कंचन अवस्थी को मिला ‘भारत सम्मान’-2022

बुद्धाजंलि रिसर्च फाउन्डेशन एवं बीइंग मदर स्टैंड यूनाइटेड, मुम्बई द्वारा दिल्ली के द अशोका में होटल में आयोजित एक भव्य समारोह में लखनऊ निवासी बालीवुड की जानी मानी अभिनेत्री कंचन अवस्थी को बालीवुड सिंगर उदित नारायण, संगीत निर्देशक अनु मलिक, अभिनेत्री एवं प्लेबैक सिंगर सलमा आगा, माननीया सांसद, लोक सभा श्रीमती सुनीता दुग्गल तथा केलाश मासूम, अध्यक्ष, बुद्धाजंलि रिसर्च फाउन्डेशन चैरिटेबुल ट्रस्ट द्वारा सम्मानित किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में माननीय मंत्री भारत सरकार श्री रामदास अठावले ने दीप प्रज्जवलन कर के कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया.

कंचन अवस्थी को इसके पूर्व बेस्ट डांसर अवार्ड, मंजू श्री सम्मान,

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सम्मान, यू0पी0 आर्टिस्ट अकादमी द्वारा बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड,वर्ष 2018 में बेस्ट अपकमिंग एक्ट्रेस का सम्मान,ग्लोबल एचीवर्स अवार्ड, फिल्म बंधु,उत्तर प्रदेश द्वारा काशी फिल्म महोत्सव में दिये गये अवार्ड सहित  कई सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है.

कंचन अवस्थी ने फीचर फिल्म फ्राड सैंया, मंटो रीमिक्स ( अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शित),लव हैकर्स,  अंकुर अरोड़ा मर्डर केस, गन वाली दुलहनिया, भूत वाली लव स्टोरी,मैं खुदी राम बोस, चापेकर ब्रदर्स,जय जवान जय किसान, कुतुब मीनार सहित बहुत सी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है. अभी हाल ही में भैया जी स्माइल सहित कई वेब सीरीज एवं  धारावाहिक अम्मा में भी अहम किरदार निभाया है.

हाथों की फाइन लाइंस को कैसे दूर करें?

सवाल-

मेरी उम्र 30 साल है और मेरे हाथों में फाइन लाइंस दिखने लगी हैं जो मुझे अच्छे नहीं लगतीं. कोई उपाय बताएं?

जवाब-

हाथों को धोने के बाद हमेशा कोई मौइस्चराइजिंग क्रीम जरूर लगाएं. अगर ऐसा लगातार करती रहेंगी तो फाइन लाइंस नहीं आएंगी. रात को सोने से पहले किसी औयल से हलकी मसाज करें. किसी ऐरोमैटिक औयल का इस्तेमाल भी कर सकती हैं.

फाइन लाइंस के लिए आप हफ्ते में 2 बार यह पैक लगाएं-

तो फाइन लाइन कुछ कम जरूर होंगे. 1 चम्मच मुलतानी मिट्टी लें. 1/2 चम्मच कौफी पाउडर मिलाएं. थोड़ा सा हनी डालें और रोजवाटर मिला कर पेस्ट बना लें. इसे हाथों पर लगा लें. 1/2 घंटे बाद धो लें. इस पैक से फाइन लाइंस में काफी फायदा होगा.

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एक मां अपने बच्चे की खुशी के लिए क्या कुछ नहीं करती. कभी उस के लिए अपनी नींद से समझता करती है, तो कभी उस के लिए खुद भूखी रह जाती है. उस के कहीं बाहर जाने पर उस के इंतजार में बैठी रहती है. बच्चे की एक डिमांड पर वह अपनी सारी थकान को भूल कर उस की डिमांड को पूरा करने में जुट जाती है.

दुनियाभर से उस के लिए फाइट करने में भी पीछे नहीं रहती. उस की खुशी के लिए अपनी सारी खुशियां कुरबान करने के लिए तैयार हो जाती है.

भले ही हम मां को बहुत कुछ नहीं दे सकते, लेकिन मदर्स डे एक बेटी होने के नाते आप अपनी मां की इनर ब्यूटी की तरह आउटर ब्यूटी को बैस्ट ब्यूटी ट्रीटमैंट्स गिफ्ट में दे कर निखार सकती हैं क्योंकि वह खुद को हमेशा टिपटौप तो रखना पसंद करती है, लेकिन परिवार व बच्चों से हमेशा घिरी रहने के कारण खुद को संवारने पर ध्यान ही नहीं देती है. ऐसे में आप के ये गिफ्ट्स मां के चेहरे पर मुसकान लाने के काम करेंगे. तो आइए जानते हैं कैसे:

फेशिअल केयर बौक्स

अपने चेहरे को निखारना व अपनी खूबसूरती की तारीफ बटोरना हर मौम को अच्छा लगता है. लेकिन घरपरिवार में बिजी रहने के चक्कर में व पैसों के कारण हमेशा खुद की स्किन से समझता कर ही लेती हैं. ऐसे में आप उन्हें इस मदर्स डे पर फेशियल केयर बौक्स गिफ्ट कर के उन के होंठों पर मुसकान लौटाने के साथसाथ उन के चेहरे की खोई रौनक को भी लौटा सकती हैं क्योंकि इस बौक्स में होता है फेशियल क्लींजर, टोनर, पैक से ले कर नाइट ट्रीटमैंट क्रीम तक और सन प्रोटैक्शन देने वाला सनस्क्रीन भी जो उन की स्किन को क्लीन, डैड स्किन को रिमूव करने के साथसाथ फेस पर ग्लो तो लाएगा ही, साथ ही स्किन पर एजिंग को भी कम करने का काम करता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- मां को दें स्किन केयर से जुड़ा ये तोहफा

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मैट प्रौडक्ट से स्किन को बनाएं खूबसूरत

अगर आप औल टाइम फ्रैश और सौफिस्टिकेटेड मेकअप लुक की ख्वाहिश रखती हैं, तो मैट के मेकअप प्रोडक्ट्स को अपनी पहली पसंद बना सकती हैं. लौंग लास्टिंग, फ्रैश लुक, नैचुरल शेड्स जैसी इस में ऐसी कई खूबियां हैं, जो इसे बाकी मेकअप प्रोडक्ट्स से बेहतर बनाती हैं.

मैट मेकअप प्रोडक्ट्स

मैट के मेकअप प्रोडक्ट्स औयल फ्री और पाउडर बेस्ड होते हैं. क्रीमी, ग्लौसी, शाइनी, शिमरी कौस्मैटिक की तरह ये औयली नजर नहीं आते और न ही इन का इफैक्ट गौडी होता है. इन का टैक्स्चर बहुत ही सौफ्ट ऐंड स्मूद होता है. इन्हें अप्लाई करने से चेहरा फ्रैश नजर आता है.

मैट के डिफरैंट मेकअप प्रोडक्ट्स

मैट कौस्मैटिक लिपस्टिक या आईलाइनर तक सीमित नहीं हैं. बाजार में मैट का फाउंडेशन, प्राइमर, मैट फिनिश पाउडर, आई लाइनर, आईशैडो, मसकारा, लिपस्टिक, लिप लाइनर, ब्लशर, नेल पौलिश आदि भी मैट फिनिश लुक में मिल जाते हैं, जो मिनटों में आप की खूबसूरती को निखार सकते हैं.

मैट मेकअप प्रोडक्ट्स की खासीयत

लौंग लास्टिंग: चूंकि मैट कौस्मैटिक पाउडर बेस्ड होते हैं, इसलिए ये न तो जल्दी मिटते हैं और न ही फैलते हैं. अप्लाई करने के कुछ देर बाद ही ये जल्दी सैट हो जाते हैं और लंबे समय तक टिके रहते हैं, जबकि क्रीमी और ग्लौसी कौस्मैटिक बहुत जल्दी चेहरे से उतर जाते हैं.

फ्रैश लुक: बाकी कौस्मैटिक की तरह मैट कौस्मैटिक में मिनरल औयल और पैट्रोलियम जैल नहीं होता, इसलिए बाकी मेकअप प्रोडक्ट्स की तरह कुछ घंटों में ही इन का शेड न तो फीका पड़ता है और न ही चेहरा मुरझाया सा लगता है. यह हमेशा फ्रैश नजर आता है.

