Sad Story: दुख में अटकना नहीं- नंदिता के घर लौटने के बाद क्या हुआ

Sad Story: नंदिता ने जल्दी से घर का ताला खोला. 6 बज रहे थे. उन का पोता यश स्कूल से आने ही वाला था. उन्होंने फौरन हाथमुंह धो कर यश के लिए नाश्ता तैयार किया, साथसाथ डिनर की भी तैयारी शुरू कर दी. उन के हाथ खूब फुरती से चल रहे थे, मन में भी ताजगी सी थी. वे अभीअभी किटी पार्टी से लौटी थीं. सोसायटी की 15 महिलाओं का यह ग्रुप सब को बहुत अपना सा लगता था. सब महिलाओं को महीने के इस दिन का इंतजार रहता था. ये सब महिलाएं उम्र में 30 से 40 के करीब थीं. नंदिता उम्र में सब से बड़ी थीं लेकिन उन की चुस्तीफुरती देखते ही बनती थी. अपने शालीन और मिलनसार स्वभाव के चलते वे काफी लोकप्रिय थीं.नंदिता टीचर रही थीं और अभीअभी रिटायर हुई थीं. योग और सुबहशाम की सैर ने उन्हें चुस्तदुरुस्त रखा हुआ था. उन के इंजीनियर पति का कुछ साल पहले देहावसान हुआ था. वे अपने इकलौते बेटे मयंक और बहू किरण के साथ रहती थीं.

किटी पार्टी से जब वे घर आती थीं, उन का मूड बहुत तरोताजा रहता था. सब से मिलना जो हो जाता था. किरण भी औफिस जाती थी. घर की अधिकतर जिम्मेदारियां नंदिता ने अपने ऊपर खुशीखुशी ली हुई थीं. मयंक और किरण शाम को आते तो वे रात का खाना तैयार कर चुकी होती थीं. किरण घर में घुसते ही चहकती, ‘‘मां, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है, आप ने तो सब काम कर लिया, कुछ मेरे लिए भी छोड़ देतीं.’’

मयंक हंसता, ‘‘किरण, क्या सास मिली है तुम्हें, भई वाह.’’

किरण नंदिता के गले में बांहें डाल देती, ‘‘सास नहीं, मां हैं मेरी.’’

बहूबेटे के इस प्यार पर नंदिता का मन खुश हो जाता, कहतीं, ‘‘सारा दिन तो अकेली रहती हूं, काम करते रहने से समय का पता नहीं चलता.’’

नंदिता का हौसला सब ने उन के पति की मृत्यु पर देख लिया था, उन के बेटेबहू का लियादिया स्वभाव किसी को पसंद नहीं आया था.

अपने पति की मृत्यु के बाद जब अगले महीने की किटी पार्टी में नंदिता आईं तो सब महिलाएं उन के दुख से दुखी व गंभीर थीं लेकिन उन्होंने अपनेआप को बहुत ही सामान्य रखा. सब महिलाओं के दिल में उन के लिए इज्जत और बढ़ गई. उन्होंने सब के चेहरे पर छाई गंभीरता को दूर करते हुए कहा, ‘‘तुम लोग याद रखना, सुख में भटकना नहीं और दुख में अटकना नहीं, जब सुख मिले उसे जी लो, दुख मिले उसे भी उतनी ही खूबी से जिओ, बिना किसी शिकायत के. उस का अंश, उस की खरोंचें मन पर न रहने दो. उस के परिणाम भी बड़ी हिम्मत से स्वीकार लो और सहज ही पार हो जाओ. जीवन का यही तो मर्म है जो मैं समझ चुकी हूं.’’

सब महिलाएं नम आंखों से उन्हें सुनती रहीं. स्वभाव से अत्यंत नम्र, सहनशील, शांत, स्वाभिमानी, अपनी अपेक्षा दूसरों के सुखों और भावनाओं का ध्यान रखने वाली, जितनी तारीफ करें उतनी कम. इतने सारे गुण इस एक में कैसे आ गए, यह सोच कई बार महिलाएं हैरान रह जातीं.

फिर उन में आए कुछ परिवर्तन सभी ने महसूस किए. वे अचानक सुस्त और बीमार रहने लगीं और जब वे किटी में भी नहीं आईं तो सब हैरान हुईं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, उन्हीं की बिल्ंिडग में रहने वाली रेनू और अर्चना उन्हें देखने गईं तो वे बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे, आओ, आज कैसी रही पार्टी, लेटेलेटे तुम्हीं लोगों में मन लगा रहा आज तो मेरा.’’

उन्हें कई दिनों से बुखार था, उन के कई टैस्ट हुए थे, रिपोर्ट आनी बाकी थी. उन की तबीयत ज्यादा खराब हुई तो उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा. सब उन्हें देखने अस्पताल जाते रहे. वे सब को देख कर खुश हो जातीं.

उन की रिपोर्ट्स आ गईं. मयंक को बुला कर डा. गौतम ने कहा, ‘‘मि. मयंक, आप की मदर का एचआईवी टैस्ट पौजिटिव आया है, इंफैक्शन अब स्टेज-3 एड्स में बदल गया है जिस की वजह से उन के शरीर के कई अंग जैसे किडनी, बे्रन आदि प्रभावित हुए हैं.’’

मयंक अवाक् बैठा रहा, थोड़ी देर बाद अपने को संयत कर बोला, ‘‘मम्मी तो अपने स्वास्थ्य का इतना ध्यान रखती हैं, धार्मिक हैं,’’ फिर थोड़ा सकुचाते हुए बोला, ‘‘पापा भी कुछ साल पहले नहीं रहे, उन्हें यह बीमारी कहां से हो गई?’’

डा. गौतम गंभीरतापूर्वक बोले, ‘‘आप तो पढ़ेलिखे हैं, धर्म और एड्स का क्या लेनादेना? क्या शारीरिक संबंध ही एक जरिया है एचआईवी फैलने का और अब कब, क्यों, कैसे से ज्यादा जरूरी है कि उन की जान कैसे बचाई जाए? आज कई तरह के इलाज हैं जिन से इस बीमारी को रोका जा सकता है पर सब से जरूरी है उन्हें इस बारे में बताना जिस से वे खुद भी सारी सावधानियां बरतें और इलाज में हमारा साथ दें क्योंकि अब हमें उन्हें एड्स सैल में शिफ्ट करना पड़ेगा.’’

मयंक ने डा. गौतम को ही उन्हें बताने के लिए कहा. पता चलने पर नंदिता सन्न रह गईं. कुछ देर बाद मयंक आया तो मां से नजरें मिलाए बिना सिर नीचा किए बैठा रहा. नंदिता गौर से उस का चेहरा देखती रहीं, फिर अपने को संभालती हुई हिम्मत कर के बोलीं, ‘‘इतने चुप क्यों हो, मयंक?’’

‘‘मां, आप को यह बीमारी कैसे…’’

बेटे को सारी स्थिति समझाने के लिए स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने बताना शुरू किया, ‘‘तुम्हें याद होगा, तुम्हारे पापा का जब वह भयंकर ऐक्सिडैंट हुआ था तो उन्हें खून चढ़ाना पड़ा था. उस समय किसी को होश नहीं था और जिन लोगों ने ब्लड डोनेट किया था उन में से शायद किसी को यह बीमारी थी, ऐसा डाक्टरों ने बाद में अंदाजा लगाया था. तुम्हारे पापा उस दुर्घटना में उस समय तो बच गए लेकिन इस बीमारी ने उन के शरीर में तेजी से फैल कर उन की जान ले ली थी. मैं ने सब को यही बताया था कि उन का हार्टफेल हुआ है. मैं उन की मृत्यु को कलंकित नहीं होने देना चाहती थी.

‘‘तुम्हें याद होगा तुम भी उस समय होस्टल में थे और उन की मृत्यु के बाद ही घर पहुंचे थे. हमारा समाज ऊपर से परिपक्व दिखता है पर अंदर से है नहीं. एड्स को ले कर हमारा समाज आज भी कई तरह के पूर्वाग्रहों से पीडि़त है.’’

मयंक की आंखें मां का चेहरा देखतेदेखते भर आईं. वह उठा और चुपचाप घर लौट गया.

नंदिता को एड्स सैल में शिफ्ट कर दिया गया. वे सोचतीं यह बीमारी इतनी भयानक नहीं है जितना कि इस से बनने वाला माहौल. सब अपनेअपने दर्द से दुखी थे. उस वार्ड में 60 साल के बूढ़े भी थे और 18 साल के युवा भी. उस माहौल का असर था या बीमारी का, उन की हालत बद से बदतर होती जा रही थी. रोज किसी न किसी टैस्ट के लिए उन का खून निकाला जाता जिस में उन्हें बहुत कष्ट होता, कितनी दवाएं दी जातीं, कितने इंजैक्शन लगते, वे दिनभर अपने बैड पर पड़ी रहतीं. अब उन के साथ बस उन का अकेलापन था. वे रातदिन मयंक, किरण और यश से बात करने के लिए तड़पती रहतीं लेकिन बीमारी का पता चलने के बाद से किरण ने तो अस्पताल में पैर ही नहीं रखा था और अब मयंक कईकई दिन बाद आता भी तो खड़ेखड़े औपचारिकता सी निभा कर चला जाता.

नंदिता का कलेजा कट कर रह जाता, यह क्या हो गया था. उन्हें देखने सोसायटी से उन के ग्रुप की कोई महिला आती तो जैसे वे जी उठतीं. कुछ महिलाएं समय का अभाव बता कर कन्नी काट जातीं लेकिन कई महिलाएं उन से मिलने आती रहतीं. वे सब के हालचाल पूछतीं. किसी का मन होता जा कर मयंक और किरण से उन के हालचाल पूछें लेकिन दोनों का स्वभाव देख कर कोई न जाता. वैसे भी महानगर के लोगों को न तो ज्यादा मतलब होता है और न ही कोई आजकल अपने जीवन में किसी तरह का हस्तक्षेप स्वीकार करता है, खासकर मयंक और किरण जैसे लोग.

कोई जब भी नंदिता को देखने जाता तो लगता उन्हें कहीं न कहीं जीने की इच्छा थी, इसी इच्छाशक्ति के जोर पर वे बहुत तेजी से ठीक होने लगीं और 5 महीने बाद वे पूरी तरह से स्वस्थ और सामान्य हो गईं. वे बहुत खुश थीं. एक बड़ा युद्ध जीत कर मृत्यु को हरा कर वे घर लौट रही थीं पर वे यह नहीं जानती थीं कि इन 5 महीनों में सबकुछ बदल चुका था.

उन्हें घर लाते समय मयंक बहुत गंभीर था. नंदिता ने सोचा इतने दिनों से सब को असुविधा हो रही है, थोड़े दिनों में सब पहले की तरह ठीक हो जाएगा. वे जल्दी से जल्दी यश को देखना चाहती थीं और यश की वजह से किरण भी उन से नहीं मिलने आ पाई. उसे कितना दुख होता होगा. यही सब सोचतेसोचते घर आ गया. मयंक पूरे रास्ते चुप रहा था. बस, हांहूं करता रहा था.

मयंक ने ही ताला खोला तो वे चौंकी, ‘‘किरण नहीं है घर पर?’’

मयंक चुप रहा. उन का बैग अंदर रखा. नंदिता ने फिर पूछा, ‘‘किरण और यश कहां हैं?’’

‘‘मां, आप की बीमारी पता चलने के बाद किरण यश के साथ यहां नहीं रहना चाहती थी. हम लोगों ने किराए पर फ्लैट ले लिया है.’’

नंदिता को लगा, सारी मोहमाया, प्यार और विश्वास के बंधन एक झटके में टूट गए हैं, उन की सारी संवेदनाएं ही शून्य हो गईं. उदास, शुष्क, खालीखाली, विरक्त आंखों से मयंक को देखती रहीं, फिर चुपचाप हतप्रभ सी वेदना के महासागर में डूब कर बैठ गईं. वे एकाकी, मौन, स्तब्ध बैठी रहीं तो मयंक ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘मां, एक फुलटाइम मेड का प्रबंध कर दिया है, वह आने वाली होगी. आप को कोई परेशानी नहीं होगी और फोन तो है ही.’’

नंदिता चुप रहीं और मयंक चला गया.

लताबाई ने आ कर सब काम संभाल लिया. नंदिता के अस्पताल से घर आने का पता चलते ही उन की सहेलियां उन से मिलने पहुंच गईं. उन के घर का सन्नाटा महसूस कर के उन की आंखों की उदासी देख कर उन की सहेलियां जिन भावनाओं में डूबी थीं, उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे उन के पास और जहां शब्द हार मानते हैं वहां मौन बोलता है.

नंदिता सब के हालचाल पूछती रहीं और स्वयं को सहज रखने का प्रयत्न करते हुए मुसकराने लगीं, बोलीं, ‘‘तुम लोग मेरे अकेले रहने के बारे में मत सोचो, इस की भी आदत पड़ जाएगी, सब ठीक है और तुम लोग तो हो ही, मैं अकेली कहां हूं.’’

सब उन की जिंदादिली पर हैरान हुए फिर अपनीअपनी गृहस्थी में सब व्यस्त हो गए. उन का अपना नियम शुरू हो गया. सुबहशाम सैर करतीं, अपनी हमउम्र महिलाओं के साथ गार्डन में थोड़ा समय बिता कर अपने घर लौट जातीं. सब ने गौर किया था वे अब कभी भी अपने बेटेबहू, पोते का नाम नहीं लेती थीं.

कुछ समय और बीता. आर्थिक मंदी की चपेट में किरण की नौकरी भी आ गई और मयंक को औफिस की टैंशन के कारण उच्च रक्तचाप रहने लगा. उस की तबीयत खराब रहने लगी. छुट्टी वह ले नहीं सकता था. दवा की एक प्राइवेट कंपनी में सेल्स मैनेजर था, काम का प्रैशर था ही. दोनों के शाही खर्चे थे, कोई खास बचत थी नहीं. अभी तक नंदिता के साथ रहता आया था. नंदिता के पास अपनी जमापूंजी भी थी, पति द्वारा सुरक्षित भविष्य के लिए संजोया धन था जिस से वे आज भी आर्थिक रूप से सक्षम थीं. अब लताबाई फुलटाइम मेड की तरह नहीं, बस सुबहशाम आ कर काम कर देती थी. नंदिता ने अकेले रहने की आदत डाल ली थी.

किरण के मातापिता अपने बेटे के साथ अमेरिका में रहते थे. किरण अपने जौब के लिए भागदौड़ कर रही थी. यश की देखभाल उचित तरीके से नहीं हो पा रही थी. मयंक और किरण को नंदिता की याद आने लगी. अब उन्हें नंदिता की जरूरत महसूस हुई. वैसे भी नंदिता अब स्वस्थ हो चली थीं.

एक दिन दोनों यश को ले कर नंदिता के पास पहुंच गए. नंदिता के पास उन की कुछ सहेलियां बैठी हुई थीं. मयंक पहले चुपचाप बैठा रहा, फिर उन से धीरे से बोला, ‘‘मां, आप से कुछ अकेले में बात करनी है.’’

