Hindi Family Story: सहारा- मोहित और अलका आखिर क्यों हैरान थे

Hindi Family Story: मोहित को घर जाने के लिए सिर्फ 1 सप्ताह की छुट्टी मिली थी. समय बचाने के लिए उस ने अपनी पत्नी अलका व बेटे राहुल के साथ मुंबई से दिल्ली तक की यात्रा हवाईजहाज से करने का फैसला किया. अलका ने घर से निकलने से पहले ही साफसाफ कहा था, ‘‘देखो, मैं पूरे 5 महीने के बाद अपने मम्मीपापा से मिलूंगी. भैयाभाभी के घर से अलग होने के बाद वे दोनों बहुत अकेले हो गए हैं. इसलिए मुझे उन के साथ ज्यादा समय रहना है. अगर आप ने अपने घर पर 2 दिनों से ज्यादा रुकने के लिए मुझ पर दबाव बनाया तो झगड़ा हो जाएगा.’’

‘अपने मम्मीपापा के अकेलेपन से आज तुम इतनी दुखी और परेशान हो रही हो पर शादी होते ही तुम ने रातदिन कलह कर के क्या मुझे घर से अलग होने को मजबूर नहीं किया था? जब तुम ने कभी मेरे मनोभावों को समझने की कोशिश नहीं की तो मुझ से ऐसी उम्मीद क्यों रखती हो?’ मोहित उस से ऐसा सवाल पूछना चाहता था पर झगड़ा और कलह हो जाने के डर से चुप रहा. ‘‘तुम जितने दिन जहां रहना चाहो, वहां रहना पर राहुल अपने दादादादी के साथ ज्यादा समय बिताएगा. वे तड़प रहे हैं अपने पोते के साथ हंसनेखेलने के लिए,’’ मोहित ने रूखे से लहजे में अपनी बात कही और अलका के साथ किसी तरह की बहस में उलझने से बचने के लिए टैक्सी की खिड़की से बाहर देखने लगा था.

मोहित को अपनी सास मीना कभी अच्छी नहीं लगी थी. उन की शह पर ही अलका ने शादी के कुछ महीने बाद से किराए के मकान में जाने की जिद पकड़ ली थी. उस का दिल बहुत दुखा था पर शादी के 6 महीने बाद ही अलका ने उसे किराए के घर में रहने को मजबूर कर दिया था. वह करीब 4 साल तक किराए के मकान में रहा था. फिर नई कंपनी में नौकरी मिलने से वह 5 महीने पहले मुंबई आ गया था. अब सप्ताह भर की छुट्टियां ले कर वह सपरिवार पहली बार दिल्ली जा रहा था.

करीब 2 महीने पहले मोहित का साला नीरज अपनी पत्नी अंजु और सासससुर के बहकावे में आ कर घर से अलग हो गया था. उस के ससुर ने उसे नया काम शुरू कराया था जिस में उस की अच्छी कमाई हो रही थी. ससुराल में ज्यादा मन लगने से उस का ज्यादा समय वहीं गुजरता था. उस के अलग होने के फैसले को सुन अलका बहुत तड़पी थी. खूब झगड़ी थी वह फोन पर अपने भैयाभाभी के साथ पर उन दोनों ने घर से अलग होने का फैसला नहीं बदला था.

‘‘इनसान को अपने किए की सजा जरूर मिलती है. दूसरे की राह में कांटे बोने वाले के अपने पैर कभी न कभी जरूर लहूलुहान होते हैं,’’ मोहित की इस कड़वी बात को सुन कर अलका कई दिनों तक उस के साथ सीधे मुंह नहीं बोली थी. मोहित अपने मातापिता को मुंबई में साथ रखना चाहता था पर अलका ने इस प्रस्ताव का जबरदस्त विरोध किया.

‘‘मां की कमर का दर्द और पिताजी का ब्लडप्रेशर बढ़ता जा रहा है. अगर अब हम ने उन दोनों की उचित देखभाल नहीं की तो उन दोनों के लिए औलाद को पालनेपोसने की इतनी झंझटें उठाने का फायदा ही क्या हुआ?’’

अलका के पास मोहित के इस सवाल का कोई माकूल जवाब तो नहीं था पर उस ने अपने सासससुर को साथ न रखने की अपनी जिद नहीं बदली थी. सुबह की फ्लाइट पकड़ कर वे सब 12 बजे के करीब अपने घर पहुंच गए. पूरे सफर के दौरान अलका नाराजगी भरे अंदाज में खामोश रही थी.

अपनी ससुराल के साथ अलका की बहुत सारी खराब यादें जुड़ी हुई थीं. सास के कमरदर्द के कारण उसे पहुंचते ही रसोई में किसी नौकरानी की तरह मजबूरन घुसना पड़ेगा, यह बात भी उसे बहुत अखर रही थी. उस का मन अपने मम्मीपापा के पास जल्दी से जल्दी पहुंचने को बहुत ज्यादा आतुर हो रहा था. घंटी बजाने पर दरवाजा मोहित के पिता महेशजी ने खोला. उन सब पर नजर पड़ते ही वे फूल से खिल उठे. अपने बेटे को गले लगाने के बाद उन्होंने राहुल को गोद में उठा कर खूब प्यार किया. अलका ने अपने ससुरजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया.

महेशजी तो राहुल से ढेर सारी बातें करने के मूड में आ गए. अपने दादा से रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कार का उपहार पा राहुल खुशी से फूला नहीं समा रहा था. अलका और मोहित घर में नजर आ रहे बदलाव को बड़ी हैरानी से देखने लगे.

जिस ड्राइंगरूम में हमेशा चीजें इधरउधर फैली दिखती थीं वहां हर चीज करीने से रखी हुई थी. धूलमिट्टी का निशान कहीं नहीं दिख रहा था. खिड़कियों पर नए परदे लगे हुए थे. पूरा कमरा साफसुथरा और खिलाखिला सा नजर आ रहा था. ‘‘मां घर में नहीं हैं क्या?’’ मोहित ने अपने पिता से पूछा.

‘‘वे डाक्टर के यहां गई हुई हैं,’’ प्यार से राहुल का माथा चूमने के बाद महेशजी ने जवाब दिया. ‘‘अकेली?’’

‘‘नहीं, उन की एक सहेली साथ गई हैं.’’ ‘‘कौन? शारदा मौसी?’’

‘‘नहीं, उन्होंने एक नई सहेली बनाई है. दोनों लौटने वाली ही होंगी. तुम दोनों क्या पिओगे? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक? अरे, बाप रे,’’ महेशजी ने अचानक माथे पर हाथ मारा और राहुल को गोद से उतार झटके से सीधे खड़े हो गए. ‘‘क्या हुआ?’’ मोहित ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘गैस पर भिंडी की सब्जी रखी हुई है. इस शैतान से बतियाने के चक्कर में मैं उसे भूल ही गया था,’’ वह झेंपे से अंदाज में मुसकराए और फिर तेजी से रसोई की तरफ चल पड़े. राहुल कार के साथ खेलने में मग्न हो गया. अलका और मोहित महेशजी के पास रसोई में आ गए.

‘‘घर की साफसफाई के लिए कोई नई कामवाली रखी है क्या, पापा?’’ साफसुथरी रसोई को देख अलका यह सवाल पूछने से खुद को रोक नहीं पाई. ‘‘कामवाली तो हम ने लगा ही नहीं रखी है, बहू. घर के सारे कामों में तुम्हारी सास का हाथ अब मैं बंटाता हूं. तुम यह कह सकती हो कि उस ने नया कामवाला रख लिया है,’’ अपने मजाक पर महेशजी सब से ज्यादा खुल कर हंसे.

मोहित ने एक भगौने पर ढकी तश्तरी को हटाया और बोला, ‘‘वाह, मटरपनीर की सब्जी बनी है. लगता है मां सारा लंच तैयार कर के गई हैं.’’ ‘‘डाक्टर के यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए वे तो 3 घंटे पहले घर से चली गई थीं. आज लंच में तुम दोनों को मेरे हाथ की बनी सब्जियां खाने को मिलेंगी,’’ किसी छोटे बच्चे की तरह गर्व से छाती फुलाते हुए महेशजी ने उन दोनों को बताया.

‘‘आप ने खाना बनाना कब से सीख लिया, पापा?’’ मोहित हैरान हो उठा. ‘‘घर के सारे काम करने का हुनर हम आदमियों को भी आना चाहिए. तुम बहू से टे्रनिंग लिया करो. अब मैं तुम्हें इलायची वाली चाय बना कर पिलाता हूं.’’

‘‘चाय मुझे बनाने दीजिए, पापा,’’ अलका आगे बढ़ आई. ‘‘अगली बार तुम बनाना. तुम्हारे हाथ की बनी चाय पिए तो एक अरसा हो गया,’’ महेशजी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो अजीब सी भावुकता का शिकार हो उठी अलका को अपनी पलकें नम होती प्रतीत हुई थीं.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो मोहित दरवाजा खोलने के लिए चला गया. ‘‘अलका, तुम्हारे पापा आए हैं,’’ कुछ देर बाद मोहित की ऊंची आवाज अलका के कानों तक पहुंची तो वह भागती सी ड्राइंगरूम में पहुंच गई.

‘‘आप, यहां कैसे?’’ अलका अपने पिता उमाकांत को देख खुशी से खिल उठी. ‘‘तुम लोगों के आने की खुशी में रसमलाई ले कर आया हूं,’’ राहुल को गोद से उतारने के बाद उमाकांत ने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया.

‘‘उमाकांत, रसमलाई का मजा खाने के बाद लिया जाएगा. अभी चाय बन कर तैयार है,’’ महेशजी रसोई में से ही चिल्ला कर बोले. ‘‘ठीक है, भाईसाहब,’’ उन्हें ऊंची आवाज में जवाब देने के बाद उमाकांत ने हैरान नजर आ रहे अपने बेटीदामाद को बताया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के बहुत पक्के दोस्त बन गए हैं. रोज मिले बिना हमें चैन नहीं पड़ता है.’’

‘‘यह चमत्कार हुआ कैसे?’’ इस सवाल को पूछने से मोहित खुद को रोक नहीं सका. ‘‘यह सचमुच चमत्कार ही है कि इस घर में हमारा स्वागत अब दोस्तों की तरह होता है, मोहित,’’ सस्पेंस बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए उमाकांत उस के सवाल का जवाब देना टाल गए थे.

तभी करीब 2 महीने पहले घटी एक घटना की याद उन के मन में बिजली की तरह कौंध गई थी.

अपने बेटेबहू के अलग हो जाने से मीना बहुत ज्यादा दुखी और परेशान थीं. बेखयाली में घर की सीढि़यां उतरते हुए उन का पैर फिसला और दाएं टखने में मोच आ गई. डाक्टर की क्लिनिक में उन की मुलाकात महेश और आरती से हुई. आरती की कमर का इलाज वही डाक्टर कर रहा था.

तेज दर्द के कारण तड़प रही मीना का आरती ने बहुत हौसला बढ़ाया था. उस वक्त उन्होंने मीना के खिलाफ अपने मन में बसे सारे गिलेशिकवे भुला कर उन्हें सहारा दिया था. अपने बेटे से बहुत ज्यादा नाराज मीना ने उसे अपनी चोट की खबर नहीं दी थी. डाक्टर को दिखाने के बाद कुछ देर आराम करवाने के लिए महेशजी व आरती उन दोनों को अपने घर ले आए थे.

मीना का सिर भी दीवार के साथ जोर से टकराया था. वहां कोई जख्म तो नहीं हुआ पर सिर को हिलाते ही उन्हें जोर से चक्कर आ रहे थे.

इस स्थिति के चलते मीना को आरती के घर में उस रात मजबूरन रुकना पड़ा. उन की किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए आरती रात को मीना के साथ ही सोई थीं. नींद आने से पहले बहुत दिनों से परेशान चल रहीं मीना के मन में कोई अवरोध टूटा और वह आरती से लिपट कर खूब रोई थीं.

‘अपने बेटेबहू के घर छोड़ कर अलग हो जाने के बाद मुझे यह एहसास बहुत सता रहा है कि मैं ने आप दोनों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है. अपनी बेटी को समझाने के बजाय मैं उसे भड़का कर हमेशा ससुराल से अलग होने की राय देती रही. अब मुझे अपने किए की सजा मिल गई है, बहनजी…आप मुझे आज माफ कर दोगी तो मेरे मन को कुछ शांति मिलेगी.’ पश्चात्ताप की आग में जल रही मीना ने जिस वक्त आरती से आंसू बहाते हुए क्षमा मांगी थी उस वक्त उमाकांत और महेश भी उस कमरे में ही उपस्थित थे. जब आरती ने मीना को गले से लगा कर अतीत की सारी शिकायतों व गलतफहमियों को भुलाने की इच्छा जाहिर की तो भावविभोर हो उमाकांत और महेश भी एकदूसरे के गले लग गए थे.

