किट्टी पार्टी: समय और पैसे की बरबादी

रेस्तरां पूरा खाली था. एक तरफ कुछ मेजों को जोड़ कर 15 से 20 लोगों के बैठने की व्यवस्था बना दी गई थी. दोपहर के 2 बजे थे. 1-1 कर वहां महिलाओं का आना शुरू हुआ. सभी सीटें भर गईं. सीटो पर सजीधजी महिलाएं बैठी थीं, जिन की उम्र 30 से 35 साल के बीच थी. सभी युवा थीं. पढ़ीलिखी दिख रही थीं. ये सभी हाउसवाइफ थीं. इन की किट्टी का थीम स्कूल ड्रैस था, इसलिए सभी अपनेअपने हिसाब से स्कूल गर्ल्स की तरह बन कर आई थीं.

कई महिलाओं की फिटनैस ऐसी थी कि वे स्कूल तो नहीं पर कालेज जाने वाली लड़कियां जरूर लग रही थीं. सभी एकदूसरे की तारीफ कर रही थीं.

इस के बाद एकदूसरे के साथ मोबाइल सैल्फी लेने का दौर शुरू हो गया. होड़ इस बात की थी कि सैल्फी लेते समय सब से अच्छा ‘पाउट’ कौन बना लेता है? ‘सैल्फी पाउट’ का क्रेज महिलाओं में बहुत अधिक है. मोबाइल से सैल्फी लेते समय वे मुंह को पतला करती हैं, जिस की वजह से सैल्फी सुंदर आती है.

नैचुरल पाउट बेहद सुंदर दिखते हैं. जिन महिलाओं के लिप्स उतने भरे नहीं होते वे पाउट के जरीए खुद से बनाने का काम करती हैं. कुछ महिलाएं इन को सही से बना लेती हैं. उन का चेहरा सुंदर लगता है. सैल्फी पाउट ले कर सोशल मीडिया खासकर इंस्ट्राग्राम और फेसबुक पर पोस्ट कर दी जाती हैं.

सैल्फी के बाद सब से पसंद किया जाने वाला टें्रड रील बनाने का हो गया है. महिलाएं एकदूसरे के छोटेछोटे वीडियो क्लिप मोबाइल से बनाती हैं जिन्हें फेसबुक, इंस्ट्राग्राम और यूट्यूब के माध्यम से पोस्ट किया जाता है. यह आजकल सब से पौपुलर ट्रैंड बन चुका है. इस के लिए अच्छी लोकेशन की तलाश रहती है. किट्टी पार्टी जिस होटल में होती है वहां ऐसी जगह तलाशी जाती है. इस के बाद गु्रप फोटो अलगअलग स्टाइल में क्लिक कराया जाता है. कई बार तो इस के लिए प्रोफैशनल फोटोग्राफर भी बुलाया जाता है.

गौसिप, डांस, गेम्स और खाना

फोटोग्राफी के बाद डांस, गेम्स और खाना किट्टी पार्टी का प्रिय शगल होता है. यही वजह है कि हर बार पार्टी के लिए नई लोकेशन की तलाश होती है. कोई भी किट्टी पार्टी बिना गौसिप के पूरी नहीं होती. हर पार्टी में कोई न कोई ऐसा जरूर होता है जो किसी न किसी कारण से पार्टी का हिस्सा नहीं बन पाता. इस की ही सब से अधिक गौसिप होती है. गौसिप भी निजी संबंधों, व्यवहार, घरपरिवार और दोस्त को ले कर होती है. कई बार सैक्स संबंधों पर भी खुल कर बातें होती हैं. इस तरह से 4-5 घंटे की किट्टी पार्टी पूरी हो जाती है.

कई महिलाएं ऐसी हैं जो 3-4 किट्टी तक में हिस्सा लेती हैं. किट्टी पार्टी में हिस्सा लेने के लिए सब से पहले उतने पैसे रखने होते हैं जितने की किट्टी होती है. 2 हजार की किट्टी के लिए पार्टी के लिए पैसा अलग से देना पड़ता है. यह भी किट्टी की रकम के ही बराबर होती है. इस के अलावा कपडे़, मेकअप और स्टाइल के लिए भी खर्च करना पड़ता है. 2 हजार की किट्टी के लिए होने वाली पार्टी में हिस्सा लेने के लिए 2 से 4 हजार के बीच में अलग खर्च हो जाता है.

ऐसे में किट्टी के जरीए फंड जुटाने वाली बात बेमकसद हो जाती है. अगर पैसा जुटाना मकसद होता तो पैसे का भुगतान औनलाइन किया जा सकता था, जिस से बाकी के खर्च बच जाते. किट्टी में यह नियम होता है कि अगर आप को पार्टी में शामिल नहीं भी होना है तो भी किट्टी के खर्च वाले पैसे देने ही पड़ेंगे. ऐसे में किट्टी के जरीए पैसे की बचत वाली बात बेमकसद लगती है.

समय का नुकसान

किट्टी पार्टी में 3-4 घंटे का समय लगता है. इस के साथ ही आनेजाने और तैयारी करने में समय अलग से लगता है. जो महिलाएं 3-4 किट्टी हर माह करती हैं वे पूरा माह इस की तैयारी करती रहती हैं. अत: जो समय महिलाओं को किसी उत्पादक काम में लगाना चाहिए उसे किट्टी पार्टी में लगाना पैसे के साथसाथ समय की भी बरबादी होती है. इस समय का उपयोग वे किसी उत्पादक काम में लगा सकती है, जिस से न केवल उन का भला होगा बल्कि घरपरिवार और समाज का भी भला होगा. किट्टी करने वाली महिलाओं का कहना है कि इस के जरीए वे अपने जैसी महिलाओं के साथ मिलजुल लेती हैं, जिस से उन को खुशी मिलती है.

महिलाएं समाज का एक बड़ा हिस्सा है. लेकिन इन में से कुछ महिलाएं जो कुछ अच्छा काम कर सकती हैं वे किट्टी में अनुत्पादक काम कर के अपना समय खराब करती हैं, अपनी सोच के दायरे को भी कम करने लगती हैं.

ये महिलाएं पढ़ीलिखी होती हैं. इन के घरपरिवार के लोग इन्हें सहयोग करते हैं. मातापिता ने बेटों की तरह ही पढ़ाने का काम किया होता है, पर इन के बाद भी ये बेटों की तरह कमाई वाले काम करने की जगह किट्टी पार्टी करने लगती हैं. अत: महिलाएं जब तक पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर काम नहीं करेंगी देश और समाज के साथसाथ घरपरिवार का भी भला नहीं होगा.

स्कूलकौलेज की फीस बेकार

एक लड़की को अगर अच्छी शिक्षा दी जाती है, प्रोफैशनल डिगरी लेती है तो 8 से 10 लाख रुपए कम से कम उस की शिक्षा पर खर्च हो जाते हैं. इतनी पढ़ाई के बाद इन की शादी हो जाती है. इस के बाद ये ससुराल जा कर पहले तो घर में कैद हो जाती हैं. इस के कुछ सालों के बाद कुछ करने लायक नहीं रह जातीं. फिर समय व्यतीत करने के लिए किट्टी पार्टी करने लगती हैं. अगर पढ़ाई के बाद शादी और शादी के बाद किट्टी जैसे ही काम करने थे तो किसी भी नौर्मल स्कूल से पढ़ाई कर सकती थीं जो 2 से 3 लाख में पूरी हो जाती.

महिलाओं की खुद की तरक्की तब तक नहीं होगी जब तक वे पढ़लिख कर आत्मनिर्भर नहीं बनती. इस के लिए मातापिता की सोच, मेहनत और खर्च करने के साथ ही साथ लड़कियों को खुद भी अपने समय की कीमत पहचाननी पड़ेगी. 25 साल से ले कर 45 साल तक 20 साल ऐसे होते हैं, जिन में महिलाएं मेहनत कर सकती हैं. ऐसे समय में मेहनत कर के खुद को आत्मनिर्भर बना सकती हैं. पढ़ाई से जो हासिल किया है उस को अगर देश, समाज और घर के विकास में नहीं लगाएंगी तो किसी का कोई भला नहीं होगा.

