति भी उच्च पद पर थे और दोनों के बच्चे बड़े हो चुके थे. दोनों की उम्र 40-45 साल के करीब थी. कृष्णा गोरीचिट्टी, सुंदर सुंदर चेहरे वाली, मृदु स्वभाव की महिला थी. अधिक बात करना उस के स्वभाव में नहीं था.

वहीं कावेरी बेहद बातूनी, बिंदास और काफी बोल्ड महिला थी. सुंदर वह भी कम नहीं थी बस रंग थोड़ा कम था. दोनों अकसर बहस करतीं राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक मुद्दों के अलावे एक मुद्दा यह भी होता कि आजकल महिलाएं अधिक असुरक्षित हो गई हैं और उन के प्रति होन वाले अपराध बढ़ गए हैं. कृष्णा कहती कि अधिकतर अपराध करने वाले कम उम्र के नौजवान ही होते हैं और इस तरह के अपराध करने वाले कम उम्र के नौजवान ही होते हैं और इस तरह एकदूसरे की बातों को काटने के लिए कई उदाहरण दिया करते और एकदूसरे को यह सलाह भी कि हमारी तो कट गई पर अपनी बच्चियों की हिफाजत हमारी जिम्मेदारी है. अत: उस की सुरक्षा में कोई चूक नहीं होनी चाहिए.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक एक ऐसी खबर आई जो किसी विस्फोट से कम नहीं थी. दोनों का तबादला अलगअलग शहरों में हो गया था और अब दोनों के बिछड़ने का समय आ गया था. इस तबादले के कारण दोनों अपने घरपरिवार से तो दूर हो ही रहे थे साथ ही एकदूसरे से भी. अत: बेहद दुखी थीं लेकिन नौकरी का सवाल था तो जाना तो था ही. अंतत: दोनों ने दीवाली की छुट्टियों में मिलने का वादा कर एकदूसरे से विदा ली.

कृष्णा को नए शहर में तुरंत क्वार्टर नहीं मिला. अत: वह उस गेस्ट हाउस में ठहर गई जो उस के औफिस का ही था और जिस में औफिस की 4 और महिलाएं भी रहती थीं. उसे बताया गया कि जब तक उसे क्वार्टर अलाट नहीं हो जाता वह आराम से यहां रह सकती है. धीरेधीरे समय बीतने लगा. औफिस से आने के बाद और खाना खाने के बाद वह टहलते हुए उस चौराहे तक जाती जहां टेलीफोन बूथ था और अपने बच्चों और पति से बातें करती. कभीकभी वहां अच्छीखासी भीड़ होती. अत: बात करने के लिए उसे काफी देर तक इंतजार करना पड़ता. उसे सब से अधिक चिंता अपनी बेटी के लिए होती जो 14-15 साल की हो चुकी थी. बीच सेशन में उस का स्कूल छुड़वा कर अपने साथ लाना उचित नहीं समझ कृष्णा उसे भाई और पिता के पास ही छोड़ कर आई थी और यह तय किया था कि जैसे ही उस की वार्षिक परीक्षा हो जाएगी वह उसे अपने साथ ले आएगी. फिर जब तक उस की पोस्टिंग दोबारा अपने शहर में नहीं हो जाती उसे अपने साथ ही रखेगी.

कावेरी की भी हालत कमोवेश ऐसी ही थी. उस का बेटा 12वीं में था और बेटी 8वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस ने उन की देखभाल के लिए अपनी मां को बुला लिया था. अत: वह थोड़ी निश्चिंत थी पर फिर भी जब भी वह अखबारों में लड़कियों के साथ हुए छेड़छाड़ से संबंधित किसी समाचार को पढ़ती तो वह डर जाती. वह और उस के पति जीतोड़ कोशिश में लगे थे कि किसी तरह कावेरी का तबादला दोबारा उसी शहर में हो जाए.

दीवाली नजदीक आ रही थी अत: दोनों ने अपनाअपना टिकट बुक करवा लिया. जल्द ही मिलने का प्लान बनाते हुए एकदूसरे को पत्र लिखा और दीवाली के बाद कौफी हाउस में मिलने का समय तय कर लिया.

