Hindi Fictional Story: जूही- क्या हुआ था आसिफ के साथ

Hindi Fictional Story: आसिफ दुकान बंद कर के जब अपने घर पहुंचा, तो ड्राइंगरूम के दरवाजे पर जा कर ठिठक गया. अंदर से उस के अम्मीअब्बा के बोलने की आवाजें आ रही थीं. ‘‘दुलहन तो मुश्किल से 16-17 साल की है और मास्टर साहब 40-50 के. बेचारी…’’

इतना सुनते ही आसिफ जल्दी से दीवार की आड़ में हो गया और सांस रोक कर सारी बातें बड़े ध्यान से सुनने लगा. ‘‘ऐसी शादी से तो बेहतर होता कि लड़की के मांबाप उसे जहर दे कर ही मार डालते,’’ आसिफ की अम्मी सलमा ने कहा.

‘‘तुम नहीं जानती सलमा, लड़की के मांबाप तो बचपन में ही चल बसे थे. गरीब मामामामी ने ही उस की परवरिश की है. 4-4 लड़कियां ब्याहने को हैं,’’ अब्बा ने बताया. ‘‘यह भी कोई बात हुई. कम से कम उस की जोड़ का लड़का तो ढूंढ़ लेते.

‘‘इतनी हसीन और कमसिन लड़की को इस बूढ़े के पल्ले बांधने की क्या जरूरत आ पड़ी थी, जिस के पहले ही 4-4 बच्चे हैं. ‘‘हाय, मुझे तो उस की जवानी पर तरस आ रहा है. कैसे देख रही थी वह मेरी तरफ. इस समय उस पर क्या बीत रही होगी,’’ अम्मी ने कहा.

आसिफ इस से आगे कुछ और सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. वह धीरे से अपने कमरे में जा कर कुरसी पर बैठ गया. आसिफ आंखें मूंद कर सोने लगा, ‘क्या वाकई वह 16-17 साल की है? क्या सचमुच वह हसीन है? अगर वह खूबसूरत लगती होगी तो क्या मास्टर साहब की कमजोर आंखें उस के हुस्न की चमक बरदाश्त कर पाएंगी? आज की रात क्या वह… क्या मास्टर साहब…’ यह सोचतेसोचते उस का सिर चकराने लगा और वह कुरसी से उठ कर कमरे में टहलने लगा.

थोड़ी देर बाद आसिफ की अम्मी खाना रख गईं, मगर उस से खाया न गया. बड़ी मुश्किल से वह थोड़ा सा पानी पी कर बिस्तर पर लेट गया, पर उसे नींद भी नहीं आई. रातभर करवटें बदलते हुए वह न जाने क्याक्या सोचता रहा. सुबह हुई तो आसिफ मुंह में दातुन दबाए छत पर चढ़ गया और बेकरारी से टहलटहल कर मास्टर साहब के आंगन में झांकने लगा. कुछ ही देर में आंगन में एक परी दिखाई दी.

उसे देख कर आसिफ अपने होशोहवास खो बैठा. फिर कुछ संभलने के बाद उस की खूबसूरती को एकटक देखने लगा. परी को भी लगा कि कोई उसे देख रहा है. उस ने निगाहें ऊपर उठाईं तो आसिफ को देख कर वह शरमा गई और छिप गई. लेकिन आसिफ उस का मासूम चेहरा आंखों में लिए देर तक उस के खयालों में डूबा रहा. उस की धड़कनें तेज हो गई थीं. दिल में नई चाहत सी उमड़ पड़ी थी. वह फिर उस परी को देखना चाहता था, पर वह नजर न आई.

इस के बाद आसिफ रोज सुबहसुबह मुंह में दातुन दबाए छत पर चढ़ जाता. परी आंगन में आती. उस की निगाह आसिफ की निगाह से टकराती. फिर वह शरमा कर छिप जाती. लेकिन एक दिन आसिफ को देख कर उस की निगाह झुकी नहीं. वह उसे देखती रही. आसिफ भी उसे देखता रहा. फिर उन के चेहरे पर मुसकराहटें फूटने लगीं और बाद में तो उन में इशारेबाजी भी होने लगी.

अब उन दोनों के बीच केवल बातें होनी बाकी थीं. पर इस के लिए आसिफ को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. मास्टर साहब सुबहसवेरे घर से निकलते थे तो स्कूल से शाम को ही लौटते थे. उन के बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. घर में केवल मास्टर साहब की अंधीबहरी मां रह जाती थीं.

एक दिन उस परी का इशारा पा कर आसिफ नजर बचा कर उन के घर में घुस गया. वह उसे बड़े प्यार से अपने कमरे में ले गई और पलंग पर बैठने का इशारा कर के खुद भी पास बैठ गई. थोड़ी घबराहट के साथ उन में बातचीत शुरू हुई. उस ने अपना नाम जूही बताया. आसिफ ने भी उसे अपना नाम बताया. फिर दोनों ने यह जाहिर किया कि वे एकदूसरे पर दिलोजान से मरते हैं.

आसिफ ने जूही के हाथों पर अपना हाथ रख दिया. वह सिहर उठी. उस पर नशा सा छाने लगा. आसिफ उस के जिस्म पर हाथ फेरने लगा. वह खामोश रही और खुद को आसिफ के हवाले करती चली गई. कुछ देर बाद जब वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए तो जूही अपना दुखड़ा ले कर बैठ गई. ऐसा दुख जिस का आसिफ को पहले से अंदाजा था. लेकिन उस के मुंह से सुन कर आसिफ को पूरा यकीन हो गया. इस से उस का हौसला और भी बढ़ गया.

वह जूही को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘अब मैं तुम्हें कभी दुखी नहीं होने दूंगा.’’ उस के बाद तो उन के इस खेल का सिलसिला सा चल पड़ा. इस चक्कर में आसिफ अब सुबह के बजाय दोपहर को दुकान पर जाने लगा. वह रोज सुबह 10 बजे तक मास्टर साहब और उन के बच्चों के स्कूल जाने का इंतजार करता. जब वे चले जाते तो जूही का इशारा पा कर वह उस के पास पहुंच जाता. एक दिन वह मास्टर साहब के बैडरूम में पलंग पर लेट कर रेडियो पर गाने सुन रहा था. जूही उस के लिए रसोईघर में चाय बना रही थी. दरवाजा खुला हुआ था, जबकि रोज वह अंदर से बंद कर देती थी.

अचानक मास्टर साहब आ गए. उन का कोई जरूरी कागज छूट गया था. आसिफ को अपने पलंग पर आराम से पसरा देख मास्टर साहब के तनबदन में आग लग गई, पर उन्होंने सब्र से काम लिया और फाइल से कागज निकाल कर चुपचाप रसोईघर में चले गए.

‘‘आसिफ यहां क्या कर रहा है?’’ उन्होंने जूही से पूछा. अचानक मास्टर साहब की आवाज सुन कर जूही का पूरा जिस्म कांप गया और चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. लेकिन जल्दी ही वह संभलते हुए बोली, ‘‘जी, कुछ नहीं. जरा रेडियो का तार टूट गया था. मैं ने ही उसे बुलाया है.’’

मास्टर साहब फिर कुछ न बोले और चुपचाप घर से बाहर निकल गए. मास्टर साहब के बाहर जाने के बाद ही जूही की जान में जान आई. वह चाय छोड़ कर कमरे में आ गई. आसिफ अभी तक पलंग पर सहमा हुआ बैठा था.

आसिफ ने कांपती आवाज में पूछा, ‘‘वे गए क्या…?’’ ‘‘हां,’’ जूही ने कहा.

‘‘दरवाजा बंद नहीं किया था क्या?’’ आसिफ ने पूछा. ‘‘ध्यान नहीं रहा,’’ जूही बोली.

‘‘अच्छा हुआ कि हम…’’ वह एक गहरी सांस ले कर बोला. ‘‘लगता है, उन्हें शक हो गया है,’’ जूही चिंता में डूबते हुए बोली.

‘‘कुछ नहीं होगा…’’ आसिफ ने उस का कंधा दबाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, अब मुझे चलना चाहिए,’’ इतना कह कर वह दुकान पर चला गया. उस के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक मिलने से परहेज किया. जब वे मास्टर साहब की तरफ से पूरी तरह बेफिक्र हो गए, तो यह खेल फिर से

चल पड़ा और हफ्तोंमहीनों नहीं, बल्कि सालों तक चलता रहा. उस दौरान जूही 2 बच्चों की मां भी बन गई. एक दिन मास्टर साहब काफी गुस्से में घर में दाखिल हुए. किसी ने जूही के खिलाफ उन के कान भर दिए थे.

जूही को देखते ही मास्टर साहब उस पर बरस पड़े, ‘‘क्या समझती हो अपनेआप को. जो तुम कर रही हो, उस का मुझे पता नहीं है. आज के बाद अगर आसिफ यहां आया तो उसे जिंदा न छोड़ूंगा.’’

यह सुन कर जूही डर गई और कुछ भी नहीं बोली. फिर मास्टर साहब गुस्से में आसिफ के अब्बा के पास जा कर चिल्लाने लगे, ‘‘अपने लड़के को समझा दीजिए, मेरी गैरमौजूदगी में वह मेरे घर में घुसा रहता है. आज के बाद उसे वहां देख लिया तो गोली मरवा दूंगा.’’

आसिफ के अब्बा निहायत ही शरीफ इनसान थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे को खूब डांटाफटकारा. इस का नतीजा यह हुआ कि एक दिन आसिफ ने मास्टर साहब को रास्ते में रोक लिया. ‘‘अब्बा से क्या कहा तुम ने? मुझे गोली मरवाओगे? तुम्हारी खोपड़ी उड़ा दूंगा, अगर उन से कुछ कहा तो,’’ आसिफ ने मास्टर साहब का गरीबान पकड़ कर धमकी दी.

उस के बाद न तो मास्टर साहब ने आसिफ को गोली मरवाई और न ही आसिफ ने मास्टर साहब की खोपड़ी उड़ाई. धीरेधीरे बात पुरानी हो गई. जिस्मों का खेल बंद हो गया. लेकिन आंखों का खेल जारी रहा और आसिफ इंतजार करता रहा जूही के बुलावे का.

पर जूही ने उसे फिर कभी नहीं बुलाया. हां, उस ने एक खत जरूर आसिफ को भिजवा दिया जिस में लिखा था:

‘तुम तो जानते हो कि मैं अपनी किस मजबूरी के चलते इस अधेड़ आदमी से ब्याही गई हूं. अगर यह भी मुझे छोड़ देंगे तो फिर मुझे कौन अपनाएगा? अब मेरे बच्चे भी हैं, उन्हें कौन सहारा देगा? यह सब सोच कर डर सा लगता है. उम्मीद है, तुम मेरी मजबूरी को समझने की कोशिश करोगे.’ खत पढ़ने के बाद आसिफ ने दरवाजे पर खड़ेखड़े बड़ी बेबसी से जूही की तरफ देखा और भारी कदमों से दुकान की तरफ बढ़ गया.

ऐसे रिश्ते का यह खात्मा तो होना ही था. वह तो मास्टर साहब की भलमनसाहत थी कि जूही और आसिफ सहीसलामत रह गए. Hindi Fictional Story

लेखक- जमशेद अख्तर

Story in Hindi: थोथी सोच- कौन थी शालिनी

Story in Hindi: सामने से तेज रफ्तार से आती हुई जीप ने उस मोटरसाइकिल सवार को जोरदार टक्कर मार दी. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि उस की आवाज ने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए. कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही जीप वाला वहां से जीप ले कर भाग निकला.

सड़क पर 23-24 साल का नौजवान घायल पड़ा था. उस के चारों तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई. उन में से ज्यादातर दर्शक थे और बाकी बचे हमदर्दी जाहिर करने वाले थे. मददगार कोई नहीं था.

उस नौजवान का सिर फूट गया था और उस के सिर से खून बह रहा था. तभी भीड़ में से 39-40 साल की एक औरत आगे आई और तुरंत उस नौजवान का सिर अपनी गोद में रख कर चोट की जगह दबाने लगी ताकि खून बहने की रफ्तार कुछ कम हो. पर दबाने का ज्यादा असर नहीं होता देख कर उस ने फौरन अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर चोट वाली जगह पर कस कर बांध दिया. अब खून बहना कुछ कम हो गया था.

उस औरत ने खड़े हुए लोगों से पानी मांगा और घूंटघूंट कर के उस नौजवान को पिलाने की कोशिश करने लगी. तब तक भीड़ में से किसी ने एंबुलैंस को फोन कर दिया.

एंबुलैंस आ चुकी थी. चूंकि उस घायल नौजवान के साथ जाने को कोई तैयार नहीं था इसलिए उस औरत को ही एंबुलैंस के साथ जाना पड़ा.

उस नौजवान की हालत गंभीर थी पर जल्दी प्राथमिक उपचार मिलने के चलते डाक्टरों को काफी आसानी हो

गई और हालात पर जल्दी ही काबू पा लिया गया.

नौजवान को फौरन खून की जरूरत थी. मदद करने वाली उस औरत का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और औरत ने रक्तदान कर के उस नौजवान की जान बचाने में मदद की.

जिस समय हादसा हुआ था उस नौजवान का मोबाइल फोन जेब से निकल कर सड़क पर जा गिरा था, जो भीड़ में से एक आदमी उठा कर ले गया, इसलिए उस नौजवान के परिवार के बारे में जानकारी उस के होश में आने पर ही मिलना मुमकिन हुई थी.

वह औरत अपनी जिम्मेदारी समझ कर उस नौजवान के होश में आने तक रुकी रही. तकरीबन 5 घंटे बाद उसे होश आया. वह पास ही के शहर का रहने वाला था और यहां पर नौकरी करता था. उस के घर वालों को सूचित करने के बाद वह औरत अपने घर चली गई.