आरती और महेश ने मीना और उमाकांत को अपने घर से 3 दिन बाद ही विदा किया था. ‘तुम ऐसा समझो कि अपनी बेटी की ससुराल में नहीं, बल्कि अपनी सहेली के घर में रह रही हो. तुम से बातें कर के मेरा मन बहुत हलका हुआ है. मुझे न कमर का दर्द सता रहा है न बहूबेटे के गलत व्यवहार से मिले जख्म पीड़ा दे रहे हैं. तुम कुछ ठीक होने के बाद ही अपने घर जाना,’ आरती की अपनेपन से भरी ऐसी इच्छा ने मीना को बेटी की ससुराल में रुकने के लिए मजबूर कर दिया था.

आने वाले दिनों में दोनों दंपतियों के बीच दोस्ती की जड़ें और ज्यादा मजबूत होती गई थीं. पहले एकदूसरे के प्रति नाराजगी, नफरत और शिकायतों में खर्च होने वाली ऊर्जा फिर आपसी प्रेम को बढ़ाती चली गई थी. ‘‘मां, आप के साथ क्यों नहीं आई हैं?’’ अलका के इस सवाल को सुन उमाकांत अतीत की यादों से झटके के साथ उबर आए थे.

‘‘कुछ देर में वे आती ही होंगीं. इसे फ्रिज में रख आ,’’ उमाकांत ने रसमलाई का डिब्बा अलका को पकड़ा दिया. वे सब लोग जब कुछ देर बाद गरमागरम चाय का लुत्फ उठा रहे थे तब एक बार फिर घंटी की आवाज घर में गूंज गई.

दरवाजा खुलने के बाद अलका और मोहित ने जो दृश्य देखा वह उन के लिए अकल्पनीय था. मोहित की मां आरती ने अलका की मां मीना का सहारा ले कर ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. बहुत ज्यादा थकी सी नजर आने के बावजूद वे दोनों घर आए मेहमानों को देख कर खिल उठी थीं.

मोहित ने तेजी से उठ कर पहले दोनों के पैर छुए और फिर मां की बांह थाम ली. मीना के हाथ खाली हुए तो उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया.

अलका उन से अलग हुई तो राहुल अपनी दादी की गोद से उतर कर भागता हुआ नानी की गोद में चढ़ गया. सब के लाड़प्यार का केंद्र बन वह बेहद प्रसन्न और बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ नजर आ रहा था. ‘‘इस बार 2 कप चाय मैं बना कर लाता हूं,’’ उमाकांत ने अपना कप उठाया और चाय का घूंट भरने के बाद रसोई की तरफ चल पड़े.

उन की जगह चाय बनाने के लिए अलका रसोई में जाना चाहती थी पर आरती ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया. ‘‘बहू, तुम्हारे पापा के हाथ की बनी स्पेशल चाय पीने की मुझे तो लत पड़ गई है. बना लेने दो उन्हीं को चाय,’’ आरती के मुंह से निकले इन शब्दों ने अलका और मोहित के मनों की उलझन को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था.

‘‘मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है,’’ उन चारों बुजुर्गों को कुछ देर बाद बच्चा बन कर राहुल के साथ हंसतेबोलते देख अलका ने धीमी आवाज में मोहित के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की. ‘‘कितने खुश हैं चारों,’’ मोहित भावुक हो उठा, ‘‘इस सुखद बदलाव का कारण कुछ भी हो पर यह दृश्य देख कर मेरे मन की चिंता गायब हो गई है. ये सब एकदूसरे का कितना मजबूत सहारा बन गए हैं.’’

‘‘पर ये चमत्कार हुआ कैसे?’’ अपनी मां के टखने में आई मोच वाली घटना से अनजान अलका एक बार फिर आश्चर्य से भर उठी. इस बार अलका की आवाज उस के पिता के कानों तक पहुंच गई. उन्होंने तालियां बजा कर सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और फिर बड़े स्टाइल से गला साफ करने के बाद स्पीच देने को तैयार हो गए.

‘‘हमारे रिश्तों में आए बदलाव को समझने के लिए अलका और मोहित के दिलों में बनी उत्सुकता को शांत करने के लिए मैं उन दोनों से कुछ कहने जा रहा हूं. मेरी प्रार्थना है कि आप सब भी मेरी बात ध्यान से सुनें. ‘‘अपनी अतीत की गलतियों को ले कर अगर कोई दिल से पश्चात्ताप करे तो उस के अंदर बदलाव अवश्य आता है. जब नीरज अपनी पत्नी व बेटी को ले कर अलग हुआ तब मीना और मुझे समझ में आया कि हम ने अलका को किराए के मकान में जाने की शह दे कर बहुत ज्यादा गलत काम किया था.

‘‘बढ़ती उम्र की बीमारियों के शिकार बने हम चारों मायूस व दुखी इनसानों के दिलों में एकदूसरे के लिए बहुत सारा मैल जमा था. इस मैल को दूर कराने का मौका संयोग से हमें मिल गया. ‘‘मनों का मैल मिटा तो वक्त ने यह सिखाया और दिखाया कि हम चारों एकदूसरे का मजबूत सहारा बन सकते हैं. आपस में अच्छे दोस्तों की तरह सहयोग शुरू करने के बाद आज हम सब अपने को ज्यादा सुखी, खुश और सुरक्षित महसूस करते हैं.

‘‘बेटी अपने घर चली जाए और बेटाबहू किसी भी कारण से इस बड़ी उम्र में मातापिता को सहारा देने को…उन की देखभाल करने को उपलब्ध न हों तो पड़ोसी, मित्र व रिश्तेदार ही उन के काम आते हैं. हम रिश्तेदार तो पहले ही थे, अब पड़ोसी व अच्छे मित्र भी बन गए हैं,’’ भावुक नजर आ रहे उमाकांत ने आगे बढ़ कर महेशजी को उठाया और फिर दोनों दोस्त हाथ पकड़ कर साथसाथ खड़े हो गए. ‘‘पड़ोसी कैसे?’’ मोहित ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम दोनों को सरप्राइज देने के लिए हम ने यह खबर अभी तक छिपाए रखी थी कि इस के ठीक ऊपर वाले फ्लैट में हम ने पिछले हफ्ते शिफ्ट कर लिया है,’’ उमाकांत ने बताया. ‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है,’’ मोहित ने इस खबर की पुष्टि कराने को अपने पिता की तरफ देखा.

‘‘यह बात सच है, बेटे. पुराना फ्लैट बेच कर ऊपर वाला फ्लैट खरीदने का इन का फैसला समझदारी भरा है. पड़ोसी होने से हम एकदूसरे के सुखदुख में फौरन शामिल हो जाते हैं. ‘‘इस के अलावा हमारी उचित देखभाल न कर पाने के कारण अब तुम बच्चों को किसी तरह के अपराधबोध का शिकार बनने की कोई जरूरत नहीं है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब हमारा अकेलापन दूर भाग गया है. आपसी सहयोग के कारण हमारा जीवन ज्यादा खुशहाल और रसपूर्ण हो गया है,’’ महेशजी का चेहरा जोश व उत्साह से चमक उठा था.

‘‘आप सब को इतना खुश देख कर मेरा मन बहुत ज्यादा हलकापन महसूस कर रहा है लेकिन…’’ ‘‘लेकिन क्या?’’ अपने बेटे को यों झटके से चुप होता देख आरती चिंतित नजर आने लगीं.

‘‘इस अलका बेचारी का मायका और ससुराल तो अब ऊपरनीचे के घर में हो गए. ये ससुराल वालों से रूठ कर अब कहां जाया करेगी?’’ मोहित के उस मजाक पर सब ने जोर से ठहाका लगाया तो अलका ने शरमा कर अपनी मां व सास के पीछे खुद को छिपा लिया था.

Hindi Family Story

Couple Love Story : पति पत्नी का रोमांटिक संवाद

Couple Love Story : शीर्षक पढ़ कृपया आप चौंकें नहीं. श्रृंगाररस से इतर यह वार्त्तालाप थोड़ा अलग किस्म का है. यह भारतीय पतिपत्नी के बीच दिनप्रतिदिन होने वाले स्पैशल रोमांटिक अंदाज को व्यक्त करता है. जो विवाहित हैं उन्हें समझाने की कोई जरूरत नहीं. यह उन की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा भर है तथा जो सौभाग्यशाली विवाह नहीं कर पाए हैं उन के लिए यह मुफ्त का ट्यूशन लैसन है. मन करे तो सीख लें, मानसिकरूप से खुद को तैयार करें अथवा हमारे सद्अनुभव को मजाक में उड़ा दें. कोई टैंशन नहीं, मरजी पाठकों की है.

किस्सा ट्रेन का है. प्लेटफार्म पर ट्रेन आ कर रुकी और हम लपक कर जनरल कंपार्टमैंट में चढ़ कर सीट हथिया लेते हैं. लेकिन यह बेवजह की फुरती किसी काम की नहीं रहती. कारण, ट्रेन में भीड़ बिलकुल नहीं है. हमारे सामने की सीट पर विंडो साइड एक नवयौवना बैठी है और उस की बगल में एक लड़के ने अपना सामान रख पूरी सीट पर कब्जा जमा लिया है. हमारी बगल में भी एक कालेजगर्ल आ कर बैठ गई है. ट्रेन प्लेटफार्म से रेंगने लगती है.

तभी अचानक इस डब्बे में बैठे सभी यात्रियों का ध्यान उस नवयौवना की तरफ आकर्षित होने लगता है. कान से मोबाइल लगाए, तनिक मस्त अंदाज में वह जोर की आवाज से मोबाइल पर बात करने लगती है. यह वार्त्तालाप बहुत रोचक है. तत्कालीन परिस्थितियों की विचित्रताओं से मिल कर ऐसा मजेदार दृश्य प्रस्तुत करता है कि सभी यात्रियों का ध्यान उस तरफ स्वत: खिंच जाता है. आप भी इस एकतरफा वार्त्तालाप का मजा लीजिए, खुदबखुद समझ जाएंगे कि वार्त्ता किस से चल रही होगी:

‘‘कहां हो आप? मैं भी तो पीछे जनरल डब्बे में हूं.’’

‘‘अरे कहा न पीछे के डब्बे में…’’

‘‘आप किस दुनिया में खोए हो?’’ युवती मंदमंद मुसकराती हुई बोलती है, ‘‘मैं गेट पर ही तो खड़ी हूं… नजर उठा कर देखोगे तभी तो दिखाई दूंगी,’’ सीट पर बैठेबैठे ही युवती बडे़ अंदाज में बतिया रही है.

तभी ट्रेन प्लेटफार्म से गति पकड़ लेती है. वार्त्तालाप पुन: शुरू हो जाता है.

‘‘पहले यह बताओ आप हो कहां?’’

स्टेशन पर हो तो मुझे क्यों नहीं देख रहे… किसी और के साथ होंगे. वही आप की क्लोज फ्रैंड… सच कह रही हूं. तभी तो अपनी बीवी को नहीं पहचान रहे…’’

‘‘अच्छा, तो आप के लिए रेलवे ने पर्सनल डब्बा लगा दिया, जिस में चढ़ गए हो…’’

‘‘अरे कितनी बार कहूं कि गेट पर ही तो खड़ी हूं… अभी पैर फिसल गया था… बस बच गई…’’

‘‘हांहां, तुम्हें क्यों चिंता होगी मेरी… अच्छा होता पीछा छूटता. यही तो चाहते हो आप. रहने दो मुझे सब पता है…’’

‘‘अब ये शब्द तो बोलो ही मत… उसी को बोलो जिस से दिनरात चैटिंग करते हो. सच में बहुत बुरे हो आप… मुझे पता होता कि आप इस तरह मुझे ट्रेन में अकेला छोड़ दोगे तो सच में मैं ट्रेन में बैठती ही नहीं.’’

‘‘सब देख लिया आप को मेरी कितनी चिंता है. लोग अपनी बीवियों को कितना चाहते हैं… आप के लिए तो बस… जिंदा भी हूं या नहीं क्या फर्क पड़ता है?’’

तभी युवती अपने बैग से खाने का पैकेट निकालती है. सैंडविच, ब्रैडरोल खातेखाते यह वार्त्तालाप चलता जाता है. सब यात्री उसे बड़े ध्यान से सुन रहे हैं. हमारे पास बैठी लड़की अचानक मुसकरा देती है. हम पूरे घटनाक्रम को देखसमझ रहे हैं.