कृष्णा छुट्टियों को ले कर बहुत उत्साहित थी और शाम को गेस्ट हाउस के लौन में बैठ अपनी औफिस की सहकर्मी नर्गिस से बातें कर रही थी. नर्गिस काफी मिलनसार और अच्छे स्वभाव की महिला था और काफी दिनों से वहां रह रही थी. कृष्णा की उस से अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों लौन में बैठ कर बातें कर ही रहे थे कि एक टैक्सी आ कर रुकी और उस से 2 बुजुर्ग दंपति उतरे. नर्गिस ने कृष्णा का उन से परिचय करवाया कि यह गुप्ता मैडम हैं. बीमारी की वजह से कई महीने की छुट्टियों के बाद अपने पति के साथ वापस लौटी थीं, कल वे औफिस जौइन करेंगी ऐसा उस ने बताया. गुप्ता मैडम के पति डाक्टर थे और उसी औफिस के अस्पताल में पहले कार्यरत थे. लगभग 3 साल पहले रिटायर हो चुके थे. अभी तत्काल दोनों उसी गेस्ट हाउस में ठीक कृष्णा के सामने वाले रूम में ठहरे थे.

बाहर बेमौसम की बरसात शुरू हो गई थी इसलिए कृष्णा और नर्गिस लान से उठ कर टैरेस में आ गए. थोड़ी देर में फ्रैश हो कर वह बुजुर्ग दंपति भी वहीं आ कर बैठ गया. नर्गिस ने कबाब बनाया था. अत: उन्हें भी औफर किया, कबाब की खूब तारीफ हुई.

बाहर बरसात तेज हो गई थी. नर्गिस ने कहा, ‘‘एक कप गरमगरम चाय हो जाए तो मजा आ जाए,’’ अब बारी कृष्णा की थी. उस ने कहा, ‘‘मैं चाय बना लाती हूं,’’ सब मौसम का आनंद लेते हुए चाय पीते रहे. इधरउधर की बातें होती रही. कृष्णा भी सब से खुल गई थी लेकिन वर्षा रुकते न देख चिंतित हो रही थी क्योंकि वह समय उस का टेलिफोन बूथ पर जाने का था. उसे अगले दिन गाड़ी पकड़नी थी इसलिए वह अपने पति से बात कर उन्हें स्टेशन रिसीव करने के लिए आने को कहना चाहती थी पर झिझक बस कृष्णा ने उन से नहीं कहा. सोचती रही न होगा तो स्टेशन से ही बात कर लेगी. न ही गुप्ता मैडम ने औफर किया कि जरूरी है तो आप मेरे फोन से बात कर लीजिए न उस के पति ने. खैर थोड़ी देर में सभी विसर्जित हुईं और अगले दिन की तैयारी कर कृष्णा सो गई. सुबह उठ औफिस के लिए तैयार हुई अपना सूटकेश तैयार कर साइड में रख दिया. यह सोचते हुए कि लंच टाइम में आ कर ले जाऊंगी. अभी से कहां इसे ले कर जाऊं और औफिस के लिए निकल गई.

औफिस पहुंच घर जाने की खुशी में जल्दीजल्दी अपना काम निबटाने लगी. जैसे ही काम से थोड़ी फुरसत मिली डब्बा उठा कर लंच कर लिया क्योंकि लंच टाइम में उसे गेस्ट हाउस जा कर सूटकेश लाना था. 5 मिनट का रास्ता था औफिस से गेस्ट हाउस का. रास्ते भर सोचती रही कि औफिस लौट कर बौस को स्टेशन लीव का एप्लीकेशन देगी और ट्रेन का हवाला दे कर औफिस से थोड़ा जल्दी निकलने की कोशिश करेगी.

गेस्ट हाउस में पहुंच जैसे ही वह अपने कमरे का ताला खोलती है गुप्ता मैडम का पति आवाज सुन बाहर निकल आता है और कहता है, ‘‘मैडम आप आज ही जा रही हैं क्या?’’

कृष्णा हां में सर को हिलाती है?’’

‘‘कितने बजे की ट्रेन है?’’

‘‘5 बजे की.’’

‘‘आप को फोन करना था न आप हमारे फोन से कर लीजिए.’’

‘‘नहीं अब देर हो जाएगी, मैं बस अपना सूटकेश लेने आई थी. सूटकेश ले कर मैं निकल जाऊंगी.’’