जिस देश की आधी आबादी अनुत्पादक काम करेगी वह देश विकास नहीं कर सकता. शिक्षित हो रही लड़कियों को यह जिम्मेदारी लेनी पडे़गी कि वे खुद आत्मनिर्भर बनें. घरपरिवार देश समाज को मजबूत बनाएं. अगर वे अपनी पढ़ाई करने के बाद खाली हैं, समय गुजारने के लिए किट्टी पार्टी का हिस्सा बन रही हैं तो किसी का कोई भला नहीं होने वाला. पढ़ाई पर खर्च किया गया पैसा बेकार चला जाएगा.

हाइपोथायरोडिज्म की प्रौब्लम को लेकर सुझाव दें?

सवाल-

मेरी शादी को 6 साल हो गए हैं, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है. मु झे हाइपोथायरोडिज्म है. कहीं बां झपन का कारण मेरी यह बीमारी तो नहीं है?

जवाब-

महिलाओं और पुरुषों में बां झपन का एक प्रमुख कारण थायराइड से संबंधित समस्याएं होती हैं. महिलाओं में इस के कारण या तो अंडाशय की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है या अंडे रिलीज नहीं होते अथवा उन का चक्र अनियमित हो जाता है. कई महिलाएं समय से पहले मेनोपौज की शिकार हो जाती हैं. हालांकि उपचार के बाद प्रजननतंत्र संबंधी समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकता है. आप किसी अच्छी स्त्रीरोग विशेषज्ञा को दिखाएं.

जांच करने पर ही पता चलेगा कि आप गर्भधारण क्यों नहीं कर पा रही हैं. अगर हाइपोथायरोडिज्म इस का कारण है तो दवाइयों और विभिन्न उपायों द्वारा इस का प्रबंधन कर प्रजननतंत्र की कार्यप्रणाली में सुधार कर सामान्यरूप से गर्भधारण को संभव बनाया जा सकता है.

सवाल-

थायरायड ग्रंथि के ठीक प्रकार से काम करने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि थायराइड संबंधित गड़बडि़यों के खतरे को कम किया जा सके?

जवाब-

जीवनशैली और खानपान में परिवर्तन ला कर थायराइड से संबंधित समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और संतुलित भोजन का सेवन करें जो विटामिन ए, सी, डी, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड और ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर हो. यह थायराइड ग्रंथि के ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए आवश्यक है. हाइपोथायराइड से पीडि़त लोग सी फूड, ब्रैड और आयोडीन युक्त नमक का अधिक मात्रा में सेवन करें जबकि हाइपरथायराइड से पीडि़त लोग ऐसे खाद्यपदार्थ कम खाएं जिन में आयोडीन अधिक मात्रा में हो.

हालांकि ऐंटीथायराइड दवाइयों से थायराइड ग्रंथि से ज्यादा स्राव कम हो जाता है, लेकिन केवल इस से ही काम नहीं चलेगा क्योंकि एक बार दवाइयां बंद करने के बाद यह फिर से शुरू हो जाता है. इसलिए आप को खानपान में अतिरिक्त सावधानी रखनी होगी. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज भी थायराइड के मरीजों को सामान्य जीवन जीने में सहायता कर सकती है.

सवाल-

मेरे बेटे की उम्र 8 साल है. उस की थायराइड ग्रंथि सामान्य रूप से काम नहीं कर रही है. मैं ने सुना है कि ऐसे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

यह सही है कि थायराइड संबंधी गड़बडि़यों का उपचार न कराया जाए तो इस से बच्चे का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. अत: उपचार कराने में देरी न करें. इस के लक्षण गंभीर हो सकते हैं और जटिलताओं का खतरा बढ़ सकता है. उस की डाइट का पूरा ध्यान रखें.

बच्चे के खाने में आयोडीन और विटामिन-ए उचित मात्रा में हो ताकि थायराइड ग्रंथि ठीक प्रकार से कार्य कर सके. उसे आउटडोर गेम खेलने दें. इस से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बनता है बल्कि थायराइड ग्रंथि भी ठीक प्रकार से काम करती है.

सवाल-

मैं 42 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. कुछ दिनों से मैं बहुत थकीथकी रहने लगी हूं. हर समय नींद आती रहती है और मेरा वजन भी काफी बढ़ गया है. कई उपाय किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ये सभी लक्षण हाइपोथायरोडिज्म यानी थायराइड की कार्यप्रणाली कम हो जाने के कारण दिखाई देते हैं. थायराइड हारमोन के कम स्राव से शरीर की मैटाबौलिक क्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं. इस से व्यक्ति थका हुआ महसूस करता है और पाचनतंत्र भी ठीक प्रकार से कार्य नहीं करता है.

वैसे इस का कारण कोई और स्वास्थ्य समस्या भी हो सकती है,  लेकिन यह सब तो जांच कराने के बाद ही पता चलेगा. अगर जांच में हाइपोथायरोडिज्म का पता चलता है तो तुरंत उपचार शुरू कर दें. उपचार में देरी से कोलैस्ट्रौल का स्तर और रक्तदाब बढ़ जाता है, कार्डियोवैस्क्यूलर से संबंधित जटिलताएं हो जाती हैं, प्रजनन क्षमता कम हो जाती है और अवसाद की समस्या हो जाती है.

सवाल-

मैं 2 माह की गर्भवती हूं. मु झे हाइपोथायरोडिज्म है. ऐसे में गर्भावस्था के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

जवाब-

गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरोडिज्म होने से मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यहां तक कि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी थायराइड संबंधी समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है. हाइपोथायरोडिज्म समय से पहले प्रसव और गर्भपात का कारण भी बन सकता है. ऐसे में हाइपोथायरोडिज्म से पीडि़त गर्भवती महिलाओं को अपना खास खयाल रखना चाहिए.

डाक्टर द्वारा सु झाई दवाएं समय पर और उचित मात्रा में लें. संतुलित, पोषक और सुपाच्य भोजन का सेवन करें. कब्ज न होने दें. रोज कम से कम आधा घंटा टहलें. मानसिक शांति के लिए ध्यान करें, संगीत सुनें या अपना कोई और शौक पूरा करें.

-डा. सबिता कुमारी

सीनियर कंसल्टैंट, ओब्स्टट्रिशियन ऐंड गायनेकोलौजिस्ट, एकार्ड सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, फरीदाबाद

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Diwali Special: घर पर बनाएं स्वादिष्ट शकरपारे

फेस्टिव सीजन ने अगर आप मेहमानों को नमकीन के साथ कुछ घर की बनाई रेसिपी परोसना चाहते हैं तो शकरपारे आपके लिए बेस्ट रेसिपी है.

सामग्री

70 ग्राम चीनी

20 एमएल पानी

150 ग्राम मैदा

50 एमएल घी

चुटकी भर नमक

5 ग्राम मोटी सौंफ

तलने के लिए पर्याप्त तेल

जरूरतानुसार कैस्टर शुगर बुरकने के लिए

विधि

एक पैन में पानी और चीनी मिला कर चीनी गल जाने तक उबालें. बाउल में मैदा डाल कर उस में नमक मिलाएं. फिर घी डाल कर तब तक हाथों से रब करती रहें जब तक मिश्रण ब्रैडक्रंब्स की तरह न दिखने लगे.

अब मिश्रण में धीरेधीरे चीनी वाला पानी मिलाते हुए सख्त गूंध कर 10 मिनट ढक कर रख दें.

कड़ाही में तेल गरम कर के मिश्रण के 1/2 इंच मोटे रोल बना कर काटें और सुनहरा होने तक तल लें. कैस्टर शुगर बुरकें. ठंडा होने पर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग : रुचिता कपूर जुनेजा

जानें क्या है सडन कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक के बीच अंतर 

दो हृदय विकार मौत का कारण बन सकते हैं, और वे हैं – हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट. इन दोनों समस्याओं को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति देखी जाती है और कई बार इन्हें एक ही समस्या मान लिया जाता है. लेकिन ये दो स्वास्थ्य समस्याएं एक-दूसरे से पूरी तरह से कैसे  अलग हैं. बता रहे हैं …डॉ राकेश कुमार जायसवाल – निदेशक और एचओडी कार्डियोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल, मोहाली, कार्डिएक साइंसेज. इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी.

हार्ट अटैक क्या है?

