कहानी : एक चुटकी मिट्टी की कीमत

कहानी :  पहले जब लोगों के दिल बड़े हुआ करते थे, तब घर भी बड़े व हवादार हुआ करते थे, भरेपूरे संयुक्त परिवार हुआ करते थे. जब से लोगों के दिल छोटे हुए, घर भी छोटे व बेकार होने लगे डब्बेनुमा. अब जब कोरोना जैसी महामारी आई तो लोगों को पूर्वजों की बड़ी व खुली सोच और बड़े व खुलेखुले घर की अहमियत समझ में आई.

बात पिछले साल की है. बिहार के अपने लंबेचौड़े, संयुक्त पुश्तैनी घर से दिल्ली के 2 कमरों के सिकुड़ेसिमटे फ्लैट में शिफ्ट हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि कोरोना महामारी ने समूचे विश्व पर अपने भयावह पंजे फैला दिए. लौकडाउन और कर्फ्यू के बीच घर में कैद हम बेबसी में नीरस व बेरंग दिन काट रहे थे, फोन पर प्रियजनों के साथ दूरियों को पाट रहे थे. मन ही मन प्रकृति से दिनरात मिन्नतें कर रहे थे कि, हे प्रकृति, इस विदेशी वायरस को जल्दी से जल्दी इस के मायके भेज दे.

एक दिन मुंह पर मास्कवास्क बांध कर मन ही मन कोरोना के उदगम स्थल को हम अपनी बालकनी में बैठे कोस रहे थे कि अथाह भीड़ वाली दिल्ली की कोरोनाकालीन सूनी सड़क से फूलों का एक ठेले वाला अपनी बेसुरी आवाज में चीखते हुए फूल खरीदने की गुहार मचाता गुजरा. देखते ही देखते महामारी को ठेंगा दिखाते लोगों की भीड़ ठेले के पास जमा हो गई.

हम भारतीयों की ख़ासीयत है कि हम लौकडाउन, कर्फ्यू या मास्कवास्क को अपनी सुविधानुसार ही अहमियत देते हैं. भावताव के साथ संपन्न हो रही थी सौदेबाजी, कोरोना ने कहीं महंगे कर दिए थे फूल तो कहीं सस्ते में भाजी मिल रही थी. थोड़ी ही देर बाद मैं ने देखा कि सामने वाले घर की बालकनी गुलाब के गमलों से सज गई है और गमले में लगे यौवन से उन्मत्त लालपीले सुकुमार गुलाब मेरी ओर बड़ी अदा से देख कर मुसकरा रहे हैं. अकेलेपन से व्यथित मेरे ह्रदय को अपनी ख़ूबसूरती से चुरा रहे हैं. अगलबगल के घरों की बालकनी का भी यही नज़ारा था.

गुलाबों का बेहिसाब हुस्न मेरे दिल को बरबस ही भा चुका था. पर करें क्या, फूल वाला तो अपने सारे गुलाब बेचकर जा चुका था. अब हर दिन मैं फूलवाले के इंतज़ार में बालकनी में बैठी रहती. किसी भी बेसुरी आवाज पर मेरी सारी चेतना कानों में समा जाती. पर सूनी सड़क पर यदाकदा भीख मांगने वाले या फिर शौकिया सड़कों की ख़ाक छानने वाले ही नज़र आते. न जाने फूलवाला कहां लुप्त हो गया था.

आखिरकार, एक हफ्ते बाद फूलवाला दोबारा से सड़क पर प्रकट हुआ. भीड़ का जत्था ठेले तक पहुंचे, इस के पहले ही मैं तेज गति से ठेले के पास जा पहुंची. अलगअलग रंगों के 10 गुलाब पसंद कर के मैं ने फूलवाले से उन्हें गमले में लगा देने को कहा.

“फूल लगाने के पैसे अलग से लगेंगे, मैडम जी,” भीड़ देख कर वह वाला भाव खा रहा था.

मैं बोली, “अरे, तो ले लेना अलग से पैसे, फूल तो लगा दो.”

वह बोला, “फूल कैसे लगा दूं, मैडम जी, मिट्टी किधर है?”

मैं सोच में पड़ गई, मिट्टी कहां है. मुझे पसोपेश में देख वह फूलवाला वाला बोला, “ मिट्टी लेनी है?”

मैं ने झट से हामी भरी तो उस ने एक छोटा सा पैकेट निकाला और बोला, “यह 5 किलो मिट्टी है, 375 रुपए लगेंगे. लेना है, तो बोलो.”

मिट्टी इतनी कम थी कि एक गमला भी ठीक से नहीं भर सकता था. पर फूल वाले ने बड़ी कुशलता से 4 गमलों में जराजरा सी मिट्टी डाल कर गुलाब के पौधे लगा दिए और बाकी मिट्टी कल लाने की बात कह कर चला गया.

6 गुलाब के पौधे बेचारे यों ही बालकनी के फर्श पर गिरे पड़े से थे. अपने अंजाम को सोच कर मानो डरेडरे से थे. मैं ने फोन पर अपनी मित्रमंडली में अपनी परेशानी बताई, तो सब ने औनलाइन मिट्टी खरीदने का सुझाव दिया. मैं झटपट औनलाइन मिट्टी सर्च करने लगी. यहां तो तरहतरह की मिट्टियों की भरमार थी. हम तो एक ही मिट्टी समझते थे. यहां मिट्टी की हजारों किस्में उपलब्ध थीं.

गुलाब के लिए अलग मिट्टी तो सिताब के लिए अलग, गुलबहार के लिए अलग तो गुलनार के लिए अलग, मनीप्लांट के लिए अलग जबकि हनी प्लांट के लिए अलग, आम के लिए अलग तो एरिका पाम के लिए अलग. साथ ही कोरोना की वजह से ‘भारी’ डिस्काउंट भी मिल रहा था. 300 रुपए किलो से 1100 रुपए किलो के बीच हजारों तरह की मिट्टियां औनलाइन बेची जा रही थीं. जैसे रेड सोयल, येलो सोयल, और्गेनिक सोयल, इनआर्गेनिक सोयल, पृथ्वी सोयल, आकाश सोयल, गोबर वाली सोयल, खाद वाली सोयल आदि. और तो और, जरा ज्यादा दाम पर यहां मिट्टी के बिस्कुट भी उपलब्ध थे.

सोने के बिस्कुट, खाने के बिस्कुट तो सुने थे पर ये मिट्टी के बिस्कुट पहली बार सुन रही थी. कई घंटे दिमाग खपाने के बाद मैं ने 15 किलो खाद वाली मिट्टी और 10 मिट्टी के बिस्कुट और्डर किए, जो कि सुबहसुबह एक छोटे से पैकेट में डिलीवरी बौय दे गया.

बड़े बुजुर्ग कह गए थे कि एक समय ऐसा आएगा जब पानी भी पैकेट में बिकेगा. पर मिट्टी भी पैकेट में बिकेगी, यह तो किसी ने सोचा ही न होगा. खैर, बिस्कुट समेत पूरी मिट्टी बमुश्किल 5 से 7 किलो होगी. अभी औनलाइन मिट्टी खरीदने का दुख कम भी नहीं हुआ था कि दोपहर को फूलवाला भी 5 किलो कह कर दोचार मुट्ठी मिट्टी दे गया. बदले में वह पेटीएम के पूरे पैसे ले गया. औनलाइन मिट्टी खरीदने के जख्म को फूलवाला हरा कर गया और जराजरा सी मिट्टी में किसी तरह से गुलाबों को खड़ा कर गया.

ऐसी अज़ीबोगरीब मिट्टी को देख कर बेचारे गुलाब बेहद डरे हुए थे. बड़ी मुश्किल से मुट्ठीभर मिट्टी में झुकेझुके से पड़े हुए थे वे. गुलाबों की दशा देख कर मेरा मन दिल्ली के प्रदूषित आसमान की तरह धुंधवारा सा होने लगा. हाय री मिट्टी, तू तो सोने से भी कीमती निकली. मन किया कि बिहार जा कर एक बोरी मिट्टी ही ले आऊं, पर कोरोना माई की वजह से यह मंसूबा भी पूरा नहीं हो सका. भरेमन से आखिरकार मैं ने गुलाबों को उन के हाल पर छोड़ देने का फैसला किया. एक लंबी सांस के साथ मेरे मुंह से निकला- एक चुटकी मिट्टी की कीमत तुम क्या जानो…

Short Story : यंग फौरएवर थेरैपी

Short Story : करवट बदल कर बांह फैलाई तो हाथ में सिरहाना आ गया. हम समझ गए कि श्रीमतीजी उठ चुकी हैं. सुबह की शुरुआत रोमांटिक हो तो कहना ही क्या. सोचते हुए लगे श्रीमतीजी को खोजने. फिर किचन से धुआं उठता देख समझ गए कि गरमगरम परांठे सिंक रहे हैं, सो वहीं पहुंच पीछे से ही गलबहियां डाल लगे हांकने, ‘‘दिन जवानी के चार यार प्यार किए जा…’’

झटके से हाथ हटातीं श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘हटो, सुबहसुबह तुम्हें और कोई काम नहीं, जाओ बच्चों को उठाओ, स्कूल भेजना है. बुढ़ाती उम्र में भी इन्हें रोमांस सूझता है.’’

श्रीमतीजी के इस देखेभाले अंदाज को इग्नोर करते हम बोले, ‘‘जानम कहां तुम बुढ़ापे की बातें करने लगीं. तन से तो ढलकती जा रही हो मन से तो मत ढलको. यंग फौरएवर थेरैपी अपनाओ और सदाबहार रोमांटिक बनो,’’ कहते हुए हम फिर उन्हें बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘ओ मेरी जोराजबीं, तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवान…’’

‘‘हांहां, तुम होगे सदाबहार जवान और रोमांटिक. मैं तो न हसीन रही, न जवान. इस चूल्हेचौके में झोंक कर तुम ने मुझे हसीन और जवान रहने ही कहां दिया?’’ श्रीमतीजी ने ताना मारा, ‘‘और यह यंग फौरएवर थेरैपी क्या है बुड्ढों को जवान बनाने का नुसखा या रोमांटिक बनाने का?’’

‘‘भई अपना कर देखो इस फौर्मूले को, कैसे बुढि़या से गुडि़या बनती हो तुम भी, बिलकुल बार्बी डौल की तरह,’’ हम ने फिर उन्हें बांहों में भरते हुए कहा.

इसी बीच बच्चे खुद ही उठ कर आ गए और हमें आलिंगनबद्ध देख झेंप से गए. हम भी अपना रोमांसासन छोड़ चल दिए पानी गरम करने की रौड लगाने.

औरत सब कुछ सह सकती है लेकिन बूढ़ी, बहनजी होने का ताना नहीं. ऐसे में भाजीतरकारी बेचने वाला भी अगर गलती से माताजी कह दे तो राशनपानी ले कर उस पर सवार हो जाने वाली हमारी श्रीमतीजी के मुख से खुद के लिए खुद ही किया गया बुड्ढी का संबोधन सुन हम अचंभित थे. पर वापस रोमांटिक मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘हमारा मतलब है आप को फौरएवर यंग बनना चाहिए यानी हर बढ़ते वर्ष में भी पिछले वर्ष जैसा जवान और हसीन. फिर देखो आप भी सदाबहार रोमांटिक गाने न गाने लगो तो हमारा नाम नहीं.’’

‘‘यानी अपनी उम्र से भी कम दिखें? लेकिन कैसे, घर के खपेड़ों से फुरसत मिले तो न? हमेशा तो आप चूल्हेचौके में खपाए रहते हो. 15 वर्षों में ही 50 वर्ष की बूढ़ी लगने लगी हूं तिस पर शरीर थुलथुल होता जा रहा है सो अलग,’’ श्रीमतीजी ने अपनी टमी की ओर इशारा किया.

हम भी मौके पर चौका मारते हुए बोल उठे, ‘‘भई कुछ जौगिंग, ऐक्सरसाइज बगैरा कर फिगर का खयाल रखो, स्वास्थ्य का खयाल रखो तो फिर से गुडि़या बन जाओगी, मेरी बुढि़या. हम तो कहते हैं आज से ही शुरू कर दो यंग फौरएवर की जंग.’’

हमारी बात श्रीमतीजी की समझ में आई कि नहीं, पता नहीं पर इतना जरूर समझ गईं कि उन्हें बुढि़या नहीं गुडि़या दिखना है, बिलकुल बार्बी डौल जैसा. वैसे भी उम्र भले बढ़ती रहे, लेकिन नारी कभी नहीं चाहती कि  वह बुढि़या दिखे. अत: श्रीमतीजी ने सोच लिया कि चाहे लाख जतन करने पड़ें, बुढि़या से गुडि़या बन कर ही रहेंगी.

अगले दिन से ही मेकअप से ले कर ऐरोबिक्स और न जाने कौनकौन से नुसखों से खुद को यंग फौरएवर दिखाने के फौर्मूले ढूंढ़ने में ऐसे रातदिन एक किया कि अगर इतना पहले पढ़ लेतीं तो कालेज डिगरी के साथसाथ पीएचडी की डिगरी भी  मिल ही जाती.

लेकिन हमारे लिए पासा उलटा पड़ गया था. बुढि़या से गुडि़या बनने की धुन में सवार हमारी श्रीमतीजी रोज सुबह जौगिंग पर जातीं और जातेजाते हिदायत दे जातीं कि गैस पर दाल रखी है, 2 सीटियां आने पर उतार देना, बच्चों को उठा देना, नाश्ता करवा देना….

अब हम बच्चों को उठाते तो इतने में 2 की जगह 3 सीटियां बज जातीं, बच्चों को नहला रहे होते तो दूध उबल जाता, दाल को एक ओर तड़का लगाते तो दूसरे चूल्हे पर रखी सब्जी जल जाती. किसी तरह सब तैयार होता तो बच्चे लेट हो जाते. उन की स्कूल वैन निकलने का खामियाजा हमें उन्हें स्कूल छोड़ कर आने के रूप में भुगतना पड़ता.

तिस पर रोज श्रीमतीजी की अलगअलग हिदायतें कि आज मौसंबी का जूस पीना है, आज कौर्न का नाश्ता करना है… जवान दिखने के लिए पौष्टिक आहार जरूरी है न.

और तो और उस दिन जौगिंग से आते ही श्रीमतीजी ने फरमाइश रख दी, ‘‘इन कपड़ों में योगा नहीं होता. ट्रैक सूट लेना होगा, जौगिंग शूज भी चाहिए,’’ और फिर कई हजार की चपत लगा अगले ही दिन ट्रैक सूट पहन इतराती हुई बोलीं, ‘‘आज कौर्न का नाश्ता बना कर रखना, साथ में पालक का सूप और कुछ बादाम भिगो देना.’’

हम हां या न कहते उस से पहले घर का दरवाजा खोल निकल लीं. ट्रैक सूट पहने देख हमें लग रहा था कि बुढ़ाते कदम फिर बैक हो रहे हैं. सो हंस दिए. फिर मन में आया कि आज तो संडे है बच्चों ने भी नहीं जाना सो क्यो न पार्क में चल कर देखा जाए कि श्रीमतीजी कैसे बना रही हैं खुद को जवान. सो कौर्न का नाश्ता बनाया, बादाम भिगोए और पालक का सूप तैयार कर चल दिए हम भी पार्क की ओर.

पार्क का दृश्य देख कर तो हम जलभुन कर कोयला ही हो गए. एक बूढ़ा श्रीमतीजी

को योगा सिखाने के बहाने कभी हाथ पकड़ता तो कभी शीर्षासन करवाने के बहाने टांगें पकड़ कर बैलेंस बनवाता. हमें यह देख अच्छा न लगा, लेकिन अपना सा मुंह लिए बिना उन्हें डिस्टर्ब किए घर वापस आ गए.

थोड़ी ही देर में वही बूढ़ा भागता हुआ आता दिखा. आगेआगे हमारी श्रीमतीजी भी भाग रही थीं. फिर घर आ कर उस से परिचय करवाती बोलीं, ‘‘ये हमारे व्यायाम के टीचर हैं… घर देखना चाहते थे. बहुत अच्छी पकड़ है इन की हर आसन पर…’’

‘‘हां देख ली इन की पकड़. हमें तो बुढ़ापे में यौनासन करते नजर आते हैं ये,’’ हम ने कहना चाहा पर बोल न पाए और न चाहते हुए भी बूढ़े से हाथ मिलाया व सोचने लगे कि श्रीमतीजी को कैसे समझाएं कि योगा के बहाने ये आप को कैसेकैसे बैड टच करते हैं.

श्रीमतीजी ने नाश्ते की फरमाइश की तो हम ने बूढ़े के सामने कौर्न और भीगे बादाम ही रख दिए और मन ही मन बोले कि लो खाओ योगीजी.

उस के मना करने पर हम समझ गए कि न पेट में आंत, न मुंह में दांत, यह बुड्ढा क्या खाएगा कौर्न और बादाम.

उन के जाने पर हम ने चैन की सांस ली, लेकिन लगे श्रीमतीजी पर खीज उतारने, ‘‘यंग फौरएवर बनने को कहा था, फास्ट फौरवर्ड बनने को नहीं, जो उस बुड्ढे संग योगा करने लगीं. उस बुड्ढे की जवानी तो वापस आने से रही, हमारा रोमांस भी कहीं धराशायी न हो जाए.’’

हम कहते हुए कुढ़ते रहे और श्रीमतीजी पैर पटक कर चल दीं फ्रैश होने. फिर हम लगे श्रीमतीजी के गुस्से को शांत करने की जुगत ढूंढ़ने.

अब श्रीमतीजी दिनबदिन यंग होती जा रही थीं और हम चूल्हेचौके में फंसे बैकवर्ड. हमें कुढ़न थी कि हमारा रोमांस का मजा छिन रहा है और वह बुड्ढा दूध से मलाई लपकता जा रहा है.

दिन भर के  थकेहारे, सुबहशाम किचन के मारे हम रात को रोमांस की चाह लिए श्रीमतीजी के गलबहियां डालते तो वे कह उठतीं, ‘‘सोने दो सुबह जल्दी उठना है… बुढि़या से गुडि़या बनना है न तुम्हारे लिए.’’

हम खिसियाते से अपना रोमांस मन और सपनों में लिए दूसरी करवट सो जाते.

