Hindi Emotional Story: सूनी मांग का दर्द

Hindi Emotional Story: कितने बरसों बाद आज किसी ने उस के नाम की टेर दी थी. उस के हाथ आटे से सने हुए थे इसलिए वहीं से उस ने नौकरानी को आवाज दी, ‘‘चम्पा, देख कौन आया है.’’

थोड़ी ही देर में चंपा उस के पास आ कर बोली, ‘‘बाईजी, कोई तरुण आए हैं.’’

‘‘तरुण….’’ वह हतप्रभ रह गई. शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. उस ने फिर पूछा, ‘‘तरुण कि अरुण…’’

‘‘कुछ ऐसा ही नाम बताया बाईजी.’’

वह ‘उफ’ कर रह गई. लंबी आह भर कर उस ने सोचा, बड़ा अंतर है तरुण व अरुण में. एक वह जो उस के रोमरोम में समाया हुआ है और दूसरा वह जो बिलकुल अनजान है….फिर सोचा, अरुण ही होगा. तरुण नाम का कोई व्यक्ति तो उसे जानता ही नहीं. यह खयाल आते ही उस का रोमरोम पुलकित हो उठा. तुरंत हाथ धो कर वह दौड़ती हुई बाहर पहुंची, देखा तो अरुण नहीं था.

‘‘आप अर्पणा हैं न?’’ आने वाले पुरुष के शब्द उस के कानों में पडे़.

‘‘जी…’’

‘‘मैं अरुण का दोस्त हूं तरुण.’’

मन में तो उस के आया, कह दे कि तुम ने ऐसा नाम क्यों रखा, जिस से अरुण का भ्रम हो लेकिन प्रत्यक्ष में होंठों पर मुसकराहट बिखेरते हुए बोली, ‘‘आइए, अंदर बैठिए…चाय तो लेंगे,’’ और बिना उस के जवाब की प्रतीक्षा किए अंदर चली गई.

चाय की केतली गैस पर रखी तो यादों का उफान फिर उफन गया. कैसा होगा अरुण….उसे याद करता भी है…जरूर करता होगा, तभी तो उस ने अपने दोस्त को भेजा है. कोई खबर तो लाया ही होगा…तभी चाय उफन गई. उस ने जल्दी गैस बंद की और चाय ले कर बैठक में आ गई.

‘‘आप ने व्यर्थ कष्ट किया. मैं तो चाय पी कर आया था.’’

‘‘कष्ट कैसा, आप पहली बार तो मेरे घर आए हैं.’’

तरुण चुपचाप चाय की चुस्कियां भरने लगा. उस की खामोशी अपर्णा को अंदर से बेचैन कर रही थी कि कुछ बताए भी…कैसा है अरुण? कहां है? कैसे आना हुआ?

यही हाल तरुण का था, बोलने को बहुत कुछ था लेकिन बात कहां से शुरू की जाए, तरुण कुछ सोच नहीं पा रहा था. आखिर अपर्णा ने ही खामेशी तोड़ी, ‘‘अरुण कैसे हैं? ’’

‘‘उस का एक्सीडेंट हो गया है….’’

‘‘क्या?’’ अपर्णा की चीख ही निकल गई.

‘‘अभी 2 हफ्ते पहले वह फैक्टरी से घर जा रहा था कि अचानक उस की कार के सामने एक बच्चा आ गया. बच्चे को बचाने के लिए उस ने जैसे ही कार दाईं ओर मोड़ी कि उधर से आते ट्रक से एक्सीडेंट हो गया.’’

‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’

‘‘बड़ा भयंकर एक्सीडेंट था. उसे देख कर रोंगटे खडे़ हो गए थे. ट्रक से टकरा कर कार नीचे खड्डे में जा गिरी थी. पेट में गहरा घाव है. सिर किसी तरह बच गया पर अभी भी बेहोशी छाई रहती है.’’

‘‘मुझे खबर नहीं दी?’’

‘‘खबर कौन देता? अरुण के डैडी को आप के नाम से चिढ़ है. अरुण पर उन्होंने कितनी बंदिशें नहीं लगाईं, कितनी डांट उसे नहीं पिलाई, फिर भी वह आप को नहीं भुला सका. रातरात भर आप की याद में तड़पता रहा. आप को तो पता ही होगा कि ठाकुर साहब अरुण की शादी टीकमगढ़ के राजघराने में करना चाहते थे. बात भी तय हो गई थी लेकिन अरुण ने साफ मना कर दिया. ठाकुर साहब का पारा चढ़ गया. उन्होंने छड़ी उठा ली और उसे भयंकर ढंग से पीटा लेकिन उस ने ‘उफ’ तक न की.

‘‘यह देख कर भी ठाकुर साहब अपनी जिद पर अटल रहे. लोगों ने उन्हें बहुत समझाया कि बेटे की शादी उस की मरजी से कर दें लेकिन वे सहमत नहीं हुए और एक दिन उन्होंने यहां तक कह दिया कि अरुण ने उन की मरजी के बगैर शादी की तो वे अपने आप को गोली मार लेंगे.

‘‘अरुण इस बात से डर गया. वह आप को खत भी न लिख सका क्योंकि वह जानता था कि डैडी अपने वचन के पक्के हैं. यदि ऐसा हो गया तो वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. दिन ब दिन उस की हालत पतली होती गई. वह आप के गम में आंसू बहाता रहा. उस दिन अस्पताल में अचेतावस्था में उस के होंठों पर जब मैं ने आप का नाम सुना तो मुझे लगा कि आप ही उसे मौत के मुंह से बचा सकती हैं. मेरे दोस्त को बचा लीजिए,’’ इतना कहते ही उस का गला रुंध गया. आंखें छलछला आईं.

इस दुखद वृत्तांत ने अपर्णा का अंतस बेध दिया. वह गहरीगहरी सांसें भरने लगी. मन में धुंधली यादें ताजा हो आईं, अतीत कचोट गया. किन कठिन परिस्थितियों में उसे घर छोड़ना पड़ा, रिश्तेदारों से नाता तोड़ना पड़ा और परिचितों, सहेलियों से मुख मोड़ना पड़ा. कहांकहां नहीं भटकी वह, लेकिन अरुण की याद भुला न सकी. प्रेम का दीपक उस के अंदर सदैव जलता रहा और आज वह उस से अलग होना चाहता है, नहीं वह ऐसा कभी भी नहीं होने देगी. यदि उसे अपने जीवन की कुरबानी भी देनी पडे़ तो वह देगी.

बेशक, उस की शादी अरुण से नहीं हो सकी, लेकिन उस के नाम के साथ उस का नाम जुड़ा तो है. यह सोचते ही उस की आंखें छलछला आईं.

तभी खामोशी को तोड़ता हुआ तरुण बोला, ‘‘अच्छा अपर्णाजी, चलता हूं. आज ही शाम को छतरपुर जाना है, आप तैयार रहिएगा.’’

वह चुप ही रही…‘हां’, ‘न’ उस के मुख से कुछ नहीं निकल सका और तरुण हवा के तेज झोंके सा बाहर निकल गया. अतीत की परछाइयों ने फिर उसे समेट लिया. एकएक लम्हा उसे कुरेदता गया.

कालिज के दिनों में उस का साथ अरुण से हुआ था. अरुण उस की कक्षा का मेधावी छात्र था. दोनों की सीट पासपास थीं इसलिए उन में अकसर किसी विषय पर बहस हो जाया करती थी. अरुण के तर्क इतने सटीक होते थे कि वह परास्त हो जाती. हार की पीड़ा उस के अंदर छटपटाती रहती. वह पूरी कोशिश कर मंजे तर्क उस के सामने रखती, लेकिन वह उतनी ही कुशलता से उस के तर्क काट देता. तर्कवितर्क का यह सिलसिला प्रेम में परिणीत हो गया. दोनों घंटों बातों में मशगूल रहते और अपने प्रेम के इंद्रधनुषी पुल बनाते. कालिज के कैंपस से ले कर चौकचौराहों तक यह प्रेमजोड़ी चर्चित हो गई.

अपर्णा के पिता हरिशंकर उपाध्याय धार्मिक विचारों के थे, वे अध्यापक थे. उन के एक ही संतान थी अपर्णा और उसे वह उच्च से उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन बेटी के जमाने के साथ बदलते रंगों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया.

उन्होंने अपर्णा को समझाते हुए कहा, ‘बेटी अपनी सीमा में रहो, जैसे इस परिवार की लड़कियां रही हैं. तुम्हारा इस तरह ठाकुर के लड़के के साथ घूमना मुझे बिलकुल पसंद नहीं.’

‘पिताजी, मैं उस से शादी करना चाहती हूं,’ अपर्णा ने जवाब दिया.

‘चुप नादान, तेरा रिश्ता उस से कैसे हो सकता है? वह क्षत्रिय है, हम ब्राह्मण हैं.’

‘लेकिन पिताजी, वह मुझ से शादी करने को तैयार है.’

‘उस के मानने से क्या होगा? जब तक कि उस के परिवार वाले न मानें. वह बहुत बडे़ आदमी हैं बेटी, उन्हें यह रिश्ता कभी मंजूर नहीं होगा.’

‘तब हम कोर्ट में शादी कर लेंगे.’

‘चुप बेशर्म,’ वह गुस्से से आगबबूला हो गए, ‘जा, चली जा मेरी आंखों के सामने से, वरना…. ’

यही हाल अरुण का था. जब उस के डैडी सूर्यभान सिंह को इस बात का पता चला तो वे क्रोध से पागल हो गए. यह उन के लिए बरदाश्त से बाहर था कि उन का लड़का एक मामूली पंडित की लड़की से प्यार करे. उन्होंने पहले अरुण को बहुत समझाया लेकिन जब उन की बात का उस पर कुछ असर नहीं हुआ तो उन्होंने दूसरा गंभीर उपाय सोचा.

वह सीधे हरिशंकर उपाध्याय के पास पहुंचे जो उस समय बरामदे में बैठे स्कूल का कुछ काम कर रहे थे. ठाकुर साहब को देखते ही वह हाथ जोड़ कर खडे़ हो गए.

‘हां, तो पंडित हरिशंकर, यह मैं क्या सुन रहा हूं?’ अपनी जोरदार आवाज में ठाकुर साहब ने कहा.

‘बहुत ख्वाब देखने लगे हो तुम.’

‘जी ठाकुर साहब, मैं समझा नहीं.’

‘अच्छा, तो तुम्हें यह भी बताना पडे़गा. जिस बात को पूरा कसबा जानता है उस से तू कैसे अनजान है. देखो पंडित, अपनी लड़की को समझाओ कि वह मेरे बेटे से मिलना छोड़ दे वरना मैं तुम बापबेटी का वह हाल करूंगा जिस की तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो.’

‘ठाकुर साहब, यह क्या कह रहे हैं आप….मैं आज ही उस की खबर लेता हूं. माफ करें….माफ करें.’

ठाकुर साहब के कडे़ प्रतिबंध के बाद भी अरुण अपर्णा से छुटपुट मुलाकात करने में सफल हो जाता जिस की भनक किसी न किसी तरह ठाकुर सूर्यभान को लग ही जाती और वे गुस्से से भिनभिना उठते.

उन्होंने दूसरा उपाय सोचा, क्यों न हरिशंकर का तबादला छतरपुर से कहीं और करा दिया जाए. और यह कार्य वहां के विधायक से कह कर करवा दिया. इधर पंडित हरिशंकर घबरा गए थे. तबादले का जैसे ही उन्हें आदेश मिला फौरन छतरपुर छोड़ दतिया आ गए. अपर्णा को भी पिताजी के साथ आना पड़ा.

वह दिन अपर्णा के जीवन का सब से बोझिल दिन था, जब बिना अरुण से मिले उसे दतिया आना पड़ा. जुदाई के सौसौ तीर उस के दिल में चुभ गए थे. अरुण का घर से निकलना बंद था. वह जातेजाते एक बार मिल लेना चाहती थी. लेकिन उस की हर कोशिश नाकाम हुई. एक यही दुख उसे लगातार पूरी यात्रा सालता रहा.

पिताजी के साथ अपर्णा चली तो आई लेकिन अरुण को भुला न सकी. दतिया आए अब 1 साल हो गया था. उस दौरान अरुण की उसे कोई खबर नहीं मिली. पढ़ाई भी उस की बंद हो गई. पिताजी को उस की शादी करने की जल्दी थी. मास्टर हरिशंकर ने एक अच्छा घर देख कर अपर्णा की सगाई बिना उस से पूछे ही कर दी. यह पता चलते ही उस ने शादी करने से इनकार कर दिया कि वह शादी करेगी तो सिर्फ अरुण से.

यह सुन कर पिताजी उस पर बरस पडे़, ‘‘तेरी ही वजह से मुझे छतरपुर छोड़ कर दतिया आना पड़ा है फिर भी तू अरुण के नाम की माला जप रही है. कितना सताएगी मुझे. भला इसी में है कि तू घर छोड़ कर कहीं निकल जा.’’

‘ऐसा मत कहिए पिताजी, अपर्णा गिड़गिड़ा पड़ी, समझने की कोशिश कीजिए.’

‘मुझे कुछ नहीं समझना. अगर तू यहां से नहीं जाएगी तो मैं ही चला जाता हूं, ले रह तू यहां….’

आखिर दिल के हाथों मजबूर हो कर अपर्णा ने वह घर त्याग दिया और अपनी सहेली नीता के पास भिंड चली आई. नीता की मदद से उसे भिंड में नौकरी मिल गई. खानेपीने का जरिया हो गया. किराए पर मकान ले लिया. इसी बीच उस के पास शादी के कई प्रस्ताव आए लेकिन उस ने सब को ठुकरा दिया.

वह दिन याद आते ही उस की आंखें डबडबा आईं, ‘‘समाज की यह कैसी रूढि़यां हैं कि आदमी अपना मनपसंद साथी भी नहीं ढूंढ़ सकता? वंश परिवार की परंपराएं उस पर थोप दी जाती हैं. वहां आदमी टूटेगा नहीं तो क्या जुडे़गा?’’

आज अरुण की दुर्घटना की खबर ने उसे बेचैन ही कर दिया. वह नदी के किनारे पड़ी मछली सी फड़फड़ा गई. शाम को जब तरुण आया तो वह जाने को पूरी तरह तैयार बैठी थी, इस समय तक उस ने अपनी मानसिक स्थिति संभाल ली थी.

छतरपुर पहुंचते ही अपर्णा सीधे अस्पताल पहुंची. एक वार्ड में अरुण बेड पर मूर्छित पड़ा था. खून की बोतल लगी थी. हाथपैरों में प्लास्टर बंधा था. दोस्त, परिजन, रिश्तेदार उसे घेर कर खडे़ थे. डाक्टर उपचार में लगा था. उसे समझते देर न लगी कि अभी जरूर कोई गंभीर दौर गुजरा है क्योंकि सभी के चेहरे उदास थे.

