लेखक- हनुमान मुक्त
Hindi Satire Story: लोग कहते हैं कि पतिपत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता है लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा और मेरे मोटापे का रिश्ता उस से भी ज्यादा जन्मों का है. मैं ने मोटापा कम करने कीं लाख कोशिशें की लेकिन क्या मजाल जो यह थोड़ा सा भी कम हुआ हो. पत्नी तो फिर भी कभी रूठ जाती है लेकिन मेरा मोटापा कभी नहीं रूठता. ऐसा लगता है इस का मुझ से जन्मजन्मांतरों का रिश्ता है. यह मुझ से अत्यधिक प्यार करता है. इस का मुझ से एकतरफा प्यार है. मैं चाहता हूं यह मुझ से दूर चला जाए, मुझे छोड़ जाए, मुझे छोड़ कर अन्य किसी से रिश्ता बना ले लेकिन इतना चाहने के बावजूद यह मुझ से बेवफाई नहीं करता.
कई बार मैं ने सोचा यह मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर नहीं जाना चाहता तो कोई बात नहीं जाए लेकिन कुछ दिनों के लिए तो यह मुझे छोड़ कर जा सकता है ताकि मैं भी कुछ ही दिन सही ब्रैंडेड जींस, शर्ट पहन कर स्मार्ट बन कर अपने सपनों की रानी को रिझ सकूं. मगर यह है कि मुझे किसी भी हालत में छोड़ना ही नहीं चाहता. हमेशा मुझ से चिपका रहता है. मेरी पत्नी तो फिर भी कभी मायके चली जाती है, लेकिन मेरा मोटापा मेरे साथ बिस्तर, कुरसी और यहां तक कि मेरे सपनों तक में हमेशा विचरण करता रहता है.
बचपन में मां कहती थीं, ‘‘बेटा, खूब खाया करो खाने से ही ताकत आती है.’’ मां की इस नसीहत की अवहेलना मैं कैसे करता? मैं ने भी उस का खूब पालन किया और खूब खाया. मां के इस प्यार की कीमत मुझे आज ही नहीं बल्कि बचपन से ही चुकानी पड़ रही है. मैं ताकतवर बनने के बजाय टैंक बनता चला गया. बचपन में पड़ोस की आंटियां मेरे गदराए गालों को खींच कर कहतीं, ‘‘कितना गोलमटोल सुंदर लगता है.’’ तो मैं सोचता था आंटियां मेरी तारीफ कर रही हैं. मगर अब महसूस हो रहा है कि वे मेरी तारीफ नहीं बल्कि वह सब मेरे मोटापे की भविष्यवाणी थी.
स्कूल के दिनों में जब मैं अपने सारे दोस्तों के साथ साइकिल से स्कूल जाता था, तब ऐसा महसूस होता था मैं साइकिल पर नहीं बल्कि साइकिल मेरे ऊपर चढ़ कर स्कूल जा रही है. खेलकूद में जब बाकी लड़के 100 मीटर दौड़ते थे, मैं 10 मीटर में ही फिनिश लाइन घोषित कर देता था. क्लास में लड़कियां पतलेपतले लड़कों को देख कर वाहवाह करती थीं और मुझे देख कर कहतीं, ‘‘इस में तो हमारे पूरे टिफिन की जगह हो जाएगी.’’ यह सुन कर मेरे दिल पर सांप लोट जाया करता था.
कालेज में जब लड़के जींसटीशर्ट पहन कर आते थे, तब मेरा भी मन होता था. मैं भी इन की तरह कपड़े पहनूं लेकिन मुझे कपड़े सिलवाने दर्जी की दुकान पर ही जाना पड़ता था. दोस्त कहने को मेरे दोस्त बनते थे लेकिन जब भी मौका मिलता मेरा मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते. वे मुझ से कहते, ‘‘तेरी हंसी बहुत अच्छी है.’’ असल में हंसते समय मेरा पेट गोलगोल हो कर जोरजोर से हिलता था. उन्हें यह देख कर मजा आता था, इसलिए वे ऐसा कहते थे. एक ओर जहां लड़कियां दूसरे लड़कों से गुलाब ले लिया करती थीं, वहीं वे लड़कियां मुझ से गुलाब न ले कर अपने खाने को समोसे मंगवाती थीं. मैं खुशीखुशी उन के लिए समोसे ले आता था ताकि मुझे स्वीकार कर लें.