उस दिन हम औफिस से निकले तो सारे रास्ते इंतजार करते रहे पर श्रीमतीजी का फोन नहीं आया. पहले तो मैट्रो में पैर बाद में रखते थे कि घंटी बज उठती थी और खनखनाती आवाज में पूछा जाता कि कहां पहुंचे? फिर उसी हिसाब से चाय बनती. हम आशंकित हुए.

तभी फोन घनघनाया तो हम खुशी के मारे बल्लियों उछल पड़े. पर अगले ही पल तब हमारी खुशी काफूर हो गई जब श्रीमतीजी ने हिदायत दी कि घर पहुंच कर दाल चढ़ा देना. सब्जी काट रखना. मैं जिम में हूं. आज से ही जौइन किया है. थोड़ा लेट लौटूंगी.

हम खुद पर ही कुढ़े, ‘‘सुबह योगा, जौगिंग क्या कम थी जो अब जिम भी जौइन कर मारा? बुढि़या को गुडि़या बनने का मंत्र क्या मिला कि हमारी तो जान आफत में फंस गई. पर मरता क्या न करता. हम ने श्रीमतीजी की खुशी के लिए यह भी सह लिया यह सोच कर कि वे भी तो हमें जवां दिखाने के लिए संडे के संडे हमारे बाल रंगती हैं, फेशियल कर हमारे बुढ़ाते फेस की झुर्रियां हटाती हैं

खाने का इंतजाम कर श्रीमतीजी का इंतजार कर ही रहे थे कि डोरबैल बजी. दरवाजा खोला तो श्रीमतीजी का हुलिया देख दंग रह गए. स्लीवलैस टीशर्ट और निकर में उन्हें देख हमारी आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘इस तरह टुकुरटुकुर क्या देख रहे हो? जिम ट्रेनर ने कहा था ऐसी ड्रैस के लिए,’’ श्रीमतीजी ने बताया तो हम समझ गए कि आज फिर यंग फौरएवर की धुन में हमारी जेब कटी.

इस यंग फौरएवर की धुन में हमारी श्रीमतीजी इतनी फास्ट फौरवर्ड हो गईर् थीं कि हमारी हालत पतली हो गई थी. हम रहरह कर उस क्षण को कोसते जब हम ने बुढि़या को गुडि़या बनने का सपना दिखाया था. इस का 1 ही महीने में इतना असर हुआ कि लग रहा था श्रीमतीजी अगले 3-4 महीनों में बुढि़या से गुडि़या नजर आने लगेंगी पर हम चूल्हेचौके और औफिस के बीच सैंडविच बन कर रह जाएंगे.

खैर, अब सुबह के साथ शाम का काम भी हमारे ही सिर मढ़ दिया गया था. तिस पर श्रीमतीजी के लिए अलग पौष्टिक आहार के चक्कर में घर का खर्च बढ़ा सो गलग.

उस दिन शाम को जल्दी औफिस से निकले तो सोचा जिम जा कर श्रीमतीजी की

ट्रेनिंग का जायजा लिया जाए. लेकिन जिम पहुंचते ही वहां का माहौल देख कर हम तमतमा उठे. हमारा चेहरा फक्क रह गया. श्रीमतीजी ट्रेड मिल पर दौड़ लगा रही थीं और आसपास सभी पुरुष ऐक्सरसाइज के बजाय ऐंटरटेनमैंट ज्यादा कर रहे थे. सब की नजरें हमारी श्रीमतीजी के सैक्सी बदन पर ही थीं, बावजूद इस के ट्रेनर भी डंबल, बैंच प्रैस आदि करवाने के बहाने यहांवहां टच कर जाता.

मूक दर्शक बने हम ने सब देखा, फिर न चाहते हुए भी श्रीमतीजी के कहने पर सब से मिले और वापस घर आ कर श्रीमतीजी पर बिगड़े, ‘‘तुम्हें यंग फौरएवर बनाने के चक्कर में हम काफी बैकवर्ड हो गए हैं. संभालो अपना घर हम तो हम, बच्चे भी इग्नोर हो रहे हैं.’’

‘‘हम ने सोचा था आप की काया छरहरी बनेगी, सुंदर दिखोगी, खुश रहोगी, तो रोमांस का मजा भी दोगुना हो जाएगा. लेकिन इस यंग फौरएवर के चक्कर में आप इतनी फास्ट फौरवर्र्ड हो जाएंगी, सोचा न था. देखा, कैसे ट्रेनिंग के बहाने वह ट्रेनर तुम्हें कहांकहां छू रहा था.’’

हमारी दुखती रग का मर्म श्रीमतीजी क्या समझतीं. उन्हें तो यही लग रहा था कि हम ईर्ष्यालु हो गए हैं. सो भड़कीं, ‘‘भाड़ में गया तुम्हारा यंग फौरएवर का फौर्मूला. हम ही पागल थीं जो आप को मेहंदी लगा तुम्हारे बाल काले कर आप को जवान दिखाने की पुरजोर कोशिश में लगी रहीं. समाज में 2 पुरुषों ने क्या देख लिया तुम से सहा न गया इस से तो हम बुढि़या ही ठीक हैं,’’ और फिर पैर पटकती चली गईं.

अब इन्हें कौन समझाए कि वे जिन योगाभ्यासियों और जिम ट्रेनर से ट्रेनिंग लेती हें वे सिर्फ उन्हें पराई नार समझते हैं और ऐसे कपड़ों में झांकते बदन को टुकुरटुकुर देखते हैं जो हमें कतई बरदाश्त नहीं. दूर से देखना तो अलग सिखाने, ऐक्सरसाइज करवाने के बहाने यहांवहां बैड टच करते रहते हैं, समझती हो क्या.

हालांकि श्रीमतीजी अब खूब छरहरी दिखने लगी थीं. खूबसूरत तो वे पहले से ही थीं तिस पर यंग फौरएवर की धुन ने ऐसा गजब ढाया कि बुढि़या वाकई गुडि़या दिखने लगी थीं. गली से निकलतीं तो सब देखते रह जाते. आसपास की सभी औरतें इस कायाकल्प का रहस्य जानने को उत्सुक थीं.

एक दिन श्रीमतीजी जौगिंग पर गई हुई थीं, किसी ने दरवाजा खटखटाया. हम ने दरवाजा खोला तो सामने महल्ले की नामीगरामी औरतें खड़ी दिखीं. पूछने लगीं, ‘‘भाभीजी घर पर हैं?’’

हम पहले तो अवाक उन्हें देखते रह गए, फिर सहज होते हुए बोले, ‘‘नहीं, वे तो जौगिंग पर गई हैं…’’

अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि वे बोल पड़ीं, ‘‘भईर्, आजकल भाभीजी कोे देख कर लगता है उन की जवानी वापस आ गई है… कितनी छरहरी हो गई हैं… स्लीवलैस टीशर्ट और निकर में तो किसी कमसिन हसीना से कम नहीं लगतीं. कल राज जब अपने पापा के साथ सैर कर रही थीं तो कितनी हसीन लग रही थीं. हमें भी बताओ इस का राज?’’

‘वे रात अपने पिताजी के साथ सैर कर रही थीं, सुन हम भी हैरान हुए. फिर सकते में आ गए, कल रात तो हम ही दोनों सैर कर रहे थे. और तो क्या हम इतने बुढ़ा गए कि… नहींनहीं,’ हम ने सोचा. दरअसल, बुढि़या से गुडि़या बनने के चक्कर में श्रीमतीजी का हम पर से ध्यान ही हट गया था, महीने से न बालों में मेहंदी लगी थी न फेशियल किया था. तो हम बुड्ढे तो लगेंगे ही.

‘‘बताइए न क्या घुट्टी पिलाई है आप ने उन्हें,’’ रीमा ने दोबारा पूछा तो हमारी तंद्रा भंग हुई. उन महिलाओं में से कोई मोटापे से परेशान थी तो कोई बढ़ा टमी लिए घूमना पसंद नहीं कर पा रही थी. किसी की जांघें बहुत मोटी थीं. रीना के नितंब तो इतने बड़े और बेडौल थे कि उस के सोफे पर बैठते समय हमें लगा कहीं सोफा ही न बैठ जाए.

‘हमारी तपस्या सफल हो गई,’ सोच हम इतराए और फूले न समाए. सोचा, ‘बता दें इन्हें कि यह तो हमारी यंग फौरएवर थेरैपी का कमाल है,’ लेकिन फिर यह सोच चुप रह गए कि ऐसा कहना अपने मुंह मियांमिट्ठू बनना होगा. अत: बोले, ‘‘श्रीमतीजी आएंगी तो स्वयं ही पूछ लीजिएगा आप. तब तक चाय बनाता हूं.’’

वे चाय पी रही थीं तभी श्रीमतीजी आ गईं. लेकिन हमारी उम्मीद कि वे सब को बताएंगी कि हम हैं उन्हें यंग फौरएवर का फौर्मूला बता बुढि़या से गुडि़या बनाने वाले, पर इस उम्मीद के विपरीत वे बोलीं, ‘‘यह तो सुबह पार्क में योगा करने और शाम को जिम जाने का कमाल है. पता है, हमारे योगा के सर बहुत अच्छी तरह योगा सिखाते हैं. उन की और जिम ट्रेनर की वजह से हमें ऐसी सैक्सी फिगर पाने में कामयाबी मिली है.’’

हम खुद पर कुढ़ रहे थे. आदमी छोटी सी भी सफलता हासिल कर ले तो सब कहते हैं कि इस के पीछे औरत का हाथ है, लेकिन आदमी लाख खपे और औरत को कितना भी ऊपर उठाए, तब भी कोई नहीं कहता कि इस के पीछे आदमी का हाथ है. तिस पर श्रीमतीजी ने उस बुड्ढे योगी और जिम ट्रेनर को इस का श्रेय दिया तो हमारी भृकुटियां तन गईं.

उन औरतों के जाने के बाद हम श्रीमतीजी पर बिगड़े, ‘‘हमारे चूल्हे में खपने का, आप को बुढि़या से गुडि़या बनाने हेतु औफिस और घर में तालमेल बैठाने का आप को जरा भी खयाल नहीं आया? सारा श्रेय उन खूसटों को दे दिया. हम तो कुछ हैं ही नहीं,’’ और फिर खूब हो हल्ला मचा हम औफिस चल दिए.

शाम को वापस आ कर भी अनमने से सब समेटा और सोचने लगे, ‘पार्क में भेजो

तो सब बुड्ढे खूसट दिखेंगे आंखें सेंकते. जिम भेजो तो युवकों का डर. ऐसे में हमें लगा दुनिया के सारे मर्द खासकर बुड्ढे ठरकी ही होते हैं जहां औरत देखी, लाइन मारना चालू.’

समाज के इन भेडि़यों से श्रीमतीजी की हिफाजत अपना फर्ज समझ हम ने यह निर्णय लिया कि हमें भी यंग फौरएवर थेरैपी अपनानी होगी. हम भी गृहस्थी का बोझ ढोतेढोते बुढ़ाने लगे हैं. मिल कर घर के काम निबटाएंगे और साथसाथ हैल्थ बनाएंगे.

यह सोच कर हम पलंग पर लेटे ही थे कि श्रीमतीजी आ गईं यह सोच कर कि हम रूठे हैं. फिर मनाती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ आप के सदाबहार रोमांस को? थोड़ी यंग फौरवर्ड थेरैपी खुद भी आजमा लो कुढ़ने से क्या फायदा?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं कल से ही हम भी यह फौर्मूला अपनाएंगे. जिंदगी की गृहस्थी की गाड़ी दोनों मिल कर खींचेंगे, फिर समय निकाल कर यंग फौरएवर थेरैपी पर चलते हुए बुढ़ापे को अंगूठा दिखाएंगे अब सो जाओ,’’ हम ने घुड़का और फिर चादर तान करवट बदल कर यह सोच सो गए कि कल से नई शुरुआत करनी है यंग फौरएवर बनने की.

श्रीमतीजी भी हमें मनातीं चादर में छिपे हमारे शरीर को गुदगुदाती हुई बोलीं, ‘‘चादर ओढ़ कर सो गया… हायहाय भरी जवानी में मेरा बालम बुड्ढा हो गया.’’

Ghar ki Kahaniyan : आफत- सासूमां के आने से क्यों दुखी हो गई रितु?

Ghar ki Kahaniyan : औफिस से घर पहुंचते ही मैं ने छेड़ने वाले अंदाज में रितु से कहा, ‘‘हम 2 से 3 होने जा रहे हैं, मैडम.’’

रितु फौरन मेरे गले में बांहों का हार डाल कर बोली, ‘‘ओह, सुमित, मेरी खुशियों को ध्यान में रखते हुए आखिरकार तुम ने उचित फैसला कर ही लिया न. मैं अभी सारी गर्भनिरोधक गोलियां कूड़े की टोकरी के हवाले करती हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी भी न करो, स्वीटहार्ट,’’

मैं ने उस का हाथ पकड़ कर उसे शयनकक्ष में जाने से रोका, ‘‘हम 2 से 3 होने जा रहे हैं, क्योंकि तुम्हारी मम्मी कुछ दिनों के लिए हमारे पास रहने…’’

‘‘ओह नो…’’ रितु ने जोर से अपने माथे पर हाथ मारा.

‘‘अरे, वे तुम्हारी सगी मम्मी हैं, कोई सौतेली मां नहीं… उन के आने की खबर सुन कर जरा मुसकराओ, यार,’’ मैं ने उसे छेड़ना चालू रखा.

‘‘मेरी सगी मां किसी सौतेली मां से ज्यादा बड़ी आफत लगती हैं मुझे, यह तुम अच्छी तरह जानते हो न. उन का आना टालने के लिए कोई बहाना बना देते तो क्या बिगड़ जाता तुम्हारा?’’ यों शिकायत करते हुए वह मुझ से झगड़ने को तैयार हो गई.

‘‘अरे, मैं क्यों कोई झूठा बहाना बनाता? मुझे तो उन के आने की खबर ने खुश कर दिया है, यार.’’

‘‘मुझे पता है कि जब वे मेरी खटिया खड़ी करेंगी तो तुम्हें खुशी ही होगी. मेरी तबीयत वैसे ही ढीली चल रही है और अब ऊपर से नगर निगम की चेयरमैन मेरे घर में पधार रही हैं,’’ वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

‘‘अब ज्यादा नाटक मत करो और एक कप गरमगरम चाय पिला दो.’’

मैं ने हंसते हुए उसे बाजू से पकड़ कर उठाना चाहा तो उस ने मेरा हाथ जोर से झटका और तुनक कर बोली, ‘‘अब अपनी लाड़ली सासूमां के हाथ की बनी चाय ही पीना.’’

‘‘तुम गुस्से में बहुत प्यारी लगती हो,’’ मैं ने आंखें मटकाते हुए उस की तारीफ की तो वह मुंह बनाती हुई रसोई में मेरे लिए चाय बनाने चली गई.

मेरी सासूमां स्कूल टीचर हैं. पिछली गरमियों की छुट्टियों में वे हमारे पास 2 सप्ताह रह कर गई थीं. अब दशहरे की छुट्टियों में उन्होंने फिर से आने का कार्यक्रम बनाया है. मेरे मातापिता नहीं रहे हैं, इसलिए मुझे उन का आना अच्छा लगता है, लेकिन रितु की हालत पतली हो रही है.

‘‘मैं शादीशुदा हूं, पराए घर आ गई हूं पर अभी भी मम्मी के सामने पड़ते ही मन अजीब सा डर व घबराहट का शिकार हो जाता है. कोई गलती नहीं की है, लेकिन ऐसा लगता है कि किसी गलत काम को करने के बाद प्रिंसिपल के सामने पेशी हो रही है. मेरी इस दशा का फायदा उठा कर ही वे मुझ पर हिटलरी अंदाज में हुक्म चला लेती हैं,’’ रितु ने पिछली बार अपनी मम्मी के आने के अपने मनोभावों से मुझे  अवगत कराया.

मेरी सासूमां अनोखे व्यक्तित्व की मालकिन हैं. घर में अधिकतर जीन्स व टौप पहनती  हैं. नियम से ऐरोबिक्स करने की शौकीन हैं और पार्क में कभी भी घूमने जाने के लिए तैयार रहती हैं. उन्हें घर में गंदगी बिलकुल बरदाश्त नहीं. आलसी व लापरवाह इंसान उन्हें दुश्मन नजर आते हैं.

पिछली बार सासूमां आई थीं तो रितु को खूब खींच कर गई थीं. रितु आरामपसंद इंसान है पर अपनी मां के सामने डट कर काम करने को बेचारी मजबूर हो गई थी. उसे मेरी सासूमां ने शनिवारइतवार की छुट्टियों में 1 मिनट भी आराम नहीं करने दिया था.

वे सारे घर का कायापलट करा गई थीं. परदे, सोफे के कवर, चादरें, पंखे, खिड़कियां आदि सब की साफसफाई हुई थी. घर का फर्श सारे समय जगमगाता रहा था. रसोई में हर चीज अपनी जगह पर मिलने लगी थी. धूलमिट्टी ढूंढ़ने पर भी घर में कहीं नजर नहीं आती थी.

यह तो रही घर में आए बदलाव की बात, इस के अलावा उन्होंने आते ही अपनी बेटी को तंदुरुस्त करने की भी मुहिम छेड़ दी थी.

‘‘शादी के बाद अगर तेरा वजन इसी स्पीड से बढ़ता रहा तो तू एकदम बेडौल हो जाएगी, रितु. फिर अगर अमित ने नई गर्लफ्रैंड बना ली तो क्या करेगी? नो, नो, ऐसी लापरवाही बिलकुल नहीं चलेगी. आज से ही अपनी फिटनैस ठीक करने को कमर कस ले,’’ सासूमां की आंखों में सख्ती के ऐसे भाव मौजूद थे कि रितु चूं भी नहीं कर पाई थी.

घर के सफाई अभियान के साथसाथ रितु की सेहत सुधारने का बीड़ा भी सासूमां ने उठा लिया था. रातदिन बेचारी का पसीना बहता रहता था. ऊपर से खाने में से सारी तलीभुनी चीजें भी गायब हो गई थीं. सासूमां खड़ी हो कर अपनी बेटी से सिंपल व पौष्टिक खाना बनवाती थीं.