दूसरे दिन जब वह औरत उस नौजवान का हालचाल पूछने अस्पताल गई तब पता चला कि वह नौजवान अपने मातापिता की एकलौती औलाद है. उस के मातापिता बारबार उस औरत का शुक्रिया अदा कर रहे थे. वे कह रहे थे कि आज इस का दूसरा जन्म हुआ है और आप ही इस की मां हैं.

कुछ महीने बाद ही उस नौजवान की शादी थी.

उस औरत का नाम शालिनी था. शादी के कुछ दिनों बाद ही एक हादसे में शालिनी के पति की मौत हो गई थी. वह पति की जगह पर सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी कर रही थी. नौजवान का नाम शेखर था.

अब दोनों परिवारों में प्रगाढ़ संबंध हो गए थे. शेखर शालिनी को मां के समान इज्जत देता था.

वह दिन भी आ गया जिस दिन शेखर की शादी होनी थी. शेखर का परिवार शालिनी को ससम्मान शादी के कार्यक्रमों में शामिल कर रहा था. सभी लोग लड़की वालों के यहां पहुंच

गए जहां पर लड़की की गोदभराई की रस्म के साथ कार्यक्रमों की शुरुआत होनी थी.

परंपरा के मुताबिक, लड़की की गोद लड़के की मां भरते हुए अपने घर का हिस्सा बनने के लिए कहती है. शेखर की इच्छा थी कि यह रस्म शालिनी के हाथों पूरी हो, क्योंकि उस की नजर में उसे नई जिंदगी देने वाली शालिनी ही थी. शेखर के घर वालों को इस पर कोई एतराज भी नहीं था.

पूरा माहौल खुशियों में डूबा हुआ था. लड़की सभी मेहमानों के बीच आ कर बैठ गई. ढोलक की थापों के बीच शादी की रस्में शुरू हो गईं. शेखर के पिता ने शालिनी से आगे बढ़ कर कहा कि वह गोदभराई शुरू करे.

वैसे, शालिनी इस के लिए तैयार नहीं थी और खुद वहां जाने से मना कर रही थी. पर जब शेखर ने शालिनी के पैर छू कर बारबार कहा तो वह मना नहीं कर पाई.

मंगल गीत और हंसीठठोली के बीच शालिनी गोदभराई का सामान ले कर जैसे ही लड़की के पास पहुंची, तभी एक आवाज आई, ‘‘रुकिए. आप गोद नहीं भर सकतीं,’’ यह लड़की की दादी की आवाज थी.

शालिनी को इसी बात का डर था. वह ठिठकी और रोंआसी हो कर वापस अपनी जगह पर जाने के लिए पलटी.

तभी शेखर बीच में आ गया और बोला, ‘‘दादीजी, शालिनी मम्मीजी सुलक्षणा की गोद क्यों नहीं भर सकतीं?’’

‘‘क्योंकि ब्याह एक मांगलिक काम है और किसी भी मांगलिक काम की शुरुआत किसी ऐसी औरत से नहीं कराई जा सकती जिस के पास मंगल चिह्न न हो,’’ दादी शेखर को समझाते हुए बोलीं.

‘‘आप भी कैसी दकियानूसी बातें करती हैं दादी. आप यह कैसे कह सकती हैं कि मंगल चिह्न पहनने वाली कोई औरत मंगल भावनाओं के साथ ही इस रीति को पूरा करेगी?’’

‘‘पर बेटा, यह एक परंपरा है और परंपरा यह कहती है कि मंगल काम सुहागन औरतों के हाथों से करवाया जाए तो भविष्य में बुरा होने का डर कम रहता है,’’ दादी कुछ बुझी हुई आवाज में बोलीं, क्योंकि वे खुद भी विधवा थीं.

‘‘क्या आप भी ऐसा ही मानती हैं?’’

‘‘हां, यह तो परंपरा है और परंपराओं से अलग जाने का तो सवाल ही नहीं उठता,’’ दादी बोलीं.

‘‘इस के हिसाब से तो किसी लड़की को विधवा ही नहीं होना चाहिए क्योंकि हर लड़की की शादी की शुरुआत सुहागन औरत के हाथों से होती है?’’ शेखर ने सवाल किया.

‘‘शेखर, बहस मत करो. कार्यक्रम चालू होने दो,’’ शालिनी शेखर को रोकते हुए बोली.

‘‘नहीं मम्मीजी, मैं यह नाइंसाफी नहीं होने दूंगा. अगर विधवा औरत इतनी ही अशुभ होती तो मुझे उस समय ही मर जाना चािहए था जब मैं ऐक्सिडैंट के बाद सड़क पर तड़प रहा था और आप ने अपने कपड़ों की परवाह किए बिना ही साड़ी का पल्लू फाड़ कर मेरा खून रोकने के लिए पट्टी बनाई थी या आप के रक्तदान से आप का खून मेरे शरीर में गया.

‘‘भविष्य में होने वाली किसी अनहोनी को रोकने के लिए वर्तमान का अनादर करना तो ठीक नहीं होगा न…’’ फिर दादी की तरफ मुखातिब हो कर वह बोला, ‘‘कितने हैरानी की बात है कि जब

तक कन्या कुंआरी रहती है वह देवी रहती है, वही देवी शादी के बाद मंगलकारी हो जाती है, पर विधवा होते ही वह मंगलकारी देवी अचानक मनहूस कैसे हो जाती है? सब से ज्यादा हैरानी इस बात की है कि आप एक औरत हो कर ऐसी बातें कर रही हैं.’’

दादी की कुछ और भी दलीलें होने लगी थीं. तभी दुलहन बनी सुलक्षणा ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘दादीजी, मैं शेखर की बातों से पूरी तरह सहमत हूं और चाहती हूं कि मेरी गोदभराई की रस्म शालिनी मम्मीजी के हाथों से ही हो.’’

इस के बाद विवाह के सारे कार्यक्रम अच्छे से पूरे हो गए.

आज शेखर व सुलक्षणा की शादी को 10 साल हो चुके हैं. वे दोनों आज भी सब से पहले आशीर्वाद लेने के लिए शालिनी के पास जा रहे हैं. Story in Hindi

Aamir Khan Talkies : आमिर खान के यूट्यूब चैनल पर फिल्में और शोज दोनों

Aamir Khan Talkies :  हाल ही में आमिर खान ने बांद्रा के ताज लैंड होटल में मीडिया को एक सरप्राइज पार्टी देने के लिए एक खास प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया. यह एक सरप्राइज प्रेस कॉन्फ्रेंस थी इसलिए मीडिया वाले कई सारे अटकलें लगा रहे थे. मीडिया को लग रहा था कि आमिर खान ‘सितारे जमीन पर’ की पौपुलरिटी के बाद किसी नई फिल्म का अनाउंसमेंट तो नहीं करने जा रहे, या कहीं आमिर खान अपनी नई गर्लफ्रेंड गौरी के साथ शादी करने का प्रोग्राम तो नहीं बना रहे.

लेकिन इन सब बातों पर तब पूर्णविराम लग गया, जब आमिर खान ने मीडिया के सामने अपनी नई योजना का खुलासा किया. जिसके तहत आमिर खान ने अब यूट्यूब चैनल पर पैर पसारने की तैयारी कर ली है. अपने यूट्यूब चैनल Aamir Khan Talkies में आमिर खान फिल्मों से लेकर शोज के कई तरह के कंटेंट यूट्यूब पर लेकर आएंगे, जिसमें कुछ कंटेंट बिल्कुल फ्री होंगे तो कुछ के लिए ऑडियंस को pay per view के हिसाब से पेमेंट करना होगा.

आमिर खान का यह एक्सपेरिमेंट बिल्कुल हटके है जो अभी तक किसी इंडियन स्टार ने नहीं किया. ज्यादातर फिल्म सिनेमा घर में रिलीज होने के बाद ओटीटी पर रिलीज होती है लेकिन आमिर खान ‘सितारे जमीन पर’ यूट्यूब पर लेकर आएंगे. 1 अगस्त से आमिर खान के यूट्यूब चैनल में उनके प्रोडक्शन में बनी सारी पुरानी फिल्में आमिर खान का प्रसिद्ध शो ‘सत्यमेव जयते’ के सारे एपिसोड इस चैनल पर दिखाए जाएंगे. आमिर खान ने अपने इस चैनल को जनता का चैनल नाम दिया है. ‘सितारे जमीन पर’ के लिए आमिर ने पे पर व्यू 100 रुपए निर्धारित किए हैं.

आमिर खान का यह चैनल शुरुआत में 38 देशों में आएगा, उसके बाद इसका दायरा बढ़ाया जाएगा.
चैनल पर ऑडियो, डब, और सब टाइटल का ऑप्शन भी होगा ताकि अलग-अलग देश के लोग अपनी भाषा में कंटेंट का मजा ले सके.

आमिर खान के प्रोडक्शन की सभी पुरानी फिल्में, आमिर के पिता ताहिर हुसैन द्वारा बनाई गई फिल्में यू ट्यूब पर दिखाएंगे. इसके अलावा आमिर खान उन फिल्मों को प्लेटफार्म देंगे जिन्हें अपनी फिल्म रिलीज करने के लिए प्लेटफॉर्म नहीं मिल रहा है. आमिर खान इस चैनल के जरिए अपने करियर के बारे में बताएंगे, इसके अलावा चैनल पर नए निर्देशकों की सोच साझा करेंगे, कई तकनीशियन से बाते करेंगे.  Aamir Khan Talkies

Uorfi Javed: होठों ने बिगाड़ा चेहरे का नक्शा, लिप फिलर्स करवाना पड़ा भारी

Uorfi Javed: फैशन इंफ्लूएंसर, बोल्ड ड्रेसेज और कमेंट्स उर्फी जावेद की एक वीडियो वायरल हुई, जिसमें उनका पूरा चेहरा सूजा दिख रहा था. उनके होंठ मोटे नजर आ रहे थे . पूरा चेहरा लाल था, इस वीडियो में वह दर्द से कराह भी रही थी. दरअसल उर्फी ने बताया कि वह लिप फिलर्स को निकलवा रही थी. आइए जानें क्या है लिप फिलर्स –

लिप फिलर्स एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसे कराने के बाद पतले होंठ मोटे हो जाते हैं और सेक्सी शेप में आ जाते हैं. यह एक कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट है इसलिए बॉलीवुड की कई हीरोइन लिप फिलर्स करवाती है. ऐसा ही कुछ ऊर्फी जावेद ने भी करवाया. अपनी वीडियो शेयर कर उर्फी ने बताया कि उन्होंने 18 साल की उम्र में लिप फिलर्स करवाए थे और अब 9 साल बाद वह लिप फिलर्स हटवा रही हैं, इसके साइड इफेक्ट की वजह से उनका होठ और चेहरा काफी सूज गया.

उर्फी ने बताया कि उनके लिप फिलर्स गलत जगह लग गए थे इसलिए उन्होंने लिप्स और स्माइल लाइन से फिलर्स हटाने का फैसला किया. वे बताती हैं, लिप फीलर्स हटाते ही मेरा चेहरा और होठ सूज गए यह प्रक्रिया बहुत ही दर्दनाक थी.

उर्फी के अनुसार लिप फिलर्स के वह खिलाफ नहीं है बस इसे सोच समझ कर अच्छे अनुभवी डॉक्टर से करवाना चाहिए. इस प्रक्रिया में एक इंजेक्शन होता है जिसे लगाने के बाद लिप्स थोड़े मोटे और खूबसूरत बन जाते हैं साथ ही होठों के पास की झुर्रियां भी कम हो जाती हैं. लिप फिलर्स को लेकर जानकारी देते हुए उर्फ़ी ने बताया कि यह लगभग 12 से 18 महीने तक रहते हैं.

यह पूरी प्रक्रिया 30 मिनट से लेकर 2 घंटे तक चलती है. उर्फी के अनुसार फिलहाल उन्होंने लिप फिलर्स हटवा दिए है,लेकिन दो-तीन हफ़्ते इन्हें फिर से नेचुरल तरीके से फिर से करवा लूंगी. Uorfi Javed

Hindi Thriller Story: सही रास्ता- आखिर चोर कौन था

Hindi Thriller Story: जैसे ही जेब में रुपयों को निकालने के लिए हाथ डाला तो उसे अनुभव हुआ, जेब में कुछ भी नहीं है. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं था. अभी महीना पूरा होने में 15 दिनों का समय शेष था.उस ने पत्नी को आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘मुन्ना की अम्मा, जरा इधर आओ.’’

मुन्ना की मम्मी सुबह काम में व्यस्त थी, लेकिन हाथ का काम छोड़ कर आ कर बोली, ‘‘क्या बात हो गई?’’

‘‘मेरी जेब से 2 हजार रुपए गायब हैं,’’ उस ने क्रोध से कहा.

‘‘कहीं रख कर भूल गए होंगे, देखो, मिल जाएंगे,’’ मुन्ना की मम्मी ने उत्तर दिया.

‘‘मेरा मतलब है तुम ने तो नहीं लिए?’’

‘‘मैं क्यों लेने लगी? अगर मुझे चाहिए होते तो क्या मैं तुम्हें बताती नहीं?’’ मुन्ना की मम्मी ने कहा, फिर आगे कह उठी, ‘‘तुम्हीं ने खर्च कर दिए होंगे और यहां खोज रहे हो.’’

‘‘तुम समझने की कोशिश करो, मैं ने ऐसा कोई खर्च नहीं किया, और करता भी तो क्या मुझे याद नहीं होता?’’ उस ने प्रतिवाद किया.