एक बार मैं ने भी मौका देख कर पार्क में प्रेम प्रस्ताव रखा. लड़की ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे साथ मैं कैसे रह सकूंगी मेरे समोसे? यदि रहूंगी तो मुझे कभी तुम्हारे साथ कुरसी पर बैठने की जगह तक नहीं मिलेगी.’’ और उस ने मेरा प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया. तब समझ आया कि मोटापा सिर्फ शरीर पर ही नहीं बल्कि प्रेमजीवन पर भी बोझ डालता है. मेरे हमउम्र साथियों को रिश्ते खूब आते थे. वे लड़कियों पर लड़कियां देखदेख कर रिजेट भी किया करते थे, वहीं दूसरी ओर मुझे देख कर कुंआरियों के पिता मुझे रिजैक्ट कर के चले जाया करते थे. कुछ वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा. मुझे मन ही मन अपने मोटापे से कुढ़न होने लगी थी. ऐसा लग रहा था कि मेरी शादी नहीं होगी, मुझे कुंआरा ही रहना पड़ेगा. मगर भला हो मेरे फूफाजी का जिन्होंने किसी तरह अपनी रिश्तेदारी में समझबुझ कर मेरी शादी करा दी. फूफाजी ने उन से कहा, ‘‘दूल्हा मोटा नहीं है बल्कि खातेपीते परिवार का है और स्वस्थ है.’’ इसीलिए शादी में सब रिश्तेदार कहते रहे, ‘‘कितना स्वस्थ दूल्हा है.’’ तब पहली बार लगा कि मोटापा भी ‘स्वास्थ्य’ नाम की चादर ओढ़ कर समाज में सम्मान पाता है.
शादी के बाद पत्नी ने कहा, ‘‘अब तुम्हें थोड़ा कमाना चाहिए.’’ चोर की दाढ़ी में तिनका, मुझे सुनाई दिया वह कह रही है, मुझे कम होना चाहिए. असल में पत्नी समझ रही थी कि मैं कमाऊंगा, जबकि मैं समझ रहा था कि मुझे कम खाना पड़ेगा. जहां लोग जीने के लिए खाते हैं, वही मैं खाने के लिए जीता हूं. लोग खाने को दवा मानते हैं और मैं खाने को धर्म मानता हूं. पानी पूरी वाले से मेरा रिश्ता आत्मीय है. जब मैं पानी पूरी खाता हूं और खाते हुए काफी देर हो जाती है तो वह कहता है, ‘‘बस?’’ उस की बस सुन कर मैं कहता हूं, ‘‘बस तो मैं ने कभी कहा नहीं और यदि तुम्हें लग रहा है कि अब बहुत हो गया तो कोई बात नहीं.’’ असल में मोटापा बढ़ने का कारण यही है. मैं ने कभी स्टौप बटन नहीं दबाया.
मैं चाहता हूं कि मैं जींस पहनूं, पर जींस का बटन मेरी सांसों के साथ राष्ट्रीय खेल खेलता है. दुकानदार मेरा साइज देख कर हंसता है. वह मेरा मजाक उड़ाता हुआ कहता है, ‘‘भाई साहब, आप के लिए तो परदे का कपड़ा ही काम आएगा.’’ कई बार मेरे मन में बहुत सारे ऊलजलूल विचार उठते हैं. मैं सोचता, काश कोई फैशन शो होता जिस में ‘सब से बड़े बटन बंद करने’ की प्रतियोगिता होती और मैं गोल्ड मैडलिस्ट बन जाता. जब किसी की शादीब्याह के अवसर पर मैं जाता हूं तो लोग मुझे देख कर बड़ी इज्जत से कहते हैं, ‘‘अरे वाह, कितना भरापूरा इंसान है.’’ यह ‘भरापूरा’ शब्द दरअसल मोटापे पर चाशनी है. यही मोटापे का सब से सुंदर पर्यायवाची है. बच्चों को मैं टैडीबियर जैसा लगता हूं. वे मुझे देख कर खुश हो जाते हैं.