मैं बहुत खुश था, अपने घर व रितु में आए परिवर्तन को देख कर. सासूमां की प्रशंसा करते हुए मेरी जबान नहीं थकती थी. ऐसे मौकों पर अपनी मां की नजरें बचा कर रितु मुझे यों घूरती थी मानो कच्चा चबा जाएगी, पर अपनी मां के सामने उस बेचारी की मुझ से लड़ने की हिम्मत नहीं होती थी.

अगले दिन रविवार की सुबह सासूमां 9 बजे के करीब हमारे घर आ पहुंचीं. मैं प्रसन्न था जबकि रितु कुछ बुझीबुझी सी नजर आ रही थी.

‘‘तेरी शक्ल पर क्यों 12 बज रहे हैं, गुडि़या?’’ मुझे ढेर सारे आशीर्वाद देने के बाद उन्होंने पहले अपनी बेटी का ऊपर से नीचे तक मुआयना किया और फिर माथे पर बल डाल कर यह सवाल पूछा.

‘‘आप के सुपरविजन में अब इसे जो ढेर सारे घर के काम करने पड़ेंगे, उन के बारे में सोचसोच कर ही इस बेचारी की जान निकल रही है, मम्मी,’’ मैं मजा लेते हुए बोला.

‘‘नहीं, दामादजी, इस बार तो यह मुझे बहुत कमजोर और उदास लग रही है. क्या तुम मेरी बेटी का ठीक से खयाल नहीं रख रहे हो?’’ वे अचानक मुझ से नाखुश नजर आने लगीं तो मैं हड़बड़ा गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है, मम्मी. इस की तलाभुना खाने की आदत इसे स्वस्थ नहीं रहने…’’ मुझे आधी बात बोल कर चुप होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने मुझ पर से ध्यान हटा लिया था.

सासूमां ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और कोमल स्वर में बोलीं, ‘‘अपने मन की हर चिंता को तू मुझे खुल कर बताना, गुडि़या. इन 10 दिन में मैं तेरे चेहरे पर भरपूर रौनक देखना चाहती हूं.’’

‘‘जब ये परदे, सोफे के कवर वगैरह धुल जाएंगे और…’’

‘‘लगता है कि इस बार मुझे घर के बजाय तेरे व्यक्तित्व को निखारने पर ध्यान देना पड़ेगा.’’

‘‘और व्यक्तित्व निखारने के लिए सुबहशाम घूमने जाने से बढि़या तरीका और क्या हो सकता है, मम्मी?’’

‘‘तू थकीथकी सी लग रही है, बेटी. मैं जब तक यहां हूं, तू खूब आराम कर. कुछ दिनों की छुट्टी जरूर ले लेना. हमें अपने मनोरंजन के पक्ष को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘इंसान जितना ज्यादा प्रकृति के साथ रहेगा, उतना ज्यादा स्वस्थ…’’

‘‘जब 2-4 फिल्में देखेंगे, खूब घूमेंगेफिरेंगे, कुछ मनपसंद शौपिंग करेंगे तो देखना, तेरे मन की सारी उदासी छूमंतर हो जाएगी, मेरी गुडि़या.’’

मेरे जोश के गुब्बारे की हवा सासूमां की बातें सुन कर निकलती चली गई तो मैं ने अपना राग अलापना बंद कर दिया. मेरी समझ में बिलकुल नहीं आ रहा था कि वे इस बार ऐसी अजीबोगरीब बातें रितु से क्यों कर रही हैं.

‘‘ओह, मम्मी, यू आर गे्रट,’’ रितु उछल कर अपनी मां के गले लग गई और साथ ही मुझे जीभ चिढ़ाना भी नहीं भूली.

मैं कुछ बुझाबुझा सा हो गया तो सासूमां ने हंस कर कहा, ‘‘दामादजी, चिंता मत करो. हमारे साथ मौजमस्ती करने तुम भी साथ चलोगे. मैं तुम्हें अपनी बेटी से ज्यादा पसंद करती हूं, कम नहीं. लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है जैसे इस बार तुम्हारे घर में मेरा मन नहीं लगेगा.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हैं आप?’’ मैं ने औपचारिकतावश पूछा.

‘‘अब बिना नाती या नातिन के घर सूना सा लगता है.’’

‘‘मम्मी, अभी तो हमारी शादी को साल भर ही हुआ है. जब 3 साल बीत जाएंगे, तब आप की यह इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आजकल की पीढ़ी पहले खूब धन जोड़ना चाहती है, जी भर कर मौजमस्ती करना चाहती है. उन की प्राथमिकताओं की सूची में बड़ा मकान, महंगी कार और तगड़े बैंक बैलैंस के बाद बच्चे पैदा करने का नंबर आता है.’’

‘‘यू आर राइट, मम्मी. जिस बात को आप इतनी आसानी से समझ गईं, उसे मैं रितु को आज तक नहीं समझा पाया हूं.’’

‘‘मम्मी, मैं ने 28 साल की उम्र में शादी की है, 22-23 की उम्र में नहीं. मेरा कहना है कि अगर मैं जितनी ज्यादा बड़ी उम्र में मां बनूंगी, बच्चा स्वस्थ न पैदा होने की संभावना उतनी ज्यादा बढ़ जाएगी. शादी के 3 साल बाद बच्चा पैदा करना चाहिए, ऐसा कोई नियम थोड़े ही है. इंसान के अंदर समझदारी नाम की भी तो कोई चीज होती है,’’ मौका मिलते ही रितु भड़की और मेरे साथ बहस शुरू करने के मूड में आ गई.

‘‘मम्मी, इस मामले में आप इस की तरफदारी मत करना, प्लीज,’’ मैं ने नाराजगी भरे अंदाज में एक बार रितु को घूरा और फिर ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चला आया.

मैं घर में मुंह फुला कर घूम रहा हूं, इस बात की मांबेटी को कोई चिंता ही नहीं हुई. दोनों नाश्ता करने के बाद तैयार हुईं और घूमने निकल गईं. मुझ से 2-3 बार साथ चलने को कहा मगर मैं ने नाराजगी भरे अंदाज में इनकार किया तो दोनों ने खास जोर नहीं डाला था.

लंच के नाम पर मेरे लिए रितु ने आलू के परांठे बना दिए. वे दोनों 12 बजे के करीब घूमने निकलीं और रात को 8 बजे लौटी थीं. इन 8 घंटों में मेरा कितना खून फुंका होगा, इस का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है.

उन के घर में घुसते ही मैं ने 2 बातें नोट की थीं. पहली तो यह कि वे दोनों 7-8 लिफाफे पकड़े घर लौटी थीं और दूसरी यह कि दोनों के चेहरे जरूरत से ज्यादा दमक रहे थे.

कुछ ही देर में मुझे पता लग गया कि उन दोनों ने 8 हजार की खरीदारी एक दिन में कर ही डाली. रही बात चेहरों पर नजर आते नूर की तो खरीदारी करने से पहले दोनों ब्यूटीपार्लर गई थीं. कुल मिला कर 10 हजार का खर्चा मांबेटी ने 1 दिन में ही कर डाला था.

‘‘देखा, दामादजी, इस वक्त रितु कितनी खुश और स्वस्थ दिख रही है. 10 दिन में तो देखना, यह फिल्मी हीरोइनों को मात करने लगेगी,’’ सासूमां अपनी बेटी को प्रशंसा भरी नजरों से निहार रही थीं.

‘‘मम्मी, 10 दिन में 10 हजार रोज के हिसाब से 1 लाख खर्च कर के अगर इस ने फिल्मी हीरोइनों को मात कर भी दिया तो मैं इस की तारीफ करने के लिए जिंदा कहां रहूंगा? सदमे से मेरी जीवनलीला समाप्त हो चुकी होगी न,’’ मैं दुखी अंदाज में मुसकराया तो सासूमां ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

‘‘कभीकभी बड़ा अच्छा मजाक करते हो, दामादजी. अच्छा, तुम दोनों बैठ कर गपशप करो. मैं बढि़या सा पुलाव बनाने रसोई में जाती हूं,’’ सासूमां रसोई में चली गईं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही रितु ने तीखे लहजे में सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘मैं ने तो मम्मी को बहुत मना किया, पर वे तो कुछ भी सुनने का तैयार नहीं थीं. कह रही थीं कि खरीदारी करने के कारण वे आप को नाराज नहीं होने देंगी. अब आप को जो भी कहना हो, उन्हीं से कहना. मैं तो पहले ही कह रही थी कि इन के यहां आने के कार्यक्रम को कोई बहाना बना कर टाल दो. आप ही अपनी लाड़ली सासूमां को बुलाने का भूत सवार था, अब भुगतो.’’

आगे की बहस से बचने के लिए उठ कर वह शयनकक्ष की तरफ चल दी. मैं ने नाराज स्वर में उसे हिदायत दी, ‘‘अब आगे से एक पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मम्मी तो कह रही हैं कि मैं उन के साथ घूमनेफिरने के लिए औफिस से हफ्ते भर की छुट्टियां ले लूं. अब इस बाबत जो कहना हो, आप उन से कहो. आप को पता तो है कि उन के सामने मुंह खोलने की मेरी हिम्मत नहीं होती है,’’ अपनेआप को साफ बचाती हुई रितु मेरी आंखों से ओझल हो गई.

मैं रितु को औफिस से छुट्टियां लेने से नहीं रोक सका. वे दोनों अगले दिन भी शौपिंग करने गईं और इस बार सासूमां ने रितु को 40 हजार की सोने की चेन खरीदवा दी.

‘‘मम्मी, आप क्या इस बार मुझे कंगाल करने का कार्यक्रम बना कर यहां आई हैं?’’ मैं ने दोनों हाथों से सिर थाम कर उन से यह सवाल पूछा तो वे उदास सी हंसी हंस पड़ीं.

‘‘दामादजी, आज सोने की चेन तो सचमुच मैं ने जबरदस्ती रितु को खरीदवाई है. मन सुबह से बड़ा उचाट था. रात को नींद भी अच्छी नहीं आई थी. सच बात तो यह है कि मन की उदासी दूर करने के चक्कर में ही मैं ने 40 हजार खर्च किए हैं. मन लग ही नहीं रहा है इस बार तुम्हारे यहां. अगर खेलने के लिए कोई नातीनातिन होती…’’

‘‘मम्मी, आप फालतू के खर्च को बंद कर मुझे कंगाल होने से बचाइए और मैं आप से वादा करता हूं कि बहुत जल्द ही आप का कोई नातीनातिन घर में नजर आएगा.’’

मेरे मुंह से इन शब्दों का निकलना था कि मांबेटी दोनों ने पहले खुशी से उछलते हुए तालियां बजानी शुरू कर दीं, फिर सासूमां ने उठ कर मुझे छाती से लगा लिया और रितु मेरा हाथ उठा कर उसे बारबार चूमे जा रही थी.

‘‘थैंक यू, दामादजी,’’ खुशी के मारे सासूमां का गला भर आया, ‘‘मुझे तुम ने इतना खुश कर दिया है कि कल और आज का सारा खर्चा मेरे खाते में गया.’’

‘‘सच?’’ मेरे मन की सारी चिंता पल भर में खत्म हो गई.

‘‘तुम ने जो मुझे नानी बनाने का वादा किया है, वह सच है न?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो मैं भी सच बोल रही हूं, दामादजी. अब लगे हाथ जल्दी पापा बनने की पेशगी मुबारकबाद भी कबूल कर लो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सासूमां को रहस्यमय अंदाज में मुसकराते देख मैं चौंक पड़ा.

‘‘जल्द ही इस घर में नन्हेमुन्हे किलकारियां जो गूंजने वाली हैं.’’

‘‘क्या मम्मी सच कह रही हैं?’’ मैं ने रितु से पूछा.

उस ने गरदन ऊपरनीचे हिला कर ‘हां’ कहा  और टैंशन भरी नजरों से मेरे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘रितु तुम्हें यह खुशखबरी सुनाने से डर रही थी, दामादजी. यह बेवकूफ सोचती थी कि तुम 3 साल बाद बच्चा पैदा करने वाली अपनी जिद पर अड़ कर इस के ऊपर गर्भपात कराने के लिए दबाव डालोगे. तब इस की तसल्ली के लिए मुझे 50 हजार खर्च कर तुम्हारे मुंह से यह कहलवाना पड़ा कि तुम पापा बनने को तैयार हो. मेरे लिए तो यह बड़ा फायदेमंद सौदा रहा है. मैं बहुत खुश हूं, दामादजी,’’ सासूमां ने हम दोनों को इस बार एकसाथ गले लगा लिया.

मैं ने रितु की आंखों में प्यार से झांकते हुए भावुक लहजे में कहा, ‘‘रितु, मैं कंजूस हूं. पैसे जोड़ने के लिए बहुत झिकझिक करता हूं, क्योंकि मातापिता के न रहने से मेरा बचपन बहुत अभावों और दुखों से भरा हुआ था. असुरक्षा का एहसास मेरे मन में बहुत गहरे बैठा हुआ है और उसी के चलते मैं पहले अपनी आर्थिक जड़ें मजबूत कर लेना चाहता था. लेकिन मैं ऐसा पत्थरदिल इंसान नहीं हूं कि आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तुम्हारी कोख में पल रहे अपने बच्चे को मारने का फैसला…’’

‘‘मैं ने आप को समझने में भारी भूल की है. मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों में भर आए आंसुओं को देख रितु फफकफफक कर रोने लगी.

मेरे कुछ बोलने से पहले ही सासूमां शुरू हो गईं, ‘‘रितु, कल से घर की सफाई का काम शुरू हो जाएगा. सुमित, तुम परदे उतरवाने में मेरी हैल्प करना. कल से ही पार्क घूमने भी चला करेंगे हम सब. सेहत को ठीक रखना अब तो और ज्यादा जरूरी हो गया है तुम्हारे लिए, रितु. सिर्फ सप्ताह भर ही है मेरे पास और कितने सारे काम…’’

सासूमां अपनी पुरानी फौर्म में लौट आई हैं, यह देख कर रितु ने ऐसा मुंह बनाया मानो कोई बहुत कड़वी चीज मुंह में आ गई हो और फिर हम तीनों एकसाथ ठहाका मार कर हंसने लगे.

Family Story In Hindi : सुदाम – आखिर क्यों हुआ अनुराधा को अपने फैसले पर पछतावा?

Family Story In Hindi : अनुराधा पूरे सप्ताह काफी व्यस्त रही और अब उसे कुछ राहत मिली थी. लेकिन अब उस के दिमाग में अजीबोगरीब खयालों की हलचल मची हुई थी. वह इस दिमागी हलचल से छुटकारा पाना चाहती थी. उस की इसी कोशिश के दौरान उस का बेटा सुदेश आ धमका और बोला, ‘‘मम्मी, कल मुझे स्कूल की ट्रिप में जाना है. जाऊं न?’’

‘‘उहूं ऽऽ,’’ उस ने जरा नाराजगी से जवाब दिया, लेकिन सुदेश चुप नहीं हुआ. वह मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, बोलो न, मैं जाऊं ट्रिप में? मेरी कक्षा के सारे सहपाठी जाने वाले हैं और मैं अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूं. अब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ रहा हूं.’’

उस की बड़ीबड़ी आंखें उस के जवाब की प्रतीक्षा करने लगीं. वह बोली, ‘‘हां, अब मेरा बेटा बहुत बड़ा हो गया है और सातवीं कक्षा में पढ़ रहा है,’’ कह कर अनु ने उस के गाल पर हलकी सी चुटकी काटी.

सुदेश को अब अपेक्षित उत्तर मिल गया था और उसी खुशी मे वह बाहर की ओर भागा. ठीक उसी समय उस के दाएं गाल पर गड्ढा दे कर वह अपनी यादों में खोने लगी.

अनु को याद आई सुदेश के पिता संकेत से पहली मुलाकात. जब दोनों की जानपहचान हुई थी, तब संकेत के गाल पर गड्ढा देख कर वह रोमांचित हुई थी. एक बार संकेत ने उस से पूछा था, ‘‘तुम इतनी खूबसूरत हो, गुलाब की कली की तरह खिली हुई और गोरे रंग की हो, फिर मुझ जैसे सांवले को तुम ने कैसे पसंद किया?’’

इस पर अनु नटखट स्वर में हंसतेहंसते उस के दाएं गाल के गड्ढे को छूती हुई बोली थी, ‘‘इस गड्ढे ने मुझे पागल बना दिया है.’’

यह सुनते ही संकेत ने उसे बांहों में भर लिया था. यही थी उन के प्रेम की शुरूआत. दोनों के मातापिता इस शादी के लिए राजी हो गए थे. दोनों ग्रेजुएट थे. वह एक बड़ी फर्म में अकाउंटैंट के पद पर काम कर रहा था. उस फर्म की एक ब्रांच पुणे में भी थी.

दोपहर को अनु घर में अकेली थी. सुदेश 3 दिन के ट्रिप पर बाहर गया हुआ था और इधर क्रिसमस की छुट्टियां थीं. हमेशा घर के ज्यादा काम करने वाली अनु ने अब थोड़ा विश्राम करना चाहा था. अब वह 35 पार कर चुकी थी और पहले जैसी सुडौल नहीं रही थी. थोड़ी सी मोटी लगने लगी थी. लेकिन संकेत के लिए दिल बिलकुल जवान था. वह उस के प्यार में अब भी पागल थी. लेकिन अब उस के प्यार में वह सुगंध महसूस नहीं होती थी.

जब भी वह अकेली होती. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगते. उसे अकसर ऐसा महसूस होता था कि संकेत अब उस से कुछ छिपाने लगा है और वह नजरें मिला कर नहीं बल्कि नजरें चुरा कर बात करता है. पहले हम कितने खुले दिल से बातचीत करते थे, एकदूसरे के प्यार में खो जाते थे. मैं ने उस के पहले प्यार को अब भी अपने दिल के कोने में संभाल कर रखा है. क्या मैं उसे इतनी आसानी से भुला सकती हूं? मेरा दिल संकेत की याद में हमेशा पुणे तक दौड़ कर जाता है लेकिन वह…

उस का दिल बेचैन हो गया और उसे लगा कि अब संकेत को चीख कर बताना चाहिए कि मेरा मन तुम्हारी याद में बेचैन है. अब तुम जरा भी देर न करो और दौड़ कर मेरे पास आओ. मेरा बदन तुम्हारी बांहों में सिमट जाने के लिए तड़प रहा है. कम से कम हमारे लाड़ले के लिए तो आओ, जरा भी देर न करो.