उन की सहेलियों ने उठने का उपक्रम किया तो नंदिता ने टोका, ‘‘ये सब मेरी अपनी हैं, मेरे दुखसुख की साथी हैं, जो कहना हो, कह सकते हो.’’

मयंक को संकोच हुआ, किरण सिर झुकाए बैठी थी, यश नंदिता की गोद में बैठ चुका था.

मयंक ने कहा, ‘‘मां, हम यहां आप के पास आ कर रहना चाहते हैं. हम से गलती हुई है, हमें माफ कर दो.’’

नंदिता ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘नहीं, अब तुम लोग यहां नहीं रहोगे.’’

मयंक सिर झुकाए अपनी परेशानियां बताता रहा, अपनी आर्थिक और शारीरिक समस्याओं को बताते हुए वह माफी मांगता रहा. सुषमा और अर्चना ने नंदिता के कंधे पर हाथ रख कर बात खत्म करने का इशारा किया तो नंदिता ने कहा, ‘‘नहीं सुषमा, इन्हें भी एहसास होना चाहिए कि परेशानी के समय जब अपने हाथ खींचते हैं तो जीवन कितना बेगाना लगता है, विश्वास नाम की चीज कैसे चूरचूर हो जाती है. मैं समझ चुकी हूं और सब से कहती हूं अपने बच्चों को पालते हुए अपने बुढ़ापे को नहीं भूलना चाहिए, वह तो सभी पर आएगा.

‘‘संतान बुढ़ापे में तुम्हारा साथ दे न दे पर तुम्हारा बचाया पैसा ही तुम्हारे काम आएगा. संतान जब दगा दे जाती है तब इंसान कैसे लड़ता है बुढ़ापे के अकेलेपन से, बीमारियों से, कदम दर कदम पास आती मौत की आहट से, कैसे? यह मैं ही जानती हूं कि पिछला समय मुझे क्या सिखा कर बीता है. मां बदला नहीं चाहती लेकिन हर मातापिता अपनी संतान से कहना चाहते हैं कि जो हमारा आज है वही उन का कल है लेकिन आज को देख कर कोई कल के बारे में कहां सोचता है बल्कि कल के आने पर आज को याद करता है,’’ बोलतेबोलते उन का कंठ भर आया.

कुछ पल मौन छाया रहा. मयंक और किरण ने हाथ जोड़ लिए, ‘‘हमें माफ कर दो, मां. हम से गलती हो गई.’’

यश ने चुपचाप सब को देखा फिर नंदिता से पूछा, ‘‘दादी, मम्मीपापा सौरी बोल रहे हैं? अब भी आप गुस्सा हैं?’’

नंदिता यश का भोला चेहरा देख कर मुसकरा दीं तो सब के चेहरों पर मुसकान फैल गई. सुषमा और अर्चना खड़ी हो गईं, मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘हम चलते हैं.’’

नंदिता को लगा जीवन का सफर भी कितना अजीब है, कितना कुछ घटित हो जाता है अचानक, कभी खुशी गम में बदल जाती है तो कभी गम के बीच से खुशियों का सोता फूट पड़ता है. Sad Story

Hindi Family Story: अपराधबोध- क्या हुआ था अंजु के साथ

Hindi Family Story: अपने मकान के दूसरे हिस्से में भारी हलचल देख कर अंजु हैरानी में पड़ गई थी कि इतने लोगों का आनाजाना क्यों हो रहा है. जेठजी कहीं बीमार तो नहीं पड़ गए या फिर जेठानी गुसलखाने में फिसल कर गिर तो नहीं गईं.

जेठानी की नौकरानी जैसे ही दरवाजे से बाहर निकली, अंजु ने इशारे से उसे अपनी तरफ बुला लिया.

चूंकि देवरानी और जेठानी में मनमुटाव चल रहा था इसलिए जेठानी के नौकर इस ओर आते हुए डरते थे.

अंजु ने चाय का गिलास नौकरानी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘थोड़ी देर बैठ कर कमर सीधी कर ले.’’

चाय से भरा गिलास देख कर नौकरानी खुश हो उठी, फिर उस ने अंजु को बहुत कुछ जानकारी दे दी और यह कह कर उठ गई कि मिठाई लाने में देरी हुई तो घर में डांट पड़ जाएगी.

यह जान कर अंजु के दिल पर सांप लोटने लगा कि जेठानी की बेटी निन्नी का रिश्ता अमेरिका प्रवासी इंजीनियर लड़के से पक्का होने जा रहा है.

जेठानी का बेटा डाक्टर बन गया. डाक्टर बहू घर में आ गई.

अब तो निन्नी को भी अमेरिका में नौकरी करने वाला इंजीनियर पति मिलगया.

ईर्ष्या से जलीभुनी अंजु पति और पुत्र दोनों को भड़काने लगी, ‘‘जेठजेठानी तो शुरू से ही हमारे दुश्मन रहे हैं. इन लोगों ने हमें दिया ही क्या है. ससुरजी की छोड़ी हुई 600 गज की कोठी में से यह 100 गज में बना टूटाफूटा नौकर के रहने लायक मकान हमें दे दिया.’’

हरीश भी भाई से चिढ़ा हुआ था. वह भी मन की भड़ास निकालने लगा, ‘‘भाभी यह भी तो ताने देती कहती हैं कि भैया ने अपनी कमाई से हमें दुकान खुलवाई, मेरी बीमारी पर भी खर्चा किया.’’

‘‘दुकान में कुछ माल होता तब तो दुकान चलती, खाली बैठे मक्खी तो नहीं मारते,’’ बेटे ने भी आक्रोश उगला.

अंजु के दिल में यह बात नश्तर बन कर चुभती रहती कि रहन- सहन के मामले में हम लोग तो जेठानी के नौकरों के बराबर भी नहीं हैं.

जेठजेठानी से जलन की भावना रखने वाली अंजु कभी यह नहीं सोचती थी कि उस का पति व्यापार करने के तौरतरीके नहीं जानता. मामूली बीमारी में भी दुकान छोड़ कर घर में पड़ा रहता है.

बच्चे इंटर से आगे नहीं बढ़ पाए. दोनों बेटियों का रंग काला और शक्लसूरत भी साधारण थी. न शक्ल न अक्ल और न दहेज की चाशनी में पगी सुघड़ता, संपन्नता तो अच्छे रिश्ते कहां से मिलें.

अंजु को सारा दोष जेठजेठानी का ही नजर आता, अपना नहीं.

थोड़ी देर में जेठानी की नौकरानी बुलाने आ गई. अंजु को बुरा लगा कि जेठानी खुद क्यों नहीं आईं. नौकरानी को भेज कर बुलाने की बला टाल दी. इसीलिए दोटूक शब्दों में कह दिया कि यहां से कोई नहीं जाएगा.

कुछ देर बाद जेठ ने खुद उन के घर आ कर आने का निमंत्रण दिया तो अंजु को मन मार कर हां कहनी पड़ी.

जेठानी के शानदार ड्राइंगरूम में मखमली सोफों पर बैठे लड़के वालों को देख कर अंजु के दिल पर फिर से सांप लोट गया.

लड़का तो पूरा अंगरेज लग रहा है, विदेशी खानपान और रहनसहन अपना-कर खुद भी विदेशी जैसा बन गया है.

लड़के के पिता की उंगलियों में चमकती हीरे की अंगूठियां व मां के गले में पड़ी मोटी सोने की जंजीर अंजु के दिल पर छुरियां चलाए जा रही थी.

एकाएक जेठानी के स्वर ने अंजु को यथार्थ में ला पटका. वह लड़के वालों से उन लोगों का परिचय करा रहे थे.

लड़के वालों ने उन की तरफ हाथ जोड़ दिए तो अंजु के परिवार को भी उन का अभिवादन करना पड़ा.

जेठजी कितने चतुर हैं. लड़के वालों से अपनी असलियत छिपा ली, यह जाहिर नहीं होने दिया कि दोनों परिवारों के बीच में बोलचाल भी बंद है. माना कि जेठजी के मन में अब भी अपने छोटे भाई के प्रति स्नेह का भाव छिपा हुआ है पर उन की पत्नी, बेटा और बेटी तो दुश्मनी निभाते हैं.

भोजन के बाद लड़के वालों ने निन्नी की गोद भराई कर के विवाह की पहली रस्म संपन्न कर दी.

लड़के की मां ने कहा कि मेरा बेटा विशुद्ध भारतीय है. वर्षों विदेश में रह कर भी इस के विचार नहीं बदले. यह पूरी तरह भारतीय पत्नी चाहता था. इसे लंबी चोटी वाली व सीधे पल्लू वाली निन्नी बहुत पसंद आई है और अब हम लोग शीघ्र शादी करना चाहते हैं.

अंजु को अपने घर लौट कर भी शांति नहीं मिली.

निन्नी ने छलकपट कर के इतना अच्छा लड़का साधारण विवाह के रूप में हथिया लिया. इस चालबाजी में जेठानी की भूमिका भी रही होगी. उसी ने निन्नी को सिखापढ़ा कर लंबी चोटी व सीधा पल्लू कराया होगा.

अंजु के घर में कई दिन तक यही चर्चा चलती रही कि जीन्सशर्ट पहन कर कंधों तक कटे बालों को झुलाती हुई डिस्को में कमर मटकाती निन्नी विशुद्ध भारतीय कहां से बन गई.

एक शाम अंजु अपनी बेटी के साथ बाजार में खरीदारी कर रही थी तभी किसी ने उस के बराबर से पुकारा, ‘‘आप निन्नी की चाची हैं न.’’

अंजु ने निन्नी की होने वाली सास को पहचान लिया और नमस्कार किया. लड़का भी साथ था. वह साडि़यों केडब्बों को कार की डिग्गी में रखवा रहा था.

‘‘आप हमारे घर चलिए न, पास मेंहै.’’

अंजु उन लोगों का आग्रह ठुकरा नहीं पाई. थोड़ी नानुकुर के बाद वह और उस की बेटी दोनों कार में बैठ गईं.

लड़के की मां बहुत खुश थी. उत्साह भरे स्वर में रास्ते भर अंजु को वह बतातीरहीं कि उन्होंने निन्नी के लिए किस प्रकारके आभूषण व साडि़यों की खरीदारी की है.

लड़के वालों की भव्य कोठी व कई नौकरों को देख अंजु फिर ईर्ष्या से जलने लगी. उस की बेटी के नसीब में तो कोई सर्वेंट क्वार्टर वाला लड़का ही लिखा होगा.

अंजु अपने मन के भाव को छिपा नहीं पाई. लड़के की मां से अपनापन दिखाती हुई बोली, ‘‘बहनजी, कभीकभी आंखों देखी बात भी झूठी पड़ जाती है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

अंजु ने जो जहर उगलना शुरू किया तो उगलती ही चली गई. कहतेकहते थक जाती तो उस की बेटी कहना शुरू कर देती.

लड़के की मां सन्न बैठी थी, ‘‘क्या कह रही हो बहन, निन्नी के कई लड़कों से चक्कर चल रहे हैं. वह लड़कों के साथ होटलों में जाती है, शराब पीती है, रात भर घर से बाहर रहती है.’’

‘‘अब क्या बताऊं बहनजी, आप ठहरीं सीधीसच्ची. आप से झूठ क्या बोलना. निन्नी के दुर्गुणों के कारण पहले भी उस का एक जगह से रिश्ता टूट चुका है.’’

अंजु की बातों को सुन कर लड़के की मां भड़क उठी, ‘‘ऐसी बिगड़ी हुई लड़की से हम अपने बेटे का विवाह नहीं करेंगे. हमारे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. सैकड़ों रिश्ते तैयार रखे हैं.’’

अंजु का मन प्रसन्न हो उठा. वह यही तो चाहती थी कि निन्नी का रिश्ता टूट जाए.

लोहा गरम देख कर अंजु ने फिर से चोट की, ‘‘बहनजी, आप मेरी मानें तो मैं आप को एक अच्छे संस्कार वाली लड़की दिखाती हूं, लड़की इतनी सीधी कि बिलकुल गाय जैसी, जिधर कहोगे उधर चलेगी.’’

‘‘हमें तो बहन सिर्फ अच्छी लड़की चाहिए, पैसे की हमारे पास कमी नहीं है.’’

लड़के की मां अगले दिन लड़की देखने के लिए तैयार हो गईं.

एक तीर से दो निशाने लग रहे थे. निन्नी का रिश्ता भी टूट गया और अपनी गरीब बहन की बेटी के लिए अच्छा घरपरिवार भी मिल गया.

अंजु ने उसी समय अपनी बहन को फोन कर के उन लोगों को बेटी सहित अपने घर में बुला लिया.

फिर बहन की बेटी को ब्यूटीपार्लर में सजाधजा कर उस ने खुद लड़के वालों के घर ले जा कर उसे दिखाया पर लड़के को लड़की पसंद नहीं आई.

अंजु अपना सा मुंह ले कर वापस लौट आई.

फिर भी अंजु का मन संतुष्ट था कि उस के घर शहनाई न बजी तो जेठानी के घर ही कौन सी बज गई.

निन्नी का रिश्ता टूटने की खुशी भी तो कम नहीं थी.

एक दिन निन्नी रोती हुई उस के घर आई, ‘‘चाची, तुम ने उन लोगों से ऐसा क्या कह दिया कि उन्होंने रिश्ता तोड़ दिया.’’

अंजु पहले तो सुन्न जैसी खड़ी रही, फिर आंखें तरेर कर निन्नी की बात को नकारती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा रिश्ता टूट गया, इस का आरोप तुम मेरे ऊपर क्यों लगा रही हो. तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि मैं ने उन लोगों से तुम्हारी बातें लगाई हैं.’’

‘‘लेकिन वे लोग तो तुम्हारा ही नाम ले रहे हैं.’’

‘‘मैं भला उन लोगों को क्या जानूं,’’ अंजु निन्नी को लताड़ती हुई बोली, ‘‘तुम दोनों मांबेटी हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती हो, रिश्ता टूटने का आरोप मेरे सिर पर मढ़ कर मुझे बदनाम कर रही हो. यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारी किसी गलती के कारण ही रिश्ता टूटा हो.’’

‘‘गलती… कैसी गलती? मेरी बेटी ने आज तक निगाहें उठा कर किसी की तरफ नहीं देखा तो कोई हरकत या गलती भला क्यों करेगी?’’ दीवार की आड़ में खड़ी जेठानी भी बाहर निकल आई थीं.

जेठानी की खूंखार नजरों से घबरा कर अंजु ने अपना दरवाजा बंद कर लिया.

इस घटना को ले कर दोनों घरों में तनाव की अधिकता बढ़ गई थी. फिर जेठजी ने अपनी पत्नी को समझा कर मामला रफादफा कराया.

एक रात अंजु का बेटा दफ्तर से घर लौटा तो उस के पास 500 और 1 हजार रुपए के नएनए नोट देख कर पूरा परिवार हैरान रह गया.

अंजु ने जल्दी से घर का दरवाजा बंद कर लिया और धीमी आवाज में रुपयों के बारे में पूछने लगी.

बेटे ने भी धीमी आवाज में बताया कि आज सेठजी अपना पर्स दुकान में ही भूल गए थे.