ठाकुर सूर्यभान सिंह सिर नीचे झुकाए खडे़ थे. यद्यपि वह एक नजर उस पर डाल चुके थे. आज उसे उन से डर नहीं लगा था. डाक्टर के चेहरे से मायूसी साफ झलक रही थी. सभी की निगाहें उन पर टिक गईं.

‘‘इंजेक्शन दे दिया है. 10 मिनट में होश आ जाना चाहिए,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, कुछ मिनट होश में रहता है फिर बेहोश हो जाता है,’’ ठाकुर साहब व्यग्रता से बोले.

‘‘देखिए, मैं तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं. आप मरीज को खुश रखने की कोशिश कीजिए….कोई गहरा आघात पहुंचा है, जिस की याद आते ही उसे बेहोशी छा जाती है. वैसे ंिचंता की बात नहीं. इस रोग पर काबू पाया जा सकता है,’’ इतना कह कर डाक्टर नर्स के साथ चले गए.

मौत सा सन्नाटा छा गया. किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था. तभी तरुण अपर्णा की ओर देख कर बोला, ‘‘आप कोशिश कीजिए, शायद होश आए. एक हफ्ते से यह इसी तरह पड़ा है. होश में आने पर भी किसी से एक शब्द नहीं बोलता.’’

यह सुनते ही अपर्णा निडर हो कर अंदर गई और अरुण के पास पहुंच कर बोली, ‘‘अरुण, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी, यहीं रहूंगी तुम्हारे पास.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो….कोई दूसरा घर बसा लिया….शादी कर ली?’’

‘‘अरुण क्या कहते हो? किस ने कहा तुम से यह….मुझ पर विश्वास नहीं?’’

‘‘विश्वास तो था लेकिन….’’

‘‘कैसी बात करते हो? मैं तुम्हें कैसे समझाऊं? तुम्हारे नाम के अलावा कोई दूसरा नाम मेरे होंठों पर कभी नहीं आया. मेरी आंखों में आंखें डाल कर देखो, सच क्या है तुम्हें पता चल जाएगा,’’ इतना कह कर अपर्णा फूटफूट कर रो पड़ी.

अरुण कुछ क्षण उसे देखता रहा, फिर आह कर उठा. उसे लगा जैसे उस के अंदर हजारों शूल एकसाथ चुभ गए हों.

‘‘अपर्णा….’’ वह गहरी निश्वास भरता हुआ बोला, ‘‘धोखा…विश्वासघात हुआ मेरे साथ…क्या समझ बैठा मैं तुम्हें…सोच भी नहीं सकता, तुम्हारे पिताजी ने यह झूठ मुझ से क्यों बोला?’’

कुछ क्षण अंदर ही अंदर वह सुलगती रही, फिर सोचा इस से तो काम नहीं चलेगा, उसे अगर अरुण को पाना है तो डट कर आगे आना होगा,’’

इस विचार के आते ही वह दृढ़ता से बोली, ‘‘अब मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगी अरुण, तुम्हारे पास रहूंगी. देखती हूं कौन मुझे हटाता है.’’

तभी अरुण के सीने में भयंकर दर्द उठा और वह कराह उठा, उस के हाथपैर मछली से फड़फड़ा गए. लोग डाक्टर को बुलाने दौडे़…अरुण हांफता हुआ बोला, ‘‘बहुत देर हो गई अपर्णा, अब मैं नहीं बचूंगा….मुझे माफ…’’ और यहीं उस के शब्द अटक गए. आंखें खुली रह गईं… चेहरा एक तरफ लुढ़क गया. यह देख अपर्णा की चीख ही निकल गई.

उसे जब होश आया तो देखा ठाकुर साहब और 2-3 लोग उस के पास खडे़ थे. अरुण के शरीर को स्ट्रेचर पर रखा जा रहा था. वह तेजी से स्ट्रेचर की तरफ लपक कर बोली, ‘‘इन्हें मत ले जाओ. मैं भी इन के साथ जाऊंगी.’’

ठाकुर साहब अपर्णा को पकड़ते हुए बोले, ‘‘यह क्या कह रही हो अपर्णा? पागल हो गई हो…’’

वह शेरनी सी दहाड़ उठी, ‘‘पागल तो आप हैं, इन्हें पागल बना कर मार दिया, अब मुझे पागल बना रहे हैं. मुझे आप की कृपा की जरूरत नहीं ठाकुर सूर्यभान सिंह. आप ने भले ही मुझे अपने घर की बहू नहीं बनने दिया, लेकिन विधवा बनने से आप मुझे नहीं रोक सकते.’’

वह और जोर से सिसक पड़ी, ‘‘काश, मौत कुछ क्षण ठहर जाती तो वह मांग में सिंदूर तो लगा लेती?’’ आज इस स्थिति में, कुछ पोंछने को भी उस के पास नहीं था. सबकुछ पहले से ही सूनासूना था….

Sad Story: दुर्घटना- क्या हुआ था समीर और शालिनी के साथ

Sad Story: समीर रोज की तरह घर से निकला और कुछ दूर खड़ी शालिनी को अपनी कार में बिठा लिया. दोनों एक निजी शिक्षा संस्थान में होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहे थे. साथ पढ़ते थे इस कारण मित्रता भी हो गई थी.

कार अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी कि अचानक चौराहे के पास जमा भीड़ के कारण समीर को ब्रेक लगाने पड़े. उतर कर देखा तो एक आदमी घायल पड़ा था. लोग तरहतरह की बातें और बहस तो कर रहे थे लेकिन कुछ करने की पहल किसी ने नहीं की थी. खून बहुत बह रहा था.

‘‘मैं देखती हूं, शायद कोई अस्पताल पहुंचा दे,’’ शालिनी ने भीड़ के अंदर घुसते हुए कहा.

‘‘आप लोग कुछ करते क्यों नहीं,’’ शालिनी ने क्रोध से कहा, ‘‘कितना खून बह रहा है. बेचारा, मर जाएगा.’’

‘‘आप ही क्यों नहीं कुछ करतीं,’’ एक युवक ने कहा, ‘‘हमें पुलिस के लफड़े में नहीं पड़ना.’’

‘‘तो यहां क्यों खड़े हैं,’’ शालिनी ने प्रताड़ना दी, ‘‘अपने घर जाइए.’’

‘‘चले जाएंगे, तुम्हारा क्या बिगाड़ रहे हैं,’’ युवक ने धृष्टता से कहा और चल दिया.

धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी और शालिनी अपनेआप को लाचार समझने लगी.

‘‘समीर, इसे अस्पताल पहुंचाना होगा,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘बेकार में झंझट मोल मत लो,’’ समीर ने कहा, ‘‘पुलिस को फोन कर के चलना ठीक रहेगा. क्लास के लिए भी तो देर हो रही है.’’

‘‘नहीं, समीर, ऐसा है तो तुम जाओ,’’ शालिनी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘पुलिस को फोन कर देना. तब तक मैं यहां खड़ी हूं.’’

समीर समझ गया कि शालिनी को इंसानियत का दौरा पड़ गया है. उसे अकेला छोड़ कर चले जाना कायरता होगी.

‘‘चलो, इसे कार में डालते हैं,’’ समीर ने कहा, ‘‘किसी की मदद लेनी होगी क्योंकि तुम्हारे बस का नहीं है इसे उठाना.’’

बचेखुचे कुछ लोगों में से 2 आदमी बेमन से मदद करने को तैयार हुए. उन्होंने बड़ी कठिनाई से उसे उठा कर कार की पिछली सीट पर लिटाया और जाने लगे.

समीर ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘भाई साहब, जरा अपना नाम, पता व फोन नंबर तो देते जाइए.’’

‘‘आज के लिए इतना काफी है,’’ कह कर दोनों चल दिए. अब कोई दर्शक नहीं था.

कुछ ही दूरी पर नर्सिंगहोम था. वहां पहुंच कर समीर ने दुर्घटना की जानकारी दी और घायल आदमी का इलाज करने को कहा. नर्सिंगहोम ह्वह्य आशा के विपरीत घायल को हाथोंहाथ लिया और तुरंत आपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया.

नर्सिंगहोम के सुपुर्द कर के जैसे ही दोनों जाने लगे कि एक डाक्टर ने उन्हें रोक लिया.

‘‘खेद है, अभी आप नहीं जा सकते,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘पुलिस के आने तक आप को इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि पुलिस के सामने आप को अपना बयान देना होगा.’’

‘‘लेकिन हम ने तो कुछ नहीं किया,’’ शालिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘इस आदमी को केवल यहां पहुंचाने की गलती की है.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ डाक्टर मुसकराया, ‘‘लेकिन हमें तो कानून के हिसाब से चलना पड़ता है. थोड़ा रुकिए, पुलिस आती ही होगी. आप ने अपना काम किया और हम अपना काम कर रहे हैं… इंसानियत के नाते.’’

मजबूर हो कर दोनों को रुकना पड़ा. आज तो क्लास नहीं कर पाएंगे.

कुछ ही देर में 2 पुलिस वाले आ गए. पूरे विस्तार से जानकारी ली. नाम, पता, फोन नंबर व आप

से रिश्ता भी डायरी में लिखा.

‘‘आप घायल को जानते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ समीर ने कहा, ‘‘पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘दुर्घटना के बारे में और क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ शालिनी ने कहा, ‘‘यह सड़क पर घायल पड़ा था. भीड़ तो जमा थी पर कोई कुछ कर नहीं रहा था. हम लोगों ने इसे उठा कर यहां पहुंचा दिया, बस.’’

‘‘यह तो आप ने बहुत अच्छा किया,’’ इंस्पेक्टर मुसकराया, ‘‘कौन करता है किसी अनजान के लिए.’’

‘‘हम जा सकते हैं?’’ समीर ने धीरज खो कर पूछा.

‘‘अभी नहीं,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘अपने बयान को पढि़ए और फिर अपनी चिडि़या बिठाइए.’’

‘‘चिडि़या?’’ शालिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मेरा मतलब हस्ताक्षर से है,’’ इंस्पेक्टर हंसा.

उसी समय नर्स ने बाहर आ कर घायल के पास से जो कुछ मिला था इंस्पेक्टर के सामने रख दिया. इंस्पेक्टर ने गहराई से सामान को देखा. शायद नाम, पता आदि मिले तो इस के रिश्तेदारों को खबर दी जा सकती है.

घायल का नाम सुमेर स्ंिह था और वह इलाज के लिए पास के गांव से आया था. रुक्मणी देवी अस्पताल की परची थी. वहां फोन किया, अधिक जानकारी नहीं मिली. गांव के 2-3 फोन नंबर थे. इंस्पेक्टर ने फोन लगाया. 2 जगह तो घंटी बजती रही. किसी ने नहीं उठाया. तीसरी जगह फोन करने पर बहुत देर बाद किसी ने उठाया.

‘‘हैलो,’’ उधर से एक महिला ने कहा.

‘‘मैं इंस्पेक्टर भूपलाल दिल्ली से बोल रहा हूं,’’ इंस्पेक्टर ने रोब से कहा.

महिला के स्वर में डर था, ‘‘जी, ये तो घर में नहीं हैं. थोड़ी देर बाद फोन कीजिए.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ कह कर इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘आप किसी सुमेर स्ंिह को जानती हैं?’’

‘‘सुमेर सिंह?…ओह, सुमेर, हां, मेरे गांव का है. 8-10 मकान छोड़ कर रहता है,’’ महिला ने कहा, ‘‘सुना है, इलाज के लिए दिल्ली गया है.’’

‘‘वह बहुत गंभीर रूप से घायल है,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘उस के घर से किसी को बुलाइए.’’

‘‘वह तो अकेला रहता है,’’ महिला ने कहा, ‘‘उस की घरवाली तो छोड़ कर चली गई है.’’

‘‘तो कोई और रिश्तेदार होगा,’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘हां, चाचावाचा हैं,’’ महिला ने कहा.

‘‘तो उन्हीं को बुलाओ,’’ इंस्पेक्टर ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं 15 मिनट बाद फिर फोन करूंगा.’’

इंस्पेक्टर ने समीर और शालिनी को रोक रखा था. देर तो हो ही गइर््र थी, इन्हें अब यह भी कौतूहल था कि बेचारा बचेगा भी या नहीं.

नर्सिंगहोम की कैंटीन में चायनाश्ते के बाद इंस्पेक्टर ने फिर फोन मिलाया.

‘‘जी सर,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘कौन बोल रहा है? सुमेर का चाचा?’’ इंस्पेक्टर ने कड़क स्वर में पूछा.

‘‘जी, मैं चाचा तो हूं, लेकिन सगा नहीं,’’ चाचा ने सहम कर कहा.

‘‘ठीक है, तुम कुछ तो हो,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘यहां नर्सिंगहोम का पता लिखो और फौरन बस पकड़ कर चले आओ. सुमेर स्ंिह घायल है.’’

‘‘तो हम क्या करेंगे?’’ चाचा ने हकला कर कहा.

‘‘तुम तीमारदारी करोगे और इलाज का खर्च उठाओगे,’’ इंस्पेक्टर ने डांट कर कहा, ‘‘अगर नहीं आए तो अंदर कर दूंगा.’’

इंस्पेक्टर की घुड़की खा कर चाचा और उस का बेटा 2 घंटे के भीतर पहुंच गए. वे सुमेर स्ंिह की गंभीर हालत देख कर डर गए.

‘‘हमें क्या करना है?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘तुरंत खून की 2 बोतलों का इंतजाम करो,’’ नर्स ने कहा, ‘‘यह दवाएं लिख दी हैं. इन्हें ले कर आओ. हां, देर मत करना…और हां, यह फार्म है, इस पर अपने हस्ताक्षर कर दो.’’

‘‘मैं क्यों दस्तखत करूं?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘अरे, कोई तो जिम्मेदारी लेगा,’’ नर्स ने डांट कर कहा, ‘‘जल्दी करो.’’

‘‘पहले दवा ले आते हैं,’’ चाचा ने कहा और अपने बेटे के साथ चला गया.

इस के बाद वे लौट कर नहीं आए. फोन करने पर पता लगा उन के घर पर ताला लगा है.

इधर समय निकलता देख नर्स ने समीर से कहा, ‘‘आप ही कोई बंदोबस्त कीजिए.’’

शालिनी और समीर दोनों उलझन में पड़ गए. अचानक घायल को बेसहारा देख पीछा छुड़ाने का मन नहीं हुआ. पास ही रेडक्रास का ब्लड बैंक था. दोनों ने अपनेअपने पर्स निकाले और रुपए गिने. दवाओं के पैसे भी देने थे. फिलहाल काम चल जाएगा. नर्स को अस्पताल से खून व दवा देने का आदेश दे कर ब्लड बैंक चले गए.

