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सच के फूल- भाग 6: क्या हुआ था सुधा के साथ

अचानक उस के दिमाग में एक खयाल कौंधा. कहीं ऐसा तो नहीं

गौतम को अंकल ने सब बता दिया हो. वे दोनों सुधा को परखना चाहते हो कि यह लड़की कितनी सच्ची है. चलो अब दिमाग नहीं लगाना है मांपापा से बात कर के कोई निर्णय लेंगे.

खाना खाने के समय पापा ने कहा, ‘‘मुझे ड्राइवर औफिस छोड़ कर आ जाएगा… तुम ड्राइवर के साथ चली जाना.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह तो

दूसरी  दुनिया में उल झी थी. खाने के बाद सुधा पापा के कमरे में जाने का इंतजार करने लगी. वह दबे पांव कमरे में पहुंची. लगता है मां सब बता चुकी थी क्योंकि पापा का चेहरा थोडा़ सा चिंतित लग रहा था.

सुध पलंग के पास जा कर खड़ी हो गई. बोली, ‘‘ पापा कुछ कहना है.’’

रमाकांत शायद अंदेशा लगा चुके थे कि सुधा जरुर असमंजस में होगी. उन्होंने उस की ओर देखा सुधा ने खुद को संयत किया और कहा, ‘‘पापा कल मैं क्या करूं? मेरा मतलब है पापा कल मुझे गौतमजी को सब बता देना चाहिए?’’

‘‘सुधा तुम्हारे मन में क्या चल रहा है पहले यह बताओ?’’ रमाकांत ने पूछा.

‘‘पापा अगर उन्हें पता नहीं होगा और बाद में पता चला तब और दूसरी बात यह है हो सकता है पता हो… मु झे चैक करना चाह रहें हों… पापा मैं डर कर सारा जीवन नहीं बिता पाऊंगी बता देगें तब हो सकता है वह मना कर दें यही न लेकिन बाद में कहीं से पता चला तब तो पूरा जीवन बरबाद हो जाएगा.’’

रमाकांत को लगा समय के  झं झावात ने

सुधा को मजबूत और सम झदार बना दिया है. थोड़ा सोचने के बाद बोले, ‘‘सुधा जो तुम्हारा

मन गवाही देता है वही करो अगर तुम को लगता है कि गौतम को बता देना चाहिए तुम उस को सब सच बता दो वैसे हमें भी यह सही लग रहा है… यह तुम्हारी जिंदगी का फैसला है तुम्हें ही निर्णय लेना होगा हम को लगता है तुम जो भी फैसला लोगी सही होगा. हम लोग हमेशा तुम्हारे साथ हैं.’’

लीला देवी को यह बात बिलकुल ही नहीं जंच

रही थी. सुधा अब आत्मविश्वास से भर गई. जब से सुधा के साथ वह अप्रिय घटना हुई है. वह सम झदार हो गई है… जिंदगी के तथ्यों को गहराई से आंकने लगी है. फिर आज पापा ने उस के मनोबल को बढ़ा दिया है. सोने की चेष्टा की… नींद कोसों दूर थी. जिंदगी की विकट परीक्षा थी… पास हो गई तो खुशियां ही खुशियां और अगर फेल तो पूरे परिवार को दुखदर्द मिलने वाला था.

उस ने अपने कैनवास पर जो मैलाकुचैला रंग थोपा था उसे ही तो मिटाना होगा. अंकल ने सही कहा था सत्य नंगा होता है. इस के लिए हिम्मत चाहिए. यह हिम्मत अब उसे अपने

जिंदगी के कैनवास को साफ करने के लिए लगानी होगी.

गौतम से मिलने के लिए सुधा अलमारी के पास जा खड़ी हुई. क्या पहना जाए यह भी एक चिंता का विषय था. तभी उसे अपनी क्लासमेट रानी की याद आई. वह हाथ की रेखा देखती थीं सारी लडकियां हाथ दिखाती भी थीं और उस का मजाक भी बनाती थीं. उस ने सुधा को बताया था जब भी वह मुश्किल हालात में हो तब सफेद कपड़े को पहने अगर पहन नहीं पाए तब एक सफेद कपड़ा ही पास में रख ले.

सुधा को ये सब बकवास लगता था. पर आज मन हो रहा था उस के कहे को एकबार आजमाया जाए. उस ने अलमारी से अपनी पसंद का एक सफेद कुरता व सफेद चूड़ीदार और

चुन्नी निकाल लिया. कानों के लिए छोटे औक्साइड हैंगिंग निकाले. तैयार हो कर जब मां को दिखाने गई.

लीला देवी अपनी बेटी को बडे़ प्यार से निहारा फिर बोली, ‘‘क्या तुम ने सफेद कपड़े पहन लिए… रंगीन कपड़े पहनने चाहिए थे.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. मां ने कुदरत को प्रणाम कर जाने को कहा. सुधा जब तक आंखों से ओ झल नहीं हुई तब तक उस की मां देखती रही. सब कुशलमंगल हो की कामना करने लगी.

सुधा जब कैफेटेरिया पहुंची तब देखा कि गोतम सीढि़यों के पास खडा था. वह गोतम के साथ चल दी गौतम ने कोने में एक सीट रिजर्व कर रखी थी. उस ने जब बैठने का इशारा किया तो वह बैठ गई. आज उस ने गौतम को गौर से देखा अच्छा स्मार्ट लग रहा था. आज उस ने भी जींस और लैमन कलर की टीशर्ट पहन रखी थी जो उस पर काफी जंच रही थी. उस ने वेटर को इशारे से बुलाया. सुधा का मन हुआ कि वह मुड़ कर देखे कि पीछे क्या गड़बड़ हो रही है पर हिम्मत नहीं हुई.

गौतम लिली के फूलों का गुलदस्ता ले कर आया था. सुधा के हाथों में देते हुए बोला, ‘‘फ्लौवर फौर लवली लेडी.’’

सुधा ने मुसकराते हुए थैक्स कहा और फिर दोनों बैठ गए.

‘‘मां से पूछ कर आई हैं न?’’

गौतम का परिहास वह तुरत सम झ गई. उस ने फोन नंबर नहीं दिया था इसी बात की वह खिंचाई कर रहा था.

‘‘दूसरे दिन दे दिया…’’ जब हम मांगें तो.

‘‘उस समय शादी तय नहीं हुई थी,’’ सुधा ने बीच से ही बात काटते हुए कहा.

‘‘स्मार्ट आंसर,’’ गौतम ने खुश हो कर कहा, ‘‘क्या खाना है?’’

‘‘आप जो भी मंगा लें.’’

गौतम ने वेटर को बुला कर और्डर दिया. सुधा को अपनी बात बताने की जल्दी मची थी.

‘‘आज आप बहुत सुंदर लग रही है,’’ गौतम ने कहा, ‘‘अब आप नाराज न हो जाना… मैं फ्लर्ट करने की कोशिश नहीं कर रही हूं… दरअसल, आप पर सफेद रंग बहुत सूट कर रहा है.’’

‘‘नहीं मुझे तो खुशी हो रही,’’ सुधा ने चंचलता से जवाब दिया.

‘‘अगेन स्मार्ट आंसर.’’

गौतम का चुलबुलापन उसे अच्छा लग रहा था. काश यह वक्त यहीं रुक जाता.

तभी गौतम ने कहा, ‘‘मु झे 2 दिन के लिए जमशेदपुर जाना है. सोच रहा था उधर से दिल्ली वापस चला जाऊंगा, इसलिए मिलना चाहता था पर पापा कह रहे हैं परसों के बाद का दिन अच्छा है सगाई कर के जाओ.’’

‘‘सगाई?’’ सुधा का दिल जोर से धड़का.

‘‘मैं ने कहा अक्तूबर में आ कर कर लेंगे. तब नाराज हो गए. इस कारण मु झे अब दोबारा वापस आना होगा?’’

सुधा बोलने को तड़प रही थी. उस ने अपना मन कड़ा किया और गौतम से बोली, ‘‘मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं.’’

‘‘बोलिए न तभी से मैं ही बोले जा रहा हूं.’’

सुधा धीरेधीरे सारी बातें बताने लगी… बीचबीच में वह गौतम को देखती भी जा रही थी. उस का चेहरा सख्त्त होता जा रहा था. विकी से मुलाकात रोज क्लास बंक कालेज के पास में मिलना… घर से पैसे चोरी कर भागना और फिर उस के धोखे का पता लगने पर वापस घर सकुशल लौट आना… उस ने जोगेश्वर अंकल से मिलने की बात नहीं बताई.

गौतम के चेहरे के भाव प्रति पल बदल रहे थे. उस ने वेटर से बिल लाने को

कहा सुधा सम झ गई सब खत्म हो गया. ऐसा जीवनसाथी उसे कहां मिलेगा.

वेटर ने बिल ला कर दिया. गौतम ने बिना कुछ बोले उस में पैसे रखे. सुधा ग्लानि, क्षोभ से भरी तिलमिला कर खडी हो गई, जिस के कारण वह लड़खड़ा गई. गौतम ने  झट से उसे सहारा दे कर थाम लिया. सुधा रो रही थी. गौतम के स्पर्श से वह और विचलित हो गई. उस की हिचकियां बंध गईं.

गौतम ने उसे दोनों हाथों में थामकर कहा, ‘‘सुधा इधर देखो?’’

सुधा रोती जा रही थी. उस ने देखा

गौतम ने उस के आंसुओं को अपनी हथेली

पर समेट लिया और बोला, ‘‘सुधा इधर देखो

मेरी तरफ.‘‘

सुधा ने भीगी आंखों से गौतम को देखा.

उस ने कहा, ‘‘यह क्या है?’’

सुधा ने देखा हथेली पर आंसू फैलने की तैयारी कर रहे थे.

‘‘ऐसा स्पष्ट मन और सच्चा साथी मु झे कहां मिलेगा?’’ वह बोला.

यह सुन कर सुधा गौतम के सीने से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. उस का सफेद कैनवास इंद्रधनुषी रंगों से रंगीन हो गया था.सच के फूल खिलखिला उठे…

अंतिम प्रहार- भाग 4: क्या शिवानी के जीवन में आया प्यार

‘‘अब जब तुम दीप्ति के भाई के रिश्ते के लिए राजी हो तो तुम्हें किराए का कमरा क्यों चाहिए. एकाध महीना अपने घर में गुजार लो,’’ निकिता ने कहा.

‘‘चलो, मेरे मन से पश्चात्ताप की आग ठंडी हो गई. शिवानी ने मेरी बात मान कर मेरे मन का बोझ हलका कर दिया वरना कल की बात को ले कर मैं परेशान होती रहती,’’ दीप्ति ने खुश मन से कहा.