बच्चा छोटा था तब सासूमां साथ में रहती थीं. अनजाने में ही सासूमां की याद में उस की आंखें डबडबा आईं. उसे याद आया जब सुरेश सिर्फ 2 साल का था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उसे नौकरी तो करनी ही थी. ऐसे में संकेत का पुणे तबादला हो गया था.

वे मुंबई जैसे शहर में नए फ्लैट की किस्तें चुकातेचुकाते परेशान थे, लेकिन क्या किया जा सकता था. बच्चे को घर में छोड़ कर औफि जाना उसे बहुत अखरता था, लेकिन सासूमां उसे समझाती थीं, ‘बेटी, परेशान मत हो. ये दिन भी निकल जाएंगे. और बच्चे की तुम जरा भी चिंता मत करो, मैं हूं न उस की देखभाल के लिए. और पुणे भी इतना दूर थोड़े ही है. कभी तुम बच्चे को ले कर वहां चली जाना, कभी वह आ जाएगा.’

सासूमां की यह योजना अनु को बहुत भा गई थी और यह बात उस ने तुरंत संकेत को बता दी थी. फिर कभी वह पुणे जाती तो कभी संकेत मुंबई चला आता. इस तरह यह आवाजाही का सिलसिला चलता रहा. इस दौड़धूप में भी उन्हें मजा आ रहा था.

कुछ दिनों बाद बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो गया, तो उस की पढ़ाई में हरज न हो यह सोच कर दोनों की सहमति से उसे पुणे जाना बंद करना पड़ा. संकेत अपनी सुविधा से आता था. इसी बीच उस की सासूमां चल बसीं. उन की तेरही तक संकेत मुंबई  में रहा. तब उस ने अनु को समणया था, ‘अनु, मुझे लगता है तुम बच्चे को ले कर पुणे आ जाओ. वह वहां की स्कूल में पढ़ेगा और तुम भी वहां दूसरी नौकरी के लिए कोशिश कर सकोगी.’

इस प्रस्ताव पर अनु ने गंभीरता से नहीं सोचा था क्योंकि फ्लैट की कई किस्तें अभी चुकानी थीं. उस ने सिर्फ यह किया कि वह अपने बेटे सुरेश को ले कर अपनी सुविधानुसार पुणे चली जाती थी. संकेत दिल खोल कर उस का स्वागत करता था. बच्चे को तो हर पल दुलारता रहता था.

बच्चे की याद में तो उस ने कई रातें जाग कर काटी थीं. वह बेचैनी से करवट बदलबदल कर बच्चे से मिलने के लिए तड़पता था1 उस ने ये सब बातें साफसाफ बता दी थीं, लेकिन अनु ने उसे समणया था, ‘एक बार हमारी किस्तें अदा हो जाएं तो हम इस झंझट से छूट जाएंगे. तुम्हारे अकेलेपन को देख कर मेरा दिल भी रोता है. मेरे साथ तो सुरेश है, रिश्तेदार भी हैं. यहां तुम्हारा तो कोई नहीं. तुम्हें औफिस का काम भी घर ला कर करना पड़ता है, यह जान कर मुझे बहुत दुख होता है. मन तो यही करता है कि तुम जाग कर काम करते हो, तो तुम्हें गरमागरम चाय का कप ला कर दूं, तुम्हारे आसपास मंडराऊं, जिस से तुम्हारी थकावट दूर हो जाए.’

यह सुन कर संकेत का सीना गर्व से फूल जाता था और वह कहता था, ‘तुम मेरे पास नहीं हो फिर भी यादों में तो तुम हमेशा मेरे साथ ही रहती हो.’

अब फ्लैट की सारी किस्तों की अदायगी हो चुकी थी और फ्लैट का मालिकाना हक भी उन्हें मिल चुका था. सुदेश अब सातवीं कक्षा में पढ़ रहा था. उस ने फैसला कर लिया कि अब वह कुछ दिनों के लिए ही सही पुणे में जा कर रहेगी. सरकारी नौकरी के कारण उसे छुट्टी की समस्या तो थी नहीं.

उस ने संकेत को फोन किया दफ्तर के फोन पर, ‘‘हां, मैं बोल रही हूं.’’

‘‘हां, कौन?’’ उधर से पूछा गया.

‘‘ऐसे अनजान बन कर क्यों पूछ रहे हो, क्या तुम ने मेरी आवाज नहीं पहचानी?’’ वह थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोली.

‘‘हां तो तुम बोल रही हो, अच्दी हो न? और सुदेश की पढ़ाई कैसे चल रही है?’’ उस के स्वर में जरा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.

‘‘मैं ने फोन इसलिए किया कि सुदेश

3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ है और मैं भी छुट्टी ले रही हूं. अकेलपन से अब बहुत ऊब गई हूं, इसलिए कल सुबह 10 बजे तक तुम्हारे पास पहुंच रही हूं. क्या तुम मुझे लेने आओगे स्टेशन पर?’’

‘‘तुम्हें इतनी जल्दी क्यों है? शाम तक आओगी तो ठीक रहेगा, क्योंकि फिर मुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

संकेत का रूखापन अनु को समझने में देर नहीं लगी. एक समय उस से मिलने के लिए तड़पने वाला संकेत आज उसे टालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उस के प्यार को दिल में संजोने का पूरा प्रयास भी कर रहा था. दरअसल, अब वह दोहरी मानसिकता से गुजर रहा था.

काफी साल अकेले रहने के कारण इस बीच एक 17-18 साल की लड़की से उसे प्यार हो गया था. वह एक बाल विधवा रिश्तेदार थी. वह उस के यहां काम करती थी. वह काफी समझदार, खूबसूरत और सातवीं कक्षा तक पढ़ीलिखी थी. संकेत के सारे काम वह दिल लगा कर किया करती थी और घर की देखभाल भलीभांति करती थी.

कुछ दिनों बाद संकेत के अनुरोध पर चपरासी चाचा की सहमति से वह उसी घर में रहने लगी थी. फिर जबजब अनु वहां जाती तो उसे अपना पूरा सामान समेट कर चाचा के यहां जा कर रहना पड़ता था. यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा.

अभी अनु के आने की खबर मिलते ही वह परेशान हो गया था और अनु से बात करते वक्त उस की जुबान सूखने लगी थी. अब उसे तुरंत घर जा कर पारू को वहां से हटाना जरूरी था. उसे पारू पर दया आती, क्योंकि जबजब ऐसा होता वह काफी समझदारी से काम लेती. उसे अपने मालिक और मालकिन की परवाह थी, क्योंकि उसे उन का ही आसरा था1 कम उम्र में ही उस ने पूरी गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया था.

शाम को अनु संकेत के साथ घर पहुंची तो रसोईघर से जायकेदार भोजन की खुशबू आ रही थी. इस खुशबू से उस की भूख बढ़ गई और उस ने हंसतेहंसते पूछा, ‘‘वाह, इतना अच्छा खाना बनाना तुम ने कब सीखा?’’

वह भी हंसतेहंसते बोला, ‘‘अपनी नौकरानी अभीअभी खाना बना कर गई है.’’

दूसरे दिन सुबहसुबह पारू आई और दोनों के सामने गरमागरम चाय के 2 कप रखे. चाय की खुशबू से वह तृप्त हो गई. थोड़ी देर बाद वह घर के चारों ओर फैले छोटे से बाग में टहलने लगी. घास का स्पर्श पा कर वह विभोर हो उठी. पेड़पौधों की सोंधी महक ने उस का मन मोह लिया.

अचानक उस का ध्यान एक 6-7 साल के बच्चे की ओर गया. वह वहां अकेला ही लट्टू घुमाने के खेल में खोया हुआ था. धीरेधीरे वह उस की ओर बढ़ी तो वह भागने की कोशिश करने लगा. अनु ने उस की छोटी सी कलाई पकड़ ली और बोली, ‘‘मैं कुछ नहीं करूंगी. ये बताओ तुम्हारा नाम क्या है?’’

वह घबरा गया तो कुछ नहीं बोला और सिर्फ देखता ही रह गया. उस के फूले हुए गाल और बड़ीबड़ी आंखें देख कर अनु को बहुत अच्छा लगा. वह हंस दी तो नादान बालक भी हंसा. उस की हंसी के साथ उस के दाएं गाल का गड्ढा भी मानो उस की ओर देख कर हंसने लगा.

यह देख कर उस का दिल दहल गया क्योंकि वह बच्चा बिलकुल संकेत की तरह दिख रहा था. ऐसा लगा कि संकेत का मिनी संस्करण उस के समाने खड़ा हो गया हो. वह दहलीज पर बैठ गई. उसे लगा कि अब आसमान टूट कर उसी पर गिरेगा और वह खत्म हो जाएगी. एक अनजाने डर से उस का दिल धड़कने लगा. उस का गला सूख गया और सुबह की ठंडीठंडी बयार में भी वह पसीने से तर हो गई. उस की इस स्थिति को वह नन्हा बच्चा समझ नहीं पाया.

‘‘क्या, अब मैं जाऊं?’’ उस ने पूछा.

इस पर अनु ने ठंडे दिल से पूछा, ‘‘तुम कहां रहते हो?’’

वह बोला, ‘‘मैं तो यहीं रहता हूं, लेकिन कल शाम को मैं और मेरी मां चाचा के घर चले गए. सुबह मैं मां के साथ आया तो मां बोलीं, बाहर बगीचे में ही खेलना, घर में मत आना.’’

बोझिल मन से उस ने उस मासूम बच्चे को पास ले कर उस के दाएं गाल के गड्ढे को हलके से चूमा. अब उसे मालूम हुआ कि पारू उस की खातिरदारी इतनी मगन हो कर क्यों करती है, उस की पसंद के व्यंजन क्यों बनाती है.

उसे संकेत के अनुरोध और विनती याद आने लगी, ‘‘हम सब एकसाथ रहेंगे. तुम्हारी और सुरेश की मुझे बहुत याद आती है.’’

लगता है मुझे उस समय उस की बात मान लेनी चाहिए थी. लेकिन मैं ने ऐसा क्या किया? मेरी गलती क्या है? मैं ने भी खुद के लिए नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए नौकरी की. वह पुरुष है, इसलिए उस ने ऐसा बरताव किया. उस की जगह अगर मैं होती और ऐसा करती तो? क्या समाज व मेरा पति मुझे माफ कर देता? यहां कुदरत का कानून तो सब के लिए एक जैसा ही है. स्त्रीपुरुष दोनों में सैक्स की भावना एक जैसी होती है, तो उस पर काबू पाने की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्री पर ही क्यों?

कहा जाता है कि आज की स्त्री बंधनों से मुक्त है, तो फिर वह बंधनों का पालन क्यों करती है? हम स्त्रियों को बचपन से ही माताएं सिखाती हैं इज्जत सब से बड़ी दौलत होती है, लेकिन उस दौलत को संभालने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ स्त्रियों की है?

यह सब सोचते हुए उस के आंसू वह निकले तो उस ने अपने आंचल से पोंछ डाले. उसे रोता देख कर वह बच्चा फिर डर कर भागने की कोशिश करने लगा, तो अनु जरा संभल गई. उस ने उस मासूम बच्चे को अपने पास बिठा लिया और कांपते स्वर में बोली, ‘‘बेटा, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, लेकिन तुम ने अब तक अपना नाम नहीं बताया? अब बताओ क्या नाम है तुम्हारा?’’

अब वह बच्चा निडर बन गया था, क्योंकि उसे अब थोड़ा धीरज जो मिल गया था. वह मीठीमीठी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘सुदाम.’’ और फिर बगीचे में लट्टू से खेलने लगा.

Hindi Love Story : अनुत्तरित प्रश्न – प्रतीक्षा और अरुण के प्यार में कौन बन रहा था दीवार

Hindi Love Story :  सोफे पर अधलेटी सी पड़ी आभा की आंखें बारबार भीग उठती थीं. अंतर्मन की पीड़ा आंसुओं के साथ बहती जा रही थी. उस के पति आकाश भी भीतरी वेदना मन में समेटे मानो अंगारों पर लोटते सोच में डूबे थे. ‘यह क्या हो गया? क्या अतीत की वह घटना सचमुच हमारी भूल थी? कितनी आसानी से प्रतीक्षा ने सारे संबंध तोड़ डाले. एक बार भी मांबाप की उमंगों, सपनों के बारे में नहीं सोचा. उस का दोटूक उत्तर किस तरह कलेजे को बींध गया था, देखो मम्मी, अब तुम्हारा जमाना नहीं रहा. मैं अपना भलाबुरा अच्छी तरह समझती हूं. वैसे भी अपने जीवन का यह महत्त्वपूर्ण फैसला मैं किसी और को कैसे लेने दूं?’

‘पर प्रतीक्षा, मैं और तुम्हारे पापा कोई और नहीं हैं. हम ने तुम्हें जन्म दिया है,’ आभा ने कहा तो प्रतीक्षा चिढ़ गई, ‘यही तो मुसीबत है, जन्म दे कर जो इतना बड़ा उपकार कर दिया है, उस का ऋण तो मैं इस जन्म में चुका ही नहीं सकती… क्यों?’

‘बेटा, तुम हमारी बात को गलत दिशा में मोड़ रही हो. शादी का फैसला जीवन का अहम फैसला होता है, इस में जल्दबाजी ठीक नहीं. दिल से नहीं दिमाग से निर्णय लेना चाहिए,’ आभा ने समझाया तो प्रतीक्षा बोली, ‘मैं ने कोई जल्दबाजी नहीं की है, मैं अरुण को 2 वर्षों से जानती हूं. आप दोनों अच्छी तरह समझ लें, मैं अरुण से ही शादी करूंगी.’

‘मुझे अरुण पसंद नहीं है, प्रतीक्षा. वह अभी ठीक से कोई जौब भी नहीं पा सका है और मुझे लगता है कि वह एक जिम्मेदार जीवनसाथी नहीं बन पाएगा. तुम दोनों अभी कल्पना की उड़ान भर रहे हो, जब धरातल से सिर टकराएगा तो बहुत पछताओगी, बेटी,’ आकाश ने कहा.

‘आप अगर अरुण को पसंद नहीं करते तो मैं भी ऐसे पिता को पसंद नहीं करती जो बच्चों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं.’

‘प्रतीक्षा…’ आभा सन्न रह गई थी.

आकाश कुछ देर  चुप रहे फिर उन्होंने बेटी से कहा, ‘शादी को ले कर हमारे भी कुछ अरमान हैं.’

‘बी प्रैक्टिकल पापा, डोंट बी इमोशनल और आप ने भी तो प्रेमविवाह ही किया था न?’ प्रतीक्षा पांव पटकती कमरे से बाहर चली गई पर उस का तर्क मुंह चिढ़ा रहा था.

आभा ने कुछ कहना चाहा तो आकाश ने उसे रोक दिया, ‘मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो.’

आकाश अकेले बैठे सोच के अथाह सागर में डूब गए. उन्होंने और आभा ने भी तो प्रेमविवाह किया था. आज जिस स्थान पर वे खड़े हैं कल उसी स्थान पर उन के मांबाप खड़े थे.

‘आकाश, यह तू क्या कह रहा है? अभी तो तू ने गे्रजुएशन भी नहीं किया है. यह कैसे संभव है?’ मां ने अवाक् हो कर पूछा था.

‘क्यों संभव नहीं है, मां? रही ग्रेजुएट होने की बात, तो मात्र 4 महीने बाद मुझे बीकौम की डिगरी मिल ही जाएगी.’

‘बेटा, केवल डिगरी मिल जाने से क्या होगा? क्या तू अभी परिवार संभालने के योग्य है? वैसे भी तेरे पिताजी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे.’

मां ने समझाया तो आकाश चिढ़ कर बोला, ‘पिताजी नहीं मानते तो मत मानें, मुझे उन की परवा नहीं. मैं आभा के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगा.’

आकाश और आभा एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों ने विवाह का फैसला किया था. पर दोनों के परिवार वाले इस विवाह के सख्त खिलाफ थे. आभा के परिवार वाले पढ़ालिखा कमाऊ वर चाहते थे और आकाश के मातापिता पुत्र को उच्च पद पर पहुंचते हुए देखने के अभिलाषी थे. उस समय दोनों परिवारों के बच्चे उम्र की उस परिधि पर खड़े थे जहां केवल अपना निर्णय, अपनी भावनाएं और अपनी सोच ही अंतर्मन पर हावी होती हैं.

आकाश के पिता सबकुछ जान कर क्रोध से फट पड़े थे, ‘आकाश की मां, समझाओ इस नालायक को, शादी के लिए तो उम्र पड़ी है, अभी पढ़ाई पर ध्यान दे. कहां तो मैं इस के लिए सोच रहा हूं, बीकौम के बाद ये आगे पढ़े, चार्टर्ड अकाउंटैंट बने, खूब नाम कमाए, और यह है कि लैलामजनूं का नाटक कर रहा है.’

‘आप शांत रहिए, मैं उसे समझाऊंगी,’ मां बेहद दुखी थीं.  पर बगल के कमरे में बैठा, अब तक सबकुछ चुपचाप सुन रहा आकाश तमतमा कर कमरे में चला आया था, ‘पिताजी, यह लैलामजनूं… नाटक, आप क्याक्या बोलते जा रहे हैं? क्या प्यार करना गुनाह है? और अगर है भी, तो मैं यह गुनाह कर के ही रहूंगा, मैं आभा से कल ही कोर्टमैरिज करने वाला हूं, आप से जो बन पड़ता है कर लीजिए.’

पिताजी सन्न रह गए थे और मां ने एक तमाचा जड़ दिया था आकाश के मुंह पर, ‘नालायक, तू इन्हें भलाबुरा कह रहा है. बेटा, मांबाप हर परिस्थिति में बच्चों का भला ही सोचते हैं. तू पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर, अपने पांव पर खड़ा हो, तब आभा से ही शादी करना पर अभी नहीं. क्यों पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा है?’

पर उस वक्त न जाने आकाश की सोच को क्या हो गया था? क्रोध में विवेक खो बैठे आकाश ने आभा से कोर्टमैरिज कर ली.

‘मेरे घर में तुम्हारा कोई स्थान नहीं. निकल जाओ मेरे घर से, फिर कभी अपना मुंह मत दिखाना. कल जब पछताओगे तो केवल मैं ही याद आऊंगा. आज मेरी बातें बुरी लग रही हैं न, कल यही तीर सी चुभेंगी.’