यंग इफैक्ट: मैट कौस्मैटिक का टैक्स्चर काफी स्मूद होता है. चेहरे पर मैट कौस्मैटिक लगाने से आंखों के करीब और होंठों के आसपास उभर आईं फाइन लाइंस और रिंकल्स आसानी से छिप जाती हैं, जबकि ग्लौसी कौस्मैटिक से झुर्रियां उभर कर दिखती हैं.

वैल्वेट फिनिश: शाइनी या शिमरी टैक्स्चर के कौस्मैटिक चेहरे को गौडी इफैक्ट देते हैं, लेकिन मैट का वैल्वेट फिनिश टैक्स्चर चेहरे को सौफ्ट लुक देता है, जिस से चेहरा काफी आकर्षक नजर आता है.

लाइट वेट: नौनऔयली और जीरो शिमर होने की वजह से मैट के मेकअप प्रोडक्ट्स बाकी कौस्मैटिक की तुलना में लाइट वेट होते हैं. इन्हें लगाने से त्वचा में भारीपन महसूस नहीं होता है, जबकि शिमरी कौस्मैटिक से हैवी फील होता है.

नैचुरल शेड्स: औयल की वजह से जहां क्रीमी शेड मेकअप प्रोडक्ट्स नैचुरल शेड  से थोड़ा डल नजर आता है, वहीं पाउडर बेस्ड होने के कारण मैट कौस्मैटिक का शेड और भी गहरा हो जाता है. नतीजतन यह बिलकुल नैचुरल लगता है.

नौनस्टिकी: मैट के मेकअप प्रोडक्ट्स बिलकुल चिपचिपे नहीं होते. अप्लाई करने के कुछ देर बाद ही सूख जाते हैं और ये तब तक नहीं निकलते जब तक कि इन्हें रगड़ कर छुड़ाया न जाए, जबकि ग्लौसी और क्रीमी कौस्मैटिक दूर से ही स्टिकी नजर आते हैं.

नो टचअप: समय के साथ जब मेकअप का शेड हलका होने लगता है तब टचअप की जरूरत होती है, लेकिन एक बार चेहरे पर मैट मेकअप लगा कर आप कई घंटों के लिए टैंशन फ्री हो सकती हैं, क्योंकि ये जल्दी नहीं उतरते.

ईजी टू अप्लाई: मैट कौस्मैटिक की एक और खासीयत यह है कि कुछ बातों को ध्यान में रख कर आप इसे घर बैठे खुद भी लगा सकती हैं. आप को किसी मेकअप ऐक्सपर्ट की सहायता लेने की जरूरत नहीं है.

फौर औल सीजन: मेकअप आर्टिस्ट के अनुसार विंटर में क्रीम बेस्ड मेकअप प्रोडक्ट्स लगाने चाहिए. समर सीजन में वाटर बेस्ड, लेकिन पाउडर बेस्ड मैट कौस्मैटिक आप हर सीजन में लगा सकती हैं.

हाई डैफिनेशन: मैट कौस्मैटिक फेशियल फीचर को स्ट्रौंगली हाईलाइट करते हैं जैसे आप के होंठ अगर पतले हैं तो मैट की लिपस्टिक आप के होंठों को फुलर लुक दे सकती है. अगर आप की आंखें छोटी हैं तो मैट के आईलाइनर और आईशैडो से उन्हें आकर्षक लुक दिया जा सकता है.

सैल्फी ऐक्सपर्ट: मेकअप में फोटो भी तब खूबसूरत नजर आता है जब मेकअप का टैक्स्चर सही हो. ग्रेसी और शाइनी मेकअप चेहरे को औयली इफैक्ट देते हैं, जो फोटो में भी साफ नजर आता है, लेकिन मैट के मेकअप प्रोडक्ट्स फोटो में भी काफी आकर्षक नजर आते हैं.

हर स्किन टाइप के लिए आइडियल है मैट

मैट कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स नौर्मल, ड्राई और औयली स्किन टाइप पर भी सूट करता है, लेकिन बात अगर औयली स्किन की करें तो औयली स्किन के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं. जहां ग्लौसी और क्रीमी कौस्मैटिक औयली स्किन पर सूट नहीं करते और पूरी तरह से फैल कर चिपचिपे नजर आते हैं, वहीं मैट के मेकअप प्रोडक्ट्स औयल अब्जौर्बर होने की वजह से औयली त्वचा के ऐक्स्ट्रा औयल को पूरी तरह से सोख लेते हैं, जिस से मेकअप का बेस अच्छी तरह सैट हो जाता है और लंबे समय तक टिका रहता है.

कैसे दूर करें बच्चों में नींद की समस्या

अकसर नवजात शिशु के रात में न सोने पर प्रसूता मां परेशान रहती है. उसे सास या मां द्वारा यह तसल्ली भी दी जाती है कि 40 दिन तक यह परेशानी झेलनी पड़ेगी. उस के बाद बच्चा रात में ज्यादा तंग नहीं करेगा. लेकिन कई बच्चे 4-6 महीने तक, तो कई डेढ़ से 2 साल तक मां को रात में जगाते रहते हैं और मांएं अकसर परेशान रहती हैं कि उन के बच्चे बड़ों की तरह पूरी रात लगातार क्यों नहीं सोते? उन के इसी प्रश्न को ले कर हम ने पश्चिमी दिल्ली में अपना क्लीनिक चला रहे बालरोग विशेषज्ञ डा. अरुण कुमार सागर से बातचीत की. उन्होंने बताया, ‘‘दरअसल, हम सब के सोनेजागने का एक चक्र होता है, उसी हिसाब से हम सोते और जागते हैं. नवजात शिशु में इस चक्र के नियमित होने में समय लगता है. इसी वजह से वह अनियमित नींद लेता है. इस नियम के बनने में लगभग 6 सप्ताह लग जाते हैं और तब शिशुओें का नियमित सोनेजागने का चक्र बन जाता है.’’

बच्चे की नींद को पहचानना सीखें

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नएनए मातापिता बने दंपती को बच्चे की नींद पहचानना आना चाहिए. नींद की 2 दशाएं होती हैं- एक कच्ची या सक्रिय नींद, जिसे वैज्ञानिक भाषा में रेम (रेपिड आई मूवमेंट) कहते हैं. दूसरी, गहरी नींद (नौन रेम). वयस्क व्यक्ति बिस्तर में जाते ही आसानी से गहरी नींद में सो जाता है. उस की गहरी नींद का चक्र 90 मिनट का होता है. इस दौरान व्यक्ति का शरीर बिलकुल स्थिर रहता है, श्वास की गति नियमित होती है, मांसपेशियां ढीली होती हैं. 90 मिनट के बाद शरीर तो सुप्त अवस्था में रहता है लेकिन मस्तिष्क जाग जाता है और काम करना शुरू कर देता है और उसे गहरी नींद से सक्रिय नींद या कच्ची नींद में ले आता है. इस दौरान बंद पलकों के अंदर पुतलियां सक्रिय हो जाती हैं. वह करवट बदलता है, सपने देखता है और कुछ देर बाद पुन: गहरी नींद में चला जाता है. सारी रात यह चक्र चलता रहता है.

इस तरह 8 घंटों की नींद में से 6 घंटे गहरी नींद में और 2 घंटे सक्रिय नींद या कच्ची नींद में बीतते हैं. लेकिन नवजात शिशु में यह चक्र 50 मिनट का होता है. वह 20-25 मिनट कच्ची नींद में रहता है और 25 मिनट गहरी नींद में. यह चक्र इसी तरह दिनरात चलता है. 6 माह की उम्र होतेहोते कच्ची नींद 30% हो जाती है.स्कूल की उम्र आतेआते बच्चे की नींद का चक्र भी 90 मिनट का हो जाता है. बच्चा जब कच्ची नींद में होता है तो मुसकराता है, हिलताडुलता है, उस की सांसें अनियमित होती हैं, मुट्ठियां कसी होती हैं. इसी कच्ची नींद में शोर से या किसी अन्य कारण  से यदि बच्चा उठ जाता है तो वह रोने लगता है और उसे फिर से सुलाना पड़ता है, तब वह गहरी नींद में जाने के लिए फिर से 20-25 मिनट का समय लेता है.

गहरी नींद आ जाने पर बच्चे जल्दी से नहीं उठते हैं, इसलिए बच्चे के सोने के 20-25 मिनट तक घर में शांति का माहौल रखना चाहिए. गहरी नींद में बच्चे बेसुध सोते हैं, उन की मुट्ठियां खुल जाती हैं, श्वास की गति नियमित हो जाती है.

नवजात शिशु (1-2 माह तक)

इस अवधि में नवजात शिशु 24 घंटों में से 10 से 18 घंटे तक सोते हैं. उन के सोनेजागने का चक्र उन की जरूरत के हिसाब से भी चलता है. शिशु को मां का दूध जल्दी हजम हो जाता है, उस का पेट भी छोटा होता है, इसलिए उसे जल्दी से भूख लग जाती है. भूख की वजह से उस की नींद खुल जाती है. उस की जरूरत को जितनी जल्दी पूरा कर दिया जाए, वह उतनी जल्दी दोबारा सो जाता है. चूंकि उस की नींद का चक्र 50 से 60 मिनट का होता है, इसलिए वह 1 घंटे या उस से पहले ही हिलनेडुलने लगता है. ऐसे समय में यदि उस की पीठ थपथपा कर, उस को अपने साथ सटा कर या लोरी गा कर अपने साथ होने का एहसास करा दिया जाए तो वह कच्ची नींद से फिर गहरी नींद में चला जाएगा. कुछ माह में वह खुद ही गहरी नींद में जाने की कला सीख जाता है. नवजात शिशु के साथ दिन में खेल कर या बतिया कर उसे कम सोने दें ताकि रात में वह अपनी नींद पूरी कर सके. रात को कमरे का वातावरण शांत रखें और जीरो वाल्ट का बल्ब जला कर धीमी रोशनी रखें.

शिशु की नींद (3-11 माह तक)

6 माह के बाद रात को उठ कर शिशु को दूध देने की आदत छुड़वा देनी चाहिए. 3 से 6 माह की आयु होने पर अधिकतर शिशु 5 घंटे लगातार सो जाते हैं. इस उम्र में रात को वे 1 या 2 बार उठते हैं. यदि शिशु रात्रि में उठ कर रोए तो कारण जानने की कोशिश करें. हमेशा यही मत सोचें कि उसे भूख ही लगी होगी. उस के रोने के कई कारण हो सकते हैं. उस के पेट मेें अफारा हो सकता है, उस की नैपी गीली हो सकती है, जुकाम से उस की नाक बंद हो सकती है, ज्यादा थकावट हो सकती है, हाथपैर में पहना कोई आभूषण चुभ रहा हो सकता है या नैपी रैशेज आदि दूसरे कारण हो सकते हैं. कारण को समझ कर यदि उस का तुरंत इलाज कर दिया जाए तो बच्चा शांत हो कर सो सकता है. सर्दियों में शिशुओं को बहुत ज्यादा गरम कपड़े पहना कर न सुलाएं. डाक्टर की सलाह से जुकाम, बुखार, गैस्ट्रिक, खांसी आदि की दवा रात को अपने बेड के पास हमेशा रखें ताकि बच्चे की तकलीफ तत्काल दूर कर सकें. सुबह होने पर बच्चे को डाक्टर के पास अवश्य ले जाएं.

बच्चा जब उनींदा हो तभी उसे गोद से उतार कर बिस्तर पर लिटा दें. ऐसा करने से बच्चा खुदबखुद गहरी नींद में सोना सीख जाता है. कुछ बच्चे उनींदी अवस्था में गोद से उतरना पसंद नहीं करते और बिस्तर पर लिटाते ही रोने लगते हैं. ऐसे बच्चों की मांओं को बच्चे के गहरी नींद में जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए ताकि वे बिस्तर पर लिटाने से देर तक सोते रहें. वैसे इस उम्र में उन की गहरी नींद में सोने की औसत दर बढ़ जाती है.

छोटे बच्चे की नींद (1-3 वर्ष तक)

इस पीरियड में बच्चे की नींद 12 से 14 घंटे की हो जाती है. अब बच्चे दिन में एक बार ही नींद लेते हैं. यह नींद 1 घंटे से ले कर 3 घंटे तक की हो सकती है. अब बच्चे की दिनचर्या अनुशासित कर देनी चाहिए. उसे दिन में एक निश्चित समय में सुलाएं और रात में भी उस का सोने का समय निश्चित कर दें. कुछ बच्चे डेढ़ से 2 साल के हो जाने पर भी रात को उठ जाते हैं. ऐसे बच्चों में असुरक्षा की भावना होती है, उन्हें सुरक्षित महसूस कराइए. जैसा वे चाहते हैं, कुछ देर वैसे ही उन के साथ समय बिताइए. उस के बाद वे निश्ंचत हो कर सो जाते हैं. कुछ बच्चे सोने से पहले बहुत तंग करते हैं. वे शायद अंधेरे या दुस्वप्नों के डर की वजह से ऐसा करते हैं. उन्हें लोरी गा कर, कहानी सुना कर, बातें करतेकरते सुलाएं. दिन में बच्चा ज्यादा खेल चुका हो और उसे ज्यादा थकावट हो रही हो तो उस की टांगें, बाहें दबाते हुए उसे सुलाएं. कभीकभी दांत निकलने की वजह से बच्चा सिर में भारीपन महसूस करता है, ऐसा होने पर सिर की मालिश करते हुए उसे सुलाएं.

कुछ बच्चे आप के सोने के नियमों को न मान कर स्वतंत्र रहना चाहते हैं. बारबार उन्हें सुलाने की कोशिश करने से वे चिढ़ जाते हैं और रोने लगते हैं. ऐसे बच्चों को 1-2 सप्ताह स्वतंत्र छोड़ दें, वे अपनेआप सोने लगेंगे. प्रत्येक मां अपने बच्चे के स्वभाव को पहचान कर उस के साथ वैसा ही व्यवहार करे तो मां और बच्चा दोनों खुश रहेंगे.

नवजात शिशु द्वारा रात में उठने के लाभ

जन्म के शुरू के महीनों में बच्चे की जरूरतें काफी अधिक होती हैं, लेकिन उस के पास अपनी जरूरतों को बताने के तरीके बहुत कम होते हैं. यदि वह सारी रात सोता रहेगा तो उस का नन्हा सा पेट, जो जल्दी खाली हो जाता है, उस के बारे में वह बता नहीं पाएगा. उस की भूख की जरूरत पूरी न होने से उस का विकास सही तरीके से नहीं हो पाएगा. यदि बच्चे की नाक जुकाम से बंद हो रही है और वह ठीक से सांस नहीं ले पा रहा है तो वह रो कर ही उसे व्यक्त करेगा. यदि वह सोता ही रहा तो कुछ अनिष्ट भी हो सकता है. रिसर्च यह भी बताती है कि बच्चे की कच्ची नींद में दिमाग की तरफ जाने वाला खून का दौरा दोगुना हो जाता है, जिस से नवजात के दिमाग का विकास अच्छे तरीके से होता है. इसलिए किसी दवा द्वारा या अन्य तरीके से बच्चे को एकदम गहरी नींद में सुलाना उस के दिमागी विकास में बाधक होगा. नवजात को 9 घंटे कच्ची या सक्रिय नींद लेने दें.

कमजोर न पड़ जाएं मैरिड लाइफ

आज अदीति अपनी जिस शादी को बचाने के लिए काउंसलर के चक्कर काट रही थी, उस के पीछे एक बहुत ही साधारण सा मगर जटिल कारण है. अदीति और उस के पति की सैक्स लाइफ में कई जटिलताएं थीं, जो अभिव्यक्ति की असफलता से शुरू हो कर घुटन और निराशा में तबदील हो गई थीं.

आखिर ऐसी क्या बात हुई जो सैक्स जैसा मनोरंजक विषय घुटन का कारण बन गया? पतिपत्नी के बीच सैक्स लाइफ प्रगाढ़ संबंध की निशानी है. इस में सुरक्षा का एहसास, नाजुक अनुभूतियां, आपसी तालमेल, प्रेम की गहराई वह सब कुछ होना चाहिए, जो स्थाई और ऊर्जावान संबंध के लिए जरूरी है. पर इस के लिए कुछ जुगत भी करनी पड़ती है. अच्छे सैक्स जीवन और गहरे रिश्ते के एहसास के लिए अभिव्यक्ति की आजादी को स्वीकारना पड़ता है.

दोनों पतिपत्नी का रूटीन की तरह सैक्स को निभाते जाना न सिर्फ सैक्स लाइफ में उबाने वाली शिथिलता ला देता है, बल्कि रिश्ते के असफल हो जाने में भी कोई कसर नहीं रहती. शहर कहें या गांव, भारतीय और इसलामिक समाज में स्त्रियों के लिए सैक्स पर चर्चा तथा इस मामले में अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति को नीच मानसिकता कह कर अनुत्साहित किया जाता है. वैसी स्त्रियां जो अपने पार्टनर से सैक्स के बारे में अपनी इच्छाएं खुल कर कहना चाहती हैं सभ्य और सुसंस्कृत नहीं मानी जातीं. बड़े शहरों की बिंदास लड़कियों को छोड़ दें, तो बाकी सैक्स को पति की सेवा का ही अहम हिस्सा मान कर चलती हैं तथा अपनी इच्छाअनिच्छा पति से बोलने की जरूरत महसूस नहीं करतीं.

भेदभाव क्यों

थोड़ा गहराई में जाएं तो पाएंगे कि सैक्स की इच्छा और क्षमता को मानव जीवन का प्रधान तत्त्व समझा जा सकता है. सैक्स जीवन को नियंत्रित करने में जीववैज्ञानिक, नैतिक, सांस्कृतिक, कानूनी, धार्मिक आदि विभिन्न दृष्टिकोणों का योगदान होता है यानी सैक्स जीवन और इस की अभिव्यक्ति पर इन बातों का बहुत प्रभाव रहता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने व्यक्ति के सैक्स जीवन की महत्ता पर बल देते हुए इस के प्रति सकारात्मक और सम्माननीय दृष्टिकोण अपनाने की बात कही है. इस संगठन ने माना कि अपने साथी के साथ सैक्स संबंध बिना किसी भेदभाव, हिंसा और शारीरिक, मानसिक शोषण के पूरी ऊर्जा और भावनात्मक संतुलन के साथ होना चाहिए.

सवाल अहम है कि हमारे देश में जहां स्त्रियों पर सैक्स से संबंधित बलात्कार, मानसिक शोषण, घरेलू हिंसा बदस्तूर जारी है, स्त्री के सैक्स संबंधी अधिकार और सैक्स के प्रति खुली राय क्या स्वीकार्य है?

अगर जागरूकता आ जाए और स्त्रियां भी इस मामले में अपनी भावनाओं को पूरा महत्त्व दें व पार्टनर से खुली बातचीत करें तो बहुत फायदे मिल सकते हैं.

आपस में दोस्ती का रिश्ता: अगर पतिपत्नी के बीच दोस्ती की भावना विकसित हो जाए तो इन के बीच ऊंचनीच, बड़ेछोटे का अहंकारपूर्ण भेद अपनेआप मिट जाए. दोनों का आपस में एकदूसरे की सैक्स इच्छाओं के बारे में बताने से यह आसानी से हो सकता है.

व्यक्तित्व का विकास: अगर स्त्री सैक्स के मामले में सिर्फ समर्पिता न रह कर पसंदनापसंद को जाहिर करे, तो वह पुरुष पार्टनर के दिल में आसानी से अपने लिए रुचि जगा सकती है, जो व्यक्तित्व विकास में सहायक है.

आत्मविश्वास की बढ़ोत्तरी: सिर्फ पुरुष की इच्छा पर चलना सैक्स जीवन में एक मशीनी प्रभाव उत्पन्न करता है, लेकिन स्त्री भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए तो जीवन में फिर से नई ऊर्जा का संचार हो जाए.

वैसे तो भारतीय परिवेश को अभी भी लंबा वक्त लगेगा कुसंस्कारों के बंधनों से मुक्त होने में, लेकिन उन कारकों के बारे में बातें कर पिछड़ी मानसिकता को कुछ हद तक कम करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं.

बचपन से ही पारिवारिक माहौल में लड़कियों को यह शिक्षा मिलती है कि सैक्स निकृष्ट है और इस से लड़कियों को दूर रहना चाहिए.

चरित्र को भी सैक्स के साथ जोड़ा जाता है. सैक्स की इच्छा को दबा कर या इस के बारे में अपनी राय को छिपा कर ही सद्चरित्र रहा जा सकता है.

चरित्र को परिवार की इज्जत के साथ जोड़ा जाता है. लड़की परिवार की इज्जत मानी जाती है यानी सैक्स के बारे में निजी खुली सोच दुष्चरित्र होने की निशानी है, जिस से परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है.

शादी के बाद यही संस्कार स्त्री में मूलरूप से जमे होते हैं और वह सैक्स के बारे में पति से स्वयं अपनी इच्छा बताने में भारी संकोच महसूस करती है. इस मामले में आम पुरुषों की सोच भी परंपरावादी सामंती प्रथा से प्रभावित लगती है. उन्हें अपनी पत्नी का सैक्स मामले में खुलना और इच्छा जाहिर करना स्त्री सभ्यता के विपरीत लगता है. इस सोच के साथ पुरुष स्त्रियों का कई बार मजाक भी उड़ाते हैं या उन की भावनाओं की कद्र नहीं करते. तब स्त्री के पास भी अपनी खोल में सिमट जाने के अलावा और कोई चारा नहीं होता. बाद में यही पुरुष सैक्स के वक्त स्त्री के मृत जैसा पड़े रहने के उलाहने भी देते हैं, जो संबंध में भ्रम की स्थिति पैदा कर देते हैं.

स्त्री जब इन सारी बाधाओं को पार कर समान मूल्य और अधिकार का आनंद ले पाएगी तभी वह एक भोग्या की तरह नहीं एक सही साथी की तरह जिंदगी के इन खुशगवार पलों का उपभोग कर पाएगी.

कैसा हो आपका ड्रैसिंग सैंस

हर कोई चाहता है कि वह औरों से कुछ हट कर व आकर्षक दिखे. लोगों में उस की पहचान बने. वह सभी का चहेता बने, पर यह सबकुछ तभी संभव है, जब आप की ड्रैसिंग सैंस भी उतनी ही अच्छी हो, जितनी कि आप के काम करने की क्षमता. लोगों के बीच अपनी अलग छवि बनाने के लिए आप में ड्रैसिंग सैंस का होना बहुत जरूरी है.

आजकल अच्छे कपड़ों की तारीफ हर जगह होती है. चाहे औफिस हो, पार्टी हो या अन्य कोई फंक्शन, सब जगह ड्रैसिंग सैंस काफी माने रखती है. रंगों के मामले में खास ध्यान रखना पड़ता है. सोबर कलर्स पर्सनैलिटी को निखारते हैं. माहौल के मुताबिक कपड़े पहनें. ड्रैस ऐसी पहननी चाहिए जो आप की बौडी को सूट करे.

अपने प्रोफैशन के हिसाब से अपनी ड्रैस का चयन करें. आप पर कौन सा रंग ज्यादा फबता है, उसी के अनुसार पहनें. इन सब के अलावा और भी कुछ ऐसी जानकारियां हैं, जो आप की छवि बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं :

उठनेबैठने व चलने के सही तरीके के साथसाथ आप का ड्रैसिंग सैंस भी अटै्रक्टिव होना चाहिए. केवल खूबसूरती से बात नहीं बनती, इस के लिए आप को माहौल के अनुरूप कपड़ों का चयन करना भी आना चाहिए.

औफिशियल मीटिंग में लाइट कलर के कपड़े पहन कर जाना चाहिए. फौर्मल ड्रैस औफिस के लिए ज्यादा उपयोगी होती है. चटकफटक वाली ड्रैस व्यक्ति की ओछी मानसिकता को दर्शाती है.

डार्क सूट के साथ सफेद रंग की शर्ट पहनें. यह क्लासिक लुक देती है. अन्य कलर्स की पैंट के साथ भी यह पहनी जा सकती है.

छोटे व मोटे कद पर डबल ब्रेस्ट सूट जैकेट अच्छी नहीं लगती. जहां तक संभव हो कलर्स में मिक्स्ड ऐंड मैच को अपनाएं. डार्क के साथ लाइट, लाइट के साथ डार्क का कांबिनेशन आकर्षक लुक देता है. सेमी फौर्मल लुक के लिए ब्ल्यू ब्लेजर के साथ हलके रंग का ट्राउजर ज्यादा फबता है. यह पर्सनैलिटी को भी आकर्षक बनाता है.

लंबी हाइट पर टू बटन सिंगल ब्रेस्ट सूट जैकेट अच्छी दिखती है. यह पार्टी और औफिस में खूब शान बढ़ाती है.

डबल ब्रेस्ट सूट जैकेट स्लिम और लंबे कद पर खूब जमती है. छोटे व मोटे कद वालों पर यह अच्छी नहीं लगती. इसलिए इसे वे ही पहनें, जो लंबे और पतले हैं.

वाइट शर्ट को अपनी पहली पसंद बनाएं. यह हर कलर की पैंट के साथ पहनी जा सकती है. वाइट शर्ट लुक में पोजिटिव चेंज के साथसाथ आप की उपस्थिति को महत्त्वपूर्ण भी बनाती है.

टाई ऐसी पहनें, जो न तो ज्यादा लंबी हो और न ही ज्यादा छोटी. यह सूट या पैंटशर्ट पर मैच करती हुई होनी चाहिए. कलर्स पर विशेष ध्यान दें.

जूते ड्रैस के अनुरूप पहनने चाहिए. अगर छोटा कद हो तो ऊंची हील के शूज आप की लंबाई को दर्शाने के साथसाथ आप की स्मार्टनैस को भी दिखाते हैं. प्लेन लैदर के जूते पहनें.

ड्रैसिंग सैंस के साथसाथ आप का बौडी पोस्चर भी माने रखता है, जो आप की पर्सनैलिटी में चार चांद लगाता है.

निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि आप इस बात को अपने दिमाग से निकाल फेंकें कि आप का खूबसूरत होना ही आप को आकर्षण का केंद्र बनाएगा, ऐसा नहीं है. खूबसूरती के साथसाथ कपड़ों का चयन भी माने रखता है. सही माने में आप तभी लोगों की चाहत बनेंगे.

लीप के बाद Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin को अलविदा कहेंगे ये 2 किरदार! पढ़ें खबर

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin)की कहानी में इन दिनों विराट और सई को जुदा होते देख फैंस का गुस्सा देखने को मिल रहा है. जहां लोग पाखी को कोस रहे हैं तो वहीं विराट की हरकतों पर सवाल उठाते दिख रहे हैं. हालांकि लीप की तरफ बढ़ती सीरियल की कहानी में कई बदलाव देखने को मिलने वाले हैं, जिसके चलते दो एक्टर्स ने सीरियल छोड़ने का फैसला कर लिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

इन दो सितारों के कहा शो को अलविदा

 

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खबरों की मानें तो लीप के बाद सीरियल की कहानी में कई बदलाव होने वाले हैं, जिसे देखते हुए मेकर्स ने 2 किरदारों को खत्म करने का फैसला लिया है. दरअसल कहा जा रहा है कि सीरियल में शिवानी के पति के रोल में नजर आने वाले एक्टर सचिन श्रॉफ और सम्राट की मां यानी एक्ट्रेस रुपा दिवातिया ने शो को अलविदा कहने वाले हैं, जिसके चलते लीप के बाद ये 2 किरदार शो में नजर नहीं आएंगे. वहीं कहा जा रहा है कि लीप के बाद जहां एक्ट्रेस रुपा को मरा हुआ बताया जाएगा तो वहीं एक्टर सचिन श्रॉफ के किरदार को विदेश में रहने की बात कही जाएगी. हालांकि इन एक्टर्स की या मेकर्स की तरफ से अभी कोई औफिशियल जानकारी नहीं है. लेकिन फैंस काफी निराश दिख रहे हैं.

 

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सई होगी प्रैग्नेंट

 

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लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो पाखी के जेल से वापस आने के बाद सई घर छोड़कर चली गई है. वहीं उसका एक्सीडेंट भी हो गया है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई के एक्सीडेंट की खबर सुनने के बाद विराट उसे ढूंढने की कोशिश करेगा. तो वहीं होश में आते ही सई अपने बेटे विनायक को ढूंढेगी. जहां डौक्टर उसे बताएगी कि वह प्रैग्नेंट है, जिसे सुनकर वह चौंक जाएगी. हालांकि इसी ट्रैक के चलते इन दिनों नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन मेकर्स सीरियल को दिलचस्प बनाने के लिए पूरी तैयारी करते दिख रहे हैं.

Anupama को धमकी देगी बरखा, मिलेगा करारा जवाब

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों अनुज की भाभी और भाई मिलकर साजिश करते दिख रहे हैं. जहां अधिक और बरखा, वनराज को जेल भेजने के लिए प्लानिंग कर रहे हैं तो वहीं अनुज के ठीक होने के लिए पूरा शाह परिवार दुआ करता दिख रहा है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में बरखा, अनुपमा पर बरसने वाली है. हालांकि इस बार अनुपमा उसे करारा जवाब देती दिखेगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Update )…

घर लौटा वनराज

 

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अब तक आपने देखा कि बरखा, वनराज और अनुपमा की बातें सुनती है और अपने पति अंकुश और अधिक से शाह परिवार और अनुपमा से बदला लेने की बात कहती है और वनराज के खिलाफ केस करने के लिए कहती है. वहीं वनराज अस्पताल से ठीक होकर शाह हाउस पहुंचता है. जहां वह अनुज के ठीक होकर घर वापस आने की कामना करते हैं.

 

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अनुपमा लाएगी अनुज को घर

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज को एक बार फिर होश आता है और वह घर जाने के लिए कहेगा, जिसके चलते अनुपमा डौक्टर से उसे घर ले जाने के लिए कहेगी. वहीं डौक्टर हां कर देगा और अनुपमा को अनुज का खास ख्याल और सावधानी बरतने के लिए कहेगा. इसी के चलते अनुपमा, अनुज के घर आने की बात बरखा अंकुश को बताएगी, जिसे सुनकर वह चौंक जाएंगे. हालांकि वह कुछ नही कहेगी. लेकिन अनुज के घर आने पर तोषू और शाह फैमिली को ताना मारेगी कि वनराज के कारण अनुज की ये हालत हुई है.

बरखा को लगेगा झटका

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि अंकुश और बरखा, अनुपमा से चेक पर साइन करने के लिए कहेंगे. लेकिन वह इस बात के लिए मना कर देगी, जिसके चलते बरखा गुस्से में चिल्लाएगी और कहेगी कि जैसे अनुपमा को उन पर भरोसा नहीं है, वैसे ही उन्हें भी अनुपमा पर भी भरोसा नहीं है. इसलिए उन्होंने अनुज के लिए नर्स चुनने और उसके कमरे में सीसीटीवी कैमरा लगाने का फैसला किया. बरखा की बात सुनकर अनुपमा गुस्से में उसे चेतावनी देगी कि आज उसने जो कहना था कह दिया. लेकिन अगर उसने त्योहार के दौरान किसी भी मुद्दे पर बहस की तो वह अनुज का किया फैसला लेने पर मजबूर हो जाएगी, जो वह पूजा के बाद कहना चाहता था.

बच्चे के विकास में सहायक होते हैं खिलौने, उम्र के अनुसार ऐसे करें चुनाव

बच्चे नासमझ होते हैं. वे खेल और खिलौनों के माध्यम से ही अनेक बातें सीखते हैं. खेलखेल में ही बच्चों का शारीरिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास होता है और वे भाषाई निपुणता हासिल कर अपनी स्वतंत्र पहचान बना लेते हैं. अच्छे खिलौनों के साथ खेल कर धीरेधीरे बच्चों की अपनी समझ बढ़ती है और दूसरों पर उन की निर्भरता कम होती जाती है. यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. मातापिता सिर्फ अच्छे खिलौने दे कर उन के विकास की प्राकृतिक प्रगति को गति प्रदान कर सकते हैं. बच्चों के शुरुआती वर्षों यानी बचपन के महत्त्व को भूल से भी अनदेखा नहीं करना चाहिए. बच्चे के जीवन के पहले 5 वर्ष संरचनात्मक होते हैं. इस दौरान बच्चे की बुद्धि किसी स्पंज की तरह होती है, वह अधिक से अधिक जानकारी को सोखने व आत्मसात करने की क्षमता रखता है. बच्चे के मस्तिष्क का 85% विकास इन्हीं शुरुआती वर्षों में होता है.

बच्चा अपने आसपास के लोगों, खिलौनों, घर और प्रकृति की हर चीज को निहारता है और उस से खेलता है. बच्चे के शारीरिक और बौद्धिक विकास के बारे में थोड़ी सी भी जानकारी और समझ से मातापिता बच्चे को सही उम्र में सही खिलौने व उचित वातावरण दे कर उस के विकास को सही दिशा प्रदान कर सकते हैं. बच्चों और खिलौनों का तो चोलीदामन का साथ रहा है. पहले बच्चे घर में रुई, कपड़े और मिट्टी के खिलौनों से खेलते थे, पर आज इलेक्ट्रोनिक खिलौनों का युग है. बाजार में महंगे से महंगे खिलौने उपलब्ध हैं, लेकिन खिलौनों के महत्त्व एवं उपयोगिता को उन की कीमत से नहीं आंका जा सकता. खिलौनों से खेल कर बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है, कल्पनाशक्ति बढ़ती है, शरीर तंदुरुस्त होता है, जिस से उस की योग्यता बढ़ती है. अच्छे खिलौने बच्चों की कार्यक्षमता, कार्यकुशलता और रचनात्मकता को बढ़ाते हैं.

ऐसा खिलौना, जो बच्चों को अपनी कल्पनाशक्ति से कुछ नया रचने के लिए प्रोत्साहित करे, उन खिलौनों से बेहतर है, जिन से कुछ पूर्व निर्धारित चीजें ही बन सकती हैं. खिलौने खरीदते समय बच्चे की उम्र का ध्यान जरूर रखें. आइए, देखें कि किस उम्र में बच्चों को किस प्रकार के खिलौनों की जरूरत होती है :

पहला वर्ष

पहले वर्ष में बच्चे के शारीरिक एवं बौद्धिक विकास की गति बहुत तेज होती है, इसलिए खेलखिलौनों की उस की जरूरत भी जल्दीजल्दी बदलती है. पहले वर्ष में वह विकास के कई पड़ावों से गुजरता है. हर पड़ाव पर उस के खिलौनों को बदलना जरूरी है :

0-3 मास : जन्म से 3 माह तक बच्चे की संवेदनाएं देखनेसुनने तक ही सीमित होती हैं. अधिकतर समय वह सोता है. आंखें खोलता है तो अपने आसपास के लोगों को देखता है, उस की आंखें दूर तक उन का पीछा करती हैं. ऐसे समय में उसे रंगबिरंगे, तरहतरह की आवाज करने वाले यानी ध्यान आकर्षित करने वाले खिलौने अच्छे लगते हैं. खिलौनों की आवाज सुन कर वह आंखें खोलता है, सिर उठाता है, सिर घुमा कर उस आवाज तक पहुंचने का प्रयास करता है, जिस से उस का शारीरिक अभ्यास होता है.

3-6 मास : इस उम्र में बच्चों के दांत निकलने आरंभ होते हैं, इसलिए उस के मसूढ़ों में बहुत बेचैनी होती है, वह हाथ में आई हर चीज को चबाना चाहता है. ऐसे में उसे रबड़ और प्लास्टिक के खिलौने, जिन्हें टीथर भी कहा जाता है, दें, जिन्हें वह जी भर कर चबा सके. लेकिन ये खिलौने वन पीस होने चाहिए. खिलौने का कोई छोटा हिस्सा या पुरजा अलग हो सकने वाला न हो ताकि बच्चा गलती से उसे मुंह में डाल कर निगल न ले या फिर वह उस के गले में फंस न जाए.

6-9 मास : इस उम्र में बच्चा बैठने लगता है और घुटनों के बल चलने का प्रयास करता है. उसे बेबी डौल, चलतेफिरते खिलौने, रंगबिरंगी गेंद, प्लास्टिक एवं लकड़ी के पहियों वाले व्हीकल्स दें, जो बच्चे को अपने पीछे आने के लिए आकर्षित करते हैं और खिलौने को पकड़ने के लिए वह घुटनों के बल चलने का प्रयास करता है.

9-12 मास : अब बच्चा घुटनों के बल इधरउधर भागता है और अपने आसपास की किसी भी चीज का सहारा ले कर खड़े होने का और उसे पकड़पकड़ कर चलने का प्रयास करता है. इस उम्र में उसे 4 या 6 पहियों वाले वाकर की जरूरत होती है. इस के अतिरिक्त इस समय उस का दिमाग पूरी तरह से चलने लगता है. इसलिए उसे विभिन्न रंगों व आकारों की पहचान कराने वाले खिलौने, बड़ी साइज के बिल्ंिडग ब्लाक आदि भी दिए जा सकते हैं.

दूसरा वर्ष

एक साल का होतेहोते बच्चा चलने लगता है. वह अपना दिमाग भी चलाने की कोशिश करता है. हर चीज को पकड़ने का प्रयास करता है. कभी गरम चाय की प्याली को पकड़ता है तो कभी खाने की थाली में हाथ डाल देता है. ऐसे में उस का ध्यान रंगबिरंगी तसवीरों वाली 1-1 पंक्ति की कहानियों की किताबों में लगाएं. तसवीरों के माध्यम से समझासमझा कर उसे कहानियां सुनाएं. खेलने के लिए अनब्रेकेबल क्रिएटिव ब्लाक दें, जिन को जोड़तोड़ कर वह कुछ नया बनाने का प्रयास करे. खिलौनों में होने वाली किसी भी किस्म की टूटफूट बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है. उसे स्टार्टर बुक्स (रंगों, फलों, सब्जियों, पशुपक्षियों की पहचान कराने वाली) दें.

बच्चों को संगीत सुनना अच्छा लगता है. उन्हें लयबद्ध कविताओं एवं गीतों की कैसेट आदि सुनाएं.

तीसरा वर्ष

इस उम्र के बच्चे चीजों को जोड़ने और तोड़ने में ज्यादा खुशी महसूस करते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि ब्लाक्स को जोड़ने से कुछ बनता है या नहीं. उन्हें सिर्फ जोड़ना और तोड़ना अच्छा लगता है. बच्चों का मस्तिष्क बहुत रचनात्मक होता है. उन की रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए उन के लिए ऐसे खिलौने, जिन्हें बारबार जोड़ा और तोड़ा जा सके, देने चाहिए जैसे लकड़ी के ब्लाक्स, गुड्डेगुडि़या के परिधान व आभूषण, गेंद, रेलगाड़ी का सेट आदि जिन के साथ वे बारबार नए प्रयोग कर के अपने ढंग से कुछ नया रच सकें. मल्टीपरपज खिलौने बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ाते हैं और हर बार पहले से कुछ अलग, कुछ नया रचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इस के विपरीत विशेष थीम को ले कर बनाए गए खिलौनों से खेल कर बच्चे बहुत जल्दी थक जाते हैं, बोर हो जाते हैं.

चौथा वर्ष

इस उम्र तक पहुंचतेपहुंचते भाषा पर बच्चों की पकड़ बनने लगती है. बच्चा अपनी बात कहने और आप की बात समझने लगता है. इस उम्र के बच्चे अधिक से अधिक शरारतें करते हैं. कभी ऊंचाई से कूदते हैं तो कभी ऊंची जगह पर चढ़ने का प्रयास करते हैं, दोनों हाथों से पकड़ कर लटक जाते हैं या फिर जमीन पर लोटपोट हो कर खेलते हैं. अपने हाथों और उंगलियों पर उन की पकड़ अच्छी हो जाती है. उन की चंचलता और शरारतों से उन का ध्यान हटा कर उन्हें ध्यान केंद्रित करने वाले प्रौब्लम सौल्विंग खिलौने, लकड़ी के पजल्स, ब्लाक आदि दें. इस के अतिरिक्त नौन टौक्सिक, वाशेबल क्रिआंस, मार्कर, पेंट ब्रश, फिंगरपेंट के साथसाथ ड्राइंग व पेंटिंग के लिए रंगबिरंगे सादे कागज आदि दें. उन्हें भिंडी, आलू के रेखाचित्रों में रंग भरना सिखाएं तथा अलगअलग रेखाचित्र भी उन से बनवाएं. शारीरिक व्यायाम के लिए हाथों व पैरों से खेलने वाली विभिन्न प्रकार की बड़ी व छोटी गेंदें उन के लिए उपयोगी हैं.

पांचवां वर्ष

इस उम्र में बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. वे बहुत सारी बातें करते हैं और बहुत से प्रश्न पूछते हैं. वे हर चीज के साथ अपने ढंग से प्रयोग करना चाहते हैं. अपनी शारीरिक शक्ति को भी आजमाना चाहते हैं. उन्हें दोस्तों के साथ बैठना, खेलना और उन के साथ खिलौने शेयर करना अच्छा लगता है. कुछ नया रचने वाले खिलौनों जैसे ब्लाक्स, छोटीछोटी कारें, बिल्डिंग सेट, फर्नीचर, किचन सेट, कुरसियां, खानेपीने का सामान, तरहतरह के परिधान, आभूषण आदि की मदद से वे कभी घरघर तो कभी आफिसआफिस खेलते हैं. बिल्डिंग ब्लाक्स, जिन से तरहतरह की इमारतें बनाई जा सकें, बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रोनिक ट्रांसपोर्ट खिलौने जैसे कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल, संरचनात्मक ब्लाक, बच्चों का फर्नीचर, परिधान, गुडि़या का सामान आदि दे कर उन की कल्पनाओं को उड़ान भरने दें. ध्यान रहे, इलेक्ट्रोनिक खिलौने ‘यू.एल. अप्रूव’ होने चाहिए. इस लेबल को चेक करना न भूलें. इस का अर्थ है कि खिलौने को अंडरराइटर लैबोरेटरीज द्वारा अप्रूव कर दिया गया है.

ड्राइंग एवं पेंटिंग का सामान, संगीत के  वाद्ययंत्र जैसे माउथआर्गन, म्यूजिकल गिटार, कीबोर्ड, पढ़ने की किताबें, सी.डी., डी.वी.डी. आदि दें.

आउटडोर खिलौने

पिछले कुछ वर्षों में इनडोर खिलौनों का प्रचलन बढ़ा है, जिस के परिणामस्वरूप बच्चों में मोटापा और इस से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं. इसलिए बच्चों के लिए इनडोर एजुकेशनल खिलौनों के साथसाथ आउटडोर गेम्स भी उतने ही जरूरी हैं. पढ़ाई को ले कर भी पहले 5 वर्षों में बच्चों पर ज्यादा दबाव नहीं बनाना चाहिए. उन्हें हर समय यह नहीं महसूस होना चाहिए कि खिलौने दे कर भी उन्हें पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. बच्चों के शारीरिक विकास एवं स्वास्थ्य के लिए बाहर निकल कर खेलना भी जरूरी है. इसलिए मातापिता को घर के अंदर खेले जाने वाले एजुकेशनल खिलौनों के साथसाथ आउटडोर खिलौनों के बीच एक परफेक्ट संतुलन बैठाना होगा. घर से बाहर खुले में खेलने की आदत बच्चों में पहले वर्ष से ही विकसित करनी चाहिए. उसे बौल, प्लास्टिक डिस्क, बैटबाल आदि के साथ खेलने के लिए नियमित रूप से पार्क ले जाएं.

खिलौना ‘खेल’ शब्द से बना है. इसलिए बच्चे के लिए कोई भी गेम या खिलौना खरीदते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खिलौने बच्चों की मौजमस्ती एवं मनबहलाव के लिए होते हैं. ध्यान रहे, बच्चे गेम और खिलौनों से तभी खेलते हैं तभी उन से कुछ सीखना चाहते हैं, जब वे उन्हें आकर्षक और रुचिकर लगते हैं. गेम या खिलौना उबाऊ या नीरस नहीं होना चाहिए. खिलौने की खूबसूरत पैकिंग, ऊंचे ब्रांड से प्रभावित हुए बगैर बच्चे की उम्र और पसंद के अनुसार खिलौने की उपयोगिता को स्वयं आंकें. साथ ही अपनी नहीं बल्कि बच्चे की पसंद के अनुसार खिलौने खरीदें.             

ध्यान देने योग्य बातें

बच्चों की त्वचा अति कोमल होती है. खिलौनों का मैटेरियल इतना सौफ्ट होना चाहिए कि उन्हें पकड़ने या छूने से बच्चे की त्वचा में किसी प्रकार की जलन या चुभन न हो.

खिलौनों की बनावट गोल होनी चाहिए, किसी भी तरफ से कोने निकले हुए नहीं होने चाहिए. खिलौना अनब्रेकेबल एवं वन पीस होना चाहिए. उस में किसी तरह के जोड़ या पेंच आदि नहीं होने चाहिए, जो निकल सकें या अलग हो सकें.

बच्चों के खिलौने बनाने के लिए प्लास्टिक व रबड़ में केमिकल डाल कर उन्हें नरम व मुलायम बनाया जाता है. जब केमिकल निर्धारित मात्रा से ज्यादा डाला जाता है तो यह बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है. घरों में बनी फैक्टरियों में तो यह केमिकल बिना किसी नापतोल के डाल दिया जाता है. इसलिए सड़कछाप दुकानों पर बिकने वाले खिलौनों के बजाय अच्छे ब्रांड के खिलौने ही खरीदें.

बच्चे मुंह में खिलौने डालते हैं और बच्चे के खिलौनों को बारबार धोना पड़ता है, इसलिए खिलौनों के रंग पक्के होने चाहिए और उन का पेंट नौन टौक्सिक एवं लैडफ्री होना चाहिए.

छोटे बच्चों को इन्फेक्शन जल्दी होता है. इसलिए खिलौने आसानी से धुलने और साफ होने वाले होने चाहिए. गंदे खिलौनों से बच्चों को दूर रखें. हर बार उसे खिलौना धो कर ही दें.

चालू बाजारों या फुटकर दुकानों से खरीदने के बजाय अच्छी कंपनी के खिलौने ही खरीदें.

बौयफ्रैंड कब बनें जीवनसाथी

मध्यवर्गीय परिवार की सुनिधि ने जब कालेज में उच्चवर्ग परिवारों की लड़कियों की चमकदमक देखी तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ. सभी लड़कियां अपनेअपने बौयफ्रैंड के साथ घूमती, मौजमस्ती करती थीं. बौयफ्रैंड उन लड़कियों को उन के जन्मदिन पर गिफ्ट देते थे, फाइवस्टार होटलों में पार्टी देते थे. उच्चवर्ग परिवारों की लड़कियों की मौजमस्ती देख कर सुनिधि ने भी एक धनी परिवार के खूबसूरत लड़के सौरभ से दोस्ती कर ली. सुनिधि को सौरभ का स्वभाव बहुत अच्छा लगा और वह उसे अपना जीवनसाथी बनाने की कल्पना में खोईखोई रहने लगी. लेकिन जल्द ही उस की कल्पना किसी स्वप्न की तरह टूट गई. सौरभ के परिवार वालों ने किसी धनी परिवार की लड़की से उस का रिश्ता पक्का कर दिया. सौरभ भी अपने परिवार वालों के सामने अधिक विरोध नहीं कर सका. उस के चले जाने से सुनिधि को बहुत आघात लगा और वह डिप्रैशन का शिकार हो गई.

अंधकारमय भविष्य

सुनिधि की तरह अनेक लड़कियां कालेज में किसी से दोस्ती कर के कल्पनाओं में इतनी खो जाती हैं कि फिर उन्हें उस बौयफ्रैंड के अलावा कुछ भी नहीं दिखाई देता. उस बौयफ्रैंड को अपना जीवनसाथी बनाने के चक्कर में वे शारीरिक संबंध तक बना लेती हैं. ऐसी परिस्थिति में जब किसी लड़की का उस लड़के से किसी कारण विवाह नहीं होता, तो आजीवन उस लड़की के मस्तिष्क में उस लड़के की यादें फिल्म की तरह घूमती रहती हैं और उस लड़की के भविष्य को अंधेरे की ओर ले जाती हैं. किसी लड़की के स्वप्नों का महल ध्वस्त होने पर मातापिता उस का विवाह कहीं और कर देते हैं. लेकिन लड़की इतनी संवेदनशील होती है कि विवाह के बाद भी बौयफ्रैंड को भूल नहीं पाती और उस की यादों में खोई रह कर अपने नए परिवार में एडजेस्ट नहीं होती.पति जब तक उस लड़की की वास्तविकता से परिचित नहीं हो पाता, तब तक गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह घिसटती है और जब पति को किसी तरह उस के बौयफ्रैंड की कहानी पता चल जाती है, तो दांपत्य में विस्फोट हो जाता है. कोई भी ति अपनी पत्नी की प्रेम कहानी को बरदाश्त नहीं कर पाता और एकदूसरे से अलग रहते हुए एक दिन सचमुच अलगाव हो जाता है. अलगाव के बाद पति का दूसरा विवाह हो जाता है, लेकिन लड़की पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है. तलाकशुदा नवयुवती कटी पतंग बन कर रह जाती है. कटी पतंग को सभी लूट लेना चाहते हैं, लेकिन स्थाई आश्रय कोई नहीं देता.

सतर्कता जरूरी

चौराहे पर भटकने वाली लड़की की परिस्थिति से बचने के लिए कालेज में बौयफ्रैंड के साथ दोस्ती करते समय कुछ बातों के लिए सतर्क रहना जरूरी होता है. बौयफ्रैंड के साथ डेटिंग पर जाने पर उस के व्यवहार से बहुत कुछ उस के संबंध में ज्ञात किया जा सकता है. किसी भी बौयफ्रैंड के साथ दोस्ती कर के लड़की को तुरंत उसे जीवनसाथी बनाने का निर्णय नहीं कर लेना चाहिए. जब कोई लड़की बौयफ्रैंड को जीवनसाथी बनाने का निश्चय कर लेती है, तो फिर उसे बौयफ्रैंड में कोई भी कमी दिखाई नहीं देती. ऐसे में कोई उस लड़की को बौयफ्रैंड के संबंध में सतर्क भी करता है, तो वह लड़की उस पर विश्वास नहीं करती. मातापिता भी जब बौयफ्रैंड से दूर रहने के लिए कहते हैं, तो लड़की उन का भी प्रबल विरोध करती है और अपने को उस बौयफ्रैंड की बांहों में समर्पित कर देती है. ऐसी स्थिति में जब बौयफ्रैंड उसे छोड़ कर किसी दूसरी लड़की को अपना जीवनसाथी बना लेता है तो उस लड़की को दिन में तारे दिखाई देने लगते हैं और अपनी गलती पर पछतावा होने लगता है. लेकिन तब तक परिस्थितियां इतनी परिवर्तित हो चुकी होती हैं कि लड़की के लिए केवल पछतावा ही शेष रह जाता है.

मानसिक आघात

बौयफ्रैंड के विश्वासघात का शिकार बनने पर किसी भी लड़की को अपने भविष्य को अंधकार में नहीं डुबोना चाहिए, बल्कि नए उत्साह और उमंग से जीवनयापन का प्रयत्न करना चाहिए. यदि लड़की उच्च शिक्षित है तो किसी औफिस में काम कर के, अपने लिए आजीविका तलाश कर के वह पूरी क्षमता से आगे बढ़ सकती है. लड़की को बौयफ्रैंड की यादों से बाहर निकल कर आत्मनिर्भर हो कर आगे बढ़ना चाहिए. बौयफ्रैंड से संबंधविच्छेद होने पर अकसर लड़की बुरी तरह निराश हो कर अपने को सब से अलग कर लेती है. फिर एक समय ऐसा आता है कि सब से अलग होने वाली लड़की से सब दूर होते जाते हैं और एक दिन सब से अलग हो कर वह लड़की डिप्रैशन की शिकार हो जाती है. डिप्रैशन की परिस्थिति मानसिक रूप से लड़की को इतना क्षुब्ध कर देती है कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती है.

ऐसी नौबत न आए

किसी लड़की के जीवन में इतनी दुखद परिस्थिति न आने पाए इस के लिए उस परिस्थिति की नींव प्रारंभ होने से पहले ही यानी किसी को बौयफ्रैंड बनाने से पहले ही यह सोच लेना चाहिए कि उस से दोस्ती केवल दोस्ती तक ही सीमित रखनी है और बौयफ्रैंड के साथ घूमतेफिरते, होटलरेस्तरां व पिकनिक पर जाते हुए बौयफ्रैंड की हरकतों के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहना है. जैसे, सिनेमाहाल में फिल्म देखते हुए अंधेरे का अनुचित लाभ उठाते हुए बौयफ्रैंड अशिष्ट हरकत तो नहीं कर रहा. कार में गर्लफ्रैंड को घुमाते हुए बौयफ्रैंड दरवाजे का शीशा खोलने के बहाने लड़कियों को स्पर्श करने की कोशिश करते हैं. एक बार ऐसी कोशिश में सफल होने पर और लड़की के कोई विरोध नहीं करने पर वे बारबार ऐसी अशिष्ट हरकतें करते हैं. लिफ्ट में आतेजाते भी बौयफ्रैंड की ऐसी हरकतें कभीकभी लड़कियों को इतना कामोत्तेजित कर देती हैं कि वे स्वयं उन के आलिंगन में बंध जाती हैं. बस, यहीं से लड़कियां बौयफ्रैंड को जीवनसाथी बना लेने के स्वप्नों में खोते हुए शारीरिक समर्पण कर बैठती हैं और बौयफ्रैंड के विश्वासघात करने या दूसरे किसी कारण से संबंधविच्छेद हो जाने पर लड़की के पास उस के स्वप्नों में खोए रहने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता.

बौडी लैंग्वेज

बौयफ्रैंड के व्यवहार और बौडी लैंग्वेज से ही पता चल जाता है कि भविष्य में बौयफ्रैंड उस का जीवनसाथी बन पाने में सफल होगा कि नहीं. बौयफ्रैंड का व्यवहार ही उस के स्वभाव को प्रदर्शित कर देता है. कालेज में लड़कियों के आसपास भंवरों की तरह मंडराने वाले लड़कों से पहले ही सतर्क हो जाना चाहिए. ऐसे बौयफ्रैंड की यादों को मन की गहराइयों तक नहीं उतारना चाहिए और अवसर देख कर ऐसे बौयफ्रैंड से स्वयं अलग हो जाना चाहिए. बौयफ्रैंड के साथ डेटिंग या होटलरेस्तरां में जाते हुए उस से कुछ अंतराल बनाए रखना चाहिए. एकदूसरे के बीच का अंतराल एक बार समाप्त हो जाए तो फिर उस लड़की के पास कुछ शेष नहीं रह पाता और ऐसी परिस्थिति में बौयफ्रैंड उस लड़की को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंकता है. एक बौयफ्रैंड से अलग हुई लड़की को दूसरा बौयफ्रैंड तो मिल जाता है. लेकिन वह भी केवल मौजमस्ती के लिए फ्रैंडशिप करता हैं.

कैरियर अहम है

बौयफ्रैंड से दोस्ती करते हुए किसी लड़की को कालेज में आने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य को नहीं भूलना चाहिए. उसे उच्च शिक्षा प्राप्त कर के अपना कैरियर बनाने की बात पहले सोचनी चाहिए. कैरियर बन जाने पर कितने ही नवयुवक उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए तैयार हो जाएंगे. यदि किसी लड़की ने बौयफ्रैंड के चक्कर में अपना कैरियर दांव पर लगा दिया तो फिर भविष्य में प्रायश्चित्त करने के अलावा उस के पास कुछ शेष नहीं रह जाता.

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