Winter Special: सर्दियां आते ही ड्राय स्किन और फटे होठ की प्रौब्लम को करें दूर

सर्दियां आते ही ज्यादातर लोगों की त्वचा रूखी होने लग जाती है. त्वचा की नमी कहीं खो सी जाती है और त्वचा रूखी-बेजान नजर आने लगती है. त्वचा के साथ ही हमारे होंठ भी फटने शुरू हो जाते हैं. कई बार ये समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि होंठों से खून भी आना शुरू हो जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम अपनी त्वचा को लेकर फिक्रमंद रहें ताकि वो हमेशा खूबसूरत और जवां बनी रहे.

कैसे करें ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल

आप चाहें तो ग्ल‍िसरीन को बाम की तरह लगा सकते हैं. इसके अलावा इसे दूध, शहद या गुलाब जल के साथ मिलाकर भी लगाया जाता है.

ग्ल‍िसरीन लगाने के फायदे

1. सर्दियों में शुष्‍क हवाओं के कारण होठ सूख जाते हैं और फटने लग जाते हैं. होठों पर ग्ल‍िसरीन के इस्तेमाल से होंठ मुलायम बनते हैं जिससे फटने की समस्या भी नहीं होने पाती है.

2. अगर आपके होंठों पर दाग-धब्बे हैं और ये काले पड़ चुके हैं तो भी ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है. कई बार धूम्रपान करने के कारण लोगों के होंठ काले पड़ जाते हैं. ऐसी स्थिति में भी ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है.

3. सर्दियों में हवाओं के प्रभाव से होंठो की ऊपरी परत सूख जाती है और पपड़ी बन जाती है. ऐसे में ग्लसिरीन का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है.

4. अगर आपके होंठ कहीं से कट गए हों या फिर अगर उनमें किसी तरह का घाव बन गया हो तो भी ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है.

5. होंठों के लिए ग्ल‍िसरीन एक पोषक तत्व की तरह काम करता है, जिससे होंठों को नमी मिलती है.

एक ओर जहां चीनी खाने-पीने की चीजों में मिठास लाने के लिए इस्तेमाल की जाती है, वहीं यह एक बेहतरीन ब्यूटी प्रॉडक्ट भी है. यह एक अच्छा और नेचुरल स्क्रब है. यह डेड स्किन को साफ करने, रक्त प्रवाह बढ़ाने, त्वचा के निर्माण में और पोर्स को खोलने में सहायक है.

ठंड में वैसे भी हमारी त्वचा पर डेड स्किन की लेयर बन जाती है, जिससे चेहरा बुझा-बुझा नजर आने लगता है. चीनी का इस्तेमाल हम शरीर के हर हिस्से के लिए कर सकते हैं लेकिन चेहरे और होंठ के लिए इसका इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद रहेगा.

चेहरे के लिए कैसे तैयार करें यह स्क्रब?

– एक केला ले लीजिए और उसे अच्छी तरह मैश कर लें. इस पेस्ट में आधा कप ब्राउन शुगर मिला लें. साथ ही दो से तीन बूंद बादाम का तेल.

– इन तीनों को अच्छी तरह मिला लें. तब तक मिलाएं, जब तक ये तीनों चीजें एकसार न हो जाएं.

– इसके बाद चेहरे को धो लें और फिर स्क्रब लगाएं. गोलाई में पांच मिनट तक चेहरे की मसाज करें. बीच-बीच में हल्के गुनगुने पानी का छींटा मारते रहें.

– पांच मिनट बाद चेहरा धो लें और कोई अच्छा मॉइस्चराइजर लगा लें.

लिप्स के लिए कैसे तैयार करें यह स्क्रब?

– एक चम्मच ऑलिव ऑयल ले लें और इसमें आधा चम्मच चीनी मिलाएं.

– इन दोनों को तब तक मिलाएं जब तक ये आपस में घुल न जाएं.

– एक सॉफ्ट टूथब्रश में यह मिश्रण लगाकर होंठो पर हल्के हाथों से मलें.

– दो मिनट तक ऐसे ही मसाज करें और उसके बाद होठों को पानी से धो लें.

– पेट्रोलियम जेली लगा लें.

Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें नवजात की देखभाल

नवजात शिशु परिवार के सभी सदस्यों के लिए खुशियां और आशा की नई किरण ले कर आता है. परिवार के सभी सदस्य उस के पालनपोषण का दायित्व खुशीखुशी लेते हैं और डाक्टर मां को सही राय देते हैं ताकि उस का शिशु स्वस्थ रहे.

