Download Grihshobha App

बिदाई- भाग 3: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘तुम बस हमारे घर को सजाने की चिंता करो… यह तुम्हारा डिपार्टमैंट है,’’ रंजन की इन बातों से रूहानी चहक उठी थी.

रूहानी ने अपने एजेंट के द्वारा रंजन को काफी काम दिलवाया और खुद घर सजानेबसाने में व्यस्त रहने लगी. कभीकभार 1-2 भूमिका निभा लेती. लेकिन काम का बोझ और दबाव उसे अब रास न आता. अब उस का मन प्यार, घरगृहस्थी में रमने लगा था. रंजन और वह रहते भी एक ही घर में थे. आजकल का प्यार न तो सीमाएं जानता है और न ही मानता है. उन दोनों ने अभी शादी नहीं की थी, लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते की डोर थाम चुके थे. रंजन नईनवेली दुलहन की तरह रूहानी को उठा कर कमरे में ले जाता और दोनों प्रेमरस में भीग कर आनंदित हो उठते. यों ही साथ रहते हुए, प्यार के सागर में हिचकोले खाते दोनों रिश्ते के अगले पड़ाव पर पहुंच गए. माना कि दोनों ने सोचसमझ कर यह कदम नहीं उठाया था किंतु प्यार के बीज को पनपने से कोई रोक पाया है भला? जब रूहानी को पता चला कि वह गर्भवती है, तो उस ने रंजन को बताने की सोची. थोड़ा डर भी था मन में कि पता नहीं रंजन की प्रतिक्रिया कैसी होगी.

रात को सोते समय उस ने रंजन का हाथ हौले से अपने पेट पर रख दिया. बस इतना इशारा काफी था. रंजन समझ गया. इस खुशी के मौके पर उस ने रूहानी के गाल पर अपने प्यार का चुंबन अंकित कर दिया.

रूहानी प्रसन्न भी थी और संतुष्ट भी. अब वह रंजन से जल्दी से जल्दी शादी करना चाहती थी.

जीवन की नाव सुखसागर में गोते लगा रही थी कि अचानक एक दिन रंजन की गैरमौजूदगी में रूहानी ने उस का फोन उठा लिया. दूसरी तरफ से एक लड़की बोल रही थी, ‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’

‘‘आप को रंजन से बात करनी है न? वह इस समय घर पर नहीं है… मार्केट गया है… गलती से फोन घर भूल गया है. आप मुझे बता दीजिए क्या काम है आप को?’’ रूहानी ने कहा.

‘‘तुम्हें बता दूं तुम हो कौन रंजन की?’’

‘‘मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं… जल्द ही हम शादी करने वाले हैं.’’

‘‘गर्लफ्रैंड?’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोली, ‘‘मुझे अपना पता देना प्लीज, मैं उस की पुरानी फ्रैंड हूं. उसे सरप्राइज देना चाहती हूं.’’

रूहानी ने उसे अपना पता लिखवा दिया.

बस, उसी शाम उन के प्रेम नीड़ में तूफान आ गया. अचानक वह लड़की उन के घर आ धमकी.

दरवाजा खोलते ही उस ने रंजन को एक तमाचा जड़ा और जोरजोर से लड़ने लगी, ‘‘रंजन, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे धोखा देने की? शायद तुम भूल गए कि तुम्हारे पिता मेरे डैड के मातहत हैं. इस चुड़ैल के साथ मिल कर तुम मेरे साथ चीटिंग कर रहे हो… मैं कपड़े की गुडि़या नहीं हूं. मैं रोती नहीं, रूलाती हूं, समझे?’’ लगभग चीखती हुई वह रूहानी की ओर मुड़ी. फिर उसे धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. रूहानी इस तरह के बरताव के लिए तैयार न थी. वह लड़की रूहानी पर टूट पड़ी. उसे पीटने लगी.

शोर सुन कर कुछ पड़ोसी इकट्ठा हो गए. उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस लड़की को रूहानी से अलग किया. इस घटना से रूहानी की जिंदगी में उथलपुथल मच गई. अचानक उस का जीवन ऐसे मोड़ पर आ गया था कि आगे उसे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था.

दरअसल, रंजन का उस की हालत पर ध्यान न देना उसे बहुत आहत कर गया था. यह वह ठेस थी जिस ने रूहानी के सभी मौसम बदल कर ठंडे, निर्जीव और बेरंग कर दिए थे. रूहानी हर वक्त उदास रहने लगी थी. एक तो गर्भावस्था में डोलती मनोस्थिति, उस पर साथी से मिला दुर्व्यवहार. आजकल रंजन को उस की खुशी, उस के मूड से कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि आजकल वह रूहानी पर अकसर नाराज होने लगा था. रंजन के सिवा रूहानी का अपना कहने का कोई नहीं था.

अकेली रूहानी सारा दिन उदासीन पड़ी रहती. रात को जब रंजन घर लौटता तो दोनों में घमासान होता. रंजन रूहानी पर हाथ भी उठाने लगा था.

अवसाद से घिरी रूहानी को आगे की राह दिखाई नहीं दे रही थी कि क्या करे कि रंजन से उस का रिश्ता फिर मजबूत हो जाए. सोचसोच कर वह और भी अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

ऐसी ही एक शाम जब रूहानी छत पर टकटकी बांधे अकेली बिस्तर पर पड़ी थी, अचानक फोन घनघना उठा. दूसरी तरफ उसी लड़की की आवाज थी.

उस ने रूहानी के फोन उठाते ही खरीखरी सुनानी शुरू कर दी, ‘‘तुम क्या सोचती हो रंजन को मुझ से छीन लोगी? रंजन मेरा है, सिर्फ मेरा. तुम्हारी जैसी कितनी आईं और गईं. लेकिन रंजन को मुझ से कोई नहीं छीन पाई. कुछ दिन इधरउधर मुंह मारने से उस का मेरे प्रति प्यार कम नहीं हो जाता, समझी? अब अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा रंजन की जिंदगी से.’’

उस लड़की की बातें सुन कर रूहानी और भी परेशान हो उठी कि क्या रंजन ने उसे धोखा दिया है? उस का उद्विग्न मन शांत नहीं हो पा रहा था. रंजन भी तो उस के किसी सवाल का जवाब नहीं देता. आखिर किस से पूछे? वह सारे घर में कलपती सी घूमने लगी.

स्वयं को उपेक्षित महसूस करती रूहानी छटपटाने लगी कि क्या करे, कैसे मुक्ति पाए इस अवसाद से? क्या फायदा इस सौंदर्य का, इस शोहरत का, जब कोई उसे प्यार ही न करे? क्या इस जीवन में उस के लिए प्यार पाना संभव नहीं? इसी उधेड़बुन में रूहानी उठी और…

अगली सुबह एक ही खबर सारे टीवी चैनलों पर बारबार दिखाई जा रही थी कि प्रसिद्ध अभिनेत्री रूहानी ने अपने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

बस, फिर सब तरफ वही शो, उसी की चर्चा. टीवी इंडस्ट्री में रूहानी के सहकर्मी, उस के तथाकथित मित्रगण अलगअलग कहानियां बयान करने लगे. न्यूज चैनलों को एक बढि़या मुद्दा मिल गया अपनी टीआरपी बढ़ाने का. एक चैनल ने रूहानी के इस कदम का दोष रंजन के जीवन में दूसरी लड़की के प्रवेश को दिया. आधार था पड़ोसियों से की गई बातचीत, तो दूसरा चैनल कहने लगा कि रूहानी गर्भवती थी और वह रंजन पर शादी का दबाव डाल रही थी, पर वह मान नहीं रहा था, इसलिए रूहानी ने आत्महत्या कर ली.