हरीश को बेटे की करतूत नागवार लगी, ‘‘तू ने सेठजी का पर्स घर में ला कर अच्छा नहीं किया. उन्हें याद आएगा तो वे तेरे ही ऊपर शक करेंगे. तू इन रुपयों को अभी उन्हें वापस कर आ.’’

आंखें तरेर कर अंजु ने पति से कहा, ‘‘तुम सचमुच के राजा हरिश्चंद्र हो तो बने रहो. हमें सीख देने की जरूरत नहीं है.’’

मांबेटा दोनों देर रात तक रुपयों को देखदेख कर खुश होते रहे और रंगीन टेलीविजन खरीदने के मनसूबे बनाते रहे.

सुबह किसी ने घर का दरवाजा जोरों से खटखटाया.

अंजु ने दरवाजा खोलने से पहले खिड़की से बाहर देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बेटे की दुकान का मालिक कई लोगों के साथ खड़ा था.

अंजु घबरा कर पति को जगाने लगी, ‘‘देखो तो, यह कौन लोग हैं?’’

बाहर खड़े लोग देरी होते देख कर चिल्लाने लगे थे, ‘‘दरवाजा खोलते क्यों नहीं? मुंह छिपा कर इस तरह कब तक बैठे रहोगे. हम दरवाजा तोड़ डालेंगे.’’

शोर सुन कर जेठजेठानी का पूरा परिवार बाहर निकल आया. उन को बाहर खड़ा देख कर अंजु का भी परिवार बाहर निकल आया.

‘‘आप लोग इस प्रकार से हंगामा क्यों मचा रहे हैं?’’ हरीश ने साहस कर के प्रश्न किया.

‘‘तुम्हारा लड़का दुकान से रुपए चुरा कर ले आया है,’’ मालिक क्रोध से आगबबूला हो कर बोला.

‘‘सेठजी, आप को कोई गलत- फहमी हुई है. मेरा बेटा ऐसा नहीं है. इस ने कोई रुपए नहीं चुराए हैं,’’ अंजु घबराहट से कांप रही थी.

‘‘हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा,’’ सारे लोग जबरदस्ती घर में घुसने लगे.

तभी जेठजी अंजु के घर के दरवाजे में अड़ कर खड़े हो गए, ‘‘तुम लोग अंदर नहीं जा सकते, हमारी इज्जत का सवालहै.’’

‘‘हमारे रुपए…’’

‘‘हम लोग चोर नहीं हैं, हमारे खानदान में किसी ने चोरी नहीं की.’’

‘‘यह लड़का चोर है.’’

‘‘आप लोगों के पास क्या सुबूत है कि इस ने चोरी की?’’ जेठजी की कड़क आवाज के सामने सभी निरुत्तर रह गए थे.

तभी जेठजी का डाक्टर बेटा सामने आ गया, उस के हाथों में नोटों की गड्डियां थीं. आक्रोश से बोला, ‘‘बोलो, कितने रुपए थे आप के. जितने थे इस में से ले जाओ.’’

वे लोग चुपचाप वापस लौट गए.

जेठजी व उन के बेटे के प्रति अंजु कृतज्ञता के भार से दब गई थी. अगर जेठजी साहस नहीं दिखाते तो आज उन सब की इज्जत सरे बाजार नीलाम हो जाती.

अंजु रोने लगी. लालच में अंधी हो कर वह कितनी बड़ी गलती कर बैठी थी. उस ने वे सारे रुपए निकाल कर बेटे के मुंह पर दे मारे, ‘‘ले, दफा हो यहां से, चोरी करेगा तो इस घर में नहीं रह पाएगा. मालिक को रुपए लौटा कर माफी मांग कर आ नहीं तो मैं तुझे घर में नहीं घुसने दूंगी,’’ फिर वह जेठजेठानी के पैरों पर गिर कर बोली, ‘‘आप लोगों ने आज हमारी इज्जत बचा ली.’’

‘‘तुम लोगों की इज्जत हमारी इज्जत है. खून तो एक ही है, आपस में मनमुटाव होना अलग बात है पर बाहर वाले आ कर तुम्हें नीचा दिखाएं तो हम कैसे देख सकते हैं,’’ जेठजी ने कहा.

अंजु शरम से पानीपानी हो रही थी. जेठजी के मन में अब भी उन लोगों के प्रति अपनापन है और एक वह है कि…उस ने जेठजी के प्रति कितना बड़ा अपराध कर डाला. उफ, क्या वह अपनेआप को कभी माफ कर सकेगी.

अंजु मन ही मन घुलती रहती. निन्नी का कुम्हलाया हुआ चेहरा उसे अंदर तक कचोटता रहता.

निन्नी छोटी थी तो उस का आंचल थामे पूरे घर में घूमती फिरती. मां से अधिक वह चाची से हिलीमिली रहती.

अपने बच्चे हो गए तब भी अंजु निन्नी को अपनी गोद में बैठा कर खिलातीपिलाती रहती. और अब ईर्ष्या की आग में जल कर उस ने अपनी उसी प्यारी सी निन्नी की भावनाओं का गला घोंट दिया था.

एक दिन अंजु के मन में छिपा अपराधबोध, सहनशक्ति से बाहर हो गया तो वह निन्नी को पकड़ कर अपने घर में ले आई, उस पर अपनापन जताती हुई बोली, ‘‘खानापीना क्यों बंद कर दिया पगली, क्या हालत बना डाली अपनी. लड़कों की कमी है क्या…’’

निन्नी उस की गोद में गिर कर बच्चों की भांति फूटफूट कर रो पड़ी, ‘‘चाची, मुझे माफ कर दो, मैं उस दिन आप से बहुत कुछ गलत बोल गई थी, उन लोगों की बातों पर विश्वास कर के मैं ने आप को गलत समझ लिया, मैं जानती हूं कि आप मुझे बहुत प्यार करती हैं.’’

‘‘हां, बेटी मैं तुझे बहुत प्यार करती हूं, पर मुझ से भी गलती हो सकती है. इनसान हूं न, फरिश्ता थोड़े ही हूं,’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे थे, ‘‘पता नहीं इनसानों को क्या हो जाता है जो कभी अपने होते हैं वे पराए लगने लगते हैं पर तू चिंता मत कर, मैं तेरे लिए उस विदेशी इंजीनियर से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ निकालूंगी. बस, तू खुश रहा कर, वैसे ही जैसे बचपन में रहती थी. मैं तुझे अपने हाथों से दुलहन बना कर तैयार करूंगी, ससुराल भेजूंगी, मेरी अच्छी निन्नी, तू अब भी वही बचपन वाली गुडि़या लगती है.’’

जेठानी छत पर खड़ी हो कर देवरानी की बातें सुन रही थी.

अंजु के शब्दों ने उस के अंदर जादू जैसा काम किया. नीचे उतर कर पति से बोली, ‘‘झगड़ा तो हम बड़ों के बीच चल रहा है, बच्चे क्यों पिसें. तुम अंजु के बेटे की कहीं अच्छी सी नौकरी लगवा दो न.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो.’’

‘‘अंजु की लड़कियां पूरे दिन घर में खाली बैठी रहती हैं. एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन ला कर उन्हें दे दो. मांबेटियां सिलाई कर के कुछ आर्थिक लाभ उठा लेंगी.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहती हो वैसा ही करेंगे. इन लोगों का और है ही कौन.’’

अंजु ने निन्नी पर प्यार जताया तो जेठानी के मन में भी उस के बच्चों के प्रति ममता का दरिया उमड़ पड़ा था. Hindi Family Story

Social Story: उलटा दांव- डा. मोहन की कौनसी आस टूटी थी

Social Story: पटना अहमदाबाद ऐक्सप्रैस ट्रेन अपनी पूरी गति से चली जा रही थी. पटना रेलवे स्टेशन पर इस ट्रेन पर सवार जितेंद्र अपनी बेटी मालती के साथ अहमदाबाद जा रहे थे. वहां उन्हें बेटी को मैडिकल ऐडमिशन के लिए टैस्ट दिलवाना था.

एक प्राइवेट फर्म के क्लर्क जितेंद्र के लिए यह एक अच्छा अवसर था. सो, वे खुशी से जा रहे थे. वहीं उन की 17 वर्षीया बेटी मालती की खुशी का ठिकाना नहीं था. स्टेशन पर उन की पत्नी और बाकी बच्चे उन्हें छोड़ने आए थे. वे गाड़ी पर चढ़ गए. उन के सामने की बर्थ पर

2 लड़के विराजमान थे, 24-25 वर्ष के रहे होंगे, जींसपैंट व शर्ट में कम के ही लग रहे थे.

‘‘पापा, आजकल किसी ने कुछ उलटीसीधी हरकत की तो एक मैसेज रेलमंत्री को करने से अपराधी फौरन पकड़ा जाता है,’’ मालती शायद इन बातों से अपना डर कम कर रही थी या उन युवकों को सुना रही थी.

‘‘हां बेटा, आप ठीक कह रहे हो, हम अब पूरी तरह सुरक्षित हैं,’’ पिता बेटी की हां में हां मिला रहे थे.

‘‘परंतु पापा, क्या वास्तव में कार्रवाई होती है या फिर नाम कमाने के लिए…’’ वह शायद बात को लंबा खींचना चाहती थी.

‘‘बेटा, कार्रवाई वास्तव में होती है और कई पकड़े भी जा चुके हैं,’’ यह पिता का स्वर था. इधर, ये दोनों युवक अपनी पुस्तक पढ़ने में लगे थे. एक बार भी उन की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया था.

‘‘क्यों, आप दोनों का क्या मत है?’’ इन्होंने उन दोनों युवकों से प्रश्न किया.

‘‘जी, आप ने मु झ से कुछ कहा,’’ एक युवक बोला.

‘‘हां, कार्य के संबंध में पूछा था,’’ जितेंद्र ने बात प्रारंभ करने की गरज से कहा.

‘‘सौरी, मैं सुन नहीं पाया था,’’ कहते वह इन की बात सुनने की मुद्रा में आ गया.

‘‘क्या रेलमंत्री को मैसेज करने पर कार्यवाही वास्तव में होती है?’’ यह मालती का स्वर था.

‘‘जी, अगर शिकायत सही हो तो, वरना गलत शिकायत करने पर उलटा पेनल्टी लगने की संभावना भी है,’’ इसी लड़के ने कहा और पढ़ने में खो गया.

इधर मालती को चैन नहीं आ रहा था. वह उभरे गले का टौप, नीचे टाइट जींस पहने हाथ में बैग हिलाती गाड़ी पर आई थी, जिस के पिता कुली के समान सामान ढोते आए थे. वह अपने पिता को मानो कुली सम झ रही थी, जबकि स्वयं को राजकुमारी. ऐसी दशा में पूरे 2 घंटे गाड़ी को दौड़ते हुए हो गए और इन दोनों लड़कों ने एक बार भी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. सो, उसे गवारा नहीं हुआ या यों कहें कि वह पचा नहीं पा रही थी.

‘‘सुनिए,’’ मालती से जब नहीं रहा गया तो बोल उठी.

‘‘जी,’’ एक ने उस की ओर देखते कहा.

‘‘पीने का पानी होगा आप के पास?’’ वह बोली. इस पर बिना कुछ बोले एक युवक ने पानी उस की ओर बढ़ा दिया. पानी पी कर मालती ने थैंक्स कहा तो वह बिना बोले मुसकरा कर अभिवादन स्वीकार करते, बोतल वापस बैग में रख फिर पढ़ने में खो गया.

डाक्टर राकेश, डाक्टर मोहन मिश्रा, टीटीई ने नाम ले कर पुकारा तो दोनों ने मुसकरा कर सिर हिला दिया.

‘‘डाक्टर साहब, आप अहमदाबाद में?’’ टीटीई न जाने क्यों पूछ बैठा.

‘‘हम दोनों वहां एमजीएमसी में कार्यरत हैं,’’ एक युवक ने संक्षिप्त उत्तर दिया.

‘‘डाक्टर साहब? तो क्या आप दोनों डाक्टर हैं?’’ जितेंद्र टीटीई के बाद बोल पड़े.

‘‘जी सर, हम दोनों भाई हाउस सर्जन के रूप में कार्यरत हैं और एमएस भी कर रहे हैं,’’ इस बार दूसरा युवक यानी डा. मोहन बोल उठा.

‘‘हम वहीं अपनी बिटिया का ऐडमिशन टेस्ट दिलवाने ले जा रहे हैं,’’ जितेंद्र बिना पूछे बोल उठे.

‘‘जी, परंतु मैडिकल की पढ़ाई तो पटना में भी हो सकती है. फिर इतनी दूर?’’ इस बार डा. राकेश ने प्रश्न किया.

‘‘बात यह है कि बाहर पढ़ने का मजा कुछ और है और वहां किसी की ज्यादा टोकाटाकी नहीं होती,’’ यह उन की बेटी मालती थी जो बीच में टपक पड़ी थी.

‘‘अच्छा,’’ एक शब्द बोल दोनों फिर चुप हो गए.

‘‘आप लोग कहां के रहने वाले हैं?’’ जितेंद्र ने पूछा.

‘‘पटना का ही हूं. मेरे पिताजी पटना में ही नौकरी में हैं और वहीं से एमबीबीएस किया. फिर यहां नौकरी करने चले आए.’’

अब इन की आंखों में दूसरा स्वप्न तैरने लगा. एक जवान होती बेटी के पिता की आंखों में बेटी के भावी वर की तसवीर तैरती रहती है.

‘‘आप लोग पटना के हैं, लगते तो नहीं?’’ यह मालती का प्रश्न था.

‘‘हम लोग 2 साल से अहमदाबाद में काम कर रहे हैं. हो सकता है बोली में बदलाव आ गया हो,’’ डा. मोहन ने बात को खत्म करने की गरज से कहा.

‘‘मेरी बेटी कुछ ज्यादा ही बोलती है,’’ जितेंद्र ने बेटी का बचाव करते हुए कहा.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. बड़े होने पर संभल जाएगी,’’ यहां भी दोनों बात को समाप्त कर फिर पढ़ने में खोते हुए बोले.

अब दोनों बापबेटी इन दोनों से परेशान हो गए थे. ये लोग कभी भी कुछ भी बोलना नहीं चाहते. मात्र पढ़ते रहते हैं. बीच में चाय मंगा कर दोनों ने पी. एक बार भी नहीं पूछा.

जितेंद्र को  झट मौका मिल गया. जैसे ही मुगलसराय से गाड़ी आगे चली, एक चाय वाला चाय ले कर आया.

उन्होंने 3 चाय का और्डर दिया. एक खुद के लिए और 2 उन दोनों डाक्टरों के लिए.

‘‘नो थैंक्स, हम दोनों चाय पी चुके हैं,’’ दोनों स्पष्ट मना करते बोले.

‘‘मगर हम ने खरीद ली है. मैं पीने लगा तो सोचा आप को भी पिला दूं. आखिर आप पटना के हैं न,’’ इन्होंने बातों की कड़ी जोड़नी चाही.