ब्लड बैंक ने खून देने से पहले इन दोनों के खून की जांच की और रक्तदान करने के लिए कहा. यह दान उन्होंने खुशी से दिया और अस्पताल पहुंच गए.

‘‘अब कैसी हालत है सुमेर स्ंिह की?’’ शालिनी ने नर्स से पूछा.

‘‘बचने की उम्मीद कम है.’’

नर्स ने कहा.

सुन कर दोनों को बहुत बुरा लगा. कुछ देर बैठे और फिर घर चले गए.

अगले दिन समीर को शालिनी ने फोन किया, ‘‘क्या उसे देखने जाओगे?’’

‘‘कोई फैसला नहीं ले पा रहा हूं,’’ समीर ने कहा, ‘‘पता नहीं क्या मुसीबत मोल ले ली.’’

‘‘अगर जाओ तो मुझे बता देना, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

समीर कुछ पहले आ गया और नर्सिंगहोम के सामने रुका. अंदर जाए या नहीं? बेचारा.

‘‘सिस्टर, कैसा है मरीज?’’ समीर ने पूछा.

नर्स ने सिर हिलाया और मुंह बिचका दिया.

फोन करने पर शालिनी ने कहा, ‘‘तुम वहीं रुको, मैं आ रही हूं.’’

अनजान ही सही, इतना कुछ करने के बाद थोड़ाबहुत लगाव तो हो ही जाता है. शालिनी आई और ताजा जानकारी इस तरह से ली मानो मरीज कोई परिचित था. लगभग 1 घंटे बाद नर्स ने सूचना दी कि सुमेर स्ंिह को डाक्टर बचा नहीं सके. उस के अंतिम संस्कार का प्रबंध करें. लाश को कुछ घंटे ही रखा जा सकता था. दोनों स्तब्ध रह गए. ऐसा काम तो उन्होंने आज तक नहीं किया था. दोनों बहुत दुखी थे.

नर्सिंगहोम से एक ऐसी संस्था कापता लिया जो लावारिस लाशों का दाहसंस्कार किया करती है. फोन कर के समीर ने सारी जिम्मेदारी संस्था को सौंप दी.

उदासी ऐसी थी कि आज कोर्स में जाने का मन नहीं हुआ. एक रेस्तरां में बैठ कर दोनों ने कौफी का आर्डर दिया.

दोनों के मुंह उदासी से लटके हुए थे. मरने वाले सुमेर सिंह से न कोई रिश्ता था न ही कोई संबंध, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो कोई आत्मीय जन अब इस दुनिया में नहीं रहा.

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Love Story in Hindi: धुंधली सी इक याद- राज और ईशा के कैसे थे संबंध

Love Story in Hindi: ‘‘बोलो न राज… एक बार मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं. कहो न कि तुम्हें मुझ से प्यार है,’’ ईशा ने राज के गले में बांहें डालते हुए कहा.

‘‘हां, मुझे तुम से और सिर्फ तुम से प्यार है. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. तुम परी हो, अप्सरा हो और न जाने क्याक्या हो… हो गया या और भी कोई डायलौग सुनने को बाकी है?’’ राज ने मुसकराते हुए पूछा.

ईशा भी मुसकराते हुए बोली, ‘‘हुआ… हुआ… अब आया न मजा.’’

राज और ईशा एकदूसरे को 8 सालों से जानते थे. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. वहीं दोनों के प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था. दोनों साथ घूमतेफिरते और अपनी पढ़ाई का भी ध्यान रखते. ईशा अमीर मातापिता की इकलौती संतान थी. उसे पैसे की नहीं सच्चे प्यार की तलाश थी और राज को पा कर वह धन्य हो गई थी. बस अब उसे इंतजार था कि कब राज की प्रमोशन हो और वह अपने मातापिता को राज के बारे में सब कुछ बता सके.  वैसे तो राज एक बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम करता था. लेकिन ईशा चाहती थी कि राज की एक प्रमोशन और हो जाए ताकि वह अपने पिता से शान से कह सके कि उस ने राज को जीवनसाथी के रूप में चुना है. बस 1 महीने का और इंतजार था.

जैसे ही राज को प्रमोशन लैटर मिला,  ईशा ने खुशी से उसे बधाई देते हुए कहा, ‘‘बस राज मैं आज ही पापा से तुम्हारे बारे में बात  करती हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि पापा तुम्हें बहुत पसंद करेंगे.’’  जब ईशा रात का खाना खाने अपने परिवार के साथ बैठी तो उस ने धीरे से कहा, ‘‘पापा, मैं आप को एक खुशखबरी देना चाहती हूं. मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है.’’

उस के पिता ने भी बड़े आश्चर्य से पूछा, ‘‘अच्छा, कौन है वह?’’

ईशा चहकते हुए बोली, ‘‘पापा वह राज है. आप कहें तो मैं कल उसे डिनर के लिए बुला लूं ताकि आप और मम्मी उस से मिल सकें?’’

ईशा के पिता ने झट से हामी भर दी. अगले दिन राज ईशा के घर में था. उस से मिल कर ईशा के पिता बोले, ‘‘हमें गर्व है अपनी बेटी की पसंद पर. हमें तुम से यही उम्मीद थी ईशा. तुम इतनी पढ़ीलिखी और समझदार हो कि तुम्हारी पसंद में तो हम कोई कमी निकाल ही नहीं सकते.’’

फिर अगले संडे को ईशा के मातापिता ने राज के मातापिता से मिल दोनों के रिश्ते की बात की.  बात ही बात में राज के पिता ने ईशा के पिता से कहा, ‘‘हमें ईशा बहुत पसंद है, किंतु हम आप को एक बात साफ बता देना चाहते हैं कि राज हमारा अपना बच्चा नहीं, इसे हम ने गोद लिया था. लेकिन हम ने इसे पालापोसा अपने बच्चे की तरह ही है. हमारी अपनी कोई संतान न थी. लेकिन हम यकीन दिलाते हैं कि हम ईशा को भी बड़े ही प्यार से रखेंगे.’’  राज के पिता का व्यवहार और कारोबार बहुत अच्छा था. अत: ईशा के पिता को इस रिश्ते पर कोई ऐतराज नहीं था. फिर क्या था. एक ही महीने में राज व ईशा की सगाई व शादी हो गई. ईशा दुलहन बनी बहुत ही सुंदर लग रही थी. कालेज के दोस्त व सहेलियां भी उन की शादी में उपस्थित थे. उन में से कुछ की शादी हो चुकी थी और कुछ तैयारी में थे. सभी राज व ईशा को बधाई दे रहे थे. विदाई की रस्म पूरी हुई और ईशा राज के घर आ गई. राज के मातापिता भी चांद सी बहू पा कर बहुत खुश थे.

आज राज व ईशा की पहली रात थी. उन का कमरा फूलों से सजाया गया था.  पलंग पर हलके गुलाबी रंग की चादर पर गहरे गुलाबी रंग की पंखुडि़यों को दिल के आकार में सजाया गया था. पूरा कमरा गुलाब की खुशबू से महक रहा था. उस पर सजीधजी ईशा इतनी खूबसूरत लग रही थी कि चांद की चमक भी फीकी पड़ जाए. रोज सलवारकुरता और जींसटौप पहनने वाली ईशा दुलहन बन इतनी सुंदर लगी कि राज के मुंह से निकल ही गया, ‘‘जी चाहता है इतने सुंदर चेहरे को आंखों में भर लूं और हर पल नजारा करूं.’’ ईशा शरमा कर राज की बांहों में समा गई.  अगली सुबह ईशा नहाधो कर हलके नीले रंग की साड़ी पहने किसी परी सी लग रही थी. सुबह से ही उस की सहेलियों के फोन आने शुरू हो गए. सब चुटकियां लेले पूछ रही थीं, ‘‘कैसी रही पहली रात ईशा?’’  उस का पूरा दिन इन चुहलबाजियों में ही बीत गया. ईशा भी सब को हंस कर एक ही जवाब देती, ‘‘अच्छी रही, वंडरफुल.’’

खैर, 1 महीना बीत गया और दोनों का हनीमून भी खत्म हुआ. अब राज को 1 महीने की छुट्टी के बाद दफ्तर जाना था. दफ्तर जाते ही सभी पुराने दोस्तों का भी वही सवाल था कि कैसा रहा हनीमून और जवाब में राज भी मुसकरा कर बोला कि अच्छा रहा.  दिन तेजी से बीत रहे थे. हर शाम ईशा सजीधजी राज के घर आने का इंतजार करती. रात को खाना खा कर दोनों छत पर लगे झूले में बैठ कर चांदनी रात में तारों को निहारा करते. प्यार की बातों में कब आधी रात हो जाती उन्हें मालूम ही न पड़ता. राज के मातापिता भी ईशा से बहुत खुश थे. उस के आने से घर की रौनक बढ़ गई थी. सारा काम नौकरचाकर करते, लेकिन ईशा राज की मां और स्वयं की थाली खुद ही लगाती. राज की मां के साथ ही खाना खाती.  1 साल बीत गया. अब राज की मां ईशा से कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम ने इस सूने घर में रौनक ला दी. बेटी अब इस घर में 1 बच्चा आ जाए तो यह रौनक 4 गुना बढ़ जाए.’’

ईशा भी कहती, ‘‘जी मम्मी, आप ठीक कह रही हैं.’’

जब कभी खाने के समय राज भी साथ होता तो यही बात मां राज से भी कहतीं.  राज कहता, ‘‘हो जाएगा मम्मी. इतनी भी क्या जल्दी है?’’

ऐसा चलते 1 साल और बीत गया. अब ईशा भी राज से कहने लगी, ‘‘राज, मैं तुम से एक बात पूछना चाहती हूं. तुम बुरा न मानना और मुझे गलत न समझना… तुम्हें क्या हो जाता है राज… तुम मुझ से प्यार की बातें करते हो, मुझे चूमते हो, मुझे बांहों में लेते हो, लेकिन वह क्यों करते नहीं जो एक बच्चा पैदा करने के लिए जरूरी है? हमारी शादी को 2 साल हो गए, लेकिन हम अभी कुंआरों की जिंदगी ही जी रहे हैं.’’  राज ने भी सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां, तुम ठीक कहती हो.’’

आज ईशा बहुत खुश थी. शादी के 2 साल बाद उस ने राज से अपने मन की बात कही और राज ने उसे स्वीकार भी किया. वह रात को गुलाबी रंग की नाइटी पहन और पूरे कमरे को खुशबू से तैयार कर स्वयं भी तैयार हो गई. राज भी उसे देख कर बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम इस गुलाबी नाइटी में खिले कमल सी लग रही हो,’’ और फिर वह उस के गालों, माथे, होंठों को चूमने लगा. फिर न जाने उसे क्या हुआ वह ईशा से दूर होते हुए बोला, ‘‘ईशा, चलो सो जाते हैं, फिर कभी.’’  राज के इस व्यवहार से ईशा तो उस मोर समान हो गई जो बादल देख कर अपने  पंखों को पूरा गोल फैला कर खुश हो कर नाच रहा हो और तभी आंधी बादलों को उड़ा ले जाए. बादल बिन बरसे ही चले गए और मोर ने दुखी हो कर अपने पंख समेट लिए हों.  ईशा रोज किसी न किसी तरह कोशिश करती कि राज उस से शारीरिक संबंध स्थापित करे, लेकिन हर बार असफल हो जाती.

आज जब राज दफ्तर से आया तो ईशा ने जल्दी से रात का खाना निबटाया और सोने के पहले राज से बोली, ‘‘चलो न राज कहीं हिल स्टेशन घूम आते हैं… काफी समय हुआ हम कहीं नहीं गए हैं.’’  राज उस की कोई बात नहीं टालता था. अत: उस ने झट से हवाईजहाज के टिकट बुक किए और दोनों काठमांडु के लिए रवाना हो गए. ईशा काठमांडु में नेपाली ड्रैस पहन कर फोटो खिंचवा रही थी. उस की खूबसूरती देखने लायक थी. शादी के 4 साल बाद भी वह नवविवाहिता जैसी लगती थी. 7 दिन राज और ईशा नेपाल की सारी प्रसिद्ध जगहों पर घूमेफिरे.  राज ने उसे आसमान पर बैठा रखा था. जीजान से चाहता था वह ईशा को. ईशा भी उस के प्यार को दिल की गहराई से महसूस करती थी. राज उस की कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं छोड़ता था. लेकिन रात के समय न जाने क्यों वह ईशा को वह नहीं दे पाता जिस का उसे पहली रात से इंतजार था और इस के लिए कई बार तो वह ईशा से माफी भी मांगता. कहता, ‘‘ईशा, तुम मुझ से तलाक ले लो और दूसरी शादी कर लो. न जाने क्यों मैं चाह कर भी…’’ इतना कह एक रात राज की आंखों में आंसू आ गए.

ईशा कहने लगी, ‘‘ऐसा न कहो राज. हम दोनों ने 7 फेरे लिए हैं… एकदूसरे का हर हाल में साथ निभाने का वादा किया है. मैं हर हाल में तुम्हारा साथ निभाऊंगी. मैं तुम से प्यार करती हूं राज. फिर भी हमें 1 बच्चा तो चाहिए. उस के लिए हमें प्रयास तो करना होगा न?’’  शादी के 5 साल बीत चुके थे. अब तो ईशा से उस के मातापिता, सहेलियां, रिश्तेदार सभी पूछने लगे थे, ‘‘ईशा, तुम 1 बच्चा क्यों पैदा नहीं कर लेतीं? कब तक ऐसे ही रहोगी? परिवार में बच्चा आने से खुशियां दोगुनी हो जाती हैं.’’

हर बार ईशा मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘आप ने कहा न… अब मैं इस बारे में सोचती हूं.’’  मगर यह सिर्फ सोचने मात्र से तो नहीं हो जाता न. बच्चे के लिए पतिपत्नी में  शारीरिक संबंध भी तो जरूरी हैं. शादी को 6 वर्ष बीत गए थे. कई बार ईशा सोचती कि एक बच्चा गोद ले ले ताकि कोई उसे बारबार टोके नहीं. लेकिन फिर सोच में पड़ जाती कि राज को ऐसा क्या हो जाता है कि वह संबंध बनाने से कतराता है? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है. वह उस के साथ खुश भी रहता है, उसे सहलाता है, चूमता है, लेकिन सिर्फ उस वक्त वह क्यों उस से दूर हो जाता है. वह इंटरनैट पर ढूंढ़ने लगी और डाक्टर से भी मिली.

डाक्टर ने कहा, ‘‘ईशा मैं तुम्हारे पति से मिलना चाहूंगी. पुरुषों के शारीरिक संबंध स्थापित करने में असफल होने के कई कारण होते हैं.’’

जब राज घर आया तो ईशा ने उसे बताया, ‘‘मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. डाक्टर आप से मिलना चाहती हैं. कल 11 बजे का समय लिया है. आप को मेरे साथ चलना है.’’