‘‘मैं ने तुम्हारे रुपए नहीं निकाले,’’ कहते हुए मुन्ना की मम्मी नाश्ता बनाने के लिए अंदर चली गई.

वह परेशान हो गया. आखिर रुपए, वह भी हजारों में थे, कैसे और कहां चले गए? परिवार में केवल एक बेटा मुन्ना ही है और वह जानता है कि मुन्ना को किसी भी प्रकार की कोई गंदी या नशे की आदत नहीं है कि वह चोरी करे या जेब से रुपए निकाले. पचासों बार उसे जब भी आवश्यकता रही, मुन्ना ने कहा था, ‘पापा, मुझे 50 रुपए चाहिए, पिकनिक पर जाना है.’

उस ने उस से कहा था, ‘जा कर पैंट की जेब में से निकाल लो.’ मुन्ना ने 50 ही रुपए लिए थे. कभी भी एक रुपए के लेनदेन में गड़बड़ी नहीं की थी. कभी बाजार से सौदा लाने को भेजते तो लौटने के बाद 2 रुपए भी बचते तो वह लौटा देता था. आज तक मुन्ना ने कभी बिना पूछे रुपए नहीं लिए. अब क्यों लेगा? यदि मुन्ना को रुपए लेने ही थे तो वह इतने रुपयों को क्यों लेता? इतने रुपयों का वह करेगा भी क्या?

पिछले दिनों उस ने मोबाइल खरीदने की मांग जरूर की थी, लेकिन उस ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘मुन्ना, तुम्हारी बर्थडे पर हम गिफ्ट कर देंगे. इन दिनों तंगी है.’

‘जी पापा,’ मुन्ना ने कहा था.

वह बहुत परेशान हो गया था. अभी महीना भी पूरा नहीं हो पाया था, इस पर आजकल कितनी महंगाई है और आमदनी कितनी कम है. दिनभर आटोरिक्शा चलाने के बाद 2-3 सौ रुपयों की बचत हो पाती है. पत्नी से तो उस ने पूछ लिया, यदि मुन्ना से पूछ लें तो क्या हर्ज है? लेकिन बेटा क्या सोचेगा? उस को पूरे महीने की चिंता थी. उस ने मुन्ना को आवाज दी, जो अभी सो कर उठा था और बाथरूम में जाने की तैयारी में था. मुन्ना आ कर खड़ा हो गया.

‘‘मुन्ना, तुम ने कुछ रुपए निकाले?’’

‘‘कहां से?’’

‘‘मेरी जेब से.’’

‘‘नहीं, नहीं तो,’’ घबराए स्वर में मुन्ना ने कहा.

‘‘मेरी जेब से 2 हजार रुपए निकल गए बेटा, पता नहीं चल पा रहा कहां गए,’’ परेशानी भरे स्वर में उस ने कहा.

‘‘मैं जाऊं पापा?’’ मुन्ना का स्वर अभी तक घबराया सा था, मानो उसी ने चोरी की हो. लेकिन वह क्यों और किस काम के लिए रुपए निकालेगा? बारबार उस का शक मुन्ना पर जा कर पत्नी तक जाता और फिर वह पैंट की दूसरी जेबों में देखने लगता. अकसर इधरउधर वह जहां भी रुपयों को रख देता था, सब जगह उस ने रुपयों को देखा, लेकिन रुपयों को नहीं मिलना था, सो नहीं मिले.

हाथ से खर्च किए या किसी को दिए जाने पर रुपए कम पड़ जाने का दुख नहीं होता है, क्योंकि उस की जानकारी हमें होती है लेकिन अनायास जेब कट जाए या चोरी हो जाए या रुपए गिर जाएं तो सच में बहुत पीड़ा होती है.

आटोरिक्शा में न जाने कितनी बार किसी का मोबाइल या पर्स या थैला रह जाता तो वह यात्री को खोज कर उसे दे देता था या थाने में जा कर उस का सामान जमा करा देता था. लेकिन उस के साथ यह पहली बार ऐसी घटना घटी थी जिस की उसे कोईर् उम्मीद न थी. वह किस पर अविश्वास करे? फिर घर में कोई आयागया भी नहीं जो चोरी होती. हो सकता है कोई आया हो और उसे न पता हो. फिर उस ने पत्नी को आवाज दी. वह फिर आई.

‘‘क्या कल शाम को कोई मिलने वाली सहेली या मुन्ना के दोस्त आए थे?’’

‘‘कोई नहीं आया, तुम ही किसी को दे कर भूल गए होगे,’’ उस ने फिर पति को ही उलाहना दिया.

आखिर रुपए गए तो कहां? वह बारबार सोच रहा था. जितना सोचता उतना ही दुखी हो रहा था. बड़ी मेहनत से कमाए गए रुपए थे. उसे दुखी देख कर मुन्ना की मम्मी ने फिर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मिल जाएंगे. मैं चाय लाती हूं,’’ कह कर वह चली गई. मुन्ना भी बाथरूम से निकल कर टैलीविजन के सामने बैठ कर फिल्म देखने लगा था. वह चायनाश्ता टैलीविजन के सामने बैठ कर ही करता रहा था.

यह सच था कि बहुत अधिक भौतिक वस्तुएं वह नहीं खरीद पाता था, अधिक खर्च भी नहीं कर पाता था. मुन्ना कभी आइसक्रीम या चौकलेट लेने की जिद करता तो वह खिला जरूर देता, लेकिन खिलाने के बाद उसे बता भी देता था, ‘बेटा, हम अभी इतने अमीर नहीं हुए हैं कि फालतू खानेपीने पर 100-200 रुपए खर्च कर सकें.’ मुन्ना कभी नाराज नहीं होता था. वह भी जानता था कि वह एक गरीब परिवार का बेटा है. एकदो बार उस ने अपनी मां से कहा भी था, ‘मम्मी, स्कूल से छूटने के बाद

मैं किसी दुकान पर काम करने चले जाया करूं?’

‘क्यों?’

‘हम गरीब हैं न, पापा को कुछ मदद मिल जाएगी. उस की मां ने उसे सीने से लगा लिया और बालों में हाथ फेरते हुए कह उठी, ‘अभी इस की जरूरत नहीं है, पहले पढ़लिख ले, फिर ये

सब बातें बाद में करना.’ रात में उस ने अपने पति से भी यह बात बताई थी कि मुन्ना काम करने के लिए कह रहा था.

‘मैं जिंदा हूं अभी, खबरदार जो काम करने भेजा तो.’

‘मैं ने कब कहा भेजने को?’

‘उस से कहो, पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाए.’ बात आईगई, हो गई, लेकिन आखिर रुपए कहां गए होंगे? वह जितना सोचता उतना ही उलझता जाता था. आखिर उस ने तय कर लिया कि एकएक घंटे अतिरिक्त आटोरिक्शा चला कर कर वह इस घाटे को पूरा कर लेगा.

2-3 सप्ताह में वह रुपयों की चोरी की बात को लगभग भूल ही गया था. जीवन शांति के साथ बीत रहा था. एक शाम वह घर लौट रहा था तो रास्ते में उन के महल्ले का पोस्टमैन मिल गया. अभिवादन के बाद उस ने पूछ ही लिया, ‘‘आज दिल्ली से पार्सल आया था, क्या था उस में?’’

‘‘दिल्ली से पार्सल, मतलब?’’ वह कुछ समझा नहीं, उस के कोई रिश्तेदार भी दिल्ली में नहीं थे, फिर किस ने पार्सल भेजा होगा और कैसा पार्सल? पोस्टमैन ने फिर कहा, ‘‘एक वीपीआर से पार्सल आया था तुम्हारे बेटे के नाम.’’

‘‘कितने का था?’’

‘‘2 हजार रुपयों का.’’

‘‘किस ने छुड़वाया?’’

‘‘तुम्हारे बेटे ने, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?’’

मुन्ना के पापा ने सब सूत्रों को जोड़ा तो बात समझ में आई कि मुन्ना ने कोई पार्सल मंगवाया था, रुपए भी निश्चित रूप से उस ने ही निकाले थे. उन्होंने पोस्टमैन से कहा, ‘‘वैसे ही पूछ लिया, मुन्ना बता तो रहा था पार्सल आने वाला है, लेकिन आज आया, यह मालूम नहीं था.’’

‘‘अच्छा, चलता हूं,’’ कह कर पोस्टमैन अपने घर की ओर मुड़ गया.

मुन्ना के पापा को अत्यधिक क्रोध हो आया, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मुन्ना इस तरह चोरी करेगा. आखिर, उस ने ऐसा क्यों किया? क्रोध और दुख के मिलेजुले भाव से घर पर पहुंच कर उस ने मुन्ना को जोर से आवाज दी, ‘‘मुन्ना.’’

मुन्ना की मम्मी बाहर निकल आई, ‘‘क्या बात हो गई? इतने नाराज हो?’’

‘‘कहां है मुन्ना? 2 हजार रुपए उसी ने मेरी जेब से निकाले थे,’’ क्रोध में मुन्ना के पापा ने कहा. तब तक मुन्ना भी सामने आ गया था.

‘‘क्यों, तूने ही जेब से रुपए निकाले थे न?’’ मुन्ना ने नजरें नीची कर लीं.

‘‘क्यों चोरी किए थे तूने?’’ पापा ने क्रोध में मुन्ना से पूछा.

‘‘पार्सल में क्या आया? हम से कहता, हम तुझे बाजार से दिलवा देते,’’ पापा अभी भी चिल्ला रहे थे. मुन्ना की मम्मी बहुत आश्चर्य से सबकुछ देख रही थी.

‘‘पापा, वह यहां बाजार में नहीं मिलता,’’ मुन्ना ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘क्या मंगवाया था, बता मुझे,’’ पापा ने क्रोध में प्रश्न किया.

मुन्ना अंदर गया, एक छोटी सी पैकिंग ले आया और पापा की ओर बढ़ा दी.

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘पापा, इस में अमीर होने का तावीज है जिस पर लक्ष्मीजी का मंत्र है, इसे धारण करने से घर में खूब रुपया आएगा. पापा, यह मैं ने आप के लिए लिया था ताकि हमारी गरीबी दूर हो सके,’’ मुन्ना ने भोलेपन से पापा के हाथों में वह तावीज देते हुए कहा.

वह एक पेंडुलम था जिस की कुल कीमत 100 रुपए होगी लेकिन तुरंत वह अपने बेटे की भावनाओं को समझ गया और पलभर बाद ही उसे गले से लगा लिया और कहा, ‘‘बेटा, ऐसा हार पहनने से या पूजापाठ करने से कोई अमीर नहीं बनता, ईमानदारी से परिश्रम किए बिना हम कभी भी धनवान नहीं बन सकते. बेटा, यह सब तो व्यापार और पाखंड है.’’

मुन्ना सिर पकड़ कर बैठ गया. उसे समझ आ गया कि पाखंड का प्रचार कितना प्रभावशाली होता है कि पढ़ेलिखे, तर्क की भाषा जानने वाली, कौम भी ‘एक बार अपना कर देख लो’ की सोच का शिकार हो जाती है. मुन्ना तो कुछ अबोध था पर उस के पापा ने क्यों नहीं पाठ पढ़ाया कि यह पाखंड है. शायद इसलिए कि भक्ति का भय उस पर भी मन के कोने में छिपा था. Hindi Thriller Story

लेखक- डा. गोपाल नारायण आवटे

Hindi Love Story: जलन

Hindi Love Story: पिछले कुछ दिनों से सरपंच का बिगड़ैल बेटा सुरेंद्र रमा के पीछे पड़ा हुआ था. जब वह खेत पर जाती, तब मुंडे़र पर बैठ कर उसे देखता रहता था. रमा को यह अच्छा लगता था और वह जानबूझ कर अपने कपड़े इस तरह ढीले छोड़ देती थी, जिस से उस के उभार दिखने लगते थे. लेकिन गांव और समाज की लाज के चलते वह उसे अनदेखा करती थी. सुरेंद्र को दीवाना करने के लिए इतना ही काफी था. रातभर रमेश के साथ कमरे में रह कर रमा की बहू सुषमा जब बाहर निकलती, तब अपनी सास रमा को ऐसी निगाह से देखती थी, जैसे वह एक तरसती हुई औरत है.

रमा विधवा थी. उस की उम्र 40-42 साल की थी. उस का बदन सुडौल था. कभीकभी उस के दिल में भी एक कसक सी उठती थी कि किसी मर्द की मजबूत बांहें उसे जकड़ लें, जिस से उस के बदन का अंगअंग चटक जाए, इसी वजह से वह अपनी बहू सुषमा से जलती भी थी.

शाम का समय था. हलकी फुहार शुरू हो गई थी. रमा सोच रही थी कि जमींदार के खेत की बोआई पूरी कर के ही वह घर जाए. उसे सुरेंद्र का इंतजार तो था ही. सुरेंद्र भी ऐसे ही मौके के इंतजार में था. उस ने पीछे से आ कर रमा को जकड़ लिया.

रमा कसमसाई और उस ने चिल्लाने की भी कोशिश की, लेकिन फिर उस का बदन, जो लंबे समय से इस जकड़न का इंतजार कर रहा था, निढाल हो गया.

सुरेंद्र जब उस से अलग हुआ, तब रमा को लोकलाज की चिंता हुई. उस ने जैसेतैसे अपने को समेटा और जोरजोर से रोते हुए सरपंच के घर पहुंच गई और आपबीती सुनाने लगी. लेकिन सुरेंद्र की दबंगई के आगे कोई मुंह नहीं खोल रहा था.

इधर बेटा रमेश और बहू सुषमा भी सरपंच के यहां पहुंच गए. रमा रो रही थी, लेकिन सुषमा से आंखें मिलाते ही एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर फैल गई.

