एकल परिवारों के बढ़ते चलन और मातापिता के कामकाजी होने की वजह से बच्चों का बचपन जैसे चारदीवारी में कैद हो गया है. वे पार्क या खुली जगह खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलते हैं. उन के दोस्त हमउम्र बच्चे नहीं, बल्कि टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल हैं. इस से बच्चों के व्यवहार और उन की मानसिकता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. वे न तो सामाजिकता के गुर सीख पाते हैं और न ही उन के व्यक्तित्व का सामान्य रूप से विकास हो पाता है.

क्यों जरूरी है सोशल स्किल सही भावनात्मक विकास के लिए सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के मनोवैज्ञानिक, डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह समाज से अलग नहीं रह सकता. सफल और बेहतर जीवन के लिए जरूरी है कि बच्चों को दूसरे लोगों से तालमेल बैठाने में परेशानी न आए. जिन बच्चों में सोशल स्किल विकसित नहीं होती है उन्हें बड़ा हो कर स्वस्थ रिश्ते बनाने में समस्या आती है. सोशल स्किल बच्चों में साझेदारी की भावना विकसित करती है और आत्मकेंद्रित होने से बचाती है. उन के मन से अकेलेपन की भावना कम करती है.’’

आक्रामक व्यवहार पर लगाम कसने के लिए डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘आक्रामक व्यवहार एक ऐसी समस्या है, जो बच्चों में बड़ी आम होती जा रही है. पारिवारिक तनाव, टीवी या इंटरनैट पर हिंसक कार्यक्रम देखना, पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन का दबाव या परिवार से दूर होस्टल वगैरह में रहने वाले बच्चों में आक्रामक बरताव ज्यादा देखा जाता है. ऐसे बच्चे सब से कटेकटे रहते हैं. दूसरे बच्चों द्वारा हर्ट किए जाने पर चीखनेचिल्लाने लगते हैं. अपशब्द कहते हुए मारपीट पर उतर आते हैं. ज्यादा गुस्सा होने पर कई बार हिंसक भी हो जाते हैं.’’ बचपन से ही बच्चों को सामाजिकता का पाठ पढ़ाया जाए तो उन में इस तरह की प्रवृत्ति पैदा ही नहीं होगी.

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