गरमियों की तपिश के बाद जब सर्दी शुरू होती है तो लोग राहत महसूस करते हैं. पर सर्दी भी अपने साथ लाती है खुश्क हवाएं, खांसी और जुकाम जैसी कुछ तकलीफें, जिन से नवजात शिशु को खासतौर से बचाना चाहिए और उस की देखभाल में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

त्वचा की देखभाल

सर्दी के मौसम में हवा की नमी चली जाती है, जिस से शिशु की त्वचा शुष्क हो जाती है. ऐसे में बच्चे की मालिश जैतून के तेल से करने से बहुत लाभ होता है. उस से मालिश करने से खून का संचार सही रहता है और उस का इम्यूनिटी पावर यानी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. मालिश करते समय बच्चे को गरम और आरामदेह जगह पर लिटाना चाहिए. मालिश के कुछ देर बाद नहलाना चाहिए. बच्चे की त्वचा अत्यधिक नरम होती है, इसलिए साबुन ग्लिसरीन युक्त होना चाहिए और पानी कुनकुना होना चाहिए. जिस दिन ज्यादा सर्दी हो, उस दिन स्नान के बजाय साफ तौलिए को पानी में भिगो कर व निचोड़ कर उस से बच्चे का बदन पोंछ सकते हैं.

होंठों की देखभाल

सर्दी में शिशु के होंठ उस के थूक निकालने से गीले हो जाते हैं. उन की ऊपरी परत हट जाती है और उन पर सूखापन आ जाता है. उस के लिए पैट्रोलियम जैली या लिपबाम का उपयोग करना चािहए.

आंखों की देखभाल

सर्दी में कभीकभी शिशु की आंखों के कोने से सफेद या हलके पीले रंग का बहाव हो सकता है. इसे न तो हाथ से रगड़ें और न ही खींच कर निकालने की कोशिश करें. कुनकुने पानी में रुई डाल कर उसे हाथों से दबाएं फिर उस से आंखों को अंदर से बाहर की तरफ साफ करें. अगर शिशु की आंखें लाल हों या उन से पानी निकल रहा हो तो तुरंत आंखों के विशेषज्ञ को दिखलाना चाहिए.

शिशु के कपड़े

सर्दियों में शिशु के कपड़े गरम, नरम और आरामदेह होने चाहिए, जिन में कोई जिप या टैग न लगा हो.

बच्चे के हाथपैर गरम रखने के लिए उसे दस्ताने और मोजे पहनाने चाहिए और उस का सिर टोपी से ढकना चाहिए.

बच्चे के कपड़े धोने का डिटर्जैंट माइल्ड होना चाहिए.

बच्चे को कई बार ऊनी कपड़ों से ऐलर्जी हो जाती है जिस से उस के शरीर पर रैशेज हो जाते हैं. इसलिए कपड़े तापमान के हिसाब से ही पहनाने चाहिए. बच्चे को सीधा ऊनी कपड़ा पहनाने के बजाय पहले एक सूती कपड़े पहनानी चाहिए.

बच्चे को जूते पहनाने की आवश्यकता नहीं होती.

शिशु को सुलाते वक्त जब कंबल डालें तो ध्यान रखें कि कंबल से मुंह न ढक जाए, जिस से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो.

शिशु के कपड़े अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए और ज्यादा तंग नहीं होने चाहिए.

जरूरी कपड़े

6-8 मुलायम सूती की बनियान.

6-8 गरम इनर या गरम कपड़े.

6-8 पूरी बाजू के सूती या होजरी के टौप.

6-8 पाजामी.

7-8 बौडी सूट.

4 गरम पाजामा.

4-6 ऊनी जुराब.

2-4 ऊनी टोपी.

2 सूती टोपी.

4-6 स्वैटर, 4 जैकेट.

7-8 मोटी सूती जुराब.

4 दस्ताने.

6 तौलिए, 6 बिब.

3-4 नहाने के लिए इस्तेमाल होने वाले तौलिए.

डायपर रैशेज से बचाव

सर्दी में डायपर और सूती नैपीज की ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि शिशु सर्दी में जल्दी गीला करता है और सूखने में ज्यादा समय लगता है. कुछ खास बातें ऐसी हैं जिन का खयाल रखना आवश्यक है, जिस से डायपर रैशेज से बचाव हो पाए:

इस बात का खयाल रखना चाहिए कि डायपर समय पर बदला जाए.