गांव में चौपाल बैठ गई थी. सरपंच और 3 पंच इकट्ठा हो गए थे. एक तरफ रमा खड़ी थी, तो दूसरी तरफ सुरेंद्र था. गांव के और भी लोग वहां मौजूद थे.

रामू ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘जो हुआ सो हुआ. अब रमा  जो बोलेगी वही सब को मंजूर होगा.’’

तभी दीपू ने कहा, ‘‘हां, रमा बोल, कितना पैसा लेगी? बात को यहीं खत्म कर देते हैं.’’

पैसे की बात सुनते ही बहू सुषमा खुश हो गई कि सास 2-4 लाख रुपए मांग ले, तो घर की गरीबी दूर हो जाए. लेकिन रमा बिना कुछ बोले रोते ही जा रही थी.

जब सब ने जोर दिया, तब रमा ने कहा, ‘‘मेरी समझ में सरपंचजी सुरेंद्र का जल्दी से ब्याह रचा दें, जिस से यह इधरउधर मुंह मारना बंद कर दे.’’

रमा की बात पर सहमत तो सभी थे, पर सुरेंद्र की हरकतों और बदनामी को देखते हुए भला कौन इसे अपनी बेटी देगा. इस बात पर सरपंच भी चुप हो गए.

सुरेंद्र भी अब 45 साल के आसपास हो चला था, इसलिए चाहता था कि घरवाली मिल जाए, तो जिंदगी सुकून से कट जाए.

रामू ने कहा, ‘‘रमा, तुम्हारी बात सही है, लेकिन इसे कौन देगा अपनी बेटी?’’

कांटा फंसता जा रहा था और चौपाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी. इस का सीधा मतलब होता कि सुरेंद्र को या तो गांव से निकाले जाने की सजा होती या उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होती.

मामले की गंभीरता को देखते हुए अब सुरेंद्र ने ही कहा, ‘‘मैं यह मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है और मैं शर्मिंदा भी हूं. अगर रमा चाहे, तो मैं इस से ब्याह रचाने को तैयार हूं.’’

रमा को तो मनमानी मुराद मिल गई थी, लेकिन तभी बहू सुषमा ने कहा, ‘‘सरपंचजी, यह कैसे हो सकता है? आप के बेटे की सजा मेरी सासू मां क्यों भुगतें? आप तो बस पैसा लेदे कर मामले को सुलझाएं.’’

तब दीपू ने कहा, ‘‘हम रमा की बात सुन कर ही अपनी बात कहेंगे.’’

रमा ने कहा, ‘‘गांव की बात गांव में ही रहे, इसलिए मैं दिल से तो नहीं लेकिन गांव की खातिर सुरेंद्र का हाथ थामने को तैयार हूं.’’

सरपंच और चौपाल ने चैन की सांस ली.

बहू सुषमा अपना सिर पकड़ कर वहीं बैठ गई. वहीं बेटा रमेश खुश था, क्योंकि उस की मां को सहारा मिल गया था. अब मां का अकेलापन दूर हो जाएगा. थोड़े दिनों के बाद ही उन दोनों की चुपचाप शादी करा दी गई. पहली रात रमा सुरेंद्र के सीने से लगते हुए कह रही थी, ‘‘विधवा होते ही औरत को अधूरी बना दिया जाता है. वह घुटघुट कर जीने को मजबूर होती है. अरे, अरमान तो उस के भी होते हैं.

‘‘और फिर मेरी बहू सुषमा की निगाहों ने हमेशा मेरी बेइज्जती की है. उस के लिए मेरी जलन ने ही हम दोनों को एक करने का काम किया है.’’

खुशी में सराबोर सुरेंद्र की मजबूत होती पकड़ रमा को जीने का संबल दे रही थी. जो खेत में हुआ वही अब हुआ, पर अब दोनों को चिंता नहीं थी, क्योंकि रमा सुरेंद्र की ब्याहता जो थी. Hindi Love Story

Short Story In Hindi: उसे कुछ करना है

Short Story In Hindi:  सर्दियों के दिन थे. शाम का समय था. श्वेता का कमरा गरम था. अपने एअरटाइट कमरे में उस ने रूम हीटर चला रखा था. 2 साल का भानू टीवी के आगे बैठा चित्रों का आनाजाना देख रहा था.  श्वेता अपने पसंदीदा धारावाहिक के खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

‘‘पापा,’’ राजीव के आते ही भानू गोद में चढ़ गया.  श्वेता उठ कर रसोईघर में चाय के साथ कुछ नाश्ता लेने चली गई. क्योंकि शाम के समय राजीव को खाली चाय पीने की आदत नहीं थी.

‘‘आज तो कुछ गरमागरम पकौड़े हो जाते तो आनंद आ जाता,’’ श्वेता के चाय लाते ही राजीव ने कहा, ‘‘क्या गजब की ठंड पड़ रही है और इस चाय का आनंद तो पकौड़े से ही आएगा.’’

‘‘मेरे तो सिर में दर्द है,’’ श्वेता माथे पर उंगलियां फेर कर बोली.

‘‘तुम से कौन कह रहा है…चाय भी क्या तुम्हीं ने बनाई है, वह भी इतने दर्द में, रोली दी कहां हैं. वह मिनट में बना देंगी.’’

‘‘रोली दी,’’ श्वेता ने जोर से आवाज दी, ‘‘कहां हैं आप. थोड़े पकौड़े बना दीजिए, आप के भइया को चाहिए. इसी बहाने हम सब भी खा लेंगे.’’

रोली ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘श्वेता, तुम बना लो. मैं आशू को होमवर्क करा रही हूं. इस का बहुत सा काम पूरा नहीं है. मैं ने खाने की सारी तैयारी कर दी है.’’

राजीव ने रुखाई से कहा, ‘‘अभी तो 6 बजे हैं, रात तक तुम्हें करना क्या है?’’

‘‘करना क्यों नहीं है भइया, मां बीमार हैं तो रसोई भी देखनी है. साथ में उन लोगों को भी…फिर रात में एक तो आशू को जल्दी नींद आने लगती है, दूसरे, टीवी के चक्कर में पढ़ नहीं पाता है.’’

‘‘तो क्या उस के लिए सब लोग टीवी देखना बंद कर दें,’’ राजीव ने चिढ़ कर कहा क्योंकि उसे रोली से ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी. उस की सरल ममतामयी दीदी तो सुबह से आधी रात तक भाई की सेवा में लगी रहती.

इंटर के बाद रोली ने प्राइवेट बी.ए. की परीक्षा दी थी. परीक्षा के समय घर मेहमानों से भरा था. क्योंकि उस की बड़ी बहन दिव्या का विवाह था और वह दिनरात मेहमानों की आवभगत में लगी रहती. कोई भी रोली से यह न कहता कि तुम अकेले कहीं बैठ कर पढ़ाई कर लो. जबकि उस से बड़ी 2 बहनें, 2 भाई भी थे. घर में आए मेहमानों की जरूरतों को पूरा करने के बाद रोली ज्यों ही हाथ में कागजकलम या पुस्तक उठाती तो आवाज आती, ‘अरे कहां हो रोली…जरा ब्याह निपटा दो तब अपनी पढ़ाई करना.’

दोनों बहनें अपने छोटे बच्चों के चोंचलों और ससुराल के लोगों की आवभगत में अधिक लगी रहतीं. सब के मुंह पर दौड़भाग करती रोली का नाम रहता.

मां को तो घर आए मेहमानों से बातचीत से ही समय न मिलता, कितनी मुश्किल से अच्छा घरवर मिला है वह इस की व्याख्या करती रहतीं. बूआ ने रोली की परेशानी भांप कर कहा भी कि इस की परीक्षा के बाद ब्याह की तिथि रखतीं तो निश्चिंत रहतीं…

‘‘अब रोली की परीक्षा के लिए ब्याह थोड़े ही रुका रहेगा…फिर दीदी, यह पढ़लिख के कौन सा कलक्टर बन जाएगी. बस, ग्रेजुएट का नाम हो जाए फिर इस को भी पार कर के गंगा नहा लें हम.’’

रिश्ते की बूआ कह उठीं, ‘‘भाभी, आजकल तो लड़की को भी बराबरी का पढ़ाना पड़ रहा है. हम तो यह कह रहे थे कि परीक्षा के बाद ब्याह होता तो रोली पर पढ़ाई का बोझ न रहता. अभी तो उसे न पढ़ने के लिए समय है और न मन ही होगा.’’

‘‘दीदी, आप भूल रही हैं, हमारे यहां लड़के वालों की इच्छा से ही तिथि रखनी पड़ती है. लड़की वालों की मरजी कहां चलती है. हम ज्यादा कहेंगे तो उत्तर मिलेगा, आप दूसरा घर देख लीजिए.’’

रोली की जैसेतैसे परीक्षा हो गई थी. 50 प्रतिशत नंबर आए थे. आगे पढ़ने का न उत्साह रहा न सुविधा ही मिली और न कहीं प्रवेश ही मिला.

रोली के 3 वर्ष घर के काम करते, भाइयों के मन लायक भोजननाश्ता बनाते बीत गए. फिर उस का भी विवाह हो गया. घर भले ही साधारण था पर पति सुंदर, रोबीले व्यक्तित्व का था. अपने काम में कुशल, परिश्रमी और मिलनसार था. एक प्राइवेट फर्म में काम कर रहा था जहां उस के काम को देख कर मालिक ने विश्वास दिलाया था कि शीघ्र ही उस की पदोन्नति कर दी जाएगी. परिवार के लोग भी समीर को प्यार करते और मान देते थे. रोली को वर्ष भर में बेटा भी हो गया.

रोली के ससुराल जाने पर उस की सब से अधिक कमी भाई को अखरती. मां बीमार रहने लगी थीं और बहनें चली गईं. मां न राजीव के मन का खाना बना पातीं न पहले जैसे काम ही कर पातीं. रोली तो भाई के कपड़े धो कर उन्हें प्रेस भी कर देती थी. उस की कापीकिताबें यथास्थान रखती और सब से बढ़ कर तो राजीव के पसंद का व्यंजन बनाती.

विवाह को अभी 3 साल भी न बीते थे कि रोली पर वज्र सा टूट पड़ा था. एक दुर्घटना में रोली के पति समीर की मृत्यु हो गई. समीर जिस फर्म में काम करता था उस के मालिक ने उस पर आरोप लगा कर कुछ भी आर्थिक सहायता देने से इनकार कर दिया. बेटी को मुसीबत में देख कर मातापिता उसे अपने घर ले आए.

रोली पहले तो दुख में डूबी रही. बड़ी मुश्किल से मां और बहनें उस के मुंह में 2-4 कौर डाल देतीं. उस का तो पूरा समय आंसू बहाने और साल भर के आशू को खिलानेपिलाने में ही बीत जाता था. कभी कुछ काम करने रोली उठती तो सभी उसे प्रेमवश, दयावश मना कर देते.

एक दिन ऐसे ही पगलाई हुई शून्य में ताकती मसली हुई बदरंग सी साड़ी पहने रोली बैठी थी कि मां की एक पुरानी सहेली मधु आ गई जो अब दूसरे शहर में रहती थी. मधु को देखते ही रोली दूसरे कमरे में चली गई क्योंकि किसी भी परिचित को देखते ही उस के आंसू बहने लगते थे.

मां ने कई बार आवाज दी, ‘‘बेटी रोली, देखो तो मधु मौसी आई हैं.’’

मां के बुलाने पर भी जब रोली नहीं आई तब मौसी स्वयं ही उसे पकड़ कर सब के बीच ले आईं और बहुत देर तक अपने से चिपटाए आंसू बहाती रहीं.

कुछ देर में उन्हें लगा, रोली से कुछ काम करने के लिए नहीं कहा जाता और न वह खुद काम में हाथ लगाती है. तब उन्होंने मां को और भाभी को समझाया कि इसे भी घर का कुछ काम करने दिया करो ताकि इस का मन लगा रहे. ऐसे तो यह अछूत की तरह अलग बैठीबैठी अपने अतीत को ही सोचती रहेगी और दुखी होगी.

‘‘हम तो इसे दुखी मान कर कुछ काम नहीं करने देते.’’

‘‘दीदी, आप उस पर भार भी न डालें पर व्यस्त जरूर रखें. आशू को भी उस के पास ही रहने दें क्योंकि दुख से उबरने के लिए अंधेरे में बैठे रहना कोई उपचार नहीं…और…’’

‘‘और क्या?’’ मां ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कि आगे क्या सोचा है. आजकल तो लड़कियां बाहर का काम कर रही हैं. रोली भी कहीं कोई काम करेगी तो अपने पैरों पर खड़ी होगी… अभी उस की उम्र ही क्या है, कुछ आगे पढ़े, कोई ट्रेनिंग दिलवाइए…देखिए, कोई हाथ थामने वाला मिल जाए…’’

‘‘क्या कह रही हो, मधु…रोली तो इस तरह की बातें सुनना भी नहीं चाहती है. पहले भी किसी ने कहा था तो रोने बैठ गई कि क्या मैं आप को भारी हो रही हूं…ऐसा है तो मुझे मेरी ससुराल ही भेज दें, जैसेतैसे मेरा ठिकाना लग ही जाएगा…

‘‘मधु, इस के लिए 2-1 रिश्ते भी आए थे. एक 3 पुत्रियों का पिता था जो विधुर था. कहा, मेरे बेटा भी हो जाएगा और घर भी संवर जाएगा. जमीनजायदाद भी थी. लेकिन यह सोच कर हम ने अपने पांव पीछे खींच लिए कि सौतेली मां अपना कलेजा भी निकाल कर रख दे फिर भी कहने वाले बाज नहीं आते. वैसे यह तो सच है कि विधवा का हाथ थामने वाला हमारे समाज में जल्दी मिल नहीं सकता, फिर दूसरे के बच्चों को पिता का प्यार देना आसान नहीं.’’