‘‘जी धन्यवाद, परंतु हम अभी चाय पी चुके हैं,’’ संक्षिप्त उत्तर दे कर दोनों चुप हो गए.

जितेंद्र ने चाय का कप अन्य 2 पास की सीटों पर विराजमान लोगों को पकड़ा दिया. उन्हें बोलने की आदत थी, वहीं वे दोनों मानो न बोलने की कसम खाए बैठे थे.

इधर टे्रन अपनी गति से दौड़ती जा रही थी. अनायास ही एक फोन डाक्टर मोहन के पास आया, ‘‘जी, हम परसों सुबह पहुंच जाएंगे. दोपहर 1 बजे तक औपरेशन कर सकते हैं. आप पेशेंट को तब तक एक दवा दे कर रखें.’’ इस जवाब ने बाकी पैसेंजर्स को चौंका दिया. वे उन की ओर देख रहे थे.

डाक्टर मोहन फोन सुनने के बाद राकेश से कह रहे थे, ‘‘कुल 5 औपरेशन परसों करने हैं. पांचों मेजर हैं. तुम सफर के बाद…’’

‘‘आप चिंता न करें. रिजर्व कूपे में आराम से जा रहे हैं. रात भरपूर नींद ले लेंगे. सो, मन ताजा रहेगा. अलबत्ता डिस्कस करना जरूरी है,’’ राकेश ने भी भाई की हां में हां मिलाई.

अब सारे पैसेंजर्स की निगाहों में मानो दोनों हीरो बने जा रहे थे.

‘‘डाक्टर साहब, ट्रेन में एक को अटैक आ गया. क्या आप…’’ यह भागते आते टीटीई का स्वर था.

‘‘बिलकुल, चलिए,’’ कहते अपना बैग उठाए दोनों डाक्टर चल दिए.

करीब 1 घंटे बाद दोनों लौटे. पसीने से तरबतर थे. डाक्टर का यह रूप यात्रियों ने नहीं देखा था.

‘‘थैंक्स डाक्टर, आप ने उन की जान बचा ली. रेलवे पर एहसान किया है.’’

‘‘थैंक्स कैसा सर, हम ने बस अपना फर्ज निभाया है. उन्हें अंडरकंट्रोल कर नींद का इंजैक्शन दे दिया है. जबलपुर या इटारसी कहीं भी हौस्पिटल में शिफ्ट कर दीजिएगा,’’ अत्यंत सरल स्वर में ये दोनों युवक बोल रहे थे.

थोड़ी देर बाद उस आदमी के साथ का अटैंडैंट इन के पास आया और फीस लेने का आग्रह करने लगा.

‘‘नो थैंक्स, हम सरकारी डाक्टर हैं. पैसेंजर का इलाज करना हमारा फर्ज बनता है,’’ इन्होंने मना करते कहा.

अब तो टीटीई से ले कर टे्रन के सारे पैंसेजर इन दोनों डाक्टरों को पहचान गए थे. इधर जितेंद्र के दिमाग में अलग खिचड़ी पकने लगी. अपनी बिरादरी के हैं. काबिल डाक्टर हैं. उम्र भी ज्यादा से ज्यादा 25 की होगी. बेटी भी 18 की है, कौन सी छोटी है. फिर 7-8 साल का अंतर तो हर जगह रहता है.

‘‘क्यों डाक्टर साहब, आप के पूरे परिवार के सदस्य पटना में ही रहते हैं?’’ जितेंद्र ने सवाल पूछा.

‘‘पूरे कहां, हम दोनों भाई अहमदाबाद में, शेष बचे मांपापा पटना में हैं,’’ डाक्टर ने बात पूरी की, या यों कहें कि जवाब दिया.

‘‘फिर उन की देखरेख?’’

इस प्रश्न पर दोनों भाई मानो चौंक गए, ‘‘मेरे पितामाता दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं. पिताजी नौकरी में हैं.’’

‘‘परंतु आप कभीकभार ही देख पाते होंगे न?’’ जितेंद्र ने फिर से प्रश्न किया.

‘‘हम दोनों में से कोई एक 2-4 माह में आ ही जाता है. फिर पास में चाचाका परिवार है,’’ डा. मोहन का जवाब था.

नौकरी में दांवपेंच ज्यादा चलाने वाले, काम से कोसों दूर रहने वाले जितेंद्र अपना निश्चय लगभग कर चुके थे. वे 2 बार बाथरूम जाने के बहाने वहां से हट कर अपनी पत्नी को इन के बारे में बता चुके थे. पत्नी की राय भी यही थी कि लड़के के परिवार का पता ले लिया जाए तो एक लड़का अवश्य अपनी लड़की के लिए मांग लेंगे. अगर देने से मना किया तो पैसे दे कर…

उन्होंने टीटीई के पास जा कर उन्हें चाय पिला कर यात्रियों की सूची से इन दोनों का पता मालूम कर लिया था. बस, ट्रेन अहमदाबाद तो पहुंचे. वहां बेटी के बहाने इनका होस्टल देख लेंगे. और पटना लौट कर शादी भी पक्की कर लेंगे इतने काबिल डाक्टर दोनों भाई हैं कहीं किसी दूसरे ने इन्हें लपक लिया तो… 15-20 लाख में भी सस्ता सौदा होगा. मकान 3-4 साल बाद ले लेंगे या किराए में जिंदगी काट लेंगे.

यह सब सोचतेसोचते पता नहीं इन के खयालों की उड़ान कहां तक पहुंच जाती. सब से खराबी यह थी कि दोनों भाई एक शब्द नहीं बोले थे. बस, सवाल का जवाब दे रहे थे. यदि लड़का मान जाए तो पटना में

इस का कौल फिक्स कर ही लाखों कमाया जा सकता है. बड़ा काबिल डाक्टर है.

पता नहीं वे कहां तक और क्याक्या सोचते, मगर उन की सोच पर पत्थर पड़ गया जब मोहन ने फोन पर अपनी पत्नी से बात की. ‘‘सुनो, परसों सुबह अहमदाबाद में हम लोग होंगे, दोपहर औपरेशन का टाइम दे रखा है. सो, परेशान मत होना.’’

‘अच्छा, तो मोहन विवाहित है. तो कोई बात नहीं. दूसरा भाई यदि कुंआरा हो तो…’ टूटती उम्मीद के बीच एक चिराग उन्हें दिखने लगा.

‘‘आप दोनों भाई परिवार से इतनी दूर रहते हैं?’’ जितेंद्र न जाने क्यों यह पूछ बैठे.

‘‘अकेले कहां हम दोनों अपने परिवार के साथ रहते हैं.’’ डा. मोहन के इस जवाब को सुनते ही जितेंद्र धम्म से बर्थ पर गिर पड़े.

उन के शरीर को इस प्रकार पसीने से गीला देख कर दोनों हड़बड़ा गए, ‘‘क्या हुआ जितेंद्रजी, आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘बस, घबराहट हो रही है,’’ वे अपने हृदय को दबाते बोले.

‘‘आप लेटिए,’’ कहते हुए डाक्टरों ने उन्हें बैड पर लिटा दिया और उन का बीपी चैक करने लगे. टीटीई फिर आ गया. बीपी की दवा के साथ नींद की गोलियां भी खिला दीं.

‘‘अब 4 घंटे बाद इन्हें होश आ जाएगा. हम अहमदाबाद में होंगे,’’ डा. मोहन टीटीई को बता रहे थे.

‘‘मगर हुआ क्या?’’ टीटीई ने हैरानी से पूछा.

‘‘पता नहीं, जैसे ही मैं ने कहा कि मैं परिवार के साथ रहता हूं, सुनते ही ये धम्म से बिस्तर पर गिर पड़े.’’

‘‘क्या आप के परिवार के बारे में पूछा था?’’ टीटीई ने प्रश्न किया.

‘‘जी, पूरे रास्ते हमारे बारे में पूछते रहे हैं,’’ यह बताते हुए डाक्टर का चेहरा अजीब हो रहा था. वहीं टीटीई गंभीर स्वर में बोला, ‘‘कोई बात नहीं, इन की आस की डोर टूट गई है. हर बेटी का बाप आस की डोर टूटने पर ऐसे ही बिखरता है. वही बिखरन है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ ये मुंहबाए पूछ बैठे.

इस पर टीटीई ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, उन्होंने आप में भावी दमाद देख लिया था. सो, आप की शादी की बात सुन कर झटका खा गए.’’ Social Story

Monsoon Special: डिनर में बनाएं भरवां बैगन

Monsoon Special: बैंगन की सब्जी ज्यादातर लोगों को पसंद नहीं आती. लेकिन आज हम आपको भरवां बैंगन की खास रेसिपी बताएंगे, जो आपकी फैमिली को बेहद पसंद आएगी.

सामग्री

1 गोल बैगन

1/4 कप ब्रोकली बारीक कटी

1/4 कप बारीक कटा आलू

1 बड़ा चम्मच बारीक कटी गाजर

1 बड़ा चम्मच लालपीलीहरी शिमलामिर्च बारीक कटी

1/4 कप कटे टमाटर

1/2 कप टोमैटो प्यूरी

1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1 छोटा चम्मच तंदूरी मसाला

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस

1 बड़ा चम्मच मक्खन

सजाने के लिए अलसी के भूने बीज

नमक स्वादानुसार.

विधि

बैगन को बीच में से लंबाई में काट लें और दोनों टुकड़ों के बीच का गूदा निकाल कर अलग रख दें. एक पैन में मक्खन गरम करें. उस में अदरकलहसुन का पेस्ट व टोमैटो प्यूरी डाल कर कुछ देर भूनें. फिर मसाले व टोमैटो सौस डाल दें और टमाटर डाल कर कुछ देर पकाएं. अब सारी कटी सब्जी डाल कर कुछ देर पकाएं. लेकिन ध्यान रखें कि सब्जी गले नहीं. इस तैयार सब्जी को बैगन के खोल में भर लें. ऊपर से अलसी के बीच सजाएं. बैगन के बाहरी हिस्से में मक्खन चुपड़ दें और उसे 3-4 मिनट माइक्रोवेव में बेक कर लें. गरमगरम परोसें. Monsoon Special

Romantic Story: फैसला- क्या रवि और सविता का कामयाब हुआ प्यार

Romantic Story: मैं अपने सहयोगियों के साथ औफिस की कैंटीन में बैठा था कि अचानक सविता दरवाजे पर नजर आई. खूबसूरती के साथसाथ उस में गजब की सैक्स अपील भी है. जिस की भी नजर उस पर पड़ी, उस की जबान को झटके से ताला लग गया.

‘‘रवि, लंच के बाद मुझ से मिल लेना,’’ यह मुझ से दूर से ही कह कर वह अपने रूम की तरफ चली गई.

मेरे सहयोगियों को मुझे छेड़ने का मसाला मिल गया. ‘तेरी तो लौटरी निकल आई है, रवि… भाभी तो मायके में हैं. उन्हें क्या पता कि पतिदेव किस खूबसूरत बला के चक्कर में फंसने जा रहे हैं… ऐश कर ले सविता के साथ. हम अंजू भाभी को कुछ नहीं बताएंगे…’ उन सब के ऐसे हंसीमजाक का निशाना मैं देर तक बना रहा.हमारे औफिस में तलाकशुदा सविता की रैपुटेशन बड़ी अजीब सी है. कुछ लोग उसे जबरदस्त फ्लर्ट स्त्री मानते हैं और उन की इस बात में मैं ने उस का नाम 5-6 ऐसे पुरुषों से जुड़ते देखा है, जिन्हें सीमित समय के लिए ही उस के प्रेमियों की श्रेणी में रखा  जा सकता है. उन में से 2 उस के आज भी अच्छे दोस्त हैं. बाकियों से अब उस की साधारण दुआसलाम ही है.

सविता के करीब आने की इच्छा रखने वालों की सूची तो बहुत लंबी होगी, पर वह इन दिलफेंक आशिकों को बिलकुल घास नहीं डालती. उस ने सदा अपने प्रेमियों को खुद चुना है और वे हमेशा विवाहित ही रहे हैं. मैं तो पिछले 2 महीनों से अपनी विवाहित जिंदगी में आई टैंशन व परेशानियों का शिकार बना हुआ था. अंजू 2 महीने से नाराज हो कर मायके में जमी हुई थी. अपने गुस्से के चलते मैं ने न उसे आने को कहा और न ही लेने गया. समस्या ऐसी उलझी थी कि उसे सुलझाने का कोई सिरा नजर नहीं आ रहा था. मेरा अंदाजा था कि सविता ने मुझे पिछले दिनों जरूरत से ज्यादा छुट्टियां लेने की सफाई देने को बुलाया है. तनाव के कारण ज्यादा शराब पी लेने से सुबह टाइम से औफिस आने की स्थिति में मैं कई बार नहीं रहा था. लंच के बाद मैं ने सविता के कक्ष में कदम रखा, तो उस ने बड़ी प्यारी, दिलकश मुसकान होंठों पर ला कर मेरा स्वागत किया.

‘‘हैलो, रवि, कैसे हो?’’ कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस ने दोस्ताना लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘अच्छा हूं, तुम सुनाओ,’’ आगे झूठ बोलने के लिए खुद को तैयार करने के चक्कर में मैं कुछ बेचैन हो गया था.

‘‘तुम से एक सहायता चाहिए.’’

अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए मैं ने पूछा, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ दिन पहले एक पार्टी में मैं तुम्हारे एक अच्छे दोस्त अरुण से मिली थी. वह तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था.’’

‘‘वह जो बैंक में सर्विस करता है?’’

‘‘हां, वही. उस ने बताया कि तुम बहुत अच्छा गिटार बजाते हो.’’

‘‘अब उतना अच्छा अभ्यास नहीं रहा है,’’ अपने इकलौते शौक की चर्चा छिड़ जाने पर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘मेरे दिल में भी गिटार सीखने की तीव्र इच्छा पैदा हुई है, रवि. प्लीज कल शनिवार को मुझे एक अच्छा सा गिटार खरीदवा दो.’’

बड़े अपनेपन से किए गए सविता के आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने उस के साथ बाजार जाना स्वीकार किया, तो वह किसी बच्चे की तरह खुश हो गई.

‘‘अंजू मायके गई हुई है न?’’

‘‘हां,’’ अपनी पत्नी के बारे में सवाल पूछे जाने पर मेरे होंठों से मुसकराहट गायब हो गई.

‘‘तब तो तुम कल सुबह नाश्ता भी मेरे साथ करोगे. मैं तुम्हें गोभी के परांठे खिलाऊंगी.’’

‘‘अरे, वाह. तुम्हें कैसे मालूम कि मैं उन का बड़ा शौकीन हूं?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त अरुण ने बताया था.’’

‘‘मैं कल सुबह 9 बजे तक पहुंचूं?’’

‘‘हां, चलेगा.’’

