Silver Nipple Cups: ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली माओं की नई पसंद

Silver Nipple Cups: सिल्वर निप्पल कप्स, जिसे सिल्वर कप भी कहा जाता है, स्तनपान कराने वाली माओं के लिए एक प्राकृतिक और प्रभावी प्रोडक्ट है, जो निप्पल में होने वाले दर्द और दरारों से राहत पाने में मदद करता है. ये छोटे कप सिल्वर से बने होते हैं और इनमें प्राकृतिक रोगाणुरोधी, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीफंगल गुण होते हैं.

ये कप आमतौर पर 99.9 प्रतिशत शुद्ध चांदी से बने होते हैं और निप्पल क्षेत्र पर आराम से फिट होने के लिए ढाले जाते हैं. इनमें कोई क्रीम या रसायन नहीं होता, इसलिए ये उन स्त्री को पसंद आते हैं जो अधिकतर नैचुरल चीजों को पसंद करते है.

क्या है इसका इतिहास

सिल्वर निप्पल कप्स का इतिहास सदियों पुराना है, और यह प्राकृतिक उपचार विधियों से जुड़ा है. चांदी में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो स्तन के संक्रमण को रोकने और उपचार को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.

माओं को निप्पल की समस्याओं से राहत देने के लिए चांदी का उपयोग एक पारंपरिक उपाय रहा है और इस कड़ी में सिल्वर निप्पल कप्स का प्रयोग आज की नई माएं करने लगी है.

ये सिल्वर निप्पल कप्स ऑनलाइन या बाजार में आजकल आसानी से मिल जाते है. इस बारें में ग्रेटर नोएडा के मदरहुड अस्पताल की लेक्टेशन कंसल्टेंट और फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. मुस्कान रस्तोगी कहती है कि सिल्वर निपल्स उन माओं के लिए अधिक फायदेमंद होता है, जिन्हें बच्चे को दूध पिलाते समय निप्पल में दर्द, जलन या फटने की समस्या हो रही हो.
आजकल की नई माओं ने सिल्वर निप्पल कप्स को प्रयोग करना शुरू कर दिया है और इसका ट्रेंड काफी बढ़ा है, जो शुरू में बच्चे को स्तनपान के दर्द से राहत दिलाने में मदद करती है.

सिल्वर निप्पल कप्स को स्तनपान कराने से पहले और बाद में निप्पल पर पहना जाता है. कुछ माओं को वे हर समय पहने रखने की आवश्यकता हो सकती है, जबकि अन्य को केवल स्तनपान के बीच में ही आवश्यकता हो सकती है.

सिल्वर कप्स पहनना है आसान

स्तनपान बच्चों के लिए बेहद जरूरी होता है, लेकिन दर्द या निप्पल्स का फटना कुछ माओं के लिए आम समस्या होती है और वे स्तनपान से कतराती है, ऐसे में दर्द की समस्या से राहत पाने के लिए नई माएं सिल्वर निप्पल कप्स का इस्तेमाल कर रही हैं.

यह शुद्ध चांदी से बने छोटे, गोल और ढक्कन जैसे कप्स होते हैं, जिन्हें मां अपने निप्पल पर तब लगाती है, जब बच्चा दूध नहीं पी रहा होता है. ये कप्स निप्पल को ढककर उसे सुरक्षा और आराम देते हैं. इसके फायदे निम्न है:

सिल्वर निप्पल्स के फायदे

प्राकृतिक गुणों से भरपूर

चांदी में एंटीमाइक्रोबियल (कीटाणुनाशक), एंटीइंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाले) और एंटीफंगल गुण होते हैं. इससे निप्पल जल्दी ठीक होते हैं और इंफेक्शन का खतरा कम होता है.

सुरक्षा कवच की तरह करते हैं काम

ये कप्स निप्पल को कपड़े या नर्सिंग पैड की रगड़ से बचाते हैं, जिससे दर्द कम होता है.

बिना केमिकल वाला विकल्प

कई बार स्तनपान में दर्द या क्रैक होने पर माएं कुछ क्रीम लगती है, जिसमें केमिकल होते हैं, जिन्हें दूध पिलाने से पहले साफ करना पड़ता है, लेकिन सिल्वर कप्स में ऐसा कुछ नहीं होता, जिसे इस्तेमाल करना आसान और सुरक्षित होता है.

बारबार कर सकते हैं प्रयोग

इन्हें कई महीनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है और अगली बार के बच्चे के समय भी कर सकते है, इसकी वजह से पैड या क्रीम खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती.

ध्यान रखने योग्य बातें

सही दूध पिलाने की तकनीक को जानना जरूरी

अगर बच्चा सही तरीके से दूध नहीं पी रहा है (गलत लैचिंग), तो केवल सिल्वर कप्स से फायदा नहीं होगा, ऐसी स्थिति में लेक्टेशन कंसल्टेंट से सलाह जरूर लें.

जरूरी है साफसफाई

कप्स को रोज साफ पानी से धोकर सूखा कर के रखना जरूरी होता है.

सभी के लिए आरामदायक नहीं

हर मां के लिए इसका निप्पल पर परफेक्ट फिट बैठना जरूरी नहीं होता.  कुछ को भारी लग सकता है या ज्यादा देर पहनने पर नमी से परेशानी हो सकती है.

होते है थोड़े महंगे

हालांकि ये चांदी के बने होते हैं, इनकी कीमत थोड़ी ज्यादा हो सकती है. इस प्रकार सिल्वर निप्पल कप्स दूध पिलाने के दौरान होने वाले दर्द से राहत दिलाने में बहुत मददगार हो सकते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि ये केवल एक हेल्प की तरह ही काम करता है, अगर स्तन में दर्द लगातार बना रहे, तो डॉक्टर या लेक्टेशन एक्सपर्ट से सलाह लेना आवश्यक होता है.

Silver Nipple Cups

Big Boss 19: इन सितारों ने ठुकराया लाखों का ऑफर

Big Boss 19: पिछले 18 सालों से चल रहे पौपुलर रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ ने कई कलाकारों की जिंदगी को नया रंग दिया और उनके कैरियर को संवारा है. ‘बिग बॉस’ में आने के बाद कई कलाकारों को न सिर्फ काम मिला बल्कि वह बहुत पौपुलर भी हो गए. यही वजह है कि बॉलीवुड में काम कर रहे कई छोटेबड़े कलाकार ‘बिग बॉस’ में जाने के लिए लालायित रहते हैं क्योंकि एक तो तीन साढ़े तीन महीने बिग बॉस के घर में रहने का मौका मिलता है साथ ही मोटी रकम भी मिलती है. यही वजह है कि हर साल बिग बॉस में कई विवादित तो कई नएपुराने स्टार्स कंटेस्टेंट की एंट्री होती है.

लेकिन कई कलाकार ऐसे भी हैं जिन्हें ‘बिग बॉस’ में जाने से सख्त परहेज है. टीवी और फिल्म एक्टर राम कपूर ने ‘बिग बॉस’ का ऑफर ठुकरा दिया क्योंकि राम कपूर के अनुसार उनको रियलिटी शोज में काम करना पसंद नहीं है. उन्हें करोड़ों रुपए भी दे तो भी वह किसी भी रियलिटी शो में बतौर प्रतिभागी नहीं जाएंगे.

इसी तरह एक जमाने की हॉट एंड सेक्सी हीरोइन मल्लिका शेरावत को लेकर चर्चा थी कि वह ‘बिग बॉस’ में आने वाली है लेकिन मल्लिका शेरावत ने भी शो में आने से इनकार कर दिया और साथ ही यह भी कह दिया कि मैं प्राइवेट पर्सन हूं. मैं कैद में या लगातार कैमरे के सामने नहीं रह सकती.

शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को भी यह शो ऑफर हुआ था, इससे पहले वह करण जौहर के रियलिटी शो द ट्रेटर कर चुके हैं लेकिन राज कुंद्रा ने भी ‘बिग बॉस’ का ऑफर ठुकरा दिया. राज कुंद्रा को न तो पैसों की कमी है नहीं प्रसिद्धि की.

यूट्यूबर और पूर्व पायलट गौरव तनेजा को भी ‘बिग बॉस’ ऑफर हुआ लेकिन पर्सनल रीजन के चलते उन्होंने ‘बिग बॉस’ को नो कह दिया. करण जौहर के शो ‘द ट्रेटर’ में काम कर चुके यूट्यूबर गौरव तनेजा फिलहाल बहुत व्यस्त हैं और उनके पास अभी इस शो के लिए टाइम नहीं है.

इसी तरह अर्जुन कपूर की बहन अंशुला कपूर ने भी ‘बिग बॉस’ में जाने से मना कर दिया क्योंकि वह इस शो के लिए मेंटली तैयार नहीं है.

बहरहाल 18 साल से चल रहे इस शो को बॉलीवुड के हिट स्टार की जरूरत नहीं है, क्योंकि ‘बिग बॉस’ शो एक आम कलाकार को स्टार बनाने का दम रखता है. बहरहाल ‘बिग बॉस’ कलर्स चैनल पर 24 अगस्त से शुरू हो रहा है.

Big Boss 19

Harnaaz Sandhu: मिस यूनिवर्स को ‘बागी 4’ के टीजर में देख उड़ेंगे होश

Harnaaz Sandhu: बॉलीवुड के एक्शन अखाड़े में एंट्री हो चुकी है नई ‘लीडिंग लेडी’ हरनाज संधू की. एंट्री भी ऐसी धमाकेदार जो देखने वालों के दिल की धड़कन को बढ़ा देगी. ‘बागी 4’  का टीजर रिलीज होते ही धमाका कर दिया है. मिस यूनिवर्स 2021 हरनाज संधू का हिंदी सिनेमा में डेब्यू बहुत ही इंटरेस्टिंग होने वाला है.

पहले ही हरनाज संधू मिस यूनिवर्स बन कर दुनिया भार में अपनी शालीनता और ग्लैमर की छाप छोड़ चुकी हैं लेकिन ‘बागी 4’ में उन्हें देखने वाले दंग रह गए हैं. रोमांटिक गानों और स्लो-मोशन में एंट्री बेहद जबरदस्त है. उनका हाई-ऑक्टेन एक्शन सीन देख कर बड़ेबड़े स्टंटमैन भी पसीना पोंछ लेंगे.

टाइगर श्रॉफ के साथ उनकी केमिस्ट्री और संजय दत्त का विलेनअवतार के बीच हरनाज़ की मौजूदगी सिल्वर स्क्रीन पर करंट की तरह दौड़ती नजर आएगी. हड्डियां हिला देने वाले हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट से लेकर हथियारों के साथ निंजा-लेवल एक्शन में हरनाज का रोल किसी तूफान से कम नहीं है.

साजिद नाडियाडवाला प्रोडक्शन और डायरेक्टर ए. हर्षा की यह मेगा-एक्शन फिल्म इस 5 सितंबर 2025 को सिनेमाघरों में धूम मचाने आ रही है. टीज़र देखकर एक बात तय है कि हरनाज का यह नया ‘फायर मोड’ आने वाले महीनों तक चर्चा में रहेगा और ‘बागी 4’  का सफर होगा रोमांच और धमाकों से भरा.

Harnaaz Sandhu

Rajnikant: पिता के कहने पर सुपरस्टार बने कुली, दोस्त ने की बेइज्जती

Rajnikant: सुपरस्टार रजनीकांत ने संघर्ष की कहानी याद करते हुए कहा, “एक बार मेरे पिताजी ने सख्ती से कहा कि कुली का काम करना है, बोरियां ढोनी हैं. मैंने कहा, ‘ठीक है ’. मैंने तीन बोरियां ठेले पर लाद दीं और निकल पड़ा. जो काम 500 मीटर में खत्म होना था, वो एक हादसे की वजह से ट्रैफिक डायवर्जन होने के कारण 1 से 1.5 किलोमीटर का सफर बन गया.

ऐसी स्थिति में उन बोरियों को संतुलित रखना आसान नहीं था. सड़क पर ट्रक, बस और गाड़ियां भरी थीं और रास्ते का हर गड्ढा या उभार मेरे बोझ को गिराने को तैयार था. एक जगह संतुलन बिगड़ गया और एक बोरी नीचे गिर गई.

लोग चारों तरफ से चिल्लाने लगे. बस के यात्री, राहगीर, सब मेरी तरफ देखकर चिल्ला रहे थे कि ‘ये ठेला सड़क पर क्यों लाए हो? किसने दिया तुम्हें?’ शायद मैं उस काम के लिए बहुत दुबला-पतला दिखता था. मैंने बोरी फिर उठाई, डांट खाई, और किसी तरह आगे बढ़ा. वहां पहुंचकर मेरे मामा ने कहा, ‘तीन बोरियां आई हैं इन्हें टेम्पो में चढ़ा दो. मैंने कहा ‘ठीक है’ और कर दिया. फिर मैंने पैसे मांगे.

कहानी का अंत बताते हुए रजनीकांत ने कहा, “उस आदमी ने मुझे ₹2 दिए और कहा, ‘टिप समझकर रख लो. वह आवाज मैंने पहचान लिया था, वह मेरे कॉलेज के दोस्त मुनिस्वामी का था, जिसे मैं अक्सर चिढ़ाता था. उसने कहा, ‘बहुत अकड़ दिखाते थे, अब देखो हालत!’ मैं उन बोरियों के सहारे टिक गया और रो पड़ा. उस दिन मैं पहली बार मैं रोया था.
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए रजनीकांत ने कहा कि यह घटना उनकी विनम्र शुरुआत, संघर्ष और मेहनत की गरिमा की याद है. उस दिन के बाद से यह आज भी उनके दिलोदिमाग में अंकित रह गई. ऐसे में आज जब वे फिल्म ‘कुली – द पावरहाउस’ में एक कुली का किरदार निभा रहे हैं तो रील और रियल के बीच के अंतर को बखूबी समझ रहे हैं.

बता दें कि ‘कुली – द पावरहाउस’ अपनी रिलीज से पहले ही देशभर में जबरदस्त हलचल मचा रही है. ₹400 करोड़ के बजट में बनी यह मेगाप्रोडक्शन मूवी में सुपरस्टार रजनीकांत के साथ आमिर खान, नागार्जुन, सत्यराज, उपेंद्र, सौबिन शाहीर और श्रुति हासन जैसे स्टार्स हैं.

सन पिक्चर्स के बैनर तले और विक्रम, लियो, कैथी और मास्टर जैसे फिल्मों के निर्देशक लोकेश कनगराज के निर्देशन में बनी यह फिल्म, इंडियन एक्शन मूवी की परिभाषा बदलने को तैयार है.

Rajnikant

इन Ready to Mix Spices से बनाए खाना, बच्चे उंगलियां चाटते रह जाएंगे

Ready to Mix Spices: हर दिन बनने वाली सब्जी को नया और स्वादिष्ट कैसे बनाएं? ये हर महिला की चिंता होती है. बच्चे हो या पति हर दिन लजीज खाने की फरमाइश महिलाओं को परेशान करती रहती है. अक्सर खाना बनाते समय रोटी, दाल, चावल आदि तो आसानी से बन जाता है, लेकिन सब्जी में वेराइटी लाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

एक जैसा खाना रोजरोज खाया जाए तो बोरियत तो हो ही जाती है, लेकिन हर रोज वेरायटी लाने के लिएf आखिर इतनी मेहनत कौन करे? ऐसे में कुछ मसाला ऐसा होना चाहिए जो आपकी सब्जियों के स्वाद को बढ़ा दें. ये अक्सर हमारी किचन में होते भी हैं पर इन पर हमारा ध्यान कम ही जाता है.

तो आइए जाने वह कौन से मसाले होते हैं जो सादी और सिंपल सब्जी के फ्लेवर, स्वाद और खुशबू को बढ़ाते है.

किचन किंग मसाला से बनाये भरवा सब्जी का स्वाद

भरवा बैंगन के नाम अगर आपके बच्चे भी मुंह बनाते हैं, तो अब परेशान होने का नहीं. कोई भी भरवा सब्जी हो चाहे वह भरवा भिंडी हो, भरवा बैंगन हो या फिर भरवा तौरी हो अब आपको अलग से बच्चों के लिए कुछ बनाने का टेंशन नहीं लेने का. बस किचन किंग मसाला लाएं. यह अपने नाम की ही तरह किचन का राजा है और जब बात राजा की हो तो आपके बेटे को तो राजा बेटा बनना ही पड़ेगा.

जब ये मसाला किसी भी भरवा सब्जी में डालता है न तो उस  बकबका स्वाद अपने आप खत्म हो जाता है और एक अलग ही खड़े मसाले की खुशबु से आपकी डिश महकने लगती है और दूर से लगता है मानो आज तो पक्का घर में मेहमान आ रहें हैं और मम्मी कुछ अच्छा बना रही हैं. अब आप खुद ही सोचिये जिसकी खुशबु इतनी जानदार है उसका स्वाद कैसा होगा?

मैगी मसाला है बड़ा मजेदार, बढ़ाएं आलू घीए की सब्जी का स्वाद

मैगी का दीवाना तो बच्चों से लेकर बड़ों तक हर कोई होता है. एक बार आप सोच कर देखिये कि अगर आपकी सब्जियों में से भी मैगी का स्वाद आने लगे तो भल कौन मैगी  के लिए हर वक्त मम्मी की डांट खायेगा. भाई हम तो सब्जी में ही मैगी का स्वाद लेना ज्यादा पसंद करेंगे.

ब्रोकली की सब्जी में मैगी मसाला डालें. इसके इस्तेमाल से सब्जी का जायका बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकली में सब्जी मसाला छोड़कर अन्य सभी मसाले को डालकर पका लें. जब लगे कि सब्जी आधी पक गई है तो उसमें मैगी मसाला डालकर अच्छे से चला लें और लगभग 5 मिनट बाद गैस को बंद कर दीजिए. इससे सब्जी का जायका बढ़ सकता है.

इसके इस्तेमाल से सब्जी का जायका बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकली में सब्जी मसाला छोड़कर अन्य सभी मसाले को डालकर पका लें. जब लगे कि सब्जी आधी पक गई है तो उसमें मैगी मसाला डालकर अच्छे से चला लें और लगभग 5 मिनट बाद गैस को बंद कर दीजिए.

इसके इस्तेमाल से सब्जी का जायका बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकली में सब्जी मसाला छोड़कर अन्य सभी मसाले को डालकर पका लें. जब लगे कि सब्जी आधी पक गई है तो उसमें मैगी मसाला डालकर अच्छे से चला लें और लगभग 5 मिनट बाद गैस को बंद कर दीजिए. इससे सब्जी का जायका बढ़ सकता है.

मैगी मसाला आमलेट खाया है आपने कभी? अगर नहीं तो एक बार बनाकर देखें. सबसे पहले एक बौल में अंडे को फोड़कर डालें और उसमें बारीक़ कटा हुआ प्याज, हरी मिर्च. टमाटर और नमक डालकर अच्छे से मिक्स कर लीजिए. फिर इसमें डालिये अपना मैजिक मैगी मसाला और इसे डालकर दो बार अच्छे से फेंट लीजिए.

अब एक पैन में तेल गरम करके ऑमलेट बना लीजिए. यक़ीनन ये आपको पसंद आएगा. इसके आलावा आप मैगी मसाला से जीरा आलू और पकोड़े भी बना सकते हैं.

छोला मसाला लगाएं पनीर भुजी में पंजाबी तड़का

चना मसाला से आप कई स्वादिष्ट व्यंजन बना सकते हैं. जैसे चना मसाला सैंडविच, चना मसाला चाट, और चना मसाला पराठा. इसके अलावा, आप दही वाले छोले, छोले की सब्जी, चना मसाला कबाब और चना मसाला सूप भी बना सकते हैं.

अगर आप पनीर का सैंडविच बना रहे हैं तो पनीर में चना मसाला मैश करके इसे बनाया जा सकता है.आप दही, चटनी, प्याज, टमाटर और चना मसाला मिला सकते हैं. इस तरह चना मसाला से एक अच्छी चाट बनाये जा सकती है. चना मसाला को पराठे के अंदर भरकर, पराठा बनाकर भी खाया जा सकता है. इसके लिए चने को बॉयल मैश करके छोले मसाला मिलकर भी परांठे में भरा जा सकता है.

चना मसाला को दही के साथ मिलाकर, दही वाले छोले बनाए जा सकते हैं, जो रोटी या चावल के साथ बहुत स्वादिष्ट लगते हैं. इसके आलावा पनीर की भुजी में बाकि मसलों के साथ छोला मसाला डालने पर एक बिलकुल अलग पंजाबी टेस्ट आ जायेगा.

सांभर मसाला से दाल बन जाये ढांबे की तड़का दाल

अब कौन है भला जो ढाबे की तड़का दाल नहीं खाना चाहेगा. ये बन तो जाएगी पर इसके लिए आपको सांभर मसाला यूज़ करना होगा. खूब सारा प्याज, टमाटर, अदरक, हरी मिर्च अपने मसलदानी के मसाले और 1 चम्मच सांभर मसाला. फिर देखिये कैसे पूरा घर उंगलिया चाट चाट कर दाल चट कर जायेंगे. इस तरह सांभर मसाला किसी भी दाल या सब्जी की करी में एक स्वादिष्ट और सुगंधित स्वाद जोड़ सकता है. इसके आलावा सांभर मसाला पकोड़े, भजिए, और अन्य स्नैक्स के लिए एक स्वादिष्ट मसाला के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

Ready to Mix Spices

Bollywood Tragedy : जब श्रीदेवी, दिव्या भारती, सुशांत सिंह की मौत पर उठे सवाल

Bollywood Tragedy : बॉलीवुड की चकाचौंध में आम एक्टर रातोंरात स्टार बन जाता है वहीं उनकी प्रसिद्धि के साथ कई अनकही बातें, गलतियां, गलत आदतें गॉसिप के रूप में  फैंस के बीच चर्चा का विषय बन जाती हैं.
आम जिंदगी जीने वाले ये स्टार्स अचानक ही इतने प्रसिद्ध हो जाते हैं कि उनसे जुड़ी हर खबर न्यूज बन जाती है. हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है उनसे जुड़ी हर खबर को लोग जानना चाहते हैं. सोशल मीडिया हो या न्यूज चैनल या अखबार, इनके माध्यम से मिलने वाली हर जानकारी को दिलचस्पी से देखते, सुनते और पढ़ते हैं.

पर्सनल लाइफ हो जाती है सोशल

शोहरत, नाम और पैसा कमाने वाले ये स्टार्स एक समय बाद अपनी पर्सनल जिंदगी को न सिर्फ मिस करने लगते हैं, बल्कि लोगों से छुपाने भी लगते हैं, इन स्टार्स से जुड़ी छोटी सी बात भी बतंगड़ बन जाती है.
कभी-कभी ज्यादा प्रसिद्धि ,हाई प्रोफाइल लाइफस्टाइल, इन स्टार्स को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है जहां से वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं होता ठीक उसी तरह जैसे  तेज रोशनी के पीछे हमेशा घटाधोप अंधेरा होता है. हिट स्टार्स की लाइफ में भी जाने अनजाने में कई ऐसी बातें हो जाती हैं जो कई बार उन्हें गलत रास्ते पर ले जाती हैं. अपनी शान और हाई प्रोफाइल लाइफ को बरकरार रखने के चक्कर में कई मॉडल्स गलतियां कर बैठते हैं जैसे काम नहीं मिलने पर या रिलेशनशिप में फेल्योर की वजह से या किसी और कारण से पंखे से लटक कर या छत से कूद कर आत्महत्या तक कर लेते हैं.  उन्हें अपनी मुश्किल से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता दिखाई देता है और वह रास्ता होता है मौत का रास्ता.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत का सच 

कई सितारे ऐसे भी होते हैं जिनकी अचानक मौत एक अनकही घटना बनकर सामने आती है पुलिस और कानून की नजर में जो आत्महत्या होती है जबकि उसके पीछे कई अनकहे राज छिपे होते हैं जिसके चलते उनके प्रशंसक और परिवार वाले उसे आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या या  योजनाबद्ध तरीके से गई साजिश मानते हैं. बॉलीवुड के यंग एक्टर सुशांत सिंह राजपूत इस बात का जीता जागता उदाहरण है , जिनकी मौत को पुलिस और कानून आत्महत्या मानती है जबकि उनके फैंस और परिवार वाले इसे पूरी तरह हत्या मानते हैं. आज इतने सालों बाद भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर संशय बना हुआ है और उनके परिवार वाले आज भी अदालत के दरवाजे पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं.

बॉलीवुड में हर साल कई मॉडल और स्टार्स आत्महत्या के नाम पर मौत के घाट उतर जाते हैं लेकिन उनकी मौत आत्महत्या है, हत्या है, या हादसा है, यह राज बन कर रह जाती है. कई बार यह राज उनकी मौत के साथ ही दफन हो जाता है . सुशांत सिंह राजपूत के अलावा भी कई स्टार्स की डेथ एक मिस्ट्री की तरह देखा जाता है . ऐसी घटनाओं पर एक नजर …

 सितारे जो संशय भरी मौत के साथ दुनिया को अलविदा कह गए

बॉलीवुड में कई ऐसे सितारे हुए हैं जिनकी अचानक मौत ने सबको निशब्द कर दिया, साथ ही मन में एक शक पैदा कर गया कि इनकी मौत नेचुरल थी या साजिश जैसे 2005 में  हीरोइन परवीन बॉबी की उनके  मुंबई स्थित फ्लैट में मौत हुई और दो दिन तक उनकी लाश घर में ही सड़ती रही तो कानून ने इसे नेचुरल डेथ बताया लेकिन परवीन बॉबी के चाहने वाले इस बात को मानने को तैयार नहीं थे.

इसी तरह मॉडल एक्ट्रेस जिया खान जिन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ ‘निशब्द’ फिल्म में काम किया था और आमिर खान के साथ गजनी, अक्षय कुमार के साथ हाउसफुल जैसी हिट फिल्में दे चुकी थी वह अचानक 2013 में अपने घर में पंखे से लटक कर मृत पाई गईं , पहले सभी ने इसे आत्महत्या का नाम दिया लेकिन बाद में जिया खान के सुसाइड नोट के ओपन होने के बाद इस घटना का रुख बदल गया और जिया खान के प्रेमी सूरज पंचोली शक के दायरे में आ गए और पुलिस में उनको गिरफ्तार कर लिया. कोई सबूत न मिलने की वजह से सूरज पंचोली 2023 में जिया खान के मर्डर केस से रिहा हो गए .

90 के दशक में 18 वर्षीय खूबसूरत हीरोइन दिव्या भारती अपने घर की बालकनी से गिर कर मर गईं. पुलिस के अनुसार दिव्या भारती ने शराब पी हुई थी इसलिए उन्होंने अपना बैलेंस खो दिया और वह नीचे गिर गई लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वह भी किसी साजिश का शिकार थी. उन दिनों बॉलीवुड पर अंडरवर्ल्ड का खौफ छाया हुआ था.

बॉलीवुड की मोस्ट टैलेंटेड और खूबसूरत हीरोइन श्रीदेवी दुबई में एक शादी अटेंड करने गई थी वहां पर अपने होटल के बाथटब में वह मृत पाई गई, पुलिस ने इस मौत को जहां शराब की वजह से कार्डियक अटैक बताया, चहीं श्रीदेवी के जान पहचान वालों ने इसे एक्सीडेंट नहीं हत्या बताया, श्रीदेवी की एक करीबी दोस्त ने पिछले दिनों में इस केस को फिर से ओपन कराया है ताकि उनकी दोस्त श्रीदेवी को सही न्याय मिल सके. श्री देवी की मौत की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है, उनकी मौत के पीछे कई सारे कारणों को हाइलाइट किया गया है जैसे उनके नाम पर करोड़ों का लाइफ इंश्योरेंस का होना, श्री देवी की मौत के पीछे अंडरवर्ड का हाथ होना आदि

हर साल फिल्म इंडस्ट्री और टीवी इंडस्ट्री के कई कलाकार बिना किसी ठोस वजह के आत्महत्या या एक्सीडेंट के नाम पर मृत करार दिए जाते हैं जबकि यह संशय बना रहता है कि इन आकस्मिक मौतों के जिम्मेदार वह खुद है या इसके पीछे किसी ओर का हाथ या साजिश है.
कहते हैं बिना सबूत के सच को सच नहीं कहा जा सकता अर्थात सच को भी सबूत की जरूरत होती है , अगर सबूत नहीं है तो सच सामने नहीं आ पाता है. कानून की किताबों में कम से कम इसी को सच माना जाता है. सच का पता लगाने वाले पुलिस और सीआईडी भी शक की कगार पर खड़े हैं क्योंकि यहां कुछ लोगों के इमान पैसों के लिए बिक जाते हैं, इमानदारी तो बहुत दूर की बात है.
एक समय था जब मीडिया का खौफ लोगों पर बना रहता था क्योंकि सजा और बदनामी को झेलने की ताकत किसी में नहीं होती थी.  एक बार एक नामचीन न्यूजपेपर को एक प्रसिद्ध सेलिब्रिटी ने अपनी खबर न छापने के लिए ब्लैंक चेक दिया यह कह कर कि उस पेपर का एडिटर चाहे जितनी रकम भर ले लेकिन उस अमीर आदमी की न्यूज़ किसी भी हाल में ना छापे. उस न्यूज पेपर के संपादक ने दूसरे दिन वह ब्लैक चेक की फोटो ही अपने अखबार में छाप दिया. लेकिन आज मामला उल्टा है मीडिया का नाम बहुत ज्यादा खराब हो चुका है कई लोगों का मानना है मीडिया भी चंद पैसों के लिए बिक चुकी है . जिसके चलते हाई प्रोफाइल लोगों को बचाने के लिए हत्या को आत्महत्या बताया जा रहा है और सबूत न होने की वजह से कानून भी कुछ नहीं कर पाता. Bollywood Tragedy

Hindi Fictional Story: गिरफ्त- क्या सुशांत को आजाद करा पाई शोभा

Hindi Fictional Story: मनीषा को सामान रखते देख कर प्रिया ने पूछ ही लिया, ‘‘तो क्या, कर ली अजमेर जाने की पूरी तैयारी?’’

‘‘अरे नहीं, पूरी कहां, बस जो सामान बिखरा पड़ा है उसे ही समेट रही हूं. अभी तो एक बैग ले कर ही जाऊंगी, जल्दी वापस भी तो आना है.’’

‘‘वापस,’’ प्रिया यह सुन कर चौंकी थी, ‘‘तो क्या अभी रिजाइन नहीं कर रही हो?’’

‘‘नहीं.’’

मनीषा ने जोर से सूटकेस बंद किया और सुस्ताने के लिए बैड पर आ कर बैठ गई थी.

‘‘बहुत थक गई हूं यार, छोटेछोटे सामान समेटने में ही बहुत टाइम लग जाता है. हां, तो तू क्या कह रही थी. रिजाइन तो मैं बाद में करूंगी, पहले पुणे में जौब तो मिल जाए.’’

‘‘अरे, मिलेगी क्यों नहीं, सुशांत जीजान से कोशिश में लग जाएगा, अब तुझे वह यहां थोड़े ही रहने देगा,’’ प्रिया ने उसे छेड़ा था और मनीषा मुसकरा कर रह गई.

मनीषा और प्रिया इस महिला हौस्टल में रूममेट थीं और दोनों यहां गुरुग्राम में जौब कर रही थीं. मनीषा की शादी अगले महीने होनी तय हुई थी, इसलिए वह छुट्टी ले कर जाने की तैयारी में थी.

‘‘बाय द वे,’’ प्रिया ने उसे फिर छेड़ा था, ‘‘तू अब सुशांत के खयालों में उलझी रह और अपनी पैकिंग भी करती रह, मैं नीचे जा रही हूं. क्या तेरे लिए कौफी ऊपर ही भिजवा दूं? अरे मैडम, मैं आप ही से कह रही हूं.’’ प्रिया ने उसे झकझोरा था.

‘‘हां…हां, सुन रही हूं न, कौफी के साथ कुछ खाने के लिए भी भेज देना, मुझे तो अभी पैकिंग में और समय लगेगा,’’ मनीषा बोली.

‘‘मैं सोच रही हूं कि आज रीना के कमरे में ही डेरा जमाऊं, कुछ काम भी करना है लैपटौप पर,’’ प्रिया बोली.

‘‘हां…हां…जरूर,’’ मनीषा के मुंह से निकल ही गया था.

‘‘वह तो तू कहेगी ही, अच्छा है रात को सुशांत से अकेले में आराम से चैट करती रहना.’’ मैं चली. हां, यह जरूर कह देना कि यह सब प्रिया की मेहरबानी से संभव हुआ है.’’

‘‘अरे हां, सब कहूंगी,’’ मनीषा हंस पड़ी थी. प्रिया के जाने के बाद उस ने बचा हुआ सामान समेटा और सोचने लगी, ‘चलो, अब ठीक है. छुट्टी के बाद ही लौटेंगे तो कम से कम सामान तो पैक ही मिलेगा.’

हाथमुंह धो कर उस ने कपड़े बदले. तब तक प्रिया ने कौफी के साथ कुछ सैंडविच भी भिजवा दिए थे. कौफी पी कर वह कमरे के बाहर बनी छोटी सी बालकनी में आ गई थी.

शाम को अंधेरा बढ़ने लगा था पर नीचे बगीचे में लाइट्स जल रही थीं जिस से वातावरण काफी सुखद लग रहा था. झिलमिलाती रोशनी को देखते हुए वह बालकनी में ही कुरसी खींच कर बैठ गई थी.

तो आखिर शादी तय हो ही गई थी उस की. सुशांत को याद करते ही पता नहीं कितनी यादें दिलोदिमाग पर छाने लगी थीं.

पता नहीं उस के साथ लंबे समय तक क्या होता रहा. पापा ने कई लड़के देखे, कहीं लड़का पसंद नहीं आया तो कहीं दहेज की मांग, तो किसी को लड़की सांवली लगती.

चलचित्र की तरह सबकुछ आंखों के सामने घूमने लगा था. हां, रंग थोड़ा दबा हुआ जरूर था उस का पर पढ़ाई में तो वह शुरू से ही अव्वल रही. इंजीनियरिंग कर के एमबीए भी कर लिया. अच्छी नौकरी मिल गई. फिर आत्मनिर्भर होते ही व्यक्तित्व में भी तो निखार आ ही जाता है.

अब तो हौस्टल की दूसरी लड़कियां भी कहती हैं, ‘अरे, रंग कुछ दबा हुआ है तो क्या, पूरी ब्यूटी क्वीन है हमारी मनीषा.’

एकाएक उस के होंठों पर मुसकान खिल गई थी. सुशांत ने तो उसे देखते ही पसंद कर लिया था. फिर उस की मां और मौसी दोनों आईं और शगुन कर गईं.

अब तो 15 दिनों बाद सगाई और शादी दोनों एकसाथ ही करने का विचार था.

तय यह हुआ कि सुशांत का परिवार और रिश्तेदार 2 दिन पहले ही अजमेर पहुंच जाएं. पापा ने उन के लिए एक पूरा रिसौर्ट बुक करा दिया था. घर के रिश्तेदारों के लिए पास के एक दूसरे बंगले में ठहरने का इंतजाम था.

कल ही मां ने फोन पर सूचना दी थी, ‘मनी, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बस, अब तू छुट्टी ले कर आजा. घर पर तेरा ही इंतजार है.’

‘हां मां, आ तो रही हूं, परसों पहुंच जाऊंगी आप के पास,’ मां तो पता नहीं कब से पीछे पड़ी थीं.

‘बहुत कर ली नौकरी, अब घर आ कर कुछ दिन हमारे पास रह. शादी के बाद तो ससुराल चली ही जाएगी. और हां, लड़कियां शादी से पहले हलदीउबटन सब करवाती हैं. तू भी ब्यूटी पार्लर जा कर यह सब करवाना.’

‘चली जाऊंगी मां, 15 दिन बहुत होते हैं अपना हुलिया संवारने को,’ मनीषा बोली.

उस ने बात टाली थी. पर मां की याद आते ही बहुत कुछ घूम गया था दिमाग में. एक माने में मां की बात सही भी थी, अपनी पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में वह काफी समय घर से बाहर ही रही. और अब शादी कर के घर से दूर हो जाएगी तो वे भी चाहती हैं कि बेटी कुछ दिन उन के पास भी रह ले. चलो, अब मां भी खुश हो जाएंगी. कह भी रही थीं कि मेरी पसंद के सारे व्यंजन बना कर खिलाएंगी मुझे.

‘अरे मां, अब तो मैं ज्यादा तलाभुना खाना भी नहीं खाती हूं.’

‘हां…हां, पता है. पर यहां तेरी मनमानी नहीं चलेगी, समझी,’ मां ने उसे प्यारभरी फटकार लगाई.

‘अरे, फोन बज रहा है,’ कमरे में रखा उस का मोबाइल बज रहा था. लो, मां को याद किया तो उन का फोन भी आ गया. इसी को शायद टैलीपैथी कहते हैं. वह तेजी से अंदर गई. अरे, यह तो सुशांत का फोन है, पर इस समय कैसे. अकसर उस का फोन तो रात 10 बजे के बाद ही आता था और अगर पास में प्रिया सो रही हो तो वह बाहर बालकनी में बैठ कर आराम से घंटे भर बातें करती थी पर इस समय, वह चौंकी थी.

‘‘हां सुशांत, बस, मैं कल निकल रही हूं अजमेर के लिए, थोड़ाबहुत सामान पैक किया है,’’ मोबाइल उठाते ही उस ने कहा था.

‘‘मनीषा, मैं ने इसीलिए तुम्हें फोन किया था कि तुम अब अपना प्रोग्राम बदल देना, देखो, अदरवाइज मत लेना पर मैं ने बहुत सोचा है और आखिर इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि मैं अभी शादी नहीं कर पाऊंगा इसलिए…’’

‘‘क्या कह रहे हो सुशांत? मजाक कर रहे हो क्या?’’ मनीषा समझ नहीं पा रही थी कि सुशांत कहना क्या चाह रहा है.

‘‘यह मजाक नहीं है मनीषा, मैं जो कुछ कह रहा हूं, बहुत सोचसमझ कर कह रहा हूं. अभी मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि शादी कर सकूं.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो सुशांत, हम लोग सारी बातें पहले ही तय कर चुके हैं और अच्छीखासी जौब है तुम्हारी. फिर मैं भी जौब करूंगी ही. हम लोग मैनेज कर ही लेंगे और हां, यह तो सोचो कि शादी की सारी तैयारियां हो चुकी हैं. पापा ने वहां सारी बुकिंग करा दी है. कैटरिंग, हलवाई सब को एडवांस दिया जा चुका है.’’

‘‘तभी तो मैं कह रहा हूं…’’ सुशांत ने फिर बात काटी थी, ‘‘देखो मनीषा, अभी तो टाइम है, चीजें कैंसिल भी हो सकती हैं और फिर शादी के बाद तंगी में रहना कितना मुश्किल होगा. इच्छा होती है कि हनीमून के लिए बाहर जाएं. बढि़या फ्लैट, गाड़ी सब हों, मैं ने तुम्हें बताया था न कि मेरी एक फ्रैंड है शोभा, उस से मैं अकसर राय लेता रहता हूं. उस का भी यही कहना है, चलो, तुम्हारी उस से भी बात करा दूं. वह यहीं बैठी है.’’

शोभा, कौन शोभा. क्या सुशांत की कोई गर्लफ्रैंड भी है. उस ने तो कभी बताया नहीं… मनीषा के हाथ कांपने लगे. तब तक उधर से आवाज आई. ‘‘हां, कौन, मनीषा बोल रही हैं, हां, मैं शोभा, असल में सुशांत यहीं हमारे घर में पेइंगगैस्ट की तरह रह रहे हैं, तुम्हारा अकसर जिक्र करते रहते हैं. फोटो भी दिखाया था तुम्हारा. बस, शादी के नाम पर थोड़े परेशान हैं कि अभी मैनेज नहीं हो पाएगा. अपने घरवालों से तो कहने में हिचक रहे थे तो मैं ने ही कहा कि तुम मनीषा से ही बात कर लो. वह समझदार है, तुम्हारी तकलीफ समझेगी.’’

मनीषा तो जैसे आगे कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. कौन है यह शोभा और सुशांत क्यों इसे सारी बातें बताता रहा है. उस का माथा भन्नाने लगा. ‘‘देखिए, आप सुशांत को फोन दें.’’

‘‘हां सुशांत, तुम अपने घरवालों से बात कर लो.’’

‘‘पर मनीषा…’’ सुशांत कह रहा था, पर मनीषा ने तब तक मोबाइल बंद कर दिया था. 2 बार घंटी बजी थी, पर उस ने फोन उठाया ही नहीं.

‘ओफ, क्या सोचा था और क्या हो गया. अब वह क्या करे. सुहावने सपनों का महल जैसे भरभरा कर गिर गया. अब अजमेर जा कर मांपापा से क्या कहेगी,’ उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था.

मोबाइल की घंटी लगातार घनघना रही थी. नहीं, उसे अब सुशांत से कोई बात नहीं करनी और वह गर्लफैंड. वह खुद को बुरी तरफ अपमानित अनुभव कर रही थी. कहां तो अभी इतनी तेज भूख लग रही थी, लेकिन अब भूखप्यास सब गायब हो गई थी. कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था कि अब क्या करे? मांपापा को फोन पर तो यह सब बताना ठीक नहीं रहेगा, वे लोग घबरा जाएंगे. मां तो वैसे ही ब्लडप्रैशर की मरीज हैं.

और उसे यह भी नहीं पता कि आखिर वह शोभा है कौन? सुशांत उस के कहने भर से शादी स्थगित कर रहा है या फिर शादी के लिए मना ही कर रहा है.

ठीक है, उसे भी ऐसे आदमी के साथ जिंदगी नहीं बितानी है, अच्छा हुआ अभी सारी बातें सामने आ गईं और उस ने नौकरी से अभी रिजाइन नहीं दिया वरना मुश्किल हो जाती.

पर चारों तरफ सवाल ही सवाल थे और वह कोईर् उत्तर नहीं खोज पा रही थी. रोतेरोते उस की आंखें सूज गई थीं.

‘नहीं, उसे कमजोर नहीं पड़ना है, जब उस की कोई गलती ही नहीं है तो वह क्यों हर्ट हो,’ यह सोच कर वह उठी ही थी कि मोबाइल की घंटी फिर बजने लगी थी. सुशांत का ही फोन होगा. अब फोन मुझे स्विचऔफ करना होगा, यह सोच कर उस ने मोबाइल उठाया. पर यह तो सरलाजी थीं, सुशांत की मां. अब ये क्या कह रही हैं.

उधर से आवाज आ रही थी, ‘‘हां, मनीषा बेटी, मैं हूं सरला.’’

‘‘हां, आंटी,’’ बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी रुंधि हुई आवाज को रोका.

‘‘बेटी, यह मैं क्या सुन रही हूं, अभीअभी सुशांत का फोन आया था. अरे बेटे, शादी क्या कोई मजाक है. क्यों मना कर रहा है वह. उस के पापा तो इतने नाराज हुए कि उन्होंने उस का फोन ही काट दिया. अब पता नहीं यह शोभा कौन है और क्यों वह इस के बहकावे में आ रहा है, पर बेटी, मेरी तुम से विनती है, तुम एक बार बात कर के उसे समझाओ.’’

‘‘आंटी, अब मैं क्या कर सकती हूं,’’ मनीषा ने अपनी मजबूरी जताते हुए कहा.

‘‘बेटा, तू तो बहुत कुछ कर सकती है, तू इतनी समझदार है, एक बार बात कर उस से. अब हम तो तुझे अपनी बहू मान ही चुके हैं.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं देखूंगी,’’ कह कर मनीषा ने मोबाइल स्विचऔफ कर दिया था. अब नहीं करनी उसे किसी से भी बात. अरे, क्या मजाक समझ रखा है. बेटा कुछ कहता है तो मां कुछ और, और मैं क्यों समझाऊं किसी को. मैं ने क्या कोई ठेका ले रखा सब को सुधारने का, मनीषा का सिरदर्द फिर से शुरू हो गया था, रातभर वह सो भी नहीं पाई.

फिर सुबहसुबह उठ कर बालकनी में आ गई. अभी सूर्योदय हो ही रहा था. ‘नहीं, कुछ भी हो उसे उस शोभा को तो मजा चखाना ही है, भले ही यह शादी हो या नहीं, पर यह शोभा कौन होती है अड़ंगे लगाने वाली. वह एक बार तो बेंगलुरु जाएगी ही,’ सोचते हुए उस ने मोबाइल से ही बेंगलुरु की फ्लाइट का टिकट बुक करा लिया था. फिर तैयार हो कर उस ने सुशांत को फोन कर दिया, वह अब औफिस आ चुका था.

‘‘मैं बेंगलुरु आ रही हूं, तुम से तुम्हारे औफिस में ही मिलूंगी.’’

‘‘अच्छा, पर…’’

‘‘पहुंच कर बात करते हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया था.

एकाएक यह कदम उठा कर उस ने ठीक भी किया है या नहीं, यह वह अब तक समझ नहीं, पा रही थी, पर जो भी हो फ्लाइट का टिकट तो बुक हो ही चुका है, पर बेंगलुरु में ठहरेगी कहां. एकाएक उसे अपनी सहेली विशु याद आ गई. हां, विशु बेंगलुरु में ही तो जौब कर रही है. उसे फोन लगाया, ‘‘अरे मनीषा, व्हाट्स सरप्राइज…पर तू अचानक…’’ विशु भी चौंक गई थी.

‘‘बस, ऐसे ही, औफिस का एक काम था, तो सोचा कि तेरे ही पास ठहर जाऊंगी, तुम वहीं हो न.’’

‘‘हां, हूं तो बेंगलुरु में, पर अभी किसी काम से मुंबई आई हुई हूं, कोई बात नहीं, मां है वहां, तू घर पर ही रुकना. तू पहले भी तो मां से मिल चुकी है, तो उन्हें भी अच्छा लगेगा. मुझे तो अभी हफ्ताभर मुंबई में ही रुकना है.’’

‘‘ठीक है, मैं आती हूं, वहां पहुंच कर तुझे फोन करूंगी.’’

फिर उस ने मां को अजमेर फोन कर के कह दिया कि अभी छुट्टी मिल नहीं पा रही है, 2 दिनों बाद आ पाऊंगी.

बेंगलुरु पहुंचतेपहुंचते शाम हो गई थी. सुशांत औफिस में ही उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘अचानक कैसे प्रोग्राम बन गया,’’ उसे देखते ही सुशांत बोला था.

मनीषा ने किसी प्रकार अपने गुस्से पर काबू रखा और कहा, ‘‘बस…शादी नहीं हो रही तो क्या, दोस्त तो हम हैं ही, सोचा कि मिल कर बात कर लेती हूं कि आखिर वजह क्या है शादी टालने की, फिर मुझे कुछ काम भी था बेंगलुरु में तो वह भी हो जाएगा.’’ आधा सच, आधा झूठ बोल कर उस ने बात खत्म की.

‘‘हांहां, चलो, पहले कहीं चल कर चायकौफी पीते हैं, तुम थकी हुई होगी.’’ कौफी शौप में कौफी पी कर बाहर निकले तो सुशांत ने कहा, ‘‘मैं ने शोभा को भी फोन कर दिया था तो वह घर पर हमारा इंतजार कर रही है, पहले घर चलें.’’

‘शोभा…पहले इस शोभा को ही देखा जाए,’ वह मन ही मन सोचते हुए मनीषा ने कहा, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो,’’ कहते हुए मनीषा के शब्द भी लड़खड़ा गए थे.

औफिस घर के पास ही था, घर के बाहर लौन में शोभा इंतजार करती मिली उन दोनों का.

‘‘आइए, आइए,’’ गेट पर खड़ी महिला को देख कर मनीषा चौंकी, तो यह है शोभा, यह तो

40-45 साल की होगी, हां, बनावशृंगार कर के खुद को चुस्त बना रखा है, पर यह सुशांत की फ्रैंड कैसे बनी, उस का दिमाग फिर चकराने लगा था.

‘‘मनीषा, यह है शोभा, बहुत खयाल रखती है मेरा, बेंगलुरु जैसे शहर में एक तरह से इस पर ही निर्भर हो गया हूं मैं.’’

‘‘हांहां, अंदर तो चलो,’’ शोभा कह रही थी. अंदर सीधे वह डाइनिंग टेबल पर ही ले गई. कौफीनाश्ता तैयार था. शोभा ने बातचीत भी शुरू की, ‘‘मनीषा, असल में सुशांत काफी परेशान थे कि तुम्हें कैसे मना करें शादी के लिए, क्योंकि तैयारी तो सब हो चुकी होगी, पर अभी शादी के लिए सुशांत खुद को तैयार नहीं कर पा रहे थे. तो मैं ने ही इन से कहा कि तुम मनीषा से बात कर लो, वह सुलझी हुई लड़की है. तुम्हारी प्रौब्लम जरूर समझेगी. असल में ये तुम्हारी सारी बातें मुझे बताते रहते थे तो मैं भी तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जान गई थी,’’ कह कर शोभा थोड़ी मुसकराई.

मनीषा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला और फिर बोली, ‘‘शोभाजी, मैं बस 2 दिनों के लिए आई हूं और अपनी एक फ्रैंड के यहां रुकी हूं. मैं चाहती हूं कि मैं और सुशांत बाहर जा कर कुछ बात कर लें, अगर आप चाहें तो.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, खाना खा कर जाना, खाना तैयार है.’’ फिर शोभा ने सुशांत की तरफ देखा था, ‘‘तुम्हारी पसंद की चिकनबिरयानी बनाई है, अगर मनीषा को नौनवेज से परहेज हो तो कुछ और…’’

‘‘नहींनहीं, हम लोग बाहर ही खा लेंगे, चलते हैं,’’ कह कर मनीषा उठ गई तो सुशांत को भी खड़ा होना पड़ा. उधर, मनीषा सोच रही थी कि सुशांत तो कहता था कि वह तो नौनवेज खाता ही नहीं है, फिर… पर हां, यह तो समझ में आ ही गया कि अच्छा खाना खिला कर सुशांत को फुसलाया जा रहा है.

शोभा का मुंह उतर गया था, पर मनीषा सुशांत को ले कर बाहर आ गई. ‘‘कहां चलें?’’ सुशांत ने मनीषा से पूछा.

‘‘कहीं भी, तुम तो इतने समय से बेंगलुरु में रह रहे हो, तुम्हें तो पता ही होगा कि कहां अच्छे रैस्तरां हैं. वैसे, अभी मुझे खाने की कोई इच्छा नहीं है, इसलिए पहले कहीं गार्डन में बैठते हैं.’’

कुछ देर पास में बगीचे में पड़ी बैंच पर ही दोनों बैठ गए.

मनीषा ने ही बात शुरू की, ‘‘हां, अब बताओ, क्या कह रहे थे तुम शोभाजी के बारे में.’’

फिर सुशांत ने जो कुछ बताया, मनीषा चुपचाप सुनती रही. पता चला कि शोभा के पति विदेश में हैं. यहां वह अपने 2 बच्चों के साथ रह रही है. बच्चे पढ़ रहे हैं. सुशांत से शोभाजी को बहुत सहारा है. सुशांत उस की आर्थिक मदद भी कर रहा है. बातों ही बातों में मनीषा समझ गई थी कि सुशांत से काफी पैसा शोभाजी ने उधार भी ले रखा है. इसलिए सोच रही होगी कि ऐसे मुरगे को आसानी से कैसे जाने दें.

‘‘बहुत खयाल रखती है शोभा मेरा,’’ सुशांत बारबार यही कह रहा था.

‘‘देखो सुशांत, हो सकता कि शोभाजी जैसा बढि़या खाना मैं तुम्हें बना कर न खिला सकूं, पर फिर भी कोशिश करूंगी.’’  मनीषा ने मजाक किया तो सुशांत चौंक गया, ‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ सुशांत ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘पुणे वाली जौब के लिए अप्लाई कर दिया था न तुम ने?’’

‘‘वह…मैं कर ही रहा था पर शोभा ने मना कर दिया कि अभी रहने दो.’’

‘‘हां, क्योंकि अभी शोभाजी को तुम्हारी जरूरत है,’’ न चाहते हुए भी मनीषा के मुंह से निकल ही गया. सुशांत अवाक था.

उधर, मनीषा कहे जा रही थी, ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा, पर एक बात जरूर कहूंगी कि शोभाजी कभी भी तुम्हें बेंगलुरु से बाहर नहीं जाने देंगी, क्योंकि तुम जरूरत हो उन की. तुम्हारा इतना पैसा उन के बच्चों की पढ़ाई पर लगा है. अब तुम्हें जो करना है करो. अगर सोच सको तो शोभाजी के बारे में न सोच कर अपना हित सोचो. शोभाजी क्या, उन्हें और पेइंगगैस्ट मिल जाएंगे. बेंगलुरु में तो ऐसे बहुत लोग होंगे.’’

सुशांत एकदम चुप था.

‘‘चलो, अब खाना खाते हैं, फिर मुझे मेरी फ्रैंड के यहां छोड़ देना,’’ मनीषा ने बात खत्म की.

‘‘अभी तो तुम रुकोगी?’’

‘‘हां, कल शाम को मिलते हैं, फिर रात को मेरी फ्लाइट है, बस जो कुछ मैं ने कहा है, उस पर विचार करना. अब तक मनीषा ने अपनेआप को काफी संयत कर लिया था. उसे जो कहना था कह दिया. अब सुशांत जो चाहे करे पर वह इतना कमजोर इंसान होगा, इस की उस ने कल्पना नहीं की थी.’’

दूसरे दिन सुशांत सुबह ही उसे लेने आ गया था, ‘‘मैं तो रातभर सो ही नहीं पाया मनीषा, और आज औफिस से मैं ने छुट्टी ले ली है. आज पूरा दिन मैं तुम्हारे साथ ही बिताऊंगा और हां, रात को ही पुणे की पोस्ट के लिए भी मैं ने अप्लाई कर दिया है.’’

उस की बातें सुन कर मनीषा भी आश्चर्यचकित थी.

फिर रास्ते में ही सुशांत ने कहा, ‘‘मैं रातभर तुम्हारी बातों पर ही विचार करता रहा. शायद तुम ठीक ही कह रही हो. मैं आज मां से भी बात करता हूं. शादी की तारीख वही रहने दो…’’

‘‘नहीं सुशांत,’’ मनीषा ने उसे रोक दिया.

‘‘इतनी जल्दी भी नहीं है. तुम खूब सोचो और पुणे जा कर फिर मुझ से बात करना, अभी तो मैं भी शादी की डेट आगे बढ़ा रही हूं. जब तुम अपने भविष्य के बारे में सुनिश्चित हो जाओ, तभी हम बात करेंगे शादी की.’’

‘‘पर मनीषा…मैं…’’

‘‘हां, हम बात तो करते रहेंगे न, आखिर दोस्त तो हम हैं ही. कुछ जरूरत हो तो पूछ लेना मुझ से.’’

पूरा दिन सुशांत के साथ ही गुजरा, एअरपोर्ट पहुंच कर फिर उस ने कहा था, ‘‘तुम मेरा इंतजार तो करोगी न…’’

‘‘हां, क्यों नहीं…’’ कह कर मनीषा हंस पड़ी थी.

प्लेन के टेकऔफ करते ही वह अपनेआप को हलका महसूस कर रही थी. भविष्य में जो भी हो, पर फिलहाल शोभाजी की गिरफ्त से तो उस ने सुशांत को आजाद करा ही दिया.

Hindi Fictional Story

Hindi Emotional Story: सूनी मांग का दर्द

Hindi Emotional Story: कितने बरसों बाद आज किसी ने उस के नाम की टेर दी थी. उस के हाथ आटे से सने हुए थे इसलिए वहीं से उस ने नौकरानी को आवाज दी, ‘‘चम्पा, देख कौन आया है.’’

थोड़ी ही देर में चंपा उस के पास आ कर बोली, ‘‘बाईजी, कोई तरुण आए हैं.’’

‘‘तरुण….’’ वह हतप्रभ रह गई. शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. उस ने फिर पूछा, ‘‘तरुण कि अरुण…’’

‘‘कुछ ऐसा ही नाम बताया बाईजी.’’

वह ‘उफ’ कर रह गई. लंबी आह भर कर उस ने सोचा, बड़ा अंतर है तरुण व अरुण में. एक वह जो उस के रोमरोम में समाया हुआ है और दूसरा वह जो बिलकुल अनजान है….फिर सोचा, अरुण ही होगा. तरुण नाम का कोई व्यक्ति तो उसे जानता ही नहीं. यह खयाल आते ही उस का रोमरोम पुलकित हो उठा. तुरंत हाथ धो कर वह दौड़ती हुई बाहर पहुंची, देखा तो अरुण नहीं था.

‘‘आप अर्पणा हैं न?’’ आने वाले पुरुष के शब्द उस के कानों में पडे़.

‘‘जी…’’

‘‘मैं अरुण का दोस्त हूं तरुण.’’

मन में तो उस के आया, कह दे कि तुम ने ऐसा नाम क्यों रखा, जिस से अरुण का भ्रम हो लेकिन प्रत्यक्ष में होंठों पर मुसकराहट बिखेरते हुए बोली, ‘‘आइए, अंदर बैठिए…चाय तो लेंगे,’’ और बिना उस के जवाब की प्रतीक्षा किए अंदर चली गई.

चाय की केतली गैस पर रखी तो यादों का उफान फिर उफन गया. कैसा होगा अरुण….उसे याद करता भी है…जरूर करता होगा, तभी तो उस ने अपने दोस्त को भेजा है. कोई खबर तो लाया ही होगा…तभी चाय उफन गई. उस ने जल्दी गैस बंद की और चाय ले कर बैठक में आ गई.

‘‘आप ने व्यर्थ कष्ट किया. मैं तो चाय पी कर आया था.’’

‘‘कष्ट कैसा, आप पहली बार तो मेरे घर आए हैं.’’

तरुण चुपचाप चाय की चुस्कियां भरने लगा. उस की खामोशी अपर्णा को अंदर से बेचैन कर रही थी कि कुछ बताए भी…कैसा है अरुण? कहां है? कैसे आना हुआ?

यही हाल तरुण का था, बोलने को बहुत कुछ था लेकिन बात कहां से शुरू की जाए, तरुण कुछ सोच नहीं पा रहा था. आखिर अपर्णा ने ही खामेशी तोड़ी, ‘‘अरुण कैसे हैं? ’’

‘‘उस का एक्सीडेंट हो गया है….’’

‘‘क्या?’’ अपर्णा की चीख ही निकल गई.

‘‘अभी 2 हफ्ते पहले वह फैक्टरी से घर जा रहा था कि अचानक उस की कार के सामने एक बच्चा आ गया. बच्चे को बचाने के लिए उस ने जैसे ही कार दाईं ओर मोड़ी कि उधर से आते ट्रक से एक्सीडेंट हो गया.’’

‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’

‘‘बड़ा भयंकर एक्सीडेंट था. उसे देख कर रोंगटे खडे़ हो गए थे. ट्रक से टकरा कर कार नीचे खड्डे में जा गिरी थी. पेट में गहरा घाव है. सिर किसी तरह बच गया पर अभी भी बेहोशी छाई रहती है.’’

‘‘मुझे खबर नहीं दी?’’

‘‘खबर कौन देता? अरुण के डैडी को आप के नाम से चिढ़ है. अरुण पर उन्होंने कितनी बंदिशें नहीं लगाईं, कितनी डांट उसे नहीं पिलाई, फिर भी वह आप को नहीं भुला सका. रातरात भर आप की याद में तड़पता रहा. आप को तो पता ही होगा कि ठाकुर साहब अरुण की शादी टीकमगढ़ के राजघराने में करना चाहते थे. बात भी तय हो गई थी लेकिन अरुण ने साफ मना कर दिया. ठाकुर साहब का पारा चढ़ गया. उन्होंने छड़ी उठा ली और उसे भयंकर ढंग से पीटा लेकिन उस ने ‘उफ’ तक न की.

‘‘यह देख कर भी ठाकुर साहब अपनी जिद पर अटल रहे. लोगों ने उन्हें बहुत समझाया कि बेटे की शादी उस की मरजी से कर दें लेकिन वे सहमत नहीं हुए और एक दिन उन्होंने यहां तक कह दिया कि अरुण ने उन की मरजी के बगैर शादी की तो वे अपने आप को गोली मार लेंगे.

‘‘अरुण इस बात से डर गया. वह आप को खत भी न लिख सका क्योंकि वह जानता था कि डैडी अपने वचन के पक्के हैं. यदि ऐसा हो गया तो वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. दिन ब दिन उस की हालत पतली होती गई. वह आप के गम में आंसू बहाता रहा. उस दिन अस्पताल में अचेतावस्था में उस के होंठों पर जब मैं ने आप का नाम सुना तो मुझे लगा कि आप ही उसे मौत के मुंह से बचा सकती हैं. मेरे दोस्त को बचा लीजिए,’’ इतना कहते ही उस का गला रुंध गया. आंखें छलछला आईं.

इस दुखद वृत्तांत ने अपर्णा का अंतस बेध दिया. वह गहरीगहरी सांसें भरने लगी. मन में धुंधली यादें ताजा हो आईं, अतीत कचोट गया. किन कठिन परिस्थितियों में उसे घर छोड़ना पड़ा, रिश्तेदारों से नाता तोड़ना पड़ा और परिचितों, सहेलियों से मुख मोड़ना पड़ा. कहांकहां नहीं भटकी वह, लेकिन अरुण की याद भुला न सकी. प्रेम का दीपक उस के अंदर सदैव जलता रहा और आज वह उस से अलग होना चाहता है, नहीं वह ऐसा कभी भी नहीं होने देगी. यदि उसे अपने जीवन की कुरबानी भी देनी पडे़ तो वह देगी.

बेशक, उस की शादी अरुण से नहीं हो सकी, लेकिन उस के नाम के साथ उस का नाम जुड़ा तो है. यह सोचते ही उस की आंखें छलछला आईं.

तभी खामोशी को तोड़ता हुआ तरुण बोला, ‘‘अच्छा अपर्णाजी, चलता हूं. आज ही शाम को छतरपुर जाना है, आप तैयार रहिएगा.’’

वह चुप ही रही…‘हां’, ‘न’ उस के मुख से कुछ नहीं निकल सका और तरुण हवा के तेज झोंके सा बाहर निकल गया. अतीत की परछाइयों ने फिर उसे समेट लिया. एकएक लम्हा उसे कुरेदता गया.

कालिज के दिनों में उस का साथ अरुण से हुआ था. अरुण उस की कक्षा का मेधावी छात्र था. दोनों की सीट पासपास थीं इसलिए उन में अकसर किसी विषय पर बहस हो जाया करती थी. अरुण के तर्क इतने सटीक होते थे कि वह परास्त हो जाती. हार की पीड़ा उस के अंदर छटपटाती रहती. वह पूरी कोशिश कर मंजे तर्क उस के सामने रखती, लेकिन वह उतनी ही कुशलता से उस के तर्क काट देता. तर्कवितर्क का यह सिलसिला प्रेम में परिणीत हो गया. दोनों घंटों बातों में मशगूल रहते और अपने प्रेम के इंद्रधनुषी पुल बनाते. कालिज के कैंपस से ले कर चौकचौराहों तक यह प्रेमजोड़ी चर्चित हो गई.

अपर्णा के पिता हरिशंकर उपाध्याय धार्मिक विचारों के थे, वे अध्यापक थे. उन के एक ही संतान थी अपर्णा और उसे वह उच्च से उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन बेटी के जमाने के साथ बदलते रंगों ने उन्हें तोड़ कर रख दिया.

उन्होंने अपर्णा को समझाते हुए कहा, ‘बेटी अपनी सीमा में रहो, जैसे इस परिवार की लड़कियां रही हैं. तुम्हारा इस तरह ठाकुर के लड़के के साथ घूमना मुझे बिलकुल पसंद नहीं.’

‘पिताजी, मैं उस से शादी करना चाहती हूं,’ अपर्णा ने जवाब दिया.

‘चुप नादान, तेरा रिश्ता उस से कैसे हो सकता है? वह क्षत्रिय है, हम ब्राह्मण हैं.’

‘लेकिन पिताजी, वह मुझ से शादी करने को तैयार है.’

‘उस के मानने से क्या होगा? जब तक कि उस के परिवार वाले न मानें. वह बहुत बडे़ आदमी हैं बेटी, उन्हें यह रिश्ता कभी मंजूर नहीं होगा.’

‘तब हम कोर्ट में शादी कर लेंगे.’

‘चुप बेशर्म,’ वह गुस्से से आगबबूला हो गए, ‘जा, चली जा मेरी आंखों के सामने से, वरना…. ’

यही हाल अरुण का था. जब उस के डैडी सूर्यभान सिंह को इस बात का पता चला तो वे क्रोध से पागल हो गए. यह उन के लिए बरदाश्त से बाहर था कि उन का लड़का एक मामूली पंडित की लड़की से प्यार करे. उन्होंने पहले अरुण को बहुत समझाया लेकिन जब उन की बात का उस पर कुछ असर नहीं हुआ तो उन्होंने दूसरा गंभीर उपाय सोचा.

वह सीधे हरिशंकर उपाध्याय के पास पहुंचे जो उस समय बरामदे में बैठे स्कूल का कुछ काम कर रहे थे. ठाकुर साहब को देखते ही वह हाथ जोड़ कर खडे़ हो गए.

‘हां, तो पंडित हरिशंकर, यह मैं क्या सुन रहा हूं?’ अपनी जोरदार आवाज में ठाकुर साहब ने कहा.

‘बहुत ख्वाब देखने लगे हो तुम.’

‘जी ठाकुर साहब, मैं समझा नहीं.’

‘अच्छा, तो तुम्हें यह भी बताना पडे़गा. जिस बात को पूरा कसबा जानता है उस से तू कैसे अनजान है. देखो पंडित, अपनी लड़की को समझाओ कि वह मेरे बेटे से मिलना छोड़ दे वरना मैं तुम बापबेटी का वह हाल करूंगा जिस की तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो.’

‘ठाकुर साहब, यह क्या कह रहे हैं आप….मैं आज ही उस की खबर लेता हूं. माफ करें….माफ करें.’

ठाकुर साहब के कडे़ प्रतिबंध के बाद भी अरुण अपर्णा से छुटपुट मुलाकात करने में सफल हो जाता जिस की भनक किसी न किसी तरह ठाकुर सूर्यभान को लग ही जाती और वे गुस्से से भिनभिना उठते.

उन्होंने दूसरा उपाय सोचा, क्यों न हरिशंकर का तबादला छतरपुर से कहीं और करा दिया जाए. और यह कार्य वहां के विधायक से कह कर करवा दिया. इधर पंडित हरिशंकर घबरा गए थे. तबादले का जैसे ही उन्हें आदेश मिला फौरन छतरपुर छोड़ दतिया आ गए. अपर्णा को भी पिताजी के साथ आना पड़ा.

वह दिन अपर्णा के जीवन का सब से बोझिल दिन था, जब बिना अरुण से मिले उसे दतिया आना पड़ा. जुदाई के सौसौ तीर उस के दिल में चुभ गए थे. अरुण का घर से निकलना बंद था. वह जातेजाते एक बार मिल लेना चाहती थी. लेकिन उस की हर कोशिश नाकाम हुई. एक यही दुख उसे लगातार पूरी यात्रा सालता रहा.

पिताजी के साथ अपर्णा चली तो आई लेकिन अरुण को भुला न सकी. दतिया आए अब 1 साल हो गया था. उस दौरान अरुण की उसे कोई खबर नहीं मिली. पढ़ाई भी उस की बंद हो गई. पिताजी को उस की शादी करने की जल्दी थी. मास्टर हरिशंकर ने एक अच्छा घर देख कर अपर्णा की सगाई बिना उस से पूछे ही कर दी. यह पता चलते ही उस ने शादी करने से इनकार कर दिया कि वह शादी करेगी तो सिर्फ अरुण से.

यह सुन कर पिताजी उस पर बरस पडे़, ‘‘तेरी ही वजह से मुझे छतरपुर छोड़ कर दतिया आना पड़ा है फिर भी तू अरुण के नाम की माला जप रही है. कितना सताएगी मुझे. भला इसी में है कि तू घर छोड़ कर कहीं निकल जा.’’

‘ऐसा मत कहिए पिताजी, अपर्णा गिड़गिड़ा पड़ी, समझने की कोशिश कीजिए.’

‘मुझे कुछ नहीं समझना. अगर तू यहां से नहीं जाएगी तो मैं ही चला जाता हूं, ले रह तू यहां….’

आखिर दिल के हाथों मजबूर हो कर अपर्णा ने वह घर त्याग दिया और अपनी सहेली नीता के पास भिंड चली आई. नीता की मदद से उसे भिंड में नौकरी मिल गई. खानेपीने का जरिया हो गया. किराए पर मकान ले लिया. इसी बीच उस के पास शादी के कई प्रस्ताव आए लेकिन उस ने सब को ठुकरा दिया.

वह दिन याद आते ही उस की आंखें डबडबा आईं, ‘‘समाज की यह कैसी रूढि़यां हैं कि आदमी अपना मनपसंद साथी भी नहीं ढूंढ़ सकता? वंश परिवार की परंपराएं उस पर थोप दी जाती हैं. वहां आदमी टूटेगा नहीं तो क्या जुडे़गा?’’

आज अरुण की दुर्घटना की खबर ने उसे बेचैन ही कर दिया. वह नदी के किनारे पड़ी मछली सी फड़फड़ा गई. शाम को जब तरुण आया तो वह जाने को पूरी तरह तैयार बैठी थी, इस समय तक उस ने अपनी मानसिक स्थिति संभाल ली थी.

छतरपुर पहुंचते ही अपर्णा सीधे अस्पताल पहुंची. एक वार्ड में अरुण बेड पर मूर्छित पड़ा था. खून की बोतल लगी थी. हाथपैरों में प्लास्टर बंधा था. दोस्त, परिजन, रिश्तेदार उसे घेर कर खडे़ थे. डाक्टर उपचार में लगा था. उसे समझते देर न लगी कि अभी जरूर कोई गंभीर दौर गुजरा है क्योंकि सभी के चेहरे उदास थे.

ठाकुर सूर्यभान सिंह सिर नीचे झुकाए खडे़ थे. यद्यपि वह एक नजर उस पर डाल चुके थे. आज उसे उन से डर नहीं लगा था. डाक्टर के चेहरे से मायूसी साफ झलक रही थी. सभी की निगाहें उन पर टिक गईं.

‘‘इंजेक्शन दे दिया है. 10 मिनट में होश आ जाना चाहिए,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, कुछ मिनट होश में रहता है फिर बेहोश हो जाता है,’’ ठाकुर साहब व्यग्रता से बोले.

‘‘देखिए, मैं तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं. आप मरीज को खुश रखने की कोशिश कीजिए….कोई गहरा आघात पहुंचा है, जिस की याद आते ही उसे बेहोशी छा जाती है. वैसे ंिचंता की बात नहीं. इस रोग पर काबू पाया जा सकता है,’’ इतना कह कर डाक्टर नर्स के साथ चले गए.

मौत सा सन्नाटा छा गया. किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था. तभी तरुण अपर्णा की ओर देख कर बोला, ‘‘आप कोशिश कीजिए, शायद होश आए. एक हफ्ते से यह इसी तरह पड़ा है. होश में आने पर भी किसी से एक शब्द नहीं बोलता.’’

यह सुनते ही अपर्णा निडर हो कर अंदर गई और अरुण के पास पहुंच कर बोली, ‘‘अरुण, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी, यहीं रहूंगी तुम्हारे पास.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो….कोई दूसरा घर बसा लिया….शादी कर ली?’’

‘‘अरुण क्या कहते हो? किस ने कहा तुम से यह….मुझ पर विश्वास नहीं?’’

‘‘विश्वास तो था लेकिन….’’

‘‘कैसी बात करते हो? मैं तुम्हें कैसे समझाऊं? तुम्हारे नाम के अलावा कोई दूसरा नाम मेरे होंठों पर कभी नहीं आया. मेरी आंखों में आंखें डाल कर देखो, सच क्या है तुम्हें पता चल जाएगा,’’ इतना कह कर अपर्णा फूटफूट कर रो पड़ी.

अरुण कुछ क्षण उसे देखता रहा, फिर आह कर उठा. उसे लगा जैसे उस के अंदर हजारों शूल एकसाथ चुभ गए हों.

‘‘अपर्णा….’’ वह गहरी निश्वास भरता हुआ बोला, ‘‘धोखा…विश्वासघात हुआ मेरे साथ…क्या समझ बैठा मैं तुम्हें…सोच भी नहीं सकता, तुम्हारे पिताजी ने यह झूठ मुझ से क्यों बोला?’’

कुछ क्षण अंदर ही अंदर वह सुलगती रही, फिर सोचा इस से तो काम नहीं चलेगा, उसे अगर अरुण को पाना है तो डट कर आगे आना होगा,’’

इस विचार के आते ही वह दृढ़ता से बोली, ‘‘अब मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगी अरुण, तुम्हारे पास रहूंगी. देखती हूं कौन मुझे हटाता है.’’

तभी अरुण के सीने में भयंकर दर्द उठा और वह कराह उठा, उस के हाथपैर मछली से फड़फड़ा गए. लोग डाक्टर को बुलाने दौडे़…अरुण हांफता हुआ बोला, ‘‘बहुत देर हो गई अपर्णा, अब मैं नहीं बचूंगा….मुझे माफ…’’ और यहीं उस के शब्द अटक गए. आंखें खुली रह गईं… चेहरा एक तरफ लुढ़क गया. यह देख अपर्णा की चीख ही निकल गई.

उसे जब होश आया तो देखा ठाकुर साहब और 2-3 लोग उस के पास खडे़ थे. अरुण के शरीर को स्ट्रेचर पर रखा जा रहा था. वह तेजी से स्ट्रेचर की तरफ लपक कर बोली, ‘‘इन्हें मत ले जाओ. मैं भी इन के साथ जाऊंगी.’’

ठाकुर साहब अपर्णा को पकड़ते हुए बोले, ‘‘यह क्या कह रही हो अपर्णा? पागल हो गई हो…’’

वह शेरनी सी दहाड़ उठी, ‘‘पागल तो आप हैं, इन्हें पागल बना कर मार दिया, अब मुझे पागल बना रहे हैं. मुझे आप की कृपा की जरूरत नहीं ठाकुर सूर्यभान सिंह. आप ने भले ही मुझे अपने घर की बहू नहीं बनने दिया, लेकिन विधवा बनने से आप मुझे नहीं रोक सकते.’’

वह और जोर से सिसक पड़ी, ‘‘काश, मौत कुछ क्षण ठहर जाती तो वह मांग में सिंदूर तो लगा लेती?’’ आज इस स्थिति में, कुछ पोंछने को भी उस के पास नहीं था. सबकुछ पहले से ही सूनासूना था….

Sad Story: दुर्घटना- क्या हुआ था समीर और शालिनी के साथ

Sad Story: समीर रोज की तरह घर से निकला और कुछ दूर खड़ी शालिनी को अपनी कार में बिठा लिया. दोनों एक निजी शिक्षा संस्थान में होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहे थे. साथ पढ़ते थे इस कारण मित्रता भी हो गई थी.

कार अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी कि अचानक चौराहे के पास जमा भीड़ के कारण समीर को ब्रेक लगाने पड़े. उतर कर देखा तो एक आदमी घायल पड़ा था. लोग तरहतरह की बातें और बहस तो कर रहे थे लेकिन कुछ करने की पहल किसी ने नहीं की थी. खून बहुत बह रहा था.

‘‘मैं देखती हूं, शायद कोई अस्पताल पहुंचा दे,’’ शालिनी ने भीड़ के अंदर घुसते हुए कहा.

‘‘आप लोग कुछ करते क्यों नहीं,’’ शालिनी ने क्रोध से कहा, ‘‘कितना खून बह रहा है. बेचारा, मर जाएगा.’’

‘‘आप ही क्यों नहीं कुछ करतीं,’’ एक युवक ने कहा, ‘‘हमें पुलिस के लफड़े में नहीं पड़ना.’’

‘‘तो यहां क्यों खड़े हैं,’’ शालिनी ने प्रताड़ना दी, ‘‘अपने घर जाइए.’’

‘‘चले जाएंगे, तुम्हारा क्या बिगाड़ रहे हैं,’’ युवक ने धृष्टता से कहा और चल दिया.

धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी और शालिनी अपनेआप को लाचार समझने लगी.

‘‘समीर, इसे अस्पताल पहुंचाना होगा,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘बेकार में झंझट मोल मत लो,’’ समीर ने कहा, ‘‘पुलिस को फोन कर के चलना ठीक रहेगा. क्लास के लिए भी तो देर हो रही है.’’

‘‘नहीं, समीर, ऐसा है तो तुम जाओ,’’ शालिनी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘पुलिस को फोन कर देना. तब तक मैं यहां खड़ी हूं.’’

समीर समझ गया कि शालिनी को इंसानियत का दौरा पड़ गया है. उसे अकेला छोड़ कर चले जाना कायरता होगी.

‘‘चलो, इसे कार में डालते हैं,’’ समीर ने कहा, ‘‘किसी की मदद लेनी होगी क्योंकि तुम्हारे बस का नहीं है इसे उठाना.’’

बचेखुचे कुछ लोगों में से 2 आदमी बेमन से मदद करने को तैयार हुए. उन्होंने बड़ी कठिनाई से उसे उठा कर कार की पिछली सीट पर लिटाया और जाने लगे.

समीर ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘भाई साहब, जरा अपना नाम, पता व फोन नंबर तो देते जाइए.’’

‘‘आज के लिए इतना काफी है,’’ कह कर दोनों चल दिए. अब कोई दर्शक नहीं था.

कुछ ही दूरी पर नर्सिंगहोम था. वहां पहुंच कर समीर ने दुर्घटना की जानकारी दी और घायल आदमी का इलाज करने को कहा. नर्सिंगहोम ह्वह्य आशा के विपरीत घायल को हाथोंहाथ लिया और तुरंत आपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया.

नर्सिंगहोम के सुपुर्द कर के जैसे ही दोनों जाने लगे कि एक डाक्टर ने उन्हें रोक लिया.

‘‘खेद है, अभी आप नहीं जा सकते,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘पुलिस के आने तक आप को इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि पुलिस के सामने आप को अपना बयान देना होगा.’’

‘‘लेकिन हम ने तो कुछ नहीं किया,’’ शालिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘इस आदमी को केवल यहां पहुंचाने की गलती की है.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ डाक्टर मुसकराया, ‘‘लेकिन हमें तो कानून के हिसाब से चलना पड़ता है. थोड़ा रुकिए, पुलिस आती ही होगी. आप ने अपना काम किया और हम अपना काम कर रहे हैं… इंसानियत के नाते.’’

मजबूर हो कर दोनों को रुकना पड़ा. आज तो क्लास नहीं कर पाएंगे.

कुछ ही देर में 2 पुलिस वाले आ गए. पूरे विस्तार से जानकारी ली. नाम, पता, फोन नंबर व आप

से रिश्ता भी डायरी में लिखा.

‘‘आप घायल को जानते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ समीर ने कहा, ‘‘पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘दुर्घटना के बारे में और क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ शालिनी ने कहा, ‘‘यह सड़क पर घायल पड़ा था. भीड़ तो जमा थी पर कोई कुछ कर नहीं रहा था. हम लोगों ने इसे उठा कर यहां पहुंचा दिया, बस.’’

‘‘यह तो आप ने बहुत अच्छा किया,’’ इंस्पेक्टर मुसकराया, ‘‘कौन करता है किसी अनजान के लिए.’’

‘‘हम जा सकते हैं?’’ समीर ने धीरज खो कर पूछा.

‘‘अभी नहीं,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘अपने बयान को पढि़ए और फिर अपनी चिडि़या बिठाइए.’’

‘‘चिडि़या?’’ शालिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मेरा मतलब हस्ताक्षर से है,’’ इंस्पेक्टर हंसा.

उसी समय नर्स ने बाहर आ कर घायल के पास से जो कुछ मिला था इंस्पेक्टर के सामने रख दिया. इंस्पेक्टर ने गहराई से सामान को देखा. शायद नाम, पता आदि मिले तो इस के रिश्तेदारों को खबर दी जा सकती है.

घायल का नाम सुमेर स्ंिह था और वह इलाज के लिए पास के गांव से आया था. रुक्मणी देवी अस्पताल की परची थी. वहां फोन किया, अधिक जानकारी नहीं मिली. गांव के 2-3 फोन नंबर थे. इंस्पेक्टर ने फोन लगाया. 2 जगह तो घंटी बजती रही. किसी ने नहीं उठाया. तीसरी जगह फोन करने पर बहुत देर बाद किसी ने उठाया.

‘‘हैलो,’’ उधर से एक महिला ने कहा.

‘‘मैं इंस्पेक्टर भूपलाल दिल्ली से बोल रहा हूं,’’ इंस्पेक्टर ने रोब से कहा.

महिला के स्वर में डर था, ‘‘जी, ये तो घर में नहीं हैं. थोड़ी देर बाद फोन कीजिए.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ कह कर इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘आप किसी सुमेर स्ंिह को जानती हैं?’’

‘‘सुमेर सिंह?…ओह, सुमेर, हां, मेरे गांव का है. 8-10 मकान छोड़ कर रहता है,’’ महिला ने कहा, ‘‘सुना है, इलाज के लिए दिल्ली गया है.’’

‘‘वह बहुत गंभीर रूप से घायल है,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘उस के घर से किसी को बुलाइए.’’

‘‘वह तो अकेला रहता है,’’ महिला ने कहा, ‘‘उस की घरवाली तो छोड़ कर चली गई है.’’

‘‘तो कोई और रिश्तेदार होगा,’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘हां, चाचावाचा हैं,’’ महिला ने कहा.

‘‘तो उन्हीं को बुलाओ,’’ इंस्पेक्टर ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं 15 मिनट बाद फिर फोन करूंगा.’’

इंस्पेक्टर ने समीर और शालिनी को रोक रखा था. देर तो हो ही गइर््र थी, इन्हें अब यह भी कौतूहल था कि बेचारा बचेगा भी या नहीं.

नर्सिंगहोम की कैंटीन में चायनाश्ते के बाद इंस्पेक्टर ने फिर फोन मिलाया.

‘‘जी सर,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘कौन बोल रहा है? सुमेर का चाचा?’’ इंस्पेक्टर ने कड़क स्वर में पूछा.

‘‘जी, मैं चाचा तो हूं, लेकिन सगा नहीं,’’ चाचा ने सहम कर कहा.

‘‘ठीक है, तुम कुछ तो हो,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘यहां नर्सिंगहोम का पता लिखो और फौरन बस पकड़ कर चले आओ. सुमेर स्ंिह घायल है.’’

‘‘तो हम क्या करेंगे?’’ चाचा ने हकला कर कहा.

‘‘तुम तीमारदारी करोगे और इलाज का खर्च उठाओगे,’’ इंस्पेक्टर ने डांट कर कहा, ‘‘अगर नहीं आए तो अंदर कर दूंगा.’’

इंस्पेक्टर की घुड़की खा कर चाचा और उस का बेटा 2 घंटे के भीतर पहुंच गए. वे सुमेर स्ंिह की गंभीर हालत देख कर डर गए.

‘‘हमें क्या करना है?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘तुरंत खून की 2 बोतलों का इंतजाम करो,’’ नर्स ने कहा, ‘‘यह दवाएं लिख दी हैं. इन्हें ले कर आओ. हां, देर मत करना…और हां, यह फार्म है, इस पर अपने हस्ताक्षर कर दो.’’

‘‘मैं क्यों दस्तखत करूं?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘अरे, कोई तो जिम्मेदारी लेगा,’’ नर्स ने डांट कर कहा, ‘‘जल्दी करो.’’

‘‘पहले दवा ले आते हैं,’’ चाचा ने कहा और अपने बेटे के साथ चला गया.

इस के बाद वे लौट कर नहीं आए. फोन करने पर पता लगा उन के घर पर ताला लगा है.

इधर समय निकलता देख नर्स ने समीर से कहा, ‘‘आप ही कोई बंदोबस्त कीजिए.’’

शालिनी और समीर दोनों उलझन में पड़ गए. अचानक घायल को बेसहारा देख पीछा छुड़ाने का मन नहीं हुआ. पास ही रेडक्रास का ब्लड बैंक था. दोनों ने अपनेअपने पर्स निकाले और रुपए गिने. दवाओं के पैसे भी देने थे. फिलहाल काम चल जाएगा. नर्स को अस्पताल से खून व दवा देने का आदेश दे कर ब्लड बैंक चले गए.

ब्लड बैंक ने खून देने से पहले इन दोनों के खून की जांच की और रक्तदान करने के लिए कहा. यह दान उन्होंने खुशी से दिया और अस्पताल पहुंच गए.

‘‘अब कैसी हालत है सुमेर स्ंिह की?’’ शालिनी ने नर्स से पूछा.

‘‘बचने की उम्मीद कम है.’’

नर्स ने कहा.

सुन कर दोनों को बहुत बुरा लगा. कुछ देर बैठे और फिर घर चले गए.

अगले दिन समीर को शालिनी ने फोन किया, ‘‘क्या उसे देखने जाओगे?’’

‘‘कोई फैसला नहीं ले पा रहा हूं,’’ समीर ने कहा, ‘‘पता नहीं क्या मुसीबत मोल ले ली.’’

‘‘अगर जाओ तो मुझे बता देना, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

समीर कुछ पहले आ गया और नर्सिंगहोम के सामने रुका. अंदर जाए या नहीं? बेचारा.

‘‘सिस्टर, कैसा है मरीज?’’ समीर ने पूछा.

नर्स ने सिर हिलाया और मुंह बिचका दिया.

फोन करने पर शालिनी ने कहा, ‘‘तुम वहीं रुको, मैं आ रही हूं.’’

अनजान ही सही, इतना कुछ करने के बाद थोड़ाबहुत लगाव तो हो ही जाता है. शालिनी आई और ताजा जानकारी इस तरह से ली मानो मरीज कोई परिचित था. लगभग 1 घंटे बाद नर्स ने सूचना दी कि सुमेर स्ंिह को डाक्टर बचा नहीं सके. उस के अंतिम संस्कार का प्रबंध करें. लाश को कुछ घंटे ही रखा जा सकता था. दोनों स्तब्ध रह गए. ऐसा काम तो उन्होंने आज तक नहीं किया था. दोनों बहुत दुखी थे.

नर्सिंगहोम से एक ऐसी संस्था कापता लिया जो लावारिस लाशों का दाहसंस्कार किया करती है. फोन कर के समीर ने सारी जिम्मेदारी संस्था को सौंप दी.

उदासी ऐसी थी कि आज कोर्स में जाने का मन नहीं हुआ. एक रेस्तरां में बैठ कर दोनों ने कौफी का आर्डर दिया.

दोनों के मुंह उदासी से लटके हुए थे. मरने वाले सुमेर सिंह से न कोई रिश्ता था न ही कोई संबंध, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो कोई आत्मीय जन अब इस दुनिया में नहीं रहा.

Sad Story

Love Story in Hindi: धुंधली सी इक याद- राज और ईशा के कैसे थे संबंध

Love Story in Hindi: ‘‘बोलो न राज… एक बार मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं. कहो न कि तुम्हें मुझ से प्यार है,’’ ईशा ने राज के गले में बांहें डालते हुए कहा.

‘‘हां, मुझे तुम से और सिर्फ तुम से प्यार है. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. तुम परी हो, अप्सरा हो और न जाने क्याक्या हो… हो गया या और भी कोई डायलौग सुनने को बाकी है?’’ राज ने मुसकराते हुए पूछा.

ईशा भी मुसकराते हुए बोली, ‘‘हुआ… हुआ… अब आया न मजा.’’

राज और ईशा एकदूसरे को 8 सालों से जानते थे. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. वहीं दोनों के प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था. दोनों साथ घूमतेफिरते और अपनी पढ़ाई का भी ध्यान रखते. ईशा अमीर मातापिता की इकलौती संतान थी. उसे पैसे की नहीं सच्चे प्यार की तलाश थी और राज को पा कर वह धन्य हो गई थी. बस अब उसे इंतजार था कि कब राज की प्रमोशन हो और वह अपने मातापिता को राज के बारे में सब कुछ बता सके.  वैसे तो राज एक बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम करता था. लेकिन ईशा चाहती थी कि राज की एक प्रमोशन और हो जाए ताकि वह अपने पिता से शान से कह सके कि उस ने राज को जीवनसाथी के रूप में चुना है. बस 1 महीने का और इंतजार था.

जैसे ही राज को प्रमोशन लैटर मिला,  ईशा ने खुशी से उसे बधाई देते हुए कहा, ‘‘बस राज मैं आज ही पापा से तुम्हारे बारे में बात  करती हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि पापा तुम्हें बहुत पसंद करेंगे.’’  जब ईशा रात का खाना खाने अपने परिवार के साथ बैठी तो उस ने धीरे से कहा, ‘‘पापा, मैं आप को एक खुशखबरी देना चाहती हूं. मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है.’’

उस के पिता ने भी बड़े आश्चर्य से पूछा, ‘‘अच्छा, कौन है वह?’’

ईशा चहकते हुए बोली, ‘‘पापा वह राज है. आप कहें तो मैं कल उसे डिनर के लिए बुला लूं ताकि आप और मम्मी उस से मिल सकें?’’

ईशा के पिता ने झट से हामी भर दी. अगले दिन राज ईशा के घर में था. उस से मिल कर ईशा के पिता बोले, ‘‘हमें गर्व है अपनी बेटी की पसंद पर. हमें तुम से यही उम्मीद थी ईशा. तुम इतनी पढ़ीलिखी और समझदार हो कि तुम्हारी पसंद में तो हम कोई कमी निकाल ही नहीं सकते.’’

फिर अगले संडे को ईशा के मातापिता ने राज के मातापिता से मिल दोनों के रिश्ते की बात की.  बात ही बात में राज के पिता ने ईशा के पिता से कहा, ‘‘हमें ईशा बहुत पसंद है, किंतु हम आप को एक बात साफ बता देना चाहते हैं कि राज हमारा अपना बच्चा नहीं, इसे हम ने गोद लिया था. लेकिन हम ने इसे पालापोसा अपने बच्चे की तरह ही है. हमारी अपनी कोई संतान न थी. लेकिन हम यकीन दिलाते हैं कि हम ईशा को भी बड़े ही प्यार से रखेंगे.’’  राज के पिता का व्यवहार और कारोबार बहुत अच्छा था. अत: ईशा के पिता को इस रिश्ते पर कोई ऐतराज नहीं था. फिर क्या था. एक ही महीने में राज व ईशा की सगाई व शादी हो गई. ईशा दुलहन बनी बहुत ही सुंदर लग रही थी. कालेज के दोस्त व सहेलियां भी उन की शादी में उपस्थित थे. उन में से कुछ की शादी हो चुकी थी और कुछ तैयारी में थे. सभी राज व ईशा को बधाई दे रहे थे. विदाई की रस्म पूरी हुई और ईशा राज के घर आ गई. राज के मातापिता भी चांद सी बहू पा कर बहुत खुश थे.

आज राज व ईशा की पहली रात थी. उन का कमरा फूलों से सजाया गया था.  पलंग पर हलके गुलाबी रंग की चादर पर गहरे गुलाबी रंग की पंखुडि़यों को दिल के आकार में सजाया गया था. पूरा कमरा गुलाब की खुशबू से महक रहा था. उस पर सजीधजी ईशा इतनी खूबसूरत लग रही थी कि चांद की चमक भी फीकी पड़ जाए. रोज सलवारकुरता और जींसटौप पहनने वाली ईशा दुलहन बन इतनी सुंदर लगी कि राज के मुंह से निकल ही गया, ‘‘जी चाहता है इतने सुंदर चेहरे को आंखों में भर लूं और हर पल नजारा करूं.’’ ईशा शरमा कर राज की बांहों में समा गई.  अगली सुबह ईशा नहाधो कर हलके नीले रंग की साड़ी पहने किसी परी सी लग रही थी. सुबह से ही उस की सहेलियों के फोन आने शुरू हो गए. सब चुटकियां लेले पूछ रही थीं, ‘‘कैसी रही पहली रात ईशा?’’  उस का पूरा दिन इन चुहलबाजियों में ही बीत गया. ईशा भी सब को हंस कर एक ही जवाब देती, ‘‘अच्छी रही, वंडरफुल.’’

खैर, 1 महीना बीत गया और दोनों का हनीमून भी खत्म हुआ. अब राज को 1 महीने की छुट्टी के बाद दफ्तर जाना था. दफ्तर जाते ही सभी पुराने दोस्तों का भी वही सवाल था कि कैसा रहा हनीमून और जवाब में राज भी मुसकरा कर बोला कि अच्छा रहा.  दिन तेजी से बीत रहे थे. हर शाम ईशा सजीधजी राज के घर आने का इंतजार करती. रात को खाना खा कर दोनों छत पर लगे झूले में बैठ कर चांदनी रात में तारों को निहारा करते. प्यार की बातों में कब आधी रात हो जाती उन्हें मालूम ही न पड़ता. राज के मातापिता भी ईशा से बहुत खुश थे. उस के आने से घर की रौनक बढ़ गई थी. सारा काम नौकरचाकर करते, लेकिन ईशा राज की मां और स्वयं की थाली खुद ही लगाती. राज की मां के साथ ही खाना खाती.  1 साल बीत गया. अब राज की मां ईशा से कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम ने इस सूने घर में रौनक ला दी. बेटी अब इस घर में 1 बच्चा आ जाए तो यह रौनक 4 गुना बढ़ जाए.’’

ईशा भी कहती, ‘‘जी मम्मी, आप ठीक कह रही हैं.’’

जब कभी खाने के समय राज भी साथ होता तो यही बात मां राज से भी कहतीं.  राज कहता, ‘‘हो जाएगा मम्मी. इतनी भी क्या जल्दी है?’’

ऐसा चलते 1 साल और बीत गया. अब ईशा भी राज से कहने लगी, ‘‘राज, मैं तुम से एक बात पूछना चाहती हूं. तुम बुरा न मानना और मुझे गलत न समझना… तुम्हें क्या हो जाता है राज… तुम मुझ से प्यार की बातें करते हो, मुझे चूमते हो, मुझे बांहों में लेते हो, लेकिन वह क्यों करते नहीं जो एक बच्चा पैदा करने के लिए जरूरी है? हमारी शादी को 2 साल हो गए, लेकिन हम अभी कुंआरों की जिंदगी ही जी रहे हैं.’’  राज ने भी सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां, तुम ठीक कहती हो.’’

आज ईशा बहुत खुश थी. शादी के 2 साल बाद उस ने राज से अपने मन की बात कही और राज ने उसे स्वीकार भी किया. वह रात को गुलाबी रंग की नाइटी पहन और पूरे कमरे को खुशबू से तैयार कर स्वयं भी तैयार हो गई. राज भी उसे देख कर बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम इस गुलाबी नाइटी में खिले कमल सी लग रही हो,’’ और फिर वह उस के गालों, माथे, होंठों को चूमने लगा. फिर न जाने उसे क्या हुआ वह ईशा से दूर होते हुए बोला, ‘‘ईशा, चलो सो जाते हैं, फिर कभी.’’  राज के इस व्यवहार से ईशा तो उस मोर समान हो गई जो बादल देख कर अपने  पंखों को पूरा गोल फैला कर खुश हो कर नाच रहा हो और तभी आंधी बादलों को उड़ा ले जाए. बादल बिन बरसे ही चले गए और मोर ने दुखी हो कर अपने पंख समेट लिए हों.  ईशा रोज किसी न किसी तरह कोशिश करती कि राज उस से शारीरिक संबंध स्थापित करे, लेकिन हर बार असफल हो जाती.

आज जब राज दफ्तर से आया तो ईशा ने जल्दी से रात का खाना निबटाया और सोने के पहले राज से बोली, ‘‘चलो न राज कहीं हिल स्टेशन घूम आते हैं… काफी समय हुआ हम कहीं नहीं गए हैं.’’  राज उस की कोई बात नहीं टालता था. अत: उस ने झट से हवाईजहाज के टिकट बुक किए और दोनों काठमांडु के लिए रवाना हो गए. ईशा काठमांडु में नेपाली ड्रैस पहन कर फोटो खिंचवा रही थी. उस की खूबसूरती देखने लायक थी. शादी के 4 साल बाद भी वह नवविवाहिता जैसी लगती थी. 7 दिन राज और ईशा नेपाल की सारी प्रसिद्ध जगहों पर घूमेफिरे.  राज ने उसे आसमान पर बैठा रखा था. जीजान से चाहता था वह ईशा को. ईशा भी उस के प्यार को दिल की गहराई से महसूस करती थी. राज उस की कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं छोड़ता था. लेकिन रात के समय न जाने क्यों वह ईशा को वह नहीं दे पाता जिस का उसे पहली रात से इंतजार था और इस के लिए कई बार तो वह ईशा से माफी भी मांगता. कहता, ‘‘ईशा, तुम मुझ से तलाक ले लो और दूसरी शादी कर लो. न जाने क्यों मैं चाह कर भी…’’ इतना कह एक रात राज की आंखों में आंसू आ गए.

ईशा कहने लगी, ‘‘ऐसा न कहो राज. हम दोनों ने 7 फेरे लिए हैं… एकदूसरे का हर हाल में साथ निभाने का वादा किया है. मैं हर हाल में तुम्हारा साथ निभाऊंगी. मैं तुम से प्यार करती हूं राज. फिर भी हमें 1 बच्चा तो चाहिए. उस के लिए हमें प्रयास तो करना होगा न?’’  शादी के 5 साल बीत चुके थे. अब तो ईशा से उस के मातापिता, सहेलियां, रिश्तेदार सभी पूछने लगे थे, ‘‘ईशा, तुम 1 बच्चा क्यों पैदा नहीं कर लेतीं? कब तक ऐसे ही रहोगी? परिवार में बच्चा आने से खुशियां दोगुनी हो जाती हैं.’’

हर बार ईशा मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘आप ने कहा न… अब मैं इस बारे में सोचती हूं.’’  मगर यह सिर्फ सोचने मात्र से तो नहीं हो जाता न. बच्चे के लिए पतिपत्नी में  शारीरिक संबंध भी तो जरूरी हैं. शादी को 6 वर्ष बीत गए थे. कई बार ईशा सोचती कि एक बच्चा गोद ले ले ताकि कोई उसे बारबार टोके नहीं. लेकिन फिर सोच में पड़ जाती कि राज को ऐसा क्या हो जाता है कि वह संबंध बनाने से कतराता है? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है. वह उस के साथ खुश भी रहता है, उसे सहलाता है, चूमता है, लेकिन सिर्फ उस वक्त वह क्यों उस से दूर हो जाता है. वह इंटरनैट पर ढूंढ़ने लगी और डाक्टर से भी मिली.

डाक्टर ने कहा, ‘‘ईशा मैं तुम्हारे पति से मिलना चाहूंगी. पुरुषों के शारीरिक संबंध स्थापित करने में असफल होने के कई कारण होते हैं.’’

जब राज घर आया तो ईशा ने उसे बताया, ‘‘मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. डाक्टर आप से मिलना चाहती हैं. कल 11 बजे का समय लिया है. आप को मेरे साथ चलना है.’’

राज ने कहा, ‘‘ठीक है चलेंगे.’’  अगले दिन दोनों तैयार हो कर डाक्टर से मिलने पहुंच गए.  डाक्टर ने राज व ईशा से उन की शादी की पहली रात से ले कर अब तक की  सारी बातें पूछीं. एक बार को तो डाक्टर को भी कुछ समझ न आया. डाक्टर ने बताया, ‘‘पुरुषों में शारीरिक संबंध स्थापित न कर पाने के कई कारण होते हैं जैसे धूम्रपान, जिस के कारण पुरुषों के जननांग तक रक्तसंचार नहीं हो पाता है और उन में नपुंसकता आ जाती है. जिस से इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या आ जाती है और शुक्राणुओं में कमी आ जाती है. इस से सैक्स करने की कामना में कमी आ जाती है.  ‘‘इस का दूसरा कारण होता है डिप्रैशन. जिस तरह यह आम जीवन को प्रभावित करता है उसी तरह यह सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है. इनसान का दिमाग उस के सैक्स जीवन की इच्छाओं को संचित करने में मदद करता है. इसलिए सैक्स के समय किसी भी तरह का टैंशन या स्ट्रैस संबंध में बाधा पैदा करता है. डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है, जिस के कारण दिमाग का कैमिकल कंपोजिशन बिगड़ जाता है और उस का सीधा प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है. कामवासना में कमी आ जाती है.

‘‘इस के कुछ उपाय होते हैं जैसे धूम्रपान कम करें, संतुलित आहार लें, व्यायाम करें. कई बार मोटापे के कारण भी शरीर में रक्तसंचार नहीं होता और काम उत्तेजना कम हो जाती है. कई बार मधुमेह रोग होने से भी समस्या होती है, क्योंकि मधुमेह इनसान के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है, जिस के कारण इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की शिकायत हो जाती है.  ‘‘कई बार पुरुषों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन की कमी से भी सैक्स लाइफ प्रभावित होती है. इस के लिए सुबह के समय टेस्टोस्टेरौन लैवल का टैस्ट करवाना होता है, क्योंकि सुबह के समय इस का लैवल सब से ज्यादा होता है. शीघ्र पतन भी एक समस्या होती है, जिस में पुरुष महिला के सामने आते ही घबरा जाता है और स्खलित हो जाता है. इस कारण भी पुरुष महिला से दूर भागने लगता है.

‘‘वैसे तो मुझे आप से बात कर के सब ठीक ही लगता है फिर भी राज आप अपने हारमोन लैवल की जांच के लिए टैस्ट करवा लें और टैस्ट रिपोर्ट मुझे दिखाएं.’’  राज की हारमोन रिपोर्ट में कोई कमी नहीं थी. वह शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ था. डाक्टर चकित थी कि आखिर ऐसा क्या है कि राज ईशा को इतना चाहता है फिर भी वह वैवाहिक सुख से वंचित है?  डाक्टर ने काफी सोचविचार कर कहा, ‘‘राज व ईशा तुम दोनों सैक्स काउंसलर के पास जाओ. मैं आप को रैफर कर देती हूं.’’  अगले ही दिन राज व ईशा सैक्स काउंसलर के पास पहुंचे. काउंसलर ने उन की समस्या को ध्यान से सुना और समझा. फिर दोनों से उन के रहनसहन और जीवनशैली के बारे में पूछा. राज व ईशा ने उन्हें जवाब में जो बताया उस के हिसाब से तो दोनों के बीच सब ठीक ही चल रहा है. राज को दफ्तर में भी कोई समस्या नहीं थी, बल्कि इन 8 सालों में उसे हाल ही में तीसरी प्रमोशन मिली थी. ‘तो फिर आखिर क्या है, जो चाहते हुए भी राज को सैक्स के समय असफल कर देता है?’ सोच काउंसलर ने राज से अकेले में बात करने की इच्छा जाहिर की. ईशा काउंसलर का इशारा समझ कमरे से बाहर चली गई. अब काउंसलर ने राज से उस की शादी से पहले की जीवनी पूछी. उस से उसे पता चला कि राज गोद लिया बच्चा है. और सब जो राज ने डाक्टर को बताया वह इस तरह था, ‘‘सर मेरे परिवार में मैं, मेरी बड़ी बहन और मेरे मातापिता थे. बहन मुझ से 10 साल बड़ी थी. उस की शादी मात्र 18 वर्ष में पापा के दोस्त के इकलौते बेटे से कर दी गई. मेरे पापा ने अपनी वसीयत का ज्यादा हिस्सा मेरे नाम और कुछ हिस्सा दीदी के नाम किया.

अचानक एक कार ऐक्सिडैंट में मम्मीपापा की मृत्यु हो गई.  उस समय मैं 8 वर्ष का था. दीदी के सिवा मेरा कोई न था. अत: दीदी अब मुझे अपने पास रखने लगी थी. जीजाजी को भी कोई ऐतराज न था. जीजाजी के मातापिता को पैसों का लालच आ गया. फिर धीरेधीरे जीजाजी भी उन की बातों में आ गए. वे रोजरोज दीदी से कहने लगे कि वह वसीयत के कागज उन्हें दे दे. लेकिन दीदी ने नहीं दिए. वे दीदी को रोज मारनेपीटने लगे. दीदी समझ गई थी कि मुझे खतरा है.  ‘‘दीदी की एक सहेली थी. उन की कोई संतान न थी. वे एक बच्चा गोद लेना चाहते थे. दीदी ने उन से बात की और मुझे गोद लेने को कहा. वे झट से राजी हो गए. दीदी ने मुझे गोद देने के कागज तैयार करवा लिए. जीजाजी का व्यवहार दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था. अब वे रोज शराब पी कर दीदी को मारनेपीटने लगे थे. मैं तब दीदी के पास ही रह रहा था.  ‘‘एक रात जीजाजी देर से आए. मैं उस वक्त दीदी के कमरे में था. जीजाजी बहुत ज्यादा शराब पीए थे. जीजाजी ने आते ही अंदर से कमरा बंद कर लिया और मुझे व दीदी को लातघूंसों से बहुत मारा. उस के बाद दीदी को बिस्तर पर पटक दिया और उस के साथ सैक्स किया. मैं उस वक्त 10 वर्ष का था. वह दृश्य बहुत डरावना था.  ‘‘मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मुझे वहीं नींद आ गई. सुबह दीदी जिंदा नहीं थी. सिर्फ एक लाश थी. मुझे और तो कुछ खास याद नहीं कि उस के बाद क्या हुआ, हां उस के बाद मेरे वर्तमान मातापिता मुझे अपने घर ले आए. अब जब भी मैं ईशा से करीबियां बढ़ाना चाहता हूं, मेरी आंखों के सामने उस रात की डरावनी धुंधली सी वह याद आ जाती है.

‘‘मुझे लगता है दीदी की तरह कहीं मैं ईशा को भी न खो दूं. मैं ईशा से कुछ कह भी नहीं पाता हूं. हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं. बस इसीलिए अपनेआप ही ईशा से दूर हो जाता हूं. यह सब अपनेआप होता है. मेरा अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रहता और दीदी की लाश वहां दिखाई देती है.’’  राज की सारी बात सुन कर काउंसलर सब समझ गए कि क्यों चाह कर भी राज ईशा के साथ संबंध कायम करने में असफल रहता है. काउंसलर ने राज को घर जाने को कहा और अगले दिन आने को कहा. अगले दिन उन्होंने राज को प्यार से समझाया, ‘‘राज, तुम्हारी दीदी सैक्स के कारण नहीं मरीं, तुम्हारे जीजाजी ने उन्हें लातघूंसों से मारा. इस के कारण उन्हें कुछ अंदरूनी चोटें लगीं और वे उस दर्द को सहन नहीं कर पाईं और मौत हो गई.  ‘‘तुम ने दीदी को पिटते तो कई बार देखा था, लेकिन उस रात तुम ने जो दृश्य देखा वह पहली बार था और सुबह दीदी की लाश देखी तो तुम्हें ऐसा लगा कि दीदी सैक्स के कारण मर गई… आज इतने वर्षों बाद भी वह धुंधली सी याद तुम्हारे वैवाहिक जीवन को असफल कर रही है.’’  काउंसलर ने ईशा से भी इस बारे में बात की. उन्होंने राज के वर्तमान मातापिता को भी राज की स्थिति बताई. जब उन्हें हकीकत मालूम हुई तो उन्होंने राज की दीदी की मृत्यु की पोस्टमार्टम रिपोर्ट राज को दिखाई, जिस में साफ लिखा था कि राज की दीदी की जान दिमाग व पसलियों में चोट लगने से हुई थी और इसीलिए उस के जीजा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

अब सारी स्थिति राज के सामने थी. ईशा राज को उस पुरानी याद से दूर ले जाना  चाहती थी. अत: उस ने गोवा में होटल बुक किया और राज से वहां चलने का आग्रह किया. राज ने खुशीखुशी हामी भर दी.  ईशा वहां राज को उस की खूबियां बताते हुए कहने लगी, ‘‘राज तुम बहुत नेक और होशियार हो… तुम्हें पा कर मैं धन्य हो गई हूं. मैं तुम्हारी हर हार व जीत में तुम्हारे साथ हूं.’’  ऐसी बातें कर वह राज का मनोबल बढ़ाना चाहती थी. फिर रात के समय जैसे ही राज उस के करीब आ कर उस के बालों को सहलाने लगा, तो वह कहने लगी, ‘‘आगे बढ़ो राज. जब तक तुम मेरे साथ हो मुझे कुछ नहीं होगा, हिम्मत  करो राज.’’

7 दिन बस इसी तरह गुजर गए. अब राज का आत्मविश्वास लौटने लगा था. उस धुंधली सी याद की हकीकत वह समझ चुका था. ईशा ने राज की मम्मी व काउंसलर को खुशी से फोन कर बताया, ‘‘हम सफल हुए.’’  हालांकि राज एक बार तो डर गया था… सैक्स में सफल होने के बाद वह काफी देर  तक ईशा को टकटकी लगाए देखता रहा. फिर कहने लगा, ‘‘दुनिया तो सिर्फ तुम्हारी ऊपरी खूबसूरती देखती है ईशा… तुम्हारा दिल कितना सुंदर है… 8 वर्षों में तुम ने मेरी असफलता को एक राज रखा और हर वक्त मुसकराती रहीं.  आज मैं सफल हूं तो सिर्फ तुम्हारे कारण. तुम  ने इतनी मेहनत की, इतना सहा, विवाहित हो  कर भी 8 वर्षों तक कुंआरी का जीवनयापन करती रहीं और चेहरे पर शिकन भी न आने दी. तुम्हारा दिल कितना सुंदर है ईशा. तुम से सुंदर कोई नहीं.’’

दोनों जब गोवा से लौटे तो उन के चेहरे पर कुछ अलग ही चमक थी. वह चमक थी विश्वास और प्यार की. राज की मां भी बहुत खुश थीं. 3 महीने बाद ईशा ने खुशखबरी दी कि वह मां बनने वाली है.  राज की मां उसे ढेरों आशीर्वाद देते हुए बोलीं, ‘‘मैं दुनिया की सब से खुशहाल सास हूं, जिसे तुम जैसी बहू मिली.’’

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