तीसरा चैनल रूहानी के कुछ दोस्तों के बयानों के आधार पर कहने लगा कि रूहानी ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि रंजन ने उस दूसरी लड़की के साथ मिल कर उस का खून किया है यानी जितने मुंह उतनी बातें.

अंतिम संस्कार के समय काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सहकलाकार, आम जनता और इन सब के बीच छिपे, रोतेबिलखते रूहानी के मातापिता. इतनी भीड़ देख कर कौन कह सकता था कि यहां उस का अपना कहने को, उस के मन की टोह लेने वाला कोई न था. रूहानी चली गई… शायद संवेदनशीलता का यहां कोई काम नहीं. अपने घर में जिस धन व प्रसिद्धि की खोज में रूहानी निकल पड़ी थी, वह उसे मिल तो गई, लेकिन इनसान की खोज कब रुकी है भला. धनप्रसिद्धि के पश्चात प्यार पाने की खोज, प्यार के पश्चात अपना घर बसाने की आकांक्षा… यह सूची कभी खत्म नहीं होती.

Winter Special: नाश्ते में परोसें क्रिस्पी फूल

शाम के नाश्ते में अगर आप कोई नई रेसिपी फैमिली को बनाकर खिलाना चाहती हैं तो प्याज से बनें क्रिस्पी फूल की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

–  10-15 छोटे प्याज

–  1/2 कप चावल का आटा

–  1/4 कप बेसन

–  1/4 छोटा चम्मच ओरिगैनो

–  1/4 छोटा चम्मच चिलीफ्लैक्स

–  1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

–  तलने के लिए तेल

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

प्याज को ऐसे 4 भाग में चीरा लगाएं कि नीचे का डंठल जुड़ा रहे. चावल के आटे और बेसन को मिला लें. सारे मसाले मिला कर पकौड़ों के घोल जैसा गाढ़ा मिश्रण बना लें. कड़ाही में तेल गरम कर प्याज बैटर में डिप करें और तेल में कुरकुरा होने तक तल लें. चटनी के साथ परोसें.

पोर्टेबल फर्नीचर के हैं बड़े फायदे

बड़े शहरों में छोटे घर वक्त की जरूरत बन गए है. ऐसे घरों में फर्नीचर को व्यवस्थित रूप में रखना किसी चुनौती से कम नहीं. अगर आप भी कुछ ऐसी ही परेशानी का सामना कर रही हैं तो ऐसी स्थिति में आप अपने घर में मल्टीयूज पोर्टेबल फर्नीचर का इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसे फर्नीचर न सिर्फ कम जगह घेरते हैं, बल्कि दिखने में भी आकर्षक होते हैं. वजन में हल्के होने से इन्हें आसानी से कहीं भी रखा जा सकता है. ऐसे फर्नीचर्स स्टोरेज के लिहाज से भी परफेक्ट माने जाते हैं.

कम्प्यूटर टेबल कम स्टोरेज

ऐसी टेबल पर कंप्यूटर रखने के अलावा कई चीजें स्टोर भी की जा सकती हैं. इसका निचला हिस्सा बॉक्स में बंटा होता है, जिनमें कंप्यूटर की सभी एक्ससेरीज रखी जा सकती हैं. कुछ टेबल्स साइज में इतनी कॉम्पैक्ट होती हैं कि इनमें प्रिंटर, सीपीयू, वूफर और स्पीकर्स एक साथ रखे जा सकते हैं. इस कंप्यूटर टेबल के साइड में एक स्लाइडिंग टेबल भी अटैच होती है, जिसका पढ़ने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

पोर्टेबल व मल्टीपर्पज टेबल

अगर आपको भी अपने घर में बड़े आकार की सेंटर टेबल रखने के लिए जगह की कमी हो तो पोर्टेबल कॉफी टेबल एक अच्छा ऑप्शन है. पोर्टेबल होने के कारण इस टेबल को फोल्ड करके साइड में रखा जा सकता है. कुछ टेबल्स ट्रे की शेप में आती हैं, जिन्हें फोल्ड करके ट्रे की तरह भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

मल्टीपर्पज वॉल यूनिट

ज्यादा स्टोरेज के लिए वुडन वॉल यूनिट अच्छा विकल्प है. इनमें डेकोरेटिव आइटम्स के अलावा आप टेलीविजन, म्यूजिक सिस्टम, डीवीडी प्लेयर, क्रॉकरी आदि भी रख सकती हैं.

लाइटवेट शेल्फ

यह लाइटवेट शेल्फ छोटे-छोटे सामान रखने के लिए इस्तेमाल में लाई जा सकती है. आप चाहें तो इसे बाथरूम के बाहर लॉन्ड्री का सामान रखने के लिए भी इस्तेमाल कर सकती हैं. एक शेल्फ में कई बॉक्स होते हैं, जिनमें छोटी-छोटी चीजें रखी जा सकती हैं.

मल्टीयूज क्रॉकरी

आजकल पोर्टेबल वुडन फर्नीचर्स के साथ क्रॉकरी को भी मल्टीयूज फर्नीचर की श्रेणी में रखा जाता है. आजकल वॉटर जार लोगों को खूब लुभा रहे हैं. अगर आप इस जार को इस्तेमाल नहीं कर रहीं, तो इसे शोपीस की तरह ड्रॉइंग रूम में रख सकती हैं.

फूलदान

ग्लास से बने ये वाज साइज में बड़े हैं और शोपीस के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ये लाइटवेटेड वाज क्रिस्टल ग्लास से बने हैं, जिन्हें ड्राइंग रूम में रखा जा सकता है.

सफलता पाने के लिए खुद को सुलझाएं ऐसे

समस्या छोटी हो या बड़ी, अगर सुलझाने बैठें तो पता चलता है कि इस का हल तो हमारे पास पहले ही था. उस वक्त लगता है कि काश, किसी ने पहले समझा दिया होता.  सब को बता कर ऊर्जा बरबाद न करें :  हर किसी दोस्त, रिश्तेदार से सलाह मांगना या शान जताने के लिए अपने लक्ष्य बताना नुकसानदायक हो सकता है.  लक्ष्य पूरा हो गया तो यह आप की आदत हो जाएगी. पर जरा सोचिए, जब सबकुछ होना ही है तो, जब हो जाएगा, स्वयं ही पता चल जाएगा.

मूर्खता की हद तो अंशु के साथ हो गई. उस ने अपने इंटरव्यू की बात सब को बताई. परंतु जब कैंपस सैलेक्शन नहीं हुआ तो उसे लगा कि किसी की नजर लग गई.  अब नौकरी के लिए कई जगह ट्राई करना ही पड़ता है. पंडितजी के चक्कर में पड़ गई. कभी सोमवार के व्रत रखती तो कभी किसी ग्रह के अनुसार अंगूठी पहनती.

समस्या साझा करने की बीमारी : 

रिनी को समस्या होती नहीं कि सारे  जानने वालों को पता चल जाता है कि क्या हुआ है. पहले काफी गंभीर हो कर सलाह देते थे दोस्त. पर अब सब उस से कन्नी काटने लगे हैं. आप अपनी समस्या खास लोगों से ही साझा करें. रोने वालों का कोई साथ नहीं देता, यह एक सचाई है.