पिता के कहे शब्दों को आकाश आज भी महसूस करते हैं. कम उम्र में सोच कितनी ‘अपरिपक्व’ होती है? इस बात को वे धीरेधीरे समझने लगे थे. बिना सोचेसमझे भावावेश में आ कर उन्होंने आभा से विवाह तो कर लिया पर जल्द ही दोनों को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था.

आकाश ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली थी और एक छोटे से किराए के घर से जीवन शुरू कर दिया था. छोटीछोटी चीजों के लिए भी तरसता जीवन. आकाश लाख चाह कर भी पत्नी की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. नमकहल्दी का जुगाड़ करने में ही पूरा महीना बीत जाता था. इसी बीच, आभा गर्भवती हो गई. खर्च बढ़ता जा रहा था और आमदनी सीमित थी. भीतरी कुंठा अब आकाश का सुखचैन जैसे लीलती जा रही थी. बातबात पर भड़कना जैसे उस की आदत में शुमार होता जा रहा था.

‘मैं जब भी कुछ मांगती हूं तुम इतना भड़क क्यों जाते हो? कहां गए तुम्हारे वादे? मुझे हर हाल में खुश रखने का तुम ने वादा किया था न?’ एक दिन आभा ने पूछ ही लिया था.

‘मैं अभी इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता,’ आकाश ने चिढ़ कर कहा तो आभा बोली, ‘काश, हम अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद शादी करते तो शायद जीवन कितना सुखमय होता.’

‘तुम ठीक कह रही हो, आभा. न जाने मुझे उस वक्त क्या हो गया था? मुझे कैरियर बनाने के बाद ही विवाह के लिए सोचना चाहिए था,’ एक ठंडी सांस भरते हुए आकाश ने कहा.

समय धीरेधीरे सरकता जा रहा था. दोनों पतिपत्नी ने विचार किया कि वे अभी किसी तीसरे की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए गर्भपात ही एकमात्र उपाय है. और एक अजन्मा शिशु इस दुनिया में आंखें खोलने से रोक दिया गया. उस रात दोनों पतिपत्नी की आंखों में नींद नहीं असंख्य प्रश्न थे.

चुपचाप बैठा आकाश सोच रहा था, किशोरावस्था और यौवन की दहलीज पर खड़ा व्यक्ति कितना असहाय होता है. निर्णय लेने की क्षमता से रहित. पर फिर भी स्वयं को परिपक्वता से भरा समझ कर भूल करता जाता है. ऐसे में मातापिता का सहयोग, विचार, सहमति, निर्णय और प्रेम कितना महत्त्वपूर्ण होता है. ठीक ही तो कहा था पिताजी ने, ‘पछताओगे एक दिन तब केवल मैं ही याद आऊंगा. अभी मेरी बातें कड़वी लग रही हैं न? पर एक दिन, यही सोचने पर विवश कर देंगी.’

उधर, आभा परकटे पंछी की तरह बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. मांबाप का दिल दुखा कर कोई भी खुश नहीं रह सकता. प्रेम एक नैसर्गिक अनुभूति है. इसे अनुभव कर के खुशहाल जीवन बिताना ही जीवन की सार्थकता है. प्रेम कभी पलायन का कारण नहीं बन सकता. सच्चा प्रेम तो संबंधों में दृढ़ता प्रदान करता है, एक व्यापक सोच प्रदान करता है. प्रेम के कारण परिजनों से मुख मोड़ने वाले कभी सच्चा सुख नहीं पा सकते. आभा ने जैसे अपनेआप से कहा, ‘मेरा और आकाश का प्रेम एक आकर्षण था. जो धीरेधीरे एकदूसरे के प्रति आसक्ति में बदलता गया. आसक्ति विचारधाराओं को स्वयं में समेटती गई. हम परिवार से दूर होते गए और आखिरकार अकेले रह गए. काश, थोड़ा सा विचार किया होता तो आज सारे सुख हमारी मुट्ठियों में होते.’

अगली सुबह आभा ने आकाश से कहा, ‘मैं टीचर की ट्रेनिंग करना चाहती हूं. तब हम ने विवाह में जल्दबाजी की थी, यह हमारी भूल थी, पर अब मैं अपने पांव पर खड़ी हो कर तुम्हारा हाथ बंटाना चाहती हूं.’

‘तुम बिलकुल ठीक सोच रही हो. मैं भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहता हूं. सफल होने के बाद हम दोनों अपने परिवारों के साथ फिर से जुड़ जाने का प्रयास करेंगे. परिवार से अलग रह कर कोई खुश नहीं रह सकता,’ आकाश का स्वर भीग उठा था.

समय अपनी धुरी पर सरकता रहा. प्रकृति ने प्रत्येक इंसान को यह शक्ति दी है कि अगर वह मन से कुछ ठान लेता है तो कर के ही रहता है. समय के साथ आभा और आकाश ने भी इच्छित मंजिल पा ली. आकाश बैंक में पीओ हो गए और आभा एक स्कूल में शिक्षिका बन गई. 2 प्यारे बच्चों की किलकारी से घर गूंज उठा. सुखमय जीवन तो जैसे क्षणों में बीत जाता है. बेटा निलय इंजीनियरिंग पढ़ रहा था और बेटी प्रतीक्षा मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रही थी. मातापिता की नजरों में बच्ची, प्रतीक्षा उस दिन सहसा बड़ी लगने लगी जब उस ने अरुण के बारे में उन्हें बताया.

‘मां, अरुण मेरा सीनियर है. एक बार मिलोगी तो बारबार मिलना चाहोगी,’ प्रतीक्षा ने चहकते हुए कहा था.

‘यह अरुण कौन है?’

‘बताया न, मेरा सीनियर है.’

‘अरे नहीं, हमारी जातिधर्म का तो है न?’ आभा ने हठात पूछ लिया था.

‘उस से क्या फर्क पड़ता है?’ प्रतीक्षा ने मुंह बना लिया था.

‘फर्क पड़ता है, सब की अपनीअपनी संस्कृति होती है.’

‘डोंट बी सिली, मां, प्रेम के सामने इन ओछी बातों की कोई अहमियत

नहीं होती. वैसे भी मैं बेकार ही इस बहस में पड़ रही हूं. मुझे अरुण पसंद है, दैट्स आल.’

प्रतीक्षा, मां को अवाक् छोड़ कर कमरे से बाहर जा चुकी थी. आभा के कलेजे में अपने ही कहे कुछ शब्द चुभ रहे थे, जो उस ने अपनी मां से कहे थे, ‘आप लोगों ने अपना जीवन जी लिया है, अब मुझे भी चैन से अपना जीवन जीने दो. जिस से प्रेम है, उस से शादी की है, घर छोड़ कर भागी नहीं हूं. जो तुम लोगों को समाज का भय सता रहा है.’

आकाश को जब सबकुछ पता चला तो उन्होंने भी बेटी से बात की. पर प्रतीक्षा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘पापा, आप ने मुझे उच्च शिक्षा दी है, तो भलाबुरा समझने की बुद्धि भी दी है. आप ही बताइए, मैं कभी गलत निर्णय ले सकती हूं?’

आकाश सोच में पड़ गए. इसे कहते हैं परिवर्तन, पहले प्रेमविवाह की जड़ में होती थी जिद और अब…? आज की पीढ़ी तो आत्मस्वाभिमान को ही ढाल बना कर मनचाहा निर्णय ले रही है. अभिभावक तब भी असहाय थे और आज भी मूक रहने को विवश हैं.

‘बताइए न पापा, क्या प्रेम करने से पहले जाति, धर्म सबकुछ पूछ लेना ही सही है? आप ने भी तो मां से…’

प्रतीक्षा की बात बीच में ही काट कर आकाश बोले, ‘हमारी जाति एक थी, प्रतीक्षा. दूसरी जाति में विवाह से कई सामाजिक मुश्किलें आती हैं. फिर भी तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो, अरुण को भी सही जौब मिल जाने दो. फिर हम धूमधाम से तुम्हारी शादी करवा देंगे.’

‘मुझे और अरुण को तो कोर्टमैरिज पसंद है, तामझाम के लिए आज किस के पास वक्त है?’ प्रतीक्षा ने मुंह बना कर कहा तो आकाश क्रोधित हो उठे, ‘जब तुम ने सारे निर्णय स्वयं ही ले लिए हैं तो हमारी जरूरत क्या है? तुम्हें और अरुण को यह पसंद नहीं, वह पसंद नहीं, और हमारी पसंद? मुझे अरुण अपने दामाद के रूप में पसंद नहीं.’

‘मैं भी ऐसे पिता को पसंद नहीं करती जो मेरी भावनाएं न समझे,’ कह कर प्रतीक्षा मांबाप को सकते की हालत में छोड़ कर चली गई.

‘‘चाय ले आऊं?’’ आभा ने पूछा तो आकाश की सोच पर विराम लग गया.

‘‘प्रतीक्षा कहां है?’’ उन्होंने पूछा तो आभा ने बताया कि वह बाहर गई है.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ आभा बोली.

‘‘यही कि एकमात्र बेटी का विवाह भी हम अपने रीतिरिवाज और परंपरा के अनुसार नहीं कर सकेंगे. वह जिद्दी लड़की कोर्टमैरिज ही करेगी, देखना.’’

‘‘पता नहीं बच्चे मांबाप की भावनाओं का खयाल क्यों नहीं रखते? बच्चों की उद्दंडता उन्हें कितनी चोट पहुंचाती है.’’

‘‘यह एक कटु सत्य है.’’

‘‘हां, पर उस से बड़ा एक सच और है,’’ आभा ने ठहरे हुए स्वर में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि जब अभिभावक स्वयं बच्चे होते हैं, युवावस्था की दहलीज पर पांव रखते हैं तो अपने मांबाप की कद्र नहीं करते और जब अपना समय आता है तो बच्चों की उद्दंडता, निर्लिप्तता आहत करती है. बबूल के पेड़ पर आम का फल नहीं लगता.’’

‘‘तुम सच कह रही हो, आभा. मांबाप बनने के बाद ही उन की वेदना का सही साक्षात्कार हो पाता है, और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. आज मैं भी बाबूजी और मां की पीड़ा का सहज अनुमान लगा पा रहा हूं,’’ आकाश के शब्द आंतरिक पीड़ा से भीग उठे थे.

‘‘अगर दोनों पीढि़यां एकदूसरे की भावनाओं को समझ कर परस्पर सामंजस्य बिठाएं तो ऐसी जटिल परिस्थिति कभी उत्पन्न ही नहीं होगी. कभी मांबाप अड़ जाते हैं तो कभी बच्चे. थोड़ाथोड़ा दोनों झुक जाएं तो खुशियों का वृत्त पूरा हो जाए, है न?’’ आभा ने कहा.

‘‘खुशियों का वृत्त जरूर पूरा होगा मां,’’ तभी अचानक प्रतीक्षा कमरे में आ गई.

मातापिता की प्रश्नवाचक दृष्टि देख कर वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘मैं आप लोगों की इस बात से सहमत हूं कि हमें फ्लैक्सिबल होना चाहिए. अगर आप को मेरे निर्णय पर एतराज नहीं तो चलिए, मानती हूं आप की बात. अरुण की जौब के बाद ही मैं शादी करूंगी और कोर्टमैरिज नहीं, पारंपरिक विवाह जैसा कि आप लोग चाहते हैं. ठीक है?’’

‘‘हां बेटी,’’ आकाश ने बेटी का कंधा थपथपा दिया था. प्रतीक्षा के जाने के बाद आभा ने देखा आकाश का चेहरा अब भी गंभीर था.

‘‘अब तो ठीक है न?’’ आभा ने पूछा तो आकाश ने कहा, ‘‘हां, ऊपरी तौर पर. सोच रहा हूं, 2 पीढि़यों का यह द्वंद्व क्या कभी समाप्त हो पाएगा?’’

एक प्रश्न कमरे में गूंजा और अनुत्तरित रह गया. पर दोनों का मौन बहुत कुछ कह रहा था.

Family Story : वो जलता है मुझसे

Family Story : ‘‘सुपीरियरिटी कांप्लेक्स जैसी कोई भी भावना नहीं होती.

वास्तव में जो इनसान इनफीरियरिटी कांप्लेक्स से पीडि़त है उसी को सुपीरियरिटी कांप्लेक्स भी होता है. अंदर से वह हीनभावना को ही दबा रहा होता है और यही दिखाने के लिए कि उसे हीनभावना तंग नहीं कर रही, वह सब के सामने बड़ा होने का नाटक करता है.

‘‘उच्च और हीन ये दोनों मनोगं्रथियां अलगअलग हैं. उच्च मनोग्रंथि वाला इनसान इसी खुशफहमी में जीता है कि सारी दुनिया उसी की जूती के नीचे है. वही सब से श्रेष्ठ है, वही देता है तो सामने वाले का पेट भरता है. वह सोचता है कि यह आकाश उसी के सिर का सहारा ले कर टिका है और वह सहारा छीन ले तो शायद धरती ही रसातल में चली जाए. किसी को अपने बराबर खड़ा देख उसे आग लग जाती है. इसे कहते हैं उच्च मनोगं्रथि यानी सुपीरियरिटी कांप्लेक्स.

‘‘इस में भला हीन मनोगं्रथि कहां है. जैसे 2 शब्द हैं न, खुशफहमी और गलतफहमी. दोनों का मतलब एक हो कर भी एक नहीं है. खुशफहमी का अर्थ होता है बेकार ही किसी भावना में खुश रहना, मिथ्या भ्रम पालना और उसी को सच मान कर उसी में मगन रहना जबकि गलतफहमी में इनसान खुश भी रह सकता है और दुखी भी.’’

‘‘तुम्हारी बातें बड़ी विचित्र होती हैं जो मेरे सिर के ऊपर से निकल जाती हैं. सच पूछो तो आज तक मैं समझ ही नहीं पाया कि तुम कहना क्या चाहते हो.’’

‘‘कुछ भी खास नहीं. तुम अपने मित्र के बारे में बता रहे थे न. 20 साल पहले तुम पड़ोसी थे. साथसाथ कालिज जाते थे सो अच्छा प्यार था तुम दोनों में. पढ़ाई के बाद तुम पिता के साथ उन के व्यवसाय से जुड़ गए और अच्छेखासे अमीर आदमी बन गए. पिता की जमा पूंजी से जमीन खरीदी और बैंक से खूब सारा लोन ले कर यह आलीशान कोठी बना ली.

‘‘उधर 20 साल में तुम्हारे मित्र ने अपनी नौकरी में ही अच्छी इज्जत पा ली, उच्च पद तक पहुंच गया और संयोग से इसी शहर में स्थानांतरित हो कर आ गया. अपने आफिस के ही दिए गए छोटे से घर में रहता है. तुम से बहुत प्यार भी करता है और इन 20 सालों में वह जब भी इस शहर में आता रहा तुम से मिलता रहा. तुम्हारे हर सुखदुख में उस ने तुम से संपर्क रखा. हां, यह अलग बात है कि तुम कभी ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि आज की ही तरह तुम सदा व्यस्त रहे. अब जब वह इस शहर में पुन: आ गया है, तुम से मिलनेजुलने लगा है तो सहसा तुम्हें लगने लगा है कि उस का स्तर तुम्हारे स्तर से नीचा है, वह तुम्हारे बराबर नहीं है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है.’’

‘‘ऐसा ही है. अगर ऐसा न होता तो उस के बारबार बुलाने पर भी क्या तुम उस के घर नहीं जाते? ऐसा तो नहीं कि तुम कहीं आतेजाते ही नहीं हो. 4-5 तो किटी पार्टीज हैं जिन में तुम जाते हो. लेकिन वह जब भी बुलाता है तुम काम का बहाना बना देते हो.

‘‘साल भर हो गया है उसे इस शहर में आए. क्या एक दिन भी तुम उस के घर पर पहले जितनी तड़प और ललक लिए गए हो जितनी तड़प और ललक लिए वह तुम्हारे घर आता रहता था और अभी तक आता रहा? तुम्हारा मन किया दोस्तों से मिलने का तो तुम ने एक पार्टी का आयोजन कर लिया. सब को बुला लिया, उसे भी बुला लिया. वह भी हर बार आता रहा. जबजब तुम ने चाहा और जिस दिन उस ने कहा आओ, थोड़ी देर बैठ कर पुरानी यादें ताजा करें तो तुम ने बड़ी ठसक से मना कर दिया. धीरेधीरे उस ने तुम से पल्ला झाड़ लिया. तुम्हारी समस्या जब यह है कि तुम ने अपने बेटे के जन्मदिन पर उसे बुलाया और पहली बार उस ने कह दिया कि बच्चों के जन्मदिन पर भला उस का क्या काम?’’

‘‘मुझे बहुत तकलीफ हो रही है राघव…वह मेरा बड़ा प्यारा मित्र था और उसी ने साफसाफ इनकार कर दिया. वह तो ऐसा नहीं था.’’

‘‘तो क्या अब तुम वही रह गए हो? तुम भी तो यही सोच रहे हो न कि वह तुम्हारी सुखसुविधा से जलता है तभी तुम्हारे घर पर आने से कतरा गया. सच तो यह है कि तुम उसे अपने घर अपनी अमीरी दिखाने को बुलाते रहे हो, अचेतन में तुम्हारा अहम संतुष्ट होता है उसे अपने घर पर बुला कर. तुम उस के सामने यह प्रमाणित करना चाहते हो कि देखो, आज तुम कहां हो और मैं कहां हूं जबकि हम दोनों साथसाथ चले थे.’’

‘‘नहीं तो…ऐसा तो नहीं सोचता मैं.’’

‘‘कम से कम मेरे सामने तो सच बोलो. मैं तुम्हारे इस दोस्त से तुम्हारे ही घर पर मिल चुका हूं. जब वह पहली बार तुम से मिलने आया था. तुम ने घूमघूम कर अपना महल उसे दिखाया था और उस के चेहरे पर भी तुम्हारा घर देखते हुए बड़ा संतोष झलक रहा था और तुम कहते हो वह जलता है तुम्हारा वैभव देख कर. तुम्हारे चेहरे पर भी तब कोई ऐसा ही दंभ था…मैं बराबर देख रहा था. उस ने कहा था, ‘भई वाह, मेरा घर तो बहुत सुंदर और आलीशान है. दिल चाह रहा है यहीं क्यों न आ जाऊं…क्या जरूरत है आफिस के घर में रहने की.’