कभीकभी कुछ बच्चे तो मुझ से कह देते हैं, ‘‘अंकल, आप तो टैडीबियर लगते हो.’’ और उन की बात सुन कर उन की खुशी में शामिल हो कर मैं गर्व से कहता हूं, ‘‘कम से कम खिलौने जैसा तो हूं.’’ कई बार डाक्टरों ने मुझ से कहा, ‘‘अपना वजन घटाओ.’’ उन के कहने के अनुसार मैं ने डाइटिंग करने की कोशिश की पर जब डाइट चार्ट में लिखा मिला, ‘‘सुबह 2 चपाती, दोपहर में सलाद, शाम को 2 चपाती और सलाद, तो मुझे लगा कि यह डाइट मेरे लिए नहीं किसी गिलहरी के लिए है. मेरे लिए मोटापा और डाइटिंग का रिश्ता वैसा ही है जैसे मेरा और गणित का. मुझ से कभी यह निभा ही नहीं. शायद इसीलिए मेरा प्यारा मोटापा मुझे छोड़ कर एक दिन भी कहीं नहीं गया.
अब तो जब भी डाक्टर साहब मुझे कहते हैं, ‘‘वजन घटाओ’’ तो मैं कहता हूं, ‘‘डाक्टर साहब, वजन घटाने के बजाय आप मेरा वजन बढ़ा कर नया वर्ल्ड रिकौर्ड बनवाओ?’’ औफिस में सब सहकर्मी कहते हैं, ‘‘तुम्हारी उपस्थिति मीटिंगरूम में अलग ही माहौल बना देती है.’’ असल में उन का मतलब होता है, ‘‘तुम बैठते हो तो बाकी लोगों के लिए बैंच कम पड़ जाती है.’’ ऐसा लगता है कि औफिस में भी मैं फर्नीचर टैस्टिंग मशीन हूं. मेरे दोस्त मुझ से कहते हैं, ‘‘तेरे पास बैठ कर हम बहुत सुरक्षित महसूस करते हैं. तू दीवार जैसा है.’’ सच भी है, अगर कोई उन्हें धक्का मारे तो मेरा मोटापा एअरबैग की तरह उन्हें बचा लेता है यानी उन के लिए मैं चलतीफिरती ‘सेफ्टी किट’ का काम करता हूं. मेरे बस में चढ़ते ही सवारियां मुझे देख कर 2 सीटें छोड़ देती हैं. कंडक्टर भी मेरे द्वारा 2 सीट घेरने पर डबल टिकट लेने की मांग करता है.
हालांकि उस के कहने के बावजूद मैं एक ही टिकट लेता हूं और 2 सीटें घेरता हूं. यही हाल ट्रेन में होता है, टिकट 1 का, पर जगह 2 की घेरता हूं. मेरे मोटापे के कारण मेरी पत्नी को मुझ से काफी शिकायतें रहती हैं. वे अकसर कहती है, ‘‘तुम्हें ले कर घूमना बहुत मुश्किल है.’’ मजाक में मैं उस से कहता हूं, ‘‘हां सही है. कम से कम तुम्हें सूटकेस ले जाने की जरूरत नहीं, मैं ही चलताफिरता पूरा सूटकेस हूं.’’ मेरी पत्नी का मोबाइल प्रेम और मेरा मोटापा अकसर भिड़ते रहते हैं. वह मुझ से कहती है, ‘‘तुम्हें फिट रहना चाहिए.’’ मैं कहता हूं, ‘‘तुम्हें मोबाइल से छुटकारा पाना चाहिए.’’ वह मोबाइल नहीं छोड़ सकती और मोटापा मुझे. अब तो हालत यह है कि मैं और मेरा मोटापा एकदूसरे के बिना अधूरे हैं.
रात को तकिया गिर जाए तो पत्नी उठा सकती है. लेकिन अगर मैं गिर जाऊं तो पूरे मुहल्ले को आ कर मुझे उठाना पड़ेगा. मोटापे ने मुझे पर्सनल प्रौपर्टी से पब्लिक प्रौपर्टी बना दिया है. अब मैं सिर्फ व्यक्ति नहीं बल्कि सार्वजनिक संपत्ति हूं. पहले मैं मोटापे से डरता था अब मैं मोटापे से जीता हूं. मोटापा मेरे साथ हर सुखदुख में है. यह मेरे जीवन का स्थाई साथी है. पत्नी कभी गुस्सा हो सकती है, दोस्त दूर जा सकते हैं, पर मोटापा हमेशा मेरे साथ रहेगा. इसलिए मैं ने निश्चय किया है कि अगले जन्म में भगवान से यही वरदान मांगूंगा, ‘‘हे प्रभु, अगर मुझे मोटापे से मुक्ति नहीं दे सकते तो कम से कम मुझे धरती बना देना ताकि लोग मेरे ऊपर चलें और कहें कि वाह, कितनी ठोस जमीन है.’’
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