‘‘पिछली बातों को याद करने का कोई लाभ नहीं है. अब आगे की सोचो, यह सब कैसे होगा?’’ संजना ने कहा.

सब ने निकिता की तरफ देखा. वही समझदारीभरा जवाब दे सकती थी. कुछ पल विचारने के बाद उस ने कहा, ‘‘शिवानी के घर की परिस्थितियां देखते हुए उस का बाजेगाजे और बरातियों के साथ शादी करना संभव नहीं है. कोर्ट मैरिज करना ही बेहतर तरीका होगा.’’

‘‘क्यों न आर्य समाज मंदिर में शादी कर लें,’’ संजना ने सुझव दिया.

‘‘फिर भी शादी रजिस्टर्ड करवानी पड़ेगी तो एक बार में ही क्यों नहीं…?’’

सभी कोर्ट मैरिज पर सहमत थे. दीप्ति ने सलाह दी, ‘‘आज ही उस के मामा के घर चल कर सबकुछ तय कर लिया जाए. सभी तैयार हैं तो ऐसे कार्य में देरी क्यों?’’

दीप्ति के कजिन का नाम मुकेश था. वह 35 वर्ष का ही था. लंबा और छरहरा कद. हसमुंख चेहरा. शिवानी तो पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गई. मुकेश के घर में उस के मातापिता और बेटी थी. अच्छा खातापीता घर था.

जब सभी मुकेश और उस के मातापिता से बात कर रहे थे, शिवानी ने मुकेश की बेटी को पुचकार कर अपने पास बुला दिया. गोद में बैठा कर उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, आप का नाम क्या है?’’

‘‘श्रुति, लेकिन सब मुझे तनुतनु कहते हैं.’’

‘‘अरे, आप के तो दोनों नाम ही बहुत प्यारे हैं,’’ उस ने तनु को अपनी गोद में समेटते हुए कहा, ‘‘आप स्कूल जाते हो?’’

‘‘हां, मैं क्लास वन में हूं और मैं ड्राइंग बना लेती हूं, दिखाऊं?’’ और वह झटपट उस की गोद से उतर गई और बैग से ड्राइंग की किताब ला कर उसे दिखाने लगी.

‘‘वाह, बहुत अच्छे. आप तो बहुत अच्छी ड्राइंग कर लेती हो.’’

‘‘आंटी, आप को ड्राइंग आती है? मेरी दादीमां को नहीं आती.’’

‘‘हां, मुझे बहुत अच्छी ड्राइंग बनानी आती है.’’

‘‘आप मुझे बनाना सिखाओगे?’’ उस ने मासूमियत से कहा.

‘‘हां, लेकिन मैं बहुत दूर रहती हूं. आप मुझे अपने घर में रख लो, तो मैं आप को रोज ड्राइंग सिखा दिया करूंगी.’’

तनु कुछ सोचने लगी. फिर बोली, ‘‘पापा से पूछती हूं,’’ और वह दौड़ कर मुकेश के पास गई. अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस का ध्यान आकर्षित कर बोली, ‘‘पापा, इन आंटी को ड्राइंग आती है. आप इन्हें घर में रख लो, तो मुझे अच्छी ड्राइंग बनाना सिखा देंगी.’’

तनु की भोली बात पर सभी हंसने लगे. तनु की समझ में नहीं आया कि सभी क्यों हंस रहे थे?’’ मुकेश ने पूछा, ‘‘यह आंटी, आप को अच्छी लगती हैं.’’

‘‘हां, पापा. आप इन्हें अपने घर में ले आओ.’’

‘‘ठीक है बेटा, आप जैसा कहोगे.’’

उस दिन शिवानी को जीवन की सारी खुशियां मिल गई थीं. खुशियों के उड़नखटोले में उड़ती हुई जब वह घर पहुंची तो सुषमा रौद्र रूप लिए उस का इंतजार कर रही थी. स्वर में कोई प्यार, ममता और दुलार नहीं, बल्कि सौतेली मां जैसा व्यवहार, ‘‘कहां से मुंह काला कर के आ रही हो?’’

शिवानी के मन में आनंद का सागर लहरा रहा था. उस ने शांत भाव से कहा, ‘‘मां, मैं तुम्हारी सगी बेटी हूं, कभी प्यार से भी पूछ लिया करो.’’

‘‘इतनी देर कहां कर दी?’’ उन के स्वर की तल्खी कम नहीं हुई थी. शिवानी ने सोचा, बता ही दूं. एक दिन बताना ही है, बोली, ‘‘मां होते हुए भी जो जिम्मेदारी आप को निभानी चाहिए थी वह मेरी सहेलियां निभा रही हैं, इसीलिए देर हो गई.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मां ने भौंहें ऊंची कर के पूछा. उन की समझ में सचमुच कुछ नहीं आया था.

‘‘अपने लिए वर ढूंढ़ने गई थी,’’ शिवानी ने साफसाफ बता दिया. सुन कर मां के तोते उड़ गए. कानों पर विश्वास नहीं हुआ. फटी आंखों से उसे देखती रही. फिर बोली, ‘‘तुम्हारी शादी के लिए पैसा कहां से आएगा?’’

‘‘क्यों, पापा की मृत्यु के बाद जो पैसा मिला था वह कहां गया? उस में मेरा भी तो आधा हिस्सा है.’’

‘‘उस के बारे में सोचना भी मत,’’ सुषमा ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘तुम भले ही घर से भाग कर शादी कर लो परंतु उस पैसे के बारे में सोचना भी मत. गौरव नया प्लौट खरीद रहा है. उस के लिए पैसे बचा कर रखे हैं.’’

शिवानी के मुंह में ढेर सारी कड़वाहट घुल गई. मुंह पर ‘थू’ का भाव लाते हुए बोली, ‘‘यही तो आप चाहती थीं कि मैं कहीं भाग जाऊं. परंतु बचपन में ऐसे संस्कार ही नहीं दिए. बेटी को अनिच्छा से पालना और बड़ा करना फिर उसे परदों में बंद कर के रखना ताकि कहीं मुंह काला कर के परिवार की झठी मर्यादा को मटियामेट न कर दे. यही आप जैसी मांओं ने सीखा है.

आप की इसी गंदी सोच ने देश की बेटियों का भविष्य गर्त कर रखा है. मां, आप चिंता न करो. आप के पति और बेटे की कमाई का मुझे एक ढेला भी नहीं चाहिए. जीवन में खुशियों से बढ़ कर कुछ नहीं होता. आप का पैसा मेरे किस काम का, जब मेरे जीवन में पति, परिवार और बच्चे का सुख नहीं है. सोच कर देखिए, अगर आप के मांबाप आप जैसी सोच के होते और आप की शादी न करते तो आप भाई के घर में कैसा महसूस करतीं और कैसा जीवन व्यतीत करतीं.’’

शिवानी आज बहुत कुछ बोल गई थी. सुषमा को जैसे लकवा मार गया था. शिवानी ने जैसे अंतिम प्रहार करते हुए कहा, ‘‘आप गौरव को राजमहल बनवा कर दीजिए. वह आप का और परिवार का नाम रोशन करेगा. बेटियां केवल दुख देती हैं, तो मां, बस एकाध महीना तुम्हें और दुख दूंगी. इस के बाद मैं चली जाऊंगी. झेंपड़ी के अंधेरे में रह लूंगी परंतु तुम्हारे महल की जगमगाहट देखने कभी नहीं आऊंगी,’’ कहतेकहते शिवानी का गला भर आया. आंखों में आंसू ?िलमिलाने लगे. वह मुंह घुमा कर कमरे के भीतर चली गई.

सुषमा जैसे पत्थर की हो गई थी. परंतु उस के अंदर भी कुछ घुमड़  रहा था जो बाहर निकलने के लिए बेताब था. शिवानी ने उन के अंतर्मन को हिला कर रख दिया था और वह सोचने के लिए मजबूर हो गई थी. कहीं न कहीं उन से बहुत बड़ी गलती हुई थी. पुत्रमोह में कोई इतना अंधा नहीं होता कि बेटी को बिलकुल उपेक्षित कर दे, उस का भविष्य बरबाद कर के उसे नाटकीय जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर कर दे.

अंदर से घुमड़ कर जब उन की आंखों से आंसू बह निकले तो उन की चेतना लौटी. वह लगभग भाग कर कमरे में गई और शिवानी को अपने अंक में भर कर बोली, ‘‘बेटी, मुझे माफ कर दे. मैं तेरी गुनाहगार हूं. यह क्या कर दिया मैं ने तेरे साथ. परंतु अब तू चिंता मत कर, मैं तुझे इस घर से बाजेगाजे के साथ बिदा करूंगी तेरी पसंद के वर के साथ,’’ फिर वह रोने लगी.

शिवानी भी अपनी मां के सीने से लग कर फफक पड़ी. दोनों को ही पता नहीं था कि वे दुख से रो रही थीं कि खुशियों के अतिरेक से. उन्हें बस इतना पता था कि उन के चारों तरफ धवल ज्योत्सना बिखरी पड़ी थी जिस ने सब के मन के कलुष को धो दिया था.

अंतिम प्रहार- भाग 3: क्या शिवानी के जीवन में आया प्यार

शिवानी ने मां के सामने बगावत के तेवर अवश्य दिखाए थे परंतु आने वाले दिनों में उस का कुछ असर दिखाई नहीं दे रहा था. सबकुछ पहले की ही तरह चलता रहा. हां, 2 महीने के बाद गौरव की शादी हो गई और शिवानी की छोटी भाभी घर में आ गई.

सहेलियां उसे बीचबीच में उकसाती रहती थीं. वह किसी लड़के से प्यार कर ले. परंतु अब कोई लड़का उस की तरफ आकर्षित ही न होता. उस के मुखमंडल पर गंभीरता के कारण बड़ी उम्र की परिपक्वता झलकने लगी थी. उस के पास भी इतना साहस न था कि स्वयं किसी लड़के या पुरुष को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर सके. वह इतनी संकोची थी कि किसी भी व्यक्ति से बात करते समय उस की जबान जैसे तालू से चिपक जाती थी.

कुछ साल और बीत गए. शिवानी अब 30 की हो चुकी थी. अब वह लड़की कम महिला ज्यादा लगती थी. वह मन ही मन दुखी रहने लगी थी. मम्मी ने तो जैसे ठान लिया था कि उस की शादी तो दूर, शादी की बात भी न करेंगी. इस बीच सहेलियों के उकसाने के बावजूद वह किसी के प्यार में गिरफ्तार न हो सकी. स्कूल में भी कई कुंआरे अध्यापक थे परंतु किसी के साथ उस का टांका न भिड़ सका.