दो कोरोनरी धमनियां – बाई कोरोनरी धमनी, दाईं कोरोनरी धमनी और उसकी सहायक धमनी हृदय को रक्त पहुंचाती हैं. जब इन ब्रांच में से कोई ब्लॉक हो जाती है तो हृदय की मांसपेशियों के लिए रक्त प्रवाह रुक जाता है. इस वजह से हार्ट अटैक होता है. हार्ट जिस हिस्से को ब्लॉक्ड धमनी द्वारा रक्त की आपूर्ति की गई हो और उसे जल्द अनब्लॉक्ड नहीं किया जाए तो उस हिस्से को नुकसान होने लगता है. उपचार नहीं होने पर यह नुकसान बढ़ जाता है.

हार्ट अटैक से तुरंत गंभीर लक्षण सामने आ सकते हैं. हालांकि कई बार, हार्ट अटैक से पहले लक्षण दिखने में कई घंटे, दिन या सप्ताह भी लग जाते हैं. कार्डियक अरेस्ट के विपरीत, हार्ट अटैक के दौरान दिल सामान्य रूप से धड़कता रहता है. महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण पुरुषों से अलग हो सकते हैं.

सडन कार्डियक अरेस्ट क्या है?

सडन कार्डियक अरेस्ट अचानक और बार बार होता है. इसमें दिल में इलेक्ट्रिकल गड़बड़ी की वजह से धड़कन अनियमित हो जाती है. जब दिल की रक्त पम्प करने की क्षमता प्रभावित होती है तो वह मस्तिष्क, फेफड़ों और अन्य अंगों तक रक्त पहुंचाने में सक्षम नहीं रहता है. व्यक्ति कुछ ही सेकंड में होश खो बैठता है और उसकी नाड़ी काम करना बंद कर देती है. यदि ऐसे में व्यक्ति का सही से उपचार न हो पाए तो उसकी कुछ ही मिनटों में मौत हो जाती है.

कौन से कारण हार्ट अटैक को बढ़ावा देते हैं?

हार्ट अटैक के मुख्य कारण हैंः

  1. धूम्रपान करना
  2. शराब पीना
  3. अधिक उम्र
  4. अस्वस्थ खानपान की आदत
  5. आनुवंशिक प्रवृत्ति
  6. खराब कार्यशैली
  7. मोटापा

 कौन से कारण कार्डियक अरेस्ट को बढ़ावा देते हैं?

कार्डियक अरेस्ट को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारण हैंः

  1. इलेक्ट्रिक सेल में असंतुलन
  2. कमजोर दिल
  3. हृदय की मांसपेशियों से संबंधित समस्याएं, जैसे कार्डियोमायोपैथी
  4. इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन- शरीर के पोटेशियम स्तर में अचानक कमी या वृद्धि
  5. छाती को अचानक झटका
  6. बेहद तेज या धीमी गति
  7. आनुवंशिक प्रवृत्ति
  8. हार्ट अटैक के बाद, अपर्याप्त रक्त प्रवाह से भी सडन कार्डियक अरेस्ट की समस्या बढ़ सकती है. यह एक ऐसी चिकित्सकीय समस्या है, जिसमें शरीर का प्रवाह और ऑक्सीजन में कमी आ जाती है.

हम ‘हार्ट अटैक’ और ‘कार्डियक अरेस्ट’ शब्दों का इस्तेमाल अब इस भरोसे के साथ कर सकते हैं कि हम इनके बीच मुख्य अंतर को समझ गए हैं. जहां जिंदगी का आनंद उठाना, नए अवसर तलाशना और अमूल्य यादें बनाना महत्वपूर्ण है, वहीं आपको अपने दिल का भी खयाल रखना चाहिए और हार्ट-हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाना चाहिए. लंबी जिंदगी के लिए, इससे निःसंदेह ही हृदय संबंधित रोगों को रोकने में मदद मिलेगी.

Diwali Special: इस त्योहार मना लें रूठे यार

दुनिया का हर रिश्ता हमारी चौइस से परे होता है. मांबाप, भाईबहन और अन्य रिश्तेदार चुनने में हमारी कोई भूमिका नहीं होती है. हम जिस परिवार में पैदा होते हैं वहीं से हमें रिश्ते जिंदगीभर के लिए मिल जाते हैं. लेकिन दुनिया में सिर्फ एक ही रिश्ता ऐसा होता है जिसे हम बनाते हैं या कहें कि हम चुनते हैं. इस रिश्ते का नाम है दोस्ती.

दोस्त यानी फ्रैंडशिप ही ऐसा संबंध होता है जो वे बातें समझ सकता है, जो खून के रिश्ते भी नहीं समझ पाते. इसलिए दोस्ती के रिश्ते को हमेशा संभाल कर रखना चाहिए. लेकिन कई बार बीच की गलतफहमियां हमें अपने दोस्तों से दूर कर देती हैं. ऐसे में इस बार फैस्टिवल के मौके पर आप तय कीजिए कि अपने चहेते दोस्तों से न सिर्फ पुराने गिलेशिकवे दूर करने हैं बल्कि अपनी लाइफ में नए दोस्तों का स्वागत भी करना है. कैसे? आइए जानते हैं:

दोस्ती में दरार क्यों

अक्षय और रोहन मन ही मन अपनी क्लासमेट आकृति को चाहते थे. लेकिन दोनों ने अपने दिल की बात अभी तक उसे नहीं बताई थी. एक दिन आकृति की बर्थडे पार्टी में सही मौका देख कर अक्षय ने आकृति को प्रोपोज किया तो वह मना न कर सकी. इस तरह दोनों गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड बन गए. यहां तक तो ठीक था लेकिन कुछ दिनों से अक्षय ने नोटिस किया कि रोहन उस से दूर रहने के बहाने करने लगा. क्लास में जानबूझ कर अलग सीट पर बैठता. कभी लंच टाइम में अकेले ही कैंटीन चला जाता, कभी बीमारी का बहाना कर उस के साथ बने फिल्म के प्लान को कैंसल कर देता.

रोहन की इस आदत से तंग आ कर अक्षय ने भी अपने दोस्त से दूरी बना ली. कल तक के जिगरी दोस्तों के बीच आई दरार कुछ और नहीं, बल्कि गलतफहमी थी. अगर समय रहते दोनों इस टौपिक पर खुल कर बात करते व आकृति के बारे में अपनी फीलिंग्स जाहिर करते तो आज की तरह दोनों एक दूसरे के दुश्मन नहीं बनते.

हम दोस्तों के साथ स्कूलकालेज जाते हैं. उन के साथ हर असाइनमैंट या होमवर्क पूरा करते हैं. लंच से ले कर ब्रैकफास्ट और बर्थडे पार्टी से ले कर फैमिली गेटटूगेदर, बिना दोस्तों के कंप्लीट नहीं होता. फिर ऐसा क्यों होता है कि हम उन से नाराज हो जाते हैं. दरअसल, दोस्ती में दरार तब पड़ती है जब एक दोस्त को लगता है कि उस के दूसरे दोस्त ने उस का विश्वास तोड़ा है या फिर उस से कुछ ऐसी बात छिपाई है जो उसे पता होनी चाहिए थी.

अकसर ऐसी ही बातें जब दोस्ती में दरार पैदा कर देती हैं तो बजाय दूरी और दुश्मनी बढ़ाने के, खुल कर बात करनी चाहिए. याद रखें गर्लफ्रैंड आज है, कल नहीं भी हो सकती है, ब्रैकअप हो सकता है, लेकिन दोस्त हमेशा के लिए होते हैं. वे बिना किसी ऐक्सपैक्टेशन के ताउम्र आप के कदम से कदम मिला कर चलते हैं.

भूल जाएं गिलेशिकवे

फैस्टिवल ही ऐसा मौका लाते हैं जब हम पुराने गिलेशिकवे भूल कर रोशनी के रंगों में सरोबार हो जाते हैं. दीवाली आ रही है और इस दीवाली जब घर में सबकुछ खुशनुमा हो, क्यों न रूठे दोस्तों को मनाने का प्रोग्राम बनाएं. गारंटी है कि फैस्टिवल के मौके पर आप का रूठा यार आप को खाली हाथ वापस नहीं भेजेगा. इस के लिए उस के घर जाने का प्रोग्राम बनाएं. त्योहार में घर पर बनी उस की फेवरेट स्वीटडिश ले कर और उस से सारी गलतफहमी पर खुल कर बात करें. अगर आप की गलती हो तो उस से बिना संकोच के सौरी बोलें और अगर आप की गलती न भी रही हो तो अब तक उस से नाराज रहने के लिए सौरी बोलिए. दोस्ती में कोई छोटाबड़ा नहीं होता है. अगर आप के सौरी बोलने से आप का दोस्त वापस आप के पास आ सकता है तो आप के लिए  इस से बड़ा गिफ्ट भला और क्या हो सकता है.