तभी एक स्टेशन निकल जाता है, लेकिन पतिपत्नी का ट्रेन में मिलनमिलाप नहीं हो पाता. वार्त्तालाप अब उत्तरोत्तर तीव्रतर होता जा रहा है:

‘‘मुझे पागल मत बनाओ… मैं ने सब डब्बे देख लिए आगेपीछे… आप कहां छिपे बैठे हो?’’

‘‘गुस्सा मत दिलाओ. पीछे के डब्बे में होते तो मुझे दिखाई पड़ते. सब जानती हूं. आप जान कर मुझ से दूर भागते हो…’’

‘‘नहींनहीं गलती मेरी है. इतना प्यार जो करती हूं आप को… तभी तो मुझे बेवकूफ बनाते हो…’’

‘‘ओकेओके… ऐंजौय यार… मुझे कोई टैंशन नहीं. अपनी इस न्यू फ्रैंड के साथ ही लाइफ बिताना अब. मैं तो ऐसे ही रह लूंगी.’’

‘‘सच्ची कहती हूं अब तलाक ले कर ही रहूंगी मैं…’’

‘‘अब ज्यादा बोले तो ट्रेन में ही सुनोगे मुझ से… मैं कुछ बोल नहीं रही तो इस का मतलब यह नहीं कि मेरे मुंह में जबान नहीं है.’’

‘‘फौर गौड सेक… इट्स टू मच यार… अब मिलना आप, तब बताऊंगी कितनी परेशान…’’

युवती के चेहरे पर मुसकान है और मस्ती के लक्षण भी, लेकिन उस की शब्दावली में गुस्से की इंतहा झलक रही है. हम कन्फ्यूज्ड हुए इस विचित्र घटना को समझने में लगे हैं.

अचानक युवती के दूसरे मोबाइल की बैल बजती है. युवती दूसरे मोबाइल पर बात करने लगती है. पहले वाले मोबाइल पर संवाद अटक जाता है. युवती अब अपनी मां को हंसतेमुसकराते इस घटनाक्रम की रिपोर्टिंग करती हुई अपनी सफाई में लाजवाब तर्क दे रही है, ‘‘मम्मी, अगर मैं उन्हें खींचू नहीं तो वे मेरे हाथ से ही निकल जाएं… सच्ची, बहुत केयरलैस हैं. ऐसे रखती हूं तो लाइन पर रहते हैं वे वरना तो…’’

इस वार्त्तालाप के बीच में ही पहले वाला मोबाइल फिर से बजने लगता है. युवती अपनी मम्मी को फिर बात करने की कह कर फिर से अपने पति से मुखातिब हो जाती है:

‘‘अरे गुम कहां होऊंगी? आप को देखने के लिए ही चक्कर काट रही हूं पूरे डब्बे में…’’

‘‘सही है, मैं आप की तरह होती तो पता चल जाता… मोस्ट केयरलैस पर्सन.’’

‘‘कोई बात नहीं. घर पहुंचो, फिर देखती हूं आप को.’’

इस वार्त्तालाप को बीच में छोड़ना हमारी विवशता बन गई. कारण, हमारा स्टेशन आ गया था. हम बेमन से ट्रेन से उतर जाते हैं. आगे क्या हुआ, कुछ पता नहीं. लेकिन हमारे रहते करीब 40 मिनट का सफर ऐसी बातचीत में ही निकल गया. मन ही मन शुक्र मनाया कि सफर में हमारी श्रीमतीजी साथ नहीं थीं. वे यह वार्त्तालाप सुन लेतीं तो हमारी खैरियत न रहती. पति को कंट्रोल में रखने के टिप्स जब इस तरह मुफ्त में मिलें तो कौन श्रीमतीजी होंगी जो ऐसे गोल्डन चांस को छोड़ेंगी?

इस प्रसंग से यह साफ हो गया कि पतिपत्नी के बीच की नोकझोंक चाहे सामने वाले को अजीब लगे, लेकिन इस के पीछे सच में प्यार छिपा होता है. यह सत्य है कि हम जिस से प्यार करते हैं उस से ही तो अपने मन की बात कहेंगे. पतिपत्नी दोस्त भी होते हैं. मानवीय स्वभाव है, जिस से प्यार करते हैं उस पर पूरा राइट, अधिकार मानना अच्छा लगता है. भारतीय गृहस्थी की यही खूबसूरती है कि रोजरोज की किचकिच करते पतिपत्नी साथ रह कर विदेशियों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं. Couple Love Story

Uneven Skin Tone कैसे करें हैंडल? मार्कट में कौन से प्रोडक्ट हैं? जानें डिटेल

Uneven Skin Tone आखिर है क्या?

इसके लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी होता है कि अनइवन स्किन टोन किसे कहते हैं? दरअसल, जब हमारी स्किन का रंग एक समान नहीं होता, कहीं से गहरा, कहीं से हल्का, कही गोरा, कहीं काला होता है, कहीं गहरे निशान होते हैं तो उसे ही अनइवन स्किन टोन कहते हैं. अकसर यह स्थिति तब होती है जब आपकी त्वचा में मेलेनिन का उत्पादन असमान रूप से होता है, जिससे स्किन के कुछ जगह अन्य जगहों की तुलना में गहरे या हल्के दिखाई देते हैं.

अनइवन स्किन टोन होने के भी कई कारण है-

सूरज की रौशनी भी है जिम्मेवार

हमें हर बार सूरज की रौशनी में जाने से पहले सनस्क्रीन लगाने की आदत नहीं होती है इसे वजह से सूरज की हानिकारक किरणें मेलेनिन उत्पादन को बढ़ा सकती हैं, जिससे काले धब्बे और पिगमेंटेशन हो जाती है.

उम्र का बढ़ना

जैसेजैसे आप 35 प्लस होते हैं तो इसका उम्र का असर स्किन पर दिखने लगता है. यही वजह है स्किन अनइवन होने लगती है.

हार्मोनल चेंज

प्रेग्नैंसी या कुछ दवाइयों के कारण हार्मोनल संतुलन बिगड़ने से मेलेनिन का उत्पादन बढ़ सकता है, जिससे मेलास्मा (Melasma) जैसी समस्या होती है. जो त्वचा की रंगत को प्रभावित करती हैं.

त्वचा की स्थिति

किसी चोट या फिर एक्ने, एक्जिमा, या सोरायसिस जैसी स्थितियां भी अनइवन स्किन टोन का कारण बन सकती हैं.

जेनेटिक कारण

कुछ लोगों को आनुवंशिक रूप से असमान त्वचा टोन होने की अधिक संभावना हो सकती है.

खराब हुए हुए स्किनकेयर प्रोडक्ट का यूज

कुछ केमिकल युक्त या बहुत कठोर प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से त्वचा में जलन हो सकती है, जिससे पिगमेंटेशन बढ़ती है.

अनइवन स्किन टोन को सही करने के लिए कई प्रोडक्ट भी आते हैं-

नियमित एक्सफोलिएशन

मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाने के लिए हफ्ते में 1 -2 बार एक्सफोलिएट करें, जिससे त्वचा की रंगत एक समान हो सकती है. इसके लिए एक सॉफ्ट एक्सफोलिएटिंग स्क्रब का इस्तेमाल स्वस्थ और एकसमान त्वचा बनाए रखने का एक बेहतरीन तरीका है.

एक्सफोलिएशन आपके चेहरे से गंदगी और मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाकर चमकदार स्किन प्रदान करता है. बस अपनी स्किन पर मसाज करें और धो लें. हालांकि, बहुत जोर से एक्सफोलिएशन न करें, क्योंकि इससे आपकी स्किन का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है और आगे और समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

अगर आपके चेहरे के अलावा, शरीर के किसी अन्य हिस्से में असमान त्वचा की रंगत चिंता का विषय है, तो बफर या एक्सफोलिएटिंग दस्तानों से धीरे से एक्सफोलिएशन करने का प्रयास करें.

मॉइस्चराइजर

अगर आपको दागधब्बे और मुहांसे होने की समस्या है, तो आप शायद इन दागधब्बों से भी अनजान नहीं होंगे. अपनी त्वचा को साफ, नमीयुक्त और हाइड्रेटेड रखना फायदेमंद ही होगा. जरूरी हाइड्रेशन के लिए हल्की मॉइस्चराइजर, डे क्रीम या कोई असरदार फेस सीरम इस्तेमाल करें. सिर्फ चेहरे पर ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर और हाथों पर मॉइस्चराइजर लगाना न भूलें.

सनस्क्रीन लगाएं

यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है. हर दिन बाहर निकलने से पहले कम से कम एसपीएफ 30 वाला ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन लगाएं, चाहे मौसम कैसा भी हो. इसके लिए मार्किट में कई तरह के सनस्क्रीम आते हैं जैसे निव्या सन क्रीम. यह आपकी त्वचा को सूरज की क्षति से बचता है. इसमें प्रोटेक्ट एंड मॉइस्चर सन लोशन एसपीएफ50+ होता है साथ ही अत्यधिक प्रभावी UVA/UVB फिल्टर होते हैं, और यह लंबे समय तक और गहन मॉइस्चराइजर प्रदान करता है.

इसी तरह सिटाफिल हेल्दी रेडियंस ब्राइटनिंग डे प्रोटेक्शन क्रीम एसपीएफ 15 हानिकारक यूवी किरणों से कुछ सुरक्षा प्रदान करती है और जब इसे दिन में दो बार सेटाफिल हेल्दी रेडियंस ब्राइटनिंग कम्फर्ट नाइट क्रीम के साथ इस्तेमाल किया जाता है, तो यह चार हफ़्तों में आपके चेहरे के काले धब्बों को कम करने में कारगर साबित होती है.

खुद को हाइड्रेट रखें

त्वचा पर निखार लाने के लिए स्किन का अंदर से क्लीन होना भी जरूरी है. इसलिए दिनभर खुद को हाइड्रेट रखें. इसके लिए आप डाइट में नारियल पानी, नींबू पानी और डिटॉक्स ड्रिंक्स शामिल कर सकते हैं. बॉडी हाइड्रेट रहने से स्किन भी हाइड्रेट रहेगी. इससे स्किन पर डार्क स्पॉट्स और डलनेस की समस्या भी खत्म होगी.

विटामिन सी सीरम

विटामिन सी सीरम काले धब्बों को हल्का करने और त्वचा की चमक बढ़ाने में मदद करते हैं. यह एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट है जो त्वचा को चमकदार बनाता है और मेलेनिन उत्पादन को कम करने में मदद करता है. यह सीरम कई कंपनी के आते हैं जैसे कि Fleur & Bee का नेक्टर ऑफ द सी विटामिन सी सीरम.

नियासिनमाइड सीरम (Niacinamide)

नियासिनमाइड, जिसे विटामिन बी3 भी कहा जाता है, यह सीरम स्किन को अच्छी तरह प्रोटेक्ट करता है.स्कीन  की बनावट और रंगत में सुधार करते हैं. Simple® Skincare 10% नियासिनमाइड बूस्टर सीरम एक अच्छा विकल्प हो सकता है. यह विटामिन बी3 का एक रूप है, जो त्वचा की लालिमा, पिगमेंटेशन और पोर्स को कम करने में मदद करता है.

ग्लाइकोलिक एसिड

ग्लाइकोलिक एसिड, टीसीए, रेटिनॉल और अन्य केमिकल पील्स भी स्किन पिगमेंटेशन और अनईवन स्किन टोन को ठीक करने में मदद कर सकते हैं. आजकल केमिकल पील्स वैसे भी काफी ज्यादा इस्तेमाल हो रही है. केमिकल पील्स 2-3 हफ्ते के अंतराल से करनी चाहिए और अगर आप चाहें तो किसी एक्सपर्ट से इसका सेशन भी करवा सकती हैं. ये हाइपरपिगमेंटेशन को कम करने के लिए सबसे अच्छा तरीका साबित हो सकता है.

कोजिक एसिड (Kojic Acid) वाले प्रोडक्ट

ये तत्व मेलेनिन उत्पादन को रोकते हैं और दाग-धब्बों को कम करने में मदद करते हैं.

एएचए युक्त प्रोडक्ट

यह एक्सफोलिएशन के माध्यम से स्किन की रंगत को एक समान करते हैं.

अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड (AHAs)

अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड जैसे ग्लाइकोलिक एसिड (Glycolic Acid) और लैक्टिक एसिड (Lactic Acid): ये मृत त्वचा को हटाते हैं और स्किन की बनावट को बेहतर बनाते हैं.

एंटीऑक्सीडेंट सप्लीमेंट्स का करें इस्तेमाल

अगर आपकी स्किन में काफी पहले से पैच पड़े हुए हैं या फिर स्किन की टोन अनईवन है तो आपको एंटीऑक्सीडेंट सप्लीमेंट्स इस्तेमाल करने चाहिए. ये फ्री रेडिकल्स से स्किन को फ्री करते हैं और अनईवन स्किन टोन को खत्म करते हैं.