बातों का मतलब खोजने का फलसफा :

क्या आप भी उन महान लोगों में से हैं जो सीधी बात को भी बेहद गहरे अर्थ में ले लेते हैं? बात को पकड़ कर न बैठें. यह भी समझें कि कभीकभी लोग सही अर्थ में नहीं कहते. झूठ बोलना या थोड़ीबहुत फेंकना लोगों की आदत होती है. इसलिए किसी बात को बेहद तूल देना या अत्यधिक बहस करना बेकार ही है.

अपनी शक्लोसूरत पर गौर जरूर करें : 

‘आईने में शक्ल देखी है’, यह कहावत तो जरूर सुनी होगी. अपनी त्वचा, बाल और साफसफाई का विशेष खयाल करें. अनचाहे बाल, दागधब्बों से छुटकारा पाएं. विशेषकर, फिटनैस रूटीन को मेंटेन करें. फिट रहना शरीर और दिमाग दोनों की जरूरत है. इसे ले कर सतर्क व गंभीर रहें. जो व्यक्ति अपने शरीर की देखभाल नहीं कर सकता, वह दूसरी जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर पाएगा. अगर करेगा भी, तो रोधो कर.

लड़ाई कर लें पर बोलचाल बंद न करें : 

किसी से कितनी भी बहस हो जाए लेकिन बोलचाल बंद नहीं करनी चाहिए. रचिता को उस के पंडितजी ने एक सलाह दी कि सब से बोलचाल रखो, कड़वा न बोलो, इस से ग्रह ठीक रहेंगे. पंडितजी को 21 सौ रुपए की दक्षिणा मिली. अरे भाई, यह व्यावहारिक  सलाह है. चूंकि पंडितजी ने अपनी झोली भरने के लिए कहा, इसलिए कीमती हो गई. खैर, किसी से भी झगड़ा करने में पहल न करें. कहीं पर जरूरी भी हो बहस कर लें, मगर बोलचाल बंद न करें.

प्रैक्टिस जरूर करें  :

कोई भी काम, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो, करने से पहले होमवर्क जरूर करें. प्रैक्टिस से काम जल्दी पूरे होने के आसार होते हैं. जैसे, मोना ड्राइविंग लाइसैंस बनवाने से पहले कभी प्रैक्टिस कर के नहीं जाती थी. नतीजा, 5 बार टैस्ट देने के बाद ही पास हो पाई थी. इसलिए इंटरव्यू हो या कोई और काम, थोड़ा समय पहले दे कर होमवर्क करने में कोई बुराई नहीं. सफल खिलाड़ी कितने ही सफल क्यों न हो जाएं, अपने प्रतिद्वंद्वी की कमजोरी या तकनीक देखते हैं, चाहे वह कितना ही कमजोर या नया क्यों न हो.

हमेशा सकारात्मक नहीं रह सकते :

कोई भी हमेशा सकारात्मक नहीं रह सकता. निराशा और कुंठा के क्षण सभी के जीवन में आते हैं. चाहे कोई कितना भी सफल क्यों न हो. सफलतम आदमी भी निराश होता है. पर एक फर्क जरूर है. अकसर सफल व्यक्ति रोनेधोने के बजाय कुछ नया सीखने में वक्त देते हैं.

ओवर रिऐक्शन ठीक नहीं  :

प्रिया छोटीछोटी बातों को ले कर जल्दी चिड़चिड़ी हो जाती है. कामवाली हो, या ड्राइवर, वह जल्दी ही आपा खो देती है. कहते हैं, ज्यादा गुस्से वाले व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता. पूरी दुनिया आप के हिसाब से नहीं चल सकती.

ओवरइमोशंस को करें कंट्रोल  :

पल में बेहद खुश और मिलनसार लगी सोनम जब दीक्षा को दोबारा मिली तो उस से हायहैलो भी नहीं कहा. सोनम खुश भी जल्दी हो जाती, तो गुस्सा भी तुरंत हो जाती थी. पर सब से अजीब बात जो थी वह यह कि अगर किसी की तारीफ करती तो इतनी ज्यादा करती थी कि व्यक्ति स्वयं ही शरमा जाए. बुराई करती तो इतनी ज्यादा कि सुनने वाला परेशान हो जाए. और तो और, छोटी सी बात बुरी लग जाती तो पचासों बातें सुनाने से न चूकती. समाज में और सफलता के लिए यह रवैया ठीक नहीं है वरना आप नुकसान ही उठाते रहेंगे. खुश रहिए और खुश दिखिए भी.

पति को तलाक देना चाहती हूं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 23 साल की हूं. मेरी 3 साल की बेटी भी है. अजीब बात है, पर सच है कि मैं एक लड़की से प्यार करती हूं. वह लड़की कहती है कि मैं अपने पति को तलाक दे कर उस के साथ भाग जाऊं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप पति व बच्चे का सुख भोग कर भी बेवकूफी की बात कर रही हैं. आप उस लड़की को बताएं कि पति का सुख कितना मजेदार होता है. आदमी का साथ पा कर वह लड़की भी लाइन पर आ जाएगी.

ये भी पढ़ें- 

बाहर ड्राइंगरूम में नितिन की जोरजोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी, “मैं क्या पागल हूं, बेवकूफ हूं, जो पिछले 5 सालों से मुकदमे पर पैसा फूंक रहा हूं. और सिया पीछे से राघव
के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रही है.”

तभी नितिन की मम्मी बोली, “बेटा, पिछले 5 सालों से तो वनवास भुगत रही है तेरी बहन. जाने दे, अब अगर उसे जाना है…”

नितिन क्रोधित होते हुए बोला, “पहले किसने रोका था?”

सिया अंदर कमरे में बैठेबैठे घबरा रही थी. उस ने फैसला तो ले लिया था, पर क्या यह उस के लिए सही साबित होगा, उसे खुद पता नही था.

सिया 28 वर्ष की एक आम सी नवयुवती थी. 5 वर्ष पहले उस की शादी आईटी इंजीनियर राघव से हुई थी.

सिया के पिता की बहुत पहले ही मृत्यु हो गई थी. सिया के बड़े भाई नितिन और रौनक ने ही सिया के लिए राघव को चुना था. जब राघव सिया को देखने आया था, तो दुबलापतला राघव सिया को थोड़ा अटपटा लगा था. राघव और सिया के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी. सिया की बड़ीबड़ी आंखें और शर्मीली मुसकान राघव के दिल को दीवाना बना गई थी.

राघव ने रिश्ते के लिए हां कर दी थी. मम्मी सिया की किस्मत की तारीफ करते नहीं थक रही थी. एक सिंपल ग्रेजुएट को इतना पढ़ालिखा पति जो मिल गया था.

सिया को विवाह के समय भी लग रहा था कि उस का ससुराल पक्ष अधिक खुश नही है. सिया को लगा, शायद राघव के घर वालों को उन की आशा के अनुरूप उपहार नहीं मिले थे.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- वनवास: क्या सिया को आसानी से तलाक मिल गया?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

भाभी: क्या अपना फर्ज निभा पाया गौरव?

family story in hindi

घर का सादा खाना: क्या सही थी प्रिया की तरकीब

अनिल और बच्चे शुभम व शुभी औफिस चले गए तो प्रिया कुछ देर बैठ कर पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. अचानक नजर नई रैसिपी पर पड़ी. पढ़ते ही मुंह में पानी आ गया. सामग्री देखी. सारी घर में थी. प्रिया को नईनई चीजें ट्राई करने का शौक था.