डायपर ज्यादा टाइट नहीं होना चाहिए. उसे सही नाप का चुनना चाहिए.

डायपर बदलने से पहले और बाद में अपने हाथ अच्छी तरह धो लेना चाहिए.

डायपर बदलते वक्त ध्यान रखें कि शिशु की त्वचा सूखी और साफ हो.

गुप्तांगों को रगड़ें नहीं कोमलता से साफ करें.

नैपी रैश क्रीम का इस्तेमाल करें.

घर का वातावरण

आप को घर और बच्चे के कमरे को गरम रखना चाहिए, जिस के लिए कमरे की खिड़कीदरवाजे बंद रखने चाहिए. दीवारों पर गीलापन नहीं होना चाहिए. क्योंकि इस से फफूंदी लग सकती है, जिस से बच्चे को ऐलर्जी या सर्दी व खांसी हो सकती है.

यदि घर का कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो उसे घर से बाहर जा कर करना चाहिए. कमरे और बाथरूम के फर्श को अच्छे डिटर्जैंट से धोना चािहए.

सर्दी में मच्छर वैसे कम होते हैं लेकिन अगर कीड़े या मच्छर हैं तो पेस्ट कंट्रोल करवाना चाहिए और बच्चे को उस दिन उस कमरे में नहीं ले जाना चाहिए. इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि घर के आसपास पानी इकट्ठा न हो और घर की नियमित रूप से सफाई हो. आजकल बाजार में स्टिकर के रूप में भी मौसक्यूटो उपलब्ध हैं, जो बच्चे की चारपाई या गाड़ी में भी लगाए जा सकते हैं.

मां के लिए कुछ निर्देश

अपने शिशु का टीकाकरण समयसमय पर नियमित रूप से करवाएं ताकि वह वायरस और बैक्टीरिया से दूर रहें.

बारबार अपने हाथ धोएं ताकि बच्चे को फ्लू और सर्दीखांसी के कीटाणुओं से दूर रख सकें.

अपने बच्चे के हाथ भी धोएं, क्योंकि बच्चा मुंह में हाथ डालता है.

शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम है, क्योंकि इस से उस का इम्यूनिटी पावर बढ़ता है और शरीर में पानी की कमी नहीं होती.

सर्दियों में बच्चे को ज्यादातर बीमारियां उस के करीब किसी बीमार व्यक्ति के खांसनेछींकने और उस के संपर्क में आने से होती हैं, इसलिए बच्चे को रोगी व्यक्ति से दूर रखें.

शिशु को डियोड्रैंट, परफ्यूम्स और धुएं से दूर रखें, क्योंकि इन से सांस की बीमारी हो सकती है.

सर्दियों में होने वाली बीमारियां

सर्दियों में शिशु को ये बीमारियां हो सकती हैं:

सामान्य जुकाम.

बुखार (वायरल फीवर).

फ्लू.

निमोनिया.

ब्रौंकाइटिस.

कान का संक्रमण.

मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क ज्वर).

रोटावायरस.

कब ले जाएं डाक्टर के पास

बुखार आने पर.

खांसी आने पर.

अगर शिशु दूध कम पी रहा हो. दूध कम पीने से शिशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है.

अगर शिशु अत्यधिक सुस्त है तो.

प्राथमिक उपचार

आप के पास शिशु के लिए कुछ जरूरी दवाएं होनी चाहिए ताकि कभी भी रात में अगर जरूरत पड़े तो आप उन को उपयोग कर सकें. जैसे क्रोसिन सिरप, विक्स वेपोरब, सेवलौन, नोजीवियान ड्रौप्स और थर्मामीटर.

जब शिशु बीमार पड़े तो उस को कंफर्टेबल रखना और गोद में ले कर प्यार करना बहुत जरूरी है. नाक बंद होने पर नोजीवियान ड्रौप डालने से नाक खुल जाएगी. बच्चे को जितना आराम मिलेगा, वह बेहतर महसूस करेगा. उसे सर्दी के मौसम की ज्यादातर बीमारियां 1 हफ्ते में ठीक हो जाती हैं और उन से आप के शिशु की इम्यूनिटी बढ़ती है. इसलिए घबराएं नहीं.

-डा. शिवानी सचदेव गौड़

(निदेशक, एससीआई हैल्थकेयर, आईवीएफ व स्त्री रोग विशेषज्ञा)

बिदाई- भाग 3: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘तुम बस हमारे घर को सजाने की चिंता करो… यह तुम्हारा डिपार्टमैंट है,’’ रंजन की इन बातों से रूहानी चहक उठी थी.