और आज दीप्ति ने ऐसी बात कह दी थी कि वह दुख के अथाह सागर में डूब गई थी. काफी देर तक जब वह कमरे से नहीं निकली, तो मम्मी ने आ कर उसे उठाया, ‘‘अभी तक लेटी हो. रात हो गई. चलो, खाने का प्रबंध करो.’’

शिवानी ने लेटेलेटे ही जवाब दिया, ‘‘मेरा खाने का मन नहीं है. खुद बना लो. बहू से कहो, वह क्या जीवनभर महावर लगा कर बैठी रहेगी?’’ शिवानी के स्वर में तीखा व्यंग्य था. बहू लाखों का दहेज ले कर आई थी, इसलिए मम्मी कभी उसे घर के किसी काम के लिए न कहती थी. शिवानी के रूप में बिना तनख्वाह वाली सीधीसादी गऊ जैसी नौकरानी जो मिली थी. परंतु अब उसे सिधाई का चोला उतार कर चंडी बन कर जीना होगा, कब तक कुढ़ती रहेगी? क्यों नहीं अपने लिए नया रास्ता ढूंढ़ लेती. अभी भी देर नहीं हुई थी.

मां कुड़कुड़ाती हुई चली गई. उस रात शिवानी ने न तो घर का कोई काम किया, न खाना खाया. मां ने भी उस से खाने के लिए नहीं पूछा. डायन मां भी अपने बच्चों से इस तरह की बेरुखी और बेदर्दी नहीं दिखाती, परंतु सुषमा किसी और मिट्टी की बनी थी. कोई मां अपनी बेटी की दुश्मन नहीं होती परंतु कुछ मांएं बेटों के प्यार में अंधी हो कर बेटियों का जीवन बरबाद कर देती हैं. सुषमा बेटे के लिए सारा पैसा बचा कर मरना चाहती थी.

दूसरे दिन सुबह शिवानी बहुत शांत थी. उस ने मन ही मन एक निर्णय ले लिया था. अब कोई दुविधा उस के मन में नहीं थी.

निकिता और संजना ने कहा, ‘‘शिवी, कल तेरे साथ बहुत बुरा हुआ. दीप्ति को तुझ से ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी. तू अभी भी शादी कर सकती है.’’

दीप्ति ने पश्चात्ताप भरे स्वर में कहा, ‘‘शिवी, मुझे माफ कर दो. मैं ने जो कहा था, मजाक के तौर पर कहा था. परंतु बात इतनी गंभीर हो जाएगी, मैं ने सोचा ही न था. प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई दुर्भाव नहीं है.’’

‘‘मैं जानती हूं दीप्ति,’’ शिवानी ने मुसकरा कर कहा और उस का हाथ पकड़ कर सहला दिया, ‘‘मैं तो उस बात को भूल चुकी. अब मैं ने कुछ और निर्णय ले लिया है.’’

क्या? के भाव से तीनों ने उस के चेहरे को देखा.

उस ने जवाब दिया, ‘‘अब मैं मां के संरक्षण से बाहर निकल कर अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहती हूं. तुम लोग मेरे लिए एक किराए का कमरा ढूंढ़ दो.’’

‘‘मां, और भाई को बता दिया?’’ संजना ने पूछा.

‘‘नहीं,  मकान मिलने पर बता दूंगी.’’

‘‘घर ढूंढ़ने के बजाय अगर तुम अपने लिए वर ढूंढ़ लो, तो ज्यादा बेहतर होगा,’’ निकिता ने सलाह दी.

‘‘वह भी ढूंढ़ लूंगी तुम मेरी मदद करोगी तो.’’

दीप्ति इतनी देर से कुछ सोच रही थी. अचानक बोली, ‘‘शिवी, मैं एक बात कहूं, परंतु यह न समझना कि मैं फिर से तुम्हारा मजाक उड़ा रही हूं.’’

‘‘तुम बताओ तो सही,’’ निकिता ने उस का उत्साह बढ़ाया.

‘‘मेरी नजर में एक रिश्ता है, परंतु तुम्हें शायद वह अच्छा न लगे.’’

‘‘अच्छा क्यों न लगेगा?’’ संजना ने पूछा.

‘‘क्योंकि वह कुंआरा नहीं है, विधुर है और उस की 5 साल की एक बच्ची भी है.’’

‘‘विधुर और एक बच्ची का बाप,’’ निकिता के मुंह से निकला. उस ने शिवानी को देखा, ‘‘वह शांत थी. संजना भी हैरान थी कि दीप्ति फिर से शिवानी का मजाक बना रही थी. बोली, ‘‘यार, कल भी तुम ने उस का दिल दुखाया था और आज भी…’’

‘‘हां, दीप्ति, शिवी अभी इतनी बूढ़ी नहीं हुई है कि उस के लिए कुंआरा वर न मिले. आज लड़के 30 साल की उम्र के बाद ही शादी करना पसंद करते हैं. प्रयत्न करेंगे तो उस के लिए अच्छा वर मिल जाएगा,’’ निकिता ने कहा.

‘‘वैसे, वह है कौन जिस की तू बात कर रही है?’’ संजना ने जिज्ञासा से पूछा.

दीप्ति का उत्साह मर गया था, फिर भी उस ने बताया, ‘‘मेरा ममेरा भाई है. उस की पत्नी कुछ वर्ष पहले मर गई थी. घर में मातापिता और एक बेटी है. सरकारी नौकरी में है. उम्र ज्यादा नहीं है, 34 या 35 साल. बस, कमी इतनी ही है कि वह विधुर है और एक बच्ची का बाप है.’’

कुछ पलों के लिए सन्नाटा पसरा रहा. फिर निकिता ने कहा, ‘‘रिश्ता तो अच्छा है परंतु क्या शिवानी तैयार होगी? पराई मां की बच्ची को अपना कर उसे मां का प्यार दे सकेगी?’’

‘‘परंतु क्या शिवानी की मां ऐसे रिश्ते के लिए तैयार होगी?’’ संजना ने सवाल खड़ा किया.

‘‘इस की मां जब कुंआरे लड़के के साथ शादी नहीं करा रही है तो वह विधुर के साथ शादी के लिए कैसे मान जाएगी,’’ निकिता ने कहा.

‘‘फिर कैसे होगा?’’ संजना ने भौंहें नचा कर पूछा.

शिवानी सब की बातें गौर से सुन रही थी और मन ही मन कुछ बुन रही थी. उस के दिमाग में विचार बहुत तेजी से दौड़ रहे थे. उसे जल्द ही निर्णय लेना होगा वरना एक दिन वह महिला से बूढ़ी स्त्री में बदल जाएगी, तब उस के हाथ में जीवन के सुखमय पल नहीं, बस, सूखी रेत के रसहीन कण होंगे जो उस की आंखों में सदा किरचों की तरह कसकते रहेंगे.

अब उस की आंखें शिवानी के ऊपर टिकी थीं. शिवानी ने ज्यादा देर उन्हें पसोपेश में नहीं रखा. धीमे से बोली, ‘‘मुझे दीप्ति के कजिन का रिश्ता मंजूर है.’’

सभी हैरान रह गए. शिवानी से ऐसे उत्तर की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी. सभी समझ रहे थे वह मना कर देगी. सब से ज्यादा आश्चर्य निकिता और संजना को हुआ, तो सब से ज्यादा खुशी दीप्ति को हुई. परंतु वे तीनों नहीं जानती थीं कि भविष्य में पति और मां की दोगुनी खुशियां जो शिवानी को प्राप्त होने वाली थीं उन के बारे में सोच कर वह अभी से रोमांचित और अभिभूत हो रही थी.

‘‘क्या तुम एक लड़की को मां का प्यार दे सकोगी?’’ निकिता ने पूछा.

‘‘हां,’’ शिवानी ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘अपने जीवन में मुझे मेरी मां से जो उपेक्षित व्यवहार मिला है उस से मैं समझ सकती हूं कि ममता से वंचित लड़की के हृदय पर क्या गुजरती है. मैं अपनी होने वाली बेटी को ऐसा प्यार दूंगी कि लोग मुझे असली मां समझेंगे.’’

‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ सकती हूं परंतु तुम एक बार फिर से रात में सोच लो. कल बताना,’’ संजना ने सलाह दी. उसे सलाह देने की आदत सी थी.

‘‘नहीं, अब सोचने का वक्त नहीं है. जितनी जल्दी हो सके, मैं मां के नरक से बाहर निकलना चाहती हूं.’’

अंतिम प्रहार- भाग 2: क्या शिवानी के जीवन में आया प्यार

‘‘बहन, सच्ची बात कहूं,’’ सुषमा ने नाराजगी के भाव से कहा, ‘‘दूसरों की मैं नहीं जानती परंतु मेरी बेटी बहुत सीधी है. मैं ने उसे ऐसे संस्कार दिए हैं कि मरती मर जाएगी, परंतु गलत काम नहीं करेगी. मजाल है कि राह चलते किसी लड़के की तरफ निगाह उठा कर देख ले.’’

शुभचिंतिका ने मन ही मन सोचा, लगता है सुषमा ने जमाना नहीं देखा है. कितना बदल गया है. लड़कालड़की किस तरह खुलेआम इश्क फरमाते घूम रहे हैं. लगता है समाज में नैतिकता और मर्यादा की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं. शिवानी कब तक जमाने की बदबूदार हवा से अपनी नाक बंद कर के रखेगी. जवानी की आग जब देह को जलाने लगती है तो बड़ेबड़े संतों की दृढ़ प्रतिज्ञा तिल के समान जल जाती है.

शुभचिंतिका ने सुषमा को आगे समझना उचित नहीं समझ. शिवानी के पास कोई चारा नहीं था. भागदौड़ कर उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली. तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं थी परंतु घर में बैठने से तो यह बेहतर था कि वह काम कर रही थी. अनुभव प्राप्त कर रही थी. इधर उस ने बीएड का फौर्म भर रखा था. चयन होने पर एक साल की ट्रेनिंग पर चली गई. ट्रेनिंग पूरी होते ही उसे उसी स्कूल में अच्छी तनख्वाह पर अध्यापिका की नौकरी मिल गई.

शिवानी के जीवन में खुशियां थीं परंतु प्यार नहीं. उस का कोई प्रेमी नहीं था. इस की कोई चाहत भी उस के मन में नहीं थी. वह चाहती थी जल्दी से जल्दी विवाह बंधन में बंध जाए. पति के घर चली जाए. फिर उस के जीवन में प्यार और खुशी के अनमोल मोती बरसेंगे.

परंतु मां को जैसे उस के विवाह की कोई चिंता ही नहीं थी. उस के रिश्ते आते, तो अनमने ढंग से बात सुनती और मना कर देती. परंतु बेटे की शादी की चर्चा वह बहुत लगन से करती. कोई रिश्ता आता, तो खोदखोद कर जानकारी लेती. परिवार कैसा है? लड़की सुंदर है? पढ़ीलिखी है और सब से मुख्य बात पूछना न भूलती, दहेज कितना मिलेगा?