‘‘तब उस ने यह सब जलन में नहीं कहा था, अपना घर कहा था तुम्हारे घर को. तुम्हारे बच्चों के जन्मदिन पर भागा चला आता था और आज उसी ने मना कर दिया. उस ने भी पल्ला खींचना शुरू कर दिया, आखिर क्यों. हीन ग्रंथि क्या उस में है? अरे, तुम व्यस्त रहते हो इसलिए उस के घर तक नहीं जाते और वह क्या बेकार है जो अपने आफिस में से समय निकाल कर भी चला आता है. प्यार करता था तभी तो आता था. क्या एक कप चाय और समोसा खाने चला आता था?

‘‘जिस नौकरी में तुम्हारा वह दोस्त है न वहां लाखों कमा कर तुम से भी बड़ा महल बना सकता था लेकिन वह ईमानदार है तभी अभी तक अपना घर नहीं बना पाया. तुम्हारी अमीरी उस के लिए कोई माने नहीं रखती, क्योंकि उस ने कभी धनसंपदा को रिश्तों से अधिक महत्त्व नहीं दिया. दोस्ती और प्यार का मारा आता था. तुम्हारा व्यवहार उसे चुभ गया होगा इसलिए उस ने भी हाथ खींच लिया.’’

‘‘तुम्हें क्या लगता है…मुझ में उच्च गं्रथि का विकास होने लगा है या हीन ग्रंथि हावी हो रही है?’’

‘‘दोनों हैं. एक तरफ तुम सोचने लगे हो कि तुम इतने अमीर हो गए हो कि किसी को भी खड़ेखडे़ खरीद सकते हो. तुम उंगली भर हिला दोगे तो कोई भी भागा चला आएगा. यह मित्र भी आता रहा, तो तुम और ज्यादा इतराने लगे. दोस्तों के सामने इस सत्य का दंभ भी भरने लगे कि फलां कुरसी पर जो अधिकारी बैठा है न, वह हमारा लंगोटिया यार है.

‘‘दूसरी तरफ तुम में यह ग्रंथि भी काम करने लगी है कि साथसाथ चले थे पर वह मेज के उस पार चला गया, कहां का कहां पहुंच गया और तुम सिर्फ 4 से 8 और 8 से 16 ही बनाते रह गए. अफसोस होता है तुम्हें और अपनी हार से मुक्ति पाने का सरल उपाय था तुम्हारे पास उसे बुला कर अपना प्रभाव डालना. अपने को छोटा महसूस करते हो उस के सामने तुम. यानी हीन ग्रंथि.

‘‘सत्य तो यह है कि तुम उसे कम वैभव में भी खुश देख कर जलते हो. वह तुम जितना अमीर नहीं फिर भी संतोष हर पल उस के चेहरे पर झलकता है…इसी बात पर तुम्हें तकलीफ होती है. तुम चाहते हो वह दुम हिलाता तुम्हारे घर आए…तुम उस पर अपना मनचाहा प्रभाव जमा कर अपना अहम संतुष्ट करो. तुम्हें क्या लगता है कि वह कुछ समझ नहीं पाता होगा? जिस कुरसी पर वह बैठा है तुम जैसे हजारों से वह निबटता होगा हर रोज. नजर पहचानना और बदल गया व्यवहार भांप लेना क्या उसे नहीं आता होगा. क्या उसे पता नहीं चलता होगा कि अब तुम वह नहीं रहे जो पहले थे. प्रेम और स्नेह का पात्र अब रीत गया है, क्या उस की समझ में नहीं आता होगा?

‘‘तुम कहते हो एक दिन उस ने तुम्हारी गाड़ी में बैठने से मना कर दिया. उस का घर तुम्हारे घर से ज्यादा दूर नहीं है इसलिए वह पैदल ही सैर करते हुए वापस जाना चाहता था. तुम्हें यह भी बुरा लग गया. क्यों भई? क्या वह तुम्हारी इच्छा का गुलाम है? क्या सैर करता हुआ वापस नहीं जा सकता था. उस की जराजरा सी बात को तुम अपनी ही मरजी से घुमा रहे हो और दुखी हो रहे हो. क्या सदा दुखी ही रहने के बहाने ढूंढ़ते रहते हो?’’

आंखें भर आईं विजय की.

‘‘प्यार करते हो अपने दोस्त से तो उस के स्वाभिमान की भी इज्जत करो. बचपन था तब क्या आपस में मिट्टी और लकड़ी के खिलौने बांटते नहीं थे. बारिश में तुम रुके पानी में धमाचौकड़ी मचाना चाहते थे और वह तुम्हें समझाता था कि पानी की रुकावट खोल दो नहीं तो सारा पानी कमरों में भर जाएगा.

‘‘संसार का सस्तामहंगा कचरा इकट्ठा कर तुम उस में डूब गए हो और उस ने अपना हाथ खींच लिया है. वह जानता है रुकावट निकालना अब उस के बस में नहीं है. समझनेसमझाने की भी एक उम्र होती है मेरे भाई. 45 के आसपास हो तुम दोनों, अपनेअपने रास्तों पर बहुत दूर निकल चुके हो. न तुम उसे बदल सकते हो और न ही वह तुम्हें बदलना चाहता होगा क्योंकि बदलने की भी एक उम्र होती है. इस उम्र में पीछे देख कर बचपन में झांक कर बस, खुश ही हुआ जा सकता है. जो उस ने भी चाहा और तुम ने भी चाहा पर तुम्हारा आज तुम दोनों के मध्य चला आया है.

‘‘बचपन में खिलौने बांटा करते थे… आज तुम अपनी चकाचौंध दिखा कर अपना प्रभाव डालना चाहते हो. वह सिर्फ चाय का एक कप या शरबत का एक गिलास तुम्हारे साथ बांटना चाहता है क्योंकि वह यह भी जानता है, दोस्ती बराबर वालों में ही निभ सकती है. तुम उस के परिवार में बैठते हो तो वह बातें करते हो जो उन्हें पराई सी लगती हैं. तुम करोड़ों, लाखों से नीचे की बात नहीं करते और वह हजारों में ही मस्त रहता है. वह दोस्ती निभाएगा भी तो किस बूते पर. वह जानता है तुम्हारा उस का स्तर एक नहीं है.

‘‘तुम्हें खुशी मिलती है अपना वैभव देखदेख कर और उसे सुख मिलता है अपनी ईमानदारी के यश में. खुशी नापने का सब का फीता अलगअलग होता है. वह तुम से जलता नहीं है, उस ने सिर्फ तुम से अपना पल्ला झाड़ लिया है. वह समझ गया है कि अब तुम बहुत दूर चले गए हो और वह तुम्हें पकड़ना भी नहीं चाहता. तुम दोनों के रास्ते बदल गए हैं और उन्हें बदलने का पूरापूरा श्रेय भी मैं तुम्हीं को दूंगा क्योंकि वह तो आज भी वहीं खड़ा है जहां 20 साल पहले खड़ा था. हाथ उस ने नहीं तुम ने खींचा है. जलता वह नहीं है तुम से, कहीं न कहीं तुम जलते हो उस से. तुम्हें अफसोस हो रहा है कि अब तुम उसे अपना वैभव दिखादिखा कर संतुष्ट नहीं हो पाओगे… और अगर मैं गलत कह रहा हूं तो जाओ न आज उस के घर पर. खाना खाओ, देर तक हंसीमजाक करो…बचपन की यादें ताजा करो, किस ने रोका है तुम्हें.’’

चुपचाप सुनता रहा विजय. जानता हूं उस के छोटे से घर में जा कर विजय का दम घुटेगा और कहीं भीतर ही भीतर वह वहां जाने से डरता भी है. सच तो यही है, विजय का दम अपने घर में भी घुटता है. करोड़ों का कर्ज है सिर पर, सारी धनसंपदा बैंकों के पास गिरवी है. एकएक सांस पर लाखों का कर्ज है. दिखावे में जीने वाला इनसान खुश कैसे रह सकता है और जब कोई और उसे थोड़े में भी खुश रह कर दिखाता है तो उसे समझ में ही नहीं आता कि वह क्या करे. अपनी हालत को सही दिखाने के बहाने बनाता है और उसी में जरा सा सुख ढूंढ़ना चाहता है जो उसे यहां भी नसीब नहीं हुआ.

‘‘मैं डरने लगा हूं अब उस से. उस का व्यवहार अब बहुत पराया सा हो गया है. पिछले दिनों उस ने यहां एक फ्लैट खरीदा है पर उस ने मुझे बताया तक नहीं. सादा सा समारोह किया और गृहप्रवेश भी कर लिया पर मुझे नहीं बुलाया.’’

‘‘अगर बुलाता तो क्या तुम जाते? तुम तो उस के उस छोटे से फ्लैट में भी दस नुक्स निकाल आते. उस की भी खुशी में सेंध लगाते…अच्छा किया उस ने जो तुम्हें नहीं बुलाया. जिस तरह तुम उसे अपना महल दिखा कर खुश हो रहे थे उसी तरह शायद वह भी तुम्हें अपना घर दिखा कर ही खुश होता पर वह समझ गया होगा कि उस की खुशी अब तुम्हारी खुशी हो ही नहीं सकती. तुम्हारी खुशी का मापदंड कुछ और है और उस की खुशी का कुछ और.’’

‘‘मन बेचैन क्यों रहता है यह जानने के लिए कल मैं पंडितजी के पास भी गया था. उन्होंने कुछ उपाय बताया है,’’ विजय बोला.

‘‘पंडित क्या उपाय करेगा? खुशी तो मन के अंदर का सुख है जिसे तुम बाहर खोज रहे हो. उपाय पंडित को नहीं तुम्हें करना है. इतने बडे़ महल में तुम चैन की एक रात भी नहीं काट पाए क्योंकि इस की एकएक ईंट कर्ज से लदी है. 100 रुपए कमाते हो जिस में 80 रुपए तो कारों और घर की किस्तों में चला जाता है. 20 रुपए में तुम इस महल को संवारते हो. हाथ फिर से खाली. डरते भी हो कि अगर आज तुम्हें कुछ हो जाए तो परिवार सड़क पर न आ जाए.

‘‘तुम्हारे परिवार के शौक भी बड़े निराले हैं. 4 सदस्य हो 8 गाडि़यां हैं तुम्हारे पास. क्या गाडि़यां पेट्रोल की जगह पानी पीती हैं? शाही खर्च हैं. कुछ बचेगा क्या, तुम पर तो ढेरों कर्ज है. खुश कैसे रह सकते हो तुम. लाख मंत्रजाप करवा लो, कुछ नहीं होने वाला.

‘‘अपने उस मित्र पर आरोप लगाते हो कि वह तुम से जलता है. अरे, पागल आदमी…तुम्हारे पास है ही क्या जिस से वह जलेगा. उस के पास छोटा सा ही सही अपना घर है. किसी का कर्ज नहीं है उस पर. थोड़े में ही संतुष्ट है वह क्योंकि उसे दिखावा करना ही नहीं आता. सच पूछो तो दिखावे का यह भूत तकलीफ भी तो तुम्हें ही दे रहा है न. तुम्हारी पत्नी लाखों के हीरे पहन कर आराम से सोती है, जागते तो तुम हो न. क्यों परिवार से भी सचाई छिपाते हो तुम. अपना तौरतरीका बदलो, विजय. खर्च कम करो. अंकुश लगाओ इस शानशौकत पर. हवा में मत उड़ो, जमीन पर आ जाओ. इस ऊंचाई से अगर गिरे तो तकलीफ बहुत होगी.

‘‘मैं शहर का सब से अच्छा काउंसलर हूं. मैं अच्छी सुलह देता हूं इस में कोई शक नहीं. तुम्हें कड़वी बातें सुना रहा हूं सिर्फ इसलिए कि यही सच है. खुशी बस, जरा सी दूर है. आज ही वही पुराने विजय बन जाओ. मित्र के छोटे से प्यार भरे घर में जाओ. साथसाथ बैठो, बातें करो, सुखदुख बांटो. कुछ उस की सुनो कुछ अपनी सुनाओ. देखना कितना हलकाहलका लगेगा तुम्हें. वास्तव में तुम चाहते भी यही हो. तुम्हारा मर्ज भी वही है और तुम्हारी दवा भी.’’

चला गया विजय. जबजब परेशान होता है आ जाता है. अति संवेदनशील है, प्यार पाना तो चाहता है लेकिन प्यार करना भूल गया है. संसार के मैल से मन का शीशा मैला सा हो गया है. उस मैल के साथ भी जिआ नहीं जा रहा और उस मैल के बिना भी गुजारा नहीं. मैल को ही जीवन मान बैठा है. प्यार और मैल के बीच एक संतुलन नहीं बना पा रहा इसीलिए एक प्यारा सा रिश्ता हाथ से छूटता जा रहा है. क्या हर दूसरे इनसान का आज यही हाल नहीं है? खुश रहना तो चाहता है लेकिन खुश रहना ही भूल गया है. किसी पर अपनी खीज निकालता है तो अकसर यही कहता है, ‘‘फलांफलां जलता है मुझ से…’’ क्या सच में यही सच है? क्या यह सच है कि हर संतोषी इनसान किसी के वैभव को देख कर सिर्फ जलता है?

Kahani In Hindi : पुनर्विवाह – पत्नी की मौत के बाद क्या हुआ आकाश के साथ?

Kahani In Hindi : जबसे पूजा दिल्ली की इस नई कालोनी में रहने आई थी उस का ध्यान बरबस ही सामने वाले घर की ओर चला जाता था, जो उस की रसोई की खिड़की से साफ नजर आता था. एक अजीब सा आकर्षण था इस घर में. चहलपहल के साथसाथ वीरानगी और मुसकराहट के साथसाथ उदासी का एहसास भी होता था उसे देख कर. एक 30-35 वर्ष का पुरुष अकसर अंदरबाहर आताजाता नजर आता था. कभीकभी एक बुजुर्ग दंपती भी दिखाई देते थे और एक 5-6 वर्ष का बालक भी.

उस घर में पूजा की उत्सुकता तब और भी बढ़ गई जब उस ने एक दिन वहां एक युवती को भी देखा. उसे देख कर उसे ऐसा लगा कि वह यदाकदा ही बाहर निकलती है. उस का सुंदर मासूम चेहरा और गरमी के मौसम में भी सिर पर स्कार्फ उस की जिज्ञासा को और बढ़ा गया.

जब पूजा की उत्सुकता हद से ज्यादा बढ़ गई तो एक दिन उस ने अपने दूध वाले से पूछ ही लिया, ‘‘भैया, तुम सामने वाले घर में भी दूध देते हो न. बताओ कौनकौन हैं उस घर में.’’

यह सुनते ही दूध वाले की आंखों में आंसू और आवाज में करुणा भर गई. भर्राए स्वर में बोला, ‘‘दीदी, मैं 20 सालों से इस घर में दूध दे रहा हूं पर ऐसा कभी नहीं देखा. यह साल तो जैसे इन पर कयामत बन कर ही टूट पड़ा है. कभी दुश्मन के साथ भी ऐसा अन्याय न हो,’’ और फिर फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘भैया अपनेआप को संभालो,’’ अब पूजा को पड़ोसियों से ज्यादा अपने दूध वाले की चिंता होने लगी थी. पर मन अभी भी यह जानने के लिए उत्सुक था कि आखिर क्या हुआ है उस घर में.

शायद दूध वाला भी अपने मन का बोझ हलका करने के लिए बेचैन था.

अत: कहने लगा, ‘‘क्या बताऊं दीदी, छोटी सी गुडि़या थी सलोनी बेबी जब मैं ने इस घर में दूध देना शुरू किया था. देखते ही देखते वह सयानी हो गई और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई. सलोनी बेबी ऐसी थी कि सब को देखते ही पसंद आ जाए पर वर भी उस के जोड़ का होना चाहिए था न.

‘‘एक दिन आकाश बाबू उन के घर आए. उन्होंने सलोनी के मातापिता से कहा कि शायद सलोनी ने अभी आप को बताया नहीं है… मैं और सलोनी एकदूसरे को चाहते हैं और अब विवाह करना चाहते हैं,’’ और फिर अपना पूरा परिचय दिया.

‘‘आकाश बाबू इंजीनियर थे व मांबाप की इकलौती औलाद. सलोनी के मातापिता को एक नजर में ही भा गए. फिर उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हारे मातापिता को यह रिश्ता मंजूर है?

‘‘यह सुन कर आकाश बाबू कुछ उदास हो गए फिर बोले कि मेरे मातापिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. 2 वर्ष पूर्व एक कार ऐक्सिडैंट में उन की मौत हो गई थी.

‘‘यह सुन कर सलोनी के मातापिता बोले कि हमें यह रिश्ता मंजूर है पर इस शर्त पर कि विवाहोपरांत भी तुम सलोनी को ले कर यहां आतेजाते रहोगे. सलोनी हमारी इकलौती संतान है. तुम्हारे यहां आनेजाने से हमें अकेलापन महसूस नहीं होगा और हमारे जीवन में बेटे की कमी भी पूरी हो जाएगी.

‘‘आकाश बाबू राजी हो गए. फिर क्या था धूमधाम से दोनों का विवाह हो गया और फिर साल भर में गोद भी भर गई.’’

‘‘यह सब तो अच्छा ही है. इस में रोने की क्या बात है?’’ पूजा ने कहा.

दूध वाले ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘एक दिन जब मैं दूध देने गया तो घर में सलोनी बिटिया, आकाश बाबू और शौर्य यानी सलोनी बिटिया का बेटा भी था. तब मैं ने कहा कि बिटिया कैसी हो? बहुत दिनों बाद दिखाई दीं. मेरी तो आंखें ही तरस जाती हैं तुम्हें देखने के लिए. पर मैं बड़ा हैरान हुआ कि जो सलोनी मुझे काकाकाका कहते नहीं थकती थी वह मेरी बात सुन कर मुंह फेर कर अंदर चली गई. मैं ने सोचा बेटियां ससुराल जा कर पराई हो जाती हैं और कभीकभी उन के तेवर भी बदल जाते हैं. अब वह कहां एक दूध वाले से बात करेगी और फिर मैं वहां से चला आया. पर अगले ही दिन मुझे मालूम पड़ा कि मुझ से न मिलने की वजह कुछ और ही थी. सलोनी बिटिया नहीं चाहती थी कि सदा उस का खिलखिलाता चेहरा देखने वाला काका उस का उदास व मायूस चेहरा देखे.