हालांकि, इस तरह का कोई भी स्किन सप्लीमेंट लेने से पहले आपको डर्मेटोलॉजिस्ट से बात कर लेनी चाहिए. कई लोग बिना सोचे समझे फिश ऑयल, ओमेगा-3 फैटी एसिड्स वगैरह भरपूर मात्रा में ले लेते हैं जो उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. Uneven Skin Tone

Millets in Diet: इन आसान और स्वादिष्ट तरीकों से बनाएं हर मील स्पेशल

Millets in Diet: आजकल हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की चाह में लोग मिलेट्स (ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, कांगनी आदि) को फिर से अपनी डाइट में शामिल करने लगे हैं. ये न केवल ग्लूटेन-फ्री होते हैं बल्कि फाइबर, मिनरल्स और प्रोटीन से भरपूर होते हैं. अगर आप भी अपने रोजमर्रा के खाने में मिलेट्स को अपनाना चाहते हैं, तो यहां कुछ आसान और स्वादिष्ट तरीके दिए जा रहे हैं.

  1. नाश्ते में मिलेट्स

मिलेट उपमा या पोहा: सूजी या चावल की जगह ज्वार/बाजरा या कुटकी के दानों से उपमा या पोहा बनाएं.

रागी डोसा या चिल्ला: रागी का बैटर बनाकर पतला डोसा या नमकीन चिल्ला तैयार करें.

मिलेट खिचड़ी: सब्जियों के साथ मिलेट खिचड़ी, हल्की और पौष्टिक सुबह का विकल्प है.

2. लंच में मिलेट्स

मिलेट रोटी: गेहूं के आटे में बाजरा या ज्वार का आटा मिलाकर रोटियां बनाएं.

मिलेट पुलाव: ब्राउन राइस या सफेद चावल की जगह मिलेट्स से वेज पुलाव तैयार करें.

मिलेट दालिया: दाल और सब्जियों के साथ मिलेट दालिया पेट भरने के साथ ऊर्जा भी देता है.

3. स्नैक्स और हल्के खाने में

मिलेट कुकीज: रागी या बाजरे के आटे से हेल्दी बिस्किट्स बनाएं.

पौप्ड मिलेट: जैसे पौपकौर्न बनाते हैं, वैसे ही पौप्ड बाजरा या ज्वार स्नैक के रूप में खाएं.

मिलेट कटलेट: उबले आलू और सब्जियों में मिलेट मिलाकर टेस्टी कटलेट बनाएं.

4. डिनर में मिलेट्स

मिलेट इडली: चावल की जगह मिलेट का बैटर इस्तेमाल करके इडली तैयार करें.

मिलेट सूप: मूंग दाल या सब्जियों के साथ मिलेट सूप हल्का और पौष्टिक होता है.

मिलेट दलिया दूध के साथ: मीठे में गुड़ डालकर रात में हल्का दलिया खाया जा सकता है.

5. पेय और डेजर्ट में

रागी माल्ट: दूध और गुड़ के साथ रागी का हेल्दी ड्रिंक.

मिलेट खीर: चावल की जगह मिलेट से खीर बनाएं, स्वाद में कोई कमी नहीं आएगा.

टिप्स

शुरुआत में धीरेधीरे मिलेट को डाइट में शामिल करें, ताकि आपका पाचन इसे आसानी से अपना सके. अलग-अलग मिलेट्स को मौसम और स्वाद के अनुसार बदलते रहें. गुड़, ताजी सब्जियां और देसी घी के साथ मिलेट्स का स्वाद और पोषण बढ़ जाता है.

Millets in Diet

15 August पर पतंग उड़ाने का है प्लान, तो इन बातों को न करें नजरअंदाज

15 August: जब एक पतंग हवा में उड़ती है, तो ऐसा लगता है जैसे वह हवा से बातें कर रही है. यह एक खूबसूरत दृश्य होता है, खासकर जब पतंग आसमान में ऊंची उड़ रही हो. कभी ना कभी हम सभी ऐसे नजरों का मजा लेना चाहते हैं. इसके लिए हम पतंग उड़ाते हैं.

अगर आप भी पतंग उड़ाने के शौकीन है तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें ताकि ये एन्जॉय के पल कहीं उदासी में ना बदल जाएं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं. क्योंकि पतंगबाजी के लिए काफी लोग आज भी चाइनीज मांझे का इस्तेमाल करते है जो लोगों को नुकसान पहुंचाने का काम करता है.

दरअसल, पतंगबाजी के दौरान हर साल कई मामले ऐसे सामने आते हैं जिसमें चाइनीज मांझे के इस्तेमाल से लोगों के गले में कट लग गया तो कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हो जातें हैं. ऐसे में इस बार ऐसी घटनाएं नहीं हो इसको लेकर कुछ ट्रिक्स है. इसके अलावा भी पतंग खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें ये भी पता होना चाहिए.

पतंग खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें –

जब भी पतंग खरीदे, तो कोशिश करें कि पतंग बड़ी ही खरीदें. छोटी पतंग को उड़ने में मेहनत ज्यादा होती है और वह हवा के रुख के साथ उड़ती है और अगर हवा का रुख ठीक नहीं है या हवा नहीं चल रही तो उसे उड़ाना मुश्किल हो जाएगा.

आजकल बाजार में कई रंग बिरंगी पतंगें आती है जिनमें डिजाइन के लिए कई कलर का कागज जोड़ दिया जाता है. लेकिन इस कागज को जोड़ने के लिए जो जोड़ लगाया जाता है मांझा उसमें फंस जाता है और पतंग को फाड़ देता है इसलिए एक ही कलर की पतंग खरीदना अच्छा रहता है.

पतंग भी कई तरह की होती हैं. खासतौर पर प्लास्टिक की पन्नी से बानी पतंग बच्चों को बहुत पसंद आती है क्यूंकि वे उड़ते हुए आवाज करती है. जो बच्चों को अच्छा लगता है.

पतंग में लगी हुए तीलियां न ज्यादा बड़ी और मोटी होनी चाहिए और ना ही ज्यादा छोटी और पतली होनी चाहिए. अगर वह बड़ी होगी तो पतंग उड़ने में बाधा पैदा करेगी और अगर छोटी और पतली होगी तो पतंग को संभाल नहीं पाएगी.

साइज के हिसाब से बाजार में चार किस्म की पतंगें मिलती हैं. छोटी (10×10 इंच), मंझोली (13×13 इंच), अद्धी (16×16 इंच) और पौनी (20×20 इंच). अब आप अपने हिसाब से देख लें. अगर पतंग बच्चों के लिए है, तो सबसे छोटे साइज की पतंग लेनी चाहिए और बड़े देख लें जिस साइज में वो कम्फर्टेबल हो वो पतंग लें.

मांझा खरीदतें समय किन बातों का ध्यान रखें- 

  • मैटलिक मांझा ना खरीदें. इस चीनी मांझे को धारदार बनाने के लिए इस पर पिसे हुए लोहे की परत चढ़ाई जाती है. यह मांझा उंगलियों और हाथ को नुकसान पहुंचा सत्ता है. इससे उंगलियां काटने का दर बना रहता है. साथ ही अगर ये बिजली की तारों पर पड़ गया तो करंट से जान को भी खतरा हो सकता है.
  • अब नए तरह के ईको फ्रेंडली मांझे खरीदें इससे कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता और ये पक्षियों को भी नुक्सान नहीं पहुंचाते.
  • मांझें का धागा बिलकुल सूखा हुआ होना चाहिए तभी वह बाकी की पतंग काटने के लायक होगा.
  • मांझें की चकरी को भी चेक कर लें. अगर वह अनइवन होगी तो माझा उसमे फंसेगा और सही से नहीं निकल पाएगा इससे परेशानी होगी. कहा जाता है कि डार्क कलर के मांझे पर रंग चढ़ाया जाता है जिससे वह मजबूत हो जाता है इसलिए गहरे रंग का मांझा ही खरीदें.
  • माझें की मोटाई भी देख लें बहुत मोटे मांझे से सामने वाले की पतंग आसानी से नहीं कटती इसलिए मांझे की मोटाई अपने हिंसा से अच्छे से चेक करके ही लें.
  • प्लास्टिक का मांझा सही नहीं रहता है. लेकिन धागे के मांझे का मुकाबला यह नहीं कर पाता. यह धागा भरी होता है और बिना हवा के जरा भी नहीं चल पाता.

पतंग उड़ातें समय किन बातों का ध्यान रखें-

  • पतंग उड़ाने से पहले जरूरी काम यह करना है कि अंगूठे के बाद वाली उंगली पर डॉक्टर टेप (बैंड-एड) लपेट लें. ऐसा करने से पतंग उड़ाते वक्त मांझे से उंगली के कटने का खतरा नही रहेगा.
  • पतंग उड़ाने के लिए हवा का रुख किस तरफ का है ये चेक कर लें और फिर उसी तरफ पतंग उडाएं.
  • आप जिस जगह से पतंग उड़ा रहें हैं इस बात का ध्यान रखें की वहां दीवार होनी चाहिए अगर कोई मुंडेर या दीवार नहीं होगा तो गिरने का खतरा बना रहेगा क्योंकि पतंग उड़ाते समय ध्यान नहीं रहता और छत से गिरने के बहुत से हादसे हो जाते हैं.
  • पतंग उड़ाते वक्त सनग्लासेज पहन लें इससे सीधी धुप आंखों पर नहीं पड़ेगी.
  • पतंग में छेद करने के लिए माचिस या लकड़ी की तीली का इस्तेमाल करें. इससे पतंग नहीं फटेगी. पतंग को जमीन पर घिसकर छेद करने से वह बड़ा हो सकता है और पतंग फट भी सकती है. पतंगबाजी शुरू करने से पहले कई पतंगों के कन्ने बांधकर रख लें ऐसा करके बार-बार कन्ने बांधने की टेंशन से बचा जा सकता है.
  • कटकर आती पतंग को पकड़ने में जल्दबाजी न दिखाएं. पतंग पकड़ने के लिए बांस, झाड़ी आदि का इस्तेमाल न करें. जब कटी पतंग आराम से आपकी छत पर आ जाए, उस पर हक जमा सकते है.
  • पतंग उड़ाते वक्त आकाश में उड़ती दूसरी पतंगों से पेच लड़ाना ही पड़ता है, इसलिए पतंग उड़ाते वक्त उसके साथ कम से कम 200 मीटर तक मांझा बांध लें. उसके बाद सद्दी जोड़ लें. इस बात का ध्यान रखना है कि जब पतंग हवा में हो तो हाथ में किसी हाल में मांझा नहीं होना चाहिए. मांझा हवा में होना चाहिए और सद्दी हाथों में. यह सुविधाजनक रहता है.
  • अगर आपकी पतंग कट गई है और आप डोर खींच रहे हैं, ऐसे में कोई डोर पकड़ ले तो अपनी डोर को हाथ से तोड़ दें. इससे डोर का थोड़ा नुकसान तो होगा, लेकिन न तो टेंशन होगी और न ही उंगली कटने का डर रहेगा.
  • सबसे पहले तो यह ध्यान रखना है कि पेच हमेशा मांझे से ही लड़ाना है. अगर सद्दी से पेच लड़ाया तो पतंग कट जाएगी. यह कन्फर्म कर लें कि जब किसी दूसरी पतंग से पेच लड़ाने जा रहे हैं तो उस वक्त मांझा टकराना चाहिए न कि सद्दी.
  • अगर पतंग किसी बिजली के खम्बे या किसी ऊँची जगह फंस गए हैं तो उसे उतारने में खुद को ही नुक्सान ना पहुंचाएं. करंट आदि आने की सम्भावना बानी रहती है इसलिए उससे बचकर रहें.
  • चाइनीज मांझे की वजह से बहुत से हादसे होते हैं इसलिए इससे बचकर रहें.

लेकिन फिर भी अगर चाइनीज मांझा गले या शरीर के किसी अंग में फंस गया है तो घबराएं नहीं. ऐसा करने से झटका लग सकता है, जिससे मांझा से गहरा कट लग सकता है. शरीर को स्थिर रख मांझा को निकालने का प्रयास करें. धीरे धीरे किसी नुकीले चीज या कैंची से काटकर उसे निकालें.

  • अगर मांझा गले में फंस गया है तो मांझा और स्किन के बीच वहां कोई रुमाल आदि बांध दें. ताकि मांझा गले के हिट ना करें.
  • अगर आपके आसपास काफी पतंग उड़ती है तो आप टू व्हीलर पर जाने से पहले हैलमेट लगाए और गले में कोई मफलर बांध कर ही निकलें ताकि किसी भी हादसे से बच सकें.