‘‘गे्रजुएट तो है. किसी तरह की ट्रेनिंग कर ले. आजकल तरहतरह के काम हैं.’’

लेकिन लड़की के लिए सुरक्षित स्थान और इज्जतदार नौकरी हो तब न. फिर उस का मन भी नहीं है…भाई भी पक्ष में नहीं है.

एक के बाद एक कर 8 वर्ष बीत गए. रोली घर के काम में लगी रहती. गरम खाना, चायनाश्ता देना, घर की सफाई करना और सब के कपड़े धो कर उन्हें प्रेस करना उस का काम रहता. बीतते समय के साथ अब उस की सहेलियां भी अपनीअपनी ससुराल चली गईं जो कभी आ कर रोली के साथ कुछ समय बिता लिया करती थीं.

उस दिन उस की एक पुरानी सहेली मनजीत आई थी. वह उसे अपने घर ले गई जहां महराजिन को बातें करते रोली ने सुना, ‘‘बीबीजी, मैं तो पहले कभी दूसरे की रसोई में भी नहीं जाती थी. काम करना तो दूर की बात थी. पर जब मनुआ के बाबू 2 दिन के बुखार में चल बसे तब घर का खर्च पीतलतांबे के बरतन, चांदीसोने के गहने बेच कर मैं ने काम चलाया. उस समय मेरे भाइयों ने गांव में चल कर रहने को कहा. मैं ने अपनी चचिया सास के कहने पर जाने का मन भी बना लिया था लेकिन इसी बीच मेरी जानपहचान की एक बुजुर्ग महिला ने कहा कि बेटी, तुम यहीं रहो. मैं काम करती हूं तुम भी मेरे साथ खाना बनाने का काम करना. बेटी, काम कोई बुरा नहीं होता. काम को छोटाबड़ा तो हम लोग बनाते और समझते हैं. मैं जानती हूं कि गांव में तुम कोई काम नहीं कर पाओगी. कुछ दिन तो भाभी मान से रखेंगी पर बाद में छोटीछोटी बातें अखरने लगती हैं. उस के बाद से ही मैं ने कान पकड़ा और यहीं रहने लगी. अपनी कोठरी थी और अम्मां का साया था.’’

रोली दूर बैठी उन की बातें सुन रही थी और उसे अपने पर लागू कर सोच रही थी कि मातापिता जहां तक होता है उस के लिए करते हैं किंतु भाभी… अखरने वाली बातें सुना जाती हैं. अब कल ही तो भाभी अपने बच्चों के लिए 500 के कपड़े लाईं और उस के आशू के लिए 100 रुपए खर्चना भी उन्हें एहसान लगता है.

‘गे्रजुएट है, कोई काम करे, कुछ ट्रेनिंग ले ले,’ मधु मौसी ने पहले भी कहा था पर मां ने कह दिया कि लड़की के लिए सुरक्षित स्थान हो, इज्जतदार नौकरी हो तब ही न सोचें. सोचते हुए 8 वर्ष बीत गए थे.

उस की सहेली मनजीत कौर के पिता की कपड़ों की दुकान थी. पहले मनजीत भी अकसर वहां बैठती और हिसाबकिताब देखती थी. कई सालों से मनजीत उसे दुकान पर आने के लिए कह रही थी और एक बार उस ने दुकान पर ही मिलने को बुलाया था. रोली वहां पहुंची तो मनजीत बेहद खुश हुई थी और उसे अपने साथ अपनी दूसरी दुकान पर चलने को कहा.

रोली को बुनाई का अच्छा अनुभव था. किसी भी डिजाइन को देख कर, पढ़ कर वह बना लेने में कुशल थी. रोली ने वहां कुछ बताया भी और आर्डर भी लिए. मनजीत कौर ने उस से कहा, ‘‘रोली, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘नहीं, कहो न.’’

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम दिन में किसी समय आ कर थोड़ी देर यहां का काम संभाल लिया करो. तुम्हारा मन भी बहल जाएगा और मेरी मदद भी हो जाएगी.’’

‘‘तुम मां से कहना,’’ रोली ने कहा, ‘‘मुझे तो मनजीत कोई आपत्ति नहीं है.’’

उसी दिन शाम को मनजीत ने रोली की मां से कहा, ‘‘आंटी, मैं चाहती हूं कि रोली मेरे साथ काम में हाथ बंटा दे.’’

रोली की मां को पहले तो अच्छा नहीं लगा. सोचा शायद इसे पैसे की कमी खटक रही है. अभी रोली की मां सोच रही थीं कि मनजीत बोल पड़ी, ‘‘आंटी, इस का मन भी घर से बाहर निकल कर थोड़ा बहल जाएगा और मुझे अपने भरोसे की एक साथी मिल जाएगी. यह केंद्र समाज सेवा के लिए है.’’

मां ने यह सोच कर इजाजत दे दी कि रोली घर के बाहर जाएगी तो ढंग से रहेगी.

महीने के अंत में मनजीत ने रोली को लिफाफा पकड़ा दिया.

‘‘यह क्या है?’’

‘‘कुछ खास नहीं. यह तो कम है. तुम्हारे काम से मुझे जो लाभ हुआ है उस का एक अंश है. हमें दूरदूर से आर्डर मिल रहे हैं तो मेरी सास और पति का कहना है कि हमारे पास खाने को बहुत है…तुम मेरी सहायता करती रहो और मेरे केंद्र को चलाने में हाथ बंटाओ. मेरी बहन की तरह हो तुम…’’

रोली की मां को खुशी थी कि अब उन की बेटी अपने मन से खर्च कर पाएगी. भाईबहन का स्नेह मिलता रहे पर उन की दया पर ही निर्भर न रहे. बाहर की दुनिया से जुड़ कर उस का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा साथ ही जीने का उत्साह भी.

कहानी- नारायणी

Emotional Story in Hindi: हमदर्द

Emotional Story in Hindi: कावेरी सन्न रह गई. लगा, उस के पैरों की शक्ति समाप्त हो गई है. कहीं गिर न पड़े इस डर से सामने पड़ी कुरसी पर धम से बैठ गई. 27 साल के बेटे को जो बताना था वह बता चुका  था और अब मां की पेंपें सुनने के लिए खड़े रहना उस के लिए मूर्खता छोड़ और कुछ नहीं था. फिर मां के साथ इतना लगाव, जुड़ाव, अपनापन या प्यार उस के मन में था भी नहीं जो अपनी कही हुई भयानक बात की मां के ऊपर क्या प्रतिक्रिया है उस को देखने के लिए खड़ा हो कर अपना समय बरबाद करता.

कावेरी ने उस की गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनी और कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर निढाल सी फैल गई. जीतेजागते बेटे से यह बेजान लकड़ी की बनी कुरसी उस समय ज्यादा सहारा दे रही थी. काम वाली जशोदा आटा पिसवाने गई थी. अत: जब तक वह नहीं लौटती अकेले घर में इस कुरसी का ही सहारा है.

पति का जब इंतकाल हुआ तो बेटा 8वीं में था. कावेरी को भयानक झटका लगा पर उस में साहस था. सहारा किसी का नहीं मिला, मायके वालों में सामर्थ्य ही नहीं थी, ससुराल में संपन्नता थी पर किसी के लिए कुछ करने का मन ही नहीं था.

वह समझ गई थी कि अब अपनी नाव को आप ही खींच कर किनारे पर लाना है. पति के फंड का पैसा ले कर मासिक ब्याज खाते में जमा किया. बीमा का जो पैसा मिला उस से आवासविकास का यह घर खरीद लिया. ब्याज जितना आता खाना और बेटे की पढ़ाई हो जाती पर कपड़ा, सामाजिकता, बीमारी आदि सब कैसे हो? उस का उपाय भी मिल गया. पड़ोस में एक प्रकाशक थे, पाठ्यक्रम की किताबें छापते थे. उन से मिल कर कुछ अनुवाद का काम मांग कर लाई. उस से जो आय होती उस का काम ठीकठाक चल जाता. अब अभाव नहीं रहा.

जशोदा को पूरे समय के लिए रख लिया. गाड़ी पटरी पर आ कर ठीकठाक चलने लगी. उस ने सोचा जीवन ऐसे ही कट जाएगा पर इनसान जो सोचता है उस के विपरीत करना ही नियति का काम है तो कावेरी के सपने भला कैसे पूरे होते.

अपने सपने पूरे नहीं होंगे इस का आभास तो बेटे के थोड़ा बडे़ होते ही कावेरी को होने लगा था. बेटा वैसे तो लोगों की नजरों में सोने का टुकड़ा है. पढ़ने में सदा प्रथम, कोई बुरी लत नहीं, बुरी संगत नहीं, रात में कभी देर से नहीं लौटता, पैसा, फैशनेबुल कपड़े या मौजमस्ती के लिए कभी मां को तंग नहीं करता पर जैसेजैसे बड़ा होता जा रहा था कावेरी अनुभव करती जा रही थी कि बेटे का रूखापन उस के प्रति बढ़़ता जा रहा था.

कोई लगाव, प्यार तो मां के प्रति बचा ही नहीं था. तेज बुखार में भी उठ कर बेटे को खाना बनाती और बेटा चाव से खा कर घर से निकल जाता. भूल कर भी यह नहीं पूछता कि मां, कैसी तबीयत है.

कावेरी इन बातों को कहे भी तो कैसे? ऊपर को मुंह कर के थूको तो थूक अपने मुंह पर आ कर गिरता है. दुश्मन भी यह जान कर खुश होंगे कि बेटा उस के हाथ के बाहर है. दूसरी बात यह थी कि उस के मन में भय भी था कि पति का छोड़ा यह घर उन के पीछे बिना बिखरे टिका  हुआ है. लड़ाईझगड़ा करे और बेटा घर छोड़ कर चला जाए तो एक तो घर घर नहीं रहेगा, दूसरी और बड़ी बात होगी कम उम्र की कच्ची बुद्धि ले घर से निकल वह अपना ही सर्वनाश कर लेगा.

बेटा कैसा भी आचरण क्यों न करे वह तो मां है. बेटे को सर्वनाश के रास्ते में नहीं धकेल सकती, अवहेलना अनादर सह कर भी नहीं. इन सब परिस्थितियों के बीच भी एक आशा की किरण टिमटिमा रही थी कि बेटा बिल्लू एम.बी.ए. कर एक बहुत अच्छी कंपनी में उच्च पद पर लग गया है. सुना है ऊंचा वेतन है. हां, यह जरूर है कि वेतन का बेटे ने एक 10 का नोट भी उस के हाथ पर रख कर नहीं कहा, ‘मां, यह लो, अपने लिए कुछ ले लेना.’

घर जैसे पहले वह चलाती थी वैसे ही आज भी चला रही है. अब तो बड़ेबड़े घरों से अति सुंदर लड़कियों के रिश्ते भी आ रहे हैं. कावेरी खुशी और गर्व से फूली नहीं समा रही. इन में से छांट कर एक मनपसंद लड़की को बहू बना कर लाएगी तो घर का दरवाजा हंस उठेगा. बहू उस के साथसाथ लगी रहेगी. बेटे से नहीं पटी तो क्या? पराई बेटी अपनी बेटी बन जाएगी पर बेटे ने उस की उस आशा की किरण को बर्फ की सिल्ली के नीचे दफना दिया और वह खबर सुना कर चला गया था जिस से उस के शरीर में जितनी भी शक्ति थी समाप्त हो गई थी और बेजान कुरसी ने उसे सहारा दिया.

आज कावेरी को पहली बार लगा कि जीवन उस के लिए बोझ बन गया है क्योंकि इनसान जीता है किसी उद्देश्य को ले कर, कोई लक्ष्य सामने रख कर. जिस समय पति की मृत्यु हुई थी तब भी उसे लगा था कि जीवन समाप्त हो गया पर उस को जीना पड़ेगा, सामने उद्देश्य था, लक्ष्य था, बेटा छोटा है, उस को बड़ा कर उस का जीवन प्रतिष्ठित करना है, उस का विवाह कर के घर बसाना है. मौत भी आ जाए तो उस से कुछ सालों की मोहलत मांग बेटे के जीवन को बचाना पड़ेगा पर आज तो सारे उद्देश्य की समाप्ति हो गई, जीवन का कोई लक्ष्य बचा ही नहीं पर बुलाने से ही मौत आ खड़ी हो इतनी परोपकारी भी नहीं.

जशोदा लौटी. आटे का कनस्तर स्टोर में रख कर साड़ी झाड़ती हुई आ कर बोली, ‘‘आंटी, नाश्ता बना लूं? भैया चला गया क्या? बाहर गाड़ी नहीं है.’’

‘‘रहने दे, मेरा मन नहीं है. तू कुछ खा ले फिर भैया का कमरा ठीक से साफ कर दे, आता ही होगा.’’

‘‘फिर कुछ हुआ? अरे, बिना खाए मर भी जाओ तो भी बेटा पलट कर नहीं देखने या पूछने वाला. तुम इतनी बीमार पड़ीं पर कभी बेटे ने पलट कर देखा या हाल पूछा?’’

‘‘बात न कर के कमरा साफ कर… आता ही होगा.’’

‘‘कहां गया है?’’

‘‘ब्याह करने.’’

इतना सुनते ही जशोदा धम से फर्श पर बैठ गई.

‘‘जल्दी कर, रजिस्ट्री में समय ही कितना लगता है…बहू ले कर आता होगा.’’

‘‘बेटा नहीं दुश्मन है तुम्हारा. कब से सपने देख रही हो उस के ब्याह के.’’

‘‘सारे सपने पूरे नहीं होते. उठ, जल्दी कर.’’

‘‘कौन है वह लड़की?’’

‘‘मैं नहीं जानती, नौकरी करती है कहीं.’’

‘‘तुम भी आंटी, जाने क्यों बेटे के इशारे पर नाचती हो? अपना खाती हो अपना पहनती हो…उलटे बेटे को खिलातीपहनाती हो. सुना है मोटी तनख्वाह पाता है पर कभी 10 रुपए तुम्हारे हाथ पर नहीं रखे और अब ब्याह भी अपनी मर्जी का कर रहा है. ऐसे बेटे के कमरे की सफाई के लिए तुम मरी जा रही हो.’’

गहरी सांस ली कावेरी ने और बोली, ‘‘क्या करूं, बता. पहले ही दिन, नई बहू सास को बेटे से गाली खाते देख कर क्या सोचेगी.’’

‘‘यह तो ठीक कह रही हो.’’

जब बड़ी सी पहिए लगी अटैची खींचते बिल्लू के साथ टाइट जींस और टीशर्ट पहने और सिर पर लड़कों जैसे छोटेछोेटे बाल, सांवली, दुबलीपतली लावण्यहीन युवती को ले कर आया तब घड़ी ठीक 12 बजा रही थी. एक झलक में ही लड़की का रूखा चेहरा, चालचलन की उद्दंडता देख कावेरी समझ गई कि उसे अब पुत्र मोह को एकदम ही त्याग देना चाहिए. यह लड़की चाहे जो भी हो उस की या किसी भी घर की बहू नहीं बन सकती. पता नहीं बिल्लू ने क्या सोचा? बोला, ‘‘रीटा, यह मेरी मां है और मां यह रीटा.’’

जरा सा सिर हिला या नहीं हिला पर वह आगे बढ़ गई. कमरे में जा कर बिल्लू ने दरवाजा बंद कर लिया. हो गया नई बहू का गृहप्रवेश. और नई चमचमाती जूती के नीचे रौंदती चली गई थी वह कावेरी के वे सारे सपने जो जीवन की सारी निराशाओं के बीच बैठ कर देखा करती थी. सुशील बहू, प्यारेप्यारे पोतेपोती के साथ सुखद बुढ़ापे का सपना.

जशोदा लौट कर रसोई की चौखट पर खड़ी हुई और बोली, ‘‘आंटी, यह औरत है या मर्द, समझ में नहीं आया.’’

जशोदा इतनी मुंहफट है कि उस की हरकतों से डरती है कावेरी. पता नहीं नई बहू के लिए और क्याक्या कह डाले. पहले दिन ही वह बहू के सामने बेटे से अपमानित नहीं होना चाहती. पर यह तो सच है कि अब उस को कुछ सोचना पड़ेगा. देखा जाए तो बेटे का जो बरताव उस के साथ रहा उस से बहुत पहले ही उस को अलग कर देना चाहिए था पर अनजान मोह से वह बंध कर रह गई.

‘‘अब तो मां के सहारे की उसे कोई जरूरत नहीं…अब क्यों साथ रहना.’’

जशोदा ने खाना बना कर मेज पर लगा दिया. न चाहते हुए भी कावेरी ने थोड़ी खीर बनाई. जशोदा फिर बौखलाई.

‘‘अब ज्यादा मत सिर पर चढ़ाओ.’’

‘‘नई बहू है, उसे तो पूरी खिलानी चाहिए. मीठा कुछ मंगाया नहीं, थोड़ी खीर ही सही.’’

‘‘अब तुम रहने दो. कहां की नई बहू? पैंट, जूता, बनियान में आई है, सास के पैर छूने तक का ढंग नहीं है. लगता है कि घाटघाट का पानी पी कर इस घाट आई है.’’

कंधे झटक जशोदा चली गई. थोड़ी देर में दोनों अपनेआप खाने की मेज पर आ बैठे. बेटा तो कुरतापजामा पहने था. बहू घुटनों से काफी ऊंचा एक फ्राक जैसा कुछ पहने थी और ऊपर का शरीर आधा नंगा था.

बेटे से एक शब्द भी बोले बिना कावेरी ने बहू को पारखी नजर से देखा. दोनों चुपचाप खाना खा रहे थे. उस के मुख पर भले घर की छाप एकदम नहीं थी और संस्कारों का तो जवाब नहीं. सास से एक बार भी नहीं कहा कि आप भी बैठिए. और तो और, खाने के बाद अपनी थाली तक नहीं उठाई और दरवाजा फिर से बंद हो गया.

घर का वातावरण एकदम बदल गया. यह स्वाभाविक ही था. घर में जब बहू आती है तो घर का वातावरण ही बदल जाता है. उसे भोर में उठने की आदत है. फ्रेश हो कर पहले चाय बनाती, आराम से बैठ कर चाय पीती, तब दिनचर्या शुरू होती. तब कभीकभी बेटा भी आ बैठता और चाय पीता, दोचार बातें न होती हों ऐसी बात नहीं, मामूली बातें भी होतीं पर अब तो साढ़े 8 बजे जशोदा चाय की टे्र ले कर दरवाजा पीटती तब दरवाजा खोल चाय ले कर फिर दरवाजा बंद हो जाता. खुलता 9 बजने के बाद फिर तैयार हो, नाश्ता करने बैठते दोनों और फौरन आफिस निकल जाते.

दोपहर का लंच आफिस में, शाम को लौटते, ड्रेस बदलते फिर निकल जाते तो आधी रात को ही लौटते. बाहर ही रात का खाना खाते तो नाश्ता छोड़ घर में खाने का और कोई झंझट ही नहीं रहता. छुट्टी के दिन भी कार्यक्रम नहीं बदलता. नाश्ता कर दोनों घूमने चले जाते…रात खापी कर लौटते.

बहू से परिचय ही नहीं हुआ. बस, घर में रहती है तो आंखों में परिचित है, संवाद एक भी नहीं. खाना खाने के बाद ऐसे उठ जाती जैसे होटल में खाया हो. न थाली उठाती न बचा सामान समेट फ्रिज में रखती. कावेरी हैरान होती कि कैसे परिवार में पली है यह लड़की? संस्कार दूर की बात साधारण सी तमीज भी नहीं सीखी है इस ने और यह सब छोटीमोटी बातें तो बिना सिखाए ही लड़कियां अपनी सहज प्रवृत्ति से सीख जाती हैं. इस में तो स्त्रीसुलभ कोई गुण ही नहीं है…पता नहीं इस के परिवार वाले कैसे हैं, कभी बेटी की खोजखबर लेने भी नहीं आते?

कावेरी ने अब अपने को पूरी तरह समेट लिया है. जो मन में आए करो, मुझ से मतलब क्या? कुछ इस प्रकार के विचार बना लिए उस ने. सोचा था घर छोड़ ‘हरिद्वार’ जा कर रहेगी पर इस घर की एकएक चीज उस की जोड़ी हुई, सजाई हुई है. बड़ी ममता है इस सजीसजाई गृहस्थी के प्रति, फिर यह घर भी तो उस के नाम है…वह क्यों अपना घर छोड़ जाएगी…जाना है तो बहूबेटे जाएंगे.

जशोदा भी यही बात कहती है. इस समय उस का अपना कोई है तो बस, जशोदा है. महीने का वेतन और रोटीकपड़े पर रहने वाली जशोदा ही एकमात्र अपनी है…बहुत दिनों की सुखदुख की गवाह और साथी.

बेटे ने घर के लिए कभी पैसा नहीं दिया और आज भी नहीं देता है. कावेरी ने भी यह सोच कर कुछ नहीं कहा कि ये लोग घर पर केवल नाश्ता ही तो करते हैं. बहू तो कमरे से बाहर आती ही नहीं है. कभीकभी चाय पीनी हो तो बेटा रसोई में जा कर चाय बना लेता है. 2 कप कमरे में ले जाते हुए मां को भी 1 कप चाय पकड़ा जाता है. बस, यही सेवा है मां की. Emotional Story in Hindi

Hindi Fiction Story: मुखौटे- क्या हुआ था इंदर के साथ

Hindi Fiction Story: खुली खिड़की है भई मन, विचारों का आनाजाना लगा रहता है, कहती है जबां कुछ और तो करते हैं हम कुछ और कहते हैं बनाने वाले ने बड़ी लगन और श्रद्धा से हर व्यक्ति को गढ़ा, संवारा है. वह ऐसा मंझा हुआ कलाकार है कि उस ने किन्हीं 2 इंसानों को एक जैसा नहीं बनाया (बड़ी फुरसत है भई उस के पास). तन, मन, वचन, कर्म से हर कोई अपनेआप में निराला है, अनूठा है और मौलिक है. सतही तौर पर सबकुछ ठीकठीक है. पर जरा अंदर झांकें तो पता चलता है कि बात कुछ और है. गोलमाल है भई, सबकुछ गोलमाल है.

बचपन में मैं ने एक गाना सुना था. पूरे गाने का सार बस इतना ही है कि ‘नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छिपी रहे.’

कई तरह के लोगों से मिलतेमिलते, कई संदर्भों में मुझे यह गाना बारबार याद आ जाता है. आप ने अकसर छोटे बच्चों को मुखौटे पहने देखा होगा. फिल्मों में भी एक रिवाज सा था कि पार्टियों, गानों आदि में इन मुखौटों का प्रयोग होता था. दिखने में भले इन सब मुखौटों का आकार अलगअलग होता है पर ये सब अमूमन एक जैसे होते हैं. वही पदार्थ, वही बनावट, उपयोग का वही तरीका. सब से बड़ी बात है सब का मकसद एक-सामने वाले को मूर्ख बनाना या मूर्ख समझना, उदाहरण के लिए दर्शकों को पता होता है कि मुखौटे के पीछे रितिक हैं पर फिल्म निर्देशक यही दिखावा करते हैं कि कोई नहीं पहचान पाता कि वह कौन है.

इसी तरह आजकल हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पद पर हो, किसी भी उम्र का हो, हर समय अपने चेहरे पर एक मुखौटा पहने रहता है. चौबीसों घंटे वही कृत्रिम चेहरा, कृत्रिम हावभाव, कृत्रिम भाषा, कृत्रिम मुसकराहट ओढ़े रहता है. धीरेधीरे वह अपनी पहचान तक भूल जाता है कि वास्तव में वह क्या है, वह क्या चाहता है.

जी चाहता है कि वैज्ञानिक कोई ऐसा उपकरण बनाएं जिस के उपयोग से इन की कृत्रिमता का यह मुखौटा अपनेआप पिघल कर नीचे गिर जाए और असली स्वाभाविक चेहरा सामने आए, चाहे वह कितना भी कुरूप या भयानक क्यों न हो क्योंकि लोग इस कृत्रिमता से उकता गए हैं.

‘‘अजी सुनो, सुनते हो?’’

अब वह ‘अजी’ या निखिल कान का कुछ कमजोर था या जानबूझ कर कानों में कौर्क लगा लेता था या नेहा की आवाज ही इतनी मधुर थी कि वह मदहोश हो जाता था और उस की तीसरीचौथी आवाज ही उस के कानों तक पहुंच पाती थी. यह सब या तो वह खुद जाने या उसे बनाने वाला जाने. इस बार भी तो वही होना था और वही हुआ भी.

‘‘कितनी बार बुलाया तुम्हें, सुनते ही नहीं हो. मुझे लगता है एक बार तुम्हें अपने कान किसी अच्छे डाक्टर को दिखा देने चाहिए.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ मेरे कानों को? ठीक ही तो हैं,’’ अखबार से नजर हटाते हुए निखिल ने पूछा.

नेहा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस के स्वर की तल्खी और आंखों के रूखेपन को ताड़ कर उस ने अपनेआप को नियंत्रित किया और एक मीठी सी मुसकराहट फैल गई उस के चेहरे पर. किसी भी आंख वाले को तुरंत पता चल जाए कि यह दिल से निकली हुई नहीं बल्कि बनावटी मुसकराहट थी. जब सामने वाले से कोई मतलब होता है तब लोग इस मुसकराहट का प्रयोग करते हैं. मगर निखिल आंख भर कर उसे देखे तब न समझ पाए.

‘‘मैं इस साड़ी में कैसी लग रही हूं? जरा अच्छे से देख कर ईमानदारी से बताना क्योंकि यही साड़ी मैं कल किटी पार्टी में पहनने वाली हूं,’’ उस ने कैटवाक के अंदाज में चलते हुए बड़ी मधुर आवाज में पूछा.

‘तो मेमसाब अपनी किटी पार्टी की तैयारी कर रही हैं. यह बनावशृंगार मेरे लिए नहीं है,’ निखिल ने मन ही मन सोचा, ‘बिलकुल खड़ूस लग रही हो. लाल रंग भी कोई रंग होता है भला. बड़ा भयानक. लगता है अभीअभी किसी का खून कर के आई हो.’ ये शब्द उस के मुख से निकले नहीं. कह कर आफत कौन मोल ले.

‘‘बढि़या, बहुत सुंदर.’’

‘‘क्या? मैं या साड़ी?’’ बड़ी नजाकत से इठलाते हुए उस ने फिर पूछा.

‘साड़ी’ कहतेकहते एक बार फिर उस ने अपनी आवाज का गला दबा दिया.

‘‘अरे भई, इस साड़ी में तुम और क्या? यह साड़ी तुम पर बहुत फब रही है और तुम भी इस साड़ी में अच्छी लग रही हो. पड़ोस की सारी औरतें तुम्हें देख कर जल कर खाक हो जाएंगी.’’

नेहा को लगा कि वह उस की तारीफ ही कर रहा है. उस ने इठलाते हुए कहा, ‘‘हटो भी, तुम तो मुझे बनाने लगे हो.’’  पता नहीं कौन किसे बना रहा था.

नन्हे चिंटू ने केक काटा. तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. अतिथि एकएक कर आगे आते और चिंटू के हाथ में अपना तोहफा रख कर उसे प्यार करते, गालों को चूमते या ऐसे शब्द कहते जिन्हें सुन कर उस के मातापिता फूले न समाते. तोहफा देते हुए वे इतना अवश्य ध्यान रखते कि चिंटू के मातापिता उन्हें देख रहे हैं या नहीं.

‘‘पारुल, तुम्हारा बेटा बिलकुल तुम पर गया है. देखो न, उस की बड़ीबड़ी आंखें, माथे पर लहराती हुई काली घुंघराली लटें. इस के बड़े होने पर दुनिया की लड़कियों की आंखें इसी पर होंगी. इस से कहना जरा बच कर रहे,’’ जब मोहिनी ने कहा तो सब ठठा कर हंस पडे़.

चिंटू बड़ा हो कर अवश्य आप के जैसा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ इधरउधर भागते हुए चिंटू को देख कर रमेश ने कहा.

‘‘हां, देखो न, कैसे हाथपांव चला रहा है, बिलकुल फुटबाल के खिलाड़ी की तरह,’’ खालिद ने उसे पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा.

नरेश की बाछें खिल गईं. हिंदी सिनेमा के नायक की तरह वह खड़ाखड़ा रंगीन सपने देखने लगा.

खालिद, जो चिंटू को पकड़ने में लगा था, अपनी ही बात बदलते हुए बोला, ‘‘नहीं यार, इस के तो हीरो बनने के लक्षण हैं. इस की खूबसूरती और मीठी मुसकराहट यही कह रही है. बिलकुल भाभीजी पर गया है.’’

खालिद ने उधर से जाती हुई पारुल  को देख लिया था. उस के हाथों में केक के टुकड़ों से भरी प्लेट वाली ट्रे थी. पारुल ने रुक कर खालिद की प्लेट को भर दिया.

नरेश ने घूर कर खालिद को देखा फिर अगले ही पल माहौल देखते हुए होंठों पर वही मुसकराहट ले आया.

‘‘पारुल, चिंटू को जरा गलत नजर वालों से बचा कर रखो,’’ आशा ने जया को घूरते हुए कहा. उन दोनों की बिलकुल नहीं पटती थी. दोनों के पति एक ही दफ्तर में काम करते थे. दोनों के आपस में मिलनेजुलने वाले करीबकरीब वही लोग होते थे.इसलिए अकसर इन दोनों का मिलनाजुलना होता और एक बार तो अवश्य तूतू, मैंमैं होती.

‘‘कैसी बातें करती हो, आशा? यहां कौन पराया है? सब अपने ही तो हैं. हम ने चुनचुन कर उन्हीं लोगों को बुलाया है जो हमारे खास दोस्त हैं,’’ पारुल ने हंसते हुए कहा.

तभी अचानक उसे याद आया कि पार्टी शुरू हो चुकी है और उस ने अब तक अपनी सास को बुलाया ही नहीं कि आ कर पार्टी में शामिल हो जाएं. वह अपनी सास के कमरे की ओर भागी. यह सब सास से प्यार या सम्मान न था बल्कि उसे चिंता थीकि मेहमान क्या सोचेंगे. उस ने देखा कि सास तैयार ही बैठी थीं मगर उन की आदत थी कि जब तक चार बार न बुलाया जाए, रोज के खाने के लिए भी नहीं आती थीं. कदमकदम पर उन्हें इन औपचारिकताओं का बहुत ध्यान रहता थादोनों बाहर निकलीं तो मेहमानों ने मांजी को बहुत सम्मान दिया. औरतों ने उन से निकटता जताते हुए उन की बहू के बारे में कुरेदना चाहा.मगर वे भी कच्ची खिलाड़ी न थीं. इधर पारुल भी ऐसे जता रही थी मानो वह अपनी सास से अपनी मां की तरह ही प्यार करती है. यह बात और है कि दोनों स्वच्छ पानी में प्रतिबिंब की तरह एकदूसरे के मन को साफ पढ़ सकती थीं

पार्टी समाप्त होने के बाद सब बारीबारी से विदा लेने लगे.

‘‘पारुल, बड़ा मजा आया, खासकर बच्चों ने तो बहुत ऐंजौय किया.  थैंक्यू फौर एवरीथिंग. हम चलें?’’

‘‘हांहां, मंजू ठीक कहती है. बहुत मजा आया. मैं तो कहती हूं कि कभीकभी इस तरह की पार्टियां होती रहें तो ही जिंदगी में कोई रस रहे. वरना रोजमर्रा की मशीनी जिंदगी से तो आदमी घुटघुट कर मर जाए,’’ आशा ने बड़ी गर्मजोशी से कहा.

सब ने हां में हां मिलाई.

‘‘आजकल इन पार्टियों का तो रिवाज सा चल पड़ा है. शादी की वर्षगांठ की पार्टी, जन्मदिन की पार्टी, बच्चा पैदा होने से ले कर उस की शादी, उस के भी बच्चे पैदा होने तक, अनगिनत पार्टियां, विदेश जाने की पार्टी, वापस आने की पार्टी, कोई अंत हैइन पार्टियों का? हर महीने इन पर हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा यों ही खर्च हो जाता है.

‘‘आशा की बातों का जया कोई तीखा सा जवाब देने वाली थी कि उस के पति ने उसे खींच कर रिकशे में बिठा दिया और सब ने उन को हाथ हिला कर विदा किया.‘‘तुम ठीक कहती हो, आशा. तंग आ गए इन पार्टियों से,’’ मोहिनी ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा. उस का परिवार बड़ा था और खर्चा बहुत आता था

‘‘अरे, देखा नहीं उस अंगूठे भर के बच्चे को ले कर पारुल कैसे इतरा रही थी जैसे सचमुच सारे संसार में वही एक मां है और उस का बेटा ही दुनिया भर का निराला बेटा है.’’

‘‘सोचो जरा काली कजरारी आंखें, घुंघराले बाल और मस्तानी चाल, बड़ा हो कर भी यही रूप रहा तो कैसा लगेगा,’’ मोहिनी ने आंखें नचाते हुए कहा. उस का इशारा समझ कर सब ने जोरजोर से ठहाका लगाया.

‘‘भाभीजी, आप ने निखिल को देखा. वह अपने उसी अंगूठे भर के बेटे को देख कर ऐसा घमंड कर रहा था मानो वह दुनिया का नामीगिरामी फुटबाल का खिलाड़ी बन गया हो,’’ खालिद की बात पर फिर से ठहाके  गूंजे.

‘‘मगर खालिद भाई, तुम्हीं ने तो उसे चढ़ाया था कि उस का बेटा बहुत बड़ा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ आनंद ने चुटकी ली. आनंद और खालिद में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था. एकदूसरे को नीचा दिखाने का वे कोई भी मौका चूकते न थे.

‘‘कहा तो, क्या गलत किया. उन के यहां पेट भर खा कर उन के बच्चे की तारीफ में दो शब्द कह दिए तो क्या बुरा किया. कल किस ने देखा है,’’ रमेश भी कहां हाथ आने वाला था.

‘‘ऐसा उन्होंने क्या खिला दिया खालिद भाई कि आप आभार तले दबे जा रहे हैं?’’

रमेश की बात पर खालिद की जबान पर ताला लग गया. उस के आगे टिकने की शक्ति उस में न थी.

‘‘यह कैसा विधि का विधान है? मेरी बेटी तो अनाथ हो गई. मां तो मैं हूं पर सुशीला बहन ने उसे मां जैसा प्यार दिया. शादी के बाद तो वे ही उस की मां थीं. मेरी बेटी को मायके में आना ही पसंद नहीं था. पर आती थी तो उन की तारीफ करती नहींथकती थी. उन की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता. मेरी बेटी सच में दुखियारी है जो उस के सिर से ऐसी शीतल छाया उठ गई.’’

सुशीलाजी की मृत्यु की खबर मिलते ही वे (शीला) भरपेट नाश्ता कर के पति के साथ जो निकलीं तो 10 बजतेबजते बेटी की ससुराल में पहुंच गई थीं. कहने को दूसरा गांव था पर मुश्किल से40 मिनट का रास्ता था. तब से ले कर शव के घर से निकल कर अंतिम यात्रा के लिए जाने तक के रोनेधोने का यह सारांश था. कालोनी के एकत्रित लोग शीला के दुख को देख कर चकित रह गए थे. उस की आंखों से बहती अश्रुधारा ने लोगों क सहानुभूति लूट ली. सब की जबान पर एक ही बात थी, ‘दोनों में बहुत बनती थी. अपनी समधिन के लिए कोई इस तरह रोता है?

सारा कार्यक्रम पूरा होने तक शीला वहीं रहीं. पूरे घर को संभाला. दामाद सुनील तो पूरी तरह प्रभावित हो गया. उन्हें वापस भेजते समय उन के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने कभी नहीं सोचा था कि आप हम लोगों से इतना प्यार करती हैं. अब आपही हम तीनों की मां हैं. हमारा खयाल रखिएगा.’’

‘‘कैसी बातें करते हो बेटा. मेरे लिए तो जैसे सरला और सूरज हैं वैसे तुम तीनों हो. जब भी मेरी जरूरत पडे़, बुला लेना, मैं अवश्य आ जाऊंगी.’’

उसी शीला ने अकेले में अपनी बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, यही समय है. संभाल अपने घर को अक्लमंदी से. कम से कम अब तो तुझे इस जंजाल से मुक्ति मिली. जब तक जिंदा थी, महारानी ने सब को जिंदा जलाया. कोई खुशी नहीं, कोई जलसा नहीं. यहां उस की दादागीरी में सड़ती रही. इतने सालों के बाद तू आजादी की सांस तो ले सकेगी.’’

अपने गांव जाने से पहले शीला बेटी को सीख देना नहीं भूलीं कि बहुत हो गया संयुक्त परिवार का तमाशा. मौका देख कर कुछ समय के बाद देवरदेवरानी का अलग इंतजाम करा दे. मगर उस से पहले दोनों भाई मिल कर ननद की शादी करा दो, तब तक उन से संबंध अच्छे रखने ही पड़ेंगे. तेरी ननद के लिए मैं ऐसा लड़का ढूंढूंगी कि अधिक खर्चा न आए. वैसे तेरी देवरानी भी कुछ कम नहीं है. वह बहुत खर्चा नहीं करने देगी. ससुर का क्या है, कभी यहां तो कभी वहां पडे़ रहेंगे. आदमी का कोई ज्यादा जंजाल नहीं होता.

दिखावटी व्यवहार, दिखावटी बातें, दिखावटी हंसी, सबकुछ नकली. यही तो है आज की जिंदगी. जरा इन के दिलोदिमाग में झांक कर देखेंगे तो वहां एक दूसरी ही दुनिया नजर आएगी. इस वैज्ञानिक युग में अगर कोई वैज्ञानिक ऐसी कोई मशीन खोजनिकालता जिस से दिल की बातें जानी जा सकें, एक्सरे की तरह मन के भावों को स्पष्ट रूप से हमारे सामने ला सके तो…? तब दुनिया कैसी होती? पतिपत्नी, भाईभाई या दोस्त, कोई भी रिश्ता क्या तब निभ पाता? अच्छा ही है कि कुछ लोग बातों को जानते हुए भी अनजान होने का अभिनय करते हैं या कई बातें संदेह के कोहरे में छिप जाती हैं. जरा सोचिए ऐसी कोई मशीन बन जाती तो इस पतिपत्नी का क्या हाल होता?

‘‘विनी, कल मुझे दफ्तर के काम से कोलकाता जाना है. जरा मेरा सामान तैयार कर देना,’’ इंदर ने कहा.

‘‘कोलकाता? मगर कितने दिनों के लिए?’’

‘‘आनेजाने का ले कर एक सप्ताह तो लग जाएगा. कल मंगलवार है न? अगले मंगल की शाम को मैं यहां लौट आऊंगा, मैडमजी,’’ उस ने बड़े अदब से कहा.

‘‘बाप रे, एक सप्ताह? मैं अकेली न रह पाऊंगी. उकता जाऊंगी. मुझे भी ले चलिए न,’’ उस ने लाड़ से कहा.

‘‘मैं तुम्हें जरूर साथ ले जाता मगर इस बार काम कुछ ज्यादा है. वैसे तो

10-12 दिन लग जाते मगर मैं ने एक हफ्ते में किसी तरह निबटाने का निश्चय कर लिया है. भले मुझे रातदिन काम करना पडे़. क्या लगता है तुम्हें, मैं क्या तुम्हारे बिना वहां अकेले बोर नहीं होऊंगा? अच्छा, बताओ तो, कोलकाता से तुम्हारे लिए क्या ले कर आऊं?’’

‘‘कुछ नहीं, बस, आप जल्दी वापस आ जाइए,’’ उस ने पति के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा.

इंदर ने पत्नी के गाल थपथपाते हुए उसे सांत्वना दी.अगले दिन धैर्यवचन, हिदायतें, बिदाई होने के बाद  आटोरिकशा स्टेशन की ओर दौड़ने लगा. उसी क्षण इंदर का मन उस के तन को छोड़ कर पंख फैला कर आकाश में विचरण करने लगा. उस पर आजादी का नशा छाया हुआ था

जैसे ही इंदर का आटोरिकशा निकला, विनी ने दरवाजा बंद कर लिया और गुनगुनाते हुए टीवी का रिमोट ले कर सोफे में धंस गई. जैसे ही रिमोट दबाया, मस्ती चैनल पर नरगिस आजाद पंछी की तरह लहराते हुए ‘पंछी बनूं उड़ती फिरूं मस्त गगन में, आज मैं आजाद हूं दुनिया के चमन में’ गा रही थी. वाह, क्या इत्तेफाक है. वह भी तो यही गाना गुनगुना रही थी.

‘‘आहा, एक सप्ताह तक पूरी छुट्टी. खाने का क्या है, कुछ भी चल जाएगा. कोई टैंशन नहीं, कोई नखरे नहीं, कोई जीहुजूरी नहीं. खूब सारी किताबें पढ़ना, गाने सुनना और जी भर के टीवी देखना. यानी कि अपनी मरजी के अनुसार केवल अपने लिए जीना,’’ वह सीटी बजाने लगी, ‘ऐ मेरे दिल, तू गाए जा…’ ‘‘अरे, मैं सीटी बजाना नहीं भूली. वाह…वाह.’’

इंदर का कार्यक्रम सुनते ही उस ने अपनी पड़ोसन मंजू से कुछ किताबें ले ली थीं. मंजू के पास किताबों की भरमार थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ने के शौकीन थे. उन में से एक बढि़या रोमांटिक किताब ले कर वह बिस्तर पर लेट गई. उस को लेट कर पढ़ने की आदत थी.

गाड़ी में चढ़ते ही इंदर ने अपने सामान को अपनी सीट के नीचे जमा लिया और आराम से बैठ गया. दफ्तर के काम के लिए जाने के कारण वह प्रथम श्रेणी में सफर कर रहा था, इसलिए वहां कोई गहमागहमी नहीं थी. सब आराम से बैठे अपनेआप मेंतल्लीन थे. सामने की खिड़की के पास बैठे सज्जन मुंह फेर कर खिड़की में से बाहर देख रहे थे मानो डब्बे में बैठे अन्य लोगों से उन का कोई सरोकार नहीं था. ऐसे लोगों को अपने अलावा अन्य सभी लोग बहुत निम्न स्तर के लगते हैं.

वह फिर से चारों ओर देखने लगा, जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो. गाड़ी अभीअभी किसी स्टेशन पर रुक गई थी. उस की तलाश मानो सफल हुई. लड़कियां चहचहाती हुई डब्बे में चढ़ गईं और इंदर के सामने वाली सीट पर बैठ गईं. इंदर ने सोचा, ‘चलो, आंखें सेंकने का कुछ सामान तो मिला. सफर अच्छा कट जाएगा.’ वह खयालों की दुनिया में खो गया.

‘वाह भई वाह, हफ्ते भर की आजादी,’ वह मन ही मन अपनी पीठ थपथपाते हुए सोचने लगा, ‘भई इंदर, तेरा तो जवाब नहीं. जो काम 3-4 दिन में निबटाया जा सकता है उस के लिए बौस को पटा कर हफ्ते भर की इजाजत ले ली. जब आजादी मिल ही रही है तो क्यों न उस का पूरापूरा लुफ्त उठाए. अब मौका मिला ही है तो बच्चू, दोनों हाथों से मजा लूट. सड़कों पर आवारागर्दी कर ले, सिनेमा देख ले, दोस्तों के साथ शामें रंगीन कर ले. इन 7 दिनों में जितना हो सके उतना आनंद उठा ले. फिर तो उसी जेल में वापस जाना है. शाम को दफ्तर से भागभाग कर घर जाना और बीवी के पीछे जीहुजूरी करना.’

आप अपनी आंखें और दिमाग को खुला छोड़ दें तो पाएंगे कि एक नहीं, दो नहीं, ऐसी हजारों घटनाएं आप के चारों ओर देखने को मिलेंगी. इंसान जैसा दिखता है वैसा बिलकुल नहीं होता. उस के अंदर एक और दुनिया बसी हुई है जो बाहर की दुनिया से हजारों गुना बड़ी है और रंगीन है. समय पा कर वह अपनी इस दुनिया में विचरण कर आता है, जिस की एक झलक भी वह दुनिया वालों के सामने रखना पसंद नहीं करता.

आज की  दुनिया विज्ञान की दुनिया है. विज्ञान के बल पर क्याक्या करामातें नहीं हुईं? क्या वैज्ञानिक चाहें तो ऐसी कोई मशीन ईजाद नहीं कर सकते जिसे कलाई की घड़ी, गले का लौकेट या हाथ की अंगूठी के रूप में धारण कर के सामने खड़े इंसान के दिलोदिमाग में चल रहे विचारों को खुली किताब की तरह पढ़ा जा सके? फिर चाहे वह जबान से कुछ भी क्यों न बोला करे.

मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा महान वैज्ञानिक अवश्य कहीं न कहीं पैदा हुआ होगा. उस ने ऐसी चीज बनाने की कोशिश भी की होगी. मगर यह सोच कर अपने प्रयत्नों को बीच में ही रोक दिया होगा कि कौन इस बला का आविष्कार करने का सेहरा अपने सिर बांधे? दुनिया वाले तो जूते मारेंगे ही, भला स्वयं के लिए भी इस से बढ़ कर घोर संकट और क्या होगा? Hindi Fiction Story

Home Cleaning: डोर नौब्स और बाथरूम टैप्स की सफाई में न करें ये गलतियां

Home Cleaning: घर की साफसफाई में अकसर हम फर्श, किचन और बाथरूम पर ध्यान देते हैं, लेकिन डोर नौब्स और बाथरूम टैप्स जैसे हाई टच एरिया को नजरअंदाज कर देते हैं. जबकि यहीं सब से ज्यादा बैक्टीरिया और गंदगी जमा होती है. साथ ही, अगर इन मैटल सरफेस की सही देखभाल न की जाए, तो ये वक्त से पहले ही डल और गंदे दिखने लगते हैं.

मार्केट में इन दिनों बहुत से प्रोडक्ट्स मौजूद हैं जो बाथरूम में नलों से लाइम स्कैल रिमूवल या हार्ड वाटर मार्क्ट को हटाने का दावा करते हैं लेकिन उन के लगातार या गलत इस्तेमाल से आप के बाथरूम के नलों की शाइन गायब हो जाती है और वे नए जैसे चमकने की बजाए भद्दा दिखने लगते हैं.

कुछ डीलर्स आप को डोर नौब भी ब्रास, पीतल या कौपर का कह कर बैचते हैं लेकिन जब आप उन की सफाई करते हुए उन्हें हलका रगड़ दें तो उन की कोटिंग निकल जाती है. हार्ष कैमिकल्स का टच भी ऐसे डोर नौब बरदाश्त नहीं कर पाते और वक्त से पहले ही बदरंग हो जाते हैं.

क्लीनिंग प्रोडक्ट्स का चुनाव

नौब्स और टैप्स के लिए क्लीनर चुनते वक्त यह जानना जरूरी है कि वह सरफेस किस मैटीरियल का है, क्रोम, स्टैनलेस स्टील, प्योर ब्रास या कोटेड मैटल. उस के अनुसार ही प्रोडक्ट का चुनाव करना चाहिए.

माइल्ड क्लीनर : रैगुलर डस्टिंग और हलकी सफाई के लिए

अगर आप रैगुलर डस्टिंग या फिंगरप्रिंट हटाने के लिए कुछ ढूंढ़ रहे हैं, तो ग्लास क्लीनर जैसे कोलीन, प्रेस्टो या क्लोरैक्स जैसे मल्टी सर्फेस क्लीनर अच्छा विकल्प हैं. ये न्यूट्रल नैचर के होते हैं और कोटेड ब्रास या क्रोम फिनिश पर सेफ रहते हैं. बस एक साफ व सूखे माइक्रोफाइबर कपड़े पर स्प्रे करें और धीरे से पोंछें.

ध्यान रखें कि कोई भी क्लीनर कितना ही माइल्ड होने की गारंटी दे रहा हो, आप को उसे डाइरैक्ट सर्फेस पर स्प्रे नहीं करना है. माइक्रोफाइबर क्लौथ पर स्प्रे कर के फिर ही एरिया क्लीन करें.

मैटल सरफेस क्लीनर : गहरी चमक और पौलिश के लिए

यदि दरवाजे के हैंडल या नौब्स, बाथरूम व किचन की टैप डल दिख रही हैं, तो डब्ल्यूडी-40 या 3 एम मैटल पौलिश (WD-40 या 3M Metal Polish) जैसे मैटल क्लीनर काम आ सकते हैं. ये हलके अल्कलाइन बेस वाले होते हैं और सरफेस पर जमी गंदगी या फिंगर औयल को साफ कर देते हैं.

इन्हें एक सौफ्ट कपड़े पर ले कर सर्कुलर मोशन में रगड़ें, फिर साफ कपड़े से पोंछ लें. डब्ल्यूडी-40 का इस्तेमाल आप चिमनी से हैवी ग्रीस निकालने में भी कर सकते हैं.

ब्रास पौलिश : ब्रास नौब्स के लिए

अगर आप के घर में पारंपरिक या विंटेज ब्रास नौब्स हैं, तो ब्रासो या सिल्वो (Brasso या Silvo) जैसे ब्रास क्लीनर का इस्तेमाल करें. ये माइल्ड ऐसिडिक प्रोडक्ट होते हैं और इन का उपयोग हर हफ्ते या 15 दिनों में एक बार पर्याप्त होता है.

इस्तेमाल करने से पहले छोटे हिस्से पर टेस्ट जरूर करें क्योंकि ज्यादा बार यूज करने से कोटिंग उतर सकती है. कोशिश करें कि रैगुलर बेसिस पर आप इन नौब्स को माइक्रोफाइबर के सूखे कपड़े से साफ करें.

बाथरूम टैप क्लीनर : जिद्दी दाग और वाटर स्टेन के लिए

बाथरूम टैप्स पर अकसर पानी के दाग और साबुन की परतें जम जाती हैं. ऐसे में सीआईएफ क्रीम क्लीनर या लाइजोल बाथरूम पावर क्लीनर (Cif Cream Cleaner या Lizol Bathroom Power Cleaner) जैसे प्रोडक्ट्स मददगार हैं. ये हलके ऐसिडिक या अल्कलाइन नैचर के होते हैं.

इन की थोड़ी मात्रा गीले स्पंज पर ले कर नल पर लगाएं, 2-3 मिनट तक छोड़ें और फिर धो लें. लेकिन ध्यान रहे कि ये प्रोडक्ट्स क्रोम या ब्रास कोटिंग पर बारबार न इस्तेमाल करें.

कुछ लोग हार्पिक (harpic) जैसे हार्ड टौयलेट क्लीनर का इस्तेमाल बाथरूम में नल पर भी कर देते हैं, जिस से आप की फिटिंग्स का रंग भद्दा लगने लगता है. जो प्रोडक्ट जिस काम के लिए बना है उस का इस्तेमाल उसी जगह करें, वरना आप को लेने के देने पड़ सकते हैं.

सफाई के वक्त कुछ सावधानियां

स्क्रब पैड, स्टील वूल या स्कौच ब्राइट के बरतन साफ करने वाले स्क्रबर का इस्तेमाल कभी न करें. इस से सतह पर स्क्रैच पड़ सकते हैं. अगर कोटिंग वाले प्रोडक्ट हैं तो उन की लेयर भी निकल सकती है.
अगर आप का नौब ब्रास जैसा दिखता है, तो जरूरी नहीं कि वह असली ब्रास हो. अधिकतर मामलों में यह बस ब्रास कोटेड होता है, जिस पर तेज कैमिकल्स या बहुत रगड़ने से कोटिंग उतर जाती है.
सफाई के बाद हमेशा सौफ्ट ड्राई क्लौथ से सुखाएं ताकि पानी के दाग न पड़ें.

फटाफट टेस्ट : मैटीरियल को ऐसे पहचानें

कई बार यह तय करना मुश्किल होता है कि नौब या टैप असली ब्रास है, स्टील है या बस कोटेड क्रोम मैटीरियल.

नीचे दिए गए कुछ आसान से टेस्ट आप को मदद कर सकते हैं :

● मैगनेट लगाएं : अगर उस पर मैगनेट चिपकता है, तो वह स्टैनलेस स्टील या आयरन मिक्स मैटीरियल हो सकता है. ब्रास या ब्रास कोटेड सतहों पर मैगनेट नहीं चिपकता.

● रंग का बदलाव देखें : थोड़ी सी सतह को हलके से स्क्रैच करें या किसी पहले से हुए स्क्रैच को देखें. अगर स्क्रैच के नीचे सिल्वर या अलग रंग दिखाई दे रहा है, तो यह ब्रास कोटेड या पेंटेड सरफेस है न कि सौलिड ब्रास.

● वजन देखें : ब्रास एक भारी मैटीरियल होता है. अगर नौब या टैप को उठाने पर हलका महसूस हो, तो वह या तो होलो है या फिर प्लास्टिक या कोटेड मैटीरियल हो सकता है.

● साउंड टेस्ट (नौक कर के) : हलके से उंगली के नाखून से या किसी लकड़ी की चीज से टैप कर के सुनें. मैटल पर ‘टनटन…’ जैसी ठोस आवाज आती है, जबकि प्लास्टिक या हलके मैटीरियल पर आवाज ‘टपटप…’ या मद्धम होती है.

इन आसान तरीकों से आप बिना किसी उपकरण के यह तय कर सकते हैं कि आप के घर की फिटिंग्स किस मैटीरियल की है. इस से न सिर्फ सफाई के लिए सही प्रोडक्ट चुनने में मदद मिलेगी, बल्कि आप की चीजें ज्यादा समय तक नई जैसी बनी रहेंगी. Home Cleaning

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