खानेपीने का शौक था तो ऐक्सरसाइज कर के अपने वेट पर भी पूरी नजर रखती थी. एकदम बढि़या फिगर थी. कोई शारीरिक परेशानी भी नहीं थी. वह अपनी लाइफ से पूरी तरह संतुष्ट थी. बस आजकल अनिल और बच्चों पर घर का सादा खाना खाने का भूत सवार था.

प्रिया अचानक अपने परिवार के बारे में सोचने लगी. अनिल हमेशा से बिग फूडी रहे हैं पर अब अचानक अपनी उम्र की, अपनी सेहत की कुछ ज्यादा ही सनक रहने लगी है. हैल्दी रहने का शौक तो पूरे परिवार को है पर यह कोई बात थोड़े ही है कि इंसान एकदम उबली सब्जियों पर ही जिंदा रहे और वह भी तब जब कोई तकलीफ भी न हो. उस पर मजेदार बात यह हो कि औफिस में सब चटरपटर खा लें पर घर पर कुछ टेस्टी बन जाए तो सब की नजर तेल, मसाले, कैलोरीज पर रहे.

अब टेस्टी चीजें कैलोरीज वाली होती हैं तो प्रिया की क्या गलती है. उस के पीछे पड़ जाते हैं सब कि कितना हैवी खाना बना दिया है. आप को पता नहीं कि हैल्दी खाना चाहिए. भई, मुझे तो यह भी पता है कि कभीकभी खा भी लेना चाहिए. इस बात पर आजकल प्रिया का मूड खराब हो जाता है. भई, तुम लोग इतने हैल्थ कौंशस हो तो औफिस में भी उबला खाओ.

शाम को कभी किसी से पूछ लो कि आज औफिस में क्या खाया तो ऐसीऐसी चीजें बताई जाती हैं कि प्रिया की नजरों के सामने घूम जाती हैं और उस के मुंह में पानी आ जाता है.

मन में दुख होता है कि मैं जब मूंग की दाल और लौकी की सब्जी खा रही थी, तो ये लोग पिज्जा और बिरयानी खा रहे थे और अनिल का यह ड्रामा रहता है कि टिफिन घर से ही ले कर जाना है, उन्हें घर का सादा खाना ही खाना है.

वह सुबह उठ कर 3-3 हैल्दी टिफिन तेयार करती है और शाम को पता चलता है कि लजीज व्यंजन उड़ाए गए हैं. खून जल जाता है प्रिया का. यह उस की गलती है न कि वह एक हाउसवाइफ है, घर में रहती है, रोज बाहर जा कर कभी कुछ डिफरैंट नहीं खा पाती. उसे तो वही खाना है न जो टिफिन के लिए बना हो. वह कहां जा कर अपना टेस्ट बदले.

किट्टी पार्टी एक दिन होती है, अच्छा लगता है. आजकल तो कभी जब वीकैंड में बाहर खाना खाने जाते हैं, तो प्रिया मेनू कार्ड देखते हुए मन ही मन एक से एक बढि़या नई डिशेज देख ही रही होती है कि अनिल फरमाते हैं कि सूप और सलाद खाते हैं. प्रिया को तेज झटका लगता है. सूप तो पसंद है उसे पर सलाद? यह क्या है, क्यों हो रहा है उस के साथ ऐसा?

पास्ता, वैज कबाब, कौर्न टिक्की और दही कबाब, जो उस की जान हैं, इन में आजकल अनिल को ऐक्स्ट्रा तेल नजर आ रहा है. भई, जब वह अब तक अपने परिवार की हैल्थ का ध्यान रखती आई है तो फिर कभीकभी तो ये सब खाया जा सकता है न? सलाद खाने तो वह नहीं आई है न 20 दिन बाद बाहर?

बच्चों ने भी जब अनिल की हां में हां मिलाई तो प्रिया सुलग गई और सूप व सलाद खाती रही. मन में तो यही चल रहा था कि ढोंगी लोग हैं ये. यह शुभम अभी 2 दिन पहले अपने फ्रैंड्स के साथ बारबेक्यू नेशन में माल उड़ा कर आया है और यह शुभी की बच्ची औफिस में तरहतरह की चीजें खा कर आती है.

शाम को घर आ कर कहती है कि मौम, डिनर हलका दिया करो, स्नैक्स हैवी हो जाते हैं. अरे भई, मेरी भी तो सोचो तुम लोग, घर का

सादा खाना खाने का गाना मुझे क्यों सुनाते हो… मेरी जीभ रो रही है… अब क्या टेस्टी, मजेदार खाना खाने के लिए तुम लोगों को सचमुच रोकर दिखाऊं… अगर अच्छीअच्छी चीजें खाने के लिए सचमुच किसी दिन रोना आ गया न मुझे तो पता है मुझे, सारी उम्र मेरा मजाक उड़ाया जाएगा.

अभी अनिल की 5 दिन की मीटिंग थी. रोज शानदार लंच था. सुबह ही बता जाते कि शाम को कुछ खिचड़ी टाइप चीज बना कर रखना. कुछ दिन लंच बहुत हैवी रहेगा. मेरी आंखों में आंसू आतेआते रुके. शुभम और शुभी वीकैंड में अपने दोस्तों के साथ बाहर ही लाइफ ऐंजौय कर लेते हैं. बचा कौन? मैं ही न?

अब खाने के लिए रोना उसे भी अच्छा नहीं लग रहा है पर क्या करे, मन तो होता है न कभीकभी कुछ बाहर टेस्टी खाने का… कभीकभी अनहैल्दी भी चलता है न… यहां तक कि इन तीनों ने चाट खाना भी बंद कर दिया है, क्योंकि तीनों का औफिस में कुछ न कुछ बाहर का खाना हो ही जाता है.

अब बताइए, 6 महीनों में कभी छोलों के साथ भठूरे नहीं बन सकते? पर नहीं, रात में जैसे ही छोले भिगोती हूं, तीनों में से कोई भी शुरू हो जाता है कि भठूरे मत बनाना, बस रोटी या राइस… मन होता है छोलों का पतीला बोलने वाले के सिर पर पलट दूं… यह जरूरी क्यों हो कि घर में बस सादा ही खाना बने?

घर में भी तो कभी टेस्ट चेंज किया जा सकता है न?

पता नहीं तीनों कौन से प्लैनेट के निवासी बनते जा रहे हैं. यही फलसफा बना लिया है कि घर में खाएंगे तो सादा ही (बाकी माल तो बाहर उड़ा ही लेंगे).

पिछली किट्टी पार्टी में अगर अंजलि के घर खाने में पूरियां न होतीं, तो पूरियां खाए उसे साल हो जाता. बताओ जरा, उत्तर भारतीय महिला को अगर पूरियां खाए साल हो रहा हो तो यह कहां का न्याय है? अब कभी रसेदार आलू की सब्जी या पेठे की सब्जी, रायते के साथ पूरी नहीं खा सकते क्या? अहा, मन तृप्त हो जाता था खा कर. अब ये ढोंगी लोग कहते हैं कि हमारे लिए तो रोटी ही बना देना. अब अपने लिए 2-3 पूरियों के लिए कड़ाही चढ़ाती अच्छी लगूंगी क्या?