चाइनीज मांझा के इस्तेमाल पर जुर्माना व सजा

दिल्ली पुलिस ने बताया कि चाइनीज मांझा बनाना, बेचना, रखना, खरीदना या उससे पतंग उडाना दंडनीय अपराध है, जिसके लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत 5 साल तक की कैद या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

दिल्ली पुलिस ने लोगों से अपील की है कि यदि आप कहीं चाइनीज मांझे की बिक्री या उपयोग होते देखें, तो तुरंत 112 पर कॉल करें और रिपोर्ट करें. पुलिस ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे इस मुहिम में पुलिस का साथ दें और खुद भी सुरक्षित रहें. सबसे पहले तो यह ध्यान रखना है कि पेच हमेशा मांझे से ही लड़ाना है. अगर सद्दी से पेच लड़ाया तो पतंग कट जाएगी. यह कन्फर्म कर लें कि जब किसी दूसरी पतंग से पेच लड़ाने जा रहे हैं तो उस वक्त मांझा टकराना चाहिए न कि सद्दी.

अगर पतंग किसी बिजली के खम्बे या किसी ऊँची जगह फंस गए हैं तो उसे उतारने में खुद को ही नुक्सान ना पहुंचाएं. करंट आदि आने की सम्भावना बानी रहती है इसलिए उससे बचकर रहें.

चाइनीज मांझे की वजह से बहुत से हादसे होते हैं इसलिए इससे बचकर रहें.

लेकिन फिर भी अगर चाइनीज मांझा गले या शरीर के किसी अंग में फंस गया है तो घबराएं नहीं. ऐसा करने से झटका लग सकता है, जिससे मांझा से गहरा कट लग सकता है. शरीर को स्थिर रख मांझा को निकालने का प्रयास करें. धीरे धीरे किसी नुकीले चीज या कैंची से काटकर उसे निकालें.

अगर मांझा गले में फंस गया है तो मांझा और स्किन के बीच वहां कोई रुमाल आदि बांध दें. ताकि मांझा गले के हिट ना करें.

अगर आपके आसपास काफी पतंग उड़ती है तो आप टू व्हीलर पर जाने से पहले हैलमेट लगाए और गले में कोई मफलर बांध कर ही निकलें ताकि किसी भी हादसे से बच सकें. 15 August

15 August Special: छुट्टी- बलवंत सिंह ने क्या कहा था

15 August Special: पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.

‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों  यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.

कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’

‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी ’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.

‘‘कैसी मुश्किल ’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है.  हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.

‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है ’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब… ’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.

‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.

‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझा जाए.

‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी

पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’

‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे  कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है  अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.

‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘ओए बलवंत…’’

‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.

गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.

‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न ’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.

‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.

‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.

‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया ’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.

‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.

‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.

उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया.

बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.

‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया ’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.

‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के

3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’

‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.

‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.

‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’

‘‘क्या… ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’

‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे ’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’

‘‘साहबजी, एक बात बोलूं ’’

‘‘बोलो…’’

‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.

‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.

मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा.

15 August Special

Indian Soldier Story: बुराई में अच्छाई- धांसू आइडिया में अच्छाई का शहद

Indian Soldier Story: आवश्यकता आविष्कार की जननी है. बचपन में मास्टर साहब ने यह सूत्रवाक्य रटाया था मगर इस का अर्थ अब समझ में आया है. दरअसल, लोकतंत्र में बाबू, अफसर, नेता सभी आम जनता की सेवा कर मेवा खा रहे हैं. लेकिन बेचारे फौजी अफसर क्या करें? उन की तो तैनाती ही ऐसी जगह होती है जहां न तो ‘आम रास्ता’ होता है न ‘आम जनता’ होती है. ऐसे में बेचारे कैसे करें किसी की सेवा और कैसे खाएं मेवा? मगर भला हो उस वैज्ञानिक का जिस ने ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ नामक फार्मूला बनाया था. फौजियों के बीवीबच्चे भी खुशहाल जिंदगी जी सकें, इस के लिए जांबाजों ने मलाई जीमने के नएनए फार्मूले ईजाद कर डाले. ऐसेऐसे जो  ‘न तो भूतो और न भविष्यति’ की श्रेणी में आएं.

एक बहादुर अफसर ने तो अपने ही जवानों को टमाटर का लाल कैचअप लगा कर लिटा दिया और फोटो खींचखींच कर अकेले दम दुश्मनों से मुठभेड़ का तमगा जीत लिया. वह तो बुरा हो उन विभीषणों का जिन्होंने चुगली कर दी वरना अब तक वीरता के सारे पुरस्कार अगले की जेब में होते. कुछ लोगों को इस मामले में बुराई नजर आती है. मगर मुझे तो इस में ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं (जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी वाला मामला). भारतीय जवानों की वीरता, अनुशासन, वफादारी और फरमांबरदारी के किस्से तो पुराने जमाने से मशहूर हैं.

वे अपने अफसरों के हुक्म पर हंसतेहंसते प्राण निछावर कर देते हैं. कभी उफ नहीं करते. अब अफसर ने कहा, प्राण निछावर करने की जरूरत नहीं, बस, लाल कैचअप लगा कर मुरदा बन जाओ. बेचारों ने उफ तक नहीं की और झट से मुरदा बन फोटो खिंचवा ली. है किसी और सेना में अनुशासन की इतनी बड़ी मिसाल?

बालू से तेल निकालने के किस्से तो आप ने बहुत सुने होंगे लेकिन चाइना बौर्डर पर टाइमपास कर रहे कुछ अफसरों ने पानी से तेल निकाल ईमानदारी के सीने पर नए झंडे गाड़ दिए हैं. अगलों ने फौजी टैंकों के लिए पैट्रोल पहुंचाने वाले टैंकरों में शुद्ध जल सप्लाई कर दिया. बाकायदा हर चैकपोस्ट पर टैंकरों की ऐंट्री हुई ताकि कागजपत्तर पर हिसाब पक्का रहे.

उस के बाद गश्त लगाते लड़ाकू टैंक कितने किलोमीटर चले, उन का प्रति लिटर ऐवरेज क्या है और वे कितना पैट्रोल पी गए, यह या तो ऊपर वाला जानता है या जुगाड़खोर अफसर. कुछ लालची ड्राइवरों के चलते हिसाबकिताब गड़बड़ा गया वरना सबकुछ रफादफा रहता और चारों ओर शांति छाई रहती.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. लेकिन, मुझे तो इस में भी ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं. ऊपर वाला न करे लेकिन अगर कभी दुश्मन की सेना आप के चैकपोस्ट पर कब्जा कर ले और वहां आप के डीजलपैट्रोल से भरे टैंकर खड़े हों तो क्या होगा? आप का ही तेल भर कर वह आप के सीने पर चढ़ी चली आएगी.

लेकिन अगर टैंकरों में पानी भरा हो तो बल्लेबल्ले हो जाएगी. गलतफहमी में दुश्मन मुफ्त का तेल समझ उन टैंकरों से पानी अपने टैंकों में भर लेंगे और थोड़ी दूर चलने के बाद उन के टैंक टें बोल जाएंगे. है न बिलकुल आसान तरीका दुश्मन को चित करने का.

ये सब तो हुई पुरानी बातें. हाल ही में प्रतिभाशाली फौजियों ने जन कल्याण का ऐसा फार्मूला ईजाद किया कि दांतों तले उंगलियां दबाई जाएं या उंगलियों से दांत दाबे जाएं, तय करना मुश्किल है. किसी भले आदमी ने कानून बना दिया कि कश्मीर में गोलाबारूद, विस्फोटक का पता बताने वालों को  30 से 50 हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा. बस, लग गई लौटरी हाथ. अगलों ने खाली डब्बों में काले रंग की बालू भर दी और तारवार जोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर रखवा दिया. उस के बाद? अरे भैया, उस के बाद क्या पूछते हो?

जानते नहीं कि इतनी बड़ी फौज का इतना बड़ा नैटवर्क चलाने के लिए मुखबिरों की टीम बनानी बहुत जरूरी है और उस से भी ज्यादा जरूरी है मुखबिरों को खुश रखना. बेचारे जान जोखिम में डाल कर फौज के लिए सूचनाएं लाते हैं. अब नियमानुसार तो नियम से ज्यादा रकम मुखबिरों को दी नहीं जा सकती और उतने में मुखबिर काम करने को राजी नहीं होते.

इसीलिए अगलों ने अपने मुखबिरों से ही उन नकली विस्फोटकों के छिपे होने की सूचना दिलवा दी और फटाक से छापा मार उसे बरामद करवा दिया. बस, 30 से 50 हजार रुपए तक का इनाम पक्का. अब भैया, मुखबिर कोई बेईमान तो होते नहीं जो सारा माल खुद हड़प जाएं. सुना है बेचारे आधा इनाम पूरी ईमानदारी से हुक्मरानों को सौंप देते हैं ताकि उन के भी परिवार पलते रहें वरना खाली तनख्वाह में आजकल होता क्या है.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. (पता नहीं इस देश के लोग इतनी संकीर्ण मानसिकता वाले क्यों हैं?) मगर मुझे तो इस में अच्छाइयों का महासागर नजर आता है. कुछ अच्छाइयां गिनवा देता हूं. पहली बात ऐसी घटनाओं से मुखबिरों और उन के खास अफसरों के दिन बहुरे, ऊपर वाला करे ऐसे ही सब के दिन बहुरें.

दूसरी बात यह है कि इस से पाकिस्तान का असली चेहरा  सामने आ गया. वह कैसे? अरे भैया, इतना भी नहीं समझे? देखो, एक जमाने से पूरी दुनिया आरोप लगा रही है कि इंडिया में जो बमवम दग रहे हैं उस के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, जबकि वहां के बेचारे निर्दोष हुक्मरान एक जमाने से दुहाई दे रहे हैं कि भारत में चल रहे आतंकवाद में उन का कोई हाथ नहीं है. अब इस घटना से यह साफ हो गया है कि बमवम हमारे ही फौजी रखवा रहे हैं. इस से पाकिस्तान का चेहरा बेदाग साबित हो गया. दुनिया वालों को उस पर तोहमत लगाना छोड़ देना चाहिए.

अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि आईएसआई वालों ने बिना अपने मासूम हुक्मरानों की जानकारी के दोचार बम अपने एजेंटों से रखवा दिए होंगे तो उन में भी आपस में सिरफुटौव्वल हो जाएगी. वह कैसे? अरे भैया, आप तो कुछ भी नहीं समझते. सीधी सी बात है, भारतीय सेना जब दनादन विस्फोटक बरामद करेगी तो आईएसआई वाले अपने एजेंटों को हड़काएंगे कि तुम लोग एक भी काम ढंग से नहीं करते. ऐसी जगह बम लगाया जो बरामद हो गया.

इस के अलावा हम ने बारूद दिया था 2 बम लगाने का और तुम लोगों ने आधाआधा लगा दिया 2 जगह. तभी एक भी ढंग से नहीं फटा. बेचारे एजेंट अपनी सफाई देते रहें लेकिन उन की सुनेगा कोई नहीं. ताव खा कर वे आपस में लड़ मरेंगे. आखिर वे भी महान तालिबानी गुरुओं के महान चेले हैं. कोई ऐरेगैरे नहीं. बताइए, अगर ऐसा हुआ तो मजा आ जाएगा या नहीं? खामखां दुश्मन आपस में लड़ मरेंगे और अपनी पौबारह हो जाएगी. इसी को कहते हैं कि हींग लगे न फिटकरी और रंग निकले चोखा.

तो भैया, देखा आप ने, फौजी जो भी करते हैं देशहित में करते हैं. देशहित में कई बार उन को अपनी असली योजना गुप्त रखनी पड़ती है. इसलिए उन के कामों को ऊपरी नजर से मत देखिए. गहराई में जा कर देखेंगे तो आप को भी उन की हर हरकत में अच्छाई नजर आएगी. जैसे, मुझे नजर आ रही है. इसलिए, अब जरा जोर से बोलिए, जयहिंद.

Indian Soldier Story

Deshbhakti Story in Hindi: मजहब नहीं सिखाता…

Deshbhakti Story in Hindi: दरअसल, मजहब कुछ नहीं सिखाता, अगर सिखाता होता तो हजारों   साल से चले आ रहे इस देश में धर्म के नाम पर इतने दंगेफसाद न होते, इतने जानलेवा हमले न होते. इतने वर्षों से सुनाए जा रहे ढेरों उपदेशों का कहीं कुछ तो असर होता.  अद्भुत बात यह है कि हमारा देश धर्मपरायण भी है और धर्मनिरपेक्ष भी, यहां एकदेववाद भी है और बहुदेववाद भी, ‘जाकी रही भावना जैसी.’ जो जिस के लिए लाभकारी है वह उस का सेवन करता है. राजनीति के लिए धर्म बीमारी भी है और दवा भी. धर्म को चुनाव के समय जाति के साथ मिलाया जाता है और दंगों के समय उसे संप्रदाय नाम दिया जाता है.