सविता ने दोस्ताना अंदाज में मुसकराते हुए मुझे विदा किया. मेरे आए दिन छुट्टी लेने के विषय पर चर्चा ही नहीं छिड़ी थी, लेकिन अपने सहयोगियों को मैं सच्ची बात बता देता, तो वे मेरा जीना मुश्किल कर देते. इसलिए उन से बोला, ‘‘ज्यादा छुट्टियां न लेने के लिए लैक्चर सुन कर आ रहा हूं.’’ यह झूठ बोल कर मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. पिछले 2 महीनों में वह पहली शुक्रवार की रात थी जब मैं शराब पी कर नहीं सोया. कारण यही था कि मैं सोते रह जाने का खतरा नहीं उठाना चाहता था. सविता के साथ पूरा दिन गुजारने का कार्यक्रम मुझे एकाएक जोश और उत्साह से भर गया था. पिछले 2 महीनों से दिलोदिमाग पर छाए तनाव और गुस्से के बादल फट गए थे. कालेज के दिनों में जब मैं अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने जाता था, तब बड़े सलीके से तैयार होता था. अगले दिन सुबह भी मैं ढंग से तैयार हुआ. ऐसा उत्साह और खुशी दिलोदिमाग पर छाई थी, मानो पहली डेट पर जा रहा हूं. सविता पर पहली नजर पड़ी तो उस के रंगरूप ने मेरी आंखें ही चौंधिया दीं. नीली जींस और काले टौप में वह बहुत आकर्षक लग रही थी. उस पल से ही उस जादूगरनी का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. दिल की धड़कनें बेकाबू हो चलीं. मैं उस के इशारे पर नाचने को एकदम तैयार था. फिर हंसीखुशी के साथ बीतते समय को जैसे पंख लग गए. कब सुबह से रात हुई, पता ही नहीं चला.

सविता जैसी फैशनेबल, आधुनिक स्त्री से खाना बनाने की कला में पारंगत होने की उम्मीद कम होती है, लेकिन उस सुबह उस के बनाए गोभी के परांठे खा कर मन पूरी तरह तृप्त हो गया. प्यारी और मीठीमीठी बातें करना उसे खूब आता था. कई बार तो मैं उस का चेहरा मंत्रमुग्ध सा देखता रह जाता और उस की बात बिलकुल भी समझ में नहीं आती.

‘‘कहां हो, रवि? मेरी बात सुन नहीं रहे हो न?’’ वह नकली नाराजगी दर्शाते हुए शिकायत करती और मैं बुरी तरह झेंप उठता.

मैं ने उसे स्वादिष्ठ परांठे खिलाने के लिए धन्यवाद दिया तो उस ने सहजता से मुसकराते हुए कहा, ‘‘किसी अच्छे दोस्त के लिए कुकिंग करना मुझे पसंद है. मुझे भी बड़ा मजा आया है.’’

‘‘मुझे तुम अपना अच्छा दोस्त मानती हो?’’

‘‘बिलकुल,’’ उस ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘कब से?’’

‘‘इस सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण एक दूसरा सवाल है, रवि.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘क्या तुम आगे भी मेरे अच्छे दोस्त बने रहना चाहोगे?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांका.

‘‘बिलकुल बना रहना चाहूंगा, पर क्या मुझे कुछ खास करना पड़ेगा तुम्हारी दोस्ती पाने के लिए?’’

‘‘शायद… लेकिन इस विषय पर हम बाद में बातें करेंगे. अब गिटार खरीदने चलें?’’ सवाल का जवाब देना टाल कर सविता ने मेरी उत्सुकता को बढ़ावा ही दिया.

हमारे बीच बातचीत बड़ी सहजता से हो रही थी. हमें एकदूसरे का साथ इतना भा रहा था कि कहीं भी असहज खामोशी का सामना नहीं करना पड़ा. हमारे बीच औफिस से जुड़ी बातें बिलकुल नहीं हुईं. टीवी सीरियल, फिल्म, खेल, राजनीति, फैशन, खानपान जैसे विषयों पर हमारे बीच दिलचस्प चर्चा खूब चली. उस ने अंजू से जुड़ा कोई सवाल मुझ से पूछ कर बड़ी कृपा की. हां, उस ने अपने भूतपूर्व पति संजीव से अपने संबंधों के बारे में, मेरे बिना पूछे ही जानकारी दे दी.

‘‘संजीव से मेरा तलाक उस की जिंदगी में आई एक दूसरी औरतके कारण हुआ था, रवि. वह औरत मेरी भी अच्छी सहेली थी,’’ अपने बारे में बताते हुए सविता दुखी या परेशान बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.

‘‘तो पति ने तुम्हारी सहेली के साथ मिल कर तुम्हें धोखा दिया था?’’ मैं ने सहानुभूतिपूर्ण लहजे में टिप्पणी की.

‘‘हां, पर एक कमाल की बात बताऊं?’’

‘‘हांहां.’’

‘‘मुझे पति से खूब नाराजगी व शिकायत रही. पर वंदना नाम की उस दूसरी औरत के प्रति मेरे दिल में कभी वैरभाव नहीं रहा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘वंदना का दिल सोने का था, रवि. उस के साथ मैं ने बहुत सारा समय हंसतेमुसकराते गुजारा था. यदि उस ने वह गलत कदम न उठाया होता तो वह मेरी सब से अच्छी दोस्त होती.’’

‘‘लगता है तुम्हें पति से ज्यादा अपनी जिंदगी में वंदना की कमी खलती है?’’

‘‘अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, रवि. शादी कर के एक पति या पत्नी तो हर कोई पा लेता है.’’

‘‘यह तो बड़े पते की बात कही है तुम ने.’’

‘‘कोई बात पते की तभी होती है जब उस का सही महत्त्व भी इंसान समझ ले. बोलबोल कर मेरा गला सूख गया है. अब कुछ पिलवा तो दो, जनाब,’’ बड़ी कुशलता से उस ने बातचीत का विषय बदला और मेरी बांह पकड़ कर एक रेस्तरां की दिशा में बढ़ चली.

उस के स्पर्श का एहसास देर तक मेरी नसों में सनसनाहट पैदा करता रहा. सविता की फरमाइश पर हम ने एक फिल्म भी देख डाली. हौल में उस ने मेरा हाथ भी पकड़े रखा. मैं ने एक बार हिम्मत कर उस के बदन के साथ शरारत करनी चाही, तो उस ने मुझे प्यार से घूर कर रोक दिया. ‘‘शांति से बैठो और मूवी का मजा लो रवि,’’ उस की फुसफुसाहट में कुछ ऐसी अदा थी कि मेरा मन जरा भी मायूसी और चिढ़ का शिकार नहीं बना.

लंच हम ने एक बढि़या होटल में किया. फिर अच्छी देखपरख के बाद गिटार खरीदने में मैं ने उस की मदद की. उस के दिल में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए वह गिटार मैं उसे अपनी तरफ से उपहार में देना चाहता था, पर वह राजी नहीं हुई.

‘‘तुम चाहो तो मुझे गिटार सिखाने की जिम्मेदारी ले सकते हो,’’ वह बोली तो उस के इस प्रस्ताव को सुन कर मैं फिर से खुश हो गया.

जब हम सविता के घर वापस लौटे, तो रात के 8 बजने वाले थे. उस ने कौफी पिलाने की बात कह कर मेरी और ज्यादा समय उस के साथ गुजारने की इच्छा पूरी कर दी. वह कौफी बनाने किचन में गई तो मैं भी उस के पीछेपीछे किचन में पहुंच गया. उस के नजदीक खड़ा हो कर मैं ऊपर से हलकीफुलकी बातें करने लगा, पर मेरे मन में अजीब सी उत्तेजना लगातार बढ़ती जा रही थी. अंजू के प्यार से लंबे समय तक वंचित रहा मेरा मन सविता के सामीप्य की गरमाहट को महसूस करते हुए दोस्ती की सीमा को तोड़ने के लिए लगभग तैयार हो चुका था. तभी सविता ने मेरी तरफ घूम कर मुझे देखा. उस ने जरूर मेरी प्यासी नजरों को पढ़ लिया होगा, क्योंकि अचानक मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे ड्राइंगरूम की तरफ ले चली.

मैं ने रास्ते में उसे बांहों में भरने की कोशिश की, तो उस ने बिना घबराए मुझ से कहा, ‘‘रवि, मैं तुम से कुछ खास बातें करना चाहती हूं. उन बातों को किए बिना तुम को मैं दोस्त से प्रेमी नहीं बना सकती हूं.’’ उसे नाराज कर के कुछ करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता था. मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रण में कर के ड्राइंगरूम में आ बैठा और सविता बेहिचक मेरी बगल में बैठ गई.

मेरा हाथ पकड़ कर उस ने हलकेफुलके अंदाज में पूछा, ‘‘मेरे साथ आज का दिन कैसा गुजरा है, रवि?’’

‘‘मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत दिनों में से एक होगा आज का दिन,’’ मैं ने सचाई बता दी.

‘‘तुम आगे भी मुझ से जुड़े रहना चाहोगे?’’

‘‘हां… और तुम?’’ मैं ने उस की आंखों में गहराई तक झांका.

‘‘मैं भी,’’ उस ने नजरें हटाए बिना जवाब दिया, ‘‘लेकिन अंजू के विषय में सोचे बिना हम अपने संबंधों को मजबूत आधार नहीं दे सकते.’’

‘‘अंजू को बीच में लाना जरूरी है क्या?’’ मेरा स्वर बेचैनी से भर उठा.

‘‘तुम उसे दूर रखना चाहोगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम्हें मेरी प्रेमिका के रूप में स्वीकार नहीं करेगी.’’

‘‘और तुम मुझे अपनी प्रेमिका बनाना चाहते हो?’’

‘‘क्या तुम ऐसा नहीं चाहती हो?’’ मेरी चिढ़ बढ़ रही थी.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘रवि, लोग मुझे फ्लर्ट मानते हैं और तुम्हें भी जरूर लगा होगा कि मैं तुम्हें अपने नजदीक आने का खुला निमंत्रण दे रही हूं. इस बात में सचाई है क्योंकि मैं चाहती थी कि तुम मेरा आकर्षण गहराई से महसूस करो. ऐसा करने के पीछे मेरी क्या मंशा है, मैं तुम्हें बताऊंगी. पर पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो, प्लीज.’’

‘‘पूछो,’’ उस को भावुक होता देख मैं भी संजीदा हो उठा.

‘‘क्या तुम अंजू को तलाक देने का फैसला कर चुके हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने चौंकते हुए जवाब दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त अरुण से मालूम पड़ा कि अंजू तुम से नाराज हो कर पिछले 2 महीने से मायके में रह रही है. तुम उसे वापस क्यों नहीं ला रहे हो?’’

‘‘हमारे बीच गंभीर मनमुटाव चल रहा है. उस को अपनी जबान…’’

‘‘मुझे पूरा ब्योरा बाद में बताना रवि, पर क्या तुम्हें उस की याद नहीं आती है?’’ सविता ने मुझे कोमल लहजे में टोक कर सवाल पूछा.

‘‘आती है… जरूर आती है, पर ताली एक हाथ से तो नहीं बज सकती है, सविता.’’

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर मिल कर साथ रहने का आनंद तो तुम दोनों ही खो रहे हो न?’’

‘‘हां, पर…’’

‘‘देखो, कुसूरवार तो तुम दोनों ही होंगे… कम या ज्यादा की बात महत्त्वपूर्ण नहीं है, रवि. इस मनमुटाव के चलते जिंदगी के कीमती पल तो तुम दोनों ही बेकार गवां रहे हो या नहीं?’’

‘‘तुम मुझे क्या समझाना चाह रही हो?’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘रवि, मेरी बात ध्यान से सुनो,’’ सविता का स्वर अपनेपन से भर उठा, ‘‘आज तुम्हारे साथ सारा दिन मौजमस्ती के साथ गुजार कर मैं ने तुम्हें अंजू की याद दिलाने की कोशिश की है. उस से दूर रह कर तुम उन सब सुखसुविधाओं से खुद को वंचित रख रहे हो जिन्हें एक अपना समझने वाली स्त्री ही तुम्हें दे सकती है.

‘‘मेरा आए दिन ऐसे पुरुषों से सामना होता है, जो अपनी अच्छीखासी पत्नी से नहीं, बल्कि मुझ से संबंध बनाने को उतावले नजर आते हैं

‘‘मेरे साथ उन का जैसा रोमांटिक और हंसीखुशी भरा व्यवहार होता है, अगर वैसा ही अच्छा व्यवहार वे अपनी पत्नियों के साथ करें, तो वे भी उन्हें किसी प्रेमिका सी प्रिय और आकर्षक लगने लगेंगी.

‘‘तुम मुझे बहुत पसंद हो, पर मैं तुम्हें और अंजू दोनों को ही अपना अच्छा दोस्त बनाना चाहूंगी. हमारे बीच इसी तरह का संबंध हम तीनों के लिए हितकारी होगा.

‘‘तुम चाहो तो मेरे प्रेमी बन कर सिर्फ आज रात मेरे साथ सो सकते हो. लेकिन तुम ने ऐसा किया, तो वह मेरी हार होगी. कल से हम सिर्फ सहयोगी रह जाएंगे.

‘‘तुम ने दोस्त बनने का निर्णय लिया, तो मेरी जीत होगी. यह दोस्ती का रिश्ता हम तीनों के बीच आजीवन चलेगा, मुझे इस का पक्का विश्वास है.’’

‘‘बोलो, क्या फैसला करते हो, रवि? अंजू और अपने लिए मेरी आजीवन दोस्ती चाहोगे या सिर्फ 1 रात के लिए मेरी देह का सुख?’’

मुझे फैसला करने में जरा भी वक्त नहीं लगा. सविता के समझाने ने मेरी आंखें खोल दी थीं. मुझे अंजू एकदम से बहुत याद आई और मन उस से मिलने को तड़प उठा.

‘‘मैं अभी अंजू से मिलने और उसे वापस लाने को जा रहा हूं, मेरी अच्छी दोस्त.’’ मेरा फैसला सुन कर सविता का चेहरा फूल सा खिल उठा और मैं मुसकराता हुआ विदा लेने को उठ खड़ा हुआ. Romantic Story

Social Story: मन की आंखें- रमेश के साथ क्या हुआ

Social Story: सुबह 11 बजे सो कर उठा तो  काफी झल्लाया हुआ था रमेश. बगल के फ्लैट से रोज की तरह जोरजोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. आज संडे की वजह से अभी वह और सोना चाहता था.

‘सरकार ने एक दिन छुट्टी का बनाया है ताकि बंदा अपनी सारी थकान, आराम कर के उतार सके. पर इन बूढ़ेबुढि़या को कौन समझाए. देर रात तक जागना और मुंहअंधेरे उठ कर बकबक शुरू कर देना, पता नहीं दोनों को एकदूसरे से क्या बैर है. कभी शांति से, धीमी आवाज में बात नहीं करते आपस में, जब भी करेंगे ऊंची आवाज में चिल्ला कर ही करेंगे. बहरे हैं क्या.’ यही सब सोचता हुआ वह बाथरूम में घुस गया. नींद का तो दोनों ने सत्यानाश कर ही दिया था. चाह कर भी उसे दोबारा नींद नहीं आई.

नहाधो कर निकला तो अपने लिए चाय बनाई और पेपर ले कर पढ़ने बैठ गया. 12 बजे से इंडिया और पाकिस्तान का मैच शुरू होने वाला था. आज तो वह किसी भी हाल में घर से हिलने वाला नहीं. ऐसे में आज पूरा दिन उसे उन दोनों की बकवास सुननी पड़ेगी. यह सोच कर ही उसे घबराहट हुई.

जब उस ने इस अपार्टमैंट में फ्लैट लिया था, उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह 3 महीने में ही इतनी बुरी तरह से परेशान हो जाएगा. अपना खुद का फ्लैट खरीद कर कितना खुश हुआ था वह. पर उसे क्या पता था कि उस के बगल वाले फ्लैट में जो बुजुर्ग दंपती रहते हैं उन्हें दिनरात चिल्ला कर बोलने की ‘लाइलाज बीमारी’ है. बाहर की तरफ खुलने वाली खिड़की वह हमेशा बंद कर के रखता था. पर उन की आवाजें थीं कि दीवार तोड़ कर उस के कानों से टकराती थीं. दोनों कानों में रुई डाल लेता पर सब बेकार.

मैच शुरू हो चुका था. अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि बगल वाले फ्लैट से भी मैच की आवाजें आनी शुरू हो गईं, जो इतनी तेज और साफ सुनाई दे रही थीं कि उस ने अपने टीवी के वौल्यूम को एकदम धीमा कर दिया.

‘यार, यह क्या मुसीबत है. मैच देखो अपने टीवी पर और कमैंट्री सुनो दूसरे के टीवी से,’ वह बुरी तरह अपसैट हुआ.

कभीकभी तो उस का मन करता, जा कर उन्हें इतनी खरीखरी सुनाए कि दोबारा वे दोनों तेज आवाज में बातें करनी छोड़ दें पर ऐसा कर नहीं सका. दिन की शुरुआत होती तो वह सोचता कि आज जा कर खबर लेता हूं. औफिस से रातगए थकाहारा लौटता तो उस की यह ख्वाहिश दम तोड़ चुकी होती.

पता नहीं बाकी के फ्लैट वालों को उन से क्यों कोई एतराज नहीं था. उस ने कभी किसी को उन के दरवाजे पर आते नहीं देखा और न ही दोनों को कहीं बाहर जाते. लगता था जैसे उन दोनों की दुनिया तो बस चारदीवारी के अंदर ही कैद थी.

3 महीने में उस ने कभी उन के फ्लैट का दरवाजा खुला नहीं देखा था. ‘पता नहीं, अपनी रोजमर्रा की जरूरतें दोनों कैसे पूरी करते होंगे? दूध, अंडे, सब्जी, गैस वगैरह.

पर उसे क्या, वह क्यों इतना उन के बारे में सोच रहा है, वह कौन सा दिनभर घर में बैठा उन की निगरानी करता रहता है? वह सिर झटक कर मैच देखने लगा.

‘‘अरे, इतनी तेज आवाज में मैच क्यों देख रहे हो? तुम बहरे हो, इस का यह मतलब नहीं कि बिल्ंिडग वाले सभी बहरे हैं,’’ बोल कर बुढि़या जोर से खांसने लगी.

‘‘सिर पर क्यों खड़ी है मेरे, जा कर अपना काम देख. मैच भी शांति से नहीं देखने देती,’’ बूढ़े ने भी जोर से हांफते हुए कहा, ‘‘कम्बख्त मरती भी नहीं कि मुझे चैन मिले.’’

‘‘क्या कहा, मेरे मरने की दुआएं

मांग रहे हो? याद रखो, मर कर भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी और मैं क्यों मरूं? मरें मेरे दुश्मन,’’ बुढि़या ने बूढ़े की तरफ हाथ लहराया.

‘‘हांहां, मैं ही मर जाता हूं. ऊपर जा कर कम से कम सुकून से तो रहूंगा,’’ बूढ़े ने अपनी लाठी जोर से पटकी.

‘‘ज्यादा खुश मत हो बूढ़े मियां, मैं वहां भी तुम्हारे पीछे चली आऊंगी. मुझ से पीछा छुड़ाना आसान नहीं,’’ बुढि़या ने आंखें नचाईं.

‘‘तू मेरे पीछे कैसे आएगी. तेरा तो टिकट कहीं और के लिए कटेगा,’’ बूढ़ा बोल कर हंसा, हंसने से ज्यादा खांसने लगा.

अब फोन की घंटी बजने की आवाज आई और उन का टीवी बंद हो गया. शायद उन के बेटे का फोन था. दोनों बात करने के लिए आपस में लड़ने लगे. इंटरवल के पहले बुढि़या ने बूढ़े की पोल खोली. इंटरवल के बाद बूढ़े की बारी आई. उस ने भी पेटभर बुढि़या के कारनामों का बखान किया पर फिल्म का क्लाइमैक्स नहीं हो सका. उधर से फोन कट हो गया था.

‘इन की फुजूल हरकतों की वजह से ही लगता है इन्हें अपने साथ ले कर नहीं गया होगा बेचारा,’ उसे बेटे की हालत पर अफसोस हुआ.

‘‘अपने बेटे की खैरियत पूछने के बजाय तू शिकायत की पोटली ले कर बैठ गई. इसलिए फोन काट दिया उस ने,’’ बूढ़े ने बुढि़या पर गुस्सा निकाला.

‘‘और तुम ने क्या किया. परसों वाली बात भी उसे बता दी कि मैं ने मलाई चुरा कर खाई थी और मेरे पेट में दर्द हो गया था,’’ बुढि़या तमतमा कर बोली.

‘‘तू ने भी तो मेरी कल वाली शिकायत लगा दी कि मैं अकेला ही सारी खीर खा गया और मुझे बदहजमी हो गई थी,’’ उस ने ताल से ताल मिला कर कहा.

उन की खट्टीमीठी शिकायतें सुनने के चक्कर में उस के जाने कितने चौकेछक्के और कैच छूट गए. उसे बहुत कोफ्त हुई.

वह रोज सुबह 8 बजे घर से निकलता और रात 8 बजे घर लौटता था. औफिस जाने में 1 घंटा लगता. नाश्ताखाना वहीं कैंटीन में ही करता. रात के लिए बाहर से कुछ ले कर आता और दोनों कानों में रुई डाल कर सो जाता. पर हर 1 घंटे पर दोनों की चिल्लाने की आवाजें आती रहती थीं.

‘चलो एक फायदा है, दोनों के जागते रहने से उन के और अगलबगल के फ्लैटों में चोरी नहीं हो सकती,’ वह सोच कर मुसकराया और सोने की कोशिश करने लगा.

सुबह उठ कर वह फ्रैश महसूस नहीं करता था. उस की नींद पर असर  पड़ने लगा था. आंखें चढ़ी हुई और लाल रहने लगी थीं. दोस्त मजाक बनाते कि रातभर जाग कर वह क्या करता है. इस से काम पर भी असर पड़ने लगा था. बौस की डांट अलग से खानी पड़ती. कुल मिला कर वह पूरी तरह ‘डिप्रैस्ड’ हो चुका था.

एक अच्छी नींद के लिए तरस रहा था. मन ही मन दोनों को बुराभला कहता, कोसता और गालियां देता. इस के अलावा कर भी क्या सकता था. किराए का फ्लैट होता तो कब का खाली कर के, कहीं और शिफ्ट हो जाता. दिन में काम और रात में ‘रतजगा’ कर के जिंदगी गुजर रही थी.

आज बहुत जरूरी फाइल उसे कंप्लीट करनी थी. फाइल घर पर ही ले कर आ गया और रात में खाने के बाद फाइल खोल कर बैठ गया.

किसी भी तरह इसे पूरा करना है. नहीं तो कल बौस की डांट पक्की खानी पड़ेगी. काम की वजह से उस का औफिस में इंप्रैशन खराब होने लगा है. उस ने यह सोचते हुए घड़ी देखी. रात के 11 बज रहे थे. वह पूरी तरह से काम में डूब गया.

‘‘ले, यह दवा पी ले, तबीयत ठीक नहीं है तेरी,’’ बूढ़े की जोर की आवाज आई.

रमेश को लगा मानो उसे ही दवा पीने को कह रहा है कोई. वह चौंक गया.

‘‘मुझे नहीं पीनी, खुद ही पी लो,’’ टनाक से जवाब आया.

‘‘सुबह से देख रहा हूं, कुछ कमजोर लग रही है.’’

‘‘तुम्हें इस से क्या, मैं मरूं या जीऊं. तुम्हारी बला से.’’

‘‘जिद मत कर, दवा पी ले. फिर बेटे से शिकायत न करना कि दवा नहीं दी.’’

‘‘नहीं करती, जाओ. बड़े आए दवा पिलाने वाले. हुम्म,’’ बुढि़या ने कहा.

‘‘मत पी, जा मर. मैं भी नौकर नहीं तेरा, खुशामद करूं, सेवा करूं,’’ बूढ़े ने आंखें तरेरीं.

‘‘मुझे तुम से अपनी सेवा करवानी भी नहीं. ऊपर वाले ने मुझे 2 हाथ, 2 पैर दिए हैं,’’ बुढि़या बिदक कर बोली.

‘‘हां, ठीक है. ऊपर वाले ने मुझे भी लंगड़ालूला नहीं बनाया है. तू भी अब कभी मुझे दवा पिलाने मत आइयो.’’

‘‘नहीं आती, जाओ. दवा दो, मैं खुद पी लूंगी,’’ उस ने अपने झुर्री वाले कांपते हाथ लहराए.

‘‘ला, अपना हाथ बढ़ा, गिरा तो नहीं देगी. संभाल के पी.’’

‘‘2 आंखें हैं मेरे पास,’’ उस ने अपनी धंसी हुई पलकें पटपटाईं.

‘‘मालूम है मुझे. 2 आंखें हैं तेरे पास. किसी के 4 नहीं होतीं, मेरे भी 2 ही आंखें हैं,’’ वह भी अपनी गड्ढे में धंसी हुई आंखों को मटका कर बोला.

‘‘हुर्र, अब जाओ यहां से, मेरा सिर मत खाओ,’’ बुढि़या ने हांक लगाई.

‘‘फुर्र तू यहां से,’’ पोपले मुंह से हवा उड़ाई. फिर थक कर दोनों खांसने लगे और देर तक खांसते रहे.

इधर, वह सोचने लगा कि बिना वजह कितना लड़ते हैं दोनों. बुढ़ापा है ही सब मुसीबतों की जड़. रोज उन दोनों को सुनते हुए, जीते हुए और महसूस करते हुए उसे लगा कि वह भी 70-80 साल का एक जवान बूढ़ा है. सिर्फ एक जवान बुढि़या की कमी है.

उसे भी जोर की खांसी आई. अब तीनों एकसाथ इकट्ठे खांस रहे थे.

सुबह औफिस जाते हुए वह अपनी धुन में सीटी बजाता दरवाजे को लौक कर रहा था.

‘‘ठीक से बंद कर.’’

वह बुरी तरह  चौंक कर इधरउधर देखने लगा.

‘‘हां, करती हूं. सब्र नहीं तो खुद ही खिड़की बंद कर दो,’’ बुढि़या डगडग हिलती हुई बोली.

उस ने एक ठंडी सांस छोड़ी. ये बुड्ढेबुढि़या एक दिन मेरी जान ले कर रहेंगे. अचानक बढ़ी हुई धड़कनें अब कुछ शांत हुईं.

‘‘बूढ़ी बीबी, टपक गई क्या? सुनो मेरी बात जरा.’’

‘‘मरी नहीं, अभी जिंदा हूं, बूढ़े मियां, सुनाओ अपनी बात जरा,’’ बुढि़या ने अपनी लाठी को जमीन पर जोर से पटका.

‘‘मैं कह रहा था, कमरे की सब खिड़कियां बंद कर दे. आज जोरदार बारिश होने वाली है,’’ बूढ़े ने भी जवाब में अपनी लाठी जोर से पटकी.

‘‘लो, सुनो बात. आज ही बारिश नहीं होगी, अगले 2 दिनों तक होती रहेगी.’’

‘‘हां, जानता हूं, बूढ़ी बीबी. तुम्हें तो सब पता रहता है. आज शाम को गरमगरम पकौड़ी तल देगी,’’ बूढ़ा पोपले मुंह से जुगाली करता हुआ बोला.

‘‘और सुन लो बात, बारिश हुई नहीं. अभी से बूढ़े मियां की लार टपकने लगी,’’ बुढि़या खांसी मिली हुई हंसी हंसने लगी.

वह अपार्टमैंट के बाहर आया. खिली हुई धूप थी. आकाश एकदम साफ नजर आ रहा था, कहीं से भी बारिश के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे. हवा थोड़ी ठंडी बह रही थी.

ऊपर वाला भी कमाल के नमूने बना कर नीचे भेजता है, दूसरों की नींद हराम करने के लिए. खुद तो बड़े आराम से मजे ले कर लंबी तान के सो रहा होगा. उस ने मन ही मन कुढ़ते हुए बाइक स्टार्ट की. इन्हें तो सरकार की तरफ से मैडल मिलना चाहिए. घर बैठे मौसम विभाग की जानकारी दे रहे हैं.

औफिस से लौटते हुए वह पूरी तरह से बारिश में भीग चुका था. उस ने सोचा कि शायद सुबह तक बारिश रुक जाए. पर दूसरे दिन भी बारिश अपने पूरे शबाब पर थी. पता नहीं उसे क्यों थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी. शायद इतनी बारिश उस के बाहर जाने के खयाल से हो रही होगी. उस ने सिर झटका पर खुशी भी थी, जिस शहर जाना था वहां उस के मांबाप रहते थे. इसी बहाने उन के साथ दोचार दिन रह भी लेगा. अचानक देख कर खुश हो जाएंगे वे.

घर वाले उस पर लगातार शादी का प्रैशर बना रहे थे. पर वह बहाने से टालता जा रहा था. शादी के बाद वाइफ के साथ इस फ्लैट में कैसे रह सकेगा? नई जिंदगी की शुरुआत बगल वाले बुजुर्गों के साथ कैसे करेगा? उसे सोच कर कुछ और बेचैनी महसूस हुई पर हिम्मत कर के घर से बाहर निकल गया.

बगल वाले फ्लैट पर नजर गई, दरवाजा रोजाना की तरह बंद था. अंदर से हमेशा की तरह जोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. नजर नेमप्लेट पर गई. ‘मिस्टर यूसुफ किदवई ऐंड मिसेज किदवई’ नाम बुदबुदाता हुआ वह तेजी से आगे बढ़ गया. 4 घंटे का सफर था. उसे हैरत हुई कि 3 दिन तक बारिश लगातार होती रही थी. चौथे दिन जा कर मौसम साफ हुआ. खिल कर धूप निकली थी. उसी दिन वह लौटा.

अपार्टमैंट के पास आया तो फिर वही बेचैनी महसूस होने लगी. चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी. लोग बदहवासी में आजा रहे थे. दिल तेजी से धड़कने लगा. सीढि़यां चढ़ता हुआ सैकंड फ्लोर पर पहुंचा. लिफ्ट में कुछ प्रौब्लम हो गई थी. मि. यूसुफ किदवई के फ्लैट का दरवाजा आज पहली बार खुला हुआ था.

पुलिस भी आई हुई थी. बेचैनी कुछ और बढ़ गई. उस ने उन दोनों बुजुर्गों को आज तक नहीं देखा था. सिर्फ उन को सुना था. आज पहली बार उन्हें देखेगा, उन से मिलेगा, सोचता हुआ आगे बढ़ा.

तभी स्ट्रेचर पकड़े 4 लोग उन के फ्लैट से बाहर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. चादर पर खून के लाल धब्बे दिख रहे थे.

फिर 4 लोग दूसरा स्ट्रेचर ले कर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. दोनों के हाथ आपस में जुड़े हुए थे. अकड़ी हुई, सख्ती से उंगलियां आपस में फंसी हुई थीं.

‘‘अंतिम सांस एकदूसरे का हाथ पकड़ कर ही ली होगी,’’ एक देखने वाले ने कहा.

‘‘अब दिल्ली अकेले रहने लायक नहीं रही बुजुर्गों के लिए,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘बेटा कब से अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहता था पर बुढ़ापे में दरबदर नहीं होना चाहते थे. चले जाते तो ऐसी मौत तो नहीं मरते,’’ तीसरे ने कहा.

‘‘अपना देश, अपनी मिट्टी का लगाव छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे बेचारे,’’ एक महिला आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं थी, बेटा सारे इंतजाम कर के गया था.’’

‘‘उन कसाइयों का कलेजा नहीं कांपा इन्हें मारते हुए. रुपएपैसे लूट लेते पर जान तो बख्श देते,’’ एक औरत भर्राए गले से बोली.

‘‘2 दिन पुरानी लाश है. इसलिए अकड़ गई है. हाथ छुड़ाते नहीं छूटता. वह तो आज इन का राशन वाला आया था. घंटी बजाता रहा. जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे शक हुआ.’’

‘‘दोनों अंधे, लाचार बुजुर्गों को मारने वालों को कहीं भी जगह न मिलेगी. एकदूसरे का सहारा थे दोनों, मन की आंखों से एकदूसरे को देखते थे,’’ औरत रोंआसी हो आई.

‘‘पूरी जिंदगी साथ जिए, मरे भी साथ ही. बिल्ंिडग सूनी हो गई इन के बगैर. अपनी मिसाल खुद थे दोनों.’’

जितने मुंह उतनी बातें. एंबुलैंस धूल उड़ाती उन्हें ले कर चली गई. सब लोग भी वापस अपने माचिस के डब्बे में बंद हो गए.

पर वह अकेला नीचे खड़ा रहा. उसे तो सिर्फ यही सुनाई दे रहा था, ‘मन की आंखों से देखते थे एकदूसरे को.’

इन 6 महीनों में उस ने भी तो हमेशा यही चाहा था कि काश, कुछ ऐसा हो कि वे दोनों बूढ़ाबूढ़ी अचानक कहीं गायब हो जाएं और उस की जिंदगी पुरसुकून हो जाए.

जो चाहता था वही तो हुआ था. अचानक गायब हो गए थे दोनों.

फिर आंखों में ये आंसू बारबार क्यों आ रहे हैं? होंठों पर थरथराहट क्यों है? और सीने में गरम लावे से क्यों धधक रहे हैं? वे दोनों कौन लगते थे उस के? या वह कौन लगता था उन का? कोई भी तो नहीं. फिर ये तड़प क्योंकर हो रही है उस  को. हां, शायद एक रिश्ता उन का आपस में था, इंसानियत का.

पूरी बिल्ंिडग यह सचाई जानती थी  कि दोनों बुजुर्ग दंपती अंधे थे. देख नहीं सकते थे. पर वह तो आंख रहते हुए भी दिल और दिमाग से अंधा था. बस, उन्हें लड़तेझगड़ते और चिल्लाते सुनता रहा. सिर्फ अपने बारे में ही सोचता रहा. कभी उन के बारे में जानने की कोशिश नहीं की. अगलबगल फ्लैट में रहते भी अनजान बना रहा. 6 महीने का साथ था उन का. दोनों कल तक थे पर आज नहीं हैं.

उस के दिल ने क्यों एक बार भी नहीं कहा कि उन के डोर की कौलबैल बजाए. कोई तो दरवाजा खोलता, कुछ बातें होतीं, एक अनाम सा रिश्ता बनता. वे दोनों उसे जानते, वह भी उन की मुश्किलों को समझता. पर उन के फ्लैट का दरवाजा तो हमेशा बंद रहता था. तो क्या हुआ? उस ने भी तो अपने मन के दरवाजे को मजबूती से बंद कर रखा था. सिर्फ उन्हें सुनता रहा, आंखों से देखने की जरूरत ही महसूस नहीं की.

बहरहाल, किसी तरह खुद को ढोता हुआ वह अपने फ्लैट में आया. बगल वाले फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. आवाजें अब भी आ रही थीं.

‘ओ बूढ़े मियां, ओ बूढ़ी बीबी, जरा हाथ तो बढ़ाना,’ उस ने अपने दोनों कान जोर से बंद कर लिए. Social Story

Dharmendra Fitness: 89 वर्ष की उम्र में कैसे रहते हैं धर्मेंद्र फिट एंड फाइन

Dharmendra Fitness: बॉलीवुड के सबसे हैंडसम हीरो कहलाने वाले धर्मेंद्र अपने जमाने में अपनी खूबसूरती और हैंडसम लुक के लिए उतने ही प्रसिद्ध थे , जितनी की उस जमाने की हीरोइने अपनी खूबसूरती को लेकर चर्चा में हुआ करती थी. उस दौरान धर्मेंद्र वर्जिश करते थे, घंटों एक्सरसाइज करते थे ,अच्छा खाते पीते थे , डाइटिंग वगैरह तो बिल्कुल नहीं करते थे फिर भी फिट एंड फाइन रहते थे ,
लेकिन आज भी 89 वर्ष की उम्र में भी धर्मेंद्र ना सिर्फ पूरी तरह स्वस्थ है , बल्कि इस उम्र में धरम जी स्विमिंग करते हैं , और अपने फार्म हाउस में बागबानी भी करते हैं . भले ही आज उम्र मे वह 89 हो गए है लेकिन दिल से आज भी वो जवान है . . हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी फिटनेस पर बात करते हुए कहा लोग मुझे बूढ़ा समझते हैं ,लेकिन आज भी मैं पूरी तरह फिट हूं , और अपना सारा काम खुद कर सकता हूं. धरम जी के अनुसार इस उम्र में भी वह पूरी तरह अनुशासित है . वह अपना ज्यादा समय फार्म हाउस में गुजारते हैं, वहां पर वह नियमित तौर पर योग करते हैं . उनके अनुसार योग से शारीरिक तौर पर ही नहीं मानसिक तौर पर भी फिट रहता हूं , धरम जी के अनुसार नियमित तौर पर योगा करने की वजह से वह कई सारी बीमारियों से बचे हुए हैं , उनके अनुसार क्योंकि मैं पंजाबी आदमी हूं इसलिए खाने पीने में ज्यादा परहेज नहीं कर सकता लेकिन योग के जरिए मैं अपने आप को फिट रख लेता हूं. मेरा तो मानना है अगर आपको लंबे समय तक स्वस्थ जीवन गुजारना है तो योगासन को नियमित रूप से अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहिए. जो कि कई बीमारियों का इलाज है, कई तकलीफों को खत्म करता है , अगर आपकी सेहत अच्छी रही तो आप ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा पाएंगे और अच्छी जिंदगी जी पाएंगे स्वस्थ रहने के लिए योग जरूर अपनाए,
अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो धर्म जी आज भी फिल्मों में काम कर रहे हैं उनकी फिल्मे तेरी बातों में उलझा जिया, रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में धरम जी के परफॉर्मेंस की सराहना हुई . वही आने वाले समय में उनकी फिलम इक्कीस रिलीज होने वाली है. Dharmendra Fitness

Hindi Family Story: क्यों हो रही थी तनुज की दूसरी शादी

Hindi Family Story: खुशियों से भरे दिन थे वे. उत्साह से भरे दिन. सजसंवर कर  रहने के दिन. प्रियजनों से मिलनेमिलाने के दिन. मुझ से 4 बरस छोटे मेरे भाई तनुज का विवाह था उस सप्ताह.

यों तो यह उस का दूसरा विवाह था पर उस के पहले विवाह को याद ही कौन कर रहा था. कुछ वर्ष पूर्व जब तनुज एक कोर्स करने के लिए इंगलैंड गया तो वहीं अपनी एक सहपाठिन से विवाह भी कर लिया. मम्मीपापा को यह विवाह मन मार कर स्वीकार करना पड़ा क्योंकि और कोई विकल्प ही नहीं था परंतु अपने एकमात्र बेटे का धूमधाम से विवाह करने की उन की तमन्ना अधूरी रह गई.

मात्र 1 वर्ष ही चला वह विवाह. कोर्स पूरा कर लौटते समय उस युवती ने भारत आ कर बसने के लिए एकदम इनकार कर दिया जबकि तनुज के अनुसार, उस ने विवाह से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि उसे भारत लौटना है. शायद उस लड़की को यह विश्वास था कि वह किसी तरह तनुज को वहीं बस जाने के लिए मना लेगी. तनुज को वहीं पर नौकरी मिल रही थी और फिर अनेक भारतीयों को उस ने ऐसा करते देखा भी था. या फिर कौन जाने तनुज ने यह बात पहले स्पष्ट की भी थी या नहीं.

बहरहाल, विवाह और तलाक की बात बता देने के बावजूद उस के लिए वधू ढूंढ़ने में जरा भी दिक्कत नहीं आई. मां ने इस बार अपने सब अरमान पूरे कर डाले. सगाई, मेहंदी, विवाह, रिसैप्शन सबकुछ. सप्ताहभर चलते रहे कार्यक्रम. मैं भी अपने अति व्यस्त जीवन से 10 दिन की छुट्टी ले कर आ गई थी. पति अनमोल को 4 दिन की छुट्टी मिल पाई तो हम उसी में खुश थे. बच्चों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. मौजमस्ती के अलावा उन्हें दिनभर के लिए मम्मीपापा का साथ भी मिल रहा था.

इंदौर में बीते खुशहाल बचपन की ढेर सारी यादें मेरे साथ जुड़ी हैं. बहुत धनवैभव न होने पर भी हमारा घर सब सुविधाओं से परिपूर्ण था. आज के मानदंड के अनुसार, चाहे मां बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं परंतु अत्यंत जागरूक और समय के अनुसार चलने वालों में से थीं. उन की इच्छा थी कि हम दोनों बहनभाई खूब पढ़लिख जाएं और इस के लिए वे हमें खूब प्रेरित करतीं.

स्नेह और पैसे की कमी नहीं रही हमें. शिक्षा, संस्कार सबकुछ पाया. घर का अधिकांश कार्यभार सरस्वती अम्मा संभालती थीं. पीछे से वे अच्छे घर की थीं. विपदा आन पड़ने पर काम करने को मजबूर हो गई थीं. अपाहिज हो गया पति कमा कर तो क्या लाता, पत्नी पर ही बोझ बन गया था.

सरस्वती अम्मा घरों में खाना बनाने का काम करने लगीं. हमारा गैराज खाली पड़ा था. मां के कहने पर उसी में सरस्वती अम्मा ने अपनी गृहस्थी बसा ली. एक किनारे पति चारपाई पर पड़ा रहता. अम्मा बीचबीच में जा कर उस की देखरेख कर आतीं. शेष समय हमारे घर का कामकाज देखतीं. अच्छे परिवार से थीं, साफसुथरी और समझदार. खाना मन लगा कर बनातीं. प्यार से बनाए भोजन का स्वाद ही अलग होता है. मां ने उन के दोनों बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी ले ली थी. स्कूल से लौटने पर वे उन्हें पास बिठा होमवर्क भी करा देतीं. बेटा 12वीं पास कर डाकिया बन गया. बिटिया राधा का 15 वर्ष की आयु में ही विवाह कर दिया. मां ने नाबालिग लड़की का विवाह करने से बहुत रोका किंतु परंपराओं में जकड़ी सरस्वती अम्मा के लिए ऐसा करना संभव नहीं था. उन के अनुसार अभी राधा का विवाह न करने पर वह जीवनभर कुंआरी रह जाएगी. लेकिन 1 वर्ष बाद ही कारखाने में हुई एक दुर्घटना में राधा के पति की मृत्यु हो गई. उसे मुआवजा तो मिला पर सब से बड़ी पूंजी खो दी उस ने. मां ने उस के पुनर्विवाह के लिए कहा. परंतु सरस्वती अम्मा के हिसाब से उन की बिरादरी में यह कतई संभव नहीं था.

इसी बीच मेरा भी विवाह हो गया. मैं ने कौर्पोरेट ला की पढ़ाई की थी और अपना कैरियर बनाना मेरे जीवन का सपना था. विदेशी कंपनी में एक अच्छी नौकरी मिली हुई थी मुझे. विवाह के बाद 2 वर्ष तक तो सब ठीक चलता रहा पर जब मां बनने की संभावना नजर आई तो चिंता होने लगी. कैरियर बनाने के चक्कर में पहले ही उम्र बढ़ चुकी थी एवं मातृत्व को और टाला नहीं जा सकता था.

शिशु जन्म के समय मां के पास इंदौर गई थी. अस्पताल से जब मैं नन्हे शिव को ले कर घर आई तो सरस्वती अम्मा ने एक सुझाव रखा, ‘क्यों न मैं राधा को अपने साथ ले जाऊं.’ उसे एक विश्वसनीय घर में रख कर वे निश्ंिचत हो जाएंगी. मेरी तो एक बड़ी समस्या हल हो गई, मन की मुराद पूरी हो गई. राधा को मैं बचपन से ही जानती आई थी. छोटी लड़कियों के अनेक खेल हम ने मिल कर खेले थे. वह मुझे बड़ी बहन का सा ही सम्मान देती थी. उस ने पहले शिव और 2 ही वर्ष बाद आई रिया की बहुत अच्छी तरह से देखभाल की और बच्चे भी उसे प्यार से मौसी कह कर बुलाते थे.

अनमोल जब घर पर होते तो यथासंभव हर काम में सहायता करते किंतु वे घर पर रहते ही बहुत कम थे. उन्हें दफ्तर के काम से अकसर इधरउधर जाना पड़ता और जब विदेश जाते तो महीनों बाद ही लौटते. यों अपने कैरियर के साथसाथ बच्चों को पालने और घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर ही थी. राधा की सहायता के बिना मेरा एक दिन भी नहीं चल सकता था. बच्चों के बड़े हो जाने के बाद भी मुझे उस की जरूरत रहने वाली थी.

मैं उस की सुविधा का पूरा खयाल रखती थी. घर के एक सदस्य की तरह ही थी वह. यों वह रात को बच्चों के कमरे में ही सोती किंतु घर के पिछवाड़े उस का अपना एक अलग कमरा भी था.

तनुज के ब्याह के लिए मैं ने अपने परिवार वालों के साथसाथ राधा के लिए भी नए कपड़े बनवाए थे. पर ऐन वक्त उस ने इंदौर जाने से इनकार कर दिया जोकि मेरे लिए बहुत आश्चर्य की बात थी. अभी कुछ दिन पहले तक तो वह विवाह में गाए जाने वाले गीतों का जोरशोर से अभ्यास कर रही थी. वह जिंदादिल और मौजमस्ती पसंद लड़की थी. किसी भी तीजत्योहार पर उस का जोश देखते ही बनता था. अपने मातापिता से मिलने के लिए वह अकसर अवसर का इंतजार किया करती थी. पर इस बार न तो मांबाप से मिलने का मोह और न ही ब्याह की मौजमस्ती ही उसे लुभा पाई.

तनुज का विवाह बहुत धूमधाम से हो गया. हम ने भी 10 दिन खूब मस्ती की. लौट कर भी कुछ दिन उसी माहौल में खोए रहे, वहीं की बातें दोहराते रहे. राधा ने ही घर संभाले रखा. 2-3 दिन बाद जब मेरी थकान कुछ उतरी और राधा की ओर ध्यान गया तो मुझे लगा कि वह आजकल बहुत उदास रहती है. काम तो पूरे निबटा रही है किंतु उस का ध्यान कहीं और होता है. बात सुन कर भी नहीं सुनती. मांबाप की खोजखबर लेने को उत्सुक नहीं. विवाह की बातें सुनने को उत्साहित नहीं. पर बहुत पूछने पर भी उस ने कोई कारण नहीं बताया.

मैं ने काम पर जाना शुरू कर दिया था. यह चिंता नहीं थी कि मेरी अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं होगी पर उस के मन में कुछ उदासी जरूर थी जो मैं महसूस कर सकती थी परंतु हल कैसे खोजती जब मैं कारण ही नहीं जानती थी.

इतवार के दिन मेरी पड़ोसिन ने मुझे अपने घर पर बुला कर बताया कि हमारी अनुपस्थिति में एक युवक दिनरात राधा के संग उस की कोठरी में रहा था.

मैं ने मां को फोन कर के पूरी बात बताई.

मां ने शांतिपूर्वक पूरी बात सुनी और फिर उतनी ही शांति से पूछा, ‘‘पर तुम उस पर इतनी क्रोधित क्यों हो रही हो? ऐसा कौन सा कुसूर कर दिया है उस ने?’’

‘‘एक परपुरुष से संबंध बनाना अनैतिक नहीं है क्या? हमें तो आप कड़े अनुशासन में रखती थीं?’’

‘‘तो इस में दोष किस का है? राधा के पति की असमय मृत्यु हो गई, यह उस का दोष तो नहीं? फिर इस बात की सजा इस लड़की को क्यों दी जा रही है? 16 वर्ष की आयु में उसे मन मार कर जीवन जीने को बाध्य कर दिया. उस के जीवन के सब रंग छीन लिए…’’

‘‘पर मां, वह विधवा हो गई, इस में हम क्या कर सकते हैं?’’

‘‘क्यों? उसे जीने का हक नहीं दिला सकते क्या? तनुज का दोबारा विवाह हुआ है न? तुम्हारे भाई के तलाक में कुछ गलती तो उस की भी रही ही होगी पर राधा के विधवा होने के लिए उसे क्यों दंडित किया जा रहा है? उस ने तो नहीं मारा न अपने पति को? यह तय कर दिया गया कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी. उस की जिंदगी का इतना अहम फैसला लेने से पहले क्या किसी ने उस से एक बार भी पूछा कि वह क्या चाहती है? हो सकता है उस में ताउम्र अकेली रहने की हिम्मत न हो और वह फिर से विवाह करने की इच्छुक हो. जिस पुरुष के साथ वह 1 वर्ष ही रह पाई वह भी तमाम बंदिशों के बीच, उस के साथ उस का लगाव कितना हो पाया होगा? और अब तो उस की मृत्यु को भी इतने वर्ष बीत चुके हैं.’’

‘‘मां, मुझे उस पर दया आती है पर उन लोगों के जो नियम हैं, हम उन्हें तो नहीं बदल सकते न.’’

‘‘पर ये कानून बनाए किस ने हैं? समाज द्वारा स्थापित नियमकायदे समाज नहीं बदलेगा तो कौन बदलेगा? और हम भी इसी का ही हिस्सा हैं.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी सुखी गृहस्थी देख कर उस की कभी इच्छा नहीं होती होगी कि उस का भी कोई साथी हो, जिस से वह मन की बात कह सके, अपने दुखसुख बांट सके. अपने बच्चे हों. यदि वह तुम्हारे बच्चे से इतना स्नेह करती है तो उसे अपने बच्चों की कितनी साध होगी, कभी सोचा तुम ने?

‘‘अपने भविष्य पर निगाह डालने पर क्या देखती होगी वह? एक अनंत रेगिस्तान. बिना एक भी वृक्ष की छाया के. मांबाप आज हैं, कल नहीं रहेंगे. भाई अपनी गृहस्थी में रमा है. सरस्वती की बिरादरी वाले जो राधा के पुनर्विवाह के विरुद्ध हैं, एक पुरुष के विधुर होने पर चट से उस का दूसरा विवाह कर देते हैं. तब वे कहते हैं कि बेचारे के बच्चे कौन पालेगा? स्त्री के विधवा होने पर उन की यह दयामाया कहां चली जाती है? यों हम कहते हैं कि स्त्री अबला है. सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से उसे पुरुष पर आश्रित बना कर रखते हैं किंतु विधवा होते ही उस से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अकेली ही इस जहान से लड़े. एक ऐसे समाज में जिस के हर वर्ग में भेडि़ए उसे नोच डालने को खुलेआम घूम रहे हैं.’’

दिनभर तो काम में व्यस्त रही पर दफ्तर जाते और लौटते हुए मां की बातें मस्तिष्क में घूमती रहीं. मैं ने सिर्फ किताबी ज्ञान ही अर्जित किया था. मां ने खुली आंखों से दुनिया को जिया था, देखा और समझा था. मैं अपने ही घर में रहती राधा का दर्द नहीं समझ पाई. कहने को मैं उसे घर का सदस्य समान ही समझती थी. उस से भरपूर प्यार करती थी. मैं ने उस पर थोपे निर्णय को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया था. जबकि मां उस के प्रति हुए अन्याय के प्रति पूर्ण जागरूक थीं.

मुझे मां की बातों में सचाई नजर आने लगी. सांझ ढलने तक मैं ने मन ही मन निर्णय ले लिया था और यही बताने के लिए दिनभर का काम समेट रात को मैं ने मां को फोन किया.

‘‘तुम उस लड़के से बात करो. उस की नौकरी, चरित्र इत्यादि के बारे में पूरी पड़ताल करो और यदि तुम्हें लगे कि लड़का सिर्फ मौजमस्ती के लिए राधा का इस्तेमाल नहीं कर रहा और इस रिश्ते को ले कर गंभीर है तो सरस्वती को मनवाने का जिम्मा मेरा,’’ मां के स्वर में आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट थी.

मैं ने जब राधा के सामने बात छेड़ी तो उस ने रोना शुरू कर दिया. बहुत देर के बाद उस ने मन की बात मुझ से कही.

रौशन हमारे घर से थोड़ी दूर किसी का ड्राइवर था. उसे राधा के विधवा होने के बारे में मालूम था फिर भी वह उस से विवाह करने को तैयार था. पर राधा को डर था कि उस की मां इस विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगी. एक तो वे अपनी बिरादरी से बहुत डरती थीं, दूसरे, रौशन उन से भिन्न जाति का था. राधा की परेशानी यह थी कि यदि उस ने मांबाप की इच्छा के विरुद्ध शादी कर ली तो वह सदैव के लिए उन से कट जाएगी. एक तरफ उस की तमाम जीवन की खुशियां थीं तो दूसरी तरफ मांबाप का प्यार. इसी बात को ले कर वह उदास थी. उस ने अब तक अपने मन की बात मुझ से कहने की हिम्मत नहीं की थी तो इस में मेरा ही कुछ दोष रहा होगा.

मैं ने रौशन के पिता को बात करने के लिए बुलाया. रौशन ने पहले से ही उन्हें राजी कर रखा था. सारी पड़ताल करने के बाद मैं ने मां के आगे एक सुझाव रखा, ‘‘सरस्वती अम्मा यदि विवाह के लिए राजी हो जाती हैं तो आप उन्हें ले कर यहां आ जाइए और राधा का विवाह चुपचाप यहीं करवा देते हैं. उस की बिरादरी वालों को पता ही नहीं चलेगा.’’

मेरी कम पढ़ीलिखी मां की सोच बहुत आगे तक की थी. उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘नहीं, शादी यहीं से होगी और खुलेआम होगी ताकि उस जैसी अन्य राधाओं के आगे एक उदाहरण रखा जा सके. हम कुछ गलत नहीं कर रहे कि छिपा कर करें. मुझे इस युवक से मिल कर खुशी होगी जो यह जानते हुए भी कि राधा विधवा है, उस से विवाह करने को कटिबद्ध है. रौशन के जो भी परिजन विवाह में शामिल होना चाहें, उन का स्वागत है.’’

‘‘सरस्वती अम्मा को तो तुम मना लोगी मां, पर यदि उस की जातिबिरादरी वालों ने कोई बखेड़ा खड़ा कर दिया तो?’’ मैं अब भी हिम्मत नहीं कर पा रही थी शायद.

‘‘सेना जब युद्ध के मैदान में आगे बढ़ती है तो उस की पहली पांत को ही सर्वाधिक गोलियों का सामना करना पड़ता है. पर इस का अर्थ यह तो नहीं कि कोई आगे बढ़ने से इनकार कर देता हो. इसी तरह स्थापित किंतु अन्यायपूर्ण परंपराओं के विरुद्ध जो सब से पहले आवाज उठाता है उसे ही कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है. फिर धीरेधीरे वही रीति स्वीकार्य हो जाती है. पर किसी को तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी न.

‘‘पहली पांत ही यदि साहस नहीं करेगी तो समाज आगे बढ़ेगा कैसे? हमारे समय में पढ़ेलिखे घरों में भी विधवा विवाह नहीं होता था. बहुत सरल, चाहे अब भी न हो किंतु वर्जित भी नहीं रहा. विडंबना यह है कि अभी भी हमारे समाज के कई वर्ग ऐसे हैं जहां विधवा की दोबारा शादी नहीं हो पाती. शायद अकेली सरस्वती यह कदम उठाने की हिम्मत न जुटा पाए परंतु यदि हम उस का साथ देते हैं तो उस की शक्ति दोगुनी हो जाएगी.’’

मैं इंदौर जा रही हूं. इस बार राधा को संग ले कर. जा कर इस के विवाह की तैयारी भी करनी है. आज से ठीक 5वें दिन रौशन आएगा इसे ब्याहने, पूरे विधिविधान के साथ. Hindi Family Story

Monsoon Special: बारिश में पैरों की देखभाल

Monsoon Special: पैर शरीर का अभिन्न अंग हैं. इन की देखभाल बेहद जरूरी है. मगर बारिश के मौसम में इन की देखभाल की अधिक जरूरत होती है, क्योंकि इस मौसम में पैर अधिक समय तक गीले रहते हैं, जिस से कई प्रकार की बीमारियों के होने का डर रहता है.

इस बारे में डर्मैटोलौजिस्ट डा. सोमा सरकार बताती हैं कि अधिक समय तक पैर गीले रहने और समय पर सफाई न करने से उन में फंगस लग जाता है, जिस के कारण इन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. फिर उचित देखभाल के न होने से पैर बदसूरत भी लग सकते हैं.

पेश हैं, पैरों की देखभाल से संबंधित

कुछ सुझाव:

– पैरों की नियमित सफाई जरूरी है. बाहर से जब घर लौटें तो मैडिकेटेड साबुन से पैरों को धो कर सुखा लें. ऐंटीफंगल पाउडर का प्रयोग रोज करें.

– मौनसून में पैरों में कैंडीडायोसिस नामक बीमारी का अधिक होना देखा गया है. इस की वजह नमीयुक्त वातावरण, बारबार पैरों का गीला होना, जूतों में पानी रुकना आदि है. ऐसा होने पर तुरंत डाक्टर की सलाह लेना आवश्यक है.

– नियमित पैडीक्योर करवाने से पैर मुलायम और नमीयुक्त रहते हैं. इस में पैरों की उंगलियों की सफाई के साथसाथ टूल्स के द्वारा पैरों का व्यायाम भी करवाया जाता है.

– पैरों के नाखूनों को समयसमय पर कर्व शेप में काटें ताकि उन में गंदगी न रहे. नाखून काटते समय क्यूटिकल न काटें, क्योंकि यह नाखून के कठोर भाग को मुलायम बनाता है, जिस से संक्रमण की आशंका कम रहती है.

– हमेशा अच्छा फुटवियर पहनें, जो हवादार हो ताकि पैर सूखे रहें.

– आजकल बंद फुटवियर भी बारिश को ध्यान में रख कर बनाया जाता है, जो थोड़ा स्टाइलिश भी होता है. इस में गम बूट, स्ट्रैपर, बैलेरिनास, रबड़ के जूते आदि लोकप्रिय हैं.

– जूते हमेशा छोटी हील वाले पहनें ताकि फिसलने का डर न रहे.

त्वचारोग विशेषज्ञा डा. सरोज सेलार बताती हैं कि अगर आप वर्किंग हैं, तो औफिस जा कर अपने गीले पैरों को कपड़े से सुखा लें. जूतों को भी सुखा कर फिर पहनें. घर पहुंच कर सब से पहले हलके गरम पानी में 1 चम्मच सिरका मिला कर आधे घंटे तक पैरों को उस में डुबोए रखें. उस के बाद पैरों को साफ तौलिए से पोंछ कर उन पर क्रीम लगा लें.

फंगस से छुटकारा पाने के लिए बेकिंग सोडा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह पीएच बैलेंस करने में मदद करता है. इस का पेस्ट बना कर लगाया जा सकता है या फिर जूतों में भी बुरका जा सकता है.

– किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन से बचने के लिए एक टब में 2 बडे़ चम्मच नमक डाल कर करीब 15 मिनट तक पैरों को उस में डुबोए रखें. ऐसा रोज करने से संक्रमण नहीं होगा. यह सब से अच्छा ऐंटीसैप्टिक है.

– पानी में थोड़ी हलदी मिला कर इन्फैक्शन वाली जगह लगाने से राहत मिलती है.

– नारियल या नीम का तेल लगाने से भी फंगस कम होता है, साथ ही उस से होने वाले दर्द से भी राहत मिलती है.

– अगर आप डायबिटीज की मरीज हैं, तो पैरों का और अधिक ध्यान रखना आवश्यक है. नायलौन के मौजों की जगह कौटन के मौजे पहनें. गीले मौजों को बदलने में देरी न करें. हमेशा 1 जोड़ी सूखे मौजे साथ रखें. इस मौसम में नंगे पांव बिलकुल न चलें. Monsoon Special

Family Story: भाग 1- क्या बिगड़े बेटे को सुधार पाई मां

Family Story: शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है. Family Story

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