‘‘दरअसल, सलोनी बिटिया इस बार वहां मिलने नहीं, बल्कि अपना इलाज करवाने आई थी. कुछ दिन पहले ही पता चला था कि उसे तीसरी और अंतिम स्टेज का ब्लड कैंसर है. इसलिए डाक्टर ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जाने को कहा था. यहां इस बीमारी का इलाज नहीं था.

‘‘सलोनी को अच्छे से अच्छे डाक्टरों को दिखाया गया, पर कोई फायदा नहीं हुआ. ब्लड कैंसर की वजह से सलोनी बिटिया की हालत दिनोंदिन बिगड़ती चली गई. बारबार कीमोथेरैपी करवाने से उस के लंबे, काले, रेशमी बाल भी उड़ गए. इसी वजह से वह हर वक्त स्कार्फ बांधे रखती. कितनी बार खून बदलवाया गया. पर सब व्यर्थ. आकाश बाबू बहुत चाहते हैं सलोनी बिटिया को. हमेशा उसी के सिरहाने बैठे रहते हैं… तनमनधन सब कुछ वार दिया आकाश बाबू ने सलोनी बिटिया के लिए.’’

शाम को जब विवेक औफिस से आए तो पूजा ने उन्हें सारी बात बताई, ‘‘इस

दुखद कहानी में एक सुखद बात यह है कि आकाश बाबू बहुत अच्छे पति हैं. ऐसी हालत में सलोनी की पूरीपूरी सेवा कर रहे हैं. शायद इसीलिए विवाह संस्कार जैसी परंपराओं का इतना महत्त्व दिया जाता है और यह आधुनिक पीढ़ी है कि विवाह करना ही नहीं चाहती. लिव इन रिलेशनशिप की नई विचारधारा ने विवाह जैसे पवित्र बंधन की धज्जियां उड़ा दी हैं.’’

फिर, ‘मैं भी किन बातों में उलझ गई. विवेक को भूख लगी होगी. वे थकेहारे औफिस से आए हैं. उन की देखभाल करना मेरा भी तो कर्तव्य है,’ यह सोच कर पूजा रसोई की ओर चल दी. रसोई से फिर सामने वाला मकान नजर आया.

आज वहां काफी हलचल थी. लगता था घर की हर चीज अपनी जगह से मिलना चाहती है. घर में कई लोग इधरउधर चक्कर लगा रहे थे. बाहर ऐंबुलैंस खड़ी थी. पूजा सहम गई कि कहीं सलोनी को कुछ…

पूजा का शक ठीक था. उस दिन सलोनी की तबीयत अचानक खराब हो गई और उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. हालांकि उन से अधिक परिचय नहीं था, फिर भी पूजा और विवेक अगले दिन उस से मिलने अस्पताल गए. वहां आकाश की हालत ठीक उस परिंदे जैसी थी, जिसे पता था कि उस के पंख अभी कटने वाले ही हैं, क्योंकि डाक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि सलोनी अपने जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही है. फिर वही हुआ. अगले दिन सलोनी इस संसार से विदा हो गई.

इस घटना को घटे करीब 2 महीने हो गए थे पर जब भी उस घर पर नजर पड़ती पूजा की आंखों के आगे सलोनी का मासूम चेहरा घूम जाता और साथ ही आकाश का बेबस चेहरा. मानवजीवन पर असाध्य रोगों की निर्ममता का जीताजागता उदाहरण और पति फर्ज की साक्षात मूर्ति आकाश.

दोपहर के 2 बजे थे. घर का सारा काम निबटा कर मैं लेटने ही जा रही थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दरवाजे पर एक महिला थी. शायद सामने वाले घर में आई थी, क्योंकि पूजा ने इन दिनों कई बार उसे वहां देखा था. उस का अनुमान सही था.

‘‘मैं आप को न्योता देने आई हूं.’’

‘‘कुछ खास है क्या?’’

‘‘हां, कल शादी है न. आप जरूर आइएगा.’’

इस से पहले कि पूजा कुछ और पूछती, वह महिला चली गई. शायद वह बहुत जल्दी में थी.

वह तो चली गई पर जातेजाते पूजा की नींद उड़ा गई. सारी दोपहरी वह यही सोचती रही कि आखिर किस की शादी हो रही है वहां, क्योंकि उस की नजर में तो उस घर में अभी कोई शादी लायक नहीं था.

शाम को जब विवेक आए तो उन के घर में पैर रखते ही पूजा ने उन्हें यह सूचना दी जिस ने दोपहर से उस के मन में खलबली मचा रखी थी. उसे लगा कि यह समाचार सुन कर विवेक भी हैरान हो जाएंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. वे वैसे ही शांत रहे जैसे पहले थे.

बोले, ‘‘ठीक है, चली जाना… हम पड़ोसी हैं.’’

‘‘पर शादी किस की है, आप को यह जानने की उत्सुकता नहीं है क्या?’’ पूजा ने तनिक भौंहें सिकोड़ कर पूछा, क्योंकि उसे लगा कि विवेक उस की बातों में रुचि नहीं ले रहे हैं.

‘‘और किस की? आकाश की. अब शौर्य की तो करने से रहे इतनी छोटी उम्र में. आकाश के घर वाले चाहते हैं कि यह शीघ्र ही हो जाए, क्योंकि आकाश को इसी माह विदेश जाना है. दुलहन सलोनी की चचेरी बहन है.’’

यह सुन कर पूजा के पैरों तले की जमीन खिसक गई. जिस आकाश को उस ने आदर्श पति का ताज दे कर सिरआंखों पर बैठा रखा था. वह अब उस से छिनता नजर आ रहा था. उस ने सोचा कि पत्नी को मरे अभी 2 महीने भी नहीं हुए और दूसरा विवाह? तो क्या वह प्यार, सेवाभाव, मायूसी सब दिखावा था? क्या एक स्त्री का पुरुषजीवन में महत्त्व जितने दिन वह साथ रहे उतना ही है? क्या मरने के बाद उस का कोई वजूद नहीं? मुझे कुछ हो जाए तो क्या विवेक भी ऐसा ही करेंगे? इन विचारों ने पूजा को अंदर तक हिला दिया और वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई. उसे सारा कमरा घूमता नजर आ रहा था.

जब विवेक वहां आए तो पूजा को इस हालत में देख घबरा गए और फिर उस का सिर गोद में रख कर बोले, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें? क्या ऊटपटांग सोचसोच कर अपना दिमाग खराब किए रखती हो? तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?’’

विवेक की इस बात पर सदा गौरवान्वित महसूस करने वाली पूजा आज बिफर पड़ी, ‘‘ले आना तुम भी आकाश की तरह दूसरी पत्नी. पुरुष जाति होती ही ऐसी है. पुरुषों की एक मृगमरीचिका है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. आकाश यह शादी अपने सासससुर के कहने पर ही कर रहा है. उन्होंने ही उसे पुनर्विवाह के लिए विवश किया है, क्योंकि वे आकाश को अपने बेटे की तरह चाहने लगे हैं. वे नहीं चाहते कि आकाश जिंदगी भर यों ही मायूस रहे. वे चाहते हैं कि आकाश का घर दोबारा बस जाए और आकाश की पत्नी के रूप में उन्हें अपनी सलोनी वापस मिल जाए. इस तरह शौर्य को भी मां का प्यार मिल जाएगा.

‘‘पूजा, जीवन सिर्फ भावनाओं और यादों का खेल नहीं है. यह हकीकत है और इस के लिए हमें कई बार अपनी भावनाओं का दमन करना पड़ता है. सिर्फ ख्वाबों और यादों के सहारे जिंदगी नहीं काटी जा सकती. जिंदगी बहुत लंबी होती है.

‘‘आकाश दूसरी शादी कर रहा है इस का अर्थ यह नहीं कि वह सलोनी से प्यार नहीं करता था. सलोनी उस का पहला प्यार था और रहेगी, परंतु यह भी तो सत्य है कि सलोनी अब दोबारा नहीं आ सकती. दूसरी शादी कर के भी वह उस की यादों को जिंदा रख सकता है. शायद यह सलोनी के लिए सब से बड़ी श्रद्धांजलि होगी.

‘‘यह दूसरी शादी इस बात का सुबूत है कि स्त्री और पुरुष एक गाड़ी के 2 पहिए हैं और यह गाड़ी खींचने के लिए एकदूसरे की जरूरत पड़ती है और यह काम अभी हो जाए तो इस में हरज ही क्या है?’’

विवेक की बातों ने पूजा के दिमाग से भावनाओं का परदा हटा कर वास्तविकता की तसवीर दिखा दी थी. अब उसे आकाश के पुनर्विवाह में कोई बुराई नजर नहीं आ रही थी और न ही विवेक के प्यार पर अब कोई शक की गुंजाइश थी.

विवेक के लिए खाना लगा कर पूजा अलमारी खोल कर बैठ गई और फिर स्वभावानुसार विवेक का सिर खाने लगी, ‘‘कल कौन सी साड़ी पहनूं? पहली बार उन के घर जाऊंगी. अच्छा इंप्रैशन पड़ना चाहिए.’’

विवेक ने भी सदा की तरह मुसकराते हुए कहा, ‘‘कोई भी पहन लो. तुम पर तो हर साड़ी खिलती है. तुम हो ही इतनी सुंदर.’’

पूजा विवेक की प्यार भरी बातें सुन कर गर्वित हो उठी.

Story In Hindi : उपलब्धि : शादीशुदा होने के बावजूद क्यों अलग थे सुनयना और सुशांत?

Story In Hindi : कभी कभीहालात इनसान को ऐसे मोड़ पर ले आते हैं कि वह समझ ही नहीं पाता कि अब क्या करे, किस ओर जाए? कुछ ऐसा ही हुआ था सुनयना के साथ. एक पल में कितना कुछ बदल गया था उस की जिंदगी में.

काश, आज उस ने सुबह चुपके से सुशांत की बातें न सुनी होतीं. वह किसी से मोबाइल पर कह रहा था, ‘‘हांहां डियर, मैं ठीक 5 बजे पहुंच जाऊंगा नक्षत्र होटल. वैसे भी अब तो सारा वक्त आप के खयालों में गुजरेगा,’’ कहते हुए ही सुशांत ने फोन पर ही किस किया तो सुनयना का दिल तड़प उठा.

सुनयना मानती थी कि सुशांत ने उसे साधारण मध्यवर्गीय परिवार से निकाल कर शानोशौकत की पूरी दुनिया दी. गाड़ी, बंगला, नौकरचाकर, कपड़े, जेवर… भला किस चीज की कमी रखी? फिर भी वह आज स्वयं को बहुत बेबस, लाचार और टूटा हुआ महसूस कर रही थी. वह बेसब्री से 5 बजने का इंतजार करने लगी ताकि नक्षत्र होटल पहुंच कर हकीकत का पता लगा सके. खुद को एतबार दिला सके कि यह सब यथार्थ है, महज वहम नहीं, जिस के आधार पर वह अपनी खुशियां दांव पर लगाने चली है.

पौने 5 बजे ही वह होटल के गेट से दूर गाड़ी खड़ी कर के अंदर रिसैप्शन में बैठ गई. दुपट्टे से अपना चेहरा ढक लिया और काला चश्मा भी लगा लिया ताकि सुशांत उसे पहचान न सके.

ठीक 5 बजे सुशांत की गाड़ी गेट पर रुकी. स्मार्ट नीली टीशर्ट व जींस में वह

गाड़ी से उतरा और रिसैप्शन की तरफ बढ़ गया. वहां पहले से ही एक लड़की उस का इंतजार कर रही थी. दोनों पुराने प्रेमियों की तरह गले मिले, फिर हाथों में हाथ डाले लिफ्ट की तरफ बढ़ गए.

सुनयना की आंखें भर आईं. उस का कंठ सूखने लगा. उसे महसूस हुआ जैसे वह फूटफूट कर रो पड़ेगी. थोड़ी देर डाल से टूटे पत्ते की तरह वहीं बैठी रही. फिर तुरंत स्वयं को संभालती हुई उठी और गाड़ी में बैठ गई. घर आ कर औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ी. देर तक रोती हुई सोचती रही कि किस मोड़ पर उस से क्या गलती हो गई जो सुशांत को यह बेवफाई करनी पड़ी? वह स्वस्थ है, खूबसूरत है, अपने साथसाथ सुशांत का भी पूरा खयाल रखती है, इतना प्यार करती है उसे, फिर सुशांत ने ऐसा क्यों किया?

हमेशा की तरह सुनयना ने स्वयं को संभालने और दिल की बातें करने के लिए सुप्रिया को फोन लगाया जो उस की सब से प्रिय सहेली थी. उस से वह हर बात शेयर करती. सुनयना की आवाज में झलकते दुख व कंपन को एक पल में सुप्रिया ने महसूस कर लिया. फिर घबराए स्वर में बोली, ‘‘सुनयना सब ठीक तो है? परेशान क्यों लग रही है?’’

सुनयना ने रुंधे गले से उसे सारी बातें बताईं, तो सुप्रिया ठंडी सांस लेती हुई बोली, ‘‘हिम्मत न हार. मैं मानती हूं, जिंदगी कई दफा हमें ऐसी स्थितियों से रूबरू कराती है, जहां हम दूसरों पर क्या, खुद पर भी विश्वास खो बैठते हैं. तू नहीं जानती, मैं खुद इस खौफ में रहती हूं कि कहीं मेरी जिंदगी में भी कोई ऐसा शख्स न आ जाए, जिस के लिए प्रेम की कोई कीमत न हो. मैं घबराती हूं, ठगे जाने से. प्यार में कहीं पछतावा हाथ न लगे, शायद इसलिए अपने काम के प्रति ही समर्पित रहती हूं.’’

‘‘शायद तू ठीक कह रही है, सुप्रिया मगर मैं क्या करूं? मैं ने तो अपनी जिंदगी सुशांत के  नाम समर्पित की थी.’’

‘‘ऐसा सिर्फ  तेरे साथ ही नहीं हुआ है सुनयना. तुझे याद है, स्कूल में हमारे साथ पढ़ने वाली नेहा?’’ सुप्रिया बोली.

‘‘कौन वह जिस की मां हमारे स्कूल में क्लर्क थीं?’’

‘‘हांहां, वही. अब वह भी किसी स्कूल में छोटीमोटी नौकरी करने लगी है. कभीकभी मां को किसी काम में मदद की जरूरत होती है, तो मैं उसे बुला लेती हूं. अटैच हो गई है हम से. पास में ही उस का घर है. अपने बारे में सब कुछ बताती रहती है. उस ने लव मैरिज की थी, पर उस के साथ भी यही कुछ हुआ.’’

‘‘उफ, फिर तो वह भी परेशान होगी. आ कर रो रही होगी, तेरे पास. अंदर ही अंदर घुट रही होगी, जैसे मैं…’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं. उस का रिऐक्शन बहुत अलग रहा. उस ने उसी वक्त खुल कर इस विषय पर अपने पति से बात की. जलीकटी सुना कर अपनी भड़ास निकाली. फिर अल्टीमेटम भी दे दिया कि यदि आइंदा इस घटना की पुनरावृत्ति हुई, तो वह घर में एक पल के लिए भी नहीं रुकेगी.’’

‘‘उस ने ठीक किया. मगर मैं ऐसा नहीं कर सकती. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’ बुझे स्वर में सुनयना ने कहा.

‘‘यार, कभीकभी ऐसा होता है, जब दिमाग कुछ कहता है और दिल कुछ. तब समझ नहीं आता कि क्या किया जाए. बहुत असमंजस की स्थिति होती है खासकर जब धोखा देने वाला वही हो, जिसे आप सब से ज्यादा प्यार करते हैं. मेरी बात मान अभी तू आराम कर. सुबह ठंडे दिमाग से सोचना और वैसे भी छोटीछोटी बातों पर परेशान होना उचित नहीं.’’

‘‘यह बात छोटी नहीं प्रिया, मेरी पूरी जिंदगी का सवाल है. फिर भी चल, रिसीवर रखती हूं मैं,’’ कह कर सुनयना ने रिसीवर रख दिया और कमरे में आ कर सोने का प्रयास करने लगी. मगर मन था कि लौटलौट कर उसी लमहे को याद करने लगता, जब दिल को गहरी चोट लगी थी.

और फिर यह पहली दफा नहीं है जब सुशांत ने उस का दिल तोड़ा हो. इस से पहले भी रीवा के साथ सुशांत का बेहद करीबी रिश्ता होने का एहसास हुआ था उसे. मगर तब सुशांत ने यह  कह कर माफी मांग ली थी कि रीवा उस की बहुत पुरानी दोस्त है और उस से एकतरफा प्यार करती है. वह उस का दिल नहीं तोड़ना चाहता.

सुनयना यह सुन कर खामोश रह गई थी, क्योंकि प्रेम शब्द और उस से जुड़े एहसास का   बहुत सम्मान करती है वह. आखिर उस ने भी तो सुशांत से मुहब्बत की है. यह बात अलग है कि सुशांत के व्यक्तित्व व संपन्नता के आगे वह स्वयं को कमतर महसूस करती है और जबरन उसे स्वयं से बांधे रखना नहीं चाहती थी. आज जो कुछ भी उस ने देखा, उसे वह मुहब्बत तो कतई नहीं मान सकती थी. यह तो सिर्फ और सिर्फ वासना थी.

देर रात जब सुशांत लौटा तो हमेशा की तरह बहुत ही सामान्य व्यवहार कर रहा था. उस का यह रुख देख कर सुनयना के दिल में कांटे की तरह कुछ चुभा. मगर वह कुछ बोली नहीं. कहती भी क्या, जिंदगी तो स्वयं ही उस के साथ खेल खेल रही थी. पिछले साल उसे पता चला था कि सुशांत ड्रग ऐडिक्ट है, मगर तब उसे इतना अधिक दुख नहीं हुआ, जितना आज हुआ था. उस समय विश्वास टूटा था और आज तो दिल ही टूट गया था.

इस बात को बीते 2 माह गुजर चुके थे, मगर स्थितियां वैसी ही थीं. सुनयना खामोशी से सुशांत की हरकतों पर नजर रख रही थी. सुशांत पहले की तरह अपनी नई दुनिया में मगन था. कई दफा सुनयना ने उसे रंगे हाथों पकड़ा भी, मगर वह पूरी तरह बेशर्म हो चुका था. उस की एक नहीं 2-2, 3-3 महिलाओं से दोस्ती थी.