बस अब प्रिया के हाथ में था गृहशोभा का सितंबर, द्वितीय अंक और रैसिपी थी सामने गोभी पकौड़ा और अचारी मिर्च पकौड़ा. 2-3 बार दोनों रैसिपीज पढ़ीं. मुंह पानी से भर गया. पढ़ कर ही इतना खुश हुआ दिल… खा कर कितना मजा आएगा… बहुत हो गया घर का सादा खाना और सब से अच्छी बात यह है कि गोभी, समोसे बेक करने का भी औप्शन था तो वह बेक कर लेगी. तीनों कम रोएंगे, थोड़ा पुलाव भी बना लेगी, परफैक्ट, बस डन.

तीनों लगभग 8 बजे आए. आज प्रिया का चेहरा डिनर के बारे में सोच कर ही चमक रहा था. वैसे तो बनातेबनाते भी 2-3 समोसे खा चुकी थी… मजा आ गया था. पेट और जीभ बेचारे थैंक्स ही बोलते रहे थे जैसे तरसे हुए थे दोनों मुद्दतों से…

चारों इकट्ठा हुए तो प्रिया ने ‘आज फिर जीने की तमन्ना है…’ गाना गाते हुए खाना लगाया तो तीनों ने टेबल पर नजर दौड़ाई. अनिल के माथे पर त्योरियां पड़ गईं, ‘‘फ्राइड समोसे डिनर में? प्रिया, क्यों तुम सब की हैल्थ के लिए केयरलैस हो रही हो?’’

‘‘अरे, समोसे बेक्ड हैं, डौंट वरी.’’

‘‘पर मैदे के तो हैं न?’’

प्रिया का मन हुआ बोले कि कल जो पिज्जा उड़ाया था वह किस चीज का बना था? पर लड़ाईझगड़ा उस की फितरत में नहीं था. इसलिए चुप रही.

शुभम ने कहा, ‘‘मां, पकौड़े तो फ्राइड हैं न? मैं सिर्फ पुलाव खाऊंगा.’’

प्रिया ने शुभी को देखा, तो वह बोली, ‘‘मौम, आज औफिस में रिया ने बहुत भुजिया खिला दी… अब भी खाऊंगी तो बहुत फ्राइड हो जाएगा… मैं पुलाव ही खाऊंगी.’’

डिनर टाइम था. सब सुबह के गए अब एकसाथ थे. शांत रहने की भरसक कोशिश करते हुए प्रिया ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम लोग सिर्फ पुलाव खा लो,’’

अनिल ने एक समोसा उस का मूड देखते हुए चख लिया, बच्चों ने पुलाव लिया. प्रिया ने जब खाना शुरू किया, सारा तनाव भूल उस का मन खिल उठा. जीभ स्वाद ले कर जैसे लहलहा उठी. आंसू भर आए, इतना स्वादिष्ठ घर का खाना. वाह, कितने दिन हो गए, वह खुद रोज कौन सा तलाभुना खाना चाहती है, पर घर में भी कभी कुछ स्वादिष्ठ बन सकता है न… महीने में एक बार ही सही, पर यहां तो हद ही हो गई थी. वह जितनी देर खाती रही, स्वाद में डूबी रही. उस ने ध्यान ही नहीं दिया कौन क्या खा रहा है. उस का तनमन संतुष्ट हो गया था.

सब आम बातें करते रहे, फिर अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. उस दिन जब प्रिया सोने के लिए लेटी, वह मन ही मन बहुत कुछ सोच चुकी थी कि नहीं करेगी वह सब के लिए इतनी चीजों में मेहनत, उसे कभीकभी अकेले ही खाना है न, ठीक है, उस का भी जब मन होगा, खा लेगी. बस एक फोन करने की ही देर है. अपने लिए और्डर कर लिया करेगी… यह बैस्ट रहेगा. उसे कौन सा कैलोरीज वाला खाना रोज चाहिए… कभीकभी ही तो मन करता है न… बस प्रौब्लम खत्म.

उस के बाद प्रिया यही करने लगी. कभी महीने में एक बार अपने लिए पास्ता और्डर कर लिया, कभी सिर्फ स्टार्टर्स और घर में सब खुश थे कि घर में अब सादा खाना बन रहा है. प्रिया तो बहुत ही खुश थी. उस का जब जो मन होता, खा लेती थी. अपने प्यारे, ढोंगी से लगते अपनों के बारे में सोच कर उसे कभी हंसी आती थी, तो कभी प्यार, क्योंकि उन के निर्देश तो अब भी यही होते थे कि बाहर हैवी हो जाता है, घर में सादा ही बनाना.

जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती- भाग 1: आशिक मिजाज बॉस की कहानी

रमलाने दीवार घड़ी में समय देखा. रात के 12 बजे थे. पति मिहिर अभी तक घर नहीं पहुंचा था. कुछ देर पहले उस ने मिहिर को फोन किया तो जवाब मिला कि दिस नंबर इज नौट रीचेबल. मन घबरा गया. मिहिर को इतनी देर कभी नहीं होती थी फिर आज क्यों? कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई? यह नौट रीचेबल क्यों आ रहा है?

रमला के मन में बुरेबुरे खयाल आ रहे थे. सोचने लगी कि यह शहर मेरे लिए बिलकुल नया है. आसपास किसी से परिचय नहीं है. किसे जगाएगी… आधी रात हो गई है. अपने शहर आगरा में पूरी गली में अपनी पहचान वाले थे. वहां तो आधी रात को भी किसी का भी दरवाजा खटका देती थी.

मिहिर पिछले 5 सालों से दिल्ली में रह रहा है. उस के यारदोस्तों की लिस्ट भी लंबी है. औफिस के दोस्तों के साथ अकसर पिक्चर चला जाता, पर देर होने पर फोन अवश्य करता है.

अकसर बौस के साथ औफिस में रुक कर फाइलें निबटाता है तब भी देर हो जाती है.

देखना, आते ही बोलना शुरू हो जाएगा कि बौस के मेन औफिस में कल मीटिंग है. उस के ही पेपर तैयार कर रहा था. बस, देर हो गई. मिहिर बौस के बारे में कई बार बता चुका है. उसे मेहनती और ईमानदार लोगों में खास दिलचस्पी है. नालायक लोगों से नफरत है. वैसे आदमी दिलचस्प है, मेहनती है. लोगों से काम कराना भी आता है, पर पक्का छोकरीबाज है. हर शाम उस के साथ एक लड़की अवश्य होती है. खूब शौपिंग कराता है, गिफ्ट भी खूब देता है. लड़कियां उस के साथ खुश रहती हैं.

यों वह मिहिर पर भी मेहरबान है. मगर रमला उस के नाम से चिढ़ती है, क्योंकि उस ने मिहिर की प्रमोशन फाइल दबा रखी है.

‘‘तुम्हारे साथ के कितने साथी प्रमोट हो कर आगे बढ़ गए, तुम 2 साल से वहीं हो,’’ एक दिन इसी बात को ले कर रमला बहुत बिगड़ी. तब मिहिर ने कहा, ‘‘तुम से मैं इशारोंइशारों में कई बार कह चुका हूं कि बौस को शौपिंग करनी है तुम उस की हैल्प कर दो… मेरे सारे दोस्तों की पत्नियों के साथ वह शौपिंग कर चुका है. वह सिर्फ तुम से मिलना चाहता है. औफिस की सभी लड़कियां उस के साथ जा कर खुश होती हैं. औफिस गर्ल्स के साथ छिछोरापन नहीं करता है.’’