रूहानी ने अपने एजेंट के द्वारा रंजन को काफी काम दिलवाया और खुद घर सजानेबसाने में व्यस्त रहने लगी. कभीकभार 1-2 भूमिका निभा लेती. लेकिन काम का बोझ और दबाव उसे अब रास न आता. अब उस का मन प्यार, घरगृहस्थी में रमने लगा था. रंजन और वह रहते भी एक ही घर में थे. आजकल का प्यार न तो सीमाएं जानता है और न ही मानता है. उन दोनों ने अभी शादी नहीं की थी, लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते की डोर थाम चुके थे. रंजन नईनवेली दुलहन की तरह रूहानी को उठा कर कमरे में ले जाता और दोनों प्रेमरस में भीग कर आनंदित हो उठते. यों ही साथ रहते हुए, प्यार के सागर में हिचकोले खाते दोनों रिश्ते के अगले पड़ाव पर पहुंच गए. माना कि दोनों ने सोचसमझ कर यह कदम नहीं उठाया था किंतु प्यार के बीज को पनपने से कोई रोक पाया है भला? जब रूहानी को पता चला कि वह गर्भवती है, तो उस ने रंजन को बताने की सोची. थोड़ा डर भी था मन में कि पता नहीं रंजन की प्रतिक्रिया कैसी होगी.

रात को सोते समय उस ने रंजन का हाथ हौले से अपने पेट पर रख दिया. बस इतना इशारा काफी था. रंजन समझ गया. इस खुशी के मौके पर उस ने रूहानी के गाल पर अपने प्यार का चुंबन अंकित कर दिया.

रूहानी प्रसन्न भी थी और संतुष्ट भी. अब वह रंजन से जल्दी से जल्दी शादी करना चाहती थी.

जीवन की नाव सुखसागर में गोते लगा रही थी कि अचानक एक दिन रंजन की गैरमौजूदगी में रूहानी ने उस का फोन उठा लिया. दूसरी तरफ से एक लड़की बोल रही थी, ‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’

‘‘आप को रंजन से बात करनी है न? वह इस समय घर पर नहीं है… मार्केट गया है… गलती से फोन घर भूल गया है. आप मुझे बता दीजिए क्या काम है आप को?’’ रूहानी ने कहा.

‘‘तुम्हें बता दूं तुम हो कौन रंजन की?’’

‘‘मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं… जल्द ही हम शादी करने वाले हैं.’’

‘‘गर्लफ्रैंड?’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोली, ‘‘मुझे अपना पता देना प्लीज, मैं उस की पुरानी फ्रैंड हूं. उसे सरप्राइज देना चाहती हूं.’’

रूहानी ने उसे अपना पता लिखवा दिया.

बस, उसी शाम उन के प्रेम नीड़ में तूफान आ गया. अचानक वह लड़की उन के घर आ धमकी.

दरवाजा खोलते ही उस ने रंजन को एक तमाचा जड़ा और जोरजोर से लड़ने लगी, ‘‘रंजन, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे धोखा देने की? शायद तुम भूल गए कि तुम्हारे पिता मेरे डैड के मातहत हैं. इस चुड़ैल के साथ मिल कर तुम मेरे साथ चीटिंग कर रहे हो… मैं कपड़े की गुडि़या नहीं हूं. मैं रोती नहीं, रूलाती हूं, समझे?’’ लगभग चीखती हुई वह रूहानी की ओर मुड़ी. फिर उसे धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. रूहानी इस तरह के बरताव के लिए तैयार न थी. वह लड़की रूहानी पर टूट पड़ी. उसे पीटने लगी.

शोर सुन कर कुछ पड़ोसी इकट्ठा हो गए. उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस लड़की को रूहानी से अलग किया. इस घटना से रूहानी की जिंदगी में उथलपुथल मच गई. अचानक उस का जीवन ऐसे मोड़ पर आ गया था कि आगे उसे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था.

दरअसल, रंजन का उस की हालत पर ध्यान न देना उसे बहुत आहत कर गया था. यह वह ठेस थी जिस ने रूहानी के सभी मौसम बदल कर ठंडे, निर्जीव और बेरंग कर दिए थे. रूहानी हर वक्त उदास रहने लगी थी. एक तो गर्भावस्था में डोलती मनोस्थिति, उस पर साथी से मिला दुर्व्यवहार. आजकल रंजन को उस की खुशी, उस के मूड से कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि आजकल वह रूहानी पर अकसर नाराज होने लगा था. रंजन के सिवा रूहानी का अपना कहने का कोई नहीं था.

अकेली रूहानी सारा दिन उदासीन पड़ी रहती. रात को जब रंजन घर लौटता तो दोनों में घमासान होता. रंजन रूहानी पर हाथ भी उठाने लगा था.

अवसाद से घिरी रूहानी को आगे की राह दिखाई नहीं दे रही थी कि क्या करे कि रंजन से उस का रिश्ता फिर मजबूत हो जाए. सोचसोच कर वह और भी अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

ऐसी ही एक शाम जब रूहानी छत पर टकटकी बांधे अकेली बिस्तर पर पड़ी थी, अचानक फोन घनघना उठा. दूसरी तरफ उसी लड़की की आवाज थी.

उस ने रूहानी के फोन उठाते ही खरीखरी सुनानी शुरू कर दी, ‘‘तुम क्या सोचती हो रंजन को मुझ से छीन लोगी? रंजन मेरा है, सिर्फ मेरा. तुम्हारी जैसी कितनी आईं और गईं. लेकिन रंजन को मुझ से कोई नहीं छीन पाई. कुछ दिन इधरउधर मुंह मारने से उस का मेरे प्रति प्यार कम नहीं हो जाता, समझी? अब अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा रंजन की जिंदगी से.’’

उस लड़की की बातें सुन कर रूहानी और भी परेशान हो उठी कि क्या रंजन ने उसे धोखा दिया है? उस का उद्विग्न मन शांत नहीं हो पा रहा था. रंजन भी तो उस के किसी सवाल का जवाब नहीं देता. आखिर किस से पूछे? वह सारे घर में कलपती सी घूमने लगी.

स्वयं को उपेक्षित महसूस करती रूहानी छटपटाने लगी कि क्या करे, कैसे मुक्ति पाए इस अवसाद से? क्या फायदा इस सौंदर्य का, इस शोहरत का, जब कोई उसे प्यार ही न करे? क्या इस जीवन में उस के लिए प्यार पाना संभव नहीं? इसी उधेड़बुन में रूहानी उठी और…

अगली सुबह एक ही खबर सारे टीवी चैनलों पर बारबार दिखाई जा रही थी कि प्रसिद्ध अभिनेत्री रूहानी ने अपने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

बस, फिर सब तरफ वही शो, उसी की चर्चा. टीवी इंडस्ट्री में रूहानी के सहकर्मी, उस के तथाकथित मित्रगण अलगअलग कहानियां बयान करने लगे. न्यूज चैनलों को एक बढि़या मुद्दा मिल गया अपनी टीआरपी बढ़ाने का. एक चैनल ने रूहानी के इस कदम का दोष रंजन के जीवन में दूसरी लड़की के प्रवेश को दिया. आधार था पड़ोसियों से की गई बातचीत, तो दूसरा चैनल कहने लगा कि रूहानी गर्भवती थी और वह रंजन पर शादी का दबाव डाल रही थी, पर वह मान नहीं रहा था, इसलिए रूहानी ने आत्महत्या कर ली.

तीसरा चैनल रूहानी के कुछ दोस्तों के बयानों के आधार पर कहने लगा कि रूहानी ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि रंजन ने उस दूसरी लड़की के साथ मिल कर उस का खून किया है यानी जितने मुंह उतनी बातें.

अंतिम संस्कार के समय काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सहकलाकार, आम जनता और इन सब के बीच छिपे, रोतेबिलखते रूहानी के मातापिता. इतनी भीड़ देख कर कौन कह सकता था कि यहां उस का अपना कहने को, उस के मन की टोह लेने वाला कोई न था. रूहानी चली गई… शायद संवेदनशीलता का यहां कोई काम नहीं. अपने घर में जिस धन व प्रसिद्धि की खोज में रूहानी निकल पड़ी थी, वह उसे मिल तो गई, लेकिन इनसान की खोज कब रुकी है भला. धनप्रसिद्धि के पश्चात प्यार पाने की खोज, प्यार के पश्चात अपना घर बसाने की आकांक्षा… यह सूची कभी खत्म नहीं होती.

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