सुनयना अंदर ही अंदर इस गम से घुटती जा रही थी. एक बार अपनी मां से फोन पर इस बारे में बात करनी चाही तो मां ने पहले ही उसे रोक दिया. वे अपने रईस दामाद के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं, उलटा उसे ही समझाने लगीं, ‘‘इतनी छोटीछोटी बातों पर घर तोड़ने की बात सोचते भी नहीं.’’

सुनयना कभीकभी यह सोच कर परेशान होती कि आगे क्या करे? क्या सुशांत को तलाक देना या घर छोड़ने की धमकी देना उचित रहेगा? मगर वह ऐसा करे भी तो किस आधार पर? यह सारा ऐशोआराम छोड़ कर वह कहां जाएगी? मां के 2 बैडरूम के छोटे से घर में? उस ने ज्यादा पढ़ाई भी नहीं की है, जो अच्छी नौकरी हासिल कर चैन से दिन गुजार सके. भाईभाभी का चेहरा यों ही बनता रहता है. तो क्या दूसरी शादी कर ले? मगर कौन कह सकता है कि दूसरा पति उस के हिसाब का ही मिलेगा? उस के विचारों की उथलपुथल यहीं समाप्त नहीं होती. घंटों बिस्तर पर पड़ेपड़े वह अपनेआप को सांत्वना देती रहती और सोचती कि पति का प्यार भले ही बंट गया हो, पर घरपरिवार और समाज में इज्जत तो बरकरार है.

धीरेधीरे सुनयना ने स्वयं को समझा लिया कि अब यही उस की जिंदगी की हकीकत है. उसे इसी तरह सुशांत की बेवफाइयों के साथ जिंदगी जीनी है.

फिर एक दिन सुबहसुबह सुप्रिया का फोन आया. वह बड़ी उत्साहित थी. बोली, ‘‘सुनयना, जानती है अपनी नेहा ने पति को तलाक देने का फैसला कर लिया है? वह पति का घर छोड़ कर आ गई है.’’

सुनयना चौंक उठी, ‘‘यह क्या कह रही है तू? उस ने इतनी जल्दी इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया?’’

‘‘मेरे खयाल से उस ने कुछ गलत नहीं किया सुनयना. आखिर फैसला तो लेना ही था उसे. मैं तो कहती हूं, तुझे भी यही करना चाहिए. उस ने सही कदम उठाया है.’’

‘‘हूं,’’ कह रिसीवर रखती हुई सुनयना सोच में पड़ गई. दिन भर बेचैन रही. रात भर करवटें बदलती रही. दिल में लगातार विचारों का भंवर चलता रहा. आखिर सुबह वह एक फैसले के साथ उठी और स्वयं से ही बोल पड़ी कि ठीक है, मैं भी नेहा की तरह ही कठोर कदम उठाऊंगी. तभी सुशांत को पता चलेगा कि उस ने मेरा दिल दुखा कर अच्छा नहीं किया. बहुत प्यार किया था मैं ने उसे, मगर वह कभी मेरी कद्र नहीं कर सका. फिर सब कुछ छोड़ कर वह बिना कुछ कहे घर से निकल पड़ी. वह नहीं चाहती थी कि सुशांत फिर से उस से माफी मांगे और वह कमजोर पड़ जाए. न ही वह अब सुशांत की बेवफाई के साथ जीना चाहती थी, न ही अपना दर्द दिल में छिपा कर टूटे दिल के साथ ऐसी शादीशुदा जिंदगी जीना चाहती थी.

मायके वाले उस के काम नहीं आएंगे, यह एहसास था उसे, मगर इस खौफ की वजह से अपनी मुहब्बत का गला घुटते देखना भी मंजूर नहीं था. वह निकल तो आई थी, मगर अब सब से बड़ा सवाल यह था कि वह आगे क्या करे? कहां जाए? बहुत देर तक मैट्रो स्टेशन पर बैठी सोचती रही.

तभी प्रिया का फोन आया, ‘‘कहां है यार? घर पर फोन किया तो सुशांत ने कहा कि तू घर पर नहीं. फोन भी नहीं उठा रही है. सब ठीक तो है?’’

‘‘हां यार, मैं ने घर छोड़ दिया,’’ रुंधे गले से सुनयना ने कहा तो यह सुन प्रिया सकते में आ गई. बोली, ‘‘यह बता कि अब जा कहां रही है तू?’’

‘‘यही सवाल तो लगातार मेरे भी जेहन में कौंध रहा है. जवाब जानने को ही मैट्रो स्टेशन पर रुकी हुई हूं.’’

‘‘ज्यादा सवालजवाब में मत उलझ. चुपचाप मेरे घर आ जा,’’ प्रिया ने कहा तो सुनयना के दिल में तसल्ली सी हुई. उस को प्रिया का प्रस्ताव उचित लगा. आखिर प्रिया भी तो अकेली रहती है. 2 सिंगल महिलाएं एकसाथ रहेंगी तो एकदूसरे का सहारा ही बनेंगी.

सारी बातें सोच कर सुनयना चुपचाप प्रिया के घर चली गई. प्रिया ने उसे सीने से लगा लिया. देर तक सुनयना से सारी बातें सुनती रही. फिर बोली, ‘‘सुनयना, आज जी भर कर रो ले. मगर आज के बाद तेरे जीवन से रोनेधोने या दुखी रहने का अध्याय समाप्त. मैं हूं न. हम दोनों एकदूसरे का सहारा बनेंगी.’’

सुनयना की आंखें भर आईं. रहने की समस्या तो सहेली ने दूर कर दी थी, पर कमाने का मसला बाकी था. अगले दिन से ही उस ने अपने लिए नौकरी ढूंढ़नी शुरू कर दी. जल्दी ही नौकरी भी मिल गई. वेतन कम था, मगर गुजारे लायक तो था ही.

नई जिंदगी ने धीरेधीरे रफ्तार पकड़नी शुरू की ही थी कि सुनयना को महसूस हुआ कि उस के शरीर के अंदर कोई और जीव भी पल रहा है. इस हकीकत को डाक्टर ने भी कन्फर्म कर दिया यानी सुशांत से जुदा हो कर भी वह पूरी तरह उस से अलग नहीं हो सकी थी. सुशांत का अंश उस की कोख में था. भले ही इस खबर को सुन कर चंद पलों को सुनयना हतप्रभ रह गई, मगर फिर उसे महसूस हुआ जैसे उसे जीने का नया मकसद मिल गया हो.

इस बीच सुनयना की मां का देहांत हो गया. सुनयना अपने भाईभाभी से वैसे भी कोईर् संबंध रखना नहीं चाहती थी. प्रिया और सुनयना ने दूसरे इलाके में एक सुंदर घर खरीदा और पुराने रिश्तों व सुशांत से बिलकुल दूर चली आई.

बच्ची थोड़ी बड़ी हुई तो दोनों ने उस का एडमिशन एक अच्छे स्कूल में करा दिया. अब सुनयना की दुनिया बदल चुकी थी. वह अपनी नई दुनिया में बेहद खुश थी. जबकि सुशांत की दुनिया उजड़ चुकी थी. जिन लड़कियों के साथ उस के गलत संबंध थे, वे गलत तरीकों से उस के रुपए डुबोती चली गईं. बिजनैस ठप्प होने लगा. वह चिड़चिड़ा और क्षुब्ध रहने लगा. इतने बड़े घर में बिलकुल अकेला रह गया था. लड़कियों के साथसाथ दोस्तों ने भी साथ छोड़ दिया. घर काटने को दौड़ता.

एक्र दिन वह यों ही टीवी चला कर बैठा था कि अचानक एक चैनल पर उस की निगाहें टिकी रह गईं. दरअसल, इस चैनल पर ‘सुपर चाइल्ड रिऐलिटी शो’ आ रहा था और दर्शकदीर्घा के पहली पंक्ति में उसे सुनयना बैठी नजर आ गई. वह टकटकी लगाए प्रोग्राम देखने लगा.

स्टेज पर एक प्यारी सी बच्ची परफौर्म कर रही थी. वह डांस के साथसाथ बड़ा मीठा गाना भी गा रही थी. उस के चुप होते ही शो के सारे जज खड़े हो कर तालियां बजाने लगे. सब ने खूब तारीफ की. जजों ने बच्ची से उस के मांबाप के बारे पूछा तो सारा फोकस सुनयना पर हुआ यानी यह सुनयना की बेटी है? सुशांत हैरान देखता रह गया. जजों के आग्रह पर सुनयना के साथ उस की सहेली प्रिया स्टेज पर आई. बच्ची ने विश्वास के साथ दोनों का हाथ पकड़ा और बोली, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, मगर मांएं 2-2 हैं. यही दोनों मेरे पापा भी हैं.’’

सिंगल मदर और सुपर चाइल्ड की उपलब्धि पर सारे दर्शक तालियां बजा रहे थे. इधर सुशांत अपने ही सवालों में घिरा था कि क्या यह मेरी बच्ची है? या किसी और की? नहींनहीं, मेरी ही है, तभी तो इस ने कहा कि पापा नहीं हैं, 2-2 मांएं हैं. पर किस से पूछे? कैसे पता चले कि सुनयना कहां रहती है? अपनी बच्ची को गोद में ले कर वह प्यार करना चाहता था. मगर यह मुमकिन नहीं था. बच्ची उस की पहुंच से बहुत दूर थी. वह बस उसे देख सकता था. मगर उस के पास कोई चौइस नहीं थी.

सुशांत तो ऐसा बेचारा बाप था, जो अपने अरमानों के साथ केवल सिसक सकता था. सुनयना बड़े गर्व से बेटी को सीने से लगाए रो रही थी. सुशांत हसरत भरी निगाहों से उन्हें निहार रहा था.

पाकिस्तानी एक्ट्रेस के कारण Diljit Dosanjh बुरी तरह फंसे, जानें पूरा मामला

Diljit Dosanjh : गायक और एक्टर दिलजीत दोसांझ हाल ही में बुरी तरह आलोचना के शिकार हुए. जिसकी वजह है पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया अमीर. दिलजीत दोसांझ ने अपनी फिल्म सरदार जी 3 में पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया अमीर को कास्ट किया, हाल ही में हुए पहलगाम अटैक के बावजूद जबकि हिंदुस्तान पाकिस्तान का रिलेशन पूरी तरह खराब हो चुका है, दिलजीत दोसांझ ने पाकिस्तानी एक्ट्रेस को अपनी फिल्म से नहीं हटाया.

हाल ही में जब इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ तो पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया अमीर फिल्म में नजर आई, उसके बाद हर जगह बवाल मच गया और हर तरफ दिलजीत दोसांझ की आलोचना होने लगी, कई लोगों ने उन्हें देश का गद्दार तक कह दिया. सोशल मीडिया पर दिलजीत बुरी तरह ट्रोल हो गए. लेकिन बावजूद इसके दिलजीत दोसांझ टस से मस नहीं हुए और उन्होंने अपनी फिल्म हिन्दुस्तान के बजाय लंदन से रिलीज करने की तैयारी शुरू कर दी.

जिसके बाद और ज्यादा बवाल हो गया और फिल्म इंडस्ट्री ने दिलजीत का बायकाट कर दिया और उनकी आने वाली सभी फिल्मों पर भी रोक लगा दी गई. खबरों के अनुसार बौर्डर 2 में दिलजीत दोसांझ का खास रोल था, जिसे FWICE के कहने पर इस फिल्म बार्डर 2 से हटाने के लिए कहा गया है, खबरों के अनुसार बार्डर 2 से दिलजीत दोसांझ का पत्ता कट हो गया है और उनकी जगह पंजाबी एक्टर एम्मी विर्क को ले लिया गया है.

दिलजीत ने उड़ता पंजाब क्राईम थ्रिलर, एक्टर शाहिद कपूर और आलिया भट्ट के साथ, अक्षय कुमार करीना कपूर के साथ गुड न्यूज़, और अमर सिंह चमकीला आदि फिल्मों में अभिनय किया है, इसके अलावा कई रियलिटी शोज में भी बतौर जज नजर आए हैं. लेकिन अब, पाकिस्तानी एक्टरों की तरह दिलजीत दोसांझ भी अब हिंदी फिल्मों में फिर से नजर आएंगे यह कहना मुश्किल है.

Urmila Matondkar : 51 की उम्र में रंगीला गर्ल का बौडी ट्रांसफौर्मेशन देख लोगों ने किया ट्रोल

Urmila Matondkar :  अपने सेक्सी, बोल्ड लुक और इम्प्रेसिव एक्टिंग टैलेंट के बल पर 90 के दशक में बिग स्क्रीन पर राज करने वाली बौलीवुड एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर इन दिनों अपनी गजब के बौडी ट्रांसफार्मेशन के वजह से चर्चा में छाई हुई हैं. उनके इस लुक को देख कर लोग हैरान हो कर कमैंट्स भी कर रहे हैं. कुछ लोगों ने तो उन्हें ट्रोल भी किया है.

यूजर्स के कमैंट्स-

इंस्टा पर शेयर की फोटोज में उर्मिला पहले से काफी स्लिम और फिट भी दिख रही हैं. कुछ लोग तो उन्हें देखकर अंदाजा लगा रहे हैं कि उनके चेहरा काफी स्लिम और लिप्स मोटे दिख रहे हैं. एक्ट्रेस की यूजर्स ने जम कर तारीफ की लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने जमकर ट्रोल कर दिया. एक यूजर लिखती हैं कि- ”इन्होंने अपने मुंह पर क्या करवा लिया.” तो दूसरे ने कहा-  “या तो यह 10 जीबी एआई का काम है, या फिर 10 KG ozempic का.” एक और ब्यूटी आर्टिफिशियल शो औफ में खो गई” वही दूसरे यूजर ने सवाल किया क्या यह AI फोटो है या फिर सर्जरी का कमाल है. वहीं कुछ ने ये कहा कि कौन सी जड़ी बूटी खा रही हैं. जो 51 में भी 25 की लग रहीं.

एक यूजर ने तो उनकी तुलना अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता बच्चन से भी करती. वही एक ने लिखा कि ‘यह सब तो बोटोक्स फिलर्स और सर्जरी का कमाल है. इसके बाद एक 51 साल की एक्ट्रेस 22 23 साल की लगने लगती है.’ एक फैन ऐसा भी जिसने उर्मिला के इस न्यू और चेंज और सिजलिंग लुक को देखकर खूब तारीफ की हैं.

बौडी ट्रांसफार्मेशन बना चर्चा का विषय-

आपको बता दें पौलिटिशियन, एक्ट्रेस और सोशल एक्टिविस्ट उर्मिला मातोंडकर सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. उनके इंस्टाग्राम पर लगभग 1 मिलियन फौलोअर्स हैं. वो अक्सर एक से बढ़कर एक ग्लैमरस तस्वीरें शेयर करती रहती हैं. इसके साथ ही वो अपनी फिटनेस को लेकर काफी फोक्स्ड हैं. बढ़ती उम्र में ऐसी फिटनेस देखकर लोग भी उनकी खूब तारीफ करते हैं. हाल ही में उर्मिला ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर अपने बौडी ट्रांसफॉर्मेशन के न्यू लुक को दिखाते हुए फोटोज शेयर की हैं. जिसमें वो गजब की सिल्म-ट्रिम नजर आ रही हैं. 51 की उम्र में उनका ये लुक देख कर उनके फैंस समझ ही नहीं पा रहे हैं ये उर्मिला ही हैं? फोटोज में वो बिलकुल अलग ही दिख रही हैं.

स्टाइलिश ड्रेस के साथ ग्लैमरस मेकअप-

इंस्टाग्राम पर शेयर की गई बौडी ट्रांसफौर्मेशन की फोटोज में उर्मिला ने बेबी पिंक शार्ट स्कर्ट के साथ बेबी पिंक वेस्ट स्टाइल हाफ स्लीव्स क्रॉप टॉप पहना हुआ हैं. जिसकी नेकलाइन सिंपल राउंड हैं. टॉप में पॉकेट की तरह दोनों तरफ डिजाइन भी दिया हैं, जिसमे पर दोनों तरफ गोल्डन बटन लगाकर हाइलाइट किया, इसके साथ ही नेकलाइन के नीचे भी तीन गोल्डन बटन लगे हैं. क्रॉप टॉप में क्यूट वाइब्स देने के लिए लुक में ग्लैम कोशेंट भी ऐड किया हैं. अगर बात करें उनके मेकअप की तो उन्होंने सॉफ्ट, ग्लैमरस मेकअप और हेयर में ब्लो-ड्राई किया हुआ हैं.

फिल्मी करियर-

राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘रंगीला’ से रातोंरात स्टार बनने वाली उर्मिला मातोंडकर ने 1977 में आई फिल्म ‘करम’ से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट डेब्यू किया था, लेकिन ‘मासूम’ फिल्म से उन्हें प्रसिद्धि हासिल हुई थी. उर्मिला साउथ में भी काम कर चुकी हैं. उन्होंने मलयालम सिनेमा में फिल्म ‘चारणक्यन’ से डेब्यू किया था. इसके बाद उर्मिला ने सुपरहिट फिल्म ‘नरसिम्हा’ (1991) से बौलीवुड में डेब्यू किया. ‘नरसिम्हा’ के बाद, उर्मिला ने एक और हिट ‘चमत्कार’ में काम किया, लेकिन इसके बाद ‘श्रीमान आशिक’ और ‘बेदर्दी’ जैसी फ्लॉप फिल्में आईं. 1995 में, उर्मिला को ‘रंगीला’ में मिली के किरदार के रूप में भूमिका मिली थी. जिसे उन्होंने बहुत जबरदस्त तरीके से निभाया था. इस फिल्म में उर्मिला के सेक्सी लुक और इम्प्रेसिव एक्टिंग ने उन्हें स्टार बना दिया. रंगीला के बाद, उर्मिला ने बैक-टू-बैक हिट फिल्में दीं, जिनमें ‘इंडियन’, ‘जुदाई’, ‘सत्या’, ‘कौन’, ‘दीवानगी’, ‘भूत’, ‘मस्त’, ‘प्यार तूने क्या किया’, आदि फिल्मों में काम किया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें