Raksha bandhan Special: मीठे में बनाएं रवा केसरी

रक्षाबंधन के मौके पर अगर आप मीठ के लिए हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ढूंढ रहे हैं तो रवा केसरी की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

1/2 कप रवा,

मुठ्ठी भर काजू,

मुठ्ठी किशमिश,

2 से 3 बड़ा चम्मच घी,

1 छोटा चम्मच फ्राई काजू और किशमिश,

चुटकी भर केसर पाउडर,

2 लौंग,

1 कप चीनी.

विधि

एक बड़ा चम्मच घी पैन गरम करें. इस घी में रवा तब तक भूने जब तक वह हल्का गुलाबी न हो जाए. इस के बाद भुने रवा को अलग रख दें.  अब पैन में 2 कप पानी और केसर पाउडर डालें और उसे उबाल लें. इस पानी में भुना रवा डालें औै अच्छे मिलाएं. समयसमय पर इस मिश्रण को हिलाते रहें ताकि रवा पैन में चिपके न. इस मिश्रण में चीनी मिलाएं और 5 से 10 मिनट तक पकाएं . जब रवा और अतिरिक्त घी अलगअलग हो होने लगें तो पैन को आंच पर से हटा लें. अब दूसरे पैन में घी डालें और काजू किश्मिस को भून लें. इन भुने काजू किशमिस को रवा वाले मिश्रण के ऊपर डालें और खाने के लिए परोसें.

अब्दुल मामा

भारतीय सैन्य अकादमी में आज ‘पासिंग आउट परेड’ थी. सभी कैडेट्स के चेहरों पर खुशी झलक रही थी. 2 वर्ष के कठिन परिश्रम का प्रतिफल आज उन्हें मिलने वाला था. लेफ्टिनेंट जनरल जेरथ खुद परेड के निरीक्षण के लिए आए थे. अधिकांश कैडेट्स के मातापिता, भाईबहन भी अपने बच्चों की खुशी में सम्मिलित होने के लिए देहरादून आए हुए थे. चारों ओर खुशी का माहौल था.

नमिता आज बहुत गर्व महसूस कर रही थी. उस की खुशी का पारावार न था. वर्षों पूर्व संजोया उस का सपना आज साकार होने जा रहा था. वह ‘बैस्ट कैडेट’ चुनी गई थी. जैसे ही उसे ‘सोवार्ड औफ औनर’ प्रदान किया गया, तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा ग्राउंड गूंज उठा.

परेड की समाप्ति के बाद टोपियां उछालउछाल कर नए अफसर खुशी जाहिर कर रहे थे. महिला अफसरों की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था. उन्होंने दिखा दिया था कि वे भी किसी से कम नहीं हैं. नमिता की नजरें भी अपनों को तलाश रही थीं. परिवारजनों की भीड़ में उस की नजरें अपने प्यारे अब्दुल मामा और अपनी दोनों छोटी बहनों नव्या व शमा को खोजने लगीं. जैसे ही उस की नजर दूर खड़े अब्दुल मामा व अपनी बहनों पर पड़ी वह बेतहाशा उन की ओर दौड़ पड़ी.

अब्दुल मामा ने नमिता के सिर पर हाथ रखा और फिर उसे गले लगा लिया. आशीर्वाद के शब्द रुंधे गले से बाहर न निकल पाए. खुशी के आंसुओं से ही उन की भावनाएं व्यक्त हो गई थीं. नमिता भी अब्दुल मामा की ऊष्णता पा कर फफक पड़ी थी.

‘अब्दुल मामा, यह सब आप ही की तो बदौलत हुआ है, आप न होते तो हम तीनों बहनें न तो पढ़लिख पातीं और न ही इस योग्य बन पातीं. आप ही हमारे मातापिता, दादादादी और भैया सबकुछ हैं. सचमुच महान हैं आप,’ कहतेकहते नमिता की आंखों  से एक बार फिर अश्रुधारा बह निकली. उस की पलकें कुछ देर के लिए मुंद गईं और वह अतीत में डूबनेउतराने लगी.

मास्टर रामलगन दुबे एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे. नमिता, नव्या व शमा उन की 3 प्यारीप्यारी बेटियां थीं. पढ़ने में एक से बढ़ कर एक. मास्टरजी को उन पर बहुत गर्व था. मास्टरजी की पत्नी रामदुलारी पढ़ीलिखी तो न थी, पर बेटियों को पढ़ने के लिए अकसर प्रेरित करती रहती. बेटियों की परवरिश में वह कभी कमी न छोड़ती. मास्टरजी का यहांवहां तबादला होता रहता, पर रामदुलारी मास्टरजी के पुश्तैनी कसबाई मकान में ही बेटियों के साथ रहती. मास्टरजी बस, छुट्टियों में ही घर आते थे.

पासपड़ोस के सभी लोग मास्टरजी और उन के परिवार की बहुत इज्जत करते थे. पूरा परिवार एक आदर्श परिवार के रूप में जाना जाता था. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. मास्टरजी की तीनों बेटियां मनोयोग से अपनीअपनी पढ़ाई कर रही थीं.

एक दिन मास्टरजी को अपनी पत्नी के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जाना पड़ा. पढ़ाई के कारण तीनोें बेटियां घर पर ही रहीं. शादी से लौटते समय जिस बस में मास्टरजी आ रहे थे, वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई. नहर के पुल पर ड्राइवर नियंत्रण खो बैठा. बस रेलिंग तोड़ती हुई नहर में जा गिरी. मास्टरजी, उन की पत्नी व कई अन्य लोगों की दुर्घटनास्थल पर ही मौत हो गई.

जैसे ही दुर्घटना की खबर मास्टरजी के घर पहुंची, तीनों बेटियां तो मानो जड़वत हो गईं. उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. जैसे ही उन की तंद्रा लौटी तो तीनों के सब्र का बांध टूट गया. रोरो कर उन का बुरा हाल हो गया.

जब नमिता ने अपने मातापिता की चिता को मुखाग्नि दी तो वहां मौजूद लोगों की आंखें भी नम हो गईं. सभी सोच रहे थे कि कैसे ये तीनों लड़कियां इस भारी मुश्किल से पार पाएंगी. सभी की जबान पर एक ही बात थी कि इतने भले परिवार को पता नहीं किस की नजर लग गई. सभी लोग तीनों बहनों को दिलासा दे रहे थे.

नमिता ने जैसेतैसे खुद पर नियंत्रण किया. वह सब से बड़ी जो थी. दोनों छोटी बहनों को ढाढ़स बंधाया. तीनों ने मुसीबत का बहादुरी से सामना करने की ठान ली.

तेरहवीं की रस्मक्रिया के बाद तीनों बहनें दोगुने उत्साह से पढ़ाई करने में जुट गईं. उन्होंने अपने मातापिता के सपने को साकार करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था. उन्हें आर्थिक चिंता तो नहीं थी, पर मातापिता का अभाव उन्हेें सालता रहता.

अगले वर्ष नमिता ने कालेज में प्रवेश ले लिया था. अपनी प्रतिभा के बल पर वह जल्दी ही सभी शिक्षकों की चहेती बन गई. पढ़ाई के साथसाथ वह अन्य कार्यक्रमों में भी  भाग लेती थी. उस की हार्दिक इच्छा सेना में अफसर बनने की थी. इसी के वशीभूत नमिता ने एनसीसी ले ली. अपने समर्पण के बल पर उस ने शीघ्र ही अपनेआप को श्रेष्ठ कैडेट के रूप में स्थापित कर लिया.

परेड के बाद अकसर नमिता को घर पहुंचने में देर हो जाती. उस दिन भी परेड समाप्त होते ही वह चलने की तैयारी करने लगी. शाम हो गई थी. कालेज के गेट के बाहर वह देर तक खड़ी रही, पर कोई रिकशा नहीं दिखाई दिया. आकाश में बादल घिर आए थे. बूंदाबांदी के आसार बढ़ गए थे. वह चिंतित हो गई थी, तभी एक रिकशा उस के पास आ कर रुका. चेकदार लुंगी पहने, सफेद कुरता, सिर पर टोपी लगाए रिकशा चालक ने अपनी रस घोलती आवाज में पूछा, ‘बिटिया, कहां जाना है?’

‘भैया, घंटाघर के पीछे मोतियों वाली गली तक जाना है, कितने पैसे लेंगे?’ नमिता ने पूछा.

‘बिटिया पहले बैठो तो, घर पहुंच जाएं, फिर पैसे भी ले लेंगे.’

नमिता चुपचाप रिकशे में बैठ गई.

बूंदाबांदी शुरू हो गई. हवा भी तेज गति से बहने लगी थी. अंधेरा घिरने लगा था.

‘भैया, तेजी से चलो,’ नमिता ने चिंतित स्वर में कहा.

‘भैया कहा न बिटिया, तनिक धीरज रखो और विश्वास भी. जल्दी ही आप को घर पहुंचा देंगे,’ रिकशे वाले भैया ने नमिता को आश्वस्त करते हुए कहा.

कुछ ही देर बाद बारिश तेज हो गई. नमिता तो रिकशे की छत की वजह से थोड़ाबहुत भीगने से बच रही थी, लेकिन रिकशे वाला भैया पूरी तरह भीग गया था. जल्दी ही नमिता का घर आ गया था. नव्या और शमा दरवाजे पर खड़ी उस का इंतजार कर रही थीं. रिकशे से उतरते ही भावावेश में दोनों बहनें नमिता से लिपट गईं. रिकशे वाला भैया भावविभोर हो कर उस दृश्य को देख रहा था.

‘भैया, कितने पैसे हुए… आज आप देवदूत बन कर आए. हां, आप भीग गए हो न, चाय पी कर जाइएगा,’ नमिता एक ही सांस में कह गई.

‘बिटवा, आज हम आप से किसी भी कीमत पर पैसे नहीं लेंगे. भाई कहती हो तो फिर आज हमारी बात भी रख लो. रही बात चाय की तो कभी मौका मिला तो जरूरी पीएंगे,’ कहते हुए रिकशे वाले भैया ने अपने कुरते से आंखें पोंछते हुए तीनों बहनों से विदा ली. तीनों बहनें आंखों से ओझल होने तक उस भले आदमी को जाते हुए देखती रहीं. वे सोच रही थीं कि आज के इस निष्ठुर समाज में क्या ऐसे व्यक्ति भी मौजूद हैं.

जब भी एनसीसी की परेड होती और नमिता को देर हो जाती तो उस की आंखें उसी रिकशे वाले भैया को तलाशतीं. एक बार अचानक फिर वह मिल गया. बस, उस के बाद तो नमिता को फिर कभी परेड वाले दिन किसी रिकशे का इंतजार ही नहीं करना पड़ा. वह नियमित रूप से नमिता को लेने कालेज पहुंच जाता.

नमिता को उस का नाम भी पता चल गया था, अब्दुल. हां, यही नाम था उस के रिकशे वाले भैया का. वह निसंतान था. पत्नी भी कई वर्ष पूर्व चल बसी थी. जब अब्दुल को नमिता के मातापिता के बारे में पता चला तो तीनों बहनों के प्रति उस का स्नेहबंधन और प्रगाढ़ हो गया था.

नमिता को तो मानो अब्दुल रूपी परिवार का सहारा मिल गया था. एक दिन अब्दुल के रिकशे से घर लौटते नमिता ने कहा, ‘अब्दुल भैया, अगर आप को मैं अब्दुल मामा कहूं तो आप को बुरा तो नहीं लगेगा?’

‘अरे पगली, मेरी लल्ली, तुम मुझे भैया, मामा, चाचा कुछ भी कह कर  पुकारो, मुझे अच्छा ही नहीं, बहुत अच्छा लगेगा,’ भावविह्वल हो कर अब्दुल बोला.

अब्दुल मामा नमिता, नव्या व शमा के परिवार के चौथे सदस्य बन गए थे. तीनों बहनों को कोई कठिनाई होती, कहीं भी जाना होता, अब्दुल मामा तैयार रहते. पैसे की बात वे हमेशा टाल दिया करते. एकदूसरे के धार्मिक उत्सवों व त्योहारों का वे खूब ध्यान रखते.

रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक था. तीनों बहनें कुछ उदास थीं. अब्दुल मामा ने उन के मन की बात पढ़ ली थी. रक्षाबंधन वाले दिन नहाधो कर नमाज पढ़ी और फिर अब्दुल मामा जा पहुंचे सीधे नमिता के घर. रास्ते से थोड़ी सी मिठाई भी लेते गए.

‘नमिता थाली लाओ, तिलक की सामग्री भी लगाओ,’ अब्दुल मामा ने घर पहुंचते ही नमिता से आग्रह किया. नमिता आश्चर्यचकित मामा को देखती रही. वह झटपट थाली ले आई. अब्दुल मामा ने कुरते की जेब से 3 राखियां निकाल कर थाली में डाल दीं और साथ लाई मिठाई भी.

‘नमिता, नव्या, शमा तीनों बहनें बारीबारी से मुझे राखी बांधो,’ अब्दुल मामा ने तीनों बहनों को माधुर्यपूर्ण आदेश दिया.

‘मामा… लेकिन…’ नमिता कुछ सकुचाते हुए कहना चाहती थी, पर कह न पाई.

‘सोच क्या रही हो लल्ली, तुम्हीं ने तो एक दिन कहा था आप हमारे मामा, भैया, चाचा, मातापिता सभी कुछ हो. फिर आज राखी बांधने में सकुचाहट क्यों,’ अब्दुल मामा ने नमिता को याद दिलाया.

नमिता ने झट से अब्दुल मामा की कलाई पर राखी बांध उन्हें तिलक कर उन का मुंह मीठा कराया व आशीर्वाद लिया. नव्या व शमा ने भी नमिता का अनुसरण किया. तीनों बहनों ने मातापिता के चित्र को नमन किया और उन का अब्दुल मामा को भेजने के लिए धन्यवाद किया.

उस दिन ‘ईद-उल-फितर’ के त्योहार पर अब्दुल मामा बड़ा कटोरा भर मीठी सेंवइयां ले आए थे. तीनों बहनों ने उन्हें ईद की मुबारकबाद दी और ईदी भी मांगी, फिर भरपेट सेंवइयां खाईं.

अब्दुल मामा तीनों बहनों की जीवन नैया के खेवनहार बन गए थे. जब भी जरूरत पड़ती वे हाजिर हो जाते. तीनों बहनों की मदद करना उन्होंने अपने जीवन का परम लक्ष्य बना लिया था. तीनों बहनों को अब्दुल मामा ने भी मातापिता की कमी का एहसास नहीं होने दिया. किसी की क्या मजाल जो तीनों बहनों के प्रति जरा भी गलत शब्द बोल दे.

अब्दुल मामा जातिधर्म की दीवारों से परे तीनों बहनों के लिए एक संबल बन गए थे. उन की जिंदगी के मुरझाए पुष्प एक बार फिर खिल उठे. तीनों बहनें अपनेअपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समर्पण भाव से पढ़ती रहीं व आगे बढ़ती रहीं.

नमिता ने बीएससी अंतिम वर्ष की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण कर भारतीय सैन्य अकादमी की परीक्षा दी. अपनी प्रतिभा, एनसीसी के प्रति समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर उस का चयन भारतीय सेना के लिए हो गया. नव्या और शमा भी अब कालेज में आ गई थीं.

आज नमिता को देहरादून के लिए रवाना होना था. अब्दुल मामा के साथ नव्या और शमा भी स्टेशन पर नमिता को विदा करने आए थे. सभी की आंखें नम थीं. अव्यक्त पीड़ा चेहरों पर परिलक्षित हो रही थी.

‘अब्दुल मामा, नव्या और शमा का ध्यान रखना. दोनों आप ही के भरोसे हैं और हां, मैं भी तो आप के आशीर्वाद से ही ट्रेनिंग पर जा रही हूं,’ सजल नेत्रों से नमिता ने मामा से कहा.

‘तुम घबराना नहीं मेरी बच्ची, 2 वर्ष पलक झपकते ही बीत जाएंगे. आप को सद्बुद्धि प्राप्त हो और आगे बढ़ने की शक्ति मिले. छुटकी बहनों की चिंता मत करना. मैं जीतेजी इन्हें कष्ट नहीं होने दूंगा,’ नमिता को ढाढ़स बंधाते हुए अब्दुल मामा ने दोनों बहनों को गले लगा लिया.

गाड़ी धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी. नमिता धीरेधीरे आंखों से ओझल हो गई. अब्दुल मामा ने जीजान से दोनों बहनों की देखभाल का मन ही मन संकल्प ले लिया था. 2 वर्ष तक वे उस संकल्प को मूर्त्तरूप देते रहे.

अचानक नमिता की तंद्रा टूटी तो उस ने पाया, अब्दुल मामा के आंसुओं से उस की फौजी वरदी भीग चुकी थी. मामा गर्व से नमिता को निहार रहे थे.

‘‘तुम ने अपने दिवंगत मातापिता और हम सभी का नाम रोशन कर दिया है नमिता. तुम बहुत तरक्की करोगी. मैं तुम्हारी उन्नति की कामना करता हूं. तुम्हारी छोटी बहनें भी एक दिन तुम्हारी ही तरह अफसर बनेंगी, मुझे पूरा यकीन है,’’ अब्दुल मामा रुंधे कंठ से बोले.

‘‘मामा… हम धन्य हैं, जो हमें आप जैसा मामा मिला,’’ तीनों बहनें एकसाथ बोल उठीं.

‘‘एक मामा के लिए या एक भाई के लिए इस से बढि़या सौगात क्या हो सकती है जो तुम जैसी होनहार बच्चियां मिलीं. तुम कहा करती थी न नमिता कि मुझ पर तुम्हारा उधार बाकी है. हां, बाकी है और उस दिन उतरेगा जब तुम तीनों अपनेअपने घरबार में चली जाओगी. मैं इन्हीं बूढ़े हाथों से तुम्हें डोली में बिठाऊंगा,’’ अब्दुल मामा कह कर एकाएक चुप हो गए.

तीनों बहनें एकटक मामा को देखे जा रही थीं और मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं कि उन्हें अब्दुल मामा जैसा सज्जन पुरुष मिला. तीनों बहनें और अब्दुल मामा मौन थे. उन का मौन, मौन से कहीं अधिक मुखरित था. उन सभी के आंसू जमीन पर गिर कर एकाकार हो रहे थे. जातिधर्म की दीवारें भरभरा कर गिरती हुई प्रतीत हो रही थीं.

दिल वर्सेस दौलत- भाग 1: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

‘‘किस का फोन था, पापा?’’

‘‘लाली की मम्मी का. उन्होंने कहा कि किसी वजह से तेरा और लाली का रिश्ता नहीं हो पाएगा.’’

‘‘रिश्ता नहीं हो पाएगा? यह क्या मजाक है? मैं और लाली अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. नहीं, नहीं, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. लाली मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है? आप ने ठीक से तो सुना था, पापा?’’

‘‘अरे भाई, मैं गलत क्यों बोलने लगा. लाली की मां ने साफसाफ मु झ से कहा, ‘‘आप अपने बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें. हम अबीर से लाली की शादी नहीं करा पाएंगे.’’

पापा की ये बातें सुन अबीर का कलेजा छलनी हो आया. उस का हृदय खून के आंसू रो रहा था. उफ, कितने सपने देखे थे उस ने लाली और अपने रिश्ते को ले कर. कुछ नहीं बचा, एक ही  झटके में सब खत्म हो गया, भरे हृदय के साथ लंबी सांस लेते हुए उस ने यह सोचा.

हृदय में चल रहा भीषण  झं झावात आंखों में आंसू बन उमड़नेघुमड़ने लगा. उस ने अपना लैपटौप खोल लिया कि शायद व्यस्तता उस के इस दर्द का इलाज बन जाए लेकिन लैपटौप की स्क्रीन पर चमक रहे शब्द भी उस की आंखों में घिर आए खारे समंदर में गड्डमड्ड हो आए.  झट से उस ने लैपटौप बंद कर दिया और खुद पलंग पर ढह गया.

लाली उस के कुंआरे मनआंगन में पहले प्यार की प्रथम मधुर अनुभूति बन कर उतरी थी. 30 साल के अपने जीवन में उसे याद नहीं कि किसी लड़की ने उस के हृदय के तारों को इतनी शिद्दत से छुआ हो. लाली उस के जीवन में मात्र 5-6 माह के लिए ही तो आई थी, लेकिन इन चंद महीनों की अवधि में ही उस के संपूर्ण वजूद पर वह अपना कब्जा कर बैठी थी, इस हद तक कि उस के भावुक, संवेदनशील मन ने अपने भावी जीवन के कोरे कैनवास को आद्योपांत उस से सा झा कर लिया. मन ही मन उस ने उसे अपने आगत जीवन के हर क्षण में शामिल कर लिया. लेकिन शायद होनी को यह मंजूर नहीं था. लाली के बारे में सोचतेसोचते कब वह उस के साथ बिताए सुखद दिनों की भूलभुलैया में अटकनेभटकने लगा, उसे तनिक भी एहसास नहीं हुआ.

शुरू से वह एक बेहद पढ़ाकू किस्म का लड़का था जिस की जिंदगी किताबों से शुरू होती और किताबों पर ही खत्म. उस की मां लेखिका थीं. उन की कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में छपती रहतीं. पिता को भी पढ़नेलिखने का बेहद शौक था. वे एक सरकारी प्रतिष्ठान में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे. घर में हर कदम पर किताबें दिखतीं. पुस्तक प्रेम उसे नैसर्गिक विरासत के रूप में मिला. यह शौक उम्र के बढ़तेबढ़ते परवान चढ़ता गया. किशोरावस्था की उम्र में कदम रखतेरखते जब आम किशोर हार्मोंस के प्रभाव में लड़कियों की ओर आकर्षित होते हैं,  उन्हें उन से बातें करना, चैट करना, दोस्ती करना पसंद आता है, तब वह किताबों की मदमाती दुनिया में डूबा रहता.

बचपन से वह बेहद कुशाग्र था. हर कक्षा में प्रथम आता और यह सिलसिला उस की शिक्षा खत्म होने तक कायम रहा. पीएचडी पूरी करने के बाद एक वर्ष उस ने एक प्राइवेट कालेज में नौकरी की. तभी यूनिवर्सिटी में लैक्चरर्स की भरती हुई और उस के विलक्षण अकादमिक रिकौर्ड के चलते उसे वहीं लैक्चरर के पद पर नियुक्ति मिल गई. नौकरी लगने के साथसाथ घर में उस के रिश्ते की बात चलने लगी.

वह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. सो, मां ने उस से उस की ड्रीमगर्ल के बारे में पूछताछ की. जवाब में उस ने जो कहा वह बेहद चौंकाने वाला था.

मां, मु झे कोई प्रोफैशनल लड़की नहीं चाहिए. बस, सीधीसादी, अच्छी पढ़ीलिखी और सम झदार नौनवर्किंग लड़की चाहिए, जिस का मानसिक स्तर मु झ से मिले. जो जिंदगी का एकएक लमहा मेरे साथ शेयर कर सके. शाम को घर आऊं तो उस से बातें कर मेरी थकान दूर हो सके.

मां उस की चाहत के अनुरूप उस के सपनों की शहजादी की तलाश में कमर कस कर जुट गई. शीघ्र ही किसी जानपहचान वाले के माध्यम से ऐसी लड़की मिल भी गई.

उस का नाम था लाली. मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई थी. संदली रंग और बेहद आकर्षक, कंटीले नैननक्श थे उस के. फूलों से लदीफंदी डौलनुमा थी वह. उस की मोहक शख्सियत हर किसी को पहली नजर में भा गई.

उस के मातापिता दोनों शहर के बेहद नामी डाक्टर थे. पूरी जिंदगी अपने काम के चलते बेहद व्यस्त रहे. इकलौती बेटी लाली पर भी पूरा ध्यान नहीं दे पाए. लाली नानी, दादी और आयाओं के भरोसे पलीबढ़ी. ताजिंदगी मातापिता के सान्निध्य के लिए तरसती रही. मां को ताउम्र व्यस्त देखा तो खुद एक गृहिणी के तौर पर पति के साथ अपनी जिंदगी का एकएक लमहा भरपूर एंजौय करना चाहती थी.

विवाह योग्य उम्र होने पर उस के मातापिता उस की इच्छानुसार ऐसे लड़के की तलाश कर रहे थे जो उन की बेटी को अपना पूरापूरा समय दे सके, कंपेनियनशिप दे सके. तभी उन के समक्ष अबीर का प्रस्ताव आया. उसे एक उच्चशिक्षित पर घरेलू लड़की की ख्वाहिश थी. आजकल अधिकतर लड़के वर्किंग गर्ल को प्राथमिकता देने लगे थे. अबीर जैसे नौनवर्किंग गर्ल की चाहत रखने वाले लड़कों की कमी थी. सो, अपने और अबीर के मातापिता के आर्थिक स्तर में बहुत अंतर होने के बावजूद उन्होंने अबीर के साथ लाली के रिश्ते की बात छेड़ दी.

संयोगवश उन्हीं दिनों अबीर के मातापिता और दादी एक घनिष्ठ पारिवारिक मित्र की बेटी के विवाह में शामिल होने लाली के शहर पहुंचे. सो, अबीर और उस के घर वाले एक बार लाली के घर भी हो आए. लाली अबीर और उस के परिवार को बेहद पसंद आई. लाली और उस के परिवार वालों को भी अबीर अच्छा लगा.

दोनों के रिश्ते की बात आगे बढ़ी. अबीर और लाली फोन पर बातचीत करने लगे. फिर कुछ दिन चैटिंग की. अबीर एक बेहद सम झदार, मैच्योर और संवेदनशील लड़का था. लाली को बेहद पसंद आया. दोनों में घनिष्ठता बढ़ी. दोनों को एकदूसरे से बातें करना बेहद अच्छा लगता. फोन पर रात को दोनों घंटों बतियाते. एकदूसरे को अपने अनुकूल पा कर दोनों कभीकभार वीकैंड पर मिलने भी लगे. एकदूसरे को विवाह से पहले अच्छी तरह जाननेसम झने के उद्देश्य से अबीर  शुक्रवार की शाम फ्लाइट से उस के शहर पहुंच जाता. दोनों शहर के टूरिस्ट स्पौट्स की सैर करतेकराते वीकैंड साथसाथ मनाने लगे. एकदूसरे को गिफ्ट्स का आदानप्रदान भी करने लगे.

दिन बीतने के साथ दोनों के मन में एकदूसरे के लिए चाहत का बिरवा फूट चुका था. सो, दोनों की तरफ से ग्रीन सिगनल पा कर लाली के मातापिता अबीर का घरबार देखने व उन के रोके की तारीख तय करने अबीर के घर पहुंचे. अबीर का घर, रहनसहन, जीवनशैली देख कर मानो आसमान से गिरे वे.

अबीर का घर, जीवनस्तर उस के पिता की सरकारी नौकरी के अनुरूप था. लाली के रईस और अतिसंपन्न मातापिता की अमीरी की बू मारते रहनसहन से कहीं बहुत कमतर था. उन के 2 बैडरूम के फ्लैट में ससुराल आने पर उन की बेटी शादी के बाद कहां रहेगी, वे दोनों इस सोच में पड़ गए. एक बैडरूम अबीर के मातापिता का था, दूसरा बैडरूम उस की दादी का था.

अबीर की दादी की घरभर में तूती बोलती. वे काफी दबंग व्यक्तित्व की थीं. बेटाबहू उन को बेहद मान देते. उन की तुलना में अबीर की मां का व्यक्तित्व उन्हें तनिक दबा हुआ प्रतीत हुआ.

अबीर के घर सुबह से शाम तक एक पूरा दिन बिता कर उन्होंने पाया कि उन के घर में दादी की मरजी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता. उन की सीमित आय वाले घर में उन्हें बातबात पर अबीर के मातापिता के मितव्ययी रवैए का परिचय मिला.

छितराया प्रतिबिंब- भाग 3: क्या हुआ था मलय के साथ

ऐसा लगता था कि वह मुझे ही आदेश दे रही हो, अप्रत्यक्ष रूप से. बेहद चिढ़ होती है मुझे जब पत्नी पति को सीख दे. यही गलती मेरी मां ने कर के पिताजी को जिद्दी और असंतोषी बना दिया था, घर में अशांति की जड़ है पत्नी का स्वयं को ज्यादा समझना. और अब यही काम मेरी पत्नी कर रही थी. मेरी यह चिढ़ इतनी बढ़ गई थी कि अब प्रतीति की हर बात पर मैं बोल पड़ता. प्रतीति कहती, आओ कुक्कू, दूध पीओ. इधर आओ, ड्रैस बदल दूं, कापी निकालो, होमवर्क करना है, आदि.

मैं झल्ला पड़ता, ‘दिमाग नहीं है, बेवकूफ कहीं की. दिख नहीं रहा वह खेल रही है मेरे साथ, अभी कोई होमवर्क नहीं.’
‘दूध तो पीने दो?’
‘क्यों? तुम कहोगी तो हुक्म बजाना ही पड़ेगा? कोई जबरदस्ती है क्या? नहीं पीएगी अभी दूध, उस की जब मरजी होगी तभी पीएगी.’
उदासी और आश्चर्य से भर उठती प्रतीति. कहती, ‘4 साल की बच्ची की कभी दूध पीने की मरजी होगी भी.’
मैं बोलता, ‘नहीं होगी तो नहीं पीएगी, तुम बीच में मत बोलो.’
प्रतीति मारे हताशा के झल्ला पड़ती, ‘बीच में तो तुम पड़ रहे हो. मुझे समझने दो न उस की जरूरतों को.’
‘कोई जरूरत नहीं है तीसरे को बीच में बोलने की, जब मैं अपनी बेटी के साथ हूं, समझीं.’

प्रतीति अवाक् हो कर मेरा मुंह ताकती और मैं झल्ला कर उसे और नीचा दिखाने की, उस पर गुस्सा उतारने की कोशिश करता ताकि वह मेरी ओर देखती न रहे. उस का मेरी ओर इस तरह एकटक देखना मेरे गलत होने का एहसास दिलाता था और मुझे मेरा गलत साबित होना कतई पसंद नहीं था. मैं ने कमर कस ली कि उसे किसी भी कीमत पर इतना नहीं बढ़ने दूंगा कि वह मुझे समझाना शुरू करे.

मैं ने प्रतीति को हर बात पर डराना, दबाना शुरू कर दिया ताकि वह सहीगलत कुछ भी मुझे बता कर मेरी गलतियों का एहसास न करा पाए. धीरेधीरे मैं ने उस में ऐसे एहसास भर दिए कि अगर उस ने कभी भी किसी बात पर अपनी नापसंदगी जाहिर की तो उसे हमेशा के लिए यह घर छोड़ना होगा और यह नुसखा कारगर साबित हुआ. हो क्यों न, कितनी ही पढ़ीलिखी और समझदार भारतीय औरत हो, हर हाल में निभाने वाली मानसिकता उसे कई बार न बरदाश्त हो सकने वाली चीजों को बरदाश्त करने का हौसला दे देती है, प्रतीति की भी यह शक्ति कम मगर सहनशक्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शारीरिक तौर पर वह ड्यूटी के लिहाज से शायद मुझे खुश रखती थी और ज्यादा अंत:स्थ तक प्रवेश करने की मैं भी जहमत नहीं उठाता था.

दिन गुजरते जा रहे थे, कुक्कू बड़ी होती जा रही थी.

ज्योंज्यों मेरा आधिपत्य बढ़ता जा रहा था, प्रतीति अपनेआप में सिमटती जा रही थी. हमारा रिश्ता सिकुड़ता जा रहा था. कुक्कू अचंभित, हैरान दोराहे पर चलती जा रही थी.

मैं कुक्कू को अकसर पढ़ाने बैठता और कुक्कू की गलतियों के लिए मुझे उस की मां को सुनाने का अच्छा मौका मिलता. प्रतीति चुपचाप सुनती रहती और मैं बेटी के सामने खराब हो जाने के डर से प्रतीति पर उलटेसीधे इलजाम लगाना शुरू करता ताकि कुक्कू अपनी मां को बुरा समझे. इन सब से मैं क्या पाता था या मेरी कौन सी चाहत पूरी होती थी, मैं खुद भी नहीं समझ पाता. हां, इतना अवश्य था कि मेरा भूखा पुरातन ‘मैं’ थोड़ा सांस लेता, पुष्ट होता, संतुष्ट होता. बचपन में मैं रात के साढ़े 3 बजे से भोर 5 बजे तक यही सोचता रहता कि मांपिताजी दोनों साथसाथ एक ही घर में रहते ही क्यों हैं? सोचता, ये अगर अलगअलग हो जाएं तो मैं मां के साथ रहूंगा और तीनों भाइयों को पिताजी के साथ भेज दूंगा. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. जिंदगी हिचकोले खाती चलती रही, साथ वह सिलसिला भी.

मगर अब मैं पूरी क्षमता में हूं कि पुरानी गलतियों को सुधार लूं. अब न तो मैं घर में किसी औरत को हायतौबा मचाने दूंगा और न ही घर में अशांति का महाभारत छिड़ने दूंगा. रोजरोज के क्लेश से बेहतर है अलगाव…अलगाव… अलगाव.

प्रतीति शारीरिक और मानसिक भाषा द्वारा कितनी ही समझाने की कोशिश करती, मुझे लगता वह मुझे उल्लू बना रही है, मुझे धोखा दे कर अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रही है. मैं जिद से भर उठता, न मानने की जिद से, उसे नीचा दिखाने की जिद से, बातबात पर उस की गलतियां ढूंढ़ कर उस को गलत साबित करने की जिद से, जो शायद हमारे संसार में नहीं था. उस पुरानी कहानी को काल्पनिक रूप से हमारे संसार पर प्रतिबिंबित कर बचपन की उन बिसूरती यादों को सही करने की जिद से, भर उठता था मैं.

छठी में पढ़ने वाली कुक्कू का रिजल्ट आया था. कक्षा में प्रथम आने वाली कुक्कू किसी तरह पास हो कर 7वीं में पहुंची थी, मैं उस का रिपोर्टकार्ड देख कर अपनेआप को रोक नहीं पाया, घर में मेरे काफी देर बवाल मचाने के बाद जब प्रतीति से रहा नहीं गया तो वह मुझ से उलझ ही पड़ी. प्रतीति अपनेआप में बड़बड़ाती हुई कहने लगी, ‘दूभर कर दिया है जीना. कहीं अकेले बैठ कर सोचो कि शादी के बाद मेरे सारे सपनों को कैसे तुम ने हथौड़े मारमार कर तोड़ा, कहीं चैन की सांस नहीं लेने दी. हमेशा मुझ पर गलत तोहमतें लगाईं और मैं ने कभी उन का सही तरीके से विरोध तक नहीं किया. सब उलटेसीधे इलजामों को अपने दिल में दबा कर घुटती रही, लेकिन कर्तव्य से कभी मैं ने मुंह नहीं फेरा. काउंसिलिंग की बात से चिढ़ होती है, लेकिन खुद सोचो कि हम पर…’

मैं उसी वक्त अपनी पैकिंग में लग गया. दरअसल, मैं ने कितनी ही गलतसही बातें उसे सुनाई हों लेकिन वह कभी भी अपनी जबान नहीं खोलती थी. आज पहली बार था जो मुझे बेहद नागवार गुजरा था. मुझे तैयार होता देख मांबेटी सकते में थीं. कुक्कू अब मुझ से काफी सहमी रहती और इस के लिए मैं पूरी तरह से प्रतीति को दोषी समझता था. पता नहीं क्यों कभी नहीं लगा कि मैं जो इतना उग्र हो जाता हूं उस का बच्ची पर कुछ तो असर होता होगा. कुक्कू किनारे खड़ी हो कर सुबकती हुई अनुनय करने लगी कि मैं न जाऊं.

प्रतीति के लिए यद्यपि ज्यादा मेरे करीब आना मुमकिन नहीं था फिर भी शारीरिक भाषा प्रखर करते हुए राह रोक कर खड़ी हो गई. मैं अपना बैग ले कर लगभग उसे धक्का देते हुए बाहर निकल गया.

आज सुबह से ही मेघों का बोलबाला कुछ ज्यादा था. कुहरे ने स्वस्थ, साफ आसमान को इस कदर ढक लिया था कि अगले कुछ पल बड़े असमंजस भरे थे. मैं बड़ा बेचैन था. मैं ने मोबाइल उठा लिया. सोचा, शहर में ही किसी परिचित को फोन लगाऊं. फिर मां को ही फोन घुमा दिया. मांपिताजी अभी भी उसी पुश्तैनी मकान में रह रहे हैं.

मां ने मेरा फोन पाते ही चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या हुआ, मलय? 10 दिनों से रोज तुम्हारे घर फोन कर रही हूं. प्रतीति एक ही बात कह रही है कि तू औफिस के काम से बाहर गया है, इधर तुझे फोन लगाती हूं तो बंद रहता है या उठाता नहीं.’’

‘‘मैं घर से भाग आया हूं और कभी वापस नहीं जाऊंगा.’’

‘‘क्या? यह क्या बोल रहा है तू? कहां है तू?’’

‘‘गंगटोक, यह बात प्रतीति को बताने की जरूरत नहीं, उसे पता नहीं कि मैं कहां हूं.’’

‘‘लेकिन हुआ क्या? वह तो कितनी अच्छी लड़की है.’’

‘‘खबरदार जो गैर लड़की के लिए सिफारिश की तो, बेटा मैं तुम्हारा हूं, तुम मेरी ओर से बोलोगी, बस.’’

‘‘अरे, उस की गलती तो बता?’’

‘‘तुम्हें मैं क्या बताऊं, तुम रहती हो यहां, जो बताऊं? यह मेरा घर है, यहां सबकुछ मेरे अनुसार होगा. मेरी अनुमति के बिना एक पत्ता नहीं हिलेगा.’’

‘‘तू यह क्या कह रहा है? है तो तेरा ही सबकुछ, लेकिन शादी ऐसे निभती है क्या? पति को चाहिए कि पत्नी को वह उतना ही हक और सम्मान दे जितना वह पत्नी से चाहता है.’’

‘‘फिर तुम शुरू हो गईं ज्ञान बघारने. फोन रखो, मैं कहता हूं, फोन रखो.’’

फोन मैं ने काट दिया था और मैं अब किसी से बात नहीं करना चाहता था. बचपन में मेरे मांपिताजी जब अपनी मनमानी करते थे तो तब कोई सिखाने नहीं आया, अब मैं अपने हिसाब से क्यों नहीं चलूं.

मैं बहुत उद्विग्न महसूस कर रहा था. प्रतीति शांत और निश्चिंत कैसे थी? यह सच है कि छोटीछोटी बातों के लिए भी मैं उसे बुराभला कह जाता था, वह शांत रहती थी, यहां तक कि बेटी को हिदायत भी दे डालता था कि उस की मां अहंकारी, पागल और बहुत बुरी है. अगर वह अपनी मां से बातें करेगी तो मुझे खो देगी, प्रतीति मेरी ओर स्थिर दृष्टि से देखती हुई अपनी जगह खड़ी रहती थी. उस का यह शांत रूप मुझे और आक्रामक करता था, मैं अपनी तौहीन देख गालीगलौज पर उतर आता था यहां तक कि उसे मारने तक दौड़ता था. फिर वह शांत हो इतना ही कहती, ‘मुझ से जो गलतियां हुईं उस के लिए माफ करो.’ मैं झल्ला कर बात खत्म करता.

जीवन की मुसकान- भाग 1: क्या थी रश्मि की कहानी

कौलबैल की आवाज सुनते ही रश्मि के दिल पर एक घूंसा सा लगा. उसे लगा, आग का कोई बड़ा सा गोला उस के ऊपर आ गया है और वह उस में झुलसती जा रही है.

पति की बांहों में सिमटी वह छुईमुई सी हुई पागल होना चाहती थी कि सहसा कौलबैल ने उसे झकझोर कर रख दिया. कौलबैल के बीच की दूरी ऐसी थी, जिस ने कर्तव्य में डूबे पति को एकदम बिस्तर से उठा दिया. रश्मि मन ही मन झुंझला उठी.

‘‘डाक्टर, डाक्टर, हमारे यहां मरीज की हालत बहुत खराब है,’’ बाहर से आवाज आई.

रश्मि बुदबुदाई, ‘ये मरीज भी एकदम दुष्ट हैं. न समय देखते हैं, न कुछ… अपनी ही परवा होती है सब को. दूसरों को देखते तक नहीं, मरमरा जाएं तो…’

‘‘शी…’’ उस के पति डाक्टर सुंदरम ने उस को झकझोरा, ‘‘धीरे बोलो. ऐसा बोलना क्या तुम्हें शोभा देता है?’’

रश्मि खामोश सी, पलभर पति को घूरती रही, ‘‘मत जाइए, हमारी खुशियों के वास्ते आज तो रहम कीजिए. मना कर दीजिए.’’

‘‘पागल तो नहीं हो गई हो, रश्मि? मरीज न जाने किस अवस्था में है. उसे मेरी जरूरत है. विलंब न जाने क्या गुल खिलाए? मुझे जाने दो.’’

‘‘नहीं, आज नहीं जाने दूंगी. रोजरोज ऐसे ही करते हो. कभी तो मेरी भी सुना करो.’’

‘‘कर्तव्य की पुकार के आगे हर आवाज धीमी पड़ जाती है, रश्मि. यह नश्वर शरीर दूसरों की सेवा के लिए ही तो बना है. जीवन में क्या धरा है, केवल आत्मसंतोष ही तो, जो मुझे मरीजों को देख, उन्हें संतुष्ट कर के मिल जाता है.’’

‘‘कर्तव्य, कर्तव्य, कर्तव्य,’’ रश्मि खीझी, ‘‘क्या तुम्हीं रह गए हो कर्तव्य पूरा करने वाले? मरीज दूसरे डाक्टर को भी तो बुला सकता है. तुम मना कर सकते हो.’’

‘‘ऐसे ही सब डाक्टर सोचने लगें तो मरीज को कौन देखेगा?’’ सुंदरम ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हटो आगे से…हटो, रश्मि.’’

‘‘नहीं, नहीं,’’ रश्मि सिर को झटक कर एक ओर हट गई. उस की आंखों में आंसू थे.

डाक्टर सुंदरम शीघ्रता से बाहर निकल गए. रश्मि की आंखों तले अंधेरा सा छाया था. वह उठ कर खिड़की से बाहर देखने लगी. हां, अंधेरा है, दूरदूर तक अंधेरा है. सारा नगर सो रहा है और वह जागी है. आसपास पत्तों के खड़कने की भी आवाज नहीं है और उस की आंखों की पुतलियां न जाने किस दिशा में बारबार फिर रही हैं, आंखों में विवशता का पानी है. लाचार है. आंखों में पानी का गहरा नीला सागर है. होंठों पर न जाने कैसे झाग निकल कर बाहर टपक रहे हैं. किंतु यहां उस की इस दशा को देखने वाला कौन है? परखने वाला कौन है?

रश्मि ध्यान से कमरे की एकएक चीज अंधेरे में आंखें फाड़फाड़ कर देखने लगी. पलंग पर एक तरफ उस का 2 वर्ष का बेटा अविनाश सोया पड़ा है. कमरे में सुखसुविधा की सारी चीजें उपलब्ध हैं. रेडियो, फ्रिज, टेपरिकौर्डर और न जाने क्याक्या. किंतु इन सब के बीच वह सुख कहां है जिस की किसी भी पत्नी को चाह होती है, जरूरत होती है? वह सुख उस से क्यों छीना जाता है, लगभग हर रोज? उस की आंखों की पुतलियां एक बार फिर अविरल हो चलीं. उस की आंखें घूमती गईं. कुछ न भूलने वाली बातें, कुछ हमेशा याद रखने वाली बातें.

आज बड़ी मुश्किल से पति के पास कुछ अधिक देर बैठने का मौका मिला था. उस ने आज पूरे चाव से अपना शृंगार किया था, ताकि मरीजों से अलग बैठा सुंदरम उस में खो सके. खाने की मेज पर सुंदरम बोला था, ‘रश्मि, आज कितनी अच्छी लग रही हो, इच्छा होती है, तुम इसी तरह बैठी रहो और मैं भी इसी तरह बैठा तुम्हें देखता रहूं?’ और वह खुशी से झूम उठी. मस्ती के उन क्षणों को सोते वक्त वह और भी मधुर बनाना चाहती थी कि मरीज ने आ कर किसी लुटेरे की भांति उस के सुख को छिन्नभिन्न कर दिया और वह मुट्ठियां भींच बैठी थी. कर्तव्य के आगे सुंदरम के लिए कोई भी महत्त्व नहीं रखता. वह शीघ्रता से ओवरकोट पहन कर बाहर निकल गया था.

रश्मि को ध्यान आया, यह सब आज की बात नहीं है. उस के सुख पर ऐसा हमला शादी के तुरंत बाद ही होने लगा था. सुहागरात की उन मधुर घडि़यों में तो शायद मरीजों को उस पर तरस आ गया था. उस रात कोई कौलबैल नहीं घनघनाई थी. उस की सुखभरी जिंदगी का शादी के बाद वह शायद पहला व अंतिम दिन था, जब रात बिना किसी बाहरी हलचल के बीती थी. किंतु उस के अगले ही दिन उस के सपनों का सजाया कार्यक्रम छिन्नभिन्न हो गया था और जिंदगी अस्तव्यस्त. सुंदरम अपने मरीजों के प्रति इतना वफादार था कि उस के आगे खानापीना ही नहीं, बल्कि पत्नी भी महत्त्वहीन हो जाती थी. कौलबैल बजी नहीं कि वह मरीज को देखने निकल जाता. इस तरह रश्मि का जीवन एक अजीब प्रतीक्षा और अस्तव्यस्त ढंग से बीतने लगा था. जीने का न कोई ढंग था, न नियम. था तो केवल मरीजों को देखने का नियम, हर समय जब भी मालूम पड़े कि मरीज बीमार है. और घर में खाना कभी 12 बजे खाया जा रहा है, तो कभी 1 बजे, कभी 2, 3 या 4 बजे, कभी बिलकुल ही नहीं. रात का भी यही हाल था.

रश्मि प्रतीक्षा करती रहती कि कब सुंदरम आए, वह उस के साथ भोजन करे, बातें करे. लेकिन अस्पताल से देर से लौटने के बाद भी यह हाल था कि ऊपर से मरीज आ गए तो फिर बाहर. रात के 2 बजे कौलबैल बज उठे तो परवा नहीं, अफसोस नहीं. बस, कर्तव्य एक डाक्टर का एक मरीज के प्रति ही याद रहता. रश्मि को यह बिलकुल पसंद नहीं था. चौबीस घंटों में वह बहुत कम समय पति को अपने नजदीक पाती थी. वह चाहती थी, सुंदरम एक निश्चित कार्यक्रम बना ले, इतने से इतने बजे तक ही मरीजों को देखना है, उस के बाद नहीं. बाकी समय उसे वह अपने पास बिठाना चाहती थी.

पति का मूड भी बात करने का होता कि मरीज आ धमकता और सारा मजा किरकिरा. सब बातें बंद, मरीज पहले. घूमने का प्रोग्राम भी मरीज के कारण रुक जाता. उसे लगता है, रात कभी 2 बजे से शुरू होती है, कभी 3 बजे से. यह भी कोई जिंदगी है. लेकिन सुंदरम कहता कि मरीज को देखने का कोई समय नहीं होता. मरीज की हालत तो अनायास ही बिगड़ती है और यह मालूम पड़ते ही डाक्टर को उस की जांच करनी चाहिए. मरीजों को देखने के लिए बनाए कार्यक्रम के अनुसार चलने पर वह कार्यक्रम किसी भी मरीज की जान ले सकता है. जब मरीज बीमार है तभी डाक्टर के लिए उसे देखने का समय होता है. देखने का कोई निश्चित समय नहीं तय किया जा सकता.

आगाज- भाग 2: क्या हुआ था नव्या के साथ

नव्या के यों हंसने से नैवेद्य को लगा वह फिर से अपना कौन्फिडैंस खोने लगा, लेकिन अगले ही क्षण अपनी पूरी हिम्मत बटोर बोल पड़ा, ‘‘नव्या, मैं मजाक नहीं कर रहा. मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं. मुझे वाकई में

तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘कम औन किड्डो. ग्रो अप. यह प्यारव्यार कुछ नहीं. तुम्हें मुझ पर क्रश हो गया है, और कुछ नहीं. यह क्रश का बुखार कुछ ही दिन

रहता है. इस का पारा जैसे चढ़ता है, वैसे ही उतर भी जाता है,’’ नव्या ने मंदमंद मुसकराते हुए उस से कहा.

‘‘ओह नव्या, यह क्रश नहीं, डैम इट, प्यार है

प्यार. पिछले वीक की सेल्स कौन्फ्रैंस के बाद से मैं तुम्हें दिल दे बैठा हूं. सोतेजागते, उठतेबैठते मुझे तुम ही तुम दिखती हो. मेरी फीलिंग का मजाक तो कम से कम

मत उड़ाओ.’’

इस पर नव्या बोली, ‘‘मैं तुम्हारा मजाक नहीं उड़ा रही किड, लेकिन मेरी और  तुम्हारी दुनिया में जमीनआसमान का अंतर है.’’

‘‘अंतर, कैसा

अंतर?’’

‘‘यह तुम्हारा ऐप्पल का आईफोन और वाच, नाइके के जूते, प्रीमियम ब्रैंड के कपड़े और परफ्यूम बताते हैं तुम्हारी बैकग्राउंड बेहद रिच है. मुझे देखो, यह

मेरा ऐंड्रौइड फोन, जरूरत भर सामान के साथ यह मेरा छोटा सा स्टूडियो अपार्टमैंट. मेरी बैकग्राउंड तुम से बहुत कमतर है बच्चे. मेरे पापा एक रिकशा चलाने वाले हैं.

बोलो एक रिक्कशा चलाने वाले की बेटी के साथ इनवौल्व होना पसंद करोगे?’’

‘‘ओह नव्या, सब से पहले तो मुझे यह किड कहना बंद करो. और हां मुझे इस

बात से बिलकुल कोई फर्क नहीं पड़ता?’’

‘‘ओह, तुम्हारी क्या उम्र है, नैवेद्य?’’

‘‘मैं पूरे 25 साल का हूं.’’

‘‘मैं पूरे 30 की हूं. तुम से पूरे 5 साल

बड़ी.’’

‘‘तो क्या हुआ? प्यार में ये बातें माने

नहीं रखतीं.’’

‘‘रखती हैं नैवेद्य, मेरीतुम्हारी दुनिया

2 पोल्स हैं. मेरातुम्हारा कोई मेल नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हें कैसे

विश्वास दिलाऊं कि मैं तुम्हें दिलोजान से चाहने लगा हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं कभी अपने से कम उम्र इंसान को अपनी जिंदगी में शामिल नहीं कर सकती.’’

‘‘ओह

नव्या, प्लीज, ये दकियानूसी बातें करना बंद करो. अच्छा चलो मेरा प्यार कबूल करना नहीं चाहती, तो न सही. मेरी दोस्ती ही ऐक्सैप्ट कर लो यार. चलो, यह

ट्यूलिप्स तुम्हारीमेरी दोस्ती के नाम.’’

‘‘ओके, बहुत प्यारे ट्यूलिप्स हैं,’’ नव्या ने उन्हें हाथ से सहलाते हुए कहा, ‘‘ओके डन, औनली फ्रैंडशिप, नो प्यारव्यार

ओके?’’

‘‘ठीक है भई, ठीक है.’’

दोनों को बातचीत करतेकरते रात के

10 बजने को आए. यह देख कर नव्या

ने उस से कहा, ‘‘नैवेद्य 10 बजने वाले हैं. घर

नहीं जाना?’’

‘‘तुम्हें छोड़ कर घर जाने का मन ही नहीं कर रहा. यार भूख लग रही है डिनर ही करवा दो.’’

‘‘नैवेद्य, अब मेरा तो खाना बनाने का मन ही

नहीं कर रहा. चलो रेस्तरां चलते हैं.’’

‘‘अरे नव्या, मैं बाहर का खाना अवौइड करता हूं. और हां बाई द वे, मैं बहुत अच्छा कुक भी हूं. क्या आज मैं तुम्हें अपने

हाथों से खाना बना कर खिला सकता हूं? इजाजत है तुम्हारी किचन में घुसने की? बोलो तुम्हें क्या खाना है?’’

‘‘अरे नैवेद्य, तुम मेरी किचन में क्या बनाओगे?

अब इतनी देर से मेरा तो किचन में पैर रखने तक का मन नहीं कर रहा.’’

‘‘औल द बेटर. चलो तुम्हें पकौड़े पसंद हैं?’’

‘‘बेहद. प्याज के पकौड़े मेरे पसंदीदा

हैं. क्या तुम पकौड़े बना लेते हो?’’

‘‘मैडम, बस आप मुझे पकौड़े बनाने की सारी चीजें दे दीजिए, बेसन, प्याज, अदरक, हरीमिर्च और बस तसल्ली से बाहर बैठ

जाइए. और हां, मुझे मसालादानी भी चाहिए.’’

नव्या ने उसे बेसन और मसालदानी थमाई. फिर प्याज, अदरक और हरीमिर्च

प्लैटफौर्म पर रख कर बोली, ‘‘चलो,

मैं ये सब धो कर काट देती हूं.’’

‘‘नहीं मैडम, मुझे अपनी किचन में कोई नहीं चाहिए. किचन में बस मैं और मेरी तनहाई. यहां किसी तीसरे की गुंजाइश नहीं,’’

कहते हुए उस ने नव्या के हाथ से चाकू छीना और उसे कंधों से थाम लगभग धकेलते हुए ओपन किचन के प्लेटफौर्म की दूसरी ओर एक स्टूल पर बैठा दिया और

फिर उस से कहा, ‘‘आप बस यहां बैठिए और मुझ से बातें कीजिए. अगले 1 घंटे तक किचन में आप की नो ऐंट्री है.’’

लगभग आधे घंटे में पकौड़े बन गए.

गरमगरम पकौड़े एक प्लेट में रख कर नैवेद्य ने प्लेट नव्या को थमाई, ‘‘चलो नव्या, ऐंजौय दी…’’

खातेखाते रात के 12 बजने को आए.

नैवेद्य ने नव्या से

विदा ली. उस रात नैवेद्य को सी औफ कर के वह नैवेद्य के बारे में ही सोचती रही.

उस का खयाल करते ही उस का मासूम सा चेहरा आंखों के सामने आ गया और

कानों में उस के शब्द गूंजने लगे कि मुझे तुम से प्यार हो गया है. उस के चेहरे पर बरबस एक उदास मुसकराहट तिर आई और वह मन ही मन में बुदबुदाई कि

नैवेद्य, तुम्हें मेरी असलियत नहीं मालूम. मैं जिस दिन तुम्हें अपनी वास्तविकता बता दूंगी उसी दिन तुम मेरी दुनिया से दूर चले जाओगे, दूर बहुत दूर.

उस की आंखें

नम हो आईं कि तभी नींद का एक झोंका आया और कुछ ही देर में वह नींद के आगोश में गुम हो गई.

अगली सुबह वह उठी तो उस ने अपना फोन चैक किया. फोन

पर नैवेद्य का मैसेज आया था, ‘गुड मौर्निंग लव. गुड डे,’ साथ में एक हार्ट की सुर्ख इमोजी भी थी.

नैवेद्य का यह मैसेज पढ़ कर उस के मन में गुदगुदी हुई. यह

एहसास मन को बेहद भला लगा कि कोई तो है इस दुनिया में जो उसे चाहने लगा है, उसे पसंद करने लगा है.

दिन यों ही कैसे घर के कामों, कुकिंग, सफाई में बीत

गया, उसे पता ही नहीं चला.

शाम हो आई थी. वह कंबल में सिकुड़ी टीवी देख रही थी कि तभी अचानक फोन पर नैवेद्य का मैसेज फ्लैश हुआ. स्क्रीन पर हार्ट की

बहुत सारी सुर्ख इमोजी लगातार आए जा रही थीं. उन्हें देख वह बरबस मुसकरा उठी कि तभी अचानक उस के घर की घंटी बजी.

उस ने दरवाजा खोला. एक बार फिर

अपने हाथों में सुर्ख ट्यूलिप्स का बेहद खूबसूरत बुके थामे नैवेद्य उस के सामने खड़ा था.

‘‘गुड मौर्निंग माई लव. यह उस स्वीट सी लड़की के लिए, जिस ने मेरा

दिल चुरा लिया है.’’

जवाब में नव्या ने उसे एक उदास दृष्टि से देखा, जिसे लक्ष्य कर नैवेद्य ने उस से कहा, ‘‘क्या हुआ नव्या, कोई परेशानी?’’

‘‘नहींनहीं,

कुछ नहीं. भीतर आओ, बैठो.’’

तभी नैवेद्य अपने चिरपरिचित अंदाज में चहका, ‘‘आज घर में रहने का बिलकुल मन नहीं है. आज मौसम बहुत सुहाना हो रहा

है… आज रिवर वौक चलते हैं. तुम्हारे घर के पास भी है. कल ही मेरा एक दोस्त इस के बारे में बता रहा था कि बहुत बढि़या जगह है.’’

‘‘ठीक है नैवेद्य, वहीं

चलते हैं. मुझे तो वहां जाना बहुत अच्छा लगता है. मैं तो कई बार शाम को जौगिंग के लिए वहां जाती हूं. वहां कहींकहीं घास पर कुरसियां भी पड़ी हैं. किसी शांत

कोने में बैठ कर अपने मन की बातें भी कर लेंगे. मैं आज अपने बारे में तुम्हें सबकुछ साफसाफ बताना चाहती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे पास्ट के बारे में कुछ नहीं जानना चाहता. कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे उस से कोई मतलब नहीं.’’

‘‘पर मैं तो तुम्हें सबकुछ बताना चाहती हूं. ठीक है, तुम बैठो मैं तैयार हो कर आती हूं.’’

‘ ‘ओके यार, देर मत करना.’’

‘‘हांहां, बस अभी आई.’’

Anupama: पाखी की बद्तमीजी के लिए ट्रोल हुई Muskan Bamne, कही ये बात

स्टार प्लस के हिट सीरियल्स में से एक ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां शो के प्रोमो ने फैंस की नींद उड़ा दी है तो वहीं सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक को देखकर पाखी पर अनुपमा फैंस का गुस्सा बढ़ गया है. वहीं इस गुस्से का शिकार पाखी के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस मुस्कान बामने (Muskan Bamne) को भी झेलना पड़ रहा है. हालांकि एक्ट्रेस ने ट्रोलर्स को करारा जवाब दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

 लोगों ने कहा बद्तमीज

 

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अब तक आपने देखा कि पाखी की बेइज्जती के कारण अनुपमा टूट जाती है. वहीं वनराज उससे दोबारा शाह हाउस में कदम रखने से मना करता है. जहां इस सीन को देखकर अनुपमा के लिए दर्शक बेहद दुखी हैं तो वहीं पाखी पर गुस्सा करते हुए बद्तमीज का टैग देते दिख रहे हैं. हालांकि इन सब का असर अब एक्ट्रेस मुस्कान बामने पर भी पड़ने लगा है. सोशलमीडिया पर उनके किरदार के लिए लोग उन्हें खरीखोटी सुना रहे हैं. हालांकि एक्ट्रेस को इस बात से फर्क नहीं पडता है.

एक्ट्रेस ने दिया जवाब

 

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ट्रोलिंग का शिकार होते ही एक्ट्रेस मुस्कान बामने ने अपनी एक वीडियो फैंस के साथ शेयर की है, जिसमें वह सीरियल के सेट पर टीवी देख रही हैं और पाखी के हाल ही में एयर हुए एपिसोड का मजाक बनाती दिख रही हैं. वहीं इस वीडियो के साथ एक्ट्रेस ने एक कैप्शन शेयर किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘कितनी बदतमीज है पाखी (मुस्कान नहीं)’ @bhosalelatika @muskanbamne इस पर रिएक्शन दे रहे हैं. एक्ट्रेस की इस वीडियो पर फैंस जमकर कमेंट कर रहे हैं. हालांकि लोग उनकी एक्टिंग की भी काफी तारीफ करते दिख रहे हैं.

 

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बता दें, हाल ही में एक्ट्रेस ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपने इस सीन पर बात करते हुए कहा था कि ‘जब मैंने अपने अगले सीन की स्क्रिप्ट पढ़ी तो मैं शॉक्ड थी कि एक बेटी अपनी मां पर गुस्सा दिखाने के लिए कैसे हदें पार कर सकती है. मां से मिसबिहेव करने की बात तो छोड़िए, कोई इतना रूड भी कैसे हो सकता है. हालांकि मेरे लिए ये सीन करना काफी एक्साइटिंग था.’ वहीं अपकमिंग एपिसोड की बात करें तो सीरियल में पाखी को अपनी गलती का पछतावा होते हुए दिखने वाला है और वह अनुपमा से माफी मांगने की बात कहेगी. हालांकि वनराज इस काम के लिए रोकता नजर आएगा. वहीं अनुपमा अब शाह परिवार से दूर रहने का फैसला करेगी.

तलाक की खबरों के बीच Charu Asopa के नए पोस्ट पर भड़के ट्रोलर्स, पढ़ें खबर

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन और उनकी भाभी यानी टीवी एक्ट्रेस चारु असोपा की पर्सनल लाइफ आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में जहां राजीव और चारु असोपा के तलाक की खबरें छाई हुई थीं तो वहीं एक्ट्रेस का नया पोस्ट सोशलमीडिया पर छा गया है, जिसके चलते वह ट्रोलिंग का शिकार हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

फोटो के चलते ट्रोल हुई एक्ट्रेस

 

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तलाक की खबरों के बाद सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली एक्ट्रेस चारु असोपा ने अपनी नई फोटोज फैंस के साथ शेयर की हैं. इन फोटोज में एक्ट्रेस मांग में सिंदूर और 16 श्रृंगार करके बैठीं हुई नजर आ रही हैं. वहीं इस फोटो के साथ कैप्शन में एक्ट्रेस ने लिखा है कि उनकी बेटी जियाना 8 महीने की हो गई हैं. फोटो को देखते हीं जहां फैंस उन्हें बधाई दे रहे हैं तो वहीं ट्रोलर्स एक बार फिर गुस्से में आ गए हैं.

 

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लोगों ने की ये बात

 

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बेटी जियाना संग फोटोज के अलावा एक्ट्रेस Charu Asopa ने एक वीडियो भी शेयर किया है, जिसमें वह रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ के रोमांटिक ‘केसरिया’ पर डांस करती हुई दिख रही हैं. वहीं इस वीडियो पर ट्रोलर्स जमकर कमेंट कर रहे हैं और एक्ट्रेस को ड्रामेबाज बता रहे हैं. एक यूजर ने वीडियो पर कमेंट करते हुए लिखा, ‘उसने तलाक भी दायर किया है… क्या हैं ये लोग?’

राजीव सेन कर चुके हैं तारीफ

ट्रोलर्स के अलावा बात करें तो हाल ही में राजीव सेन (Rajeev Sen) ने चारु असोपा की तारीफ करते हुए कहा था कि वह उनकी बेटी का अच्छी तरह ख्याल रख रही हैं. जबकि वह साथ नहीं हैं. वहीं चारु असोपा अपने पति पर इल्जाम लगाने के बावजूद और तलाक की खबरों के बाद भी एक्ट्रेस ने सोशलमीडिया पर अपने नाम सेन सरनेम नहीं हटाया है.

निवेश से पहले बरतें सावधानी

लोग अक्सर दूसरों की सफलता की कहानियां सुनकर पैसा कमाने के लिए तत्पर हो जाते हैं और इसी चक्कर में गलत जगह निवेश कर देते हैं. गलत निवेश आपके लिए फायदेमंद कम और नुकसानदेह ज्यादा साबित हो सकता है. लोगों को पता नहीं होता है कि उनके निवेश का लक्ष्य क्या है और पैसा लगा देते हैं. आमतौर पर निवेशक ऐसी ही पांच गलतियां करते हैं. आज हम आपको ऐसी ही गलतियों से बचने के टिप्स बता रहे हैं, जिससे आप नुकसान से तो बचेंगे ही साथ ही आपको निवेश का सही तरीका भी पता चल जाएगा.

लक्ष्य पता हो तभी करें निवेश

निवेश का पहला कदम है लक्ष्य को निर्धारित करना. लक्ष्य का मतलब है कि आप किस उद्देश्य से निवेश करना चाहते हैं? जैसे घर खरीदना या बच्चों की पढ़ाई का खर्च इत्यादि. लक्ष्य पता होने पर ही आप तय कर सकते हैं कि भविष्य में आपको कितने पैसों की जरूरत पड़ेगी. लक्ष्य पता होगा तभी आप सही विकल्प चुन पाएंगे और आपकी जरूरतें पूरी हो पाएंगी.

एक तरह के विकल्प में ना लगाएं पैसा

निवेशक आमतौर पर एक तरह के विकल्प में पैसे लगाने की गलती करते हैं. जैसे कई लोग सारा पैसा बैंक में रखना पसंद करते हैं या फिर प्रॉपर्टी में लगा देते हैं. अगर आपने पैसा एक विकल्प में लगा रखा है तो नुकसान होने की संभावना ज्यादा है. निवेश के जोखिम को कम करने के लिए हमेशा अलग-अलग तरह के एसेट में पैसा लगाना चाहिए. अच्छा पोर्टफोलियो वह होता है, जिसमें सभी तरह के निवेश विकल्पों में पैसा डाइवर्सिफाइ हो.

निवेश से पहले नुकसान का गणित जरूर समक्ष लें

लोग अधिक और जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में जोखिम को भूल जाते हैं और दूसरों की सलाह पर अपना पूरा पैसा लगा देते हैं. निवेश का नियम है कि पहले जोखिम को अच्छे से समझ लें. शेयर बाजार, प्रॉपर्टी, सोना, कमोडिटी सभी के साथ जोखिम जुड़ा है. इसलिए सबसे पहले ये समझ लें कि नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. अगर आप में जोखिम उठाने की क्षमता है तो ही निवेश करें.

घाटे के समय तुरंत बदलें अपना निवेश

लोग अपने निवेश को लेकर भावनात्मक हो जाते हैं, जबकि निवेश से जुड़े फैसले दिमाग से लेने पड़ते हैं, न कि दिल से. अगर आपके निवेश पर घाटा हो रहा है तो आपको जल्द से जल्द अपना पैसा निकाल लेना चाहिए. किसी शेयर में पैसे लगाकर फंस गए हैं तो उछाल लौटने की उम्मीद में शेयर में इतने वक्त के लिए न बने रहें कि आपका सारा पैसा ही डूब जाए. समय रहते बाहर निकलकर आप अपना पूरा पैसा खोने के बजाये कुछ पैसा बचा सकते हैं.

एसआईपी निवेश का सही तरीका

निवेशकों के लिए शेयर बाजार की चाल समझना काफी मुश्किल भरा काम है. तेजी को देखते हुए जबतक निवेशक शेयरों में निवेश करना शुरू करते हैं, तब तक बाजार की चाल बदल जाती है. इसलिए छोटे निवेशकों के लिए सिस्टेमेटिक इन्‍वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) का तरीका सबसे अच्छा रहता है.

सिर दर्द और उलटियां क्या गंभीर बीमारी की संकेत है?

सवाल-

मैं 46 वर्षीय शिक्षिका हूं. पिछले कई दिनों से मुझे सिर में तेज दर्द हो रहा है. आराम करने और दवा लेने पर भी सिरदर्द ठीक नहीं होता. कई बार सिरदर्द के साथ उलटियां भी आती हैं. क्या यह किसी गंभीर बीमारी का संकेत है?

जवाब-

सिरदर्द एक बहुत ही सामान्य स्वास्थ्य समस्या है जो कई कारणों से हो सकता है. मामूली सिरदर्द को थोड़ी देर आराम कर के या पेन किलर ले कर ठीक किया जा सकता है. कभीकभी सिरदर्द हो तो कोई बात नहीं. लेकिन अगर सिरदर्द लगातार रहने लगे, रात में या सुबहसुबह तेज सिरदर्द होने से नींद खुल जाए, चक्कर आने लगे, सिरदर्द के साथ जी मिचलाना और उलटियां होने की समस्या हो तो सम?िए कि आप के मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ रहा है. मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ने का कारण ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. अगर आप पिछले कुछ दिनों से इस तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डायग्नोसिस कराएं.

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सिर दर्द होना इतना सामान्य हो गया है कि अब हम इसे हेल्थ प्रॉब्लम की तरह देखते ही नहीं हैं. सिर दर्द होना, है तो सामान्य बात लेकिन अगर दर्द बढ़ जाए तो पूरा दिन बर्बाद हो जाता है.

हममें से ज्यादातर लोग सिर दर्द बर्दाश्त नहीं होने पर पेन-किलर ले लेते हैं लेकिन हर बार दवा लेना सही तो नहीं है. इसके कई साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. दर्द दबाने के लिए इन दवाओं में एस्टेरॉएड का इस्तेमाल किया जाता है. हो सकता है आपको शुरू में इन दवाओं से फायदा हो जाए लेकिन भविष्य में इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि आप घरेलू उपायों का रुख करें. सामान्य सिर दर्द के लिए ये उपाय बहुत ही फायदेमेद हैं लेकिन अगर सिर दर्द किसी मेडिकल कंडिशन की वजह से है तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें.

1. विनेगर या सिरका

सिरका एक औषधि है. इसका इस्तेमाल पेट दर्द में भी किया जाता है और यह सिर दर्द में भी फायदेमंद है. हल्के गुनगुने पानी में एक चम्मच सिरका मिला लें. इसे पीकर कुछ देर के लिए लेट जाएं. सिर दर्द कम हो जाएगा और धीरे-धीरे गायब.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- सिर दर्द दूर करने के लिए घरेलू उपाय

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