राज ने कहा, ‘‘ठीक है चलेंगे.’’  अगले दिन दोनों तैयार हो कर डाक्टर से मिलने पहुंच गए.  डाक्टर ने राज व ईशा से उन की शादी की पहली रात से ले कर अब तक की  सारी बातें पूछीं. एक बार को तो डाक्टर को भी कुछ समझ न आया. डाक्टर ने बताया, ‘‘पुरुषों में शारीरिक संबंध स्थापित न कर पाने के कई कारण होते हैं जैसे धूम्रपान, जिस के कारण पुरुषों के जननांग तक रक्तसंचार नहीं हो पाता है और उन में नपुंसकता आ जाती है. जिस से इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या आ जाती है और शुक्राणुओं में कमी आ जाती है. इस से सैक्स करने की कामना में कमी आ जाती है.  ‘‘इस का दूसरा कारण होता है डिप्रैशन. जिस तरह यह आम जीवन को प्रभावित करता है उसी तरह यह सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है. इनसान का दिमाग उस के सैक्स जीवन की इच्छाओं को संचित करने में मदद करता है. इसलिए सैक्स के समय किसी भी तरह का टैंशन या स्ट्रैस संबंध में बाधा पैदा करता है. डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है, जिस के कारण दिमाग का कैमिकल कंपोजिशन बिगड़ जाता है और उस का सीधा प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है. कामवासना में कमी आ जाती है.

‘‘इस के कुछ उपाय होते हैं जैसे धूम्रपान कम करें, संतुलित आहार लें, व्यायाम करें. कई बार मोटापे के कारण भी शरीर में रक्तसंचार नहीं होता और काम उत्तेजना कम हो जाती है. कई बार मधुमेह रोग होने से भी समस्या होती है, क्योंकि मधुमेह इनसान के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है, जिस के कारण इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की शिकायत हो जाती है.  ‘‘कई बार पुरुषों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन की कमी से भी सैक्स लाइफ प्रभावित होती है. इस के लिए सुबह के समय टेस्टोस्टेरौन लैवल का टैस्ट करवाना होता है, क्योंकि सुबह के समय इस का लैवल सब से ज्यादा होता है. शीघ्र पतन भी एक समस्या होती है, जिस में पुरुष महिला के सामने आते ही घबरा जाता है और स्खलित हो जाता है. इस कारण भी पुरुष महिला से दूर भागने लगता है.

‘‘वैसे तो मुझे आप से बात कर के सब ठीक ही लगता है फिर भी राज आप अपने हारमोन लैवल की जांच के लिए टैस्ट करवा लें और टैस्ट रिपोर्ट मुझे दिखाएं.’’  राज की हारमोन रिपोर्ट में कोई कमी नहीं थी. वह शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ था. डाक्टर चकित थी कि आखिर ऐसा क्या है कि राज ईशा को इतना चाहता है फिर भी वह वैवाहिक सुख से वंचित है?  डाक्टर ने काफी सोचविचार कर कहा, ‘‘राज व ईशा तुम दोनों सैक्स काउंसलर के पास जाओ. मैं आप को रैफर कर देती हूं.’’  अगले ही दिन राज व ईशा सैक्स काउंसलर के पास पहुंचे. काउंसलर ने उन की समस्या को ध्यान से सुना और समझा. फिर दोनों से उन के रहनसहन और जीवनशैली के बारे में पूछा. राज व ईशा ने उन्हें जवाब में जो बताया उस के हिसाब से तो दोनों के बीच सब ठीक ही चल रहा है. राज को दफ्तर में भी कोई समस्या नहीं थी, बल्कि इन 8 सालों में उसे हाल ही में तीसरी प्रमोशन मिली थी. ‘तो फिर आखिर क्या है, जो चाहते हुए भी राज को सैक्स के समय असफल कर देता है?’ सोच काउंसलर ने राज से अकेले में बात करने की इच्छा जाहिर की. ईशा काउंसलर का इशारा समझ कमरे से बाहर चली गई. अब काउंसलर ने राज से उस की शादी से पहले की जीवनी पूछी. उस से उसे पता चला कि राज गोद लिया बच्चा है. और सब जो राज ने डाक्टर को बताया वह इस तरह था, ‘‘सर मेरे परिवार में मैं, मेरी बड़ी बहन और मेरे मातापिता थे. बहन मुझ से 10 साल बड़ी थी. उस की शादी मात्र 18 वर्ष में पापा के दोस्त के इकलौते बेटे से कर दी गई. मेरे पापा ने अपनी वसीयत का ज्यादा हिस्सा मेरे नाम और कुछ हिस्सा दीदी के नाम किया.

अचानक एक कार ऐक्सिडैंट में मम्मीपापा की मृत्यु हो गई.  उस समय मैं 8 वर्ष का था. दीदी के सिवा मेरा कोई न था. अत: दीदी अब मुझे अपने पास रखने लगी थी. जीजाजी को भी कोई ऐतराज न था. जीजाजी के मातापिता को पैसों का लालच आ गया. फिर धीरेधीरे जीजाजी भी उन की बातों में आ गए. वे रोजरोज दीदी से कहने लगे कि वह वसीयत के कागज उन्हें दे दे. लेकिन दीदी ने नहीं दिए. वे दीदी को रोज मारनेपीटने लगे. दीदी समझ गई थी कि मुझे खतरा है.  ‘‘दीदी की एक सहेली थी. उन की कोई संतान न थी. वे एक बच्चा गोद लेना चाहते थे. दीदी ने उन से बात की और मुझे गोद लेने को कहा. वे झट से राजी हो गए. दीदी ने मुझे गोद देने के कागज तैयार करवा लिए. जीजाजी का व्यवहार दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था. अब वे रोज शराब पी कर दीदी को मारनेपीटने लगे थे. मैं तब दीदी के पास ही रह रहा था.  ‘‘एक रात जीजाजी देर से आए. मैं उस वक्त दीदी के कमरे में था. जीजाजी बहुत ज्यादा शराब पीए थे. जीजाजी ने आते ही अंदर से कमरा बंद कर लिया और मुझे व दीदी को लातघूंसों से बहुत मारा. उस के बाद दीदी को बिस्तर पर पटक दिया और उस के साथ सैक्स किया. मैं उस वक्त 10 वर्ष का था. वह दृश्य बहुत डरावना था.  ‘‘मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मुझे वहीं नींद आ गई. सुबह दीदी जिंदा नहीं थी. सिर्फ एक लाश थी. मुझे और तो कुछ खास याद नहीं कि उस के बाद क्या हुआ, हां उस के बाद मेरे वर्तमान मातापिता मुझे अपने घर ले आए. अब जब भी मैं ईशा से करीबियां बढ़ाना चाहता हूं, मेरी आंखों के सामने उस रात की डरावनी धुंधली सी वह याद आ जाती है.

‘‘मुझे लगता है दीदी की तरह कहीं मैं ईशा को भी न खो दूं. मैं ईशा से कुछ कह भी नहीं पाता हूं. हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं. बस इसीलिए अपनेआप ही ईशा से दूर हो जाता हूं. यह सब अपनेआप होता है. मेरा अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रहता और दीदी की लाश वहां दिखाई देती है.’’  राज की सारी बात सुन कर काउंसलर सब समझ गए कि क्यों चाह कर भी राज ईशा के साथ संबंध कायम करने में असफल रहता है. काउंसलर ने राज को घर जाने को कहा और अगले दिन आने को कहा. अगले दिन उन्होंने राज को प्यार से समझाया, ‘‘राज, तुम्हारी दीदी सैक्स के कारण नहीं मरीं, तुम्हारे जीजाजी ने उन्हें लातघूंसों से मारा. इस के कारण उन्हें कुछ अंदरूनी चोटें लगीं और वे उस दर्द को सहन नहीं कर पाईं और मौत हो गई.  ‘‘तुम ने दीदी को पिटते तो कई बार देखा था, लेकिन उस रात तुम ने जो दृश्य देखा वह पहली बार था और सुबह दीदी की लाश देखी तो तुम्हें ऐसा लगा कि दीदी सैक्स के कारण मर गई… आज इतने वर्षों बाद भी वह धुंधली सी याद तुम्हारे वैवाहिक जीवन को असफल कर रही है.’’  काउंसलर ने ईशा से भी इस बारे में बात की. उन्होंने राज के वर्तमान मातापिता को भी राज की स्थिति बताई. जब उन्हें हकीकत मालूम हुई तो उन्होंने राज की दीदी की मृत्यु की पोस्टमार्टम रिपोर्ट राज को दिखाई, जिस में साफ लिखा था कि राज की दीदी की जान दिमाग व पसलियों में चोट लगने से हुई थी और इसीलिए उस के जीजा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

अब सारी स्थिति राज के सामने थी. ईशा राज को उस पुरानी याद से दूर ले जाना  चाहती थी. अत: उस ने गोवा में होटल बुक किया और राज से वहां चलने का आग्रह किया. राज ने खुशीखुशी हामी भर दी.  ईशा वहां राज को उस की खूबियां बताते हुए कहने लगी, ‘‘राज तुम बहुत नेक और होशियार हो… तुम्हें पा कर मैं धन्य हो गई हूं. मैं तुम्हारी हर हार व जीत में तुम्हारे साथ हूं.’’  ऐसी बातें कर वह राज का मनोबल बढ़ाना चाहती थी. फिर रात के समय जैसे ही राज उस के करीब आ कर उस के बालों को सहलाने लगा, तो वह कहने लगी, ‘‘आगे बढ़ो राज. जब तक तुम मेरे साथ हो मुझे कुछ नहीं होगा, हिम्मत  करो राज.’’

7 दिन बस इसी तरह गुजर गए. अब राज का आत्मविश्वास लौटने लगा था. उस धुंधली सी याद की हकीकत वह समझ चुका था. ईशा ने राज की मम्मी व काउंसलर को खुशी से फोन कर बताया, ‘‘हम सफल हुए.’’  हालांकि राज एक बार तो डर गया था… सैक्स में सफल होने के बाद वह काफी देर  तक ईशा को टकटकी लगाए देखता रहा. फिर कहने लगा, ‘‘दुनिया तो सिर्फ तुम्हारी ऊपरी खूबसूरती देखती है ईशा… तुम्हारा दिल कितना सुंदर है… 8 वर्षों में तुम ने मेरी असफलता को एक राज रखा और हर वक्त मुसकराती रहीं.  आज मैं सफल हूं तो सिर्फ तुम्हारे कारण. तुम  ने इतनी मेहनत की, इतना सहा, विवाहित हो  कर भी 8 वर्षों तक कुंआरी का जीवनयापन करती रहीं और चेहरे पर शिकन भी न आने दी. तुम्हारा दिल कितना सुंदर है ईशा. तुम से सुंदर कोई नहीं.’’

दोनों जब गोवा से लौटे तो उन के चेहरे पर कुछ अलग ही चमक थी. वह चमक थी विश्वास और प्यार की. राज की मां भी बहुत खुश थीं. 3 महीने बाद ईशा ने खुशखबरी दी कि वह मां बनने वाली है.  राज की मां उसे ढेरों आशीर्वाद देते हुए बोलीं, ‘‘मैं दुनिया की सब से खुशहाल सास हूं, जिसे तुम जैसी बहू मिली.’’

Love Story in Hindi

Hindi Family Story: सहारा- मोहित और अलका आखिर क्यों हैरान थे

Hindi Family Story: मोहित को घर जाने के लिए सिर्फ 1 सप्ताह की छुट्टी मिली थी. समय बचाने के लिए उस ने अपनी पत्नी अलका व बेटे राहुल के साथ मुंबई से दिल्ली तक की यात्रा हवाईजहाज से करने का फैसला किया. अलका ने घर से निकलने से पहले ही साफसाफ कहा था, ‘‘देखो, मैं पूरे 5 महीने के बाद अपने मम्मीपापा से मिलूंगी. भैयाभाभी के घर से अलग होने के बाद वे दोनों बहुत अकेले हो गए हैं. इसलिए मुझे उन के साथ ज्यादा समय रहना है. अगर आप ने अपने घर पर 2 दिनों से ज्यादा रुकने के लिए मुझ पर दबाव बनाया तो झगड़ा हो जाएगा.’’

‘अपने मम्मीपापा के अकेलेपन से आज तुम इतनी दुखी और परेशान हो रही हो पर शादी होते ही तुम ने रातदिन कलह कर के क्या मुझे घर से अलग होने को मजबूर नहीं किया था? जब तुम ने कभी मेरे मनोभावों को समझने की कोशिश नहीं की तो मुझ से ऐसी उम्मीद क्यों रखती हो?’ मोहित उस से ऐसा सवाल पूछना चाहता था पर झगड़ा और कलह हो जाने के डर से चुप रहा. ‘‘तुम जितने दिन जहां रहना चाहो, वहां रहना पर राहुल अपने दादादादी के साथ ज्यादा समय बिताएगा. वे तड़प रहे हैं अपने पोते के साथ हंसनेखेलने के लिए,’’ मोहित ने रूखे से लहजे में अपनी बात कही और अलका के साथ किसी तरह की बहस में उलझने से बचने के लिए टैक्सी की खिड़की से बाहर देखने लगा था.

मोहित को अपनी सास मीना कभी अच्छी नहीं लगी थी. उन की शह पर ही अलका ने शादी के कुछ महीने बाद से किराए के मकान में जाने की जिद पकड़ ली थी. उस का दिल बहुत दुखा था पर शादी के 6 महीने बाद ही अलका ने उसे किराए के घर में रहने को मजबूर कर दिया था. वह करीब 4 साल तक किराए के मकान में रहा था. फिर नई कंपनी में नौकरी मिलने से वह 5 महीने पहले मुंबई आ गया था. अब सप्ताह भर की छुट्टियां ले कर वह सपरिवार पहली बार दिल्ली जा रहा था.

करीब 2 महीने पहले मोहित का साला नीरज अपनी पत्नी अंजु और सासससुर के बहकावे में आ कर घर से अलग हो गया था. उस के ससुर ने उसे नया काम शुरू कराया था जिस में उस की अच्छी कमाई हो रही थी. ससुराल में ज्यादा मन लगने से उस का ज्यादा समय वहीं गुजरता था. उस के अलग होने के फैसले को सुन अलका बहुत तड़पी थी. खूब झगड़ी थी वह फोन पर अपने भैयाभाभी के साथ पर उन दोनों ने घर से अलग होने का फैसला नहीं बदला था.

‘‘इनसान को अपने किए की सजा जरूर मिलती है. दूसरे की राह में कांटे बोने वाले के अपने पैर कभी न कभी जरूर लहूलुहान होते हैं,’’ मोहित की इस कड़वी बात को सुन कर अलका कई दिनों तक उस के साथ सीधे मुंह नहीं बोली थी. मोहित अपने मातापिता को मुंबई में साथ रखना चाहता था पर अलका ने इस प्रस्ताव का जबरदस्त विरोध किया.

‘‘मां की कमर का दर्द और पिताजी का ब्लडप्रेशर बढ़ता जा रहा है. अगर अब हम ने उन दोनों की उचित देखभाल नहीं की तो उन दोनों के लिए औलाद को पालनेपोसने की इतनी झंझटें उठाने का फायदा ही क्या हुआ?’’

अलका के पास मोहित के इस सवाल का कोई माकूल जवाब तो नहीं था पर उस ने अपने सासससुर को साथ न रखने की अपनी जिद नहीं बदली थी. सुबह की फ्लाइट पकड़ कर वे सब 12 बजे के करीब अपने घर पहुंच गए. पूरे सफर के दौरान अलका नाराजगी भरे अंदाज में खामोश रही थी.

अपनी ससुराल के साथ अलका की बहुत सारी खराब यादें जुड़ी हुई थीं. सास के कमरदर्द के कारण उसे पहुंचते ही रसोई में किसी नौकरानी की तरह मजबूरन घुसना पड़ेगा, यह बात भी उसे बहुत अखर रही थी. उस का मन अपने मम्मीपापा के पास जल्दी से जल्दी पहुंचने को बहुत ज्यादा आतुर हो रहा था. घंटी बजाने पर दरवाजा मोहित के पिता महेशजी ने खोला. उन सब पर नजर पड़ते ही वे फूल से खिल उठे. अपने बेटे को गले लगाने के बाद उन्होंने राहुल को गोद में उठा कर खूब प्यार किया. अलका ने अपने ससुरजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया.

महेशजी तो राहुल से ढेर सारी बातें करने के मूड में आ गए. अपने दादा से रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कार का उपहार पा राहुल खुशी से फूला नहीं समा रहा था. अलका और मोहित घर में नजर आ रहे बदलाव को बड़ी हैरानी से देखने लगे.

जिस ड्राइंगरूम में हमेशा चीजें इधरउधर फैली दिखती थीं वहां हर चीज करीने से रखी हुई थी. धूलमिट्टी का निशान कहीं नहीं दिख रहा था. खिड़कियों पर नए परदे लगे हुए थे. पूरा कमरा साफसुथरा और खिलाखिला सा नजर आ रहा था. ‘‘मां घर में नहीं हैं क्या?’’ मोहित ने अपने पिता से पूछा.

‘‘वे डाक्टर के यहां गई हुई हैं,’’ प्यार से राहुल का माथा चूमने के बाद महेशजी ने जवाब दिया. ‘‘अकेली?’’

‘‘नहीं, उन की एक सहेली साथ गई हैं.’’ ‘‘कौन? शारदा मौसी?’’

‘‘नहीं, उन्होंने एक नई सहेली बनाई है. दोनों लौटने वाली ही होंगी. तुम दोनों क्या पिओगे? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक? अरे, बाप रे,’’ महेशजी ने अचानक माथे पर हाथ मारा और राहुल को गोद से उतार झटके से सीधे खड़े हो गए. ‘‘क्या हुआ?’’ मोहित ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘गैस पर भिंडी की सब्जी रखी हुई है. इस शैतान से बतियाने के चक्कर में मैं उसे भूल ही गया था,’’ वह झेंपे से अंदाज में मुसकराए और फिर तेजी से रसोई की तरफ चल पड़े. राहुल कार के साथ खेलने में मग्न हो गया. अलका और मोहित महेशजी के पास रसोई में आ गए.

‘‘घर की साफसफाई के लिए कोई नई कामवाली रखी है क्या, पापा?’’ साफसुथरी रसोई को देख अलका यह सवाल पूछने से खुद को रोक नहीं पाई. ‘‘कामवाली तो हम ने लगा ही नहीं रखी है, बहू. घर के सारे कामों में तुम्हारी सास का हाथ अब मैं बंटाता हूं. तुम यह कह सकती हो कि उस ने नया कामवाला रख लिया है,’’ अपने मजाक पर महेशजी सब से ज्यादा खुल कर हंसे.

मोहित ने एक भगौने पर ढकी तश्तरी को हटाया और बोला, ‘‘वाह, मटरपनीर की सब्जी बनी है. लगता है मां सारा लंच तैयार कर के गई हैं.’’ ‘‘डाक्टर के यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए वे तो 3 घंटे पहले घर से चली गई थीं. आज लंच में तुम दोनों को मेरे हाथ की बनी सब्जियां खाने को मिलेंगी,’’ किसी छोटे बच्चे की तरह गर्व से छाती फुलाते हुए महेशजी ने उन दोनों को बताया.

‘‘आप ने खाना बनाना कब से सीख लिया, पापा?’’ मोहित हैरान हो उठा. ‘‘घर के सारे काम करने का हुनर हम आदमियों को भी आना चाहिए. तुम बहू से टे्रनिंग लिया करो. अब मैं तुम्हें इलायची वाली चाय बना कर पिलाता हूं.’’

‘‘चाय मुझे बनाने दीजिए, पापा,’’ अलका आगे बढ़ आई. ‘‘अगली बार तुम बनाना. तुम्हारे हाथ की बनी चाय पिए तो एक अरसा हो गया,’’ महेशजी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो अजीब सी भावुकता का शिकार हो उठी अलका को अपनी पलकें नम होती प्रतीत हुई थीं.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो मोहित दरवाजा खोलने के लिए चला गया. ‘‘अलका, तुम्हारे पापा आए हैं,’’ कुछ देर बाद मोहित की ऊंची आवाज अलका के कानों तक पहुंची तो वह भागती सी ड्राइंगरूम में पहुंच गई.

‘‘आप, यहां कैसे?’’ अलका अपने पिता उमाकांत को देख खुशी से खिल उठी. ‘‘तुम लोगों के आने की खुशी में रसमलाई ले कर आया हूं,’’ राहुल को गोद से उतारने के बाद उमाकांत ने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया.

‘‘उमाकांत, रसमलाई का मजा खाने के बाद लिया जाएगा. अभी चाय बन कर तैयार है,’’ महेशजी रसोई में से ही चिल्ला कर बोले. ‘‘ठीक है, भाईसाहब,’’ उन्हें ऊंची आवाज में जवाब देने के बाद उमाकांत ने हैरान नजर आ रहे अपने बेटीदामाद को बताया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के बहुत पक्के दोस्त बन गए हैं. रोज मिले बिना हमें चैन नहीं पड़ता है.’’

‘‘यह चमत्कार हुआ कैसे?’’ इस सवाल को पूछने से मोहित खुद को रोक नहीं सका. ‘‘यह सचमुच चमत्कार ही है कि इस घर में हमारा स्वागत अब दोस्तों की तरह होता है, मोहित,’’ सस्पेंस बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए उमाकांत उस के सवाल का जवाब देना टाल गए थे.

तभी करीब 2 महीने पहले घटी एक घटना की याद उन के मन में बिजली की तरह कौंध गई थी.

अपने बेटेबहू के अलग हो जाने से मीना बहुत ज्यादा दुखी और परेशान थीं. बेखयाली में घर की सीढि़यां उतरते हुए उन का पैर फिसला और दाएं टखने में मोच आ गई. डाक्टर की क्लिनिक में उन की मुलाकात महेश और आरती से हुई. आरती की कमर का इलाज वही डाक्टर कर रहा था.

तेज दर्द के कारण तड़प रही मीना का आरती ने बहुत हौसला बढ़ाया था. उस वक्त उन्होंने मीना के खिलाफ अपने मन में बसे सारे गिलेशिकवे भुला कर उन्हें सहारा दिया था. अपने बेटे से बहुत ज्यादा नाराज मीना ने उसे अपनी चोट की खबर नहीं दी थी. डाक्टर को दिखाने के बाद कुछ देर आराम करवाने के लिए महेशजी व आरती उन दोनों को अपने घर ले आए थे.

मीना का सिर भी दीवार के साथ जोर से टकराया था. वहां कोई जख्म तो नहीं हुआ पर सिर को हिलाते ही उन्हें जोर से चक्कर आ रहे थे.

इस स्थिति के चलते मीना को आरती के घर में उस रात मजबूरन रुकना पड़ा. उन की किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए आरती रात को मीना के साथ ही सोई थीं. नींद आने से पहले बहुत दिनों से परेशान चल रहीं मीना के मन में कोई अवरोध टूटा और वह आरती से लिपट कर खूब रोई थीं.

‘अपने बेटेबहू के घर छोड़ कर अलग हो जाने के बाद मुझे यह एहसास बहुत सता रहा है कि मैं ने आप दोनों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है. अपनी बेटी को समझाने के बजाय मैं उसे भड़का कर हमेशा ससुराल से अलग होने की राय देती रही. अब मुझे अपने किए की सजा मिल गई है, बहनजी…आप मुझे आज माफ कर दोगी तो मेरे मन को कुछ शांति मिलेगी.’ पश्चात्ताप की आग में जल रही मीना ने जिस वक्त आरती से आंसू बहाते हुए क्षमा मांगी थी उस वक्त उमाकांत और महेश भी उस कमरे में ही उपस्थित थे. जब आरती ने मीना को गले से लगा कर अतीत की सारी शिकायतों व गलतफहमियों को भुलाने की इच्छा जाहिर की तो भावविभोर हो उमाकांत और महेश भी एकदूसरे के गले लग गए थे.

आरती और महेश ने मीना और उमाकांत को अपने घर से 3 दिन बाद ही विदा किया था. ‘तुम ऐसा समझो कि अपनी बेटी की ससुराल में नहीं, बल्कि अपनी सहेली के घर में रह रही हो. तुम से बातें कर के मेरा मन बहुत हलका हुआ है. मुझे न कमर का दर्द सता रहा है न बहूबेटे के गलत व्यवहार से मिले जख्म पीड़ा दे रहे हैं. तुम कुछ ठीक होने के बाद ही अपने घर जाना,’ आरती की अपनेपन से भरी ऐसी इच्छा ने मीना को बेटी की ससुराल में रुकने के लिए मजबूर कर दिया था.

आने वाले दिनों में दोनों दंपतियों के बीच दोस्ती की जड़ें और ज्यादा मजबूत होती गई थीं. पहले एकदूसरे के प्रति नाराजगी, नफरत और शिकायतों में खर्च होने वाली ऊर्जा फिर आपसी प्रेम को बढ़ाती चली गई थी. ‘‘मां, आप के साथ क्यों नहीं आई हैं?’’ अलका के इस सवाल को सुन उमाकांत अतीत की यादों से झटके के साथ उबर आए थे.

‘‘कुछ देर में वे आती ही होंगीं. इसे फ्रिज में रख आ,’’ उमाकांत ने रसमलाई का डिब्बा अलका को पकड़ा दिया. वे सब लोग जब कुछ देर बाद गरमागरम चाय का लुत्फ उठा रहे थे तब एक बार फिर घंटी की आवाज घर में गूंज गई.

दरवाजा खुलने के बाद अलका और मोहित ने जो दृश्य देखा वह उन के लिए अकल्पनीय था. मोहित की मां आरती ने अलका की मां मीना का सहारा ले कर ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. बहुत ज्यादा थकी सी नजर आने के बावजूद वे दोनों घर आए मेहमानों को देख कर खिल उठी थीं.

मोहित ने तेजी से उठ कर पहले दोनों के पैर छुए और फिर मां की बांह थाम ली. मीना के हाथ खाली हुए तो उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया.

अलका उन से अलग हुई तो राहुल अपनी दादी की गोद से उतर कर भागता हुआ नानी की गोद में चढ़ गया. सब के लाड़प्यार का केंद्र बन वह बेहद प्रसन्न और बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ नजर आ रहा था. ‘‘इस बार 2 कप चाय मैं बना कर लाता हूं,’’ उमाकांत ने अपना कप उठाया और चाय का घूंट भरने के बाद रसोई की तरफ चल पड़े.

उन की जगह चाय बनाने के लिए अलका रसोई में जाना चाहती थी पर आरती ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया. ‘‘बहू, तुम्हारे पापा के हाथ की बनी स्पेशल चाय पीने की मुझे तो लत पड़ गई है. बना लेने दो उन्हीं को चाय,’’ आरती के मुंह से निकले इन शब्दों ने अलका और मोहित के मनों की उलझन को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था.

‘‘मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है,’’ उन चारों बुजुर्गों को कुछ देर बाद बच्चा बन कर राहुल के साथ हंसतेबोलते देख अलका ने धीमी आवाज में मोहित के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की. ‘‘कितने खुश हैं चारों,’’ मोहित भावुक हो उठा, ‘‘इस सुखद बदलाव का कारण कुछ भी हो पर यह दृश्य देख कर मेरे मन की चिंता गायब हो गई है. ये सब एकदूसरे का कितना मजबूत सहारा बन गए हैं.’’

‘‘पर ये चमत्कार हुआ कैसे?’’ अपनी मां के टखने में आई मोच वाली घटना से अनजान अलका एक बार फिर आश्चर्य से भर उठी. इस बार अलका की आवाज उस के पिता के कानों तक पहुंच गई. उन्होंने तालियां बजा कर सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और फिर बड़े स्टाइल से गला साफ करने के बाद स्पीच देने को तैयार हो गए.

‘‘हमारे रिश्तों में आए बदलाव को समझने के लिए अलका और मोहित के दिलों में बनी उत्सुकता को शांत करने के लिए मैं उन दोनों से कुछ कहने जा रहा हूं. मेरी प्रार्थना है कि आप सब भी मेरी बात ध्यान से सुनें. ‘‘अपनी अतीत की गलतियों को ले कर अगर कोई दिल से पश्चात्ताप करे तो उस के अंदर बदलाव अवश्य आता है. जब नीरज अपनी पत्नी व बेटी को ले कर अलग हुआ तब मीना और मुझे समझ में आया कि हम ने अलका को किराए के मकान में जाने की शह दे कर बहुत ज्यादा गलत काम किया था.

‘‘बढ़ती उम्र की बीमारियों के शिकार बने हम चारों मायूस व दुखी इनसानों के दिलों में एकदूसरे के लिए बहुत सारा मैल जमा था. इस मैल को दूर कराने का मौका संयोग से हमें मिल गया. ‘‘मनों का मैल मिटा तो वक्त ने यह सिखाया और दिखाया कि हम चारों एकदूसरे का मजबूत सहारा बन सकते हैं. आपस में अच्छे दोस्तों की तरह सहयोग शुरू करने के बाद आज हम सब अपने को ज्यादा सुखी, खुश और सुरक्षित महसूस करते हैं.

‘‘बेटी अपने घर चली जाए और बेटाबहू किसी भी कारण से इस बड़ी उम्र में मातापिता को सहारा देने को…उन की देखभाल करने को उपलब्ध न हों तो पड़ोसी, मित्र व रिश्तेदार ही उन के काम आते हैं. हम रिश्तेदार तो पहले ही थे, अब पड़ोसी व अच्छे मित्र भी बन गए हैं,’’ भावुक नजर आ रहे उमाकांत ने आगे बढ़ कर महेशजी को उठाया और फिर दोनों दोस्त हाथ पकड़ कर साथसाथ खड़े हो गए. ‘‘पड़ोसी कैसे?’’ मोहित ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम दोनों को सरप्राइज देने के लिए हम ने यह खबर अभी तक छिपाए रखी थी कि इस के ठीक ऊपर वाले फ्लैट में हम ने पिछले हफ्ते शिफ्ट कर लिया है,’’ उमाकांत ने बताया. ‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है,’’ मोहित ने इस खबर की पुष्टि कराने को अपने पिता की तरफ देखा.

‘‘यह बात सच है, बेटे. पुराना फ्लैट बेच कर ऊपर वाला फ्लैट खरीदने का इन का फैसला समझदारी भरा है. पड़ोसी होने से हम एकदूसरे के सुखदुख में फौरन शामिल हो जाते हैं. ‘‘इस के अलावा हमारी उचित देखभाल न कर पाने के कारण अब तुम बच्चों को किसी तरह के अपराधबोध का शिकार बनने की कोई जरूरत नहीं है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब हमारा अकेलापन दूर भाग गया है. आपसी सहयोग के कारण हमारा जीवन ज्यादा खुशहाल और रसपूर्ण हो गया है,’’ महेशजी का चेहरा जोश व उत्साह से चमक उठा था.

‘‘आप सब को इतना खुश देख कर मेरा मन बहुत ज्यादा हलकापन महसूस कर रहा है लेकिन…’’ ‘‘लेकिन क्या?’’ अपने बेटे को यों झटके से चुप होता देख आरती चिंतित नजर आने लगीं.

‘‘इस अलका बेचारी का मायका और ससुराल तो अब ऊपरनीचे के घर में हो गए. ये ससुराल वालों से रूठ कर अब कहां जाया करेगी?’’ मोहित के उस मजाक पर सब ने जोर से ठहाका लगाया तो अलका ने शरमा कर अपनी मां व सास के पीछे खुद को छिपा लिया था.

Hindi Family Story

Couple Love Story : पति पत्नी का रोमांटिक संवाद

Couple Love Story : शीर्षक पढ़ कृपया आप चौंकें नहीं. श्रृंगाररस से इतर यह वार्त्तालाप थोड़ा अलग किस्म का है. यह भारतीय पतिपत्नी के बीच दिनप्रतिदिन होने वाले स्पैशल रोमांटिक अंदाज को व्यक्त करता है. जो विवाहित हैं उन्हें समझाने की कोई जरूरत नहीं. यह उन की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा भर है तथा जो सौभाग्यशाली विवाह नहीं कर पाए हैं उन के लिए यह मुफ्त का ट्यूशन लैसन है. मन करे तो सीख लें, मानसिकरूप से खुद को तैयार करें अथवा हमारे सद्अनुभव को मजाक में उड़ा दें. कोई टैंशन नहीं, मरजी पाठकों की है.

किस्सा ट्रेन का है. प्लेटफार्म पर ट्रेन आ कर रुकी और हम लपक कर जनरल कंपार्टमैंट में चढ़ कर सीट हथिया लेते हैं. लेकिन यह बेवजह की फुरती किसी काम की नहीं रहती. कारण, ट्रेन में भीड़ बिलकुल नहीं है. हमारे सामने की सीट पर विंडो साइड एक नवयौवना बैठी है और उस की बगल में एक लड़के ने अपना सामान रख पूरी सीट पर कब्जा जमा लिया है. हमारी बगल में भी एक कालेजगर्ल आ कर बैठ गई है. ट्रेन प्लेटफार्म से रेंगने लगती है.

तभी अचानक इस डब्बे में बैठे सभी यात्रियों का ध्यान उस नवयौवना की तरफ आकर्षित होने लगता है. कान से मोबाइल लगाए, तनिक मस्त अंदाज में वह जोर की आवाज से मोबाइल पर बात करने लगती है. यह वार्त्तालाप बहुत रोचक है. तत्कालीन परिस्थितियों की विचित्रताओं से मिल कर ऐसा मजेदार दृश्य प्रस्तुत करता है कि सभी यात्रियों का ध्यान उस तरफ स्वत: खिंच जाता है. आप भी इस एकतरफा वार्त्तालाप का मजा लीजिए, खुदबखुद समझ जाएंगे कि वार्त्ता किस से चल रही होगी:

‘‘कहां हो आप? मैं भी तो पीछे जनरल डब्बे में हूं.’’

‘‘अरे कहा न पीछे के डब्बे में…’’

‘‘आप किस दुनिया में खोए हो?’’ युवती मंदमंद मुसकराती हुई बोलती है, ‘‘मैं गेट पर ही तो खड़ी हूं… नजर उठा कर देखोगे तभी तो दिखाई दूंगी,’’ सीट पर बैठेबैठे ही युवती बडे़ अंदाज में बतिया रही है.

तभी ट्रेन प्लेटफार्म से गति पकड़ लेती है. वार्त्तालाप पुन: शुरू हो जाता है.

‘‘पहले यह बताओ आप हो कहां?’’

स्टेशन पर हो तो मुझे क्यों नहीं देख रहे… किसी और के साथ होंगे. वही आप की क्लोज फ्रैंड… सच कह रही हूं. तभी तो अपनी बीवी को नहीं पहचान रहे…’’

‘‘अच्छा, तो आप के लिए रेलवे ने पर्सनल डब्बा लगा दिया, जिस में चढ़ गए हो…’’

‘‘अरे कितनी बार कहूं कि गेट पर ही तो खड़ी हूं… अभी पैर फिसल गया था… बस बच गई…’’

‘‘हांहां, तुम्हें क्यों चिंता होगी मेरी… अच्छा होता पीछा छूटता. यही तो चाहते हो आप. रहने दो मुझे सब पता है…’’

‘‘अब ये शब्द तो बोलो ही मत… उसी को बोलो जिस से दिनरात चैटिंग करते हो. सच में बहुत बुरे हो आप… मुझे पता होता कि आप इस तरह मुझे ट्रेन में अकेला छोड़ दोगे तो सच में मैं ट्रेन में बैठती ही नहीं.’’

‘‘सब देख लिया आप को मेरी कितनी चिंता है. लोग अपनी बीवियों को कितना चाहते हैं… आप के लिए तो बस… जिंदा भी हूं या नहीं क्या फर्क पड़ता है?’’

तभी युवती अपने बैग से खाने का पैकेट निकालती है. सैंडविच, ब्रैडरोल खातेखाते यह वार्त्तालाप चलता जाता है. सब यात्री उसे बड़े ध्यान से सुन रहे हैं. हमारे पास बैठी लड़की अचानक मुसकरा देती है. हम पूरे घटनाक्रम को देखसमझ रहे हैं.

तभी एक स्टेशन निकल जाता है, लेकिन पतिपत्नी का ट्रेन में मिलनमिलाप नहीं हो पाता. वार्त्तालाप अब उत्तरोत्तर तीव्रतर होता जा रहा है:

‘‘मुझे पागल मत बनाओ… मैं ने सब डब्बे देख लिए आगेपीछे… आप कहां छिपे बैठे हो?’’

‘‘गुस्सा मत दिलाओ. पीछे के डब्बे में होते तो मुझे दिखाई पड़ते. सब जानती हूं. आप जान कर मुझ से दूर भागते हो…’’

‘‘नहींनहीं गलती मेरी है. इतना प्यार जो करती हूं आप को… तभी तो मुझे बेवकूफ बनाते हो…’’

‘‘ओकेओके… ऐंजौय यार… मुझे कोई टैंशन नहीं. अपनी इस न्यू फ्रैंड के साथ ही लाइफ बिताना अब. मैं तो ऐसे ही रह लूंगी.’’

‘‘सच्ची कहती हूं अब तलाक ले कर ही रहूंगी मैं…’’

‘‘अब ज्यादा बोले तो ट्रेन में ही सुनोगे मुझ से… मैं कुछ बोल नहीं रही तो इस का मतलब यह नहीं कि मेरे मुंह में जबान नहीं है.’’

‘‘फौर गौड सेक… इट्स टू मच यार… अब मिलना आप, तब बताऊंगी कितनी परेशान…’’

युवती के चेहरे पर मुसकान है और मस्ती के लक्षण भी, लेकिन उस की शब्दावली में गुस्से की इंतहा झलक रही है. हम कन्फ्यूज्ड हुए इस विचित्र घटना को समझने में लगे हैं.

अचानक युवती के दूसरे मोबाइल की बैल बजती है. युवती दूसरे मोबाइल पर बात करने लगती है. पहले वाले मोबाइल पर संवाद अटक जाता है. युवती अब अपनी मां को हंसतेमुसकराते इस घटनाक्रम की रिपोर्टिंग करती हुई अपनी सफाई में लाजवाब तर्क दे रही है, ‘‘मम्मी, अगर मैं उन्हें खींचू नहीं तो वे मेरे हाथ से ही निकल जाएं… सच्ची, बहुत केयरलैस हैं. ऐसे रखती हूं तो लाइन पर रहते हैं वे वरना तो…’’

इस वार्त्तालाप के बीच में ही पहले वाला मोबाइल फिर से बजने लगता है. युवती अपनी मम्मी को फिर बात करने की कह कर फिर से अपने पति से मुखातिब हो जाती है:

‘‘अरे गुम कहां होऊंगी? आप को देखने के लिए ही चक्कर काट रही हूं पूरे डब्बे में…’’

‘‘सही है, मैं आप की तरह होती तो पता चल जाता… मोस्ट केयरलैस पर्सन.’’

‘‘कोई बात नहीं. घर पहुंचो, फिर देखती हूं आप को.’’

इस वार्त्तालाप को बीच में छोड़ना हमारी विवशता बन गई. कारण, हमारा स्टेशन आ गया था. हम बेमन से ट्रेन से उतर जाते हैं. आगे क्या हुआ, कुछ पता नहीं. लेकिन हमारे रहते करीब 40 मिनट का सफर ऐसी बातचीत में ही निकल गया. मन ही मन शुक्र मनाया कि सफर में हमारी श्रीमतीजी साथ नहीं थीं. वे यह वार्त्तालाप सुन लेतीं तो हमारी खैरियत न रहती. पति को कंट्रोल में रखने के टिप्स जब इस तरह मुफ्त में मिलें तो कौन श्रीमतीजी होंगी जो ऐसे गोल्डन चांस को छोड़ेंगी?

इस प्रसंग से यह साफ हो गया कि पतिपत्नी के बीच की नोकझोंक चाहे सामने वाले को अजीब लगे, लेकिन इस के पीछे सच में प्यार छिपा होता है. यह सत्य है कि हम जिस से प्यार करते हैं उस से ही तो अपने मन की बात कहेंगे. पतिपत्नी दोस्त भी होते हैं. मानवीय स्वभाव है, जिस से प्यार करते हैं उस पर पूरा राइट, अधिकार मानना अच्छा लगता है. भारतीय गृहस्थी की यही खूबसूरती है कि रोजरोज की किचकिच करते पतिपत्नी साथ रह कर विदेशियों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं. Couple Love Story

Uneven Skin Tone कैसे करें हैंडल? मार्कट में कौन से प्रोडक्ट हैं? जानें डिटेल

Uneven Skin Tone आखिर है क्या?

इसके लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी होता है कि अनइवन स्किन टोन किसे कहते हैं? दरअसल, जब हमारी स्किन का रंग एक समान नहीं होता, कहीं से गहरा, कहीं से हल्का, कही गोरा, कहीं काला होता है, कहीं गहरे निशान होते हैं तो उसे ही अनइवन स्किन टोन कहते हैं. अकसर यह स्थिति तब होती है जब आपकी त्वचा में मेलेनिन का उत्पादन असमान रूप से होता है, जिससे स्किन के कुछ जगह अन्य जगहों की तुलना में गहरे या हल्के दिखाई देते हैं.

अनइवन स्किन टोन होने के भी कई कारण है-

सूरज की रौशनी भी है जिम्मेवार

हमें हर बार सूरज की रौशनी में जाने से पहले सनस्क्रीन लगाने की आदत नहीं होती है इसे वजह से सूरज की हानिकारक किरणें मेलेनिन उत्पादन को बढ़ा सकती हैं, जिससे काले धब्बे और पिगमेंटेशन हो जाती है.

उम्र का बढ़ना

जैसेजैसे आप 35 प्लस होते हैं तो इसका उम्र का असर स्किन पर दिखने लगता है. यही वजह है स्किन अनइवन होने लगती है.

हार्मोनल चेंज

प्रेग्नैंसी या कुछ दवाइयों के कारण हार्मोनल संतुलन बिगड़ने से मेलेनिन का उत्पादन बढ़ सकता है, जिससे मेलास्मा (Melasma) जैसी समस्या होती है. जो त्वचा की रंगत को प्रभावित करती हैं.

त्वचा की स्थिति

किसी चोट या फिर एक्ने, एक्जिमा, या सोरायसिस जैसी स्थितियां भी अनइवन स्किन टोन का कारण बन सकती हैं.

जेनेटिक कारण

कुछ लोगों को आनुवंशिक रूप से असमान त्वचा टोन होने की अधिक संभावना हो सकती है.

खराब हुए हुए स्किनकेयर प्रोडक्ट का यूज

कुछ केमिकल युक्त या बहुत कठोर प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से त्वचा में जलन हो सकती है, जिससे पिगमेंटेशन बढ़ती है.

अनइवन स्किन टोन को सही करने के लिए कई प्रोडक्ट भी आते हैं-

नियमित एक्सफोलिएशन

मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाने के लिए हफ्ते में 1 -2 बार एक्सफोलिएट करें, जिससे त्वचा की रंगत एक समान हो सकती है. इसके लिए एक सॉफ्ट एक्सफोलिएटिंग स्क्रब का इस्तेमाल स्वस्थ और एकसमान त्वचा बनाए रखने का एक बेहतरीन तरीका है.

एक्सफोलिएशन आपके चेहरे से गंदगी और मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाकर चमकदार स्किन प्रदान करता है. बस अपनी स्किन पर मसाज करें और धो लें. हालांकि, बहुत जोर से एक्सफोलिएशन न करें, क्योंकि इससे आपकी स्किन का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है और आगे और समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

अगर आपके चेहरे के अलावा, शरीर के किसी अन्य हिस्से में असमान त्वचा की रंगत चिंता का विषय है, तो बफर या एक्सफोलिएटिंग दस्तानों से धीरे से एक्सफोलिएशन करने का प्रयास करें.

मॉइस्चराइजर

अगर आपको दागधब्बे और मुहांसे होने की समस्या है, तो आप शायद इन दागधब्बों से भी अनजान नहीं होंगे. अपनी त्वचा को साफ, नमीयुक्त और हाइड्रेटेड रखना फायदेमंद ही होगा. जरूरी हाइड्रेशन के लिए हल्की मॉइस्चराइजर, डे क्रीम या कोई असरदार फेस सीरम इस्तेमाल करें. सिर्फ चेहरे पर ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर और हाथों पर मॉइस्चराइजर लगाना न भूलें.

सनस्क्रीन लगाएं

यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है. हर दिन बाहर निकलने से पहले कम से कम एसपीएफ 30 वाला ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन लगाएं, चाहे मौसम कैसा भी हो. इसके लिए मार्किट में कई तरह के सनस्क्रीम आते हैं जैसे निव्या सन क्रीम. यह आपकी त्वचा को सूरज की क्षति से बचता है. इसमें प्रोटेक्ट एंड मॉइस्चर सन लोशन एसपीएफ50+ होता है साथ ही अत्यधिक प्रभावी UVA/UVB फिल्टर होते हैं, और यह लंबे समय तक और गहन मॉइस्चराइजर प्रदान करता है.

इसी तरह सिटाफिल हेल्दी रेडियंस ब्राइटनिंग डे प्रोटेक्शन क्रीम एसपीएफ 15 हानिकारक यूवी किरणों से कुछ सुरक्षा प्रदान करती है और जब इसे दिन में दो बार सेटाफिल हेल्दी रेडियंस ब्राइटनिंग कम्फर्ट नाइट क्रीम के साथ इस्तेमाल किया जाता है, तो यह चार हफ़्तों में आपके चेहरे के काले धब्बों को कम करने में कारगर साबित होती है.

खुद को हाइड्रेट रखें

त्वचा पर निखार लाने के लिए स्किन का अंदर से क्लीन होना भी जरूरी है. इसलिए दिनभर खुद को हाइड्रेट रखें. इसके लिए आप डाइट में नारियल पानी, नींबू पानी और डिटॉक्स ड्रिंक्स शामिल कर सकते हैं. बॉडी हाइड्रेट रहने से स्किन भी हाइड्रेट रहेगी. इससे स्किन पर डार्क स्पॉट्स और डलनेस की समस्या भी खत्म होगी.

विटामिन सी सीरम

विटामिन सी सीरम काले धब्बों को हल्का करने और त्वचा की चमक बढ़ाने में मदद करते हैं. यह एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट है जो त्वचा को चमकदार बनाता है और मेलेनिन उत्पादन को कम करने में मदद करता है. यह सीरम कई कंपनी के आते हैं जैसे कि Fleur & Bee का नेक्टर ऑफ द सी विटामिन सी सीरम.

नियासिनमाइड सीरम (Niacinamide)

नियासिनमाइड, जिसे विटामिन बी3 भी कहा जाता है, यह सीरम स्किन को अच्छी तरह प्रोटेक्ट करता है.स्कीन  की बनावट और रंगत में सुधार करते हैं. Simple® Skincare 10% नियासिनमाइड बूस्टर सीरम एक अच्छा विकल्प हो सकता है. यह विटामिन बी3 का एक रूप है, जो त्वचा की लालिमा, पिगमेंटेशन और पोर्स को कम करने में मदद करता है.

ग्लाइकोलिक एसिड

ग्लाइकोलिक एसिड, टीसीए, रेटिनॉल और अन्य केमिकल पील्स भी स्किन पिगमेंटेशन और अनईवन स्किन टोन को ठीक करने में मदद कर सकते हैं. आजकल केमिकल पील्स वैसे भी काफी ज्यादा इस्तेमाल हो रही है. केमिकल पील्स 2-3 हफ्ते के अंतराल से करनी चाहिए और अगर आप चाहें तो किसी एक्सपर्ट से इसका सेशन भी करवा सकती हैं. ये हाइपरपिगमेंटेशन को कम करने के लिए सबसे अच्छा तरीका साबित हो सकता है.

कोजिक एसिड (Kojic Acid) वाले प्रोडक्ट

ये तत्व मेलेनिन उत्पादन को रोकते हैं और दाग-धब्बों को कम करने में मदद करते हैं.

एएचए युक्त प्रोडक्ट

यह एक्सफोलिएशन के माध्यम से स्किन की रंगत को एक समान करते हैं.

अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड (AHAs)

अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड जैसे ग्लाइकोलिक एसिड (Glycolic Acid) और लैक्टिक एसिड (Lactic Acid): ये मृत त्वचा को हटाते हैं और स्किन की बनावट को बेहतर बनाते हैं.

एंटीऑक्सीडेंट सप्लीमेंट्स का करें इस्तेमाल

अगर आपकी स्किन में काफी पहले से पैच पड़े हुए हैं या फिर स्किन की टोन अनईवन है तो आपको एंटीऑक्सीडेंट सप्लीमेंट्स इस्तेमाल करने चाहिए. ये फ्री रेडिकल्स से स्किन को फ्री करते हैं और अनईवन स्किन टोन को खत्म करते हैं.

हालांकि, इस तरह का कोई भी स्किन सप्लीमेंट लेने से पहले आपको डर्मेटोलॉजिस्ट से बात कर लेनी चाहिए. कई लोग बिना सोचे समझे फिश ऑयल, ओमेगा-3 फैटी एसिड्स वगैरह भरपूर मात्रा में ले लेते हैं जो उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. Uneven Skin Tone

Millets in Diet: इन आसान और स्वादिष्ट तरीकों से बनाएं हर मील स्पेशल

Millets in Diet: आजकल हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की चाह में लोग मिलेट्स (ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, कांगनी आदि) को फिर से अपनी डाइट में शामिल करने लगे हैं. ये न केवल ग्लूटेन-फ्री होते हैं बल्कि फाइबर, मिनरल्स और प्रोटीन से भरपूर होते हैं. अगर आप भी अपने रोजमर्रा के खाने में मिलेट्स को अपनाना चाहते हैं, तो यहां कुछ आसान और स्वादिष्ट तरीके दिए जा रहे हैं.

  1. नाश्ते में मिलेट्स

मिलेट उपमा या पोहा: सूजी या चावल की जगह ज्वार/बाजरा या कुटकी के दानों से उपमा या पोहा बनाएं.

रागी डोसा या चिल्ला: रागी का बैटर बनाकर पतला डोसा या नमकीन चिल्ला तैयार करें.

मिलेट खिचड़ी: सब्जियों के साथ मिलेट खिचड़ी, हल्की और पौष्टिक सुबह का विकल्प है.

2. लंच में मिलेट्स

मिलेट रोटी: गेहूं के आटे में बाजरा या ज्वार का आटा मिलाकर रोटियां बनाएं.

मिलेट पुलाव: ब्राउन राइस या सफेद चावल की जगह मिलेट्स से वेज पुलाव तैयार करें.

मिलेट दालिया: दाल और सब्जियों के साथ मिलेट दालिया पेट भरने के साथ ऊर्जा भी देता है.

3. स्नैक्स और हल्के खाने में

मिलेट कुकीज: रागी या बाजरे के आटे से हेल्दी बिस्किट्स बनाएं.

पौप्ड मिलेट: जैसे पौपकौर्न बनाते हैं, वैसे ही पौप्ड बाजरा या ज्वार स्नैक के रूप में खाएं.

मिलेट कटलेट: उबले आलू और सब्जियों में मिलेट मिलाकर टेस्टी कटलेट बनाएं.

4. डिनर में मिलेट्स

मिलेट इडली: चावल की जगह मिलेट का बैटर इस्तेमाल करके इडली तैयार करें.

मिलेट सूप: मूंग दाल या सब्जियों के साथ मिलेट सूप हल्का और पौष्टिक होता है.

मिलेट दलिया दूध के साथ: मीठे में गुड़ डालकर रात में हल्का दलिया खाया जा सकता है.

5. पेय और डेजर्ट में

रागी माल्ट: दूध और गुड़ के साथ रागी का हेल्दी ड्रिंक.

मिलेट खीर: चावल की जगह मिलेट से खीर बनाएं, स्वाद में कोई कमी नहीं आएगा.

टिप्स

शुरुआत में धीरेधीरे मिलेट को डाइट में शामिल करें, ताकि आपका पाचन इसे आसानी से अपना सके. अलग-अलग मिलेट्स को मौसम और स्वाद के अनुसार बदलते रहें. गुड़, ताजी सब्जियां और देसी घी के साथ मिलेट्स का स्वाद और पोषण बढ़ जाता है.

Millets in Diet

15 August पर पतंग उड़ाने का है प्लान, तो इन बातों को न करें नजरअंदाज

15 August: जब एक पतंग हवा में उड़ती है, तो ऐसा लगता है जैसे वह हवा से बातें कर रही है. यह एक खूबसूरत दृश्य होता है, खासकर जब पतंग आसमान में ऊंची उड़ रही हो. कभी ना कभी हम सभी ऐसे नजरों का मजा लेना चाहते हैं. इसके लिए हम पतंग उड़ाते हैं.

अगर आप भी पतंग उड़ाने के शौकीन है तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें ताकि ये एन्जॉय के पल कहीं उदासी में ना बदल जाएं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं. क्योंकि पतंगबाजी के लिए काफी लोग आज भी चाइनीज मांझे का इस्तेमाल करते है जो लोगों को नुकसान पहुंचाने का काम करता है.

दरअसल, पतंगबाजी के दौरान हर साल कई मामले ऐसे सामने आते हैं जिसमें चाइनीज मांझे के इस्तेमाल से लोगों के गले में कट लग गया तो कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हो जातें हैं. ऐसे में इस बार ऐसी घटनाएं नहीं हो इसको लेकर कुछ ट्रिक्स है. इसके अलावा भी पतंग खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें ये भी पता होना चाहिए.

पतंग खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें –

जब भी पतंग खरीदे, तो कोशिश करें कि पतंग बड़ी ही खरीदें. छोटी पतंग को उड़ने में मेहनत ज्यादा होती है और वह हवा के रुख के साथ उड़ती है और अगर हवा का रुख ठीक नहीं है या हवा नहीं चल रही तो उसे उड़ाना मुश्किल हो जाएगा.

आजकल बाजार में कई रंग बिरंगी पतंगें आती है जिनमें डिजाइन के लिए कई कलर का कागज जोड़ दिया जाता है. लेकिन इस कागज को जोड़ने के लिए जो जोड़ लगाया जाता है मांझा उसमें फंस जाता है और पतंग को फाड़ देता है इसलिए एक ही कलर की पतंग खरीदना अच्छा रहता है.

पतंग भी कई तरह की होती हैं. खासतौर पर प्लास्टिक की पन्नी से बानी पतंग बच्चों को बहुत पसंद आती है क्यूंकि वे उड़ते हुए आवाज करती है. जो बच्चों को अच्छा लगता है.

पतंग में लगी हुए तीलियां न ज्यादा बड़ी और मोटी होनी चाहिए और ना ही ज्यादा छोटी और पतली होनी चाहिए. अगर वह बड़ी होगी तो पतंग उड़ने में बाधा पैदा करेगी और अगर छोटी और पतली होगी तो पतंग को संभाल नहीं पाएगी.

साइज के हिसाब से बाजार में चार किस्म की पतंगें मिलती हैं. छोटी (10×10 इंच), मंझोली (13×13 इंच), अद्धी (16×16 इंच) और पौनी (20×20 इंच). अब आप अपने हिसाब से देख लें. अगर पतंग बच्चों के लिए है, तो सबसे छोटे साइज की पतंग लेनी चाहिए और बड़े देख लें जिस साइज में वो कम्फर्टेबल हो वो पतंग लें.

मांझा खरीदतें समय किन बातों का ध्यान रखें- 

  • मैटलिक मांझा ना खरीदें. इस चीनी मांझे को धारदार बनाने के लिए इस पर पिसे हुए लोहे की परत चढ़ाई जाती है. यह मांझा उंगलियों और हाथ को नुकसान पहुंचा सत्ता है. इससे उंगलियां काटने का दर बना रहता है. साथ ही अगर ये बिजली की तारों पर पड़ गया तो करंट से जान को भी खतरा हो सकता है.
  • अब नए तरह के ईको फ्रेंडली मांझे खरीदें इससे कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता और ये पक्षियों को भी नुक्सान नहीं पहुंचाते.
  • मांझें का धागा बिलकुल सूखा हुआ होना चाहिए तभी वह बाकी की पतंग काटने के लायक होगा.
  • मांझें की चकरी को भी चेक कर लें. अगर वह अनइवन होगी तो माझा उसमे फंसेगा और सही से नहीं निकल पाएगा इससे परेशानी होगी. कहा जाता है कि डार्क कलर के मांझे पर रंग चढ़ाया जाता है जिससे वह मजबूत हो जाता है इसलिए गहरे रंग का मांझा ही खरीदें.
  • माझें की मोटाई भी देख लें बहुत मोटे मांझे से सामने वाले की पतंग आसानी से नहीं कटती इसलिए मांझे की मोटाई अपने हिंसा से अच्छे से चेक करके ही लें.
  • प्लास्टिक का मांझा सही नहीं रहता है. लेकिन धागे के मांझे का मुकाबला यह नहीं कर पाता. यह धागा भरी होता है और बिना हवा के जरा भी नहीं चल पाता.

पतंग उड़ातें समय किन बातों का ध्यान रखें-

  • पतंग उड़ाने से पहले जरूरी काम यह करना है कि अंगूठे के बाद वाली उंगली पर डॉक्टर टेप (बैंड-एड) लपेट लें. ऐसा करने से पतंग उड़ाते वक्त मांझे से उंगली के कटने का खतरा नही रहेगा.
  • पतंग उड़ाने के लिए हवा का रुख किस तरफ का है ये चेक कर लें और फिर उसी तरफ पतंग उडाएं.
  • आप जिस जगह से पतंग उड़ा रहें हैं इस बात का ध्यान रखें की वहां दीवार होनी चाहिए अगर कोई मुंडेर या दीवार नहीं होगा तो गिरने का खतरा बना रहेगा क्योंकि पतंग उड़ाते समय ध्यान नहीं रहता और छत से गिरने के बहुत से हादसे हो जाते हैं.
  • पतंग उड़ाते वक्त सनग्लासेज पहन लें इससे सीधी धुप आंखों पर नहीं पड़ेगी.
  • पतंग में छेद करने के लिए माचिस या लकड़ी की तीली का इस्तेमाल करें. इससे पतंग नहीं फटेगी. पतंग को जमीन पर घिसकर छेद करने से वह बड़ा हो सकता है और पतंग फट भी सकती है. पतंगबाजी शुरू करने से पहले कई पतंगों के कन्ने बांधकर रख लें ऐसा करके बार-बार कन्ने बांधने की टेंशन से बचा जा सकता है.
  • कटकर आती पतंग को पकड़ने में जल्दबाजी न दिखाएं. पतंग पकड़ने के लिए बांस, झाड़ी आदि का इस्तेमाल न करें. जब कटी पतंग आराम से आपकी छत पर आ जाए, उस पर हक जमा सकते है.
  • पतंग उड़ाते वक्त आकाश में उड़ती दूसरी पतंगों से पेच लड़ाना ही पड़ता है, इसलिए पतंग उड़ाते वक्त उसके साथ कम से कम 200 मीटर तक मांझा बांध लें. उसके बाद सद्दी जोड़ लें. इस बात का ध्यान रखना है कि जब पतंग हवा में हो तो हाथ में किसी हाल में मांझा नहीं होना चाहिए. मांझा हवा में होना चाहिए और सद्दी हाथों में. यह सुविधाजनक रहता है.
  • अगर आपकी पतंग कट गई है और आप डोर खींच रहे हैं, ऐसे में कोई डोर पकड़ ले तो अपनी डोर को हाथ से तोड़ दें. इससे डोर का थोड़ा नुकसान तो होगा, लेकिन न तो टेंशन होगी और न ही उंगली कटने का डर रहेगा.
  • सबसे पहले तो यह ध्यान रखना है कि पेच हमेशा मांझे से ही लड़ाना है. अगर सद्दी से पेच लड़ाया तो पतंग कट जाएगी. यह कन्फर्म कर लें कि जब किसी दूसरी पतंग से पेच लड़ाने जा रहे हैं तो उस वक्त मांझा टकराना चाहिए न कि सद्दी.
  • अगर पतंग किसी बिजली के खम्बे या किसी ऊँची जगह फंस गए हैं तो उसे उतारने में खुद को ही नुक्सान ना पहुंचाएं. करंट आदि आने की सम्भावना बानी रहती है इसलिए उससे बचकर रहें.
  • चाइनीज मांझे की वजह से बहुत से हादसे होते हैं इसलिए इससे बचकर रहें.

लेकिन फिर भी अगर चाइनीज मांझा गले या शरीर के किसी अंग में फंस गया है तो घबराएं नहीं. ऐसा करने से झटका लग सकता है, जिससे मांझा से गहरा कट लग सकता है. शरीर को स्थिर रख मांझा को निकालने का प्रयास करें. धीरे धीरे किसी नुकीले चीज या कैंची से काटकर उसे निकालें.

  • अगर मांझा गले में फंस गया है तो मांझा और स्किन के बीच वहां कोई रुमाल आदि बांध दें. ताकि मांझा गले के हिट ना करें.
  • अगर आपके आसपास काफी पतंग उड़ती है तो आप टू व्हीलर पर जाने से पहले हैलमेट लगाए और गले में कोई मफलर बांध कर ही निकलें ताकि किसी भी हादसे से बच सकें.

चाइनीज मांझा के इस्तेमाल पर जुर्माना व सजा

दिल्ली पुलिस ने बताया कि चाइनीज मांझा बनाना, बेचना, रखना, खरीदना या उससे पतंग उडाना दंडनीय अपराध है, जिसके लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत 5 साल तक की कैद या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

दिल्ली पुलिस ने लोगों से अपील की है कि यदि आप कहीं चाइनीज मांझे की बिक्री या उपयोग होते देखें, तो तुरंत 112 पर कॉल करें और रिपोर्ट करें. पुलिस ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे इस मुहिम में पुलिस का साथ दें और खुद भी सुरक्षित रहें. सबसे पहले तो यह ध्यान रखना है कि पेच हमेशा मांझे से ही लड़ाना है. अगर सद्दी से पेच लड़ाया तो पतंग कट जाएगी. यह कन्फर्म कर लें कि जब किसी दूसरी पतंग से पेच लड़ाने जा रहे हैं तो उस वक्त मांझा टकराना चाहिए न कि सद्दी.

अगर पतंग किसी बिजली के खम्बे या किसी ऊँची जगह फंस गए हैं तो उसे उतारने में खुद को ही नुक्सान ना पहुंचाएं. करंट आदि आने की सम्भावना बानी रहती है इसलिए उससे बचकर रहें.

चाइनीज मांझे की वजह से बहुत से हादसे होते हैं इसलिए इससे बचकर रहें.

लेकिन फिर भी अगर चाइनीज मांझा गले या शरीर के किसी अंग में फंस गया है तो घबराएं नहीं. ऐसा करने से झटका लग सकता है, जिससे मांझा से गहरा कट लग सकता है. शरीर को स्थिर रख मांझा को निकालने का प्रयास करें. धीरे धीरे किसी नुकीले चीज या कैंची से काटकर उसे निकालें.

अगर मांझा गले में फंस गया है तो मांझा और स्किन के बीच वहां कोई रुमाल आदि बांध दें. ताकि मांझा गले के हिट ना करें.

अगर आपके आसपास काफी पतंग उड़ती है तो आप टू व्हीलर पर जाने से पहले हैलमेट लगाए और गले में कोई मफलर बांध कर ही निकलें ताकि किसी भी हादसे से बच सकें. 15 August

15 August Special: छुट्टी- बलवंत सिंह ने क्या कहा था

15 August Special: पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.

‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों  यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.

कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’

‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी ’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.

‘‘कैसी मुश्किल ’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है.  हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.

‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है ’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब… ’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.

‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.

‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझा जाए.

‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी

पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’

‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे  कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है  अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.

‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘ओए बलवंत…’’

‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.

गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.

‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न ’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.

‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.

‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.

‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया ’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.

‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.

‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.

उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया.

बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.

‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया ’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.

‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के

3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’

‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.

‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.

‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’

‘‘क्या… ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’

‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे ’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’

‘‘साहबजी, एक बात बोलूं ’’

‘‘बोलो…’’

‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.

‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.

मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा.

15 August Special

Indian Soldier Story: बुराई में अच्छाई- धांसू आइडिया में अच्छाई का शहद

Indian Soldier Story: आवश्यकता आविष्कार की जननी है. बचपन में मास्टर साहब ने यह सूत्रवाक्य रटाया था मगर इस का अर्थ अब समझ में आया है. दरअसल, लोकतंत्र में बाबू, अफसर, नेता सभी आम जनता की सेवा कर मेवा खा रहे हैं. लेकिन बेचारे फौजी अफसर क्या करें? उन की तो तैनाती ही ऐसी जगह होती है जहां न तो ‘आम रास्ता’ होता है न ‘आम जनता’ होती है. ऐसे में बेचारे कैसे करें किसी की सेवा और कैसे खाएं मेवा? मगर भला हो उस वैज्ञानिक का जिस ने ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ नामक फार्मूला बनाया था. फौजियों के बीवीबच्चे भी खुशहाल जिंदगी जी सकें, इस के लिए जांबाजों ने मलाई जीमने के नएनए फार्मूले ईजाद कर डाले. ऐसेऐसे जो  ‘न तो भूतो और न भविष्यति’ की श्रेणी में आएं.

एक बहादुर अफसर ने तो अपने ही जवानों को टमाटर का लाल कैचअप लगा कर लिटा दिया और फोटो खींचखींच कर अकेले दम दुश्मनों से मुठभेड़ का तमगा जीत लिया. वह तो बुरा हो उन विभीषणों का जिन्होंने चुगली कर दी वरना अब तक वीरता के सारे पुरस्कार अगले की जेब में होते. कुछ लोगों को इस मामले में बुराई नजर आती है. मगर मुझे तो इस में ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं (जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी वाला मामला). भारतीय जवानों की वीरता, अनुशासन, वफादारी और फरमांबरदारी के किस्से तो पुराने जमाने से मशहूर हैं.

वे अपने अफसरों के हुक्म पर हंसतेहंसते प्राण निछावर कर देते हैं. कभी उफ नहीं करते. अब अफसर ने कहा, प्राण निछावर करने की जरूरत नहीं, बस, लाल कैचअप लगा कर मुरदा बन जाओ. बेचारों ने उफ तक नहीं की और झट से मुरदा बन फोटो खिंचवा ली. है किसी और सेना में अनुशासन की इतनी बड़ी मिसाल?

बालू से तेल निकालने के किस्से तो आप ने बहुत सुने होंगे लेकिन चाइना बौर्डर पर टाइमपास कर रहे कुछ अफसरों ने पानी से तेल निकाल ईमानदारी के सीने पर नए झंडे गाड़ दिए हैं. अगलों ने फौजी टैंकों के लिए पैट्रोल पहुंचाने वाले टैंकरों में शुद्ध जल सप्लाई कर दिया. बाकायदा हर चैकपोस्ट पर टैंकरों की ऐंट्री हुई ताकि कागजपत्तर पर हिसाब पक्का रहे.

उस के बाद गश्त लगाते लड़ाकू टैंक कितने किलोमीटर चले, उन का प्रति लिटर ऐवरेज क्या है और वे कितना पैट्रोल पी गए, यह या तो ऊपर वाला जानता है या जुगाड़खोर अफसर. कुछ लालची ड्राइवरों के चलते हिसाबकिताब गड़बड़ा गया वरना सबकुछ रफादफा रहता और चारों ओर शांति छाई रहती.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. लेकिन, मुझे तो इस में भी ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं. ऊपर वाला न करे लेकिन अगर कभी दुश्मन की सेना आप के चैकपोस्ट पर कब्जा कर ले और वहां आप के डीजलपैट्रोल से भरे टैंकर खड़े हों तो क्या होगा? आप का ही तेल भर कर वह आप के सीने पर चढ़ी चली आएगी.

लेकिन अगर टैंकरों में पानी भरा हो तो बल्लेबल्ले हो जाएगी. गलतफहमी में दुश्मन मुफ्त का तेल समझ उन टैंकरों से पानी अपने टैंकों में भर लेंगे और थोड़ी दूर चलने के बाद उन के टैंक टें बोल जाएंगे. है न बिलकुल आसान तरीका दुश्मन को चित करने का.

ये सब तो हुई पुरानी बातें. हाल ही में प्रतिभाशाली फौजियों ने जन कल्याण का ऐसा फार्मूला ईजाद किया कि दांतों तले उंगलियां दबाई जाएं या उंगलियों से दांत दाबे जाएं, तय करना मुश्किल है. किसी भले आदमी ने कानून बना दिया कि कश्मीर में गोलाबारूद, विस्फोटक का पता बताने वालों को  30 से 50 हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा. बस, लग गई लौटरी हाथ. अगलों ने खाली डब्बों में काले रंग की बालू भर दी और तारवार जोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर रखवा दिया. उस के बाद? अरे भैया, उस के बाद क्या पूछते हो?

जानते नहीं कि इतनी बड़ी फौज का इतना बड़ा नैटवर्क चलाने के लिए मुखबिरों की टीम बनानी बहुत जरूरी है और उस से भी ज्यादा जरूरी है मुखबिरों को खुश रखना. बेचारे जान जोखिम में डाल कर फौज के लिए सूचनाएं लाते हैं. अब नियमानुसार तो नियम से ज्यादा रकम मुखबिरों को दी नहीं जा सकती और उतने में मुखबिर काम करने को राजी नहीं होते.

इसीलिए अगलों ने अपने मुखबिरों से ही उन नकली विस्फोटकों के छिपे होने की सूचना दिलवा दी और फटाक से छापा मार उसे बरामद करवा दिया. बस, 30 से 50 हजार रुपए तक का इनाम पक्का. अब भैया, मुखबिर कोई बेईमान तो होते नहीं जो सारा माल खुद हड़प जाएं. सुना है बेचारे आधा इनाम पूरी ईमानदारी से हुक्मरानों को सौंप देते हैं ताकि उन के भी परिवार पलते रहें वरना खाली तनख्वाह में आजकल होता क्या है.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. (पता नहीं इस देश के लोग इतनी संकीर्ण मानसिकता वाले क्यों हैं?) मगर मुझे तो इस में अच्छाइयों का महासागर नजर आता है. कुछ अच्छाइयां गिनवा देता हूं. पहली बात ऐसी घटनाओं से मुखबिरों और उन के खास अफसरों के दिन बहुरे, ऊपर वाला करे ऐसे ही सब के दिन बहुरें.

दूसरी बात यह है कि इस से पाकिस्तान का असली चेहरा  सामने आ गया. वह कैसे? अरे भैया, इतना भी नहीं समझे? देखो, एक जमाने से पूरी दुनिया आरोप लगा रही है कि इंडिया में जो बमवम दग रहे हैं उस के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, जबकि वहां के बेचारे निर्दोष हुक्मरान एक जमाने से दुहाई दे रहे हैं कि भारत में चल रहे आतंकवाद में उन का कोई हाथ नहीं है. अब इस घटना से यह साफ हो गया है कि बमवम हमारे ही फौजी रखवा रहे हैं. इस से पाकिस्तान का चेहरा बेदाग साबित हो गया. दुनिया वालों को उस पर तोहमत लगाना छोड़ देना चाहिए.

अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि आईएसआई वालों ने बिना अपने मासूम हुक्मरानों की जानकारी के दोचार बम अपने एजेंटों से रखवा दिए होंगे तो उन में भी आपस में सिरफुटौव्वल हो जाएगी. वह कैसे? अरे भैया, आप तो कुछ भी नहीं समझते. सीधी सी बात है, भारतीय सेना जब दनादन विस्फोटक बरामद करेगी तो आईएसआई वाले अपने एजेंटों को हड़काएंगे कि तुम लोग एक भी काम ढंग से नहीं करते. ऐसी जगह बम लगाया जो बरामद हो गया.

इस के अलावा हम ने बारूद दिया था 2 बम लगाने का और तुम लोगों ने आधाआधा लगा दिया 2 जगह. तभी एक भी ढंग से नहीं फटा. बेचारे एजेंट अपनी सफाई देते रहें लेकिन उन की सुनेगा कोई नहीं. ताव खा कर वे आपस में लड़ मरेंगे. आखिर वे भी महान तालिबानी गुरुओं के महान चेले हैं. कोई ऐरेगैरे नहीं. बताइए, अगर ऐसा हुआ तो मजा आ जाएगा या नहीं? खामखां दुश्मन आपस में लड़ मरेंगे और अपनी पौबारह हो जाएगी. इसी को कहते हैं कि हींग लगे न फिटकरी और रंग निकले चोखा.

तो भैया, देखा आप ने, फौजी जो भी करते हैं देशहित में करते हैं. देशहित में कई बार उन को अपनी असली योजना गुप्त रखनी पड़ती है. इसलिए उन के कामों को ऊपरी नजर से मत देखिए. गहराई में जा कर देखेंगे तो आप को भी उन की हर हरकत में अच्छाई नजर आएगी. जैसे, मुझे नजर आ रही है. इसलिए, अब जरा जोर से बोलिए, जयहिंद.

Indian Soldier Story

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