‘‘छोड़ो. तुम्हें कैसे पता ये सब… यह भी कोई प्रमोशन की शर्त है?’’

‘‘देखो मुझ से ज्यादा छानबीन मत करो. नहीं जाना तो मत जाओ,’’ मिहिर भी उस की बात पर ताव खा गया. फिर रमला को छोड़ ड्राइंगरूम में चला गया.

इस बात को काफी दिन हो गए. बात वहीं अटकी है.

तभी स्कूटर की आवाज से रमला की सोच टूटी. वह जान गई कि पति आ गए हैं. जानती है घर में घुसते ही बौसपुराण शुरू हो जाएगा. सो डोरबैल बजने से पहले ही दरवाजा खोल कर रसोई में खाना गरम करने चली गई.

खाने की मेज पर दोनों चुप थे. खाना खत्म हो गया तो मिहिर ने धीरे से कहा, ‘‘कल औफिस में बाहर से कुछ लोग आ रहे हैं. वे यहां से शौपिंग करना चाहते हैं. तुम उन की हैल्प करोगी? देखो, गुस्सा मत होना. पहले पूरी बात सुन लो. दरअसल, बौस को अपनी पत्नी के लिए बनारसी साड़ी खरीदनी है. सो तुम साथ होगी तो शौपिंग ईजी होगी. सब से बड़ी बात मैं भी उन के साथ रहूंगा.’’

रमला बड़ी देर तक सोचती रही कि वैसे साथ जाने में हरज ही क्या है. साथ

में इतने सारे लोगों… पति की इतनी सी बात तो मान ही सकती है. फिर मर्दों को औरतों के कपड़ों की पहचान कहां होती है? फिर बोली, ‘‘ठीक है चलूंगी.’’

‘‘ठीक है मैं चलने से पहले तुम्हें बता दूंगा.’’

ठीक 5 बजे शाम को मिहिर का फोन आया, ‘‘रमला जल्दी से तैयार हो जाओ. हम आधे घंटे में घर पहुंच रहे हैं.’’

रमला साड़ी बदलने अंदर गई और कुछ देर बाद दरवाजा धकेलने की आवाज से समझ गई कि दोनों आ गए हैं.

वह तैयार हो कर आई तो मिहिर को कोक सर्व करते देखा.

‘‘नमस्ते सर,’’ रमला की आंखें बौस के चेहरे पर जमीं. बौस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा.

नमस्ते के जवाब के साथ बौस का स्वर उभरा, ‘‘तुम… तुम रमला हो?’’

‘‘जी, सर. आप रूपेश, सर?’’

‘‘ओह, तो मिहिर यह तुम्हारी पत्नी रमला है,’’ वह कुछ झिझका, ‘‘वह क्या है मिहिर हम एकदूसरे को पहले से जानते हैं.’’

‘‘ओह गुड सर,’’ मिहिर इस मुलाकात से खुश था.

‘‘याद है रमला तुम अकसर पापा की दुकान पर आती थीं.’’

रमला ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘हां, फिर सुना तुम्हारे पापा बीमार हो गए थे. शायद तुम्हारी मां और मेरे पापा एक ही हौस्पिटल में थे. बाद में मेरे पापा का इंतकाल हो गया.’’

‘‘हां, याद आया.’’

रमला और मिहिर दोनों एक ही शहर से हैं और साथ पढ़े भी हैं यह जान कर मिहिर ने मन ही मन कहा कि अब तो प्रमोशन की दबी फाइल झट से बौस की टेबल पर आ जाएगी.

बातों का सिलसिला जारी रहा. तीनों गाड़ी में आ बैठे. कुछ देर में रूपेश गाड़ी ड्राइव करने लगा. मिहिर बगल में बैठा था और रमला पीछे.

3 लोग 3 दिशाओं में सोच रहे थे… रूपेश सोच रहा था कि वह कभी रमला के प्रति आकर्षित था. तब वह 10वीं कक्षा में था. घर में कड़ा अनुशासन था. सो रमला से बात करने की हिम्मत ही नहीं होती थी.

गरमी की छुट्टियां थीं. रमला ने पेंटिंग क्लासेज जौइन कर ली थीं. एक रोज उस ने रूपेश को भी वहां देखा. दोनों का मेलजोल बढ़ा. दोनों को एकदूसरे की दोस्ती भा गई. पेंटिंग रूपेश का पैशन था. उस का मन करता रमला पास बैठी रहे और वह पेंटिंग करता रहे, पर उस के हिस्से में कुछ और ही लिखा था.

पिता को अचानक हौस्पिटल ले जाना पड़ा तो पेंटिंग क्लासेज छूट गईं. पर पैशन बरकरार रहा. एक दिन रमला उसे हौस्पिटल में मिली. मिहिर के पिता को कैंसर है जान कर बड़ा दुख हुआ.

कैसे थे वे दिन. तब रमला उसे मिली और फिर पता ही न चला कहां चली गई.

आज अचानक यहां देख कर बड़ी खुशी हुई. वैसे उस ने कभी सोचा भी न था कि रमला से यों मुलाकात होगी.

विकल्प- भाग 1 : क्या दूसरी शादी वैष्णवी के लिए विकल्प थी?

“मौसम की तरह लोग भी बदलते हैं.” दुनिया के लिए चाहे यह सिर्फ किताबों में पढ़े हुए एक जुमले तक ही सीमित होगा लेकिन वैष्णवी असल जिंदगी में ऐसे बहुत से कटु अनुभवों से गुजरी है. अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर वह दावा कर सकती है कि कहावतें, मुहावरे, धारणाएं या मान्यताएं अकस्मात नहीं बना करतीं. उन के पीछे अवश्य ही कोई पुख्ता कारण रहते होंगे.

अट्ठाइस की उम्र में इतने खट्टे अनुभवों से गुजरना कितना त्रासद होता होगा, यह भी हर कोई नहीं समझ सकता. “जाके पांव न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई” इस कहावत के पीछे भी तो कोई गहरा और कड़वा अनुभव ही रहा होगा.

पिछले 3 वर्षों से वैष्णवी इसी तरह रंग बदलती दुनिया को देख रही है. हर रोज नकाब उतरता चेहरा अपने किसी न किसी घनिष्ठ का ही होता है.

‘काश कि मेरी आंखों पर मोह की यह पट्टी बंधी ही रहती तो सोने के सोना होने का वहम तो बना रहता. पट्टी खुलने से तो सुनहरे मुलम्मे के पीछे छिपा पीतल मुंह चिढ़ाने लगा है.’ वैष्णवी यह सोचती और मित्र व परिजनों के दोगले मुंह देखसुन कर अपना जी जलाती रहती.

वैष्णवी आज भी नहीं भूली उस मनहूस रात को जब पति व्योम का हाथ उस के हाथ से छूट गया था. वह व्योम के साथ जयपुर के मशहूर राजमंदिर सिनेमाहौल में फ़िल्म देखने गई थी. मैटिनी शो के बाद उन दोनों का चोखी ढाणी जाने का प्रोग्राम था. पूरी शाम वहीं बिताने के बाद वे डिनर कर के ही वापस आने वाले थे.