हमारा देश धर्मप्राण देश कहलाता है क्योंकि यहां धर्म की रक्षा के लिए प्राण लेने और देने का सिलसिला जमाने से चला आ रहा है. बलिप्रथा आज भी बंद नहीं हुई है. धर्म के लिए बलिदान लेने वालों की व देने वालों की आज भी कमी नहीं है. भाई के लिए राजगद्दी छोड़ने वाला धर्म जायदाद के लिए भाई पर मुकदमा करना, उस का कत्ल करना सिखा रहा है. जिस धर्म ने धन को मिट्टी समझना सिखाया वही धर्म मिट्टी को धन समझ कर हड़पना, लूटना, नुकसान पहुंचाना सिखा रहा है.

हमारा देश धर्मनिरपेक्ष भी कहलाता है, लेकिन यह कैसी निरपेक्षता है कि हम अपने धर्म वाले से अपेक्षा करते हैं कि वह दूसरे धर्म वाले की हत्या करे. दूसरे धर्म वाले का सम्मान करने के बजाय अपमान करने के नएनए तरीके ढूंढ़ते रहते हैं. सुबह से शाम तक ‘रामराम’ करने वाले ऐसेऐसे श्रेष्ठ लोग हैं, जिन के कुल की रीति है, ‘वचन जाए पर माल न जाए.’ ऐसे ही श्रेष्ठ भक्तों के लिए कहावत बनी है, ‘रामराम जपना, पराया माल अपना.’ ऐसे ही श्रेष्ठ लोग मंत्रियों को गुप्तदान देते हैं. उन के शयनकक्ष से किसी भी पार्टी का कोई नेता खाली ब्रीफकेस ले कर नहीं लौटता. अपनेअपने धर्माचार्यों की झोली भी वही भरते जाते हैं. झोली इसलिए कि वे धन को हाथ से छूते तक नहीं.

धर्म का सब से प्रमुख तत्त्व सत्य होता है और यही सब प्रचारित भी करते हैं. अत: धर्मप्रेमियों को इस तत्त्व से सब से ज्यादा प्रेम होना चाहिए, लेकिन उन्हें इसी से सब से ज्यादा चिढ़ होती है क्योंकि उन के व्यवसाय में यही सब से ज्यादा आड़े आता है. सच बोलेंगे तो मिलावटी और नकली माल कैसे बेचेंगे? धर्म कहता है, ईमानदारी रखो, लेकिन व्यापार तो ईमानदारी से चल ही नहीं सकता. हां, दो नंबर में ऐसे लोग पूरी ईमानदारी बरतते हैं.

धर्म कहता है, त्याग करो और व्यवसाय कहता है, कमाई ही कमाई होनी चाहिए. धर्म कहता है, उदार बनो, लेकिन धर्म के ठेकेदार कट्टरपंथी होते हैं. इस की 2 शाखाएं हैं, एक पर उदारपंथी व्यवसायी बैठते हैं, दूसरे पर कट्टरपंथी जो दंगों का धंधा करते हैं. दरअसल, धर्म के नियमों में धंधों के हिसाब से संशोधन होते रहते हैं, तभी वह शाश्वत रह सकता है.

धर्मप्रेमी कहते हैं, ईश्वर एक है, हम सब उसी परमपिता की संतान हैं. फिर भाईभाई की तरह प्रेम से रहते क्यों नहीं? कहते हैं, वह हमारे पास ही है. फिर उसे चारों ओर ढूंढ़ते क्यों फिरते हैं? वे कहते हैं, ईश्वर सबकुछ करता है अर्थात जो खूनखराबा हो रहा है, इस में उन का कोई हाथ नहीं है. ये सब ईश्वर के कारनामे हैं, वे तो पूर्ण निष्काम हैं.

वे कहते हैं, ईश्वर बहुत दयालु है अर्थात तुम कितने भी दुष्कर्म करो, कृपा तो वह कर ही देगा. फिर चिंता की क्या बात. अत: डट कर चूसो, काटो, मारो. ‘पापपुण्य’ का हिसाब करने वाला तो ऊपर बैठा है. वस्तुत: उन का परमात्मा या तो उन की तिजोरी में होता है या ब्रीफकेस में. वे तो हमें बहकाने के लिए उसे इधरउधर ढूंढ़ने का नाटक करते हैं.  कहते हैं, किसी जमाने में शुद्ध संत हुआ करते थे, केवल धार्मिक. फिर मिलावट होनी शुरू हुई और संत राजनीतिबाज भी होने लगे.

गुरु गद्दी को ले कर झगड़े पहले भी होते थे, तभी तो हर बाबा का अलग आश्रम और अलग अखाड़ा होता था. उन में धार्मिक कुश्तियां होती थीं. अब के संत अपनेअपने नेताओं को दंगल में उतारते हैं. चुनावी मंत्रतंत्र सिखाते हैं.  नकली संत तुलसीदास के जमाने में भी होते थे, तभी तो उन्होंने कहा था, ‘नारि मुई घर संपत्ति नासी, मूंड मुड़ाए भए संन्यासी.’ अब के संतों को शिष्याएं चाहिए, संपत्ति चाहिए, बड़ीबड़ी सुंदर जुल्फें चाहिए, मूंड़ने को अमीर चेले चाहिए.

तब संतन को ‘सीकरी’ से कोई काम नहीं था, अब सारा ध्यान सीकरी पर ही रहता है कि कब वहां से बुलावा आए. वे एक तंत्र से दूसरे तंत्र की उखाड़पछाड़ के लिए तपस्या में लीन रहते हैं. ब्रह्मचारी विदेश जा कर अपनी सचिव के साथ हनीमून मनाते हैं. योगी योग के माध्यम से भोग की शिक्षा देते हैं. ऐसे धर्मात्मा संतों की जयजयकार हो रही है. सब की दुकानदारी खूब चल रही है.

आजकल धर्म के निर्यात का धंधा भी जोरों से चल निकला है. धर्म के देसी माल की विदेशों में मांग बढ़ रही है. अत: धर्म का बड़े पैमाने पर निर्यात होता है. इस धंधे में अच्छी संभावनाएं छिपी हुई हैं. सब अपनीअपनी कंपनी के धर्म की गुणवत्ता का गुणगान करते हैं, जिन्हें प्रार्थनाएं कहा जाता है.

यहां विशेष योग्यता वाले विक्रेता ही सफल हो पाते हैं. विदेशियों की आत्मा शांत करने के खूब ऊंचे दाम मिलते हैं. इस धंधे में लगे लोगों का यह लोक ही नहीं ‘दूसरा लोक’ भी सुधर जाता है. धर्म के धंधे से पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है, लेकिन फिर भी हमारा देश दरिद्र रहना पसंद करता है. शायद हमारे देश के गरीबों और अमीरों के देवता अलगअलग हैं. शायद दोनों में पटती नहीं है.

कहते हैं, हमारा देवता बड़ा दानी है, अत: हमारे मांगते रहने में ही उस की दानवीरता सिद्ध होती है. हम उस राम से सिंहासन मांगते हैं जिन्होंने वचनपालन के लिए राजत्याग किया था. जो हनुमानजी सीता को माता मानते थे उन्हीं से नारियां संतान मांगती हैं और वह भी पुत्र.

राम द्वारा ली गई हर परीक्षा में बजरंग- बली सफल हो गए थे. शायद यही सोच कर परीक्षार्थी मंगलवार को सवा रुपए का प्रसाद चढ़ा कर परीक्षा में नकल करने की शक्ति मांगते हैं. दुष्टदमन करने वाली दुर्गा से दूसरों की संपत्ति लूटने का वरदान मांगते समय दुष्ट लोग बिलकुल नहीं डरते. जो शिवजी भभूत रमाते थे और  शेर की खाल लपेटते थे, उन्हीं की तसवीर धर्मात्मा लोग अपनी कपड़े की दुकान में सजाते हैं.

निष्काम कर्म का उपदेश देने वाले कृष्ण से लोग ऊपरी कमाई वाली नौकरी मांगते हैं. शादी में शराब पी कर पहले ब्रेकडांस करते हैं, फिर हवन में बैठ कर ‘ओम भूर्भुव: स्व…’ का खुशबूदार मंत्रोच्चार करते हैं. अहिंसा और करुणा का उपदेश देने वाले धर्मप्रेमी अपने स्कूल की अध्यापिकाओं का शोषण करते हैं. चींटियों को चीनी खिलाने वाले मैनेजर मास्टरनियों को पूरे वेतन पर हस्ताक्षर करवा कर आंशिक वेतन देते हैं. धर्म का चमत्कार यही है कि धर्म फल रहा है और धर्मात्मा फूल रहा है.

जिस धर्म का सर्वप्रमुख व आधारभूत सिद्धांत सत्य रहा हो उस धर्म की सचाई कहो या लिखो तो धर्म का अपमान होता है. धर्मविरुद्ध आचरण से धर्म का अपमान नहीं होता.

मातृभूमि के प्रेम के गीत गाने वाले ऊंचे दामों पर मातृभूमि बेचते हैं तो उस का अपमान नहीं होता. ‘देवी स्वरूपा’ नारी को नौकरानी बना कर शोषण करने से देवी का अपमान नहीं होता.  एकपत्नीव्रत धर्मपालक पांचसितारा होटल में रात बिता कर लौटते हैं, तब धर्म का अपमान नहीं होता. चरबी मिला कर घी बेचने से धर्म का अपमान नहीं होता. शांति का संदेश बांटने वाला धर्म हथियार बांट कर दंगे करता है, तब धर्म का अपमान नहीं होता. ऐसे धर्म की जयजयकार.  ऐसे महान धर्माचार्यों के धर्म को ‘करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी.’

Deshbhakti Story in Hindi

Bravery Story: साहस- अंकित ने कैसे पूरा किया दादीमां का सपना

Bravery Story: टैक्सी एअरपोर्ट के डिपार्चर टर्मिनल के बाहर रुकी. मीरा और आनंद उतरे. टैक्सी ड्राइवर ने डिक्की खोली और स्ट्रोली निकाल कर आनंद को पकड़ाई. आनंद ने झुक कर मीरा के पांव छुए.

‘‘अच्छा मां, मैं जा रहा हूं. अपना खयाल रखना. मेरे बारे में आप को कोई आशंका नहीं होनी चाहिए. मैं अपनी देखभाल अच्छी तरह कर सकता हूं. मैं आप को समयसमय पर फोन किया करूंगा और पढ़ाई खत्म होते ही भारत लौट आऊंगा आप की देखभाल करने के लिए,’’ यह कह कर आनंद ने मीरा से विदा ली.

‘‘जाओ बेटे, अच्छे से रहना. मेरे बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम सुखी रहो और तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी हों,’’ मीरा ने प्रसन्नता के साथ उसे विदा किया. आनंद टर्मिनल की ओर घूमा और मीरा टैक्सी में वापस बैठी. उस की आंखें सूखी थीं क्योंकि उस ने आंसू रोक रखे थे. वह टैक्सी ड्राइवर के सामने रोना नहीं चाहती थी. घर लौटते समय वह मन ही मन सोचने लगी, आनंद उस का इकलौता पुत्र था, जो अपने पिता की मौत के 6 महीने बाद पैदा हुआ था. मीरा ने उसे अकेले, अपने दम पर, पढ़ालिखा कर बड़ा किया था. और आज आनंद उसे छोड़ कर चला गया था. हमेशा के लिए तो नहीं, पर मीरा को शक था कि अब जब भी आनंद भारत लौटेगा तो वह सिर्फ चंद दिनों के लिए ही उस से मिलने के लिए आएगा.

उस ने हमेशा सोचा था कि आनंद को वह अपने पति मेजर विजय की तरह फौजी बना देगी, पर यह बात उस के बेटे के दिमाग में कभी नहीं जमी. वह तो बचपन से ही अमेरिका में जा कर बस जाने के सपने देखने लगा था. फौज में जाता तो उस का सपना अधूरा रह जाता. अपने सपने पूरे करने के लिए आनंद ने दिनरात पढ़ाई की जिस के कारण वह यूनिवर्सिटी में गोल्ड मैडलिस्ट बना, यानी अव्वल नंबर पर आया. उसे अमेरिका में आगे पढ़ाई करने के लिए बहुत अच्छी स्कौलरशिप मिली. अब उसे कौन रोक सकता था.