जब भी घर में कोई अड़ोसीपड़ोसी या रिश्तेदार आता, केवल गौरव की शादी की बात होती. वह तो जैसे घर की बेटी ही न थी. वह बस एक पैसा कमाने की मशीन और घर का काम करने वाली नौकरानी थी. घर के सारे खर्च भी उसी की तनख्वाह से चलते. बेटा अपने वेतन की एक पाई भी मां के हाथ पर न धरता, न कोई हिसाब देता. बस, अपने शौक पर खर्चा करता या बैंक में जमा करता. मां भी अपनी पैंशन का पैसा कभीकभार ही बैंक से निकालती. शिवानी मां और भाई के होते हुए भी अपने ही घर में एक उपेक्षित सा जीवन व्यतीत कर रही थी.

दहेज के लालच में मां ने गौरव की शादी एक धनी परिवार की लड़की के साथ तय कर दी. पता नहीं सुषमा के मन में क्या था? बड़ी बेटी कुंआरी बैठी थी और उस से 2 साल छोटे भाई की शादी तय कर दी थी क्योंकि अच्छाखासा दहेज ला रही थी. किसी खास ने सवाल किया तो सुषमा का दिल जला देने वाला जवाब था, ‘बेटा दहेज ला रहा है परंतु बेटी दहेज ले कर जाएगी. फिर क्यों न पहले बेटे की शादी करूं?’

शिवानी के दिल को बहुत चोट पहुंची. पहले वह घर की बातें किसी से नहीं कहती थी परंतु ये सारी बातें उस ने अपनी सहेलियों से कहीं, तो निकिता ने कहा, ‘यार, समझ में नहीं आता तुम्हारी मां सगी है कि सौतेली. अरे, सौतेली मां भी बहुत अच्छी होती है. समझना बहुत मुश्किल है कि वह तुम्हारी शादी के खिलाफ क्यों है?’

‘मुझे तो लगता है, या तो इस का भाई बहुत होशियार है या इस की मां बहुत लोभी और लालची जो बेटे के विवाह में लेना तो जानती है और बेटी के विवाह में कुछ भी खर्च नहीं करना चाहती,’ संजना ने कहा. ‘तुम्हारा भाई अपना बैंक बैलैंस बढ़ा रहा है. मां अपना पैसा खर्च नहीं कर रही है. शिवानी, तुम बहुत बड़ी बेवकूफ हो. कल तुम्हारी भाभी घर में आएगी, तो पूरे घर में उस का राज होगा. तुम्हारी हैसियत एक नौकरानी से भी बदतर हो जाएगी. मेरी सलाह मानो, तुरंत बैंक में अपना खाता खोल लो और बुरे दिनों के लिए कुछ बचा कर रखो.’ निकिता ने उसे उचित सलाह दी.

तभी दीप्ति ने कहा, ‘और मेरी मानो, तो यह सतीसावित्री का चोला उतार कर फेंक दो. आज के जमाने में नैतिकता, मर्यादा और पारिवारिक संस्कारों का आडंबर ओढ़ कर जीने से जीवन बहुत कठिन हो जाता है, खासकर, जब सगी मां और भाई तुम्हारे जीवन को बरबाद करने में जुटे हों. ऐसी स्थिति में तुम्हें स्वयं अपना रास्ता तलाश करना होगा. किसी लड़के को पसंद कर के उस के साथ घर बसा लो, वरना उम्र निकलने के बाद पछताने के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा.’

दीप्ति की बात बहुत सही थी. सब ने उस की बात से सहमति जताई.

सब से पहला काम उस ने यह किया कि बैंक में खाता खोल लिया. अगले महीने जब उस ने मां के हाथ पर पैसे नहीं रखे तो मां ने कड़े स्वर में पूछा, ‘शिवानी, तनख्वाह नहीं मिली क्या?’

‘मिली है, परंतु बैंक में है,’ शिवानी ने भी जोर से जवाब दिया. अब दब कर रहने से क्या हासिल होने वाला था.

‘बैंक में, क्या?’

‘क्योंकि अब तनख्वाह सीधे बैंक खाते में आने लगी है,’ उस ने बिना घबराए जवाब दिया.

‘तो कल निकाल कर ले आना, राशन भरवाना है.’

‘मम्मी, घर में भाई भी है, वह मुझ से ज्यादा तनख्वाह पाता है. आप की पैंशन भी कम नहीं है. फिर घर चलाने की जिम्मेदारी मेरी ही क्यों? आप दोनों अपना पैसा क्या ऊपर वाले के घर ले कर जाएंगी,’ शिवानी ने गुस्से में कहा.

शिवानी की बात सुन कर मां सन्न रह गईं. उन की गाय जैसी बेटी मरखनी कैसे हो गई थी. यह उस की सहेलियों के समझने का असर था. परंतु मां की समझ में नहीं आया. उन्होंने कांपती आवाज में पूछा, ‘यह कैसी बातें कर रही है तू? क्या तू इस घर की सदस्य नहीं है? मेरी बेटी नहीं है?’

‘आप ने मुझे अपनी बेटी माना ही कहां है? जब से होश संभाला है, गौरव को तरजीह दी जा रही है. मुझ से 2 साल छोटा है, परंतु शादी आप उस की पहले कर रही हैं. ध्यान रखना, कहीं आप के संस्कार धूल में न मिल जाएं?’

‘क्या मतलब है तेरा?’

‘मतलब आप अच्छी तरह समझती हैं. कोई भी लड़की जीवनभर अनुचित अनुशासन और बंधन को स्वीकार नहीं कर सकती. एक न एक दिन वह बंधन तोड़ कर बरसात के पानी की तरह बह जाएगी, तब आप पारिवारिक मर्यादा का ढोल पीटती रहना.’

मां की बोलती बंद हो गई.

शिवानी बेचारी आज कितनी हिम्मत से इतना सब बोल पाई थी वरना तो उस के मुंह में जैसे जबान ही न थी. उस की सहेलियों ने उसे खूब सिखायापढ़ाया था. मां से खुल कर बात करने के लिए कहा था. तभी आज वह इतना कुछ बोल पाई थी. परंतु अब डर रही थी कि मां का पता नहीं कौन सा रूप देखने को मिले. परंतु मां ने भी उस से कोई बात नहीं की और कई दिनों तक सामान्य व्यवहार किया. शायद उन के मन में भी डर बैठ गया था कि शिवानी कोई गलत कदम न उठा ले और परिवार की मर्यादा तोड़ कर किसी लड़के के साथ भाग न जाए.

Charu Asopa ने बेटी के साथ छोड़ा पति का घर! राजीव सेन पर लगाया ये आरोप

टीवी एक्ट्रेस चारू असोपा (Charu Asopa) और उनके पति राजीव सेन (Rajeev Sen) की शादीशुदा जिंदगी आए दिन सुर्खियों में रहती है. जहां बीते दिनों तलाक की खबरों के बीच एक्ट्रेस ने अपनी शादी को दूसरा मौका देने की बात कही थी तो वहीं अब एक बार उनकी शादी टूटने की खबरें सामने आ गई है. वहीं एक्ट्रेस ने मीडिया के सामने पति के धोखा देने की बात भी कही है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ब्लॉग में दिखाई नए घर की झलक

हाल ही में एक्ट्रेस चारू असोपा ने यूट्यूब के नए ब्लॉग में अपने नए घर की झलक दिखाई है, जिसके बाद फैंस का कहना है कि उन्होंने अपने पति राजीव सेन का घर छोड़ दिया है. इसके अलावा उन्होंने अब पति के धोखा देने का आरोप लगाते हुए इंटरव्यू भी दे दिया है, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

प्रैग्नेंसी में धोखा देने का लगाया आरोप

 

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अपने पति राजीव सेन पर घरेलू हिंसा का आरोप लगा चुकी एक्ट्रेस Charu Asopa ने अब पति पर नए आरोप लगाते हुए खुलासा किया है. दरअसल, एक इंटरव्यू में चारू असोपा ने बताया है कि Rajeev Sen ने प्रेग्नेंसी के दौरान उन्हें धोखा दिया था. उन्होंने बताया है कि प्रैग्नेंसी के दौरान उन्हें राजीव के बैग से कुछ ऐसा मिला था, जिससे उन्हें उन्हें धोखेबाजी के बारे में पता चला था और वह काफी टूट गई थीं. यहां तक कि उन्होंने परिवार को राजीव की इस हरकत के बारे में बताया भी था. लेकिन वह पति से प्यार करती थी इसीलिए उन्होंने राजीव को एक और मौका दिया था.

 

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बता दें, बीते दिनों एक्ट्रेस चारू असोपा ने पति राजीव सेन पर घरेलू हिंसा जैसे गंभीर आरोप भी लगाए थे. वहीं शादी की बात करें तो साल 2019 में शादी करने वाले राजीव सेन और एक्ट्रेस चारू असोपा की शादी शुरुआत से ही सुर्खियों में रही है. वहीं बेटी जियाना के होने के बाद उनके रिश्ते पर आए दिन खबरें सामने आती रहती हैं.

ओट 2 हाथों की- भाग 1: जब रिया की जिंदगी में नकुल ने भरे रंग

‘‘मेरे मन में इस बच्चे के लिए प्यार उमड़ता ही नहीं’’, कहा था उस ने. पर यह बात तो शुरू के दिनों की है. बाद में असहाय वेदना, बढ़ता रक्तचाप तथा अत्यधिक तनाव के बीच भी उस ने अपने गर्भस्थ शिशु के लिए कोमल भावनाएं जरूर पाली होंगी. उस के आने से सभी विपदाएं दूर हो जाएंगी, यह कामना भी की होगी. 8 वर्षीय बेटी से प्रसव के कारण 2-3 महीने दूर रहने की कल्पना ने उसे और भी दुखी किया होगा. बच्ची तो छोटा भाई या बहन मिलने के बहलावे से बहल भी गई होगी, मगर वह खुद बेटी से दूर रह कर एक दिन भी शांति से नहीं रह पाई होगी.

फिर वही हुआ जिस का अंदेशा कमोबेश सभी को था. समय से पहले मरे हुए बच्चे का जन्म, गला हुआ माथा, मुड़े हाथपांव… और अविकसित भू्रण… 8 महीने से जगी संभावना का अंत.

मैं आजकल बड़ी ढीठ हो गई हूं. जानती हैं दीदी, कल सास ने तनु से पुछवाया, ‘‘मम्मी से पूछ भुट्टा खाएगी क्या?’’

भूख से कुलबुलाते मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

तो वह बोलीं, ‘‘बोल, जा कर ले आए.’’

अंदर सोई थी मैं, बाहर दादीपोती की आवाजें आ रही थीं. मैं ने तनु से कहा, ‘‘मेरी कमर में बहुत दर्द है. मैं अभी नहीं ला सकती.’’

सास बोलीं, ‘‘ला नहीं सकती तो खाएगी क्या?’’ तनु अंदरबाहर आ जा कर बातचीत जारी रखे थी. फिर भुट्टे आए भी और मैं ने बेशर्मी से खाए भी. आप सोच सकती हैं, दीदी. मैं कभी ऐसी हो जाऊंगी?

3-4 दिन तक मेरे जेहन में उस की ही बातें घूमती रहीं. उस से जब भी फोन पर बात होती, वह अपने अंदर का भरा सारा गुबार उड़ेल देती. कई बातें ऐसी भी होतीं, जो आमनेसामने उसे कहने

और मुझे सुनने में संकोच हो सकता था. आखिर वह मुझ से काफी छोटी है. फोन पर न मैं उस का शर्मसार चेहरा देख सकती थी न वह मेरा.

रिया रीना की छोटी बहन है और रीना मेरे बचपन की सहेली. रिया मेरे सामने बड़ी हुई. बहनों में सब से छोटी. उस के जन्म के बाद भाई के जन्म के कारण परिवार की वह लाडली बन गई.

रूप, गुण, आभिजात्य, संस्कार, शिक्षा, खानदान व पैसा ये 7 गुण ही तो देखते हैं लड़की में और रिया इन सातों गुणों में श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती है. लड़कों में तो गुण देखने का चलन ही नहीं है. अगर होता तो अजय के सातों खाने खाली.

लड़की सुंदर हो फिर सामान्य से भी कम दिखने वाला पति मिले तो समस्या खड़ी हो सकती है. शायद यह किसी ने नहीं सोचा. फिर न उस का काम के प्रति कोई लगाव, न महत्त्वाकांक्षा और स्वभाव, संस्कार, शिक्षा की तो बात करना ही बेमानी. उस का क्रोध ऐसा कि तीसों दिन घर में आंतक छाया रहता. कभी मम्मीपापा के साथ तो कभी बहनों के साथ तो कभी नौकरों या पड़ोसियों के साथ. रिया के आने के बाद सारा कहर उस पर बरसने लगा.

मैं अकसर सोचती रिया के घर वालों को अजय में क्या खूबी दिखी? संपन्न घर का इकलौता बेटा, घर, गाड़ी अर्थात भविष्य सुरक्षित. मगर रिया जैसी लड़की को क्या इन सब की कभी कमी हो सकती थी?

अजय के स्वभाव से परेशान उस के मम्मीपापा ने सोचा था कि समझदार, सुंदर लड़की आ कर उसे सही रास्ते पर ले आएगी, परंतु शादी के बाद स्थिति इतनी विकट हो जाएगी, इस का अनुमान तक वे नहीं लगा सके थे. अब अजय के जुल्मोसितम का निशाना थी वह पराई लड़की, जो शादी के इतने वर्षों बाद भी किसी की भी अपनी नहीं हो सकी थी. हां, विगत 8-9 वर्षों के वैवाहिक जीवन में उस के खाते में छोटी उम्र में उच्च रक्तचाप जैसा रोग और 8 वर्ष की प्यारी सी बेटी ‘तनु’ ये 2 ही जुड़ पाए थे.

इतने वर्षों बाद अनचाहे ही सही, फिर गर्भ का अंदेशा हुआ तो घबरा गई थी रिया. खुद को सामान्य करने में उसे बहुत वक्त लगा था. बड़ी मुश्किल से बीते थे वे 8 महीने… और उस का अंत भी क्या कम जानलेवा था? प्रसव के लिए दिल्ली अपने मायके चली गई थी.

डाक्टर मम्मीपापा पर बरस पड़ी थीं, ‘‘इस बार लड़की बच गई है. चाहते हैं कि वह स्वस्थ हो सके, तो कृपया उस की समस्याएं सुलझाएं, नहीं तो मर जाएगी वह.’’

इतना हाई ब्लडप्रैशर छोटी उम्र में, कभी भी कुछ भी हो सकता है. उस के मम्मीपापा कांप उठे थे.

रिया ससुराल से दिल्ली आती तब उस का उदास चेहरा सूनी आंखें व अजय के फोन आते ही कांप उठना. पर उस से इतना भर जाना कि अजय क्रोधी स्वभाव का है और मानसिक रोगी भी है. कई कुंठाएं पाल रखी हैं उस ने.

डाक्टर कहती हैं कि उस की समस्या सुलझाएं. रिया की तकलीफों का निवारण अलगाव से हो सकता है. अजय से अलगाव का अर्थ है रिया व नन्ही तनु का भविष्य, अकेलापन, लोगों की उठती उंगलियां, उस से उपजा नया तनाव.

रिया के मम्मीपापा अपनी बेटी के दुख में घुलते जा रहे थे. उस की पूरी त्रासदी के लिए स्वयं को दोषी ठहरा रहे थे. परंतु कोई आरपार का कदम उठा लेने जैसा निर्णय नहीं कर पाते थे. मेरी रीना से इस बारे में अकसर बहस होती.

उस के पापा का अपने परिवार तथा व्यवसाय क्षेत्र में बहुत नाम था पर रिया का प्रकरण न सुलझा पाने के पीछे यह बात भी रही हो कि उन के बेदाग घराने पर एक दाग लग जाएगा कि एक बेटी वापस आ गई ससुराल से… कमोबेश ऐसे ही आदर्शवादी और परंपरावादी संस्कारों के परिवेश में रिया पली थी. तभी वह सह रही थी. शुरू में उस ने अजय को समझाने की, वश में करने की बड़ी कोशिशें कीं. मगर नाकाम रही और फिर हताश हो गई.

पिछली बार मैं दिल्ली गई तो उस के पापा ने मुझे फोन कर के बुलाया था. वे रिया के बारे में मुझ से बात करना चाहते थे. मैं रीना से मिलने कई बार उस के घर गई थी पर अंकलआंटी से बस औपचारिक नमस्ते ही होता था.

रिया के जीवन से परिचित होने पर मुझे भी उन पर एक खिज सी थी, अंदर ही अंदर अच्छीभली लड़की को डुबा देने की बात कौंधती थी.

‘‘अनिता, तुम्हारी रिया से अकसर बात होती है. आखिर अजय चाहता क्या है? क्यों नहीं पटती दोनों में, तुम्हें क्या लगता है?’’ अंकल ने पूछा.

‘‘अंकल, यह सवाल ही गलत है कि अजय चाहता क्या है. एक बिगड़ा बच्चा जो चाहे उसे देते चले जाना कि बवाल न मचाए क्या ठीक है? अजय चाहता क्या है यह तो स्वयं अजय को खुद नहीं पता. न उस के मातापिता को. जहां तक रिया से न पटने की बात है, तो इस के कई मनोवैज्ञानिक कारण हैं. मुझे कहने में संकोच होता है.’’

‘‘नहीं तुम खुल कर कहो बेटी?’’

ओट 2 हाथों की- भाग 2: जब रिया की जिंदगी में नकुल ने भरे रंग

‘‘अंकल, जब रिया शादी के बाद पहली बार मुंबई गई तो दोनों के रूपरंग के अंतर को देख हर व्यक्ति चौंकता था कि ऐसे लंगूर के हाथ हूर कैसे लग गई? अजय को लगा कि लोग उस का अपमान कर रहे हैं फिर हीनता का बोध होते ही वह जबतब अन्य लोगों के सामने बेवजह रिया को फटकारने का कोई मौका नहीं चूकता. वह उसे पांव की नोक पर रखता. रिया उस की एक धमक से थरथर कांप जाती. अपने पुरुष अहम को तृप्त करने के लिए चीखतेचिल्लाते हुए यह भूल ही जाता है कि पतिपत्नी के रिश्ते की सारी आर्द्रता वह सोखता जा रहा है. 2 मिनट उस से बात करते ही, उस की मानसिक अस्थिरता का जायजा मिल जाता है. न जाने आप को कैसे… माफ कीजिएगा मुझे यह नहीं कहना चाहिए.’’

‘‘नहीं बेटी, तुम ठीक कह रही हो. उस वक्त सोचा हम ने भी था कि वह रूपरंग, व्यक्तित्व में रिया की जोड़ी का नहीं है. परंतु स्वभाव ऐसा होगा. यह कैसे मालूम होता.’’

‘‘नहीं अंकल. कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन के चेहरे पर ही लिखा होता है कि वे क्या हैं. अजय उन में से एक है. आप उसे किस तरह नहीं समझ पाए? यह ठीक है कि रूपरंग विशेष अर्थ नहीं रखते. मगर वह एक मानसिक रोगी है. उसे किसी अच्छे मनोचिकित्सक की जरूरत है. हो सकता है

कि वह ठीक भी हो जाए, परंतु इस के लिए जरूरी है कि पहले वह खुद और उस के मातापिता यह जानें कि तकलीफ क्या है और कहां है?’’

‘‘हम ने तो रिया को हमेशा शांत रहने व समझौता करने की ही सीख दी है, अनिता. ताकि बात ज्यादा न बढ़े.’’

‘‘यही गलत कर रहे हैं आप. समझौता और सहने की घुट्टी पिलापिला कर लोग लड़कियों को नकारा बना डालते हैं. उन्हें स्वयं अपनी काबिलीयत पर भरोसा नहीं

रहता. प्रत्येक जायजनाजायज बात पर शांत रहने व समझौता करते जाने के नतीजे देखे आप ने? अजय और उग्र होता गया और रिया बीमार…

‘‘दरअसल, रिया मुझे छोटी बहन जैसी है इसलिए जानती हूं, क्षमा करें मुझे न चाहते हुए भी अप्रिय कहना पड़ा.’’

‘‘नहीं, अनिता. ऐसा मत सोचो. हम ने खुद तुम से सलाह मांगी है. समस्या सुलझाने

के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर तुम क्या सोचती हो, क्या खुल कर कह सकती हो.

भूल तो हम से ही हुई है. इतना तो हम भी जानते हैं, बेटी.’’

‘‘अंकल रिया की समस्या बड़ी बारीकी से मैं ने समझा है. उस के कई कारण हो सकते हैं. किंतु समाधान सिर्फ 2 हैं. पहला अजय का इलाज करवाना जिस की संभावना कम से कम मुझे तो दूरदूर तक नजर नहीं आती. दूसरा है रिया के जीवन के बारे में कोई ठोस कदम उठाना.

‘‘पहला उपाय अजय और उस के मातापिता के पास है. दूसरा आप के पास. वे अपने बेटेबहू का सुखी दांपत्य चाहते होते,

तो यह काम बहुत पहले हो चुका होता. परोक्ष रूप से ही सही उन्होंने स्थिति को सुलझाने की जगह उसे और जटिल बनाया है. दूसरा उपाय करने के लिए बहुत सा साहस और दृढ़ निश्चय चाहिए.’’

‘‘अनिता, तुम अपनी सी न लगती तो क्या हम तुम से सलाह करते? हां परसों रीना बेंगलूरु से आ रही है. तब जरूर आना बेटी.’’

‘‘रीना के आते ही आप फोन कर दीजिएगा.’’

रीना आते ही मुझ से मिलने आ पहुंची. वहां उस ने अपना अधूरा फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा कर के एक छोटा सा बुटिक खोल लिया था, जो खूब चलने लगा था. सफलता का नूर उस के चेहरे को दमका रहा था.

‘‘अनि, कैसी हो भई. अच्छा हुआ, जो दिल्ली में मिल गई वरना तुम से मिलने मुंबई आना पड़ता.’’

‘‘कितनी बार आई मुंबई? बता तो जरा.’’

‘‘सच, इस बार मन बना लिया था कि जाना ही है. खैर, सुना हमारी रिया के क्या हाल हैं? इस हादसे के बाद अजय साहब का फुफकारना कम हुआ या नहीं. कुछ सबक लिया या वैसे ही हैं. खुद को कुसूरवार मान कर कुछ तो पछता रहे होंगे.’’

‘‘तुम भी, रीना. आशावादी होना ठीक है, मगर किसी चमत्कार की आशा लगा लेना मूर्खता है. मैं ने तो पिछली बार ही बताया था कि वहां स्थिति के बदलाव की गुंजाइश नहीं है. फिर भी तुम लोग किस भ्रम में हो अब तक?’’

ओह, चहकती रीना बुझ सी गई. अभी 3 महीने पहले ही तो रिया ने मृत बच्चे को जन्म दिया था.

‘‘रीना, यहां आने से 2 दिन पहले ही मेरी रिया से बात हुई थी.

उसे मैं ने नहीं बताया कि मैं दिल्ली जा रही हूं. तो शायद ही वह मुझ से कुछ बताती. वह भी कहां चाहती है कि उस की तपिश की आंच यहां तक पहुंचे.’’

‘‘क्या कह रही थी?’’ रीना की आंखें डबडबा गईं.

‘‘कह रही थी, दीदी, जिस आदमी से लेशमात्र भी प्यार न हो उस के साथ पूरा जीवन काटना कितनी बड़ी सजा है.’’

‘‘मैं ने भी उस से यही पूछा कि बच्चे की मौत से अजय को कुछ धक्का लगा क्या? तो बोली कि पता नहीं पर रंगढंग वही के वही हैं. घर में पैर रखते ही मेरे तो हाथपैर फूल जाते हैं. धड़कनें तेज हो जाती हैं. कभी हाथ से कुछ गिरता है कभी कुछ. दीदी, क्या करूं औरतें शाम को पति के आने का इंतजार करती हैं और सच कहूं तो मैं सुबह उस के जाने का. जब तक वह घर में रहता है मुझ पर दहशत छाई रहती है. कोई काम ढंग से नहीं कर पाती.’’

रीना के कपोलों पर भी आंसू बह चले. वह फिर बोली, ‘‘तनु के क्या हालचाल हैं, अनि?’’

‘‘रिया ही कह रही थी कि तनु सब समझने लगी है. पापा से थरथर कांपती है. बहुत अंतर्मुखी होती जा रही है. पिछले दिनों अजय दहाड़ते हुए रिया पर हाथ उठाने को आगे बढ़ा, तो वह एकदम सिटपिटा गई. बाद में पूछा था कि ममा. हसबैंड लोग ऐसे होते हैं क्या? अनजाने ही मासूम बच्ची अपनी मां के हिस्से की पीड़ा भुगत रही हैं कच्ची उम्र में.’’

‘‘अनि, बहुत पहले हम सभी भाईबहनों की जन्मकुंडलियां पापा ने किसी पंडित को दिखाई थी. जानती हो, रिया के लिए वह क्या बोला था कि यह लड़की कभी जमीन पर पांव नहीं रखेगी. रानी बन कर राज करेगी. फिर अजय की कुंडली के साथ रिया की कुंडली उसी से मिलाते वक्त कहा था कि ऐसा संयोग कम देखने को मिलता है. तभी मम्मीपापा का इस रिश्ते को करने का पूरा मन बन गया था जबकि पहले अजय कम ही अच्छा लगा था.’’

‘‘अच्छा तो यह बात थी. चौंकने की बारी अब मेरी थी, तभी आज तक मैं यह गुत्थी नहीं सुलझा पा रही थी कि यह रिश्ता हुआ कैसे… क्यों हुआ? अच्छी राजरानी बना के रखा है, उस ने रिया को और राजपाट भी कैसा कि एक पैसा कभी मन से खर्च नहीं किया होगा. बोलने तक की तो इजाजत है नहीं.

‘‘पंडित हाथ की रेखा को ठीक से पढ़ना नहीं जानता था, न मिलाना जानता था, जन्मकुंडलियों के ग्रह गोचरों को. पर चेहरे पढ़ना जरूर जानता होगा तभी रिया के रूप और उस के पापा के आभिजात्य को देख राजरानी बनने की भविष्यवाणी कर दी थी. संभावना भी वही थी. कोई भी सामान्य ज्ञान रखने वाला पाखंडी पंडित वही कहता. उस में अनहोनी क्या थी? अनहोनी तो यह थी, जो घट रही है.

‘‘अजय को उस के रूपरंग, कामधंधे, स्वभाव, संस्कार की कसौटी पर परखा जाता, तो वह धुंध साफ हो सकती थी, मगर पंडित के दिखाए भविष्य के सतरंगे सपने ने ऐसा भ्रमित किया कि जो बेनूर बदरंग रंग सामने थे वे भी नजर नहीं आए.’’

ओट 2 हाथों की- भाग 3: जब रिया की जिंदगी में नकुल ने भरे रंग

ल्ली में रीना से इस मुलाकात के बाद मैं 3 साल से अधिक हुए उस से नहीं मिल पाई. मुंबई पहुंचते ही राकेश की फर्म ने मुझे आस्ट्रेलिया भेज दिया. हम उधर चले गए. रिया से जाते वक्त फोन पर बात की, तो उसे बड़ी हताशा हुई. इस शहर में एक मैं ही थी, जिस के आगे कभीकभार वह अपने भारी मन को कहसुन कर हलका कर लिया करती थी. मैं जब दिल्ली लौटी तो पता चला कि रीना और रिया यही हैं. भाई की शादी पर आई हुई हैं. तो नकुल इतना बड़ा हो गया… शादी हो रही है उस की.

दोपहर को रीना और रिया मुझे लेने आ पहुंचीं. यह रिया थी. कायाकल्प हो गया था उस का. चहक रही थी. आवाज में भरपूर आत्मविश्वास उस की सुंदरता को बढ़ा रहा था. पर आंखों के कोनों में पसरा हलका सूनापन मुझ से छिपा नहीं रहा. इस पर भी उस का पूरा व्यक्तित्व बदला सा था, स्वस्थ, स्मार्ट. मैं हैरत से उसे ही देखे जा रही थी, बिना कुछ बोले. आगे बढ़ कर मेरा हाथ दबाते वही बोली, ‘‘दीदी, रिया के इस रूप को देख कर चौंक गई न. मैं ने अपना दुखड़ा आप के सामने खूब रोया. क्या अब बाकी की कहानी नहीं सुनना चाहेंगी?’’

‘‘ओह रिया, जरूर सुनूंगी बल्कि सच कहूं तो तुम्हें देख कर आश्चर्य तो हो रहा है साथ ही इतनी खुशी हो रही है, जिसे मैं बयान नहीं कर सकती.’’

‘‘मैं समझ सकती हूं, दीदी. आप ने उन दिनों मुझे कितना सहारा दिया. मैं इसे क्या भूल सकती हूं?’’

‘‘हट पगली. दीदी भी कहती है और…’’

‘‘तो चल, अनि, आज जी भर कर बातें करेंगे. कल से शादी की गहमागहमी में, रिश्तेदारों की भीड़ में एकांत नहीं मिल पाएगा,’’ रीना बोली.

जो रिया ने बताया सच में वह किसी नाटक जैसा था.

दीदी नकुल मुंबई आया था अपने किसी काम से. फोन खराब होने के कारण उस के आने की सूचना नहीं मिली थी. अचानक पहुंचा… घर का दरवाजा भी अंदर से बंद नहीं था. अंदर कदम रखते ही उस के मुंह पर अजय द्वारा फेंका गया तनु का ड्रैस पड़ा और कानों में पड़ी उस की फुफकार…

इस तरह की खुली स्लीवलैस डै्रस तनु को पहनाओगी. पूरे कंधे, पीठ खुली… समझती क्या हो अपनेआप को… कुछ शऊर है…कहा किस ने था उस के कपड़े लाने को… इतने तो पड़े हैं.

एक ही बात को लगभग दहाड़ते हुए दोहरा रहा था. चेहरा गुस्से में लाल पड़ गया था. सामने रिया मूर्ति बनी भावहीन खड़ी थी. तनु कांप रही थी. धृतराष्ट्र और गांधारी बने सासससुर घर को कुरुक्षेत्र बना देख, अनदेखा करते अपने कमरे में बैठे थे. उन के लिए यह हमेशा का जानापहचाना दृश्य था.

नकुल को देख एक बारगी अजय सकते में आ गया, ‘‘क्या हुआ?’’ उस का इतना पूछना भर था कि अजय दोगुने वेग से गरजने लगा.

अपनी इस बेवकूफ बहन से पूछो. कोई काम ढंग से नहीं करती. इस को मना किया हुआ है फिर भी ऐसा बेहुदा डै्रस लाई है. कहने को उस के पास क्या था. तिल को ताड़ बना देने की आदत के पीछे चोट उस के अहमग्रस्त वजूद पर इतनी सी बात से लग गई कि रिया अपने मन से एक कपड़ा भी बेटी के लिए क्यों ले आई. 8 साल की बच्ची के लिए स्लीवलैस कपड़े में उसे क्या बुराई नजर आ गई. तनु के हाथ से झपट कर डै्रस को रिया के मुंह पर मारा था, बीच में आ गया नकुल. सालेसाहब का इस तरह स्वागतसत्कार हुआ.

युवा नकुल का इस से खून गरम होना लाजमी था. अपनी प्यारी बहन को बेवकूफ और न जाने किनकिन शब्दों से नवाजा जाना सहन नहीं कर पाया. उस समय वह ज्यादा कुछ नहीं बोला. पर नीचे जा कर अपने पापा को फोन किया, ‘‘पापा मैं रिया दीदी को अपने साथ ला रहा हूं.’’

‘‘क्या बात हो गई. वह ठीक तो है न?’’

‘‘वह सब बातें वहीं आ कर होंगी पापा.’’

‘‘बेटा, आखिर कुछ कहो भी. हुआ क्या आखिर?’’

‘‘क्या कहूं. जीजाजी का जो रंग मैं ने यहां देखा… बस, कैसे बताऊं…’’

‘‘सुनो नकुल, मैं रात की फ्लाइट से आ रहा हूं. तब तक कुछ मत कहना.’’

वापस ऊपर बहन के पास आया तब तक अजय जा चुका था. रिया के ससुर नकुल के पास बैठे सामान्य दिखने की कोशिश कर रहे थे. शर्मिंदगी का स्याह रंग पुता था उन

के चेहरे पर. संभ्रांत परदे के पीछे छिपा बदरंग रूप सामने आ चुका था. इतना होने

पर भी रिया ने भाई की पसंद का खाना बनाया. पास बैठ कर मनुहार कर खिलाया. यह वही रिया थी, जिस से कोई ऊंची आवाज में कोई कुछ कह देता, तो रूठ जाती. खाना नहीं खाती थी. सहतेसहते शायद… संवेदना शून्य हो गई थी.

पापा शाम को आ कर होटल में रुके और फोन कर नकुल को बुलाया. उस ने जो कुछ हुआ सब बताया.

‘‘पापा, सुनने में मामूली बात लगेगी किंतु उस वक्त जीजाजी का जो रूप मैं ने देखा. मैं तो डर गया दीदी कैसे सहती होगी,’’ अनायास ही हाथ सूजे चेहरे पर चला गया. पापा ने भी देखा, सहलाया, फिर गंभीर हो गए.

दूसरे दिन नकुल रिया को घुमाने के बहाने होटल में ले आया. पापा को देख कर चौंकी थी रिया. पापा का उदास खिला चेहरा देख ग्लानि से भर उठी. उफ, उस दिन दरवाजा बंद होता, तो कम से कम यह सब न होता. किसी को कुछ पता नहीं चलता.

फिर नकुल की जिद के कारण पापा रिया के ससुर से और अजय से मिलने पहुंचे. इतने वर्षों में कभी किसी तरह का उलाहना न देने वाले और हमेशा बेहद विनम्रता व शालीनता से पेश आने वाले समधी ने जब नकुल के साथ औफिस में प्रवेश किया, तो दोनों बापबेटे सिटपिटा गए.

गंभीर व दृढ़ शब्दों में रिया के पापा ने 2 बातें सामने रखीं कि या तो रिया को यहां किसी काम में लगा कर व्यस्त रखा जाए या फिर वे उसे साथ दिल्ली ले जा कर कुछ करवाएंगे. वे नहीं चाहते कि लगातार के तनाव से उन की बेटी बिस्तर पकड़ ले.

न अजय का कोई दोष बताया न समधी को कोई उलाहना दिया. उन के ठहरे हुए शब्दों की गूंज ऐसी थी कि दोनों बापबेटे के पास एक विकल्प चुनने के अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं बचा था.

तब स्नातक के बाद की गई रिया की मौंटेसरी टै्रनिंग की ए.एम.आई. की डिगरी काम आई. नकुल और पापा ने जगह लेने से ले कर उसे व्यवस्थित करने, रजिस्टे्रशन करवाने, विज्ञापन देने, फर्नीचर बनवाने और अनेक छोटेबड़े काम वहीं रह कर अपनी देखरेख में पूरे करवाए. दोनों ने तय कर लिया था कि चाहे कितना भी समय लगे, रिया का स्कूल शुरू करवा कर ही जाएंगे.

‘‘दीदी, जानती हैं स्कूल का सारा खर्च मेरे ससुर ने दिया. अभी मेरे पास 150 बच्चे

हैं. सुबह 10 से 2 बजे तक मैं स्कूल में रहती हूं. घर की पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए, मजे से स्कूल चला रही हूं. बच्चों के भोले चेहरे देख कर, उन की प्यारी बातें सुन कर मेरा सारा तनाव दूर हो जाता है.’’

‘‘अजय भी अब पहले की तरह नहीं चीखतेचिल्लाते. मेरे किसी काम में अब दखलंदाजी भी नहीं करते. एक मूक समझौता हो गया है. बस, ठहराव आ गया है, दीदी.’’

यानी कि आपसी प्रेम के बिना भी व्यस्तता व अपने होने की सार्थकता ने रिया को संयत कर दिया था. अलगाव या दूसरे रास्ते नए तरह का तनाव पैदा कर सकते थे. वैसे सभी के हिस्से में सारे सुख कहां होते हैं. जो नहीं बदल सकता था नहीं बदला.

मन पर लगे घाव बारबार चोट खा कर नासूर बन रहे थे. उन पर खूरंट आ गए थे. निशान तो थे ही, जो बीत गया वह लौट नहीं सकता था. बस, जो समय बचा था

उसे संवारा था उस ने, पर यह भी तब हुआ था, जब कांपती लौ को 2 हाथों की ओट

मिली थी. वरना झंझावतों के थपेड़ों से लौ बुझ ही जाती.

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अमीरी का डर- भाग 3: खाई अंतर्मन की

वैशाली बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठी, ट्रे पर नजर डाली, वहीं अपने पास बैठे बेटे से नजर मिली तो वह दिल खोल कर हंसा, ‘‘लो मां, अपनी बहू का पहली बार बनाया नाश्ता करो.’’

एक कप चाय और एक प्लेट में मैगी देख कर वैशाली मुसकराते हुए बोली, “मैगी, तुम्हें आती है बनानी?’’

अंजलि ने गर्व से बताया, ‘‘वो मम्मा, हम सब फ्रैंड्स कभी एकसाथ स्लीपओवर के लिए किसी के घर रुकते थे, तो रात में मैगी बना कर खाते थे.’’

विपिन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘मां, किसी बहू ने अपनी सास को पहली बार मैगी खिलाई होगी?’’

वैशाली ने प्यार से बेटे को डांटा, “तुम चुप रहो. और अंजलि, यह तुम्हारे लिए आज पहली बार कुछ बनाने का शगुन,” कह कर अपने पर्स से 2,000 के 2 नोट निकाल कर अंजलि के हाथ पर रखे, तो अंजलि ने झट से वैशाली को उस पर ढेर सा प्यार आया और फिर वह मैगी खाने लगी.

विपिन ने महेश को फोन पर आज की घटना के बारे में बता दिया था. वैशाली को दवाई खिलाते हुए विपिन ने कहा, ‘‘आप अब लेट जाओ, मां.’’

‘‘बेटा, नीता से उस की मेड के बारे में पूछ आओ, किसी को तो काम के लिए बुलाना ही होगा, मैं ठीक थी तो किसी तरह कर ही लेती लतिका के बिना, अभी तो हिलने में भी दर्द है.’’

‘‘नहीं मम्मा, मैं कर लूंगी,’’ वैशाली की आंखें फटी की फटी रह गईं, ‘क्या है यह लड़की, कभी कुछ नहीं किया, कुछ आता नहीं, क्या करेगी, क्या सोचेंगे इस के मांबाप, कैसा ससुराल है उन की राजकुमारी जैसी बेटी का…’

विपिन ने कहा, ‘‘मैं टिफिन सर्विस वाले को फोन कर देता हूं, सुबहशाम टिफिन आ जाएंगे, प्रौब्लम नहीं होगी.’’

‘‘तुम तो कह रहे थे कि मम्मा को बाहर के खाने से एसिडिटी हो जाती है, नहीं, कोई जरूरत नहीं है, मैं कर लूंगी.’’

अपने बेटे की पसंद को वैशाली निहारती रह गई, अंजलि बोली, ‘‘मम्मा, बस आप लेटेलेटे मुझे बता देना कि कैसे क्या करना है.’’

शायद दवार्ई से वैशाली की गहरी आंख लगी, दोपहर को अंजलि ने उठाया, ‘‘मम्मा, खाना.’’

वैशाली ने चौंक कर आंखें खोली, “अरे, मैं तो बहुत गहरी नींद सो गई आज.”

‘‘मम्मा, दर्द कुछ कम हुआ?’’

‘‘अभी तो है,’’ अंजलि ने सहारा दे कर वैशाली को बैठाया, विपिन भी वहीं प्लेट ले कर आ गया और तीनों का खाना लगा दिया, टेढ़ेमेढ़े, मोटेमोटे परांठे और अचार, मन भर आया वैशाली का, उस की आंखें भर आईं, बेचारी नाजुक सी लड़की कैसे हर स्थिति को संभालने की कोशिश में लगी है सुबह से, विपिन ने मां की भोगी आंखें देखी तो मां के मनोभाव समझ गया.

तीनों ने खाना खाया, वैशाली ने अंजलि को उस की मेहनत के लिए बहुत शाबाशी दी. शाम को महेश भी जल्दी आ गए. वैशाली ने उन्हें दिनभर के हाल बताए तो वे मुसकरा दिए. अंजलि उन के लिए चाय और सैंडविच लाई, तो खुश होते हुए उन्होंने भी अंजलि को 2,000 का नोट देते हुए कहा, ‘‘लो बेटा, पहली बार अपनी बहू के हाथ का बना खा रहा हूं, सुखी रहो.’’

अंजलि को आज अपने ऊपर बहुत गर्व हो रहा था, चहकते हुए वह बोली, ‘‘थैंक्यू पापा, मैं ने तो डिनर भी सोच लिया है.’’

महेश बोले, ‘‘क्या बनाओगी बेटा?’’

‘‘चावल का अंदाजा मम्मा लेटेलेटे बता देंगी, विपिन ने बताया था कि दाल उन्हें आती है बनानी और रोटी मैं ट्राई कर लूंगी. जैसे परांठे बनाए थे मैं ने, सलाद विपिन काट लेंगे, आटा फूड प्रोसैसर में सुबह ही मैं ने ज्यादा गूंध लिया था.’’

सभी उस की प्लानिंग पर जोर से हंस पड़े. महेश हंसने लगे, ‘‘वाह बेटा, बहू ने तो हमारे घर में रौनक कर दी है, सब को काम पर लगा दिया है.’’

तीनों ने मिल कर खाना बनाया. वैशाली के बेड पर ही सब अपनीअपनी प्लेट ले कर आ गए, सब ने खाना साथ बैठ कर मन से खाया, महेश और वैशाली की नजरें मिली, दोनों को लगा कि उन टेढ़ीमेढ़ी रोटियों का स्वाद कभी भूलने वाला नहीं था, दोनों के दिल में अपनी बहू के लिए अपार स्नेह उमड़ता रहा. अंजलि ने कहा, ‘‘विपिन, आप कल से औफिस ज्वाइन कर लो, आप और पापा कल से लंच कैंटीन में कर लेना, क्योंकि मेरी बनाई रोटी तो टिफिन में चलेंगी नहीं,’’ कह कर वह खुद ही हंस पड़ी, फिर बोली, ‘‘मैं और मम्मा कुछ भी खा लेंगे, फिर डिनर सब साथ में करेंगे. आप और पापा शाम को जल्दी घर आ जाना मेरी हेल्प के लिए.’’

सब बहुत जोर से हंसे उस की स्पष्टवादिता पर, वैशाली को उस का साफसाफ बात करने का सरल ढंग बहुत ही भाया, न कोई दिखावा और न लागलपेट, एकदम साफ और अच्छी बात.

अगले दिन सुबह 6 बजे ही अंजलि उठ गई. नहाधो कर वह किचन में गई. महेश और विपिन को सैंडविच दिए नाश्ते में, दोनों के जाने के बाद अंजलि ने कपड़े बदल लिए, टीशर्ट और कैपरी पहनी, झाड़ू लगाई और वैशाली के मना करने पर भी डंडे वाला पोंछा उठा कर घर में पोंछा लगाने लगी. इतने में डोरबेल हुई, अंजलि ने दरवाजा खोला. सामने उस के मम्मीपापा खड़े थे.

अंजलि ने उन्हें रात में ही वैशाली की स्लिपडिस्क के बारे में बताया था. गोयल दंपती एकटक अपनी बेटी को देख रहे थे, टीशर्ट, कैपरी, कंधे पर डस्टिंग वाला तौलिया और हाथ में पोंछे वाला डंडा, माथे पर पसीना, वैशाली को शर्म आई, क्या सोचेंगे ये लोग, अंजलि के मुख पर छाया उत्साह और भोली सी चमक निहारती राधा ने बेटी को खूब प्यार किया. वैशाली ने संकोच के साथ मेड के जाने के बारे में बताया, तो अनिल ने कहा, ‘‘आप कहें तो हम अपने एक कुक को कुछ दिनों के लिए यहां भेज दें.’’

‘‘नहीं पापा, आई विल मैनेज, डोंट वरी, मजा आ रहा है मुझे,’’ जब अंजलि ने चहकते हुए कहा, तो गोयल दंपती भी मुसकरा दिए. वैशाली की कुशलक्षेम और थोड़ी बातचीत के साथ अंजलि की बनाई हुई चाय पी कर बेटी को आशीर्वाद देते हुए चले गए. अपने मातापिता के लाए हुए फल और ड्राईफ्रूट्स निकाल कर अंजलि जबरदस्ती वैशाली को खिलाने लगी और फिर काम में लग गई.

अब रोज का यही क्रम था. अंजलि अनभ्यस्त हाथों से घर का हर काम हंसीखुशी संभालती रही. वैशाली को कुछ आराम हुआ, तो वह भी चलतीफिरती हलकेफुलके काम निबटाती रही. 10 दिन बीत चुके थे, एक सुबह वैशाली की आंख बहुत जल्दी खुल गई. वह फ्रेश होकर किचन में गई, तो किचन की खटपट सुन अंजलि आंख मलती हुई आई, उन का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठा कर बोली, ‘‘नहीं मम्मा, अभी आप कुछ नहीं करेंगी. मैं फ्रेश हो कर आप के लिए चाय लाती हूं…

“ओह, मैं तो भूल ही गई, ‘गुड मार्निंग मम्मा’,” कहते हुए वैशाली के पैर हुए, तो वैशाली ने उसे गले से लगा लिया. उस के अंतःकरण से बहू के भावी जीवन के लिए आशीर्वादों के फूल बरस रहे थे. इतने दिनों से मन में बसा बहू की अमीरी का डर जो गायब हो चुका था.

दुविधा – भाग 1 : किस कशमकश में थी वह?

एमबीए करते ही एक बहुत बड़ी कंपनी में मेरी नौकरी लग गई. हालांकि यह मेरी वर्षों की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था फिर भी मेरी आशा से कुछ ज्यादा ही था. हाईटैक सिटी की सब से ऊंची इमारत की 15वीं मंजिल पर, जहां से पूरा शहर दिखाई देता है, मेरा औफिस है. एक बड़े एयरकंडीशंड हौल में शीशे के पार्टीशन कर के सब के लिए अलगअलग केबिन बने हुए हैं. आधुनिक सुविधाओं तथा तकनीकी उपकरणों से लैस है मेरा औफिस.

मेरे केबिन के ठीक सामने अकाउंट्स विभाग का स्टाफ बैठता है. उन से हमारा काम का तो कोई वास्ता नहीं है लेकिन हमारी तनख्वाह, भत्ते, अन्य बिल वही बनाते तथा पास करते हैं. कंपनी में पहले ही दिन अपनी टीम के लोगों से विधिवत परिचय हुआ लेकिन शेष सब से परिचय संभव नहीं था. सैकड़ों का स्टाफ है, कई डिवीजन हैं. उस पर ज्यादातर स्टाफ दिनभर फील्ड ड्यूटी पर रहता है.

मेरे सामने बैठने वाले अकाउंट्स विभाग के ज्यादातर कर्मचारी अधेड़ उम्र के हैं. बस, ठीक मेरे सामने वाले केबिन में बैठने वाला अकाउंटैंट मेरा हमउम्र था. वैसे उस से कोई परिचय तो नहीं हुआ था, बस, एक दिन लिफ्ट में मिला तो अपना परिचय स्वयं देते हुए बोला, ‘‘मैं सुबोध, अकाउंटैंट हूं. कभी भी अकाउंट्स से जुड़ी कोई समस्या हो तो आप बेझिझक मुझ से कह सकती हैं,’’ बदले में मैं ने भी उसे अपना नाम बताया और उस का धन्यवाद किया था जबकि वह मेरे बारे में सब पहले से जानता ही था क्योंकि अकाउंट्स विभाग से कुछ छिपा नहीं होता है. उस के पास तो पूरे स्टाफ की औफिशियल कुंडली मौजूद होती है.

इस संक्षिप्त से परिचय के बाद वह जब कभी लिफ्ट में, सीढि़यों में, डाइनिंग हौल में या रास्ते में टकरा जाता तो कोई न कोई हलकाफुलका सवाल मेरी तरफ उछाल ही देता. ‘औफिस में कैसा लग रहा है?’, ‘आप का कोई बिल तो पैंडिंग नहीं है न?’, ‘आप अखबार और पत्रिका का बिल क्यों नहीं देती?’, ‘आप ने अपनी नई मैडिकल पौलिसी के नियम देख लिए हैं न?’ वगैरहवैगरह. बस, मैं उस के सवाल का संक्षिप्त सा उत्तर भर दे पाती, हर मुलाकात में इतना ही अवसर होता.

मुझे यहां काम करते 2-3 महीने बीत चुके थे. अभी भी अपनी टीम के अलावा शेष स्टाफ से जानपहचान नहीं के बराबर थी. वैसे भी दिनभर सब काम में इतना व्यस्त रहते हैं कि इधरउधर की बात करने का कोई  मौका ही नहीं मिल पाता. हां, काम करतेकरते जब कभी नजरें उठतीं तो सामने बैठे सुबोध से जा टकराती थीं. ऐसे में कभीकभी वह मुसकरा देता तो जवाब में मैं भी मुसकरा कर फिर अपने काम में लग जाती. लेकिन जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, मैं ने एक बात नोटिस की कि जब कभी भी मैं अपनी गरदन उठाती तो सुबोध को अपनी तरफ ही देखते हुए पाती. अब वह पहले की तरह मुसकराता नहीं था बल्कि अचकचा कर नीचे देखने लगता था या न देखने का बहाना करने लगता था.

खैर, मेरे पास यह सब सोचने का समय ही कहां था? मेरे सपनों के साकार होने का समय पलपल करीब आने लगा था. घर में मेरे और प्रखर के विवाह की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं. प्रखर और मैं कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. वहीं हमारी दोस्ती हुई फिर पता ही नहीं लगा कब हमारी दोस्ती इतनी आगे बढ़ गई कि हम दोनों ने जीवनसाथी बनना तय कर लिया.

घर वालों से बात की तो उन्होंने भी इस रिश्ते के लिए हां कर दी लेकिन शर्त यही थी कि पहले हम दोनों अपनीअपनी पढ़ाई पूरी करेंगे, अपना भविष्य बनाएंगे. फिर शादी की सोचेंगे. पढ़ाई पूरी होते ही प्रखर को भी एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी.

एक दिन सुबह सुबोध लिफ्ट में फिर मिल गया. लिफ्ट में हम दोनों ही थे. बिना एक पल भी गंवाए उस ने और दिनों से हट कर सवाल पूछा था, ‘‘आप के घर में कौनकौन है?’’

मुझे उस से ऐसे सवाल की आशा नहीं थी. पूछा, ‘‘क्यों, क्या करेंगे जान कर?’’ मेरा उत्तर भी उस के अनुरूप नहीं था.

‘‘यों ही. सोचा, मां को आप के बारे में क्या बताऊंगा, जब मुझे ही आप के बारे में कुछ पता नहीं है?’’

‘‘क्यों, सब कुछ तो है आप के पास औफिस रिकौर्ड में नाम, पता, ठिकाना, शिक्षा वगैरह,’’ कहते हुए मैं हंस दी थी और वह मुझे देखता ही रह गया.

लिफ्ट हमारी मंजिल पर पहुंच चुकी थी. हम दोनों उतरे और अपनेअपने केबिन की ओर बढ़ गए.

अपनी सीट पर आ कर बैठी तो एहसास हुआ कि सुबोध क्या पूछ रहा था और नादानी में मैं ने उसे क्या उत्तर दे दिया. सब सोच कर इतनी झेंप हुई कि दिनभर गरदन उठा कर सामने बैठे हुए सुबोध को देखने का साहस ही नहीं हुआ. हालांकि उस की नजरों की चुभन को मैं ने दिनभर अपने चेहरे पर महसूस किया था. पता नहीं वह क्या सोच रहा था.

अगले दिन मैं जानबूझ कर लंच के लिए देर से गई ताकि मेरा सुबोध से सामना न हो जाए. उस समय तक डाइनिंग हौल लगभग खाली ही था. मैं ने जैसे ही प्लेट उठाई, अपने पीछे सुबोध को खड़ा पाया. उसी चिरपरिचित मुसकान के साथ, खाना प्लेट में डालते हुए वह धीमे से बोला, ‘‘कल आप ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?’’

‘‘मम्मी को बताना क्या है, अगले महीने की 20 तारीख को मेरी शादी है. उन्हें साथ ले आइएगा, मिलवा ही दीजिएगा.’’

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