अभी सालभर पहले ही तो शादी हुई थी उन की, इसलिए अभी वे दोनों हनीमून पीरियड में ही चल रहे थे. उस शाम वैष्णवी बहुत खुश थी. चोखी ढाणी में चल रहे कठपुतलियों के नाच ने तो उसे इतना उत्साहित कर दिया था कि वह अपनेआप को उन के साथ थिरकने से नहीं रोक सकी. और वहां बैठी लोकगायिका द्वारा छेड़े गए उस मधुर लोकगीत ‘केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस…’ की स्वरलहरी ने तो उसे इस कदर भावविह्वल कर दिया कि वह पूरी शाम उसी लोकगीत को गुनगुनाती, चुंबक की तरह व्योम के हाथ से ही लिपटी रही.

हम जिस पल में जी रहे होते हैं, दरअसल, जिंदगी सिर्फ उसी पल में सिमटी होती है. जो पल बीत गया उसे वापस नहीं लाया जा सकता और जो बीतने वाला है उस के बारे में कोई नहीं जानता कि कैसे बीतने वाला है. ऐसा ही एक अजनबी पल वैष्णवी की जिंदगी में भी आने को तैयार बैठा था. प्रेम में आकंठ डूबी, अधमुंदी आंखों से वे बाइक पर सवार हवा से होड़ लगा रहे थे कि एक अंधे मोड़ पर तेज गति से घूमते ट्रक पर उन की निगाह ही नहीं गई.

चर्रर्रर्र… की तेज आवाज के साथ ब्रेक भी लगे लेकिन यह सब इतना अकस्मात हुआ कि व्योम अपनी बाइक को संभाल नहीं पाया और बाइक स्लिप हो गई. हवा में उछलता हुआ व्योम करीब 10 फुट दूर जा कर गिरा. दूसरी तरफ सड़क किनारे पड़े नुकीले पत्थर से वैष्णवी का सिर टकराया और वह अचेत हो गई. उस के बाद जब वैष्णवी को होश आया तो वह खाली हाथ हो चुकी थी.

वैष्णवी ग़ज़ब की खूबसूरत लड़की थी. व्योम तो देखते ही उस पर रीझ गया था. व्योम भी पहली ही निगाह में वैष्णवी के दिल में उतर गया था.

लंबा कद, गोरा रंग, कर्ली बाल और प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में आकर्षक सालाना पैकेज… किसी लड़की को भला और क्या चाहिए सहेलियों के बीच ईर्ष्या का पात्र बनने के लिए. अपने समय पर इतराती वैष्णवी आसमान में उड़ी जा रही थी. लेकिन समय कोई किताब तो नहीं जिसे पृष्ठ दर पृष्ठ पढ़ कर उस का सार निकाल लिया जाए. या किसी दूसरे का पढ़ कर अपने वाले की समीक्षा कर ली जाए. यह तो बंद लिफाफा सा होता है जिस के भीतर की चिट्ठी पहले कोई नहीं पढ़ सकता. वैष्णवी को भी कहां अंदेशा था कि उस के समय चिट्ठी इतनी कोरी और सफेद निकलेगी. पति को खो चुकी वैष्णवी के लिए एक ही रात में लोगों का नजरिया बदल गया.

‘बेटीबेटी’ कह कर न अघाने वाले सासससुर के लिए वह अब अपशगुनी हो चुकी थी. सास ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘काश, व्योम की जगह यही चली जाती. इस की मां के तो एक बेटी और भी है, लेकिन मेरा बेटा तो इकलौता था.’

बातें हवा की तरह होती हैं. चाहे कितने भी दबे स्वरों में की जाएं, एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच ही जाती हैं. ये भी पहुंच गईं. वैष्णवी ने सुना तो टूटे हुए कलेजे के कुछ और टुकड़े हो गए. तेरहवीं के क्रियाकर्म के बाद उसे मांपापा अपने साथ ले आए. सास ने तो जाती हुई के सिर पर स्नेह का हाथ तक न रखा. ससुर जरूर दरवाजे तक विदा करने आए थे.

‘आती रहना, तुम्हारा ही घर है’, ससुर ने देहरी लांघते समय कहा था. सब जानते थे कि इस तरह के औपचारिक वाक्य महज दुनियादारी निभाने के लिए ही कहे-बोले जाते हैं. वैष्णवी ने भी हामी में गरदन हिलाते हुए भारी मन से विदा ली, कभी वापस न आने के लिए. पांव एक बार तो देहरी पर ठिठके भी थे. यही वह दहलीज थी जिस पर उस ने मेहंदी लगे पांवों से चावलों से भरे कलश को ठोकर मार कर भीतर प्रवेश किया था.

यादें गाड़ी के शीशे पर जमी गर्द की तरह होती हैं. आगे बढ़ने के लिए रास्ते का साफ़ दिखना जरूरी होता है और रास्ता साफ़ दिखे, इस के लिए शीशे पर जमी गर्द पोंछनी ही पड़ती है. वैष्णवी ने भी अपने भविष्य के बारे में सोच कर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया.

सच के फूल- भाग 3: क्या हुआ था सुधा के साथ

सुबह जब नींद खुली तो उसे बहुत अच्छा लगा. वह अपनेआप को तरोताजा पा रही थी. होंठों पर मुसकान थी कि तभी यादों का एक रेला सारी ताजगी उड़ा ले गया. वह फिर सहम गई और चुपचाप वाशरूम में घुस गई. उसे आज घर कुछ ज्यादा शांत लगा. वैसे सुधा का घर शांत ही रहता है. उस के पापा बहुत नियम और कायदे के पक्के हैं. आज की खामोशी थोड़ी बो िझल लग रही थी. उसे सुबह ही चाय पीने की आदत थी, इसलिए वह चाय बनाने रसोई में पहुंची.

‘‘चाय पीओगी मां?’’ उस ने पैन उठाते हुए प्यार से मां से पूछा.

‘‘नहीं,’’ मां की कड़क आवाज से डर गई.

‘‘हमें पापा के साथ पी चुके हैं तुम पी लो.‘‘

वह चुपचाप चाय बनाने लगी. उस ने निश्चय कर लिया पापा के औफिस जाते वह मां से बात करेगी. दीपक भी स्कूल जा चुका था. चाय ले कर वह अपने कमरे में आ कर पढ़ने की टेबल को ठीक करने लगी. पता नहीं आगे पढ़ पाएगी या नहीं. सभी लोग उस पर इतनी जल्दी विश्वास नहीं कर सकते हैं. कहीं कालेज से नाम ही न कटवा दें. वह जिद्द भी नहीं कर सकती. लीला देवी कमरे में आई और टेबल के पास खडी़ हो बोली, ‘‘क्या कर रही हो सुधा?’’

‘‘कुछ नहीं मां… आओ न,’’ सुधा ने मां को अपने बैड पर बैठाया और फिर खुद जमीन पर बैठ अपना सिर मां की गोद में रख दिया.

‘‘मां हमें तुम से कुछ बात करनी है.’’

‘‘हां बोल.’’

मां के पैर पकड़ बोली, ‘‘मु झे माफ कर दो मां मु झ से बहुत बड़ी भूल हो गई. मैं बहुत पछतावे में हूं… मां मैं बहकावे आ गई थी,’’ और वह फूटफूट कर रो रही थी.