घर लौटने के बाद मीरा अपने पति के चित्र के आगे जा कर खड़ी हो गई, ‘‘देखिए, आज मैं ने आप के बेटे को अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बना दिया है. आप की तरह देशसेवक फौजी तो नहीं बना सकी पर मुझे यकीन है कि वह जीवन में बहुत सफलताएं प्राप्त करेगा ताकि हमारे सिर गर्व से ऊंचे रहेंगे.’’ मीरा अपने दिवंगत पति से और भी बातें करना चाहती थी, पर उस की भावनाओं का बांध टूट गया और वह हिचकियां ले कर रो पड़ी. उसे लगा कि उस के सारे सपने टूट गए थे.

उस का आनंद को फौजी बनाने का इरादा अधूरा ही रह गया था. आनंद ने उसे यह विश्वास दिलाया था कि वह पढ़ाई पूरी कर के भारत लौट आएगा, पर मीरा जानती थी कि यह बात उस ने उस को बहलाने के लिए ही कही थी. अचानक मीरा का ध्यान बंट गया. साथ वाले घर में रेडियो पर मन्ना डे का पुराना लोकप्रिय गाना बज रहा था, ‘इधर झूम के गाए जिंदगी उधर है मौत खड़ी. कोई क्या जाने कहां है सीमा, उलझन आन पड़ी…’ गाने को सुनतेसुनते मीरा को खयाल आया, ‘हां, यह तो बिलकुल ठीक है. सच में आज तक किसी को नहीं पता चला है कि जिंदगी और मौत की सीमा कहां है.’

वह कैसे भूल सकती थी अक्तूबर के उस शनिवार की काली रात को, जिस के दौरान उस की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. उन के कैंटोन्मैंट के फौजी अफसरों के क्लब में हर महीने के दूसरे शनिवार को पार्टी होती थी. यह बड़ा कैंटोन्मैंट था, कई यूनिटें स्थलसेना की और 2 यूनिटें वायुसेना की थीं. क्लब की इन पार्टियों में काफी ज्यादा रौनक रहती थी. म्यूजिक सिस्टम पर नए से नए हिंदी और अंगरेजी गाने बजते थे, जिन की धुन पर जोडि़यां नाचती थीं. उस शनिवार की रात भी मीरा का पति मेजर विजय सिंह हमेशा की तरह उसे ले कर पार्टी में पहुंचा. क्लब का प्रोग्राम शुरू हुआ.

गाने बजने लगे और जोडि़यों ने नाचना शुरू किया. जो नाच नहीं रहे थे वे हाथों में डिं्रक का गिलास पकड़े उन्हें देख रहे थे. विजय नाचना चाहता था. पर मीरा नाचना नहीं चाहती थी क्योंकि वह गर्भ के तीसरे महीने में थी. पर विजय माना नहीं. ‘तुम फौजी की बीवी हो. तुम्हें कुछ नहीं होगा,’ कहते हुए वह मीरा सहित नाचने वालों में शामिल हो गया. 11 बजे के करीब, वे लोग जो अपने जवान बेटेबेटियों को साथ लाए हुए थे, जाने लगे. तभी अचानक एक अनापेक्षित बदलाव कार्यक्रम में आया. 

एक कर्नल, जो पूरी वरदी में था, क्लब में फुरती से आया. उस ने गानों को रोकने का संकेत दिया और ‘मैं माफी चाहता हूं’ की संक्षिप्त भूमिका के साथ उस ने विस्मित क्लब अधिकारी के हाथ से माइक्रोफोन का चोंगा अपने हाथ में लिया:

‘प्रतिष्ठित महिलाओ और सज्जनो,’ उस ने घोषणा की, ‘मैं आप की पार्टी को भंग करने के लिए क्षमा चाहता हूं. पर एक गंभीर राष्ट्रीय आपत्ति हमारे सामने उठ खड़ी हुई है. सेना व वायुसेना के सभी अधिकारी तुरंत क्लब छोड़ दें. वे अपने घर जाएं और कार्यक्षेत्र की वरदी पहनें.

फिर एक अन्य जोड़ी वरदी और टौयलेट का सामान छोटे से बैग में डाल कर अपनी यूनिट के हैडक्वार्टर में सुबह 4 बजे से पहले रिपोर्ट करें. मैं फिर कहता हूं कि यह राष्ट्रीय आपदा है और हमें फौरन सक्रिय होना है.’ यह कह कर वह पलटा और बाहर जा कर, जिस जीप में आया था उसी में बैठा और चला गया.

क्लब में सब लोग चौंक कर अपनीअपनी टिप्पणियां देने लगे. प्रश्न था कि क्या समस्या हो सकती है? क्योंकि कर्नल ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था, इसलिए किसी को पता नहीं था कि कौन सी गंभीर घटना घटी है. तो भी फौजी हुक्म तो हुक्म ही था. सेना और वायुसेना के अफसरान फौरन जल्दीजल्दी बाहर निकले. जो परिवार के साथ आए थे वे घरों की ओर लौटे, अविवाहित अफसर अपने मैस के कमरों की तरफ पलटे.

मीरा और विजय भी अपने घर लौटे. जब तक विजय ने वरदी पहनी, मीरा ने उस के बैग में सामान डाला. ‘यह क्या हो रहा है? तुम लोग क्यों और कहां जा रहे हो? तुम कब तक लौटोगे? मुझे कुछ तो बताओ?’ पर उस के हर सवाल का जवाब विजय का ‘मैं नहीं जानता हूं.

मैं कुछ नहीं कह सकता हूं’ था. बिछुड़ने का समय आ गया. उन की शादी को 2 साल हो गए थे और मीरा पहली बार विजय से अलग हो रही थी. उस की आंखों में आंसू थे और दिल में एक अंजान सा डर, पता नहीं क्या होने वाला था. ‘चिंता मत करो, मेरी जान,’ विजय ने हौसला दिया था, ‘मैं फौजी हूं. हुक्म की तामील करना मेरा फर्ज है. और तुम एक फौजी की बीवी हो, साहस रखना तुम्हारा फर्ज है. मैं जल्दी ही तुम्हारे पास लौट आऊंगा.’

यह कहने के बाद विजय चला गया, हमेशाहमेशा के लिए चला गया. मीरा अतीत में खोई थी कि अचानक दरवाजे की घंटी से उस का ध्यान टूटा. वह आंसू पोंछ कर उठी. दरवाजे पर उस की बाई रामकली खड़ी थी. वह बोली, ‘‘मालकिन, आनंद बाबा को याद कर के रोओ मत.

वे अमेरिका में खूब खुश रहेंगे. आप अपने काम में लग जाओ. आज तक आप ने आनंद बाबा को विजय साहब की यादों के सहारे ही तो पाला है. अब अपने स्कूल के काम में मन लगाओ,’’ फिर मीरा को बहलाते हुए आगे बोली, ‘‘मैं आप के लिए चाय लाती हूं. फिर आप के लिए खाना बनाऊंगी.’’ उस रात को जब मीरा अपने बिस्तर पर लेटी तो यादों का कारवां एक बार फिर उस की आंखों के आगे चल निकला. मीरा को घर पर छोड़ने के बाद विजय पर जो गुजरी वह कई दिनों बाद मीरा को विजय के दोस्त और यूनिट में उस के साथी कैप्टन शर्मा ने बताई.

विजय के यूनिट पहुंचने के कुछ देर बाद कमांडिंग अफसर (सीओ) ने पूरी बटालियन को संबोधित किया और उन्हें बताया कि देश के लिए एक गंभीर संकट की स्थिति उठ खड़ी हुई थी. एक पड़ोस के दुश्मन देश ने, बिना कोई चेतावनी दिए हमारे कई सीमावर्ती अड्डों पर भारी हमला कर दिया था.

इस धोखाधड़ी वाले हमले के कारण हमारे कई सैनिक मारे गए थे और हमारी तकरीबन दर्जनभर चौकियां कुछ पूरब में, कुछ पश्चिम में दुश्मन के हाथ में आ गई थीं. दुश्मन को जल्द से जल्द रोकना अनिवार्य हो गया था. पश्चिम के सरहदी इलाके में दुश्मन को रोकने का काम उन की यूनिट को दिया गया था. 

अंत में सीओ साहब ने कहा, ‘‘हम वीर सैनिक, आने वाले खतरों का डट कर सामना करेंगे, भारतीय सेना की परंपरा के मुताबिक. हो सकता है कि हम में से कुछ अपना फर्ज निभातेनिभाते अपनी जान खो दें. पर इस कारण हमें डरना नहीं चाहिए. हमेशा याद रखो कि वतन की इज्जत के लिए जो भी जवान शहीद होता है वह देश की आंखों में अमर हो जाता है.’’

सीओ के भाषण के फौरन बाद विजय, बटालियन के बाकी सदस्यों के साथ हवाई अड्डे पहुंचा. वहां से सारे सैनिक, 3 हवाई जहाजों में सवार हुए और चंद घंटों के बाद, 14 हजार फुट की ऊंचाई पर सीमा के एक हवाई अड्डे पर उतारे गए. वहां मौजूद अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया कि वहां की स्थिति बेहद खतरनाक थी. हवाई अड्डे से कुछ ही दूरी पर, दुश्मनों की एक बड़ी टोली ने मोरचा जमाया था.

वे अपने साथियों का इंतजार कर रहे थे जो हजारों की तादाद में 2-3 दिन बाद वहां पहुंचने वाले थे. हवाई अड्डे के पास वाले दुश्मनों को खदेड़ना और उन के आने वाले साथियों का रास्ता रोकना बेहद जरूरी था, वरना हवाई अड्डा दुश्मन के कब्जे में आ सकता था.

वहां के हालात देख कर, उन के सीओ ने दुश्मनों पर हमला करने की जिम्मेदारी विजय को सौंपी. बाकी सैनिक हवाई अड्डे की रक्षा में, और उस ओर आने वाले रास्ते को रोकने के काम में लगाए गए. अगले दिन सुबहसुबह विजय और उस के सैनिकों ने दुश्मनों पर अचानक धावा बोला. शुरू में तो उन को काफी सफलता मिली, पर इस दौरान विजय की टांग में 2 गोलियां लग गईं.

अपने घावों की चिंता किए बिना विजय ने अपने सिपाहियों के आगे जा कर दुश्मन पर फिर धावा बोला. इस बार हमला इतना भयानक था कि बचे हुए दुश्मन सैनिक मोरचा छोड़ कर भाग गए. पर हमले के दौरान दुश्मन की 4 और गोलियों ने विजय की छाती छलनी कर डाली और उस ने वहीं जिंदगी और मौत की सीमा पार कर के वीरगति प्राप्त कर ली थी. इस महान बहादुरी के काम के लिए मेजर विजय को मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला.

यह दास्तान मीरा के दिल और दिमाग पर गहरे निशान छोड़ गई थी. उस रात की याददाश्त ताजी होने पर मीरा की आंखें भर आईं, पर उस ने अपने आंसू रोके. तभी भोर की पहली किरणों ने आकाश में रंग भरना शुरू कर दिया. वह उठ कर बालकनी में गई. उस ने सोचा कि विजय के जाने के बाद भी तो जिंदगी उस ने अकेले ही चलाई थी तो अब आनंद के अमेरिका जाने पर भी चल ही जाएगी. 

समय की रफ्तार को कौन रोक सका है. आनंद ने पढ़ाई पूरी कर के अमेरिका में ही नौकरी कर ली. वह भारत समयसमय पर आताजाता रहा पर अब उस का मन वहां नहीं लगता था. उस ने मां की पसंद से भारत में शादी तो कर ली पर अपनी दुलहन समेत अमेरिका में ही जा कर बस गया.

मीरा का सपना था कि आनंद अपने पिता विजय की तरह फौज में जाता पर वह सपना हकीकत न बन पाया. बाद में आनंद का आना भी कम हो गया. हां, उस की पत्नी शोभा आती रही.

उन का बेटा अंकित भारत में ही पैदा हुआ. 8 साल की उम्र के बाद से तो वह मीरा के पास ही रह कर पला और बढ़ा. वह चाहता था कि वह अपने दादा की तरह फौजी अफसर बने. पर आनंद की इस में रजामंदी नहीं थी. उस ने अपनी मां की जिंदगी में दुख भरे तूफान का असर देखा था और वह नहीं चाहता था कि किसी और महिला को ऐसा दर्द मिले. तो भी अंकित ने स्कूल में एनसीसी में भाग ले लिया और कालेज की पढ़ाई पूरी कर के वह देहरादून मिलिटरी अकेडमी में चला गया.

आनंद इस सब से नाखुश था. अकेडमी से अफसर बन कर जब अंकित बाहर निकला तो उस ने अपने दादाजी की रेजीमैंट को जौइन किया. पर अब वह छुट्टियों में कम ही घर आता. उस की छुट्टियां दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती में ही कट जातीं. मीरा उसे देखने को तरस जाती.

 एक दिन मीरा दीवार पर लगी विजय की फोटो देख रही थी. फिर उस की नजर साथ लगे डिसप्ले केस पर पड़ी, जिस में विजय के मैडल लगे थे. सर्वप्रथम एक बैगनी रंग के रिबन से लटका परमवीर चक्र था. 3 इंच का कपड़ा, एक तोला धातु, जिस को पाने के लिए सिपाही जान की बाजी दांव पर लगाने को तैयार रहते थे. वाह री शूरवीरता! 

तभी दरवाजे की घंटी बजी. मीरा ने दरवाजा खोला और उस के दिल पर जोर का झटका लगा. उस के सामने वरदी पहने, उस का पोता अंकित खड़ा था. हूबहू विजय. वही विजय जिस ने उस को बहुत साल पहले छोड़ा था और जिस की वरदी पहने वाली तसवीर उस के दिमाग में हमेशा के लिए छप गई थी. उस ने सोचा कि उस की आंखें उस को धोखा दे रही थीं.

तभी एकदम अंकित ने उसे सैल्यूट मारा, फिर झुक कर पैर छुए, ‘‘देखिए दादीमां, मेरा प्रमोशन हो गया है. अब मैं भी दादाजी की तरह मेजर बन गया हूं.’’ मीरा ने अपने पोते को गले लगाया, उस के रुके हुए आंसू बह निकले.

मीरा सोच रही थी कि ठीक था कि विजय ने अपने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा कर सराहनीय साहस का परिचय दिया था. पर मीरा के साहस का कौन अंदाजा लगा सकता था. समय की आंधी के आगे वह तन कर डटी रही और आगे ही बढ़ती गई. आज उसी साहस के बल पर उस ने अपने पोते को देश को समर्पित कर दिया था.

Bravery Story

Independence Day Story: एक कश्मीरी- क्यों बेगाने हो गए थे कश्मीरी

Independence Day Story

जिन हिंदू और मुसलमानों ने कभी एकदूसरे के त्योहारों व सुखदुख को एकसाथ जिया था, आज उन्हें ही जेहादी व शरणार्थी जैसे नामों से पुकारा जाने लगा है.

ड्राइवर को गाड़ी पार्क करने का आदेश दे कर मैं तेजी से कानफ्रेंस हाल की तरफ बढ़ गया. सभी अधिकारी आ चुके थे और मीटिंग कुछ ही देर में शुरू होने वाली थी. मैं भी अपनी नेम प्लेट लगी जगह को देख कर कुरसी में धंस गया.

चीफ के हाल में प्रवेश करते ही हम सभी सावधानी से खड़े हो गए. तभी किसी के मोबाइल की घंटी घनघना उठी. चीफ की तेज आवाज ‘प्लीज, स्विच आफ योर मोबाइल्स’ सुनाई दी. मीटिंग शुरू हो चुकी थी. चपरासी सभी को गरम चाय सर्व कर रहा था. Independence Day Story

चीफ के दाहिनी ओर एक लंबे व गोरेचिट्टे अधिकारी बैठे हुए थे. यह हमारे रीजन के मुखिया थे. ऊपर से जितने कड़क अंदर से उतने ही मुलायम. एक योग्य अधिकारी के साथसाथ लेखक भी. विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में उन की कहानियां व कविताएं छपती थीं. ज्यादातर वह उर्दू में ही लिखा करते थे इसलिए उर्दू पढ़ने वालों में उन का नाम काफी जानापहचाना था. मीटिंग में जब कभी चीफ किसी बात पर नाराज हो जाया करते तो वह अपनी विनोदप्रियता से स्थिति को संभाल लेते.

मीटिंग का प्रथम दौर खत्म होते ही मैं उन के साथ हो लिया. चूंकि मेरी नियुक्ति अभी नईनई थी, अत: उन के अनुभवों से मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता. चूंकि वह काफी वरिष्ठ थे, अत: हर चीज उन से पूछने का साहस भी नहीं था. फिर भी उन के बारे में काफी कुछ सुनता रहता था. मसलन, वह बहुत अकेला रहना पसंद करते थे, इसी कारण उन की पत्नी उन से दूर कहीं विदेश में रहती हैं और वहीं एक स्कूल में बतौर टीचर पढ़ाती हैं. एक लंबा समय उन्होंने सेना में प्रतिनियुक्ति पर बिताया व अधिकतर दुर्गम जगहों पर उन की तैनाती रही थी. आज तक उन्होंने किसी भी जगह अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया था. यहां से भी उन के ट्रांसफर आर्डर आ चुके थे.

बात शुरू करने के उद्देश्य से मैं ने पूछा, ‘‘सर, आप नई जगह ज्वाइन कर रहे हैं?’’

वह मुसकराते हुए बोले, ‘‘देखो, लगता है जाना ही पड़ेगा. वैसे भी किसी जगह मैं लंबे समय तक नहीं टिक पाया हूं.’’

इस बीच चपरासी मेज पर खाना लगा चुका था. धीरेधीरे हम ने खाना शुरू किया. खाने के दौरान मैं कभीकभी उन्हें ध्यान से देखता और सोचता, इस व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप क्या है? सामने जितना खुशमिजाज, फोन पर उतनी ही कड़क आवाज. वह मूलत: कश्मीरी ब्राह्मण थे. अचानक बातों के सिलसिले में वह मुझे अपने बीते दिनों के बारे में बताने लगे तो लगा जैसे समय का पहिया अचानक मुड़ कर पीछे चला गया हो.

‘‘देखो, आज भी मुझे अपने कश्मीरी होने पर गर्व है. अगर कश्मीर की धरती को स्वर्ग कहा गया तो उस में सचाई भी है. अतीत में झांक कर देखो तो न हिंदूमुसलमान का भेद, न आतंकवाद की छाया. सभी एकदूसरे के त्योहार व सुखदुख में शरीक होते थे और जातिधर्म से परे एक परिवार की तरह रहते थे.’’

उन्होेंने अपने बचपन का एक वाकया सुनाया कि एक बार मेरी छोटी बहन दुपट्टे को गरदन में लपेटे घूम रही थी कि तभी एक बुजुर्ग मुसलमान की निगाह उस पर पड़ी. उन्होंने प्यार से उसे अपने पास बुलाया और पूछा कि बेटी, तुम किस के घर की हो? परिचय मिलने पर उस बुजुर्ग ने समझाया कि तुम शरीफ ब्राह्मण खानदान की लड़की हो और इस तरह दुपट्टे को गले में लपेट कर चलना अच्छा नहीं लगता. फिर उसे दुपट्टा ओढ़ने का तरीका बताते हुए उन्होंने घर जाने को कहा व बोले, ‘तुम भी मेरी ही बेटी हो, तुम्हारी इज्जत भी हमारी इज्जत से जुड़ी है. हम भले ही दूसरे धर्म को मानते हैं पर नारी की इज्जत सभी की इज्जत से जुड़ी है.’

इतना बताने के बाद अचानक वह खामोश हो गए. एक पल रुक कर वह कहने लगे कि पता नहीं किन लोगों की नजर हमारे कश्मीर को लग गई कि देखते ही देखते उसे आतंकवाद का गढ़ बना दिया और हम अपने ही कश्मीर में बेगाने हो गए. हम ने तो कभी हिंदूमुसलमान के प्रति दोतरफरा व्यवहार नहीं पाला, फिर कहां से आया यह सब.

मैं उन की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था और उन की आवाज के दर्द को समझने की कोशिश भी कर रहा था. वह बता रहे थे कि सिविल सर्विस में आने से पहले वह एक दैनिक पत्र के लिए काम करते थे. 1980 के दौर में जब भारत पर सोवियत संघ की सरपरस्ती का आरोप लगता था तो अखबारों में बड़ेबड़े लेख छपते थे. मैं उन को ध्यान से पढ़ता था, और तब मेरे अंदर भी सोवियत संघ के प्रति एक विशेष अनुराग पैदा होता था. पर वह दिन भी आया जब सोवियत संघ का बिखराव हुआ और उसी दौर में कश्मीर भी आतंक की बलि चढ़ गया. वह मुझे तब की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझाने की कोशिश करते और मैं अबोध शिशु की तरह उन का चेहरा देखता.

चपरासी आ कर जूठी प्लेटें उठा ले गया. फिर उस ने आइसक्रीम की बाबत हम से पूछा पर उसे उन्होंने 2 कड़क चाय लाने का आदेश दिया. तभी उन के मोबाइल पर मैसेज टोन बजी. उन्होंने वह मैसेज पढ़ा और मेरी तरफ नजर उठा कर बोले कि बेटे का मैसेज है.

अब वह अपने बेटे के बारे में मुझे बताने लगे, ‘‘पिछले दिनों उस ने एक नौकरी के लिए आवेदन किया था और उस के लिए जम कर मेहनत भी की थी, पर नतीजा निगेटिव रहा था. मैं उस पर काफी नाराज हुआ और हाथ भी छोड़ दिया. इस के बाद से ही वह नाराज हो कर अपनी मम्मी के पास विदेश चला गया,’’ फिर हंसते हुए बोले, ‘‘अच्छा ही किया उस ने, यहां पर तो कैट, एम्स जैसी परीक्षाओं के पेपर लीक हो कर बिक रहे हैं, फिर अच्छी नौकरी की क्या गारंटी? वहां विदेश में अब अच्छा पैसा कमाता है,’’ एक लंबी सांस छोड़ते हुए आगे बोले, ‘‘यू नो, यह भी एक तरह का मानसिक आतंकवाद ही है.’’

हमारी बातों का सिलसिला धीरेधीरे फिर कश्मीर की तरफ मुड़ गया. वह बताने लगे, ‘‘जब मेरी नियुक्ति कश्मीर में थी तो मैं जब भी अपने गांव पहुंचता, महल्ले की सारी औरतें, हिंदू हों या मुसलमान, मेरी कार को घेर कर चूमने की कोशिश करतीं. उन के लिए मेरी कार ही मेरे बड़े अधिकारी होने  की पहचान थी.

‘‘मैं अपने गांव का पहला व्यक्ति था जो इतने बड़े ओहदे तक पहुंचा था. जब भी मैं गांव जाता तो सभी बुजुर्ग, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, मेरा हालचाल पूछने आते और मेरे द्वारा पांव छूते ही वह मुझे अपनी बांहों में भर लेते थे और कहते, ‘बेटा, तू तो बड़ा अधिकारी बन गया है, अब तो दिल्ली में ही कोठी बनवाएगा.’ तब मैं उन से कहता, ‘नहीं, चाचा, मैं तो यहीं अपने पुश्तैनी मकान में रहूंगा.’’

अचानक उन की आंखों की कोर से 2 बूंद आंसू टपके और भर्राए गले से वह बोले, ‘‘मेरा तो सपना सपना ही रह गया. अब तो जाने कितने दिन हो गए मुझे कश्मीर गए. पिछले दिनों अखबार में पढ़ा था कि मेरे गांव में सेना व आतंकवादियों के बीच गोलीबारी हुई है. आतंकवादी जिस घर में छिपे हुए थे वह मेरा ही पुश्तैनी मकान था.

‘‘पुरखों की बनाई हुई अमानत व मेरे सपनों का इतना बुरा अंजाम होगा, कभी सोचा भी नहीं था. अब तो किसी को बताने में भी डर लगता है कि मैं कश्मीरी हूं.’’

आंसुओं को रूमाल से पोंछते हुए वह कह रहे थे, ‘‘पता नहीं, हमारे कश्मीर को किस की नजर लग गई? जबकि कश्मीर में आम हिंदू या मुसलमान कभी किसी को शक की निगाह से नहीं देखता पर कुछ सिपाही लोगों के चलते आम कश्मीरी अपने ही घर में बेगाना बन गया. जिन हिंदू और मुसलमान भाइयों ने कभी एकदूसरे के त्योहारों व सुखदुख को एकसाथ जिया था, आज उन्हें ही जेहादी व शरणार्थी जैसे नामों से पुकारा जाने लगा है.’’

कुछ देर तक वह खमोश रहे फिर बोले, ‘‘अपने जीतेजी चाहूंगा कि कश्मीर एक दिन फिर पहले जैसा बने और मैं वहां पर एक छोटा सा घर बनवा कर रह सकूंगा पर पता नहीं, ऐसा हो कि नहीं?’’

दरवाजे पर खड़ा चपरासी बता रहा था कि चीफ मैडम मीटिंग के लिए बुला रही हैं. वह ‘अभी आया’ कह कर बाथरूम की ओर बढ़ गए. शायद अपने चेहरे की मासूम कश्मीरियत साफ कर एक अधिकारी का रौब चेहरे पर लाने के लिए गए थे. Independence Day Story

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