ईगो खत्म कर दूसरा मौका दें

हर रिश्ते में उतारचढ़ाव होते हैं. दोस्ती में भी. ऐसा कोई रिश्ता नहीं हो सकता जिस में कभी नाराजगी न हो. रिश्तों के बने रहने की शर्त है कि एकदूसरे की गलतियों को माफ करने की हिम्मत हो. हम युवा हैं और गरम खून अपनी अकड़ ले कर चलता है. इसलिए जब कभी दोस्ती में जरा सी बात बिगड़ती है तो हमारा ईगो आड़े आ जाता है. सोचने लगते हैं दोस्त जाता है तो जाए, मैं क्यों झुकूं. इसी ईगो के चलते दोस्त दूर हो जाते हैं.

अपने मैं से बाहर निकलें, दोस्तों के साथ पहले की तरह घुलमिल जाएं. अकसर अहं और छोटीमोटी तकरार इतनी बड़ी हो जाती है कि रिश्तों की वे गांठें कभी नहीं जुड़ पातीं. अगर आप भी किसी ऐसी ही बात का बुरा मान कर किसी दोस्त या करीबी से नाराज हैं तो इस त्योहार उन्हें फिर से दुश्मन से दोस्त बना लें और अपनी दोस्ती को दूसरा मौका दें. किसी संबंध को हमेशा के लिए खत्म करने से बेहतर है कि दूसरा मौका दे कर देखें. हो सकता है आप के दोस्त को गलती का एहसास हो और यह खूबसूरत रिश्ता बना रहे.

खास दोस्तों के लिए करें खास

जरा सोचिए, अगर दोस्त नहीं होंगे तो आप किस के साथ क्लास जाएंगे, वीकैंड पार्टी करेंगे या फिर फैस्टिवल में हंगामा किस के साथ मचाएंगे. जाहिर है इस दीवाली जब आप पटाखे फोड़ेंगे तो बिना दोस्तों के रौनक ही नहीं आएगी. घर पर पकवान तो ढेर सारे बनेंगे, लेकिन साथ में बैठ कर खाने वाले दोस्त कहां से आएंगे.

जब आप यह जानते हैं कि दोस्त आप के लिए कितने खास हैं तो फिर आप की भी जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें खास फील कराएं. ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप को दोस्तों का बर्थडे या उन से जुड़े खास दिनों की तारीखें याद न हों. उन्होंने कई बार आप को अपने घर डिनर पर बुलाया, लेकिन आप ने उन्हें कभी नहीं बुलाया. दोस्तों को भी एहसास कराएं कि आप की जिंदगी में उन की अहमियत है. बर्थडे पर विश करना या कभी कुछ स्पैशल गिफ्ट देना ऐसी चीजें हैं जो रिश्ते को मजबूत बनाती हैं.

अगर दोस्त कहीं दूर रहते हैं और किसी बात पर खफा हैं तो त्योहार की शुभकामनाओं के लिए उन्हें सब से पहले फोन करें और घर पर आमंत्रित कर उन का दिल जीतें. यकीनन उन की नाराजगी बहुत देर तक नहीं टिक पाएगी. अगर वे काफी दूर रहते हैं तो उन्हें बिना बताए कुछ अच्छा सा गिफ्ट ले कर उन के घर पहुंच जाएं और उन को हैरान कर दें. इस सरप्राइज विजिट से उन की हर नाराजगी दूर होते देर नहीं लगेगी. आड़े समय में दोस्त ही काम आते हैं. इसलिए इस फैस्टिवल संकल्प लें कि सभी दोस्तों की नाराजगी दूर कर उन्हें अपने घर बुलाएंगे और नए दोस्त भी बनाएंगे.

इस त्योहार में आप अपने दोस्तों को मनाने की पहल कर देखिए,  उत्सव का आनंद दोगुना हो जाएगा. याद रहे कोई भी गलतफहमी इतनी उलझी नहीं होती कि उसे सुलझाया न जा सके. तो समझ लीजिए दीवाली का यह त्योहार ऐसी ही किसी पुरानी गलतफहमी या कड़वाहट को मिठास में बदलने का मौका है, जो दोस्ती की राह में रोड़ा बन कर खड़ी है.

ऐसे करें दोस्ती की डोर मजबूत

दोस्ती में बहुत ज्यादा अपेक्षाएं न रखें. इस से संबंध बिगड़ते हैं. सब कीअपनी सीमाएं होती हैं, उन्हें समझें.

हर कोई अपनी लाइफ में व्यस्त है. लेकिन फिर भी दोस्तों के लिए समय निकालें.

अच्छे वक्त में भले ही दोस्तों को भूल जाएं लेकिन उन के बुरे समय में उन के साथ खड़े रहें.

उन के सामने अपनी अमीरी या बेहतरी का दिखावा न करें.

उन के लिए कभीकभी सरप्राइज पार्टी का आयोजन करें.

बहस की नौबत आए तो उसे कभी बढ़ने न दें.

उन की मजबूरी समझें. अगर समय न दे पाएं दोस्त, तो उसे अकड़ू या घमंडी कह कर इग्नोर न करें.

हर बार दोस्तों को ही दोषी न ठहराएं अपनी गलती भी मानें.

एकदूसरे की पसंदनापसंद व भावनाओं और इच्छाओं का सम्मान करें.

Anupama: बेटी की करतूतों के बारे में जानेगा वनराज, शादी की जिद करेंगे पाखी-अधिक

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ किंजल और तोषू की प्रौब्लम सुलझने के बाद पाखी और अधिक के कारण अनुपमा के सामने नई मुसीबत खड़ी हो गई है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में शाह और कपाड़िया फैमिली के बीच बवाल खड़ा होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा नया ट्विस्ट…

पाखी के बदले तेवर देख परेशान हुई अनुपमा

 

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अब तक आपने देखा कि पाखी और अधिक के होटल में पकड़े जाने पर अनुपमा और बा भड़कते हुए दिखते हैं. वहीं पाखी अपनी गलती मानने की जगह ‘एडल्ट की इच्छाओं’ का हवाला देते हुए अनुपमा को उलटा जवाब देती नजर आती हैं. दूसरी तरफ बा गुस्से में वनराज को सब सच बताने की कोशिश करती हैं, लेकिन अनुपमा उन्हें रोक लेती है.

शादी पर अड़ेंगे पाखी-अधिक

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि बेटी को समझाने की लाख कोशिशों के बावजूद अनुपमा हार जाएगी. दरअसल, पाखी, अधिक से शादी करने की जिद पर अड़ जाएगी, जिस पर बा और बाकी परिवार हैरान रह जाएगी. वहीं अधिक भी बरखा और अंकुश से शादी के लिए बहस करता दिखेगा. दूसरी तरफ, घर पहुंचकर बा, वनराज को सच बताने की कोशिश करेगी. लेकिन वह बेहोश हो जाएंगी, जिसके कारण बापूजी और पूरा परिवार डर जाएगा.

वनराज को पता चलेगा सच

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि बा के बेहोश होने का कारण जानने के लिए वनराज, अनुपमा और काव्या से बात करेगा. वहीं अंकुश, बरखा और अनुज भी शाह हाउस पहुंचेंगे. इसी के साथ बा, वनराज से कहेगी कि पाखी ने उन्हें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है. बा की बात सुनते ही वनराज, काव्या से सच पूछेगा, जिसके जवाब में काव्या उसे पाखी और अधिक के रिजॉर्ट में एक कमरे में रुकने का सच बताएगी. काव्या की बात सुनकर वनराज को धक्का लगेगा और वह टूट जाएगा.

GHKKPM: विराट-पाखी की एक्टिंग पर भड़के फैंस, सई के लिए कही ये बात

स्टार प्लस के टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) के स्टार्स आए दिन ट्रोलिंग का शिकार होते रहते हैं. जहां सीरियल की कहानी पर फैंस का गुस्सा देखने को मिलता है तो वहीं एक्टर्स की एक्टिंग पर ट्रोलर्स सवाल खड़े करते हुए नजर आते हैं. वहीं इस बार विराट और पाखी के रोमांस और एक्टिंग पर वह ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सई पर भड़की पाखी

हाल ही के एपिसोड में विनायक को अनाथ होने की बात पता चलती हुई दिखी थी, जिसके चलते विराट (Neil Bhatt) और पाखी (Aishwarya Sharma), सई पर भड़कते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं उसे जमकर खरी खोटी सुनाते हैं. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में सई दोनों की बातों को अनदेखा कर विनायक को मनाती हुई दिखेगी और उसे एक बार फिर पाखी और विराट के करीब ले आएगी.

 

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 एक्टिंग देख फैंस का फूटा गुस्सा

एक तरफ जहां सीरियल का लेटेस्ट ट्रैक देखकर फैंस सई की तारीफ कर रहे हैं तो वहीं पाखी और विराट को एक्टिंग को लेकर ट्रोल करते दिख रहे हैं. फैंस का कहना है कि उन्हें एक्टिंग क्लास ले लेनी चाहिए. इसके अलावा फैंस विराट और पाखी के रोमांस पर भी सवाल उठाते दिख रहे हैं, जिसके चलते सई के फैंस का गुस्सा बढ़ गया है.

विनायक और सवि की खतरे में पड़ेगी जान

 

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अपकमिंग ट्रैक की बात करें सवि और विनायक अपने असली माता-पिता को ढूंढते हुए दिखने वाले हैं. इसी दौरान दशहरा सेलिब्रेशन दिखाया जाएगा जहां दोनों बच्चों की जान खतरे में पड़ जाएगी. खबरों की मानें तो इस ट्रैक में ही विनायक को जहां पता चलेगा कि उसके असली माता-पिता सई और विराट हैं तो वहीं सवि के सामने विराट के पिता होने का सच सामने आ जाएगा. हालांकि देखना होगा सीरियल का नया ट्रैक क्या होगा.

प्रोडक्टिविटी में पिछड़ क्यों गई आधी आबादी

हाल ही में एक ईकौमर्स कंपनी ने अपने विज्ञापन के लिए अलगअलग उम्र की 30 महिलाओं और पुरुषों के साथ एक सोशल ऐक्सपैरिमैंट किया, जिस में उन से कई तरह के सवाल पूछे गए. इस के तहत अगर जवाब ‘हां’ होता तो उन्हें एक कदम आगे बढ़ाना था और अगर ‘न’ होता तो एक कदम पीछे जाना था.

जब तक उन से सामान्य सवाल जैसे साइकिल चलाने, खेल खेलने, संगीत, कपड़े प्रैस करने या फिर चायनाश्ता बनाने से जुड़े सवाल पूछे गए तब तक महिलाएं पुरुषों के मुकाबले में बराबरी पर थीं, लेकिन जब बिल पेमैंट, सैलरी ब्रेकअप, बीमा पौलिसी, बजट, निवेश, म्यूचुअल फंड, इनकम टैक्स से जुड़े सवाल पूछे गए तो महिलाओं और पुरुषों के बीच का फासला इतना बढ़ गया कि अंत में केवल पुरुष ही अगली कतार में खड़े नजर आए.

भारतीय शेयर बाजार में बाकी देशों की तुलना में पुरुषों और महिलाओं के बीच फासला साफ नजर आएगा. ब्रोकरचूजर के आंकड़ों में पाया गया कि भारत में हर 100 निवेशकों में से सिर्फ 21 निवेशक ही महिलाएं हैं यानी उन की तादाद 21% ही है. वैसे भी पारंपरिक रूप से परिवारों में जो भी आर्थिक मामले होते हैं ज्यादातर उन का फैसला घर के पुरुष सदस्य ही करते हैं.

दरअसल, इस की वजह महिलाओं द्वारा इन विषयों में रुचि नहीं लेना है. बचपन से ही घर का माहौल कुछ ऐसा रहता है कि लड़कियां आर्थिक मसलों से जुड़े कामों या फैसलों से दूर ही रहती हैं. वे इन का दारोमदार पूरी तरह अपने पिता, भाइयों या फिर शादी के बाद पति पर छोड़ कर निश्चिंत हो जाती हैं. अपनी, घर की या देश की इनकम बढ़ाने के बारे में सामान्यतया ज्यादातर महिलाएं सोचती भी नहीं. वे खुद को घरगृहस्थी के कामों में उलझए रखती हैं और इस तरह कहीं न कहीं वे खुद के साथ ही नाइंसाफी करती हैं.

रोजगार की स्थिति

इस मामले में यह समझना भी जरूरी है कि देश में महिलाओं के रोजगार की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. वर्ल्ड बैंक के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट सिर्फ 18.6 फीसदी है. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन यानी कामकाजी उम्र की कितनी फीसदी महिलाएं काम कर रही हैं या काम की तलाश में हैं.

अगर महिलाओं के आसपास ऐसे लोग हों जो ‘ये सब तुम से नहीं होगा’ कहने की जगह उन का समर्थन करें, उन्हें जौब या बिजनैस करने को प्रेरित करें और उन के सारे सवालों के जवाब दें तो महिलाएं सबकुछ ज्यादा बेहतर समझ पाएंगी और संभाल पाएंगी. पर आम घरों में होता कुछ और है. लड़कियों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि औरतों का काम घर, किचन और बच्चे संभालना है.

धीरेधीरे उन के दिमाग में यही बात बैठ जाती है और वे इस से ऊपर कुछ सोचना ही नहीं चाहतीं. उन्हें लगता है कि घर के कामों के साथ वे औफिस के काम नहीं संभाल सकतीं, इसलिए जौब की बात सोचना भी बेमानी है. वे अपना समय घरगृहस्थी और इधरउधर की बातों में ही व्यतीत करने की आदी हो जाती हैं और बेमतलब के कामों में अपना समय बरबाद करती रहती हैं.

किस काम की शिक्षा

बलविंदर कौर एक स्मार्ट और खूबसूरत महिला हैं. उम्र 45 साल है, 2 जवान बच्चों की मां हैं, लेकिन कोई उन्हें 30 साल से ज्यादा का नहीं कहता. वह रोज सुबह 6 बजे नहाधो कर, बढि़या से तैयार हो कर, फुल मेकअप में खुद कार ड्राइव कर के गुरुद्वारे जाती हैं. करीब घंटाभर वहां सिर पर दुपट्टा रख कर श्रद्धाभाव से सामने गाए जा रहे भजनों को सुनती हैं और फिर प्रसाद ले कर घर आ जाती हैं.

सालों से उन का यही रुटीन है. शादी हो कर आई थीं तो यह नियम उन की सास ने बंधवाया था. पहले सास के साथ गुरुद्वारे जाती थीं, उन की मृत्यु के बाद अब अकेले जाती हैं. वही रास्ता, वही गुरुद्वारा और वही 4-5 भजन जो उलटपलट कर गाए जाते हैं. इस में उन के सुबह के 3-4 घंटे बरबाद हो जाते हैं.

बलविंदर कौर अपने स्वास्थ्य के प्रति काफी सचेत रहती हैं, इसलिए शाम का समय उन का पार्क में सहेलियों के साथ व्यायाम करते हुए बीतता है. दिन में उन का समय टीवी पर मनपसंद फैमिली ड्रामा देखते या किसी किट्टी पार्टी में गुजर जाता है. उन के पति का चांदनी चौक में कपड़ों का बड़ा व्यापार है. पैसे की कमी नहीं है. घर में 3 गाडि़यां हैं, 2 फुलटाइम नौकर हैं. बलविंदर कौर को घर का कोई काम नहीं करना पड़ता है.

वे एमए पास हैं. कालेज खत्म करते ही शादी हो गई. शादी के बाद न तो उन से किसी ने नौकरी करने के लिए कहा और न उन की खुद की इच्छा नौकरी करने की हुई.

सवाल यह कि बलविंदर कौर ने उच्च शिक्षा क्यों प्राप्त की? क्यों अपनी शिक्षा में मातापिता का लाखों रुपया खर्च करवाया जब उस शिक्षा से कोई प्रोडक्टिव कार्य नहीं होना था? जब उस शिक्षा से समाज और देश को कोई फायदा नहीं होना था?

सरकारी योजनाओं का क्या लाभ

दिल्ली की पौश कालोनियों के फ्लैट सिस्टम में रह रही महिलाओं की दिनचर्या पर नजर दौड़ाएं तो 10 में से कोई एक महिला मिलेगी जो किसी संस्थान में कार्यरत होगी, जिस की शिक्षा का सही उपयोग हो रहा होगा वरना बाकी 9 महिलाओं का सारा समय पूजापाठ, व्रतत्योहार, शौपिंग या किट्टी पार्टियों में ही जाया होता है.

उच्च मध्यवर्गीय परिवार की ये तमाम महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त होती हैं. देश के तमाम प्रशासनिक अधिकारियों, मंत्रियों की पत्नियां बड़ीबड़ी शैक्षणिक डिगरियों के बावजूद पूरा जीवन घर की चारदीवारी में परिवार और बच्चों की देखभाल में बिता देती हैं. उन की शिक्षा का कोई फायदा देश को नहीं हो रहा है.

सरकारी आंकड़ों की मानें तो वर्तमान समय में देश में महिलाओं की साक्षरता दर 70.3% है. शहरी क्षेत्रों की ही नहीं बल्कि गांवदेहात की लड़कियां भी अब स्कूल जा रही हैं. शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियां लड़कों से अच्छा प्रदर्शन भी करती हैं. 2-3 दशकों के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के रिजल्ट उठा कर देख लें लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से बेहतर ही रहा है.

लेकिन उन की शिक्षा से देश या समाज को क्या फायदा हो रहा है? लड़कियों को शिक्षा क्यों दी जा रही है? लड़कियां ऊंची डिगरियां क्यों प्राप्त कर रही हैं? शिक्षा का उन के आने वाले जीवन में क्या उपयोग हो रहा है? ऐसे बहुतेरे सवाल हैं जिन के जवाब हतोत्साहित करने वाले हैं.

शिक्षा का मतलब शादी नहीं

भारत में आमतौर पर सामान्य मध्यवर्गीय परिवार अपनी बेटी को ग्रैजुएट इसलिए बनाते हैं ताकि उस की किसी अच्छे परिवार में शादी हो सके. 10 में से 7 परिवारों की लड़कियों की शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ अच्छी शादी तक ही सीमित होता है.

गांवदेहात की लड़कियों की शिक्षा की बात करें तो सरकारी प्रयास से आंगनबाड़ी केंद्रों और प्राथमिक शिक्षा संस्थानों में अब लड़कियों की तादाद बढ़ रही है. यह इस कारण भी है क्योंकि सरकार स्त्री शिक्षा का आंकड़ा बढ़ाने और अपनी पीठ थपथपाने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है जिस के लालच में बच्चियां स्कूल आने लगी हैं.

गरीब बच्चों को मिड डे मील का लालच, फ्री यूनिफौर्म, फ्री किताबें, फ्री स्टेशनरी बैग, छात्रवृत्ति का पैसा, इन के लालच में मांबाप अब बेटियों को भी स्कूल भेजने लगे हैं. कन्याश्री योजना में 13 वर्ष से 18 वर्ष के बीच की लड़कियों के लिए 750 रुपए की छात्रवृत्ति दी जाती है. 18 से 19 वर्ष के बीच की लड़कियों के लिए 25 हजार रुपए का एकमुश्त अनुदान दिया जाता है.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, बालिका समृद्धि योजना, धनलक्ष्मी योजना, लाड़ली स्कीम, भाग्यश्री योजना, कन्याश्री प्रकल्प योजना जैसी सैकड़ों योजनाएं देशभर में चल रही हैं जिन के माध्यम से लड़की के खाते में सरकार पैसे डालती है. यह लालच लड़कियों को स्कूल तक लाता है. मगर ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां 8वीं या 10वीं तक पहुंच पाती हैं कि उन की शादियां हो जाती है.

पढ़ालिखा सब भूल जाती हैं

शादी के बाद उन्हें खेतों में वही काम करना है जो उन की ससुराल की अन्य अनपढ़ औरतें कर रही हैं. ससुराल जा कर वे अपनी शिक्षा को आगे नहीं बढ़ा पातीं हैं बल्कि चूल्हाचौका करने, बच्चे पैदा करने और उन की परवरिश में अगले कुछ सालों में वह पढ़ालिखा सब भूल जाती हैं. तो ऐसी शिक्षा देने का क्या फायदा? सरकार जो करोड़ों रुपए तमाम योजनाओं पर लुटा रही है उस से देश को क्या मिल रहा है?

आखिर क्या वजहें हैं जो लड़कियों को काम करने से रोकती हैं?

धर्म और कर्मकांड: लड़कियों की शिक्षा पर हुए निवेश को उत्पादन में नहीं बदला जा पा रहा है, इस की सब से बड़ी बजह है धर्म. धर्म ने भारतीय समाज को इतना कुंठित और संकीर्ण बना दिया है कि वह स्त्री को आजादी नहीं देना चाहता है. धर्म, कर्मकांड, व्रत, पूजा, त्योहार की ऐसी बेडि़यां उस के पैरों में डाल दी हैं कि पढ़लिख कर भी वह उन से मुक्त नहीं हो पा रही है. सारे धार्मिक कर्मकांड उस के सिर मढ़ दिए गए हैं. सारे व्रत उसे ही करने हैं.

मंदिर के भगवान से ले कर घर के बुजुर्गों तक की सेवा की जिम्मेदारी उसी की है. सालभर होने वाले त्योहारों में बढि़याबढि़या पकवान बनाने की जिम्मेदारी उसी की है. शादी के बाद वंश बढ़ाने की जिम्मेदारी उस की है. पति की सेवा उसे करनी है. बच्चों की परवरिश उसे करनी है. सारे संस्कार उसे निभाने हैं.

ऐसे में एक पढ़ीलिखी महिला घर से निकल कर नौकरी करने और अपनी शिक्षा के सदुपयोग करने के बारे में सोच भी नहीं पाती. सिर्फ उन्हीं परिवारों की महिलाएं घर और बाहर दोनों जगहों पर काम करने की जिम्मेदारी उठाती हैं जहां पैसे की कमी होती है. तब वहां उन के पैरों में डाली गई धार्मिक बेडि़यों को थोड़ा ढीला कर दिया जाता है.

औरत को जिम्मेदारी से दूर रखना: बचपन से ही परिवार के लोग लड़कियों और लड़कों से अलगअलग व्यवहार करते हैं. लड़कों को पढ़ाई के लिए डांटाफटकारा जाता है. उन्हें यह एहसास कराया जाता है कि अगर अच्छे नंबर नहीं आए तो आगे चल कर अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी और तुम घर की जिम्मेदारी ठीक से नहीं उठा पाओगे. समाज में खानदान में क्या मुंह दिखाओगे?

लड़कों को इस भावना के साथ बड़ा किया जाता है कि परिवार को पालना उन का फर्ज है. मगर लड़की को कभी यह नहीं कहा जाता है कि तुम्हें परिवार की जिम्मेदारी उठानी है, इसलिए अच्छी तरह पढ़ाई करो ताकि अच्छी नौकरी मिलें. लड़कियों को इस भावना के साथ बड़ा किया जाता है और पढ़ाया जाता है कि उन की अच्छे परिवार में शादी हो जाए. लड़का और लड़की दोनों की पढ़ाई पर बराबर का खर्च करने के बावजूद लड़के की शिक्षा उत्पादन में बदल जाती है, मगर लड़की की शिक्षा बेकार चली जाती है.

औरत को आश्रित बनाए रखना: भारतीय समाज में धर्म ने स्त्री को हमेशा पुरुष के अधीन रहने और उस पर आश्रित रहने के लिए मजबूर किया है. भारतीय परिवार अपनी बेटियों को बेटों के समान शारीरिक रूप से बलिष्ठ होने का अवसर नहीं देते हैं. वे उन्हें कसरत करने के लिए कभी उत्साहित नहीं करते. आउटडोर गेम्स में उन्हें हिस्सा नहीं लेने देते हैं, बल्कि वे लड़कियों को दुबलापतला, शर्मीला, संकोची, कम बोलने वाली, गऊ समान भोली और दबीढकी बनाना चाहते हैं ताकि ससुराल में वे तमाम जिम्मेदारियां उठाने और प्रताडि़त करने पर भी आवाज न निकालें बल्कि चुपचाप सबकुछ सहन करें.

औरत के काम को महत्त्व न देना: आदमी कोई छोटीमोटी नौकरी ही करता हो, कम कमाता हो, मगर जब वह शाम को घर लौटता है तो उस को टेबल पर चाय मिलती है, बनाबनाया खाना मिलता है, धुले कपड़े मिलते हैं और मांबाप गाते हैं कि उन का बेटा कितनी मेहनत करता है. वहीं घर की बहू जब दफ्तर से लौटती है तो कोई उस को एक गिलास पानी भी नहीं पूछता. घर लौट कर वह सब के लिए चायनाश्ता बनाती है, खाना बनाती है, पति और बच्चों के कपड़े प्रैस करती है आदिआदि अनेक काम निबटाती है, लेकिन उस की तारीफ में कोई एक शब्द नहीं कहता. कहने का मतलब यह कि भारतीय समाज, परिवार में औरत के काम को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है.

दोहरी जिम्मेदारी: जो महिलाएं पढ़लिख कर नौकरी करना चाहती हैं और कर रही हैं, वे अगर शादीशुदा हैं तो घर के कामों से और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हैं. औफिस जाने से पहले और औफिस से आने के बाद घर के सारे काम उन्हें ही करने होते हैं. पति अगर पहले आ गया है तो उस से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वह खाना बनाएगा या बच्चों का होमवर्क कराएगा. दोहरी जिम्मेदारी ढोने वाली वर्किंग वूमन एक समय के बाद औफिस के काम में पिछड़ने लगती है और कई बार नौकरी छोड़ देती है. इस तरह उस की पढ़ाई समाज को वह नहीं दे पाती जो देने का सपना उस ने देखा था.

‘नैशनल स्टैटिस्टिकल औफिस’ (एनएसओ) की ओर से हाल में जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे जारी किया गया है. सर्वे के अनुसार देश में 15 वर्ष से ऊपर की कामकाजी जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी मात्र 28.7% है, जबकि पुरुषों की भागीदारी 73% है. यह स्थिति तब है जब सरकार की ओर से महिलाओं को कई तरह की सुविधाएं दी रही हैं. जैसे पेड मैटरनिटी लीव, सुरक्षा के साथ नाइट शिफ्ट में काम करने की अनुमति आदि.

भले औरतों को संविधान के तहत शिक्षा और काम का अधिकार मिला है पर उन की पढ़ाई का कोई फायदा देश या समाज को नहीं हो रहा है. उन की डिगरियां सिर्फ चूल्हा फूंकने के काम आ रही हैं. औरत की शिक्षा और उस की काबिलीयत का देश को फायदा तभी होगा जब उस के प्रति समाज की संकीर्ण सोच बदलेगी.

आइए, जानते हैं कि किन वजहों से महिलाओं का टाइम बरबाद होता है और उसे बरबाद होने से कैसे बचा सकते हैं:

बेकार के मुद्दों पर ध्यान देना: अकसर महिलाएं दूसरी महिलाओं की चुगली, ताकाझंकी या फिर बुराइयां करने में घंटों समय बरबाद कर देती हैं. संभ्रांत घर की महिलाएं अकसर अपना समय किट्टी पार्टी या फिर धार्मिक कार्यक्रमों को अटैंड करने जैसे गैरजरूरी कामों में बरबाद करती हैं. बेकार के मुद्दों के चक्कर में भी उन का बहुत सा टाइम बेकार चला जाता है और वे जरूरी और प्रोडक्टिव काम पर ध्यान नहीं दे पातीं.

पूजापाठ में समय की बरबादी: एक और चीज जिस में महिलाएं ही सब से ज्यादा समय बरबाद करती हैं या फिर यह कहिए कि उन से करवाया जाता है वह है पूजापाठ के तमाम तामझम. महीने में 10 दिन तो कोई न कोई व्रत ही रहता है. करीब 20 दिन कुछ न कुछ स्पैशल पूजा करनी होती है. कभी व्रत, कभी उपवास, कभी मंदिर जाना, कभी पंडित को खाना खिलाना, कभी घर में यज्ञ करवाना, कभी पारंपरिक तरीके से दिनभर की पूजा, कभी पूजा सामग्री ले कर आना, कभी पूजा की तैयारियां करनी और कभी पूजा में बैठना यानी इस पूजा के चक्कर में वे जीना या कुछ उपयोगी काम करना ही भूल जाती हैं.

कैसे बढ़ाएं प्रोडक्टिविटी

औफिस और घर के कामों को मैनेज करने में और अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में ये टिप्स बेहद कारगर साबित होंगे:

तनावमुक्त रहें: तनाव में काम करने से हमारी प्रोडक्टिविटी क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों मोरचों पर गिरती है. इसलिए जब भी काम करें तो तनावमुक्त रहें. अगर आप तनावमुक्त नहीं हो पा रही हैं तो काम से कुछ दिनों की छुट्टी ले लें.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में साइकोलौजी के प्रोफैसर मैथू किलिंजवोर्थ कहते हैं कि दिमाग की शांति हमारे मूड से जुड़ी होती है. हमारा दिमाग जितना शांत रहेगा, हम उतने ही खुश रहेंगे. हम जितना खुश रहेंगे हमारी प्रोडक्टिविटी उतनी ही बेहतर होगी.

बेहतर होगा की महिलाएं घर के तनाव घर में ही छोड़ कर आएं और मन में किसी तरह की गिल्ट न रखें. आखिर बच्चों को बेहतर भविष्य देने और अपना कैरियर बनाने के लिए ही वे बाहर आई हैं तो उस समय का भरपूर उपयोग करें.

पहले से कर लें प्लानिंग: जीवन में आगे बढ़ने के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. अपना वक्त कहीं भी जाया न करें और अपने काम और टारगेट पर ध्यान दें. वर्कप्लेस पर सोशल मीडिया या अपने साथियों के साथ बातों में ज्यादा समय न गंवाएं. इसी तरह घर में भी फालतू के सीरियल्स देखने, सहेलियों से फोन पर बातें करने या छोटीछोटी बातों पर तनाव लेने और लड़नेझगड़ने के बजाय दिमाग को काम पर फोकस रखें. आप टाइम मैनेजमैंट कर के अपने समय को बचा सकती हैं और अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ा सकती हैं.

जिम्मेदारियां बांटें: अपनी जिंदगी को आसान बनाने और औफिस में प्रेजैंटेबल रहने के लिए घर के काम और जिम्मेदारी को अपने पार्टनर के साथ बांट लें. सिर्फ पार्टनर ही नहीं घर के सभी सदस्यों में अपने काम खुद निबटाने की आदत डलवाएं. इस से आप पर काम का बोझ नहीं पड़ेगा, आप का काम बंट जाएगा और आप को कुछ समय खुद के लिए मिल जाएगा, साथ ही एकदूसरे की फिक्र का जज्बा आप को एकदूसरे के और करीब लाएगा.

जो जरूरी हो उसे पहले करें: जो काम बहुत जरूरी हो उसे पहले करें. अगर औफिस की ओर से कोई नया प्रोजैक्ट मिला हो तो इसे पहले अहमियत दें. यानी औफिस के काम के दबाव के बीच आप इस दिन समय बचाने के लिए खाना बाहर से और्डर कर सकती हैं. वहीं अगर घर में आप के बच्चे को आप की ज्यादा जरूरत है तो इस दिन आप औफिस से जल्दी छुट्टी ले कर घर आ सकती हैं.

विकल्प ढूंढें़: आज के समय में महिला चाहे तो किचन के काम करने और गप्प मारने के अलावा भी उन के पास अनगिनत काम हैं. नैट और टैक्नोलौजी का जमाना है. औनलाइन तरहतरह के कोर्स सीख सकती हैं, अपना बिजनैस शुरू कर सकती हैं, औनलाइन क्लासैज ले सकती हैं, जौब कर सकती हैं, घर बैठे पत्रिकाएं और किताबें पढ़ कर हर तरह का ज्ञान अर्जित कर सकती हैं. फोन पर या किसी सहेली के सामने दूसरों की निंदा, चुगली कर के मन की भड़ास निकालने और व्यर्थ गप्पें मार कर समय बरबाद करने से बेहतर है काम कर के इनकम बढ़ाना.

यही नहीं वे खुद के लिए समय निकाल सकती हैं. मनन, चिंतन और आत्मविश्लेषण से अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी सुधारा जा सकता है जो उन के जीवन को साधारण से असाधारण बनाने की दिशा में उत्तम कदम है. शौपिंग, गपशप और घूमना तो क्षणिक खुशी का साधन है. आजकल तो नैट के अलावा घर के आसपास ही दुनियाभर की दिलचस्प व सार्थक गतिविधियां होती रहती हैं. नजर और नजरिए का दायरा खोलने की ही तो देर है.

स्वावलंबी बनना है जरूरी

बढ़ती महंगाई और कोविड-19 ने सब को जता दिया कि नौकरी या व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनना आज के दौर में बहुत जरूरी है. महिलाएं आज उच्च शिक्षित और रोजगारपरक हो गई हैं, ऐसे में उन के सपनों को वे आत्मनिर्भर बन कर खुद को साबित करना चाहती हैं. इस में किसी तरह की दखलंदाजी उन्हें पसंद नहीं. इस के अलावा नौकरी करने वाली महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से अप टू डेट रहती हैं. वे खुद का बेहतर खयाल शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से रख पाती हैं.

इतना ही नहीं आर्थिक रूप से सशक्त महिलाओं ने पुरुषों के महिलाओं के प्रति व्यवहार को भी काफी हद तक प्रभावित किया है और पुरुषों के पैसों की धौंस भी कम हुई है. घरेलू महिलाओं की तरह उन्हें अपनी पसंद की चीजें लेने में किसी तरह का कोई समझता नहीं करना पड़ता. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने की स्थिति में बहुत बार महिलाओं को परिवार का दुर्व्यवहार सहने के लिए विवश होना पड़ता है, जबकि नौकरी वाली महिलाएं ऐसे समय में सबल होती हैं और अपने जीवन का निर्णय खुद ले सकती हैं.

महिलाओं में उच्च शिक्षा

साइकोलौजिस्ट राशीदा कपाडिया इस बारे में कहती हैं कि अभी अधिकतर महिलाएं उच्च शिक्षित हो रही हैं, ऐसे में उन की भागीदारी समाज, परिवार और आर्थिक व्यवस्था पर काफी पड़ी है. आज विश्व की तुलना में भारत में सब से अधिक महिला पायलट हैं. इस के अलावा कई बड़ी कंपनियों में भी महिलाएं सीईओ की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रही हैं. स्पेस में महिला जा चुकी हैं.

आज महिलाएं संपूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हैं, लेकिन समस्या यह है कि अगर वे शादी करती हैं, तो उन पर परिवार की सारी जिम्मेदारी डाल दी जाती है. मेरे पास ऐसी कई क्लाइंट आती हैं, जो सफलता हासिल करना चाहती हैं, लेकिन घर में सासससुर, खाना बना कर काम पर जाने की सलाह देते हैं, जो काफी मुश्किल होता है. पूरा दिन औफिस में काम कर सुबह 5 बजे उठना संभव नहीं होता, थकान होती है.

अगर आप की कमाई अच्छी है, तो किसी की हैल्प लेने से परहेज नहीं करना चाहिए. इस से महिला अपने कैरियर पर अच्छी तरह से फोकस्ड रहती है. आज ट्रैंड बदला है, कई कार्यालयों में भी बेबी सिटर्स मिलते हैं. कौरपोरेट वर्ल्ड ने महिलाओं के कंट्रीब्यूशन को समझ है, इसलिए सारी सुविधाएं वे देने की कोशिश करते हैं और महिलाओं के काम करने पर ही तेजी से विकास संभव है क्योंकि उन के काम का स्टाइल पुरुषों से अलग होता है. महिलाओं में मल्टीटास्किंग स्किल्स, अंडरस्टैंडिंग, टीम वर्क, टफ टाइम में निर्णय लेना आदि कई बातें हैं, जो देश को एक वंडरफुल नेशन बनाने में सक्षम होती हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

अगर आज आर्थिक ग्रोथ में महिलाओं की भागीदारी की बात की जाए तो दुनियाभर के देशों में अभी भी भारत काफी पीछे है. लेकिन अब महिलाएं खुद को आगे बढ़ा रही हैं, जो काफी अच्छा कदम है. आंकड़ों के अनुसार यह भी पता चला है कि जब लड़कियों का कैरियर बनाने का समय होता है तब उन की शादी कर दी जाती है.

वर्ल्ड बैंक के मुताबिक भारत में महिलाओं की नौकरी छोड़ने की दर बहुत अधिक है और एक बार पारिवारिक कारणों से नौकरी छोड़ने के बाद वे दोबारा नौकरी नहीं कर पाती हैं. अगर भारत में महिलाएं आर्थिक ग्रोथ के मामले में पुरुषों के बराबर भागीदारी दे दें तो निश्चित रूप से भारत की जीडीपी में 27% तक की वृद्धि हो जाएगी.

मैकेंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आर्थिक स्तर पर बराबरी के बाद तो 2025 तक जीडीपी में 770 अरब डौलर की बढ़ोत्तरी होगी. लेकिन यह तभी संभव है जब महिलाएं खुद को आर्थिक मोरचे पर पुरुषों के बराबर ले कर आएंगी.

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पसीने और वजन कम आने से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 34 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मु झे पिछले कई महीनों से पसीना बहुत आ रहा है. बाल भी लगातार  झड़ रहे हैं और वजन भी 9-10 किलोग्राम कम हो गया है. मु झे सम झ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब-

आप की समस्या को देख कर लग रहा है कि आप को थायराइड से संबंधित समस्या है. थायराइड एक तितली के आकार की छोटी सी ग्लैंड (ग्रंथि) है जो गरदन के निचले हिस्से में होती है. इस से निकलने वाले हारमोन शरीर की मैटाबौलिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं. बाल  झड़ना, बिना प्रयास के वजन कम होना, पसीना ज्यादा आना हाइपोथायरोडिज्म के प्रमुख लक्षण हैं. हाइपोथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि जितना शरीर की सामान्य गतिविधियों के लिए हारमोनों का स्राव जरूरी है उस से अधिक मात्रा में स्राव करती है. इसीलिए ये लक्षण दिखाई देते हैं. आप थायराइड फंक्शनिंग टैस्ट कराएं.

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कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो महिलाओं पर अधिक हावी होती हैं. ‘हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म’ थायराइड से जुड़ी 2 बीमारियां हैं.

महिलाओं के जीवन में उन का सामना कई मानसिक, शारीरिक और हारमोनल बदलावों से होता है. हालांकि महिला जीवन के विभिन्न चरणों में हारमोनल बदलाव होना लाजिम है. लेकिन यदि ये बदलाव असामान्य हैं तो कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. यही कारण है कि महिलाएं थायराइड रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं.

प्रिस्टीन केयर की डाक्टर शालू वर्मा ने महिलाओं में बढ़ती थायराइड की समस्याएं और उन से बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी दी है-

थायराइड क्या है

थायराइड गरदन के निचले हिस्से में पाई जाने वाली एक तितलीनुमा ग्रंथि है. यह ग्रंथि ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) नामक 2 मुख्य हारमोन का स्राव करती है. दोनों ही हार्मोन शरीर की कई गतिविधियों को नियंत्रित करने में अपना विशेष योगदान निभाते हैं.

परंतु जब दो में से किसी भी हार्मोन के उत्पादन की मात्रा में कोई बदलाव आता है तो इस से शरीर में विभिन्न समस्याओं की शुरुआत होती है. हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म में अंतर जब थायराइड हार्मोन का उत्पादन जरूरत से अधिक होता है तो उस स्थिति को हाइपरथायरायडिज्म कहते हैं, जबकि थायराइड हार्मोन के कम उत्पादन की स्थिति को हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है. दोनों ही परिस्थितियां असामान्य हैं और रोगी को उपचार की आवश्यकता होती है.

महिलाओं में थायराइड, इलाज है न

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