‘‘सुधा इधर देखो अपना सिर उठाओ और बताओ क्या हुआ. देखो सब सचसच बताना… घर की इज्जत तो रही नहीं अपना इज्जत भी गंवा आई,’’ लीला देवी कठोरता से बोली.

‘‘नहीं मां मैं घर से भागी जरूर थी पर मुझे अपने मान का पूरा खयाल था मां. मुझे अपनी इज्जत का खतरा लगा तभी तो वापस आ गई.’’

‘‘कहां गई थी?’’

‘‘मां मुझ से गलती हो गई मां. मैं उस के बातों में आ गई थी.’’

‘‘कहां गई थी?’’

‘‘हम दिल्ली गए… दूसरे दिन ही गरीब रथ से भाग आई. मैं बच गई मां… तुम लोगों के आशीर्वाद से मैं बच गई मां.’’

‘‘तुम लोग एक रात…’’

‘‘नहीं मां,’’ सुधा बीच में बात काट कर बोली, ‘‘जिस दिन गए उस दिन रात ट्रेन में थे. तुम मेरा विश्वास करो मां मैं सच बोल रही हूं. वह बोला कि दिल्ली में उस के मामा रहते हैं जो शादी करवा देंगे. लेकिन जब वह मामा के घर न ले जा कर एक गंदे होटल में ले गया उसी समय मैं सम झ गई कि वह  झूठा है. में ने उस पर विश्वास कर भूल कर दी है. फिर मैं चालाकी से भाग निकली. मां तुम मुझे डांटो, मारो… मैं ने काम ही ऐसा किया है पर एक नादान सम झ कर माफ कर दो मां… प्लीज मां बस एक बार,’’ सुधा रोती जा रही थी.

‘‘तुम उस से शादी करना चाहती हो?’’

‘‘नहीं मां नहीं यही तो मेरी सब से बड़ी भूल थी.’’

‘‘फिर गई क्यों?’’

‘‘मेरी बेवकूफी थी मां. वह मुझ से बोला था कि वह आईएएस के मैन्स में आ गया है और उस के पापा उस की शादी अपने दोस्त की बेटी से जबरदस्ती करवाना चाहते हैं.’’

‘‘तुम उस के साथ शादी करना चाहती थी तभी न…’’

‘‘हां पहले मैं उसे खोना नहीं चाहती थी पर मैं जान गई वह एक नंबर का  झूठा इंसान है. वह आईएएस भी नहीं होगा… मुझ से भूल हो गई मां… मुझे माफ कर दो.’’

‘‘ये सब कब से चल रहा है… कब से मिलनाजुलना है?’’

सुधा चुप रही.

‘‘बताओ?’’

‘‘3 महीने से.’’

‘‘बस 3 महीने में तुझे इतना विश्वास हो गया कि घर से पैर निकाल दिए और

23 बरस तक जिन मांबाप के साथ रही उन से एक बार भी पूछना जरूरी नहीं सम झा…. जो मां 9 महीने पेट में रखी उस पर भी विश्वास नहीं रहा… तुमने तो मेरे आंचल में दाग लगा दिया. जिस दिन तुम गई तुम्हारे पापा उस दिन इतने दुखी और हताश थे. बोले लीला कहां चूक हो गई… हम ने तो कभी भी अपने अम्मांबाबूजी का दिल नहीं दुखाया. जैसा वे बोलते गए हम वैसे करते गए. कहीं तुम ने नहीं अपने मांबाप का दिल दुखाया था.’’

सुधा को 1-1 बात हथौडे़ की तरह दिल पर लग रही थी.

‘‘मां… मुझे नादान सम झ कर माफ कर दो… तुम जो भी सजा देना चाहती हो दे दो पर बस माफ कर दो,’’ और वह मां से लिपट कर रोने लगी.

‘‘मैं क्या सजा दू तुझे… तुझे जो भी सजा देंगे उस का दर्द भी तो हमीं को होगा. तुम मेरी देह का अंश हो काट कर नहीं फेंक सकते,’’ लीला देवी का गला रुंध गया.

यह देख कर सुधा बौखला गई, ‘‘मां तुम रो मत मेरी जैसे नालायक बेटी के लिए रो मत… अपने हिस्से का रोना मुझे दे दो.’’

तब मां ने उस के गाल पर एक चपत लगाई, ‘‘पगली ऐसे नहीं बोलते हैं.’’

‘‘मां तुम मुझे माफ कर दो न.’’

‘‘सुधा हम नाराज नहीं हैं… मन में तकलीफ बहुत है जो जिंदगी भर रहेगी. हम लोगों की परवरिश पर अब सवाल तो लग ही गया न,’’ मां ने गंभीरता से कहा.

सुधा के पास इस का कोई जवाब नहीं था. वह चुप रही. मां का रोना उस के मन को आहत कर गया. सच में उस ने बहुत भारी भूल कर दी… परिवार की इज्जत और उन के सम्मान को ठेस पहुंचाई. थोड़ी देर तक दोनों ही अपने हिस्से का दर्द लिए चुप बैठी रही.

शाम को रमाकांत घर आए पर ग्लानि से भरी सुधा कमरे से बाहर नहीं निकली. मां ने चाय पकड़ाई और अपने कमरे में चली गई. रमाकांत कभी भी अपने कमरे में चाय नहीं पीते हैं. शायद मां सारी स्थिति बताने गई है. अब पापा का रिएक्शन क्या होगा जो भी होगा… वह इन सब बातों के लिए तैयार है. इतने अच्छे मातापिता के लिए उसे कुदरत को शुक्रिया कहना चाहिए.

सुधा के लिए समय जैसे बीत नहीं रहा था. कपड़ों की अलमारी ठीक करने की नीयत से  वह अलमारी के पास खड़ी हो गई. उसे पता लग गया कि अलमारी को अच्छे से खंगाला गया है.

कमरे में बैठा दीपू ध्यान से उस की गतिविधियों को देख रहा था. आखिर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘दीदी एक बात पूछूं.’’

‘‘हां पूछो न क्या पूछना है.’’

‘‘तुम अपने कालेज ग्रुप के साथ पिकनिक पर नहीं गई थीं न… हम लोगों से नाराज हो कर कहीं चली गई थी.’’

सुधा को जैसे  झटका सा लगा वह कपड़े जमीन में फेंक दीपू को ओर दौड़ी और उससे लिपट कर रोने लगी, ‘‘नहीं दीपू किसी से नाराज हो कर नहीं गई थी. मुझ से भूल हो गई थी मुझे माफ कर दो दीपू.’’

दीपू 10वीं कक्षा में था. उसे घर के माहौल से कुछकुछ अंदाजा हो रहा था कि दीदी के साथ कुछ तो गड़बड़ है. लड़कियों जरा जल्दी सम झदार हो जाती हैं. लड़के संसारिक मामलों से थोड़ा अनजान रहते हैं.

‘‘तुम तो परची में पता दे गई थी पर सब लोग बहुत घबराए हुए थे.’’

सुधा दीपू को कैसे बताए कि वह पता नहीं बस एक नोट लिख कर गई थी, ‘‘मैं घर छोड़ कर जा रही हूं, 4 दिन बाद आऊंगी.’’

थोड़ी देर रोनेधोने का दौर चला. अब सुधा ने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि किसी तरह पापा को मनाना होगा. पापा नियम के बहुत पक्के हैं. सोने से पहले 10 बजे के न्यूज की हैडलाइन जरूर देखते हैं. वह रात के 10 बजने का इंतजार करने लगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें